रिव्यू: सच्चे प्यार और बदले की लंबी कहानी है ‘कलंक’

फिल्म रिव्यू- कलंक

एक्टर- आलिया भट्ट, वरुण धवन, सोनाक्षी सिन्हा, आदित्य रौय कपूर, माधुरी दीक्षित, संजय दत्त

निर्देशक- अभिषेक वर्मन

रेटिंग- 3 स्टार

फिल्म ‘‘कलंक’’ की उलझी हुई प्रेम कहानी देश के बंटवारे की पृष्ठभूमि में 1944 में लाहौर के पास स्थित हुसैनाबाद से शुरू होती है. फिल्म की कहानी के केंद्र में बहार बेगम (माधुरी दीक्षित), बलराज चैधरी (संजय दत्त), देव चैधरी (आदित्य रौय कपूर), सत्या चैधरी (सोनाक्षी सिन्हा) ,रूप (आलिया भट्ट) और जफर (वरूण धवन) हैं. कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे पता चलता है कि यह सभी एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं.

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कहानी…

फिल्म शुरू होती है अपनी दो छोटी बहनों के साथ रूप के पतंग उड़ाने से. रूप जब अपनी बहनों के साथ अपने घर पहुंचती है, तो अपने पिता के साथ सत्या चैधरी को बैठे देखकर गुस्सा होती है. डाक्टरों के अनुसार कैंसर की मरीज सत्या चैधरी की जिंदगी सिर्फ एक-दो साल की ही है. सत्या चाहती है कि रूप उनके घर में आकर रहे. सत्या चाहती है कि उसकी मौत के बाद उसके पति देव चौधरी, रूप से शादी कर लेंगे. रूप अपनी बहनों के भविष्य को देखते हुए सत्या के घर जाने के लिए मजबूर होती है, पर वह शर्त रखती है कि देव चैधरी उसके साथ शादी कर लें. देव और रूप की शादी हो जाती है. सुहागरात के वक्त देव, रूप से कहता है कि उसने सत्या के दबाव में यह शादी की है. वह सिर्फ सत्या से प्यार करते हैं, इसलिए कभी रूप से प्यार नही कर पाएंगे. मगर रूप को इज्जत मिलेगी. देव चैधरी के पिता बलराज चैधरी का पुश्तैनी अखबार ‘डेली टाइम्स’ है. लंदन में पढ़ाई कर वापस लौटे देव ने ‘डेली टाइम्स’ की बागडोर संभाल रखी है. वह देश के बंटवारे के खिलाफ अपने अखबार में लिखते रहते हैं. इससे मुस्लिम लीग के नवोदित नेता अब्दुल (कुणाल खेमू) नाराज रहता है. अब्दुल को हिंदुओं से नफरत है. अब्दुल की इस नफरत की आग को भड़काने में अहम योगदान हीरामंडी में ही पले बढ़े जफर का है जो एक लोहार है. जफर के अंदर गुस्सा और आग है. लोग उसे हरामी व नाजायज कहते हैं. एक दिन गाने की आवाज सुनकर रूप हवेली की नौकरानी सरोज से सवाल करती है, तो सरोज बताती है कि यह आवाज हीरामंडी स्थित हवेली से बहार बेगम की है, पर चौधरी परिवार के उसूलों के अनुसार रूप हीरामंडी नही जा सकती. रूप और देव को नजदीक लाने के लिए सत्या, रूप से कहती है कि उसे देव के साथ अखबार के संपादकीय विभाग में काम करना चाहिए. रूप शर्त रखती है कि ऐसा वह तभी करेगी, जब उसे बहार बेगम से संगीत सीखने को मिलेगा. मजबूरन सत्या, बलराज से आज्ञा ले लेती है. सरोज, रूप को लेकर बहार बेगम के पास जाती है. बहार बेगम, रूप की आवाज पर मोहित हो जाती है. वापसी में रूप की मुलाकात जफर से होती है. जफर लड़कियों का शौकीन है. लेकिन जफर को जल्द अहसास हो जाता है कि शादीशुदा रूप दूसरी लड़कियों की तरह नही है. फिर भी रूप और जफर की मुलाकातें होती रहती हैं. अपने अखबार ‘डेली टाइम्स’ के लिए हीरामंडी के लोगों पर कहानी लिखने के लिए रूप पहले अब्दुल (कुणाल खेमू) से मिलती है, पर अब्दुल मदद नही करता, क्योंकि अब्दुल को पता है कि वह देव चैधरी की दूसरी पत्नी है. तब जफर उसे कई कहानियां बताता है और हीरामंडी घुमाता है. धीरे-धीरे रूप को जफर से प्यार हो जाता है, मगर जफर तो चैधरी परिवार से इंतकाम लेने के लिए रूप का इस्तेमाल करता है. बहार बेगम, रूप को सावधान करती है. लेकिन बाद में पता चलता है कि जफर, बहार बेगम और बलराज चैधरी का नाजायज बेटा है. बहार बेगम को सत्रह साल की उम्र में शादीशुदा बलराज चैधरी से प्रेम हुआ था. बलराज को अपने करीब लाने के लिए ही उसने जफर को जन्म दिया था, पर बलराज ने उसे अपनी हवेली में जगह नही दी थी, तो वह जफर को सड़क पर छोड़ आयी थी, फिर भी बलराज ने उसे स्वीकार नहीं किया था. इसी बीच कुछ लोगों ने जफर को हीरामंडी में लाकर पाला. एक दिन बहार बेगम ने जफर को सच बता दिया था. तब से जफर के अंदर चौधरी परिवार से इंतकाम लेने की आग जल रही है. लेकिन जफर सचमुच रूप से प्यार करने लगता है जिसके बाद कहानी नया मोड़ लेती है.

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डायरेक्शन…

फिल्मकार अभिषेक वर्मन ने पूरी फिल्म में इसी बात को दिखाने की कोशिश की है कि सच्चा प्यार, समाज के बनाए नियमों, धर्म की बंदिशों और इंसान की बनाई गई सरहदों को नहीं मानता. इस बात को साबित करने में वो सफल रहे हैं. लेकिन फिल्म में कुछ कमियां भी हैं.

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कमियां…

फिल्म की लंबाई और पटकथा की कमजोरी के चलते फिल्म कई जगह बोर करती है, कहानी की पृष्ठभूमि 1940 का दशक है, मगर फिल्म के भव्य सेट उस काल को रेखाकिंत करने में असफल रहे हैं. एडीटिंग टेबल पर यदि इस फिल्म को कसा जाता, तो यह एक कल्ट/अति बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. फिल्म से एक दो गीत कम किए जा सकते थे. अब इसे पटकथा लेखक की कमी कहें या कहानीकार की कमी. पटकथा लेखक की कमजोरी के चलते बहार बेगम और रूप के बीच गुरू-शिष्य के अलावा जो दूसरा रिश्ता है, उसकी टीस भी ठीक से उभर नहीं पाती. कहानी के मामले में भी यह फिल्म कुछ पुरानी क्लासिक फिल्मों की याद दिलाती है.

फिल्म की खूबियां…

दमदार संवादों के चलते दर्शक फिल्म को झेल जाता है. संवाद लेखक की तारीफ जरुर की जानी चाहिए. अलावा इस फिल्म की सबसे बड़ी मजबूत कड़ी इसके कलाकार हैं. फिल्म के कैमरामैन बिनोद प्रधान जरुर तारीफ के हकदार हैं. जहां तक गीत संगीत का सवाल है तो ‘घर मोरे परदेसिया’ और ‘कलंक’के अलावा दूसरे गीत प्रभावित नहीं करते.

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एक्टिंग…

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो रूप के अति जटिल किरदार को आलिया भट्ट ने अपने प्रभावशाली और शानदार अभिनय से जिंदा कर दिया है. मजबूर, गुस्सा, असहाय, दुखी हर भाव आलिया भट्ट के चेहरे पर सहज ही आते हैं. जफर के किरदार में वरूण धवन ने अपनी शारीरिक बनावट के साथ ही जफर के अंदर चल रहे हर भाव को बड़ी खूबी से परदे पर उकेरा है. माधुरी दीक्षित ने साबित कर दिखाया कि आज भी अभिनय और डांस में उनका कोई सानी नही है. आदित्य रौय कपूर व कुणाल खेमू भी प्रभावित करते हैं. सोनाक्षी सिन्हा ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया है. संजय दत्त के हिस्से कुछ खास करने को नहीं था.

Edited By- Nisha Rai

आलिया के पापा ने फेंकी थी कंगना पर चप्पल, बहन ने किया खुलासा

लगता है कंगना रनौत और आलिया भट्ट के बीच की लड़ाई एक बुरे स्टेज पर पहुंच गई है. क्योंकि, हाल ही में कंगना की बहन रंगोली ने आलिया के पापा महेश भट्ट पर निशाना साधा है और कुछ ऐसा कहा है जिसे सुनकर हर कोई हैरान हो गया है. रंगोली के मुताबिक महेश भट्ट ने सालों पहले उनकी बहन पर सरेआम चप्पल फेंकी थी. रंगोली के बाद हर कोई इस खबर की सच्चाई जानना चाहता है.

क्या है पूरा मामला…

दरअसल, पिछले कुछ दिनों से कंगना लगातार आलिया पर किसी न किसी बात को लेकर निशाना साध रही थीं. ऐसे में आलिया की मां और एक्ट्रेस सोनी राजदान ने ट्वीट करके हुए लिखा था कि महेश भट्ट वो इंसान है जिन्होंने कंगना को ब्रेक दिया था और अब वह बार-बार उनकी बेटी और पत्नी पर ही हमला बोल रही है. अब मैं क्या ही बोलूं? इसके पीछे का एजेंडा क्या है?

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इस हीरोइन को मिला बौलीवुड में सबसे झगड़ालू हीरोइन का खिताब

ट्वीट पर भड़कीं रंगोली…

सोनी राजदान का ये ट्वीट रंगोली को पसंद नहीं आया और इसके जवाब में उन्होंने ऐसा खुलासा किया कि पूरी इंडस्ट्री सकते में आ गई. रंगोली ने ट्वीट करते हुए लिखा कि अपनी फिल्म वो लम्हें के प्रिव्यू के दौरान ही महेश भट्ट ने 19 साल की कंगना पर चप्पल फेंकी थी. रंगोली ने ये भी लिखा कि- प्रिय सोनी जी महेश भट्ट ने उसे ब्रेक नहीं दिया है बल्कि अनुराग बसु ने दिया है. महेश भट्ट जी ने उस फिल्म में बतौर क्रिएटिव डायरेक्ट काम किया था.

इस वजह से फेंकी थी चप्पल…

रंगोली ने बताया कि जब कंगना ने महेश भट्ट की फिल्म धोखा करने से मना कर दिया था, तो वह काफी अपसेट हुए थे और उन्होंने कंगना को खूब खरी-खोटी सुनाई थी. इसके बाद फिल्म वो लम्हें के प्रिव्यू के दौरान महेश भट्ट जी ने कंगना पर चप्पल फेंकी थी और उन्होंने कंगना को ही उनकी फिल्म नहीं देखने दी. जिसके बाद उनकी बहन रात भर रोई थी.

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अब देखना है कि रंगोली के इस खुलासे पर भट्ट फैमिली का क्या रिएक्शन होता है और कंगना और आलिया के बीच की लड़ाई आगे क्या मोड़ लेती है.

‘Bharat’ का नया पोस्टर रिलीज, सलमान के साथ दिखीं कैटरीना

बौलीवुड दबंग सलमान खान की चर्चा में चल रही अपकमिंग मूवी ‘भारत’ का एक और पोस्टर रिलीज हो गया है. फिल्म ‘भारत’  के इस पोस्टर में सलमान खान के साथ मेन एक्ट्रेस कैटरीना कैफ नजर आ रही हैं. सलमान खान ने इस लुक को ट्विटर पर शेयर करते हुए लिखा, ‘और हमारी जिंदगी में आईं मैडम सर’. साथ ही एक्ट्रेस कैटरीना कैफ ने भी इससे पहले इंस्टाग्राम पर फिल्म ‘भारत’  के सेट से अपना लुक शेयर किया था. इससे पहले फिल्म ‘भारत’  के 2 पोस्टर रिलीज हो चुके है. जिनमें सलमान खान नजर आएं थे.

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कैटरीना के लुक की बात करें तो वह व्हाइट शर्ट और खाकी पैंट के साथ कर्ली हेयर में नजर आ रही है. जबकि सलमान खान हेलमेट लगाए हुए जवान के लुक में नजर आ रहे है. फिल्म का ट्रेलर 24 अप्रैल को रिलीज होने जा रहा है.

 

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बता दें, फिल्म ‘भारत’ में सलमान खान 6 अलग-अलग लुक में 18 साल के लड़के से लेकर 70 साल के बुजुर्ग तक के रोल में दिखेंगे. यह फिल्म ईद के पर रिलीज होगी. इस फिल्म में सलमान खान के साथ कटरीना कैफ और दिशा पाटनी भी अहम किरदारों में नजर आएंगे. वहीं फिल्म में जैकी श्रौफ और सुनील ग्रोवर भी एक अलग अंदाज में देखने को मिलेंगे.

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भारत का निर्देशन अली अब्बास जफर कर रहे हैं. अली अब्बास जफर और सलमान खान की यह जोड़ी तीसरी बार साथ काम कर रही है. इससे पहले दोनों ने सुल्तान और टाइगर जिंदा में साथ काम किया है. उम्मीद की जा रही है कि इन दो फिल्मों की तरह यह फिल्म भी सुपरहिट होगी और नए रिकौर्ड बनाएगी.

मोदी की नैय्या

यह गनीमत ही कही जाएगी कि इन पंक्तियों के लिखे जाने तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आम चुनाव जीतने के लिए पाकिस्तान से व्यर्थ का युद्ध नहीं लड़ा.

सेना को एक निरर्थक युद्ध में झोंक देना बड़ी बात न होती. पर जैसा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि युद्ध शुरू करना आसान है, युद्ध जाता कहां है, कहना कठिन है. वर्ष 1857 में मेरठ में स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई ब्रिटिशों की हिंदुओं की ऊंची जमात के सैनिकों ने छेड़ी लेकिन अंत हुआ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर एकछत्र ब्रिटिश राज में, जिस में विद्रोही राजा मारे गए और बाकी कठपुतली बन कर रह गए.

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आक्रमणकारी पर विजय प्राप्त  करना एक श्रेय की बात है, पर चुनाव जीतने के लिए आक्रमण करना एक महंगा सौदा है, खासतौर पर एक गरीब, मुहताज देश के लिए जो राइफलों तक के  लिए विदेशों का मुंह  ताकता है, टैंक, हवाईजहाजों, तोपों, जलपोतों, पनडुब्बियों की तो बात छोड़ ही दें.

नरेंद्र मोदी के लिए चुनाव का मुद्दा उन के पिछले 5 वर्षों के काम होना चाहिए. जब उन्होंने पिछले हर प्रधानमंत्री से कई गुना अच्छा काम किया है, जैसा कि उन का दावा है, तो उन्हें चौकीदार बन कर आक्रमण करने की जरूरत ही क्या है? लोग अच्छी सरकार को तो वैसे ही वोटे देते हैं. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक बिना धार्मिक दंगे कराए चुनाव दर चुनाव जीतते आ रहे हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का दबदबा बिना सेना, बिना डंडे, बिना खूनखराबे के बना हुआ है.

ह भी पढ़ेंखूबसूरत दिखने की होड़ क्यों?

नरेंद्र मोदी को खुद को मजबूत प्रधानमंत्री, मेहनती प्रधानमंत्री, हिम्मतवाला प्रधानमंत्री, चौकीदार प्रधानमंत्री, करप्शनफ्री प्रधानमंत्री कहने की जरूरत ही नहीं है, सैनिक कार्यवाही की तो बिलकुल नहीं.

रही बात पुलवामा का बदला लेने की, तो उस के बाद बालाकोट पर हमला करने के बावजूद कश्मीर में आएदिन आतंकवादी घटनाएं हो रही हैं. आतंकवादी जिस मिट्टी के बने हैं, उन्हें डराना संभव नहीं है. अमेरिका ने अफगानिस्तान, इराक, सीरिया में प्रयोग किया हुआ है. पहले वह वियतनाम से मार खा चुका है. अमेरिका के पैर निश्चितरूप से भारत से कहीं ज्यादा मजबूत हैं चाहे जौर्ज बुश और बराक ओबामा जैसे राष्ट्रपतियों की छातियां 56 इंच की न रही हों. बराक ओबामा जैसे सरल, सौम्य व्यक्ति ने तो पाकिस्तान में एबटाबाद पर हमला कर ओसामा बिन लादेन को मार ही नहीं डाला था, उस की लाश तक ले गए थे जबकि उन्हें अगला चुनाव जीतना ही नहीं था.

ह भी पढ़ेंजानलेवा बनता अंधविश्वास

नरेंद्र मोदी की पार्टी राम और कृष्ण के तर्ज पर युद्ध जीतने की मंशा रखती है पर युद्ध के  बाद राम को पहले सीता को, फिर लक्ष्मण को हटाना पड़ा था और बाद में अपने ही पुत्रों लवकुश से हारना पड़ा था. महाभारत के जीते पात्र हिमालय में जा कर मरे थे और कृष्ण अपने राज्य से निकाले जाने के बाद जंगल में एक बहेलिए के तीर से मरे थे. चुनाव को जीतने का युद्ध कोई उपाय नहीं है. जनता के लिए किया गया काम चुनाव जिताता है. भाजपा को डर क्यों है कि उसे युद्ध का बहाना भी चाहिए. नरेंद्र मोदी की सरकार तो आज तक की सरकारों में सर्वश्रेष्ठ रही ही है न!

प्यार की वजह से तो नहीं बढ़ रहा आपका वजन? जानिए यहां

अक्सर महिलाओं को यह कहते सुना जाता है कि शादी से पहले तो मैं दुबली-पतली छरहरी सी थी, मगर शादी के बाद मोटी हो गयी. ये सच है कि ज्यादातर महिलाएं शादी के बाद मोटी हो जाती हैं. यही नहीं, किसी से नैन मिल जाएं और प्रेम का रोग लग जाए तो भी वजन बढ़ने लगता है. यूं तो किसी के प्यार में डूबना एक खूबसूरत अहसास होता है, लेकिन प्यार करने से अगर वजन बढ़ने लगे तो यह उन लड़कियों के लिए चिन्ता का सबब बन जाता है, जो अपने फिगर को लेकर काफी कौन्शस रहती हैं.

औस्ट्रेलिया की ‘सेंट्रल क्वींलैंड यूनिवर्सिटी’ की एक स्टडी के मुताबिक, जब लोग किसी के साथ रिलेशनशिप में होते हैं या उनको किसी से प्यार हो जाता है, तो उनका वजन बढ़ने लगता है. शोधकर्ताओं ने अपनी स्टडी में लगभग 15,000 से ज्यादा लोगों को शामिल किया. इसमें उन्होंने अलग-अलग जीवनशैली के सिंगल्स और कपल्स दोनों तरह के लोगों को शामिल किया और फिर पुरुष और महिलाओं के बौडी मास इंडेक्स की तुलना करके नतीजे घोषित किये. शोध के दौरान पाया गया कि जब लोग किसी रिश्ते में आ जाते हैं तो उनका मोटापा इसलिए बढ़ने लगता है, क्योंकि उनके अन्दर पार्टनर को इम्प्रेस करने की भावना लगभग खत्म हो जाती है और वह अपने बौडी शेप को बनाये रखने की ओर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं. शोध में शामिल ज्यादातर लोगों ने यह माना कि शादी के बाद या रिलेशनशिप में आने के बाद वे कसरत, जौगिंग या अन्य शारीरिक क्रियाकलापों की ओर कम ध्यान देने लगे थे. उनका ज्यादा ध्यान पार्टनर के साथ घूमने, मौज-मस्ती करने और विभिन्न प्रकार के पकवानों का लुत्फ उठाने में गुजरने लगा था, जिसके चलते उनका वजन बढ़ता गया. जो जोड़े अपनी शादी से खुश, संतुष्ट और सुरक्षित महसूस करते हैं उनमें वजन बढ़ने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं क्योंकि उनके दिमाग पर किसी अन्य को आकर्षित करने का कोई दबाव नहीं होता.

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वजन बढ़ने का एक मुख्य कारण यह भी है कि जो लोग प्यार के रिश्ते में होते हैं वो लोग जिम जाकर एक्सरसाइज करने के बजाए अपना ज्यादातर समय पार्टनर के साथ घर में रहकर ही गुजारना पसंद करते हैं. यह बदली हुई जीवनशैली भी वजन बढ़ने का एक अहम कारण है. इसके अलावा जब लोग प्यार में होते हैं तो वो बेहद खुश रहते हैं और अगर रिश्ता नया हो तो यह खुशी डबल हो जाती है. बता दें, जब हम खुश होते हैं तो हमारे शरीर में हैप्पी हार्मोन आॅक्सीटोसिन और डोपामाइन निकलते हैं. इन हैप्पी हार्मोन से चौकलेट, वाइन और ज्यादा कैलोरी वाली चीजें खाने की इच्छा बढ़ती है, जो वजन बढ़ाने का काम करती हैं. तो शादी के बाद जो लोग बहुत ज्यादा खुश रहते हैं, उनके मोटे होने की उतनी ज्यादा सम्भावनाएं होती हैं. शादीशुदा स्त्री अगर 20 साल की है तो अगले पांच सालों में उसका वजन 11 किलोग्राम के लगभग बढ़ने की सम्भावना होती है. वहीं इसी उम्र के पुरुष का वजन 13 किलोग्राम तक बढ़ने की सम्भावना होती है.

नींद की कमी

शादी के बाद लड़कियों का स्लीपिंग पैटर्न बदल जाता है. कई बार वे पर्याप्त नींद नहीं ले पाती हैं, जो वजन बढ़ने का एक कारण है. अपना घर छोड़कर शादी के बाद किसी और जगह एडजस्ट करना सबसे कठिन काम है. नये घर में एडजस्ट करने में कुछ तनाव तो होता ही है जो कि अप्रत्यक्ष रुप से वजन पर प्रभाव डालता है.

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पकवानों का कमाल

शादी के बाद हमारी भारतीय नारियां पाक कला में खूब हाथ आजमाती हैं ताकि अपने जीवनसाथी और घर के बाकी सदस्यों को खुश कर सकें और तारीफ पा सकें. जब तरह-तरह के व्यंजन रोज बनाये और खाये जाते हैं तो वजन बढ़ना तो लाजिमी है. जरूरी नहीं कि हैप्पी मैरिज से ही वजन बढ़े, कभी-कभी मैरिज हैप्पी न भी हो तो भी हस्बैंड वाइफ दोनों का वजन बढ़ने लगता है, उसकी वजह किचेन में बनने वाले विभिन्न हाई कैलोरी पकवान हैं.

हार्मोन्स में बदलाव

जब लड़की शादीशुदा जीवन में प्रवेश करती है तो उसके शरीर में कई प्रकार के हार्मोन्स बदलाव होते है. सेक्सुयल लाइफ में एक्टिव होना वजन बढ़ने का एक मुख्य कारण होता है. जीवनसाथी से शारीरिक नजदीकियां शरीर में हैप्पी हार्मोन्स यानी औक्सीटोसिन और डोपामाइन का स्राव बढ़ा देती हैं, इसके कारण शारीरिक संरचना में थोड़ा-बहुत बदलाव आता है.  महिलाएं जिससे प्यार करती हैं उसके साथ सेक्शुयल रिलेशनशिप बनाने से उनकी कमर और हिप्स की चौड़ाई बढ़ती है. आमतौर पर देखा गया है कि सेक्स के बाद भूख भी बढ़ने लगती है और इसके अलावा आप प्रेग्नेंसी से बचने के लिए गर्भनिरोधक गोलियों का भी इस्तेमाल करने लगती हैं, जो आपके मोटापे का कारण बनती हैं. पति के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनने से हार्मोन्स में आये बदलाव का असर अंगों पर साफ दिखने लगता है, खासतौर पर ब्रेस्ट, कमर और हिप्स पर. शादी के बाद लड़कियों के हिप्स अपने सामान्य आकार से बढ़कर थोड़े बड़े हो जाते हैं. यह प्राकृतिक तौर पर होना जरूरी भी है क्योंकि शारीरिक सम्बन्ध के बाद गर्भधारण की प्रक्रिया होती है. प्राकृतिक तौर पर बड़े हिप्स की महिलाओं को डिलिवरी के वक्त अधिक दर्द नहीं होता है और वह आराम से बच्चे को जन्म देती हैं, जबकि छोटे हिप्स की दुबली-पतली महिलाओं को असहनीय दर्द का सामना करना पड़ता है. सेक्शुअली एक्टिव होने पर महिलाओं के हिप्स की चौड़ाई का बढ़ना प्रकृति का नियम है. प्रेग्नेंसी के दौरान अधिक खाने की सलाह भी दी जाती है, जिससे लड़कियों का वजन बढ़ जाता है और डिलिवरी के बाद इसको घटाने पर ठीक तरीके से ध्यान न दिये जाने की वजह से शरीर फूला रह जाता है.

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कम खाओ, गम खाओ

दुबला पतला रहने के लिए एक कहावत मशहूर है कि – कम खाओ, गम खाओ. दरअसल शरीर को छरहरा रखने के लिए हमेशा भूख से थोड़ा कम खाने की सलाह दी जाती है. दूसरे, चिन्ता को चिता के समान इसलिए बताया गया है क्योंकि इसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है. चिन्ताग्रस्त व्यक्ति को भूख कम लगती है, जिसकी वजह से उस पर मोटापा नहीं चढ़ता. जब हम अकेले होते हैं, अविवाहित होते हैं, दुखी रहते हैं, हमारा कोई प्रेमी या पार्टनर नहीं होता तो हम अकेलेपन के अहसास से जूझते रहते हैं. यही सोचते रहते हैं कि – कोई होता, जिसको अपना, हम अपना कह लेते यारों…

इस गम का सीधा असर हमारी सेहत पर पड़ता है. इसलिए तन्हा व्यक्ति अक्सर दुबला-पतला होता है. जबकि प्यार होने के बाद हम न सिर्फ खुश रहते हैं, घूमते-फिरते हैं, बल्कि अपने पार्टनर के साथ हर वक्त कुछ न कुछ पीजा, बर्गर, नौनवेज, आइसक्रीम, चौकलेट जैसी चीजें खाते-पीते रहते हैं. शादी के बाद लड़कियां पति के साथ रहकर बाहर का खाना ज्यादा पसन्द करती हैं. हनीमून के दौरान भी बाहर का खाना ही खाते हैं जो ज्यादा कैलोरी वाला होता है. ये सारे प्यार के साइड इफेक्ट हैं, जो आपके फिगर का सत्यानाश कर देते हैं. इसलिए प्यार करें, जम कर करें, मगर अपने खाने पर कंट्रोल रखें और एक्सर्साइज करना भी न छोड़ें.

edited by: Shubham

यूं दें अपने घर को न्यू लुक

आप घर में नया बदलाव लाना चाहती हैं, तो ये काम आप बिना पैसे खर्च किए भी कर सकती हैं. आज हम ऐसे ट्रिक्स आपको बताने जा रहे हैं, जिससे आप आजमा कर घऱ को एक नया लुक दे सकती हैं. आइए जानते हैं.

  1. घर को आकर्षक बनाने के लिए पुराने पीतल के बरतनों को पालिश करके आप सजाने के काम में ला सकती हैं. उसके ऊपर स्टोन लगाकर उसे और भी आकर्षक बना सकती हैं. इसके अलावा पुराने अच्छे कपडों का भी यूज कर सकती हैं. जैसे-आपकी कोई पुरानी अच्छी साड़ी हो,  जिसे आप नहीं पहनना चाहती हैं तो आप उसे कुशन कवर या कर्टेन के रूप में यूज कर सकती हैं. इसके अलावा पुरानी साड़ियों का स्टाइलिश बेडशीट विद पिलो कवर भी बनने लगे हैं, यह बेडरूम की खूबसूरती बढ़ा देते हैं.

कपड़ों के अलावा ये 5 चीजें भी वाशिंग मशीन में धो सकती हैं आप

2.  एक्सेसरीज फर्नीचर इसके स्थान में भी बदलाव ला सकती हैं. जैसे- बडे रूम का सामान टेबल या साइड टेबल, चेयर, स्टूल और एक्सेसरीज में लैंप, पेंटिंग, वाल मिरर या डेकोरेशन के सामान आदि को लिविंग रूम में लगा सकती हैं और लिविंग रूम का कुछ सामान बेडरूम में सजा सकती हैं. ऐसा आप हर पांच से छह माह में एक बार कर सकती हैं. इससे लिविंग रूम और बेडरूम दोनों में बदलाव महसूस होगा.

3.  दीवारों पर फोटो लगाना, यह बहुत पुराना चलन हो चुका है. आप अपनी क्रियेटिविटी दिखाएं कुछ नया करके दिखाएं. जैसे-आप परिवार के लोगों की अलग-अलग फोटो लें और व्हाइट ग्लासी पेपर में चिपकाकर उसके नीचे उनका थोडा-सा इतिहास और उनकी खासियत लिखें और दीवार पर चिपका दें. इस तरह जितने लोगों की फोटो लगाना चाहती हैं, इसी तरह तैयार करके लगाएं तो काफी अच्छा लगेगा.

4. इसके अलावा कई बार बच्चों के द्वारा बनाए गए क्रौफ्ट का भी यूज कर सकती हैं, उसे सजाने के काम ला सकती हैं. वो कलरफुल चीजें दीवारों पर अच्छी भी लगेंगी और बच्चें का प्रोत्साहन भी बढ़ेगा. इसके अलावा आप घर पर वाल हैंगिंग और सैफ्ट टौय बनाकर भी घर पर सजा सकती हैं. तो आप दीवारों पर कलाकृतियों बनाकर भी पेंट कर सकती हैं.

घरेलू रद्दी से बनाएं सुंदर क्राफ्ट

5. मार्केट में लैंप बनाने के लैंम्पशीट मिलती है, आप उसे घर लाकर लैंप भी बना सकती हैं और उसे लाइट के ऊपर लगा सकती हैं. यह देखने में आकर्षक लगता है. पुराने पत्थर और शंख जैसी चीजों को हम घर के बाहर करवा देते हैं या घर के किसी कोने में पडे रहने देते हैं लेकिन आप इनका यूज भी अपने घर को सजाने के लिए कर सकते हैं.इमली के दानों को रंग कर उस पर ग्लिटर लगाकर बाउल में रखकर सजा सकते हैं.

पुराने फर्नीचर को कुछ इस तरह से दें न्यू लुक

 

गरमी में स्किन को भी दें तरबूज का मजा…

गरमी से राहत के लिए लोग तरबूज खाना बहुत पसंद करते हैं. यह हमारी बौडी में पानी की कमी पूरी करता है. पर क्या आप जानते हैं कि तरबूज विटामिन ए का एक बहुत अच्छा सोर्स है, जो स्किन के लिए असरदार होता है. साथ ही, यह एंटीऔक्सिडेंट से समृद्ध होता है, जो एंटी एजिंग के लिए अच्छा होता है.

यह एक स्किन टौनिक है जिसमें 90% पानी होता है, साथ ही नेचुरल शुगर और एंटीऔक्सिडेंट से भरपूर होता है. इसलिए आज हम आपको स्किन के लिए तरबूज के ऐसे फेस मास्क बताएंगे जो आपकी स्किन के लिए बहुत असरदार होगा.

1. सूरज की हीट के लिए तरबूज का फेस पैक

लाल तरबूज में वर्णक एक नेचुरल सनस्क्रीन गार्ड होता है, जो सनबर्न को ठीक करता है.

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ऐसे लगाएं…

-एक मिक्सर में तरबूज के कुछ टुकड़े लें और पीस लें, और फिर इसके रस को सीधा स्किन पर रब करें.

-आप चाहें तो रूई को रस में भिगोकर धूप से प्रभावित हिस्सों पर लगा सकते हैं. इसे लगभग 15 मिनट तक सूखने के बाद धो लें. इससे धूप में डैमेज होने वाली स्किन से आपको बड़ी राहत महसूस होगी.

2. सेंसिटिव स्किन के लिए तरबूज फेस पैक

यह सेंसिटिव स्किन के लिए बहुत असरदार होता है. तरबूज के गूदे में सौफ्ट फाइबर होता है, जो डेड स्किन को हटाने का काम करता है और साथ ही चेहरे के नेचुरल एसिड के साथ मिलकर स्किन को सौफ्ट बनाता है.

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ऐसे लगाएं…

1 बड़ा चम्मच तरबूज का गूदा लेकर उसमें शहद की कुछ बूंदें लें और मिक्स करें.

-इसे आप आसानी से अपने चेहरे पर रब करें और 15 मिनट के लिए छोड़ दें. फिर इसे ठंडे पानी से धो लें.

3. एंटी एजिंग के लिए तरबूज

तरबूज बहुत जल्दी नहीं फटते या सड़ते नहीं हैं, क्योंकि तरबूज कई एंटीऔक्सिडेंट और एंटी-एजिंग गुणों से भरपूर होता हैं, जो आपकी स्किन को सौफ्ट और यंग दिखने में मदद करता हैं.

4. तरबूज और औलिव औयल के साथ फेस पैक

यह स्किन को क्लीन, सौफ्ट और हाइड्रेटेड रखने में मदद करता है.

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ऐसे लगाएं…

1 बड़ा चम्मच तरबूज का गूदा, 1 चम्मच क्रीम, 1 चम्मच औलिव औयल और अंडे की जर्दी लेकर पेस्ट बनाएं.

– इस पेस्ट को गर्दन और चेहरे पर लगायें और लगभग 30 मिनट के लिए छोड़कर फेस को धो लें.

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4. नौर्मल स्किन के लिए तरबूज का फेस पैक

औलिव औयल एक एंटीऔक्सिडेंट और मौइस्चराइजर का काम करता है जो आपकी स्किन को सौफ्ट बनाता है और दूध स्किन को पोषण देता है.

ऐसे लगाएं…

-तरबूज का रस 2 टेबलस्पून, 1 चम्मच औलिव औयल और कुछ दूध की बूंदें मिलाएं.

-तीनों को मिक्स करके कौटन बौल्स में भिगोएं और पूरे चेहरे पर धीरे से लगाएं. और इसे 20 मिनट के लिए छोड़ दें और बाद में फेस को धो लें.

5. औयली स्किन के लिए तरबूज का फेस पैक

तरबूज औयली स्किन में एक्स्ट्रा औयल को सोखने में मदद करता है.

ऐसे लगाएं

1 बड़ा चम्मच ओटमील पाउडर, शहद की कुछ बूंदें और 2 टेबलस्पून तरबूज का रस लें.

-मिश्रण को पूरे चेहरे और गर्दन पर लगाएं और इसे 20 मिनट तक सूखने दें और धो लें.

गरमियों में बनाएं चटपटा और टेस्टी आम पन्ना

गरमियों में सबसे ज्यादा आम बिकता है, पर अक्सर आम को या तो काटकर खाते हैं या मैंगों शेक बनाकर पीते हैं. पर आज हम आपको गरमी में आम की चटपटी और हेल्दी ड्रिंक आम पन्ना की रेसिपी के बारे में बताएंगे…

सामग्री

कच्चे आम– 3

शक्कर – 150 ग्राम,

पुदीना पत्ती – 1/2 कप पत्तियां

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भुना जीरा पाउडर – 02 छोटे चम्मच

काला नमक – 02 छोटे चम्मच

काली मिर्च पाउडर – 1/4 छोटा चम्मच

बनाने का तरीका

-पहले आम को छील कर धो लें. इसके बाद आमों को बीच से काट कर गुठली अलग कर दें. अब आम के गूदे को एक कप पानी के साथ किसी बर्तन में रख कर उबाल लें.

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-उबले हुए गूदे को शक्कर, काला नमक और पुदीना के साथ मिक्सर में डालें और महीन पीस लें. पिसे हुए मिश्रण को छान लें और एक लीटर पानी में मिला दें. साथ ही उसमें काली मिर्च और भुना हुआ जीरा पाउडर भी डाल दें.

– अब इसे सर्विंग गिलास में निकालें और बर्फ के टुकड़ों के साथ सर्व करें.

अब औडियंस को चाहिए एंटरटेनमेंट के साथ अच्छी स्टोरी- माधुरी

शादी के बाद फिल्मों से दूरी बनाने वाली ‘धक धक गर्ल’ के नाम से मशहूर बौलीवुड दिवा माधुरी दीक्षित ने 2013 में फिल्म ‘बांबे टौकीज’ से दोबारा एक्टिंग करियर में कदम रखा. लेकिन इस बार माधुरी ने सिर्फ एक्टिंग में ही नही डांस के क्षेत्र में भी अपना हाथ आजमाया है. इसी के चलते अपनी वेब साइट के जरिए लोगों को डांस की ट्रेनिंग भी देनी शुरू की. वहीं उन्होने मराठी फिल्म ‘15 अगस्त’ का निर्माण भी किया. साथ ही समाज सेवा से भी जुड़ी हुई हैं. इन दिनों वह 17 अप्रैल को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘कलंक’ को लेकर चर्चा में हैं. जिसमें वह संजय दत्त के साथ 21 वर्ष बाद नजर आएंगी. पेश है उनके साथ हुई मुलाकात के कुछ अंश…

आपके अनुसार सिनेमा कहां से कहां पहुंचा?

-जब मैने अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा था, उन दिनों ज्यादातर बिजनेस सिनेमा ही बन रहा था. पर उस वक्त भी शबाना आजमी, स्मिता पाटिल जैसी अभिनेत्रियां अलग तरह का सिनेमा कर रही थीं, जिसे आर्ट सिनेमा की संज्ञा दी जा रही थी. पर बड़े स्टार केवल कमर्शियल सिनेमा किया करते थे. पर अब सिनेमा में भेदभाव खत्म हो चुका है. आजकल कटेंट प्रधान फिल्में बनने लगी हैं, जहां स्टार वैल्यू के मायने नहीं है. पर यह फिल्में भी मनोरंजन प्रधान होने चाहिए, ऐसी दर्शकों की मांग है. दर्शक काफी मैच्योर हो गए हैं. अब सिनेमा सिर्फ सिनेमा है, भाषा अलग हो सकती है. बाकी कोई विभाजन नहीं रहा. आजकल डिजिटल की वजह से लोग पूरे विश्व का सिनेमा देख पा रहे हैं. इस वजह से दर्शक चाहता है कि भारतीय सिनेमा में भी अलग-अलग कंटेंट पर फिल्में बनें.

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हौलीवुड की फिल्में भारतीय भाषाओं में डब होकर रिलीज हो रही हैं, इससे भी दर्शकों की रूचि में परिवर्तन आया?

मुझे लगता है कि बदलती जनरेशन और बदलते समाज के चलते लोगों की सोच बदली है. हमारे देश में पचास प्रतिशत यूथ है. यह यूथ तेजी से बदलाव चाहता है. इसलिए मुझे लगता है कि इस वक्त सिनेमा का जो दौर चल रहा है, वह बहुत अच्छा दौर है.

अब लोगों को वह फिल्में पसंद आ रही हैं,जिनमे मनोरंजन के साथ अलग तरह की कहानियां हों. आप खुद अब किस तरह की फिल्में करना चाहती हैं?

मुझे तो सब तरह की फिल्में करनी हैं. जब मैं फिल्मों में काफी सक्रिय थी, तब मैने ‘तेजाब’ भी की थी, तो वही ‘धारावी’ और ‘मृत्युदंड’ जैसी फिल्में भी की थीं. जब मैने ‘मृत्युदंड’ की थी, तब लोगों ने मुझसे कहा था कि मैं अपने करियर को खत्म करने वाला कदम उठा रही हूं. तब मैने उन सभी को जवाब दिया था कि ऐसा नहीं होगा. मुझे फिल्म की स्क्रिप्ट पसंद है. फिल्मकार कुछ अच्छी बात कह रहे हैं. इस फिल्म से मुझे फायदा ही हुआ था. फिल्म को सफलता मिली थी. एक्ट्रेस के तौर पर मेरी एक अलग पहचान भी उभरी थी. कुछ समय पहले मैने ‘टोटल धमाल’  की थी और अब मैने ‘कलंक’की है. दोनों ही फिल्में काफी अलग हैं. ‘टोटल धमाल’ नाम के अनुरूप मनोरंजन का धमाल थी, जबकि ‘कलंक’ 1940 की पृष्ठभूमि में एक संजीदा व जटिल फिल्म है. ‘कलंक’ में हर तरह के रंग हैं. इसमें मनोरंजन के साथ ही कुछ मुद्दे भी उठाए गए हैं.

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फिल्म कलंक किस तरह के मुद्दों को उठाती है?

-फिल्म ‘कलंक’ में बहुत अलग तरह की प्रेम कहानी है. इसी के साथ यह फिल्म इस बात पर रोशनी डालती है कि आप जो निर्णय लेते हैं, उसका असर सिर्फ आपके उपर नहीं, बल्कि आस-पास के लोगों पर भी पड़ता है. इस वजह से हर इंसान की जिंदगी कैसे बदलती है, कैसे हर किसी की जिंदगी की दिशा बदलती है और किस तरह सभी किरदार एक मोड़ पर आते हैं, सभी की लाइफ कोलाइड होती हैं, वह बहुत रोचक है.

फिल्म कलंक के अपने किरदार के बारे में बताना चाहेंगी?

-मेरा किरदार बहार बेगम का है. एक जमाने में महान अदाकारा रही हैं. मगर फिर कुछ ऐसा हुआ कि उन्होंने अपने आपको अपने घर में ही कैद सा कर लिया. वह ज्यादा बाहर जाती नहीं. वह सारी चीजें अपने दिल में ही रखती हैं. एक ग्रे किरदार है.

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फिल्म कलंक में संजय दत्त के साथ काम करने को लेकर क्या कहेंगी?

-सुखद अहसास रहा. हम दोनों लोगों ने पटकथा के अनुसार काम किया है. हमारे मन में कोई जादू जगाने का मसला नहीं रहा.

आपने मराठी फिल्म बकेट लिस्ट में एक्टिंग की. उसके बाद मराठी की फिल्में मिली?

-कुछ औफर हैं. मगर मैं ‘टोटल धमाल’ और ‘कलंक’ में व्यस्त होने की वजह से ध्यान नही दे पायी. अब 17 अप्रैल के बाद मराठी फिल्मों की स्क्रिप्ट पढ़कर निर्णय लूंगी.

आप समाज सेवा में भी काफी सक्रिय रहती है. आपने यूनीसेफ के साथ मिलकर चाइल्ड वेलफेअर और बाल मजदूरों पर काफी काम किया है. बाल मजदूरी की वजहें आपकी समझ में क्या आयीं?

-गरीबी… जब तक परिवार का हर सदस्य काम नही करेगा, तब तक पैसा कैसे आएगा. मगर परिवार का सदस्य शिक्षित हो, तो उस शिक्षा के चलते उसे अच्छी नौकरी और सैलरी मिलेगी, तब वह अपने बच्चों से बाल मजदूरी करवाने की बजाय उन्हें पढ़ने के लिए भेजेगा. इसलिए इस दिशा में काम करते हुए मैने लोगों को शिक्षा मुहैय्या कराने पर ही ज्यादा जोर दिया.

मैंने औरतों व नवजात शिशुओं, नई-नई मां बनने वाली औरतों के लिए काफी काम किया. ऐसी औरतों के साथ मेरी काफी मुलाकातें और बातचीत भी हुई. मैंने कई गांवों में पाया कि तमाम घरों के अंदर बाथरूम न होने की वजह से लड़कियां व औरतें घर से बाहर लगे पानी के पंप के नीचे बैठकर ही स्नान करती हैं. तब मैने ग्राम पंचायत व अन्य सरकारी महकमे से बात करके उनके घरों में बाथरूम और शौचालय बनवाए. इस दिशा में यूनीसेफ ने भी उनकी मदद की.

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आप अपनी वेब साइट डांस विद माधुरी’’पर लोगों को वीडियो के माध्यम से डांस की शिक्षा देने का काम कर रही हैं. इसमें क्या नया कर रही हैं और किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं?

-हम हर दिन नए-नए वीडियो डाल रहे हैं. इसमें हम हर तरह के डांस की क्लासेस चलाते हैं. हमने क्लासिकल डांस, भारतनाट्यम, वेसटर्न डांस आदि सिखा रही हूं. हम डांस के माध्यम से एकसरसाइज के लिए भी कार्यक्रम बना रहे हैं. जिससे घर में बैठकर औरतें कसरत भी कर सकें. हम तो चाहते है कि वह अपने-अपने वीडियो भी अपलोड करें, यदि वह ऐसा करते हैं, तो इससे उन्हें भी काम करने का मौका मिल सकता है. हमारे वीडियो कार्यक्रम में जो डांस सिखाने वाले डांसर आते हैं, उन्हें भी काम मिल रहा है.

Edited by- Rosy

आखिर क्यों मल्टीस्टारर फिल्में पसंद करते हैं आदित्य रौय कपूर

बौलीवुड एक्टर आदित्य रौय कपूर का करियर काफी हिचकोले लेते हुए आगे बढ़ रहा है. 2017 में रिलीज फिल्म ‘‘ओ के जानू’ ’की असफलता ने उनके करियर पर विराम सा लगा दिया था. लेकिन अब वो 17 अप्रैल को रिलीज हो रही फिल्म ‘‘कलंक’’ के अलावा ‘सड़क 2’ और ‘मलंग’ जैसी मल्टीस्टारर फिल्मों में नजर आएंगे.

‘‘ओके जानू की असफलता का आपके कैरियर पर असर पड़ा?

-देखिए, हर फिल्म का कलाकार के करियर पर असर होता है. ‘ओ के जानू’ को लेकर मैं काफी उत्साहित था. हमें एक फिल्म को बनाने में छह महीने लगते हैं और उसका परिणाम सिर्फ एक दिन में आ जाता है. फिल्म के निर्माण के दौरान हमारा जो अनुभव होता है, वह सदैव हमारे साथ रहता है. फिल्म ‘ओ के जानू’ को आपेक्षित सफलता नहीं मिली, मगर वजह स्पष्ट नहीं हुई. मेरा मानना है कि जब आप समान विचार वालों के साथ काम करते हैं, तो उसका असर अलग होता है. मेरी समझ में आया कि समान विचार वाले सहकलाकार के साथ काम करने का अनुभव अच्छा होता है. ‘ओ के जानू’ में हम सभी ने एक टीम की तरह काम किया था. काम अच्छा हो रहा था, इसलिए हमें काम करने में मजा आ रहा था. पर फिल्म का चलना एक कठिन अनुभव रहा, क्योंकि फिल्म की असफलता की वजह समझ में नहीं आयी. यह विज्ञान तो है नही. फिल्म के असफल होने पर मैने बहुत ज्यादा नहीं सोचा. मेरा मानना है कि हर फिल्म हमें कुछ न कुछ सिखाती है. हर फिल्म कलाकार के सामने एक नई चुनौती लेकर आती है और जब कलाकार उसमें अभिनय करता है, तो उसे खुद के बारे में कुछ नया पता चलता है.

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अब आपको मल्टीस्टारर फिल्मों का ही सहारा मिल रहा है?

-ऐसा आप कह सकते हैं. क्योंकि मुझे मल्टीस्टारर फिल्में ज्यादा उत्साहित करती हैं. मैं मानता हूं कि सोलो हीरो वाली फिल्मों में सारा दारोमदार हमारे कंधों पर होता है. पर इन दिनों दर्शक एक्सपेरीमेंटल फिल्में ज्यादा देखना चाहता है. पर जब मल्टीस्टार कलाकार वाली फिल्म होती है, तो दर्शक ज्यादा मिलते हैं. क्योंकि फिल्म से जुड़े हर कलाकार के फैंस फिल्म देखने आते हैं. 17 अप्रैल को मेरी फिल्म ‘कलंक’ रिलीज हो रही है, जिसमें मेरे साथ वरूण धवन, संजय दत्त, आलिया भट्ट, माधुरी दीक्षित व सोनाक्षी सिन्हा हैं. मैं अनुराग बसु के साथ जो फिल्म कर रहा हूं, उसमें भी मेरे साथ कई दूसरे कलाकार हैं. महेश भट्ट के साथ ‘सड़क 2’ में भी मेरे अलावा आलिया भट्ट, पूजा भट्ट व संजय दत्त हैं. जबकि मोहित सूरी की फिल्म ‘मलंग’ भी मल्टीस्टारर है. ‘मलंग’ में मेरे साथ दिशा पटनी, अनिल कपूर व कुणाल खेमू हैं.

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लेकिन मल्टीस्टारर फिल्मों में आपके किरदार की अहमियत?

-मैं फिल्म चुनते समय अपने किरदार को प्राथमिकता देता हूं. ‘कलंक’ भी मल्टीस्टारर है. इसमें सभी कलाकार मुझसे ज्यादा अनुभवी हैं. मगर फिल्म में आप देखेंगे कि हर कलाकार के किरदार की अहमियत है.

फिल्म कलंक क्या है?

-यह कहानी प्यार और रिश्तों की है. पारिवारिक रिश्तों, शादी व गम सहित कई इमोशन को लेकर एक जटिल फिल्म है. इसके हर किरदार की अपनी एक अलग कहानी है. हर किरदार के साथ आप दर्शक की हैसियत से जुड़ सकते हैं.

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फिल्म कलंक के अपने किरदार पर रोशनी डालेंगे?

-मैने देव चैधरी का किरदार निभाया है, जो कि एक अखबार का प्रधान संपादक है, प्रकाशक है. यह उसका पारिवारिक व्यवसाय है. पढ़ा-लिखा इंसान है. रिश्तों को लेकर ईमानदार और पैशेनेट  है. पर उसकी जिंदगी में जो कुछ घटता है, उन्हें वह रोक नहीं पाता और उसके साथ जो कुछ घट रहा है, उनसे निपटने का प्रयास करता रहता है.

फिल्म ‘‘कलंक’’ में आपके लिए क्या चुनौती रही?

-इस फिल्म में मेरा किरदार काफी चुनौतीपूर्ण रहा. यह एक गंभीर किस्म की फिल्म है. यह देश की आजादी से पहले 1940 के पृष्ठभूमि की कहानी है. उन दिनों हमारे देश में कई तरह के आर्थिक व राजनीतिक उथलपुथल हो रहे थे. मेरे लिए उन सब हालात के बारे में जानना बहुत जरुरी था. क्योंकि जब आप एक किरदार निभा रहे हैं, तो उस वक्त को, राजनीतिक परिस्थितियों को समझना जरूरी था. उस माहौल में जो इंसान रहता था, उसका माइंड सेट क्या होगा, इसे समझना जरुरी था. इस बात को समझे बगैर किरदार को न्याय संगत तरीके से निभाना संभव ही नहीं था. इसके लिए मैने कई किताबें पढ़ीं. इंटरनेट पर भी 1940 के समय की कुछ जानकारी पढ़ी. मेरे लिए यह काफी रोचक अनुभव रहा. बहुत कुछ जानने व समझने का अवसर मिला.

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आपने कौन-कौन सी किताबें पढ़ी?

-जवाहर लाल नेहरु की किताब ‘डिस्कवरी आफ इंडिया’ पढ़ी. यह काफी रोचक किताब है. इसे उन्होंने उस वक्त लिखा था, जब वह तीन चार साल के लिए जेल में बंद थे. यह किताब उस वक्त लिखी गयी थी, जब हमारे देश का भविष्य अनिश्चित था. इस किताब से मुझे उस काल का एक प्रस्पेक्टिव मिला. इसके अलावा शशि थरूर की किताब पोलीटिकल प्लेनेट आफ ए टाइम’. एक किताब ‘इंडियन समर’ है.

1940 के प्यार और रिश्ते, क्या वर्तमान समय में उसी तरह से हैं?

-इसका जवाब देना मुश्किल है. मुझे लगता है कि समय के साथ समाज व देश बदलता है, मगर इंसानी भावनाएं तो वही रहती हैं. एक इंसान का दूसरे इंसान के प्रति अहसास वही हैं. हमारे माता-पिता शादी को जिस नजरिए से देखते थे, शायद हम या हमारी पीढ़ी के लोग उस नजरिए से नहीं देखते हैं. समाज बदलने के साथ माइंड सेट बदलता है. मोबाइल जैसी तकनीक के चलते भी हमारे व सामाजिक व्यवहार में अंतर आया है.

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सोशल मीडिया को कैसे लेते हैं?

-अभी डेढ़-दो महीने पहले ही इंस्टाग्राम पर आया हूं. हर दिन इंस्टाग्राम पर नहीं रहता. सोशल मीडिया की लत नही हेानी चाहिए.

Edited by- Nisha Rai

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