तेजाब- भाग 3: प्यार करना क्या चाहत है या सनक?

सुबह की पहली किरण पड़ते ही क्रिस्टोफर की एक झलक के लिए मैं ऊपर उस के कमरे में आया. संयोग से दरवाजा खुला था. क्रिस्टोफर बाथरूम में थी. एकाएक मेरी नजर उस के लैपटौप पर गई. वह किसी से चैटिंग कर रही थी. मैं पढ़ने लगा.

‘एक इंडियन मेरे पीछे पड़ा था. उस से कुछ काम निकलवाने हैं.’ क्रिस्टोफर.

‘काम जल्दीजल्दी खत्म कर के आ जाओ,’ फिलिप.

यानी उस दोस्त का नाम फिलिप है? मैं ने मन ही मन सोचा.

‘एक हफ्ते और इंतजार करो. आते ही हम दोनों शादी कर लेंगे,’ क्रिस्टोफर.

पढ़ कर ऐसा लगा जैसे मेरे पैरोंतले जमीन खिसक गई हो. मैं ने किसी तरह अपनेआप को संभाला. इस के पहले कि वह बाथरूम से निकले, मैं वहां से खिसक गया.

क्रिस्टोफर ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा किया. यह सोच कर लगा मेरा सिर फट जाएगा. मु झे सपने में भी भान नहीं था कि क्रिस्टोफर मेरा इस्तेमाल कर रही है. मेरा मन उस के प्रति घृणा से भर गया. जी किया अभी जा कर क्रिस्टोफर का गला घोंट दूं. मगर नहीं, मैं उसे ऐसा दंड देना चाहता था कि वह ताउम्र अभिशापित जीवन जिए.

इस निश्चय के साथ मैं उठा. एक सुनार के पास गया. मनमानी कीमत दे कर एक छोटे से जार में तेजाब खरीदा. उसे सभी की नजरों से छिपा कर अपने कमरे की अलमारी में रख दिया. अब मु झे मौके की तलाश थी. आज क्रिस्टोफर अकेले शोधकार्य के लिए बाहर निकली. मु झे साथ नहीं लिया. जाहिर है मेरे रहने से उस की निजता बाधित होती. इस बार एक महीने पेरिस में रह कर आई है, तो वह काफी बदलीबदली सी लगी. फिलिप से प्रेम का असर साफ उस के तौरतरीकों में दिख रहा था. मु झ से आई लव यू बोलना महज एक पाखंड था ताकि मु झे आभास न हो उस के मन में क्या चल रहा है.

दिनभर घूमने के बाद रात क्रिस्टोफर अपने कमरे में आ कर लेट गई. मेरा मन उस के रवैए से दुखी था. इसलिए उस के पास हालचाल लेने नहीं गया. ऐसा पहली बार हुआ जब क्रिस्टोफर ने मेरी उपेक्षा की. तभी क्रिस्टोफर का फोन आया.

‘‘कहां हो तुम?’’ न चाहते हुए मु झे उस के सवाल का जवाब देना पड़ा, ‘‘नीचे कमरे में.’’

‘‘नाराज हो?’’ अब मैं क्या कहूं. नाराज तो था.

‘‘मेरे पास नहीं आओगे?’’

इस तरीके से उस ने मनुहार किया कि मैं अपनेआप पर नियंत्रण न रख सका. तेज कदमों से चल कर उस के पास आया. उस की सूरत देखते ही मेरा सारा गुस्सा ठंडा पड़ गया. उस ने प्यार से मेरे बालों को सहलाया. ‘‘मु झे माफ कर दो, आज तुम्हें अपने साथ नहीं ले गई.’’

मैं एकटक उस के चेहरे को देख रहा था. नीली आंखें, सुर्ख अधर, गुलाबी कपोल, निश्च्छल मुसकराहट जिस से वशीभूत हो कर मैं खुद से बेखबर हो गया. आने वाले दिनों में उस पर किसी और का अधिकार होेगा, सोच कर मेरा दिल भर आया. मन मानने के लिए तैयार ही नहीं था कि क्रिस्टोफर मेरे साथ छल कर सकती है. लाख  झुठलाने की कोशिश करता मगर हर बार लैपटौप की चैटिंग मेरी आंखों के सामने तैर जाती. जख्म फिर से हरे हो जाते.

तभी क्रिस्टोफर ने सहजभाव से कहा, ‘‘मैं परसों पेरिस जा रही हूं. तुम्हारा दिल से शुक्रिया अदा करती हूं. तुम न होते तो मेरा यह काम अधूरा ही रहता. मैं तुम्हें एक अच्छे दोस्त की तरह हमेशा याद रखूंगी.’’ मैं निशब्द था. क्या जवाब दूं? मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई थी. मु झे चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा नजर आने लगा. क्रिस्टोफर के बगैर जिंदगी का क्या अर्थ रह जाएगा मेरे लिए. वह मेरी जिंदगी का हिस्सा बन चुकी थी. सोचने लगा, वह न आती तो अच्छा था. आई तो यों जा रही है मानो जिस्म से कोई दिल निकाल कर ले जा रहा हो. असहनीय पीड़ा महसूस हो रही थी मु झे. मैं घोर निराशा में डूब गया. जब कुछ नहीं सू झा तो क्रिस्टोफर के गले लग कर फफकफफक कर रो पड़ा. ‘‘मु झे छोड़ कर मत जाओ क्रिस्टोफर.’’

‘‘मैं मजबूर हूं.’’

‘‘तुम्हारे बगैर मैं जी नहीं पाऊंगा. मु झ पर रहम करो.’’

एकाएक क्रिस्टोफर मु झे अपने से अलग करते हुए किंचित नाराज स्वर में बोली, ‘‘क्या पागलपन है?’’ उस की बेरुखी मेरे सीने में नश्तर की तरह चुभी. मु झ में प्रतिशोध की भावना दोगुनी हो गई.

रात में ट्रांसफार्मर जल गया. गरमी के चलते क्रिस्टोफर छत पर सो रही थी. सुबह के 4 बज रहे थे. वह गहरी नींद में थी. मौका अच्छा था. मैं ने कमरे से तेजाब का जार उठाया, उड़ेल दिया क्रिस्टोफर के चेहरे पर. उस वक्त मेरे दिमाग में सिवा उस का चेहरा बदरंग करने के कुछ नहीं सू झ रहा था. वह चेहरा जिस से वशीभूत हो कर मैं ने क्रिस्टोफर को दिल दिया. हमेशा के लिए विकृत हो जाएगा. यही उचित दंड था उसे देने के लिए.

एकाएक नींद से उठ कर वह जोरजोर से चिल्लाने लगी. वह दर्द से छटपटा रही थी. मेरी कुछ सम झ में नहीं आया कि ऐसी स्थिति में क्या करूं. घबरा कर अपने कमरे के एक कोने में छिप गया. भोर होतेहोते सारा नजारा बदल चुका था.

वह अस्पताल में थी और मैं जेल में. एक क्षण में सबकुछ खत्म हो गया. जब मेरा क्रोध शांत हुआ तो मैं गहरे संताप में डूब गया. उस समय तो और ज्यादा जब मेरी मां ने बताया कि क्रिस्टोफर की एक आंख की रोशनी चली गई. उफ, यह मैं ने क्या कर दिया. मांबाप, पासपड़ोस, रिश्तेदार सभी के लिए मैं घृणा का पात्र बन गया. पापा तो मेरी सूरत तक नहीं देखना चाहते थे.

मैं बिलकुल अकेला पड़ गया. जेल की कोठरी में सिवा पश्चात्ताप के मेरे लिए कुछ नहीं था. मां से रुंधे कंठ से बोला, ‘‘क्रिस्टोफर को मेरी आंख दे दो.’’ मां तो मां, उन्हें मु झ से हमदर्दी थी. मगर वे भी मेरे कुकृत्य से आहत थीं. कहने लगीं, ‘‘उस ने जो किया वह उस के संस्कार थे. मगर मेरे संस्कारों ने तु झे क्या सिखाया? तुम ने अपनी मां की कोख को कलंकित किया है.’’ उन की आंखें भर आईं. इस से पहले क्रिस्टोफर तक मेरी इच्छा पहुंचती, वह अपने मांबाप के साथ सात समंदर पार हमेशा के लिए अपने देश चली गई, एक दुखद एहसास के साथ.

तेजाब- भाग 1: प्यार करना क्या चाहत है या सनक?

पेरिस की क्रिस्टोफर से मेरी मुलाकात बनारस के अस्सी घाट पर हुई. उम्र यही कोई 25 वर्ष के आसपास  की होगी. वह बनारस में एक शोधकार्य के सिलसिले में बीचबीच में आती रहती थी. मैं अकसर शाम को स्कैचिंग के लिए जाता था. खुले विचारों की क्रिस्टोफर ने एक दिन मु झे स्कैचिंग करते देख लिया. दरअसल, मैं उसी की स्कैचिंग कर रहा था. वह घाट पर बैठे गंगा की लहरों को निहार रही थी. उस के चेहरे की निश्च्छलता और सादगी में एक ऐसी कशिश थी जिस से मैं खुद को स्कैचिंग करने से रोक नहीं पाया. इस दरम्यान बारबार मेरी नजर उस पर जाती. उस ने देख लिया. उठ कर मेरे पास आई. स्कैचिंग करते देख कर मुसकराई. उस समय तो वह कुछ ज्यादा ही खुश हो गई जब उसे पता चला कि यह उसी की तसवीर है. ‘‘वाओ, यू आर ए गुड आर्टिस्ट,’’ तसवीर देख कर वह बहुत प्रसन्न थी.

‘‘आप को पसंद आई?’’

‘‘हां, बहुत सुंदर है.’’

यह जान कर मु झे खुशी हुई कि उसे थोड़ीबहुत हिंदी भी आती थी. भेंटस्वरूप मैं ने उसे वह स्कैच दे दिया. यहीं से हमारे बीच मिलनेजुलने का सिलसिला चला, जो बाद में प्रगाढ़ प्रेम में तबदील हो गया. वह एक लौज में रहती थी. घरवालों के विरोध के बावजूद मैं ने उसे अपने घर में रहने के लिए जगह दी. जिस के लिए वह सहर्ष तैयार हो गई. अब उस से क्या किराया लिया जाए. जिस से प्रेम हो उस से किराया लेना क्या उचित होगा. मैं तो उस पर इस कदर आसक्त था कि उस से शादी तक का मन बना लिया था.

क्रिस्टोफर को इस शहर की सांस्कृतिक विरासत की बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी, जो उस के शोधकार्य का हिस्सा थी. मैं ने उस की मदद की. अपनी क्लास छोड़ कर उस के साथ मैं मंदिरों, घाटों, गलियों तथा ऐतिहासिक स्थलों पर जाता. कई नामचीन संगीत कलाकारों से मिलवाया मैं ने उसे.

रात 8 बजे से पहले हम घर नहीं आते. उस के बाद मैं उस के कमरे में रात 11 बजे तक इधरउधर की बातें करता. उसे छोड़ने का नाम ही नहीं लेता. जी करता क्रिस्टोफर को हर वक्त निहारता रहूं. बेमन से अपने कमरे में आता. फिर अपने प्रेम के मीठे एहसास के साथ सो जाता.

एक रात मु झे नींद नहीं आ रही थी. क्रिस्टोफर को ले कर मन बेचैन था. घड़ी देखी रात के 1 बज रहे थे. मैं आहिस्ता से उठा. दबेपांव ऊपर क्रिस्टोफर के कमरे में आया. खिड़की से  झांका. वह कुछ लिख रही थी. इतनी रात तक वह जाग रही थी. यह देख कर मु झे आश्चर्य हुआ. मेरे आने की उसे आहट नहीं हुई. मैं ने धीरे से कहा, ‘‘क्रिस्टोफर.’’ उस ने नजर मेरी तरफ उठाई. उस समय वह गाउन पहने हुई थी. उस का गुलाबी बदन पूर्णिमा की चांद की तरह खिला हुआ था. जैसे ही उस ने दरवाजे की चिटकनी हटाई, मैं तेजी से चल कर कमरे में घुसा. दरवाजा अंदर से बंद कर उसे अपनी बांहों में भर लिया. वह थोड़ी सी असहज हुई, फिर सामान्य हो गई. उस रात हमारे बीच कुछ भी वर्जित नहीं रहा. खुले विचारों की क्रिस्टोफर के लिए संबंध कोई माने नहीं रखते. ऐसा मेरा अनुमान था. मगर मेरे लिए थे. जाहिर है वह मेरे लिए पत्नी का दर्जा रखने लगी थी. सिर्फ सात फेरों की जरूरत थी या फिर अदालती मुहर. मैं उस पर इस कदर फिदा था कि उस के बगैर जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था.

एक दिन क्रिस्टोफर ने मु झ से नैनीताल चलने के लिए कहा. भला मु झे क्या एतराज हो सकता था. घरवाले मेरे तौरतरीकों को ले कर आपत्ति जता रहे थे, मगर मैं उन्हें यह सम झाने में सफल हो गया कि पेरिस के कलाकारों की बड़ी कद्र है. उस की मदद से मैं एक ख्यातिप्राप्त चित्रकार के रूप में स्थापित हो सकता हूं. उन्होंने हमारे रिश्ते को बेमन से मंजूरी दे दी.

2 दिन नैनीताल में रहने के बाद हम दोनों कौसानी घूमने आए. गांधी आश्रम के चबूतरे पर बैठे. हम दोनों पहाड़ों की खूबसूरत वादियों को निहार रहे थे. क्रिस्टोफर को अपनी बांहों में भर कर मैं रोमांचित था. उन्मुक्त वातावरण पा कर मानो मेरे प्रेम को पर लग गए. कब शाम ढल गई, पता ही नहीं चला. वापस होटल पर आया. कौफी की चुस्कियों के बीच क्रिस्टोफर का मोबाइल बजा. वह बाहर मोबाइल ले जा कर बातें करने लगी. तब तक कौफी ठंडी हो चुकी थी. मैं ने वेटर से दूसरी कौफी लाने को कहा. ‘‘किस का फोन था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मौम का.’’

‘‘क्रिस्टोफर, मैं ने आज तक तुम्हारे परिवार के बारे में कुछ नहीं पूछा. क्या तुम बताओगी कि तुम्हारे मांबाप क्या करते हैं?’’

‘‘फादर मोटर मैकेनिक हैं. मौम एक अस्पताल में नर्स हैं. 5 साल की थी जब मेरे फादर से मेरी मां का तलाक हो गया. ये मेरे सौतले फादर हैं. मैं अपने फादर को बहुत चाहती थी,’’ कह कर वह उदास हो गई.

‘‘तलाक की वजह?’’

‘‘हमारे यहां जब तक प्यार की कशिश रहती है तभी तक रिश्ते निभाए जाते हैं. तुम लोगों की तरह नहीं कि हर हाल में साथ रहना ही है. मेरे फादर मेरी मौम से बोर हो गए, उन का लगाव दूसरी औरत की तरफ हो गया. वहीं मौम, फादर के ही एक दोस्त से शादी कर के अलग हो गईं.’’

‘‘इसे तुम किस रूप में देखती हो? क्या तुम ने चाहा कि तुम्हारे मांबाप तुम से अलग हों?’’

कुछ सोच कर क्रिस्टोफर बोली, ‘‘शायद नहीं.’’

‘‘शायद क्यों?’’ मैं ने पूछा.

‘‘शायद इसलिए कि एक बेटी के रूप में मैं कभी नहीं चाहूंगी कि मु झे मेरे फादर के प्यार से वंचित रहना पड़े. मगर…’’ कह कर वह चुप हो गई.

‘‘बोलो, तुम चुप क्यों हो गईं,’’ मैं अधीर हो गया.

बिदाई- भाग 2: क्यों मिला था रूहानी को प्यार में धोखा

‘‘बेटा, इन अखबारों में तेरे और उस ऐक्टर के बारे में न जाने क्याक्या ऊटपटांग छपता रहता है,’’ इस बार मां ने बात छेड़ी थी, ‘‘अभी तेरी उम्र ही क्या है… और इन बदतमीजों को देखो कुछ भी छापते रहते हैं.’’

रूहानी चुप रही थी. भले ही उस की उम्र अभी केवल 19 वर्ष थी, किंतु सफलता और शोहरत का फल वह चखने लगी थी. फिर ऐसे में परिपक्वता जल्दी आ जाना क्या बड़ी बात है? सहकलाकार विनोद उसे बहुत पसंद था. हो सकता है उस की आंखों के भाव किसी पत्रकार ने पकड़ लिए हों. उड़ती चिडि़या के पंख गिनना कला जो होती है इन की. इन्हीं रिपोर्टों के चलते विनोद को रूहानी के मन की बात ज्ञात हो गई थी.

एक दिन मौका देख उस ने रूहानी को कौफी डेट पर बुलाया. दोनों को एकदूसरे का साथ पसंद आया. फिर तो अकसर वे शूटिंग के बाद मिलने लगे. कभी कौफी तो कभी डिनर, कभी पब तो कभी डिस्को. 35 की उम्र पार कर चुके विनोद के साथ एक कमसिन सुंदरी लग गई थी.

एक रात पांचसितारा होटल के डिस्को की भीड़ में नाचतेनाचते विनोद ने अचानक रूहानी के अधरों पर अपने होंठ अंकित कर दिए. इस अप्रत्याशित घटना से रूहानी कुछ कांप उठी. लेकिन विनोद ने उस की कमर पर अपनी बांहों के घेरे को और कस दिया. फिर लगातार एक…दो…तीन… चुंबनों के बाद रूहानी भी उसी लौ में बह गई. उसी होटल में पहले से बुक कमरे में विनोद ने रूहानी को अपना बना लिया.

फिर रूहानी को विनोद का भरी भीड़ में हाथ पकड़ने या हंस कर उस के कंधे पर झूल जाने में कोई आपत्ति न रहने लगी. धीरेधीरे मीडिया में इन दोनों के प्रसंग इन की तसवीरों के साथ उछलने लगे. एजेंट के ऐतराज करने पर भी रूहानी ने एक न सुनी. लेकिन मीडिया के पूछने पर दोनों यही कहते कि वे सिर्फ अच्छे दोस्त हैं. दोनों की नजदीकियों के किस्से लोग मजे लेले कर पढ़़तेसुनते. यूनिट के अन्य कलाकार भी उन की वैनिटी वैन के अंदर खिल रही उन की दास्तां ए मुहब्बत की कहानियां सुनाते.

इस विषय में मां का फोन आने पर रूहानी उन्हें भी झिड़क देती, ‘‘क्या मां, तुम भी इन प्रैस वालों की बातों में आ जाती हो. अच्छा अब रखती हूं… मेरी शूटिंग चल रही है.’’

‘‘सोनी चैनल पर चल रहे ‘तुम्हारे बिना जिया जाए न’ धारावाहिक की लीड अभिनेत्री मां बनने वाली है. अब ज्यादा दिन तक यह रोल नहीं निभा पाएगी. तुम कहो तो उस के डाइरैक्टर से इस विषय में तुम्हारी बात चलाऊं?’’ रूहानी के एजेंट ने उसे अंदर की खबर दी, तो रूहानी ने हामी भर दी. अपने कैरियर में आगे बढ़ने से वह खुश थी.

‘‘आज का अखबार पढ़ा तुम ने, रूहानी?’’ अचानक अपनी सहअभिनेत्री मिथिला का फोन आने पर रूहानी को आश्चर्य हुआ. आखिर मिथिला की उस से सिर्फ नाम की बनती थी, मीडिया के सामने या पार्टियों में एकदूसरे के गाल पर चुंबन अंकित करने के सिवा शायद ही इन में कोई बातचीत होती हो.

‘‘अभी नहीं, टाइम नहीं मिला. वह दरअसल मुझे सोनी चैनल पर चल रहे ‘तुम्हारे बिना जिया जाए न’ धारावाहिक की लीड अभिनेत्री का रोल औफर हुआ है न. उसी की तैयारी में व्यस्त थी. क्यों ऐसा क्या आया है अखबार में?’’

‘‘वह रोल तुम्हें औफर हुआ है?’’ मिथिला की हंसी की आवाज से रूहानी और भी हैरान हुई. यहां इस इंडस्ट्री में तो रोल छीनने की होड़ लगी रहती है. इस खबर से मिथिला को रोना चाहिए था, लेकिन मुझे लीड ऐक्ट्रैस का रोल मिलने पर वह हंस रही है…

‘‘शायद ‘तुम्हारे बिना जिया जाए न’ धारावाहिक में ‘तुम्हारे’ का किरदार विनोद की प्रेमिका के नाम ही आना लिखा है. वह दरअसल इस धारावाहिक की असली अभिनेत्री विनोद के बच्चे की मां बनने वाली है और दोनों शादी कर रहे हैं. मैं ने सोचा विनोद तुम्हारा इतना अच्छा दोस्त है, तो तुम्हें तो यह खुशखबरी पता ही होगी,’’ मिथिला ने आग में घी डाला.

रूहानी का मन धुड़क उठा कि उस के साथ इतना बड़ा धोखा, विश्वासघात. उस ने तेजी से फोन जमीन पर पटक मारा. उस का मन शोक, घृणा, संताप से भर उठा. वह वहीं जमीन पर पसर गई. न जाने कितने घंटे वहीं पड़ी रही.

देर शाम उस का एजेंट उस के घर के अंदर प्रविष्ट होते हुए बड़बड़ाया, ‘‘कहां हो यार रूहानी, कब से तुम्हारा फोन ट्राई कर रहा हूं,’’ फिर उस की दशा देख वह समझ गया कि खबर रूहानी तक पहुंच चुकी है. उसी ने रूहानी को वहां से उठाया, पानी पिलाया और फिर बिस्तर पर लिटाया.

अगली सुबह भी एजेंट वहीं था. गुड मौर्निंग कहते हुए उस ने रूहानी को चाय का कप थमाया, ‘‘क्या हुआ डार्लिंग… ऐसा तो होता रहता है. यू डोंट नीड टु गैट सो अप्सैट.’’

‘‘रियली? तुम्हें वाकई लगता है कि मुझे अप्सैट नहीं होना चाहिए? उस कुत्ते ने मेरे साथ…’’ रूहानी फुंफकार रही थी.

‘‘देखो रूहानी, बीत गई सो बात गई. यहां काम करना है, तो चमड़ी मोटी करनी पड़ेगी. टीवी की दुनिया लाजवाब है. रातोंरात प्रसिद्धि, रातोंरात कामयाबी… कल तक तुम एक छोटे शहर की अनजान जिंदगी जीने वाली लड़की थीं, लेकिन आज तुम घरघर में जानीमानी हस्ती बन चुकी हो. तुम्हारे पास पैसा है, शोहरत है, लोग तुम्हारे आगेपीछे दौड़ते हैं… उस पर तुम्हारी उम्र ही क्या है? अभी तुम्हें सालोंसाल काम करना है. इसलिए तुम्हें अपनेआप को बहुत ज्यादा तवज्जो देनी होगी. जितना तुम आगे बढ़ती जाओगी, उतना ही लोग तुम्हें कम समझ पाएंगे और यही तुम्हारे लिए अच्छा है. तुम्हारे निर्णय केवल तुम्हारे अपने हित में होने चाहिए… न कोई पारिवारिक निर्णय और न कोई भावनात्मक फैसला. पूरी दुनिया की नजर है तुम पर. ऐसे में कमजोर नहीं पड़ सकतीं तुम. इस का समय नहीं, तुम्हारे पास,’’ एजेंट ने रूहानी को खूब समझाया.

लेकिन हर इनसान अलग मिट्टी का बना है. सब का व्यक्तित्व अलग होता है. रूहानी को ऐसे फरेब की कतई उम्मीद नहीं थी. जनवरी की सर्द हवाओं के साथ बाहर फैला घना कुहरा उस के अंदर भी जमने लगा था. बाहर का उदास, रंगहीन मौसम उस के अंदर भी पसरने लगा था. रूहानी न ढंग से खाती, न किसी बातचीत में उस का मन लगता, न मुसकराती… कई दिन लग गए उसे सामान्य होने में. किंतु समय अपना चक्र घुमाते हुए सब को अपनी धुरी पर ले ही आता है.

लेकिन इस बीच उस के हाथ से वह लीड ऐक्ट्रैस का रोल जाता रहा. अब उस के पास कोई काम नहीं था. फिर भी वह थी तो एक टीवी अभिनेत्री ही. अपना रहनसहन उसे उसी हिसाब से बरकरार रखना था. पैसे भी खत्म होते जा रहे थे. इसी बीच उस ने जो हाथ आया, वही काम करने का निश्चय किया. एजेंट की मदद से उस ने एक रिऐलिटी शो में भाग लिया. शो देश के बाहर था. रूहानी प्रसन्न थी कि इस बहाने वह विदेश घूम आएगी और कुछ पैसे भी कमा लेगी.

शो में उस की मुलाकात रंजन से हुई जो उस का टीममेट था. रंजन भी एक छोटे शहर का लड़का था, जो इस रंगीली दुनिया में अपने को आजमाने आया था. अभी तक उसे सिर्फ धक्के ही मिले थे. यह उस का पहला शो था. रूहानी और रंजन की अच्छी पटने लगी. टूटे दिल को एक आसरा मिलने लगा था. रंजन और रूहानी का अच्छा तालमेल उन्हें जीत की ओर अग्रसर करता गया. आखिर उन दोनों की टीम जीत गई. अच्छाखासा पैसा मिला.

अपने देश लौटते समय हवाईजहाज में रंजन ने रूहानी का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘अपनी टीम जारी रखोगी? क्या तुम मेरा प्यार स्वीकार करोगी, रूहानी?’’ रंजन ने रूहानी को प्रपोज कर दिया.

रूहानी बेहद खुश थी. एक तो जीत, उस पर पैसा और अब प्यार भी… और क्या चाहिए किसी 21 वर्षीया को.

रंजन अब तक पीजी में रहता था और रूहानी किराए के घर में रहती थी. दोनों मिलते, संगसाथ समय व्यतीत करते, फिर अपनेअपने घर लौट जाते.

‘‘रूहानी, ऐसे तो जो पैसा हम दोनों ने जीता है, वह खत्म होता चला जाएगा. इस से अच्छा है हम उसे अपने भविष्य के लिए कहीं निवेश कर दें.’’

रंजन की बात में तर्क था. अत: दोनों ने आपसी सहमति से एक घर बुक करा लिया.

‘‘तुम लोन की चिंता मत करना, तुम्हें इस झंझट में पड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है. कुछ राशि हमारे पास है ही और कुछ मैं पर्सनल लोन ले लूंगा. ईएमआई मैं भरता रहूंगा. बस, कागजी काररवाई करवा लेते हैं.’’

लोन लेने की आवश्यकता के कारण घर रंजन के नाम बुक हुआ.

बिदाई- भाग 3: क्यों मिला था रूहानी को प्यार में धोखा

‘‘तुम बस हमारे घर को सजाने की चिंता करो… यह तुम्हारा डिपार्टमैंट है,’’ रंजन की इन बातों से रूहानी चहक उठी थी.

रूहानी ने अपने एजेंट के द्वारा रंजन को काफी काम दिलवाया और खुद घर सजानेबसाने में व्यस्त रहने लगी. कभीकभार 1-2 भूमिका निभा लेती. लेकिन काम का बोझ और दबाव उसे अब रास न आता. अब उस का मन प्यार, घरगृहस्थी में रमने लगा था. रंजन और वह रहते भी एक ही घर में थे. आजकल का प्यार न तो सीमाएं जानता है और न ही मानता है. उन दोनों ने अभी शादी नहीं की थी, लेकिन पतिपत्नी के रिश्ते की डोर थाम चुके थे. रंजन नईनवेली दुलहन की तरह रूहानी को उठा कर कमरे में ले जाता और दोनों प्रेमरस में भीग कर आनंदित हो उठते. यों ही साथ रहते हुए, प्यार के सागर में हिचकोले खाते दोनों रिश्ते के अगले पड़ाव पर पहुंच गए. माना कि दोनों ने सोचसमझ कर यह कदम नहीं उठाया था किंतु प्यार के बीज को पनपने से कोई रोक पाया है भला? जब रूहानी को पता चला कि वह गर्भवती है, तो उस ने रंजन को बताने की सोची. थोड़ा डर भी था मन में कि पता नहीं रंजन की प्रतिक्रिया कैसी होगी.

रात को सोते समय उस ने रंजन का हाथ हौले से अपने पेट पर रख दिया. बस इतना इशारा काफी था. रंजन समझ गया. इस खुशी के मौके पर उस ने रूहानी के गाल पर अपने प्यार का चुंबन अंकित कर दिया.

रूहानी प्रसन्न भी थी और संतुष्ट भी. अब वह रंजन से जल्दी से जल्दी शादी करना चाहती थी.

जीवन की नाव सुखसागर में गोते लगा रही थी कि अचानक एक दिन रंजन की गैरमौजूदगी में रूहानी ने उस का फोन उठा लिया. दूसरी तरफ से एक लड़की बोल रही थी, ‘‘हैलो, कौन बोल रहा है?’’

‘‘आप को रंजन से बात करनी है न? वह इस समय घर पर नहीं है… मार्केट गया है… गलती से फोन घर भूल गया है. आप मुझे बता दीजिए क्या काम है आप को?’’ रूहानी ने कहा.

‘‘तुम्हें बता दूं तुम हो कौन रंजन की?’’

‘‘मैं उस की गर्लफ्रैंड हूं… जल्द ही हम शादी करने वाले हैं.’’

‘‘गर्लफ्रैंड?’’ कुछ पलों की खामोशी के बाद वह बोली, ‘‘मुझे अपना पता देना प्लीज, मैं उस की पुरानी फ्रैंड हूं. उसे सरप्राइज देना चाहती हूं.’’

रूहानी ने उसे अपना पता लिखवा दिया.

बस, उसी शाम उन के प्रेम नीड़ में तूफान आ गया. अचानक वह लड़की उन के घर आ धमकी.

दरवाजा खोलते ही उस ने रंजन को एक तमाचा जड़ा और जोरजोर से लड़ने लगी, ‘‘रंजन, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे धोखा देने की? शायद तुम भूल गए कि तुम्हारे पिता मेरे डैड के मातहत हैं. इस चुड़ैल के साथ मिल कर तुम मेरे साथ चीटिंग कर रहे हो… मैं कपड़े की गुडि़या नहीं हूं. मैं रोती नहीं, रूलाती हूं, समझे?’’ लगभग चीखती हुई वह रूहानी की ओर मुड़ी. फिर उसे धक्का दे कर जमीन पर गिरा दिया. रूहानी इस तरह के बरताव के लिए तैयार न थी. वह लड़की रूहानी पर टूट पड़ी. उसे पीटने लगी.

शोर सुन कर कुछ पड़ोसी इकट्ठा हो गए. उन्होंने बड़ी मुश्किल से उस लड़की को रूहानी से अलग किया. इस घटना से रूहानी की जिंदगी में उथलपुथल मच गई. अचानक उस का जीवन ऐसे मोड़ पर आ गया था कि आगे उसे सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा दिख रहा था.

दरअसल, रंजन का उस की हालत पर ध्यान न देना उसे बहुत आहत कर गया था. यह वह ठेस थी जिस ने रूहानी के सभी मौसम बदल कर ठंडे, निर्जीव और बेरंग कर दिए थे. रूहानी हर वक्त उदास रहने लगी थी. एक तो गर्भावस्था में डोलती मनोस्थिति, उस पर साथी से मिला दुर्व्यवहार. आजकल रंजन को उस की खुशी, उस के मूड से कोई फर्क नहीं पड़ता था, बल्कि आजकल वह रूहानी पर अकसर नाराज होने लगा था. रंजन के सिवा रूहानी का अपना कहने का कोई नहीं था.

अकेली रूहानी सारा दिन उदासीन पड़ी रहती. रात को जब रंजन घर लौटता तो दोनों में घमासान होता. रंजन रूहानी पर हाथ भी उठाने लगा था.

अवसाद से घिरी रूहानी को आगे की राह दिखाई नहीं दे रही थी कि क्या करे कि रंजन से उस का रिश्ता फिर मजबूत हो जाए. सोचसोच कर वह और भी अवसादग्रस्त होती जा रही थी.

ऐसी ही एक शाम जब रूहानी छत पर टकटकी बांधे अकेली बिस्तर पर पड़ी थी, अचानक फोन घनघना उठा. दूसरी तरफ उसी लड़की की आवाज थी.

उस ने रूहानी के फोन उठाते ही खरीखरी सुनानी शुरू कर दी, ‘‘तुम क्या सोचती हो रंजन को मुझ से छीन लोगी? रंजन मेरा है, सिर्फ मेरा. तुम्हारी जैसी कितनी आईं और गईं. लेकिन रंजन को मुझ से कोई नहीं छीन पाई. कुछ दिन इधरउधर मुंह मारने से उस का मेरे प्रति प्यार कम नहीं हो जाता, समझी? अब अपना बोरियाबिस्तर बांध और निकल जा रंजन की जिंदगी से.’’

उस लड़की की बातें सुन कर रूहानी और भी परेशान हो उठी कि क्या रंजन ने उसे धोखा दिया है? उस का उद्विग्न मन शांत नहीं हो पा रहा था. रंजन भी तो उस के किसी सवाल का जवाब नहीं देता. आखिर किस से पूछे? वह सारे घर में कलपती सी घूमने लगी.

स्वयं को उपेक्षित महसूस करती रूहानी छटपटाने लगी कि क्या करे, कैसे मुक्ति पाए इस अवसाद से? क्या फायदा इस सौंदर्य का, इस शोहरत का, जब कोई उसे प्यार ही न करे? क्या इस जीवन में उस के लिए प्यार पाना संभव नहीं? इसी उधेड़बुन में रूहानी उठी और…

अगली सुबह एक ही खबर सारे टीवी चैनलों पर बारबार दिखाई जा रही थी कि प्रसिद्ध अभिनेत्री रूहानी ने अपने घर में पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली.

बस, फिर सब तरफ वही शो, उसी की चर्चा. टीवी इंडस्ट्री में रूहानी के सहकर्मी, उस के तथाकथित मित्रगण अलगअलग कहानियां बयान करने लगे. न्यूज चैनलों को एक बढि़या मुद्दा मिल गया अपनी टीआरपी बढ़ाने का. एक चैनल ने रूहानी के इस कदम का दोष रंजन के जीवन में दूसरी लड़की के प्रवेश को दिया. आधार था पड़ोसियों से की गई बातचीत, तो दूसरा चैनल कहने लगा कि रूहानी गर्भवती थी और वह रंजन पर शादी का दबाव डाल रही थी, पर वह मान नहीं रहा था, इसलिए रूहानी ने आत्महत्या कर ली.

तीसरा चैनल रूहानी के कुछ दोस्तों के बयानों के आधार पर कहने लगा कि रूहानी ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि रंजन ने उस दूसरी लड़की के साथ मिल कर उस का खून किया है यानी जितने मुंह उतनी बातें.

अंतिम संस्कार के समय काफी भीड़ इकट्ठा हो गई थी. सहकलाकार, आम जनता और इन सब के बीच छिपे, रोतेबिलखते रूहानी के मातापिता. इतनी भीड़ देख कर कौन कह सकता था कि यहां उस का अपना कहने को, उस के मन की टोह लेने वाला कोई न था. रूहानी चली गई… शायद संवेदनशीलता का यहां कोई काम नहीं. अपने घर में जिस धन व प्रसिद्धि की खोज में रूहानी निकल पड़ी थी, वह उसे मिल तो गई, लेकिन इनसान की खोज कब रुकी है भला. धनप्रसिद्धि के पश्चात प्यार पाने की खोज, प्यार के पश्चात अपना घर बसाने की आकांक्षा… यह सूची कभी खत्म नहीं होती.

रज्जो: क्यों रोने लगा रामदीन

रज्जो रसोईघर का काम निबटा कर निकली, तो रात के 10 बज रहे थे. वह अपने कमरे में जाने से पहले सुरेंद्र के कमरे में पहुंची. वह उस समय बिस्तर पर आंखें बंद किए लेटा था.

‘‘साहबजी, मैं कमरे पर सोने जा रही हूं. कुछ लाना है तो बताइए?’’ रज्जो ने सुरेंद्र की ओर देखते हुए पूछा.

सुरेंद्र ने आंखें खोलीं और अपने माथे पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘रज्जो, आज सिर में बहुत दर्द हो रहा है.’’

‘‘मैं आप के माथे पर बाम लगा कर दबा देती हूं,’’ रज्जो ने कहा और अलमारी में रखी बाम की शीशी ले आई. वह सुरेंद्र के माथे पर बाम लगा कर सिर दबाने लगी.

कुछ देर बाद रज्जो ने पूछा, ‘‘अब कुछ आराम पड़ा?’’

‘‘बहुत आराम हुआ है रज्जो, तेरे हाथों में तो जादू है,’’ कहते हुए सुरेंद्र ने अपना सिर रज्जो की गोद में रख दिया.

रज्जो सिर दबाने लगी. वह महसूस कर रही थी कि एक हाथ उस की कमर पर रेंग रहा है. उस ने सुरेंद्र की ओर देखा.

सुरेंद्र बोला, ‘‘रज्जो, यहां रहते हुए तू किसी बात की चिंता मत करना. तुझे किसी चीज की कमी नहीं रहेगी. जब कभी जितने रुपए की जरूरत पड़े, तो बता देना.’’

‘‘जी साहब.’’

‘‘आज तेरी मैडम लखनऊ गई हैं. वहां जरूरी मीटिंग है. 4 दिन बाद वापस आएंगी,’’ कह कर सुरेंद्र ने उसे अपनी ओर खींच लिया.

रज्जो समझ गई कि सुरेंद्र की क्या इच्छा है. वह बोली, ‘‘नहीं साहबजी, ऐसा न करो. मुझे तो मांकाका ने आप की सेवा करने के लिए भेजा है.’’

‘‘रज्जो, यह भी तो सेवा ही है. पता नहीं, आज क्यों मैं अपनेआप पर काबू नहीं रख पा रहा हूं?’’ सुरेंद्र ने रज्जो की ओर देखते हुए कहा.

‘‘साहबजी, अगर मैडम को पता चल गया तो?’’ रज्जो घबरा कर बोली.

‘‘उस की चिंता मत करो. वह कुछ नहीं कहेगी.’’

रज्जो मना नहीं कर सकी और न चाहते हुए भी सुरेंद्र की बांहों समा गई.

कुछ देर बाद जब रज्जो अपने कमरे में आ कर बिस्तर पर लेटी, तो उस की आंखों से नींद भाग चुकी थी. उस की आंखों के सामने मांकाका, 2 छोटी बहनों व भाई के चेहरे नाचने लगे.

यहां से 3 सौ किलोमीटर दूर रज्जो का गांव चमनपुर है. काका राजमिस्त्री का काम करता है. महीने में 10-15 दिन मजदूरी पर जाता है, क्योंकि रोजाना काम नहीं मिलता.

रज्जो तो 5 साल पहले 10वीं जमात पास कर के स्कूल छोड़ चुकी थी. उस की 2 छोटी बहनें व भाई पढ़ रहे थे. मां ने उस का नाम रजनी रखा था, पर पता नहीं, कब वह रजनी से रज्जो बन गई.

एक दिन गांव की प्रधान गोमती देवी ने मां को बुला कर कहा था, ‘मुझे पता चला है कि तेरी बेटी रज्जो तेरी तरह बहुत बढि़या खाना बनाती है. तू उसे सुबह से शाम तक के लिए मेरे घर भेज दे.’

‘ठीक है प्रधानजी, मैं रज्जो को भेज दूंगी,’ मां ने कहा था.

2 दिन बाद रज्जो ने गोमती प्रधान के घर की रसोई संभाल ली थी.

एक दिन एक बड़ी सी कार गोमती प्रधान के घर के सामने रुकी. कार से सुरेंद्र व उस की पत्नी माधवी मैडम उतरे. कार पर लाल बत्ती लगी थी. गोमती प्रधान की दूर की रिश्तेदारी में माधवी मैडम बहन लगती थीं.

दोपहर का खाना खा कर सुरेंद्र व माधवी ने रज्जो को बुला कर कहा, ‘तुम बहुत अच्छा खाना बनाती हो. हमें तुम जैसी लड़की की जरूरत है. क्या तुम हमारे साथ चलोगी? जैसे तुम यहां खाना बनाती हो, वैसा ही तुम्हें वहां भी रसोई में काम करना है.’

रज्जो चुप रही.

गोमती प्रधान बोल उठी थीं. ‘यह क्या कहेगी? इस के मांकाका को कहना पड़ेगा.’

कुछ देर बाद ही रज्जो के मांकाका वहां आ गए थे.

गोमती प्रधान बोलीं, ‘रामदीन, यह मेरी बहन है. सरकार में एक मंत्री की तरह हैं. इस को रज्जो के हाथ का बना खाना बहुत पसंद आया, तो ये लोग इसे अपने घर ले जाना चाहते हैं रसोई के काम के लिए.’

‘रामदीन, बेटी रज्जो को भेज कर बिलकुल चिंता न करना. हम इसे पूरा लाड़प्यार देंगे. रुपएपैसे हर महीने या जब तुम चाहोगे भेज देंगे,’ माधवी मैडम ने कहा था.

‘साहबजी, आप जैसे बड़े आदमी के यहां पहुंच कर तो इस की किस्मत ही खुल जाएगी. यह आप की सेवा खूब मन लगा कर करेगी. यह कभी शिकायत का मौका नहीं देगी,’ काका ने कहा था.

सुरेंद्र ने जेब से कुछ नोट निकाले और काका को देते हुए कहा, ‘लो, फिलहाल ये पैसे रख लो. हम लोग हर तरह  से तुम्हारी मदद करेंगे. यहां से लखनऊ तक कोई भी सरकारी या गैरसरकारी काम हो, पूरा करा देंगे. अपनी सरकार है, तो फिर चिंता किस बात की.’

रज्जो उसी दिन सुरेंद्र व माधवी के साथ इस कसबे में आ गई थी.

सुरेंद्र की बहुत बड़ी कोठी थी, जिस में कई कमरे थे. एक कमरा उसे भी दे दिया गया था. माधवी मैडम ने उस को कई सूट खरीद कर दिए थे. उसे एक मोबाइल फोन भी दिया था, ताकि वह अपने घरपरिवार से बात कर सके.

रज्जो को पता चला था कि सुरेंद्र की काफी जमीनजायदाद है. एक ही बेटा है, जो बेंगलुरु में पढ़ाई कर रहा है.

माधवी मैडम बहुत बिजी रहती हैं. कभी पार्टी मीटिंग में, तो कभी इधरउधर दूसरे शहरों में और कभी लखनऊ में.

इन्हीं विचारों में डूबतेतैरते रज्जो को नींद आ गई थी. अगले दिन सुरेंद्र ने रज्जो को कमरे में बुला कर कुछ गोलियां देते हुए कहा, ‘‘रज्जो, ये गोलियां तुझे खानी हैं. रात जो हुआ है, उस से तेरी सेहत को नुकसान नहीं होगा.’’

‘‘जी…’’ रज्जो ने वे गोलियां देखीं. वह जान गई कि ये तो पेट गिराने वाली गोलियां हैं.

‘‘और हां रज्जो, कल अपने घर ये रुपए मनीऔर्डर से भेज देना,’’ कहते हुए सुरेंद्र ने 5 हजार रुपए रज्जो को दिए.

‘‘इतने रुपए साहबजी…?’’ रज्जो ने रुपए लेते हुए कहा.

‘‘अरे रज्जो, ये रुपए तो कुछ भी नहीं हैं. तू हम लोगों की सेवा कर रही है न, इसलिए मैं तेरी मदद करना चाहता हूं.’’

रज्जो सिर झुका कर चुप रही.

सुरेंद्र ने रज्जो का चेहरा हाथ से ऊपर उठाते हुए कहा, ‘‘तुझे कभी अपने गांव जाना हो, तो बता देना. ड्राइवर और गाड़ी भेज दूंगा.’’

सुन कर रज्जो बहुत खुश हुई.

‘‘रज्जो, तू मुझे इतनी अच्छी लगती है कि अगर मैडम की जगह मैं मंत्री होता, तो तुझे अपना पीए बना लेता,’’ सुरेंद्र ने कहा.

‘‘रहने दो साहबजी, मुझे ऐेसे सपने न दिखाओ, जो मैं रोटी बनाना ही भूल जाऊं.’’

‘‘रज्जो, तू नहीं जानती कि मैं तेरे लिए क्या करना चाहता हूं,’’ सुरेंद्र ने कहा.

खुशी के चलते रज्जो की आंखों की चमक बढ़ गई.

4 दिन बाद माधवी मैडम घर लौटीं. इस बीच हर रात को सुरेंद्र रज्जो को अपने कमरे में बुला लेता और रज्जो भी पहुंच जाती, उसे खुश करने के लिए.

अगले दिन रज्जो एक कमरे के बराबर से निकल रही थी, तो सुरेंद्र व माधवी की बातचीत की आवाज आ रही थी. वह रुक कर सुनने लगी.

‘‘कैसी लगी रज्जो?’’ माधवी ने पूछा.

‘‘ठीक है, बढि़या खाना बनाती है,’’ सुरेंद्र का जवाब था.

‘‘मैं रसोई की नहीं, बैडरूम की बात कर रही हूं. मैं जानती हूं कि रज्जो ने इन रातों में कोई नाराजगी का मौका नहीं दिया होगा.’’

‘‘तुम्हें क्या रज्जो ने कुछ बताया है?’’

‘‘उस ने कुछ नहीं बताया. मैं उस के चेहरे व आंखों से सच जान चुकी हूं.

‘‘खैर, मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं. तुम कहा करते थे कि मैं बाहर चली जाती हूं, तो अकेले रात नहीं कटती, इसलिए ही तो रज्जो को इतनी दूर से यहां लाई हूं, ताकि जल्दी से वापस घर न जा सके.’’

‘‘तुम बहुत समझदार हो माधवी…’’ सुरेंद्र ने कहा, ‘‘लखनऊ में तुम्हारे नेताजी के क्या हाल हैं? वह तो बस तुम्हारा पक्का आशिक है, इसलिए ही तो उस ने तुम्हें लाल बत्ती दिला दी है.’’

‘‘इस लाल बत्ती के चलते हम लोगों का कितना रोब है. पुलिस या प्रशासन में भला किस अफसर की इतनी हिम्मत है, जो हमारे किसी भी ठीक या गलत काम को मना कर दे.’’

‘‘नेताजी का बस चले तो वह तुम्हें लखनऊ में ही हमेशा के लिए बुला लें.’’

‘‘अगले हफ्ते नेताजी जनपद में आ रहे हैं. रात को हमारे यहां खाना होगा. मैं ने सोचा है कि नेताजी की सेवा में रात को रज्जो को उन के पास भेज दूंगी.

‘‘जब नेताजी हमारा इतना खयाल रखते हैं, तो हमारा भी तो फर्ज बनता है कि नेताजी को खुश रखें. अगले महीने रज्जो को लखनऊ ले जाऊंगी, वहां

2-3 दूसरे नेता हैं, उन को भी खुश करना है,’’ माधवी ने कहा.

सुनते ही रज्जो के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं. वह चुपचाप रसोई में जा पहुंची. उस ने तो साहब को ही खुश करना चाहा था, पर ये लोग तो उसे नेताओं के पास भेजने की सोच बैठे हैं. वह ऐसा नहीं करेगी. 1-2 दिन बाद ही वह अपने गांव चली जाएगी.

तभी मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. वह बोली, ‘‘हैलो…’’

‘‘हां रज्जो बेटी, कैसी है तू?’’ उधर से काका की आवाज सुनाई दी.

काका की आवाज सुन कर रज्जो का दिल भर आया. उस के मुंह से आवाज नहीं निकली और वह सुबकने लगी.

‘‘क्या हुआ बेटी? बता न? लगता है कि तू वहां बहुत दुखी है. पहले तो तू साहब व मैडम की बहुत तारीफ किया करती थी. फिर क्या हो गया, जो तू रो रही है?’’

‘‘काका, मैं गांव आना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है रज्जो, मेरा 2 दिन का काम और है. उस के बाद मैं तुझे लेने आ जाऊंगा. मैं जानता हूं कि मैडम व साहब बहुत अच्छे लोग हैं. तुझे भेजने को मना नहीं करेंगे. तू हमारी चिंता न करना. यहां सब ठीक है. तेरी मां, भाईबहनें सब मजे में हैं,’’ काका ने कहा.

रज्जो चुप रही.

अगले दिन सुरेंद्र व माधवी ने रज्जो को कमरे में बुलाया.

सुरेंद्र ने कहा, ‘‘रज्जो, 4-5 दिन बाद लखनऊ से बहुत बड़े नेताजी आ रहे हैं. यह हमारा सौभाग्य है कि वे हमारे यहां खाना खाएंगे और रात को आराम भी यहीं करेंगे.’’

‘‘जी…’’ रज्जो के मुंह से निकला.

‘‘रात को तुम्हें नेताजी की सेवा करनी है. उन को खुश करना है. देखना रज्जो, अगर नेताजी खुश हो गए तो…’’ माधवी की बात बीच में ही अधूरी रह गई.

रज्जो एकदम बोल उठी, ‘‘नहीं मैडमजी, यह मुझ से नहीं होगा. यह गलत काम मैं नहीं करूंगी.’’

‘‘और मेरे पीठ पीछे साहबजी के साथ रात को जो करती रही, क्या वह गलत काम नहीं था?’’

रज्जो सिर झुकाए बैठी रही, उस से कोई जवाब नहीं बन पा रहा था.

‘‘रज्जो, तू हमारी बात मान जा. तू मना मत कर,’’ सुरेंद्र बोला.

‘‘साहबजी, ये नेताजी आएंगे, इन को खुश करना है. फिर कुछ नेताओं को खुश करने के लिए मुझे मैडमजी लखनऊ ले कर जाएंगी. मैं ने आप लोगों की बातें सुन ली हैं. मैं अब यह गलत काम नहीं करूंगी. मैं अपने घर जाना चाहती हूं. 2 दिन बाद मेरे काका आ रहे हैं,’ रज्जो ने नाराजगी भरे शब्दों में कहा.

‘‘अगर हम तुझे गांव न जाने दें तो…?’’ माधवी ने कहा.

‘‘तो मैं थाने जा कर पुलिस को और अखबार के दफ्तर में जा कर बता दूंगी कि आप लोग मुझ से जबरदस्ती गलत काम कराना चाहते हैं,’’ रज्जो ने कड़े शब्दों में कहा.

रज्जो के बदले तेवर देख कर सुरेंद्र ने कहा, ‘‘ठीक है रज्जो, हम तुझ से कोई काम जबरदस्ती नहीं कराएंगे. तू अपने काका के साथ गांव जा सकती है,’’ यह कह कर सुरेंद्र ने माधवी की ओर देखा.

उसी रात सुरेंद्र ने रज्जो की गला दबा कर हत्या कर दी और ड्राइवर से कह कर रज्जो की लाश को नदी में फिंकवा दिया. दिन निकलने पर इंस्पैक्टर को फोन कर के कोठी पर बुला लिया.

‘‘कहिए हुजूर, कैसे याद किया?’’ इंस्पैक्टर ने आते ही कहा.

‘‘हमारी नौकरानी रजनी उर्फ रज्जो घर से एक लाख रुपए व कुछ जेवरात चुरा कर भाग गई है.’’

‘‘सरकार, भाग कर जाएगी कहां वह? हम जल्द ही उसे पकड़ लेंगे,’’ इंस्पैक्टर ने कहा और कुछ देर बाद चला गया.

दोपहर बाद रज्जो का काका रामदीन आया. सुरेंद्र ने उसे देखते ही कहा, ‘‘अरे ओ रामदीन, तेरी रज्जो तो बहुत गलत लड़की निकली. उस ने हम लोगों से धोखा किया है. वह हमारे एक लाख रुपए व जेवरात ले कर कल रात कहीं भाग गई है.’’

‘‘नहीं हुजूर, ऐसा नहीं हो सकता. मेरी रज्जो ऐसा नहीं कर सकती,’’ घबरा कर रामदीन बोला.

‘‘ऐसा ही हुआ है. वह यहां से चोरी कर के भाग गई है. जब वह गांव में अपने घर पहुंचे तो बता देना. थाने में रिपोर्ट लिखा दी है. पुलिस तेरे घर भी पहुंचेगी.

‘‘अगर तू ने रज्जो के बारे में न बताया, तो पुलिस तुम सब को उठा कर जेल भेज देगी.

‘‘और सुन, तू चुपचाप यहां से भाग जा. अगर पुलिस को पता चल गया कि तू यहां आया है, तो पकड़ लिया जाएगा.’’

यह सुन कर रामदीन की आंखों में आंसू आ गए. रज्जो के लिए उस के दिल में नफरत बढ़ने लगी. वह रोता हुआ बोला, ‘‘रज्जो, यह तू ने अच्छा नहीं  किया. हम ने तो तुझे यहां सेवा करने के लिए भेजा था और तू चोर बन गई.’’

रामदीन रोतेरोते थके कदमों से कोठी से बाहर निकल गया.

दलाल: क्या राजन को माफ कर पाई काजल

6 महीने पहले जब काजल की शादी राजन से हुई थी, तो वह मन में हजारों सपने ले कर अपने पति के घर आई . शुरुआती दिनों में उस के सपने पूरे होते भी दिखे थे. उस के ससुराल वाले खातेपीते लोग थे और वहां कोई कमी नहीं थी.

गरीबी में पलीबढ़ी काजल के लिए इतना होना बहुत था. उसे लगा था कि ससुराल आ कर उस की जिंदगी बदल गई है, उस की गरीबी हमेशा के लिए पीछे छूट गई है, पर बीतते दिनों के साथ उस का यह सपना टूटने लगा था.

काजल के मायके की जिंदगी गरीबी और तंगहाली से भरी जरूर थी, पर वहां उस की इज्जत थी. जैसे ही वह 20 साल की हुई थी, उस के मांबाप उस की इज्जत के प्रति कुछ ज्यादा ही सचेत हो उठे थे.

शादी के शुरू के दिनों में राजन का बरताव काजल के प्रति अच्छा था. उस के सासससुर भी उस का खयाल रखते थे, पर आगे चल कर राजन का बरताव काजल के प्रति कठोर होता चला गया.

राजन कपड़े का कारोबार करता था. उसे अपने कारोबार में 50 हजार रुपए का घाटा हुआ. उसे महाजन का उधार चुकाने के लिए अपने एक दोस्त से 50 हजार रुपए का कर्ज लेना पड़ा.

रजत नाम का यह दोस्त जब राजन से अपने पैसे मांगने लगा, तो उस के हाथपैर फूलने लगे. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह इतने रुपए कहां से लाए, ताकि अपने दोस्त के कर्ज से छुटकारा पा सके. उस ने इस बारे में गहराई से सोचा और तब उसे लगा कि उस की पत्नी ही उसे इस कर्ज से छुटकारा दिला सकती है.

अपनी इस सोच के तहत राजन ने काजल से बात की और उस से कहा कि वह अपने मांबाप से 50 हजार रुपए मांग लाए. पर जहां दो वक्त की रोटी का जुगाड़ ही मुश्किल से हो पाता हो, वहां इतने पैसों का इंतजाम कहां से हो पाता.

‘‘ठीक है,’’ राजन उदास लहजे में बोला.

‘‘पर मेरे पास एक और तरीका है,’’ काजल मुसकराते हुए बोली, ‘‘मेरे पास रूप और जवानी की दौलत तो है. मैं इसी का इस्तेमाल कर के पैसों का इंतजाम करूंगी.’’

‘‘क्या बकवास कर रही हो तुम?’’ राजन तेज आवाज में बोला.

‘‘मैं बकवास नहीं, बल्कि सच कह रही हूं.’’

‘‘नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकतीं. आखिरकार मैं तुम्हारा पति हूं और कोई पति अपनी पत्नी की इज्जत का सौदा नहीं कर सकता.’’

‘‘पर मैं कर सकती हूं,’’ काजल कुटिल आवाज में बोली, ‘‘क्योंकि पैसा पहले है और पति बाद में.’’

उन की स्कीम के अनुसार, रात के तकरीबन 10 बजे राजन लौटा, तो उस के साथ उस का वह दोस्त रजत भी था, जिस से उस ने कर्ज लिया था. राजन अपने दोस्त रजत को ले कर अपने बैडरूम में आ गया. उस ने काजल से कहा कि वह उस के और उस के दोस्त के लिए खानेपीने का इंतजाम करे.

आधे घंटे बाद जब काजल उन का खाना ले कर बैडरूम में पहुंची, तो दोनों शराब की बोतल खोले बैठे थे. काजल खाना लगा कर एक ओर खड़ी हो गई. शराब पीने के साथसाथ वे दोनों खाना खाने लगे.

खाना खाते समय रजत रहरह कर काजल को बड़ी कामुक निगाहों से देखने लगता था.

जब वे लोग खाना खा चुके, तो काजल जूठे बरतन ले कर रसोईघर में चली गई. थोड़ी देर बाद राजन ने आवाज दे कर उसे पुकारा. काजल कमरे में बैड के पास खड़ी थी और राजन के साथ बैठा रजत उसे बड़ी कामुक निगाहों से घूर रहा था. काजल ने आंखों ही आंखों में कुछ इशारा किया और राजन उठता हुआ बोला, ‘‘काजल, तुम यहीं बैठो, मैं अभी आया.’’

इतना कहने के बाद राजन तेजी से कमरे से निकल गया और बाहर से दरवाजा बंद कर दिया. पर वह कमरे से निकला था, घर से नहीं. राजन दरवाजे के पास अपने मोबाइल फोन के साथ छिपा बैठा था, ताकि काजल और रजत के प्यार के पलों की वीडियो फिल्म बना सके. राजन के कमरे से निकलते ही रजत काजल से छेड़छाड़ करने लगा.

‘‘यह क्या कर रहे हो तुम?’’ काजल नकली नाराजगी दिखाते हुए बोली, ‘‘छोड़ो मुझे.’’

‘‘तुम्हें कैसे छोड़ दूं जानेमन?’’ रजत बोला.

‘‘बड़ी कोशिश के बाद तो तुम मेरे हाथ आई हो,’’ कह हुए उस ने काजल को अपनी बांहों में भर लिया.

रजत की इस हरकत से काजल पलभर को तो बौखला उठी, फिर उस की बांहों में मचलते हुए बोली, ‘‘छोड़ो मुझे, वरना मैं तुम्हारी शिकायत अपने पति से करूंगी.’’

‘‘पति…’’ कह कर रजत कुटिलता से मुसकराया.

‘‘तुम्हारा पति भला मेरा क्या बिगाड़ लेगा? वह तो गले तक मेरे कर्ज में डूबा हुआ है.

‘‘सच तो यह है कि वह खुद चाहता है कि मैं तुम्हारी जवानी से खेलूं, ताकि उसे कर्ज चुकाने के लिए थोड़ी और मुहलत मिल जाए.’’

‘‘नहीं, राजन ऐसा नहीं कर सकता,’’ काजल अपने पति पर भरोसा करते हुए बोली.

‘‘तुम्हें यकीन नहीं आता?’’ रजत उस का मजाक उड़ाते हुए बोला, ‘‘तो खुद जा कर दरवाजा चैक कर लो. तुम्हारे पति ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया है.’’

‘‘नहीं,’’ कह कर काजल दरवाजे की ओर भागी, पर शराब और वासना के नशे से जोश में आए एक मर्द से एक औरत कब तक बचती. रजत ने झपट कर उसे अपनी बांहों में उठाया और बिस्तर पर उछाल दिया. अब काजल संभलती हुई उस पर सवार थी.

ऐसा करते हुए यह बात रजत के सपने में भी न थी कि उस का यह मजा आगे चल कर उस के लिए कितनी बड़ी मुसीबत खड़ी करने वाला है.

रजत के जाने के बाद जब राजन कमरे में आया, तो नकली गुस्सा और अपमान से भरी काजल बोली, ‘‘कैसे पति हो तुम? पति तो अपनी पत्नी की इज्जत की हिफाजत के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा देते हैं, पर तुम ने तो अपना कर्ज उतारने के लिए अपनी पत्नी की इज्जत को ही दांव पर लगा दिया?’’

बदले में राजन मुसकराते हुए बोला, ‘‘काजल, कुछ पल रजत के साथ बिताने के एवज में अब हमें उस के कर्ज से जल्दी ही छुटकारा मिल जाएगा.’’

इस के तीसरे दिन जब रजत अपने पैसे मांगने राजन के घर पहुंचा, तो राजन ने उसे अपने मोबाइल फोन से बनाई वह वीडियो फिल्म दिखाई, फिर उसे धमकाता हुआ बोला, ‘‘रजत, अब तुम अपने पैसे भूल ही जाओ. अगर तुम ने ऐसा नहीं किया, तो मैं यह वीडियो क्लिप पुलिस तक पहुंचा दूंगा और तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट लिखवा दूंगा कि तुम ने मेरी पत्नी के साथ बलात्कार किया है. इस के बाद पुलिस तुम्हारी क्या गत बनाएगी, इस की कल्पना तुम आसानी से कर सकते हो.’’

रजत हैरान सा राजन को देखता रह गया. उस के चेहरे से खौफ झलकने लगा था. वह चुपचाप राजन के घर से निकल गया.

इधर राजन ने उस के इस डर का भरपूर फायदा उठाया. इस वीडियो क्लिप को आधार बना कर वह रजत को ब्लैकमेल कर उस से पैसे ऐंठने लगा. रजत राजन की साजिश का शिकार जरूर हो गया था, पर वह भी कम शातिर न था. आखिर वह लाखों रुपए का कारोबार ऐसे ही नहीं चलाता था. उस ने इस मामले पर गहराई से विचार किया और राजन के हथियार से ही उसे मात देने की योजना बनाई.

अपनी योजना के तहत जब अगली बार राजन उस से पैसे वसूलने आया, तो रजत बोला, ‘‘राजन, तुम कब तक मुझे यों ही ब्लैकमेल करते रहोगे? आखिरकार तुम मेरे दोस्त हो, कम से कम इस बात का तो लिहाज करो.’’

‘‘मैं पैसे के अलावा और किसी का दोस्त नहीं.’’ ‘‘अगर मैं पैसे कमाने का इस से भी बड़ा जरीया तुम्हें बता दूं, तो क्या तुम मेरा पीछा छोड़ दोगे?’’

‘‘क्या मतलब?’’ राजन की आंखों में लालच की चमक उभरी.

‘‘मेरी नजर में एक करोड़पति है, जिस की कमजोरी खूबसूरत और घरेलू औरतें हैं. अगर तुम बुरा न मानो, तो तुम काजल को उस के पास भेज दिया करो. इस से तुम हजारों नहीं, बल्कि लाखों रुपए कमा सकते हो.’’

लालच के चलते काजल और राजन रजत द्वारा फैलाए जाल में फंस गए. अब रजत ने उस आदमी के साथ काजल के रंगीन पलों की वीडियो क्लिप बना ली और एक शाम जब पतिपत्नी उस के पास आए, तो यह फिल्म उन्हें दिखाई, फिर रजत बोला, ‘‘मैं जानता था कि तुम लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आओगे. सो, मैं ने यह खूबसूरत वीडियो क्लिप बनाई है.

‘‘अब अगर तुम ने भूल कर भी मेरे घर का रुख किया, तो इस वीडियो फिल्म के जरीए मैं यह साबित कर दूंगा कि तुम्हारी पत्नी देह धंधा करती है और इस की आड़ में लोगों को ब्लैकमेल करती है. तुम इस में उस की मदद करते हो. तुम न सिर्फ उस के दलाल हो, बल्कि एक ब्लैकमेलर भी हो.’’

यह सुन कर पतिपत्नी के मुंह से बोल न फूटे. वे हैरान हो कर रजत को देखते रहे, फिर अपना सा मुंह ले कर उस के घर से निकल गए.

बिग डील: क्या गोपाल को माफ कर पाई मोहना

सोशल नैटवर्किंग साइट पर मोहना अपनी सगाई के कुछ फोटो अपलोड कर के हटी ही थी कि उस के स्मार्टफोन में नए मैसेज की टोन गूंज उठी. सभी मित्र तथा सहकर्मी उसे बधाई दे रहे थे. मुसकराती हुई वह सभी मैसेज पढ़ रही थी कि एक नाम पढ़ते ही उस के फैले अधर सिकुड़ गए, मुसकराते चेहरे पर त्योरियां चढ़ गईं और खुशमिजाज मूड बिगड़ गया. फिर भी उस ने बधाई का उत्तर दिया, ‘धन्यवाद गोपाल, मुझे तुम से यही उम्मीद थी.’

एक बार को दिल किया कि गोपाल को अपनी फ्रैंडलिस्ट से निकाल दे लेकिन रुक गई. पिछले 3 वर्षों में गोपाल ने कोई ऐसी हरकत नहीं की थी. आज भी अन्य मित्रों की भांति बधाई दी है. फिर मोहना आज के जमाने की बोल्ड युवती है, खुले विचारों वाली, दकियानूसी विचारधारा से परे. 3 साल पहले हुई एक दुर्घटना उस का मनोबल कैसे तोड़ सकती है. लैपटौप बंद कर वह रसोई में अपने लिए एक कप कौफी बनाने चल दी. दूध के उबाल के साथसाथ उस के विचारों में भी ऊफान आने लगा और एक झटके में पुराने दिनों में पहुंच गई.

स्नातकोत्तर के लिए कालेज में प्रवेश के साथ ही मोहना की मित्रता गोपाल से हुई थी. दोनों का विषय एक था. कुछ ही अरसे की दोस्ती ने गोपाल को एक सुंदर, सुनहरे भविष्य के सपने दिखाने शुरू कर दिए. वह अकसर बात करता, ‘मोहना, जब हम अपना घर लेंगे तो उस में…’

मोहना बीच में ही बात काट देती, ‘अपना घर? हम एक घर क्यों लेंगे?’ गोपाल शरमा कर हंस देता और मोहना सिर झटक कर हंस देती. ‘जब मैं ने मोहना के आगे शादी का प्रस्ताव ही नहीं रखा तो वह क्यों मेरे इशारों को समझेगी. जब मैं प्रपोज करूंगा तभी तो मोहना भी मेरे प्रति अपना प्यार स्वीकारेगी,’ सोचता हुआ गोपाल एक सही समय की प्रतीक्षा कर रहा था.

कालेज के अंतिम वर्ष में प्लेसमैंट सैल द्वारा लगभग सभी की जौब लग गई. मोहना व गोपाल को भी अपनी पसंदीदा कंपनियों में अच्छे पैकेज वाली नौकरियां मिल गईं. किंतु एक को दिल्ली में तो दूसरे को हैदराबाद में नौकरी मिली. गोपाल इस से काफी उदास हो उठा.

‘अरे, हम टच में रहेंगे न, इतना क्यों उदास होते हो?’

‘मैं ने कल शाम. तुम्हारे लिए एक पार्टी रखी है, मोहना, आओगी न?’ गोपाल ने उदासी का चोला उतार पहले जैसी मुसकान ओढ़ ली.

‘बिलकुल आऊंगी. मेरे लिए पार्टी हो और मैं न आऊं?’ मोहना पार्टी का नाम सुन कर खुश थी. अगली शाम जब मोहना तैयार हो निर्धारित जगह पर पहुंची तो अपने ज्यादातर मित्रों को उस पार्टी में पा कर बोली, ‘‘अरे वाह, यहां तो सभी हैं.’’ ‘क्योंकि ये आम पार्टी नहीं, आज यहां कुछ खास होने वाला है. कुछ ऐसा जिसे तुम सारी उम्र नहीं भूलोगी,’ कहते हुए गोपाल के इशारे पर सारा वातावरण मधुर संगीत से गूंज उठा. आसपास खड़े मित्र, मोहना और गोपाल पर गुलाब की पंखुडि़यां बरसाने लगे.

मोहना आश्चर्यचकित थी पर साथ ही इतने मनमोहक माहौल में उस की मुसकान थमने का नाम नहीं ले रही थी. तभी गोपाल ने जेब से एक सुंदर सी डब्बी निकाली और खोल कर मोहना के समक्ष बढ़ा दी. उस डब्बी में एक खूबसूरत अंगूठी थी, ‘क्या तुम मेरी जीवनसंगीनी बनोगी, मोहना?’ मोहना की हंसी अचानक काफूर हो गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है, जिसे वह अपनी नौकरी मिलने की खुशी की पार्टी समझ रही थी वह तो दरअसल गोपाल ने उसे प्रपोज करने हेतु रखी थी. वह भी सब के सामने. इस अप्रत्याशित प्रस्ताव के लिए वह कतई तैयार नहीं थी. पहली बात उस ने अभी शादी करने के बारे में सोचा भी न था. गोपाल को उस ने कभी इस नजर से देखा भी नहीं था. वह तो उसे सिर्फ एक दोस्त मानती थी.

‘ओह गोपाल. एक बार मुझ से पूछ तो लेते. यों अचानक सब के सामने… देखो, मैं तुम्हारा दिल नहीं दुखाना चाहती पर मैं अभी शादी नहीं करना चाहती. मैं तुम से प्यार भी नहीं करती. प्लीज, बात समझने की कोशिश करो,’ मोहना अचकचा गई थी, वह गोपाल को किसी भी गलतफहमी में नहीं रखना चाहती थी. उस के इतना कहते ही पार्टी में हलचल मच गई. चारों ओर खुसफुसाहट सुनाई देने लगी. गोपाल को अपनी बेइज्जती महसूस हुई. सब मित्र अपनेअपने घर रवाना हो गए. मोहना भी चुपचाप चली गई. कुछ दिन बाद मोहना हैदराबाद चली गई और वहां नई नौकरी जौइन कर ली. उस शाम से आज तक उस ने गोपाल से कोई बातचीत नहीं की थी. नए शहर और नई नौकरी में मोहना खुश थी. मोहना को इस औफिस में अभी एक हफ्ता ही हुआ था कि एक सुबह अचानक औफिस में प्रवेश करते समय उस ने गोपाल को रिसैप्शन पर खड़ा पाया.

‘अरे, गोपाल तुम?’

‘हां, किसी काम से हैदाराबाद आया था. सोचा, तुम से भी मिलता चलूं. तुम्हारी कंपनी का नामपता तो मालूम ही था.’

‘अच्छा किया. कैसे हो? कहां ठहरे हो और कब तक?’

‘होटल मयूर में रुका हूं. यदि शाम को तुम फ्री हो तो आ जाओ, एक कप कौफी पीएंगे साथ में और गपशप करेंगे दोनों.’ गोपाल के इस प्रस्ताव पर मोहना झिझकी.

‘हां, मैं आऊंगी,’ मोहना ने झिझकते हुए कहा. शाम को मोहना होटल मयूर पहुंची. वहीं के रेस्तरां में दोनों ने कौफी पी. कुछ हलका सा खाया ही था कि गोपाल ने पेटदर्द की शिकायत की, ‘मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही है, मोहना. मैं अब कमरे में जाना चाहता हूं.’ मोहना गोपाल को छोड़ने उस के कमरे तक गई, ‘कोई दवा है तुम्हारे पास या मैं जा कर ले आऊं?’ ‘मेरी दवा तुम हो, मोहना,’ कहते हुए गोपाल ने अचानक कमरे का दरवाजा बंद कर दिया और मोहना को घसीट कर बिस्तर पर गिरा दिया. ‘यह क्या कर रहे हो, गोपाल? क्या पागल हो गए हो? मैं तुम्हें साफतौर से बता चुकी हूं कि मैं तुम्हें नहीं चाहती. फिर भी तुम…’

गोपाल अपनी सुधबुध खो चुका था. मोहना की बातों का, उस की चीखों का उस पर कोई असर नहीं हुआ. उस पर तो जैसे फुतूर सवार हो गया था. वह मोहना पर टूट पड़ा और उस की अस्मिता भंग करने के पश्चात ही सांस ली. मोहना का रोरो कर बुरा हाल था. एक पुराने दोस्त के हाथों इतना बड़ा धोखा. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि गोपाल उसे इतना आहत कर सकता है. शारीरिक वेदना से अधिक वह रोष अनुभव कर रही थी. मना करने के बावजूद उस के अपने मित्र ने उस के साथ छल किया. मोहना का दिल कसमसा उठा. रात काफी हो चुकी थी. मोहना अपने संताप को स्वीकार चुकी थी. गोपाल चुपचाप एक तरफ बैठा था. अचानक गोपाल उठ खड़ा हुआ और कमरे की एकमात्र अलमारी से फिर वही अंगूठी वाली डब्बी निकाल लाया और बोला, ‘अब तो मान जाओ, मोहना,’ और वही अंगूठी मोहना की ओर बढ़ा दी.

‘ओह, तो तुम ने ये सब इसलिए किया ताकि मैं कहीं और, किसी और के पास जाने लायक न रहूं? मुझे तरस आता है, गोपाल, तुम्हारी संकुचित सोच पर. ऐसी हरकत कर के तुम किसी लड़की को जबरदस्ती पा तो सकते हो, लेकिन उस का दिल कभी नहीं जीत सकते, उस के अंतर्मन में अपने लिए इज्जत कभी नहीं बना सकते. मैं आज के जमाने की लड़की हूं. मेरे लिए मेरे सभी अंग महत्त्वपूर्ण हैं. किसी एक अंग को भंग कर के तुम मेरा आत्मविश्वास नहीं खत्म कर सकते. ‘यदि तुम्हारी एक उंगली कट जाए तो क्या तुम जीना छोड़ दोगे? नहीं ना? वैसे ही इस घटना को मैं अपने मनमस्तिष्क पर हावी नहीं होने दूंगी. तुम ने मेरे साथ जबरदस्ती की, इस का पछतावा तुम्हें होना चाहिए, मुझे नहीं. मेरा मन साफ है. ‘मेरे मन में तुम्हारे लिए कभी भी प्यार नहीं था और अब तो बिलकुल नहीं पनप सकता. मैं यहीं बैठी हूं. चाहो तो ऐसी हरकत फिर कर लो. मगर बारबार आहत कर के भी तुम मुझे नहीं पा सकते,’ कहते हुए मोहना उठी और अपने कपड़े, पर्स संभालते हुए कमरे से बाहर निकल गई. गोपाल भोर तक वहीं उसी मुद्रा में बैठा रहा. यह क्या कर दिया था उस ने? जिस को इतना चाहता था उसे ही इतनी पीड़ा पहुंचाई उस ने. मोहना द्वारा कही बातें उस के कानों में गूंज रही थीं.

‘अब तो कभी उस की शक्ल तक देखना पसंद नहीं करेगी मोहना?’ उस ने सोचा. अगले दिन पूरी हिम्मत जुटा कर गोपाल फिर मोहना के औफिस पहुंच गया. किंतु आज मोहना औफिस नहीं आई थी. वहां से उस के घर का पता ले, वह उस के घर जा पहुंचा. दरवाजे पर गोपाल को खड़ा देख मोहना ने उसे एक चांटा जड़ दिया. गोपाल फिर भी सिर झुकाए चुपचाप खड़ा रहा, हाथ जुड़े थे, मुख ग्लानि की स्याही से मलिन था. ‘मुझे माफ कर दो, मोहना. मैं पागल हो गया था. तुम्हें पा लेने के जनून में मैं ने अपना विवेक खो दिया था. प्लीज, मुझे माफ कर दो, मोहना,’ गोपाल गिड़गिड़ा रहा था.

मोहना एक आत्मविश्वासी, समझदार युवती थी. वह जानती थी कि किस चीज को कितनी अहमियत देनी है. गोपाल से उस की दोस्ती 3 साल पुरानी थी और इस समयाकाल में गोपाल ने उस का सिर्फ हित सोचा था. आज उस से एक भूल अवश्य हो गई थी लेकिन उस के पीछे भी उस की मनशा गलत नहीं थी. यह उस की मूर्खता थी. मोहना ने एक शर्त पर गोपाल को माफ कर दिया कि अब जब तक वह नहीं चाहेगी, दोनों एकदूसरे से मिलेंगे भी नहीं. गोपाल ने भी शर्त मान ली थी. ‘गोपाल, तुम्हारे मन में मेरे लिए जो भी भावना रही, उसे मैं विनिमय नहीं कर सकती और यह बात तुम्हें सहर्ष स्वीकारनी चाहिए. इसी में तुम्हारा बड़प्पन है,’ मोहना ने गोपाल को विदा किया. कौफी बन चुकी थी. हाथ में कौफी का मग लिए मोहना टीवी देखने बैठ गई. अपनी शादी पर पूरे 3 वर्ष पश्चात वह गोपाल से मिलेगी. गोपाल ने कहा था कि उस की शादी में अपनी गर्लफ्रैंड को भी लाएगा.

कारावास: लाले और जाले की कहानी

मलिक साहब एक वकील थे, जो अमेरिका जा कर बस गए थे. जब वह स्वदेश आए तो उन से उन की वकालत के दिनों के केसों में सब से रोचक केस सुनाने के लिए कहा गया.

यह कहानी उन्हीं के कथनानुसार है. उन्होंने बताया, ‘मेरे गुरु लाहौर के एक प्रसिद्ध वकील थे. उन के पास फौजदारी मुकदमों की लाइन लगी रहती थी. बड़ेबड़े मुकदमे वह खुद लिया करते थे और छोटेमोटे चोरीडकैती वगैरह के मुकदमे मुझे दिया करते थे. मैं बहुत मेहनत से काम करता था, इसलिए जल्दी ही मेरी गिनती बड़े वकीलों में होने लगी थी.

मेरे 2 क्लायंट थे, जो अकसर छोटेमोटे अपराध किया करते थे. एक का नाम जाले था, जो खातेपीते घराने का था. उसे खानेकमाने की कोई चिंता नहीं थी. जबकि दूसरे का नाम लाले था. वह था तो गरीब घर का, लेकिन उस का शरीर पहलवानों जैसा था.

उस के डीलडौल की वजह से उस से कोई पंगा नहीं लेता था. दोनों मेरे पक्के क्लायंट थे और अपना हर केस मुझे ही देते थे. कभीकभी तो दोनों मेरी फीस भी एडवांस में दे देते थे. वे कहते थे, ‘‘वकील साहब, रख लो. अगर कभी हम किसी केस में फंसे तो इसे अपनी फीस समझ लेना.’’

जाले खातेपीते घराने का था और उस की पीठ पर उस के ताऊ का हाथ था. ताऊ की कोई संतान नहीं थी, इसलिए ताऊ की पूरी संपत्ति और कारोबार उसे ही मिलना था. वह अकसर जुआ खेला करता था, इसलिए पैसे से तंग रहता था.

इस के लिए कई बार वह घटिया हरकतें भी करता था. मसलन, जैसे छोटे बच्चों से पैसे छीन लेना, किसी छोटी बच्ची के कानों से सोने की बालियां उतार लेना.

दूसरी ओर लाला यानी लाले मेहनतमजदूरी करता था. जुआ वह भी खेलता था. जब पैसे नहीं होते थे तो वह अपने मांबाप या विवाहिता बहन से बहाने से पैसे मांग लेता था. जब कहीं से पैसे नहीं मिलते थे तो वह कहीं हाथ मार कर अपना शौक पूरा कर लेता था. सब उस से डरते थे और उसे लाला पहलवान कह कर बुलाते थे.

गर्मियों में जब मैं रोज अपने औफिस के लिए निकलता तो अपने भाई की दूध की दुकान पर जरूर जाता था. वहां मैं पिस्ता, बादाम और खोए का ठंडा दूध पी कर जाता था. एक दिन मैं दूध पी रहा था तो लाले वहां आ गया.

उस ने बोस्की का सूट और बढि़या जूते पहन रखे थे और बहुत खुश था. उस ने मुझे देखते ही जोर से कहा, ‘‘अरे वकील साहब आप?’’ फिर जेब से बहुत सारे नोट निकाल कर बोला, ‘‘लो साल भर की फीस इकट्ठी ही एडवांस में ले लो.’’

मैं ने कहा, ‘‘लाले, इतना रुपया कहां से आया, क्या कहीं लंबा हाथ मारा है?’’

वह बोला, ‘‘मलिक साहब, कल रात ताश के पत्ते मेरे ऊपर मेहरबान थे, बाजी पर बाजी जीतता गया. अब खूब मौज करूंगा. आप भी एडवांस फीस ले लो, पता नहीं कल क्या हो जाए.’’

मैं ने उस का दिल रखने के लिए थोड़े से पैसे ले कर कह दिया, ‘‘ठीक है, खूब मौजमस्ती करो.’’

इस के एक हफ्ते बाद मोहल्ले में सुबहसवेरे शोर हुआ तो मेरी आंखें खुल गईं. जा कर पता किया तो पता चला कि लाले की हत्या हो गई है. यह जानकारी भी मिली कि उस की हत्या जाले ने की है. मुझे यकीन नहीं हुआ, क्योंकि वे दोनों घनिष्ठ मित्र थे. इस के अलावा लाले वैसे भी इतना ताकतवर था कि वह 2-3 के बस में नहीं आ सकता था. उसे जाले जैसा कमजोर आदमी नहीं मार सकता था.

जहां उस की हत्या हुई थी, वह जगह मेरे घर से ज्यादा दूर नहीं थी. मैं घटनास्थल पर पहुंचा. वहां लोगों ने बताया कि रात दोनों ने जुआ खेला था और दोनों हारजीत पर लड़ पड़े. जाले ने चाकू निकाल कर लाले को भोंक दिया और वह मर गया.

लाले की लाश घटनास्थल से थोड़ी दूरी पर पड़ी थी. चाकू लगने से वह भागा होगा, इसलिए खून की लकीर जमीन पर पड़ी थी. लगता था, उसे पहले खूब शराब पिलाई गई होगी, जिस से उसे आसानी से मारा जा सके. वैसे तो दोनों मेरे क्लाइंट थे, लेकिन लाले के घर वालों ने पहले मुझे अपना वकील कर लिया और जाले के घर वालों ने एक मशहूर वकील किया. मुझे लाले के मरने का बड़ा दुख था, उस की सब बुराइयों के बावजूद मैं उसे पसंद करता था. मुझे उस की वह बात याद आ रही थी कि वकील साहब पैसे एडवांस में ले लो, पता नहीं कल क्या हो जाए.

हो सकता है, उस से यह बात उस की मौत कहलवा रही हो. लाले की पार्टी गरीब थी, उस की ओर से मुकदमा उस के पिता लड़ रहे थे. जाले की पार्टी धनी थी, उस की ओर से उस का ताऊ मुकदमा लड़ रहा था, जो बहुत पैसे वाला था. उस ने जाले को खुली छूट दे रखी थी, जो मरजी आए करो पर बड़ा बदमाश बन कर दिखाओ. वह उस के लिए बहुत पैसे खर्च कर रहा था.

मैं ने मुकदमे की तैयारी शुरू कर दी. चश्मदीद गवाह एक ही था और वह जाले की बिरादरी का था. मुझे यकीन नहीं था कि वह जाले के खिलाफ गवाही देगा. ऐसा ही हुआ. उस ने गवाही देने से साफ मना कर दिया. बाद में पता चला कि जाले के ताऊ ने उसे गवाही न देने के लिए पैसे दिए थे और जाले की बहन से उस का रिश्ता भी कर दिया था. मुकदमा चला, गवाह न मिलने की वजह से जाले साफ छूट गया.

लाले के मांबाप बहुत गरीब थे. मुकदमा हार कर घर बैठ गए. बाद में वे दोनों जवान बेटे के गम में मर गए. जाले जेल से रिहा हो कर घर आ गया. पूरे मोहल्ले में उस की धाक जम गई. जब भी जाले का और मेरा सामना होता था तो वह मुझ से बड़े घमंड से कहता था, ‘‘आप ने लाले का मुकदमा लड़ कर अच्छा नहीं किया.’’

एक हत्या कर के उस की हिम्मत बढ़ गई और वह चरस, गांजे का कारोबार करने लगा. इलाके में अपनी धाक जमाने के लिए वह अपराध करने लगा था. अब उस ने मुझे अपना वकील भी करना छोड़ दिया था.

उस इलाके में एक और जेबकतरा था, जो बहुत बड़ा बदमाश था. उस की जाले से दोस्ती हो गई और दोनों मिल कर बदमाशी करने लगे. उन्होंने दुकानदारों से हफ्तावसूली शुरू कर दी थी. एक दिन जब वे हफ्तावसूली कर रहे थे तो दोनों की एक दुकानदार से लड़ाई हो गई.

दुकानदार भी दो थे, दोनों ने हफ्ता देने से मना कर दिया. वे दोनों बहुत दिलेर थे. चारों में जबरदस्त लड़ाई हुई. दोनों ओर से चाकूछुरियां चलीं, जिस में एक दुकानदार और जाले का साथी मारे गए. जाले भी घायल हो गया और वहां से फरार हो गया.

एक दुकानदार ने जाले के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. जाले ने भी अपने साथी की हत्या के लिए मुकदमा दर्ज कराना चाहा, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. कारण यह था कि लड़ाई उन की दुकान पर हुई थी और जाले व उस का साथी एक मील चल कर वहां लड़ने आए थे.

फौजदारी मुकदमों के लिए मैं बहुत मशहूर था, इसलिए उस दुकानदार ने मुझे अपना वकील कर लिया. एक बार फिर मैं जाले के खिलाफ मुकदमा लड़ने लगा. जाले के ताऊ ने लाहौर का एक मशहूर महंगा वकील कर लिया था. जाले जेल चला गया. जाले हर पेशी पर बड़े घमंड से आया करता था. वह मेरी ओर गुस्से से देखता था और इशारों में मुझे धमकियां भी देता था.

जाले के घर वाले भी मुझे धमकियां देने लगे, जिस से डर कर मैं मुकदमा न लड़ूं. मैं ने मन लगा कर मेहनत की, जिस से मेरे क्लाइंट बहुत खुश थे. केस सैशन में चला. मेरे गवाहों ने बहुत अच्छी गवाही दी. जाले के वकील ने एक गवाह पेश किया, जो हिस्ट्रीशीटर था. वह ठीक से गवाही नहीं दे पाया. जाले का वकील बहुत परेशान था. हर बड़े वकील को अपने केस की चिंता होती है. उस ने जाले को शक का लाभ ले कर उसे बरी कराने या फांसी से बचाने की तरकीब सोची.

हर अदालत में पुलिस का एक व्यक्ति होता है, जो थानों से मिली हर केस की सभी फाइलें अपने पास रखता है और अदालत तक पहुंचाता है. जब मुकदमा दायर हो जाता है तो उस मुकदमे की दूसरी फाइल उस के पास रहती है, जिसे पुलिस फाइल कहते हैं. उस में विवेचना अधिकारी की हर दिन की काररवाई दर्ज की जाती है. अधिकतर वकील उस फाइल को देख नहीं पाते, लेकिन जो होशियार वकील होते हैं, उस फाइल से अपने मतलब की बहुत सी चीजें निकाल लेते हैं.

जाले के वकील ने जाले के ताऊ से कह कर एक नई डाक्टरी रिपोर्ट लगवा दी जो असल रिपोर्ट से अलग थी. दोनों रिपोर्टों में भिन्नता के कारण अपराधी को शक का लाभ मिल सकता था.

मैं अदालत जाने से पहले उस पुलिस फाइल को जरूर देखता था. मैं ने वह रिपोर्ट देखी तो मेरे पैरों तले से जमीन निकल गई. मैं ने पुलिस वाले से पूछा तो उस ने बताया कि उसे पता नहीं लेकिन फाइल थानेदार ने मंगवाई थी. मैं ने तुरंत अपने क्लायंट से कहा, ‘‘समय रहते कुछ करना है तो कर लो.’’

वे लोग भी बहुत होशियार थे. उन्होंने पुलिस वाले को अच्छी रकम दे कर वह रिपोर्ट निकलवा दी.

पेशी के दिन जाले का वकील और थानेदार बड़े भरोसे से अदालत में आए. पहले विवेचना अधिकारी के बयान हुए. वकील बहुत खुश था कि उस रिपोर्ट की बिनाह पर वे लोग मुकदमा जीत जाएंगे. थानेदार और वकील ने पूरी फाइल देख ली, लेकिन वह रिपोर्ट नहीं मिली. दोनों को पसीना आ गया कि वह रिपोर्ट कहां गई. शोर इसलिए नहीं कर सकते थे कि अदालत के पास जो रिपोर्ट थी, वह असली थी.

मैं ने लोहा गरम देख कर चोट की, ‘‘योर औनर, ऐसी कोई रिपोर्ट न तो थी और न है. नई रिपोर्ट कोई डाक्टर बना कर भी नहीं दे सकता, इसलिए यह पूरा मामला ही झूठ का पुलिंदा है.’’

जाले का वकील कोई सबूत पेश नहीं कर सका, इसलिए अदालत ने उसे फांसी की सजा सुना दी. मेरे क्लाइंट बहुत खुश हुए. उन्होंने मेरी जेब में बहुत मोटी रकम डाल दी. मैं ने मना किया तो वे कहने लगे कि केस हाईकोर्ट में तो जाना ही है, और इसे आप ही लड़ेंगे.

केस हाईकोर्ट में गया. मेरे क्लायंट ने एक और महंगा वकील कर लिया. हम दोनों ने मिल कर मुकदमा लड़ा. यहां भी हम जीत गए. लेकिन अदालत ने फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया.

जाले को उस की करनी की सजा मिल गई, लेकिन मुझे इस बात का बहुत दुख हुआ कि 2 आदमियों का हत्यारा फांसी से बच गया. लेकिन यह दुनिया की अदालत का फैसला था, अभी कुदरत का फैसला बाकी था. कुदरत की ओर से जो सजा उसे मिलनी थी, उस के लिए जाले का जिंदा रहना जरूरी था.

लाले के मातापिता मरते दम तक जाले को कोसते रहे. दूसरी ओर उस दुकानदार के घर वाले व और भी कई लोग थे, जो उसे कोस रहे थे. कहते हैं, कमजोर की हाय आसमान से टकराती है और इस का नतीजा बड़ा भयानक होता है.

एक दिन खबर आई कि जाले जेल में अंधा हो गया है. यह बात यकीन करने के काबिल नहीं थी, क्योंकि वह 26-27 साल का गबरू जवान था, उसे कोई बीमारी भी नहीं थी. जेल के डाक्टरों ने बहुत बारीकी से उस की आंखों को टेस्ट किया, लेकिन उन की समझ में बीमारी नहीं आई. एक डाक्टर ने कहा, ‘‘यह बीमारी हमारी समझ से बाहर है. आंखें भलीचंगी हैं, उन में कोई खराबी नहीं लेकिन अचरज की बात है कि आंखों की रोशनी कैसे चली गई.’’

जाले की दुनिया अंधेरी हो गई थी, जबकि वह लोगों की दुनिया में अंधेरा फैलाता रहा था. जेल अधिकारियों ने बड़ेबड़े आई स्पेशलिस्ट्स को दिखाया, लेकिन किसी की समझ में बीमारी नहीं आई. अब अंधे जाले के लिए जेल का जीवन और भी कठिन हो गया. अब वह कुछ नहीं कर सकता था. हर काम के लिए दूसरों पर निर्भर था. वह रोरो कर अपने गलत कर्मों की माफी मांगता था.

लेकिन लगता था कि बेकसूर लोगों की बददुआएं अभी और असर दिखाने वाली थीं. कुछ दिनों बाद खबर आई कि जाले जेल में गूंगा हो गया है. इस बीमारी का भी बहुत इलाज हुआ, लेकिन सब बेकार. उस के बाद खबर आई कि जाले चलनेफिरने से भी बेकार हो गया. जाले को जेल के अस्पताल भेज दिया गया. सभी डाक्टर इस बात पर हैरान थे कि भलाचंगा आदमी गूंगा, लंगड़ा, अंधा कैसे हो गया?

जेल के दूसरे बंदी उसे देख कर कानों को हाथ लगाते थे. अब वह अपाहिज हुआ अस्पताल में पड़ा रहता था. न बोल सकता था, न हाथपैर चला सकता था. जेल के डाक्टरों ने जेल अधिकारियों से बात की और उस के घर वालों से संपर्क किया. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में उस की रिहाई का प्रार्थनापत्र डाल दिया, जो जेल के डाक्टरों की संस्तुति पर मंजूर हो गया.

वह जेल से रिहा हो कर अपने घर आ गया. वह पेशाब व शौच बिस्तर पर ही कर देता था. कुछ ही दिनों में उस के घर वाले उस से तंग आ गए और उस की चारपाई घर से बाहर रख दी. उस की साफसफाई के लिए एक सफाई कर्मचारी को लगा दिया गया.

हर आनेजाने वाला उसे देख कर कानों को हाथ लगाता था. वह वही जाले था, जो कभी सब के सामने अकड़ कर चलता था. आज वह अपने मुंह से मक्खी भी नहीं उड़ा सकता था. घर के लोग उस के मरने की दुआएं करने लगे थे. एक दिन सब की दुआ काम आई और वह अपनी जिंदगी की कैद से आजाद हो गया.

क्या यहां पर आ कर कहानी खत्म हो गई? नहीं, अभी एक और गुनहगार बचा हुआ था, जो कानून और दुनिया वालों की नजरों से छिपा हुआ था. वह अपने आप में संतुष्ट था कि उस की ओर किसी का ध्यान नहीं गया.

वह व्यक्ति जाले को बहुत बड़ा बदमाश बनाना चाहता था. उसे बदमाश बनाने में उस ने अपना धन लगाया. वह था, उस का ताऊ. एक दिन उस की पिंडली पर एक छोटा सा घाव हो गया, जो ठीक नहीं हुआ और डाक्टरों ने उस की पिंडली से टांग काट दी.

वह घाव फिर घुटने तक पहुंच गया और फिर उस की रान से टांग काटनी पड़ी. यह भी चलनेफिरने में अक्षम हो गया था.

चारपाई पर पड़ा रहता था. रातदिन बीमारी के कारण बहुत कमजोर हो गया था. अंत में एक दिन वह भी दुनिया से चला गया.

दूध के दांत- भाग 4: क्या सही साबित हुई रोहित की तरकीब

‘‘रामू, मां के लिए रोटीसब्जी बनाओ, साथ में दही ले आना चीनी डाल कर,’’ रोब से रोहित ने कहा.

‘‘अच्छा, बाबाजी,’’ रामू ने जवाब दिया. शोभा से कुछ न बोला गया.

आज बहुत दिनों बाद रोहित अपनी मां के पास लेटा है. उसे कितनी सारी बातें करनी हैं, पूछनी हैं और बतानी भी हैं. वह जानता है कि जब तक मां को अपनी एकएक बात न बता देगा मन नहीं मानेगा. और आज तो उसे पापा ने रीता आंटी के सामने ही मारा है. यदि मारने वाली बात मां को बताएगा तो इस के लिए मम्मी उसे ही समझाएंगी. कभी सोचता, मां इतनी सीधी क्यों हैं? पापा से क्यों डरती हैं?

अपने ही सवालों में उलझा रोहित अचानक पूछ बैठा, ‘‘मां, तुम अंगरेजी में बात क्यों नहीं करतीं, जैसे डा. रीता आंटी करती रहती हैं? पापा को इसीलिए तो उन से बातें करना अच्छा लगता है.’’

‘‘तुम तो जानते हो बेटे, मैं अंगरेजी समझ तो लेती हूं पर धाराप्रवाह बोलने के लिए प्रैक्टिस चाहिए.’’

‘‘मां,’’ रोहित बोला, ‘‘अब हम आपस में अंगरेजी में बात कर के इसे बोलना सीखेंगे.’’

कुछ देर की खामोशी के बाद पहलू बदल कर रोहित फिर बोला, ‘‘मां, आंटी की तरह तुम भी पैसे क्यों नहीं कमातीं? कार क्यों नहीं चलातीं? बाहर घूमने क्यों नहीं चलतीं? बड़ी पार्टियां क्यों नहीं करतीं?’’

‘‘तुझे आज यह क्या हो गया है जो इस तरह की बहकीबहकी बातें कर रहा है? अब यह मत कह देना कि उन के जैसे कपड़े क्यों नहीं पहन लेतीं? बेटा, वे बड़े अस्पताल की डाक्टर हैं और मैं एक घरेलू महिला. मेरा जीवन तुम लोगों तक ही सीमित है.’’

‘‘पर तुम मेरी मां हो, अपने को थोड़ा चेंज करो न मां.’’

शोभा समझ नहीं पा रही थीं कि आज रोहित को हो क्या गया है. बेटे से वे इस बारे में कुछ पूछतीं कि तभी अमित बाहर से आ गए. उन को देखते ही डर कर चुप हो गईं और सोचने लगीं कि रोहित के पापाजी ने इतना भी नहीं पूछा कि उस के पिताजी की तबीयत कैसी है. दिल से न सही औपचारिकता तो निभा ही सकते हैं. इन को न जाने क्या होता जा रहा है, पहले तो ठीक ही व्यवहार करते थे. पर इधर ठीक ढंग से बातचीत तक नहीं करते.

मांबेटे को एकसाथ सोता देख कर अमित सोचने लगे, यही रोहित को बिगाड़ रही है अन्यथा वह इस तरह रीता को नहीं बोलता. पर अपने बेटे को इतनी जोर से उन्हें भी नहीं मारना चाहिए था. अपनी गलती का एहसास होते ही उन का मन ग्लानि से भर गया और वे अपनेआप को न रोक सके. धीरे से पूछा, ‘‘जाग रहे हो बेटा, ज्यादा जोर से तो नहीं लगी? आई ऐम सौरी.’’

‘‘क्या चोट लग गई? कहां लग गई, कैसे लगी इसे, इस ने तो कुछ नहीं बताया,’’ घबरा कर शोभा उठ कर बैठ गईं और बोलीं, ‘‘चलो, उठो और मुझे अपनी चोट दिखाओ.’’

‘‘अरे, मां जरा सा गिर गया और लग गई. पापा तो यों ही चिंता कर रहे हैं. अंदरूनी चोट है, तुम को नहीं दिखेगी.’’

रोहित की बात सुन कर अमित सोचने लगे कि लगता है आज की घटना के बारे में रोहित ने अपनी मां को कुछ नहीं बताया है. अमित को इधर कुछ दिनों से घर का माहौल एकदम अलग लगने लगा है. न किसी बात की चकचक होती न झंझट होता. पत्नी शोभा और बेटा रोहित जाने क्या करते रहते हैं. बेटे को देखो तो वह कमरे में बंद रहता है. मां को देखो तो सुबह से शाम तक अपने काम में ही लगी रहती है. अमित इस दिनचर्या से खुश हैं कि चलो रीता से मिलने में कोई रोकटोक नहीं है.

उस दिन अमित जैसे ही अपने घर पहुंचे कि पीछे से किसी ने आवाज दी. पलट कर देखा तो कोरियर वाला था. उन्होंने लिफाफा ले लिया और पढ़ कर देखा तो पत्र बेटे के नाम से था. कौन भेज सकता है और कहां से आया है? अमित के दिमाग में एकसाथ कई प्रश्न कौंध गए फिर भी उन्होंने रोहित को बुला कर उसे पत्र पकड़ा दिया. उस ने लिफाफा खोला और पढ़ा तो उछल पड़ा और मारे खुशी में उछलते हुए उस ने कहा, ‘‘पापा, आप भी इसे पढ़ो.’’

अमित ने पत्र पढ़ा, श्रीमती शोभा सिंह, इस बार की प्रादेशिक चित्रकला प्रतियोगिता में आप के बेहतरीन चित्र ने प्रथम स्थान प्राप्त किया है. हमारी शुभकामनाएं. आप को ललित कला अकादमी में खुद आ कर यह पुरस्कार व सम्मान राज्यपाल महोदय से लेना होगा.

अमित ने पत्नी से पूछा, ‘‘ये शौक कब से लग गया?’’

‘‘पेंटिंग का शौक तो मुझे बचपन से ही था लेकिन इस ओर ध्यान ही नहीं दिया,’’ उत्साहहीन भाव से शोभा ने कहा, ‘‘बेटे ने मेरे द्वारा बनाए गए साधारण से चित्र को कब इस प्रतियोगिता में भेज दिया मुझे नहीं पता और उस चित्र में ऐसा क्या है यह भी मैं नहीं जानती, क्योंकि मैं ने तो यों ही कूंची चला दी थी. पर इतना बड़ा पुरस्कार मिला. यह मेरे लिए आश्चर्य की बात है.’’

अमित कुछ बोले नहीं. बस, चुपचाप अपने कमरे में आ कर बैठ गए. सोचने लगे कि इतने दिनों तक पत्नी को वे कितना अपमानित करते रहे हैं. उस ने उफ तक न की. हां, उन के लिए उन के परिवार के लिए अपनी प्रतिभा को उस ने ताले में जरूर बंद कर दिया और वह अपने पाश्चात्यता के फैशन में पत्नी को इस तरह का कोई मौका ही नहीं दे पाए और न ही उस के मन को कभी समझना चाहा. पत्नी की असली कीमत तो उन्हें अब समझ में आ रही है. और बच्चों को भी कभी कम कर के नहीं आंकना चाहिए. वे कभी बड़ों से भी ज्यादा समझदार हो जाते हैं. इस तरह अमित को शादी के बाद पहली बार अपनी पत्नी पर गर्व हुआ.

मन की उधेड़बुन में फंसे अमित ने टैलीविजन खोला तो उन के कानों में ये शब्द सुनाई पड़े, ‘‘अब आप होनहार बाल कलाकार रोहित और उस की चित्रकार मां शोभा सिंह से मिलिए. आप को यह जान कर खुशी होगी कि एक बेहतरीन चित्रकार की प्रतिभा को आम लोगों के बीच लाने का श्रेय एक 9 साल के बच्चे को मिला है जो उन्हीं का बेटा है.’’

अमित टैलीविजन को देखने लगे. स्क्रीन पर रोहित का हंसता चेहरा नजर आया जो कह रहा था, ‘‘पिछले दिनों पापा की एक पत्रिका में मैं ने छिपी प्रतिभाओं को ढूंढ़ निकालने की इस प्रतियोगिता के बारे में पढ़ा तो मां की बनाई हुई अपनी पसंद की एक पेंटिंग भेज दी. मुझे पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा था कि मम्मी का बनाया यह चित्र अवश्य ही पसंद किया जाएगा. लेकिन प्रथम पुरस्कार प्राप्त होगा यह मुझे नहीं लगा था.

मां की कलाकृतियों की विशेषता है किसी भी चित्र को देख कर उस के नीचे स्वरचित कुछ विशेष पंक्तियां लिखना जो उस चित्र को उत्कृष्टता और भव्यता देती हैं. मेरी मां की लगन व पापा का सहयोग ही हमें आगे कार्य करने को निरंतर उत्साहित करेगा.’’

अमित इस साक्षात्कार को देखने में इतने तल्लीन थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि रोहित कब आ कर उन की बगल में बैठ गया. साक्षात्कार समाप्त होने के बाद बगल में रोहित को बैठा देख कर अमित बोले, ‘‘हां, तो मास्टर रोहित, यह साक्षात्कार कब हो गया और तुम ने मुझे बताया भी नहीं.’’

‘‘पापा, वे कल घर आए थे. मां से भी कहते रहे पर उन को कुछ कहने में झिझक हो रही थी. पर मैं ने अच्छा कहा न?’’

इसी के बाद अमित के पास अपने लोगों की बधाइयां आने लगीं जिस में इस शहर के कुछ जानेमाने लोगों के भी बधाई संदेश शामिल थे. अब अमित की समझ में आया कि घर में तो हीरा छिपा है और वे पत्नी को सदा हीनता का ही बोध कराते रहे. कितनी गलती करते रहे थे वे. जो काम उन को करना चाहिए वह उन के बेटे ने कर दिखाया है. उन्हें लग रहा था कि उन का बेटा अब उन से भी बड़ा हो गया है. कितनी शालीनता से उस ने उन को सही मार्ग दिखला कर घरौंदे को बिखरने से बचा लिया है. पीछे पलट कर देखते हैं तो उन को बधाई देने वालों में डाक्टर रीता भी शामिल हैं.

वे भीगी आंखों से सब की बधाइयां स्वीकार करते रहे और पत्नी कितनी निर्विकार हो कर मुसकरा रही थी. उन के अपने घर में इतनी बड़ी कलाकार बैठी है और वे घर के बाहर भटकते रहे हैं. मन ने जैसे एक निश्चय किया. नहीं, अब वे अपने पथ से विचलित नहीं होंगे.

पहली बार अमित अपनी पत्नी की ओर हाथ बढ़ा कर बोले, ‘‘चलो शोभा, आज बाहर कहीं इस खुशी को सैलिब्रेट करने चलें.’’

शोभा अदा से बोलीं, ‘‘थैंक्यू, अमितजी, कौंगे्रचुलेट टू अवर सन फौर दिस गे्रट अचीवमैंट.’’

अपनी पत्नी के मुंह से अंगरेजी में कही बातों पर अवाक हो कर अमित पहले पत्नी और फिर बेटे को देखते रह गए.

रोहित नन्हा बालक बन कर बोला, ‘‘पापा, हम पहले आइसक्रीम खाएंगे, फिर चिडि़याघर देखेंगे, पिज्जा खाएंगे तब घर आएंगे.’’

‘‘श्योर,’’ अमित बोले, ‘‘आज जो चाहोगे वही मिलेगा. फिर घर आ कर मां के हाथ की बनी खीर का मजा लेंगे.’’

शोभा का मन खुशी से खिल उठा. हाथ में बंधी घड़ी पर नजर जाते ही बोलीं, ‘‘अब चलें, कितने काम पैंडिंग पड़े हैं, जल्दी पूरे करने हैं.’’

एकदूसरे की खुशी में सराबोर, हाथों में हाथ डाले वे लौट आए हैं. घर का दरवाजा खोलते हुए अमित सोचने लगे कि कौन कहता है कि मेरे बेटे रोहित के दूध के दांत अभी नहीं टूटे हैं.

रत्नमाया: क्या देह व्यापार से बच पाई वह

स्वर्ण रेखा नदी के तट पर स्थित एक मंदिर के द्वार पर एक असहाय तरुणी ने आश्रय की भीख मांगी. उसे आश्रय मिल गया, किंतु वह यह नहीं जानती थी कि मंदिर का वह द्वार नारी देह का व्यापार करने वालों का एक विशाल गृह है.

कल क्या होने वाला है कौन जानता है. तरुणी अपने को समय के हाल पर छोड़ चुकी थी. वह जहां थी जिस हाल में थी अपने को महफूज समझ रही थी.

तभी एक दिन गोधूली की बेला में, मंदिर में होने वाली आरती के समय एक युवक ने वहां प्रवेश किया. एकत्रित भक्त मंडली की भीड़ को चीरता हुआ वह अग्रिम पंक्ति में जा खड़ा हुआ.

आरती खत्म होने पर जब अपने पायलों की रुनझुन बजाती हुई, थाल को हाथों में लिए हुए, देव मंदिर की वह नवयुवती सीढि़यों से उतरी और स्वर्ण रेखा नदी के तट पर आ दीपों को एकएक कर के जल में प्रवाहित करने लगी, तभी पीछे से उस युवक ने पुकारा, ‘‘रत्नमाया.’’

युवती चौंक गई. पीछे मुड़ कर उस ने बलिष्ट कंधों वाले उस गौरांग सुंदर युवक को देखा तो उस के कपोल लाज की गरिमा से आरक्त हो उठे. साड़ी का आंचल धीरे से सिर पर खींच उस ने कहा, ‘‘रत्नसेन, तुम यहां कैसे?’’

‘‘होनी ले आई,’’ युवक ने उत्तर दिया.

‘‘किंतु मैं ने तो समझा था कि हूणों से मेरी रक्षा करने में उस दिन तुम ने अपने जीवन की इति ही कर दी,’’ तरुणी बोली.

युवक हंसा और बोला, ‘‘नहीं,  जीवन अभी शेष था, इसलिए बच गया. तुम कौन हो नहीं जानता, किंतु ऐसा लगता है कि युगोंयुगों से मैं तुम्हें पहचानता हूं. एक लहर ने हमें परिचय के बंधन में पुन: उस दिन बंधने का आयोजन किया था. क्या तुम मुझ पर विश्वास करोगी और मेरे साथ चल सकोगी?’’

युवती कटाक्ष करती हुई बोली, ‘‘मुझ पर इतना अखंडित विश्वास हो गया तुम्हें.’’

युवक बोला, ‘‘मन जो कहता है.’’

‘‘उसे कभी बुद्धि की आधारतुला पर भी तौल कर तुम ने देखा है. एक असहाय नारी की जीवन रक्षा करने का प्रतिफल ही आज तुम मुझ से मांग रहे हो.’’

युवक यह सुन कर हतप्रभ रह गया. उसे लगा नारी के इस उत्तर ने उसे बहुत प्रताडि़त किया है. वह सहमा घूमा और सीढि़यों पर पग रखता हुआ, आगे चल दिया. तभी युवती ने फि र से पुकारा, किंतु उसे पीछे लौटते न देख वह स्वयं उस के निकट आ गई और बोली, ‘‘रत्नसेन, तुम तो बुरा मान गए. काश, तुम समझ सकते कि मैं एक दुर्बल नारी हूं, जो खुल कर अपनी बात नहीं कह सकती.

‘‘हृदय में क्या है और होंठों पर क्या शब्द आ जाते हैं, या मेरे चेहरे पर क्या भाव आते हैं? यह मैं स्वयं नहीं जानती,’’  यह कहतेकहते उस युवती की आंखों में आंसू आ गए, किंतु रत्नसेन पाषाण शिला सा खड़ा रहा. रत्नमाया ने अपने दोनों हाथ उस की भुजा पर रख दिए और बोली, ‘‘एक प्रार्थना है, मानोगे, कल गोधूलि की इसी बेला में आरती के समय तुम आ जाना और मैं नदी के तट पर तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी. तभी तुम्हारे प्रश्न का उत्तर भी दे दूंगी. अब मैं चलती हूं.’’

इतना कह कर रत्नमाया जाने लगी तो रत्नसेन ने कहा, ‘‘सुनो, रत्नमाया, मेरा कर्तव्य पथ कठिन है. मैं एक साधकमात्र हूं. आज जहां हूं, उस स्थान से मैं परिचित नहीं. अपने उद्देश्य पूर्ति के निमित्त मगध जाने के रास्ते में आज यहां रुका. मेरे भरोसे ने मुझ से कहा था कि तुम यहीं कहीं इसी नगरी में होगी और वही आस की प्रबल डोर मुझे बांधेबांधे यहां इसी नदी के तट तक तुम्हारे समीप ले आई.’’

उस ने आगे कहा, ‘‘किंतु तुम मुझे समझने में भूल कर गईं. तुम्हारी जीवन रक्षा कर के उस के प्रतिदान रूप में तुम्हें उपहारस्वरूप मांगने का मेरा कोई  विचार न था,’’ यह कहते हुए रत्नसेन तेजी से आगे बढ़ गया.

उस के जाने के बाद पीछे से रत्नमाया ने अपना सुंदर चेहरा उस पाषाण शिला पर वहीं रख दिया जहां अभीअभी रत्नसेन के चरण पडे़ थे. उसे अपने आंसुओं से धो कर रत्नमाया अपने कक्ष की ओर चल पड़ी.

वहां उन देवदासियों की भीड़ में देवबाला ही इकलौती उस की प्रिय थी. उस से ही रत्नमाया अपनी विरहव्यथा कहती थी. देवबाला उस के अतीत को जानती थी. इसीलिए जब उस दिन स्वर्णनदी में द्वीप प्रवाहित कर वह लौटी तो सहसा देवबाला बोली थी, ‘‘रत्नमाया, यह क्यों भूलती है कि तू एक देवदासी है? उस युवक की शब्द छलना में फंस कर अपनी सुंदर देह को मत गला. भला नारी की छविमाया के सामने पुरुष द्वारा दिए हुए विश्वासों का मूल्य ही क्या है? तू उसे भूल जा. तेरा यह जीवन चक्र तुझे जिस पथ पर ले आया है, उसे ही अब ग्रहण कर.’’

किंतु सब सुनते और समझते हुए भी रत्नमाया ने अपने चेहरे को न उठाया. वह पहले की तरह ही देवबाला के सामने सुबकती रही. बाहर मंदिर में घंटों के बजने का स्वर चारों ओर गूंजने लगा था.

तभी पुजारी ने आ कर पुकारा तो देवबाला ने उठ कर कक्ष के कपाट खोल दिए.

आगंतुक पुजारी ने कहा, ‘‘देवबाला, मंगल रात की इस बेला में रत्नमाया को अलंकृत कर दो. रसिक जनों के आगमन का समय हो गया है. शीघ्र ही उसे भीतर विलास कक्ष में भेजा जाएगा.’’

‘‘नहीं,’’  देवबाला बोली. उस के स्वर में दृढ़ता साफ झलक रही थी और आंखों से प्रतिशोध की भावना. उस ने कहा, ‘‘रत्नमाया तो अस्वस्थ है इसलिए विलास नृत्य में वह भाग नहीं ले सकेगी.’’

‘‘अस्वस्थता का कारण मैं खूब जानता हूं,’’ पुजारी बोला, ‘‘एक दिन जब तुम भी इस द्वार पर देवदासी बन कर आई थीं तब भी तुम ने ऐसा ही कुछ कहा था. किंतु मेरे दंड के विधान की कठोरता तुम्हें याद है न.’’

यह कहतेकहते पुजारी की पैशाचिक भंगिमा कठोर हो गई. देवबाला उन्हें देख कर सिहर उठी. खिन्न मन बिना कुछ उत्तर दिए हुए, वापस लौट आई.

‘‘रत्नमाया,’’ देवबाला आ कर बोली, ‘‘औरत की बेबसी ही उस का सब से बड़ा अभिशाप है. तू तो जानती ही है अत: अपने मन को स्वस्थ कर और देख तेरा वह अनोखा भक्त मंदिर में पुन: आया है, जिस ने एक दिन आरती की बेला में तुझे अपने प्रेम विश्वासों की सुरभि से मतवाला किया था.’’

‘‘सच, कौन रत्नसेन?’’ चकित सी वह पूछ बैठी.

‘‘हां, तेरा ही रत्नसेन,’’ देवबाला ने उत्तर दिया.

‘‘आह, बहन एक बार फिर कहो,’’ रत्नमाया कह उठी और तत्काल ही देवबाला को उस ने अपनी बांहों में कस कर बांध लिया. भावनाओं के उद्वेग में हाथ ढीले हुए तो सरकती हुई वह देवबाला के सहारे धरती पर बैठ गई.

कुछ क्षणों के लिए आत्मविभोर देवबाला ठिठकी खड़ी रह गई. फिर उस ने कहा, ‘‘रत्नमाया, तू अब जा और अपनी देह को अलंकृत कर…शीघ्र ही मंदिर में आ जा, आज देवनृत्य का आयोजन है.’’

रत्नमाया तुरंत उठी. उस दिन फिर उस ने अपने अद्भुत रूप को आभूषणों का पुट दे सजाया. गोरे रंग की अपनी देह पर लहराते हुए केशों की एक वेणी गूंथी. केतकी के सुवासित फूलों को उस में पिरो कर गले में देवबाला के दिए हुए हीरक हार को पहना.

रात्रि की उस बेला में ऊपर नीले आकाश में अनेक तारे टिमटिमा रहे थे. उन की छाया के तले अपने हाथों में आरती के थाल को सजाए वह पायलों को रुनझुन बजाती हुई चल दी.

‘‘ठहरो,’’ सहसा देवबाला ने उसे रोक कर कहा, ‘‘रत्नमाया, सुन दुर्भाग्य मुझे एक दिन देवदासी बना कर यहां लाया था किंतु रूप के इतने विपुल भार को लिए हुए अभागिन तेरा समय तुझे यहां क्यों लाया है?’’

रत्नमाया विस्मित रह गई. धीमे से उस ने उत्तर दिया, ‘‘बहन, रूप की बात तो मैं जानती नहीं, किंतु समय के चक्र को मैं अवश्य पहचानती हूं. बर्बर हूणों के आक्रमण में राज्य लुटा, वैभव और सम्मान गया. परिवार का अब कुछ पता नहीं. सबकुछ खो कर जिस प्रकार तुम्हारे द्वार तक आई हूं, वह तुम से छिपा है कुछ क्या?’’

देवबाला ने उत्तर नहीं दिया. किन्हीं विचारों में वह कहीं गहरे तक खो गई. फिर बोली, ‘‘रत्नमाया, क्या रत्नसेन का पता तू जानती है?’’

‘‘नहीं, केवल इतना कि वह एक दिन हठात कहीं से आया और अपने जीवन को दांव पर लगा कर मेरी रक्षा की थी.’’

‘‘और तू ने अपना हृदय इतनी सी बात पर न्योछावर कर दिया,’’ देवबाला बोली.

किंतु उत्तर में रत्नमाया का गोरा चेहरा बस, लाज से आरक्त हो उठा.

देवबाला बोली, ‘‘सुन, रत्नसेन यहां नहीं है और वह मंदिर भी भगवान का उपासना गृह नहीं बल्कि नारी के रूप का विक्रय घर है. आज की इस रात को तू विलास कक्ष में मत जा. यदि तुझे जीवन का मोह नहीं है तो वहां जा, जो इस रूप का मोल कर ले. हां, नहीं तो जीवन की सारी मोहममता त्याग कर तू जहां भी आज जा सकती है…वहां इसी पल इस द्वार को छोड़ कर चली जा.’’

उस समय सामने मंदिर की सीढि़यों से टकराती हुई बरसाती स्वर्णरेखा नदी बही चली जा रही थी. एक असहाय तरुणी के क्लांत हृदय सी चीत्कार करती हुई उस की लहरें वातावरण को क्षुब्ध कर रही थीं.

रत्नमाया ने देवबाला की बात को पूरी तरह सुना अथवा नहीं, किंतु उसी क्षण उस ने अपनी सुंदर देह से स्वर्ण आभूषणों को निकाल कर फेंक दिया. केशों की वेणी में गुथे हुए केतकी के फूलों को नोच कर चारों ओर छितरा दिया और सत की ज्वाला सी धधकती हुई वह रूपवती अद्भुत नारी देवबाला को देखतेदेखते ही क्षणों में वहां से विलीन हो गई. दिन बीतते गए…समय का चक्र अपनी गति से चलता रहा.

…और फिर एक दिन रात्रि के आगमन पर एक छोटे से गांव के मंदिर में किसी सुंदरी ने दीप जलाया. बाहर आकाश में बादल घिरे थे और हवा के एक ही झोंके में सुंदरी के हाथों में टिमटिमाते हुए उस दीपक की लौ बुझ गई.

तभी मंदिर के बाहरी द्वार पर किसी अश्वारोही के रुकने का शब्द सुनाई पड़ा. एकएक कर बडे़ यत्न से वह अश्वारोही मंदिर की सीढि़यों से ऊपर चढ़ा. मानो शक्ति का उस की देह में सर्वथा अभाव हो. किसी प्रकार आगे बढ़ कर वह देवालय के उस द्वार पर आ कर खड़ा हो गया, जहां 2 क्षण पहले ही, उस ने एक छोटा दीपक जलते हुए देखा था.

लेकिन उस के पैरों की आहट सुन कर भी कक्ष की वह नारी मूर्ति हिली नहीं. मन और देह से ध्यान की तंद्रा में तल्लीन वह देव प्रतिमा के समक्ष पुन: दीप जला, पहले की तरह अचल बैठी रही.

युवक के धैर्य का बांध टूट गया. उस ने कहा, ‘‘हे विधाता, जीवन का अंत क्या आज यहीं होने को है?’’

इस बार युवती मुड़ी और पूछा, ‘‘बटोही, तुम कौन हो?’’

‘‘मैं एक सैनिक हूं,’’ उस ने उत्तर दिया और कहा, ‘‘हूणों द्वारा शिप्रा पार कर इस ओर आक्रमण करने के प्रयास को आज सर्वथा विफल किया है, किंतु लगता है कि देह में जीवन शक्ति अब शेष नहीं है. किंतु इस गहन रात्रि में मुझे आज यहां क्या अभय मिल सकेगा?’’

युवती उठ खड़ी हुई. वह द्वार तक आई तभी आकाश में बिजली चमकी और उस के क्षणिक प्रकाश में उस ने रक्त में भीगे युवक के काले केश, उस के गीले वस्त्र और खून में लिपटे चेहरे को देखा. वह चीख उठी अैर अचानक ही उस के मुख से निकला गया, ‘‘कौन? रत्नसेन?’’

हर्ष और विस्मय से रत्नसेन का हृदय स्पंदित होने लगा. सम्मुख ही गौरांगिनी रत्नमाया खड़ी थी.

उस दिन रत्नमाया फिर रत्नसेन को अपने कक्ष में ले गई और अपने मृदुल हाथों से उस बटोही के घावों को धोया, स्नेह के अमृत रस को ढुलका कर उसे स्वस्थ और चेतनयुक्त बनाया.

बाहर गहन अंधकार अभी भी व्याप्त था. कक्ष में जलते दीपक की धीमी रोशनी में रत्नसेन ने कहा, ‘‘रत्नमाया, वक्त की मुसकान और उस के आंसू विचित्र हैं. कब ये हंसाएगी और कब ये रुला जाएंगी, कोई नहीं जानता? एक दिन बर्बर हूणों से तुम्हारी रक्षा कर सकने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ और फिर अचानक ही उस दिन स्वर्णरेखा नदी के तट पर तुम से पुन: भेंट हो गई.’’

रत्नमाया शांत बैठी सुनती रही. उस ने…अपने कोमल हाथों को उठा कर रत्नसेन के उन्नत माथे पर मृदुलता के साथ रख दिया.

रत्नसेन ने फिर कहा, ‘‘रत्नमाया, तुम्हारी इस रूपशिखा के सतरंगी प्रकाश को अपने से दूर न हटने दूं, मेरा यह दिवास्वप्न अब तुम्हारी कृपा से पूरा होगा.’’

‘‘मन की इच्छापूर्ण कर सकने का सामर्थ्य आप में भला कब नहीं रहा,’’ यह कह रत्नमाया वहां से उठी और अंदर के प्रकोष्ठ में चली गई.

दूसरे दिन जब ऊषा अपने स्वर्णिम रथ पर बैठी सुनहरी चादर को खुले नीलाकाश में फहराती चली आ रही थी, तभी रत्नसेन की खोज में अनेक सैनिकों ने उस गांव में प्रवेश किया. रत्नसेन बाहर मंदिर के प्रांगण में आ कर खड़ा हो गया और एक वृद्ध सैनिक को संकेत से पुकारा, ‘‘सिंहरण, इधर इस ओर मंदिर के समीप.’’

अगले पल में वह देवालय सैनिकों की चहलपहल और कोलाहल से भर गया. वहां का आकाश भी वीर सामंत रत्नसेन की जयजयकार से निनादित हो उठा.

निकट के उद्यान से तभी संचित किए हुए पुष्पों को ले कर, रत्नमाया उस ओर आई. कनकछरी सी कमनीय काया युक्त शुभ्रवसना, उस सुंदरी को देखते ही सहसा सिंहरण विस्मित रह गया. उस ने पुकारा, ‘‘कौन राजकुमारी, रत्नमाया.’’

रत्नमाया ठिठकी. घूम कर उस ने सिंहरण की ओर देखा और बोली, ‘‘सेनापति सिंहरण, अरे, तुम यहां कैसे?’’ फिर जैसे उसे ध्यान हो आया. वह बोली, ‘‘तो बर्बर विदेशियों से आर्यावर्त को मुक्त करने का संकल्प लिए हुए तुम अभी जीवित हो?’’

‘‘हां, राजकुमारी,’’ सिंहरण ने कहा, ‘‘वृद्ध सिंहरण ही जीवित रह गया. तात तुल्य जिस राजा ने सदैव पाला और  मेरे कंधों पर राज्य की रक्षा का भार सौंपा था, यह अभागा तो न उन की ही रक्षा कर सका, न उस धरती की ही. आज भी यह जीवित है, इस दिन को देखने के लिए. आह, स्वर्ण पालने और फूलों की सेज पर जिस राजकुमारी को मैं ने कभी झुलाया था, उस की असहाय बनी इस दीन कुटिया में आज अपने दिन बिताते देखने को यह अभागा अभी जीवित ही है.’’

सिंहरण ने पुन: सामंत रत्नसेन को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘तात, शूरसेन प्रदेश के वीर राजा घुमत्सेन की पुत्री यही राजकुमारी रत्नमाया है.’’

मन की किसी रहस्यमयी अज्ञात प्रेरणावश उस ने रत्नमाया को प्रणाम किया. उत्तर में उस की प्रेमरस से अभिसिंचित शुक्रतारे सी उज्ज्वल मोहक मुसकान को पा, वह आत्मविभोर हो उठा.

किंतु उस दिन अति आग्रह पर भी रत्नमाया रत्नसेन के साथ नहीं गई. उस के अभावों और कष्टों के पीडि़त दिनों में ग्रामीणजनों ने निश्चल, निस्वार्थ भाव से एक दिन उसे आश्रय प्रदान किया था. वह उन्हीं की सेवा में पूर्ववत तनमन से ही संलग्न रही.

गुप्तकाल के यशस्वी मानध्वज के नीचे सामूहिक रूप से संगठित हो एक दिन आर्य वीरों ने जब भारत भूमि को हूणों की पैशाचिक सत्ता से मुक्त कर लिया, तभी प्रभात की एक बेला में एक स्वर्णमंडित रथ रत्नमाया के उस छोटे से गांव में आया. उस पर से पराक्रमी मालव सामंत वीर रत्नसेन उतरे. उन के साथ ही फूल सी कोमल कुंदकली सुंदर राजवधू रत्नमाया को ग्रामीण जनों ने स्नेह के आंसू दे विदा कर दिया.

उस दिन ग्रामवधुओं ने रथ को घेर लिया था और उस के पथ को अपने मोहक प्रेमफूलों से पूरी तरह सजा दिया. उस रास्ते पर से जाते समय अपने दुख के दिनों में भी जिस रत्नमाया के नयन आंसुओं से कभी इतने आर्द न हो सके थे, जितने आज हुए.

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