कल हमेशा रहेगा: भाग 4- वेदश्री ने किसे चुना

आस्था का कहना था कि ‘जिस घर में इतनी प्यारी भाभी बसती हों उस घर को छोड़ कर मैं तो कभी नहीं जाने वाली,’ फिर भाभी के गले में बांहें डाल कर झूल जाती.

वेदश्री के खुशहाल परिवार को एक ही ग्रहण वर्षों से खाए जा रहा था कि विश्वा भाभी की गोद अब तक खाली थी. वैसे भैयाभाभी दोनों शारीरिक रूप से पूर्णतया स्वस्थ थे पर भाभी के गर्भाशय में एक गांठ थी जो बारबार की शल्यक्रिया के बाद भी पनपती रहती थी. भाभी को गर्भ जरूर ठहरता, पर गर्भ के पनपने के साथ ही साथ वह गांठ भी पनपने लगती जिस की वजह से गर्भपात हो जाता था.

बारबार ऐसा होने से भाभी के स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता जा रहा था. इसी बात का गम उन्हें मन ही मन खाए जा रहा था. श्री हमेशा भाभी से कहती, ‘भाभी, मैं आप से उम्र में बहुत छोटी हूं और उम्र एवं रिश्ते के लिहाज से बड़ी भाभी, मां समान होती हैं. आप मुझे अपनी देवरानी समझें या बेटी, हर लिहाज से मैं आप को यही कहूंगी कि आप इस बात को कभी मन पर न लें कि आप की अपनी कोई संतान नहीं है मैं अपने तीनों बच्चे आप की गोद में डालने को तैयार हूं. आप को मुझ पर भरोसा न हो तो मैं कानूनी तौर पर यह कदम उठाने को तैयार हूं. बच्चे मेरे पास रहें या आप के पास, रहेंगे तो इसी वंश से जुडे़ हुए न.’’

सुन कर भाभी की आंखों में तैरने वाला पानी उसे भीतर तक विचलित कर देता. मांबाबूजी श्री के इन्हीं गुणों पर मोहित थे. उन्हें खुशी थी कि घरपरिवार में शांति एवं खुशी का माहौल बनाए रखने में छोटीबहू का योगदान सब से ज्यादा था. बड़ी बहू भी उस की आत्मीयता में सराबोर हो कर अपना गम भुलाती जा रही थी. तीनों बच्चों को वह बेहद प्यार करती. श्री घर के कार्य संभालती और भाभी बच्चों को. घर की चिंताओं से मुक्त पुरुष वर्ग व्यापार के कार्यों में दिनरोज विकास की ओर बढ़ता जा रहा था.

‘‘श्री,’’ विश्वा भाभी ने उसे आवाज दी.

‘‘जी, भाभी,’’ ऋचा के बाल संवारते हुए श्री बोली और फिर हाथ में कंघी लिए ही वह ड्राइंगरूम में आ गई, जहां विश्वा भाभी, मांजी एवं दादीमां बैठी थीं.

‘‘आज हमें एक खास जगह, किसी खास काम के लिए जाना है. तुम तैयार हो न?’’ भाभी ने पूछा.

‘‘जी, आप कहें तो अभी चलने को तैयार हूं लेकिन हमें जाना कहां होगा?’’

‘‘जाना कहां है यह भी पता चल जाएगा पर पहले तुम यह तसवीर देखो,’’ यह कहते हुए भाभी ने एक तसवीर उस की ओर बढ़ा दी. तसवीर में कैद युवक को देखते ही वह चौंक उठी. अरे, यह तो सार्थक है, अभि का दूसरा भांजा…प्रदीप का छोटा भाई.

‘‘हमारी लाडली बिटिया की पसंद है….हमारे घर का होने वाला दामाद,’’ भाभी ने खुशी से खुलासा किया.

‘‘सच?’’ उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था. फिर तो जरूर अभि से भी मिलने का मौका मिलेगा.

घर के सभी लोगों ने आस्था की पसंद पर अपनी सहमति की मोहर लगा दी. सार्थक एक साधारण परिवार से जरूर था लेकिन एक बहुत ही सलीकेदार, सुंदर, पढ़ालिखा और साहसी लड़का है. अनिकेत के साथ ही एम.बी.ए. कर के अब बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत है.

उन की सगाई के मौके पर एक विशाल पार्टी का आयोजन होटल में किया गया. साकेत व वेदश्री मुख्यद्वार पर खड़े हो कर सभी आने वाले मेहमानों का स्वागत कर रहे थे. जब सार्थक के साथ अभि, उस की बहन और बहनोई ने हाल में प्रवेश किया तो श्री व साकेत ने बड़ी गर्मजोशी से उन का स्वागत किया.

अभि ने वर्षों बाद श्री को देखा तो बस, अपलक देखता ही रह गया. एक बड़े घराने की बहू जैसी शान उस के अंगअंग से फूट रही थी. साकेत के साथ उस की जोड़ी इतनी सुंदर लग रही थी कि अभि यह सोचने पर मजबूर हो गया कि उस ने वर्षों पहले जो फैसला श्री की खुशी के लिए लिया था, वह उस की जिंदगी का सर्वोत्तम फैसला था.

अभि ने अपनी पत्नी भव्यता से श्री का परिचय करवाया. भव्यता से मिल कर श्री बेहद खुश हुई. वह खुश थी कि अभि की जिंदगी की रिक्तता को भरने के लिए भव्यता जैसी सुंदर और शालीन लड़की ने अपना हाथ आगे बढ़ाया था. उन की भी एक 2 साल की प्यारी सी बेटी शर्वरी थी.

श्री ने बारीबारी से सार्थक के मम्मीपापा तथा अभि की मां के पैर छुए और उन का स्वागत किया. वे सभी इस बात से बेहद खुश थे कि उन का रिश्ता श्री के परिवार में होने जा रहा है. अभि की मम्मी बेहद खुश थीं, उन्होंने श्री को गले लगा लिया.

साकेत को अपनी ओर देखते हुए पा कर श्री ने कहा, ‘‘साकेत, आप अभिजीत हैं. सार्थक के मामा.’’

‘‘अभिजीत साहब, आप से दोबारा मिल कर मुझे बेहद प्रसन्नता हुई है,’’ कह कर साकेत ने बेहद गर्मजोशी से हाथ मिलाया.

‘‘दोबारा से आप का क्या तात्पर्य है, साकेत’’ श्री पूछे बिना न रह सकी.

‘‘श्री, तुम शायद नहीं जानती कि हमारा मानव इन्हीं की बदौलत दोनों आंखों से इस संसार को देखने योग्य बना है.’’

‘‘अभि, तुम ने मुझ से यह राज क्यों छिपाए रखा?’’ यह कहतेकहते श्री की आंखें छलक आईं. वह अपनेआप को कोसने लगी कि क्यों इतनी छोटी सी बात उस के दिमाग में नहीं आई….मानव की आंखें और प्रदीप की आंखों में कितना साम्य था? उन की आंखों का रंग सामान्य व्यक्ति की आंखों के रंग से कितना अलग था. तभी तो मानव की सर्जरी में इतना अरसा लग गया था. क्या प्रदीप की आंख न मिली होती तो उस का भाई…इस के आगे वह सोच ही नहीं पाई.

‘‘श्री, आज के इस खुशी के माहौल में आंसू बहा कर अपना मन छोटा न करो. यह कोई इतनी बड़ी बात तो थी नहीं. हमें खुशी इस बात की है कि मानव की आंखों में हमें प्रदीप की छवि नजर आती है…वह आज भी जिंदा है, हमारी नजरों के सामने है…उसे हम देख सकते हैं, छू सकते हैं, वरना प्रदीप तो हम सब के लिए एक एहसास ही बन कर रह गया होता.’’

श्री ने मानव को गले लगा लिया. उस की भूरी आंखों में उसे सच में ही प्रदीप की परछाईं नजर आई. उस ने प्यार से भाई की दोनों आखोंं पर चुंबनों की झड़ी सी लगा दी, जैसे प्रदीप को धन्यवाद दे रही हो.

साकेत, अभि की ओर मुखातिब हुआ, ‘‘अभिजीत साहब, हम आप से तहेदिल से माफी मांगना चाहते हैं, उस खूबसूरत गुनाह के लिए जो हम से अनजाने में हुआ,’’ उस ने सचमुच ही अभि के सामने हाथ जोड़ दिए.

‘‘किस बात की माफी, साकेतजी?’’ अभि कुछ समझ नहीं पाया.

‘‘हम ने आप की चाहत को आप से हमेशाहमेशा के लिए जो छीन लिया…यकीन मानिए, यदि मैं पहले से जानता तो आप दोनों के सच्चे प्यार के बीच कभी न आता.’’

आप अपना मन छोटा न करें, साकेतजी. आप हम दोनों के प्यार के बीच आज भी नहीं हैं. मैं आज भी वेदश्री से उतना ही प्यार करता हूं जितना किसी जमाने में किया करता था. सिर्फ हमारे प्यार का स्वरूप ही बदला है.

‘‘वह कैसे?’’ साकेत ने हंसते हुए पूछा. उस के दिल का बोझ कुछ हलका हुआ.

‘‘देखिए, पहले हम दोनों प्रेमी बन कर मिले, फिर मित्र बन कर जुदा हुए और आज समधी बन कर फिर मिले हैं…यह हमारे प्रेम के अलगअलग स्वरूप हैं और हर स्वरूप में हमारा प्यार आज भी हमारे बीच मौजूद है.’’

‘‘श्री, याद है, मैं ने तुम से कहा था, कल फिर आएगा और हमेशा आता रहेगा?’’

श्री ने सहमति में अपना सिर हिलाया. वह कुछ भी बोलने की स्थिति में कहां थी.

सार्थक एवं आस्था ने जब एकदूसरे की उंगली में सगाई की अंगूठी पहनाई तो दोनों की आंखों में एक विशेष चमक लहरा रही थी, जैसे कह रही हों…

‘आज हम ने अपने प्यार की डोर से 2 परिवारों को एक कभी न टूटने वाले रिश्ते में हमेशा के लिए बांध दिया है…कल हमेशा आता रहेगा और इस रिश्ते को और भी मजबूत बनाता रहेगा, क्योंकि कल हमेशा रहेगा और उस के साथ ही साथ सब के दिलों में, एकदूसरे के प्रति प्यार भी.

प्यार असफल है तुम नहीं: क्या ब्रेकअप के डिप्रेशन से निकल पाया रक्षित

उस ने रक्षित का दरवाजा खटखटाया. वह उस का बचपन का दोस्त था. बाद में दोनों कालेज अलगअलग होने के कारण बहुत ही मुश्किल से मिलते थे. काव्य इंजीनियरिंग कर रहा था और रक्षित डाक्टरी की पढ़ाई. आज काव्य अपने मामा के यहां शादी में अहमदाबाद आया हुआ था, तो सोचा कि अपने खास दोस्त रक्षित से मिल लूं, क्योंकि शादी का फंक्शन शाम को होना था. अभी दोपहर के 3-4 घंटे दोस्त के साथ गुजार लूं. जीभर कर मस्ती करेंगे और ढेर सारी बातें करेंगे. वह रक्षित को सरप्राइज देना चाहता था.

उस के पास रक्षित का पता था क्योंकि अभी उस ने पिछले महीने ही इसी पते पर रक्षित के बर्थडे पर गिफ्ट भेजा था. दरवाजा दो मिनट बाद खुला, उसे आश्चर्य हुआ पर उस से ज्यादा आश्चर्य रक्षित को देख कर हुआ. रक्षित की दाढ़ी बेतरतीब व बढ़ी हुई थी. आंखें धंसी हुई थीं जैसे काफी दिनों से सोया न हो. कपड़े जैसे 2-3 दिन से बदले न हों. मतलब, वह नहाया भी नहीं था. उस के शरीर से हलकीहलकी बदबू आ रही थी, फिर भी काव्य दोस्त से मिलने की खुशी में उस से लिपट गया. पर सामने से कोई खास उत्साह नहीं आया.

‘क्या बात है भाई, तबीयत तो ठीक है न,’ उसे आश्चर्य हुआ रक्षित के व्यवहार से, क्योंकि रक्षित हमेशा काव्य को देखते ही चिपक जाता था.

‘अरे काव्य, तुम यहां, चलो अंदर आओ,’ उस ने जैसे अनमने भाव से कहा. स्टूडैंट रूम की हालत वैसे ही हमेशा खराब ही होती है पर रक्षित के रूम की हालत देख कर लगता था जैसे एक साल से कमरा बंद हो. सफाई हुए महीनों हो गए हों. पूरे कमरे में जगहजगह जाले थे. किताबों पर मिट्टी जमा थी. किताबें अस्तव्यस्त यहांवहां बिखरी हुई थीं. काव्य ने पुराना कपड़ा ले कर कुरसी साफ की और बैठा. उस से पहले ही रक्षित पलंग पर बैठ चुका था जैसे थक गया हो.

काव्य अब आश्चर्य से ज्यादा दुखी व स्तब्ध था. उसे चिंता हुई कि दोस्त को क्या हो गया है? ‘‘तबीयत ठीक है न? यह क्या हालत बना रखी है खुद की व कमरे की? 2-3 बार पूछने पर उस ने जवाब नहीं दिया, तो काव्य ने कंधों को पकड़ कर ?झिंझड़ कर पूछा तो रक्षित की आंखों से आंसू बहने लगे. कुछ कहने की जगह वह काव्य से चिपक गया, तकलीफ में जैसे बच्चा अपनी मां से चिपकता है. वह फफकफफक कर रोने लगा. काव्य को कुछ भी समझ न आया. कुछ देर तक रोने के बाद वह इतना ही बोला, ‘भाई, मैं उस के बिना जी नहीं सकता,’ उस ने सुबकते हुए कहा.

‘किस के बिना जी नहीं सकता? तू किस की बात कर रहा है?’ दोनों हाथ पकड़ कर काव्य ने प्यार से पूछा.

‘आम्या की बात कर रहा हूं.’

‘ओह तो प्यार का मामला है. मतलब गंभीर. यह उम्र ही ऐसी है. जब काव्य कालेज जा रहा था तब उस के गंभीर पापा ने उसे एकांत में पहली बार अपने पास बिठा कर इस बारे में विस्तार से बात की. अपने पापा को इस विषय पर बात करते हुए देख कर काव्य को घोर आश्चर्य हुआ था. पर जब पापा ने पूरी बात समझई व बताई, तब उसे अपने पापा पर नाज हुआ कि उन्होंने उसे कुएं में गिरने से पहले ही बचा लिया.

‘ओह,’ काव्य ने अफसोसजनक स्वर में कहा.

‘रक्षित, तू एक काम कर. पहले नहाधो और शेविंग कर के फ्रैश हो जा. तब तक मैं पूरे कमरे की सफाई करता हूं. फिर मैं तेरी पूरी बात सुनता हूं और समझता हूं,’ काव्य ने अपने दोस्त को अपनेपन से कहा. काव्य सफाईपसंद व अनुशासित विद्यार्थी की तरह था. रो लेने के कारण उस का मन हलका हो गया था.

‘अरे काव्य, सफाई मैं खुद ही कर दूंगा. तू तो मेहमान है.’ काव्य को ऐसा बोलते हुए रक्षित हड़बड़ा गया.

‘अरे भाई, पहले मैं तेरा दोस्त हूं. प्लीज, दोस्त की बात मान ले.’ अब दोस्त इतना प्यार और अपनेपन से कहे तो कौन दोस्त की बात न माने. काव्य ने समझ कर उसे अटैच्ड बाथरूम में भेज दिया, क्योंकि ऐसे माहौल में न तो वह ढंग से बता सकता है और न वह सुन सकता है. पहले वह फ्रैश हो जाए तो ढंग से कहेगा.

काव्य ने किताब और किताबों की शैल्फ से शुरुआत की और आधे घंटे में एक महीने का कचरा साफ कर लिया. काव्य होस्टल में सब से साफ और व्यवस्थित कमरा रखने के लिए प्रसिद्ध था.

आधे घंटे बाद जब रक्षित बाथरुम से निकला तो दोनों ही आश्चर्य में थे. रक्षित एकदम साफ और व्यवस्थित कक्ष देख कर और काव्य, रक्षित को क्लीन शेव्ड व वैलड्रैस्ड देख कर.

‘वाऊ, तुम ने इतनी देर में कमरे को होस्टल के कमरे की जगह होटल का कमरा बना दिया भाई. तेरी सफाई की आदत होस्टल में जाने के बाद भी नहीं बदली,’ रक्षित सफाई से बहुत प्रभावित हो कर बोला.

‘और तेरी क्लीन शेव्ड चेहरे में चांद जैसे दिखने की,’ चेहरे पर हाथ फेरते हुए काव्य बोला. अब रक्षित काफी रिलैक्स था.

‘भैया चाय…’ दरवाजे पर चाय वाला चाय के साथ था.

‘अरे वाह, क्या कमरा साफ किया है आप ने,’ कमरे की चारों तरफ नजर घुमाते हुए छोटू बोला तो रक्षित झेंप गया. वह रोज सुबहसुबह चाय ले कर आता है, इसलिए उसे कमरे की हालत पता थी.

‘अरे, यह मेरे दोस्त का कमाल है,’ काव्य के कार्य की तारीफ करते हुए रक्षित मुसकराते हुए बोला, ‘अरे, तुम्हें चाय लाने को किस ने बोला?’

‘मैं ने बोला. दीवार पर चाय वाले का फोन नंबर था.’

‘थैंक्यू काव्य. चाय पीने की बहुत इच्छा थी,’ रक्षित ने चाय का एक गिलास काव्य को देते हुए कहा. दोनों चुपचाप गरमागरम चाय पी रहे थे.

चाय खत्म होने के बाद काव्य बोला, ‘अब बता, क्या बात है, कौन है आम्या और पूरा माजरा क्या है?’ आम्या की बात सुन कर रक्षित फिर से मायूस हो गया, फिर से उस के चेहरे पर मायूसी आ गई. हाथ कुरसी के हत्थे से भिंच गए.

‘मैं आम्या से लगभग एक साल पहले मिला था. वह मेरी क्लासमेट लावण्या की मित्र थी. लावण्या की बर्थडे पार्टी में हम पहली बार मिले थे. हमारी मुलाकात जल्दी ही प्रेम में बदल गई. वह एमबीए कर रही थी और बहुत ही खूबसूरत थी. मैं सोच भी नहीं सकता कि कालेज में मेरी इतनी सारी लड़कियों से दोस्ती थी पर क्यों मुझे आम्या ही पसंद आई. मुझे उस से प्यार हो गया. शायद वह समय का खेल था. हम लगभग रोज ही मिलते थे. मेरी फाइनल एमबीबीएस की परीक्षा के दौरान भी मुझ में उस की दीवानगी छाई हुई थी. वह भी मेरे प्यार में डूबी हुई थी.

‘मैं अभी तक प्यारमोहब्बत को फिल्मों व कहानियों में गढ़ी गई फंतासी समझता था. जिसे काल्पनिकता दे कर लेखक बढ़ाचढ़ा कर पेश करते हैं. पर अब मेरी हालत भी वैसे ही हो गई, रांझ व मजनूं जैसी. मैं ने तो अपना पूरा जीवन उस के साथ बिताने का मन ही मन फैसला कर लिया था और आम्या की ओर से भी यही समझता था. मुझ में भी कुछ कमी नहीं थी, मुझ में एक परफैक्ट शादी के लिए पसंद करने के लिए सारे गुण थे.’

‘तो फिर क्या हुआ दोस्त?’ काव्य ने उत्सुकता से पूछा.

‘मेरी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी हो गई थी और मैं हृदयरोग विशेषज्ञ बनने के लिए आगे की तैयारी के लिए पढ़ाई कर रहा था. एक दिन उस ने मुझ से कहा, ‘सुनो, पापा तुम से मिलना चाहते हैं.’ वह खुश और उत्साहित थी.

‘क्यों?’ मुझे जिज्ञासा हुई.

‘हम दोनों की शादी के सिलसिले में,’ उस ने जैसे रहस्य खोलते हुए कहा.

‘शादी? वह भी इतनी जल्दी’ मैं ने हैरानगी से कहा.

‘मैं आम्या को चाहता था पर अभी शादी के लिए विचार भी नहीं किया था.

‘हां, मेरे दादाजी की जिद है कि मेरी व मेरी छोटी बहन की शादी जल्दी से करें,’ आम्या ने शादी की जल्दबाजी का कारण बताया और जैसी शांति से बता रही थी उस से तो ऐसा लगा कि उसे भी जल्द शादी होने में आपत्ति नहीं है.

‘अभी इतनी जल्दी यह संभव नहीं है. मेरा सपना हृदयरोग विशेषज्ञ बनने का है और मैं अपना सारा ध्यान अभी पढ़ाई में ही लगाना चाहता हूं,’ मैं ने उसे अपने सपने के बारे में और अभी शादी नहीं कर सकता हूं, यह समझया. ‘उस के लिए 2-3 साल और रुक जाओ. फिर हम दोनों जिंदगीभर एकदूसरे के हो जांएगे,’ मैं ने उसे समझते हुए कहा.

‘नहीं रक्षित, यह संभव नहीं है. मेरे पिता इतने साल तक रुक नहीं सकते. मेरे पीछे मेरी बहन का भी भविष्य है,’ जैसे

उस ने जल्दी शादी करने का फैसला ले लिया हो.

‘मैं ने उसे बहुत समझया. पर उस ने अपने पिता के पसंद किए हुए एनआरआई अमेरिकी से शादी कर ली और पिछले महीने अमेरिका चली गई और पीछे छोड़ गई अपनी यादें और मेरा अकेलापन. मैं सोच नहीं सकता कि आम्या मुझे छोड़ देगी. मैं दुखी हूं कि मेरा प्यार छिन गया. मैं ने उसे मरने की हद तक चाहा. काव्य, मेरा प्यार असफल हो गया. मझ में कुछ भी कमी नहीं थी. फिर भी क्यों मेरे साथ समय ने ऐसा खेल खेला.’

रक्षित फिर से रोने लगा और रोते हुए बोला, ‘बस, तभी से मुझे न भूख लगती है न प्यास. एक महीने से मैं ने एक अक्षर की भी पढ़ाई नहीं की है. मेरा अभी विशेषज्ञ प्रवेश परीक्षा का अगले महीने ही एग्जाम है. यों समझ कि मैं देवदास बन गया हूं.’ वह फिर से काव्य के कंधे पर सिर रख कर बच्चों जैसा रोने लगा.

‘देखो रक्षित, इस उम्र में प्यार करना गलत नहीं है. पर प्यार में टूट जाना गलत है. तुम्हारा जिंदगी का मकसद हमेशा ही एक अच्छा डाक्टर बनना था न कि प्रेमी. देखो, तुम ने कितना इंतजार किया. बचपन में तुम्हारे दोस्त खेलते थे, तुम खेले नहीं. तुम्हारे दोस्त फिल्म देखने जाते, तो तुम फिल्म नहीं देखते थे. तुम्हारा भी मन करता था अपने दोस्तों के साथ गपशप करने का और यहां तक कि रक्षित, तुम अपनी बहन की शादी में भी बरातियों की तरह शाम को पहुंच पाए थे, क्योंकि तुम्हारी पीएमटी परीक्षा थी. वे सारी बातें अपने प्यार में  भूल गए.

‘आम्या तो चली गई और फिर कभी वापस भी नहीं आएगी तुम्हारी जिंदगी में. और यदि आज तुम्हें आम्या ऐसी हालत में देखेगी तो तुम पर उसे प्यार नहीं आएगा, बल्कि नफरत करेगी और सोचेगी कि अच्छा हुआ कि मैं इस व्यक्ति से बच गई जो एक असफलता के कारण, जिंदगी से निराश, हताश और उदास हो गया और अपना जिंदगी का सपना ही भूल गया. क्या वह ऐसे व्यक्ति से शादी करती?

‘सोचो रक्षित, एक पल के लिए भी. एक दिल टूटने के कारण क्या तुम भविष्य में लाखों दिलों को टूटने दोगे,  इलाज करने के लिए वंचित रखोगे. इस मैडिकल कालेज में आने, इस अनजाने शहर में आने, अपना घर छोड़ने का मकसद एक लड़की का प्यार पाना था या फिर बहुत सफल व प्रसिद्ध हृदयरोग विशेषज्ञ बनने का था? तुम्हें वह सपना पूरा करना है जो यहां आने से पहले तुम ने देखा था.

‘रक्षित बता दो दुनिया को और अपनेआप को भी कि तुम्हारा प्यार असफल हुआ है, पर तुम नहीं और न ही तुम्हारा सपना असफल हुआ है. और यह बात तुम्हें खुद ही साबित करनी होगी,’ काव्य ने उसे समझया.

‘तुम सही कहते हो काव्य, मेरा लक्ष्य, मेरा सपना, सफल प्रेमी बनने का नहीं, एक अच्छा डाक्टर बनने का है. थैंक्यू तुम्हें दोस्त, यह सब मुझे सही समय पर याद दिलाने के लिए,’ काव्य के गले लग कर, दृढ़ता व विश्वास से रक्षित बोला.

‘‘कार्ड हाथ में ले कर कब से कहां खो गए हो?’’ मानसी ने अपने पति काव्य को ?झिंझोड़ कर पूछा, ‘‘अरे, कब तक सोचते रहोगे. कुछ तैयारी भी करोगे? कल ही रक्षित भैया के हार्ट केयर हौस्पिटल के उद्घाटन में जोधपुर जाना है,’’ मानसी ने उस से कहा तो वह मुसकरा दिया.

Top 10 Best Romantic Stories In Hindi: टॉप 10 बेस्ट रोमांटिक कहानियां हिंदी में

Romantic Stories in Hindi: इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं गृहशोभा की 10 Best Romantic Stories in Hindi 2024. इन कहानियों में प्यार और रिश्तों से जुड़ी कई दिलचस्प कहानियां हैं जो आपके दिल को छू लेगी और जिससे आपको प्यार का नया मतलब जानने को मिलेगा. इन Romantic Stories से आप कई अहम बाते भी जान सकते हैं कि प्यार की जिंदगी में क्या अहमियत है और क्या कभी किसी को मिल सकता है सच्चा प्यार. तो अगर आपको भी है

कहानियां पढ़ने का शौक तो यहां पढ़िए गृहशोभा की Best Romantic Stories in Hindi.

  1. मौन : एक नए रिश्ते की अनकही जबान

सर्द मौसम था, हड्डियों को कंपकंपा देने वाली ठंड. शुक्र था औफिस का काम कल ही निबट गया था. दिल्ली से उस का मसूरी आना सार्थक हो गया था. बौस निश्चित ही उस से खुश हो जाएंगे.

श्रीनिवास खुद को काफी हलका महसूस कर रहा था. मातापिता की वह इकलौती संतान थी. उस के अलावा 2 छोटी बहनें थीं. पिता नौकरी से रिटायर्ड थे. बेटा होने के नाते घर की जिम्मेदारी उसे ही निभानी थी. वह बचपन से ही महत्त्वाकांक्षी रहा है. मल्टीनैशनल कंपनी में उसे जौब पढ़ाई खत्म करते ही मिल गई थी. आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक तो वह था ही, बोलने में भी उस का जवाब नहीं था. लोग जल्दी ही उस से प्रभावित हो जाते थे. कई लड़कियों ने उस से दोस्ती करने की कोशिश की लेकिन अभी वह इन सब पचड़ों में नहीं पड़ना चाहता था.

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2. सच्चा प्यार: क्यों जुदा हो जाते हैं चाहने वाले दो दिल

अनुपम और शिखा दोनों इंगलिश मीडियम के सैंट जेवियर्स स्कूल में पढ़ते थे. दोनों ही उच्चमध्यवर्गीय परिवार से थे. शिखा मातापिता की इकलौती संतान थी जबकि अनुपम की एक छोटी बहन थी. धनसंपत्ति के मामले में शिखा का परिवार अनुपम के परिवार की तुलना में काफी बेहतर था. शिखा के पिता पुलिस इंस्पैक्टर थे. उन की ऊपरी आमदनी काफी थी. शहर में उन का रुतबा था. अनुपम और शिखा दोनों पहली कक्षा से ही साथ पढ़ते आए थे, इसलिए वे अच्छे दोस्त बन गए थे. दोनों के परिवारों में भी अच्छी दोस्ती थी. शिखा सुंदर थी अनुपम देखने में काफी स्मार्ट था.
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3.दो कदम साथ: क्या दोबारा एक हुए सुलभ और मानसी

पूरे 10 साल के बाद दोनों एक बार फिर आमनेसामने खडे़ थे. नोएडा में एक शौपिंग माल में यों अचानक मिलने पर हत्प्रभ से एकदूसरे को देख रहे थे.सुलभ ने ही अपने को संयत कर के धीरे से पूछा, ‘‘कैसी हो, मन?’’

वही प्यार में भीगा हुआ स्वर. कोई दिखावा नहीं, कोई शिकायत नहीं. मानसी के चेहरे पर कुछ दर्द की लकीरें, खिंचने लगीं जिन्हें उस ने यत्न से संभाला और हंसने की चेष्टा करते हुए बोली, ‘‘तुम कैसे हो?’’

सुलभ ने ध्यान से देखा. वही 10 साल पहले वाला सलोना सा चेहरा है पर जाने क्यों तेवर पुराने नहीं हैं. अपने प्रश्नों को उस ने चेहरे पर छाने नहीं दिया. दोनों साथसाथ चलने लगे. दोनों के अंतस में प्रश्नों के बवंडर थे फिर भी वे चुप थे. सुलभ ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘तुम तो दिल्ली छोड़ कर बंगलौर मामाजी के पास चली गई थीं.’’

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4. ब्रेकअप: जब रागिनी ने मदन को छोड़ कुंदन को चुना

‘‘ब्रेकअप,’’अमेरिका से फोन पर रागिनी के यह शब्द सुन कर मदन को लगा जैसे उस के कानों में पिघलता शीशा डाल दिया गया हो. उस की आंखों में आंसू छलक आए थे.

उस की भाभी उमा ने जब पूछा कि क्या हुआ मुन्नू? तेरी आंखों में आंसू क्यों? तो वह रोने लगा और बोला, ‘‘अब सब कुछ खत्म है भाभी… 5 सालों तक मुझ से प्यार करने के बाद रागिनी ने दूसरा जीवनसाथी चुन लिया है.’’

भाभी ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘मुन्नू, तू रागिनी को अब भूल जा. वह तेरे लायक थी ही नहीं.’’

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5. अंतिम मुसकान: प्राची ने दिव्य से शादी करने से मना क्यों कर दी

‘‘एकबार, बस एक बार हां कर दो प्राची. कुछ ही घंटों की तो बात है. फिर सब वैसे का वैसा हो जाएगा. मैं वादा करती हूं कि यह सब करने से तुम्हें कोई मानसिक या शारीरिक क्षति नहीं पहुंचेगी.’’

शुभ की बातें प्राची के कानों तक तो पहुंच रही थीं परंतु शायद दिल तक नहीं पहुंच पा रही थीं या वह उन्हें अपने दिल से लगाना ही नहीं चाह रही थी, क्योंकि उसे लग रहा था कि उस में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह अपनी जिंदगी के नाटक का इतना अहम किरदार निभा सके.

‘‘नहीं शुभ, यह सब मुझ से नहीं होगा. सौरी, मैं तुम्हें निराश नहीं करना चाहती थी परंतु मैं मजबूर हूं.’’

‘‘एक बार, बस एक बार, जरा दिव्य की हालत के बारे में तो सोचो. तुम्हारा यह कदम उस के थोड़े बचे जीवन में कुछ खुशियां ले आएगा.’’

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6. बस एक बार आ जाओ

प्यार का एहसास अपनेआप में अनूठा होता है. मन में किसी को पाने की, किसी को बांहों में बांधने की चाहत उमड़ने लगती है, कोई बहुत अच्छा और अपना सा लगने लगता है और दिल उसे पूरी शिद्दत से पाना चाहता है, फिर कोई भी बंधन, कोई भी दीवार माने नहीं रखती, पर कुछ मजबूरियां इंसान से उस का प्यार छीन लेती हैं, लेकिन वह प्यार दिल पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाता है. हां सुमि, तुम्हारे प्यार ने भी मेरे मन पर अमिट छाप छोड़ी है. हमें बिछड़े 10 वर्ष बीत गए हैं, पर आज भी बीता हुआ समय सामने आ कर मुंह चिढ़ाने लगता है.

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7. संयोगिता पुराण: संगीता को किसका था इंतजार

बड़ेबड़ेशहरों में ऐसी छोटीछोटी घटनाएं होती रहती हैं,’’ हमारे किस नेता ने किस दारुण घटना के संबंध में यह वक्तव्य दिया था, अब ठीक से याद नहीं पड़ता. यों भी अपने नेताओं और बुद्धिजीवियों के अमूल्य वक्तव्यों के सुनने के हम इतने आदी हो गए हैं कि अब उन का कोई कथन हमें चौंकाता नहीं. पर जब हमारे छोटे से शहर में अपहरण जैसी घटना घटने की संभावना प्रतीत हो तो हम सब का चौंकना स्वाभाविक था और वह भी तब, जब वह घटना मेरी घनिष्ठ सहेली संगीता और उस के प्रेमी से संबंधित हो.

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8. आगाज: क्या ज्योति को मिल पाया उसका सच्चा प्यार?

‘‘क्यातुम मेरे इस जीवनपथ की हमराही बनना चाहोगी? क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’ प्रकाश के ऐसा कहते ही ज्योति आवाक उसे देखती रही. वह समझ ही नहीं पाई क्या कहे? उस ने कभी सोचा नहीं था कि प्रकाश के मन में उस के लिए ऐसी

कोई भावना होगी. उस के स्वयं के हृदय में प्रकाश के लिए इस प्रकार का खयाल कभी नहीं आया.

कई वर्षों से दोनों एकदूजे को जानते हैं. दोनों ने संग में न जाने कितना ही वक्त बिताया है. जब भी उसे कांधे की जरूरत होती. प्रकाश का कंधा सदैव मौजूद होता. ज्योति अपनी हर छोटी से छोटी खुशी

और बड़े से बड़ा दुख इस अनजान शहर में प्रकाश से ही साझा करती.

उन दोनों की दोस्ती गहरी थी. जबजब ज्योति किसी रिलेशनशिप में आती तो प्रकाश को बताती और जब ब्रेकअप होता तब भी वह प्रकाश से ही दुख जाहिर करती.

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9. आशिकी: पत्नी की गैरमौजूदगी में क्या लड़कियों से फ्लर्ट कर पाया नमन?

औफिस से आते समय गाना सुनते हुए कार चलाते नमन का मूड बहुत रोमांटिक हो गया. पत्नी तनु का खयाल आया, साथ ही अपनी फ्लोर पर एक फ्लैट शेयर कर के रहने वाली अंजलि, निया, रोली और काजल का भी खयाल आया तो घर जाने का उत्साह और भी बढ़ गया.

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10. बातों बातों में: सूरज ने अवनी को कैसे बचाया

उस गहरी घाटी के एकदम किनारे पहुंच कर अवनी पलभर के लिए ठिठकी, पर अब आगेपीछे सोचना व्यर्थ था. मन कड़ा कर के वह छलांग लगाने ही जा रही थी कि किसी ने पीछे से उस का हाथ पकड़ लिया. देखा वह एक युवक था.

युवक की इस हरकत पर अवनी को गुस्सा आ गया. उस ने नाराजगी से कहा, ‘‘कौन हो तुम, मेरा हाथ क्यों पकड़ा? छोड़ो मेरा हाथ. मुझे बचाने की कोशिश करने की कोई जरूरत नहीं है. यह मेरी जिंदगी है, इस का जो भी करना होगा, मैं करूंगी. हां प्लीज, किसी भी तरह का कोई उपदेश देने की जरूरत नहीं है.’’

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Valentine’s Day 2024: अपनी खातिर- तीन किरदारों की अजब प्रेम की गजब कहानी

जिस शादी समारोह में मैं अपने पति के साथ शामिल होने आई, उस में शिखा भी मौजूद थी. उस का कुछ दूरी से मेरी तरफ नफरत व गुस्से से भरी नजरों से देखना मेरे मन में किसी तरह की बेचैनी या अपराधबोध का भाव पैदा करने में असफल रहा था.

शिखा मेरी कालेज की अच्छी सहेलियों में से एक है. करीब 4 महीने पहले मैं ने मुंबई को विदा कह कर दिल्ली में जब नया जौब शुरू किया, तो शिखा से मुलाकातों का सिलसिला फिर से शुरू हो गया था.

जिस शाम मैं पहली बार उस के औफिस के बाहर उस से मिली, विवेक भी उस के साथ था. वह घंटे भर हम दोनों सहेलियों के साथ रहा और इस पहली मुलाकात में ही मैं उस के शानदार व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई थी.

‘‘क्या विवेक तुझ से प्यार करता है,’’ उस के जाते ही मैं ने उत्तेजित लहजे में शिखा से यह सवाल पूछा था.

‘‘हां, और मुझ से शादी भी करना चाहता है,’’ ऐसा जवाब देते हुए वह शरमा गई थी.

‘‘यह तो अच्छी खबर है, पर यह बता कि रोहित तेरी जिंदगी से कहां गायब हो गया है?’’ मैं ने उस के उस पुराने प्रेमी के बारे में सवाल किया जिस के साथ घर बसाने की इच्छा वह करीब 6 महीने पहले हुई हमारी मुलाकात तक अपने मन में बसाए हुए थी.

आंतरिक कशमकश दर्शाने वाले भाव फौरन उस की आंखों में उभरे और उस ने संजीदा लहजे में जवाब दिया, ‘‘वह मेरी जिंदगी से निकल गया था, पर…’’

‘‘पर क्यों?’’

‘‘मैं विदेश जा कर बसने में बिलकुल दिलचस्पी नहीं रखती, पर वह मेरे लाख मना करने के बावजूद अपने जीजाजी के साथ बिजनैस करने 3 महीने पहले अमेरिका चला गया था. उस समय मैं ने यह मान लिया था कि हमारा रिश्ता खत्म हो गया है.’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’

‘‘उस का न वहां काम बना और न ही दिल लगा, तो वह 15 दिन पहले वापस भारत लौट आया.’’

‘‘और रोहित के वापस लौटने तक तू विवेक के प्यार में पड़ चुकी थी.’’

‘‘हां.’’

‘‘तो अब तू रोहित को सारी बातें साफसाफ क्यों नहीं बता देती?’’

‘‘यह मामला इतना सीधा नहीं है, नेहा. मैं आज भी अपने दिल को टटोलने पर पाती हूं कि रोहित के लिए वहां प्यार के भाव मौजूद हैं.’’

‘‘और विवेक से भी तुझे प्यार है?’’

‘‘हां, मैं उस के साथ बहुत खुश रहती हूं. उस का साथ मुझे बहुत पसंद है, पर…’’

‘‘पर कोई कमी है क्या उस में?’’

‘‘तू तो जानती ही है कि रोमांस को मैं कितना ज्यादा महत्त्व देती हूं. मुझे ऐसा जीवनसाथी चाहिए जो मेरे सारे नाजनखरे उठाते हुए मेरे आगेपीछे घूमे, पर विवेक वैसा नहीं करता. उस का कहना है कि वह मेरे साथ तो चल सकता है, पर मेरे आगेपीछे कभी नहीं घूमेगा. वह चाहता है कि मैं अपने बलबूते पर खुश रहने की कला में माहिर बनूं.’’

उस के मन की उलझन को मैं जल्दी ही समझ गई थी. रोहित अमीर बाप का बेटा है और शिखा पर जान छिड़कता है. रोहित उस की जिंदगी से इतनी देर के लिए दूर नहीं हुआ था कि वह उस के दिल से पूरी तरह निकल जाता.

दूसरी तरफ वह विवेक के आकर्षक व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित है, पर उस के साथ जुड़ कर मिलने वाली सुरक्षा के प्रति ज्यादा आश्वस्त नहीं है. वह अपने पुराने प्रेमी को अपनी उंगलियों पर नचा सकती है, पर विवेक के साथ ऐसा करना उस के लिए संभव नहीं.

हम दोनों ने कुछ देर रोहित और विवेक के बारे में बातें की, पर वह किसी एक को भावी जीवनसाथी चुनने का फैसला करने में असफल रही थी.

मेरा ममेरा भाई कपिल प्रैस रिपोर्टर है. उस के बहुत अच्छे कौंटैक्ट हैं. मैं ने उस से कहा कि विवेक की जिंदगी के बारे में खोजबीन करने पर उसे अगर कोई खास बात मालूम पड़े, तो मुझे जरूर बताए.

उस ने अगले दिन शाम को ही मुझे यह चटपटी खबर सुना दी कि विवेक का सविता नाम की इंटीरियर डिजाइनर के साथ पिछले 2 साल से अफेयर चल रहा था, पर फिलहाल दोनों का मिलना कम हो गया था.

मैं ने यह खबर उसी शाम शिखा के घर जा कर उसे सुनाई, तो वह परेशान नजर आती हुई बोली थी, ‘‘यह हो सकता है कि अब उन दोनों के बीच कोई चक्कर न चल रहा हो, पर मैं फिल्मी हीरो से आकर्षक विवेक की वफादारी के ऊपर आंखें मूंद कर विश्वास नहीं कर सकती हूं. क्या गारंटी है कि वह कल को इस पुरानी प्रेमिका के साथ फिर से मिलनाजुलना शुरू नहीं करेगा या कोई नई प्रेमिका नहीं बना लेगा?’’

अगले दिन उस ने विवेक से सविता के बारे में पूछताछ की, तो उस ने किसी तरह की सफाई न देते हुए इतना ही कहा, ‘‘सविता के साथ अब मेरा अफेयर बिलकुल खत्म हो चुका है. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं, पर अगर तुम्हें मेरे प्यार पर पूरा भरोसा नहीं है, तो मैं तुम्हारी जिंदगी से निकल जाऊंगा. किसी तरह का दबाव बना कर तुम्हें शादी करने के लिए राजी करना मेरी नजरों में गलत होगा.’’

अगले दिन शाम को मुझे लंबे समय बाद रोहित से मिलने का मौका मिला था. इस में कोई शक नहीं कि विवेक के मुकाबले उस का व्यक्तित्व कम आकर्षक था. वह शिखा की सारी बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था, पर उसे विवेक हंसा कर खुश नहीं कर पाया.

उस रात औटोरिकशा से घर लौटते हुए शिखा ने अपने दिल की उलझन मेरे सामने बयान की, ‘‘रोहित के साथ भविष्य सुरक्षित रहेगा और विवेक के साथ हंसतेहंसाते वक्त के गुजरने का पता नहीं चलता. रोहित के साथ की आदत गहरी जड़ें जमा चुकी है और विवेक जीवन भर साथ निभाएगा, ऐसा भरोसा करना कठिन लगता है. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि किस के हक में फैसला करूं.’’

वैसे उस ने जब भी मेरी राय पूछी, मैं ने उसे रोहित के पक्ष में शादी का फैसला करने की सलाह ही दी थी. उस के हावभाव से मुझे लगा भी कि उस का झुकाव रोहित को जीवनसाथी बनाने की तरफ बढ़ गया था.

करीब 3 दिन बाद शिखा ने फोन पर रोंआसी आवाज में मुझे बताया, ‘‘विवेक को किसी से रोहित के बारे में पता चल गया है. उस ने मुझ पर दो नावों में सवारी करने का आरोप लगाते हुए आज मुझ से सीधेमुंह बात नहीं की. मुझे लगता है कि वह मुझ से दूर जाने का मन बना चुका है.’’

‘‘इस में ज्यादा परेशान होने वाली बात नहीं, क्योंकि तू भी तो रोहित से शादी करने का मन काफी हद तक बना ही चुकी है,’’ मैं ने उसे हौसला दिया.

‘‘अब मेरा मन बदल गया है, नेहा. विवेक के दूर हो जाने की बात सोच कर ही मेरा मन बहुत दुखी हो रहा है. देख, रोहित ने एक बार मुझ से दूर जाने का फैसला कर लिया था, इसी कारण मैं उस के साथ रिश्ता तोड़ने में किसी तरह का अपराधबोध महसूस नहीं करूंगी. विवेक की गलतफहमी दूर करने में तू मेरी हैल्प कर, प्लीज.’’

‘‘ओके, मैं आज शाम उस से मिलूंगी,’’ मैं ने उसे ऐसा आश्वासन दिया था.

आगामी दिनों में विवेक के साथ अकेले मेरा मिलनाजुलना कई बार हुआ और इन्हीं मुलाकातों में मुझे लगा कि उस जैसे ‘जिओ और जीने दो’ के सिद्धांत को मानने वाले खुशमिजाज इंसान के लिए बातबात पर रूठने वाली नखरीली शिखा विवेक के लिए उपयुक्त जीवनसाथी नहीं है. इसी बात को ध्यान में रख इस मामले में मैं ने रोहित की सहायता करने का फैसला मन ही मन किया.

मैं अगले दिन शाम को रोहित से मिली और उसे शिखा का दिल जीत लेने के लिए एक सुझाव दिया, ‘‘मेरी सहेली खूबसूरत सपनों और रोमांस की रंगीन दुनिया में जीती है. अगर तुम उसे हमेशा के लिए अपनी बनाना चाहते हो, तो कुछ ऐसा करो जो उस के दिल को छुए और वह तुम्हारे साथ शादी करने के लिए झटके से हां कहने को मजबूर हो जाए.’’

मेरी सुझाई तरकीब पर चलते हुए अगले सप्ताह अपने जन्मदिन की पार्टी में रोहित ने शिखा को पाने का अपना लक्ष्य पूरा कर लिया.

बड़े भव्य पैमाने पर उस ने बैंकट हाल में अपनी बर्थडे पार्टी का आयोजन किया, जिस में शिखा वीआईपी मेहमान थी. रोहित के कोमल मनोभावों से परिचित होने के कारण उस के परिवार का हर सदस्य शिखा के साथ प्रेम भरा व्यवहार कर रहा था.

बीच पार्टी में रोहित ने पहले सब मेहमानों का ध्यान आकर्षित किया और फिर शिखा के सामने घुटने के बल बैठ कर बड़े रोमांटिक अंदाज में उसे प्रपोज किया, ‘‘तुम जैसी सर्वगुणसंपन्न रूपसी अगर मुझ से शादी करने को ‘हां’ कह देगी, तो मैं खुद को संसार का सब से धन्य इंसान समझूंगा.’’

वहां मौजूद सभी मेहमानों ने बड़े ही जोशीले अंदाज में तालियां बजा कर शिखा पर ‘हां’ कहने का दबाव जरूर बनाया, पर हां कराने में रोहित के हाथ में नजर आ रही उस बेशकीमती हीरे की अंगूठी का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा, जिसे मैं ने ही उसे खरीदवाया था.

शिखा ने रोहित के साथ शादी करने का फैसला कर लिया, तो औफिस में बहुत ज्यादा काम होने का बहाना बना कर मैं ने उस से मिलना बंद कर दिया. मैं विवेक के साथ लगातार हो रही अपनी मुलाकातों की चर्चा उस से बिलकुल नहीं करना चाहती थी.

विवेक को मैं अपना दिल पहले ही दे बैठी थी, पर अपनी भावनाओं को दबा कर रखने को मजबूर थी. चूंकि अब शिखा बीच में नहीं थी, इसलिए मुझे उस के साथ दिल का रिश्ता मजबूत बनाने में किसी तरह की झिझक नहीं थी.

विवेक के दिल की रानी बनने के लिए मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी, क्योंकि मैं उस के मन को समझने लगी थी. मैं जैसी हूं, अगर वैसी ही उस के सामने बनी रहूंगी, तो उसे ज्यादा पसंद आऊंगी, यह महत्त्वपूर्ण बात मैं ने अच्छी तरह समझ ली थी. उसे किसी तरह बदलने की कोशिश मैं ने कभी नहीं की. उस की नाराजगी की चिंता किए बिना जो मन में होता, उसे साफसाफ उस के मुंह पर कह देती. हां, यह जरूर ध्यान रखती कि मेरी नाराजगी बात खत्म होने के साथसाथ ही विदा हो जाए.

मेरी समझदारी जल्दी ही रंग लाई. जब विवेक की भी मुझ में रुचि जागी, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

एक दिन मैं ने आंखों में शरारत भर कर उस का हाथ पकड़ा और रोमांटिक लहजे में कह ही दिया, ‘‘अब तुम से दूर रहना मेरे लिए संभव नहीं है, विवेक. तुम अगर चाहोगे, तो मैं तुम्हारे साथ शादी किए बिना ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में भी रहने को तैयार हूं.’’

विवेक ने मेरे हाथ को चूम कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘मुझे इतनी अच्छी तरह समझने वाली तुम जैसी लड़की को मैं अपनी जीवनसंगिनी बनाने से बिलकुल नहीं चूकूंगा. बोलो, कब लेने हैं बंदे को तुम्हारे साथ सात फेरे?’’

शादी के लिए उस की हां होते ही मैं ने शिखा वाली मूर्खता नहीं दोहराई. अपने मम्मीपापा को आगामी रविवार को ही उस के मातापिता से मिलवाया और सप्ताह भर के अंदर शादी की तारीख पक्की करवा ली.

शिखा और रोहित की शादी से पहले विवेक और मेरी शादी के कार्ड छपे थे. मैं अपनी शादी का कार्ड देने शिखा के घर गई, तो उस ने सीधे मुंह मुझ से बात नहीं की.

मैं ने उसी दिन मन ही मन फैसला किया कि भविष्य में शिखा के संपर्क में रहना मेरे हित में नहीं रहेगा. मैं ने विवेक को हनीमून के दौरान समझाया, ‘‘शिखा का होने वाला पति रोहित नहीं चाहता है कि कभी वह तुम से कैसा भी संपर्क रखे. उस की खुशियों की खातिर हम उस से नहीं मिला करेंगे.’’

विवेक ने मेरी इस बात को ध्यान में रखते हुए शिखा से कभी, किसी माध्यम से संपर्क बनाने की कोशिश नहीं की.

मैं इस पूरे मामले में न खुद को कुछ गलत करने का दोषी मानती हूं, न किसी तरह के अपराधबोध की शिकार हूं. मेरा मानना है कि अपनी खुशियों की खातिर पूरी ताकत से हाथपैर मारने का हक हमसब को है.

शिखा ने फैसला लेने में जरूरत से ज्यादा देरी की वजह से विवेक को खोया. वह नासमझ चील जो अपने मनपसंद शिकार पर झपट्टा मारने में देरी करे, उस के हाथ से शिकार चुनने का मौका छिन जाना कोई हैरान करने वाली बात नहीं है.

शिखा की दोस्ती को खो कर विवेक जैसे मनपसंद जीवनसाथी को पा लेना मैं अपने लिए बिलकुल भी महंगा सौदा नहीं मानती हूं. तभी उस से ‘हैलोहाय’ किए बिना विवाह समारोह से लौट आने पर मेरे मन ने किसी तरह का मलाल या अपराधबोध महसूस नहीं किया था.

Valentine’s Day 2024: भला सा अंत- रानी के दिल को समझ पाया काली

मनमौजी काली जब मन आता रानी को अपने निश्छल प्रेम की बूंदों से भिगो देता और मन आता तो दुत्कार देता. बेचारी रानी काली के स्वभाव से दुखी तो थी ही, साथ ही उस का फक्कड़पन उसे भीतर तक तोड़ देता. फिर भी जीवन पथ पर अकेली कठिनाइयों से जूझती रानी हर बार अपने ही दिल के हाथों हार जाती.

रविवार की सुबह मरीजों की चिंता कम रहती है. अत: सुबह टहलते हुए मैं रानी के घर की ओर चल दिया. वह एक शिशु रोगी के उपचार के बारे में कल मुझ से बात कर रही थी इसलिए सोचा कि आज उस बारे में रानी के साथ तसल्ली से बात हो जाएगी और काली के साथ बैठ कर मैं एक प्याला चाय भी पी लूंगा.

मैं काली के घर के दरवाजे पर थपकी देने ही वाला था कि घर के भीतर से आ रही काली की आवाज को सुन कर मेरे हाथ रुक गए.

‘‘रानी प्लीज, इस गजरे को यों बेकार मत करो, कितनी मेहनत से फूलों को चुन कर मैं ने मालिन से कह कर तुम्हारे लिए यह गजरा बनवाया है. बस, एक बार इसे पहन कर दिखा दो. आज बरसों बाद मन में पुरानी हसरत जागी है कि एक बार फिर तुम्हें फूलों के गजरे से सजा देखूं.

‘‘मैं तुम्हारे इस रूप को सदासदा के लिए अपनी आंखों में कैद कर लूंगा और जब हम 80 साल के हो जाएंगे तब मन की आंखों से मैं तुम्हारे इस सजेधजे रूप को देख कर खुश हो लूंगा.’’

काली की बातें सुन कर मुझे हंसी आ रही थी. यह काली भी इतना उग्र हो गया कि 20 साल का बेटा होने को आया लेकिन इस का शौकीन मिजाज अभी तक बरकरार है.

‘‘आप यह क्या बचकानी बातें कर रहे हैं? अब क्या इन फूलों से बने गजरे पहनने व सजने की मेरी उम्र है? जब आशीष की बहू आएगी तब उसे रोज नए गहनों से सजानाधजाना,’’ रानी ने हंसते हुए काली से कहा था.

‘‘तो तुम ऐसे नहीं मानोगी. लाओ, मैं ही तुम्हें गजरों से सजा देता हूं,’’ कहते हुए शायद काली रानी को जबरन फूलों से सजा रहा था और वह उन्मुक्त हो कर जोरों से खिलखिला रही थी.

रानी का यह खिलखिला कर हंसना सुन मन भीतर तक सुकून से भर गया था.

उन दोनों को इस प्यार भरी तकरार के बीच छेड़ना अनुचित समझ मैं उन के घर के दरवाजे तक पहुंच कर भी वापस लौट गया था. मेरा मनमयूर कब अतीत में उड़ कर चला गया, मुझे एहसास तक नहीं हुआ था.

काली मेरा बचपन का अंतरंग मित्र था. रानी उस की पत्नी थी. काली, रानी और मैं, हम तीनों एक अनाम, अबूझ रिश्ते में जकड़े हुए थे. काली के घर छोड़ कर जाने के बाद मैं ने ही रानी को मानसिक संबल दिया था. वह किसी भी तरह मेरे लिए सगी छोटी बहन से कम नहीं थी.

16 साल की कच्ची उम्र में रानी मेरे पड़ोस वाले मकान में काली के साथ ब्याह कर आई थी. ब्याह कर आने के बाद रानी ने काली की गृहस्थी बहुत सुगढ़ता से संभाली लेकिन काली ने उसे पत्नी का वह मान- सम्मान नहीं दिया जिस की वह हकदार थी.

काली एक फक्कड़, मस्तमौला स्वभाव का इनसान था. मन होता तो महीनों रानी को सिरआंखों पर बिठा कर उस की छोटी से छोटी इच्छा पूरी करता. उसे दुनिया भर का हर सुख देता. सुंदर कपड़ों और गहनों में सजेसंवरे उस के अपूर्व रूपरंग को निहारता और फिर मेरे पास आ कर रानी की सुंदरता और मधुर स्वभाव की प्रशंसा करता.

मुझ से काली के जीवन का कोई पहलू अछूता नहीं था. यहां तक कि मूड में होने पर रानी के साथ बिताए हुए अंतरंग क्षणों की वह बखिया तक उधेड़ कर रख देता. काली खानेपीने का भी बहुत शौकीन था. वह जब भी घर पर होता, रसोई में स्वादिष्ठ पकवानों की महक उड़ती रहती. हम दोनों के घर के बीच बस, एक दीवार का फासला था इसलिए काली के साथ मुझे भी आएदिन रानी के हाथ के बने स्वादिष्ठ व्यंजनों का आनंद मिला करता.

अच्छे मूड में काली, रानी को जितना सुखसुकून देता, मूड बिगड़ने पर उस से दोगुना दुख भी देता. गुस्सा होने के लिए छोटे से छोटा बहाना उस के लिए काफी था. अत्यधिक क्रोध आने पर वह घर छोड़ कर चला जाता और हफ्तों घर वापस नहीं आता था. काली की मां अपने बेटे के इस व्यवहार से बेहद दुखी रहा करती और रानी उस के वियोग में रोरो कर आंखें सुजा लेती.

वैसे काली की कपड़ों की एक दुकान थी लेकिन उस के मनमौजी होने की वजह से दुकान आएदिन बंद रहा करती और आखिर वह हमेशा के लिए बंद हो गई.

काली ज्योतिषी का धंधा भी करता था और इस ठग विद्या का हुनर उस ने अपने पिता से सीखा था. उस का दावा था कि उसे ज्योतिष में महारत हासिल है. लोगों के हाथ, मस्तक की रेखाएं तथा जन्मकुंडली देख कर वह उन के भूत, भविष्य और वर्तमान का लेखाजोखा बता देता तो लोग खुश हो कर उसे दक्षिणा में मोटी रकम पकड़ा जाते. शायद यही वजह थी कि कपड़े की दुकान पर मेहनत करने के बजाय उस ने लोगों को ठगने के हुनर को अपने लिए बेहतर धंधा समझा.

काली जब तक घर में रहता पैसों की कोई कमी नहीं रहती लेकिन उस के घर से जाने के बाद घरखर्च बड़ी मुश्किल से चलता, क्योंकि तब आमदनी का एकमात्र जरिया पिता की पेंशन रह जाती थी जो बहुत थोड़ी सी उस को मिलती थी.

रानी की जिंदगी की गाड़ी हंसतेरोते आगे बढ़ती जा रही थी. बेटे के सनकी स्वभाव की वजह से बहू को रोते देख उस की सास का मन भीतर तक ममता से भीग जाया करता. वह अपनी तरफ से बहू को हर सुख देने की कोशिश करतीं लेकिन अपने बाद उस की स्थिति के बारे में सोचतीं तो भय से कांप उठती थीं.

रानी ने आगे पढ़ने का निश्चय किया तो उस की सास ने कहा, ‘अच्छा है, आगे पढ़ोगी तो व्यस्त रहोगी. इधरउधर की बातों में मन नहीं भटकेगा. पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करो.’

मैं ने भी रानी को आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. सो, उस ने पढ़ना शुरू कर दिया और 12वीं कक्षा में वह प्रथम श्रेणी में पास हुई. बहू की इस सफलता पर सास ने सभी रिश्तेदारों में लड्डू बंटवाए.

रानी मुझ से तथा मेरे डाक्टरी के पेशे से बहुत प्रभावित थी. वह खाली समय में घंटों मेरे क्लीनिक में बैठ कर मुझे रोगियों के उपचार में व्यस्त देखा करती और चिकित्सा संबंधी ढेरों प्रश्न मुझ से पूछती.

काली के आएदिनों के झगड़े से वह बहुत उदास रहने लगी तो एक दिन मुझ से बोली, ‘भाई साहब, आजकल वह मुझे बहुत दुख देते हैं. मूड अच्छा होने पर तो उन से बढि़या कोई दूसरा इनसान नहीं मिलेगा लेकिन मूड खराब होने पर बहाने ढूंढ़ढूंढ़ कर मुझ से लड़ते हैं. मैं उन्हें बहुत चाहती हूं. मेरी जिंदगी में उन की बहुत अहमियत है. जब वह मुझ से गुस्सा हो जाते हैं तो मन होता है कि मैं आत्महत्या कर लूं.’

घोर निराशा के उन क्षणों में मैं ने रानी को समझाया था, ‘काली बहुत मनमौजी स्वभाव का फक्कड़ इनसान है लेकिन वह मन का बहुत साफ है. तुम काली को अपने जीवन में इतनी अहमियत मत दो कि उस के खराब मूड का असर तुम्हारे दिमाग और शिक्षा पर पड़े. निर्लिप्त रहो, व्यस्त रहो. 12वीं में तुम्हारे पास विज्ञान विषय था, क्यों न तुम एम.बी.बी.एस. की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करो. डाक्टर बन कर तुम आत्मनिर्भर बन जाओगी. पैसों की तंगी नहीं रहेगी. काली को अपनी जिंदगी की धुरी मानना बंद कर दो, अपनी जिंदगी अपने बल पर जीना सीखो.’

मेरी सलाह मान कर रानी ने मेडिकल की प्रवेश परीक्षा की तैयारी जोरशोर से शुरू कर दी. उस की मेहनत रंग लाई और वह प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण हो गई. मैं ने और उस की सास ने उस के इस काम में भरपूर सहयोग दिया और वह अपने ही शहर के प्रतिष्ठित मेडिकल कालिज में जाने लगी.

उस बार जो काली घर छोड़ कर गया तो 1 साल तक लौट कर नहीं आया. सुनने में आया कि वह बनारस में अपनी ज्योतिष विद्या का प्रदर्शन कर अपने दिन मजे से गुजार रहा था. कतिपय कारणों से जिस का भला हो गया उस ने काली को ज्योतिष का बड़ा जानकार माना. अनगिनत लोग उस के शिष्य बन गए थे तथा समाज में उसे बहुत आदर की दृष्टि से देखा जाता था. वह जिस रास्ते से गुजर जाता, लोग उस के पैरों पर झुकते नजर आते.

एक साल बाद जब काली घर आया तो मां ने उसे सिरआंखों पर बिठाया लेकिन रानी अपनी मेडिकल की पढ़ाई की वजह से उसे अपना पूरा वक्त नहीं दे पाई. इस से नाराज हो कर काली ने रानी की पढ़ाई छुड़वाने के लिए बहुत शोर मचाया.

एक दिन काली के झगड़े से परेशान रानी रोते हुए मेरे पास आई और मुझे बताने लगी कि काली कह रहे हैं, मैं अगर मेडिकल की पढ़ाई छोड़ दूं तो वह कभी घर छोड़ कर नहीं जाएंगे और न ही कभी मुझ से झगड़ा करेंगे.

तब मैं ने रानी को समझाया, ‘देखो, तुम काली की बातों में कतई न आना तथा अपनी पढ़ाई छोड़ने की गलती भी न करना. काली की घर छोड़ कर भागने की आदत कोई नई तो है नहीं, इसलिए वह इस आदत को आसानी से छोड़ने वाला नहीं है. डाक्टर बनते ही तुम्हारी अपनी जिंदगी बिना काली के सहारे आराम से कट पाएगी. मैं ने उसे यह भी समझाया कि आत्मनिर्भर बनने का सुख बहुत सुकून देता है. जिंदगी काटने के लिए इनसान को किसी न किसी सहारे की जरूरत पड़ती है और एक ईमानदार पेशे से अच्छा हमसफर कोई और नहीं हो सकता.’

मेरी उन बातों से रानी को बहुत संबल मिला और उस के बाद उस का डाक्टर बनने का हौसला कभी कमजोर नहीं पड़ा था.

डाक्टर बनने के बाद रानी ने एम.एस. किया और शिशुरोग विशेषज्ञ बन गई. मैं भी एक शिशुरोग विशेषज्ञ था अत: रानी ने मेरे निर्देशन में प्रैक्टिस शुरू की. धीरेधीरे रानी की प्रैक्टिस में निखार आता गया और वह शहर की नामी डाक्टरों में गिनी जाने लगी. जैसेजैसे डाक्टर के रूप में रानी की शोहरत बढ़ती गई वैसेवैसे काली और रानी के बीच का फासला बढ़ता गया.

रानी के रोगियों की लंबी कतारें देख काली के तनबदन में आग लग जाया करती. पत्नी के डाक्टर बनने के बाद शुरू के 2 सालों में तो काली 2-3 बार घर आया था लेकिन वह रानी के डाक्टर बनने के बाद की बदली हुई परिस्थितियों से तालमेल नहीं बिठा पाया तो एक बार 6 सालों तक गायब रहा.

रानी अकसर रोगियों के उपचार से संबंधित सलाहमशविरा करने मेरे पास आ जाया करती. बातों के दौरान कभीकभी काली की चर्चा भी छिड़ जाया करती थी जिसे ले कर रानी बहुत भावुक हो जाया करती. एक बार उस ने काली के बारे में मुझ से कहा था, ‘भाई साहब, मैं काली को आज भी बहुत चाहती हूं लेकिन मेरा अकेलापन मुझे खाए जाता है. जिंदगी के सफर में अकेले चलतेचलते अब मैं टूट गई हूं.’

मैं ने उसे दिलासा दिया था कि कैसी भी परिस्थितियां क्यों न हों, उसे किसी हालत में कमजोर नहीं पड़ना है. उसे सभी चुनौती भरे हालात का डट कर मुकाबला करना है. और उस दिन वह मेरे कंधों पर सिर रख कर रो पड़ी थी.

उस बार काली को घर छोड़े 6 वर्ष होने को आए थे. उस दौरान रानी की सास की मृत्यु हो गई और उन की मौत के बाद वह बिलकुल अकेली हो गई. सास की मौत के बाद रानी एक दिन मेरे घर आई और उस ने मुझ से कहा, ‘भाई साहब, मैं सोच रही हूं कि दोबारा शादी कर डालूं. मेरे मातापिता दूसरी शादी करने के लिए मुझ पर बहुत दबाव डाल रहे हैं. इन 6 सालों में काली ने एक बार भी मेरी खोजखबर नहीं ली है. मेरे मातापिता ने एक डाक्टर वर मेरे लिए पसंद किया है. उस की पत्नी की मृत्यु अभी पिछले साल कैंसर से हुई है. मैं सोचती हूं कि मातापिता की बात मान ही लूं.

‘भाई साहब, ये 6 साल अकेले मैं ने किस तरह काली की प्रतीक्षा करते हुए बिताए हैं, यह मुझे ही पता है. बस, अब मैं काली का और इंतजार नहीं कर सकती. उन्होंने मेरे निश्छल प्यार की बहुत तौहीन की है. अब अपने किए की कीमत उन्हें चुकानी ही पड़ेगी. एक निष्ठुर की वजह से मैं क्यों अपने दिन रोरो कर बिताऊं? मैं डाक्टर शेखर से मिल चुकी हूं. वह बहुत अच्छे स्वभाव के सुलझे हुए इनसान हैं. मेरे लिए हर तरह से उपयुक्त हैं. बस, भाई साहब, आप अपना आशीर्वाद दीजिए मुझे.’

रानी की बातें सुन कर मैं बहुत खुश हुआ था. मुझे इस बात का संतोष भी हुआ कि अब शेखर से विवाह के बाद वह एक सुखी वैवाहिक जीवन बिता पाएगी. मैं ने उस से कहा था, ‘हांहां रानी, मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है. तुम्हारा यह फैसला बिलकुल सही है. डा. शेखर से विवाह करो और घर बसाओ.’

रानी का विवाह डा. शेखर से हो गया. डा. शेखर के साथ रानी बहुत खुश रहने लगी लेकिन शादी के डेढ़ साल बाद एक कार दुर्घटना में डा. शेखर की मृत्यु हो गई और रानी विधवा हो गई थी. सूनी मांग और सफेद लिबास में उसे देख मेरा कलेजा मुंह को आ गया था पर होनी को कौन टाल सकता है, यह सोच कर मैं ने अपनेआप को दिलासा दिया था.

डा. शेखर की मृत्यु के 1 साल बाद काली अचानक एक दिन घर वापस आ गया था. शेखर की मौत के बाद रानी काली के पैतृक घर में वापस आ गई थी क्योंकि काली की मां वह मकान रानी के नाम कर गई थी.

काली को घर वापस आया देख रानी ने उस से कहा था, ‘अब तुम्हारा और मेरा कोई रिश्ता नहीं. मैं डा. शेखर की विधवा हूं. मुझ से अब तुम कोई उम्मीद मत रखना.’

उत्तर में काली ने उस से कहा, ‘मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं. तुम ने

डा. शेखर से विवाह किया, अच्छा किया लेकिन अब तुम मेरी पत्नी हो. हमारा रिश्ता तो आज भी पतिपत्नी का ही है. अब मैं ने निश्चय कर लिया है कि मैं घर छोड़ कर ताउम्र कहीं नहीं जाऊंगा क्योंकि जगहजगह की धूल फांक कर मैं समझ गया हूं कि तुम जैसी पत्नी का मिलना बहुत सौभाग्य की बात है.’

‘नहीं, मैं तुम से किसी तरह का कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती. मैं किसी दूसरे मकान में चली जाऊंगी, यह तुम्हारा घर है, इस पर तुम्हारा अधिकार है. तुम आराम से इस में रहो.’

काली ने इस के बावजूद रानी की खुशामद करनी नहीं छोड़ी थी. वह जितना रानी के पास आने की कोशिश करता, रानी उतना ही उस से दूर भागने की कोशिश करती. एक अच्छे डाक्टर के रूप में रानी एक व्यस्त जीवन बिता रही थी.

जब भी काली, रानी से कहता कि तुम्हारे हाथ की रेखाओं में लिखा है कि जीवन का एक बड़ा हिस्सा तुम मेरी पत्नी के रूप में बिताओगी तो वह गुस्से से भड़क पड़ती, ‘मैं एक डाक्टर हूं और तुम्हारी ज्योतिष विद्या को झूठा साबित कर के ही रहूंगी. मैं अब तुम्हें कभी पति के रूप में नहीं स्वीकार करूंगी.’

उन्हीं दिनों काली ने मुझ से कहा था, ‘यार, रानी को क्या हो गया है? पहले तो वह गाय जैसी सीधीसादी थी. अब डाक्टर बनने के बाद उस में बहुत गुरूर आ गया है. मेरी ज्योतिष विद्या को भी गलत साबित करने पर तुली हुई है. वैसे इतना तो मैं जानता हूं कि वह अब भी मुझे चाहती है. इस कमजोरी का फायदा मैं उस के साथ छल कर के उठाऊंगा और उस के सामने यह साबित कर दूंगा कि मेरा ज्योतिष ज्ञान कैसे शत प्रतिशत सही है.’

अपनी योजना के मुताबिक काली ने अपने कुछ विश्वासपात्र परिचितों से कहा कि एक दिन वे आधी रात को लाठियों से लैस हो कर उस पर आक्रमण करें और उसे रानी के सामने पीट कर जमीन में डाल दें.

योजना के अनुसार आधी रात में कुछ लोग काली पर जब लाठियां बरसा रहे थे, रानी घबरा कर उस से लिपट गई और उस ने उन लोगों से कहा कि उस के जीतेजी वे काली को हाथ तक नहीं लगा सकते. तब लठैतों ने धमकी दी कि डाक्टरनी आज घर में तो तू ने इसे बचा लिया लेकिन यह घर से बाहर निकल कर देखे, इस के तो हाथपैर हमें तोड़ने ही तोड़ने हैं.

लठैतों के जाने के बाद काली ने रानी को अपने से अलग नहीं होने दिया था और उस रात रानी को इतना प्यार किया था कि पिछली सारी कमी पूरी कर दी. इनसान हारता है तो अपनेआप से. आखिर रानी अपने ही दिल के हाथों हार गई थी और चुपचाप काली के आगोश में सिमट गई थी.

उस दिन के बाद रानी, काली के हृदय की रानी बन कर रह गई थी. काली फिर कभी घर छोड़ कर नहीं गया. रानी एक सुंदर, अति कुशाग्र बुद्धि के बेटे की मां बनी. बेटा आशीष बड़ा हो कर मां के नक्शेकदम पर चल कर अब डाक्टरी की पढ़ाई कर रहा है, जिसे देख कर रानी और काली फूले न समाते. अब रानी को यों सुखी देख कर मन में यही विचार आता है कि वह हमेशा ही सुखी और आबाद रहे.

Valentine’s Day 2024: कितना करूं इंतजार- क्या मनोज की शादी हो पाई?

मुझे गुमसुम और उदास देख कर मां  ने कहा, ‘‘क्या बात है, रति, तू

इस तरह मुंह लटकाए क्यों बैठी है? कई दिन से मनोज का भी कोई फोन नहीं आया. दोनों ने आपस में झगड़ा कर लिया क्या?’’

‘‘नहीं, मां, रोजरोज क्या बात करें.’’

‘‘कितने दिनों से शादी की तैयारी कर रहे थे, सब व्यर्थ हो गई. यदि मनोज के दादाजी की मौत न हुई होती तो आज तेरी शादी को 15 दिन हो चुके होते. वह काफी बूढ़े थे. तेरहवीं के बाद शादी हो सकती थी पर तेरे ससुराल वाले बड़े दकियानूसी विचारों के हैं. कहते हैं कि साए नहीं हैं. अब तो 5-6 महीने बाद ही शादी होगी.

‘‘हमारी तो सब तैयारी व्यर्थ हो गई. शादी के कार्ड बंट चुके थे. फंक्शन हाल को, कैटरर्स को, सजावट करने वालों को, और भी कई लोगों को एडवांस पेमेंट कर चुके थे. 6 महीने शादी सरकाने से अच्छाखासा नुकसान हो गया है.’’

‘‘इसी बात से तो मनोज बहुत डिस्टर्ब है, मां. पर कुछ कह नहीं पाता.’’

‘‘बेटा, हम भी कभी तुम्हारी उम्र के थे. तुम दोनों के एहसास को समझ सकते हैं, पर हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. मैं ने तो तेरी सास से कहा भी था कि साए नहीं हैं तो क्या हुआ, अच्छे काम के लिए सब दिन शुभ होते हैं…अब हमें शादी कर देनी चाहिए.

‘‘मेरा इतना कहना था कि वह तो भड़क गईं और कहने लगीं, आप के लिए सब दिन शुभ होते होंगे पर हम तो सायों में भरोसा करते हैं. हमारा इकलौता बेटा है, हम अपनी तरफ से पुरानी मान्यताओं को अनदेखा कर मन में कोई वहम पैदा नहीं करना चाहते.’’

रति सोचने लगी कि मम्मी इस से ज्यादा क्या कर सकती हैं और मैं भी क्या करूं, मम्मी को कैसे बताऊं कि मनोज क्या चाहता है.

नर्सरी से इंटर तक हम दोनों साथसाथ पढ़े थे. किंतु दोस्ती इंटर में आने के बाद ही हुई थी. इंटर के बाद मनोज इंजीनियरिंग करने चला गया और मैं ने बी.एससी. में दाखिला ले लिया था. कालिज अलग होने पर भी हम दोनों छुट्टियों में कुछ समय साथ बिताते थे. बीच में फोन पर बातचीत भी कर लेते थे. कंप्यूटर पर चैट हो जाती थी.

एम.एससी. में आते ही मम्मीपापा ने शादी के लिए लड़का तलाशने की शुरुआत कर दी. मैं ने कहा भी कि मम्मी, एम.एससी. के बाद शादी करना पर उन का कहना था कि तुम अपनी पढ़ाई जारी रखो, शादी कौन सी अभी हुई जा रही है, अच्छा लड़का मिलने में भी समय लगता है.

शादी की चर्चा शुरू होते ही मनोज की छवि मेरी आंखों में तैर गई थी. यों हम दोनों एक अच्छे मित्र थे पर तब तक शादी करने के वादे हम दोनों ने एकदूसरे से नहीं किए थे. साथ मिल कर भविष्य के सपने भी नहीं देखे थे पर मम्मी द्वारा शादी की चर्चा करने पर मनोज का खयाल आना, क्या इसे प्यार समझूं. क्या मनोज भी यही चाहता है, कैसे जानूं उस के दिल की बात.

मुलाकात में मनोज से मम्मी द्वारा शादी की पेशकश के बारे में बताया तो वह बोला, ‘‘इतनी जल्दी शादी कर लोगी, अभी तो तुम्हें 2 वर्ष एम.एससी. करने में ही लगेंगे,’’ फिर कुछ सोचते हुए बोला था, ‘‘सीधेसीधे बताओ, क्या मुझ से शादी करोगी…पर अभी मुझे सैटिल होने में कम से कम 2-3 वर्ष लगेंगे.’’

प्रसन्नता की एक लहर तनमन को छू गई थी, ‘‘सच कहूं मनोज, जब मम्मी ने शादी की बात की तो एकदम से मुझे तुम याद आ गए थे…क्या यही प्यार है?’’

‘‘मैं समझता हूं यही प्यार है. देखो, जो बात अब तक नहीं कह सका था, तुम्हारी शादी की बात उठते ही मेरे मुंह पर आ गई और मैं ने तुम्हें प्रपोज कर डाला.’’

‘‘अब जब हम दोनों एकदूसरे से चाहत का इजहार कर ही चुके हैं तो फिर इस विषय में गंभीरता से सोचना होगा.’’

‘‘सोचना ही नहीं होगा रति, तुम्हें अपने मम्मीपापा को इस शादी के लिए मनाना भी होगा.’’

‘‘क्या तुम्हारे घर वाले मान जाएंगे?’’

‘‘देखो, अभी तो मेरा इंजीनियरिंग का अंतिम साल है. मेरी कैट की कोचिंग भी चल रही है…उस की भी परीक्षा देनी है. वैसे हो सकता है इस साल किसी अच्छी कंपनी में प्लेसमेंट मिल जाए क्योंकि कालिज में बहुत सी कंपनियां आती हैं और जौब आफर करती हैं. अच्छा आफर मिला तो मैं स्वीकार कर लूंगा और जैसे ही शादी की चर्चा शुरू होगी मैं तुम्हारे बारे में बता दूंगा.’’

प्यार का अंकुर तो हमारे बीच पनप ही चुका था और हमारा यह प्यार अब जीवनसाथी बनने के सपने भी देखने लगा था. अब इस का जिक्र अपनेअपने घर में करना जरूरी हो गया था.

मैं ने मम्मी को मनोज के बारे में बताया तो वह बोलीं, ‘‘वह अपनी जाति का नहीं है…यह कैसे हो सकता है, तेरे पापा तो बिलकुल नहीं मानेंगे. क्या मनोज के मातापिता तैयार हैं?’’

‘‘अभी तो इस बारे में उस के घर वाले कुछ नहीं जानते. फाइनल परीक्षा होने तक मनोज को किसी अच्छी कंपनी में जौब का आफर मिल जाएगा और रिजल्ट आते ही वह कंपनी ज्वाइन कर लेगा. उस के बाद ही वह अपने मम्मीपापा से बात करेगा.’’

‘‘क्या जरूरी है कि वह मान ही जाएंगे?’’

‘‘मम्मी, मुझे पहले आप की इजाजत चाहिए.’’

‘‘यह फैसला मैं अकेले कैसे ले सकती हूं…तुम्हारे पापा से बात करनी होगी…उन से बात करने के लिए मुझे हिम्मत जुटानी होगी. यदि पापा तैयार नहीं हुए तो तुम क्या करोगी?’’

‘‘करना क्या है मम्मी, शादी होगी तो आप के आशीर्वाद से ही होगी वरना नहीं होगी.’’

इधर मेरा एम.एससी. फाइनल शुरू हुआ उधर इंजीनियरिंग पूरी होते ही मनोज को एक बड़ी कंपनी में अच्छा स्टार्ट मिल गया था और यह भी करीबकरीब तय था कि भविष्य में कभी भी कंपनी उसे यू.एस. भेज सकती है. मनोज के घर में भी शादी की चर्चा शुरू हो गई थी.

मैं ने मम्मी को जैसेतैसे मना लिया था और मम्मी ने पापा को किंतु मनोज की मम्मी इस विवाह के लिए बिलकुल तैयार नहीं थीं. इस फैसले से मनोज के घर में तूफान उठ खड़ा हुआ था. उस के घर में पापा से ज्यादा उस की मम्मी की चलती है. ऐसा एक बार मनोज ने ही बताया था…मनोज ने भी अपने घर में ऐलान कर दिया था कि शादी करूंगा तो रति से वरना किसी से नहीं.

आखिर मनोज के बहनबहनोई ने अपनी तरह से मम्मी को समझाया था, ‘‘मम्मी, आप की यह जिद मनोज को आप से दूर कर देगी, आजकल बच्चों की मानसिक स्थिति का कुछ पता नहीं चलता कि वह कब क्या कर बैठें. आज के ही अखबार में समाचार है कि मातापिता की स्वीकृति न मिलने पर प्रेमीप्रेमिका ने आत्महत्या कर ली…वह दोनों बालिग हैं. मनोज अच्छा कमा रहा है. वह चाहता तो अदालत में शादी कर सकता था पर उस ने ऐसा नहीं किया और आप की स्वीकृति का इंतजार कर रहा है. अब फैसला आप को करना है.’’

मनोज के पिता ने कहा था, ‘‘बेटा, मुझे तो मनोज की इस शादी से कोई एतराज नहीं है…लड़की पढ़ीलिखी है, सुंदर है, अच्छे परिवार की है… और सब से बड़ी बात मनोज को पसंद है. बस, हमारी जाति की नहीं है तो क्या हुआ पर तुम्हारी मम्मी को कौन समझाए.’’

‘‘जब सब तैयार हैं तो मैं ही उस की दुश्मन हूं क्या…मैं ही बुरी क्यों बनूं? मैं भी तैयार हूं.’’

मम्मी का इरादा फिर बदले इस से पहले ही मंगनी की रस्म पूरी कर दी गई थी. तय हुआ था कि मेरी एम.एससी. पूरी होते ही शादी हो जाएगी.

मंगनी हुए 1 साल हो चुका था. शादी की तारीख भी तय हो चुकी थी. मनोज के बाबा की मौत न हुई होती तो हम दोनों अब तक हनीमून मना कर कुल्लूमनाली, शिमला से लौट चुके होते और 3 महीने बाद मैं भी मनोज के साथ अमेरिका चली जाती.

पर अब 6-7 महीने तक साए नहीं हैं अत: शादी अब तभी होगी ऐसा मनोज की मम्मी ने कहा है. पर मनोज शादी के टलने से खुश नहीं है. इस के लिए अपने घर में उसे खुद ही बात करनी होगी. हां, यदि मेरे घर से कोई रुकावट होती तो मैं उसे दूर करने का प्रयास करती.

पर मैं क्या करूं. माना कि उस के भी कुछ जजबात हैं. 4-5 वर्षों से हम दोस्तों की तरह मिलते रहे हैं, प्रेमियों की तरह साथसाथ भविष्य के सपने भी बुनते रहे हैं किंतु मनोज को कभी इस तरह कमजोर होते नहीं देखा. यद्यपि उस का बस चलता तो मंगनी के दूसरे दिन ही वह शादी कर लेता पर मेरा फाइनल साल था इसलिए वह मन मसोस कर रह गया.

प्रतीक्षा की लंबी घडि़यां हम कभी मिल कर, कभी फोन पर बात कर के काटते रहे. हम दोनों बेताबी से शादी के दिन का इंतजार करते रहे. दूरी सहन नहीं होती थी. साथ रहने व एक हो जाने की इच्छा बलवती होती जाती थी. जैसेजैसे समय बीत रहा था, सपनों के रंगीन समुंदर में गोते लगाते दिन मंजिल की तरफ बढ़ते जा रहे थे. शादी के 10 दिन पहले हम ने मिलना भी बंद कर दिया था कि अब एकदूसरे को दूल्हादुलहन के रूप में ही देखेंगे पर विवाह के 7 दिन पहले बाबाजी की मौत हमारे सपनों के महल को धराशायी कर गई.

बाबाजी की मौत का समाचार मुझे मनोज ने ही दिया था और कहा था, ‘‘बाबाजी को भी अभी ही जाना था. हमारे बीच फिर अंतहीन मरुस्थल का विस्तार है. लगता है, अब अकेले ही अमेरिका जाना पडे़गा. तुम से मिलन तो मृगतृष्णा बन गया है.’’

तेरहवीं के बाद हम दोनों गार्डन में मिले थे. वह बहुत भावुक हो रहा था, ‘‘रति, तुम से दूरी अब सहन नहीं होती. मन करता है तुम्हें ले कर अनजान जगह पर उड़ जाऊं, जहां हमारे बीच न समाज हो, न परंपराएं हों, न ये रीतिरिवाज हों. 2 प्रेमियों के मिलन में समाज के कायदे- कानून की इतनी ऊंची बाड़ खड़ी कर रखी है कि उन की सब्र की सीमा ही समाप्त हो जाए. चलो, रति, हम कहीं भाग चलें…मैं तुम्हारा निकट सान्निध्य चाहता हूं. इतना बड़ा शहर है, चलो, किसी होटल में कुछ घंटे साथ बिताते हैं.’’

जो हाल मनोज का था वही मेरा भी था. एक मन कहता था कि अपनी खींची लक्ष्मण रेखा को अब मिटा दें किंतु दूसरा मन संस्कारों की पिन चुभो देता कि बिना विवाह यह सब ठीक नहीं. वैसे भी एक बार मनोज की इच्छा पूरी कर दी तो यह चाह फिर बारबार सिर उठाएगी, ‘‘नहीं, यह ठीक नहीं.’’

‘‘क्या ठीक नहीं, रति. क्या तुम को मुझ पर विश्वास नहीं? पतिपत्नी तो हमें बनना ही है. मेरा मन आज जिद पर आया है, मैं भटक सकता हूं, रति, मुझे संभाल लो,’’ गार्डन के एकांत झुटपुटे में उस ने बांहों में भर कर बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया था. मैं ने भी आज उसे यह छूट दे दी थी ताकि उस का आवेग कुछ शांत हो किंतु मनोज की गहरीगहरी सांसें और अधिक समा जाने की चाह मुझे भी बहकाए उस से पूर्व ही मैं उठ खड़ी हुई.

‘‘अपने को संभालो, मनोज. यह भी कोई जगह है बहकने की? मैं भी कोई पत्थर नहीं, इनसान हूं…कुछ दिन अपने को और संभालो.’’

‘‘इतने दिन से अपने को संभाल ही तो रहा हूं.’’

‘‘जो तुम चाह रहे हो वह हमारी समस्या का समाधान तो नहीं है. स्थायी समाधान के लिए अब हाथपैर मारने होंगे. चलो, बहुत जोर से भूख लगी है, एक गरमागरम कौफी के साथ कुछ खिला दो, फिर इस बारे में कुछ मिल कर सोचते हैं.’’

रेस्टोरेंट में बैरे को आर्डर देने के बाद मैं ने ही बात शुरू की, ‘‘मनोज, तुम्हें अब एक ही काम करना है… किसी तरह अपने मातापिता को जल्दी शादी के लिए तैयार करना है, जो बहुत मुश्किल नहीं. आखिर वे हमारे शुभचिंतक हैं, तुम ने उन से एक बार भी कहा कि शादी इतने दिन के लिए न टाल कर अभी कर दें.’’

‘‘नहीं, यह तो नहीं कहा.’’

‘‘तो अब कह दो. कुछ पुराना छोड़ने और नए को अपनाने में हरेक को कुछ हिचक होती है. अपनी इंटरकास्ट मैरिज के लिए आखिर वह तैयार हो गए न. तुम देखना बिना सायों के शादी करने को भी वह जरूर मान जाएंगे.’’

मनोज के चेहरे पर खुशी की एक लहर दौड़ गई थी, ‘‘तुम ठीक कह रही हो रति, यह बात मेरे ध्यान में क्यों नहीं आई? खाने के बाद तुम्हें घर पर छोड़ देता हूं. कोर्ट मैरिज की डेट भी तो पास आ गई है, उसे भी आगे नहीं बढ़ाने दूंगा.’’

‘‘ठीक है, अब मैरिज वाले दिन कोर्ट में ही मिलेंगे.’’

‘‘मेरे आज के व्यवहार से डर गईं क्या? इस बीच फोन करने की इजाजत तो है या वह भी नहीं है?’’

‘‘चलो, फोन करने की इजाजत दे देते हैं.’’

रजिस्ट्रार के आफिस में मैरिज की फार्र्मेलिटी पूरी होने के बाद हम दोनों अपने परिवार के साथ बाहर आए तो मनोज के जीजाजी ने कहा, ‘‘मनोज, अब तुम दोनों की शादी पर कानून की मुहर लग गई है. रति अब तुम्हारी हुई.’’

‘‘ऐ जमाई बाबू, ये इंडिया है, वह तो वीजा के लिए यह सब करना पड़ा है वरना इसे हम शादी नहीं मानते. हमारे घर की बहू तो रति विवाह संस्कार के बाद ही बनेगी,’’ मेरी मम्मी ने कहा.

‘‘वह तो मजाक की बात थी, मम्मी, अब आप लोग घर चलें. मैं तो इन दोनों से पार्टी ले कर ही आऊंगा.’’

होटल में खाने का आर्डर देने के बाद मनोज ने अपने जीजाजी से पूछा, ‘‘जीजाजी, मम्मी तक हमारी फरियाद अभी पहुंची या नहीं?’’

‘‘साले साहब, क्यों चिंता करते हो. हम दोनों हैं न तुम्हारे साथ. अमेरिका आप दोनों साथ ही जाओगे. मैं ने अभी बात नहीं की है, मैं आप की इस कोर्ट मैरिज हो जाने का इंतजार कर रहा था. आगे मम्मी को मनाने की जिम्मेदारी आप की बहन ने ली है. इस से भी बात नहीं बनी तो फिर मैं कमान संभालूंगा.’’

‘‘हां, भैया, मैं मम्मी को समझाने की पूरी कोशिश करूंगी.’’

‘‘हां, तू कोशिश कर ले, न माने तो मेरा नाम ले कर कह देना, ‘आप अब शादी करो या न करो भैया भाभी को साथ ले कर ही जाएंगे.’’’

‘‘वाह भैया, आज तुम सचमुच बड़े हो गए हो.’’

‘‘आफ्टर आल अब मैं एक पत्नी का पति हो गया हूं.’’

‘‘ओके, भैया, अब हम लोग चलेंगे, आप लोगों का क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘कुछ देर घूमघाम कर पहले रति को उस के घर छोडं़ ूगा फिर अपने घर जाऊंगा.’’

मेरे गले में बांहें डालते हुए मनोज ने शरारत से देखा, ‘‘हां, रति, अब क्या कहती हो, तुम्हारे संस्कार मुझे पति मानने को तैयार हैं या नहीं?’’

आंखें नचाते हुए मैं चहकी, ‘‘अब तुम नाइंटी परसेंट मेरे पति हो.’’

‘‘यानी टैन परसेंट की अब भी कमी रह गई है…अभी और इंतजार करना पडे़गा?’’

‘‘उस दिन का मुझे अफसोस है मनोज…पर अब मैं तुम्हारी हूं.’’

Valentine’s Day 2024: ऐसा प्यार कहां: क्या थी पवन और गीता के प्यार की कहानी

पवन जमीन पर अपने दोनों हाथों को सिर पर रखे हुए ऊकड़ू बैठा था. वह अचरज भरी निगाहों से देखता कि कैसे जयपुर की तेज रफ्तार में सभी अपनी राह पर सरपट भागे जा रहे थे.

अचानक एक गरीब लड़का, जो भीख मांग रहा था, एक गाड़ी के धक्के से गिर गया. मगर उस की तरफ मुड़ कर देखने की जहमत किसी ने नहीं उठाई.

थोड़ी देर तक तो उस लड़के ने इधरउधर देखा कि कोई उस की मदद करने आएगा और सहारा दे कर उठाएगा, मगर जब कोई मदद न मिली तो वह खुद ही उठ खड़ा हुआ और आगे बढ़ गया.

उस लड़के को देख पवन ने कुछ देर सोचा और फिर उठ कर सामने रखी बालटी के पानी से मुंह धोया और जेब से कंघी निकाल कर बालों को संवारा.

तभी चाय की दुकान पर बैठे एक बुजुर्ग आदमी बोले, ‘‘पवन, तुम यहां

2 महीने से चक्कर काट रहे हो. देखो जरा, तुम ने अपना क्या हाल बना रखा है. तुम्हारा शरीर भी कपड़े की तरह मैला हो गया है. यह जयपुर है बेटा, यहां तो सिर्फ पैसा बोलता है. तुम जैसे गांव से आए हुए अनपढ़ और गरीब आदमी की बात कौन सुनेगा. मेरी बात मानो और तुम अपने गांव लौट जाओ.’’

‘‘काका, मुझे किसी की जरूरत नहीं है. मैं अपनी पत्नी को खुद ही ढूंढ़ लूंगा,’’ पवन ने कहा.

‘‘यह हुई न हीरो वाली बात… यह लो गरमागरम चाय,’’ रमेश चाय वाला बोला.

चाय की दुकान और रमेश ही पवन का ठिकाना थे. उस का सारा दिन थाने के चक्कर काटने में बीतता और रात होते ही वह इसी दुकान की बैंच को बिस्तर बना कर सो जाता. वह तो रमेश चाय वाला भला आदमी था जो उसे इस तरह पड़ा रहने देता था और कभी उस पर दया आ जाती तो चायबिसकुट भी दे देता.

अकेले में पवन को उदासी घेर लेती थी. हर दिन जब वह सुबह उठता तो सोचता कि आज तो गीता उस के साथ होगी, मगर उसे नाकामी ही हाथ लगती.

उस दिन की घटना ने तो पवन को एकदम तोड़ दिया था. लंबे समय तक हर जगह की खाक छानने के बाद उसे एक घर में गीता सफाई करते हुए मिली तो उस की खुशी का ठिकाना ही न रहा. वह भाग कर गीता से लिपट गया.

गीता की आंखों में भी पानी आ गया था. तभी गार्ड आ गया और उन दोनों को अलग कर के पवन को धक्के मार कर बाहर कर दिया.

बेचारा पवन बहुत चिल्लाया, ‘यह मेरी गीता है… गीता… गीता… तुम घबराना नहीं, मैं तुम्हें यहां से ले जाऊंगा,’ मगर आधे शब्द उस की जबान से बाहर ही न आ पाए कि कोई भारी चीज उस के सिर पर लगी और वह बेहोश हो गया.

आंखें खुलीं तो देखा कि पवन की जिंदगी की तरह बाहर भी स्याह अंधेरा फैल गया. किसी तरह अपने लड़खड़ाते कदमों से पुलिस स्टेशन जा कर वह मदद की गुहार लगाने लगा और थकहार कर वहीं सड़क किनारे सो गया.

सुबह होते ही पवन फिर पुलिस स्टेशन जा पहुंचा, तभी उन में से एक पुलिस वाले को उस की हालत पर तरस आ गया. वह बोला, ‘‘ठीक है, मैं तुम्हारे कहने पर चलता हूं, पर यह बात झूठ नहीं होनी चाहिए.’’

पुलिस को ले कर पवन उसी घर में पहुंचा और गीता के बारे में पूछा. वहां के मालिक ने कहा, ‘हमारे यहां गीता नाम की कोई लड़की काम नहीं करती.’

‘आप उसे बुलाएं. हम खुद ही उस से बात करेंगे,’ हवलदार ने डंडा लहराते हुए रोब से कहा.

अंदर से डरीसहमी एक लड़की आई. उसे देखते ही पवन चिल्लाया, ‘साहब, यही मेरी गीता है. गीता, तुम डरना नहीं, इंस्पैक्टर साहब को सबकुछ सचसच बता दो.’

‘क्या नाम है तेरा?’

‘साहब, मेरा नाम सपना है.’

‘क्या यह तुम्हारा पति है?’

‘नहीं साहब, मैं तो इसे जानती तक नहीं हूं.’

पवन भौचक्का सा कभी गीता को तो कभी पुलिस वाले को देखता रहा.

तभी पुलिस वाला बोला, ‘सौरी सर, आप को तकलीफ हुई.’

सभी लोग बाहर आ गए.

पवन कहता रहा कि वह उस की पत्नी है, पर किसी ने उस की न सुनी. सब उस से शादी का सुबूत मांगते रहे, पर वह गरीब सुबूत कहां से लाता.

‘‘पवन… ओ पवन, कल मेरी दुकान में एक मैडम आई थीं,’’ रमेश चाय वाले की यह बात सुन कर पवन अपने दिमाग में चल रही उथलपुथल से बाहर आ गया. वह अपना सिर खुजलाते हुए बोला, ‘‘हां, बोलो.’’

तभी रमेश चाय वाले ने उसे चाय का गरमागरम प्याला पकड़ाते हुए कहा, ‘‘कल मेरी दुकान में एक मैडम आई थीं और वे गीता जैसी लड़कियों की मदद के लिए एनजीओ चलाती हैं. हो सकता है कि वे हमारी कुछ मदद कर सकें.’’

थोड़ी देर बाद ही वे दोनों मैडम के सामने बैठे थे. मैडम ने पूछा, ‘‘उस ने तुम्हें पहचानने से क्यों मना कर दिया? अपना नाम गलत क्यों बताया?’’

‘‘मैडम, मैं ने गीता की आंखों से लुढ़कता हुआ प्यार देखा था. उन लोगों ने जरूर मेरी गीता को डराया होगा.’’

‘‘अच्छा ठीक है, तुम शुरू से अपना पूरा मामला बताओ.’’

यह सुन कर पवन उन यादों में खो गया था, जब गीता से उस की शादी हुई थी. दोनों अपनी जिंदगी में कितना खुश थे. सुबह वह ट्रैक्टर चलाने ठाकुर के खेतों में चला जाता और शाम होने का इंतजार करता कि जल्दी से गीता की बांहों में खो जाए.

इधर गीता घर पर मांबाबूजी को पहले ही खाना खिला देती और पवन के आने पर वे दोनों साथ बैठ कर खाना खाते और फिर अपने प्यार के पलों में खो जाते.

मगर कुछ दिनों से पवन परेशान रहने लगा था. गीता के बहुत पूछने पर वह बोला, ‘पहले मैं इतना कमा लेता था कि

3 लोगों का पेट भर जाता था, पर अब

4 हो गए और कल को 5 भी होंगे. बच्चों की परवरिश भी तो करनी होगी. सोचता हूं कि शहर जा कर कोई कामधंधा करूं. कुछ ज्यादा आमदनी हो जाएगी और वहां कोई कामकाज भी सीख लूंगा. उस के बाद गांव आ कर एक छोटी सी दुकान खोल लूंगा.’

‘आप के बिना तो मेरा मन ही नहीं लगेगा.’

‘क्या बात है…’ पवन ने शरारत भरे अंदाज में गीता से पूछा तो गीता भी शरमा गई और दोनों अपने भविष्य के सपने संजोते हुए सो गए.

कुछ दिनों बाद वे दोनों शहर आ गए. वहां उन्हें काम ढूंढ़ने के लिए ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ा. जल्दी ही एक जगह काम और सिर छिपाने की जगह मिल गई. रोजमर्रा की तरह जिंदगी आगे बढ़ने लगी.

पवन को लगा कि गीता से इतनी मेहनत नहीं हो पा रही है तो उस ने उस का काम पर जाना बंद करा दिया. वैसे भी फूल सी नाजुक और खूबसूरत लड़की ईंटपत्थर ढोने के लिए नहीं

बनी थी.

अभी बमुश्किल एक हफ्ता ही बीता था कि जहां पवन काम करता था वहां उस दिन बहुत कम लोग आए थे. वहां के मालिक ने पूछा, ‘क्या हुआ पवन, आजकल तेरी घरवाली काम पर नहीं आ रही है?’

पवन ने अपनी परेशानी बताई तो मालिक बोले, ‘कुछ दिनों से मेरे घर पर कामवाली बाई नहीं आ रही है, अगर तुम चाहो तो तुम्हारी घरवाली हमारे यहां काम कर सकती है और तुम इस काम के अलावा हमारी कोठी में माली का काम भी कर लो.’

पवन को जैसे मनचाहा वरदान मिल गया. सोचा कि इस से पैसा भी आएगा और गीता इस काम को कर भी पाएगी. उस ने गीता को बताया तो वह खुशीखुशी राजी हो गई.

इस तरह कुछ महीने आराम से बीत गए. कुछ ही समय में उन्होंने अपना पेट काट कर काफी पैसे इकट्ठा कर लिए थे और अकसर ही बैठ कर बातें करते कि अब कुछ ही समय में अपने गांव लौट जाएंगे.

मगर वे दोनों अपने ऊपर आने वाले खतरे से अनजान थे. गीता जहां काम करती थी, उन के ड्राइवर की नजर गीता पर थी. उधर मालकिन को गीता का काम बहुत पसंद था. वे अकसर पूरा घर गीता के भरोसे छोड़ कर चली जाती थीं.

रोज की तरह एक दिन पवन जब गीता को लेने पहुंचा और बाहर खड़ा हो कर इंतजार करने लगा. तभी ड्राइवर ने उसे साजिशन अंदर जाने के लिए कहा.

डरतेडरते पवन ने ड्राइंगरूम में पैर रखा तभी गीता आ गई और वे दोनों घर चले गए.

सुबह जब दोनों जैसे ही काम पर निकलने लगे कि देखा, मालिक पुलिस को लिए उन के दरवाजे पर खड़े थे.

‘क्या हुआ?’

‘इंस्पैक्टर, गिरफ्तार कर लो इसे.’

पुलिस ने पवन को पकड़ लिया तो उस ने पूछा, ‘मगर, मेरा कुसूर क्या है?’

‘जब तुम कल इन के घर गए थे तब तुम ने इन के घर से पैसे चुराए थे.’

वे दोनों बहुत समझाते रहे कि ऐसा नहीं है, मगर उन गरीबों की बात किसी ने नहीं सुनी और पवन को 2 महीने की सजा हो गई.

उधर गीता को मालिक ने घर से निकाल दिया. उस का तो बस एक ही ठिकाना रह गया था, वह बरसाती वाला घर और पवन की यादें.

उधर पवन के खिलाफ कोई पुख्ता सुबूत न होने के चलते कोर्ट ने उसे 2 महीने बाद निजी मुचलके पर छोड़ दिया.

जब पवन जेल से बाहर आया तो सीधे अपने घर गया, मगर वहां गीता का कोई अतापता नहीं था.

आसपास पूछने पर भी कोई बताने को तैयार नहीं हुआ. मगर उसी जगह काम करने वाली एक बुजुर्ग औरत को दया आ गई, ‘बेटा, मैं तुम्हें सबकुछ बताती हूं. तुम जब जेल में थे, उसी दौरान गीता के पास न कोई सहारा, न ही कोई काम रह गया था. तभी यहां के एक ठेकेदार ने उसे अपने घर के कामकाज के लिए रख लिया, क्योंकि वह अकेला रहता था.

‘तन और मन से टूटी गीता की मदद करने के बहाने वह करीब आने लगा. पहले तो वह मन से पास आया, फिर धीरेधीरे दोनों तन से भी करीब आ गए. गीता को अकसर उस के साथ बनसंवर कर घूमते देखा गया.

‘अब तुम्हीं बताओ, कोई अपनी काम वाली के साथ ऐसे घूमता है क्या? मैं ने तो यहां तक सुना है कि काम करतेकरते उस के साथ सोने भी लगी थी. अब इतनी बला की खूबसूरत लड़की के साथ यही तो होगा.

‘जब लोगों ने बातें करना शुरू कर दिया तो एक दिन रात के अंधेरे में सारा सामान ले कर चली गई. पर कुछ समय पहले ही मुझे बाजार में मिली थी. कह रही थी कि यहीं कालोनी के आसपास घरों में काम करती है.’

यह सब सुन कर पवन को बहुत दुख हुआ, पर उन की कही किसी बात पर उसे यकीन नहीं हुआ.

इतना जानने के बाद एनजीओ वाली मैडम ने पवन से आगे की कहानी पूछी.

पवन ने कहा, ‘‘मैं उसे ढूंढ़ता हुआ वहां पहुंच ही गया. मैं ने गीता को एक घर के अंदर जाते हुए देखा. उस ने पहचानने से मना कर दिया,’’ और पवन की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे.

‘‘यह लो पवन, पानी पी लो,’’ मैडम ने कहा, ‘‘तुम ने उस से दोबारा मिलने की कोशिश क्यों नहीं की?’’

‘‘आप को क्या लगता है कि मैं ने उस से मिलने की कोशिश नहीं की होगी. पुलिस का कहना है कि जब तक तू शादी का सुबूत नहीं लाता तब तक उस घर क्या गली में भी दिखाई दिया तो तुझे फिर से जेल में डाल देंगे.

‘‘मैं गरीब कहां से शादी का सुबूत लाऊं? मेरी शादी में तो एक फोटो तक नहीं खिंचा था.’’

‘‘ठीक है पवन, हम तुम्हारी जरूर मदद करेंगे,’’ मैडम ने कहा.

कुछ दिन बाद वे मैडम पवन और पुलिस को साथ ले कर गीता से मिलने गई और वहां जा कर पूछा कि आप के यहां गीता काम करती?है क्या?

उन लोगों में से एक ने एक बार में ही सच बयां कर दिया, ‘‘गीता ही हमारे यहां काम करती थी, मगर उस ने अपना नाम सपना क्यों बताया, यह हम नहीं जानते. जिस दिन पवन पुलिस को ले कर आया था. उसी दिन से वह बिना बताए कहीं चली गई और कभी वापस भी नहीं आई.’’

‘‘मैडम, ये सब झूठ बोल रहे हैं. आप इन के घर की तलाशी लीजिए.’’

मगर गीता सचमुच जा चुकी थी. तभी पुलिस ने गार्ड से पूछा, ‘‘क्या तुम ने गीता को जाते हुए देखा था?’’

‘‘हां साहब… उसी दिन रात 10 बजे के आसपास उसे ड्राइवर से बातें करते हुए देखा था.’’

पुलिस ने उत्सुकतावश पूछा, ‘‘कौन सा ड्राइवर?’’

गार्ड बोला, ‘‘साहब, जहां वह पहले काम करती थी वहीं का कोई ड्राइवर अकसर उस से मिलने आताजाता था.’’

पुलिस ने ड्राइवर का पताठिकाना निकाला. पहले तो उस ने मना कर दिया कि वह गीता को नहीं जानता, पर जब सख्ती की गई तो ड्राइवर ने पुलिस को बताया, ‘‘गीता इस घर के पास ही एक और घर में काम करती थी. उस का वहां के आदमी से अफेयर था. वह आदमी गीता की मजबूरी का फायदा उठाता रहा. उस के उस से नाजायज संबंध थे. उस ने तो गीता को अपने ही मकान में एक छोटा कमरा भी दे रखा था.

‘‘रोजाना गहरी होती हर रात को शराब के नशे में धुत्त वह गीता पर जबरदस्ती करता था. गीता चाहती तो गांव वापस जा सकती थी, पर वहां गांव में कुनबे के लिए रोटी बनाने से बेहतर काम उसे यह सब करना ज्यादा अच्छा लगने लगा था, क्योंकि उसे तो पाउडर और लिपस्टिक से लिपेपुते शहरी चेहरे की आदत हो गई थी.

‘‘मगर जब प्रेमी का मन भर गया और उस में कोई रस नहीं दिखाई देने लगा तो एक दिन चुपचाप अपने घर में ताला लगा कर चला गया.

‘‘जब वह 2-4 दिन बाद भी वापस नहीं आया तो गीता ने उस बन रही बिल्डिंग में जा कर उसे ढूंढ़ा लेकिन वहां पर भी उसे निराशा ही हाथ लगी. उस के रहने का ठिकाना भी न रहा.

‘‘उस के जाने के बाद अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए वह देह धंधे में उतर गई.’’

इतना सुनते ही पवन के होश उड़ गए और वह अपने उस दिन के फैसले पर पछताने लगा कि वे दोनों शहर क्यों आए थे. लेकिन पवन अच्छी तरह जानता था कि ऐसी औरतों के ठिकाने कहां होते हैं.

कुछ दिनों में पुलिस ने फौरीतौर पर छानबीन कर फाइल भी बंद कर दी और मैडम ने भी हार मान ली.

वे पवन को समझाने लगीं, ‘‘उस दुनिया में जाने के बाद सारे प्यार और जज्बात मर जाते हैं. वहां से कोई वापस नहीं आता. जब हम और पुलिस मिल कर कुछ नहीं कर पाए तो तुम अकेले क्या कर पाओगे? अच्छा होगा कि तुम भी गांव वापस चले जाओ और नई जिंदगी शुरू करो.’’

पर, पवन पर तो जैसे भूत सवार था. वह अपनी गीता को किसी भी कीमत पर पाना चाहता था. वह सारा दिन काम करता और रातभर रैडलाइट एरिया में भटकता रहता.

इसी तरह कई महीने बीत गए, मगर उस ने हार नहीं मानी. एक दिन रात को ढूंढ़ते हुए उस की निगाह ऊपर छज्जे पर खड़ी लड़की पर पड़ी. चमकीली साड़ी, आंखों पर भरपूर काजल, होंठो पर चटक लाल रंग की लिपस्टिक और उस पर से अधखुला बदन. अपने मन को मजबूत कर उस ने उस से आंखें मिलाने की हिम्मत की तो देखा कि तो गीता थी.

पवन दूसरे दिन मैडम को ले कर रैडलाइट एरिया के उसी मकान पर गया और लकड़ी की बनी सीढि़यों के सहारे झटपट ऊपर पहुंचा और बोला, ‘‘गीता, तुम यहां…’’ और यह कहते हुए उस के करीब जाने लगा, तभी उस ने उसे झटक कर दूर किया और कहा, ‘‘मैं रेशमा हूं.’’

पवन बोला, ‘‘मैं अब तुम्हारी कोई बात नहीं मानूंगा. तुम मेरी गीता हो… केवल मेरी… गीता घर लौट चलो… मैं तुझ से बहुत प्यार करता हूं, मैं तुम्हें वह हर खुशी दूंगा जो तुम चाहती हो. अब और झूठ मत बोलो.

‘‘मैं जानता हूं कि तुम गीता हो, तुम अपने पवन के पास वापस लौट आओ. तुझे उस प्यार की कसम जो शायद थोड़ा भी कभी तुम ने किया हो. यहां पर तुम्हारा कोई नहीं है. सब जिस्म के भूखे हैं. चंद सालों में यह सारी चमक खत्म हो जाएगी.’’

गीता भी चिल्लाते हुए बोली, ‘‘पवन, मैं चाह कर भी तुम्हारे साथ नहीं चल सकती. तुम्हारी गीता उसी दिन मर गई थी जिस दिन उस ने यहां कदम रखा था. तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं करते हो कि मैं गंदी हो चुकी हूं.’’

पवन उस के और करीब जा कर उस का चेहरा अपने हाथों में ले कर बोला, ‘‘तुम औरत नहीं, मेरी पत्नी हो, तुम कभी गंदी नहीं हो सकती. जहां वह रहती है वो जगह पवित्र हो जाती है, तुम यहां से निकलने की कोशिश तो करो. मैं तुम्हारे साथ हूं. तुम्हारा पवन सबकुछ भुला कर नई जिंदगी की शुरुआत करना चाहता है.’’

गीता भी शायद कहीं न कहीं

इस जिंदगी से तंग आ चुकी थी.

पवन की बातों से वह जल्दी ही टूट गई. वे दोनों एकदूसरे से लिपट गए और फफक कर रो पड़े.

पवन और गीता अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करने वहां से वापस चल दिए.

मैडम उन को जाते देख बोली, ‘‘जहां न कानून कुछ कर पाया और न ही समाज, वहां इस के प्यार की ताकत ने वह कर दिखाया जो नामुमकिन था. सच में… ऐसा प्यार कहां…’’

Valentine’s Day 2024: अनोखी- प्रख्यात से मिलकर कैसा था निष्ठा का हाल

कल हमेशा रहेगा: भाग 1- वेदश्री ने किसे चुना

‘‘अभि, मैं आज कालिज नहीं आ रही. प्लीज, मेरा इंतजार मत करना.’’

‘‘क्यों? क्या हुआ वेदश्री. कोई खास समस्या है?’’ अभि ने एकसाथ कई प्रश्न कर डाले.

‘‘हां, अभि. मानव की आंखों की जांच के लिए उसे ले कर डाक्टर के पास जाना है.’’

‘‘क्या हुआ मानव की आंखों को?’’ अभि की आवाज में चिंता घुल गई.

‘‘वह कल शाम को जब स्कूल से वापस आया तो कहने लगा कि आंखों में कुछ चुभन सी महसूस हो रही है. रात भर में उस की दाईं आंख सूज कर लाल हो गई है.

आज साढ़े 11 बजे का

डा. साकेत अग्रवाल से समय ले रखा है.’’

‘‘मैं तुम्हारे साथ चलूं?’’ अभि ने प्यार से पूछा.

‘‘नहीं, अभि…मां मेरे साथ जा रही हैं.’’

डा. साकेत अग्रवाल के अस्पताल में मानव का नाम पुकारे जाने पर वेदश्री अपनी मां के साथ डाक्टर के कमरे में गई.

डा. साकेत ने जैसे ही वेदश्री को देखा तो बस, देखते ही रह गए. आज तक न जाने कितनी ही लड़कियों से उन की अपने अस्पताल में और अस्पताल के बाहर मुलाकात होती रही है, लेकिन दिल की गहराइयों में उतर जाने वाला इतना चित्ताकर्षक चेहरा साकेत की नजरों के सामने से कभी नहीं गुजरा था.

वेदश्री ने डाक्टर का अभिवादन किया तो वह अपनेआप में पुन: वापस लौटे.

अभिवादन का जवाब देते हुए डाक्टर ने वेदश्री और उस की मां को सामने की कुरसियों पर बैठने का इशारा किया.

मानव की आंखों की जांच कर

डा. साकेत ने बताया कि उस की दाईं आंख में संक्रमण हो गया है जिस की वजह से यह दर्द हो रहा है. आप घबराइए नहीं, बच्चे की आंखों का दर्द जल्द ही ठीक हो जाएगा पर आंखों के इस संक्रमण का इलाज लंबा चलेगा और इस में भारी खर्च भी आ सकता है.

हकीकत जान कर मां का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. वेदश्री मम्मी को ढाढ़स बंधाने का प्रयास करती हुई किसी तरह घर पहुंची. पिताजी भी हकीकत जान कर सकते में आ गए.

वेदश्री ने अपना मन यह सोच कर कड़ा किया कि अब बेटी से बेटा बन कर उसे ही सब को संभालना होगा.

मानव जैसे ही आंखों में चुभन होने की फरियाद करता वह तड़प जाती थी. उसे मानव का बचपन याद आ जाता.

उस के जन्म के 15 साल के बाद मानव का जन्म हुआ था. इतने सालों के बाद दोबारा बच्चे को जन्म देने के कारण मां को शर्मिंदगी सी महसूस हो रही थी.  वह कहतीं, ‘‘श्री…बेटा, लोग क्या सोचेंगे? बुढ़ापे में पहुंच गई, पर बच्चे पैदा करने का शौक नहीं गया.’’

‘‘मम्मा, आप ऐसा क्यों सोचती हैं.’’ वेदश्री ने समझाते हुए कहा, ‘‘आप ने मुझे राखी बांधने वाला भाई दिया है, जिस की बरसों से हम सब को चाहत थी. आप की अब जो उम्र है इस उम्र में तो आज की आधुनिक लड़कियां शादी करती दिखाई देती हैं…आप को गलतसलत कोई भी बात सोचने की जरूरत नहीं है.’’

गोराचिट्टा, भूरी आंखों वाला प्यारा सा मानव, अभी तो आंखों में ढेर सारा विस्मय लिए दुनिया को देखने के योग्य भी नहीं हुआ था कि उस की एक आंख प्रकृति के सुंदरतम नजारों को अपने आप में कैद करने में पूर्णतया असमर्थ हो चुकी थी. परिवार में सब की आंखों का नूर अपनी खुद की आंखों के नूर से वंचित हुआ जा रहा था और वे कुछ भी करने में असमर्थ थे.

‘‘वेदश्रीजी, कीटाणुओं के संक्रमण ने मानव की एक आंख की पुतली पर गहरा असर किया है और उस में एक सफेद धब्बा बन गया है जिस की वजह से उस की आंख की रोशनी चली गई है. कम उम्र का होने के कारण उस की सर्जरी संभव नहीं है.’’

15 दिन बाद जब वह मानव को ले कर चेकअप के लिए दोबारा अस्पताल गई तब डा. साकेत ने उसे समझाते हुए बताया तो वह दम साधे उन की बातें सुनती रही और मन ही मन सोचती रही कि काश, कोई चमत्कार हो और उस का भाई ठीक हो जाए.

‘‘लेकिन उचित समय आने पर हम आई बैंक से संपर्क कर के मानव की आंख के लिए कोई डोनेटर ढूंढ़ लेंगे और जैसे ही वह मिल जाएगा, सर्जरी कर के उस की आंख को ठीक कर देंगे, पर इस काम के लिए आप को इंतजार करना होगा,’’ डा. साकेत ने आश्वासन दिया.

वेदश्री भारी कदमों और उदास मन से वहां से चल दी तो उस की उदासी भांप कर साकेत से रहा न गया और एक डाक्टर का फर्ज निभाते हुए उन्होंने समझाया, ‘‘वेदश्रीजी, मुझे आप से पूरी हमदर्दी है. आप की हर तरह से मदद कर के मुझे बेहद खुशी मिलेगी. प्लीज, मेरी बात को आप अन्यथा न लीजिएगा, ये बात मैं दिल से कह रहा हूं.’’

‘‘थैंक्स, डा. साहब,’’ उसे डाक्टर का सहानुभूति जताना उस समय सचमुच अच्छा लग रहा था.

मानव की आंख का इलाज संभव तो था लेकिन दुष्कर भी उतना ही था. समय एवं पैसा, दोनों का बलिदान ही उस के इलाज की प्राथमिक शर्त बन गए थे.

पिताजी अपनी मर्यादित आय में जैसेतैसे घर का खर्च चला रहे थे. बेटे की तकलीफ और उस के इलाज के खर्च ने उन्हें उम्र से पहले ही जैसे बूढ़ा बना दिया था. उन का दर्द महसूस कर वेदश्री भी दुखी होती रहती. मानव की चिंता में उस ने कालिज के अलावा और कहीं आनाजाना कम कर दिया था. यहां तक कि अभि जिसे वह दिल की गहराइयों से चाहती थी, से भी जैसे वह कट कर रह गई थी.

डा. साकेत अग्रवाल शायद उस की मजबूरी को भांप चुके थे. उन्होंने वेदश्री को ढाढ़स बंधाया कि वह पैसे की चिंता न करें, अगर सर्जरी जल्द करनी पड़ी तो पैसे का इंतजाम वह खुद कर देंगे. निष्णात डाक्टर होने के साथसाथ साकेत एक सहृदय इनसान भी हैं.

दरअसल, साकेत उम्र में वेदश्री से

2-3 साल ही बड़े होंगे. जवान मन का तकाजा था कि वह जब भी वेदश्री को देखते उन का दिल बेचैन हो उठता. वह हमेशा इसी इंतजार में रहते कि कब वह मानव को ले कर उस के पास आए और वह उसे जी भर कर देख सकें. न जाने कब वेदश्री डा. साकेत के हृदय सिंहासन पर चुपके से आ कर बैठ गई, उन्हें पता ही नहीं चला. तभी तो साकेत ने मन ही मन फैसला किया था कि मानव की सर्जरी के बाद वह उस के मातापिता से उस का हाथ मांग लेंगे.

उधर वेदश्री डा. साकेत के मन में अपने प्रति उठने वाले प्यार की कोमल भावनाओं से पूरी तरह अनभिज्ञ थी. वह अभिजीत के साथ मिल कर अपने सुंदर सहजीवन के सपने संजोने में मगन थी. उस के लिए साकेत एक डाक्टर से अधिक कुछ भी न थे. हां, वह उन की बहुत इज्जत करती थी क्योंकि उस ने महसूस किया था कि डा. साकेत एक आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी होने के साथसाथ नेक दिल इनसान भी हैं.

समय अपनी चाल से चलता रहा और देखते ही देखते डेढ़ वर्ष का समय कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला. एक दिन फोन की घंटी बजी तो अभिजीत का फोन समझ कर वेदश्री ने फोन उठा लिया और ‘हैलो’ बोली.

‘‘वेदश्रीजी, डा. साकेत बोल रहा हूं. मैं ने यह बताने के लिए आप को फोन किया है कि यदि आप मानव को ले कर कल 12 बजे के करीब अस्पताल आ जाएं तो बेहतर होगा.’’

साकेत चाहता तो अपनी रिसेप्शनिस्ट से फोन करवा सकता था, लेकिन दिल का मामला था अत: उस ने खुद ही यह काम करना उचित समझा.

‘‘क्या कोई खास बात है, डाक्टर साहब,’’ वेदश्री समझ नहीं पा रही थी कि डाक्टर ने खुद क्यों उसे फोन किया. उसे लगा जरूर कोई गंभीर बात होगी.

‘‘नहीं, कोई ऐसी खास बात नहीं है. मैं ने तो यह संभावना दर्शाने के लिए आप के पास फोन किया है कि शायद कल मैं आप को एक बहुत बढि़या खबर सुना सकूं, क्योंकि मैं मानव को ले कर बेहद सकारात्मक हूं.’’

‘‘धन्यवाद, सर. मुझे खुशी है कि आप मानव के लिए इतना सोचते हैं. मैं कल मानव को ले कर जरूर हाजिर हो जाऊंगी, बाय…’’ और वेदश्री ने फोन रख दिया.

वेदश्री की मधुर आवाज ने साकेत को तरोताजा कर दिया. उस के होंठों पर एक मीठी मधुर मुसकान फैल गई.

मानव का चेकअप करने के बाद डा. साकेत वेदश्री की ओर मुखातिब हुए.

‘‘क्या मैं आप को सिर्फ ‘श्री…जी’ कह कर बुला सकता हूं?’’ डा. साकेत बोले, ‘‘आप का नाम सुंदर होते हुए भी मुझे लगता है कि उसे थोड़ा छोटा कर के और सुंदर बनाया जा सकता है.’’

‘‘जी,’’ कह कर वेदश्री भी हंस पड़ी.

‘‘श्रीजी, मेरे खयाल से अब मानव की सर्जरी में हमें देर नहीं करनी चाहिए और इस से भी अधिक खुशी की बात यह है कि एशियन आई इंस्टीट्यूट बैंक से हमें मानव के लिए योग्य डोनेटर मिल गया है.’’

‘‘सच, डाक्टर साहब, मैं आप का यह ऋण कभी भी नहीं चुका सकूंगी,’’ उस की आंखों में आंसू उभर आए.

डा. साकेत के हाथों मानव की आंख की सर्जरी सफलतापूर्वक संपन्न हुई. परिवार के लोग दम साधे उस की आंख की पट्टी खुलने का इंतजार कर रहे थे.

आगे पढ़ें- वेदश्री बिना किसी बोझ के बेहद…

Valentine’s Day 2024:प्यार का रंग- राशि के बौयफ्रैंड ने क्यों गिरगिट की तरह बदला रंग

जब राशि की आंखें खुलीं तो उस ने खुद को अस्पताल के बैड पर पाया. उसे शरीर में कमजोरी महसूस हो रही थी. इसलिए उस ने फिर आंखें मूंद लीं. जब उस ने अपने दिमाग पर जोर डाला तो उसे याद आया कि उस ने तो नींद की गोलियां खा कर अपनी जीवनलीला समाप्त करने की कोशिश की थी, लेकिन वह बच कैसे गई. तभी किसी की पदचाप से उस की तंद्रा भंग हुई. उस के सामने डाक्टर रंजना खड़ी थीं.

‘‘अब कैसी हो तुम?’’ वे उस का चैकअप करते हुए उस से पूछ बैठीं.

‘‘ठीक हूं डाक्टर,’’ वह धीमे स्वर में बोली.

फिर डाक्टर रंजना सामने खड़ी नर्स को कुछ हिदायतें दे कर चली गईं. लेकिन राशि न चाहते हुए भी अतीत के सागर में गोते खाने लगी और रोहन को याद कर के फूटफूट कर रो पड़ी. थोड़ी देर रो लेने के बाद उस का जी हलका हुआ और वह न चाहते हुए भी फिर से यादों के मकड़जाल में उलझ कर रह गई. फिर उसे अपने कालेज के मस्ती भरे दिन याद आने लगे जब वह और उस के 2 दोस्त रोहन और कपिल कालेज में मस्ती करते थे. रोहन मध्यवर्गीय परिवार का सुंदर नौजवान था और कपिल रईस परिवार का गोलमटोल युवक था. ‘मुझ से शादी करेगी तो मुनाफे में रहेगी,’ कपिल उसे अकसर छेड़ते हुए कहता, ‘मैं गोलू हूं तो क्या हुआ? पर देख लेना, जिस दिन तूने इस रिश्ते के लिए हामी भर दी, उस दिन से मेरी डाइटिंग चालू हो जाएगी.’

‘यह मुंह और मसूर की दाल,’ राशि कपिल का मजाक उड़ाते हुए कहती, ‘मैं अर्धांगिनी बनूंगी तो सिर्फ रोहन की, क्योंकि मेरे मन में तो उसी की तसवीर बसी हुई है.’ फिर मजाकमजाक में सभी जोर से हंस देते. पर कालेज खत्म होने के बाद राशि और रोहन अपने रिश्ते को ले कर काफी संजीदा हो उठे थे. लेकिन शादी से पहले जरूरी था कि रोहन अपने पैरों पर खड़ा हो जाए ताकि वह राशि का हाथ मांग सके. वैसे रोहन आगे बढ़ने के लिए हाथपांव तो मार रहा था, पर उसे सफलता नहीं मिल पा रही थी. सरकारी जौब पाने के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करना बहुत जरूरी था. अब 3 बहनों के इकलौते भाई के पास इतनी जमापूंजी तो थी नहीं कि वह प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अच्छी कोचिंग ले पाता. वैसे उस के पापा अपने स्तर पर उस की मदद को तो तत्पर रहते थे, पर बढ़ती महंगाई ने उन के हाथ बांध रखे थे.

तब ऐसे में राशि ने ही रोहन की मदद का बीड़ा उठा लिया था. वैसे तो राशि भी आगे पढ़ना चाहती थी और आगे बढ़ना चाहती थी पर रोहन की मदद के बाद इतना नहीं बच पाता था कि वह खुद भी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर सके. फिर उस ने खुद से समझौता कर लिया था और अपना कैरियर दांव पर लगाते हुए रोहन की सहायता करना उस ने अपना लक्ष्य बना लिया था. ‘तुम से यों हर वक्त पैसे लेना अखरता है मुझे, पर क्या करूं विवश हूं,’ रोहन अकसर उस से भरे मन से कहता. ‘तुम में और मुझ में कुछ फर्क है क्या?’ फिर वह उस की गले में बांह डालती हुई कहती, ‘जब अपना सारा जीवन ही तुम्हारे नाम कर दिया है तो अपने और पराए का फर्क बचा ही कहां है?’

फिर धीरेधीरे समय का पहिया घूमा. इधर संघर्षरत रोहन को सफलता मिली तो उधर कपिल अपने पापा के बिजनैस में सैटल हो गया. जब रोहन को पुणे की एक जानीमानी कंपनी में जौब मिली, तब सब से ज्यादा खुश राशि ही थी, जिस ने इस दिन के लिए न जाने कितने पापड़ बेले थे. उस ने न सिर्फ आर्थिक रूप से बल्कि हर तरह से रोहन की मदद की थी. जब रोहन पढ़ता तो वह सारी रात जाग कर उस का हौसला बढ़ाती. वह हमेशा अपने रोहन की सफलता की कामना करती थी. इसीलिए उसे जैसे ही पता चला कि रोहन की जौब लग गई है, वह बहुत खुश हो गई. रोहन को सामने देख खुशी के अतिरेक में मानो उस के तो होंठ सिल ही गए थे और आंखों से निरंतर आंसू बह रहे थे.

‘पगली, अब तो तेरे खुश होने का समय है,’’ रोहन शरारती अंदाज में बोला तो राशि शर्म से पानीपानी हो गई. तब उस ने आत्मसमर्पण सा कर दिया था. उस ने अपना सिर उस के कंधे से टिका दिया था. जिस दिन रोहन पुणे के लिए गया, उस दिन भी कमोबेश उस की यही स्थिति थी. अपनी मम्मी से कह कर उस ने रोहन के लिए नमकीन, अचार, हलवा और न जाने क्याक्या पैक करवा डाला था. ‘अरी, कम से कम यह तो बता कि इतना सब किस के लिए पैक करवा रही है,’ उस की मां सामान पैक करते वक्त लगातार उस से पूछती रहीं, पर वह जवाब में मंदमंद मुसकराती रही. ‘रोहन, यह सब सिर्फ तुम्हारे लिए है. अगर दोस्तों में बांटा तो मुझ से बुरा कोई नही होगा,’ राशि खाने के सामान से भरा बैग उसे थमाते हुए बोली थी.

‘जानेमन, तुम फिक्र न करो. यह बंदा ही सिर्फ इस सामान को खाएगा,’ फिर रोहन ने वह बैग राशि से ले कर अपने सामान के साथ रख लिया था. ‘मम्मीपापा से मिलने कब आओगे,’ लाख चाहते हुए भी राशि अपनी अधीरता उस से छिपा नहीं पाई थी. ‘पगली, पहले वहां जा कर सैटल तो होने दे मुझे. बस, फिर तुरंत आ कर तुझे तेरे परिवार से मांग लूंगा,’ फिर उस ने आगे बढ़ कर उस का माथा चूमते हुए कहा था, ‘बस, यह समझ ले कि मेरा तन पुणे जा रहा है, मन तो तेरे पास ही है, उस की हिफाजत करना.’ फिर ट्रेन चली गई थी और रोहन भी. तब वह न जाने कितनी देर स्टेशन पर ही खड़ी रह गई थी. जब तक ट्रेन उस की आंखों से पूरी तरह ओझल नहीं हो गई थी.

अब तो उस का किसी भी काम में मन नहीं लगता था. इधर वह रोहन की दुलहन का सपना अपनी आंखों में संजोए उस का बेसब्री से इंतजार कर रही थी तो उधर रोहन अब उस से कन्नी काटने लगा था. धीरेधीरे बढ़ रही उस की बेरुखी राशि को तोड़ने लगी थी. ऐसे में उस ने पुणे जा कर सारी बात जानने का मन बनाया. पर उस के जाने से पहले ही उसे माही मिल गई थी, जिस का चचेरा भाई संयोगवश रोहन की कंपनी में ही काम करता था. ‘अरे यार, तू जिस के साथ शादी कर सैटल होने का मन बना रही है, वह तो दगाबाज निकला. रोहन तो अब अपनी कंपनी के सीईओ की बेटी से इश्क फरमाने में लगा है. आखिर अपने परिवार की गरीबी दूर करने का इस से बढि़या विकल्प क्या होगा?’ फिर माही तो चली गई, लेकिन राशि… वह तो मानो दुख के सागर में डूबती चली गई. जिस पेड़ की शाखा के सहारे वह इस जिंदगी के सागर को पार लगाने की आस में थी, वह शाखा इतनी कच्ची निकलेगी, इस का उसे अंदाजा ही नहीं था.

वह क्या करे? इसी ऊहापोह में करीब एक महीना गुजर गया. इस बीच न तो उस ने रोहन से बात की और न ही रोहन का कोई फोन आया. तब फिर एक दिन जब वह अपने दिल से हार गई, तब उस ने ही उसे फोन लगाया.

‘हैलो, रोहन, कैसे हो?’

‘ठीक हूं.’

‘और तुम कैसी हो?’

‘मैं भी ठीक हूं.’

‘अच्छा रोहन, तुम दिल्ली कब आ रहे हो,’ राशि न चाहते हुए भी उस से पूछ बैठी. ‘‘अभी तो फिलहाल दिल्ली आने का कोई प्रोग्राम नहीं है, क्योंकि मैं तो अपना सारा परिवार यहां पुणे में शिफ्ट करने की सोच रहा हूं,’ इतना कह कर उस ने फोन काट दिया. रोहन ने तो उस से दोटूक बात कर के अपनी जिम्मेदारी से, अपने प्यार से मुंह मोड़ लिया, लेकिन खाली हाथ रह गई तो राशि. वह बहुत कोशिश करती थी, रोहन को भूलने की, पर उस का दिल हर समय उस की याद में ही धड़कता रहता था. सच, कितनी आसानी से रोहन ने उस से कह दिया कि वह अपना पूरा परिवार पुणे शिफ्ट करने की सोच रहा है, जबकि वह यह बात अच्छे से जानता है कि वह भी तो उस के परिवार का हिस्सा थी. रोहन के परिवार में शामिल होने के लिए ही तो उस ने इतने सारे यत्न किए थे. यहां तक कि अपना कैरियर भी दांव पर लगा दिया था, पर बदले में उसे क्या मिला?

वह फोन पर उस से यह सब कहना चाहती थी, पर चाह कर भी उसे फोन नहीं मिला पाई. रोहन जैसा मौकापरस्त इंसान अब उस की नफरत के काबिल भी नहीं था. रोहन की बेवफाई ने उसे भीतर तक तोड़ दिया था. तब उस ने खुद को आगे की पढ़ाई में झोंक दिया. हर समय हंसनेखिलखिलाने वाली राशि चुप्पी के खोल में सिमट कर रह गई थी. उस की यह खामोशी उस के मम्मीपापा के लिए भी कम दुखदाई नहीं थी, पर मौके की नजाकत को देखते हुए वे चुप ही रहते थे.

अपने दुख को दबाना जब राशि के लिए असहनीय हो गया, तब उस ने एक दिन नींद की ढेर सारी गोलियां खा कर अपना जीवन समाप्त करने की कोशिश की. लेकिन शायद अभी उसे और जीना था इसलिए बच गई. ‘‘बेटी, कैसी है तू अब?’’ मां की प्यार भरी आवाज सुन कर उस की तंद्रा भंग हो गई और वह अतीत से वर्तमान में लौट आई थी. जब मां का आत्मीयता भरा स्पर्श उसे अपने माथे पर महसूस हुआ तो वह सिसक पड़ी. ‘‘मेरी बेटी इतनी कमजोर निकलेगी, मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था,’’ मां के स्वर में तड़प का पुट था.

मां की यह बात उसे चुभ गई थी. अब उस ने रोतेरोते सारी बातें अपनी मां को बता दी थीं. सबकुछ जानने के बाद उस की मां का भी दिल भर आया था. फिर वे प्यार से उसे समझाते हुए बोलीं, ‘‘मैं मानती हूं कि जो कुछ भी तेरे साथ हुआ वह गलत था, पर बेटी, किसी मौकापरस्त इंसान के लिए अपना जीवन समाप्त करना भी तो समझदारी नहीं है. तुझे तो यह सोचना चाहिए कि तू ऐसे खुदगर्ज इंसान से बच गई जो सिर्फ अपने को ही महत्त्व देता है.’’ मां की प्यार भरी बातों ने उस के रिसते घाव पर मरहम का काम किया था. फिर वह हलके मन से सामने रखा सूप पीने लगी थी. तभी अचानक मां उस से बोलीं, ‘‘बेटा, एक बात कहूं?’’

‘‘हां, कहो न मां.’’

‘‘देख बेटी, पुरानी बातों को छोड़ कर आगे बढ़ने में ही समझदारी है. इस से पुरानी बातों का दंश कम हो जाता है.’’

‘‘वह तो ठीक है, पर…’’

‘‘अब परवर कुछ नहीं. बस, यह समझ ले कि एक बार तूने सूरत के आधार पर अपने जीवन का फैसला लिया था, अब तू सीरत को आधार बना कर आगे बढ़ जा.’’

‘‘लेकिन आप कहना क्या चाह रही हैं, मैं समझी नहीं,’’ राशि सूप का खाली कप अपनी मां को थमाते हुए बोली. ‘‘अरे, मैं तो उसी कपिल की बात कर रही हूं, जिसे तू गोलू कह कर छेड़ती थी,’’ मां फिर से संजीदा हो उठी थीं, ‘‘पता है, जब मैं ने तुझे बेहोश देखा, तब मैं समझ नहीं पाई थी कि क्या करूं? पहले तेरे पापा को फोन लगाया, लेकिन उन का फोन स्विच औफ जा रहा था. तब मैं ने परेशान हो कर तेरे एकदो दोस्तों को फोन लगाया. वे सभी पुलिस केस के डर से कन्नी काट गए. ‘‘फिर मैं ने गोलू को फोन लगाया. मेरे फोन करते ही वह तुरंत मेरे पास पहुंच गया. उस ने उस समय न सिर्फ तुझे संभाला बल्कि मुझे भी हिम्म्मत दी. अब बता, जो इंसान तेरी बेरुखी के बावजूद सिर्फ इंसानियत के नाते तेरी मदद को आगे आया, वह इंसान तारीफ के काबिल है या नहीं…’’

‘‘पर मां, अब तो शादी के नाम से ही नफरत हो गई है मुझे…’’ इतना कहतेकहते राशि फिर से रो पड़ी.

‘‘बेटा, धोखा रोहन ने दिया है तो उस की करनी की सजा तू क्यों भुगते? किसी और की गलती का पश्चात्ताप तू क्यों करे?’’ मां के स्वर में चिंता का पुट था. फिर न जाने उस के मन में अचानक क्या आया? उस ने तुरंत हां में सिर हिला दिया. उस की हां मिलते ही गोलू और उस की मां अस्पताल जा पहुंचे. ‘‘देख लेना बेटा, मैं दुनिया की हर खुशी दूंगी तुझे. बस, तू जल्दी से ठीक हो जा. तुझे ही अपने कमरे का सारा डैकोरेशन करना होगा,’’ गोलू की मां उस का माथा चूमते हुए बोलीं. फिर वह और उस की मां कमरे से बाहर चली गईं. उन के जाने के बाद कपिल राशि से मिलने आया.

‘‘मैं तो मरमिटा हूं तेरी हां पर. मैं ने तो पहली नजर में ही तुझे अपना दिल दे दिया था, लेकिन वहां तो… चल छोड़ उन बेकार की बातों को.

‘‘पर अब जब हम दोनों ने एक होने का फैसला कर लिया है, तो आज से तेरे सारे गम मेरे और मेरी सारी खुशियां तेरी,’’ मोटू राशि का हाथ थामते हुए बोला. गोलू की इस अदा पर राशि फिदा हो गई. अब उसे अपनी मां की कही बातों का अर्थ समझ में आने लगा था. सच, कितना फर्क है रोहन और कपिल की सोच में. एक वह निर्मोही रोहन है, जो अपनी मौकापरस्ती के कारण उसे लगभग भूल ही गया और दूसरी तरफ कपिल है, जो उस का झुकाव रोहन की तरफ होते हुए भी उसे अपना बनाने को तैयार है. सच में कपिल महान है जो इतना कुछ होने के बावजूद उस से सच्चा प्यार करता है. बस, कपिल की यही जिंदादिली भा गई थी उसे. उस का वर्तमान और भविष्य सुरक्षित रहेगा उस के साथ, इस की उम्मीद अब राशि के अंदर जाग चुकी थी. फिर अचानक ही कपिल उस से बोला, ‘‘थोड़े दिन बाद होली है. तुझे हमारे घर आना होगा, मेरे साथ होली खेलने,’’ कपिल उसे दोबारा बैड पर लिटाते हुए बोला.

‘‘हांहां, मैं जरूर आऊंगी,’’ राशि ने हां में अपना सिर हिला दिया.

‘‘यह हुई न बात, तो तू रंगेगी न, मेरे प्यार के रंग में?’’

‘‘हां, मेरे मोटू.’’ राशि के इतना कहते ही झट से मोटू ने एक प्यार भरा चुंबन उस के गाल पर अंकित किया और फिर शरमा कर बाहर निकल गया.

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