ब्लाउज: इंद्र ने अपनी पत्नी के कपड़ों के साथ क्या किया?

इंद्रपत्नी की मृत्यु के बाद बेटी के साथ अमेरिका चले गए थे. 65 साल की आयु में जब पत्नी विमला कैंसर के कारण उन का साथ छोड़ गई तो उन की जीवननैया डगमगा उठी. इसी उम्र में तो एकदूसरे के साथ की जरूरत अधिक होती है और इसी अवस्था में वह हाथ छुड़ा कर किनारे हो गई थी.

पिता की मानसिक अवस्था को देख कर अमेरिकावासी दोनों बेटों ने उन्हें अकेला छोड़ना उचित नहीं समझा और जबरदस्ती साथ ले गए. अमेरिका में दोनों बेटे अलगअलग शहर में बसे थे. बड़े बेटे मनुज की पत्नी भारतीय थी और फिर उन के घर में 1 छोटा बच्चा भी था, इसलिए कुछ दिन उस के घर में तो उन का मन लग गया. पर छोटे बेटे रघु के घर वे 1 सप्ताह से अधिक समय नहीं रह पाए. उस की अमेरिकन पत्नी के साथ तो वे ठीक से बातचीत भी नहीं कर पाते थे. उन्हें सारा दिन घर का अकेलापन काटने को दौड़ता था. अत: 2 ही महीनों में वे अपने सूने घर लौट आए थे.

अब घर की 1-1 चीज उन्हें विमला की याद दिलाती और वे सूने घर से भाग कर क्लब में जा बैठते. दोस्तों से गपशप में दिन बिता कर रात को जब घर लौटते तो अपना घर ही उन्हें बेगाना लगता. अब अकेले आदमी को इतने बड़े घर की जरूरत भी नहीं थी. अत: 4 कमरों वाले इस घर को उन्होंने बेचने का मन बना लिया. इंद्र ने सोचा कि वे 2 कमरों वाले किसी फ्लैट में चले जाएंगे. इस बड़े घर में तो पड़ोसी की आवाज भी सुनाई नहीं पड़ती, क्योंकि घर के चारों ओर की दीवारें एक दूरी पैदा करती थीं. फ्लैट सिस्टम में तो सब घरों की दीवारें और दरवाजे इतने जुड़े हुए होते हैं कि न चाहने पर भी पड़ोसी के घर होते शोरगुल को आप सुन सकते हैं.

सभी मित्रों ने भी राय दी कि इतने बड़े घर में रहना अब खतरे से भी खाली नहीं है. आए दिन समाचारपत्रों में खबरें छपती रहती हैं कि बूढ़े या बूढ़ी को मार कर चोर सब लूट ले गए. अत: घर को बेच कर छोटा फ्लैट खरीदने का मन बना कर उन्होंने धीरेधीरे घर का अनावश्यक सामान बेचना शुरू कर दिया. पुराना भारी फर्नीचर नीलामघर भेज दिया. पुराने तांबे और पीतल के बड़ेबड़े बरतनों को अनाथाश्रम में भेज दिया. धोबी, चौकीदार, नौकरानी और ड्राइवर आदि को जो सामान चाहिए था, दे दिया. अंत में बारी आई विमला की अलमारी की. जब उन्होंने उन की अलमारी खोली तो कपड़ों की भरमार देख कर एक बार तो हताश हो कर बैठ गए. उन्हें हैरानी हुई कि विमला के पास इतने अधिक कपड़े थे, फिर भी वह नईनई साडि़यां खरीदती रहती थी.

पहले दिन तो उन्होंने अलमारी को बंद कर दिया. उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि इतने कपड़ों का वे क्या करेंगे. इसी बीच उन्हें किसी काम से मदुरै जाना पड़ा. वे अपनी कार से निकले थे. वापसी पर एक जगह उन की कार का टायर पंक्चर हो गया और उन्हें वहां कुछ घंटे रुकना पड़ा. जब तक कोई सहायता आती और कार चलने लायक होती, वे वहां टहलने लगे. पास ही रेलवे लाइन पर काम चल रहा था और सैकड़ों मजदूर वहां काम पर लगे हुए थे. काम बड़े स्तर पर चल रहा था, इसलिए पास ही मजदूरों की बस्ती बस गई थी.

इंद्र ने ध्यान से देखा कि इन मजदूरों का जीवन कितना कठिन है. हर तरफ अभाव ही अभाव था. कुछ औरतों के शरीर के कपड़े इतने घिस चुके थे कि उन के बीच से उन का शरीर नजर आने लगा था. एक युवा महिला के फटे ब्लाउज को देख कर उन्हें एकदम से अपनी पत्नी के कपड़ों की याद हो आई. वे मन ही मन कुदरत पर मुसकरा उठे कि एक ओर तो जरूरत से ज्यादा दे देती है और दूसरी ओर जरूरत भर का भी नहीं. इसी बीच उन की गाड़ी ठीक हो गई और वे लौट आए.

दूसरे दिन तरोताजा हो कर इंद्र ने फिर से पत्नी की अलमारी खोली तो बहुत ही करीने से रखे ब्लाउज के बंडलों को देखा. जो बंडल सब से पहले उन के हाथ लगा उसे देख कर वे हंस पड़े. वे ब्लाउज 30 साल पुराने थे. कढ़ाई वाले उस लाखे रंग के ब्लाउज को वे कैसे भूल सकते थे. शादी के बाद जब वे हनीमून पर गए तो एक दिन विमला ने यही ब्लाउज पहना था.

उस ब्लाउज के हुक पीछे थे. विमला को साड़ी पहनने का उतना अभ्यास नहीं था. कालेज में तो वह सलवारकमीज ही पहनती थी तो अब साड़ी पहनने में उसे बहुत समय लगता था. उस दिन जब वे घूमने के लिए निकलने वाले थे तो विमला को तैयार हो कर बाहर आने के लिए कह कर वे होटल के लौन में आ कर बैठ गए. कुछ समय तो वे पेपर पढ़ते रहे और कुछ समय इधरउधर के प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते रहे. आधे घंटे से ऊपर समय हो गया, मगर विमला बाहर नहीं आई. वे वापस कमरे में गए तो कमरे का दृश्य देख कर जोर से हंस पड़े. कमरे का दरवाजा खोल कर विमला दरवाजे की ओट में हो गई. और वह चादर ओढ़े थी.

वे बोले, ‘‘अरे, अभी तक तैयार नहीं हुईं?’’

‘‘नहीं. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही थी. तुम्हें कैसे बुलाऊं, समझ में नहीं आ रहा था.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘ब्लाउज बंद नहीं हो रहा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘हुक पीछे हैं और मुझ से बंद नहीं हो रहे.’’

‘‘तो कोई दूसरी ड्रैस पहन लेतीं.’’

‘‘पहले यह उतरे तो… मैं तो इस में फंसी बैठी हूं.’’

विमला की स्थिति देख कर वे बहुत हंसे थे. फिर उन्होंने उस के ब्लाउज के पीछे के हुक बंद कर दिए थे. तब कहीं जा कर उस ने साड़ी पहनी थी. ब्लाउज के हुक बंद करने का उन का यह पहला अनुभव था और वे इतना रोमांचित हो गए कि विमला के ब्लाउज के हुक उन्होंने फिर से खोल दिए. वह कहती ही रह गई कि इतनी मुश्किल से साड़ी बांधी है और तुम ने सारी मेहनत बेकार कर दी. उस के बाद जब भी वह इस ब्लाउज को पहनती थी तो दोनों खूब हंसते थे.

मगर आज हंसने वाली बहुत दूर जा चुकी थी. हनीमून के दौरान पहना गया हर ब्लाउज उन्हें याद आने लगा. सफेद मोतियों से सजा काला ब्लाउज तो विमला के गोरे रंग पर बेहद खिलता था. जिस दिन विमला ने यह ब्लाउज पहना था उस की उंगलियां उस की गोरी पीठ पर ही फिसलती रहीं.

तब वह खीज उठी और बोली, ‘‘बस करो सहलाना गुदगुदी होती है.’’

‘‘अरे, अपनी बीवी की ही तो पीठ सहला रहा हूं.’’

‘‘मैं ने कहा न गुदगुदी होती है.’’

‘‘अरे, तुम्हारी तो पीठ में गुदगुदी हो रही है यहां तो सारे शरीर में गुदगुदी हो रही है.’’

‘‘बस करो अपनी बदमाशी.’’

विमला की खीज को देख कर उन्होंने चलतेचलते ही उसे अपनी बांहों के घेरे में कस कर कैद कर लिया था और वह नीला ब्लाउज तो विमला पर सब से ज्यादा सुंदर लगता था. नीली साड़ी के साथ वह नीला हार और नीली चूडि़यां भी पहन लेती थी. उस की चूडि़यों की खनक इंद्र को परेशान कर जाती थी. विमला जितनी बार भी हाथ उठाती चूडि़यां खनक उठती थीं और सड़क चलता आदमी मुड़ कर देखता कि यह आवाज कहां से आ रही है.

इंद्र चिढ़ाने के लिए विमला से बोले, ‘‘ये चूडि़यां क्या तुम ने राह चलतों को आकर्षित करने के लिए पहनी हैं? जिसे देखो वही मुड़ कर देखता है. यह मुझ से देखा नहीं जाता.’’

तब विमला खूब हंसी और फिर उस ने मजाकमजाक में सारी चूडि़यां उतार कर इंद्र के हवाले करते हुए कहा, ‘‘अब तुम ही

इन्हें संभालो.’’ तब एक पेड़ की छाया में बैठ कर इंद्र ने विमला की गोरी कलाइयों को फिर से चूडि़यों से भर दिया था.

इतनी प्यारी यादों के जाल में इंद्र इतना उलझ गए और 1-1 ब्लाउज को ऐसे सहलाने लगे मानो विमला ही लिपटी हो उन ब्लाउजों में.

इंद्र बड़ी मुश्किल से यादों के जाल से बाहर आए. फिर उन्होंने दूसरा बंडल उठाया. इस बंडल के अधिकतर ब्लाउज प्रिंटेड थे. उन्हें याद हो आया कि एक जमाने में सभी महिलाएं ऐसे ही प्रिंटेड ब्लाउज पहनती थीं. प्लेन साड़ी और प्रिंटेड ब्लाउज का फैशन कई वर्षों तक रहा था. उन्हें उस बंडल में वह काला प्रिंटेड ब्लाउज भी नजर आ गया जिसे खरीदने के चक्कर में उन में आपस में खूब वाक् युद्ध हुआ था.

विमला को एक शादी में जाना था और उस की तैयारी जोरशोर से चल रही थी.

एक दिन सुबह ही चेतावनी मिल गई थी, ‘‘देखो आज शाम को जल्दी वापस आना. मुझे बाजार जाना है. शीला की शादी में मुझे काली साड़ी पहननी है और उस के साथ का प्रिंटेड ब्लाउज खरीदना है.’’

‘‘तुम खुद जा कर ले आना.’’

‘‘नहीं तुम्हारे साथ ही जाना है. उस के साथ की मैचिंग ज्वैलरी भी खरीदनी है.’’

‘‘अच्छा कोशिश करूंगा.’’

‘‘कोशिश नहीं, तुम्हें जरूर आना होगा.’’

‘‘ओ.के. मैडम. आप का हुक्म सिरआंखों पर.’’ पर शाम होतेहोते इंद्र यह बात भूल गए और रात को जब घर लौटे तो चंडीरूपा विमला से उन का सामना हुआ. उन्हें अपनी कही बात याद आई तो तुरंत अपनी गलती को सुधार लेना चाहा. बोले, ‘‘अभी आधा घंटा है बाजार बंद होने में. जल्दी से चलो.’’

‘‘नहीं, मुझे नहीं जाना. आधे घंटे में भी कोई खरीदारी होती है?’’

‘‘अरे, तुम चलो तो.

तुम्हारे लिए मैं बाजार फिर से खुलवा लूंगा.’’

‘‘बस करो अपनी बातें. मुझे पता है आजकल तुम मुझे बिलकुल प्यार नहीं करते. सारा दिन काम और फिर दोस्त ही तुम्हारे लिए सब कुछ हैं आजकल.’’

‘‘यही बात मैं तुम्हारे लिए कहूं तो कैसा लगेगा? अब तो तुम्हारे बच्चे ही तुम्हारे लिए सब कुछ हैं. तुम मेरा ध्यान नहीं रखती हो.’’

‘‘शर्म नहीं आती है तुम्हें

ऐसा कहते हुए? बच्चे क्या सिर्फ मेरे हैं?’’

विमला की आंखों में आंसू देख कर वे संभल गए और बोले, ‘‘अब जल्दी चलो. झगड़ा बाद में कर लेंगे,’’ और फिर उन्होंने जबरदस्ती विमला को घसीट कर कार में बैठाया और कार स्टार्ट कर दी थी.

पहली ही दुकान में उन्हें इस काले प्रिंटेड ब्लाउज का कपड़ा मिल गया. फिर ज्वैलरी शौप में काले और सफेद मोतियों की मैचिंग ज्वैलरी भी मिल गई. फिर वे बाहर ही खाना खा कर घर लौटे.

इसी बंडल में उन्हें बिना बांहों का पीली बुंदकी वाला ब्लाउज भी नजर आया. जब विमला ने पहली बार बिना बांहों का ब्लाउज पहना था तो वे अचरज से उसे देखते रह गए थे. फिर दोनों तरह की प्रतिक्रियाएं उन्होंने महसूस की थीं. एक ओर तो वे विमला की गोल मांसल और गोरी बांहों को देखते रह गए, तो दूसरी ओर उन में ईर्ष्या की भावना भी पैदा हो गई. वे विमला को ले कर बहुत ही पजैसिव हो उठे थे इसलिए उन्होंने विमला से कहा, ‘‘मेरी एक बात मानोगी?’’

‘‘बोलो.’’

‘‘यह ब्लाउज पहन कर तुम बाहर मत जाना. लोगों की नजर लग जाएगी.’’

‘‘बेकार की बातें मत करो. मेरी सारी सहेलियां पहनती हैं. किसी को नजर नहीं लगती है. तुम अपनी सोच को जरा विशाल बनाओ. इतने संकुचित विचारों वाले मत बनो.’’

‘‘मुझे जो कहना था, कह दिया. आगे तुम्हारी मरजी,’’ कह कर वे बिलकुल खामोश हो गए.

विमला ने उन की बात रख ली और फिर कभी बिना बांहों वाला ब्लाउज नहीं पहना. उसी बंडल में 20 ब्लाउज ऐसे निकले जो बिना बांहों के थे. लगता था विमला ने एकसाथ ही इतने सारे ब्लाउज सिलवा लिए थे. पर अब देखने से पता चलता कि उन्हें कभी इस्तेमाल ही नहीं किया गया.

अब उन्होंने अगला बंडल उठाया. इस में तरहतरह के ब्लाउज थे. कुछ रेडीमेड ब्लाउज थे, कुछ डिजाइनर ब्लाउज थे, 1-2 ऊनी ब्लाउज और कुछ मखमल के ब्लाउज भी थे.

जब काले मखमल के ब्लाउज पर इंद्र ने हाथ फेरा तो वे बहुत भावुक हो उठे. जब विमला ने यह काला ब्लाउज पहना तो उन की नजर उस की गोरी पीठ और बांहों पर जम कर रह गई.

40 साल पार कर चुकी विमला भी उस नजर से असहज हो उठी और बोली, ‘‘कैसे देख रहे हो? क्या मुझे पहले कभी नहीं देखा?’’

‘‘देखा तो बहुत बार है पर इस मखमली ब्लाउज में तुम्हारी गोरी रंगत बहुत खिल रही है. मन कर रहा है कि देखता ही रहूं.’’

‘‘तो मना किस ने किया है,’’ वह इतरा कर बोली.

कुछ साडि़यां ब्लाउजों सहित हैंगरों पर लटकी थीं. एक पेंटिंग साड़ी इंद्र ने हैंगर सहित उतार ली. हलकी पीली साड़ी पर गहरे पीले रंग के बड़ेबड़े गुलाब बने थे. इस साड़ी को पहन कर 50 की उम्र में भी विमला उन्हें कमसिन नजर आ रही थी. उस की देहयष्टि इस उम्र में भी सुडौल थी. अपने शरीर का रखरखाव वह खूब करती थी. जरा सा मेकअप कर लेती तो अपनी असली उम्र से 10 साल छोटी लगती.

उधर इंद्र ने कभी अपने शरीर की ओर ध्यान नहीं दिया. उन की तोंद निकल आई थी. बाल तो 40 के बाद ही सफेद होने शुरू हो गए थे. बाल काले करने के लिए वे कभी राजी नहीं हुए. सफेद बाल और तोंद के कारण वे अपनी उम्र से 10 साल बड़े लगते थे.

तभी तो एक दिन जब उन के एक मित्र घर आए तो गजब हो गया. मित्र का स्वागत करने के लिए विमला ड्राइंगरूम में आई और हैलो कह कर चाय लाने अंदर चली गई. उस दिन विमला ने यही पीली साड़ी पहनी हुई थी. वह चाय की ट्रे रख कर फिर अंदर चली गई.

आधे घंटे बाद जब मित्र चलने लगे तो बोले, ‘‘यार तू ने भाभीजी से मिलवाया ही नहीं.’’

‘‘अरे अभी तो तुम्हें हैलो कह कर चाय रख कर गई थी.’’

‘‘वे भाभी थीं क्या? मैं ने समझा तुम्हारी बेटी है.’’

‘‘अब तुम चुप हो जाओ, नहीं तो मेरे से पिटोगे.’’

‘‘जो मैं ने देखा और महसूस किया, वही तो बोला. अब इस में बुरा मानने की क्या बात है? छोटी उम्र की लड़की से शादी करोगे तो बापबेटी ही तो नजर आओगे.’’

‘‘तुम मेरे मेहमान हो अन्यथा उठा कर बाहर फेंक देता.’’

दोनों की बातें सुन कर विमला भी ड्राइंगरूम में चली आई. फिर अपने पति के बचाव में बोली, ‘‘लगता है भाईसाहब का चश्मा बदलने वाला है. जा कर टैस्ट करवाइए. अब सफेद बालों और काले बालों से तो उम्र नहीं जानी जाती. आप मेरे पति का मजाक नहीं उड़ा सकते.’’

बात हंसी में उड़ा दी गई. पर हकीकत यही थी कि विमला अपनी उम्र से 10 साल छोटी और इंद्र अपनी उम्र से 10 साल बड़े लगते थे.

छोटे बेटे की शादी में सिलवाए ब्लाउज ने तो उन्हें हैरानी में ही डाल दिया. अधिकतर विमला अपनी खरीदारी स्वयं ही करती थी और स्वयं ही भुगतान भी करती थी. पर उस दिन दर्जी की दुकान से एक नौकर ब्लाउज ले कर आया और क्व800 की रसीद दे कर पैसे मांगने लगा. क्व800 एक ब्लाउज की सिलवाई देख कर वे चकित रह गए. उन्होंने रुपए तो नौकर को दे दिए पर विमला से सवाल किए बिना नहीं रह पाए.

‘‘तुम्हारे एक ब्लाउज की सिलवाई रू 800 है?’’

‘‘हां, है. पर तुम्हें इस से क्या मतलब? मेरे बेटे की शादी है, मेरा भी सजनेसंवरने का मन है.’’

‘‘इतना महंगा ब्लाउज पहन कर ही तुम लड़के की मां लगोगी?’’

‘‘आज तक तो कभी मेरे खर्च का हिसाब नहीं मांगा. आज भी चुप रहो भावी ससुरजी,’’ कह कर विमला जोर से हंस दी.

उन्हें तो उस ब्लाउज में कुछ विशेष नजर नहीं आया था पर विमला की सहेलियों के बीच वह ब्लाउज चर्चा का विषय रहा. उस ब्लाउज को देखते ही उन्हें विमला का वह सुंदर चेहरा याद हो आया, जो बेटे की शादी की खुशी में दमक रहा था.

फिर उन की नजर कुछ ऐसे ब्लाउजों पर भी पड़ी, जिन्हें देख कर लगता था कि उन्हें कभी पहना ही नहीं गया है. पता नहीं विमला को ब्लाउज सिलवाने का कितना शौक था. उन्हें लगा इतने ब्लाउज देख कर वे पागल हो जाएंगे. औरत का मनोविज्ञान समझना उन की समझ से परे था. पर अफसोस जिस विमला को ब्लाउज सिलवाने का इतना शौक था, वही विमला जीवन के आखिरी दिनों में ब्लाउज नहीं पहन सकती थी.

2 साल पहले उसे स्तन कैंसर हुआ और जब तक उस का इलाज शुरू होता वह पूरी बांह में फैल चुका था. उस से अपनी बांह भी ऊपर नहीं उठती थी. बीमारी और कीमोथेरैपी ने उस के गोरे रंग को भी झुलसा दिया था. 3 महीनों में ही वह अलविदा कह गई थी.

आज इंद्र उन्हीं ब्लाउजों के अंबार में बैठे यादों के सहारे कुछ जीवंत क्षणों को फिर से जीने का प्रयास कर रहे थे. पर कुछ समय बाद वे उठे और उन्होंने अपने नौकर को आवाज लगाई. कहा, ‘‘इस अलमारी के सारे कपड़ों को संदूकों में बंद कर के कार में रख दो.’’

सुबह होते ही इंद्र कार ले कर उस रेलवेलाइन जा पहुंचे और फिर दोनों संदूकों को मजदूरों के हवाले कर बहुत ही हलके मन से घर लौट आए कि विमला के कपड़ों से किसी की नग्नता ढक जाएगी.

नीली आंखों के गहरे रहस्य: भाग-4

बहुत शातिर दिमाग लड़की है, फोन पर कोई ऐसी बात नहीं की जिस से उस का कोई क्लू पकड़ा जाए. जानती है आजकल फोन पर कुछ ऐसावैसा बोल दिया तो रिकौर्डिंग के जरिए खेल खत्म हो सकता है. यह बात साधना सच कह रही थी.

‘‘तीसरे दिन सुबह ही उस का फोन आ गया,’’ सर, 2 दिन हो गए लेकिन आप ने मेरा काम नहीं किया.

‘‘मैं तुम से मिलना चाहता हूं.’’

‘‘किसलिए?’’

‘‘वह तो मैं तुम्हें मिलने पर ही बताऊंगा.’’

‘‘ठीक है. लेकिन मिलने की जगह मैं बताऊंगी. बस, एक गुजारिश है कि आप कुछ ऐसावैसा मत करना. नुकसान आप का ही होगा क्योंकि आप की अमानत…’’

‘‘नहीं, मैं कुछ नहीं करूंगा. और अकेला ही आऊंगा.’’

‘‘तो ठीक है, आज शाम 8 बजे रेलवेस्टेशन के पूछताछ काउंटर के पास हमारी मुलाकात होगी.’’

यह सुन कर मुझे और साधना को आश्चर्य हुआ कि भीड़भाड़ वाले रेलवेस्टेशन पर बुला रही है. हम तो सोच रहे थे फिल्मों की तरह किसी सुनसान जगह पर बुलाएगी. इतने चिंतित महौल में भी हम पतिपत्नी मुसकरा पड़े.

‘‘साधना, हम ने उसे बोल तो दिया है लेकिन उस से बात क्या करनी है?’’

‘‘कुछ नहीं, बिलकुल चुप रहना. सिर्फ उस की नीली आंखों को ताकना.’’

‘‘यहां जान पर बनी है और तुम्हें मजाक सूझ रहा है.’’

‘‘जैसा मैं कह रही हूं वैसा ही करना. वह बोले तो कहना, मीठी, मैं आखिरी बार तुम से आलिंगन करना चाहता हूं और उस वक्त धीरे से कहना, तुम मेरे साथ ऐसा क्यों कर रही हो. मैं ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है.’’

‘‘अगर वह आलिंगन के लिए राजी न हुई तो?’’

‘‘मैनेजर साहब, यह सब वह पैसे के लिए कर रही है तो उसे आलिंगन से परहेज क्यों होगा? और वैसे भी, वह आप के साथ…’’

‘‘प्लीज साधना, वह भयानक हादसा मुझे याद मत दिलाओ. मैं कांप जाता हूं.’’

‘‘आप अपनेआप को दोषी महसूस मत करो. वह सब क्षणिक आवेश में हुआ था,’’ उस ने मुझे सांत्वना दी.

‘‘सच साधना, तुम बहुत अच्छी हो. तुम्हारी जगह कोई और होती तो शायद मुझे कभी माफ नहीं करती,’’ उसे बांहों में भर कर मैं ने भीगे स्वर में कहा.

‘‘पतिपत्नी का रिश्ता इतना कमजोर नहीं होता कि एक झटके में टूट जाए. पूरे 28 साल गुजारे हैं आप के साथ. कौफीहाउस वाली घटना को देख कर लगा कि शायद आप भटक गए हो लेकिन जब आप की आंखों में देखा तो उस में सचाई नजर आई.’’

शाम के 6 बजे से ही घबराहट शुरू हो गई. रेलवेस्टेशन घर से आधे घंटे की दूरी पर था. ठीक 7 बजे मैं घर से रेलवेस्टेशन के लिए रवाना हो गया. स्कूटी पार्क कर के प्लेटफौर्म का टिकट ले कर यों ही स्टेशन पर टहलने लगा. चाय की स्टौल और बुक स्टौल दोनों ही मेरी पसंदीदा जगहें थीं. इंतजार के क्षणों में चाय के साथ पत्रिका पढ़ने का आनंद लेता था. लेकिन आज चाय और पत्रिका में भी मन नहीं लगा.

8 बजने में जैसे ही 10 मिनट शेष रह गए, मैं पूछताछ खिड़की के पास आ गया. वह ठीक 8 बजे पूछताछ खिड़की पर कुछ पूछताछ करती नजर आ गई. मेरी धड़कनें तेज हो गईं. माथे से पसीने की बूंदें टपकने लगीं.

जैसे ही उस ने अपनी नीली आंखों के इशारे से मुझे अपने पास आने को कहा तो मैं चाबी जैसे खिलौने की तरह उस की तरफ चल पड़ा और एकटक उस की नीली आंखों को ताकने लगा.

‘‘कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो? जो कहना है जल्दी कहो,’’ यह बात वह मोबाइल पर बोल रही थी लेकिन मुझे पता था मुझ से कह रही है.

उस की तरह मैं ने भी मोबाइल पर कहा, ‘‘मैं तुम से आलिंगन करना चाहता हूं.’’

‘‘ठीक है, ठीक है, जल्दी करो,’’ कहती हुई वह एक कोने में आ गई.

‘‘तुम मेरे साथ ऐसा क्यों कर रही हो? मैं ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?’’

‘‘मैं ने कुछ नहीं किया है. मैं बेकुसूर हूं,’’ कहते हुए सैकंड्स में अलग हो गई और तुरंत वहां से चली गई.

हम पतिपत्नी की नींद और भूख दोनों ही उड़ चुकी थी. मामला और पेचीदा होता जा रहा था.

‘‘साधना, अब क्या करें?’’ मैं ने बेचैन स्वर में पूछा.

‘‘आप कुछ मत करो. वह ही संपर्क करेगी क्योंकि जरूरत उस की है. रकम उसे चाहिए.’’

‘‘कहीं ऐसा न हो वह चिढ़ जाए और वीडियो व फोटो जोनल औफिस ले जाए.’’

‘‘वह ऐसा भूल कर भी नहीं करेगी. वह शतरंज की माहिर खिलाड़ी है और जानती है अगली चाल कब और कैसे चलनी है,’’ साधना ने यह कहा तो इतने तनाव में होने के बावजूद मैं हंस पड़ा और बोला, ‘‘लगता है अब तुम ने भी अपनी कमर कस ली है उस से पंगा लेने के लिए.’’

‘‘आप निर्दोष हो. वह जरूर पकड़ी जाएगी और उस का खेल खत्म हो जाएगा. चलो, अब चैन की नींद सोते हैं. 4-5 दिनों से तो ढंग से सो भी नहीं पाए हैं. घर भी अस्तव्यस्त पड़ा है. गंदे कपड़े का ढेर हो गया है.’’

सुबह साधना ने चाय का कप पकड़ाते हुए कहा, ‘‘आप चिंतामुक्त हो कर बैंक जाओ. मैं बाई के साथ मिल कर पूरा घर व्यवस्थित कर लूंगी क्योंकि इन दिनों मौके का फायदा उठा कर उस ने भी खूब लापरवाही बरती थी.’’ यह कह कर उस ने वाश्ंिग मशीन में पानी का पाइप लगा दिया और कपड़े इकट्ठा करने लगी.

मेरी पैंट और शर्ट धोने से पहले उन की जेबें वह जरूर चैक करती थी. जैसे ही उस ने पैंट की जेब टटोली तो उस में एक मुड़ातुड़ा विजिटिंग कार्ड निकला जिस पर लिखा था- नैना ब्यूटीपार्लर. साथ ही पता और मोबाइल नंबर भी था. दूसरी तरफ जल्दबाजी में पैंसिल से लिखा था- ‘सर, मैं बेकुसूर हूं. भरोसा कीजिए मुझ पर.’

यह विजिटिंग कार्ड मेरी जेब में कैसे आया? तभी ध्यान आया कल शाम को रेलवेस्टेशन पर आलिंगन करते वक्त मीठी ने रख दिया होगा यानी मीठी निर्दोष है. उस से यह सब कोई करा रहा है. विजिटिंग कार्ड पर लिखा मोबाइल नंबर मिलाया तो वह स्विचऔफ था.

‘‘साधना, हमें तुरंत ब्यूटीपार्लर चलना चाहिए. शायद, वहां कुछ पता चले.’’

‘‘ठीक है, मैं अभी तैयार होती हूं.’’

लेकिन तभी मेरा मोबाइल नंबर बज उठा, ‘‘सर, क्यों लेट कर रहे हैं आप? नुकसान आप का ही होगा. प्लीज, आप हमारा काम कर दीजिए. हम सबकुछ मिटा देंगे. आप भरोसा करें मुझ पर.’’

‘‘मीठी, मैं कैसे यकीन करूं कि तुम सबकुछ डिलीट कर दोगी. हो सकता है रकम मिलने के बाद भी भविष्य में तुम मुझे ब्लैकमेल कर के पैसे ऐंठती रहो?’’

‘‘मैं अपनी मां की कसम खा कर कहती हूं, काम हो जाने के बाद सबकुछ खत्म कर दूंगी.’’

‘‘मुझे तुम्हारी झूठी कसम पर भरोसा नहीं है. अगर तुम इतनी बड़ी रकम मांग रही हो तो मेरी भी एक शर्त है. अगर तुम उसे मानोगी, तब ही मैं तुम्हारे अकाउंट में पैसा डालूंगा.’’

‘‘क्या शर्त है?’’

‘‘फोन पर नहीं बता सकता, इसलिए तुम्हें मुझ से मिलना होगा.’’

‘‘लेकिन आप मेरी बताई हुई जगह पर ही मुझ से मिलने आएंगे. कब, कहां और कितने बजे आना है, यह मैं आप को मैसेज कर दूंगी. लेकिन अकेले आना और मोबाइल मत लाना और न ही कोई होशियारी दिखाना. अगर आप ने जरा भी स्मार्टगीरी दिखाई तो…आगे आप खुद ही समझदार हैं,’’ इस बार उस का स्वर चेतावनी से भरा था.

‘‘मीठी, जैसा तुम कहती हो वैसा ही होगा. मैं 2 लाख रुपए कैश ले कर भी आऊंगा. अगर तुम्हें मेरी शर्त मंजूर होगी तो वह 2 लाख रुपए तुम्हें एडवांस दे दूंगा और बाकी दूसरे दिन बैंक खुलते ही…’’

2 लाख रुपए का दाना उस के सामने डालने का आइडिया साधना ने इसलिए दिया था जिस से वह लालच के जाल में फंस जाए.

‘‘कहीं वह नकली हुए तो?’’

‘‘इस की जांच के लिए तुम अपने किसी भरोसेमंद इंसान को ला सकती हो लेकिन मैं अकेला ही आऊंगा. और हां, बैंक के समय पर नहीं आ सकता क्योंकि क्लोजिंग का महीना है, काम ज्यादा है. इसलिए सुबह 9 बजे के पहले या शाम 5 बजे के बाद.’’

‘‘ठीक है, मैं आप को बता दूंगी.’’

‘‘साधना, कहीं यह सीआईडीगीरी करतेकरते हम लोग ही न फंस जाएं?’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा.’’

‘‘कहीं, वह 2 लाख रुपए ले कर ही रफूचक्कर हो गई तो?’’

‘‘इस समय उस के दिमाग में 2 लाख रुपए नहीं, 25 लाख रुपए फीड हैं, इसलिए वह कोई गलत कदम नहीं उठाएगी.’’

शाम को उस का मैसेज आ गया. इस बार उस ने एक मंदिर में रात 9 बजे बुलाया था.

उस का बुलाना, मेरा जाना यह सब चूहेबिल्ली का खेल सा लगने लगा था. मैं मानसिक रूप से परेशान हो उठा था लेकिन साधना ने मुझे हौसला देते हुए कहा, ‘‘उस के सामने शर्त रखते वक्त यह बिलकुल भी मत दर्शाना कि आप अपनी बदनामी से डर रहे हो.’’

एक छोटे से कैरीबैग में रुपए रख  कर मैं मंदिर चला गया. मंदिर में  भीड़ ठीकठाक थी. मंदिर के बाहर चारों तरफ नजर दौड़ाई लेकिन वह कहीं नजर नहीं आई. मैं मंदिर के अंदर गया तो वहां एक कोने में आंखें मूंद कर प्रार्थना सी करती बैठी थी वह. वहां एक पुजारी भी बैठा था. इक्कादुक्का लोग वहां थे.

‘‘अकेले आए हो? आंखें बंद किए ही उस ने पूछा.’’

‘‘हां.’’

‘‘मोबाइल लाए हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘सामान लाए हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो फिर उस की झलक दिखाओ.’’

‘‘पहले मेरी शर्त सुनो, अगर मानोगी तभी सामान मिलेगा,’’ मैं ने साहसपूर्वक कहा.

‘‘क्या शर्त है?’’

‘‘तुम ने धोखे से मेरा वीडियो बनाया है, फोटो खींचे हैं. अब मैं एक छोटा सा वीडियो बनाना चाहता हूं, जिस में हम दोनों होंगे. उस में कुछ करना नहीं है, सिर्फ बोलना है.’’

‘‘यह कैसी बेहूदा शर्त है?’’ वह उत्तेजित स्वर में बोली.

‘‘अगर नहीं मंजूर है तो कोई बात नहीं, मैं अपना सामान वापस ले जाता हूं और तुम जो करना चाहो, करती रहना,’’ यह कहते वक्त मेरे पसीना आ गया. तीर निशाने पर लगा. वह नरम हो गई, ‘‘क्या बोलना है?’’

उस में तुम मुझ से कहोगी, ‘‘सर, मेरे ब्यूटीपार्लर के लिए 5 लाख रुपए का लोन पास करा दीजिए. और मैं कहूंगा, आप का लोन पास नहीं हो सकता क्योंकि आप की कोई प्रौपर्टी नहीं है जिस के आधार पर हम आप को लोन दें.’’

‘‘लेकिन सर, मेरे पास आप को रिश्वत देते हुए फोटो हैं जो मैं ने धोखे से खिंचवाए. साथ ही, एक वीडियो भी है. इन्हें आप के जोनल औफिस में ले जा कर आप के खिलाफ शिकायत कर दूंगी कि आप ने मेरा लोन पास करवाने के एवज में मुझ से रिश्वत की मांग की थी. आप की नौकरी तो जाएगी ही, साथ ही, कहीं मुंह दिखाने के काबिल भी न रहेंगे.

‘‘बस मीठी, तुम्हें इतना ही बोलना है.’’

‘‘ऐसा करने के पीछे आप का मकसद क्या है?’’

‘‘अगर शर्त मानने के बाद भी मैं तुरा सामान न दूं यानी तुम्हारे साथ धोखा करूं तो तुम तुरंत मेरी शिकायत कर देना और अगर तुम ने मेरे साथ धोखा किया यानी पूरा माल डकारने के बाद भी मुझे ब्लैकमेल किया तो मैं उस वीडियो के सहारे कानून का दरवाजा खटखटाऊंगा. फंसोगी तुम भी.’’

‘‘मुझे अपनी नौकरी और बदनामी का डर है और तुम्हें पैसे प्यारे हैं, इसलिए अगर हम दोनों ही पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता से काम करें तो फायदा हम दोनों का ही है. काम हो जाने के बाद हम दोनों सबकुछ डिलीट कर देंगे और फिर से अजनबी हो जाएंगे.’’

‘‘मुझे सोचने का समय दो.’’

‘‘नहीं, अब समय नहीं है. जल्दी जवाब दो हां या न में. अगर हां है तो यह सामान रखो पेशगी के तौर पर.’’

‘‘यहीं बैठो, मैं अभी आती हूं,’’ कह कर वह बाहर चली गई और वहां बैठा पुजारी मुझे घूरने लगा.

‘‘क्या बात है पंडितजी?’’

‘‘कुछ नहीं बच्चा. देख रहा हूं तुम इतनी देर से मंदिर में कर क्या रहे हो? अगर पूजा हो गई हो तो घर जाओ.’’

‘‘जब मन करेगा तब चला जाऊंगा,’’ मैं ने रूखा सा जवाब दिया. मन में आया कह दूं तू क्यों यहां चढ़े हुए फल, मिठाई, मेवा और रुपए पर अपनी गिद्ध दृष्टि लगाए बैठा है.

10 मिनट बाद मीठी आ गई और उसी स्थान पर पूर्व की तरह ध्यानमग्न हो कर बैठ गई. ‘‘मुझे आप की शर्त मंजूर है.’’

‘‘तो फिर कल सुबह किसी जगह पर वीडियो बना लेते हैं और फिर बैंक जाते ही तुम्हारा सामान ठिकाने पर पहुंचा दूंगा.’’

‘‘काम की जगह मैं ही तय करूंगी और आप को मैसेज कर दूंगी जो अभी सामान लाए हो वह सामने बैठे पुजारीजी को बैग सहित सौंप दो.’’

मैं ने आश्चर्य से उस पुजारी को देखा तो वह कुटिलता से मुसकरा पड़ा. उसे बैग सौंप कर जैसे ही मुड़ा, वह बोला, ‘‘शुद्धता की जांच होने के बाद जाइए.’’ मैं ठिठक कर रुक गया.

कुछ मिनटों में ही पुजारी का स्वर गूंजा, ‘‘भक्तगणों, सब शुद्ध मन से प्रार्थना करो. सब शुद्ध है.’’

यह सुन कर मैं चल पड़ा. घर पहुंच कर साधना से बोला, ‘‘उस ने मेरी शर्त मान ली है लेकिन मुझे लगता है कहीं वह घर जा कर अपना इरादा न बदल दे और 2 लाख रुपए हड़प कर जाए.’’

‘‘आप निश्ंिचत रहो. वह शर्त जरूर पूरी करेगी क्योंकि उसे 2 लाख रुपए का दाना मिल चुका है और बाकी 23 लाख रुपए उस की आंखों के सामने नाच रहे हैं. बस, उस के एसएमएस का इंतजार करो.’’

उस का एसएमएस आ गया. सुबह उस की तय की गई जगह पर वीडियो बना ली और उस को बाकी 23 लाख रुपए की रकम बैंक पहुंचते ही उस के आकउंट में डालने को कह कर मैं तुरंत अपनी पूर्व योजनानुसार टैक्सी से अपने जोनल औफिस, दिल्ली के लिए निकल पड़ा और अपना मोबाइल स्विच औफ कर लिया. औफिस पहुंचते ही जेडएम साहब से मिलने की स्लिप लगा दी. शीघ्र ही उन से मुलाकात हो गई.

‘‘सर, एक लड़की मुझे ब्लैकमेल कर रही है क्योंकि मैं ने उस का अयोग्य लोन पास नहीं किया है,’’ कहते हुए मैं ने वह वीडियो और फोटो दिखा दीं.

‘‘इन फोटो में तो आप क्लीयर नोट लेते हुए दिख रहे हो.’’

‘‘सर, यह लड़की बेहद शातिर दिमाग है, यह नोटों की गड्डियां मुझे देती हुई बोली थी, आप चैक कर के बता दीजिए, ये असली हैं या नकली? क्योंकि आप बैंक में हैं.’’

वीडियो देखते ही जेडएम साहब भड़क गए, ‘‘मिस्टर आनंद, आप बैंक में गरिमामय पद पर आसीन हैं और ऐसी आशोभनीय हरकत करते हुए आप को शर्म नहीं आई?’’

‘‘सर, जब विजिट के लिए मैं उस के घर गया तब उस ने कोल्डड्रिंक में कुछ ऐसा नशीला पदार्थ मिला दिया कि मुझे खुद ही होश नहीं रहा,’’ मैं ने सफाई देते हुए कहा.

‘‘फिर भी गलती आप की है. आप विजिट करने गए थे या कोल्डडिं्रक पीने?’’

‘‘सर, मानता हूं गलती मेरी है लेकिन जब हम कहीं जाते हैं तो सामने वाला चायकौफी या कोल्डडिं्रक तो हमारे लाख मना करने के बावजूद पिलाता है.

‘‘सर, इस प्रकरण में अगर मैं दोषी पाया जाऊं तो मैं सजा और बदनामी के लिए तैयार हूं लेकिन एक जिम्मेदार बैंक मैनेजर होने के नाते मैं ने उस का काम नहीं किया जो हमारी बैंक नीति के खिलाफ था. मैं ने भी पूरी सतर्कता बरतते हुए एक ऐसा वीडियो बना लिया है जिस से शायद मैं बेगुनाह साबित हो जाऊं.’’

वीडियो देख कर वे बोले, ‘‘अगर वह लड़की आप के खिलाफ शिकायत करती है तो शायद यह वीडियो आप के फेवर में काम करे,’’ फिर वे मुसकराते हुए बोले, ‘‘इस मामले में आप ने भी बड़ी होशियारी दिखाई है.’’

‘‘क्या करें सर, जब से इंटरनैट युग की शुरुआत हुई है तब से हर इंसान सजग और स्मार्ट हो गया है. बैंक मैनेजर की व्यथा कोई नहीं समझता. बैंक मैनेजर बैंक में तलवार की धार के नीचे काम करता है क्योंकि कोई भी जालसाजी, धोखाधड़ी, फ्रौड और डकैती जैसे संगीन अपराध होते हैं तो सब से पहले शक की सूई बैंक मैनेजर पर ही ठहरती है.’’

‘‘शायद आप ठीक कह रहे हैं क्योंकि मैं बैंक मैनेजर के पद पर भी रह चुका हूं. अगर वह लड़की आप के खिलाफ शिकायत करती है तो जांच कमेटी बैठेगी और वह ही फैसला करेगी कि दोषी कौन है आप या वह लड़की?’’

‘‘सर, वह लड़की शिकायत जरूर करेगी क्योंकि उस के अकाउंट में जब पैसा नहीं आएगा तब वह मुझे फोन करेगी और मैं पैसा देने से साफ इनकार कर दूंगा. ऐसे में वह तिलमिला कर मेरे खिलाफ शिकायत करेगी.’’

मैं शाम तक वापस घर आ गया. मोबाइल औन किया तो देखा उस की पचासों मिस्डकौल थीं. उस का फोन आ गया.

‘‘सर, क्या बात है? सुबह से आप का मोबाइल स्विचऔफ जा रहा है और सामान अभी तक ठिकाने पर भी नहीं पहुंचा है.’’

‘‘और न अब कभी पहुंचेगा. तुम्हें जो करना है, करो’’ मैं ने कड़क स्वर में कहा.

‘‘आप को अपनी शर्त याद है न. मैं आप को रातभर का समय दे रही हूं सोचने के लिए. सुबह बैंक खुलते ही मेरा काम कर देना, नहीं तो…’’

‘‘नहीं तो, क्या करोगी?’’

‘‘वह तो आप को भी पता है कि मैं क्या करूंगी. आप ने मेरे साथ धोखा किया है. अब आप अंजाम भुगतने के लिए तैयार हो जाइए,’’ वह जख्मी शेरनी की तरह दहाड़ी.

थोड़े दिनों बाद, जोनल औफिस से फोन आया, जांच कमेटी में मैं निर्दोष साबित हुआ था. मुझे गहरी साजिश के तहत फंसाया गया था. सब पूर्व नियोजित योजना के अनुसार रचा हुआ षडयंत्र था. वह वीडियो और फोटो भी उसी साजिश के हिस्सा थे. यह सब स्वयं मुख्य आरोपी ने स्वीकार किया था. मुख्य आरोपी के साथसाथ इस में संलग्न सभी सहयोगी अपराधियों को भी सजा हुई. वह वीडियो और फोटो सब डिलीट कर दिए गए.

मेरे द्वारा साहसिक कदम उठाने की भी सराहना हुई कि मैं ने अपनी नौकरी और बदनामी की परवा न करते हुए एक जिम्मेदार बैंक मैनेजर का फर्ज अदा किया और जोनल औफिस में जा कर सबकुछ साफसाफ बता दिया.

इन सब का मुख्य आरोपी कौन था मीठी, उस की मां या कोई अन्य? यह एक रहस्य था और मेरे लिए जिज्ञासा.

अचानक मीठी का फोन आ गया, ‘‘सर, मैं बेकुसूर हूं. प्लीज, आप मुझ से मिलिए. पूरी सचाई बता कर अपने दिल का बोझ हलका करना चाहती हूं.’’

मैं खुद को रोक न सका और उस से मिलने जेल गया. वह मुझे देख कर फूटफूट कर रो पड़ी.

‘‘सर, मुझे यकीन था कि आप मुझ से मिलने जरूर आएंगे. अब मैं आप को सचाई बताती हूं. पहले सचाई क्यों नहीं बताई, यह सब आप को सुनने के बाद पता चल जाएगा. हम आगरा के नहीं, बल्कि अलीगढ़ के पास एक गांव के हैं. हम 2 बहनें हैं. 2 साल पहले हमारे मातापिता का देहांत एक बस दुर्घटना में हो गया था. हमारे सौतेले चाचा पिता की जायदाद चाहते थे, इसलिए वे हम दोनों बहनों को मजबूर कर रहे थे कि हम अपना हिस्सा उन के नाम कर दें. लेकिन हम ने ऐसा नहीं किया और चुपचाप गांव छोड़ कर अलीगढ़ आ गए.

‘‘हम ने एक छोटा सा कमरा किराए पर ले लिया. बहन ने कालेज में दाखिला ले लिया और मैं एक ब्यूटीपार्लर में काम करने लगी.

‘‘चाचा को हमारे रहने का ठिकाना पता चल गया और वे हमें परेशान करने लगे. चाचा से हमें नजात दिलाई हमारे मकानमालिक के बेटे मोहित ने. वह हमारी बहुत मदद करता था और मुझे बहन मानता था.

‘‘हमारा गुजारा मुश्किल से होता था. ब्यूटीपार्लर वाली आंटी ने मुझे पैसा कमाने का शौर्टकट रास्ता बताया और मुझे 50 प्रतिशत का साझीदार बनाया. मुझे आप से बैंक में मिल कर ब्यूटीपार्लर खोलने के लिए लोन, मां की बीमारी, गहने गिरवी रखवाना, धोखे से वीडियो और फोटो की कहानी उन्हीं ने रची. एक बार को तो मेरे मन में भी लालच आ गया लेकिन मेरी अंतरात्मा इस के लिए राजी नहीं हुई. मैं ने साफ इनकार कर दिया तो उन्होंने मेरी बहन को गायब करवा दिया और कहा, ‘अगर तुम यह काम नहीं करोगी तो तुम्हारी बहन को बेच दूंगी.’

‘‘अपनी बहन की खातिर मैं ने यह सब किया.’’

‘‘मतलब ब्यूटीपार्लर वाली ने तुम से यह सब करवाया और तुम्हारी मां का रोल भी अदा किया.’’

‘‘नहीं सर, वे आंटी भी बेकुसूर थीं. उन से भी कोई यह सब करवा रहा था. आंटी को फोन पर ही सब दिशानिर्देश दिया जाता था क्योंकि ऐसा न करने पर उन की बेटी के ऊपर तेजाब डालने की धमकी दी गई थी. उन के नानुकुर करने पर एक बार तो तेजाब डालने की कोशिश भी की गई थी. आंटी की इकलौती बेटी थी. आंटी मजबूर थीं.’’

‘‘तो फिर कौन करवा रहा था? तुम्हारा सौतेला चाचा?’’

‘‘नहीं, चाचा भी नहीं.’’

‘‘तो फिर तुम खुद ही होगी. तुम्हारी नीली आंखों की गहराई में न जाने कितने रहस्य छिपे हैं?’’

‘‘सर, यह सारी साजिश मेरी छोटी बहन और उस के बेरोजगार बौयफ्रैंड की रची हुई थी. दोनों 25 लाख रुपए मिलने के बाद भाग कर शादी करना चाहते थे.’’

‘‘वह लड़का कौन था?’’

‘‘वह मोहित है, वह और मेरी छोटी बहन दोनों ही जेल में हैं.’’

‘‘तुम जेल से छूट कर कहां जाओगी? और क्या करोगी?’’

‘‘अब मैं यहां से छूट कर सीधे अपने गांव जाऊंगी और अपने हक के लिए लड़ूंगी. पिता की जायदाद बेच कर आधा हिस्सा बहन को दे दूंगी और अपने हिस्से की रकम से एक प्रशिक्षण केंद्र खोलूंगी जिस में जरूरतमंद गरीब औरतों और लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिलाई, कढ़ाई, बुनाई आदि कार्यों का निशुल्क प्रशिक्षण दिया जाएगा,’’ यह कहते वक्त उस की नीली आंखों में एक चमक सी आ गई थी.

कोई उचित रास्ता: स्वार्थी रज्जी क्या अपनी गृहस्थी संभाल पाई?

‘‘मैं बहुत परेशान हूं, सोम. कोई मुझ से प्यार नहीं करता. मैं कभी किसी का बुरा नहीं करती, फिर भी मेरे साथ सदा बुरा ही होता है. मैं किसी का कभी अनिष्ट नहीं चाहती, सदा अपने काम से काम रखती हूं, फिर भी समय आने पर कोई मेरा साथ नहीं देता. कोई मुझ से यह नहीं पूछता कि मुझे क्या चाहिए, मुझे कोई तकलीफ तो नहीं. मैं पूरा दिन उदास रहूं, तब चुप रहूं, तब भी मुझ से कोई नहीं पूछता कि मैं चुप क्यों हूं.’’

आज रज्जी अपनी हालत पर रो रही है तो जरा सा अच्छा भी लग रहा है मुझे. कुछ महसूस होगा तभी तो बदल पाएगी स्वयं को. अपने पांव में कांटा चुभेगा तभी तो किसी दूसरे का दर्द समझ में आएगा.

मेरी छोटी बहन रज्जी. बड़ी प्यारी, बड़ी लाड़ली. बचपन से आज तक लाड़प्यार में पलीबढ़ी. कभी किसी ने कुछ नहीं कहा, स्याह करे या सफेद करे. अकसर बेटी की गलती किसी और के सिर पर डाल कर मांबाप उसे बचा लिया करते थे. कभी शीशे का कीमती गिलास टूट जाता या अचार का मर्तबान, मां मुझे जिम्मेदार ठहरा कर सारा गुस्सा निकाल लिया करतीं. एक बार तो मैं 4 दिन से घर पर भी नहीं था, टूर पर गया था. पीछे रज्जी ने टेपरिकौर्डर तोड़ दिया. जैसे ही मैं वापस आया, रज्जी ने चीखनाचिल्लाना शुरू कर दिया. तब पहली बार मेरे पिता भी हैरान रह गए थे.

‘‘यह लड़का तो 4 दिन से घर पर भी नहीं था. अभी 2 घंटे पहले आया और मैं इसे अपने साथ ले गया. बेचारे का बैग भी बरामदे में पड़ा है. यह कब आया और कब इस ने टेपरिकौर्डर तोड़ा. 4 दिन से मैं ने तो तेरे टेपरिकौर्डर की आवाज तक नहीं सुनी. तू क्या इंतजार कर रही थी कि कब सोम आए और कब तू इस पर इलजाम लगाए.’’

बीए फाइनल में थी तब रज्जी. इतनी भी बच्ची नहीं थी कि सहीगलत का ज्ञान तक न हो. कोई नई बात नहीं थी यह मेरे लिए, फिर भी पहली बार पिता का सहारा सुखद लगा था. मुझे कोई सजा-ए-मौत नहीं मिल जाती, फिर भी सवाल सत्यअसत्य का था. बिना कुछ किए इतने साल मैं ने रज्जी की करनी की सजा भोगी थी. उस दफा जब पिताजी ने मेरी वकालत की तब आंखें भर आई थीं मेरी. हैरानपरेशान रह गए थे पिताजी.

‘‘यह बेटी को कैसे पाल रही हो, कृष्णा. कल क्या होगा इस का जब यह पराए घर जाएगी?’’

स्तब्ध रह गया था मैं. अकसर मां को बेटा अधिक प्रिय होता है लेकिन मेरी मां ने हाथ ही झाड़ दिए थे.

‘‘चले ही तो जाना है इसे पराए घर. क्यों कोस रहे हो?’’

‘‘सवाल कोसने का नहीं है. सवाल इस बात का है कि जराजरा सी बात का दोष किसी दूसरे पर डाल देना कहां तक उचित है. अगर कुछ टूटफूट गया भी है तो उस की जिम्मेदारी लेने में कैसा डर? यहां क्या फांसी का फंदा लटका है जिस में रज्जी को कोई लटका डालेगा. कोई गलती हो जाए तो उसे मानने की आदत होनी चाहिए इंसान में. किसी और में भी आक्रोश पनपता है जब उसे बिना बात अपमान सहना पड़ता है.’’

‘‘कोई बात नहीं. भाई है सोम रज्जी का. गाली सुन कर कमजोर नहीं हो जाएगा.’’

‘‘खबरदार, आइंदा ऐसा नहीं होगा. मेरा बच्चा तुम्हारी बेटी की वजह से बेइज्जती नहीं कराएगा.’’

पुरानी बात है यह. तब इसी बात पर हमारा परिवार बंट सा गया था. तेरी बच्ची, मेरा बच्चा. पिताजी देर तक आहत रहे थे. नाराज रहे थे मां पर. क्योंकि मां का लाड़प्यार रज्जी को पहले दरजे की स्वार्थी और ढीठ बना रहा था.

‘‘समझ में नहीं आता सुकेश भी क्यों मेरी जराजरा सी बात पर तुनके से रहते हैं.’’

रज्जी अपने पति की बेरुखी का गिला मुझ से कर रही है. वह इंसान जो बेहद ईमानदार और सच्चा है. मैं अकसर मां से कहता भी रहता हूं. रज्जी को 24 कैरेट सोना मिला है. शुद्ध पासा सोना. और यह भी सच है कि मेरी बहन उस इंसान के लायक ही नहीं है जो निरंतर उस पासे सोने में खोट मिलाने का असफल प्रयास करती रहती है. लगता है उस इंसान की हिम्मत अब जवाब दे गई होगी जो उस ने रज्जी को वापस हमारे घर भेज दिया है.

‘‘इतना झूठ और इतनी दोगली बातें मेरी समझ से भी परे हैं. हैरान हूं मैं कि यह लड़की इतना झूठ बोल कैसे लेती है. दम नहीं घुटता इस का.’’

शर्म आ रही थी मुझे. कैसे उस सज्जन पुरुष से यह कहूं कि मुझ से क्या आशा करते हो. मैं तो खुद अपनी मां और बहन की दोगली नीतियों का भुक्तभोगी हूं.

‘‘आप ने इसे कैसे पाला है? क्या जरा भी ईमानदारी नहीं रोपी इस में?’’

लगभग रोने जैसी हालत थी सुकेश की उस पल. मैं उसे समझाबुझा कर घर से बाहर ले गया था. उस का मन पढ़ना चाहता था, विचित्र मनोस्थिति हो गई थी.

‘‘मैं तो डिप्रैशन का शिकार होता जा रहा हूं, सोम. मैं समझ नहीं पा रहा हूं इस लड़की को. हंसताखेलता हमारा परिवार इस के आने से छिन्नभिन्न हो गया है. कैसी बातें सिखाई हैं आप ने इसे. आप इसे समझाबुझा कर जरा सी तो इंसानियत सिखाइए. आप इसे सुधारने की कोशिश कीजिए वरना ऐसा न हो कि एक दिन मैं इस की जान ले लूं या अपनी…’’

सांस मेरी भी तो घुटती रही है आज तक. मेरी बहन है रज्जी. जब अपने खून की वजह से मैं सदा हैरानपरेशान रहा हूं तो सुकेश तो अलग खून है. अलग परवरिश. उस के लिए तो रज्जी एक सजा के सिवा और क्या होगी. हर साल राखी बांध कर रज्जी बहन होने की रस्म अदा करती रही है मगर मैं आज तक समझ नहीं पाया कि जरूरत पड़ने पर मैं इस लड़की की कैसे रक्षा कर पाऊंगा और इस ने मेरे सुख की कितनी कामना की होगी.

मेरी मां का वह मोह है जिस के चलते उन्हें रज्जी की बड़ी से बड़ी गलती भी कभी नजर नहीं आती. मेरे पिता मेरी मां को सही दिशा में लातेलाते हार गए और जिस पल उन्होंने अंतिम सांस ली थी उस पल मेरे कंधों पर इन दोनों की जिम्मेदारी डालतेडालते नजरों में एक असहाय भाव था, वही भाव जो सदा उन के होंठों पर भी रहा था कि पता नहीं कैसे तुम इन दोनों को सह पाओगे.

‘‘तू फिकर मत कर रज्जी, मैं मरी नहीं हूं अभी. सुकेश और उस के घर वालों को छठी का दूध न याद करा दिया तो मेरा नाम नहीं. रो मत बेटी.’’

स्तब्ध रह गया मैं. यह क्या कह रही हैं मां. रज्जी की भूलों पर परदा डाल कर सारा दोष सुकेश और उस के परिवार पर.

‘‘मेरी फूल जैसी बच्ची को रुला रहे हैं न वे लोग. उन की सात पुश्तों को न रुला दिया तो…’’

‘‘क्या करोगी तुम?’’ सहसा मैं ने सवाल किया.

चुप रह गई थीं मां. शायद इस धमकी के बाद उन्हें उम्मीद होगी कि मैं साथ चलने का आश्वासन दूंगा. मेरे सवाल की उन्हें आशा भी नहीं होगी.

‘‘और किस के पास जाओगी? क्या पुलिस में जा कर रिपोर्ट करोगी? क्या इलजाम लगाओगी सुकेश पर? यही कि वह अपनी पत्नी से ईमानदारी की आस रखता है. सच बोलने को कहता है और कहता है घर में राजनीति का खेल न खेले. रज्जी के सात खून भी माफ और सामने वाला सिर्फ इसलिए दोषी कि उस ने सांस जरा खुल कर ले ली थी या बात करते हुए उसे छींक आ गई थी.’’

मुंह खुला का खुला रह गया रज्जी और मां का.

‘‘जिस भंवर में आज रज्जी है उस की तैयारी तो तुम बचपन से कर रही हो. पिताजी इसी दिन से डर कर सदा तुम्हें समझाते रहे कि इसे इस तरह न पालो कि इस का भविष्य ही अंधकारमय हो जाए. मां, यह घर तुम्हारा है, यहां तुम्हारा राजपाट चल सकता है. तुम रज्जी को गलतसही जो चाहे सिखाओ मगर वह घर तुम्हारा नहीं है जहां रज्जी को सारी उम्र रहना है. इंसान भूखा रह कर जी सकता है, आधी रोटी से भी पेट भर सकता है मगर हर पल झूठ नहीं पचा सकता.

‘‘राजनीति एक गंदा खेल है जिस में कोई भी शरीफ आदमी जाना नहीं चाहता क्योंकि वह चैन से जीना चाहता है. इसी तरह सुकेश और उस का परिवार सीधासादा, साफसुथरा जीवन जीना चाहता है जिसे रज्जी ने राजनीति का अखाड़ा बना दिया है. जबजब गृहस्थी में दांवपेंच और झूठ का समावेश हुआ है तबतब घर उजड़ा है. रज्जी का घर बचाना चाहती हो तो इसे जलेबियां पकाना मत सिखाओ. गोलमोल बातें रिश्तों को सिर्फ उलझाती हैं.’’

मैं नहीं जानता कि मेरी बातों का असर था या अपना घर टूट जाने का डर, रज्जी स्वयं ही अपने घर वापस चली गई. रज्जी जैसा इंसान अपने अधिकार के प्रति बड़ा जागरूक होता है. पहले दरजे का स्वार्थी चरित्र जिस की नजर अपने अधिकार के साथसाथ दूसरे की चीज पर भी रहती है. सुकेश का फोन आया मेरे पास. पता चला रज्जी ने सब से माफी मांग ली है और भविष्य में कभी झूठ बोल कर घर में अशांति नहीं फैलाएगी, ऐसा वादा भी किया है. पता नहीं क्यों मुझे विश्वास नहीं हो रहा रज्जी पर. मेरी चाहत तो यही है कि मेरी बहन सदा सुखी रहे लेकिन भरोसा रत्ती भर भी नहीं है उस पर.

कुछ दिन आराम से बीत गए. सब शांत था, सब सुखी थे लेकिन दबी आग एक दिन विकराल रूप में सामने चली आएगी, यह किसी ने नहीं सोचा होगा, परंतु मुझे कुछकुछ अंदेशा अवश्य हो रहा था. पता चला सुकेश ने डिप्रैशन में कुछ खा लिया है. पतिपत्नी में फिर से कोई तनाव था. जब तक हम अस्पताल पहुंचते बहुत देर हो चुकी थी. सुकेश बेजान कफन में लिपटा सामने था.

आत्महत्या का केस था जिस वजह से पोस्टमार्टम जरूरी था. रज्जी ने विलाप करते हुए जो कहानी सब को सुनाई उस से तो सुकेश के मातापिता और ननद हक्केबक्के रह गए. रज्जी ने बताया कि उस की ननद चरित्रहीन है जिस की शरम में उस का पति जहर खा कर मर गया. बेटा तो गया ही गया बच्ची का मानसम्मान भी रज्जी ने धूल में मिला दिया. जीतेजी मर गया वह परिवार. मेरी मां ने भी दिल खोल कर रज्जी की ननद को कोसा.

शोक के साथसाथ बदहवास था सुकेश का परिवार. सत्य क्या होगा मैं समझ सकता हूं. बुरा हो मेरी मां का, मेरी बहन का जिन्हें झूठ बोलने से जरा भी डर नहीं लगता. मरने वाले की मिट्टी का इस से बड़ा अपमान, इस से बड़ा मजाक क्या होगा जिस की आत्महत्या का रंग उस की निर्दोष बहन के चेहरे पर कालिख बन कर पुत गया.

ऐसा क्या किया सुकेश ने? आत्महत्या क्यों की? मारना ही था तो रज्जी को मार डालता. सुकेश का दाहसंस्कार हुआ और उसी चिता में मेरा, मेरी मां और बहन के साथ जन्मजात रिश्ता भी जल कर राख हो गया. अच्छा नहीं किया रज्जी ने. अपना घर तो जलाया, अपनी ननद का भविष्य भी पाताल में धकेल दिया. श्मशान भूमि में खड़ा मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि कहां जाऊं? मेरा घर कहां है? क्या वह मेरा घर है जहां मेरी विधवा मां, विधवा बहन रहती है जिन के साथ हर किसी की सहानुभूति है या कहीं और जहां मैं अकेला रह कर चैन से जीना चाहता हूं?

सच्चा भय था मेरे पिता की आंख में जब उन की मृत्यु हुई थी. सच है, मैं इन दोनों के साथ नहीं जी सकता. नहीं रह पाऊंगा अब मैं इन दोनों के साथ. किसी के हंसतेखेलते परिवार से उन का जवान बेटा छीन कर उस के परिवार का तमाशा बना दिया, कौन सजा देगा इन दोनों को? किसी भी परिवार के अंदर की कहानी भला कानून कैसे जान सकता है जो इन्हें कोई सजा मिले. सजा तो मिलनी चाहिए इन्हें, किसी का सहारा छीना है न इन्होंने, अब इन का भी सहारा छिन जाए तो पता चले आग का लगना, घर का जलना किसे कहते हैं.

सुकेश की पीड़ा मेरी पीड़ा बन कर मेरा भीतरबाहर सब जला रही है. मैं उस से आंखें कैसे मिलाऊं? क्या होगा उस की बहन का, क्या होगा उस के मांबाप का?

औफिस के काम के बहाने मैं कितने ही दिन अपने घर नहीं गया. अपने अभिन्न मित्र के घर पर रहने लगा जो मेरी सारी की सारी समस्या समझता था. कुछ दिन बीत गए. मेरे घर हो कर आया था वह.

‘‘सुकेश के मातापिता का गुजारा तो उन की पैंशन से हो जाएगा लेकिन तुम्हारी मां का क्या होगा? अब तो रज्जी भी वापस आ गई है. सुकेश के घर वालों ने उसे वापस नहीं लिया. शहरभर में उन की बेटी की बदनामी हो रही है और तुम सचाई से मुंह छिपाए मेरे घर पर रह रहे हो?’’

‘‘सचाई क्या है, यह सारा शहर जानता है. सचाई तो वही है जो रज्जी ने सब को दिखाई है. मेरी मां जो कह रही हैं, दुनिया तो उसी को सच कह रही है. मैं किस सचाई से मुंह छिपाए बैठा हूं, क्या तुम नहीं जानते हो? सुकेश की बहन बदनाम हो गई मेरे परिवार की वजह से. मैं तो इस सचाई से नजरें नहीं मिला रहा. वह सीधीसादी सी मासूम लड़की सिर्फ इस दोष की सजा भोग रही है कि रज्जी उस की भाभी है. क्या कुसूर है उस का? सिर्फ यही कि वह सुकेश की बहन है.’’

‘‘एक बार दोनों परिवारों से मिलो तो, सोम. दोनों की सुनो तो सही.’’

‘‘अपने परिवार की तो कब से सुन रहा हूं. बचपन से मैं ने भी वही भोगा है जो सुकेश और उस का परिवार भोग रहा है. अपनी मां और अपनी बहन की नसनस जानता हूं मैं. सुकेश ने इतना बड़ा कदम क्यों उठा लिया, वह उस के परिवार से ज्यादा कौन जानता है? मेरी तो वे सूरत भी देखना नहीं चाहेंगे. तुम सुकेश के मित्र बन कर वहां जाओ, पता तो चले क्या हुआ. मेरा एक और काम कर दो, मेरे भाई.’’

मान गया वह. औफिस के बाद वह सुकेश के घर से होता आया. मेरी तरह वह भी बेहद बेचैन था. बोला, ‘‘रज्जी को तो राजनीति में होना चाहिए था, कहां आप लोगों ने उस की शादी कर दी.’’

सांस रोक कर मैं ने उस की बात सुनी. वह आगे बोला, ‘‘कुछ दिन से सब ठीक चल रहा था. बड़े प्यार से रज्जी ने सब के मन में जगह बना ली थी. सीधासादा परिवार उस की सारी आदतें भुला कर उस पर पूर्ण विश्वास करने लगा था. सुकेश की बहन का सारा गहना उस ने अपने लौकर में रखवा लिया था. सुकेश की मां ने भी अपनी सारी जमापूंजी बहू को यानी रज्जी को दे दी ताकि वह ठीक से संभाल सके.

‘‘कुछ दिन पहले उन्हें किसी शादी में जाना था. ननद, भाभी लौकर से गहने निकालने गईं. वापसी पर ननद किसी काम से अपने कालेज चली गई. कुछ विद्यार्थी एक्स्ट्रा क्लास के लिए आने वाले थे. लगभग 3 घंटे बाद जब वह घर आई तो हैरान रह गई, क्योंकि रज्जी ने घर वालों को बताया कि गहने उस के पास हैं ही नहीं. घर में बवाल उठा. सारा का सारा इलजाम उस की ननद पर कि वही सारे के सारे गहने समेट कर किसी के साथ भाग जाने वाली है. तनाव इतना बढ़ गया कि सुकेश ने कुछ खा लिया.’’

‘‘कालेज में प्राध्यापिका है वह. पढ़ीलिखी सुलझी हुई लड़की. उसे भला भागने की क्या जरूरत थी. भागना तो रज्जी को था सब समेट कर. कुछ ऐसा होगा, इस का अंदेशा था मुझे लेकिन सुकेश आत्महत्या कर लेगा, यह नहीं सोचा था. सुकेश रज्जी की वजह से डिप्रैशन में रहने लगा था कुछ समय से. सच पूछो तो इंसान डिप्रैशन में जाता ही तब है जब उस के अपने उस के साथ धोखा करते हैं या उसे समझने की कोशिश नहीं करते. बाहर वालों की गालियां भी खा कर इंसान इतना विचलित नहीं होता जितना अपनों की बोलियां उसे परेशान करती हैं. परिवार में एक स्वस्थ माहौल की जगह लागलपेट और हेराफेरी चले तो इंसान डिप्रैशन में ही तो जाएगा. ऐसा इंसान आखिर करेगा भी तो क्या?’’

‘‘अब क्या करेगा तू, सोम?’’

समझ नहीं पा रहा हूं, क्या करूं? पर इतना सच है कि मैं रज्जी और मां के साथ नहीं रह पाऊंगा. मेरा जीवन एक दोराहे पर आ कर रुक गया है. दोराहा भी नहीं कह सकता. एक चौराहा समझो. मां और रज्जी के साथ रहना भी नहीं चाहता, सुकेश का परिवार मेरी सूरत से भी नफरत करेगा, आत्महत्या को कायरता समझता हूं और चौथा रास्ता है घर से दूर का तबादला ले कर इन दोनों को ही पीठ दिखा दूं. क्या करूं? पीठ ही दिखाना ठीक रहेगा. लड़ नहीं सकता.

कुछ रिश्ते इस तरह के होते हैं जिन से लड़ा नहीं जा सकता, जिन से न हारा जाता है न ही जीतने में खुशी या संताप होता है. इन से दूर चला जाऊं तो क्या पता इन्हें सुकेश के मांबाप की पीड़ा का जरा सा एहसास हो. क्या करूं, मैं समझ नहीं पा रहा, कोई भी रास्ता साफसाफ नजर नहीं आता. क्या आप बताएंगे मुझे कोई उचित रास्ता?

नीली आंखों के गहरे रहस्य: भाग-3

मीठी मेरी बांहों में थी. उस ने कोई विरोध नहीं किया. मैं जैसे ही और आगे बढ़ने लगा तो उस ने रोक दिया, ‘‘प्लीज सर, आज नहीं, फिर कभी जब आप चाहें,’’ कहती हुई उस ने खुद को अलग कर लिया और मैं हड़बड़ा कर संभल गया.

‘‘अच्छा, अब मैं चलता हूं, दिल्ली पहुंचते ही अपनी मां की तबीयत के बारे में फोन पर जरूर बताती रहना. अगर तुम कहो तो मैं सुबह तुम्हारे साथ दिल्ली चलूं,’’ अपनापन और आत्मीयता दर्शाते हुए मैं ने कहा.

‘‘नहीं सर, मैं सबकुछ मैनेज कर लूंगी. एंजियोप्लास्टी के बाद मैं किसी तरह पैसों का जुगाड़ कर के गहने छुड़ा लूंगी. मैं नहीं चाहती कि मम्मी को गहनों के बारे में कुछ पता चले.’’

मैं उस के घर से निकला तो घर पहुंचतेपहुंचते 11 बज चुके थे. साधना हैरानपरेशान थी. मुझे देखते ही उस की सांस में सांस आई, ‘‘मेरी तो जान ही निकल गई थी और ऊपर से आप का मोबाइल स्विच औफ…’’

‘‘और फिर जमाना भी ठीक नहीं है,’’ उस के आगे कुछ और बोलने से पहले मैं ने कहा तो वह मुसकरा पड़ी.

‘‘हां, सच ही तो कहती हूं कि जमाना ठीक नहीं है. चलो, अब जल्दी से चेंज करो, मैं खाना गरम करती हूं,’’ कहती हुई वह रसोई में चली गई.

उस ने खाना लगा दिया. लेकिन मेरा मन खाने में नहीं, बल्कि उस नीली आंखों वाली में लगा था. आज कितना अच्छा मौका हाथ से फिसल गया. मुझे कोफ्त हुई. चलो, फिर कभी सही. उस ने औफर तो कर ही दिया है, सोच कर मन में गुदगुदी सी हो गई.

दूसरे दिन बैंक गया. मन खुशगवार था. शाम को ही उस का फोन आ गया, ‘‘सर, मम्मी की एंजियोप्लास्टी हो गई है. वे अब ठीक हैं. 2 दिन यहीं रहना पड़ेगा, तीसरे दिन आ जाएंगे.’’

इन 2 दिनों फोन पर हमारी नियमित बातें होती रहीं. ऐसा लगा जैसे हमारा परिचय पुराना है.

जब वे लोग अलीगढ़ वापस आए तो मैं उस की मां को देखने उस के घर गया. मां को देखने का तो मात्र बहाना था.

उस की मां ने मेरा आभार प्रकट किया, ‘‘आनंदजी, आप ने 3 लाख रुपए हमें वक्तजरूरत पर उधार दे कर बहुत बड़ा उपकार किया है. हम जल्दी से जल्दी आप के रुपए लौटा देंगे.’’

‘‘अरे नहींनहीं, इतनी भी कोई जल्दी नहीं है. जब व्यवस्था बन जाए तब दे देना,’’ मैं ने सांत्वना दी.

उस रोज पहली बार मैं ने उस के घर में चाय पी. दूसरे दिन भी उस से फोन पर हलकीफुलकी औपचारिक बातें हुईं.

तीसरे दिन सुबह ही उस का फोन आया, ‘‘सर, आज मैं बहुत खुश हूं.’’

‘‘क्या कोई लौटरी खुल गई है?’’ मैं ने चुटकी ली.

‘‘हां सर, हमारे समय की लौटरी खुल गई है.’’

‘‘साफसाफ बताओ, आखिर माजरा क्या है?’’

‘‘सर, फोन पर नहीं बता सकती. आज शाम 6 बजे आप मुझ से सैंटर पौइंट के कौफीहाउस में मिलो.’’

मुझे दाल में कुछ काला नजर आया, ‘‘घर पर क्यों नहीं?’’

‘‘सर, खबर ही कुछ ऐसी है. मम्मी की अभी एंजियोप्लास्टी हुई है. सुन कर वे खुशी बरदाश्त नहीं कर सकेंगी. मैं नहीं चाहती कि उन्हें कुछ भी तकलीफ हो.’’ उस का जवाब सुन कर मैं संतुष्ट हो गया.

बैंक की ड्यूटी करने के बाद मैं सीधे सैंटर पौइंट के कौफीहाउस पहुंच गया. वह मेरा इंतजार कर रही थी. खुशी उस के चेहरे से साफ झलक रही थी. सच में, जब इंसान अंदर से खुश होता है तो उस के चेहरे का नूर बढ़ जाता है. वह पहले से अधिक हसीन और जवान नजर आ रही थी. उसे देख कर लगा, शायद आज मेरी हसरत पूरी हो जाएगी.

‘‘सर, प्लीज बैठिए,’’ कहती हुई उस ने 2 कप कौफी का और्डर कर दिया.

‘‘क्या बात है मीठी, आज तो तुम कोयल की तरह चहक रही हो?’’ मैं ने शरारती लहजे में कहा.

‘‘आज खुशी ही ऐसी मिली है कि मैं कोयल की तरह चहक रही हूं और मोरनी की तरह नाच रही हूं.’’

‘‘बताओ तो सही. या यों ही चहकती रहोगी?’’

‘‘सर, कल पापा का फोन आया था.’’

‘‘क्या?’’ मैं अचानक चौंक पड़ा, ‘‘लेकिन उन्होंने तो तुम दोनों से रिश्ता ही खत्म कर लिया था.’’

‘‘हां, यह सच है लेकिन पापा मुझ से बहुत प्यार करते हैं. जब मैं पैदा हुई थी, उन की तरह मेरी भी नीली आंखें थीं. मम्मी को बताए बगैर हम बापबेटी फोन पर बात करते रहते थे. मैं ने उन्हें मम्मी की तबीयत के विषय में नहीं बताया था लेकिन कल उन्होंने बेचैनीभरे स्वर में पूछा, ‘मीठी, ममता कैसी है? सपने में मैं ने उसे बहुत तकलीफ में देखा है’.

‘‘मैं कुछ छिपा न सकी और उन्हें सबकुछ सचसच बता दिया. उन्होंने तुरंत अपने किसी भारतीय मित्र से कह कर मेरे अकाउंट में 3 लाख रुपए डलवा दिए और बोले, ‘मीठी, मैं तुम दोनों का गुनाहगार हूं, तुम से माफी मांगता हूं. मेरे और सेरेना के बीच कुछ अच्छा नहीं चल रहा. मुझे तुम दोनों की बहुत याद आती है. सेरेना से तलाक ले कर मैं तुरंत भारत आ जाऊंगा. फिर हम सब साथ रहेंगे पहले की तरह. मैं ने पैसा भी खूब कमा लिया है.’’

वह अपने पर्स में से नोटों की गड्डियां निकाल कर मुझे देती हुई बोली, ‘‘ये पूरे 3 लाख रुपए हैं. आप मेरे गहने ले आइए.’’

नोटों की गड्डियां मेरे हाथों में थीं. समस्या यह थी कि मैं इन्हें रखूं कहां? मुझे उलझन में देख कर वह बोली, ‘‘मैं काउंटर से एक कैरी बैग ले कर आती हूं.’’

उस के जाते ही मैं ने तुरंत नोटों की गड्डियों को अच्छी तरह उलटपलट कर देखा और खुद को आश्वस्त कर लिया कि वे असली ही हैं और पूरे 3 लाख हैं.

रुपए ले कर ज्वैलर के यहां जाने लगा तो सोचा, यहां से उस की दुकान दूर है, रात का समय है, कल लंचटाइम में उस को पैसा दे आऊंगा और गहने ले कर, बैंक के बाद शाम को मीठी के घर दे आऊंगा. पैसों के विषय में साधना से कह दूंगा कि एक परिचित के हैं. बैंक में जमा कराने आए थे लेकिन देरी की वजह से जमा न हो सके. कल जमा कर दूंगा.

घर पहुंचतेपहुंचते रात हो गई थी. साधना गुस्से में बैठी थी. मैं जानता था कि देर से आने की वजह से यह गुस्सा है. मैं ने उसे मनाने के उद्देश्य से कहा, ‘‘मानता हूं जमाना ठीक नहीं है लेकिन एक पार्टी के साथ मीटिंग में इतना व्यस्त हो गया कि तुम्हें फोन भी न कर सका.’’

‘‘आप की पार्टी तो बहुत खूबसूरत होती हैं.’’

‘‘तुम्हारे कहने का मतलब क्या है?’’ मैं थोड़ा सकपका गया.

‘‘ईमानदार बैंक मैनेजर साहब, मेरे कहने का मतलब यह है कि आप ने एक लड़की को लोन दिलाने के एवज में रिश्वत ली है.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है. मैं ने कोई रिश्वतविश्वत नहीं ली है.’’

‘‘तो फिर इस कैरीबैग में क्या है?’’

‘‘इस में तो एक परिचित के पैसे हैं. कल बैंक में जमा करने हैं. आज वे देर से आए थे.’’

‘‘अब आप एक झूठ छिपाने के लिए और झूठ मत बोलो. वह बेचारी तो आत्मनिर्भर बनने के लिए अपना ब्यूटीपार्लर खोलना चाहती थी, इसलिए आप के बैंक से लोन लेना चाहती थी. और आप ने उस का लोन पास करवाने के लिए रिश्वत ली. उस वक्त कहां सैर करने चले गए थे आप के गांधीवादी विचार?’’

‘‘तुम से किस ने कहा?’’

‘‘मैं ने खुद अपनी आंखों से देखा सैंटर पौइंट के कौफीहाउस में.’’

यह सुन कर मेरे होश उड़ गए. साधना गुस्से की वजह से सोफे पर लेट गई. उस ने खाना तो दूर, चायपानी तक को न पूछा. मैं सिर पकड़ कर बैठा था, आखिर साधना को खबर किस ने की? तभी व्हाट्सऐप पर एक वीडियो आया जिस में मेरी और मीठी की वही प्रणयदृश्य वाली क्लिपिंग थी जो उस के घर पर क्षणिक आवेश में हुआ था. अभी मैं यह देख ही रहा था कि व्हाट्सऐप पर वे फोटो भी आ गए जिन में मीठी मुझे नोटों की गड्डियां दे रही है.

मैं सन्न रह गया. तो यह सब करतूत मीठी की है. गुस्से में उसे फोन लगाने लगा लेकिन उस से पहले ही एक अंजान नंबर से फोन आया, ‘‘सर, आप ने व्हाट्सऐप पर वीडियो और फोटो तो देख लिए हैं. इन्हें डिलीट करने के लिए सिर्फ 25 लाख रुपए आप मेरे अकाउंट में डाल दीजिए. अपना अकाउंट नंबर आप को मैसेज कर दूंगी,’’ कह कर फोन काट दिया.

यह आवाज तो मीठी की नहीं थी लेकिन मुझे विश्वास था कि यह करतूत उसी की है. मुझे खुद पर गुस्सा आया. इतनी सावधानी, सतर्कता और चतुराई बरतने के बावजूद मैं उस फ्रौड लड़की के जाल में फंस गया. इधर, साधना की नजरों में भी गिर गया. ‘न घर का न घाट का’ जैसी स्थिति हो गई मेरी. मैं फूटफूट कर रो पड़ा.

रोता देख कर शायद साधना को मुझ पर तरस आ गया, आ कर बोली, ‘‘मैं कहती थी न, जमाना ठीक नहीं है. यह सुन कर आप हंसते थे लेकिन पता नहीं क्यों आप को इस तरह रोता देख कर मुझे ऐसा लग रहा है कि आप बेकुसूर हो, आप को फंसाया गया है. प्लीज, मुझे सबकुछ साफसाफ बताओ.’’

‘‘साधना, तुम्हें कैसे पता चला कि मैं सैंटर पौइंट के कौफीहाउस में हूं.’’

‘‘शाम को 4 बजे के लगभग एक लड़की का फोन आया था. उसी ने बताया और मुझे कौफीहाउस पहुंचने को कहा था. लेकिन मुझे आप पर पूरा भरोसा था कि आप ऐसा कर ही नहीं सकते, जरूर वह लड़की झूठ बोल रही है. फिर मन में लगा, कभीकभी जब हम किसी पर अपने से ज्यादा भरोसा करते हैं तो वही उस के भरोसे को तोड़ भी देता है. इसलिए सोचा, जाने में क्या हर्ज है?’’

‘‘साधना, मैं अपनी एक क्षणिक कमजोरी की वजह से बुरी तरह फंस गया हूं,’’ कहता हुआ उस से लिपट कर फफकफफक कर रो पड़ा. पहली बार बैंक में मीठी से मिलने से ले कर कौफीहाऊस तक के पूरे घटनाक्रम को मैं ने साफसाफ बता दिया.

‘‘अब वह चालाक लड़की मुझे ब्लैकमेल कर के 25 लाख रुपए अपने अकाउंट में डालने को कह रही है. उस के खिलाफ पुलिस में भी रिपोर्ट नहीं कर सकता क्योंकि उस के पास अंतरंग क्षणों का वीडियो और उस से नोटों की गड्डियां लेते हुए फोटो हैं. मैं क्या करूं, मेरा तो दिमाग ही काम नहीं कर रहा.’’

‘‘लगता है यह सब पूर्व नियोजित ढंग से रची हुई साजिश है जिस में वह लड़की अकेली नहीं, कोई और भी शामिल है,’’ पूरी कहानी सुनने के बाद साधना बोली.

‘‘हां, लग तो ऐसा ही रहा है लेकिन अब मैं क्या करूं? उसे फोन लगाता हूं तो स्विचऔफ जाता है.’’

‘‘आप कुछ मत करो, शांत बैठो.’’

‘‘तुम पागल हो गई हो? अगर उस के अकाउंट में पैसा न डाला तो वह वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो जाएंगे. वह सिरफिरी लड़की जोनल औफिस में मेरे खिलाफ शिकायत भी कर देगी क्योंकि उस के पास सुबूत हैं. नौकरी से तो हाथ धोना ही पड़ेगा, साथ ही जेल की हवा और बदनामी अलग. हमारी बेटी से शादी कौन करेगा? जब वह वीडियो  मेरी बेटी देखेगी तो मैं कहां मुंह छिपाऊंगा?’’ मैं रोंआसा हो उठा.

‘‘वह ऐसा कुछ नहीं करेगी. 25 लाख रुपए की रकम कोई मामूली नहीं होती. उस को आप की बदनामी से ज्यादा रकम प्यारी है. अकाउंट में पैसा न आने पर वह आप से संपर्क जरूर करेगी.’’

‘‘साधना, यह बहुत बड़ा रिस्क है.’’

‘‘रिस्क तो लेना ही पड़ेगा. मान लो उस के अकाउंट में पैसा डाल दिया और उस ने वह सबकुछ डिलीट न किया तो? और आगे भी ब्लैकमेल करती रही तब?’’

साधना बात तो ठीक कह रही थी. मैं ने बैंक से 2 दिनों की छुट्टी ले ली और सांस थामे मीठी के फोन का इंतजार करने लगा.

साधना की भविष्यवाणी सच साबित हुई. दूसरे दिन रात को उस का फोन आ गया, ‘‘सर, आप ने मेरा काम नहीं किया?’’

स्पीकर औन था. ‘‘मीठी, तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा क्यों किया?’’

‘‘सर, क्या कह रहे हैं आप? मैं ने धोखा किया है आप के साथ? यह तो आप सरासर झूठ बोल रहे हैं. आप ने ही तो मेरा लोन पास करवाने के लिए पैसे की मांग की थी और इस के लिए आप ने मुझे सैंटर पौइंट के कौफीहाऊस में बुलाया था और मैं ने आप को पैसा भी दे दिया लेकिन आप ने मेरा काम नहीं किया.’’

‘‘प्लीज मुझे 2 दिनों का समय दो,’’ कह कर मैं ने फोन काट दिया.

अधूरे प्यार की टीस: भाग 3-क्यों बिखर गई सीमा की गृहस्थी

कुछ देर बाद जब रवि ने उन के कमरे में कदम रखा तब राकेशजी के चेहरे पर तनाव के भाव साफ नजर आ रहे थे.

‘‘इतनी टेंशन में किसलिए नजर आ रहे हो, पापा?’’ रवि ने माथे में बल डाल कर सवाल पूछा.

‘‘तुम्हारी मम्मी का फोन आया था,’’ राकेशजी का स्वर नाराजगी से भरा था.

‘‘ऐसा क्या कह दिया उन्होंने जो आप इतने नाखुश दिख रहे हो?’’

‘‘मकान तुम्हारे नाम करने और मेरे अकाउंट में तुम्हारा नाम लिखवाने की बात कह रही थी.’’

‘‘क्या आप को उन के ये दोनों सुझाव पसंद नहीं आए हैं?’’

‘‘तुम्हारी मां का बात करने का ढंग कभी ठीक नहीं रहा, रवि.’’

‘‘पापा, मां ने मेरे साथ इन दोनों बातों की चर्चा चलने से पहले की थी. इस मामले में मैं आप को अपनी राय बताऊं?’’

‘‘बताओ.’’

‘‘पापा, अगर आप अपना मकान अंजु आंटी और नीरज को देना चाहते हैं तो मेरी तरफ से ऐसा कर सकते हैं. मैं अच्छाखासा कमा रहा हूं और मौम की भी यहां वापस लौटने में बिलकुल दिलचस्पी नहीं है.’’

‘‘क्या तुम को लगता है कि अंजु की इस मकान को लेने में कोई दिलचस्पी होगी?’’ कुछ देर खामोश रहने के बाद राकेशजी ने गंभीर लहजे में बेटे से सवाल किया.

‘‘क्यों नहीं होगी, डैड? इस वक्त हमारे मकान की कीमत 70-80 लाख तो होगी. इतनी बड़ी रकम मुफ्त में किसी को मिल रही हो तो कोई क्यों छोड़ेगा?’’

‘‘मुझे यह और समझा दो कि मैं इतनी बड़ी रकम मुफ्त में अंजु को क्यों दूं?’’

‘‘पापा, आप मुझे अब बच्चा मत समझो. अपनी मिस्टे्रस को कोई इनसान क्यों गिफ्ट और कैश आदि देता है.’’

‘‘क्यों देता है?’’

‘‘रिलेशनशिप को बनाए रखने के लिए, डैड. अगर वह ऐसा न करे तो क्या उस की मिस्टे्रस उसे छोड़ क र किसी दूसरे की नहीं हो जाएगी.’’

‘‘अंजु मेरी मिस्टे्रस कभी नहीं रही है, रवि,’’ राकेशजी ने गहरी सांस छोड़ कर जवाब दिया, ‘‘पर इस तथ्य को तुम मांबेटा कभी सच नहीं मानोगे. मकान उस के नाम करने की बात उठा कर मैं उसे अपमानित करने की नासमझी कभी नहीं दिखाऊंगा. नीरज की पढ़ाई पर मैं ने जो खर्च किया, अब नौकरी लगने के बाद वह उस कर्जे को चुकाने की बात दसियों बार मुझ से कह…’’

‘‘पापा, मक्कार लोगों के ऐसे झूठे आश्वासनों को मुझे मत सुनाओ, प्लीज,’’ रवि ने उन्हें चिढ़े लहजे में टोक दिया, ‘‘अंजु आंटी बहुत चालाक और चरित्रहीन औरत हैं. उन्होंने आप को अपने रूपजाल में फंसा कर मम्मी, रिया और मुझ से दूर कर…’’

‘‘तुम आज मेरे मन में सालों से दबी कुछ बातें ध्यान से सुन लो, रवि,’’ इस बार राकेशजी ने उसे सख्त लहजे में टोक दिया, ‘‘मैं ने अपने परिवार के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारियां बड़ी ईमानदारी से पूरी की हैं पर ऐसा करने के बदले में तुम्हारी मां से मुझे हमेशा अपमान की पीड़ा और अवहेलना के जख्म ही मिले.

‘‘रिया और तुम भी अपनी मां के बहकावे में आ कर हमेशा मेरे खिलाफ रहे. तुम दोनों को भी उस ने अपनी तरह स्वार्थी और रूखा बना दिया. तुम कल्पना भी नहीं कर सकते कि तुम सब के गलत और अन्यायपूर्ण व्यवहार के चलते मैं ने रातरात भर जाग कर कितने आंसू बहाए हैं.’’

‘‘पापा, अंजु आंटी के साथ अपने अवैध प्रेम संबंध को सही ठहराने के लिए हमें गलत साबित करने की आप की कोशिश बिलकुल बेमानी है,’’ रवि का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा था.

‘‘मेरा हर एक शब्द सच है, रवि,’’ राकेशजी जज्बाती हो कर ऊंची आवाज में बोलने लगे, ‘‘तुम तीनों मतलबी इनसानों ने मुझे कभी अपना नहीं समझा. दूसरी तरफ अंजु और नीरज ने मेरे एहसानों का बदला मुझे हमेशा भरपूर मानसम्मान दे कर चुकाया है. इन दोनों ने मेरे दिल को बुरी तरह टूटने से…मुझे अवसाद का मरीज बनने से बचाए रखा.

‘‘जब तुम दोनों छोटे थे तब हजारों बार मैं ने तुम्हारी मां को तलाक देने की बात सोची होगी पर तुम दोनों बच्चों के हित को ध्यान में रख कर मैं अपनेआप को रातदिन की मानसिक यंत्रणा से सदा के लिए मुक्ति दिलाने वाला यह निर्णय कभी नहीं ले पाया.

‘‘आज मैं अपने अतीत पर नजर डालता हूं तो तुम्हारी क्रूर मां से तलाक न लेने का फैसला करने की पीड़ा बड़े जोर से मेरे मन को दुखाती है. तुम दोनों बच्चों के मोह में मुझे नहीं फंसना था…भविष्य में झांक कर मुझे तुम सब के स्वार्थीपन की झलक देख लेनी चाहिए थी…मुझे तलाक ले कर रातदिन के कलह, लड़ाईझगड़ों और तनाव से मुक्त हो जाना चाहिए था.

‘‘उस स्थिति में अंजु और नीरज की देखभाल करना मेरी सिर्फ जिम्मेदारी न रह कर मेरे जीवन में भरपूर खुशियां भरने का अहम कारण बन जाता. आज नीरज की आंखों में मुझे अपने लिए मानसम्मान के साथसाथ प्यार भी नजर आता. अंजु को वैधव्य की नीरसता और अकेलेपन से छुटकारा मिलता और वह मेरे जीवन में प्रेम की न जाने कितनी मिठास भर…’’

राकेशजी आगे नहीं बोल सके क्योंकि अचानक छाती में तेज दर्द उठने के कारण उन की सांसें उखड़ गई थीं.

रवि को यह अंदाजा लगाने में देर नहीं लगी कि उस के पिता को फिर से दिल का दौरा पड़ा था. वह डाक्टर को बुलाने के लिए कमरे से बाहर की तरफ भागता हुआ चला गया.

राकेशजी ने अपने दिल में दबी जो भी बातें अपने बेटे रवि से कही थीं, उन्हें बाहर गलियारे में दरवाजे के पास खड़ी अंजु ने भी सुना था. रवि को घबराए अंदाज में डाक्टर के कक्ष की तरफ जाते देख वह डरी सी राकेशजी के कमरे में प्रवेश कर गई.

राकेशजी के चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव देख कर वह रो पड़ी. उन्हें सांस लेने में कम कष्ट हो, इसलिए आगे बढ़ कर उन की छाती मसलने लगी थी.

‘‘सब ठीक हो जाएगा…आप हिम्मत रखो…अभी डाक्टर आ कर सब संभाल लेंगे…’’ अंजु रोंआसी आवाज में बारबार उन का हौसला बढ़ाने लगी.

राकेशजी ने अंजु का हाथ पकड़ कर अपने हाथों में ले लिया और अटकती आवाज में कठिनाई से बोले, ‘‘तुम्हारी और अपनी जिंदगी को खुशहाल बनाने से मैं जो चूक गया, उस का मुझे बहुत अफसोस है…नीरज का और अपना ध्यान रखना…अलविदा, माई ल…ल…’’

जिम्मेदारियों व उत्तरदायित्वों के समक्ष अपने दिल की खुशियों व मन की इच्छाओं की सदा बलि चढ़ाने वाले राकेशजी, अंजु के लिए अपने दिल का प्रेम दर्शाने वाला ‘लव’ शब्द इस पल भी अधूरा छोड़ कर इस दुनिया से सदा के लिए विदा हो गए थे.

हिंदुस्तान जिंदा है: दंगाइयों की कैसी थी मानसिकता

अब वह कहां जिंदा थी कि किसी का नाम बताती. बस, सड़क के किनारे एक नंगी लाश के रूप में पड़ी मिली थी. मीना के पति को बाजार में छुरा मारा गया था, मर्द को दंगाई नंगा नहीं करते क्योंकि दंगाई भी मर्द होते हैं.

मीना और मौलवी रशीद दोनों ने अपनीअपनी लाशें उठा कर उन का अंतिम संस्कार किया था. ये दोनों जिस शहर के थे वहां की फितरत में ही दंगा था और वह भी धर्म के नाम पर.

इस शहर के लोग पढ़ेलिखे जरूर थे पर नेताओं की भड़काऊ बातों को सुन कर सड़कों पर उतर आना, छतों से पत्थरों की वर्षा करना और फिर गोली चलाना इन की आदत हो गई थी. कोई तो था जो निरंतर इस दंगा कल्चर को बढ़ावा दे रहा था ताकि जनता बंटी रहे और उन का मकसद पूरा होता रहे.

मौलवी रशीद और मीना दोनों एकसाथ पढ़े थे. दोनों का बचपन भी साथसाथ ही गुजरा था. दोनों आपस में प्रेम भी करते थे, लेकिन इन की आपस में शादी इसलिए नहीं हुई कि दोनों का धर्म अलगअलग था और ऐसे कट्टर धार्मिक, सोच वाले शहर में एक हिंदू लड़की किसी मुसलमान लड़के से शादी कर ले तो शहर में हंगामा बरपा हो जाए.

मीना ने तो चाहा था कि वह रशीद से शादी कर ले लेकिन खुद रशीद ने यह कह कर मना कर दिया था कि यदि तुम चाहती हो कि 4-5 मुसलमान मरें तो मैं यह शादी करने के लिए तैयार हूं. और फिर मीना अपने दिल पर पत्थर रख कर बैठ गई थी.

इसी के बाद दोनों के जीवन की धारा बदल गई. रशीद ने अपने संप्रदाय में एक नेक लड़की से शादी कर अपनी गृहस्थी बसा ली तो मीना ने अपनी ही जाति के एक लड़के के साथ शादी कर ली. फिर तो दोनों एक ही शहर में रहते हुए एकदूसरे के लिए अजनबी बन गए.

इधर धर्म का बाजार सजता रहा, धर्म का व्यापार होता रहा और इस धर्म ने देश को 2 टुकड़ों में बांट दिया. इनसान के लिए धर्म एक ऐसा रास्ता है जिसे केवल मन में रखा जाए और खामोशी के साथ उस पर विश्वास करता चला जाए न कि उस के लिए बेबस औरतों को नंगा किया जाए, संपत्तियों को जलाया जाए और बेगुनाह लोगों की जानें ली जाएं.

मौलवी रशीद की कोई संतान नहीं थी पर मीना के 2 बच्चे थे. एक 3 साल का और दूसरा 3 मास का. पति के मरने के बाद मीना बिलकुल बेसहारा हो गई थी. अब उस शहर में उस का दर्द, उस की जरूरतों को समझने वाला मौलवी रशीद के अलावा दूसरा कोई भी नहीं था.

सांप्रदायिक दंगों का सिलसिला शहर से खत्म नहीं हो रहा था. कभी दिन का कर्फ्यू तो कभी रात का कर्फ्यू. इनसान तो क्या जानवर भी इस से तंग हो गए थे. मौलवी रशीद ने टेलीविजन खोला तो एक खबर आई कि प्रशासन ने शाम को कर्फ्यू में 2 घंटे की ढील दी है ताकि लोग घरों से बाहर निकल कर अपनी दैनिक जरूरतों की वस्तुओं को खरीद सकें. मौलवी रशीद को मीना के 3 माह के बच्चे की चिंता थी क्योंकि पति की मौत के बाद मीना की छाती का दूध सूख गया था. उस बच्चे के लिए उसे दूध लेना था और ले जा कर हिंदू इलाके में मीना के घर देना था.

रशीद जब घर से स्कूटर पर चला तो उसे थोड़ा डर सा लगा था. वह सआदत हसन मंटो (उर्दू का प्रसिद्ध कथाकार) तो था नहीं कि अपनी जेब में 2 टोपियां रखे और हिंदू महल्ले से गुजरते समय सिर पर गांधी टोपी तथा मुसलमान महल्ले से गुजरते समय गोल टोपी लगा ले.

खैर, रशीद किसी तरह हिम्मत कर के मीना के बच्चे के लिए दूध का पैकेट ले कर चला तो रास्ते भर लोगों की तरहतरह की बातें सुनता रहा.

किसी एक ने कहा, ‘‘इस का मीना के साथ चक्कर है. मीना को कोई हिंदू नहीं मिलता क्या?’’

दूसरे के मुंह से निकला, ‘‘लगता है इस का संपर्क अलकायदा से है. हिंदू इलाके में बम रखने जा रहा है. इस मौलवी का हिंदू महल्ले में आने का क्या मतलब?’’

दूसरे की कही बातें सुन कर तीसरे ने कहा, ‘‘यदि अलकायदा का नहीं तो इस का संबंध आई.एस.आई. से जरूर है. तभी तो इस की औरत को नंगा कर के गोली मारी गई.

रशीद ने मीना के घर पहुंच कर उसे आवाज लगाई और दूध का पैकेट दे कर वापस आ गया. एक सेना का अधिकारी, जो मीना के घर के सामने अपने जवानों के साथ ड्यूटी दे रहा था, उस ने रशीद को दूध देते देखा. मौलवी रशीद उसे देख कर डर के मारे थरथर कांपने लगा. वह आर्मी अफसर आगे बढ़ा और रशीद की पीठ को थपथपाते हुए बोला, ‘‘शाबाश.’’

रशीद जब अपने महल्ले में पहुंचा तो देखा कि लोग उस के घर को घेर कर खड़े थे. वह स्कूटर से उतरा तो महल्ले के मुसलमान लड़के उस की पिटाई करते हुए कहने लगे, ‘‘तू कौम का गद्दार है. एक हिंदू लड़की के घर गया था. तू देख नहीं रहा है कि वे हमें जिंदा जला रहे हैं? हमारी बहनबेटियों की इज्जत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. क्या उस महल्ले के हिंदू मर गए थे जो तू उस के बच्चे को दूध पिलाने गया था.’’

एक बूढ़े मौलाना ने कहा, ‘‘रशीद, तू महल्ला खाली कर फौरन यहां से चला जा नहीं तो तेरी वजह से इस महल्ले पर हिंदू कभी भी हमला कर सकते हैं. तेरा मीना के साथ यह अनैतिक संबंध हम को बरबाद कर देगा.’’

इस बीच पुलिस की एक जीप वहां आई और पुलिस वाले यह कह कर चले गए कि यहां तो मुसलमानों ने ही मुसलमान को मारा है, खतरे की कोई बात नहीं है. लगता है कोई पुरानी रंजिश होगी.

मार खाने के बाद रशीद अपने घर चला गया और बिस्तर पर लेट कर कराहने लगा. कुछ देर के बाद फोन की घंटी बजी. फोन मीना का था. वह कह रही थी, ‘‘रशीद, तुम्हारे जाने के बाद महल्ले के कुछ हिंदू लड़के मेरे घर में घुस आए थे और उन्होेंने दूध के साथ घर का सारा सामान सड़क पर फेंक दिया. अब मैं क्या करूं. तुम जब तक माहौल सामान्य नहीं हो जाता मेरे घर मत आना. बच्चे तो जैसेतैसे जी ही लेंगे.’’

रशीद फोन पर हूं हां कर के चुप हो गया क्योंकि उसे चोट बहुत लगी थी. वह लेटेलेटे सोच रहा था कि हिंदूमुसलिम फसाद में एक तरफ से कुछ भी नहीं होता है. दोनों तरफ से लड़ाई होती है और कौम के नेता इस जलती हुई आग पर घी डालते हैं. यदि हिंदू मुसलमान को मारता है तो वही उस को सड़क से उठाता भी है. अस्पताल भी वही ले जाता है, वही पुलिस की वर्दी पहन कर उस का रक्षक भी बनता है और वही जज की कुरसी पर बैठ कर इंसाफ भी करता है, कहीं तो कुछ है जो टूटता नहीं.

4 दिन बाद कुछ हालात संभले थे. इस दौरान समाचारपत्रों ने बहुत सी घटनाओं को अपनी सुर्खियां बनाया था. इन्हीं में एक खबर रशीद और मीना को ले कर छपी थी कि ‘हिंदू इलाके में एक मुसलमान अपनी प्रेमिका से मिलने आता है.’

ऐसे माहौल में समाचारपत्रों का काम है खबर बेचना. अगर सच्ची खबर न हो तो झूठी खबर ही सही, उन के अखबार की बिक्री बढ़नी चाहिए. अब तो राजनीतिक पार्टियां भी अपना अखबार निकाल रही हैं ताकि पार्टी की पालिसी के अनुसार समाचार को प्रकाशित किया जाए. आजादी के बाद हम कितने बदल गए हैं. अब नेताओं को देश की जगह अपनी पार्टी से प्रेम अधिक है.

शहर में कर्फ्यू समाप्त हो गया था. रशीद भी अब पूरी तरह से ठीक हो गया था. उस ने फैसला किया कि अब यह शहर उस के रहने के लायक नहीं रहा पर शहर छोड़ने से पहले वह मीना से मिलना चाहता था.

वह घर से निकला और सीधा मीना के घर पहुंचा. उसे घर के दरवाजे पर बुलाया और हमेशाहमेशा के लिए उसे एक नजर देख कर मुड़ना ही चाहता था कि कुछ लोग उस को चारों ओर से घेर कर खड़े हो गए.

रशीद ने मीना से सब्जी काटने वाला चाकू मांगा और सब को संबोधित कर के बोला, ‘‘आप लोगों को मुझे मारने की आवश्यकता नहीं है. मैं अपने पेट में चाकू मार कर आत्महत्या करने जा रहा हूं. अब यह शहर जीने लायक नहीं रह गया.’’

उस भीड़ ने रशीद को पकड़ लिया और एक सम्मिलित स्वर में आवाज आई, ‘‘भाई साहब, हम आप को मारने नहीं बल्कि देखने आए हैं. आप की पत्नी को हिंदुओं ने नंगा कर के गोली मारी थी और आप एक हिंदू विधवा के बच्चों के लिए दूध लाते रहे. अब आप जैसे इनसान को देखने के बाद यकीन हो गया है कि हिंदुस्तान जिंदा है और हमेशा जिंदा रहेगा.

दिशाएं और भी हैं

दोपहर से बारिश हो रही थी. रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. घर सुनसान था. कमरा खामोश था. कभीकभी नमिता को नितांत सन्नाटे में रहना भला लगता था. टीवी, रेडियो, डैक सब बंद रखना, अपने में ही खोए रहना अच्छा लगता था.

वह अपने खयालों में थी कि तभी उसे लगा कि साथ वाले कमरे में कुछ आहट हुई है. वह ध्यान से सुनने लगी, पर फिर कोई आवाज नहीं हुई. शायद उस के मन में अकेलेपन का भय होगा. कमरे में शाम का अंधेरा वर्षा के कारण कुछ अधिक घिर आया था.

नमिता खिड़की से निहार रही थी. इसी बीच उसे फिर लगा कि कमरे में आहट हुई है. अंधेरे में ही उस ने कमरे में नजर दौड़ाई. जब उस ने दरवाजा बंद किया था तब चारों ओर देख कर बंद किया था. कहीं सिटकिनी लगाना तो नहीं भूल गई.

जाते वक्त मां ने कहा था, ‘‘घर के खिड़कीदरवाजे बंद रखना, शाम ढलने के पहले घर लौट आना.’’

मां की इस हिदायत पर नमिता हंसी थी, ‘‘मैं छुईमुई बच्ची नहीं हूं मां. कानून पढ़ चुकी हूं और अब पीएचडी कर रही हूं. जूडोकराटे में भी पारंगत हूं. किसी भी बदमाश से 2-2 हाथ कर सकती हूं.’’

बावजूद इस के मां ने चेतावनी देते हुए कहा था, ‘‘मत भूल बेटी कि तू एक लड़की है और लड़की को ऊंचनीच और अपनी इज्जतआबरू के लिए डरना चाहिए.’’

‘‘मां तुम फिक्र मत करो. मैं पूरा एहतियात और खयाल रखूंगी,’’ वह बोली थी.

आज तो वह घर से बाहर निकली ही नहीं थी कि कोई घर में आ कर छिप गया हो. मां को गए अभी पूरा दिन भी नहीं गुजरा था. वह अभी इसी उधेड़बुन में थी कि उसे लगा जैसे कमरे में कोई चलफिर रहा है. हाथ बढ़ा कर नमिता ने स्विच औन किया. पर यह क्या लाइट नहीं थी. भय से उसे पसीना आ गया.

वह मोमबत्ती लेने के लिए उठी ही थी कि लाइट आ गई. बारिश फिर शुरू हो गई थी. वह सोचने लगी शायद बारिश के कारण आवाज हो रही थी. वह बेकार डर गई. अंधेरा भी डर का एक कारण है. अभी रात की शुरुआत थी. केवल 7 बजे थे.

नमिता को प्यास लग रही थी. किचन की लाइट औन कर जैसे ही फ्रिज की ओर बढ़ी कि उस की चीख निकल गई. सप्रयास वह इतना ही बोल पाई, ‘‘कौन हो तुम?’’

पुरुष आकृति के चेहरे पर नकाब था. उस ने बढ़ कर उस का मुंह अपनी हथेली से दबा दिया. बोला, ‘‘शोर करने की कोशिश मत करना वरना अंजाम ठीक नहीं होगा.’’

‘‘क्या चाहते हो? कौन हो तुम?’’

‘‘नासमझ लड़की कोई मनचला जवान पुरुष लड़की के पास क्यों आता है? तुझे मैं आतेजाते देखता था. मौका आज मिला है.’’

‘‘अपनी बकवास बंद करो… मैं इतनी कमजोर नहीं कि डर जाऊंगी. तुरंत निकल जाओ यहां से वरना मैं पुलिस को खबर करती हूं.’’

वह फोन की ओर बढ़ ही रही थी कि उस ने पीछे से उसे दबोच लिया. अचानक इस स्थिति से वह विवश हो गई. नकाबपोश ने उसे पलंग पर पटक दिया और कपड़े उतारने की कोशिश करने लगा.

‘‘वासना के कीड़े हर औरत को इतना कमजोर मत समझ. एक अकेली औरत अपने बल से एक अकेले पुरुष का सामना न कर पाए, यह संभव नहीं.’’ कहते हुए उस गुंडे की गिरफ्त से बचने के लिए नमिता अपना पूरा जोर लगा रही थी.

जैसे वह दरिंदा उस पर झुका नमिता ने उस की दोनों टांगों के मध्य अपने दोनों पैरों से जबरदस्त प्रहार किया. इस अप्रत्याशित प्रहार से वह तिलमिला उठा और दूर जा गिरा. वह उठ पाता उस से पहले ही नमिता भागी और कमरे का दरवाजा बंद कर ड्राइंगरूम में पहुंच गई. उस ने पुलिस को फोन कर दिया. तुरंत पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. दरवाजा खोला गया पर दरिंदा खिड़की की राह भागने में कामयाब हो गया. चारों ओर बिखरी चीजें. अस्तव्यस्त कमरे से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि नमिता को कितना संघर्ष करना पड़ा होगा.

खबर मिलते ही नमिता के मम्मीपापा रातोंरात टैक्सी कर के आ गए. नमिता मां से लिपट कर बहुत रोई.

मां सहमी बेटी को सहलाती रहीं. उस के पूरे शरीर में नीले निशान और खरोंचें थीं.

‘‘बेटा, पूरी घटना बता… डर छोड़… तू तो बहादुर बेटी है न.’’

‘‘हां मां, मैं ने उस दरिंदे को परास्त कर दिया,’’ कह नमिता ने पूरी घटना बयां कर दी.

सुबह का पेपर आ चुका था. जंगल की आग की तरह कल रात की घटना पड़ोसियों और परिचितों में फैल चुकी थी.

छात्रा के साथ बलात्कार की घटना छपी थी. मां को पढ़ कर सदमा लगा कि यह सब तो बेटी ने नहीं बताया.

मां को परेशान देख नमिता बोली, ‘‘मां, तुम परेशान क्यों होती हो… मेरे तन पर वह दरिंदा अभद्र हरकत करता उस के पहले ही मेरे अंदर की शक्ति ने उस पर विजय पा ली थी. मेरा विश्वास करो मां,’’ कह कर नमिता अंदर चली गई.

मां पापा से कह रही थीं, ‘‘घरघर में पढ़ी जा रही होगी हमारी बेटी के साथ हुई घटना की खबर… मुझे तो बहुत डर लग रहा है.’’

तभी फोन की घंटी बजने लगी. लोग अफसोस जताने के बहाने कुछ सुनना चाहते थे.

मांपापा बोले, ‘‘हमें अपनी बेटी की बहादुरी पर नाज है… पेपर झूठ बता रहे हैं.’’

शाम होतेहोते इंदौर से योगेशजी का फोन आ गया जहां नमिता की सगाई हुई थी. दिसंबर में उस की शादी होने जा रही थी.

‘‘पेपर में आप की बेटी के बारे में पढ़ा, अफसोस हुआ… मैं फिर आप से बात करता हूं.’’

योगेशजी के लहजे से भयभीत हो उठे नमिता के पिता विमल. पत्नी से बोले, ‘‘पेपर में छपी यह खबर हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी. योगेशजी का फोन था. उन के आसार अच्छे नजर नहीं आ रहे. कह रहे थे अभी आप परेशान होंगे, आप की और परेशानी बढ़ाना नहीं चाहता, बाद में बात करते हैं.’’

पुलिस और मीडिया वाले फिर घर के चक्कर लगा रहे थे, ‘‘हम नमिता का इंटरव्यू लेने आए हैं.’’

‘‘क्यों इतना कुछ छाप देने के बाद भी आप लोगों का जी नहीं भरा? लड़की ने अपनी सुरक्षा स्वयं कर ली, इतना काफी नहीं है?’’

‘‘नहीं सर, हम तो अपराधी को सजा दिलाना चाहते हैं… नमिता उस की पहचान बयां करती तो अच्छा था.’’

पापा बोले, ‘‘पुलिस में रिपोर्ट कर के तुम ने अच्छा नहीं किया बेटी. कितनी जलालत का सामना करना पड़ रहा है…’’

‘‘आप ने अन्याय के खिलाफ बोलने की आजादी दी है पापा,’’ नमिता उन्हें परेशान देख बोली, ‘‘मैं ने आप दोनों को सहीसही सारी घटना बता दी… मुझ पर भरोसा कीजिए.’’

‘‘नहीं बेटी, तू ने केस फाइल कर अच्छा नहीं किया. अब देख ही रही है उस का परिणाम… सब तरफ खबर फैल गई है… ऐसे हादसों को गुप्त रखने में ही भलाई होती है.’’

पापा की दलीलें सुन कर नमिता का सिर घूमने लगा, ‘‘यह क्या कह रहे हैं पापा? सत्यवीर, कर्मवीर पापा में कहां छिपी थी यह ओछी सोच जो मानमर्यादा के रूढ़ मानदंडों के लिए अन्याय सहने, छिपाने की बात कर रहे हैं? यही पापा कभी गर्व से कहा करते थे कि अपनी बेटियों को दहेज में दूंगा तो केवल शिक्षा, जो उन्हें आत्मनिर्भर बनाएगी. ये अपनी ऊंचनीच, अपने अधिकार और अन्याय के खिलाफ खुद ही निबटने में सक्षम होंगी. और आज जब मैं ने अपनी आत्मरक्षा अपने पूरे आत्मबल से की तो बजाय मेरी प्रशंसा के अन्याय को सहन करने, उसे बल देने की बात कह रहे हैं… मुझ पर गर्व करने वाले मातापिता अखबार में मेरी संघर्ष गाथा पढ़ कर यकायक संवेदनशून्य कैसे हो गए?’’

ग्वालियर मैडिकल कालेज में पढ़ने वाली नमिता की छोटी बहन रितिका ने भी पेपर में पढ़ा तो वह भी आ गई. अपनी दीदी से लिपट कर उसे धैर्य बंधाने लगी. दीदी के प्रति मांपापा के बदले व्यवहार से वह दुखी हुई. ऐसी उपेक्षा के बीच नमिता को बहन का आना अच्छा लगा.

मम्मीपापा जिस भय से भयभीत थे वह उन के सामने आ ही गया. फोन पर योगेशजी ने बड़ी ही नम्रता से नमिता के साथ अपने बेटे की सगाई तोड़ दी. मम्मी के ऊपर तो जैसे वज्रपात हुआ. वे फिर नमिता पर बरसीं, ‘‘अपनी बहादुरी का डंका पीट कर तुझे क्या मिला? सुरक्षित बच गई थी, चुप रह जाती तो आज ये दिन न देखने पड़ते. अच्छाभला रिश्ता टूट गया.’’

‘‘अच्छा रहा मां उन की ओछी मानसिकता पता चल गई. सोचो मां यही सब विवाह के बाद होता तब क्या वे लोग मुझ पर विश्वास करते जैसे अभी नहीं कर रहे? मैं उन लोगों को क्या दोष दूं, मेरे ही घर में जब सब के विश्वास को सांप सूंघ गया,’’ नमिता भरे स्वर में बोली.

अविश्वास के अंधेरे में घिरी थी नमिता

कि क्या होगा उस का भविष्य? अंगूठी उस के मंगेतर ने सगाई की बड़ी हसरत और स्नेह से पहनाई थी. वह छुअन, वह प्रतीति उसे स्नेह

में डुबोती रही थी. रोमांचित करती रही थी. क्याक्या सपने बुना करती थी वह. उस ने अपनी अनामिका को देखा जहां हीरे की अंगूठी चमक रही थी. वही अंगूठी अब चुभन पैदा करने लगी थी. रिश्ते क्या इतने कमजोर होते हैं, जो बेबुनियाद घटना से टूट जाएं?

इस छोटी सी घटना ने विश्वास के सारे भाव जड़ से उखाड़ दिए. नमिता सोच रही थी कि केवल प्रांजल के मांबाप की बात होती तो मानती, अपनेआप को अति आधुनिक, विशाल हृदय मानने वाला उस का मंगेतर कितन क्षुद्र निकला. एक बार मेरा सामना तो किया होता, मैं उस को सारी सचाई बताती.

नमिता के साहस की, उस की बहादुरी की, उस की सूझबूझ की तारीफ नहीं हुई. उस के इन गुणों को उस के मांबाप तक ने कोसा. 1 सप्ताह से घर से बाहर नहीं निकली. आज वह यूनिवर्सिटी जाएगी. देखना है उस के मित्रसहयोगी की क्या प्रतिक्रिया होती है? कैसा व्यवहार होता है उस के साथ?

तैयार हो कर नमिता जब अपने कमरे से निकली तो मां ने टोक दिया, ‘‘बेटा, तू तैयार हो कर कहां जा रही है? कम से कम कुछ दिन तो रुक जा, घटना पुरानी हो जाएगी तो लोग इतना ध्यान नहीं देंगे.’’

नमिता बौखला उठी, ‘‘कौन सी घटना? क्या हुआ है उस के साथ? बेवजह क्यों पड़ी रहतीं मेरे पीछे मां? तुम कोई भी मौका नहीं छोड़तीं मुझे लहूलुहान करने का… कहां गई तुम्हारी ममता?’’ फिर शांत होती हुई बोली, ‘‘मां, तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं, जो होगा मैं निबट लूंगी,’’ और फिर स्कूटी स्टार्ट कर यूनिवर्सिटी चली गई.

परम संतुष्ट भाव से उस ने फैसला किया कि वह पीएचडी के साथसाथ भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा की भी तैयारी करेगी. निष्ठा और दृढ़ इरादे से ही काम नहीं चलता, समाज से लड़ने के लिए, प्रतिष्ठा पाने के लिए, पावर का होना भी अति आवश्यक है.

जो वह ठान लेती उसे पा लेना उस के लिए कठिन नहीं होता है. उस का परिश्रम, उस की

दृढ़ इच्छाशक्ति रंग लाई. आज वह खुश थी अपनी जीत से. देश के समाचार पत्रों में उस का यशोगान था, ‘‘डा. नमिता शर्मा भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा में प्रथम रहीं.’’ मम्मीपापा ने उसे गले लगाना चाहा पर वे संकुचित हो गए. उन के बीच दूरियां घटी नहीं वरन बढ़ती गईं. जिस समय मां के स्नेह, धैर्य और सहारे की सख्त जरूरत थी तब उन के व्यंग्यबाण उसे छलनी करते रहे. कठिन समय में अपनों की प्रताड़ना वह भूल नहीं सकती.

स्त्री सुलभ गुणों को ले कर क्या करेगी वह अब. स्त्री सुलभ लज्जा, संकोच, सेवा,

ममता जैसे भावों से मुक्त हो जाना चाहती है, कठोर हो जाना चाहती है. उस के प्रिय जनों ने उस की अवहेलना की. आज उस की सफलता, उपलब्धियां, सम्मान देख उस के सहयोगी, उस के मातहत सहम जाते हैं. फिर भी वह संतुष्ट क्यों नहीं? शायद इसलिए कि उस की सफलता का जश्न मनाने उस के साथ कोई नहीं.

उसे याद है उस के मन में भी उमंग उठी थी, सपने संजोए थे. आम भारतीय नारी की तरह एक स्नेहमयी बेटी, बहू, पत्नी और मां बनना चाहती थी. वह अपना प्यार, अपनी ममता किसी पर लुटा देना चाहती थी. रात के अकेलेपन में पीड़ा से भरभरा कर कई बार रोई है. एक आधीअधूरी जिंदगी उस ने खुद वरण की है… उसे भरोसा ही नहीं रहा है रिश्तों पर.

ढेरों रिश्ते आ रहे थे. मांबाप विवाह के लिए जोर डाल रहे थे कि वह विवाह के लिए हां कर दे. वह नकार देती, ‘‘मां, इस विषय पर कभी बात न करना और फिर तुम देख ही रही हो मुझे फुरसत ही कहां है घरगृहस्थी के लिए… मैं ऐसे ही खुश हूं… विवाह करना जरूरी तो नहीं?’’

किस्सेकहानियों और सिनेमा की तर्ज पर वास्तविक जिंदगी में भी ऐसे संयोग आ सकते हैं. विश्वास करना पड़ता है. देशप्रदेश के दौरे नमिता के पद के आवश्यक सोपान थे. ऐसे ही एक कार्य से नमिता दिल्ली जा रही थी. अपनी सीट पर व्यवस्थित हो उस ने पत्रिका निकाली और टाइम पास करने लगी.

गाड़ी चलने में चंद क्षण ही शेष थे कि अचानक गहमागहमी का एहसास हुआ. नमिता की पास वाली सीट पर सामान रखने में एक सज्जन व्यस्त थे. नमिता ने पत्रिका को हटा कर अपने सहयात्री पर ध्यान केंद्रित किया, तो उस के आश्चर्य की सीमा न रही. वे प्रांजल थे. क्षणांश में उस ने निर्णय ले लिया कि सीट बदल लेगी.

विपरीत इस के प्रांजल खुशी से उछल पड़ा. बिना किसी भूमिका के बोला, ‘‘नमिता, मैं बरसों से ऐसे ही चमत्कार के लिए भटक रहा था.’’

नमिता किसी तरह उस से वार्त्तालाप नहीं करना चाहती थी, पर प्रांजल आप बीती कहने के लिए बेताब था.

प्रायश्चित का हावभाव लिए नमिता को कोई मौका दिए बिना ही बोलता चला गया, ‘‘तुम आईएएस में प्रथम आईं उस दिन चाहा था तुम्हें बधाई दूं, पर हिम्मत नहीं हुई. मैं तुम्हारा अपराधी था, कायर. मैं ने भी इस परीक्षा में बैठने का निर्णय लिया. तनमन से जुट गया. मन ही मन चाहा कि एक न एक दिन हम अवश्य मिलेंगे और आज तुम्हारे सामने हूं. मैं तुम्हारा अपराधी हूं नमिता, मैं कुछ भी नहीं कर सका.

‘‘मां ने पापा से कहा था कि मुझे इस तरह की दुस्साहसी बहू नहीं, मुझे तो सौम्य, सरल, सीधीसादी बहू चाहिए. मैं तुम से मिलने आना चाहता था पर मां ने जान देने की धमकी दी थी. बस मैं ने तभी निश्चित कर लिया था कि मैं तुम्हारे अलावा किसी से विवाह नहीं करूंगा. मां मेरी प्रतिज्ञा से परेशान हैं. उन्हें अपनी गलती का एहसास हो चुका है पर मैं तुम से मिलने की हिम्मत नहीं जुटा सका.’’

नमिता बुत बनी बैठी थी. मन में विचारों के बवंडर न जाने कहां उड़ाए लिए जा रहे थे. नमिता प्रांजल से कह देना चाहती थी कि उस का अंतर रेगिस्तान हो चुका है. प्रेम की धारा सूख चुकी है. अंतर की सौम्यता, सहजता, सरलता सब खो चुकी है. प्रांजल बात यहीं खत्म कर दे. फिर कभी मिलने की कोशिश न करे. वे अपने काम में सब कुछ भूल चुकी है.

प्रांजल की उंगली में आज भी सगाई की अंगूठी चमक रही थी. प्रांजल सब कुछ कह चुका था. नमिता खामोश ही रही. यात्रा का शेष समय खामोशी में कट गया.

सप्ताह के अंतराल बाद शाम जब नमिता कार्यालय से लौटी तो देखा कि प्रांजल के मम्मीपापा बैठक में बैठे हैं और लंबे अरसे बाद मां की उल्लासित आवाज सुनाई दी, ‘‘नमिता, यहां तो आ बेटा. देख कौन आया है.’’

‘लगता है उन दोनों ने मां के मन से कलुष धो दिया है, पिछले अपमान का,’ नमिता ने मन ही मन सोचा. वह जिन की शक्ल तक नहीं देखना चाहती थी, विवश सी उन लोगों के बीच आ खड़ी हुई.

प्रांजल की मां ने नमिता के दोनों हाथ स्नेह से अपनी हथेलियों में भर लिए और फिर भावुक होती हुई बोलीं, ‘‘मुझे माफ कर दो बेटी. मैं हीरे की पहचान नहीं कर पाई. मैं बेटे का दुखसंताप नहीं सह पा रही हूं. मेरी भूल, मेरे अहंकार का फल बेटा भोग रहा है. तुम्हारी अपराधी मैं हूं बेटा, मेरा बेटा नहीं… मुझे एक अवसर नहीं दोगी बेटी?’’

नमिता रुद्ररूप न दिखा सकी और फिर बिना कुछ बोले वहां से चली आई. उस दिन आधी रात बीत जाने पर भी वह जागती रही. सप्ताह में घटी घटना पर विचार करती रही. ट्रेन में प्रांजल की क्षमायाचना याद आती रही, ‘‘बोलो, बताओ मुझे क्षमा किया? मेरे परिवार ने तुम्हारा अपमान किया, मैं स्वयं को तुम्हारा अपराधी मानता हूं.’’

प्रांजल, यह अलाप अब नमिता को धोखा या बकवास नहीं लग रहा था. पर उस के मन में कई प्रश्न घुमड़ रहे थे. स्पष्ट पूछना चाहती थी कि अब कौन सा प्रयोग करना चाहते हो हमारी जिंदगी में… क्या उस समय इतना साहस नहीं था कि अपनी मां को समझा पाते? उस दिन वह भी तो उन की मां के सामने चुप ही रही. संस्कार की बेडि़यों ने उस की जबान पर ताला लगा दिया था. फिर आंसुओं की राह सारा विद्रोह न जाने कैसे बह गया.

एक दिन निकट बैठी मां बोलीं, ‘‘बेटा,

इतने दिन तुझे सोचने को समय दिया… योगेशजी के यहां से बारबार फोन आ रहे हैं. मैं क्या जवाब दूं?’’

एक सहज सी नजर मां पर डाल नमिता यह कहती हुई उठ खड़ी हुई, ‘‘तुम जैसा चाहो करो मां.’’

मां निहाल हो गईं. घर में फिर से खुशियों ने डेरा डाल दिया था. अगले ही दिन मांपापा विवाह की तिथि तय करने इंदौर चले गए.

नीली आंखों के गहरे रहस्य: भाग-2

शाम को भी उस का मोबाइल स्विच औफ था. 2 दिनों से उसे लगातार फोन करता रहा लेकिन उस का मोबाइल स्विच औफ ही मिला.

तीसरे दिन रविवार को उस का फोन आया. मन आशंकित हो उठा, न जाने कैसी खबर हो?

‘‘सर…’’

‘‘कमाल हो तुम भी, मैं लगातार 2 दिनों से तुम्हें फोन कर रहा हूं और तुम्हारा मोबाइल स्विच औफ जा रहा है,’’ मैं ने लगभग डांटते हुए, अधिकारपूर्वक उस से कहा लेकिन दूसरे ही क्षण मुझे आत्मग्लानि हुई कि मैं ने उस की मां की तबीयत के विषय में नहीं पूछा. धीरे से बोला, ‘‘सौरी मीठी, अब तुम्हारी मां की तबीयत कैसी है?’’

‘‘मम्मी ठीक नहीं हैं, सर. अस्पताल में दौड़धूप व उन की देखभाल में इतनी व्यस्त रही कि मोबाइल चार्ज करना ही भूल गई. और हमारा अपना है ही कौन जो मेरे फोन पर मेरी मम्मी का हाल पूछता. इस शहर में थोड़े समय पहले ही तो शिफ्ट हुई हैं हम मांबेटी.’’

‘‘क्या? तुम लोग अभी थोड़े वक्त पहले ही शिफ्ट हुई हो इस शहर में? और इतनी जल्दी खुद का मकान भी ले लिया जिस के आधार पर तुम बैंक से लोन लेना चाहती हो?’’ ऐसे नाजुक मौके पर भी मैं ने अपना बैंक वाला दिमाग दौड़ा लिया. मन में सोचा, मुझे बेवकूफ समझ रही है कल की लड़की. सोच रही है अपने नाम की तरह ही मीठी बातों में फंसा कर मुझ से लोन पास करवा लेगी.

‘‘सर, बात थोड़ी गंभीर है. फोन पर नहीं बता सकती. मुझे आप की मदद की सख्त जरूरत है. अगर आप मेरे घर आएंगे तो मेरी मम्मी से भी मिल लेंगे और मैं आप को अपनी बात खुल कर बता सकूंगी. मैं अपने घर का पता आप को अभी एसएमएस करती हूं.’’

जल्दी ही उस के पते का एसएमएस भी आ गया. उस का घर मेरे घर से काफी दूर था. एक बार को लगा, कहीं यह नीली आंखों वाली अपनी मां के साथ मिल कर मेरे खिलाफ कोई साजिश तो नहीं रच रही? नहीं, मैं नहीं जाऊंगा, आखिर मेरी उस से पहचान ही कितनी है? फिर अंदर से आवाज आई, इंसानियत के नाते बीमार को देखने जाना चाहिए. शायद वास्तव में उसे मेरी मदद की जरूरत हो? साधना को भी साथ ले जाऊंगा.

लेकिन दूसरे ही पल खयाल आया, अगर साधना को साथ ले गया तो मामला और पेचीदा हो सकता है. सुंदर और जवान लड़की को देख कर कहीं वह मेरे और उस के संबंधों को ले कर कोई गलत धारणा न बना ले और मुझ पर अधिक निगाह रखने लगे. हो सकता है मेरी जासूसी भी करे. आफत मेरी ही आएगी. इसलिए उसे साथ ले जाने का विचार त्याग  दिया और उस के घर जाने के लिए खुद को पूरी तरह से सतर्क व चौकन्ना कर लिया. साधना से कह दिया कि विजिट के लिए एक पार्टी के साथ जा रहा हूं.

उस का घर ढूंढ़ने में बहुत परेशानी हुई. काफी वक्त लग गया जबकि लगातार उस से मोबाइल पर घर की सिचुएशन पूछता रहा था. वह मुझे अपने घर के दरवाजे पर ही मिल गई. बेहद तनावग्रस्त, चिंतित और दुखी लगी. मुझे देख कर भरे स्वर में बोली, ‘‘थैंक्यू सर, प्लीज आइए,’’ कहती हुई मुझे अंदर ले गई जहां एक छोटे से कमरे में उस की बीमार मां लेटी थीं.

लगभग 50 वर्षीया एक महिला पलंग पर लेटी थीं, मुझे देख कर वे उठने का प्रयास करने लगीं. मैं ने रोक दिया, ‘‘प्लीज, आप लेटी रहिए.’’

‘‘मम्मी, आप बैंक मैनेजर आनंदजी हैं. अपने ब्यूटीपार्लर के लिए मैं लोन के सिलसिले में इन से मिली थी.’’

‘‘आनंदजी, प्लीज आप इस के ब्यूटीपार्लर के लिए लोन पास करवा दीजिए, जिस से यह आत्मनिर्भर हो जाए,’’ कमजोर स्वर में जब वे बोलीं तो मीठी ने उन्हें चुप कराते हुए कहा, ‘‘प्लीज मम्मी, आप बोलिए मत, मैं बात कर लूंगी, आनंदजी से.’’

‘‘सर, आप क्या लेंगे चाय या कौफी?’’ मीठी ने पूछा तो मैं ने कहा, ‘‘मीठी, मैं यहां चाय या कौफी पीने नहीं आया हूं. मैं तो तुम्हारी मां को देखने आया हूं. अब उन की तबीयत कैसी है? उन्हें हुआ क्या है?’’

मेरे यह पूछने पर वह असहज हो गई. फिर अपनी मां को दवाई खिलाती हुई बोली, ‘‘मम्मी, आप यह दवाई खा कर आराम करो. मैं आनंदजी को अपना घर दिखाती हूं. इसी के आधार पर हमें लोन मिलेगा.’’

मुझे उस का व्यवहार कुछ अजीब सा लगा. इस की मां की तबीयत खराब है और इसे लोन की पड़ी है.

वह मुझे ऊपर एक कमरे में ले गई जो बहुत ही कलात्मक ढंग से सजा था और वहां सिर्फ एक बैड पड़ा था. बैड के अलावा वहां बैठने के लिए कोई कुरसी या स्टूल न था. लिहाजा, मुझे सकुचाते हुए उसी बैड पर बैठना पड़ा.

‘‘सौरी सर, मैं मम्मी के सामने आप को कुछ बता नहीं सकती थी, इसलिए आप को ऊपर ले कर आई हूं. इस समय मैं ने उन्हें वह दवाई दे दी है जिस से उन्हें गहरी नींद आ जाएगी.’’

यह सुन कर मेरी घिग्घी बंध गई. आखिर, यह लड़की कहना क्या चाहती है?

‘‘सर, हम लोग अलीगढ़ के नहीं, बल्कि आगरा के हैं. आगरा में हमारा छोटा सा खुशहाल परिवार था. मैं मीठी, मेरी मम्मी ममता और पापा मनोज. पापा ताजमहल में गाइड थे. उन के सपने बहुत ऊंचे थे. वे विदेश जा कर खूब पैसा कमाना चाहते थे. उन की इस चाहत और सपने को पूरा किया अमेरिका की सेरेना ने जो ताजमहल घूमते वक्त अपने गाइड की नीली आंखों की गहराई में इस कदर डूब गई कि उन्हें अपना बना कर ही दम लिया. वह बहुत अमीर थी, पापा यही तो चाहते थे. मम्मी बहुत रोईंगिड़गिड़ाईं, मेरा हवाला दिया लेकिन पापा नहीं पिघले. सेरेना ने हम मांबोटी को 15 लाख रुपए दे दिए या यों कहो, हमारे पापा की कीमत हमें दे दी. वे 15 लाख रुपए पा कर भी हम गरीब थे क्योंकि हमारे पापा हमारे पास नहीं थे.

‘‘औपचारिकता पूरी हो जाने के बाद पापा उस के साथ अमेरिका चले गए हमेशा के लिए. हम मांबेटी ने आगरा शहर छोड़ने का मन बना लिया. जिस प्रेम के प्रतीक ताजमहल की वजह से हमारा घरसंसार चलता था, हम सब मुहब्बत से रहते थे, उसी की वजह से हमारा सबकुछ हम से छिन गया क्योंकि हमारी दुनिया थे हमारे पापा. उन्होंने हमें बेशक भुला दिया था लेकिन हम उन्हें नहीं भुला सके थे, इसलिए हम आगरा में रहना ही नहीं चाहते थे.

‘‘हम अलीगढ़ आ गए. बरसों पहले जब नानाजी की पोस्टिंग अलीगढ़ में थी तब मम्मी यहां रही थीं, इसलिए उन्होंने अलीगढ़ को चुना. हम किराए के मकान में रहने लगे. हमें लगा ये 15 लाख रुपए धीरेधीरे खत्म हो जाएंगे. इसलिए हम ने एक ब्रोकर की मदद से 10 लाख रुपए का यह छोटा सा घर ले लिया. डेढ़ लाख रुपए में घर का जरूरी सामान खरीद लिया, 3 लाख रुपए मेरी शादी के लिए मम्मी ने गहने खरीद लिए और बाकी 50 हजार रुपए बैंक में जमा कर दिए.

‘‘मां ने घर का खर्चा चलाने के लिए एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली और ट्यूशन भी पढ़ाने लगीं. मैं कालेज के बाद ब्यूटीपार्लर का कोर्स करने लगी. इस कार्य में मैं पारंगत हो गई, तो सोचा, क्यों न घर के नीचे वाले हिस्से में ब्यूटीपार्लर खोल लूं. कमाई अच्छी होगी, घर की घर में भी रहूंगी.

‘‘लेकिन मम्मी, पापा की बेवफाई सह न सकीं और दिल की मरीज हो गईं. उन्हें अटैक पड़ा तो एंजियोग्राफी से पता चला उन की 2 आर्टरीज ब्लौक हैं. डाक्टरों ने एंजियोप्लास्टी के लिए बोला है. इस का खर्चा लगभग 2-3 लाख रुपए तो होगा ही. बस, इसी वजह से परेशान हूं कि इतना पैसा इतनी जल्दी कैसे मैनेज करूं? यह सब मम्मी को बता कर परेशान नहीं करना चाहती.’’

मेरे दिमाग ने सचेत किया, इस के झांसे में मत आना. हो सकता है यह सब मनगढ़ंत कहानी हो. मैं बोला, ‘‘मीठी, इस मामले में मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं?’’

‘‘सर, मैं चाहती हूं अगर आप किसी भी तरह 3 लाख रुपए का इंतजाम करवा दें तो मैं आप का एहसान जिंदगीभर नहीं भूलूंगी. 50 हजार रुपए मैं अपने अकाउंट से निकाल लूंगी,’’ आशाभरी नजरों से उस ने मुझे ताकते हुए कहा.

लेकिन मैं अंदर से मजबूत था और उस की भावनाओं के जाल में फंसने वाला नहीं था. ‘‘मीठी, 3 लाख रुपए तो बहुत होते हैं. 10-20 हजार रुपए की रकम होती तो मैं अभी दे देता. 3 लाख रुपए तो मेरे खाते में भी नहीं है,’’ मैं ने झूठ बोला हालांकि मैं जानता था कि उसे पता है कि मैं झूठ बोल रहा हूं क्योंकि एक बैंक मैनेजर के खाते में 3 लाख रुपए नहीं होंगे, ऐसा नहीं हो सकता.

‘‘सर, मैं आप से पैसा नहीं, बल्कि सहयोग मांग रही हूं. आप मेरे गहने गिरवी रखवा कर पैसा दिलवा दें क्योंकि ऐसा काम कोई भरोसेमंद इंसान ही कर सकता है.’’

‘‘तुम मुझ पर किस आधार पर विश्वास कर रही हो? तुम तो सिर्फ एक बार ही मुझ से मिली हो.’’

‘‘उम्र भले ही कम हो मेरी लेकिन वक्त और हालात ने मुझे इतना परिपक्व कर दिया है कि इंसान की नीयत और फितरत को पहचानने में कभी गलती नहीं करती हूं,’’ आत्मविश्वास से भरे स्वर में वह बोली.

मेरी जिज्ञासा बढ़ी और मुसकरा कर बोला, ‘‘जरा मेरी नीयत और फितरत तो बताओ.’’

‘‘सर, आप परीक्षा ले रहे हैं मेरी. लेकिन मैं सच जरूर बताऊंगी.’’

मैं मन ही मन थोड़ा डर गया, पता नहीं मेरे बारे में क्या बताए? लेकिन मैं हंस कर बोला, ‘‘हांहां, बताओ, जरा मैं भी तो सुनूं मेरे बारे में क्या धारणा है तुम्हारी?’’

‘‘आप बहुत ही नेकदिल और ईमानदार इंसान हैं लेकिन मुझे ले कर आप थोड़ा आशंकित व भयभीत हैं. कहीं मैं आप के साथ फ्रौड या धोखा न कर दूं.’’

हालांकि वह सच कह रही थी लेकिन मैं ने कहा, ‘‘नहीं, मीठी तुम गलत बोल रही हो, ऐसा कुछ भी नहीं है.’’

‘‘नहीं सर, आप अपनी जगह ठीक हैं. 3 लाख रुपए की रकम कोई छोटीमोटी तो है नहीं जो किसी अजनबी को दे दी जाए. अगर आप की जगह मैं होती तो शायद मैं भी हिचकिचाती. लेकिन आप मेरे गहने ले जाइए और अपने किसी परिचित व विश्वसीनय सुनार से उन की जांच करवा लीजिए. और फिर पैसा दिलवा दीजिए. मैं मम्मी की जल्दी से जल्दी एंजियोप्लास्टी कराना चाहती हूं.’’

मैं ने मन में सोचा जब यह लड़की अपने कीमती गहने मुझे सौंप रही है, सिर्फ मुझ पर विश्वास कर के तो इंसानियत के नाते मुझे भी इस की मदद करनी चाहिए.

‘‘ठीक है, मेरा एक खास परिचित ज्वैलर है. वह यह काम भी करता है. मैं अभी उस से फोन पर बात कर के देखता हूं.’’

‘‘सर, अगर पैसा आज ही मिल जाए तो बेहतर होगा. कल सुबह ही टैक्सी कर के मम्मी को दिल्ली ले जाऊंगी.’’

मैं ने ज्वैलर से बात की तो उस ने हां कर दी. मैं ने मीठी से पूछा, ‘‘गहने घर पर हैं या लौकर में?’’

‘‘मैं ने कल ही गहने और कैश लौकर से निकाल लिए थे, पता नहीं कब जरूरत पड़ जाए,’’ कहती हुई वह एक बैग ले आई और सारे गहने दिखा दिए.

‘‘चलो जल्दी से तैयार हो जाओ, मैं ने ज्वैलर को टाइम दे दिया है.’’

‘‘मैं क्या करूंगी वहां जा कर? आप हो तो सही.’’

‘‘नहीं मीठी, तुम्हें चलना पड़ेगा. गहने कितने वजन के हैं? कितने रुपए के हैं. लिखापढ़ी, रसीद बहुतकुछ होता है. जल्दी चलो और अपनी मां को भी बता दो.’’

‘‘सर, मुझे आप पर पूरा भरोसा है, प्लीज आप जल्दी जाइए.’’

‘‘मीठी, मुझे यह ठीक नहीं लग रहा. उस ज्वैलर को इन गहनों के बारे में क्या बताऊंगा? तुम साथ होगी तो मुश्किल नहीं होगी.’’

‘‘कह देना, एक दूर की रिश्तेदार के हैं, बीमारी की वजह से आने में असमर्थ हैं,’’ कहती हुई वह मुसकरा पड़ी.

मन में आया कह दूं कि तुम दूर की नहीं, मेरे दिल की रिश्तेदार हो.

गहनों का बैग ले कर मैं तुरंत निकल पड़ा. इस दौरान साधना के पचासों फोन आए लेकिन मैं ने रिसीव नहीं किए. हर बार काट दिए. रास्ते में फिर फोन बजा. मुझे पता था कि उसी का होगा. सुबह का निकला और लगभग शाम हो चली, चिंता तो कर रही होगी, इसलिए स्कूटी साइड में रोक कर बात की.

‘‘अरे, सुबह से कहां हो आप? एक कप चाय पी कर निकले हो. फोन करना तो दूर, मेरा फोन भी काट रहे हो. कहीं किसी मुसीबत में तो नहीं हो,’’ वह घबराए और आशंकित स्वर में बोली.

‘‘नहीं साधना, मैं किसी मुसीबत में नहीं हूं. बस, हुआ यों, मैं जिस पार्टी के साथ था उस की मां की अचानक तबीयत खराब हो गई तो मानवता के नाते मैं उस के साथ अस्पताल में हूं. तुम परेशान मत हो,’’ बड़ी सफाई से झूठ बोलते हुए मैं ने उसे आश्वस्त कर दिया.

ज्वैलर्स की दुकान पर पहुंच कर जैसे ही गहनों का बैग खोला तो ज्वैलर शरारत से मुसकरा कर बोला, ‘‘बैंक मैनेजर साहब, किस का लौकर तोड़ दिया?’’

‘‘अरे यार, बात यह है कि…’’

‘‘जुए में बुरी तरह हार कर भाभी के गहने चुरा लाए हो. लेकिन याद रखो दोस्त, जैसे ही भाभी को पता चलेगा, वे तुम्हें रुई की तरह धुन देंगी,’’ मेरी बात पूरी होने से पहले ही वह फिर शरारत पर उतर आया था.

‘‘अरे भाई, यह मस्तमजाक छोड़ो. पहले मेरी बात सुनो. मेरे एक दूर के रिश्तेदार हैं जो बहुत बीमार हैं. उन्हें तुरंत दिल्ली के एक अस्पताल में ले जाना है, जहां उन का औपरेशन होना है. ये गहने उन्हीं के हैं. उन्हें पैसों की सख्त जरूरत है. इन की जल्दी से जांच कर लो कि असली हैं या नकली? अगर असली हैं तो इन्हें गिरवी रख कर कितना पैसा मिल जाएगा.’’

वह शीघ्र ही गहनों की शुद्धता की जांच करने लगा और बोला, ‘‘गुरु, शुद्ध खालिस सोने के हैं.’’

‘‘क्या कीमत होगी इन की?’’

उस ने जल्दी ही गहनों को तोल कर बताया, लगभग 3 लाख रुपए के हैं. मैं पूरे 3 लाख रुपए दे दूंगा क्योंकि किसी जरूरतमंद बीमार के लिए चाहिए और आप मेरे खास परिचित भी हो. उस ने गहनों की लिखापढ़ी, लिस्ट, रसीद सबकुछ देते हुए पूरे 3 लाख रुपए भी दे दिए.

रुपए ले कर निकला तो बाहर गहरा अंधेरा हो गया था. मैं ने स्कूटी मीठी के घर की तरफ दौड़ा दी. अपना मोबाइल भी स्विच औफ कर लिया क्योंकि मुझे पता था साधना बारबार फोन करेगी. घर जा कर कह दूंगा कि बैटरी डिस्चार्ज हो गई थी. उस के घर पहुंचतेपहुंचते रात हो चुकी थी.

वह दरवाजे पर खड़ी मेरा इंतजार कर रही थी. मुझे जल्दी से ऊपर कमरे में ले गई, ‘‘सर, काम बना?’’

‘‘हांहां, बन गया. पूरे 3 लाख रुपए हैं, गिन लो,’’ कहते हुए मैं ने उसे नोटों का बैग थमा दिया.

‘‘थैंक्यू सर,’’ कहती हुई वह भावावेश में मुझ से कस कर लिपट गई. मैं हक्काबक्का रह गया. यह अप्रत्याशित स्थिति मेरे लिए अकल्पनीय थी. इस के लिए मैं तैयार न था. लेकिन उस के जिस्म की गरमी, सांसों की तेज रफ्तार…मैं खुद पर काबू न रख सका और उसे बेतहाशा चूमने लगा.

 

अधूरे प्यार की टीस: भाग 2-क्यों बिखर गई सीमा की गृहस्थी

अलग होने के बाद भी सीमा ने लड़ाईझगड़े बंद नहीं किए थे. फिर उस ने मकान व दुकान के हिस्से कराने की रट लगा ली थी. राकेश अपने दोनों छोटे भाइयों के सामने सीमा की यह मांग रखने का साहस कभी अपने अंदर पैदा नहीं कर सके. इस कारण पतिपत्नी के बीच आएदिन खूब क्लेश होता था.

3 बार तो सीमा ने पुलिस भी बुला ली थी. जब उस का दिल करता वह लड़झगड़ कर मायके चली जाती थी. गुस्से से पागल हो कर वह मारपीट भी करने लगती थी. उन के बीच होने वाले लड़ाईझगड़े का मजा पूरी कालोनी लेती थी. राकेश को शर्म के मारे सिर झुका कर कालोनी में चलना पड़ता था.

फिर एक ऐसी घटना घटी जिस ने सीमा को रातदिन कलह करने का मजबूत बहाना उपलब्ध करा दिया.

उन की शादी के करीब 5 साल बाद राकेश का सब से पक्का दोस्त संजय सड़क दुर्घटना का शिकार बन इस दुनिया से असमय चला गया था. अपनी पत्नी अंजु, 3 साल के बेटे नीरज की देखभाल की जिम्मेदारी दम तोड़ने से पहले संजय ने राकेश के कंधों पर डाल दी थी.

राकेशजी ने अपने दोस्त के साथ किए वादे को उम्र भर निभाने का संकल्प मन ही मन कर लिया था. लेकिन सीमा को यह बिलकुल अच्छा नहीं लगता था कि वे अपने दोस्त की विधवा व उस के बेटे की देखभाल के लिए समय या पैसा खर्च करें. जब राकेश ने इस मामले में उस की नहीं सुनी तो सीमा ने अंजु व अपने पति के रिश्ते को बदनाम करना शुरू कर दिया था.

इस कारण राकेश के दिल में अपनी पत्नी के लिए बहुत ज्यादा नफरत बैठ गई थी. उन्होंने इस गलती के लिए सीमा को कभी माफ नहीं किया.

सीमा अपने बेटे व बेटी की नजरों में भी उन के पिता की छवि खराब करवाने में सफल रही थी. राकेश ने इन के लिए सबकुछ किया पर अपने परिवारजनों की नजरों में उन्हें कभी अपने लिए मानसम्मान व प्यार नहीं दिखा था.

अपनी जिंदगी के अहम फैसले उन के दोनों बच्चों ने कभी उन के साथ सलाह कर के नहीं लिए थे. जवान होने के बाद वे अपने पिता को अपनी मां की खुशियां छीनने वाला खलनायक मानने लगे थे. उन की ऐसी सोच बनाने में सीमा का उन्हें राकेश के खिलाफ लगातार भड़काना महत्त्वपूर्ण कारण रहा था.

उन की बेटी रिया ने अपना जीवनसाथी भी खुद ढूंढ़ा था. हीरो की तरह हमेशा सजासंवरा रहने वाला उस की पसंद का लड़का कपिल, राकेश को कभी नहीं जंचा.

कपिल के बारे में उन का अंदाजा सही निकला था. वह एक क्रूर स्वभाव वाला अहंकारी इनसान था. रिया अपनी विवाहित जिंदगी में खुश और सुखी नहीं थी. सीमा अपनी बेटी के ससुराल वालों को लगातार बहुतकुछ देने के बावजूद अपनी बेटी की खुशियां सुनिश्चित नहीं कर सकी थी.

शादी करने के लिए रवि ने भी अपनी पसंद की लड़की चुनी थी. उस ने विदेश में बस जाने का फैसला अपनी ससुराल वालों के कहने में आ कर किया था.

राकेश को इस बात से बहुत पीड़ा होती थी कि उन के बेटाबेटी ने कभी उन की भावनाओं को समझने की कोशिश नहीं की. वे अपनी मां के बहकावे में आ कर धीरेधीरे उन से दूर होते चले गए थे.

इन परिस्थितियों में अंजु और उस के बेटे के प्रति उन का झुकाव लगातार बढ़ता गया. उन के घर उन्हें मानसम्मान मिलता था. वहां उन्हें हमेशा यह महसूस होता कि उन दोनों को उन के सुखदुख की चिंता रहती है.

इस में कोई शक नहीं कि उन्होंने नीरज की इंजीनियरिंग की पढ़ाई का लगभग पूरा खर्च उठाया था. सीमा ने इस बात के पीछे कई बार कलहक्लेश किया पर उन्होंने उस के दबाव में आ कर इस जिम्मेदारी से हाथ नहीं खींचा था. वह अंजु से उन के मिलने पर रोक नहीं लगा सकी थी क्योंकि उसे कभी कोई गलत तरह का ठोस सुबूत इन के खिलाफ नहीं मिला था.

राकेशजी को पहला दिल का दौरा 3 साल पहले और दूसरा 5 दिन पहले पड़ा था. डाक्टरों ने पहले दौरे के बाद ही बाईपास सर्जरी करा लेने की सलाह दी थी. अब दूसरे दौरे के बाद आपरेशन न कराना उन की जान के लिए खतरनाक साबित होगा, ऐसी चेतावनी उन्होंने साफ शब्दों में राकेशजी को दे दी थी.

पिछले 5 दिनों में उन के अंदर जीने का उत्साह मर सा गया था. वे खुद को बहुत अकेला महसूस कर रहे थे. उन्हें बारबार लगता कि उन का सारा जीवन बेकार चला गया है.

मोबाइल फोन की घंटी बजी तो राकेशजी यादों की दुनिया से बाहर निकल आए थे. उन की पत्नी सीमा ने अमेरिका से फोन किया था.

‘‘क्या रवि ठीकठाक पहुंच गया है?’’ सीमा ने उन का हालचाल पूछने के बजाय अपने बेटे का हालचाल पूछा तो राकेशजी के होंठों पर उदास सी मुसकान उभर आई.

‘‘हां, वह बिलकुल ठीक है,’’ उन्होंने अपनी आवाज को सहज रखते हुए जवाब दिया.

‘‘डाक्टर तुम्हें कब छुट्टी देने की बात कह रहे हैं?’’

‘‘अभी पता नहीं कि छुट्टी कब तक मिलेगी. डाक्टर बाईपास सर्जरी कराने के लिए जोर डाल रहे हैं.’’

‘‘मैं तो अभी इंडिया नहीं आ सकती हूं. नन्हे रितेश की तबीयत ठीक नहीं चल रही है. तुम अपनी देखभाल के लिए एक नर्स का इंतजाम जरूर कर लेना.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘अपने अकाउंट में भी उस का नाम जुड़वा दो.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘मैं तो कहती हूं कि आपरेशन कराने के बाद तुम भी यहीं रहने आ जाओ. वहां अकेले कब तक अपनी बेकद्री कराते रहोगे?’’

‘‘तुम मेरी फिक्र न करो और अपना ध्यान रखो.’’

‘‘मेरी तुम ने आज तक किसी मामले में सुनी है, जो अब सुनोगे. वकील को जल्दी बुला लेना. रवि के यहां वापस लौटने से पहले दोनों काम हो जाने…’’

राकेशजी को अचानक अपनी पत्नी की आवाज को सुनना बहुत बड़ा बोझ लगने लगा तो उन्होंने झटके से संबंध काट कर फोन का स्विच औफ कर दिया. कल रात को अपनेआप से किया यह वादा उन्हें याद नहीं रहा कि वे अब अतीत को याद कर के अपने मन को परेशान व दुखी करना बंद कर देंगे.

‘इस औरत के कारण मेरी जिंदगी तबाह हो गई.’ यह एक वाक्य लगातार उन के दिमाग में गूंज कर उन की मानसिक शांति भंग किए जा रहा था.

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