युवाओं की सोच पर बनी मनोरंजक फिल्म ‘मुबारकां’

नो एंट्री, वेलकम, थैंक्यू और वेलकम बैक जैसी अलग मनोरंजक फिल्म बनाने वाले निर्देशक अनीस बज्मी एक बार फिर एक इमोशनल कामेडी फिल्म ‘मुबारकां’ लेकर आये हैं. फिल्म की कहानी बड़ी ही मनोरंजक तरीके से कही गयी है. इस फिल्म में अनिल कपूर और अर्जुन कपूर की जोड़ी खूब जमी है. जिसमें साथ दिया है पवन कुमार, रत्ना पाठक शाह, इलियाना डिक्रुज़, अथिया शेट्टी और नेहा शर्मा ने. फिल्म का क्लाइमेक्स कोई नया नहीं , पर निर्देशक ने इसे अच्छी तरह पर्दे पर उतारा है.

जैसा कि इंटरव्यू के दौरान अनिल कपूर ने कहा था कि एक अच्छा निर्देशक एक सामान्य कहानी को हिट बना सकता है और इसका प्रमाण इस फिल्म में मिला, जिसमें अभिनेता अर्जुन कपूर ने डबल रोल में काफी अच्छा अभिनय किया है. इसके अलावा अभिनेता अनिल कपूर अपने पुराने मज़े हुए अंदाज़ में शुरू से अंत तक हावी रहे और उन्होंने इमोशन से लेकर कामेडी और ट्रेजेडी सभी को अच्छी तरह निभाया है. फिल्म में कुछ जगहों पर अर्जुन कपूर और इलियाना की ओवर एक्टिंग भी दिखी, पर गाने और कहानी के तालमेल की वजह से उसे नज़रंदाज़ किया जा सकता है.

कहानी

एक पहाड़ी सफ़र की दुर्घटना में दो जुड़वां बच्चों करण वीर सिंह (अर्जुन कपूर) और चरण वीर सिंह (अर्जुन कपूर) के माता-पिता का देहांत हो जाता है. दोनों बच्चों की जिम्मेदारी करतार सिंह (अनिल कपूर) के ऊपर आती है. करतार सिंह दोनों में से एक को चण्डीगढ़ में रहने वाले अपने भाई पवन मल्होत्रा को सौंप देता है और दूसरे को लन्दन में रहने वाली अपनी बहन रत्ना पाठक शाह के पास भेज देता है. दोनों की परवरिश अलग-अलग तरीके से होती है. इसलिए जुड़वां होने के बावजूद उनके स्वभाव में काफी अंतर आता है.

दोनों बड़े होते है और शादी की बात चलती है, लेकिन करण इंडिया आने के बाद स्वीटी (इलियाना डिक्रुज़) से मिलता है और उससे उसका प्यार हो जाता है. ऐसे में वह लन्दन न जाकर इंडिया रहने की सोचता है. इधर चरण की गर्लफ्रेंड नफीसा अली खान (नेहा शर्मा) है, इसके बावजूद चरण के लिए उसकी बुआ रत्ना पाठक बिंकल (अथिया शेट्टी) का रिश्ता तय करती है, लेकिन चरण उससे शादी नहीं करना चाहता और अपने चाचू से आइडिया सोचने को कहता है. करतार सिंह आइडिया सोचने में माहिर है और हर आसपास की आम चीजों से वे आइडिया सोच लेते है, लेकिन शादी तोड़ने का ये आइडिया उसे ही  भारी पड़ता है, इस तरह कहानी कई परिस्थितियों से गुजरकर अंजाम तक पहुंचती है.

फिल्म में लंदन की लोकेशन को बहुत ही सुंदर और आकर्षक तरीके से दिखया गया है. फिल्म शुरू से लेकर अंत तक हंसाती है. चरण के पापा के रूप में पवन मल्होत्रा का अभिनय दमदार था. टाइटल सोंग मुबारकां और ‘द गोगल सोंग…..’ गाने को बड़ी ही शालीनता के साथ दिखाया गया है. फिल्म में अथिया शेट्टी को बहुत अधिक काम करने का मौका नहीं मिला, लेकिन जितना भी मिला वह अच्छी थी. बहरहाल फिल्म देखने लायक है. इसे थ्री एंड हाफ स्टार दिया जा सकता है.

फिल्म रिव्यू : मुबारकां

सिनेमा का मकसद दर्शक के चेहरे पर मुस्कुराहट लाना और उसे मनोरंजन प्रदान करना होता है. इस मकसद को पूरी करने में फिल्म ‘‘मुबारकां’’ सक्षम है, जो कि फिल्मकार अनीस बजमी की अपनी खास शैली की पारिवारिक फिल्म है.

पारिवारिक रोमांटिक कामेडी फिल्म ‘‘मुबारकां’’ की कहानी करण व चरण के इर्द गिर्द घूमती है. जुड़वा भाई करण व चरण के माता पिता की बचपन में ही लंदन में ही एक कार दुर्घटना में मौत हो गयी थी. तब लंदन में ही रह रहे इनके चाचा करतार सिंह (अनिल कपूर) ने करण को लंदन में रह रही अपनी बहन (रत्ना पाठक) को तथा चरण को पंजाब में रह रहे अपने भाई बलदेव सिंह (पवन मल्होत्रा) को दे दिया था. जिसके चलते जुड़वा भाई होते हुए भी करण व चरण ममेरे व फुफुरे भाई बन गए तथा करतार सिंह करण के मामा और चरण के चाचा बन गए.

लंदन में पले बढ़े करण (अर्जुन कपूर) को स्वीटी (ईलियाना डिक्रूजा) से प्यार है. दोनों की मुलाकातें लंदन में ही हुई थी. पढ़ाई पूरी कर स्वीटी वापस पंजाब भारत लौट आती है, तो उसके पीछे पीछे करण भी अपने मामा बलदेव व भाई चरण के साथ रहने चंडीगढ़, पंजाब आ जाता है. एक दिन करण की मां का संदेष आता है कि उन्होंने करण की शादी लंदन में ही सिंधू की बेटी बिंकल (आथिया शेट्टी) से करने का फैसला किया है. इसलिए करण बिंकल को देखने के लिए आ जाए. मगर करण अभी शादी करने से मना कर देता है और चरण को चरण के पिता के साथ लंदन भेज देता है.

इधर चरण को चंडीगढ़ में ही वकालत कर रही एक मुस्लिम लड़की नफीसा कुरेशी (नेहा शर्मा) से प्यार है. वह लंदन पहुंचकर अपने करतार चाचा से सच बयां कर मदद मांगता है. करतार कहता है कि वह सिंधू के सामने उसे ड्रग्स लेने वाला साबित कर देंगे, तो सिंधू खुद ही अपनी बेटी बिंकल की शादी उससे नही करेंगे. मगर बिंकल से मिलते ही चरण पहली नजर में ही उसे अपना दिल दे बैठता है. जब तक चरण यह बात अपने चचा करतार को बताता तब तक तो करतार की वजह से सिंधू का बेटा परमीत उसे ड्रग्स लेने वाला मान लेता है. उसके बाद सिंधू, बलदेव को अपशब्द कहता है. बलदेव, सिंधू को अपशब्द कहता है और फिर भाई बहन के बीच भी झगड़े हो जाते हैं.

बलदेव कसम खाता है कि वह एक माह के अंदर पच्चीस तारीख तक अपने बेटे चरण की शादी बिंकल से भी अच्छी लड़की से करके दिखा देंगे और चंडीगढ़ वापस लौट आते हैं. एक दिन गुरुद्वारे में बलदेव की मुलाकात स्वीटी व उसके पिता से होती है. दोनों के बीच बातचीत होती है. दूसरे दिन बलदेव, चरण व करण के साथ स्वीटी के घर पहुंच जाता है. स्वीटी को लगता है कि करण के मामा करण का रिश्ता लेकर आए हैं. इसलिए वह वह तुरंत हां कर देती है. अब बलदेव उसी वक्त चरण व स्वीटी की शादी की तारीख 25 को तय कर देते हैं. इससे स्वीटी व करण दोनों परेशान होते हैं.

जब चरण को पता चलता है कि स्वीटी से करण प्यार करता है, तो वह भी परेशान हो जाता है. उधर करण की मम्मी, सिंधू को खुश करने के लिए बिंकल की शादी करण से 25 को ही करने का निर्णय ले लेती है. अब करण व चरण दोनों करतार सिंह से मदद मांगते हैं. तब करतार सिंह सबसे पहले बलदेव को डेस्टीनेशन वेडिंग के लिए तैयार कर चरण की लंदन में शादी करने के लिए राजी करता है. अब सब लंदन पहुंच जाते हैं. फिर शुरू होता है हास्य घटनाक्रमों का सिलसिला. अंततः बलदेव व उनकी बहन के बीच पुनः रिश्ता जुड़ता है और करण की स्वीटी से, चरण की बिंकल से तथा नफीसा की परमीत से शादी होती है. 

‘‘प्यार तो होना ही था’’, ‘‘नो एंट्री’’, ‘‘वेलकम’’, ‘‘सिंह इज किंग’’ जैसी फिल्मों के निर्देशक अनीस बजमी ने एक बार फिर फिल्म ‘‘मुबारकां’’ में अपने बेहतरीन निर्देशकीय कौशल का परिचय दिया है. फिल्म में पारिवारिक रिश्तों की अहमियत व रिश्तों को जोड़े रखने की बात बड़ी खूबसूरती से कही गयी है. इतना ही नहीं वर्तमान पीढ़ी जिस तरह से प्रेमी या प्रेमिका को कपड़ों की तरह बदलती रहती है, उस पर भी निर्देशक व लेखक ने कटाक्ष करते हुए सही सलाह भी दी है. मगर फिल्म कहीं भी बोर नहीं करती. फिल्म के संवाद काफी आकर्षक हैं. फिल्म की कहानी व पटकथा को बड़ी खूबसूरती से बुना गया है, मगर इंटरवल के बाद फिल्म कुछ ज्यादा ही लंबी हो गयी है. इंटरवल के बाद के हिस्से को एडीटिंग टेबल पर कसा जाना चाहिए था. फिल्म का क्लायमेक्स और बेहतर हो सकता था.

अनीस बजमी इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने एक साफ सुथरी ऐसी पारिवारिक फिल्म बनायी है, जिसे पूरा परिवार निःसंकोच एक साथ बैठकर देख सकता है. अन्यथा अमूमन फिल्मकार अपनी हास्य फिल्म में द्विअर्थी संवाद भरकर दर्शक को हंसाने का असफल प्रयास करते हैं.

फिल्म के कैमरामैन हिमान धमीजा भी बधाई के पात्र हैं. लोकेशन बहुत बेहतरीन चुनी गयी हैं. फिल्म का गीत संगीत भी आकर्षक है. मगर फिल्म में जरुरत से ज्यादा गाने रखे गए हैं. गानों की वजह से कई जगह फिल्म कमजोर भी होती है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो पवन मल्होत्रा और अनिल कपूर ने बेहतरीन परफार्मेस दी है. कई दृश्यों में पवन मल्होत्रा ने तो अनिल कपूर व दूसरे कलाकारों को भी मात दिया है. दोहरी भूमिका निभाते हुए अर्जुन कपूर ने साबित कर दिया कि एक अच्छी पटकथा, दमदार किरदार और अच्छा निर्देशक हो तो, वह अपने अभिनय का मुरीद हर किसी को बना सकते हैं. दोहरी भूमिका में दोनों किरदारों के बीच दूरी बनाए रखना कलाकार के लिए मुश्किल होता है. मगर एक ही चेहरा होने के बावजूद करण व चरण दोनों काफी अलग उभरकर आते हैं. इसे अर्जुन कपूर के अभिनय की खूबी ही कही जाएगी. कई दृश्यों में वह स्वाभाविक लगे हैं.

ईलियाना डिक्रूजा ने साबित किया कि उनके अंदर काफी काफी संभावनाएं हैं. अपनी पहली फिल्म ‘हीरो’ के मुकाबले इस फिल्म में आथिया शेट्टी ने अच्छा अभिनय किया है. यह एक अलग बात है कि उनका किरदार लंबा नहीं है. मगर इस फिल्म से आथिया शेट्टी ने यह दिखाया कि यदि निर्देशक चाहे तो उनसे बेहतरीन अभिनय करवा सकता है. रत्ना पाठक शाह, नेहा शर्मा, राहुल देव, करण कुंद्रा आदि ने भी अपने किरदारों के साथ न्याय किया है.

दो घंटे 36 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘मुबारकां’’ का निर्माण   अश्विन वर्दे, मुराद खेतानी, सुविदेश शिंगड़े, निर्देशक अनीस बजमी, लेखक राजेश चावला, कहानीकार बलविंदर सिंह जंजुआ व रूपिंदर चहल, पटकथा लेखक बलविंदर सिंह जंजुआ व गुरमीत सिंह, संगीतकार रिषी रिच, अमाल मलिक व गौरव रोशिन, कैमरामैन हिमान धमीजा तथा कलाकार हैं-अनिल कपूर, अर्जुन कपूर, ईलियाना डिक्रूजा, आथिया शेट्टी, राहुल देव, पवन मल्होत्रा, रत्ना पाठक व नेहा शर्मा.

चुनौती

‘‘आप ने बुलाया साहब?’’ राज्यमंत्री सोमेश्वर दयाल के सम्मुख उन के निजी सचिव योगेश हाथ बांधे खड़े थे.

‘‘हांहां, आसन ग्रहण कीजिए,’’ सोमेश्वर दयाल ने सामने खुली फाइल से सिर उठाया, कुरसी की ओर संकेत किया और फिर सिर नीचे झुका लिया.

‘‘कोई विशेष कार्य है क्या, महोदय?’’ जब लगभग 15 मिनट बीत गए तो योगेश को लगा कि मंत्री उन की उपस्थिति को शायद भूल ही गए हैं.

‘‘देख नहीं रहे, मैं एक महत्त्वपूर्ण फाइल में व्यस्त हूं,’’ सोमेश्वर दयाल रूखे स्वर में बोले.

‘‘जी,’’ योगेश दांत पीस कर रह गए. वे जानते थे कि सोमेश्वर दयाल कुछ पढ़ नहीं रहे थे, केवल अपना महत्त्व दिखाने के लिए गरदन झुकाए बैठे थे.

अंतत: प्रतीक्षा की घडि़यां समाप्त हुईं और मंत्री ने एक पत्र योगेश की ओर बढ़ाया.

‘‘यह पत्र तो प्रधानमंत्री सचिवालय से आया है,’’ योगेश पत्र पढ़ते हुए बोले.

‘‘यह तो हम भी जानते हैं पर इस संबंध में आप क्या कार्यवाही करेंगे? वह कहिए?’’ सोमेश्वर दयाल बोले.

‘‘सार्वजनिक धन की बरबादी रोकने के लिए हमारे मंत्रालय द्वारा मितव्ययिता करने का सुझाव दिया गया है.’’

‘‘क्या मतलब है आप का? अब तक क्या हम अपव्यय करते रहे हैं?’’

‘‘वह बात नहीं महोदय, पर देश की अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजर रही है और दाम आसमान छू रहे हैं. ऐसे में हर देशभक्त नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने व्यय पर अंकुश लगाए,’’ योगेश बोले.

‘‘ठीक है, ठीक है. भाषण देने की आवश्यकता नहीं. हमारे देश के लोगों में यह सब से बड़ी बीमारी है कि वे बोलते बहुत हैं. अब आप कर्मचारियों को व्यय कम करने के लिए एक क्रमबद्ध कार्यक्रम की सूचना दीजिए, जिस से छोटी से छोटी वस्तु पर होने वाले व्यय में भी कमी लाई जा सके. मैं चाहता हूं कि हमारा विभाग अन्य सभी के समक्ष एक आदर्श उपस्थित करे,’’ मंत्री महोदय ने फरमाया.

‘‘ठीक है महोदय, हम सब से पहले सब से छोटी वस्तु पर ध्यान केंद्रित करेंगे, फिर उस से बड़ी…’’

‘‘ठीक है, मेरा विचार है, आप ‘आलपिन’ से आरंभ कीजिए,’’ सोमेश्वर दयाल सोचते हुए बोले.

‘‘आलपिन?’’

‘‘जी हां, आलपिन.’’

‘‘मैं समझा नहीं साहब, आलपिन तो आवश्यकतानुसार ही प्रयोग में लाई जाती हैं, उन के अपव्यय का तो प्रश्न ही नहीं उठता,’’ योगेश व्यंग्यात्मक स्वर में बोले.

‘‘यहीं तो हम मात खा जाते हैं, योगेश भाई. छोटी से छोटी वस्तु के महत्त्व को भी यदि हम समझ लें तो अधिकतर समस्याएं स्वयं ही हल हो जाएं. क्या आप ने नहीं देखा कि आलपिनें इधरउधर पड़ी रहती हैं, कभीकभी तो एक ही स्थान पर 2-2 पिनें लगी देखी हैं मैं ने.’’

‘‘उस से व्यय में भला कितना अंतर पड़ेगा?’’ योगेश के स्वर में न चाहते हुए भी नाराजगी झलक आई.

‘‘आप छोटीछोटी वस्तुओं के महत्त्व को नहीं समझते और समझें भी कैसे? कभी गरीबी देखी हो तो आप जानें कि भूख से तड़पते लोगों के लिए चंद सिक्कों का भी कितना महत्त्व होता है.’’

‘‘ठीक है, महोदय, तो हम आलपिन से ही आरंभ करेंगे इस मितव्ययिता के अभियान को. इस के लिए क्या करना होगा?’’ योगेश शीघ्रता से बोले क्योंकि वे भली प्रकार जानते थे कि गरीबी मंत्री महोदय का अत्यंत प्रिय विषय है और उस पर वे बिना रुके कई घंटे तक भाषण दे सकते हैं.

‘‘पहले तो एक समिति गठित कीजिए, जो आलपिनों के अपव्यय के कारणों की जांच करे. फिर अपव्यय कितने प्रतिशत कम किया जा सकता है, इस विषय पर विचार करें और कैसे कम किया जा सकता है, यह भी सुझाएं,’’ सोमेश्वर दयाल ने समझाया.

‘‘ठीक है साहब, मैं चलता हूं और इस योजना के कार्यान्वयन की व्यवस्था करता हूं,’’ योगेश ने चैन की सांस ली.

‘‘जाते कहां हैं आप? पूरी बात तो सुनते जाइए.’’

‘‘जी.’’

‘‘इसी प्रकार कागज, फाइलें, पेन, परदे, रद्दी कागज डालने की टोकरियों के अपव्यय के संबंध में भी समितियां गठित कीजिए और उन से हुई या भविष्य में होने वाली बचत का लेखाजोखा तैयार कीजिए,’’ सोमेश्वर दयाल पूर्णत: संतुष्ट स्वर में बोले.

योगेश मंत्री महोदय की आज्ञा का पालन करने के लिए अपने कार्यालय में पहुंचे. उधर सोमेश्वर दयाल अपने इस बचत कार्यक्रम के संबंध में सोचसोच कर स्वयं ही निहाल हुए जा रहे थे. अब उन्हें लगा कि इस अद्भुत बचत कार्य को प्रचारित भी किया जाना चाहिए, जिस से कि उन की बुद्धिमत्ता का लोहा सभी लोग मान जाएं. उसी दिन एक पत्रकार सम्मेलन में उन्होंने घोषणा की कि अधिक से अधिक क्षेत्रों में बचत कर वे एक नया कीर्तिमान स्थापित करना चाहते हैं.

अब उस कार्यक्रम में लगभग हर क्षेत्र में बचत करने के लिए एक समिति गठित की गई, जो उस विशेष वस्तु की बचत के तरीकों और भावी बचत के लेखेजोखे की सूची तैयार करती थी.

उस दिन भी योगेश एक ऐसी ही समिति की बैठक में व्यस्त थे कि सोमेश्वर दयाल का बुलावा आया.

योगेश ने उन के कक्ष में पहुंच कर अभिवादन किया, तो पाया कि मंत्री महोदय काफी उत्तेजित थे.

‘‘क्या हुआ महोदय?’’ उन्होंने प्रश्न किया.

‘‘यह कहिए कि क्या नहीं हुआ? जरा इस फाइल को खोल कर तो देखिए, वित्त विभाग ने हमारी विदेश यात्रा से संबंधित क्या टिप्पणी लिख कर भेजी है?’’

‘‘क्या हुआ साहब? आप के विदेश जाने के संबंध में तो कुछ नहीं लिखा है, केवल आप के व्यक्तिगत सहायक के साथ जाने पर आपत्ति प्रकट की गई है,’’ फाइल खोल कर पढ़ते हुए योगेश बोले.

 ‘‘आप इसे ‘केवल’ कहते हैं? यह हमारी प्रतिष्ठा का प्रश्न है. वित्त विभाग में आप के सहयोगी जनार्दन ने हमें नीचा दिखाने के लिए ही यह कार्यवाही की है,’’ सोमेश्वर दयाल गरजे.

‘‘लेकिन महोदय, इस टिप्पणी में तो लिखा है कि कार्यवाही प्रधानमंत्री सचिवालय के आदेशों के आधार पर की गई है और आप प्रधानमंत्री को कई बार ‘संसार के महानतम नेता’ कह चुके हैं,’’ योगेश ने उन्हें शांत करना चाहा.

 

‘‘प्रधानमंत्री को तो हम अब भी अपना नेता मानते हैं किंतु प्रधानमंत्रीजी और उन का सचिवालय 2 अलगअलग चीजें हैं,’’ सोमेश्वर दयाल दुखी स्वर में बोले.

‘‘आप मेरी बात मानिए श्रीमान, इस मामले को अधिक तूल मत दीजिए. यह आप की छवि का प्रश्न है. आप नएनए मंत्री बने हैं और अभी केवल राज्यमंत्री हैं. हमारे विभाग के मंत्री तो पहले ही आप से नाराज हैं कि आप उन्हें उचित महत्त्व नहीं देते. इसलिए आप को कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए, जिस से आप के विरोधियों को आप पर कीचड़ उछालने का अवसर मिले,’’ योगेश ने पुन: प्रयत्न किया.

‘‘ठीक है, सोचेंगे,’’ मंत्री महोदय अनमने भाव से बोले.

‘‘तो मैं चलूं, साहब? खर्च में कटौती के संबंध में महत्त्वपूर्ण बैठक हो रही थी कि आप का बुलावा आया…मैं तो एकदम घबरा गया, तुरंत दौड़ा चला आया.’’

 

‘‘जाइए, आप सभा में भाग लीजिए,’’ सोमेश्वर दयाल चिढ़ कर बोले. योगेश के जाते ही वे मन ही मन सोचने लगे, ‘समझ में नहीं आता कि मंत्री यह है या मैं?’

‘‘साहब हैं क्या?’’ सोमेश्वर दयाल कौफी की चुसकियों के साथ संगीत में डूबे हुए थे कि अपने व्यक्तिगत सहायक मनोहर का स्वर सुन कर चौंक गए,‘‘आओ मनोहर, कहो, कैसे आना हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं महोदय, कार्यालय में पता चला कि आप अचानक उठ कर घर चले गए. मैं तो सारे काम छोड़ कर दौड़ा चला आया कि पता नहीं क्या बात हो गई.’’

‘‘ऐसी कोई विशेष बात नहीं थी, यों ही जरा कमजोरी महसूस हो रही थी. सोचा घर जा कर आराम करूं,’’ सोमेश्वर दयाल बोले.

‘‘कमजोरी की बात को इस तरह लापरवाही से टालना ठीक नहीं, महोदय. आप आज्ञा दें तो चिकित्सक को बुला लाऊं, आप पूरी तरह जांच करवा लीजिए,’’ मनोहर ने विनम्रता से कहा.

‘‘नहीं, कोई विशेष बात नहीं है. थोड़ा आराम करने से तबीयत ठीक हो जाएगी. आप जरा चन्नू से कहिए कि थोड़ा तेल ले आए. वह सिर में मालिश कर देगा तो नींद आ जाएगी.’’

‘‘मुझे मालूम है, आप की तबीयत भारी हो तो बिना सिर में तेलमालिश करवाए आप को चैन नहीं मिलता. पर चन्नू ही क्यों, मैं किए देता हूं मालिश. आखिर आप मेरे बुजुर्ग हैं,’’ मनोहर ने चापलूसी भरे स्वर में कहा.

‘‘नहीं, आप चन्नू को ही बुलाइए और वह सामने की कुरसी खींच कर बैठ जाइए. आप से कुछ विचारविमर्श करना है.’’

‘‘जी, महोदय?’’ मनोहर का पूरा शरीर उत्सुकतावश आगे को झुक गया था.

‘‘मेरी अध्यक्षता में जो दल विदेश जाने वाला था, उस की यात्रा की स्वीकृति आ गई है,’’ सोमेश्वर दयाल ने मनोहर की उत्सुकता के उफनते दूध पर ठंडे पानी के छींटे दिए.

‘‘यह तो बड़ा अच्छा समाचार है, महोदय…फिर तो तैयारी प्रारंभ की जाए,’’ मनोहर की बांछें खिल गईं.

‘‘लेकिन…’’ सोमेश्वर दयाल धीरे से बोले.

‘‘लेकिन क्या महोदय?’’ मनोहर ने जल्दी से पूछा.

‘‘वित्त विभाग ने आप की यात्रा की स्वीकृति नहीं दी है. वे लोग कहते हैं कि राज्यमंत्री होने के कारण मैं अपने व्यक्तिगत सहायक को साथ नहीं ले जा सकता.’’

मनोहर की प्रसन्नता का उफान समुद्री लहरों के ज्वार की भांति चढ़ा था और भाटे की भांति उतर गया. उस एक ही क्षण में न जाने उस के चेहरे पर कितने रंग आए और चले गए. पर तुरंत ही उन्होंने स्वयं को संभाल लिया, ‘‘आप मन मैला न कीजिए हुजूर…हम तो सेवक हैं, आप की सेवा का अवसर मिल जाता तो धन्य हो जाते. किंतु जैसी सरकार की मरजी. वैसे भी मेरे जैसे तुच्छ व्यक्ति का जाना क्या और न जाना क्या. लेकिन केवल एक बात का दुख है.’’

‘‘किस बात का?’’

‘‘वे लोग हमें मोहरा बना कर आप को चुनौती दे गए,’’ मनोहर मंत्री महोदय की आंखों में झांकते हुए बोले.

‘‘क्या कह रहे हैं आप? कौन किसे चुनौती दे गया?’’ सोमेश्वर दयाल उलझन में थे.

‘‘धीरे बोलिए महोदय, दीवारों के भी कान होते हैं.’’

‘‘अच्छा बताओ, क्या बात है?’’

‘‘आप तो जानते ही हैं कि मंत्री महोदय इस बात को कभी सहजता से नहीं ले पाए कि राज्यमंत्री होते हुए भी आप को अधिक अधिकार मिले हैं जबकि उन के कार्यक्षेत्र में कम महत्त्वपूर्ण उपविभाग रह गए हैं. उन के वित्त विभाग में काफी लोग हैं, उन्हीं से सांठगांठ कर उन्होंने मेरी यात्रा रद्द करवा दी. इस तरह उन्होंने एक तीर से दो शिकार किए.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘एक तो मेरे न जाने से आप की पीठ पीछे क्या हो रहा है, आप को पता नहीं चलेगा. दूसरे, इस रूप में उन्होंने आप को चुनौती दी है कि उन्हें कमजोर समझना ठीक नहीं, उन के हाथ बहुत लंबे हैं और वे जब चाहें आप को नीचा दिखा सकते हैं,’’ मनोहर समझाने के लहजे में बोले.

‘‘हूं…बात तो तुम्हारी सोलहोंआने सही है, पर प्रश्न यह उठता है कि अब किया क्या जाए?’’ मंत्री महोदय दुखी स्वर में बोले.

 

‘‘आप क्यों मेरे लिए मुसीबत मोल लेते हैं, साहब. मुझे अपनी नहीं, आप की चिंता है. विदेश यात्रा का क्या है, आप की गद्दी बनी रहे, स्वास्थ्य बना रहे, हमें ऐसे अनेक अवसर मिलेंगे. अच्छा, अब मुझे आज्ञा दीजिए,’’ चन्नू सिर की मालिश करने के लिए तेल ले आया तो मनोहर ने विदा ली.

मनोहर चले तो गए पर अपनी चतुराई से भूसे में ऐसी चिनगारी छोड़ गए, जिस के बुझने का प्रश्न ही नहीं था. चन्नू मालिश करता रहा और वे उबलते रहे कि उन की इतनी भी औकात नहीं कि अपने व्यक्तिगत सहायक को साथ ले जा सकें? मंत्री महोदय यदि यह सोचते हैं कि राज्यमंत्री को वे जैसे चाहें, वैसे नचा सकते हैं तो बड़ी भूल कर रहे हैं, सोमेश्वर दयाल रात भर सो नहीं सके.

सुबह कार्यालय खुलते ही वे सीधे वित्त मंत्रालय जा पहुंचे. वरिष्ठ सरकारी अधिकारी जनार्दन जब अपने कक्ष में पहुंचे तो सोमेश्वर दयाल को वहां बैठे देख कर हैरान रह गए, ‘‘मंत्री महोदय आप? कोई आवश्यक कार्य था तो मुझे बुला लिया होता,’’ छूटते ही उन के मुख से निकला.

‘‘यह दिखावा बंद कीजिए, आप अच्छी तरह जानते हैं कि मैं किस कार्य से आया हूं.’’

‘‘क्या कह रहे हैं आप?’’ जनार्दन आश्चर्य से बोले.

‘‘यदि आप सोचते हैं कि मेरे व्यक्तिगत सहायक की विदेश यात्रा रद्द कर आप और हमारे विभाग के मंत्रीजी मेरे विरुद्ध सांठगांठ करने में सफल हो जाएंगे तो भूल जाइए.’’

‘‘आप विश्वास कीजिए मंत्री महोदय, ऐसा कुछ नहीं है. हम ने तो मात्र प्रधानमंत्री सचिवालय के आदेश का पालन किया है,’’ जनार्दन ने कहा.

‘‘मैं आप को अन्य राज्यमंत्रियों के ही अनेक व्यक्तिगत सहायकों के नाम गिनवा सकता हूं जो विदेश यात्रा पर गए थे. मेरी बारी आई, तभी आप को यह आदेश याद आया?’’ सोमेश्वर दयाल गरजे.

‘‘पहले जो लोग गए थे, उन के संबंध में मैं नहीं जानता, किंतु सरकारी खर्च में कटौती के लिए जो आदेश हमारे पास आए हैं, उन में से एक यह भी है.’’

 

‘‘मैं सब समझता हूं, यदि आप ने मुझे चुनौती दी है तो मैं उसे स्वीकार करता हूं. यदि मेरा व्यक्तिगत सहायक मेरे साथ नहीं गया तो मैं भी नहीं जाऊंगा,’’ कह कर क्रोध से बौखलाए हुए सोमेश्वर दयाल बाहर निकल गए.

थोड़ी देर बाद जनार्दन किसी फाइल में खोए हुए थे कि योगेश ने कक्ष में प्रवेश किया.

‘‘आओ, आओ योगेश बाबू, बड़े दिन में दर्शन दिए. कहो, ठंडा लोगे या गरम,’’?जनार्दन ने प्रसन्न मुद्रा में पूछा.

‘‘कुछ भी पिला दो. इतना थक गया कि मन होता है, सबकुछ छोड़ कर संन्यास ले लूं,’’ योगेश थके स्वर में बोले. 

 ‘‘आज सुबह आप के मंत्रीजी यहां भी पधारे थे,’’ जनार्दन बोले.

‘‘अच्छा, तो आप को भी कृतार्थ कर गए हैं. फिर तो आप भी वस्तुस्थिति से पूर्णतया अवगत होंगे. सोमेश्वर दयाल तो अपने व्यक्तिगत सहायक को साथ ले जाने के लिए ऐसे मचल रहे हैं, जैसे बालक झुनझुने के लिए मचलता है.’’

‘‘आप क्या कर रहे हैं, उन्हें प्रसन्न रखने के लिए?’’

‘‘झख मार रहे हैं. सुबह से प्रधानमंत्री सचिवालय में सब के हाथ जोड़जोड़ कर मनोहर के यात्रा संबंधी पत्र पर हस्ताक्षर करवाए हैं. अब आप के पास आया हूं. आप भी हस्ताक्षर कर दीजिए तो मैं भी चैन की सांस लूं.’’

‘‘जब आप प्रधानमंत्री सचिवालय से आज्ञा ले ही आए हैं तो मुझे भला क्या एतराज हो सकता है. पर सोमेश्वर दयाल ने बड़े जोरशोर से खर्च में कटौती करने की प्रधानमंत्री की अपील की चुनौती को स्वीकार किया था, अब उस का क्या होगा?’’

‘‘उस चुनौती का सामना हम योजना- बद्ध तरीके से कर रहे हैं,’’ योगेश हंसे.

‘‘वह कैसे?’’ जनार्दन ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘सोमेश्वर दयाल के आदेशानुसार आलपिन से प्रारंभ कर बड़ी से बड़ी वस्तु के खर्च में कटौती करने के लिए कई समितियां गठित की गई हैं. पहले ये समितियां अपना लेखाजोखा प्रस्तुत करेंगी, उन उपायों से खर्च में कितनी कटौती होगी, यह बताएंगी…’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर हम कुल कटौती का आकलन करेंगे और ये कार्य पूरे करने तक मंत्री महोदय विदेश यात्रा से लौट आएंगे.’’

‘‘ठहरो, आगे की बात मैं बताता हूं,’’ जनार्दन हंसे.

 

‘‘सोमेश्वर दयाल लौट कर एक पत्रकार सम्मेलन बुलाएंगे और प्रधानमंत्री सचिवालय की व्यय कम करने की चुनौती उन्होंने कैसे स्वीकार की, यह सब बताएंगे.’’

‘‘आप तो सबकुछ जानते हैं, जनार्दनजी, क्यों न हो आखिर इतने वर्षों का अनुभव जो है,’’ योगेश जोर से हंसे.

‘‘हां, और सबकुछ जानते हुए भी आप सोमेश्वर दयाल के पार्श्व में खड़े हो कर तालियों और मुसकान के साथ फोटो खिंचवाएंगे,’’ जनार्दन गंभीर स्वर में बोले.

‘‘हूं, जनार्दनजी, आप फिर बहकने लगे. सरकारी नौकरी करनी है तो दार्शनिकता से कोसों दूर रहना सीखिए और जब नेतागण कहते हैं कि खर्च में कटौती हो रही है तो उस पर विश्वास करने की आदत डालिए,’’ योगेश बोले तो जनार्दन के होंठों पर व्यंग्यभरी मुसकान खेल गई, जो बिना कहे ही मानो सबकुछ कह गई.   

चुप रहें या आवाज उठाएं

आजकल अकसर महिलाओं को सलाह दी जाती है कि वे घर, औफिस या पब्लिक प्लेस में हुए शारीरिक शोषण के खिलाफ अवाज उठाएं. उन से कहा जाता है कि जब तक वे अपना विरोध प्रकट नहीं करेंगी, स्थिति को बदलना नामुमकिन है पर जैसे ही कोई महिला ऐसी घटना के खिलाफ अपनी आवाज उठाती है, उसे ट्रोल किया जाता है. सोशल मीडिया पर उस के खिलाफ जहर उगलना शुरू हो जाता है, उस पर फिर यह इलजाम लगाया जाता है कि वह पब्लिसिटी पाने के लिए यह सब कर रही है.

चाहे बौस द्वारा शारीरिक शोषण की शिकायत हो या किसी पार्टी की तसवीरें पोस्ट करने पर किसी छात्रा को रेप की धमकी मिलने की, ऐसे उदाहरण समाज की महिलाओं के प्रति असहिष्णुता स्पष्ट कर देते हैं. जो महिला प्रतिकूल परिस्थितियों के खिलाफ आवाज उठाती है, उसे यही सुनने को मिलता है, ‘यह सब तो होता रहता है’, ‘अच्छे घर की लड़कियां ऐसे काम नहीं करतीं’ या ‘जरूर तुम ने ही कुछ किया होगा वरना वह लड़का ऐसा कुछ कर ही नहीं सकता.’

आइए, ऐसी ही कुछ महिलाओं के उदाहरण देखते हैं, जिन्होंने अपनी आवाज उठाने का साहस किया पर उन्हें ही टार्गेट किया गया-

पहली

2017 का पहला दिन ही शर्मनाक रहा, जब बैंगलुरु में लड़कियों का मास मोलेस्टेशन हुआ. पुलिस कोई ऐक्शन ले ही नहीं सकी, क्योंकि अभी तक कोई रिपोर्ट फाइल नहीं की गई. इस शर्मनाक प्रकरण में कोई ऐक्शन लेने के बजाय नेताओं और आम पब्लिक ने लड़कियों पर ही दोषारोपण किया. तर्क दिया गया कि लड़कियां नशे में थीं और उन्होंने छोटी ड्रैसें पहनी हुई थी.

दूसरी

कुछ ही दिन पहले मुंबई की 2 बहनें घर जा रही थीं. बड़ी बहन ने नोटिस किया कि एक आदमी छोटी बहन के वक्षस्थल को घूर रहा है. उस ने आदमी को टोका और उस के प्राइवेट पार्ट को घूरना शुरू कर दिया, उस ने यह घटना सोशल मीडिया पर शेयर की तो संस्कारी कमैंट्स की बाढ़ आ गई.

तर्क दिया गया कि किसी लड़की को पब्लिक में इस तरह की हरकत नहीं करनी चाहिए.

तीसरी

जब एक छात्रा गुरमेहर कौर ने, जिस ने अपने पिता को जंग में खो दिया था, अपनी बात सोशल मीडिया के सामने रखी, तो उसे रेप की धमकियां मिलने लगीं. उसे ट्रोलर्स ने इतना निशाना बनाया कि उसे पीछे हटना पड़ा, क्योंकि अपने मन की बात, अपने विचार सामने रखना ‘ऐंटीनैशनल’ हो गया है.

चौथी

एक लड़की, जो वैब ऐंटरटेनमैंट पोर्टल के लिए काम करती थी, उस ने लिखा कि कैसे 2 साल तक पोर्टल के फाउंडर अरुणाभ कुमार ने उस का शोषण किया. ऐसे ही आरोप कुछ और परिचितों और महिलाओं ने भी अरुणाभ पर लगाए थे.

जहां मूवी ‘अलीगढ़’ के लेखक अपूर्व असरानी और कौमेडियन अदिति मित्तल ने इस अज्ञात पोस्ट का समर्थन किया, वहीं अधिकांश लोगों ने इसे लड़की का पब्लिसिटी स्टंट बताया.

एक अज्ञात लड़की की यह पोस्ट पब्लिसिटी स्टंट कैसे हो सकती है. जब लड़की अपना नाम भी नहीं लिख रही है तब यह कैसे कहा जा सकता है?

5वीं

दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा मेघना सिंह हाल ही में एक कालेज फैस्ट से घर लौटी तो उस ने अपनी जींस पर पुरुषवीर्य के धब्बे देखे. उस ने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘‘कंसर्ट्स लोगों का स्टेज पर परफौर्म करते हुए व्यक्ति के लिए अपना प्यार दिखाने के लिए होते हैं. उन का सपना सच होने जैसा होता है. मैं केके के प्यारे गीत सुन कर इतना खुश हो कर घर आई थी, पर मर्द हो गया आज तो यह बंदा, एकदम मर्द. थैंक्स, मर्दों, भीड़ के बीच यह सब…’’

मेघना ने जींस का फोटो भी पोस्ट किया था. कुछ लोगों ने उस का समर्थन किया, तो कुछ को यह शर्मनाक अनुभव मजेदार लगा. ऐसे कमैंट्स भी किए गए जिन में उन धब्बों का कैमिकल ऐनालिसिस करवाने के लिए कहा गया था कि कहीं वे धब्बे ‘श्रीखंड’ या ‘चूना’ के न हों. कहा गया कि लड़की झूठ बोल रही है. पब्लिसिटी के लिए यह कर रही है.

26 वर्षीया आईटी प्रोफैशनल जो अपनी बहन को घूरने वाले के खिलाफ डट कर सामने आ गई थी, बताती है, ‘‘मेरे आसपास के लोगों के अनुसार पब्लिक में अपनी आवाज उठाना एक महिला के लिए ठीक नहीं है. लोग मुझे नीच, नैगेटिव, ऐंटीमैन और पता नहीं क्याक्या कह रहे थे. कुछ लोगों ने तो मुझे लेस्बियन भी कह दिया. मेरे तथाकथित दोस्तों ने भी मुझे ही गलत ठहराया.’’

विशाखा गाइडलाइंस के अनुसार हर कंपनी में महिलाओं की सुरक्षा पर ध्यान देने के लिए एक उचित सैक्सुअल हैरेसमैंट सैल होना चाहिए.

महिलाओं के लिए सुरक्षित सार्वजनिक जगहों के लिए काम करने वाली समाजसेविका रुचिता जैन कहती हैं, ‘‘एक आरोपी अपने सामाजिक, आर्थिक स्टेटस से परखा जाता है जैसे किसी बड़ी कंपनी का अधिकारी लोगों की नजरों में गलत नहीं हो सकता. हम यह कौन सा उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं? पीडि़ता को ही क्यों दोष देने लगते हैं हम? आज ऐसे लोगों की जरूरत है जो पीडि़ता की स्थिति को समझें और उस से पूछें कि वे उस के लिए क्या कर सकते हैं?’’

आधुनिक समाज जहां महिला सशक्तीकरण की बड़ीबड़ी बातें करता है, वहीं अपने साथ हुए शोषण के खिलाफ आवाज उठाते ही महिला का अपमान शुरू हो जाता है.

महिलाओं के साथ रेप, अपराध की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. जिस समाज में एक महिला का स्थान सुरक्षित न हो, जहां अंधविश्वास, भ्रष्टाचार, अशिक्षा का बोलबाला हो, उस समाज का भविष्य पूर्णरूपेण अनिश्चित है.         

बेटी बहू एकसमान क्यों नहीं

अभी भी कुछ परिवार बहू को अपनी संपत्ति समझते हैं. कमाऊ लड़की के साथ अपने बेटे का विवाह उस के ऊंचे पैकेज के लालच में कर लेते हैं. शादी के बाद पति और घर वाले बहू के बैंक अकाउंट पर अपना अधिकार समझते हुए उस की आय और व्यय का हिसाबकिताब रख कर उस पर अपना अधिकार दिखाते हैं. कुछ लड़कियां तो ससुराल वालों के दबाव में आजीवन दुखी रहती हैं पर अधिकतर इस तरह के अनावश्यक प्रतिबंध एवं दबाव को स्वीकार नहीं करतीं.

इस विषय में रांची, झारखंड की मनु जो पेशे से फोटोग्राफर हैं, कहती हैं, ‘‘बहू ससुराल की संपत्ति भला क्यों है? वह कोई वस्तु नहीं है वरन उस का अपना स्वतंत्र वजूद है. अब जितनी जिम्मेदारी अपने ससुराल के लोगों के प्रति बनती है उतनी ही अपने मांबाप के प्रति भी. हम दोनों पतिपत्नी का आपस में स्पष्ट समझौता है. यदि मैं ने उन के परिवार को अपनाया है, तो उन्होंने मुझे और मेरे परिवार को. दोनों परिवारों के बीच बहुत अच्छा रिश्ता और तालमेल है. न कोई झगड़ा न झंझट.’’

मुंबई की सुभी, जो इंटरनैशनल स्कूल में अध्यापिका हैं, का विचार है कि बहू को ससुराल की संपत्ति कहना तर्कसंगत नहीं है परंतु विवाह के बाद ससुराल के प्रति उस की जिम्मेदारी अधिक हो जाती है, क्योंकि अब वह उस परिवार की सदस्य बन कर वहां रह रही होती है. इसीलिए स्वाभाविक तौर पर उस परिवार के सदस्यों के प्रति अधिक जिम्मेदार और जवाबदेह हो जाती है.

इलाहाबाद की 60 वर्षीय गृहिणी रंजना, जो 2 बहुओं की सास हैं, अपना अनुभव बताते हुए कहती हैं कि आजकल की बहू के साथ आप जोरजबरदस्ती या अधिकारपूर्वक कोई भी काम नहीं करवा सकते. आप को उसे प्यार, स्नेह और इज्जत देनी पड़ेगी. तभी बहू आप की इच्छानुसार कोई काम करेगी. इस का सब से बड़ा कारण यह है कि उस का पति उस के उचितअनुचित निर्णयों के पक्ष में हर समय उस के साथ खड़ा रहता है. आज की बहू शिक्षित है, आत्मनिर्भर है और आजाद खयालात की है, इसलिए आप को उस की इच्छानुसार अपने को बदलना होगा.

हम लोगों के समय में तो पति अपनी मां के इशारे पर ही चलते थे. अब स्थितियां बदल रही हैं, जो लड़कियों के लिए सकारात्मक पक्ष है.

यही कारण है कि आजकल कई लड़कियां अपने मायके की पूरी जिम्मेदारी उठा रही हैं. अब अकसर सुनने या पढ़ने में आने लगा है कि बेटी ने अपने माता या पिता का अंतिम संस्कार संपन्न किया या कामकाज संभाल लिया.

बहू को ससुराल की संपत्ति कहना उचित नहीं है. वह उस परिवार के एक सदस्य की तरह वहां की जिम्मेदारी भी निभा रही है. आज स्त्री आत्मनिर्भर एवं शिक्षित होने के कारण अपने फैसले स्वयं लेने में सक्षम है. इसीलिए अब कोई भी उसे अपनी संपत्ति समझता है, तो यह उस की भूल ही होगी.

हमारे समाज में लड़की को उस के अपने घर की पहचान का संकट आजीवन झेलना पड़ता है. मांबाप के घर जहां वह जन्म लेती है, वहां यही सुनती हुई बड़ी होती है कि बेटी को तो पराए घर जाना है और फिर जब वह ससुराल आती है तो सुनती है कि अपने घर से यही सीख कर आई हो?

समझदारी से बदलें सोंच

लड़की के लिए नया परिवार, नए लोग, रीतिरिवाज, आचारविचार, वहां का खानपान आदि के साथसाथ तालमेल का भी संकट रहता है. वहां उसे अनेक समझौते करने पड़ते हैं. मगर लड़की को अपने निजत्व एवं स्वत्व को नहीं भूलना चाहिए. अपने भविष्य एवं व्यक्तित्व के अनुसार वह अपना जीवन खुल कर जीना चाहती है. वह अपने फैसले खुद ले रही है, इसलिए मात्र अपने घर के लिए कुंठा के साथ समझौता करने की कोई आवश्यकता नहीं है. आज वह पुरुषों से कहीं कमतर नहीं है. इसलिए उसे यह सोचने या चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है कि कोई क्या कहेगा? वह उसी भवन के प्रांगण में अपना एकल घर बना सकती है.

जिस पुरुष के साथ वह अपना जीवन बिताना चाह रही है, उस के घर के अंदर अपना घर बना कर रहना किसी तरह से गलत नहीं है वरन यह उस का अधिकार है.

आखिर बड़ेबुजुर्गों को भी तो आजादी से जीने का अधिकार है. उन्होंने जो अपने सपनों का घरौंदा सजाया है उस में बहू की घुसपैठ या दखलंदाजी हो सकता है उन्हें रुचिकर न लगे. इसलिए बहू स्वतंत्ररूप से उसी जगह अपना एकल घर बना कर प्रसन्नतापूर्वक रह सकती है.

ससुराल वालों को भी लचीला रुख रखते हुए यह समझना चाहिए कि अब यह घर आने वाली बहू का अपना घर है ताकि वह उस घर को अपना घर महसूस कर सके.

लड़की के लिए यह कतई आवश्यक नहीं है कि वह अपने सासससुर के ही साथ रहे. वह उसी घर में अपना एकल घर बना कर आजादी से रह सकती है. यदि साथसाथ रहने में परेशानी है, दोनों के विचार आपस में मेल नहीं खा रहे तो उचित यही होगा कि अपना अलग घर बना कर रहे ताकि आपसी रिश्ते मधुर बने रहें.

यदि आप की जीवनशैली या दिनचर्या से सासससुर को शिकायत है और उन के तरीके से उलझन है तो संयुक्त रूप से साथसाथ रहने का क्या लाभ? उदाहरणस्वरूप वे चाहते हैं कि बहू सुबह नहाधो कर ही किचन में जाए और वह आप को पसंद नहीं है तो अच्छा यही होगा कि न आप उन्हें दुखी करे और न स्वयं हों. उन के जीवन में अनावश्यक रूप से अशांति पैदा करने की कोशिश न करें. अपना घर बना कर प्रसन्नतापूर्वक रहें. परंतु अपनी जिम्मेदारियों से कभी न मुंह मोड़ें. आवश्यकता पड़ने पर बिन संकोच उन की सहायता के लिए तत्पर रहें. उन्हें पूरा आदरसम्मान दें.

मुंबई में एक बड़ा स्वस्थ एवं उत्तम उदाहरण देखने को मिला. वहां मांबाप और बेटाबहू एक ही बिल्डिंग में अलगअलग फ्लैट में रह रहे थे. बच्चे जब स्कूल से लौट कर आते तो दादी के पास खाना खाते और वहां रहते और रात का खाना सब एकसाथ बेटे के घर में बैठ कर खाते और बातचीत करते.

इस समय आवश्यकता है स्वस्थ मानसिकता की, समय के साथ स्वयं को बदलने की. आज शिक्षित कार्यशील महिलाओं का कार्यक्षेत्र बढ़ गया है. उन के पास अनेक समस्याएं हैं. वे घर में आजादी और सुकून की सांस लेना चाहती हैं. उन से यह आशा करना कि वे सासससुर के इशारे पर चलें तो यह अब संभव नहीं है.

बदल रहा माहौल

आज यदि बहू शिक्षित है तो सासससुर भी शिक्षित हैं. वे माहौल के बदलते रुख को समझ रहे हैं. इसीलिए अब पहले जैसी तकरार देखने को नहीं मिलती वरन सासबहू का आपसी प्यार और एकदूसरे की निजता के प्रति सम्मान एवं समझदारी के कारण आपसी रिश्ते में मधुरता देखने को मिलती है.

जब कोई भी लड़की शादी कर के ससुराल जाती है तो ऐसा नहीं होता कि सिर्फ वही बदलती है. वह ससुराल के रीतिरिवाजों को सीखती है और साथसाथ अपने संग लाए संस्कारों को भी परिलक्षित करती है. जब वह पति के साथ गृहस्थी बसाती है, तो दोनों परिवारों के संस्कारों का संगम होता है. उस परिवार में बहू की सोच का भी प्रभाव पड़ता है.

लड़की कोई वस्तु नहीं है कि उसे संपत्ति कहा या समझा जाए. ससुराल पक्ष के लोग भी यह अच्छी तरह समझते हैं कि आधुनिक आत्मनिर्भर लड़कियों पर अधिकारपूर्वक शासन करना संभव नहीं है. इसलिए इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए उन से पहले जैसी अपेक्षाएं भी नहीं रखते.

ससुराल पक्ष समय की हवा के बदलते रुख को पहचान कर अब बेटी और बहू के बीच भेदभाव को त्याग कर समान रूप से लाड़प्यार और देखभाल कर रहे हैं. आज अनेक परिवारों में देखने को मिलता है कि शादी के बाद ससुराल वालों ने बहू को उस की रुचि के अनुरूप कैरियर बनाने के लिए प्रेरित कर के उसे अपने पैरों पर खड़े होने में सहयोग दिया.

समाज में लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है. यह एक अच्छा संकेत है. हमें इस बदलाव का खुले दिल से स्वागत करना चाहिए और आज यही समय की मांग है.           

फिल्म रिव्यू : राग देश

इतिहास के किसी भी पन्ने को सेल्यूलाइड के परदे पर जीवंत करना एक फिल्मकार के लिए सबसे बड़ी चुनाती होती है. पर फिल्म ‘‘राग देश’’ के लेखक व निर्देशक तिग्मांशु धुलिया यहां पर बुरी तरह से असफल रहे हैं. ‘‘राग देश’’ देखने के बाद इस बात का एहसास ही नहीं होता कि यह फिल्मकार ‘पान सिंह तोमर’ जैसी फिल्म बना चुका है.

यह एक काल खंड की फिल्म है, जिसकी कहानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की सेना ‘‘इंडियन  नेशनल आर्मी’’ के तीन जवानों के इर्द गिर्द घूमती है. इन्हें ब्रिटिश सरकार ने 1945 में लाल किले में मुकदमा चलाकर हत्या का अपराधी घोषित किया था. इन सैनिकों ने बर्मा की सीमा पर ब्रिटिश सेना के खिलाफ युद्ध लड़ा था.

मेजर जनरल शाह नवाज खान (कुणाल कपूर), लेफ्टीनेंट कर्नल गुरबख्श ढिल्लों (अमित साध) और कर्नल प्रेम सहगल (मोहित मारवाह) 1942 में सुभाष चंद्र बोस की ‘आजाद हिंद फौज’ यानी कि नेशनल इंडियन आर्मी की अगुवाई कर रहे थें. इनका मकसद ब्रिटिश सेना से लड़कर हिंदुस्तान को आजाद कराना था. दुर्भाग्यवश एक प्लेन दुर्घटना में सुभाष चंद्र बोस का निधन हो गया. तब इन तीन जवानों ने दूसरे सैनिकों से अपना साथ देने के लिए कहा. कुछ विरोध करने लगे, तो उन्हें मौत के घाट उतार दिया. ब्रिटिश इंडियन आर्मी ने इन्हें बंधक बनाकर इन पर मुकदमा चलाया. मशहूर जज भूलाभाई देसाई (केनी देसाई) ने इनका मुकदमा लड़ा. पर यह अपराधी माने गएं. लेकिन हिंसात्मक दंगे न बढ़े, इसलिए इन्हें छोड़ दिया गया.

तिग्मांशु धुलिया निर्देशित इतिहास के खास काल खंड पर बनी यह फिल्म रोमांचित नहीं करती है. यह फिल्म दर्शकों को बांधकर नहीं रख पाती है. इंटरवल तक तो दर्शक किसी तरह सब्र रख पाता है, मगर इंटरवल के बाद दर्शक सोचने लगता है कि यह फिल्म कब खत्म होगी. यहां तक की इंटरवल के बाद का कोर्ट रूम ड्रामा भी बहुत सतही स्तर का है. फिल्म का कथा कथन बहुत कमजोर है और यह फिल्म फीचर फिल्म की बनिस्पत एक डॉक्यूमेंटरी मात्र बनकर रह गयी है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर भी यह फिल्म ठीक से बात नहीं करती है. एक ऐतिहासिक घटनाक्रम का घटिया प्रस्तुतिकरण है. पटकथा में कसाव के अलावा काफी मेहनत की जरुरत नजर आती है.

फिल्म का गीत संगीत काफी कमजोर है. फिल्म के तीनों मुख्य कलाकारों कुणाल कपूर, अमित साध व मोहित मारवाह ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है. मगर इस फिल्म में कुणाल कपूर की परफार्मेंस बहुत ही साधरण रही. फिल्म के लिए शोध कार्य करने वाली टीम ने फिल्म के कास्ट्यूम वगैरह पर अच्छा काम किया है. फिल्म के एडीटर ने भी फिल्म को बिगाड़ने में अपनी भूमिका निभायी है.

लाल किले का सेट बहुत ही ज्यादा बनावटी नजर आता है. दो घंटे सत्रह मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘राग देश’’ का निर्माण गुरदीप सिंह सपल द्वारा किया गया है. ‘राग देश’ के निर्देशक व पटकथा लेखक तिग्मांशु धुलिया, कैमरामैन रिषि पंजाबी, संगीतकार राणा मजुमदार, सिद्धार्थ पंडित, रेवंट, धर्मा विश हैं तथा कलाकार हैं कुणाल कपूर, अमित साध, मोहित मारवाह, केनी देसाई, केनी बासुमतारी, कंवलजीत सिंह, मृदुला मुराली, जाकिर हुसैन, राजेश खेरा, अली शाह व अन्य.

बौलीवुड के इन सितारों के पास नहीं है भारत की नागरिकता

कलाकार अपनी कला के पंख फैलाकर, हर उस सीमा को पार कर जाते हैं जो उनके रास्ते का कांटा बनती है. बौलीवुड में कुछ ऐसे ही कलाकार हैं जो कि भारत के नागरिक ना होने के बावजूद भी बौलीवुड में अपना एक अलग नाम बना चुके हैं. आज हम आपको बौलीवुड के कुछ ऐसे सितारों के बारे में बताते हैं, जो कि बौलीवुड में अभिनय तो करते हैं, लेकिन उनके पास भारत की नागरिकता नहीं है.

आलिया भट्ट

आप यह जानकर हैरान जरूर हो गए होंगे कि आलिया भट्ट के पास भी भारत की नागरिकता नहीं है. हम आपको बता दें कि आलिया का जन्म ब्रिटेन में हुआ था, जिसके कारण उन्हें ब्रिटिश की नागरिकता मिली थी. बौलीवुड में आलिया ने करण जोहर की फिल्म स्टूडेंट औफ द ईयर से अपने करियर की शुरुआत की थी.

कटरीना कैफ

दरअसल कैट का जन्म हॉन्ग कॉन्ग में हुआ था, जिसके चलते उनके पास ब्रिटिश की नागरिकता है. कटरीना ने फिल्म बूम से 2003 में अपने करियर की शुरुआत बी टाउन में की थी.

इमरान खान

फिल्म ‘जाने तू या जाने ना’ से बौलीवुड में डेब्यू करने वाले इमरान खान का जन्म यू एस में हुआ था, जिसके बाद उनके पास वहीं की नागरिकता है. इमरान ने कई जगह खुद को भारतीय अमेरिकन अभिनेता लिखा हुआ है. इमरान ने जब 2014 में वोट देने की इजाजत मांगी थी, लेकिन उनके पास भारत की नागरिकता नहीं थी, जिसके बाद वह वोट नहीं दे पाएं.

नरगिस फाकरी

2011 में फिल्म रौकस्टार से बौलीवुड में डेब्यू करने वाली अमेरिकी मौडल और अभिनेत्री नरगिस फाकरी का जन्म न्यूयौर्क में हुआ था. उनके पिता मोहम्मद फाकरी एक पाकिस्तानी हैं, तो उनकी मां मैरी यूरोप में रहती हैं. हम आपको बता दें कि नरगिस जब छह साल की थी, तो उनके पिता की मृत्यु हो गई थी. नरगिस ने बौलीवुड में अपना करियर तो बनाया लेकिन उनके पास भारत की नागरिकता नहीं है.

एली अबराम

एली अबराम स्वीडिश अभिनेत्री हैं. एली ने फिल्म मिकी वायरस से बी टाउन में अपने करियर की शुरुआत की थी, इतना ही नहीं, उन्होंने बिग बौस 8 में भी हिस्सा लिया था.

इस क्रिकेटर के लिए धड़कता था ‘धक-धक गर्ल’ का दिल

90 के दशक की मशहूर बॉलीवुड अभिनेत्री माधुरी दीक्षित काफी लंबे समय से सिल्वर स्क्रीन पर भले न दिखाई दी हों, लेकिन आज भी उनके नाम से फैंस का दिल धक-धक करने लगता है. माधुरी का नाम अक्सर सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लग जाता है. हाल ही में उनका काफी साल पहले दिया हुआ इंटरव्यू ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा. इसमें एक बात सामने निकलकर आई कि माधुरी दीक्षित जिसकी दीवानी थीं वो कोई बी-टाउन का सुपर स्टार नहीं, बल्कि क्रिकेट की दुनिया का सितारा था.

1992 में दिए एक इंटरव्यू में माधुरी दीक्षित ने ये खुलासा किया था कि उन्हें पूर्व क्रिकेटर सुनील गावस्कर बहुत पसंद थें. वे उनके प्यार में पागल थीं. उस वक्त माधुरी की उम्र 25 साल थी जबकि सुनील गावस्कर 43 साल के थें. हालांकि उस समय तक वे क्रिकेट से रिटायर हो चुके थें लेकिन माधुरी उनके प्यार में पड़ गई थीं.

बॉलीवुड में फिल्मों और प्रोजेक्ट्स के अलावा माधुरी अपने अफेयर की खबरों को लेकर भी सुर्खियों में रहती थीं. इंडस्ट्री में उनका नाम संजय दत्त और अनिल कपूर से जोड़ा गया. कहा जाता है कि गायक सुरेश वाडेकर के साथ उनका रिश्ता भी तय होने वाला था. लेकिन आखिरकार माधुरी ने इंडस्ट्री से अलग अमेरिकी डॉक्टर श्रीराम माधव नेने से शादी की. माधुरी दीक्षित आखिरी बार फिल्म ‘गुलाब गैंग’ में नजर आईं थीं.

किस अभिनेत्री ने मारा करीना कपूर को ताना?

करीना कपूर ऐसी अभिनेत्री हैं जिनसे बौलीवुड के हर स्टार की बनती है. करीना कपूर की पिछली फिल्म को आए हुए भले डेढ़ साल हो गए हों लेकिन करीना की फैन फॉलोइंग में कोई कमी नहीं आई है. करीना कपूर किसी ना किसी वजह से हमेशा चर्चा में रहती हैं. तैमूर के जन्म के बाद से करीना कपूर कम समय में अपने वजन को कम करने को लेकर काफी चर्चा में हैं.

करीना कपूर अक्सर जिम के आगे क्लिक की जाती हैं और इसे लेकर एक सुपरस्टार एक्ट्रेस ने करीना कपूर पर जोरदार ताना मारा है. अब उन्होंने सीधे तो कुछ नहीं लेकिन उनकी बातों से आप भी समझ सकते हैं कि उन्होंने किसे निशाने पर लिया है.

हम बात कर रहे हैं सोनम कपूर की. सोनम कपूर और करीना कपूर एक साथ, अगली फिल्म वीरे दी वेडिंग में नजर आने वाली हैं. फिल्म को सोनम कपूर की छोटी बहन रेहा कपूर प्रोड्यूस कर रही हैं.

एक फैशन शो के खत्म होने के बाद, कुछ पत्रकारों से बातचीत में सोनम कपूर ने कुछ ऐशी बाते  कह दीं जो सुन कर शायद करीना को अच्छा न लगे.

क्या कहा : सोनम ने कसा तंज

सोनम कपूर ने उन एक्ट्रेसेस पर तंज कसा है जो पत्रकारों को तस्वीरें लेने के बुलाती हैं और बाद में मीडिया के सामने शिकायत भी करती हैं. खुद करीना कपूर के साथ, आपके दिमाग में भी इस बयान को सुनने के बाद सिर्फ एक ही का नाम ध्यान में आएगा.

मैं कभी पत्रकारों को नहीं बुलाती

सोनम कपूर ने इस ये भी कहा कि “मैं कभी पत्रकारों को नहीं बुलाती और उनके लिए कभी मैं कभी उनके लिए तैयार नहीं होती.”

मैं क्यों कभी नहीं क्लिक नहीं होती

सोनम ने कहा कि “मुझे नहीं याद है कि मेरी कभी भी जिम लुक में तस्वीरें ली गई हैं क्योंकि मैं कभी पत्रकार फोटोग्राफर को नहीं बुलाती.” अब ये सोनम कपूर ऐसे ही कह रही थीं या निशाना साध रहीं थीं वो तो वे ही बता सकती हैं.

एयरपोर्ट लुक पर बोली थीं करीना

इधर करीना कपूर ने एयरपोर्ट लुक पर अपना बयान दिया और कहा कि “मुझे एयरपोर्ट लुक का कॉन्सेप्ट समझ में नहीं आता.ऐसा लगता है मानो रेड कार्पेट हो. स्टार्स पर हमेशा खूबसूरत दिखने की जिम्मेदारी होती है. एयरपोर्ट पर कैजुअल अच्छे ड्रेस में नजर आना भी प्रेशर है.”

करीना का बयान

उन्होंने कहा कि ‘हमें साधारण इंसानों की तरह दिखना चाहिए. क्यों एयरपोर्ट लुक की जरूरत है. फ्लाइट के लिए ड्रेसअप होने की क्या जरूरत है मुझे समझ नहीं आता.

सोनम की खिंची थी टांग

करीना ने हाल में ही सोनम कपूर फैशन आइकॉन इमेज को लेकर टांग भी खिंची थी और वीरे जी वेडिंग लुक पर बात की थी. उन्होंने कहा था कि हां फिल्म में उनकी शादी होगी और ये थोड़ा अलग होगी. मुझे रेहा स्टाइलिश लुक देगी और ये काफी मजेदार होगा.

वीरे दी वेडिंग की शूटिंग

फिल्म वीरे दी वेडिंग की शूटिंग सितंबर से शुरू होगी. फिल्म में सोनम-करीना के अलावा स्वरा भास्कर भी हैं.

नोज पियर्सिंग से पहले जरूर जान लें ये बातें

नोज पियर्सिंग का फैशन एक बार फिर काफी ट्रैंड में है. वह एक समय था जब महिलाएं इसे आउट ऑफ फैशन मानती थीं, लेकिन अब फैशन की डिमांड पर यह स्टाइल एक बार फिर से दस्तक देने लगी है. अगर आप भी पियर्सिंग करवाने जा रहीं हैं तो आपके मन में काफी सवाल होंगे. नोज पियर्सिंग के दौरान दर्द होता है या नहीं, कब और कैसे कराएं पियर्सिंग आदि. आपके इन सवालों का जवाब हम आपको देते हैं. पियर्सिंग करवाने से पहले इन बातों को जरूर जान लें.

पियर्सिंग से पहले नोज रिंग का चयन करें

आजकल मार्केट में कई फैशनेबल नोज रिंग्स उपलब्ध हैं, आपको केवल यह चुनना है कि कौन सा मेटल आपकी त्वचा को सूट करता है. शुरुआती दिनों में कई महिलाएं चांदी की नोज रिंग का इस्तेमाल करती हैं, क्योंकि इसकी तासिर ठंड़ी होती है. इसी कारण शुरूआती दौर में आर्टिफिशल नोज रिंग ना पहनें. इससे आपको इंफेक्शन हो सकता है.

नोज रिंग को हटाए नहीं

अगर आप नोज रिंग को निकालती हैं, तो इस बात का ख्याल रखें कि लंबे समय तक पियर्सिंग को खाली ना छोड़े, ऐसा करने से आपकी नाक का छेद बंद भी हो सकता है.

सर्दी के दौरान होने वाली समस्याएं

अगर पियर्सिंग के शुरुआती दिनों में आप बीमार पड़ जाती हैं या फिर आपको सर्दी लग जाती है, तो यह आपके लिए मुसीबत बन सकता है. इसलिए रोजाना पियर्सिंग वाले एरिया को साफ करें. अगर आप रोजाना पियर्सिंग को साफ नहीं करती हैं, तो यह इंफेक्शन पैदा कर सकती है.

पियर्सिंग वाले जगह को रोजाना साफ करें

पियर्सिंग करवाने के बाद उसकी साफ सफाई का खास ख्याल रखें. आप इस बारे में अपने पियर्सर से भी जान सकती हैं कि किस तरह से इसे साफ करना है.

संक्रमण का खतरा

पियर्सिंग करवाने के बाद इंफेक्शन होने का खतरा बन जाता है. इससे आपके पियर्सिंग के आसपास सूजन और दर्द की शिकायत भी हो सकती है. ऐसे में आप तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.

तीन महीनों तक देखभाल

नाक छिदवाने के तीन महीनों तक आपको उसकी देखभाल करनी चाहिए. आप रोजाना सेलाइन सोल्यूशन से इसे धो सकती हैं. छिदी हुई नाक को हाथ लगाने से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह से धोना ना भूलें.

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