हुमा को है किस बात का डर

‘‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’’ से बॉलीवुड में कदम रखने वाली अदाकारा हुमा कुरैशी इन दिनों अपने करियर की पहली अंतरराष्ट्रीय फिल्म ‘‘पार्टिशन: 1947’’ को लेकर उत्साहित हैं. गुरिंदर चड्ढा निर्देशित भारत पाक बंटवारे की त्रासदी के बीच एक प्रेम कहानी वाली इस फिल्म में एक मुस्लिम लड़की का किरदार निभाने के बाद हुमा कुरैशी की सोच में काफी बदलाव आ गया है.

अब उन्हें यह सवाल परेशान करने लगा है कि हम इतिहास से सबक क्यों नहीं लेते हैं. हमसे खास बातचीत करते हुए हुमा कुरैशी ने कहा, ‘‘यह घटना सत्तर वर्ष पहले घटी थी. मगर इतिहास के इस कटु व दुःखद अध्याय से हमने कोई सबक नहीं सीखा. कुछ वर्ष के अंतराल में हम वही गल्तियां बार बार दोहराते रहते हैं. मुझे लगता है कि यह कहानी बार बार सभी को बतायी जानी चाहिए. जिससे लोगों को एहसास हो कि लोगों को विभाजित करने या किसी समुदाय विशेष को अपराधी करार देने से कुछ हासिल नहीं होता. इससे सिर्फ हिंसा होती है, खून की नदियां ही बहती हैं. घृणा की राजनीति के साथ लोगों को विभाजित करने की मेंटालिटी व सोच से डर लगता है.’’

टाइगर श्रॉफ पर निधि अग्रवाल का नया खुलासा

बॉलीवुड में जैकी श्रॉफ के बेटे व अभिनेता टाइगर श्रॉफ को बहुत ही ज्यादा संकोची व शर्मीले किस्म का युवक माना जाता है. मगर फिल्म ‘‘मुन्ना माइकल’’ में टाइगर श्रॉफ के साथ बतौर हीरोईन अपने करियर की शुरूआत कर रही अदाकारा निधि अग्रवाल ऐसा नहीं मानती हैं. निधि अग्रवाल के अनुसार टाइगर श्रॉफ बहुत ज्यादा शैतान हैं.

हाल ही में हमसे खास बातचीत के दौरान टाइगर श्रॉफ की चर्चा चलने पर निधि अग्रवाल ने कहा, ‘‘टाइगर श्रॉफ से मेरी पहली मुलाकात फिल्म ‘फ्लाइंग जट’ की स्क्रीनिंग के समय हुई थी. तब सिर्फ हाय हैलो हुई थी. मैंने उन्हें फिल्म के लिए शुभकामनाएं दी थी. लेकिन उसके बाद हमारी मुलाकात फोटोशूट के दौरान हुई. मैं पहले बहुत संकोची किस्म की थी. मेरे दिमाग में था कि टाइगर श्रॉफ की तीन फिल्में सुपरहिट हो चुकी हैं. वह बड़े स्टार बन चुके हैं. मैं बहुत नर्वस थी. लेकिन टाइगर श्रॉफ इतना नॉटी लड़का है कि उसने मेरी सारी झिझक मिटा दी. नवर्सनेस दूर कर दी. अब मेरा संकोची स्वभाव नही रहा. अब मुझे शर्म नहीं आती. डांस में तो टाइगर श्रॉफ बहुत उंचा स्तर कर देते हैं, उस स्तर को पाना मेरे लिए बहुत मुश्किल हो रहा था, पर उसने हर बार मेरी मदद की.’’

मगर टाइगर श्रॉफ तो बहुत ही ज्यादा संकोची किस्म के इंसान हैं. ऐसे में टाइगर ने निधि का नर्वसनेस कैसे दूर किया? इस पर निधि अग्रवाल ने कहा, ‘‘वह बहुत ही ज्यादा शैतान किस्म के है. संकोची या शर्मीले नहीं हैं. सेट पर काफी जोक्स सुनाया करते थें. पर वह दूसरों की भांति बहुत ज्यादा बकबक नहीं करते. वह संकोची नहीं, बल्कि अंतमुर्खी हैं.’’

केरला में लें मॉनसून का मजा

केरला को ‘गॉड्स ओन कंट्री’ यानी ‘भगवान के अपने देश’ के नाम से भी जाना जाता है. केरला आम दिनों में जितना खूबसूरत दिखता है, मॉनसून के सीजन में उसकी प्राकृतिक खूबसूरत कई गुणा बढ़ जाती है.

केरला में मॉनसून के मौसम को ड्रीम सीजन के नाम से भी जाना जाता है. संमदर का जो रूप केरला में देखने को मिलता है, वह किसी और जगह मिल ही नहीं सकता.

बारिश के मौसम में केरला में चारों तरफ हरियाली, बैकवॉटर्स, ठंडी हवा और बादलों से ढका सूर्यास्त रहता है जो इसे रोमांस का सीजन बना देता है. ऐसे में अगर आप मॉनसून के सीजन में कहीं घूमने की प्लानिंग कर रहे हैं तो केरला जाएं.

जुलाई से सितंबर के बीच केरला में वॉटर स्पोर्ट्स का सीजन रहता है. इस दौरान अलप्पुजा के बैकवॉटर्स में स्नेक बोट रेस का आयोजन होता है. इनमें सबसे फेमस है नेहरू ट्रॉफी बोट रेस जिसका आयोजन हर साल अगस्त के दूसरे सप्ताह में होता है. इन रेस का सबसे बड़ा आकर्षण होता इसकी बोट्स जो करीब 30 मीटर लंबी और सांप की आकृति की होती है.

मॉनसून के सीजन में ही यहां 10 दिनों तक फसलों का त्योहार ओनम मनाया जाता है. इस दौरान केले के पत्तों पर बेहद स्वादिष्ट शाकाहारी खाना सर्व किया जाता है. आप चाहें तो किसी लोकल रेस्तरां में जाकर भी इस खाने का लुत्फ उठा सकते हैं.

इन सब के अलावा केरला में एक से बढ़कर एक स्पा और वेलनेस सेंटर्स हैं जहां लोग अपनी शारीरिक और मानसिक थकान उतारने के लिए जाते हैं. यहां बॉडी स्पा, ऑयल बेस्ड थेरेपी और योग का आनंद भी उठा सकते हैं जिससे तन-मन दोनों को ताजगी मिलेगी.

केरला अपनी खूबसूरती और चारों तरफ फैली हरियाली के लिए काफी मशहूर है. इसके अलावा केरला के वयनाड स्थित खूबसूरत पहाड़, जंगल, और झरने किसी का भी दिल मोह सकते हैं. बारिश के मौसम में यहां की खूबसूरती और भी बढ़ जाती है. वयनाड की टूरिज्म डिपार्टमेंट हर साल जुलाई के महीने में एक कार्निवाल का अायोजन करता है जिसमें आस-पास के गांवों की सैर, रेन ट्रैक, मड फुटबाल और तीरंदाजी जैसे स्पोर्ट्स शामिल हैं.

शैंपू के बाद बेजान हो जाते हैं आपके बाल!

शैंपू करने के कुछ देर बाद बाल रूखे-बेजान नजर आने लगते हैं. दरअसल, शैंपू करने के बाद बालों की नमी खो जाती है. हालांकि कंडिशनर का इस्तेमाल करने से बालों की उलझन कुछ कम हो जाती है लेकिन हर वॉश के बाद बालों में कंडिशनर का इस्तेमाल करने बाल खराब हो सकते हैं.

ऐसे में इन घरेलू उपायों को अपनाकर आप बालों को रूखा और बेजान होने से बचा सकती हैं.

प्याज का रस

शैंपू करने के बाद बालों में प्याज का रस लगाकर कुछ देर के लिए छोड़ दें. यह एक नेचुरल कंडिशनर है. इसकी जगह आप वेनेगर का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. इससे बालों में चमक तो आएगी ही साथ ही बालों का रूखापन भी दूर हो जाएगा.

अंडे का इस्तेमाल

अंडा एक बेहतरीन कंडिशनर है. अंडे के सफेद हिस्से और पीले हिस्से को अलग कर लें. सफेद भाग में जैतून का तेल मिलाकर लगाने से बालों की उलझन दूर हो जाएगी और बालों की चमक भी बनी रहेगी.

धोने के बाद सावधानी से सुखाएं

शैंपू के बाद बालों को बहुत रगड़ें नहीं. यही वजह है कि गीले बालों में कंघी न करने की सलाह दी जाती है. बालों को बहुत अधिक रगड़ने और केमिकल का इस्तेमाल करने से भी बाल रूखे हो जाते हैं.

ऐसा मोटापा किस काम का

इंगलैंड के एक छोटे शहर नौर्थफ्लीट की लिसेथ एक्सपोजिटो की जब शादी हुई तो वह ठीकठाक वजन की थी पर जल्दी ही मैक्डौनल्ड और फुल इंगलिश जंक फास्ट फूड की बदौलत वह एक बच्चे के जन्म के बाद मुटयाती गई. उस के पति जोस को वह फैट बौडी की नजर आती पर लिसेथ ने तब तक चिंता न की जब तक उसे जोस के फोन पर दूसरी लड़की के टैक्स्ट मैसेज न दिखे. उस ने जोस से जब जानना चाहा तो उस ने कह दिया कि तुम्हें तो खाने के अलावा कुछ सूझता ही नहीं.

नतीजा, तलाक हो गया और वे दोनों अलग हो गए. पर लिसेथ ने इस से सबक सीखा और उस ने अपना वजन घटाने का फैसला किया. डाक्टरों की सलाह थी कि वह बैरिएट्रिक सर्जरी कराए पर लिसेथ ने सैल्फ कंट्रोल से कुछ ही महीनों में अपना 60 किलोग्राम वजन कम कर लिया. उसे जोस मिला तो कहने लगा कि तुम तो हौट हो पर लिसेथ ने जोस को दुत्कार दिया.

विवाहित औरतें अकसर अपने वजन के प्रति बेफिक्र सी हो जाती हैं. भारत में पतियों को दूसरी लड़कियों की कमी रहती है पर वे पत्नी को बोझ समझने लगते हैं और कन्नी काटने लगते हैं. फ्रस्ट्रैशन में ऐसी मोटी पत्नियां और ज्यादा खाने लगती हैं और अपने रिश्तेदारों, किट्टियों, धार्मिक स्टंटों में मन लगाने लगती हैं.

विवाह की बिल्डिंग चाहे बनी रहे पर नींव कमजोर हो जाती है और घर दोनों के लिए रैन बसेरा बन कर रह जाता है. पतियों का भी कई बार यही हाल होता है जब वे किलो पर किलो अपने पर जोड़ते रहते हैं. पत्नियों को भी वैसे ही शर्म आने लगती है और मोटी पत्नी को कहीं साथ ले जाने में पति हिचकता है.

विवाह मोटे हो जाने का लाइसैंस नहीं है. ठीक है हिंदू मैरिज एक्ट में मोटे होने के कारण तलाक का प्रावधान नहीं है वरना ‘तुम मोटी हो, तुम मोटी हो, तुम मोटी हो’ कह कर हिंदुओं में मुसलमानों से कई गुना तलाक हो रहे होते. पत्नियां भूल जाती हैं कि विवाह बनाए रखना नौकरी बचाए रखने की तरह है. मोटी पत्नी न बाहर के काम कर सकती है, न घर के काम आसानी से कर सकती है. वह घर, पति, बच्चों सब पर बोझ बन जाती है. पति अगर किसी और औरत या किसी और काम में मन लगाने लगे तो क्या दोष दिया जा सकता है. मोटे पतियों की छरहरी पत्नियां भी बेहद कुंठित रहती हैं और पति से कन्नी काटने लगती हैं.

मोटापा स्वास्थ्य से ज्यादा विवाह के लिए नुकसान देता है, जिस का इलाज डाक्टरों और जिमों में भी नहीं होता. ठीक है आज खाने को काफी मिल जाता है और घी, तेल, चीनी भरपूर हैं पर इन्हें मुंह में ठूंस लिए जाएं, विवाह की कीमत पर, तो यह तो खुद से भी बेईमानी है और जीवनसाथी से भी.

आज नहीं तो कल अदालतें मोटापे को जीवनसाथी के प्रति क्रूरता मान कर तलाक देना शुरू कर सकती हैं. इसलिए लिसेथ का वह रास्ता अपनाएं जो उस ने तलाक के बाद लिया. वह पहले ही पतली हो जाती तो विवाह तो बच जाता.

सरकार धर्म की दुकानदार

चीन आजकल छलांगें मार रहा है जैसे पहले जापान व उत्तर कोरिया ने मारी थीं. इस की एक बड़ी वजह यह है कि चीनी लोगों पर धर्म का बोझ सब से कम है. जापान और कोरिया भी किसी खास धर्म में विश्वास नहीं रखते. स्कैंडेनेवियन देश स्वीडन, नौर्वे आदि भी निधर्मियों से भरे हैं.

जिन देशों में धर्मों का बोलबाला है वहां आमतौर पर विवाद छाए रहते हैं. वे सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, पारिवारिक व मौलिक उलझनों के इतने शिकार रहते हैं कि उन्हें कुछ करनेधरने की फुरसत ही नहीं होती. चीन जब तक कम्यूनिज्म को एक धर्म की तरह मान रहा था वह पिछड़ रहा था पर जैसे ही माओत्से तुंग के बाद उस ने कम्यूनिस्ट धर्म का लबादा फेंक दिया वह तरक्की की राह पर चल पड़ा और चीन आज प्रति व्यक्ति आय में कुलांचें भर रहा है हालांकि जापान और दक्षिणी कोरिया से वह बहुत पीछे है.

धर्म की जकड़नों की शिकार सब से ज्यादा औरतें होती हैं. उन्हें समाज जानबूझ कर धार्मिक ढकोसलों में फंसाए रखता है ताकि वे पुरुषों की गुलामी करती रहें और चुपचाप रसोईर् और बच्चों में फंसी रहें. पुरुष सोचते हैं कि उन्हें इस तरह सुख मिलता है पर असल में वे ही नुकसान में रहते हैं, क्योंकि एक तो औरतों की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है और दूसरे उन की बहुत सी शक्ति औरतों को कैदियों के रूप में रखने और खुद जेलर बने रहने में खर्च हो जाती है. कैदखानों में जेलरों और सिपाहियों को वेतन मिलता हो पर आय तो नहीं होती. इसी तरह धार्मिक जेल में औरतों को ठूंसने से पुरुष खुद अधकचरे रह जाते हैं.

जिन देशों में पिछले दशकों में निधर्मियों की गिनती बढ़ी है वे ज्यादा सुखी हैं, ज्यादा तरक्की कर रहे हैं. वियतनाम, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, साउथ अफ्रीका, आयरलैंड, कनाडा, आस्ट्रिया, जरमनी इस बात के सुबूत हैं. पिछले दशक में भारत ने खासी उन्नति की थी, क्योंकि 2004 के बाद धर्म का बोलबाला धीमा पड़ गया था और 1993 का राम मंदिर हल्ला कम हो गया था.

भारत में सरकार अब धर्म की सब से बड़ी दुकानदार बन गई है और इस का सीधा नुकसान औरतों को होता है. चाहे रामायण की सीता हो या महाभारत की द्रौपदी और राधा धार्मिक कारणों से ही उन्हें तरहतरह के कष्ट सहने पड़े और इन के  पति या प्रेमी औरतों के धर्मसम्मत स्थान को बचाने के लिए लड़ते फिरते रहे. उन्होंने विकास के कार्य किए हों, यह इन ग्रंथों में तो कहीं है नहीं.

धर्म से आजादी का अर्थ ही है मुंह खोलने और मनचाहा करने की आजादी. फिल्म ‘दंगल’ की गीता और बबीता जिन सामाजिक बंधनों के कारण बंधी थीं वे धर्म के दिए हुए हैं और अब कम से कम समाचारपत्र इन के असर की घटनाओं की रिपोर्ट तो कर देते हैं. कुछ समय पहले तक तो धार्मिक अत्याचार की शिकार औरतों की कहानियां खबरें तक नहीं बनती थीं, क्योंकि वह तो सामान्य बात थी.

पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई ने मुंह खोल कर कट्टरता पर तमाचा मारा पर धर्म इतना अक्खड़ है कि वह छोटीमोटी दुर्घटनाओं से डरता नहीं. भारत को उन्नति करनी है तो अंगरेजों, मुगलों, तुर्कों, अफगानों, शकों, हूणों के राज की जंजीरों से नहीं, बल्कि धर्म की जंजीरों से मुक्ति की कोशिश करनी होगी.

आज धर्म का बाजार गरम है और आर्थिक मटियामेट के आसार नजर आ रहे हैं. नोटबंदी और जीएसटी को योग के साथ धार्मिक अनुष्ठान के रूप में बेचा गया है और औरतों ने इस में जो खोया है या जो खोएंगी उस की गिनती करना असंभव है. इस का असर 4-5 साल बाद दिखेगा जब भारत एक पिछड़ा देश रह जाएगा और चीन (और उस का पिट्ठू पाकिस्तान भी) कहां के कहां होंगे.

 

लड़कों से ये 7 बातें पूछना चाहती हैं लड़कियां, पर शर्म के कारण पूछ नहीं पाती

लड़कियों और लड़कों के मन में एक दूसरे के प्रति काफी सवाल होते हैं. जो अक्सर लड़के और लड़कियां अपने पार्टनर से पूछ कर अपनी जिज्ञासा खत्म करते हैं, लेकिन लड़कों के मुकाबले लड़कियों के मन मे ज्यादा सवाल होते हैं. जो लड़कों से पूछ कर अपने मन के सवाल शांत करती हैं. लेकिन कुछ सवाल ऐसे होते हैं. जो लड़कियां शर्म के मारे लड़कों से पूछ नहीं पाती, चलिए जानते हैं लड़कियों के उन सवालों के बारें में…

लड़कों का पेट के बल सोना

लड़कियों को अक्सर ये सवाल बहुत सताता है कि लड़कों को पेट के बल सोना क्यों पसंद होता है. कई बार तो वे इस बारे में खुद ही उल्टे-सीधे ख्याल जोड़ लेती हैं.

पैदल चलने में परेशानी

लड़कियां अक्सर ये बात सोचती रहती हैं कि लड़के अपने गुप्तांग के साथ इतनी आसानी से पैदल कैसे चल लेते हैं, उनको दिक्कत क्यों नहीं होती.

एक की तरह के अंतर्वस्त्र पहनना

लड़कियां यही सोचती हैं कि लड़के हर बार एक ही रंग और एक ही डिजाइन के अंतर्वस्त्र पहनकर बोर क्यों नहीं होते हैं.

दाढ़ी बढ़ाने से चेहरा भारी नहीं होता क्या

लड़कों को बड़ी बड़ी उगी हुई दाढ़ी देखकर लड़कियों को यही सवाल मन में परेशान करने लगता है कि लड़को को इतनी बड़ी दाढ़ी मे वजन नहीं लगता क्या.

शारीरिक सम्बन्ध के दौरान लड़कों को कैसा महसूस होता है

लड़कियों को खुद की फिलिंग्स का पता लगने के बाद वे ये भी जानने की इच्छुक हो जाती हैं की लड़को को कैसा फील होता है.

अगर लड़के पेट से हुऐ तो क्या होगा

ये सवाल भी लड़कियों के दिमाग को परेशान करने के लिये कभी-कभी आ जाता है, और लड़कियां सोचती रहती हैं कि लड़के अगर कभी पेट से हुए तो क्या होगा.

आखिर 10 मिनट में तैयार कैसे हो जाते हैं लड़के

लड़कियों को तैयार होने में कम से कम 2 घंटे तो लगते हीं हैं और उनको ये बात हमेशा परेशान करती है कि आखिर लड़के 10 मिनट में तैयार हो कैसे जाते हैं.

महंगे फोन जेब पर भारी

आज फोन हमारे जीवन की जरूरत है. गांव हो या शहर फोन हमारे साथ हर वक्त रहता है. इस से जीवन आसान हो गया है. सब के पास फोन होने से हम घर के सभी सदस्यों, मित्रों तथा रिश्तेदारों से जुड़े रहते हैं. जब किसी स्थान पर बात करना संभव न हो तो हम व्हाट्सऐप मैसेज द्वारा आसानी से बात कर सकते हैं. फोन के इस्तेमाल से हमारे समय, धन तथा ऐनर्जी की बचत होती है.

उदाहरण के लिए बच्चों को होमवर्क पता करने के लिए मित्र के घर नहीं जाना पड़ता बल्कि व्हाट्सऐप द्वारा ही घर बैठेबैठे स्कूल का सारा होमवर्क पता चल जाता है.

किशोरकिशोरियां मनपसंद कपड़ों अथवा अन्य वस्तुओं का फोटो खींच कर एकदूसरे से पसंद करा लेते हैं. अब फोन केवल बात करने के लिए इस्तेमाल न हो कर, इंटरनैट के प्रयोग के लिए, मेल भेजने के लिए, फोटोग्राफी के लिए तथा अन्य कई प्रयोजनों के लिए भी इस्तेमाल होने लगा है.

लताजी की बेटी यूएसए में रहती है. उस के बेटे के जन्म पर लताजी वहां नहीं जा सकीं. उन की बेटी ने उन्हें बेटे के जन्म से ले कर नामकरण तक के सभी कार्यक्रमों के वीडियो भेज दिए तो उन्होंने यहां बैठेबैठे ही सब कुछ ऐंजौय कर लिया. मिस्टर आलम काफी बुजुर्ग हैं. वे बारबार डाक्टर के पास नहीं जा सकते इसलिए स्मार्टफोन के जरिए ही डाक्टर से वार्त्तालाप करते हैं. फोन के माध्यम से शौपिंग भी घर बैठेबैठे कर लेते हैं. उन्हें यह सब बहुत आसान लगता है.

आज हमें भारी पर्स तथा कार्ड ले कर चलने की भी जरूरत नहीं. नैट बैंकिंग तथा पेटीएम जैसे ऐप्स के माध्यम से हम रुपयों का लेनदेन भी आसानी से कर सकते हैं.

कहने का तात्पर्य यह है कि एक छोटे से फोन में हमारी सारी दुनिया समाई हुई है और तो और हमें लाइब्रेरी जाने अथवा पुस्तकें खरीदने की भी आवश्यकता नहीं. अपने मनपसंद टीवी चैनल तथा फिल्में भी घर बैठे ही सुविधानुसार देखी जा सकती हैं.

आज स्मार्टफोन बच्चों से ले कर बूढ़ों तक सब की खास जरूरत बन गया है. इस की उपयोगिता तथा विशाल बाजार को देखते हुए विश्व की सैकड़ों कंपनियों ने ग्राहकों के लिए अनेक फीचर वाले सस्ते व महंगे स्मार्टफोन बाजार में उतारे हैं.

कंपनियां अपने मुनाफे के लिए अपने फोन के मौडल में दोचार महीने के भीतर ही अनेक परिवर्तन कर ग्राहकों को लुभाती रहती हैं. अपने पुराने मौडल को ही आधे से भी कम दाम पर ऐक्सचेंज औफर लाती रहती हैं. आज स्मार्टफोन 4-5 हजार रुपए से ले कर लाखों रुपयों तक में उपलब्ध हैं.

अकसर देखा गया है कि किशोर दिखावे के लिए नित नए फोन खरीदने की होड़ में लगे रहते हैं. वास्तव में गौर किया जाए तो इस दिखावे की दौड़ में शामिल न हो कर हमें अपने विवेक से काम लेना चाहिए. सभी को अपनी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ही फोन का चुनाव करना चाहिए. कोशिश यही करें कि महंगे फोन न खरीदें.

युवा मेहनत से जो धन अर्जन कर रहे हैं उस का अधिकांश हिस्सा नएनए फोन खरीदने तथा उन का बिल चुकाने में ही खर्च कर देते हैं. मोहित अभी ईको औनर्स करने के बाद एक प्राइवेट स्टार्टअप में डाटा एनलिस्ट के पद पर कार्यरत है.

उस के घर में उस के मातापिता तथा 2 छोटी बहनें हैं. पिता एक प्राइवेट कंपनी में 30 हजार रुपए मासिक की नौकरी करते हैं.

उस के पास पहले ही एक फोन था. दोस्तों को दिखाने के चक्कर में उस ने पहली सैलरी मिलते ही 50 हजार रुपए का महंगा फोन खरीद लिया. सारे पैसे फोन पर लगा दिए और 10 दिन बाद ही औफिस आते वक्त उस का फोन कहीं खो गया.

समझदारी इसी में थी कि मोहित अपना पुराना फोन ही इस्तेमाल करता और घर के अन्य जरूरी खर्चों में पिता की मदद करता. फोन पर पैसे खर्चना उस की जेब पर भारी पड़ा.

यह कहानी केवल मोहित की ही नहीं है बल्कि अधिकांश युवा छात्रछात्राएं अपनी कक्षा के अमीर बच्चों की देखादेखी अपने मातापिता को महंगे फोन दिलाने की जिद करते हैं और मातापिता भी उन्हें समझने में असमर्थ होते हैं. इतना ही नहीं, महंगे फोन को युवा ज्यादा इस्तेमाल भी नहीं करते बल्कि नया फोन लौंच होते ही अपने फोन की जगह नए फोन को देना चाहते हैं. ये महंगे फोन जेब पर भारी पड़ते हैं.

यदि सोचसमझ कर चला जाए तो महंगे फोन रखने के शौक को बायबाय कर किशोर अपने धन को दूसरी जगह इस्तेमाल कर सकते हैं. जीवन के अगले पड़ाव में जब उन के पास धन नहीं रहेगा तो मानसिक अवसाद बढ़ता जाएगा. अत: जेब खाली करने वाले महंगे फोन रखने की आदत से सभी को बचना चाहिए.          

डा. ममता रानी बडोला                                     

शान के लिए डिस्क में बर्थडे

रोहित हमेशा सोचसमझ कर पैसे खर्च करता था इसी कारण उस के फ्रैंड्स हमेशा उस का मजाक बनाते कि वह कंजूस है.  अपने ऊपर लगे ‘कंजूस’ के टैग से परेशान मोहित ने इस बार अपना बर्थडे डिस्क में मनाने की प्लानिंग की.

दोस्तों में अपनी झूठी शान बनाने के चक्कर में मोहित भूल गया कि वह मम्मीपापा को बिना बताए अपनी ट्यूशन फीस से पार्टी कर रहा है. डिस्क में पार्टी करने पर उसे वाहवाही तो मिली, लेकिन जब उस के पापामम्मी को पता चला तो उसे सिर्फ डांट ही नहीं पड़ी बल्कि पौकेट मनी से भी हाथ धोना पड़ा.

अकसर किशोर झूठी शान बघारने के चक्कर में मातापिता से झूठ बोल कर जिद कर के, उन्हें इमोशनल ब्लैकमेल कर डिस्क में बर्थडे पार्टी करने की मांग करते हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि यहां बर्थडे सैलिब्रेट करना जितना मजेदार समझा जाता है वह वास्तव में भी उतना मजेदार हो.

बजट कंट्रोल करना मुश्किल : घर में पार्टी करने पर आप को पता होता है कि कितने फ्रैंड्स आएंगे, खाने में क्याक्या होगा लेकिन जब आप डिस्क में पार्टी करते हैं तब आप को पता नहीं होता कि कौन क्या और कितनी बार और्डर कर रहा है. आप वहां किसी को मना भी नहीं कर सकते कि दोबारा कुछ और्डर मत करो. ऐसे में बजट कंट्रोल करना काफी मुश्किल हो जाता है.

मस्ती कम शो औफ ज्यादा : डिस्क में पार्टी करने पर फ्रैंड्स का ध्यान मस्ती से ज्यादा इस बात पर रहता है कि वे कैसे दिख रहे हैं, पार्टी में कौन क्या पहन कर आया है, सैल्फी कहां अच्छी आएगी. यही नहीं खुल कर एक ग्रुप में ऐंजौय करने के बजाय छोटेछोटे ग्रुप्स में बंट जाते हैं और खुद में ही मस्त रहते हैं.

ड्रिंक ट्राई करने की लालसा : भले ही आप की पार्टी में ड्रिंक न हो लेकिन किशोरों में ड्रिंक ट्राई करने की उत्सुकता रहती है, उन्हें लगता है कि यही मौका है जहां वे ड्रिंक ट्राई कर सकते हैं. अगर किसी ने गलती से भी ड्रिंक ट्राई कर लिया तो आप को भी पता है कि उस के बाद मस्ती तो होगी नहीं और बड़ों से डांट पड़ेगी सो अलग.

पौकेट मनी से समझौता : कुछ किशोर झूठी शान के लिए पौकेट मनी से भी समझौता करने को तैयार हो जाते हैं. वे अपने मम्मीपापा से कहते हैं कि डिस्क में बस एक बार बर्थडे मना दो, मैं आप से 2 महीने तक पौकेट मनी नहीं मागूंगा. लेकिन बाद में पौकेट मनी के बिना रहना मुश्किल हो जाता है. अगर वे मांगते भी हैं तो पेरैंट्स साफसाफ मना कर देते हैं.

फ्रैंड्स पर भी पड़ता है बोझ : डिस्क में बर्थडे मनाने पर आप के बाकी फ्रैंड्स पर भी इस का बोझ पड़ता है उन्हें लगता है कि आप ने डिस्क में पार्टी दी है तो अब उन्हें भी डिस्क में ही बर्थडे सैलिब्रेट करना पड़ेगा. अगर वे वहां सैलिब्रेट नहीं करते तो सारे फ्रैंड्स उन का मजाक बनाएंगे. इसी वजह से वे अपने पेरैंट्स से डिस्क में बर्थडे मनाने की जिद करते हैं.

चोरी करने की गलती : कुछ किशोर दोस्तों के बीच झूठी शान दिखाने के लिए चोरी तक कर लेते हैं ताकि वे उन पैसों से दोस्तों के साथ डिस्क में मस्ती कर सकें. यहां तक कि मम्मी से झूठ बोल कर पैसे लेते हैं कि हम सारे फ्रैंड्स मिल कर गरीब बच्चों को खाना खिलाएंगे और फिर उन पैसों से मस्ती करते हैं.

फ्रैंड्स को नीचा दिखाने की कोशिश : कई बार किशोर अपने दोस्तों को नीचा दिखाने के लिए भी डिस्क में पार्टी करते हैं, वे दोस्तों के बीच सुपीरियर बनने के लिए भी डिस्क में जाते हैं ताकि दोस्तों के बीच उन का अच्छा इंप्रैशन बना रहे और वे जो बोलें वही हो, जैसा चाहें ग्रुप में वैसा ही हो.

पढ़ाई से ध्यान भटकना : डिस्क में म्यूजिक के शोरशराबे के बीच किशोर मस्ती तो खूब करते हैं, लेकिन इस का असर उन की पढ़ाई पर भी पड़ता है, उन का पढ़ाई में मन नहीं लगता. वे बस हमेशा यही सोचते रहते हैं कि काश, एक बार और डिस्क में जाने का मौका मिल जाता.

अलग माहौल : ऐसा भी हो सकता है कि आप ने जिद कर के डिस्क में बर्थडे पार्टी का अरेंजमैंट तो करवा लिया, लेकिन वहां का माहौल थोड़ा अजीब हो, जहां आप सब खुल कर ऐंजौय न कर सकें. बस, यही कहते रहें कि घर पर कितना मजा आता है. यहां तो लाइट म्यूजिक के अलावा और कुछ भी नहीं है.

पेरैंट्स की रजामंदी नहीं : आप तो फ्रैंड्स के बीच सैंटर औफ अट्रैक्शन बनने के लिए डिस्क में पार्टी करना चाहते हैं, लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि आप के फ्रैंड्स के पेरैंट्स उन्हें डिस्क में जाने की अनुमति न दें. फिर क्या, आप की पार्टी तो धरी की धरी रह जाएगी.

खुद की मस्ती में अपनों को इग्नोर : डिस्क में किशोर बर्थडे पार्टी करने की जिद इसलिए करते हैं ताकि वे अपने फ्रैंड्स को दिखा सकें कि वे कितनी मस्ती करते हैं. उन के पेरैंट्स उन से इतना प्यार करते हैं कि उन के लिए डिस्क में पार्टी रखवा देते हैं, लेकिन वे दिखावे और खुद की मस्ती में अपनों को इग्नोर कर देते हैं.

जरा सोचिए, जब घर में पार्टी होती है तब आप के अंकलआंटी, दादादादी, नानानानी सभी आते हैं, लेकिन डिस्क में बर्थडे पर वे कहते हैं कि इस उम्र में हम वहां क्या करेंगे, वे चाहते हुए भी इस खास अवसर पर शामिल नहीं हो पाते.

दिखावे के लिए अपनों से मतभेद : किशोर दिखावे के लिए पेरैंट्स से मतभेद तक कर लेते हैं. जब पापामम्मी मना कर देते हैं, तब वे जिद पर अड़ जाते हैं कि उन्हें बर्थडे डिस्क में ही मनाना है. किसी से बात नहीं करते, खाना नहीं खाते, जिस की वजह से उन की जिद के आगे पेरैंट्स को झुकना पड़ता है.

दबाव से घर का माहौल खराब : डिस्क में बर्थडे मनाने की जिद से पेरैंट्स पर प्रैशर पड़ता है, क्योंकि घर चलाने के साथ बर्थडे के लिए अरेंजमैंट जो करना पड़ता है. ऐसा भी हो सकता है कि वे मैनेज नहीं कर पा रहे हों और आप बारबार जिद करते रहें कि नहीं इस बार बर्थडे डिस्क में ही मनाना है, इस से पापा को गुस्सा आ जाए और उन के द्वारा डांटने से घर का माहौल खराब हो जाए.                

मायके लौट आना समस्या का हल नहीं

आज विभा का मन बहुत उदास था. यों तो वह हमेशा खुश रहने का प्रयास करती पर न जाने क्यों कई बार उसे लगता कि आज से 30 साल पहले लिया गया निर्णय सही नहीं था. मां तो बचपन में ही गुजर गई थीं. पिता ने बड़ी धूमधाम से उस का विवाह मुंबई के एक कौंट्रैक्टर से किया था. पहली विदाई के बाद जब पति के साथ मुंबई गई तो मन ही नहीं लगा. मायके में आजादी और अपनी मनमरजी से रहने वाली विभा को पति के घर की जिम्मेदारी वाली जिंदगी रास नहीं आ रही थी. हर दूसरे दिन सामान उठा कर पिता और भाईर् के पास आ जाती. भाईभाभी दोनों सर्विस करते थे, इसलिए उन के बच्चे को संभालने से ले कर सारा काम करती और चैन से रहती.

मुंबई में जहां पति के टाइम के अनुसार काम करने, नातेरिश्तेदारी, घर की जिम्मेदारी निभाने जैसे कार्यों से उसे ऊब होती, वहीं यहां सुबह ही भाईभाभी बैंक चले जाते और पूरे घर पर उस का एकछत्र राज रहता. इसी तरह 2-3 साल निकल गए. फिर एक दिन वह हमेशा के लिए भाई के पास मायके आ कर ही रहने लगी. अब तक पिता भी गुजर चुके थे. पिता की ही तरह भाई ने भी उस से कभी कुछ नहीं कहा और उस दिन से ले कर आज 55 साल की हो गई है भाई का घर ही उस का सब कुछ है और उन के अनुसार चलना ही उस की जिंदगी. परंतु कभीकभी कोई बात अंदर तक कचोट जाती.

कहने को अपना

रीमा को भी आज ससुराल छोड़ कर मायके आए 25 साल हो गए हैं. जब आई थी तो मातापिता जीवित थे. ससुराल छोड़ कर आई बेटी को हाथोंहाथ लिया था, पर मातापिता कब तक जीवित रहते. एक दिन दुनिया छोड़ कर चले गए. तब से भाईभाभी के सहारे अपना और 2 बच्चों का जीवनयापन कर रही है. बैंक में नौकरी के कारण आर्थिक तंगी तो नहीं थी पर समाज, रिश्तेदारों और भाभी के ताने मन को अंदर तक तारतार कर देते थे. मगर अब उस ने इसे ही अपनी नियति मान लिया था.

रश्मि शादी के बाद जब ससुराल पहुंची, तो वहां का माहौल उस के मायके से एकदम अलग था. मायके में जहां सभी आजाद खयालों के थे वहीं यहां एकदम दकियानूसी माहौल था. सिर पर पल्ला, बड़ों के सामने बात नहीं करना जैसी कठोर पाबंदियां थीं. ऐसे माहौल में अकसर उस का दम घुटने लगता और पति से कहासुनी हो जाती. फिर एक दिन इसी सब के चलते उस ने अपना सूटकेस उठाया और आ गई मां के पास. मां ने बहुत समझाया परंतु जवानी का जोश और मायके के रोब ने कभी उसे अपने भविष्य के बारे में सोचने का मौका ही नहीं दिया. आज 45 वर्ष की हो गई है, परंतु उस का अपना कहने को कोई नहीं है. भाईभाभी, भतीजेभतीजियां सब अपनीअपनी दुनिया में व्यस्त रहते हैं.

नासमझी में कदम

शादी के बाद ससुराल में तालमेल न बैठा पाने के कारण पति से मनमुटाव हो जाने या मायके का मोह न छोड़ पाने के कारण आवेश में ससुराल छोड़ कर मायके आ जाना आजकल आम बात है. पहले जहां ऐसे केस कम देखने को मिलते थे, वहीं आजकल यह बड़ी आम बात हो गई है. पहले यदि लड़की नासमझी में ऐसा कदम उठा भी लेती थी, तो मातापिता और नातेरिश्तेदार दोनों में सहमति कराने का प्रयास कर के टूटते घर को बचा लेते थे, परंतु आजकल मातापिता भी यह कह कर कि वे लोग अपने को समझते क्या हैं लड़की का साथ देते हैं, जिस से समस्या और अधिक बढ़ जाती है. आम लोगों के अतिरिक्त फिल्मी दुनिया भी इस समस्या से अछूती नहीं है. मशहूर अभिनेत्री बबीता ने आपसी मतभेद के चलते पति रणधीर कपूर का घर अपनी दोनों बेटियों करिश्मा और करीना के साथ छोड़ दिया और स्वयं नौकरी कर के अपनी बेटियों को काबिल बनाया.

कदम कदम पर संघर्ष

करिश्मा कपूर का विवाह संजय कपूर के साथ बड़ी धूमधाम से हुआ था, परंतु कुछ वर्षों तक साथ रहने के बाद वे भी अपने 2 बच्चों के साथ अपने मातापिता के पास आ गईं.

अपने समय की जानीमानी अभिनेत्री पूनम ढिल्लो भी पारस्परिक मनमुटाव के चलते पति अशोक ठकेरिया का घर छोड़ कर अपनी बहन के घर आ गईं और बाद में हौंगकौंग के एक व्यवसायी से विवाह कर लिया.

विवाह के बाद एक महिला और पुरुष दोनों की ही नई जिंदगी शुरू होती है. जीवन की यह पारी नवीन जिम्मेदारियों, नए रिश्तों और नित नई चुनौतियों से भरी होती है. इस का कारण होता है कि 2 व्यक्ति अलगअलग परिवेश से आ कर एक प्लेटफौर्म पर मिलते हैं, तो विचारों, पसंदनापसंद, प्राथमिकताओं आदि में मतभेद होना स्वाभाविक है. अत: शुरू में सभी को तालमेल बैठाना ही होता है. पतिपत्नी को परस्पर एकदूसरे को समझना ही होता है, साथ ही परिवार के अन्य सदस्यों के साथ भी तालमेल बैठाना होता है. महिला चूंकि परिवार की केंद्रबिंदु होती है, इसलिए उस पर जिम्मेदारियों का भार अधिक होता है. कई बार ससुराल के लोगों को समझने में काफी वक्त लग जाता है, परंतु यदि थोड़ी समझदारी और धैर्य से काम लिया जाए, तो धीरेधीरे सभी परिस्थितियां मनोनुकूल हो जाती हैं.

पहाड़ सी जिंदगी

कई बार भावावेश में आ कर महिलाएं अपनी ससुराल या पति का घर छोड़ तो देती हैं और उस समय अकसर मायके वाले भी हाथोंहाथ लेते हैं, परंतु समय बीतने के साथसाथ मायके वालों का व्यवहार बदलने लगता है. यह स्थिति तब और खराब हो जाती है जब लड़की आत्मनिर्भर नहीं होती, क्योंकि ऐसी स्थिति में उसे अपने और बच्चों के दैनिक जीवन के खर्चों के लिए भी मातापिता या भाईबहन का मुंह देखना पड़ता है. कई बार तो भाईभाभी और बहनें बच्चों में ही फर्क करना शुरू कर देती हैं, जो किसी भी महिला के लिए असहनीय होता है. उस समय यह पहाड़ सी जिंदगी दुश्वार लगने लगती है.

बच्चों पर प्रभाव

जब एक महिला अपने बच्चों को ले कर मायके आ जाती है, तो उस की जिंदगी के साथसाथ उस के बच्चों की जिंदगी पर भी बहुत प्रभाव पड़ता है. कई बार तो बच्चे अपने चचेरेममेरे भाईबहनों के पिताओं को देख कर अवसाद तक में चले जाते हैं कि उन के पिता नहीं  हैं. उन्हें अपना परिवार अधूरा सा लगता है, क्योंकि एक बच्चे के संपूर्ण विकास के लिए जितनी मां की आवश्यकता होती है उतनी ही पिता की भी होती है.

सामाजिक स्थिति

भारतीय समाज पुरुषप्रधान है. यह सही है कि आज महानगरों में अधिकांश महिलाएं अकेली रहती हैं, परंतु विवाह हो जाने के बाद मायके में रहने वाली महिला को सवालिया निगाहों से देखा जाता है. कई बार ऐसी महिला से दूसरी महिलाएं भी अपनेआप को दूर ही रखती हैं ताकि वह कहीं उन के पति पर डोरे न डालने लगे. इस के अतिरिक्त पुरुषों की कामुक निगाहों की भी वह अकसर शिकार हो जाती है, क्योंकि पुरुषों को वह बेचारी नजर आती है, जिस की देखभाल करने वाला कोई नहीं होता.

स्वयं के जीवन पर प्रभाव

मायके वालों के सहारे कब तक जीवन व्यतीत किया जा सकता है. जब शादी होती है तो आप को ऐसा लाइफपार्टनर मिलता है, जो जीवन के हर मोड़ पर आप का साथ देने के लिए खड़ा रहता है, जिस से आप घरपरिवार, समाज, बच्चों और अपने बारे में खुल कर बात कर सकती हैं. जीवन में कई बार ऐसे अवसर आते हैं जब आप बच्चों से हर बात शेयर नहीं कर सकतीं, साथ ही जीवन में आने वाली समस्याओं को भी अकेले ही झेलना पड़ता है. इसीलिए अकसर अपने परिवार को छोड़ कर मायके में रहने वाली महिलाओं को मानसिक असंतोष के चलते डिप्रैशन और ब्लडप्रैशर जैसी बीमारियां हो जाती हैं.

अनिश्चित भविष्य

एक समय पर बच्चों की अपनी जिंदगी शुरू हो जाती है. वे उस में मस्त हो जाते हैं. आप की न ससुराल रहती है और न मायका, क्योंकि एक निश्चित समय के बाद मायके वाले भी कन्नी काटते हैं. ऐसे में भविष्य अनिश्चित हो जाता है. पति के साथ होने से आप अपनेआप को सुरक्षित महसूस करती हैं. आजकल के बच्चे अपने मातापिता का ध्यान नहीं रख पाते. ऐसे में आप के लिए उन के जीवन में कहां जगह होगी. पति का घर आप का अपना घर होता है जहां आप पति के न रहने पर भी आराम से जीवन व्यतीत कर सकती हैं.

आर्थिक संकट

घरेलू महिला जब पति का घर छोड़ कर मायके आ जाती है, तो उस के सामने सब से बड़ा संकट आर्थिक होता है. ऐसे में अपने दैनिक जीवन की जरूरतों तक के लिए उसे मायके वालों का मुंह देखना पड़ता है. उसे अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उन पर निर्भर रहना पड़ता है. इसी प्रकार हारीबीमारी में भी दूसरों का मुहताज होना पड़ता है. यदि वह आर्थिक रूप से सक्षम है, तो उसे मायके वालों की अर्थिक जरूरतों को भी पूरा करना पड़ता है. ऐसी स्थिति में उस के पैसों पर उन की पूरी नजर होती है.

फिल्मी दुनिया की बात अलग होती है. वहां तो दूसरी शादी भी सहजता से हो जाती है, दूसरे उन्हें आर्थिक संकट भी नहीं होता, परंतु भारतीय समाज में एक महिला के लिए दूसरी शादी करना भी उतना आसान नहीं होता. इस के अतिरिक्त यदि बच्चे हैं, तो नया पिता उन्हें स्वीकार करेगा या नहीं इस में भी संदेह होता है. आमतौर पर ऐसे मामलों में महिला को ही दोषी ठहराया जाता है कि पति के साथ ऐडजस्ट नहीं किया होगा, क्योंकि भारतीय समाज में पुरुषों के लिए कोई बंधन है ही नहीं. आश्चर्य की बात यह है कि महिला को ताने मारने में महिलाएं ही सब से आगे होती हैं. कई बार वे ताने इतने तीखे होते हैं कि सहने मुश्किल हो जाते हैं.

यह यही है कि कई बार ससुराल या पति के घर में स्थितियां इतनी विपरीत होती हैं कि पति का घर या ससुराल छोड़ कर मायके आने के अलावा और कोई चारा नहीं बचता, परंतु छोटीमोटी वजहों को नजरअंदाज कर के परस्पर वैवाहिक जीवन का आनंद लेने में ही परिवार और आप की भलाई होती है. वैवाहिक जीवन को बचाने के लिए छोटेमोटे समझौते और त्याग भी करने पड़ते हैं और उसी में आप के वैवाहिक जीवन की सार्थकता है.  

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