महिलाओं के लिए हैं बैंकों के ये खास ऑफर्स

महिलाओं की बढ़ती आर्थिक और सामाजिक ताकत को देखते हुए कई बैंक आकर्षक ऑफर दे रहे हैं. खास बात ये है कि आपके लिए कस्‍टमाइज्‍ड प्रोडक्‍ट बनाया गया है. उन्‍हें जो अकाउंट ऑफर किया जा रहा है, उसका नाम है – वीमेंस सेविंग्‍स अकाउंट.

इस अकाउंट के तहत महिलाओं को ऐसी सेवाएं मुफ्त में दी जा रही हैं, जिनके लिए पुरुषों को एक निश्चित रकम चुकानी पड़ती है. महिलाओं को सेवाएं देने में आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक, आरबीएल, कोटक महिंद्रा आगे चल रहे हैं.

कोटक महिंद्रा की होम बैंकिंग

होटक महिंद्रा बैंक महिलाओं को स्‍पेशल वीमेंस अकाउंट के तहत कैश बैक ऑफर और रिवार्ड प्‍वाइंटस तो दे ही रहा है, यह उनके लिए बैंक सिल्‍क-वीमेंस सेविंग्‍स अकाउंट लेकर भी आया है. इसके तहत होम बैकिंग की सुविधा है, यानी उनके घर से नकदी लेना यानी कैश पिक-अप, नकदी देना यानी कैश डिलिवरी, घर पर ही चेक और ड्राफ़ट डिलिवरी जैसी सुविधाएं उपलब्‍ध कराई जा रही हैं. हालांकि ये सेवाएं कुछ चुनिंदा शहरों में ही हैं.

आईसीआईसीआई बैंक का तोहफा

सेविंग अकाउंट के मामले में वैसे तो मिनिमम मंथली एवरेज बैलेंज महिलाओं के लिए भी पुरुष जैसा ही है, लेकिन आरडी यानी रेकरिंग डेपोजिट से लिंक करने पर मिनिमम मंथली बैलेंस मेंटेन करना उनके लिए जरूरी नहीं है. सामान्‍य सेविंग अकाउंट के तहत पांच ट्रांजेक्‍शन फ्री हैं, उसके बाद २० रुपए प्रति ट्रांजेक्‍शन देने पड़ते हैं, लेकिन महिलाओं के लिए आईसीआईसीआई डेबिट कार्ड से अन्‍य बैंकों के एटीएम से भी पैसे की निकासी फ्री है.

आईसीआईसीआई के होम लोन, लॉकर व कैशबैक ऑफर

डेबिट कार्ड से ज्‍वेलरी और डिपार्टमेंट स्‍टोर पर सामान खरीदने पर १ फीसदी कैशबैक, खाने-पीने पर २ फीसदी कैशबैक, मनोरंजन पर ३ फीसदी कैशबैक है. यूटिलिटी की चीजें लेने पर यह सीमा मासिक ७५० रुपए है. आईसीआईसीआई लॉकर रेंटल्‍स पर पहले साल ३० फीसदी की छूट देता है. होम लोन के मामले में हालांकि लाभ का फीसदी साफ नहीं किया है, लेकिन बैंक की वेबसाइट पर कहा गया है कि महिलाओं को खास लाभ दिया जाता है.

एचडीएफसी के लुभावने ऑफर

डेबिट कार्ड से हर २०० रुपए की खरीदारी पर एक रुपए का कैशबैक देता है. एचडीएफसी बैंक महिलाओं को एक लाख रुपए तक का एक्‍सीडेंटल होस्पिटलाइजेशन कवर और १० लाख रुपए का एक्‍सीडेंटल डेथ कवर देता है. दो-पहिया वाहन के लोन की प्रोसेसिंग फीस पर ५० फीसदी की छूट. ऑटो लोन की ऑन-रोड प्राइस की ९० फीसदी फाइनेंशिंग उपलब्‍ध है.

आरबीएल बैंक की अनलिमिटेड विड्रॉल फेसिलिटी

आरबीएल बैंक महिलाओं को सेविंग अकाउंट खुलवाने पर देश में सभी बैंकों के एटीएम से फ्री कैश विड्रॉल यानी निकासी की सुविधा देता है.

अट्रैक्टिव आईब्रो के लिए अपनाएं ये टिप्स

आईब्रो की लेंथ, शेप और थिकनेस आपके बारे में बहुत कुछ बयां कर देती हैं. लेकिन अगर आप इस वजह से परेशान रहती हैं कि आईब्रो की अच्छी शेप नहीं है, तो अब यह परेशानी भूल जाएं. केवल एक सूई के जरिए इसे परफेक्ट शेप दी जा सकती है. आप इसके लिए आई बोटोक्स ब्रो लिफ्ट टेक्नॉलजी अपना सकती हैं.

पाएं अट्रैक्टिव लुक

बोटोक्स ब्रो लिफ्टिंग के नाम से आई यह टेक्नॉलजी बोटोक्स के जरिए आईब्रो को अट्रैक्टिव लुक देने का काम करती है. इससे आप पर्मानेंट आईब्रो पा सकती हैं, वह भी अपनी मनपसंद शेप में. दरअसल, बुटोलिन टॉक्सिन या बोटोक्स के साथ ब्रो लिफ्ट के इस प्रोसेस में उस नर्व को ब्लॉक कर दिया जाता है, तो आईब्रो की शेप को झुकाने की वजह थी. इससे मसल्स पैरालाइज्ड हो जाती हैं. इसमें एनस्थीसिया नहीं दिया जाता.

बता दें कि यह इंजेक्शन आंख के ऊपर के सॉफ्ट पार्ट्स को लूज कर देता है. इसमें कुछ खास मसल्स को टारगेट किया जाता है. क्योंकि अगर वह सही न लग पाए, तो शेप ठीक होने की जगह बिगड़ भी सकती है. इसलिए किसी एक्सपर्ट के पास जाना जरूरी है.

साइड इफेक्ट नहीं

यह टोटल प्रोसेस 15 से 20 मिनट की होती है. यह सुरक्षित ट्रीटमेंट है. सबसे अच्छी बात यह है कि कुछ ही घंटे में रिजल्ट दिखना शुरू हो जाता है. अगर बात साइड इफेक्ट की करें, तो वह न के बराबर है.

सफर में जाना है तो कुछ ऐसे करें गहनों की पैकिंग

जहां एक ओर यात्रा करना, घूमना-फिरना मजेदार होता है, वहीं दूसरी ओर आभूषणों की पैकिंग करना बोझिल मालूम पड़ सकता है. डिस्पोजेबल पाउच और बटन कम समय में आभूषणों की सुरक्षित पैकिंग करने में आपके लिए मददगार साबित हो सकते हैं.

यात्रा के दौरान आभूषणों की सुरक्षित पैकिगं में ये सुझाव आपके काम आ सकते हैं.

– प्लास्टिक के डिस्पोजेबल पाउच ईयर रिंग रखने के काम में आ सकते हैं. प्लास्टिक पाउच में लपेटकर उन्हें यात्रा के दौरान आसानी से ले जाया जा सकता है.

– छोटे ईयर रिंग्स को बटन में हैंग किया जा सकता है और फिर इन्हें छोटे बॉक्स या पाउच में रख लें.

– गले के हार या चेन को टूटने या मुड़ने से बचाने के लिए आप इन्हें स्ट्रॉ के बीच रख सकती हैं, इससे ये सुरक्षित रहेंगे.

– आप चाहें तो मुलायम बेबी टॉवेल में भी सुरक्षित रूप से आभूषणों को लपेटकर रख सकती हैं और तौलिए के आखिरी सिरे को बालों के बैंड से बांध लें.

– छोटे आभूषणों जैसे ईयररिंग और पेंडेन्ट को रखने के लिए आप टिन कंटेनर के बीच में कॉटन बॉल्स रखकर उसके ऊपर इन आभूषणों को रख सकती हैं, इससे ये सुरक्षित रहेंगे.

– आप जुराब में भी आभूषण पैक कर ट्रैवेल बैग में रख सकती हैं.

खूबसूरती बढ़ाने किस हद तक जा रही हैं अभिनेत्रियां

खूबसूरती बढ़ाने किस हद तक जा रही हैं अभिनेत्रियां इसका अंदाजा हाल ही सामने आए एक्ट्रेस उर्वशी रौतेला के ब्यूटी ट्रीटमेंट से लगाया जा सकता है. उर्वशी का न्यू फिटनेस फंडा यूनिक होने के साथ काफी दर्द बरा भी है. उन्होंने ब्यूटी ट्रीटमेंट के लिए कपिंग थेरेपी को चुना. कपिंग थेरेपी एक तरह की चाइनीज रिलेक्‍सेशन थेरेपी है. कुछ ऐसे सेलेब्स, जिन्होंने अपनी स्किन को खूबसूरत और चमकता-दमकता बनाए रखने के लिए कई अजीबोगरीब ट्रीटमेंट करवाए हैं. इनमें से कुछ ट्रीटमेंट तो बेहद दर्दनाक भी हैं.

उर्वशी रौतेला

उर्वशी रौतेला ने हाल ही में कपिंग थेरेपी का ट्रीटमेंट लिया है. ये एक तरह की चाइनीज रिलेक्‍सेशन थेरेपी है. इस थेरेपी के दौरान दर्द भरी प्रकिया से गुजरना पड़ता है. इसके जरिए शरीर के अंदर की गंदगी को बाहर निकाला जाता है और स्किन टिश्यू को ऑक्सीजन और दूसरे तत्व देकर गहराई तक आराम पहुंचाया जाता है. ये दर्दनाक थेरेपी होती है, जिसमें एक्यूपंचर स्पेशलिस्ट कॉटन के गोले को पहले शराब में भिगोते हैं. इसके बाद इन गोलों को कांच से बने छोटे से ग्लास या कप में रखकर इसमें आग लगा दी जाती है और फिर इस आग को बुझाकर गर्म बर्तन को तुरंत ही स्किन पर रखा जाता है. ये थेरेपी वीजे वानी ने यूज की है.

किम कार्दशियन

रियलिटी स्टार और सुपर मॉडल किम कार्दशियन ब्यूटीफुल दिखने के लिए किम ‘प्लेटलेट रिच प्लाज्मा थेरेपी’ लेती हैं. इस थेरेपी में व्यक्ति का खून निकालकर उसे वापस त्वचा में इंजेक्ट किया जाता है.

डेमी मूर

एक्ट्रेस डेमी मूर की ब्यूटी का राज जोंक है. वे अपनी स्किन को ग्लो करने और खूबसूरत बनाए रखने के लिए जोंक थेरेपी लेती हैं. यह थेरेपी लेने के लिए वे अक्सर ऑस्ट्रेलिया जाती हैं. इस थेरेपी में बहुत सारे जोंक खून से ऐसे टॉक्सिस को चूस लेते हैं, जिससे त्वचा जवां और चमकदार दिखने लगती है. इस थेरेपी को लेते समय काफी दर्द भी होता है. इस ट्रीटमेंट से त्वचा संबंधी बीमारियां नहीं होती हैं.

ग्वेनेथ पाल्ट्रो

हॉलीवुड एक्ट्रेस ग्वेनेथ पाल्ट्रो झुर्रियों से बचने के लिए सांप के जहर से बनी क्रीम का इस्तेमाल करती हैं. इसका उपयोग करने से चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़ती हैं. इस तरह की क्रीम का इस्तेमाल करने वाली ग्वेनेथ पहली एक्ट्रेस नहीं हैं. इससे पहले एक्ट्रेस केइरा नाइटली और जेसिका सिम्पसन भी सांप के जहर का ट्रीटमेंट अपने होठों पर कर चुकी हैं. ये बहुत ही दर्दनाक होता है.

हैली बेरी

एक्ट्रेस हैली बेरी यंग दिखने के लिए कॉफी को बॉडी पर स्क्रब करती हैं. इससे ब्लड सर्कुलेशन अच्छा होता है.

जेनिफर लोपेज

सिंगर जेनिफर लोपेज अपने चेहरे का ग्लो बनाए रखने के लिए अजीबोरगीब ट्रीटमेंट लेती हैं. उनकी स्किन ग्लो करती रहे, इसके लिए वे ह्यूमन प्लेसेंटा फेशियल करवाती हैं.

केटी होम्स

अभिनेत्री केटी होम्स अपनी त्वचा पर प्लासेंटा क्रीम का इस्तेमाल करती हैं. प्लेसेंटा (नाल) प्रेग्नेंसी के दौरान बच्चे के पेट से जुड़ी होती है. बता दें कि प्लेसेंटा में पोषक तत्व होते हैं, जो स्किन को ग्लो करने में मदद करते हैं.

स्कारलेट जोहानसन

एक्ट्रेस स्कारलेट जोहानसन अपनी स्किन का बहुत ध्यान रखती हैं. वे अपनी त्वचा को चमकदार बनाने के लिए साइडर सिरके का उपयोग करती हैं. एक इंटरव्यू के दौरान स्कारलेट ने खुद अपनी दमकती त्वचा का राज बताया था.

विक्टोरिया बेकहम

फैशन डिजाइनर विक्टोरिया बेकहम फेशियल बर्ड पू (चिड़िया का मल) से करवाती हैं. इसी से उनके चेहरे का ग्लो बना रहता है.

खूबसूरती बढ़ाती नई तकनीकें

40 से अधिक उम्र के स्त्रीपुरुष इन नई तकनीकों के सहारे ब्यूटी ट्रीटमैंट्स करा कर बहुत सहजता से आप अपने मोटापे से मुक्ति पाकर खूबसूरत दिख सकते हैं, यहां जानिए कैसे.

आधुनिक भारत तनाव के उच्च स्तर, अनिद्रा, मोटापा, उच्च रक्तचाप, मधुमेह जैसी समस्याओं से जूझ रहा है. काम करने के अव्यवस्थित तरीके, अस्वास्थ्यप्रद आहार लेना, शारीरिक व्यायाम न करना, खानेपीने की चीजों में मिलावट, प्रदूषण, डिजिटल तनाव आदि आज स्वास्थ्य पर भारी पड़ रहे हैं. स्वास्थ्य बिगड़ने का पहला संकेत मोटापा आज भारतीय पुरुषों और महिलाओं में महामारी की तरह फैल रहा है. समस्या वजन बढ़ने के साथ शुरू होती है और धीरेधीरे गंभीर जानलेवा रोगों जैसे हृदय रोग, कैंसर, कोरोनरी स्ट्रोक आदि का कारण बन जाती है.

हाल ही में ब्रिटिश मैडिकल जनरल द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार भारत में करीब 2 करोड़ महिलाएं मोटापे की शिकार हैं, वहीं मोटापे से पीडि़त पुरुषों की संख्या 1 करोड़ है.

आंकड़े चौंका देने वाले हैं और इन पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है. 40 एवं अधिक उम्र की महिलाओं की बात करें, तो उन के लिए वजन कम करना धीरेधीरे मुश्किल होता जाता है. ज्यादातर महिलाओं को लगता है कि उन्हें वजन कम करने के लिए बहुत कोशिश करनी पड़ेगी. जीवन की इस अवस्था के दौरान शरीर में चयापचयी बदलाव आने लगते हैं और पाचन प्रक्रिया में बदलाव के चलते शरीर के बीच के हिस्से, जांघों आदि में वसा जमने लगती है. हारमोनल बदलाव भी चयापचयी दर को प्रभावित करता है और वजन कम करना मुश्किल होता जाता है. उस पर अगर आप को कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्या है, तो परेशानी और बढ़ जाती है.

मोटापे की समस्या का अब प्रभावी उपचार उपलब्ध है. वजन कम करने की कोशिशों में नाकाम होने के बाद अब ज्यादातर लोग वजन कम करने के सर्जिकल एवं नौनसर्जिकल उपायों की ओर रुख करने लगे हैं. बढ़ती जागरूकता, अत्याधुनिक उपचार एवं प्रभावी चिकित्सा पेशेवरों की उपलब्धता के चलते नौनइनवेसिव सर्जिकल प्रक्रियाएं अब लोकप्रिय हो रही हैं.

सौंदर्य चिकित्सा अब शहरी पुरुषों और महिलाओं के लिए नया मंत्र बन गई है, क्योंकि अच्छी दवाओं और डर्मेटोलौजिस्ट की मदद से वे अपनी इन समस्याओं का समाधान कर सकते हैं. यह प्रभावी, तीव्र और आरामदायक तरीका है. सुरक्षित नौनइनवेसिव विधियां कंटूरिंग, त्वचा के ढीलेपन और गुणवत्ता में सुधार, फाइन लाइंस को हटाने, जिद्दी वसा को निकालने में कारगर हो सकती हैं. अब तक हमारे पास ऐसे उपकरण थे, जो मरीज के सीधे संपर्क में होते थे, लेकिन आज हमारे पास ऐसी तकनीक है, जिस में मरीज एवं डिवाइस के बीच सीधा संपर्क नहीं होता. मरीज उपचार कराने के साथसाथ किताब पढ़ सकता है, टीवी देख सकता है, अपने दोस्तों के साथ चैट कर सकता है.

सौंदर्य चिकित्सा पिछले 2 सालों में बेहद लोकप्रिय हो गई है और नई तकनीकों ने डाक्टरों एवं मरीजों को कईर विकल्प उपलब्ध कराए हैं. यह कौस्मैटिक सर्जरी से अलग है जैसा कि अकसर माना जाता है. कौस्मैटिक सर्जरी में शल्यक्रिया के द्वारा व्यक्ति के लुक में बदलाव लाया जाता है जबकि सौंदर्य चिकित्सा एक नौनइनवेसिव तरीका है.

राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बौडी कंटूरिंग एवं स्किन लैक्जिटी रिपेयर (त्वचा के ढीलेपन में सुधार) के कई समाधान उपलब्ध हैं जैसे क्रीयोलिपोलिसिस, लेजर लिपोलिसिस, अल्ट्रासाउंड एवं रेडियोफ्रीक्वैंसी आदि. रेडियोफ्रीक्वैंसी भारतीय बाजार में सब से पसंदीदा सौंदर्य उपकरण बन चुकी है. रेडियोफ्रीक्वैंसी पर आधारित तकनीकें जैसे बीटीएल वैंक्विश एमई या मोनोपोलर रेडियोफ्रीक्वैंसी तथा अल्ट्रासाउंड जैसे बीटीएल ऐक्जिलिस एलाइट वसा कम करने में नौनइनवेसिव तकनीकें कारगर साबित हुई हैं.

ये तकनीकें एक ही सत्र में सब से बड़े हिस्से का उपचार करती हैं. उपचार में बाहरी त्वचा या वसा की परत के नीचे मौजूद पेशियों को नुकसान पहुंचने की संभावना नहीं होती है. इस का कोई साइड इफैक्ट भी नहीं है और न ही ज्यादा समय की जरूरत है. आप लंच ब्रेक ले कर अधिकतम 1 घंटे के सत्र में यह उपचार करवा सकती हैं.

रेडियोफ्रीक्वैंसी उन के लिए अच्छा विकल्प है, जो सर्जरी नहीं करवाना चाहते. 40 से अधिक उम्र के पुरुषों और महिलाओं को इस तरह के उपचार की सलाह दी जाती है, क्योंकि यह ढीली त्वचा पर भी बहुत अच्छी तरह से काम करता है. नये कोलोजन के निर्माण को बढ़ाता है, शरीर को कंटूर करता है और बिना चीरा लगाए अतिरिक्त फैट निकाल देता है.

-डा. अमित लूथरा (एलाइट टैक्नोलौजी विशेषज्ञ)

यहां वही हिट है जो फिल्मी गाने गाता है : रीवा राठौड़

महज 21 वर्ष की उम्र में रीवा राठौड़ ने जो मुकाम हासिल किया उसे हासिल करने में लोगों की पूरी उम्र बीत जाती है. रीवा स्वयं अपने गाने लिखती हैं, स्वयं उन्हें संगीत से संवारती हैं और स्वयं गाती हैं.

रीवा राठौड़ को संगीत विरासत में मिला है. उन के पिता मशहूर तबला वादक, संगीतकार व गायक तथा गत वर्ष अपने गजल अलबम ‘जिक्र तेरा’ के लिए ‘जीमा’ अवार्ड हासिल कर चुके रूप कुमार राठौड़ हैं, जबकि मां सोनाली राठौड़ शास्त्रीय गायिका हैं.

आप ने किस उम्र में संगीत सीखना शुरू किया था?

बचपन में संगीत में रुचि थी. जब मैं 6 साल की थी तब मेरे पिता ने पियानो ला कर दिया. मैं ने शांति शेंडल से पियानो बजाना सीखना शुरू किया. पियानो से शुरुआत करने की वजह से मुझे कौर्ड, हारमोनी, रिदम आदि की समझ आई. इस के बाद दक्षिण का संगीत शंकर महादेवन से सीखा. मैं तो आज भी कर्नाटक संगीत सीख रही हूं. उस के बाद मैं ने अपने पिता के मित्र व संगीतकार पं. राजन साजन से हिंदुस्तानी क्लासिकल संगीत सीखना शुरू किया. इस तरह मेरे संगीत में बनारस घराना भी जुड़ा. बनारस घराने के संगीत की मुझे अच्छी समझ हो गई है. मेरे मातापिता ने मुझे संगीत के क्षेत्र में हर तरह से परिपक्व करने के लिए हर संभव ट्रेनिंग दिलाई.

आप ने विविध प्रकार के संगीत की जो ट्रेनिंग ली है, उस से आप के अंदर क्या बदलाव आया?

आप मेरे गाने सुन कर दिग्भ्रमित होते रहेंगे. दक्षिण के गाने सुन कर आप को लगेगा कि मैं दक्षिण भारतीय हूं. अंगरेजी भाषा के गाने सुन कर आप को लगेगा कि मेरी परवरिश विदेश में हुई है. हिंदी गाने सुन कर लगेगा कि मैं वाराणसी में ज्यादा रही हूं. मैं पहली लड़की हूं जिस ने दक्षिण भारतीय ‘कचरी’ की है. मैं ने मुंबई के मैसूर ऐसोसिएशन हाल में 2 घंटे तक दक्षिण भारतीय गीत गाए हैं. जो 2 घंटे की बैठक होती है उसे कचरी कहते हैं. पर मैं बचपन से ही अंतर्राष्ट्रीय संगीत जगत में अपनी पहचान बनाना चाहती थी.

आप की शिक्षा अंगरेजी माध्यम से हुई है, क्या इसी के चलते आप अंगरेजी भाषा में गाने लिखती हैं और इंटरनैशनल संगीत में नाम कमाना चाहती हैं?

मेरे सपने को आप इस तरह से न देखें. मैं तो बचपन से ही अंतर्राष्ट्रीय संगीत जगत में अपना नाम बनाना चाहती थी. मेरी शिक्षा अंगरेजी माध्यम से हुई है, मगर मैं पढ़ाई में बहुत कमजोर थी. मेरी रुचि हमेशा संगीत में रही है. हकीकत में मैं जिस तरह के गाने सुनना पसंद करती हूं, मैं जिस तरह के गाने संगीतबद्ध करती हूं, जिस तरह के गाने लिखती हूं, उस तरह के गाने अंतर्राष्ट्रीय संगीत बाजार के लिए ज्यादा उपयुक्त हैं. मुझे अंतर्राष्ट्रीय गायकों में शीन, नोरा, जोंस, यन्नी व ब्रिटनी को सुनना बहुत पसंद है. इन गायकों ने मुझे बचपन से बहुत प्रभावित किया है. इस वजह से भी इंटरनैशनल संगीत में मेरी ज्यादा रुचि है.

पर आप के पिता बता रहे थे कि आप किशोर कुमार की प्रशंसक रही हैं?

आप को जान कर आश्चर्य होगा, पर मेरी जिंदगी का सब से बड़ा सच यह है कि 18 वर्ष की उम्र तक मैं किशोर कुमार की बहुत बड़ी प्रशंसक रही हूं. मेरे पास उन के गाए कम से कम 5 हजार गाने हैं. किशोर कुमार के हजारों गाने मुझे याद हैं. मेरे कमरे में 18 वर्ष की उम्र तक सिर्फ किशोर कुमार के ही फोटो व पोस्टर लगे होते थे. जब मेरा 18वां जन्मदिन मनाया गया, तो मैं ने पूरे घर में गुब्बारे नहीं, बल्कि किशोर कुमार के बड़े-बड़े कट आउट लगाए थे.

जब मैं 7वीं कक्षा में थी, तो बीमारी की वजह से कुछ दिनों तक स्कूल नहीं जा पाई. जब स्वस्थ हुई, तो रविवार के दिन मैं ने अपनी दोस्त को फोन कर स्कूल में सोमवार को क्या होने वाला है, इस की जानकारी मांगी. उस ने बताया कि सोमवार को हिंदी की परीक्षा है. मैं ने उस से चैप्टर पूछ कर अपने पिता के साथ बैठ कर तैयारी कर ली. जब स्कूल गई तो 5 सवाल तो उन्हीं चैप्टर्स में से थे. मगर 10 सवाल दूसरे चैप्टरों से आए थे. जिन सवालों के जवाब मुझे नहीं आ रहे थे, उन की जगह मैं ने किशोर कुमार के गाने लिख दिए जैसे ‘पलपल दिल के पास’, ‘हम बेवफा क्यों हुए…’ आदि जितने गाने याद आए, सब लिख दिए. फिर घर आ कर मैं ने रोते हुए पिता को सब कुछ बता दिया. पिताजी ने टीचर को फोन कर के बात की. टीचर ने पापा से कहा कि उस ने गाने लिखने के बजाय मुझे सुना दिए होते, तो भी मैं उसे पास कर देती. मेरी स्कूल की टीचर व प्रिंसिपल ने मुझे बहुत सपोर्ट किया.

18 साल की उम्र के बाद ऐसा क्या हो गया कि आप का किशोर कुमार से मोहभंग हो गया?

मैं ने पहले भी कहा कि बचपन से ही मुझे इंटरनैशनल संगीत में जाना था. विदेशों में फिल्म कलाकारों की बनिस्बत गायकों की अहमियत बहुत ज्यादा है. वहां एक गायक का एक गाना हिट होते ही उस की पूरी जिंदगी बन जाती है. उसे बारबार अपनेआप को साबित करने की जरूरत नहीं पड़ती. भारत में तो हर बार खुद को साबित करना पड़ता है. भारत में संघर्ष कभी खत्म नहीं होता.

तो ऐसा फर्क क्यों है?

इस की सब से बड़ी वजह यह है कि यहां सब कुछ बौलीवुड है. यहां का गायक बौलीवुड फिल्मों में गाने और इस बात पर ध्यान देता है कि उस की आवाज किस कलाकार पर फिट बैठेगी? यहां संगीत के क्षेत्र में बैंड कल्चर का अभाव है. यहां सिर्फ संगीत से जुड़ें और फिल्मों से न जुड़ें, ऐसा नहीं है. यहां जो लोग खुद गाना लिख कर उसे संगीतबद्ध कर अपनी ही आवाज में रिकौर्ड करते हैं, उन की हमारे देश में कद्र नहीं होती. यहां गायक की पहचान इस बात से होती है कि उस ने किस सफल फिल्म में गाना गाया या किस फिल्म का उस का गाना हिट हुआ, जबकि विदेशी फिल्मों में गाने नहीं होते हैं. वहां के संगीतकार या गायक स्वतंत्र रूप से गाना गाते हैं. वहां के गायक स्टार कलाकारों से काफी बड़े हैं. वहां संगीतकार व संगीत से जुड़ी हस्तियों का रुतबा अभिनेता के मुकाबले कई गुना बड़ा है. वहां के श्रोता म्यूजिकल कंसर्ट में बहुत ध्यान से संगीत को सुनते हैं. उन के लिए संगीत, संगीत की धुन, आवाज बहुत माने रखती है. जबकि हमारे यहां संगीत के शो में गायक गाता रहता है और उस के सामने पहली कतार में बैठा इनसान मोबाइल पर बातें करता रहता है. यह देख कर एक गायक को अंदर से बहुत अजीब सा लगता है. यहां संगीत को बौलीवुड से इतर कुछ समझा ही नहीं जाता.

अंतर्राष्ट्रीय संगीत जगत में पहला कदम कब रखा?

मुझे पहली बार 2011 में पुणे में अंतर्राष्ट्रीय गायक ब्रायन एडम के म्यूजिकल शो की शुरुआत करने का अवसर मिला था. इस शो में मैं ने अपना लिखा, अपने द्वारा संगीतबद्ध गीत गा कर श्रोताओं का दिल जीत लिया था. उस के बाद स्पैनिश फिल्म निर्देशक मारिया रिपोल की स्पैनिश व अंगरेजी भाषा की नवंबर 2014 में पूरे विश्व में प्रदर्शित फिल्म ‘ट्रेसेस औफ सैंडलवुड’ में संगीत देने के साथ ही ‘तनदाना’ नृत्यप्रधान गीत गाने का अवसर मिला. इस फिल्म में स्पैनिश कलाकार ऐना क्लोटेट के साथ भारतीय अभिनेत्री नंदिता दास ने अभिनय किया है. इस फिल्म का मेरा यह गाना काफी लोकप्रिय है. यह गाना इतना लोकप्रिय है कि वहां की छोटी लड़कियां नृत्य सीखने के लिए इसी गाने का उपयोग करती हैं. कई लड़कियों ने तो इस के वीडियो भी यूट्यूब पर डाले हैं. स्पैनिश फिल्म में गीत गाने व संगीत देने के बाद मेरा उत्साह बढ़ गया. मेरे दिमाग में यह बात घर कर गई कि अब मुझे अंतर्राष्ट्रीय संगीत जगत में कुछ कर गुजरने से कोई नहीं रोक सकता. फिर मैं ने विश्व प्रसिद्ध ‘बुद्धा बार लाउंज’ के लिए अलबम बनाया, जो दिसंबर माह से हर जगह बज रहा है.

पर बुद्धा लाउंज बार के लिए अलबम करने का मौका कैसे मिला?

मैं ने गणेश के एक संस्कृत के श्लोक को आधुनिक पश्चिमी संगीत के फ्यूजन के साथ नया रंग देते हुए अपनी ही आवाज में उस का एक वीडियो बना कर यूट्यूब पर डाल दिया, जिस की वजह से बुद्धा बार लाउंज के मालिकों से मेरा परिचय हुआ. उन के कहने पर मैं ने गणेश के श्लोकों पर ही ‘इन राउट गणेशा’ नामक अलबम तैयार कर के दिया.

पिछले 20 वर्षों से यह बुद्धा बार लाउंज हर साल विश्व के सर्वश्रेष्ठ संगीत को चुन कर एक अलबम ले कर आता है. फिर यह अलबम का गाना बुद्धा बार लाउंज की हर चेन बार में बजता है. यह गाना गणपति के संस्कृत के श्लोक पर है, जिसे मैं ने थोड़ा मौडर्न टच दे कर गया है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह मेरी बहुत बड़ी उपलब्धि है. मैं पहली भारतीय संगीतकार हूं जिस के संगीतबद्ध व स्वरबद्ध गीत को बुद्धा बार लाउंज ने पिछले 20 वर्षों में पहली बार चुना.

अपनी बहुमुखी प्रतिभा पर रोशनी डालें?

मुझे घुड़सवारी का भी शुरू से शौक था. इसीलिए मैं ने 10 साल की उम्र में घुड़सवारी सीखना शुरू किया. मैं रोज सुबह अपने पिता के साथ मुंबई के रेसकोर्स पहुंच कर घुड़सवारी सीखती थी. मेरा अपना एक घोड़ा था. मैं बाद में राष्ट्रीय स्तर की घुड़सवार बनी. कई अवार्ड मिले. मुझे पेंटिंग का भी बहुत शौक है. मैं अकसर अपने पिता के साथ गुलजारजी के घर जाती थी. वे मुझे 5-6 सादे कागज दे दिया करते थे और फिर वे और मेरे पिता काम में मगन हो जाते थे. मैं उन के कमरे में टंगी तसवीरों को कागज पर उतारती थी. कई बार गुलजार साहब ने मेरे बनाए चित्रों पर सर्वश्रेष्ठ लिख कर औटोग्राफ दिए. यह सब मेरी शिक्षा का ही हिस्सा रहा है.

क्या आप ने पेंटिंग करनी छोड़ दी?

नहीं. मैं आज भी कम से कम 4 पेंटिंग्स जरूर बनाती हूं. पर ज्यादातर वाइल्ड लाइफ पर ही बनाती हूं. घोड़े, हाथी, शेर आदि की पेंटिंग्स बहुत बनाई हैं.

आप ने लिखना कहां से सीखा?

जब मैं किसी बात को महसूस करती हूं तो उस पर सोचना शुरू करती हूं. फिर उसे शब्दों में बयां करती हूं. मैं ने सब से पहले ‘आशिया’ नामक गीत लिखा था. मैं ने जो गाने लिखे हैं, उन्हें स्टेज शो में सुनाती रहती हूं.

आप पर आप के मातापिता का किस तरह का प्रभाव है?

मेरे मातापिता ने बचपन से मेरी पूरी मदद की. हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया. उन्होंने मुझ से यह नहीं कहा कि इस तरह का संगीत मत सुनो. संगीत को ले कर मेरे नजरिए को मेरे मातापिता ने हमेशा सम्मान दिया.

आप के लिए प्यार क्या है?

प्यार किसी से भी हो सकता है. प्रकृति से हो सकता है, मातापिता से हो सकता है. जानवरों से हो सकता है. यह तो इनसानी भावना है.

किसी नए अलबम की तैयारी हो रही है?

जी, हां. मैं एक 8 गानों के अलबम पर काम कर रही हूं. इस अलबम के सभी गीत मैं ने लिखे हैं. इन्हें संगीतबद्ध भी मैं ने ही किया है. इन्हें मैं ने अपनी आवाज में रिकौर्ड किया है. यह ऐसा अलबम होगा, जिस पर लोग फिल्म बनाना चाहेंगे. इस के अलावा संगीतकार रंजीत बारौट के संग एक ‘इंडीपौप’ अलबम पर काम कर रही हूं.

अब तक आप के बौलीवुड फिल्मों में गाने आ जाने चाहिए थे?

मैं ने अपनेआप को रोक रखा था. मैं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी शुरुआत करना चाहती थी.

पीठ दर्द ‘इलाज है न’

पीठ के निचले हिस्से का दर्द बेहद आम है. लेकिन हम में से ज्यादातर लोगों का ध्यान इस की तरफ तब जाता है जब हम झुक कर अथवा हाथ ऊपर की ओर बढ़ा कर कोई चीज उठाने की कोशिश करते हैं और तब दर्द महसूस करते हैं. पीठ का तेज दर्द हमारी रोजमर्रा की गतिविधियों, मनोरंजन और व्यायाम आदि में बाधा उत्पन्न कर सकता है. कभीकभी इस के चलते काम करना भी मुश्किल हो जाता है.

एक अध्ययन में यह पाया गया है कि पीठ के निचले हिस्से में होने वाले इस दर्द का इलाज शुरुआत में ही कराना चाहिए, क्योंकि ज्यादातर मामलों में इलाज न कराने पर यह गंभीर रूप ले सकता है. जागरूकता की कमी के चलते ज्यादातर लोग डाक्टर के पास ही नहीं जाते. वे पारंपरिक तरीकों से अथवा कैमिस्ट से दवा ले कर मनमरजी से उपचार कराने की कोशिश करते हैं. ऐसा करना स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना है.

पीठ के निचले हिस्से में होने वाले दर्द के लक्षणों और गंभीरता के आधार पर इसे 3 प्रकारों में बांटा गया है :

एक्यूट लो बैक पेन : दर्द 6 सप्ताह से कम अवधि तक रहता है.

सब क्रौनिक लो बैक पेन : दर्द 6 से 12 सप्ताह तक रहता है.

क्रौनिक लो बैक पेन : दर्द 12 सप्ताह से ज्यादा रहता है, हालांकि इस स्थिति के कारण अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन हर स्थिति में सही निदान बेहद महत्त्वपूर्ण है.

दर्द को गंभीरता से लें

पीठ के निचले हिस्से में दर्द होना यों तो कोई गंभीर बीमारी नहीं है, लेकिन कईर् कारण इस में योगदान देते हैं और गंभीरता का स्तर अलगअलग हो सकता है. ज्यादातर मामलों में इस का कोई स्पष्ट कारण नहीं होता. लेकिन ऐसा माना जाता है कि यह मांसपेशियों या हड्डियों में किसी प्रकार के खिंचाव, तनाव या मोच के कारण हो सकता है. पीठ के निचले हिस्से का दर्द दुनिया भर में करीब 80% लोगों को प्रभावित करता है.

आमतौर पर दर्द किसी विशेष गति के बाद होता है. जैसे मुड़ना, झुक कर कुछ उठाना आदि. इस के लक्षण गति के तुरंत बाद शुरू हो जाते हैं, जब आप सुबह सो कर उठते हैं. लक्षण मध्यम से ले कर गंभीर रूप ले सकता है. लेकिन कई बार हम लंबे समय तक इस की उपेक्षा करते हैं, जिस के चलते यह गंभीर दर्द में बदल जाता है.

पीठ के निचले हिस्से का दर्द आम बीमारी बन चुका है. इस के बारे में 3 मुख्य बिंदुओं को समझ कर आप इस का यथासंभव प्रबंधन कर सकते हैं.

यह क्यों होता है

इस के 2 कारण हो सकते हैं- विशिष्ट और गैर विशिष्ट. विशिष्ट कारण 20% से भी कम होते हैं. ऐसे में एक विशेष मामले में दर्द का विशिष्ट कारण होने की संभावना 0.2% तक होती है. कुछ मामलों में यह भौतिक कारणों का परिणाम भी होता है. युवाओं में वाहन से लगी चोट और बुजुर्गों में औस्टियोपोरोसिस के साथ हड्डी टूटना इस के मुख्य कारण हो सकते हैं. गैर विशिष्ट कारण पीठ दर्द के मामलों की अधिक प्रतिशतता बनाते हैं

यह कैसे होता है

यह कारण की विशिष्टता और गैर विशिष्टता पर निर्भर करता है.

यह कब होता है

नीचे दिए गए कारक पीठ दर्द की संभावना को बढ़ाते हैं. इन मामलों में पीठ में दर्द हो सकता है:

अभिव्यक्तियां : सीधे खड़े होने में परेशानी, टांगों की ओर जाता हुआ दर्द, बुखार, लगातार पीठ दर्द, शरीर के निचले हिस्सों का सुन्न होना आदि.

जोखिम के कारण : चिंता, व्यायाम न करना, गतिहीन जीवनशैली और काम, धूम्रपान, मोटापा या औबेसिटी, नींद ठीक से न लेना, सामान्य से अधिक शारीरिक व्यायाम, उम्र बढ़ना आदि.

इस के कारण हैं : मांसपेशियों और स्नायु में खिंचाव, कटिस्नायुशूल या स्किऐटिका, औस्टियोपोरोसिस, रीढ़ का कैंसर, औस्टियो और्थ्राइटिस, डिस्क का डिजनरैशन, गद्दे जो पीठ को सीधा रखते हैं और आराम नहीं देते, पीठ दर्द का कारण बन सकते हैं.

उचित उपचार

बहुत से लोग इंटरनैट पर इस के लक्षण और उपचार खोजने की कोशिश करते हैं. इस के बाद वे कुछ गलत व्यायाम करते हैं और बिना कारण को समझे पेन किलर दवा लेने लगते हैं, जो स्थिति को और अधिक बदतर बना देता है. कई बार इस से कुछ देर के लिए राहत तो मिल सकती है, लेकिन आने वाले समय में हालात बिगड़ जाते हैं. समस्या के कारण अलगअलग हो सकते हैं, इसलिए हमेशा डाक्टर की सलाह लेनी चाहिए, जो सही निदान करे और सही उपचार दे. लगातार और तेज दर्द का मतलब है कि आप को अच्छे निदान की जरूरत है. इसलिए सही इलाज कराएं.

इन तरीकों को अपना कर आप पीठ के निचले हिस्से के दर्द को काफी हद तक रोक अथवा कम कर सकते हैं :

– आरामदायक और धीमी गतिविधियां.

– पूल थेरैपी यानी पानी में व्यायाम.

– सहारा ले कर बैठने से पीठ पर दबाव कम होता है और राहत मिलती है.

– हीट एवं कोल्ड पैक आमतौर पर दर्द और सूजन में भी राहत देते हैं.

लगातार दर्द आप के लिए परेशानी का कारण बन सकता है. हो सकता है कि आप इस के चलते ठीक से काम भी न कर पाएं. दर्द से राहत पाने के लिए विशेषज्ञ से सलाह लें. खुद दवा ले कर अपनेआप को कष्ट न दें.

– डा. शंकर आचार्य (और्थोपैडिक एवं स्पाइन सर्जन, सर गंगाराम अस्पताल, दिल्ली)

40 पार भी फिल्मों में ग्लैमर का तड़का लगाती हैं ये अभिनेत्रियां

बॉलीवुड में ऐसी कई एक्ट्रेसेस हैं जो 40पार भी काफी ग्लैमरस दिखती हैं. और अपने ग्लैमर का तड़का फिल्मों में लगाती हैं. कुछ ऐसी ही बॉलीवुड एक्ट्रेसेस जो 40 की उम्र पार करने के बाद भी अपना अदाओं से सबको घायल कर देती हैं.

ऐश्वर्या राय बच्चन

1 नवंबर 1973 को मेंगलुरू में जन्मी ऐश्वर्या राय बच्चन ने फिल्मों में ही नहीं बल्कि मॉडलिंग की दुनिया में भी बुलंदियां हासिल की हैं. साल 1994 में मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने वालीं ऐश्वर्या 43 साल की हो चुकी हैं लेकिन उनकी खूबसूरती और ग्लैमर आज भी बरकरार है.

ऐश्वर्या के फिल्मी करियर की बात करें तो ऐश्वर्या ने ‘और प्यार हो गया’ (1997) से डेब्यू किया था. इसके बाद वो ‘ताल’, ‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘धूम 2’, ‘देवदास’, ‘रोबोट’ और ‘गुरू’ जैसी कई फिल्मों में नजर आईं.

मलाइका अरोरा खान

बॉलीवुड में आइटम गर्ल और एक्ट्रेस के तौर पर पहचान बनाने वालीं मलाइका 43 साल की हो चुकी हैं. 23 अगस्त 1973 को जन्मी मलाइका को 1998 में आई ‘दिल से’ के सॉन्ग ‘छैंय्या छैंय्या’ से लाइमलाइट मिली थी. इसके बाद उन्होंने ‘गुड़ नाल इश्क मीठा'(1998), ‘माही वे'(2002), ‘काल धमाल'(2005) ‘मुन्नी बदनाम हुई'(2010) जैसे आइटम सॉन्ग्स किए. आइटम सॉन्ग्स के अलावा मलाइका एक्स हसबैंड अरबाज खान के साथ फिल्म ‘दबंग’ में बैक कैमरा काम भी कर चुकी हैं. इन दिनों वो टीवी रियलिटी शोज में बतौर जज नजर आ रही हैं.

शिल्पा शेट्टी कुंद्रा

8 जून 1975 को मेंगलुरु, कर्नाटक में जन्मी शिल्पा शेट्टी आज एक्ट्रेस के तौर पर ही नहीं, बल्कि एक सफल बिजनेस वुमन के तौर पर भी जानी जाती हैं. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक मॉडल के रूप में की थी. मात्र 16 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार लिम्का ब्रांड के लिए मॉडलिंग की थी.

शिल्पा ने साल 1993 में आई शाहरुख खान और काजोल स्टारर फिल्म ‘बाजीगर’ से बॉलीवुड में डेब्यू किया. हालांकि, लीड रोल में वो पहली बार ‘आग’ (1994) में नजर आई थीं. ‘धड़कन’ (2000), ‘रिश्ते’ (2002) और ‘फिर मिलेंगे’ (2004) जैसी फिल्मों में उनके रोल को काफी तारीफ भी मिली.

ट्विंकल खन्ना

29 दिसंबर 1974 को जन्मी ट्विंकल ने अपने बॉलीवुड करियर की शुरुआत 1995 में ‘बरसात’ से की थी. बाद में ट्विंकल के फ्रेंड और फिल्म मेकर करन जौहर ने उन्हें ‘कुछ कुछ होता है’ में टीना का रोल ऑफर किया, लेकिन उनके मना करने के बाद यह रोल रानी मुखर्जी ने निभाया. ट्विंकल ने ‘जान’, ‘जब प्यार किसी से होता है’, ‘मेला’, ‘जोरू का गुलाम’, ‘जोड़ी नंबर 1’ जैसी फिल्मों में काम किया है. आखिरी बार उन्हें ‘हॉलिडे’ में देखा गया था.

काजोल

5 अगस्त 1974 को जन्मीं काजोल वेटरन एक्ट्रेस तनुजा की बेटी हैं. काजोल ने अपने करियर की शुरुआत 1992 में फिल्‍म ‘बेखुदी’ से की थी. इसके बाद उन्‍होंने 1993 में ‘बाजीगर’ की, जिसने उन्हें रातों-रात स्‍टार बना दिया. काजोल इसके बाद ‘दिलवाले दुल्‍हानियां ले जाएंगे’, ‘प्यार किया तो डरना क्या’, ‘हलचल’, ‘गुंडाराज’, ‘प्‍यार तो होना ही था’, ‘इश्क’ जैसी कई फिल्मों में काम किया. आखिरी बार उन्हें फिल्म ‘दिलवाले'(2015) में देखा गया.

सुष्मिता सेन

19 नवंबर 1975 को जन्मीं सुष्मिता 18 साल की उम्र में तब सुर्खियों में आईं, जब वो 1994 में इंडिया से पहली मिस यूनिवर्स बनी थीं. 1996 में फिल्म ‘दस्तक’ से बॉलीवुड में डेब्यू करने वाली सुष्मिता ने अब तक ‘बीवी नंबर वन’, ‘मैंने प्यार क्यों किया’, ‘मैं हूं न’ जैसी फिल्मों में काम करने के बाद उन्होंने बॉलीवुड से दूरी बना ली. उन्हें आखिरी बार फिल्म ‘नो प्रॉब्लम’ (2010) में देखा गया था.

तब्‍बू

4 नवम्‍बर 1970 को आन्‍ध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद में जन्‍मी तब्‍बू का असली नाम तबस्सुम हाशमी है. तब्‍बू ने अपने फिल्‍मी करियर की शुरूआत मात्र 15 की उम्र में साल 1985 में देव आनंद की फिल्‍म ‘हम नौजवान’ से की. इस फिल्‍म में उन्‍होंने देव आनंद की बेटी का किरदार निभाया था. बाद में बतौर एक्ट्रेस उन्होंने ‘विजयपथ’, ‘जीत’, ‘साजन की बांहों में हकीकत’, ‘हिम्मत’, ‘तू चोर मैं सिपाही’, ‘चाची 420’, ‘कोहराम’, ‘हम साथ साथ है’, ‘बीबी नंबर वन’, ‘हेराफेरी’, ‘मां तुझे सलाम’, ‘चांदनी बार’ जैसी कई फिल्मों में काम किया. आखिरी बार उन्हें फिल्म ‘दृश्यम'(2015) में देखा गया था.

करिश्मा कपूर

करिश्मा कपूर ने बॉलीवुड में अपना डेब्यू साल 1991 में आई फिल्म ‘प्रेम कैदी’ से किया था. करिश्मा कपूर खानदान की पहली लड़की थीं जिन्होंने परदे पर स्विमसूट पहना और वो भी अपनी डेब्यू फिल्म में. करिश्मा ने बाद में ‘जिगर’ (1992), ‘राजा बाबू’ (1994), ‘अंदाज अपना अपना’ (1994), ‘सुहाग’ (1994), ‘रिश्ते’ (2002), ‘जुबैदा’ (2001) सहित कई फिल्मों में काम किया. उन्हें आखिरी बार ‘शक्ति: द पावर'(2002) में देखा गया था.

सोनाली बेंद्रे

01 जनवरी, 1975 को मुंबई में जन्मी सोनाली ने अपने करियर की शुरूआत मॉडलिंग से की थी. सोनाली ने बतौर एक्ट्रेस साल 1994 में रिलीज हुई फिल्म ‘आग’ से अपना डेब्यू किया था. फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हुई, लेकिन उन्हें बेस्ट न्यूकमर का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला. सोनाली ने ‘इंग्लिश बाबू देशी मेम’, ‘हम साथ साथ हैं’, ‘सरफरोश’, ‘मेजर साहब’, ‘दिलजले’, ‘जख्म’, ‘तराजू’ जैसी फिल्मों में काम किया. आखिरी बार उन्हें ‘वन्स अपॉन टाइम इन मुंबई दोबारा’(2013) में देखा गया था.

रवीना टंडन

फिल्ममेकर रवि टंडन के घर 26 अक्टूबर, 1974 को जन्मी रवीना 42 साल की हो चुकी हैं. रवीना ने अपने करियर की शुरुआत सलमान के साथ फिल्म ‘पत्थर के फूल’ (1991) के जरिए की थी, लेकिन उन्हें बड़ी कामयाबी ‘मोहरा’ (1994) से मिली. फिल्म का गाना ‘तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त’ बेहद फेमस हुआ, जिसके बाद उन्हें ‘मस्त-मस्त’ गर्ल का टाइटल मिला. रवीना अब तक ‘परंपरा’, ‘जीना मरना तेरे संग’, ‘क्षत्रिय’, ‘लाडला’, ‘दिलवाले’ और ‘अंदाज अपना-अपना’ जैसी कई फिल्मों में काम कर चुकी हैं. आखिरी बार रवीना फिल्म ‘मातृ'(2017) में नजर आईं.

क्या है यो यो हनी सिंह के नाम का राज

हनी सिंह के गानों का जबरदस्त क्रेज है. चाहे पार्टी हो या शादी बिना हनी सिंह के गानों पर थिरके पूरी नहीं होती. जानें गानों में सबकी पोल खोलने में माहिर हिरदेश सिंह कैसे बन गया यो यो हनी सिंह.

हनी का जन्म पंजाब के होशियारपुर में एक सिख परिवार में हुआ था. उनका बचपन का नाम हिरदेश सिंह था. दिल्ली में स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद हनी सिंह ने यूके के ट्रिनीटी स्कूल से संगीत की पढ़ाई की थी.

यो यो हनी सिंह इन नाम के पीछे एक दिलचस्प कहानी है. जब हनी सिंह यूके में पढ़ाई करते थें, तो उनके दोस्तों ने उन्हें ‘यो यो’ कहकर पुकारना शुरू कर दिया था. ये सब इंग्लिश ऐक्सेंट की वजह से था. हालांकि उनके अनुसार ‘यो यो हनी सिंह’ का मतलब योर ओन हनी सिंह (Your Own Honey Singh) है.

हनी सिंह रैपर होने के बावजूद भी इंग्लिश से ज्यादा अपनी नेटिव लैंग्वेज पंजाबी और हिन्दी में गाना पसंद करते हैं.

बॉलीवुड में फिल्म ‘शकल पे मत जा’ में पहली बार गाए गए अपने डेब्यू सॉन्ग के बाद से नोटिस किए गए. फिल्म ‘मस्तान’ में गाना गाने के लिए उन्हें 7 मिलीयन पे किया गया है जो कि बॉलीवुड में अब तक किसी भी गायक को पे किया जाने वाला सर्वाधिक अमाउंट है. उनका गाया हुआ गाना अंग्रेजी बीट सैफ अली खान की फिल्म कॉकटेल में भी दिखाया गया है.

हनी सिंह को सबसे ज्यादा ख्याति और पापुलैरिटी फिल्म ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ और ‘बॉस’ के गानों से मिली. उनका लुंगी डांस लोगों की जुबान पर चढ़ गया.

हनी सिंह ने अभिनय करियर की शुरूआत पंजाबी फिल्म मिर्ज्या से की थी. फिल्म में उनका कैमियो अपियरेंस ही था लेकिन इसके लिए उन्हें बेस्ट मेल डेब्यू का पीटीसी पंजाबी फिल्म अवार्ड मिला. इसके बाद ‘तू मेरा 22 मैं तेरा 22’ में दिखाई दिए. बॉलीवुड में फिल्मों में अपना एक्टिंग डेब्यू फिल्म ‘द एक्सपोज’ से किया. जल्द ही उनकी फिल्म जोरावर भी बड़े परदे पर आने वाली है.

सतरंगी दुनिया की सैर: नौर्थ ईस्ट

प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब पूर्वोत्तर के राज्यों के छोटेछोटे बाजार, मनमोहक उद्यान व ऊंचाई पर बने घर पर्यटकों को अपनी ओर आकृष्ट करते हैं.

विभिन्न संस्कृतियों का संगम है असम

असम पूर्वोत्तर राज्यों का गेटवे कहलाता है. यह अपने चाय बागानों, फूल, वनस्पति, दुर्लभ नस्ल के गैंडों और यहां मनाए जाने वाले पर्वों, विशेष रूप से बिहू के लिए जाना जाता है. दर्शनीय स्थलों में सब से पहले नाम काजीरंगा नैशनल पार्क का आता है. यहां के मुख्य आकर्षण एशियाई हाथी और एक सींगवाले गैंडे हैं.

इस के अलावा बाघ, बारहसिंगा, बाइसन, वनबिलाव, हिरण, सुनहरा लंगूर, जंगली भैंस, गौर और रंगबिरंगे पक्षी भी यहां के आकर्षण हैं, इसीलिए यह बर्ड्स पैराडाइज भी कहलाता है. नैशनल पार्क में हर तरफ घने पेड़ों के अलावा पेड़ों जितनी लंबाई वाली एक खास किस्म की घास यहां पाई जाती है. घास ऐसी कि इस के झुरमुट में हाथी भी छिप जाएं. ह घास हाथीघास भी कहलाती है.

वैसे, काजीरंगा एलीफैंट सफारी के लिए ही अधिक जाना जाता है. काजीरंगा में जाने का सब से बेहतर समय नवंबर से ले कर अप्रैल तक है. यहां खुली जीप में या हाथी की सवारी कर पहुंचा जा सकता है. काजीरंगा के पास ही नामेरी नैशनल पार्क है. यह रंगबिरंगी चिडि़यों और इकोफिशिंग के लिए जाना जाता है. नामेरी पार्क हिमालयन पार्क के नाम से भी जाना जाता है.

गुवाहाटी से 369 किलोमीटर की दूरी पर शिवसागर है. चाय, तेल व प्राकृतिक गैस के लिए शिवसागर प्रसिद्ध है. यहां के दर्शनीय स्थलों में बोटैनिकल गार्डन, तारामंडल, ब्रह्मपुत्र पर सरायघाट पुल, बुरफुकना पार्क और साइंस म्यूजियम हैं. मानस नैशनल पार्क की भी गिनती असम के दर्शनीय स्थलों में होती है.

और्किड फूलों की सेज है अरुणाचल प्रदेश

असम, मेघालय पर्यटन के बाद अरुणाचल प्रदेश की यात्रा आसानी से की जा सकती है. दरअसल, मेघालय से हो कर जाता है अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर का एक रास्ता. इस के अलावा यहां पहुंचने का एक और रास्ता भी है और वह है मालुकपोंग. यह रास्ता असम के करीब है. यानी असम की यात्रा यहां पूरी हो सकती है, इस के आगे का रास्ता ईटानगर को जाता है.

मालुकपोंग और्किड के खूबसूरत फूलों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. यहां और्किड फूलों का एक सैंटर है, जो टिपी और्किडोरियम के नाम से जाना जाता है. यहां 300 से भी अधिक विभिन्न प्रजातियों के और्किड फूलों के पौधे देखे जा सकते हैं. यह राज्य का सब से बड़ा और्किड फूलों का प्रदर्शन केंद्र है.

ईटानगर किले के बाद हिमालय के नीचे से हो कर बहती एक नदी गेकर सिन्यी, जिस का अर्थ गंगा लेक है, ईटानगर के आकर्षण का दूसरा केंद्र है. राजधानी में जवाहरलाल नेहरू म्यूजियम, क्राफ्ट सैंटर और एंपोरियम ट्रेड सैंटर भी हैं. इस के अलावा यहां चिडि़याघर और पुस्तकालय भी हैं.

टिपी और्किड सैंटर से 165 किलोमीटर की दूरी पर बोमडिला है. यह जगह समुद्रतल से लगभग 8 हजार फुट की ऊंचाई पर है. यहां से 24 किलोमीटर की दूरी पर सास्सा में लगभग 100 वर्ग किलोमीटर में फैली पेड़पौधों की एक सैंक्चुरी है. यहां 80 प्रजातियों के 2,600 पौधे हैं जो प्राकृतिक वातावरण में फलतेफूलते हैं.

बोमडिला से 45 किलोमीटर की दूरी पर निरांग है जो मठों तथा गरम झरने के लिए विख्यात है. साथ ही, यह किवी फल के लिए भी मशहूर है. यहां याक और भेड़ प्रजनन केंद्र है. बोमडिला समुद्र से 12 हजार फुट ऊंचाई पर है. इसी रास्ते 14 हजार फुट की ऊंचाई पर विश्व का दूसरा सब से ऊंचा सेला दर्रा है. यहां पैराडाइज या पैलासिड लेक भी है. करीब ही तवांग मठ है. यह जगह मठ के अलावा गुफाओं, झीलों के लिए भी प्रसिद्ध है.

पूर्वी सिआंग जिले का मुख्यालय पासीघाट सियांग नदी के तट पर स्थित है. यहां नदी में फिशिंग और रिवर राफ्टिग का मजा लिया जा सकता है. इस के अलावा दर्शनीय स्थानों में यहां परशुराम कुंड, नैशनल पार्क और कई लेक हैं.अरुणाचल के हरेक टूरिस्ट स्पौट के लिए बसें, टैक्सी, जीप किराए पर मिल जाती हैं. यहां के सभी स्थानों में टूरिस्ट लौज की भी सुविधा है. अरुणाचल प्रदेश में अक्तूबर से ले कर मई तक कभी भी जाया जा सकता है.

रजवाड़ों की धरती है त्रिपुरा

पूर्वोत्तर का राज्य त्रिपुरा राजारजवाड़ों की धरती कहलाती है. इसे प्रदूषणविहीन राज्य माना जाता है. यह इको पर्यटन, हैरिटेज पर्यटन व पर्वतीय पर्यटन के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. यहां सालभर अलगअलग किस्म के टूरिज्म फैस्टिवल मनाए जाते हैं. उत्तरपूर्व में असम और पूर्वदक्षिण में मिजोरम से घिरे राज्य त्रिपुरा के पश्चिमदक्षिण में राजधानी अगरतला के अलावा कमल सागर, नील महल, उदयपुर, सेफाजाला पिलक दर्शनीय स्थल हैं.

वहीं पश्चिमउत्तर त्रिपुरा से ऊनोकेटि, जामपुई जैसे दर्शनीय स्थल हैं. अगरतला में सब से महत्त्वपूर्ण दर्शनीय स्थल उज्जयंत पैलेस है. यह राजमहल अगरतला में 1 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. 3 गुंबद वाले इस दोमंजिले महल की ऊंचाई 86 फुट है.

त्रिपुरा के मंदिरों की शिल्पकला बहुत ही अनूठी है. सबरूम में महामुनि पैगोडा और अगरतला में जेडू मियां की मसजिद, बेलोनिया में चंदनपुर मसजिद व अगरतला में मरियमनगर चर्च हैं. प्राकृतिक पर्यटन में सिपाहीजला, तृष्णा, गोमती, रोवा अभयारण्य और जामपुई हिल जैसे प्राकृतिक पर्यटन स्थल हैं.

वहीं पुरातात्त्विक पर्यटन के लिए उनोकेटि, पिलक, देवतैमुरा (छविमुरा), बौक्सनगर हैं. अगरतला से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर मिजोरम की सीमा के पास जमपुई हिल है, समुद्रतल से इस की ऊंचाई 914 मीटर है. त्रिपुरा की पहाडि़यों की सब से ऊंची चोटी बेतलोगछिप है. यह जमपुई हिल में ही स्थित है.

रुद्रसागर नीरमहल, अमरपुर डुमबूर, विशालगढ़ कमला सागर वाटर टूरिज्म के लिए जाने जाते हैं. अगरतला से 55 किलोमीटर की दूरी पर नीरमहल है, जो रुद्रसागर झील के किनारे बसा है. इस का स्थापत्य मुगलकालीन है. ठंड के मौसम में यहां यायावर पक्षियों का जमघट लगा रहता है.

हर साल यहां नौकायन प्रतियोगिता का आयोजन होता है. अगरतला से 27 किलोमीटर की दूरी पर कमला सागर झील है. इको टूरिज्म के लिए कई इको पार्क हैं. अगरतला से 178 किलोमीटर की दूरी पर उनोकेटि है. यह जगह चट्टानों पर खुदाई कर के बनाई गई कलाकृतियों के लिए विख्यात है.

भारत का स्कौटलैंड है मेघालय का शिलौंग

मेघालय की राजधानी शिलौंग भारत का स्कौटलैंड कहलाता है. मेघालय के पश्चिम में खासी हिल्स है. यहां के पर्यटन स्थलों में रानीकोर अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है. यहां रिलांग नदी के संगम में पर्यटक वाटर स्पोर्ट्स का लुत्फ उठाते हैं. यहीं शिलौंग पीक भी है, जो मेघालय की सब से ऊंची चोटी है. सुरक्षा की दृष्टि से यह स्थान काफी संवेदनशील माना जाता है. खासी हिल्स वन्यजीवों और विभिन्न प्रकार की प्रजाति के पेड़पौधों के लिए जानी जाती है.

करीब में ही लेडी हैदरी पार्क विभिन्न प्रजातियों के फूलों से सजा हुआ है. यहां एक छोटा सा चिडि़याघर भी है. अनेक प्रजातियों की तितलियों का एक संग्रहालय भी यहीं है. शिलौंग के पास घिरे जंगल और और्किड के खूबसूरत फूलों के बीच स्थिर कृत्रिम झील वाडर्स लेक में पर्यटक बोटिंग का मजा उठाते हैं.

मेघालय को झरनों के लिए भी जाना जाता है. यहां के मीठा झरना, हाथी झरना दर्शनीय स्थलों में गिने जाते हैं. मीठा झरना हैप्पी वैली में है. बारिश के दिनों में इस की खूबसूरती देखते ही बनती है. वायुसेना के ईस्टर्न कमांड के पास हाथी झरना या ऐलिफैंट फौल्स है. यहां के अन्य दर्शनीय स्थलों में मेरंगनोलखा रोड पर ग्रेनाइट की एक विशाल खड़ी चट्टान कैलौंग रौक है.

शिलौंग के पास गरम पानी का भी एक झरना है जो जैकरम के नाम से जाना जाता है. यहां के करीबी दर्शनीय स्थलों में चेरापूंजी भी है, जो सर्वाधिक बारिश झेलने वाला क्षेत्र है. हाल ही में चेरापूंजी का नाम बदल कर सोहरा रख दिया गया है. यहीं मनोरम पहाडि़यों के बीच एक प्राकृतिक गुफा है मौसिनराम. पास ही नोहकालीकाई झरना है. इस के अलावा प्राकृतिक रूप से मैग्मा से निर्मित एक प्रख्यात गुंबदाकार क्यालांग चट्टान भी यहीं है, जो शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र के लिए जानी जाती है.

मिजोरम से पड़ोसी मुल्क का नजारा

भारत का दूसरा साक्षर राज्य मिजोरम है. यहां की राजधानी आइजोल को पूर्वोत्तर का आखिरी छोर कहा जा सकता है. आइजोल 112 साल पुराना शहर है, जो कि समुद्रतल से लगभग 4 हजार फुट की ऊंचाई पर बसा है. प्राकृतिक सौंदर्य के बीच बसे मिजोरम में लकडि़यों से बने खास तरह के मकान देखे जा सकते हैं. घरों में और्किड फूलों की सजावट आम है.

यही नहीं, और्किड फूलों के विंडो बौक्स पूरे आइजोल में देखने को मिल जाते हैं. आइजोल में राज्य का एक म्यूजियम है, जहां मिजोरम की संस्कृति, राज्य का इतिहास, यहां के आदिवासियों की पोशाक से ले कर इन की सांस्कृतिक झलक देखने को मिलेगी. इस छोटे से शांत शहर से 204 किलोमीटर की दूरी पर चंफाई है. यहां से म्यांमार की पहाडि़यों का दूरदूर तक नजारा देखा जा सकता है.

आइजोल से 85 किलोमीटर की दूरी पर टाडमिल है जो लेक के लिए जाना जाता है. यहां बोटिंग की जा सकती है. यहां से 137 किलोमीटर की दूरी पर वानतांग नाम का एक जलप्रपात है. यह मिजोरम का सब से ऊंचा स्थान है. यहां थेंजोल हिल स्टेशन भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है.

यहां के पहाड़ पर बहुत सारी विरल प्रजाति की वनौषधि, मसाले और विभिन्न प्रजाति के और्किड भी देखने को मिल जाते हैं. यहां डंपा अभयारण्य है, जहां हिरण, बाघ, चीता और हाथी जैसे जंगली जानवरों को देखा जा सकता है.

भारत के माथे की मणि मणिपुर

भारत के माथे पर मणि समान शोभायमान है मणिपुर. इस का 67 फीसदी हिस्सा खूबसूरत फूलों, हरीभरी वनस्पतियों  और जंगलों से अटा पड़ा है. ये जंगल 900 मीटर से ले कर 2,700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं. यहां पाया जाने वाला सिरोई लिली दुनियाभर में प्रसिद्ध है. यहां लगभग 500 प्रकार के और्किड के पौधे पाए जाते हैं. रंगबिरंगे और्किड के फूल यहां की फिजा में चारचांद लगाते हैं.

आमतौर पर यहां के सभी घरों में रंगबिरंगे और्किड फूलों के गुलदस्ते देखने को मिल जाएंगे. यही नहीं, यहां की महिलाएं अपने बालों को और्किड के फूलों से सजाती हैं. जंगल के जीवजंतुओं में खास हैं-स्पौटेड लिंगशांग, बारबैक्ड कबूतर, लेपर्ड, बर्मी आदि. यहां कई किस्म के दुर्लभ पशुपक्षी भी पाए जाते हैं.

नागालैंड की सैर के बाद कोहिमा से सड़क के रास्ते मणिपुर जाया जा कता है. कोहिमा से चलने वाली बस सीधे इंफाल पहुंचाती है. इंफाल में मणिपुरी संस्कृति का पूरा नजारा देखने को मिल सकता है. टिकेंजित पार्क यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मारे गए ब्रिटिश-भारतीय सैनिकों की याद में यहां एक स्मारक है. यह स्मारक शहीद मीनार कहलाता है.

इस के अलावा मोइरांग के रास्ते पर एक जापानी युद्ध स्मारक भी है. यहां चिडि़याघर, म्यूजियम और विश्व का एकमात्र तैरता हुआ पार्क भी है. यह पार्क केइबल लामजाओ नैशनल पार्क के नाम से जाना जाता है. यहां के लोकटक और सैंट्रा नामक टापुओं को देखने के लिए पर्यटक बड़ी संख्या में आते हैं. मणिपुर के खास आकर्षण यहां की मार्शल आर्ट, नृत्य और मूर्तिकला हैं.

शूरवीरों की भूमि नागालैंड

जलप्रपातों, पहाड़ों के बीच बसा नागालैंड ट्रैकिंग, राफ्टिंग के शौकीनों के लिए बेहतरीन स्थल माना जाता है. इस राज्य का गेटवे दिमापुर है. हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन केवल यहीं है. हालांकि नागालैंड राज्य की राजधानी कोहिमा (144 किलोमीटर) है, लेकिन दिमापुर नागालैंड का मुख्य शहर माना जाता है. दिमापुर के करीब चुमुकेदिमा नामक एक टूरिस्ट विलेज कौंप्लैक्स है. यहां से पूरे दिमापुर को देखा जा सकता है. यहां से 74 किलोमीटर की दूरी पर दोयांग नदी के पास गवर्नर्स कैंप नामक टूरिस्ट स्पौट है. यहां पर्यटक रिवर राफ्ंिटग, फिशिंग, कैंपिंग करते हैं.

कोहिमा में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र अरदुरा पहाड़ पर लाल छतवाला कैथेड्रल चर्च है. इसे एशिया के सब से बड़े कैथेड्रल चर्च के रूप में जाना जाता है. यह लगभग 25 हजार वर्गफुट में फैला हुआ है. चर्च में बेथलेहम जैतून की लकड़ी से बनी सुंदर नाद आकर्षण का केंद्र है. दक्षिण में लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर दजुकोउ एक खूबसूरत घाटी है, जो फूलों के खूबसूरत गुलदस्ते जैसी है. यहां के एकोनिटम और एंफोबियस फूल की ख्याति दुनियाभर में है. दिमापुर से करीब सेइथेकिमा गांव में ट्रिपल फौल्स है, जो एक तिमंजिला झरना है. यह पर्यटकों और ट्रैकिंग के शौकीनों की पसंदीदा जगह मानी जाती है.

यहां का संग्रहालय नगा संस्कृति, स्थापत्य और यहां की सामाजिकसांस्कृतिक प्रथाओं को जानने में बहुत मददगार है. कोहिमा के दक्षिण में 15 किलोमीटर की दूरी पर जाफू पीक नामक पहाड़ है, जिस की ऊंचाई समुद्रतल से 3,048 मीटर है. नवंबर से मार्च तक इस पहाड़ की चढ़ाई की जा सकती है. लगभग 5 घंटों की ट्रैकिंग के बाद जाफू पीक पहुंचना संभव होता है.

जाहिर है ट्रैकर्स के लिए यह बड़ा आकर्षण का केंद्र है. यहां की पर्वत शृंखलाओं में रोडोडैंड्रौन पेड़ों की सब से ऊंची प्रजाति पाई जाती है. गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स में रोडोडैंड्रौन ने अपना नाम दर्ज करा लिया है. ऊंचाई में यह पेड़ 130 फुट तक होता है और इस के तने का व्यास 11 फुट तक चौड़ा होता है.

जाफू पर्वत शृंखलाओं की चोटी से जुकोऊ वैली को देखा जा सकता है. यहां की जलधाराएं जाड़े के दिनों में जम जाती हैं. लेकिन गरमी के दिनों में यह वादी दुलहन की तरह सज जाती है. यहीं एक और दर्शनीय स्थल है मोकोकचुंगा, जो समुद्रतल से 1,325 मीटर की ऊंचाई पर बसा है. यहां से पूरे शहर का दृश्य देखा जा सकता है. कोहिमा से 80 किलोमीटर की दूरी पर संतरे और अनन्नास के लिए मशहूर शहर वोखा है.  नागालैंड पहुंचने का रास्ता कोलकाता से हो कर गुजरता है. सियालदह से कंचनजंघा ऐक्सप्रैस से गुवाहाटी हो कर नागालैंड पहुंचा जा सकता है. इस के अलावा जनशताब्दी ऐक्सप्रैस से 5 घंटे का सफर कर के दिमापुर पहुंचा जा सकता है. दिमापुर घूम लेने के बाद 3 घंटे के सड़क के रास्ते कोहिमा जाया जाता है. हवाई रास्ते से भी दिमापुर पहुंचा जा सकता है, फिर सड़क के रास्ते कोहिमा.

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