मेरी शादी होने वाली है. सुना है कि जब पहली बार पति संबंध बनाता है, तो बहुत दर्द होता है. कृपया मेरा मार्गदर्शन करें.

सवाल

मैं 20 वर्षीय युवती हूं. शीघ्र ही विवाह होने वाला है. मैं जितना अपनी शादी को ले कर रोमांचित हूं उतनी ही सुहागरात को ले कर भयभीत भी हूं. सुना है कि जब पहली बार पति संबंध बनाता है, तो बहुत दर्द होता है. पता नहीं मैं यह दर्द सह पाऊंगी या नहीं, यही सोचसोच कर भयभीत रहती हूं. कृपया मेरा मार्गदर्शन करें?

जवाब

आप सुहागरात को ले कर मन में कोई पूर्वाग्रह न पालें. प्रथम समागम के दौरान जब युवती का योनिच्छद होता है, तो हलका सा रक्तस्राव और दर्द होता है. पर यह दर्द इतना नहीं होता कि सहा न जाए. अत: बेवजह भयभीत न हों.

म्युचुअल फंड में निवेश से पहले जरूर जान लें ये बातें

शेयर बाजार में निवेश करने का सबसे आसान और सुरक्षित जरिया म्युचुअल फंड है. लेकिन जरूरी नहीं है कि म्युचुअल फंड में निवेश हमेशा फायदेमंद ही होगा. जो लोग पहली बार म्युचुअल फंड में निवेश कर रहे होते हैं उनके लिए ढ़ेरों फंड्स में से अपनी जरूरत और लक्ष्य के हिसाब से फंड का चुनाव, उनकी पर्फोर्मेंस ट्रैक करना आसान काम नहीं होता. वास्तव में स्कीम में निवेश करने से पहले कई चीजें ध्यान में रखनी चाहिए. सबसे पहला फैक्टर चयन होता है. निवेशकों को अपना पैसा उस विशेष फंड में लगाना चाहिए जो उनकी जरूरतों को पूरा करता हो. म्युचुअल फंड्स में निवेश करने वाले निवेशकों को कुछ अहम जान लेना बेहद आवश्यक है.

अगर म्युचुअल फंड्स में कर रहे है पहली बार निवेश तो ध्यान रखें कुछ बातें

लक्ष्य से जुड़ा हो आपका निवेश

आपका हर निवेश आपके लक्ष्यों की सारी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होना चाहिए. निवेश से पहले सुनिश्चित कर लें कि आपकी असल जरूरतें क्या हैं? उसके बाद फैसला करें कि कितनी राशि निवेश करनी है. अपनी जरूरतों को समझने के बाद ही आप निवेश से अच्छा रिटर्न्स हासिल कर सकते हैं.

अपनी जोखिम उठाने की क्षमता को जानिए

अपने लक्ष्यों को पहचानने के बाद यह देखें कि आप कितना जोखिम उठा सकते हैं. यह आप कई वेबसाइट्स पर जाकर जांच सकते हैं. इसमें सवाल दिए होते हैं जिसके जवाब देने पर वे आपको आपकी रिस्क प्रोफाइल बता देते हैं.

मुख्य रुप से तीन तरह के निवेशक होते हैं- कंजर्वेटिव, मॉडरेट और एग्रेसिव-

1. एग्रेसिव निवेशक वे होते हैं जो इक्विटी में ज्यादा निवेश करते हैं जैसे इंडिविजुअल स्टॉक्स और म्युचुअल फंड्स. इनकी जोखिम उठाने की क्षमता ज्यादा होती है. ये अपने पोर्टफोलियो में तेजी से ग्रोथ की अपेक्षा करते हैं और इनमें से कई डे ट्रेडर्स भी होते हैं. ये डेट म्युचुअल फंड्स में निवेश ज्यादा करते हैं. इनके लिए न्यूनतम टाइमफ्रेम 15 वर्ष होता है. इस तरह के निवेशक 12 से 14 फीसदी तक के रिटर्न की उम्मीद रखते हैं.

2. मॉडरेट निवेशक की जोखिम क्षमता थोड़ी सी ज्यादा होती है. यह पांच वर्ष से अधिक समय के लिए निवेश करते हैं.

3. कंसर्वेटिव निवेशक वे होते हैं जिनकी जोखिम क्षमता कम होती है. यह अधिकतम तीन वर्ष के लिए निवेश करते हैं. यह इक्विटी से दूर रहते हैं. यह रियल एस्टेट इंवेस्टमेंट ट्रस्ट, इंडिविजुअल बॉन्ड, बॉन्ड फंड्स आदि में निवेश करते हैं.

स्कीम के प्रदर्शन को साल में एक बार जरूर जांचे

जब भी आप निवेश करते हैं तो वर्ष में एक बार स्कीम का प्रदर्शन जरूर जांच लें. ऐसा इसलिए क्योंकि जरूरी नहीं है कि एक स्कीम आजीवन अच्छा प्रदर्शन ही करे. पिछले समय में किसी स्कीम के अच्छे प्रदर्शन का मतलब यह बिल्कुल नहीं होता कि यह भविष्य में भी अच्छा ही रिटर्न देगा.

बैलेंस्ड फंड्स में करें निवेश

पहली बार म्युचुअल फंड्स में निवेश करने वालों को बैलेंस्ड फंड्स का चयन करना चाहिए. जो निवेशक तीन वर्ष की अवधि में कम जोखिम उठाते हुए निवेश करना चाहते हैं उनके लिए बैलेंस्ड फंड्स होते हैं. यह ऐसे निवेशकों के लिए बेहतर हैं जो न्यूनतम पांच वर्ष के लिए निवेश करना चाहते हैं.

कब म्यूचुअल फंड्स से नहीं मिलता फायदा

निश्चित रिटर्न पाने के लिए म्यूचुअल फंड एक सही विकल्प नहीं है. जैसे कि यह इक्विटी और फिक्स्ड इनकम मार्केट में निवेश करते हैं तो इसका रिटर्न बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करता है.

‘आशिकी 3’ में दिखेगी आलिया-सिड की जोड़ी

बॉलीवुड सितारे सिद्धार्थ मल्‍होत्रा और आलिया भट्ट भले ही अपने रिश्‍ते के बारे में कुछ भी कहने से बचते हों लेकिन दोनों की जोड़ी को दर्शक पर्दे पर देखना काफी पसंद करते हैं. दोनों ने ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ और ‘कपूर एंड सन्स’ में एक साथ काम किया है.

अब खबर है कि सिद्धार्थ और आलिया की जोड़ी मोहित सूरी की आगामी फिल्‍म ‘आशिकी 3’ में रोमांस करती नजर आयेगी.

सूत्रों के मुताबिक, सिद्धार्थ आजकल मोहित सूरी से मिल रहे हैं, जो ‘आशिकी 3’ के डायरेक्टर हैं. दोनों मिलकर स्क्रिप्ट डिसक्स कर रहे हैं और प्लान कर रहे हैं कि ऐयारी की शूटिंग खत्म कर के सिद्धार्थ जल्द इसकी शूटिंग शुरू कर दें.

कुछ दिनों पहले सिद्धार्थ और आलिया को मोहित सूरी को मैट्रिक्स ऑफिस में भी देखा गया था. आलिय फिलहाल मेघना गुलजार की फिल्म की शूटिंग में बिजी हैं. लेकिन यह एक छोटी फिल्म है. इस फिल्म के बाद आलिया नवंबर से ‘गुल्ली बॉय’ की शूटिंग शुरू करेंगी. मोहित चाहते हैं कि इसी बीच ‘आशिकी 3’ की शूटिंग कर ली जाए.

इसके अलावा आलिया भट्ट, रणबीर कपूर के साथ अयान मुखर्जी की ‘ड्रैगन’ में भी नजर आएंगी. इसमें रणबीर और आलिया के अलावा अमिताभ बच्चन भी होंगे.

बता दें कि मोहित, सिद्धार्थ के साथ दूसरी बार काम कर रहे हैं. इससे पहले इस एक्‍टर-डायरेक्‍टर की जोड़ी फिल्‍म ‘एक विलेन’ में काम कर चुकी है. फिल्‍म ने बॉक्‍स ऑफिस पर अच्‍छी कमाई की थी. वहीं मोहित, आलिया के साथ पहली बार काम करने जा रहे हैं.

मैं कई बार शारीरिक संबंध बना चुकी हूं. शादी के बाद यदि यह बात मेरे पति को पता चल गई तो क्या होगा.

सवाल

मैं 21 वर्षीय युवती हूं. कई बार शारीरिक संबंध बना चुकी हूं. पर अब डर रही हूं कि विवाह के बाद यदि यह बात मेरे पति पर जाहिर हो गई तो क्या होगा?

जवाब

विवाहपूर्व शारीरिक संबंध बनाना पूरी तरह से अनैतिक तो है ही साथ ही इस बात का भी डर बराबर रहता है कि कहीं पति पर यह बात जाहिर न हो जाए, इसलिए अवैध संबंधों से परहेज करने की सलाह दी जाती है. आप जो गलती कर चुकी हैं उसे सुधारा तो नहीं जा सकता पर उस पर पूर्णविराम जरूर लगा सकती हैं. विवाह बाद के लिए यही सलाह दे सकते हैं कि आप इन संबंधों की बाबत अपने पति के सम्मुख कतई मुंह न खोलें.

कोख का मुआवजा

शिखा की निगाहें भीड़ में अपनी बेटी को ढूंढ़ रही थीं. आज स्कूल का ऐनुअल फंक्शन था. रंगबिरंगी पोशाकें पहने बच्चे स्टेज पर थिरकते बड़े प्यारे लग रहे थे.

‘‘अरे मां, वह देखो अपनी पिहुल सब से आगे खड़ी है,’’ खुशी के आवेश में शिखा भूल गई कि पीछे और भी पेरैंट्स बैठे हैं.

राष्ट्रगान के साथ समारोह समाप्त हो गया. अब बच्चों को उन की क्लास से लेना था. अत: शिखा मां से बोली, ‘‘आप गाड़ी में जा कर बैठो, मैं पिहुल को ले कर आती हूं.’’

क्लास में जा कर शिखा ने पिहुल को लिया. सीढि़यों पर काफी भीड़ थी. धक्कामुक्की से सीढि़यों पर उस का पर्स गिर गया.

तभी नीचे से आती एक महिला ने उस का पर्स उठा कर उसे देते हुए कहा, ‘‘यह लीजिए अपना पर्स. ये पेरैंट्स ऐसे ही होते हैं… सभी को अपने बच्चे को ले जाने की जल्दी है.’’

‘‘थैंक्यू,’’ कह जैसे ही शिखा ने उस औरत की तरफ देखा तो हैरानी से बोली, ‘‘अरे सीमा तुम यहां कैसे?’’

‘‘हां शिखा, पहचान गई… यह तुम्हारी बेटी है क्या? बड़ी प्यारी है,’’ कह सीमा पिहुल को प्यार करने लगी.

शिखा पिहुल का हाथ पकड़ बोली, ‘‘पिहुल चलो, दादी बाहर हमारा इंतजार कर रही हैं.’’

सीमा शिखा को कार में जाते देखती रही. उस की शानोशौकत, पहनावा और महंगी गाड़ी देख कर सीमा के मन में लालच आ गया. उस ने स्कूल से शिखा के घर का पता और फोन नंबर ले शिखा को फोन किया. पहले तो उस ने शिखा से नौर्मल बातचीत की, फिर असली मुद्दे पर आ गई. साफसाफ लफ्जों में बोली, ‘‘देखो शिखा, मुझे ज्यादा घुमाफिरा कर बात करना नहीं आता. मुझे 5 हजार की जरूरत है. तुम मुझे रुपए दे दो.’’

‘‘तुम्हें रुपए क्यों दूं?’’ शिखा गुस्से में बोली.

‘‘पैसा तो तुम मुझे दोगी और वह भी खुशीखुशी वरना मैं तुम्हारी बेटी को सारी सचाई बता दूंगी,’’ कह सीमा ने फोन काट दिया.

फोन कटते ही शिखा वहीं सोफे पर पसर गई. सीमा इतना गिर जाएगी इस की उसे उम्मीद न थी. फिर सोचने लगी कि क्या करूं घर में सब से बात करूं या उसे रु

समसामयिक फिल्म है मौम : श्रीदेवी

बौलीवुड में अभिनेत्री के तौर पर जो मुकाम, जो सुपर स्टारडम श्रीदेवी को मिला है वह किसी अन्य अभिनेत्री को नहीं मिल पाया. सर्वाधिक अवार्ड भी उन्हीं की झोली में गए. अभिनय करते हुए उन्होंने 50 वर्ष पूरे कर लिए हैं. उन के कैरियर की 300वीं फिल्म ‘मौम’ 7 जुलाई को रिलीज होगी. श्रीदेवी ने इस मिथ को भी तोड़ा है कि शादी के बाद हीरोइन का कैरियर खत्म हो जाता है. 2 बेटियों की मां बनने के कारण पूरे 15 वर्ष तक अभिनय से दूर रहने के बाद जब गौरी शिंदे के निर्देशन में बनी फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’ से उन्होंने अभिनय में वापसी की, तो उम्मीद से कहीं अधिक उन्हें और उन की इस फिल्म को पसंद किया गया. फिर उन्होंने तमिल फिल्म ‘पुली’ की और फिर हिंदी फिल्म ‘मौम’ जिसे तमिल, मलयालम व तेलुगू में डब किया गया है.

हाल ही में श्रीदेवी से हुई बातचीत के कुछ खास अंश.

पिछली फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’ को जबरदस्त सफलता मिली. उस के 4 वर्ष बाद ‘मौम’ आ रही है?

शादी और बच्चों के होने के बाद ‘इंग्लिश विंग्लिश’ करने में मुझे 15 साल का वक्त लगा. पर इस के बाद ‘मौम’ करने में 4 वर्ष लगे. एक तरह से यह इंप्रूवमैंट है. वैसे मैं ने ‘इंग्लिश विंग्लिश’ और ‘मौम’ के बीच एक तमिल फिल्म ‘पुली’ भी की थी.

ऐसा नहीं है कि मेरे पास फिल्मों के औफर नहीं आए हैं. ‘इंग्लिश विंग्लिश’ से पहले भी मेरे पास फिल्मों के औफर आ रहे थे. ‘इंग्लिश विंग्लिश’ और ‘मौम’ के बीच भी कई दूसरी फिल्मों के औफर आए. लेकिन मैं फिल्में सिर्फ संख्या बढ़ाने के लिए नहीं करना चाहती. मैं ने हमेशा उन फिल्मों का हिस्सा बनना पसंद किया, जो मुझे पसंद आईं. यदि घरपरिवार को छोड़ कर स्टूडियों में जा कर काम करना है, तो कुछ तो अर्थपूर्ण काम होना चाहिए. फिल्म में ऐसी कोई बात जरूर होनी चाहिए, जो मुझे इतना प्रेरित करें कि मैं घरपरिवार से कुछ समय के लिए निकल कर स्टूडियो में जा कर काम करूं.

300वीं फिल्म के रूप में ‘मौम’ को चुनने की खास वजह?

मैं ने यह फिल्म किसी योजना के तहत नहीं की. अब तक मेरी जिंदगी या कैरियर में जो कुछ होता रहा है वह किसी योजना के तहत नहीं, बल्कि डैस्टिनी के चलते होता आ रहा है. मैं ने कभी योजना नहीं बनाई कि कब कौन सी फिल्म करूंगी. मैं ने तो यह भी नहीं सोचा कि मैं 300 फिल्मों में अभिनय कर लूंगी और 300वीं फिल्म के रूप में मैं ‘मौम’ करूंगी. यह महज इत्तफाक है कि 300वीं फिल्म के रूप में मैं ने ‘मौम’ में अभिनय किया है, जो बहुत ही बेहतरीन और समसामयिक फिल्म है. इस फिल्म को ले कर मैं बहुत खुश हूं. यह हमारे होम प्रोडक्शन की फिल्म है.

फिल्म ‘मौम’ में आप का किरदार क्या है?

यह एक पारिवारिक इमोशनल फिल्म है. इस में पिता व बेटी का रिश्ता है. मां और बेटी की रिलेशनशिप है. पति और पत्नी का भी इमोशनल रिलेशन है. इन तीनों रिलेशन के इर्दगिर्द यह एक इमोशनल कहानी है. आज की तारीख में मौडर्न परिवारों के अंदर जो समस्याएं चल रही हैं, वही हमारी फिल्म का हिस्सा हैं यानी आज के संदर्भ में हमारी फिल्म प्रासंगिक फिल्म है. एक परिवार के अंदर रिश्तों को ले कर क्या होता है, यह सब आप को इस में नजर आएगा.

आप की पिछली फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’ में भी आप का मां का किरदार था. अब फिल्म ‘मौम’ में भी आप का किरदार एक मां का है. इन दोनों किरदारों में क्या अंतर है?

दोनों किरदार बहुत अलग हैं. ‘इंग्लिश विंग्लिश’ की मां बहुत इमोशनल है. पढ़ीलिखी नहीं है. उसे अंगरेजी बोलना नहीं आता. उस के बच्चे और पति हमेशा उस का मजाक उड़ाते हैं. वह बाहर कभी खुल कर बात नहीं कर पाती. हमेशा दबीसहमी सी रहती है यानी कि एक अलग तरह का किरदार है. जबकि फिल्म ‘मौम’ में जो मां है, वह अंदर से सशक्त और गहराई वाली नारी है. बच्चों से बहुत प्यार करती है. लेकिन मां होते हुए भी उसे बदले में उतना प्यार नहीं मिलता. उसे उस प्यार की तलाश रहती है.

फिल्म ‘मौम’ का जो परिवार है, वह मौडर्न है या दकियानूसी?

यह फिल्म अति समसामयिक है यानी फिल्म का परिवार मौडर्न है. बच्चे भी मौडर्न हैं. जिस तरह से बड़े शहरों के आज के बच्चे होते हैं, उसी तरह के बच्चे इस फिल्म में हैं. जिस तरह से मौडर्न परिवारों में डाइनिंगटेबल पर बैठ कर मातापिता और बच्चे बातें करते हैं वे सब इस फिल्म का हिस्सा हैं. इस फिल्म में इमोशन के साथसाथ ड्रामा और रोमांच भी है. फिल्म का विषय ऐसा है, जिस की चर्चा हर दर्शक करना चाहेगा.

जब आप ने अभिनय कैरियर की शुरुआत की थी, उन दिनों हीरोइन बनना आसान था या आज के माहौल में?

हीरोइन बनना आसान उस वक्त भी नहीं था और आज भी नहीं है. बिना परिश्रम के कभी कुछ नहीं मिलता. आज की हीरोइन भी बहुत मेहनत करती है. वर्तमान समय के कलाकार तो कमाल की मेहनत करते हैं. वे डांस, ऐक्टिंग, फाइटिंग, मार्शल आर्ट सहित बहुत कुछ सीखते हैं.

जब आप सुपरस्टारडम पर सवार थीं, तब आप सभी कलाकार 2-3 शिफ्टों में काम करते थे, पर आज का कलाकार तो एक समय में एक ही फिल्म करता है?

यह भी सच है. आज जिस ढंग से काम होता है, उस तरह का काम करने में ऐंजौयमैंट ज्यादा है. अब परफैक्शन पर जोर दिया जाता है. परफैक्शन की जो भूख है, उस से कलाकार को भी काम करने में मजा आता है. जब मैं फिल्म ‘नगीना’ कर रही थी, उस वक्त मैं ने एकसाथ 3 नहीं बल्कि 4 शिफ्टों में काम किया था. आज कोई कलाकार ऐसा काम नहीं कर सकता. यह अच्छी बात है. मैं ने ‘नगीना’ के साथसाथ ‘मिस्टर इंडिया’ के अलावा 2 और फिल्में भी की थीं. सभी सुपरहिट रही थीं.

आप ऐसी भारतीय अदाकारा हैं, जिन्हें सुपरस्टार का दर्जा मिला. दूसरों के साथ ऐसा अब तक नहीं हुआ है?

मुझे ये सब नहीं पता, पर आप जो कुछ कह रहे हैं, उस के लिए मैं आप की शुक्रगुजार हूं. मैं सिर्फ इतना जानती हूं कि हर इनसान मेहनत कर रहा है. सब को शोहरत मिल रही है. हर कलाकार या फिल्मकार अपनी डैस्टिनी के अनुसार आगे बढ़ रहा है. फिल्म इंडस्ट्री में एक अभिनेत्री के तौर पर मुझे जो शोहरत मिली, जो मुकाम मिला, उस में सिर्फ मेरा ही योगदान नहीं है, बल्कि मेरे निर्देशकों का भी रहा है. मैं इन सब की शुक्रगुजार हूं. आज जो मैं आप के सामने बैठ कर आप से बातें कर रही हूं, ये सब उन निर्देशकों की वजह से ही संभव हो पाया है, जिन्होंने मेरी प्रतिभा पर यकीन कर अब तक मुझे फिल्मों में  अभिनय करने का अवसर प्रदान किया.

अब तक मिथ रहा है कि शादी के बाद हीरोइन का कैरियर खत्म हो जाता है. इस मिथ को तोड़ने में आप की मदद किस ने की?

इस मिथ को तोड़ने में मेरा अपना कोई योगदान नहीं है. यह कंट्रीब्यूशन उन निर्देशकों का है, जिन्होंने शादी के बाद भी मेरी प्रतिभा पर यकीन किया. उन्हें मुझ पर और मेरी प्रतिभा पर यकीन है. इसीलिए वे आज भी मुझे ले कर फिल्में बना रहे हैं.

जब आप ने फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’ या ‘मौम’ चुनी उस वक्त आप को एक अलग तरह की पटकथा मिली या आप को ध्यान में रख कर किरदार लिखे गए?

ऐसा तो हो नहीं सकता कि 15 साल के बाद जब अचानक गौरी शिंदे मेरे पास ‘इंग्लिश विंग्लिश’ की स्क्रिप्ट ले कर आईं, तो मैं ने दौड़ कर लपक ली. मैं ने पहले ही कहा कि मैं ने आज तक महज गिनाने के लिए कोई फिल्म नहीं की. मैं टाइमपास करने के लिए कोई फिल्म नहीं कर सकती. जब मैं ने ‘इंग्लिश विंग्लिश’ की पटकथा सुनी, तो उस ने मेरे दिल को छू लिया. मुझे लगा कि मुझे इस फिल्म को करना चाहिए. उस वक्त मुझे या गौर शिंदे को पता नहीं था कि यह फिल्म कमर्शियली इतनी अधिक सफल हो जाएगी. मैं ने तो सिर्फ एक अच्छी फिल्म करने के मकसद से यह फिल्म की थी. अब ‘मौम’ को ले कर भी मेरी यही सोच है. पर मैं यह मानती हूं कि ‘इंग्लिश विंग्लिश’ में मैं ने जिस तरह का किरदार निभाया, उसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया.

आप की बेटी जाह्नवी की फिल्मों से जुड़ने की काफी चर्चा है?

यह सच है कि जब मेरी बेटी ने कहा कि उसे फिल्मों में हीरोइन बनना है, तो मैं थोड़ी घबराई थी. उसे इजाजत देने को ले कर मेरे अंदर हिचक थी, जबकि मैं समझती हूं कि आज मैं जो कुछ हूं, वह फिल्म इंडस्ट्री की वजह से ही हूं. फिल्म इंडस्ट्री की वजह से ही मैं ने नाम कमाया है. लेकिन समय का अंतराल बहुत माने रखता है.

मेरी मां मुझे बहुत प्रोटैक्ट करती थीं. उसी तरह मैं भी अपनी बेटियों को बहुत प्रोटैक्ट करती हूं. आप यकीन नहीं करेंगे, लेकिन हकीकत यह है कि मैं ने 300 फिल्मों में अभिनय कर लिया, मगर मैं ने अपनी बेटियों को बहुत कम फिल्में दिखाई हैं. छह साल की उम्र तक तो उन्हें यह भी पता नहीं चला कि मैं अभिनेत्री हूं. 6 साल की उम्र के बाद जब वे मेरे साथ एअरपोर्ट पहुंची और लोगों ने मुझ से औटोग्राफ मांगे तब मुझे उन्हें बताना पड़ा कि मैं फिल्मों में अभिनय करती हूं. लेकिन मैं ने उन से कह दिया था कि मैं उन्हें अपनी कोई फिल्म नहीं दिखाऊंगी.

क्या आप को लगता है कि हर किरदार के साथ कोई न कोई प्रयोग किया जाना चाहिए?

ऐक्सपैरीमैंट जरूर करना चाहिए. असली चुनौती तो नए ऐक्सपैरीमैंट करने में ही है. यदि हम बारबार घिसेपिटे किरदार निभाते रहेंगे, तो उन में क्या चुनौती होगी?

हौलीवुड की फिल्में भारतीय भाषाओं में डब हो कर भारत में प्रदर्शित हो रही हैं और भारतीय फिल्मों से ज्यादा कमा रही हैं. इसे कैसे देखती हैं?

यह तो ग्लोबलाइजेशन का परिणाम है. सिर्फ हौलीवुड की फिल्में ही सफल नहीं हो रही हैं, हमारी फिल्में भी सफल हो रही हैं. आमिर खान, सलमान खान, शाहरुख खान, अक्षय कुमार, इन की फिल्में भी सफहो रही हैं. इस के अलावा हौलीवुड फिल्में भी असफल हो रही हैं. ‘जंगल बुक’ ने पूरे विश्व में बहुत कमाई की, पर उस ने भारत में क्या कमाया यह मुझ से ज्यादा बेहतर आप जानते हैं. आमिर खान की फिल्म ‘दंगल’ ने तो चीन में 1200 करोड़ रुपए कमा लिए.

रिऐलिटी शो में जिस तरह से बच्चे काम कर रहे हैं, उस से क्या उन का भविष्य बनता है? आप उन के पेरैंट्स को क्या सलाह देना चाहेंगी?

मैं बच्चों और उन के पेरैंट्स को सलाम करती हूं. मुझे याद है जब मैं छोटी थी और शूटिंग के लिए सैट पर जाती थी, तो मेरी मां बहुत काम करती थीं. वे सब कुछ छोड़ कर मेरे लिए मेहनत करती थीं. जबकि हम लोग फिल्मी माहौल से नहीं थे. मैं ने एक भी दिन नहीं सुना कि आज यह काम नहीं हो पाया या आज मेरी मम्मी सैट पर नहीं हैं. वे हमेशा मेरा हौसला बढ़ाने के लिए मौजूद रहती थीं. मैं आज जो कुछ भी हूं, वह अपनी मां की वजह से हूं. आज टीवी पर जो बच्चे काम कर रहे हैं, जो अच्छी परफौर्मैंस दे रही हैं, उस का सारा श्रेय मैं उन के पेरैंट्स को देती हूं.

लेकिन यदि वे टीवी रिऐलिटी शो का हिस्सा न बनते, तो डाक्टर या इंजीनियर बन सकते थे?

आप की बात सही है. मगर यदि बच्चे की रुचि संगीत या नृत्य या फिर अभिनय में है, तो आप क्या करेंगे? यदि बच्चे अभिनय, नृत्य या संगीत में रुचि दिखा रहे हैं, उस में नाम कमा रहे हैं, तो हमें उन्हें सपोर्ट करना चाहिए. मैं भी एक मां हूं. मैं ने भी अपनी बेटियों को पढ़ाने के बारे में सोचा. डाक्टर, इंजीनियर बनाने के बारे में सोचा. पर अंतत: मुझे भी उन की रुचि के आगे झुकना पड़ा.

बचपन या टीनएज का वह सपना जो अब तक पूरा नहीं हुआ और क्या उसे पूरा करना चाहेंगी?

पेंटिंग मेरा पैशन रहा है. लेकिन कुछ वजहों से मैं ने पेंटिंग्स करना छोड़ दिया था. लेकिन शादी के बाद जब मैं ने अपने बच्चों का होमवर्क करवाना शुरू किया, तो उन के लिए ड्राइंग मैं तब बनाती थी. मेरी बेटियों ने कहा कि मम्मा आप तो बहुत अच्छी ड्राइंग बना लेती हैं. आप को तो पेंटिंग्स बनानी चाहिए. तब मैं ने फिर से पेंटिंग्स बनानी शुरू कीं. मेरी एक पेंटिंग अमेरिका के न्यूयौर्क की एक आर्ट गैलरी में खरीद कर रखी गई है.

निर्माता के तौर पर आप को अपने पति की कौन सी फिल्म पसंद है?

आप बौनी कपूर को अच्छी तरह से जानते हैं. उन्होंने अब तक सब बेहतरीन फिल्में बनाई

हैं. मुझे ‘मिस्टर इंडिया’ सब से ज्यादा पसंद है. ‘वो सात दिन’ भी. लेकिन मेरी व मेरे बच्चों की फेवरेट फिल्म ‘मिस्टर इंडिया’ है. ‘नो ऐंट्री’ भी बहुत पसंद है, क्योंकि मेरी कौमेडी में भी बहुत रुचि है.

फैशन मेरे खून में था : लीना टिपनिस

फैशन डिजाइनर लीना टिपनिस ने अपनी मेहनत से यह साबित कर दिया कि मन में लगन और जज्बा हो तो कोई भी राह मुश्किल नहीं. रिटेल के क्षेत्र में व्यवसाय की शुरुआत करने वाली लीना 5 साल तक काम करने के बाद मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में उतरीं.

उन के सेमी फौर्मल और फ्यूजन वाले परिधान देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी काफी लोकप्रिय हुए.

उन्होंने अपनी ब्रैंड ‘लिनारिका’ 1996 में खोली, जिस के 30 स्टोर्स देशविदेश में हैं. ‘लेस इज मोर’ इस कौंसैप्ट से प्रभावित हो कर बने उन के कपड़े अधिकतर शहरी महिलाओं के लिए होते हैं. अपनी पोशाकों में उन्होंने हमेशा नैचुरल फाइबर्स को अधिक महत्त्व दिया है. उन के पिता की इच्छा थी कि वे मैडिकल की पढ़ाई करें और डाक्टर बनें, लेकिन लीना का मन मैडिकल की पढ़ाई में नहीं लगा और उसे अधूरी छोड़ कर वे फैशन के क्षेत्र में उतर गईं.

उन्होंने किसी प्रकार की ट्रैनिंग नहीं ली है. सालों की मेहनत, लगन और लोगों का उन के ब्रैंड के प्रति प्यार ही उन्हें आगे बढ़ने में मदद की है. उन से बात करना दिलचस्प था. पेश हैं, बातचीत के खास अंश.

फैशन के क्षेत्र में आने की प्रेरणा कैसे मिली?

फैशन मेरे खून में था. जब मैं 10वीं कक्षा में थी, तो मैं ने एक किताब के बीच में गारमैंट के कई ‘स्कैचैस’ बनाए थे. पिता ने जब देखा तो उन्होंने उसे उठा कर फेंक दिया. मुझे बहुत दुख हुआ, क्योंकि मैं ने बड़ी मेहनत से उसे बनाया था. वे चाहते थे कि मैं डाक्टर बनूं. मुझे मैडिकल कालेज में ऐडमिशन भी मिला, पर मैं वहां से पढ़ाई अधूरी छोड़ कर मुंबई आ गई. यहां मैं ने अपने एक दोस्त के लिए पोर्टफोलियो बनाने में हैल्प किया.

एक दिन मुंबई के पेढर रोड पर खड़ी हो कर गाड़ी की तलाश कर रही थी, तभी एक जानकार व्यक्ति ने प्राइवेट कार में मुझे और मेरे दोस्त को लिफ्ट दिया. उन्हें मेरी दोस्त के लिए किया गया मेरा काम बेहद पसंद आया और उन्होंने मुझे अपने औफिस में बुलाया. जब मैं वहां गई, तो उन्होंने मुझे उन के कंपनी की लैडीज विंग के गारमैंट का भार दिया, जो करीब बंद हो चुकी थी. मेरे काम से उन की कंपनी को एक बार फिर से आगे बढ़ने में मदद मिली. इस के बाद मैं मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में उतर गई. यहीं से मेरा आत्मविश्वास बढ़ा और मैं आगे बढ़ती गई.

पिता का सपोर्ट कैसे और कब मिला?

जब पिता ने मेरे काम और पौपुलैरिटी को देखा तो उन्हें समझ में आ गया था कि मैं अच्छा काम कर रही हूं. चूंकि वे चैंबर्स औफ कौमर्स के अध्यक्ष थे, तो उन्होंने ट्रैड में काफी सहयोग किया. जिस से मेरी कंपनी को विदेशों में भी पहचान मिलने लगी. यूके, साउथ ईस्ट अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका आदि सभी देशों में मेरे डिजाइन किए कपड़े लोगों ने पसंद किए. इस के अलावा जब भी किसी सलाह की जरूरत पड़ती मैं अपने पिता से बातचीत करती थी.

आप की कपड़ों की खासीयत क्या है?

मैं केवल पोशाक ही डिजाइन नहीं करती. शुरूशुरू में मेरे कपड़े बड़ेबड़े ब्रैंड में जाते थे, लेकिन कपड़ों की पौपुलैरिटी को देख कर मैं ने अपनी कंपनी खोली. इस में मैं हमेशा कुछ नया देने की सोचती हूं. इंडोवैस्टर्न मेरा स्टाइल है. इस के अलावा मैं लुक को कस्टोमाइज कर व्यक्तित्व को विकसित कर स्टाइल देती हूं, जिस से व्यक्ति अच्छा दिखे.

आप के सामने तो चुनौतियां भी कम नहीं होती होंगी?

देखिए, चुनौती टाइम मैनेजमैंट की होती है. सैंपलिंग से ले कर प्रौडक्ट को बनाने तक पूरा बैकअप रखना काफी कठिन होता है. इस के अलावा कपड़ों की क्वालिटी को बनाए रखना, ग्राहकों को संतुष्ट करना आदि सब कुछ बहुत मुश्किल होता है. पहले मैं 13 से 14 घंटे काम करती थी, लेकिन अब 7 घंटे काफी होते हैं.

आप के कपड़े किनकिन सैलिब्रिटीज ने पहने हैं?

वैसे तो मैं किसी खास सैलिब्रिटीज के कपड़े डिजाइन नहीं करती, पर क्विन औफ जौर्डन ने मेरे कपड़े पहने हैं. इस के अलावा ‘आयशा’ फिल्म के लिए भी मैं ने कपड़े डिजाइन किए थे. सदाबहार अभिनेत्री रेखा ने भी मेरे डिजाइन किए कपड़े पहने थे.

आप की नजर में सफलता क्या है?

शुरू से ले कर अब तक करीब 20 साल तक मेरी पूरी टीम मेरे साथ काम कर रही है और मैं इसे ही अपनी सफलता मानती हूं, क्योंकि उन का मेरे साथ काम करने की चाहत अभी तक बनी हुई है. यही मेरी उपलब्धि है.

ये ट्रैवल टिप्स बना देंगे आपके वीकेंड ट्रिप को मजेदार

आप अपने वीकेंड में जरूर ही किसी शांत जगह जाना पसंद करेंगी जहां आप दिन भर आराम कर सकें, अच्छी-अच्छी चीजों का मजे ले सकें और अपनी टेंशन और थकान दूर कर सकें. लेकिन वीकेंड पर जाने से पहले आपको पूरा प्लान तैयार करना होता है. आपके इस प्लान में हमारे ये टिप्स आपकी वीकेंड ट्रिप को सफल बना देंगे.

मनपसंद जगह चुनें

हर किसी की पसंद अलग-अलग होती है. आप अपनी मनपसंद की जगह चुनिए जहां आप दिल से जाना चाहती हों. जहां जाने के लिए आप कई दिनों से सोच रही हों.

ग्रुप में करें यात्रा

अगर आप कोई वीकेंड ट्रिप की योजना बना रही हैं तो ग्रुप में बनाइए क्योंकि ग्रुप में वीकेंड ट्रिप का मजा और अनुभव ही अलग होगा. इसलिए आप जिन लोगों के साथ सहज हों उनके साथ योजना बनाएं.

पैकिंग पर दें ध्यान

कम समान पैक करें याद रखें कि आप अपने वीकेंड ट्रिप के लिए जा रही हैं तो आपको बाद में कोई परेशानी ना हो इसलिए ज्यादा सामान पैक ना करें. कम से कम और बस कुछ जरूरी सामानों को ही पैक कर ले जाएं, जिससे कि आप आराम से अपनी यात्रा का भरपूर मजा ले सकें.

सही होटल का चुनाव

अपने गंतव्य के नजदीक ही होटल बुक करें यह अच्छा होगा कि आप अपने गंतव्य स्थल के पास ही अपने रहने का इंतजाम करें जिससे कि आपके पास आपके मनपसंद जगह में घूमने के लिए ज्यादा से ज्यादा समय हो. ऐसे होटल का चुनाव करें जो आपके बजट में ही हो, जिससे कि आप शॉपिंग के लिए कुछ पैसे बचा सकें.

ऑफिस के कॉल या मैसेज से रहें दूर

अपने फोन को बंद रखें याद रखें कि आप एक वीकेंड ट्रिप पर आई हैं अपने सारे परेशानियों से दूर, इसलिए अपने फोन और लैपटॉप को बिल्कुल बंद रखें ताकि आपके ऑफिस के कॉल मेल या मेसेज से आपकी छुट्टी में किसी भी तरह की बाध ना आए.

खाने पीने का सामान रखें साथ

खाने पीने के कुछ सामान पैक करें. एक यात्री के लिए खाने की चीजें पैक करना सबसे जरूरी होता है. इसलिए यात्रा पर निकलने से पहले ध्यान दें कि आपने अपने खाने और पीने के सामान अपने साथ रखें हैं या नहीं.

अपने आपको दें पूरा समय

सप्ताह के बाकी दिनों में आपका एक नियम बना होता है, इसलिए वीकेंड पर सप्ताह के आखिरी दिनों में सारे नियम और कामों से दूर अपने आपको ही पूरा समय दें, ताकि आपको पूरा आराम मिल सके. और आप नए जोश के साथ नए सप्ताह के लिए तैयार हो सकें.

अपने वीकेंड को इसी तरह अच्छे से प्लान करें और एक मजेदार वीकेंड के लिए अपनी यात्रा शुरू करें. फिर अपनी यात्रा से लौट कर नए जोश और अच्छी यादों के साथ नए सप्ताह के सारे कामों को निपटाते जाएं.

विकास पर हावी अंधविश्वास

तुलसीदास के अनुसार ‘भय बिनु होई न प्रीत’ यानी भय इनसान को कार्य करने के लिए उकसाने का सर्वोत्तम माध्यम है. मास्टरजी की छड़ी के भय से छात्र पढ़ने बैठ जाते हैं और पिता की डांट के भय से सही आचरण करने लगते हैं. कुछ सीमा तक भय कार्य उद्दीपक एवं प्रेरणा का काम करता है, जो इनसान की प्रगति में सहायक बनता है, मगर वहीं जब इसी भय की अधिकता हो जाती है या भय को स्वार्थसिद्धि का साधन बना कर लोगों की भावनाओं से खेला जाता है, तो यह अंधविश्वास का रूप ले लेता है, जो मानव के पतन का कारण बनता है, उस की प्रगति में बाधक बनता है.

हमारा भारतीय समाज इसी भय की अधिकता के कारण 21वीं सदी में भी 18वीं सदी की विचारधारा से ओतप्रोत है. जहां जापान, जरमनी, चीन जैसे देश निरंतर प्रगति कर महाशक्ति बन बैठे हैं, वहीं भारत धर्म, पूजापाठ और अंधविश्वास के चलते लगातार पीछे जा रहा है. भारत की जनता गरीबी के कारण तो किसान फसल खराब होने के कारण आत्महत्याएं कर

रहे हैं, वहीं तिरुमाला, शिरडी, पद्मनाभम और सिद्धि विनायक जैसे मंदिर और उन के पुजारी करोड़ोंअरबों में खेल रहे हैं.

भगवान का भय

यहां का शिक्षक, जो देश के भावी कर्णधारों को तराशता है, लगातार शिक्षाप्रद भाषण दे कर अपना गला दुखाता है उसे तनख्वाह के रूप में कुछ हजार रुपए मिलते हैं, वहीं जो पाखंडी बाबा गीता के कुछ श्लोक रट कर और बेढंगे नृत्य और गीत से जनता को बेवकूफ बनाता है उस के गैरेज में महंगी कारों का काफिला, अरबों की इमारतें और सुंदर सेविकाएं (न जाने किसकिस सेवा हेतु) उपलब्ध रहती हैं.

हमारे देश के इन धार्मिक लुटेरों ने पूजा और धर्म की असंख्य बंदूकों के बल पर अंधविश्वासी जनता को इस तरह भयभीत किया है कि वह बेचारी बिना बंदूक दिखाए ही केवल बंदूक के खौफ से ही (देवता नाराज हो जाएंगे, नकारात्मक शक्तियां उत्पात मचाएंगी, भूतप्रेत का साया, किसी भी चूक से शक्तियों का क्रोधित होना और दंडित करना इत्यादि) अपना सब कुछ इन्हें बिना किसी प्रश्न के सहज सौंप देती है. जनता को पूजापाठ और टोटकों में इस तरह उलझा दिया गया है कि उसे यह सोचनेसमझने का अवसर ही नहीं मिलता कि ‘मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन’ की तर्ज पर ये पाखंडी उन की खूनपसीने की कमाई पर मौज उड़ा रहे हैं और इस के लिए ये ढोंगी कुछ भी कर सकते हैं.

सिर्फ पाखंड ही

आप को पशुओं का मूत्र पिलाया जा सकता है या उस के इस्तेमाल की सलाह दी जा सकती है और हम यह वैज्ञानिक तथ्य जानते हुए भी कि शरीर उन्हीं तत्त्वों को उत्सर्जित करता है, जो शरीर के लिए उपयोगी ही नहीं हैं, हम गौ माता की जय कह कर उस अपशिष्ट का प्रसाद लेने को तत्पर हो उठते हैं.

वास्तव में गाय की आंतों में कुछ विषैले जीवाणु होते हैं, जो मूत्र के साथ कुछ मात्रा में शरीर से बाहर निकल जाते हैं. अगर हम इन अपशिष्टों का सेवन करते हैं, तो ये जीवाणु हमारे स्वास्थ्य पर कैसी कृपा करेंगे, यह आप खुद समझ सकते हैं.

इसी तरह पीलिया होने पर नीम की डालों को तेल में घुमा कर पीलिया झाड़ने वाले के पास कई पढ़ेलिखों की लाइन लगी मिल जाएगी, जबकि आप स्वयं बिना पीलिया के तेल में नीम की डालें घुमाएंगे तो तेल को पीला होता पाएंगे.

चेचक की बीमारी को देवी के गुस्से की अभिव्यक्ति मान उसे मनाने के लिए कर्मकांड और पूजाअर्चना में भी हजारों खर्च कर दिए जाते हैं. अंत में जब ज्यादा हालत बिगड़ जाती है तब डाक्टर के पास पहुंचते हैं. अगर आप ईश्वर में और पूजापाठ में इतना ही यकीन रखते हैं, तो मैं उस यकीन की परीक्षा के लिए एक प्रयोग बताती हूं. आप पोटैशियम साइनाइड का एक इंजैक्शन लगा लो और फिर भगवान के गीत गागा कर उसे रक्षा के लिए बुलाओ या फिर अपनी खूनपसीने की कमाई जिन बाबाओं पर लुटाते आए हो उन की शरण में जाओ. अगर आप का विश्वास सच्चा है, तो फिर किस बात का डर? मुझे यकीन है आप ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि भगवान पर आप का विश्वास नहीं है. इन पाखंडियों पर भी नहीं है. आप तो बस नीलगायों की तरह एकदूसरे के पीछे भाग रहे हैं.

आप ने कोल्हू के बैल की तरह आंखों पर धर्म की पट्टी बांध रखी है. आप को पता ही नहीं है कि आप किस दिशा में जा रहे हो और क्यों? आप तो बस चले जा रहे हो, क्योंकि आप के पूर्वज भी ऐसे ही चले थे. आप इसलिए चल रहे हो, क्योंकि कुछ ग्रंथों में ऐसा लिखा है, आप चल रहे हो, क्योंकि कुछ स्वार्थी और पैसे के भूखे पंडेपुजारियों ने आप के दिमाग की प्रोग्रामिंग ऐसी कर दी है कि शोषण झेल कर भी आप खुद को शोषित मानने के बजाय भक्त मानते हो.

यह कैसा अंधविश्वास

शाहरुख अंक ज्योतिष पर यकीन करते हैं. उन की अपनी सभी गाडि़यों के नंबर ‘555’ हैं. यहां तक कि अपनी आईपीएल टीम ‘कोलकाता नाइट राइडर्स’ की हार से परेशान हो कर उन्होंने उस की जर्सी का रंग भी ज्योतिष के कहने पर बदलवा कर बैगनी करवाया.

‘सत्यमेव जयते’ जैसे सामाजिक शो करने वाले आमिर खान दिसंबर महीने को बेहद शुभ मानते हैं. इसीलिए अपनी हर फिल्म वे दिसंबर में ही रिलीज करते हैं. दीपिका पादुकोण भी अपनी फिल्म के रिलीज से पहले मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर दर्शन करने जरूर जाती हैं. एकता कपूर अपने काम से जुड़े हर मामले में ज्योतिष की राय लेती हैं, फिर चाहे वह शूटिंग की तारीख हो, शूटिंग की जगह हो या फिर उन की उंगली की अंगूठी ही क्यों न हो?

अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी ने माना है कि वे अपनी आईपीएल टीम ‘राजस्थान रौयल्स’ के मैच के दौरान 2 घडि़यां पहनती हैं, जिस से उन की टीम को सफलता मिलती है. एक जमाने में करण जौहर की यह धारणा थी कि उन की फिल्में तभी सफल होंगी जब उन के नाम ‘क’ अक्षर से हों.

देश में ही नहीं विदेशों में भी अंधविश्वासियों की कमी नहीं है. औस्कर पुरस्कार विजेता अभिनेता मौर्गन फ्रीमैन की नातिन के प्रेमी ने अंधविश्वास के चक्कर में उस की चाकू से गोद कर हत्या कर दी. मार्क जुकरबर्ग और बराक ओबामा भारत के नीम करोरी बाबा के प्रशंसक हैं. अब क्या कहेंगे इन पढ़ेलिखे अंधविश्वासियों को?

इन सब अंधविश्वासों की जननी है पूजा. पूजा ही हमें अंधविश्वास के मकड़जाल में फंसाने का प्रवेशद्वार है. हम सब से ज्यादा भयभीत पूजा करते वक्त ही होते हैं जैसेकि पूजा में हम ने नियम बनाया मंत्र जपने का. अगर स्वास्थ्य ठीक नहीं है या व्यस्तता है तो हम नियम टूटने और प्रभु के नाराज होने के खौफ से मरतेगिरते भी उस नियम को पूरा करने में वक्त बरबाद करेंगे. मैं उन लोगों को जो हजारों माला जपते हैं, घंटों पूजापाठ में शरीर और वक्त की बरबादी करते हैं, यह सलाह देती हूं कि एक बार इस सब को छोड़ कर देखें. आप को खुद पता चलेगा कि आप का कितना भला ये पाखंड करते थे और अब छोड़ने के बाद कितना सुकून आप महसूस कर रहे हैं? एक बार कर के जरूर देखिएगा.

ओझाओं की पौबारह

आगरा के एक दुर्गा मंदिर इंद्रपुरी में कहा जाता है कि यहां के पुजारी को दुर्गाजी की सवारी आती है. यहां भक्तों में बड़े व्यवसाइयों के साथसाथ सरकारी मुलाजिम भी आते हैं. मंदसौर में आग के शोलों पर चलना, कोलकाता में नवरात्र के दौरान जीभ पर तलवार रखना, उन्नाव में एक संन्यासी की बातों में आ कर सोना निकलने के लालच में खुदाई करवाना, पद्मनाभ मंदिर में इतना सोना है कि भारत फिर से सोने की चिडि़या बन सकता है, लेकिन उस के छठे द्वार का भय दिखा सोने को उस मंदिर के कर्ताधर्ता पुजारियों ने अपनी मुट्ठी में कर रखा है. ईसाइयों का उंगली क्रौस करना और सांपों के काटने पर ओझा के पास मंत्र से जहर उतरवाने भागना उसी भय की प्रवृत्ति का परिचायक है.

बड़े नाम भी शामिल

80 के दशक में तांत्रिक चंद्रास्वामी के भक्तों की फेहरिस्त में अपने देश के कई बड़े नेताओं सहित विश्व की अन्य हस्तियां भी शामिल थीं. वहीं नैपोलियन काली बिल्लियों से बहुत डरते थे, जबकि विंस्टन चर्चिल काली बिल्लियों को शुभ मान कर छुआ करते थे. कैटरीना कैफ अपनी हर फिल्म के रिलीज से पहले सलीम चिश्ती की दरगाह पर चादर चढ़ाती हैं, सचिन तेंदुलकर सत्य साईं बाबा के निधन पर फूटफूट कर रोते हैं और मैच के वक्त उलटा पैड पहले पहनते थे. यह उन का प्रसिद्ध टोटका था. अमिताभ बच्चन अपनी बहू के मांगलिक दोष को उतरवाने के लिए पहले उन का विवाह किसी वृक्ष से करवाते हैं. अनिल अंबानी गोवर्धन महाराज पर टनों दूध चढ़ाते हैं, तो मुकेश अंबानी भी आए दिन परिवार और निकट मित्रों के साथ धार्मिक यात्रा करते रहते हैं.

इन हस्तियों को अकसर टोनेटोटके भी करते पाया जाता है जैसेकि अमिताभ बच्चन खुद स्वीकारते हैं कि जब वे क्रिकेट मैच देखते हैं, तो भारत हार जाता है, इसलिए वे वह क्रिकेट मैच जिस में भारत खेल रहा होता है उसे नहीं देखते. ऐसे ही कई खिलाड़ी मानसिक भ्रांतियों पर निर्भर हो जाते हैं जैसेकि वे अपनी योग्यता से नहीं, बल्कि बस में किसी निश्चित सीट पर बैठने से जीतते हैं या फिर वे दस्ताने उन के लिए भाग्यशाली हैं, जिन से उन्होंने गेंद को लपका था न कि उन की बढि़या नजर, सही जगह अथवा प्रशिक्षण जो उन्होंने लिया.

संजीव कुमार ने विवाह नहीं किया, परंतु प्रेम कई बार किया था. उन्हें यह अंधविश्वास था कि उन के परिवार में बड़े बेटे के 10 वर्ष का होने पर पिता की मृत्यु हो जाती है. इन के दादा, पिता और भाई सभी के साथ यह हो चुका था. संजीव कुमार ने अपने दिवंगत भाई के बेटे को गोद लिया और उस के 10 वर्ष का होने पर उन की मृत्यु हो गई. इस से बेहतर होता कि वे विवाह कर लेते, क्योंकि न करने पर भी मृत्यु ने उन का वरण कर लिया.

जिंदगी से मजाक

ग्रामीण इलाकों में आज भी लोग लोहे की गरम सलाखों से दगवा कर कई बीमारियों का उपचार करा रहे हैं. वहीं बारहसिंघे के सींघों से लोगों के शरीर से रक्त निकाल कर ये बाबा नकारात्मक ऊर्जा को बाहर करने का दावा करते हैं.

हैरानी होती है कि जय गुरुदेव और कृपालु बाबा के मंदिरों में लोट लगाने वाले, निर्मल बाबा, आसाराम और सत्य साईं की जय बोलने वाले, राधे मां और रामरहीम के साथ अश्लीलता की हद तक झूमने वाले शिक्षित भक्त एक बार इन बाबाओं की पृष्ठभूमि और काले कारनामे जानने का प्रयास क्यों नहीं करते?

कुछ बाबाओं की बायोग्राफी पर एक नजर

निर्मलजीत सिंह नरूला, जो कई व्यापार करने के बाद भी नल्ले ही साबित हुए. उस नल्ले नरूला ने अंत में विश्वास के व्यापार की बाजी खेली और उस में निर्मल बाबा के नाम से छा गया. आसाराम जो बांझ औरतों की गोद भरने का चमत्कार दिखाता था, उस के आश्रम में गोद कैसे भरी जाती थी. यह आज पूरी दुनिया जानती है.

स्वामी नित्यानंद नित्य प्रतिदिन कितनी औरतों के साथ ध्यान योग करते थे यह दक्षिण की अभिनेत्री के साथ वीडियो में वायरल हो चुका है.

ये भी कुछ कम नहीं

63 साल का बाबा रामपाल अपने आश्रम में कई महिलाओं और बच्चों को कैद कर के रखता था. अपने आश्रम से कई गैरकानूनी कामों को अंजाम देने वाला रामपाल आज पुलिस की गिरफ्त में है. एक मामूली कर्मचारी से शुरुआत कर विश्व की टौप हस्तियों में एक तांत्रिक के रूप में विख्यात चंद्रास्वामी सब से ज्यादा तब चर्चा में आया जब उस के आश्रम पर इनकम टैक्स की रेड पड़ी और वहां डीलर अदनान खागोशी के 11 मिलियन डौलर के औरिजिनल ड्राफ्ट मिले. चंदास्वामी की अभी हाल ही में मृत्यु हो गई है.

ओशो उन लोगों में शामिल थे, जिन से अमेरिका भी डरता था. अपने आश्रम में खुला व्यभिचार कराने और उसी को एकमात्र ईश्वर प्राप्ति का मार्ग मानने वाले ओशो पर अपने अमेरिकी आश्रम में समर्थकों की हत्या का प्लान रचने जैसे कई आरोप लगे.

कल्याण सिंह के करीबी भाजपा के सांसद रह चुके तांत्रिक साक्षी महाराज को कौन नहीं जानता? 27 मार्च, 2009 को साक्षी महाराज के आश्रम से एक 24 वर्षीय युवती लक्ष्मी का शव बरामद हुआ तो हड़कंप मच गया. साक्षी पर जमीन हथियाने और यौन उत्पीडन के आरोप समयसमय पर लगते रहे हैं. आश्रम के रूप में साक्षी के पास अच्छीखासी संपदा एकत्र है.

इन के लिए धंधा है धर्म

देश भर में 1 रुपए में शिक्षा देने का दावा करने वाले पायलट बाबा ने फ्रौड कर के करोड़ों रुपए कमाए. बाबा अपनी ऊंची पहुंच के कारण बचे हुए हैं. वृंदावन में एक बाबा भगवताचार्य राजेंद्र उर्फ पोर्न स्वामी को पकड़ा गया था. उस के बारे में खुलासा हुआ कि वह अश्लील फिल्में शूट करता है. उस के पास से कुछ ऐसी फिल्में भी बरामद हुईं, जिन में राजेंद्र विदेशी युवतियों के साथ स्वयं अप्राकृतिक यौनाचार करता दिखा. इतना ही नहीं राजेंद्र ने अपनी पत्नी की भी अश्लील सीडी बना कर बाजार में उतार दी थी. बाबा गुरमीत रामरहीम पर कभी आश्रम में रह रहे लोगों की नसबंदी कराने, तो कभी चरित्रहीनता के इलजाम लगते आए हैं. इन दिनों वह अपने रौकस्टार रूप के लिए मशहूर है.

विवादित संत स्वामी भीमानंद का नाम देश भर में बड़े लैवल का सैक्स रैकेट चलाने को ले कर सामने आया. 1997 में उसे लाजपत नगर से पहली बार गिरफ्तार किया गया था. कुमार स्वामी बाबा मंत्रों से रोग सही करते हैं.

धर्म की दुकानदारी

दिवंगत सत्य साईं बाबा के भक्तों, वीआईपी भक्तों की फेहरिस्त बहुत लंबी है. पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह, पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, वीएचपी के अशोक सिंघल और आरएसएस के सभी बड़े नेता उन के दरबार में जाते थे.

अगर ये लोग इतने ही चमत्कारी हैं, तो अपने लिए धन चमत्कारों से ही क्यों नहीं इकट्ठा करते हैं. लोगों से चढ़ावा क्यों लेते हैं? मंदिर बनवाने के बजाय अस्पताल और शिक्षा केंद्र क्यों नहीं बनवाते? जितने रुपए प्रेम मंदिर और जयगुरुदेव आश्रम के निर्माण में लगे अगर उतने रुपए से विश्वस्तरीय शिक्षा केंद्र और अस्पताल खोले जाते, तो जनता का कितना कल्याण होता? मगर इन्हें तो दुकान से आए पैसे दुकान में ही लगाने थे ताकि ज्यादा से ज्यादा ग्राहक कटें. ऐसी सोच एक पुजारी नहीं दुकानदारी में माहिर सयाना ही रख सकता है.

तंत्रमंत्र के नाम पर धोखा

अंधविश्वासों का दूसरा बड़ा वर्ग है मंत्रतंत्र. अकसर मुसलिम बाबा वशीकरण से विरोधी और उदासीन व्यक्ति को 24 घंटे में अपने वश में करने की गारंटी देते हैं, मगर व्यक्ति 24 घंटे इंतजार करता रह जाता है और बाबा दूसरा मुरगा फंसाने के लिए उड़न छू हो जाते हैं. जादूटोना, शकुन, मुहूर्त, मणि, ताबीज आदि इन्हीं धूर्तों के फैलाए अंधविश्वास हैं. ये लोग अदृश्य शक्तियों का भय दिखा कर और मनगढंत कहानियां जैसेकि पृथ्वी शेषनाग के फन पर स्थित है. वर्षा, गर्जन और बिजली इंद्र की क्रियाएं हैं. भूकंप की अधिष्टात्री एक देवी है. रोगों की वजह प्रेतपिशाच हैं. औरतों के नंगा हो कर खेत जोतने और मेढकमेढकी का विवाह करवाने से पानी बरसवाने के लिए इंद्र देवता की मिन्नतें इत्यादि सुना कर लोगों से चढ़ावे और दान के रूप में उन की गाढ़ी कमाई लूटते आए हैं और लूटते रहेंगे.

किसी देश की उन्नति अंधविश्वासों के सहारे नहीं होती. उस के लिए कर्मठता की जरूरत होती है. अमीर देशों में भी अंधविश्वासी हैं पर वहां अंधविश्वास विरोधियों, तार्किकों, वैज्ञानिकों की संख्या भी काफी है, जो समाज को निरंतर आगे ले जाते रहते हैं. भारत में तो कणकण में दकियानूसीपन घुसा है और अब धर्म को देश की बराबरी दे कर अंधविश्वास विरोध को देशद्रोह का दर्जा देने की कोशिश की जा रही है. तमिलनाडु में अध्यादेश साबित करता है कि देश 70 साल में अढाई कोस ही चला है.

– सपना मांगलिक

सरकार की मंशा पर संदेह

सरकार चिकित्सा को सुलभ व सस्ता करने के लिए कानून बनाने जा रही है कि डाक्टर मरीजों को नुसखा या प्रिस्क्रिप्शन देते समय दवाओं के ब्रैंड नाम न लिख कर कैमिकल नाम लिखें ताकि मरीज वे दवाएं किसी भी कंपनी की खरीद सकें. ब्रैंडेड दवाइयां देने के चलन के कारण मैडिकल उद्योग में बहुत बेईमानी फैली हुई है और सरकार की सोच है कि इस से यह रुकेगी और इलाज सस्ता हो जाएगा.

आरोप है कि ब्रैंडेड दवाइयां बहुत महंगी होती हैं, क्योंकि दवा कंपनियां डाक्टरों को घूस दे कर उन्हें महंगी ब्रैंडेड दवाइयां लिखने को प्रेरित करती हैं. इस के लिए डाक्टरों को महंगे उपहार भी दिए जाते हैं, नकद कमीशन भी दिया जाता है और निशुल्क विदेश यात्राएं भी कराई जाती हैं.

इंडियन जर्नल औफ फार्माकोलौजी की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐंटी ऐलर्जी की दवा एलेरिड टैबलेट की 10 गोलियों का पत्ता 35 में बिकता है, तो अच्छी कंपनी के जैनेरिक नाम से यह 2.50 में थोक बाजार में मिल सकता है. महंगी दवाओं में यह अंतर और ज्यादा है और चाहे नए उपचार आ गए हों, देश की गरीब जनता को अभी भी बेइलाज मरना पड़ता है.

पर इस का हल फार्मा कंपनियों को निचोड़ना नहीं है. फार्मा कंपनियां बहुत ही प्रतियोगी वातावरण में काम करती हैं और एक ब्रैंडेड दवा के कई पर्याय मिलते हैं. कई बार कई कंपनियां मिल कर कार्टेल बना लेती हैं पर इस के बावजूद जमीनी हकीकत में उन्हें डिस्काउंट, उधारी, उपहारों पर निर्भर रहना ही पड़ता है. मोटा मुनाफा वे जरूर कमा रही हैं पर उस के पीछे दवा उद्योग का चरित्र है, लालच ही नहीं.

दवाओं को विकसित करने व उन्हें बीमारियों से बचाने योग्य बनाने में लाखों नहीं, अरबों रुपए खर्च करने पड़ते हैं. अगर संतोषजनक दवा बन भी जाए तो हर मरीज के लायक है या नहीं, यह पक्का नहीं होता. डाक्टरों को टे्रनिंग देने का भी काम मुश्किल होता है, क्योंकि डाक्टर तो सारे देश में फैले हैं. एक अच्छीभली दवा कब बेकार हो जाए या प्रतियोगी की बेहतर दवा आ जाए, इस का भरोसा नहीं होता.

यह जोखिम अंतत: तो मरीज को ही झेलना पड़ेगा. दवाओं को सस्ती करने के चक्कर में कहीं ऐसा न हो कि दवा उद्योग उत्साह ही खो बैठे और दवाएं मिलना ही दूभर हो जाए और तब लोगों को मंदिरों, मसजिदों में दुआओं के सहारे इलाज खोजना पड़े.

सरकार का छिपा उद्देश्य कहीं यही तो नहीं कि जिस मंदिर के नाम पर वह सत्ता में आई, वे फलतेफूलते रहें?

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