बदले की आग: भाग 2- क्या इकबाल बेटी और पत्नी को बचा पाया

लेखक- जावेद राही

‘‘कालबैल बजाने के थोड़ी देर बाद एक लड़की ने दरवाजा खोला. मैं ने अनुमान लगा लिया कि यही वह लड़की है, जिस ने मेरे जीवन में जहर घोला है. वह भी समझ गई कि मैं इकबाल की पत्नी हूं. उस ने मुझे अंदर आने को कहा. मैं अंदर गई, कमरे में सामने इकबाल की बड़ी सी फोटो लगी थी, उसे देखते ही मेरे शरीर में आग सी लग गई.

‘आपी, मैं ने उन से कई बार कहा कि वह अपने बच्चों के पास जा कर रहें, लेकिन वह मुझे डांट कर चुप करा देते हैं.’ उस ने कहा. इस के बाद उस ने मुझे पीने के लिए कोक दी.

‘‘मैं ने उस के पहनावे पर ध्यान दिया, वह काफी महंगा सूट पहने थी और सोने से लदी थी. इस से मैं ने अनुमान लगाया कि इकबाल उस पर दिल खोल कर खर्च कर रहे हैं. जबकि हमें केवल गुजारे के लिए ही पैसे देते हैं. उस ने अपना नाम नाहिदा बताया.

मैं ने कहा, ‘देखो नाहिदा, तुम इकबाल को समझाओ कि वह तुम्हें ले कर घर में आ कर रहें. हम सब साथसाथ रहेंगे. बच्चों को उन की बहुत जरूरत है. उस ने कहा, ‘आपी, मैं उन्हें समझाऊंगी.’

‘‘उस से बात कर के मैं घर आ गई. जो आंसू मैं ने रोक रखे थे, वह घर आ कर बहने लगे. शाम को इकबाल का फोन आया. उन्होंने मुझे बहुत गालियां दीं, साथ ही कहा कि मेरी हिम्मत कैसे हुई उन का पीछा करने की. मैं ने 2-3 बार उन्हें फोन किया, उन्होंने केवल इतना ही कहा कि उन्हें मेरे ऊपर भरोसा नहीं है. बच्चों के बारे में उन्होंने कहा कि उन्हें शक है कि ये उन के बच्चे नहीं हैं. फिर मैं ने सोच लिया कि अब मुझे उन के साथ नहीं रहना. वह पत्थर हो चुके हैं.’’

इतना कह कर सुरैया सिसकियां भरभर कर रो पड़ी. अक्को और उस की मां ने कहा, ‘‘आप रोएं नहीं, जब तक आप का दिल चाहे, आप यहां रहें, आप को किसी चीज की कमी नहीं रहेगी.’’

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जिस आबादी में अक्को कुली का घर था, उस के आखिरी छोर पर नई आबादी थी. वह रेडलाइट एरिया था. गरमियों के दिन थे, छत पर चारपाइयां लगा दी जातीं. सब लोग छत पर ही सोते थे. शाम होते ही नई आबादी में रोशनी हो जाती, संगीत और घुंघरुओं की आवाज पर सुरैया बुरी तरह चौंकी.

अक्को ने बताया कि ये रेडलाइट एरिया है, यहां शाम होते ही नाचगाना शुरू हो जाता है. मोहल्ले वालों ने बहुत कोशिश की कि रेडलाइट एरिया यहां से खत्म हो जाए, लेकिन किसी की नहीं सुनी गई. अब हमारे कान तो इस के आदी हो गए हैं.

ऊपर छत पर खड़ेखड़े बाजार में बैठी वेश्याएं और आतेजाते लोग दिखाई देते थे. शाहिदा ने वहां का नजारा देख कर एक दिन अपने भाई शावेज से पूछा, ‘‘भाई, इन दरवाजों के बाहर कुरसी पर जो औरतें बैठी हैं, वे क्या करती हैं? कभी दरवाजा बंद कर लेती हैं तो थोड़ी देर बाद खोल देती हैं. फिर किसी दूसरे के साथ अंदर जाती हैं और फिर दरवाजा बंद कर लेती हैं.’’

शावेज ने जवाब दिया, ‘‘मुझे क्या पता, होगा कोई उन के घर का मामला.’’

उस समय शावेज भी खुलते बंद होते दरवाजों को देख रहा था. सुरैया भी यह सब रोजाना देखती थी, कुछ इस नजरिए से मानो कोई फैसला करना चाहती हो. जो पैसे वह अपने साथ लाई थी, धीरेधीरे वे खत्म हो रहे थे. बस कुछ जेवरात बाकी थे, जिन में से एक लौकेट और चेन बिक चुकी थी.

एक दिन अक्को कुली और सुरैया छत पर बैठे दीवार के दूसरी ओर उन दरवाजों को खुलता और बंद होते देख रहे थे. तभी सुरैया ने पूछा, ‘‘अक्को, धंधा करने वाली इन औरतों को पुलिस नहीं पकड़ती?’’

अक्को ने बताया कि उन्हें सरकार की ओर से धंधा करने का लाइसेंस दिया गया है. उन्हें लाइसेंस की शर्तों पर ही काम करना होता है.

सुरैया ने पूछा, ‘‘अक्को, क्या तुम कभी उधर गए हो?’’

‘‘एकआध बार अनजाने में उधर चला गया था, लेकिन तुम यह सब क्यों पूछ रही हो?’’ अक्को ने आश्चर्य से पूछा.

सुरैया कहने लगी, ‘‘मेरे अंतरमन में एक अजीब सी लड़ाई चल रही है. मैं इकबाल को यह बताना चाहती हूं कि औरत जब बदला लेने पर आ जाए तो सभी सीमाएं लांघ सकती है.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं?’’ अक्को चौंका.

‘‘मैं इस बाजार की शोभा बनना चाहती हूं.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है?’’ अक्को ने साधिकार उसे डांटते हुए कहा.

‘‘अक्को तुम मेरे जीवन के उतारचढ़ाव को नहीं जानते. मैं ने इकबाल के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया. उस की खूब सेवा भी की और इज्जत भी बना कर रखी. लेकिन उस ने मुझे क्या दिया?’’ सुरैया की आवाज भर्रा गई.

अक्को ने उसे सांत्वना दे कर पूछा, ‘‘तुम अपनी सोच बताओ, फिर मैं तुम्हें कोई सलाह दूंगा.’’

वह कुछ सोच कर बोली, ‘‘मैं शाहिदा को नाचनागाना सिखाना चाहती हूं.’’

अक्को कुछ देर सोचता रहा, फिर बोला, ‘‘अच्छा, मैं इस बाजार के चौधरी दारा से बात करूंगा.’’

अगले दिन उस ने दारा से बात कर के सुरैया को उस से मिलवा दिया. शाहिदा के भोलेपन, सुंदरता और सुरैया की भरपूर जवानी ने दारा के दिल पर भरपूर वार किया. उस ने चालाकी से अपना घर उन के लिए पेश कर दिया और थाने जा कर सुरैया और शाहिदा का वेश्या बनने का प्रार्थना पत्र जमा कर दिया.

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कुछ ही दिनों में मां बेटी ने उस इलाके के जानेमाने उस्तादों से नाचनेगाने की ट्रेनिंग ले ली. पहली बार मां बेटी सजधज कर कोठे पर बैठीं तो लोगों की भीड़ लग गई. शाहिदा की आवाज में जादू था, फिर पूरे बाजार में यह बात मशहूर हो गई कि यह किसी बड़े घर की शरीफ लड़की है, जिस ने अपनी इच्छा से वेश्या बनना पंसद किया है. दारा चूंकि शाहिदा को अपनी बेटी बना कर कोठे पर लाया था, इसलिए दोनों की इज्जत थी.

पूरे शहर में शाहिदा के हुस्न के चर्चे थे. देखतेदेखते बड़ेबड़े रईसजादे उस की जुल्फों में गिरफ्तार हो गए. जब शाहिदा अपनी आवाज का जादू चला तो नोटों के ढेर लग जाते. उस के एक ठुमके पर नोट उछलउछल कर दीवारों से टकरा कर गिरने लगते.

शाहिदा के भाई शावेज के खून में बेइज्जती तो आ गई थी, लेकिन जब कभी उस के शरीर में खानदानी खून जोश मारने लगता तो वह अपनी मांबहन से झगड़ने लगता. लेकिन वे दोनों उस की एक भी नहीं चलने देती थीं.

शाहिदा की नथ उतराई की रस्म शहर के बहुत बड़े रईस असलम के हाथों हुई, जिस के एवज में लाखों की रकम हाथ लगी. असलम जब आता, ढेरों सामान ले कर आता. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. असलम शहर का बदमाश भी था. बातबात पर वह रिवौल्वर निकाल लेता था, लेकिन वही असलम शाहिदा के पैरों की मिट्टी चाटने लगता था.

एक दिन दबी जुबान से असलम ने उस की मां से शाहिदा को कोठे पर मुजरा न करने के लिए कहा तो उस की मां ने कहा, ‘‘उतर जाओ इस कोठे से, तुम से बढ़ कर सैकड़ों धनवान है मेरी शाहिदा के चाहने वाले. अब कभी इस कोठे पर आने की हिम्मत भी न करना.’’

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बदले की आग: भाग 1- क्या इकबाल बेटी और पत्नी को बचा पाया

लेखक- जावेद राही

पूरा प्लेटफार्म रोशनी में नहाया हुआ था. कराची एक्सप्रेस अभी अभी आई थी, जो यात्रियों को उतार कर आगे बढ़ गई थी. प्लेटफार्म पर कुछ यात्रियों और स्टेशन स्टाफ के अलावा काली चादर में लिपटी अपनी 10 वर्षीया बेटी और 8 वर्षीय बेटे के साथ एक जवान औरत भी थी. ऐसा लगता था, जैसे वह किसी की प्रतीक्षा कर रही हो. अक्की अकबर उर्फ अक्को कुली उस के पास से दूसरी बार उन्हें देखते हुए उधर से गुजरा तो उस महिला ने उसे इशारा कर के अपने पास बुलाया.

अक्को मुड़ा और उस के पास जा कर मीठे स्वर में पूछा, ‘‘जी, आप को कौन सी गाड़ी से जाना है?’’

‘‘मुझे कहीं नहीं जाना, मैं ने तो केवल यह पूछने के लिए बुलाया है कि यहां चाय और खाने के लिए कुछ मिल जाएगा?’’

‘‘जी, बिलकुल मिल जाएगा, केक, रस, बिस्किट वगैरह सब कुछ मिल जाएगा.’’ अक्को ने उस महिला की ओर ध्यान से देखते हुए कहा.

गोरेचिट्टे रंग और मोटीमोटी आंखों वाली वह महिला ढेर सारे गहने और अच्छे कपड़े पहने थी. वह किसी अच्छे घर की लग रही थी. दोनों उस से लिपटे हुए थे. महिला के हाथ से सौ रुपए का नोट ले कर वह बाहर की ओर चला गया. कुछ देर में वह चाय और खानेपीने का सामान ले कर आ गया. चाय पी कर महिला बोली, ‘‘यहां ठहरने के लिए कोई सुरक्षित मकान मिल जाएगा?’’

महिला की जुबान से ये शब्द सुन कर अक्को को लगा, जैसे किसी ने उछाल कर उसे रेल की पटरी पर डाल दिया हो. उस ने घबरा कर पूछा, ‘‘जी, मैं कुछ समझा नहीं?’’

‘‘मैं अपने घर से दोनों बच्चों को ले कर हमेशा के लिए यहां आ गई हूं.’’ उस ने दोनों बच्चों को खुद से सटाते हुए कहा.

‘‘आप को यहां ऐसा कोई ठिकाना नहीं मिल सकता. हां, अगर आप चाहें तो मेरा घर है, वहां आप को वह सब कुछ मिल जाएगा, जो एक गरीब के घर में होता है.’’ अक्को ने कुछ सोचते हुए अपने घर का औफर दिया.

महिला कुछ देर सोचती रही, फिर अचानक उस ने चलने के लिए कह दिया. अक्को ने उस की अटैची तथा दोनों बैग उठाए और उन लोगों को अपने पीछे आने को कह कर चल दिया.

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मालगोदाम वाला गेट टिकिट घर के पीछे था, जहां लोगों का कम ही आनाजाना होता था. महिला को उधर ले जाते हुए उसे कोई नहीं देख सकता था. अक्को ने वही रास्ता पकड़ा. बाहर आ कर उस ने एक औटो में सामान रखा और महिला के बेटे को अपनी गोद में ले कर अगली सीट पर बैठ गया.

औटो चल पड़ा. रेलवे फाटक पार कर के अक्को ने औटो वाले से टैक्सी वाली गली में चलने को कहा. उस गली में कुछ दूर चल कर रास्ता खराब था, जिस की वजह से औटो वाले ने हाथ खड़े कर दिए. अक्को सामान उठा कर पैदल ही उन सब को अपने घर ले गया. दरवाजे पर पहुंच कर उस ने आवाज लगाई, ‘‘अम्मा.’’

अंदर से कमजोर सी आवाज आई, ‘‘आई बेटा.’’

मां ने दरवाजा खोला. पहले उस ने अपने बेटे को देखा, उस के बाद हैरानी भरी निगाह उन तीनों पर जम गई. अक्को सामान ले कर अंदर चला गया. वह एक छोटा सा 2 कमरों का पुराने ढंग का मकान था. इस घर में मां बेटे ही रह रहे थे. बहन की शादी हो चुकी थी, पिता गुजर गए थे.

बाप कुली था, इसलिए बाप के मरने के बाद बेटे ने लाल पगड़ी पहन ली थी और स्टेशन पर कुलीगिरी करने लगा था. मां ने महिला और उस के दोनों बच्चों के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और अक्को की ओर देखने लगी.

अक्को ने कहा, ‘‘मां, ये लोग कुछ दिन हमारे घर मेहमान बन कर रहेंगे.’’

मां उन लोगों की ओर देख कर बोली, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, मेहमानों के आने से तो घर में रौनक आ जाती है.’’

सुबह हो चुकी थी, अक्को ने मां से कहा, ‘‘अम्मा, तुम चाय बनाओ, मैं नाश्ते का सामान ले आता हूं.’’

कुछ देर में वह सामान ले आया. मां, बेटे और बेटी ने नाश्ता किया. अक्को ने अपना कमरा मेहमानों को दे दिया और खुद अम्मा के कमरे में चला गया. नाश्ते के बाद तीनों सो गए.

मां ने अक्को को अलग ले जा कर पूछा, ‘‘बेटा, ये लोग कौन हैं, इन का नाम क्या है?’’

उस ने जवाब दिया, ‘‘मां, मुझे खुद इन का नाम नहीं मालूम. ये लोग कौन हैं, यह भी पता नहीं. ये स्टेशन पर परेशान बैठे थे. छोटे बच्चों के साथ अकेली औरत कहीं किसी मुसीबत में न फंस जाए, इसलिए मैं इन्हें घर ले आया. अम्मा तुम्हें तो स्टेशन का पता ही है, कैसेकैसे लोग आते हैं. किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता.’’

‘‘बेटे, तुम ने यह बहुत अच्छा किया, जो इन्हें यहां ले आए. खाने के बाद इन से पूछेंगे.’’

दोपहर ढलने के बाद वे जागे. कमरे की छत पर बाथरूम था, तीनों बारीबारी से नहाए और कपड़े बदल कर नीचे आ गए. मां ने खाना लगा दिया. आज काफी दिनों बाद उन के घर में रौनक आई थी. सब ने मिल कर खाना खाया.

खाने के बाद महिला ने मां से कहा, ‘‘मेरा नाम सुरैया है, बेटे का नाम शावेज और बेटी का शाहिदा. हम बहावलपुर के रहने वाले हैं. मेरे पति का नाम मोहम्मद इकबाल है. वह सरकारी दफ्तर में अफसर हैं.’’ कह कर सुरैया मां के साथ बरतन साफ करने लगी. इस के बाद उस ने खुद ही चाय बनाई और चाय पीते हुए बोली, ‘‘आप की बड़ी मेहरबानी, जो हमें रहने का ठिकाना दे दिया.’’

मां ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटी, जिस ने पैदा किया है, वह रहने का भी इंतजाम करता है और खाने का भी. लेकिन यह बताओ बेटी कि इतना बड़ा कदम तुम ने उठाया किस लिए?’’

‘‘मां जी, मेरे साथ जो भी हुआ, वह वक्त का फेर था. मेरे साथसाथ बच्चे भी घर से बेघर हो गए. मेरे पति और मैं ने शादी अपनी मरजी से की थी. मेरे मां बाप मेरी मरजी के आगे कुछ नहीं बोल सके. शादी के कुछ सालों तक तो सब ठीक रहा, लेकिन धीरेधीरे पति का रवैया बदलता गया.’’

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थोड़ा रुक कर वह आगे बोली, ‘‘शाहिदा के बाद शावेज पैदा हुआ. इस के जन्म के कुछ दिनों बाद मुझे पता चला कि इकबाल ने दूसरी शादी कर ली है. मैं ने एक दिन उन से कहा, ‘तुम ने दूसरी शादी कर ली है तो उसे घर ले आओ. हम दोनों बहनें बन कर रह लेंगे. तुम 2-2 दिन घर नहीं आते तो बच्चे पूछते हैं, मैं इन्हें क्या जवाब दूं?’

‘‘उस ने कुछ कहने के बजाए मेरे मुंह पर थप्पड़ मारने शुरू कर दिए. उस के बाद बोला, ‘मैं ने तुम्हें इतनी इजाजत नहीं दी है कि तुम मेरी निजी जिंदगी में दखल दो. और हां, कान खोल कर सुन लो, तुम अपने आप को अपने बच्चों तक सीमित रखो, नहीं तो अपने बच्चों को साथ लो और मायके चली जाओ.’

‘‘इस के बाद इकबाल अपना सामान ले कर चला गया और कई दिनों तक नहीं आया. फोन भी नहीं उठाता था. एकदो बार औफिस का चपरासी आ कर कुछ पैसे दे गया. काफी छानबीन के बाद मैं ने पता लगा लिया कि उन की दूसरी बीवी कहां रहती है. बच्चों को स्कूल भेज कर मैं उस के फ्लैट पर पहुंच गई.

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संपत्ति के लिए साजिश: भाग 3- क्या हुआ था बख्शो की बहू के साथ

उस ने मिट्टी हटाई तो उस में एक लाश थी. वह भाग कर लालटेन लाया, उस की रोशनी में देखा तो एक जवान आदमी की लाश थी, उस के सारे कपड़े खून से सने थे. उस ने जल्दी से मिट्टी डाल कर बराबर कर दी और इस डर से अपनी झुग्गी में आ गया कि कहीं वह हत्या के केस में न फंस जाए.

‘‘तुम उस जगह को दिखा सकते हो?’’

उस ने कहा, ‘‘जी, थानेदारजी मैं उस जगह को कैसे भूल सकता हूं?’’

मैं ने मलंग के साथ एक नाटक खेलने का फैसला किया. अगर मैं वहां जा कर लाश बरामद कर लेता और बाद में रांझा और उस के भाइयों से कहता तो वे मना कर देते. मैं चाहता था कि वे स्वयं वहां से लाश बरामद कराएं. मैं ने मलंग को पूरी बात समझाई और उसे इनाम का लालच भी दिया. उस ने अपना पाठ अच्छी तरह याद कर लिया.

यह जरूरी नहीं था कि कब्रिस्तान में दफन की गई लाश गुलनवाज की ही हो, वह किसी और की भी हो सकती थी. मैं ने नाटक खेलने का फैसला किया. मैं ने मलंग को शरबत पिलवाया और उसे दूसरे कमरे में बिठा कर समझाया कि उसे कब मेरे पास आना है. फिर मैं ने तीनों भाइयों को बुला कर पूछताछ शुरू कर दी. वे पहले की तरह इनकार करते रहे.

मैं ने कहा, ‘‘तुम खुद ही अपना अपराध स्वीकार कर लोगे तो फायदे में रहोगे. देखो मेरे पास मौके का गवाह मौजूद है, जिस ने तुम्हें लाश दबाते हुए देखा था.’’

यह कहते हुए मैं ने अपनी नजर उन की आंखों पर रखी. इतना सुन कर वे चौंके, लेकिन फिर सामान्य हो गए. मैं ने रांझा को गिरेबान से पकड़ कर अलग किया और उस की आंखों में आंखें डाल कर धीरे से पूछा, जिस से कि उन दोनों को कुछ पता न चले.

‘‘बोलो, गरोट के कब्रिस्तान में किस की लाश को दबा कर आए थे?’’

मेरी बात सुन कर रांझा का चेहरा पीला पड़ गया. उस की आंखें डर से फैल गईं. उसी समय मैं ने मलंग को इशारा कर के बुलवाया. वह नारा लगा कर डंडा नचाता हुआ आया और उस के चारों ओर घूम कर अंगारे जैसी आंखों से घूर कर उस ने कहा, ‘‘अच्छा पकड़े गए ना.’’

मलंग डंडा हिला कर उछलकूद करने लगा. मैं ने उसे रोका नहीं. उस के गले में पड़ी माला और हाथ में पड़े कड़े छल्ला छनछन करने लगे और वहां अजीब सा स्वांग होने लगा. रांझा और उस के भाइयों की हालत खराब होने लगी, वे सब समझ गए

कि अब बचने वाले नहीं हैं.

रांझा बोला, ‘‘आप को अल्लाह का वास्ता देता हूं थानेदारजी, इस मलंग को रोक लें.’’

रांझा अपना सिर पकड़ कर नीचे बैठ गया. मैं ने मलंग को इशारे से मना कर दिया. मलंग को मैं ने दूसरे कमरे में भेज दिया. रांझा बेहोश होने लगा. मैं ने पानी मंगा कर उसे पिलाया तो उसे होश आया. मैं ने कहा, ‘‘बोलो, अब क्या कहते हो?’’

तीनों लाश की बरामदगी के लिए तैयार हो गए. मैं ने उसी समय कब्रिस्तान जाने का फैसला किया. नंबरदार, 2 गवाह और बख्शो को ले कर मैं कब्रिस्तान पहुंचा. कब्रिस्तान पहुंचने पर मैं ने रांझा और उस के भाइयों को आगे कर के कहा, ‘‘बताओ, कहां दबाया था उसे?’’

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वे आगे आए और वह जगह बताई. उस जगह को खोदा गया तो वहां से सड़ीगली लाश निकली. बख्शो को बुला कर शिनाख्त कराई. उस के पांव कांप रहे थे. उस का एकलौता बेटा था. उसी को मार दिया गया था. ऐसे में एक बाप की हालत क्या हो सकती थी, यह वही जान सकता था.

लाश के हाथ में कड़ा था, गले में कंठियों की मोटी माला थी. मैं ने यह सब निकलवा कर रखवा दिए. बूढ़ा बाप अपने बेटे की लाश देख कर चीखचीख कर रो पड़ा. मैं ने कागज तैयार कर के गवाहों के हस्ताक्षर करवाए और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. फिर अपराधियों को ले कर थाने आ गया.

मैं ने तीनों के बयान लिए, जिस में रांझे का बयान इस तरह था—

गुलनवाज और रांझा के बाप सगे भाई थे. गुलनवाज का बाप छोटा और रांझा का बाप बड़ा था. बड़े भाई के 5 बेटे और 2 बेटियां थीं. जबकि छोटे भाई बख्शो के केवल एक ही बेटा था. रांझा का बाप 2 साल पहले मर गया था. वह बहुत व्यभिचारी था, पैसा पानी की तरह खर्च करता था.

उस ने अपनी सारी जमीन अय्याशी पर खर्च कर दी थी. अब उस की नजर अपने भाई बख्शो की जमीन पर थी, तब तक उस के कोई संतान नहीं थी. फिर उस के एक बेटा हुआ, जो उस की जायदाद का वारिस बना.

रांझा के बाप ने अपने बेटों के सामने कई बार यह बात कही थी कि अगर बख्शो के बेटा न होता तो हम उस की जायदाद पर कब्जा कर लेते. यह बात रांझा और उस के भाइयों के दिमाग में बैठ गई थी. बाप के मरने के बाद उन्होंने बहाने से बख्शो की कुछ जमीन पर कब्जा कर भी लिया था.

बख्शो शांतिप्रिय था, उस ने थोड़ी जमीन जाने का बुरा नहीं माना तो उन लोगों की हिम्मत बढ़ गई. अब उन्होंने बख्शो के बेटे गुलनवाज को रास्ते से हटाने की योजना बनानी शुरू कर दी.

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उसी योजना के तहत उन्होंने गुलनवाज से दोस्ती कर ली और मौके की ताक में रहने लगे. एक दिन उन्हें पता चला कि गुलनवाज ऊंट खरीदने जा रहा है. उन्होंने योजना बनाई कि अब उसे रास्ते से हटा दिया जाए. उन्होंने यह पता कर लिया कि वह किस रास्ते से जाएगा.

वह एक वीरान इलाका था, शाम के समय अंधेरा छा जाता था. उन्होंने कब्जा गरोट से पहले गुलनवाज को पकड़ लिया. उन के पास कुल्हाडि़यां थीं, उस के सिर पर कुल्हाड़ी का पहला वार रांझा ने किया. वह लड़खड़ाया तो दूसरे भाइयों ने उस की गरदन और कंधे पर कुल्हाडि़यों की बारिश कर दी.

इतने गंभीर घावों के कारण वह गिर पड़ा और मर गया. रांझा ने उस की जेब से रकम निकाल ली और फिर सब मिल कर उस की लाश को कब्रिस्तान ले गए. अंधेरे में उन्होंने कुल्हाड़ी से गड्ढा खोदा और उस में लाश डाल कर मिट्टी बराबर कर दी. तभी मलंग ने उन्हें ललकारा तो वे वहां से भाग खड़े हुए.

मैं अपराधियों को ले कर घटनास्थल पर गया. अब वहां ऐसा कोई निशान नहीं था, जिस से यह पता चलता कि वहां किसी की हत्या की गई थी. क्योंकि एक तो 2 महीने हो गए थे और फिर बारिश भी कई बार हुई थी. इसलिए खून वाली मिट्टी भी मुझे नहीं मिल सकी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई, जिस में उस की मौत किसी तेज धार हथियार से की गई बताई गई थी. वह रिपोर्ट मैं ने रख ली और लाश बख्शो के हवाले कर दी.

रांझा के बाद मैं ने रमजो और दत्तो के बयान लिए, जो रांझा के बयान की पुष्टि कर रहे थे. उन के बयान से यह भी पता चला कि इस घटना में 2 भाई मानी और ताजा भी शामिल थे, जो अमुक गांव में मिल सकते थे, वहां वे अपने मित्र के घर ठहरे थे. मैं ने एएसआई से कहा कि वह सादे कपड़ों में अपने साथ 2 कांस्टेबलों को ले कर वहां जा कर उन के मित्र के घर छापा मारे.

शाम तक एएसआई उन दोनों भाइयों को भी ले कर आ गया. उन के बयान भी उन के भाइयों से मिलतेजुलते थे. मैं ने उन्हें घटनास्थल पर ले जा कर उन से भी पहचान कराई.

मैं ने बहुत मेहनत से कागज तैयार कर के मुकदमा अदालत में पेश कर दिया. मौके का गवाह मलंग था, जिस ने अपना बयान बहुत अच्छी तरह से दिया. इस मुकदमे की चारों ओर चर्चा थी. अदालत ने पांचों भाइयों को मौत की सजा दी. उन्होंने आगे अपील की. उन के वकील ने बहुत अच्छी बहस की, जिस से उन की मौत की सजा आजीवन कारावास में बदल गई. भागभरी और उमरा चूंकि पेशेवर हत्यारिन नहीं थीं, इसलिए उन्हें 3-3 साल की सजा हुई.

कहानी तो यहां खत्म हो गई, लेकिन एक रोचक बात सुनानी रह गई. गुलनवाज का वह बच्चा जो भड़ोले में डाल दिया गया था और हत्या होने से बच गया था, उस का नाम उस के दादा बख्शो ने फतेह खान रखा था. कोई 20-25 साल बाद मैं एफआईए का चार्ज लेने मठ नवाना गया.

मैं यहां अपने थानेदारी के गुजारे दिनों को याद कर रहा था कि मुझे गुलनवाज का केस याद आ गया. मैं अपने पुराने थाने गया और वहां के थानेदार से गुलनवाज के बेटे फतेह खान के बारे में पूछा. उस ने बताया कि वह बहुत बड़ा जमींदार बन चुका है और बड़ा सुंदर गबरू जवान है.

उस ने अपने ताऊ के लड़कों से अपनी सारी जमीन छीन ली थी और उन्हें दबा कर रखता था. थानेदार ने यह भी बताया था कि वह अकसर थाने आता रहता था और आप की बात करता था. आप से मिलना भी चाहता था.

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मैं ने थानेदार से अपना काम कर के 2 दिनों बाद आने को कहा और उसे फतेह खान को बताने के लिए कहा. उस दिन फतेह खान काफी लोगों को ले कर थाने आया और मेरे घुटनों पर हाथ रख कर मेरी इज्जत की. वह मेरे लिए ढेर सारे तोहफे ले कर आया था, जो मैं ने बड़े प्यार से वापस कर दिए थे.

मुझे यह देख कर बहुत खुशी हुई थी कि भड़ोले से बच जाने वाला बच्चा आज कितना सुंदर जवान, बिलकुल अपने बाप गुलनवाज की तरह लग रहा था.

संपत्ति के लिए साजिश: भाग 2- क्या हुआ था बख्शो की बहू के साथ

लोग यह न समझें कि थाना यहां से दूर है, मैं झगड़ालू लोगों का जीना मुश्किल कर दूंगा. मेरे इस ऐलान से लोगों पर ऐसा डर सवार हुआ कि सब सहयोग करने पर तैयार हो गए. अब लोग आआ कर उमरां, भागभरी और दाई रोशी को बुराभला कह रहे थे. मैं ने उन के बयान लिए, सब से पहले दाई रोशी का बयान लिया.

उस ने अपने बयान में बताया कि वह काफी समय से दाई का काम करती है और उस ने नरसिंग की ट्रेनिंग खुशाब के अस्पताल से ली थी. उस ने अस्पताल से क्लोरोफार्म चुरा कर रखा था. जब कभी किसी महिला को प्रसूति के दौरान ज्यादा तकलीफ होती थी, वह क्लोरोफार्म सुंघा देती थी, जिस से उस महिला को बच्चा पैदा होने में कोई परेशानी नहीं होती थी.

‘‘सरकार, मैं लालच में आ गई थी. उमरां और भागभरी के कहने में आ कर मैं ने नूरां बीबी को थोड़ी ज्यादा क्लोरोफार्म सुंघा दी. नूरां की बेहोशी को हम ने मौत समझा. गांव के किसी भी आदमी ने उस की नाड़ी नहीं चैक की, वैसे भी हम ने अफवाह फैला दी थी कि नूरां मर गई है.’’ रोशी ने कहा.

‘‘तुम ने बच्चे को जिंदा क्यों छोड़ दिया था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सच कहूं तो मुझे मेरे जमीर ने डरा दिया था, इसलिए मैं ने बच्चे को भड़ोले में डाल दिया था.’’ वह रोते हुए बोली.

मैं ने क्लोरोफार्म की शीशी बरामद करा कर सीलबंद कर दी और गवाहों के हस्ताक्षर करा लिए. उमरां और भागभरी को पूछताछ के लिए बुलाया तो वे कांप रही थीं. उन्होंने कुछ बोलने के बजाय रोना शुरू कर दिया, साथ ही दोनों मेरे आगे हाथ जोड़ कर खड़ी हो गईं.

दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और अपने किए पर पछताने लगीं. उस के बाद मैं ने रांझा, दत्तो और रमजो को जांच की चक्की में डालने का फैसला किया. उन से सच उगलवाना आसान नहीं था. मैं सभी अपराधियों को थाने ले आया और हवालात में बंद कर दिया.

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अगले दिन सभी को पुलिस रिमांड पर लेने के लिए खुशाब के मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 8 दिनों के रिमांड पर लिया. औरतों से तो कुछ पूछने की जरूरत नहीं थी, इसलिए उन्हें जेल भेज दिया गया. क्लोरोफार्म का लेबारेट्री में भेजा गया, जहां से रिपोर्ट आई कि वह बेहोश करने वाला कैमिकल था. लेकिन अगर अधिक मात्रा में दिया जाता तो मौत भी हो सकती थी.

बख्शो के बेटे गुलनवाज को गुम हुए 2 महीने हो गए थे. मुझे लगा कि अब वह जिंदा नहीं होगा. मैं ने रांझा, रमजो और दत्तो को पूछताछ के लिए बुलाया. मैं ने बारीबारी से तीनों से सवाल किए, लेकिन तीनों बड़े ढीठ निकले. वे कुछ बोलने को तैयार नहीं थे.

मैं ने उन्हें हर तरह से चक्कर दे कर पूछा, लेकिन मैं उन से कुछ भी नहीं उगलवा सका. उन के 2 भाई ताजा और मानी अभी लापता थे. वे पुलिस के डर से कहीं छिप गए थे. मैं ने चारों ओर मुखबिरों का जाल बिछा दिया था. मैं यातना देने पर यकीन नहीं रखता था, लेकिन लातों के भूत बातों से कहां मानते हैं. मैं ने उन पर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया. वे चीखते रहे, लेकिन कोई भी बात नहीं बताई.

तीनों भाइयों में रांझा सब से बड़ा और समझदार था. वह बोला, ‘‘आप हमारे पीछे क्यों पड़े हैं? उस के गुम होने का कोई और कारण भी हो सकता है.’’

‘‘तुम लोग उस की जायदाद पर कब्जा करना चाहते हो,’’ मैं ने कहा, ‘‘इसीलिए तुम्हारी बहनों ने उस की पत्नी और बच्चे की हत्या करने की साजिश रची. सीधी सी बात है कि जब गुलनवाज का बच्चा नहीं रहता तो तुम उस की जायदाद पर कब्जा कर लेते.’’

उस ने कहा, ‘‘उस के गायब होने का दूसरा कारण है, जिस पर आप ने ध्यान नहीं दिया.’’

‘‘क्या कारण है.’’

‘‘गुलनवाज बहुत सुंदर जवान था, उस पर तमाम लड़कियां मरती थीं. उसे लड़कियों से दोस्ती करने का शौक था. हो सकता है, वह किसी लड़की के चक्कर में मारा गया हो.’’ रांझा ने कहा.

मैं ने उसे हवालात भेज दिया और इस बारे में विचार करने लगा. मुझे याद आया कि बख्शो ने कहा था कि वह ऊंट खरीदने के लिए गया था. उस के पास काफी रकम भी थी. ऐसा भी हो सकता था कि इस की भनक किसी अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्ति को लग गई हो और उस ने मौका देख कर गुलनवाज की हत्या कर के उसे कहीं दबा दिया हो और रकम ले उड़ा हो.

मैं ने उस इलाके के अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को बुलाने का फैसला किया. मैं यह तफ्तीश थाने में नहीं, बल्कि डेरा गांजा में बख्शो के दिए हुए एक कमरे से कर रहा था. मैं ने एएसआई से कहा कि डेरा गांजा और आसपास के इलाके के सभी बदमाशों को ला कर मेरे सामने पेश करो.

2-3 घंटे बाद एएसआई 3 लोगों को ले आया. पता चला कि वे उस इलाके के बदमाश थे और छोटामोटा अपराध करते थे. मैं ने उन से कहा कि अगर उन्होंने यह काम किया है तो बक दें, नहीं तो मैं बहुत बुरा व्यवहार करूंगा. वे कान पकड़ कर कहने लगे, ‘‘हमें इस बारे में कुछ पता नहीं है. हत्या का तो प्रश्न ही नहीं उठता.’’

ऐसे लोग आसानी से नहीं माना करते. मैं ने एएसआई से कहा कि इन्हें ले जा कर रगड़ा लगाए. वह उन्हें ले गया और कुछ देर बाद ले आया तो तीनों की हालत बड़ी खराब थी. तीनों ने रोरो कर कहा, ‘‘माईबाप, आप हम से कैसी भी कसम ले लें, हम ने यह काम नहीं किया है. यह सच है कि हम अपराध करते हैं, लेकिन छोटामोटा करते हैं, मुझे लगा कि वे सच बोल रहे हैं. मैं ने उन्हें यह कह कर जाने दिया कि वे अपने स्तर पर इस बारे में पता लगाएं.

मैं ने एएसआई से कहा कि वह उस इलाके में पता करे कि गुलनवाज की दोस्ती किसकिस लड़की से थी. अगले दिन मैं टहल रहा था कि एएसआई आ गया. उस ने बताया कि इलाके के लोगों से पूछा तो सब ने यही बताया कि गुलनवाज बहुत शरीफ लड़का था. वह इलाके की सभी लड़कियों को अपनी बहन समझता था.

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उस की शादी भी उस के मातापिता की मर्जी से हुई थी. मैं ने सोचा कि रांझा ने गलत रास्ते पर डाल कर मुझे धोखा देने की कोशिश की है. मैं ने कांस्टेबल से कहा कि वह रांझा को मेरे पास ले आए. मैं समझ गया कि असली अपराधी रांझा और उस के भाई हैं. अब मैं उन की हड्डियां तोड़ दूंगा.

मैं गुस्से से टहल रहा था, तभी एक खबरी अपने साथ एक आदमी को ले आया, जो बहुत गरीब लग रहा था. उस ने जो कुछ बताया, उस से मुझे लगा कि सारी समस्या ही सुलझ गई है.

उस खबरी ने बताया कि वह गरोट गांव का रहने वाला है, जो झेलम नदी के किनारे पर है. वह भांग पीने का शौकीन है. एक कब्रिस्तान में एक मलंग रहता है, वह उस के पास जा कर भांग पीता है. वहां कुछ और लोग भी भांग पीने आते हैं.

मलंग ने कब्रिस्तान में एक झुग्गी बना रखी थी, उस का काम कब्रों की हिफाजत करना और कब्रें खोदना था. वह लाल रंग का कुर्ता पहने रहता था और लोगों में लाल बाबा के नाम से मशहूर था. एक दिन भांग के नशे में मलंग ने बताया था कि कुछ दिनों पहले कुछ आदमी आए थे और एक गड्ढा खोद कर एक लाश को दबा कर चले गए थे. अंधेरा होने की वजह से वह उन्हें पहचान नहीं सका था.

वह आदमी किसी सरकारी दफ्तर में चपरासी था. उस ने गुलनवाज के गुम होने का इश्तहार पढ़ा था. एक दुकान पर कुछ आदमियों के बीच वह मलंग वाली बात कह रहा था. वहां मेरा खबरी भी खड़ा था, उस ने वहां जो सुना, आ कर मुझे बता दिया था.

मैं ने उस आदमी से 2-3 बातें और पूछीं और उसे यह कह कर जाने दिया कि वह किसी को भी न बताए कि वह यहां आया था. उस के जाने के बाद मैं ने एएसआई से कहा कि वह लाल बाबा को बड़े प्यार से मेरे पास ले आए. कुछ ही देर में वह उसे ले कर आ गया. मलंग के लंबेलंबे बाल थे, जो उस के कंधे पर पड़े थे, उस के हाथ में एक डंडा था.

वह आते ही बोला, ‘‘या अली, थानेदार बादशाह दी खैर.’’

मैं ने उस से कब्रिस्तान में दबाने वाली लाश की बात पूछी तो उस ने बताया कि 2 महीने पहले कुछ लोग कब्रिस्तान में एक लाश दबा गए थे. लेकिन वह उन्हें पहचान नहीं सका था. उस ने उन्हें ललकारा भी था, लेकिन वे भाग गए थे. उस ने वहां जा कर देखा तो ताजी मिट्टी थी. वह समझ गया कि ये डाकू होंगे और यहां लूट का माल दबा कर गए होंगे.

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गलत फैसला: क्या गलती कर बैठा था सुखराम

राइटर- आचार्य नीरज शास्त्री

रौयल स्काई टावर को बनते हुए 2 साल हो गए. आज यह टावर शहर के सब से ऊंचे टावर के रूप में खड़ा है. सब से ऊंचा इसलिए कि आगरा शहर में यही एक 22 मंजिला इमारत है. जब से यह टावर बन रहा है, हजारों मजदूरों के लिए रोजीरोटी का इंतजाम हुआ है. इस टावर के पास ही मजदूरों के रहने के लिए बनी हैं  झोंपडि़यां.

इन्हीं  झोंपडि़यों में से एक में रहता है सुखराम अपनी पत्नी चंदा के साथ. सुखराम और चंदा का ब्याह 2 साल पहले ही हुआ था. शादी के बाद ही उन्हें मजदूरी के लिए आगरा आना पड़ा. वे इस टावर में सुबह से शाम तक साथसाथ काम करते थे और शाम से सुबह तक का समय अपनी  झोंपड़ी में साथसाथ ही बिताते थे. इस तरह एक साल सब ठीकठाक चलता रहा.

एक दिन चंदा के गांव से चिट्ठी आई. चिट्ठी में लिखा था कि चंदा के एकलौते भाई पप्पू को कैंसर हो गया है और उन के पास इलाज के लिए पैसे का कोई इंतजाम नहीं है.

सुखराम को लगा कि ऐसे समय में चंदा के भाई का इलाज उस की जिम्मेदारी है, पर पैसा तो उस के पास भी नहीं था, इसलिए उस ने यह बात अपने साथी हरिया को बता कर उस से सलाह ली.

हरिया ने कहा, ‘‘देखो सुखराम, गांव में तुम्हारे पास घर तो है ही, क्यों न घर को गिरवी रख कर बैंक से लोन ले लो. बैंक से लोन इसलिए कि घर भी सुरक्षित रहेगा और बहुत ज्यादा मुश्किल का सामना भी नहीं करना पड़ेगा.’’

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कहते हैं कि बुरा समय जब दस्तक देता है, इनसान भलेबुरे की पहचान नहीं कर पाता. यही सुखराम के साथ हुआ. उस ने हरिया की बात पर ध्यान न दे कर यह बात ठेकेदार लाखन को बताई.

लाखन ने उस से कहा, ‘‘क्यों चिंता करता है सुखराम, 20,000 रुपए भी चाहिए तो ले जा.’’

सुखराम ने चंदा को बिना बताए  लाखन से 20,000 रुपए ले लिए और चंदा के भाई का इलाज शुरू हो गया.

चंदा सम झ नहीं पा रही थी कि इतना पैसा आया कहां से, इसलिए उस ने पूछा, ‘‘इतना पैसा आप कहां से लाए?’’

तब सुखराम ने लाखन का गुणगान किया. जब कुछ दिनों बाद पप्पू चल बसा, तो उस के अंतिम संस्कार का इंतजाम भी सुखराम ने ही किया.

इस घटना के कुछ ही दिनों के बाद सुखराम की मां भी चल बसीं. वे गांव में अकेली रहती थीं, इसलिए पड़ोसी ही मां का सहारा थे. पड़ोसियों ने सुखराम को सूचित किया.

सुखराम चंदा के साथ गांव लौटा और मां का अंतिम संस्कार किया.  जिंदगीभर गांव में खाया जो था, इसलिए खिलाना भी जरूरी समझा.

मकान सरपंच को महज 15,000 रुपए में बेच दिया. तेरहवीं कर के आगरा लौटने तक सुखराम के सभी रुपए खर्च हो चुके थे, क्योंकि गांव में मां का भी बहुत लेनदेन था.

इतिहास गवाह है कि चक्रव्यूह में घुसना तो आसान होता है, पर उस में से बाहर निकलना बहुत मुश्किल. जिंदगी के इस चक्रव्यूह में सुखराम भी बुरी तरह फंस चुका था. जैसे ही वह आगरा लौटा, शाम होते ही लाखन शराब की बोतल हाथ में लिए चला आया.

वह सुखराम से बोला, ‘‘सुखराम, मु झे अपना पैसा आज ही चाहिए और अभी…’’

सुखराम ने उसे अपनी मजबूरी बताई. वह गिड़गिड़ाया, पर लाखन पर इस का कोई असर नहीं हुआ. वह बोला, ‘‘तुम्हारी परेशानी तुम जानो, मु झे तो मेरा पैसा चाहिए. जब मैं ने तुम्हें पैसा दिया है, तो मु झे वापस भी चाहिए और वह भी आज ही.’’

सुखराम और चंदा की सम झ में कुछ नहीं आ रहा था. वे उस के सामने मिन्नतें करने लगे.

लाखन ने कुटिलता के साथ चंदा की ओर देखा और बोला, ‘‘ठीक है सुखराम, मैं तु झे कर्ज चुकाने की मोहलत तो दे सकता हूं, लेकिन मेरी भी एक शर्त है. हफ्ते में एक बार तुम मेरे साथ शराब पियोगे और घर से बाहर रहोगे… उस दिन… चंदा के साथ… मैं…’’

इतना सुनते ही सुखराम का चेहरा तमतमा उठा. उस ने लाखन का गला पकड़ लिया. वह उसे धक्के मार कर घर से बाहर निकाल देना चाहता था, लेकिन क्या करता? वह मजबूर था. चंदा चाहती थी कि उस की जान ले ले, मगर वह खून का घूंट पी कर रह गई. उस के पास भी कोई दूसरा रास्ता नहीं था. जब लाखन नहीं माना और उस ने सुखराम के साथ मारपीट शुरू कर दी तो चंदा लाखन के आगे हाथ जोड़ कर सुखराम को छोड़ने की गुजारिश करने लगी.

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लाखन ने सुखराम की कनपटी पर तमंचा रख दिया तो वह मन ही मन टूट गई. उस की आंखों से आंसू बहने लगे, इसलिए कलेजे पर पत्थर रख कर उस ने लाखन को अपने शरीर से खेलने की हामी भर दी.

लाखन बहुत खुश हुआ, क्योंकि चंदा गजब की खूबसूरत थी. उस का जोबन नदी की बाढ़ की तरह उमड़ रहा था. उस की आंखें नशीली थीं. यही वजह थी कि पिछले 2 साल से लाखन की बुरी नजर चंदा पर लगी थी.

बुरे समय में पति का साथ देने के लिए चंदा ने ठेकेदार लाखन के साथ सोना स्वीकार किया और सुखराम की जान बचाई.

सुखराम ने उस दिन से शराब को गम भुलाने करने का जरीया बना लिया. इस तरह हवस के कीचड़ में सना लाखन चंदा की देह को लूटता रहा. जब सुखराम को पता चला कि चंदा पेट से है, तो उस ने चंदा से बच्चा गिराने की बात की, पर वह नहीं मानी.

सुखराम बोला, ‘‘मैं उस बच्चे को नहीं अपना सकता, जो मेरा नहीं है.’’

चंदा ने उसे बहुत सम झाया, पर वह न माना. चंदा ने भी अपना फैसला

सुना दिया, ‘‘मैं एक औरत ही नहीं, एक मां भी हूं. मैं इस बच्चे को जन्म ही नहीं दूंगी, बल्कि उसे जीने का हक भी दूंगी.’’

इस बात पर दोनों में  झगड़ा हुआ. सुखराम ने कहा, ‘‘ठेकेदार के साथ सोना तुम्हारी मजबूरी थी, पर उस के बच्चे को जन्म देना तो तुम्हारी मजबूरी नहीं है.’’

चंदा ने जवाब दिया, ‘‘तुम्हारा साथ देने के लिए मैं ने ऐसा घोर अपराध किया था, लेकिन अब मैं कोई गलती नहीं करूंगी… जो हमारे साथ हुआ, उस में इस नन्हीं सी जान का भला क्या कुसूर? जो भी कुसूर है, तुम्हारा है.’’

इस के बाद चंदा सुखराम को छोड़ कर चली गई. वह कहां गई, किसी को नहीं मालूम, पर आज सुखराम को हरिया की कही बात याद आई. वह सिसक रहा था और सोच रहा था कि काश, उस ने गलत फैसला न लिया होता.

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घुंघरू: भाग 4- राजा के बारे में क्या जान गई थी मौली

लेखक – पुष्कर पुष्प  

राजा समर सिंह को पता चला, तो वे स्वयं मौली के पास पहुंचे. उन्होंने उसे पहले प्यार से समझाने की कोशिश की, फिर भी मौली कुछ नहीं बोली, तो राजा ने गुस्से में कहा, ‘‘तुम्हें महल ला कर हम ने जो इज्जत बख्शी है, वह हर किसी को नहीं मिलती… और एक तुम हो, जो इस सब को ठोकर मारने पर तुली हो. यह जानते हुए भी कि अब तुम्हारी लाश भी राखावास नहीं लौट सकती. हां, तुम अगर चाहो, तो हम तुम्हारे वजन के बराबर धनदौलत तुम्हारे मातापिता को भेज सकते हैं. लेकिन अब तुम्हें हर हाल में हमारी बन कर हमारे लिए जीना होगा.’’

मौली को मौत का डर नहीं था. डर था तो मानू का. वह जानती थी, मानू उस के विरह में सिर पटकपटक कर जान दे देगा. उसे यह भी मालूम था कि उस की वापसी संभव नहीं है. काफी सोचविचार के बाद उस ने राजा समर सिंह के सामने प्रस्ताव रखा, ‘‘अगर आप चाहते हैं कि मैं आप के महल की शोभा बन कर रहूं, तो मेरे लिए पहाड़ों के बीचवाली उस झील के किनारे महल बनवा दीजिए, जिस के उस पार मेरा गांव है.’’

अपने इस प्रस्ताव में मौली ने 2 शर्तें भी जोड़ीं. एक यह कि जब तक महल बन कर तैयार नहीं हो जाता, राजा उसे छुएंगे तक नहीं और दूसरी यह कि महल में एक ऐसा परकोटा बनवाया जाएगा, जहां से वह हर रोज अपनी चुनरी लहराकर मानू को बता सके कि वह जिंदा है. मानू उसी के सहारे जीता रहेगा.

मौली, मानू को जान से ज्यादा चाहती है, यह बात समर सिंह को अच्छी नहीं लग रही थी. कहां एक नंगाभूखा लड़का और कहां राजमहल के सुख. लेकिन मौली की जिद के आगे वह कर भी क्या सकते थे. कुछ करते, तो मौली जान दे देती. मजबूर हो कर उन्होंने उस की शर्तें स्वीकार कर लीं.

राखावास के ठीक सामने झील के उस पार वाली पहाड़ी पर राजा ने महल बनवाना शुरू किया. बुनियाद कुछ इस तरह रखी गई कि झील का पानी महल की दीवार छूता रहे. झील के 3 ओर बड़ीबड़ी पहाडि़यां थीं. चौथी ओर वाली छोटी पहाड़ी की ढलान पर राखावास था. महल से राखावास या राखावास से महल तक आध कोस लंबी झील को पार किए बिना किसी तरह जाना संभव नहीं था.

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उन दिनों आज की तरह न साधनसुविधाएं थीं, न मार्ग. ऐसी स्थिति में चंदनगढ़ से 7 कोस दूर पहाड़ों के बीच महल बनने में समय लगना स्वाभाविक ही था. मौली इस बात को समझती थी कि यह काम एक साल से पहले पूरा नहीं हो पाएगा. और इस एक साल में मानू उस के बिना सिर पटकपटक कर जान दे देगा. लेकिन वह कर भी क्या सकती थी, राजा ने उस की सारी शर्तें पहले ही मान ली थीं.

लेकिन जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. मोहब्बत कहीं न कहीं अपना रंग दिखा कर ही रहती है. मौली के जाने के बाद मानू सचमुच पागल हो गया था. उस का वही पागलपन उसे चंदनगढ़ खींच ले गया. मौली के घुंघरू जेब में डाले वह भूखाप्यासा, फटेहाल महीनों तक चंदनगढ़ की गलियों में घूमता रहा. जब भी उसे मौली की याद आती, जेब से घुंघरू निकाल कर आंखों से लगाता और जारजार रोने लगता. लोग उसे पागल समझ कर उस का दर्द पूछते, तो उस के मुंह से बस एक ही शब्द निकलता मौली.

मानू चंदनगढ़ आ चुका है, मौली भी इस तथ्य से अनभिज्ञ थी और समर सिंह भी. उधर मानू ने राजमहल की दीवारों से लाख सिर टकराया, पर वह मौली की एक झलक तक नहीं देख सका. महीनों यूं ही गुजर गए.

राजा समर सिंह जिस लड़की को राजनर्तकी बनाने के लिए राखावास से चंदनगढ़ लाए हैं, उस का नाम मौली है, यह बात किसी को मालूम नहीं थी. राजा स्वयं उसे मालेश्वरी कह कर पुकारते थे. उस की सेवा में दासदासियां रहती थीं. एक दिन उन्हीं में से एक दासी ने बताया, ‘‘नगर में एक दीवाना मौलीमौली पुकारता घूमता है. पता नहीं कौन है मौली, उस की मां, बहन या प्रेमिका. बेचारा पागल हो गया है उस के गम में. न खाने की सुध, न कपड़ों की. एक दिन महल के द्वार तक चला आया था, पहरेदारों ने धक्के दे कर भगा दिया. कहता था, इन्हीं दीवारों में कैद है मेरी मौली.’’

मौली ने सुना तो कलेजा धक्क से रह गया. प्राण गले में अटक गए. लगा, जैसे बेहोश हो कर गिर पड़ेगी. वह संज्ञाशून्य सी पलंग पर बैठ कर शून्य में ताकने लगी. दासी ने उस की ऐसी स्थिति देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है? आप मेरी बात सुन कर परेशान क्यों हो गईं? आप को क्या, होगा कोई दीवाना. मैंने तो जो सुना था, आप को यूं ही बता दिया.’’

मौली ने अपने आप को लाख संभालना चाहा, लेकिन आंसू पलकों तक आ ही गए. दासी पलभर में समझ गई, जरूर कोई बात है. उस ने मौली को कुरेदना शुरू किया, तो वह न चाहते हुए भी उससे दिल का हाल कह बैठी. दासी सहृदय थी. मौली और मानू की प्रेम कहानी सुनने और उन के जुदा होने की बात सुन उसका हृदय पसीज गया. मौली ने उस से निवेदन किया कि वह किसी तरह मानू तक उस का यह संदेश पहुंचा दे कि वह उस से मिले बिना न मरेगी, न नाचेगी. वह वक्त का इंतजार करे. एक न एक दिन दोनों का मिलन होगा जरूर. जब तक मिलन नहीं होता, तब तक वह अपने आप को संभाले. प्यार में पागल बनने से कुछ नहीं मिलेगा.

दासी ने जैसेतैसे मौली का संदेश मानू तक पहुंचाया भी, लेकिन उस पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ.

उन्हीं दिनों एक अंग्रेज अधिकारी को चंदनगढ़ आना था. राजा समर सिंह ने अधिकारी को खुश करने के लिए उस की खातिरदारी का पूरा इंतजाम किया. महल को विशेष रूप से सजाया गया. नाचगाने का भी प्रबंध किया गया. राजा समर सिंह चाहते थे कि मौली अपनी नृत्य कला से अंग्रेज रेजीडेंट का दिल जीते. उन्होंने इस के लिए मौली से मानमनुहार की, तो उस ने शर्त बता दी, ‘‘मानू नगर में मौजूद है, उसे बुलाना पड़ेगा. वह आ कर मेरे पैरों में घुंघरू बांध देगा, तो मैं नाचूंगी.’’

समर सिंह जानते थे कि जो बात मौली की नृत्यकला में है, वह किसी दूसरी नर्तकी के नृत्य में हो ही नहीं सकती. अंग्रेज रेजीडेंट को खुश करने की बात थी. राजा ने मौली की शर्त स्वीकार कर ली. मानू को ढुंढ़वाया गया. साफसफाई और स्नान के बाद नए कपड़े पहना कर उस का हुलिया बदला गया.

अगले दिन जब रेजीडेंट आया, तो पूरी तैयारी के बाद मौली को सभा में लाया गया. सभा में मौजूद सब लोगों की निगाहें मौली पर जमी थीं और उस की निगाहें उस सब से अनभिज्ञ मानू को खोज रही थीं. मानू सभा में आया, तो उसे देख मौली की आंखें बरस पड़ीं. मन हुआ, आगे बढ़ कर उस से लिपट जाए, लेकिन चाह कर भी वह ऐसा न कर सकी. करती, तो दोनों के प्राण संकट में पड़ जाते. उस ने लोगों की नजर बचा कर आंसू पोंछ लिए.

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आंसू मानू की आंखों में भी थे, लेकिन उसने उन्हें बाहर नहीं आने दिया. खुद को संभाल कर वह ढोलक के साथ अपने लिए नियत स्थान पर जा बैठा. मौली धीरेधीरे कदम बढ़ा कर उस के पास पहुंची, तो मानू थोड़ी देर अपलक उस के पैरों को निहारता रहा. फिर उस ने जेब से घुंघरू निकाल कर माथे से लगाए और मौली के पैरों में बांध दिए. इस बीच मौली उसे ही निहारती रही. घुंघरू बांधते वक्त मानू के आंसू पैरों पर गिरे, तो मौली की तंद्रा टूटी. मानू के दर्द का एहसास कर उस के दिल से आह भी निकली, पर उस ने उसे जैसेतैसे जज्ब कर लिया.

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