रिश्तों से दूर न कर दें दोस्ताना, जानिए क्या हैं इसके नुकसान

आजकल युवाओं में अपने सगे रिश्तों को दरकिनार कर दोस्तोंसहेलियों को महत्त्व देने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है. यह सच है कि दोस्ती का रिश्ता बेमिसाल होता है और अगर समझदारीपूर्वक निभाया जाए तो जीवनपर्यंत बना रहता है. किंतु खेद इस बात का है कि आज हम अपने इर्दगिर्द इकट्ठे हो गए कुछ चेहरों को ही अपना मित्र मानने लगे हैं और इन मात्र दिखावटी और टाइमपास मित्रों के लिए न केवल अपनों की अनेदेखी कर रहे हैं, बल्कि अपनों के प्रति निभाने वाली जिम्मेदारियों से भी मुंह मोड़ते जा रहे हैं.

अवंतिका अपने बेटे की जन्मदिन पार्टी का आमंत्रण देने के लिए रिश्तेदारों की सूची तैयार कर रही थी तो उसे देख कर बेटा पलाश बोल पड़ा, ‘‘अरे अम्मी, ये इतने रिश्तेदारों की सूची क्यों तैयार कर रही हैं? क्या करना है सब को बुला कर? मैं इस बार अपना बर्थडे अपने दोस्तों के साथ मनाऊंगा.’’

‘‘दोस्तों को तो हम हर साल बुलाते हैं, इस साल भी बुलाएंगे पर तुम रिश्तेदारों को बुलाने से क्यों मना कर रहे हो?’’

अवंतिका ने आश्चर्य से पूछा. इस पर पलाश ने कहा, ‘‘मम्मी, रिश्तेदार तो आप लोगों के होते हैं. उन के बीच मैं बोर हो जाता हूं. इस बार अपना बर्थडे मैं केवल अपने दोस्तों के साथ किसी मौल या रैस्टोरैंट में ही सैलिब्रेट करूंगा.’’

दोस्त हमारे रिश्तेदार तुम्हारे

पलाश के मुंह से ऐसी बातें सुन कर अवंतिका खामोश हो गई. ‘रिश्तेदार तो आप लोगों के होते हैं’ यह वाक्य काफी देर तक उस के कानों में गूंजता रहा और वह सोचती रही कि क्या अब बच्चों की दुनिया सिर्फ उन के दोस्तों तक ही सिमट कर रह जाएगी? बच्चों को चाची, बूआ, मौसी, भाभी जैसे रिश्तों से कोई लेनादेना नहीं रह गया है? अब वे केवल हमारे रिश्तेदार हैं?

दिल्ली की सुमन ने जब अपनी भतीजी से जोकि दिल्ली में ही किसी कंपनी में जौब करती है से पूछा कि वह न्यू ईयर पर अपने घर बनारस जा रही है या नहीं? तो उस ने जवाब दिया कि वह नहीं जा रही है, क्योंकि अगले ही महीने उस की एक सहेली का जन्मदिन है और इस बार वे सारी सहेलियां उस का जन्मदिन मनाने शिमला जाने वाली हैं. अत: अगर उस ने न्यू ईयर पर छुट्टी ले ली तो फिर सहेली के जन्मदिन में जाने के लिए उसे छुट्टी नहीं मिल पाएगी. इसलिए उस ने न्यू ईयर पर घर जाने का विचार त्याग दिया. यह सुन कर सुमन को क्रोध तो बहुत आया पर उस ने कहा कुछ नहीं, उस के सामने अपने भैयाभाभी का चेहरा घूम गया कि वे कितनी उत्सुकता से त्योहार पर बेटी के घर आने का इंतजार कर रहे हैं पर उस के न आने की खबर सुन कर वे कितने मायूस हो जाएंगे.

विरोधाभास क्यों

युवाओं के अलावा विवाहित महिलाओं और पुरुषों में भी आजकल पारिवारिक सदस्यों को दरकिनार कर तथाकथित दोस्तोंसहेलियों को अहमियत देने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है. मैं अपनी एक पड़ोसिन की शादी की 25वीं सालगिरह में जब पहुंची तो वहां मौजूद लोगों में केवल सहेलियों और पड़ोसियों को देख कर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ और मैं उन से पूछ बैठी कि तुम्हारा कोई रिश्तेदार नजर नहीं आ रहा है?

तब उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम लोग किसी रिश्तेदार से कम हो क्या? यार जितनी मस्ती हम दोस्तों के साथ मिल कर कर रहे हैं उतनी क्या रिश्तेदारों के साथ हो पाती है? उन्हें बुलाती तो हजार समस्याएं होतीं. पहले तो उन्हें 1-2 दिन ठहराने और खिलानेपिलाने की व्यवस्था करनी पड़ती. पूरा समय आवभगत में लगा रहना पड़ता. उस के बाद तरहतरह के नखरे उठाने पड़ते वे अलग.’’

दोस्तों की अहमियत कितनी

मैं मन ही मन सोचने लगी कि इतनी बड़ी खुशी, लाखों का खर्च और इस खुशी में शरीक होने के लिए किसी अपने को कोई आमंत्रण नहीं. यह कैसा समय आ गया है? बिना पारिवारिक सदस्यों के कोई खुशी मनाने से अच्छा तो न ही मनाओ.

सारिका ने अपनी सोसायटी में किट्टी जौइन की. शुरूशुरू में उसे वहां नईनई सखियों के साथ बैठना और उन से बातें करना बहुत अच्छा लगा. वह सोचने लगी कि उसे बहुत अच्छी सहेलियां मिल गई हैं. लेकिन धीरेधीरे उस ने देखा कि उस की उन कथित सहेलियों के लिए अपनों से ज्यादा किट्टी पार्टी में शामिल होने वाली सहेलियों की अहमियत है.

सारिका ने देखा कि एक दिन उस की एक किट्टी मैंबर आयशा किट्टी में नहीं पहुंची. उस ने मैसेज भेजा था कि उस की सास की तबीयत खराब हो गई है, इसलिए वह नहीं आ पाएगी. सारिका यह देख हैरान रह गई कि आयशा के साथ सहानुभूति जताने और फोन कर के उस की सास का हाल पूछने के बजाय किट्टी में उस के खिलाफ बातें होने लगीं कि अरे, उस की सास तो रोज ही बीमार रहती है, यह तो किट्टी में न आने का एक बहाना है. आयशा आना चाहती तो दवा दे कर आ जाती.

धीरेधीरे सारिका यह नोट करने लगी कि उस की किट्टी से किस तरह महिलाएं अपने परिवारजनों की उपेक्षा कर के पहुंचती हैं और फिर उस बात को इस तरह बताती हैं जिस से यह सिद्घ हो सके कि उस की नजर में सहेलियों की अहमियत कितनी ज्यादा है जिन से मिलने वह अपने परिवारजनों से झूठ बोल कर आ गई.

सिक्के का दूसरा पहलू

दोस्त बनाना और दोस्ती करना बहुत अच्छी बात है, लेकिन दोस्तों के आगे परिवारजनों की उपेक्षा व उन की अनदेखी करना बहुत ही घातक है. हमारे आसपास दोस्तों की भीड़ भले ही नजर आए पर उन में सच्चा दोस्त एक भी हो यह कहना बहुत मुश्किल होता है. दोस्तों के साथ बैठना हंसनाहंसाना, समय व्यतीत करना अच्छा तो लगता है पर क्या इन चीजों से वे हमारे इतने अपने हो जाते हैं कि उन के आगे रिश्तों का महत्त्व नगण्य कर दिया जाए?

मोबाइल, व्हाट्सऐप और फेसबुक की आदी दुनिया के इस दौर में मित्रों की एक फौज तैयार कर लेना बहुत आसान हो गया है. घर बैठे दिनरात उन से चटरपटर करते रहने से मन में यह गलतफहमी बन जाती है कि हम बहुत अच्छे मित्र बन चुके हैं और फिर वही मित्र अपने सच्चे हितैषी लगने लगते हैं. जबकि हकीकत यह है कि ऐसे मित्र खुशियों में तो बहुत बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं, किंतु जब कभी मित्रता की कसौटी पर खरा उतरने का समय आता है तब टांयटांय फिस हो जाते हैं. दुखपरेशानी के समय में ऐसे मित्र 2-4 दिन तो साथ देते हैं, पर उस के बाद रिश्तेदारों का ही मुंह ताकने लगते हैं कि कब वे आएं और उन्हें छुट्टी मिले.

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लव इन सिक्सटीज : जानिए क्या करें और क्या नहीं

आधी से ज्यादा उम्र बीत जाने के बाद जब जीवन में किसी नए साथी के रूप में स्त्री या पुरुष का प्रवेश होता है तो एक नए अध्याय की शुरुआत होती है. इस नए अध्याय को पढ़ने की जिम्मेदारी उठाना बड़ा मुश्किल काम है.

आइए ऐसे नए रिश्ते जो खासकर अधिक उम्र में पनपें उन की साजसंभाल, जोखिम, परख और सावधानियों पर चर्चा करें ताकि जब भी उम्र के कई पड़ाव पार कर आप ऐसे किसी नए रिश्ते को संग ले चलने का निर्णय लें, तो खतरों को भांप सकें, जिद और मानसिक असंतुलन की स्थिति में नहीं, बल्कि वास्तविकता की समझ विकसित कर के.

स्त्री पुरुष की दोस्ती की कुछ मुख्य बातें:

स्त्रीपुरुष की दोस्ती में बस दोस्त का रिश्ता बहुत कठिन है. इस के अंतत: रोमांस में तबदील होने की पूरी संभावना रहती है.

स्त्रीपुरुष की दोस्ती अगर सिर्फ सामान्य दोस्ती रह पाए तो यह बहुत लंबी भी चल सकती है, लेकिन ऐसी दोस्ती में जब रोमांस आ जाता है तब दोस्ती की उम्र कम हो जाती है. बीच में साथ टूटने का अंदेशा रहता है.

उम्रदराज से क्रौस दोस्ती यानी विपरीत सैक्स से दोस्ती कब और किन हालात में हो सकती है और ऐसी दोस्ती के क्या कारक और जोखिम हैं इस पर काफी रिसर्च हुई है.

जब हो जाए कम उम्र के लड़के को अधिक उम्र की स्त्री से लगाव: कई बार कम उम्र के लड़कों की मानसिक स्थिति काफी परिपक्व रहती है और वे अपनी ही तरह किसी मानसिक रूप से परिपक्व स्त्री की दोस्ती चाहते हैं. ऐसे में जब उन्हें अपने से काफी अधिक उम्र की ऐसी स्त्री मिलती है, जो रुचि, व्यवहार, सोचसमझ और दृष्टिकोण में उन के साथ समानता रखे, तो उन की दोस्ती मजबूत हो जाती है. अगर बाद में ऐसे रिश्ते में रोमांस या शादी का रंग भर जाए तो आश्चर्य नहीं.

कम उम्र की स्त्री का अधिक उम्र के पुरुषों के प्रति लगाव और इस के कारण: इस स्थिति में कम उम्र की स्त्रियां अपने से दोगुनी उम्र के व्यक्ति यहां तक कि पिता की उम्र के व्यक्ति से भी मानसिक, शारीरिक आधार पर जुड़ने की कामना रखती हैं. साइकोलौजिकल आधार पर देखा जाए तो ऐसा पुरुष उम्र की परिपक्वता के साथसाथ सैक्सअपील से भी भरपूर होता है. उसे खुद को प्रस्तुत करने का तरीका आता है और वह अपनी उम्र में नहीं, बल्कि व्यक्तित्व में जीता है.

कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसे पुरुषों का अपनी बढ़ती उम्र की मजबूरी या असुविधाओं से ज्यादा ध्यान अपने व्यक्तित्व के गुणों को निखारने और प्रस्तुत करने पर होता है. ऐसे में उन के साथ मिलनेजुलने वाली स्त्री खुद उन पर ध्यान देती है, उन के संरक्षण में जाने और उन से जुड़ने का ख्वाब देखती है.

ऐसे पुरुषों का जीनगत प्रभाव भी काफी अच्छा रहता है. ये अपने कर्म, विचार और सामर्थ्य में शक्तिशाली, अपने परिवार की पूरी देखभाल करने वाले या फिर अपने ऊंचे पद और कर्मजीवन को बखूबी निभाने वाले होते हैं. ऐसे में कम उम्र की स्त्रियां इन पर समर्पित हो कर तृप्त होना चाहती हैं.

कई मामलों में पति की अवहेलना भी स्त्रियों के इन कर्मठ और रोमांटिक पुरुषों के प्रति आकर्षण का कारण बनती है. इन के सान्निध्य में अतृप्त स्त्रियां आत्मविश्वास वापस पाती हैं. इन पुरुषों के द्वारा की गई प्रशंसा, मदद इन्हें जीने की राह भी दिखा सकती है.

60 या इस के बाद की उम्र वाले पुरुषों का कम उम्र की स्त्रियों के प्रति झुकाव: ऐसी स्थिति आज के समाज में आम है. काम और व्यवसाय के सिलसिले में अधिक उम्र वाले पुरुषों से कम उम्र की स्त्रियों का नजदीकी वास्ता जब लगातार पड़े, तो पुरुष का इन स्त्रियों के प्रति हमदर्दी, अपनापन और रोमांस स्वाभाविक है.

ऐसे रिश्तों में पुरुष के व्यक्तित्व का खासा प्रभाव पड़ता है कि कम उम्र की स्त्रियों के साथ उन का आपसी संबंध कैसा होगा. दूसरे, पुरुष का स्वभाव और जुड़ने वाली स्त्री से पुरुष की अपेक्षाएं दोनों तय होती हैं उस पुरुष की बैकग्राउंड से. कैसे, आइए जानें:

उम्रदराज कामुक पुरुष और उस की स्त्री से अपेक्षाएं: ऐसे पुरुष स्वभाव से स्त्रीशरीर कामी होते हैं. ये अपनी कामनापूर्ति के लिए नाखुश रहने को ढाल बना कर स्त्री के भोग का बहाना ढूंढ़ ही लेते हैं. इस से इन्हें समाज व्यवस्था या न्यायव्यवस्था को न मानने के दोष से उबरने का सहारा मिलता है. इस तरह अपराधभावना से बच कर सिर्फ अपने स्वार्थ को तवज्जो देते हैं.

भोगी पुरुषों की पहचान और स्त्री की इन से खुद की सुरक्षा: यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण मुद्दा है. नौकरी हो या व्यवसाय या फिर कैरियर का कोई भी पहलु 20 से 40 साल की महिला को ज्यादातर उम्रदराज पुरुषों के सान्निध्य में काम करना पड़ता है.

ऐसी स्त्रियां अपनी बातों, विचारों, व्यवहार और गुणों की वजह से अकसर सब के आकर्षण का केंद्र होती हैं. स्वाभाविक है कि उम्रदराज पुरुष ऐसी स्त्रियों का सान्निध्य ज्यादा चाहें. मगर बात तब बिगड़ती है जब ये दोस्ती के नाम पर स्त्रियों को लुभा कर उन्हें अपने चंगुल में फंसाते हैं. जो स्त्रियां जानबूझ कर अपने रिस्क पर इन रिश्तों में आगे बढ़ती हैं उन के लिए यह चर्चा भले ही काम की न हो, लेकिन उन्हें आगाह करना जरूरी है जो ऐसे पुरुषों की दोस्ती को बिना समझे ही अपना लेती हैं और बाद में उन्हें न पीछे लौटने का रास्ता मिलता है, न आगे जाने का. इन्हीं शरीरकामी पुरुषों की मानसिकता की कुछ झलकियां हैं, जिन्हें जान लेने से ऐसे पुरुषों की पहचान आसान हो जाएगी:

ऐसे पुरुष शुरुआती दौर में भावनात्मक पहल करते ही पाए जाते हैं.

जुड़ने वाली स्त्री की हर जरूरत का खयाल रखना चाहते हैं.

स्त्री के परिवार में पति या निकट के लोगों में खामियां ढूंढ़ कर वे खुद भला बन कर स्त्री पर छा जाना चाहते हैं.

काम के क्षेत्र में अतिरिक्त सुविधा देते हैं.

गाहेबगाहे स्त्री शरीर का स्पर्श करते हैं, लेकिन उसे केयर का रूप देते हैं.

झूठ बोलने और अभिनय में माहिर होते हैं.

शिकार को पूरा वक्त देते हैं, चाशनी में उतारने की जल्दी नहीं करते.

उम्रदराज पुरुषों का कम उम्र की स्त्री से भावनात्मक संबंध: अधिक उम्र वाले ऐसे पुरुष भी होते हैं जो कम उम्र की समझदार स्त्री से दोस्ती का भावनात्मक संपर्क बनाए रखना चाहते हैं. ऐसे पुरुष ऐसी स्त्री के साथ दोस्ती रखना चाहते हैं, जो विचारों, स्वभाव और अनुभूति में उन के समान हो.

अगर ऐसे संबंध सहज हों, विचारों के आदानप्रदान से ले कर स्वस्थ मानसिकता तक दर्शाते हों और दोनों के पारिवारिक संबंधों को नष्ट न करते हों, तो यह दोस्ती ठीक है.

भावनात्मक सहारे ढूंढ़ने वाले पुरुषों की पारिवारिक स्थिति: ऐसे पुरुष घर में अकसर पत्नी को जीवनसंगिनी का वह मोल नहीं दे पाते जिस की पत्नी को अपेक्षा रहती है. ऐसे व्यक्ति पारिवारिक जिम्मेदारियां तो निभाते हैं और पत्नी की जरूरतों को भी पूरा करते हैं, लेकिन पत्नी को खुद के बराबर नहीं समझते.

हो सकता है, पत्नी में भी उन का सहारा बनने की योग्यता न हो, घरपरिवार में कई तरह के क्लेश हों या पुरुष के कामकाजी जीवन की मुश्किलों को उस की पत्नी न समझती हो या फिर उस पुरुष की अपेक्षाएं इतनी हों कि उन पर खरा उतरना उस की पत्नी के लिए संभव न हो.

जो भी कारण रहे, अगर बाहरी स्त्रीपुरुष में संबंध बन ही गए हों, तो ‘लव इन सिक्सटीज’ के लिए कुछ मुख्य बातें जो स्त्रीपुरुष दोनों पर ही लागू होंगी:

ऐसे साझा संबंध निभाते वक्त सब से पहले संबंध का प्रकार अवश्य तय कर लें. इस पर अमल दोनों ही करें. मसलन, यह संबंध सिर्फ दोस्ती का है और दोस्ती ही रहेगी या इस संबंध को आगे किसी भी मोड़ तक ले जाने को दोनों स्वच्छंद हैं.

दोनों अपनी दोस्ती को समाजपरिवार से छिपा कर रखेंगे या जाहिर करेंगे, यह भी दोनों तय कर लें.

दोनों ही एकदूसरे को कोई छोटामोटा गिफ्ट देने तक ही सीमित रहें. बड़ा गिफ्ट देने से बचें. इस से परिवार विद्रोह पर उतर सकता है और आप बेमतलब के झंझट में फंस सकते हैं.

आपसी रिश्ते को पारदर्शी रखें और सच के साथ जुड़े रहें. इस से दोस्त को आप की सीमाओं का भान रहेगा और आप से उस की अपेक्षाएं कम रहेंगी.

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युवती भी बन जाए कभी युवक

सैक्स की इच्छा युवक व युवती दोनों की होती है. पर देखा यह गया है कि युवक ही इस की शुरूआत करते हैं पर यदि युवती सैक्स की शुरुआत करे तो युवक को भरपूर आनंद मिलता है लेकिन समस्या यह है कि सैक्स की पहल करे कौन? इस बारे में किए गए एक शोध में पता चला है कि तकरीबन 80 प्रतिशत युवक सैक्स की शुरुआत और इच्छा जाहिर करते हैं. 10 प्रतिशत ऐसे युवक भी हैं जो सैक्स की इच्छा होने पर भी बिस्तर पर पहुंच कर युवती की इच्छाअनिच्छा जाने उस पर टूट पड़ते हैं. कई इस दुविधा में रहते हैं कि पहल करें या न करें.

सैक्स की इच्छा

 सैक्स युवकयुवती का सब से निजी मामला है. दोनों आपसी सहमति से इस का मजा लेते हैं. इस मामले में देखा गया है कि सैक्स की पहल युवक ही करते हैं. इस का मतलब यह नहीं कि युवतियों में सैक्स की इच्छा नहीं होती या वे सैक्स संबंध के लिए उत्सुक नहीं रहतीं.

सच तो यह है कि हमारे देश (मुसलिम देशों में भी) में युवतियों के दिमाग में बचपन से ही यह बात भर दी जाती है कि सैक्स अच्छी बात नहीं होती. इस से बचना चाहिए. अपने प्रेमी के सामने भी कभी सैक्स की इच्छा जाहिर नहीं करनी चाहिए. न ही खुद इस की पहल करनी चाहिए. यह बात उन के दिमाग में इस कदर बैठ जाती है कि प्रेम के बाद वे अपने प्रेमी से इस बारे में बात नहीं कर पाती और न ही खुल कर इच्छा जाहिर कर पाती हैं.

एक महत्त्वपूर्ण बात और है, सबकुछ भूल कर साहस के साथ यदि कोई युवती अपने प्रेमी से सैक्स की पहल कर दे तो उस के लिए आफत आ सकती है, क्योंकि उस का प्रेमी उसे खाईखेली समझ सकता है. इसी भय से सैक्स की इच्छा होते हुए भी युवती इस की पहल नहीं करती. यह बात सच है कि युवकों में युवतियों के सैक्स की पहल को ले कर गलत धारणा है कि जो युवती सैक्स की पहल करती है वह खेलीखाई होती है. देश में आज भी सैक्स को बुराई ही समझा जाता है इसलिए भी युवतियां अपनी ओर से पहल करने से कतराती हैं जबकि विदेशों की युवतियां बराबर शरीक होती हैं.

कनाडा के एक मनोचिकित्सक डा. भोजान ने हाल ही में सैक्स की पहल को ले कर औनलाइन सर्वे करवाया, जिस में यह पता करना था कि सैक्स को ले कर युवक और युवतियों का नजरिया क्या है. अधिकतर युवतियां सैक्स को भरपूर ऐंजौय करना तो चाहती हैं, पर सैक्स की पहल उन के ऐंजौय में आड़े आती है. इच्छा होने पर भी वे पहल नहीं कर पातीं और अनिच्छा होने पर मना भी नहीं कर पाती हैं. डा. भोजान का कहना है, युवतियों को सैक्सुअली ऐक्टिव बनाने के लिए उन में इमोशंस की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है. सैक्स का आनंद वे तभी उठा पाती हैं.

मजेदार बात यह है कि सैक्स की पहल को ले कर युवकों का नजरिया काफी बदला है. अब युवक भी चाहता है कि उस की पार्टनर सैक्स के बारे में उस से खुल कर बात करे. उस से सैक्स की इच्छा जाहिर करे.

यह जान कर अधिकतर युवतियों को विश्वास नहीं होगा कि औनलाइन सर्वे में पता चला है कि युवक अपने मन में युवती की तरफ से पहल की चाह संजोए रहते हैं, लेकिन उन की चाह बहुत कम ही पूरी हो पाती है. युवतियों द्वारा पहल न करने की वजह से मजबूरन युवकों को अपनी तरफ से पहल करनी पड़ती है.

युवती करे पहल

 जब सैक्स की चाह युवती और युवक दोनों में समान होती है तो ऐसे में सिर्फ युवक ही सैक्स की पहल क्यों करें? युवतियों को भी कभीकभी सैक्स की पहल करनी चाहिए ताकि वे सैक्स को अपनी तरह से ऐंजौय कर सकें.

सर्वे में यह भी पता चला है कि युवतियों को ले कर उन की सोच बदल रही है. युवक भी यह बात समझने लगे हैं कि सैक्स की इच्छा सिर्फ उन में ही नहीं युवतियों में भी होती है. ऐसे में युवती अपने पति से सैक्स की पहल करती है तो इस में बुराई क्या है? सर्वे में अनेक युवकों का कहना था कि अपनी पार्टनर की ओर से की गई पहल उन की रगरग में जबरदस्त जोश भर देती है.

डा. भोजान कहते हैं कि युवक के जोश का युवती के सैक्सुअल सैटिस्फैक्शन से सीधा संबंध होता है. मतलब अपनी ओर से की गई पहल का फायदा उन्हें सीधे तौर पर मिलता है.

युवतियों को अब जान लेना चाहिए कि जमाना बदल गया है. दुनिया भर के युवकों की सोच भी बदल रही है. अपनी झिझक और डर को दूर कर बेझिझक हो कर आप भी कभीकभी युवक बन जाएं और सैक्स ऐंजौय करें.

यहां कुछ तरीके बताए जा रहे हैं, जिन्हें अपना कर आप पार्टनर को सैक्स के लिए उत्साहित कर सकती हैं.

आत्मविश्वास लाएं : सब से पहले अपने अंदर आत्मविश्वास लाएं, ताकि बेझिझक सैक्स की पहल कर सकें.

मूड बनाएं : अपने पार्टनर के मूड को देखें और उस के साथ प्यार भरी बातें करें. आप की बातें ऐसी होनी चाहिए कि इस में तैरते हुए सैक्स में डूब जाएं. लव मेकिंग के दौरान खुल कर सैक्स की बातें करें. यदि आप शर्मीली हैं तो डबल मीनिंग वाले नौटी जोक्स उन पलों का मजा बढ़ा देंगे.

तारीफ करें : आज की रात आप खुद ही लगाम थामिए. सब से पहले उन की तारीफ की झड़ी लगा दें. फिर कान में फुसफुसा कर  अचानक किस कर उन्हें हैरान करें. कान में की गई फुसफुसाहट उन की रगों में खून का लावा भर देगी. जब हर कहीं ऐक्सपैरिमैंट की बहार चल रही है तब सैक्स लाइफ में इसे क्यों न आजमाएं.

छेड़छाड़ करें : लव मेकिंग के लिए छेड़छाड़ को मामूली क्रिया न समझें. अपनी ओर से पहल करते हुए पार्टनर के साथ छेड़छाड़ करें. इस दौरान कमरे की लाइट धीमी कर दें. साथ में हलका रोमांटिक हौट म्यूजिक बजा दें. कमरे की धीमी लाइट में आंखों की पुतलियां फैल जाती हैं, जिस से रोमांस हार्मोंस शरीर में तेजी से बढ़ने लगता है. साथ में हौट म्यूजिक. इस पल के लिए पूरी रात भी आप के लिए कम पड़ेगी.

आकर्षक लगें : सैक्स की इच्छा अपने पार्टनर से जाहिर करनी है तो अट्रैक्टिव व सैक्सी मेकअप करें. फिर देखें बैडरूम में अपनी बोल्ड ब्यूटी को देख कर उन्हें आज की रात का प्लान समझते देर नहीं लगेगी.

माहौल बनाएं : अपने आसपास का माहौल खुशबूदार व रोमांटिक बनाएं. इस के लिए बेहद हौट म्यूजिक बजाएं. रोमांटिक सौंग गुनगुनाएं. तेज परफ्यूम का छिड़काव करें. ऐेसे माहौल में उन के अंदर आग भड़काने में देर नहीं लगेगी. आप के शरीर की भीनीभीनी खुशबू और गरम सांसें उन को बेचैन करने के लिए काफी हैं. क्यों न उन की पसंद की खुशबू का इस्तेमाल कर उन्हें कहर ढाने के लिए मजबूर कर दें.

खुलापन लाएं : अपने पार्टनर पर खुल कर प्यार लुटाएं. किस करें, गले लगें, बांहों में जकड़ लें. आहें या सिसकियां भरें, ब्लाउज या ब्रा के बटन लगाने या खोलने के बहाने उन्हें अपने पास बुलाएं, टौवेल में उन के सामने हाजिर हो जाएं. आप के खुलेपन को देख कर आप की भावनाओं को वे बड़ी आसानी से समझ जाएंगे. मूड न होने पर भी उन का मूड बन जाएगा.

सैक्सी लौंजरी : लौंजरी, नाइटी या अंडरगारमैंट की खूबी को ऐसे मौके पर इस्तेमाल करें. इन्हें खरीदते वक्त खासकर इस के फैब्रिक पर ध्यान दें. महीन, मुलायम और फिसलन वाले फैब्रिक हो, जिन पर हाथ फेरते ही उन के हाथ खुदबखुद फिसलने लगेंगे. इस के आकार और रंग का भी ध्यान रखें. यह आप की नहीं उन की पसंद की हो.

हौलेहौले : यदि आप रात को कुछ खास बनाना चाहती हैं तो देर न करें. उन के बैडरूम में आते ही उन के नजदीक जा कर प्यार जताएं. एकएक कर उन के कपड़े उतारना शुरू करें. आप का बदला रूप देख कर वे ऐक्साइट हो जाएंगे. उन्हें हौट होने में देर नहीं लगेगी. यह उन्हें शारीरिक रूप से ही नहीं मानसिक रूप से भी उत्तेजित करता है.

पोर्न ट्रंप : अगर आप सचमुच में सैक्स के क्लाइमैक्स को ऐंजौय करना चाहती हैं तो पोर्न को ट्रंप कार्ड की तरह इस्तेमाल करें. उन के सामने पोर्न फिल्म, साइट, मैगजीन या अन्य सामग्री ले कर बैठ जाएं. फिर देखें उन में कैसे जोश भरता है.

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औनलाइन रिश्ता बनाते वक्त रहें सतर्क

कभी-कभी डिजिटल रिश्तों के जाल में कुछ लोग इस तरह फंस जाते है कि उनका रिश्तों से विश्वास उठ जाता या जिंदगी से हाथ धोना पड़ जाता है. तीन साल पहले एक मैचमेकिंग साईट पर मुंबई की रहने वाली कोमल वैभव नाम के एक लड़के से मिली. दोनों के बात विचार एक दुसरे से मिले तो बात आगे बढ़ी. दो-तीन बार मिलने के बाद, वैभव व्यस्त और लाइफ इशू बताकर बहाने बनाने शुरू कर दिया. मीटिंग में हूँ, शहर से बाहर हूँ, जल्दी मिलेंगे का झांसा देता रहा और कोमल भी उसकी बातों में विश्वास करती रही. लेकिन एक दिन कोमल ने उसे किसी और साईट पर देखा और छानबीन की तो पता चला कि वैभव ना कहीं व्यस्त था ना ही कोई लाइफ इशू थे, बल्कि वह 7 साल का शादीशुदा और खुशहाल जीवन जी रहा था. उसकी बीवी का कहना था कि वह डेटिंग और मत्रिमोनिअल साईटो पर फर्जी प्रोफाइल बनाकर कई लड़कियों के साथ रिलेशन में था जिसका मकसद केवल सेक्सुअल फैंटेसी पूरी करना था.

आज के समय में मत्रिमोनिअल और डेटिंग साइटें वैभव जैसा इरादा रखने वाले बहुरूपियों के लिए एक आसान विकल्प बन गई है. एक अंतर्राष्ट्रीय डेटिंग एप्लीकेशन हिन्ज के मुताबिक, डेटिंग की दुनिया दिन-प्रतिदिन क्रूर होती जा रही है. ऐसे में ऑनलाइन रिलेशन में घोस्टिंग, मूनिंग और ब्रेडक्रम्बिंग इत्यादि धोखेबाजी के तरीके के बाद किटेनफिशिंग एक नया टर्म आया है जिससे आपको सतर्क रहने की जरूरत है.

क्या है किटेनफिशिंग?

यदि आप सोच रहे हैं, किटेनफिशिंग का सम्बन्ध डेट पर पालतू जानवर ले जाने या मछली पकड़ने से है तो आप गलत हैं. किटेनफिशिंग, “ऑनलाइन डेटिंग की दुनिया में अपनाया जाना वाला एक हथकंडा है जहाँ एक व्यक्ति वैसा बनने या दिखाने का नाटक करना है जो वास्तव में नहीं है”. यहाँ किटेनफिशर्स पुरानी और भ्रामक फोटो के जरिये स्वयं को अवास्तविक रूप में पेश कर सामने वाले को लुभाने का हरसंभव प्रयास करते है. जैसे उम्र, लम्बाई, पसंद इत्यादि के बारे में गलत जानकारी देकर आकर्षित करना.

असल जिन्दगी में भी होती है किटेनफिशिंग

किटेनफिशिंग कोई नया ट्रेंड नहीं है. ऐसे में यह कहना गलत होगा कि किटेनफिशिंग केवल उनके साथ होती है जो ऑनलाइन रिश्ते बनाते है. हमारे आसपास अक्सर ऐसे लोग और किस्से कहानियां देखने-सुनने को मिल जाएंगी. एक कंपनी में कार्यरत प्रतिभा दुबे बताती है कि वो एक लड़के को डेट करती थी, जिसने बताया था कि उसके पास घर है और वो कंस्ट्रक्शन का काम करता है. लेकिन कुछ महीनों बाद पता चला, जिस घर में लड़का रहता है वो उसके कजिन का है जो दुबई रहता है. जिसके बाद उसने रिश्ता ख़त्म कर लिया. कई बार देखा गया है कि शादी से पहले जो फोटो या जानकारी दी गई रहती है सच्चाई उससे विपरीत होती है. फर्क यह है कि आज की डिजिटल मीडिया इस ट्रेंड को खूब हवा दे रही है, जहाँ एक पक्ष दुसरे की भावनाओं को पूरी तरह से नजरअंदाज़ करके अपना उद्देश्य पूरा करता है.

मानसिक तौर पर हानिकारक

पहली नजर में देखे तो यह हानिकारक नहीं लगता है. लेकिन जब कोई जान बुझकर, एक योजना के तहत करे, तो सामने वाले पर मानसिक रूप से बुरा असर हो सकता है. भोपाल के मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी बताते है कि हर व्यक्ति के मन में खुद को लेकर असुरक्षा की भावना होती है और यह एक मानवीय प्रवृत्ति है. जब कोई अपनी असुरक्षा से बाहर नहीं निकल पाता है तो नकली मुखौटे का सहारा लेता है जिसे “एंटी सोशल मल्टीपर्सनालिटी डिसऑर्डर” कहते है. ये लोग काफी शार्प माइंड के होते है. विशेष बात यह है कि इन लोगों को दुसरे की भावनाओं या तकलीफ से कोई फर्क नहीं पड़ता.

क्यों फंस जाते है लोग

डॉ. त्रिवेदी के अनुसार, ऑनलाइन डेटिंग के जाल में ज्यादातर वे लोग फंस जाते है जो डिजिटल वर्ल्ड में पहली बार कदम रखते है और इमोशनल होते हैं. और ऐसे लोग सामने वाले की बातों में आसानी से आ जाते है. इसके अलावा ऐसे लोग भी फंस जाते हैं जो बाहरी दुनिया से कम लगाव रखते है और अकेलेपन से छुटकारा पाना चाहते है. ऐसे में ऑनलाइन डेटिंग एप्लीकेशन और साईटो पर दोस्ती करना या साथी ढूँढना एक आसान विकल्प के रूप में उनके सामने उपलब्ध होता है.

किटेनफिशर्स को कैसे पहचाने

हमारे आसपास ऐसी मानसिकता के कई लोग मिल जाएंगे है, जो अपने सकारात्मक गुणों को बढ़ा-चढ़ा कर आपको प्रभावित करने की कोशिश करते है, जिन्हें आप नजरअंदाज़ कर देते है या समझ नहीं पाते है. डॉ. त्रिवेदी कहते हैं, ये लोग आसानी से पहचान में नहीं आते. यदि थोड़ी सी सतर्कता बरती जाए तो बहुत जल्दी इस तरह की मानसिकता को समझ सकते है.

-यदि आप किसी से ऑनलाइन मिले हो, और उसके फोटो एक दुसरे से भिन्न हो. जैसे फोटो पुरानी या एडिटेड हो.

-यदि कहे, मीटिंग में है, ऑफिस के काम से बाहर है इत्यादि, लेकिन ऑफिस के बारे में कोई जानकारी ना दे.

-बात करते वक़्त यदि अपने परिवार या दोस्तों की बात ना करें. उनसे मिलाने के नाम पर बहाने करे.

-किसी सार्वजानिक जगह पर मिलने के बजाय अकेले में मिलने की बात करे.

-ऑनलाइन बात करते वक्त विदेश घुमने, जिम जाने, किताबे पढने की बात करें, लेकिन मिलने पर उससे सम्बंधित जानकारी या लक्षण ना दिखाई दे.

कैसे बचें

ऐसे लोगों से बचने के लिए हमें स्वयं सतर्क रहने की जरूरत है जिसके लिए आपको इन बातों का ध्यान रखना चाहिए. जैसे- यदि आप ऑनलाइन रिश्ता देख रहे है तो एकदम से सामने वाले पर विश्वास ना करें. उनकी बात सुनकर उत्साहित ना हो, ना ही मिलने की जल्दीबाजी करे. मिलने से पहले फ़ोन पर बात करें, विडिओ कालिंग करे. मिलने के बाद भी उसे जांचना परखना ना छोड़े. उसके घर-परिवार और दोस्तों के बारे में जाने और उनसे मिलने की बात करें. साथ ही उसे भी अपने परिवार और दोस्तों से मिलाये.

यदि आप इन बातों का ध्यान रखते हुए सतर्कता बरतते हैं तो सही साथी के तलाश में ऑनलाइन डेटिंग या मत्रिमोनिअल साईटें भी काफी उपयोगी साबित हो सकती है. ऐसे ना जाने कितने लोग हैं जिन्हें ऑफ़लाइन से बेहतर जीवनसाथी ऑनलाइन मिल जाते है. ऐसे में कहना गलत ना होगा, इरादा साफ रखे तो कोई भी जरिया गलत नहीं होता है, बस हमें सतर्कता और जल्दीबाजी नहीं करनी चाहिए.

ऑनलाइन या ऑफलाइन हो, वे मॉडर्न डेटिंग टर्म जिसको हममे से कई लोगों ने अनुभव किया होगा

घोस्टिंग यानी जब कोई फ्रेंड और प्रेमी आपके जिन्दगी से अचानक से बिना कुछ कहे गायब हो जाए और कांटेक्ट के सारे रास्ते बंद कर ले.

स्लोफेड यानी जब कोई किसी उभरते हुए रिश्ते को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हो, तो धीरे-धीरे बातचीत और संपर्क कम करके रिश्ता तोड़ता हो.

-ब्रेडक्रम्बिंग एक ऐसा डेटिंग टर्म है जहाँ एक व्यक्ति रिश्ता बनाने के बिना किसी इरादे के प्यार भरे संदेश भेजकर भावनाओं के साथ खेलता हो.

शिपिंग यानी एक रिश्ते में रहते हुए कई लोगों के साथ रोमांटिक रिलेशन रखना.

कैच और रिलीज टर्म में एक व्यक्ति दुसरे व्यक्ति का तब तक पीछा या प्रभावित करने का प्रयास करता है जब तक वो उसे मिल नहीं जाता है और मिलते ही छोड़ देता है.

बेंचिंग एक ऐसा टर्म है जहाँ एक व्यक्ति अपने संभावित प्रेमी के इंतज़ार में हो, साथ ही विकल्प भी खुले रखे हों.

-कुशनिंग यानी एक साथी के रहते हुए डेटिंग के सभी विकल्प खुले रखना. सिर्फ इसलिए कि मुख्य रिश्ता ठीक से ना चल रहा हो.

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घर संभालता प्यारा पति

सुबह के 8 बजे हैं. घड़ी की सूइयां तेजी से आगे बढ़ रही हैं. स्कूल की बस किसी भी क्षण आ सकती है. घर का वातावरण तनावपूर्ण सा है. ऐसे में बड़ा बेटा अंदर से पापा को आवाज लगाता है कि उसे स्कूल वाले मोजे नहीं मिल रहे. इधर पापा नानुकुर कर रही छोटी बिटिया को जबरदस्ती नाश्ता कराने में मशगूल हैं. इस के बाद उन्हें बेटे का लंचबौक्स भी पैक करना है. बेटे को स्कूल भेज कर बिटिया को नहलाना है और घर की डस्टिंग भी करनी है.

यह दृश्य है एक ऐसे घर का जहां बीवी जौब करती है और पति घर संभालता है यानी वह हाउस हसबैंड है. सुनने में थोड़ा विचित्र लगे पर यह हकीकत है.

पुरातनपंथी और पिछड़ी मानसिकता वाले भारतीय समाज में भी पतियों की यह नई प्रजाति सामने आने लगी है. ये खाना बना सकते हैं, बच्चों को संभाल सकते हैं और घर की साफसफाई, बरतन जैसे घरेलू कामों की जिम्मेदारी भी दक्षता के साथ निभा सकते हैं.

ये सामान्य भारतीय पुरुषों की तरह नहीं सोचते, बिना किसी हिचकिचाहट बिस्तर भी लगाते हैं और बच्चे का नैपी भी बदलते हैं. समाज का यह पुरुष वर्ग पत्नी को समान दर्जा देता है और जरूरत पड़ने पर घर और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी उठाने को भी हाजिर हो जाता है.

हालांकि दकियानूसी सोच वाले भारतीय अभी भी ऐसे हाउस हसबैंड को नाकारा और हारा हुआ पुरुष मानते हैं. उन के मुताबिक घरपरिवार की देखभाल और बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी सदा से स्त्री की रही है, जबकि पुरुषों का दायित्व बाहर के काम संभालना और कमा कर लाना है.

हाल ही में हाउस हसबैंड की अवधारणा पर आधारित एक फिल्म आई थी ‘का एंड की.’ करीना कपूर और अर्जुन कपूर द्वारा अभिनीत इस फिल्म का मूल विषय था- लिंग आधारित कार्यविभेद की सोच पर प्रहार करते हुए पतिपत्नी के कार्यों की अदलाबदली.

लिंग समानता का जमाना

आजकल स्त्रीपुरुष समानता की बातें बढ़चढ़ कर होती हैं. लड़कों के साथ लड़कियां भी पढ़लिख कर ऊंचे ओहदों पर पहुंच रही हैं. उन के अपने सपने हैं, अपनी काबिलीयत है. इस काबिलीयत के बल पर वे अच्छी से अच्छी सैलरी पा रही हैं. ऐसे में शादी के बाद जब वर्किंग कपल्स के बच्चे होते हैं तो बहुत से कपल्स भावी संभावनाओं और परेशानियों को समझते हुए यह देखते हैं कि दोनों में से किस के लिए नौकरी महत्त्वपूर्ण है. इस तरह आपसी सहमति से वे वित्तीय और घरेलू जिम्मेदारियों को बांट लेते हैं.

यह पतिपत्नी का आपसी फैसला होता है कि दोनों में से किसे घर और बच्चों को संभालना है और किसे बाहर की जिम्मेदारियां निभानी हैं.

यहां व्यवहारिक सोच महत्त्वपूर्ण है. यदि पत्नी की कमाई ज्यादा है और कैरियर को ले कर उस के सपने ज्यादा प्रबल हैं तो जाहिर है कि ऐसे में पत्नी को ब्रैड अर्नर की भूमिका निभानी चाहिए. पति पार्टटाइम या घर से काम करते हुए घरपरिवार व बच्चों को देखने का काम कर सकता है. इस से न सिर्फ बच्चों को अकेला या डेकेयर सैंटर में छोड़ने से पैदा तनाव कम होता है, बल्कि उन रुपयों की भी बचत होती है जो बच्चे को संभालने के लिए मेड या डेकेयर सैंटर को देने पड़ते हैं.

हाउस हसबैंड की भूमिका

हाउस हसबैंड होने का मतलब यह नहीं है कि पति पूरी तरह से पत्नी की कमाई पर निर्भर हो जाए या जोरू का गुलाम बन जाए. इस के विपरीत घर के काम और बच्चों को संभालने के साथसाथ वह कमाई भी कर सकता है. आजकल घर से काम करने के अवसरों की कमी नहीं. आर्टिस्ट, राइटर्स ज्यादा बेहतर ढंग से घर पर रह कर काम कर सकते हैं. पार्टटाइम काम करना भी संभव है.

सकारात्मक बदलाव

लंबे समय तक महिलाओं को गृहिणियां बना कर सताया गया है. उन के सपनों की अवहेलना की गई है. अब वक्त बदलने का है. एक पुरुष द्वारा अपने कैरियर का त्याग कर के पत्नी को अपने सपने सच करने का मौका देना समाज में बढ़ रही समानता व सकारात्मक बदलाव का संदेश है.

एकदूसरे के लिए सम्मान

जब पतिपत्नी अपनी ब्रैड अर्नर व होममेकर की पारंपरिक भूमिकाओं को आपस में बदल लेते हैं, तो वे एकदूसरे का अधिक सम्मान करने लगते हैं. वे पार्टनर की उन जिम्मेदारियों व काम के दबाव को महसूस कर पाते हैं, जो इन भूमिकाओं के साथ आते हैं.

एक बार जब पुरुष घरेलू काम और बच्चों की देखभाल करने लगता है तो खुद ही उस के मन में महिलाओं के लिए सम्मान बढ़ जाता है. महिलाएं भी उन पुरुषों को ज्यादा मान देती हैं जो पत्नी के सपनों को उड़ान देने में अपना योगदान देते हैं और स्त्रीपुरुष में भेद नहीं मानते.

जोखिम भी कम नहीं

समाज के ताने: पिछड़ी और दकियानूसी सोच वाले लोग आज भी यह स्वीकार नहीं कर पाते कि पुरुष घर में काम करे व बच्चों को संभाले. वे ऐसे पुरुषों को जोरू का गुलाम कहने से बाज नहीं आते. स्वयं चेतन भगत ने स्वीकार किया था कि उन्हें ऐसे बहुत से सवालों का सामना करना पड़ा जो सामान्यतया ऐसी स्थिति में पुरुषों को सुनने पड़ते हैं. मसलन, ‘अच्छा तो आप की बीवी कमाती है?’ ‘आप को घर के कामकाज करने में कैसा महसूस होता है? वगैरह.’

पुरुष के अहं पर चोट: कई दफा खराब परिस्थितियों या निजी असफलता की वजह से यदि पुरुष हाउस हसबैंड बनता है तो वह खुद को कमजोर और हीन महसूस करने लगता है. उसे लगता है जैसे वह अपने कर्त्तव्य निभाने (कमाई कर घर चलाने) में असफल नहीं हो सका है और इस तरह वह पुरुषोचित कार्य नहीं कर पा रहा है.

मतभेद: जब स्त्री बाहर जा कर काम कर पैसे कमाती है और पुरुष घर में रहता है तो और भी बहुत सी बातें बदल जाती हैं. सामान्यतया कमाने वाले के विचारों को मान्यता दी जाती है. उसी का हुक्म घर में चलता है. ऐसे में औरत वैसे इशूज पर भी कंट्रोल रखने लगती है जिन पर पुरुष मुश्किल से ऐडजस्ट कर पाते हैं.

सशक्त और अपने पौरुष पर यकीन रखने वाला पुरुष ही इस बात को नजरअंदाज करने की हिम्मत रख सकता है कि दूसरे लोग उस के बारे में क्या कह रहे हैं. ऐसे पुरुष अपने मन की सुनते हैं न कि समाज की.

स्त्रीपुरुष गृहस्थी की गाड़ी के 2 पहिए हैं. आर्थिक और घरेलू कामकाज, इन 2 जिम्मेदारियों में से किसे कौन सी जिम्मेदारी उठानी है, यह कपल को आपस में ही तय करना होगा. समाज का दखल बेमानी है.

जानेमाने हाउस हसबैंड्स

ऐसे बहुत से जानेमाने चेहरे हैं, जिन्होंने अपनी इच्छा से हाउस हसबैंड बनना स्वीकार किया है-

भारतीय लेखक चेतन भगत, जिन के उपन्यासों पर ‘थ्री ईडियट्स’, ‘2 स्टेट्स’, ‘हाफ गर्लफ्रैंड’ जैसी फिल्में बन चुकी हैं, ने अपने जुड़वां बच्चों की देखभाल के लिए हाउस हसबैंड बनने का फैसला लिया.

वे ऐसे दुर्लभ पिता हैं, जिन्होंने आईआईटी, आईआईएम से निकलने के बाद अपने बच्चों को अपने हाथों बड़ा किया. हाउस हसबैंड बनने का फैसला उन्होंने तब लिया था जब वे अपने कैरियर में ज्यादा सफल नहीं थे जबकि उन की पत्नी यूबीएस बैंक की सीईओ थीं. चेतन भगत ने नौकरी छोड़ कर भारत आने का फैसला लिया और खुशीखुशी घर व बच्चों की देखभाल में समय लगाने लगे. साथ में लेखन का कार्य भी चलता रहा. आज उसी चेतन भगत के उपन्यासों का लोगों को बेसब्री से इंताजर रहता है.

इसी तरह की कहानी जानेमाने फुटबौलर डैविड बैकहम की भी है, जिन्होंने प्रोफैशनल फुटबौल की दुनिया से अलविदा कह कर हाउस हसबैंड बनने का फैसला लिया. एक टैलीविजन शो के दौरान उन्होंने स्वीकारा था कि वे अपने 4 बच्चों के साथ समय बिता कर ऐंजौय करते हैं. बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, स्कूल छोड़ कर आना, लंच बनाना, सुलाना जैसे सभी कामों को वे बड़ी सहजता से करते हैं.

न्यूटन इनवैस्टमैंट मैनेजमैंट की सीईओ हेलेना मोरिसे लंदन की चंद ऐसी महिला सीईओ में से एक हैं जो 50 बिलियन पाउंड्स से ज्यादा का कारोबार संभालती हैं और करीब 400 से ज्यादा कर्मचारियों पर हुक्म चलाती हैं. वे 9 बच्चों की मां भी हैं. जब हेलेना ने बिजनैस वर्ल्ड में अपना मुकाम बनाया तो उन के पति रिचर्ड ने खुशी से घर पर रह कर बच्चों की जिम्मेदारी उठाना स्वीकारा.

कुछ इसी तरह की कहानी भारत की सब से शक्तिशाली बिजनैस वूमन, इंदिरा नूई की भी है. पेप्सिको की सीईओ और चेयरमैन इंदिरा नूई के पति अपनी फुलटाइम जौब को छोड़ कर कंसलटैंट बन गए ताकि वे अपनी दोनों बच्चियों की देखभाल कर सकें.

इसी तरह बरबेरी की सीईओ ऐंजेला अर्हेंड्स के पति ने भी अपनी पत्नी के कैरियर के लिए अपना बिजनैस समेट लिया और बच्चों की देखभाल व घर की जिम्मेदारियां अपने ऊपर ले लीं.

डिप्लोमैट जेम्स रुबिन ने भी खुशीखुशी अपनी हाई प्रोफाइल जौब छोड़ दी ताकि वे अपनी पत्नी जर्नलिस्ट क्रिस्टीन अमान पोर को सफलता की सीढि़यां चढ़ता देख सकें. उन्होंने जौब छोड़ कर अपने बेटे की परवरिश करने की ठानी.

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तो समझिए कि वह आप से दूर हो रहे हैं

प्यार कितना भी गहरा हो पर कोई भी कपल हर समय एकदूसरे के प्यार में डूबे नहीं रहते. उन्हें अपनी जिम्मेदारियां भी निभानी होती है. कामकाज पर जाना पड़ता है. जिंदगी के उतारचढ़ाव सहने पड़ते हैं. मगर इन वजहों से प्यार का एहसास नहीं घटता. जब भी मिलते हैं उतनी ही शिद्दत से प्यार महसूस करते हैं.

मगर कभीकभी ऐसी परिस्थितियां भी आती हैं जब अपने प्रेमी या पति के करीब हो कर भी आप को प्यार महसूस न हो. करीब हो कर भी वे आप को दूर लगें. अगर ऐसा है तो समझ जाइए कि वह  वाकई आप से दूर जा रहे हैं यानी आप का ब्रेकअप होने वाला है.

पहले से इस बात का आभास रहे तो इस दर्द को सहना थोड़ा आसान हो जाता है. ध्यान दीजिए आप के करीब रहने पर उन की कुछ खास शारीरिक गतिविधियों पर.

बौडी लैंग्वेज में परिवर्तन

जब आप किसी के साथ रिलेशन में होते हैं या प्यार करते हैं तो रातदिन उसे ही देखना और महसूस करना चाहते हैं. मगर जब कोई आप का दिल तोड़ जाता है या उस के लिए आप के मन में प्यार नहीं रह जाता तो उस का सामना करने या उस की तरफ देखने से भी कतराने लगते हैं.

प्यार में इंसान करीब जाने और बातें करने के बहाने ढूंढता है मगर दूरी बढ़ने पर एकदूसरे से दूर जाने के बहाने ढूंढने लगता है. कपल्स जो इमोशनली जुड़े होते हैं उन की बौडी लैंग्वेज ही अलग होती है. जैसे कि अनजाने ही एकदूसरे की ओर सर झुकाना, गीत गुनगुनाना, केयर करना और एकदूसरे की बातें ध्यान दे कर सुनना आदि.

मगर जब रिश्ता बैकअप के कगार पर पहुंच चुका होता है तो वे बातें कम और बहस ज्यादा करने लगते हैं. एकदूसरे के बगल में बैठने के बजाय आमनेसामने बैठते हैं और केयर करने के बजाए इग्नोर करने लगते हैं.

आई कांटेक्ट का घट जाना

आप उन चीजों को देखना पसंद करते हैं जो आप को पसंद होती हैं. जाहिर है मोहब्बत में नजरों का मिलना और मिला रह जाना अक्सर होता है. मगर जब आप दोनों एकदूसरे की तरफ देखते ही नजरें हटा लें, आंखों में देख कर बातें करना छोड़ दें तो समझिए आप दोनों  ब्रेकअप की ओर बढ़ रहे हैं.

इस संदर्भ में 1970 में सोशल साइकोलौजिस्ट जिक रुबिन ने कपल्स के बीच आई कांटेक्ट के आधार पर उन के रिश्ते की गहराई नापने का प्रयास किया. कपल्स को कमरे में अकेले छोड़ दिया गया. वैसे कपल्स जिन के बीच गहरा प्यार था, अधिक समय तक अपने पार्टनर को देखते पाए गए. जब कि कम प्यार रखने वाले कपल्स में ऐसी बौन्डिंग नहीं देखी गई.

विश्वास की कमी

साइकोलौजिस्ट जौन गौटमैन ने करीब 4 दशकों तक किए गए अपने अध्ययन में पाया कि जो कपल्स लंबे समय तक रिश्ते में हैं वह करीब 86 प्रतिशत समय एकदूसरे की ओर मुड़े होते हैं. ऐसा न सिर्फ अफेक्शन  की वजह से वरन एकदूसरे पर विश्वास के कारण भी होता है. वे गंभीर मुद्दों पर एकदूसरे का ओपिनियन जानने और मदद लेने का प्रयास भी करते हैं. मगर रिश्ता कमजोर हो तो विश्वास भी टूटने लगता है.

आधा अधूरा मुस्कुराना

यदि आप लंबे समय तक एकदूसरे की ओर देख कर मुस्कुराना या चुहलबाजिया करना भूल चुके हैं तो समझिये रिश्ता टूटने वाला है. सरल और अपनत्व भरी मुस्कान रिश्ते की प्रगाढ़ता का सबूत होती है. एकदूसरे से बिना किसी शर्त मोहब्बत करने वालों के चेहरे पर मुस्कान स्वाभाविक रूप से खिली होती है.

मतभेद जब बहस का रूप लेने लगे

अपने पार्टनर के साथ किसी बात पर मतभेद का होना स्वभाविक है. पर यह बहस यदि  स्वस्थ न रह कर अक्सर लड़ाई झगड़े पर खत्म होने लगे और  दोनों में से कोई भी कप्रोमाइज करने को तैयार न हो तो समझिए रिश्ता ज्यादा टिक नहीं सकता.

संवाद की कमी

किसी भी रिश्ते की मजबूती के लिए सहज और ईमानदार संवाद जरूरी है. पर जब आप दोनों में से किसी एक या दोनों ने आपस में संवाद कायम करना छोड़ दिया है और बहुत मुश्किल से ही कभी बातचीत हो पाती है तो रिश्ता जल्द ही दम तोड़ने लगता है. क्यों कि ऐसे में गलतफहमियां दूर करना कठिन हो जाता है.

जब दोनों ने प्रयास करना छोड़ दिया हो

आप का रिश्ता कितना भी कंफर्टेबल क्यों न रहे आप को हमेशा इस में सुधार लाने का प्रयास करते रहना चाहिए. गलती करने पर तुरंत माफी मांगना, पार्टनर को सरप्राइज देना, अपने अच्छे पक्ष सामने लाना और छोटीछोटी बातों से पार्टनर का दिल जीतने का प्रयास करना जैसी बातें रिश्ते को टूटने से बचाती है.

तारीफ बंद कर देना

मजबूत रिश्ते के लिए समयसमय पर एकदूसरे की तारीफ करना अहम होता है. जब आप दोनों एकदूसरे को ग्रांटेड लेने लगते हैं, तारीफ करना छोड़ देते हैं तो धीरेधीरे दोनों के बीच शिकायतों का दौर बढ़ने लगता है जो आप को ब्रेकअप की ओर ले जाता है.

तैयारी मिलन की रात की

जीवन के कुछ बेहद रंगीन पलों, जिन की कल्पना मात्र से धड़कनें तेज हो जाती हैं और माहौल में रोमानियत छा जाती है, में से एक है शादी की पहली रात यानी मिलन की वह रात जब दो धड़कते जवां दिल तनमन से मिलन को तैयार होते हैं.

चाहे किसी भी उम्र का कोई भी व्यक्ति क्यों न हो? वह अपनी पहली रात की यादों की खुशबू को हमेशा अपने जेहन में बसाए रखना चाहता है. मिलन की यह रात एक प्रेम, रोमांस और रोमांच तो पैदा करती ही है साथ ही अगर सावधानीपूर्वक इस के आगमन की तैयारी न की जाए तो यह पूरे जीवन के लिए टीस बन कर रह जाती है. जीवन की इस खास रात को यादगार बनाने के लिए अगर थोड़ा ध्यान दिया जाए तो बेशक यह रात हमेशाहमेशा के लिए खास बन जाएगी.  घूंघट में लिपटी, फूलों की सेज पर बैठी दुलहन के पारंपरिक कौंसैप्ट से अलग बदलाव आने लगे हैं. अब तो युवा शादी तय होते ही बाकायदा इसे सैलिब्रेट करने की योजना में विवाह से पहले ही जुट जाते हैं.

रोमानियत और रोमांच की इस रात को अगर थोड़ी तैयारी और सावधानी के साथ मनाया जाए तो जिंदगी फूलों की तरह महक उठती है वरना कागज के फूल सी बिना खुशबू हो जाती है. दो लफ्जों की यह कहानी ताउम्र प्यार की सुरीली धुन बन जाए इस के लिए कुछ बातों का जरूर खयाल रखें. मुंह की दुर्गंध करें काबू : यह समस्या किसी को भी हो सकती है. मुंह से दुर्गंध आना एक आम समस्या है पर यही समस्या मिलन की रात आप के पार्टनर पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है. चूंकि नवविवाहितों को इस खास रात बेहद करीब आने का अवसर मिलता है. ऐसे में थोड़ी सी भी लापरवाही आप के पार्टनर के मनमें आप के लिए खिन्नता व दूरी पैदा कर सकती है. इसलिए बेहतर है कि अगर आप के मुंह से दुर्गंध आती है तो पहले ही इस का बेहतर इलाज करा लें या फिर इसे दूर करने के लिए मैंथौल, पीपरमैंट या फिर सुगंधित पानसुपारी आदि लें. आप बेहतर क्वालिटी के माउथ फ्रैशनर का भी प्रयोग कर  सकते हैं.

सैंट का प्रयोग करें :

कहते हैं शरीर की सुगंध सामने वाले को सब से ज्यादा प्रभावित करती है. पसीने के रूप में शरीर से निकलने वाली दुर्गंध आप की छवि खराब कर सकती है. मिलन की रात ज्यादातर लोग इसे ले कर गंभीर नहीं होते जबकि यह सब से अहम है.  आप के तन की खुशबू सीधे आप के पार्टनर के मन पर प्रभाव डालती है जिस से मिलन का मजा दोगुना हो जाता है. शारीरिक दुर्गंध कोई बड़ी समस्या नहीं है. आजकल बाजार में आप की पसंद और चौइस के अनुसार ढेरों फ्लेवर व विभिन्न ब्रैंड्स के डिओ उपलब्ध हैं.  ‘आप चाहें तो अपने पार्टनर की पसंद पूछ कर उसी ब्रैंड का डिओ, सैंट, स्पे्र आदि इस्तेमाल कर सकते हैं. इस के दो फायदे हैं एक तो आप की सकारात्मक इमेज बनेगी दूसरे पसीने की दुर्गंध से बचेंगे, जिस से आप की पार्टनर आप से खुश भी हो जाएगी.

अनचाहे बालों से मुक्ति :

कई बार अनाड़ीपन में पहली रात का मजा किरकिरा हो जाता है. लापरवाही और बेफिक्री आप को इम्बैरेंस फील करा सकती है. बोयोलौजिकली हमारे शरीर के हर हिस्से में बाल होते हैं जिन में गुप्तांगों के बाल भी शामिल हैं. मिलन की रात से पहले ही अपने शरीर के इन अंगों के बालों को अवश्य हटा लें. यह न केवल हाइजिनिक दृष्टि से जरूरी है बल्कि यह कम्फर्टेबिलिटी का पैमाना भी है. बाजार में कई तरह के हेयर रिमूवर व क्लीनर मिलते हैं, जिन से आसानी से इन बालों को रिमूव किया जा सकता है. अगर इम्बैरेंस होने से बचना है तो इस बात का खयाल अवश्य रखें.

मासिक धर्म न आए आड़े :

कई बार ऐसा होता है कि मिलन की रात वाले दिन ही मासिक धर्म एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ कर आप के हसीन सपनों पर पानी फेर देता है. इस रात मासिक धर्म आप के मिलन पर भारी न पड़े, इस के लिए जरूरी है कि अगर आप के मासिक धर्म की तिथि इस दौरान है तो पहले ही डाक्टर से मिल कर इस का समाधान कर लें. माहवारी ऐक्सटैंड या डिले करने वाली दवाएं बाजार में उपलब्ध हैं. डाक्टर की सलाह से उन का उपयोग करें.

कुछ यों करें साथी को तैयार

कई बार मिलन की हड़बड़ी में पार्टनर की भावनाओं की परवा किए बगैर युवा गलती कर बैठते हैं. इसलिए जब तक साथी मिलन के लिए पूरी तरह तैयार न हो उस पर बिलकुल दबाव न डालें.

बेसब्र होने के बजाय धीरज से पार्टनर के पास जाएं. बातचीत करें. उस के शौक, चाहत, लक्ष्य आदि के बारे में बात करें.

अगर पार्टनर अपने अतीत के बारे में स्वयं कुछ बताना चाहे तो ठीक अन्यथा कुरेदकुरेद कर उस के अतीत को जानने का प्रयत्न न करें.

पार्टनर के हावभाव, तेवर व आंखों की भाषा पढ़ने की कोशिश करें, उसे जो पसंद हो, वही करें. अपनी चौइस उस पर न थोपें.

आप की पार्टनर अपने घर को अलविदा कह कर आप के घर में  सदा के लिए आ गई है, ऐसे में जल्दबाजी में संबंध बनाने के बजाय उस का विश्वास जीतने की कोशिश करें व सामीप्य बढ़ाएं.

संभव हो तो अपने परिवार के सदस्यों के बारे में उस की पसंदनापसंद, स्वभाव, प्रवृत्ति तथा घर के तौरतरीकों के बारे में हलकीफुलकी बातें कर सकते हैं.

पार्टनर की कमियां निकालने के बजाय उस की खूबियों की चर्चा करें, फिर देखिए मिलन की रात कैसे सुपर रात बनती है.

इन बातों का भी रखें ध्यान 

  1. अपने बैडरूम का दरवाजा खिड़की अच्छी तरह बंद करें. उन्हें खुला बिलकुल न छोड़ें.
  2. ड्रिंक न करें, जरूरी हो तो ओवरडोज से बचें. नशा सारी खुमारी पर पानी फेर सकता है.
  3. कमरे में तेज रोशनी न करें. हलके गुलाबी या रैड लाइट वाले जीरो वाट के बल्ब का इस्तेमाल करें.
  4. पार्टनर के साथ जोरजबरदस्ती बिलकुल न करें. उसे प्यार से तैयार करें. पहले बातचीत से नजदीक आएं फिर मिलन के लिए आलिंगनबद्ध करें व बांहों के आगोश में समा जाएं.
  5. भारीभरकम वैडिंग गाउन, लहंगे, साड़ी पहनने से बचें. हलकेफुलके नाइट गाउन को तरजीह दें. सैक्सी अंत:वस्त्र ऐसे में माहौल को रोमानियत प्रदान करते हैं.
  6. रूम फ्रैशनर का प्रयोग करें पर जरूरत से ज्यादा नहीं. हो सकता है आप के पार्टनर को इस से ऐलर्जी की समस्या हो.
  7. बैड की पोजिशन जरूर चैक करें. ज्यादा आवाज करने वाले बैड आप को इम्बैरेंस कर सकते हैं.

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तकरार है जहां, प्यार है वहां

पति पत्नी के रिश्ते में कहा जाता है कि छोटीमोटी प्यार भरी तकरार तो होती ही रहती है. हम यहां बात कर रहे हैं उन खास मुद्दों की जिन पर अकसर प्यार भरी तकरार होती रहती है:

महिलाओं में सरप्राइज का क्रेज:

पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में सरप्राइज का क्रेज ज्यादा पाया जाता है. ऐसे में वे अकसर इस बात पर झगड़ा करती हैं कि अब उन के पति ने उन्हें सरप्राइज देना बंद कर दिया है. हालांकि यह बात बहुत मामूली है, पर मामूली झगड़े की वजह बन जाती है और कभीकभी यह झगड़ा बड़ा भी हो जाता है.

अति व्यस्तता:

पत्नी पति की अति व्यस्तता से भी परेशान हो जाती है. पति के छुट्टी ले कर उसे समय न देने पर वह जी भर कर लड़ती है. अगर यह छुट्टी की कमी कहीं उस के मायके के कार्यक्रम में शामिल न हो पाने की वजह बन जाए तो फिर तो पति को कोई नहीं बचा सकता.

सामान का जगह पर न मिलना:

पतियों को जो बात सब से ज्यादा परेशान करती है वह  है उन के सामान का जगह पर न मिलना. तब पति बेहद नाराज हो जाते हैं. अब भले ही पत्नी ने उसे ज्यादा सुरक्षित रखने या सफाई के लिए हटाया हो.  अब पहले वाला प्यार नहीं: यह एक कौमन प्रौब्लम है. अगर पतिपत्नी दोनों वर्किंग हैं, तो अति व्यस्तता दोनों के बीच के रोमांस को उड़ा देती है. दोनों एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप करते रहते हैं.

कपड़ों को बेतरतीब रखना:

यह शाश्वत जंग का विषय है. गीले तौलिए, गंदे मोजों या फिर कपड़ों को इधरउधर डालने पर यह जंग अकसर हो जाती है.  दोस्तों से प्यार: पत्नी को सब से ज्यादा परेशानी पति के दोस्तों से होती है, जिन के साथ वक्त गुजारने में पति कई बार अपनी पत्नी को इग्नोर कर देता है. ऐसे में पत्नी का यह शिकायत करना बनता ही है कि उस के लिए तो पति के पास समय ही नहीं है.

हरदम चिकचिक करना:

यह भी बहुतायत से पाई जाने वाली शिकायत है पतिपत्नी के बीच कि घर में जितनी देर रहते हैं मुंह बना रहता है जबकि बाहर के लोगों से खूब हंस कर बातें की जाती हैं.

क्या पकाऊं:

यह पत्नियों की बड़ी समस्या है और पतियों की शिकायत कि जब देखो एक  ही चीज पका देती हो. यह लड़ाई की स्थाई  वजह भी है.

कोई रिश्ता परफैक्ट नहीं:

सचाई यह है कि कोई भी रिश्ता परफैक्ट नहीं होता. यदि आप यह सोचती हैं कि रिश्ते में सब कुछ आप की मरजी के अनुसार या किसी फिल्मी कहानी की तरह होना चाहिए, तो चोट लगनी लाजिम है. हर रिश्ता अलग होता है. यही नहीं हर रिश्ते को आप के प्यार, समर्पण, श्रम और साथ के खादपानी की जरूरत होती है. कई बार रिश्ता टूटने की वजह बेमानी उम्मीदें होती हैं.

वह हमेशा सही बातें कहेगा:

ऐसा नहीं होगा और न ही आप उस से ऐसी उम्मीद रखें क्योंकि कोई भी परफैक्ट नहीं होता है. और पति न ही किसी रोमानी फिल्म का हीरो है, जो हमेशा सही और अच्छी बातें ही करेगा. वह भी इनसान है. और आम इनसानों की तरह वह भी गलतियां करेगा. वह ऐसी बातें कह सकता हैं, जो उसे नहीं कहनी चाहिए थीं. कई बार बातें गलत अर्थ में बाहर आती हैं. अगर ऐसी बातें कभीकभार हों तो ज्यादा दिल से न लगाएं. अगर ऐसा नियमित होता है, तो आप को सोचने की जरूरत है.

हम साथ में हमेशा खुश रहेंगे:

माफ कीजिएगा यह हकीकत नहीं है. भविष्य के गर्भ  में  छिपा है यह कोई नहीं जानता. जीवन में अजीब चीजें होती हैं. हो सकता है कि आप  दोनों में से कोई एक बीमार पड़ जाएं. अपने रिश्ते के हर पल का आनंद उठाने का प्रयास करें. जरूरी नहीं प्रेम कहानी किसी परीकथा सी चलती रहे. उतारचढ़ाव आ सकते हैं. आप को उन के लिए तैयार रहने की जरूरत होती है.

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दुखों में हिम्मत न हारें

3 साल पहले जब 30 वर्षीय शुभि गोयल ने अपने 40 दिन के बेटे को खो दिया, तो जैसे उस की दुनिया ही उजड़ गई. सांस की तकलीफ से बेटा इस दुनिया में आते ही चला गया. यह एक अपूर्णीय क्षति थी और उसे अब इस दुख के साथ जीना था. 1 हफ्ते बाद ही अपने बेटे के लिए खरीदे गए कपड़े और खिलौने ले कर वह एक बालाश्रम चली गई. वह पहली बार किसी अनाथालय गई और इस अनुभव ने उस का जीवन ही बदल दिया.  वहां शुभि ने बहुत कुछ देखा. 1-1 दिन के बच्चे की बात सुनी, जिन्हें कूड़े के ढेर से लाया गया था. क्रूरता के शिकार अनाथ बच्चे उस की तरफ देख कर मुसकरा रहे थे. वे बच्चे शुभि का दुख नहीं जानते थे पर कोई उन से मिलने आया है, यह देख कर ही वे खुश थे. उसी समय उस ने उन बच्चों के साथ और ज्यादा समय बिताने का फैसला कर लिया.

शुभि बताती हैं, ‘‘ये वे दिन थे जब मैं सोचा करती थी कि मेरे साथ ही यह क्यों हुआ. जब भी किसी मां को अपने छोटे बच्चे के साथ देखती थी, मुझे अधूरापन लगता था. मैं ने अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, जिन के बच्चे होते थे, उन से मिलना बंद कर दिया था. मुझे अपना बेटा याद आने लगता था. मैं कल्पना करती थी कि मेरा बेटा अब इतना बड़ा हो गया होता. मैं अपनेआप को बहुत असहाय महसूस करने लगी थी.’’  शुभि को यह भी पता चला कि जिन के बच्चे हो गए हैं, उन दोस्तों ने यह खबर शुभि से छिपाई है, तो उसे बहुत दुख हुआ.

शुभि आगे कहती हैं, ‘‘जब आप स्वयं  को ठगा सा समझते हैं, तो सहानुभूति भी चाकू की तरह लगती है पर अब मैं समझी हूं कि मेरी दोस्त मुझे तकलीफ से बचाने की कोशिश कर रही थीं.’’

साइकोथेरैपिस्ट और काउंसलर डाक्टर सोनल सेठ साफ करती हैं, ‘‘वे लोग जिन्होंने हाल ही में कोई दुख या नुकसान सहा है, वे दूसरों को अच्छा समय बिताते देख कर डिप्रैशन में आ सकते हैं. ऐसा उन के जीवन में आया खालीपन और दूसरों के जीवन की पूर्णता महसूस कर विरोधाभास के कारण होता है.’’

दुख से उबरने की सीमा

हर व्यक्ति के किसी दुख से उबरने की सीमा अलगअलग होती है, जैसे कि 40 वर्षीय तनु शर्मा, जो एक प्रतिष्ठित कंपनी में प्रोडक्ट मैनेजर हैं, आजकल मैटरनिटी ब्रेक पर हैं. जब तनु ने प्रेमविवाह किया तो उन्हें लगा, यह उन की परफैक्ट लवस्टोरी है.  बहुत लंबे समय तक झेली गई मानसिक यंत्रणा याद करते हुए तनु कहती हैं, ‘‘विवाह के थोड़े दिनों बाद ही मैं ने महसूस कर लिया कि  मेरे पति में बहुत गुस्सा है और उन का अपने गुस्से पर जरा भी कंट्रोल नहीं है. मैं बारबार  झूठे वादों पर यकीन करती रही. कई सैकंड  चांस देने के बाद भी उन के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया.  घरेलू हिंसा की कई घटनाओं के बाद  अंत में मैं वहां से भाग आई. मैं कुछ न कर  पाने की स्थिति में खुद पर ही नाराज थी, मैं  सिर्फ दुनिया को दिखाने के लिए मुसकराती  रहती थी. अपनी परेशानी किसी से कह भी  नहीं पा रही थी. मुझे सामान्य होने में बहुत  समय लगा.’’

डाक्टर सेठ कहती हैं, ‘‘एक दुखी  व्यक्ति दुख और हानि की 5 अवस्थाओं से गुजरता है, डिनायल, गुस्सा, बारगनिंग,  डिप्रैशन और स्वीकृति. मिलीजुली भावनाएं  रहना सामान्य है.’’

फौरगैट ऐंड स्माइल

चाहे किसी रिश्ते का अंत हो या किसी करीबी की मृत्यु, आगे बढ़ना आसान नहीं है.  तनु बताती हैं, ‘‘मैं जीवन में अपने मातापिता  की पौलिसी फौलो करती हूं, फौरगिव, फौरगैट और स्माइल. इस से आप को दर्द सहने में  और आगे बढ़ने में मदद मिलती है. अपने  दोस्तों से रोज बात करना बहुत महत्त्वपूर्ण है.  चाहे कुछ भी हो, अपने करीबी लोगों से जरूर बात करें.’’  तनु शर्मा की उन के दोस्तों ने बहुत मदद की. वे कहती हैं, ‘‘दोस्तों ने मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ा. अब उन्हें मेरी बेबीसिटिंग नहीं  करनी पड़ती, अब धीरेधीरे मैं ने खुश रहना  सीख लिया है.’’

डाक्टर सेठ सलाह देती हैं, ‘‘हर व्यक्ति  की जरूरतें अलगअलग होती हैं. यदि आप सोशल गैदरिंग में अनकंफर्टेबल हैं, तो यह  कहना उचित रहता है कि मुझे अभी अकेले  रहने की जरूरत है, सो प्लीज, ऐक्सक्यूज मी. फिर भी ध्यान रखें, अकेलेपन में आप  नकारात्मक विचारों से घिर सकते हैं. ऐसी  स्थिति में अपने दोस्त या किसी फैमिली मैंबर  के साथ या किसी काम में खुद को व्यस्त रखना सब से अच्छा रहता है.’’

अपराधबोध न पालें

डाक्टर सेठ बताती हैं कि उन की एक  30 वर्षीय क्लाइंट इस अपराधबोध में घिर गई  थी कि वह अपने पति की मृत्यु के बाद  पहला नया साल अपने दोस्तों के साथ बिता  कर मना रही थी. मैं ने उसे समझाया कि  फोकस इस दुख पर नहीं, बल्कि अपने पति  की यादों पर रखो. वे भी तुम्हें खुश ही  देखना चाहेंगे.  35 वर्षीय वैडिंग फोटोग्राफर कविता अग्रवाल को 2 दुखों का सामना करना पड़ रहा था. उस के छोटे भाई की ऐक्सीडैंट में डैथ हो  गई थी और उस का तलाक का केस भी चल रहा था. वे कहती हैं, ‘‘मेरे भाई के जाने के बाद मुझे लगा जैसे मैं ने अपने बच्चे को खो दिया है. जब मैं विवाह या किसी और खुशी के अवसर पर शूटिंग करती थी, भाईबहनों का प्यार देख कर मुझे हमेशा अपने भाई की याद आती थी. उस मुश्किल समय में मेरे परिवार ने हमेशा एकदूसरे को सहारा दिया.’’

शुभि गोयल अब सांताक्रूज में स्पैशल  बच्चों के लिए बने आश्रम में जाती हैं. वे कहती हैं, ‘‘जब भी मैं अपने बेटे को याद करती हूं या अधूरापन महसूस करती हूं, फौरन अपने सोचने की दिशा बदलने की कोशिश करती हूं. मेरे बच्चे के दुख ने मुझे उदार बना दिया है. अब मैं इन स्पैशल बच्चों पर अपना प्यार बांटती हूं और खुशी महसूस करती हूं.’’  जब परिवार या दोस्त किसी शोकाकुल व्यक्ति को किसी प्रोग्राम में आमंत्रित करना चाहें तो उन्हें अच्छी तरह सोच लेना चाहिए कि कैसे क्या करना है. डाक्टर सेठ सलाह देते हुए कहती हैं, ‘‘यदि किसी का दुख बिलकुल ताजा है और वह शोकसंतप्त है तो उसे किसी पार्टी में बुलाना बिलकुल उचित नहीं है.  यदि 2 या 3 महीने बीत गए हैं और  आप उस व्यक्ति की स्थिति का अंदाजा नहीं  लगा पा रहे हैं तो पहले उस से मिलें, सामान्य बातचीत करें. अंदाजा लगाएं कि वह अब  कैसा महसूस कर रहा है. फिर अगर आप  ठीक समझें, कोमलता से, स्नेह से स्पष्ट करें  कि आप जानते हैं कि यह उस के लिए मुश्किल समय है पर यदि वह ठीक महसूस करे तो आप उसे अपने प्रोग्राम में बुलाना चाहते हैं. जबरदस्ती न करें, दबाव न डालें. यदि वे तैयार नहीं हैं, तो उन की भावनाओं का सम्मान करें ओर अपना सहयोग दें.’’

समय अपनी गति से चलता रहता है. किसी प्रिय की मृत्यु या आर्थिक अथवा पारिवारिक कष्ट आते रहते हैं. आसान नहीं है पर आगे बढ़ना भी जरूरी होता है. याद रखें, काली से काली रात का भी सवेरा होता है. दूसरों के दुखों में अपना सहयोग दें, स्नेहपूर्वक उन का हौसला बढ़ाते रहें. ऐसे समय में परिवार और दोस्तों का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान होता है. कभी किसी के दुख में शामिल होने से पीछे न हटें.

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रिश्ते में न बहके कदम

पिछले दिनों एक समाचारपत्र में खबर आई थी कि एक विवाहित महिला का एक युवक से प्रेमसंबंध चल रहा था. दुनिया की आंखों में धूल झोंक कर दोनों अपने इस संबंध का पूरी तरह से आनंद उठा रहे थे. महिला के घर में सासससुर, पति और उस के 2 बच्चे थे. पति जब टूअर पर जाता था, तो सब के सो जाने पर युवक रात में महिला के पास आता था. दोनों खूब रंगरलियां मना रहे थे.

एक रात महिला अपने प्रेमी के साथ हमबिस्तर थी, तभी उस का पति उसे सरप्राइज देने के लिए रात में लौट आया. आहट सुन कर महिला और युवक के होश उड़ गए. महिला ने फौरन युवक को वहां पड़े एक खाली ट्रंक में लिटा कर उसे बंद कर दिया. पति आ गया. वह उस से सामान्य बातें करती रही. काफी देर हो गई. पति को नींद नहीं आ रही थी. महिला को युवक को ट्रंक से बाहर निकालने का मौका ही नहीं मिला. बहुत घंटों बाद उस ने ट्रंक खोला. ट्रंक में दम घुटने से युवक की मृत्यु हो चुकी थी.

उस के बाद जो हुआ, उस का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. चरित्रहीनता का प्रत्यक्ष प्रमाण, तानेउलाहने, पुलिस, कोर्टकचहरी, परिवार, समाज की नजरों में जीवन भर के लिए गिरना. क्या कुछ नहीं सहा उस महिला ने. बहके कदमों का दुष्परिणाम उस ने तो सहा ही, युवक का परिवार भी बरबाद हो गया. बहके कदमों ने 2 परिवार पूरी तरह बरबाद कर दिए.

कभी न भरने वाले घाव

ऐसा ही कुछ मेरठ में हुआ. 2 पक्की सहेलियां कविता और रेखा आमनेसामने ही रहती थीं. दोनों की दोस्ती इतनी पक्की थी कि कालोनी में मिसाल दी जाती थी. दोनों के 2-2 युवा बच्चे भी थे. पता नहीं कब कविता और रेखा के पति विनोद एकदूसरे की आंखों में खोते हुए सब सीमाएं पार कर गए. कविता के पति अनिल और रेखा को जरा भी शक नहीं हुआ. पहले तो विनोद रेखा के साथ ही कविता के घर जाता था. फिर अकेले भी आने लगा.

कालोनी में सुगबुगाहट शुरू हुई तो दोनों ने बाहर मिलना शुरू कर दिया. बाहर भी लोगों के देखे जाने का डर रहता ही था. दोनों हर तरह से सीमा पार कर एक तरह से बेशर्मी पर उतर आए थे. अपने अच्छेभले जीवनसाथी को धोखा देते हुए दोनों जरा भी नहीं हिचकिचाए और एक दिन कविता और विनोद अपनाअपना परिवार छोड़ घर से ही भाग गए.

रेखा तो जैसे पत्थर की हो गई. अनिल ने भी अपनेआप को जैसे घर में बंद कर लिया. दोनों परिवार शर्म से एकदूसरे से नजरें बचा रहे थे. हैरत तो तब हुई जब 10 दिन बाद दोनों बेशर्मी से अपनेअपने घर लौट कर माफी मांगने का अभिनय करने लगे.

रेखा सब के समझाने पर बिना कोई प्रतिक्रिया दिए भावशून्य बनी चुप रह गई. बच्चों का मुंह देख कर होंठ सी लिए. विनोद को उस के अपने मातापिता और रेखा के परिवार ने बहुत जलील किया पर अंत में दिखावे के लिए ही माफ किया. सब के दिलों पर चोट इतनी गहरी थी कि जीवन भर ठीक नहीं हो सकती थी.

कविता को अनिल ने घर में नहीं घुसने दिया. उसे तलाक दे दिया. बाद में अनिल अपना घर बेच कर बच्चों को ले कर दूसरे शहर चला गया. लोगों की बातों से बचने के लिए, बच्चों के भविष्य का ध्यान रखते हुए रेखा का परिवार भी किसी दूसरे शहर में शिफ्ट हो गया. रेखा को विनोद पर फिर कभी विश्वास नहीं हुआ. दोस्ती से उस का मन हमेशा के लिए खट्टा हो गया. उस ने फिर किसी से कभी दोस्ती नहीं की. बस बच्चों को देखती और घर में रहती. विनोद हमेशा एक अपराधबोध से भरा रहता.

क्षणिक सुख

दोनों घटनाओं में अगर अपने भटकते मन पर नियंत्रण रख लिया जाता, तो कई घर बिखरने से बच जाते. कदम न बहकें, किसी का विश्वास न टूटे, इस तरह के विवाहेत्तर संबंधों में तनमन को जो खुशी मिलती है वह हर स्थिति में क्षणिक ही होती है. इन रिश्तों का कोई वजूद नहीं होता. ये जितनी जल्दी बनते हैं उतनी ही जल्दी टूट भी जाते हैं.

अपनी बेमानी खुशियों के लिए किसी के पति, किसी की पत्नी की तरफ अगर मन आकर्षित हो तो अपने मन को आगे बढ़ने से पहले ही रोक लें. इस रास्ते पर सिर्फ तबाही है, जीवन भर का दुख है, अपमान है. परपुरुष या परस्त्री से संबंध रख कर थोड़े दिन की ही खुशी मिल सकती है. ऐसे संबंध कभी छिपते नहीं.

यदि आप के वैवाहिक रिश्ते में कोई कमी, कुछ अधूरापन है तो अपने जीवनसाथी से ही इस बारे में बात करें, उसे ही अपने दिल का हाल बताएं. पति और पत्नी दोनों का ही कर्तव्य है कि अपना प्यार, शिकायतें, गुस्सा, तानेउलाहने एकदूसरे तक ही रखें.

स्थाई साथ पतिपत्नी का ही होता है. पतिपत्नी के साथ एकदूसरे के दोस्त भी बन कर रहें तो जीने का मजा ही और होता है. अपने चंचल होते मन पर पूरी तरह काबू रखें वरना किसी भी समय पोल खुलने पर अपनी और अपने परिवार की तबाही देखने के लिए तैयार रहें.

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