जवाब ब्लैकमेल का

कहानी- विनय कुमार पाठक

रमासन्न रह गई. उस के मोबाइल पर व्हाट्सऐप पर किसी ने उस के अंतरंग क्षणों का वीडियो भेजा था और साथ में यह संदेश भी कि यदि वह इस वीडियो तथा इस तरह के और वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड होते नहीं देखना चाहती तो उस के साथ उसे हमबिस्तर होना पड़ेगा और वह सबकुछ करना पड़ेगा जो वह

उस वीडियो में बड़े प्यार और कुशलता से कर रही है.

वह घर में फिलहाल अकेली थी. प्रकाश औफिस जा चुका था. वह शाम 7 बजे के बाद

ही घर लौटता है. क्या करे, वह समझ नहीं पा रही थी. ‘प्रकाश को फोन करूं क्या?’ उस ने सोचा.

नहीं, पहले समझ तो ले मामला क्या है मानो उस ने खुद से कहा. उस ने वीडियो क्लिप को ध्यान से देखा. कहीं यह वीडियो डाक्टर्ड तो नहीं? किसी पोर्न साइट में उस के चेहरे को फिट कर दिया गया हो शायद. पर नहीं. यह डाक्टर्ड वीडियो नहीं था. वीडियो में साफसाफ वही थी. दृश्य भी उस के बैडरूम का ही था

और उस के साथ जो पुरुष था वह भी प्रकाश ही था. बैडशीट भी उस की थी. इतनी कुशलता से कोई कैसे पोर्न वीडियो में तबदीली कर सकता है?

प्रकाश ओरल सैक्स का दीवाना था. वह तो पहले संकोच करती थी पर धीरेधीरे उस की झिझक भी मिट गई थी. अब वह भी इस का भरपूर आनंद लेने लगी थी. साथ ही प्रकाश उन क्षणों का आनंद रोशनी में ही लेना चाहता था. फ्लैट में और कोई था नहीं. अत: अकसर वे रोशनी में ही यौन सुख का आनंद लेते थे.

वीडियो में वह प्रकाश के साथ थी और बैडरूम के ठीक सामने स्विचबोर्ड भी साफसाफ दिख रहा था. पर ऐसा कैसे हो सकता है? यह दृश्य तो लगता है किसी ने जैसे कमरे में सामने खड़े हो कर फिल्माया है. उस का सिर चकराने लगा. उस की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था.

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तभी उस के दिमाग में एक विचार कौंधा. ट्रूकौलर पर उस ने उस नंबर को सर्च किया, जिस से वीडियो क्लिप भेजा गया था. देवेंद्र महाराष्ट्र. ट्रूकौलर पर यही सूचना थी. देवेंद्र कौन हो सकता है? क्या इस नंबर पर कौल कर पता करे या फिर प्रकाश से बोले. वह कोई निर्णय कर पाती उस के पहले ही उस के मोबाइल की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो.’’

‘‘भाभीजी नमस्कार, आशा है वीडियो आप को पसंद आया होगा. ऐसे कई वीडियो हैं हमारे पास आप के. कम से कम 25. कहो तो इन्हें सोशल मीडिया पर अपलोड कर दूं?’’

‘‘कौन हो तुम और क्या चाहते हो?’’

‘‘बहुत सुंदर प्रश्न किया है आप ने. कौन हूं मैं और क्या चाहता हूं? कौन हूं यह तो सामने आने पर पला चल जाएगा और क्या चाहता हूं

यह तो वीडियो क्लिप के साथ मैं ने बता दिया है आप को. सच पूछो भाभीजी तो आप के वीडियो का मैं इतना दीवाना हूं कि मैं ने तो पोर्न साइट देखना ही छोड़ दिया है. आप तो पोर्न सुपर स्टार को भी मात कर देती हैं. आप ने मुझे अपना दीवाना बना लिया है.’’

रमा समझ नहीं पाई कि क्या किया जाए. गुस्सा तो उसे बहुत आ रहा था पर उस से ज्यादा उसे डर लग रहा था कि कहीं सचमुच उस ने सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड कर दिया तो वह क्या करेगी. फिर उस

ने एक उपाय सोचा और उस के अनुसार उसे जवाब दिया, ‘‘देखो, मैं तैयार हूं पर इस के लिए सुरक्षित जगह होनी चाहिए.’’

‘‘आप के घर से सुरक्षित जगह और क्या होगी? प्रकाशजी तो रात में ही वापस आते हैं न?’’

रमा चौंक पड़ी. मतलब वीडियो भेजने वाला प्रकाश का नाम भी जानता है और वह कब आता है यह भी उसे पता है.

‘‘आते तो 7 बजे के बाद ही हैं पर औफिस तो इसी शहर में है. कहीं बीच में आ गए तो फिर मेरी क्या हालत होगी? 2 दिनों के बाद वे अहमदाबाद जाने वाले हैं 1 सप्ताह के लिए. इस बीच में आप की बात मान सकती हूं.’’

‘‘अरे, वाह आप तो बड़ी समझदार निकलीं. मैं तो सोच रहा था आप रोनाधोना शुरू कर देंगी.’’

‘‘बस, आप वीडियो किसी को मत दिखाइए और मेरे मोबाइल पर कोई वीडियो मत भेजिए. ये कहीं देख न लें… इसे मैं डिलीट कर रही हूं.’’

‘‘जैसे 1 डिलीट करेंगें वैसे ही 5 भी डिलीट कर सकती हैं. मैं कुछ और वीडियो भेजता हूं. देख तो लीजिए आप कितनी कुशलतापूर्वक काम को अंजाम देती हैं. देख कर आप डिलीट कर दीजिएगा. इन वीडियोज ने तो मेरी नींद उड़ा दी है. इंतजार रहेगा 2 दिन बीतने का. हां, कोईर् चालाकी मत कीजिएगा. मुझे अच्छा नहीं लगेगा कि दुनिया आप की इस कलाकारी को देखे. रखता हूं.’’

फोन डिसकनैक्ट हो गया. कुछ ही देर में एक के बाद एक कई क्लिप उस के मोबाइल पर आते गए. उस ने 1-1 क्लिप को देखा. ऐसा लग रहा था मानो कोई अदृश्य हो कर उन के क्रीड़ारत वीडियोज बना रहा था. शाम को प्रकाश आया तो रमा का चेहरा उतरा हुआ था. ‘‘तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’ प्रकाश ने टाई की नौट ढीली करते हुए पूछा. ‘‘तबीयत बिलकुल ठीक नहीं है, बड़ी मुसीबत में हूं. दिनभर सोचतेसोचते दिमाग भन्ना गया है,’’ रमा ने तौलिया और पाजामा उस की ओर बढ़ाते हुए कहा. ‘‘कितनी बार तुम्हें सोचने के लिए मना किया है. छोटा सा दिमाग और सोचने जैसा भारीभरकम काम,’’ कपड़े बदलते हुए प्रकाश ने चुटकी ली.

‘‘पहले फ्रैश हो लो, चायनाश्ता कर लो, फिर बात करती हूं,’’ रमा ने कहा और फिर रसोई की ओर चल दी.

प्रकाश फ्रैश हो कर बाथरूम से आ कर नाश्ता कर चाय पीने लगा. रमा चाय का कप हाथ में लिए उदास बैठी थी.

‘‘हां, मुहतरमा, बताइए क्या सोच कर अपने छोटे से दिमाग को परेशान कर रही हैं?’’ प्रकाश ने यों पूछा मानो वह उसे किसी फालतू बात के लिए परेशान करेगी.

जवाब में रमा ने अपना मोबाइल फोन उठाया, स्क्रीन को अनलौक किया और उस वीडियो क्लिप को चला कर उसे दिखाया.

वीडियो देख प्रकाश भौचक्का रह गया, ‘‘यह… क्या है?’’

‘‘कोई देवेंद्र है, जिस ने मुझे यह क्लिप भेजा है. इसे सोशल साइट पर अपलोड करने की धमकी दे रहा था. अपलोड न करने के लिए वह मेरे साथ वही सब करना चाहता है जो वीडियो में मैं तुम्हारे साथ कर रही हूं. मैं ने उस से 2 दिन की मोहलत मांगी है. उस से कहा है कि 2 दिन बाद तुम अहमदाबाद जा रहे हो. उस दौरान उस की मांग पूरी की जाएगी.’’

प्रकाश 1-1 क्लिप को देख रहा था. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि कैसे कोई इतना स्पष्ट वीडियो बना सकता है. उस ने अपने बैड के पास जा कर देखा. कहीं कोई गुप्त कैमरा लगाने की गुंजाइश नहीं थी और कोई गुप्त कैमरा लगाता कैसे. घर में तो किसी अन्य के प्रवेश करने का प्रश्न ही नहीं है. अपार्टमैंट में सिक्युरिटी की अनुमति के बिना कोई आ ही नहीं सकता. उस के प्लैट के सामने अपार्टमैंट का ही दूसरा फ्लैट था जो काफी दूर था. ‘‘हमें पुलिस को खबर करनी होगी,’’ प्रकाश ने कहा, ‘‘पर पहले एक बार खुद भी समझने की कोशिश की जाए कि मामला क्या है.’’ दोनों काफी तनाव में थे. खाना खा कर कुछ देर तक टीवी देखते रहे पर किसी चीज में मन नहीं लग रहा था. रात के 11 बजे दोनों सोने बैड पर गए, पर नींद आंखों से कोसों दूर थी. पतिपत्नी दोनों की ही इच्छा नहीं थी और दिनों की तरह रतिक्रिया में रत होने की. और दिन होता तो प्रकाश कहां मानता. मगर आज तनाव ने सबकुछ बदल दिया था.

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प्रकाश की बांहों में लेटी रमा कुछ सोच रही थी. प्रकाश छत को निहार रहा था. एकाएक प्रकाश को खिड़की के पास कोई संदेहास्पद वस्तु दिखाई दी. वह झपट कर खिड़की के पास गया. उस ने देखा सैल्फी स्टिक की सहायता से सामने वाले फ्लैट की खिड़की से कोई मोबाइल से उन की वीडियोग्राफी कर रहा था. प्रकाश तुरंत बाहर निकल कर उस फ्लैट में गया और डोरबैल बजाई. पर मोबाइल में शायद उस ने उसे बाहर निकलते हुए देख लिया था. काफी देर डोरबैल बजाने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला तो प्रकाश वापस आ गया. उस ने इंटरकौम से सोसाइटी के सचिव को फोन कर मामले की जानकारी दी. सचिव ने बताया कि उस में कोई देवेंद्र नाम का व्यक्ति रहता है और किसी प्राइवेट फर्म में काम करता है. इस तरह की घटना से सभी हैरान थे.

काफी कोशिश की गई देवेंद्र से बात करने की. पर न तो उस ने फोन उठाया न ही दरवाजा खोला. हार कर सिक्युरिटी को ताकीद कर दी गई कि उस व्यक्ति को सोसाइटी से बाहर न निकलने दिया जाए.

दूसरे दिन सुबह थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई और फिर देवेंद्र को गिरफ्तार कर लिया गया. ‘‘तुम ने बहुत अच्छा निर्णय लिया कि वीडियो के बारे में मुझे बता दिया. यदि उस के ब्लैकमेल के झांसे में आ जाती तो काफी मुश्किल होती और फिर वह न जाने कितने लोगों को इसी तरह ब्लैकमेल करते रहता,’’ प्रकाश ने बिस्तर पर लेटेलेटे रमा की कमर में हाथ डालते हुए कहा. रमा ने उस के हाथ को हटाते हुए कहा, ‘‘पहले खिड़की के परदे ठीक करो, बत्ती बुझाओ फिर मेरे करीब आओ.’’ प्रकाश खिड़की के परदे ठीक करने के लिए उठ गया.

3 सखियां: भाग-7

पिछला भाग- 3 सखियां: भाग-6

‘‘मैं आप के साथ हूं.’’ फिर एक दिन आभा को अचानक फेसबुक पर रितिका की खबर मिली. उस ने लिखा था, ‘तुम्हारा नाम फेसबुक पर देखा तो तुम से फिर संपर्क करने की तमन्ना हुई. युगों बीत गए तुम से बात किए या मिले हुए. अपना हालचाल बताना.’ आभा खुशी से उछल पड़ी. इतने सालों बाद अपनी सखी का संदेश पा कर वह भावुक हो गई. उस ने फौरन रितिका को फोन लगाया.

‘‘रितिका,’’ वह फोन पर चीखी.

‘‘आभा माई डियर, मैं बयान नहीं कर सकती कि मुझे तुम से बात कर के कितनी खुशी हो रही है. मैं ने सुना कि तू इंडिया आ गई है.’’

‘‘हां, और तू कहां है? इटली में?’’

‘‘अरे नहीं यार, इटली तो छूट चुका.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘यह एक लंबी कहानी है, ऐंटोनियो बड़ा फरेबी निकला.’’

‘‘क्या कह रही है तू?’’

‘‘हां आभा. उस ने मुझे बड़ा धोखा दिया.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘वह बड़ा झूठा था. वह गले तक कर्ज में डूबा हुआ था. उस का महल भी गिरवी पड़ा था.’’

‘‘तो उस का काम कैसे चलता था?’’

‘‘पता नहीं. उस ने मुझे अपने महल में टिका दिया. शुरूशुरू में वह मुझ से बहुत प्यार जताता था. पर जब उसे पता चला कि मैं इंडियन हूं पर किसी रियासत की राजकुमारी नहीं और न ही मेरे पास अगाध दौलत है जिसे वह हथिया सके, तो उस ने मेरी ओर से आंखें फेर लीं. उस ने गिरगिट की तरह रंग बदला. वह महीनों घर से गायब रहता. न मेरा हाल पूछता न अपने बारे में कुछ बताता. धीरेधीरे मुझे उस की असलियत मालूम हुई. उस के पास आमदनी का कोई जरीया नहीं था. वह अमीर औरतों को अपने जाल में फांसता था और उन से पैसे ऐंठता था. यही उस की जीविका का आधार था और यही उस का पेशा था. दरअसल, वह एक जिगोलो था. वह पैसे के लिए अपना तन बेचता था. भला ऐसे आदमी के साथ मैं कैसे रह सकती थी? उस ने तो मुझे भी धंधे में झोंकने की कोशिश की.’’

‘‘ओह नो.’’

‘‘हां. जब मुझे उस के नापाक इरादों की भनक मिली तो मैं चौकन्नी हो गई. मैं ने वहां से भागने का प्लान बनाया. हालांकि यह काम इतना आसान नहीं था. फिर भी मैं ने घर की एक बुढि़या नौकरानी को अपने कुछ गहने दिए और उस की मदद से मैं ने एक नाव किराए पर ली और नदी पार की. रोम पहुंच कर मैं सीधे इंडियन ऐंबैसी की शरण में गई. वहां अपनी राम कहानी सुनाई और फिर भारत वापस पहुंची. अब मैं अपनी मां के साथ रहती हूं, बिलकुल अकेली. न कोई संगी न साथी,’’ उस ने बुझे स्वर में कहा. ‘‘रितिका तेरी कहानी सुन कर तो रोना आता है. अभी तेरी उम्र ही क्या है. ये पहाड़ जैसी जिंदगी किस के सहारे काटेगी? बुरा न मान तो एक बात कहूं, तू दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेती?’’

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‘‘दूसरी शादी? राम भजो. 2 बार कर के तो पछता रही हूं. नहीं, शादी का सुख मेरी जिंदगी में नहीं है और इत्तफाक से बच्चे भी नहीं हुए, नहीं तो उन के लिए ही जी लेती. जब तक मां हैं हम दोनों एकदूसरे के सहारे दिन काट रही हैं. आगे की देखी जाएगी.’’

‘‘तब तेरा समय कैसे कटता है?’’

रितिका ने एक आह भरी और कहा, ‘‘कट ही जाता है किसी तरह. सुबह होती है शाम होती है, जिंदगी यों ही तमाम होती है. दरअसल, हालात ही कुछ ऐसे बने कि मेरी कायापलट हो गई. वैसे कहते हैं कि शादी एक जुआ है. पर मैं तो कहूंगी कि जिंदगी एक जुआ है. किसी को बैठेबिठाए, अनायास ही जीवन की हर खुशी मिल जाती है. उस के सिर पर जीत का सेहरा लग जाता है और कोई आजीवन झींकता रहता है, संघर्ष करता रहता है पर उस के मन की एक भी मुराद पूरी नहीं होती. कभीकभी लगता है कि दुनिया हमारी मुट्ठी में है पर दूसरे ही क्षण पारे की तरह सब हाथ से फिसल जाता है. हम सब एक कठपुतली समान हैं और कोई अदृश्य शक्ति हमें नचाती रहती है. खैर छोड़ न यार, कोई और बात कर. हां, अपनी सखी शालिनी की सुना. उस के क्या हालचाल हैं?’’

‘‘उस की कुछ न पूछ,’’ आभा ने एक आह भर कर कहा.

‘‘भला क्यों?’’

‘‘वह अब इस दुनिया में नहीं है.’’

‘‘ये क्या कह रही है आभा? क्या हुआ था उसे?’’

‘‘कोई बीमारी नहीं थी उसे. उस के पति ने बहलाफुसला कर उसे वापस इंडिया भेजा और उस के लौटने के तुरंत बाद उसे तलाक के कागजात भेज दिए. उस के मांबाप तलाक देने के पक्ष में नहीं थे. पर शालिनी ने कागजात पर दस्तखत कर दिए. इस के बाद वह बिलकुल टूट सी गई. पार्थ को वह बहुत चाहती थी. वह बहुत गुमसुम रहने लगी. वह डिप्रैशन का शिकार हो गई और ड्रग्स भी लेने लगी. उस के मांबाप ने उस के लिए वर ढूंढ़ना शुरू कर दिया और एक अधेड़, दुहाजू वर तलाश भी कर लिया. फिर शालिनी को समझाबुझा कर शादी के लिए राजी भी कर लिया. पर शादी के एक दिन पहले शालिनी ने किसी ड्रग का ओवरडोज ले लिया. रात को सोई तो सोई ही रह गई.’’

‘‘हायहाय ये तो बहुत बुरा हुआ. बेचारी शालिनी.’’ ‘‘हां, समझ में नहीं आता कि उस की असमय मौत के लिए किसे दोष दें. उस के मांबाप की दकियानूसी सोच को, जो ये सोचते हैं कि शादी के बिना एक स्त्री का निस्तार नहीं है या उस के कू्रर पति को जिस ने उस के साथ वहशियाना बरताव किया और उस का जीना दूभर कर दिया या अपने समाज के संकीर्ण दृष्टिकोण को जो लड़कियों के प्रति हमेशा असहिष्णु रहा है और उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक समझता है. खैर यह तो हुई शालिनी की कहानी. अब किसी दिन तुझे फुरसत से अपने बारे में बताऊंगी. अब फोन रखती हूं.’’

‘‘ठीक है. पर तू मुझे जबतब फोन करती रहना. इस से मुझे बहुत आत्मबल मिलता है.’’

‘‘अवश्य,’’ कह कर आभा ने फोन रख दिया.

उस की नजर बाहर बैठे राम पर पड़ी जो बड़ी लगन से बच्चों को पढ़ा रहे थे. वह मुग्ध भाव से उन का सौम्य मुखमंडल ताकती रही. यदि सहचर मन मुताबिक मिले तो एक स्त्री का जीवन सफल हो जाता है. अगर शादी के जुए में उस का पांसा सही पड़ गया तो समझो उस के पौबारह हैं, उस ने भावविभोर हो कर सोचा.

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3 सखियां: भाग-6

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लंबाचौड़ा, भूरी आंखें, घनी बरौनियां, घुंघराले बाल और जब वह अपनी टूटीफूटी अंगरेजी में बात करता है तो और भी प्यारा लगता है.’’ आभा उसे एकटक देखती रही. फिर बोली, ‘‘ओह, रितिका तेरा क्या होगा? तू तो बचकानी हरकत कर रही है. तेरे इस प्यार का क्या अंजाम होगा कुछ सोचा भी है? जब निरंजन को इस बारे में पता चलेगा तो वे क्या कहेंगे?’’

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‘‘पता नहीं, लेकिन मैं बस इतना जानती हूं कि ऐंटोनियो के बिना मेरा जीना मुश्किल है. निरंजन जब मेरे जीवन में आए तो वह महज एक समझौता था. वह शादी मैं ने सिर्फ पैसे के लिए की थी. लेकिन ऐंटोनियो के लिए मेरा प्यार एक जनून है, एक पागलपन है.’’

‘‘और तेरा ऐंटोनियो इस बारे में क्या कहता है?’’

‘‘वह भी मुझे जीजान से चाहता है. मुझ से शादी करना चाहता है.’’

‘‘शादी?’’ आभा चौंक पड़ी, ‘‘रितिका, शादी एक बहुत बड़ा कदम है. कहीं तू कुएं से निकल कर खाई में न गिर जाए. आखिर वह शख्स तेरे लिए अजनबी ही तो है. तू उस के बारे में कुछ भी तो नहीं जानती.’’ ‘‘जानती हूं. मैं ने सब पता लगा लिया है. ऐंटोनियो खानदानी रईस है. उस की रगों में शाही खून दौड़ रहा है. उस के पास बेशुमार दौलत है. इटली में रोम के पास ही एक टापू पर उस का महल है और वह अपने मातापिता का अकेला वारिस है. उस ने मुझे न्योता दिया है कि मैं इटली आऊं और उस के घर को देखूं, उस के परिवार से मिलूं.’’

‘‘और निरंजन का क्या होगा?’’

‘‘निरंजन को छोड़ना ही पड़ेगा. मैं ने तय कर लिया है कि मैं क्विक डाइवोर्स ले लूंगी जो फौरन मिल जाता है. फिर मैं इटली जाऊंगी और ऐंटोनियो से ब्याह कर लूंगी.’’ ‘‘देख रितिका जो भी करना जरा सोचसमझ कर करना और मुझ से वादा कर कि तू मुझे अपने बारे में खबर देती रहेगी.’’

‘‘अवश्य. तुझे नहीं बताऊंगी तो और किसे बताऊंगी? तू मेरी बैस्ट फ्रैंड है.’’ समय गुजरता रहा. आभा के यहां 2 प्यारेप्यारे बच्चे हो गए. वह अपनी घरगृहस्थी में पूरी तरह रम गई. अब उसे दम मारने की भी फुरसत नहीं थी. कभीकभी वह बुरी तरह थक जाती. जब राम घर आता तो वह शिकायत करती, ‘‘ओह, आज मेरा पैर बहुत दर्द कर रहा है पूरे 3 घंटे किचन में खड़ी रही.’’

‘‘ओहो, किस ने कहा था तुम्हें इतने सारे और्डर लेने को? लाओ मैं तुम्हारे पैर दबा दूं.’’

‘‘हटो कोई देखेगा तो कहेगा कि मैं अपने पति से पैर दबवा रही हूं.’’ क्या हुआ? आज बराबरी का युग है. तुम मेरे पैर दबाओगी तो मुझे भी तुम्हारे पैर दबाने पड़ेंगे.’’ क्या राम जैसे पुरुष भी इस संसार में होते हैं? उस ने सोचा. यदि राम ने उस की भावनाओं को न समझा होता, यदि वह उस के प्रति संवेदनशील न हुआ होता तो क्या आभा अपने सगेसंबंधियों से दूर अमेरिका में इतने दिनों रह पाती? पर राम के साथ ये चंद साल पलक झपकते बीत गए थे. एक दिन वह किचन में खड़ी खाना बना रही थी. उस ने चूल्हे पर कड़ाही चढ़ा कर उस में तेल उड़ेल दिया और अपनी एक सहेली से फोन पर बातें करने लगी. तेल गरम हो गया तो अचानक उस में आग लग गई. रसोईघर की छत तक लपटें उठने लगीं. लकड़ी की छत धूधू कर के जलने लगी और स्मोक अलार्म बजने लगा. आभा की चीख निकल गई. वह अपने बच्चों को ले कर घर से बाहर भागी. उस ने राम को फोन किया तो फौरन वह घर आया. फिर दमकल की गाडि़यां आईं और आग पर काबू पा लया गया.

‘‘बस बहुत हुआ,’’ राम ने उसे झिड़का, ‘‘अब तुम्हारा घरेलू व्यापार बंद. इस के चलते हमारा आशियाना जल कर खाक हो गया होता. शुक्र है कि घर जलने से बच गया.’’

‘‘और मेरे पास इतने सारे जो और्डर हैं उन का क्या होगा?’’

‘‘वे सब कैंसल…और एक खुशखबरी है तुम्हारे लिए.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘मेरा प्रमोशन हो गया. अब मैं अपनी कंपनी का वाइस प्रैसिडैंट हूं.’’

‘‘अरे वाह. यह तो बड़ी अच्छी खबर है.’’

‘‘हां. इस का मतलब है कि अब तुम्हें इतनी मेहनत करने की जरूरत नहीं. यह काम बंद करो और जरा बच्चों पर ध्यान दो. वे बड़े हो रहे हैं.’’ ‘‘ठीक है. पर अब किचन की मरम्मत कराने का उपाय करो नहीं तो वहां खाना बनाना मुश्किल होगा.’’

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‘‘वह सब छोड़ो. आज हम होटल में खाना खाऐंगे और अब हम नए घर में शिफ्ट होंगे. तुम्हारे लिए नई कार आएगी.’’ ‘‘सच? ओह राम तुम कितने अच्छे हो,’’ वह पति के गले से झूल गई, ‘‘पर पहले अपने लिए नई गाड़ी ले लो. तुम्हारी कार एकदम खटारा हो रही है.’’

‘‘नहीं, पहले मेमसाहब की गाड़ी खरीदी जाएगी.’’

‘‘लेकिन वाइस प्रैसिडैंट तो तुम बने हो.’’

‘‘वह ओहदा, रुतबा सब बाहर वालों के लिए. उन के लिए मैं मिस्टर राम कुमार हूं. अपनी कंपनी का कर्ताधर्ता. घर में तो तुम्हारा राज चलता है…मुझे यह बात कहने में जरा भी संकोच नहीं होता कि मेरी नकेल तुम्हारे हाथों में है. अगर तुम इस घर की बागडोर को कस कर नहीं पकड़तीं तो सब बिखर जाता. मैं भलीभांति जानता हूं कि इस घरपरिवार को सहेज कर रखने का और बच्चों की सही परवरिश का श्रेय तुम्हें ही जाता है. तुम सही अर्थों में मेरी सहधर्मिणी साबित हुईं और तुम्हारे इस सहयोग के लिए मैं हमेशा तुम्हारा आभारी रहूंगा.’’ आभा का तनमन पति के प्यार की ऊष्मा से ओतप्रोत हो गया. साल पर साल गुजरते गए.

एक दिन राम ने दफ्तर से लौट कर उस से कहा, ‘‘तुम्हारे लिए एक खुशखबरी है.’’

‘‘एक और प्रमोशन?’’ आभा चहकी.

‘‘नहीं, तुम तो जानती हो कि हम हिंदुस्तानियों को योग्य होने पर भी कंपनी का प्रैसिडैंट नहीं बनाया जाता. इस मामले में अमेरिकन बड़े घाघ होते हैं. खुशखबरी यह है कि हम इंडिया वापस जा रहे हैं.’’

‘‘अरे अचानक?’’

‘‘हां बहुत दिन वनवास काट लिया. अब अपनों के बीच दिन गुजारने की इच्छा हो रही है. मैं ने तय कर लिया है कि मैं रिटायरमैंट ले लूंगा. इतने दिनों अपने लिए खटता रहा अब दूसरों के लिए काम करूंगा.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि अब मैं अपने देशवासियों के लिए काम करूंगा. समाजसेवा. क्या समझीं? हमारे बच्चे बड़े हो गए हैं. अच्छा पढ़लिख रहे हैं. उन के बारे में हमें चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं. हम उन्हें यहां छोड़ कर वापस घर जाएंगे. मेरे गांव में अपनी पुश्तैनी जमीन है, एक जीर्णशीर्ण घर है, वहां बस जाएंगे. मैं सोच रहा हूं कि उस जमीन में बच्चों के लिए एक छोटा सा प्राइमरी स्कूल खोल देंगे. मुझे हमेशा पढ़ाने का शौक रहा है. मैं उन्हें पढ़ाऊंगा.’’

‘‘और मैं क्या करूंगी?’’

‘‘तुम उन बच्चों के लिए दोपहर का खाना बना कर भेजना. मैं विद्यादान करूंगा, तुम अन्नदान करना. इस से बढ़ कर पुण्य का काम और कोई नहीं है. क्यों, क्या कहती हो?’’

आगे पढ़ें- फिर एक दिन आभा को अचानक फेसबुक पर रितिका की खबर मिली…

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अब तक आप ने पढ़ा:

तीनों सहेलियों में एक आभा ही थी,  जो अपने जीवन और परिवार से खुश थी. एक दिन आभा को शालिनी ने फोन पर बताया कि उस के पति पार्थ उस पर बेइंतहा जुल्म करते हैं, तो उस ने पार्थ को समझाना चाहा. पर वह उलटे ही आभा से लड़ पड़ा. उधर रितिका का भी अपने पति से रिश्ता सामान्य नहीं था. रितिका एक दिन गहरी मुसीबत में फंसी तो उस ने आभा से मदद मांगी.

अब आगे पढ़ें:

मैं ने तय कर लिया है कि मैं निरंजन से क्विक डाइवोर्स ले लूंगी. फिर इटली जाऊंगी और ऐंटोनियो से शादी कर लूंगी… फिर एक दिन आभा को अचानक फेसबुक पर रितिका की खबर मिली.जबशालिनी का पति वापस लौटा तो आभा ने उसे फोन किया.

आप फिर हमें परेशान करने लगीं,’’ पार्थ का स्वर तीखा हुआ.

‘हां और ये मेरी आखिरी वार्निंग है. अगर मैं ने यह सुना कि आप ने फिर अपनी पत्नी को मारापीटा है तो मैं सीधे पुलिस के पास जाऊंगी. और मैं शालिनी के मांबाप को भी आप के बरताव के बारे में बताने वाली हूं.’’

‘‘शौक से. मैं तो यही चाहता हूं कि उन्हें मेरे बारे में पता चले और वे शालिनी को वापस बुला लें. मैं खुद उस औरत से पिंड छुड़ाना चाहता हूं.’’

आभा सकते में आ गई.

‘‘तो आप ने उस से शादी क्यों की?’’ उस ने सवाल किया.

‘‘यही तो मेरे जीवन की सब से बड़ी भूल है.’’ आभा निरुत्तर हो गई. एक दिन अचानक रितिका उस के यहां आ पहुंची.

‘‘अरे तू?’’ आभा हर्ष से चीखी.

‘‘हां मैं. कह रही थी न कि तुझ से मिलने आऊंगी सो देख आ धमकी.’’

आभा उस की ओर मंत्रमुग्ध सी देखती बोली, ‘‘तेरा रंग तो और भी निखर गया. खूबसूरत तो तू थी ही पर अब तो और ज्यादा आकर्षक हो गई है.’’ रितिका हंस दी.

आभा ने उसे बैठा कर उस की पसंद का खाना खिलाया. फिर दोनों सखियां बैडरूम में बैठ कर गपशप करने लगीं.

‘‘अब सुना तेरी कैसी निभ रही है?’’ आभा ने पूछा.

‘‘अब तक तो सब अच्छा ही चल रहा था पर आगे की नहीं कह सकती,’’ रितिका ने अपने कंधे उचकाए.

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मुझे मेरे पति से कोई शिकायत नहीं थी सिवाए इस के कि वे अपने काम को ले कर बहुत व्यस्त रहते थे. उन के पास मेरे लिए बिलकुल समय नहीं था. पर इस बात को ले कर मैं ज्यादा परेशान नहीं थी, क्योंकि उन का काम ही ऐसा था. एक दिन में लाखों के वारेन्यारे होते थे. जब उन के पास पैसे होते थे तो वे मुझे नोटों की गड्डी पकड़ा कर कहते थे कि लो ऐश करो. पर अब अचानक एक नई समस्या खड़ी हुई है. निरंजन के ऊपर केस चलने वाला है.’’

‘‘ये क्या कह रही है तू?’’

‘‘हां, निरंजन ने जल्द से जल्द पैसा कमाने की जुगत में कुछ गलत काम कर दिया. क्या कहते हैं उसे…‘इनसाइडर ट्रेडिंग तू समझती है न? उन्हें पहले से खबर लग जाती थी कि किस शेयर का भाव बढ़ने या गिरने वाला है और वे चुपचाप अपने लिए शेयर खरीद या बेच लेते थे. इस तरह उन्होंने अच्छीखासी रकम खड़ी कर ली. पर आखिरकार पकड़े गए. चूंकि ऐसा करना कानूनन जुर्म है, वे कानून के शिकंजे में आ गए हैं. उन पर मुकदमा चलेगा?’’ आभा स्तंभित हुई, ‘‘यह तो बड़ा बुरा हुआ. अब क्या होगा?’’

‘‘निरंजन पर मुकदमा चलेगा. हार गए तो उन्हें जेल हो सकती है.’’

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‘‘क्या कहती है तू?’’

‘‘सच कह रही हूं.’’

‘‘रितिका ये तो बड़ी बुरी खबर सुनाई तू ने. कितने मजे में तेरी जिंदगी गुजर रही थी. क्या इस मुसीबत से बचने का कोई रास्ता नहीं है?’’

‘‘लगता तो नहीं है.’’

रितिका उदास मुद्रा में बैठी कौफी के कप में चम्मच डुलाती रही.

‘‘अब तू क्या करेगी?’’

‘‘समझ में नहीं आता कि क्या करूं. सोचती हूं निरंजन को उन के हाल पर छोड़ दूं, उन्हें तलाक दे दूं और अपने घर का रास्ता नापूं.’’

‘‘क्या कह रही है तू? अपने पति को इस हालत में छोड़ देगी?’’

‘‘और मैं कर ही क्या सकती हूं, तू ही बता? जब वे सजा काटेंगे तो मैं अकेले कैसे निर्वाह करूंगी? मैं ने यहां आज तक नौकरी नहीं की है और कोशिश भी करूं तो मुझे एक मेड की नौकरी से अधिक कुछ नहीं मिलेगा.’’

‘‘तो?’’

‘‘मुझे लगता है कि घर ही लौटना पड़ेगा. इस के सिवा कोई चारा नहीं है. मेरे पिताजी का देहांत हो चुका है. मां बिलकुल अकेली पड़ गई हैं.’’ पहली बार आभा ने अपनी सखी को इतना उदास और मायूस देखा था. वह उस के लिए चिंतित हो गई.

थोड़ी देर बाद रितिका ने अपने आंसू पोंछे.

‘‘छोड़ भी यार,’’ उस ने अपने पहले वाले बिंदास अंदाज में कहा, ‘‘जो भी होगा देखा जाएगा. जब तक सांस तब तक आस. अभी से रोरो कर क्यों हलकान होऊं. चल जरा बाहर घूम कर आते हैं.’’ बाहर एक रेस्तरां में दोनों बैठ कर आपस में बतियाने लगीं. रितिका बोलने लगी, ‘‘तुझे एक भेद की बात बताऊं, मेरा एक नया दोस्त बन गया है.’’

‘‘अरे?’’ आभा उस का मुंह ताकने लगी.

‘‘हां, एक रोज मैं मौल के बाहर सड़क पर अपने खरीदे हुए सामानों से लदी खड़ी थी और टैक्सी की खोज में थी कि एक लाल रंग की स्पोर्ट्स कार मेरे पास आ कर रुकी. उस में बैठे युवक ने मुझ से पूछा कि मैडम आप को कहां जाना है? क्या मैं आप को कहीं ड्रौप कर सकता हूं?’’

‘‘मैं एक क्षण को चकरा  ई. फिर सोचा कि इस में हरज ही क्या है. वह नौजवान इतालवी बड़ा हैंडसम था और उस का नाम ऐंटोनियो था. उस ने मुझे घर छोड़ा और मैं ने शिष्टाचारवश उसे एक कप कौफी पीने का न्योता दिया. फिर हमारी बाकायदा मुलाकातें होने लगीं.’’

‘‘और तेरे पति को यह बात मालूम है?’’

‘‘नहीं, उन्हें ऐंटोनियो के बारे में कुछ नहीं मालूम. वे तो वकीलों और कोर्टकचहरी के चक्कर लगा रहे हैं. उन्हें खुद की भी सुध नहीं है. लेकिन मुझे ऐंटोनियो अच्छा लगने लगा था. वह करीब रोज ही मेरे यहां पहुंच जाता और अपनी कार में मुझे लौंग ड्राइव पर ले जाता. मेरा समय अच्छा गुजरता था. धीरेधीरे मुझे लगने लगा कि मैं और ऐंटोनियो एकदूसरे के करीब आ रहे हैं और अब ऐसा लगता है कि मैं उस के बिना रह नहीं सकती. ’’

‘‘अरे?’’

‘‘हां आभा, मैं उसे प्यार करने लगी हूं. पहली नजर में ही वह मुझे भा गया. तू उसे देखेगी तो गश खा जाएगी, इतना हैंडसम है वह.

आगे पढ़ें- आभा उसे एकटक देखती रही. फिर बोली…

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3 सखियां: भाग-4

आप जैसी स्त्रियों से मेरी पत्नी की निकटता मुझे गवारा नहीं.’’

आभा अवाक रह गई.

‘‘ए मिस्टर, आप अपने होशोहवास में तो हैं न?’’ उस ने कड़क कर कहा, ‘‘यह क्या ऊलजलूल बकते जा रहे हैं? मेरा मुंह न खुलवाइए. आप का पूरा कच्चाचिट्ठा मुझे मालूम है. आप अपनी पत्नी के साथ जैसा व्यवहार कर रहे हैं उस की मुझे खबर है. यदि मैं पुलिस में शिकायत कर दूं तो आप को जेल की हवा खानी पड़ेगी…’’

‘‘मुझे इस का अधिकार है कि मैं अपनी पत्नी के साथ जैसा चाहे सुलूक करूं. यह हमारा आपस का मामला है. आप अपने काम से काम रखिए और हमारे निजी मामलों में दखल देना बंद कीजिए. नहीं तो मुझ से बुरा कोई न होगा.’’

‘‘अच्छा, अब आप मुझे धमकी देने पर उतर आए. आप मेरा क्या कर लेंगे?’’

‘‘मैं क्या कर लूंगा… मैं आप पर तेजाब फेंक कर आप का हुलिया बिगाड़ दूंगा. आप को गुंडों से पिटवा दूंगा. आप को अगवा करवा दूंगा.’’

जब आभा के पति राम ने यह सब सुना तो उस ने आभा को आगाह किया, ‘‘आभा, तुम क्यों दूसरों के पचड़े में पड़ती हो. बेकार में लेने के देने पड़ सकते हैं. जाहिर है कि वह आदमी पागल है. उस से उलझना ठीक नहीं.’’

‘‘लेकिन मैं चुप कैसे बैठी रह सकती हूं. यह लड़की मेरी अंतरंग सहेली है. इस का इस परदेश में और कौन है?’’

‘‘माना कि वह तुम्हारी प्रिय सहेली है पर मुझे डर है कि कहीं उस की मदद करतेकरते तुम किसी मुसीबत में न फंस जाओ. और मुझे यह भी फिक्र हो रही है डार्लिंग कि तुम हमेशा दूसरों की सोचोगी, तो यह जो बेचारा पति नाम का प्राणी है उस का क्या होगा? कुछ हमारा भी खयाल करो जानेमन,’’ उस ने आभा को अपनी बांहों में लेते हुए कहा.

आभा हंस पड़ी और राम के आगोश में सिमट गई.

जब वह नईनई अमेरिका आई थी तो रोज अपने घर वालों को याद कर के आंसू बहाती थी. उसे अमेरिका बिलकुल नहीं सुहाता था. और राम जब भी उस का उतरा हुआ चेहरा देखता तो वह उस का मन बहलाने का प्रयत्न करता. वह उस के लिए सिनेमा के टिकट लाता. उसे बाहर घुमाने ले जाता. उस ने आग्रह कर के उसे एक क्लब में भरती करवा दिया था. अब आभा रोज सुबह घर से निकल जाती, क्लब में टैनिस खेलती, तैरती और ऐरोबिक्स करती. उस का समय अच्छी तरह कट जाता था.

राम उस के प्रति संवेदनशील था. उस ने उसे कालेज में कोई कोर्स करने के लिए प्रेरित किया. उसे कोई छोटीमोटी नौकरी कर लेने का सुझाव दिया.

‘‘घर में खाली बैठी रहोगी तो मायके की याद और सताएगी. इस से तो अच्छा है कि तुम कुछ करती रहो. अपनेआप को व्यस्त रखो.’’

‘‘एक दिन आभा इंडियन स्टोर में गई तो उस ने दुकानदार से पूछा, ‘‘क्या आप के यहां सेल्सगर्ल की जगह खाली है?’’

‘‘हमारी दुकान छोटी सी है इसलिए मेरा परिवार ही मेरी मदद कर देता है. मेरी पत्नी कैश काउंटर पर बैठती है और मेरा बेटा सामान बेचने में मेरी मदद करता है. पर हमारे पास हमेशा घर के बने अचार, रोटी व परांठों की डिमांड आती है. क्या आप इन्हें सप्लाई कर सकती हैं?’’

‘‘हां क्यों नहीं, अपने घर के लिए तो बनाती ही हूं.’’

‘‘तो आप हमें हर हफ्ते 2 सौ परांठे और 2 सौ रोटियां बना कर दीजिए. इस का मैं आप को उचित मेहनताना दूंगा.’’ आभा खुश हुई कि चलो घर बैठे कुछ आमदनी हो जाएगी और उस का समय भी कटेगा. धीरेधीरे उस के बनाए व्यंजनों की मांग बढ़ने लगी. उस का घरेलू व्यापार जोरों से चल निकला. अन्य दुकानों से भी उस के बनाए खाने की फरमाइश होने लगी. आभा को सिर उठाने की भी फुरसत नहीं थी.

लेकिन आभा को शालिनी की चिंता सताती रहती थी. एक दिन अचानक शालिनी का फोन आया तो वह खुशी से नाच उठी.

‘‘वाह शालू, आज तू ने पहली बार मुझे फोन किया है.’’

‘‘हां,’’ शालिनी की आवाज बुझीबुझी सी थी.

‘‘क्या बात है शालू, तू कुछ परेशान लगती है. सब ठीक तो है न?’’

‘‘कुछ भी ठीक नहीं,’’ शालिनी रो उठी.

‘‘यह क्या शालिनी,’’ आभा विचलित हो गई, ‘‘तू रो क्यों रही है? कुछ बताएगी भी या रोए चली जाएगी?’’

‘‘आभा मेरे पति मुझे यहां अकेला छोड़ कर आस्ट्रेलिया घूमने गए हैं.’’

‘‘तो?’’

‘‘जाते वक्त मुझे एक डौलर भी नहीं दे कर गए. और तो और उन्होंने टैलीफोन का बिल नहीं भरा था तो मैं ने पाया कि मेरा फोन कट गया है. इधर वाशिंगटन में बड़े जोर का बर्फीला तूफान आया है. बाहर निकलना मुश्किल है. हफ्ते भर से मैं घर में कैद हूं. घर में खाने का एक दाना भी नहीं है. 2-3 दिन मैं ने पौपकौर्न खा कर गुजारे. अब भूखों मरने की नौबत आ गई है. मैं तो सोच रही थी कि शीघ्र ही मेरी मौत हो जाएगी पर इत्तफाक से आज अचानक तेरा भेजा हुआ फोन हाथ लग गया. शायद पार्थ इसे तुझे वापस भेजना भूल गए थे.’’

‘‘तू ने किसी से मदद क्यों नहीं मांगी?’’

‘‘किस से मांगती? और इस मौसम में बाहर परिंदा भी पर नहीं मार रहा. घुटनों तक बर्फ जमी है.’’

‘‘शालिनी, तू पुलिस में फोन कर. यह तेरी जिंदगी और मौत का सवाल है.’’

‘‘पुलिस?’’ शालिनी कांपती आवाज में बोली.

‘‘अरी पगली, पहले अपनी जान बचाने की फिक्र कर बाद की बाद में सोचेंगे. अब बात हद से बाहर हो गई है. हम चुप बैठे नहीं रह सकते. तुझे यों घुटघुट कर मरते नहीं देख सकते. हां एक बात तो बता, अब तेरे पति महाशय का रवैया कुछ बदला है कि नहीं?’’

‘‘कहां, अभी भी वे मुझे मारते हैं. पर अब होशियार हो गए हैं. मेरे सर पर धौल लगाते हैं ताकि बदन पर कोई बाहरी चोट या घाव के निशान न दिखे और किसी को कुछ पता न लगे.’’

‘‘देख शालू हिम्मत न हार. 1 गिलास पानी में नमक और चीनी डाल कर 1-1 घूंट पीती रह. मैं भी यहां से तेरी मदद करने की कोशिश करती हूं और जैसे ही बर्फबारी रुके, तो बाहर निकल कर किसी से मदद मांग.’’

‘‘किस से मांगूं? सड़क पर तो कोई नहीं दिखाई दे रहा है.’’

‘‘तू बाहर निकल कर एक चीख मार. बस इतना ही काफी है. इस देश के वासियों में एक यही बड़ी खासीयत है. वैसे वे किसी के व्यक्तिगत जीवन में दखल नहीं देते, अलगथलग रहते हैं. पर जब वे किसी के ऊपर जुल्म होते देखते हैं, तो फौरन सहायता के लिए दौड़ पड़ते हैं. यहां के कायदेकानून बहुत कड़े हैं. कोई अपने बच्चों पर भी हाथ नहीं उठा सकता. पुलिस आ कर फौरन धर लेती है.’’

यह रिश्ता प्यार का: भाग-3

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फिर मुसकराते हुए शरारती लहजे में बोली, ‘‘कांतजी, मैं ने आज बहुत दिनों बाद तुम्हें घर बुला ही लिया. उमेश किसी काम से शहर से बाहर गए हुए हैं. हमें एकांत में बिताने के लिए पर्याप्त समय मिला है. बैठो मैं कुछ बना कर लाती हूं फिर ढेर सारी बातें करेंगे, प्यार भी…’’ मैं गुमसुम बैठा था. मन में विचार था कहीं वीना के प्रति नाइंसाफी तो नहीं है, जो चोरीछिपे मैं किरण से मिलने आया हूं. फिर सोचा जब मैं कुछ गलत नहीं कर रहा हूं तो पछतावा कैसा? बेशक हम दोनों एकांत में हैं, लेकिन आज हम रोमांस का कोई कृत्य नहीं करेंगे. मैं इन खयालों में खोया था कि पता ही नहीं चला कि कब वह मेरा हाथ पकड़ कर अपने बैडरूम में ले गई. बैड पर मुझे बैठाते हुए बडे़ प्यार भरे शब्दों में बोली, ‘‘आज तुम्हें मेरे साथ सोने में कोई एतराज नहीं होना चाहिए.’’ मैं किंकर्तव्यविमूढ़ बिस्तर पर लेटा शून्य में देख रहा था. तभी किरण के मोबाइल पर फोन आया. उस ने अपने होंठों पर उंगली रख कर मुझे चुप रहने का इशारा किया, ‘‘वीना भाभी का फोन है.’’

‘‘किरण, कांत किसी काम से बाहर गए हैं. मैं उन की गैरमौजूदगी में बोर हो रही थी, इसलिए तुम से बात करने का मन किया,’’ वीना ने कहा.

जवाब में किरण बोली, ‘‘उमेशजी बाहर गए हुए हैं. मैं बस रात का खाना बनाने में व्यस्त थी.’’

‘‘ऐसा करो रात का खाना हमारे यहां ही खा लेना. कांत भी 8 बजे तक लौट आएंगे. थोड़ी गपशप भी हो जाएगी.’’

किरण खुश थी कि थोड़ा और वक्त कांत के साथ बिताने को मिल जाएगा. अत: उस ने हामी भर दी. किरण और मेरे नजरिए में आधारभूत फर्क यह था कि उसे प्यार के साथ दैहिक आनंद की तलाश थी जबकि मैं मन के मिलन का सुख चाहता था. वीना के साथ वैवाहिक सुख अपनी चरम सीमा तक मुझे उपलब्ध हो चुका था. वीना की बेपनाह मुहब्बत के चलते मेरे मन में यह विचार प्रबल हो रहा था कि मुझे किरण के दिल को कोई चोट नहीं पहुंचानी है. थोड़ा प्यार उसे भी दे दूं और वीना के प्रति ईमानदारी भी रहूं. इस में वीना का भी हित है, क्योंकि किरण वीना को बहुत चाहती. मेरे प्यार द्वारा किरण जितनी खुश होगी उतना ही वीना और किरण का संबंध गहरा होगा. अपने इस विचार पर क्षण भर को मुझे हंसी भी आई. एक दिन औफिस से घर आ कर मैं ने अनायास वीना को अपने बाहुपाश में ले कर चूम लिया. वीना के लिए यह अप्रत्याशित था. बोली, ‘‘क्या बात है, आज बहुत प्यार आ रहा है?’’

‘‘तुम ने फोन पर बताया था आज किरण तुम्हारे साथ काफी समय बिता कर शाम को गई है. तुम बहुत खुश दिखाई दे रही हो… मेरी पसंद की साड़ी पहन रखी है. मेकअप भी अच्छा किया है. तुम्हें इतना सुंदर देख कर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है. ऐसे ही हर शाम को सजीसंवरी और प्रसन्न मूड में मिला करो,’’ मैं ने अपने बाहुपाश से उसे मुक्त करते हुए कहा. वीना भी बहुत खुश दिखाई दे रही थी. बोली, ‘‘इतनी तैयारी इसलिए की है कि आज हमारी शादी की सालगिरह है. शायद तुम भूल गए हो. मार्केट जा कर हम दोनों एकदूसरे के लिए गिफ्ट खरीदेंगे. वहीं चायकौफी भी पी लेंगे.’’

‘‘नहीं, मैं भूला नहीं था. मैं ने भी सोच रखा था कि कुछ ऐसा ही करेंगे. मार्केट जा कर कुछ सामान सैलिब्रेट करने के लिए ले आएंगे. किरण को फोन कर लो. अगर वह भी साथ चलना चाहे तो उसे भी साथ ले लेते हैं,’’ मैं ने कहा तो वीना ने तुरंत किरण को फोन कर दिया. तीनों ने रात का भोजन साथ बाहर कर के सालगिरह सैलिब्रेट की. अगले रविवार वीना ने डिनर पर उमेश और किरण को आमंत्रित करते हुए उमेशजी से फोन पर कहा, ‘‘उमेशजी, शादी की सालगिरह वाले दिन हम लोगों ने आप को बहुत मिस किया. वह कमी पूरी करने के लिए आज रात आप किरण के साथ हमारे घर डिनर के लिए आएंगे. हां, कोई गिफ्ट लाने की जरूरत नहीं है. किरण गिफ्ट दे चुकी है.’’ शाम को उमेशजी और किरण जल्दी ही मेरे घर पहुंच गए. पहले की तरह किरण मजैंटा साड़ी में पूरे मेकअप के साथ प्रसन्न मुद्रा में थी. वीना के सामने मैं ने उस की तारीफ करना उचित नहीं समझा. फिर भी किरण ने पूछ ही लिया, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं इस साड़ी में?’’ मन नहीं था फिर भी दबे स्वर में मैं ने कहा, ‘‘अच्छी लग रही हो.’’

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मेरे कुतूहल की सीमा नहीं थी जब दफ्तर से आने पर मैं ने वीना को एक सुंदर साड़ी में पूरे शृंगार के साथ देखा. इस विषय में मैं ने फिलहाल चुप रहना ही बेहतर समझा. उमेश और किरण के घर पहुंचने पर वीना ने कहा, ‘‘उमेशजी, आज का विशेष शृंगार मैं ने आप के लिए किया है, आशा है आप को मैं सुंदर लग रही हूं. बताइए न… मैं चाहती हूं दो शब्द आप मेरी तारीफ में कहें.’’ उमेशजी को यह सब अजीब लग रहा था. मगर वीना के अनुरोध को अनसुना करना भी ठीक न था. अत: बोले, ‘‘भाभी आप बिना मेकअप किए भी और मेकअप किए भी बहुत सुंदर लगती हैं.’’

‘‘बस यही तारीफ आप किरण की भी करने की आदत डाल लीजिए,’’ कह कर उस ने उमेश का हाथ पकड़ लिया और किचन की तरफ ले जाते हुए कहा, ‘‘देवरजी, मैं ने आप के लिए खीर बनाई है. आइए, उस का स्वाद चखाती हूं.’’ किरण और मैं मौन और आश्चर्यचकित हो यह देखते रहे. जब दोनों किचन से वापस आए तो सब ने एकसाथ खाना खाया. चलते समय वीना ने उमेश से बहुत आदर के साथ कहा, ‘‘उमेशजी, स्त्री प्यार की भूखी होती है. उसे प्यार की अभिव्यक्ति होने पर बहुत सुख मिलता है. व्यापार की समृद्धि अपनी जगह और पत्नीपरिवार का सुख अपनी जगह. मेरा कहना मानो आज से किरण की तारीफ करने की आदत डाल लो. आखिर कब तक कांतजी किरण की तारीफ करते रहेंगे. यह काम तो अब आप को ही करना होगा.’’

नेहा और साइबर कैफे

ये उन  दिनों की बात है जब देश में इंटरनेट का क्रेज बढ़ने लगा था. मोबाइल तो तब हर किसी की पहुंच में था ही नहीं. गिने चुने लोगों के पास पत्थर के से वजन के मोबाइल हुआ करते थे. सरकारी/निजी दफ्तरों और साइबर कैफे में ही इंटरनेट जोर पकड़ रहा था. नेहा (बदला हुआ नाम, न भी बदला हो तो कहना ऐसा ही पड़ता है, कोर्ट की रूलिंग आड़े आती है) ने तय किया कि वो भी इंटरनेट सीखे. जरूरी था. बाकि सहेलियां ईमेल का जिक्र किया करती थीं. एमएसएन, याहू के किस्से सुनाया करती थीं. जब भी कहीं उसके सर्किल में कोई याहू मैसेंजर या रैडिफ चैट की बातें करता, वो कोफ्त खाती. आखिर उसे ये सब क्यों नहीं पता.

नेहा ने तय किया वो भी इंटरनेट सीखेगी. उसका भी ऑरकुट पर अकाउंट होगा. सन् 2000 के शुरुआती समय में साईबर कैफे में जाकर एक बंद से कैबिन में 80 रुपए घंटा, 50 रुपए आधा घंटा के हिसाब से इंटरनेट सर्फिंग करना शगल हो चला था. नेहा ने कॉलेज के पास वाले साइबर कैफे में 50 रुपए दिए और आधे घंटे के लिए सिस्टम पर जा बैठी. इंटरनेट एक्सप्लोरर खुला हुआ था. पर करना क्या है उसे कुछ समझ नहीं आया. आज का बच्चा बच्चा कह सकता है कि जो न समझ आए, गूगल से पूछलो.. या यू ट्यूब पर देख लो कि हाऊ टू यूज इंटरनेट फर्स्ट टाइम. पर वो वक्त ऐसा न था. जिसने कभी इंटरनेट नहीं चलाया हो कम से कम एक बार तो कोई बताने वाला होना चाहिए न..

नेहा को लगा, 50 रुपए बर्बाद हो गए. उसे कुछ परेशान होता देख, साइबर कैफे मालिक ने कहा- ‘कोई दिक्कत तो नहीं?’ तकरीबन 24-25 साल के इस गुड लुकिंग गाय को नेहा ने बताया, ‘इंटरनेट सीखना है’. राहुल (सायबर कैफे ऑनर) ने कहा- ‘बस इतनी सी बात. दोपहर 2 से 2.30 नीचे बेसमेंट में आ जाओ. सात दिन की क्लास है. ‘और फीस’ नेहा ने सवाल किया. ‘3 हजार रुपए है, पर आपको 50 परसेंट डिस्काउंट.’

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‘मतलब कि मुझे 1500 रुपए देने पड़ेंगे. और अगर सात दिन न आना हो, दो-तीन दिन ही…’ नेहा के ये कहते ही राहुल ने कहा- ‘आप 1000 रुपए दीजिए.. दो या तीन दिन, जब तक सीखना हो सीखो.’ नेहा ने कंप्यूटर स्क्रीन की विंडो मिनिमाइज की और चेयर से उठ खड़ी हुई. बोली- ‘थैंक्स. कल आती हूं 2 बजे. फीस कल ही दूंगी.’ ‘आराम से, कोई जल्दी नहीं है’ राहुल ने मुस्कुरा कर जवाब दिया.

नेहा ठीक 1.55 पर साइबर कैफे के बेसमेंट में कॉपी पैन लेकर मोर्चा संभाल चुकी थी. उसके साथ कोई आठ दस लड़के लड़कियां उस बैच में थे. राहुल ने कंप्यूटर जेंटली ऑन करने, मॉनिटर ऑन करने से लेकर ब्रॉडबेंड आइकन को क्लिक कर मॉडम में नंबर डाइलिंग से शुरुआत की.. और इंटरनेट चलाने के बेसिक्स बताए. आधे घंटे की क्लास शानदार रही. जाते-जाते काउंटर पर राहुल को हजार रुपए दिए और कहा- ‘ये लीजिए फीस.’ राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘ऊं…. अभी नहीं. पहले सीख लो.. फिर दे देना.’ नेहा सरप्राइज थी. उसने मुस्कुरा कर पैसे जींस की जेब में रख लिए. पहले दिन की क्लास से वो उत्साहित थी. इंटरनेट एक्सप्लोरर नाम के नए दोस्त से हुए इंट्रो ने घर तक के पूरे रास्ते उसके चेहरे पर मुस्कान बनाए रखी.

सात दिन बीत चुके थे. नेहा इंटरनेट सर्फिंग का रोज आनंद ले रही थी, राहुल ने अब तक उससे फीस नहीं ली थी. बल्कि अब साइबर कैफे की आधे, एक घंटे की फीस भी वो उससे नहीं ले रहा था. नेहा दो नए दोस्त पाकर खुश थी. नेहा आज याहू मैसेंजर पर अकाउंट बनाकर चैट कर रही थी. ASL (एज, सेक्स, लोकेशन), LOLZ, OMG जैसे नए टर्म लिखे हुए मैसेज देख उत्साहित थी.

‘ओह तो चैटिंग शैटिंग चल रही है’, अचानक पीछे आए राहुल ने कहा. ‘हम्म.. सीख रही हूं.’ नेहा ने जवाब दिया. ‘कैरी ऑन कैरी ऑन.. अब एक घंटा नहीं पूरा दिन भी इंटरनेट पर कम लगने लगेगा. कुछ दिनों में तो घर पर भी सिस्टम लगवा ही लोगी. असल दोस्तों को भूल जाओगी और वर्चुअल दोस्त ही पसंद आएंगे.’ राहुल का तंज समझ नेहा मुस्कुराई और टेबल पर रखे उसके हाथ पर हाथ इस तरह मारा जैसे बिना कहे कह रही हो, ‘चल हट’. ‘अच्छा नेहा थोड़ी देर में नीचे क्लास में आ जाना, आज कुछ स्पेशल सैशन रखा है. नए स्टूडेंट्स भी हैं, बेसिक तो तुम्हीं बता देना सबको.’ ‘मैं’..मैं तो खुद ट्रेनी हूं, मैं क्या बताऊंगी.’ नेहा के जवाब को इग्नोर कर राहुल फुर्ती से नीचे की ओर रवाना हुआ, जाते-जाते सीढ़ी से उसकी आवाज़ जरूर आई, ‘सीयू इन नेक्स्ट 5 मिनट इन बेसमेंट’.

नेहा ने पांच मिनट बाद याहू मैसेंजर से लॉगआउट किया. सिस्टम शट डाउन कर नीचे बेसमेंट की ओर रवाना हो गई. उसे अजीब सा लग रहा था, कि वो कैसे पढ़ाएगी. नीचे जाकर ऐसा कुछ नहीं हुआ. राहुल ने वीपीएन सर्वर के बारे में बताया, कि कैसे आपके ऑफिस में कोई साइट ब्लॉक हो तो आप उसे वहां भी खोल सकते हो. आईटी टीम को बिना पता चले. फ्रैशर्स को सिखाने के लिए एक दूसरे लड़के को कह दिया, जो करीब 15 दिन से क्लास में आ रहा था. नेहा ने राहत की सांस ली. उसने आंखों ही आंखों में राहुल को थैंक्स भी कहा, लंबी सांस लेते हुए. बाकि स्टूडेंट्स अपने अपने टास्क में बिजी थे, नेहा जाने की तैयारी कर ही रही थी कि राहुल से फिर उसकी नजरें मिली, उसने उसकी तरफ आने का इशारा किया. नेहा पर्स वहीं छोड़ डायस पर टेबल के पीछे लगी कुर्सी पर बैठ गई, जो राहुल की कुर्सी के ठीक बराबर थी. सामने टेबल पर राहुल ने इंटरनेट खोल रखा था.  जैसे ही नेहा की नजर स्क्रीन पर गई, वो सकपका गई. राहुल स्क्रीन पर ही नजरें गड़ाए हुए बोला- ‘ये लो नेहा, आज की ये एक्सरसाइज, आगे भी तुम्हारे काम आएगी, ये न देखा तो इंटरनेट पर क्या देखा, तुम्हारे कॉलेज प्रोजेक्ट्स में भी तुम अब एडवांस हो जाओगी.’ राहुल की लैंग्वेज पूरी क्लास को भ्रमित करने के लिए काफी थी, इसीलिए किसी का ध्यान उस ओर गया भी नहीं कि अब तक नेहा पसीने-पसीने हो चुकी है.

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स्क्रीन पर पॉर्न साइट खुली हुई थी. राहुल बिलकुल न्यूट्र्ल फेस किए हुए कुछ न कुछ बोले जा रहा था, नेहा अब तक समझ ही नहीं पा रही थी कि वो कैसे रिएक्ट करे. इतने में राहुल ने नेहा के पैर पर हाथ रखा, टेबल कवर होने के कारण उसकी इस हरकत को सामने क्लास में कोई समझ न पाया. नेहा का डर के मारे कलेजा कांप रहा था. उसने उठने की कोशिश की तो राहुल ने जोर से उसे बैठा दिया. ये मानते हुए कि नेहा अब कुछ बोलने वाली है, राहुल ने उसे टोका, ‘नेहा जी ये भी देख लो.’ ये कहते ही राहुल ने वीएलसी प्लेयर पर कर्सर क्लिक किया. वहां एक वीडियो पॉज्ड था. कुछ धुंधला-धुंधला दिखा, लेकिन तीन या चार सैकेंड के बाद ही नेहा को साफ दिख गया कि ये उसी का वीडियो है. नेहा की आंखों से आंसू टपके, लेकिन सामने क्लास को देखते हुए उसने उन्हें पौंछ लिया. उसने अब तक सिर्फ खबरों में ही पढ़ा था कि बाथरूम्स व्गैरह में हिडन कैमरे से लड़कियों के वीडियो बन रहे हैं. पर खुद को उसका शिकार होते देख वो अब स्तब्ध थी. सात दिन पहले बने दोस्त की मुस्कान के पीछे की दरिंदगी वो समझ ही नहीं पाई. नेहा को याद आ गया था कि तीन दिन पहले वो साइबर कैफे से अपनी फ्रेंड की पार्टी में सीधे गई थी. सुबह की घऱ से निकली हुई थी इसलिए ड्रेस साथ लाई थी. साइबर के वाशरूम में ही उसने ड्रेस चेंज की थी, जो उसकी सबसे बड़ी भूल थी.

राहुल धीरे से फुसफुसाता हुआ बोला- ‘शाम को सात बजे तुम्हारा इंतजार रहेगा, यहीं. बताने की जरूरत तो नहीं न कि न आई तो कल इंटरनेट पर तुम ही धमाल मचाती दिखोगी.’

नेहा झट से सामने अपनी सीट तक आई, टेबल पर रखा पर्स और स्कार्फ उठाया और अपनी स्कूटी की और दौड़ पड़ी.

दोपहर से शाम तक नेहा की हालत बिगड़ी रही, घर वाले सोच रहे थे कि लू लग गई. ‘बार-बार कहते हैं फिर भी ध्यान नहीं ऱखती, धूप में बाहर आती जाती है.’ सब उसे ऐसा कहकर टोक रहे थे. नेहा चाहकर भी किसी को बता न सकी. घबराहट में उसे दो बार वोमिट हुई. कभी राहुल की पोर्न वाली हरकत, तो कभी अपना वीडियो आंखों के सामने आ रहा था. और कभी ये सोचकर ही रूह कांप रही थी कि शाम को वो क्या करने वाला है. इसी बीच मम्मी एप्पल ले आईं. वहीं काटकर उसे खिलाने लगीं. मम्मी ये सोच रही थीं कि भूखे पेट गर्मी असर कर गईं और नेहा चाकू को देख रही थी.

शाम सवा सात बजे नेहा साइबर कैफे पहुंची. जैसा उसने सोचा था, ठीक वैसा ही नजर भी आया. राहुल कैफे में टेबल पर पैर रख कर बैठा था. बत्तियां बुझा रखी थी, बस एक कैबिन की लाइट चल रही थी, उसी से रौशनी बाहर आ रही थी. नेहा को आते देख राहुल ने कहा- ‘आओ जान आओ, तीन दिन से जब से तुम्हें वीडियो में बिना टॉपर के देखा है, इस ही लम्हे का इंतजार कर रहा हूं.’

राहुल ने ये कहते हुए सामने रखा डीओ अपनी पूरी शर्ट और बगलों के नीचे छिड़का. सहमी हुई नेहा कुछ धीमे कदमों से ही राहुल की ओर बढ़ी. राहुल ने होठ आगे कर दिए, इस जबरन हक को मानते हुए, कि जैसा वो पिछले पांच घंटों से इमेजन कर रहा है, अब बस वो होने को है.

एक तेज तमाचे ने राहुल को इमेजिनेशन से बाहर निकाला. उसका गाल पर हाथ पहुंचा ही था कि एक जोर का मुक्का उसकी नाक पर आकर लगा और तेजी से खून बहने लगे. अचानक सकपकाए राहुल ने होठों तक आए खून को हाथ से देखा फिर पागल सा होकर वो नेहा को मारने दौड़ा. वो नेहा की ओर बढ़ा ही था कि बाहर के गेट से दो लड़के दो लड़कियां अंदर आए और नेहा को पीछे कर राहुल को पीटने लगे. चंद मिनटों में राहुल अधमरा हुआ पड़ा था, माफी मांग रहा था. बेशर्मी से बार बार माफी मांग रहा था. नेहा के दोस्तों ने एक-एक कंप्यूटर को खंगाला. साइबर के बाकी सिस्टम्स में तो कुछ नहीं था, एक क्लास रूम और दूसरे ऊपर कैफे एरिया में राहुल के सिस्टम में वॉश रूम की कुछ क्लिप्स थी. क्लास रूम के सिस्टम में ऊपर का ही फोल्डर कॉपी किया हुआ था, जिसमें तकरीबन चार लड़कियों के वॉशरूम वीडियो थे. काफी मार पड़ी तो राहुल गिड़गिड़ाया कि नेहा उसका पहला शिकार ही थी. इंटरनेट पर साइबर कैम के लीक्ड वीडियो देख उसकी भी हिम्मत हुई वो ऐसा करे. नेहा के दोस्तों ने दोनों ही सिस्टम से फोल्डर ऑल्ट प्लस कंट्रोल दबाकर डिलीट किए और फिर गुस्से में दोनों सिस्टम भी तोड़ डाले.

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फिर कभी उस साइबर कैफे का ताला खुला किसी ने न देखा. कुछ दिनों बाद वहां एक परचूनी की दुकान खुल गई. राहुल वहां कभी नहीं दिखा, हां, नेहा अक्सर गर्दन ऊंची कर स्कूटी पर वहां से गुजरते हुए नजर आती रही.

लघु कथा: सॉरी… सना

दफ्तर में आज सिर्फ सना के ही चर्चे थे. सना ने सेल्स टीम में ज्वाइन किया था. लड़कों में उसकी खूबसूरती और लड़कियों में एटिट्यूट के चर्चे थे. एचआर असिस्टेंट ने पूरे फ्लोर पर एक-एक एम्लॉई से उसे मिलवाया. संभवत: ये पहला ऐसा मौका था जब दफ्तर में हर कोई हाथ मिलाकर नए एम्पालॉइ का स्वागत करना चाह रहा था. वैसे इसमें गलत भी क्या है, ये तो कॉरपोरेट कल्चर है. लेकिन उसकी बला की खूबसूरती एक बार तो उसे छूकर देख लेने की हसरत पूरी करा ही रही थी.

लंच ब्रेक में नई तरह की चर्चा ऑफिस में शुरू हो गई. ऑफिस की कैंटीन से दिखने वाली बाहर की चाय की थड़ी पर सना सिगरेट पी रही थी. अब चर्चा उसके सौन्दर्य की कम, उसके बोल्ड होने की ज्यादा होने लगी. कहीं ‘जज’ करने सरीखे व्यंग्य, कहीं ‘बायगॉड की कसम, तेरी भाभी मिल गई’ जैसी मजाक.

सना कैंटीन के रास्ते ऊपर फिर से फ्लोर पर लौट ही रही थी, कि पंचिंग गेट पर रौनक अपना कंधा उसे छूते हुए निकला. ‘ओह सॉरी’ बोल कर रौनक आगे बढ़ गया.

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सना को ये ‘सॉरी’ आर्टीफिशियल सा लगा. वो बार-बार सोच रही थी कि कंधा टकराना नॉर्मल हो सकता है लेकिन पूरे हाथ को छूते हुए निकलना और सॉरी बोलते वक्त उसका आंखों की बजाये शरीर की ओर घूरना, एक सामान्य घटना नहीं थी. कुछ मिनट तक इस पर सोचने के बाद वो इस घटना को इग्नोर करते हुए फिर से एचआर विंग में जाकर बैठ गई. वहां पहुंचते ही रूमा ने उसे कहा- ‘छू गया तुम्हें भी वो हरामी ?’

‘सॉरी, क्या कहा आपने’, सना ने चौंक कर रूमा की ओर देखा. ‘देख रही थी मैं, गेट पर वो तुमसे कैसे टकरा कर गया.’

‘हां, वो सॉरी बोल रहे थे, हू इस ही ?’  सना ने रूमा की बात का जवाब दिया.

रूमा बोली- ‘वो रौनक है, बास्टर्ड साला… बस मौका चाहिए उसे टकराने का. तीन साल में कभी एक बार भी उसकी आंखे शरीर की तांक झांक से हटते नहीं देखी मैंने. इस फ्लोर पर कोई ऐसी लड़की नहीं, जिससे वो एक्सीडेंटली टकराता नहीं. बॉस का खास चमचा है, सब्जी पहुंचाने से लेकर बच्चों को टूशन ले जाने तक का जिम्मा इसी का है, इसलिए इसे कुछ बोल नहीं सकते. बस सहना पड़ता है.’

सना की ज्वाइनिंग और उस टक्कर को आज दो साल बीत चुके हैं. सना तीन दिन पहले रिजाइन भी कर चुकी है. रौनक वहीं उसी दफ्तर में रौनक फैला रहे हैं. अब भी वो किसी से भी टकरा जाते हैं.

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न किसी ने उसे कुछ कहा, न किसी ने उसके ऊपर वालों से कुछ कहा. रौनक का प्रमोशन हो चुका है.  कैबिन मिल गया है. आते-जाते आजकल वो कंधे की बजाये सीधे-सीधे टकरा जाते हैं. ऑफिस फीमेल स्टाफ थोड़ा संभल कर चलता है तो वो फीमेल विजिटर्स से टकरा जाते हैं. पर हां, शराफत बरकरार है, ‘सॉरी’ जरूर बोलते हैं.

3 सखियां: भाग-3

अब तक आप ने पढ़ा:

आभा, शालिनी और रितिका पक्की सहेलियां थीं. स्कूल के दिनों से ही उन का साथ था. तीनों सहेलियां खुले विचारों वाली थीं. जिंदगी से जुड़ी हर बात ये सहेलियां एकदूसरे से शेयर करती थीं. इत्तफाक से तीनों की शादी ऐसे लड़कों से हुई जो अमेरिका में सैटल थे. शादी के बाद जब तीनों सहेलियां अमेरिका पहुंचीं तो वहां भी अपनी दोस्ती बिखरने नहीं दी. वहां आपस में होती बातचीत से पता चला कि उन सहेलियों के विचार तो लगभग एकजैसे थे पर उन के पतियों के विचारों में भिन्नता थी.

अब आगे पढ़ें:

कुछदिन बाद आभा ने शालिनी को फिर फोन लगाया. लेकिन जब कई बार फोन करने पर भी शालिनी ने फोन नहीं उठाया, तो आभा के मन में खलबली मच गई. अपनी सखी के लिए तरहतरह की दुश्चिंताएं उस के मन में उठने लगीं. आखिरकार एक दिन शालिनी ने फोन उठाया.

‘‘अरी कहां मर गई थी तू?’’ आभा झुंझलाई, ‘‘मैं 2 घंटे से तुझे फोन लगा रही हूं.’’

‘‘मैं यहीं पड़ोस में  गई थी. आज हम लोगों के क्लब की मीटिंग थी.’’

‘‘अरे वाह, तू ने कोई क्लब जौइन कर लिया है क्या? इस का मतलब तू घर से बाहर निकलने लगी है. चलो देरसवेर तुझे कुछ अक्ल तो आई. अब बता यह कैसा क्लब है?’’

‘‘यह एक पीडि़त स्त्रियों का क्लब है.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘यह क्लब उन स्त्रियों के लिए है जिन के पति उन्हें मारतेपीटते हैं या उन्हें अन्य तरीकों से प्रताडि़त करते हैं. हम सब महीने में एक बार मिलती हैं और एकदूसरे को अपने दुखड़े सुनाती हैं. एकदूसरे को ढाढ़स भी बंधाती हैं, एकदूसरे से सलाहमशविरा भी करती हैं और अपनी परेशानियों का समाधान खोजती हैं.’’

‘‘शालिनी, तुझे यह सब करने की क्या जरूरत पड़ गई?’’ आभा चकित हुई, ‘‘क्या तू उन पीडि़त औरतों में से एक है?’’

‘‘हां.’’

‘‘मुझे विश्वास नहीं होता. क्या तेरा पति तुझ पर हाथ भी उठाता है?’’

‘‘हां,’’ शालिनी फफक उठी, ‘‘उन्होंने मुझे कई बार मारा है. छोटीछोटी बात को ले कर भी उन का हाथ मुझ पर उठ जाता है. कौफी ठंडी हुई तो या लंच पैक करने में देरी हुई तो एक थप्पड़. कपड़े धुल कर तैयार नहीं मिले तो एक धौल. एक रोज हम शौपिंग मौल गए थे तो मेरे माथे और बदन पर पड़े नील के निशान देख कर एक अमेरिकन युवती चुपके से मेरे पास आई. उस ने मुझे अपना कार्ड दिया और कहा कि वह पीडि़त स्त्रियों का एक क्लब चलाती है. उस ने आग्रह किया कि मैं उस के क्लब की मीटिंग में आऊं. उस ने यहां तक कहा कि वह मुझे आ कर ले जाएगी और वापस छोड़ भी देगी. इत्तफाक से पार्थ उस समय अपने सैलफोन पर बातें कर रहे थे, इसलिए उन की निगाह हम पर नहीं पड़ी. नहीं तो घर लौट कर वे मुझे और मारते. उन्होंने सख्त ताकीद की है कि मैं बाहर बिना वजह किसी से बातचीत न करूं और न किसी से कोई संपर्क रखूं.’’

‘‘शालिनी तू किस मिट्टी की बनी है?’’ आभा ने बिफर कर कहा, ‘‘तू ये सब क्यों बरदाश्त कर रही है बता तो? क्या तुझ में जरा भी स्वाभिमान नहीं है? क्या तू पढ़ीलिखी और सबल नहीं है? क्या तेरे भेजे में थोड़ी सी भी अक्ल नहीं है? क्या तू इतना भी नहीं जानती कि औरतों पर हाथ उठाना एक जुर्म है. पुलिस में रिपोर्ट लिखाने भर की देर है, तेरे पतिदेव सलाखों के पीछे होंगे.’’

‘‘जानती हूं पर इस से फायदा?’’

‘‘बेवकूफों की तरह बात न कर. फायदा यह होगा कि तेरे मियां को उन के किए की सजा मिलेगी. उन की अक्ल ठिकाने आ जाएगी. उन्हें झक मार कर अपना रवैया बदलना होगा. तुझे नई जिंदगी मिलेगी.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा. एक बार वे सजा काट कर आएंगे तो फिर वही सिलसिला शुरू होगा. उन का स्वभाव बदलने वाला नहीं है. और अगर उन्हें सजा हुई तो मेरा क्या होगा? मेरा गुजारा कैसे होगा? न मेरे पास कोई नौकरी है और न मेरे में कोई काबिलीयत है. हाथ में एक दमड़ी भी नहीं है. पिताजी ने जो डौलर घर से चलते समय थमाए थे वे खर्च हो गए. मैं अकेली कैसे निर्वाह करूंगी, यह सोच कर ही कलेजा कांपता है.’’

‘‘अकेली क्यों है तू, तेरे साथ हम सब हैं. तेरा परिवार है, नारी कल्याण केंद्र है, सोशल वर्कर हैं जो तुझे हर तरह की मदद पहुंचाएंगे. अच्छा यह बता क्या तू ने अपने मातापिता से इस बारे में बात की है?’’

‘‘नहीं. मेरे मातापिता मेरे बारे में जानेंगे तो रोरो कर मर जाएंगे. मैं ने उन से सिर्फ इतना ही कहा है कि मुझे अपना वैवाहिक जीवन रास नहीं आया. मैं घर लौटना चाहती हूं.’’

‘‘तब वे क्या बोले?’’

‘‘वे क्या कहते. उन्होंने मुझे एक लंबा लैक्चर पिला दिया. तुम तो जानती ही हो कि वे कितने रूढिवादी हैं. वे बोले कि बेटी हरेक के वैवाहिक जीवन में कुछ न कुछ कठिनाइयां आती हैं. तुझे अपने पति से तालमेल बैठाना होगा. अपनी जिंदगी से समझौता करना ही होगा. हिंदू नारी का यही धर्म है. और जरा सोच, अगर तू ने तलाक लिया तो हम तेरी दूसरी शादी कैसे कर पाएंगे? पहली शादी ही इतनी मुश्किल से हुई. और बड़ी बहन तलाकशुदा हो कर घर में बैठी रही तो समाज क्या कहेगा? तेरी छोटी बहनों की शादी कैसे हो पाएगी? वगैरहवगैरह…’’

‘‘ओहो, तुम्हारे मम्मीपापा तो बड़े दकियानूसी निकले. मैं उन से बात करूंगी.’’

‘‘नहीं आभा, इस से कुछ हासिल नहीं होगा. मेरे मातापिता तो पहले से ही अपनी समस्याओं से परेशान हैं. पिताजी रिटायर हो चुके हैं और दिल के मरीज भी हैं. मैं उन को अपना दुखड़ा सुना कर दुखी नहीं करना चाहती और खोटे सिक्के की तरह घर लौट कर उन पर बोझ नहीं बनना चाहती. यह मेरी समस्या है, मैं ही इस से निबटूंगी.’’

‘‘ठीक है, पर मुझ से एक वादा कर. तू मुझे बराबर फोन कर के अपनी खोजखबर देती रहेगी.’’

‘‘अवश्य.’’

शालिनी की बातें याद कर आभा मन ही मन उफनती रही. शालिनी ने यह क्यों कहा कि वह अपने मातापिता पर बोझ नहीं बनना चाहती? क्या हम लड़कियां अपने मातापिता पर बोझ होती हैं? उस ने कुढ़ कर सोचा. जब से आभा ने होश संभाला तब से वह हमेशा सुनती आई थी कि बेटियां पराया धन हैं, दूसरे की अमानत हैं, 2 दिन की मेहमान हैं, वगैरहवगैरह. सुनसुन कर वह चिढ़ती थी. पर नहीं, वह तो अपने मांबाप की आंखों का तारा थी. उन की बेहद लाडली बिटिया थी. उन्होंने कभी उस में और उस के भाई में भेदभाव नहीं किया. आभा को याद आया कि कैसे जब वह स्कूल से लौटती थी, तो अपनी मां को घर में न पा कर रोने बैठ जाती थी. रूठ जाती थी और खाना भी न खाती थी. उस की मां लौटतीं तो उस का मनुहार करतीं, उसे अपनी गोद में बैठा कर उस के मुंह में कौर देतीं तब जा कर वह खाना खाती थी. मांबाप से बिछड़ने पर उसे असहाय पीड़ा हुई थी. उसे हमेशा घर की याद सताती रहती थी.

बेटियां ससुराल जा कर भी अपने मायके से जीवनपर्यंत जुड़ी रहती हैं. उन का जी अपने मांबाप के लिए कलपता रहता है. मांबाप जब बूढ़े और लाचार हो जाते हैं, तो अकसर बेटियां ही उन की सारसंभाल करती हैं. वे संवेदनशील होती हैं, स्नेहमयी होती हैं. तिस पर भी वे पराया धन मानी जाती हैं. और बेटे, वे बड़े हो कर चाहे मांबाप की बात न सुनें, उन्हे मांबाप का सहारा, उन के बुढ़ापे की लाठी आदि विशेषणों से नवाजा जाता है.

आभा को अचानक याद आया कि 2 दिन बाद शालिनी का जन्मदिन था. उस ने एक मोबाइल फोन खरीद कर उसे तोहफा भेज दिया. फिर कुछ दिन बाद उसी मोबाइल से उस के पास फोन आया तो उस ने फोन उठाया.

‘‘हैलो, आप आभाजी बोल रही हैं?’’ एक अनजान पुरुष स्वर सुनाई दिया.

‘‘हां मैं बोल रही हूं. कहिए आप कौन?’’

‘‘मैं शालिनी का पति पार्थ बोल रहा हूं. यह मोबाइल गिफ्ट आप ने भेजा है?’’

‘‘हां, क्यों?’’

‘‘मैं इसे वापस कर रहा हूं. आइंदा आप हमें कोई चीज नहीं भेजेंगी.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘इसलिए कि मुझे आप की और शालिनी की दोस्ती पसंद नहीं. मुझे पता चला है कि आप मेरी पत्नी को बिना वजह मेरे खिलाफ भड़का रही हैं, उसे बरगला रही हैं. बेहतर होगा कि आप हमारे व्यक्तिगत मामलों में दखल न दें.

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यह रिश्ता प्यार का: भाग-2

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रामलाल से पूछने पर उस ने बताया कि किरण मेम साहब रख गई हैं. कह रही थीं साहब को अच्छा लगेगा. उन्हें बता देना कि मैं आई थी. मैं ने मोबाइल पर किरण को धन्यवाद कहा तो वह बोली, ‘‘कांतजी, जिस दिन आप गुलदस्ता उस टेबल पर रखा देखो समझ लेना मेरी तरफ से संकेत है कि उमेशजी को घर लौटने में देर लगेगी. आप बेफिक्र मेरे पास आ सकते हो.’’ थोड़ी देर में ही मैं किरण के पास पहुंच गया. हलके आसमानी रंग की साड़ी में वह बहुत सुंदर लग रही थी. खुली बांहों में भर कर स्वागत करते हुए मेरा हाथ पकड़ कर ड्राइंगरूम में सोफे तक ले गई, ‘‘कांत, मैं तुम्हें बता नहीं सकती कि जब से तुम से मित्रता हुई है मेरी खुशी कितनी बढ़ गई है.’’

‘‘तुम बहुत ब्यूटीफुल लग रही हो. लगता है आज तुम ने मेकअप में बहुत समय लगाया है. अगर मेकअप न भी करो तो भी तुम सुंदर लगती हो.’’

‘‘तारीफ करने की कला तो कोई तुम से सीखे. तुम तारीफ करते हुए बहुत अच्छे लगते हो. बैठो जब तक मैं चाय बना कर लाती हूं तुम टीवी पर कोई मनपसंद चैनल लगा लो,’’ कहते हुए उस ने रिमोट मुझे पकड़ा दिया. थोड़ी देर में वह ट्रे में 2 कप चाय और प्लेट में बिसकुट ले आई. फिर मेरे पास बैठ गई, ‘‘कांतजी, अब मैं आप को बता रही हूं कि उमेशजी दुकान के लिए माल लेने दिल्ली गए हैं. कल लौटेंगे. हमारे पास मौजमस्ती के लिए पर्याप्त समय है. जी भर कर मेरे पास रहिए और जो मन में इच्छा हो उसे पूरी कर लीजिए. मैं पूरा सहयोग दूंगी. मैं सच्चे दिल से आप से प्यार करती हूं’’

‘‘मैं आज सीरियस मूड में हूं और तुम्हें कुछ समझाना चाहता हूं. मैं शादीशुदा हूं. वीना मुझे बहुत प्यार करती है. और मैं नहीं चाहूंगा कि उमेश की गैरमौजूदगी का मैं फायदा उठाऊं. वे मेरे अच्छे दोस्त हैं. यह तो तुम्हारे प्यार का रिस्पौंस था जो मैं मित्रता की हद से बाहर तुम्हें कभीकभी ‘हग’ कर लेता था या तुम्हें ‘हग’  करने देता था. मेरी तुम्हें सलाह है, अब हमें खुद पर नियंत्रण लगा लेना चाहिए…’’

इस से पहले कि मैं अपनी बात पूरी कर पाती उलटे उस ने ही मुझे समझाना शुरू कर दिया, ‘‘कांतजी, बी प्रैक्टिकल. मैं आप और आप की पत्नी के बीच में आए बगैर भी तो प्यार कर सकती हूं. यदि हमारा संबंध गुप्त रहे तो हरज क्या है?’’ कहने को वह यह सब कह तो गई, फिर कुछ सोच कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘आप मुझ से उम्र में काफी बड़े हो. मुझे अभी तक इस तरह समझाने वाला कोई नहीं मिला है. आप से मित्रता और प्यार मेरी जरूरत है. पत्नी का फर्ज मैं उमेशजी के साथ पूरी ईमानदारी से निभा रही हूं और निभाती रहूंगी, लेकिन उन से प्यार कभी नहीं हो पाया है. वे सीधेसरल अवश्य हैं, लेकिन प्यार करने के लिए न तो उन के पास समय है और न ही उन की सोच में प्यार का कोई महत्त्व है. सुखसुविधाओं के अलावा एक स्त्री को शारीरिक सुख की भी चाह होती है,’’ कहती हुई वह भावुक हो गई. आंखों से अविरल अश्रुधारा बह निकली.

मैं ने उसे गले लगा कर पीठ थपथपाते हुए आश्वासन दिया, ‘‘मेरी मित्रता और प्यार जितना संभव होगा बना रहेगा.’’ वीना की डिलिवरी के समय मैं 1 सप्ताह की छुट्टी ले कर उस के मायके पहुंच गया. उस ने एक प्यारी सी गुडि़या को जन्म दिया. चंडीगढ़ लौट कर पुन: मैं अपने कामकाज में व्यस्त हो गया. किरण और मेरा एकदूसरे के घर आनाजाना पहले जैसा ही था. लगभग डेढ़ माह बाद वीना को उस का भाई चंडीगढ़ मेरे पास छोड़ गया. अभी वीना को देखभाल की जरूरत थी. किरण दिन के समय वीना के पास आ जाती थी और हर काम में उस की मदद करती थी. वीना को भी किरण बहुत अच्छी लगी, तो दोनों जल्दी ही पक्की सहेलियां बन गईं. किरण ने उसे बताया कि उस की शादी 20 की होतेहोते ही हो गई थी. पुरुषों के साथ संबंध में उसे कोई अनुभव नहीं था. उस ने वीना से मेरे बारे में बेबाक तरीके से कहा, ‘‘मुझे कांतजी बहुत अच्छे लगते हैं. कुदरत ने तुम्हारी जोड़ी बहुत अच्छी बनाई है. तुम सुंदर और सरल हो. वे भी प्यार पाने और देने के लिए जल्द ही लोगों की ओर आकर्षित हो जाते हैं…एक बात बताऊं वीना भाभी…कांत का दिल बहुत सहानुभूति और दूसरों की कद्र करने वाला है.’’

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वीना ने संक्षेप में बस इतना ही कहा, ‘‘मेरे कर्म अच्छे थे जो वे मुझे मेरे जीवनसाथी के रूप में मिले.’’ वीना के साथ परिचय होने के बाद हम दोनों मित्र परिवारों में मिठाई और उपहारों के आदानप्रदान का सिलसिला शुरू हो चुका था. बर्थडे और शादी की सालगिरह हम दोनों परिवार एकसाथ एक उत्सव की भांति मनाते थे. कभी किरण हमारे घर आ कर किचन में वीना की खाना बनाने में सहायता करती तो कभी घर के सामान की झाड़पोंछ में उस की मदद करती. वह चाहती थी घर के कामकाज का बोझ वीना पर न पड़े. डिलिवरी के बाद धीरेधीरे वीना का स्वास्थ्य बेहतर होता जा रहा था. इस विषय में वह किरण की तारीफ उमेश के सामने करने से नहीं चूकती थी. एक दिन उमेश बोले, ‘‘किरण है ही ऐसी. सब की मदद करने में उसे बहुत खुशी मिलती है. हमेशा मुसकरा कर मदद करने का एहसान भी नहीं जताती है.’’ पहली बार उमेश के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर किरण की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने मुझ से कहा, ‘‘आज पहली बार उमेशजी ने मेरी तारीफ में कुछ शब्द कहे हैं, तो पार्टी तो बनती ही है. आज शाम की चाय हम लोग मेरे घर पर पीएंगे,’’ मैं मान गया.

एक दिन शाम के समय जब मैं औफिस से घर लौटा तो देखा ड्राइंगरूम में टेबल पर गुलदस्ता रखा था. वीना ने बताया, ‘‘किरण यह गुलदस्ता लाई थी. कह रही थी उस का मन मेरे साथ चाय पीने का था. अभी 1 घंटा पहले ही अपने घर गई है.’’ मैं किरण की सांकेतिक भाषा समझ गया. किरण मुझ से अपने घर में मिलना चाहती है. वीना के साथ चाय पीने के बाद मैं ने वीना से कहा, ‘‘मैं औफिस के काम से 1 घंटे के लिए बाहर जा रहा हूं. 7 बजे तक आऊंगा.’’  मैं किरण के घर पहुंचा तो देखा वह मुख्यद्वार पर मेरा इंतजार कर रही थी. बड़ी बेसब्री के साथ मुझे बांहों में भर कर मेरा स्वागत किया.

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