Varun Dhawan की ऑनस्क्रीन मां Evelyn Sharma ने बॉयफ्रेंड संग की शादी, देखें फोटोज

कोरोना काल में कई स्टार्स शादी के बंधन में बंध चुके हैं. जहां बीते दिनों एक्ट्रेस यामी गौतम ने शादी की थी तो वहीं अब बौलीवुड एक्टर वरुण धवन की औनस्क्रीन मां के रोल में नजर आ चुकीं एक्ट्रेस एवलिन शर्मा (Evelyn Sharma) ने अपने लॉन्ग टाइम ब्वॉयफ्रेंड तुषान भिंडी (Tushaan Bhindi) संग शादी कर ली हैं. आइए आपको दिखाते हैं इस कपल की स्मौल वेडिंग की झलक…

ऑस्ट्रेलिया में की शादी

 

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यारियां एक्ट्रेस एवलिन शर्मा ने हाल ही में ऑस्ट्रेलिया में तुषान भिंडी के साथ शादी की है, जिसमें कोरोना वायरस के चलते परिवार के कुछ खास लोग ही शामिल हुए थे. वहीं अपने फैंस के लिए एवलिन ने अपनी शादी की झलक दिखाते हुए कुछ फोटोज शेयर की हैं, जो सोशलमीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं.

 

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ऐसा था एक्ट्रेस का लुक

 

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एवलिन शर्मा ने शादी के लिए व्हाइट कलर का शानदार ब्राइडल गाउन पसंद किया. तो वहीं तुषान भिंडी ने ब्लू सूट को कैरी किया. वहीं एवलिन शर्मा सिंपल दुल्हन बनकर अपनी शादी में पोज देती हुई नजर आईं. दूसरी तरफ कपल फोटोज में दोनों की जोड़ी परफेक्ट लग रही थी.

 

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फैंस दे रहे बधाई

 

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एक्ट्रेस की शादी की खबर से जहां फैंस हैरान हैं तो वहीं सेलेब्स उन्हें शादी की बधाइयां दे रहे हैं. दूसरी तरफ कपल की बात करें तो फोटोज को साथ देखकर लग रहा है कि दोनों को शादी का बेसब्री से इंतजार था.

 

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बौलीवुड की कई फिल्मों में काम कर चुकी एक्ट्रेस एवलिन शर्मा कई बौलीवुड स्टार्स संग काम कर चुकी हैं. वहीं उनके पति की बात करें तो ऑस्ट्रेलिया के रहने वाले तुषान भिंडी एक डेंटल सर्जन हैं. दोनों लंबे समय से एक दूसरे को डेट कर रहे हैं. वहीं हाल ही में दोनों ने अपनी सगाई की खबर भी फैंस को दी थी.

तुषार कपूर के इंडस्ट्री में हुए 20 साल पूरे, सिंगल फादर का निभा रहे हैं फर्ज

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में 20 साल पूरे कर चुके अभिनेता और निर्माता तुषार कपूर को ख़ुशी इस बात से है कि उन्होंने एक अच्छी जर्नी इंडस्ट्री में तय किया है. हालांकि इस दौरान उनकी कुछ फिल्में सफल तो कुछ असफल भी रही, पर उन्होंने कभी इसे असहज नहीं समझा, क्योंकि सफलता और असफलता नदी के दो किनारे है. सफलता से ख़ुशी मिलती है और असफलता से बहुत कुछ सीखने को मिलता है.

फिल्म ‘मुझे कुछ कहना है’ से उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश किया, जिसमें उनके साथ अभिनेत्री करीना कपूर थी. पहली फिल्म सफल रही, उन्हें सर्वश्रेष्ठ डेब्यू कलाकार का ख़िताब मिला. इसके बाद उन्होंने कई फिल्में की, जो असफल साबित हुई. करीब दो वर्षों तक उन्हें असफलता मिलती रही, लेकिन फिल्म ‘खाकी’ से उनका कैरियर ग्राफ फिर चढ़ा और उन्होंने कई सफल फिल्में मसलन, ‘क्या कूल है हम’, गोलमाल, गोलमाल 3, ‘शूट आउट एट लोखंडवाला’ ‘द डर्टी पिक्चर’ ‘गोलमाल रिटर्न्स’,आदि फिल्में की.तुषार की कोशिश हमेशा अलग-अलग फिल्मों में अलग किरदार निभाने की रही,लेकिन उन्हें कई बार टाइपकास्ट का शिकार होना पड़ा, क्योंकि कॉमेडी में वे अधिक सफल रहे और वैसी ही भूमिका उन्हें बार-बार मिलने लगी थी, जिससे निकलना मुश्किल हो रहा था. तब तुषार ने इसे चुनौती समझ,सफलता के बारें में न सोचकर अलग भूमिका करने लगे, क्योंकि वे फिल्म मेकिंग प्रोसेस को एन्जॉय करते है. शांत और विनम्र तुषार फ़िल्मी परिवार से होने के बावजूद उन्हें लोग कैरियर की शुरुआत में खुलकर बात करने की सलाह देते थे, जो उन्हें पसंद नहीं था.

कैरियर के दौरान एक समय ऐसा आया, जब तुषार कपूर अपने जीवन में कुछ परिवर्तन चाहते थे, जिसमें उनकी इच्छा एक बच्चे की थी. सरोगेसी का सहारा लेकर वे सिंगल फादर बने.उनका बेटालक्ष्य कपूर अभी 5 साल के हो चुके है. तुषार बेटे को भी वही आज़ादी देना चाहते है, जितना उन्हें अपनी माँ शोभा कपूर,पिता जीतेन्द्र और बहन एकता कपूर से मिला है. 20 साल पूरे होने के उपलक्ष्य पर उन्होंने बात की,जो बहुत रोचक थी पेश है कुछ खास अंश.

सवाल-आपको सिंगल फादर होने की वजह से किस तरह के फायदे मिले?

टाइम मेनेजमेंट अच्छी तरह से हो जाता है. छोटी-छोटी बातों पर ध्यान न देकर जरुरी चीजों पर अधिक ध्यान देने लगा हूं. अब अच्छी ऑर्गनाइज्ड, फोकस्ड,कॉन्फिडेंस और पर्पजफुल लाइफ हो चुकी है, जो मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया था.

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सवाल-इतने सालों में इंडस्ट्री में किस प्रकार का बदलाव देखते है?

मोटे तौर पर कहा जाय तो इंडस्ट्री के नियम सालों से एक जैसे ही होती है, केवल पैकेजिंग बदल जाती है. ओटीटी माध्यम जुड़ गया है, पहले सिंगल स्क्रीन था, अब मल्टीप्लेक्स का समय आ गया है. इसके अलावा लोगों तक पहुँचने का जरिया, फिल्म मेकिंग का तरीका बदला है, लेकिन कहानियां वही बनायीं जाती है, जो दर्शकों को पसंद आये और कलाकारों के अभिनय का दायरा वही रहता है. मनोरंजन के साथ अच्छी कहानी की मांग कभी कम नहीं होती.

सवाल-आज से 21 साल पहले दिन की शूटिंग के अनुभव क्या थे?

पहला शॉट मैंने जून साल 2000 को फिल्म ‘मुझे कुछ कहना है’ के लिए दिया था, जिसे करते हुए 21 साल हो गए. शूटिंग के पहले दिन मेरा पहला शॉट एक छड़ी पकड़कर करीना के घर आना था और करीना को प्यार का इजहार कर देना था. वह गुस्सा हो जाती है और मैं शॉक्ड होकर नींद से उठ जाता हूं और समझ में आता है कि ये एक सपना था, हकीकत नहीं और मैंने सोच लिया था कि उसे मैं कभी भी प्रपोज नहीं करूँगा. एक नाईटमेयर वाला सीक्वेंस था. उसे करने से पहले मैं बहुत खुश था, लेकिन अंदर से नर्वस भी था. सेट का वातावरण बड़ा फ़िल्मी लग रहा था. ये बहुत गलत कहा जाता है कि स्टार किड को रेड कारपेट दिया जाता है,जबकि सभी को जीरो से ही शुरू करना पड़ता है. जब समस्या आती है तो कोई सामने नहीं आता और मुझे वहां खड़े होकर सब कुछ सम्हालना पड़ा था. पहला दिन बहुत ख़राब गया, लेकिन धीरे-धीरे ये ठीक होता गया.

सवाल-आपने फिल्म ‘लक्ष्मी’ को प्रोड्यूस किया है, क्या अभिनय में आना नहीं चाहते?

मैं अभिनय अवश्य करूँगा,लेकिन लक्ष्मी की कहानी मुझे अच्छी लगी थीऔर अक्षय कुमार इसे करने के लिए राज़ी हुए इसलिए मैंने प्रोड्यूस किया. रिलीज में समस्या कोविड की वजह से आ गयी थी, लेकिन मुझे रिलीज करना था और मैंने ओटीटी पर रिलीज कर दिया और लोगों ने लॉकडाउन में इस फिल्म को देखकर हिट बना दिया.फिल्म को लेकर जितनी कमाई हुई, उससे मैं संतुष्ट हूं. मैं प्रोड्यूस अभिनय छोड़कर नहीं करना चाहता. अभी फिल्म ‘मारीच’  का काम मैंने ख़त्म किया है, जिसमें मैं अभिनय और प्रोड्यूस दोनों कर रहा हूं. अभिनय मेरे खून में है, जो कभी जा नहीं सकता. मैं अधिकतर साल में एक फिल्म या दो साल में एक फिल्म ही करता हूं. फिल्म प्रोड्यूस करना भी मुझे पसंद है, क्योंकि इसमें मैं कई तरह की फिल्मों का निर्माण कर सकता हूं. इस पेंडेमिक में ओटीटी और सेटेलाइट ही फिल्मों को रिलीज करने में वरदान सिद्ध हो रही है.

सवाल-आप विदेश में पढने गए और आकर फिल्में की, वहां की पढ़ाई से आपको अभिनय में किस प्रकार सहायता मिली और फिल्मों में अभिनय करने का फैसला कैसे लिया?

मैं वहां चार्टेड एकाउंटेंट बनने गया था, मेनेजमेंट किया और चार्टेड एकाउंटेंसी पढ़ा, जिसका फायदा मुझे बहुत मिला है. मैं अपनी एकाउंट, पिता और माँ की एकाउंट को सम्हालता हूं. फिल्म प्रोड्यूस करने में भी बजट के पूरा ख्याल, मैंने इस शिक्षा की वजह से कर पाया, क्योंकि किसी भी काम में पैसा सही जगह लग रहा है कि नहीं, देखना जरुरी होता है. केवल हस्ताक्षर कर देने से कई बार समस्या भी आती है. एजुकेशन हमेशा ही किसी न किसी रूप में काम आती है.

डिग्री लेने के बाद मैंने एक जॉब अमेरिका में लिया, उसे करने के बाद लगा कि कोर्पोरेट वर्ल्ड में काम करना संभव नहीं. कुछ क्रिएटिव काम करने की इच्छा होती थी. फिर मैं इंडिया आकर डेविड धवन के साथ एसिस्टेंट डायरेक्टर का काम किया. उस दौरान ‘मुझे कुछ कहना है’ में मुझे अभिनय का अवसर मिला. मैंने उसे जॉब के रूप में लिया और अभिनय को समझा.

सवाल-आपके पिता ने आपको अभिनय में किस तरह का सहयोग दिया?

मेरे पिता ने मेरी पहले काम की प्रसंशा की और आगे और अच्छा करने की सलाह दी. फिर एक्टिंग क्लासेस, फाइट क्लासेस की शुरुआत कर दी और थोड़े दिनों बाद मैंने एक्टिंग शुरू किया. उनका कहना है कि मुझे खुद काम करके ही खुद की कमी को समझकर ठीक कर सकता हूं.उन्होंने हमेशा मेहनत से काम किया है और मुझे भी करने की सलाह दी.

सवाल-कब शादी करने वाले है?

मैं आज अपने बेटे के लिए काफी हूं और वैसे ही जीना चाहता हूं, क्योंकि शादी कर मैं अपने बेटे को किसी के साथ शेयर नहीं कर सकता. मुझे शादी करना है या नहीं,अभी इस बारें में सोचा नहीं है. मैंने कभी नहीं कहा है कि मैं शादी नहीं करूँगा. हर कोई अपना लाइफ पार्टनर चाहता है, फिर मैं क्यों नहीं चाहूंगा.

सवाल-आपके अभिनय को लेकर क्या किसी ने कुछ सलाह दी?

हाँ कुछ ने कहा था कि मैं थोडा शांत हूं, मुझे फिल्मी हो जाना चाहिए,क्योंकि शांत इंसान हीरो नहीं बन सकता, जो शरारती, शैतान टाइप के होते है, वे ही हीरो बनते है, लेकिन मुझे ये बात समझ में कभी नहीं आई. वे शायद मुझे पहले के हीरो के जैसे देखना चाहते थे, जो अकेला होकर भी कईयों को पीट सकता है. उसकी लम्बाई 6 फीट की हो और मीडिया में हमेशा उसके अफेयर की चर्चा हो आदि. उस समय हीरो मटेरियल होना जरुरी होता था. आज लोग हर तरह की कहानियों की एक्सपेरिमेंट कर रहे है. अभी दर्शकों की पसंद के आधार पर कोई हीरो बनता है.

सवाल-लॉकडाउन में अपने परिवार और बेटे के साथ समय कैसे बिताया?

मैंने लक्ष्य के साथ काफी समय बिताया, उसके स्कूल की पढाई पर ध्यान दिया. मेरे माता- पिता के साथ लक्ष्य दिन में रहता है, इसलिए मैं वहां जाकर समय बिता लेता हूं. जिम जाता हूं, स्क्रिप्ट पढता हूं, डबिंग करता हूं. इस तरह कुछ न कुछ चलता रहता है, लेकिन मुझे हमेशा लगता है कि मैं बेटे के साथ कम समय बिता रहा हूं.

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सवाल-अभी कोविड कि तीसरी लहर आने वाली है, जो बच्चों के लिए खतरनाक है,लोग डरे हुए है, आपने लक्ष्य के लिए क्या तैयारी की है?

मैंने कोविड को खतरनाक हमेशा से ही माना है और सावधानी से बच्चे को दोस्त या दादी के घर ले जाते है. अधिक दूर मैं उसे लेकर नहीं जाता, जहाँ हायजिन और वैक्सीन लगाये लोग है, वहां ले जाता हूं.ऐसी कोई पक्की सबूत नहीं है कि तीसरा वेव आएगा और बच्चों के लिए खतरनाक है. सभी को सावधान रहने की जरुरत है. हमारे व्यवहार से ही वायरस को बढ़ने का मौका मिलता है. डर लगना जरुरी है, ताकि लोग घर से न निकले.

सवाल-आपकी पहली फिल्म की कुछ यादगार पल जिसे आप शेयर करना चाहे?

मेरी करीना के साथ कई यादें है, वह एक खुबसूरत अभिनेत्री है,मेरे साथ उसकी भी पहली फिल्म थी. उसकी फ्रेशनेस और ग्लैमर बहुत ही अलग थी. फिल्म के सफल होने में उसका काम दर्शकों को पसंद आना था. तब अधिक बात मैंने नहीं की थी. गोलमाल फिल्म के बाद हमारी अच्छी दोस्तीहो गयी थी.लॉकडाउन से पहले तैमूर और मेरा बेटा लक्ष्य साथ-साथ खेलते थे,लेकिन अभी कोरोना की वजह से जाना नहीं होता.

सवाल-फिल्मों की असफलता को आपने कैसे लिया?

कुछ फिल्मों के असफल होने पर मैंने परिवार से मोरल सपोर्ट लिया.असल में खुद को ही किसी असफलता की कर्व से गुजर कर आगे बढ़ना पड़ता है. सबसे बड़े स्टार भी कई बार गलत फिल्म ले लेते है और उससे निकलकर एक अच्छी फिल्म करते है और खुद को स्थापित करते है. मुझे थोडा समय लगा, क्योंकिमैं भी वैसी ही एक फिल्म चाहता था, ताकि लोग मुझे पसंद करने लगे और वह मेरी फिल्म ‘खाकी’ से हुआ.

सवाल-इन 20 सालों में फ़िल्मी कहानियों में कितना बदलाव देखते है?

कमर्शियल कहानियों में बदलाव आया है. पैकेजिंग पहले से अलग हो गयी है.आज किसी एक्शन फिल्म के लिए टीम को विदेश ले जाया जाता है, लेकिन हमारे देश के दर्शक इमोशनल है, इसलिए उन्हें इमोशन वाली कहानियां, जो मिट्टी से जुडी हुई हो, आज भी चलती है और कहानियों में जो ग्लैमर है, उसे भी नहीं जाना चाहिए. आज भी हीरो रोमांस, एक्शन और कॉमेडी करता है. ये भी सही है कि अभी ऑफ़बीट, रीयलिस्टिक फिल्मों को भी दर्शक पसंद करने लगे है, जिसे पहले लोग देखना पसंद नहीं करते थे.

कोरोना की नई लहर बदहाली में फंसे सिनेमाघर

कोरोना संक्रमण के डर से 2-3 माह सिनेमाघर खुले रहे पर उन के अंदर देखने के लिए दर्शक नहीं आ रहे थे. उम्मीद थी कि ‘राधे,’ ‘चेहरे,’ ‘सूर्यवंशी’ जैसी बड़ी फिल्मों के प्रदर्शन से दर्शक सिनेमाघर की तरफ लौटेंगे और इस से सिनेमाघर की रौनक लौटने के साथ ही फिल्म इंडस्ट्री को भी कुछ राहत मिलेगी, मगर कोरोना की नई लहर के चलते महाराष्ट्र सहित कई राज्यों के सिनेमाघर 25 मार्च से बंद कर दिए गए. परिणामत: अब ‘चेहरे,’ ‘सूर्यवंशी,’ ‘थलाइवी’ जैसी बड़े बजट की फिल्मों का प्रदर्शन अनिश्चित काल के लिए टल गया है.

सिर्फ हिंदी ही नहीं बल्कि मराठी भाषा की ‘जोंमीवली,’ ‘फ्री हिट डंका,’ ‘झिम्मा,’ ‘बली,’ ‘गोदावरी’ फिल्मों का प्रदर्शन भी अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया.

सलमान खान ने अपनी फिल्म ‘राधे’ को ले कर यहां तक कह दिया है कि इस ईद पर हालात बेहतर नहीं रहे तो इसे अगली ईद पर सिनेमाघरों में ही रिलीज किया जाएगा. ‘सूर्यवंशी’ और ‘चेहरे’ के निर्माता भी कह रहे हैं कि मई से हालात बेहतर हो जाएंगे तब फिल्में सिनेमाघरों में ही प्रदर्शित करेंगे.

यों तो ‘ओटीटी’ प्लेटफौर्म इन बड़े बजट वाली फिल्मों को ओटीटी प्लेटफौर्म पर प्रदर्शित करने का अपने हिसाब से निर्माताओं पर जोरदार दबाव बना रहे हैं. मगर एक कड़वा सच यह है कि ओटीटी पर बड़े बजट की फिल्म के आने से फिल्म इंडस्ट्री का भला कदापि नहीं हो सकता.

फिल्म इंडस्ट्री को खत्म करने की साजिश

वास्तव में इस वक्त बरबादी के कगार पर पहुंच चुकी फिल्म इंडस्ट्री को हमेशा के लिए खत्म करने की साजिश के तहत कुछ लोगों द्वारा मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का एक खतरनाक प्रयास किया जा रहा है. यह फिल्म इंडस्ट्री के लिए अति नाजुक मोड़ है.

निर्माता को यकीनन अपनी फिल्म को बड़े परदे यानी सिनेमाघरों में प्रदर्शन पर ही दांव लगाना चाहिए. अगर बड़ी फिल्में सिनेमाघरों में प्रदर्शन के लिए नहीं बचीं तो सिंगल थिएटर्स और मल्टीप्लैक्स को तबाह होने से कोई नहीं बचा पाएगा. यदि थिएटर्स और मल्टीप्लैक्स खत्म होना शुरू हुए तो फिल्म उद्योग की कमर टूटने से कोई नहीं बचा सकता. इस से फिल्म इंडस्ट्री हमेशा के लिए तबाह हो जाएगी और इस का पुन: उठना शायद संभव न हो पाए. ओटीटी प्लेटफौर्म का मकसद फिल्म इंडस्ट्री को बचाना कदापि नहीं है. इन्हें भारतीय फिल्म इंडस्ट्री से कोई सराकोर ही नहीं है. ये तो हौलीवुड के नक्शेकदम पर काम कर रहे हैं. हौलीवुड ने अपनी कार्यशैली से पूरे यूरोप के सिनेमा को खत्म कर हर जगह अपनी पैठ बना ली.

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एक कड़वा सच

यह एक कड़वा सच है. फिल्मों के ओटीटी पर आने से निर्माता को भी कोई खास लाभ नहीं मिल रहा है. अब तक अपनी फिल्मों को ओटीटी प्लेटफौर्म ‘हौटस्टार प्लस डिजनी’ पर आनंद पंडित की फिल्म ‘बिग बुल’ आई थी. मगर अब आनंद पंडित अपनी अमिताभ बच्चन व इमरान हाशमी के अभिनय से सजी फिल्म ‘चेहरे’ को किसी भी सूरत में ओटीटी प्लेटफौर्म को देने को तैयार नहीं हैं, जबकि ओटीटी प्लेटफौर्म की तरफ से उन पर काफी दबाव बनाया जा रहा है.

खुद आनंद पंडित कहते हैं, ‘‘यह सच है कि हम पर फिल्म ‘चेहरे’ को ओटीटी पर लाने का जबरदस्त दबाव है. इस की मूल वजह यह है कि हमारे देश मे 5-6 बड़ी ओटीटी कंपनियां हैं. इन्हें बड़ी फिल्में ही चाहिए. खासकर रोमांच थ्रिलर की और जिन में उत्तर भारत की पहाडि़यों का एहसास हो.

मगर ‘द बिग बुल’ से हमें कटु अनुभव हुए. फिल्म ‘बिग बुल’ से हमें टेबल प्रौफिट हुआ है, मगर इस का उतना फायदा नहीं हुआ जितना सिनेमाघर के बौक्स औफिस से मिल सकता था. इसलिए हम ने ‘चेहरे’ को सिनेमाघरों में ही प्रदर्शित करने के लिए रोका है. वैसे हमें भरोसा है कि मई के अंतिम सप्ताह तक सिनेमाघर खुल जाएंगे तो हम जून या जुलाई तक फिल्म को सिनेमाघर में ले कर जाएंगे.’’

आनंद पंडित की बातों में काफी सचाई है. माना कि ओटीटी प्लेटफौर्म पर फिल्म को देने से निर्माता को तुरंत लाभ मिल जाता है, मगर किसी भी फिल्म के लिए ओटीटी प्लेटफौर्म उतना लाभ नहीं दे सकता जितना सिनेमाघरों के बौक्स औफिस से मिल सकता है.

इस का सब से बड़ा उदाहरण राजकुमार राव की फिल्म ‘स्त्री’ है. इस फिल्म की निर्माण लागत 2 करोड़ रुपए थी और इस ने सिनेमाघर के बौक्स औफिस पर 150 करोड़ रुपए कमाए थे. जबकि ओटीटी पर इसे अधिकाधिक 15 करोड़ रुपए ही मिलते. सूत्रों के अनुसार फिल्म इंडस्ट्री के अंदरूनी सूत्र यह मान कर चल रहे हैं कि

यदि ‘सूर्यवंशी’ ओटीटी पर आई तो 50 करोड़ रुपए और अगर सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई तो 100 करोड़ रुपए का फायदा होगा.

हमें यहां यह भी याद रखना होगा कि फिल्म इंडस्ट्री को बंद होने के खतरे से बचाने के लिए आवश्यक है कि फिल्में सिनेमाघरों में प्रदर्शित हों और अपनी गुणवत्ता के आधार पर अधिकाधिक कमाई करें.

बेदम फिल्म इंडस्ट्री

यों तो कोरोना की वजह से पिछले 1 साल से जिस तरह के हालात बने हुए हैं उन्हें देखते हुए इस बात की कल्पना करना कि 2021 में फिल्मों को बौक्स औफिस पर बड़ी सफलता मिलेगी सपने देखने के समान ही है. ‘राधे’ या ‘सूर्यवंशी’ जैसी बड़ी फिल्मों के सिनेमाघरों में प्रदर्शन की खबरों से कुछ उम्मीदें जरूर बंधी थीं पर उस पर कोरोना की नई लहर ने कुठाराघात कर दिया.

सिनेमाघर भी तबाह

कोरोना महामारी के चलते 17 मार्च से पूरी तरह से बंद हो चुके मल्टीप्लैक्स व सिंगल थिएटर के मालिकों व इन से जुड़े कर्मचारियों पर दोहरी मार पड़ी है. मल्टीप्लैक्स चला रहे लोगों की कमाई व इन के कर्मचारियों के वेतन ठप्प हुए और ऊपर से कर्ज भी हो गया.

नवंबर माह से सरकार द्वारा सब कुछ खोल देने व सिनेमाघरों में 50% दर्शकों की उपस्थिति की शर्त से सिनेमाघर मालिकों की कमाई बढ़ने के बजाय उन का संकट बढ़ गया. ऐसे में कोई भी सिनेमाघरों के हालात पूरी तरह से सुधरने तक उन्हें नहीं खोलना चाहता था. कई शहरों के कई मल्टीप्लैक्स व सिंगल थिएटर नवंबर या फरवरी 2021 में भी नहीं खुले.

तो फिर सवाल उठता है कि जो मल्टीप्लैक्स खुले हैं वे क्यों खुले हैं और इन की स्थिति क्या है? देखिए, पूरे देश में पीवीआर के सर्वाधिक मल्टीप्लैक्स हैं और ये मल्टीप्लैक्स किसी न किसी शौपिंग मौल में हैं और किराए पर लिए गए हैं. जब शौपिंग मौल्स खुल गए तो इन पर मल्टीप्लैक्स खोलने का दबाव बढ़ा.

शौपिंग मौल के मालिक को किराया चाहिए. अब पूरे माह मल्टीप्लैक्स में भले ही 1-2 शो हो रहे हों पर उन्हें कोरोना की एसओपी के तहत सैनीटाइजर से ले कर साफसफाई पर पैसा खर्च करना पड़ रहा है. कर्मचारियों को पूरे माह की तनख्वाह देनी पड़ रही है.

बिजली का लंबाचौड़ा बिल भरना पड़ रहा है, जबकि हर शो में 3-4 ज्यादा दर्शक नहीं आ रहे हैं. परिणामत: सिनेमाघर वालों को अपनी जेब से सारे खर्च वहन करने पड़ रहे हैं. तो यह इन के लिए पूर्णरूपेण का सौदा है. इस का असर फिल्म इंडस्ट्री पर भी पड़ रहा है. सिनेमाघर फायदे में तब होंगे जब उन के सभी शो चलें और हर शो में काफी दर्शक हों.

सिनेमाघर में इन दिनों दर्शक न पहुंचने की कई वजहें हैं. पहली वजह तो दर्शक के मन में कोरोना का डार. दूसरी वजह कोरोना महामारी व लौकडाउन के चलते सभी की आर्थिक हालत का खराब होना है. ऐसे में दर्शक सिनेमाघर जा कर फिल्म देखने के लिए पैसे खर्च करने से पहले दस बार सोचता है. तीसरी वजह अच्छी फिल्मों का अभाव.

कुछ फिल्में लौकडाउन के वक्त निर्माताओं की जल्दबाजी के चलते पहले ही ओटीटी पर आ गईं. ‘राधे,’ ‘सूर्यवंशी’ जैसी फिल्में सिनेमाघर में आने से पहले हालात बेहतर होने का इंतजार कर रही थीं, तो वहीं पूरे 6 माह तक एक भी शूटिंग न हो पाने के चलते भी फिल्मों का अभाव हो गया है.

कुछ फिल्मों की शूटिंग चल रही थी तो अनुमान था कि ‘राधे’ व ‘सूर्यवंशी’ के प्रदर्शन से एक माहौल बनेगा, दर्शक सिनेमाघरों की तरफ मुड़ेंगे और फिर जूनजुलाई 2021 से नई फिल्में प्रदर्शन के लिए तैयार हो जाएंगी. मगर अब यह उम्मीद भी खत्म हो चुकी है, क्योंकि कोरोना की नई लहर के चलते फिल्मों की शूटिंग में काफी बड़ा अड़ंगा लग चुका है.

अब तो कुछ जगह सिनेमाघर पूर्णरूपेण बंद हो चुके हैं. कुछ जगह पर नाइट कर्फ्यू है तो दिन में मुश्किल से ही 2 शो हो सकते हैं पर उन शो के लिए फिल्में नहीं हैं.

सिनेमाघरों की माली हालत तभी सुधरेगी और सभी सिनेमाघर तब खुल सकते हैं जब बड़े बजट या अच्छी कहानी वाली बेहतरीन फिल्में लगातार कई हफ्तों तक सिनेमाघरों मे प्रदर्शित होने के लिए उपलब्ध होंगी जोकि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए 2021 में तो नामुमकिन ही लग रहा है. इस से भी फिल्म इंडस्ट्री की नैया डूबी है.

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यहां इस बात पर भी विचार करना होगा कि जो सिनेमाघर बंद हैं क्या उन से फिल्म इंडस्ट्री को नुकसान नहीं हो रहा है? ऐसा नहीं है. जो सिनेमाघर किराए पर नहीं हैं उन के मालिकों ने फिलहाल बंद रखा हुआ है, क्योंकि उन्हें किराया तो देना नहीं है.

सिनेमाघर जब तक बंद रहेंगे तब तक उन्हें बिजली का बिल भी न्यूनतम यानी यदि सिनेमाघर खुले रहने पर हजार रुपए देने पड़ते थे तो अब बंद रहने पर सिर्फ 100 रुपए देने पड़ते होंगे.

इस के अलावा इन्हें अपने कर्मचारियों को तनख्वाह भी नहीं देनी है. इस तरह ये खुद कम नुकसान में हैं, मगर इन की कमाई पूरी तरह बंद है. इस से फिल्म वितरक भी नुकसान में हैं. इस से घूमफिर कर फिल्म इंडस्ट्री को ही नुकसान पहुंच रहा है.

बड़े कलाकारों की भूमिका

कोरोना महामारी की वजह से फिल्मों व टीवी सीरियल के बजट में भी कटौती की गई है. जुलाई, 2020 माह में तय किया गया था कि कलाकार और वर्कर हर किसी की फीस में कटौती की जाएगी, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री के सूत्रों की मानें तो ऐसा सिर्फ वर्कर व तकनीशियन के साथ हुआ है.

फिल्म हो या टीवी सीरियल हर जगह कोरोना लहर की वापसी के बाद भी दिग्गज कलाकार अपनी मनमानी कीमत ही निर्माता से वसूल रहे हैं और निर्माता भी इन बड़े कलाकारों के सामने नतमस्तक हैं.

कोरोना लहर के दौरान फिल्मकार पहले की तरह अपनी फिल्म का प्रचार नहीं कर रहे हैं. फिल्म के विज्ञापन नहीं दे रहे हैं. मगर वे फिल्म के सिनेमाघर में प्रदर्शन के बाद अपने पीआरओ के माध्यम से जुटाए गए स्टार की सूची का विज्ञापन सोशल मीडिया के हर प्लेटफौर्म के अलावा चंद अंगरेजी के अखबारों में जरूर दे रहे हैं. जबकि दर्शक खुद को ठगा हुआ महसूस करता है.

हाल ही में जब हम ने एक ऐसे ही पत्रकार के यूट्यूब चैनल पर जा कर उस की फिल्म ‘बिग बुल’ की समीक्षा देखी जिसे उस ने साढ़े तीन स्टार दिए थे तो पाया कि कई दर्शकों ने उस के कमैंट बौक्स में सवाल पूछा था कि क्या आप बता सकते हैं कि आप ने किस फिल्म को तीन से कम स्टार दिए हैं? यानी खराब से खराब फिल्म की समीक्षा में अच्छे स्टार दिलाने का भी एक नया व्यापार शुरू हो गया है. मगर इस संस्कृति से भी फिल्म इंडस्ट्री को नुकसान हो रहा है.

फिल्म इंडस्ट्री तभी संकट से उबर सकेगी जब उस से जुड़े हर तबके, वर्कर, तकनीशियन, निर्माता, निर्देशक व कलाकार के साथसाथ फिल्म वितरक, ऐग्जिविटर व सिनेमाघर मालिकों के हितों का भी ध्यान रखा जाए. मगर कोरोना की नई लहर के साथ जिस तरह का माहौल बना है उस से यही आभास होता है कि शायद अब फिल्म इंडस्ट्री कभी उबर नहीं पाएगी.

रिलीज से पहले ही विवादों में आई अक्षय कुमार की नई फिल्म

हौरर कौमेडी तमिल फिल्म ‘‘कंचना’’ की हिंदी रीमेक फिल्म ‘‘लक्ष्मी बौम्ब’’ के लिए अक्षय कुमार और किआरा अडवाणी ने शूटिंग शुरू की, मगर दो दिन की शूटिंग खत्म होते ही फिल्म के निर्माता की तरफ से फिल्म में अक्षय कुमार के लुक व फिल्म के लुक का एक पोस्टर भी जारी कर दिया. उसके बाद फिल्म के निर्देशक राघव लौरेंस ने ट्विटर के माध्यम से इस फिल्म से खुद को अलग कर लेने का निर्णय सुना दिया. जबकि ‘लक्ष्मी बौम्ब’ की मूल तमिल फिल्म ‘‘कंचना’’ के लेखक, निर्देशक व निर्माता राघव लौरेंस ही हैं. उसके बाद से फिल्म निर्माता दूसरे निर्देशक की तलाश में जुट गए. इससे यह अनुमान लगाया गया कि सेट पर अक्षय कुमार और निर्देशक राघव लौरेंस के बीच कुछ अनबन हुई होगी.

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डायेरक्टर ने कही ये बात…

मगर अब राघव लौरेंस ने फिल्म से खुद को अलग करने के लिए फिल्म के निर्माता तुषार कपूर और सबीना खान को कटघरे में खड़ा करते हुए अक्षय कुमार की तारीफ की है. राघव लौरेंस ने कहा है- ‘‘निर्माताओं ने मुझे दुःखी कर दिया. वह बिना मेरी सलाह लिए मेरी फिल्म का लुक पोस्टर बाजार में कैसे ला सकते हैं? निर्देशक के तौर पर उन्होने मुझे आहत किया और उनकी तरफ से कोई बात नहीं की गयी. क्या मैं मूर्ख हूं. उनके लिए मेरी कोई अहमियत ही नहीं हैं. मैं सिर्फ इतना ही चाहता था कि वह मुझे जानकारी देते रहते, पर उन्होंने मुझे अंधेरे में रखा. मुझे अक्षय कुमार से कोई शिकायत नहीं है. उन्होंने तो फिल्म के किरदार के अनुरूप खुद को ढालने के लिए काफी तैयारी की. वह काफी मेहनत कर रहे हैं. अब जो कुछ होगा, उसे मेरे वकील देखेंगे.’’

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बता दें कि मशहूर तमिल फिल्मकार राघव लौरेंस ने 2011 में लेखक, निर्देशक व निर्माता तमिल फिल्म ‘कंचना’ बनायी थी. इस फिल्म को मिली सफलता के बाद उन्होंने 2015 में इसके सीक्वल का निर्माण किया. फिल्म का तीसरा पार्ट कंचना-3 इसी वर्ष 19 अप्रैल को सिनेमाघरों में पहुंची. इन फिल्मों को हिंदी में डब करके भी रिलीज किया जा चुका है, जिसे देखकर तुषार कपूर व सबीना खान ने 2011 की सफल फिल्म ‘‘कंचना’’ को हिंदी में रीमेक करने के अधिकार हासिल कर इसके निर्देशन की जिम्मेदारी राघव लौरेंस को सौंपी थी.

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फिल्म रिव्यू : रिस्कनामा

रेटिंग : दो स्टार

गांव के पुरुष के अत्याचार से अकाल मृत्यु प्राप्त लड़की भूतनी बनकर किस तरह पूरे गांव के मर्दों से बदला लेती है, उसी की कहानी है फिल्म ‘‘रिस्कनामा’’. पर पूरे परिवार के साथ देखने योग्य नही है.

फिल्म की कहानी राजस्थान के एक गांव की है, जहां के सरपंच शेरसिंह गुर्जर (सचिन गुर्जर) का हुकुम ही सर्वोपरी है. कोई भी इंसान उनके खिलाफ जाने की जुर्रत नही करता. पंचायत के सभी सदस्य शेरसिंह की ही बात का समर्थन करते हैं. शेरसिंह का दावा है कि वह हर काम देश व समाज की संस्कृति को बचाने व गांव की भलाई के लिए ही करते हैं. शेरसिंह के गांव में प्यार करना अपराध है. जो युवक व युवती प्यार करते हुए पकड़े जाते हैं, उन दोनों को शेरसिंह मौत की नींद सुला देता है. गांव के काका (प्रमोद माउथो) की लड़की दामिनी जब एक लड़के राजू के प्यार में पड़कर गांव से बाहर जा रही होती है, तो काका पंचायत पहुंचते हैं, जहां प्रेम की सजा मौत सुनाई जाती है. सरपंच शेरसिंह का मानना है कि दामिनी अपनी मनमर्जी से राजू के साथ गयी है. दोनो को ढूंढकर मौत की सजा दी जाए. गांव के लोग दामिनी व राजू को ढूंढकर लाते हैं, और दोनों को मौत की नींद सुला दिया जाता है. पर दामिनी भूतनी बनकर एक पेड़ पर रहने लगती है. उसके बाद आए दिन किसी न किसी गांव के युवक का शव गांव के उसी पेड़ पर लटकते हुए मिलता है, जिस पर दामिनी के भूत ने कब्जा जमा रखा है.

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सरपंच शेरसिंह जितने नेक दिल इंसान हैं, उनका भाई वीर सिंह (सचिन गुर्जर) उतना ही बदचलन है. हर दिन गांव की किसी न किसी लड़की की इज्जत लूटना उसका पेशा सा बन गया है. दिन भर शराब में डूबा रहता है या जुआ खेलता है. मगर शेरसिंह कि ख्याति दूर दूर तक फैली हुई है. पड़ोसी गांव के चौधरी (शहबाज खान) अपनी बेटी मोहिनी (अनुपमा) की शादी शेरसिंह के भाई वीर सिंह से करने का प्रस्ताव यह सोचकर रखते हैं कि शेरसिंह की ही तरह वीर सिंह भी अच्छा आदमी होगा. शादी के बाद पहली रात ही मोहिनी को पता चल जाता है कि उसकी शादी गलत इंसान से हुई है. वीर सिंह हर दिन रात में शराब पीकर किसी तरह कमरे में पहुंचता है. कुछ दिन बाद चौधरी अपनी बेटी मोहिनी को बिदा कराने आते हैं. जब वह मोहिनी को बिदा कराकर जा रहे होते हैं, तो कुछ पलों के लिए उसकी गाड़ी उसी पेड़ के नीचे रूकती है और दामिनी का भूत मोहिनी में समा जाता है. घर पहुंचने पर मोहिनी बीमार हो जाती है. बेसुध रहती है. डाक्टरों को बीमारी की वजह समझ नही आती. डाक्टर कहते हैं कि यह किसी सदमे में है. इसे खुश रखने की कोशिश की जाए. समय गुजरता है. पर वीर सिंह अपनी पत्नी मोहिनी को बिदा कराने नही जाता. तब शेरसिंह की पत्नी सरला (कल्पना अग्रवाल), शेरसिंह को घर की इज्जत बचाने के लिए मोहिनी को बिदा कराने भेजती है. पर चौधरी गांव की पंचायत बुलाकर शेरसिह पर आरोप लगाते हुए मोहिनी को भेजने से मना कर देते हैं.

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शेरसिंह अपनी गलती कबूल करते हुए कहते हैं कि वह एक बार मोहिनी से मिलना चाहेंगे. शेरसिंह, मोहिनी से मिलने घर के अंदर जाता है. मोहिनी इस शर्त पर जाने के लिए राजी होती हैं कि वह उसके साथ पत्नी जैसा व्यवहार करेंगे. क्योंकि उसके पिता ने उसकी शादी उन्ही को देखकर की थी ना कि वीरसिंह को. अपने गांव व घर में अपनी इज्जत बचाने के लिए शर्त मान लेते हैं. मोहिनी बिदा होकर आ जाती है. अब मोहिनी हर रात शराब में डूबे वीरसिंह को कमरे से बाहर कर शेरसिंह के साथ रात गुजारती है. एक दिन रात में मोहिनी के कमरे से शेरसिंह को निकलते हुए शेरसिंह की बहन ज्योति देख लेती है. शेरसिंह कहता है कि वह मोहिनी को समझाने गया था. फिर ज्योति की सलाह पर शेरसिंह, वीर व मोहिनी को पिकनिक मनाने भेजते हैं. जहां वीर सिंह सुधर जाता है. फिर कहानी तेजी से बदलती है. फिर हालात ऐसे बनते हैं कि वीरसिंह, शेरसिंह और मोहिनी को रंगेहाथों पकड़ता है. वीरसिंह के हाथों गोली चलती है. शेरसिंह व मोहिनी मारे जाते हैं, पर फिर मोहिनी खड़ी हो जाती है, पता चलता है कि उसके अंदर तो दामिनी का भूत है, जिसने बदला लेने के लिए  शेरसिंह से यह सब करवाया. अंततः वीरसिंह भी मारा जाता है और सरला को गांव का सरपंच बना दिया जाता है.

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बदला लेने की कहानी ‘‘रिस्कनामा’’ एक बोझिल फिल्म है. इसमें मनोरंजन का घोर अभाव है. फिल्म में गंदी गालियों की भरमार है, जिसके चलते पूरे परिवार के साथ बैठकर फिल्म नहीं देखी जा सकती. जबकि इस विषय पर यह बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. मगर अपरिपक्व लेखन व निर्देशन के चलते फिल्म एकदम सतही बनकर रह गयी. कई जगह लगता है कि पटकथा लिखते समय लेखक खुद स्पष्ट नही रहें कि उन्हें अपनी फिल्म को वास्तव में किस दिशा की तरफ ले जाना है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो फिल्म में एक भी कलाकार अपने किरदार के साथ न्याय करने में पूर्णतः सफल नही है. दोहरी भूमिका में सचिन गुर्जर है, मगर शेरसिंह के किरदार में वह कुछ हद तक सफल रहे हैं, पर वीर सिंह के किरदार में वह बेवजह लाउड हो गए हैं. अनुपमा तो सुंदर लगी हैं. कल्पना अग्रवाल ठीक ठाक हैं. प्रमोद माउथो एक गरीब व मजबूर गांव वाले के छोटे किरदार में अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

लगभग पौने दो घंटे की फिल्म ‘रिस्कनामा’ का निर्माण अर्जुन सिंह ने किया है. फिल्म के निर्देशक गुर्जर अर्जन नागर हैं.

फिल्म रिव्यू : फोटोग्राफ

रेटिंग: डेढ़ स्टार

‘‘लंच बाक्स’’ जैसी सफल फिल्म के सर्जक रितेश बत्रा इस बार रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘‘फोटोग्राफ’’ लेकर आए हैं.  जिसे देखने के बाद रितेश बत्रा पर ‘‘वन फिल्म वंडर’’ की ही कहावत सटीक बैठती है. इस रोमांटिक कौमेडी फिल्म में प्यार की भावनाएं तो कहीं उभरती ही नही है.

फिल्म की कहानी मुंबई की है. मुंबई के गेटवे आफ इंडिया पर घूमने आए लोगों के फोटो तुरंत खींचकर देकर कुछ फोटोग्राफर अपनी जीविका चलाते हैं. उन्हीं में से एक है मो.रफीक (नवाजुद्दीन सिद्दीकी). रफीक के माता पिता बचपन में ही खत्म हो गए थे. उनकी दादी ने उसे व उसकी दो बहनों को पाल पोसकर बड़ा किया. रफीक ने अपनी दोनों बहनों की शादी अच्छे ढंग से की. पर अब तक उनकी शादी नहीं हुई है. उसकी दादी चाहती हैं कि रफीक जल्द से जल्द शादी कर ले. दादी उसके पीछे पड़ी हुई हैं पर रफीक को कोई लड़की नहीं मिली. एक दिन वह गेटवे आफ इंडिया पर घूमने आयी गुजराती परिवार की लड़की मिलोनी (सान्या मल्होत्रा) की तस्वीर खींचता है. और यूं ही उसकी तस्वीर अपनी दादी (जफर) के पास भेज देता है कि वह चिंता न करें उसे एक अच्छी लड़की मिल गयी है. दादी को वह उसका नाम नूरी बता देता है क्योंकि उसने मिलोनी से नाम पूछा ही नहीं था. अब दादी का पत्र आ जाता है कि वह मुंबई नूरी से मिलने के लिए आ रही हैं तो रफीक परेशान हो जाता है. पर जल्द ही रफीक व मिलोनी की मुलाकात हो जाती है. रफीक,मिलोनी से निवेदन करता है कि वह उसकी दादी के मुंबई आने पर उनकी प्रेमिका बनकर मिल ले और वह बता देता है कि उसने दादी को उसका नाम नूरी बताया है. मिलोनी अमीर गुजराती परिवार की लड़की है, जो कि सी ए की तैयारी कर रही है. जब दादी मुंबई पहुंचती हैं तो रफीक मिलोनी को नूरी कहकर अपनी दादी से मिलवाता है. उसके बाद मिलोनी व रफी की मुलाकातें बढ़ती हैं. दोनों एक दूसरे के साथ एडजस्ट करने के लिए खुद को बदलने पर विचार करना शुरू करते हैं. पर एक दिन दादी रफीक से कह देती हैं कि उन्हे पता चल गया है कि नूरी का नाम कुछ और है और वह मुस्लिम नही है. उसके बाद रफीक, मिलोनी को लेकर फिल्म देखने जाता है. मिलोनी बीच में ही फिल्म छोडकर बाहर बैठ जाती है. रफीक भी उसके पीछे आता है और फिल्म की आगे की कहानी बताते हुए कहता है कि लड़की व लड़के के माता पिता को इनके प्यार पर एतराज होगा. और फिर दोनो चल पड़ते हैं.

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पटकथा लेखन व कथा कथन की कमजोरी के चलते दस मिनट बाद ही दर्शक सोचने लगते हैं कि यह फिल्म कब खत्म होगी. फिल्म का अंत होने से पहले ही दर्शक कह उठता है कि ‘‘कहां फंसायो नाथ.’’ फिल्म बहुत ही धीमी गति से सरकती रहती है. इतना ही नहीं लेखक व निर्देशक ने बेवजह कोचिंग क्लास के अंदर का लंबा दृश्य, फिर कोचिंग क्लास के शिक्षक की सड़क पर मिलोनी से मुलाकात, अपने माता पिता के कहने पर एक गुजराती लड़के से होटल मे मिलोनी की मुलाकात के दृश्य गढ़कर कहानी को भटकाने का ही काम किया है. यह गैरजरुरी दृश्य कहानी में पैबंद लगाने का ही काम करते हैं. बतौर निर्देशक व लेखक रितेश बत्रा की यह सबसे कमजोर फिल्म कही जाएगी. एडीटिंग टेबल पर भी इस फिल्म को कसने की जरूरत थी. यह रोमांटिक कौमेडी फिल्म है पर दर्शक को एक बार भी हंसी नही आती. इतना ही नहीं मिलोनी या रफीक के चेहरे पर एक बार भी प्रेम की भावनाएं नजर नहीं आती.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो नवाजुद्दीन सिद्दीकी और सान्या मल्होत्रा दोनों ने ही निराश किया है. दादी के किरदार में फारुख जफर जरूर कुछ छाप छोड़ती हैं.

एक घंटा 51 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘फोटोग्राफ’’ का निर्माण रितेश बत्रा, रौनी स्क्रूवाला, नील कोप, विंसेट सेनियो ने किया है. निर्देशक रितेश बत्रा, संगीतकार पीटर रैबुम, कैमरामैन टिम गिलिस व बेन कुचिन्स तथा कलाकार हैं- नवाजुद्दीन सिद्दिकी, सान्या मल्होत्रा, फारूख जफर, विजय राज, जिम सर्भ, आकाश सिन्हा, ब्रिंदा त्रिवेदी नायक, गीतांजली कुलकर्णी, सहर्ष कुमार शुक्ला व अन्य.

मैं कोई रईस बाप का बेटा नहीं : नवाजुद्दीन सिद्दीकी

हिंदी फिल्म ‘शूल’ और ‘सरफरोश’ से अभिनय कैरियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरपुर जिले के बुधाना कस्बे के एक किसान परिवार से हैं. अभिनय की इच्छा उन्हें बचपन से ही थी. यही वजह थी कि विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने दिल्ली के नेशनल स्कूल औफ ड्रामा से भी स्नातक की शिक्षा पूरी की और थिएटर में अभिनय करने लगे. शुरुआत में उन्होंने कई बड़े और छोटे फिल्मों में काम किया, पर वे अधिक सफल नहीं रहे. असली पहचान उन्हें फिल्म पिपली लाइव, कहानी, गैंग्स औफ वासेपुर, लंचबौक्स जैसी फिल्मों से मिली. साधारण कदकाठी के होते हुए भी उन्होंने फिल्मों में अपनी एक अलग पहचान बनायीं. अभी उनकी फिल्म ‘फोटोग्राफ’ रिलीज पर है. जिसे लेकर वे काफी उत्सुक हैं. पेश है कुछ अंश.

इस फिल्म में आपकी चुनौती क्या रही?

इसमें अपने आपको साधारण रखना ही चुनौती थी. निर्देशक रितेश बत्रा ने मुझे एक आम फोटोग्राफर की तरह लुक रखने को कहा, जो मेरे लिए आसान नहीं था, क्योंकि एक्शन बोलते ही एक्टिंग का सुर लग जाता है और उसी को निर्देशक ने दबाया है. एक्टिंग न करना ही इसमें चुनौती रही. जब हम कैजुअल होते थे, तभी निर्देशक उसे शूट करता था.

आपने इस चरित्र के लिए क्या-क्या तैयारियां की है?

गेट वे औफ इंडिया से कई फोटोग्राफर को बुलाया गया और उनके काम को मैंने नजदीक से देखा और पाया कि कैसे वे पूरा दिन काम करते हैं, दोपहर तक कैसे थक जाते हैं आदि सभी को फिल्म में दिखाने की कोशिश की गयी है.

आपने पहला पोर्टफोलियो कब बनाया था?

मैं साल 2000 में मुंबई आ गया था. उस समय मेरे पास पैसे नहीं थे, इसलिए वर्ष 2003 में मैंने पहला पोर्टफोलियो बनाया था.

इस फिल्म में दिखाए गए बेमेल रिलेशनशिप पर आप कितना विश्वास रखते हैं?

ऐसे रिश्ते बहुत होते हैं और इसमें मैं विश्वास रखता हूं. फिल्मों में उन्ही घटनाओं को दिखाया जाता है, जो रुचिकर और अलग हो. जिसमें ड्रामा होता है. इसमें एक पड़ाव है कोई ड्रामा नहीं है.

शादी का प्रेशर आप पर कितना था और अपने रिश्ते को परिवार तक कैसे ले गए?

मुझपर अधिक शादी का प्रेशर नहीं था. मैंने अपने रिश्ते को बताया और उन्होंने हां कर दी.

आपकी फिल्में लगातार आ रही हैं क्या आपको ओवर एक्सपोज होने का डर नहीं है?

मैंने अपने जीवन में थिएटर में 211 चरित्र निभाए हैं. 200 नाटक किये हैं और रियल लाइफ में मैंने तकरीबन 3 हजार लोगों को औब्जर्व किया है, क्योंकि जब मेरे पास काम नहीं था. आगे के सौ साल भी मेरे लिए कोई मुश्किल नहीं, क्योंकि मेरे पास मसाला बहुत है. मैंने हर तरह के लोगों के साथ मिलकर समय बिताया है, मैं कोई रईस बाप का बेटा नहीं हूं, जिसे आस-पास के बारें में पता न हो.

क्या आपको लगता है कि अभी फोटोग्राफ की कोई एल्बम नहीं बनती, जिसे देखकर पुरानी बातों की यादें ताजा की जा सके?

ये सही है कि अब यादें जल्दी धुंधली पड़ जाती है, क्योंकि मोबाइल और उसकी तस्वीरें अधिक दिनों तक नहीं रहती, पर जमाना ऐसा है और लोग इसे ही पसंद कर रहे हैं. तस्वीरों की एल्बम होना आवश्यक है, जिसे आप बाद में याद कर सकें.

आपने खेतिहर किसानों के लिए अपने गांव में काफी सारा काम किया है, अभी वह कैसा चल रहा है?

मैंने डेढ़ साल से गांव में जाना कम कर दिया है. मेरा किसान भाई आधुनिक तरीके से खेती कर रहा है, जिसमें कम पानी में अधिक फसल उगाई जा सकती है. इसके लिए अधिक से अधिक प्रयोग किसानों को करना जरुरी है, क्योंकि हमारे यहां ट्यूबवेल से जो पानी आता है. उसका लेवल कम हो रहा है. पहले जब मैं खेती करता था तो 80 फीट पर पानी आ जाता था. अब 400 फीट पर पानी आता है. मैं चाहता हूं कि किसानों में इस बारें में जागरूकता बढे. अभी हमारे गांव के आसपास के क्षेत्र में काम हो रहा है, आगे और अधिक काम करने की इच्छा है.

आप स्टारडम को कितना एन्जाय करते हैं?

मैं अभी काम कर रहा हूं, स्टारडम को एन्जाय करने का समय नहीं है.

क्या दूसरे भाषाओं की फिल्में करने की इच्छा है?

मैं अच्छी किसी भी भाषा की कहानी को करना पसंद करता हूं.

अभी आप अपने व्यक्तित्व में क्या परिवर्तन पाते हैं?

मेरी पर्सनालिटी कभी कुछ खास नहीं थी. मैंने सोच रखा था कि मुझे जो काम मिलेगा, उसे मैं करता रहूंगा. मेरा कोई ड्रीम नहीं था, उसकी कोई शुरुआत भी नहीं थी, पर अब मैं खुश हूं.

जब दिलीप कुमार ने सायरा बानो को दे दिया था तलाक

बौलीवुड के ट्रैजडी किंग दिलीप कुमार लंबे समय से बीमार चल रहे थे, जिसके बाद उनका निधन हो गया है. ट्रैजडी किंग दिलीप कुमार की पर्सनल लाइफ की बात करें तो वह कई बार सुर्खियों में रहे हैं.

फिल्म इंडस्ट्री में तलाक होना जहां आम बात है, वहीं दिलीप कुमार और सायरा बानो की जोड़ी एक मिसाल मानी जाती है. आज भले ही इन दोनों दिग्गज कलाकार के बीच गहरा रिश्ता रहा हो लेकिन एक समय था जब दिलीप और सायरा की शादी भी विवादों से दूर नहीं थी. दोनों के बीच उस वक्त दरार पड़ गई थी, जब दिलीप कुमार की लाइफ में पाकिस्तानी लेडी आसमां आ गई थीं. यही नहीं दिलीप ने सायरा को तलाक देकर आसमां से शादी कर ली थी.

आसमां और दिलीप कुमार की मुलाकात हैदराबाद में एक क्रिकेट मैच के दौरान हुई थी. इसके बाद दोनों के बीच काफी लंबे समय तक अफेयर चला. लोगों के सवाल से बचने के लिए दिलीप कुमार ने घर से निकलना तक छोड़ दिया था.

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आखिरकार 1980 में दिलीप और आसमां ने शादी कर ली थी. लेकिन फिर अचानक दिलीप कुमार आसमां को 1982 में तलाक दे दिया और वापस सायरा की ओर लौट आए. इस अफेयर का जिक्र उन्होंने अपनी बायोग्राफी ‘द सबस्टांस एंड द शैडो’ में किया था.

दिलीप कुमार ने अपनी किताब में लिखा था कि ‘मेरी लाइफ का ये एपिसोड था, जिसे हम दोनों ही भूलना चाहते थे और हमने भूला भी दिया है. जब मेरी मुलाकात आसमां से हुई तो वह अपने पति के साथ रह रही थी. वह तीन बच्चों की मां थी. आसमां से मेरी मुलाकात मेरी बहन-फौजिया और सईदा ने कराई थी. आसमां मेरी दोनों बहनों की दोस्त थी. पहले मुझे लगा कि वह भी मेरे दूसरे फैन्स की तरह ही होगी.’

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