कहानी- मेहा गुप्ता
‘‘जिस समाज में और जिन लोगों के बीच उठनाबैठना है हमारा. हमें यह
स्टेटस मैंटेन करना पड़ता है. अब तुझ से क्या छिपाना है. मानसम्मान, दौलत भी एक नशा ही तो है डियर. एक बार लत लग जाए तो आसानी से छूटती नहीं है. सुनील की यह लत तो बहुत पुरानी है. इस जन्म में तो छूटेगी नहीं’’
‘‘जब से शादी हुई है यह आर्थिक उतारचढ़ाव मेरे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है. शादी में चढ़े मेरे जेवर भी 1-1 कर के सारे बिक गए. कभी तो ऐसा होता है हम लोग बिलकुल रोड पर आ जाते हैं और कभी अरबों में खेलने लगते हैं. यह घर, गाड़ी, मेरा बुटीक सभी कुछ लोन पर है. बच्चे भी अपने पापा की भाषा में बात करते हैं. घूमनाफिरना, लेटैस्ट गैजेट्स, शौपिंग बस यही उन की जिंदगी का ध्येय बन गया है.’’
‘‘बच्चे भी? पर उन्हें सही मार्ग दिखाना तो तेरे हाथ में है न? तू बदलेगी तभी तो तुझे देख कर तेरे बच्चे तेरा अनुसरण करेंगे.’’
‘‘छोड़ न मैं बच्चों का दिल नहीं दुखाना चाहती और सुनील को भी पसंद नहीं है कि
मैं बातबात पर रोकटोक करूं,’’ उस ने बड़ी सहजता से कहा जैसे उस के लिए ये सब बहुत सामान्य है.
‘‘12 बज गए हैं. चल अब हमें सोना चाहिए. गुड नाइट,’’ कहते हुए वह सो गई पर मेरी आंखों से नींद कोसों दूर थी.
दूसरे दिन सुबह जल्दी की फ्लाइट थी. मैं समय से काफी पहले ही उठ गई ताकि सलोनी को कुछ सांत्वना और आर्थिक सलाहकार के रूप में कुछ नेक सलाह दे पाऊं. पर मुझे एहसास हुआ कि उसे मेरी राय की विशेष आवश्यकता नहीं है. चलते हुए उस ने मुझे आकर्षक या यों कहूं महंगी पैकिंग में ढेरों उपहार दिए. उस की कल रात की बातों में और लेनदेन के व्यवहार में कोई सामंजस्य नहीं था. मुझे अपने द्वारा दिए उपहार इन सब के सामने बहुत तुच्छ लग रहे थे. एकदूसरे के संपर्क में रहने का वादा कर मैं मुंबई आ गई. अपने काम की व्यस्तताओं में से भी समय निकाल मैं उस से चैट कर लिया करती थी.
सोशल मीडिया भी एक लत है. एक बार लग जाए तो इंसान उस से दूर नहीं रह सकता. फेसबुक अकाउंट खोलते ही मुझे पता होता था उस में सलोनी का कोई न कोई नई और रोमांचक पोस्ट अवश्य होगी. इस बार उस ने स्विट्जरलैंड के बहुत ही खूबसूरत फोटो अपडेट किए थे पर इस बार मुझे रोमांच नहीं हैरानी हुई थी. हर बार की तरह मैं ने उस की पोस्ट पर लाइक्स या कमैंट्स नहीं किए. मेरी इच्छा हुई कि उसे फोन कर झंझोड़ कर पूछूं कि अचानक तेरे हाथ में क्या कुबेर का खजाना लग गया जो तू फिर घूमनेफिरने पर इतना उड़ाने लगी? मुझे उस पर गुस्सा भी आ रहा था. गलत बात को मैं कभी बरदाश्त नहीं कर पाती हूं.
संयोग कुछ ऐसा हुआ कि मेरे पति का जयपुर में तबादला हो गया. पर मैं ने यह बात सलोनी से छिपा कर रखी. बच्चों का स्कूल में ऐडमिशन, घर ढूंढ़ने जैसी जरूरतों के चलते मेरा कई बार जयपुर जाना हुआ पर मैं ने उस से संपर्क नहीं किया. कुछ समय का भी अभाव था. महीनेभर बाद हम जयपुर रहने आ गए. धीरेधीरे मेरी जिंदगी फिर से पटरी पर आने लगी. मैं ने अपना तबादला भी अपने बैंक की जयपुर शाखा में करवा लिया.
एक दिन मेरे पास सलोनी का फोन आया, ‘‘तू जयपुर आ गई है और तूने मुझे
बताना भी जरूरी नहीं समझा?’’
एक बार तो मैं हक्कीबक्की रह गई कि कहीं उस ने मुझे किसी मौल या रास्ते में देख तो नहीं लिया… मैं उस से झूठ नहीं बोल सकती थी, इसलिए मैं ने धीरे से कहा, ‘‘हम लोग जयपुर ही शिफ्ट हो गए हैं,’’ मेरे स्वर में अपराधभाव था.
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‘‘क्या? तूने मुझे बताना जरूरी नहीं समझा?’’
मैं कोई जवाब न दे पाई.
‘‘तू मुझे अपना पता सैंड कर. मैं घंटेभर में तेरे पास पहुंचती हूं… मिल कर बात करते हैं.’’
करीब घंटेभर बाद सलोनी घर पर थी. हम जब भी मिलते वह हर बार एक नई डिजाइनर ड्रैस में होती थी और वह भी लेटैस्ट और मैचिंग फुटवियर, पर्स और ऐक्सैसरीज के साथ.
‘‘अच्छा यह तो बता तुझे यह कैसे पता चला कि मैं जयपुर आ गई हूं?’’
‘‘पिछले हफ्ते मैं मुंबई आई थी. मेरी स्विट्जरलैंड की फ्लाइट वहीं से थी. मैं अचानक तेरे घर आ कर तुझे सरप्राइज देना चाहती थी पर वाचमैन ने बताया तुम जयपुर शिफ्ट हो गई हो. तू सच बता कि शिफ्ट हो जाने की बात मुझे क्यों नहीं बताई?’’
‘‘अरे तू भी न… जरा भी नहीं बदली है. सच कहूं सलोनी जब से हम दोनों मिले हैं मुझे कुछ सही नहीं लग रहा है,’’ मैं बोलने में थोड़ा हिचक रही थी, ‘‘तुझे नहीं लगता तूने जिंदगी को मजाक बना कर रख दिया है… जिंदगी को जिंदादिली से जीना अच्छी बात है पर इतनी जिंदादिली कि सारे आदर्श, सारी नीतियां ताक पर रख दो… तू थोड़ा दूरदर्शी बन कर देख. इस से तेरे बच्चों पर कितना खराब असर पड़ेगा. तू मां है उन की, उन्हें अच्छेबुरे का फर्क समझाना फर्ज है तेरा. अगर तू उन का पोषण ही सड़ी खाद से करेगी तो उन में स्वस्थ फलों का पल्लवन कैसे होगा?’’
‘‘तू गलत समझ रही है सलोनी. सुनील ने ऐक्सपोर्टइंपोर्ट का नया व्यवसाय शुरू किया है और वह अच्छा चल पड़ा है. क्या पैसा कमाना गुनाह है? सुनील रिस्क लेना जानता है. फिर कौन सा ऐसा बिजनैस है जो शतप्रतिशत ईमानदारी से होता है?’’
मैं उस की नादानी पर मुसकरा भर दी. मैं समझ गई थी सलोनी को कुछ भी समझाना बेकार है. वह पूरी तरह से सुनीलमय हो गई थी. पैसों की चकाचौंध ने उस की नैतिकअनैतिक के बीच के फर्क को समझने की शक्ति खत्म कर दी थी. ऐसा कौन सा बिजनैस है, जिस में आदमी रातोंरात अमीर हो जाता है?
दूसरे दिन अमन औफिस के लिए थोड़ा जल्दी निकल गए. पर घर से निकलते ही लगातार बजते हौर्न की आवाज से मैं समझ गई जनाब आज फिर कुछ भूल रहे हैं. मैं घर से बाहर निकलती उस से पहले मेरे मोबाइल की घंटी बजने लगी.
‘‘हैलो सोना, मेरी स्टडीटेबल पर नीले रंग की फाइल रह गई है. जल्दी दे जाओ.’’
मैं भुनभुनाते हुए फाइल लेने ही जा रही थी कि मेरी नजर फाइल पर लिखे नाम सुनील पर पड़ी. मेरे दिमाग में बिजली का झटका सा लगा.
‘‘मैं इस केस के बारे में आप से कुछ पूछना चाहती थी.’’
‘‘क्यों इस ने तुम्हारे बैंक को भी बेवकूफ बनाया है क्या?’’
‘‘नहीं ऐसी बात नहीं है…’’
मेरी बात पूरी होने से पहले ही उन्होंने गाड़ी बढ़ा दी. पर मेरे दिल को कहां चैन था. मैं ने तुरंत इन्हें फोन लगाया, ‘‘हैलो अमन, मैं तुम्हें बताना चाहती हूं कि सुनील मेरी सब से प्यारी सहेली सलोनी का पति है. क्या आप इन के केस के बारे में कुछ बता सकते हो? ’’
‘‘सोना मैं तुम्हें ज्यादा नहीं बता सकता. यू नो, ये सब बहुत कौन्फिडैंशियल होता है. बस इतना जान लो कि हम सीधे उस के घर रेड डालने जा रहे हैं.’’
फिर थोड़ा रुक कर अमन ने पूछा, ‘‘पर तुम क्यों इतनी चिंता कर रही हो? वह आदमी इन सब बातों का आदी है.’’
मुझे कैसे भी चैन नहीं पड़ रहा था. मुझे सलोनी के लिए बहुत बुरा लग रहा था. यदि उसे पता चल गया अमन मेरे पति हैं तो उसे कितना बुरा लगेगा. मेरी प्यारी सलोनी, उस का एक नंबर भी मुझ से कम आ जाता तो उस से ज्यादा मैं दुखी हो जाती थी. आज इतने बड़े दर्द से कैसे उबर पाएगी. मेरा पूरा दिन पहाड़ सा निकला. रात को अमन के घर आते ही मैं ने प्रश्नों की बौछार कर दी.
‘‘अमन क्या हुआ आज वहां पर?’’
‘‘तुम्हारी सहेली के पति के नाम करोड़ों की बेनाम संपत्ति है. मेरे पहुंचते ही उस ने मुझे क्व1 करोड़ की रिश्वत औफर की. किसी भी तरह से कौपरेट करने को तैयार नहीं था. वह तो मेरे साथ पुलिस थी… हमें उस के साथ सख्ती बरतनी पड़ी. मुझे शर्म आ रही है मेरी बीवी कैसे लोगों से संबंध रखती है.’’
मुझे रोना आ रहा था. इच्छा हुई कि सलोनी को फोन कर उस का हालचाल पूछूं. उस पर क्या बीत रही होगी… उन लोगों ने कुछ खायापीया होगा या नहीं. सलोनी ने तो रोरो कर अपना बुरा हाल बना लिया होगा.
मैं ने खुद को सामान्य करने की कोशिश की. मेरे हाथ में कुछ था भी नहीं. कुछ दिनों बाद मैं इस बारे में भूल गई. एक दिन ऐसे ही फुरसत के क्षणों में फेसबुक अकाउंट खोलने पर सब से ऊपर सलोनी का फोटो था. किसी पांचसितारा होटल में पार्टी की थी, साथ में कैप्शन लिखी थी. ‘नेवर ऐंडिंग फन.’
मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. सलोनी का वही खिलता चेहरा, बेफिक्र आंखें और उन में झलकते नित नए ख्वाब. उसे तो जैसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ा था. मैं ही पागल थी जो उस के लिए अपना खून जला रही थी.
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पहले की बात और थी. अगर किसी के यहां रेड पड़ती थी तो यह उस व्यक्ति की इज्जत पर बहुत बड़ा दाग माना जाता था. वह व्यक्ति महीनों तक किसी को मुंह नहीं दिखाता था. इंसान की गांठ में क्व100 होते थे तो वह 75 खर्च करता था पर अब तो लोग आमदनी अट्ठनी खर्चा रुपया की तर्ज पर चलते हैं. आज की पीढ़ी अपने भविष्य की चिंता किए बिना सिर्फ वर्तमान में जीती है और 1-1 पल जीती है. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उस की बेवकूफियों पर उसे एक तमाचा रसीद करूं या जिंदादिली पर उस की पीठ थपथपाऊं .
मुझे आज एक ग्रीक लोककथा में पढ़े फिनिक्स पक्षी की याद आ गई जो मरने के बाद भी अपनी राख से फिर जी उठता था. सलोनी भी तो ऐसी ही है. हालात के थपेड़ों से चोट खाने के बावजूद हर बार जी उठती है. एक नई सैल्फी और स्टेटस के साथ. ‘यह नहीं सुधरेगी. लैट हर लिव लाइफ.’ सोच इस बार मुझे उस की पोस्ट देख कर गुस्सा नहीं आया. मन ही मन मुसकरा उसे किस वाली स्माइली के साथ लाइक दे दिया.