REVIEW: अति नाटकीय ऐतिहासिक कास्ट्यूम ड्रामा है ‘द एम्पायर’

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः निखिल इडवाणी, मधु भोजवानी

निर्देशकः मिताक्षरा कुमार

कलाकारः कुणाल कपूर,  दृष्टि धामी,  डिनो मोरिया,  शबाना आजमी,  राहुल देव,  आदित्य सील, साहेर बंबा व अन्य.  

अवधिः कुल अवधि – पांच घंटे 42 निमट ,  35 से 52 मिनट के आठ एपीसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः हॉट स्टार डिज्नी

इन दिनों जब वर्तमान सरकार भारत के इतिहास के पुर्नलेखन पर  काम कर रही है, तभी निर्माता निखिल आडवाणी और निर्देशक मिताक्षरा कुमार भारत में मुगल साम्राज्य के उत्थान व पतन पर  छह सीजन तक चलने वाली वेब सीरीज ‘‘द एम्म्पायर ’’ का पहला सीजन लेकर आए हैं. जो कि ब्रिटिश लेखक एलेक्स रदरफोर्ड के छह भाग के उपन्यासों ‘‘एम्पायर औफ द मोगुलः रेडर्स फ्रॉम द नॉर्थ’’पर आधारित है. आठ एपीसोड की यह सीरीज ‘‘हॉट स्टार डिज्नी’’ पर 27 अगस्त से स्ट्रीम हो रही है. अफसोस की बात यह है कि इसमें इतिहास कम, बौलीवुड मसाला फिल्मों के सारे तत्व मौजूद हैं. पहले सीजन में उत्तर मध्य एशिया में 14 वर्ष की उम्र में बादशाह बनने से हिंदुस्तान के शासक बनने व उनकी मौत तक बाबर के जीवन की कहानी है. शायद फिल्मकारों ने वर्तमान हालात में विवादों से बचने के लिए कम से कम इतिहास को छूने की कोशिश की है.

कहानीः

वर्तमान उज्बेकिस्तान 14वीं-15वीं सदी में तुर्क-मंगोलों के अधीन था. वहां स्थित समरकंद और फरगना राज्यों से बाबर की कहानी शुरू होती है. कहानी ‘शुरू होती है 1526 एडी, पानीपत की पहली लड़ाई से, जहां जहां युद्ध के मैदान में लगभग परास्त हो चुका जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर अपनी जिंदगी की यात्रा को याद कर रहा है. फिर कहानी फ्लैशबैक में समरकंद और फरगना पहुंचती है.

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कहानी शुरू होती है खंूखार शासक शैबानी खान (डिनो मोरिया) के अत्याचारों व समरकंद के शासक व उनके तीन बेटांे का सरेआम बुरी तरह से कत्लेआम से. अब उसकी नजर फरगान पर है. फिर कहानी फरगान पहुॅचती है.  किशोरवय बाबर के पिता उसे विश्व के सर्वाधिक खूबसूरत देश हिंदुस्तान में बसने का का ख्वाब दिखाते हैं, जो कि फरगना से काफी दूर है. बाबार के रहम दिल व शेरो शायरी के पिता की राय में तुर्क-मंगोलों-अफगानों की धरती पर जिंदगी की कभी खत्म न होने वाली मुश्किलें हैं और आततायी दुश्मनों से कड़ा संघर्ष है.  जबकि हिंदुस्तान इस धरती की जन्नत है.

तभी शैबानी खान (डिनो मोरिया) की तरफ से धमकी भरा पत्र आता है. और कई लोग गद्दारी कर शैबानी खान की मदद करते हैं, तथा बाबर के पिता मारे जाते हैं.  जिसके चलते 14 वर्ष की उम्र में बाबर को उनकी नानी अर्थात शाह बेगम (शबाना आजमी) फरगना के तख्त पर बैठा देती है. पर शैबानी खान की नजरें समरकंद के बाद फरगना पर भी हैं. बाबर अमन पसंद है.  उसे परिवार तथा आवाम की चिंता है.  वह खून-खराबा नहीं चाहता.  उसे पिता का दिखाया ख्वाब भी याद है.  बाबर, शैबानी खान के सामने प्रस्ताव रखता है कि अगर उसे परिवार और शुभचिंतकों समेत किले से निकल जाने दे,  वह हमेशा के लिए चला जाएगा.  शैबानी मान जाता है मगर इस शर्त पर कि बाबर अपनी खूबसूरत बहन खानजादा (दृष्टि धामी) वहीं उसके पास छोड़ जाए. बाबर अपनी बहन खानजादा को शैबानी खान का गुलाम बनाकर अपने खानदान व विश्वास पात्र लोगों के साथ दर दर भटकता है. उसके साथ उसका दोस्त कासिम भी है और बहन के गम में अपने शरीर पर कोड़े बरसाने व शराब पीने लगता है. अंततः रानी, वजीर खान उसे उसका मसकद याद दिलाते हैं. फिर बाबर धीरे धीरे अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने लगते हैं. पहले माहम से विवाह करते हैं, फिर काबुल की शहजादी से विवाह कर काबुल के बादशाह बना जाते हैं. अलग अलग रानियों से हुमायंू व कामरान सहित तीन बेटों के पिता बनते हैं. फिर पिता की बात याद कर इब्राहिम लोधी को हरकार हिंदुस्तान की सल्तनत पर काबिज होेते हैं. पर घर की कलह और अपनी विरासत दो काबिल बेटों,  हुमायूं और कामरान में से किसे सौंपे की चिंता अंततः उन्हे मौत तक ले जाती है.

लेखन व निर्देशनः       

वेब सीरीज में बाबर की जिंदगी के उतार-चढ़ाव और संघर्षों का चित्रण है. जिसमें राजनीतिक व पारिवारिक संघर्ष भी है. तो वहीं बाबर की जिंदगी पर उनकी नानी के अलावा बहन खानजादा और बेगमों के असर का भी चित्रण है. तो वहीं बाबर और कासिम के बीच ‘गे’सबंध पर भी हलका सा इशारा है. सीरीज में बार-बार बाबर के साथ उसकी किस्मत का भी जिक्र होता है.  इस सीरीज में बाबर को खून का प्यास नही बल्कि नर्मदिल,  विचारवान और दार्शनिक व्यक्ति की तरह पेश किया गया है.

इसका हर एपीसोड भव्यता के साथ बनाया गया है. कास्ट्यूम वगैरह पर भी खास ध्यान दिया गया है. मगर इतिहास पर गहराई से ध्यान नही दिया गया. बतौर निर्देशक मिताक्षरा कुमार ने कहानी को इतिहास के नजदीक रखने के बजाय भावनाओं के करीब रखा है.  युद्ध के दृश्यों को आकर्षक और भव्य ढंग से शूट किया गया है.  पहले दो एपीसोड जिस तरह से फिल्माए गए हैं, वह काफी कुछ भ्रमित करते हैं. पहले दो एपीसोड मेंे उर्दू के कठिन शब्द वाले संवाद भी हैं. जिसके चलते दर्शक अगले एपीसोडों की तरफ बढ़ने से पहले सोचने पर विवश हो जाता है. तीसरे एपीसोड से पटकथा सही ढर्रे पर चलती है. लेकिन कहानी कई बार 10 से 18 साल आगे बढ़ी , पर फिल्मकार बता नही पाए कि यह वक्त कैसे गुजरा?1526 में शुरू हुई कहानी 30 से 40 वर्ष पीछे जाती है. इन तीस वर्षों की कथा का सही अंदाज में चित्रण नहीं किया गया है. तीस वर्ष का समय बीतता है, मगर किरदारों के चेहरे से उम्र में बदलाव नही आता. जवानी व चमकदमक ज्यो की त्यों बरकरार रहती है. यह सब अखरता है. यह निर्देशक की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी है.

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अभिनयः

खूंखार व निर्दयी शैबानी खान के किरदार को डिनो मोरिया ने बड़ी मश्क्कत के साथ चित्रित किया है. बाबर के किरदार में कुणाल कपूर का अभिनय शानदार है. कई जगहों पर उनके भावुक दृश्य बढ़िया हैं. बाबार की बहन खानजादा के किरदार में दृष्टि धामी सुंदर दिखने के साथ खानजादा को अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है. दृष्टि धामी लोगों को याद रह जाती हैं. वह अपनी चैड़ी आँखों से काफी कुछ कह जाती हैं. सख्त दिल और अपने मकसद को पूरा कराने वाली नानी के किरदार में शबाना आजमी अपना प्रभाव छोड़ती हैं. वैसे भी शबाना आजमी एक बेहतरीन अदाकारा हैं, इसमें कोई दो राय नही है. राहुल देव,  इमाद शाह,  आदित्य सील (हुमायूं) समेत अन्य कलाकारो का अभिनय ठीक ठाक है.

मॉडल यावर मिर्जा को अभिनय में किसका मिला साथ?

दबंग,बाडीगार्ड,रेडी,दबंग 2,फुगली, प्रेम रतन धन पायो, मस्तीजादे,मित्रों ,राधे जैसी फिल्मों के नृत्य निर्देशक मुदस्सर खान के नए म्यूजिक वीडियो ‘‘सात समुंदर पार’’से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोहरत बटोर चुके मॉडल यावर मिर्जा ने अभिनय की शुरूआत की है. इस म्यूजिक वीडियो में यावर मिर्जा के साथ टीवी अदाकारा निया शर्मा नजर आ रही हैं,जो कि ‘एक हजारों में मेरी बहना’, ‘कालीः एक अग्निपरीक्षा’,‘जमाई राजा’जैसे सीरियलों और विक्रम भट्ट की ईरोटिक रोमांचक वेब सीरीज ‘‘ट्विस्टेड’’ में अभिनय कर शोहरत बटोर चुकी हैं.

मध्य प्रदेश के एक छोटे से शहर से ताल्लुक रखने वाले यावर मिर्जा कहते हैं-‘‘मैं हमेशा से अभिनय को कैरियर बनाने के अलावा बौलीवुड का हिस्सा बनना चाहता था. मुझे हमेशा मॉडलिंग में सराहना मिली.  शोहरत मिली. पर जब मैं मुंबई आया, तो मैंने अभिनय करने का अवसर पाने के लिए अॉडीशन देने के साथ ही अपने शरीर को उपयुक्त बनाने के लिए लगातार काम करता रहा. कुछ दिन बाद मुझे अहसास हुआ कि मुझे पहले मॉडल के रूप में शोहरत बटोरनी चाहिए.

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उसके बाद मुझे म्यूजिक वीडियो,टीवी सीरियल, वेब सीरीज और फिल्मों में अभिनय करने के लिए प्रयास करना चाहिए. कड़ी मेहनत का फल तब मिला,जब मुझे टीवी स्टार निया शर्मा के साथ म्यूजिक वीडियो ‘सात समुंदर पार‘ में हीरो बनकर अभिनय करने  का अवसर मिला. जब मुझे यह गाना सुनाया गया,तो मैं उत्साहित हो गया. इस गाने में हम दोनों की केमेस्ट्री और एनर्जी कमाल की है. यह गाना मशहूर नृत्य निर्देशक मुदस्सर खान ने निर्देशित किया है,जबकि इसका निर्माण ‘टी वाई एफ प्रोडक्शन फिल्म्स’और सह निर्माण रुचिका महेश्वरी ने किया है. ’’

गीत ‘‘सात समुंदर पार’’को  देव नेगी और निकिता गांधी ने अपनी आवाज में स्वरबद्ध किया है. जबकि रैपर एनबी निखिल बुधराजा ने गाने में रैपिंग पार्ट किया है. इसके संगीतकार विवेक कर हंै. टी वाई एफ की प्रोडक्शन मैनेजर अनुशी अरोड़ा और प्रोडक्शन कंट्रोलर लविश कुकरेजा ने मुंबई में शूटिंग के वक्त सारे प्रबंध किए. यह गाना बहुत जल्द ही बाजार में आएगा.

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डेल्फिक काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र’ के आधिकारिक ‘लोगो’ का हुआ अनावरण, सेलेब्स हुए शामिल

2500 वर्ष पहले प्राचीन ग्रीस में ‘‘डेल्फिक गेम्स’’की शुरूआत हुई थी और इन्हें ओलंपिक के समान माना जाता है.  ओलंपिक शारीरिक खेलों के लिए जाने जाते हैं, जबकि ‘डेल्फिक गेम्स’कला और संस्कृति को बढ़ावा देते हैं. डेल्फिक गेम्स – संगीत और ध्वनि,  परफॉर्मिंग आर्ट्स,  भाषा-आधारित कला,  व्हिज्युअल आर्ट्स,  सामाजिक कला,  पर्यावरण कला और वास्तुकला सहित छह प्रमुख कला श्रेणियों का प्रतिनिधित्व कर,  सैकड़ों उप- श्रेणियों और शैलियों को तथा कई नए प्रकार की कला,  कलाप्रेमी और विभिन्न कलाकारों के लिए एक सामान मंच प्रदान करने का एक अमूल्य काम करता है. आधुनिक डेल्फिक खेलों को 1994 में पुनर्जीवित किया गया था. कला और संस्कृति की उन्नति और उस संदर्भ में विचार- विमर्श करने के लिए डेफ्लिक गेम्स एकमात्र वैश्विक मंच है.  बर्लिन स्थित आंतरराष्ट्रीय डेल्फिक गेम्स का आयोजन दुनिया भर में हर चार वर्ष में एक बार किया जाता है. अब तक यह प्रतियोगिता आठ देशों की यात्रा कर चुकी है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत ने दक्षिण कोरिया और मलेशिया जैसे विभिन्न देशों में डेल्फिक गेम्स के कुल 3 सत्रों में भाग लेकर स्वर्ण और रजत पदक जीते हैं.

भारत में ‘डेल्फिक खेलों’’को बढ़ावा देन के मकसद से कुछ वर्ष पहले भारत में ‘‘इंडियन डेल्फिक काउंसिल’’का गठन किया गया था. धीरे धीरे इस तरह के खेलों को लेकर भारत के राज्यो में काम किया गया. अब तक महाराष्ट् राज्य सहित देश के 22 राज्यों मंे डेल्फिक खेलों को लेकर संगठन बने हुए हैं. महाराष्ट् राज्य में हाल ही में ‘‘डेल्फिक काउंसिल आफ महाराष्ट्’’का गठन किया गया, जिसके प्रतीक चिन्ह ‘लोगो’का अनावरण कई फिल्मी हस्तियो की मौजदूगी में महाराष्ट्र के राज्यपाल माननीय भगत सिंह कोश्यारी के हाथों किया गया. ‘‘डेल्फिक काउंसिल अॉफ महाराष्ट्र’’ का प्रतीक चिन्ह(लोगो) ‘पानी‘ है और प्राचीन काल से डेल्फिक गेम्स का यह एक अनूठा प्रतीक है. ‘कई कलाओं के माध्यम से शांति’ प्रस्थापित करने का रूपक ‘पानी‘ है. अंतर्राष्ट्रीय डेल्फिक काउंसिल एक गैर- सरकारी,  गैर-राजनीतिक,  गैर- सांप्रदायिक,  गैर-धार्मिक संगठन है.  यह दुनिया का एकमात्र मंच है, जो कला और संस्कृतियों का पोषण कर समाज में शांति का संदेश देता है.

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इस मौके पर शास्त्रीय नृत्यांगना,  अभिनेत्री और सांसद हेमा मालिनी उद्घाटन समारोह में सम्मानित अतिथि, वरिष्ठ अभिनेता और राष्ट्ीय नाट्य विद्यालय के अध्यक्ष परेश रावल मुख्य अतिथि के अलावा प्रसिद्ध उद्योगपति यश बिरला, अभिनेत्री भाग्यश्री,  हफीज कॉन्ट्रॅक्टर,  देवेंद्र प्रताप सिंह तोमर,  सलीम-सुलेमान,  श्रेयस तलपड़े, गणेश आचार्य,  बॉस्को-सीजर,  तेजस्विनी कोल्हापुरे व इंडियन डेल्फिक काउंसिल के प्रतिनिधि रमेश प्रसन्ना और डेल्फिक काउंसिल अॉफ महाराष्ट्र के अन्य अधिकारी भी इस समारोह में मौजूद थे.

‘‘डेल्फिक काउंसिल अॉफ महाराष्ट्र’’के अध्यक्ष साहिल सेठ, उपाध्यक्ष सुरेश थॉमस, महासचिव अपराजित अवि मित्तल व संयुक्त महासचिव श्रीमती.  प्रणिता पंडित, अली अकबर रिजवी को कोषाध्यक्ष के तौर पर चुना गया. जबकि डेल्फिक काउंसिल ने कुछ श्रेणियों को विभाजित कर उनके कई संचालक भी घोषित किए. संगीत कला एवं ध्वनि के विभाग पर सुलेमान मर्चेंट, सामाजिक कला विभाग पर राजवीर कौशिक,  व्हिजुअल आर्ट्स विभाग पर श्रीमती बीना तलत,  पर्यावरणीय कला और वास्तुकला (आर्किटेक्चर) इस विभाग पर विनय अग्रवाल, तो परफॉर्मिंग आर्टस् एवं इरोबटिक्स विभाग पर अमित कपूर को नियुक्त किया गया. जबकि श्रीमती अमिता भट और श्रीमती रचना पुरी को क्रमशः भाषा कला और वक्तृत्व व डेल्फिक क्लब और सदस्यता विभाग के संचालक पद की जिम्मेदारी सौंपी गई है. तो वहीं सलाहकार के तौर पर यश बिरला (बिरला ग्रुप), देवेंद्र सिंह तोमर (केंद्रीय कृषी मंत्री), डॉ.  अली इराणी (नानावटी हॉस्पिटल), क्वेझर खालिद (पोलीस कमिशनर रेल्वे मुंबई),  सलीम मर्चंट (संगीत निर्देशक),  साक्षी तंवर (अभिनेत्री) हैं. डेल्फिक कौंसिल की अलग अलग समितियांे के साथ नृत्य निर्देशक बॉस्को, फैशन डिजायनर एमी बिलामोरिया, अभिनेत्री सुचित्रा कृष्णमूर्ती , नृत्य निर्देशक गणेश आचार्य, अभिनेत्री तेजस्वनी कोल्हापुरी, फिल्ू निर्देशक निवेदिता बसु, जरीन खान, तेज सप्रू, राघव सच्चर,  टिस्का चोपड़ा व पवन नागपाल का समावेश है.

इस अवसर पर हेमा मालिनी ने कहा-“महामारी के कारण पिछले वर्ष से दुनिया में निराशा की भावना है, लेकिन इस कठिन अवसर ने हमारे जीवन में कला और संस्कृति के महत्व को मजबूत किया है. हमें कुछ ऐसा चाहिए, जो हमारे दिल और आत्मा को छू जाए और हमारे मन को शांत करे और हमारे भीतर प्रेरणा निर्माण करे ऐसे कुछ शब्दों की हमें जरुरत है. भारत में अपार प्रतिभा है. योग को दुनिया के सामने लाने में आपने जो मेहनत की है,  मुझे उम्मीद है कि ठीक उसी तरह डेल्फिक आंदोलन के नेतृत्व में आप नई प्रतिभाओं को दुनिया के सामने लाने में सफल होंगे. ‘‘

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‘डेल्फिक काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र’ के अध्यक्ष व भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी साहिल सेठ ने कहा- “भारत में डेल्फिक काउंसिल से जुड़ना और कला और संस्कृति के विकास को बढ़ावा देना मेरे लिए गर्व की बात है. यह न केवल लोगों को एक साथ लाने का बल्कि राज्य और उसके लोगों के लिए वैश्विक मौका प्रदान करने का एक साधन है. महाराष्ट्र में कला और संस्कृति की समृद्ध विरासत और डेल्फिक काउंसिल के कारण, हम इस विरासत के माध्यम से समाज प्रबोधन का कार्य करने की कोशिश करेंगे.  हम जल्द ही अपनी पहली पहल की घोषणा करेंगे,  जिसमें बच्चों के लिए कला,  एक लघु फिल्म समारोह और बहुत कुछ शामिल होगा. ‘‘

आखिर Actor विनय पाठक को किस बात का है पछतावा, पढ़ें इंटरव्यू

अभिनेता विनय पाठक का नाम आज दिग्गज कलाकारों की सूची में शामिल है. उन्होंने कभी ह्यूमर के साथ हंसाया,तो कभी संजीदा अभिनय से दर्शकों को रुलाया. यही वजह है कि उन्हें हर निर्माता, निर्देशक अपनी फिल्मों में कास्ट करना चाहते है. विनय पाठक ने अभिनय की शुरुआत थिएटर से किया, इसके बाद विदेश में पढ़ाई करते हुए उन्होंने फिल्म ‘खोसला का घोसला’ और ‘भेजा फ्राई’ दो फिल्में की. दोनोंफिल्मों के हिट होने के बाद उन्हें पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. विनय पाठक अभिनेता के अलावा टीवी प्रेजेंटर और निर्माता भी है. बिहार के रहने वाले विनय पाठक थिएटर में काम करना सबसे अधिक पसंद करते है.वे सामाजिक काम करते है, पर किसी से बताना पसंद नहीं करते. उनके हिसाब से हर व्यक्ति को अपने आसपास कुछ काम दूसरों के लिए करते रहना चाहिए. अमेजन मिनी टीवी पर उनकी एंथोलोजी ‘काली पिली टेल्स’ रिलीज होने वाली है. उन्होंने अपनी जर्नी को शेयर किया, आइये जाने उन्हीँ से.

सवाल- इस तरह की एंथोलोजी में  कामकरने की वजह क्या रही?

मुझे निर्देशक ने कहानी सुनाई और मुझे लगा कि ये फीचर फिल्म है, लेकिन जब काम करने गया तब पता चला कि ये शार्ट फिल्म की फोर्मेट पर मुंबई की मॉडर्न लाइफ, जिसमें प्यार , रिश्ते, बेवफाई, समलैंगिक, शादी आदि विषयों को लेकर 6 छोटी-छोटी कहानियोंपर बनी एंथोलोजी है, जिसमें मैं और सोनी राजदान एक कपल की भूमिका निभा रहे है, हमारी शादी नहीं हुई है, पर एक बेटी है. इसके अलावा नयी कांसेप्ट, स्क्रिप्ट और सोनी राजदान के साथ काफी सालों बाद अभिनय करना मेरे लिए खास थी.

सवाल- इस तरह की एंथोलोजी को ओटीटी प्लेटफार्म पर दर्शक अभी कोविड पीरियड में एन्जॉय कर रहे है, क्या सबकुछ नार्मल होने के बाद दर्शकों को थिएटर तक लाना कठिन होगा?

अभी हम सब ने इन नन्ही-नन्ही फिल्मों को बनाया है और दर्शक घर पर बैठकर इसे एन्जॉय करें,क्योंकि लॉकडाउन की वजह से लोग घरों में है और उनका मनोरंजन करवाना मेरा दायित्व है.

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सवाल- आजकल ओटीटी पर काफी अच्छी-अच्छी कहानियों की फिल्में और वेब सीरीज आ रही है,लोग दिन-रात मोबाइल पर लगे है, लेकिन मुंबई जैसे शहर में लोग पहले भी मोबाइल पर फिल्म देखते हुए लोकल ट्रेन में चढ़ते-उतरते थे, जिससे कई बार हादसे की शिकार होने सेलड़कियां बची है, इस बारें में आपकी सोच क्या है?

लोकल ट्रेन की बात करें, तो हर शहर का मिजाज अलग होता है. कोलकाता जैसी शहर में उतनी भीड़ लोकल ट्रेन में नहीं होती, जितनी मुंबई में होती है. मनोरंजन हर किसी के लिए जरुरी है, लेकिन समय के अनुसार करने पर किसी प्रकार की समस्या नहीं होती.

सवाल- आप हर फिल्म में अपनी एक जगह बना लेते है और दर्शक आपको याद रखते है, इसे कैसे कर पाते है?

ये तो स्क्रिप्ट और डायरेक्टर का कमाल होता है.  मैं तो उनके अनुसार काम करता रहता हूं. इसके अलावा सोनी राजदान के साथ काम कर बहुत अच्छा लगा, क्योंकि अभिनय की शुरुआत में मैंने सोनी राजदान  के साथ एक सीरीज ‘साहिल’ की एक दृश्य में अभिनय किया था और अब हम दोनों एक कपल के रूप में आये है. बहुत मजा आया, बहुत सारी बातें राजनीति, आसपास की घटनाओं के बारें में चर्चा की है.

सवाल- आपने एक लम्बी जर्नी इंडस्ट्री में तय की है, कैसे इसे लेते है?

मैं अपने आपको बहुत ही सौभाग्यशाली समझता हूं, क्योंकि मैंने कभी किसी भी काम के लिए कोई प्लान नहीं किया था. प्लान करें भी, तो वैसा जिंदगी में होता नहीं है. अच्छी बात यह है कि मुझे हमेशा अच्छे लोगों का साथ मिला. शुरुआत मैंने रंगमंच के साथ किया. अभी भी मैं नाटकों में काम करता हूं. इससे मुझे अच्छे कलाकार दोस्त मिले. मुझे बहुत सीखने को मिला और मैं आगे बढ़ता गया.

सवाल- आप अभिनय के बाद अपने चरित्र को कितने समय में भूल पाते है? क्या यह मुश्किल होता है?कभी अपने काम से पछतावा हुआ?

मैंने अपने अभिनय को तीन प्लगों में बांटा है. लाल रंग के प्लग, जिसमें बहुत ही सीरियस भूमिका ,सफ़ेद प्लग जो कॉमिक रोल के लिए होता है और काली प्लग ऐसी है, जिसमें मैं अपनी भूमिका को समझ नहीं पाता और निर्देशक के कहने पर कर देता हूं. इसी तरह प्लग केअनुसार मैं अपनी भूमिका निभाता हूं. जिससे एक्टिंग करने में आसानी होती है और घर मैं किसी चरित्र को भी लेकर नहीं जाता. जब मैं किसी भी कहानी को सुनता हूं और वह अगर पसंद आ जाती है तो उसी में कूद पड़ता हूं. बाद में गलत समझ आने पर भी कुछ नहीं कर पाता. पछतावा होता है, क्योंकि पछतावे के बिना कोई जिंदगी नहीं.

सवाल- हंसी का सफ़र आपके जिंदगी में कबसे शुरू हुआ?

ये मुझे आजतक भी पता नहीं चल पाया कि ये कैसे शुरू हो गया. मैंने कभी कुछ क्रिएट नहीं किया. परिस्थिति के अनुसार होता गया. कॉमेडी वही है,जिसमें आप जो सोचते है, होता कुछ और है, जिससे दर्शकों और पाठकों को हंसी आती है.

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सवाल- अभिनय के अलावा और क्या करना पसंद करते है?

मैं थिएटर करता हूं ,इसके अलावा समय मिले, तो लिखता और बहुत भ्रमण करता हूं. मेरा पहला प्यार ट्रेवल है, इसके बाद आर्ट आती है. मैंने कहानी लिखी है, उसकी फिल्म बनाने की इच्छा है.

सवाल- आपके यहाँ तक पहुँचने में परिवार का सहयोग कितना रहा है?

परिवार के सहयोग के बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता. मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से हूं, जहाँ पैसे की हमेशा कमी होती है औरमैं अपनी इच्छा के अनुसार काम नहीं कर पाता था. सामंजस्य हर जगह करनी पड़ती है. मेरे माता-पिताने बहुत सपोर्ट किया है.उनका कहना था कि तुम जिस क्षेत्र में जा रहे हो, मुझे पता नहीं और हम चाहे भी तो कुछ तुम्हारे लिए नहीं कर सकते,क्योंकि उस क्षेत्र के बारें में मेरी जानकारी नहीं है. मैं अपनी मंशा से इस क्षेत्र मेंआया.माता-पिता अगर बच्चों के सपनों को पूरा करने मेंमानसिक सहयोग देते है, तो ये बहुत बड़ी बात होती है. अभी मुझे मेरी पत्नी और बच्चे भी सहयोग देते है.

पहली बार कैमरे में कैद हुआ करीना के बेटे Jeh Ali Khan का चेहरा, वीडियो वायरल

बीते कुछ दिनों से बौलीवुड एक्ट्रेस करीना कपूर खान (Kareena Kapoor Khan) अपने दूसरे बेटे जेह अली खान के चलते सुर्खियों में हैं. जहां फैंस उनके नाम जानने के बाद बेहद खुश हैं. तो वहीं ट्रोलर्स उन्हें ट्रोल करते नजर आ रहे हैं. इसी बीच करीना कपूर के दूसरे बेटे जेह अली खान (Jeh Ali Khan) का चेहरा फैंस के सामने आ गया है, जिसकी वीडियो सोशलमीडिया पर वायरल हो रही है. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो…

वायरल हुई जेह की वीडियो

 

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दरअसल, करीना बीते दिन अपने पिता रणधीर कपूर (Randhir Kapoor) के घर, परिवार के साथ पहुंची तो उनके नन्हे बेटे जेह अली खान की एक झलक मीडिया के कैमरे में कैद हो गई है, जिसमें उनका चेहरा साफ नजर आ रहा है. वहीं सोशलमीडिया पर यह वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है.

 

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फैंस कर रहे हैं तारीफें

 

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करीना के दूसरे बेटे जेह अली खान की पहली झलक देखने के बाद फैंस उन्हें बिल्कुल अपने बड़े भाई तैमूर अली खान का हमशक्ल बता रहे हैं. इसी बीच जहां जेह अली खान (Jeh Ali Khan) की वायरल वीडियो देखने के बाद जहां कुछ लोग उनकी क्यूटनेस की तारीफें कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग मीडिया के अचानक फोटोज खींचने से नाराजगी जाहिर कर रहे हैं.

बता दें, करीना कपूर खान के दूसरे बेटे जेह का पूरा नाम जहांगीर अली खान है, जिसे जानने के बाद वह काफी ट्रोलिंग का सामना भी कर रहे हैं. इसी बीच करीना कपूर ने अपनी सरोगेसी को लेकर भी कई खुलासे किए हैं, जिसे जानने के बाद फैंस काफी हैरान हैं. हालांकि कई लोग उनका सपोर्ट कर रहे हैं.

वीडियो एंड फोटोज क्रेडिट- Viral Bhayani

REVIEW: जानें कैसी है सिद्धार्थ मलहोत्रा और कियारा अडवाणी की फिल्म Shershah

रेटिंगः चार स्टार

निर्माताः काश इंटरटेनमेंट और धर्मा प्रोडक्शन

निर्देशकः विष्णु वर्धन

कलाकारः सिद्धार्थ मलहोत्रा, कियारा अडवाणी, शिव पंडित, जावेद जाफरी, निकितन धीर, हिमांशु मल्होत्रा, साहिल वैद्य, राज अर्जुन, कृष्णय बत्रा, मीर सरवर व अन्य.

अवधिः दो घंटा 17 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः अमेजॉन प्राइम

1999 में पाकिस्तान ने कारगिल की पहाड़ियों पर कबजा कर लिया था, मगर बाद में भारतीय  जवानों ने 16 हजार फिट की उंचाई पर बर्फीली पहाड़ी पर बैठे पाक सैनिको को अपने शौर्य के बल पर खत्म कर पुनः कारगिल पर कब्जा जमाया था. उसी कारगिल युद्ध के परमवीर चक्र विजेता शहीद विक्रम बत्रा पर फिल्म ‘शेरशाह’आयी है. उसी कारगिल युद्ध पर  एलओसी,  लक्ष्य,  स्टंप्ड,  धूप,  टैंगो चार्ली और मौसम से लेकर गुंजन सक्सेना जैसी फिल्में बनी हैं.  मगर शेरशाह इनसे अलग है.

कहानीः

कहानी जम्मू कश्मीर राइफल की 13 बटाइलन की है, जो कि रिजर्ब फोर्स है. मगर कारगिल युद्ध में इसे ही कैप्टन विक्रम बत्रा के नेतृत्व में पाक सेना द्वारा कब्जा की गयी कारगिल की जमीन को वापस लाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी, जिसे कैप्टन विक्रम बत्रा व उनके साथियों ने अपनी जान गंवाकर पूरी करते हुए पाकिस्तानी सेना का सफाया कर दिया था.

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फिल्म की शुरूआत विक्रम बत्रा के बचपन से होती है, और टीवी कार्यक्रम देखकर वह सैनिक बनने का निर्णय लेते हैं. कालेज में पढ़ाई करते हुए डिंपल(कियारा अडवाणी) से उनका प्यार हो जाता है. डिंपल का परिवार सिख है और विक्रम बत्रा(सिद्धार्थ मल्होत्रा) पंजाबी खत्री हैं. इस वजह से डिंपल के पिता इस व्याह के लिए तैयार नही होते. तब विक्रम मर्चेंट नेवी मंे जाने की बात करता है. इसी आधार पर डिंपल अपने पिता से लड़कर विक्रम से ही शादी करने का फैसला सुना देती है. लेकिन विक्रम का दोस्त सनी उसे समझाता है कि महज शादी करने के लिए वह अपने सैनिक बनने के सपने को छोड़कर गलती कर रहा है. तब फिर से विक्रम सेना में जाने का फैसला करता है, इससे डिंपल को तकलीफ होती है. पर वह विक्रम के साथ खड़ी नजर आती है. ट्रेनिंग लेकर विक्रम बत्रा जम्मू कश्मीर राइफल की तेरहवीं बटालियन में पहुंचकर अपने सहयोगियों के साथ ही कश्मीर की जनता के बीच घुल मिल जाते हैं. पहले वह आतंकवादी गिरोह के अयातुल्ला को पकड़ता है,  फिर वह आतंकवादियों का सफाया करते हुए हैदर का सफाया करता है. इससे उसके वरिष्ठों को उस पर नाज होता है. वह छुट्टी लेकर पालमपुर आता है और गुरूद्वारा में डिंपल की चुनरी पकड़कर फेरे लेने के बाद कहता है कि अब वह मिसेस बत्रा बन गयी. अपने आतंकियों के सफाए से बौखलाया पाकिस्तान कारगिल की पहाड़ियों पर कब्जा कर लेता है. तब विक्रम मल्होत्रा को वापस जाना पड़ता है. जब विक्रम ड्यूटी पर लौटने लगता है, तो जब उनका दोस्त सनी उससे कहता है कि जल्दी लौटना. तो विक्रम का जवाब होता हैः तिरंगा लहरा कर आऊंगा,  नहीं तो उसमें लिपट कर आऊंगा. इस बार उसकी बटालियन को विक्रम बत्रा के नेतृत्व में कारगिल की पहाड़ी पर पुनः कब्जा करने की जिम्मेदारी दी जाती है. तथा विक्रम बत्रा को कोडनेम ‘‘शेरशाह’’दिया जाता है. विक्रम बत्रा के नेतृत्व में  सेना के जांबाजों ने 16 हजार से 18 हजार फीट ऊंची ठंडी-बर्फीली चोटियों पर चढ़ते-बढ़ते हुए दुश्मन पाकिस्तानी फौज को परास्त कर कारगिल की पहाड़ी पर पुनः भारत का कब्जा हो जाता है, मगर विक्रम बत्रा सहित कई सैनिक शहीद हो जाते हैं. मगर उनके शौर्य को पूरा देश याद रखता है.

लेखन व निर्देशनः

बेहतरीन पटकथा वाली युद्ध पर बनी एक बेहतरीन फिल्म है. पूरी फिल्म यथार्थपरक है. तमिल में बतौर निर्देशक आठ फिल्में बना चुके विष्णुवधन की यह पहली हिंदी में हैं. विष्णु वर्धन ने हर बारीक से बारीक बात को पूरी इमानदारी के साथ उकेरा है. अमूूमन सत्य घटनाक्रम पर आधारित फिल्म बनाते समय फिल्मकार वास्तविक किरदारों के नाम बदल देते हैं. लेकिन निर्देशक विष्णु वर्धन ने फिल्म ‘शेरशाह’ में सभी किरदारों,  घटनाक्रम और जगह आदि के नाम हूबहू वही रखे हंै, जो कि यथार्थ में हैं.

फिल्म के संवाद कमजोर है. संवाद वीरोचित व भावपूर्ण नही है.

फिल्म में विक्रम बत्रा और डिंपल के बीच रोमांस को पूरी तरह  से फिल्मी कर दिया है. फिल्म में कारगिल की पहाड़ी पर एक पाक सैनिक, विक्रम बत्रा से कहता है कि  ‘हमें माधुरी दीक्षित दे दो, हम कारगिल छोड़ देंगे. ’’यह संदर्भ कितना सच है, यह तो निर्माता व निर्देशक ही बता सकते हैं. मगर बॉलीवुड के फिल्मकार अक्सर सत्यघटनाक्रम पर फिल्म बनाते समय इस तरह की चीजें परोसते ही हैं.

फिल्म का क्लायमेक्स कमाल का है. यह फिल्म कैप्टन विक्रम बत्रा और कारगिल युद्ध में अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हुए अपनी जान गंवाने वाले वीर जवानों को सच्ची श्रृद्धांजली हैं. पटकथा अच्छी ढंग से लिखी गयी है।फिल्म की खासियत यह है कि इसमें देशभक्ति के नारे नही है. निर्देशक ने विक्रम बत्रा के सेना में पहुंचने के बाद उनकी निडरता, वीरता और नेतृत्व की खूबी को ही उभारा है. निर्देशक विष्णु वर्धन बधाई के पात्र हैं कि उन्होने भारतीय सिनेमा और विक्रम बत्रा के शौर्य को पूरे सम्मान के साथ उकेरा है. फिल्म यह संदेश देने में पूरी तरह से कामयाब रहती है कि फौजी के रुतबे से बड़ा कोई रुतबा नहीं होता.  वर्दी की शान से बड़ी कोई शान नहीं होती.  देश प्रेम से बड़ा कोई धर्म नहीं होता.

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मगर युद्ध के दृश्य काफी कमजोर हैं.

इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी यह है कि फिल्म के अंत में कारगिल के योद्धाओं की निजी तस्वीरें, उनके संबंध में जानकारी और फिल्म में उनके किरदार को निभाने वाले कलाकार की तस्वीरों के साथ पेश किया गया है.

वीएफएक्स भी कमाल का है.

कैमरामैन कलजीत नेगी ने कमाल का काम किया है. उन्होेने लोकेशन को सही अंदाज में पेश किया है.

अभिनयः

विक्रम बत्रा के किरदार में अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा नही जमते. जो वीरोचित भाव और वीरोचित छवि उभरनी चाहिए थी, वह नहीं उभरती. रोमांस व कालेज के दृश्यों में वह जरुर जमे हैं. कियारा अडवाणी ने संजीदा अभिनय किया है. वैसे उनके हिस्से करने को कुछ खास रहा नही. अन्य सभी कलाकारों ने अपने अपने किरदार को बेहतर तरीके से जिया है.

अजय देवगन की फिल्म ‘भुजः द प्राइड आफ इंडिया’ का दूसरा ट्रेलर रिलीज, देखें यहां

अभिषेक दुधैया निर्देशित तथा अजय देवगन,संजय दत्त,सोनाक्षी सिन्हा और नोरा फतेही की  ऐतिहासिक सत्य घटनाक्रम पर आधारित फिल्म ‘भुजः द प्राइड ऑफ इंडिया‘ का दूसरा ट्रेलर मंगलवार को जारी होते ही वायरल हो गया.  यह फिल्म 13 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के सप्ताह में हॉट स्टार डिजनी पर स्ट्रीम होगी. फिल्म का दूसरा ट्रेलर देखकर लोगों के मन में देशभक्ति की भावना जागेगी.

फिल्म के निर्देशक अभिषेक दुधैया ने इस फिल्म को भव्य स्तर पर फिल्माया है. जिसकी झलक ट्रेलर  में भी नजर आती है. ट्रेलर में दिखाया गया है कि कैसे भारत ने पाकिस्तान के हमले के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की. वीडियो की शुरुआत पाकिस्तानी वायु सेना द्वारा भुज पर हमला करने के साथ होती है, जिसमें वॉयसओवर हमलावरों को निर्देश देते हुए कहता है-‘‘कच्छ से घुसो. भुज एअरबेस पर हमला करो. जितना ज्यादा से ज्यादा इलाका अपने कब्जे मे ले सकते हो,ले लो. उसके बाद हम दिल्ली में श्रीमती गांधी के साथ एक कप चाय साझा करेंगे।‘‘कुछ दृश्योें के बीच सुनाई देता है-‘‘हम उठे. हमने बलिदान किया. हमने जवाबी कार्रवाई की. ‘‘

फिर   इस ट्रेलर  में अजय देवगन का संवाद है-‘‘हम उस महा छत्रपति शिवाजी की औलाद हैं, जिन्होंने मुगलों को घुटनों र ला दिया था और अपने खून से हिदुस्तान का इतिहास लिखा था. ‘‘

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सोशल मीडिया पर इस वीडियो को साझा करते हुए अजय देवगन ने लिखा, ‘‘असहनीय बाधाओं का सामना करते हुए, हमारे नायकों ने हमें जीत की ओर अग्रसर किया.‘‘

इस ट्रेलर  में युद्ध के मैदान और जमीन पर हमारे सैनिकों द्वारा प्रदर्शित बहादुरी का नजारा भी दिखायी देता है. ट्रेलर में अजय देवगन (आईएएफ अधिकारी विजय कुमार कार्णिक), संजय दत्त (रणछोड़दास पागी), सोनाक्षी सिन्हा (सुंदरबेन जेठा), अम्मी विर्क ( विक्रम सिंह बाज जेठाज) और शरद केलकर (आरके नायर)भी नजर आते हैं.

ट्रेलर  में अजय देवगन का ट्क चलाते हुए एक्शन दृश्य का हिस्सा नजर आता है. इस एक्शन दृश्य को खतरनाक बताते हुए सह लेखक व निर्देशक अभिषेक दुधैया कह चुके हैं-‘‘फिल्म में एक खतरनाक एक्शन दृश्य है,जिसमें अजय देवगन ट्क चला रहे हैं,सामने से दूसरा ट्क आ जाता है,तो उससे बचने के लिए 360 डिग्री घूमकर फिर से उसी रोड पर उसी दिशा में सड़क पर जाना था. इसे अजय देवगन ने बड़ी बहादुरी से अंजाम दिया. जब अजय सर ने इस स्टंट को अंजाम दिया,तो सीट के साथ जो बेल्ट होती है,वह टूट गयी. फिर भी अजय देवगन रूके नहीं,ट्क को घुमाकर सही दिशा में लेकर आ गए. उस वक्त सभी ने फिंगर क्रास कर लिया था कि यह दृश्य सही सलामत सही ढंग से हो जाए. ’’

वैसे लगभग पंद्रह दिन पहले जब फिल्म‘‘भुज द प्राइड आफ इंडिया’’का पहला ट्रेलर जारी हुआ था,तब उसमें भी अजय देवगन की दमदार आवाज में कुछ धमाकेदार संवाद सुनने को मिले हैं.  फैंस इन संवादों के ही चलते इस फिल्म को लेकर काफी उत्साहित हैं. .

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सत्य घटना पर आधारित है फिल्म

फिल्म की कहानी 1971 के भारत पाक युद्ध के समय गुजरात के भुज एअरबेस पर घटी सत्य ऐतिहासिक घटनाक्रम पर है,जिसे निर्देशक व सह लेखक अभिषेक दुधैया की नानी मां लक्ष्मी परमार ने उन्हे सुनायी थी. जीहॉ! 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के वक्त गुजरात के भुज हवाई अड्डे के एअरबेस को पाकिस्तानी वायुसेना ने बमबारी से ध्वस्त कर दिया था. तब भुज हवाई अड्डे के तत्कालीन प्रभारी आईएएफ स्क्वाड्रन लीडर विजय कर्णिक और उनकी टीम ने मधापर व उसके आसपास के गांव की 300 महिलाओं की मदद से वायुसेना के एयरबेस का पुनः निर्माण किया था. उसी सत्य ऐतिहासिक घटनाक्रम पर औरतोे के शौर्य के साथ स्क्वाड्न लीडर विजय कार्णिक के शौर्य पर लेखक व निर्देशक अभिषेक दुधैया ने एक बड़े बजट की एक्शन फिल्म ‘‘भुजः द प्राइड आफ इंडिया’’बनायी है. एअरबेस का निर्माण करने वाली इन तीन सौ औरतों में अभिषेक दुधैया की नानी मॉं लक्ष्मी परमार भी थी.

Akshay Kumar की Bell Bottom में इंदिरा गांधी बनीं लारा दत्ता, पहचान नहीं पा रहे फैंस

बीते दिन बॉलीवुड एक्टर अक्षय कुमार की मल्टी स्टारर अपकमिंग फिल्म ‘बेल बॉटम’ का ट्रेलर लौंच हुआ है, जो फैंस को काफी पसंद आ रहा है. वहीं इस फिल्म से जुड़े एक्टर्स सोशलमीडिया पर ट्रैंड कर रहे हैं. इसी बीच एक्ट्रेस लारा दत्ता का फिल्म ‘बेल बॉटम’ में किरदार सुर्खियां बटोर रहा है, जिसे देखकर फैंस उन्हें पहचान भी नही पा रहे हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर….

ट्रेलर में दिखी लारा दत्ता की झलक

‘बेल बॉटम’ के ट्रेलर में दिखी लारा दत्ता की झलक फैंस को काफी पसंद आ रही हैं. दरअसल, बेल बॉटम में लारा दत्ता पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लुक में नज़र आ रही हैं, जिसमें उनका लुक और मेकअप ट्रांसफोर्मेशन फैंस के बीच छा गया है. सोशलमीडिया पर उनके इस लुक को फैंस की काफी तारीफें मिल रही हैं.

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फैंस ने की तारीफ

 

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हूबहू इंदिरा गांधी के अंदाज में लारा दत्ता काले बालों और उनके लुक में नजर आ रही हैं. वहीं कुछ फैंस मेकअप आर्टिस्ट को नेशनल अवौर्ड देने की बात कहते नजर आ रहे हैं. सोशलमीडिया पर लोग उनकी फिल्म में फोटो को ट्रैंड करते नजर आ रहे हैं.

बता दें, बेल बॉटम एक्टर अक्षय कुमार की एक्शन-ड्रामा फिल्म है, इसकी कहानी एक रहस्यमय प्लेन हाइजैक की है, जिसमें अक्षय कुमार के अलावा एक्ट्रेस वाणी कपूर, हुमा कुरैशी, लारा दत्ता, जैकी भगनानी लीड रोल में नजर आने वाले हैं. वहीं कहा जा रहा है कि ये फिल्म 3डी में भी रिलीज की जाएगी. दरअसल, कोरोना में ये पहली मल्टी स्टारर बिग बजट फिल्म होगी, जो रिलीज होगी.

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जानें जैकलीन फर्नांडिस ने रचा कौनसा नया इतिहास, पढ़ें खबर

पिछले कुछ समय से इस बात की चर्चाएं काफी गर्म रही हैं कि बॉलीवुड अदाकारा पहली बार किच्चा सुदीप संग कन्नड़ भाषा की थ्री डी फिल्म ‘‘विक्रांत रोणा’’में अभिनय कर रही हैं. वैसे यह फिल्म 14 भाषाओं में 55 देशों में 19 अगस्त 2021 को प्रदर्शित होने वाली है. अनूप भंडारी लिखित व निर्देशित फिल्म ‘‘विक्रांत रोणा’’के निर्माताओं जैकलीन फर्नाडिश का इस फिल्म में लुक जग जाहिर कर दिया है. इस फिल्म में जैकलीन फर्नाडिश ने किच्चा सुदीप संग कैमियो किया है और उनका किरदार काफी रोचक है. मजेदार बात यह है कि निर्माताओें ने जैकलीन के लुक वाला फिल्म‘‘विक्रांत रोणा का पोस्टर पूरे मंुबई में लगाए हैं।इन होर्डिंग से यह बात भी उजागर होती है कि इस फिल्म में जैकलीन फर्नाडिश के किरदार का नाम रकील डी‘कोस्टा उर्फ गडंग रक्कम्मा है।

जैकलीन फर्नाडिश के इस लुक में कई जातियों का मेल है. वह ‘गडंग रक्कम्मा‘ का किरदार निभाती हुई नजर आएंगी, जो एक काल्पनिक जगह पर  मधुशाला चलाती हैं. जहां विक्रांत रोणा(किच्चा सुदीप) उससे मिलता है. इस फिल्म में जैकलीन का सिर्फ अहम किरदार ही नहीं है, बल्कि किच्चा सुदीप के साथ थिरकते हुए भी नजर आने वाली हैं.

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फिल्म‘‘विक्रांत रोणा’’ के निर्माता जैक मंजूनाथ कहते हैं-‘‘हमारी इस फिल्म में जैकलीन फर्नाडिश की एंट्री के साथ दुनिया के नए हीरो की कहानी और भी रोमांचक हो जाती है. फिल्म में जैकलीन ने कमाल की छाप छोड़ी है और उसकी एक झलक साझा करते हुए हमें बेहद खुशी हो रही है. हम एक ऐसा सिनेमा बना रहे हैं,  जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी याद रखेगी.  फिल्म के प्रति लोगों की उत्सुकता देखकर हमें बेहद खुशी हो रही है. ‘‘

निर्देशक अनूप भंडारी कहते हैं-‘‘प्रत्येक घोषणा के साथ दर्शकों को आश्चर्य चकित करने के सिलसिले को बरकरार रखने में हमें मजा आ रहा है. जैकलीन के पोस्टर की घोषणा फिल्म के स्तर को एक बार फिर से दर्शाती है. हम दर्शकों की आशाओं पर खरे उतरने की पूरी कोशिश कर रहे हैं ताकि उनका थिएटर में अपना कीमती समय देकर देखना सफल हो. ‘‘


जबकि जैकलीन फर्नाडिश कहती हैं-‘‘फिल्म से जुड़ी पूरी टीम ने मेरा सेट पर गर्मजोशी के साथ स्वागत किया. फिल्म के मेकिंग से जुड़े हर क्षण मेरे लिए रोमांचकारी रहे हैं. मैं निर्माताओं की तहे दिल से शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने उन्होंने इतने भव्य रूप से पोस्टर का अन्वेषण किया. यह फिल्म मेरी लिए बहुत ही खास और यादगार रहेगी. ‘‘

बहुभाषी एक्शन एडवेंचरस फिल्म ‘‘विक्रांत रोणा’’के लेखक व निर्देशक अनूप भंडारी, निर्माता जैक मंजुनाथ और शालिनी मंजूनाथ ( शालिनी आर्ट्स), सह निर्माता  अलंकार पांडियन (इन्वेनियो फिल्म्स),  संगीतकार बी अजनीश लोकनाथ,  कैमरामैन विलियम डेविड और शिवकुमार हैं. फिल्म ‘विक्रांत रोणा’में किच्चा सुदीप,  निरूप भंडारी और नीता अशोक और जैकलीन फर्नांडीस की अहम भूमिकाएं हैं.

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REVIEW: एक मार्मिक व साहसी Short फिल्म ‘ट्रांजिस्टर’

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः विनय बरिगिदाद, विनुता बरिगिदाद और धीरज जिंदल

लेखक व निर्देशकः प्रेम सिंह

कलाकारः अहसास चानना,  मोहम्मद समद, अलका विवेक,  अजय प्रताप सिंह, संजीव भट्टाचार्य व अन्य

अवधिः 25 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः अमेजॉन मिनी टीवी

1975 से 1977 के बीच जब पूरे देश में राष्ट्रीय आपातकाल लगा हुआ था, उसी दौर में सरकार के आदेश पर जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाने के लिए नसबंदी मुहीम लागू हुई थी. जिसके चलते उस दौर में लगभग छह करोड़ से अधिक 14 से 70 वर्ष के पुरूषों की नसबंदी कर दी गयी थी. उसी पृष्ठभूमि में फिल्मकार प्रेम सिंह एक किशोर वय के लड़के व लड़की की प्रेम कहानी को लघु फिल्म‘‘ट्रांजिस्टर’’में लेकर आए हैं. कैसे राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा और एक ट्रांजिस्टर ने उनके रिश्ते में सब कुछ बदल दिया था. इस लघु फिल्म को तीस जुलाई से ‘‘अमेजॉन मिनी टीवी’पर देखा जा सकता है.

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कहानीः

यह कहानी 1975 की पृष् ठभूमि में ग्रामीण भारत की है. जब पूरे देश में पुरूषों की जबरन नसबंदी की जा रही थी. एक गांव की किशोर वय लड़की उमा (अहसास चानना) अपने ट्रांजिस्टर के साथ बकरी चराने खेतों में आती है. वह एक पेड़ के नीचे बैठकर ट्रांजिस्टर पर जयामाला कार्यक्रम में पेश किए जाने वाले गीत सुना करती थी. नदी पार के गांव से एक किशोर वय लड़का पवन (मोहम्मद समद) नाव से नदी पारकर दूसरे पेड़ की ओट से उमा को देखता रहता है. उमा को भी इस बात का अहसास है. पवन बड़ी बेशर्मी से एक पेड़ के पीछे छिप जाता है,  लेकिन उसके लिए उसकी निगाहों को महसूस करने के लिए बस इतना ही काफी है. उमा एक पेड़ के नीचे बैठती है, जबकि उसका रेडियो उसे नवीनतम हिंदी फिल्मी गीतों से रूबरू कराता है.  यह उनकी दिनचर्या है. एक दिन उमा के पिता को बाजार में पकड़ कर उनकी जबरन नसबंदी करके उन्हे उपहार में ट्रांजिस्टर दिया जाता है. यह बात पवन भी जान जाता है. अब उमा के माता पिता उमा की शादी में दहेज में वही ट्रांजिस्टर देने का फैसला करते हैं. पवन व उमा हर दिन एक ही जगह आते हैं, एक दूसरे को देखते हैं, पर मन ही मन प्यार करने लगते हैं, मगर करीब नही आते. एक दिन पवन उसी पेड़ के उपर चढ़कर बैठ जाता है, जिसके नीचे उमा आकर बैठती है और पेड़ की डाली टूटने से डाली के साथ पवन भी ट्रांजिस्टर के उपर गिरता है, जिससे ट्रांजिस्टर टूट जाता है. इससे उमा को दुख होता है. पवन अपनी जबरन नसबंदी कराकर उमा को ट्रांजिस्टर लाकर देता है. ट्रांजिस्टर पाकर उमा खुश हो जाती है. दोनो पास बैठकर बातें करते हैं. दूसरे दिन उमा, पवन से पूछती है कि वह ट्रांजिस्टर कहां से लाया. पवन की खामोशी से उमा को जवाब मिल जाता है. और फिर उमा की शादी दूसरे युवक से कर दी जाती है, जिससे उसका परिवार व वंश बढ़ सके. अब पवन क्या करेगा, यह तो फिल्म देखने पर पता चलेगा.

लेखन व निर्देशनः

फिल्मकार प्रेम सिंह अपनी इस लघु फिल्म को उस वक्त लेकर आए हैं, जब उत्तर प्रदेश सरकार जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाने जा रही है. फिल्मकार ने किशोर वय की प्रेम कहानी के माध्यम से नसबंदी और जनसंख्या नियंत्रण कानून पर कटाक्ष करते हुए जोरदार तमाचा जड़ा है. फिल्मकार ने आशा,  प्रेम,  भय,  खुशी और सहित इंसान की हर भावनाओं का सटीक निरूपण किया है. इतना ही नही फिल्मसर्जक ने प्रजनन क्षमता व नसबंदी इन दोहरे विषयों को मार्मिकता के साथ उठाया है।फिल्मकार ने फिल्म की लंबाइ बढ़ाने की बजाय कई रूपको का उपयोग किया है. फिल्म के मुख्य किरदारो के बीच विना संवाद के मौन प्यार की अभिव्यक्ति को काफी अच्छे ढंग से उकेरा गया है. फिल्मकार ने 1975 के माहौल को भी ठीक से गढ़ने मे सफल रहे हैं. मगर 25 मिनट की इस लघु फिल्म की गति काफी धीमी है. फिल्म में कुछ घटनाक्रम होने चाहिए थे.

अभिनयः   

किशोर वय ग्रामीण लड़की उमा के किरदार को ‘हॉस्टल डेज’ व ‘ गर्ल्स हॉस्टल’ फेम अहसास चानना ने अपने शानदार अभिनय से जीवंतता प्रदान की है. ट्रांजिस्टर के टूटने पर दुख, नया ट्रांजिस्टर मिलने पर खुशी, लेकिन दूसरे युवक से शादी होते समय उसकी आंखो से बहने वाले आंसू हो, हर जगह वह अपने चेहरे के भावो से विना संवाद काफी कुछ बयां कर जाती हैं. तो वहीं बचकानी नम्रता वाले पवन के किरदार में ‘छिछोरे’ व ‘तुम्बाड’ फेम अभिनेता मेाहम्मद समद का अभिनय भी कमाल का है. दोनो कलाकार अपनी बॉडी लैंगवेज के माध्यम से बहुत कुछ कह जाते हैं.

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