घर का न घाट का: भाग 2- सुरेश ने कौनसा धोखा दिया था

लौन पार कर के दरवाजे पर सुरेश ने घंटी दबा दी. सुदेश की समझ में नहीं आया कि जब वह यहां था नहीं, तो घर में कौन होगा. जरा देर में दरवाजा खुला. भूरे बालों और नीली आंखों वाली एक युवती दरवाजे पर खड़ी थी. सुरेश को देखते ही उस की आंखों में समुद्र हिलोरें लेने लगा. वह तपाक से बोली, ‘‘ओह, रेशी,’’ और उस ने आगे बढ़ कर सुरेश का मुंह चूम लिया. फिर बोली, ‘‘फोन क्यों नहीं किया?’’

सुदेश मन के कोर तक कांप गई.

सुरेश बोला, ‘‘तुम्हें आश्चर्य में डालने के लिए.’’

तभी उस युवती की निगाह सुदेश पर पड़ी, ‘‘यह कौन है?’’ वह विस्मित होती हुई बोली.

सुरेश एक क्षण रुक कर बोला, ‘‘एक और आश्चर्य.’’

तीनों ने भीतर प्रवेश किया. आंतरिक ताप व्यवस्था के कारण भीतर कमरा गरम था. सुरेश टाई की गांठ ढीली करने लगा. सुदेश सोफे में धंस गई. युवती कौफी बनाने रसोई में चली गई. सुरेश ने अर्थपूर्ण दृष्टि से सुदेश की ओर देखा. सुदेश के मुख पर सैकड़ों प्रश्न उभर रहे थे. सुरेश सीटी बजाता हुआ रसोई में चला गया. थोड़ी देर में वह 3 प्याले कौफी ले कर लौटा. पीछेपीछे वह युवती भी थी. कांपते हाथों से सुदेश ने प्याला पकड़ लिया. युवती और सुरेश सामने सोफे पर अगलबगल बैठ गए. वे अंगरेजी में बात कर रहे थे. सुदेश के पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था. पर बातचीत करने में जिस बेतकल्लुफी से वह युवती सुरेश पर झुकी पड़ रही थी, उस से सुदेश के कलेजे की कोमल रग में टीस उठने लगी. वह सोफे पर ही एक ओर लुढ़क गई. सुरेश उठा. सुदेश की नब्ज देखी. पैर उठा कर सोफे पर फैला दिया. फिर उस ने एक गिलास में थोड़ी ब्रांडी डाली, पानी मिलाया, सुदेश का सिर, हाथ नीचे डाल कर ऊपर उठाया और गिलास मुंह से लगा दिया. अधखुली आंखों से सुदेश ने सुरेश को देखा. वह बोला, ‘‘थक गई हो. दवा है, फायदा करेगी.’’

दवा पी कर सुदेश निढाल हो कर लेट गई. सुरेश ने एक मोटा कंबल ला कर उसे ओढ़ा दिया. सुबह सुदेश की आंख काफी देर से खुली. उस ने इधरउधर देखा. वह रात को सोफे पर ही सोती रही थी. सुरेश का कहीं पता नहीं था. न ही कमरे में कोई अन्य बिस्तर था. वह रात की बात सोचने लगी. तभी सुरेश उस के लिए चाय ले कर आया. चाय की चुस्की ले कर सुदेश बोली, ‘‘वह लड़की कौन थी?’’

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सुरेश बोला, ‘‘सूजेन.’’

सुदेश ने पूछा, ‘‘कहां गई?’’

सुरेश ने सहज ही उत्तर दे दिया, ‘‘काम पर.’’

सुदेश ने पूछा, ‘‘यहीं रहती है, तुम्हारे साथ?’’

सुरेश ने स्वीकारात्मक सिर हिला दिया.

सुदेश बोली, ‘‘कब से?’’

सुरेश कुछ सोच कर बोला, ‘‘पिछले 6 साल से.’’

सुदेश ने चौंकते हुए पूछा, ‘‘क्यों?’’

सुरेश बोला, ‘‘हम दोनों ने शादी कर ली थी.’’

सुदेश के हाथ से चाय का प्याला छूट गया. आश्चर्यचकित स्वर में मानो अपने कानों को झुठलाते हुए वह निराशा के पहाड़ को पलभर के लिए एक ओर सरका कर सारी जीवनशक्ति संचित कर के बोली, ‘‘शादी?’’ पत्थर बने सुरेश ने फिर स्वीकृति में सिर हिला दिया. सुदेश पर जैसे गाज गिर पड़ी हो. सपनों का ताजमहल टुकड़ेटुकड़े हो गया था. हंसती, गाती, नाचती हुई परी के जैसे किसी ने पंख काट दिए हों और वह पाताल की किसी कठोर चट्टान पर पड़ी छटपटा रही हो. षणभर ठगी सी रह जाने के बाद उस ने माथा पीट लिया. वह रोती जा रही थी और बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए शून्य में सवाल फेंके जा रही थी, ‘‘फिर तुम ने मुझ से शादी क्यों की? मेरे घर वालों को क्यों धोखा दिया? मेरी जिंदगी क्यों खराब की? मुझे यहां क्यों लाए? मुझे रंगीन सपने क्यों दिखाए? मैं तुम्हें क्या समझती थी पर तुम तो कुछ और ही निकले, झूठे, बेईमान.’’

उस की मुद्रा से लग रहा था कि वह सुरेश का मुंह नोच डालेगी. सुरेश उस के पास आ कर अपनी मजबूरी बताने लगा, ‘‘सूजेन के कारण ही मुझे अच्छी नौकरी मिली है. उस का बाप इस कंपनी का मालिक है. सूजेन उस की इकलौती बेटी है. वह सुंदर है, पढ़ीलिखी है. स्वयं भी उसी कंपनी में काम करती है. उसे तो मेरे जैसे कितने ही मिल जाते. परदेश में कौन किसे पूछता है?’’

सुदेश ने अपने पास आते हाथों को एक ओर झटक दिया और फुफकारती हुई बोली, ‘‘फिर दूसरा ब्याह रचने की क्या जरूरत थी? बीवी के बिना पलभर भी नहीं रहा जाता था तो इसे साथ ही देश ले जाते. वहां यह सब नाटक रचने की क्या जरूरत थी?’’ सुरेश ने समझाने की कोशिश की, ‘‘मैं ने इस शादी की किसी को खबर नहीं दी थी. घर वाले न जाने क्या सोचते? फिर वहां छोटे भाईबहनों के रिश्ते होने में दिक्कत आती. मांबाप की, खानदान की शान में बट्टा लगता. सूजेन को वहां कौन स्वीकार करता?’’ सुदेश भभक उठी, ‘‘अपने खानदान की इज्जत के लिए दूसरे की इज्जत पर डाका डालना कहां की भलमनसाहत है? छिपाए रखना था तो वहां कह देते कि मुझे शादी नहीं करनी. कोई जबरदस्ती तो तुम्हारे गले में अपनी लड़की बांध नहीं देता? तब तो अखबार में छपवाया था, दुनियाभर के सब्जबाग दिखाए थे…’’

सुरेश बोला, ‘‘मांबाप का दिल भी तो नहीं तोड़ा जा सकता था. वे हर मेल में एक ही रट लगाए रहते थे. इसीलिए मैं ने अधिक पढ़ीलिखी या ऊंचे परिवार की लड़की नहीं देखी.’’ सुदेश रोते हुए बोली, ‘‘पढ़ीलिखी होती तो कोर्टकचहरी जा कर ऐसीतैसी कर देती. अलग रह कर कमाखा तो सकती थी. ऊंचे खानदान की होती तो घर वाले जरा सी भनक पड़ते ही नाक में नकेल डाल देते. भोलेभाले गरीब लोगों को जाल में फंसा लिया.’’ सुरेश अपनी सफलता पर मंदमंद मुसकरा रहा था.

सुदेश फिर भड़की, ‘‘मेरी मां का माथा तो बारबार ठनकता था कि  इतने पढ़ेलिखे और कमाऊ लड़के को और कोई लड़की क्यों नहीं जंची. मां ने तो पिताजी से अमेरिका में किसी अपने के जरिए से तुम्हारी जांचपड़ताल कराने को भी कहा था. पर वे मामूली आदमी कहां से पता लगाते? कोई बड़ा आदमी होता तो घर बैठे सारी असलियत मालूम कर लेता.’’ सुरेश ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘जो हो गया सो हो गया. अब गुस्सा छोड़ो. जब देश चला करेंगे तब तुम मेरे साथ पत्नी के रूप में चला करोगी. यहां सूजेन मेरी पत्नी रहेगी.’’ सुदेश ने बौखला कर कहा, ‘‘फिर मुझे यहां किस लिए लाए हो? सचाई पता नहीं चलती तो मैं वहीं तुम्हारे नाम की माला जपती रहती. यहां तो पलपल तड़पती रहूंगी और करूंगी भी क्या?’’

सुरेश आपे से बाहर होता हुआ बोला, ‘‘तुम मकान की सफाई करोगी, खाना पकाओगी, बरतन धोओगी, कपड़े साफ करोगी, प्रैस करोगी. सभी काम करोगी.’’

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सुदेश बोली, ‘‘तब तो देश से एक नौकरानी ले आते. तुम ने मेरे साथ शादी का ढोंग क्यों रचा?’’

सुरेश कड़वा सा मुंह बना कर बोला, ‘‘वास्तव में नौकर की ही जरूरत थी. यहां नौकर मिलते नहीं. मिलते हैं तो बहुत महंगे. फिर भरोसे के भी नहीं होते. हम दोनों काम करते हैं, घर की देखभाल कौन करे?’’ सुदेश फफकफफक कर रोने लगी, ‘‘मुझे मेरे घर वापस पहुंचा दो. मेरा टिकट कटा दो. मैं यहां नहीं रहूंगी.’’

सुरेश मुसकराता हुआ बोला, ‘‘अब तुम कभी नहीं लौट पाओगी. टिकट कटाना इतना आसान नहीं. हजारों रुपया किराया लगता है. कम पढ़ीलिखी, साधारण पर स्वस्थ लड़की मैं ने इसीलिए तो छांटी थी. फिर तुम्हें तकलीफ क्या है? अच्छा खाओ, अच्छा पिओ. सूजेन की अनुपस्थिति में तो तुम ही मेरी बीवी रहोगी.’’ सुदेश स्वयं को बहुत मजबूर महसूस कर रही थी. झल्ला कर बोली, ‘‘तुम सूजेन को छोड़ नहीं सकते? उसे तलाक दे दो.’’

सुरेश बोला, ‘‘अपनी औकात में रहो. सूजेन को छोड़ कर यहां क्या घास खोदूंगा. उसी के बूते पर तो सब ठाटबाट हैं.’’

सुदेश सिर थाम कर बैठ गई. अगले दिन से उसे घर के कामधंधे में जुटना पड़ा. सुरेश और सूजेन सुबह 8 बजे काम पर निकल जाते. सुदेश को घर में ताले में बंद कर जाते. शाम को लौटते. सुरेश ने सूजेन को सुदेश के संबंध में बताया था कि कामकाज के लिए नौकरानी लाया हूं. वह उसी लहजे में सुदेश से बात करती. बातबात पर गाली दे कर डांटती. रात को वे दोनों शयनकक्ष में रंगरेलियां मनाते और सुदेश रसोई के बराबर वाले स्टोर में सिकुड़ी, सिमटी आंसू बहाती हुई पड़ी रहती. एक बार उस ने घर से निकल भागने की कोशिश की, पर पकड़ी गई. सुरेश ने मारतेमारते अधमरा कर दिया. मुक्ति की कोई राह नहीं दिखती थी. किसी तरह घर से निकल भी पड़े तो जाए कहां? वैसे वह हरदम तैयार रहती थी. गरम कपड़ों के नीचे अपने सारे जेवर हर समय पहने रहती थी. अंत में एक दिन अवसर हाथ आ ही गया. सुरेश और सूजेन के विवाह की वर्षगांठ थी. 10 दंपती आमंत्रित थे. काफी रात तक खानापीना, नाचगाना, शोरशराबा चलता रहा. ऐसे में सुदेश का किस को ध्यान रहता. खिलानेपिलाने का काम निबटा कर वह चुपचाप निकल पड़ी.

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घर का न घाट का: भाग 1- सुरेश ने कौनसा धोखा दिया था

सुरेश क्लीवलैंड की एक एयरकंडीशनिंग फर्म में इंजीनियर था. अमेरिका में रहते उसे करीब 7 साल हो गए थे. वेतन अच्छा था. जल्दी ही उस ने जीवन की सभी सुविधाएं जुटा लीं. घर वालों को पैसे भी भेजने लगा. आनेजाने वालों के साथ घर वालों के लिए अनेक उपहार जबतब भेजता रहता.

लेकिन न वह स्वदेश आ कर घर वालों से मिलने का नाम लेता और न ही शादी के लिए हामी भरता. उस के पिता अकसर हर ईमेल में किसी न किसी कन्या के संबंध में लिखते, उस की राय मांगते, पर वह टाल जाता. बहुत पूछे जाने पर उस ने साफ लिख दिया कि मुझे अभी शादी नहीं करनी. 8वें साल जब उस के पिता ने बारबार लिखा कि उस की मां बीमार रहती है और वह कुछ दिन की छुट्टी ले कर घर आ जाए तो वह 6 माह की छुट्टी ले कर स्वदेश की ओर चल पड़ा.

घर वालों की खुशी का ठिकाना न रहा. कई रिश्तेदार हवाईअड्डे पर उसे लेने पहुंचे. मातापिता की आंखें खुशी से चमक उठीं. सुरेश लंबा तो पहले ही था, अब उस का बदन भी भर गया था और रंग निखर आया था. घर वालों व रिश्तेदारों के लिए वह बहुत से उपहार लाया था. सब ने उसे सिरआंखों पर बिठाया. सुरेश की मां की बहुत इच्छा थी कि इस अवधि में उस की शादी कर दे. सुरेश ने तरहतरह से टाला, ‘‘बीवी को तो मैं अपने साथ ले जाऊंगा. फिर तुझे क्या सुख मिलेगा? क्लीवलैंड में मकान बहुत महंगे मिलते हैं. मैं तो सुबह 8 बजे का घर से निकला रात 10 बजे काम से लौट पाता हूं. वह बैठीबैठी मक्खियां मारेगी.’’ पर मां ने उस की एक नहीं सुनी. छोटे भाईबहन भी थे. आगे का मलबा हटे तो उन के लिए रास्ता साफ हो.

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सुंदर कमाऊ लड़का देख कर कुंआरी कन्याओं के पिता ने पहले ही चक्कर काटने आरंभ कर दिए थे. जगहजगह से रिश्तेदारों की सिफारिशें आने लगीं. दबाव बढ़ने लगा, खाने की मेज पर शादी के लिए आए प्रस्तावों पर विचारविमर्श होता रहता. सुरेश को न कोई लड़की पसंद आती थी, न कोई रिश्ता. हार कर उस के पिता ने समाचारपत्र में विज्ञापन और इंटरनैट में एक मैट्रीमोनियल साइट पर सुरेश का प्रोफाइल डाल दिया. चट मंगनी, पट ब्याह वाली बात थी. दूसरे ही दिन ढेर सारे फोन और ईमेल आने लगे. उन बहुत सारे ईमेल और फोन में सुरेश ने 3 ईमेल को शौर्टलिस्ट किया. इन तीनों लड़कियों के पास शिक्षा की कोई डिगरी नहीं थी. वे बहुत अधिक संपन्न घराने की भी नहीं थीं. इन के परिवार निम्नमध्यवर्ग से थे.

घर वाले हैरान थे कि इतना पढ़ालिखा, काबिल लड़का और इस ने बिना पढ़ीलिखी लड़कियां पसंद कीं. फिर कोई ख्यातिप्राप्त परिवार भी नहीं कि दहेज अच्छा मिले या वे लोग आगे कुछ काम आ सकें. पर क्या करते? मजबूरी थी, शादी तो सुरेश की होनी थी. तीनों लड़कियों को देखने का प्रोग्राम बनाया गया. एक लड़की बहुत सुंदर थी, पर छरहरे बदन की थी. दूसरी लड़की का रंग सांवला था, पर नैननक्श बहुत अच्छे थे. स्वास्थ्य सामान्य था, तीसरी लड़की का रंगरूप और स्वास्थ्य भी बहुत अच्छा था.

सुरेश ने तीसरी लड़की को ही पसंद किया. घर वालों को उस की पसंद पर बड़ा आश्चर्य हुआ. शिक्षादीक्षा के संबंध में सुरेश ने दोटूक उत्तर दे दिया, ‘‘मुझे बीवी से नौकरी तो करानी नहीं. मैं स्वयं ही बहुत कमा लेता हूं.’’ रंगरूप के संबंध में उस की दलील थी, ‘‘मुझे फैशनपरस्त, सौंदर्य प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाली गुडि़या नहीं चाहिए. मुझे तो गृहस्थी चलाने के लिए औरत चाहिए.’’ सुनने वालों की आंखें फैल गईं. कितना सुंदर, पढ़ालिखा, ऊंचा वेतन पाने वाला लड़का और कैसा सादा मिजाज. दोचार हमजोलियों ने मजाक में अवश्य कहा कि यह तो चावल में उड़द या गिलट में हीरा जड़ने वाली बात हुई. पर जिसे पिया चाहे  ही सुहागिन.

लड़की वालों की तो जैसे लौटरी खुल गई थी. घर बैठे कल्पना से परे दामाद जो मिल गया था. वरना कहां सुदेश जैसी मिडिल पास, साधारण लड़की और कहां सुरेश जैसा सुंदर व सुसंपन्न वर. शादी धूमधाम से हुई. सुरेश और सुदेश हनीमून के लिए नैनीताल गए. एक होटल में जब पहली रात आमोदप्रमोद के बाद सुरेश सो गया तो सुदेश कितनी ही देर तक खिड़की के किनारे बैठी कभी झील में उठती लहरों की ओर, कभी आसमान के तारों को निहारती रही. उस के हृदय में खुशी की लहरें उठ रही थीं और उसे लग रहा था कि जैसे आसमान के सारे सितारे किसी ने उस के आंचल में भर दिए हैं. फिर वह लिहाफ उठा कर सुरेश के पैरों की तरफ लेट गई. सुरेश के पैरों को छाती से लगा कर वह सो गई.

15दिन जैसे पलक झपकते बीत गए. सुबह नाश्ता कर के हाथ में हाथ डाले नवदंपती घूमने निकल जाते. शाम को वे अकसर नौकाविहार करने या पिक्चर देखने चले जाते. सोने के दिन थे और चांदी की रातें. सुदेश को कभीकभी लगता कि यह सब एक सुंदर सपना है. वह आंखें फाड़फाड़ कर सुरेश को घूरने लगती. उस की यह दृष्टि सुरेश के मर्मस्थल को बेध देती. वह गुदगुदी कर के या चिकोटी काट कर उसे वर्तमान में ले आता. सुदेश उस की गोद में लेट जाती. सुरेश की गरदन में दोनों बांहें डाल कर दबे स्वर में पूछती, ‘‘जिंदगीभर मुझे ऐसे ही प्यार करते रहोगे न?’’ और सुरेश अपने अधर झुका कर उस का मुंह बंद कर देता, ‘‘धत पगली,’’ कह कर उस के आंसू पोंछ देता.

नैनीताल से लौटी तो सुदेश के चेहरे पर नूर बरस रहा था. तृप्ति का भी अपना अनोखा सुख होता है. सुरेश की छुट्टियां खत्म होने वाली थीं. सुदेश को वह अपने साथ विदेश ले जाना चाहता था. उस की मां ने दबी जबान से कहा, ‘‘बहू को साल 2 साल यहीं रहने दे. सालभर तक रस्मरिवाज चलते हैं. फिर हम को भी कुछ लगेगा कि हां, सुरेश की बहू आ गई,’’ पर सुरेश ने एक न मानी. उस का कहना था कि क्लीवलैंड में भारतीय खाना तो किसी होटल में मिलता नहीं. घर पर बनाने का उस के पास समय नहीं. पहले वह डबलरोटी, अंडे आदि से किसी प्रकार काम चला लेता था. पर जब सुदेश को अमेरिका में ही रहना है तो बाद में जाने से क्या फायदा? वहां के माहौल में वह जितनी जल्दी घुलमिल जाए उतना ही अच्छा.

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वह सुदेश को साथ ले कर अमेरिका रवाना हो गया. जहाज जब बादलों में विचरने लगा तो सुदेश भी खयालों की दुनिया में खो गई. शादी के बाद वह जिस दुनिया में रह रही थी उस की उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. उस ने तो कभी जहाज में बैठने की भी कल्पना नहीं की थी. उस के परिवार में भी शायद ही कोई कभी जहाज में बैठा हो. नैनीताल का भी उस ने नाम ही सुना था. पहाड़ों को काट कर बनाए गए प्रकृति के उस नीरभरे कटोरे को उस ने आंखभर देखने के बारे में भी नहीं सोचा था. पर वहां उस ने जीवन छक कर जिया. वहां बिताए दिनों को क्या वह जीवनभर भूल पाएगी. पूरी यात्रा में वह तरहतरह की कल्पनाओं में खोई रही. वह स्वयं को धरती से ऊपर उठता हुआ महसूस कर रही थी.

सुरेश इस पूरी यात्रा में गंभीर बना रहा. सुदेश का मन करता कि वह उस का हाथ अपने हाथ में ले कर प्रेम प्रदर्शित करे, पर तमाम लोगों की उपस्थिति में उसे लाज लगती थी. यह नैनीताल के होटल का कमरा तो था नहीं. पर थोड़ी देर बाद ही उस का जी घबराने लगता था. उसे सुरेश अजनबी सा लगने लगता था. जहाज के बाद टैक्सी की यात्रा कर के अगली संध्या जब वे गंतव्य स्थान पर पहुंचे तो सुदेश का मन कर रहा था क वह सुरेश के कंधे पर सिर टेक दे और वह उसे बांहों का सहारा दे कर धीरेधीरे फ्लैट में ले चले. कड़ाके की सर्दी थी. सुदेश को कंपकंपी महसूस हो रही थी. पर सुरेश विचारों में खोया गुमसुम, सूटकेस लिए आगेआगे चला जा रहा था.

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हवाई जहाज दुर्घटना: भाग 1- क्या हुआ था आकृति के साथ

लेखक-डा. भारत खुशालानी,

आकृति अपने टीवी सेट से गढ़ी हुई थी. खबर थी, लाहौर से कराची जाने वाला विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया.

उसी की खबर को हर चैनल पर दिखाया जा रहा था.

अलविदा जुम्मा… ईद से पहले का जुम्मा… उस पर ऐसा कहर बरपा था कुदरत ने… जैसे वायरस का प्रकोप कम पड़ गया हो प्रकृति को कहर ढाने के लिए.

कराची हवाईअड्डे के पास ही में एक कालोनी पर दुर्घटनाग्रस्त हो कर विमान गिर गया था. काले धुएं का भयंकर गुबार उठ रहा था. कोरोना वायरस के कारण लौकडाउन होने के बावजूद लोग ईद मनाने के लिए अपने रिश्तेदारों के घर आजा रहे थे.

हवाईअड्डे के पास की छोटी तंग गलियों के इलाके में मकानों के ऊपर यह हवाईजहाज गिर गया था. एंबुलेंस वहां आ रही थीं. अग्निशामक दस्ते पानी के बड़े फव्वारों को टूटे हुए विमान के जलते हुए टुकड़ों पर डाल कर ठंडा कर रहे थे.

वहां लोगों की भारी भीड़ खडी हो कर अविश्वसनीय आंखों से यह दृश्य देख रही थी. बहुत से लोग मलबे से लाशों को निकालने में जुटे हुए थे.

एक चैनल पर विमान चालक के साधारण से शब्द सुनाए जा रहे थे, “मे डे, मे डे, मे डे … पकिस्तान 8303.” इस का मतलब था कि पाकिस्तान की हवाई उड़ान पी-आई-ए संख्या 8303 इतनी खतरे में पहुंच गई थी कि उस का बच पाना लगभग नामुमकिन था.

हवाईजहाज के दोनों इंजनों में आग लग गई थी. 3 बार रनवे का चक्कर काटने के बावजूद हवाईजहाज रनवे पर उतर ही नहीं सका, जबकि टावर से उस के विमान तल पर उतरने के लिए दोनों रनवे खाली करवा दिए गए थे.

2 यात्री घायल हो गए, मगर उन की जान बच गई. विमान में मौजूद बाकी सारे यात्री, विमान के स्टाफ समेत सभी मौत की नींद सो गए.

आकृति बेहद विचलित थी. पिछले महीने ही उस ने गर्भपात कराया था, अपने कैरियर को ध्यान में रखते हुए. पहले से ही वह तनावपूर्ण अवस्था में थी. उस पर यह विमान दुर्घटना.

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आकृति ने अपने माथे को जोर से पकड़ लिया. सोमवार 25 मई, 2020 को उड़ान भरने वाले चालकों की सूची में उस का भी नाम था. 2 महीने लौकडाउन में रहने के बाद घरेलू उड़ानें उड़ने के लिए तैयार हो रही थीं. दिल्ली से नागपुर जाने वाली उड़ान में उस का नाम चालिका के रूप में था. उस की सहचालिका इंदरजीत कौर थी.

आकृति बेहद तनाव में आ गई. रातभर उसे नींद नहीं आई. हर बार आंख लगने पर उसी दुर्घटनाग्रस्त विमान का उन 10 बिल्डिंगों पर गिर कर उन को नष्ट कर देने की तसवीरें. मलबे में दबे हुए लोगों की निकाली जा रही लाशें. रिश्तेदारों के रोनेबिलखने की तसवीरें. हवाईजहाज की धीमी उतराव की तसवीरें और उस के बाद सब खत्म.

कुछ लोगों का यह मानना है कि हमारी सोच ही हमारा निर्माण करती है. हमारे व्यक्तित्व का तो वो निर्माण करती ही है, लेकिन हमारे आसपास की परिस्थितियों का भी वो निर्माण करती है. हमारी सोच ही हमारे आसपास ऐसी परिस्थितियां बना देती है, जो हमारी सोच के अनुकूल हो. जरूरी नहीं कि हमारी सोच सकारात्मक हो. नकारात्मक सोच नकारात्मक परिस्थितियों का निर्माण करने में सक्षम होती है. ऐसी धारणा है.

पता नहीं, यह कहां तक सच है. अगर किसी के मन में किसी बीमारी को ले कर डर बना हुआ है और वो लगातार इस बीमारी के बारे में सोचता जा रहा है, जो मनोविज्ञान के जटिल सिद्धांतों के अनुसार, उस व्यक्ति के इसी बीमारी से रोगी होने के पूरेपूरे आसार हैं.

कराची विमान दुर्घटना ने भी ऐसी ही बीमारी का रूप आकृति के मन में धर लिया. वैसे तो हादसे हजारों होते हैं. विमान से संबंधित हादसे भी कई होते हैं, लेकिन मन में डर तब बैठ जाता है, जब मन में चोर छिपा हो.

नियम के अनुसार, आकृति को अपने गर्भपात के बारे में विमान कंपनी को बता देना चाहिए था. लेकिन इतना समय यों ही घर में बैठे रहने या वापस अपने काम पर जाने की चाह से, आकृति ने किसी को कुछ भी बताना उचित नहीं समझा. कंपनी नियम के इस उल्लंघन ने उस के मन में चोर की भावना पैदा कर दी.

जाहिर है, गर्भपात के बाद कंपनी आकृति को 2-3 महीने और घर में बिठा कर रखती, और आकृति किसी भी दृष्टि से अपनेआप को हवाईजहाज उड़ाने में नाकाबिल नहीं समझ रही थी. गर्भपात कोई इतनी बड़ी बात नहीं थी. लेकिन कंपनी वालों के लिए यह मनोवैज्ञानिक असंतुलन की बात थी. हवाई यात्रियों की सुरक्षा, कंपनी वालों की हर सूची में सब से ऊपर थी.

उड़ान के दिन, मास्क और ग्लब्स पहने हुए यात्रियों के जनसमुदाय ने दिल्ली से नागपुर जाने वाले आकृति के विमान में अपनीअपनी जगहें लीं. निश्चित समय पर विमान अपने गंतव्य स्थान की ओर उड़ चला.

उड़ान के दौरान आकृति की नजरों के आगे दुर्घटनाग्रस्त विमान के हजारों टुकड़े रहरह कर आ रहे थे.

एक बात से आकृति और भी ज्यादा व्यथित हो गई थी. उस का विमान भी एयरबस 320 था. ठीक वही विमान, जो कराची में दुर्घटनाग्रस्त हुआ था.

वैसे तो एयरबस 320 का खुद का सुरक्षा रिकार्ड बहुत ही उम्दा था, लेकिन मस्तिष्क पर भय के हौवे के आगे बड़ी से बड़ी सुरक्षा में भी भेद ढूंढ़ पाना आसान था.

आकृति के दिमाग में रहरह कर यही बात आ रही थी कि 2 दिन पहले की दुर्घटना में हवाईजहाज में मौजूद सभी स्टाफ की मौत हो गई थी. चालक, सहचालक और कर्मी दल मिला कर 8 स्टाफ के लोग थे. आठों की मृत्यु हो गई थी. और उस से भी बड़ा इत्तिफाक यह था कि दुर्घटनाग्रस्त विमान भी लाहौर से एक बजे निकल कर कराची ढाई बजे पहुंचने वाला था, और आकृति की उड़ान भी दिल्ली से एक बजे निकल कर पौने 3 बजे नागपुर पहुंचने वाली थी. इतने बड़े संयोग एकसाथ हो रहे थे. इन्हीं के चलते आकृति के दिल की धडकनें तेज हो गई थीं.

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पता नहीं, वह कैसा संयोग था या आकृति के मस्तिष्क की किरणों से उत्पन्न नकारात्मक परिस्थिति कि जब आकृति अपने विमान को नागपुर के बाबासाहेब अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे के एकदम पास ले कर आ गई तो विमान के बाईं ओर के इंजन में आग लग गई.

विमान 7,000 फुट की ऊंचाई पर उड़ रहा था, दौड़पथ बिलकुल सामने था, शहर की इमारतें कुछ दूरी पर टिमटिमा रही थीं. कुछ ही सैकंडों में वायुयान के चालक स्थान में घंटियां बजने लगीं.

ये घंटियां विमान की अलगअलग प्रणालियों की विफलताओं की चेतावनी दे रही थीं. चालक स्थान लाल बत्तियों से चमक उठा था. हर लाल बत्ती किसी न किसी प्रणाली के खराब होने का संकेत था.

दुर्भाग्यवश, जिस समय विमान के इंजन को आग लगी और विमान को तेज झटका लगा, ठीक उसी समय विमान में आकृति की सहचालिका इंदरजीत कौर अपनी सहचालक की सीट से उठी, शायद टायलेट जाने के लिए. जैसे ही वह उठी, विमान को जोर का झटका लगा. इंदरजीत अपना संतुलन खो बैठी और अपनी ऊंचाई की वजह से उस का सिर कौकपिट की एकदम कम ऊंचाई वाली छत से टकरा गया. उस के सिर पर चोट आ गई और इंदरजीत वहीं बेहोश हो गई.

 

पहल: भाग 3- शीला के सामने क्या था विकल्प

शीला ने डब्बे में बैठे यात्रियों का सिंहावलोकन किया. लगभग सभी यात्री अवाक् और हतप्रभ थे. किसी ने सोचा भी न था कि ऊंट इस तरह करवट ले बैठेगा.

‘‘अरे भैया, लड़की का पार्टी के लिए मन नहीं है तो काहे जबरदस्ती कर रहे ससुर?’’ नेताजी ने बीचबचाव की पहल की तो पिंटू तुनक कर खड़ा हो गया, ‘‘ओ बादशाहो, तुसी वड्डे मजाकिया हो जी. त्वाडे दिल विच्च इस कुड़ी के लिए एन्नी हमदर्दी क्यों फड़फड़ा रेहंदी है, अयं?’’

नेताजी की ओर कड़ी दृष्टि से देखते हुए अतुल शीला से मुखातिब हो कर बोला, ‘‘आइए, गेट के पास चलते हैं.’’

‘‘नहींनहीं, मैं नहीं जाऊंगी,’’ शीला की आंखों में भय उतर आया, ‘‘प्लीज…’’

‘‘अब नखरे मत दिखा,’’ यादव और अतुल भी खडे़ हो गए. यादव ने शीला की कलाई थाम ली तो शीला ने झटके से छुड़ाते हुए विनम्र भाव से कहा, ‘‘प्लीज, छोड़ दें मुझे. पार्टी फिर कभी,’’ फिर सहायता के लिए प्रोफैसर से गुहार लगाते हुए चीख पड़ी, ‘‘देखिए न, सर…’’

‘‘आप लोग छात्र हैं या आतंकवादी, अयं? इस तरह जबरदस्ती नहीं कर सकते,’’ प्रतिरोध करने की उत्तेजना में प्रोफैसर सीट से खड़े हो गए.

‘‘शटअप,’’ यादव ने चीखते हुए प्रोफैसर को इतनी जोर से धक्का दिया कि वे लड़खड़ाते हुए धप्प से सीट पर लुढ़क गए.

तभी जीआरपी के 2 जवान गश्त लगाते हुए उधर से गुजरे. शीला को जैसे नई जान मिल गई हो, वह चीख पड़ी, ‘जीआरपी अंकल.’

शिवानंद के आगे बढ़ते कदम ठिठक गए. पीछे मुड़ कर बर्थ के भीतर तक झांका तो दृष्टि सब से पहले अतुल से टकराई. वे खिल उठे, ‘‘अरे, अतुल बाबू, आप? नत्थूराम, ई अतुल बाबू हैं, आईजी रेल, तिवाड़ी साहब के सुपुत्र.’’

‘‘अंकल, आप इस टे्रन में?’’ अतुल शिवानंद से हाथ मिलाते हुए मुसकराया.

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‘‘जनता को भी न सरकार और पुलिस विभाग को बदनाम करने में बड़ा मजा मिलता है एकरा माय के. शिकायत किहिस है जे टे्रन में लूटडकैती, छेड़छाड़, किडनैपिंग बढ़ रहा है. बस… आ गया ऊपर से और्डर लोकलवा सब में गश्त लगाने का, हंह. लेकिन अभी तक एक्को केस ऐसा नय मिल सका है.’’

‘‘जनता की बात छोडि़ए,’’ अतुल ने लापरवाही से कंधे झटके. शिवानंद ने युवती की ओर देख कर संकेत से पूछा, ‘‘ई आप के साथ हैं?’’

‘‘जी हां, क्लासफ्रैंड हैं हमारी,’’ अतुल मुसकराया तो शीला का मन हुआ, सारी बात बता दे पर जबान से बोल नहीं फूटे.

‘‘मैडम, अतुल बाबू बड़े सज्जन और सुशील नौजवान हैं. इन की दोस्ती से आप फायदे में ही रहेंगी. अच्छा, अतुल बाबू, सर को हमारा परनाम कहिएगा.’’

शीला की आंखों के आगे सारी स्थिति आईने की तरह साफ हो गई. अतुल आईजी रेल का लड़का है. पावर और पैसा, जब दोनों ही चीजें हों जेब में तो यादव और पिंटू जैसे वफादार चमचे वैसे ही दौड़े आएंगे जैसे गुड़ को देख कर चींटियां. सिपाहियों के जाते ही तीनों एक बार फिर जोरों से हंस पड़े. पिंटू ने आगे बढ़ कर शीला की कलाई थाम ली और खींच कर उसे उठाने का प्रयास करने लगा. शीला की इच्छा हुई, एक झन्नाटेदार तमाचा उस के गाल पर जड़ दे. बड़ी मुश्किल से ही उस ने क्रोध को जज्ब किया. इस तरह रिऐक्ट करने से बात ज्यादा बिगड़ सकती है.

तभी न जाने किस जेब से निकल कर अतुल की हथेली में छोटा सा रिवौल्वर चमक उठा.

‘‘किसी ने भी चूंचपड़ की तो…’’ रिवौल्वर यात्रियों की ओर तानते हुए वह गुर्रा उठा, ‘‘मनीष मिश्रा केस के बारे में तो सुना होगा न?’’

मनीष मिश्रा, वही जिस के तार स्वयं पीएम साहब से जुड़े हुए थे. बदमाशों ने चलती टे्रन से बाहर फेंक दिया था उसे. अपराध? सफर कर रही एक लड़की से छेड़खानी का मुखर विरोध. यात्रियों के बदन भय से कंपकंपाने लगे और रोंगटे खड़े हो गए.

सब से पहले नेताजी उठे, ‘‘थानापुलिस में तो एतना पहचान है कि का कहें ससुर. पर ई छात्र लोग का आपसी मामला न है. पुलिस हस्तक्षेप नहीं कर सकती.’’

फिर प्रोफैसर साहब भी अटैची संभालते हुए उठ खड़े हुए, ‘‘जब इतने प्यार से पार्टी दे रहे हैं ये लोग तो क्या हर्ज है स्वीकारने में? पर घर लौट कर मेरा आलेख पढि़एगा जरूर.’’

धीरेधीरे शकीला के अलावा सभी यात्री डब्बे के दूसरे हिस्सों में चले गए. शकीला वहीं बैठी रही. हिजड़ा होते हुए भी इतना तो समझ चुकी थी कि अकेली लड़की मुसीबत में पड़ गई है. ये लोग इसे जबरदस्ती अगवा करने पर उतारू हैं. पर इस हाल में वह करे भी तो क्या?

‘‘तेरे यार सब तो भाग गए.’’ पिंटू चुटकी बजाते हुए व्यंग्य से बोला, ‘‘तू कौन सा तीर मार लेगी, अयं?’’

‘‘किन्नरों को मामूली न समझियो,’’ शकीला ताली पीटती हुई अदा से खिलखिलाई, ‘‘हमारे 2 किन्नरों ने तो महाभारत का किस्सा ही बदल डाला

था. एक थे शिखंडी महाराज, दूसरे बिरहनला (बृहन्नला).’’

ये नोंकझोंक चल ही रही थी कि तभी उस हिस्से में बूटपौलिश वाला एक लड़का हवा के झौंके की तरह आ पहुंचा. दसेक साल की उम्र. काला स्याह बदन. बाईं कलाई में पौलिश वाला बक्सा झुलाए, दाएं हाथ से ठोस ब्रश को बक्से पर ठकठकाता, ‘‘पौलिश साब.’’

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‘‘तू कहां से आ टपका रे? चल फूट यहां से,’’ अतुल ने रिवौल्वर उस की ओर तान दिया. लड़का तनिक भी न घबराया. पूरा माजरा भांपते एक पल भी नहीं लगा उसे. खीखी करता खीसें निपोर बैठा, ‘‘समझा साब, कोई शूटिंग चल रहेला इधर. अपुन डिस्टप नहीं करेगा साब. थोड़ा शूटिंग देखने को मांगता. बिंदास…’’

‘‘इस को रहने दो बड़े भाई,’’ पिंटू ने मसका लगाया, ‘‘तुम लगते ही हीरो जैसे हो.’’

शकीला के रसीले बतरस और पौलिश वाले लड़के के आगमन से तीनों का ध्यान शीला की ओर से कुछ देर के लिए हट गया. शीला के भीतर एक बवंडर जन्म लेने लगा. कैसा हादसा होने जा रहा है यह? इन की नीयत गंदी है, यह तो स्पष्ट हो चुका है, पार्टी के नाम पर अगवा करने की कुत्सित योजना. उफ.

इस तरह की विषम परिस्थितियों में अकेली लड़की के लिए बचाव के क्या विकल्प हो सकते हैं भला? सहायता के लिए ‘बचाओ, बचाओ’ की गुहार लगाने पर सचमुच कोई दौड़ा चला आएगा? डब्बे में बैठे यात्रियों का पलायन तो देख ही रही है वह. फिर? इन निर्मम, नृशंस और संवेदनहीन युवकों के आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने से भी कोई लाभ होने वाला नहीं. इन के लिए तो हर स्त्री सिर्फ मादा भर ही है. हर रिश्तेनाते से परे. सिर्फ मादा.

शीला सतर्क नजरों से पूरी स्थिति का जायजा लेती है. डब्बे में शकीला और पौलिश वाला लड़का ही रह गए थे. भावावेश में शकीला की ओर देखती है वह. तभी आंखों के आगे धुंध छाने लगती है, ‘अरे, बृहन्नला के भीतर से यह किस की आकृति फूट रही है? अर्जुन, हां, अर्जुन ही हैं जो कह रहे हैं, नारी सशक्तीकरण की सारी बातें पाखंड हैं री. पुरुषवादी समाज नारियों को कभी भी सशक्त नहीं होने देगा. सशक्त होना है तो नारियों को बिना किसी की उंगली थामे स्वयं ही पहल करनी होगी.’

शीला अजीब से रोमांच से सिहर उठती है. नजरें वहां से हट कर पौलिश वाले लड़के पर टिक जाती हैं. पौलिश वाले लड़के का चेहरा भी एक नई आकृति में ढलने लगता है, ‘बचपन में लौटा शम्बूक. होंठों पर आत्मविश्वास भरी निश्छल हंसी, ‘ब्राह्मणवादी, पुरुषवर्चस्ववादी व्यवस्था’ ने नारियों व दलितों को कभी भी सम्मान नहीं दिया. अपने सम्मान की रक्षा के लिए तुम्हारे पास एक ही विकल्प है, पहल. एक बार मजबूत पहल कर लो, पूरा रुख बदल जाएगा.’

शीला असाधारण रूप से शांत हो गई. भीतर का झंझावात थम गया. आसानी से तो हार नहीं मानने वाली वह. मन ही मन एक निर्णय लिया. तीनों युवक शकीला के किसी मादक चुटकुले पर होहो कर के हंस रहे थे कि अचानक जैसे वह पल ठहर गया हो. एकदम स्थिर. शीला ने दाहिनी हथेली को मजबूत मुट्ठी की शक्ल में बांधा और भीतर की सारी ताकत लगा कर मुट्ठी को पास खड़े यादव की दोनों जांघों के संधिस्थल पर दे मारा.

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उसी ठहरे हुए स्थिर पल में शकीला के भीतर छिपे अर्जुन ने ढोलक को लंबे रूप में थामा और पूरी शक्ति लगा कर चमड़े के हिस्से वाले भाग से पिंटू के माथे पर इतनी जोर से प्रहार किया कि ढोलक चमड़े को फाड़ती उस की गरदन में फंस गई. और उसी ठहरे हुए स्थिर पल में पौलिश वाले लड़के के भीतर छिपे शंबूक ने दांतों पर दांत जमा कर हाथ के सख्त ब्रश को अतुल की कलाई पर फेंक मारा. इतना सटीक निशाना कि रिवौल्वर छिटक कर न जाने कहां बिला गया और ओहआह करता वह फर्श पर लुढ़क कर तड़पने लगा.

पलक झपकते आसपास के डब्बों से आए यात्रियों की खासी भीड़ जुट गई वहां और लोग तीनों पर लातघूंसे बरसाते हुए फनफना रहे थे, ‘‘हम लोगों के रहते एक मासूम कोमल लड़की से छेड़खानी करने का साहस कैसे हुआ रे?’’

पहल: भाग 2- शीला के सामने क्या था विकल्प

प्रोफैसर भड़क उठे, ‘‘आप छात्र हैं न? मुझे नहीं पहचान रहे? मैं प्रोफैसर शुभंकर सान्याल. नारी सशक्तीकरण पर उसी परचे का प्रख्यात लेखक जिस की चर्चा आज हर बुद्धिजीवी और हर छात्र की जबान पर है.’’

‘‘प्रोफैसर हैं? चलिए, एगो पहेली बुझिए तो…’’ पिंटू बोली बदलबदल कर बोलने में माहिर था, खालिस बिहारी अंदाज में प्रोफैसर की ओर मुंह कर के हुंकार भर उठा, ‘‘एगो है जो रोटी बेलता है, दूसरा एगो है जो रोटी खाता है. एगो तीसरा अऊर है ससुर जो न बेलता है, न खाता है, बल्कि रोटी से कबड्डी खेलता है. ई तीसरका को कोई भी नय जानत. हमारी संसद भी नहीं. आप जानत हैं?’’

प्रोफैसर चुप. अन्य यात्रीगण भी चुप. युवती मन ही मन खुश हुई. प्रश्न क्लासरूम में किया गया होता तो वह हाथ अवश्य उठा देती. यादव दोनों ओर की बर्थ के भीतर तक चला आया और खिड़की की ओर इशारा कर के प्रोफैसर से बोला, ‘‘यहां बैठने दीजिए तो.’’

प्रोफैसर इन लोगों के व्यंग्य से खिन्न तो थे ही, चीखते हुए फट पड़े, ‘‘कपार पर बैठोगे? जगह दिख रही है कहीं? और ये बोली कैसी है?’’

यादव ने लैक्चर खत्म होने का इंतजार नहीं किया. वह प्रोफैसर को ठेलठाल कर ऐन युवती के सामने बैठ ही गया.

पिंटू बोली में ‘खंडाला’ स्टाइल का बघार डालते हुए नेताजी की ओर मुड़ा, ‘‘ऐ, क्या बोलता तू? बड़े भाई को यहां बैठने को मांगता, क्या? बोले तो थोड़ा सरकने को,’’ पिंटू की आवाज में कड़क ही ऐसी थी कि नेताजी अंदर ही अंदर सकपका गए. लेकिन फिर सोचा, इस तरह भय खाने से काम नहीं चलेगा. यही तो मौका है युवती पर रौब गांठने का.

‘‘तुम सब स्टुडैंट हो या मवाली? जानते हो हम कौन हैं? धनबाद विधानसभा क्षेत्र के भावी विधायक. विधायक से इसी तरह बतियाया जाता है?’’

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‘‘विधायक हो या एमपी, स्टुडैंट फर्स्ट,’’ अतुल के बदन पर कपड़े नए स्टाइल के थे. कीमती भी. संपन्नता के रौब से चमचमा रहा था चेहरा. पिंटू ने उसे ‘बडे़ भाई’ का संबोधन यों ही नहीं दिया था. वह इन दोनों का नायक था. अतुल ने आगे बढ़ कर नेताजी की बगलों में हाथ डाला और उन्हें खींच कर खड़ा करते हुए खाली जगह पर धम्म से बैठ गया. नेताजी ‘अरे अरे’ करते ही रह गए. अंदर ही अंदर सभी लोग आतंकित हो उठे थे. ये लड़के ढीठ ही नहीं बदतमीज व उच्छृंखल भी हैं. इन से पंगा लेना बेकार है. शकीला स्वयं ही अपनी सीट से खड़ी हो गई और पिंटू से बोली, ‘‘अरे भाई, प्यार से बोलने का था न कि हम कालेज वाले एकसाथ बैठेंगे. आप यहां बैठो, मैं उधर बैठ जाती.’’

फिर जैसे सबकुछ सामान्य हो गया. तीनों युवती के इर्दगिर्द बैठने में सफल हो गए. गाड़ी अपनी रफ्तार से दौड़ती रही.

‘‘आप का नाम जान सकते हैं? कहां रहती हैं आप?’’ थोड़ी देर बाद अतुल ने युवती को भरपूर नजरों से निहारते हुए सवाल किया. उस का लहजा विनम्रता की चाशनी से सराबोर था.

‘‘जी शीला मुर्मू. काशीपुर डंगाल में रहती हूं. धनबाद से 60 किलोमीटर दूर.’’

‘‘वाह,’’ तीनों लड़के चौंक पड़े.

‘‘कोई उपाय भी तो नहीं. हमारे कसबे में इंटर तक की ही पढ़ाई है.’’

‘‘बहुत खूब. मोगैम्बो खुश हुआ,’’ पिंटू ने नई बोली का नमूना पेश किया.

एक क्षण का मौन.

‘‘जाहिर है, कोई पसंदीदा सपना भी जरूर होगा ही?’’ अतुल उस की आंखों में भीतर तक झांक रहा था, ‘‘ऐसा सपना जो अकसर रात की नींदों में आ कर परेशान करता रहता हो.’’

‘‘बेशक है न,’’ मजाक में पूछे प्रश्न का शीला ने सीधा और सच्चा जवाब दे दिया, ‘‘परिस्थितियों ने साथ दिया तो… तो डाक्टर बनूं.’’

‘‘ऐक्सीलैंट,’’ शीला के उत्तर पर तीनों ने एकदूसरे की ओर देखा. इस देखने में व्यंग्य का पुट घुला था, यह मुंह और मसूर की दाल. फिर तीनों के ठहाके फूट उठे.

फिर कुछ क्षणों का मौन.

तीनों ने देखा, शीला स्मृतियों की धुंध में खोई बाहर के दृश्यों को देख रही है. तीनों की नजरें परस्पर गुंथ गईं. आंखों ही आंखों में मौन संकेत हुए. फिर आननफानन एक मादक गुदगुदा देने वाली योजना की रूपरेखा तीनों के जेहन में आकृति लेने लगी.

‘‘कहां खो गईं आप?’’

‘‘जी?’’ शीला हौले से मुसकरा दी.

‘‘आज पहला दिन था. रैगिंग तो हुई होगी?’’ अतुल ने प्रश्न किया तो शीला एक पल के लिए सकपका गई. दिमाग में आज हुई रैगिंग का एकएक कोलाज मेढक की तरह फुदकने लगा. 3 सीनियरों का उसे घेर कर द्वितीय तल के एक क्लासरूम में ले जाना फिर ऊलजलूल द्विअर्थी यक्ष प्रश्नों का सिलसिला. शीला मन ही मन घबरा रही थी. पर रैगिंग का स्तर खूब नीचे नहीं उतरा था और तीनों छात्र मर्यादा के भीतर ही रहे थे.

‘‘आप न भी बताएंगी तो भी अनुमान लगाना कठिन नहीं कि रैगिंग के नाम पर बेहद घटिया हरकत की गई होगी आप के साथ,’’ अतुल फुफकारा, ‘‘बीसी कालेज के छात्रों को हम अच्छी तरह जानते हैं. इस शहर के सब से ज्यादा बदतमीज और लफंगे छात्र, हंह.’’

शीला मौन रही. क्या कहती भला?

‘‘एकदम ठीक बोल रहा दादा,’’ पिंटू इस बार अपने लहजे में बंगाली टोन का छौंक डालते हुए हिनहिनाया, ‘‘माइरी, अइसा अभद्रो व्यवहार से ही तो हमारा छात्र समुदाय बदनाम हो रहा. इस बदनामी को साफ करने का एक उपाय है, दोस्तो,’’ इसी बीच मादक योजना की रूपरेखा मुकम्मल आकार ले चुकी थी, ‘‘क्यों न हम इस नए दोस्त को नए प्रवेश की मुबारकबाद देने के लिए छोटी सी पार्टी दे दें?’’

‘‘गजब, क्या लाजवाब आइडिया है, अतुल,’’ यादव समर्थन में चहक उठा, ‘‘मुबारकबाद का मुबारकबाद और बदनामी का परिमार्जन भी.’’

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‘‘पर बड़े भाई, पार्टी होगी कहां और कब?’’

‘‘पार्टी आज ही होगी यार और अभी कुछ देर बाद,’’ अतुल हंसा. दरअसल, योजना बनी ही इतनी मादक थी कि भीतर का रोमांच लहजे के संग बह कर बाहर टपकना चाह रहा था, ‘‘अगले स्टेशन पर हम उतर जाएंगे. स्टेशन के पास ही बढि़या होटल है, ‘होटल शहनाई.’ वहीं पार्टी दे देंगे. ओके.’’

शीला अतुल के अजूबे और अप्रासंगिक प्रस्ताव पर चकित रह गई. किसी अन्य कालेज के अपरिचित छात्र. अचानक इतनी उदारता.

‘‘नो, नो, थैंक्स मित्रो, मेरे सीनियर्स ने वैसा कुछ भी नहीं किया है अभद्र, जैसा आप सब समझ रहे हैं.’’

‘‘चलिए ठीक है. माना कि आप के सीनियर्स शरीफ हैं पर पार्टी तो हमारी ओर से तोहफा होगी आप को. परिचय और अंतरंगता इसी तरह तो बनती है. हम छात्र किसी भी कालेज के हों, हैं तो एक ही बिरादरी के.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं. अब तो मिलना होता ही रहेगा न. पार्टी फिर कभी,’’ शीला ने दृढ़ता से इनकार कर दिया.

‘‘उफ, 12 बजे हैं अभी. 3:25 बजे की लोकल पकड़वा देंगे. देर नहीं होगी.’’

‘‘सौरी…मैं ने कहा न, मैं पार्टी स्वीकार नहीं कर सकती,’’ शीला ने चेहरा खिड़की की ओर फेर लिया.

कुछ क्षणों का बेचैनी भरा मौन.

‘‘इधर देखिए दोस्त,’’ अतुल की तर्जनी शीला की ठोढ़ी तक जा पहुंची, ‘‘जब मैं ने कह दिया कि पार्टी होगी, तो फिर पार्टी होगी ही. हम अगले स्टेशन पर उतर रहे हैं.’’

अतुल के लहजे में छिपी धमकी की तासीर से शीला भीतर तक कांप उठी.

‘‘आखिर हम भी तो आप के सीनियर्स ही हुए न,’’ तीनों बोले.

आगे पढ़ें- नेताजी की ओर कड़ी दृष्टि से देखते हुए…

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पहल: भाग 1- शीला के सामने क्या था विकल्प

धनबाद बर्दवान के बीच चलने वाली लोकल ईएमयू टे्रनों की सवारियों को दूर से ही पहचाना जा सकता है. इन रेलगाडि़यों में रोज अपडाउन करते हैं ग्रामीण मजदूर, सरकारी व निजी संस्थानों में लगे चतुर्थ श्रेणी के बाबू, किरानी, छोटीछोटी गुमटियों वाले व्यवसायी, यायावर हौकर्स और स्कूलकालेजों के छात्रछात्राएं. उस रोज दोपहर का वक्त था. लोकल टे्रन में भीड़ न थी. यात्रियों की भनभनाहट, इंजनों की चीखपुकार और वैंडरों की चिल्लपों का लयबद्ध संगीत पूरे वातावरण में रसायन की तरह फैला हुआ था. आमनेसामने वाली बर्थों पर कुछ लोग बैठे थे. उन में एक नेताजी भी थे. अभी ट्रेन छूटने में कुछ समय बाकी था कि  एक भरीपूरी नवयुवती सीट तलाशती हुई आई. कसा बदन, धूसर गेहुआं रंग, तनिक चपटी नाक. हाथ में पतली सी फाइल. उस की चाल में आत्मविश्वास की तासीर तो थी पर शहरी लड़कियों सा बिंदासपन नहीं था. एक किस्म का मर्यादित संकोच झलक रहा था चेहरे से और यही बात उस के आकर्षण को बढ़ा रही थी.

उसे देखते ही नेताजी हुलस कर तुरंत ऐक्शन में आ गए. गांधी टोपी को आगेपीछे सरका कर सेट किया और खिड़की के पास जगह बनाते हुए हिनहिनाए, ‘‘अरे, यहां आओ न बेटी. खिड़की के पास हवा मिलेगी.’’

युवती एक क्षण को ठिठकी, फिर आगे बढ़ कर नेताजी के बगल में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठ गई.

सामने की बर्थ पर बैठे प्रोफैसर सान्याल का मन ईर्ष्या से सुलग उठा. थोड़ी देर तक तो वे चोर नजरों से लड़की के मासूम सौंदर्य को निहारते रहे. फिर नहीं रहा गया तो युवती से बातों का सूत्र जोड़ने की जुगत में बोल उठे, ‘‘कालेज से आ रही हैं न?’’

‘‘जी हां, नया ऐडमिशन लिया है,’’ युवती हौले से मुसकराई तो प्रोफैसर  निहाल हो गए.

फिर बातों का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए बोले, ‘‘मुझे पहचान रही हैं? मैं प्रोफैसर शुभंकर सान्याल. नारी सशक्तीकरण व स्वतंत्रता पर मेरे आलेख ने शिक्षा जगत में धूम मचा रखी है. आप ने देखा है आलेख?’’

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‘‘न,’’ युवती के इनकार में सिर हिलाते ही प्रोफैसर को कसक का एहसास हुआ. शिक्षा जगत की इतनी महत्त्वपूर्ण घटना से युवती वाकिफ नहीं, प्रोफैसर के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच आईं.

नेताजी ने जब देखा कि लड़की प्रोफैसर की ओर ही उन्मुख बनी हुई है तो क्षुब्ध हो उठे और उस का ध्यान आकृष्ट करने के लिए बोल पड़े, ‘‘अरे बेटी, आराम से बैठो न. कोई तकलीफ तो नहीं हो रही है?’’ फिर जेब से अपना विजिटिंग कार्ड निकाल कर लड़की को देते हुए उस की उंगलियों को थाम लिया, ‘‘हमरा कार्डवा रख लो. धनबाद क्षेत्र के भावी विधायक हैं हम. अगला चुनाव में उम्मीदवार घोषित हो चुके हैं, बूझी? बर्दवान से ले कर धनबाद तक का हर थाना में हमरा रुतबा चलता है. कभी कोई कठिनाई आए तो याद कर लेना.’’

युवती की उंगलियां नेताजी के हाथों में थीं. असमंजस से भर कर उस ने झट से हाथ नीचे कर लिया. प्रोफैसर की नजरों से नेताजी की चालाकी छिपी न रह सकी. शर्ट के तले उन की धुकधुकी भी रोमांच से भरतनाट्यम् करने लगी. आननफानन अटैची खोल कर आलेख की जेरौक्स प्रति निकाली और युवती को थमाते हुए उस की पूरी हथेली को अपनी हथेलियों में भर लिया, ‘‘इस आलेख में आप जैसी युवतियों की समस्याओं का ही तो जिक्र किया है मैं ने. नारी स्वावलंबी बने, घर की चारदीवारी से मुक्त हो कर खुले में सांस ले, समाज के रचनात्मक कार्यों से जुड़े. जोखिम तो पगपग पर आएंगे ही. जोखिम से आप युवतियों की रक्षा समाज करेगा. समाज यानी हम सब. यानी मैं, ये नेताजी, ये भाईसाहब, ये… और ये…’’

प्रोफैसर अपनी धुन में पास बैठे यात्रियों की ओर बारीबारी से संकेत कर ही रहे थे कि नजरें घोर आश्चर्य से सराबोर हो कर पास बैठी शकीला पर जा टिकीं.

सांवला रंग, काजल की गहरी रेखा. लगातार पान चबाने से कत्थई हुए होंठ. पाउडर की अलसायी परत. कंधे से झूलती पुरानी ढोलक. अरे, भद्र लोगों की जमात में यह नमूना कहां से घुस आया भाई. अभी तक किसी की नजरें गईं कैसे नहीं इस अजूबे पर.

प्रोफैसर की नजरों की डोर थाम कर अन्य यात्री भी शकीला की ओर देखने लगे.

‘‘तू इस डब्बे में कैसे घुस आई रे?’’ प्रोफैसर फनफना उठे. इसी बीच उस युवती ने कसमसा कर अपनी हथेली प्रोफैसर के पंजे से छुड़ा ली.

‘‘हिजड़े न तीन में होते हैं न तेरह में, हुजूर. सभी जगह बैठने की छूट मिली हुई है इन्हें,’’ पास बैठे पंडितजी ने टिप्पणी की तो जोर का ठहाका फूट पड़ा.

‘‘ऐ जी,’’ शकीला विचलित और उत्तेजित हुए बिना चिरपरिचित अदा से ताली ठोंकती हुई हंस पड़ी, ‘‘अब हम हिजड़ा नहीं, किन्नर कहे जाते हैं, हां.’’

‘‘किन्नर कहे जाने से जात बदल जाएगी, रे?’’ नेताजी ने हथेली पर खैनी रखते हुए व्यंग्य कसा.

‘‘जात न सही, रुतबा तो बदला ही है,’’ शकीला का चेहरा एक अजीब सी ठसक से चमक उठा.

‘‘असल में जब से तुम लोगों की मौसियां विधायक बनी हैं, दिमाग सातवें आसमान पर चढ़ कर नाचने लगा है, हंह,’’ नेताजी के भीतर एक तीव्र कचोट फुफकारने लगी. उन्हें राजनीति के अखाड़े में कूदे 25 साल हो गए थे. क्याक्या सपने देखे थे. विधायक का गुलीवर कद, लालबत्ती वाली कार, स्पैशल सुरक्षा गार्ड, भीड़ की जयजयकार. पर हाय, 3-3 बार प्रयास के बावजूद विधानसभा तो दूर, स्थानीय नगरनिगम का चुनाव तक नहीं जीत पाए और ये नचनिया सब विधायक बनने लगे. हाय रे विधाता.

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‘‘बिलकुल ठीक कह रहे हैं आप,’’ प्रोफैसर के लहजे में क्षोभ घुला हुआ था, ‘‘क्या होता जा रहा है इस देश की जनता को? ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का क्या गौरवपूर्ण समरसता का इतिहास रहा है हमारा. पहले राजा प्रताप, शिवाजी, भामाशाह, कौटिल्य आदि. उस के बाद गांधी, नेहरू, अंबेडकर, शास्त्री वगैरह. देश पूरी तरह सुरक्षित था इन के हाथों में. पर अब जनता की सनक तो देखिए, हिजड़ों के हाथों में शासन की लगाम देने लगी है.’’

‘‘अब छोडि़ए भी ये बातें,’’ शकीला खीखी कर के हंसी. शकीला के वक्ष से छींटदार नायलोन की पारदर्शी साड़ी का आंचल ढलक गया था.

बातों का सिलसिला अभी चल ही रहा था कि टे्रन की सीटी की कर्कश आवाज फिजा में गूंज गई. फिर टे्रन के चक्कों ने गंतव्य की ओर लुढ़कना शुरू कर दिया. ठीक उसी समय 3 युवक भी डब्बे में चढ़ आए. कसीकसी जींस, अजीबोगरीब स्लोगन अंकित टीशर्ट, हाथों में एकाध कौपी या फाइल. एकदूसरे को धकियाते, हल्ला मचाते तीनों डब्बे के उसी हिस्से में आ गए जहां प्रोफैसर और नेताजी बैठे हुए थे. युवती पर नजर जाते ही उन के पांव थम गए और बाछें खिल गईं.

‘‘अतुल, क्यों न यहीं बैठा जाए?’’ पिंटू चहक उठा. फिर युवती से मुखातिब हो कर पूछ बैठा, ‘‘हैलो, आप स्टुडैंट हैं न? किस कालेज में हैं?’’

सवाल इतने आकस्मिक रूप में आया था कि युवती को सोचने का तनिक भी मौका नहीं मिला और वह हड़बड़ा कर बोली, ‘‘जी हां, बीसी कालेज में फर्स्ट ईयर साइंस की स्टुडैंट.’’

‘‘ओह, वंडरफुल,’’ यादव ने उड़ती नजरों से बैठे हुए लोगों का मुआयना किया, ‘‘ई बुढ़वन सब देश का कबाड़ा कर के छोड़ेंगे. हर जगह पर, चाहे सत्ता हो या साहित्य, ई लोग कुंडली मार कर बैठ गए हैं और हिलने का नाम ही नहीं ले रहे, हंह.’’

‘‘भाईसाहब, आप का परिचय?’’ अतुल प्रोफैसर से संबोधित था.

आगे पढ़ें- प्रोफैसर चुप. अन्य यात्रीगण भी चुप….

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असुविधा के लिए खेद है: जीजाजी को किसके साथ देखा था ईशा ने

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असुविधा के लिए खेद है: भाग 4- जीजाजी को किसके साथ देखा था ईशा ने

जाने जीजी के मन में क्या था. उस ने इन्हीं दिनों सेल्विना को अपना और तनय का वीडियो भेज कर अपने घर बुला लिया. वह भी उस वक्त जब तनय जीजी के साथ था.

सेल्विना का रोतेराते बुरा हाल था. वह लौट गई. सुबह तनय सेल्विना के पास वापस नहीं

लौट सका.

तनय समझ गया था कि वह सेल्विना को खो चुका है. जीजी ने उसे समझ लिया कि

जीजी तनय को हमेशा के लिए अपना बनाना चाहती है, इधर डेढ़ महीना होने को आया था- मम्मीपापा को बिहार के पास रखे हुए. अब जल्दी नतीजे पर पहुंचना जरूरी था. आखिर सेल्विना कौन थी? क्यों जीजी ने उस की जिंदगी उजाड़ी? तनय ही क्यों?

मैं ने अनादि को एक कौफी शौप में बुलाया. उस से कहा, ‘‘क्या तुम भी इस गेम में उतर रहे हो अनादि?’’

‘‘ऐसा क्यों लगा तुम्हें?’’

‘‘फिर ये सब क्या है? चाहने की बात क्यों करने लगे.’’

‘‘इस में बुराई तो कुछ नहीं न. हमउम्र हैं दोनों और दोनों की आय भी अच्छी है, दोस्त भी हैं. मैं तुम्हें पसंद भी करता हूं.’’

‘‘और मैं? पूछोगे नहीं या जरूरी नहीं है?’’

‘‘प्लीज बताओ.’’

‘‘बताऊंगी. पहले मेरे लिए हमारे इस काम को खत्म करो.’’

‘हांहां क्यों नहीं.’’

‘‘चलो फिर सेल्विना के स्कूल.’’

स्कूल पहुंच कर सेल्विना हमें नहीं मिली तो एक बच्चे की मदद से पास ही उस के फ्लैट में पहुंचे. शाम के 5 बज रहे थे. सेल्विना ने दरवाजा खोला तो पूरे घर में अंधेरा पसरा था. खिड़कीदरवाजे सब बंद. सेल्विना एक स्लीवलैस औफ व्हाइट बनियान फ्रौक में बड़ी मुरझई सी लग रही थी. ब्रेकअप का दर्द साफ था उस के चेहरे पर.

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सेल्विना हमें ड्राइंगरूम में ले गई. हम ने अपना परिचय देकर अपनी

मंशा जताई. उस ने पूरी जानकारी देने का वादा किया. मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हारे बौयफ्रैंड का नाम

तनय है?’’

‘‘हां.’’

‘‘कब मिली थी उस से?’’

‘‘लगभग 3 साल पहले. मैं रशिया के समारा शहर की लड़की हूं, सौतेले पिता के 2 बेटों की मुझ पर बुरी नजर थी, मैं वहां से अमेरिका चली गई पढ़ने. वहां तनय मिला मुझे.

‘‘उसे ग्राफिक्स कंपनी में जल्द नौकरी

मिल गई. हमारी आपस में बौंडिंग अच्छी हो गई थी. पेंटिंग्स का वह दीवाना था और अपनी ग्राफिक्स डिजाइनिंग में मुझ से आइडिया लेता रहता था.’’

‘‘तनय का बैकग्राउंट बताओ. कहां का है व कहां से पढ़ा है?’’

‘‘वे लोग कोलकाता से हैं… ये असल में राजस्थान के लाला हैं.’’

‘‘हमारे रिश्तेदार भी हैं कुछ जिन की लाला में शादी हुई थी. पढ़ा कहां से है?’’

‘‘मुंबई.’’

‘‘इस के पिता का नाम हरिनाथ और मां का नाम सुभागी है?’’

‘‘हां ऐसा ही कुछ है.’’

‘‘तनय तो तुम्हारे ही साथ रहता है, उस की मां कहां है?’’

‘‘यहां से पास ही है उन लोगों का घर. वह शाम को नौकरी के बाद वहां जाता था, कभीकभी मैं भी.’’

‘‘सेल्विना तनय का कोई पुराना सर्टिफिकेट है तुम्हारे पास जिस में उस के पिता का नाम

दर्ज हो?’’

सेल्विना ने अलमारी से एक फाइल निकाल कर दिखाई.

हां, यह तो वही शख्स है जिस पर जीजी ने बदले का प्रण किया था यानी हमारी नानी के चचिया सास की बेटी के बेटे यानी हमारी नानी की चचेरी ननद के बेटे यानी हमारे चचेरेफुफेरे मामा तनय लाला.

धन्य हो जीजी. तुम्हारे बदले की भावना हम सब को कहां ले कर गई. अब और तुम क्या करने वाली हो. तुम ने तो बदले की भावना से न सिर्फ सेल्विना और तनय को बरबाद किया, बल्कि और भी कई लोगों को उलझया. अब और क्या हासिल करना चाहती हो?’’

सेल्विना ने ही बताया कि जीजी तनय से पहले ही से जुड़ी थी, बाद में तनय ने सल्विना से जोड़ा जीजी को. मगर तनय धीरेधीरे जीजी के जाल में कब फंस गया, खुद ही नहीं समझ पाया.

हम सेल्विना को मदद का वादा कर बाहर आ गए. अनादि से मैं ने पूछा ‘‘क्या अब तुम्हें मेरी मदद करने के लिए किसी शर्त की जरूरत पड़ेगी?’’

‘‘नहींनहीं पड़ेगी, मेरी कोई शर्त भी नहीं है, यह तो तुम्हारी इच्छा पर है कि तुम मेरी बनना चाहोगी या नहीं.’’

‘‘तो पहले एक निर्दोष का दुख दूर करें, उस के बाद दूसरी बातें.’’

‘‘जी आज्ञा,’’ अनादि मुसकराया.

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मैं अनादि के फ्लैट में रहने चली गई. अनादि मुझ से चाबी ले कर मेरे घर पहुंच कर मेरे कमरे में जा कर सो गया. तनय सुबह वहीं से औफिस के लिए निकल गया. सभी यही समझते रहे कि बंद कमरे में मैं हूं.

जीजी अभी नहा कर निकली थी और वह टौवल लपेटे थी. अनादि कमरे से निकला. जीजी उसे सामने देख अचंभित हो गई.

अनादि उसे आगे कुछ समझने का मौका दिए बिना मेरे कमरे में खींच ले गया. अनादि अपने शिकार को काबू में करता हुआ धीरेधीरे उसे इस तरह तैयार कर चुका था कि वह  खुद शिकारी बन जाए.

गोरी रंगत का नया लड़का, जीजी खुद पर काबू नहीं रख पा रही थी जो उठ कर इस का विरोध करे.

आधे चंद्रमा के सामने जब आधी रात

जीजी तड़प उठी तो उस ने खुद ही यह बीड़ा उठा लिया.

अनादि इसी इंतजार में था. सतर्कता से रखे कैमरे को अनादि ने अब औन कर लिया था.

मैं ने अनादि से क्षमा मांगी और उस के पैन में लगे कैमरे में कैद दृश्यों को देखा और उन्हें अपने फोन में लिया. मेरा काम बन गया था.

सेल्विना और निहार को वे वीडियो भेजे और नोट लिखा, ‘‘बुराई को फांसा गया है, अब न्याय होगा.’’

मैं ने सेल्विना से संपर्क किया और कहा, ‘‘जल्द ही तुम्हें तुम्हारा प्यार वापस मिलेगा. तनय का फोन नंबर दो.’’

उस ने तुरंत दिया और मैं ने तनय से उस के औफिस में लंच के समय मिलने का तय किया.

मैं ने जीजी, उस के और हमारे बीच के परिचय सूत्र

और बदले के इतिहास का पूरा विवरण दे डाला. इस के साथ ही जीजी के साथ उस का वीडियो उसे यह कह कर दिखाया कि यह जीजी ने तुम्हारे विरुद्ध इस्तेमाल के लिए दिया था. किस तरह जीजी उस की मेहनत की कमाई लूट रही थी, याद दिलाया और अंतत: जीजी और अनादि का वीडियो यह कह कर दिखाया कि कैमरा मैं ने अपने कमरे में पहले से लगा रखा था. मुझे जीजी पर बिलकुल भी भरोसा नहीं था.

तनय खूबसूरत तो था, लेकिन वाकई कुछ नासमझ था.

वह डर गया, ‘‘यह औरत मेरे औफिस तक न आ जाए.’’

‘‘तुम अपने फोन की सिम बदल लो, साथ ही अपने बौस से मिला दो मुझे, तुम किस कदर मुश्किल में फंसे हो, वह भी पहले की किसी गलती के बिना, उन्हें समझ दूंगी. फिर तुम पर आंच नहीं आएगी.’’

तनय ने हमारे सामने सेल्विना से माफी

मांग ली. सेल्विना ने भी अपने प्यार को माफ  कर नया जीवन शुरू करने का ठान लिया. अब बारी थी निहार और अनादि की. अनादि के दिल में अब तूफान मचा था. चौंतीस साल के निहार

जिम और डायट कंट्रोल से छब्बीस के लग रहे थे. मैं ने मम्मीपापा और निहार को जीजी का

1-1 कारनामा बताया.

कहा मैं ने, ‘‘जीजी के अविकसित दिमाग में बदला, ईर्ष्या और वासना का अजब तालमेल है. इसलिए वह जिंदगी से तालमेल नहीं बैठा पाई. जो जैसा है उसे उस का प्रतिफल मिलता ही है. यही न्याय है. न्याय अपनापराया नहीं देखता और उसे देखना भी नहीं चाहिए.’’

अनादि अपनी बात के लिए चंचल हो

रहा था.

मैं ने अनादि से कहा, ‘‘अनादि तुम ने जो हमारे लिया किया, वह पूरी तरह निस्वार्थ था. किसी न किसी रूप में हम सब का स्वार्थ जुड़ा था. एक तुम ही ऐसे थे, जिन्हें इस केस से कुछ भी लेनादेना नहीं था. तुम्हारे लिए जो भी मेरे मन में है निहार से कहना जरूरी है.’’

मैं ने देखा उन दोनों की सांसें लगभग रुक चुकी थीं.

मैं ने निहार से कहा, ‘‘अनादि अब मेरा बहुत अच्छा दोस्त है और निहार, शादी के बाद…’’ मैं जानबूझ कर रुक गई थी.

निहार का चेहरा देखने लायक था, पर अनादि का सताना सही नहीं था. मैं बोल पड़ी, ‘‘शादी के बाद हम अनादि के लिए दुनिया की सब से अच्छी लड़की मिल कर

ढूंढ़ेंगी निहार. निहार की रुकी हुई सांसें जैसे चल पड़ी थीं.

‘‘ईशु,’’ निहार के मुंह से निकला.

अनादि उठ कर निहार से गले मिला. फिर मुझ से और निहार से संपर्क में रहने की बात कह वह चला गया. उधर तनय और सेल्विना की शादी में जीजी को छोड़ सभी उपस्थित थे.

जीजी को मम्मीपापा ने अपने गहनों और रुपयों से कुछ हिस्स देकर बाहर का

रास्ता दिखा दिया. जीजी के असामाजिक कृत्यों की वजह से जल्द ही निहार को जीजी से डिर्वोस मिल गया और मैं निहार की बन गई हमेशा के लिए. जीजी दिल्ली चली गई थी और वहीं एक स्कूल में नौकरी कर ली थी.

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दिल्ली से एक दिन जीजी का मुझे संदेश आया, ‘‘उम्मीद नहीं थी तू मुझे धोखा दे कर जड़ से काट फेंकेगी.’’

मैं ने उसे कोई जवाब नहीं दिया. मन ही मन मथ रही थी मैं कि बदले की आग में इंसान खुद तो जल मरता है, दूसरों को भी अकारण जला देता है. अब अगर बुराई को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए मैं ने धोखा दिया तो दिया… जीजी, इस असुविधा के लिए खेद है, पर अफसोस नहीं.

असुविधा के लिए खेद है: भाग 3- जीजाजी को किसके साथ देखा था ईशा ने

आखिर वह कौन था? सेल्विना का बौयफ्रैंड? मगर क्यों? कनैक्शन क्यों जमा आखिर? अचानक अंधेरे में रोशनी की तरह अपना नेपाली दोस्त अनादि याद आया, कालेज में 3 साल हम अच्छे ही दोस्त थे. अब वह कोलकाता में ही रहता है और सिक्यूरिटी गार्ड सप्लाई संस्थान चलाता है. बैचलर है, घरपरिवार का झंझट नहीं, मेरी मदद कर पाएगा.

हमारे कालेज के वाल्सअप गु्रप में हम सभी जुड़े हैं और इस लिहाज से उस के बारे में थोड़ीबहुत जानकारी मुझे थी. शाम के 6 बज रहे थे. मैं चल पड़ी उस के ठिकाने की ओर.

पहली मंजिल में उस का औफिस और दूसरी मंजिल में उस का घर था.

वह औफिस में ही मिल गया मुझे.

मुझे देख वह इतना खुश हुआ कि मुझे कुछ हद तक यह भी लगा कि मैं पहले ही इस से अपनी दोस्ती जारी रख सकती थी.

थोड़ी देर की बातचीत और कुछ स्नैक्सकौफी के बाद मैं मुद्दे पर आ गई. मैं ने उस से कहा, ‘‘अनादि, बात उतनी खतरनाक न सही, चिंता वाली तो है. मैं प्रोफैशनल तरीका अपना कर ज्यादा होहल्ला नहीं मचाना चाहती. बस जीजी की खुराफात बंद हो. मैं जानती हूं उस में बदले की भावना बचपन से ही कुछ ज्यादा है. अगर किसी पर उस ने टारगेट बना लिया तो उस की खैर नहीं.’’

मैं ने अपनी शादी और उस लड़के के इनकार की घटना बताई ताकि कुछ सूत्र मिल

सके अनादि को. सारी बातें सुन कर उस की दिलचस्पी जगी, कहा, ‘‘चलो कुछ तो खास

करने का मौका मिला वरना यह बिजनैस ऊबाने वाला है.’’

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‘‘देखो, हमारे पास 2 पौइंट हैं. एक बदला जीजी का, दूसरा जीजू से पीछा छुड़ा कर किसी सुंदर लड़के के प्रेम में पड़ कर अपनी जिंदगी को अपनी मरजी से जीना, तो इन 2 बातों में से कौन सी के लिए जीजी इतनी डैस्परेट है?’’

‘‘आज रात को वह सेल्विना के बौयफ्रैंड को बुला रही है. सेल्विना के स्कूल में जीजी पेंटिंग्स सिखाती है.’’

‘‘बाप रे काफी मसले हैं. हमें क्या

करना है?’’

‘‘समस्या यह है कि जीजी के पास उस वक्त कैसे पहुंचा जाए जब जीजी का बुलाया व्यक्ति वहां मौजूद हो क्योंकि मुझे घर में

देखते ही वह पैतरा बदल देगी और विश्वास में

न लूं तो गेम डबल कर के मुझे उलझएगी.

बेहतर यही होगा कि उसे विश्वास दिलाया जाए कि हम से उसे कोई खतरा नहीं. तो एक बात

हो सकती है तुम मेरे बौयफ्रैंड बन कर मेरे साथ घर चलो.

‘‘जीजू के घर मम्मीपापा को छोड़ जब आ रही थी तो  तुम से मुलाकात हुई और कालेज के दिनों से मुझ से प्रेम करने वाले तुम अब मुझे पा कर खोना नहीं चाहते, जीजी हमारी शादी में मदद करे, मम्मीपापा और रिश्तेदारों को समझने में मदद करे. तो हम भी उन की करतूतों पर आंख मूंदे ही साथ रहे हैं,’’ मैं ने प्लान बताया जो जीजी से कहना था.

‘‘ऐसा क्या?’’ नेपाली बाबू ने मेरी ओर बड़ी गहरी दृष्टि डाली.

मुझे कुछ अटपटा लगा. फिर भी मैं ने

सहज रह कर बाकी बातें पूरी की, ‘‘जब

जानेगी कि हमें उस की जरूरत है तो वह हमारा भी फायदा उठाना चाहेगी, और वक्तवक्त पर हमें भी अपनी कारगुजारियों से अनजाने ही अवगत करा देगी. इस के लिए वह कुछ हद तक हमारी ओर से निश्चिंत रहेगी. वह मेरे इस प्रेम वाले कमजोर पक्ष की वजह से मेरी ओर से लापरवाह हो जाएगी क्योंकि उसे लगेगा कि अब मैं ही

खुद अपनी जरूरत के लिए उस के सामन

झकी रहूंगी.’’

अनादि सामान्य दिख रहा था. बोला, ‘‘ग्रेट आइडिया, लैट्स प्रोसीड.’’

रात 9 बजे जब मैं और अनादि घर पहुंचे अपनी चाबी से दरवाजा खोल हम अंदर गए, जीजी के कमरे में लाइट जल रही थी. दोनों बिस्तर पर व्यस्त थे.

लड़का मेरी ही उम्र का लगभग 27 के आसपास, गोरा स्मार्ट और बहुत खूबसूरत था.

हम ने अपना वीडियो कैमरा औन कर लिया.

हमें प्रमाण चाहिए था और इस के लिए ग्रिल वाली खिड़की और परदे की आड़ हमारे लिए काफी थी. जीजी बीचबीच में लड़के से बातें भी करती जाती.

‘‘सेल्विना को वापस जाने को कब कहोगे?’’

‘‘रहने दो न उसे, बेचारी का बहुत पैसा लगा है स्कूल में.’’

‘‘तो मैं तुम्हें कैसे पा सकूंगी. शादी कैसे होगी हमारी?’’

‘‘तुम बड़ी हो उस से 4 साल, मां नहीं मानेगी.’’

‘‘अच्छा तो सिर्फ  मजे के लिए मैं?’’ जीजी होश खो रही थी.

जीजी ने आगे कहा, ‘‘और वह नैकलैस लाए?’’

‘‘हां.’’

‘‘हीरे की लौकेट वाला न?’’

‘‘हां बाबा.’’

‘‘कल, 20 हजार ट्रांसफर करने को बोला था बैंक में. किए?’’

‘‘करता हूं.’’

‘‘अभी करो.’’

‘‘इतनी जल्दी क्या है?’’

‘‘फिर इस वीडियो को देखो, सेल्विना तो क्या हर जगह पहुंच जाएगा. अच्छा लगेगा?

तुम्ही बताओ?’’

तनय वीडियो देख कर तनाव में आ कर उठ बैठा, ‘‘तुम मुझे ब्लैकमेल कर रही हो?’’

‘‘नहीं तनय. मैं तो बस सावधान कर रही हूं, सुख मुझे अकेले नहीं मिल रहा है, तुम्हें भी मिल रहा है, तो कुछ तो चुकाओगे न?’’

तनय ने मोबाइल से तुरंत रुपए ट्रांसफ र कर दिए. जीजी शातिर गेम खेल सकती है, मैं जानती नहीं थी. मैं उलझती ही जा रही थी.

हम ने कैमरा बंद कर दरवाजा खटखटाया. दोनों संभल गए. कुछ देर बाद जीजी ने कमरे का दरवाजा खोला.

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हम ने अपनी तय बातें उन के सामने रखीं. जैसाकि पहले से मालूम था वह भी इसी शर्त पर हमारी शादी में मदद को राजी हुई कि घर पर वे कुछ भी करें, हम उस के मामले में न दखल दें, न ही किसी से कुछ कहें.

हम ने उस का आभार माना और अपने कमरे में चले आए. 10 मिनट में अनादि चला गया. तनय भी थोड़ी देर बाद चला गया.

जीजू यानी निहार का संदेश मिला, ‘‘कब आओगी ईशा? साथ ही फोटो भी लाना. वाकई, जीजू ने कमाल किया. बेहद स्मार्ट और स्लिम हो गए. सच प्यार में बड़ी शक्ति है. उन की तसवीर देख चकित थी.’’

पता कर लिया था कि उन्होंने पार्कस्ट्रीट की एक कालोनी में सेल्विना के साथ मिल कर फ्लैट खरीदा था और सेल्विना के साथ तब तक लिवइन में था, जब तक न सेल्विना को भारतीय नागरिकता मिले और उस से कानूनी प्रक्रिया के तहत शादी हो जाए.

अनादि ने मुझे पता करने को कहा कि जीजी का इस तनय के साथ पहले से फेसबुक और चैटिंग का कोई रिश्ता है क्या?

जीजी से यह पूछने की फिराक में थी कि अनादि का संदेश आया, ‘‘ईशा क्या

मेरी बनोगी? बड़ा मिस करने लगा हूं यार तुम्हें.’’

‘‘यह क्या? जीजी के केस के बीच यह नया गेम क्या है?’’

5 फुट 7 ईंच का अनादि देखनेभालने में गोरा, सीधा, सरल नेपाली नहीं. कहती कि मुझे

5 फुट 7 ईंच की हाइट की लड़की के साथ बिलकुल नहीं जमेगा. लेकिन मैं तो…

मैं मन ही मन झल्ला गई. पर कोई जवाब नहीं दिया. क्या पता नहीं क्यों उसे दुखी कर

पाई. उस का हंसता सा चेहरा मेरी आंखों के आगे घूम गया.

आगे पढें- तनय समझ गया था कि वह ..

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असुविधा के लिए खेद है: भाग 1- जीजाजी को किसके साथ देखा था ईशा ने

‘‘मेरीनानी की चचिया सास की बेटी के बेटे ने मेरी बहन से शादी करने को इनकार किया? मेरी बहन से? क्या कमी है तुझ में? मैं उसे छोड़ूंगी नहीं. मैं ने कहा था इस रिश्ते के लिए. मुझे मना करेगा? 2-4 बार उस से इस बाबत पूछ क्या लिया, कहता है कि आप मेरे

पीछे क्यों पड़ी हैं? उस की इतनी हिम्मत?

मुंबई पढ़ने गया था तो प्राइवेट होस्टल में रहने के लिए कैसे मेरी जानपहचान का फायदा लिया.

अब विदेश में नौकरी हो गई, अच्छी सैलरी

मिल गई तो मेम भा रही है उसे. मुझे इनकार. बताऊंगी उसे.’’

‘‘अरे जीजी छोड़ न. मुझे ऐसे भी पसंद नहीं था वह. तुम भी तो हाथ धो कर उस के पीछे पड़ी थी, सभ्य तरीके से मना करने के बाद भी जब तुम साथ नहीं रही थी, तभी उस ने कहा ऐसा. बात समझेगी नहीं तो क्या करे वह और तब जब पहले से ही वह किसी के प्यार में है. अब तो मैं ने भी जौब जौइन की है, कहां उस के साथ विदेश जाऊंगी. फिर मांपिताजी की तबीयत भी ऐसी कि उन्हें अकेला छोड़ा न जाए.’’

‘‘तू चुप कर. रिश्ता सही था या नहीं यह अलग बात है, पर मेरी बात को वह टालने वाला होता कौन है? आज तक किसी ने बात नहीं

टाली मेरी.’’

‘‘अरे जीजी गुस्सा क्यों होती है जब मुझे करनी ही नहीं थी शादी?’’

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‘‘तु चुप करे. एक मेम के लिए मुझे ‘न’ कहा. मैं छोड़ूंगी नहीं उसे और तेरे लिए तो कभी लड़का न देखूं. कुंआरी ही रह.’’

‘‘दीदी क्यों खून जलाती है अपना? देखो 30 साल की उम्र में ही तुम कितनी चिड़चिड़ी

हो गई हो. वीपी हाई हो जाएगा. बीमार पड़ोगी

तो कंसीव नहीं कर पाओगी. जीजू कुछ कहते नहीं तुम्हें?’’

‘‘तु चुप कर. क्या कहेगा वह? उस की मम्मीपापा के भरोसे चलती थी उस की जिंदगी, अब दोनों गए ऊपर तो मेरा ही मुंह ताकता है. औफिस से घर और घर से औफिस, आता ही क्या है उसे? मुझे कहेगा?’’

जीजी को लगता कि दुनियाजहान का सारा भार जीजी के ही कंधों पर है. पहले हम दोनों

का साझ कमरा था. 3 साल हुए इधर जीजी की शादी हुई और दादादादी भी इहलोक सिधार गए. तब से उन लोगों का कमरा जीजी के नाम किया गया है.

ज्यादातर जीजी अपने भोलेभाले जरा गोलमटोल पति को रसोइए के जिम्मे छोड़ यहां आ जाती. यहां हम सब पर राज करने की पुरानी आदत उस की गई नहीं थी. जीजी के कमरे से फोन पर बात करने की आवाजें आ रही थीं.

‘‘क्यों, छोड़े क्यों? ऐसे ही छोड़ दें? निकालती हूं हवा उस की.’’

उधर शायद जीजी की वह सहेली थी जिन के पति वकील थे. बात नहीं बनी शायद. जीजी ने फोन रख दिया.

बड़ी उतावली हो वह ऐसे किसी सज्जन

को ढूंढ़ रही थी जो जीजी की बात न मान कर जीजी को अपमानित करने वाले दुर्जन की हवा निकाल सके. कौन मिलेगा ऐसा. जीजी सोच में पड़ी थी.

मैं जीजी के कमरे में गई. उसे शांत करने का प्रयास किया, ‘‘जीजी, यह कोई इशू नहीं

है, तुम ईगो पर क्यों लेती हो? तुम अब इस प्रकरण को बंद करो. मुझे नहीं करनी थी कोई शादी… अभी बहुत जल्दीबाजी होगी शादी की बात करना.’’

‘‘मत कर शादी. मैं तेरे लिए लड़ भी नहीं रही. मेरी बात टाल जाए, मुझ से ही काम निकाल कर वह भी विदेशी मेम के लिए? यह गलत है. मैं होने नहीं दूंगी.’’

‘‘बड़ी अडि़यल और बेतुकी है जीजी.’’

‘‘हूं. तुझे उस से क्या तू अपने काम से

काम रख.’’

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इस के 2 दिन बाद शाम को जीजी अपना फोन लाई. मुझ से कहा इन तसवीरों में सब से अच्छी वाली कौन सी है?

‘‘क्यों?’’

‘‘तु बता न.’’

‘‘यह वाली. मगर यह तो 4 साल पुरानी तसवीर है, करोगी क्या इस का?’’

‘‘एक दूसरी एफबी प्रोफाइल खोल कर उस में मेरी सारी पुरानी पेंटिंग्स डालूंगी.’’

‘‘अरे वाह. सच जीजी. यह हुई न बात. यह प्लान बढि़या है.’’

जीजी ने नया प्रोफाइल खोला और अपनी पुरानी पेंटिंग्स की तसवीरें खींच कर उस में डालती रही. वैसे समझ नहीं पाईर् कि पेंटिंग्स पुराने एफबी प्रोफाइल में क्यों नहीं डालीं? जीजी को यहां आए 20 दिन तो हो ही चुके थे. जीजू के लिए हम सब को चिंता होती. वहां अकेले उन्हें दिक्कत होती थी. लेकिन जीजी से इस बारे में कुछ कहो तो उस का उत्तर होता, ‘‘हांहां, मैं तो हूं ही पराई. अब तू ही यहां राज कर. यहां रहने के खर्च देने पड़ेगा क्या? यह मेरा भी घर है. मेरा इस पर हक है.’’

महीनाभर हो गया तो जीजू ही आ गए. मुहतरमा ने वापस जाने को ठेंगा दिखा दिया. जीजू वापस चले गए. जीजी को लगातार फोन पर व्यस्त देखती. कोलकाता के जिस मार्केटिंग एरिया में हम रहते हैं वहां शाम होते ही बाजार और दुकानों में गहमागहमी रहती है. पहले जीजी के  साथ अकसर मैं भी मार्केटिंग को निकला करती थी. लेकिन अब तो जीजी का फोन ही सबकुछ था. कुछ दिनों बाद जीजी ने निर्णय सुनाया कि वह एक जगह पेंटिंग्स सिखाने को जाना चाहती है. कह दिया और शुरू हो गई.

जीजू के लिए वाकई मैं चिंतित थी. एक सीधासरल इंसान इस तरह बेवजह रिश्ते की उलझन में फंस जाए. अफसोस की बात थी. जीजू को एक दिन मैं ने फोन किया और उन से जीजी के बारे में बातें कीं.

‘‘मैं क्या कह सकता हूं? मेरी बातों को वह मानती नहीं, न ही इन 3 सालों में उस का अपनों से कोई लगाव देखा.

‘‘दुनिया रुकती नहीं है ईशा, मेरी भी दुनिया चल रही है. उसे मेरी फिक्र नहीं है… कुछ बोलूं तो खाने को दोड़ती है…’’

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जीजी पार्क स्ट्रीट के ड्राइंग पेंटिग स्कूल में क्लास लेने जाने लगी थी. जीजी ने एक विदेशी बाला से मिलवाया. 26-27 की होगी. गोल्डन बालों में वह एशियन लड़की भारतीय सलवार सूट बड़े शौक से पहने थी.

जीजी ने इंग्लिश में परिचय कराया तो रशियन लड़की मुझ से गले मिली. फिर उस ने टूटीफूटी हिंदी में जो भी कहा उस का सार यही था कि वह अपने होने वाले पति के लिए सब छोड़ आईर् थी. लड़का अभी कोलकाता के किसी मल्टीनैशनल ग्राफिक्स डिजाइनिंग ऐंड कंपनी में काम करता है.

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