विकलांग: क्या हुआ था फ्लैट में ऐसा

इस बार किट्टी पार्टी रेखा के यहां थी. सब आ चुकी थीं. ड्राइंगरूम में सब को एक नया चेहरा नजर आया, सब ने प्रश्नवाचक नजरों से रेखा को देखा. रेखा ने नए चेहरे का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘यह है दीपा, मंजू, यह तुम्हारी बिल्डिंग में तुम्हारे फ्लैट के ऊपर ही तो रहने आई है.’’

मंजू ने कहा, ‘‘हां, कोई शिफ्ट तो कर रहा था, पर तुम्हें इतनी जल्दी कैसे पता चल गया?’’

‘‘इन के पति अनिल मेरे पति संदीप के कुलीग हैं और अगर आप लोगों को कोई

परेशानी न हो तो यह भी हमारी किट्टी में शामिल हो रही हैं.’’

सुमन ने कहा, ‘‘अरे परेशानी कैसी? 10 से 11 हो जाएंगे, नो प्रौब्लम.’’

सब अपनाअपना परिचय दीपा को देने लगीं. सब बनारस की तुलसीधाम सोसायटी ही रहती थीं.

दीपा ने अपने हंसमुख स्वभाव से सब को प्रभावित किया. वह काफी सुंदर और स्मार्ट थी. सब हमेशा की तरह ऐंजौय कर रही थीं. खानापीना हुआ, गेम्स खेले गए, गप्पें हुईं. फिर दीपा ने कहा, ‘‘अगले हफ्ते आप सब मेरे यहां लंच पर आइएगा, तब तक घर पूरी तरह सैट

हो जाएगा.’’

सब ने खुशीखुशी निमंत्रण स्वीकार किया. सब चलने के लिए उठीं तो दीपा ने साइड में रखी अपनी छड़ी उठाई और चलने के लिए कदम बढ़ाया. छड़ी ले कर चलते हुए वह एक पैर पर काफी झकी तो सब हैरान रह गईं.

मंजू ने पूछा, ‘‘यह क्या?’’

दीपा ने सरल हंसी बिखेर दी, ‘‘अभी तक मैं बैठी हुई थी न, आप लोगों को अंदाजा नहीं हुआ… मेरा एक पैर ठीक नहीं है.’’

अनीता ने हैरानी से पूछा, ‘‘पर हुआ क्या है?’’

‘‘फिर बैठ जाइए, बताती हूं सब.’’

सब बैठ गईं तो दीपा कहने लगी, ‘‘मैं जब

3 महीने की थी तो मुझे तेज बुखार हुआ.

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मम्मीपापा कहीं बाहर गए हुए थे, घर पर बस नानी थी. नानी ने डाक्टर को बुलाया, लेकिन डाक्टर की लापरवाही से ओवरडोज होने के कारण मुझे इंजैक्शन का रिएक्शन हो गया. इस पैर ने फिर कभी हरकत नहीं की. बहुत जगह दिखाया, लेकिन यह ठीक नहीं हुआ. मैं ने किसी तरह बीए किया और बस फिर मेरा विवाह हो गया.’’

सुमन ने पूछा, ‘‘आप

के विवाह में कोई समस्या नहीं हुई?’’

‘‘मैं एक बार टे्रन से अपनी बूआ के साथ कानपुर जा रही थी. उसी डब्बे में अनिल के मामा भी थे. वे मुझ से रास्ते में बातें करते रहे और बातोंबातों में बूआ से मेरा पता भी ले लिया और हमारे घर पहुंच कर यह रिश्ता तय कर दिया. उन्हें मेरी जैसी ही लड़की की तलाश थी क्योंकि अनिल का भी एक पैर पोलियो से प्रभावित है, यह तकलीफ उन्होंने भी सही है. बस, हम जैसे एकदूसरे के लिए ही बने थे, हम और हमारा बेटा वीर, यही छोटा सा परिवार है हमारा.’’

सब उस का मुंह देखती रह गईं, तो दीपा मुसकराई, ‘‘आप लोग तो सीरियस हो गईं,

अब चलें?’’

मंजू ने कहा, ‘‘चलो साथ ही चलते हैं, एक जगह ही तो जाना है,’’ सब अपनेअपने घर चली गईं. पहले फ्लोर पर सुमन, उस के ऊपर वाले फ्लैट में मंजू और उस के ऊपर दीपा का फ्लैट था. सब का एकदूसरे से मिलना चलता रहता था. सुमन और मंजू तो दीपा और अनिल को देख हैरान रह जातीं. दीपा और अनिल सामान्य और स्वस्थ लोगों से ज्यादा ऐक्टिव थे. अनिल इंजीनियर था, दोनों ड्राइविंग में ऐक्सपर्ट थे. सामान्य रूप से चलनेफिरने में असमर्थ लोगों के लिए कारों में विशेषरूप से जो परिवर्तन किए जाते हैं उन के कारण अनिल और दीपा को कार चलाने में काफी सुविधा रहती थी.

सोसायटी में लोग दोनों को जल्दी ही पहचान गए, एक तो दोनों के चलने का ढंग सामान्य नहीं था, दूसरे दोनों सब से ज्यादा जिंदादिल पतिपत्नी थे. उन का 10 वर्षीय बेटा वीर सामान्य और ऐक्टिव बच्चा था. दीपा तो कार से ही बनारस से लखनऊ अपने मायके चली जाती थी, दोनों को लाइफस्टाइल देख कर सब दांतों तले उंगली दबा लेते थे.

मंजू और सुमन पहले तो दीपा की तारीफ दिल खोल कर करती थीं लेकिन अब दोनों के दिलों में सहानुभूति की जगह ईर्ष्या ने ले ली थी. दीपा हर समय अपने को व्यस्त रखती, कभी घर में ड्राइंग क्लास शुरू कर देती, कभी बच्चों को फ्लौवरमेकिंग सिखाती, कभी टपरवेयर का काम करती, कभी किसी प्रसाधन कंपनी की एजेंसी ले लेती, उसे खुद भी नईनई चीजें सीखने का शौक था. कभी किसी ने उसे घर पर खाली बैठे आराम करते नहीं देखा था. अनिल अच्छे पद पर था, पैसे की कोई कमी नहीं थी,

मंजू अब अकसर सुमन से कहने लगी, ‘‘हमें तो टाइम नहीं मिलता कुछ करने का और यहां तो विकलांग लोग सारा दिन घूमतेफिरते है.’’

सुमन भी हां में हां मिलाई, ‘‘पता नहीं इसे क्या जरूरत है सारा दिन छड़ी टकटक करते घूमने की… आदमी अच्छाभला कमाता है, पैर का यह हाल है, ये लोग आराम से नहीं बैठ सकते क्या?’’

मंजू मुंह बनाती हुई बोली, ‘‘कुदरत ने एक पैर खराब दिया तो यह हाल है, सोचो दोनों पैर से चलती तो क्याक्या करती.’’

सुमन ने भी हंस कर गरदन हिलाई. ईर्ष्या का अंधेरा नम्रता और प्रेम को अपने पास नहीं फटकने देता. दीपा के सामने सब उस के गुणों की प्रशंसा करती, लेकिन पीछे खूब बुराई होती जिस में बस ईर्ष्या का ही रंग दिखता. इन सब बातों से बेखबर दीपा हर दिन कुछ करने की चाह में डूबी रहती.

दीपा अपने घर अकसर सहेलियों को बुला कर अपने हाथ के स्वादिष्ठ व्यंजन खिलाती, मंजू और सुमन जैसी सहेलियां माल उड़ा कर सामने वाहवाह कर पीछे बुराई करतीं. जहां मंजू और सुमन जैसी ईर्ष्यालु सहेलियां थी तो वहीं अनिता, नीरा, रेखा जैसी भी थीं जो अनिल और दीपा की जिंदादिली की तारीफ करतीं, उन की किसी भी सहायता के लिए हमेशा तैयार रहतीं, लेकिन ऐसा मौका कभी नहीं आया था. अनिल और दीपा ने बस खुशियां ही सब के साथ बांटने का निश्चय कर लिया था, अपने दुखदर्द बस उन के ही थे. इसलिए लोग उन की इज्जत भी करते थे. दीपा को यहां आए 1 साल हो गया था.

सर्दियों के दिन थे, अंधेरा जल्दी होने लगा था. सुमन के पति विनोद किसी काम से शहर से बाहर थे. वह 8 वर्षीय बेटी श्वेता के साथ अकेली थी. इस बिल्डिंग के किसी फ्लैट के बैडरूम के बाहर की बालकनी में ग्रिल नहीं थी, खुली जगह थी और बराबर के पाइप के सहारे एक फ्लैट से दूसरे फ्लैट में जाना किसी चोर के लिए मुश्किल काम नहीं था. 3 फ्लोर की ही बिल्डिंग थी और उस दिन कोई चौकीदार भी नहीं था. रात 11 बजे के आसपास 2 चोर सुमन के बैडरूम की बालकनी में कूद गए, सर्दी के कारण आसपास सन्नाटा था. कहींकहीं टीवी चलने की आवाजें आ रही थीं.

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श्वेता गहरी नींद में सोई हुई थी. बालकनी में आहट सी हुई तो पत्रिका पढ़ती हुई

सुमन चौंकी और बेखयाली में ही बालकनी का दरवाजा खोल कर देखने लगी कि एक चोर ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया. दूसरे ने चाकू दिखा कर बच्ची को मारने का इशारा कर चुप रहने का संकेत दिया. पहला चोर उस के मुंह

पर हाथ रखेरखे अंदर ले गया और सब रुपएजेबरात निकालने के लिए कहा. डर के मारे थरथर कांपती सुमन ने जल्दीजल्दी अपने पहने हुए सब गहने और पर्स से सब रुपए निकाल कर उन्हें पकड़ा दिए.

दूसरे चोर ने उसे बाथरूम में बंद करते हुए कहा, ‘‘चुपचाप यहां बैठी रह, अगर आवाज निकाली तो लड़की को मार देंगे.’’

बाथरूम की कुंडी बाहर से बंद कर के दोनों चोर अंधेरे में

पाइप से मंजू के फ्लैट की बालकनी में पहुंच गए और खिड़की की

?िर्री से इंदर का जायजा लिया.

मंजू की कोई संतान नहीं थी. उस का पति विपिन और वह ड्राइंगरूम में टीवी देख रहे थे. थोड़ी देर मेहनत के बाद चोरों ने दरवाजे की कुंडी खोल ली और फिर चाकू निकाल कर ड्राइंगरूम की ओर बढ़ गए. टीवी देख रहे पतिपत्नी की गरदन पर चाकू रख टीवी बंद

करने के लिए कहा, विपिन और मंजू की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई, विपिन का हाथ जैसे ही मोबाइल फोन की तरफ बढ़ा, एक चोर ने फोन को एक लात मारी तो फोन दूर जा गिरा.

चोर गुर्राया, ‘‘ज्यादा होशियारी मत करना, जान से मार दूंगा.’’

मंजू ने जैसे ही चिल्लाने के लिए मुंह खोला, चोर ने कस कर उस का गला दबाते हुए कहा, ‘‘आवाज मत निकालना.’’

दूसरा चोर अनिल के गले पर चाकू रख कर बोला, ‘‘फटाफट रुपएगहने निकालो, जरा भी होशियारी नहीं.’’

मंजू ने जो भी था सब निकाल कर चोरों को दे.दिया, चोरों ने

अपने थैले से रस्सी निकाल कर दोनों को अलगअलग कमरे में हाथपैर व मुंह बांध कर छोड़ दिया और बाहर से कुंडी लगा दी और फिर दीपा और अनिल के फ्लैट की तरफ बढ़ गए.

पाइप से बालकनी में कूद कर खिड़की से चोरों ने झांका. दीपा छड़ी के सहारे चलती हुई किचन से आ रही थी. अनिल अपनी छड़ी के सहारे चलता हुआ लैपटौप हाथ में ले कर बैडरूम की तरफ आ रहा था. चोर हंसे, ‘‘ये तो बेचारे चल भी नहीं पा रहे, इन से क्या डर, यहां तो मेहनत करनी ही नहीं पड़ेगी. बड़ी आसानी से काम होगा. वीर अपने रूम में पढ़ रहा था. चोरों ने निडर हो कर दरवाजे की कुंडी एक झटके में तोड़ दी.

पलभर में ही चोरों को देख कर अनिल और दीपा ने आंखों ही आंखें में एकदूसरे से पता नहीं क्या तय कर लिया, चोरों को पता ही नहीं चला. जैसे ही एक चोर ने अनिल के गले पर चाकू रखने की कोशिश की, अनिल ने अपनी छड़ी इतनी जोर से उस चोर की जांघ में मारी कि वह दर्द से चीख पड़ा.

वीर चीख सुन कर भागा आया और वहां का दृश्य देख कर घबरा गया. इतने में दूसरे चोर को दीपा अपने ठीक पैर से जोर से लाते मार चुकी थी और अपनी छड़ी से दूसरे चोर के चाकू को दूर फेंक चुकी थी.

दीपा चिल्लाई, ‘‘वीर, दोनों चाकुओं को बाहर फेंक दो.’’

दोनों चोरों को इस तरह से चोट लगी थी कि  वे

हिलडुल नहीं पा रहे थे. उस के बाद अनिल और दीपा ने अपनी छड़ी से चोरों को पीटते हुए कहा, ‘‘वीर, सामने वालों को बुला लाओ.’’

वीर भाग कर सामने फ्लैट में रहे नमन परिवार को बुला लाया. वहां का दृश्य देख कर सब हैरान रह गए. अनिल और दीपा ने चोरों को पूरी तरह से काबू में किया हुआ था.

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इस बीच नमनजी का बेटा पुलिस को फोन कर चुका था. बाकी पड़ोसी भी इकट्ठा हो गए थे. चोरों को एक कोने में बैठा दिया गया. सब अनिल और दीपा की हिम्मत की प्रशंसा कर रहे थे.

पुलिस आ गई. चोरों के थैले की तलाशी ली तो उन्होंने नीचे के फ्लैट की चोरी भी कुबूल ली. हैरान हो कर सब नीचे भागे, कुछ मंजू के फ्लैट की तरफ कुछ सुमन के. दोनों का दरवाजा नहीं खुला तो कुछ लड़कों ने पाइप के सहारे बालकनी में उतर कर घर के दरवाजे खोले. मंजू और विपिन बंधे पड़े थे. सुमन बाथरूम से चिल्ला रही थी, श्वेता अभी सोई हुई ही थी.

उन तीनों को जब सारी घटना पता चली तो मंजू और सुमन शर्मिंदगी से घिर गए, दोनों अपनी आंखों से बहते शर्मिंदगी के आंसू पोंछने लगीं. दोनों को ही लगा

एक मीठा सा रिश्ता अभीअभी जुड़ा है दीपा से. बहते आंसू ईर्ष्या को बहाते रहे.

असुविधा के लिए खेद है: भाग 2- जीजाजी को किसके साथ देखा था ईशा ने

पहले जब वह अमेरिका पढ़ने गई थी तो इस लड़के से प्रेम हुआ. लड़के के

पिता जब बाद में चल बसे और लड़के की मां ने उसे यहां बुलावा भेजा तो लड़की ने भी लड़के के साथ आने का मन बनाया.

इस रशियन लड़की सेल्विना दास्तावस्की की मां नहीं रही. सौतेले पिता हैं, अब उस का यह ब्रौयफ्रैंड ही सबकुछ है. सेल्विना की आंखों में एक मधुर संभाषण और बालसुलभ कुतूहल देखा मैं ने. वाकई वह बहुत प्यारी और निश्चल थी. मुझे भा गई थी.

रात को जीजी घर आई तो मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘अचानक कैसे वहां ड्राइंग सीखने जाने लगी? कैसे पहचान हुई सेल्विना से तुम्हारी?’’

‘‘फेसबुक के मेरे नए प्रोफाइल पर.’’

‘‘तुम ने भेजी थी रिकवैस्ट?’’

‘‘तुझे क्या करना किस ने भेजी?’’

‘‘जीजी तुम सारी चीजों में उलझ कर रह गई, लेकिन जीजू के बारे में बिलकुल नहीं सोच रही. आखिर चाहती क्या हो? जीजू अकेले

क्यों रहें?’’

‘‘मैं ने उन से कहा तो है कोलकाता ट्रांसफर करा लें. नहीं, अपनी पैत्रिक संपत्ति छोड़ कर किराए के मकान में आना नहीं चाहते. मैं क्यों नहीं बड़े शहर में रहूं. पर तू यह बता तुझे क्यों इतनी फिक्र हो रही जीजू की?

‘‘जीजी.’’

‘‘चुप कर. ढीलेढाले पाजामे को मेरे गले बांध दिया. सभी ने मिल कर.. बैंक की नौकरी है… वह कोई मर्द है?’’

जीजी की बातें बड़ी चकित करने वाली थीं. मैं रात तक बेचैन रही.

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वे मुझ से स्नेह रखते थे. जीजू की लाचारी मुझे खलने लगी. मैं ने उन्हें एक के बाद एक कई संदेश भेजे ताकि उन की खैरियत पता चल सके. कोई उत्तर न मिला मुझे तो मैं ने फोन मिला दिया. फोन उठाया गया, लेकिन कुछ पल कानाफूसी सी आवाजें आने के बाद फोन कट गया.

मुझे ऐसा क्यों लगा कि उस वक्त ऐसा कुछ था जो न  होता तो अच्छा था. कल की सुबह शनिवार की थी. जीजी अपना भलाबुरा समझ नहीं पा रही थी, मैं तो समझती थी. औफिस से

2 दिन की छुट्टी लेने की ठान मैं

सो गई.

कोलकाता से बस में 4-5 घंटे लगते थे जीजू के शहर पहुंचने में. रात को पहुंची तो मेन गेट खुला था.

बरामदे में पहुंच मैं ने दरवाजे पर हाथ रखा तो अंदर से बंद था. मुझे लग रहा था कोई दिक्कत जरूर है. मेरी छठी इंद्री ने काम शुरू किया और मैं ने बगीचे की तरफ खुल रही बैडरूम की खिड़की से हाथ अंदर कर धीरे से परदा हटा कर झंका.

दृश्य ने मुझे सदमे में डाल दिया. जीजू और उन की रसोई बनाने वाली रीना बिस्तर

पर साथ. यह क्या किया जीजू तुम ने. मुझे बहुत दुख हुआ. अभिमान और व्यथा से मैं तड़पने लगी. पर क्यों? क्या जीजी के लिए या और कुछ? मैं बरामदे में आ कर बैठ गई. क्या मैं माफ  कर दूं जीजू को? करना ही पड़ेगा. ठगा गया इंसान जीने की सूरत ढूंढ़ रहा है, थोड़ी देर में दरवाजा खोल रीना निकली. मुझे देख उस का चेहरा सफेद पड़ गया. किसी तरह नमस्ते किया और सरपट निकल गई.

मुझे देख जीजू सकपका गए. अपना सिर नीचे कर लिया. मैं अभी कुछ कहती कि वे

बोल पड़े, ‘‘ईशा, मैं तुम्हारे परिवार का गुनहगार हूं. प्रभा को कितने संदेश भेजे… न ही जवाब दिया, न ही आई. मुझ से अकेलापन बरदाश्त नहीं हो रहा था. रीना के पति का शराब पीपी कर लिवर खराब हो गया है, उसे पैसों की जरूरत

थी. सच तो यह है कि हम दोनों ही कंगाली में थे. वह गरीब है, दुखी है, मैं ने उसे संभाला, उस ने मुझे.’’

यथासंभव खुद के साथ लड़ते हुए मैं ने उन का हाथ अपने हाथों में लिया, ‘‘क्या फिर भी आप ने यह ठीक किया? जीजी को छोड़ो, कभी भी आप ने मुझे जानने की कोशिश नहीं की.’’

जीजू उम्मीद भरी आंखों से मुझे देखने लगे.

‘‘क्या कोई 10 बार यों ही किसी को संदेश भेजता है? आप के लिए शरीर ही सबकुछ है? मेरा संदेश आप की खैरियत के बारे में होता है, लेकिन इस के पीछे की कोई बात…’’

जीजू ने मेरे होंठ अपने होंठों से सिल दिए.

‘‘मैं कल्पना कैसे करूं कि आसमान का सूरज आ कर कहे कि मैं सिर्फ तुम्हारा हूं,’’

जीजू ने कहा मैं अपने आप को रोक नहीं पाई.

उन के गले लग पड़ी. और हम भावनाओं में, अनुभूतियों में, प्रेम के आकंठ अणृतवर्षा में डूब चुके थे.

‘‘ईशा. क्या सच ऐसा कभी हो सकेगा कि तुम हमेशा के लिए मेरी हो जाओ?’’

‘‘और रीना?’’ मैं ने छेड़ा.

‘‘कभी नहीं, विदा कर दूंगा उसे, माफ कर दो मुझे.’’

‘‘फिर तो यह आप पर है. लेकिन मैं मोटा जो हूं? तुम इतनी स्लिम और सुंदर?’’

‘‘उफ्फ. आप का यह भोलापन, सादगी, मेरी जान लेगा. कौन कहता है आप मोटे हो. बस इतने मोटे हो कि तीन महीने की जिम ट्रेनिंग और डायट सही कर आप बिलकुल फिट लगोगे. और वो सारा कुछ मैं इंतजाम करवा दूंगी.’’

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‘‘शुक्रिया मेरे तनमनधन से तुम्हारा शुक्रिया. मैं विश्वास नहीं कर पा रहा हूं कि कंगाल को राजपाट मिल गया है.’’

आज जीजू और मैं दोनों हवा से हल्के और समुद्र से भी गहरे हो गये थे.

जब लोटी तो देखा कि चार दिनों में ही जीजी में और भी बदलाव दिखे. अब वह बिलकुल मौर्डन स्टाइलिश लड़की थी, साड़ी से तो अब दूरदूर का नाता नहीं था. उस का घर आते ही अपने स्मार्टफोन में बिजी हो जाती. उस के बदलाव में कुछ और भी बात थी.

मैं ने जीजू यानी निहार से बात की और अपने मम्मीपापा को कुछ दिनों के लिए वहां छोड़ आई. तीनों को आपस में साथ रह कर एकदूसरे को समझने समझने का मौका मिले और इधर जीजी के दिमाग में शतरंज के प्यादे किसकरवट बैठ रहे हैं उस का भी मैं पता लगा पाऊं.

मम्मीपापा को निहार के पास छोड़ने जा रही थी तो जीजी से अपनी वापसी का जो दिन बताया था, उस के एक दिन पहले ही पहुंच गई मैं घर. घर की चाबी मेरे पास भी थी. मैं अंदर पहुंची तो आशा के मुताबिक जीजी फोन पर किसी से लगी पड़ी थी, ‘‘आज ही मिलो, तुम्हारी सेल्विना के साथ मैं लगभग गृहस्थी ही बसा चुकी. तुम जानते हो पेंटिंग्स की वजह से मैं तुम से जुड़ी, तुम पेंटिंग्स ग्राफिक्स का काम करते हो, और कहा भी था तुम ने कि तुम मेरे लिए वे सबकुछ करोगे जिस से मेरी पेंटिंग्स को पहचान मिले. लेकिन तुम ने तो मुझे गर्लफ्रैंड के हवाले कर दिया और भूल गये. क्या मैं तुम्हारी कुछ

भी नहीं.

‘‘कुछ भी नहीं सुनूंगी आज. मैं तुम्हें बुरी तरह मिस कर रही हूं, कल ईशा आ जाएगी वापस. आज रात सेल्विना को कोई बहाना बता कर मेरे पास आओ.’’

सारी बातें सुन कर फिर मेन दरवाजा बंद कर मैं बाहर आ गई.

आगे पढें- हमारे कालेज के वाल्सअप गु्रप में …

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गलती: क्या हुआ था कविता के साथ

लेखक- विनय कुमार पाठक

साढ़े 5 लाख रुपए कोई छोटी रकम नहीं होती. साढ़े 5 लाख तो क्या, उस के पास अभी साढ़े 5 हजार रुपए भी नहीं हैं और उसे धमकी मिली है साढ़े 5 लाख रुपए देने की. नहीं देने पर उस की तसवीर को उजागर करने की धमकी दी गई है.

उस ने अपने मोबाइल फोन में ह्वाट्सऐप पर उस तसवीर को देखा. उस के नंगे बदन पर उस का मकान मालिक सवार हो कर बेशर्मों की तरह सामने देख रहा था. साथ में धमकी भी दी गई थी कि इस तरह की अनेक तसवीरें और वीडियो हैं उस के पास. इज्जत प्यारी है तो रकम दे दो.

यह ह्वाट्सऐप मैसेज आया था उस की मकान मालकिन सारंगा के फोन से. एक औरत हो कर दूसरी औरत को वह कैसे इस तरह परेशान कर सकती है? अभी तक तो कविता यही जानती थी कि उस की मकान मालकिन सारंगा को इस बारे में कुछ भी नहीं पता. बस, मकान मालिक घनश्याम और उस के बीच ही यह बात है. या फिर यह भी हो सकता है कि सारंगा के फोन से घनश्याम ने ही ह्वाट्सऐप पर मैसेज भेजा हो.

कविता अपने 3 साल के बच्चे को गोद में उठा कर मकान मालकिन से मिलने चल दी. वह अपने मकान मालिक के ही घर के अहाते में एक कोने में बने 2 छोटे कमरों के मकान में रहती थी.

मकान मालकिन बरामदे में ही मिल गईं.

‘‘दीदी, यह क्या है?’’ कविता ने पूछा.

‘‘तुम्हें नहीं पता? 2 साल से मजे मार रही हो और अब अनजान बन रही हो,’’ मकान मालकिन बोलीं.

‘‘लेकिन, मैं ने क्या किया है? घनश्यामजी ने ही तो मेरे साथ जोरजबरदस्ती की है.’’

‘‘मुझे कहानी नहीं सुननी. साढ़े 5 लाख रुपए दे दो, मैं सारी तसवीरें हटा दूंगी.’’

‘‘दीदी, आप एक औरत हो कर…’’

‘‘फालतू बातें करने का वक्त नहीं है मेरे पास. मैं 2 दिन की मुहलत दे रही हूं.’’

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‘‘लेकिन, मेरे पास इतने पैसे कहां से…’’

‘‘बस, अब तू जा. 2 दिन बाद ही अपना मुंह दिखाना… अगर मुंह दिखाने के काबिल रहेगी तब.’’

कविता परेशान सी अपने कमरे में वापस आ गई. उस के दिमाग में पिछले 2 साल की घटनाएं किसी फिल्म की तरह कौंधने लगीं…

कविता 2 साल पहले गांव से ठाणे आई थी. उस का पति रामप्रसाद ठेले पर छोटामोटा सामान बेचता था. घनश्याम के घर में उसे किराए पर 2 छोटेछोटे कमरों का मकान मिल गया था. वहीं वह अपने 6 महीने के बच्चे और पति के साथ रहने लगी थी.

सबकुछ सही चल रहा था. एक दिन जब रामप्रसाद ठेला ले कर सामान बेचने चला गया था तो घनश्याम उस के घर में आया था. थोड़ी देर इधरउधर की बातें करने के बाद उस ने कविता को अपने आगोश में भरने की कोशिश की थी.

जब कविता ने विरोध किया तो घनश्याम ने अपनी जेब से पिस्तौल निकाल कर उस के 6 महीने के बच्चे के सिर पर तान दी थी और कहा था, ‘बोल क्या चाहती है? बच्चे की मौत? और इस के बाद तेरे पति की बारी आएगी.’

कोई चारा न देख रोतीसुबकती कविता घनश्याम की बात मानती रही थी. यह सिलसिला 2 साल तक चलता रहा था. मौका देख कर घनश्याम उस के पास चला आता था. 1-2 बार कविता ने घर बंद कर चुपचाप अंदर ही पड़े रहने की कोशिश की थी, पर कब तक वह घर में बंद रहती. ऊपर से घनश्याम ने उस की बेहूदा तसवीर भी खींच ली थी जिन्हें वह सभी को दिखाने की धमकी देता रहता था.

इन हालात से बचने के लिए कविता ने कई बार अपने पति को घर बदलने के लिए कहा भी था पर रामप्रसाद उसे यह कह कर चुप कर देता था कि ठाणे जैसे शहर में इतना सस्ता और महफूज मकान कहां मिलेगा? वह सबकुछ कहना चाहती थी पर कह नहीं पाती थी.

पर आज की धमकी के बाद चुप रहना मुमकिन नहीं था. कविता की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. इतने पैसे जुटाना उस के बस में नहीं था. यह ठीक है कि रामप्रसाद ने मेहनत कर काफी पैसे कमा लिए हैं, पर इस लालची की मांग वे कब तक पूरी करते रहेंगे. फिर पैसे तो रामप्रसाद के खाते में हैं. वह एक दुकान लेने के जुगाड़ में है. जब रामप्रसाद को यह बात मालूम होगी तो वह उसे ही कुसूरवार ठहराएगा.

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रामप्रसाद रोजाना दोपहर 2 बजे ठेला ले कर वापस आ जाता था और खाना खा कर एक घंटा सोता था. मुन्ने के साथ खेलता, फिर दोबारा 4 बजे ठेला ले कर निकलता और रात 9 बजे के बाद लौटता था.

‘‘आज खाना नहीं बनाया क्या?’’ रामप्रसाद की आवाज सुन कर कविता चौंक पड़ी. वह कुछ देर रामप्रसाद को उदास आंखों से देखती रही, फिर फफक कर रो पड़ी.

‘‘क्या हुआ? कोई बुरी खबर मिली है क्या? घर पर तो सब ठीक हैं न?’’ रामप्रसाद ने पूछा.

जवाब में कविता ने ह्वाट्सऐप पर आई तसवीर को दिखा दिया और सारी बात बता दी.

‘‘तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं?’’ रामप्रसाद ने पूछा.

कविता हैरान थी कि रामप्रसाद गुस्सा न कर हमदर्दी की बातें कर रहा है. इस बात से उसे काफी राहत भी मिली. उस ने सारी बातें रामप्रसाद को बताईं कि किस तरह घनश्याम ने मुन्ने के सिर पर रिवौल्वर सटा दिया था और उसे भी मारने की बात कर रहा था.

रामप्रसाद कुछ देर सोचता रहा, फिर बोला, ‘‘इस में तुम्हारी गलती सिर्फ इतनी ही है कि तुम ने पहले ही दिन मुझे यह बात नहीं बताई. खैर, बेटे और पति की जान बचाने के लिए तुम ने ऐसा किया, पर इन की मांग के आगे झुकने का मतलब है जिंदगीभर इन की गुलामी करना. मैं अभी थाने में रिपोर्ट लिखवाता हूं.’’

रामप्रसाद उसी वक्त थाने जा कर रिपोर्ट लिखा आया. जैसे ही घनश्याम और उस की पत्नी को इस की भनक लगी वे घर बंद कर फरार हो गए.

कविता ने रात में रामप्रसाद से कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई.’’

‘‘माफी की कोई बात ही नहीं है. तुम ने जो कुछ किया अपने बच्चे और पति की जान बचाने के लिए किया. गलती बस यही कर दी तुम ने कि सही समय पर मुझे नहीं बताया. अगर पहले ही दिन मुझे बता दिया होता तो 2 साल तक तुम्हें यह दर्द न सहना पड़ता.’’

कविता को बड़ा फख्र हुआ अपने पति पर जो इन हालात में भी इतने सुलझे तरीके से बरताव कर रहा था. साथ ही उसे अपनी गलती का अफसोस भी हुआ कि पहले ही दिन उस ने यह बात अपने पति को क्यों नहीं बता दी. उस ने बेफिक्र हो कर अपने पति के सीने पर सिर रख दिया.

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आखिर कब तक: नादान उम्र का खेल

लेखक- सुबोध कुमार

राम रहमानपुर गांव सालों से गंगाजमुनी तहजीब की एक मिसाल था. इस गांव में हिंदुओं और मुसलिमों की आबादी तकरीबन बराबर थी. मंदिरमसजिद आसपास थे. होलीदीवाली, दशहरा और ईदबकरीद सब मिलजुल कर मनाते थे. रामरहमानपुर गांव में 2 जमींदारों की हवेलियां आमनेसामने थीं. दोनों जमींदारों की हैसियत बराबर थी और आसपास के गांव में बड़ी इज्जत थी. दोनों परिवारों में कई पीढि़यों से अच्छे संबंध बने हुए थे. त्योहारों में एकदसूरे के यहां आनाजाना, सुखदुख में हमेशा बराबर की साझेदारी रहती थी. ब्रजनंदनलाल की एकलौती बेटी थी, जिस का नाम पुष्पा था. जैसा उस का नाम था, वैसे ही उस के गुण थे. जो भी उसे देखता, देखता ही रह जाता था. उस की उम्र नादान थी. रस्सी कूदना, पिट्ठू खेलना उस के शौक थे. गांव के बड़े झूले पर ऊंचीऊंची पेंगे लेने के लिए वह मशहूर थी.

शौकत अली के एकलौते बेटे का नाम जावेद था. लड़कों की खूबसूरती की वह एक मिसाल था. बड़ों की इज्जत करना और सब से अदब से बात करना उस के खून में था. जावेद के चेहरे पर अभी दाढ़ीमूंछों का निशान तक नहीं था.

जावेद को क्रिकेट खेलने और पतंगबाजी करने का बहुत शौक था. जब कभी जावेद की गेंद या पतंग कट कर ब्रजनंदनलाल की हवेली में चली जाती थी, तो वह बिना झिझक दौड़ कर हवेली में चला जाता और अपनी पतंग या गेंद ढूंढ़ कर ले आता.

पुष्पा कभीकभी जावेद को चिढ़ाने के लिए गेंद या पतंग को छिपा देती थी. दोनों में खूब कहासुनी भी होती थी. आखिर में काफी मिन्नत के बाद ही जावेद को उस की गेंद या पतंग वापस मिल पाती थी. यह अल्हड़पन कुछ समय तक चलता रहा. बड़ेबुजुर्गों को इस खिलवाड़ पर कोई एतराज भी नहीं था.

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समय तो किसी के रोकने से रुकता नहीं. पुष्पा अब सयानी हो चली थी और जावेद के चेहरे पर दाढ़ीमूंछ आने लगी थीं. अब जावेद गेंद या पतंग लेने हवेली के अंदर नहीं जाता था, बल्कि हवेली के बाहर से ही आवाज दे देता था.

पुष्पा भी अब बिना झगड़ा किए नजर झुका कर गेंद या पतंग वापस कर देती थी. यह झुकी नजर कब उठी और जावेद के दिल में उतर गई, किसी को पता भी नहीं चला.

अब जावेद और पुष्पा दिल ही दिल में एकदूसरे को चाहने लगे थे. उन्हें अल्हड़ जवानी का प्यार हो गया था.

कहावत है कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. गांव में दोनों के प्यार की बातें होने लगीं और बात बड़ेबुजुर्गों तक पहुंची.

मामला गांव के 2 इज्जतदार घरानों का था. इसलिए इस के पहले कि मामला तूल पकड़े, जावेद को आगे की पढ़ाई के लिए शहर भेज दिया गया. यह सोचा गया कि वक्त के साथ इस अल्हड़ प्यार का बुखार भी उतर जाएगा, पर हुआ इस का उलटा.

जावेद पर पुष्पा के प्यार का रंग पक्का हो गया था. वह सब से छिप कर रात के अंधेरे में पुष्पा से मिलने आने लगा. लुकाछिपी का यह खेल ज्यादा दिन तक नहीं चल सका. उन की रासलीला की चर्चा आसपास के गांवों में भी होने लगी.

आसपास के गांवों की महापंचायत बुलाई गई और यह फैसला लिया गया कि गांव में अमनचैन और धार्मिक भाईचारा बनाए रखने के लिए दोनों को उन की हवेलियों में नजरबंद कर दिया जाए.

ब्रजनंदनलाल और शौकत अली को हिदायत दी गई कि बच्चों पर कड़ी नजर रखें, ताकि यह बात अब आगे न बढ़ने पाए. कड़ी सिक्योरिटी के लिए दोनों हवेलियों पर बंदूकधारी पहरेदार तैनात कर दिए गए.

अब पुष्पा और जावेद अपनी ही हवेलियों में अपने ही परिवार वालों की कैद में थे. कई दिन गुजर गए. दोनों ने खानापीना छोड़ दिया था. आखिरकार दोनों की मांओं का हित अपने बच्चों की हालत देख कर पसीज उठा. उन्होंने जातिधर्म के बंधनों से ऊपर उठ कर घर के बड़ेबुजुर्गों की नजर बचा कर गांव से दूर शहर में घर बसाने के लिए अपने बच्चों को कैद से आजाद कर दिया.

रात के अंधेरे में दोनों अपनी हवेलियों से बाहर निकल कर भागने लगे. ब्रजनंदनलाल और शौकत अली तनाव के कारण अपनी हवेलियों की छतों पर आधी रात बीतने के बाद भी टहल रहे थे. उन दोनों को रात के अंधेरे में 2 साए भागते दिखाई दिए. उन्हें चोर समझ कर दोनों जोर से चिल्लाए, पर वे दोनों साए और तेजी से भागने लगे.

ब्रजनंदनलाल और शौकत अली ने बिना देर किए चिल्लाते हुए आदेश दे दिया, ‘पहरेदारो, गोली चलाओ.’

‘धांयधांय’ गोलियां चल गईं और 2 चीखें एकसाथ सुनाई पड़ीं और फिर सन्नाटा छा गया.

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जब उन्होंने पास जा कर देखा, तो सब के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई. पुष्पा और जावेद एकदूसरे का हाथ पकड़े गोलियों से बिंधे पड़े थे. ताजा खून उन के शरीर से निकल कर एक नई प्रेमकहानी लिख रहा था.

आननफानन यह खबर दोनों हवेलियों तक पहुंच गई. पुष्पा और जावेद की मां दौड़ती हुई वहां पहुंच गईं. अपने जिगर के टुकड़ों को इस हाल में देख कर वे दोनों बेहोश हो गईं. होश में आने पर वे रोरो कर बोलीं, ‘अपने जिगर के टुकड़ों का यह हाल देख कर अब हमें भी मौत ही चाहिए.’

ऐसा कह कर उन दोनों ने पास खड़े पहरेदारों से बंदूक छीन कर अपनी छाती में गोली मार ली. यह सब इतनी तेजी से हुआ कि कोई उन को रोक भी नहीं पाया.

यह खबर आग की तरह आसपास के गांवों में पहुंच गई. हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी. सवेरा हुआ, पुलिस आई और पंचनामा किया गया. एक हवेली से 2 जनाजे और दूसरी हवेली से 2 अर्थियां निकलीं और उन के पीछे हजारों की तादाद में भीड़.

अंतिम संस्कार के बाद दोनों परिवार वापस लौटे. दोनों हवेलियों के चिराग गुल हो चुके थे. अब ब्रजनंदनलाल और शौकत अली की जिंदगी में बच्चों की यादों में घुलघुल कर मरना ही बाकी बचा था.

ब्रजनंदनलाल और शौकत अली की निगाहें अचानक एकदसूरे से मिलीं, दोनों एक जगह पर ठिठक कर कुछ देर तक देखते रहे, फिर अचानक दौड़ कर एकदूसरे से लिपट कर रोने लगे.

गहरा दुख अपनों से मिल कर रोने से ही हलका होता है. बरसों का आपस का भाईचारा कब तक उन्हें दूर रख सकता था. शायद दोनों को एहसास हो रहा था कि पुरानी पीढ़ी की सोच में बदलाव की जरूरत है.

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अपहरण नहीं हरण : क्या हरिराम के जुल्मों से छूट पाई मुनिया?

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अपहरण नहीं हरण : भाग 3- क्या हरिराम के जुल्मों से छूट पाई मुनिया?

लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर 

अपनी सीट पर बैठ कर देवा ने पानी भरी प्लास्टिक की बोतल का ढक्कन खोल कर पानी पिया, फिर मुनिया की तरफ बोतल बढ़ा दी, ‘‘लो प्यास लग आई होगी, पानी पी लो.’’ वाकई बड़ी देर से मुनिया की इच्छा पानी पीने की हो रही थी. उस ने बोतल में मुंह लगाया और बचा हुआ सारा पानी गटक गई.

खाली बोतल को उस ने देवा की तरफ बढ़ाया, फिर बोली, ‘‘क्या तुम वाकई मेरे बारे में जानना चाहते हो?’’ जब देवा ने हां में सिर हिलाया, तो वह बोली, ‘‘मेरी पूरी दास्तां सुनने के बाद तुम्हें मेरे उद्धार का रास्ता ढूंढ़ना होगा, क्योंकि मैं कैसे भी इस हरीराम से पिंड़ छुड़ाना चाहती हूं. बोलो, कर पाओगे मेरा उद्धार?’’ देवा ने विश्वास दिलाने के लिए मुनिया का हाथ अपने दोनों हाथों में ले लिया. मुनिया ने अपनी आपबीती सुनानी शुरू की और जब आपबीती खत्म हुई तो रात के 11 बज चुके थे और जाने कब देवा ने मुनिया को अपनी एक बांह के घेरे में ले लिया था.

बस के अंदर की लाइटें भी बंद थीं. थकान से भरे होने के चलते ज्यादातर लोगों ने अपनीअपनी सीट पर ऊंघ कर एकएक नींद पूरी कर ली थी. देवा ने अपना हाथ मुनिया के कंधों से हटाया. उस ने महसूस किया कि अपनी आपबीती सुनाते हुए वह जितनी बार भी सुबक कर रोई है, उतनी बार उस की कमीज का सीने वाला हिस्सा गीला हुआ है और अभी भी गीला है.

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कुछ सोच कर देवा अपनी सीट से उठा और ड्राइवर और उस के पास बैठे कंडक्टर से उस ने पूछा, ‘‘कहीं गाड़ी रोकोगे भी या यों ही चलते जाओगे?’’ ‘‘हम 10 मिनट बाद चाय पीने के लिए रुकेंगे. वहीं जिसे फ्रैश होना होगा, हो लेगा, फिर आगे जब राजस्थान बौर्डर पार कर के मध्य प्रदेश की तरफ बढ़ेंगे, तब खाना खाने के लिए एक ढाबे पर रुकेंगे.

वहीं अलगअलग प्रदेश से आनेजाने वाली बसें तकरीबन एक घंटे के लिए रुकती हैं, फिर अपनेअपने रूट पर निकल जाती हैं,’’ कंडक्टर बोला. ‘‘अच्छा, यह बताओ कि कब तक भोपाल पहुंचा दोगे?’’ ‘‘कुछ कह नहीं सकते, क्योंकि इस महामारी का प्रकोप हर इलाके में तेजी से फैल रहा है. सुन रहे हैं कि चीन से यह बीमारी पूरी दुनिया में फैल रही है. भारत भी इस की चपेट में आ चुका है.

बस की कहीं भी रोक कर चैकिंग की जा सकती है, इसलिए कह नहीं सकते कि हम अपनी मंजिल पर कब पहुंचेंगे.’’ देवा जानकारी ले कर वापस अपनी सीट पर लौट आया था. उस की आहट पा कर झपकी लेती मुनिया सीधी हो कर बैठ गई. लगातार देवा को चुप देख कर मुनिया थोड़ा घबराई और बोली, ‘‘क्या हमारी किसी बात से नाराज हो गए?’’ ‘‘नहीं, तुम से हम नाराज क्यों होंगे. हम तो तुम्हें चाहने लगे हैं. हमारे दिमाग में अभीअभी एक विचार आया है.

बस यही सोच रहे हैं कि तुम्हारी खुशी की खातिर उस विचार को अंजाम दें या नहीं. फिर तुम पूरी तरह साथ दोगी, तभी वह मुमकिन होगा.’’ ‘‘तुम हमारी खुशी की सोचो और हम साथ न दें, ऐसा नहीं हो सकता. तुम बताओ तो सही, क्या करना है?’’ मुनिया ने पूछा. देवा ने इस बार अपने होंठ मुनिया के कानों से लगा दिए और अपनी योजना उस के कानों में बताने लगा, फिर बात पूरी कर के उस ने अंधेरे का फायदा उठा कर मुनिया के गालों को चूम लिया.

तभी बस झटका खा कर रुक गई. चाय पीने और फ्रैश होने की जगह आ गई थी. बस के अंदर की लाइटें जगमगा उठी थीं. बस का इंजन बंद कर के ड्राइवर भी उतर गया और कंडक्टर ने गुहार लगाई ‘‘बस यहां 20 मिनट रुकेगी, चाय पी लो, फ्रैश हो लो…’’ बस के रुकते ही देवा अपनी सीट से उठ कर खड़ा हो गया. मुनिया से पूछा, ‘‘नीचे उतरने का मन है?’’ मुनिया ने इशारे से कहा, कि तुम उतरो मैं आती हूं.

इतना कह कर उस ने पलट कर हरीराम वाली सीट की तरफ देखा. हरीराम के साथ जग्गू दादा भी हड़बड़ा कर उठ खड़े हुए थे. वे दोनों जैसेतैसे खड़े हुए, फिर नीचे उतरने के लिए बस के गेट की तरफ बढ़े. उन को अपनी सीट के पास से गुजरते हुए मुनिया ने महसूस किया और कुछ इस अंदाज में अपना सिर पीछे की तरफ लुढ़का लिया मानो बड़ी देर से गहरी नींद में सो रही हो.

पास से गुजरता हुआ हरीराम दो पल को ठिठक कर रुका. उस का मन हुआ कि इतनी चैन से सोती हुई मुनिया को तेजी से झकझोर कर उठाए, पर पीछे से जग्गू दादा की आवाज सुन कर आगे बढ़ गया, ‘‘अरे, उसे सोने दो. चलो, चाय पी कर आते हैं. बस ज्यादा देर नहीं रुकेगी.’’ उन के उतरते ही तकरीबन खाली हो चुकी बस के अंदर देवा तेजी से मुनिया के पास आया और बोला, ‘‘टौयलैट आ रही हो तो उतर कर जल्दी से कर आओ. बाईं तरफ चली जाना. उधर ही लेडीज टौयलैट है.

उन दोनों के चाय पी कर लौटने से पहले आ जाना.’’ मुनिया नीचे उतरी और उस के आने तक देवा अपनी सीट पर ही बैठा रहा. उस के वापस आते ही वह फिर नीचे उतर गया. फिर जब दोबारा सब सवारियां बैठ गईं और बस स्टार्ट हुई तो 2 पानी की बोतलें और गरमागरम भुजिया ले कर देवा भी वापस अपनी सीट पर आ कर बैठ गया. बस फिर चल दी. मुनिया और देवा एकदूसरे के प्रति जिस अपनेपन के भाव से भरते जा रहे थे, उस से खुद भी हैरान थे.

उन के एकदूसरे के करीब बैठने का अंदाज भी बदल चुका था. दोनों बड़े मजे से भुजिया खाने में जुटे हुए थे. बस अपनी रफ्तार से आगे बढ़ी चली जा रही थी. तकरीबन 2 बजे के आसपास बस उस जगह रुकी, जहां और भी बसें पहले से ही अलगअलग दिशाओं से आ कर रुकी हुई थीं. देवा ने बस से उतर कर यह जानकारी हासिल कर ली कि कौन सी बस देवास की तरफ इस से पहले निकलेगी.

उधर मुनिया ने अपनी सीट से उठ कर खाने की पोटली और पानी की बोतल हरिया को पीछे जा कर दे दी और बोली, ‘‘लो, खाना खा लो. इस में जग्गू दादा के लायक भी रोटियां हैं.’’ इधर जग्गू दादा बैठे थे, इसलिए पोटली उन्होंने ही पकड़ी और दोनों खाना खाने में जुट गए. खाना खाने के बाद उन्होंने भांग की एकएक गोली पानी में घोल कर पी और पीछे सिर टिका कर आंखें बंद कर लीं. कुछ ही देर में मुनिया ने खिड़की के बाहर देखा. देवा उसे बाहर आने का इशारा कर रहा था.

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वह अपना बैग पहले से ही बाहर उठा कर ले जा चुका था.  मुनिया ने बस से नीचे उतरने से पहले हरिया की सीट की तरफ देखा. पलभर को एक खिंचाव सा हुआ. आखिर 2 साल तो वह हरिया के साथ रही ही थी, फिर मन को कड़ा कर के वह बस से नीचे उतर गई. देवा बोला, ‘‘तुम कंडक्टर को बताओ कि कौन सी अटैची तुम्हारी है.’’  बस के पीछे सामान चढ़ानेउतारने वाली लटकती सीढ़ी के कुछ डंडों पर चढ़ने के बाद मुनिया ने इशारे से बता कर अपनी अटैची उतरवाई.

अटैची उतरते ही देवा ने एक हाथ में मुनिया का हाथ पकड़ा और दूसरे हाथ में उस की अटैची उठा कर उस बस की तरफ दौड़ पड़ा, जो स्टार्ट हो कर देवास की तरफ जाने को तैयार थी. पहले उस ने मुनिया को चढ़ाया, फिर खुद चढ़ गया. मुनिया ने इस बस की खिड़की से उस बस की तरफ देखा जिस में हरिया रह गया था. एक बार उस ने मन में विचार आया कि कहीं देवा किसी मोड़ पर धोखा न दे जाए और वह कहीं की न रहे. मर्द औरत से ज्यादा उस के शरीर को चाहता है.

देवा भी कहीं उस के शरीर से खेलने के बाद उसे छोड़ न दे.  तभी देवा की आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘मुनिया, हम सवेरेसवेरे ही देवास पहुंच जाएंगे. बड़े पापा का घर वहीं है.’’ ‘‘वह तो ठीक है, पर अपने घर पहुंच कर मेरा क्या परिचय दोगे? पता नहीं क्यों मेरा मन एक अजीब से डर से घबरा रहा?है. लगता है, कोई अनहोनी न हो जाए,’’ मुनिया बोली. ‘‘तुम ने मुझ पर विश्वास किया है न? बस, मैं इतना ही कहूंगा कि अगर मैं तुम्हारे विश्वास पर खरा न उतरूं, तो तुम अपने हरीराम के पास चली जाना,’’ कहतेकहते देवा रुका, फिर मुनिया का हाथ अपने हाथों में ले कर बोला, ‘‘तुम यह क्यों नहीं सोच रही हो कि मेरी तो किसी भी लड़की से शादी हो सकती थी, पर मैं ने तुम्हीं को क्यों चुना?

‘‘अपनी बात याद करो. तुम ने कहा था कि देवा क्या तुम मेरा उद्धार कर पाओगे? यों समझ लो कि तुम्हारी जिंदगी के उद्धार की बात ही है, इस समय मेरे मन में.’’ देवा की बातों से थोड़ा निश्चिंत हो कर मुनिया ने उस के कंधे पर अपना सिर टिका दिया और कुछ ही पलों में तेज दौड़ती बस के हिचकोलों ने उसे नींद में सुला दिया. सवेरे जब आंख खुली तो मुनिया देवास में थी.

बस से उतर कर देवा उसे ले कर सीधा अपने बड़े पापा के घर  आ गया.  मुनिया को देख कर बड़ी अम्मां और बड़े पापा ने हैरान होते हुए सवालिया निगाहों से देवा को देखते हुए पूछा कि यह कौन है? ‘‘बड़े पापा, यह मुनिया है. मेरी दुलहन. हम ने शहर में ही शादी कर ली थी, पर आप को बताना भूल गए थे, फिर वह मुनिया की तरफ घूमा और बोला, ‘‘अरे घबराओ नहीं… बड़े पापा और बड़ी अम्मां दोनों के पैर छुओ न झुक कर.’’ ‘‘ओह, तो तुम भी हमारी तरह अपनी पसंद की दुलहन ले कर घर में घुसे हो. अरे, हमें तो अपना समय याद आ गया जब…’’ कहतेकहते बड़े पापा अपना समय याद कर के हंस पड़े. तभी मुनिया उन दोनों के पैरों में झुक गई, हालांकि उस की आंखें भी छलक आई थीं, पर बूंदों को जमीन पर गिरने से वह बचा ले गई.

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अहंकारी: क्या हुआ था कामना के साथ

अभिजीत 2 दिनों से घर नहीं लौटा था. उस की मां सरला देवी कंपनी में पूछ आई थीं. अभिजीत 2 दिन पहले कंपनी में आया था, यह चपरासी ने सरला देवी को बताया था. अभिजीत 25 साल का अच्छी कदकाठी का नौजवान था. वह सेठ गोपालदास की कंपनी में पिछले 2 साल से बतौर क्लर्क काम कर रहा था. अभिजीत के परिवार में उस की मां सरला देवी के अलावा 2 बहनें थीं. 2 साल पहले अभिजीत के पिता की मौत हो चुकी थी. वे भी सेठ गोपालदास की कंपनी में काम करते थे. उन्हीं की जगह अभिजीत इस कंपनी में काम कर रहा था. अभिजीत के इस तरह गायब होने से सरला देवी और उन की दोनों बेटियां परेशान थीं. सरला देवी को उम्मीद थी कि सेठ गोपालदास ने उसे कंपनी के किसी काम से बाहर भेजा होगा, पर अब उन के द्वारा इनकार किए जाने पर सरला देवी की परेशानी और बढ़ गई थी.

सरला देवी ने अभिजीत को हर जगह तलाश किया, पर वह कहीं नहीं मिला. आखिर वह गया तो कहां गया, यह बात उस की मां को बेहद परेशान करने लगी. फिर उन्होंने कंपनी के सिक्योरिटी गार्ड से बात की. पहले तो उस ने इधरउधर की बात की, फिर बता दिया कि उस दिन कंपनी की छुट्टी का समय हो गया था. उस में काम करने वाले लोग जा चुके थे. अभिजीत अपने थोड़े बचे काम को तेजी से निबटा रहा था, ताकि समय से घर लौट सके. तभी सेठ गोपालदास की छोटी बेटी कामना कंपनी में आई. वह अभिजीत की टेबल के करीब आई और अपने हाथ टेबल पर टिका कर झुक गई. उस समय वह जींस और शर्ट पहने हुई थी, जो उस के भरेभरे जिस्म पर यों कसी हुई थीं कि उस के बदन की ऊंचाइयां और गहराइयां साफ दिख रही थीं.

अभिजीत अपने काम में मशगूल था. कामना ने उस का ध्यान खींचने के लिए अपना पैर धीरे से पटका. आवाज सुन कर अभिजीत ने नजरें उठा कर देखा तो बस देखता ही रह गया. कामना उस की टेबल पर हाथ टिकाए झुकी हुई थी, जिस से उस के भारी और दूधिया उभारों का ऊपरी हिस्सा शर्ट से झांक रहा था. वह गार्ड नौजवान था, पर समझदार भी था. उस ने सरला देवी को बताया कि उसे कामना का बरताव अजीब लगा था. वह कोने में खड़ा हो कर उन की बातें सुनने लगा. दफ्तर तो पूरा खाली ही था.  उन दोनों की बातचीत इस तरह थी:

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‘कहां खो गए?’ कामना धीरे से बोली थी.

‘कहीं नहीं,’ अभिजीत ने बौखला कर अपनी नजरें उस के उभारों से हटा ली थीं. उस की बौखलाहट देख कर कामना के होंठों पर एक मादक मुसकान खिल उठी थी. वह अभिजीत के सजीले रूप को देखते हुए बोली थी, ‘क्यों, आज घर जाने का इरादा नहीं है?’

‘है तो…’ अभिजीत अपनेआप को संभालते हुए बोला था, ‘थोड़ा सा काम बाकी रह गया था, सोचा, पूरा कर लूं तो चलूं.’

‘काम का क्या है, वह तो होता ही रहेगा…’ कामना बोली थी, ‘पर इनसान को कभीकभी घूमनेफिरने का समय भी निकालना चाहिए.’

‘मैं समझा नहीं.’

‘मैं समझाती हूं…’ कामना अभिजीत की आंखों में झांकते हुए बोली थी, ‘अभिजीत, तुम्हें घर लौटने की जल्दी तो नहीं है न?’

‘कोई खास जल्दी नहीं…’ अभिजीत बोला था.

‘मैं आज मूड में हूं और अगर तुम्हें एतराज न हो, तो तुम मेरे साथ पापा के कमरे में चलो.’

‘पर मैं आप का मुलाजिम हूं और आप मेरे मालिक की बेटी.’

‘मैं इन बातों को नहीं मानती…’ कामना बोली थी, ‘मैं तो बस इतना जानती हूं कि मैं इनसान हूं और तुम भी. तुम मुझे अच्छे लगते हो. अब मैं तुम्हें अच्छी लगती हूं या नहीं, तुम जानो.’

‘आप भी मुझे अच्छी लगती हैं…’ अभिजीत पलभर सोचने के बाद बोला था, ‘ठीक है.’ कामना अभिजीत को ले कर एक कमरे में पहुंचे. दफ्तर में अंधेरा था, पर दरवाजे में एक छेद भी था. गार्ड उसी से देखने लगा कि अंदर क्या हो रहा है.

उस गार्ड ने सरला देवी को बताया कि अभिजीत कामना की इस हरकत से परेशान लग रहा था.

‘अरे, तुम अभी तक खड़े ही हो?’ कामना बोली थी, ‘आराम से सोफे पर बैठो.’ अभिजीत आगे बढ़ कर कमरे में रखे गुदगुदे सोफे पर बैठ गया था. कामना आ कर उस के करीब बैठ गई थी और अभिजीत की आंखों में झांकते हुए बोली थी, ‘अभिजीत, तुम ने किसी से प्यार किया है?’ गार्ड सब सुन सकता था, क्योंकि पूरे दफ्तर में सन्नाटा था.

‘नहीं…’ अभिजीत बोला था, ‘कभी यह काम करने का मौका ही नहीं मिला.’

‘अगर मिला, तो क्या करोगे?’

अभिजीत चुप रहा था.

‘तुम ने जवाब नहीं दिया?’

‘हां, करूंगा’ वह बोला था.

‘आज मौका है और समय भी.’

‘पर लड़की?’

‘तुम्हारा मेरे बारे में क्या खयाल है?’ कहते हुए कामना ने अपनी शर्ट उतार दी. उस के ऐसा करते ही उस के उभार अभिजीत के सामने आ गए थे. उन को देखते ही अभिजीत के सब्र का बांध टूट गया था. जब कामना उस से लिपट गई, तो पलभर के लिए वह बौखलाया, फिर अपने हाथ कामना की पीठ पर कस दिए. इस के बाद तो अभिजीत सबकुछ भूल कर कामना की खूबसूरती की गहराइयों में उतरता चला गया. सरला देवी ने कामना के ड्राइवरसे भी पूछताछ की. उसे भी बहुतकुछ मालूम था. उस ने बताया कि पिछली सीट पर अकसर कामना मनमाने ढंग से उस का इस्तेमाल करने लगी थी. कामना का दिल जिस पर आ जाता, वह उसे अपने प्रेमजाल में फांसती, उस से अपना दिल बहलाती और जब दिल भर जाता, तो उसे अपनी जिंदगी से निकाल फेंकती.

ड्राइवर ने आगे बताया कि एक दिन उन दोनों में झगड़ा हुआ था. कामना का दिल उस से भर गया, तो वह उस से कन्नी काटने लगी. उस के इस रवैए से अभिजीत तिलमिला उठा. वह कामना से सच्चा प्यार करता था. जब कामना को पता चला तो वह बोली थी, ‘अपनी औकात देखी है तुम ने? तुम हमारी कंपनी में एक छोटे से मुलाजिम हो. मैं ब्राह्मण और तुम यादव. दूसरी जाति की लड़की को तुम प्यार कर पा रहे हो, क्या यह कम है. शादी की तो सोचना भी नहीं.’

‘पर तुम ने इसी मुलाजिम से दिल लगाया था?’

‘दिल नहीं लगाया था, बल्कि दिल बहलाया था. अब मेरा दिल तुम से भर गया है, इसलिए हमारे रास्ते अलग हैं.’

‘नहीं…’ अभिजीत तेज आवाज में बोला था, ‘तुम मुझे यों अपनी जिंदगी से नहीं निकाल सकती.’

‘और अगर निकाला तो?’

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‘मैं सारी दुनिया को तुम्हारी हकीकत बता दूंगा.’ अभिजीत की बात सुन कर कामना पलभर को हड़बड़ाई, पर अगले ही पल उस की आंखों से गुस्सा टपकने लगा. वह अभिजीत को घूरते हुए बोली, ‘तुम ऐसा कर नहीं पाओगे. मैं तुम्हें ऐसा हरगिज करने नहीं दूंगी.’ यह बात सारा दफ्तर जानता था कि एक दिन अभिजीत से सेठ गोपालदास ने कठोर आवाज में सब के सामने बोला था, ‘तुम ने हमारी बेटी को अपने प्रेमजाल में फंसाया और उस की इज्जत पर हाथ डाला. यह बात खुद कामना ने मुझे बताई है.

‘कोई मेरी बेटी के साथ ऐसी हरकत करे, मैं यह बरदाश्त नहीं कर सकता. तुझे इस की सजा मिलेगी,’ इतना कहने के बाद सेठजी ने अपने आदमियों को इशारा किया था. सेठजी के आदमी अभिजीत को खींचते हुए दफ्तर से बाहर ले गए. इस के बाद अभिजीत को किसी ने नहीं देखा था. अभिजीत को गायब हुए जब 10 दिन बीत गए, तो सरला देवी समझ गईं कि अभिजीत मार दिया गया है. सरला देवी ने उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में लिखवा दी. सरला देवी अपने बेटे को ले कर यों परेशानी के दौर से गुजर रही थीं कि उन की मुलाकात अभिजीत के एक दोस्त से हुई, जो उसी के साथ काम करता था. उस ने सरला देवी को बताया कि अभिजीत को मारने में सेठ गोपालदास का हाथ है. सरला देवी ने अभिजीत के दोस्त को बताया कि कामना को सबक सिखाना है. कामना अपनी ऐयाशियों में डूबी हुई थी. अभिजीत की मौत से बेपरवाह कामना की नजरें एक दूसरे लड़के को ढूंढ़ रही थीं. उस ने रमेश को फांस लिया.

एक शाम जब कामना अपनी कार में लौंग ड्राइव पर निकली थी, तो रमेश उसे सरला देवी के घर ले गया. सरला देवी को देख कर कामना की घिग्घी बंध गई. वह सबकुछ उगल गई. रमेश ने उसे एक कुरसी से बांध दिया और कई घंटों तक तड़पने के लिए छोड़ दिया. इस के बाद कामना का पूरा बयान रेकौर्ड कर लिया. रात में जब सरला देवी ने उसे छोड़ा तो कहा, ‘‘जैसे मैं जिंदगीभर अभिजीत को याद करूंगी, वैसे ही तुम भी करना. यह टेप, यह बयान, हर बार तब काम आएंगे, जब तुम शादी करने की कोशिश करोगी.’’ कामना के पास कोई चारा नहीं बचा था. वह पैदल ही घर की ओर चल पड़ी, हारी और लुटी हुई.

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खुल गई आंखें : रवि के सामने आई हकीकत

लेखक- किशोर श्रीवास्तव

दफ्तर से अपने बड़े सरकारी बंगले पर जाते हुए उस दिन अचानक एक ट्रक ने रवि की कार को जोरदार टक्कर मार दी थी. कार का अगला हिस्सा बुरी तरह से टूटफूट गया था.

खून से लथपथ रवि कार के अंदर ही फंसा रह गया था. वह काफी समय तक बेहोशी की हालत में कार के अंदर ही रहा, पर उस की जान बचाने वाला कोई भी नहीं था.

हां, उस के आसपास तमाशबीनों की भीड़ जरूर लग गई थी. सभी एकदूसरे का मुंह ताक रहे थे, पर किसी में उसे अस्पताल ले जाने या पुलिस को बुलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी.

भला हो रवि के दफ्तर के चपरासी रामदीन का, जो भीड़ को देख कर उसे चीरता हुआ रवि के पास तक पहुंच गया था. बाद में उसी ने पास के एसटीडी बूथ से 100 नंबर पर फोन कर पुलिस को बुला लिया था.

जब तक पुलिस रवि को ले कर पास के नर्सिंगहोम में पहुंची तब तक उस के शरीर से काफी खून बह चुका था. रामदीन काफी समय तक अस्पताल में ही रहा था. उस ने फोन कर के दफ्तर से सुपरिंटैंडैंट राकेश को भी बुला लिया था जो वहीं पास में रहते थे.

रवि के एक रिश्तेदार भी सूचना पा कर अस्पताल पहुंच गए थे. गांव दूर होने व बूढ़े मांबाप की हालत को ध्यान में रखते हुए किसी ने उस के घर सूचना भेजना उचित नहीं समझा था. वैसे भी उस के गांव में संचार का कोई खास साधन नहीं था. इमर्जैंसी में तार भेजने के अलावा और कोई चारा नहीं होता था.

रवि की पत्नी गुंजा अपने सासससुर व देवर रघु के साथ गांव में ही रहती थी. वह 2 साल पहले ही गौना करा कर अपनी ससुराल आई थी. रवि के साथ उस की शादी बचपन में तभी हो गई थी, जब वे दोनों 10 साल की उम्र भी पार नहीं कर पाए थे.

गांव में रहने के चलते गुंजा की पढ़ाई 8वीं जमात के बाद ही छूट गई थी पर रवि 5वीं जमात पास कर के अपने चाचा के पास शहर में ही पढ़ने आ गया था. उस ने अच्छीखासी पढ़ाई कर ली थी. शहर में पढ़ाई करने के चलते उस का मन चंचल हो गया था. वैसे भी वह गुंजा से हर मामले में बेहतर था.

शादी के समय तो रवि को कोई समझ नहीं थी, पर जब गौने के बाद विदा हो कर गुंजा उस के घर आई थी और पहली बार जवान और भरपूर नजरों से उस ने उसे देखा था तभी से उस का मन उस से उचट गया था.

गुंजा कामकाज में भी उतनी माहिर नहीं थी जितनी रवि ने अपनी पत्नी से उम्मीद की थी. यहां तक कि सुहागरात के दिन भी वह गुंजा से दूर ही रहा था.

गुंजा गांव की पलीबढ़ी लड़की थी. शक्लसूरत और पढ़ाईलिखाई में कम होने के बावजूद मांबाप से उसे अच्छे संस्कार मिले थे. उस ने रवि की अनदेखी के बावजूद उस के बूढ़े मांबाप और रवि के छोटे भाई रघु का साथ कभी नहीं छोड़ा.

मांबाप के लाख कहने के बावजूद रवि जब उसे अपने साथ शहर ले जाने को राजी नहीं हुआ तब भी उस ने उस से कोई खास जिद नहीं की, न ही अकेले शहर जाने का उस ने कोई विरोध किया.

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शहर में आ कर रवि अपने दफ्तर और रोजमर्रा के कामों में ऐसा बिजी हुआ कि गांव जाना ही भूल गया. उसे अपने मांबाप से भी कुछ खास लगाव नहीं रह गया था क्योंकि वह अपनी बेढंगी शादी के लिए काफी हद तक उन्हीं को कुसूरवार मानता था.

तनख्वाह मिलने पर घर पर पैसा भेजने के अलावा रवि कभीकभार चिट्ठी लिख कर मांबाप व भाई का हालचाल जरूर पूछ लेता था, पर इस से ज्यादा वह अपने घर वालों के लिए कुछ भी नहीं कर पाता था.

3-4 दिन आईसीयू में रहने के बाद अब रवि को प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया था. दफ्तर के अनेक साथी तन, मन और धन से उस की सेवा में लगे हुए थे. बड़े साहब भी लगातार उस की सेहत पर नजर रखे हुए थे.

नर्सिंगहोम में जहां सीनियर सर्जन डाक्टर अशोक लाल उस के इलाज पर ध्यान दे रहे थे, वहीं वह वहां की सब से काबिल नर्स सुधा चौहान की चौबीसों घंटे की निगरानी में था.

सुधा चौहान जितना नर्सिंगहोम के कामों में माहिर थी, उतना ही सरल उस का स्वभाव भी था. शक्लसूरत से भी वह किसी फिल्मी नर्स से कम नहीं थी. उस की रातदिन की सेवा और बेहतर इलाज के चलते रवि को जल्दी ही होश आ गया था.

उस समय सुधा ही उस के पास थी. उसे बेचैन देख कर सुधा ने सहारा दिया और उस के सिरहाने तकिया रख दिया. अगले ही पल नर्स सुधा ने शीशी से एक चम्मच दवा निकाल कर आहिस्ता से उस के मुंह में डाल दी

रवि कुछ कहने के लिए मुंह खोलना चाहता था, पर पूरे चेहरे पर पट्टी बंधी होने के चलते वह कुछ भी कह पाने में नाकाम था. सुधा ने हलकी मुसकान के साथ उसे इशारेइशारे में चुप रहने को कहा.

सुधा की निजी जिंदगी भी बहुत खुशहाल नहीं थी. उस का पति मनीष इस दुनिया में नहीं था. उस की रिया नाम की 5 साल की एक बेटी थी जो उस के साथ ही रहती थी.

मनीष सेना में कैप्टन था. जब रिया मां के पेट में थी उन्हीं दिनों बौर्डर पर सिक्योरिटी का जायजा लेते समय आतंकियों के एक हमले में उस की जान चली गई थी. इस के बाद सुधा टूट कर रह गई थी. पर मनीष की निशानी की खातिर वह जिंदा रही. अब उस ने लोगों की सेवा को ही अपने जीने का मकसद बना लिया था.

थोड़ी देर तक शांत रहने के बाद रवि कुछ बुदबुदाया. शायद उसे प्यास लग रही थी. सुधा उस के बुदबुदाने का मतलब समझ गई थी. उस ने 8-10 चम्मच पानी उस को पिला दिया. पानी पिला कर उस ने रूमाल से रवि के होंठों को पोंछ दिया था. फिर वह पास ही रखे स्टूल पर बैठ कर आहिस्ताआहिस्ता उस का सिर सहलाने लगी थी. यह देख कर रवि की आंखें नम हो गई थीं.

सुधा को रवि के बारे में मालूम था. डाक्टर अशोक लाल ने उसे रवि के बारे में पहले से ही सबकुछ बता दिया था. नर्सिंगहोम में रवि के दफ्तर से आनेजाने वालों का जिस तरह से तांता लगा रहता, उसे देख कर उस के रुतबे का अंदाजा लग जाता था.

कुछ दिनों के इलाज के बाद बेशक अभी भी रवि कुछ बोल पाने में नाकाम था, पर उस के हाथपैर हिलनेडुलने लगे थे. अब वह किसी चिट पर लिख कर अपनी कोई बात सुधा या डाक्टर के सामने आसानी से रख पा रहा था. कभी जब सुधा की रात की ड्यूटी होती तब भी वह पूरी मुस्तैदी से उस की सेवा में लगी रहती.

एक दिन सुबह जब सुधा अपनी ड्यूटी पर आई तो रवि बहुत खुश नजर आ रहा था. सुधा के आते ही रवि ने उसे एक चिट दी, जिस पर लिखा था, ‘आप बहुत अच्छी हैं, थैंक्स.’

चिट के जवाब में सुधा ने जब उस के सिर पर हाथ फेरते हुए मुसकरा कर ‘वैलकम’ कहा तो उस की आंखें भर आई थीं. उस दिन रवि के धीरे से ‘आई लव यू’ कहने पर सुधा शरमा कर रह गई थी.

सुधा का साथ पा कर रवि के मन में जिंदगी को एक नए सिरे से जीने की इच्छा बलवती हो उठी थी. जब तक सुधा उस के पास रहती, उस के दिल को बड़ा ही सुकून मिलता था.

एक दिन सुधा की गैरहाजिरी में जब रवि ने वार्ड बौय से उस के बारे में कुछ जानना चाहा था तो वार्ड बौय ने सुधा की जिंदगी की एकएक परतें उस के सामने खोल कर रख दी थीं.

सुधा की कहानी सुन कर रवि भावुक हो गया था. उस ने उसी पल सुधा को अपनाने और एक नई जिंदगी देने का मन बना लिया था. उस ने तय कर लिया था कि वह कैसे भी हो, सुधा को अपनी पत्नी बना कर ही दम लेगा. पर सवाल यह उठता था कि एक पत्नी के होते हुए वह दूसरी शादी कैसे करता?

उस दिन अस्पताल से छुट्टी मिलते ही रवि दफ्तर के कुछ काम निबटा कर सीधा अपने गांव चला गया था. जब वह सुबह अपने गांव पहुंचा तब घर वाले हैरान रह गए थे. बूढे़ मांबाप की आंखों में तो आंसू आतेआते रह गए थे.

पूरे घर में अजीब सा भावुक माहौल बन गया था. आसपास के लोग रवि के घर के दरवाजे पर इकट्ठा हो कर घर के अंदर का नजारा देखे जा रहे थे.

रवि बहुत कम दिनों के लिए गांव आया था. वह जल्दी से जल्दी गुंजा को तलाक के लिए तैयार कर शहर लौट जाना चाहता था. पर घर का माहौल एकदम से बदल जाने के चलते वह असमंजस में पड़ गया था. उस दिन पूरे समय गुंजा उस की खातिरदारी में लगी रही. वह उसे कभी कोई पकवान बना कर खिलाती तो कभी कोई. पर रवि पर उस की इस मेहमाननवाजी का कोई असर नहीं हो रहा था.

दिनभर की भीड़भाड़ से जूझतेजूझते और सफर की रातभर की थकान के चलते उस रात रवि को जल्दी ही नींद आ गई थी. गुंजा ने अपना व उस का बिस्तर एकसाथ ही लगा रखा था, पर इस की परवाह किए बगैर वह दालान में पड़े तख्त पर ही सो गया था. पर थोड़ी ही देर में उस की नींद खुल गई थी. उसे नींद आती भी तो कहां से. एक तो मच्छरमक्खियों ने उसे परेशान कर रखा था, उस पर से भविष्य की योजनाओं ने थकान के बावजूद उसे जगा दिया था.

रवि देर रात तक सुधा और अपनी जिंदगी के तानेबाने बुनने में ही लगा रहा. रात के डेढ़ बजे उस पर दोबारा नींद की खुमारी चढ़ी कि उसे अपने पैरों के पास कुछ सरसराहट सी महसूस हुई. उसे ऐसा लगा मानो किसी ने उस के पैरों को गरम पानी में डुबो कर रख दिया हो.

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रवि हड़बड़ा कर उठ बैठा. उस ने देखा, गुंजा उस के पैरों पर अपना सिर रखे सुबक रही थी. पास में ही मच्छर भगाने वाली बत्ती चारों ओर धुआं छोड़ रही थी. उस के उठते ही गुंजा उस से लिपट गई और फिर बिलखबिलख कर रोने लगी.

गुंजा रोते हुए बोले जा रही थी, ‘‘इस बार मुझे भी शहर ले चलो. मैं अब अकेली गांव में नहीं रह सकती. भले ही मुझे अपनी दासी बना कर रखना, पर अब अकेली छोड़ कर मत जाना, नहीं तो मैं कुएं में कूद कर मर जाऊंगी.’’

गुंजा की यह दशा देख कर अचानक रवि उस के प्रति कुछ नरम होते हुए भावुक हो उठा. वह अपने दिलोदिमाग में हाल में बने गए सपनों को भूल कर अचानक गुंजा की ओर मुखातिब हो चला था.

गुंजा ने जब बातों ही बातों में रवि को बताया कि उस ने शहर चलने के लिए एबीसीडी समेत अंगरेजी की कई कविताएं भी मुंहजबानी याद कर रखी हैं तो रवि उस के भोलेपन पर मुसकरा उठा.

आज पहली बार उसे गुंजा का चेहरा बहुत अच्छा लगा था और उस के मन में गुंजा के प्रति प्यार का ज्वार उमड़ पड़ा था. वह उस की कमियों को भूल कर पलभर में ही उस के आगोश में समाता चला गया था.

रवि गुंजा के बदन से खेलता रहा और वह आंखों में आंसुओं का समंदर लिए उस के प्यार का जवाब देती रही.

एक ही रात और कुछ समय के प्यार ने ही रवि के कई सपनों को जहां तोड़ दिया था वहीं उस के दिलोदिमाग में कई नए सपने भी बुनते चले गए थे. वह गुंजा को तन, मन व धन से अपनाने को तैयार हो गया था, पर सवाल यह था कि शहर जा कर वह सुधा को क्या जवाब देगा. जब सुधा को यह पता चलेगा कि वह पहले से ही शादीशुदा है और जब उस को अब तक का उस का प्यार महज नाटक लगेगा तो उस के दिल पर क्या बीतेगी.

इसी उधेड़बुन के साथ रवि अगली सुबह शहर को रवाना हो चला था. गुंजा को उस ने कह दिया था कि वह अगले हफ्ते उसे लेने गांव आएगा.

शहर पहुंचते ही रवि किसी तरह से सुधा से मिल कर उस से अपनी गलतियों व किए की माफी मांगना चाहता था. अपने बंगले पर पहुंच कर वह नहाधो कर सीधा नर्सिंगहोम पहुंचा, पर वहां सुधा से उस की मुलाकात नहीं हो पाई.

पता चला कि आज वह नाइट ड्यूटी पर थी. वह वहां से किसी तरह से पूछतापूछता सुधा के घर जा पहुंचा, पर वहां दरवाजे पर ताला लटका मिला. किसी पड़ोसी ने बताया कि वह अपनी बेटी के स्कूल गई हुई है.

मायूस हो कर रात को नर्सिंगहोम में सुधा से मिलने की सोच कर रवि सीधा अपने दफ्तर चला गया. आज उस का दिन बड़ी मुश्किल से कट रहा था. वह चाहता था कि किसी तरह से जल्दी से रात हो और वह सुधा से मिल कर उस से माफी मांग ले.

रात के 8 बजने वाले थे. सुधा के नर्सिंगहोम आने का समय हो चुका था, इसलिए तैयार हो कर रवि भी नर्सिंगहोम की ओर बढ़ चला था. मन में अपनी व सुधा की ओर से आतेजाते सवालों का जवाब ढूंढ़तेढूंढ़ते वह कब नर्सिंगहोम के गेट पर जा पहुंचा था, उसे पता ही नहीं चला.

रिसैप्शन पर पता चला कि सुधा प्राइवेट वार्ड के 4 नंबर कमरे में किसी मरीज की सेवा में लगी है. किसी तरह से इजाजत ले कर वह सीधा 4 नंबर कमरे में घुस गया, पर वहां का नजारा देख कर वह पलभर को ठिठक गया. सुधा एक नौजवान मरीज के अधनंगे शरीर को गीले तौलिए से पोंछ रही थी.

रवि को आगे बढ़ता देख उस ने उसे दरवाजे पर ही रुक जाने का इशारा किया. रवि दरवाजे पर ही ठिठक गया था.

मरीज का बदन पोंछने के बाद सुधा ने उसे दूसरे धुले हुए कपड़े पहनाए. उसे अपने हाथों से एक कप दूध पिलाया और कुछ बिसकुट भी तोड़तोड़ कर खिलाए. फिर वह उसे अपनी बांहों के सहारे से बिस्तर पर सुलाने की कोशिश करने लगी.

मरीज को नींद नहीं आते देख सुधा उस के सिर पर हाथ फेरते हुए व थपकी दे कर उसे सुलाने की कोशिश करने लगी थी. उस के ममता भरे बरताव से मरीज को थोड़ी ही देर में नींद आ गई थी.

जैसे ही मरीज को नींद आई, रवि लपक कर सुधा के करीब आ गया था. उस ने सुधा को अपनी बांहों में भरने की कोशिश की, पर सुधा छिटक कर उस से दूर हो गई.

‘‘अरे, यह आप क्या कर रहे हैं. आप वही हैं न, जो कुछ दिन पहले यहां एक सड़क हादसे के बाद दाखिल हुए थे. अब आप को क्या दिक्कत है?’ सुधा ने उस से पूछा.

‘‘अरे, यह क्या कह रही हो तुम? ऐसे अजनबियों जैसी बातें क्यों कर रही हो? मैं तुम्हारा वही रवि हूं जिस ने तुम्हारे प्यार के बदले में तुम से भी उतना ही प्यार किया था और हम जल्दी ही शादी करने वाले थे,’’ कहता हुआ रवि उस के करीब आ गया.

रवि की बातों के जवाब में सुधा ने कहा, ‘‘मिस्टर आप रवि हैं या कवि, आप की बातें मेरी समझ से परे हैं. आप किस प्यार और किस शादी की बात कर रहे हैं, मैं समझ नहीं पा रही हूं.

‘‘देखिए, मैं एक नर्स हूं. मेरा काम यहां मरीजों की सेवा करना है. भला इस में प्यार और शादी कहां से आ गई.’’

‘‘तो क्या आप ने मुझे भी महज एक मरीज के अलावा कुछ नहीं समझा?’’ रवि बौखलाते हुए बोला.

सुधा ने अपने मरीज की ओर देखते हुए रवि को धीरेधीरे बोलने का इशारा किया और उसे खींचते हुए दरवाजे तक ले गई. वह उस को समझाते हुए बोली, ‘‘आप को गलतफहमी हुई है. हम यहां प्यार करने नहीं बल्कि अपने मरीजों की सेवा करने आते हैं.

‘‘अगर हम भी प्यारव्यार और शादीवादी के चक्कर में पड़ने लगे तो हमारे घर में हर दिन एक नया पति दिखाई देगा.

‘‘प्लीज, आप यहां से जाइए और मेरे मरीज को चैन से सोने दीजिए.’’

इस बीच मरीज ने अपनी आंखें खोल लीं. उस ने सुधा से पानी पीने का इशारा किया. सुधा तुरंत जग में से पानी निकाल कर चम्मच से उसे पिलाने बैठ गई. पानी पिलातेपिलाते वह मरीज के सिर को भी सहलाए जा रही थी.

रवि सुधा से अपनी जिस बात के लिए माफी मांगने आया था, वह बात उस के दिल में ही रह गई. उसे तसल्ली हुई कि सुधा के मन में उस के प्रति ऐसी कोई बात कभी आई ही नहीं थी, जिसे सोच कर उस ने दूर तक के सपने देख लिए थे.

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सुधा रवि से ‘सौरी’ कहते हुए अपने मरीज की तीमारदारी में लग गई. रवि ने कमरे से बाहर निकलते हुए एक नजर सुधा व उस के मरीज पर डाली. मरीज को लगी हुई पेशाब की नली शायद निकल गई थी, इसलिए वह कराह रहा था. सुधा उसे प्यार से पुचकारते हुए फिर से नली को ठीक करने में लग गई थी.

सुधा की बातों और आज के उस के बरताव ने रवि के मन का सारा बोझ हलका कर दिया था.

आज रात रवि को जम कर नींद आई थी. एक हफ्ते तक दफ्तर के कामों में बिजी रहने के बाद रवि दोबारा अपने गांव जाने वाली रेल में सवार था. उस की रेल भी उसे गुंजा तक जल्दी पहुंचाने के लिए पटरियों पर सरपट दौड़ लगाती हुई आगे बढ़ी चली जा रही थी. जो गांव उसे कल तक काटता था और जिस की ओर वह मुड़ कर भी नहीं देखना चाहता था, आज उस के आगोश में समाने को बेताब था.

नई सुबह : कौनसा हादसा हुआ था शीला के साथ

लेखक- राजेंद्र देवांगन

शीला का अंगअंग दुख रहा था. ऐसा लग रहा था कि वह उठ ही नहीं पाएगी. बेरहमों ने कीमत से कई गुना ज्यादा वसूल लिया था उस से. वह तो एक के साथ आई थी, पर उस ने अपने एक और साथी को बुला लिया था. फिर वे दोनों टूट पड़े थे उस पर जानवरों की तरह. वह दर्द से कराहती रही, पर उन लोगों ने तभी छोड़ा, जब उन की हसरत पूरी हो गई.

शीला ने दूसरे आदमी को मना भी किया था, पर नोट फेंक कर उसे मजबूर कर दिया गया था. ये कमबख्त नोट भी कितना मजबूर कर देते हैं.

जहां शीला लाश की तरह पड़ी थी, वह एक खंडहरनुमा घर था, जो शहर से अलग था. वह किसी तरह उठी, उस ने अपनी साड़ी को ठीक किया और ग्राहकों के फेंके सौसौ रुपए के नोटों को ब्लाउज में खोंस कर खंडहर से बाहर निकल आई. वह सुनसान इलाका था. दूर पगडंडी के रास्ते कुछ लोग जा रहे थे.

शीला से चला नहीं जा रहा था. अब समस्या थी कि घर जाए तो कैसे? वह ग्राहक के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर आई थी. उसे बूढ़ी सास की चिंता थी कि बेचारी उस का इंतजार कर रही होगी. वह जाएगी, तब खाना बनेगा. तब दोनों खाएंगी.

शीला भी क्या करती. शौक से तो नहीं आई थी इस धंधे में. उस के पति ने उसे तनहा छोड़ कर किसी और से शादी कर ली थी. काश, उस की शादी नवीन के साथ हुई होती. नवीन कितना अच्छा लड़का था. वह उस से बहुत प्यार करता था. वह यादों के गलियारों में भटकते हुए धीरेधीरे आगे बढ़ने लगी.

शीला अपने मांबाप की एकलौती बेटी थी. गरीबी की वजह से उसे 10वीं जमात के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी. उस के पिता नहीं थे. उस की मां बसस्टैंड पर ठेला लगा कर फल बेचा करती थी.

घर संभालना, सब्जी बाजार से सब्जी लाना और किराने की दुकान से राशन लाना शीला की जिम्मेदारी थी. वह अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाती थी. साइकिल पकड़ती और निकल पड़ती. लोग उसे लड़की नहीं, लड़का कहते थे.

एक दिन शीला सब्जी बाजार से सब्जी खरीद कर साइकिल से आ रही थी कि मोड़ के पास अचानक एक मोटरसाइकिल से टकरा कर गिर गई. मोटरसाइकिल वाला एक खूबसूरत नौजवान था. उस के बाल घुंघराले थे. उस ने आंखों पर धूप का रंगीन चश्मा पहन रखा था. उस ने तुरंत अपनी मोटरसाइकिल खड़ी की और शीला को उठाने लगा और बोला, ‘माफ करना, मेरी वजह से आप गिर गईं.’ ‘माफी तो मुझे मांगनी चाहिए. मैं ने ही अचानक साइकिल मोड़ दी थी,’ शीला बोली.

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‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. आप को कहीं चोट तो नहीं आई?’

‘नहीं, मैं ठीक हूं,’ शीला उठ कर साइकिल उठाने को हुई, पर उस नौजवान ने खुद साइकिल उठा कर खड़ी कर दी.

वह नौजवान अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हो गया और स्टार्ट कर के बोला, ‘‘क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’

‘शीला… और आप का?’

‘नवीन… अच्छा चलता हूं.’

इस घटना के 4 दिन बाद फिर दोनों की सब्जी बाजार में मुलाकात हो गई.

‘अरे, शीलाजी आप…’ नवीन चहका, ‘सब्जी ले रही हो?’

‘हां, मैं तो हर दूसरेतीसरे दिन सब्जी खरीदने आती हूं. आप भी आते हैं…?’

‘नहीं, सच कहूं, तो मैं यह सोच कर आया था कि शायद आप से फिर मुलाकात हो जाए…’ कह कर नवीन मुसकराने लगा, ‘अगर आप बुरा न मानें, तो क्या मेरे साथ चाय पी सकती हैं?’

‘चाय तो पीऊंगी… लेकिन यहां नहीं. कभी मेरे घर आइए, वहीं पीएंगे,’ कह कर शीला ने उसे घर का पता दे दिया.शीला आज सुबह से नवीन का इंतजार कर रही थी. उसे पूरा यकीन था कि नवीन जरूर आएगा. वह घर पर अकेली थी. उस की मां ठेला ले कर जा चुकी थी, तभी मोटरसाइकिल के रुकने की आवाज आई. वह दौड़ कर बाहर आ गई. नवीन को देख कर उस का मन खिल उठा, ‘आइए… आइए न…’

नवीन ने शीला के झोंपड़ी जैसे कच्चे मकान को गौर से देखा और फिर भीतर दाखिल हो गया. शीला ने बैठने के लिए लकड़ी की एक पुरानी कुरसी आगे बढ़ा दी और चाय बनाने के लिए चूल्हा फूंकने लगी.

‘रहने दो… क्यों तकलीफ करती हो. चाय तो आप के साथ कुछ पल बिताने का बहाना है. आइए, पास बैठिए कुछ बातें करते हैं.’

दोनों बातों में खो गए. नवीन के पिता सरकारी नौकरी में थे. घर में मां, दादी और बहन से भरापूरा परिवार था. वह एक दलित नौजवान था और शीला पिछड़े तबके से ताल्लुक रखती थी. पर जिन्हें प्यार हो जाता है, वे जातिधर्म नहीं देखते.

इस बात की खबर जब शीला की मां को हुई, तो उस ने आसमान सिर पर उठा लिया. दोनों के बीच जाति की दीवार खड़ी हो गई. शीला का घर से निकलना बंद कर दिया गया. शीला के मामाजी को बुला लिया गया और शीला की शादी बीड़ी कारखाने के मुनीम श्यामलाल से कर दी गई.

शीला की शादी होने की खबर जब नवीन को हुई, तो वह तड़प कर रह गया. उसे अफसोस इस बात का रहा कि वे दोनों भाग कर शादी नहीं कर पाए. सुहागरात को न चाहते हुए भी शीला को पति का इंतजार करना पड़ रहा था. उस का छोटा परिवार था. पति और उस की दादी मां. मांबाप किसी हादसे का शिकार हो कर गुजर गए थे.

श्यामलाल आया, तो शराब की बदबू से शीला को घुटन होने लगी, पर श्यामलाल को कोई फर्क नहीं पड़ना था, न पड़ा. आते ही उस ने शीला को ऐसे दबोच लिया मानो वह शेर हो और शीला बकरी. शीला सिसकने लगी. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे आज उस की सुहागरात नहीं, बल्कि वह एक वहशी दरिंदे की हवस का शिकार हो गई हो.

सुबह दादी की अनुभवी आंखों ने ताड़ लिया कि शीला के साथ क्या हुआ है. उस ने शीला को हिम्मत दी कि सब ठीक हो जाएगा. श्यामलाल आदत से लाचार है, पर दिल का बुरा नहीं है. शीला को दादी मां की बातों से थोड़ी राहत मिली.

एक दिन शाम को श्यामलाल काम से लौटा, तो हमेशा की तरह शराब के नशे में धुत्त था. उस ने आते ही शीला को मारनापीटना शुरू कर दिया, ‘बेहया, तू ने मुझे धोखा दिया है. शादी से पहले तेरा किसी के साथ नाजायज संबंध था.’

‘नहीं…नहीं…’ शीला रोने लगी, ‘यह झूठ है.’

‘तो क्या मैं गलत हूं. मुझे सब पता चल गया है,’ कह कर वह शीला पर लातें बरसाने लगा. वह तो शायद आज उसे मार ही डालता, अगर बीच में दादी न आई होतीं, ‘श्याम, तू पागल हो गया है क्या? क्यों बहू को मार रहा है?’

‘दादी, शादी से पहले इस का किसी के साथ नाजायज संबंध था.’

‘चुप कर…’ दादी मां ने कहा, तो श्यामलाल खिसिया कर वहां से चला गया.

‘बहू, यह श्यामलाल क्या कह रहा था कि तुम्हारा किसी के साथ…’

‘नहीं दादी मां, यह सब झूठ है. यह बात सच है कि मैं किसी और से प्यार करती थी और उसी से शादी करना चाहती थी. मेरा विश्वास करो दादी, मैं ने कोई गलत काम नहीं किया.’

‘मैं जानती हूं बहू, तुम गलत नहीं हो. समय आने पर श्याम भी समझ जाएगा.’ और एक दिन ऐसी घटना घटी, जिस की कल्पना किसी ने नहीं की थी. श्यामलाल ने दूसरी शादी कर ली थी और अलग जगह रहने लगा था.

श्यामलाल की कमाई से किसी तरह घर चल रहा था. उस के जाने के बाद घर में भुखमरी छा गई. शीला मायके में कभी काम पर नहीं गई थी, ससुराल में किस के साथ जाती, कहां जाती. घर का राशन खत्म हो गया था.

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दादी के कहने पर शीला राशन लाने महल्ले की लाला की किराने की दुकान पर पहुंच गई. लाला ने चश्मा लगा कर उसे ऊपर से नीचे तक घूर कर देखा, फिर उस की ललचाई आंखें शीला के उभारों पर जा टिकीं. ‘मुझे कुछ राशन चाहिए. दादी ने भेजा है,’ शीला को कहने में संकोच हो रहा था.

‘मिल जाएगा, आखिर हम दुकान खोल कर बैठे क्यों हैं? पैसे लाई हो?’

शीला चुप हो गई. ‘मुझे पता था कि तुम उधार मांगोगी. अपना भी परिवार है. पत्नी है, बच्चे हैं. उधारी दूंगा, तो परिवार कैसे पालूंगा? वैसे भी तुम्हारे पति ने पहले का उधार नहीं दिया है. अब और उधार कैसे दूं?’

शीला निराश हो कर जाने लगी.

‘सुनो…’

‘जी, लालाजी.’

‘एक शर्त पर राशन मिल सकता है.’

‘बोलो लालाजी, क्या शर्त है?’

‘अगर तुम मुझे खुश कर दो तो…’

‘लाला…’ शीला बिफरी, ‘पागल हो गए हो क्या? शर्म नहीं आती ऐसी बात करते हुए.’

लाला को भी गुस्सा आ गया, ‘निकलो यहां से. पैसे ले कर आते नहीं हैं. उधार में चाहिए. जाओ कहीं और से ले लो…’

शीला को खाली हाथ देख कर दादी ने पूछा, ‘क्यों बहू, लाला ने राशन नहीं दिया क्या?’

‘नहीं दादी…’

‘मुझ से अब भूख और बरदाश्त नहीं हो रही है. बहू, घर में कुछ तो होगा? ले आओ. ऐसा लग रहा है, मैं मर जाऊंगी.’

शीला तड़प उठी. मन ही मन शीला ने एक फैसला लिया और दादी मां से बोली, ‘दादी, मैं एक बार और कोशिश करती हूं. शायद इस बार लाला राशन दे दे.’

‘लाला, तुम्हें मेरा शरीर चाहिए न… अपनी इच्छा पूरी कर ले और मुझे राशन दे दे…’ लाला के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई, ‘यह हुई न बात.’

लाला उसे दुकान के पिछवाड़े में ले गया और अपनी हवस मिटा कर उसे कुछ राशन दे दिया. इस के बाद शीला को जब भी राशन की जरूरत होती, वह लाला के पास पहुंच जाती. एक दिन हमेशा की तरह शीला लाला की दुकान पर पहुंची, पर लाला की जगह उस के बेटे को देख कर ठिठक गई.

‘‘क्या हुआ… अंदर आ जाओ.’’

‘लालाजी नहीं हैं क्या?’

‘पिताजी नहीं हैं तो क्या हुआ. मैं तो हूं न. तुम्हें राशन चाहिए और मुझे उस का दाम.’

‘इस का मतलब?’

‘मुझे सब पता है,’ कह कर शीला को दुकान के पिछवाड़े में जाने का इशारा किया. अब तो आएदिन बापबेटा दोनों शीला के शरीर से खेलने लगे. इस की खबर शीला के महल्ले के एक लड़के को हुई, तो वह उस के पीछे पड़ गया.

शीला बोली, ‘पैसे दे तो तेरी भी इच्छा पूरी कर दूं.’ यहीं से शीला ने अपना शरीर बेचना शुरू कर दिया था. एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे. इस तरह वह कई लोगों के साथ सो कर दाम वसूल कर चुकी थी. उस की दादी को इस बात की खबर थी, पर वह बूढ़ी जान भी क्या करती.

शीला अब यादों से बाहर निकल आई थी. दर्द सहते, लंगड़ाते हुए वह भीड़भाड़ वाले इलाके तक आ गई थी. उस ने रिकशा रोका और बैठ गई अपने घर की तरफ जाने के लिए.

एक दिन हमेशा की तरह शीला चौक में खड़े हो कर ग्राहक का इंतजार कर रही थी कि तभी उसे किसी ने पुकारा, ‘शीला…’

शीला ग्राहक समझ कर पलटी, लेकिन सामने नवीन को देख कर हैरान रह गई. वह अपनी मोटरसाइकिल पर था. ‘‘तुम यहां क्या कर रही हो?’’ नवीन ने पूछा.

शीला हड़बड़ा गई, ‘‘मैं… मैं अपनी सहेली का इंतजार कर रही थी.’’

‘‘शीला, मैं तुम से कुछ बात करना चाहता हूं.’’

‘‘बोलो…’’

‘‘यहां नहीं… चलो, कहीं बैठ कर चाय पीते हैं. वहीं बात करेंगे.’’

शीला नवीन के साथ नजदीक के एक रैस्टोरैंट में चली गई.

‘‘शीला,’’ नवीन ने बात की शुरुआत की, ‘‘मैं ने तुम से शादी करने के लिए अपने मांपापा को मना लिया था, लेकिन तुम्हारे परिवार वालों की नापसंद के चलते हम एक होने से रह गए.’’ ‘‘नवीन, मैं ने भी बहुत कोशिश की थी, लेकिन हम दोनों के बीच जाति की एक मजबूत दीवार खड़ी हो गई.’’

‘‘खैर, अब इन बातों का कोई मतलब नहीं. वैसे, तुम खुश तो हो न? क्या करता है तुम्हारा पति? कितने बच्चे हैं तुम्हारे?’’

शीला थोड़ी देर चुप रही, फिर सिसकने लगी, ‘‘नवीन, मेरे पति ने दूसरी शादी कर ली है,’’ शीला ने अपनी आपबीती सुना दी.

‘‘तुम्हारे साथ तो बहुत बुरा हुआ,’’ नवीन ने कहा.

‘‘तुम अपनी सुनाओ. शादी किस से की? कितने बच्चे हैं?’’ शीला ने पूछा.

‘‘एक भी नहीं. मैं ने अब तक शादी नहीं की.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि मुझे तुम जैसी कोई लड़की नहीं मिली.’’

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शीला एक बार फिर तड़प उठी.

‘‘शीला, मेरी जिंदगी में अभी भी जगह खाली है. क्या तुम मेरी पत्नी…’’

‘‘नहीं… नवीन, यह मुमकिन नहीं है. मैं पहली वाली शीला नहीं रही. मैं बहुत गंदी हो गई हूं. मेरा दामन मैला हो चुका है. मैं तुम्हारे लायक नहीं रह गई हूं.’’

‘‘मैं जानता हूं कि तुम गलत राह पर चल रही हो. पर, इस में तुम्हारा क्या कुसूर है? तुम्हें हालात ने इस रास्ते पर चलने को मजबूर कर दिया है. तुम चाहो, तो इस राह को अभी भी छोड़ सकती हो. मुझे कोई जल्दी नहीं है. तुम सोचसमझ कर जवाब देना.’’

इस के बाद नवीन ने चाय के पैसे काउंटर पर जमा कए और बाहर आ गया. शीला भी नवीन के पीछे हो ली.नवीन ने मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे जवाब का इंतजार रहेगा. उम्मीद है कि तुम निराश नहीं करोगी,’’ कह कर नवीन आगे बढ़ गया.

शीला के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उस ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि वक्त उसे दलदल से निकलने का एक और मौका देगा. अभी शीला आगे बढ़ी ही थी कि एक नौजवान ने उस के सामने अपनी मोटरसाइकिल रोक दी, ‘‘चलेगी क्या?’’

‘‘हट पीछे, नहीं तो चप्पल उतार कर मारूंगी…’’ शीला गुस्से से बोली और इठलातीइतराती अपने घर की तरफ बढ़ गई.

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