Hindi Moral Tales : द वाई टाइम से ले लेना. खाना ठीक से खाना. फोन औफ मत करना, अपने पास ही साइलैंट मोड पर रख कर अच्छी तरह सोना,’’ अपने टूर के लिए बैग पैक करते हुए अनंत के उपदेश जारी थे और मैं मन ही मन इन 2 दिनों के अपने प्रोग्राम सोच रही थी जो मैं ने अनंत के टूर की डेट पता चलते ही अपनी फ्रैंड्स के साथ बना लिए थे. अनंत अकसर वर्क फ्रौम होम ही करते हैं.
इस बार बड़े दिनों बाद टूर पर जा रहे हैं और मेरी तो छोड़ो, मेरी फ्रैंड्स विभा, गौतमी और मिताली भी अनंत के जाने पर खुश हो रही हैं कि चलो, शुभा अब फ्री तो हुई. इन तीनों के पति औफिस जाते हैं. हमारे बच्चों युग और तनिका की तरह इन के बच्चे भी बाहर हैं. पति दिनभर औफिस तो अब इन का अलग ही रूटीन रहता है.
अनंत घर पर रहते हैं तो मेरा रूटीन अनंत के आसपास घूमता है और वैसे भी अनंत की आदत है कि उन्हें काम करते हुए घर में मेरी उपस्थिति अच्छी लगती है. चाहे दिनभर मीटिंग में व्यस्त रहें, आपस में पूरा दिन बात भी न हो, पर घर में मेरा होना उन्हें अच्छा लगता है.
हां, तो अनंत की सुबह फ्लाइट है, दिल्ली जा रहे हैं. मुंबई से दिल्ली पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगता है पर फिर भी इतने निर्देश दिए जा रहे हैं कि पूछिए मत. एक बड़ी टीम उन के अंडर काम करती है तो मैं कई बार कहती भी हूं कि भई मैं तुम्हारी जूनियर नहीं हूं. सुन कर हंस देते हैं. इस बात पर चिढ़ते नहीं हैं. वैसे भी इतने सालों बाद पत्नी की किसी बात पर कोई समझदार पति चिढ़ कर पंगा नहीं लेता.
पैकिंग कर के अनंत ने कहा, ‘‘चलो, फटाफट डिनर करते हैं, जल्दी सोऊंगा, सुबह 5 बजे उठना है.’’
‘‘हां, खाना लगाती हूं.’’
खाना खा ही रहे थे कि तनिका ने फैमिली गु्रप पर वीडियो कौल किया. युग ने भी जौइन किया. तनिका बैंगलुरु और युग देहरादून में पोस्टेड हैं. हलकेफुलके हंसीमजाक के साथ कौल चल रही थी.
तनिका ने मुझे छेड़ा, ‘‘मम्मी, कल से अपने मी टाइम के लिए ऐक्साइटेड हो?’’
बेटियां मां को कितना जानती हैं न. मुझे हंसी आ गई.
युग ने अपनी तरह से मुझे छेड़ा, ‘‘पापा, क्यों जा रहे हो? मम्मी बहुत ऐंजौय करने वाली हैं. उन के चेहरे की चमक देखो. मम्मी, थोड़ा तो उदास हो कर दिखा दो.’’
मैं ने खुल कर ठहाका लगाया. कौल पर मुझे मजा आया, बच्चे दूर हों तो फैमिली कौल्स अच्छी लगती ही हैं. रोज के काम मैं ने जरा जल्दी निबटाए, सुबह जल्दी उठना था. अनंत कितने बजे भी निकलें, मैं उन के लिए हमेशा नाश्ता बनाती हूं. वे कितना भी कहें, एअरपोर्ट पर खा लूंगा, परेशान मत हो पर मुझे पता है कि एअरपोर्ट पर उन्हें कुछ पसंद नहीं आता. सोने लेटे तो मैं आदतानुसार उन की बांह पर सिर रख कर लेट गई, कितना सुकून मिलता है अनंत की बांहों में. फिर सिर उन के सीने पर टिका दिया तो उन्होंने भी सिर उठा कर मेरे बालों को चूम लिया. बोले, ‘‘मिस करोगी?’’
अब वह पत्नी ही क्या जो मौका मिलते ही उलाहने न दे, मैं ने कहा, ‘‘सारा दिन लैपटौप पर ही तो रहते हो, बीचबीच में ही तो अपने काम से रूम से निकलते हो. सोच लूंगी कि अंदर अपना काम कर रहे हो, तुम कौन सा सारा दिन मेरे साथ वक्त बिताते हो.’’
‘‘बाप रे इतनी शिकायतें,’’ कहते हुए अनंत ने मुझे कस कर अपने सीने से लगा लिया. हंस कर पूछा, ‘‘अच्छा, बताओ इतना काम किस के लिए करता हूं?’’
बस, यहीं, यहीं एक पत्नी को अकसर जवाब नहीं सूझता. मुझे भी नहीं सूझा. मैं ने कहा, ‘‘चलो, अब सो जाओ, सुबह जल्दी उठना है.’’
सुबह नाश्ता करते हुए अनंत को मैं ने ध्यान से देखा, कितने अच्छे लगते हैं अनंत. 50 के हो रहे हैं, पर लगते नहीं. ब्लैक टीशर्ट और जीन्स कितनी अच्छी लग रही है उन पर. बाल पहले से थोड़े हलके हो गए हैं पर क्या फर्क पड़ता है. यह सब तो उम्र के साथ होता ही है. मेरे बाल भी अब पहले जैसे कहां रहे.
डाइनिंगटेबल पर मैं अनंत को निहार ही रही थी कि उन्होंने हंसते हुए मुझे देखा, फिर कहा, ‘‘नजर लगाने का इरादा है?’’
मैं ने उठ कर उन के गाल को चूम लिया.
‘‘अरे वाह, जब जा रहा हूं तो प्यार कर रही हो. मी टाइम सोच कर मुझ पर प्यार आया है न?’’
मैं हंस दी. अनंत चले गए. सचमुच थोड़ा टाइम अपने साथ गुजारने का मन था, अपनी मरजी से, अपने मूड से हर काम करने का मन था. 6 बज रहे थे. सोचा, 1 कप चाय पी कर
मैं भी सैर पर चली जाती हूं, खूब लंबी सैर कर के आऊंगी. आज तो जल्दी आने का भी प्रैशर नहीं. हर काम आरामआराम से करूंगी. सोचतीसोचती मैं ड्रैसिंगटेबल के सामने खड़ी हो गई. खुद को ध्यान से देखा. अनंत काफी अच्छे लगते हैं. मैं भी ठीकठाक दिखती हूं. अपनी जोड़ी बढि़या है.
मैं इस समय नाइट गाउन में थी. यह सैक्सी गाउन अनंत की ही पसंद का है. स्लीवलैस, गुलाबी रंग, पारदर्शी. मैं इस में अच्छी लग रही थी. अपनी फिगर पर मेरी पूरी नजर रहती है, बिगड़ने न पाए. चाय बना कर मैं ने अपना मोबाइल फोन उठाया. व्हाट्सऐप खोलते ही इतनी जोर से हंसी आई कि चाय छलकतीछलकती बची. शैतान सहेलियों ने एक बार फिर चारों के गु्रप का नाम बदल दिया था. गु्रप के नाम बदलते रहते हैं. इस बार नाम रखा गया था शुभा का मी टाइम और अनंत का भी एक मैसेज था- आई लव यू. अभी तो अनंत कैब में ही थे, फिर मैं ने भी लव यू टू लिख कर एक किस वाली इमोजी भेज दी. इमोजी आजकल अपना काम अच्छा कर रही हैं. कम शब्दों में काम चल जाता है, फीलिंग्स भी शेयर हो जाती हैं.
आज आराम से सैर की. आते हुए गरमगरम डोसे बनाने वाले उसी ठेले वाले को देखा जिस पर इस समय खूब भीड़ रहती है. रोज मन मारती हुई निकल जाती हूं कि इतनी भीड़ में कौन खड़ा हो कर पार्सल ले और अनंत जिम जाते हैं. वे इस रास्ते पर आते नहीं. आज सोचा, पार्सल की क्या जरूरत है, स्लिंग बैग में पैसे रहते ही हैं, आराम से अपनी बारी का इंतजार करने लगी.
डोसे वाले ने पूछा, ‘‘मैडम, पार्सल?’’
मैं ने कहा, ‘‘नहीं, यहीं.’’
आराम से 2 डोसे खाए, मजा आ गया. मैं 8 बजे तक घूमतीटहलती वापस घर आई. वर्षा बाई 10 तक आती है. घर आते ही लगा, अनंत सोफे पर बैठ कर अपने फोन में बिजी होंगे, मैं फिर ताना मारूंगी कि ‘बस फोन ले कर बैठे रहना. वे सफाई देंगे कि अरे, औफिस का काम भी होता है.
मैं ने सोचा, थोड़ा घर संभाल लेती हूं.
अनंत का टौवेल अभी तक चेयर पर रखा था, इसे धो देती हूं, यों ही उसे सूंघ लिया. अनंत की खुशबू कितनी अच्छी लगती है. उन का रूम ठीक कर देती हूं, बिखरा हुआ सामान इधरउधर करती रही. लंच पर तो मी टाइम गु्रप बाहर जा ही रहा था. फैमिली गु्रप पर सब एकदूसरे से टच में थे ही. अनंत के रूम में जितनी देर रही, उन का ध्यान आता रहा. कितनी मेहनत करते हैं. प्रोग्राम था कि पहले लंच के लिए एक शानदार रेस्तरां जाया जाएगा. हम
चारों बोरीवली में एक ही सोसाइटी में रहती हैं, यहां एक ‘साउथ बांबे’ नाम से साउथ इंडियन खाने के लिए फेमस होटल है जहां हम कई बार आते हैं. कार विभा ही निकालती है. इस एरिया के ट्रैफिक में कार चलाने की पेशैंस उसी में है. यह होटल बहुत चलता है. दूर से ही यहां के सांभर की खुशबू मन खुश कर देती है. दोसे की इतनी वैरायटी है कि क्या कहा जाए. यहां पहले से बुकिंग की हुई थी वरना यहां लंबी लाइन होती है. कार पार्क कर के हम अंदर जाने के लिए बड़ी.
गौतमी ने कहा, ‘‘यार, कितना अच्छा लगता है मी टाइम. कितनी मुश्किल से शुभा को यह टाइम मिलता है. हमारा क्या है, हमारे वाले तो औफिस निकल जाते हैं, बेचारी यही अनंत का यह, अनंत का वह करती रह जाती है. यार. अनंत को बोल वर्क फ्रौम है तो इस का मतलब यह नहीं कि तू घर की चौकीदार है.
अब तक मुझे समझ आ गया था कि मेरी खिंचाई हो रही है. मैं ने कहा, ‘‘बकवास बंद करो. जल्दी चलो, कितनी अच्छी खुशबू आ रही है.’’
हम चारों अपनी रिजर्व्ड टेबल पर बैठ गए. मुझे इन का मेनू देख कर हंसी आई, ‘‘यार, ये डोसे इतनी तरह से कैसे बना लेते हैं? बताओ. पावभाजी डोसा? चीज डोसा? वैसे मैं ने तो आज सुबह भी ठेले वाला डोसा खाया है. मेरा मी टाइम सुबह से स्टार्ट हो चुका है. लग रहा है, क्याक्या न कर डालूं.’’
मिताली ने एक ठंडी सांस ली, ‘‘देखा, ऐसा भी नहीं कि हमारे पति हमें कहीं आनेजाने से टोकते हैं या मना करते हैं पर कहीं जाने के बारे में बात करो तो तुरंत दुमछल्ले की तरह साथ में टंग जाते हैं यार. उन का प्यार भारी पड़ जाता है न कभीकभी? मैं कई बार सुधीश से कहती हूं कि तुम बिजी हो तो मैं चली जाती हूं. बंदा तुरंत कहता है कि अरे, मैं हूं न. मेरे मी टाइम की ऐसीतैसी हो जाती है.’’
हम खुल कर हंसे तो विभा ने कहा, ‘‘अब यही देख ले. पति के साथ आते हैं तो ऐसे ठहाके लगते हैं क्या?’’
मैं ने कहा, ‘‘चल पहले और्डर कर दें?’’
‘हां’ कहतेकहते विभा ने यों ही इधरउधर देखा और जोर से किसी को ‘हाय’ किया. उस के चेहरे की चमक बता रही थी कि उस ने किसी खास दोस्त को देखा है. हम ने उस की नजरों का पीछा किया. पास की ही टेबल पर 3 हमारी ही उम्र के पुरुष बैठे थे. उन में से एक उठ कर आया, ‘‘विभा, क्या हाल हैं? यहां कैसे?’’
‘‘तुम अभी भी उतने ही इंटैलिजैंट हो जैसे कालेज में थे… अरे, होटल में कोई क्या करने आएगा?’’
वह जो भी था जोर से हंसा, ‘‘तुम्हारा सैंस औफ ह्यूमर अभी भी वैसा ही है जैसा कालेज
में था.’’
फिर विभा ने हम तीनों से उस का परिचय करवाया, ‘‘यह सुमित है. हम साथ ही पढ़े हैं, यह भी यहीं मुंबई में ही रहता है.’’
और फिर सुमित ने अपने दोनों साथियों को पास आने का इशारा किया, ‘‘ये मेरे कलीग्स हैं, अरविंद और संजय.’’
हम सब ने एकदूसरे से हाथ मिलाया, परिचय अच्छी तरह से लियादिया गया. विभा काफी बहिर्मुखी है. उसे सब से मिलनेमिलाने में बड़ा मजा आता है. उस ने कहा, ‘‘सुमित, चलो साथ ही बैठ जाते हैं. लंच करते हुए बातें भी हो जाएंगी. बहुत दिन बाद मिले हैं.’’
उन 3 अजनबियों को क्या दिक्कत होनी थी जब सामने से अच्छी कंपनी मिल रही हो, अपनी कंपनी को इसलिए अच्छा कह रही हूं कि मुझे पता है कि हम ठीकठाक दिख रही थीं और हम बातें करने वाला तो ढूंढ़ते ही हैं. फैमिली के बिना यह एक नया बदलाव ठीक लग रहा था.
विभा ने और बड़ा मजाक कर दिया, ‘‘प्लीज फोन कोई मत निकालना. आज शुभा का मी टाइम डे है.’’
और हमारी बातें सुनसुन कर तीनों बहुत हंसे. लंच बड़ा भारी और्डर किया गया. 7 लोग, सब की अलगअलग पसंद. मजा आया.
संजय ने कहा, ‘‘शुभा, तुम्हारी बातें सुन कर लग रहा है कि हमारी पत्नियां भी हमारे बाहर जाने पर ऐसे ही खुश होती होंगी क्या?’’
मिताली ने जवाब दिया, ‘‘और क्या. यह बात लिख कर ले लो. हर पत्नी पति और बच्चों से थोड़ी देर तो छुट्टी चाहती ही है. तुम लोग हमें बहुत नचाते हो.’’
अरविंद ने कहा, ‘‘तुम लोग हमें आज क्यों मिल गईं? हमें तो लग रहा है जैसे हम अपनी पत्नी के साथ रोज रह कर कोई गुनाह कर रहे हैं.’’
मुझे इस बात पर बहुत हंसी आई, फिर अरविंद से पूछ लिया, ‘‘वैसे आप लोग यहां कैसे? यह तो औफिस टाइम है न?’’
‘‘हम तीनों की पत्नियां भी मायके गई हैं. कल आएंगी. वैसे आप लोग कहां से हैं?आप लोगों की हिंदी तो साफ लग रही है, यूपी से हैं?’’
मैं हंसी, ‘‘अरे वाह, हां मैं नैनी इलाहाबाद से हूं…’’
‘‘प्रयागराज?’’ उस ने मेरी दुखती नस पर हाथ रख दिया था.
मैं ने कहा, ‘‘मैं तो इलाहाबाद में जन्मी, पलीबढ़ी हूं, वहीं लाइफ के 22 साल बीते. हमारे दिल में तो इलाहाबाद बसता है. प्रयागराज बसतेबसते बसेगा.’’
उस ने गहरी सांस ली, ‘‘हां, यह तो सही बात कही. मैं भी नैनी का हूं. रमेश कपड़े वाले हैं न, उन का छोटा बेटा हूं मैं.’’
‘‘क्या? आप की दुकान पर तो मैं कई बार अपने बिट्टू भैया के साथ जाती थी.’’
‘‘क्या? आप बिट्टू की बहन हो?’’
‘‘हां.’’
‘‘लो भाई, आज तो मजा आ गया.’’
अब उसे क्या बताती कभी उस का भाई क्रश था मेरा. मुझे बहुत मजा आया. मैं इस इत्तफाक पर खूब हंसी. सब ही हंसे.
हमारा और्डर आ चुका था. हम ने एकदूसरे के और्डर को टेस्ट भी किया. अब तक टेबल्स साथ जुड़वा ली गई थीं. आज तो जैसे इत्तफाकों का दिन था. खाना खाते पता चला कि संजय और गौतमी की बेटियां बैंगलुरु में एक ही कालेज में पढ़ रही हैं. बातें करने के लिए इतना कुछ था कि खाना खत्म हो गया, बातें खत्म नहीं हुईं. हमें यहां 2 घंटे हो गए थे. अब 3 बज रहे थे. विभा ने जोमैटो से बुकिंग की थी तो उसे डिस्काउंट मिला था. इसलिए बिल उस ने दिया. बाकी सब ने शेयर कर लिया. हम बाहर निकले तब तक एक अच्छी दोस्ती की बौंडिंग हम सब के बीच हो चुकी थी.
विभा ने कहा, ‘‘तुम लोग घर जा रहे हो?’’
‘‘नहीं, लंच टाइम में औफिस से उठ कर आ गए थे. अब औफिस निकलते हैं.’’
‘‘ऐसी क्या नौकरी कर रहे हो जिस में इतनी देर लंच करने का टाइम मिल गया?’’
वे तीनों जोर से हंसे, ‘‘आज बौस नहीं
आए हैं.’’
गौतमी ने कहा, ‘‘थोड़ा प्रोग्राम और बना
लें फिर?’’
अरविंद ने कहा, ‘‘क्या? वैसे हम फ्री हैं.’’
‘‘आनंद हौल में एक पेंटिंग की प्रदर्शनी लगी है, वहीं एक प्ले भी चल रहा है, बर्फ. थ्रिलर है. चलो, बढि़या दिन बिताएं. तभी विभा का मी टाइम का सपना पूरा होगा. क्यों विभा?’’
मैं मचल गई, मेरे मुंह से निकल गया, ‘‘चलो न सब. कितना मजा आएगा. कितना नया दिन बीतेगा.’’
सब तैयार. मैं खुश. और मुझे आज क्या चाहिए था.
वे तीनों सुमित की कार में, हम चारों पहले की तरह विभा की कार से आनंद हौल पहुंचे.
पहली फ्लोर पर प्रदर्शनी थी, दूसरी फ्लोर पर प्ले. तय हुआ कि पुरुष दोनों का टिकट्स ले लेंगे, जिस की बाद में हम पेमैंट कर देंगी क्योंकि
लाइन अभी लंबी थी. हम चारों वौशरूम गईं.
हम ने अपने बाल ठीक किए, मैं अचानक अपने बैग से अपनी लिपस्टिक निकाल कर दोबारा लगाने लगी.
गौतमी को मौका मिल गया, ‘‘क्यों विभा, पहले कभी शुभा को यों दोबारा लिपस्टिक लगाते, बाल ठीक करते, अपनेआप को चारों तरफ से निहारते देखा है क्या?’’
‘‘न भई, आज कुछ कालेजगर्ल वाली हरकत कर रही है यह तो? नैनी वाले से कुछ पुराना याराना तो नहीं है न?’’
‘‘तुम सब बहुत बेकार हो. जरा सा बाल क्या ठीक कर लिए, पीछे पड़ गईं.’’
‘‘फिर लिपस्टिक क्यों ठीक की?’’
मैं हंस दी, ‘‘देखो यार, यह तो मानना
पड़ेगा कि आज कुछ अलग दिन जा रहा है. ऐंजौय करने दो.’’
‘‘वह नैनी वाला तुम्हें देख तो रहा था.’’
‘‘हां, तो आंखें हैं उस की, देखेगा ही.’’
थोड़ी बकवास कर के एकदूसरे को छेड़ कर हम पेंटिंग की प्रदर्शनी की तरफ चल दिए. हम सभी यहां पहली बार आए थे. वहां जा कर हमें समझ आ गया कि बस मुझे और मिताली को ही पेंटिंग्स में रुचि है बाकी सब टाइम पास ही कर रहे हैं. किसी को मौडर्न पेंटिंग समझ नहीं आ रही थी. हम जल्दी वहां से निकल लिए.
सुमित ने पूछा, ‘‘प्ले का टाइम हो रहा है, 1-1 कप चाय या काफी पी लें?’’
इस में ज्यादा सोचने की जरूरत थी ही नहीं. सब को चाय पीनी थी. एक स्टौल पर जा कर सब ने चाय ली और कोने में खड़े हो कर चाय पीने लगे. प्ले के लिए भीड़ बढ़ने लगी थी. मैं और अनंत अकसर प्ले देखते हैं. मुंबई में कई लोगों को प्ले देखने का एक नशा सा है. मैं भी उन में से एक हूं. कलाकारों को सामने अभिनय करते देखना वाकई बहुत रोमांचक और सुखद अनुभव होता है.
चाय पी कर हम सभी थिएटर में अपनीअपनी सीट पर जा कर बैठ गए. 7 बज
रहे थे, प्ले 9 बजे खत्म होने वाला था. थिएटर देखने वाली जनता भी कुछ अलग होती है. थ्रिलर प्ले में 3 ही कलाकार थे. हमारे साथी पुरुष पहली बार कोई प्ले देख रहे थे. वे ज्यादा उत्साहित थे. सौरभ की ऐक्टिंग तो फिल्मों में देख ही चुके हैं, प्ले में इतना सन्नाटा था कि सूई भी गिरे तो आवाज हो. दम साधे सब ने शो देखा. प्ले इतना बढि़या था कि खत्म होने के बाद भी देर तक तालियां बजती रहीं.
पुरुष साथी तो इतने जोर से तालियां
बजा रहे थे कि विभा ने धीरे से टोका, ‘‘बस
कर दो भाई.’’
एक अच्छा अनुभव ले कर हम सातों बाहर निकल आए, अब फोन नंबर लिएदिए गए.
मिताली ने कहा, ‘‘फिर मिलते हैं, आज का दिन याद रहेगा.’’
संजय ने पूछ लिया, ‘‘फिर मिलें?’’
गौतमी ने कहा, ‘‘हां, कभी ऐसे ही मिल लेंगे. बस हम 7. फैमिली का पुछल्ला रहने देंगे.’’
पुरुष साथियों को तो यह बात बेहद पसंद आई. सब ने तुरंत ‘हां, हां’ की.
हंसतेबोलते एकदूसरे से हाथ मिला कर बाय कहते हुए हम विभा की कार की तरफ बढ़ चलीं. मैं ने कार में बैठते हुए कहा, ‘‘भई, कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा मी टाइम मिलेगा. वाह, आनंद आ गया. एक दिन तो ऐसा मिलना ही चाहिए यार. है न?’’
गौतमी ने मुझे चिढ़ाया, ‘‘10 बज रहे हैं, बस पूरा दिन आवारागर्दी में बिता दिया तुम ने. तुम्हारा हो गया मी टाइम डे और यहां हमारे पति हमारा इंतजार कर रहे हैं. अब जा कर कोई कहानी सुनानी पड़ेंगी कि कहां देर हुई.’’
‘‘मुंबई में कहानियों की कहां कमी. अभी बोल दो ट्रैफिक में फंसी हुई हो इतनी देर से. इतना टायर्ड साउंड करो कि उसे ही तुम पर तरस आ जाए. ऐसा करो, अभी कार का शीशा नीचे कर के उसे फोन करो, ट्रैफिक की आवाज वह सुन ही लेगा,’’ मैं ने उसे आइडिया दिया तो उस ने मुझे घूरा, ‘‘नैनी वाले से मिल कर यह हिम्मत आ गई क्या?’’
‘‘बकवास बंद करो और गाड़ी चलाओ,’’ मैं हंस पड़ी. पर वह सचमुच अब वैसा ही कर रही थी जैसा मैं ने आइडिया दिया था. हम तीनों अब उस की ऐक्टिंग देख रहे थे.
घर पहुंच कर मैं ने कपड़े बदले. जल्दी से शौवर लिया. फोन देखा. अनत की, बच्चों की कई कौल्स थीं. मैं उन्हें बीचबीच में मैसेज करती रही थी. कहां हूं, बताती रही थी. अब चैन से बैठ कर फैमिली कौल की. फिर बैड पर आंखें बंद कर लेट गई. आज का दिन कितना सुंदर बीता. एक पूरा दिन अपने लिए अपनी मरजी से. फुल मी टाइम.
फैमिली वीडियो कौल भी हो गई. लंच हैवी किया था, अब रात में सिर्फ फ्रूट्स खाए. सोने से पहले दरवाजा 4 बार चैक किया होगा. वरना अनंत ही देख लेते हैं. ठीक से नींद नहीं आई थी. जो खर्राटे रोज एक शोर लगते हैं, आज उस शोर के बिना सोया नहीं गया.
सुबह फिर वही सैर, आते हुए डोसे खाए. लंच में खिचड़ी, शाम तक कितने दोस्तों, रिश्तेदारों को फोन कर लिया, एक नौवेल भी शुरू कर दिया. शाम को मी टाइम गु्रप आया तो अच्छा लगा. हम सुमित, अरविंद और संजय की कुछ बातों पर हंसते रहे.
गौतमी ने कहा, ‘‘फिर मिलना है कभी इन लोगों से?’’
मैं हंसी, ‘‘देखेंगे. अभी तो कोई मूड नहीं. कल का दिन अच्छा बीता, इस में कोई शक नहीं. पर आगे का अभी नहीं सोचते हैं. अपने पतियों की शराफत का इतना फायदा भी नहीं उठाएंगे कि इन लोगों के साथ प्रोग्राम बनने लगें.’’
सब ने सहमति दी. मैं ने सब के लिए गरमगरम पकौड़े और चाय बनाई. गप्पें मारीं, विभा डांस बहुत अच्छा करती है, उस के साथसाथ गौतमी ने भी म्यूजिक लगा कर डांस किया. मिताली और मैं देखते रहे. ऐसा लग रहा था कि जैसे कालेज की फ्रैंड्स बैठी हैं पर यह सच तो नहीं था. सब पर घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां थीं. अपनेअपने पति के औफिस से आने के टाइम सब भाग गईं.
मैं भी बाकी काम निबटा कर के फैमिली कौल में व्यस्त हो गई. सब मेरे मी टाइम के शौक पर, इन 2 दिनों के रूटीन पर हंसते रहे. सच कह रही हूं, मी टाइम जरूरी है. तनमन की बैटरी रिचार्ज हो जाती है.