पिपासा: कैसे हुई थी कमल की मौत

सुबह के तकरीबन 9 बजे होंगे. भैंसों को चारासानी, पानी कर के दूध दुह कर ग्राहकों को बांट कर मदन खाट पर जा कर लेट गया था. पल दो पल में ही धूप उस के बदन पर लिपट कर अंगअंग सहला कर गरमाहट बढ़ाने लगी. मदन को गुदगुदी सी होने लगी थी. वह जैसे अपनी दोनों बांहों में धूप को समेट कर हौले से मुसकरा उठा.

तीस साल का मदन इतना भी रूखा या पत्थरदिल नहीं था, मगर अभी तक किसी को अपने दिल की बात कह कर अपना बना ही नहीं सका था.

मदन का पूरा बदन धूप की शरारतों से इठला ही रहा था, तभी अचानक किसी ने बाहर खटखट की आवाज की. आवाज सुन कर मदन चौंक गया.

‘अब कौन आया होगा?’ यह सवाल खुद से करता हुआ वह झट से करवट बदल कर पलटा और खाट पर से उठ कर जमीन खड़ा हुआ. जल्दी से वह बाहर गया, तो देखते ही पहचान गया.

“अरे, चमेली तुम…?”

“हां, मैं चमेली,” कह कर उस युवती ने अपने पास खड़े 4-5 बरस के बालक की कलाई को झिंझोड़ कर कहा.

चमेली मदन की दूर की रिश्तेदार थी. उस का विवाह जिला गाजियाबाद में हुआ था. और इस समय कुछ तो ऐसा हुआ था कि सारी दुनिया छोड़ कर वह बस मदन के दरवाजे पर खड़ी थी.

मदन ने उसे भीतर बुला लिया. कुछ ही देर बाद मदन को बाहर कुछ आवाजें सुनाई देने लगी थीं. लोगों में खुसुरफुसुर होने लगी थी. पर, मदन अपनी मेहनत पर जीने वाला स्वाभिमानी युवक किसी बात से नहीं डरता था और न ही किसी की परवाह करता था.

चमेली ने भीतर आ कर मदन की तरफ याचनाभरी निगाह से देखा. इस से पहले मदन कुछ कहता, वह झुक कर उस के पैरों से लिपट गई.

चमेली के इस तरह लिपटते देख मदन को अभीअभी सेंकी हुई धूप की गरमाहट दोबारा महसूस होने लगी और वह रोमांचित सा हो रहा था, पर उधर इस सब से बेखबर चमेली उस से सुबकसुबक कर बोली, “मेरा पति हर बात पर शक करता था. मैं वहां से भाग आई. अब मैं वापस लौट कर नहीं जाना चाहती. आप मुझे अपनी शरण में ले लो, तो बची उम्र भी जैसेतैसे काट लूंगी.”

मदन उस के लगातार स्पर्श से यों भी मदहोश सा हुआ जा रहा था. वह अपनेआप को सहज करने की कोशिश करने लगा और उस ने बालक को प्यार से पुचकार कर कहा, “आओ ना… मेरे पास आओ.”

मदन के शब्दों ने उस बालक पर जादू सा काम किया. वह बालक शायद जन्मों से इस मनुहार की ही तो कामना कर रहा था, प्यार का संकेत मिला और वह मदन की छाती से लिपट गया. मदन ने आंखें बंद कर लीं. उस को एक पल के लिए ऐसा लगा, जैसे चमेली ने आ कर उसे जकड़ लिया हो.

कुछ पल के लिए वहां खामोशी सी छाई रही. पैरों पर चमेली और गोदी में मासूम बालक था. मदन इस आनंद को छक कर भोग रहा था.

अचानक चमेली ने उठ कर कहा,”कहीं आप को कोई दिक्कत तो नहीं.”

“अरे, नहीं. तुम आराम से यहां रहो,” मदन ने अपनी आवाज में प्यार छलकाते हुए कहा, तो चमेली के बदन में जैसे बिजली सी दौड़ गई. वह रास्ते की थकान भूल कर कच्चे मकान को देखती रही और इधरउधर जा कर उस ने रसोई खोज ली.

मदन ने कहा, “तुम थकी हुई हो. मैं कुछ चायदूध गरम करता हूं.”

चमेली मदन की ओर देख कर जोर से बोली, “बस, अब मैं सब कर लूंगी.”

मदन यह सुन कर निश्चिंत हो गया और वह बालक के साथ खेलने लगा.

चमेली जरा सी देर में चाय, दूध सब तैयार कर लाई. चमेली और मदन चाय की चुसकियां लेने लगे. बालक दूध का गिलास गटागट पी गया और शरीर में ताकत आते ही यहांवहां दौड़ने लगा.

मदन का सूना घर किलकारी से गूंज उठा, जैसे कोई उत्सव हो.

मदन के इस कच्चे मकान में रसोई और गोदाम के अलावा 3 कमरे और भी थे. एक कमरा चमेली ने ले लिया. इस दौरान 2-4 दिन गांव के लोगों ने किसी न किसी बहाने मदन के आंगन की ताकझांक भी कर ली. पर आखिरकार सब लोग समझ गए कि चमेली मदन की शरणागत है, और मदन को इस मामले में किसी की राय, सलाहमशवरा आदि कतई नहीं चाहिए.

चमेली को आए 7-8 दिन हो गए थे. वह अपने कच्चे मकान के उसी कमरे मे रहता, जहां चमेली रहती.

मदन चमेली के साथ जन्नत सा सुख पा रहा था, और वह कमरा मदन को किसी परीलोक से कम न लगता था. अब चमेली ने इतना प्यार लुटा दिया, तो मदन भी पीछे नहीं रहा. शहर से बादाम, काजू, अखरोट, कपड़ेलत्ते, मखमली बिस्तर और कई खिलौने ला कर उस ने चमेली के बालक को निहाल कर दिया था.

मदन ने उस बालक का नाम रखा था कमल. चमेली को कमल नाम इतना भाया कि वह अपने इस बालक का असली नाम बिलकुल ही भूल गई.

लगभग एक महीना हो गया था और अब हालात इतने हसीन थे कि चमेली सुबहशाम कुछ नहीं सोचती थी, जब भी तड़प कर मदन पुकार लगाता, चमेली उस के लिए गलीचा बनने में पलभर की देरी नहीं करती थी. चमेली ने तो उस का पुनर्जागरण कर दिया था. चमेली उस की मांग पर उफ न करती, तो मदन ने भी उसे सिरआंखों पर बिठाया.

इन दिनों मदन को यह पूरी दुनिया जैसे फूलों का बाग लगती थी. चमेली दो समय भोजन पकाती और बाकी का वक्त मदन उस को एक तिनका तक न तोड़ने देता था. भैसों का गोबर उठाने, वहां साफसफाई करने और रसोई के सब छोटेबड़े बरतन वह खुद खुशीखुशी मांजता था.

चमेली ने भी गांव में सहेलियां बना ली थीं. जब मदन गांव से बाहर होता तो चमेली का जी उचटने लगता और कभी कमल को ले कर तो कभी उस को सुला कर वह यहांवहां, इधरउधर आनेजाने लगी.

एक दिन मदन ने कमल को गांव की पाठशाला में दाखिला दिला दिया, वहीं सुबह दूध और दोपहर को बढ़िया खाना मिलता था. चमेली अब और खूबसूरत हो गई थी.

3 महीने गुजर गए. एक दिन मदन को सदमा लगा, जैसे वह आसमान से गिरा. हुआ यों कि चमेली रातोंरात गायब हो गई. खूब पता लगाया तो खबर मिली कि वह बगल गांव के एक छोरे के संग मुंबई भाग गई. दोनों अपनी मरजी से गए थे और चमेली मदन के घर से एक रुपया तक न ले गई, बस उस के दो समय के कपड़े वहां नहीं थे. घर पर सब सामान सहीसलामत पा कर मदन ने चैन की सांस ली, मगर अब वह और कमल अकेले रह गए.

चमली उसे धोखा दे गई, इसीलिए शोक करना मूर्खता ही होती. पर, जीवट वाले मदन ने हार नहीं मानी और उस ने कमल को ही अपना जीवन मान लिया.

मदन उसे खुद स्कूल छोड़ने और लाने जाता, बाकी समय उस की भैंसें तो थीं ही, जो उस को बिजी रखती थीं.

हौलेहौले मदन और बालक कमल एकदूजे की छवि बनते गए. बालक कमल दस वर्ष का हुआ, तो उस को नईनई बातें पता लगीं. वह पढ़ने में अच्छा था और मेवे, फलफूल खा कर मजबूत शरीर का धावक भी था.

एक दिन कमल मदन से सैनिक स्कूल में पढ़ने की जिद करने लगा. मदन ने उस की पूरी बात सुनी. मदन को कोई दिक्कत नहीं थी. यह तो गर्व की बात थी. मदन ने खुशीखुशी दौड़भाग कर सैनिक स्कूल का प्रवेशफार्म भर दिया. परीक्षा में कमल का चयन हो गया. मदन उस को छात्रावास छोड़ कर वापस लौटा और 1-2 दिन बेचैन रह कर फिर से खुद को यहांवहां उलझा कर भैसों के काम में मन लगाने लगा.

कमल और चमेली दोनों ही बारीबारी से मदन के सपनों में आते थे. वैसे, कमल की तो नियम से चिट्ठी और फोन भी आते थे. 2 महीने तक तो लंबे अवकाश में कमल उस के पास आ कर रहा.

कमल मदन को सैनिक स्कूल के कितने किस्से सुनाता रहता था. मदन को लगता कि चलो, जीवन सफल हो गया.

समय पंख लगा कर उड़ता रहा. कमल जब 14 वर्ष का हुआ, तो उसे वहां पर मेधावी छात्र की छात्रवृत्ति मिलने लगी. अब वह पढ़नेलिखने के लिए मदन पर कतई निर्भर नहीं था.

मदन इस साल इंतजार करता रहा, पर न तो कमल खुद ही आया और न ही उस का फोन आया. अब तो उस के चिट्ठीफोन आने सब बंद हो गए थे. मदन को अब कुछ अवसाद सा रहने लगा.

पर, वह चमेली के धोखे को
याद कर के कमल का यह व्यवहार झेल गया. अब उस को काम करने में आलस आने लगा था, खासतौर पर भोजन पकाने में, इसलिए कुछ सोच कर उस ने घरेलू काम में मदद के लिए एक कामवाली रख ली. वह मदन से कुछ अधिक उम्र की थी, और खाना बनाना, कपड़े धोना वगैरह सब काम करने लगी.

एक दिन खाट पर लेटा मदन सोच रहा था कि आज कमल होता तो 20 बरस का होता. और चमेली… चमेली कहां होगी, यही सोचते हुए वह अचानक खाट से उठ बैठा, तो सामने कामवाली को खड़ा पाया.

वह कामवाली एक गिलास चाय बना कर ले आई थी. मदन की आंख से आंसू बह रहे थे. उस ने नजदीक जा कर वह आंसू अपने आंचल से पोंछ दिए और मदन अचानक ही एकदम भावुक सा हो उठा. उस ने संकेत से कुछ याचना की, फिर दोनों गले लग कर काफी देर तक यों ही बैठे रहे.

मदन बहुत ही कोमल दिल वाला और बड़ा ही भावुक है, यह बात इन 3 महीनों में वह अनुभवी स्त्री भांप गई थी.

अब कुछ सिलसिला यों बनने लगा कि वह कामवाली चमेली के उस कमरे में ले जा कर मदन को कभीकभी सहला दिया करती, तो कभी प्यार से पुचकार देती और कभीकभी मदन के आग्रह पर सारा काम यों ही रहने देती. बस मदन को छाती से चिपटा कर उस का दुखदर्द पी जाती थी. उस दिन भोजन मदन पकाता और एक ही थाली में दोनों थोड़ाथोड़ा खा लेते, पर पूरे तृप्त हो जाते थे.

इसी तरह एक साल और गुजर गया. मदन अब फिर से आनंद में रहने लगा था. गाव वालों की खुसुरफुसुर और ताकझांक चल रही थी. पर, इस से वह न तो कभी घबराया था और न ही आगे डरने वाला था. उस की कामवाली तो अपने खूनपसीने की रोटी खा रही थी. वह किसी अफवाह पर कान तक न देती थी. हर समय मौज में रहती और मदन की मौज में तिल भर कमी न आने देती थी.

एक दिन सुबहसवेरे वह मदन को सहला कर चाय उबाल रही थी कि एक आहट हुई. मदन उठ कर बाहर गया, तो 2 लोग बाहर खड़े थे, एक कमल और गोदी में तकरीबन 2 साल का प्यारा सा बालक.

मदन ने मन ही मन सोचा कि वाह बेटा, नौकरीब्याह सब कर लिया और खबर तक नहीं दी. पर, वह सिर झटक कर अपने विचार बदलने लगा. उस का दयावान मन जाग गया.

मदन को कमल से नाराजगी तो थी, पर नफरत नहीं थी. वह बहुत ही प्यार से उसे भीतर लाया. कमल ने सब रामकहानी सुना दी. वह अफसर हो गया था, पर पत्नी बेवफा निकली. वह किसी रसोइए के साथ भाग गई थी. अब यह नन्हा बालक किस के भरोसे रहेगा, कह कर कमल सुबक उठा.

कुछ देर बाद कमल के हाथों में चाय का गिलास आ गया था और बालक को एक सुंदर पर अधेड़ महिला गोदी में खिला रही थी.

मदन से सौ झूठीसच्ची बातें कर के कमल उसी दिन वापस लौट गया. मदन का जीवन एक बार फिर रौनक से भर उठा था. कितने बरस बीतते गए और बूढ़ा मदन उस बालक को बचपन से किशोरावस्था में जाता देख रहा था. यह बालक तो कमल से कई गुना मेधावी था, पर वह गांव की मिट्टी से बहुत लगाव रखता था. गांव छोड़ना ही नहीं चाहता था. लगभग छप्पन बरस की बूढ़ी हो चली कामवाली अम्मां अब मदन के पास स्थायी रूप से रहने लगी थी.

अब मदन और वो उस बालक का जीवन आधार थे. उन का गांव तो अब बहुत बेहतरीन हो गया था. बहुत सारी सुविधाएं यहां पर थीं. एक दिन मदन अपनी कामवाली के साथ किसी सामाजिक समारोह में गया तो वहां एक फौजी मिला. बातों से बातें निकलीं तो खुलासा हुआ कि वह कमल को जानता था. उस ने कमल की हर काली करतूत बताई और खुलासा किया कि कमल न जाने कितनी औरतें बदल चुका है. वह अफसरों की कमजोर नस का फायदा उठाता है और खुद भी गुलछर्रे उड़ाता है. वह अनैतिक हो चुका है. इतना बुद्धिमान है, पर बहुत ही गलत रास्ते पर है.

मदन चुपचाप सुनता रहा. उस को सुकून मिला कि अच्छा हुआ, जो कमल का बेटा यहां पर नहीं है. सुनता तो कितना परेशान होता.

मदन को इस बात का अंदेशा था क्योंकि कमल ने कभी एक नया पैसा इस बालक के लिए नहीं भेजा, कभी एक फोन तक नहीं किया था.

मदन ने उस फौजी युवक को अपना फोन नंबर दिया और उस का नंबर भी ले लिया.

कुछ सप्ताह और बीत गए. एक दिन सुबहसुबह ही मदन के पास फोन आया कि कमल की किसी रहस्यमयी और अज्ञात बीमारी से अचानक मौत हो गई है.

मदन ने संदेश सुन कर फोन काट दिया. उस ने उस रोज अपना सारा काम उसी तरह से किया जैसे वह पहले किया करता था. बालक भी पाठशाला से लौट कर खापी कर खेलने चला गया. उस दिन मदन की शाम एक सामान्य शाम की तरह गुजरी. मदन ने एक पल को भी कमल का शोक नहीं मनाया. अब कमल और चमेली उस के लिए अजनबी थे.

विश्वास: राजीव ने अंजू से क्यों की पैसों की डिमांड?

दोपहर के 2 बजे थे. शिवानी ने आज का हिंदी अखबार उठाया और सोफे पर बैठ कर खबरों पर सरसरी नजर दौड़ाने लगी. हत्या, लूटमार, चोरी, ठगी और हादसों की खबरें थीं. जनपद में ही बलात्कार की 2 खबरें थीं. एक 10 साला बच्ची से पड़ोस के एक लड़के ने बलात्कार किया और दूसरी 15 साला लड़की से स्कूल के ही एक टीचर ने किया बलात्कार. पता नहीं  क्या हो रहा है? इतने अपराध क्यों बढ़ रहे हैं? कहीं भी सिक्योरिटी नहीं रही. अपराधियों को पुलिस, कानून व जेल का जरा भी डर नहीं रहा. बलात्कार की खबरें पढ़ कर शिवानी मन ही मन गुस्सा हो गई. यह कैसा समय आ गया है कि किसी भी उम्र की औरत या बच्ची महफूज नहीं है. बच्चियों से भी बलात्कार. इन बलात्कारियों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए, जो ये भविष्य में ऐसे घिनौने अपराध करने के काबिल ही न रहें.

शिवानी की नजर दीवार पर लगी घड़ी पर पड़ी. दोपहर के ढाई बज रहे थे. अभी तक मोनिका स्कूल से नहीं लौटी थी? स्कूल से डेढ़ बजे छुट्टी होती है. आधा घंटा घर लौटने में लगता है. अब तक तो मोनिका को घर आ जाना चाहिए था. शिवानी के पति कमलकांत एक प्राइवेट कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर थे. उन की 8 साला एकलौती प्यारी सी बेटी मोनिका शहर के एक मशहूर मीडियम स्कूल में तीसरी क्लास में पढ़ रही थी. पढ़ने में होशियार मोनिका बातें भी बहुत प्यारीप्यारी करती थी. शादी के बाद कमलकांत ने शिवानी से कहा था, ‘देखो शिवानी, हमें अपने घर में केवल एक ही बच्चा चाहिए. हम उसी को अच्छी तरह पाल लें, अच्छी तालीम दिला दें, चाहे वह लड़का हो या लड़की. यही गनीमत होगी. उस के बाद हमें दूसरे बच्चे की चाह नहीं करनी है.’

शिवानी भी पति के इस विचार से सहमत हो गई थी. वह खुद एमए, बीऐड थी, पर बेटी के लिए उस ने नौकरी करना ठीक न समझा और एक घरेलू औरत बन कर रह गई. शिवानी के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं. कहां रह गई मोनिका? सुबह साढ़े 7 बजे वह आटोरिकशा में बैठ कर गई थी. 5 बच्चे और भी जाते हैं उस के साथ. मोनिका सब से पहले बैठती है और सब से बाद में उतरती है. आटोरिकशा चलाने वाला श्यामलाल पिछले साल से बच्चों को ले जा रहा था, पर कभी लेट ही नहीं हुआ. लेकिन 2 दिन से श्यामलाल बीमार पड़ा था. कल उस का भाई रामपाल आया था आटोरिकशा ले कर.

तब शिवानी ने पूछा था, ‘आज तुम्हारा भाई श्यामलाल कहां रह गया?’

‘उसे 3 दिन से बुखार है. उस ने ही मुझे भेजा है,’ रामपाल ने कहा था.

पहले भी 2-3 बार रामपाल ही बच्चों को ले कर गया और छोड़ कर गया था. वह भी शहर में आटोरिकशा चलाता था.

आज शिवानी को खुद पर गुस्सा आ रहा था. वह रामपाल का मोबाइल नंबर लेना भूल गई थी. मोबाइल नंबर लेना न तो कल ध्यान रहा और न ही आज. अगर उस के पास रामपाल का मोबाइल नंबर होता, तो पता चल जाता कि देर क्यों हो रही है. पता नहीं, वह पढ़ीलिखी समझदार होते हुए भी ऐसी बेवकूफी क्यों कर गई?

शिवानी के मन में एक डर समा गया और वह सिहर उठी. उस का रोमरोम कांप उठा. दिल की धड़कनें मानो कम होती जा रही थीं. उस ने धड़कते दिल से श्यामलाल का मोबाइल नंबर मिलाया.

‘हैलो… नमस्कार मैडम,’ उधर से श्यामलाल की आवाज सुनाई दी.

‘‘नमस्कार. तुम्हारा भाई रामपाल अभी तक मोनिका को ले कर घर नहीं आया. पौने 3 बज रहे हैं. पता नहीं कहां रह गया वह? मेरे पास तो रामपाल का मोबाइल नंबर भी नहीं है?’’

‘इतनी देर तो नहीं होनी चाहिए थी. स्कूल से घर तक आधे घंटे से भी कम का रास्ता है. मैं ने उस का फोन मिलाया, तो फोन नहीं लग रहा है. पता नहीं, क्या बात है?

‘सुबह मैं ने उस से कहा था कि बच्चों को छोड़ कर सीधे घर आ जाना. डाक्टर के पास जाना है. दवा लानी है. 3 दिन से बुखार नहीं उतर रहा है,’ श्यामलाल बोला.

‘‘मुझे बहुत चिंता हो रही है. बेचारी मोनिका पता नहीं किस हाल में होगी?’’ शिवानी रोंआसा हो कर बोली. थोड़ी देर बाद शिवानी ने मोनिका की क्लास में पढ़ने वाली एक बच्ची की मम्मी को मोबाइल मिला कर कहा, ‘‘हैलो… मैं शिवानी बोल रही हूं…’’

‘कहिए शिवानीजी, कैसी हैं आप?’ उधर से एक औरत की मिठास भरी आवाज सुनाई दी.

‘‘क्या आप की बेटी मुनमुन स्कूल से आ गई है?’’

‘हां, वह तो 2 बजे से पहले ही आ गई थी. क्यों, क्या बात हुई?’

‘‘हमारी मोनिका अभी तक घर नहीं आई है.’’

‘यह क्या कह रही हैं आप? एक घंटा होने को है. आखिर कहां रह गई वह? आजकल का समय भी बहुत खराब चल रहा है. रोजाना अखबार में बच्चियों के बारे में उलटीसीधी खबरें छपती रहती हैं. हम अपने बच्चों को इन लोगों के साथ भेज तो देते हैं, पर इन का कोई भरोसा नहीं. किसी के मन का क्या पता…

‘आप पुलिस में रिपोर्ट तो लिखवा ही दीजिए. देर करना ठीक नहीं है.’

यह सुनते ही शिवानी का दिल बैठता चला गया. उस के मन में एक हूक सी उठी और वह रोने लगी. उस ने स्कूल में फोन मिलाया. उधर से आवाज सुनाई दी, ‘जय भारत स्कूल…’

‘‘मैं शिवानी बोल रही हूं. हमारी बेटी मोनिका तीसरी क्लास में पढ़ती है. वह अभी तक घर नहीं पहुंची. स्कूल में कोई बच्ची तो नहीं रह गई? छुट्टी कब हुई थी?’’

‘यहां तो कोई बच्ची नहीं है. छुट्टी ठीक समय पर डेढ़ बजे हुई थी. आप की बेटी किस तरह घर पहुंचती है?’

‘‘एक आटोरिकशा से. आटोरिकशा चलाने वाला श्यामलाल बीमार था, तो उस का भाई रामपाल आटोरिकशा ले कर आया था.’’

‘बाकी बच्चे घर पहुंचे या नहीं?’

‘‘जी हां, सभी पहुंच गए. बस, मेरी बेटी नहीं पहुंची.’’

‘आप पुलिस में सूचना दीजिए. इतनी देर से बच्ची घर नहीं पहुंची. कुछ तो गड़बड़ जरूर है. आजकल किस पर विश्वास करें? कुछ पता नहीं चलता कि इनसान है या शैतान?’

यह सुन कर शिवानी की आंखों से बहते आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. लग रहा था, मानो जिस्म की ताकत निकलती जा रही हो.

शिवानी ने कमलकांत को मोबाइल फोन मिलाया.

‘हैलो…’ उधर से कमलकांत की आवाज सुनाई दी.

‘‘मोनिका अभी तक स्कूल से नहीं आई,’’ शिवानी ने रोते हुए कहा.

‘क्या कह रही हो… 3 बज चुके हैं. आखिर कहां रह गई वह? आटोरिकशा वाले का नंबर मिलाया?’ कमलकांत की डरी सी आवाज सुनाई दी.

‘‘आज भी उस का भाई रामपाल आया था. उस का नंबर मेरे पास नहीं है. श्यामलाल ने कहा है कि रामपाल का फोन नहीं मिल रहा है. सभी बच्चे अपने घरों में पहुंच चुके हैं, पर हमारी मोनिका अभी तक नहीं आई,’’ कहतेकहते शिवानी सिसकने लगी.

‘शिवानी, मैं घर आ रहा हूं. अभी पुलिस स्टेशन पहुंच कर रिपोर्ट लिखवाता हूं,’ कमलकांत की चिंता में डूबी गुस्साई आवाज सुनाई दी.

15 मिनट बाद ही कमलकांत घर पहुंच गए. शिवानी सोफे पर कटे पेड़ की तरह गिरी हुई सिसक रही थी.

‘‘शिवानी, अपनेआप को संभालो. हम पर अचानक जो मुसीबत आई है, उस का मुकाबला करना है. मैं अब पुलिस स्टेशन जा रहा हूं,’’ कहते हुए कमलकांत कमरे से बाहर निकले.

तभी घर के बाहर एक आटोरिकशा आ कर रुका. उसे देखते ही कमलकांत चीख उठे, ‘‘अबे, अब तक कहां मर गया था?’’

शिवानी भी झटपट कमरे से बाहर निकली. कमलकांत ने देखा कि रामपाल के माथे पर पट्टी बंधी हुई थी. चेहरे पर भी मारपिटाई के निशान थे.

मोनिका आटोरिकशा से उतर रही थी. रामपाल ने मोनिका का बैग उठाया. शिवानी ने मोनिका को गोद में उठा कर इस तरह गले लगा लिया, मानो सालों बाद मिली हो.

कमलकांत ने मोनिका से पूछा, ‘‘बेटी, तुम ठीक हो?’’

‘‘हां पापा, मैं ठीक हूं. अंकल को सड़क पर पुलिस ने मारा,’’ मोनिका बोली.

कमलकांत व शिवानी चौंके. वे दोनों हैरानी से रामपाल की ओर देख रहे थे.

‘‘रामपाल, क्या बात हुई? यह चोट कैसे लगी? आज इतनी देर कैसे हो गई? हम तो परेशान थे कि पता नहीं आज क्या हो गया, जो अब तक मोनिका घर नहीं आई,’’ कमलकांत ने पूछा.

‘‘चिंता करने की तो पक्की बात है, साहबजी. रोजाना तो बेटी 2 बजे तक घर आ जाती थी और आज साढ़े 3 बज गए. इतनी देर तक जब बेटी या बेटा घर न पहुंचे, तो घबराहट तो हो ही जाती है,’’ रामपाल ने कहा.

‘‘तुम्हें चोट कैसे लगी?’’ शिवानी ने हैरानी से पूछा.

आटोरिकशा के एक पहिए में पंक्चर हो गया. पंक्चर लगवाने में आधा घंटा लग गया. आगे चौक पर जाम लगा था. कुछ लोग प्रदर्शन कर किसी मंत्री का पुतला फूंक रहे थे. कुछ देर वहां हो गई. मैं इधर ही आ रहा था. मैं जानता था कि आप को चिंता हो रही होगी…’’ कहतेकहते रामपाल रुका.

‘‘फिर क्या हुआ? मोनिका कह रही है कि तुम्हें पुलिस ने मारा?’’ कमलकांत ने पूछा.

‘‘मोनिका बेटी ठीक कह रही है. मोटरसाइकिल पर स्टंट करते हंसतेचीखते हुए 3 लड़के आ रहे थे. मुझे लगा कि वे आटोरिकशा से टकरा जाएंगे, तो मैं ने तेजी से हैंडल घुमाया. एक दुकान के बाहर एक मोटरसाइकिल खड़ी थी. वह मोटरसाइकिल से हलका सा टकरा गया और मोटरसाइकिल पर बैठा तकरीबन 5 साल का बच्चा गिर गया. गिरते ही बच्चा रोने लगा.

‘‘दुकान से पुलिस का एक सिपाही कुछ सामान खरीद रहा था. वह वरदी में था, बच्चा व मोटरसाइकिल उसी की थी.

‘‘मैं ने आटोरिकशा से उतर कर सिपाही से हाथ होड़ कर माफी मांगी. उस ने मुझे गाली देते हुए 4-5 थप्पड़ मार दिए. इतना ही नहीं, मेरी गरदन पकड़ कर जोर से धक्का दिया, तो मेरा सिर आटोरिकशा से टकरा गया और खून निकलने लगा.

‘‘पास में ही एक डाक्टर की दुकान थी. मैं ने वहां पट्टी कराई और सीधा यहां आ रहा हूं,’’ रामपाल के मुंह से यह सुन कर कमलकांत और शिवानी के गुस्से का ज्वारभाटा शांत होता चला गया.

अचानक शिवानी के मन में दया उमड़ी. उस ने हमदर्दी जताते हुए कहा, ‘‘ओह, यह तो बहुत बुरा हुआ. तुम्हें चोट भी लग गई.’’

‘‘मैडमजी, मुझे अपनी चोट का जरा भी दुख नहीं है. मगर मोनिका बेटी को जरा भी चोट लग जाती या कुछ हो जाता, तो मुझे बहुत दुख होता. आप अपने बच्चे को हमारे साथ किसी विश्वास से भेजते हैं. हमारा भी तो यह फर्ज बनता है कि हम उस विश्वास को बनाए रखें, टूटने न दें,’’ रामपाल ने कहा.

‘‘रुको रामपाल, मैं तुम्हारे लिए चाय लाती हूं.’’

‘‘शुक्रिया मैडमजी, चाय फिर कभी. घर पर भैया इंतजार कर रहे होंगे. बहुत देर हो चुकी है. मुझे उन को भी ले कर डाक्टर के पास जाना है. आप भैया को मोबाइल पर सूचना दे दो कि मोनिका घर आ गई है. उन को भी चिंता हो रही होगी,’’ रामपाल ने कहा और आटोरिकशा ले कर चल दिया.

बदला: मनीष के प्यार को क्या समझ पाई अंजलि

मनीष सुबह टहलने के लिए निकला था. उस के गांव के पिछवाड़े से रास्ता दूसरे गांव की ओर जाता था. उस रास्ते से अगले गांव की काफी दूरी थी. वह रास्ता गांव के विपरीत दिशा में था, इसलिए उधर सुनसान रहता था. मनीष को भीड़भाड़ से दूर वहां टहलना अच्छा लगता था. वह इस रास्ते पर दौड़ लगाता और कसरत करता था.

मनीष जैसे ही अपने घर से निकल कर गांव के आखिरी मोड़ पर पहुंचा, तो उस ने देखा कि सामने एक लड़की एक लड़के से गले लगी हुई. मनीष रुक गया था. दोनों को देख कर उस के जिस्म में सनसनाहट पैदा होने लगी थी. वह जैसे ही नजदीक पहुंचने वाला था, वह लड़की जल्दी से निकल कर पीछे की गली में गुम हो गई.

‘‘अरे, यह तो अंजलि थी,’’ वह मन ही मन बुदबुदाया. वही अंजलि, जिसे देख कर उस के मन में कभी तमन्ना मचलने लगती थी. उस के उभारों को देख कर मनीष का मन मचलने लगता था. आज उसे इस तरह देख कर वह अपनेआप को ठगा सा महसूस करने लगा था.

आज मनीष पूरे रास्ते इसी घटना के बारे में सोचता रहा. आज उस का टहलने में मन नहीं लग रहा था. वह कुछ दूर चल कर लौटने लगा था. वह जैसे ही घर पहुंचा कि गांव में शोर हुआ कि किसी की हत्या हुई है. लोग उधर ही जा रहे थे.

मनीष भी उसी रास्ते चल दिया था. वह हैरान हुआ, क्योंकि भीड़ तो वहीं जमा थी, जहां से अंजलि निकल कर भागी थी. एक पल को तो उसे लगा कि भीड़ को सब बता दे, पर वह चुप रहा.

सामने अंजलि अपने दरवाजे पर खड़ी मिल गई. शायद वह भी बाहर हो रही घटनाओं के संबंध में नजरें जमाई थी.

मनीष ने उसे धमकाते हुए कहा, ‘‘मैं ने सबकुछ देख लिया है. मैं चाहूं तो तुम सलाखों के पीछे चली जाओगी.’’

अंजलि ने हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘अपना मुंह बंद रखना. मैं तुम्हारी अहसानमंद रहूंगी.’’

‘‘ठीक है. आज शाम 7 बजे झाड़ी के पीछे वाली जगह पर मिलना. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

‘‘अच्छा, लेकिन अभी जाओ और घटना पर नजर रखना.’’

मनीष वहां से चल दिया. घटनास्थल पर भीड़ इकट्ठा हो गई थी. कुछ देर बाद पुलिस भी आ गई थी. पुलिस ने हत्या के बारे में थोड़ीबहुत जानकारी ले कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया था. मनीष अपने घर लौट आया था.

मनीष अंदर से बहुत खुश था कि आज उस की मनोकामना पूरी होगी. फिर हत्या कैसे और क्यों की गई है,  इस का राज भी वह जान पाएगा. उस के मन में बेचैनी बढ़ती जा रही थी. आज काम में बिलकुल भी मन नहीं लग रहा था, इसलिए समय बिताने के लिए वह अपने कमरे में चला गया था.

मनीष तय समय पर घर से निकल गया था. जाड़े का मौसम होने के चलते अंधेरा पहले ही हो गया था.

मनीष तय जगह पर पहुंच चुका था, तभी उस की ओर एक परछाईं आती हुई नजर आई. मनीष थोड़ा सा डर गया था. परछाईं जैसेजैसे उस की ओर बढ़ रही थी, उस के मन से डर भी खत्म हो रहा था, क्योंकि वह कोई और नहीं बल्कि अंजलि थी.

अंजलि के आते ही मनीष ने उस के दोनों हाथों को अपने हाथों में थाम लिया था. कुछ पल के बाद उसे अपने आगोश में भरते हुए उस ने पूछा, ‘‘अंजलि, तुम ने जितेंद्र की हत्या क्यों की?’’

‘‘उस की हत्या मैं ने नहीं की है, उस ने मेरे साथ सिर्फ शारीरिक संबंध बनाए थे, जो तुम देख चुके हो.’’

‘‘हां, लेकिन हत्या किस ने की?’’

‘‘शायद मेरे जाने के बाद किसी ने हत्या कर दी हो. यही तो मुझे भी समझ में नहीं आ रहा है… और इसीलिए मैं डर रही थी और तुम्हारी बात मानने के लिए राजी हो गई,’’ अंजलि अपनी सफाई देते हुए बोली थी.

‘‘क्या उस की किसी से दुश्मनी रही होगी?’’ मनीष ने सवाल किया.

‘‘मुझे नहीं पता… अब तुम पता करो.’’

‘‘ठीक है, मैं पता करता हूं.’’

‘‘मुझे तो डर लग रहा है, कहीं मैं इस हत्या में फंस न जाऊं.’’

‘‘मेरी रानी, डरने की कोई बात नहीं है, मैं तुम्हारे साथ हूं. मैं तुम्हारी मदद करूंगा. बस, तुम मेरी जरूरतें पूरी करती रहो,’’ मनीष के हाथ उस की पीठ से फिसल कर उस के कोमल अंगों को छूने लगे थे.

थोड़ी सी नानुकुर के बाद जब मनीष का जोश ठंडा हुआ, तो उस ने अंजलि को अपनी पकड़ से आजाद कर दिया.

मनीष अगले सप्ताह रविवार को मिलने के लिए अंजलि से वादा किया था. अंजलि राजी हो गई थी. इधर अंजलि के मन का बोझ थोड़ा शांत हुआ कि वह मनीष को समझाने में कामयाब रही. मनीष को मुझ पर शक नहीं हुआ है. वह हत्यारे के बारे में पता करने में मदद करेगा.

अब अंजलि और मनीष के मिलने का सिलसिला जारी हो चुका था. मनीष एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाता था. अभी उस की शादी नहीं हुई थी. अंजलि महसूस कर रही थी कि मनीष दिल का बुरा नहीं है. उस की सिर्फ एक ही कमजोरी है. वह हुस्न का दीवाना है. कई बार अंजलि महसूस कर चुकी है कि आतेजाते मनीष उसे देखने की कोशिश करता था, लेकिन वह जानबूझकर शरीफ होने का नाटक करता था. इसीलिए औरों की तरह वह मेरा पीछा नहीं कर पाया था.

जितेंद्र की हत्या की जांच कई बार की गई, लेकिन यह पता नहीं चल पाया कि उस की हत्या किस ने की. पुलिस द्वारा जहरीली शराब पीने से मौत की पुष्टि कर तकरीबन उस की फाइल बंद कर दी गई थी. अब अंजलि भी समझ चुकी थी कि पुलिस की ओर से कोई डर नहीं है.

जितेंद्र की हत्या के बारे में गांव के लोगों की ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी. इस के पीछे वजह यह थी कि वह लोगों की नजरों में अच्छा इनसान नहीं था. वह शराब तो पीता ही था, औरतों व लड़कियों को भी छेड़ता रहता था. बहुत से लोग उस के मरने पर खुश भी थे.

अंजलि तकरीबन एक साल से मनीष से मिल रही थी. कई बार मनीष उसे उपहार भी देता था. अब तो अंजलि का भी मनीष के बगैर मन नहीं लगता था.

एक दिन मनीष अंजलि को अपने गोद में ले कर उस के बालों से खेल रहा था. उस ने अपनी इच्छा जाहिर की, ‘‘क्यों न हम दोनों शादी कर लें? कब तक यों ही हम छिपछिप कर मिलते रहेंगे?’’

इस पर अंजलि बोली, ‘‘मुझे कोई एतराज नहीं है, पर मुझे अपनी मां से पूछना होगा.’’

‘‘तुम अपनी मां को जल्दी से राजी करो.’’

‘‘मां तो राजी हो जाएंगी, लेकिन यह बात मैं राज नहीं रखना चाहती हूं.’’

‘‘कौन सी बात?’’

‘‘यही कि जितेंद्र की हत्या किस ने की थी.’’

‘‘किस ने की थी?’’

‘‘मैं ने…’’

‘‘कैसे और क्यों?’’

‘‘3 साल पहले की बात है. मेरी एक बहन रिया भी थी. घर में मां और मेरी बहन समेत हम सभी काफी खुश थे. पिताजी के नहीं होने के चलते मेरी छोटी बहन रिया मौल में काम कर के अच्छा पैसा कमा लेती थी. उसी के पैसों से हमारा घर चल रहा था.

‘‘जब भी मेरी बहन घर से निकलती थी, जितेंद्र अपनी मोटरसाइकिल से उस का पीछा करता था. मना करने के बाद भी वह नहीं मानता था.

‘‘मेरी बहन रिया उस से प्यार करने लगी थी. जितेंद्र ने मेरी बहन से कई बार शारीरिक संबंध बनाए. बहन को विश्वास था कि जितेंद्र उस से शादी जरूर करेगा.

‘‘लेकिन, जितेंद्र धोखेबाज निकला. मेरी बहन रिया को जितेंद्र के बारे में पता चला कि वह कई लड़कियों की जिंदगी बरबाद कर चुका है. मेरी बहन पेट से हो गई थी. 5 महीने तक मेरी बहन शादी के लिए इंतजार करती रही. जितेंद्र केवल झांसा देता रहा.

‘‘आखिरकार जितेंद्र ने शादी करने से इनकार कर दिया था. उस का मेरी बहन से झगड़ा भी हुआ था.

‘‘मेरी बहन परेशान रहने लगी थी. उस ने मुझे सबकुछ बता दिया था. मैं बहन को ले कर अस्पताल गई थी. वहां मैं ने उस का बच्चा गिरवाया, पर वह कोमा में चली गई थी. उस का बच्चा तो मरा ही, मेरी बहन भी दुनिया छोड़ कर चली गई. उसी दिन मैं ने कसम खाई थी कि जितेंद्र का अंत मैं ही करूंगी.

‘‘इस बार मैं ने गोरा को फंसाया था. मैं भी उस से प्यार का खेल खेलती रही. उस ने कई बार मुझे हवस का शिकार बनाना चाहा, लेकिन मैं उस से अपनेआप को बचाती रही.

‘‘उस दिन जितेंद्र ने मुझे अपने गुसलखाने में बुलाया था. मैं सोच कर गई थी कि आज रात काम तमाम कर के आना है. मैं ने उस की शराब में जहर मिला दिया.

‘‘मैं उस की मौत को नजदीक से महसूस करना चाहती थी, इसलिए उस की हत्या करने के बाद मैं भी उस के साथ रातभर रही. वह तड़पतड़प कर मेरे सामने ही मरा था.

‘‘सुबह मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं. जानबूझ कर उस के शरीर से मैं लिपटी हुई थी, ताकि कोई देखे तो गोरा को जिंदा समझे. पकड़े जाने पर पुलिस को गुमराह किया जा सके. हत्या के बारे में शक किसी और पर हो. यही हुआ भी. तुम ने मुझे बेकुसूर समझा.

‘‘मैं शादी करने से पहले सबकुछ तुम्हें बता देना चाहती हूं, ताकि भविष्य में पता चलने पर तुम मुझे गलत न समझ सको. मैं ने अपनी बहन रिया की मौत का बदला ले लिया, इसलिए मुझे इस बात का कोई अफसोस नहीं है.’’

मनीष यह सुन कर हक्काबक्का था. उस के मन में थोड़ा डर भी हुआ, लेकिन जल्द ही अपनेआप को संभालते हुए बोला, ‘‘तुम ने ठीक ही किया. तुम ने उस को उचित सजा दी है. तुम्हारे ऊपर किसी तरह का इलजाम लगता भी तो मैं अपने ऊपर ले लेता, क्योंकि मैं अब तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

अंजलि ने मनीष को अपनी बांहों में ले कर चूम लिया था. वह अपनेआप पर गर्व कर रही थी कि उस ने गलत इनसान को नहीं चुना है. फिर वह सुखद भविष्य के सपने देखने लगी थी. उन दोनों ने जल्दी ही शादी कर ली. अंजलि अब मनीष को अपना राजदार समझती थी.

 

वसूली : क्या हुआ था रधिया के साथ

Manoj Kumar Jha

रधिया का पति बिकाऊ एक बड़े शहर में दिहाड़ी मजदूर था. रधिया पहले गांव में ही रहती थी, पर कुछ महीने पहले बिकाऊ उसे शहर में ले आया था. वे दोनों एक झुग्गी बस्ती में किराए की कोठरी ले कर रहते थे.

रधिया को खाना बनाने से ले कर हर काम उसी कोठरी में ही करना पड़ता था. सुबहशाम निबटने के लिए उसे बोतल ले कर सड़क के किनारे जाना पड़ता था. उसे शुरू में खुले में नहाने में बड़ी शर्म आती थी. पता नहीं कौन देख ले, पर धीरेधीरे वह इस की आदी हो गई.

बिकाऊ 2 रोटी खा कर और 4-6 टिफिन में ले कर सुबह 7 बजे निकलता, तो फिर रात के 9 बजे से पहले नहीं आता था. उस की 12 घंटे की ड्यूटी थी.

जब बिकाऊ को महीने की तनख्वाह मिलती, तो रधिया बिना बताए ही समझ जाती थी, क्योंकि उस दिन वह दारू पी कर आता था. रधिया के लिए वह दोने में जलेबी लाता और रात को उस का कचूमर निकाल देता.

बिकाऊ रधिया से बहुत प्यार करता था, पर उस की तनख्वाह ही इतनी कम थी कि वह रधिया के लिए कभी साड़ी या कोई दूसरी चीज नहीं ला पाता था.

एक दिन दोपहर में रधिया अपनी कोठरी में लेटी थी कि दरवाजे पर कुछ आहट हुई. वह बाहर निकली, तो सामने एक जवान औरत को देखा.

उस औरत ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मेरा नाम मालती है. मैं बगल की झुग्गी में ही रहती हूं. तुम जब से आई हो, कभी तुम्हें बाहर निकलते नहीं देखा. मर्द तो काम पर चले जाते हैं. बाहर निकलोगी, तभी तो जानपहचान बढ़ेगी. अकेले पड़ेपड़े तो तुम परेशान हो जाओगी. चलो, मेरे कमरे पर, वहां चल कर बातें करते हैं.’’

रधिया ने कहा, ‘‘मैं यहां नई आई हूं. किसी को जानती तक नहीं.’’

‘‘अरे, कोठरी से निकलोगी, तब तो किसी को जानोगी.’’

रधिया ने अपनी कोठरी में ताला लगाया और मालती के साथ चल पड़ी.

जब वह मालती की झुग्गी में घुसी, तो दंग रह गई. उस की झुग्गी में

2 कोठरी थी. रंगीन टैलीविजन, फ्रिज, जिस में से पानी निकाल कर उस ने रधिया को पिलाया.

रधिया ने कभी फ्रिज नहीं देखा था, न ही उस के बारे में सुना था.

रधिया ने पूछा, ‘‘बहन, यह कैसी अलमारी है?’’

इस पर मालती मन ही मन मुसकरा दी. उस ने कहा, ‘‘यह अलमारी नहीं, फ्रिज है. इस में रखने पर खानेपीने की कोई चीज हफ्तों तक खराब नहीं होती. पानी ठंडा रहता है. बर्फ जमा सकते हैं. पिछले महीने ही तो पूरे 10 हजार रुपए में लिया है.’’

रधिया ने हैरानी से पूछा, ‘‘बहन, तुम्हारे आदमी क्या काम करते हैं?’’

मालती ने कहा, ‘‘वही जो तुम्हारे आदमी करते हैं. बगल वाली कैमिकल फैक्टरी में मजदूर हैं. पर उन की कमाई से यह सब नहीं है. मैं भी तो काम करती हूं. यहां रहने वाली ज्यादातर औरतें काम करती हैं, नहीं तो घर नहीं चले.

‘‘बहन, मैं तो कहती हूं कि तुम भी कहीं काम पकड़ लो. काम करोगी, तो मन भी बहला रहेगा और हाथ में दो पैसे भी आएंगे.’’

‘‘पर मुझे क्या काम मिलेगा? मैं तो अनपढ़ हूं.’’

‘‘तो मैं कौन सी पढ़ीलिखी हूं. किसी तरह दस्तखत कर लेती हूं. यहां अनपढ़ों के लिए भी काम की कमी नहीं है. तुम चौकाबरतन तो कर सकती हो? कपड़े तो साफ कर सकती हो? चायनाश्ता तो बना सकती हो? ऐसे काम कोठियों में खूब मिलते हैं और पैसे भी अच्छे मिलते हैं. नाश्ताचाय तो हर रोज मिलता ही है, त्योहारों पर नए कपड़े और दीवाली पर गिफ्ट.’’

‘‘आज मैं अपनी कमाई में से ही 2 बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रही हूं. इन की कमाई तो झुग्गी के किराए, राशन और दारू में ही खर्च हो जाती है.’’

‘‘क्या मुझे काम मिलेगा?’’ रधिया ने जल्दी से पूछा.

‘‘करना चाहोगी, तो कल से ही काम मिलेगा. जहां मैं काम करती हूं, उस के बगल में रहने वाली कोठी की मालकिन कामवाली के बारे में पूछ रही थीं. वे एक बड़े स्कूल में पढ़ाती हैं. उन के मर्द वकील हैं. 2 बच्चे हैं, जो मां के साथ ही स्कूल जाते हैं.

‘‘मैं आज शाम को ही पूछ लूंगी और पैसे की बात भी कर लूंगी. मालिकमालकिन अगर तुम्हारे काम से खुश हुए, तो तनख्वाह के अलावा ऊपरी कमाई भी हो जाती है.’’

इस बीच मालती ने प्लेट में बिसकुट और नमकीन सजा कर उस के सामने रख दिए. गैस पर चाय चढ़ा रखी थी.

चाय पीने के बाद मालती ने रधिया से कहा कि वह चाहे, तो अभी उस के साथ चली चले. मैडम 2 बजे घर आ जाती हैं. आज ही बात पक्की कर ले और कल से काम पर लग जा.

मालती ने यह भी बताया कि हर काम के अलग से पैसे मिलते हैं. अगर सफाई करानी हो, तो उस के 3 सौ रुपए. कपड़े भी धुलवाने हों, तो उस के अलग से 3 सौ रुपए. अगर सारे काम कराने हों, तो कम से कम 2 हजार रुपए.

मालती कपड़े बदलने लगी. उस ने रधिया से कहा, ‘‘चल, तू भी कपड़े बदल ले. पैसे की बात मैं करूंगी. चायनाश्ता तो बनाना जानती होगी?’’

‘‘हां दीदी, मैं सब जानती हूं. मीटमछली भी बना लेती हूं,’’ रधिया ने कहा. उस का दिल बल्लियों उछल रहा था. अगर वह महीने में 2 हजार रुपए कमाएगी, तो उस की सारी परेशानी दूर हो जाएंगी.

रधिया तेजी से अपनी झुग्गी में आई. नई साड़ी पहनी और नया ब्लाउज भी. पैरों में वही प्लास्टिक की लाल चप्पल थी. उस ने आंखों में काजल लगाया और मालती के साथ चल पड़ी.

रधिया थी तो सांवली, पर जोबन उस का गदराया हुआ था और नैननक्श बड़े तीखे थे. गांव में न जाने कितने मर्द उस पर मरते थे, पर उस ने किसी को हाथ नहीं लगाने दिया. इस मामले में वह बड़ी पक्की थी.

रास्ते में मालती ने कहा, ‘‘बहन, अगर तुम्हारा काम बन गया, तो मैं महीने की पहली पगार का आधा हिस्सा लूंगी. यहां यही रिवाज है.’’

मालती एक कोठी के आगे रुकी. उस ने घंटी बजाई, तो मालकिन ने दरवाजा खोला.

मालती ने उन्हें नमस्ते किया. रधिया ने भी हाथ जोड़ कर नमस्ते किया. मालती 2 साल पहले उन के घर भी काम कर चुकी थी.

गेट खोल कर अंदर जाते ही मालती ने कहा, ‘‘मैडमजी, मैं आप के लिए बाई ले कर आई हूं.’’

‘‘अच्छा, बाई तो बड़ी खूबसूरत है. पहले कहीं काम किया है?’’ मैडम ने रधिया से पूछा.

मालती ने जवाब दिया, ‘‘अभी गांव से आई है, पर हर काम जानती है. मीटमछली तो ऐसी बनाती है कि खाओ तो उंगलियां चाटती रह जाओ. मेरे इलाके की ही है, इसीलिए मैं आप के पास ले कर आई हूं. अब आप बताओ कि कितने काम कराने हैं?’’

मैडम ने कहा, ‘‘देख मालती, काम तो सारे ही कराने हैं. सुबह का नाश्ता और दिन में लंच तैयार करना होगा. रात का डिनर मैं खुद तैयार कर लूंगी. कपड़े धोने ही पड़ेंगे, साफसफाई, बरतनपोंछा… यही सारे काम हैं. सुबह जल्दी आना होगा. मैं साढ़े 7 बजे तक घर से निकल जाती हूं.’’

इस के बाद मैडम ने मोलभाव किया और पूछा, ‘‘कल से काम करोगी?’’

‘‘मैं कल से ही आ जाऊंगी. जब काम करना ही है, तो कल क्या और परसों क्या?’’ रधिया ने कहा.

रात में जब बिकाऊ घर लौटा, तो रधिया ने उसे सारी रामकहानी सुनाई.

बिकाऊ ने कहा, ‘‘यह तो ठीक है कि तू काम पर जाएगी, पर कोठियों में रहने वाले लोग बड़े घटिया होते हैं. कामवालियों पर बुरी नजर रखते हैं. यह मालती बड़ी खेलीखाई औरत है. जिन कोठियों में काम करती है, वहां मर्दों को फांस कर वह खूब पैसे ऐंठती है. ऐसे ही नहीं, इस के पास फ्रिज और महंगीमहंगी चीजें हैं.’’

इस पर रधिया ने कहा, ‘‘मुझ पर कोई हाथ ऐसे ही नहीं लगा सकता. गांव में भी मेरे पीछे कुछ छिछोरे लगे थे, पर मैं ने किसी को घास नहीं डाली.

‘‘एक दिन दोपहर में मैं कुएं से पानी भरने गई थी. जेठ की दोपहरी, रास्ता एकदम सुनसान था. तभी न जाने कहां से बाबू साहब का बड़ा लड़का आ टपका और अचानक उस ने मेरा हाथ पकड़ लिया. मैं ने उसे ऐसा धक्का दिया कि कुएं में गिरतेगिरते बचा और फिर भाग ही खड़ा हुआ.

‘‘मैं दबने वाली नहीं हूं. पर मैं ने बात कर ली है. दुनिया में बुरेभले हर तरह के लोग हैं.’’

बिकाऊ ने कहा, ‘‘तू जैसा ठीक समझ. मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है.’’

दूसरे दिन रधिया सुबह जल्दी उठी और मालती को साथ ले कर 6 बजे तक कोठी पर पहुंच गई. मालकिन ने उसे सारा काम समझाया.

रधिया ने जल्दी से पोंछा लगा दिया, गैस जला कर चाय भी बना दी.

‘‘तू भी समय से नाश्ता कर लेना. चाहो तो बाथरूम में नहा भी सकती हो. साहब निकल जाएं, तो कुछ कपड़े हैं, उन्हें धो लेना.’’

थोड़ी देर में रधिया साहब के लिए चाय बनाने चली गई. ‘ठक’ की आवाज कर वह कमरे में आ गई और बैड के पास रखी छोटी मेज पर टे्र को रख दिया.

साहब ने रधिया को गौर से देखा और कहा, ‘‘देखना, बाहर अखबार डाल गया होगा. जरा लेती आना.’’

रधिया बाहर से अखबार ले कर आ गई और साहब की तरफ बढ़ा दिया. इसी बीच साहब ने 5 सौ का एक नोट उस की तरफ बढ़ाया.

रधिया ने कहा, ‘‘यह क्या?’’

‘‘यह रख ले. मालती ने तुझ से 5 सौ रुपए ले लिए होंगे. पहले वह यहां काम कर चुकी है.

‘‘तुम ये 5 सौ रुपए ले लो, पर मैडम से मत कहना. तनख्वाह मिलने पर मैं अलग से 5 सौ तुझे फिर दे दूंगा. यह मुआवजा समझना.’’

लेकिन रधिया ने अपना हाथ नहीं बढ़ाया. इस पर साहब ने उसे 5 सौ के

2 नोट लेने को कहा.

रधिया ने साहब के बारबार कहने पर पैसे ले लिए और कपड़े धोने में लग गई. कपड़े धो कर जब तक उन्हें छत पर सुखाने डाला, तब तक साहब नहाधो कर तैयार थे. उस ने उन के नाश्ते के लिए आमलेट और ब्रैड तैयार किया, फिर चाय बनाई.

नाश्ता करने के बाद साहब बोले, ‘‘तू ने तो अच्छा नाश्ता तैयार किया. पर नाश्ते से ज्यादा तू अच्छी लगी.’’

चाय देते समय उस ने जानबूझ कर ब्लाउज का बटन ढीला कर दिया और ओढ़नी किनारे रख दी.

‘‘अब मैं चलता हूं. किसी चीज की जरूरत हो, तो मुझ से कहना. संकोच करने की जरूरत नहीं है.’’

साहब ने उसे टैलीविजन खोलना और बंद कर के दिखाया और अपना बैग रधिया को पकड़ा दिया.

बैग ले कर रधिया उन के पीछेपीछे कार तक गई. साहब ने उस के हाथों से बैग लिया. न जाने कैसे साहब की उंगलियां उस के हाथों से छू गईं.

रधिया भी 2 सैकंड के लिए रोमांचित हो उठी.

साहब के जाने के बाद रधिया ने गेट बंद किया. फिर वह कोठी के अंदर आई और दरवाजा बंद कर लिया.

वह नहाने के लिए बाथरूम में गई. ऐसा बाथरूम उस ने अपनी जिंदगी में पहली बार देखा था. तरहतरह के साबुन, तेल की शीशियां और शैंपू की शीशी, आदमकद आईना.

रधिया को लगा कि वह किसी दूसरी दुनिया में आ गई है. कपड़े उतार कर पहली बार जब से वह गांव से आई थी, उस ने जम कर साबुन लगा कर नहाया और फिर बाथरूम में टंगे तौलिए से देह पोंछ कर मैडम का दिया पुराना सूट पहन कर अपनेआप को आदमकद आईने में निहारा. उसे लगा कि वह रधिया नहीं, कोई और ही औरत है.

अपने कपड़े धो कर रधिया उन्हें भी छत पर डाल आई. फिर बचे हुए परांठे खा लिए. थोड़ी चाय बच गई थी. उसे गरम कर पी लिया, नहीं तो बरबाद ही होती.

धीरेधीरे रधिया ने उस घर के सारे तौरतरीके सीख लिए. वह सारा काम जल्दीजल्दी निबटा देती और किसी को शिकायत का मौका नहीं देती. मैडम उस के काम से काफी खुश थीं. एक महीना कब बीत गया, उसे पता ही नहीं चला. महीना पूरा होते ही मैडम ने उसे बकाया पगार दे दी.

उस दिन वह काफी खुश थी. शाम तक जब वह अपनी झुग्गी में लौटी, तो उस ने सब से पहले एक हजार रुपए जा कर मालती को दे दिए.

मालती ने उसे चाय पिलाई और हालचाल पूछा. उस ने इशारों में ही पूछा कि साहब से कोई दिक्कत तो नहीं.

रधिया ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है.’’

मालती ने कहा, ‘‘अगर तू चाहे, तो शाम को किसी और घर में लग जा. और कुछ नहीं, तो हजार रुपए वहां से भी मिल जाएंगे.’’

इस पर रधिया ने कहा, ‘‘सोचूंगी… अपने घर का भी तो काम है.’’

साहब तो अपनी चाय उसी से लेते. जब मैडम आसपास न हों, तो उसे ही देखते रहते और रधिया मजे लेती रहती.

रधिया समझ गई थी कि मालिक की निगाह उस की जवानी पर है. वे उसे पैसे देते, तो वह पहले लेने से मना करती, पर वे जबरन उसे दे ही डालते और कहते, ‘‘देख रधिया, अपने पास पैसों की कमी नहीं है. फिर हजार रुपए की आज कीमत ही क्या है? तेरे काम ने मेरा दिल जीत लिया है. कई औरतों ने इस घर में काम किया, पर तेरी सुघड़ता उन में नहीं थी.’’

रधिया चुप रह जाती. साहब कुछ हाथ मारना चाहते थे, पर समझ ही नहीं आता था.

एक दिन मैडम ने उस से कहा, ‘‘रधिया, हमारे स्कूल से टूर जा रहा है. मैं भी जा रही हूं और बच्चे भी, घर में सिर्फ साहब रहेंगे. हमें टूर से लौटने में 10 दिन लगेंगे.

‘‘आनेजाने के टाइम का तुम समझ लेना. साहब को कोई दिक्कत न हो.

‘‘पहले आमलेट बना दे… और तू ऐसा करना, लंच के साथ डिनर भी तैयार कर फ्रिज में रख देना. साहब रात में गरम कर के खा लेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ रधिया ने कहा और अपने काम में लग गई.

मैडम की गए 10वां दिन था. रधिया जब ठीक समय पर चाय और पानी का गिलास ले कर साहब के कमरे में पहुंची, तो उन्होंने कहा, ‘‘आज कोर्ट नहीं जाना है. वकीलों ने हड़ताल कर दी है. फ्रिज में एक बोतल पड़ी होगी, वह ले आ. मैं थोड़ी ब्रांडी लूंगा, मुझे ठंड लग गई है.’’

रधिया रसोई में आमलेट बनाने चली गई. आमलेट बना कर उसे प्लेट में रख कर वह साहब के कमरे में गई, तो वे वहां नहीं थे. उस ने सोचा कि शायद बाथरूम गए होंगे. साहब तब तक वहां आ गए थे.

‘‘वाह रधिया, वाह, तू ने तो फटाफट काम कर दिया. तू बड़ी अच्छी है. आ चाय पी.

‘‘ये ले हजार रुपए. मनपसंद साड़ी खरीद लेना.’’

‘‘किस बात के पैसे साहब? पगार तो मैं लेती ही हूं,’’ रधिया ने कहा.

‘‘अरे, लेले. पैसे बड़े काम आते हैं. मना मत कर,’’ कहतेकहते साहब ने उस का हाथ पकड़ लिया और पैसे उस के ब्लाउज में डाल दिए.

रधिया पीछे हटी. तब तक साहब ने उस के ब्लाउज में हाथ डाल दिया था और उस के ब्लाउज के बटन टूट गए थे.

रधिया ने एक जोर का धक्का दिया. साहब बिस्तर पर गिर पड़े. इस बीच रधिया भी उन पर गिर गई.

रधिया ने एक जोरदार चुम्मा गाल पर लगाया और बोली, ‘‘साहब, 5 हजार और दो. देखो, मैडम बच्चों के साथ चली आ रही हैं.’’

साहब ने कहा, ‘‘रधिया, तू जल्दी यहां से निकल,’’ और अपना पूरा पर्स उसे पकड़ा दिया.

 

हवस का नतीजा : राज ने भाभी के साथ क्या किया

मुग्धा का बदन बुखार से तप रहा था. ऊपर से रसोई की जिम्मेदारी. किसी तरह सब्जी चलाए जा रही थी तभी उस का देवर राज वहां पानी पीने आया. उस ने मुग्धा के हावभाव देखे तो उस के माथे पर हाथ रखा और बोला, ‘‘भाभी, आप को तो तेज बुखार है.’’

‘‘हां…’’ मुग्धा ने कमजोर आवाज में कहा, ‘‘सुबह कुछ नहीं था. दोपहर से अचानक…’’

‘‘भैया को बताया?’’

‘‘नहीं, वे तो परसों आने ही वाले हैं वैसे भी… बेकार परेशान होंगे. आज तो रात हो ही गई… बस कल की बात है.’’

‘‘अरे, लेकिन…’’ राज की फिक्र कम नहीं हुई थी. मगर मुग्धा ने उसे दिलासा देते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं. मामूली बुखार ही तो है. तुम जा कर पढ़ाई करो, खाना बनते ही बुला लूंगी.’’

‘‘खाना बनते ही बुला लूंगी…’’ मुग्धा की नकल उतार कर चिढ़ाते हुए राज ने उस के हाथ से बेलन छीना और बोला, ‘‘लाइए, मैं बना देता हूं. आप जा कर आराम कीजिए.’’

‘‘न… न… लेट गई तो मैं और बीमार हो जाऊंगी,’’ मुग्धा बैठने वालियों में से नहीं थी. वह बोली, ‘‘हम दोनों मिल कर बना लेते हैं,’’ और वे दोनों मिल कर खाना बनाने लगे.

मुग्धा का पति विनय कंपनी के किसी काम से 3 दिनों के लिए बाहर गया हुआ था. वह कर्मचारी तो कोई बहुत बड़ा नहीं था, लेकिन बौस का भरोसेमंद था. सो, किसी भी काम के लिए वे उसे ही भेजते थे.

मुग्धा का 21 साल का देवर राज प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. विनय जैसा प्यार करने वाला पति पा कर मुग्धा भी खुश रहती थी. कुछ पति की तनख्वाह और कुछ वह खुद जो निजी स्कूल में पढ़ाती, दोनों से मिला कर घर का खर्च अच्छे से निकल आता. सासससुर गांव में रहते थे. देवर राज अपनी पढ़ाई के चलते उन के साथ ही रहता था.

जिंदगी में कमी थी तो बस यही कि खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के 10 सालों के बाद भी उन के कोई औलाद नहीं थी. अब मुग्धा 35 साल की हो चुकी थी. अपनी हमउम्र बाकी टीचरों को उन के बच्चों के साथ देखती तो न चाहते हुए भी उसे रोना आ ही जाता. वह अपनी डायरी के पन्ने इसी पीड़ा से रंगती जाती.

रोटियां बन चुकी थीं. राज ने उसे कुरसी पर बैठने को बोला और सामान समेटने लगा. मुग्धा ने सिर पीछे की ओर टिकाया और आंखें बंद कर लीं. वातावरण एकदम शांत था. तभी वहां वही तूफान फिर से गरजने लगा जिस का शोर मुग्धा आज तक नहीं भांप पाई थी.

राज की गरदन धीरे से मुग्धा की ओर घूम चुकी थी. वह कनखियों से मुग्धा की फिटिंग वाली समीज में कैद उस के उभारों को देखने लगा था. मुग्धा की सांसों के साथ जैसेजैसे वे ऊपरनीचे होते, वैसेवैसे राज के अंदर का शैतान जागता जाता.

‘‘हो गया सब काम…?’’ बरतनों की आवाज बंद जान कर मुग्धा ने अचानक पूछते हुए अपनी आंखें खोल दीं.

राज हकबका गया और बोला, ‘‘हां भाभी, बस हो ही गया…’’ कह कर राज ने जल्दीजल्दी बाकी काम निबटाया और खाने की चीजों को उठा कर मेज पर ले गया.

मुग्धा ने मुश्किल से 2 रोटियां खाईं, वह भी राज की जिद पर. वह जबरदस्ती सब्जी उस की प्लेट में डाल दे रहा था. खाने के बाद मुग्धा सोने जाने लगी तो राज बोला, ‘‘भाभी, 15 मिनट के लिए आगे वाले कमरे में बैठिए न… मैं आप के लिए दवा ले आता हूं.’’

‘‘अरे नहीं, रातभर में उतर जाएगा…’’ मुग्धा ने मना किया लेकिन राज कहां मानने वाला था.

‘‘मैं पास वाले कैमिस्ट से ही दवा ले कर आ रहा हूं भाभी… जहां से आप मंगाती हैं हमेशा… दरवाजा बंद कर लीजिए… मैं अभी आया…’’ कहता हुआ वह निकल गया.

मुग्धा ने दरवाजा बंद किया और सोफे पर पैर ऊपर कर के बैठ गई.

राज ने तय कर लिया था कि आज तो वह अपने मन की कर के ही रहेगा. इस बीच कैमिस्ट की दुकान आ गई.

‘‘क्या बात है राज बाबू?’’ कैमिस्ट ने राज को खोया सा देखा तो पूछा. राज का ध्यान वापस दुकान पर आया.

‘‘दवा चाहिए थी,’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘अबे तो यहां क्या मिठाई मिलती है?’’ कैमिस्ट उसे छेड़ते हुए बोला. वह उस का पुराना दोस्त था.

राज मुसकरा उठा और कहा, ‘‘अरे, जल्दी दे न…’’

‘‘जल्दी दे न…’’ बड़बड़ाते हुए कैमिस्ट ने हैरत से उस की ओर देखा, ‘‘कौन सी दवा चाहिए, यह तो बता?’’

राज को याद आया कि उस ने तो सचमुच कोई दवा मांगी ही नहीं है. उस ने ऐसे ही बोल दिया, ‘‘भाभी की तबीयत ठीक नहीं है. उन्हें बुखार है. जरा नींद की गोली देना.’’

‘नींद की गोली बुखार के लिए…’ सोचते हुए कैमिस्ट ने उसे देखा. वह खुद भी मुग्धा के हुस्न का दीवाना था. हमेशा उस के बारे में चटकारे लेले कर बातें किया करता था. उस ने राज के मन की बात ताड़ ली. ऐसी बातों का उसे बहुत अनुभव जो था. उस ने नींद की गोली के साथ बुखार की भी दवा दे दी.

राज ने लिफाफा जेब में रखा और तेजी से वापस चलने को हुआ कि तभी कैमिस्ट चिल्लाया, ‘‘अरे भाई, खुराक तो सुन ले.’’

राज को अपनी गलती का अहसास हुआ. वह काउंटर पर आया. कैमिस्ट ने उसे डोज बताई और आंख मारते हुए बोला, ‘‘यह नींद वाली एक से ज्यादा मत देना… टाइट चीज है…’’

‘‘अबे, क्या बकवास कर रहा है,’’ राज के मन का डर उस की जबान से बोल पड़ा. उस की तो चोर की दाढ़ी में तिनका वाली हालत हो गई. वह जाने लगा.

कैमिस्ट पीछे से कह रहा था, ‘‘अगली बार हम को भी याद रखना दोस्त…’’

राज उस को अनसुना करता हुआ आगे बढ़ गया. घर लौटने पर डोर बैल बजाते ही मुग्धा ने दरवाजा खोल दिया और बोली, ‘‘यहीं बैठी थी लगातार…’’

‘‘जी भाभी, आइए अंदर चलिए…’’ राज ने अपने माथे से पसीना पोंछते हुए कहा.

मुग्धा अपने कमरे में आ कर लेट गई. राज ने उसे पहले बुखार की दवा दी. मुग्धा दवा ले कर सोने के लिए लेटने लगी तो राज ने उसे रोका, ‘‘भाभी, अभी एक दवा बाकी है…’’

‘‘कितनी सारी ले आए भैया?’’ मुग्धा ने थकी आवाज में बोला और बाम ले कर माथे पर लगाने लगी.

‘‘भाभी दीजिए, मैं लगा देता हूं,’’ कह कर राज ने उस से बाम की डब्बी ले ली और उस के माथे पर मलने लगा. थोड़ी देर बाद उस ने मुग्धा को नींद वाली गोली भी खिला दी और लिटा दिया.

राज उस का माथा दबाता रहा. थोड़ी देर बाद उस ने पुष्टि करने के लिए मुग्धा को आवाज दी. ‘‘भाभी सो गईं क्या?’’

कोई जवाब नहीं मिला. राज ने उस के चेहरे को हिलाडुला कर भी देख लिया. कोई प्रतिक्रिया न पा कर वह समझ गया कि रास्ता साफ हो चुका है.

राज की कनपटियों में खून तेजी से दौड़ने लगा. वह बत्ती जलती ही छोड़ मुग्धा के ऊपर आ गया. मर्यादा के आवरण प्याज के छिलकों की तरह उतरते चले गए. कमरे में आए भूचाल से मेज पर रखी विनयमुग्धा की तसवीर गिर कर टूट गई.

सबकुछ शांत होने पर राज थक कर चूरचूर हो कर मुग्धा के बगल में लेट गया.

‘‘बस अब बुखार उतर जाएगा भाभीजी… इतना पसीना जो निकलवा दिया मैं ने आप का,’’ राज बेशर्मी से बड़बड़ाया और मुग्धा की कुछ तसवीरें खींचने के बाद उसे कपड़े पहना दिए.

मुग्धा अब तक धीमेधीमे कराह रही थी. राज पलंग से उतरा और खुद भी कपड़े पहनने लगा. तभी उस की नजर आधी खुली दराज पर गई. भूल से मुग्धा अपनी डायरी उसी में छोड़ी हुई थी. राज ने उसे निकाला और कपड़े पहनतेपहनते उस के पन्ने पलटने लगा.

अचानक एक पेज पर जा कर उस की आंखें अटक गईं. वह अभी अपनी कमीज के सारे बटन भी बंद नहीं कर पाया था लेकिन उस को इस बात की परवाह नहीं रही. वह अपलक उस पन्ने में लिखे शब्दों को पढ़ने लगा. उस में मुग्धा ने लिखा था, ‘बस अब बहुत रो लिया, बहुत दुख मना लिया औलाद के लिए. मेरा बेटा मेरे पास था और मैं उसे पहचान ही नहीं पाई. जब से मैं यहां आई, उसे बच्चे के रूप में देखा तो आज अपनी कोख के बच्चे के लिए इतनी चिंता क्यों? मैं बहुत जल्दी राज को कानूनी रूप से गोद लूंगी.’

राज की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. वह सिर पकड़ कर वहीं बैठ गया और जोरजोर से रोने लगा, फिर भाग कर मुग्धा के पैरों को पकड़ कर अपना माथा उस से रगड़ते हुए रोने लगा, ‘‘भाभी, मुझे माफ कर दो… यह क्या हो गया मुझ से.’’

अचानक राज का ध्यान मुग्धा के बिखरे बालों पर गया. उस ने जल्दी से जमीन पर गिरी उस की हेयर क्लिप उठाई और मुग्धा का सिर अपनी गोद में रख कर बालों को संवारने लगा. वह किसी मशीन की तरह सबकुछ कर रहा था. हेयर क्लिप अच्छे से उस के बालों में लगा कर राज उठा और घर से निकल गया.

अगली सुबह तकरीबन 8 बजे मुग्धा की आंखें खुलीं. उस का सिर अभी तक भारी था. घर में भीड़ लग चुकी थी.

एक आदमी ने आखिरकार बोल ही दिया, ‘‘देवरभाभी के रिश्ते पर भरोसा करना ही पागलपन है…’’

मुग्धा के सिर में जैसे करंट लगा. वह सवालिया नजरों से उसे देखने लगी. तभी इलाके के पुलिस इंस्पैक्टर ने प्रवेश किया और बताया, ‘‘आप के देवर राज की लाश पास वाली नदी से मिली है. उस ने रात को खुदकुशी कर ली…’’

मुग्धा का कलेजा मुंह को आने लगा. वह हड़बड़ा कर पलंग से उठी लेकिन लड़खड़ा कर गिर गई.

एक महिला सिपाही ने राज के मोबाइल फोन में कैद मुग्धा की कल रात वाली तसवीरें उसे दिखाईं और कड़क कर पूछा, ‘‘कल रंगरलियां मनातेमनाते ऐसा क्या कह दिया लड़के से तू ने जो उस ने अपनी जान दे दी?’’

तसवीरें देख कर मुग्धा हैरान रह गई. अपनी शारीरिक हालत से उसे ऐसी ही किसी घटना का शक तो हो रहा था लेकिन दिल अब तक मानने को तैयार नहीं था. वह फूटफूट कर रोने लगी.

इंस्पैक्टर ने उस महिला सिपाही को अभी कुछ न पूछने का इशारा किया और बाकी औपचारिकताएं पूरी कर वहां से चला गया. धीरेधीरे औरतों की भीड़ भी छंटती गई.

विनय का फोन आया था कि वह आ रहा है, घबराए नहीं, लेकिन मुग्धा बस सुनती रही. उस की सूनी आंखों के सामने राज का बचपन चल रहा था. जब वह नईनई इस घर में आई थी.

दोपहर तक विनय लौट आया और भागते हुए मुग्धा के पास कमरे में पहुंचा. वह जड़वत अभी भी पलंग पर बैठी शून्य में ताक रही थी. विनय ने उसके कंधे पर हाथ रखा लेकिन मुग्धा का शरीर एक ओर लुढ़क गया.

‘‘मुग्धा… मुग्धा…’’ चीखता हुआ विनय उसे झकझोरे जा रहा था, पर मुग्धा कभी न जागने वाली नींद में सो चुकी थी.

 

अग्निपरीक्षा: क्या कामयाब हो पाया रंजीत

रंजीत 9 बजे कालेज के गेट के नजदीक बैठ जाता. कालेज परिसर में जाने के लिए विद्यार्थियों को पहचान पत्र दिखाना होता है, जो उस के पास नहीं था. जब वह कालेज में पढ़ता ही नहीं है तो उस का पहचान पत्र कैसे बनता? सारा दिन कालेज के आसपास लड़कियों के आगेपीछे घूमता.

रंजीत के 2 चेलेचपाटे भी उस के साथ रहते. रंजीत के मातापिता अमीर थे, जिस कारण उसे मुंह मांगा जेब खर्च मिल जाता था, जिसे वह रोब डालने के लिए अपने मित्रों पर खर्च करता था. कालेज के कुछ लड़केलड़कियां भी मौजमस्ती के लिए उस के दल में शामिल हो गए. बाइक पर सवार हो कर सारा दिन मटरगश्ती करता रंजीत एकदम स्वतंत्रत जीवन व्यतीत कर रहा था.

एक दिन रंजीत कालेज के बाहर बस स्टौप पर बैठा लड़कियों को देख रहा था. बस से उतरती एक लड़की पर उस की नजर अटक गई.

‘‘गुरू कहां गुम हो गए हो. एकटक कालेज के गेट को देखे जा रहे हो?’’

‘‘देख वह लड़की कालेज के अंदर गई है. गजब की सुंदर है. जरा उस का बदन तो देख, उस के आगे माशाअल्लाह अप्सरा भी पानी भरेगी.’’

‘‘गुरू कौन से वाली?’’ कालेज के गेट पर खड़ी लड़कियों के समूह को देख कर उस के चमचे ने पूछा.

‘‘वह लड़की सीधे कालेज के अंदर चली गई है. इस समूह में नहीं है. आज पहली बार यहां देखा है. आज कहीं नहीं जाना है जब तक वह कालेज से बाहर नहीं निकलती है. आज गेट पर ही धरना देना है.’’

‘‘जो हुक्म गुरू.’’

कुछ देर बाद कालेज में पढ़ाई से मन चुराने वाले लड़केलड़कियों का झुंड भी रंजीत के इर्दगिर्द जमा हो गया और रंजीत से बर्गर खाने की फरमाइश होने लगी.

‘‘देखो, बर्गर पार्टी तब होगी जब मुझे वह दिखेगी.’’

‘‘कौन?’’ एकसाथ कई स्वर बोले.

‘‘शायद मैं उसे पहली बार देख रहा हूं. तुम्हारी मदद चाहिए… उस से दोस्ती करनी है.’’

‘‘ठीक है गुरू. हम सब तुम्हारे साथ हैं,’’ सब कालेज के गेट की तरफ देखने लगे.

दोपहर के 2 बजे वह लड़की कालेज के गेट पर नजर आई.

‘‘देखो, उस लड़की को देखो. उस का नाम बताओ.’’

‘‘गुरू इस का नाम दिशा है और यह दूसरे वर्ष की छात्रा है.’’

‘‘पुरानी छात्रा है… परंतु मैं ने इसे पहली बार देखा है.’’

‘‘दिशा बहुत पढ़ाकू लड़की है. यह सुबह 8 बजे आ जाती है. आज थोड़ी देर से आई है इस कारण तुम्हें पहली बार नजर आई.’’

‘‘मुझे दिशा से मिलवा दो… दोस्ती करवा दो.’’

‘‘यह मुश्किल है. वह पढ़ने वाली लड़की है. हमारी तरह मौजमस्ती करने वाली नहीं है. तुम्हारे इतने मित्र बन चुके हैं… किसी के साथ

भी मौजमस्ती कर लो… दिशा तो हमें भी डांट देती है.’’

‘‘उस की अकड़ तो तोड़नी ही होगी. वह मेरे दिल में उतर चुकी है. उस की जगह कोई और लड़की नहीं ले सकती… मेरा काम तो तुम्हें करना ही होगा.’’

2 दिन बाद रंजीत के समूह की 2 लड़कियों ने उस से साफ कह दिया कि दिशा की उस में कोईर् रुचि नहीं है. वह सिर्फ पढ़ने वाले लड़कों से ही दोस्ती रखना चाहती है. वह रंजीत को गुंडा, मवाली समझती है जो सारा दिन कालेज के इर्दगिर्द आवारागर्दी करता रहता है. दिशा ने उन्हें भी रंजीत से दूर रहने की सलाह दी है.

यह सुन कर रंजीत आगबबूला हो गया कि ये दोनों लड़कियां उस के पैसों से मौजमस्ती

कर रही हैं और साथ दिशा का दे रही हैं. जब समूह की लड़कियों ने रंजीत का साथ नहीं दिया तब रंजीत ने एक दिन कालेज के गेट पर दिशा का रास्ता रोक कर मित्रता का प्रस्ताव रखा. दिशा ने प्रस्ताव ठुकरा दिया और अपने रास्ते चल दी.

रंजीत ने हौसला नहीं छोड़ा. अगले दिन दोबारा दिशा का रास्ता रोक कर मित्रता का प्रस्ताव रखा. दिशा ने फिर प्रस्ताव ठुकरा दिया. 20 बार के असफल प्रयास के बाद एक दिन रंजीत ने दिशा का हाथ पकड़ लिया.

‘‘यह क्या बदतमीजी है?’’ दिशा ने हाथ छुड़ाते हुए कहा.

‘‘मैं इतने दिनों से सिर्फ दोस्ती का हाथ मांग रहा हूं और तुम नखरे दिखा रही हो?’’

‘‘मैं तुम जैसे आवारा, गुंडे से कोई दोस्ती नहीं करना चाहती हूं. मेरा हाथ छोड़ो.’’

दिशा और रंजीत के बीच बहस देख कर कालेज के बहुत छात्रछात्राएं एकत्रित हो गए. कुछ प्रोफैसर भी बीचबचाव करने लगे. भीड़ देख कर रंजीत ने दिशा का हाथ छोड़ दिया.

‘‘खटाक… खटाक,’’ हाथ छूटते ही दिशा ने खींच कर 2 करारे थप्पड़ रंजीत के गाल पर जड़ दिए और फिर तेजी से अपने घर चल दी.

प्रोफैसरों ने रंजीत को चेतावनी दी कि आइंदा कालेज परिसर के पास नजर नहीं आना चाहिए वरना पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी जाएगी.

लुटेपिटे जुआरी की तरह रंजीत घर लौट आया. उस दिन के बाद कालेज के छात्रों ने उस का समूह छोड़ दिया. अब रंजीत अकेला अपने 2 चेलों के संग कालेज से थोड़ी दूर चहलकदमी करता रहता. अमीर परिवार के बिगड़े लड़के रंजीत ने इस किस्से को अपनी तौहीन समझा और फिर बदले की भावना से जलने लगा. कालेज के छात्रों से उस का संपर्क छूट गया. कालेज के गेट पर रंजीत पर कड़ी निगरानी रखी जाने लगी.

रंजीत के मन में दिशा रचबस गई थी. उस के प्रेम और मित्रता का प्रस्ताव दिशा ने ठुकरा दिया था और सब के सामने 2 थप्पड़ भी रसीद कर दिए थे. बदले की भावना ने उस के विवेक को जला दिया.

रंजीत ने एक दिन अपने चेलों को अपनी योजना बताई, ‘‘कान खोल कर सुनो… उस लौंडिया को उठाना है.’’

रंजीत की योजना को सुन कर दोनों चेले सन्न हो गए. बड़ी मुश्किल से गला साफ कर के कहने लगे, ‘‘गुरू, आप क्या कह रहे हो?’’

‘‘उसे जबरदस्ती उठाना है?’’

‘‘बहुत खतरनाक योजना है. तुम पहले से ही कालेज के छात्रों और प्रोफैसरों की नजरों में हो, सीधेसीधे समझो गुरू कि दिशा को उठाने

का मतलब है जेल. सब पुलिस को तुम्हारा नाम बता देंगे.’’

‘‘मुझे कोईर् फर्क नहीं पड़ता… उसे कहीं का नहीं छोड़ूंगा.’’

‘‘गुरू बात को समझो… इस योजना को छोड़ो. कुछ और सोचो.’’

‘‘तुम मेरा साथ दोगे?’’

‘‘नहीं,’’ दोनों कह कर भाग गए.

‘‘नामर्द हैं दोनों. फालतू में दोनों को खिलातापिलाता रहा… किसी काम नहीं आए. कोई बात नहीं. इस काम को मैं अकेला कर लूंगा.’’

अब रंजीत अकेला ही दिशा को उठाने की योजना बनाने लगा. उस ने अपना

हुलिया बदला, दाढ़ी बढ़ा ली और दिशा का पीछा कर के उस की दिनचर्या की पूरी खबर लेने के बाद उस के अपहरण की योजना बनाई.

दिशा जिस जगह रहती थी वह दोपहर के समय थोड़ी सुनसान रहती थी. कालेज से घर आने की बस पकड़ी. बस स्टौप से पैदल घर जा रही थी. रंजीत आज कार में था. रंजीत ने कार उस के आगे अचानक रोकी. दिशा घबरा गई. दिशा साइड से कार के पार जाने की कोशिश करने लगी. रंजीत ने फुरती से क्लोरोफार्म में डूबा रूमाल दिशा के मुंह पर रखा. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाती, रंजीत ने कार का पिछला दरवाजा खोल कर उसे कार के अंदर धकेला.

क्लोरोफार्म की अधिक मात्रा होने के कारण वह कोई प्रतिरोध नहीं कर पाई. कार की पिछली सीट पर बेसुध पड़ गई. रंजीत ने कार को वहां से तेजी से भगाया.

शहर से दूर अपने पैतृक गांव के मकान के पास रंजीत ने कार रोकी. गांव में एक बड़ा मकान था, जिस की देखभाल चमन करता था. चमन अपनी पत्नी चंपा और 2 बच्चों के संग मकान के पीछे वाले हिस्से के एक कमरे में रहता था. चमन बहुत भरोसेमंद और पुराना नौकर था. मकान एक तरह से छोटा फार्महाउस था.

अपने पैतृक मकान पहुंच कर रंजीत ने हौर्न बजाया, तो चमन ने मकान का गेट खोला. रंजीत ने कार को मकान के अंदर पार्क किया और फिर चमन की मदद से दिशा को कमरे में लिटाया. दिशा अभी भी बेसुध थी. रंजीत ने कमरे को बाहर से बंद कर दिया और चमन को सख्त हिदायत दी कि दिशा को मकान से बाहर नहीं जाने देना है और फिर दूसरे कमरे में जा कर आराम करने लगा.

रंजीत कमरे में अपने बिस्तर पर लेटा हुआ आगे की रणनीति बना रहा था.

दिशा को कमरे में बंद करता देख चंपा स्थिति को भांप चमन से पूछने लगी, ‘‘यह लड़की कौन है?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम.’’

‘‘लड़की बेहोश लग रही है.’’

‘‘हां, लग तो बेहोश ही रही है.’’

‘‘सुनो मुझे हालात सही नहीं लग रहे हैं.’’

‘‘हां चंपा, कोई बात तो अवश्य है… खास नजर रखने को कहा है कि लड़की मकान से बाहर नहीं जाने पाए.’’

‘‘कुछ उलटासीधा तो नहीं कर दिया इस लड़की के साथ?’’

‘‘लगता तो नहीं है… अभी तक तो लड़की के कपड़े सहीसलामत हैं… लड़की होश में आए तब पता चले.’’

चमन के साथ बात करने के बाद चंपा कमरे के बाहर बैठी सब्जी काटती रही.

फिर साफसफाई में लग गई. लेकिन दिशा को क्लोरोफार्म की अधिक मात्रा दी गई थी, जिस कारण वह शाम तक बेसुध रही.

थोड़ी देर बाद रंजीत कमरे से बाहर आया और चंपा को कमरे के बाहर डेरा जमाए देख कर बोला, ‘‘तुम यहां क्या कर रही हो? अपने कमरे में जाओ… यहां मैं हूं… कुछ चाहिए होगा तब मैं आवाज दे दूंगा.’’

‘‘साहबजी, यह लड़की कौन है और कमरे को बाहर से बंद क्यों कर दिया है?’’

चंपा के इस प्रश्न से रंजीत का माथा भन्ना उठा और फिर गुस्से से चंपा पर बरस पड़ा, ‘‘देखो, तुम अपने काम से मतलब रखो… जिस काम के लिए तुम्हें नौकरी पर रखा है वह करो. मेरे से उलझने की जरूरत नहीं है.’’

रंजीत को गुस्से में देख कर चंपा खामोश रही. चमन उसे अपने कमरे में ले गया.

‘‘चंपा, तुम साहब से क्यों उलझ रही हो?’’ चमन बोला.

‘‘सुनो, यह गड़बड़ मामला है…मुझे पक्का शक है कि इस लड़की को जबरदस्ती उठा कर लाया गया है. लड़की बेहोश है… मुझे साहबजी के लक्षण सही नहीं लग रहे हैं.’’

‘‘चंपा हम नौकर हैं. हमें अपने दायरे में रह कर साहब लोगों से बात करनी चाहिए.’’

‘‘फिर भी एक लड़की की इज्जत का सवाल है. अगर इस लड़की के साथ साहब ने जबरदस्ती की तब मैं सहन नहीं करूंगी.’’

‘‘अगर वह लड़की अपनी मरजी से आई हो तब?’’

‘‘वह लड़की अपनी मरजी से नहीं आई है. अगर अपनी मरजी से आई होती तब वह बेहोश नहीं होती और कमरा भी बाहर से बंद नहीं होता. वह साहब के साथ हंसबोल रही होती.’’

चंपा की बात सुन कर चमन चुप हो गया कि उस की बात में वजन है. लेकिन वह एक नौकर है. उस के हाथ बंधे हुए हैं. वह मालिक के विरुद्ध नहीं जा सकता.

शाम के समय चमन रंजीत से रात के खाने का पूछने लगा, ‘‘साहबजी, रात को खाने में क्या लेंगे?’’

‘‘दालचावल और रोटी बना देना.’’

रात 8 बजे चमन रंजीत को खाना देने गया तो पूछा, ‘‘साहबजी, वह लड़की क्या खाएगी?’’

‘‘तुम मियांबीवी को उस की बहुत चिंता सता रही है… जब मैं ने कह दिया है कि उसे मैं देख लूंगा…’’

रंजीत ने अभी अपना वाक्य पूरा नहीं किया था कि साथ वाले कमरे से दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. दिशा को होश आ गया था. स्वयं को अनजान जगह देख कर परेशान हो गई. कमरे का दरवाजा बाहर से बंद था. रंजीत ने तुरंत गोली की रफ्तार से उठ कर दरवाजा खोला.

‘‘कौन?’’ दिशा के इस प्रश्न पर रंजीत की क्रूर हंसी गूंज उठी.

रंजीत की हंसी सुन कर चंपा भी दौड़ी चली आई.

‘‘दिशा मुझे पहचाना नहीं… अपने रंजीत को नहीं पहचाना?’’

रंजीत नाम सुन कर दिशा चौंक गई. 5 घंटे बाद वह होश में आईर् थी. रंजीत को सामने देख वह एकदम भयभीत हो उठी. उस के माथे पर पसीने की बूंदें छलकने लगीं. रंजीत ने दिशा को अपनी बांहों में भर कर उस के गालों को चूमने के लिए होंठ आगे किए कि तभी चुंबन लेने से पहले एक हाथ उस के होंठों और दिशा के होंठों के बीच आ गया.

उधर दिशा जब घर नहीं आई तब उस के परिवार वाले चिंतित हो गए. दिशा के मित्रों से संपर्क किया. सभी मित्रों ने एक ही बात बताई कि दिशा तो दोपहर को ही कालेज से घर रवाना हो गईर् थी. दिशा का परिवार सकते में आ गया. दिशा कहां जा सकती है…वह तो कालेज से सीधी घर आती है…अब तो रात के 9 बज रहे हैं. अंत में थाने जाना ही उचित समझा.

रंजीत के होंठों और दिशा के होंठों के बीच चंपा का हाथ था, ‘‘साहबजी, जुल्म मत कीजिए.’’

‘‘तू आगे से हट जा.’’

‘‘जबरदस्ती नहीं साहबजी, यदि लड़की हां कह देती है

तब मैं यहां से चली जाऊंगी,’’ चंपा दृढ़ता से दिशा को पकड़ कर अपने पीछे कर सुरक्षा कवच बन गई.

दिशा की गुमशुदा होने की रिपोर्ट पुलिस ने लिख ली. लेकिन रात के समय कोई काररवाई नहीं हुई. थाने में तैनात पुलिस अधिकारी ने कहा कि यदि कोई फोन आए तब तुरंत सूचित करें.

रंजीत की आंखों में खून उतर आया, ‘‘दिशा के आगे से हट जा, नहीं तो अंजाम बुरा होगा.’’

‘‘साहबजी, हम ने आप का नमक खाया है, इसलिए आप से विनती करती हूं कि दिशा को छोड़ दो.’’

‘‘तू ऐसे नहीं मानेगी,’’ रंजीत ने चंपा को पकड़ कर दिशा के आगे से हटाने की कोशिश की.

कोशिश को असफल बनाने के लिए चंपा ने दिशा को मजबूती से पकड़ लिया. रंजीत चंपा से उलझा तब चंपा ने अपनी हैसियत को भूल कर रंजीत को एक लात जमा दी. हालांकि चंपा दुबलीपतली छोटे कद की महिला थी, लेकिन उस की लात का प्रहार जोर से लगा और रंजीत का संतुलन बिगड़ गया. असंतुलन के कारण रंजीत लड़खड़ा गया.  लड़खड़ाते रंजीत को चमन ने संभाला.

‘‘साहबजी, आप दिशा को छोड़ दीजिए. आप को यह काम शोभा नहीं देता. हम 20 सालों से आप के नौकर हैं, लेकिन ऐसा काम बड़े साहबजी ने भी कभी नहीं किया.’’

दिशा के पक्ष में चमन और चंपा को देख रंजीत पीछे हट गया और फिर अपने कमरे में चला गया. जाते हुए चमन और चंपा को धमका गया, ‘‘दिशा को इस मकान से भागने नहीं देना है वरना तुम दोनों को भून दूंगा.’’

पूरी रात दिशा का परिवार सो नहीं सका. कालेज की सहेलियों के घर जा कर जानकारी जुटाते रहे. जब दोपहर को रोज की तरह कालेज से घर के लिए निकली तब वह कहां जा सकती है. इस प्रश्न का कोईर् उत्तर नहीं था. दिशा का फोन भी बंद या कवरेज क्षेत्र से बाहर आ रहा था, इसलिए संपर्क नहीं हो पा रहा था.

‘‘दिशा कुछ खा लो, दालचावल बने हैं.’’

‘‘नहीं खाया जाएगा… मुझे बहुत डर लग रहा है,’’ दिशा बुरी तरह डरी हुई थी.

डरी दिशा को चंपा अपने कमरे में ले गई. रंजीत चंपा और चमन के दिशा के बीच आने पर क्षुब्ध था, लेकिन बेबस था.

दिशा की एक सहेली ने रंजीत का जिक्र किया कि वह उसे परेशान करता था, लेकिन उस के पास रंजीत का कोईर् नंबर या घर का पता नहीं है.

पूरी रात दिशा भयभीत रही. चंपा और चमन दिशा को दिलासा देते रहे, लेकिन दिशा आशंकित रही. अगली सुबह दिशा का परिवार कालेज पहुंचा. कालेज के छात्रों और प्रोफैसरों से रंजीत के विषय में मालूम हुआ. रंजीत के समूह से जुड़े छात्रों से रंजीत के 2 चेलों का पता चला, जिन्होंने रंजीत का फोन नंबर और घर का पता दे दिया.

दिशा के गायब होने पर कालेज के छात्र एकत्रित हो कर मार्च निकाल कर पुलिस स्टेशन तक गए. छात्रों का समूह देख कर पुलिस ने तुरंत काररवाई शुरू कर दी. पुलिस के जांच दल ने पहले बस स्टौप से दिशा के घर तक जांच आरंभ की. दिशा का मोबाइल फोन गली की नाली में गिरा मिला.

जब रंजीत ने कार दिशा के आगे अचानक रोकी थी और क्लोरोफार्म लगा रूमाल दिशा के मुंह पर रखा तब फोन दिशा के हाथ से छूट कर नाली में गिर गया था और पानी में गिरने के कारण खराब हो गया, जिस कारण दिशा से संपर्क नहीं हो सका. पुलिस दल फिर रंजीत के घर पहुंचा.

अमीर मांबाप को नहीं मालूम था कि रंजीत कल से घर नहीं आया. पुलिस को देख कर रंजीत का परिवार सकते में आ गया कि रंजीत कहां है और घर पर एक कार भी नहीं है. कोठी में 4 कारें हैं. उन में से एक कार नहीं है. रंजीत सुबह ही घर से निकल जाता था. उस के मांबाप ने यह सोचा कि रंजीत रोज की तरह गया होगा. अब दिशा के गायब होने पर शक की सूई रंजीत पर घूम रही थी.

पुलिस ने रंजीत के चेलों से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती से उन्होंने रंजीत

के बारे में बता दिया कि रंजीत दिशा का अपहरण कर सकता है, लेकिन वे दोनों इस में शामिल नहीं हैं. पुलिस ने रंजीत के चेलों से फोन लगवाया. रंजीत ने फोन उठाया तो चेलों ने रोते हुए रंजीत को हालात से अवगत कराया. रंजीत को यह उम्मीद नहीं थी कि एक दिन में पुलिस केस बन जाएगा और ये दोनों भी 2 मिनट में पुलिस के सामने सब बक देंगे.

पुलिस ने दिशा के मांबाप और रंजीत के चेलों के साथ रंजीत के गांव के पुश्तैनी मकान पर दबिश की. रंजीत कुछ नहीं बोला. उस की योजना तो पिछले दिन ही चंपा और चमन ने असफल कर दी थी. पुलिस ने रंजीत को हिरासत में लिया.

रंजीत के मांबाप उस की हरकत पर शर्मिंदा थे. उन्होंने पुलिस से केस रफादफा करने की पेशकश की, पर पुलिस ने असमर्थता व्यक्त की.

दिशा अपनी मां से मिल कर फूटफूट कर रो पड़ी. चंपा ने दिशा के मातापिता को उस के सकुशल होने का यकीन दिलाया.

दिशा की मां दिशा के पिता को एक कोने में ले जा कर कहने लगीं कि लड़की एक रात अनजान लड़के के घर रही, समाज और लोग तरहतरह की बातें करेंगे. हम किसकिस को जवाब देते फिरेंगे. दिशा का पिता निरुत्तर था.

यह बात चंपा के कान में पड़ गई, ‘‘आप कैसे मांबाप हैं जो अपनी लड़की पर शक कर रहे हैं? जब मैं उस के संपूर्ण सुरक्षित और सकुशल होने की गारंटी दे रही हूं तब आप किस बात की चिंता कर रहे हैं?’’

‘‘तुम समझ नहीं रही हो, हम ने समाज में रहना है… लोग तरहतरह की बातें बनाएंगे.’’

‘‘जब मैं ने दिशा को सुरक्षित रखा है तब आप चिंता क्यों कर रहे हैं? लोगों का काम तो तमाशा देखना है. लड़की कालेज जाती है, वहां लड़के भी पढ़ते हैं. लोग उलटासीधा कुछ भी

कह सकते हैं. जब लोग सीता पर उंगली उठा सकते हैं तो किसी के भी बारे में कुछ भी कह सकते हैं… जब कुछ गलत हुआ ही नहीं है तब क्यों घबरा रहे हो?’’ कह चंपा बड़बड़ाती हुई वहां से चली गई.

पुलिस ने चंपा की बातें सुन ली थीं. अत: बोली, ‘‘अब चलो वापस…आप की लड़की सहीसलामत सुरक्षित मिल गई है. चंपा की बात में दम है. खुद को देखो, समाज को नहीं.’’

फिर पुलिस की जीप में बैठ सभी चले गए. दिशा स्थितियों का अवलोकन करने लगी कि सीता से ले कर दिशा तक लोगों की मानसिकता नहीं बदली है. कब तक अग्नि परीक्षा देनी होगी? धर्म की गलत बातों से निकम्मे हो चुके समाज से और उम्मीद ही क्या की जा सकती है?

Holi 2024: गुलाब यूं ही खिले रहें- क्या हुआ था रिया के साथ

शादी की शहनाइयां बज रही थीं. सभी मंडप के बाहर खड़े बरात का इंतजार कर रहे थे. शिखा अपने दोनों बच्चों को सजेधजे और मस्ती करते देख कर बहुत खुश हो रही थी और शादी के मजे लेते हुए उन पर नजर रखे हुए थी. तभी उस की नजर रिया पर पड़ी जो एक कोने में गुमसुम सी अपनी मां के साथ चिपकी खड़ी थी. रिया और शिखा दूर के रिश्ते की चचेरी बहनें थीं. दोनों बचपन से ही अकसर शादीब्याह जैसे पारिवारिक कार्यक्रमों में मिलती थीं. रिया को देख शिखा ने वहीं से आवाज लगाई, ‘‘रिया…रिया…’’

शायद रिया अपनेआप में ही खोई हुई थी. उसे शिखा की आवाज सुनाई भी न दी. शिखा स्वयं ही उस के पास पहुंची और चहक कर बोली, ‘‘कैसी है रिया?’’

रिया ने जैसे ही शिखा को देखा, मुसकरा कर बोली, ‘‘ठीक हूं, तू कैसी है?’’

‘‘बिलकुल ठीक हूं, कितने साल हुए न हम दोनों को मिले, शादी क्या हुई बस, ससुराल के ही हो कर रह गए.’’

शिखा ने कहा, ‘‘आओ, मैं तुम्हें अपने बच्चे से मिलवाती हूं.’’

रिया उन्हें देख कर बस मुसकरा दी. शिखा को लगा रिया कुछ बदलीबदली है. पहले तो वह चिडि़या सी फुदकती और चहकती रहती थी, अब इसे क्या हो गया? मायके में है, फिर भी गम की घटाएं चेहरे पर क्यों?

जब वह सभी रिश्तेदारों से मिली तो उसे मालूम हुआ कि रिया की उस के पति से तलाक की बात चल रही है. वह सोचने लगी, ‘ऐसा क्या हो गया, शादी को इतने वर्ष हो गए और अब तलाक?’ उस से रहा न गया इसलिए मौका ढूंढ़ने लगी कि कब रिया अकेले में मिले और कब वह इस बारे में बात करे.

शिखा ने देखा कि शादी में फेरों के समय रिया अपने कमरे में गई है तो वह भी उस के पीछेपीछे चली गई. शिखा ने कुछ औपचारिक बातें कर कहा, ‘‘मेरी प्यारी बहना, बदलीबदली सी क्यों लगती है? कोई बात है तो मुझे बता.’’

पहले तो रिया नानुकर करती रही, लेकिन जब शिखा ने उसे बचपन में साथ बिताए पलों की याद दिलाई तो उस की रुलाई फूट पड़ी. उसे रोते देख शिखा ने पूछा, ‘‘क्या बात है, पति से तलाक क्यों ले रही है, तुझे परेशान करता है क्या?’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं, वे तो बहुत नेक इंसान हैं.,’’ रिया ने जवाब दिया.

‘‘तो फिर क्या बात है रिया, तलाक क्यों?’’ शिखा ने पूछा.

रिया के नयनों की शांत धारा सिसकियों में बदल गई, ‘‘कमी मुझ में है, मैं ही अपने पति को वैवाहिक सुख नहीं दे पाती.’’ मुझे पति के पास जाना भी अच्छा नहीं लगता. मुझे उन से कोई शिकायत नहीं, लेकिन मेरा अतीत मेरा पीछा ही नहीं छोड़ता.’’

‘‘कौन सा अतीत?’’

आज रिया सबकुछ बता देना चाहती थी, वह राज, जो बरसों से घुन की मानिंद उसे अंदर से खोखला कर रहा था. जब उस ने अपनी मां को बताया था तो उन्होंने भी उसे कितना डांटा था. उस की आधीअधूरी सी बात सुन कर शिखा कुछ समझ न पाई और बोली, ‘‘रिया, मैं तुम्हारी मदद करूंगी, मुझे सचसच बताओ, क्या बात है?’’

रिया उस के गले लग खूब रोई और बोली, ‘‘वे हमारे दूर के रिश्ते के दादा हैं न गांव वाले, किसी शादी में हमारे शहर आए थे और एक दिन हमारे घर भी रुके थे. मां को उस दिन डाक्टर के पास जाना था. मां को लगा कि दादा हैं इसलिए मुझे भाई के भरोसे घर में छोड़ गईं. जब भैया खेलने गए तो दादा मुझे छत पर ले गए और…’’ कह कर वह रोने लगी.

उस की बात सुन कर शिखा की आंखों में मानो खून उतर आया. उस के मुंह से अनायास ही निकला, ‘‘राक्षस, वहशी, दरिंदा और न जाने कितनी युवतियों को उस ने अपना शिकार बनाया होगा. तुम्हें मालूम है वह बुड्ढा तो मर चुका है. उस ने सिर्फ तुम्हें ही नहीं मुझे भी अपना शिकार बनाया था. मैं एक शादी में गई थी. वह भी वहां आया हुआ था. मेरी मां मुझे शादी के फेरों के समय कमरे में अकेली छोड़ गई थीं. सभी लोग फेरों की रस्म में व्यस्त थे. उस ने मौका देख मेरे साथ बलात्कार किया. मात्र 15 वर्ष की थी मैं उस वक्त, जब मेरे चीखने की आवाज सुनाई दी तो मेरी मां दौड़ कर आईं और पिताजी ने उन दादाजी को खूब भलाबुरा कहा, लेकिन रिश्तेदारों और समाज में बदनामी के डर से यह बात छिपाई गईं.’’

‘‘वही तो,’’ रिया कहने लगी, ‘‘मेरी मां ने तो उलटा मुझे ही डांटा और कहा कि यह तो बड़ा अनर्थ हो गया. बिन ब्याहे ही यह संबंध. न जाने अब कोई मुझ से विवाह करेगा भी या नहीं.

‘‘जैसे कुसूर मेरा ही हो, मैं क्या करती. उस समय सिर्फ 15 वर्ष की थी, इस लिए समझती भी नहीं थी कि बलात्कार क्या होता है, लेकिन शादी के बाद जब भी मेरे पति नजदीक आए तो मुझे बारबार वही हादसा याद आया और मैं उन से दूर जा खड़ी हुई. जब वे मेरे नजदीक आते हैं तो मुझे लगता है एक और बलात्कार होने वाला है.’’

शिखा ने पूछा, ‘‘तो फिर वे तुम से जबरदस्ती तो नहीं करते?’’

‘‘नहीं, कभी नहीं,’’ रिया बोली.

‘‘तब तो तुम्हारे पति सच में बहुत नेक इंसान हैं.’’

‘‘मैं नहीं चाहती कि मेरे कारण वे दुख की जिंदगी जिएं इसलिए मैं ने ही उन से तलाक मांगा है. मैं तो उन्हें वैवाहिक सुख नहीं दे पाती पर उन्हें तो आजाद करूं इस बंधन से.’’

‘‘ओह, तो यह बात है. मतलब तुम मन ही मन उन्हें पसंद तो करती हो?’’

‘‘हां,’’ रिया बोली, ‘‘मुझे अच्छे लगते हैं वे, किंतु मैं मजबूर हूं.’’

‘‘तुम ने मुझे अपना सब से बड़ा राज बताया है, तो क्या तुम मुझे एक मौका नहीं दोगी कि मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं. देखो रिया, मेरे साथ भी यह हादसा हुआ लेकिन मांपिताजी ने मुझे समझा दिया कि मेरी कोई गलती नहीं, पर तुम्हें तो उलटा तुम्हारी मां ने ही कुसूरवार ठहरा दिया. शायद इसलिए तुम अपनेआप को गुनाहगार समझती हो,’’ शिखा बोली.

‘‘तुम कहो तो मैं तुम्हारे पति से बात करूं इस बारे में?’’

‘‘नहींनहीं, तुम ऐसा कभी न करना,’’ रिया ने कहा.

‘‘अच्छा नहीं करूंगी, लेकिन अभी हम 3-4 दिन तो हैं यहां शादी में, तो चलो, मैं तुम्हें काउंसलर के पास ले चलती हूं.’’

‘‘वह, क्यों?’’ रिया ने पूछा

‘‘तुम मेरा विश्वास करती हो न, तो सवाल मत पूछो. बस, सुबह तैयार रहना.’’

अगले दिन शिखा सुबह ही रिया को एक जानेमाने काउंसलर के पास ले गई. काउंसलर ने बड़े प्यार से रिया से सारी बात पूछी. एक बार तो रिया झिझकी, लेकिन शिखा के कहने पर उस ने सारी बात काउंसलर को बता दी. यह सुन कर काउंसलर ने रिया के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘देखो बेटी, तुम बहुत अच्छी हो, जो तुम ने अपनी मां की बात मान कर यह राज छिपाए रखा, लेकिन इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं. तुम अपनेआप को दोषी क्यों समझती हो? क्या हो गया अगर किसी ने जोरजबरदस्ती से तुम से संबंध बना भी लिए तो?’’

रिया बोली, ‘‘मां ने कहा, मैं अपवित्र हो गई, अब मुझे अपनेआप से ही घिन आती है. इसलिए मुझे अपने पति के नजदीक आना भी अच्छा नहीं लगता.’’

काउंसलर ने समझाते हुए कहा, ‘‘लेकिन इस में अपवित्र जैसी तो कोईर् बात ही नहीं और इस काम में कुछ गलत भी नहीं. यह तो हमारे समाज के नियम हैं कि ये संबंध हम विवाह बाद ही बनाते हैं.

‘‘लेकिन समाज में बलात्कार के लिए तो कोई कठोर नियम व सजा नहीं. इसलिए पुरुष इस का फायदा उठा लेते हैं और दोषी लड़कियों को माना जाता है. बेचारी अनखिली कली सी लड़कियां फूल बनने से पहले ही मुरझा जाती हैं. अब तुम मेरी बात मानो और यह बात बिलकुल दिमाग से निकाल दो कि तुम्हारा कोई दोष है और तुम अपवित्र हो. चलो, अब मुसकराओ.’’

रिया मुसकरा उठी. शिखा उसे अपने साथ घर लाई और बोली, ‘‘अब तलाक की बात दिमाग से निकाल दो और अपने पति के पास जाने की पहल तुम खुद करो, इतने वर्ष बहुत सताया तुम ने अपने पति को. अब चलो, प्रायश्चित्त भी तुम ही करो.’’

रिया विवाह संपन्न होते ही ससुराल चली गई. उस ने अपने पति के पास जाने की पहल की और साथ ही साथ काउंसलर ने भी उस का फोन पर मार्गदर्शन किया. उस के व्यवहार में बदलाव देख उस के पति भी आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने रिया को एक दिन अपनी बांहों में भर कर पूछा, ‘‘क्या बात है रिया, आजकल तुम्हारा चेहरा गुलाब सा खिला रहता है?’’

वह जवाब में सिर्फ मुसकरा दी और बोली, ‘‘अब मैं सदा के लिए तुम्हारे साथ खिली रहना चाहती हूं, मैं तुम से तलाक नहीं चाहती.’’

उस के पति ने कहा, ‘‘थैंक्स रिया, लेकिन यह मैजिक कैसे?’’

वह बोली, ‘‘थैंक्स शिखा को कहो. अभी फोन मिलाती हूं उसे,’’ कह कर उस ने शिखा का फोन मिला दिया.

उधर से शिखा ने रिया के पति से कहा, ‘‘थैंक्स की बात नहीं. बस, यह ध्यान रखना कि गुलाब यों ही खिले रहें. ’’

Women’s Day 2024: मर्यादा- क्या हुआ था स्वाति के साथ

रात के 12 बज रहे थे, लेकिन स्वाति की आंखों में नींद नहीं थी. वह करवटें बदल रही थी. उस की बगल में लेटा पति वरुण गहरी नींद में खर्राटे भर रहा था. स्वाति दिन भर की थकान के बाद भी सो नहीं पा रही थी. आज का घटनाक्रम बारबार उस की आंखों में घूम रहा था. आज ऐसा कुछ हुआ कि वह कांप कर रह गई. जिसे वह सिर्फ खेल समझती थी वह कितना गंभीर हो सकता है, उसे इस बात का भान नहीं था. वह मर्दों से हलकाफुलका मजाक और फ्लर्टिंग को सामान्य बात समझती थी. स्वाति अपनी फ्रैंड्स और रिश्तेदारों से कहती थी कि उस की मार्केट में इतनी जानपहचान है कि कोई भी सामान उसे स्पैशल डिस्काउंट पर मिलता है.

स्वाति फोन पर अपने मायके में भाभी से कहती कि आज मैं ने वैस्टर्न ड्रैस खरीदी. इतनी बढि़या और अच्छे डिजाइन में बहुत सस्ती मिल गई. मैं ने साड़ी बिलकुल नए कलर में खरीदी. 1000 की है पर मुझे सिर्फ 500 में मिल गई. डायमंड रिंग अपनी फ्रैंड से और्डर दे कर बनवाई. ऐसी रिंग क्व2 लाख से कम नहीं, परंतु मुझे क्व11/2 लाख में मिल गई. भाभी की नजरों में स्वाति की छवि बहुत ही समझदार और पारखी महिला के रूप में थी. वह जब भी कोई सामान खरीद कर भेजने को कहती, स्वाति खुशीखुशी भिजवा देती. पूरे परिवार में उस के नाम का डंका बजता था.

स्वाति आकर्षक नैननक्श वाली पढ़ीलिखी महिला थी. बचपन से ही उसे खरीदारी का बेहद शौक था. लाखों रुपए की खरीदारी इतने कम दाम और चुटकियों में करती कि हर कोई हैरान रह जाता. स्वाति का मायका मिडल क्लास फैमिली से था. 15 साल पहले एक बड़े उद्योगपति परिवार में उस की शादी हुई. शादी भले ही करोड़पति घर में हो गई, लेकिन संस्कार वही मिडल क्लास फैमिली वाले ही थे. 1-1 पैसे की कीमत वह जानती थी. घर खर्च में पैसा बचाना और उस पैसे से स्वयं के लिए खरीदारी करने में उसे बहुत मजा आता. पति से भी पैसे मारना स्वाति को अच्छा लगता था. अच्छे संस्कार, पढ़ीलिखी और समझदार स्वाति को एक बात बड़ी आसानी से समझ आ गई थी कि पुरुषों की कमजोरी क्या है. कैसे कम रेट पर खरीदारी करनी है. वह उस दुकान या शोरूम में ही खरीदारी करती जहां पुरुष मालिक होते. वह सेल्समैन से बात नहीं करती. सेल्समैन से वह कहती, ‘‘आप तो सामान दिखा दो, रेट मैं अपनेआप भैया से तय कर लूंगी.’’

और जब हिसाबकिताब की बारी आती, तो वह सेठ की आंखों में आंखें डाल कर कहती, ‘‘भैया सही रेट बताओ. आज की नहीं 10 सालों से आप की शौप पर आ रही हूं.’’

‘‘भाभी, आप को रेट गलत नहीं लगेगा, क्यों चिंता करती हैं?’’ सेठ कहता.

‘‘नहीं, इस बार ज्यादा लगा रहे हो. मुझे तो स्पैशल डिस्काउंट मिलता है, आप की शौप पर,’’ कहते हुए स्वाति काउंटर पर खड़े सेठ के हाथों को बातोंबातों में स्पर्श करती या फिर कहती, ‘‘भैया, आप तो मेरे देवर की तरह हो. देवरभाभी के बीच रुपएपैसे मत लाओ न.’’

अकसर दुकानदार स्वाति की मीठीमीठी बातों में आ कर उसे 10-20% तक स्पैशल डिस्काउंट दे देते थे. एक ज्वैलर से तो स्वाति ने जीजासाली का रिश्ता ही बना लिया था. ज्वैलरी आमतौर पर औरतों की कमजोरी होती है, स्वाति की भी कमजोरी थी. वह अकसर इस ज्वैलर के यहां पहुंच जाती. क्याक्या नई डिजाइनें आई हैं, देखने जाती तो कुछ न कुछ पसंद आ ही जाता. तब जीजासाली के बीच हंसीमजाक शुरू हो जाता.

स्वाति कहती, ‘‘साली आधी घरवाली होती है जीजाजी, इतने ही दूंगी.’’

ज्वैलर स्वाति का स्पर्शसुख पा कर निहाल हो जाता. उस के मन में स्पर्श को आगे बढ़ाने की प्लानिंग चलती रहती, पर स्वाति थी कि काबू में ही नहीं आती थी. सामान खरीदा और उड़न छू. उस दिन भतीजी की शादी के लिए सामान व ज्वैलरी खरीदने स्वाति ज्वैलर के यहां पहुंच गई. उसे भाभी ने बताया था कि क्याक्या खरीदना है.

स्वाति ने घर से निकलने से पहले ही ज्वैलर को फोन किया, ‘‘भतीजी की शादी के लिए ज्वैलरी खरीदने आ रही हूं. आप अच्छीअच्छी डिजाइनों का चयन करा कर रखना. मेरे पास ज्यादा टाइम नहीं होगा.’’

‘‘आप आइए तो सही साली साहिबा. आप के लिए सब हाजिर है,’’ ज्वैलर ने कहा. ज्वैलरी की यह दुकान कोई बड़ा शोरूम नहीं था, लेकिन वह खुद अच्छा कारीगर था और और्डर पर ज्वैलरी तैयार करता था. शहर की एक कालोनी में उस की दुकान थी जहां कुछ खास लोगों को और्डर पर तैयार ज्वैलरी भी दिखा कर बेच देता था और और्डर देने वाले को कुछ दिन बाद सप्लाई दे देता. स्वाति की एक फ्रैंड रजनी ने उस ज्वैलर्स से उस की मुलाकात कराई थी. लेकिन रजनी कभी यह बात समझ नहीं पाई थी कि आखिर यह ज्वैलर स्वाति पर इतना मेहरबान क्यों रहता है. उसे नईनई डिजाइनें दिखाता है और अतिरिक्त डिस्काउंट भी देता है.

‘‘जीजाजी, कुछ और डिजाइनें दिखाओ. ये तो मैं ने पिछली बार देखी थीं,’’ स्वाति ने ज्वैलर की आंखों में झांकते हुए कहा.

स्वाति को ज्वैलर की आंखों में शरारत नजर आ रही थी. वह बारबार सहज होने की कोशिश कर रहा था. अपनी आदत के मुताबिक स्वाति ने बातोंबातों में ज्वैलर के हाथों पर इधरउधर स्पर्श किया. उस का यह स्पर्श ज्वैलर को बेचैन कर रहा था. उस ने भी स्वाति की हरकतें देख हौसला दिखाना शुरू कर दिया. वह भी बातोंबातों में स्वाति के हाथों पर स्पर्श करने लगा. यह स्पर्श स्वाति को कुछ बेचैन कर रहा था, लेकिन वह सहज रही. उसे कुछ देर की हरकतों से स्पैशल डिस्काउंट जो लेना था. स्वाति ने देखा कि आज दुकान पर सिर्फ एक लड़का ही हैल्पर के तौर पर काम कर रहा था बाकी स्टाफ न था. ज्वैलर ने उसे एक सूची थमाते हुए कहा कि यह सामान मार्केट से ले आओ. और जाने से पहले फ्रिज में रखे 2 कोल्ड ड्रिंक खोल कर दे जाओ.’’

‘‘आप और नई डिजाइनें दिखाइए न,’’ स्वाति ने कहा.

‘‘हां, अभी दिखाता हूं. कल ही आई हैं. आप के लिए ही रखी हुई हैं अलग से.’’

‘‘तो दिखाइए न,’’ स्वाति ने चहकते हुए कहा.

‘‘आप ऐसा करें अंदर वाले कैबिन में आ कर पसंद कर लें. अभी अंदर ही रखी हैं… लड़का भी जा चुका है तो…’’

स्वाति ने देखा लड़का सामान की सूची ले कर जा चुका था. अब दुकान पर सिर्फ ज्वैलर और स्वाति ही थे. स्वाति को एक पल के लिए डर लगा कि अकेली देख ज्वैलर कोई हरकत न कर दे. वह ऐसा कुछ चाहती भी नहीं थी. वह तो सिर्फ कुछ हलकीफुलकी अदाएं दिखा कर दुकानदारों से फायदा उठाती आई थी. आज भी ऐसा कुछ कर के ज्वैलर से स्पैशल डिस्काउंट लेने की फिराक में थी. उस की धड़कनें बढ़ रही थीं. वह चाहती थी कि जल्दी से जल्दी खरीदारी कर के निकल ले. उस का दिमाग तेजी से काम कर रहा था कि क्या करे. वह अपनेआप को संभाल कर कैबिन में ज्वैलरी देखने घुस गई. उस ने अपने शब्दों में मिठास घोलते हुए कहा, ‘‘जीजाजी, आज कुछ सुस्त लग रहे हो क्या बात है?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा कुछ नहीं है.’’

‘‘कोई तो बात है, मुझ से छिपाओगे क्या?’’

‘‘आप नैकलैस देखिए, साथसाथ बातें करते हैं,’’ ज्वैलर ने कहा. स्वाति गजब की सुंदर लग रही थी. वह बनठन कर निकली थी. ज्वैलर के मन में हलचल थी जो उसे बेचैन कर रही थी. उस ने सोचा कि हिम्मत दिखाई जा सकती है. अत: उस ने स्वाति के हाथ को स्पर्श किया तो वह सहम गई. लेकिन उस ने सोचा कि अगर थोड़ा छू लिया तो उस से क्या फर्क पड़ेगा. स्वाति के रुख को देख ज्वैलर का हौसला बढ़ गया. उस ने स्वाति का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा. ज्वैलर की इस आकस्मिक हरकत से वह हड़बड़ा गई.

‘‘क्या कर रहे हो?’’ स्वाति ने हाथ छुड़ाते हुए कहा.

ज्वैलर ने अपनी हरकत जारी रखी. स्वाति घबरा गई. ज्वैलर की हिम्मत देख दंग रह गई वह. मर्दों की कमजोरी का फायदा उठाने की सोच उसे भारी पड़ती नजर आ रही थी. वह कैसे ज्वैलर के चंगुल से बचे, सोचने लगी. फिर उस ने हिम्मत दिखाई और ज्वैलर के गाल पर थप्पड़ों की बारिश कर दी. स्वाति क्रोध से कांप रही थी. उस का यह रूप देख ज्वैलर हड़बड़ा गया. इसी हड़बड़ी में वह जमीन पर गिर गया. स्वाति के लिए यही मौका था कैबिन से बाहर निकल भागने का. अत: वह फुरती दिखाते हुए तुरंत कैबिन से बाहर निकल अपनी कार में जा बैठी. फिर तुरंत कार स्टार्ट कर वहां से चल दी. उस के अंदर तूफान चल रहा था. उसे आत्मग्लानि हो रही थी. लंबे समय से स्वाति जिसे खेल समझती आ रही थी, वह कितना गंभीर हो सकता है, उस ने यह कभी सोचा भी नहीं था.

विश्वासघात: सीमा के कारण कैसे टूटा प्रिया का घर

प्रिया ने पालने में सोई अपनी नवजात बच्ची को मुसकराते देखा तो वह भी मुसकरा दी. प्रिया उस में अपना और निर्मल का अक्स ढूंढ़ने की कोशिश करने लगी. निर्मल को एक बेटी की चाह थी जबकि वह बेटा चाहती थी, क्योंकि वह निर्मल के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थी. प्रिया एक छोटे शहर में पलीबढ़ी थी. इकलौती संतान होने के कारण मातापिता की दुलारी थी. निर्मल की बूआ उन के पड़ोस में रहती थीं. वे ही निर्मल का रिश्ता उस के लिए लाई थीं. निर्मल मुंबई में मल्टीनैशनल कंपनी में काम करते थे. उन के मातापिता कार दुर्घटना में चल बसे थे. उन के जाने के बाद बूआ ने ही उन की परवरिश की थी. प्रिया के मातापिता को निर्मल पसंद थे, इसलिए चट मंगनी और पट ब्याह कर दिया.

शादी के 1 हफ्ते बाद प्रिया निर्मल के साथ मुंबई आ गई. निर्मल एक अपार्टमैंट में 7वीं मंजिल पर 3 कमरों के फ्लैट में रहते थे. शादी के बाद दोनों ने फ्लैट को बड़े जतन से सजाया. निर्मल अपने नाम के अनुसार स्वभाव से बहुत ही निर्मल थे. उन में बिलकुल बनावटीपन नहीं था. कुछ ही समय बाद प्रिया ने निर्मल को 2 से 3 होने की खुशखबरी सुना दी. दोनों बहुत खुश थे. अब निर्मल उस का बहुत ध्यान रखने लगे थे. उसी दौरान निर्मल के प्रमोशन ने उन की खुशी को दोगुना कर दिया. परंतु काम की जिम्मेदारी बढ़ने की वजह से अब वे ज्यादा व्यस्त रहने लगे.

प्रिया दिन भर अकेले काम करते थक जाती थी, इसलिए दोनों ने एक बाई रखने का फैसला किया. महानगर मुंबई में लोग बहुत व्यस्त रहते हैं. किसी को किसी से कोई लेनादेना नहीं होता. अंतर्मुखी होने के कारण प्रिया भी ज्यादातर घर में ही रहती थी. इसीलिए उन्होंने बिल्डिंग के सिक्योरिटी गार्ड से बाई ढूंढ़ने के लिए मदद मांगी. कुछ ही दिन बाद उस ने एक बाई को भेजा. लगभग 30 साल की दुबलीपतली रमा बाई को उन्होंने मामूली पूछताछ के बाद काम पर रख लिया. रमा बाई ने बताया कि वह पास की बिल्डिंग में और 3 घरों में काम करती है. उसके 2 बच्चे हैं. पति स्कूल में चपरासी है. इस से अधिक जानने की उन्होंने जरूरत नहीं समझी.

रमा बाई सुबह 8 बजे काम पर आती और करीब 10 बजे तक काम निबटा कर चली जाती. जब वह काम करने आती तब निर्मल के औफिस जाने का समय होता था, इसलिए प्रिया ज्यादातर निर्मल के लिए नाश्ता और टिफिन तैयार करने में व्यस्त होती थी. धीरेधीरे रमा बाई घर की सदस्य जैसी बन गई. वह प्रिया के छोटेमोटे कामों जैसे बाजार से दूधसब्जी लाने में मदद करने लगी. अब अकसर प्रिया का मौर्निंग सिकनैस की वजह से जी मचलाने लगा और उस के लिए खाना बनाना मुश्किल होने लगा. यह देख कर एक दिन रमा बाई ने उस के आगे एक प्रस्ताव रखा. बोली, ‘‘मैडमजी, मेरी एक छोटी बहन है. बेचारी गूंगी है, शादी नहीं हो पाई, इसलिए हमारे साथ ही रहती है. अगर आप कहें तो जब तक आप की डिलिवरी नहीं हो जाती आप उसे खाना बनाने और दूसरे कामों के लिए रख लें. आप को जो ठीक लगे उसे दे देना. सुबह मैं साथ ले आया करूंगी और शाम को साथ ले जाया करूंगी.’’

प्रिया और निर्मल को उस की बात जंच  गई, इसलिए उन्होंने हां कह दिया. अगले ही दिन रमा बाई अपने साथ 22-23 वर्ष की लड़की को ले आई. उस ने उस का नाम सीमा बताया. सीमा देखने में बहुत सुंदर थी. प्रिया को उस के गूंगे होने पर बहुत तरस आया. सीमा उन के घर खाना बनाने का काम करने लगी. वह सभी काम बहुत अच्छे तरीके से व समय से पहले कर देती. वह प्रिया को समय से फल काट कर खिलाती, समय पर खाना खिलाती. पतिपत्नी दोनों सीमा के काम से बेहद खुश थे. कभीकभी निर्मल को औफिस के काम से बाहर जाना पड़ता. तब प्रिया सीमा को रात को घर पर रोक लेती. सीमा निर्मल का कुछ विशेष ही ध्यान रखती थी, परंतु प्रिया को इस में कोई बुराई नजर नहीं आई, इसलिए उस ने उस पर कुछ ज्यादा ध्यान नहीं दिया. फिर उन दिनों अकसर तबीयत खराब रहने के कारण वह परेशान भी रहती थी.

हालांकि प्रिया को सीमा का निर्मल के बूट पौलिश करना और बाथरूम में कपड़े रखना शुरू से अखरता था, परंतु दूसरे ही क्षण वह इसे नारीसुलभ जलन समझ कर भूल जाती. कभीकभी तो उसे अपने इस विचार पर खुद पर शर्म महसूस होती कि एक गूंगी लड़की पर शक कर रही है. इस बीच प्रिया का चौथा महीना शुरू हो गया था. उस दिन निर्मल औफिस की फाइलें घर ले आए थे और आते ही ड्राइंगरूम में टेबल पर सभी फाइलें फैला कर काम करने बैठ गए. प्रिया की तबीयत सुबह से ही ठीक नहीं थी, इसलिए उस ने सीमा को रात को घर पर रोक लिया. खाना खा कर वह बैडरूम में आराम करने लगी और निर्मल अपना काम निबटाने में व्यस्त हो गए.

करीब रात के 1 बजे कुछ आवाजों से उस की नींद टूट गई. निर्मल बिस्तर पर नहीं थे. उन के तेजतेज बोलने की आवाज आ रही थी. वह ड्राइंगरूम की ओर तेज कदमों से भागी. वहां का दृश्य देख कर अवाक रह गई. सीमा एक ओर खड़ी रो रही थी. उस के कपड़े अस्तव्यस्त और कई जगह से फटे थे. प्रिया को देख कर निर्मल हकबका कर सफाई देने लगे, ‘‘प्रिया, मैं ने कुछ नहीं किया. यह अचानक आ कर मुझ से लिपट गई. जब मैं ने इसे पीछे धकेला तो इस ने अपने कपड़ों को फाड़ना शुरू कर दिया.’’

सीमा लगातार रोए जा रही थी. वह प्रिया के गले से लिपट गई. उस की हालत देख कर प्रिया का चेहरा तमतमा उठा. उस के अंदर की औरत जैसे जाग उठी. बोली, ‘‘मुझे आप से कतई यह उम्मीद नहीं थी कि आप इतना गिर जाएंगे.’’ ‘‘प्रिया, यह झूठी है… मैं सच कह रहा हूं… मैं ने कुछ नहीं किया,’’ निर्मल लगातार अपनी सफाई दे रहे थे. ‘‘सचाई सामने है और फिर भी आप…छि:,’’ कहते हुए वह सीमा को अपने बैडरूम में ले आई. प्रिया ने उसे पानी पिलाया और किसी तरह चुप करवाया.

‘‘सीमा, मैं बहुत शर्मिंदा हूं…प्लीज मुझे माफ कर दो,’’ प्रिया ने सीमा के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा.

प्रिया मन ही मन खुद को उस का कुसूरवार मान रही थी, क्योंकि उसी के कहने पर उस पर विश्वास कर सीमा रात को रुकी थी. फिर उस ने उसे अपने साथ ही सुला लिया. अगले दिन रमा बाई के आते ही सीमा ने रोरो कर और इशारों से उसे सब कुछ बता दिया. वह बारबार निर्मल की ओर इशारा कर के रो रही थी. उस की हालत देख कर रमा बाई ने हंगामा खड़ा कर दिया. उस ने उन के सामने ही पुलिस को फोन कर दिया. प्रिया और निर्मल ने उसे रोकने का भरसक प्रयत्न किया. ‘‘क्या मैडमजी, तुम भी अपने आदमी को बचाना चाहती हो? सीमा की जगह तुम्हारी बहन होती तब क्या करतीं?’’ रमा बाई गुस्से से बोली.

10 मिनट में पुलिस की वरदी में 1 आदमी उन के सामने खड़ा था. निर्मल उसे और रमा बाई को अपनी सफाई देते रहे, पर दोनों ने उन की एक न सुनी. प्रिया दोनों हाथों से सिर पकड़े वहीं सोफे पर चुपचाप बैठी रही. पुलिस वाले ने निर्मल को थाने चलने को कहा. निर्मल बहुत घबरा गए. वे मिन्नत करने लगे. आखिर उस पुलिस वाले ने 50 हजार पर रमा बाई और निर्मल में समझौता करवा दिया. अचानक बच्ची के रोने की आवाज से प्रिया की तंद्रा भंग हो गई. वह भूतकाल से वर्तमान में लौट आई. वह उठ कर बैठने का प्रयास करने लगी. तभी बाहर से निर्मल उस के मातापिता के साथ कमरे में दाखिल हुए और उन्होंने लपक कर बच्ची को गोद में उठा लिया. अपने मातापिता को देख कर प्रिया के पीले पड़े चेहरे पर खुशी फैल गई.

‘‘अरे हमारी गुडि़या अपने नानानानी के पास आने के लिए रो रही है,’’ प्रिया की मां ने निर्मल से बच्ची को अपनी गोद में लेते हुए कहा.

‘‘प्रिया, कैसी हो?’’ बाबूजी ने उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए पूछा.

‘‘बिलकुल ठीक हूं,’’ प्रिया ने मुसकरा कर उत्तर दिया.

‘‘तुम ने जूस नहीं लिया…यह लो जूस पी लो,’’ निर्मल ने जूस का गिलास उस के हाथ में थमा दिया.

प्रिया धीरेधीरे जूस पीने लगी. निर्मल के माथे पर बालों की एक लट झूलती बड़ी अच्छी लग रही थी. पिछले 2 दिनों से वे अकेले भाग दौड़ कर रहे थे. नर्स बता रही थी कि एक क्षण के लिए भी उन्होंने पलक नहीं झपकी. मां की गोद में गुडि़या सो गई थी. उसे पालने में लिटा कर मां ने उस के हाथ से जूस का खाली गिलास ले लिया.

‘‘नींद आ रही है…तू भी सो जा. मैं तेरे लिए नाश्ता बना कर लाती हूं,’’ फिर उस के बाबूजी से बोली, ‘‘आप भी नहा लीजिए. निर्मल बेटा, तुम किचन में सामान निकालने में मेरी मदद कर दो. मैं नाश्ता बनाती हूं. फिर सब साथ मिल कर बैठेंगे,’’ कहते हुए मां कमरे से बाहर निकल गईं. प्रिया को बहुत कमजोरी महसूस हो रही थी. पिछले 5 महीने उस ने बड़े ही कष्ट से काटे थे. वह मानसिक और शारीरिक यातना से गुजरी थी. सीमा वाले हादसे के बाद वह निर्मल के साथ एक छत के नीचे रहना नहीं चाहती थी, परंतु आने वाले बच्चे के भविष्य और मांबाबूजी के खयाल से उस ने चुप्पी साध ली. आज भी वह यह सोच कर कांप जाती है कि अगर उस ने अलग होने का फैसला कर लिया होता और अपने मायके लौट जाती तब कितना बड़ा अनर्थ हो जाता. वह तो गनीमत थी कि डाक्टर की सलाह मान कर उस ने रोज पार्क जाना शुरू कर दिया था. वहीं उस की मुलाकात तनु से हुई. तनु उस के साथ स्कूल में पढ़ती थी. एक दिन उस ने बताया कि उस ने घर के काम के लिए एक लड़की रख ली है जो गूंगी है, तो प्रिया का दिल जोर से धड़कने लगा.

‘‘क्या नाम है उस का?’’ कांपते होंठों से प्रिया ने पूछा.

‘‘सीमा, बेचारी बोल नहीं सकती. मेरी बाई को बहन है,’’ तनु ने जवाब दिया.

प्रिया का दिल अनजाने डर से कांप उठा. उसे लगा कि अगर तनु को पता चल गया तो क्या सोचेगी उस के पति के चरित्र को ले कर. प्रिया ने तनु से मेलजोल कम कर दिया. तनु का फोन भी वह नहीं उठाती. लगभग 2 महीने बीत गए.

फिर एक दिन कैमिस्ट की दुकान पर तनु उस से टकरा गई. उस का रंग पीला हो गया था. वह कुछ बुझीबुझी सी थी. उस ने पहले की तरह उस से बातचीत करने में कोई उत्सुकता नहीं दिखाई. औपचारिकता के नाते उस ने उस से बातचीत की. उस के होंठों से हंसी जैसे गुम ही हो गई थी. 2 ही दिन बाद तनु उसे फिर से पार्क में मिल गई. वह बहुत उदास और बीमार सी लगी. प्रिया इस का कारण पूछे बिना रह नहीं सकी. थोड़ी सी नानुकर के बाद तनु टूट गई. उस ने रोतेरोते अपना दुख बांटा जिसे सुन कर प्रिया सकते में आ गई.  तनु ने उसे जो कुछ बताया वह हूबहू उस की कहानी से मिलता था. तनु के मोबाइल में सीमा का फोटो था, इसलिए उस के प्रति उस का संदेह गहरा हो गया.

उस ने अपनी आपबीती तनु को सुनाई. तब दोनों ने तय किया कि वे सीमा के बारे में पता लगाएंगी और फिर एक दिन वे दोनों सीमा और रमा बाई के बारे में पूछतेपूछते उन के घर जा पहुंचीं. बाहर गली में ही उन्होंने भीड़ लगी देखी. पानी भरने के लिए औरतें आपस में लड़ रही थीं. ‘‘तुम दोनों बहनें अपने को समझती क्या हो?’’ पानी की बालटी पकड़े एक औरत बोली.

‘‘खबरदार, जो कोई आगे आया, काट कर फेंक दूंगी सब को,’’ दूसरी आवाज आई. तनु और प्रिया वहीं रुक उन की लड़ाई देखने लगीं. दोनों यह देख कर हैरान रह गईं कि सीमा फर्राटे से बोल रही थी.

‘‘सब से पहले हम दोनों पानी भरेंगी. तुम सब चुडै़लें सुबहसुबह हमारा दिमाग क्यों खराब कर रहीं,’’ सीमा चिल्ला रही थी.

तनु प्रिया का हाथ पकड़ उसे खींचते हुए गली से बाहर ले आई.

‘‘यह सीमा गूंगी नहीं है. देखा कैसे फर्राटे से बोल रही है,’’ प्रिया ने कहा.

‘‘हां प्रिया, इस का मतलब इन दोनों ने जो हमारे साथ किया वह सोचीसमझी साजिश के तहत किया,’’ तनु ने गुस्से से कहा.

‘‘हमें इन्हें सबक सिखाना होगा, लेकिन कैसे, समझ नहीं आ रहा ,’’ प्रिया बोली.

‘‘चलो हम इन्हें पुलिस के हवाले करते हैं,’’ तनु ने प्रिया का हाथ पकड़ते हुए कहा.

‘‘लेकिन इस से पहले हमें इन के खिलाफ सुबूत इकट्ठे करने होंगे.’’ घर आ कर उन्होंने अपनेअपने पतियों को सारा माजरा समझाया. फिर सब ने मिल कर फैसला किया कि वे पुलिस के साथ मिल कर उस के सहयोग से इन्हें पकड़वाएंगे. फिर चारों थाने में गए और अपने साथ हुई ठगी की आपबीती सुनाई. पुलिस ने सब से पहले मालूम किया कि वे दोनों फिलहाल कहां काम कर रही हैं. उन्हें पता चला कि वे अभी किसी नवदंपती के घर पर ही काम कर रही हैं. तब पुलिस ने उस दंपती के साथ मिल कर उन का भांडा फोड़ने की योजना बनाई. संयोग से उन के घर में सीसीटीवी कैमरा लगा था. कुछ ही दिनों में रमा बाई और सीमा ने वहां भी ऐसा ही खेल खेला, परंतु कैमरे में उन की सारी हरकत कैद हो गई और जो आदमी पुलिस की वरदी में आया वह रमा बाई का शराबी पति था जो पहले दंपती को डराताधमकाता था और फिर पैसे ले कर समझौता करवाता था. उन तीनों को ठगी करने के जुर्म में जेल हो गई. प्रिया की मां उस के लिए नाश्ता ले आई थीं. उन्होंने प्रिया के सिर पर प्यार से हाथ रखा तो प्रिया मुसकरा दी.

लौट जाओ शैली: विनीत ने क्या किया था

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