क्या क्लाउड सीडिंग सुहाने मौसम की गारंटी बनेगा?

दुबई का जिक्र होते ही दिमाग में बस एक ही छवि आती है चकाचौंध, पैसा, महंगीमहंगी गाडि़यां, शानोशौकत वाली जिंदगी और ऊंचीऊंची इमारतें. दुबई में ही दुनिया के सब से अमीर लोग रहते हैं. लेकिन हमेशा चमकने वाले इसी दुबई कुछ समय पहले महज कुछ घंटे की बारिश ने धो डाला. आधुनिकता की दौड़ में सरपट दौड़ रहा दुबई पानीपानी हो गया. जो दुबई बारिश के लिए तरसता था वहां आसमान से इतना पानी बरसा कि शहर समंदर बन गया. शहर में बाढ़ जैसे हालात हो गए. एअरपोर्ट पर पानी का कब्जा हो गया. मैट्रो स्टेशंस, सड़कें और व्यापारिक संस्थानों में बाढ़ का पानी घुस गया. स्कूल बंद कर दिए गए.

तेज बारिश से राजधानी अबू धाबी के कई इलाके दरिया में तबदील हो गए. दुबई में केवल 24 घंटे में इतनी बारिश हुई जितनी यहां 1 साल में होती है. भीषण बारिश के बाद दुबई जैसे तैरने लगा. यह अपनेआप में एक बड़ी प्राकृतिक आपदा है और दुबई के लोगों के लिए एक बुरे सपने की तरह था. 24 घंटे में ही यहां 160 किलोमीटर बारिश हुई. तेज हवा के साथ आई बारिश ने यहां एक नया संकट खड़ा कर दिया. यहां के लोगों ने इतनी बारिश पहले कभी नहीं देखी थी. पूरा शहर जलमग्न हो गया. ऊंचीऊंची इमारतों के बीच सड़कों पर सैकड़ों गाडि़यां फंस गईं. जिस शहर को दुनिया के सब से आधुनिक शहरों में गिना जाता है उस का एक बारिश में ही दम निकल गया.

आमतौर पर दुबई की सड़कों पर महंगीमहंगी गाडि़यों को दौड़ते आप ने देखा होगा. यहां की सड़कों पर ड्राइव का अलग ही मजा होता है. लेकिन बारिश के बाद दुबई में घुटनों तक पानी भर गया जिस में जगहजगह गाडि़यां फंस गईं और शहर में ही नाव चलने लगी.

अब सवाल है कि जिस दुबई में पूरे साल में 140 से 200 मिलीमीटर बारिश होती है, वहां 24 घंटे में ही 160 मिलीमीटर बारिश कैसे हो गई? पूरे साल यहां भीषण गरमी पड़ती है और अधिकतम तापमान 50 डिग्री सैल्सियस तक पहुंच जाता है. यहां हमेशा पानी की कमी रहती है. इसीलिए यहां की सरकार हर साल क्लाउड सीडिंग यानी कृत्रिम बारिश का सहारा लेती है. क्या यही कारण रहा यहां की तबाही का? क्या क्लाउड सीडिंग सुहाने मौसम की गारंटी बनेगा?

जी हां, भविष्य में क्लाउड सीडिंग सुहाने मौसम की गारंटी देने वाला है. वैज्ञानिक अब जब चाहें बारिश करा देंगे और रोक भी देंगे. जी हां यह संभव है. संगीत सम्राट तानसेन ऐसा ही करते थे. तानसेन राग मल्हार गा कर बारिश करवा देते थे. ऐसी और भी कई कथाएं प्रचलित हैं. दरअसल, क्लाउड सीडिंग, जब बारिश की कमी से फसलें सूख रही हों और कोई बड़ा क्षेत्र सूखे की चपेट में आ जाए वहां बारिश कराने के लिए वैज्ञानिकों ने एक नया तरीका खोजा. उसे क्लाउड सीडिंग या कृत्रिम वर्षा कहते हैं. क्लाउड सीडिंग का पहला प्रयोग 1946 में अमेरिकी रसायन और मौसम विज्ञानी विंसेंट जे सेफर द्वारा किया गया था और इस के बाद से इसे कई देशों में समयसमय पर उपयोग किया जाने लगा.

अब शादी में बारिश खलल नहीं डालेगी

शादी के फंक्शन के लिए लोग बहुत मेहनत से तैयारियां करते हैं. कपड़े और सजावट से ले कर अच्छे खाने तक. पर यदि शादी के दौरान बारिश हो जाए तो सारी मेहनत बेकार हो जाती है और मेहमानों को भी परेशानी होती. ऐसे में यदि कोई कंपनी आप की शादी के दिन आप के क्षेत्र में बारिश को रोकने और सुहाने दिन की गारंटी दे तो कैसा रहेगा? जी हां, ऐसे कुछ क्लाउड सीडिंग करने वाली कंपनियां यूरोप और दुनिया के कई अलगअलग भागों में हैं जो आप की शादी के दिन बारिश न होने और खुले आसमान की गारंटी देती हैं. पर इन कंपनियों का पैकेज लगभग क्व1 लाख से शुरू होता है.

अब बारिश के कारण खेल रद्द नहीं होंगे

आप को कितना बुरा लगता होगा जब स्टेडियम में क्रिकेट मैच शुरू होते ही बारिश आ जाए. घंटों इंतजार के बाद भी खेल शुरू न हो और अंत में अंपायर खेल को रद्द कर दें. घबराएं नहीं, अब किसी भी खेल में बारिश दखल नहीं दे पाएगी. वैज्ञानिक बारिश वाले बादल को स्टेडियम तक आने ही नहीं देंगे. पानी भरे बादल को स्टेडियम से दूर कहीं और बरसा देंगे. यह सब क्लाउड सीडिंग द्वारा होगा.

चाइना की राजधानी बीजिंग में 2008 में जब ओलिंपिक गेम्स खेले गए थे तब चाइनीज गवर्नमैंट ने ओलिंपिक गेम्स की ओपनिंग और क्लोजिंग सेरेमनी से पहले क्लाउड सीडिंग के द्वारा पहले ही बारिश करा दी थी ताकि बादलों में नमी कम हो जाए और ओलिंपिक गेम्स की ओपनिंग और क्लोजिंग सेरेमनी के दौरान बारिश न हो तथा स्टेडियम सूखे रहें. लेकिन तब उन्होंने क्लाउड सीडिंग के लिए हवाईजहाज के बजाय मिसाइल का प्रयोग किया था.

रेन थैफ्ट का आरोप

क्लाउड सीडिंग भविष्य में आपस में  झगड़ने का बहुत बड़ा कारण बनेगा क्योंकि बारिश की चोरी होगी तो लोग आपस में लड़ेंगे. चीन में क्लाउड सीडिंग का उपयोग बहुत अधिक होता है.  इसी वजह से वहां ऐसे मामले भी आते रहते हैं जहां एक प्रांत दूसरे प्रांत पर बारिश चोरी करने यानी रेन थैफ्ट का इलजाम लगाता है. चाइना में वर्षा के दिनों में जब मौनसूनी बादल वर्षा ले कर आते हैं तो बादलों के रास्ते में पड़ने वाला कोई एक प्रांत क्लाउड सीडिंग कर के अपने यहां ज्यादा बारिश करवा देता है. इस से बादलों की बूंदें बहुत कम हो जाती हैं. फिर जब भी बादल आगे बढ़ कर किसी दूसरे प्रांत में जाते हैं तो उस को कम बारिश मिलती है क्योंकि बादल पहले ही काफी हद तक बरस चुके होते हैं. फिर यह प्रांत जिसे कम बारिश मिली होती उस प्रांत पर आरोप लगता है कि उस ने इस की बारिश चुरा ली.

युद्ध में हथियार के रूप में

क्लाउड सीडिंग का उपयोग युद्ध में हथियार के रूप में भी किया जाता रहा है. वियतनाम वार के दौरान वहां पर औपरेशन पोपोई के तहत यूएस एअरफोर्स द्वारा 1967 से 1972 के बीच एक खाई के पास एक खास स्थान पर बहुत अधिक बारिश कराई गई ताकि बाढ़ और भूस्खलन से उस सड़क को खराब किया जा सके, जिस सड़क से वहां की वियतनामी मिलिटरी को सभी जरूरी सामान पहुंचाया जाता था. इस प्रकार क्लाउड सीडिंग का उपयोग युद्ध में हथियार के रूप में भी किया जा चुका है.

ऐसा नहीं है कि भारत में क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल नहीं होता. तमिलनाडु सरकार ने सूखे से बचने के लिए 1983, 84, 87 और 94 में इस तकनीक का उपयोग किया था. 2003-04 में कर्नाटक और महाराष्ट्र सरकार द्वारा भी क्लाउड सीडिंग का उपयोग किया गया.

फौग से मिलेगी राहत

दिल्ली में हर साल सर्दियों में फौग और स्मोक मिल कर स्मौग बन जाता है और प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ जाता है. ऐसे में प्रदूषण से बचने के लिए वहां क्लाउड सीडिंग द्वारा अगर बारिश करा दी जाए तो इस से राहत मिल सकती है. कई देश ऐसा करते भी हैं. साथ ही कुछ देशों में एअरपोर्ट के आसपास फौग हटाने के लिए भी क्लाउड सीडिंग की मदद ली जाती है ताकि हवाईजहाज की लैंडिंग और टेक औफ में आसानी हो.

सरकारी वर्षा की आस

कभीकभी बारिश के मौसम में भी बारिश नहीं होती और सूखा पड़ जाता है. इस की वजह से पूरी की पूरी फसलें तबाह हो जाती हैं. ऐसे में वैज्ञानिक आर्टिफिशियल रेन का सहारा लेते हैं. इस प्रक्रिया में कुछ खास तकनीक की मदद से बारिश वाली वही प्राकृतिक प्रक्रिया कृत्रिम रूप से कराई जाती है. क्लाउड सीडिंग का सब से पहला प्रदर्शन फरवरी, 1947 में आस्ट्रेलिया में हुआ था. भारत में क्लाउड सीडिंग का पहला प्रयोग 1951 में हुआ था. दरअसल, भारत में क्लाउड सीडिंग का प्रयोग सूखे से निबटने और डैम वाटर लैवल बढ़ाने में किया जाता रहा है. इसलिए किसानों की आम बोलचाल की भाषा में सरकारी वर्षा भी कहा जाता है.

इलैक्ट्रिकली चार्ज बादल से बरसात

बादलों को इलैक्ट्रिकली चार्ज कर के भी बारिश कराई जा सकती है. यह एक नई तकनीक है. पिछले साल जुलाई में भरी गरमी से परेशान संयुक्त अरब अमीरात ने ड्रोन के जरीए बादलों को रिचार्ज कर के अपने यहां कृत्रिम बारिश कराई थी. इस में बादलों को बिजली का  झटका दे कर बारिश कराई गई थी. इलैक्ट्रिक चार्ज होते ही बादलों में घर्षण हुआ और दुबई और आसपास के शहरों में  झमा झम बारिश हुई. हालांकि यह तकनीक थोड़ी सी महंगी होती है.

इस बारिश के फायदेनुकसान भी कई हैं. गरमी का बहुत अधिक बढ़ जाना, सूखी फसलें, जीवजंतुओं को बचाने और वायु प्रदूषण जैसी समस्या से निबटने के लिए कृत्रिम बारिश सहायक होती है. लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि प्रकृति ने बारिश कराने की व्यवस्था अपनेआप बनाई है. वह हमारी जमीन और पूरे वातावरण को सेहतमंद बनाती है. लेकिन स्थान की प्रवृत्ति, हालात और जरूरत को सम झे बिना आननफानन में कृत्रिम बारिश कराना नुकसानदेह साबित हो सकता है.

इस के अलावा भले ही फसलों को बचाने के लिए कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन इस में इस्तेमाल की जाने वाली सिल्वर एक जहरीली धातु है जो वनस्पति और जीवों को धीरेधीरे गहरा नुकसान पहुंचा सकती है. एक और चीज हमें दिमाग में रखनी होगी कि अलगअलग इलाकों में बादलों की बनावट अलगअलग होती है. चीन में इस बारिश कराने के तौरतरीकों को ले कर खासतौर पर इसलिए सवाल उठ रहे हैं क्योंकि इस में कई शहर गैस चैंबर में बदल चुके हैं. शहरों में कृत्रिम बारिश सामान्य न रह कर ऐसिड रेन में बदल जाती है जो ज्यादा नुकसानदेह होती है.

राजस्थानी जायकों की बात निराली, आपने गुड़ और बाजरे की रोटी चखा क्या ?

राजस्थानी संस्कृति भारतीय सभ्यता का एक अभिन्न अंग है. यहां की बोली, पहनावा, परंपराएं सभी भारतीयता से ओतप्रोत हैं. जहां संस्कृति की बात आती है, वहीं भाषा, पहनावा, परंपरा इन सभी को बहुत महत्त्व प्रदान किया जाता है. फिर भला राजस्थानी खाना इस का भाग क्यों नहीं बने. न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी राजस्थानी खाना प्रसिद्ध है. राजस्थानी खाने में यहां की खुशबू आती है.

राजस्थान की मिट्टी सरसों, बाजरा, गेहूं, तिलहन आदि की जननी है और भारतवर्ष में कई उपजें ऐसी हैं जो सर्वाधिक राजस्थान में ही उगाई जाती हैं. इन सब चीजों से राजस्थान में अलगअलग तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं. राजस्थान की गलीगली में सर्दियों के और गरमियों के खाने की धूम रहती है.

कुछ खाने रसभरे, कुछ चटाकेदार तो कुछ नमकीन और कुछ मिठास से भरे हुए होते हैं. जहां राजस्थान दर्शन करने जाओ वहीं कुछ न कुछ विशेष प्रकार का भोजन खाने को मिल जाता है. देशीविदेशी सैलानियों का विशेष आकर्षण केवल यहां के पर्यटन स्थल ही नहीं हैं यहां का खाना भी इस की संस्कृति का विशेष भाग है जिस के लगाव से पर्यटक आते हैं और लजीज खाने का लुत्फ उठाते हैं.

स्वाद का अनोखापन संस्कृति

वैसे तो बहुत सारे खाने प्रसिद्ध हैं पर कुछ खाने विशेष रूप से यहां की पैदाइशें हैं. स्वाद का अनोखापन संस्कृति की श्रेष्ठता का प्रतिपादन करता है. मुख्य राजस्थानी खानों में भुजिया, सांगरी, दालबाटी, चूरमा, दाल की पूरी, मालपूआ, घेवर, हलदी की सब्जी, बीकानेर का रसगुल्ला, पटोर की सब्जी, बाजरे की रोटी, पंचकूट की सब्जी, गट्टे की सब्जी आदि आते हैं. राजस्थान में जोधपुर की मावे की कचौरी और मिर्ची बड़ी प्रसिद्ध है.

कुछ खाने ऐसे हैं जो अलग प्रकार से बनाए जाते हैं. सब से पहले इस सांस्कृतिक शृंखला में आती है- राजस्थान की कैर सांगरी की सब्जी जो स्वाद में अलग और बनाने में अनोखी. राजस्थानी जायके के साथ मौसम के अनुकूल कैर सांगरी की सब्जी बहुत ही अच्छी होती है. इस सब्जी की सब से बड़ी विशेषता यह है कि यह 3-4 दिन तक खराब नहीं होती है. राजस्थानी संस्कृति के विशेष त्योहार शीतला अष्टमी पर इसे मुख्य तौर पर बनाया जाता है. राजस्थान में इस तरह की सब्जियां बनाई जाती हैं जो घरेलू रसोई के सामान से ही बनाई जाती हैं.

गट्टे की सब्जी बेसन से बनती है जोकि हर घर में मिल ही जाता है. बड़ी मोटी सेव टमाटर की सब्जी, मिर्ची के टिपोरे, राजस्थान की कड़ी, हलदी की सब्जी, चक्की की सब्जी, गुलाबजामुन की सब्जी ऐसी सब्जियां हैं जिन के लिए हरी सब्जियों की नहीं अपितु बनी हुई सामग्री से बनती हैं. स्वाद और स्वास्थ्य दोनों ही राजस्थान की संस्कृति की सब्जियों के भाग हैं.

मजेदार स्वाद

मीठे में राजस्थानी बालूशाही, घेवर, मावे की कचौरी, ब्यावर की तिलपट्टी, मलाई घेवर, बीकानेर रसगुल्ला,चमचम व अलवर का मावा बहुत अधिक प्रसिद्ध है. वहीं यहां का चूरमा दालबाटी बेहद प्रसिद्ध है और राजस्थानी थाली का सर्वाधिक मुख्य भाग है.

गेहूं के आटे का चूरमा, बाजरे का चूरमा साथ में दालबाटी की खुशबू यहां की संस्कृति को बेहद सुगंधित बनाती है और उस में लगने वाला देशी घी का छौंक, बाटी का घी वाह क्या बात है, बन गया बेहतरीन खाना. यही तो है राजस्थानी खाना और उस की संस्कृति. पुष्कर के मालपूए, नसीराबाद का कचौरा और अजमेर की कड़ीकचौरी. किसकिस खाने का नाम लें सब अनोखे और स्वास्थ्यवर्द्धक हैं. यहां का घेवर खासकर मलाई घेवर विदेशी केक को फेल कर देता है.

गुड़ और बाजरे की रोटी

गुड़ और बाजरे की रोटी सर्दियों के मुख्य आहार में से एक हैं. सर्दियों में यहां बाजरे की खिचड़ी और मकई का दलिया भी बनाया जाता है जोकि शरीर को चुस्तदुरुस्त रखता है. राजस्थानी खाना भारत का प्राचीन गौरव है. पर्यटकों का आकर्षण परंपरा का आह्वान करते हुए बेहतरीन लजीज खाना जिस ने न केवल हमारी संस्कृति परंपरा को बनाए रखा है अपितु पर्यटन उद्योग और खाद्यपदार्थों से संबंधित उद्योगों को भी बढ़ावा दिया है.

राजस्थान के पापड़ और अचार ने भी इस वित्तीय कार्यक्रम को आगे पहुंचाया है. अब हम कह सकते हैं कि राजस्थानी संस्कृति इस अभिन्न अंग को हमेशा जड़ों से जुड़े रहना चाहिए ताकि हमें स्वाद का यह संगम हमेशा मिलता रहे और खानपान की हमारी संस्कृति हमेशा हमारे साथ रहे.

मिठाइयों का लुत्फ

राजस्थान के कुछ शहरों के कुछ स्थानीय व्यंजनों के लिए जाने और पहचाने जाते हैं. सब से पहले गुलाबी नगरी यानी जयपुर के बारे में बात कर लेते हैं. यहां का दालबाटी चूरमा बहुत प्रसिद्ध है. यह व्यंजन जयपुर में आप को हर जगह मिलेगा लेकिन विरासत रेस्तरां आदि की बात ही अलग है. जहां तक घेवर की बात तो भी पूरे राजस्थान में मिल जाता है लेकिन यह सब से ज्यादा जायकेदार लक्ष्मी मिष्ठान्न भंडार यानी एलएमबी जोकि जयपुर में जौहरी बाजार में स्थित है वहां मिलता है.

घेवर कई प्रकार के होते हैं जैसेकि सादा घेवर, मावे वाला घेवर, मलाई वाला घेवर. जयपुर का रावत मिष्ठान्न भंडार अपनी मिठाई के लिए प्रसिद्ध है. यहां अलगअलग प्रकार की मिठाइयों का लुत्फ लिया जा सकता है विशेष तौर पर यहां की प्याज की कचौरी तो बात ही अलग है.

जयपुर की तरह जोधपुर भी अपने व्यंजनों के लिए अच्छाखासा प्रसिद्ध है. सब से पहले यहां की मखनिया लस्सी की बात कर लेते हैं जो कि छाछ का एक मलाईदार मिश्रण है जिस में मेवा, केसर, गुलाबजल आदि सामग्री मिलाई जाती है. इस के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान है श्री मिश्रीलाल होटल, क्लौक टावर के पास सिर्फ, जोधपुर. मिर्चीबड़ा भी जोधपुर का बहुत ही प्रसिद्ध व्यंजन है जोकि गरम चाय के साथ अच्छा नाश्ता है. यह अकसर टोमैटो सौस और हरी चटनी के साथ परोसा जाता है. इस के लिए रौयल समोसा नामक जगह प्रसिद्ध है. जोधपुर की गुलाबजामुन की सब्जी, मावे की कचौरी, कैर सांगरी की सब्जी, हलदी और चक्की की सब्जी आदि प्रसिद्ध हैं.

मिठाइयों में तो गुलाब हलवा बहुत ही जानीपहचानी डिश है. यह शुद्ध देशी घी एवं पिश्ते से बना एक पोषक युक्त हलवा है. इस के लिए गुलाब हलवा वाला, थ्री बी रोड, सरदारपुरा प्रसिद्ध है.

बीकानेरी व्यंजनों की खासीयत

बीकानेर भी अपने व्यंजनों की खासीयत के लिए प्रसिद्ध शहर है. यहां का मीठा और स्पंजी रसगुल्ला एक अलग पहचान रखता है. यहां रसगुल्ले अलगअलग प्रकार के मिलते हैं.

यह व्यंजन आप को 56 भोग नामक स्थान पर जायकेदार मिलेगा. बीकानेर भुजिया भी जानापहचाना व्यंजन है. पूरे देश में यह अपनी अलग पहचान रखती है. यह यों तो शहर में आप जहां भी जाएंगे मिल जाएगी लेकिन छोटी मोटी जोशी मिठाई की दुकान पर जा कर इस का स्वाद चखकर तो देखिए आप को मजा आ जाएगा.

अब एक और शहर के व्यंजन को मजा लेते हैं. इस में अलवर का मिल्क केक, गट्टे की सब्जी, अलअजीज रेस्तरां, शालीमार गेट के पास, भगवानपुरा, अलवर से ले सकते हैं, वहीं मिल्क केक के लिए ठाकुर दास ऐंड संस की दुकान बहुत लोकप्रिय है.

विविध भोजन का आनंद लेने हेतु मोती डूंगरी बस टर्मिनल के पास काफी अच्छे भोजनालय हैं जहां से आप भोजन का मजा ले सकते हैं. जैसलमेर में देशविदेश के पर्यटक बहुतायत में आते हैं तो यदि आप राजस्थानी थाली की तलाश में हैं तो प्लेस व्यू रेस्तरां में जाएं. यहां की मखनिया लस्सी के लिए कंचन श्री प्रसिद्ध हैं. यहां के घोटुआं लड्डू मशहूर हैं. मिठाइयां विशेष रूप से घोटुआं लड्डू के लिए धनराज रावल भाटिया की मिठाई की दुकान प्रसिद्ध है.

पारंपरिक भोजन

चित्तौड़गढ़ अपने किलोग्राम, पर्यटन स्थल के लिए बहुत प्रसिद्ध है. यह ऐतिहासिक तौर पर समृद्ध शहर है. यहां का स्थानीय खाना चखने का मजा आप अपने पर्यटन के दौरान ले सकते हैं. यहां का अरावली हिल रिजोर्ट शाकाहारी भोजन करने वालों की पसंदीदा जगह है. यह पारंपरिक भोजन अलग ही नवीनता लिए हुए है.

आप यहां पर नवीन और पारंपरिक भोजन का अलग ही तालमेल देख सकते हैं. यह रिजोर्ट उदयपुरकोटा राजमार्ग, सर्किल, किले के पीछे सेमलपुरा, चित्तौड़गढ़ पर स्थित है. राजसी रिजोर्ट अपनी पाक कला के लिए जाना जाता है. यह प्रामाणिक राजस्थानी व्यंजन बनाने के लिए माहिर है. यहां का घेवर जरूर चखना चाहिए.

राजस्थान का माउंट आबू एक अच्छा हिल स्टेशन है. यहां पर एक डिश कीचुचु विशेष रूप से प्रसिद्ध है जोकि चावल के आटे से बना नाश्ता है. माउंट आबू के गट्टे की खिचड़ी प्रसिद्ध है. जोधपुर भोजनालय टैक्सी स्टैंड पर माउंट आबू में यह आप को आसानी से मिल जाएगी.

बौलीवुड में ग्रुपबाजी बहुत है : शबीना खान

‘मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं,’ ‘प्रेम रतन धन पायो,’ ‘ऊंचाई’ और ‘गदर 2’ सहित कई सफलत व बड़े बजट की फिल्मों में नृत्य निर्देशन कर चुकीं शबीना खान का आज बौलीवुड में अपना एक अलग मुकाम है. मगर इस मुकाम तक पहुंचने के लिए शबीना खान व उन के पूरे परिवार को अपने समाज, अपने खानदान से बहुत कुछ  झेलना पड़ा. वास्तव में शबीना खान का संबंध एक कंजर्वेटिव मुसलिम (पठान) समुदाय से है.

पढ़ाई में तेज होने के बावजूद घर के हालात कुछ ऐसे थे कि वे 9 वर्ष की उम्र में ‘मधुमती डांस ऐंड ऐक्टिंग अकादमी’ में उर्दू पढ़ाने व अभिनय सीखने जाने लगी थीं. वहीं पर उन्होंने शास्त्रीय नृत्य भी सीखा. फिर 13 वर्ष की उम्र में वह सहायक नृत्य निर्देशक के रूप में बौलीवुड से जुड़ गईं.

इस बात की खबर मिलते ही उन के खानदान के लोगों ने शबीना के मातापिता से कहा कि उन की बेटियां संगीत व नृत्य का काम न करें पर शबीना के मातापिता ने नहीं रोका. तब इन के परिवार को खानदान से बाहर का रास्ता दिखा दिया.

18 साल की उम्र में राम गोपाल वर्मा ने शबीना को 2003 में प्रदर्शित फिल्म ‘मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं’ में स्वतंत्र रूप से नृत्य निर्देशक बना दिया. तब से उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.

पेश हैं, शबीना खान से हुई मुलाकात के कुछ खास अंश:

शबीना खान से हम ने लंबी बातचीत की, जोकि इस प्रकार रही. क्या आप के घर में संगीत व नृत्य का कोई माहौल रहा है?

हमारे परिवार में कला, संगीत या डांस का कोई माहौल नहीं रहा है. मेरी परवरिश कंजरवेटिव/दकियानूसी मुसलिम परिवार में हुई है. हम लोग पठान हैं. कंजरवेटिव का मतलब यह नहीं है कि हम लोग पढ़ेलिखे नहीं हैं. सभी को पता है कि इसलाम धर्म का पालन करने का मतलब सिर पर दुपट्टा होना अनिवार्य है. मु झे घर की जरूरतों को देखते हुए बहुत छोटी उम्र में काम करना शुरू करना पड़ा तो मैं हिजाब ले कर ही काम करती थी.

मैं ‘मधुमती डांस ऐंड ऐक्टिंग अकादमी’ में खुद अभिनय सीखती थी और दूसरों को वहां पर उर्दू भाषा सिखाती थी. मु झे हिंदी, उर्दू, फारसी व अंगरेजी भाषाएं आती हैं. मैं ने वहीं से शास्त्रीय नृत्य की भी विधिवत शिक्षा ली है. खानदान ने हमारे पिताजी को धमकी दी कि अगर उन की बेटियां संगीत व नृत्य से जुड़ा काम करेंगी तो खानदान से समाज से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा. आप की बेटियों से हमारे लड़के शादी नहीं करेंगे. आप की बेटियों की शादी नहीं हो पाएगी. खानदान की इस धमकी के आगे  झुकने के बजाय हमारे मातापिता ने हमारा साथ दिया.

मेरी मम्मी ने कहा कि ऐसी कम्युनिटी किस काम की जो हमें सपोर्ट तो नहीं कर रही है लेकिन हमारे बच्चों को आगे बढ़ने से रोक रही है. आज यह काम करना हमारी जरूरत है. हम अपनी बेटियों से जबरन काम नहीं करवा रहे हैं. हमारी बेटियां भी इस काम को करना चाहती हैं. अगर हमारी बेटियों को लगता है कि उन्हें कुछ रचनात्मक काम करना है तो हम उन्हें सपोर्ट करेंगे. हमारे पापा ने उन से कह दिया कि ठीक है कोई बात नहीं.

उस के बाद मेरे पापा ने मु झ से कहा कि हमारा खानदान हमारे साथ नहीं है, फिर भी हम आप को सपोर्ट कर रहे हैं तो अब आप को भी हमारी इज्जत व मानसम्मान को बरकरार रखना होगा. आप जिस जगह काम करने जा रहे हो, वहां पर मन लगा कर ईमानदारी से काम करो. फालतू बातें नहीं, अफेयर नहीं. उस के बाद हमारे मम्मीपापा हम लोगों को ले कर पूरे खानदान से अलग हो गए. मेरी मम्मी ने अपनी पसंद के लड़के के साथ छोटी उम्र में ही मेरी शादी भी करवा दी. मेरे मम्मीपापा ने हमारे लिए रास्ते खोले तो हम ने भी उन की इज्जत को बनाए रखा.

हम काम करते रहे पर माथे तक हम दुपट्टा ले कर काम करते थे. इस की वजह से पसीना आता था और मु झे माइग्रेन की बीमारी हो गई. तब डाक्टरों ने मु झ से कहा कि सिर मत ढको. सिर ढकने पर जो पसीना निकलता है उसी के चलते यह माइग्रेन की बीमारी हो रही है. तब से मैं जहां जरूरत होती है वहां पर सिर ढक लेती हूं.

जिस खानदान ने आप लोगों का विरोध कर आप को समाज से बाहर का रास्ता दिखाया, अब वही समाज वापस आप लोगों के साथ क्यों जुड़ा?

इस के 2 पहलू हो सकते हैं. पहला यह कि अब शबीना को शोहरत मिल गई है तो जब उन के बच्चों की शादी होगी, तब वह गर्व से दूसरों से कह सकेंगी कि उन की कजिन इतनी बड़ी कोरियोग्राफर है, दूसरा पहलू यह हो सकता है कि तमाम विरोधों के बावजूद बच्चों ने मेहनत की. सामाजिक मानमर्यादा का खयाल रखते हुए अच्छा काम किया. तो मैं अच्छा पहलू यह देखती हूं कि खानदान के लोग अब पछताते हैं कि हम ने तुम्हारा साथ नहीं दिया पर तुम अपनी मेहनत के बल पर एक मुकाम पा गई हो. हम तुम्हें आशीर्वाद देते हैं.

क्या आप को लगता है कि धर्म कहीं न कहीं इंसान की प्रगति में बाधक भी बनता है?

जी नहीं. कम से कम मेरी राह में धर्म बाधक नहीं बना. धर्म के नाम पर खानदान व समाज ने हमारी राह में कांटे बोए पर हम नहीं रुके.

सहायक कोरियोग्राफर/नृत्य निर्देशकसे स्वतंत्र रूप से कोरियोग्राफर बनना कैसे संभव हुआ?

मैं तो कोरियोग्राफर/नृत्य निर्देशक बनना ही नहीं चाहती थी. मैं तो डाक्टर बनना चाहती थी. मैं पढ़ाई में बहुत तेज थी. पहली कक्षा से स्नातक तक मेरे 90त्न से अधिक नंबर आते रहे हैं. मगर घर के हालात कुछ ऐसे थे कि मुझे छोटी उम्र में ही पढ़ाई के साथ काम भी करना पड़ा. मैं तो काम इसलिए भी कर रही थी ताकि डाक्टरी की पढ़ाई के पैसे आसानी से दे सकूं.

स्नातक के फाइनल साल की परीक्षा संपन्न होती उस से पहले ही रामगोपाल वर्मा ने मु झे बुलाया और कहा कि तुम्हें ‘मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं’ में कोरियोग्राफर बना दिया. उस वक्त मैं 17 वर्ष की थी. मेरे सारे निर्णय मेरी मम्मी लेती थीं. जब रामगोपाल वर्माजी ने मुझे बुला कर यह काम दिया तो पहले मेरी मम्मी ने उन से कहा कि यह तो अभी बच्ची है, नहीं कर पाएगी. तब उन्होंने मम्मी को सम झा दिया कि एक गाना कर के देखने दो. मैं ने पहला गाना कोरियोग्राफ किया और मु झे इतना मजा आया कि क्या कहूं. यह गाना मेरा अपना क्रिएशन था.

उसे जब मैं ने परदे पर देखा तो मैं ने अपनी मम्मी से कहा कि अब मु झे यही करना है. अब मु झे डाक्टर नहीं बनना है. इस फिल्म के बाद फिल्म इंडस्ट्ी ने मु झे हाथोंहाथ लिया. राम गोपाल वर्माजी ने अपनी हर फिल्म मु झे ही दी. मैं ने उन की मुंबई में अंतिम फिल्म ‘सत्चा 2’ तक सभी फिल्में कीं.

शिखर पर पहुंचने में इतना वक्त क्यों लगा?

मेरी भी सम झ में नहीं आया. मैं उन दिनों बहुत छोटी थी इसलिए फिल्म इंडस्ट्री और इस की कार्यशैली को सम झ नहीं पा रही थी. मैं इस मसले पर विशेष टिप्पणी तो दे नहीं पाऊंगी कि ऐसा क्यों हुआ लेकिन मु झे पता है कि लोग गु्रप बनाबना कर काम रहे हैं जैसाकि मैं ने पहले ही कहा था कि मैं कभी किसी गु्रप का हिस्सा नहीं रही. मैं किसी फिल्मी पार्टी में नहीं जाती. मेरे घर का माहौल बहुत अलग है. जब आप का कैरियर अच्छा चल रहा था, तभी 2008 में आप ने शादी कर ली. उस वक्त यह डर नहीं लगा कि शादी से कैरियर में रुकावट आ सकती है?

हुआ यह कि मेरी मम्मी बीमार थीं. हम 5 भाईबहन हैं. मैं सब से बड़ी हूं. डाक्टर ने मम्मी से एक औपरेशन करवाने के लिए कहा तो मम्मी ने सोचा कि यदि औपरेशन में उन्हें कुछ हो गया तो शबीना जिम्मेदारी से अपने भाईबहनों को आगे बढ़ाएगी पर खुद शादी नहीं करेगी. इसलिए उन्होंने मु झ से कम उम्र में ही शादी करने के लिए कहा. मैं ने उन से कहा कि ठीक है, मैं आप की पसंद के मुसलिम लड़के से ही शादी करूंगी पर मैं उस से मिल कर 2-3 सवाल पूछूंगी, उस के बाद ही हां या न कहूंगी. लड़का भी फिल्मी दुनिया से जुड़ा हुआ था पर दुबई में रहता था.

मैं उस से मिली तो मैं ने उस से कहा कि शादी के बाद भी मैं कोरियोग्राफर का काम नहीं छोड़ूंगी. दूसरी बात मैं 1 रुपए से ले कर चाहे जितना कमाऊं उस पर आप का अधिकार नहीं होगा. मैं अपनी कमाई का पूरा हिस्सा या कुछ भाग अपने मम्मीपापा को दूं तो आप को ऐतराज नहीं होना चाहिए. लेकिन आप के पैसों पर मेरा हक होगा. उस ने मेरी बात मान ली तब मैं ने शादी कर ली.

पहले तो फिल्म की सफलता का सारा दारोमदार फिल्म के गाने की सफलता पर निर्भर करता था मगर अब ऐसा नहीं हो पा रहा है?

मैं इतना जानती हूं कि गाने पर ही फिल्म का प्रोमो बनता है. गाने पर ही फिल्म का टीजर और टेलर भी बनता है. इस बात की चर्चा होती है कि एक गाने के फिल्मांकन पर कितना बड़ा बजट खर्च किया गया और उसी हिसाब से गाने को बड़ा बताया जाता है. 1-1 गाना भी रिलीज किया जाता है. प्रोमो, टीजर व टेलर देख कर ही दर्शक थिएटर तक जाते हैं. इस का मतलब आज भी गाने के आधार पर ही दर्शकों को थिएटर के अंदर बुलाया जाता है. इस से फिल्म का कोरियोग्राफर भी बड़ा हो जाता है. मगर फिल्म का हर गाना हिट नहीं होता. हर फिल्म के 1 या 2 गाने ही हिट होते हैं. उन की बदौलत ही फिल्म सफल होती है.

मेरा घर: बेटे आरव को लेकर रंगोली क्यों भटक रही थी

रंगोली अपने दफ़्तर से जब घर पहुंची तो आरव ने रोरो कर पूरा घर सिर पर उठा रखा था. रंगोली को देखते ही उस की मम्मी ने राहत की सांस ली और आरव को उस की गोदी में पकड़ाते हुए बोली, “नाक में दम कर रखा है इस लड़के ने, पलक एक मिनट के लिए भी चैन से पढ़ नहीं पाई है.”

रंगोली बिना कुछ बोले आरव को गोद मे लिए लिए वाशरूम चली गई. बाहर आ कर रंगोली ने चाय का पानी चढ़ाया और खड़ेखड़े सब्जी भी काट दी.

चाय की चुस्कियों के साथ रंगोली आरव को सुलाने की कोशिश करने लगी. आरव के नींद में आते ही रंगोली की भी आंखें झपकने लगी थीं कि तभी मम्मी कमरे में तूफान की तरह घुसी, बोली, “रंगोली, थोड़ीबहुत मेरी भी मदद कर दिया करो, मेरे जीवन में तो सुख है ही नहीं. पहले बच्चों की ज़िम्मेदारी उठाओ, फिर उन के बच्चों की.”

रंगोली झेंपती सी बोली, “मम्मी, आरव को सुलातेसुलाते नींद लग गई थी.”

आरव को सुला कर रंगोली बाल लपेट कर रसोई में घुस गई थी. पापा व मम्मी के लिए परहेजी खाना, पलक के लिए हाई प्रोटीन डाइट और खुद के लिए, बस, जो भी दोनों में से बच जाए.

जब रंगोली रात की रसोई समेट रही थी तब तक आरव उठ गया था. रंगोली की रोज़ की यह ही दिनचर्या बन गई थी. मुश्किल से 4 घंटे की नींद पूरी हो पाती है.

रंगोली ने आरव लिए दूध तैयार किया और फिर धीरे से अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया था. अगर आरव की जरा भी आवाज़ बाहर आती थी तो सुबह मम्मी के सिर में दर्द आरंभ हो जाता था.

रंगोली की ज़िंदगी कुछ समय पहले तक बिलकुल अलग थी. रंगोली थी एकदम बिंदास और अलमस्त, दुनिया से एकदम बेपरवाह. लंबा कद, गेंहू जैसा रंग, आम के फांक जैसी आंख, मदमस्त मुसकान और घुंघराले बाल. हर कोई कालेज और दफ़्तर में रंगोली का दीवना था. पर रंगोली थी दीवानी अभय की. अभय उस के साथ ही इंजीनियरिंग कालेज में था. दोनों की मित्रता गहरी होतेहोते प्यार में परिवर्तित हो गई थी.

रंगोली के मम्मीपापा अभय के घर गए थे और अभय के मम्मीपापा के तेवर देख कर उन्होंने रंगोली को आगाह कर दिया था, ‘बेटा, ऐसा प्यार बहुत दिनों तक नहीं टिकता है. हमारे यहां प्यार 2 लोगो के बीच नहीं, बल्कि 2 परिवारों के बीच होता है. हमारा और उन का परिवार काफी भिन्न हैं.’

पर उस समय तो रंगोली को कुछ समझ नहीं आ रहा था. लड़झगड़ कर और मिन्नतें करकर के आखिरकार रंगोली ने अपने परिवार को मना ही लिया था.

अभय का परिवार भी बड़ी बेदिली से तैयार हो गया था.

जब रंगोली और अभय हनीमून पर गए तो रंगोली को अभय का व्यवहार अजीब सा लगा. रंगोली पुरुषस्त्री के रिश्तों से अब तक अनभिज्ञ ही थी. अभय न जाने क्यों प्रेमक्रीड़ा के दौरान हिंसक हो उठता था. रंगोली पूरी तरह संतुष्ट भी नहीं हो पाती थी पर अभय मुंह फेर कर सो जाता था.

हनीमून से वापस आ कर भी अभय के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया था. रंगोली को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और किस से बात करे.

अभय का परिवार जबतब रंगोली को नीचा दिखाता रहता था और अभय चुपचाप सब सुनता रहता था.

अगर रंगोली अभय से बात करने की कोशिश करती तो अभय कहता, ‘मम्मीपापा ने हमारे फैसले का सम्मान किया है. अब एक बहू के रूप में तुम्हारी ज़िम्मेदारी है कि तुम उन का दिल जीत लो.’

रंगोली एक चक्रव्यूह में फंस कर रह गई थी. दफ़्तर के 8 घंटे होते थे जब वह खुल कर सांस ले पाती थी.

रात में अभय रंगोली के शरीर को रौंदता और तड़पता हुआ छोड़ देता और दिन में अभय का परिवार रंगोली के स्वमान को रौंदता था.

रंगोली को एक बात तो समझ आ गई थी कि चाहे लव मैरिज हो या अरेंज्ड, समझौता हमेशा लड़की को ही करना होता है. इस बीच, रंगोली गर्भवती हो गई थी. रंगोली को लगा, शायद अब उस के विवाह की जड़ें मजबूत हो जाएंगी.

लेकिन आरव के जन्म के बाद भी समस्या ज्यों की त्यों ही बनी रही थी. अब रंगोली की ज़िम्मेदारी और अधिक बढ़ गई थी. रात में आरव और घर की ज़िम्मेदारी और दिन में दफ़्तर. देखते ही देखते रंगोली एक कंकाल जैसी हो गई थी.

विवाह के डेढ़ वर्ष में ही अभय रंगोली के लिए एक पहेली बन कर रह गया था. धीरेधीरे रंगोली को समझ आ गया था कि अपनी मर्दाना कमज़ोरी को छिपाने के लिए अभय उस पर हर समय हावी रहता है. रंगोली भरसक प्रयास करती थी कि उस की किसी बात से अभय की मर्दानगी को ठेस न पहुंचे पर जब एक दिन अति हो गई थी तो रंगोली अपना सामान और आरव को गोद में ले कर अपने घर आ गई थी.

रंगोली के मम्मीपापा हक्केबक्के रह गए थे. पापा तो गुस्से में बोले, ‘पहले अपनी मरजी से विवाह किया और अब यहां आ गई हो. तुम्हारी इन हरकतों का पलक पर क्या प्रभाव पड़ेगा?’

मम्मी नरमी से बोली, ‘थोड़े दिन रहने दो न. देखो न, कितनी कमजोर हो गई है.’

पर जब मम्मीपापा के घर में रहते हुए रंगोली को 2 माह हो गए तो रिश्तेदारों और पड़ोसियों के कान खड़े हो उठे थे. दिन में पासपड़ोसी मम्मीपापा को कोंचते और रात में मम्मीपापा रंगोली को, ‘कब तक इस घर में पड़ी रहोगी, अपने घर जाओ न.’

रंगोली सबकुछ सुन कर भी अनसुना कर देती थी. उस का घर कहां हैं? कई बार रंगोली को लगता, उस की स्थिति अभी भी जस की तस ही बनी हुई है. बस, मम्मीपापा के घर में कोई रंगोली के शरीर को रौंदता नहीं था. पर मानसिक शांति तो यहां भी एक पल के लिए न थी.

रंगोली अपने वेतन का 75 प्रतिशत भाग मम्मी को दे देती थी. मम्मी बड़ी बेदिली से ले कर कहती थी, ‘आजकल महंगाई इतनी है, दूध और सब्जी के भाव आसमान छू रहे हैं. पूरा एक लिटर दूध तो आरव ही पी जाता है.’ मम्मी के मुंह से यह बात सुन कर रंगोली का मन खट्टा हो जाता था.

पापा जबतब सुनाया करते, ‘यहां पर रह रही हो, इस कारण तुम्हारा निर्वाह हो भी रहा है. 50 हज़ार रुपए में तो आजकल कुछ नहीं होता.’

रंगोली यह बात सुन कर मम्मीपापा के एहसान तले दबी जाती थी.

कभी मम्मी कहती, ‘रंगोली, पलक के बारे में सोच कर मुझे रातरातभर नींद नहीं आती है. जिस की बड़ी बहन घर छोड़ कर बैठी हो, उस लड़की से कौन रिश्ता करेगा?

रंगोली को ऐसा लगने लगा था मानो उस ने मम्मीपापा के घर आ कर उन के साथ बहुत ज़्यादती कर दी है.

पलक बिना बात ही रंगोली से खिंचीखिंची रहती थी. पलक के दिमाग में यह बात बैठ गई थी कि जब तक रंगोली उन के साथ रहेगी तब तक उस का रिश्ता नहीं हो पाएगा.

आज भी पलक को लड़के वाले देखने आ रहे थे. रंगोली जब दफ़्तर जाने के लिए तैयार हो रही थी तो मम्मी बोली, ‘आज जल्दी आ जाना, घर के काम में थोड़ी मेरी मदद कर देना.’

रंगोली झिझकते हुए बोली, ‘मम्मी, आज तो दफ़्तर में औडिट है.’

मम्मी गुस्से में बोली, ‘मैं क्याक्या करूंगी अकेले? आरव को संभालू या मेहमानों को.’

रंगोली बोली, ‘मम्मी, मैं आरव को किसी सहेली के घर पर छोड़ दूंगी.’

पापा तुनकते हुए बोले, ‘आरव के लिए किसी क्रेच का इंतज़ाम कर देना, मेरी और तुम्हारी मम्मी की उम्र नहीं है छोटे बच्चे की ज़िम्मेदारी उठाने की.’

पलक बोली, ‘रंगोली दीदी, आप अच्छाखासा कमाती हो, कम से कम आरव के लिए एक मेड तो रख सकती हो.’

दफ़्तर जा कर रंगोली ने जल्दीजल्दी काम निबटाया और फिर हाफडे लेने के लिए जब बौस के पास गई तो बौस बोले, ‘रंगोली, यह तुम्हारा इस माह तीसरा हाफडे है.’

घर आ कर रंगोली ने फ़टाफ़ट पकौड़े तले, हलवा भुना और फिर जल्दी से आरव को ले कर अपने कमरे में बंद हो गई थी. रंगोली मेहमानों के सामने पड़ना नहीं चाहती थी. इस बार पलक की बात बन गई थी. जैसे ही मम्मी यह बात बताने रंगोली के कमरे में गई तो आरव एकदम से कमरे से बाहर आ गया.

मजबूरी में मम्मीपापा को रंगोली का परिचय मेहमानों से करवाना पड़ गया था. मेहमानों ने जब रंगोली से उस के घर और पति के बारे में पूछताछ की तो पापा बात संभालते हुए बोले, ‘अरे, रंगोली तो अभी आ पके आने से पहले ही आई है. हमें आरव से बहुत प्यार है, इसलिए आतीजाती रहती है.’

लड़के वालों की तरफ से लगभग बात फाइनल थी. पूरा परिवार बेहद खुश नजर आ रहा था. मम्मी रंगोली से बोली, ‘अब तुम अपने घर जाने के बारे में सोचो, रंगोली तुम्हारी गलतियों की सजा पलक को नहीं मिलनी चाहिए.’

रंगोली सोच रही थी कि उस के मम्मीपापा इतने पत्थरदिल कैसे हो सकते हैं? सबकुछ तो बता चुकी है वह उन्हें.

रंगोली रोज़ सोचती कि वह कहां जाए. उसे अपने ऊपर विश्वास नहीं था कि वह अकेली रह पाएगी.

रंगोली ने यह तय कर लिया था कि वह वापस अभय के घर चली जाएगी.

वह सुखी नहीं तो न सही, कम से कम उस के कारण पलक की जिंदगी में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए.

ऐसे ही एक दिन जब रंगोली दफ़्तर में मायूस सी बैठी हुई थी तो उस की सहकर्मी अतिका उस के पास आ कर बैठ गई और बोली, ‘रंगोली, आज पार्टी करने चलोगी क्या?’

रंगोली की अतिका से कोई दोस्ती न थी, पर न जाने क्यों रंगोली फफकफफक कर रो उठी और अपनी पूरी कहानी सुना दी.

अतिका बोली, ‘अरे, तो तुम क्यों एक बैल की तरह इधरउधर सहारे की तलाश में घूम रही हो?

तुम एक स्वतंत्र महिला हो, अपना और अपने बेटे का ख़याल खुद से रख सकती हो.’

रंगोली बोली, ‘अतिका, मेरे पास अपना घर कहां है? वह घर मेरे पति का था और यह मेरे मम्मीपापा का. मैं कैसे आरव को ले कर अकेली रह सकती हूं? गलती मेरी है, तो फिर सज़ा भी तो मुझे ही भुगतनी होगी.’

अतिका हंसते हुए बोली, ‘बेवकूफ लड़की, अपनी मरजी से विवाह करना एक गलत फ़ैसला हो सकता है पर यह कोई ऐसी गलती नहीं कि तुम्हें इस की सजा मिले. इन सामाजिक बेड़ियों से बाहर निकालो अपनेआप को और अपना घर खुद बनाओ.’

अतिका दफ़्तर में एक चालू महिला के रूप में जानी जाती थी क्योंकि वह अपनी जिंदगी को अपने हिसाब से जीती थी. लेकिन जिंदगी के इस मुश्किल दौर में अतिका ही थी जो रंगोली को समझती थी और उस की ढाल बन कर खड़ी रही थी. रंगोली को अतिका से दोस्ती करने के बाद यह बात समझ आ गई थी कि हर स्वतंत्र महिला को समाज में चालू की संज्ञा दी जाती है.

अतिका की हिम्मत देने पर ही रंगोली अपने बेटे को ले कर मम्मीपापा का घर छोड़ने का फैसला कर लिया था.

अतिका ने ही आगे बढ़ कर रंगोली को एक वक़ील से मिलवाया और रंगोली ने अभय से लीगली अलग होने का भी फ़ैसला कर लिया था. आतिका ने जब रंगोली को उस के किराए के फ्लैट की चाबी पकड़ाई, तो रंगोली की आंखों में आंसू आ गए थे.

अतिका मुसकराते हुए बोली, ‘रंगोली, फ़्लैट भले ही किराए का है पर इसे अपना घर बनाना अब तुम्हारी ज़िम्मेदारी है. अपने नाम के अनुकूल ही अपनी ज़िंदगी में रंग भर लो.’

जब रंगोली ने अपना और आरव का सामान बांध लिया तो मम्मी खुशी से बोली, ‘शुक्र है तुम ने अपने घर जाने का फ़ैसला कर लिया है.’

रंगोली मम्मी की बात सुन कर मुसकराते हुए बोली, ‘मम्मी, आप सच कह रही हैं, मैं ने अपने घर जाने का फ़ैसला ले लिया है. कब तक मैं आप के या किसी और के सहारे अपनी ज़िंदगी गुज़ारूंगी. अब आप लोगों को मेरे कारण कोई मुश्किल नहीं होगी. आरव मेरी ज़िम्मेदारी है, इस ज़िम्मेदारी को खुद पूरा करूंगी.’

पापा गुस्से में बोले, ‘क्या मतलब?’

रंगोली बोली, ‘मतलब यह है कि पापा, आज से मैं अपनी ज़िंदगी की बागड़ोर खुद अपने हाथों में लेती हूं. जो भी अच्छाबुरा होगा, सब मेरी ज़िम्मेदारी होगी. आप को मैं आरव और अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त कर रही हूं.’

मम्मी बोली, ‘पलक की ससुराल वालों से क्या कहेंगे तुम्हारे बारे में?’

रंगोली बोली, ‘बोल देना कि वह खुद की जिंदगी जी रही है.’

उस के बाद रंगोली अपने नए घर का पता लिख कर पापा के हाथ में थमा गई.

रंगोली का घर छोटा ही सही, पर अपना था जहां उस के वजूद की जड़ें मजबूती से जमी हुई थीं.

बनाना चाहती हैं सबसे खूबसूरत दुलहन, तो अपनाएं ये तरीके

अपवाद को छोड़ दें तो हर युवक या युवती को अपने पूरे जीवन में दूल्हा या दुलहन बनने का मौका केवल एक बार ही मिलता है. इस मौके पर अधिकांश युवक वरुण धवन या आदित्य धर की तरह स्मार्ट ऐंड यंग और युवतियां यामी गौतम की तरह ब्यूटीफुल दिखना चाहती हैं.

शादी के मौके पर, शादी के आयोजन का सारा जिम्मा तो परिवार वालों का ही होता है. दूल्हादुलहन के जिम्मे तो केवल शादी के समारोह के समय अपने लिए परिधान चुनना, करीबी दोस्तों को इस समारोह में शिरकत के लिए आमंत्रण देना और खुद की फिटनैस की बात सोचना ही होता है.

इस मौके पर ज्यादातर युवकयुवतियां खुद को संवारने के लिए फिटनैस हासिल करने में जुट जाते हैं. फिटनैस हासिल करने के लिए इन दिनों उन्हें जम कर मेहनत करनी होती है.

संतुलित आहार और नियमित व्यायाम

स्वराज की शादी तो तय हो गई है, लेकिन उस की शादी 2 माह बाद होगी. इस अल्पाअवधि में ही स्वराज अपनी काया में ऐसा सुधार चाहता है कि लोग उस की ससुराल वालों को कहें कि लड़का तो आप ने पढ़ालिखा तो चुना ही है, खूबसूरत भी बहुत है.

अपनों और दूसरों से अपने व्यक्तित्व की प्रशंसा पाने के लिए स्वराज ने जिम जौइन कर लिया है. वहां वह जम कर पसीना बहाता है.

स्वराज से यह सवाल करने पर कि अपनी देहकाया संवारने की बात उस ने पहले क्यों नहीं सोची, शादी के समय ही फिट बौडी की याद कैसे आई? जवाब में उस ने कहा, ‘‘मु?ो अपने दोस्त गौतम की शादी की घटना याद है. मेरे दोस्त के फेरों के समय उस की होने वाली पत्नी प्रिया की बहुत सारी सहेलियां फुसफुसा रही थीं कि प्रिया के परिवार वालों ने लड़के का सिर्फ पद और परिवार ही देखा. यह लड़का तो प्रिया का जोड़ीदार कम अंकल ज्यादा दिख रहा है. प्रिया के परिवार वालों ने काश प्रिया के लिए ढंग का लड़का देखा होता. यह जोड़ी तो बिलकुल नहीं जम रही है.

‘‘सो जनाब, मु?ो और मेरी पत्नी को ले कर अगर कोई यह कहे कि यह जोड़ी तो जरा भी नहीं जम रही तो मैं यह बिलकुल नहीं सुनना चाहता. मु?ो पूरा भरोसा है अपनी शादी से पहले फिजिकली में ऐसी फिटनैस पा लूंगा कि लोग कहें कि वाह क्या शानदार जोड़ी है. जितनी सुंदर बेगम उतना ही खूबसूरत बादशाह.’’

केवल युवक ही नहीं, शादी से पूर्व युवतियां भी फिट बौडी पाने के लिए जी तोड़ मेहनत करती हैं.

स्मृति पेशे से ज्वैलरी डिजाइनर है. अपने इस काम की वजह से उसे कई घंटों तक एक ही जगह बैठ कर काम करना पड़ता है, इसलिए वह कुछ ओवर वेट हो गईर् है.

स्मृति सोचती है कि शादी के बाद हनीमून पर निकलने के समय उस के वेट की वजह से कोई उसे अपने पार्टनर की दीदी या आंटी न समझ ले, इसलिए वह अपनी शादी सी पहले नियमित जिम जा रही हैं और इस बात से काफी खुश है कि संतुलित आहार और नियमित व्यायाम की बदौलत अब वह पहले के मुकाबले कमउम्र वाली और ताजा दम भी लग रही है.

जिम जौयन करने की जरूरत क्यों

इस सवाल के जवाब में मधु का कहना है, ‘‘प्रत्येक युवती की बौडी शेप अलगअलग होती है. किसी युवती को अपनी ब्रैस्ट शैप तो किसी को अपनी थाइज और हिप्स को ले कर प्रौब्लम होती है. इस प्रौब्लम का समाधान केवल नियंत्रित आहार, डाइटिंग या खुद अपनी मरजी से ऐक्सरसाइज करने से नहीं हो सकता. मैं जिस जिम में जाती हूं वहां लेडी इंस्ट्रक्टर भी है तो साथ में डाइटिशियन भी. इस्ट्रक्टर की मदद से जहां प्रभावित भाग को संवारने में मदद मिलती है, वहीं डाइटिशियन की मदद से संतुलित व पौष्टिक आहार लेने की गाइडैंस मिलती रहती है.’’

रत्ना के पास जिम जाने, देह संवारने के लिए वक्त नहीं है, सो उस ने अपने घर पर ही ट्रेडमिल मशीन मंगा ली है. ट्रेडमिल मशीन के माध्यम से वह अपने घर पर ही लंबी सैर का लाभ लेने की कोशिश में लगी रहती है.

विवाहपूर्व संवरने का लाभ आज भी है

विवाहपूर्व संवरने का लाभ शादी के मौके पर तो मिलता ही है, 10-20 साल बाद जब आप अपनी शादी का वीडियो देखते हैं तो एक सुखद एहसास भी होता है. तब मर्द सोचता है कि कितना स्मार्ट था वह उन दिनों. तब कितने घने बाल थे सिर पर. तब न तो वह तोंदियल था और न ही आंखों पर आज की तरह मोटा चश्मा चढ़ा था.

महिलाएं सोचती हैं कैसी सुकुमारी सी थी वह तब. जो देखता था बस देखता ही रह जाता था. इसीलिए व्यायाम की आदत हमारे जीवन का अनिवार्य हिस्सा होनी ही चाहिए. किसी कारणवश पहले भी शादी के समय यह आदत जरूर बना लेनी चाहिए और शादी के बाद उन्हें अपने से छोटे भाईबहनों को फिटनैस के गुण समझते हुए, ऐक्सरसाइज करने के लिए उत्साहित करते रहना चाहिए ताकि शादी के समय उन्हें  फिटनैस के लिए अधिक मेहनत करने की जरूरत ही न पड़े.

देवी की कृपा: अवतारी मां के अचानक आगमन से क्या सावित्री प्रसन्न थी?

‘‘रमियाजी, रुकिए,’’ कानों में मिश्री घोलता मधुर स्वर सुन कर कुछ देर के लिए रमिया ठिठक गई फिर अपने सिर को झटक कर तेज कदमों से चलते हुए सोचने लगी कि उस जैसी मामूली औरत को भला कोई इतनी इज्जत से कैसे बुला सकता है, जिस को पेट का जाया बेटा तक हर वक्त दुत्कारता रहता है और बहू भड़काती है तो बेटा उस पर हाथ भी उठा देता है. बाप की तरह बेटा भी शराबी निकला. इस शराब ने रमिया की जिंदगी की सुखशांति छीन ली थी. यह तो लाल बंगले वाली अम्मांजी की कृपा है जो तनख्वाह के अलावा भी अकसर उस की मदद करती रहती हैं. साथ ही दुखी रमिया को ढाढ़स भी बंधाती रहती हैं कि देवी मां ने चाहा तो कोई ऐसा चमत्कार होगा कि तेरे बेटाबहू सुधर जाएंगे और घर में भी सुखशांति छा जाएगी.

तभी किसी ने उस के कंधे पर हाथ स्वयं रखा, ‘‘रमिया, मैं आप से ही कह रही हूं.’’

हैरानपरेशान रमिया ने पीछे मुड़ कर देखा तो एक युवती उसे देख कर मुसकरा रही थी.

हकबकाई रमिया बोल उठी, ‘‘आप कौन हैं? मैं तो आप को नहीं जानती… फिर आप मेरा नाम कैसे जानती हैं?’’

युवती ने अपने दोनों हाथ आसमान की तरफ उठाते हुए कहा, ‘‘सब देवी मां की कृपा है. मेरा नाम आशा है और हमारी अवतारी मां पर माता की सवारी आती है. देवी मां ने ही तुम्हारे लिए कृपा संदेश भेजा है.’’

रमिया अविश्वसनीय नजरों से आशा को देख रही थी. उस ने थोड़ी दूर खड़ी एक प्रौढ़ महिला की तरफ इशारा किया जोकि लाल रंग की साड़ी पहने थी और उस के माथे पर सिंदूर का टीका लगा हुआ था.

रमिया के पास आ कर अवतारी मां ने आशीर्वाद की मुद्रा में अपना दायां हाथ उठाया. उन की आंखों से आंसू बहने लगे. उन्होंने रमिया को खींच कर अपने गले  लगा लिया और बड़बड़ाने लगीं :

‘‘मैं जानती हूं कि तू बहुत दुखी है. तुझे न पति से सुख मिला न बेटेबहू से मिलता है. शराब ने तेरी जिंदगी को कभी सुखमय नहीं बनने दिया. लेकिन तेरी भक्ति रंग ले आई है. माता का संदेशा आया है. वह तुझ से बहुत प्रसन्न हैं. अब तेरा बेटा सोहन व तेरी बहू कमली तुझे कभी तंग नहीं करेंगे.’’

रमिया हतप्रभ रह गई. देवी मां चमत्कारी हैं यह तो उस ने सुना था पर उन की ऐसी कृपा उस अभागी पर होगी ऐसा सपने में भी उस ने नहीं सोचा था.

अवतारी ने मिठाई का एक डब्बा उसे देते हुए कहा, ‘‘क्या सोचने लगी? तुझे तो खुश होना चाहिए कि मां की तुझ पर कृपा हो गई है. और हां, मैं केवल माता के भक्तों से ही मिलती हूं, नास्तिकों से नहीं. चल, पहले इस डब्बे में से प्रसाद निकाल कर खा ले और इस में कुछ रुपए भी रखे हैं. तू इन रुपयों से अपनी नातिन ऊषा की शादी के लिए जो सामान खरीदना चाहे खरीद लेना.’’

आश्चर्य में डूबी रमिया ने भक्तिभाव से ओतप्रोत हो डब्बे की डोरी खोली तो उस में तरहतरह की मिठाइयां थीं. एक लिफाफे में 100 रुपए के 10 नोट भी थे. रमिया ने एक टुकड़ा मिठाई का मुंह में डाला और भावावेश में अवतारी के पैर छूने चाहे लेकिन वह तो जाने कहां गायब हो चुकी थीं.

रमिया की नातिन ऊषा का ब्याह होने वाला था. लाल बंगले वाली अम्मांजी ने दया कर के उसे 200 रुपए दे दिए थे. उसी से वह नातिन के लिए साड़ीब्लाउज खरीदने बाजार आई थी. पर यहां देवी कृपा से मिले रुपयों से रमिया ने नातिन के लिए बढि़या सी साड़ी खरीदी, एक जोड़ी चांदी की पायल व बिछुए भी खरीदे. उस के पास 400 रुपए बच भी गए थे. इस भय से रमिया सीधे घर नहीं गई कि बेटेबहू पैसा व सामान ले लेंगे.

सारा सामान अम्मांजी के पास रखने का निश्चय कर रमिया रिकशा कर के लाल बंगले पहुंच गई. उस ने बंगले की घंटी बजाई तो उसे देख कर अम्मांजी हैरान रह गईं.

‘‘रमिया, तू बाजार से इतनी जल्दी आ गई?’’

‘‘हां, अम्मांजी,’’ कहती वह अंदर आ गई. रमिया के हाथ में शहर के मशहूर मिष्ठान भंडार का डब्बा देख कर अम्मांजी हैरान रह गईं.

‘‘क्या तू ने नातिन के लिए सामान लाने के बजाय मेरे दिए पैसों से मंदिर में इतना महंगा प्रसाद चढ़ा दिया?’’

रमिया चहकी, ‘‘अरे, नहीं अम्मांजी, अब आप से क्या छिपाना है. आप तो खुद ‘देवी मां’ की भक्त हैं…’’ और फिर रमिया ने सारी आपबीती अम्मांजी को ज्यों की त्यों सुना दी.

रमिया की बात सुन कर सावित्री देवी चकित रह गईं. रमिया जैसी गरीब और मामूली औरत को भला कोई बेवकूफ क्यों बनाएगा…फिर इतना सबकुछ दे कर वह औरत तो गायब हो गई थी. निश्चय ही रमिया पर देवी की कृपा हुई है. पल भर के लिए सावित्री देवी को रमिया से ईर्ष्या सी होने लगी. वह कितने सालों से देवी के मंदिर जा रही हैं पर मां ने उन पर ऐसी कृपा कभी नहीं की.

सावित्री देवी पुरानी यादों में खो गईं. उन का बेटा मनोज  7वीं कक्षा में पढ़ता था. गणित की परीक्षा से एक दिन पहले वह रोने लगा कि मां, मैं ने गणित की पढ़ाई ठीक से नहीं की है और मैं कल फेल हो जाऊंगा.

‘बेटा, मेरे पास एक मंत्र है’ उन्होंने पुचकारते हुए कहा, ‘तू इस को 108 बार कागज पर लिख ले. तेरा पेपर जरूर अच्छा हो जाएगा.’

मनोज मंत्र लिखने लगा. थोड़ी देर बाद मनोज के पिता कामता प्रसाद फैक्टरी से आ गए. बेटे को गणित के सवाल हल करने के बजाय मंत्र लिखते देख वह गुस्से से बौखला उठे और जोर से एक थप्पड़ मनोज के गाल पर दे मारा. साथ ही पत्नी सावित्री को जबरदस्त डांट पड़ी थी.

‘देखो, तुम अपने मंत्रतंत्र, चमत्कार के जाल में उलझे रहने के बेहूदा शौक पर लगाम लगाओ. अपने बच्चे के भविष्य के साथ मैं तुम्हें किसी तरह का खिलवाड़ नहीं करने दूंगा. दोबारा ऐसी हरकत की तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’

उस दिन के बाद सावित्री ने मनोज को अपनी चमत्कारी सलाह देनी बंद कर दी थी. मनोज पिता की देखरेख में रह कर मेहनतकश नौजवान बन गया था. वहीं सावित्री की सोच ने उसे नास्तिक मान लिया था.

मनोज का विवाह अंजना से हुआ था. अंजना एक पढ़ीलिखी सुशील लड़की थी. पति व ससुर के साथ उस ने भी फैक्टरी का कामकाज संभाल लिया था. अपने विनम्र व्यवहार से उस ने सास को कभी शिकायत का कोई मौका नहीं दिया था लेकिन बहू के साथ रोज मंदिर जाने की उन की हसरत, अधूरी ही रह गई थी. अंजना पूजापाठ से पूरी तरह विरक्त एकएक पल कर्म में समर्पित रहने वाली युवती थी.

मनोज के विवाह को 5 साल हो गए थे. सावित्री एक पोती व पोते की दादी बन चुकी थीं. तभी अचानक हुए हृदयाघात में पति का देहांत हो गया. पिता के जाने के बाद मनोज और अंजना पर फैक्टरी का अतिरिक्त भार पड़ गया था. दोनों सुबह 10 बजे फैक्टरी जाते और रात 7-8 बजे तक घर आते. इसी तरह सालों निकल गए.

सावित्री की पोती अब एम.बी.ए. करने अहमदाबाद गई थी और पोता आई.आई.टी. की कोचिंग के लिए कोटा चला गया था. वह दिन भर घर में अकेली रहती थीं. ऐेसे में रमिया का साथ उन को राहत पहुंचाता था. वह रोज रमिया को ले कर ड्राइवर के साथ मंदिर जाती थीं. मंदिर से उन्हें घर छोड़ने के बाद ड्राइवर दोबारा फैक्टरी चला जाता था. रमिया सब को रात का खाना खिला कर अपने घर जाती थी.

‘‘अम्मांजी, क्या सोचने लगीं’’ रमिया का स्वर सुन कर सावित्री देवी की तंद्रा भंग हुई, ‘‘यह देखो, मैं ने कितनी सुंदर साड़ी, पायल व बिछुए खरीदे हैं लेकिन ये सबकुछ आप अपने पास ही रखना. जब विवाह में जाऊंगी तब यहीं से ले जाऊंगी.’’

रमिया खुशीखुशी घर के कामों में लग गई. सावित्री कुछ देर तक टेलीविजन देखती रही फिर जाने कब आंखें बंद हुईं और वह सो गईं.

उस दिन रात को जब रमिया अपने घर पहुंची तो यह देख कर हैरान रह गई कि घर में अजीब सी शांति थी. उसे देख कर बहू ने रोज की तरह नाकभौं नहीं सिकोड़ी बल्कि मुसकान बिखेरती उस के पास आ कर बड़े अपनेपन से बोली, ‘‘अम्मां, दिनभर काम कर के आप कितना थक जाती होंगी. मैं ने आज तक कभी आप का खयाल नहीं रखा. मुझे माफ कर दो.’’

आज बेटे ने भी शराब नहीं पी थी. वह भी पास आ कर बैठ गया और बोला, ‘‘मां, तू इतना काम मत किया कर. हम दोनों कमाते हैं. क्या तुझे खाना भी नहीं खिला सकते? क्या जरूरत है तुझे सुबह से रात तक काम करने की?’’

रमिया को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो पा रहा था. सचमुच आज सुबह से चमत्कार पर चमत्कार हो रहा था. यह सोच कर उस की आंखें भर आईं कि बेटेबहू ने आज उस की सुध ली है. स्नेह व अपनेपन की भूखी रमिया बेटेबहू का माथा सहलाते हएु बोली, ‘‘तुम्हें मेरी इतनी चिंता है, देख कर अच्छा लगा. सारा दिन घर में पड़ीपड़ी क्या करूं. काम पर जाने से मेरा मन लग जाता है.’’

दूसरे दिन सुबह जब रमिया ने अपने बेटेबहू के सुधरते व्यवहार के बारे में अम्मांजी को बताया तो वह भी हैरान रह गईं.

रमिया बोली, ‘‘अम्मांजी, मुझे लगता है देवी मां खुद ही इनसान का रूप धारण कर मुझ से मिलने आई थीं.’’

सावित्री के मुख से न चाहते हुए भी निकल गया, ‘‘काश, वह मुझ से भी मिलने आतीं.’’

रमिया के जीवन में खुशियां भर गई थीं. बेटाबहू पूरी तरह से सुधर गए थे. उस का पूरा ध्यान रखने लगे थे. एक दिन वह शाम को डेयरी से दूध ले कर लौट रही थी कि अचानक ही अपने सामने आशा व अवतारी मां को देख कर वह हैरान रह गई. अवतारी मां ने दायां हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उठा दिया.

रमिया ने भावावेश में उन के पैर पकड़ लिए और बोली, ‘‘आप उस दिन कहां गायब हो गई थीं?’’

अवतारी मां बोलीं, ‘‘अब तुझे कभी कोई कष्ट नहीं होगा. अच्छा, बता तेरी लाल बंगले वाली सावित्री कैसी हैं? माता उन से भी बहुत प्रसन्न हैं.’’

यह सुनते ही हैरान रमिया बोली, ‘‘आप उन के बारे में भी जानती हैं?’’

अवतारी ने अपनी बड़ीबड़ी आंखें फैलाते हुए कहा, ‘‘भला, देवी से उस के भक्त कभी छिप सकते हैं? मैं भी सावत्री से मिलना चाहती हूं लेकिन उन के बेटे व बहू नास्तिक हैं. इसीलिए मैं उन के घर नहीं जाना चाहती.’’

रमिया तुरंत बोली, ‘‘आप अभी चलो. इस समय अम्मांजी अकेली ही हैं. बेटेबहू तो रात 8 बजे से पहले नहीं आते.’’

अवतारी मां ने कहा, ‘‘देख, आज रात मुझे तीर्थयात्रा पर जाना है लेकिन तू भक्त है और मैं अपने भक्तों की बात नहीं टाल सकती इसलिए तेरे साथ चल कर मैं थोड़ी देर के लिए उन से मिल लेती हूं.’’

अवतारी मां से मिल कर सावित्री की खुशी का ठिकाना न रहा. उन्होंने कुछ रुपए देने चाहे लेकिन अवतारी मां नाराज हो उठीं.

सावित्री ने अवतारी मां से खाना खा कर जाने की विनती की तो फिर किसी दिन आने का वादा कर के वह विदा हो गईं.

इस घटना को कई दिन बीत गए थे. एक दिन दोपहर के समय लाल बंगले की घंटी बज उठी. सावित्री ने झुंझलाते हुए बाहर लगे कैमरे में देखा तो बाहर आशा व अवतारी मां को खड़े पाया. उन की झुंझलाहट पलभर में खुशी में बदल गई. उन्होंने बड़ी तत्परता से दरवाजा खोला.

‘‘आप के लिए मां का प्रसाद लाई हूं. मां तुम से बहुत खुश हैं,’’ फिर इधरउधर देखते हुए अवतारी मां बोलीं, ‘‘रमिया दिखाई नहीं दे रही?’’

अम्मांजी चिंतित स्वर में बोलीं, ‘‘अभी कुछ देर पहले उस का बेटा आया था और बता गया है कि रात भर दस्त होने की वजह से उसे बहुत कमजोरी है. आज काम पर नहीं आ पाएगी.’’

अवतारी मां ने कहा, ‘‘चिंता मत करो. वह जल्दी ही ठीक हो जाएगी.’’

सावित्री के पूछने पर कि आप की तीर्थयात्रा कैसी रही, अवतारी मां कुछ जवाब देतीं इस से पहले ही फोन की घंटी घनघना उठी. सावित्री ने ड्राइंगरूम का फोन न उठा कर अपने बेडरूम में जा कर फोन उठाया. उन के बेटे का फोन था. वह कह रही थीं कि बेटा, तू चिंता मत कर, रमिया नहीं आई तो क्या हुआ, मैं कोई छोटी बच्ची तो हूं नहीं जो अकेली डर जाऊंगी.

फिर अपने स्वर को धीमा करते हुए वह बोलीं, ‘‘आनंदजी आए थे और 90 हजार रुपए दे गए हैं. मैं ने उन्हें तेरी अलमारी में रख दिया है.’’

बेटे से बात करते समय सावित्री को लगा कि ड्राइंगरूम का फोन किसी ने उठा रखा है. उन्होंने खिड़की के परदे से झांक कर देखा तो उन का शक सही निकला. फोन आशा ने उठा रखा था और इशारे से वह अवतारी को कुछ कह रही थी. सावित्री देवी तब और स्तब्ध रह गईं. जब उन्होंने अवतारी के पास मोबाइल फोन देखा, जिस से वह किसी को कुछ कह रही थी.

एसी से ठंडे हुए कमरे में भी सावित्री को पसीने आ गए. उन्होंने जल्दीजल्दी बेटे को दोबारा फोन मिलाया. उधर से हैलो की आवाज सुनते ही वह कुछ बोलतीं, इस से पहले ही अपनी कनपटी पर लगी पिस्तौल का एहसास उन की रूह कंपा गया. आशा ने लपक कर फोन काट दिया था.

दुर्गा मां का अवतार लगने वाली अवतारी अब सावित्री को साक्षात यमराज की दूत दिखाई दे रही थी.

‘‘बुढि़या, ज्यादा होशियारी दिखाई तो पिस्तौल की सारी गोलियां तेरे सिर में उतार दूंगी. चल, अपने बेटे को वापस फोन लगा कर बोल कि तू किसी और को फोन कर रही थी, गलती से उस का नंबर लग गया वरना उस का फोन आ जाएगा.’’

सावित्री कुछ कहतीं इस से पहले ही बेटे का फोन आ गया.

‘‘क्या बात है, अम्मां? फोन कैसे किया था?’’

‘‘काट क्यों दिया…’’ सावित्री देवी मिमियाईं, ‘‘मैं तुम्हारी नीरजा बूआ से बात करना चाह रही थी लेकिन गलती से तेरा नंबर मिल गया.’’

‘‘मुझे तो चिंता हो गई थी. सब ठीक तो है न?’’

‘‘हांहां, सब ठीक है,’’ कहते हुए उन्होंने फोन रख दिया.

अवतारी गुर्राई, ‘‘बुढि़या, झटपट सभी अलमारियों की चाबी पकड़ा दे. जेवर व कैश कहांकहां रखा है बता दे. मैं ने कई खून किए हैं. तुझे भी तेरी दुर्गा मां के पास पहुंचाते हुए मुझे देर नहीं लगेगी.’’

उसी समय उन के 2 साथी युवक भी आ धमके. सावित्री को उन लड़कों की शक्ल कुछ जानीपहचानी लगी.

तभी एक युवक गुर्राकर बोला, ‘‘ए… घूरघूर कर क्या देख रही है बुढि़या? तेरे चक्कर में मैं ने भी तेरी देवी मां के मंदिर में खूब चक्कर लगाए. तू जो अपनी नौकरानी के साथ घंटों मंदिर में बैठ कर बतियाती रहती थी तब तेरे बारे में जानकारी हासिल करने के लिए हम दोनों भी वहीं तेरे आसपास मंडराते रहते थे. तेरी बड़ी गाड़ी देख कर ही हम समझ गए थे कि तू हमारे काम की मोटी आसामी है और हमारे इस विश्वास को तू ने मंदिर के बाहर हट्टेकट्टे भिखारियों को भीख में हर रोज सैकड़ों रुपए दान दे कर और भी पुख्ता कर दिया.’’

सावित्री के बताने पर आननफानन में उन्होंने घर में रखे सारे जेवरात व नकदी समेट लिए. तभी अवतारी जोर से खिलखिलाई, ‘‘बुढि़या, मैं आज तक किसी मंदिर में नहीं गई फिर भी तेरी देवी मां ने तेरी जगह मुझ पर कृपा कर दी. तेरी नौकरानी रमिया के बारे में पता चला कि वह तेरे यहां 20 साल से काम कर रही है. बड़ी नमकहलाल औरत है. उस को भरोसे में ले कर तो तुझे लूट नहीं सकते थे. इसीलिए तुम्हारी धार्मिक अंधता को भुनाने की सोची.

‘‘सच कहती हूं तुम्हारे जैसी धर्म में डूबी भारतीय नारियों की वजह से ही हम जैसे लोगों का धंधा जिंदा है. रमिया के बेटेबहू को भी पिस्तौल की नोक पर मेरे ही साथियों ने कई बार धमकाया था और रमिया समझी कि मां की कृपा से उस के बेटेबहू सुधर गए. कल रात को रास्ते में मैं ने रमिया को जमालघोटा डला प्रसाद दिया था ताकि वह आज काम पर न आ सके.’’

‘‘फालतू समय खराब मत करो,’’ एक युवक चिल्लाया, ‘‘अब इस बुढि़या का काम तमाम कर दो.’’

घबराहट से सावित्री के सीने में जोर का दर्द उठा और वह अपनी छाती पकड़ कर जमीन पर लुढ़क गईं.

पसीने से तरबतर सावित्री को देख अवतारी चहकी, ‘‘इसे मारने की जरूरत नहीं पड़ेगी. लगता है इसे दिल का दौरा पड़ा है. तुरंत भाग चलो.’’

उधर फैक्टरी में अपनी आवश्यक मीटिंग खत्म होने के बाद मनोज ने दोबारा घर फोन किया.

फोन की घंटी लगातार बज रही थी. जवाब न मिलने पर चिंतित मनोज ने पड़ोसी शर्माजी के घर फोन कर के अम्मां के बारे में पता करने को कहा.

पड़ोसिन अपनी बेटी के साथ जब उन के घर पहुंची तो घर के दरवाजे खुले थे और अम्मांजी जमीन पर बेसुध गिरी पड़ी थीं. यह देख कर वह घबरा गई. डरतेडरते वह अम्मांजी के पास पहुंची और देखा तो उन की सांस धीमेधीमे चल रही थी. उन्होंने तुरंत मनोज को फोन किया.

सावित्री को जबरदस्त हृदयाघात हुआ था. उन्हें आई.सी.यू. में भरती कराया गया. गैराज में खड़ी दूसरी गाड़ी गायब थी. 2 दिन बाद उन को होश आया. बेटे को देखते ही उन की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहने लगी. बेटे ने उन के सिर पर तसल्ली भरा हाथ रखा. सावित्री को पेसमेकर लगाया गया था. धीरेधीरे उन की हालत में सुधार हो रहा था.

रमिया व उन के बयान से पता चला कि लुटेरों के गिरोह ने योजना बना कर कई दिन तक सारी बातें मालूम कर के ही उन की धार्मिकता को भुनाते हुए अपनी लूट की योजना को अंजाम दिया और लाखों रुपए के जेवरात व नकदी लूट ले गए.

उन की कार शहर के एक चौराहे पर लावारिस खड़ी मिली थी लेकिन लुटेरों का कहीं पता न चला.

दहशत व ग्लानि से भरी सावित्री को आज अपने पति की रहरह कर याद आ रही थी जो हरदम उन्हें तथाकथित साधुओं और उन के चमत्कारों से सावधान रहने को कहते थे. वह सोच रही थीं, ‘सच ही तो कहते थे मनोज के पिताजी कि अंधभक्ति का यह चक्कर किसी दिन उन की जान को सांसत में डाल देगा. अगर पड़ोसिन समय पर आ कर उन की जान न बचाती तो…और अगर वे लुटेरे उन्हें गोली मार देते तो?’

दहशत से उन के सारे शरीर में झुरझुरी आ गई. आगे से वह न तो किसी मंदिर में जाएंगी और न ही किसी देवी मां का पूजापाठ करेंगी.

मैं जिस लड़की से प्यार करता हूं, वह रिश्ते में मेरी भतीजी लगती है

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 28 वर्षीय युवक हूं. एक लड़की से 2 साल से प्यार करता हूं. वह भी मुझे चाहती है. हम दोनों शादी करना चाहते हैं. लड़की के घर वालों को एतराज नहीं है, परंतु मेरे घर वाले इस शादी का विरोध कर रहे हैं. कारण लड़की दूर के रिश्ते में मेरी भतीजी लगती है. क्या हम दोनों का विवाह संभव नहीं है? यदि है तो मैं अपने घर वालों को कैसे मनाऊं?

जवाब

लड़की से चूंकि आप की दूर की रिश्तेदारी है, इसलिए यह आप के रिश्ते में आड़े नहीं आएगी. खासकर तब जब लड़की वालों को इस रिश्ते से कोई एतराज नहीं है. आप को अपने घर वालों पर दबाव बनाना होगा. यदि आप की बात वे नहीं सुन रहे तो किसी सगेसंबंधी या पारिवारिक मित्र से मदद ले सकते हैं. वे उन्हें समझा सकते हैं कि इतनी दूर की रिश्तेदारी माने नहीं रखती. यदि लड़की आप के लिए उपयुक्त जीवनसंगिनी है और विवाह के लिए गंभीर है, तो घर वाले देरसवेर मान ही जाएंगे. लड़की के घर वाले भी उन्हें मना सकते हैं.

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‘‘बाबूजी…’’

‘‘क्या बात है सुभाष?’’

‘‘दिनेश उस दलित लड़की से शादी कर रहा है,’’ सुभाष ने धीरे से कहा.

‘‘क्या कहा, दिनेश उसी दलित लड़की से शादी कर रहा है…’’ पिता भवानीराम गुस्से से आगबबूला हो उठे.

वे आगे बोले, ‘‘हमारे समाज में क्या लड़कियों की कमी है, जो वह एक दलित लड़की से शादी करने पर तुला है? अब मेरी समझ में आया कि उसे नौकरी वाली लड़की क्यों चाहिए थी.’’

‘‘यह भी सुना है कि वह दलित परिवार बहुत पैसे वाला है,’’ सुभाष ने जब यह बात कही, तब भवानीराम कुछ सोच कर बोले, ‘‘पैसे वाला हुआ तो क्या हुआ? क्या दिनेश उस के पैसे से शादी कर रहा है? कौन है वह लड़की?’’

‘‘उसी के स्कूल की कोई सरिता है?’’ सुभाष ने जवाब दिया.

‘‘देखो सुभाष, तुम अपने छोटे भाई दिनेश को समझाओ.’’

‘‘बाबूजी, मैं तो समझा चुका हूं, मगर वह तो उसी के साथ शादी करने का मन बना चुका है,’’ सुभाष ने जब यह बात कही, तब भवानीराम सोच में पड़ गए. वे दिनेश को शादी करने से कैसे रोकें? चूंकि उन के लिए यह जाति की लड़ाई है और इस लड़ाई में उन का अहं आड़े आ रहा है.

भवानीराम पिछड़े तबके के हैं और दिनेश जिस लड़की से शादी करने जा रहा है, वह दलित है, फिर चाहे वह कितनी ही अमीर क्यों न हो, मगर ऊंचनीच की यह दीवार अब भी समाज में है. सरकार द्वारा भले ही यह दीवार खत्म हो चुकी है, मगर फिर भी लोगों के दिलों में यह दीवार बनी हुई है.

दिनेश भवानीराम का छोटा बेटा है. वह सरकारी स्कूल में टीचर है. जब से उस की नौकरी लगी है, तब से उस के लिए लड़की की तलाश जारी थी. उस के लिए कई लड़कियां देखीं, मगर वह हर लड़की को खारिज करता रहा.

चोटीकटवा भूत : कैसे चलने लगी रामप्यारी की दुकान

रामप्यारी सुबह से परेशान घूम रही है. आजकल उस के पति की दूधजलेबी की दुकान ठप पड़ी है. वहीं पीपल के नीचे रामू की दुकान के लड्डू ज्यादा बिकने लगे हैं. लोग अब इधर का रुख कम ही करते हैं. दुलारी की परेशानी थोड़ी अलग है. उस का बेरोजगार शराबी पति और झगड़ालू सास उस की सारी कमाई हड़प जाते हैं, बदले में मिलती हैं उसे सिर्फ गालियां. बड़ीबड़ी कोठियों में उसे कुछ रुपए ऊपरी काम के भी मिल जाते हैं, जिसे वह घर वालों की नजर में आने नहीं देती और छिप कर अपने शौक पूरे करती है. उस का बड़ा मन होता है कि मेमसाहब की तरह वह भी ब्यूटीपार्लर से सज कर आए.

श्यामा 27 साल की गठीले बदन की लड़की है. छोटे भाईबहनों को पालने का जिम्मा उसी के कंधे पर है. मां टीबी की मरीज हैं.

श्यामा का अपने पड़ोसी ननकू के साथ जिस्मानी रिश्ता बना हुआ है. मगर एक डर भी है कि उस का भेद ननकू की बीवी पर खुल गया, तब क्या होगा? वह एक अजीब से तनाव में रहती है.

प्रेमा के सिर पर हीरोइन बनने का भूत सवार है. वह अपनी सारी कमाई सजनेसंवरने में लगा देती है, फिर भले ही अपनी मां से खूब मार खाती रहे. उस के पिता की पंचर की दुकान है, जिस से दालरोटी चल जाती है, मगर प्रेमा के शौक पूरे नहीं हो सकते. इसी के चलते उस ने स्कूल में आया का काम पकड़ रखा है.

इस छोटी सी बस्ती में ज्यादातर मजदूर, मिस्त्री और घरेलू कामगारों के परिवार हैं. शहर के इस बाहरी इलाके में सरकारी फ्लैट भी कम आमदनी वाले तबके के लोगों को मुहैया कराए गए हैं. उन्हीं के साथ लगी हुई जमीन पर गैरकानूनी कब्जा कर झुग्गीझोंपडि़यां भी बड़ी तादाद में बन गई हैं.

यहां चारों तरफ हमेशा चिल्लपौं मची रहती है. कभी सरकारी नल पर पानी का झगड़ा, कभी बच्चों की सिरफुटौव्वल, तो कभी नाजायज रिश्तों की सच्चीझूठी घटना पर औरतमर्द की मारपीट का तमाशा चलता रहता है. सभी लोगों का यही मनोरंजन का साधन है.

‘‘क्या सोच रही हो तुम? जरा इधर टैलीविजन तो देखो… आजकल कई जगह औरतों की चोटियां कट रही हैं. लगता है, किसी भूतप्रेत का साया है.

‘‘तुम जरा सब औरतों को सावधान कर दो कि सभी अपने घर के बाहर नीबूमिर्च, नीम की पत्तियां टांग दें,’’ खिलावन टैलीविजन पर आंखें गड़ाए हुए रामप्यारी से बोला.

‘‘यह सब छोड़ो और अपने फायदे की सोचो. हमें क्या फायदा हो सकता है?’’ रामप्यारी ने पूछा. उस का दिमाग इन सब खुराफातों में तेजी से चलता है.

‘‘देखो, इस बस्ती में कोई नीम का पेड़ तो है नहीं. मैं पहले पास के गांव से नीम की टहनियां ले कर आता हूं. तब तक तुम 20-25 नीबूमिर्च की माला बनाओ. हम नीम की टहनी के साथ ये मालाएं बेच कर कुछ कमाई कर लेंगे. अच्छा रुको, अभी किसी से कुछ मत कहना.’’

जब तक खिलावन बस्ती में लौटा, हाहाकार मच चुका था. वह सीधे अपने घर भागा तो देखा कि रामप्यारी ने नीबूमिर्च की मालाओं का ढेर बना रखा है.

खिलावन ने नीम की छोटीछोटी टहनियों से भरा झोला पटकते हुए कहा, ‘‘तुम यहां पर बैठी हो, पता भी है कि बाहर क्या चल रहा है?’’

‘‘तुम बिलकुल भी चिंता मत करो. अब फटाफट नीम की टहनियों को अलग कर नीबूमिर्च की माला के साथ बांधते जाओ और एक अपने दरवाजे पर टांग दो और बाकी दुकान पर रखो.

‘‘और हां, जलेबी का सामान भी दोगुना तैयार करना पड़ेगा कल से,’’ रामप्यारी इतमीनान से बोली.

‘‘तुम्हें तो कुछ पता नहीं है. बाहर टैलीविजन वाले, पुलिस वाले सब जमा हैं. पता नहीं, क्या चल रहा है उधर और तुम्हें जलेबी बनाने की पड़ी है,’’ खिलावन घबरा कर बोला.

‘‘तुम चिंता मत करो, यहां भी चोटी कट गई है रधिया की. अरे वही, जो पिछली गली में रहती है.’’

‘‘क्या तुम्हें डर नहीं लग रहा है? तुम्हारी चोटी भी कट सकती है? अब क्या करें?’’

‘‘चुप रहो. उस की चोटी तो मैं ने ही काटी है और वह कालू ओझा है न, उस से मिल कर भी आ गई हूं. मैं ने सारी बातें तय कर ली हैं,’’ रामप्यारी ने कहा.

‘‘तुम ने क्यों काटी? क्या तुझ पर भी भूत चढ़ गया था?’’ खिलावन बोला.

‘‘जब चोटी कटेगी, तभी तो ये लोग नीबूमिर्च की माला लेने दौड़ेंगे. तुझे तो पता ही है कि रधिया को तो वैसे भी जबतब चक्कर आते रहते हैं. अभी जब मैं थोड़ी देर पहले दुकान पर लहसुन लेने गई थी, तो उस का दरवाजा खुला देख अंदर चली गई. घर के अंदर वह बेहोश पड़ी थी. मैं ने भी आव देखा न ताव उस के बाल काट कर चलती बनी.’’

‘‘किसी ने देखा तो नहीं तुझे?’’

‘‘नहीं. अगर कोई देख भी लेता, तो मैं ने सोच रखा था कि कह दूंगी इस के बाल काट देती हूं, नहीं तो भूत परेशान करेगा. अच्छा हुआ किसी ने देखा ही नहीं.’’

‘‘तो फिर तू ओझा के पास क्यों गई थी?’’ खिलावन ने हैरानी से पूछा.

‘‘सैटिंग करने. अभी ओझा झाड़फूंक करेगा और उस को एक दोना जलेबी खिलाने को और एक किलो मजार पर चढ़ाने को भी बोलेगा. फिर देखना, कल से सब लोग जलेबी खाएंगे भी और चढ़ाएंगे भी. मैं अभी आई.’’

‘‘रुको, तुम कहीं मत जाओ. मैं अभी बाहर जा कर देख कर आता हूं,’’ कह कर खिलावन रधिया के घर की तरफ दौड़ पड़ा.

रधिया का इंटरव्यू कर के मीडिया व पुलिस दोनों वहां से जा चुके थे. अब केवल बस्ती के लोग जमा थे. तभी सामने से कालू ओझा रधिया के पति जगन के संग आता दिखा.

‘‘बाहर लाओ, उसे बाहर लाओ,’’ वह ओझा चीखा, ‘‘इसे बूढ़ी इमली के पेड़ का भूत चढ़ा है. वहां प्रीतम ने पेड़ से लटक कर खुदकुशी की थी. जाओ जल्दी जाओ, नीम ले कर आओ. हां, जलेबी भी ले कर आना.

‘‘प्रीतम जलेबी बहुत खाता था. जो जलेबी खाएगा, उस के सिर से भूत खुश हो कर उतर जाएगा. और जो भी नीम दरवाजे पर लगाएगा, वहां पर भूत फटकने न पाएगा,’’ ओझा ने सामने खड़ी रधिया पर मोरपंखी फेरते हुए कहा.

खिलावन ने पलक झपकते ही ओझा के आगे नीबूमिर्च, नीम और जलेबी सजा के रख दी.

कालू ने भी तेजी दिखाते हुए नीमनीबू दरवाजे पर टांग दिए. थोड़ी जलेबी रधिया को खिलाई और बाकी जलेबी भीड़ में प्रसाद के तौर पर बंटवा दी.

झाड़फूंक से रधिया के कलेजे को ठंडक पड़ गई कि उस के सिर पर चढ़ा भूत उतर गया है. वह खुशी से ओझा के पैरों में गिर पड़ी. भीड़ जयजयकार कर उठी.

खिलावन ने सब की नजर बचा कर सौ रुपए का नोट कालू की मुट्ठी में दबा दिया. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा दिए.

तभी प्रेमा के घर से चीखपुकार आने लगी. किसी ने फिर मीडिया को खबर कर दी थी. वे थोड़ी देर पहले ही अपना मोबाइल नंबर बांट गए थे. पुलिस से पहले मीडिया वाले पहुंच गए.

प्रेमा अपनी कटी चुटिया दिखा कर पूरे फिल्मी अंदाज में बखान कर रही थी. उस ने चीखपुकार मचा कर भूत को अपने पीछे से दबोचने और फिर अपने बेहोश होने की बात कह दी.

लोगों में डर बैठ गया. जितने मुंह उतनी बातें. मगर प्रेमा मन ही मन बहुत खुश थी. आज उस का टैलीविजन पर आने का सपना जो पूरा हो गया था.

दूसरे दिन दुलारी के चीखनेचिल्लाने की आवाज के साथ सब की भीड़ उस के घर के आगे जमा हो गई. उस की चुटिया भी कट चुकी थी. वह अपने टेड़ेमेढ़े ढंग से कटे बालों को दिखा कर खूब चीखीचिल्लाई. फिर बाल सैट कराने के लिए ब्यूटीपार्लर चली गई.

मगर जब श्यामा को अपनी चोटी कटी हुई मिली, तो उस ने सारा दोष ननकू की बीवी पर मढ़ दिया और उसे चुड़ैल घोषित कर मारने दौड़ पड़ी.

वहां बड़ा बवाल मच गया. पूरी बस्ती 2 हिस्सों में बंट गई. आधे दुलारी की तरफ, आधे ननकू की बीवी की तरफ. ईंटपत्थर सब चल गए. पुलिस को बीचबचाव करना पड़ा. 2 सिपाहियों की ड्यूटी ‘चोटीकटवा भूत’ को पकड़ने के लिए लगा दी गई.

रामप्यारी अब खुश थी कि उस की जलेबी की दुकान चल निकली है. प्रेमा, श्यामा, दुलारी सभी आजकल अपने अंदर एक अलग ही खुशी महसूस कर रही थीं.

लेकिन खिलावन तनाव में था कि रामप्यारी अगर पकड़ी गई, तो क्या होगा? उस ने डरतेडरते उस से कहा, ‘‘तुम चुटिया काटने का काम बंद कर दो. मुझे बहुत डर लग रहा है. कहीं किसी ने तुम्हें पकड़ लिया, तो चुड़ैल जान कर जान से ही मार देंगे.’’

‘‘मगर, मैं ने तो रधिया के सिवा किसी के भी बाल नहीं काटे. मुझे अब दुकान और घर से फुरसत ही कहां मिलती है कि मैं लोगों के घरों में घूमती फिरूं,’’ रामप्यारी ने शान से कहा.

‘तो फिर बाकी लोगों के बाल किस ने काटे?’ खिलावन सोच में पड़ गया.

मेरा बौयफ्रैंड पीरियड्स के दौरान संबंध बनाने के लिए कहता है, मेरे मना करने पर वह नाराज हो जाता है…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं एक लड़के के साथ लिवइन में रहती हूं. 1 साल से हम रिलेशनशिप में है, हमारे बीच सबकुछ नौर्मल है और हमने सोचा है कि हम शादी नहीं करेंगे, लिवइन में ही रहेंगे. हम रोज सैक्स करते हैं, लेकिन एक बड़ी समस्या है कि जब मुझे पीरियड होता है,  उस समय भी मेरा बौयफ्रैंड इंटिमेट होने की जिद करने लगता है, मेरा बिलकुल मन नहीं करता. जब मैं मना करती हूं, तो वह गुस्सा हो जाता है. पीरियड्स के दिनों में उसे मेरा ख्याल रखना चाहिए लेकिन वह सैक्स के लिए मुझसे मुंह फुलाकर बैठ जाता है. मैं क्या करूं? कृपया बताएं कि क्या पीरियड्स के दौरान हमारे लिए सैक्स करना सही होगा ?

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जवाब

देखिए पीरियड्स के दिनों में सेक्स करना पार्टनर पर निर्भर करता है. अगर आप कंफर्टेबल महसूस करते हैं, तो संबंध बना सकते हैं, लेकिन अनकंफर्टेबल हैं, तो सैक्स के लिए मना करना कोई बुरी बात नहीं है. अगर आपका बौयफ्रैंड नाराज होता है, तो उसे प्यार से अपने कंडिशन के बारे में बताएं कि पीरियड्स आपके लिए कितना मुश्किल भरा होता है.

जब पीरियड्स के दौरान करें सैक्स

अगर आप पीरियड्स के दौरान संबंध बनाते हैं, तो आपको प्रोटेक्शन का ख्याल रखना चाहिए. इससे संक्रमण का जोखिम कम होता है. हालांकि पीरियड्स के दिनों में सैक्स करना हानिकारक साबित नहीं हुआ है, लेकिन इंफेक्शन का डर बना रहता है, इसलिए साफसफाई का विशेष ख्याल रखना चाहिए. ऐक्सपर्ट के अनुसार पीरियड्स के दौरान सैक्स करने के लिए कंडोम का इस्तेमाल कर सकते हैं.

पीरियड्स  के दौरान सेक्स करने के फायदे

पीरियड्स में संबंध बनाने के फायदे भी बताए गए हैं. माना जाता है कि सैक्स करने से पीरियड्स के दौरान होने वाले ऐंठन और सिरदर्द की समस्या कम होती है. सैक्स सिर्फ शारीरिक सुख नहीं है बल्कि एक एक्सरसाइज की तरह भी है, जिसमें महिला और पुरुष दोनों की कैलोरी बर्न होती है और ब्लड फ्लो सही रहता है.

अक्सर लड़कियां पीरियड्स के दिनों में चिड़चिड़ी हो जाती हैं. ऐसे में सैक्स करने से उनकी ये समस्या कम हो सकती है. इंटिमेट होने के दौरान हमारे शरीर से और औक्सीटोसिन निकलता है जो कि हमारे दिमाग में प्लेजर सेंटर्स को सक्रिय करता है. इससे और्गेज्म का एहसास होगा और तनाव दूर हो सकता है.

पीरियड्स  के दौरान सेक्स करने के नुकसान

  • पीरियड्स के दौरान संबंध बनाने से एचआईवी जैसे एसटीआई होने का खतरा बढ़ जाता है.
  • पीरियड्स के दौरान कुछ महिलाओं में रक्त का प्रवाह बहुत तेज़ होता है, ऐसे में अगर वो सेक्स करती हैं, तो रक्त का प्रवाह और बढ़ सकता है.
  • इसके अलावा पीरियड्स के दौरान सेक्स करना बदबूदार हो सकता है.
  • पीरियड्स के ब्लड से अजीब गंध निकलता है.

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Anupamaa : बिगड़ैल तोषु का नया घटिया चेहरा आएगा सामने, अंकुश की बैंड बजाएगा अनुज

Anupamaa Written Update:  टीवी सीरियल अनुपमा (Anupamaa) में रोज एक नया ड्रामा देखने को मिल रहा है. इस शो में पारिवारिक, प्यार और रिश्ते का गजब का मिश्रण दिखाया गया है, जो हर रात यह शो दर्शकों  के लिए अपने ट्विस्ट और टर्न से एंटरटेनमेंट का तड़का लगाता है.

 

कल हमने आपको बताया था कि जब अनुज  (Gaurav Khanna) को पता चलता है कि उसकी कंपनी डूबने वाली है, तो वह अंकुर और बरखा के घर सीधे जाता है, ऐसे में अंकुश की सिट्टीपिट्टी गुम हो जाती है और वह अपनी चोरी छिपाने के लिए अपने भाई अनुज से प्यार का नाटक करता है, तो दूसरी तरफ वनराज (Sudhanshu Pandey) की बहन डौली अनुपमा को खरीखोटी सुनाती है. आइए जानते हैं, अनुपमा के आज के एपिसोड में क्या दिखाया जाएगा.

अनुज को देखते ही अंकुश के उड़ जाएंगे होश

 

आज के एपिसोड में आप देखेंगे कि गुस्से से आग बबूला अनुज अंकुश की बैंड बजा देगा. यहां तक कि अनुज को देखते ही अंकुश के हाथपाव कांपने लगेंगे और चाय की प्याली तक नीचे गिर जाएगी.
अनुज अंकुश से कई सारे सवाल पूछेगा, ऐसे में वह उसका एक भी जवाब नहीं दे पाएगा. अनुज बात ही बातों में उसे ये भी बताएगा कि आद्दया और अनुपमा उसके साथ रहते हैं, ये सुनकर अंकुश को बड़ा झटका लगेगा.

काव्या की बेटी को घर से बाहर निकालेगा तोषु

दूसरी तरफ अनुपमा (Rupali Ganguly) अनुज के बारे में सोचकर परेशान होगी. शो में आप ये भी देखेंगे कि सागर आद्दया को पढ़ाता है, लेकिन उसका पूरा ध्यान डौली की बातों में होता है. अनुपमा उसे समझाने की कोशिश करेगी. आज आपको ये भी देखने को मिलेगा कि तोषु एक और बड़ा बखेड़ा खड़ा करेगा. वह काव्या की बेटी माही को घर से बाहर निकालेगा. ऐसे में अनुपमा माही के साथ प्यार से पेश आएगी और उसे समझाएगी.

अंकुश को धमकी देगा अनुज

सीरियल में आप ये भी देखेंगे कि अनुज अपनी सारी प्रौपर्टी अंकुश से वापस मांगेगा. ऐसे में अंकुश का घटिया चेहरा सामने आएगा. अनुज अंकुश को जंग की धमकी देगा. रिपोर्ट के अनुसार, ये भी बताया जा रहा है कि वह अनुज को धक्के मारकर घर से बाहर निकालेगा.

अनुपमा देगी अनुज का साथ

शाह हाउस में बा का फनी अंदाज देखने को मिलेगा. वह तोशु का मजाक उड़ाएंगी. तो दूसरी तरफ अनुज आशा भवन जाएगा और वह अंकुश के बारे में अनुपमा को सारी बातें बताएगा. अनुपमा भी कहेगी कि वह इस मामले में अनुज के हर कदम पर साथ देगी. आद्या अपने पौप्स और मौम को साथ देकर बहुत खुश होगी.

आमतौर पर सीरियल में सासबहू के बीच झगड़े दिखाए जाते हैं, लेकिन इसमें अनुपमा और उसकी सास के बीच नोकझोंक के साथ स्ट्रौंग बौन्डिंग भी बहुत खूबसूरती से दिखाई जाती है. यह  शो पारिवारिक मूल्यों पर आधारित है. अब शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या अनुज अपनी डूबती कंपनी को बचा पाएगा?

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