स्वयंसिद्धा : घर की लड़ाईझगड़े को खत्म करने के लिए प्रेरणा ने क्या किया

‘‘मैम,मुझे बहुत अच्छी इंग्लिश बोलनी है, बिलकुल आप की तरह,’’ उस पतलीदुबली प्यारी सी लड़की ने जब यह बात मुझ से कही तो मैं ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘क्यों नहीं तुम मुझ से भी अच्छा बोलोगी, बस थोड़ा प्रैक्टिस की जरूरत है.’’

मैं एक शिक्षिका हूं और मेरी छोटी सी क्लास है जिस में मैं इंग्लिस सिखाती हूं. 28 साल का यह सफर बहुत ही रंगबिरंगा रहा है. इस में मु?ो कितना कुछ सीखने को मिला है, खासतौर पर आजकल के युवाओं से. इन का जीवट, आगे बढ़ने के लिए लगन, हमेशा नया सीखने और

कुछ कर गुजरने की जो चाह है वह बहुत ही प्रशंसनीय है.

यह कहानी है मेरी ही कक्षा की एक लड़की की. एक ऐसी लड़की जो विपरीत परिस्थितियों में भी कीचड़ में कमल की तरह खिली और जिस ने विषम परिस्थितियों पर जीत हासिल करी. लड़की का असली नाम तो कुछ और है पर पाठकों के लिए हम उस का नाम प्रेरणा रखते हैं. आखिर उस का जीवन भी इतना प्रेरणादायी जो है.

प्रेरणा का बचपन बहुत ही कठिनाइयों से भरा था. वे 6 भाईबहन थे. मां दूसरों के घर में काम करती थीं तथा उस के पिता फलों व सब्जियों की दुकान लगाते थे. घर में दादादादी भी थे. प्रेरणा की 2 बहनें थीं और 3 भाई. उस के पिता और मां में बहुत ?ागड़ा होता था क्योंकि पिता किसी भी लड़की को पढ़ाने के पक्ष में नहीं थे और मां अपने सभी बच्चों को पढ़ाना चाहती थीं. पिता के अनुसार उन की मेहनत की कमाई लड़कियों की पढ़ाई पर जाया हो रही है. लड़के पढ़ना नहीं चाहते थे तो भी उन्हें मजबूरन पढ़ाई करनी पड़ रही थी. तीनों बहनें पढ़ाई में बहुत होशियार थीं. जो एक बात उन के पक्ष में थी, वह थी उन के दादाजी का समर्थन. दादाजी को बहुत चाव था कि उन के सभी पोतेपोतियां खूब पढ़ेंलिखें. लड़कों से तो उन्हें कुछ खास उम्मीद नहीं थी पर लड़कियों की शिक्षा बंद करने के पक्ष में वे बिलकुल नहीं थे. इसी वजह से प्रेरणा के पिता ज्यादा कुछ नहीं कर पाते थे. सिर्फ लड़ाई?ागड़ा कर के ही अपना असंतोष जाहिर करते थे. दादाजी का बनवाया हुआ छोटा सा घर था जिस में ये सब रहते थे इसलिए उन का कहना प्रेरणा के पिता मजबूरी में मान लेते थे.

जब प्रेरणा का 10वीं का परिणाम आया तो वह भागती हुई रिजल्ट दिखाने को पिता के पास गई, ‘‘पापा, देखिए मैं फर्स्ट क्लास पास हो गई हूं, मेरे 70त्न नंबर आए हैं.’’

बेटी को शाबाशी देना तो दूर, पिता ने रिजल्ट को आंख उठा कर भी नहीं देखा और वहां से उठ गए. पर प्रेरणा के दादाजी और मां बहुत खुश हुए. दादाजी ने उसी समय सौ रुपए का एक नोट उस के हाथ में रखा.

‘‘प्रेरणा की पढ़ाई हो गई, वह अब आगे नहीं पढ़ेगी. मैं लड़के देख रहा हूं, यह अब शादी कर के जाए तो एक बला टले,’’ इतने अच्छे रिजल्ट के बाद पिता की यह प्रतिक्रिया सुन कर प्रेरणा तो हक्कीबक्की रह गई.

उस की दादी ने भी उस की मां से कहा, ‘‘इसे घर के कामकाज सिखाओ. हम लोग इतने अमीर नहीं हैं कि लड़की को आगे पढ़ा सकें. बहनों की भी पढ़ाई छुड़वाओ और घर के कामों में लगाओ.’’

मगर प्रेरणा के दादाजी अड़ गए कि सभी बच्चे पढ़ेंगे. दादी और पिता उस दिन दादाजी से खूब ?ागड़े. बाकी भाई तो मौका मिलते ही घर से निकल कर यह जा और वह जा हो गए. लड़कियां बेचारी सुबकती, सहमती मां के साथ दूसरे कमरे और रसोईघर में खड़ी रहीं.

प्रेरणा अब तक मु?ा से काफी खुल चुकी थी. पता नहीं उसे मु?ा में क्या दिखता था पर यह सब उस ने ही एक दिन बताया. शायद उसे मु?ा में एक हमदर्द दिखाई देने लगा था.

मैं ने एक दिन कहा, ‘‘मेरी तुम्हारी मां से मिलने की बड़ी इच्छा है. बहुत ही जीवट वाली होंगी जो सबकुछ सह कर भी तुम्हारे साथ खड़ी हैं.’’

अगले ही दिन वह अपनी मां को ले कर क्लास आ गई. एकदम सीधीसरल घरेलू महिला थीं वे. मु?ो हाथ जोड़ कर बस इतना ही बोलीं, ‘‘मैडम, इसे आप का बहुत सहारा है. आप बस इस की इंग्लिश इतनी अच्छी कर दो कि यह बैंक की परीक्षा दे सके.’’

मैं ने कहा, ‘‘क्यों नहीं, यह तो खुद ही

बहुत होशियार बच्ची है. बैंक परीक्षा जरूर क्लीयर करेगी.’’

इस पर मांबेटी दोनों मुसकराने लगे. इस के बाद तो प्रेरणा मुझ से पूरी तरह खुल गई. अब हर छोटी बात पर वह मुझ से सलाह अवश्य लेती.

उन दोनों के कहने पर मैं 2-3 बार प्रेरणा के घर भी हो आई थी. हां, पर मैं शाम को ही उस के घर गई थी क्योंकि प्रेरणा ने कहा था उस टाइम पर उस के पापा घर पर नहीं होते. उन्हें नहीं पता था कि उस ने इंग्लिश की क्लास जौइन की हुई है. कुछ दिन बाद उस ने 10वीं के बाद के संघर्ष और अपने वर्तमान की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस तरह थी…

2 कमरों के छोटे से घर में सभी लड़ते?ागड़ते अपने को कोसते, तो कुछ ऊपर उठने का प्रयास करते, एकसाथ रह रहे थे. पर चूंकि यह किसी फिल्म की कहानी नहीं थी तो प्रेरणा के घर या घर वालों के स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया. पिता गरजतेबरसते रहते, दादी लड़कियों व उन की मां को कोसती रहतीं. भाई सब आवारा हो गए थे और कोई टोकने वाला नहीं था. दादाजी का कहा वे एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल देते थे पर प्रेरणा के पिता उन्हें ले कर निश्चिंत थे. पिता के अनुसार वे मर्द बनना सीख रहे थे. सिगरेट फूंकना, घर के बाहर घूमना, दोस्तों की टोली के साथ जुआ खेलना और पिता व दादाजी से छिपा कर स्कूल न जाना उन के काम थे. बहनों और मां को सब पता होते हुए भी कोई कुछ नहीं कर पा रहा था. तीनों भाई घर में शेर थे और पिता के साथ उन के सुर में बोलने लगे थे, हालांकि तीनों बहनों से छोटे थे.

बस, यही प्रेरणा का जीवन था. उस के पास न टेलीविजन था और न कोई और मनोरंजन का साधन. दुकान से बस किसी तरह घर का खर्च चल रहा था. प्रेरणा दादाजी की पैंशन की मदद के सहारे ग्रैजुएशन कर चुकी थी. उस की व अन्य बहनों की शादी भी वे अब तक टलवाने में सक्षम रहे थे. फिर एक दिन वे चल बसे. अब तो पिता और दादी को खुली छूट मिल गई, लड़कियों को बेमतलब तंग करने व ताने मारने की. पत्नी के साथ मारपीट का सिलसिला भी दादाजी के जाने के बाद शुरू हो गया था. लड़कियां अभी तक मारपीट से बची हुई थीं.

एक दिन अचानक प्रेरणा पिता ने कहा कि उन्होंने एक बहुत अच्छा लड़का उस के लिए देखा है. इस समय तक प्रेरणा बराबर क्लास आ रही थी व काफी अच्छी इंग्लिश बोलने लगी थी. उसी ने अगले दिन मु?ो कहा कि उस के पिता ने फिर उस की शादी की बात छेड़ी है. उस के घर में जब उस की मां ने पूछा कि वह लड़का क्या करता है, तो उस के पिता ने कहा कि वह प्रेरणा के कालेज के बिलकुल सामने काम करता है. सब बड़े हैरान हुए क्योंकि लड़कियों और उन की मां को प्रेरणा के पिता पर बिलकुल भरोसा नहीं था.

जब प्रेरणा ने ही जोर दे कर पूछा कि पापा, मगर लड़का करता क्या है? तो प्रेरणा के पिता बोले, ‘‘उस का खुद का सैंडविच स्टौल है, तू चाहे तो उसे मिल सकती है.’’

जब प्रेरणा ने लड़के की शिक्षा के बारे में पूछा तो पता चला कि वह तो 10वीं फेल है. इधर प्रेरणा एमकौम में एडमिशन ले कर बैंक परीक्षा की तैयारी कर रही थी. मां उस की फीस के पैसे भर देती थीं. इंग्लिश क्लास के लिए तो उस की मां ने छिपा कर रखे हुए पैसे दे दिए थे.

मेरी क्लास के एक लड़के अनुभव ने ही उस से क्लास में बोला, ‘‘अरे, अगर पापा शादी सैंडविच वाले से करना चाहते हैं तो मिल क्यों नहीं लेती? क्या बुराई है? तेरे पिताजी भी तो अपने स्टैंडर्ड का ही लड़का ढूंढ़ेंगे न? हर बार उन को गलत ठहराना उचित है क्या?’’

इस पर प्रेरणा की बड़ीबड़ी आंखों में आंसू भर आए. बोली, ‘‘सैंडविच स्टौल में कोई बुराई नहीं है, मगर मैं एमकौम के साथसाथ बैंक परीक्षा दूंगी और लड़का 2 बार 10वीं फेल. ऐसे में मन का मेल कैसे होगा?’’

अनुभव फिर बोला, ‘‘शादी करनी है तो अभी क्यों नहीं?’’

इस पर प्रेरणा बोली, ‘‘अभी मेरे कैरियर का सवाल है. मेरे दादाजी पिछले साल गुजर गए इसलिए पिताजी अपनी मनमानी कर रहे हैं. लेकिन उन की सब्जी की दुकान भी उस स्टौल से बड़ी है. उन्हें न लड़के में कोई गुण दिखाई देता है न ही मु?ा में. बस किसी तरह से मेरी शादी कर के मु?ो घर से बाहर निकालना है.’’

हम लोग उस की बातें सुन कर चौंक गए थे. अनुभव से मैं ने चुप रहने को कहा और पूछा, ‘‘अब तुम क्या करोगी प्रेरणा?’’

‘‘कुछ नहीं मैम. जैसे अब तक लड़ती आई हूं वैसे ही आगे भी अपना रास्ता खुद ही बनाऊंगी.’’

मैं ने पूछा, ‘‘मगर कैसे? अब तो दादाजी भी नहीं हैं.’’

‘‘दादाजी नहीं हैं तो क्या हुआ? मेरी मां तो अभी भी मेरे साथ हैं. मु?ो आप की क्लास में जितने कोर्स हैं, सब करने हैं ताकि मैं अपनी मंजिल को पा सकूं.’’

मैं ने फिर भी कहा कि मैं उस के पिता को सम?ा सकती हूं, तो वह बोली, ‘‘मैम, मैं आप की बहुत इज्जत करती हूं. अगर मेरे पापा ने या भाइयों ने आप के साथ कुछ बदतमीजी की या कोई भी उलटीसीधी हरकत की तो मैं सहन नहीं कर पाऊंगी. आप बस मु?ो हमेशा इसी तरह संबल और हिम्मत देती रहें.’’

उस की बातें सुन कर मैं मुसकरा उठी. इस घटना के 2-3 दिन बाद मैं ने ध्यान दिया कि अनुभव चुपचाप प्रेरणा को देखता रहता था. जब मैं कुछ सम?ाती तो उस की नजरें सिर्फ प्रेरणा पर टिकी होती थीं. मेरे द्वारा उसे 1-2 बार ऐसा करते हुए पकड़े जाने पर वह सकपका गया. अब वह प्रेरणा की क्लास में मदद कर देता था व उस को नोट्स भी सम?ा देता था. वे लोग आपस में हंसनेबोलने भी लगे थे और उन की काफी दोस्ती भी हो गई थी क्योंकि इस तरह की बातें इस उम्र में आम होती हैं.

मैंने अनुभव को तो कुछ नहीं कहा मगर प्रेरणा से बात करने की जरूर ठान ली. हालांकि अगले दिन प्रेरणा ने खुद ही अनुभव का जिक्र कर के मु?ो हैरान कर दिया. वह बोली, ‘‘मैम, कल अनुभव ने मुझसे कहा है कि वह अपनी जिंदगी मेरे साथ बिताना चाहता है.’’

मैं यह सुन कर अचरज में पड़ गई. आजकल की जैनरेशन समय बरबाद करने में बिलकुल विश्वास नहीं करती है. इसलिए इसे फास्ट ट्रैक जैनरेशन कहते हैं. मैं ने पूछा, ‘‘और तुम ने उसे क्या कहा?’’

वह बोली, ‘‘मैम, मेरा तो एक ही लक्ष्य है कि मु?ो बैंक परीक्षा पास कर के एक अच्छी सी नौकरी करनी है बस.’’

मैं ने प्यार से उस का गाल सहला दिया. मगर दोनों की इस इस कहानी को न यहां थमना था और न ही खत्म होना. अनुभव ने प्रेरणा से कहा कि वह भी उस के साथ बैंक की परीक्षा देगा और भविष्य में कुछ बन जाने पर ही वे अपने कल के बारे में कुछ सोचेंगे. हां, उस ने प्रेरणा के साथ पढ़ाई करने की इच्छा जताई तो प्रेरणा ने सहर्ष हामी भर दी.

प्रेरणा ने 1 महीने बाद मां के दिए हुए पैसों से बैंक परीक्षा की कोचिंग शुरू की और मेरी क्लास में भी एडवांस्ड इंग्लिश कोर्स करने लगी. अनुभव ने भी एडवांस्ड कोर्स में एडमिशन ले कर उसी की कोचिंग क्लास जौइन कर ली. उन दोनों का उत्साह देखते ही बनता था पर दोनों की एक खूबी यह भी थी कि पढ़ाई के अलावा मेरी क्लास में वे लोग कोई बेसिरपैर की बात नहीं करते थे. अब तक अनुभव को पता चल चुका था कि प्रेरणा अपनी सभी बातें सिर्फ मुझ से और अपनी मां से शेयर करती है. यह सब सुन कर वह भी मुझ से खुलने लगा था. उस ने अपने बारे में बताया कि वह बहुत ही लाड़प्यार से पला हुआ, अपने मातापिता का इकलौता लड़का था, इसलिए प्रेरणा का नजरिया नहीं सम?ा पाया था. पर अब उस के संघर्ष में वह हर कदम पर उस का साथ देना चाहता है.

दोनों का क्या गजब का जज्बा था. उधर कुछ दिन बाद घर में प्रेरणा ने उस सैंडविच स्टौल वाले से शादी के लिए मना कर दिया. नौबत हाथापाई तक आ पहुंची तो प्रेरणा ने फोन कर के मु?ो भी बुला लिया. उस से पूछ कर मैं ने पुलिस को भी सूचित कर दिया. पुलिस तुरंत उस के घर पर आ पहुंची. मैं ने व उस के पड़ोसियों ने मिल कर उस के पिता को सम?ाने की कोशिश की पर उन्होंने मु?ा से कहा, ‘‘मैडम, मेरी और भी लड़कियां हैं और मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि मैं इन सब को पढ़ा सकूं. इन की शादी हो जाए तो मेरा सिरदर्द खत्म हो.’’

मैं ने कहा, ‘‘तो उस के लिए क्या आप इन सब को मारेंगे पीटेंगे?’’

डोमैस्टिक वायलैंस के केस में वहां खड़े पुलिस औफिसर ने जब प्रेरणा के पिता को जेल में डालने की बात की तो मां ने भी अपनी बेटी का ही साथ दिया. यह देख कर प्रेरणा के पिता पुलिस के आगे घिघियाने लगे. तब प्रेरणा ने अपनी शिकायत वापस ले ली और पिता को जेल जाने से बचा लिया. उस के बाद उन की मारपीट का सिलसिला थोड़े दिनों के लिए रुक गया.

फिर एक दिन वह भी आया जब प्रेरणा मुसकराती हुई मेरे सामने मिठाई का डब्बा लिए खड़ी थी, ‘‘मैं ने परीक्षा क्लीयर कर के एक बैंक में अप्लाई किया था मैम. मुझे जौब औफर मिल गया है.’’

मैं हैरान हो कर उसे देखती रह गई. एक मामूली सी दिखने वाली दुबलीपतली लड़की और इतनी मुश्किल लड़ाई. लेकिन आज वह जीत कर स्वाभिमान और गर्व से दपदपाता मुखमंडल लिए, आत्मविश्वास से परिपूर्ण मेरे सामने खड़ी थी. प्रेरणा आज सचमुच कइयों के लिए एक उदाहरण बन, अपनी पहली उड़ान भरने को तैयार थी.

‘‘और अनुभव का क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा तो वह बोली, ‘‘उस ने भी परीक्षा क्लीयर कर के एक इंटरनैशनल बैंक में अप्लाई किया था जहां उसे भी जौब मिल गई है,’’ कहतेकहते वह शरमा गई. उस की आंखों में अपने नए जीवन के सपनों ने जन्म लेना शुरू कर दिया था.

‘‘अब कोई फिक्र नहीं है. अगर पापा ने ?ागड़ा किया या कुछ भलाबुरा कहा तो मैं कुछ दिनों में अलग घर किराए पर ले कर अपनी मां व बहनों के साथ चली जाऊंगी. तब देखते हैं इन का क्या होगा,’’  प्रेरणा बोली.

मेरा उस के घर अब जाना नहीं हो पाता था क्योंकि वह अपनी जौब में बिजी हो गई थी. अनुभव भी दूसरे शहर में जौब कर रहा था पर इस दौरान पूरे समय प्रेरणा की हिम्मत बंधाने के लिए बीचबीच में छुट्टी ले कर उस से मिलने आता रहता था. मैं फोन पर ही दोनों के साथ बात कर के उन के हालचाल ले लेती थी. प्रेरणा ने ही फोन पर एक दिन मु?ो बताया कि अनुभव बाकायदा उस के लिए रिश्ता लेकर उस के घर पहुंचा था और उस के मांपापा से उस का हाथ मांगा था. हालांकि दोनों ने ही अपने घर वालों से यह बात छिपा रखी थी. अनुभव ने परिवार वालों को जौब लगने के बाद ही उस के बारे में बताया था. प्रेरणा के घर वालों को लगा कि उस का रिश्ता उस की अच्छी जौब की वजह से आया है. घर में सब की हां हो जाने पर प्रेरणा ने अपनी मां को सचाई बता दी. उस की मां ने भी प्यार से उस की पीठ थपथपा कर अपनी सहमति दे दी.

फिर एक दिन ठीक 6 महीने बाद प्रेरणा और अनुभव दोनों मेरे सामने अपनी शादी के

कार्ड ले कर खड़े थे. प्रेरणा तो एक किलोग्राम का कलाकंद का डब्बा भी लाई थी, ‘‘मैम, आप न होतीं तो इस जु?ारू लड़की से मैं कभी न मिल पाता,’’ अनुभव बोला.

फिर दोनों इकट्ठे बोले, ‘‘आप को आशीर्वाद देने के लिए हर फंक्शन में आना होगा मैम.’’

मेरी आंखें इतना प्यार देख कर डबडबा उठीं. दोनों को कलाकंद का 1-1 पीस खिलाते हुए मैं ने दोनों की खुशी की ढेरों मंगल कामनाएं कीं.

अब आप यह भी जरूर जानना चाहेंगे कि प्रेरणा के घर में आगे क्या हुआ? प्रेरणा शादी से पहले ही तीनों भाइयों को छोटीमोटी नौकरी पर लगवा चुकी थी. उन का जीवन भी एक ढर्रे पर आ गया था. आखिरकार उस के पिता ने हार स्वीकार कर उस की बहनों को आगे पढ़ाई की अनुमति दे दी. बेटी को कमाता देख शायद उन्हें भी अक्ल आ गई थी.

जो भी हो, प्रेरणा के अनुसार, अब उन के घर से लड़ाईझगड़े की आवाजें आनी बिलकुल बंद हो गई थीं. दुख भी अपने घुटने टेक कर हार मान चुका था. वह और अनुभव अपने नए जीवन में बहुत सुखी थे. यही सब बताने के लिए उस ने हनीमून से लौटते ही मुझे फोन किया था.

मैं ने यह सुन कर मुसकराते हुए एक राहत की सास ली और एक नई ऊर्जा से भर क्लास को सिखाने में लग गई.

तिरस्कार: क्या हुआ रामलालजी के साथ

रामलालजी सेवानिवृत अध्यापक थे. सुबह  10 बजे तक वे एकदम स्वस्थ लग रहे थे . शाम के सात बजतेबजते उन्हें तेज बुखार के साथसाथ वे सारे लक्षण दिखाई देने लगे, जो एक कोरोना पौजीटिव मरीज में दिखाई देते हैं.

यह देखकर परिवार के सदस्य खौफजदा हो गए. परिवार के सभी सदस्यों के चेहरों पर इस महामारी का डर साफ झलक रहा था. उन्होंने रामलालजी की चारपाई घर के एक पुराने बाहरी कमरे में डाल दी, जिस में उन के पालतू कुत्ते का बसेरा था. रामलालजी कुछ साल पहले एक छोटा सा घायल पिल्ला सड़क के किनारे से उठा कर लाए थे और उसे उन्होंने अपने बच्चे की तरह बड़े लाड़ से पाल कर बड़ा किया तथा उस का नाम ब्रूनो रखा.

इस कमरे में अब रामलालजी, उन की चारपाई और उन का प्यारा ब्रूनो रहता था. दोनों बेटेबहुओं ने उन से दूरी बना ली और बच्चों को भी उन के आसपास न जाने के निर्देश दे दिए थे.

उन्होंने सरकार द्वारा जारी किए गए कोरोना हेल्पलाइन नंबर पर फोन कर के सूचना दे दी. खबर महल्ले भर में फैल चुकी थी, लेकिन उन के आसपास या रिश्तेदार मिलने कोई नहीं आया. साड़ी के पल्ले से मुंह लपेटे हुए,  हाथ में छड़ी लिए पड़ोस की कोई एक बूढी अम्मा आईं और रामलालजी की पत्नी से बोली,  “अरे, कोई इस के पास दूर से खाना भी सरका दो, अस्पताल वाले तो इसे भूखे ही ले जाएँगे उठा कर.”

अब सवाल उठता था कि उन को खाना देने के लिए कौन जाएगा. बहुओं ने तो खाना अपनी सास को पकड़ा दिया. अब रामलालजी की पत्नी के हाथ थाली पकड़ते ही काँपने लगे, पैर मानो खूंटे से बाँध दिए हों.

इतना देख कर वह पड़ोसिन बूढ़ी अम्मा बोलीं, “अरी, तेरा तो पति है तू भी…  मुंह बाँध के चली जा और उसे दूर से थाली सरका दे, वह अपने आप उठा कर खा लेगा.” सारा बातचीत रामलालजी चुपचाप सुन रहे थे , उन की आँखें नम थीं और काँपते होंठों से  उन्होंने कहा, “कोई मेरे पास न आए तो बेहतर है , मुझे भूख भी नहीं है.”

इसी बीच एम्बुलेंस आ गई और रामलालजी को एम्बुलेंस में बैठने के लिए कह दिया. रामलालजी ने घर के दरवाजे पर आ कर एक बार पलट कर अपने घर की तरफ देखा. उन के पोतीपोते पहली मंजिल से खिड़की से मास्क लगाए दादाजी को निहारते हुए और उन बच्चों के पीछे सिर पर पल्लू रखे उन की दोनों बहुएं दिखाई दीं. ग्राउंड फ्लोर पर दोनों बेटे काफी दूरी बना कर अपनी मां के साथ खड़े थे.

विचारों का तूफान रामलालजी के अंदर उमड़घुमड़ रहा था.  उन की पोती ने दादाजी की तरफ हाथ हिलाते हुए बाय कहा. एक क्षण को उन्हें लगा, ‘जिंदगी ने  अलविदा कह दिया.’

रामलालजी की आँखें डबडबा गईं. उन्होंने बैठ कर अपने घर की देहरी को चूमा और एम्बुलेंस में जा कर बैठ गए. उन की पत्नी ने तुरंत पानी से  भरी बाल्टी घर की उस देहरी पर उडेल दी, जिसे चूम कर रामलालजी एम्बुलेंस में बैठे थे.

इसे तिरस्कार कहें या मजबूरी , लेकिन इस दृश्य को  देख कर उन का स्वामिभक्त ब्रूनो भी रो पड़ा और एम्बुलेंस के पीछेपीछे हो लिया, जो रामलालजी को अस्पताल ले कर जा रही थी.

रामलालजी को अस्पताल में 14 दिन के लिए क्वारन्टीन में रखा गया. उन के सभी टेस्ट नोर्मल थे. उन्हें डॉक्टरों ने पूर्णतः स्वस्थ घोषित कर के छुट्टी दे दी थी. जब वह अस्पताल से बाहर निकले तो उन को अस्पताल के गेट पर उन का कुत्ता ब्रूनो उन का इंतजार करते दिखाई दिया. दोनों एक दूसरे से लिपट गए. एक की आँखों से गंगा तो दूसरे की आँखों से यमुना बहे जा रही थी.

जब तक उन के बेटों की विदेशी कर  उन्हें लेने पहुँचती तब तक वे अपने कुत्ते को ले कर किसी दूसरी दिशा की तरफ निकल चुके थे.

उस के बाद वे कभी दिखाई नहीं दिए. आज उन के फोटो के साथ उन की  गुमशुदगी की खबर  छपी है. अखबार में लिखा है कि  सूचना देने वाले को 40 हजार रुपए का नकद इनाम दिया जाएगा .

’40 हजार रुपए’ हां, पढ़ कर  ध्यान आया कि इतनी ही तो मासिक पेंशन आती थी उन की, जिस को वे परिवार के ऊपर हँसतेगाते उड़ा दिया करते थे.

एक बार रामलालजी की जगह स्वयं को खड़ा करो और कल्पना करो कि इस कहानी के किरादार आप हो.आपका सारा अहंकार और सब मोहमाया खत्म हो जाएगी. इसलिए मैं आप सभी से हाथ जोड़ कर निवेदन करता हूं कुछ पुण्य कीजिए, गरीब, भूखे और लचारों की सहायता कीजिए. जीवन में कुछ नहीं है, कोई अपना नहीं है जब तक स्वार्थ है तभी तक सब आप के हैं.जीवन एक सफ़र है और मौत उस की मंजिल है. यही सत्य है.

बौयफ्रेंड का परिवार उसकी शादी कहीं और करना चाहता है, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 24 साल की अनाथ हिंदू लड़की हूं और स्टेज शो करती हूं, मैं तलाकशुदा हूं. 30 साल के मुसलिम लड़के के साथ मैं डेढ़ साल से सेक्स कर रही हूं. मैं पेट से भी हुई, पर बच्चा अपने आप गिर गया. लड़के के घर वाले उस की कहीं और शादी करना चाहते हैं, पर वह नहीं चाहता. मैं क्या करूं?

जवाब

अगर वह लड़का कहीं और शादी नहीं करना चाहता, तो फिर दिक्कत क्या है? जब वह आप के साथ डेढ़ साल से सो रहा है, तो अब तक उसे आप से शादी कर लेनी चाहिए थी. आप अपने प्रेमी को जल्दी से जल्दी शादी करने के लिए कहें. अगर वह आनाकानी करे, तो समझ जाएं कि वह आप का फायदा उठा रहा था, तब उसे पूरी तरह छोड़ दें.

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वर्जिनिटी या कौमार्य के बारे में क्या आप को सही जानकारी है

वर्जिनिटी (कौमार्य) को व्यक्ति के संभोग से जोड़कर देखा जाता है. माना जाता है कि जिस व्यक्ति ने पहले कभी भी सेक्स नहीं किया हैं वह वर्जिन है. इस विषय को लेकर लोगों में कई तरह की बातें प्रचलित है. किसी के साथ सेक्स करना और वर्जिनिटी को खोना, दो अलग-अलग बातें हैं, जिस पर विशेषज्ञ कई तर्क रखते हैं. कई लोगों का मानना है कि महिला के साथ योनि सेक्स करने से वर्जिनिटी खो जाती है, जबकि कई बार योनि सेक्स न करके भी कई अन्य यौन गतिविधि (ओरल सेक्स व एनल सेक्स) करने से भी वर्जिनिटी खो जाती है.

एक महिला में वर्जिनिटी पूरी तरह से हाइमन के सही होने या न होने पर निर्भर करती है. विशेषज्ञों का कहना है कि वर्जिनिटी को हाइमन से जोड़कर देखना बेहद ही गलत है, क्योंकि इसके खोने की कई अन्य वजह भी होती हैं.

हाइमन झिल्ली क्या है?                 

हाइमन योनि मुख के पास ऊतकों से बनी एक पतली झिल्ली होती है. हाइमन के बारे में लोग मानते हैं कि योनि जब तक पूरी तरह से नहीं खुलती तब तक हाइमन (योनिद्वार) सुरक्षित रहती है. वहीं योनि के खुलते ही हाइमन झिल्ली टूट जाती है. वैसे देखा जाए तो हाइमन में प्राकृतिक रूप से इतना बड़ा छिद्र होता है, जिससे माहवारी के दौरान आपको कोई परेशानी नहीं होती है. इसके अलावा आप टैम्पोन भी आसानी से इस्तेमाल कर सकती हैं.

कुछ महिलाएं जन्म से ही बहुत ही छोटे हाइमन ऊतकों के साथ पैदा होती हैं, जिसे पहली नजर में देखने पर यह लगता है कि उनकी योनि में हाइमन की झिल्ली मौजूद नहीं है, जबकि कुछ दुर्लभ मामलों में हाइमन की झिल्ली महिलाओं की योनि को पूरी तरह से आवरण में लिए होती है, इन मामलों में डॉक्टरों की मदद से इसके अतिरिक्त ऊतकों को हटा दिया जाता है.

सामान्यतः पहली बार सेक्स करने के दौरान हाइमन की झिल्ली पर दबाव व खिंचाव पड़ता है. जिससे हाइमन के टूटने पर योनि में दर्द के साथ ही खून भी निकलता है, लेकिन ऐसा हर महिला के साथ हो, यह जरूरी नहीं है. हाइमन की झिल्ली के टूटने के कई अन्य कारण भी हो सकते हैं. साइकिल चलाने, दौड़ने व घुड़सवारी से भी कई बार हाइमन की झिल्ली टूट जाती है. एक बार महिलाओं की हाइमन की झिल्ली टूट जाए तो यह प्राकृतिक रूप में दोबारा विकसित नहीं हो पाती है.

वर्जिनिटी टेस्ट कैसे होता है

वर्जिनिटी या कौमार्य को जांचने के लिए जो परीक्षण किया जाता है उसमें हाइमन (योनिद्वार की झिल्ली) की मौजूदा स्थिति को ही जांचा जाता है. इस परीक्षण (Test/ टेस्ट) में यह माना जाता है कि हाइमन संभोग के बाद ही टूट या फट सकती है. इस टेस्ट को दो उंगलियों का परीक्षण (Two fingers Test) भी कहा जाता है. बताया जाता है इस तरह के टेस्ट को करने की प्रक्रिया की खोज सन 1898 में की गई थी. इस तरह की जांच के परिणामों की सटिकता न होने के कारण यह टेस्ट आज भी विवादस्पद विषय बना हुआ है. कई देशों ने इस परीक्षण को मानवीय कानूनों का उल्लघंन मानते हुए अवैध करार दिया है.

कई देशों में दो अंगुलियों के टेस्ट से ही किसी रेप पीड़िता की भी जांच की जाती है. इसमें अंदर प्रवेश करने वाली अंगुलियों के आधार पर डॉक्टर अपने विचार देता है और बताता है कि महिला के साथ किसी तरह की घटना हुई है या नहीं. एक रिपोर्ट में इस बात को बताया गया है कि महिला के योनिद्वार के लचीला होने का संबंध किसी भी तरह से बलात्कार से नहीं होता है. इसके साथ ही इस रिपोर्ट में दो अंगुलियों से किए जाने वाले टेस्ट को भी न करने की सलाह दी गई है.

क्या हाइमन झिल्ली का सही होना ही आपकी वर्जिनिटी को बताता है?

इस विषय पर लंबे समय से बहस चल रही है, जबकि साइंस और चिकित्सा जगत इस बारे में अपने अलग ही तर्क समाज के सामने प्रस्तुत करते हैं. कुछ लोगों का मानना है कि जिन महिलाओं की योनि में हाइमन झिल्ली टूटी हुई होती है, वह वर्जिन यानि की कौमार्य नहीं हैं. वहीं हाइमन से जुड़े कुछ मामलों में ऐसा भी देखा गया है कि यह महिलाओं में जन्म से ही अधिक खुली हुई होती है, जबकि कई खेलों में हिस्सा लेने के दौरान भी हाइमन झिल्ली टूट जाती है, ऐसे में हाइमन को किसी महिला की वर्जिनिटी से जोड़ कर देखना बेहद गलत है.

हाइमन को ठीक करने की सर्जरी

हाइमन यानि योनिद्वार पर बनी ऊतकों की झिल्ली सेक्स या अन्य कारण से भी फट सकती है. कई बार तो कुछ महिलाओं के योनिद्वार पर इस प्रकार की झिल्ली होती ही नहीं हैं, ऐसे में उन महिलाओं के लिए अपनी वर्जिनिटी को साबित करने में मुश्किल हो सकती हैं. लेकिन लोगों में वर्जिनिटी टेस्ट के बढ़ते चलन के कारण हाइमन को ठीक करने वाली सर्जरी की शुरुआत हो चुकी है. हाइम्नोप्लास्टी (Hymenoplasty) नाम की यह सर्जरी किसी भी कॉस्मेटिक सर्जन से करवाई जा सकती है. विशेषज्ञों का कहना है कि इसके बेहद कम साइड इफेक्ट होते हैं और इस सर्जरी के बाद महिलाओं की हाइमन दोबारा पहले की तरह ही हो जाती है.

वर्जिनिटी (कौमार्य) खोने की सही उम्र क्या है?

किसी के साथ सेक्स करने का फैसला आपका अपना निजी निर्णय होता है, आप कब और किसके साथ अपनी वर्जिनिटी को खोते हैं इसका लोगों से कोई लेना देना नहीं है. किसी भी उम्र में आप पहली बार सेक्स कर सकते हैं. कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में वर्जिनिटी को खोने की उम्र दुनिया के अन्य क्षेत्रों के मुकाबले अधिक है. माना जाता है कि भारत में इसकी औसत आयु 19.8 हैं, जबकि दुनिया भर में पहली बार सेक्स कर वर्जिनिटी को खोने वालों की औसत आयु 17.8 है.

वर्जिनिटी को खोने की उम्र आपके प्यार भरे संबंधों के आधार पर भी निर्भर करती है. यदि कोई व्यक्ति या आपका कोई दोस्त अपनी वर्जिनिटी खो चुका है, तो इसका यह मतलब बिलकुल नहीं हैं कि पहली बार सेक्स करने के लिए आप भी तैयार हैं. अगर आप केवल सेक्स करने के नजरीये से अपनी वर्जिनिटी को खोना चाहते हैं, तो यह जरूरी नहीं कि इसमें आपको अच्छा ही महसूस हो. इससे बेहतर यह होगा कि आप पहले खुद को सेक्स के लिए तैयार कर लें, इसके बाद ही इस क्रिया को करें.

इसके साथ ही आपको सेक्स करने से पूर्व इससे होने वाले यौन संक्रमणों, एसटीडी (यौन संचारित रोग) व उनसे बचावों के बारे में जानकारी लेना बेहद ही जरूरी होता है.

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कद्दू फूला मेरे अंगना: मीनाक्षी और गौतम का अनोखा हनीमून

कद्दूजैसी बेडौल और बेस्वाद चीज भी क्या चीज है यह तो सोचने वाला ही जाने, पर हमारी छोटी सी बालकनी की बाटिका में भी कद्दू कभी फलेगा, यह मैं ने कभी नहीं सोचा था. पर ऐसा होना था, हुआ.

बागबानी का शौक मेरे पूरे परिवार को है. मेरी 12वीं माले की बालकनी में 15-20 पौट्स हमेशा लगे रहते हैं. इस छोटी सी बगिया में फूलफल और सब्जी की खूब भीड़ है. इसी

भीड़ में एक सुबह देखा कि सेम की बेल के पास ही एक और बेल फूट आई है, गोलगोल पत्तों की. थोड़ा और बढ़ने पर हमें संदेह हुआ कि हो न हो पंपकिन यानी कद्दू महाराज तशरीफ ला रहे हैं.

अपने व्हाट्सऐप गु्रप में आप किसी से कद्दू पसंद है पूछो तो यही जवाब मिलेगा कि अजी, कद्दू भी कोई पसंद करने वाली चीज है…

एक ने हतोत्साहित किया कि उन्होंने बड़े चाव से कद्दू का बीज बोया था, बेल भी बहुत फली. सारी छत पर पैर पसारे पड़ी है, पर कद्दू का अब तक कहीं नाम नहीं है. वैसे भी सुन रखा था कि कद्दू की बेल फैल तो जाती है, पर फल बड़ी मुश्किल से आता है. सो उन की भी यही राय थी कि अपनेआप उगे बीज में फल किसी भी हालत में नहीं आएगा.

मगर मैं ने बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख कहावत की सचाई परखने का निश्चय कर ही लिया. अब मेरी हर सुबहशाम उस बेल की खातिरदारी में लग जाती. सेम की बेल के पास ही एक रस्सी के सहारे उस को दीवार पर चढ़ा दिया गया. शाम को एक फ्रैंड आई. देखा तो बोली, ‘‘कद्दू कोई सेम थोड़े ही है जो बेल में लटके रहेंगे. एक कद्दू का बो झा भी नहीं सह पाएगी तुम्हारी यह बेल.’’

मगर हमारी छोटी सी बगिया में बेल को फैलने की जगह कहां मिलती, सो हम ने उस को ऐसे ही छोड़ दिया. हमारे कौंप्लैक्स में बालकनियां एकदूसरे से सटी हैं और प्राइवेसी के लिए बीच में ऊंची दीवार है. मैं ने दीवार के ऊपर बेल को चढ़ाने का फैसला किया.

बेल अभी दीवार के ऊपर पहुंची ही थी कि एक सुबह उस में हाथ के बराबर गहरे पीले रंग का फूल खिला दिखा. सच सुंदरता में वह फूल मु झे कमल के फूल से कम नहीं लगा. वैसे तो वह नर फूल था, पर मादा फूल की कलियां भी अब उस में आ रही थीं. अब रोज 2-4 फूल बेल में खिलने लगे. कद्दू निकलें न निकलें, फूल तो खा लें यह सोच कर रैसिपी ढूंढ़ कर 2-4 पकौडि़यां भी बनाईं.

धीरेधीरे बेल में मादा फूल भी खिलने लगे. मेरी खुशी का ठिकाना न रहा कि लोग यों ही निरुत्साह कर रहे थे. पर बेल में तो अब कद्दू नहीं दिख रहे थे. बेल दीवार के ऊपर चली गई थी हरीभरी थी. मैं उस में खादपानी डाल रही थी पर कद्दू का पता नहीं था. बेल न जाने वहां से कहां चली गई थी. ग्रुप में एक ने कहा, ‘‘मैं ने पहले ही कहा था कि आप की बेल में कद्दू हरगिज नहीं आएगा.’’

मैं भी हिम्मत हार चुकी थी. सोचा अब बेल की परवरिश करने से कोई फायदा नहीं. सोचा 2-4 दिन साहस बटोर कर मैं बेल उखाड़ दूंगी. उस दिन रविवार था. सिर्फ टौप और बेहद पोर्ट शौर्ट पहने बालगानी कर रही थी. इस कौप्लैक्स में कोई किसी के घर आताजाता नहीं था. लिफ्ट में सिर्फ हायहैलो होती थी. यह जरूर लगा था कि बराबर वाले फ्लैट में कोई नया शिफ्ट हुआ है.

मैं अपने दूसरे पौधों को पानी दे रही थी कि घंटी बजी. न जाने कब से यह घटी नहीं बजी थी. इसलिए लपक कर जैसी थी, वैसे ही खोल दिया. सामने एक बांका 5 फुट 8 इंच का सांवला, जिम जाने वाला 35 साल का लाल टीशर्ट और काले शौर्ट में एक बेहद आकर्षक युवक था. हाथ में बास्केट.

मैं ने आश्चर्य से देखा तो वह बोला, ‘‘जी मैं आप का नैक्स्ट डोर. परसों ही शिफ्ट हुआ हूं. आज सुबह बालकनी में बैठा तो कुछ ऐसा देखा कि आप से शेयर करने का मन हुआ. बेटे को गौतम नागदेव कहते हैं,’’ यह कहते हुए उस ने एक बास्केट आगे बढ़ाई.

अब यह तो बनता ही है. मैं ने दरवाजा पूरा खोला, उसे अंदर आने का न्योता देते हुए बोली, ‘‘मैं मीनाक्षी, वैलकम…’’ तब तक मैं ने यह सोचा नहीं था कि मैं क्या पहने हूं. पर जैसे ही उस की आंखें मेरे चेहरे से नीचे पहुंचीं, मु झे एहसास हुआ कि मैं तो स्लीवलैस टौप और शौर्ट में हूं. मैं ने कहा कि ऐक्स्यूज मी मैं अभी चेंज कर आती हूं.

वह आगे बढ़ा. फिर उस ने मेरा हाथ पकड़ा और बोला, ‘‘अजी छोडि़ए ऐसे ही अच्छी हैं. कद्दू लेना है तो काफी पिलाइए.’’ ऐसे ही मैं कौन से थ्री पीस सूट में हूं. अब दोनों के पास हंसने के अलावा कोई चारा नहीं था.

अब तो हमारे दोनों घरों का वातावरण ही कद्दूमय हो गया था. आलम यह है कि दोनों को जब मिलने की इच्छा हुई, घंटी बजाई. कभी मैं कद्दू तोड़ने के बहाने उस के फ्लैट में घुसती तो कभी वह कद्दू तोड़ कर मेरी किचन में खड़ा होता. दोनों दफ्तर से आते ही कद्दू के हालचाल फोन पर.

एक दिन वह कद्दू को ऐसे सहला रहा था जैसे मु झे सहला रहा हो… यह तो अति होने लगी थी. मेरा पूरा बदन सुन सा करने लगा था. बड़ी मुश्किल से दोनों ने अपनेआप को रोका.

हम ने इस बीच पत्रिकाओं में से कद्दू के व्यंजनों की विधि खोजनी शुरू कर दीं. कद्दू का हलवा, कद्दू के कोफ्ते, कद्दू का अचार. यहां तक कि कद्दू के परांठे तक बनाने की विधि हम ने सीख ली.

इकलौते लाड़ले बिचौलिए की तरह कद्दू की सार संभाली होने लगी और बेल दिनदूना रात चौगुना बढ़ने लगी. हमारी आंखों में कुछ और ही सपने तैरने लगे. मां का फोन आता तो कद्दू की ज्यादा बात करती, बजाय अपना हाल बताने के या उन का पूछने के. उन्हें शक होने लगा कि कद्दू के पीछे कुछ राज है. मां अकसर सुनाती थी कि बचपन में उन के घर में इतने कद्दू फले थे कि पड़ोस में बांटने के बाद भी छत की कडि़यों में कद्दू लटकते रहते थे.

दोनों हर नए कद्दू का इंतजार करने लगे. कद्दू के बहाने हमारे दिल और तन दोनों मिलने लगे थे. बराबर खड़े हो कर जब कद्दू काट कर सब्जी बनती और साथ टेबल पर खाई जाती तो पूरा मन  झन झना उठता.

मां को लगता कि जो लड़की कद्दू की सब्जी के नाम से नाक भी चढ़ाती थी, उस का ध्यान अब उस के गुणों की तरफ कैसे जाने लगा. जैसे कद्दू में विटामिन ‘ए’ और ‘डी’ होता है, यह पेट साफ करता है आदि.

इस बीच वे कद्दू बड़े खरबूजे का आकार लेने लगे और उन के बो झे से बेल गौतम की पूरी बालकनी में छा गई थी. एक रात तेज आंधी आई. आवाज सुन कर आंख खुली तो डर लगा कि कहीं कद्दू की बेल टूट न जाए. नाइटी में ही गौतम ने प्लैट की घंटी बजा दी. वह भी जागा हुआ था. दोनों ने मिल कर आंधी से कद्दुओं को बचाया पर इस चक्कर में हमारा कौमार्य फूट गया. दोनों रातभर गौतम के बिस्तर पर ही सोए.

पता नहीं क्यों उस सुबह उठ कर कुछ डर सा लगा. हमारा दिल दहल उठा. 2 दिन में हम दोनों के मातापिता हमारे फ्लैटों में थे. दोनों के मातापिताओं ने कद्दू की बेलों की जड़ें और कद्दू देख लिए. अब जब बेल इधर से उधर हो चुकी थी और कद्दुओं की सब्जियां बन चुकी हैं तो शादी के अलावा क्या बचा था.

सारे दोस्तों को कद्दू प्रकरण पता चल गया. एक बड़ी पार्टी की गई. कद्दू की शक्ल का केक बना और हमारी सगाई की रस्म पूरी हो गई. न जाति बीच में आई और न कोई रीतिरिवाज. कददुनुमा केक पर चाकू चलाते समय हमारे हाथ खुशी से भरे थे.

शादी के बाद हम ने फैसला किया कि हम हनीमून वहीं मनाएंगे जहां कद्दुओं की खेती होती है. आप भी शुभकामना करें कि हमारी बेल फूलेफले और हमारे घर का आंगन हमेशा कद्दुओं से भरा रहे. फिर हम कद्दुओं से तैयार विविध व्यंजन आप को भी खिलाना नहीं भूलेंगे. हमारे दोस्तों ने हमारा नया नामकरण कर दिया है कद्दूकद्दू.

संविधान को कुचल रही सरकार

नरेंद्र मोदी सरकार को एक के बाद एक अपने भगवा एजेंडों को लागू करने की कोशिशों से पीछे हटना पड़ रहा है. सब से नया कदम लैटरल ऐंट्री सिस्टम में अफसरों की नियुक्ति है जिस में सरकार विज्ञापन दे कर प्राइवेट सैक्टर या पब्लिक सैक्टर के विशेषज्ञों को केंद्र सरकार के मंत्रालयों में बहुत ऊंची पोस्टों पर 5 साल या इस से ज्यादा समय के कौंट्रैक्ट पर रखती थी.

ये अपौइंटमैंट्स हालांकि होती यूपीएससी के मार्फत ही हैं पर इन में न तो अनुच्छेद 311 के संवैधानिक आरक्षण की व्यवस्था है और न ही कोई परीक्षा होती है. जिन पोस्टों पर ये लोग काम करने को नियुक्त किए जाते हैं उन के समकक्ष काम कर रहे अफसर जवानी से सरकारी नौकरी में हैं और आरक्षण का लाभ या आरक्षण के शिकार, जैसा जो चाहे उस से कटे होते हैं.

इन लैटरल ऐंट्री अफसरों को एक तरह से प्रधानमंत्री खुद नियुक्त करते रहे हैं क्योंकि 2018 के बाद जब से यह प्रक्रिया शुरू हुई है किसी और मंत्री की तो हैसीयत ही नहीं थी कि  वह किसी की सिफारिश कर दे.

इस लैटरल ऐंट्री द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर मंत्रालय में अपना जासूस अधिकारी नियुक्त कर रहे थे जो उन की निजी नीतियों को लागू करे जिन में अधिकांश कट्टर हिंदू सोच वाले फैसले करने होते थे. लोकतंत्र में स्वतंत्र नौकरशाही को, जिस संवैधानिक सुरक्षा अनुच्छेद 311 से प्राप्त है, इस लैटरल ऐंट्री ने समाप्त कर दिया था. 17 अगस्त को जब यूपीएससी ने 45 और स्थानों के लिए विज्ञापन दिया जिस में कई तकनीकी मंत्रालयों में नियुक्ति होनी थी, हंगामा मच गया.

अब न केवल विपक्ष मजबूत है, भाजपा की अनमन वाली पार्टी सहयोगी दलों पर निर्भर है जो इस लैटरल ऐंट्री के खिलाफ हैं. सहयोगी दलों को मालूम है कि अगर कहीं उन की राज्य सरकार है तो ये लैटरल ऐंट्री वाले वहां भी थोप दिए जा सकते हैं जो सरकार और शासन में गैरभाजपा पर सहयोगी सरकार की पोल भी खोलते रहेंगे और केंद्र के कहने पर अडें़गे भी डाल सकते हैं.

लैटरल ऐंट्री एक तरह से मंदिरों में होने वाली चेलों की नियुक्ति की तरह है जहां महंत अपनी मरजी के चेलों को ऊंचा स्थान देता है और जब उन से नहीं बनी तो उन्हें चलता कर देता है. नौकरशाही ने देश का भला चाहे किया हो या न किया हो, शासन की स्थिरता अवश्य दी है.

सैकड़ों हिंदी फिल्में इसी बात पर बनी हैं जिन में नौकरशाह को नायक और नेता को खलनायक बनाया गया है. इस की वजह है कि चाहे नौकरशाह जनता के पास वोट मांगने नहीं जाते, वे अपने काम में कुशल होते हैं और वे मंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक से अपनी असहमति प्रकट करने का साहस रखते हैं. एक नौकरशाह को निकालना काफी कठिन होता है जबकि सब लैटरल ऐंट्री वाले अफसरों को, जो वैसे ही 3 साल के कौंट्रैक्ट पर होते हैं, निकालना बेहद आसान है.

मोदी सरकार विधान को कुचलने के भरसक प्रयास 2014 से कर रही है और अपने सारे कुकर्मों को हिंदूमुसलिम के बल के नीचे छिपा सकने में अब तक सफल रही है. नरेंद्र मोदी ने 2002 के गुजरात के दंगों में भी यही किया जब अटल बिहारी वाजपेयी ने

उन्हें पूरा समर्थन दिया. उस समय गुजरात की पूरी नौकरशाही ने उन का साथ दिया पर केंद्र में उन्हें दिक्कत होने लगी थी क्योंकि अपने मतलब के अफसर मिलने कम हो गए थे.

यूपीएससी से नियुक्त अफसरों में अब आरक्षण के कारण पिछड़े और दलित भी ऊंची पोस्टों के लायक आने लगे हैं. उन को कंट्रोल करने के लिए लैटरल ऐंट्री एक नायाब तरीका है. कुछ सौ अफसर पूरे देश को कंट्रोल कर सकते हैं अगर वे केवल और केवल मोदी की सुनने वाले हों. अफसोस राहुल गांधी ने 4 जून, 2024 को मोदी युग की समाप्ति की शुरुआत कर दी है. अब सब नेता, एक पार्टी, एक मंशा, एक मन की बात पर अंकुश लग गया है. नौकरशाहों की नियुक्ति मनमरजी से चलने का फैसला इसी दशा में है.

ऐसे करें सीरम का चुनाव, आपके स्किन को मिलेगी एक नई जिंदगी

सौंदर्य विशेषज्ञा – भारती तनेजा

आज मार्केट में अलगअलग टाइप के सीरम्स उपलब्ध हैं जो स्किन की विभिन्न जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाए जाते हैं. ये सीरम्स आप की स्किन को हैल्दी और ग्लोइंग बनाने में मदद कर सकते हैं. हर स्किन टाइप के लिए कुछ न कुछ विशेष होता है जो आप के चेहरे की जरूरतों को पूरी तरह से पूरा करता है.

विटामिन सी सीरम

विटामिन सी सीरम का सब से बड़ा फायदा यह है कि यह स्किन को ब्राइट और इवन टोन करने में मदद करता है. यह सीरम डार्क स्पौट्स को कम करता है और स्किन को नैचुरल ग्लो देता है. इस के रैग्युलर यूज से स्किन यंग और फ्रैश दिखती है. इस के अलावा विटामिन सी एक शक्तिशाली ऐंटीऔक्सीडैंट भी है जो स्किन को फ्री रैडिकल्स से बचाता है जो समय से पहले ऐजिंग का कारण बनते हैं. यह सीरम धूप से होने वाले डैमेज को भी कम करता है और स्किन की इलास्टिसिटी को बनाए रखने में सहायक होता है.

ह्यालूरोनिक ऐसिड सीरम

ह्यालूरोनिक ऐसिड सीरम स्किन को डीपली हाइड्रेट करने के लिए बैस्ट माना जाता है. यह स्किन में नमी को बनाए रखता है और ड्राइनैस से बचाता है. इस के साथ ही यह फाइनलाइंस और ?ार्रियों को कम करने में भी मदद करता है, जिस से स्किन सौफ्ट और प्लंप लगती है. ह्यालूरोनिक ऐसिड एक प्राकृतिक कंपाउंड है जो हमारी स्किन में पहले से मौजूद होता है लेकिन उम्र के साथ इस की मात्रा घटने लगती है इसलिए इस सीरम का उपयोग स्किन को लंबे समय तक हाइड्रेटेड और यंग बनाए रखने में सहायक होता है.

रैटिनौल सीरम

रैटिनौल सीरम ऐजिंग के साइंस को कम करने के लिए जाना जाता है. यह सीरम स्किन को रिन्यू करता है और ?ार्रियों, फाइनलाइंस और दागधब्बों को कम करता है. रैटिनौल एक विटामिन डेरिवेटिव है जो सैल टर्नओवर को बढ़ाता है, जिस से स्किन यंग और स्मूद दिखती है. इस के साथ ही, रैटिनौल सीरम पोर्स को भी कम करने में मदद करता है, जिस से स्किन के टैक्स्चर में सुधार होता है. यह सीरम नाइट रूटीन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है क्योंकि यह स्किन को रिपेयर करता है और उसे अगले दिन के लिए तैयार करता है.

निआसिनामाइड सीरम

निआसिनामाइड सीरम स्किन की टैक्स्चर को बेहतर बनाने और औयल बैलेंस करने में मदद करता है. यह पोर्स को टाइट करता है और डार्क स्पौट्स को लाइट करता है. इस के रैग्युलर यूज से स्किन क्लीयर और सौफ्ट होती है. निआसिनामाइड एक विटामिन बीएक्स डेरिवेटिव है जो ऐंटीइनफ्लैमेटरी प्रौपर्टीज से भरपूर होता है, जिस से यह सीरम रैडनैस और इरिटेशन को कम करता है. इस के अलावा यह स्किन की इलास्टिसिटी को भी बढ़ाता है और फाइनलाइंस को कम करता है, जिस से स्किन यंग और फ्रैश दिखती है.

कौपर पेप्टाइड सीरम

कौपर पेप्टाइड सीरम एक पावरफुल ऐंटीऐजिंग प्रोडक्ट है. इस में कौपर पेप्टाइड्स होते हैं जो कोलेजन और इलास्टिन प्रोडक्शन को बढ़ाते हैं. ये स्किन को रिपेयर करते हैं और उसे स्मूद और यंग दिखाते हैं साथ ही यह सीरम स्किन की रैडनैस और इनफ्लेमेशन को भी कम करता है. कौपर पेप्टाइड्स ऐंटीऔक्सीडैंट प्रौपर्टीज से भरपूर होते हैं जो स्किन को फ्री रैडिकल्स से बचाते हैं और डैमेज को रिपेयर करते हैं. इस के अलावा कौपर पेप्टाइड्स स्किन की टोन को भी इवन आउट करते हैं और उसे हैल्दी ग्लो प्रदान करते हैं.

अर्गेलाइन सीरम

अर्गेलाइन सीरम फेशियल मसल्स को रिलैक्स कर के फाइनलाइंस और ?ार्रियों को कम करता है. यह नौनइंवेसिव ट्रीटमैंट है जो स्किन को स्मूद और यंग बनाए रखने में मदद करता है. अर्गेलाइन सीरम का उपयोग खासतौर पर उन हिस्सों में किया जाता है जहां फाइनलाइंस और ?ार्रियां अधिक होती हैं जैसे माथा, आंखों के आसपास और मुंह के कोनों पर. इस के नियमित उपयोग से स्किन की फर्मनैस और इलास्टिसिटी में सुधार होता है और आप को एक अधिक युवा और रिफ्रैश लुक मिलता है.

सेरामाइड सीरम

सेरामाइड्स नैचुरल लिपिड्स होते हैं जो स्किन बैरियर को स्ट्रौंग करते हैं. सेरामाइड सीरम स्किन को हाइड्रेट करता है, उसे सौफ्ट बनाता है और प्रोटैक्ट करता है. यह ड्राई और सैंसिटिव स्किन के लिए बैस्ट होता है. सेरामाइड्स स्किन के मौइस्चर बैरियर को रीस्टोर करते हैं, जिस से स्किन की नमी बरकरार रहती है और वह ऐक्सटर्नल डैमेज से बची रहती है. इस के अलावा सेरामाइड्स स्किन की रैडनैस और इरिटेशन को भी कम करते हैं, जिस से वह स्वस्थ और चमकदार दिखती है.

इन सीरम्स का रैग्युलर यूज आप की स्किन को कई तरह की प्रौब्लम्स से बचा सकता है. आप को अपनी स्किन टाइप और जरूरतों के हिसाब से सही सीरम का चुनाव करना चाहिए ताकि आप अपनी स्किन को हैल्दी, यंग और ग्लोइंग बना सकें. एक अच्छा सीरम आप की स्किन केयर रूटीन का अभिन्न हिस्सा बन सकता है जो आप की स्किन को एक नई जिंदगी देने का काम करेगा.  –

एक नई भाषा है इमोजी, भावनाओं को करती है बयां

इमोजी, शब्द जापानी भाषा से आया है. जापानी में ‘इ’ का अर्थ होता है ‘चित्र या तसवीर’ और ‘मोजी’ का अर्थ होता है ‘अक्षर या वर्ण.’ इन का उपयोग कर के लोग अपनी भावनाओं को ?ाटपट भेज सकते हैं. हर साल 17 जुलाई को दुनिया ‘वर्ल्ड इमोजी डे’ मनाती है. साल 2012-2013 में इमोजी का प्रयोग इतना प्रसिद्ध हुआ कि अगस्त 2013 में औक्सफोर्ड शब्दकोश में भी इमोजी शब्द को जोड़ दिया गया.

शब्द हमारे संचार या बातचीत का जरीया होते हैं लेकिन अब ये इमोजी की जद में है क्योंकि आजकल हम सभी इस डिजिटल दुनिया के दौर में अपनी बात कहने के लिए इमोजी का सब से ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं. इस से आप आसानी से अपने इमोशन यानी भावनाओं को व्यक्त करते हैं और वह भी बिना कुछ लिखे. आज के समय में चैटिंग, मेल, सोशल मीडिया, हर जगह इमोजी का इस्तेमाल हो रहा है. यह केवल एक तकनीकी ही नहीं बल्कि एक बुनियादी बदलाव भी है कि हम किस तरह से इनफौर्मेशन के साथ बातचीत करते हैं और अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं.

क्या है

आजकल हरकोई स्मार्ट फोन में व्यस्त है. सोशल मीडिया पर दिनभर आते मैसेजस और बातों के जवाब देने में आलस महसूस होता है. इस व्यस्त दिनचर्या के बीच बातों की जगह ले ली है नई भाषा इमोजी इमांटिकौन ने. इस नई भाषा का इस्तेमाल इतना आसान हो गया है कि किसी बात का जवाब देना हो तो मन का इमोजी सर्च किया और भेज कर बात को पूरा किया.

एक छोटी डिजिटल छवि जिस का उपयोग इलैक्ट्रिक माध्यम में किसी विचार या भावना को व्यक्त करने के लिए किया जाता है साथ ही जब अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं तो इमोजी उन्हें पूरा कर देती है.

भावनाओं को बयां करती इमोजी

आजकल सोशल मीडिया पर अपनी भावनाओं जैसे हालएदिल का इजहार करना हो या किसी पर गुस्सा दिखाना, शोक व्यक्त करना, शुभकामना या बधाई देना हो, थैंक्यू बोलना हो, यहां तक किसी की खिल्ली उड़ानी हो तो वह भी बिना शब्दों के इमोजी की मदद से आसानी से उड़ाई जा सकती है.

इमोजी का सही इस्तेमाल करें

कई बार लोग अपने भाव या फीलिंग बोल कर या लिख कर नहीं समझ पाते तब वे इमोजी की मदद या सहारा ले सकते हैं लेकिन इन के इस्तेमाल से पहले इन का सही इस्तेमाल जानना जरूरी है क्योंकि कुछ ही लोग इन का सही इस्तेमाल कर पाते हैं. मतलब न पता होने पर कभीकभी गलत इमोजी का इस्तेमाल करते हैं, जिस की वजह से कभीकभी शर्मिंदगी का सामना भी करना पड़ सकता है क्योंकि इन का गलत इस्तेमाल आप की सही भावना को नहीं दिखा पाता.

जैसे उलटा स्माइली लोगों को लगता है कि यह खुशी से मानने वाली दशा को दर्शाता है जबकि इस में कई भाव छिपे हुए होते हैं जैसे मूर्खता, पागलपन, मजाक, व्यंग्य आदि. ठीक ऐसे ही थम्सअप, मुसकान, रोने वाली इमोजी के अलगअलग उपयोग हैं इसलिए सोचसमझ कर इन का इस्तेमाल करें और किसी को भी भेजने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि जैसा आप सोच रहे हैं उस इमोजी को देख कर सामने वाला भी वैसा ही सोच रहा है.

एक इमोजी कहे बहुत सारी बात

कई बार कुछ इमोजी एक फ्रैंड सर्कल में कौमन होती हैं और तब उन्हें पता होता कि इस इमोजी का उन के गु्रप के लिए क्या मतलब है जैसे आप को पार्टी करनी हो तो केवल पार्टी पौपर और खाने के इमोजी भेजेते सभी समझ जाते हैं कि आज पार्टी है. कुछ ग्रुप के लिए इस का अलग मतलब हो सकता है कि पार्टी चाहिए या मैं आज अच्छा खाना खाऊंगा या खाऊंगी अर्थात बहुत सारे शब्दों की जगह एक इमोजी से काम हो जाता है.

प्यार को दर्शाने के लिए यदि आप इमोजी का इस्तेमाल करेंगे तो अपनी बात अच्छे से नहीं कह पाएंगे क्योंकि प्यार को जताने, इकरार के लिए किसी शौर्टकट की नहीं बल्कि आप के प्यारभरे शब्दों को जरूरत होती है.

कुछ जगह बचें इमोजी के इस्तेमाल से

जब किसी की तारीफ करनी हो तो इस के लिए कीजिए अपने शब्दों का उपयोग.

जब किसी का हौसला बढ़ाना हो तो अपने शब्दों की रचनात्मकता का उपयोग करें.

यदि बातचीत बहुत गंभीर है या किसी बात पर अपनी प्रतिक्रिया थोड़ी विस्तार से करनी है तब शब्दों का उपयोग करना आवश्यक है.

यदि अपने किसी खास परिजन को जन्मदिन की बधाई देनी हो तो शब्दों का उपयोग अच्छा माना जाता है. इमोजी से बधाई देना अपने कर्तव्य की इतिश्री करना होता है.

क्यों उभरती हैं टांगों पर नीली नसें, ऐसे पाएं इससे छुटकारा

गर्भावस्था के दौरान अधिकांश महिलाओं की टांगों में मकड़ी के जालेनुमा नीली नसें उभर आती हैं पर डिलिवरी के बाद ये नसें ज्यादातर महिलाओं की टांगों से गायब हो जाती हैं. कुछ महिलाओं में ये नसें स्थाई हो जाती हैं और पहले से ज्यादा फूल जाती हैं. इस के अलावा अधेड़ उम्र या वृद्ध महिलाएं भी टांगों में उभरी नीली नसों की अकसर शिकायत करती हैं.

 

नीली नसों के शिकार

वे लोग जो कुरसी पर लगातार घंटों बैठते हैं जैसे औफिस में कंप्यूटर के आगे बैठ कर काम करते हैं. वे महिलाएं जो टैलीविजन टैट के आगे बैठ कर देर तक टीवी सीरियल देखती रहती हैं. बुजुर्ग लोग भी शिथिलता की वजह या अपना अकेलापन दूर करने के लिए अपना सारा दिन टैलीविजन के सामने बैठ कर ही बिताते हैं और इस समस्या का शिकार हो जाते हैं. दुकानदार भी टांगों की उभरी नीली नसों के अकसर शिकार होते हैं क्योंकि वे भी दुकान पर दिनभर बैठे रहते हैं. लगातार बैठने के कारण हमारे न्यायाधीश व वकील भी इस समस्या की शिकायत करते हैं.

अध्यापक, अध्यापिकाएं, पुलिस वाले और कौरपोरेट औफिस के स्वागतकक्ष में लगातार खड़े रहने वाली महिलाएं व पुरुष कर्मचारी अकसर जांघों व टांगों पर उभरी नीली नसों से पीडि़त रहते हैं. आजकल अस्पताल में कार्यरत नर्स व गार्ड की ड्यूटी करने वाले भी उभरी नीली नसों से बच नहीं पाते.

क्यों उभरती हैं टांगों पर नीली नसें

इस का सब से बड़ा कारण यह है टांगों व पैरों में गंदे खून का इकट्ठा होना. जब गंदा खून टांगों व पैरों पर एक निर्धारित सीमा के बाहर इकट्ठा होने लगता है तो यह खून त्वचा के नीचे स्थित नसों में भरना शुरू हो जाता है जिस से त्वचा पर उभरी नीली नसें दिखने लगती हैं. ये नसें शुरुआती दिनों में मकड़ी के जाले की तरह दिखती हैं फिर धीरेधीरे नीली नसों का उभरा ज्यादा दिखने लगता है. यह गंदा खून नौर्मल तरीके से टांगों व जांघों से ऊपर चढ़ कर दिल में पहुंचता है और फेफड़ों में जा कर शुद्ध होता है. अगर किसी वजह से यह गंदा खून ऊपर नहीं चढ़ता है तो टांगों व पैरों में इस गंदे खून का इकट्ठा होना स्वाभाविक है.

हमारी आधुनिक दिनचर्या दोषी है

आरामतलब जिंदगी व नियमित न टहलने की आदत, टांगों पर कहर बरपा रही है. गंदे खून को ऊपर चढ़ाने के लिए टांग की मांसपेशियों के पंप की आवश्यकता होती है. आप जितना चलेंगे उतना ही मांसपेशियों का पंप काम करेगा और गंदा खून ऊपर चढ़ जाएगा और टांगें गंदे खून से रहित हो जाएंगी. अगर आप लंबे समय तक बैठना व खड़ा होना बंद नहीं करते और नियमित टहलना आरंभ नहीं करते और अपना वजन बढ़ाते हैं तो यकीन मानिए कि टांगों व जांघों पर नीली नसें उभरेंगी ही पर इस के साथ एक जानलेवा समस्या भी बन सकती है. टांग की अंदरूनी नली यानी वेंस में खून के कतरों का जमाव हो सकता है जिस के परिणामस्वरूप गंदे खून का ऊपर चढ़ने का रास्ता पूरी तरह से अवरुद्ध हो जाएगा जिस से 2 नुकसान हैं- एक तो टांगों की सूजन के साथ नीली नसें उभरेंगी और दूसरा नुकसान यह है कि अगर खून के कतरे ऊपर चढ़ कर फेफड़ों की खून की नली में पहुंच गए तो जान गंवाने का खतरा भी बढ़ जाएगा.

अगर नीली नसें उभर आई हैं तो क्या करें

आप रोजाना टहलना शुरू करें, 5 किलोमीटर सुबह और 3 किलोमीटर शाम को टहलें. इस टहलने के नियम में किसी तरह की कोताही न बरतें. अगर आप का वजन ज्यादा है तो उस को हर महीने कम करने की सोचें. एक और बात याद रखें कि कभी 1 घंटे से ज्यादा लगातार न बैठें. जैसे ही 1 घंटा हो जाए तो तुरंत खड़े हो कर 10 मिनट टहलें और फिर बैठ जाएं. यह क्रिया दिनभर दोहराएं. रात में लेटते वक्त पैरों के नीचे तकिया रख लें. इन सब निर्देषों का 3 महीने तक ईमानदारी से पालन करें. 100 में से 70 लोगों को इस से फायदा मिलेगा.

वैस्क्युलर सर्जन की सलाह कब लें

अगर इस बताई दिनचर्या का ईमानदारी से पालन करने के बावजूद आप ज्यादा लाभान्वित नहीं हो रहे हैं तो तुरंत किसी अनुभवी वैस्क्युलर सर्जन से परामर्श लें. वे टांगों की एक वेंस डौप्लर नामक जांच करवा कर देखेंगे कि गंदा खून टांगों में कितनी मात्रा में इकट्ठा हो रहा है और टांगों की मांसपेशियों का पंप कितना प्रभावशाली है व नसों के अंदर स्थित कपाट ठीक से खुलते व बंद होते हैं या नहीं, यह भी पता लग जाता है कि कहीं वेंस में पुराने खून के कतरे तो नहीं जमा हैं. इस रिपोर्ट के अध्ययन के बाद ही सही इलाज का निर्धारण होता है.

ठीक इलाज क्या है

अगर वेंस में खून के कतरे जमा नहीं हैं तो उभरी हुई वेंस में इंजैक्शन स्क्लेरोथेरैपी करते हैं और अगर गंदा खून टांगों में ज्यादा इकट्ठा नहीं हो रहा है और वेंस के कपाट यानी वाल्व ज्यादा क्षतिग्रस्त नहीं हैं तो शारीरिक व्यायाम, नियमित टहलने आदि से समस्या कंट्रोल में आ जाती है. 6 महीने के बाद ज्यादातर मरीजों में समस्या का प्रभावी ढंग से निदान हो जाता है.

अगर वेंस के वाल्व ज्यादा खराब हैं तो लेजर तकनीक या आरएफए रेडियो फ्रीक्वैंसी एब्लेकशन या वेनोसील तकनीक का इस्तेमाल करना पड़ता है. इस से मरीज को बेहोश नहीं करना पड़ता है और उसी दिन अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है क्योंकि त्वचा को काटना नहीं पड़ता है. इन तीनों इलाज की विधाओं में आरएफए तकनीक ज्यादा लोकप्रिय और कारगर है.

कैसे कहूं: अब मैं बड़ी हो चुकी हूं

मेरा नाम वारी है. मैं 14 साल की हूं. मैं उम्र के उस दौर से गुजर रही हूं जहां न तो मैं बड़ों में आती हूं और न ही मैं छोटी बच्ची मानी जाती हूं. मुझे आज भी याद है जब पिछले महीने मेरे चाचाजी आए थे और मैं उन के सामने ठुनक रही थी तो मम्मी ने झिड़कते हुए कहा था कि तुम क्या दूध पीती बच्ची हो? जब मैं मम्मी या चाची से पूछती हूं कि यह फ्रैंच किस क्या होता है, तो मम्मी गुस्से से मेरी तरफ ऐसे देखती हैं जैसे मैं ने कोई अपराध कर दिया हो. मुझे समझ नहीं आता है कि मैं अपने मन की बात किस से करूं?

क्लास में धीरेधीरे सब लड़कियों के पीरियड्स शुरू हो गए हैं. मेरे अब तक नही हुए हैं. मैं मम्मी से कहती हूं तो मम्मी गुस्से में बोलती हैं कि बड़ी जल्दी है तुझे जवान होने की…

मम्मी से कैसे कहूं कि मेरे और साक्षी के अलावा सब लड़कियां जवान हो चुकी हैं. क्लास के लड़के मुझे बेबी कह कर चिढ़ाते हैं. मुझे पता है कि पीरियड्स में दर्द होता है. मुझे यह भी पता है कि सिनेटरी पैड इत्यादि का झंझट भी होता है. पर ये सब लड़कियों का एक सीक्रेट होता है जिसे वे बड़े गर्व से छिपाती भी हैं और बताती भी हैं.

अभी परसों की बात है. वान्या के पेट मे बहुत दर्द हो रहा था. मैं ने ऐसे ही बोला,”क्या कल जंक फूड खाया था?”

वान्या गुस्से में बोली,”इडियट, यह प्रीमैंसुरल पैन है…”

मैं मूर्खो की तरह खड़ी रही तो आरवी हंसती हुई बोली,”अरे, अपनी मम्मी से पूछना.”

मम्मी से पूछा तो वे रसोई में रोटी बेलते हुए बोलीं,”जब तुम्हें होगा तो पता चल जाएगा.”

मैं क्लास में नौरमल फील करना चाहती हूं, इसलिए एक दिन मैं मम्मी का सिनेटरी पैड लगा कर स्कूल चली गई. मैं दरअसल वह अनुभव करना चाहती थी जिस से मैं अब तक अछूती थी. दोपहर होतेहोते मेरा खुजली के कारण बुरा हाल हो गया था. जब दोपहर को मैं सिनेटरी पैड डस्टबिन में डाल रही थी तो मेरी चाची ने मम्मी से चुगली कर दी थी. मम्मी ने बिना मेरी बात सुने, मेरे पीठ पर 2 थप्पड़ जमा दिए थे. वह तो शुक्र है कि कुछ दिनों बाद मेरे भी पीरियड शुरू हो गए थे.

पीरियड शुरू होने की जहां खुशी थी, वहीं मेरे चेहरे पर ऐक्ने भी दिखने लगे थे. होंठों के ऊपर मूंछें भी दिखने लगी हैं. अब क्लास के बच्चे मुझे बेबी अंकल के नाम से बुलाते हैं. मन करता है कि मम्मी से कहूं कि मुझे पार्लर ले जा कर मेरे कम से कम अपर लिप्स तो करवा दें. हाथपैरों के बाल तो फिर भी कपड़ों में छिपा सकती हूं मगर जब से सनी भैया जिंदगी में आए हैं लगता है शरीर के इन बालों का कुछ करना होगा.

अब सनी भैया नहीं, सनी हैं वे मेरे लिए. पूरी कालोनी चाहे उन्हें कुछ भी कहे मगर एक वे ही हैं जो मुझे इतनी प्यार भरी नजरों से देखते हैं, मेरी बातें सुनते हैं और मुझे महत्त्व देते हैं. मम्मी जहां मुझे रातदिन मोटीमोटी… बोलती हैं, वहीं सनी के हिसाब से मैं सैक्सी लगती हूं. बिना किसी को बताए मैं 2 बार उन के साथ डेट पर जा चुकी हूं.

एक बार तो सनी ने मुझे किस भी किया था और अगली बार फ्रैंच किस के लिए कहा था. इसलिए ही मैं यह मम्मी से पूछ रही थी और बेकार में मुझे मम्मी ने डांट लगा दी थी.

अगर सनी के बारे में घर पर पता चल गया तो मम्मी तो मुझे फांसी पर ही लटका देंगी. क्लास में सब लड़केलड़कियों का कोई न कोई पार्टनर अवश्य है. मैं दिखने में सांवली हूं, थोड़ी मोटी हूं और पढ़ाई में भी बस ऐवरेज ही हूं. मगर दिल का क्या करूं? अब कम से कम क्लास में मैं भी अपने बौयफ्रैंड के बारे में बातें कर सकती हूं.

आज सृष्टि बेहद इतरा रही थी. आज रात को उस के घर स्लीपओवर है. उस ने अपने पूरे ग्रुप को बुलाया था. उन में 3 लड़के भी हैं. पता नहीं सृष्टि के पेरैंट्स इतने लिबरल कैसे हैं. ये लोग अपने मम्मीपापा से बोलेंगे कि ग्रुप स्टडी चल रही है. मगर मुझे अच्छे से मालूम है कि ग्रुप स्टडी के बहाने ये प्रोन देखेंगे और फिर ऐक्सपैरिमैंट करेंगे. मगर बड़ों की नजरों में हम अभी बच्चे हैं.

एक दिन तो सनी ने भी तो मुझे ऐसी ही वीडियो भेजी थी मगर मैं ने तो डर के कारण पूरी देखी भी नहीं थी. पता नहीं सैक्स को ले कर सब लोग इतने ऐक्साइटेड क्यों रहते हैं? सनी भी ज्यादातर सैक्स की ही बातें करता है. मुझे बिलकुल मजा नहीं आता है, मगर इस डर से कि कहीं वह मुझे छोड़ न दे, मैं उस की हां में हां मिलाती रहती हूं. हां, मगर झूठ नहीं बोलूंगी जब सनी मेरे शरीर पर हाथ लगाता है तो अंदर से एक अलग सी फीलिंग आती है. एक अजीब सी सनसनाहट सी होती है पूरे शरीर में. बहुत बार मन करता है कि अपनी बातें किसी से शेयर करूं, मगर किस से? क्या ये सारे रहस्य हमेशा रहस्य ही बने रहेंगे या कोई ऐसा कभी मिलेगा जो इन रहस्यों पर से परदा उठा दे?

मैं बड़ा होना चाहती हूं मगर दूसरों के अनुभवों के सहारे नहीं. अपने अनुभवों से गुजरते हुए मुझे बड़े होना है. मुझे मालूम है कि कुछ अनुभव मुझे अंधेरे में धकेल देंगे तो कुछ अनुभव मुझे जिंदगी के नए आयाम से रूबरू करवाएंगे. मगर मुझे किसी ऐसे शख्स की तलाश है जो मेरे साथ खड़ा रहे, जब इन रहस्यों से मेरा सामना हो.

क्या मैं कुछ गलत सोच रही हूं या कर रही हूं? मगर मैं गलत हूं या सही इस बात के लिए भी तो कोई चाहिए न. एक ऐसा इंसान जो मेरी इच्छओं का सम्मान करे, मैं जैसी हूं मुझे वैसे ही स्वीकार करे. मुझे क्या करना है इस बात का ज्ञान न दे कर मैं जो कर रही हूं उस बारे में मुझ से खुल कर बातचीत करे. मुझे सही और गलत के बीच का फर्क समझा कर मुझे नैतिकता का पाठ न पढ़ाए क्योंकि हर इंसान का सही और गलत उस का नजरिया ही तय करता है और जो बात मेरे मम्मीपापा की जैनरेशन में गलत हो सकती है, जरूरी नहीं कि मेरे लिए भी गलत हो.

Anupamaa और डौली के बीच छिड़ेगी जंग, क्या अंकुश और बरखा को अनुज माफ करेगा?

टीवी सीरियल अनुपमा लगातार टीआरपी चार्ट में टौप पर है. इस शो में इन हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. जिससे दर्शकों का भरपूर एंटरटेनमेंट हो रहा है. इस सीरियल में अनुज-अनुपमा जान डाल देते हैं, लेकिन उनकी जिंदगी की परेशानियां खत्म होने का नाम नहीं लेती. इस शो के अपकमिंग एपिसोड कई ट्विस्ट देखने को मिलेंगे. आइए जानते हैं…

शो से गायब है वनराज

सुधांशु पांडे यानी वनराज इस शो को छोड़ चुके हैं. इसलिए शो से वनराज को गायब दिखाया जा रहा है. आपने शो में ये भी देखा कि वनराज करोड़ों रुपये लेकर फरारा हो गय है, जिससे शाह परिवार टेंशन में है. तो दूसरी तरफ तोषु अपनी बुआ डौली से हर बात पर बहस कर रहा है.

शाह हाउस में हिस्सा लेगी डौली

डौली ने एक नए अवतार में सीरियल में वापसी किया है. वह शाह हाउस में अपना हिस्सा लेने आई है. वह तोषु को धमकाती है और दूसरी तरफ अनुपमा से भी भिड़ती है.शो में ये भी देखने को मिलेगा कि अनुज अपने पुराने स्टाइल में लौटेगा और महीनों बाद औफिस जाने का फैसला लेगा. ये जानकर अनुपमा को बहुत खुशी होगी.

वनराज से चार कदम खुद को आगे बताएगी डौली

शो में ये भी दिखाय जाएगा कि डौली को सागर और मीनू की सच्चाई पता चल जाएगी. दरअसल मीनू डौली को कौलेज छोड़ने जाएगी और वहां पर सागर आता, ऐसे में डौली दोनों को पकड़ लेती है और खूब खरीखोटी सुनाएगी. तभी वहां अनुपमा आएगी,तो और धमाका होगा. अनुपमा कहेगी कि मीनू और सागर दोस्त हैं, लेकिन डौली अनुपमा को भी सुनाएगी इतना ही नहीं वह खुद को वनराज शाह से चार कदम आगे बताती है.

क्या अंकुश और बरखा को मिलेगी सजा

शो में महाट्विस्ट देखने को मिलेगा कि जब अनुज को पता चलेगा कि उसके औफिस बंद होने की कगार पर है. दूसरी तरफ अनुज और अनुपमा के बीच बात होती है. तो अनुपमा कहती है कि अंकुश और बरखा को सजा देनी होगी.

शो के अपकमिंग एपिसोड में आप ये भी देखेंगे कि अंकुश के घर अनुज जाएगा, वह अनुज को देखकर हैरान हो जाएगा और गले लगाने जाएगा, तो अनुज का गुस्सा फूट पड़ेगा. शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि अनुज अपनी डूबती कंपनी को कैसे बचाएग?

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