हवाई जहाज दुर्घटना: क्या हुआ था आकृति के साथ

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गलत फैसला: क्या गलती कर बैठा था सुखराम

राइटर- आचार्य नीरज शास्त्री

रौयल स्काई टावर को बनते हुए 2 साल हो गए. आज यह टावर शहर के सब से ऊंचे टावर के रूप में खड़ा है. सब से ऊंचा इसलिए कि आगरा शहर में यही एक 22 मंजिला इमारत है. जब से यह टावर बन रहा है, हजारों मजदूरों के लिए रोजीरोटी का इंतजाम हुआ है. इस टावर के पास ही मजदूरों के रहने के लिए बनी हैं  झोंपडि़यां.

इन्हीं  झोंपडि़यों में से एक में रहता है सुखराम अपनी पत्नी चंदा के साथ. सुखराम और चंदा का ब्याह 2 साल पहले ही हुआ था. शादी के बाद ही उन्हें मजदूरी के लिए आगरा आना पड़ा. वे इस टावर में सुबह से शाम तक साथसाथ काम करते थे और शाम से सुबह तक का समय अपनी  झोंपड़ी में साथसाथ ही बिताते थे. इस तरह एक साल सब ठीकठाक चलता रहा.

एक दिन चंदा के गांव से चिट्ठी आई. चिट्ठी में लिखा था कि चंदा के एकलौते भाई पप्पू को कैंसर हो गया है और उन के पास इलाज के लिए पैसे का कोई इंतजाम नहीं है.

सुखराम को लगा कि ऐसे समय में चंदा के भाई का इलाज उस की जिम्मेदारी है, पर पैसा तो उस के पास भी नहीं था, इसलिए उस ने यह बात अपने साथी हरिया को बता कर उस से सलाह ली.

हरिया ने कहा, ‘‘देखो सुखराम, गांव में तुम्हारे पास घर तो है ही, क्यों न घर को गिरवी रख कर बैंक से लोन ले लो. बैंक से लोन इसलिए कि घर भी सुरक्षित रहेगा और बहुत ज्यादा मुश्किल का सामना भी नहीं करना पड़ेगा.’’

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कहते हैं कि बुरा समय जब दस्तक देता है, इनसान भलेबुरे की पहचान नहीं कर पाता. यही सुखराम के साथ हुआ. उस ने हरिया की बात पर ध्यान न दे कर यह बात ठेकेदार लाखन को बताई.

लाखन ने उस से कहा, ‘‘क्यों चिंता करता है सुखराम, 20,000 रुपए भी चाहिए तो ले जा.’’

सुखराम ने चंदा को बिना बताए  लाखन से 20,000 रुपए ले लिए और चंदा के भाई का इलाज शुरू हो गया.

चंदा सम झ नहीं पा रही थी कि इतना पैसा आया कहां से, इसलिए उस ने पूछा, ‘‘इतना पैसा आप कहां से लाए?’’

तब सुखराम ने लाखन का गुणगान किया. जब कुछ दिनों बाद पप्पू चल बसा, तो उस के अंतिम संस्कार का इंतजाम भी सुखराम ने ही किया.

इस घटना के कुछ ही दिनों के बाद सुखराम की मां भी चल बसीं. वे गांव में अकेली रहती थीं, इसलिए पड़ोसी ही मां का सहारा थे. पड़ोसियों ने सुखराम को सूचित किया.

सुखराम चंदा के साथ गांव लौटा और मां का अंतिम संस्कार किया.  जिंदगीभर गांव में खाया जो था, इसलिए खिलाना भी जरूरी समझा.

मकान सरपंच को महज 15,000 रुपए में बेच दिया. तेरहवीं कर के आगरा लौटने तक सुखराम के सभी रुपए खर्च हो चुके थे, क्योंकि गांव में मां का भी बहुत लेनदेन था.

इतिहास गवाह है कि चक्रव्यूह में घुसना तो आसान होता है, पर उस में से बाहर निकलना बहुत मुश्किल. जिंदगी के इस चक्रव्यूह में सुखराम भी बुरी तरह फंस चुका था. जैसे ही वह आगरा लौटा, शाम होते ही लाखन शराब की बोतल हाथ में लिए चला आया.

वह सुखराम से बोला, ‘‘सुखराम, मु झे अपना पैसा आज ही चाहिए और अभी…’’

सुखराम ने उसे अपनी मजबूरी बताई. वह गिड़गिड़ाया, पर लाखन पर इस का कोई असर नहीं हुआ. वह बोला, ‘‘तुम्हारी परेशानी तुम जानो, मु झे तो मेरा पैसा चाहिए. जब मैं ने तुम्हें पैसा दिया है, तो मु झे वापस भी चाहिए और वह भी आज ही.’’

सुखराम और चंदा की सम झ में कुछ नहीं आ रहा था. वे उस के सामने मिन्नतें करने लगे.

लाखन ने कुटिलता के साथ चंदा की ओर देखा और बोला, ‘‘ठीक है सुखराम, मैं तु झे कर्ज चुकाने की मोहलत तो दे सकता हूं, लेकिन मेरी भी एक शर्त है. हफ्ते में एक बार तुम मेरे साथ शराब पियोगे और घर से बाहर रहोगे… उस दिन… चंदा के साथ… मैं…’’

इतना सुनते ही सुखराम का चेहरा तमतमा उठा. उस ने लाखन का गला पकड़ लिया. वह उसे धक्के मार कर घर से बाहर निकाल देना चाहता था, लेकिन क्या करता? वह मजबूर था. चंदा चाहती थी कि उस की जान ले ले, मगर वह खून का घूंट पी कर रह गई. उस के पास भी कोई दूसरा रास्ता नहीं था. जब लाखन नहीं माना और उस ने सुखराम के साथ मारपीट शुरू कर दी तो चंदा लाखन के आगे हाथ जोड़ कर सुखराम को छोड़ने की गुजारिश करने लगी.

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लाखन ने सुखराम की कनपटी पर तमंचा रख दिया तो वह मन ही मन टूट गई. उस की आंखों से आंसू बहने लगे, इसलिए कलेजे पर पत्थर रख कर उस ने लाखन को अपने शरीर से खेलने की हामी भर दी.

लाखन बहुत खुश हुआ, क्योंकि चंदा गजब की खूबसूरत थी. उस का जोबन नदी की बाढ़ की तरह उमड़ रहा था. उस की आंखें नशीली थीं. यही वजह थी कि पिछले 2 साल से लाखन की बुरी नजर चंदा पर लगी थी.

बुरे समय में पति का साथ देने के लिए चंदा ने ठेकेदार लाखन के साथ सोना स्वीकार किया और सुखराम की जान बचाई.

सुखराम ने उस दिन से शराब को गम भुलाने करने का जरीया बना लिया. इस तरह हवस के कीचड़ में सना लाखन चंदा की देह को लूटता रहा. जब सुखराम को पता चला कि चंदा पेट से है, तो उस ने चंदा से बच्चा गिराने की बात की, पर वह नहीं मानी.

सुखराम बोला, ‘‘मैं उस बच्चे को नहीं अपना सकता, जो मेरा नहीं है.’’

चंदा ने उसे बहुत सम झाया, पर वह न माना. चंदा ने भी अपना फैसला

सुना दिया, ‘‘मैं एक औरत ही नहीं, एक मां भी हूं. मैं इस बच्चे को जन्म ही नहीं दूंगी, बल्कि उसे जीने का हक भी दूंगी.’’

इस बात पर दोनों में  झगड़ा हुआ. सुखराम ने कहा, ‘‘ठेकेदार के साथ सोना तुम्हारी मजबूरी थी, पर उस के बच्चे को जन्म देना तो तुम्हारी मजबूरी नहीं है.’’

चंदा ने जवाब दिया, ‘‘तुम्हारा साथ देने के लिए मैं ने ऐसा घोर अपराध किया था, लेकिन अब मैं कोई गलती नहीं करूंगी… जो हमारे साथ हुआ, उस में इस नन्हीं सी जान का भला क्या कुसूर? जो भी कुसूर है, तुम्हारा है.’’

इस के बाद चंदा सुखराम को छोड़ कर चली गई. वह कहां गई, किसी को नहीं मालूम, पर आज सुखराम को हरिया की कही बात याद आई. वह सिसक रहा था और सोच रहा था कि काश, उस ने गलत फैसला न लिया होता.

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घुंघरू: भाग 4- राजा के बारे में क्या जान गई थी मौली

लेखक – पुष्कर पुष्प  

राजा समर सिंह को पता चला, तो वे स्वयं मौली के पास पहुंचे. उन्होंने उसे पहले प्यार से समझाने की कोशिश की, फिर भी मौली कुछ नहीं बोली, तो राजा ने गुस्से में कहा, ‘‘तुम्हें महल ला कर हम ने जो इज्जत बख्शी है, वह हर किसी को नहीं मिलती… और एक तुम हो, जो इस सब को ठोकर मारने पर तुली हो. यह जानते हुए भी कि अब तुम्हारी लाश भी राखावास नहीं लौट सकती. हां, तुम अगर चाहो, तो हम तुम्हारे वजन के बराबर धनदौलत तुम्हारे मातापिता को भेज सकते हैं. लेकिन अब तुम्हें हर हाल में हमारी बन कर हमारे लिए जीना होगा.’’

मौली को मौत का डर नहीं था. डर था तो मानू का. वह जानती थी, मानू उस के विरह में सिर पटकपटक कर जान दे देगा. उसे यह भी मालूम था कि उस की वापसी संभव नहीं है. काफी सोचविचार के बाद उस ने राजा समर सिंह के सामने प्रस्ताव रखा, ‘‘अगर आप चाहते हैं कि मैं आप के महल की शोभा बन कर रहूं, तो मेरे लिए पहाड़ों के बीचवाली उस झील के किनारे महल बनवा दीजिए, जिस के उस पार मेरा गांव है.’’

अपने इस प्रस्ताव में मौली ने 2 शर्तें भी जोड़ीं. एक यह कि जब तक महल बन कर तैयार नहीं हो जाता, राजा उसे छुएंगे तक नहीं और दूसरी यह कि महल में एक ऐसा परकोटा बनवाया जाएगा, जहां से वह हर रोज अपनी चुनरी लहराकर मानू को बता सके कि वह जिंदा है. मानू उसी के सहारे जीता रहेगा.

मौली, मानू को जान से ज्यादा चाहती है, यह बात समर सिंह को अच्छी नहीं लग रही थी. कहां एक नंगाभूखा लड़का और कहां राजमहल के सुख. लेकिन मौली की जिद के आगे वह कर भी क्या सकते थे. कुछ करते, तो मौली जान दे देती. मजबूर हो कर उन्होंने उस की शर्तें स्वीकार कर लीं.

राखावास के ठीक सामने झील के उस पार वाली पहाड़ी पर राजा ने महल बनवाना शुरू किया. बुनियाद कुछ इस तरह रखी गई कि झील का पानी महल की दीवार छूता रहे. झील के 3 ओर बड़ीबड़ी पहाडि़यां थीं. चौथी ओर वाली छोटी पहाड़ी की ढलान पर राखावास था. महल से राखावास या राखावास से महल तक आध कोस लंबी झील को पार किए बिना किसी तरह जाना संभव नहीं था.

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उन दिनों आज की तरह न साधनसुविधाएं थीं, न मार्ग. ऐसी स्थिति में चंदनगढ़ से 7 कोस दूर पहाड़ों के बीच महल बनने में समय लगना स्वाभाविक ही था. मौली इस बात को समझती थी कि यह काम एक साल से पहले पूरा नहीं हो पाएगा. और इस एक साल में मानू उस के बिना सिर पटकपटक कर जान दे देगा. लेकिन वह कर भी क्या सकती थी, राजा ने उस की सारी शर्तें पहले ही मान ली थीं.

लेकिन जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. मोहब्बत कहीं न कहीं अपना रंग दिखा कर ही रहती है. मौली के जाने के बाद मानू सचमुच पागल हो गया था. उस का वही पागलपन उसे चंदनगढ़ खींच ले गया. मौली के घुंघरू जेब में डाले वह भूखाप्यासा, फटेहाल महीनों तक चंदनगढ़ की गलियों में घूमता रहा. जब भी उसे मौली की याद आती, जेब से घुंघरू निकाल कर आंखों से लगाता और जारजार रोने लगता. लोग उसे पागल समझ कर उस का दर्द पूछते, तो उस के मुंह से बस एक ही शब्द निकलता मौली.

मानू चंदनगढ़ आ चुका है, मौली भी इस तथ्य से अनभिज्ञ थी और समर सिंह भी. उधर मानू ने राजमहल की दीवारों से लाख सिर टकराया, पर वह मौली की एक झलक तक नहीं देख सका. महीनों यूं ही गुजर गए.

राजा समर सिंह जिस लड़की को राजनर्तकी बनाने के लिए राखावास से चंदनगढ़ लाए हैं, उस का नाम मौली है, यह बात किसी को मालूम नहीं थी. राजा स्वयं उसे मालेश्वरी कह कर पुकारते थे. उस की सेवा में दासदासियां रहती थीं. एक दिन उन्हीं में से एक दासी ने बताया, ‘‘नगर में एक दीवाना मौलीमौली पुकारता घूमता है. पता नहीं कौन है मौली, उस की मां, बहन या प्रेमिका. बेचारा पागल हो गया है उस के गम में. न खाने की सुध, न कपड़ों की. एक दिन महल के द्वार तक चला आया था, पहरेदारों ने धक्के दे कर भगा दिया. कहता था, इन्हीं दीवारों में कैद है मेरी मौली.’’

मौली ने सुना तो कलेजा धक्क से रह गया. प्राण गले में अटक गए. लगा, जैसे बेहोश हो कर गिर पड़ेगी. वह संज्ञाशून्य सी पलंग पर बैठ कर शून्य में ताकने लगी. दासी ने उस की ऐसी स्थिति देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है? आप मेरी बात सुन कर परेशान क्यों हो गईं? आप को क्या, होगा कोई दीवाना. मैंने तो जो सुना था, आप को यूं ही बता दिया.’’

मौली ने अपने आप को लाख संभालना चाहा, लेकिन आंसू पलकों तक आ ही गए. दासी पलभर में समझ गई, जरूर कोई बात है. उस ने मौली को कुरेदना शुरू किया, तो वह न चाहते हुए भी उससे दिल का हाल कह बैठी. दासी सहृदय थी. मौली और मानू की प्रेम कहानी सुनने और उन के जुदा होने की बात सुन उसका हृदय पसीज गया. मौली ने उस से निवेदन किया कि वह किसी तरह मानू तक उस का यह संदेश पहुंचा दे कि वह उस से मिले बिना न मरेगी, न नाचेगी. वह वक्त का इंतजार करे. एक न एक दिन दोनों का मिलन होगा जरूर. जब तक मिलन नहीं होता, तब तक वह अपने आप को संभाले. प्यार में पागल बनने से कुछ नहीं मिलेगा.

दासी ने जैसेतैसे मौली का संदेश मानू तक पहुंचाया भी, लेकिन उस पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ.

उन्हीं दिनों एक अंग्रेज अधिकारी को चंदनगढ़ आना था. राजा समर सिंह ने अधिकारी को खुश करने के लिए उस की खातिरदारी का पूरा इंतजाम किया. महल को विशेष रूप से सजाया गया. नाचगाने का भी प्रबंध किया गया. राजा समर सिंह चाहते थे कि मौली अपनी नृत्य कला से अंग्रेज रेजीडेंट का दिल जीते. उन्होंने इस के लिए मौली से मानमनुहार की, तो उस ने शर्त बता दी, ‘‘मानू नगर में मौजूद है, उसे बुलाना पड़ेगा. वह आ कर मेरे पैरों में घुंघरू बांध देगा, तो मैं नाचूंगी.’’

समर सिंह जानते थे कि जो बात मौली की नृत्यकला में है, वह किसी दूसरी नर्तकी के नृत्य में हो ही नहीं सकती. अंग्रेज रेजीडेंट को खुश करने की बात थी. राजा ने मौली की शर्त स्वीकार कर ली. मानू को ढुंढ़वाया गया. साफसफाई और स्नान के बाद नए कपड़े पहना कर उस का हुलिया बदला गया.

अगले दिन जब रेजीडेंट आया, तो पूरी तैयारी के बाद मौली को सभा में लाया गया. सभा में मौजूद सब लोगों की निगाहें मौली पर जमी थीं और उस की निगाहें उस सब से अनभिज्ञ मानू को खोज रही थीं. मानू सभा में आया, तो उसे देख मौली की आंखें बरस पड़ीं. मन हुआ, आगे बढ़ कर उस से लिपट जाए, लेकिन चाह कर भी वह ऐसा न कर सकी. करती, तो दोनों के प्राण संकट में पड़ जाते. उस ने लोगों की नजर बचा कर आंसू पोंछ लिए.

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आंसू मानू की आंखों में भी थे, लेकिन उसने उन्हें बाहर नहीं आने दिया. खुद को संभाल कर वह ढोलक के साथ अपने लिए नियत स्थान पर जा बैठा. मौली धीरेधीरे कदम बढ़ा कर उस के पास पहुंची, तो मानू थोड़ी देर अपलक उस के पैरों को निहारता रहा. फिर उस ने जेब से घुंघरू निकाल कर माथे से लगाए और मौली के पैरों में बांध दिए. इस बीच मौली उसे ही निहारती रही. घुंघरू बांधते वक्त मानू के आंसू पैरों पर गिरे, तो मौली की तंद्रा टूटी. मानू के दर्द का एहसास कर उस के दिल से आह भी निकली, पर उस ने उसे जैसेतैसे जज्ब कर लिया.

आगे पढ़ें-  राजा समर सिंह जानते थे कि…

बहन का सुहाग: भाग 2- क्या रिया अपनी बहन का घर बर्बाद कर पाई

लेखकनीरज कुमार मिश्रा

दोनों में नजदीकियां बढ़ गई थीं. राजवीर सिंह का रुतबा विश्वविद्यालय में काफी बढ़ चुका था और निहारिका को भी यह अच्छा लगने लगा था कि एक लड़का जो संपन्न भी है, सुंदर भी और विश्वविद्यालय में उस की अच्छीखासी धाक भी है, वह स्वयं उस के आगेपीछे रहता है.

थोड़ा समय और बीता तो राजवीर ने निहारिका से अपने मन की बात कह डाली, ‘‘देखो निहारिका, अब तक तुम मेरे बारे में सबकुछ जान चुकी हो… मेरे घर वालों से भी तुम मिल चुकी हो… मेरा घर, मेरा बैंक बैलेंस, यहां तक कि मेरी पसंदनापसंद को भी तुम बखूबी जानती हो…

“और आज मैं तुम से कहना चाहता हूं कि मैं तुम से शादी करना चाहता हूं और मैं यह भी जानता हूं कि तुम इनकार नहीं कर पाओगी.”

बदले में निहारिका सिर्फ मुसकरा कर रह गई थी.

‘‘और हां, तुम अपने मम्मीपापा की चिंता मत करो. मैं उन से भी बात कर लूंगा,‘‘ इतना कह कर राजवीर सिंह ने निहारिका के होंठों को चूमने की कोशिश की, पर निहारिका ने हर बार की तरह इस बार भी यह कह कर टाल दिया कि ये सब शादी से पहले करना अच्छा नहीं लगता.

राजवीर सिंह ने खुद ही निहारिका के घर वालों से बात की. वह एक पैसे वाले घर से ताल्लुक रखता था, जबकि निहारिका एक सामान्य घर से.
निहारिका के मम्मीपापा को भला इतने अच्छे रिश्ते से क्या आपत्ति होती और इस से पहले भी वे निहारिका के मुंह से कई बार राजवीर के लिए तारीफ सुन चुके थे. ऐसे में उन्हें रिश्ते को न कहने की कोई वजह नहीं मिली.

ग्रेजुएशन करते ही निहारिका की शादी राजवीर सिंह से तय हो गई.

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और शादी ऐसी आलीशान ढंग से हुई, जिस की चर्चा लोग महीनों तक करते रहे थे. इलाके के लोगों ने इतनी शानदार दावत कभी नहीं खाई थी. बरात में ऊंट, घोड़े और हाथी तक आए थे.

शादी के बाद निहारिका के सपनों को पंख लग गए थे. इतना अच्छा घर, सासससुर और इतना अच्छा पति मिलेगा, इस की कल्पना भी उस ने नहीं की थी.

‘‘राजवीर… जा, बहू को मंदिर ले जा और कहीं घुमा भी ले आना,‘‘ राजवीर को आवाज लगाते हुए उस की मां ने कहा.

राजवीर और निहारिका साथ घूमतेफिरते और अपने जीवन के मजे ले रहे थे. रात में वे दोनों एकदूसरे की बांहों में सोए रहते.

सैक्स के मामले में राजवीर किसी भूखे भेड़िए की तरह हो जाता था. वह निहारिका को ब्लू फिल्में दिखाता और वैसा ही करने के लिए उस पर दबाव डालता.

निहारिका को ये सब पसंद नहीं था. राजवीर के बहुत कहने पर भी वह ब्लू फिल्मों के सीन को उस के साथ नहीं कर पाती थी. कई बार तो निहारिका को ऐसा करते समय उबकाई सी आने लगती.

ये राजवीर का एक नया और अलग रूप था, जिस से निहारिका पहली बार परिचित हो रही थी.

अपनी इस समस्या के लिए निहारिका ने इंटरनैट का सहारा लिया और पाया कि कुछ पुरुषों में पोर्न देखने और वैसा ही करने की कुछ अधिक प्रवत्ति होती है और यह बिलकुल ही सहज है.

निहारिका ने सोचा कि अभी नईनई शादी हुई है, इसलिए  अधिक उत्साहित है. थोड़ा समय बीतेगा, तो वह मेरी भावनाओं को भी समझेगा, पर बेचारी निहारिका को क्या पता था कि ऐसा कभी नहीं होने वाला था.

शादी के 5 महीने बीत चुके थे. निहारिका की छोटी बहन रिया अपने पापा आनंद रंजन के साथ निहारिका से मिलने आई थी. पापा आनंद रंजन तो अपनी बेटी निहारिका से मिल कर चले गए, पर रिया निहारिका के पास ही रुक गई थी.

राजवीर सिंह ने निहारिका के पापा आनंद रंजन को बताया कि वे सब आगरा जाने का प्लान बना रहे हैं और इस में रिया भी साथ रहेगी, तो निहारिका को भी अच्छा लगेगा.

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निहारिका के पापा आनंद रंजन को कोई आपत्ति नहीं हुई.

रिया के आने के बाद तो राजवीर के चेहरे पर चमक और भी बढ़ गई थी, बढ़ती भी क्यों नहीं, दोनों का रिश्ता ही कुछ ऐसा था. अब तो दोनों में खूब चुहलबाजियां होतीं. अपने जीजा को छेड़ने का कोई भी मौका रिया अपने हाथ से जाने नहीं देती थी.

वैसे भी रिया को हमेशा से ही लड़कों के साथ उठनाबैठना, खानापीना अच्छा लगता था और अब जीजा के रूप में उसे ये सब करने के लिए एक अच्छा साथी मिल गया था.

एक रात की बात है, जब खाने के बाद रिया अपने कमरे में सोने के लिए चली गई तो उसे याद आया कि उस के मोबाइल का पावर बैंक तो जीजाजी के कमरे में ही रह गया है. अभी ज्यादा देर नहीं हुई थी, इसलिए वह अपना पावर बैंक लेने जीजाजी के कमरे के पास गई और दरवाजे के पास आ कर अचानक ही ठिठक गई. दरवाजा पूरी तरह से बंद नहीं था और अंदर का नजारा देख रिया रोमांचित हुए बिना न रह सकी. कमरे में जीजाजी निहारिका के अधरों का पान कर रहे थे और निहारिका भी हलकेफुलके प्रतिरोध के बाद उन का साथ दे रही थी और उन के हाथ जीजाजी के सिर के बालों में घूम रहे थे.

किसी जोड़े को इस तरह प्रेमावस्था में लिप्त देखना रिया के लिए पहला अवसर था. युवावस्था में कदम रख चुकी रिया भी उत्तेजित हो उठी थी और ऐसा नजारा उसे अच्छा भी लग रहा था और मन में देख लिए जाने का डर भी था, इसलिए वह तुरंत ही अपने कमरे में लौट आई.

कमरे में आ कर रिया ने सोने की बहुत कोशिश की, पर नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. वह बारबार करवट बदलती थी, पर उस की आंखों में दीदी और जीजाजी का आलिंगनबद्ध नजारा याद आ रहा था. मन ही मन वह अपनी शादी के लिए राजवीर सिंह जैसे गठीले बदन वाले बांके के ख्वाब देखने लगी.

किसी तरह सुबह हुई, तो सब से पहले जीजाजी उस के कमरे में आए और चहकते हुए बोले, ‘‘हैप्पी बर्थ डे रिया.‘‘

‘‘ओह… अरे जीजाजी, आप को मेरा बर्थडे कैसे पता… जरूर निहारिका  दीदी ने बताया होगा.’’

‘‘अरे नहीं भाई… तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की का बर्थडे हम कैसे भूल सकते हैं?‘‘ राजवीर की आंखों में शरारत तैर रही थी.

‘‘ओह… तो आप ने मुझ से पहले ही बाजी मार ली, रिया को हैप्पी बर्थडे विश कर के…‘‘ निहारिका ने कहा.

‘‘हां… हां… भाई, क्यों नहीं… तुम से ज्यादा हक है मेरा… आखिर जीजा हूं मैं इस का,‘‘ हंसते हुए राजवीर बोला.

कमरे में एकसाथ तीनों के हंसने की आवाजें गूंजने लगीं.

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शाम को एक बड़े होटल में केक काट कर रिया का जन्मदिन मनाया गया. बहुत बड़ी पार्टी दी थी राजवीर ने और राजनीतिक पार्टी के कई बड़े नेताओं को भी इसी बहाने पार्टी में बुलाया था.

रिया आज बहुत खूबसूरत लग रही थी. कई बार रिया को राजवीर सिंह के साथ खड़ा देख लोगों ने उसे ही मिसेज राजवीर समझ लिया और जबजब कोई रिया को मिसेज राजवीर कह कर संबोधित करता तो एक शर्म की लाली उस के चेहरे पर दौड़ जाती.

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बहन का सुहाग: भाग 1- क्या रिया अपनी बहन का घर बर्बाद कर पाई

लेखकनीरज कुमार मिश्रा

आनंद रंजन अर्बन बैंक में क्लर्क थे. उन की आमदनी ठीकठाक ही थी. घर में सुघड़ पत्नी के अलावा 2 बेटियां और 1 बेटा बस इतना सा ही परिवार था आनंद रंजन का.

गांव में अम्मांबाबूजी बड़े भाई के साथ रहते थे, इसलिए उन की तरफ की जिम्मेदारियों से आनंद मुक्त थे, हां… पर गांव में हर महीने पैसे जरूर भेज दिया करते थे.

वैसे तो आनंद रंजन का किसी के साथ कोई मनमुटाव नहीं था. सब के साथ उन का मृदु स्वभाव उन्हें लोगों के बीच लोकप्रिय बनाए रखता था, चाहे बैंक का काम हो या सामाजिक काम, सब में आगे बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया करते थे वे. साथ ही साथ अपने परिवार को आनंद रंजन पूरा समय भी देते थे. जहां हमारे देश में एक लड़के को ही वंश चलाने के लिए जरूरी माना जाता है और लड़कियों के बजाय लोग लड़कों को वरीयता देते हैं, वहीं आनंद की दोनों बेटियां, बड़ी बेटी निहारिका और छोटी बेटी रिया उन की आंखों का तारा थीं. बड़ी बेटी सीधीसादी और छोटी बेटी रिया थोड़ी चंचल थी.

आनंद रंजन बेटे और बेटियों दोनों को समान रूप से ही प्यार करते थे और यही वजह है कि जब बड़ी बेटी को इंटरमीडिएट की पढ़ाई के बाद आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ जाने की बात आई, तो आनंद रंजन सहर्ष ही बेटी को लखनऊ भेजने के लिए मान गए थे और लखनऊ विश्वविद्यालय में एडमिशन के लिए खुद वे अपनी बेटी निहारिका के साथ कई बार लखनऊ आएगए.

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निहारिका को लखनऊ विश्वविद्यालय में एडमिशन मिल गया था और उस के रहने का इंतजाम भी आनंद रंजन ने एक पेइंग गेस्ट के तौर पर करा दिया था.

एक छोटे से कसबे से आई निहारिका एक बड़े शहर में आ कर पढ़ाई कर रही थी. एक नए माहौल, एक नए शहर ने उस की आंखों में और भी उत्साह भर दिया था.

यूनिवर्सिटी में आटोरिकशा ले कर पढ़ने जाना और वहां से आ कर रूममेट्स के साथ में मिलनाजुलना, निहारिका के मन में एक नया आत्मविश्वास जगा रहा था.

वैसे तो यूनिवर्सिटी में रैगिंग पर पूरी तरह से बैन लगा हुआ था, पर फिर भी सीनियर छात्र नए छात्रछात्राओं से चुहलबाजी करने से बाज नहीं आते थे.

‘‘ऐ… हां… तुम… इधर आओ…‘‘ अपनी क्लास के बाहर निकल कर जाते हुए निहारिका के कानों में एक भारी आवाज पड़ी.

एक बार तो निहारिका ने कुछ ध्यान नहीं दिया, पर दोबारा वही आवाज उसे ही टारगेट कर के आई तो निहारिका पलटी. उस ने देखा कि क्लास के बाहर बरामदे में 5-6 लड़कों का एक ग्रुप खड़ा हुआ था. उस में खड़ा एक दाढ़ी वाला लड़का उंगली से निहारिका को पास आने का इशारा कर रहा था.

यह देख निहारिका ऊपर से नीचे तक कांप उठी थी. उस ने यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने से पहले विद्यार्थियों की रैगिंग के बारे में खूब सुन रखा था.

‘तो क्या ये लोग मेरी रैगिंग लेंगे…? क्या कहेंगे मुझ से ये…? मैं क्या कह पाऊंगी इन से…?‘ मन में इसी तरह की बातें सोचते हुए निहारिका उन लड़कों के पास जा पहुंची.

‘‘क्या नाम है तुम्हारा?”

‘‘ज… ज… जी… निहारिका.‘‘

‘‘हां, तो… इधर निहारो ना… इधर… उधर कहां ताक रही हो… जरा हम भी तो जानें कि इस बार कैसेकैसे चेहरे आए हैं बीए प्रथम वर्ष में,‘‘ दाढ़ी वाला लड़का बोला.

हलक तक सूख गया था निहारिका का. उन लड़कों की चुभती नजरें निहारिका के पूरे बदन पर घूम रही थीं. अपनी किताबों को अपने सीने से और कस कर चिपटा लिया था निहारिका ने.

‘‘अरे, तनिक ऊपर भी देखो न, नीचेनीचे ही नजरें गड़ाए रहोगे, तो गरदन में दर्द हो जाएगा,‘‘ उस ग्रुप में से दूसरा लड़का बोला.

निहारिका पत्थर हो गई थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि इन लड़कों को क्या जवाब दे. निश्चित रूप से इन लड़कों को पढ़ाई से कोई लेनादेना नहीं था. ये तो शोहदे थे जो नई लड़कियों को छेड़ने का काम करते थे.

‘‘अरे क्या बात है… क्यों छेड़ रहे हो… इस अकेली लड़की को भैया,‘‘ एक आवाज ने उन लड़कों को डिस्टर्ब किया और वे सारे लड़के वास्तव में डिस्टर्ब तो हो ही गए थे, क्योंकि राजवीर सिंह अपने दोस्तों के साथ वहां पहुंचा था और उस अकेली लड़की की रैगिंग होता देख उसे बचाने की नीयत से वहां आया था.

‘‘और तुम… जा सकती हो  यहां से… कोई तुम्हें परेशान नहीं करेगा,’’ राजवीर की कड़क आवाज निहारिका के कानों से टकराई थी.

निहारिका ने सिर घुमा कर देखा तो एक लड़का, जिस की आंखें इस समय उन लड़कों को घूर रही थीं, निहारिका तुरंत ही वहां से लंबे कदमों से चल दी थी. जातेजाते उस के कान में उस लड़के की आवाज पड़ी थी, जो उन शोहदों से कह रहा था, ‘‘खबरदार, किसी फ्रेशर को छेड़ा तो ठीक नहीं होगा… ये कल्चर हमारे लिए सही नहीं है.‘‘

निहारिका मन ही मन उस अचानक से मदद के लिए आए लड़के का धन्यवाद कर रही थी और यह भी सोच रही थी कि कितनी मूर्ख है वह, जो उस लड़के को थैंक्स भी नहीं कह पाई… चलो, कोई बात नहीं, दोबारा मिलने पर जरूर कह देगी.

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उस को थैंक्स कहने का मौका अगले ही दिन मिल गया, जब निहारिका क्लास खत्म कर के निकल रही थी. तब वही आवाज उस के कानों से टकराई, ‘‘अरे मैडम, आज किसी ने आप को छेड़ा तो नहीं ना.‘‘

देखा तो कल मदद करने वाला लड़का ही अपने दोनों हाथों को नमस्ते की शक्ल में जोड़ कर खड़ा हुआ था और निहारिका की आंखों में देख कर मुसकराए जा रहा था.

‘‘ज… जी, नहीं… पर कल जो आप ने मेरी मदद की, उस का बहुत शुक्रिया.‘‘

‘‘शुक्रिया की कोई बात नहीं… आगे से अगर आप को कोई भी मदद चाहिए हो तो आप मुझे तुरंत ही याद कर सकती हैं… ये मेरा कार्ड है… इस पर मेरा फोन नंबर भी है,‘‘ एक सुनहरा कार्ड आगे बढाते हुए उस लड़के ने कहा.

कार्ड पर नजर डालते हुए निहारिका ने देखा, ‘राजवीर सिंह, बीए तृतीय वर्ष.’

राजवीर एक राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखता था और उस ने एडमिशन तो विश्वविद्यालय में ले रखा था, पर उस का उद्देश्य प्रदेश की राजनीति तक पहुंचने का था और इसीलिए पढ़ाई के साथ ही उस ने छात्रसंघ के अध्यक्ष पद के लिए तैयारी शुरू कर दी थी.

निहारिका इतना तो समझ गई थी कि पढ़ाई संबंधी कामों में यह लड़का भले काम न आए, पर विश्वविद्यालय में एक पहचान बनाने के लिए इस का साथ अगर मिल जाए तो कोई बुराई  भी नहीं है.

तय समय पर विश्वविद्यालय में चुनाव हुए, जिस में राजवीर सिंह की भारी मतों से जीत हुई और अब वह कैंपस में जम कर नेतागीरी करने लगा.

पर, राजवीर सिंह के अंदर नेता के साथसाथ एक युवा का दिल भी धड़कता था और उस युवा दिल को निहारिका पहली ही नजर में अच्छी लग गई थी. निहारिका जैसी सीधीसादी और प्रतिभाशाली लड़की जैसी ही जीवनसंगिनी की कल्पना की थी राजवीर ने.

और इसीलिए वह मौका देखते ही निहारिका के आगेपीछे डोलता रहता. अब निहारिका को आटोरिकशा की जरूरत नहीं पड़ती. वह खुद ही अपनी फौर्चूनर गाड़ी निहारिका के पास खड़ी कर उसे घर तक छोड़ने का आग्रह करता और निहारिका उस का विनम्र आग्रह टाल नहीं पाती.

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पहल: शीला के सामने क्या था विकल्प

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हवाई जहाज दुर्घटना: भाग 2- क्या हुआ था आकृति के साथ

लेखक-डा. भारत खुशालानी,

सहचालिका इंदरजीत कौर को बेहोश होते देख पहले तो आकृति को लगा कि ऐसी विकट परिस्थितियों में जो काम सहचालिका का होता है, वो काम वह कैसे कर पाएगी? और इतना ही नहीं, अब दोनों का काम उसे ही करना पड़ेगा.

इंजन में आग लगने की परिस्थिति में जांच सूची निकालना सहचालक का काम होता है. लेकिन इंदरजीत कौर को निश्चेत पा कर आकृति ने खुद ही जांच सूची निकाली.

किसी भी विमान में किसी भी प्रकार की खराबी आ जाने पर विमान के चालक को इस सूची के निर्देशों के अनुसार जाना पड़ता है. इंजन में आग लगने से अपने अंदर की बढ़ती दहशत को दबाने के लिए आकृति ने इस जांच सूची पर अपना ध्यान केंद्रित करना उचित समझा और इस सूची में से वह भाग निकाला, जिस में इंजन में आग लगने पर चालक को क्या करना चाहिए, इस के बारे में लिखा था.

आकृति ने वही किया, जो इस में लिखा था. उस ने बाईं ओर के इंजन की तरफ जाने वाले ईंधन को बंद कर दिया और बाईं इंजन की तरफ जाने वाली बिजली की कटौती कर दी. लेकिन इस से विमान बेतुकेपन से उड़ते हुए तीव्रता से मुड़ने लगा.

विमान के चालक स्थान में लगे कांच में से नजर आने वाला शाम का आसमान अब बगल की खिड़की से नजर आने लगा था. आकृति विमान को सीधा करने के लिए जूझती रही. किसी भी तरह से विमान को सीधा कर के उसे मार्ग पर लाना था. लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाई.

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विमान को उडाना आकृति के लिए लगभग असंभव हो गया था. विमान एक तरफ की ओर झूलने लगा था, और जब आकृति ने उसे केंद्र में लाने की कोशिश की तो वह दूसरी ओर झुकने लगा.

आकृति को ऐसा लगा कि वह वातावरण के साथ कुश्ती खेल रही है और इस कुश्ती में काफी दम लग रहा था और उस की ताकत की खपत हो रही थी. और फिर उस के दिल की धड़कन थोडा रुक सी गई, जब उसे महसूस हुआ कि शायद विमान का इंजन बंद हो गया है और विमान रुक गया है.

विमान का ‘स्टौल’ एक ऐसी अवस्था होती है, जिस में ऐसा प्रतीत होता है कि विमान रुक सा गया है और शायद अब आसमान से नीचे गिर जाएगा. जब विमान उड़ रहा होता है, तो उस के पंखों के ऊपर की हवा कम दबाव की होती है, जो विमान को ऊपर की ओर खींचती है, और पंखों के नीचे की हवा उच्च दबाव की होती है, जो विमान को ऊपर की ओर धकेलती है. दोनों का नतीजा यह होता है कि विमान ऊपर की ओर उड़ने लगता है. जब विमान सीधा उड़ रहा होता है, तो उस के पंखों के ऊपर और नीचे की यह हवा विमान के पूरे वजन को ऊपर उठा कर रखने में सक्षम रहती है और पंखों पर से हवा का प्रवाह सहज बना रहता है.

आकृति ने पूरी कोशिश की थी कि विमान की यह समतल उड़ान बनी रहे. लेकिन लाल बत्तियों की अफरातफरी में उसे शायद महसूस ही नहीं हुआ था कि विमान की नाक वाला भाग ऊपर उठ गया है और पीछे की तरफ का भाग नीचे झुक गया है.

जैसेजैसे विमान के सामने का भाग ऊपर की ओर उठ रहा था, वैसेवैसे विमान में उस के वजन और बाहर की हवा के दबाव का संतुलन बिगड़ रहा था. वजन और दबाव का संतुलन बिगड़ने से विमान अस्थिर होता जा रहा था.

चेतावनी देती घंटियों के शोर में आकृति को इस बात का पता देर से चला. विमान के सामने की ओर का नाक का भाग शायद इतना ऊपर उठ गया था कि विमान ‘स्टौल’ की खतरनाक अवस्था में पहुंच गया था.

आकृति ने मन ही मन कहा कि ऐसा ना हो, ‘स्टौल’ की अवस्था में उस के विमान के बाहर की हवा का दबाव इतना कम हो जाने के आसार थे कि वह विमान के भार को आसमान में बनाए रखने में नाकाम हो जाए.

अगर ऐसा हुआ, तो ‘स्टौल’ के कारण विमान की ऊंचाई गिरती जाएगी. आकृति के दिमाग में यह बात सब से ऊपर थी कि ‘स्टौल’ होने पर विमान के पंखों पर चलने वाली हवा विमान को ऊपर उठाने में नाकाम हो जाएगी.

आकृति ने अपने अनुभव से अनुमान लगाया कि पंखों के ऊपर से हवा बहुत ही कम रफ्तार से जा रही थी. विमान की धातु का ढांचा चीखने और कराहने लगा. इस्पात की भयावह ध्वनि भयंकर संकट का संदेश थी.

आकृति ने सोचा, ‘अगर मुझे तुरंत विमान की गति बढ़ाने का कोई रास्ता नहीं मिला तो विमान तेजी से गुरुत्वाकर्षण के कारण जमीन की ओर मुड़ जाएगा और नीचे शहर में गिर जाएगा.’

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आकृति की समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे. जिस प्रकार दुपहिया वाहन में दाहिनी हथेली में वाहन की गति बढ़ाने का ‘थ्रौटल’ होता है, उसी प्रकार से विमान में उस की गति बढाने का ‘थ्रौटल’ होता है, जो किसी कार के गियर बदलने वाले हैंडल के जैसा ही होता है.

कार में यह हैंडल चालक के बाईं ओर होता है, जिस से वह अपने बाएं हाथ से गियर बदल सके, जबकि विमान में थ्रौटल विमान चालक के दाईं ओर होता है, ताकि चालक दाएं हाथ से थ्रौटल का इस्तेमाल कर सके.

आकृति थोडा असमंजस में थी कि थ्रौटल को उस ने खुद थोड़ा पीछे की ओर खींचा था, इसीलिए विमान की गति कम हो गई थी या स्टौल की खतरनाक स्थिति से गति कम हो गई थी.

जो भी कारण रहा हो, उस को लगा कि अब थ्रौटल को आगे की ओर धकेल कर विमान की गति बढ़ानी चाहिए. अगर वह थ्रौटल को आगे की ओर ठेल कर विमान की गति बढाने में कामयाब हो जाती है, तो वह विमान को ऊपर ले जाने में कामयाब हो जाएगी, और दौड़पथ के ऊपर हवा में एक चक्कर लगा कर, विमान को स्थिर कर, वापस नीचे उतारने का प्रयास कर सकती है.

उस के मन में आशंका जागी कि क्या विमान का एकमात्र बचा हुआ इंजन विमान की इस चढ़ाई को संभाल पाएगा या सिर्फ दाईं ओर के इंजन के तनाव के तहत विफल हो जाएगा.

एक और उपाय यह था कि गति बढ़ाने के अपने असफल प्रयास में आकृति विमान की उतराई को अधिक ढालू कर दे, जिस से विमान तेजी से नीचे की ओर जाने लगे. नीचे की ओर गोता लगाने की इस प्रक्रिया से उत्पन्न गिरता हुआ वेग शायद स्टौल की दशा को टाल दे और विमान को वापस अपने व्यवस्थित मार्ग पर लाए.

बेशक, इस का नतीजा यह हो सकता था कि विमान को समतल बनाने के बजाय आकृति अपने विमान को तेजी से आपदा की ओर धकेल रही हो. अगर विमान को तेजी से नीचे ले जाते समय वह वापस विमान का नियंत्रण हासिल नहीं कर पाई तो विमान कुंडलीदार चक्करों की चपेट में आ जाएगा. ऐसे गोल घूमने की स्थिति से उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण बल इतना तीव्र हो जाएगा कि जमीन पर पहुंचाने से पहले ही विमान टूट कर बिखर जाएगा.

आकृति के लिए यह अनिर्णय का एक नारकीय क्षण था. घबराहट में पसीने से उस की आंखें तरबतर थीं. उस के हाथ डर के मारे कांप रहे थे. अपनी कनपटियों पर दस्तखत देती हुई खून की नब्ज अब उसे साधारण महसूस नहीं हो रही थी.

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दरिंदे: बलात्कार के आरोप में क्यों नहीं मिली राजेश को सजा

वह अपना सिर घुटनों में छिपा कर बैठी थी लेकिन रहरह कर एक जोर का कहकहा लगता और सारी मेहनत बेकार हो जाती. पास बैठा सोनाली का पति सुरेंद्र भरी आवाज में उसे दिलासा देने में जुटा था, ‘‘ऐसे हिम्मत मत हारो… ठंडे दिमाग से सोचेंगे कि आगे क्या करना है.’’ सुरेंद्र के बहते आंसू सोनाली की साड़ी और चादर पर आसरा पा रहे थे. बच्चों को दूसरे कमरे में टैलीविजन देखने के लिए कह दिया गया था. 6 साल का विकी तो अपनी धुन में मगन था लेकिन 10 साल का गुड्डू बहुतकुछ समझने की कोशिश कर रहा था. विकी बीचबीच में उसे टोक देता मगर वह किसी समझदार की तरह उसे कोई नया चैनल दिखा कर बहलाने लगता था.

2 साल पहले तक सोनाली की जिंदगी में सबकुछ अच्छा चल रहा था. पति की साधारण सरकारी नौकरी थी, पर उन के छोटेछोटे सपनों को पूरा करने में कभी कोई अड़चन नहीं आई थी. पुराना पुश्तैनी घर भी प्यार की गुनगुनाहट से महलों जैसा लगता था. बूढ़े सासससुर बहुत अच्छे थे. उन्होंने सोनाली को मांबाप की कमी कभी महसूस नहीं होने दी थी. एक दिन सुरेंद्र औफिस से अचानक घबराया हुआ लौटा और कहने लगा था, ‘कोई नया मंत्री आया है और उस ने तबादलों की झड़ी लगा दी है. मुझे भी दूसरे जिले में भेज दिया गया है.’ ‘क्या…’ सोनाली का दिल धक से रह गया था. 2 घंटे तक अपने परिवार से दूर रहने से घबराने वाला सुरेंद्र अब 2 हफ्ते में एक बार घर आ पाता था. बच्चे भी बहुत उदास हुए, लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता. मनचाही जगह पर पोस्टिंग मिल तो जाती, मगर उस की कीमत उन की पहुंच से बाहर थी. हार कर सोनाली ने खुद को किसी तरह समझा लिया था. वीडियो काल, चैटिंग के सहारे उन का मेलजोल बना रहता था. जब भी सुरेंद्र घर आता था, सोनाली को रात छोटी लगने लगती थी. सुरेंद्र की बांहों में भिंच कर वह प्यार का इतना रस निचोड़ लेने की कोशिश करती थी कि उन का दोबारा मिलन होने तक उसे बचाए रख सके. उस के दिल की इस तड़प को समझ कर निंदिया रानी तो उन्हें रोकटोक करने आती नहीं थी.

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बिस्तर से ले कर जमीन तक बिखरे दोनों के कपड़े भी सुबह होने के बाद ही उन को आवाज देते थे. जिंदगी की गाड़ी चलती रही, लेकिन अपनी दुनिया में मगन रहने वाली सोनाली एक बड़े खतरे से अनजान थी. उस खतरे का नाम राजेश सिंह था जो ठीक उन के पड़ोस में रहता था. शरीर से बेहद लंबेतगड़े राजेश को न अपनी 55 पार कर चुकी उम्र का कोई लिहाज था और न ही गांव के रिश्ते से कहे जाने वाले ‘चाचा’ शब्द का. उस की गंदी नजरें खूबसूरत बदन की मालकिन सोनाली पर गड़ चुकी थीं. दबंग राजेश सिंह हत्या, देह धंधा जैसे अनेक मामलों में फंस कर कई बार जेल जा चुका था लेकिन हमेशा किसी न किसी से पैरवी करा कर बाहर आ जाता था. सुरेंद्र का साधारण समुदाय से होना भी राजेश सिंह की हिम्मत बढ़ाता था. राजेश सिंह का कोई तय काम नहीं था. बेटों की मेहनत पर खेतों से आने वाला अनाज खा कर पड़े रहना और चुनाव के समय अपनी जाति के नेताओं के पक्ष में इधर से उधर दलाली करना उस का पेशा था. हालांकि बेटे भी कोई दूध के धुले नहीं थे. बाकी सारा समय अपने दरवाजे पर किसीकिसी के साथ बैठ कर यहांवहां की गप हांकना राजेश सिंह की आदत थी. सोनाली बाहर कम ही निकलती थी, लेकिन जब भी जाती और राजेश सिंह को पता चल जाता तो घर से निकलने से ले कर वापस लौटने तक वह उस को ही ताकता रहता.

उस के उभारों और खुले हिस्सों को तो वह ऐसे देखता जैसे अभी खा जाएगा. एक दिन सोनाली जब आटोरिकशा पर चढ़ रही थी तो उस की साड़ी के उठे भाग के नीचे दिख रही पिंडलियों को घूरने की धुन में राजेश सिंह अपने दरवाजे पर ठोकर खा कर गिरतेगिरते बचा. उस के साथ बैठे लोग जोर से हंस पड़े. सोनाली ने घूम कर उन की हंसी देखी भी, पर उन की भावना नहीं समझ पाई. आखिर वह दिन भी आया जिस ने सोनाली का सबकुछ छीन लिया. उस के सासससुर किसी संबंधी के यहां गए हुए थे और छोटा बेटा विकी नानी के घर था. बड़ा बेटा गुड्डू स्कूल में था. बाहर हो रही तेज बारिश की वजह से मोबाइल नैटवर्क भी खराब चल रहा था जिस के चलते सोनाली और सुरेंद्र की ठीक से बात नहीं हो पा रही थी. ऊब कर उस ने मोबाइल फोन बिस्तर पर रखा और नहाने चली गई. सोनाली ने दोपहर के भोजन के लिए दालचावल चूल्हे पर पहले ही चढ़ा दिए थे और नहाने के बीच में कुकर की सीटियां भी गिन रही थी. हमेशा की तरह उस का नहाना पूरा होतेहोते कुकर ने अपना काम कर लिया. सोनाली ने जल्दीजल्दी अपने बालों और बदन पर तौलिए लपेटे और बैडरूम में भागी आई. बालों को झटपट पोंछ कर उस ने बिस्तर पर रखे नए सूखे कपड़े पहनने के लिए जैसे ही अपने शरीर पर बंधा तौलिया हटाया कि अचानक 2 मजबूत हाथों ने उसे पीछे से दबोच लिया. अचानक हुए इस हमले से बौखलाई सोनाली ने पीछे मुड़ कर देखा तो हमलावर राजेश सिंह था जो छत के रास्ते उस के घर में घुस आया था और कमरे में पलंग के नीचे छिप कर उस का ही इंतजार कर रहा था. उस के मुंह से शराब की तेज गंध भी आ रही थी. सोनाली चीखती, इस से पहले ही किसी दूसरे आदमी ने उस का मुंह भी दबा दिया. वह जितना पहचान पाई उस के मुताबिक वह राजेश सिंह का खास साथी भूरा था और उम्र में राजेश सिंह के ही बराबर था. सोनाली के कुछ सोचने से पहले ही वे दोनों उसे पलंग पर लिटा कर वहां रखी उस की ही साड़ी के टुकड़े कर उसे बांध चुके थे. सोनाली के मुंह पर भूरा ने अपना गमछा लपेट दिया था. इस के बाद राजेश सिंह ने पहले तो कुछ देर तक अपनी फटीफटी आंखों से सोनाली के जिस्म को ऊपर से नीचे तक देखा, फिर उस के ऊपर झुकता चला गया. काफी देर बाद हांफता हुआ राजेश सिंह सोनाली के ऊपर से उठा. भयंकर दर्द से जूझती, पसीने से तरबतर सोनाली सांयसांय चल रहे सीलिंग फैन को नम आंखों से देख रही थी. टैलीविजन पर रखा सोनाली, सुरेंद्र और बच्चों का ग्रुप फोटो गिर कर टूट चुका था. रसोईघर में चूल्हे पर चढ़े दालचावल सोनाली के सपनों की तरह जल कर धुआं दे रहे थे. इस के बाद भूरा बेशर्मी से हंसता हुआ अपनी हवस मिटाने के लिए बढ़ा. राजेश सिंह बिस्तर पर पड़े सोनाली के पेटीकोट से अपना पसीना पोंछ रहा था. भूरा ने अपने हाथ सोनाली के कूल्हों पर रखे ही थे कि तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई. राजेश सिंह ने दरवाजे की झिर्री से झांका तो गुड्डू की स्कूल वैन का ड्राइवर उसे साथ ले कर खड़ा था. राजेश सिंह ने जल्दी से भूरा को हटने का इशारा किया.

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वह झल्लाया चेहरा लिए उठा और अपने कपड़े ठीक करने लगा. ‘तुम ने बहुत ज्यादा समय ले ही लिया इस के साथ, नहीं तो हम को भी मौका मिल जाता न,’ भूरा भुनभुनाया. लेकिन राजेश सिंह ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया और जैसेतैसे अपने कपड़े पहन कर जिधर से आया था, उधर से ही भाग गया. जब दरवाजा नहीं खुला तो गुड्डू के कहने पर ड्राइवर ने ऊपर से हाथ घुसा कर कुंडी खोली. घुसते ही अंदर के कमरे का सब नजारा दिखता था. ड्राइवर के तो होश उड़ गए. उस ने शोर मचा दिया. सुरेंद्र आननफानन आया. सोनाली के बयान पर राजेश सिंह और भूरा पर केस दर्ज हुए. दोनों की गिरफ्तारी भी हुई लेकिन राजेश सिंह ने अपनी पहचान के नेता से बयान दिलवा लिया कि घटना वाले दिन वह और भूरा उस के साथ मीटिंग में थे. मैडिकल जांच पर भी सवाल खड़े कर दिए गए. कुछ समाचार चैनलों और स्थानीय महिला संगठनों ने थोड़े दिनों तक अपनीअपनी पब्लिसिटी के लिए प्रदर्शन जरूर किए, बाद में अचानक शांत पड़ते गए. सालभर होतेहोते राजेश सिंह और भूरा दोनों बाइज्जत बरी हो कर निकल आए. ऊपरी अदालत में जाने लायक माली हालत सुरेंद्र की थी नहीं. आज राजेश सिंह के घर पर हो रही पार्टी सुरेंद्र और सोनाली के घावों पर रातभर नमक छिड़कती रही. इस के बाद राजेश सिंह और भी छुट्टा सांड़ हो गया. छत पर जब भी सोनाली से नजरें मिलतीं, वह गंदे इशारे कर देता. इस सदमे से सोनाली के सासससुर भी बीमार रहने लगे थे. राजेश सिंह के छूट जाने से सोनाली के मन में भरा डर अब और बढ़ने लगा था. रातों को अपने निजी अंगों पर सुरेंद्र का हाथ पा कर भी वह बुरी तरह से चौंक कर जाग उठती थी. कई बार सोनाली के मन में खुदकुशी का विचार आया, लेकिन अपने पति और बच्चों का चेहरा उसे यह गलत कदम उठाने नहीं देता था. दिन बीतते गए. गुड्डू का जन्मदिन आ गया. केवल उस की खुशी के लिए सोनाली पूरे परिवार के साथ होटल चलने को राजी हो गई. खाना खाने के बाद वे लोग काउंटर पर बिल भर रहे थे कि तभी सामने राजेश सिंह दिखाई दिया. सफेद कुरतापाजामा पहने हुए वह एक पान की दुकान की ओट में किसी से मोबाइल फोन पर बात कर रहा था. राजेश सिंह पर नजर पड़ते ही सोनाली के मन में उसी दिन का उस का हवस से भरा चेहरा घूमने लगा.

उस के द्वारा फोन पर कहे जा रहे शब्द उसे वही आवाज लग रहे थे जो उस की इज्जत लूटते समय वह अपने मुंह से निकाल रहा था. सोनाली का दिमाग तेजी से चलने लगा. उबलते गुस्से और डर को काबू में रख वह आज अचानक कोई फैसला ले चुकी थी. उस ने सुरेंद्र के कान में कुछ कहा. सुरेंद्र ने बच्चों से खाने की मेज पर ही बैठ कर इंतजार करने को बोला और होटल के दरवाजे के पास आ कर खड़ा हो गया. सोनाली ने आसपास देखा और राजेश सिंह के ठीक पीछे आ गई. वह अपनी धुन में था इसलिए उसे कुछ पता नहीं चला. सोनाली ने अपने पेटीकोट की डोरी पहले ही थोड़ी ढीली कर ली थी. उस ने राजेश सिंह का दूसरा हाथ पकड़ा और अपने पेटीकोट में डाल लिया. राजेश सिंह ने चौंक कर सोनाली की तरफ देखा. वह कुछ समझ पाता, इस से पहले ही सोनाली उस का हाथ पकड़ेपकड़े रोते हुए चिल्लाने लगी,

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‘‘अरे, यह क्या बदतमीजी है? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे साथ ऐसी घटिया हरकत करने की?’’ सोनाली के चिल्लाते ही सुरेंद्र होटल से भागाभागा वहां आया और उस ने राजेश सिंह पर मुक्कों की बरसात कर दी. वह मारतेमारते जोरजोर से बोल रहा था, ‘‘राह चलती औरत के पेटीकोट में हाथ डालेगा तू?’’ जिन लोगों ने राजेश सिंह का हाथ सोनाली के पेटीकोट में घुसा देख लिया था, वे भी आगबबूला हुए उधर दौड़े और उस को पीटने लगे. भीड़ जुटती देख सुरेंद्र ने अपने जूते के कई जोरदार वार राजेश सिंह के पेट और गुप्तांग पर कर दिए और मौका पा कर भीड़ से निकल गया. जब तक कुछ लोग बीचबचाव करते, तब तक खून से लथपथ राजेश सिंह मर चुका था. जो सजा उसे बलात्कार के आरोप में मिलनी चाहिए थी, वह उसे छेड़खानी के आरोप ने दिलवा दी थी. द्य

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