मोक्ष: क्या गोमती मोक्ष की प्राप्ति कर पाई?

‘‘मां,कुंभ नहाने चलोगी? काफी दिन से कह रही थीं कि मुझे गंगा नहला ला. इस बार तुम्हें नहला लाता हूं. आज ट्रेन का टिकट करा लिया है.’’

यह सुन कर गोमती चहक उठीं, ‘‘तू सच कह रहा है श्रवण, मुझे यकीन नहीं हो रहा.’’

‘‘यकीन करो मां, ये देखो टिकटें,’’ श्रवण ने जेब से टिकटें निकाल कर गोमती को दिखाईं और बोला, ‘‘अब जाने की तैयारी कर लेना, जोजो सामान चाहिए बता देना. अगले हफ्ते आज के ही दिन चलेंगे.’’

‘‘कौनकौन चलेगा बेटा? सभी चल रहे हैं न?’’

‘‘नहीं मां, सब जा कर क्या करेंगे? कुंभ पर बहुत भीड़ रहती है. सब को संभालना मुश्किल होगा. बस, हम दोनों ही चलेंगे.’’

गोमती ने श्वेता की ओर देखा. उन के अकेले जाने से कहीं बहू नाराज न हो. उन्हें लगा कि इतनी उम्र में अकेली बेटे के साथ कैसे जाएंगी? श्रवण कैसे संभालेगा उन्हें. घर में तो जैसेतैसे अपना काम कर लेती हैं, बाहर कै से उठेंगीबैठेंगी. घड़ीघड़ी श्रवण का सहारा मांगेंगी. फिर कहीं सब के सामने ही श्रवण झल्लाने लगा तो? दुविधा हुई उन्हें.

‘‘अब क्या सोचने लगीं, मांजी? आप के बेटे कह रहे हैं तो घूम आइए. हम सब तो फिर कभी चले जाएंगे. इस के बाद पूरे 12 साल बाद ही कुंभ पडे़गा.’’

‘‘बहू, क्या श्रवण मुझे संभाल पाएगा?’’ गोमती ने अपना संशय सामने रखा तो श्रवण हंस पड़ा.

‘‘मां को अब अपने बेटे पर विश्वास नहीं है. जैसे आप बचपन में मेरा ध्यान रखती थीं वैसे ही रखूंगा. कहीं भी आप का हाथ नहीं छोडूंगा. खूब मेला घुमाऊंगा.’’

श्रवण की बात पर गोमती प्रसन्न हो गईं. उन की चिरप्रतीक्षित अभिलाषा पूरी होने जा रही थी. कुंभ स्नान कर मोक्ष पाने की कामना वह कब से कर रही थीं. कई बार श्रवण से कह चुकी थीं कि मरने से पहले एक बार कुंभ स्नान करना चाहती हैं. कुंभ पर नहीं ले जा सकता तो ऐसे ही हरिद्वार ले चल. वक्त खिसकता रहा, बात टलती रही. अब जब श्रवण अपनेआप कह रहा है तो उन का मन प्रसन्नता से नाचने लगा. उन्होंने बहूबेटे को आशीर्वाद से लाद दिया.

1 रात 1 दिन का सफर तय कर मांबेटा दोनों इलाहाबाद पहुंचे. गोमती का तो सफर में ही बुरा हाल हो गया. ट्रेन के धड़धड़ के शोर और सीटी ने रात भर गोमती को सोने नहीं दिया. श्रवण का हाथ थामे वह बारबार टायलेट जाती रहीं. ट्रेन खिसकने लगती तो पांव डगमगाने लगते. गिरतीपड़ती सीट तक पहुंचतीं.

‘‘अभी सफर शुरू हुआ है मां, आगे कैसे करोगी? संभालो स्वयं को.’’

‘‘संभाल रही हूं बेटा, पर इस बुढ़ापे में हाथपांव झूलर बने रहते हैं. पकड़ ढीली पड़ जाती है. इस का इलाज मुझ पर नहीं है,’’ वह बेबस सी हो जातीं.

‘‘कोई बात नहीं. मैं हूं न, सब संभाल लूंगा,’’ श्रवण उन की बेबसी को समझता.

खैर, सोतेजागते गोमती का सफर पूरा हुआ. गाड़ी इलाहाबाद स्टेशन पर रुकी तो प्लेटफार्म की चहलपहल और भीड़ देख कर वह हैरान रह गईं. श्रवण ने अपने कंधे पर बैग टांग लिया और एक हाथ से मां का हाथ पकड़ कर स्टेशन से बाहर आ गया.

शहर आ कर श्रवण ने देखा कि आकाश में घटाएं घुमड़ रही थीं. यह सोच कर कि क्या पता कब बादल बरसने लगें, उस ने थोड़ी देर स्टेशन पर ही रुकने का फैसला किया. मां के साथ वह वेटिंग रूम में जा कर बैठ गया. थोड़ी देर बाद मां से बोला, ‘‘मां, नित्यकर्म से यहीं निबट लो. जब तक बारिश रुकती है हम आराम से यहीं रुकेंगे. पहले आप चली जाओ,’’  और उस ने इशारे से मां को बता दिया कि कहां जाना है. थोड़ी देर में गोमती लौट आईं. फिर श्रवण चला गया. श्रवण जब लौटा तो उस के हाथ में गरमागरम चाय के 2 कुल्हड़ और एक थैली में समोसे थे. मांबेटे ने चाय पी और समोसे खाए. थोड़ा आराम मिला तो गोमती की आंखें झपकने लगीं. पूरी रात आंखों में कटी थी. वहीं सोफे की टेक ले कर आंखें मूंद लीं.

करीब घंटे भर बाद सूरज फिर से झांकने लगा. वर्षा के कारण स्टेशन पर भीड़ बढ़ गई थी. अब धीरेधीरे छंटने लगी. गोमती और श्रवण ने भी आटोरिकशा पकड़ कर गंगाघाट तक पहुंचने का मन बनाया.

आटोरिकशा ने मेलाक्षेत्र शुरू होते ही उन्हें उतार दिया. करीब 1 किलोमीटर पैदल चल कर वे गंगाघाट तक पहुंचे. गिरतेपड़ते बड़ी मुश्किल से एक डेरे में थोड़ा सा स्थान मिला. दोनों ने चादर बिछा कर अपना सामान जमाया और नहाने चल दिए.

गोमती ने अपने अब तक के जीवन में इतनी भीड़ नहीं देखी थी. कहीं लाउडस्पीकरों का शोर, कहीं भजन गाती टोलियां, कहीं साधुसंतों के प्रवचन, कहीं रामायण पाठ, खिलौने वाले, झूले वाले, पूरीकचौरी, चाट व मिठाई की दुकानें, धार्मिक किताबों, तसवीरों, मालाओं व सिंदूर की दुकानें, हर जातिधर्म के लोगों को देखदेख कर गोमती चकित थीं. लगता था किसी दूसरे लोक में आ गई हैं. वह श्रवण का हाथ कस कर थामे थीं.

भीड़ में रास्ता बनाता श्रवण उन्हें गंगा किनारे तक ले आया. यहां भी खूब भीड़ और धक्कमधक्का था. श्रवण ने हाथ पकड़ कर मां को स्नान कराया, फिर स्वयं किया. गोमती ने फूलबताशे गंगा में चढ़ाए. जाने कब से मन में पली साध पूरी हुई थी. हर्षातिरेक में आंसू निकल पडे़, हाथ जोड़ कर प्रार्थना की कि हे गंगा मैया, श्रवण सा बेटा हर मां को देना. आज उसी के कारण तुम्हारे दर्शन कर सकी हूं.

श्रवण ने मां को मेला घुमाया. खूब खिलायापिलाया.

‘‘थक गई हूं. अब नहीं चला जाता, श्रवण,’’ गोमती के कहने पर श्रवण उन्हें डेरे पर ले आया.

‘‘मां, तुम आराम करो. मैं घूम कर अभी आया. थोड़े रुपए अपने पास रख लो,’’ उस ने मां को रुपए थमाए.

‘‘मैं इन रुपयों का क्या करूंगी? तू है तो मेरे पास. फिर 5-10 रुपए हैं मेरे पास,’’ गोमती ने मना किया.

‘‘वक्तबेवक्त काम आएंगे. तुम्हारा ही कुछ लेने का मन हो या कहीं मेले में मेरी जेब ही कट जाए तो…’’ श्रवण के समझाने पर गोमती ने रुपए ले लिए. गोमती ने रुपए संभाल कर रख लिए. उन्हें ध्यान आया कि ऐसे मेलों में चोर- उचक्के खूब घूमते हैं. लोगों को बेवकूफ बना कर हाथ की सफाई दिखा कर खूब ठगते हैं.

श्रवण चला गया और गोमती थैला सिर के नीचे लगा बिछी चादर पर लेट गईं. उन का मन आह्लादित था. श्रवण ने खूब ध्यान रखा है. लेटेलेटे आंखें झपक गईं. जब खुलीं तो देखा कि सूरज ढलने जा रहा है और श्रवण अभी लौटा नहीं है.

उन्हें चिंता हो आई. अनजान जगह, अजनबी लोग, श्रवण के बारे में किस से पूछें? अपना थैला टटोल कर देखा. सब- कुछ यथास्थान सुरक्षित था. कुछ रुपए एक रूमाल में बांध कर चुपचाप कपड़ों के साथ थैले में डाल लाई थीं. सोचा था पता नहीं परदेश में कहां जरूरत पड़ जाए. उसी रूमाल में श्रवण के दिए रुपए भी रख लिए.

वह डेरे से बाहर आ कर इधरउधर देखने लगीं. आदमियों का रेला एक तरफ तेजी से भागने लगा. वह कुछ समझ पातीं कि चीखपुकार मच गई. पता लगा कि मेले में हाथी बिगड़ जाने से भगदड़ मच गई है. काफी लोग भगदड़ में गिरने के कारण कुचल कर मर गए हैं.

सुन कर गोमती का कलेजा मुंह को आने लगा. कहीं उन का श्रवण भी…क्या इसी कारण अभी तक नहीं आया है? उन्होंने एक यात्री के पास जा कर पूछा, ‘‘भैया, यह किस समय की बात है?’’

‘‘मांजी, शाम 4 बजे नागा साधु हाथियों पर बैठ कर स्नान करने जा रहे थे और पैसे फेंकते जा रहे थे. उन के फेंके पैसों को लूटने के कारण यह कांड हुआ. जो जख्मी हैं उन्हें अस्पताल पहुंचाया जा रहा है और जो मर गए हैं उन्हें सरकारी गाड़ी से वहां से हटाया जा रहा है. आप का भी कोई है?’’

‘‘भैया, मेरा बेटा 2 बजे घूमने निकला था और अभी तक नहीं लौटा है.’’

‘‘उस का कोई फोटो है, मांजी?’’ यात्री ने पूछा.

‘‘फोटो तो नहीं है. अब क्या करूं?’’ गोमती रोने लगीं.

‘‘मांजी, आप रोओ मत. देखो, सामने पुलिस चौकी है. आप वहां जा कर पता करो.’’

गोमती ने चादर समेट कर थैले में रखी और पुलिस चौकी पहुंच कर रोने लगीं. लाउडस्पीकर से कई बार एनाउंस कराया गया. फिर एक सहृदय सिपाही अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर गोमती को वहां ले गया जहां मृतकों को एकसाथ रखा गया था. 1-2 अस्थायी बने अस्पतालों में भी ले गया, जहां जख्मी पड़े लोग कराह रहे थे और डाक्टर उन  की मरहमपट्टी करने में जुटे थे. श्रवण का वहां कहीं भी पता न था. तभी गोमती को ध्यान आया कि कहीं श्रवण डेरे पर लौट न आया हो और उन का इंतजार कर रहा हो या उन्हें डेरे पर न पा कर वह भी उन्हीं की तरह तलाश कर रहा हो. हालांकि पुलिस चौकी पर वह अपने बेटे का हुलिया बता आई थीं और लौटने तक रोके रखने को भी कह आई थीं.

गोमती ने आ कर मालूम किया तो पता चला कि उन्हें पूछने कोई नहीं आया था. वह डेरे पर गईं. वहां भी नहीं. आधी रात कभी डेरे में, कभी पुलिस चौकी पर कटी. जब रात के 12 बज गए तो पुलिस वालों ने कहा, ‘‘मांजी, आप डेरे पर जा कर आराम करो. आप का बेटा यहां पूछने आया तो आप के पास भेज देंगे.’’

पुत्र के लिए व्याकुल गोमती उसे खोजते हुए डेरे पर लौट आईं. चादर बिछा कर लेट गईं लेकिन नींद आंखों से कोसों दूर थी. कहां चला गया श्रवण? इस कुंभ नगरी में कहांकहां ढूंढ़ेंगी? यहां उन का अपना है कौन? यदि श्रवण न लौटा तो अकेली घर कैसे लौटेंगी? बहू का सामना कैसे करेंगी? खुद को ही कोसने लगीं, व्यर्थ ही कुंभ नहाने की जिद कर बैठी. टिकट ही तो लाया था श्रवण, यदि मना कर देती तो टिकट वापस भी हो जाते. ऐसी फजीहत तो न होती.

फिर गोमती को खयाल आया कि कोई श्रवण को बहलाफुसला कर तो नहीं ले गया. वह है भी सीधा. आसानी से दूसरों की बातों में आ जाता है. किसी ने कुछ सुंघा कर बेहोश ही कर दिया हो और सारे पैसे व घड़ीअंगूठी छीन ली हो. मन में उठने वाली शंकाकुशंकाओं का अंत न था.

दिन निकला. वह नहानाधोना सब भूल कर, सीधी पुलिस चौकी पहुंच गईं. एक ही दिन में पुलिस चौकी वाले उन्हें पहचान गए थे. देखते ही बोले, ‘‘मांजी, तुम्हारा बेटा नहीं लौटा.’’

रोने लगीं गोमती, ‘‘कहां ढूंढू़ं, तुम्हीं बताओ. किसी ने मारकाट कर कहीं डाल दिया हो तो. तुम्हीं ढूंढ़ कर लाओ,’’ गोमती का रोतेरोते बुरा हाल हो गया.

‘‘अम्मां, धीरज धरो. हम जरूर कुछ करेंगे. सभी डेरों पर एनाउंस कराएंगे. आप का बेटा मेले में कहीं भी होगा, जरूर आप तक पहुंचेगा. आप अपना नाम और पता लिखा दो. अब जाओ, स्नानध्यान करो,’’ पुलिस वालों को भी गोमती से हमदर्दी हो गई थी.

गोमती डेरे पर लौट आईं. गिरतीपड़ती गंगा भी नहा लीं और मन ही मन प्रार्थना की कि हे गंगा मैया, मेरा श्रवण जहां कहीं भी हो कुशल से हो, और वहीं घाट पर बैठ कर हर आनेजाने वाले को गौर से देखने लगीं. उन की निगाहें दूरदूर तक आनेजाने वालों का पीछा करतीं. कहीं श्रवण आता दीख जाए. गंगाघाट पर बैठे सुबह से दोपहर हो गई. कल शाम से पेट में पानी की बूंद भी न गई थी. ऐंठन सी होने लगी. उन्हें ध्यान आया, यदि यहां स्वयं ही बीमार पड़ गईं तो अपने  श्रवण को कैसे ढूंढ़ेंगी? उसे ढूंढ़ना है तो स्वयं को ठीक रखना होगा. यहां कौन है जो उन्हें मनुहार  कर खिलाएगा.

गोमती ने आलू की सब्जी के साथ 4 पूरियां खाईं. गंगाजल पिया तो थोड़ी शांति मिली.  4 पूरियां शाम के लिए यह सोच कर बंधवा लीं कि यहां तक न आ सकीं तो डेरे में ही खा लेंगी या भूखा श्रवण लौटेगा तो उसे खिला देंगी. श्रवण का ध्यान आते ही उन्होंने कुछ केले भी खरीद लिए. ढूंढ़तीढूंढ़ती अपने डेरे पर पहुंच गईं. पुलिस चौकी में भी झांक आईं.

देखते ही देखते 8 दिन निकल गए. मेला उखड़ने लगा. श्रवण भी नहीं लौटा. अब पुलिस वालों ने सलाह दी, ‘‘अम्मां, अपने घर लौट जाओ. लगता है आप का बेटा अब नहीं लौटेगा.’’

‘‘मैं इतनी दूर अपने घर कैसे जाऊंगी. मैं तो अकेली कहीं आईगई नहीं,’’ वह फिर रोने लगीं.

‘‘अच्छा अम्मां, अपने घर का फोन नंबर बताओ. घर से कोई आ कर ले जाएगा,’’ पुलिस वालों ने पूछा.

‘‘घर से मुझे लेने कौन आएगा? अकेली बहू, बच्चों को छोड़ कर कैसे आएगी.’’

‘‘बहू किसी नातेरिश्तेदार को भेज कर बुलवा लेगी. आप किसी का भी नंबर बताओ.’’

गोमती ने अपने दिमाग पर लाख जोर दिया, लेकिन हड़बड़ाहट में किसी का नंबर याद नहीं आया. दुख और परेशानी के चलते दिमाग में सभी गड्डमड्ड हो गए. वह अपनी बेबसी  पर फिर रोेने लगीं. बुढ़ापे में याददाश्त भी कमजोर हो जाती है.

पुलिस चौकी में उन्हें रोता देख राह चलता एक यात्री ठिठका और पुलिस वालों से उन के रोने का कारण पूछने लगा. पुलिस वालों से सारी बात सुन कर वह यात्री बोला, ‘‘आप इस वृद्धा को मेरे साथ भेज दीजिए. मैं भी उधर का ही रहने वाला हूं. आज शाम 4 बजे टे्रन से जाऊंगा. इन्हें ट्रेन से उतार बस में बिठा दूंगा. यह आराम से अपने गांव पीपला पहुंच जाएंगी.’’

सिपाहियों ने गोमती को उस अनजान व्यक्ति के साथ कर दिया. उस का पता और फोन नंबर अपनी डायरी में लिख लिया. गोमती उस के साथ चल तो रही थीं पर मन ही मन डर भी रही थीं कि कहीं यह कोई ठग न हो. पर कहीं न कहीं किसी पर तो भरोसा करना ही पड़ेगा, वरना इस निर्जन में वह कब तक रहेंगी.

‘‘मांजी, आप डरें नहीं, मेरा नाम बिट्ठन लाल है. लोग मुझे बिट्ठू कह कर पुकारते हैं. राजकोट में बिट्ठन लाल हलवाई के नाम से मेरी दुकान है. आप अपने गांव पहुंच कर किसी से भी पूछ लेना. भरोसा रखो आप मुझ पर. यदि आप कहेंगी तो घर तक छोड़ आऊंगा. यह संसार एकदूसरे का हाथ पकड़ कर ही तो चल रहा है.’’

अब मुंह खोला गोमती ने, ‘‘भैया, विश्वास के सहारे ही तो तुम्हारे साथ आई हूं. इतना उपकार ही क्या कम है कि तुम मुझे अपने साथ लाए हो. तुम मुझे बस में बिठा दोगे तो पीपला पहुंच जाऊंगी. पर बेटे के न मिलने का गम मुझे खाए जा रहा है.’’

अगले दिन लगभग 1 बजे गोमती बस से अपने गांव के स्टैंड पर उतरीं और पैदल ही अपने घर की ओर चल दीं. उन के पैर मनमन भर के हो रहे थे. उन्हें यह समझ में न आ रहा था कि बहू से कैसे मिलेंगी. इसी सोचविचार में वह अपने घर के द्वार तक पहुंच गईं. वहां खूब चहलपहल थी. घर के आगे कनात लगी थीं और खाना चल रहा था. एक बार तो उन्हें लगा कि वह गलत जगह आ गई हैं. तभी पोते तन्मय की नजर उन पर पड़ी और वह आश्चर्य और खुशी से चिल्लाया, ‘‘पापा, दादी मां लौट आईं. दादी मां जिंदा हैं.’’

उस के चिल्लाने की आवाज सुन कर सब दौड़ कर बाहर आए. शोर मच गया, ‘अम्मां आ गईं,’ ‘गोमती आ गई.’ श्रवण भी दौड़ कर आ गया और मां से लिपट कर बोला, ‘‘तुम कहां चली गई थीं, मां. मैं तुम्हें ढूंढ़ कर थक गया.’’

बहू श्वेता भी दौड़ कर गोमती से लिपट गई और बोली, ‘‘हाय, हम ने सोचा था कि मांजी…’’

‘‘नहीं रहीं. यही न बहू,’’ गोमती के जैसे ज्ञान चक्षु खुल गए, ‘‘इसीलिए आज अपनी सास की तेरहवीं कर रही हो और तू श्रवण, मुझे छोड़ कर यहां चला आया. मैं तो पगला गई थी. घाटघाट तुझे ढूंढ़ती रही. तू  सकुशल है… तुझे देख कर मेरी जान लौट आई.’’

मांबेटे दोनों की निगाहें टकराईं और नीचे झुक गईं.

‘‘अब यह दावत मां के लौट आने की खुशी के उपलक्ष्य में है. सब खुशीखुशी खाओ. मेरी मां वापस आ गई हैं,’’ खुशी से नाचने लगा श्रवण.

औरतों में कानाफूसी होने लगी, लेकिन फिर भी सब श्वेता और श्रवण को बधाई देने लगे.

वे सभी रिश्तेदार जो गोमती की गमी में शामिल होने आए थे, गोमती के पांव छूने लगे. कोई बाजे वालों को बुला लाया. बाजे बजने लगे. बच्चे नाचनेकूदने लगे. माहौल एकदम बदल गया. श्रवण को देख कर गोमती सब भूल गईं.

शाम होतेहोते सारे रिश्तेदार खापी कर विदा हो गए. रात को थक कर सब अपनेअपने कमरों में जा कर सो गए. गोमती को भी काफी दिन बाद निश्ंिचतता की नींद आई.

अचानक रात में मांजी की आंखें खुल गईं, वह पानी पीने उठीं. श्रवण के कमरे की बत्ती जल रही थी और धीरेधीरे बोलने की आवाज आ रही थी. बातों के बीच ‘मां’ सुन कर वह सट कर श्रवण के कमरे के बाहर कान लगा कर सुनने लगीं. श्वेता कह रही थी, ‘तुम तो मां को मोक्ष दिलाने गए थे. मां तो वापस आ गईं.’

‘मैं तो मां को डेरे में छोड़ कर आ गया था. मुझे क्या पता कि मां लौट आएंगी. मां का हाथ गंगा में छोड़ नहीं पाया. पिछले 8 दिन से मेरी आत्मा मुझे धिक्कार रही थी. मैं ने मां को मारने या त्यागने का पाप किया था. मैं सारा दिन यही सोचता कि भूखीप्यासी मेरी मां पता नहीं कहांकहां भटक रही होंगी. मां ने मुझ पर विश्वास किया और मैं ने मां के साथ विश्वासघात किया. मां को इस प्रकार गंगा घाट पर छोड़ कर आने का अपराध जीवन भर दुख पहुंचाता रहेगा. अच्छा हुआ कि मां लौट आईं और मैं मां की मृत्यु का कारण बनतेबनते बच गया.’

बेटे की बातें सुन कर गोमती के पैरों तले जमीन कांपने लगी. सारा दृश्य उन की आंखों के आगे सजीव हो उठा. वह इन 8 दिनों में लगभग सारा मेला क्षेत्र घूम लीं. उन्होंने बेटे के नाम की जगह- जगह घोषणा कराई पर अपने नाम की घोषणा कहीं नहीं सुनी. इतना बड़ा झूठ बोला श्रवण ने मुझ से? मुझ से मुक्त होने के लिए ही मुझे इलाहाबाद ले कर गया था. मैं इतना भार बन गई हूं कि मेरे अपने ही मुझे जीतेजी मारना चाहते हैं.

वह खुद को संभाल पातीं कि धड़ाम से वहीं गिर पड़ीं. सब झेल गईं पर यह सदमा न झेल सकीं.

सोनिया : सोनिया के आत्महत्या के पीछे क्या थी वजह

लेखक- बलदेव सिंह गहमरी

सोनिया तब बच्ची थी. छोटी सी मासूम. प्यारी, गोलगोल सी आंखें थीं उस की. वह बंगाली बाबू की बड़ी बेटी थी. जितनी प्यारी थी वह, उस से भी कहीं मीठी उस की बातें थीं. मैं उस महल्ले में नयानया आया था. अकेला था. बंगाली बाबू मेरे घर से 2 मकान आगे रहते थे. वे गोरे रंग के मोटे से आदमी थे. सोनिया से, उन से तभी परिचय हुआ था. उन का नाम जयकृष्ण नाथ था.

वे मेरे जद्दोजेहद भरे दिन थे. दिनभर का थकामांदा जब अपने कमरे में आता, तो पता नहीं कहां से सोनिया आ जाती और दिनभर की थकान मिनटों में छू हो जाती. वह खूब तोतली आवाज में बोलती थी. कभीकभी तो वह इतना बोलती थी कि मुझे उस के ऊपर खीज होने लगती और गुस्से में कभी मैं बोलता, ‘‘चलो भागो यहां से, बहुत बोलती हो तुम…’’

तब उस की आंखें डबडबाई सी हो जातीं और वह बोझिल कदमों से कमरे से बाहर निकलती, तो मेरा भावुक मन इसे सह नहीं पाता और मैं झपट कर उसे गोद में उठा कर सीने से लगा लेता.

उस बच्ची का मेरे घर आना उस की दिनचर्या में शामिल था. बंगाली बाबू भी कभीकभी सोनिया को खोजतेखोजते मेरे घर चले आते, तो फिर घंटों बैठ कर बातें होती थीं.

बंगाली बाबू ने एक पंजाबी लड़की से शादी की थी. 3 लोगों का परिवार अपने में मस्त था. उन्हें किसी बात की कमी नहीं थी. कुछ दिन बाद मैं उन के घर का चिरपरिचित सदस्य बन चुका था.

समय बदला और अंदाज भी बदल गए. मैं अब पहले जैसा दुबलापतला नहीं रहा और न बंगाली बाबू ही अधेड़ रहे. बंगाली बाबू अब बूढ़े हो गए थे. सोनिया भी जवान हो गई थी. बंगाली बाबू का परिवार भी 5 सदस्यों का हो चुका था. सोनिया के बाद मोनू और सुप्रिया भी बड़े हो चुके थे.

सोनिया ने बीए पास कर लिया था. जवानी में वह अप्सरा जैसी खूबसूरत लगती थी. अब वह पहले जैसी बातूनी व चंचल भी नहीं रह गई थी.

बंगाली बाबू परेशान थे. उन के हंसमुख चेहरे पर अकसर चिंता की रेखाएं दिखाई पड़तीं. वे मुझ से कहते, ‘‘भाई साहब, कौन करेगा मेरे बच्चों से शादी? लोग कहते हैं कि इन की न तो कोई जाति है, न धर्म. मैं तो आदमी को आदमी समझता हूं… 25 साल पहले जिस धर्म व जाति को समुद्र के बीच छोड़ आया था, आज अपने बच्चों के लिए उसे कहां से लाऊं?’’

जातपांत को ले कर कई बार सोनिया की शादी होतेहोते रुक गई थी. इस से बंगाली बाबू परेशान थे. मैं उन्हें विश्वास दिलाना चाहता था, लेकिन मैं खुद जानता था कि सचमुच में समस्या उलझ चुकी है.

एक दिन बंगाली बाबू खीज कर मुझ से बोले, ‘‘भाई साहब, यह दुनिया बहुत ढोंगी है. खुद तो आदर्शवाद के नाम पर सबकुछ बकेगी, लेकिन जब कोई अच्छा कदम उठाने की कोशिश करेगा, तो उसे गिरा हुआ कह कर बाहर कर देगी…

‘‘आधुनिकता, आदर्श, क्रांति यह सब बड़े लोगों के चोंचले हैं. एक 60 साल का बूढ़ा अगर 16 साल की दूसरी जाति की लड़की से शादी कर ले, तो वह क्रांति है… और न जाने क्याक्या है?

‘‘लेकिन, यह काम मैं ने अपनी जवानी में ही किया. किसी बेसहारा को कुतुब रोड, कमाठीपुरा या फिर सोनागाछी की शोभा बनाने से बचाने की हिम्मत की, तो आज यही समाज उस काम को गंदा कह रहा है.

‘‘आज मैं अपनेआप को अपराधी महसूस कर रहा हूं. जिन बातों को सोच कर मेरा सिर शान से ऊंचा हो जाता था, आज वही बातें मेरे सामने सवाल बन कर रह गई हैं.

‘‘क्या आप बता सकते हैं कि मेरे बच्चों का भविष्य क्या होगा?’’ पूछते हुए बंगाली बाबू के जबड़े भिंच गए थे. इस का जवाब मैं भला क्या दे पाता. हां, उन के बेटे मोनू ने जरूर दे दिया. जीवन बीमा कंपनी में नौकरी मिलने के 7 महीने बाद ही वह एक लड़की ले आया. वह एक ईसाई लड़की थी, जो मोनू के साथ ही पढ़ती थी और एक अस्पताल में स्टाफ नर्स थी.

कुछ दिन बाद दोनों ने शादी कर ली, जिसे बंगाली बाबू ने स्वीकार कर लिया. जल्द ही वह घर के लोगों में घुलमिल गई.

मोनू बहादुर लड़का था. उसे अपना कैरियर खुद चुनना था. उस ने अपना जीवनसाथी भी खुद ही चुन लिया. पर सोनिया व सुप्रिया तो लड़कियां हैं. अगर वे ऐसा करेंगी, तो क्या बदनामी नहीं होगी घर की? बातचीत के दौर में एक दिन बंगाली बाबू बोल पड़े थे.?

लेकिन, जिस बात का उन्हें डर था, वह एक दिन हो गई. सुप्रिया एक दिन एक दलित लड़के के साथ भाग गई. दोनों कालेज में एकसाथ पढ़ते थे. उन दोनों पर नए जमाने का असर था. सारा महल्ला हैरान रह गया.

लड़के के बाप ने पूरा महल्ला चिल्लाचिल्ला कर सिर पर उठा लिया था, ‘‘यह बंगाली न जात का है और न पांत का है… घर का न घाट का. इस का पूरा खानदान ही खराब है. खुद तो पंजाबी लड़की भगा लाया, बेटा ईसाई लड़की पटा लाया और अब इस की लड़की मेरे सीधेसादे बेटे को ले उड़ी.’’

लड़के के बाप की चिल्लाहट बंगाली बाबू को भले ही परेशान न कर सकी हो, लेकिन महल्ले की फुसफुसाहट ने उन्हें जरूर परेशान कर दिया था. इन सब घटनाओं से बंगाली बाबू अनापशनाप बड़बड़ाते रहते थे. वे अपना सारा गुस्सा अब सोनिया को कोस कर निकालते.

बेचारी सोनिया अपनी मां की तरह शांत स्वभाव की थी. उस ने अब तक 35 सावन इसी घर की चारदीवारी में बिताए थे. वह अपने पिता की परेशानी को खूब अच्छी तरह जानती थी. जबतब बंगाली बाबू नाराज हो कर मुझ से बोलते, ‘‘कहां फेंकूं इस जवान लड़की को, क्यों नहीं यह भी अपनी जिंदगी खुद जीने की कोशिश करती. एक तो हमारी नाक साथ ले कर चली गई. उसे अपनी बड़ी बहन पर जरा भी तरस नहीं आया.’’

इस तरह की बातें सुन कर एक दिन सोनिया फट पड़ी, ‘‘चुप रहो पिताजी.’’ सोनिया के अंदर का ज्वालामुखी उफन कर बाहर आ गया था. वह बोली, ‘‘क्या करते मोनू और सुप्रिया? उन के पास दूसरा और कोई रास्ता भी तो नहीं था. जिस क्रांति को आप ने शुरू किया था, उसी को तो उन्होंने आगे बढ़ाया. आज वे जैसे भी हैं, जहां भी हैं, सुखी हैं. जिंदगी ढोने की कोशिश तो नहीं करते. उन की जिंदगी तो बेकार नहीं गई.’’

बंगाली बाबू ने पहली बार सोनिया के मुंह से यह शब्द सुने थे. वे हैरान थे. ‘‘ठीक है बेटी, यह मेरा ही कुसूर है. यह सब मैं ने ही किया है, सब मैं ने…’’ बंगाली बाबू बोले.

सोनिया का मुंह एक बार खुला, तो फिर बंद नहीं हुआ. जिंदगी के आखिरी पलों तक नहीं… और एक दिन उस ने जिंदगी से जूझते हुए मौत को गले लगा लिया था. उस की आंखें फैली हुई थीं और गरदन लंबी हो गई थी. सोनिया को बोझ जैसी अपनी जिंदगी का कोई मतलब नहीं मिल पाया था, तभी तो उस ने इतना बड़ा फैसला ले लिया था.

मैं ने उस की लाश को देखा. खुली हुई आंखें शायद मुझे ही घूर रही थीं. वही आंखें, गोलगोल प्यारा सा चेहरा. मेरे मानसपटल पर बड़ी प्यारी सी बच्ची की छवि उभर आई, जो तोतली आवाज में बोलती थी.खुली आंखों से शायद वह यही कह रही थी, ‘चाचा, बस आज तक ही हमारातुम्हारा रिश्ता था.’

मैं ने उस की खुली आंखों पर अपना हाथ रख दिया था.

कितने तरह के होते हैं हेयरब्रश, इस तरह करें इनका चुनाव

किसी की भी खूबसूरती में बालों का अहम रोल होता है. इसलिए सभी अपने बालों को सिल्की और सौफ्ट बनाए रखने के लिए डिफरैंट तरह के शैंपू, कंडीशनर, हेयर मास्क, हेयर स्पा क्रीम का प्रयोग तो करते हैं लेकिन एक छोटी सी चीज, जो हमारे बालों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है उसे भूल जाते हैं और वह है हेयरब्रश का इस्तेमाल.

अकसर देखा गया है कि हम सभी हेयरब्रश का इस्तेमाल सिर्फ बालों को संवारने के लिए ही करते हैं जबकि हेयरब्रश सिर्फ बाल ही नहीं संवारते बल्कि उन्हें स्वस्थ बनाने के साथ स्टाइलिंग भी करते हैं.

बालों के अनुसार ब्रश का इस्तेमाल

जावेद हबीब सलोन, एमजीएफ मौल के हेयर आर्टिस्ट आरिफ मियां का कहना है,”आमतौर पर देखा गया है कि हम सभी अपने बालों को संवारने के लिए किसी भी हेयरब्रश का इस्तेमाल कर लेते हैं या एक ही ब्रश से घर के पूरे लोग बालों को संवारते हैं लेकिन यह आप के बालों की हैल्थ के लिए सही नहीं है.

“इसलिए बालों को स्वस्थ रखने के लिए अपने बालों के अनुसार ही किसी अच्छे ब्रैंड का हेयरब्रश का चुनाव करें क्योंकि ब्रैंडेड हेयरब्रशों में लचीलापन और मुलायम कुशनिंग होती है, जिस से उलझे हुए बालों में ब्रश करना आसान हो जाता है. ब्रश का लचीलापन ब्रश को स्कैल्प के अनुरूप ढाल देता है, जिस से बालों के टूटने की प्रौब्लम कम होती है और इस से हेयर स्टाइलिंग भी बैस्ट होती है.”

हेयरब्रश के प्रकार

मार्केट में आप को हेयरब्रश की एक बड़ी रेंज की वैराइटी मिल जाएगी जिन की अपनी अलगअलग क्वालिटी है लेकिन आप अपने बालों के टैक्सचर की जरूरत के अनुसार अच्छे ब्रैंड के हेयरब्रश को चुन सकते हैं जैसे :

पैडल हेयरब्रश :

पैडल हेयरब्रश एक नार्मल ब्रश है. इस ब्रश के कुशन बौटम से काफी सौफ्ट होते हैं और बौल टिप ब्रिसल्स स्कैल्प को मसाज करने का काम करते हैं. यह फ्रिज को कम करता है और बालों को स्मूद बनाता है.

राउंड हेयरब्रश

अगर आप बालों में स्टाइल चाहती हैं तो राउंड हेयरब्रश ले सकते हैं. यह डिफरैंट बैरल साइज में आते हैं जो हेयर्स को कर्ल करने में मदद करते हैं. अगर आप टाइट कर्ल्स करना चाहते हैं तो स्माल राउंड ब्रश को चुनें, वहीं लूज कर्ल्स के लिए बड़े राउंड ब्रश से करना अच्छा रहेगा.

वेंटेड हेयरब्रश

यह हेयरब्रश गीले बालों को सुखाने के लिए बैस्ट है. वेंटेड ब्रश में ऐसा डिजाइन होता है जो हवा को अंदर जाने देता है, जिस से बालों को सुखाने का समय काफी कम हो जाता है. यह उन लोगों के लिए एकदम सही है जिन्हें अपने बालों को जल्दी से सुखाने और स्टाइल करने की जरूरत होती है. यह ब्रश आप के गीले बालों को ब्रश करने पर न ही खिंचेगा और न ही टग करेगा बल्कि उलझे बालों को आराम से सुलझा देता है.

डिटैंगलिंग हेयरब्रश

यह हेयरब्रश घने बालों को बिना खींचे या उलझाए संभालने के लिए डिजाइन किया गया जो बालों को टूटने से रोकता है और आसानी से संवारता है.

अगर आप के बाल हैवी और घने हैं तो उन्हें संवारने और सुलझाने के लिए बड़े और चौड़े ब्रिसल्स वाले हेयरब्रश का चुनाव करें. ये ब्रिसल्स स्कैल्प तक पहुंच कर बालों को ठीक से सुलझाने में मदद करते हैं, जिस से बाल चमकदार और सेहतमंद बने रहते हैं.

टीजिंग हेयरब्रश

टीजिंग ब्रश का इस्तेमाल आप हेयरस्टाइल को इजी बनाने के लिए कर सकते हैं. यह बालों में वौल्यूम के लिए डिजाइन किया गया है जिस से बालों में बैककौंबिंग आसानी से कर सकते हैं.

घने ब्रिसल्स वाले हेयरब्रश

अगर आप अपने बालों में बेहतर वौल्यूम चाहते हैं तो हलके और पतले बालों के लिए आप छोटे और घने ब्रिसल्स वाले हेयरब्रश का इस्तेमाल करें. इस से आप के बालों को अच्छा वौल्यूम मिलेगा और वह आराम से सुलझ भी जाएंगे और टूटेंगे भी कम.

चौड़े ब्रिसल्स वाले हेयरब्रश

कर्ली बालों की देखभाल करना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि ये बहुत ज्यादा उलझते हैं. ऐसे बालों के लिए आप नायलौन के चौड़े ब्रिसल्स वाले हेयरब्रश का इस्तेमाल करें. यह ऐसे बालों को आसानी से सुलझाएंगे.

नैचुरल ब्रिसल्स और फ्लैट पैडल वाले हेयरब्रश

स्ट्रैट यानी सीधे बाल कम उलझते हैं लेकिन इन के लिए भी सही हेयरब्रश का इस्तेमाल बहुत जरूरी है. इसलिए इन के लिए आप नैचुरल ब्रिसल्स और फ़्लैट पैडल वाले हेयर ब्रश का चुनाव कर सकते हैं.

बोर ब्रिसल हेयरब्रश

यह हेयरब्रश बालों में नैचुरल औयल को प्रभावी ढंग से वितरित करता है, उसशमें चमक लाता है और खोपड़ी पर कोमल होता है.

हेयर ब्रश की कीमत : इन हेयरब्रश की कीमत ₹600 से शरू होती है और ब्रैंड के हिसाब से ₹1000- 1500 में बाजार में उपलब्ध है. आप इसे बाजार से या औनलाइन भी खरीद सकते हैं.

ब्रैंडेड कपड़े सैलेब्स की पहली पसंद, हर अवसर पर पहन सकते हैं ये ड्रैस

एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाली सुमन हमेशा ब्रैंडेड कपड़े पहनती है, क्योंकि उसे उस के रंग, फिटिंग और लुक काफी ऐलीगेंट और सुंदर दिखते हैं। पहले वह रोड साइड कपड़े खरीदती थी, लेकिन कुछ दिनों में उस के रंग उड़ जाते थे और उस की फिटिंग भी कई बार सही नहीं होती थी, इस वजह से उन कपड़ों को उसे बहुत जल्दी ही किसी दूसरे को देना पड़ता था. इसलिए वह पिछले 5 सालों से ब्रैंडेड कपड़े ही पहनती है, क्योंकि ये कपड़े महंगे भले ही होते हैं, लेकिन उस की ड्यूरेबिलिटी अधिक होती है.

सुमन को देख कर उस की सहेलियां भी ब्रैंडेड कपड़े खरीद रही हैं। उन के हिसाब से ब्रैंडेड कपड़े महंगे भले होते हैं, लेकिन उन का लुक काफी समय तक एकजैसा रहता है.

असल में ब्रैंडेड कपड़े महंगे होते हैं, लेकिन उस की स्टाइल, फिटिंग, रंग, फैब्रिक आदि बाकी आम कपड़ों से अच्छी होती है, जिसे अधिक पैसे देने के बाद भी आज के यूथ खरीदते हैं, क्योंकि वे अच्छा कमाते हैं और इन ब्रैंडेड कपड़ों की वजह से उन का औफिस में भी अलग इमेज होता है.

इतना ही नहीं, ब्रैंड्स अपने कस्टमर के प्रति हमेशा ईमानदार होते हैं, ताकि वे उस ब्रैंड्स के कपड़े बारबार खरीदें. ब्रैंड्स आजकल स्टैटस का प्रतीक बन चुका है, इसलिए आज का यूथ इस ओर अधिक से अधिक आकर्षित है.

डिजाइनरों का भी मानना है कि कभी ऐसा समय था, जब आम इंसान हाई ऐंड कपड़ों को खरीदना नहीं चाहते थे, क्योंकि ऐसे कपड़े केवल धनी लोगों के लिए समझे जाते थे, लेकिन आज ऐसा नहीं है। अधिक से अधिक यूथ हाई ऐंड कपड़ों की मांग करते हैं. इस की खास वजह औनलाइन में आजकल हजारों ब्रैंड्स अपने कपड़े और ऐक्सेसरीज बेचती हैं, जो उन के बजट में आ जाते हैं, जिस से वे उन्हें
खरीद सकते हैं. इस के अलावा ब्रैंडेड कपड़े पहनने से व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है, वे भीड़ में खुद को अलग महसूस कर सकते हैं। यही वजह है कि सारे ब्रैंड एक से एक सुंदर और आकर्षक कपड़ों को मार्केट में ला कर ग्राहकों को संतुष्ट करने की कोशिश करती है. इतना ही नहीं पर्यावरण संरक्षण में भी ब्रैंडेड कपड़े ही आते हैं, क्योंकि फैशन इंडस्ट्री से निकले वैस्ट पदार्थ बड़ी मात्रा में प्रदूषण फैलाते हैं,

सस्टैनेबल कपड़ों पर आजकल अधिक जोर दिया जा रहा है, ऐसे में ब्रैंडेड कपड़े स्लो फैशन को बढ़ावा देते हैं, जिस से प्रदूषण कम होता है.

ब्रैंडेड कपड़े पहनने के फायदे निम्न हैं :

आरामदायक कपड़े

ब्रैंडेड कपड़ा पहनने पर आराम महसूस कराता है। हाई क्वालिटी के मैटिरियल्स से बने होने की वजह से यह आरामदायक होता है लंबे समय तक पहने रहने पर भी असहजता महसूस नहीं होती, फिर चाहे आप फ्लाइट में सफर कर रहे हों या औफिस में काम कर रह हों।

अपने ऐसे कपड़े आप को रिलैक्स्ड फील कराते हैं. ब्रैंडेड कपङे सभी साइज में होते हैं और इन के साइज भी सही तरह से बने होते हैं. कोई भी अपनी साइज के कपड़े खरीद कर पहन सकता है और खुश रह सकता है.

ऐलिगेंस जबरदस्त

ब्रैंडेड कपड़े स्टाइल में ऐलीगेंस को बढ़ाती है और शालीनता को टौप प्रायोरिटी पर रखती है. इन कपड़ों से व्यक्ति की फैशन सेंस का पता चलता है. इन कपड़ों के रंग फेड नहीं होते, इसलिए इन्हें कई बार पहना जा सकता है। इन कपड़ों के साथ अगर कुछ ऐक्सेसरीज पहनने पर इसशकी खूबसूरती आकर्षक हो जाती है.

लौंग लास्टिंग होती है

ऐसा देखा गया है कि लोकल कपड़े सस्ते मैटिरियल के बने होते हैं, इन कपड़ों की खरीदारी में व्यक्ति के पैसे तो बचते हैं, लेकिन ये अधिक दिनों तक नहीं टिकते. 2-3 बार धोने पर इस के रंग उड़ जाते हैं, जिसे पहनना मुश्किल होता है. ब्रैंडेड कपड़े महंगे जरूर होते हैं, लेकिन हाई क्लास मैटिरियल के बने होने की वजह से काफी सालों तक एकजैसे रहते है. लोकल कपड़ों के खरीदने पर बारबार पैसे खर्च करने पड़ते हैं, जबकि ब्रैंडेड में एक बार अधिक पैसे खर्च करने पर पोशाक सालोसाल चलते हैं.

हर अवसर पर पहनने लायक

ब्रैंडेड पोशाक हर अवसर पर बारबार पहनने लायक होते हैं, इसलिए इन कपड़ों पर एक बार पैसा खर्च करना होता है, जो सालों तक अच्छा रहता है. चाहे आप जिम में जाएं या पार्टी या कैजुअल ड्रैस करें ब्रैंडेड कपड़े हमेशा ही आरामदायक और कौन्फिडेंट का अनुभव कराते हैं. बड़ेबड़े ब्रैंड्स जैसे प्यूमा, नाइकी जैसे खासकर जिम या वर्कआउट के लिए सुंदर कपड़े तैयार करते हैं. इन सभी पोशाकों में अगर आप ने ऐक्सेसरीज जैसे ईयररिंग्स, कड़े और अंगूठी पहनती हैं तो इस का अलग लुक दिखता है.

इस प्रकार कपड़ों की गुणवत्ता, डिजाइन और अनुभव ही किसी ब्रैंड को मार्केट में स्थापित करने की कोशिश करती है, जिस से ग्राहक उन के कपड़े पहनें.

सैलेब्स की पहली पसंद

यह भी सही है कि ऐक्टिंग के फील्ड में काम करने वाले सेलिब्रिटीज ब्रैंडेड कपड़ों को अधिकतर पहनते हैं, जिसे देख कर दर्शक प्रभावित होते हैं और हर ब्रैंड को ऐंडोर्स करने के लिए सैलिब्रिटीज होते हैं, जो उन के ब्रैंड वैल्यू को बढ़ाते हैं.

इंडस्ट्री में ब्रैंडेड कपड़े पहनने वाले स्टार्स में सब से अधिक अभिनेत्री सोनम कपूर का नाम आता है। वह हर तरह के डिजाइन को ट्राई करना पसंद करती है.

अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा, दीपिका पादुकोण, ऐश्वर्या राय, आलिया भट्ट के अलावा रणवीर सिंह भी कान्स के रैड कार्पेट पर नएनए डिजाइन के साथ रैंप वौक करते हैं. इन सब में सोशल मीडिया का बहुत बड़ा हाथ होता है। जिन कलाकारों के फौलोवर्स सब से अधिक होते हैं, उन के कपड़ों की मांग भी बाजार में
अधिक होती है.

इन्फ्लुएंसर्स : नए जमाने के पंडेपुजारी

वास्तुशास्त्र के नाम पर लोगों की  मानसिकता से खिलवाड़ करने वाले इन्फ्लुएंसर्स का एक नया धंधा जोर पकड़ रहा है. आधुनिक तकनीक और सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर ये लोग पौराणिक कथाओं और अंधविश्वासों को बढ़ावा देते हुए अजीबोगरीब दावे करते हैं. इन के चैनलों पर व्यूअर्स की बाढ़ है.

यह समझना बड़ी बात नहीं कि किसी को अपनी दुकान चलाने के लिए ज्यादा से ज्यादा दिखना पड़ता है, खासकर, धर्म के मामले में यह बात ज्यादा सटीक बैठती है. भारत में हर गलीमहल्ले में आलूटमाटर की पटरियों जैसे मंदिर खुले हैं. पटरी वाले भगवान से ले कर एसी वाले भगवान तक की यात्रा चंद दिनों में हो जाती है. एसी का भौतिक सुख भगवान का तो पता नहीं पर वहां बैठा अध्यात्मिक पुजारी जरूर लेता है. लोग चाहते न चाहते भी बीच सड़क सिर  झुकाते चलते हैं, हाथ जोड़ते हैं, हैसियत से अधिक दान करते हैं, यही रीतिनीति है. यह बात धर्म की ठेकेदारी करने वाले जानते हैं कि भारत में सब से बड़ा व्यापार दानपिंड का है. इस में इन्वैस्टमैंट के नाम पर जीरो और मुनाफा 100 टका.

धर्म की ठेकेदारी चलाने वाले कई डिपार्टमैंटों में बंटे हुए हैं. पुजारीपंडों की बिरादरी, बाबासंतों की बिरादरी, कथावाचकों की बिरादरी और ज्योतिषियों व वास्तुशास्त्रियों की अलग बिरादरी. हैरानी यह कि डिजिटल युग में एक बिरादरी धर्मांध इन्फ्लुएंसर्स की भी उग आई है. काम सब का एक, लोगों को कर्मकांडी और पाखंडी बनाना और इस के एवज में खूब दान जमाना. जैसे रटेरटाए श्लोक और मंत्र पुजारी बांचता है वैसे ही इन्फ्लुएंसर्स भी एक धुन में रटीरटाई बातें करते हैं, कुछ नया नहीं है. पुजारी का दान आटादाल, चावल, घर संपत्ति, पैसा लेना है तो इन्फ्लुएंसर्स का दान फौलोअर्स और सब्सक्राइबर्स की शक्ल में है.

हालफिलहाल ऐसे इन्फ्लुएंसर्स आने लगे हैं जो अपने चैनल पर पाखंड का चूर्ण बांट रहे हैं. इन्हें सुनने वाले काल्पनिक रहस्यों में उल झे हुए हैं. सुनाने वाले अश्वत्थामा के जिंदा होने के गप्पों से ले कर कर्ण के छिपे कवच पर डेढ़दो घंटे की लंबी वीडियो अपलोड कर रहे हैं. ये यह भी दावा कर रहे हैं कि अतीत में लाखों गुरुकुल थे. लेकिन वे यह नहीं बताते कि उन में से पढ़ने का अधिकार कितनों और किन्हें था?

इन्हीं इन्फ्लुएंसर्स की पोडकास्ट में ऋषि कश्यप और उन की पत्नी के पुत्रों के रहस्य की चर्चाएं हैं तो वहीं उड़ने वाले, मणिधर, इच्छाधारी सांपों के रहस्य भी हैं. शेषनाग से ले कर संजीवनी बूटी, सोमरस से ले कर बर्बरीक घटोत्कच, इच्छामृत्यु से ले कर गरुड़ वाहन तक सब देखने को मिल जाता है. अच्छे व महंगे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने के बाद सोशल मीडिया के ये इन्फ्लुएंसर्स रंगबिरंगे आधुनिक लिबास में कैमरे, माइक और चमकदार स्टूडियो में बैठ कर बताते हैं कि वेदों में ही सारा ज्ञान छिपा है. यही लोग वास्तु पर दिशा ज्ञान दे रहे हैं, इस के छिपे वैज्ञानिक पहलुओं को बता रहे हैं.

घूमफिर कर सभी धर्मांधी इन्फ्लुएंसर्स के चैनलों में एक ही तरह के वास्तुशास्त्री तैर रहे हैं. कभी इस चैनल तो कभी उस चैनल में गोता लगा रहे हैं. ऐसा लग रहा है मानो लोगों को लालबु झक्कड़ और मूर्ख बनाने की सुपारी इन्हीं को दी गई है. यह सुपारी ऐसी है जो प्रसाद में चढ़ाई गई लगती है, थोड़ी कसैली थोड़ी कड़वी पर आगे आराम देगी, यह सोच कर घंटों व्यूअर्स को चुसवाया जा रहा है. ऐसा ही एक वास्तुशास्त्री पंकित गोयल है. यह वास्तुशास्त्री होने के साथसाथ इन्फ्लुएंसर भी है. अपने चैनल के अलावा हर दूसरे इन्फ्लुएंसर्स के पोडकास्ट में इस की मौजूदगी बताती है कि अपनी दुकान चलाने के खेल में ज्यादा से ज्यादा दिखना इस ने सीख लिया है.

अपनी वैबसाइट में दिल्ली का रहने वाला पंकित गोयल खुद को भारत का सर्वश्रेष्ठ वास्तुशास्त्री होने का क्लेम करता है. उस की वैबसाइट पर वास्तु के कोर्स की डिस्क्रिप्शन है, यानी पैसा कूटने के तरीके भी जानता है. आचार्य पंकित गोयल नाम से उस का यूट्यूब चैनल भी है, जहां वह वास्तु की जानकारियां देता है. इस के चैनल में 5 लाख से अधिक सब्सक्राइबर्स हैं और अभी तक यह एक हजार से अधिक वीडियो डाल चुका है.

यह अपने एक वीडियो में बेडरूम का वास्तुशास्त्र बताता है. यह बताता है कि एक अच्छे बेडरूम के लिए 16 दिशाओं में विभाजित नक्शा होना जरूरी है. इस के साथ सोने की दिशा उत्तर की तरफ नहीं होनी चाहिए. यह इसी वीडियो में बताता है कि साउथवैस्ट दिशा पितरों, मृग देवताओं, स्किल्स, इंद्र देवता व जया देवता की होती है. ये सारे देवता आप को अच्छा बिसनैसमैन बनाते हैं. इस लिहाज से घर में जो सब से ज्यादा स्किल्ड व्यक्ति है या पैसे लाने वाला व्यक्ति है उसे इस दिशा में अपना रूम बनाना चाहिए.

इस के अलावा यह बाकी वास्तुशास्त्रियों के ज्ञान का खंडन करता है और बताता है कि सोते समय आप का सिर साउथवैस्ट दिशा की तरफ आए. यह वैस्ट और नौर्थवैस्ट दिशा में बेड रखने को मना यह कहते करता है कि इस दिशा में सुसाइडल थौट आते हैं. यदि ऐसा है, फिर तो वास्तुशास्त्रियों को ही असली सोशियोलौजिस्ट, इकोनौमिस्ट और साइक्लोजिस्ट घोषित कर दिया जाना चाहिए.

यह अपनी एक और वीडियो ‘घर के पास यह न हो’ में बताता है कि नया घर खरीदते समय घर के आसपास क्याक्या चीजें नहीं होनी चाहिए. यह बताता है कि घर उस जगह विकसित नहीं हो पाता जहां मंदिर हो. इस का वह कारण बताता है कि मंदिर अपनेआप में एक शक्ति है और घर स्पेस एलिमैंट में कन्वर्ट होने लगता है. इस पर सुहागा यह बताता है कि हौस्पिटल भी नजदीक न हो. इस के नुकसान बताते कहता है कि नजदीक हौस्पिटल होने से व्यक्ति के ज्यादा चक्कर लगने लगते हैं, कर्जे बढ़ जाते हैं, यहां तक कि जो डाक्टर अपने घर में क्लिनिक बना लेते हैं उन्हें ही हैल्थ इश्यूज होने लगते हैं. इस के अलावा पुलिसथाना भी नहीं होना चाहिए. अब इन बातों का क्या आधार है? कौन सी रिसर्च है, किस तरह के केसेज हैं? इस पर कोई चर्चा नहीं करता.

खुद सोचिए, घर में लगे पौधे किस दिशा में हों, इस का तर्क वास्तुशास्त्र है. बताया जाता है कि यह उत्तरा, स्वाति, हस्त, रोहिणी और मूल नक्षत्रों में करना चाहिए. क्या बकवास है. कोई भी साधारण व्यक्ति सामान्य से जैविक विज्ञान की जानकारी ले कर यह खुद से तय कर सकता है कि घर में प्लांट के लिए खाद, रोशनी, धूप, पानी की जरूरत है, इस में वास्तु का क्या काम?

पंकित गोयल अपनी एक वीडियो में बताता है कि कौन से नंबर का घर कभी नहीं लेना चाहिए. इस वीडियो को 3 लाख से अधिक लोगों ने देखा है. इस में वह कुंडली और नंबरों के बीच के गणित को बताता है. वह बताता है कि यदि आप को मरी हुई इन्वैस्टमैंट मिले 8 नंबर प्लौट की तो आप बिना सोचे, आंख बंद कर के ले लें. यह आप को फायदा ही देगी. कोई सवाल पूछ सकता है कि क्या तब भी जब वह पंकित के कहे अनुसार मंदिर और हौस्पिटल के नजदीक हो? या तब भी जब वह ऐसी जगह में हो जहां न पानी की व्यवस्था हो न ट्रांसपोर्ट की?

इस के अलावा पंकित के चैनल में ढेरों वीडियोज हैं. कहीं वह सीढि़यों का वास्तु बताता है कहीं छत का, कहीं वह कुबेर की दिशा बताता है, कहीं सास व बहू के क्लेश में वास्तु के रोल की बात करता है. यानी वह हरेक कारण के पीछे वास्तु की बातें करता है. आप की शादी नहीं हो रही तो आप का वास्तुदोष है, आप की नौकरी नहीं लग रही तो वास्तुदोष है, आप के पास पैसों की तंगी है तो वास्तु का वास्तुदोष, आप डिप्रैशन में हैं तो वास्तुदोष, आप के घर में कुछ अनहोनी हो गई तो वास्तुदोष.

यानी सीधा मतलब है भैया, आप को अगर इन वास्तुदोषों को ठीक करना है, सुखशांति की जिंदगी बितानी है, क्लेश से मुक्ति चाहिए तो आचार्य पंकित गोयल से संपर्क करिए, जिस का कौन्टैक्ट नंबर उस ने बड़ेबड़े अक्षरों में अपने यूट्यूब चैनल पर दिया हुआ है. सारा माजरा यही तो है. लोग डर में रहें. पंकित सिर्फ अपने चैनल पर ही वास्तुशास्त्र के टिप्स नहीं देता बल्कि वह दूसरे इन्फ्लुएंसर्स के पोडकास्ट पर भी गैस्ट स्पीकर के रूप में जाता रहता है.

खुद को नंबर वन वास्तुशास्त्री होने का क्लेम करने वाला पंकित भारत के कथित नंबर वन पोडकास्टर रणवीर अलाहबादिया के चैनल पर भी जा चुका है. ‘वास्तुशास्त्र फौर बिगिनर्स’ के नाम से यह शो पूरे 2 घंटे 35 मिनट का है. इस पोडकास्ट में ऐसीऐसी पाखंडी और रहस्यभरी घटनाओं का जिक्र है कि निर्देशक रामगोपाल वर्मा को भी हौरर फिल्मों के लिए छत्तीसों आइडियाज मिल जाएं. न बातों का सिर न पैर, कहीं की बात को कहीं जोड़ कर पूरी बकवास इस एक शो में की गई है. हैरानी यह कि इसे देखने वालों की संख्या 14 लाख से अधिक है. हैरानी यह भी कि इस तरह की वीडियोज की बमबार्डिंग इस चैनल में खूब की गई.

ऐसे ही यह पंकित उसी समय के अंतराल में ‘रियलहिट’ नाम के चैनल में भी जाता है. यहां यह स्वर विज्ञान के रहस्य की बात करता है, बताता है कि इस से धनलाभ कैसे प्राप्त करें. एक घंटे के वीडियो में यह नहीं बताया जाता कि पैसे मेहनत और काम करने से आते हैं, बल्कि एक ध्यानमुद्रा में बैठे रहने से धन बनाया जाता है. अरे मूर्ख, एक जगह बैठने से क्या पत्ता हिला है भला? पर नहीं, हर चीज के आगे विज्ञान जोड़ने से ये पाखंडी अपनी सिद्धि साबित करते हैं.

आज अगर यूट्यूब पर वास्तु पोडकास्ट सर्च की जाए तो सब से पहला नाम पंकित गोयल का ही आता है. वह इसलिए क्योंकि उस ने प्रचार का तरीका ढूंढ़ लिया है. वह इन्फ्लुएंसर्स मार्केट में घुस चुका है. बिना सिरपैर बातें करने वाले तमाम बकैत इन्फ्लुएंसर्स के पास जा कर वह अपना प्रचार कर रहा है. इन्हें देखने वाले व्यूअर्स यहां से कचरा बटोर रहे हैं और ऊलजलूल बातें यहांवहां करते हैं. यही लोग हैं जो चंद्रयान को भी वास्तु से जोड़ते हैं, इस के पीछे का विज्ञान बताते हैं, लेकिन गटर में उतरने वाले लोगों पर खामोश हो जाते हैं कि इस में कौन सा वास्तु काम कर रहा है. हैरानी नहीं होगी कि ये ओलिंपिक में मिले इक्कादुक्का मैडल का भी वास्तुशास्त्र बताते दिख जाएं. आज यही कुतर्की इन्फ्लुएंसर्स नए जमाने के पंडेपुजारी हैं, यही बाबासंत हैं, यही काथावाचक हैं जो घटों बांच रहे हैं और यही समाज को खोखला भी कर रहे हैं.

सैक्सी एंड बोल्ड इमेज के साथ टाइपकास्ट की शिकार हुईं तृप्ति डिमरी

बौलीवुड में टाइप कास्टिंग नई बात नहीं है. यह एक ऐसा ट्रैप है जिस में कोई ऐक्टर या ऐक्ट्रैस फंस जाए तो उस से निकलना मुश्किल हो जाता है. हाल ही में तृप्ति डिमरी का नाम भी इसी लिस्ट में जुड़ता दिखाई दे रहा है. उन्होंने अपनी शुरुआती फिल्मों में जो इंटैंस और वर्सेटाइल परफौर्मेंस दी थी, वह दर्शकों के दिलों में बस गई थी. खासतौर पर, ‘बुलबुल’, ‘लैला मजनू’ और ‘कला’ जैसी फिल्मों में उन के किरदार ने दर्शकों और क्रिटिक्स का दिल जीत लिया था, लेकिन ‘एनिमल’ और ‘बैड न्यूज’ जैसी फिल्मों में उन के द्वारा दिए गए बोल्ड एंड सैक्सी सीन्स ने उन्हें एक नई छवि में ढाल दिया है, जिसे अब वह छोड़ नहीं पा रही हैं.

हालांकि ऐक्टिंग के मामले में इन दोनों फिल्मों में क्रिटिक्स से उन्हें तारीफ मिली मगर औडियंस ने उन के उस हिस्से को चर्चा का केंद्र बनाया जिस में वे इंटिमेट सीन करते दिखाई दे रही थीं. इस से पहले वाली फिल्मों में उन के काम को वह चर्चा नहीं मिली जितनी इन 2 फिल्मों ने उन्हें दी. इन दोनों ही फिल्मों का कंटैंट बोल्ड था, नया था. लेकिन कहते हैं न, आप किस तरह की चर्चाओं में ज्यादा बने रहते हैं उसी से आप की इमेज निर्धारित होती है, इस समय तृप्ति के साथ यही हो रहा है.

सैक्सी इमेज तक

तृप्ति डिमरी ने 2020 में रिलीज हुई फिल्म ‘बुलबुल’ से फिल्मों में एंट्री की. कम लोगों ने यह फिल्म देखी मगर जिन्होंने देखी, उन के काम की प्रशंसा की और फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें सीरियस व वर्सेटाइल ऐक्ट्रैस के रूप में थोड़ीबहुत पहचान मिली. ‘बुलबुल’ में उन्होंने मासूमियत से ले कर दमदार औरत तक का जो ट्रांसफौर्मेशन दिखाया, वह काबिलेतारीफ था. इस के बाद आई ‘कला’ फिल्म ने उन की पोजीशन को और मजबूत किया.

फिर आई फिल्म ‘एनिमल’. इस फिल्म में उन के किरदार ने छोटे से रोल में ही अपनी छाप छोड़ी. लेकिन अफसोस कि उन की इमेज एक सैक्सी और बोल्ड ऐक्ट्रैस के रूप में हुई. फिल्म में उन के और रणबीर कपूर के इंटिमेट सीन थे. एक सीन में वे सैमी न्यूड दिखाई देती हैं. यह सीन कहानी का हिस्सा था और तृप्ति ने इसे बहुत ही सरलता से निभाया. लेकिन दर्शकों ने उन की इस इमेज को पकड़ लिया.

सैक्सी इमेज का फायदा और नुकसान

तृप्ति डिमरी ने ‘एनिमल’ में जो इंटिमेट सीन किया, उस के बाद उन का नाम हर जगह चर्चा में आ गया. सोशल मीडिया पर उन के फौलोअर्स की संख्या रातोंरात बढ़ गई. लोग उन की बोल्डनैस की तारीफें करने लगे, लेकिन इस के साथ ही, वे एक टाइपकास्ंिटग की शिकार भी हो गईं.

जैसे ही वे सोशल मीडिया पर ‘भाभी 2’ और नैशनल क्रश के रूप में जानी गईं, उन्होंने अपनी फीस कई गुना बढ़ा दी. अगली फिल्म ‘बैड न्यूज’ में भी तृप्ति का बोल्ड अवतार दिखा, जिस ने इस टाइपकास्ट को और भी मजबूत कर दिया. अब तृप्ति को जिस तरह से प्रोजैक्ट किया जा रहा है उस से लगता है कि वे धीरेधीरे एक ही तरह के रोल्स में फंसती जा रही हैं. सोशल मीडिया पर भी उन की ऐक्ंिटग की कोई चर्चा नहीं है बल्कि उन के लुक्स और इंटिमेट सीन की चर्चा है. यही वजह है कि तृप्ति की अधिकतर इमेज जो यहांवहां फ्लो होती है वह बोल्ड ही होती है, यहां तक कि ब्रैंड एंडोर्समैंट वाले भी उन्हें हौट ऐक्ट्रैस के रूप में ही इंट्रोड्यूस करते हैं.

खतरे में कैरियर

बौलीवुड में टाइपकास्टिंग एक गंभीर मुद्दा है, जो न केवल कलाकारों के कैरियर को प्रभावित करता है बल्कि उन की पहचान को भी सीमित कर देता है. टाइपकास्टिंग का अर्थ है किसी अभिनेता या अभिनेत्री को एक विशेष प्रकार की भूमिका में बारबार कास्ट किया जाना, जिस से वह उस छवि से बाहर नहीं निकल पाता. यह समस्या खासकर तब और भी सीरियस हो जाती है जब बात ऐक्ट्रैसेस की हो.

उदाहरण के लिए, मल्लिका शेरावत ऐसी अभिनेत्री हैं जो अपनी एरोटिक इमेज के कारण रातोंरात मशहूर हो गईं. फिल्म ‘मर्डर’ (2004) में उन के बोल्ड अवतार ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया. लेकिन इस के बाद उन की पहचान उस एक ही प्रकार की भूमिकाओं में सीमित हो गई. औडियंस उन्हें उसी किरदार में देखने की चाह रखने लगे. मल्लिका ने अपनी एक इमेज बनाई जो एक सेट औडियंस को आकर्षित करती थी लेकिन इस के कारण उन का कैरियर आगे नहीं बढ़ सका. वे उस टाइपकास्ट इमेज से बाहर नहीं निकल पाईं और उन की सफलता सीमित हो गई.

उर्वशी रौतेला का भी उदाहरण लिया जा सकता है. वे भी ग्लैमरस और बोल्ड भूमिकाओं के लिए जानी जाती हैं. उन की इस छवि ने उन्हें फिल्मों में एक विशेष प्रकार की भूमिकाओं तक सीमित कर दिया, जिस से उन का कैरियरग्रोथ बाधित हो गया है.

यह समस्या सिर्फ ऐक्ट्रैस तक सीमित नहीं है, बल्कि कई ऐक्टर भी टाइपकास्ंिटग का शिकार होते हैं. उदाहरण के लिए, राजपाल यादव को अकसर कौमेडी भूमिकाओं में देखा गया है, जो उन के अभिनय के अन्य पहलुओं को छिपा देता है. गोविंदा भी एक समय पर सिर्फ कौमेडी और डांसिंग की भूमिकाओं में सीमित हो गए थे, जिस से उन के कैरियर में भी स्थिरता आ गई थी. रेखा को एक समय पर सिर्फ ग्लैमरस रोल्स में कास्ट किया जाता था लेकिन उन्होंने अपनी इमेज बदलने के लिए कई फिल्मों में चुनौतीपूर्ण किरदार निभाए.

हालांकि महिलाओं के लिए यह समस्या और भी चुनौतीपूर्ण होती है क्योंकि उन की इमेज का सीधा प्रभाव उन के कैरियर व समाज में उन की पहचान पर पड़ता है. तृप्ति डिमरी, जो ‘बुलबुल’ और ‘कला’ जैसी फिल्मों में अपनी अभिनय क्षमता का प्रदर्शन कर चुकी हैं, ने एक इंटरव्यू में इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे टाइपकास्ंिटग से बचने के लिए उन्हें सोचसम?ा कर भूमिकाएं चुननी पड़ती हैं. उन्होंने बताया कि बौलीवुड में एक अभिनेत्री के लिए विविधतापूर्ण भूमिकाओं को निभाना कितना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि एक बार यदि कोई विशेष इमेज बन जाती है तो उस से बाहर निकलना बेहद कठिन होता है.

कुल मिला कर, टाइपकास्टिंग ऐसा फंदा है जो कलाकारों को एक ही प्रकार की भूमिकाओं में बांध देता है, जिस से उन की क्रिएटिविटी और कैरियर की संभावनाएं सीमित हो जाती हैं. मल्लिका शेरावत और उर्वशी रौतेला के उदाहरण हमें यह सिखाते हैं कि एक ऐक्ट्रैस के लिए अपनी पहचान को विविधतापूर्ण बनाना कितना जरूरी है ताकि वे सिर्फ एक इमेज तक सीमित न रह जाएं और अपने कैरियर में आगे बढ़ सकें.

इस टाइपकास्टिंग का तात्कालिक फायदा तृप्ति को जरूर मिला है. वे चर्चा में हैं, लोग उन के बारे में बात कर रहे हैं और उन की फैनफौलोइंग बढ़ रही है. लेकिन लंबे समय में यह उन के कैरियर के लिए नुकसानदायक हो सकता है.

बौलीवुड में टाइपकास्टिंग से बाहर निकलना आसान नहीं होता, लेकिन तृप्ति ने जिस तरह से शुरुआती फिल्मों में काम किया है उस से लगता है कि उन में दम है. लेकिन जरूरी यह है कि दर्शकों में बनी इस इमेज को वे लगातार चैलेंज करती रहें. ऐसा कुछ प्रियंका चोपड़ा, दीपिका पादुकोण, विद्या बालन और आलिया भट्ट करती दिखाई दी हैं. यही कारण है कि वे आज सफल अभिनेत्रियां हैं.

भविष्य की उम्मीदें

तृप्ति डिमरी के पास अभी भी वक्त है कि वे इस टाइपकास्टिंग के ट्रैप से बाहर निकलें. उन्हें चुनौतियों से भरे रोल्स को चुनना होगा जो उन की ऐक्ंिटग स्किल्स को फिर से सामने लाएं. आने वाली फिल्मों में अगर उन्हें वर्सेटाइल किरदार मिलते हैं तो वे इस इमेज से बाहर निकल सकती हैं.

तृप्ति डिमरी का कैरियर इस वक्त एक क्रौसरोड पर खड़ा है. एक तरफ उन की बोल्ड इमेज है जो उन्हें तात्कालिक सफलता दिला रही है तो दूसरी तरफ उन का ऐक्टिंग टैलेंट है जो उन्हें लंबे समय तक इंडस्ट्री में टिकने में मदद करेगा. अगर वे अपनी इमेज को ले कर सावधान नहीं रहीं तो वे टाइपकास्टिंग के इस ट्रैप में फंस सकती हैं, फिर जिस से निकलना मुश्किल होगा. लेकिन अगर वे अपने टैलेंट पर भरोसा रखती हैं और सही प्रोजैक्ट्स का चुनाव करती हैं तो वे बौलीवुड में लंबी पारी खेल सकती हैं.

पुरातन सोच के शिकंजे में महिलाएं

युग चाहे कोई भी हो महिलाएं स्वयं को द्वापर युग में ही खड़ा पाती हैं, जबकि द्वापर युग से ले कर वर्तमान समय तक का एक लंबा फासला मानव सभ्यता ने तय किया है. इस लंबे समय में मानव सभ्यता ने काफी प्रगति की है, अनेक वैज्ञानिक तकनीकों का इजाद किया है, फिर भी महिलाओं को देखने का, उन्हें आंकने का समाज का नजरिया पुरातन सोच और मानसिकता के दायरे में ही सीमित है. समाज महिलाओं को अपनी कुंठित विचारधारा की पकड़ से मुक्त नहीं होने देना चाहता.

उन की आजादी पर अंकुश लगाने की उस की दलील इसी पुरातन सोच के इर्दगिर्द मंडराती रही है, जबकि आधुनिक समाज में महिलाएं स्वतंत्र हैं. उन्हें स्वतंत्रता के वे सारे अधिकार प्राप्त हैं जो हर इंसान को जन्म लेने के साथ प्राप्त होते हैं. विवाह संस्था को बचाने के नाम पर उन की प्रकृतिप्रदत आजादी को कैसे छीना जा सकता है? बच्चे पैदा करने के लिए उन्हें विवाह के बंधन में बांधा जाना अनिवार्य कैसे बताया जा सकता है?

महाभारतरामायण की कथाओं को सच मान कर उसे अपना आदर्श बताने वाला यह समाज क्या यह बता सकता है कि जहां मात्र देवताओं का आवाहन कर पुत्रों को जन्म देने की परंपरा रही है, कुंती अपनी कुंआरी अवस्था में सूर्य देव का आवाहन कर करण को जन्म दे सकती है, जब धृतराष्ट्र की बेवफाई से आहत हो कर गांधारी, वेदव्यास से पुत्रवती होने का आशीर्वाद प्राप्त कर 2 वर्ष तक गर्भधारण के पश्चात भी संतान नहीं प्राप्त करने पर क्रोधवश अपने गर्भ पर जोर से मुक्के का प्रहार किया जिस से उस का गर्भ गिर गया.

तब वेदव्यास ने गांधारी के गर्भ से निकले मांस पिंड पर अभिमंत्रित जल छिड़क कर 99 पुत्र और एक कन्या की उत्पत्ति की तब विवाह संस्था के नियम क्यों खंडित नहीं हुए थे बल्कि इन्हें आदर्श के रूप में देखा जाता रहा है. इन कथाओं के तथाकथित इस तरह के तमाम चरित्रों को बड़े ही आदर की दृष्टि से देखा जाता रहा है, इन्हें पूज्य माना जाता रहा है.

दोहरा मानदंड

देखा जाए तो हमारा यह समाज महिलाओं के लिए हमेशा से ही दोहरे मानदंड को अपनाता रहा है, नैतिकता की वेदी पर महिलाओं की बलि चढ़ाता रहा है. कभी संस्कृति की दुहाई दे कर? तो कभी तथाकथित शादी संस्था को बचाने के नाम पर महिलाओं को नियंत्रित करने की कोशिश करता रहा है.

हम सांस तो आधुनिक, वैज्ञानिक युग में ले रहे हैं लेकिन जी रहे हैं पुरातन सोच के तहत. आज का आधुनिक समाज जब इन कथाओं पर यकीन रख सकता है, उन्हें मानसम्मान दे सकता है? तो सरोगेसी जैसी वैज्ञानिक तकनीक पर उंगली कैसे खड़ी कर सकता है?

इन पुरातनी कहानियों में सरकंडे से भी बच्चे की उत्पत्ति की कहानी दर्ज है जोकि द्रोणाचार्य के जन्म से जुड़ी हुई है. महर्षि भारद्वाज मुनि गंगा में स्नान करती ध्रवाची को देख कर आसक्त हो गए जिस के कारण उन का वीर्य स्खलन हो गया जिसे उन्होंने द्रोण (यज्ञ कलश) में रख दिया जिस से बालक द्रोण पैदा हुए.

अधिकार से वंचित क्यों

अहिल्या से ले कर द्रौपदी, सीता और उर्मिला तक की कहानी जिस में महिलाओं को सिर्फ निष्ठा, कर्तव्यपरायणता और त्याग के ही पाठ पढ़ाए गए हैं. माधवी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. माधवी जिसे सिर्फ घोड़े के लिए बेचा गया बाद में उस का गृहस्थ जीवन के लिए कोई मोह ही नहीं बचा तो आधुनिक युग में सांस ले रही महिलाएं, लड़कियां शादी संस्था को बचाने के लिए उत्तरदायित्वों में क्यों बांधी जाएं?

क्यों आधुनिक काल की महिलाएं माधवी की तरह अपनी कोख का उपयोग सिर्फ दिव्य पुरुषों के जन्म के लिए करें? अपनी मनमरजी से वे अपनी कोख से बच्चे पैदा करने या न करने के नैसर्गिक अधिकार से वंचित क्यों की जाएं? क्या समाज और कानून की ऐसी सोच उन्हें पुरातन युग की ओर नहीं धकेल रही? क्यों महिलाओं की कोख सिर्फ पुरुषों की बनाई हुई दुनिया के हिसाब से बच्चे पैदा करने के लिए बाध्य हो?

संविधानप्रदत मौलिक अधिकार शादी करने या कुंआरी रहने के अधिकार को कैसे छीना जा सकता है जबकि द्वापर युग में कुंती कुंवारी मां बन सकती थी, सरकंडे से बच्चा पैदा हो सकता था, जल कुंड से बच्चे पैदा हो सकते थे तो सरोगेसी से क्यों नहीं? विवाह संस्था को बचाए रखने के नाम पर क्या यह महिलाओं के मौलिक अधिकार का हनन नहीं है?

सुप्रीम कोर्ट द्वारा अविवाहित महिलाओं को सरोगेसी के जरीए मां बनने की अनुमति देने की मांग वाली याचिका पर यह दलील कि मां बनने के और भी कई रास्ते हैं, वह शादी कर के ही बच्चा पैदा कर सकती है. बच्चे को गोद ले सकती है.

मौलिक अधिकारों की रक्षा

उस की यह दलील क्या महिलाओं की स्वतंत्रता मौलिक अधिकारों एवं जीवन जीने के अधिकारों पर अंकुश नहीं है? कोर्ट के लिए देश की विवाह संस्था की रक्षा किया जाना जरूरी है या किसी महिला के मौलिक स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा ज्यादा जरूरी है? पश्चिमी देशों की तर्ज पर नहीं चल सकने की हिदायत देना, विवाह से पहले बच्चा नहीं होना चाहिए ऐसा दिशा निर्देश कोर्ट के द्वारा दिया जाना, क्या महिलाओं से उन के जीवन जीने के अधिकारों को छीने जाने की कोशिश नहीं है? क्या यह निर्देश उन्हें पुरातन युग की ओर नहीं धकेल रहा?

इस से तो यही सिद्ध होता है न कि महिलाएं सांस तो स्वतंत्र भारत में ले रही हैं लेकिन जीवन जीने के लिए उन के इर्दगिर्द पुरातन सोच की दीवारें खड़ी की जा रही हैं.

जीने की आजादी

विवाह संस्था आखिर समाज के लिए इतना जरूरी क्यों है? क्या विवाह के नाम पर लिए गए फेरे, मंत्र उच्चारण अग्निकुंड, ग्रह नक्षत्र के मेल, मंगल दोष निराकरण, जन्मपत्रिका मिलान यह सबकुछ इस बात की गारंटी देते हैं कि विवाहित जोड़े के बीच कभी तलाक नहीं होगा?

जबकि आजाद भारत में संविधान के मूल अधिकारों में विशिष्ठ स्वातंर्त्य के अधिकार प्रत्येक नागरिक को प्राप्त हैं, प्रदत्त अधिकारों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता भी शामिल है. मूल अधिकारों में वर्णित अनुच्छेद ‘21’ किसी भी व्यक्ति को चाहे वह महिला हो या पुरुष सम्मान से और निजता से जीवन जीने की आजादी देता है.

तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा अविवाहित महिलाओं को सरोगेसी के जरीए मां बनने की अनुमति देने पर रोक क्या न्याय संगत है? इस संदर्भ में उस की दलील क्या आधुनिक समाज की महिलाओं को द्वापर युग की ओर, पुरानी सोच की ओर नहीं धकेल रहा है? इस पर विचार करने की जरूरत है.

हीरे की अंगूठी : क्या नैना से शादी कर पाया राहुल

लेखक- सुधा शुक्ला

नैना थी ही इतनी खूबसूरत. चंपई रंग, बड़ीबड़ी आंखें, पतली नाक, छोटेछोटे होंठ. वह हंसती तो लगता जैसे चांदी की छोटीछोटी घंटियां रुनझुन करती बज उठी हों. उस के अंगअंग से उजाले से फूटते थे.

राहुल और नैना दोनों शहर के बीच बहते नाले के किनारे बसी एक झुग्गी बस्ती में रहते थे. नीचे गंदा नाला बहता, ऊपर घने पड़ों की ओट में बने झोंपड़ीनुमा कच्चेपक्के घरों में जिंदगी पलती. बड़े शहर की चकाचौंध में पैबंद सी दिखती इस बस्ती में राहुल अपने मातापिता और छोटी बहन के साथ रहता था और यहीं रहती थी नैना भी.

राहुल के पिता रिकशा चलाते, मां घरघर जूठन धोती. नैना की मां भी यही काम करती और उस के बाबा पकौड़ी की फेरी लगाते.

नैना बड़े चाव से पकौड़ी बनाती, खट्टीमीठी चटनी तैयार करती, दही जमाती, प्याज, अदरक, धनिया महीनमहीन कतरती और सबकुछ पीतल की चमकती बड़ी सी परात में सजा कर बाबा को देती.

बाबा परात सिर पर उठाए गलीगली चक्कर काटते. दही, चटनी, प्याज डाल कर दी गई पकौड़ी हाथोंहाथ बिक जातीं.

नैना के बाबा को अच्छे रुपए मिल जाते, पर हाथ आए रुपए कभी पूरे घर तक न पहुंचते. ज्यादातर रुपए दारू में खर्च हो जाते. फिर नैना के बाबा कभी नाली में लोटते मिलते तो कभी कहीं गिरे पड़े मिलते.

ऐसे गलीज माहौल में पलीबढ़ी नैना की खूबसूरती पर हालात की कहीं कोई छाया तक नहीं झलकती थी. राहुल सबकुछ भूल कर नैना को एकटक देखता रह जाता था.

नैना के दीवानों की कमी न थी. कितने लोग उस के आगेपीछे मंडराया करते, पर उन में राहुल जैसा कोई दूसरा था ही नहीं.

राहुल भी कम सुंदर न था. भला स्वभाव तो था ही उस का. गरीबी में पलबढ़ कर, कमियों की खाद पा कर भी उस की देह लंबी, ताकतवर थी. एक से एक सुंदर लड़कियां उस के इर्दगिर्द चक्कर काटतीं, पर कोई किसी भी तरह उसे रिझा न पाती, क्योंकि उस के मन में तो नैना बसी थी.

नैना के मन में बसी थी हीरे की अंगूठी. उसे बचपन से हीरे की अंगूठी पहनने का चाव था. सोतेजागते उस के आगे हीरे की अंगूठी नाचा करती. अपनी इसी इच्छा के चलते एक दिन नैना ने सारे बंधन झुठला दिए. प्रीति की रीति भुला दी.

बस्ती के एक छोर पर पत्थर की टूटी बैंच पर नैना बैठी थी. काले रंग की छींट की फ्रौक पहने, जिस पर सफेद गुलाबी रंग के गुलाब बने थे. फ्रौक की कहीं सिलाई खुली, कहीं रंग उड़ा, पर वह पैर पर पैर चढ़ाए किसी राजकुमारी की सी शान से बालों में जंगली पीला फूल लगाए बैठी थी. सब उसी को देख रहे थे.

इतराते हुए बड़ी अदा से नैना बोली, ‘‘जो मेरे लिए हीरे की अंगूठी लाएगा, मैं उसी से शादी करूंगी.’’

नैना की ऐसी विचित्र शर्त सुन कर सब की उम्मीदों पर जैसे पानी फिर गया. राहुल को तो अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ.

धन्नो काकी यह तमाशा देख कर ठहरीं और हाथ नचाते हुए बोलीं, ‘‘घर में खाने को भूंजी भांग नहीं, उतरन के कपड़े, मांगे का सम्मान, मां घरघर जूठे बरतन धोए, बाप फेरी लगाए और दारू पीए और ये पहनेंगी हीरे की अंगूठी,’’ ऐसा कह कर वे आगे बढ़ गईं.

रंग में भंग हुआ. शायद नैना का प्रण टूट ही जाता, पर तभी राहुल के मुंह से निकला, ‘‘मैं पहनाऊंगा तुम्हें हीरे की अंगूठी,’’ और सब हैरानी से उसे देखते रह गए.

राहुल, जिस के घर में खाने के भी लाले थे, बीमार पिता की दवा के लिए पूरे पैसे नहीं थे, छत गिर रही थी, एक छोटी बहन ब्याहने को बैठी थी, उस राहुल ने नैना को हीरे की अंगूठी देने का वचन दे दिया. वह भी उसे जो उस का इंतजार करेगी भी या नहीं, यह वह नहीं जानता.

सचमुच राहुल के लिए हीरे की अंगूठी खरीदना और आकाश के तारे तोड़ना एक समान था. अभी तो वह पढ़ रहा है. बड़ा होनहार लड़का है वह. टीचर उसे बहुत प्यार करते हैं. उस की मदद के लिए तैयार रहते हैं.

राहुल पढ़लिख कर कुछ बनना चाहता है. राहुल की मां भी चाहती है कि वह पढ़लिख कर अपनी जिंदगी संवारे, इसीलिए वह हाड़तोड़ मेहनत कर राहुल को पढ़ा रही है.

राहुल की मां 35-36 साल की उम्र में ही 60 साल की दिखने लगी है. उसे लगता है कि उस का बेटा जग से निराला है. एक दिन वह पढ़लिख कर बड़ा आदमी बनेगा और उस की सारी गरीबी दूर हो जाएगी, इसीलिए जब उसे पता चला कि राहुल ने नैना को हीरे की अंगूठी पहनाने का वचन दिया है तो उस के मन को गहरी ठेस लगी. थकी आंखों की चमक फीकी हो कर बुझ सी गई.

राहुल में ही तो उस की मां के प्राण बसते थे. अब तक मन में एक इसी आस के भरोसे कितनी तकलीफ सहती आई है कि राहुल बड़ा होगा तो उस के सारे कष्ट दूर देगा. वह भी जीएगी, हंसेगी, सिर उठा कर चलेगी. आज उस का यह सपना पानी के बुलबुले सा फूट गया.

अब क्या करे? राहुल तो अब ऐसी तलवार की धार पर, कांटों भरी राह पर चल पड़ा है जिस के आगे अंधेरे ही अंधेरे हैं.

मां ने राहुल को समझाने की भरसक कोशिश की और कहा, ‘‘अभी तू इन सब बातों में मत पड़ बेटा. बहुत छोटा है तू. पहले पढ़लिख कर कुछ बन जा, फिर यह सब करना.’’

‘‘मुझे रुपए चाहिए मां.’’

‘‘रुपए पेड़ों पर नहीं फलते. हम लोग तो पहले से ही सिर से पैर तक कर्ज में डूबे हैं.’’

‘‘मां, तुम नहीं समझोगी इन सब बातों को.’’

‘‘मुझे समझना भी नहीं है. मेरे पास बहुतेरे काम हैं. तू अभी…’’ मां की बात पूरी होने से पहले ही राहुल बिफर उठता. अब वह अपनी मां से, अपनों से दूर होता जा रहा था. नैना और हीरे की अंगूठी अब राहुल और उस के अपनों के बीच एक ऐसी दीवार के रूप में खड़ी हो गई थी जो हर पल ऊंची होती जा रही थी. उसे तो एक ही धुन सवार थी कि जल्दी से जल्दी ढेर सारा पैसा कमाना है ताकि हीरे की अंगूठी खरीद सके.

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राहुल जबतब किसी सुनार की दुकान के बाहर खड़ा हो कर अंदर देखा करता था. एक दिन उसे अंदर झांकते देख दरबान ने डांट कर भगा दिया. नैना को पाने की ख्वाहिश में वह अपनी हैसियत वगैरह सब भूल गया था.

राहुल को यह भी नहीं समझ आया कि वह नैना को प्यार करता है और नैना हीरे की अंगूठी को प्यार करती है. उस ने तो बस अपनी कामना का उत्सव मनाना चाहा, समर्पण के बजाय अपनी इच्छा को पूरा करने का जरीया बनाना चाहा.

राहुल अपनी पढ़ाई छोड़ इस शहर से बहुत दूर जा रहा था. जाने से पहले नैना से विदा लेने आया वह. भुट्टा खाती, एक छोटी सी मोटी दीवार पर बैठी पैर हिलाती नैना को वह अपलक देखता रहा.

नैना से विदा लेते हुए राहुल की आंखें मानो कह रही थीं, ‘काश, तुम जान सकती, पढ़ सकतीं मेरा मन और देख सकतीं मेरे दिल के भीतर जिस में बस तुम ही तुम हो और तुम्हारे सिवा कोई नहीं और न होगा कभी.

‘मैं ने वादा किया है तुम से, मैं लौट कर आऊंगा और सारे वचन निभाऊंगा. लाऊंगा अपने साथ अंगूठी जो होगी हीरे से जड़ी होगी, जैसी तुम्हारी उजली हंसी है. तुम मेरा इंतजार करना नैना. कहीं और दिल न लगा लेना. मैं जल्दी आ जाऊंगा. तुम मेरा इंतजार करना.’

राहुल अपने परिवार को छोड़ सब के सपने ताक पर रख हीरे की अंगूठी खरीदने के जुगाड़ में चल पड़ा. मां पुकारती रह गई. घर की जिम्मेदारियां गुहार लगाती रहीं. सुनहरा भविष्य पलकें बिछाए बैठा रह गया और राहुल सब को छोड़ कर दूसरी ओर मुड़ गया.

शहर आ कर राहुल ने 18-18 घंटे काम किया. ईंटगारा ढोना, अखबार बांटना, पुताई करना से ले कर न जाने कैसेकैसे काम किए. वहीं उसे प्रकाश मिला था, जो उसे गन्ना कटाई के लिए गांव ले गया. हाथों में छाले पड़ गए. गोरा रंग जल कर काला पड़ गया, पर रुपए हाथ में आते गए. हिम्मत बढ़ती गई.

अंधेरी स्याह रातों में कहीं कोने में गुड़ीमुड़ी सा पड़ा राहुल सोते समय भी सुबह का इंतजार करता रहता. मीलों दूर रहती नैना को देखने के लिए वह छटपटाता रहता.

समय का पहिया घूमता रहा. दिन, हफ्ते, महीने बीतते गए. हीरे की अंगूठी की शर्त लोग भूल गए, पर राहुल नहीं भूला. बड़ी मुश्किल से, कड़ी मेहनत से आखिरकार उस ने पैसे जोड़ कर अंगूठी खरीद ही ली.

इस बीच कितनी बार ये पैसे निकालने की नौबत आई, मां बीमार पड़ी, बहन की शादी तय होतेहोते पैसे की कमी के चलते रुक गई, वह खुद भी बीमार पड़ा, घर के कोने की छत टपकने लगी, पर उस ने इन पैसों पर आंच न आने दी और आज बिना एक पल गंवाए वह हीरे की अंगूठी ले कर जब नैना के घर की ओर चला तो पैर जैसे जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.

राहुल शहर से लौट कर सब से पहले अपनी मां के गले कुछ ऐसे लिपटा मानो कह रहा हो, ‘मां, तेरा राहुल जीत गया. अब नैना को तुम्हारी बहू बनाने से कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि तेरा राहुल नैना की शर्त पूरी कर के ही लौटा है.’

मां ने उस का ध्यान तोड़ते हुए कहा, ‘‘तुम ठीक हो न बेटा? कहां चले गए थे तुम इतने दिनों तक? क्या तुम्हें अपनी बीमार मातापिता और बहन की याद भी नहीं आई?’’ कहते हुए वह सिसकने लगी.

‘‘मां, अब रोनाधोना बंद करो. अब मैं आ गया हूं न. अपनी नैना को तेरी बहू बना कर लाने का समय आ गया. अब तुम्हें कोई काम नहीं करना पड़ेगा.’’

‘‘हां बेटा, अब काम ही क्या है… तेरे मातापिता अब बूढ़े हो चले हैं. जवान बहन घर में बैठी है. तुम जिस नैना के लिए हीरे की अंगूठी लाए हो न, उसे पहले ही कोई और हीरे की अंगूठी पहना कर ले जा चुका है.’’

‘‘झूठ न बोलो मां. हां, मेरी नैना को कोई नहीं ले जा सकता.’’

‘‘ले जा चुका है बेटा. तेरी नैना को हीरे की अंगूठी से प्यार था, तुझ से नहीं, जो उसे कोई और पहना कर ले गया. तुझे रूपवती लड़की चाहिए थी, गुणवती नहीं और उसे हीरे की अंगूठी चाहिए थी, हीरे जैसा लड़का नहीं.

‘‘उसे हीरे की अंगूठी तो मिल गई, पर हीरे की अंगूठी देने वाला पक्का शराबी है. तुम हो कि ऐसी लड़की के लिए घर, मातापिता और बहन सब छोड़ कर चल दिए.’’

‘‘बस मां, बस करो अब,’’ राहुल रोते हुए कमरे से बाहर निकल गया.

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राहुल को लगा कि वह भीड़ भरी राह पर सरपट दौड़ा चला जा रहा है. गाडि़यां सर्र से दाएंबाएं, आगेपीछे से गुजर रही हैं. उसे न कुछ दिखाई दे रहा है, न सुनाई दे रहा है. एकाएक किसी का धक्का लगने से वह गिरा. आधा फुटपाथ पर और आधा सड़क पर. हां, प्यार के पागलपन में कितनाकुछ गंवा दिया, यह समझ आते ही पछतावे से भरा राहुल उठ खड़ा हुआ.

सपना टूटते ही राहुल अपनेआप को सहजता की राह पर चला जा रहा था, अपनी बहन के लिए हीरे जैसे लड़के की तलाश में.

कई बार लगता है कि मेरे पति का किसी और के साथ संबंध है…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 31 वर्षीय वर्किंग वूमन हूं. पति भी वर्किंग हैं. हमारी शिफ्ट ड्यूटी की वजह से हमारे बीच ठीक से बातचीत नहीं हो पाती है. यह हमारे झगड़े का कारण बन गया है. अब तो हालत यह हो गई है कि लीव वाले दिन भी हम बात नहीं करते. हमारे बीच प्यार खत्म सा हो गया है. कई बार मुझे यह भी लगता है कि मेरे पति का किसी और के साथ अफेयर है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

पतिपत्नी के रिश्ते में कभी प्यार तो कभी तकरार होना स्वाभाविक है. आप की लाइफ इतनी बिजी हो गई है कि आप अपने परिवार के साथ ज्यादा टाइम नहीं बिना पाते. पतिपत्नी के रिश्ते को मजबूत करने के लिए एकदूसरे को समय दें. एकदूसरे की रिस्पैक्ट करना बहुत जरूरी है. जो भी बात आप को परेशान कर रही हो उसे अपने पार्टनर से शेयर करें और फिर साथ मिल कर उस का समाधान निकालें. फिर भी समाधान न निकल पाए तो काउंसलर या कपल थेरैपिस्ट की मदद लें.

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कहते हैं इंसान के विचार समुद्र की लहरों की तरह हरदम मचलने को तैयार रहते हैं, वहीं उस की भावनाओं की कोई थाह नहीं होती और यही भावनाएं हमें अपनों से जोड़े रखती हैं. भावनात्मक रिश्ता सीधा दिल से जा कर जुड़ता है. जरूरी नहीं कि भावनात्मक रिश्ता सिर्फ अपनों से ही जोड़ा जाए बल्कि यह कभी भी किसी के भी साथ जुड़ सकता है.

कई भावनात्मक रिश्ते ऐसे होते हैं, जिन का कोई नाम नहीं होता. इन में एकदूसरे के प्रति प्रेम, अपनेपन का भाव होता तो है लेकिन जरूरी नहीं कि इन के बीच शारीरिक आकर्षण भी हो. इसे हम दिल का रिश्ता कहते हैं. इस में उम्र का कोई बंधन नहीं होता है.

पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के 24 वर्षीय बेटे बिलावल भुट्टो और पाकिस्तान की 35 वर्षीय विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार के बीच कुछ ऐसा ही रिश्ता देखने को मिला, जिस में उम्र का कोई बंधन नहीं दिखा.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

दर्द का एहसास : क्या हुआ मृणाल की बेवफाई का अंजाम

‘‘हैलो,एम आई टौकिंग टु मिस्टर मृणाल?’’ एक मीठी सी आवाज ने मृणाल के कानों में जैसे रस घोल दिया.

‘‘यस स्पीकिंग,’’ मृणाल ने भी उतनी ही विनम्रता से जवाब दिया.

‘‘सर, दिस इज निशा फ्रौम होटल सन स्टार… वी फाउंड वालेट हैविंग सम मनी,

एटीएम कार्ड ऐंड अदर इंपौर्टैंट कार्ड्स विद

योर आईडैंटिटी इन अवर कौन्फ्रैंस हौल. यू

आर रिक्वैस्टेड टु कलैक्ट इट फ्रौम रिसैप्शन,

थैंक यू.’’

सुनते ही मृणाल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह कल अपनी कंपनी की तरफ से एक सेमिनार अटैंड करने इस होटल में गया था. आज सुबह से ही अपने पर्स को ढूंढ़ढूंढ़ कर परेशान हो चुका था. निशा की इस कौल ने उस के चेहरे पर सुकून भरी मुसकान ला दी.

‘‘थैंक यू सो मच निशाजी…’’ मृणाल ने कहा, मगर शायद निशा ने सुना नहीं, क्योंकि फोन कट चुका था. लंच टाइम में मृणाल होटल सन स्टार के सामने था. रिसैप्शन पर बैठी खूबसूरत लड़की को देखते ही उस के चेहरे पर एक बार फिर मुसकान आ गई.

‘‘ऐक्सक्यूज मी, माइसैल्फ मृणाल… आप शायद निशाजी हैं…’’ मृणाल ने कहा तो निशा ने आंखें उठा कर देखा.

‘‘ओ या…’’ कहते हुए निशा ने काउंटर के नीचे से मृणाल का पर्स निकाल कर उस का फोटो देखा. तसल्ली करने के बाद मुसकराते हुए उसे सौंप दिया.

‘‘थैंक्स अगेन निशाजी… इफ यू डोंटमाइंड, कैन वी हैव ए कप औफ कौफी प्लीज…’’ मृणाल निशा का यह एहसान उतारना चाह रहा था.

‘‘सौरी, इट्स ड्यूटी टाइम… कैच यू लेटर,’’ कहते हुए निशा ने जैसे मृणाल को भविष्य की संभावना का हिंट दे दिया.

‘‘ऐज यू विश. बाय द वे, क्या मुझे आप

का कौंटैक्ट नंबर मिलेगा? ताकि मैं आप को कौफी के लिए इन्वाइट कर सकूं?’’ मृणाल ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा तो निशा ने अपना विजिटिंग कार्ड उस की तरफ बढ़ा दिया. मृणाल ने थैंक्स कहते हुए निशा से हाथ मिलाया और कार्ड को पर्स में डालते हुए होटल से बाहर आ गया.

‘‘कोई मिल गया… मेरा दिल गया… क्या बताऊं यारो… मैं तो हिल गया…’’ गुनगुनाते हुए मृणाल ने घर में प्रवेश किया तो उषा को बड़ा आश्चर्य हुआ. रहा नहीं गया तो आखिर पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है, बड़ा रोमांटिक गीत गुनगुना रहे हैं? ऐसा कौन मिल गया?’’

‘‘लो, अब गुनगुनाना भी गुनाह हो गया?’’ मृणाल ने खीजते हुए कहा.

‘‘गुनगुनाना नहीं, बल्कि आप से तो आजकल कुछ भी पूछना गुनाह हो गया,’’ उषा ने भी झल्ला कर कहा.

‘‘जब तक घर से बाहर रहते हैं, चेहरा 1000 वाट के बल्ब सा चमकता रहता है, घर

में घुसते ही पता नहीं क्यों फ्यूज उड़ जाता है,’’ मन ही मन बड़बड़ाते हुए उषा चाय बनाने

चल दी.

चाय पी कर मृणाल ने निशा का कार्ड

जेब से निकाल कर उस का नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लिया. फिर उसे व्हाट्सऐप पर

एक मैसेज भेजा, ‘हाय दिस इज मृणाल…

हम सुबह मिले थे… आई होप कि आगे भी मिलते रहेंगे…’

रातभर इंतजार करने के बाद अगली सुबह रिप्लाई में गुड मौर्निंग के साथ निशा की एक स्माइली देख कर मृणाल खुश हो गया.

औफिस में फ्री होते ही मृणाल ने निशा को फोन लगाया. थोड़ी देर हलकीफुलकी औपचारिक बातें करने के बाद उस ने फोन रख दिया. मगर यह कहने से नहीं चूका कि फुरसत हो तो कौल कर लेना.

शाम होतेहोते निशा का फोन आ ही गया. मृणाल ने मुसकराते हुए कौल रिसीव की, ‘‘कहिए हुजूर कैसे मिजाज हैं जनाब के?’’ मृणाल की आवाज में रोमांस घुला था.

निशा ने भी बातों ही बातों में अपनी अदाओं के जलवे बिखेरे जिन में एक बार फिर मृणाल खो गया. लगभग 10 दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा. दोनों एकदूसरे से अब एक हद तक खुल चुके थे.

आज मृणाल ने हिम्मत कर के निशा के सामने एक बार फिर कौफी पीने का प्रस्ताव रखा जिसे निशा ने स्वीकार लिया. हालांकि मन ही मन वह खुद भी उस का सान्निध्य चाहने लगी थी. अब तो हर 3-4 दिन में कभी निशा मृणाल के औफिस में तो कभी मृणाल निशा के होटल में नजर आने लगा था.

2 महीने हो चले थे. निशा मृणाल की बोरिंग जिंदगी में एक ताजा हवा के झौंके की तरह

आई और देखते ही देखते अपनी खुशबू से उस के सारे वजूद को अपनी गिरफ्त में ले लिया. मृणाल हर वक्त महकामहका सा घूमने लगा. पहले तो सप्ताह या 10 दिन में वह अपनी शारीरिक जरूरतों के लिए उषा के नखरे भी उठाया करता था, मगर जब से निशा उस की जिंदगी में आई है उसे उषा से वितृष्णा सी होने लगी थी. वह खयालों में ही निशा के साथ अपनी जरूरतें पूरी करने लगा था. बस उस दिन का इंतजार कर रहा था जब ये खयाल हकीकत में ढलेंगे.

दिनभर पसीने से लथपथ, मुड़ेतुड़े कपड़ों और बिखरे बालों में दिखाई देती उषा उसे अपने मखमल से सपनों में टाट के पैबंद सी लगने लगी. उषा भी उस के उपेक्षापूर्ण रवैए से तमतमाई सी रहने लगी. कुल मिला कर घर में हर वक्त शीतयुद्ध से हालात रहने लगे. उषा और मृणाल एक बिस्तर पर सोते हुए भी अपने बीच मीलों का फासला महसूस करने लगे थे. मृणाल का तो घर में जैसे दम ही घुटने लगा था.

अब मृणाल और निशा को डेटिंग करते हुए लगभग 3 महीने हो चले थे. आजकल मृणाल कभीकभी उस के मैसेज बौक्स में रोमांटिक शायरीचुटकुले आदि भी भेजने लगा था. जवाब

में निशा भी कुछ इसी तरह के मैसेज भेज देती थी, जिन्हें पढ़ कर मृणाल अकेले में मुसकराता रहता. कहते हैं कि इश्क और मुश्क यानी प्यार और खुशबू छिपाए नहीं छिपते. उषा को भी मृणाल का यह बदला रूप देख कर उस पर कुछकुछ शक सा होने लगा था. एक दिन जब मृणाल बाथरूम में था, उषा ने उस का मोबाइल चैक किया तो निशा के मैसेज पढ़ कर दंग रह गई.

गुस्से में तमतमाई उषा ने फौरन उसे आड़े हाथों लेने की सोची, मगर फिर कुछ दिन और इंतजार करने और पुख्ता जानकारी जुटाने का खयाल कर के अपना इरादा बदल दिया और फोन वापस रख कर सामान्य बने रहने का दिखावा करने लगी जैसे कुछ हुआ ही नहीं.

एक दिन मृणाल के औफिस की सालाना गैटटुगैदर पार्टी में उस की सहकर्मी रजनी ने उषा से कहा, ‘‘क्या बात है उषा आजकल पति को ज्यादा ही छूट दे रखी है क्या? हर वक्त आसमान में उड़ेउड़े से रहते हैं.’’

‘‘क्या बात हुई? मुझे कुछ भी आइडिया नहीं है… तुम बताओ न आखिर क्या चल रहा

है यहां?’’ उषा ने रजनी को कुरेदने की

कोशिश की.

‘‘कुछ ज्यादा तो पता नहीं, मगर लंच टाइम में अकसर किसी का फोन आते ही मृणाल औफिस से बाहर चला जाता है. एक दिन मैं ने देखा था… वह एक खूबसूरत लड़की थी,’’ रजनी ने उषा के मन में जलते शोलों को हवा दी.

उषा का मन फिर पार्टी से उचट गया. घर पहुंचते ही उषा ने मृणाल से सीधा सवाल किया, ‘‘रजनी किसी लड़की के बारे में बता रही थी… कौन है वह?’’

‘‘है मेरी एक दोस्त… क्यों, तुम्हें कोई परेशानी है क्या?’’ मृणाल ने प्रश्न के बदले प्रश्न उछाला.

‘‘मुझे भला क्या परेशानी होगी? जिस का पति बाहर गुलछर्रे उड़ाए, उस पत्नी के लिए तो यह बड़े गर्व की बात होगी न…’’ उषा ने मृणाल पर ताना कसा.

‘‘कभी तुम ने अपनेआप को शीशे में देखा है? अरे अच्छेभले आदमी का मूड खराब करने के लिए तुम्हारा हुलिया काफी है. अब अगर मैं निशा के साथ थोड़ा हंसबोल लेता हूं तो तुम्हारे हिस्से का क्या जाता है?’’ मृणाल अब आपे से बाहर हो चुका था.

‘‘मेरे हिस्से में था ही क्या जो जाएगा… जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो किसी और को क्या दोष दिया जाए…’’ उषा ने बात आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा और कमरे की लाइट बंद कर के सो गई.

इस शनिवार को निशा का जन्मदिन था. मृणाल ने उस से खास अपने लिए

2-3 घंटे का टाइम मांगा था जिसे निशा ने इठलाते हुए मान लिया था. सुबह 11 बजे होटल सन स्टार में ही उन का मिलना तय हुआ. उत्साह और उत्तेजना से भरा मृणाल निर्धारित समय से पहले ही होटल पहुंच गया था. निशा उसे एक वीआईपी रूम में ले कर गई. बुके के साथ मृणाल ने उसे ‘हैप्पी बर्थडे’ विश किया और एक हलका सा चुंबन उस के गालों पर जड़ दिया. मृणाल के लिए यह पहला अवसर था जब उस ने निशा को टच किया था. निशा ने कोई विरोध नहीं किया तो मृणाल की हिम्मत कुछ और बढ़ी. उस ने निशा को बांहों के घेरे में कस कर होंठों को चूम लिया. निशा भी शायद आज पूरी तरह समर्पण के मूड में थी. थोड़ी ही देर में दोनों पूरी तरह एकदूसरे में समा गए.

होटल के इंटरकौम पर रिंग आई तो दोनों सपनों की दुनिया से बाहर आए. यह रूम शाम को किसी के लिए बुक था, इसलिए अब उन्हें जाना होगा. हालांकि मृणाल निशा की जुल्फों की कैद से आजाद नहीं होना चाह रहा था, क्योंकि आज जो आनंद उस ने निशा के समागम से पाया था वह शायद उसे अपने 10 साल के शादीशुदा जीवन में कभी नहीं मिला था. जातेजाते उस ने निशा की उंगली में अपने प्यार की निशानीस्वरूप एक गोल्ड रिंग पहनाई. एक बार फिर उसे किस किया और पूरी तरह संतुष्ट हो दोनों रूम से बाहर निकल आए.

अब तो दिनरात कौल, मैसेज, व्हाट्ऐप, चैटिंग… यही सब चलने लगा. बेकरारी

हद से ज्यादा बढ़ जाती थी तो दोनों बाहर भी मिल लेते थे. इतने पर भी चैन न मिले तो महीने में 1-2 बार होटल सन स्टार के किसी खाली कमरे का उपयोग भी कर लेते थे.

निशा के लिए मृणाल की दीवानगी बढ़ती ही जा रही थी. हर महीने उस की सैलरी का एक बड़ा हिस्सा निशा पर खर्च होने लगा था. नतीजतन घर में हर वक्त आर्थिक तंगी रहने लगी. उषा ने कई बार उसे समझाने की कोशिश की, समाज में रहने के कायदे भी बताए, मगर मृणाल तो जैसे निशा के लिए हर रस्मरिवाज तोड़ने पर आमादा था. ज्यादा विरोध करने पर कहीं बात तलाक तक न पहुंच जाए, यही सोच कर पति पर पूरी तरह से आश्रित उषा ने इसे अपनी नियति मान कर सबकुछ वक्त पर छोड़ दिया और मृणाल की हरकतों पर चुप्पी साध ली.

सालभर होने को आया. मृणाल अपनी दोस्ती की सालगिरह मनाने की

प्लानिंग करने लगा. मगर इन दिनों न जाने क्यों मृणाल को महसूस होने लगा था कि निशा का ध्यान उस की तरफ से कुछ हटने सा लगा है. आजकल उस के व्यवहार में पहले जैसी गर्मजोशी नहीं रही थी. कई बार तो वह उस का फोन भी काट देती. अकसर उस का फोन बिजी भी रहने लगा है. उस ने निशा से इस बारे में बात करने की सोची, मगर निशा ने अभी जरा बिजी हूं, कह कर उस का मिलने का प्रस्ताव टाल दिया तो मृणाल को कुछ शक हुआ.

एक दिन वह उसे बिना बताए उस के होटल पहुंच गया. निशा रिसैप्शन पर नहीं थी. वेटर से पूछने पर पता चला कि मैडम अपने किसी मेहमान के साथ डाइनिंगहौल में हैं. मृणाल उधर चल दिया. उस ने जो देखा वह उस के पैरों के नीचे से जमीन खिसकाने के लिए काफी था. निशा वहां सोफे पर अपने किसी पुरुष मित्र के कंधे पर सिर टिकाए बैठी थी. उस की पीठ हौल के दरवाजे की तरफ होने के कारण वह मृणाल को देख नहीं पाई.

मृणाल चुपचाप आ कर रिसैप्शन पर बने विजिटर सोफे पर बैठ कर निशा का इंतजार करने लगा. लगभग आधे घंटे बाद निशा अपने दोस्त का हाथ थामे नीचे आई तो मृणाल को यों अचानक सामने देख कर सकपका गई. फिर अपने दोस्त को विदा कर के मृणाल के पास आई.

‘‘मैं ये सब क्या देख रहा हूं?’’ मृणाल ने अपने गुस्से को पीने की भरपूर कोशिश की.

‘‘क्या हुआ? ऐसा कौन सा तुम ने दुनिया का 8वां आश्चर्य देख लिया जो इतना उबल रहे हो?’’ निशा ने लापरवाही से अपने बाल झटकते हुए कहा.

‘‘देखो निशा, मुझे यह पसंद नहीं… बाय द वे, कौन था यह लड़का? उस ने तुम्हारा हाथ क्यों थाम रखा था?’’ मृणाल अब अपने गुस्से को काबू नहीं रख पा रहा था.

‘‘यह मेरा दोस्त है और हाथ थामने

से क्या मतलब है तुम्हारा? मैं क्या तुम्हारी

निजी प्रौपर्टी हूं जो मुझ पर अपना अधिकार जता रहे हो?’’ अब निशा का भी पारा चढ़ने

लगा था.

‘‘मगर तुम तो मुझे प्यार करती हो न?

तुम्हीं ने तो कहा था कि मैं तुम्हारा पहला प्यार हूं…’’ मृणाल का गुस्सा अब निराशा में बदलने लगा था.

‘‘हां कहा था… मगर यह किस किताब में लिखा है कि प्यार दूसरी या तीसरी बार नहीं किया जा सकता? देखो मृणाल, यह मेरा निजी मामला है, तुम इस में दखल न ही दो तो बेहतर है. तुम मेरे अच्छे दोस्त हो और वही बने रहो

तो तुम्हारा स्वागत है मेरी दुनिया में अन्यथा तुम कहीं भी जाने के लिए आजाद हो,’’ निशा ने

उसे टका सा जवाब दे कर उस की बोलती बंद कर दी.

‘‘लेकिन वह हमारा रिश्ता… वे ढेरों बातें… वह मिलनाजुलना… ये तुम्हारे हाथ में मेरी अंगूठी… ये सब क्या इतनी आसानी से एक ही झटके में खत्म कर दोगी तुम? तुम्हारा जमीर तुम्हें धिक्कारेगा नहीं?’’ मृणाल अब भी हकीकत को स्वीकार नहीं कर पा रहा था.

‘‘क्यों, जमीर क्या सिर्फ मुझे ही धिक्कारेगा? जब तुम उषा को छोड़ कर मेरे

पास आए थे तब क्या तुम्हारे जमीर ने तुम्हें धिक्कारा था? वाह, तुम करो तो प्यार… मैं

करूं तो बेवफाई… अजीब दोहरे मानदंड हैं तुम्हारे… क्या अपनी खुशी ढूंढ़ने का अधिकार सिर्फ तुम पुरुषों के ही पास है? हम महिलाओं को अपने हिस्से की खुशी पाने का कोई हक नहीं?’’ निशा ने मृणाल को जैसे उस की औकात दिखा दी.

आज उसे उषा के दिल के दर्द का एहसास हो रहा था. वह महसूस कर पा रहा

था उस की पीड़ा को. क्योंकि आज वह खुद भी दर्द के उसी काफिले से गुजर रहा था. मृणाल भारी कदमों से उठ कर घर की तरफ चल दिया जहां उषा गुस्से में ही सही, शायद अब भी उस के लौटने का इंतजार कर रही थी.

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