विश्व को पर्यावरण प्रदूषण से मुक्त करने के लिए क्या कहते है,‘फारेस्ट मैन ऑफ़ इंडिया’ जादव मोलई पायेंग

व्यक्ति अगर ठान ले तो क्या नहीं कर सकता, मन में इच्छा और काम करने की मेहनत ही उसे आगे ले जाने में सामर्थ्य होती है, ऐसा ही कुछ कर दिखाया है आसाम के जोरहाट जिले की कोकिलामुख गांव की रहने वाले पर्यावरणविद और फॉरेस्ट्री वर्कर जादव ‘मोलई’ पायेंगने, जिन्हें देश ने ‘फारेस्ट मैन ऑफ़ इंडिया’का ख़िताब दिया और साल 2015 को पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से उन्होंने पद्मश्री भी प्राप्त किया.उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे की बंजर और रेतीले जमीन को जंगल में परिवर्तित कर दिया, जहाँ बाघ, हाथी, हिरण, खरगोश आदि वन्य जीव और माइग्रेंटेड हजारों पक्षी शरण लिया करते है. 58 साल के जादव चाहते है कि विश्व में हर स्कूल और कॉलेजों में पर्यावरण के बारें में अच्छी शिक्षा दी जाय, ताकि विश्व नेचुरल डिजास्टर से बच सकें, नहीं तो वो दिन दूर नहीं, जब धरती पूरी पृथ्वीवासी से इसका बदला लेने में जरा सी भी नहीं चुकेगी.जादव के इस काम में उनकी पत्नी बिनीता पायेंग और बेटी मुन्नी पायेंग, बड़ा बेटा संजीब पायेंग और छोटा बेटा संजय पायेंगसभी सहयोग देते है. उन्होंने केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व में भी कई बंजर जमीन को जंगल में परिवर्तित किया है, जिसमें फ्रांस, ताइवान और मेक्सिको मुख्य है. इसके अलावा जादव के इस काम को भारत भले ही न समझे, पर अमेरिकी स्कूल ब्रिस्टल कनेक्टिकटके ग्रीन स्कूल की कक्षा 6 की पाठ्यक्रम में जादव के काम को शामिल किया गया है. मोलई फारेस्ट के अंदर काम कर रहे जादव से बात की, जहाँ नेटवर्क की समस्या है, लेकिन उन्होंने उसे दरकिनार करते हुए खास गृहशोभा के लिए बात की, आइये जाने उनकी कहानी उनकी जुबानी.

मिली प्रेरणा

पेड़ लगाने का काम जादव बचपन से कर रहे है. यह स्थान भारत के सूदूर इलाका असम में है, जो जोरहाट जिले की कोकिलामुख गांव कहलाता है. वहां रहने वाले जादव पायेंग कहते है कि वहां मैंने कक्षा तीन में पढने के दौरान एक एग्रीकल्चर साइंटिस्ट से मिला था, उन्होंने बताया था कि पेड़ को लगाना ही नहीं, बल्कि उसकी देखभाल कर बड़ा करना सबसे बड़ी बात होती है. ये बात मेरे मन में बैठ गयी. साल 1979 में 16 वर्ष की उम्र में एक दिन जब मैं 10वीं की परीक्षा देकर घर लौट रहा था, उस दिन गर्मी की वजह से बहुत तेज बारिश हुई और बाढ़ आ गयी थी, पानी नीचे जाते ही 100 से भी अधिक सांपों को ब्रहमपुत्र नदी के किनारे मृत अवस्था में देखा, क्योंकि पानी की तेज बहाव और बालू के घर्षण से सारे सांप मर चुके थे, मुझे लगा कि अगर मैं इन जीव जंतुओं को सम्हाल नहीं सकता, तो मेरी मृत्यु भी इसी तरह होगी, क्योंकि पहले यहाँ 2,500एकड़ जमीन में जंगल था, लेकिन हर साल मानसून और नदी की बाढ़ से जंगल की मिट्टी का कटाव होने की वजह से कई गांव-घर डूब चुके है. करीब 50 प्रतिशत जमीन से वन गायब है और पूरा स्थान बंजर हो चुका है. ऐसा अगर कुछ और सालों तक चलता रहा, तो अगले कुछ सालों में जंगल ख़त्म हो जाएगा और जंगली जानवर, पक्षी और मनुष्य के लिए रहने की जमीन नहीं मिलेगी, ऐसे में मुझे पता चला कि बाँस झाड़ विकसित करने से सांपों को पानी की तेज धार में भी अच्छा संरक्षण मिलेगा. मिट्टी का कटाव भी रुकेगा. 25 बाँस के छोटे-छोटे पौधे मैंने ब्रह्मपुत्र नदी की बलुई तट पर 55 हेक्टेअर जमीन पर लगाया और पता चला कि इन्हें अच्छी तरह ग्रो करने के लिए लाल चींटियाँ(red ants) जरुरी है. मैंने उन चींटियों को बोरे में भरकर वहां छोड़ा और थोड़े दिनों बाद-बाद पानी डालकर उन्हें ग्रो किया. इस तरह 30 साल में 1,390 एकड़ भूमि को जंगल में बदल दिया, जिसमें रॉयल बंगाल टाइगर, चीता, राइनो, हाथी, आदि के अलावा विभिन्न प्रकार की पक्षियाँ सब आने लगे. इस फ़ॉरेस्ट का नाम मेरे निक नेम के आधार पर ‘मोलई फारेस्ट’ दिया गया.

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आसान नहीं थी मंजिल

वहां रहने वाले नजदीक की ग्रामवासियों ने जादव पर इल्जाम लगाया कि उनकी वजह से मकान के आसपास जानवर आने लगे है, जो उनके घरों को तोड़ रहे है. म़ोलई कहते है कि उन लोगों ने साथ मिलकर पेड़ काटने की योजना बनायीं. तक़रीबन हज़ार की संख्या में लोग मेरे सामने आये. मैंने कहा कि पहले मुझे काटों, फिर पेड़ को काट सकते हो. इससे सब चले गयें. इसमें लोकल मीडिया ने अच्छा कवरेज दिया, जिससे पूरे देश को पता चला और एक-एक कर सभी बड़ी मीडिया ग्रुप मुझसे जुड़ गयी. इससे मेरा प्रचार हुआ और जेएनयू के कई वैज्ञानिक यहाँ आकर पेड़, जानवर, पक्षी आदि पर 3 दिन 3 रात रहकर पूरा रिसर्च किया और मुझे पहली बार ‘फ़ॉरेस्ट मैन ऑफ़ इंडिया’ का ख़िताब मिला. भारत के अलावा जर्मनी, श्री लंका, ताइवान, फ्रांस, अमेरिका आदि सभी स्थानों से छात्र जोरहाट में रिसर्च के लिए आते है.

मिला सम्मान

इसके बाद जादव पायेंग को मुंबई स्थित पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम की एक एनजीओ ने स्कूल, कॉलेज और इंडस्ट्री में लोगों को पर्यावरण संरक्षण के बारें में जागरूकता बढ़ाने के लिए बुलाया और मेहनताना देकर पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने उन्हें सम्मानित भी किया. जादव आगे कहते है कि उस दौरान मेरा नाम फ़ैल गया और मुझे फ्रांस जाने का मौका मिला. वहां मैंने स्कूल, कॉलेज और इंडस्ट्री के लोगों को पेड़ पौधे लगाने के बारें में जानकारी दी और बताया कि इसके बिना पूरी पृथ्वी ध्वंस हो जायेगी. मैने वहां भी प्लांट लगाया और उसकी देखभाल करना सिखाया.जंगल लगाने की काम के लिए सबसे अधिक सहायता महाराष्ट्र सरकार और वहां की एनजीओ ने किया है. आजतक भी कोई पैसा, तो खाने का सामान भेजते रहते है. इसके अलावा राजस्थान की एक एनजीओ को मैंने 75 हज़ार छोटे प्लांट मैंने भिजवाएं है. वहाँ की सरकार सारे एनजीओ को बुलाकर इसकी जिम्मेदारी दी है. अब तक करीब एक लाख पेड़ वहां लगाये जा चुके है.

पर्यावरण को बचाकर करें विकास

असम में हाथियों का झुण्ड अधिकतर भोजन की तलाश में रेलवे लाइन तक आ जाते है, इससे कई हाथियों की मृत्यु ट्रेन के नीचे काटकर या लोगों द्वारा मार देने से हुआ है. जादव कहते है कि हाथियों का संरक्षण बहुत जरुरी है, क्योंकि भारत सरकार स्टेट गवर्नमेंट ने हाथियों के जंगल का एक बड़ा भाग आयल रिफायनरी के लिए खरीद लिया है, ऐसे में ये जानवर कहाँ जायेंगे? ये धरती जितना मनुष्य के लिए है, उतना ही जानवरों के लिए भी है. अगर उन्हें अपनी जमीन न मिले, तो वे बाहर भोजन की तलाश में आते है और आम जनजीवन को भी क्षति पहुंचाते है. मुझे मुंबई में मेट्रो कार शेड बनाने के लिए आरे रोड का जंगल कांटना भी ठीक नहीं लगा था, पर इसका विकल्प मिला, ये अच्छी बात है.

जंगल में मिला परिवार

जादव हँसते हुए कहते है कि मैंने फारेस्ट के अंदर ही शादी की है. तब मेरी उम्र 42 साल थी,  एक जान-पहचान की बहन के साथ मेरी शादी हुई. मेरे दो बच्चे यही पैदा हुए. मैं पहलेयहाँ गाय और भैस पालता था, मेरी कमाई दूध बेचकर बहुत कम हुआ करती थी, लेकिन सबके सहयोग से मैं आगे बढ़ पाया. इसके अलावा मैंने बहुत सारे पौधे विदेश से भी लाये थे. उसे लगाने के लिए पत्नी, बेटा और बेटी सभी ने बहुत सहयोग दिया है. मेरे जंगल में बेर, बांस झाड, सेमल कॉटन ट्री बहुत अधिक है, सेमल कॉटन की मांग अधिक होने की वजह से व्यवसायियों ने लाखो रुपयें कमाए भी है.

नहीं सहयोग किसी सरकार का

जादव का आगे कहना है कि भारत सरकार की तरफ से मुझे सम्मानित किया जाता है, लेकिन कुछ राशि नहीं मिलती, जिससे मैं जंगल को और आगे बढ़ा सकूँ. मुंबई की एनजीओ समय-समय पर मुझे कुछ सहायता राशि देती है, जिससे मैंने 6 लोगों को जंगल की देखभाल करने के लिए रखा है, जो मेरी अनुपस्थिति में जंगल की देखभाल करते है. आगे ब्रह्मपुत्र नदी बहुत बड़ी है, उसके किनारों और द्वीपों को ग्रीन करना जरुरी है. इसलिए मैंने छोटे-छोटे एनजीओ को इसका भार सौपा है, उन्हें मैं बीज और पौधे देता हूँ और वे उन्हें लगाकर बड़ा करते है. बच्चों को प्रैक्टिकल शिक्षा पर्यावरण संरक्षण के लिए देना जरुरी है, जिससे उन्हें एक पेड़ की कीमत का पता लग सके. जो लोग पैसा कमाने के लिए विदेश जा रहे है, उन्हें अपने देश के लिए कुछ अच्छा काम करने की आवश्यकता है. पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन के लिए हर राज्य में हर किसी को पेड़ लगाना और उसका प्रतिपालन करना जरुरी है. कक्षा 10 तक उनके पाठ्यक्रम में प्लान्टेशन की पूरी जानकारी होनी चाहिए, ताकि वे बाद में कही भी जाकर पेड़ लगायें और देश को पर्यावरण प्रदूशण से बचा सकें.जादव पायेंग ने मेक्सिको की एक एनजीओ FundaciÓn Azteca के लिए एग्रीमेंट साइन किया है, जिसमें वे उत्तरी अमेरिका की बंजर भूमि को जंगल में परिवर्तित करेंगे, जिसके लिए वे नारियल के बीज को वहां लगायेंगे.

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अंत में जादव पायेंग का कहना है कि पूरे देश में खाली और बंजर जमीन पर अधिक से अधिक पेड़ लगायें, इससे धरती काफी हरी-भरी हो जायेगी और नैचुरल डिजास्टर्स में भी कमी आएगी.

कोरोना में नर्सों का हाल

आमतौर पर नर्सों पर लोग बहुत ज्यादा विश्वास करते हैं क्योंकि गरीब चाहे बच्चा हो या बड़ा, आदमी हो या औरत, नर्सों के हाथों में अपने को सुरक्षित समझते हैं. जिद्दी मरीजों को भी जो टैक्नीक नर्सों के कोमल हाथों में होती है वह अद्भुत होती है. यह एक ऐसा काम है जिसे आमतौर पर बहुत अी आदर से देखा जाता है और दुनिया भर में नर्सों को सिस्टर कहां जाता है.

लेकिन अपनाद हर जगह होते हैं. जब से बिमारियां बढ़ी हैं. नॄसग ज्यादा टैक्नीकल हो गई है, मरीजों की गिनती बढऩे लगी है, मरीज और नर्स का व्यक्तिगत संबंध नर्सों और मरीजों की भीड़ में खो गया है, नर्सों में थकान, बोरियत, तनाव, प्रेंशर की वजह से सेवा में कमी होने लगी है. दिल्ली के एक अस्पताल में एक 2 महीने के बच्चे के साथ मारपीट के आरोप पर एक नर्स को गिरफ्तार किया गया. बच्चे को चोटें भी लगीं और उस की हड्डियों में क्रेक भी आई हैं.

कोविड के दिनों में नर्सों ने अपनी जान पर खेल कर लोगों को बचाया है या उन के अंतिम क्षण तक उन का ध्यान रखा. फिर भी शिकायतों का अंबार भी लगा है कि डर के मारे और काम के बोझ के मारे नर्सों ने घंटों मरीजों को तड़पना छोड़ा है. दूसरी तरफ कुछ इलाकों में नर्सों को घरों में घुसने नहीं दिया कि कहीं वे कोरोना वायरस ले कर न आई हों. कहीं उन पर फूल भी बरसाए गए हैं पर यह काम जोखिमभरा रहा है.

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नर्सों की कमी अब पूरी दुनिया में बहुत हद तक बढ़ रही है क्योंकि अमीर देशों में लोग देर तक जी रहे हैं और उन के अपने कम होते जा रहे हैं, लोग होश रहतेरहते इंश्योरैंस   खरीद रहे हैं ताकि अस्पतालों में नर्स उन के पास रहें या ओल्डएज होमों में बुङ्क्षकग करा रहे हैं जहां नर्सों के भरोसे आखिरी दिन बिता सकें.

पैसे की खातिर गरीब देशों की लड़कियां दूर देशों में जा रही हैं जहां उन्हें अच्छा पैसा तो मिल रहा है पर अपना कोई समा नहीं मिल पाता. इस काम में 8-10 घंटे पैरों पर खड़ा रहता होता है जो पराए शहर और पराए देश में खलता है और ऊपर से यदि मरीज शिकायत करने लगें जो चाहे वाजिब और सही हो तो बहुत खलता है. हमारे देश में तो इसे प्रोफेशन में आने वाली लड़कियां सभी निचले जातियों की होती हैं और बढ़ती जातिवादी धाॢमक कट्टरता भी नर्सों को पूरा व सही आदर सम्मान देने के आड़े आती है.

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घरेलू सामान और उत्पाद की आजादी

जैसे एक युग में स्टीम इंजन से चलने वाली फैक्ट्रियों ने लाखों छोटे कारीगरों का काम छीना था पर बदले में अपने वक्र्स को ज्यादा खुशनुमा रिहायश और ग्राहकों को अच्छा काम दिया था. वैसे ही आज की डिजिकल क्रांति छोटे दुकानदारों, सेवाएं देने वालों और छोटे मैकेनिकों आदि को समाप्त कर रही है और व्यापार की बागड़ोर बड़ी कंपनियों के हाथों में एब्म कर रही है. मोबाइल बेस्ड टैक्नोलौजी से मिली सुविधा के कारण आज किराना शौप्स, टेलर्स, पेंटर, खाने का समय बनाने वाले सब गायब होते जा रहे हैं. फिल्पकार्ट, अमेजान और उस जैसे प्लेटफौर्म खुद कुछ नहीं बना रहे पर दूसरों का सामान बेच कर मोटी कमाई कर रहे हैं.

ओला राइड कंपनी जिस ने सारे देश में लगभग कालीपीली टैक्सियां गायब कर दी है. वे आटो को भी समाप्त करने में लगे हैं. बाइक टैक्सी व्यवसाय भी उन की टैक्नोलौजी में फिट बैठता है. अब कारों को खरीदने में माहिर और अपनी पुरानी गाडिय़ों को बेचने में माहिर हो जाने के बाद वे पुरानी गाडिय़ों के व्यवसाय में उतर रहे हैं और देश भर में फैलसे पुरानी गाडिय़ों को बेचने वालों का सफाया कर देंगे.

इस तरह की कंपनियां कानून बदलवा सकती हैं. वे सरकार पर दबाव डालेंगी जब तक सॢटफाइड कार न हो, कोई पुरानी कार बेची न जाए और फिर सॢटफेशन बिजनैसों को खरीदना शुरू कर देंगे. वे सडक़ किनारे कि लगे बाजारों की जगह शहर के बाहर हजारों गाडिय़ां एक जगह खड़ी करने की जगह बना लेंगे. सुविधा के नाम पर  आप को गाड़ी का मेप, रंग, कितनी चली, ठीक हालत में है, कैसी गड्डियां हैं. कैसे बैलून हैं, कल और सेफ्टी फीचर सब मिल जाएगा, सिर्फ मोबाइल पर कोई झिकझिक नहीं, कोई डर नहीं कि गाड़ी  किसी अपराध में तो नहीं पकड़ी गर्ई है.

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इस का मतलब है कि लाखों पुरानी कारों के विक्रताओं के बच्चों को अब ओला या उस जैसी एक्टो कंपनियों में नौकरी से संतुष्ट रहना होगा. एक स्वतंत्र व्यवसाय जिस में मालिक गर्व महसूस करता था उसी तरह गायब हो जाएगा जैसे कभी बरतन ठोक कर बना लेने वाला ठठेरा (यह शब्द आज की पीढ़ी के लिए अनजाना है) गर्व भी महसूस करता था और आजादी से अपना छोटा सा काम करता था.

यही टाटा एमजी कंपनी करने जा रही है जो दवाइयों को फार्मा कंपनियों से खरीद कर केवल अपने ऊंचाइयों के जरिए घरघर पहुंचाएगी. आप के पड़ोस का कैमिस्ट जो डाक्टर का भी काम करता था, गायब हो जाएगा. यह भी डिजिटल टैक्नोलौजी की कमाल है. ग्राहक चाहे इसे भी सुविधा माने पर असल में यह कैमिस्टों को लाभ डिलिवरी बौय बना देगा.

जैसे पहले राजा तलवार के बल पर किसान को लूटते थे, फिर फैक्ट्रियां के बल पर आप मजदूरों को गुलामी करनी पड़ी वैसेे ही अब डिजिटल मोनोपोली से आम आदमी गुलाबी की एक और जंजीर गले में डाल लेगा. इस गुलामी का असर घरों पर सब से ज्यादा पड़ता है. जब भी किसी समाज में गुलामी का दौर बढ़ा है, वहां की औरतें और गुलाम हो गई हैं. एक युग में पंडों के पाखंड ने कैरे समाज को वर्चस्व में ले लिया था. जहां भी धर्म का समाज पर मोनोपौली हुई वहां औरतों पर हजारों नए प्रतिबंध लगे. जब आम आदमी के अधिकारों को बल मिला चाहे शिक्षा के कारण या सरकार, उद्योगपति या पाखंडबाजों के खिलाफ विद्रोह से, औरतों ने राहत की सांस ली. यह पूरे समाज में बराबरी के अवसरों और आजादी का नतीजा है.

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जब आप घरेलू सामान, घरेलू सेवाओं और यहां तक कि घरों के लिए एकदो कंपनियों पर निर्भर रह जाएंगी. आप की आजादी छिन जएगी. व्हाट्सएप या फेसबुक पर जाने अनजानों के बारे में जान कर खुश न हो कि वाह क्या कमाल है तकनीक का. यह चूहेदान में लगी डबल रोटी है जिसे खाने के लालच में आप चूहेदानियों में फंस रहे हैं और फिर गुलाम हो जाते हैं. एमेजन, फ्लिपकार्ड, ओला ने शुरू में सस्ते में जो कुछ देना शुरू किया था, आज बंद कर दिया है. अब वे हर चीज अपनी मनचाही कीमत पर दे रहे हैं और चूंकि पड़ोस में दुकानदार कम हो गए हैं और आप आलस्य के मारे घर बैठे सामान खरीदने के आदी हो गए हैं, आप आॢथक गुलाम हो गए हैं.

कैसे हो प्रेम निवेदन

युद्ध मानव इतिहास का निरंतर हिस्सा रहे हैं. हर युग में आम  जनता को बेबात में युद्धों में घसीटा जाता रहा है और युद्ध का मतलब है कि हर रोज की जिंदगी का टूट जाना. युद्ध के दौरान शहर नष्ट हो जाते, युवा लड़ाई पर चले जाते, खाने के लाले पड़ जाते, घर में किसे मार डाला जाए पता नहीं रहता. फिर भी एक चीज जो प्रकृति की देन व आवश्यकता दोनों है, चलती रही. वह प्रेम है. युवा प्रेम हर तरह की कंटीली  झाडि़यों में भी पनपा, फूलों के बागों में भी पनपा, गोलियों में भी पनपा और आज प्रेम कोविड के खूनी पंजों में भी पनप रहा है.

आज कोविड का युद्ध पहले के सभी युद्धों से खतरनाक है क्योंकि यह हर व्यक्ति को अपनी खुद की वजह जेल में बंद कर रहा है. हजार बंदिशें लोगों पर लगी हैं जो विदेशियों के आक्रमणों में नहीं लगीं, दंगों में नहीं लगीं, अकाल और बाढ़ में नहीं लगीं, युद्ध क्षेत्रों में नहीं लगीं.

एकदूसरे से गले लगने और बात करने तक पर पाबंदी. कोविड ने हर जने को जो एक छत के नीचे पहले से नहीं रहता उसे छूने, उस से सहयोग करने, उस के पास बैठ कर बात करने पर पाबंदी लगा दी. ऐसे में नया प्रेम कैसे हो? कैसे प्रकृति को छूने की चाहत, एकदूसरे में समा जाने की जरूरत पूरी हो?

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कोविड ने जो कैद करी है, वह लौकडाउनों के हटने के बाद भी न के बराबर हट रही है. मास्क में चेहरों से प्रेम निवेदन कैसे हो सकते हैं? 2 गज की दूरी रखने से एकदूसरे का स्पर्श कैसे मिल सकता है?

अब जिन्हें वैक्सीन लगी है वे ढूंढ़ रहे हैं कि जिन्हें वैक्सीन लग चुकी है उन में से कौन उन के लायक है पर यह वैक्सीन ऐसी नहीं जिस का ठप्पा माथों पर लगा हो. इस वैक्सीन के बाद भी मास्क जरूरी है. अब वह प्राकृतिक जरूरत एक जीवनसाथी की कैसे पूरी हो? कोविड की दूसरी लहर जिस में एक छत के नीचे रह रहे पूरे परिवार बीमार पड़ गए सब को बुरी तरह डरा दिया है.

गनीमत है कि मौडर्न टैक्नोलौजी ने इंस्ट्राग्राम, फेसबुक, व्हाट्सऐप के दरवाजे खुले रखे पर ये तो कैदखानों की छोटी खिड़कियां थीं जहां से सिर्फ आंख दिखा सकते हैं. एक इंच बाई एक इंच के चेहरे को देख कर किसी के व्यक्तित्व की पहचान तो नहीं हो सकती.

हां, इस दौरान भारत में शादियां हुईं पर उन में चेहरा फेसबुक पर देखा गया, कुछ मिनट के लिए मास्क हटा और हां या न कर दी गई, 18वीं सदी की शादी की तरह. बाकी बातें सोशल मीडिया पर हुईं पर आधीअधूरी. जब तक कोई चाय के प्याले में अपनी उंगली डुबो कर न पिलाए, प्रेम थोड़े पनपता है. अब जो शादियां पक्की हो रही थीं, वे शारीरिक मिलन का सम झौता हैं, प्रेम का अंतिम लक्ष्य पूरा होना नहीं.

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नागरिकों के साथ खिलवाड़

देश की मौजूदा सरकार ने ‘खाऊंगा भी, खाने भी दूंगा’ का  सिद्धांत पूरा कर दिखाया है. जब से केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सत्तारूढ़ हुई है तब से स्विस बैंकों में भारतीयों का पैसा लगातार बढ़ रहा है.

2020 में स्विस बैंक में 20,700 करोड़ रुपए से ज्यादा जमा हुए. मोदी सरकार के शासन के दौरान हर साल पैसा जमा हुआ है बावजूद इस के कि मोदी ने खुलेआम कहा था कि सारा ब्लैक पैसा देश में वापस ले आया जाए तो हरेक देशवासी को क्व15 लाख यों ही मिल जाएंगे.

भारतीय भारत में भी खूब कमा रहे हैं और बाहर भी. कोविड के दिनों में भी बहुत से अमीर व्यापारियों ने खूब कमाई की है क्योंकि सरकार ने उन्हें तरहतरह की छूट दी और उस बीच जनता अपनी परेशानियों में घिरी हुई थी.

भारतीय व्यापारियों ने अपना पैसा बाहर रखना शुरू कर दिया है क्योंकि यहां गंदगी, बदबू तो थी ही, अस्पतालों और दवाओं के लिए भी न जाने किसकिस से गिड़गिड़ाना पड़ा. भारतीय अमीर भारत में इसलिए हैं क्योंकि भारत में उन की कमाई हो रही है, ठीक ब्रिटिश हुक्मरानों की तरह जो पोस्टिंग पर भारत आते थे, यहां कमाते थे और फिर नौकरोंगुलामों को वापस ले कर चले जाते थे.

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बड़े व्यापारी ही नहीं, नेताओं, आश्रमों के स्वामियों ने भी देश के बाहर विधर्मी ईसाई व मुसलिम देशों में पैसा जमा कर रखा है और वह कम नहीं हुआ है.

हर भारतीय वैसे भी 2 करोड़ रुपए हर साल मैडिकल ट्रीटमैंट, उपहार, विदेशों में बसे रिश्तेदारों, विदेशी पढ़ाई, मकान आदि के लिए भेज सकता है. सरकार इस पर टैक्स बढ़ा रही है लेकिन इसे रोक नहीं रही. पैसा हवाला के जरीए भी जाता है जिस में यहां भारतीय रुपए दो और विदेशों में लो किया जाता है.

इसी पैसे (हवाला के पैसे) के बल पर ललित मोदी, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी विदेशों में भारतीय कानूनों की खामियों के चलते मौज कर रहे हैं. जो सरकार कालाधन लाने के वादे कर रही थी, वह असल में कालेधन के जाने की भरपूर इजाजत दे रही है, जो स्विस बैंकों में जा रहा है.

विदेशी भारतीय जो भारतीय पासपोर्टधारक हैं, असल में पैसे का लेनदेन अच्छी तरह सम झते हैं और हर संभव तरीके से भारत में टैक्स बचा कर नक्द स्विस बैंकों जैसे सैकड़ों बैंकों में रखते हैं. जहां से कमा रहे हैं वहां टैक्स न देना भी वे जानते हैं क्योंकि भारत सरकार इस बाबत उन्हें अच्छी तरह शिक्षा दे ही देती है.

भारतीय विदेशियों को रखने व अन्य सौदों में भी बिचौलिए होते हैं और काफी मोटा कमीशन विदेश में ही ले लेते हैं. इस पर सरकार ने कुछ नहीं किया, न बोफोर्स पर कुछ ढूंढ़ पाई, न औगस्टा हैलीकौप्टर पर. राफेल जैटों पर तो सरकार ने जांच तक न होने दी.

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पैसा भारत का है, यहां के गरीबों का है, उन किसानों का है जो ठंड, गरमी, बरसात में दिल्ली की सीमाओं पर पड़े हैं. इन का पैसा विदेश में जाए और विदेश में काम कर रहे गरीब, मजदूर जो पैसा भारत में भेज रहे हैं, उसे उड़ा दिया जाए.

ऐसा किया जाना भारत के नागरिकों के साथ खिलवाड़ है, यह सरकार की कोरी वादाखिलाफी है. लेकिन भारतीय संस्कृति तो  झूठ बोलने को नैतिकता के पैमाने में लाती है. शक हो तो कोई भी पुराण पढ़ लो. सारी औरतें भी पुराणों के गुण गाती रहती हैं तो भुगतो.

आधी आबादी लीडर भी निडर भी

किचन से कैबिनेट और घर की चारदीवारी से खेल के मैदान तक, गुपचुप घर में सिलाईबुनाई करती, पापड़बडि़यां तोड़ने से बोर्डरूम तक एक लंबा सफर तय करने वाली आधी आबादी ने यह सिद्ध कर दिखाया है कि वह घर के साथसाथ बाहर का काम भी उतने ही बेहतर तरीके से संभाल सकती है. व्रतउपवास, कर्मकांड और उस के पांव में बेडि़यां डालने के लिए धर्म के माध्यम से फैलाए जा रहे अंधविश्वासों के घेरे से वह निकल सकती है, यह बात भी उस ने साबित कर दी है.

यह सही है कि किसी भी बड़े बदलाव के लिए जरूरी है समाज की सोच बदलना. बेशक अभी पुरुष समाज की सोच में 50% ही बदलाव आया हो, लेकिन महिलाओं ने अब ठान लिया है कि वे नहीं रुकेंगी और तमाम बाधाओं के बावजूद चलती रहेंगी. फिर चाहे वे शहरी महिला हो या किसी पिछड़े गांव की जो आज सरपंच बनने की ताकत रखती है और खाप व्यवस्था को चुनौती भी देती है.

बहुत समय पहले बीबीसी के एक कार्यक्रम में अभिनेत्री मुनमुन सेन ने कहा था कि महिलाएं किसी भी स्तर पर हों, किसी भी जाति या वर्ग से हों, वे एक ही होती हैं. उन के कुछ मसले एकजैसे होते हैं, उन में आपस में यह आत्मीयता होती है. आज वे मिलजुल कर अपने मसले जुटाने और अपनी पहचान की स्वीकृति पर मुहर लगाने में जुटी हैं, फिर चाहे कोई पुरुष साथ दे या न दे वे सक्षम हो चुकी हैं.

कर रही हैं निरंतर संघर्ष

यह समाज की विडंबना ही तो है कि घर हो या दफ्तर, राजनीति हो या देश, जब कभी और जहां भी महिलाओं को सशक्त बनाने, उन को मजबूत करने पर चर्चा होती है, तो ज्यादातर बात ही होती है, कोई कोशिश नहीं होती. लेकिन वे अपने स्तर पर कोशिश कर रही हैं और कामयाब भी हो रही हैं.

जिस देश की संसद में महिलाएं अब तक 33 फीसदी आरक्षण के लिए संघर्ष कर रही हैं, उसी देश के दूसरे कोनों में ऐसी भी महिलाएं हैं, जो अपने हिस्से का संघर्ष कर छोटीबड़ी राजनीतिक कामयाबी तक पहुंच रही हैं.

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी और अमेरिका की फर्स्ट लेडी होने के अलावा दुनियाभर में मिशेल ने अपनी एक अलग पहचान बनाई जो उन्होंने खुद अपने दम पर हासिल की. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने के बाद हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ला किया. सिडले और आस्टिसन के लिए काम करने के बाद मिशेल ने एक पब्लिलकएलाइजशिकागो ‘अमेरीकोर्प नैशनल सर्विस प्रोग्राम’ की स्थापना की.

उन का बचपन मुश्किलों भरा था, लेकिन मिशेल ने बहुत पहले ही यह सम झ लिया था कि उन्हें मुश्किलों के बीच से रास्ता बना कर जीत हासिल करनी है. मिशेल को अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था, इसलिए उन्होंने 2015 में ‘लेट गर्ल्सलर्न’ इनीशिएटिव की शुरुआत की, जहां उन्होंने अमेरिकी लोगों को उच्च शिक्षा में जाने के लिए प्रोत्साहित किया.

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पा ली है मंजिल

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस आते ही औरतों की प्रगति, उन की समस्याओं, उन के साथ होने वाली हिंसा, अत्याचार, उन की असुरक्षा से घिरे प्रश्नों यानी उन से जुड़े हर तरह के सवालों की विवेचना व अवलोकन होना आरंभ हो जाता है. कहीं सेमीनार आयोजित किए जाते हैं तो कहीं नारीवादी संगठन फेमिनिज्म की बयार को और हवा देने के लिए नारेबाजी पर उतर आते हैं. इंटरनैशनल वूमंस डे की शुरुआत औरतों के काम करने के अधिकार, उन्हें समाज में सुरक्षा प्रदान करने के लक्ष्य के साथ हुई थी, लेकिन आज जब औरतों ने हर क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम कर लिया है और वे कामयाबी का परचम लहरा रही हैं.

आईटी, बीपीओ या बड़ीबड़ी कंपनियों में औरतों की उपस्थिति को देखा जा सकता है. वे मैनेजर हैं, बैंकर हैं, सीईओ हैं, फाउंडर है और प्रेसीडेंट भी है. आज बिजनैस के कार्यक्षेत्र में जैंडर को ले कर की जाने वाले भिन्नता के कोई माने नहीं रह गए हैं. वैसे भी अगर आर्थिक अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना है तो औरतों की सक्रिय भूमिका को स्वीकारना ही होगा.

वास्तव में देखा जाए तो अब नकारने की स्थिति है भी नहीं. हर ओर से महिलाएं उठ खड़ी हुई हैं. ममता बनर्जी हों या सोनिया की पीढ़ी या फिर मलाला और ग्रेटा कम उम्र की युवतियां, बदलाव की आंधी हर ओर से चल रही है.

रख चुकी हैं हर पायदान पर कदम

बेहद प्रभावशाली भाषण से संयुक्त राष्ट्र की बोलती बंद करने वाली ग्रेटा थनबर्ग किसान आंदोलन के दौरान भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करने के आरोप में विवादों में अवश्य हैं, पर संयुक्त राष्ट्र में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अपनी बातों से दुनियाभर के नेताओं का ध्यान आकर्षित करने वाली 16 वर्षीय स्वीडिश छात्रा ग्रेटा थनबर्ग को टाइम मैगजीन ने 2019 का ‘पर्सन औफ द ईयर’ घोषित किया.

मलाला विश्व की कम उम्र में शांति का नोबेल पुरस्कार पाने वाली पहली युवती है. पाकिस्तान में तालिबानी आतंकवादियों ने इस की हत्या का प्रयास किया क्योंकि मलाला लड़कियों को पढ़ाने का काम कर रही थी जबकि तालिबान ने पढ़ाई पर रोक लगाई हुई थी.

आज वह करोड़ों लड़कियों की प्रेरणा बन चुकी है. उस के सम्मान में संयुक्त राष्ट्र ने प्रत्येक वर्ष 12 जुलाई को मलाला दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की.

जरमनी की चांसलर ऐंजेला मर्केल दुनिया की तीसरी सब से शक्तिशाली हस्ती हैं. उन्हें दुनिया की सब से शक्तिशाली महिला भी कहा जाता है. कमला हैरिस ने तो इतिहास ही रच दिया है. वे अमेरिका की पहली अश्वेत और पहली एशियाई अमेरिकी उप राष्ट्रपति हैं.

तोड़ रही हैं अंधविश्वासों की बेडि़यां

हर क्षेत्र में ऐसी महिलाओं के नामों की सूची इतनी लंबी है कि उन की उपस्थिति को सैल्यूट किए बिना नहीं रहा जा सकता है खासकर भारतीय समाज में जहां उन से केवल घर संभालने और धार्मिक कर्मकांडों में उल झे रहने की ही उम्मीद की जाती थी. सदियों से वे कभी पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती आ रही हैं, कभी बच्चों की सलामती के लिए पूजा करती आ रही हैं तो कभी घर की सुखशांति के लिए हवन और भजन करती आ रही हैं.

उन की कंडीशनिंग इस तरह की गई कि वे घर के बाहर जा कर अपनी पहचान बनाने के बारे में सोचेंगी तो उन्हें पाप लगेगा. लेकिन उन्होंने तमाम मिथकों को तोड़ा, परंपराओं का उल्लंघन किया, अपने अस्तित्व को आकार दिया. इस सब के बावजूद घर को भी बखूबी संभाला और परिवार की डोर को भी थामे रखा. असफल होने के डर से खुद को बाहर निकाला और जो थोड़ा डर अभी भी धार्मिक कुरीतियों के कारण उन के भीतर व्याप्त है उसे भी वह सांप की केंचुल की तरह छोड़ने को तत्पर हैं.

सपोर्ट सिस्टम खड़ा करना होगा

समाजशास्त्री मानते हैं कि औरतों को सब से पहले अपनी असफलताओं को ले कर परेशान होना छोड़ देना चाहिए. उन्हें परिवार व कैरियर के बीच एक बैलेंस बनाए रखना होगा क्योंकि समाज में ऐसी ही सोच व्याप्त है. पर इस मुश्किल से उभरने के लिए उन्हें एक सपोर्ट सिस्टम खड़ा करना होगा. उन्हें बीच राह में प्रयास करना छोड़ नहीं देना चाहिए.

कई औरतें जब डिलिवरी के बाद दोबारा काम पर आती हैं तो उन्हें लगता है कि इतने दिनों में जो एडवांस्मैंट हो चुकी है, वह कहीं उन्हें पीछे न धकेल दे. अपडेट रहना तरक्की की पहली शर्त है, इसलिए तमाम व्यवधानों के बावजूद अगर वे पुन: कोचिंग लें तो उन्हें सहायता मिलेगी. किसी गाइड की मदद ली जा सकती है. ताकि इन्फोसिस जैसी कंपनियां अपने कर्मचारियों को किसी बाहरी गाइड से मदद लेने के लिए प्रोत्साहित करती हैं जिस से उन के मानसिक क्षितिज का विस्तार हो सके. कार्यक्षेत्र में उन के लिए एक सपोर्ट सिस्टम की जरूरत है.

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जमीन से जुड़ी महिलाएं

  सोनी सोढ़ी

(आदिवासी समाज की लीडर)

एक छोटे से स्कूल में बच्चों को पढ़ाने वाली सोनी की जिंदगी 2011 में हुई उस घटना के बाद से हमेशाहमेशा के लिए बदल गई.

इस आदिवासी युवती को उस के भाई की पत्रकारिता की कीमत चुकानी पड़ी. जेल, लगातार बलात्कार और मानसिक शोषण, यहां तक कि गुप्तांग में पत्थर डाल कर उसे निहायत शर्मनाक ढंग से प्रताडि़त किया गया. उसे नक्सली बनाने पर तुली छत्तीसगढ़ सरकार को आखिरकार उसे रिहा करना ही पड़ा. जेल से मर्मस्पर्शी पत्र लिख कर अपने समर्थकों का हौसला बनाए रखा. अपने पर किए हर अत्याचार को उस ने अश्रु की स्याही से न लिख कर हिम्मत और शक्ति की लेखनी से लोगों तक पहुंचाया.

सोनी बताती है कि जब ये सब उस के साथ हुआ तो उसे लगा कि अब वह खड़ी नहीं हो पाएगी. औरतों को सिखाया जाता है कि उन की इज्जत ही उन का सबकुछ है. मैं भी यही सोचती थी और जब मेरे साथ ये सब हुआ तो मु झे लगा कि मैं अब किसी काबिल नहीं रह गई हूं. पर उसे हिम्मत देने वाली भी दो औरतें ही थीं. जेल में उसे दो औरतें मिलीं, जिन्होंने उसे अपने स्तन दिखाए. उन के निपल काट दिए गए थे. तभी सोनी ने ठान लिया कि वह लड़ेगी. उन्होंने अपने गुरु को एक चिट्ठी लिखी और यहीं से शुरु हुई उन की लड़ाई. आज सोनी बस्तर में आदिवासियों के हक के लिए उठने वाली एक बुलंद आवाज है.

शहनाज खान

(युवा सरपंच)

राजस्थान के भरतपुर जिले में रहने वाली  25 साल की शहनाज वहां की कामां पंचायत से सरपंच चुनी गई है. वह राजस्थान की पहली महिला एमबीबीएस डाक्टर सरपंच है. वह कहती है, ‘‘मु झ से पहले मेरे दादाजी भी यहां से सरपंच थे. लेकिन उन के बाद यह बात उठी कि चुनाव में कौन खड़ा होगा. परिवार वालों ने मु झे चुनाव में खड़ा होने को कहा और मैं जीत गई.’’

शहनाज मानती है कि लोग आज भी अपनी बेटियों को पढ़ने के लिए स्कूल नहीं भेजते हैं, इसलिए वह लड़कियों की शिक्षा पर काम करना चाहती है और उन सभी अभिभावकों के सामने अपना उदाहरण रखना चाहती है जो बेटियों को पढ़ने नहीं भेजते.

  सैक्सुअलिटी एक छोटा सा हिस्सा है

महिलाओं को आजादी व बराबरी का हक तभी सही मानों में मिल पाएगा जब स्त्री और पुरुष के बीच के अंतर को जरूरत से ज्यादा महत्त्व देना बंद कर दिया जाएगा. सैक्सुअलिटी जीवन का महज एक छोटा सा हिस्सा है. जैंडर का हमारे जीवन में रोल तो है पर यही सबकुछ नहीं है. यह हमारे जीवन का एक हिस्सा भर है. प्रजनन अंगों को हमारे जीवन में बस एक काम करना होता है, पर इसे पूरा जीवन तो नहीं माना जा सकता. लेकिन फिलहाल मानव आबादी इसी काम को पूरा जीवन बनाने में लगी है. 90 फीसदी आबादी के दिमाग में एक औरत का मतलब कामुकता है. इस सोच को बदलने के लिए ही आधी आबादी आज कटिबद्ध है.

महिलाओं और पुरुषों को 2 अलग प्रजातियां की तरह देखना ठीक नहीं है. अगर हम ने ऐसा किया तो आने वाले समय में अगर संघर्ष हुआ तो एक बार फिर से पुरुषों का वर्चस्व हो जाएगा. अगर फिर से युद्ध के हालात बने तो महिलाओं को चारदीवारी के भीतर जाना होगा.

यहां उन महिलाओं की जिम्मेदारी बढ़ जाती है जो समाज में किसी मुकाम पर पहुंच गई हैं. वे एक बदलाव ला सकती हैं. स्त्री और पुरुष की लड़ाई बनाने के बजाय आधी आबादी को समाज में अपनी काबिलीयत से पहचान बनानी होगी और वह इस में सफल भी हो गई है. कुछ कदम बेशक उसे और चलने हैं, उस के बाद मंजिल उस की मुट्ठी में होगी. महिलाओं ने खुद को सम झना शुरू कर दिया है. वे अपने अस्तित्व को जानने लगी हैं, अपनी शक्ति को पहचानने लगी हैं. नतीजतन समाज में बदलाव की हवा चलने लगी है.

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  बिना डरे बिना घबराए

दुनियाभर में हो रहीं रिसर्च बताती हैं कि औरतें मल्टीटास्किंग होती हैं. अब हर परीक्षा में लड़कियां लड़कों को पीछे छोड़ रही हैं. हर लिहाज से औरतें ज्यादा ताकतवर हैं, लेकिन यह भी एक कड़वी सचाई है कि दुनिया की फौर्च्यून 500 कंपनियों में सिर्फ 4 फीसदी महिलाएं सीईओ हैं. समान वेतन और समान अधिकार तथा काम करने के बेहतर माहौल जैसी चीजों के लिए महिलाएं संघर्ष कर रही हैं. हैरानी की बात है कि इन अधिकारों की बात करने वाली महिलाओं को फेमनिस्ट कह कर नकार दिया जाता है. जरा सोचिए अगर आधी आबादी भी पूरी क्षमता से काम करे तो क्या होगा? नुकसान आधी आबादी का नहीं, पूरी मानवता का हो रहा है.

महिलाएं अब पहले की तरह पुरुषों की परछाईं में दुबक नहीं रहीं बल्कि उस से बाहर  निकल कर नुमाइंदगी कर रही हैं, दिशा दिखा रही हैं और वह भी बिना डरे, बिना घबराए.

Coviself की टेस्ट किट से रोकें महामारी की तीसरी लहर, पढ़ें खबर

कोरोना वायरस का दूसरा दौर सभी के लिए बेहद कठिन रहा, जिसने हमारे जीवन को अलग-अलग तरीकों से प्रभावित किया. अधिकतर परिवार ने अपने किसी प्रियजन को खोया है, लेकिन कोविड-19 लॉकडाउन में छूट मिलने के बाद से कई लोग पहले की तरह उन सारे काम करने की कोशिश कर रहे है,जिसकी कमी पिछले डेढ़ सालों में महसूस की गयी है.

इस बार तीसरी लहर की बात सुनकर अधिकतर लोगों के मन में इस बात की आशंका और डर है. क्या वे और उनके परिवार के सदस्य इस वायरस की चपेट में आने से बच सकेंगे? स्कूल वापस जाने के बाद बच्चे को इन्फेक्शन तो नहीं हो गया? काम से वापस आने के बाद कहीं मुझे इन्फेक्शन तो नहीं हो गया?ऐसे कई प्रश्न सबको डरा रही है. इसे जानने का एकमात्र तरीका, अपनी जांच करना, ताकि आपकी वजह से बाकी लोगों में कोरोना संक्रमण न फ़ैल जाय, ऐसे समय में टेस्टिंग किट की जरूरत है,जो ज़्यादा सुविधाजनक होने के साथ-साथ रिजल्ट भी जल्दी दें.

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माइलैब डिस्कवरी सॉल्यूशंस की हेड ऑफ सीरोलॉजी एंड माइक्रोबायोम के डॉ.श्रीकांत पवार कहते है कि कोविसेल्फ़, भारत की पहली सेल्फ़-टेस्ट किट है, जिसके द्वारा महामारी की तीसरी लहर में सबके लिए टेस्ट करना आसान होगा, जिससे संक्रमण को एक बार फिर रोका जा सकेगा. कोविसेल्फ़, कोविड-19 रैपिड एंटीजन टेस्ट (RAT) किट है, जिसकी मदद से लोग घर बैठे अपना कोविड टेस्ट केवल 15 मिनट में सटीक कर सकते है. यह आई सी एम् आर द्वारा प्रमाणित किट है. इसकी हर यूनिट में एक टेस्टिंग किट, इस्तेमाल के लिए निर्देश (IFU) हेतु लीफ़लेट और टेस्टिंग के बाद सुरक्षित तरीके से निपटाने के लिए एक बैग मौजूद होता है. एक मोबाइल ऐप से कनेक्ट होने वाला यह किट, एक मिड-नेज़ल स्वैब और एक क्यूआर कोड का उपयोग करता है, और केवल 15 मिनट में नतीजे दिखाता है.इसे प्रयोग करना आसान है, पर दिए गए  निर्देशों के अनुसार ही इसका प्रयोग किसी भी समय कर सकते है.

80 साल की दादी से लेकर गाँव में रहने वाले 18 साल के नौजवान तक, कोई भी इन निर्देशों को पढ़कर या डेमो वीडियो देखकर इसका इस्तेमाल कर सकते है. इसमें नाक के स्वाब के सैंपल को अच्छी तरह से लेकर किट पर दो बूंदे डालनी पड़ती है. अगर कार्ड एक रेड लाइन दिखाता है, तोरिजल्ट निगेटिव और अगर कार्ड 2 लाइन दिखाता है, तो व्यक्ति कोविड पॉजिटिव होता है. इसे दूबारा प्रयोग नहीं किया जा सकता. साथ ही इसमें गड़बड़ी की कोई संभावना नहीं होती. कोविसेल्फ़ के इस्तेमाल के लिए यूजर्स को मोबाइल ऐप पर इसे रजिस्टर करना होता है. एक ही ऐप में यूजर्स कई प्रोफ़ाइल बना सकते है.इसका मूल्य 250 रुपये है. ये हर फार्मेसी में मिलता है और डॉक्टर की पर्ची के बिना ही खरीदी जा सकती है. इस टेस्ट किट को अमेरिका बेस्ड कंपनी के साथ जोड़ने की कोशिश की जा रही है.

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ठग बाबाओं के चंगुल में फंसे तो गए

ग्रहों के बारे में आप क्या जानते हैं? इतना तो सभी जानते हैं कि आकाश में दृष्टिगोचर होने वाले सभी ग्रह हमारी पृथ्वी के समान ही हैं और अपनीअपनी कक्षा में भ्रमण करते हैं तथा सूर्य की परिक्रमा करते हैं. आकार में भी सभी एक जैसे नहीं हैं, कोई छोटा तो कोई बड़ा है. सूर्य से सभी की दूरी भी अलगअलग है.

सभी ग्रहों पर तापमान की मात्रा भी अलगअलग है. उन ग्रहों में से कौनकौन से ग्रह पर जीवन है और कौनकौन से ग्रह पर नहीं, यह अभी ज्ञात नहीं हुआ है. ग्रहों में मुख्य सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहू तथा केतू हैं.

यह है अब तक की सामान्य जानकारी. इसी जानकारी का प्रयोग कुछ चतुर या ठग किस्म के लोग अपने स्वार्थ के लिए या अपनी रोजीरोटी चलाने के इरादे से कर रहे हैं. ये लोग अपनेआप को महान ज्योतिषी, स्वामीजी, गुरुजी और बाबा के नाम से प्रचारित कर रहे हैं.

यह आज की बात नहीं है. 100 साल पहले भी इन्हीं ग्रहों को ऐसे ठगी के काम के लिए प्रयोग में लाया जाता था. लोगों को डर दिखाया जाता था कि ग्रहों के कुपित होने से ही उन पर संकट आते हैं, असाध्य बीमारियां हो जाती हैं, हर काम में असफलता मिलती है, गृहक्लेश, झगड़े, आर्थिक संकट, शादियों का टूटना, संतान सुख का अभाव. सभी कुछ ग्रहों के प्रकोप से ही होता है.

बेचारे भोलेभाले लोग इन ठगों की बातों में आ जाते थे. अपने ऊपर आई मुसीबतों से छुटकारा पाने के लिए इन लोगों की शरण में जाते थे और ये ठग लोग लोगों की समस्याओं का निवारण करने के बहाने उन से धन ऐंठते थे.

आंखों के सामने धोखा

आज भी चित्र बदला नहीं है. सबकुछ वैसा ही चल रहा है. अब ठग बाबाओं को अपने प्रचार के लिए टीवी चैनल्स और इंटरनैट की सुविधा भी मिल गई है. उन का काम जोरशोर से चल रहा है कुछ लोग अपनेआप को महान ज्योतिषी बताते हैं. ये ज्योतिषी लोगों से उन का जन्मदिवस, जन्म समय और जन्म साल पूछ कर फटाफट कुंडली बनाते हैं और ग्रहों के नाम ले कर भविष्य बताना शुरू कर देते हैं.

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शिकारी आएगा जाल बिछाएगा

सुनंदा भी एक भोलीभाली गृहिणी है. उस की 24 साल की एक कन्या है, जिस का नाम सपना है. सपना गणित विषय में एमए कर चुकी है, बुद्धिमान लड़की है. रंग सांवला है, लेकिन नयननक्श अच्छे हैं. कद औसत से कुछ छोटा ही है. सपना ने नौकरी करने की इच्छा जताई, लेकिन सुनंदा के पति को लड़कियों का घर से बाहर जा कर नौकरी करना पसंद नहीं है. सुनंदा भी चाहती है कि कोई सुयोग्य वर देख कर सपना के हाथ पीले कर दें क्योंकि सपना से 2 साल छोटी उन की एक और भी कन्या है. सपना के लिए सुयोग्य वर की तलाश शुरू हो गई. 2 साल ऐसे ही गुजर गए. अब सुनंदा को चिंता होनी शुरू हो गई. अपनी पड़ोसिन के साथ अपनी चिंता शेयर की.

बस फिर क्या था. पडोसिन ने कहा, ‘‘बहन, मेरे भाई की बेटी मेरी भतीजी की शादी भी नहीं हो रही थी. बड़ी अड़चनें आ रही थीं, क्या बताऊं? लड़की बहुत पढ़ीलिखी और सुंदर थी. भाई के एक दोस्त ने किसी पहुंचे हुए पंडितजी के बारे में बताया. भाई श्रीराम का भक्त है. ज्योतिषियों पर पूरा विश्वास करता है. तुरंत उस पंडितजी के पास पहुंच गया. पंडितजी ने फटाफट लड़की की कुंडली बनाई और शादी किस ग्रह के प्रकोप के कारण रुकी हुई है यह भी बताया.’’

‘‘तो क्या बहनजी उस लड़की की शादी  हो गई?’’

‘‘अजी हो गई. बहुत पैसे वाला और इंजीनियर दामाद मिल गया मेरे भाई को. लेकिन पंडितजी ने उपाय किया. उस पर बड़ा खर्चा आया. क्या आप…’’

‘‘खर्चा हो जाता है तो हो जाए बहनजी, मुझे उस पंडितजी का पता बताओ. मैं कल ही उन से मिलने चली जाऊंगी. अजी औलाद से बढ़ कर भी क्या कुछ होता है?’’

अनुष्ठान के बहाने

पड़ोसिन ने तुरतफुरत उस पहुंचे हुए पंडितजी का पता लिख कर दे दिया. फिर क्या था सुनंदा दूसरे ही दिन बेटी सपना को साथ ले कर वहां चली गई. अपने पति को बताया भी नहीं क्योंकि उन का ज्योतिषियों पर विश्वास ही नहीं था.

सुनंदा ने पंडितजी के कहे अनुसार सब से पहले बेटी सपना की कुंडली बनवाई.

कुंडली देखते ही पंडितजी बोले, ‘‘बहनजी, कन्या की कुंडली में सप्तम स्थान पर मंगल विराजमान है. लड़की मंगली है. शादी इतनी आसानी से हो नहीं सकती. हो भी गई तो सूर्य अष्टम स्थान में है. अष्टम स्थान मृत्यु का होता है.’’

‘‘इस का क्या मतलब पंडितजी?’’ सुनंदा सहम गई.

‘‘मतलब साफ है वैधव्य योग बनता है..’’

‘‘तो पंडितजी मेरी सपना के नसीब में शादी नहीं है? वैधव्य योग तो और भी बुरा. लड़की कुंआरी रहे यही सही,’’ सुनंदा के रोंगटे खड़े हो गए.

‘‘पंडितजी सचसच बताइए क्या इस का कोई उपाय है? मेरी मम्मी की हालत तो देखिए, कितनी घबरा गई हैं,’’ सपना भी मम्मी की हालत देख कर सकते में आ गई.

‘‘अरे हम बैठे हैं बहनजी. घबराना कैसा? मंगल का बुरा असर खत्म हो सकता है, लेकिन अनुष्ठान करवाना पडे़गा. ग्रह को प्रसन्न करवाना पडेगा. मंगल और सूर्य को अनुकूल बनाने के लिए एक यज्ञ करना पडेगा. देखिए आगे आप की मरजी है बहनजी. जैसी बेटी आप की, वैसी मेरी. मैं तो चाहता हूं सब कुशलमंगल हो. मैं किसी पर दबाव कभी नहीं डालता. आप किसी और ज्योतिषी के पास जाइए. वह भी यही कहेगा. अनुष्ठान किसी से भी करवाइए.’’

‘‘नहीं… नहीं… अब आप के पास आए हैं, तो इस का उपाय आप ही कीजिए पंडितजी,’’ सुनंदा ने कहा.

‘‘आप बिलकुल मत डरिए बहनजी. मंगल आप की बेटी का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. वह तो मेरी मुट्ठी में है. मंगल का प्रकोप दूर करने में तो मुझे महारथ हासिल है. इस दिशा में तो मेरी बहुत ख्याति है. एक बार मंगल सुधर गया, फिर सूर्य की कुछ नहीं चलने वाली. वैधव्य योग भी समाप्त हो जाएगा.’’

आगे की कहानी सीधी है. पंडितजी ने सब से पहले कुंडली बनाने के ₹500 लिए. फिर  2 दिन बाद एक मंगल के नग वाली अंगूठी सपना के लिए बनवा कर दी. वह ₹15,000 की थी. फिर यज्ञ का खर्चा ₹5,000 आया. दक्षिणा बगैरा मिला कर कुल खर्चा ₹25,000 आया. एक मध्यवर्ग की गृहिणी के लिए यह खर्चा बहुत ज्यादा था, लेकिन सुनंदा ने अपनी बेटी के सुखी जीवन को ध्यान में रखते हुए कर ही दिया.

आज 4 साल हो गए सपना के लिए अब  भी योग्य वर की तलाश जारी है. सपना के पिताजी को भी पता लग ही गया कि पंडितजी ₹25,000 ले गए.

अब पति के गुस्से का प्रकोप सुनंदा को झेलना पड़ रहा है. आए दिन गृहक्लेश हो रहा है. सुनंदा की पड़ोसिन का कहना है, ‘‘फिर एक बार पंडितजी को जा कर मिल लेना चाहिए. मेरे भाई की बेटी तो पंडितजी की कृपा से इतनी सुखी है कि पूछिए मत बहनजी…’’

डरे तो फंसे

मगर अब सुनंदा समझ गई है कि ज्योतिषी ने मंगल और सूर्य का डर दिखा कर उसे ठग लिया था. अब वह फिर से पंडितजी के पास जाने की इच्छुक नहीं है.

ऐसे ठग बाबाओं का कहना है कि ऐसा नहीं है मंगल लड़कियों के लिए ही घातक है वह लड़कों का भी बहुत कुछ बिगाड़ने में सक्षम है. लड़कों की शादियों में भी यह रुकावटें डालता है. लड़कों को नौकरी न मिलने के लिए भी मंगल को जोतिषी कारणी भूत बताते हैं. मकान या फ्लैट खरीदने में अड़चनें आ रही हैं, तो ज्योतिषी इस के लिए भी मंगल को दोषी ठहराने में कतराते नहीं हैं.

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ठग ज्योतिषी कहते हैं कि बुद्धि भ्रष्ट करने वाला ग्रह गुरु है. परीक्षाओं में असफलता गुरु के बुरे प्रभाव के कारण होने की अनेक कहानियां ज्योतिषियों से सुनी जा सकती हैं. चंद्र के बुरे प्रभाव से पागलपन का दौरा पड़ने की बात कहते हैं ठग ज्योतिषी. लेकिन चंद्र को भी साधने का दमखम ज्योतिषी रखते हैं. सूर्य के कुपित होने पर कौनकौन सी बीमारियां जातक को घेर लेती हैं, यह ज्योतिषी आसानी से बता सकते हैं.

ठगों के ठग

इन बीमारियों का इलाज भी ठग ज्योतिषी करते हैं. सफलता की गारंटी भी देते हैं, लेकिन बीमारी ठीक नहीं हुई तो इलाज चालू रखने की सलाह देते हैं बशर्ते आप मोटा खर्चा उठा सकते हों. इलाज आप ज्योतिषियों के साथसाथ डाक्टर से भी करवा सकते हैं. लेकिन बीमारी ठीक हो जाती है तो उस का श्रेय ज्योतिषी ही ले जाते हैं.

शुक्र को संतानोत्पत्ति, सुंदरता और कला का कारक ग्रह बताते हुए ज्योतिषी कहते हैं कि शुक्र ग्रह के कुपित होने से बांझपन और बदसूरती मनुष्य को घेर लेती है और कला जगत में प्रसिद्धि या तो प्राप्त नहीं होती या प्राप्त हो चुकी भी है तो धुलमिट्टी में मिल जाती है.

ज्योतिषियों के अनुसार, राहुकेतू भी हमेशा कुपित ही रहते हैं, लेकिन उन के कहे पर चलने से राजा को रंक और रंक को राजा भी बना देते हैं.

शनि का भय

फिर शनि का गुस्सा तो ज्योतिषियों के मुताबिक जग प्रसिद्ध है. शनि ग्रह कुपित होने पर खूनखराबा करवाता है, कोर्टकचहरी के चक्कर लगवाता है, सलाखों के पीछे पहुंचा देता है, ऐक्सीडैंट करवाता है. लेकिन ज्योतिषियों के सामने यह घुटने टेक देता है. इस को भी काबू में करने के उपाय ज्योतिषियों के पास होते हैं. बस खर्चे की परवाह नहीं करनी चाहिए.

रोहित कंप्यूटर इंजीनियर है. रात के समय कार ड्राइव कर के कहीं जा रहा था. सड़क पर एक पदयात्री को बचाने के चक्कर में गलत साइड में कार मोड़ ली और एक ट्रक के साथ टक्कर हो गई, कार पलट गई. इस ऐक्सीडैंट में उस के पांव में भारी चोट आई. इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया, लेकिन रोहित की चाची ने उस की कुंडली एक पहुंचे हुए ज्योतिषी को दिखाई. रोहित की मम्मी भी साथ ही थीं.

ज्योतिषी ने बताया, ‘‘शनि की महादशा के कारण ऐक्सीडैंट हुआ है. शनि रोहित के पांव पर भारी है. अगर कुपित शनि को शांत नहीं किया गया तो रोहित की टांग कट सकती है. डाक्टर का क्या जाता है. अगर ऐसे संकट से बचना चाहते हैं तो उपाय मेरे पास है. शनि जैसे राक्षस ग्रह को शांत करने में खर्चा तो मोटा आएगा ही. मैं अपने लिए कुछ नहीं मांग रहा. बस अनुष्ठान का खर्चा लगभग ₹50,000 आएगा.’’

किसी काम का नहीं ज्योतिष

चाची ने अनुष्ठान के लिए सहमति दर्शाई, लेकिन रोहित की मम्मी का ज्योतिषियों पर विश्वास नहीं था. उन्होंने अनुष्ठान के लिए साफ मना कर दिया और डाक्टरों पर भरोसा करते हुए अस्पताल में ही रोहित का इलाज करवाया. रोहित 2 महीनों में ठीक हो गया और चलनेफिरने लग गया. खर्चा भी 25 से 30 हजार रुपए तक ही आया. इस से रोहित की चाची ने भी सबक  लिया और ज्योतिषियों पर अंधविश्वास करना छोड़ दिया.

ग्रहों को अपनी मुट्ठी में कर लेने की बात करने वाले ठग ज्योतिषी, गुरुजी या बाबा भोलेभाले लोगों से धन ऐंठने का ही काम करते हैं. इन के झंसे में आ कर अपनी जेबें खाली न करवाएं. आकाशीय ग्रहों ने न आप का कुछ बिगाड़ा है न बिगाड़ेंगे. आप की स्वयं की कोशिशें ही आप को समस्याओं और संकटों से मुक्ति दिलवा सकती हैं.

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सभी युद्धों से खतरनाक ‘कोविड का युद्ध’

युद्ध मानव इतिहास का निरंतर हिस्सा रहे हैं. हर युग में आम जनता को बेबात में युद्धों में घसीटा जाता रहा है और युद्ध का मतलब है कि हर रोज की जिंदगी का टूट जाना. युद्ध के दौरान शहर नष्ट हो जाते. युवा लड़ाई पर चले जाते, खाने के लाले पड़ जाते, घर में किसे मारा डाला जाए पता नहीं रहता. फिर भी एक चीज जो प्रकृति की देन व आवश्यकता दोनों है, चलती रही. वह प्रेम है. युवा प्रेम हर तरह की कंडीली झाडिय़ों में भी पनपा, फूलों के बागों में पनपा, गोलियों में भी पनपा, आज प्रेम कोविड के खूनी पंजों में भी पनप रहा है.

आज कोविड का युद्ध पहले के सभी युद्धों से खतरनाक है क्योंकि यह हर व्यक्ति को अपनी खुद की वजह जेल में बंद कर रहा है. हजार बंदिशें लोगों पर लगी है जो विदेशियों के आक्रमणों में नहीं लगी, दंगों में नहीं लगीं. अकाल और बाढ़ में नहीं लगी, युद्ध क्षेत्रों में नहीं लगी. एकदूसरे से गले लगना और बात करने तक पर पाबंदी कोविड ने हर जने को जो एक छत के नीचे पहले से नहीं रहता. छूने, सहयोग, पास बैठ कर बात करने पर पाबंदी लगा दी. ऐसे में नया प्रेम कैसे हो, कैसे प्रकृति को छूने की चाहत, एकदूसरे में समा जाने की जरूरत पूरी हो.

कोविड ने जो कैद की है, वह लोकडाउनों के हटने के बाद भी न के बराबर हट रही है. मास्क में चेहरों से प्रेम निवेदशन कैसे हो सकते हैं? 2 गज की दूरी रखने से एकदूसरे का स्पर्श कैसे मिल सकता है?

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अब जिन्हें वैक्सीन लगी है, वे ढूंढ रहे हैं कि जिन्हें वैक्सीन लग चुकी हैं. उन में से कौन उन के लायक हैं पर यह वैक्सीन ऐसी नहीं जिस का ठप्पा पार्कों पर लगा हो. इस वैक्सीन के बाद भी मास्क जरूरी है. अब वह प्राकृतिक जरूरत एक जीवन साभी को कैसे पूरी हो. कोविड की दूसरी लहर जिस में एक छत के नीचे रह रहे पूरे परिवार बिमार पड़ गए सब को बुरी तरह डस दिया है.

गनीमत है कि मौडर्न टैक्नोलौजी ने इंस्ट्राग्राम, फेसबुक, व्हाट्सऐप के दरवाजे खुले रखे पर ये तो कैद खानों की छोटी खिड़कियां थीं जहां से सिर्फ आंख दिखा सकते हैं. एक इंच बाई एक इंच के चेहरे को देख कर किसी के व्यक्तित्व की पहचान तो नहीं हो सकता.

हां इस दौरान भारत में शादियां हुईं पर उन में चेहरा फेसबुक पर देखा गया, कुछ मिनट के लिए मास्क हटा और हो या न कर दी गई, 18वीं सदी की शादी की तरह. बाकी बातें सोशल मीडिया पर हुईं पर आधी अधूरी. जब तक कोई चाय के प्याले में अपनी उंगली डुबा कर न पिलाए, प्रेम थोड़े पनपना है. अब जो शादियां पक्की हो रही थीं, वे शारीरिक मिलन का समझौता हैं प्रेम का अंतिम लक्ष्य पूरा होना नहीं.

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आज के युग में समलैंगिक प्रेम

परिवार वालों द्वारा अपनी बेटी की जबरन शादी कराना आज भी नहीं रूक रहा है और प्रेमी के साथ भाग जाने पर औनर कीङ्क्षलग में प्रेमी और लडक़ी दोनों को मार तक डाला जा रहा है. उस में अब नया एंगल आने लगा है जब बेटी का प्रेम किसी लडक़े से न हो कर लडक़ी से हो. यह न केवल जाति और धर्म की चूलें हिला डालता है, परिवार के सारे अरमानों का खून करते हुए उन्हें सामाजिक उपहास के केंद्र बना डालता है.

अलीगढ़ की एक लडक़ी दिल्ली में अपनी प्रेमी के साथ रह रही थी पर उस का परिवार एक लडक़े से उस का जबरन विवाह करना चाह रहा था. वे उसे अलीगढ़ ले गए. प्रेमिका उसे घर से ले जाने के लिए पहुंची तो घरवालों ने उस की जम कर ठुकाई कर दी.

समलैंगिक प्रेम. अब धीरेधीरे खुल कर बाहर आने लगते हैं. लोग इसे स्वीकारने में घबराते नहीं हैं. बड़े शहरों में यह खुल कर संभव है क्योंकि 2 लडक़ों या 2 लड़कियों को आसानी से बिना ज्यादा सवालजवाब किए मकान किराए पर मिल जाते है क्योंकि हजारों लड़कियां रूम मेटों के साथ रूम शेयर कर रही हैं. उन में सैक्स संबंध भी हैं, यह कम को पता चलता है और बात आई गई हो जाती है. परिवार जब एक लडक़ी पर विवाह के लिए दबाव डालता है तो मुसीबत आती है. इस में वही दर्द और विरह की भावना पैदा होती है जो आमतौर पर प्रेमी प्रेमिका के अलगाव पर होती है.

समलैंगिक प्रेम आज के युग में असल में जम कर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. इस में कम कठिनाइयां हैं. इसे शादी का सॢटफिकेट मिले या न मिले, साथ रहना और परमानैंटली रहना लडक़ी लडक़े के साथ रहने से कम जोखिम वाले हैं. न बच्चे होने का डर है न तलाक की दुविधा है. आमतौर पर डोमैस्टिक वायलैंस की परेशानी भी नहीं है. जो चाहत किसी साथी की होती है जिस के साथ सोफो, किचन और बैड सब शेयर किए जा सकें, पूरे होते हैं. अब गनीमत है कि सुप्रीम कोर्ट ने उसे गैरकानूनी से कानूनी भी बना दिया ह ैऔर पुलिस दखलअंदाजी भी नहीं है.

विरासत के मामलों में थोड़ी परेशानियां हैं पर विवाह ही कोई गारंटी नहीं कि पत्नी या पति को सब कुछ मिले. कट्टरपंथियों को तो स्वागत करना चाहिए क्योंकि समलैंगिकता पौपुलर होगी तो जनसंख्या नहीं बढ़ेगी न.

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