बच्चों और सासससुर व घर की देखभाल में लीन एक आदर्श भारतीय नारी. उस की पत्नी, मां और बहू के रूप में आदर्श भारतीय नारी थी. लेकिन वह मनोज के स्वभाव के अनुकूल नहीं थी.
मनोज मस्तमौला, खिलंदड़ स्वभाव का था. वह चाहता था कि मीरा भी उस के साथ दोस्तों की महफिलों में जाए, हंसीमस्ती करे, पार्टियां मनाए, कैंडललाइट डिनर करे, परंतु मीरा को यह सब पसंद नहीं था. उस के पीछे हर समय घर या बच्चों का कोई न कोई काम लगा ही रहता था और मनोज मन मसोस कर रह जाता.
मनोज के दोस्त लड़कियों के साथ अपनी दोस्ती और मौजमस्ती के किस्से सुनाते तो मनोज का दिल भी बल्लियों उछलने लगता था. पर क्या करे, उस के तो औफिस के उस विभाग में, जहां वह काम करता था, एक भी लड़की नहीं थी.
मगर अब जूली से मिलने के बाद मनोज के मन की रंगीनियां जागने लगी थीं. आज का कैंडललाइट डिनर उस के दिल को छू गया था. पैसे को हमेशा किफायत और संभाल कर खर्च करने वाला मनोज अब दिल खोल कर पैसा खर्च कर रहा था ताकि दिल की वर्षों से अधूरी पड़ी तमन्नाएं पूरी हो जाएं.
सुबह मनोज की आंख जल्दी खुल गई. वह देर तक जूली के बारे में सोचता हुआ पलंग पर पड़ा रहा. 8 बजे भावेश और सुरेश फिर से आ धमके मसाज के लिए. आज मनोज सहर्ष तैयार हो गया. तीनों फिर पहुंचे पार्लर. जूली व्यग्रता से मनोज की राह देख रही थी. वह लपक कर उस के पास आई और हाथ पकड़ कर उसे केबिन में ले गई.
आज मसाज के समय मनोज के मन में इच्छाओं के सर्प फन उठा रहे थे. नसों का लहू बारबार आवेश से तेज हो रहा था. पर जूली मसाज करते हुए पूरे समय मनोज के सचरित्र और सभ्यता, संस्कारों के गुण गाती रही, इसलिए वह कुछ बोल नहीं पाया. अपने मन को जबरदस्ती काबू में कर के रखा. आज उन लोगों को शहर से बाहर समुद्र के किनारे पेरासीलिंग के लिए जाना था. बे्रकफास्ट कर के वे लोग निकल जाएंगे और देर शाम को वापस आएंगे. सुनते ही जूली का चेहरा उतर गया तो मनोज ने उसे आश्वासन दिया कि वह डिनर उसी के साथ करेगा.
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दिनभर के कार्यकलापों में मनोज बहुत थक चुका था. वह पलंग पर पड़े रहना चाहता था लेकिन जूली से मिलने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा था. गरमागरम पानी से नहा कर वह तैयार हो कर नियत समय पर नियत स्थान पर पहुंच गया. जूली वहां पहले से ही प्रतिक्षारत खड़ी थी. आज उसे देखते ही भावातिरेक में जूली ने उसे गले से लगा लिया. मनोज फड़क उठा. उस की सारी थकान दूर हो गई. देर तक वे पटाया की रंगीन चकाचौंध और मस्ती से भरी हुई सड़कों पर घूमते रहे. फिर एक रैस्टोरेंट में आ कर बैठ गए. वहां का माहौल मदहोश कर देने वाला था. डांसफ्लोर पर जोड़े एकदूसरे की बांहों में खोए हुए झूम रहे थे.
जूली ने मनोज से डांस का प्रस्ताव रखा. उसे तो मुंहमांगी मुराद मिल गई. वह झट से उठ बैठा. जूली के जवान और मस्ती में चूर शरीर के सान्निध्य में मनोज अपनी सुधबुध खो बैठा. वह इस नए अनुभव में पूरी तरह मदहोश हो गया. जूली का नशा उस पर पूरी तरह चढ़ चुका था. वह उस के जादू में गिरफ्तार हो गया.
डिनर करते समय जूली ने आंखों में आंसू भर कर फिर अपनी व्यथा सुनाई कि मातापिता की वृद्धावस्था और दवाइयों के बढ़ते खर्च के दबाव के चलते उस की मां ने कल फिर से उसे रेड जोन में जाने का आग्रह किया. कल उस की मां ने उसे बहुतकुछ उलटासीधा सुनाया कि उसे उन की जरा सी भी चिंता नहीं है, वह तो बस अपनेआप में ही मस्त है.
‘‘मैं उस गंदे धंधे में नहीं पड़ना चाहती मनोज, पर मां लगातार मुझ पर दबाव बनाती जा रही हैं. हर दूसरे दिन मुझे बुराभला कहती रहती हैं. मैं क्या करूं, इस से तो अच्छा है मैं आत्महत्या कर लूं,’’ जूली सुबकते हुए बोली.
‘‘नहींनहीं, जूली.’’ उस के हाथ पर सहानुभूति से अपना हाथ रखते हुए मनोज ने उसे सांत्वना दी, ‘‘ऐसे निराश नहीं होते. मैं जाने के पहले ऐसा इंतजाम कर जाऊंगा कि तुम्हें इस कीचड़ में न धंसना पड़े.’’
‘‘ओह मनोज, सच में. मैं ने अपने जीवन में तुम्हारे जैसा सच्चे और भले हृदय का आदमी नहीं देखा,’’ भावनाओं के अतिरेक में जूली ने मनोज का हाथ अपने दोनों हाथों से पकड़ कर चूम लिया.
उस रात होटल के कमरे में सोया मनोज सुबह होने तक इसी उधेड़बुन में पड़ा रहा कि क्या करे और क्या नहीं. एक क्षण उसे एहसास होता कि वह व्यर्थ ही जूली के चक्कर में पड़ गया है. 4 दिनों के लिए आया है, घूमेफिरे और लौट जाए. बेकार ही यह जंजाल उस ने अपने गले बांध लिया है. जिंदगी में दोबारा कभी उस से मुलाकात तो होगी नहीं, फिर इतना पैसा वह क्यों उस पर खर्च करने की सोच रहा है.
पर दूसरे ही क्षण उस का पुरुषत्व उसे धिक्कारता कि वह एक बेबस की मदद करने से कतरा रहा है. वह भी चंद पैसों के लिए. सच तो यह था कि वह गले तक जूली के आकर्षण में डूब चुका था. उस में पता नहीं ऐसा क्या था कि वह अपनेआप को जूली से तटस्थ नहीं रख पा रहा था. आखिर में उस ने यही तय किया कि वह जूली की मदद अवश्य करेगा. तब जा कर उसे नींद आई.
2 हजार डौलर मामूली रकम नहीं थी. दूसरे दिन भावेश, सुरेश और दोएक और दोस्तों के पास से इकट्ठा कर के मनोज ने ठीक 2 हजार डौलर जूली को दिए. क्षणभर को जूली हतप्रभ सी खड़ी डौलर्स को देखती रही, फिर मनोज के गले लग कर रोने लगी. उस की आंखों में खुशी के आंसू बह रहे थे. उस का स्पर्श पा कर मनोज के दिल में तरंगें उठने लगीं. मन में यह लालसा होने लगी कि काश, अब तो जूली खुश हो कर बस एक बार समर्पण कर दे. पर ऊपर से मर्यादावश वह कुछ बोल नहीं सका. अफसोस, जूली ने भी ऐसी कोई इच्छा नहीं जताई.
आगे पढ़ें- वह शाम भी उस ने जूली के साथ बिताई. पूरे समय…