भेडि़या और भेड़: क्या हुआ था रूबी के साथ

‘‘मां, मां…’’ लगभग चीखती हुई रूबी अपना बैग जल्दीजल्दी पैक करने लगी. मिसेज सविता उसे बैग पैक करते देख अचंभित हो बोलीं, ‘‘यह कहां जा रही है तू?’’

‘‘मां, बेंगलुरु में जौब लग गई है, वह भी 4 लाख शुरुआती पैकेज मिल रहा है. कल की फ्लाइट से निकल रही हूं.’’

सविता बोलीं, ‘‘अकेली कैसे रहेगी इतनी दूर? कोईर् और भी जा रहा है क्या?’’

रूबी मुसकराती हुई बोली, ‘‘पता है तुम क्या पूछना चाह रही हो. हां, रविश की जौब भी वहीं है. उस से बहुत सहारा मिलेगा मुझे.’’

इस पर सविता बोलीं, ‘‘तू रहेगी कहां? कोई फ्लैट या किराए का घर देख लिया है या नहीं?’’

अब रूबी की चंचल मुसकान गायब हो गई और मां को पलंग पर बैठाते हुए वह बोली, ‘‘मां, मैं और रविश वहां साथ ही रहेंगे.’’ यह सुन कर तो मां ऐसे उछल पड़ीं जैसे कि पलंग पर स्ंिप्रग रखी हो और उन के मुंह से बस यही निकला, ‘‘क्या? पागल तो नहीं हो गई तू, लोग क्या कहेंगे?’’

रूबी बोली, ‘‘जिन लोगों को तुम जानती हो, उन में से कोई बेंगलुरु में नहीं रहता, टैंशन नौट.’’

सविता ने कहा, ‘‘मति मारी गई है तेरी, भेडि़या और भेड़ कभी एक थाली में नहीं खा सकते. क्योंकि भेड़ के मांस की खुशबू आ रही हो तो भेडि़या घासफूस खाने का दिखावा नहीं करता.’’

इस पर रूबी बोली, ‘‘मां, इस भेड़ को भेडि़यों को काबू में रखना आता है. हम साथ रहेंगे अपनीअपनी शर्तों पर, शादी नहीं कर रहे हैं.’’

गुस्से में सविता बोलीं, ‘‘अरे नालायक लड़की, छुरी सेब पर गिरे या सेब छुरी पर, नुकसान सेब का ही होता है, जवानी की उमंग में तू यह क्यों नहीं समझ रही है?’’

रूबी बोली, ‘‘मां, मैं तुम से वादा करती हूं, जब तक उसे पूरी तरह समझ नहीं लेती, उस को हाथ भी नहीं लगाने दूंगी.’’

सविता ने कहा, ‘‘भाड़ में जा, ऐसी बातें तेरे मामा से तो कह नहीं सकती. काश, आज तेरे पिता जिंदा होते.’’

रूबी बोल पड़ी, ‘‘जिंदा होते तो गर्व करते कि बेटी ने दहेज की चिंता से मुक्त कर दिया.’’

रूबी बेंगलुरु पहुंची तो रविश ने उस का गर्मजोशी से स्वागत किया. रूबी मां को तो आश्वस्त कर आई मगर वह रविश के आचार, विचार और व्यवहार को बहुत ही बारीकी से तोल रही थी. रविश ने उसे छूने की तो कोशिश नहीं की मगर उस के उभारों पर उस की ललचाई नजर वह भांप सकती थी. उस दिन तो हद हो गई जब रविश अपने स्लो नैटवर्क के कारण टैलीकौम कंपनी की मांबहन भद्दीभद्दी गालियों के साथ एक कर दे रहा था.

चरित्र और आचार की परीक्षा को जब तक रूबी भुला पाती, रविश ने टीवी देखते हुए सनी लिओनी पर अपने विचार भी जाहिर कर दिए. अब तो रूबी के सपनों की दुनिया मानो ताश के पत्तों की तरह बिखर गई. दूसरे ही दिन रूबी अपना बोरियाबिस्तर बांध अपनी कलीग के घर जाने लगी, तो रविश ने उस का रास्ता रोकते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

रूबी ने उस के आचार, विचार और व्यवहार पर लंबाचौड़ा भाषण दे दिया. रविश ने सबकुछ शांति से सुना और बोला, ‘‘अरे, इतनी सी बात, यह तो मेरे अंदर का पुरुष जब मुझ पर हावी हो जाता है, तब होता है, हमेशा ऐसा नहीं होता.’’

रूबी ने कहा, ‘‘मगर रविश, मैं ने सोचा था कि तुम बाकी मर्दों से अलग होगे.’’

रविश ने कहा, ‘‘रूबी, जो पुरुष अपने को ऐसा दिखाते हैं वे झूठे होते हैं. सच तो यह है कि हर पुरुष सुंदर स्त्री को देखते ही लालायित हो उठता है. यह नैसर्गिक आदत है उस की. मैं भी पुरुष हूं, झूठ नहीं बोलूंगा. मगर मैं भी तुम्हें मन ही मन…लेकिन तुम्हारी मरजी के बिना नहीं. अब भी तुम अलग रहना चाहती हो तो मैं नहीं रोकूंगा.’’

रूबी उस की साफसाफ बोलने की आदत और नियंत्रण देख अपने कपड़े बैग से निकाल वापस अलमारी में रखने लगी. तभी लाइट चली गई और रविश बोल पड़ा, ‘‘इस को भी अभी जाना था.’’ रूबी के घूर कर देखने पर रविश जीभ दांतों में दबा उठकबैठक लगाने लगा. और रूबी ने इस बचकानेपन पर उसे चूम लिया. आज उस ने अपने अंदर की स्त्री के संयम के किनारे को भी तोड़ दिया क्योंकि आज वह भेडि़या और भेड़ की नैसर्गिकता को समझ चुकी थी.

छंटनी- भाग 1: क्या थी रीता की असलियत

शादी से पहले सुधा के मन में हजार डर बैठे थे, सास का आतंक, ससुर का खौफ, ननदों का डर और देवर, जेठ से घबराहट, पर शादी के बाद लगा बेकार ही तो वह डरतीघबराती थी. ससुराल में सामंजस्य बनाना इतना मुश्किल तो नहीं.

वैसे सुधा बचपन से ही मेहनती थी, शादी हुई तो जैसे सब को खुश करने का उस में एक जुनून सा सवार हो गया. सब से पहले जागना और सब के बाद सोना. सासननदों के हिस्से के काम भी उस ने खुशीखुशी अपने सिर ले लिए थे. जब रोजमर्रा की जिंदगी में यह हाल था तो रीतानीता की शादी का क्या आलम होता. रातरात जाग कर उन की चुनरियां सजाने से मेहंदी रचाने तक का काम भी सुधा ने ही किया.

औरों के लिए रीतानीता की शादी 2-4 दिन की दौड़धूप भले ही हो पर सुधा के लिए महीनों की मेहनत थी. एकएक साड़ी का फाल टांकने से ले कर पेटीकोट और ब्लाउज तक उसी ने सिले. चादरें, तकिया, गिलाफ और मेजपोश जो उस ने भेंट में दिए उन को भी जोड़ लें तो सालों की मेहनत हो गई, पर सुधा को देखिए तो चेहरे पर कहीं शिकन नहीं. सहजता से अपनापन बांटना, सरलता से देना, सुंदरता से हर काम करना आदि सुधा के बिलकुल अपने मौलिक गुण थे.

रीता, सुधा की हमउम्र थी इसलिए उस से ज्यादा दोस्ती हो गई. सुधा की आड़ में रीता खूब मटरगश्ती करती. सहेलियों के साथ गप्पें लड़ाती फिल्में देखती और सुधा उसे डांट पड़ने से बचा लेती. सुधा जब मैले कपड़ों के ढेर से जूझ रही होती तो कभीकभी रीता उस के पास मचिया डाल कर बैठ जाती और उसे देखी हुई फिल्म की कहानी सुनाती. यह सुधा के मनोरंजन का एकमात्र साधन था.

रीता की शादी के समय सुधा के ससुर भी जीवित थे. पर इस शादी की लगभग सारी ही जिम्मेदारी सुधा और उस के पति अजीत के ऊपर रही. अजीत को फैक्टरी में नौकरी मिलते ही पिता अपनी दुकान से यों पीछा छुड़ाने लगे जैसे अब उन के ऊपर कोई जिम्मेदारी ही न हो. जब मन होता दुकान पर बैठते, जब मन होता ताला डाल कर घूमने निकल जाते. रिश्तेदारों के यहां आनाजाना भी वह बहुत रखते.

कभीकभी अजीत कहता भी,  ‘पिताजी, रिश्तेदारों के यहां ज्यादा नहीं जाना चाहिए,’ तो उन को डांट पड़ती कि तुम मुझ से ज्यादा दुनियादारी समझते हो क्या? और जाता हूं तो उन पर बोझ नहीं बनता, जितना खाता हूं उस से ज्यादा उन पर खर्च करता हूं, समझे.

अजीत को चुप होना पड़ता. पिता ने बाहर हाथ खोल कर खर्च किया और बेटी की शादी में पूजा, पंडितजी और अपने रिश्तेदारों की विदाई के खर्च के अलावा सारा खर्च अजीत पर डाल दिया. अजीत और सुधा ने मां से बात की तो उन्होंने तटस्थता दिखा दी, ‘‘मुझे कोई मतलब नहीं. अजीत जाने अजीत का बाप जाने. मैं कमाती तो हूं नहीं कि मुझ से पूछते हो,’’ कहतेकहते मां ने अपनी मोटी करधनी अजीत को सौंप दी.

करधनी से रीता के कुछ गहने तो बन गए पर उस का मुंह सूज गया. उस के चेहरे की सूजन तभी उतरी जब सुधा ने अपना इकलौता गले का हार उस के गले में पहना दिया. इस शादी में रीता की मांग पूरी करतेकरते ही अजीत की जमा पूंजी खत्म हो गई. बाकी सबकुछ कर्ज ले कर किया गया. कर्ज चुकाने की जिम्मेदारी से बचतेबचते पिता तो दुनिया से ही चले गए और मां ने अपना मंगलसूत्र अजीत के हाथों में रख दिया. वह मंगलसूत्र सुधा ने नीता के गले में डाला, बेचा नहीं.

अजीत एक दक्ष तकनीशियन था.  आय अच्छी थी. कर्ज चुकाने में वह चूकता नहीं था लेकिन घर के लिए उसे बहुत सी कटौतियां करनी पड़तीं. गौरव व सौरभ के जन्म पर सुधा को ठीक से पोषण नहीं मिल पाया लेकिन उस ने कभी इस की कोई शिकायत नहीं की.

अजीत की मां जैसी तटस्थ थीं अंत तक वैसी ही बनी रहीं. नीता की शादी तय भी नहीं हुई थी और मां दुनिया से चली गईं. अब तो सुधा और अजीत को ही सब करना था. रीता की शादी का कर्ज चुका ही था कि नीता की शादी के लिए कर्ज लेना पड़ा और नीता को विदा कर के कमर सीधी भी न की थी कि फैक्टरी में कर्मचारियों की छंटनी होने लगी.

अजीत को भरोसा था अपने काम पर, अपनी मेहनत पर. उसे विश्वास था, छंटनी की सूची में उस का नाम कभी नहीं होगा. पर एक दिन वह भी आया जब अजीत को भी घर बैठना पड़ा. तमाम खींचतान और प्रयासों के बाद आखिर फैक्टरी बंद हो गई तो फिर कैसा ही कर्मचारी क्यों न हो उस की नौकरी बचती कैसे.

नौकरी जाने का सदमा अजीत के अंदर इस कदर बैठा कि उस ने बिस्तर पकड़ लिया. सुधा के तो मानो पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई. उस के सामने स्कूल जाते सौरभ, गौरव थे तो बिस्तर पर पड़े अजीत को भी उसे ही खड़ा करना था. रातदिन जुट कर उस ने अजीत को अवसाद के कुएं से निकालने के प्रयास किए. इसी बीच नीता को सरकारी नौकरी मिल गई थी. सुधा के लिए यह डूबते को तिनके का सहारा था.

कर्ज की एक किस्त और सौरभगौरव की फीस उस ने अपने कंगन बेच कर भरी थी. नीता मिलने आई तो सुधा ने उस के आगे सारी बातें रख दीं. नीता 4 दिन रही थी और जाते हुए बोली, ‘‘ठीक है, भाभी, तुम्हारी हालत सही नहीं है इसलिए विदाई की साड़ी और मिठाई मैं अपने पैसों से खरीद लूंगी और यह 100 रुपए भी रखो सौरभ, गौरव के लिए, मेरी ओर से कुछ ले लेना.’’

सुधा ने रुलाई रोकते हुए 100 का नोट ले लिया और आशा भरे स्वर में कहा, ‘‘नीता, इस बार के वेतन से हो सके तो कुछ भेज देना. तुम तो जानती हो हम कर्ज में डूबे हैं. तुम्हारे भैया संभलें तो ही कुछ कर सकेंगे ना.’’

‘‘देखूंगी भाभी,’’ नीता ने अनमनी सी हो कर कहा.

उस कठिन समय में सुधा ने अपनी अंगूठियां और झुमके भी बेचे और एक रेडीमेड कपड़ों की दुकान से घर पर काम लाना भी शुरू कर दिया. फैक्टरी से बकाया पैसा मिलतेमिलते 6 महीने लग गए. इस बीच सुधा ने एक कमरा किराए पर उठा दिया और अपनी सारी गृहस्थी डेढ़ कमरों में ही समेट ली. इन सारे प्रयासों से जैसेतैसे दो समय पेट भर रहा था और बच्चे स्कूल से निकाले नहीं गए थे.

प्रायश्चित: क्या हो पाई राहुल की मम्मी की शादी

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लिपस्टिक: बौस की नजर में कौन रही सटीक

मधुरिमा ने लाल ड्रैस के साथ लाल रंग की लिपस्टिक लगाई और जब वह आईने में देखने लगी तो उसे खुद अपने पर प्यार आ गया था.

मन ही मन खुद पर इतराते हुए वह सोच रही थी कि आज की डील तो फाइनल हो कर ही रहेगी. जब स्त्री हो कर उस का अपना मन खुद को देख कर काबू नहीं हो पा रहा है तो पुरुषों का क्या कुसूर?

औफिस पहुंची. मिस्टर देवेश उस का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. उसे देखते ही उन्होंने शरारत से सीटी बजाई. ये ही तो हैं उन की कंपनी का तुरुप का इक्का. लड़की में गजब का टैलेंट हैं. वह जहां कहीं भी उन के साथ जाती हैं, डील करवा कर ही आती हैं. 23 वर्ष की उम्र के हिसाब से मधुरिमा काफ़ी तेज़ थी.

मिस्टर देवेश जैसे ही मधुरिमा के साथ बाहर निकले तो करिश्मा से टकरा गए. करिश्मा को देखते ही उन का मूड खराब हो गया था. करिश्मा अगर चाहे तो इस कंपनी के वारेन्यारे कर सकती है, पर उसे तो बस काम से मतलब है. प्रैजेंटेशन गजब का बनाती है और हर क्लाइंट को अपनी बात अच्छे से समझाने में सक्षम है. पर फिर भी वह  आज तक उस लक्ष्मणरेखा को पार नहीं कर पाई है, जिसे बड़ी आसानी से पार कर के मधुरिमा ने अपने लिए सोने की लंका खड़ी कर ली थी.

मधुरिमा ज़्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी. पर मर्दों को पटाने में दक्ष थी. यह ही उस की काबिलीयत थी जिस के सहारे वह धीरेधीरे एक रिसैप्शनिस्ट के पद से बौस की ख़ास बन गई थी. कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि मधुरिमा, मिस्टर देवेश की उपपत्नी है. पर इन सब बातों से मधुरिमा की तेज रफ़्तार पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है.

करिश्मा जब मधुरिमा से कहती, ‘मधु, हर कंपनी में ऐसा वर्क कल्चर नहीं होता है. कुछ स्किल्स बढ़ाओ, कब तक इस कंपनी में रेंगती रहोगी?’

मधुरिमा तब मुसकराते हुए बोलती, ‘जिस के पास जो है करिश्मा, वह उसे ही तो प्रयोग करेगा. तुम जैसी साधरण शक्लसूरत वाली लड़कियां मुझ से अधिक पढ़ालिखा होने पर भी, मुझ से कम कमा रही हैं. प्रैजेंटेशन तुम बनाती हो, पर प्रोजैक्ट मैं ही फाइनल करवा सकती हूं. मेरी बात मानो, इस मुर्दनी से चेहरे पर लिपस्टिक के एकदो कोट अवश्य लगा लिया करो, सामने वाले को अच्छा लगेगा.’

करिश्मा को मालूम था कि मधुरिमा कुछ गलत नहीं कह रही थी. पर वह उन लड़कियों में से नहीं थी जो काबिलीयत के बजाय लिपस्टिक के बलबूते पर तरक़्क़ी करती हैं.

अगले दिन औफिस में मिस्टर देवेश ने पार्टी का आयोजन किया था. पार्टी के मौके पर मिस्टर देवेश ने बोला, ‘हमारी इवैंट कंपनी के लिए आज बहुत बड़ा दिन है. मिस मधुरिमा की मेहनत के कारण हमें इस वर्ष का सब से बड़ा कौन्ट्रैक्ट मिला है.

दफ़्तर के सभी लोगों के चेहरों   पर व्यंग्यात्मक मुसकान आ गई थी. मधुरिमा पार्टी की स्टार थी.

करिश्मा का मन खिन्न हो उठा था. दिनरात मेहनत कर के उस ने प्रैजेंटेशन बनाई थी. अगर प्रैजेंटेशन ही अच्छी न बनती तो उन लोगों को वहां एंट्री ही न मिल पाती. करिश्मा यही  सब सोच रही थी कि विवेक हाथों में जूस का गिलास ले कर आ गया और बोला, ‘करिश्मा, क्या सोच रही हो?’

‘इस रंगबिरंगी दुनिया का यह उसूल है कि  जो दिखता है वह ही बिकता है,’ करिश्मा बोली, ‘जानते तो हो , मैं चाह कर भी उस राह पर नहीं चल सकती.’

विवेक को करिश्मा से लगाव सा था. इस कंपनी में वह सब से अलग थी. विवेक करिश्मा को उत्साहित करते हुए बोला, ‘करिश्मा, तुम मेहनत करती रहो, मुझे विश्वास है कि तुम जरूर कोई करिश्मा कर के रहोगी.’

ग्रे और पर्पल सूट में करिश्मा बहुत ही सौम्य लग रही थी. वहीँ, मधुरिमा लाल फ्रौक में एकदम आग लग रही थी.

आज करिश्मा जैसे ही दफ़्तर में घुसी, तो देखा एक नया  चेहरा मिस्टर देवेश के केबिन में था. विवेक करिश्मा को देख कर हंसते हुए बोला, ‘अब देखो, मधुरिमा की  नई प्रतिद्वंद्वी आ गई है.’

करिश्मा गुस्से से  बोली, ‘क्या पता काम में बढ़िया हो, तुम लड़कियों के बारे में बहुत जजमैंटल हो, विकास. हर छोटे कपड़े पहनने वाली लड़की नाक़ाबिल नहीं होती.’

मिस्टर देवेश की छोटी सी इवैंट कंपनी थी- ‘पार्टी मास्टर.’ मिस्टर देवेश कानपुर  से दिल्ली नौकरी करने आए थे. लेकिन जल्द ही उन्हें समझ आ गया था कि उन की नौकरी के वेतन में उन के बड़ेबड़े सपने पूरे नहीं हो सकते. इसलिए कुछ सालों बाद उन्होंने यह इवैंट मैनेजमैंट कंपनी खोल ली थी. शुरू के एकदो वर्ष के भीतर ही उन्हें समझ आ गया था कि मेहनत के साथसाथ इस क्षेत्र में सफल होने के लिए और भी हुनर चाहिए. धीरेधीरे उन की कंपनी में विवेक, करिश्मा, मधुरिमा, सोहैल और जस्सी जुड़ गए थे. सोहैल और जस्सी कंपनी के लिए प्रोजैक्ट लाते थे. उन प्रोजैक्ट के लिए प्लानिंग का काम करिश्मा और विवेक करते थे. लेकिन बहुत बार फाइनल होतेहोते डील अटक जाती थी. हाई सोसाइटी में बहुत सारे क्लाइंट्स को कुछ फ़ेवर चाहिए होते थे.

मिस्टर देवेश ने इशारों से करिश्मा को ये सब समझाना चाहा था लेकिन वह टस से मस नहीं हुई थी. तभी सोहैल के तहत मधुरिमा का इस कंपनी में पदार्पण हुआ था. मधुरिमा कपड़ों के साथसाथ विचारों में भी काफी खुली हुई थी. उस ने  ‘पार्टी मास्टर’  को ग्लैमरस बना दिया था. कंपनी बहुत तेजी के साथ तरक्क़ी की राह पर अग्रसर थी. मधुरिमा कहने को किसी भी कार्य में

दक्ष नहीं थी पर वह देवेश को खुश करने के साथसाथ सारे क्लाइंट्स का भी ख़याल रखती थी. मधुरिमा ‘पार्टी मास्टर’ की स्टारपरफौर्मर थी.

परंतु आज यह शेख और हसीन चेहरा देख कर हर कोई एकदूसरे की तरफ देख रहा था. तभी मिस्टर देवेश केबिन से बाहर आए और बोले, ‘फ्रेंड्स जैसेजैसे हमारी कंपनी तरक्की कर रही है, हमारा परिवार भी बढ़ रहा है. ये हैं मिस नताशा,जो मिस भोपाल रह चुकी हैं. मैं आशा करता हूं, अब हमारी कंपनी का सक्सैस ग्राफ़ और तेज़ी के साथ ऊपर जाएगा.’

विवेक, जस्सी के कान में फुसफुसा रहा था, ‘हमारा काम तो और बढ़ गया है. ये लड़कियां उलटेसीधे तरीके से प्रोजैक्ट हथिया लेंगी और करिश्मा व मुझे रातदिन मेहनत करनी पड़ेगी.’

आज मधुरिमा के बजाय मिस्टर देवेश का पूरा ध्यान नताशा की तरफ था. मधुरिमा के चेहरे को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उस के चेहरे पर राख पोत दी हो.

अब औफिस का नज़ारा बदल गया था. मिस्टर देवेश को नताशा से बहुत उम्मीदें थीं. अब मधुरिमा लिपस्टिक के कितने भी शेड्स लगा ले लेकिन मिस्टर देवेश को कोई भी शेड आकर्षित नहीं कर पाता था. क्लाइंट्स को भी अब नई लिपस्टिक गर्ल में अधिक इंटरैस्ट था. मधुरिमा के इतिहास और भूगोल से वे सब भलीभांति परिचित थे. अब उन्हें कुछ नया चाहिए था.

एक दिन मिस्टर देवेश, नताशा के साथ किसी मीटिंग को अटेंड करने गए हुए थे. करिश्मा विकास के साथ प्रैजेंटेशन बनाने में व्यस्त थी. मधुरिमा जस्सी और सोहैल के साथ ऐसे ही गपें लगा रही थी. तभी एक औरत ने दनदनाते हुए औफिस में प्रवेश किया. गौर वर्ण, छोटीछोटी बिल्ली जैसी सतर्क आंखें, उठी हुई नाक और विलासी मोटे अधर. आते ही  तेजी से हुंकार

भरते हुए बोली, ‘कौन हैं मधुरिमा?’

मधुरिमा उठते हुए बोली, ‘जी, मैं.’

वह औरत लगभग चिग्घाड़ते हुए बोली, ‘तुम जैसी लड़कियां मेरे पति के लिए बस एक टाइमपास हो. तुझे क्या लगा, अपने पेट में किसी का भी पाप ले कर घूमेगी और उस का इलजाम मेरे पति पर लगाएगी? उस की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह ऐसा करे, तू बस उस के लिए ऐयाशी के समान से ज्यादा कुछ नहीं है. जिस का बच्चा है, या तो उस के साथ शादी कर ले या मार दे. पर यहां से तेरा कोई फायदा नहीं होगा.’

जैसे आंधी की तरह वह औरत आई थी, वैसे ही तूफान की तरह चली गई. मधुरिमा जहां थी वहीं की वहीं की वही खड़ी रही और उस का शरीर पत्ते की तरह कांप रहा था. करिश्मा ने दूर से देखा, मधुरिमा का चेहरा हल्दी की तरह पीला पड़ गया था. अगर सोहैल सहारा न देता तो मधुरिमा जरूर लड़खड़ा कर गिर पड़ती. विकास और करिश्मा मधुरिमा को डाक्टर के पास ले कर गए. डाक्टर ने विकास से पूछा, ‘आप इन के हस्बैंड हैं क्या? देखिए, इन का तीसरा माह शुरू होने वाला है, ऐसी हालत में इतना तनाव इन के लिए सही नहीं है.’

उस रात विकास की सलाह पर  करिश्मा, मधुरिमा के पास उस के घर में ही रुक गई थी. उस के घर की हर दरोदीवार पर मिस्टर देवेश की मौजूदगी के चिन्ह इंगित थे. रात में खाना खाते हुए जब करिश्मा ने मधुरिमा से पूछा, ‘मधु, क्या करना है, क्या अकेले पाल पाओगी इस बच्चे

को?’

मधु आंखों में आंसू भरते हुए बोली, ‘देवेश इस बच्चे को अपना नाम देने के लिए तैयार नहीं है. उस के हिसाब से यह मेरी मौजमस्ती का परिणाम है. करिश्मा, मैं ने सब देवेश की तरक़्क़ी के लिए किया था और मैं दिल से उसे प्यार करती हूं, पर देवेश ने नताशा के आते ही मुझे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल दिया.’

करिश्मा ने कहा, ‘सब से पहले बच्चे के बारे में सोचो और फिर कहीं और नौकरी कर लो.’

मधुरिमा बोली, ‘पिछले 3 माह से कोशिश कर रही हूं, पर मुझ जैसी सिंपल ग्रेजुएट के लिए मार्केट में कोई नौकरी नहीं है. कंप्यूटर तक तो ठीक से औपरेट नहीं कर पाती हूं.’

करिश्मा को मधु के लिए बहुत दुख हो रहा था. पर यह राह मधु ने खुद ही अपने लिए चुनी थी. फिर  अचानक से 7 दिनों के लिए मधुरिमा दफ़्तर से गायब हो गई थी. जब 7 दिनों बाद मधुरिमा ने दफ़्तर में प्रवेश किया तो वह बेहद थकी हुई लग रही थी. मधुरिमा ने ही करिश्मा को बताया कि मिस्टर देवेश ने इस शर्त पर उसे अपनी ज़िंदगी में जगह दी है कि वह गर्भपात करा ले और अपना मुंह बंद कर के जो काम कर सकती है, करे. मिस्टर देवेश की ज़िंदगी के साथसाथ अब मधुरिमा दफ़्तर के लिए भी एक फ़ालतू सामान बन गई थी.

आज मिस्टर देवेश की बहुत बड़ी डील होनी थी. नताशा खूब अच्छे से तैयार हो कर आई थी. पर इस बार क्लाइंट को प्रैजेंटेशन समझाते हुए नताशा उन के प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाई. हर बार की तरह नताशा इस बार भी अपनी अदाओं के जलवे बिखेरने लगी. पर उस की दाल नहीं गल पा रही थी. जब डील हाथ से निकलने वाली ही थी, तभी ऐन वक्त पर करिश्मा ने आ कर बात संभाल ली. कंपनी के निदेशक करिश्मा से इतने अधिक प्रभावित हुए थे कि उन्होंने करिश्मा को अपनी कंपनी में क्रिएटिव हेड टीम की पोस्ट औफर कर दी और साथ ही साथ, रहने के लिए फ्लैट और यहां से दुगना वेतन.

विकास धीरे से करिश्मा के कान में फुसफुसा कर बोला, ‘मैं कहता था न, कि करिश्मा, तुम जरूर करिश्मा करोगी.’

करिश्मा मन ही मन सोच रही थी कि लिपस्टिक से मिलने वाली सफलता लिपस्टिक की तरह ही जल्दी फेड हो जाती हैं लेकिन मेहनत से प्राप्त किया हुआ हुनर कभी फेड नहीं हो सकता. काश, मधुरिमा इस बात को अब भी समझ कर कुछ कर ले. तभी करिश्मा ने देखा, नताशा एक कोने में खड़े हुए अपनी लिपस्टिक को टचअप कर रही थी.

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प्रायश्चित- भाग 1: राहुल की मम्मी की क्या हो पाई शादी

‘‘नैक्स्ट.’’

राहुल ने अपनी फाइल उठाई और इंटरव्यूकक्ष में प्रवेश कर गया. प्रवेश करने वाले को देख कर बोर्ड की चेयरपर्सन प्रभालता चौंक गईं. हालांकि उन्होंने अपनी हैरानी को अन्य लोगों पर जाहिर नहीं होने दिया पर उन की नजर आने वाले पर जड़ी रही. राहुल भी उस नजर को भांप गया था, इसलिए वह भी असहज हो रहा था. वह बोर्ड के सामने पहुंचा तब मैडम बोलीं, ‘‘सिट डाउन,’’ और वह बैठ गया.

‘‘तुम्हारा नाम?’’

‘‘राहुल वर्मा.’’

‘‘पिता का नाम?’’

‘‘राज वर्मा.’’

आमतौर पर माता का नाम नहीं पूछा जाता लेकिन चेयरपर्सन शायद उस का पूरा इतिहास जानना चाहती थीं. इसलिए उन्होंने पूछ ही लिया, ‘‘माता का नाम?’’ जैसे छोटे बच्चे से अध्यापक पूछता है.

‘‘प्रभालता.’’

चेयरपर्सन की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी साथ ही उन के चेहरे की चमक भी बढ़ती जा रही थी. बाकी लोग सवालजवाब को सुन रहे थे, चुप थे.

‘‘तुम्हारे पिता क्या करते हैं?’’

‘‘जी, मेरे पिता मेरे जन्म से पहले ही मां को छोड़ कर चले गए.’’

‘‘क्या कोई अपनी गर्भवती पत्नी को छोड़ कर जाता है?’’

‘‘मेरे पिता और मां ‘लिव इन रिलेशन’ में थे. मां के अनुसार, वे जल्दी ही शादी करने जा रहे थे.’’

‘‘पर यह बात बताते समय क्या तुम्हारे मन में यह विचार नहीं आया कि तुम्हारी नौकरी की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है क्योंकि अभी हमारा समाज इतना आधुनिक नहीं हुआ है.’’

‘‘जो सच है उसे छिपाने का क्या फायदा? यदि बाद में पता चले तब वह शायद ज्यादा नुकसानदायक हो सकता है.’’

‘‘तुम बहुत अच्छा सोचते हो. वैसे तुम को इस पद का कोई अनुभव है?’’

‘‘नहीं, अभी कहीं काम नहीं कर रहा हूं. मैं कुछ ट्यूशन पढ़ा लेता हूं.’’

‘‘इंटरव्यू के बाद कहां जाओगे? सीधे घर?’’ प्रश्न अजीब था, लेकिन सब चुप रहे.

‘‘नहीं, पहले ट्यूशन पढ़ाने जाऊंगा.’’

‘‘तुम कहां रहते हो? तुम्हारी मां क्या करती हैं?’’

‘‘यहां आश्रम में रहते हैं. मां बीमार रहती हैं.’’

‘‘ठीक है, अब तुम जा सकते हो.’’ वह चौंक गया क्योंकि उस से पहले के लोगों से पद से संबंधित प्रश्न पूछे गए थे और उस से जो प्रश्न किए गए थे उन का साक्षात्कार से कोई संबंध नहीं था. वह उठा और चल दिया. मैडम उस से जिस लहजे में बात कर रही थीं उस से उसे लगा था कि मैडम शायद और लोगों से भिन्न हैं. लेकिन उस की आशाओं पर तुषारापात हो गया जब मैडम ने उसे जाने के लिए कह दिया. वह बाहर आया और जब घर चलने लगा तब चपरासी ने रोक दिया, ‘‘अभी जाना नहीं है. इंटरव्यू का परिणाम सुन कर जाना. अभी थोड़ी देर में परिणाम आ जाएगा.’’ वह रुक गया. राहुल का नंबर आने से पहले सबकुछ संस्था की परंपरा के अनुसार चल रहा था, लेकिन राहुल के इंटरव्यूकक्ष में प्रवेश करते ही सब बदल गया. इंटरव्यू के दौरान चुप रहने वाली चेयरपर्सन ने किसी और को बोलने का अवसर नहीं दिया.

अमूमन मैडम खुद परिणाम सुनाती थीं लेकिन आज यह जिम्मेदारी उन्होंने कालेज के प्राचार्य को सौंप दी. पहली बार कालेज डैमो के बाद चयन कर रहा था. 2 दिन बाद डैमो था. मैडम बाहर आईं और अपनी कार खुद ड्राइव कर ले गईं. उन्होंने ड्राइवर का भी इंतजार नहीं किया. मैडम कई बार आश्रम जा चुकी थीं. लेकिन इस बार मकसद दूसरा था. कालेज से निकल कर मैडम ने अपनी कार को आश्रम की ओर मोड़ दिया. रास्ते में उन्होंने आश्रम के बच्चों के लिए गिफ्ट, फल आदि खरीद लिए. आश्रम पहुंच कर वे संचालक के कमरे में चली गईं. संचालक से उन्होंने प्रभालता के बारे में पूछा. संचालक महोदय ने किसी के साथ उन को प्रभालता के पास भेज दिया.उस के कमरे में पहुंच कर वे झिझकीं, आखिर क्या कह कर वे उन से मिलेंगी. अंदर पहुंच कर उन्होंने देखाराहुल की मम्मी बिस्तर पर लेटी हुई थीं. कमरा साफसुथरा था. मैडम मुसकरा उठीं. बिस्तर पर लेटी प्रभालता ने आने वाली को देखा और पूछा, ‘‘मैं ने आप को पहचाना नहीं?’’

‘‘मैं प्रभा इंडस्ट्रीज की मालिक, प्रभालता.’’

वे हंस पड़ीं और बोलीं, ‘‘आप तो मेरी हमनाम हो. पर आप को मुझ से क्या काम है?’’ ‘‘आप का बेटा मेरे कालेज में इंटरव्यू देने आया था.’’

‘‘तो क्या आप इंटरव्यू देने वाले हर एक के घर जाती हैं?’’

‘‘नहीं, आप के बेटे ने जिस प्रकार इंटरव्यू में अपनेआप को प्रस्तुत किया उस के बाद उस मां से मिलने का मन किया, जिस ने इतने अच्छे संस्कार दिए.’’

राहुल की मम्मी मुसकरा कर बोलीं, ‘‘आप उस की कुछ ज्यादा ही तारीफ कर रही हैं.’’ लेकिन मैडम शायद जल्दी से मुद्दे पर आना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने पूछ ही लिया, ‘‘राहुल के पापा?’’

‘‘वे इस के जन्म से पहले ही चले गए.’’

‘‘यह तो राहुल ने बताया है. आप तो यह बताओ कि क्या उन को पता था कि आप गर्भवती हो?’’

‘‘उन को पता नहीं था.’’ मैडम ने ठंडी सांस ली. मन ही मन एक तसल्ली हुई. वे ऐसा क्यों कर रही थीं? अभी तक स्पष्ट नहीं हो पा रहा था.

मैडम ने पूछा, ‘‘राहुल के पापा घर छोड़ कर क्यों चले गए?’’ ‘‘इस प्रश्न का उत्तर तो मैं आज भी खोज रही हूं. जिस दिन वे गए थे उस दिन हम दोनों की आपस में लड़ाई हुई थी. पर ऐसा तो होेता रहता था. मैं ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था. मैं डाक्टर के पास चली गई. मैं गर्भवती हो गई थी. मैं खुशीखुशी घर आ गई. मैं यह खुशखबरी सुनाने के लिए उन का इंतजार करने लगी. वह इंतजार आज भी है. वे आए ही नहीं.’’

‘‘उन के औफिस से पता नहीं किया?’’

‘‘उन्होंने इतनी जल्दीजल्दी नौकरियां बदलीं कि यह पता नहीं चला कि कहां काम कर रहे हैं. हां, इतना जरूर था कि उस बार उन्होंने कहा था, अब हम जल्दी शादी कर लेंगे. यहां अपनी गाड़ी लंबे समय तक चलेगी. मैं बहुत खुश हो गई क्योंकि इन शब्दों का मुझे बहुत दिनों से इंतजार था. डाक्टर की सूचना से मैं और खुश हो गई. परंतु शाम होतेहोते मेरी सारी खुशी काफूर हो गई. वे दोपहर का खाना खाने भी नहीं आए. और आज तक नहीं आए.’’ वातावरण गंभीर हो गया. कुछ देर वहां चुप्पी छा गई. फिर राहुल की मां ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘जब उन को कुछ दिन से नहीं देखा तब लोगों में कानाफूसी शुरू हो गई. शादीशुदा नहीं थी और एक कुंआरी लड़की किसी मर्द के साथ एक कमरे में रहे, उस समय के लोगों के लिए अजूबा था. जब तक वे रहे तब तक लोग कुछ नहीं बोले, लेकिन उन के जाने के बाद लोगों की नजरें बदल गईं. लोगबाग मुझे ऐसीवैसी औरत समझने लगे. मेरा लोगों की नजरों से बचना मुश्किल होने लगा.

प्रायश्चित- भाग 3: राहुल की मम्मी की क्या हो पाई शादी

‘‘क्या पापा ने सारी बातें आप को बता दी थीं?’’

‘‘मैं विस्तार से बताती हूं, उस दिन तुम्हारे पापा कुछ फाइलों पर मेरे पापा के दस्तखत लेने घर आए थे. तभी पापा को दिल का दौरा पड़ा. तुम्हारे पापा ने उस समय सब संभाल लिया था. डाक्टरों ने उन को बाहर ले जाने के लिए कहा. मेरे पापा के साथ तुम्हारे पापा चले गए. उन्होंने तुम्हारे घर पर सूचित करने की जिम्मेदारी मुझ पर डाल दी. मैं तुम्हारी मम्मी को सूचित करना भूल गई. पापा को वहीं करीब 15 दिन लग गए.’’ सब सुन रहे थे.

मैडम बता रही थीं, ‘‘अब मेरे पापा को मेरी और अपने व्यापार की चिंता हुई. उन को सब से विश्वसनीय तुम्हारे पापा लगे. तुम्हारे पापा ने अपने लिव इन रिलेशन के बारे में बता दिया फिर भी मेरे पापा राजी थे, वे अपनी जिद पर अड़े रहे. राज को पापा यह बात बारबार कहते रहे कि वह तुम्हारी ब्याहता नहीं है, हो सकता है कि उसे कोई और मिल जाए. डाक्टर ने कह दिया था कि पापा के लिए कोई भी सदमे वाली बात जानलेवा हो सकती है. तब मैं ने तुम्हारे पापा को सुझाव दिया, हम दोनों नकली शादी कर लेते हैं. और हमारी शादी सादगी से बिना तामझाम के हो गई. ‘‘फिर पापा लग गए राज को व्यापार की बारीकियां समझाने. उन्होंने सारा व्यापार मेरे और राज के नाम कर दिया.

‘‘पापा को यह सब समझने में 15 दिन लग गए. इस दौरान तुम्हारे पापा एक रोबोट की तरह कार्य कर रहे थे. उन को लग रहा था कि वे अपनी ‘उस’ को धोखा दे रहे हैं. ‘‘इस बीच, मेरे पापा की मृत्यु हो गई. उन के अंतिम संस्कार और बाकी रस्मों में और 15 दिन लग गए. ‘‘जब फुरसत हुई तब तुम्हारे पापा ने मुझे याद दिलाया. मैं अपनी नकली शादी की बात को लगभग भूल गई थी. मैं राज को वास्तव में चाहने लगी थी. इसलिए राज की बात सुन कर मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई, फिर भी मैं राज के साथ गई परंतु वहां ‘वे’ नहीं मिलीं. आसपास पूछा तब पता चला कि एक दिन एक जीप आई थी, उस में बैठ कर वे चली गईं. कहां गईं, किसी ने नहीं बताया. उन के कार्यालय भी गए परंतु निराशा ही हाथ लगी. ‘‘हम ने खोजने की बहुत कोशिश की. तुम्हारे पापा ने मुझ से बोलना बंद कर दिया. बस, वे सारे कार्य कर रहे थे. लेकिन धीरेधीरे समय ने घाव को भर दिया. लेकिन तुम्हारे पापा मुझ से मन से नहीं जुड़ पाए.

‘‘मेरे गुनाहों की मुझे सजा मिली, मैं मां नहीं बन पाई.’’ वातावरण गंभीर हो गया था. मैडम ने राहुल से पूछा, ‘‘क्या अब भी तुम अपने पापा को दोषी मानते हो? हां, तुम यह कह सकते हो कि तुम्हारे पापा बच्चे थोड़े ही थे. परंतु तुम्हारे पापा के बारे में तुम्हारी मम्मी ज्यादा जानती हैं.’’

‘‘हां, बेटा, मैडम सही बोल रही हैं. तुम्हारे पापा को अपने से ज्यादा दूसरों के दुख परेशान करते हैं. वे बहुत संवेदनशील हैं.’’ राहुल ने सौरी कहते हुए पापा के पांव छू लिए. फिर मैडम से एक प्रश्न पूछे बिना न रह सका, ‘‘आप बात को छिपा भी सकती थीं. आप ने यह सब क्यों किया?’’ ‘‘बेटा, मुझ से जो गुनाह हो गया था उस का प्रायश्चित्त भी तो करना था,’’ फिर बोलीं, ‘‘आप लोग बातें करें. मैं चलती हूं,’’ कहते हुए मैडम चलने लगीं. तब राहुल बोला, ‘‘आप कहां चल दीं?’’

‘‘तुम्हारे परिवार का मसला है, इसलिए मैं यहां से जा रही हूं.’’

‘‘अब आप भी इस परिवार का अंग हो, मां.’’

‘‘क्या कहा तुम ने मुझे? इस शब्द को सुनने के लिए कब से तरस रही थी. एक बार और कहो.’’ राहुल ने मैडम के पैर छू लिए. मैडम ने उसे गले लगा लिया. फिर मैडम ने राहुल से कहा, ‘‘अपना जरूरी सामान ले लो, चलना है.’’

‘‘कहां?’’

‘‘घर.’’

‘‘किस हैसियत से, मां?’’

‘‘तुम एक करोड़पति बाप के बेटे हो और रहोगे. उसी हैसियत से चलोगे.’’

‘‘लेकिन मेरी मां.’’

‘‘उसी हैसियत से क्योंकि वे एक करोड़पति की बीवी हैं.’’

‘‘लेकिन वे तो आप हैं.’’

‘‘बेटे, मैं ने सब इंतजाम कर दिया है. तुम्हारी मां उसी हैसियत से चलें.’’

‘‘पर…?’’

‘‘परवर कुछ नहीं, बेटा, मेरी और तुम्हारे पापा की शादी असली जरूर थी लेकिन वहां दिल नहीं मिले थे. इसलिए तुम्हारी मम्मी ही उन की असली पत्नी रहेंगी. मैं अलग हो जाऊंगी.’’ ‘‘नहीं, आप अलग क्यों होंगी? आप तो राहुल का ध्यान रखोगी. मैं ने केवल इतना जीवन चाहा था कि मैं अपने बेटे को उस के बाप को सौंप दूं,’’ फिर प्रभावती अपने पति की ओर मुड़ीं और बोलीं, ‘‘आप अपने बेटे से खुश हैं न? मैं ने उस का अच्छा खयाल रखा है न?’’

‘‘हांहां,’’ उन के आगे बोलने से पूर्व मैडम ने कहा, ‘‘अच्छा बोलो. आप के इलाज के लिए मैं ने बड़े डाक्टर से बात कर ली है,’’ और फिर राहुल से पूछा, ‘‘अब तो अपने घर चलोगे?’’ तभी आश्रम के संचालक महोदय आए और बोले, ‘‘मैडम, सब इंतजाम हो गया.’’

‘‘क्या इंतजाम?’’ राहुल ने पूछा.

‘‘तुम्हारे मम्मीपापा की शादी. तुम को और तुम्हारी मम्मी को उन की हैसियत दिलाने की.’’ खैर, मैडम ने जो चाहा वही हुआ. राहुल की मम्मी की विदाई उसी तरह हुई जैसी शादी के बाद एक लड़की की होती है. आश्रम में सब की आंखें नम थीं और वे खुश भी थे. उधर प्रभा ने घर में भी नई मालकिन के स्वागत की भव्य तैयारी करवाई थी, इस सब से बेखबर कि लोग क्या कहेंगे. अगली सुबह सब के लिए नई थी. लेकिन कितनी देर…? क्योंकि जीवन धूपछांव का खेल है. राहुल की मां की सांसें जल्दीजल्दी चल रही थीं, डाक्टर भी आ गए. उन्होंने अपने बेटे को अपने पास बुलाया और कहा, ‘‘बेटा, मैं ने यही मांगा था कि मैं अपने बेटे को उस के पापा को सौंप कर मरूं, बस, मेरी इतनी ही जिद थी.’’ राहुल बेचारा, मां जब थीं तब पापा नहीं थे और आज पापा हैं लेकिन मां अंतिम सांसें ले रही थीं. उस की मां ने उस से यह वचन ले लिया था कि वह अपनी नई मां का उसी तरह खयाल रखेगा जिस तरह वह उस का रखता था. राहुल ने अपनी मां को वचन दे दिया. मैडम ने भी उन को वचन दे दिया और कहा, ‘‘मैं तुम्हारे अतीत के लिए तो कुछ नहीं कर सकती परंतु वर्तमान में तुम्हारे लिए कुछ कर सकूं तो शायद यही मेरा प्रायश्चित्त हो.’’

प्रायश्चित- भाग 2: राहुल की मम्मी की क्या हो पाई शादी

‘‘इधर, मेरी कंपनी ने भी मुझे नौकरी से निकाल दिया. मुझे अपना ही बच्चा बोझ लगने लगा. कभीकभी मुझे अपने बच्चे पर रोना आने लगता. तब मेरी एक सहकर्मी काम आई. उस की सहायता से मैं वहां से बहुत दूर आ गई. वहां मुझे शांति मिली क्योंकि मेरी सहकर्मी ने उन को सबकुछ बता दिया था. इसलिए कोई गंदी नजरों से देखने वाला नहीं था. परंतु मुझे अपने बच्चे की चिंता थी. इसलिए मुझे लगा, इस बच्चे को दुनिया में आना ही नहीं चाहिए. लेकिन जब आश्रम के संचालकजी को पता चला तब उन्होंने समझाया और कहा, हम यहां जीवन देने के लिए बैठे हैं, लेने के लिए नहीं. क्या पता यह बच्चा ही तुम को तुम्हारे पति से मिला दे. आश्रम वालों ने हर कदम पर मेरा साथ दिया.

‘‘मैं आप से ये सब क्यों कह रही हूं? मुझे आप अपनी सी लगीं शायद.’’

मैडम मन ही मन बुदबुदाईं, ‘अपनी? पर अगर सच पता चल जाए तो शायद वे उस से घृणा करने लगें.’ मैडम को अब वहां बैठना भारी लगा. इसलिए वे उठ गईं लेकिन फिर मिलने का वादा कर के. वहां से उठ कर वे आश्रम के संचालक के पास आ कर बैठ गईं. उन से उन की बीमारी का पता चला. यह भी पता चला कि उन को इस आश्रम में भेजा गया था कि यहां वे स्वास्थ्य लाभ कर सकें. उन्होंने ही बताया, इन की इच्छाशक्ति बहुत मजबूत है. कहती हैं कि मैं तब तक नहीं मरूंगी जब तक अपने बेटे को उस के बाप को सौंप न दूं. डाक्टर भी हैरान हैं. मैडम वापस घर आ गईं, जहां फाइलें उन का इंतजार कर रही थीं. उन का समय निकल गया. रात को 10 बजे के करीब उन के पतिदेव राज वर्मा घर आ गए.

खाना खापी कर जब दोनों सोने जा रहे थे तब मैडम बोलीं, ‘‘तुम्हारा बेटा बिलकुल तुम पर गया है.’’

‘‘मेरा बेटा? क्यों मजाक कर रही हो. संतान के लिए हम दोनों तड़प रहे हैं.’’ ‘‘मैं मजाक नहीं कर रही हूं. आज कालेज में इंटरव्यू थे. वह भी आया था. जब वह इंटरव्यू के लिए आया, उसे देख कर लगा कि तुम आ गए. वह बिलकुल आप की तरह था. उस के चश्मा लगा था, तुम्हारे नहीं लगा है. वह तो अच्छा था कि बोर्ड के अन्य सदस्यों ने आप को नहीं देखा हुआ था, वरना वे मुझ से भी ज्यादा हैरान होते.’’

‘‘मैं अभी भी नहीं समझा.’’

‘‘तुम्हारी लिव इन रिलेशन मिल गई है. तुम्हारी ‘वह’ उस समय गर्भवती थी.’’

‘‘पर उस ने मुझे तो कभी नहीं बताया.’’

‘‘उसे भी नहीं पता था. आप से झगड़े के बाद वह अस्पताल गई थी तब उसे पता चला. वह बहुत खुश थी. तुम्हें सूचना देने के लिए वह तुम्हारा इंतजार कर रही थी. और…आज भी कर रही है.’’

‘‘तुम यह सब कैसे जानती हो?’’

‘‘मैं उस से मिली हूं. वह इसी शहर में है. उस की कहानी सुन कर मुझे अपनेआप से घृणा होने लगी. एक बेटे को उस के बाप के प्यार से वंचित करने का गुनाह हो गया. मैं ने भी उसे ऐसीवैसी औरत समझा था. मेरे मन में भी यही था कि जो औरत बिना शादी के एक मर्द के साथ रह सकती है वह किसी के साथ भी भाग सकती है. मैं गलत साबित हुई. सच में, वह वास्तव में, आप से दिल से प्यार करती है. ‘‘प्रभा इंडस्ट्रीज के मालिक का बेटा आश्रम में रहे, यह मैं नहीं चाहती.’’

‘‘उस की मां?’’

‘‘वह भी हमारे साथ रहेगी.’’

‘‘क्या तुम अपने ही घर में सौतन को बरदाश्त कर सकोगी?’’

‘‘मुझ से ज्यादा, तुम पर, उस का हक है. भले ही वह तुम्हारी ब्याहता नहीं है. मुझे बस यही चिंता है कि सारी सचाई जान कर क्या वह मुझे माफ करेगी?’’ ‘‘क्या राहुल इस सचाई को स्वीकार कर सकेगा?’’ दोनों रातभर ढंग से सो नहीं पाए. सुबह दोनों जल्दी उठ गए. जल्दी से तैयार हो गए. एक डर के साथ दोनों आश्रम की ओर रवाना हो गए. उन के कमरे का एक दरवाजा बाहर सड़क की ओर खुलता था उसी ओर दोनों गए. दरवाजा खुला हुआ था.

पहले मैडम ने प्रवेश किया. मैडम को दरवाजे पर देख कर वे मुसकरा उठीं, ‘‘आज कैसे?’’

‘‘आज मैं तुम्हारे लिए सरप्राइज लाई हूं,’’ फिर दरवाजे की ओर मुंह कर के बोलीं, ‘‘राजजी, अंदर आ जाओ.’’ वे अंदर आ गए. दोनों ने एक लंबे अरसे बाद एकदूसरे को देखा और एकदूसरे को देखते ही रहे, फिर प्रभा बिस्तर से उठने की कोशिश करने लगी. राज ने तत्काल उस के पास पहुंच कर उसे अपनी बांहों में भर लिया. वे यह भूल गए कि उन की ब्याहता पत्नी साथ है. प्रभा ने भी उन्हें बांहों में भर लिया. मैडम कुछ देर तक शांत रहीं, फिर अपनी उपस्थिति दर्शाने के लिए खांसी, तब दोनों को एहसास हुआ कि कोई और भी मौजूद है, एकदूसरे से अलग हो गए. तभी राहुल ने वहां प्रवेश किया और मैडम को देख कर चौंक गया और मैडम से पूछा, ‘‘आप यहां कैसे?’’ मैडम के कुछ कहने से पूर्व ही उस की नजर मां के पास बैठे शख्स की ओर पड़ी. तभी उस की मां बोल पड़ीं, ‘‘ये तुम्हारे पापा हैं, पैर छुओ, बेटा.’’

राहुल बोला, ‘‘अब क्यों आए हैं? अब मैं अपनी मां का खयाल रख सकता हूं. उस समय कहां थे जब मां को आप की सब से ज्यादा जरूरत थी. मां ने क्याक्या नहीं भुगता. उन को दूसरों को जवाब देना पड़ा. आप को अंदाजा भी नहीं होगा.’’ वह आगे भी कुछ कहता तभी मैडम बोल पड़ीं, ‘‘तुम्हारे पापा का कोई दोष नहीं है.’’

यह सुन कर राहुल बोला, ‘‘मैडम, आप बीच में मत पडि़ए. यह हमारा पारिवारिक मामला है. आप मत बोलिए.’’

मैडम बोलीं, ‘‘मैं तुम्हारे पापा की ब्याहता हूं.’’ यह सुनते ही मां और राहुल चौंक गए.

राहुल बोला, ‘‘तभी आप ने वे प्रश्न पूछे जिन का इंटरव्यू से कोई संबंध नहीं था.’’ ‘‘तुम को देख कर मैं चौंक गई थी. पर मुझे खुशी भी हुई थी. लेकिन मैं चाहती थी कि पहले अपनी शंकाओं का समाधान कर लूं. जैसेजैसे उत्तर मिल रहे थे, मेरी खुशी बढ़ती जा रही थी. बस, मेरी एक ही चिंता थी कि क्या तुम्हारे पापा को पता था कि तुम्हारी मां गर्भवती थीं? इसलिए मैं ने तुम से पूछा था कि इंटरव्यू के बाद कहां जाओगे? क्योंकि मैं तुम्हारी मम्मी से अकेले में मिलना चाहती थी. मैं तुम्हारी मम्मी से मिली भी थी और यह भी पता चल गया कि उस समय तक तुम्हारे पिता को यह बात पता नहीं थी. मुझे एक तरह से संतुष्टि हुई थी. एक और गुनाह से बच गई थी.’’

बदलाव: क्या थी प्रमोद और रीमा की कहानी

प्रमोद को सरकारी काम के सिलसिले में सुबह की पहली बस से चंड़ीगढ़ जाना था, इसलिए वह जल्दी तैयार हो कर बसस्टैंड पहुंच गया था.

प्रमोद टिकट खिड़की पर लाइन में खड़ा हो गया था. दूसरी लाइन, जो औरतों के लिए थी, में 23-24 साल की एक लड़की खड़ी थी.

बूथ पर बस पहुंचते ही टिकट मिलनी शुरू हो गई. लेकिन तब तक लाइन भी काफी लंबी हो चुकी थी. खैर, प्रमोद को तो टिकट मिल गई और बस में वह इतमीनान से सीट पर जा कर बैठ गया.

थोड़ी देर में वह लड़की भी प्रमोद के बगल की सीट पर आ कर बैठ गई. उन्हें 3 सवारी वाली सीट पर इकट्ठा नंबर मिल गया था.

ठसाठस भरने के बाद बस अपनी मंजिल की ओर रवाना हुई. लड़की ने अपना ईयरफोन और मोबाइल फोन निकाला और गाने सुनने लगी. बीचबीच में झटके खा कर वह प्रमोद से टकराती भी रही.

बस जैसे ही शहर से बाहर निकली और सुबह की ठंडी हवा शरीर से टकराई तो प्रमोद 5 साल पहले की यादों में खो गया.

उस दिन भी प्रमोद बस से दफ्तर

के काम से चंडीगढ़ ही जा रहा था. बसअड्डा पहुंचने में उसे थोड़ी देर हो गई थी. उस दिन किसी नौकरी के लिए चंडीगढ़ में लिखित परीक्षा थी. पहली बस होने के चलते भीड़ बहुत ज्यादा थी. जहां एक ओर मर्दों की बहुत लंबी लाइन थी, वहीं दूसरी ओर औरतों की लाइन छोटी थी.

प्रमोद को यह अहसास हो चला था कि आज इस बस में शायद ही सीट मिले, लेकिन उम्मीद पर दुनिया कायम है, यह सोच कर वह लाइन में खड़ा

रहा.

तभी औरतों की लाइन में एक लड़की आ कर खड़ी हो गई. उम्र यही कोई 25 साल के आसपास. खुले बाल, पैंटटीशर्ट पहने, वह हाथ में एक बैग लिए हुए खड़ी थी.

प्रमोद ने अपनी लाइन से बाहर आ कर उस लड़की से पूछा, ‘मैडम, आप कहां जाएंगी?’

उस लड़की ने प्रमोद की तरफ गौर से देखा, फिर कुछ सोच कर बोली, ‘चंडीगढ़.’

प्रमोद ने कहा, ‘मैं भी चंडीगढ़ ही जा रहा हूं, अगर आप मेरी थोड़ी मदद कर दें तो…’

वह लड़की बोली, ‘कहिए, मैं आप की क्या मदद कर सकती हूं?’

प्रमोद ने 500 का एक नोट उसे थमाते हुए कहा, ‘आप मेरी भी एक टिकट चंडीगढ़ की ले कर मेरी मदद कर सकती हैं.’

‘ठीक है. आप बैठिए, मैं ले कर आती हूं,’ लड़की ने कहा.

प्रमोद बूथ पर लगी बस के पास

आ कर खड़ा हो गया और थोड़ी देर में वह लड़की टिकट ले कर उस के पास आ गई.

उन्हें अगले दरवाजे के बिलकुल साथ वाली 2 सवारियों की सीट मिली थी.

बस शहर से निकल पड़ी थी. प्रमोद ने उस लड़की का शुक्रिया अदा किया. बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो प्रमोद ने उस से पूछ लिया, ‘आप का क्या नाम है और चंडीगढ़ में क्या काम करती हैं?’

उस लड़की ने अपना नाम रीमा बताया और वह वहां एक फर्म में सेल्स ऐक्जिक्यूटिव थी. काम के सिलसिले में वह यहां आई थी. काम खत्म कर के वह वापस लौट रही थी.

प्रमोद ने उसे बताया कि वह यहां लोकल दफ्तर में काम करता है और सरकारी काम से महीने 2 महीने में उस का चंडीगढ़ आनाजाना लगा रहता है.

बस चलती रही तो बातों का सिलसिला भी चलता रहा. रीमा ने बताया कि वह मूल रूप से पहाड़ी है. यहां चंडीगढ़ में किराए का मकान ले कर रह रही है. घर में मम्मीपापा और छोटी बहन हैं, जो गांव में रहते हैं. बड़ा भाई नोएडा में एक प्राइवेट फर्म में सौफ्टवेयर इंजीनियर है.

प्रमोद ने बताया कि वह भी किराए का मकान ले कर रह रहा है. बीवीबच्चे सब गांव में हैं. महीने में 2-4 बार ही घर का चक्कर लग पाता है. अभी रिटायरमैंट में 12-13 साल का वक्त पड़ा है, इस के बाद ही जिंदगी शायद सैट हो पाए.

बातोंबातों में कब पेहवा आ गया, पता ही नहीं चला. बस वहां 15 मिनट के लिए रुकी.

प्रमोद नीचे उतर कर चाय और सैंडविच ले आया. जब तक चाय पी तब तक बस चलने को तैयार हो गई.

बातों का सिलसिला फिर शुरू हो गया. उन दोनों ने घरपरिवार व दफ्तर तक की तमाम बातें कर लीं. एकदूसरे को टैलीफोन नंबर भी दे दिए.

हालांकि प्रमोद की उम्र उस लड़की की उम्र से तकरीबन दोगुनी रही होगी, फिर भी उस ने उसे अपना दोस्त मान लिया था और उस से घर चलने को

कहा था.

प्रमोद ने उसे बताया, ‘इस बार तो घर नहीं चल पाऊंगा, क्योंकि जरूरी काम है. अगली बार जब भी मैं यहां आऊंगा, तो सुबह नहीं शाम को आऊंगा. रातभर आप के यहां रुक कर जाऊंगा और अगर आप को हमारे यहां आना हो तो वैसा ही आप भी करना,’ इसी वादे के साथ वे दोनों रुखसत हुए.

प्रमोद ने सुबहसुबह चंडीगढ़ दफ्तर पहुंच कर काम निबटाया और वापस बस में बैठ कर घर की तरफ रवाना हुआ.

बस रात के तकरीबन 10 बजे वापस पहुंची. बसअड्डे पर उतर कर प्रमोद अपने मकान में पहुंचा ही था कि फोन की घंटी बजी, देखा तो रीमा का ही फोन था. उठाया तो रीमा ने पूछा, ‘घर पहुंच गए ठीकठाक?’

प्रमोद ने कहा, ‘हां, अभीअभी घर पहुंचा हूं.’

रीमा ने कहा, ‘चलो, ठीक है. नहाओधोओ, खाओपीयो, थक गए होगे,’ और फोन काट दिया.

अब रीमा से हफ्ते में एकाध बार

तो फोन पर बात हो ही जाती

थी. धीरेधीरे यह दोस्ती गहरी हो रही थी.

एक महीने बाद फिर से प्रमोद को दफ्तर के काम से चंडीगढ़ जाना पड़ रहा था. प्रमोद ने रीमा से बात की तो उस ने कहा, ‘आप शाम को ही आ जाओ. सुबह जल्दी उठने में दिक्कत नहीं होगी और इसी बहाने आप के साथ रहने का मौका मिल जाएगा.’

प्रमोद ने दोपहर की बस पकड़ी तो रात 8 बजे चंडीगढ़ उतार दिया. बसअड्डे पर रीमा स्कूटी लिए खड़ी थी. स्कूटी के पीछे बैठ प्रमोद उस के मकान पर चला गया.

बहुत बढि़या घर था. रीमा ने घर में तमाम सुखसुविधाएं जुटा रखी थीं.

प्रमोद चाय पीने के बाद नहाधो कर फ्रैश हो गया. रीमा ने भी समय से पहले खाना वगैरह तैयार कर लिया था. प्रमोद के पास आ कर जुल्फें झटका कर उस

ने पूछा, ‘आप का मनपसंद ब्रांड कौन

सा है…?’

प्रमोद कुछ अचकचा गया, फिर थोड़ी देर में वह बोला, ‘जो साकी

पिला दे…’

रीमा ने विदेशी ब्रांड की बोतल ली और पैग बनाने शुरू कर दिए. 2-2 पैग लेने के बाद उन्होंने खाना खाया और पतिपत्नी की तरह प्यार कर के उसी बिस्तर पर सो गए.

प्रमोद सुबह उठा तो खुद को बहुत हलका महसूस कर रहा था. रीमा भी जल्दी उठ गई थी. उसे भी दफ्तर जाना था. उन दोनों ने तैयार हो कर नाश्ता किया और अपनेअपने काम पर निकल गए.

अब इसी तरह से जिंदगी चलने लगी. रीमा जब भी प्रमोद के पास आती तो वह उसे होटल में रख लेता. जब

भी छुट्टियां होतीं तो वे शिमला, मोरनी हिल्स, धर्मशाला जैसी कम दूरी की जगहों पर घूमने निकल जाते.

एक रात जब प्रमोद रीमा के घर पर सोने की तैयारी कर रहा था, तो उस के मन में यह सवाल उठा कि रीमा जवान है, खूबसूरत है, अच्छा कमाती है. यह तो नएनए कितने ही लड़कों के साथ दोस्ती कर सकती है, मौजमस्ती कर सकती है, फिर यह उस जैसे अधेड़ को क्यों पसंद करती है?

प्रमोद ने उस के बालों में उंगली घुमाते हुए पूछा, ‘रीमा, एक बात पूछूं, अगर आप बुरा न मानो तो…’

रीमा ने कहा, ‘मैं जानती हूं कि आप क्या पूछना चाहते हैं. आप यही जानना चाहते हैं न कि मैं यह सब अधेड़ उम्र के लोगों के साथ क्यों करती हूं, जबकि मेरे लिए जवान लड़कों की कोई कमी नहीं है?

‘मैं क्या हमारे यहां सब जवान लड़कियां यही करती हैं. इस की खास वजह यह है कि हम यहां वीकऐंड पर मौजमस्ती करना चाहती हैं. अधेड़ मर्द जिंदगी के हर तरह के रास्तों से गुजरे होते हैं. उन्हें हर तरह का अनुभव होता है. उन का अपना परिवार होता है, इसलिए वे चिपकू नहीं होते और जब जहां उन को कहा जाए वे दोस्ती वहीं छोड़ देते हैं. कमाई की नजर से भी ठीकठाक होते हैं.

‘नौजवान लड़के जिद्दी होते हैं. वे समझौता नहीं करते, बल्कि मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं. कभी नस काट लेते हैं तो कभी पागलों जैसी हरकतें करने लगते हैं. यही वजह है कि हम आप जैसों को पसंद करती हैं.’

प्रमोद और रीमा की दोस्ती तकरीबन 5 साल तक चली. उस के बाद रीमा ने शादी कर अपना घर बसा लिया और दिल्ली शिफ्ट हो गई.

हमारे समाज में यह एक नया बदलाव आया है या आ रहा है. अच्छा है या बुरा है, यह तो अलग चर्चा की बात हो सकती है, लेकिन बदलाव हो रहा है.

जीरकपुर बसस्टैंड पर बस रुकी तो झटका लगा और प्रमोद यादों से वर्तमान में लौटा. साथ बैठी लड़की उस के कंधे पर सिर रख कर सो रही थी.

प्रमोद ने उसे जगाया तो अपना बैग संभालते हुए वह बस से उतर गई.

प्रमोद बस में बैठा कुछ सोच रहा था. थोड़ी देर में बस बसअड्डे की तरफ चल पड़ी थी.

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वापसी की राह: क्या सही था बल्लू की मदद लेना का फैसला

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वापसी की राह: भाग 3- बल्लू की मदद लेना क्या सही फैसला था

लेखक- विनय कुमार सिंह

वहां पर किसी ऐसे को वह जानता भी नहीं था जिस से मदद के लिए कह सके. बल्लू इन्हीं विचारों में खोया हुआ था कि उसे एक उम्मीद दिखी. उस ने फोन उठाया और इलाके के इंस्पैक्टर को लगाया. सारी बात बताने के बाद उस ने उस से मदद मांगी, लेकिन इंस्पैक्टर यह मानने को तैयार ही नहीं था कि बल्लू बिना पैसे लिए यह काम करने जा रहा है. बल्लू ने उसे समझाया कि वह वहां की पुलिस से बात करे, उन सब को उन का हिस्सा मिल जाएगा.

‘‘ठीक है, एक पेटी मुझे चाहिए, बाकी वहां वाला जो मांगेगा, वह देना पड़ेगा.’’

‘‘ठीक है साहब, आप बात करो, पैसा मिल जाएगा,’’ बल्लू ने कहा तो एक बार खुद उसे अपनी बात पर भरोसा नहीं हुआ. बिना पैसे के आज तक कोई काम नहीं किया था उस ने और आज सिर्फ एकसाथ पढ़ने वाली लड़की के लिए इतना बड़ा काम अपने पैसे से करने जा रहा है. लेकिन कुछ तो था जरीना की आंखों में, जिस ने उसे यह सब करने पर मजबूर कर दिया था.

उस इलाके के इंस्पैक्टर से बात हुई, सौदा 3 लाख रुपए में पक्का हुआ. पैसों का इंतजाम कर बल्लू ने इंसपैक्टर को पैसे भिजवाए और अब बेसब्री से जरीना की बेटी की रिहाई के बारे में सोचने लगा.

जरीना हर समय फोन को देखती, उसे भी जैसे पूरा भरोसा था कि बल्लू जरूर उस की बेटी को छुड़ा लाएगा. जब भी फोन बजता, वह भाग कर उठाती. लेकिन, फोन बल्लू के अलावा किसी और का ही होता. एक दिन बीत गया था और उसे अफसोस हो रहा था कि उस ने क्यों बल्लू का नंबर नहीं लिया. अगले दिन फिर चलूंगी बल्लू के पास और एक बार और हाथ जोड़ूंगी उस के, यही सब सोच रही थी वह कि बल्लू का फोन आया.

उस ने जरीना को बता दिया कि उस की बेटी का पता चल गया है और उम्मीद है अगले 2 दिनों में वह उसे घर ले आएगा. बस, वह इस का जिक्र किसी से न करे और परेशान न हो. जरीना की आंखों से गंगाजमुना बह निकली, उस का मन खुशियों से सराबोर हो गया था. वह जब तक बल्लू को धन्यवाद देने के बारे में सोचती, फोन कट गया था. उस ने लपक कर बेटी का फोटो उठाया और उसे बेतहाशा चूमने लगी. उस के आंसू फोटो के साथसाथ उस के दामन को भी भिगोते रहे.

इंस्पैक्टर ने बल्लू को फोन कर के उस जगह का नाम बताया जहां उसे जरीना की बेटी मिलने वाली थी. अब बल्लू को बिलकुल भी चैन नहीं था और वह अपनी जीप में कुछ साथियों के साथ निकल गया. शाम होतेहोते वह उस इलाके के इंस्पैक्टर के पास पहुंच गया. उस ने अड्डे का पता बताया और बल्लू से कहा कि वह लड़की को ले कर निकल जाए, किसी को कानोंकान खबर न हो.

बल्लू अड्डे पर पहुंचा. जरीना की बेटी बुरी हालत में थी. पिछले कुछ दिन उस ने जिस हालत में बिताए थे, उस के चलते और कुछ की उम्मीद भी नहीं थी. पुलिस को देख कर जरीना की बेटी एकदम से चौंकी और उसे समझ में आ गया कि अब शायद उस की रिहाई हो जाए.

इंस्पैक्टर ने उस की मां से उस की बात कराई और बताया कि उस ने बल्लू को भेजा है उसे लाने के लिए. जरीना की बेटी निखत ने बल्लू को कस के पकड़ लिया और उस के कंधे पर सिर रख कर फूटफूट कर रोने लगी. कुछ देर तक तो बल्लू को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन फिर उस की आंखों से भी आंसू बह निकले.

‘‘अब चिंता मत कर बेटी, मैं आ गया हूं,’’ बोलते हुए उस ने बेटी को दिलासा दी और फिर वह इंस्पैक्टर को धन्यवाद दे कर जीप से वापस चल पड़ा. पूरे रास्ते निखत भयभीत रही, रहरह कर वह रो पड़ती थी. बल्लू उस के पास ही बैठा था और उसे दिलासा देता रहा. शाम होतेहोते बल्लू निखत को ले कर अपने शहर पहुंच गया और सीधे जरीना के घर पहुंचा. जरीना को लगातार खबर मिल रही थी उस के पहुंचने की और वह बेसब्री से दरवाजे पर ही खड़ी थी कई घंटों से.

जैसे ही जीप रुकी, निखत उतर कर भागी जरीना की तरफ. जरीना ने भी बेटी को देखा और वे दोनों एकदूसरे से लिपट कर बुरी तरह रोने लगीं. बल्लू कुछ देर ऐसे ही खड़ा जरीना और उस की बेटी को देखता रहा और फिर वह वापस अपने अड्डे पर चलने के लिए मुड़ा.

जरीना ने उस की बांह पकड़ी और फिर निखत को ले कर तीनों घर के अंदर चले गए. सब की आंखों के किनारे भी भीगे हुए थे. जरीना की बेटी तो उस से चिपक कर ही बैठी थी. अभी भी वह उस सदमे से उबर नहीं पाई थी. बल्लू भी मांबेटी को देख कर मन ही मन भीग गया. शायद पिछले कई सालों में पहली बार उस ने कोई अच्छा काम किया था जिस से उस के दिल को संतुष्टि हुई थी.

वापस आ कर बल्लू सोच में डूबा हुआ था, अब इस नेक काम को करने के बाद उसे अपना काम खटकने लगा. उसे जरीना के रूप में अब एक बहन मिल गई थी क्योंकि उस की बेटी को उस ने अपना मान लिया था.

अब उस के सामने एक बेहतर जिंदगी बिताने के लिए एक मकसद भी दिख रहा था. लेकिन जिस पेशे में वह था, उस से निकलना इतना आसान कहां था. न जाने कितने दुश्मन बन चुके थे और पुलिस में भी उस के नाम से एक बड़ी और बदनाम फाइल थी. इतना तो उसे पता ही था कि वह तभी तक बचा हुआ है जब तक वह इस पेशे में है. जिस दिन उस ने हथियार डाले, या तो दुश्मन और या फिर पुलिस उस का काम तमाम कर देगी. एक झटके में उस ने इन सब सोचों को विराम दिया और फिर वर्तमान में आ गया. हां, इतना परिवर्तन जरूर हो गया था उस में कि अब से किसी महिला या लड़की को प्रताडि़त करने वाला कोई काम नहीं करेगा.

उधर, जरीना ने फैसला कर लिया था कि अब उसे इस घटिया समाज की कोई परवा नहीं करनी है. उस समाज का क्या फायदा जो वक्त आने पर पीछे हट जाए और किसी का भला न कर सके. उस ने सोच लिया कि बल्लू को अपने घर में बुलाएगी और सारे रिश्तेदारों के सामने उसे अपना भाई बना लेगी. इसी बहाने उस की बेटी को भी एक पिता जैसे शख्स का साया मिल जाएगा. उस ने बल्लू को फोन लगाया, लेकिन उधर से आने वाली आवाज ने उसे हैरान कर दिया, ‘यह नंबर मौजूद नहीं है.’

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