जब दोस्ती में बढ़ जाए Jealousy

दोस्ती में प्यार है तो तकरार भी है. रूठना है तो मनाना भी है. यह सिलसिला तो दोस्तों के बीच चलता ही रहता है. लेकिन कई बार बेहद प्यार और परवा के बावजूद दोस्ती में जलन की भावना पैदा हो जाती है. क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों होता है? वैसे तो इस के कई कारण हैं, जैसे दोस्तों के बीच किसी तीसरे का आ जाना, पढ़ाई में किसी एक का तेज होना वगैरह. लेकिन इन सब के अलावा एक ऐसा कारण भी है जो दोस्ती में तकरार, ईर्ष्या और जलन जैसी भावनाओं को उत्पन्न कर देता है.

दरअसल, जब 2 दोस्तों के बीच पहनावे या खानेपीने जैसी चीजों में अंतर हो तो यह जलन जैसी भावनाओं को पैदा कर देता है. ऐसा ही कुछ हुआ सुहानी और अनन्या के साथ.

अनन्या और सुहानी 11वीं कक्षा से ही दोस्त हैं. वे एकदूसरे के काफी क्लोज हैं. वैसे तो सुहानी कानपुर से है लेकिन 16 वर्ष की उम्र में वह अपने पूरे परिवार के साथ दिल्ली आ गई थी. सुहानी ने 10वीं कक्षा तक की पढ़ाई कानपुर से की थी और आगे की पढ़ाई उस ने दिल्ली आ कर पूरी की.

सुहानी और अनन्या की दोस्ती दिल्ली में हुई. दरअसल, जिस कंपनी में अनन्या के पापा काम करते थे उसी कंपनी में सुहानी के पापा की भी नौकरी लग गई थी. एक दिन सुहानी के पापा ने सुहानी के दाखिले के लिए अनन्या के पापा से किसी अच्छे स्कूल के बारे में पूछा, तो उन का कहना था, ‘‘अरे, मेरी बेटी जिस स्कूल में पढ़ती है वह स्कूल तो बहुत अच्छा है. तुम चाहो तो वहां दाखिला करवा सकते हो.’’

सुहानी के पापा और सुहानी जब स्कूल में दाखिले के लिए गए तो उन्हें स्कूल काफी पसंद आया. कुछ दिनों बाद सुहानी स्कूल जाने लगी. इधर सुहानी और अनन्या बहुत अच्छी दोस्त बन गई थीं और उधर दोनों

के पापा में भी अच्छी बौंडिंग हो गई थी. दोनों के परिवार में आनाजाना भी होने लगा था.

सोच में बदलाव रिश्तों में टकराव

सुहानी और अनन्या दोनों के ही परिवार बहुत अच्छे थे, बस अंतर था तो दोनों के परिवारों के रहनसहन में. अनन्या के परिवार वाले बहुत खुले विचारों के थे. वे कभी अनन्या पर किसी प्रकार की रोकटोक नहीं करते थे. अनन्या को अपनी तरह से जिंदगी जीने की आजादी थी. वहीं, दूसरी तरफ सुहानी का परिवार खुले विचारों वाला नहीं था. वे कुछ भी सुहानी के लिए करते तो पूरे परिवार का मशवरा ले कर. जहां एक तरफ अनन्या हर तरह के कपड़े पहना करती थी, वहीं सुहानी सिर्फ जींस, टौप और कुरती ही पहनती. उसे ज्यादा स्टाइलिश और छोटे कपड़े पहनने की आजादी नहीं थी.

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स्कूल में अनन्या और सुहानी साथ ही रहा करती थीं. दोनों की दोस्ती गहरी होती जा रही थी. परीक्षा में दोनों साथ में ही पढ़ाई करतीं. अनन्या पढ़ने में एवरेज थी, पर सुहानी क्लास में अव्वल आती थी. हम अकसर देखते हैं कि मांबाप पढ़ाई को ले कर अपने बच्चों की दूसरे बच्चे से तुलना करने लगते हैं लेकिन यहां कभी न अनन्या के मातापिता ने तुलना की न खुद अनन्या ने. बल्कि अनन्या को खुशी मिलती थी सुहानी के अव्वल आने पर. परंतु सुहानी के साथ ऐसा नहीं था. सुहानी के व्यवहार में धीरेधीरे बदलाव दिखने लगा था.

जब इच्छाएं दबा दी जाती हैं

दोनों की स्कूली पढ़ाई खत्म होने को थी. 12वीं की परीक्षा से पहले स्कूल में फेयरवैल पार्टी का आयोजन किया गया था, जिस के लिए सभी उत्सुक थे. अनन्या और सुहानी ने उस दिन साड़ी पहनी थी. वैसे तो दोनों ही अच्छी लग रही थीं लेकिन सब की नजर अनन्या पर ज्यादा थी. सुहानी के सामने सब अनन्या की ज्यादा तारीफ कर रहे थे.

अनन्या की साड़ी बेहद खूबसूरत थी और उस के ब्लाउज का डिजाइन सब से अलग और स्टाइलिश था. सुहानी की साड़ी बहुत सिंपल थी और उस के ब्लाउज का डिजाइन उस से भी ज्यादा सिंपल. वैसे सुहानी का बहुत मन था बैकलैस ब्लाउज पहनने का लेकिन घरवालों के कारण उस ने अपनी यह इच्छा भी दबा दी थी.

सुहानी उस दिन बहुत शांत हो गई थी. जब भी अन्नया उस के पास आती वह उसे नजरअंदाज करने लग जाती और उस से दूर जा कर खड़ी हो जाती. अनन्या भी समझ नहीं पा रही थी कि आखिर सुहानी को हुआ क्या है. फेयरवैल के बाद सभी घूमने जा रहे थे लेकिन सुहानी पहले ही घर निकल गई थी. सुहानी को न देख कर अनन्या भी घर चली गई.

अनन्या को सुहानी की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आ रहा था, इसलिए उस ने सुहानी से पहले बात करने की कोशिश भी नहीं की. 2 दिन बाद सुहानी खुद अनन्या के पास आई. अनन्या ने जब गुस्से में पूछा, ‘‘तू उस दिन कहां चली गई थी?’’ तब सुहानी ने कहा, ‘‘उस दिन मेरी तबीयत खराब हो गई थी, इसलिए मैं तुझे बिना बताए चली गई. मैं नहीं चाहती थी कि तेरा फेयरवैल मेरी वजह से खराब हो.’’ यह सुन कर अनन्या ने उसे गले लगा लिया. लेकिन असलियत तो कुछ और ही थी. उस दिन सुहानी को अनन्या को देख कर जलन हो रही थी.

यह बात सुहानी ने उस वक्त अपने चेहरे पर जाहिर नहीं होने दी. दोनों ने 12वीं की परीक्षा दी. जब रिजल्ट आया तो अनन्या अच्छे नंबरों से पास हो गई लेकिन सुहानी ने पूरे स्कूल में टौप किया था. यह सुन कर सभी खुश हुए. अनन्या भी बहुत खुश हुई.

जब तारीफें चुभने लगें

स्कूल के बाद दोनों ने एक ही कालेज में दाखिला ले लिया. दाखिला लेने के कुछ महीने बाद ही दोनों की दोस्ती में दरार आने लगी. कालेज में अनन्या सारी एक्टिविटीज में हिस्सा लेती थी. इस कारण कालेज में उसे सब जानने लगे थे. उस के कपड़े सब से अलग और स्टाइलिश होते थे. क्लास में सभी उस को बहुत पसंद करते थे. वह कालेज की फैशन सोसाइटी का हिस्सा भी बन गई थी.

सुहानी को सिर्फ पढ़ाई में ध्यान देने को कहा गया था. हालांकि उस का भी बहुत मन होता था पढ़ाई के अलावा भी बाकी एक्टिविटीज में भाग लेने का, लेकिन घर वालों के कारण वह हमेशा अपने कदम पीछे कर लिया करती थी. यही वजह थी जो सुहानी धीरेधीरे अनन्या से दूर होने लगी थी. उस के मन में अनन्या के प्रति ईर्ष्या की भावना आने लगी थी.

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स्कूल के फेयरवेल के समय सुहानी को इतना फर्क नहीं पड़ा था. लेकिन, अब उसे अनन्या की यह आजादी चुभने लगी थी. सुहानी अपनी पसंद से न कपड़े पहन सकती थी न कहीं अपनी मरजी से जा सकती थी. वहीं अनन्या के घर वाले उसे पूरा सपोर्ट करते थे. अपने मनपसंद के कपड़े पहनना, घूमनाफिरना, वह सब करती थी. ऐसा नहीं था कि अनन्या की फैमिली सभी चीजों के लिए हां कर देती थी, हां, उसे उस के फैसले, वह क्या पहनना चाहती है, क्या करना चाहती है, यह डिसाइड करने का पूरा हक था.

जलन जब नफरत बन जाए

सुहानी और अनन्या की दोस्ती में काफी बदलाव नजर आने लगा था. अनन्या हमेशा उस के साथ रहती, लेकिन सुहानी उस से दूरियां बनाने में लगी हुई थी. यह बात अन्नया समझ रही थी लेकिन उसे लगा शायद सुहानी पढ़ाई को ले कर परेशान है. मगर आगे कुछ ऐसा हुआ कि दोनों सहेलियां हमेशा के लिए अलग हो गईं. दरअसल, अनन्या को फोटोग्राफी का कोर्स करना था जिस की स्टडी के लिए वह विदेश जाना चाहती थी. जब यह बात उस ने सुहानी को बताई तो सुहानी का कहना था, ‘‘अरे, इतनी दूर क्यों जाना है? यहीं से कर ले. और वैसे भी इस कोर्स का क्या होगा जो तू अभी कर रही है?’’ इस बात पर अनन्या का कहना था, ‘‘यह कोर्स तो मैं ने ऐसे ही जौइन कर लिया था. अच्छा, एक काम कर दे, अपने लैपटौप से इस कालेज का फौर्म भर दे. कल इस की लास्ट डेट है.’’

दोनों फौर्म भरने बैठ गईं. सभी डिटेल्स तो दोनों ने भर दीं लेकिन नैटवर्क प्रौब्लम की वजह से आगे का प्रौसेस नहीं हो पाया. यह देख कर अनन्या ने कहा, ‘‘कोई नहीं, तू आज शाम को दोबारा ट्राई कर लेना, बाकी सब तो हो ही गया है.’’

सुहानी ने भी हां कह दिया. दोनों घर चली गईं. शाम को अन्नया ने फोन पर फौर्म के लिए पूछा तो सुहानी का कहना था, ‘‘मैं ने कोशिश की लेकिन बारबार प्रौसेस फेल हो रहा है. तू चिंता मत कर, मैं कर दूंगी.’’

अगला दिन फौर्म का आखिरी दिन था. जब दोनों अगले दिन कालेज में मिले तो सुहानी ने अनन्या को देखते ही कहा, ‘‘फौर्म का प्रौसेस पूरा हो गया है.’’ यह सुनते ही अनन्या बहुत खुश हुई.

जब अनन्या ने सुहानी से ऐंट्रैंस परीक्षा की डेट पूछी तो वह थोड़ी घबरा गई. उस ने कहा, ‘‘मैं देख कर बताती हूं, ‘‘ ‘‘तभी अनन्या को याद आया उस के मेल आईडी पर सारी डिटेल्स आ गई होंगी. जब उस ने मेल चैक किया तो कुछ नहीं था. उस ने दोबारा सुहानी से पूछा, ‘‘तूने फौर्म फिल कर दिया था?’’ यह सवाल सुनते ही सुहानी शांत हो गई. दरअसल, सुहानी ने घर जाने के बाद लैपटौप चैक भी नहीं किया था. जब अनन्या ने लैपटौप में चैक किया तो कोई फौर्म फिल करने का प्रौसेस ही नहीं हुआ था.

यह देख कर अनन्या को बहुत अजीब लगा. अनन्या ने जब सुहानी के झूठ बोलने पर सवाल किया तो वह गुस्से में बोलने लगी, ‘‘मेरे पास इतना टाइम नहीं था. तेरी तरह मेरी लाइफ नहीं है. मुझे घर जा कर भी बहुत काम होता है. और वैसे भी तू विदेश जा कर क्या करेगी? तू सारी मौजमस्ती यहां कर ही लेती है. मेरा देख, सिर्फ किताबों में या घर के काम में ही पूरा दिन बीतता है.’’

अनन्या समझ गई कि जिस दोस्त पर वह इतना भरोसा करती थी वह सिर्फ उस से जलती थी. उस ने जानबूझ कर उस का फौर्म फिल नहीं किया.

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वैसे आज के समय में जलन की भावना बहुत आम हो गई है. लोग एकदूसरे का काम बिगाड़ने में लगे रहते हैं, चाहे उस से उन को फायदा हो या न हो. लड़कियों में सब से ज्यादा जलन की भावना कपड़ों या फिर खुली छूट की वजह से होती है.

जो हमें नहीं मिलता वह हम किसी दूसरे के पास भी देखना पसंद नहीं करते, जोकि सरासर गलत है. अगर आप को आप की इच्छा के अनुसार जिंदगी में कुछ करना है तो उस के लिए परिवार से बात करें. दूसरों से लड़ने के बजाय परिवार से लड़ना जरूरी है. दूसरों से ईर्ष्या कर उन को तकलीफ पहुंचा कर आप उन सभी से दूर होते चले जाएंगे. यह सब एक दिन आप को सब से अकेला कर देगा और तब पछताने के अलावा आप के पास कुछ नहीं रहेगा.

थोड़ा हम बदलें, थोड़ा आप

पल्ल्वी अपने बेटे चेतन के 12वीं कक्षा पास करने पर बहुत खुश थी, क्योंकि चेतन के अच्छे नंबर आए थे और उस का दाखिला भी मशहूर कालेज में हो गया था. लेकिन चेतन के कालेज शुरू होते ही मांबेटे के बीच दूरी बढ़ने लगी. चेतन कालेज और पढ़ाई में व्यस्त रहने लगा. जो खाली समय मिलता उस में दोस्तों से बातें करता या फिर टीवी देखता. घर में उस की मां भी हैं, वह इस बात को भूल सा गया. पहले पल्लवी पूरा दिन चेतन के काम में व्यस्त रहती थी, मगर अब खाली बैठी रहती हैं. चेतन के घर में रहते हुए भी उन्हें अकेलापन महसूस होता. वे जब भी चेतन से बात करने उस के कमरे में जातीं तो चेतन हमेशा एक ही जवाब देता कि कि मम्मी, मैं अभी थोड़ा बिजी हूं. थोड़ी देर बाद आप से बात करता हूं.

चेतन की बातें सुन कर पल्लवी पुरानी बातें याद करने लगती कि कैसे सुबह उठ कर उस के लिए टिफिन तैयार करती थी, उस की यूनीफौर्म, नाश्ता सब कुछ समय से पहले ही तैयार रखती ताकि उसे स्कूल के लिए देर न हो. उस के स्कूल से आने से पहले ही जल्दीजल्दी उस का पसंदीदा खाना तैयार करती ताकि बेटे को गरमगरम खाना खिला सके. शाम को कैसे दोनों बातें करते थे, कैसे साथ खाना खाते थे. मगर समय के साथ सब कुछ बदल गया.

1. पेरैंट्स में बढ़ता अकेलापन

आज पल्लवी की तरह बहुत से पेरैंट्स अकेलेपन की स्थिति से गुजर रहे हैं. आज इंटरनैट, मोबाइल व सोशल मीडिया ने युवाओं की जीवनशैली को इतना व्यस्त बना दिया है कि उन के पास अपने पेरैंट्स के लिए समय ही नहीं रहा. वे अपने कैरियर व दोस्तों में इतने व्यस्त हो गए हैं कि उन्हें अपने पेरैंट्स के अकेलेपन से कोई वास्ता नहीं रहा. ऐसे में पेरैंट्स के जीवन में खालीपन आने लगता है.

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जमशेदपुर की लालिका चौधरी कहती हैं, ‘‘मेरे पति और मेरे बेटे के बीच दूरी इतनी बढ़ गई है कि वे दोनों कईकई दिनों तक एकदूसरे से बात तक नहीं करते. आशुतोष जब छोटा था तब तो ठीक था, लेकिन जैसे ही कालेज जाने लगा बहुत बिजी रहने लगा. हमारे लिए उस के पास टाइम ही नहीं रहता. कालेज से आता तो अपने लैपटौप व फोन में ही व्यस्त रहता. शाम को दोस्तों के साथ घूमने निकल जाता. हम सोचते चलो कोई बात नहीं संडे को हमारे साथ समय बिताएगा, लेकिन संडे को वह काफी देर से सो कर उठता. हम कहीं बाहर चलने के लिए कहते तो मना कर देता. कभीकभी उस के इस व्यवहार पर मेरे पति को गुस्सा आ जाता और वे उसे डांट देते, जिस से घर का माहौल खराब हो जाता.’’

2. टैक्नोलौजी से बढ़ी दूरियां

आज हम फेस टू फेस बात करना पसंद नहीं करते, लेकिन हमारी फेसबुक पर टैग, पोस्ट व लाइक करने में पूरी रुचि होती है. भले ही टैक्नोलौजी हमें लोगों के पास ले आई हो, लेकिन उस ने हमें अपनों से दूर भी कर दिया है. हम अपने फोन में इतने व्यस्त रहते हैं कि पेरैंट्स से बात करने का समय ही नहीं मिलता. अब तो बच्चे मां से व्हाट्सऐप पर मैसेज कर के ही पूछते हैं कि मां खाना बन गया क्या? प्लीज बन जाए तो मेरे कमरे में ले आना या फिर व्हाट्सऐप पर मैसेज कर देना. मैं खुद ले आऊंगा. इस टैक्नोलौजी ने तो अब साथ बैठ कर खाना खाने की परंपरा को भी खत्म सा कर दिया है. अब बच्चे अपने कमरे में लैपटौप पर पिक्चर देखते हुए या फेसबुक पर गपशप करते हुए खाना खाना पसंद करते हैं. अगर उन्हें डांट कर अपने साथ खाना खिलाया जाए तो वे बेमन से खाते हैं. खाने की मेज पर एकदम शांत बैठे रहते हैं. उन्हें ऐसे बैठे देख कर पेरैंट्स सोचते हैं कि इस से तो अच्छा था कि अकेले ही खा लेते.

3. मां की बातें लगती हैं उबाऊ

जैसे ही बच्चे स्कूल से कालेज जाने लगते हैं उन्हें मां की बातें भी उबाऊ लगने लगती हैं. मां की चौइस अच्छी नहीं लगती है. मां अगर कह दें कि बेटा यह क्या पहन रखा है, वह शर्ट पहनो, जो हम ने तुम्हें बर्थडे पर दिलवाई थी तो तुरंत उलटा जवाब देते हैं कि मां, आप को फैशन की बिलकुल समझ नहीं है. वैसी शर्ट पहन कर भला कौन कालेज जाता है?

यह तो कुछ भी नहीं है, मां अगर घर से निकलते समय टिफिन पैक कर के दें तो तुरंत गुस्से में जवाब देते हैं कि अब मैं बड़ा हो गया हूं. हर वक्त मां को मौडर्न जमाने के बारे में बताते रहते हैं कि मां अब आप का जमाना नहीं रहा. यह मौडर्न जमाना है. आप के समय की चीजें पुरानी हो चुकी हैं. अब तो हाईटैक जमाना आ गया है. अब फोन व व्हाट्सऐप से ही पढ़ाई की जाती है. इसलिए आप अपने जमाने को अपने तक ही सीमित रखा करें.

4. जब अच्छे लगने लगते हैं हमउम्र

कई बार ऐसा भी देखा जाता है जब हमें कोई हमउम्र अच्छा लगने लगता है, तो हम हर समय उसी के साथ व्यस्त रहते हैं. अपने पेरैंट्स को भूल जाते हैं. घर आने पर भी फोन पर उसी से बातें करते हैं. उसी के बारे में सोचते रहते हैं.

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5. दोस्तों के लिए टाइम है, पैरेंटस के लिए नहीं

दिन भर दोस्तों के साथ रहने के बावजूद घर आने पर भी पैरेंट्स से बात करने के बजाय दोस्तों के साथ ही फोन पर लगे रहते हैं. देर रात तक दोस्तों के साथ चैट करते हैं, सुबह लेट उठते हैं फिर फटाफट तैयार हो कर कालेज के लिए भाग जाते हैं. मां कुछ भी बोलें तो कहते हैं कि मां अभी टाइम नहीं है, शाम को बात करेंगे. पेरैंट्स के लिए उन की शाम कब आएगी यह वे ही जानें.

ऐसा बिलकुल नहीं है कि इस अकेलेपन के लिए केवल युवा ही जिम्मेदार हैं. कहीं न कहीं पेरैंट्स भी ऐसी छोटीछोटी गलतियां कर बैठते हैं, जिन की वजह से इन के बीच दूरी बढ़ती जाती है. हम आज बच्चों के करीब तभी रह सकते हैं जब हम थोड़ा उन की तरह व्यवहार करें, उन्हें समझें.

6. कभी तुलना न करें

अकसर मातापिता अपने बच्चों से कहते रहते हैं कि हम जब तुम्हारी उम्र के थे तो सारा काम अकेले ही करते थे. इस तरह की बातें न करें. आप को यह बात समझनी होगी कि आप का समय अलग था, आज का समय अलग है. इस तरह से तुलना करने की वजह से बच्चे आप से दूर होने लगते हैं. वे आप की बात नहीं सुनते. हर समय अपने में व्यस्त रहने लगते हैं. फिर उन के इस तरह के व्यवहार के कारण आप को अकेलापन महसूस होने लगता है.

7. प्रतिक्रिया से बिगड़ती है बात

बच्चों के कुछ गलत करने पर मातापिता तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं. उन्हें डांटने लगते हैं. आप जल्दबाजी में ऐसा बिलकुल न करें, प्यार से समझाएं. अगर आप उन के साथ सख्ती से पेश आएंगे, तो वे आप से दूर होने लगेंगे.

8. थोड़ी स्वतंत्रता दें

पेरैंट्स ऐसा सोचते हैं कि बच्चों को स्वतंत्रता दी तो वे बिगड़ जाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं है. आप उन्हें जितना नियंत्रण में रखेंगे वे आप से उतना ही दूर होते जाएंगे.

9. खुद को भी बदलें

आज हर चीज तेजी से बदल रही है, इसलिए आप भी खुद को थोड़ा बदलने की कोशिश करें. आप के बच्चे आप को जिस चीज में सुधार लाने के लिए कहें, उस में थोड़ा बदलाव लाएं, बच्चों को अच्छा लगेगा. अकसर ऐसा होता है कि अगर घर में बच्चे के दोस्त आए हैं तो पेरैंट्स जिस ड्रैस में होते हैं, उसी में उन के सामने चले जाते हैं. ऐसा न करें. पेरैंट्स के इस तरह से आने से हो सकता है कि उन के बेटे के दोस्त बाद में उस का मजाक उड़ाएं और फिर इस वजह से आप का बेटा घर पर अपने दोस्तों को बुलाना ही बंद कर दें.

आप ने घर पर कैसी भी ड्रैस क्यों न पहनी हो. लेकिन बच्चे के दोस्त के सामने अच्छे कपड़ों में ही जाएं. कई बार बच्चे चाहते हैं कि आप भी उस के दोस्त की मां की तरह जींस पहनें. अगर आप मोटी हैं और आप के ऊपर वैस्टर्न कपड़े अच्छे नहीं लगते तो अपनी पर्सनैलिटी में सुधार लाएं. माना कि आप अपना मोटापा तुरंत कम नहीं कर सकतीं, लेकिन आप ऐसी ड्रैस तो पहन ही सकती हैं जिस में आप का बच्चा आप को अपने दोस्तों से मिलवाने में हिचकिचाए नहीं.

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10. क्या हो बच्चों की भूमिका

अगर आप पढ़ाई के सिलसिले में दूसरे शहर में हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि आप के और आप के घर वालों के बीच दूरी न बढ़े. आप उन से दूर हैं तो क्या हुआ? आप उन से फोन से जुड़े रहें. उन के फोन का जवाब दें. कई युवाओं के साथ यह भी देखा गया है कि वे कैरियर की टैंशन में इतने परेशान रहते हैं कि पेरैंट्स से उन का लगाव कम होने लगता है. वे हर समय अपने कैरियर की चिंता करते रहते हैं. आप को यह बात समझनी जरूरी है कि कैरियर अपनी जगह है और घर वाले अपनी जगह. कुछ बच्चे जब छुट्टियों में घर आते हैं तो उस वक्त भी दोस्तों के साथ ही व्यस्त रहते हैं, लेकिन आप ऐसा न करें. आप ज्यादा से ज्यादा समय पेरैंट्स के साथ बिताएं, उन से बातें करें, उन के साथ शौपिंग पर जाएं, उन के लिए सरप्राइज प्लान करें.

अगर घर में अपने पेरैंट्स के साथ रहते हैं तो अपनी पढ़ाई, दोस्त व कालेज से थोड़ा समय निकाल कर अपने घर वालों के साथ बिताएं. कालेज में हैं तो एक बार फोन कर पेरैंट्स का हालचाल पूछ लें. अपने लैपटौप पर अकसर फिल्म देखते रहते हैं. किसी दिन पेरैंट्स को साथ ले कर उन की पसंदीदा फिल्म देखें. इस तरह पेरैंट्स और बच्चों के बीच दूरी नहीं बनेगी और रिश्तों में मिठास बनी रहेगी.

लव या लस्ट: 5 आसान तरीकों से जानें अपने रिश्ते का सच

चलिए आपको पहली नजर का पहला प्यार हो गया है. दिन-रात रोमांस और करवटें बदलने में गुजर रहे हैं. उन्हें हर दिन देखने के लिए इंतजार करना मुश्किल हो रहा है. आपके दिल और दिमाग में घर चुके उस प्यार को अब जीवनसाथी बना ही लिया जाए, ऐसा सोच रही हैं.

लेकिन जरा अपने दिमाग के रोमांटिक घोड़े को लगाम दीजिये और यह तो चेक कर लीजिए कि जिसे आप प्यार करती या करते हैं वो भी आपको love करता है या फिर आप उसके Lust (वासना) का सामान मात्र ही हैं.

यानी जब उसे सेक्स करना हो तभी आपकी याद आती हो ऐसा तो नहीं. हो भी सकता है और नहीं भी. क्योंकि लव और लस्ट में फर्क करना आसान नहीं होता. उलटे कई बार तो लस्ट में डूबा पार्टनर असली लवर से भी ज्यादा सीरियस रिएक्शन देता है.

इसलिए आप का प्यार भी कहीं प्यार और वासना के बीच उलझन में तो नहीं है, यह जानने के 5 आसान तरीके हैं. इन्हें अपने पार्टनर पर आजमा कर देखिये और लस्ट का लस्ट और लव का लव कर डालिए.

1. जब अंखियों में न झांके सैयां

पहली नजर का प्यार आंखों से ही शुरु होता है और लस्टबाज लवर की पकड़ भी आंखों से ही होती है. अगर आपको लगता है कि आपका प्यारा प्यार आपकी आंखों में झांकने में फेल हो जाता हो तो समझ जाइये उसे आपसे नहीं आपके फिगर और सेक्सुअल परफौर्मेंस से प्यार है.

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दरअसल रिलेशनशिप एक्सपर्ट मानते हैं कि आंखें किसी की नीयत समझने के लिए खिड़की जैसी होती हैं. जब कोई आपको प्यार करता है, तो वे आपको आंखों में निसंकोच देखेगा और अपनी दिल की बातें/भावनाएं जाहिर कर देगा, लेकिन अगर आंख में देखने के बजाए उसकी नजर आपके शरीर के अन्य हिस्सों जैसे स्तन, नितम्ब, जांघ पर केंद्रित है तो आप उसके लव नहीं बल्कि यौन रूचि पूरी करने का आसान रास्ता भर है. सो बी अलर्ट.

2. दोस्ती नहीं तो Sex Slave हैं आप….

दोस्ती प्रेम पर आधारित हर रिलेशनशिप की बहुत मजबूत नींव होती है, जब आप किसी से प्यार करते हैं, तो आप उसके दोस्त जरूर होते हैं. दोस्तों की तरह अपने लव पार्टनर के साथ हैंग आउट करना पसंद करते हैं. उसके साथ जोक्स शेयर करते हैं. जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे के लिए हमेशा खड़े होते हैं और आपसी मतभेदों का सम्मान करते हैं. अगर आपके लव रिलेशनशिप से दोस्ती के पहलू को हटा दें तो फिर आपका सबंध उसके साथ मास्टर-स्लेव सरीखा हो जाता है.

जहां मालिक की इच्छा पूर्ति ही आपका इकलौता योगदान होता है रिलेशनशिप के नाम पर. अगर आपका पार्टनर आपसे दोस्त की तरह पेश नहीं आता और लव के नाम पर आपसे सेक्स करता है तो समझ जाइए कि आपका रिश्ता लस्ट की नींव पर टिका है. जो कभी भी भरभरा कर गिर सकता है.

3. सेक्स का 2.0  तो नहीं

जब दो लोग प्यार करते हैं, सेक्स सिर्फ एक फिजिकल एक्ट होता है. असली रिश्ता उसके बाद शुरू होता है और आपको इसका एहसास उसके स्पर्श करने के तरीके, बाहों में भरने और चुंबन के अंदाज से हो जाता है. सेक्स ही हो तो यह एक यांत्रिक यानी रोबोटिक रिलेशन बनकर रह जाता है जहाँ हम मशीनी कमांड की तरह सिर्फ सेक्स को ही तरजीह देते हैं. इसलिए प्यार अगर मशीनी होता जा रहा है तो चिंता की बात है.

साथ ही वह आपकी राय सम्मान करता है या नहीं? आप को भी सेक्सुअल प्लेज़र देने में दिलचस्पी रखता है? सिर्फ अपनी ही भूख मिटाता है? सेक्स के क्षणों में ही उत्साहित या आपके साथ हंसकर पेश आता है? जैसे फैक्टर भी तय करते हैं कि वह आपसे लव करता है लस्ट. सेक्स एक्सपर्ट मानते हैं कि सेक्सुअल एक्ट के बाद अगर आपका पार्टनर आपकी जिदगी से जुड़े असली मुद्दों पर ध्यान नहीं देता है और क्षणिक संतुष्टि पर फोकस रखता है तो ऐसे रिश्ते का कोई भविष्य नहीं होता.

4. फ से फ्यूचर…

यदि आपका रिश्ता पूरी तरह से वासना पर आधारित है, तो आपका पार्टनर भविष्य के बारे में कोई भी बात करने से बचेगा. जैसे पेरेंट्स से कब और कैसे मिलना है, उन्हें शादी के लिए कैसे मनाना है, शादी कब, कैसे करेंगे, घर कहां लेंगे, बच्चों के नाम क्या होंगे आदि.

दरअसल जो प्यार करते हैं वे एक एक-दूसरे के साथ भविष्य के सपने बुनते हैं. बिना फ्यूचर टाक के कोई भी रिश्ता टिकाऊ नहीं हो सकता है. यदि आपको भी उस से सेक्स से ही मतलब है तब कोई बात नहीं लेकिन अगर आपको उसके साथ अपना फ्यूचर नजर आता है जरा फिर से सोचिए. क्योंकि फ से फ्यूचर आपके लिए हो सकता है उसके लिए तो F से कुछ और ही होगा.

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5. तू किसी और से मिलके तो देख…

जो सिर्फ आपके शरीर से प्यार करते हैं और इस रिश्ते को लेकर गंभीर नहीं वे अक्सर आपको अकेले में ही मिलने के लिए फ़ोर्स करेंगे. यानी जब सेक्स की चाह होगी तो मिलेंगे लेकिन आपको अपने दोस्तों और परिवार से मिलाने से परहेज करेंगे. हमेशा कोई न कोई बहाना बनाकर अपने और आपके घरवालों से मिलने से बचेंगे. सब कुछ रहस्यजनक रहेगा. रिश्ते को निजी रखने की कोशिश का दिखावा कर आपको सब से अलग रखेंगे और सेक्स का आनंद लेंगे. इसलिए, अगर आपका साथी आपके सामने अपने परिवार और दोस्तों की बात नहीं करता तो यह प्यार नहीं है, बल्कि वासना है. दरअसल उनकी भावनाएं वासना की ओर हैं, वे सिर्फ आपके शरीर से प्यार करते हैं और कोई भावनात्मक कनेक्शन फील नहीं करते.

उम्मीद है इशारा समझ रहे होंगे और अगर 5 ट्रिक्स पढ़ ली हैं तो काफी हद तक अनुमान भी लगा लिया होगा कि आपका पार्टनर Lover है या Luster.

अगर आपको भी पसंद नहीं पार्टनर की आदतें तो अपनाए ये टिप्स

बंटी और रोशनी कुछ समय पहले ही दोस्त बने थे. हर मुलाकात के दौरान रोशनी को बंटी का व्यक्तित्व और साथ बहुत भला लगता. हर मुलाकात में बंटी वैलडै्रस्ड दिखता, जिस से रोशनी बहुत प्रभावित होती. धीरेधीरे दोनों का प्रेम परवान चढ़ा और फिर उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. बंटी हमेशा रोशनी से स्त्रीपुरुष समानता की बातें करता. अंतत: रोशनी ने बंटी से शादी करने का फैसला कर लिया.

शादी हुए साल भर भी नहीं बीता था कि रोशनी के सामने बंटी की कई बुरी आदतें उजागर होने लगीं. उसे पता चला कि बंटी तो रोज नहाता भी नहीं है और जब नहाता है, तो नहाने के बाद गीले तौलिए को कभी दीवान पर तो कभी सोफे पर फेंक देता है. रात को सोते समय ब्रश भी नहीं करता है. रोशनी को बंटी से ज्यादा फोन करने की भी शिकायत रहने लगी. अब बंटी की स्त्रीपुरुष समानता की बातें भी हवा हो गईं. शादी के तीसरे ही साल दोनों अलग हो गए.

लव मैरिज की खास बातें

जब भी लव मैरिज की बात होती है तो उस के समर्थन में सब से बड़ा और ठोस तर्क यही दिया जाता है कि इस में दोनों पक्ष यानी लड़का-लड़की एकदूसरे को अच्छी तरह जान लेते हैं. लेकिन क्या हकीकत में ऐसा हो पाता है? वास्तव में दूर रह कर यानी अलगअलग रह कर किया जाने वाला प्रेम बनावटी, अधूरा और भ्रमित करने वाला हो सकता है. ऐसा प्रेम करना किसी भी युवा के लिए काफी आसान होता है, क्योंकि इस में उसे अपने व्यक्तित्व का हर पक्ष नहीं दिखाना पड़ता. वह बड़ी आसानी से अपनी बुरी आदतें छिपा सकता है. इस प्रकार के प्रेम में ज्यादातर मुलाकातें पहले से तय होती हैं और घर से बाहर होती हैं, इसलिए दोनों ही पक्षों के पास तैयारी करने और दूसरे को प्रभावित करने का काफी समय होता है.

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असली परीक्षा साथ रह कर

घर से बाहर प्रेमीप्रेमिका को एकदूसरे की अच्छी बातें ही नजर आती हैं. विभिन्न समस्याओं के अभाव में कुछ तो नजरिया भी सकारात्मक होता है, तो सामने वाला भी अपना सकारात्मक पक्ष ही पेश करता है. प्रेमी सैंट, पाउडर लगा कर इस तरह घर से निकलता है कि प्रेमिका को पता ही नहीं चल पाता कि वह आज 2 दिन बाद नहाया है. प्रेमिका को यह भी नहीं पता चलता कि उस का प्रेमी अपने अंडरगारमैंट्स रोज बदलता भी है या नहीं. और पिछली मुलाकात में उस के प्रेमी ने जो शानदार ड्रैस पहनी थी वह उसी की थी या किसी दोस्त से मांग कर पहनी थी.

कुल मिला कर लव मैरिज हो या अरेंज्ड मैरिज, किसी भी जोड़े की असली परीक्षा तो साथ रह कर ही होती है. इस लिहाज से विवाह के स्थायित्व की गारंटी को ले कर लव मैरिज या अरेंज्ड मैरिज में ज्यादा अंतर नहीं है, क्योंकि दोनों ही मामलों में साथी का असली रूप तो साथ रह कर ही पता चलता है. दोनों ही तरह की शादियों में यह दावा नहीं किया जा सकता कि जीवनसाथी कैसा निकलेगा?

सामंजस्य भी जरूरी

हम यहां इस बहस में नहीं पड़ रहे कि दोनों तरह की शादियों में कौन सी शादी सही है, लेकिन इतना जरूर कह रहे हैं कि शादी से पहले किया गया प्रेम शादी के बाद किए जाने वाले प्रेम से आसान होता है. शादी के बाद जोड़े को एकदूसरे के बारे में सब पता चल जाता है. एकदूसरे की असलियत खुल जाती है. अच्छीबुरी सब आदतें पता चल जाती हैं. जिंदगी की छोटीबड़ी समस्याएं भी साथ चलने लगती हैं.

इस के बाद भी यदि उन में प्रेम बना रहता है तो हम उसे असली प्रेम कह सकते हैं. बेशक कुछ लोग इसे समझौता भी कहते हैं, मगर हर रिश्ते का यह अनिवार्य सच है कि कुछ समझौते किए बिना कोई भी, किसी के भी साथ, लंबे समय तक या जिंदगी भर नहीं रह सकता.

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ताकि मुसीबत न बने होस्टल लाइफ

लेखक- पारूल श्री

कीर्तिके होस्टल का पहला दिन था. 22 साल की कीर्ति इस से पहले कभी घर से दूर किसी दूसरे शहर जा कर होस्टल में नहीं रही थी. इसलिए वह काफी नर्वस थी, लेकिन साथ ही उत्साहित भी थी. शाम के 4 बजे जब वह होस्टल के कमरे में सामान ले कर पहुंची तो वहां पहले से एक लड़की मौजूद थी.

औपचारिक परिचय के बाद कीर्ति ने अपना सामान रख कर कमरे का जायजा लिया. कमरे में  3 बैड थे. एक कीर्ति का, दूसरा रिद्धिमा का, जो वहां पहले से थी और तीसरा रूहाना नाम की लड़की का था, जो उस समय वहां नहीं थी. कीर्ति से कुछ देर बातचीत के बाद रिद्धिमा किसी काम से बाहर चली गई. उस के जाने के बाद कीर्ति ने अपने कपड़े और सामान अलमारी में लगाया और बिस्तर पर लेट गई. वह थकी हुई थी, लिहाजा लेटते ही सो गई.

अचानक गेट पर हुई खटखट से उस की नींद खुली. घड़ी पर नजर डाली तो रात के 8 बज रहे थे. कमरे के दरवाजे पर रिद्धिमा थी. कुछ देर बाद रिद्धिमा उसे अपने साथ डिनर के लिए होस्टल के मैस में ले गई.

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रिद्धिमा 19 साल की शांत और सरल स्वभाव की लड़की थी और फर्स्ट ईयर में थी. इसलिए कीर्ति को भी उस के साथ घुलनेमिलने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. रिद्धिमा कीर्ति को दीदी कह कर बुलाने लगी. खाना खा कर कुछ देर दोनों होस्टल के कैंपस में टहलने लगीं. रात के 10 बज चुके थे. कमरे पर लौटने के बाद रिद्धिमा पढ़ने बैठ गई और कीर्ति ने भी अपनी किताबें खोल ली.

उस दिन कीर्ति ने रूहाना के बारे में ज्यादा पूछताछ नहीं की और थोड़ी देर इधरउधर की बातें करने के बाद दोनों सो गईं. दूसरे दिन कीर्ति जब शाम को कालेज से आई तो कमरा अंदर से बंद था. काफी देर खटखटाने के बाद जब दरवाजा खुला तो सामने एक लड़की खड़ी थी, जिस की आंखों में नींद थी. खुले बाल, शौर्ट्स, स्लीवलैस टौप में वह बेहद मौडर्न नजर आ रही थी. उम्र यही कोई 24-25 होगी. लेकिन उस की नींद से भरी लाललाल आंखें देख कर कीर्ति को थोड़ा अजीब सा महसूस हुआ.

दरवाजा खोल कर वह अपने बैड पर जा कर सो गई. कीर्ति समझ गई कि वह रूहाना है, लेकिन उसे अपना परिचय देने और उस का परिचय लेने से पहले ही वह सो चुकी थी. रिद्धिमा के बताए अनुसार ही उस का पूरा बैड बिखरा था. अपने फैले कपड़ों के ऊपर ही वह सो रही थी. बैड के पास रखी टेबल पर पर्स और साथ में सिगरेट का पैकेट रखा था.

फ्रैश हो कर कीर्ति ने अपने घर फोन किया. मांपापा से बात कर के उसे बहुत अच्छा लग रहा था. शाम की चाय ले कर वह बालकनी में आ कर बैठ गई. 5 बजे तक रिद्धिमा भी आ गई. डिनर के समय तक रूहाना सो रही थी. रात के 10 बजे डिनर के बाद दोनों जब अपने कमरे में आईं तब तक रूहाना भी फ्रैश हो कर अपने बिखरे कपड़ों को बैड के एक कोने में धकेलने में व्यस्त थी.

रिद्धिमा ने रूहाना का कीर्ति से परिचय कराया. रूहाना कीर्ति के घरपरिवार और उस की स्टडी वगैरह के बारे में पूछने लगी. ‘‘इतनी पढ़ाई कैसे कर लेते हो तुम लोग? मुझ से तो मुश्किल से ग्रैजुएशन तक की पढ़ाई ही हो पाई है.’’

कीर्ति ने भी उस से पूछा कि वह क्या करती है. ‘‘मैं तो अभी कुछ नहीं करती हूं. बस घूमना और मस्ती करना… यह नौकरी और पढ़ाई मेरे बस की बात नहीं है,’’ रूहाना ने बेपरवाही से कहा.

‘‘ओके, मैं तो अब पढ़ने जा रही हूं,’’ कीर्ति ने जैसे ही रूहाना से कहा, रूहाना ने उसे फिर से रोकते हुए कहा कि कुछ देर और बातें करते हैं. तुम लोग तो रोज ही पढ़ाई करते हो. कीर्ति और रिद्धिमा के बारबार मना करने पर भी रूहाना ने उन की किताबें बंद करवा कर अपने लैपटौप पर फिल्म लगा दी. फिल्म भी कुछ ऐसी कि कीर्ति और रिद्धिमा नींद का बहाना कर के उठ गईं. रूहाना देर रात तक फिल्म देखते हुए पौपकौर्न खाती रही. फिर रात के 3 बजे बालकनी में जा कर उस ने ड्रिंक किया और 1 घंटा पीने के बाद बिस्तर पर पड़ कर सो गई.

सुबह जब कीर्ति नहाने के बाद बालकनी  में गई तो उस के पैर से कोई चीज टकराई. देखा तो शराब की बोतल थी और पास ही 2-3 सिगरेट के टुकड़े पड़े थे. कीर्ति के लिए ये सब बहुत अजीब था. उस ने इस बारे में रिद्धिमा से बात करने की सोची.

रिद्धिमा से बात करने पर पता चला कि वह तो खुद रूहाना के बरताव से परेशान है. कई बार तो रूहाना ने रिद्धिमा को ड्रिंक भी औफर किया और सिगरेट भी पीने को कहा. जब रिद्धिमा ने उसे समझाने की कोशिश की तो उस ने यह कह कर चुप करा दिया कि वह उस की मम्मी बनने की कोशिश न करे. रिद्धिमा ने बताया कि एक बार उस की तबीयत बिगड़ने पर रूहाना ने उस का बहुत ध्यान रखा था. उस के खानेपीने से ले कर दवा और बाकी सारी चीजों का भी उस ने पूरा खयाल रखा था. इसलिए वह चाह कर भी मैनेजमैंट से उस की शिकायत नहीं कर पाती है.

रिद्धिमा ने कीर्ति से कहा, ‘‘मैं जानती हूं कि वह थोड़ी अजीब है, शराबसिगरेट पीती है, बेतुकी बातें करती है, लेकिन दिल की बुरी नहीं है. मैं ने रूम भी बदलने की सोची थी पर दूसरा कोई रूम खाली न होने के कारण नहीं बदल सकी. सच बताऊं दीदी तो मैं इन सब चक्करों में पड़ना नहीं चाहती हूं. घर पर भी नहीं बता सकती, उलटा मुझे ही डांट सुनने को मिलगी, क्योंकि मैं अपनी जिद्द से घर से बाहर पढ़ाई करने के लिए आई हूं.’’

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रिद्धिमा ने तो यह सोच कर चुप्पी साध ली कि कौन फालतू के चक्करों में पड़ने जाए. लेकिन कीर्ति ने रूहाना से बात करने की सोची. उस ने रूहाना को समझाया कि वह ये सारी चीजें कमरे के अंदर न किया करे, इस से उन्हें काफी दिक्कत होती है. लेकिन रूहाना की हरकतों में कोई कमी नहीं आई.

रूहाना के रूटीन से कीर्ति का मन भर आया था. रोज सुबह बालकनी में शराब की बोतल और शाम को कालेज से आने के बाद कमरे में सिगरेट के जले टुकड़े देख कर कीर्ति परेशान हो चुकी थी. उस की उलटीसीधी बातें मसलन कौन किस का बौयफ्रैंड है, कौन किस के साथ डेट पर गया, किस ने अपनी वर्जिनिटी लूज की या किस ने अभी तक नहीं की… जैसी बेतुकी बातों से वह कीर्ति के सब्र का इम्तिहान ले रही थी. कीर्ति शुरू से ही बोल्ड और स्ट्रौग लड़की थी. उस ने अपने घर वालों को फोन पर बताया तो घरवालों ने उसे इस के खिलाफ ठोस कदम उठाने को कहा.

एक दिन जब कीर्ति शाम को थकी हुई कालेज से होस्टल वापस आई तो उस के कमरे का दरवाजा खुला था. अंदर आ कर देखा तो रूहाना शौर्ट्स और टौप में कीर्ति के ही बिस्तर पर सोई पड़ी थी. बैड के नीचे शराब की बोतल पड़ी थी और पूरे कमरे में अजीब सी गंध फैली हुई थी. कीर्ति ने फौरन वार्डन को अपने कमरे में बुलाया और रूहाना की हालत दिखाई.

दूसरे दिन वार्डन ने रूहाना को बुला कर बीती रात की हरकत के बारे में पूछा और उस के पेरैंट्स से बात करने की बात कही. लेकिन रूहाना ने माफी मांग कर दोबारा ऐसा नहीं करने का वादा किया.

इस के बाद से कीर्ति और रूहाना के बीच बातचीत बंद हो गई, हां, रिद्धिमा दोनों से ही बातें कर लेती थी और कीर्ति के उठाए कदम से रूहाना की हरकतों पर जो लगाम लगी थी, उस से खुश भी थी. रूहाना ने शराब पीनी तो नहीं छोड़ी, लेकिन अब वह शराब की बोतल छिपा कर रखती थी. किसी दिन अगर शराब पी कर सोती थी तो नींद खुलने के बाद वह खाली बोतल और सिगरेट के टुकड़े हटा कर कमरा साफ भी कर देती थी.

होस्टल में रहते हुए हो सकता है कि आप को भी ऐसी रूमपार्टनर मिली हो, जिस से आप को काफी परेशानी और मानसिक तनाव झेलना पड़ा हो. कीर्ति ने तो इस परेशानी से छुटकारा पा लिया, लेकिन क्या इस परेशानी का सिर्फ कम होना काफी है? अगर आप होस्टल या किराए पर कमरा लेने से पहले थोड़ी सर्तकता बरतें और छोटीछोटी बातों का ध्यान रखें तो हो सकता है कि इन परेशानियों और बिन बुलाई मुसीबतों से बच जाएं.

कीर्ति ने तो सही समय पर सही कदम उठा लिया, लेकिन रिद्धिमा जैसी लड़कियां भी होती हैं जो किसी डर या जानेअनजाने में ऐसे लोगों का विरोध करने की जगह चुप रहना बेहतर समझती हैं. वहीं रूहाना वार्डन की चेतावनी से थोड़ी संभल गई, लेकिन हो सकता है कि रूहाना जैसी हरकतों वाली कोईर् और लड़की गुस्से में आ कर कीर्ति जैसी लड़कियों के साथ कुछ बुरा कर दे या फिर कोई भोलीभाली लड़की हो तो उसे बहलाफुसला कर गलत चीजें सिखा दें, जैसा कि रूहाना रिद्धिमा के साथ कर रही थी.

आज बहुत सी लड़कियां पढ़ाई और नौकरी के सिलसिले में घर से दूर दूसरे बड़े शहरों या महानगरों में रहती हैं, जहां उन्हें कालेज के होस्टल या निजी छात्रावास या फिर किराए पर फ्लैट्स ले कर रहना पड़ता है. ऐसे में बाहर रहने वाली लड़कियों को तो आंख और कान खुले रखने ही चाहिए. साथ ही पैरेंट्स और होस्टल के मैनेजमैंट और फ्लैट्स के मालिकों को भी कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए.

पेरैंट्स रखें बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार

आज बहुत से युवा अपने मांबाप के साथ खुले और बेझिझक माहौल में रहते हैं. जो पेरैंट्स अपने बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखते हैं, वे कूल कहलाते हैं. बच्चे अपनी हर परेशानी और बातें अपने मांबाप से तभी कह पाते हैं जब उन्हें लगता है कि उन की बातों के लिए उन्हें पेरैंट्स से डांट और लेक्चर नहीं मिलेगें.

रीमा अपने पेरैंट्स से अपनी हर छोटीबड़ी बात डिसकस करती है. चाहे वह कालेज की हो या दोस्तों की. उस की मां उस की बातों को अच्छी तरह सुनती भी हैं और रीमा के गलत होने पर उसे एक दोस्त की तरह समझाती भी हैं. इसलिए अगर कभी भी रीमा को कोई मुश्किल आती है तो वह अपनी मां की मदद लेती है और उस की मां भी उसे परेशानी से निकालने का रास्ता सुझाती हैं. रीमा के पेरैंट्स उस से प्यार भी करते हैं और उस पर भरोसा भी करते हैं, जिस से रीमा किसी भी मुश्किल हालात को चुपचाप सहन करने की जगह उस से बाहर निकलने का रास्ता आसानी से निकाल लेती है.

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यह जरूरी है कि अनुशासन के नाम पर बच्चों को खुद से दूर रखने की जगह उन के दोस्त बन कर किसी भी अनजान मुसीबत से बाहर निकलने की हिम्मत दें. ताकि कल को कोई बाहरी व्यक्ति आप के बीच के फासलों का फायदा न उठा सके और आप के बच्चे जहां भी रहें, सुरक्षित रहें.

खुद को बनाएं स्ट्रौंग ऐंड स्मार्ट

पढ़ाई हो या नौकरी, जब आप को घर से दूर किसी अनजान शहर में, अनजान लोगों के बीच रहना पड़े तो वहां आप का सब से सच्चा साथी आप खुद होते हैं. किसी भी मुश्किल घड़ी में अपनी मदद आप खुद कर पाएं, उस के लिए जरूरी है कि आप मानसिक और शारीरिक तौर पर मजबूत बनें. आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास के साथ आप खुद को किसी भी मुसीबत से बाहर निकाल सकती है. खुद को कमजोर और अनाड़ी बना कर जीने से लोग आप का फायदा उठा सकते हैं. बहुत जरूरी है कि किसी भी मुश्किल हालात से निकलने के लिए सोचसमझ कर पूरे आत्मविश्वास के साथ सही कदम उठाएं.

डर से बाहर निकलें

दूसरों का हौसला तोड़ने या उन्हें नीचा दिखाने से लोग पीछे नहीं हटते हैं. खास कर होस्टल में रहने वाली लड़कियां अपने से छोटी या भोलीभाली लड़कियों को बुली करने का काफी प्रयास करती हैं. उन्हें डरानाधमकाना, अपने छोटेमोटे काम कराना, उन के पैसे खुद पर खर्च करा लेना, उन के कौस्मैटिक्स यूज कर लेना उन की आदत होती है. ऐसा कर के वे कमजोर लड़की को अपने अंगूठे के नीचे रखना चाहती हैं.

इन स्थितियों से बचने के लिए जरूरी है कि आप किसी से बेवजह डर कर न रहें या किसी की बदतमीजी सहन न करें. अगर वे आप के सामने कोई भी अश्लील हरकत करें या गंदे शब्दों का प्रयोग करें अथवा आप की चीजें आप की इजाजत के बिना इस्तेमाल करें तो बिना डरे मना करें. अगर चीजें गंभीर लगने लगें तो अपने पेरैंट्स को भी इस बारे में जरूर बताएं.

बात कर के हल निकालें

अगर आप को अपने रूमपार्टनर से किसी चीज को ले कर परेशानी हो रही हो या उस की दिनचर्या से आप का काम बाधित हो रहा हो, तो उस से बात करें. उसे समझाएं कि उस के किस काम से आप को परेशानी होती है, आपस में बात कर के हल निकालें. हो सकता है कि आप के किसी क्रियाकलाप से उसे दिक्कत आ रही हो. अपनेअपने कामों का समय तय कर लें. यह भी बताएं कि वह आप की कौन सी चीजों को इस्तेमाल न करे या फिर अपनी चीजें आप की टेबल और बिस्तर पर न फैलाए.

हर स्थिति के लिए रहें तैयार

खुद को हर तरह की स्थिति के लिए तैयार रखें. कभीकभी दबंग रूममेट्स गालीगलौच या मारपीट करने पर भी उतारू हो जाते हैं. ऐसे में अपने बचाव के लिए आप को भी शारीरिक रूप से तैयार रहना चाहिए. यही नहीं, ऐसे रूममेट की शिकायत मकानमालिक या पुलिस को देने में भी संकोच नहीं करना चाहिए. ऐसा न हो कि आप शिकायत करने के बारे में सोचती ही रह जाएं और वह आप को ज्यादा नुकसान पहुंचा जाए.

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रूममेट्स से सचेत रहें

भले ही आप को अपनी रूमपार्टनर अच्छी लगती हो, लेकिन आंखें मूंद कर उस पर भरोसा करना आप को मुसीबत में भी डाल सकता है. रूमपार्टनर से निजी बातें करने की भूल न करें. अपने घरपरिवार की बातें तब तक शेयर न करें जब तक कि वह बहुत ज्यादा भरोसेमंद न हो जाए. इस बात को कतई न भूलें कि आप घर से दूर अपने सपनों को पूरा करने गई हैं. होस्टल या निजी कमरा किराए पर लेने के पीछे एकमात्र उद्देश्य आप की अपनी सुरक्षा और सुविधा होती है. कहीं ऐसा न हो कि दूसरों के कारण आप का होस्टल या बाहर अकेले रहने का अनुभव खट्टा हो जाए. होस्टल लाइफ को सुरक्षित तरीक से जीने के लिए जरूरी है कि आप खुद ही समझ और होशियारी से काम लें.

जब टूटे रिश्ते चुभने लगें

शादी का रिश्ता प्यार और विश्वास का होता है. दो लोग मिल कर एक जीवन शुरू करते हैं और एकदूसरे का सहारा बनते हैं. मगर जब रिश्तों में प्यार कम और घुटन ज्यादा हो तो ऐसे रिश्ते से अलग हो जाना ही समझदारी मानी जाती है. मगर अलग हो जाने के बाद की राह भी इतनी आसान नहीं होती.

पतिपत्नी के बीच रिश्ता टूटने के बाद अक्सर महिलाओं को ज्यादा समस्याएं आती हैं. यह इसलिए होता है क्योंकि आर्थिक जरूरतों के लिए महिलाएं अमूमन अपने पुरुष साथी पर निर्भर होती हैं. विवाद की स्थिति में उन्हें आर्थिक तंगी से बचाने के लिए कानून में कई प्रावधान किए गए हैं. इन्ही में एक मुख्य है गुजाराभत्ता.

हिंदू मैरिज ऐक्ट 1955 में पति और पत्नी दोनों को मैंटीनैंस का अधिकार दिया गया है. वहीं स्पेशल मैरिज ऐक्ट 1954 के तहत केवल महिलाओं के पास यह हक है.

पति से अलग होने के बाद महिला को पति से अपने और बच्चे के पालनपोषण के लिए गुजारेभत्ते के तौर पर हर माह एक निश्चित रकम पाने का हक़ कानून द्वारा दिया गया है. यदि महिला कमा रही है तो भी उसे गुजाराभत्ता दिया जाएगा. यह नियम इसलिए बनाया गया है ताकि वह सम्मान के साथ अपना जीवनयापन कर सके.

पत्नी के नौकरी न करने पर विवाद की स्थिति में कोर्ट महिला की उम्र, शैक्षिक योग्यता, कमाई करने की क्षमता देखते हुए गुजाराभत्ता तय करता है. बच्चे की देखरेख के लिए पिता को अलग से पैसे देने पड़ते हैं.

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सुप्रीम कोर्ट ने मासिक गुजारेभत्ते की सीमा तय की है. यह पति की कुल सैलरी का 25 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता है. पति की सैलरी में बदलाव होने पर इसे बढ़ाया या घटाया जा सकता है.

मगर कई बार देखा जाता है कि पति गुजाराभत्ता यानी मैंटीनैंस देने में आनाकानी करते हैं और किसी भी तरह यह रकम कम से कम कराने की जुगत में लगे रहते हैं. वे कोर्ट के आगे साबित करने का प्रयास करते हैं कि उन की आय काफी कम है. वैसे भी रिश्तों में आया तनाव इंसान को एकदूसरे के लिए कितना संगदिल बना देता है इस की बानगी हम अक्सर देखते ही रहते हैं.

हाल ही में हैदराबाद का एक मामला भी गौर करने योग्य है. एक डॉक्टर ने अपनी अलग रह रही पत्नी को 15,000 रुपये प्रति माह गुज़ाराभत्ता देने के आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. लेकिन जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय की ओर से पारित उस आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया,

ग़ौरतलब है कि दोनों की शादी 16 अगस्त, 2013 में हुई थी और दोनों का एक बच्चा भी है. बच्चे के जन्म के बादपतिपत्नी के बीच कुछ मतभेद पैदा हुए. पत्नी ने घरेलू हिंसा के मामले के साथ ही मैंटीनैंस की अरजी डाली. पत्नी ने दावा किया था कि उस का पति प्रति माह 80,000 रुपये का वेतन और अपने घर और कृषि भूमि से 2 लाख रुपये की किराये की आय प्राप्त कर रहा है . उस ने अपने और बच्चे रखरखाव लिए 1.10 लाख रुपये के मासिक की मांग की .
फैमिली कोर्ट ने मुख्य याचिका के निपटारा होने तक पत्नी और बच्चे को प्रति माह 15,000 रुपये रखरखाव का देने का आदेश दिया . मगर पति ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई.

सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या आज के समय में सिर्फ 15,000 रूपए में बच्चे का पालनपोषण संभव है? पीठ ने लोगों की ओछी मनोवृति की ओर इशारा करते हुए कहा कि इन दिनों जैसे ही पत्नियां गुजाराभत्ते की मांग करती हैं तो पति कहने लगते हैं कि वे आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं या कंगाल हो गए हैं, यह उचित नहीं.

शादीब्याह के मामलों में हमारे देश में अजीब सा दोगलापन देखा जाता है. जब रिश्ते की बात होती है तो लड़के की आय और रहनसहन को जितना हो सके उतना बढ़ा कर बताया जाता है. लेकिन जब शादी के बाद खटास आ जाए और लड़के को अपनी पत्नी से छुटकारा पाना हो तो स्थिति उलट जाती है. कोर्ट में पति खुद को अधिक से अधिक मजबूर और गरीब साबित करने की कोशिश में लग जाता है. यह दोहरी मानसिकता कितनी ही महिलाओं व उन के बच्चों के लिए पीड़ा का सबब बन जाती है.

दिल्ली के रोहिणी स्थित अदालत में (नवंबर 10 2020 ) इसी से संबंधित एक केस की सुनवाई हुई. शिकायत कर्ता एक तीन साल के बच्चे की मां है. वह पति से अलग रहती है और अपने मातापिता के खर्च पर भरणपोषण कर रही है. उस का पति भोपाल का एक बड़ा कारोबारी है. उस की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत है.

लेकिन जब पत्नी व अपने बच्चे को गुजाराभत्ता देने की बारी आई तो अपनी आर्थिक स्थिति खराब बताते हुए प्रतिवादी पति ने अपने नाम पर लिए गए कम्पयूटर व लैपटॉप भी अपनी मां के नाम पर कर दिए. यहां तक की जिस कंपनी का मालिक पहले खुद था वह कंपनी भी उस ने अपनी मां के नाम पर कर दी ताकि पत्नी व तीन साल के बच्चे को गुजाराभत्ता देने से बच सके. उस ने तुरंत कंपनी से इस्तीफ़ा दे दिया और अब उस के नाम पर फूटी कौड़ी भी नहीं है.

अदालत ने उस के इस आचरण पर अचंभित होते हुए कहा कि लोगों की इस दोहरी मानसिकता को क्या कहा जाए. अपने ही बच्चे का खर्च उठाने को तैयार नहीं. बाद में अदालत ने पति को निर्देश दिया कि वह अपनी पत्नी व बच्चे को निचली अदालत द्वारा निर्धारित गुजाराभत्ते की रकम का भुगतान करे.

मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने इस मामले में (फरवरी 2020) महिला व उस के अबोध बच्चे के लिए 15 हजार रुपये का अंतरिम गुजाराभत्ता देने का निर्देश दिया था. पति ने इस आदेश को सत्र अदालत में चुनौती दी थी. सत्र अदालत ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा.

इस तरह के मामले दिखाते हैं कि कुछ लोगों के लिए रिश्तों की कोई अहमियत नहीं होती. उन के लिए रूपए से बढ़ कर कुछ नहीं. रूपए बचाने के लिए ये लोग ईमानदारी ताक पर रख कर कितना भी नीचे गिर सकते हैं. इस का ख़ामियाज़ा बच्चे को भुगतना पड़ता है. इन बातों को ध्यान में रख कर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवाद के मामले में गुजाराभत्ता और निर्वाहभत्ता तय करने के लिए अहम फैसला दिया है. कोर्ट ने कहा है कि दोनों पार्टियों को कोर्ट में कार्यवाही के दौरान अपनी असेट और लाइब्लिटी का खुलासा अनिवार्य तौर पर करना होगा. साथ ही अदालत में आवेदन दाखिल करने की तारीख से ही गुजाराभत्ता तय होगा.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजाराभत्ते की रकम दोनों पार्टियों के स्टेटस पर निर्भर है. पत्नी की जरूरत, बच्चों की पढ़ाई, पत्नी की प्रोफेशनल स्टडी, उस की आमदनी, नौकरी, पति की हैसियत जैसे तमाम बिंदुओं को देखना होगा. दोनों पार्टियों की नौकरी और उम्र को भी देखना होगा.इस आधार पर ही तय होगा कि महिला को कितने रूपए मिलने चाहिए.

कई दफा ऐसा भी होता है कि पति के सामर्थ्य से ज्यादा गुजारेभत्ते की मान कर दी जाती है. ऐसे में पति अगर यह साबित कर दे कि वह इतना नहीं कमाता कि खुद का ख्याल रख सके या पत्नी की अच्छी आमदनी है या उस ने दूसरी शादी कर ली है, पुरुष को छोड़ दिया या अन्य पुरुष के साथ उस का संबंध है, तो उन्हें मैंटीनैंस नहीं देना होगा. खुद की कम इनकम या पत्नी की पर्याप्त आमदनी का सबूत पेश करने से भी उन पर इंटरिम मैंटीनैंस का भार नहीं पड़ेगा.

फरवरी 2018 में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने गुजारेभत्ते को ले कर ऐसा ही एक आदेश जारी करते हुए यह स्पष्ट किया था कि यदि पत्नी खुद को संभालने में सक्षम है तो वह पति से गुजारेभत्ते की हक़दार नहीं है. याची के पति ने हाईकोर्ट को बताया था कि याचिकाकर्ता सरकारी शिक्षक है और अक्तूबर 2011 में उस का वेतन 32 हजार रुपये था. इस आधार पर कोर्ट ने उस की गुजारेभत्ते की मान ख़ारिज कर दी.

जरुरी है कि रिश्ता टूटने के बाद भी एकदूसरे के प्रति इंसानियत और ईमानदारी कायम रखी जाए. खासकर जब बच्चे भी हों. क्योंकि इन बातों का असर कहीं न कहीं बच्चे के भविष्य पर पड़ता है.

ब्रेकअप- पूर्णविराम या रिश्तों की नई शुरुआत?

जब अंशु को पता चला कि उस की भांजी आरवी का 5 साल पुराना रिश्ता टूट गया है तो उस के होश उड़ गए. कितनी प्यारी थी आरवी और कबीर की जोड़ी. दोनों एकसाथ ही मुंबई के इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ रहे थे. दोनों ही परिवार ने इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया था, बस एक सामाजिक स्वीकृति मिलनी बाकी थी.

अंशु बहुत ही दुखी मन से अपनी दीदी के घर गई तो देखा, आरवी तो एकदम नौर्मल है और खिलखिला रही थी. उसे लगा कि वह इतनी दूर से दौड़ी चली आ रही है और आरवी को देख कर लगता ही नहीं कि वह परेशान है.

अंशु को लगा कि आजकल के बच्चों का प्यार भी कोई प्यार है. जब चाहो रिलेशनशिप में आ जाओ और जब मरजी ब्रेकअप कर लो. ये आजकल के रिश्ते भी कोई रिश्ते हैं? बस सारे रिश्ते दैहिक स्तर पर ही आधारित हैं.

अंशु को अपना समय याद आ गया, जब उस का रिश्ता प्रवेश के साथ टूट गया था. पूरे 2 वर्ष तक वह अपने खोल से बाहर नहीं निकल पाई थी. कितनी मुश्किल से उस ने अपने नए रिश्ते को स्वीकार किया था.

कभीकभी तो अंशु को लगता है कि वह आज भी अपने पति को स्वीकार नहीं कर पाई है. प्रवेश के साथ उस टूटे रिश्ते की खिरच अभी भी बाकी है.

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रात को आरवी अंशु के गले लग कर बोली, ‘‘मौसी बहुत अच्छा हुआ, आप आ गई हो.‘‘

‘‘मेरा पूरा परिवार मेरे साथ खड़ा है, इसलिए तो मैं ये फैसला कर पाई हूं.‘‘

परंतु, अंशु को लग रहा था कि आरवी को दरअसल कबीर से कभी प्यार ही नहीं था. पर आरवी के अनुसार, घुटघुट कर जीने के बजाय अगर आप की बन नहीं रही है तो क्यों ना ब्रेकअप कर के आगे बढ़ा जाए.

आजकल की युवा पीढ़ी पहले से अधिक जागरूक और व्यावहारिक है. एक व्यक्ति के पीछे पूरी जिंदगी खराब करने के बजाय वह ब्रेकअप कर के आगे की राह आसान बना लेते हैं.

दूसरी ओर मानसी का जब ऋषि से 2 साल पुराना रिश्ता टूट गया, तो वह अवसाद में चली गई. अपने साथसाथ उस ने पूरे परिवार की जिंदगी भी मुश्किल कर दी थी. कोई भी रिश्ता जबरदस्ती का नहीं होता है. अगर आप का साथी आप के साथ वास्ता नहीं रखना चाहता है तो गिड़गिड़ाने के बजाय अगर आप सम्मानपूर्वक आगे बढ़ें, तो ना केवल आप के साथी के लिए, बल्कि आप के लिए भी अच्छा होगा.

हालांकि ब्रेकअप पर बहुत दलीलें हो सकती हैं, परंतु फिर भी एकसाथ घुटघुट कर जीने से कहीं अधिक बेहतर ब्रेकअप है. ब्रेकअप चाहे शादी से पहले हो या शादी के बाद, हमेशा मर्यादित होना चाहिए. ये कुछ छोटेछोटे व्यावहारिक सुझाव हैं, अगर हम इन्हें निजी जीवन में अपनाएं तो बहुत जल्दी ही एक संपूर्ण जीवन की ओर बढ़ सकते हैं-

– शहीदाना भाव ले कर मत घूमें – ब्रेकअप होने का मतलब यह नहीं है कि आप 24 घंटे मुंह बिसूर कर घूमते रहें. ये जीवन का अंत नहीं है. जिंदगी आप को फिर से खुशियां बटोरने का मौका दे रही है. आप की पहचान खुद से है. बहुत बार हम रिश्तों में ही अपना वजूद ढूंढ़ने लगते हैं. इसलिए हम किसी भी कीमत पर ब्रेकअप नहीं करना चाहते हैं. एक या दो दिन मूड का खराब होना लाजिमी है, पर उस खराब रिश्ते की यादों को च्युइंगम की तरह मत खींचें.

– दिल के दरवाजे खुले रखें – एक हादसे का मतलब ऐसा नहीं है कि आप जिंदगी को जीना ही छोड़ दें. दिल के दरवाजे को हमेशा खुला रखें. हर रात के बाद सुबह अवश्य होती है. एक अनुभव बुरा हो सकता है, पर इस का मतलब यह नहीं कि आप रोशनी की किरण से मुंह फेर लें.

– काम में दिल लगा लें – काम हर मर्ज की दवा होती है. अपनेआप को काम में डुबा लें, आधे से ज्यादा दर्द तो यों ही गायब हो जाएगा और जितना अधिक काम में दिल लगेगा, उतना ही अधिक आप की प्रतिभा में निखार होगा और तरक्की के रास्ते खुल जाएंगे.

– ना छोड़ें आशा का साथ – बहुत बार देखने में आता है कि लोग ब्रेकअप के बाद निराशा की गर्त में चले जाते हैं. एक घुटन भरे रिश्ते में सारी उम्र निराशा में बिताने से अच्छा है कि ब्रेकअप कर के आप नई शुरुआत करें. आशा का दामन पकड़ कर रखें और ब्रेकअप के पश्चात नई शुरुआत करें.

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– जिंदगी खूबसूरत है – ब्रेकअप के कारण इस की खूबसूरती को नजरंदाज मत करें. जिंदगी वाकई खूबसूरत है. अपने ब्रेकअप से कुछ नया सीखें और दोबारा उन्हीं गलतियों को मत दोहराएं. ब्रेकअप के बाद ही आप को लोगों को समझने की बेहतर परख भी आती है.

अगर सरल भाषा में कहें, तो ब्रेकअप का मतलब पूर्णविराम नहीं बल्कि नई शुरुआत होता है.

भूलकर भी न कहें पति से ये 6 बातें

हमेशा पति को ही हर गलत बात का जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. पत्नियां भी काफी अनुचित बातें कह कर पति का दिल दुखाती हैं. कुछ बातें पति को कभी न कहें. उन्हें बुरा लग सकता है. जानें वे बातें क्या हो सकती हैं-

1. मैं कर लूंगी

पलंबर या इलैक्ट्रिशियन को बुलाने के समय यह न कहें कि मैं कर लूंगी, भले ही इस से आप का काम जल्दी हो जाए पर पति को शायद अच्छा न लगे. मनोवैज्ञानिक ऐनी क्रोली का कहना है, ‘‘हो सकता है वह आप की हैल्प कर के आप को खुश करना चाहता हो. इस बात से पति चिढ़ते हैं, क्योंकि ‘मैं कर लूंगी’ इस बात से पति के कार्य करने पर आप का संदेह प्रतीत होता है और या यह कि आप को उस की जरूरत नहीं है.’’

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2. तुम्हें पता होना चाहिए था

क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक रियान होव्स का कहना है, ‘‘अगर आप यह आशा करती हैं कि आप का पति हर बात या इशारा जो आप करती हैं, अपनेआप समझ जाएं तो आप खुद ही निराश होंगी. जब पति पत्नी के मन की बात नहीं समझते तो पत्नियां बहुत अपसैट हो जाती हैं. लेकिन पुरुष सच में दिमाग नहीं पढ़ पाते. अगर पत्नियां इस बात को स्वीकार कर लें तो वे बहुत दुखों से बच सकती हैं. वे साफसाफ कहें कि वे क्या चाहती हैं.’’

3. क्या तुम्हें लगता है कि वह सुंदर है

पुरुषों की काउंसलिंग के स्पैशलिस्ट एक थेरैपिस्ट कर्ट स्मिथ का कहना है, ‘‘क्या आप सचमुच किसी आकर्षक स्त्री के विषय में अपने पति के विचार जानना चाहती हैं? शायद नहीं. आप यह पूछ कर अपने पति को असहज स्थिति में डाल रही हैं. कमरे में अधिकांश पुरुष सुंदर स्त्री को पहले ही देख चुके होते हैं. यदि वह आप का सम्मान रखने के लिए वहां नहीं देख रहा है तो आप का पूछना उसे असहज कर देगा. वह तय नहीं कर पाएगा कि आप को अपसैट न करने के लिए या आप को दुख न पहुंचाने के लिए क्या करे.’’

4. पुरुष बनो

स्मिथ कहते हैं, ‘‘क्या आप सचमुच ये शब्द कहती हैं? पुरुष बन कर दिखाने का कोई सही या गलत तरीका नहीं है. आदमी बनो यह कहना उस की पहचान पर एक घातक हमला होता है, यह नफरत और शर्म से भरी बात होती है, यह आप के रिश्ते को ऐसी हानि पहुंचा सकती है, जिस की पूर्ति मुश्किल होगी.’’

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5. हमें बात करने की जरूरत है

ये शब्द विवाहित पुरुष के अंदर डर सा पैदा कर देते हैं. थेरैपिस्ट मार्सिया नेओमी बर्गर का कहना है, ‘‘अगली बार कोई इशू हो तो आसान शब्दों का प्रयोग करें. ये शब्द सिगनल देते हैं कि पत्नी को पति से शिकायत या कोई आलोचना का विषय है, फिर जो आप अकसर सोच रही होती हैं, उस के उलटा हो जाता है.’’

6. फिर दोस्तों के साथ जा रहे हो

होव्स कहते हैं, ‘‘पति का दोस्तों के साथ क्रिकेट देखने या गोल्फ खेलने से आप के विवाह को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा, यह चीज आप के रिश्ते को अच्छा ही बनाएगी. हां, कभीकभी पति पीने के लिए कोई बहाना कर देते हैं पर अधिकतर कुछ सलाह, कुछ महत्त्वपूर्ण बातें, सहारे के लिए मिलतेजुलते हैं, जो पत्नी अपने पति को दोस्तों से मिलनेजुलने से मना करती है वह अपने पति को उस के सपोर्ट सिस्टम से दूर कर रही होती है जबकि वह अन्य पतियों और पिताओं के साथ समय बिता कर अच्छा इनसान ही बनेगा.’’ किसी पुरुष ने आप का पति बनने के बाद अपनी मरजी से जीने का अधिकार नहीं खो दिया है. उस पर विश्वास करें, उस का सम्मान करें. अपनी शिकायतें, सुखदुख उस के साथ प्यार से बांटें. वैसे भी आज के जीवन में बहुत भागदौड़ है, तनाव है. उस के साथ अपना जीवन प्यार से, सुख से, आराम से बिताएं.

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जब सताए घर की याद

बेहतर भविष्य और अच्छी नौकरी की चाह में घर से दूर रहने वाले युवाओं की संख्या दिनबदिन बढ़ती जा रही है. चूंकि अत्याधुनिक समाज में आए तकनीकी विकास ने आज संभावनाओं के नए द्वार खोल दिए हैं, लिहाजा यह दूरी बच्चों और उन के परेरैंट्स के लिए ज्यादा माने नहीं रखती है, क्योंकि मोबाइल, इंटरनेट, सोशल साइट्स के जरीए ये अपनों के संपर्क में लगातार बने रहते हैं. मगर घर से दूर रहने वाले युवाओं के लिए बाहर इतना आसान भी नहीं होता. कई बच्चे बाहर रह कर होम सिकनैस का शिकार हो जाते हैं, जिस से अपनी पढ़ाई या नौकरी में अपना सौ प्रतिशत नहीं दे पाते. यह होम सिकनैस उन की कार्यक्षमता को प्रभावित करती है, लिहाजा सफलता पाने की दौड़ में वे पीछे रह जाते हैं.

आखिर क्या है होम सिकनैस

बाहर रहने वाला बच्चा जब घर की याद कर अकेलापन महसूस करे और तनावग्रस्त रहने लगे तो यह लक्षण होम सिकनैस का है. घरपरिवार से अत्यधिक लगाव की स्थिति में बच्चा कहीं बाहर रहने से घबराता है और यदि बाहर रहना पड़े तो वह बारबार बीमार पड़ जाता है या अपनी पढ़ाई और अन्य कार्यों के प्रति उदासीन हो जाता है. यह स्थिति बच्चे के मानसिक व शारीरिक विकास को तो बाधित करती ही है, उस की कार्यक्षमता पर भी बेहद बुरा प्रभाव डालती है. यह समस्या ज्यादातर उन युवाओं के समक्ष खड़ी होती है जो पहली बार घरपरिवार से दूर रह रहे होते हैं या फिर वे इस का शिकार आसानी से बनते हैं जो कुछ अधिक संवेदनशील होते हैं.

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होम सिकनैस के कारण

दरअसल, घर पर रहने वाले बच्चे छोटेछोटे कामों के लिए मां को आवाज लगाते नजर आते हैं. घर के इसी सहज और सुविधाजनक माहौल के चलते वे आसान जिंदगी जीने के आदी हो जाते हैं. मगर बाहर रहने के दौरान जब उन्हें अपने सभी कार्य स्वयं ही करने पड़ते हैं तो ये कार्य उन्हें बोझ लगते हैं और उन की झल्लाहट का कारण बनते हैं. दूसरी तरफ कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जो मम्मीपापा या भाईबहनों को याद कर उदास हो जाते हैं. अपने घरपरिवार से अत्यधिक जुड़ाव के कारण उन्हें बाहर रहना और वहां के माहौल में एडजस्ट करना बहुत मुश्किल लगता है.

ऐसी स्थिति में क्या करें

कहते हैं न कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है. तो जब आप अपनी आरामतलब जिंदगी को छोड़ कर घर से बाहर निकलेंगे तभी चुनौतियों से जूझने की क्षमता आप के अंदर विकसित हो सकेगी. यह जान लें कि जितनी अधिक मेहनत उतना बेहतर भविष्य. यह सही है कि अपनों से दूर रहना आसान नहीं. फिर भी घबराने के बजाय अगर समाधान ढूंढ़ा जाए और कुछ बेहतर विकल्पों की तलाश की जाए तो घर से दूर अकेलेपन की यह राह इतनी भी कठिन नहीं प्रतीत होगी. आइए, जानें कि घर की याद जब बहुत सताने लगे तो क्या करें:

अपना मनोबल ऊंचा रखें: यह माना कि आप अपने घर से दूर हैं और घर वालों से बारबार नहीं मिल सकते, लेकिन आज के दौर में उन के संपर्क में आसानी से रहा जा सकता है. मगर इस का यह मतलब भी नहीं कि आप अपनी पढ़ाई या जौब पर ध्यान न दे कर बारबार उन्हें कौल करते रहें. यदि हो सके तो रोज शाम को अपने काम से फ्री हो कर आप घर फोन कर सब की खैरखबर ले सकते हैं, साथ ही अपने काम व प्रोग्रैस के बारे में उन्हें बता सकते हैं.

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नए दोस्त बनाएं: अपने कालेज, कोचिंग या कार्यस्थल पर नए दोस्त बनाएं. उन के साथ कुछ समय व्यतीत करें. आसपास की जगहों पर उन के साथ घूमने का प्रोग्राम भी बना सकते हैं. इस से आप का अकेलापन दूर होने के साथ ही उस जगह विशेष के बारे में भी आप को नई जानकारी प्राप्त होगी. वैसे भी दोस्तों के साथ क्वालिटी वक्त बिता कर हम तरोताजा महसूस करते हैं.

खुद को व्यस्त रखें: अगर पढ़ाई या जौब करने के बाद आप के पास कुछ समय बचता है तो आप उस समय का प्रयोग अपना शौक पूरा करने में कर सकते हैं. इस के अलावा अपने पासपड़ोस में दूसरों की मदद करने में भी आप अपना खाली वक्त बिता सकते हैं. किसी की सहायता कर के आप को बेइंतहा खुशी महसूस होगी और इस से आप खुद को बहुत ऊर्जावान भी पाएंगे.

खुद से एक मुलाकात: अकेलेपन के इस सुअवसर का लाभ उठाएं और इस खूबसूरत वक्त में खुद से एक मुलाकात करना न भूलें. वैसे भी बाद में जीवन की बढ़ती व्यस्तता और आपाधापी में यह मौका हमें कम ही मिल पाता है. कहने का सार सिर्फ यह है कि अपनी अच्छाइयों और कमियों से रूबरू हो कर इस समय आप अपने व्यक्तित्त्व के सुधार की ओर अग्रसर हो सकते हैं.

अकेलेपन के शिकार तो नहीं: अकेलापन अवसाद की स्थिति की निशानी है, जबकि व्यक्ति के अकेले रहने का वक्त अपनेआप को कामयाब बनाने का एक स्वर्णिम अवसर है. अत: स्वयं को प्रेरित कर अपना आत्मविश्वास बढ़ाएं. हर उस पल जब आप अकेला महसूस करें खुद को दिलासा दें कि यह स्थिति सदा के लिए नहीं है और जल्द ही आप अपने निश्चित मुकाम पर पहुंचेंगे.

इस तरह इन उपायों को अमली जामा पहना कर अपनी सफलता की राह में आड़े आ रही होम सिकनैस नामक बाधा से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है.

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रूठे हैं तो मना लेंगे

माता पिता और बच्चों का रिश्ता वैसे ही बहुत ख़ास होता है .बच्चों का जुड़ाव सबसे ज़्यादा माता पिता के साथ होता है इसलिए अमूमन वो भावनात्मक रूप से उनसे बेहद जुड़े होते हैं और अपने जीवन से संबंधित हर निर्णय उनकी सहमति से लेना चाहते हैं .

जहाँ तक हम भारतीय समाज की बात करें तो भारतीय अभिभावक अपने बच्चे के हर फैसले में अपना अधिकार सर्वोपरि रखते हैं ,उन्हें अपने बच्चों के लिए जो उचित लगता है उसके हित में दिखाई देता है बच्चों को वो वही करने की सलाह देते हैं फिर चाहे बात शिक्षा के क्षेत्र में विषय के चुनाव की हो ,कैरियर से संबंधित हो, विदेश जाने की हो, विवाह करने या न करने का निर्णय हो अथवा जीवनसाथी के चुनाव की बात ही क्यों न हो इन अब में अभिभावकों का निर्णय ही अधिकाँश मामलों में अंतिम होता है.ऐसा नहीं है कि बदलते समय और परिवेश के अनुसार लोगों की सोच में बदलाव नहीं आया है बच्चों को काफी बातों में स्वतंत्रता मिली है फिर भी अभी भी इस बदलाव का प्रतिशत बहुत कम है. ऐसे में बच्चों को ये जान लेना ज़रूरी है कि माता पिता हमेशा ही उनका हित चाहते हैं और उनके बारे में उनसे भी बेहतर जानते हैं .उनसे ज़्यादा जानने का मतलब है कि वो बच्चों को उनके सच के साथ पहचानते हैं ऐसे में बच्चों के सामने ये बहुत बड़ी चुनौती है कि वो अपने माता पिता को से अपने मन की बात कैसे मनवाएँ .इसके लिए कुछ तरीके कारगर हो सकते हैं.

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जब बात हो जीवनसाथी के चुनाव की हमारे देश में विवाह के बहुत मायने हैं विवाह जीवन का सबसे बड़ा फैसला माना जाता है और अमूमन हर भारतीय माता पिता अपने बच्चे के जन्म के साथ ही उसके विवाह के सपने संजोने लगते हैं ऐसे में जब तक बच्चे की उम्र विवाह योग्य होती है तब तक माता पिता के जज़्बात और अरमान उसके विवाह को लेकर बन चुके होते हैं ऐसे में जब विवाह की बात आती है तो बच्चों के जीवनसाथी का चुनाव माता पिता ही करना चाहते हैं इसे वो अपना अधिकार मानते हैं पर मुश्किल तब शुरू होती है जब बच्चे अपनी पसंद का जीवनसाथी चाहते हैं या वो किसी को पसंद कर लेते हैं और यदि वो लड़का या लड़की सजातीय या सधर्मी नहीं है तब तो भूचाल सा आ जाता है. वैसे तो लव मेरिज का प्रतिशत बढ़ा है पर आज भी इसकी मान्यता कम ही है.हमारे देश के कई क्षेत्र तो ऐसे हैं जहाँ लव मैरिज करने पर ऑनर किलिंग कर दी जाती है .ऐसे में अपनी पसंद की शादी करने के लिए माता पिता को राजी करना भी टेढ़ी खीर है.यदि आपने जिसे चुना है उसकी जाति आपसे अलग है तो समझाना और भी मुश्किल है .चूँकि अगर जाति अलग हैं तो खान पान रहन सहन में काफी अंतर आता है इसलिए माता पिता नही चाहते कि बच्चे अंतर्जातीय विवाह करें.पर फिर भी उन्हें मनाया जा सकता है अगर कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो.

1. समझाएँ कि शादी पूरे जीवन की बात है आप ये समझाने का प्रयास करें कि ये एक दिन की बात नहीं है पूरे जीवन का प्रश्न है और यदि आप ही खुश नहीं रह पाए तो बाकी सबको कैसे खुश रख पाएँगे.

2. शादी कैसी भी हो चुनोतियाँ उसका हिस्सा हैं आप ये बताने का प्रयास करें कि इस से कोई फर्क़ नही पड़ता कि शादी अंतर्जातीय है ,आपकी पसंद की है या आपके माता पिता की पसंद की पर हर रिश्ते को निभाने के लिए प्रयास करने ही होते हैं जो पूरी तरह आप पर निर्भर करते हैं.उन्हें उदाहरण देकर बताएँ कि उनके इतने वर्षों के साथ में क्या उनके रिश्ते ने उतार चढ़ाव नहीं देखे.

3. लोग क्या सोचते हैं इस से कुछ नहीं बदलता उन्हें ये समझाएँ कि लोग क्या कहते हैं इस से आप को या उनको फर्क़ नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि ये रिश्ता पूरी तरह से दो लोगों का रिश्ता है .जब अच्छा बुरा समय आएगा तो आप सबको मिलकर काटना है लोगों को नहीं.

4. कुछ अपनों को अपने पक्ष में लें आपके कुछ क़रीबियों (जिनकी बात आपके माता पिता के लिए मायने रखती है )को विश्वास में लें जिस से वो आपके पक्ष को और अच्छे से समझा सकें.

5. माता पिता का विश्वास जीतें आपको उनका विश्वास जीतना होगा.उन्हें बताना होगा कि उन्हें आपके जीवनसाथी से जो उम्मीदें आपके लिए अपने लिए और परिवार के लिए हैं वो उस पर अवश्य खरा उतरेगा और उनकी मान्यताओं का उसी तरह सम्मान रखेगा जिस तरह उनकी पसंद से लाया गया व्यक्ति रखेगा.आजकल ग्लोबलाइजेशन का ज़माना है जिसमें सभी जातियों और प्रान्तों का खानपान एक जैसा ही है इसलिए इन बातों से आपके रिश्ते में कोई फर्क़ पड़ने वाला नहीं फिर जब रिश्ते में परस्पर प्रेम और विश्वास होता है एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान होता है तो ये बातें उसके आगे बहुत छोटी हैं.

6. उदाहरण तैयार रखें पहले से अपने परिवार में अपने पसंद से अंतर्जातीय विवाह करने वाले ऐसे लोगों को ढूंढ कर रख लें जिनके विवाह सफल हैं.माता पिता को बताइए कि कैसे वो लोग भी तो सफल हैं आपको भी कोई परेशानी नहीं आएगी.

7. उसे अपने माता पिता से मिलवाएँ कोई अच्छा समय देखकर उसे घर बुलाएँ और ऐसी योजना बनाएँ कि वो माता पिता के साथ एक अच्छा समय बिता पाए जिस से वो लोग उसे देख समझ सकें और उसके प्रति पूर्वाग्रहों से ग्रसित अपनी धारणाएँ और दृष्टिकोण बदल सकें.उनपर जल्दबाज़ी में कोई दबाव बनाने का प्रयास न करें बल्कि उन्हें अहसास कराएँ कि उनकी सहमति आपके लिए सबसे ज़्यादा मायने रखती है.लेकिन अपने प्यार को छोड़ना आपके लिए उतना ही दुःखद है इसलिए आप उनसे उम्मीद रखते हैं कि वो आपकी भावनाओं को समझें.

8. यदि धर्म हों अलग अलग- यदि जिसे आपने पसंद किया है उसका धर्म अलग है तो चुनोती बहुत बड़ी होती है क्योंकि इस तरह की शादियों को हमारे समाज में आज भी स्वीकार्यता मुश्किल से मिलती है ऐसे में कोई भी माता पिता इस तरह की शादी के लिए तैयार नहीं होते .पर ऐसे में आप हिम्मत मत हारिये बल्कि समझाइए और प्रयत्न जारी रखिये उन्हें बताइए कि घर दो लोगों से मिलकर बनता है धर्म से कोई फर्क़ नही पड़ता जैसे दो लोग एक दूसरे की दूसरी अलग बातों का सम्मान करते हैं वैसे ही एक दूसरे के धर्मो का सम्मान भी कर सकते हैं और रजिस्टर्ड मैरिज करने पर अब ये भी संभव है कि दोनों को अपना धर्म नही बदलना पड़ेगा और भविष्य में जो संतान होगी वो बालिग होने पर अपना धर्म चुनने को स्वतंत्र होगी कि माता का धर्म अपनाए या पिता का इस से कोई भी परेशानी नहीं होना चाहिए किसी को .एक सफल विवाह में एक जाति या एक धर्म होने से ज्यादा विचारों का एक होना मायने रखता है और विवाह प्रेम की नींव पर टिके होते हैं यदि विवाह की नींव ही समझौते पर है तो वो ज़्यादा लंबा नहीं चल पाएगा इस तरह समझाने पर वो लोग आपकी बात अवश्य समझेंगे .उन्हें अपने ऐसे दूसरे दोस्तों से मिलाइए जिन्होंने ऐसी शादी की है और खुशहाल जीवन बिता रहे हैं इस से उनकी राय बदलने में आपको मदद मिलेगी.

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9. उनके प्यार को समझने का प्रयास करें और सोचें कि वो आपका भला चाहते हैं और आपके अच्छे बुरे वक़्त में कोई हो न हो वो हमेशा खड़े रहते हैं इसलिए जो आपने सोचा है उसको तथ्यों के साथ उनके सामने रखें और उन्हें बताएँ कि उनकी सलाह आपके लिए सबसे ज़्यादा मायने रखती है पर यदि फिर भी अंत में आपकी और उनकी राय अलग अलग दिशा में जाये तो आप जल्दबाजी न करते हुए बात को वहीं छोड़ दें और कुछ दिन बाद नए सिरे से बात को शुरू करें.

10.आपका कहने का तरीका बहुत मायने रखता है आप अपनी बात को प्रभावी ढंग से रखें और आपने जिसे भी चुना है उसकी सारी खूबियों के बारे में आप अच्छे से जानते हैं उन खूबियों के बारे में उन्हें बताएँ.

11. कुछ समय उनके साथ बिताएं जो सिर्फ़ आपका और उनका होकई बार बात कहने के लिए सही समय का चुनाव करना ज़रूरी होता है इसके लिए उनके साथ उनके समय में शामिल हों जिस से आपकी आपस की बॉन्डिंग मजबूत हो और वो आपकी बात समझ पाएँ.

12. उन्हें अहसास कराएँ कि वो सबसे महत्वपूर्ण हैं उन्हें बताएँ कि उनकी सलाह आपके लिए बहुत मायने रखती है.उन्होंने जो भी आपके लिए सोचा है वो निश्चित ही सबसे अच्छा होगा पर उसी तरह उन्हें भी आप पर भरोसा करना चाहिए कि आप जो भी करेंगे बहुत अच्छा होगा और ये भरोसा आप ही को क़ायम करना होगा.

आप उन्हें समझाइए कि आपको हर कदम पर उनका साथ चाहिये इस तरह समझाने पर वो जरूर ही आपकी बात पर अपनी सहमति देंगे और साथ भी ,बस किसी भी बात में उनको राजी करने के लिए उग्रता या उतावलापन न दिखाएँ उनको पूरा समय लेकर सोचने दें बस अपने सारे सकारात्मक पहलू अच्छे से समझा दें फिर देखिए वो आपकी बात जरूर समझेंगे.
उम्मीद है इस तरह से बात करने पर बात बन ही जाएगी.तो देर मत कीजिये और मना लीजिए अपने अपनों को.

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