दिल पे न जोर कोई

रीमा जल्दी से जूस दे दो, बहुत थकान हो रही है, आशीष ने अपना पसीना पोंछते हुए कहा.

‘‘हां, अभी लाई,’’ कह रीमा रसोई में चली गई.

यह आशीष का रोज का काम था. अगले दिन आशीष बोला, ‘‘सुनो रीमा, मेरा कालेज का दोस्त मनीष अपने अपार्टमैंट में शिफ्ट हो गया है… वही जिस के बेटे के जन्मदिन पर हम गए नहीं थे… आज मिला, जब मैं जिम से आ रहा था. वह तो झल्ला सा है, लेकिन उस की बीवी गजब की खूबसूरत है, आशीष बोला.

‘‘हमें क्या वह जाने और उस की बीवी,’’ रीमा बोली.

‘‘तुम जल्दी से नहा लो मैं नाश्ता तैयार करती हूं.’’

रीमा नोट कर रही थी कि आजकल आशीष जिम में ज्यादा देर लगा रहा है. अत: एक दिन उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है देर कैसे हो गई? आज क्या खास बात है… जिम से पसीनापसीना हो कर आए, फिर भी चेहरे पर अलग ही खुशी झलक रही है? रोज की तरह अपनी थकान का रोना नहीं?’’ रीमा ने चुटकी लेते हुए आशीष से कहा.

‘‘क्या मैं रोज थकान का रोना रोता हूं?

अरे अपनेआप को फिट रखना क्या इतना आसान है? कभी जिम जा कर देख आओ कि अपनेआप को मैंटेन करने के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ती है. लो हो गए शुरू…. मेरी तरह 2 बच्चे पैदा करो पहले, फिर फिटनैस की बात करो मुझ से,’’ रीमा ने कहा.

‘‘पर आज तुम देर से आए… कोई खास बात?’’

‘‘नहीं कुछ खास नहीं,’’ आशीष बोला.

‘‘अरे वह मेरे दोस्त की पत्नी जिया जिम आती है आजकल, तो बस बातों में टाइम लग गया. क्या ऐक्सरसाइज करती है. तभी इतनी फिट है… कोई उस की उम्र का अंदाजा भी नहीं लगा सकता,’’ कह आशीष नहाने चला गया.

रीमा को आशीष के इरादे नेक न लगे. अब यह रोज का काम हो गया था.

आशीष रोज अपनी बेटी को स्कूल बस में छोड़ने जाता. उधर से जिया अपने बेटे को ले कर आती. दोनों बातें करते और देर हो जाती. कभी आशीष स्विमिंग पूल जाता तो जिया वहां मिल जाती… जब रीमा उन्हें आते बालकनी से देखती तो कुढ़ जाती.

कुछ दिन पहले अपार्टमैंट में न्यू ईयर पार्टी थी. दोनों दोस्त अपने परिवारों के साथ पार्टी हौल में आए. जिया को देख आशीष के चेहरे की मुसकराहट दोगुनी हो गई और रीमा उन्हें देख कर अपनी सहेलियों की तरफ बढ़ने लगी. ये मेरी सब से अच्छी सहेलियां हैं. हम इन्हीं के साथ रहेंगे. तुम्हारा दोस्त तो झल्ला सा है पर ये लोग तो बहुत अच्छी हैं.’’

आशीष बोला, ‘‘बस दोस्त ही झल्ला है, जिया को देखो… आज भी कितनी सुंदर ड्रैस पहन कर आई है. पूरी फिगर निखर कर आ रही है और उस लंगूर को देखो… वही कपड़े जो औफिस में पहन कर जाता है.’’

रीमा आशीष को वहां से खींच कर ले गई. आशीष था तो रीमा के साथ, लेकिन नजरें जिया पर ही टिकी थीं. जिया भी आशीष की प्लैंजेंट पर्सनैलिटी से बहुत प्रभावित थी सो जब आशीष उसे देखता तो मुसकरा देती. उस का अपना पति तो किसी चीज का शौकीन नहीं था. उसे तो पार्टी में भी खींच कर लाना पड़ता. न तो वह कपड़े ढंग से पहनता न ही जूते. जबकि जिया हर वक्त मौसम के हिसाब से बनीठनी रहती. तभी तो आशीष मनीष के लिए लंगूर के हाथ में अंगूर बोलता.

एक दिन आशीष ने मनीष की फैमिली को डिनर पर बुलाया. रीमा कहने लगी,

‘‘जब तुम्हें अपना दोस्त पसंद ही नहीं तो क्यों बुलाते हो उसे?’’

आशीष बोला, ‘‘अच्छा नहीं लगता… इतने दिन हुए यहां आए उन्हें… हम ने एक बार भी अपने घर नहीं बुलाया?’’

‘‘तो उन्होंने कौन सा बुलाया?’’ रीमा चिढ़ कर बोली.

संडे को जिया पूरे परिवार के साथ आशीष के घर थी. जब आशीष ने उस से औैर बातें कीं तो वह उस के नौलेज को देखता ही रह गया. उसे मन ही मन लगने लगा कि कहां मनीष कहां जिया. उस ने जिया की बहुत तारीफ  की. रीमा को यह सब फूटी आंख नहीं सुहा रहा था.

मनीष का परिवार खाना खा कर चला गया. उन के जाने के बाद आशीष बोला, ‘‘जिया ने अपने बच्चों की परवरिश बहुत सही तरीके से की है. कितने सलीके से बात करते हैं और पढ़ाई में भी अच्छे हैं.’’

‘‘तो हमारे कौन से कम हैं?’’ रीमा का जवाब सुन आशीष ने चुप्पी लगा ली.

अब आशीष के घर अकसर जिया की बात होती जो रीमा को जरा भी न सुहाती. उसे ऐसा लगता जैसे आशीष के दिलोदिमाग में जिया रचबस गई है.

उधर जिया भी मनीष से अकसर आशीष की ही बातें करती. कहती, कितना शौकीन है तुम्हारा दोस्त आशीष. हर वक्त हंसीठहाके लगाता रहता है… सोसायटी के कार्यक्रमों में भी कितना आगे रहता है… हर प्रोग्राम में उस का नाम अनाउंस होता है, स्पोर्ट्स में, कल्चरल्स में.

शायद जिया और आशीष एकदूसरे को मन ही मन चाहने लगे थे. इसीलिए दोनों अपनेअपने परिवार में एकदूसरे की बात किया करते. मनीष का तो इस तरफ ध्यान नहीं पड़ा क्योंकि वह अपनी ही दुनिया में मस्त रहता, लेकिन रीमा मन ही मन जिया से जलने लगी थी. यहां तक कि अपने बच्चों से भी कहती कि जिया के बच्चों के साथ न खेलें.

जिया के बच्चे जब उन से खेलने को कहते तो रीमा की बेटी कहती, ‘‘नहीं मम्मी डांटेंगी.’’ जब यह बात जिया को पता चली तो उसे बहुत बुरा लगा.

एक दिन स्कूल बस जल्दी आ गई और जिया व आशीष दोनों के बच्चों की बस छूट गई. आशीष बोला, ‘‘मैं कार से ड्रौप कर आता हूं.’’

‘‘ओके,’’ जिया बोली लेकिन जिया का बेटा नए अंकल के साथ जाने को तैयार नहीं. अत: जिया भी उस के साथ कार में पीछे की सीट पर बैठ गई.

आशीष ने कहा,‘‘ जिया, यू कैन कम टू फ्रंट सीट.’’

‘‘आई डौंट माइंड,’’ जिया ने कहा और कार की अगली सीट पर आ कर बैठ गई.

रीमा की सहेली ने जब यह बात रीमा को बताई तो उस के तो जैसे होश उड़ गए. अत: अगले दिन वह आशीष से बोली, ‘‘बच्चों को स्कूल बस तक मैं ही छोड़ जाऊंगी. तुम्हें वहां बहुत समय लग जाता है.’’

आशीष को कुछ समझ न आया कि रीमा क्या कहना चाहती है. लेकिन जब वह बस स्टौप पर गई तो उसे जिया फूटी आंख न सुहाई. दूसरी सहेलियों के साथ खड़ी बातों ही बातों में वह जिया को ताने मारने लगीं. जिया को भी समझते देर न लगी. लेकिन क्या करती. पहले दिन वही तो उस के पति के साथ कार की आगे की सीट पर बैठ कर गई थी. वह चुपचाप अपने बेटे को बस में बैठा कर वहां से चली गई.

रीमा जब लौट कर आई तो देखा आशीष बालकनी में खड़ा जिया से जोरजोर से बातें कर रहा था.

रीमा जिया के पास पहुंच कर बोली, ‘‘जिया के घर में ही आ जाओ न… ऐसे जोरजोर से बातें करना अच्छा नहीं लगता न.’’

कहने को तो रीमा घर आने का आग्रह कर रही थी, लेकिन उस के चेहरे की कुटिल मुसकान देख जिया समझ गई थी कि रीमा क्या कहना चाह रही है. अत: वह वहां से चुपचाप चल दी. पीछे मुड़ कर देखा तो आशीष बालकनी से उसे हाथ हिला कर बायबाय कर रहा था.

घर आ कर जिया बहुत उदास थी. मन ही मन सोच रही थी कि रीमा की गलती भी तो नहीं… आखिर उस का पति है आशीष… पर स्वयं भी क्या करे? बस बात ही तो कर रही थी उस से… अगर उसे आशीष से बात करना अच्छा लगता है तो उस में बुराई भी क्या है? क्या किसी के पति से बात करना गुनाह है? रीमा इतनी चिढ़ क्यों गई?

एक दिन जब आशीष औफिस चला गया तो जिया ने रीमा को इंटरकौम किया, ‘‘रीमा, इस रविवार तुम सपरिवार हमारे घर आओ, डिनर साथ ही करेंगे.

रीमा ने बहाना बनाते हुए कहा, ‘‘दरअसल, उस दिन के हमारे मूवी टिकट आए हैं. हम पिक्चर देखने जाएंगे, इसलिए नहीं आ पाएंगे.’’

‘‘ओके, नो प्रौब्लम… फिर कभी,’’ औैर इंटरकौम रख दिया.

शाम के समय जब जिया अपने बेटे के साथ स्विमिंग के लिए गई तो आशीष नीचे ही मिल गया. जिया ने पूछा, ‘‘गए नहीं मूवी के लिए?’’

आशीष बोला, ‘‘कौन सी मूवी?’’

जिया बोली, ‘‘रीमा ने कहा था कि तुम लोग आज मूवी देखने जा रहे हो.’’

आशीष को कुछ समझ न आया कि ऐसा क्यों बोला रीमा ने. लेकिन जिया सब समझ गई थी कि रीमा उसे पसंद नहीं करती. आशीष ने

घर आ कर रीमा से पूछा तो बोली, ‘‘हां कह दिया ऐसे ही… जब वह मुझे पसंद नहीं, तो क्यों दोस्ती बढ़ाऊं?’’

आशीष मन ही मन तड़प उठा कि यह जिया के लिए कितना इनसल्टिंग है? पर क्या करता.

अब रोज रीमा ही बच्चों को स्कूल बस तक छोड़ने जाती. जिया आशीष से मिलने को तरस गई थी. कभी नीचे मिलती तो रीमा की घूरती नजरें देख वह बात न कर पाती. बस अपना रास्ता बदल लेती. आखिर रीमा आशीष की पत्नी है, सो आशीष पर हक तो उसी का है. अब जिया को आशीष को देखे बगैर चैन न मिलता. रीमा को जब भी मौका मिलता जिया को ताना मार ही देती. एक बार तो किट्टी पार्टी में जब सब महिलाएं बोलीं कि बच्चों को संभालने में ही सारा वक्त बीत जाता है. तो रीमा ने जिया की तरफ आंखें मटकाते हुए कहा, ‘‘बच्चों को ही नहीं पति को भी तो संभालना पड़ता है… बहुत शूर्पणखा हैं यहां जो डोरे डालने आ जाती हैं.’’

अपने लिए शूर्पणखा शब्द सुन जिया को बहुत बुरा लगा. उस की आंखें भर आईं. लेकिन दिल से मजबूर थी. सो पलट कर कुछ न बोली. आखिर रीमा पत्नी का हक रखती है. इसीलिए बोल रही है. फिर क्या पता उस के दिल में बसी यह चाहत एकतरफा हो… पता नहीं आशीष उसे चाहता भी है या नहीं? फिर मन ही मन सोचने लगी काश, मुझे आशीष जैसा पति मिला होता तो शायद यह न होता. कहने को तो मनीष बहुत ठीक है, लेकिन इतना पढ़ाकू , कैरियर कौंशस, न ही कोई शौक न इच्छाएं. पर उस में मनीष का दोष भी तो नहीं. सब देखभाल कर ही तो जिया ने इस विवाह के लिए हामी भरी थी. मनीष तो घर के लिए अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह निभा ही रहा है. बस उस का ही दिल है कि न जाने क्यों आशीष की तरफ खिंचा जाता है.

अब जिम ही बस एकमात्र ठिकाना था जहां दोनों मिल सकते थे. सो वहीं थोड़ी देर मिल कर बात कर लेते. लेकिन कहते हैं न इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते सो जिम में आसपास वर्कआउट करते लोग उन्हें बातें करते चोर नजरों से देखते और कभीकभी तो कोई टौंट भी मार देते.

अब जिया को लगने लगा कि पानी सिर से ऊपर जा रहा है. अत: उस ने अपने जिम का टाइम चेंज करा लिया. आशीष से बात न करने की ठान ली.

कई दिन जब जिया दिखाई न दी तो आशीष अनमना सा हो गया. फिर एक दिन अपने दोस्त से मिलने के बहाने जिया के घर चला गया. घर में जिया अकेली थी. आशीष ने जिया से अपने दिल की बात कह डाली. सुन कर जिया खिल उठी. अब दोनों ने तय किया कि अपार्टमैंट के बाहर मिला करेंगे. रीमा ने अपार्टमैंट की सभी महिलाओं को भी बता दिया था कि जिया कैसे उस के पति पर डोरे डाल रही है. अत: सभी महिलाओं ने उस से दूरी बना ली थी.

एक दिन आशीष औफिस से जल्दी निकल गया और फिर जिया को फोन कर पास ही की कौफी शौप में बुला लिया. जिया भी झट से बनठन कर उस से मिलने चली आई. कहने को तो कौफी शौप खचाखच भरा था, लेकिन उन दोनों के लिए तो जैसे पूरा एकांत था. दोनों आंखों में आंखें डाले मुसकरा कर बातें कर रहे थे कि तभी जिया की नजर रीमा की सहेली पर पड़ी.

वह वहां अपने पति के साथ आई थी. दोनों को साथ देख कर बोली, ‘‘हैलो, आप दोनों यहां?

नो प्रौब्लम ऐंजौय. ऐंजौय पर उस ने जो जोर डाला जिया समझ गई कि टौंट मार कर गई है. आशीष और जिया भी शीघ्र ही अपने घर रवाना हो गए. अगले दिन बच्चों को स्कूल बस में छोड़ने बस स्टौप पर जिया नहीं गईर् और मनीष को भेजा. वह जानती थी कि आज रीमा उसे नहीं छोड़ने वाली. मनीष जब घर आए तो कुछ उखड़े हुए दिखाई दिए.

जिया ने पूछा, ‘‘क्या हो गया?’’

‘‘रीमा तुम्हारी शिकायत कर रही थी. सब लोगों के सामने मुझे बहुत बुराभला कहा.’’

जिया के तो मानो पैरों तले की जमीन खिसक गई हो. झट से नहाने का बहाना कर बाथरूम में चली गई. क्या करती बेचारी. एक तरफ पति तो दूसरी तरफ प्यार. वहीं खड़े कुछ आंसू बहा आई.

उस दिन मनीष दफ्तर नहीं गया. बोला, ‘‘ हम घर बदल लेते हैं जिया.’’

अगले ही महीने वे नए अपार्टमैंट में शिफ्ट हो गए. इतना ही नहीं मनीष ने दूसरे शहर में ट्रांसफर के लिए दफ्तर में रिक्वैस्ट भी दे दी. शहर तो बदल गया, लेकिन जिया के मन में आशीष की याद सदा के लिए रह गई. कोशिश करती कि भूल जाए, किंतु भुलाए न भूलती. दिल के हाथों मजबूर थी. उस ने तो सोचा भी न था कि कभी प्यार इतने दबे कदमों आएगा और उस के दिल पर सदा के लिए अपना राज कर लेगा.  बरस बीते, किंतु चंद लमहे जो आशीष के साथ बिताए थे, उस के मन को तरोताजा कर जाते. वह मुसकरा उठती और मन ही मन कहती दिल पे न जोर कोई.

विधवा रहूंगी पर दूसरी औरत नहीं बनूंगी

लेखक- सुनील आनंद

लखिया ठीक ढंग से खिली भी न थी कि मुरझा गई. उसे क्या पता था कि 2 साल पहले जिस ने अग्नि को साक्षी मान कर जिंदगीभर साथ निभाने का वादा किया था, वह इतनी जल्दी साथ छोड़ देगा. शादी के बाद लखिया कितनी खुश थी. उस का पति कलुआ उसे जीजान से प्यार करता था. वह उसे खुश रखने की पूरी कोशिश करता. वह खुद तो दिनभर हाड़तोड़ मेहनत करता था, लेकिन लखिया पर खरोंच भी नहीं आने देता था. महल्ले वाले लखिया की एक झलक पाने को तरसते थे.

पर लखिया की यह खुशी ज्यादा टिक न सकी. कलुआ खेत में काम कर रहा था. वहीं उसे जहरीले सांप ने काट लिया, जिस से उस की मौत हो गई. बेचारी लखिया विधवा की जिंदगी जीने को मजबूर हो गई, क्योंकि कलुआ तोहफे के रूप में अपना एक वारिस छोड़ गया था. किसी तरह कर्ज ले कर लखिया ने पति का अंतिम संस्कार तो कर दिया, लेकिन कर्ज चुकाने की बात सोच कर वह सिहर उठती थी. उसे भूख की तड़प का भी एहसास होने लगा था.

जब भूख से बिलखते बच्चे के रोने की आवाज लखिया के कानों से टकराती, तो उस के सीने में हूक सी उठती. पर वह करती भी तो क्या करती? जिस लखिया की एक झलक देखने के लिए महल्ले वाले तरसते थे, वही लखिया अब मजदूरों के झुंड में काम करने लगी थी.

गांव के मनचले लड़के छींटाकशी भी करते थे, लेकिन उन की अनदेखी कर लखिया अपने को कोस कर चुप रह जाती थी. एक दिन गांव के सरपंच ने कहा, ‘‘बेटी लखिया, बीडीओ दफ्तर से कलुआ के मरने पर तुम्हें 10 हजार रुपए मिलेंगे. मैं ने सारा काम करा दिया है. तुम कल बीडीओ साहब से मिल लेना.’’

अगले दिन लखिया ने बीडीओ दफ्तर जा कर बीडीओ साहब को अपना सारा दुखड़ा सुना डाला. बीडीओ साहब ने पहले तो लखिया को ऊपर से नीचे तक घूरा, उस के बाद अपनापन दिखाते हुए उन्होंने खुद ही फार्म भरा. उस पर लखिया के अंगूठे का निशान लगवाया और एक हफ्ते बाद दोबारा मिलने को कहा.

लखिया बहुत खुश थी और मन ही मन सरपंच और बीडीओ साहब को धन्यवाद दे रही थी. एक हफ्ते बाद लखिया फिर बीडीओ दफ्तर पहुंच गई. बीडीओ साहब ने लखिया को अदब से कुरसी पर बैठने को कहा.

लखिया ने शरमाते हुए कहा, ‘‘नहीं साहब, मैं कुरसी पर नहीं बैठूंगी. ऐसे ही ठीक हूं.’’ बीडीओ साहब ने लखिया का हाथ पकड़ कर कुरसी पर बैठाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें मालूम नहीं है कि अब सामाजिक न्याय की सरकार चल रही है. अब केवल गरीब ही ‘कुरसी’ पर बैठेंगे. मेरी तरफ देखो न, मैं भी तुम्हारी तरह गरीब ही हूं.’’

कुरसी पर बैठी लखिया के चेहरे पर चमक थी. वह यह सोच रही थी कि आज उसे रुपए मिल जाएंगे. उधर बीडीओ साहब काम में उलझे होने का नाटक करते हुए तिरछी नजरों से लखिया का गठा हुआ बदन देख कर मन ही मन खुश हो रहे थे.

तकरीबन एक घंटे बाद बीडीओ साहब बोले, ‘‘तुम्हारा सब काम हो गया है. बैंक से चैक भी आ गया है, लेकिन यहां का विधायक एक नंबर का घूसखोर है. वह कमीशन मांग रहा था. तुम चिंता मत करो. मैं कल तुम्हारे घर आऊंगा और वहीं पर अकेले में रुपए दे दूंगा.’’ लखिया थोड़ी नाउम्मीद तो जरूर हुई, फिर भी बोली, ‘‘ठीक है साहब, कल जरूर आइएगा.’’

इतना कह कर लखिया मुसकराते हुए बाहर निकल गई. आज लखिया ने अपने घर की अच्छी तरह से साफसफाई कर रखी थी. अपने टूटेफूटे कमरे को भी सलीके से सजा रखा था. वह सोच रही थी कि इतने बड़े हाकिम आज उस के घर आने वाले हैं, इसलिए चायनाश्ते का भी इंतजाम करना जरूरी है.

ठंड का मौसम था. लोग खेतों में काम कर रहे थे. चारों तरफ सन्नाटा था. बीडीओ साहब दोपहर ठीक 12 बजे लखिया के घर पहुंच गए. लखिया ने बड़े अदब से बीडीओ साहब को बैठाया. आज उस ने साफसुथरे कपड़े पहन रखे थे, जिस से वह काफी खूबसूरत लग रही थी.

‘‘आप बैठिए साहब, मैं अभी चाय बना कर लाती हूं,’’ लखिया ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘अरे नहीं, चाय की कोई जरूरत नहीं है. मैं अभी खाना खा कर आ रहा हूं,’’ बीडीओ साहब ने कहा.

मना करने के बावजूद लखिया चाय बनाने अंदर चली गई. उधर लखिया को देखते ही बीडीओ साहब अपने होशोहवास खो बैठे थे. अब वे इसी ताक में थे कि कब लखिया को अपनी बांहों में समेट लें. तभी उन्होंने उठ कर कमरे का दरवाजा बंद कर दिया.

जल्दी ही लखिया चाय ले कर आ गई. लेकिन बीडीओ साहब ने चाय का प्याला ले कर मेज पर रख दिया और लखिया को अपनी बांहों में ऐसे जकड़ा कि लाख कोशिशों के बावजूद वह उन की पकड़ से छूट न सकी. बीडीओ साहब ने प्यार से उस के बाल सहलाते हुए कहा, ‘‘देख लखिया, अगर इनकार करेगी, तो बदनामी तेरी ही होगी. लोग यही कहेंगे कि लखिया ने विधवा होने का नाजायज फायदा उठाने के लिए बीडीओ साहब को फंसाया है. अगर चुप रही, तो तुझे रानी बना दूंगा.’’

लेकिन लखिया बिफर गई और बीडीओ साहब के चंगुल से छूटते हुए बोली, ‘‘तुम अपनेआप को समझते क्या हो? मैं 10 हजार रुपए में बिक जाऊंगी? इस से तो अच्छा है कि मैं भीख मांग कर कलुआ की विधवा कहलाना पसंद करूंगी, लेकिन रानी बन कर तुम्हारी रखैल नहीं बनूंगी.’’ लखिया के इस रूखे बरताव से बीडीओ साहब का सारा नशा काफूर हो गया. उन्होंने सोचा भी न था कि लखिया इतना हंगामा खड़ा करेगी. अब वे हाथ जोड़ कर लखिया से चुप होने की प्रार्थना करने लगे.

लखिया चिल्लाचिल्ला कर कहने लगी, ‘‘तुम जल्दी यहां से भाग जाओ, नहीं तो मैं शोर मचा कर पूरे गांव वालों को इकट्ठा कर लूंगी.’’ घबराए बीडीओ साहब ने वहां से भागने में ही अपनी भलाई समझी.

मर्यादा : आखिर क्या हुआ निशा के साथ

देर रात गए घर के सारे कामों से फुरसत मिलने पर जब रोहिणी अपने कमरे में जाने लगी तभी उसे याद आया कि वह छत से सूखे हुए कपड़े लाना तो भूल ही गई है. बारिश का मौसम था. आसमान साफ था तो उस ने कपड़ों के अलावा घर भर की चादरें भी धो कर छत पर सुखाने डाल दी थीं. थकान की वजह से एक बार तो मन हुआ कि सुबह ले आऊंगी, लेकिन फिर ध्यान आया कि अगर रात में कहीं बारिश हो गई तो सारी मेहनत बेकार चली जाएगी. फिर रोहिणी छत पर चली गई.

वह कपड़े उठा ही रही थी कि छत के कोने से उसे किसी के बात करने की धीमीधीमी आवाज सुनाई दी. रोहिणी आवाज की दिशा में बढ़ी. दायीं ओर के कमरे के सामने वाली छत पर मुंडेर से सट कर खड़ा हुआ कोई फोन पर धीमी आवाज में बातें कर रहा था. बीचबीच में हंसने की आवाज भी आ रही थी. बातें करने वाले की रोहिणी की ओर पीठ थी इसलिए उसे रोहिणी के आने का आभास नहीं हुआ, मगर रोहिणी समझ गई कि यह कौन है.

रोहिणी 3-4 महीनों से निशा के रंगढंग देख रही थी. वह हर समय मोबाइल से चिपकी या तो बातें करती रहती या मैसेज भेजती रहती. कालेज से आ कर वह कमरे में घुस कर बातें करती रहती और रात का खाना खाने के बाद जैसे ही मोबाइल की रिंग बजती वह छत पर भाग जाती और फिर घंटे भर बाद वापस आती.

रोहिणी के पूछने पर बहाना बना देती कि सहेली का फोन था या पढ़ाई के बारे में बातें कर रही थी. लेकिन रोहिणी इतनी नादान नहीं है कि वह सच न समझ पाए. वह अच्छी तरह जानती थी कि निशा फोन पर लड़कों से बातें करती है. वह भी एक लड़के से नहीं कई लड़कों से.

‘‘निशा इतनी रात गए यहां अंधेरे में क्या कर रही हो? चलो नीचे चलो,’’ रोहिणी की कठोर आवाज सुन कर निशा ने चौंक कर पीछे देखा.

‘‘चल यार, मैं तुझे बाद में काल करती हूं बाय,’’ कह कर निशा ने फोन काट दिया और बिना रोहिणी की ओर देखे नीचे जाने लगी.

‘‘तुम तो एकडेढ़ घंटा पहले छत पर आई थीं निशा, तब से यहीं हो? किस से बातें कर रही थीं इतनी देर तक?’’ रोहिणी ने डपट कर पूछा.

निशा बिफर कर बोली, ‘‘अब आप को क्या अपने हर फोन काल की जानकारी देनी पड़ेगी चाची? आप क्यों हर समय मेरी पहरेदारी करती रहती हैं? किस ने कहा है आप से? मेरा दोस्त है उस से बातें कर रही थी.’’

‘‘निशा, बड़ों से बातें करने की भी तमीज नहीं रही अब तुम्हें. मैं तुम्हारे भले के लिए ही तुम्हें टोकती हूं,’’ रोहिणी गुस्से से बोली.

‘‘मेरा भलाबुरा सोचने के लिए मेरी मां हैं. सच तो यह है कि आप मुझ से जलती हैं. आप की बेटी मेरे जितनी सुंदर नहीं है. उस का मेरे जैसा बड़ा सर्कल नहीं है, दोस्त नहीं हैं. इसीलिए मेरे फोन काल से आप को जलन होती है,’’ निशा कठोर स्वर में बोल कर बुदबुदाती हुई नीचे चली गई.

कपड़ों को हाथ में लिए हुए रोहिणी स्तब्ध सी खड़ी रह गई. उस की गोद में पली लड़की उसे ही उलटासीधा सुना गई.

रोहिणी की बेटी ऋचा निशा से कई गुना सुंदर है, लेकिन हर समय सादगी से रहती है और पढ़ाई में लगी रहती है.

रोहिणी बचपन से ही उसे समझती आई है और ऋचा ने बचपन से ले कर आज तक उस की बताई बात का पालन किया है. वह अपने आसपास फालतू भीड़ इकट्ठा करने में विश्वास नहीं करती. तभी तो हर साल स्कूल और कालेज में टौप करती आई है.

लेकिन निशा संस्कार और गुणों पर ध्यान न दे कर हर समय दोस्तों व सहेलियों से घिरे रहना पसंद करती है. तारीफ पाने के लिए लेटैस्ट फैशन के कपड़े, मेकअप बस यही उस का प्रिय शगल है और इसी में वह अपनी सफलता समझती है. तभी तो ऋचा से 2 साल बड़ी होने के बावजूद भी उसी की क्लास में है.

नीचे जा कर रोहिणी ने ऋचा के कमरे में झांक कर देखा. ऋचा पढ़ रही थी, क्योंकि वह पी.एस.सी. की तैयारी कर रही थी. रोहिणी ने अंदर जा कर उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और अपने कमरे में आ गई.

‘जिंदगी में हर बात का एक नियत समय होता है. समय निकल जाने के बाद सिवा पछतावे के कुछ हासिल नहीं होता. इसलिए जीवन में अपने लक्ष्य और प्राथमिकताएं तय कर लेना और उन्हीं के अनुसार प्रयत्न करना,’ यही समझाया था रोहिणी ने ऋचा को हमेशा. और उसे खुशी थी कि उस की बेटी ने जीवन का ध्येय चुनने में समझदारी दिखाई है. पूरी उम्मीद है कि ऋचा अपने लक्ष्य प्राप्ति में अवश्य सफल होगी.

अगले दिन ऋचा और निशा के कालेज जाने के बाद रोहिणी ने अपनी जेठानी से बोली कि निशा आजकल रोज घंटों फोन पर अलगअलग लड़कों से बातें करती है. आप जरा उसे समझाइए. लेकिन बदले में जेठानी का जवाब सुन कर वह अवाक रह गई.

‘‘करने दे रे, यही तो दिन हैं उस के हंसनेखेलने के. बाद में तो उसे हमारी तरह शादी की चक्की में ही पिसना है. बस बातें ही तो कर रही है न और वैसे भी सभी लड़के एक से एक अमीर खानदान से हैं.’’

रोहिणी को समझते देर नहीं लगी कि जेठानी की मनशा क्या है. वैसे भी उन्होंने निशा को ऐसे ढांचे में ही ढाला है कि अमीर खानदान में शादी कर के ऐश से रहना ही उस का एकमात्र ध्येय है. अमीर परिवार के इतने लड़कों में से वह एक मुरगा तो फांस ही लेगी.

रोहिणी को जेठानी की बात अच्छी नहीं लगी, लेकिन उस ने समझ लिया कि उन से और निशा से कुछ भी कहनासुनना बेकार है. वह ऋचा को उन दोनों से भरसक दूर रखने का प्रयत्न करती. वह नहीं चाहती थी कि ऋचा का ध्यान इन बातों पर जाए.

कई महीनों तक रोहिणी ऋचा की पढ़ाई को ले कर व्यस्त रही. उस ने निशा को टोकना छोड़ दिया और अपना सारा ध्यान ऋचा पर केंद्रित कर लिया. आखिर बेटी के भविष्य का सवाल है. रोहिणी अच्छी तरह समझती थी कि बेटी को अच्छे संस्कार दे कर बड़ा करना और बुरी सोहबत से बचा कर रखना एक मां का फर्ज होता है.

एक दिन रोहिणी ने निशा के हाथ में बहुत महंगा मोबाइल देखा तो उस का माथा ठनका. निशा और उस की मां की आपसी बातचीत से पता चला कि कुछ दिन पहले किसी हिमेश नामक लड़के से निशा की दोस्ती हुई है और उसी ने निशा को यह मोबाइल उपहार में दिया है.

जेठानी रोहिणी की ओर कटाक्ष कर के कहने लगीं कि लड़का आई.ए.एस. है. खानदान भी बहुत ऊंचा और अमीर है. निशा की तो लौटरी खुल गई. अब तो यह सरकारी अफसर की पत्नी बनेगी.

रोहिणी को इस बात पर बड़ी चिंता हुई. कुछ ही दिनों की दोस्ती पर कोई किसी पर इतना पैसा खर्च कर सकता है, यह बात उस के गले नहीं उतर रही थी.

उस ने अपने पति नीरज से बात की तो नीरज ने कहा, ‘‘मैं भी धीरज भैया को कह चुका हूं, लेकिन तुम तो जानती हो, वे भाभी और बेटी के सामने खामोश रहते हैं. तुम जबरन तनाव मत पालो. ऋचा पर ध्यान दो.

जब उन्हें अपनी बेटी के भविष्य की चिंता नहीं है तो हम क्यों करें? समझाना हमारा काम था हम ने कर दिया.’’

रोहिणी को नीरज की बात ठीक लगी. उस ने तो निशा को भी अपनी बेटी समान ही समझा, पर अब जब मांबेटी दोनों अपने आगे किसी को कुछ समझती ही नहीं तो वह भी क्या करे.

अगले कुछ महीनों में तो निशा अकसर हिमेश के साथ घूमने जाने लगी. कई बार रात में पार्टियां अटैंड कर के देर से घर आती. उस के कपड़ों से महंगे विदेशी परफ्यूम की खुशबू आती.

कपड़े दिन पर दिन कीमती होते जा रहे थे. रोहिणी ने कभी ऋचा और निशा में भेद नहीं किया था, इसलिए उस के भविष्य के बारे में सोच कर उस के मन में भय की लहर दौड़ जाती. पर वह मन मसोस कर मर्यादा का अंशअंश टूटना देखती रहती. घर में 2 विपरीत धाराएं बह रही थीं.

ऋचा सारे समय अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहती और निशा सारे समय हिमेश के साथ अपने सुनहरे भविष्य के सपनों में खोई रहती. उस के पैर जमीन पर नहीं टिकते थे. उस के सुंदर दिखने के उपायों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही थी. वह ऋचा और रोहिणी को ऐसी हेय दृष्टि से देखती थी मानो हिमेश का सारा पैसा और पद उसी का हो.

ऋचा के बी.ए. फाइनल और पी.एस.सी. प्रिलिम्स के इम्तिहान हो गए, लेकिन आखिरी पेपर दे कर आने के तुरंत बाद ही वह अन्य परीक्षा की तैयारियों में जुट गई. उस की दृढ़ता और विश्वास देख कर रोहिणी और नीरज भी आश्वस्त थे कि वह पी.एस.सी. की परीक्षा में जरूर सफल हो जाएगी.

और वह दिन भी आ गया जब रोहिणी और नीरज के चेहरे खिल गए. उन के संस्कार जीत गए. ऋचा की मेहनत सफल हो गई. वह प्रिलिम्स परीक्षा पास कर गई और साथ ही बी.ए. में पूरे विश्वविद्यालय में अव्वल रही.

लेकिन इस खुशी के मौके पर घर में एक तनावपूर्ण घटना घट गई. निशा रात में हिमेश के साथ उस की बर्थडे पार्टी में गई. घर में वह यही बात कह कर गई कि हिमेश ने बहुत से फ्रैंड्स को होटल में इन्वाइट किया है. खानापीना होगा और वह 11 बजे तक घर वापस आ जाएगी. लेकिन जब 12 बजे तक निशा घर नहीं आई तो घर में चिंता होने लगी. वह मोबाइल भी रिसीव नहीं कर रही थी. रात के 2 बजे तक उस की सारी सहेलियों के घर पर फोन किया जा चुका था पर उन में से किसी को भी हिमेश ने आमंत्रित नहीं किया था. जिस होटल का नाम निशा ने बताया था नीरज वहां गया तो पता चला कि ऐसी कोई बर्थडे पार्टी वहां थी ही नहीं.

गंभीर दुर्घटना की आशंका से सब का दिल धड़कने लगा. रोहिणी जेठानी को तसल्ली दे रही थी पर उन के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. वे रोहिणी से नजरें नहीं मिला पा रही थीं. सुबह 4 बजे जब वे लोग पुलिस में रिपोर्ट करने की सोच रहे थे कि तभी एक गाड़ी तेजी से आ कर दरवाजे पर रुकी और तेजी से चली गई. कुछ ही पलों बाद निशा अस्तव्यस्त और बुरी हालत में घर आई और फूटफूट कर रोने लगी.

उस की कहानी सुन कर धीरज और उस की पत्नी के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. रोहिणी और नीरज अफसोस से भर उठे.

बर्थडे पार्टी का बहाना बना कर हिमेश निशा को एक दोस्त के फार्म हाउस में ले गया. वहां उस के कुछ अधिकारी आए हुए थे. उसने निशा से उन्हें खुश करने को कहा. मना करने पर वह गुस्से से चिल्लाया कि महंगे उपहार मैं ने मुफ्त में नहीं दिए. तुम्हें मेरी बात माननी ही पड़ेगी. उपहार लेते समय तो हाथ बढ़ा कर सब बटोर लिया और अब ढोंग कर रही हो. और फिर पता नहीं उस ने निशा को क्या पिला दिया कि उस के हाथपांव बेदम हो गए और फिर…

कहां तो निशा उस की पत्नी बनने का सपना देख रही थी और हिमेश ने उसे क्या बना दिया. हिमेश ने धमकी दी थी कि किसी को बताया तो…

रोहिणी सोचने लगी अगर मर्यादा का पहला अंश भंग करने से पहले ही निशा सचेत हो जाती तो आज अपनी मर्यादा खो कर न आती.

निशा के कानों में रोहिणी के शब्द गूंज रहे थे, जो उन्होंने एक बार उस से कहे थे कि मर्यादा भंग करते जाने का साहस ही हम में एकबारगी सारी सीमाएं तोड़ डालने का दुस्साहस भर देता है.

वाकई एकएक कदम बिना सोचेसमझे अनजानी राह पर कदम बढ़ाती वह आज गड्ढे में गिर गई थी.

कड़वा फल : क्या अपनी बहन के भविष्य को संवार पाया रवि?

अपने मम्मी पापा की शादी की 10वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में हुई भव्य पार्टी की यादें आज भी मेरे दिलोदिमाग में तरोताजा हैं. वह पार्टी लंबे समय तक हमारे परिचितों के बीच चर्चा का विषय बनी रही थी.

पार्टी क्लब में हुई थी. करीब 500 मेहमानों की आवभगत वरदीधारी वेटरों की पूरी फौज ने की थी. अपनीअपनी रुचि के अनुरूप मेहमानों ने जम कर खाया, और देर रात तक डांस करते रहे. इतने सारे गिफ्ट आए कि पापा को उन्हें कारों से घर पहुंचाने के लिए अपने 2 दोस्तों की सहायता लेनी पड़ी.

मेरे लिए वे बेहद खुशी भरे दिन थे. हम ने एक बड़े घर में कुछ महीने पहले शिफ्ट किया था. मेरी छोटी बहन शिखा और मुझे अपना अलग कमरा मिला. मम्मी ने उसे बड़े सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया था.

अपने नए दोस्तों के बीच मेरी धाक शुरू से ही जम गई. मेरी साइकिल हो या जूते, कपड़े हों या स्कूल बैग, हर चीज सब से ज्यादा कीमती और सुंदर होती.

‘‘मेरे मम्मी पापा दोनों सर्विस करते हैं और मेरी हर इच्छा को फौरन पूरा करना उन्हें अच्छा लगता है. तुम सब मुझ से जलो मत. मैं बहुत खुशहाल हूं,’’ अपने दोस्तों के सामने ऐसी डींगें मारते हुए मेरी छाती गर्व से फूल जाती.

अपने दोस्तों की ईर्ष्याभरी प्रतिक्रियाएं मैं मम्मी पापा को बताता तो वे दोनों खूब हंसते.

‘‘मेरे बच्चों को सुख सुविधा की हर चीज मिलेगी और वह भी ‘बैस्ट क्वालिटी’ की,’’ ऐसा आश्वासन पापा से बारबार पा कर मेरा चेहरा फूल सा खिल जाता.

‘‘रवि बेटे, हमारे ठाटबाट देख कर हम से जलने वालों में तुम्हारे दोस्त ही नहीं, बल्कि रिश्तेदार और पड़ोसी भी शामिल हैं. इन की बातों पर कभी ध्यान मत देना. कुत्तों के भूंकने से हाथी अपनी मस्त चाल नहीं बदलता है,’’

मां के मुंह से अकसर निकलने वाला आखिरी वाक्य अपने ईर्ष्यालु दोस्तों को सुनाने का मैं कोई अवसर नहीं चूकता.

मम्मी पापा दोनों अच्छी पगार जरूर लेते, पर फिर भी उन की मासिक आय थी तो सीमित ही. घर के खर्चों में कटौती वे करते नहीं थे. बाजार में सुखसुविधा की आई कोई भी नई चीज हमारे घर अधिकतर पड़ोसियों के यहां आने से पहले आती. हर दूसरेतीसरे दिन बाहर होटल में खाना खाने का चाव हम सभी को था. महंगे स्कूल की फीस, कार के पैट्रोल का खर्चा, सब के नए कपड़े, मम्मी की महंगी प्रसाधन सामग्री इत्यादि नियमित खर्चों के चलते आर्थिक तंगी के दौर से भी अकसर हमें गुजरना पड़ता.

मम्मीपापा के बीच तनातनी का माहौल मैं ने सिर्फ ऐसे ही दिनों में देखा. अधिकतर तो वे हम भाईबहन के सामने झगड़ने से बचते, पर फिर भी एकदूसरे पर फुजूलखर्ची का आरोप लगा कर आपस में कड़वे, तीखे शब्दों का प्रयोग करते मैं ने कई बार उन्हें देखासुना था.

‘‘मम्मीपापा, मैं बड़ा हो कर डाक्टर बनूंगा. अपना नर्सिंगहोम बनाऊंगा. ढेर सारे रुपए कमा कर आप दोनों को दूंगा. तब हमें पैसों की कोई तंगी नहीं रहेगी. खूब दिल खोल कर खर्चा करना आप दोनों,’’ वे दोनों सदा ऐशोआराम की जिंदगी बसर करें, ऐसा भाव बचपन से ही मेरे दिल में बड़ी मजबूती से कायम रहा.

सब से छोटी बूआ की शादी पर पापा ने 21 हजार रुपए दिए, जबकि दादा दादी 50 हजार की आशा रखते थे. इस बात को ले कर काफी हंगामा हुआ.

‘‘मैं अपने किसी दोस्त से कर्जा ले कर 50 हजार रुपए ही दे देता हूं,’’ पापा की इस पेशकश का मम्मी ने सख्त विरोध किया.

‘‘पहली दोनों ननदों की शादियों में हम बहुत कुछ दे चुके हैं. क्या आप के दोनों छोटे भाई मिल कर यह एक शादी भी नहीं करा सकते? हमारा हाथ पहले ही तंग चल रहा है. ऊपर से कर्जा लेने की आप सोचो भी मत,’’ मम्मी को गुस्से में देख कर पापा ने चुप्पी साध ली थी.

मेरे दादा दादी, दोनों चाचाओं और तीनों बूआओं ने तब हम से सीधे मुंह बात करना ही बंद कर दिया. सारी शादी में हम बेगानों से घूमते रहे थे.

‘‘राजीव, देख ले, अपनी जिम्मेदारी ढंग से न निभा पाने के कारण कितनी बदनामी हुई है तेरी,’’ दादी ने बूआ की विदाई के बाद आंखों में आंसू भर कर पापा से कहा, ‘‘सब से अच्छी माली हालत होने के बावजूद बहन की शादी में तेरा सब से कम रुपए देना ठीक नहीं था.’’

‘‘मेरी सहूलियत होती तो मैं ज्यादा रुपए जरूर देता. जो मैं ने पहले किया उसे तुम सब भूल गए. जिस तरह से इस शादी में मुझे बेइज्जत किया गया है, उसे मैं भी कभी नहीं भूलूंगा,’’ पापा की आवाज में गुस्सा भी था और दुख भी.

‘‘पुरानी बातों को कोई नहीं याद रखता, बेटे. तुम दोनों इतना कमाने के बावजूद तंगी में फंस जाते हो, तो अपना जीने का ढर्रा बदलो. ऐसी शानोशौकत व तड़कभड़क का क्या फायदा, जो जरूरत के वक्त दूसरों का मुंह देखो या किसी के सामने हाथ फैलाओ,’’ दादी की इस नसीहत का बुरा मान पापा उन से जोर से लड़ पड़े थे.

उस शादी के बाद हमारा दादादादी, चाचा और बूआओं से मिलनाजुलना न के बराबर रह गया. मम्मीपापा के सहयोगी मित्रों के परिवारों से हमारे संबंध बहुत अच्छे थे. उन से क्लब में नियमित मुलाकात होती और एकदूसरे के घर में आनाजाना भी खूब होता.

कक्षा 8 तक मैं खुद पढ़ता रहा और खूब अच्छे नंबर लाता रहा. इस के बाद पापा ने ट्यूशन लगवा दी. विज्ञान और गणित की ट्यूशन फीस 1,500 रुपए मासिक थी.

‘‘रवि बेटा, पढ़ने में जीजान लगा दो. तुम्हारी पढ़ाई पर हम दिल खोल कर खर्चा करेंगे, मेहनत तुम करो. तुम्हें डाक्टर बनना ही है,’’ मेरे सपने की चर्चा करते हुए मम्मीपापा भावुक हो उठते.

मैं ने काफी मेहनत की भी थी, पर 10वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में मेरे सिर्फ  75% नंबर आए. पापामम्मी को इस कारण काफी निराशा हुई.

‘‘मेरी समझ से तुम ने यारीदोस्ती में ज्यादा वक्त बरबाद किया था, रवि. उन के साथ सजसंवर कर बाहर घूमने के बजाय तुम्हें पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए था. अगर अच्छा कैरियर बनाना है, तो आगामी 2-3 सालों के लिए सब शौक छोड़ कर सिर्फ पढ़ने में मन लगाओ,’’ पापा की कठोरता व रूखापन मुझे बहुत बुरा लगा था.

11वीं कक्षा में मैं ने साइंस के मैडिकल ग्रुप के विषय लिए. अंगरेजी को छोड़ कर मैं ने बाकी चारों विषयों की ट्यूशन पढ़ने को सब से बढि़या व महंगे कोचिंग संस्थान में प्रवेश लिया. वहां की तगड़ी फीस मम्मीपापा ने माथे पर एक भी शिकन डाले बिना कर्जा ले कर भर दी.

कड़ी मेहनत करने का संकल्प ले कर मैं पढ़ाई में जुट गया. दोस्तों से मिलना और बाहर घूमनाफिरना काफी कम कर दिया. क्लब जाना बंद कर दिया. बाहर घूमने जाने के नाम से मुझे चिढ़ होती.

‘‘मम्मीपापा, मैं जो नियमित रूप से पढ़ने का कार्यक्रम बनाता हूं, वह बाहर जाने के चक्कर में बिगड़ जाता है. आप दोनों मुझे अकेला छोड़ कर जाते हो, तो खाली घर में मुझ से पढ़ाई नहीं होती. मेरी खातिर आप दोनों घर में रहा करो, प्लीज,’’ एक शनिवार की शाम मैं ने उन से अपनी परेशानी भावुक अंदाज में कह दी.

‘‘रवि, पूरे 5 दिन दफ्तर में सिर खपा कर हम दोनों तनावग्रस्त हो जाते हैं. अगर शनिवारइतवार को भीक्लब नहीं गए, तो पागल हो जाएंगे हम. हां, बाकी और जगह जाना हम जरूर कम करेंगे,’’ उन के इस फैसले को सुन कर मैं उदास हो गया.

सुख देने व मनोरंजन करने वाली आदतों को बदलना और छोड़ना आसान नहीं होता. मम्मीपापा ने शुरू में कुछ कोशिश की, पर घूमनेफिरने की आदतें बदलने में दोनों ही नाकाम रहे.

उन्हें घर से बाहर घूमने जाने का कोई न कोई बहाना मिल ही जाता. कभी बोरियत व तनाव दूर करने तो कभी खुशी का मौका होने के कारण वे बाहर निकल ही जाते.

मैं उन के साथ नहीं जाता, पर चिढ़ और कुढ़न के कारण मुझ से पीछे पढ़ाई भी नहीं होती. मन की शिकायतें उसे पढ़ाई में एकाग्र नहीं होने देतीं.

चढ़ाई मुश्किल होती है, ढलान पर लुढ़कना आसान. वे दोनों नहीं बदले, तो मेरा संकल्प कमजोर पड़ता गया. मैं ने भी धीरेधीरे उन के साथ हर जगह आनाजाना शुरू कर दिया.

इस कारण मुझे वक्तबेवक्त मम्मीपापा की डांट व लैक्चर सुनने को मिलते. उन की फटकार से बचने के लिए मैं उन के सामने किताब खोले रहता. वे समझते कि मैं कड़ी मेहनत कर रहा हूं, पर आधे से ज्यादा समय मेरा ध्यान पढ़ने में नहीं होता.

अपनी लापरवाही के परिणामस्वरूप मैं पढ़ाई में पिछड़ने लगा. टैस्टों में नंबर कम आने पर मम्मीपापा से खूब डांट पड़ी.

‘‘अपनी लापरवाही की वजह से कल को अगर तुम डाक्टर नहीं बन पाए, तो हमें दोष मत देना. अपना जीवन संवारने की जिम्मेदारी सिर्फ तुम्हारी है, क्योंकि अब तुम बड़े हो गए हो,’’ मारे गुस्से के मम्मी का चेहरा लाल हो गया था.

यही वह समय था जब अपने मम्मीपापा के प्रति मेरे मन में शिकायत के भाव जनमे.

‘मेरे उज्ज्वल भविष्य की खातिर मम्मीपापा अपने शौक व आदतों को कुछ समय के लिए बदल क्यों नहीं रहे हैं? सुखसुविधाओं की वस्तुएं जुटा देने से ही क्या उन के कर्तव्य पूरे हो जाएंगे? मेरे मनोभावों को समझ मेरे साथ दोस्ताना व प्यार भरा वक्त गुजारने का महत्त्व उन्हें क्यों नहीं समझ आता?’ मन में उठते ऐसे सवालों के कारण मैं रातदिन परेशान रहने लगा.

तब तक क्रैडिट कार्ड का जमाना आ गया. यह सुविधा मम्मीपापा के लिए वरदान साबित हुई. जेब में रुपए न होने पर भी वे मौजमस्ती की जिंदगी जी सकते थे.

उन की दिनचर्या व उन के व्यवहार के कारण मेरे मन में नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती. उन से कुछ कहनासुनना बेकार जाता और घर में ख्वाहमख्वाह का तनाव अलग पैदा होता.

मैं सचमुच डाक्टर बनना चाहता था. मैं ने इस नकारात्मक ऊर्जा का उपयोग पढ़नेलिखने के लिए करना आरंभ किया. मम्मीपापा के साथ ढंग से बातें किए हुए कईकई दिन गुजर जाते. मन के रोष व शिकायतों को भुलाने के लिए मैं रात को देर तक पढ़ता. मुझे बहुत थक जाने पर ही नींद आती वरना तो मम्मीपापा के प्रति गलत ढंग के विचार मन में घूमते रह कर सोने न देते.

मेरी 12वीं कक्षा की बोर्ड की परीक्षाओं के दौरान भी मम्मीपापा ने अपने घूमनेफिरने में खास कटौती नहीं की. वे मेरे पास होते भी, तो मुझे उन से खास सहारा या बल नहीं मिलता, क्योंकि मैं ने उन से अपने दिल की बातें कहना छोड़ दिया था.

बोर्ड की परीक्षाओं के बाद मैं ने कंपीटीशन की तैयारी शुरू की. अपनी आंतरिक बेचैनी को भुला कर मैं ने काफी मेहनत की.

बोर्ड की परीक्षा में मुझे 78% अंक प्राप्त हुए, लेकिन किसी भी सरकारी मैडिकल कालेज के लिए हुए कंपीटीशन की मैरिट लिस्ट में मेरा नाम नहीं आया.

मेरी निराशा रात को आंसू बन कर बहती. मम्मीपापा की निराशा कुछ दिनों के लिए उदासी के रूप में और बाद में कलेजा छलनी करने वाले वाक्यों के रूप में प्रकट हुई.

मेरा डाक्टर बनने का सपना अब प्राइवेट मैडिकल कालेज ही पूरा कर सकते थे. उन में प्रवेश पाने को डोनेशन व तगड़ी फीस की जरूरत थी. करीब 15-20 लाख रुपए से कम में डाक्टरी के कोर्स में प्रवेश लेना संभव न था.

हमारे रहनसहन का ऊंचा स्तर देख कर कोई भी यही अंदाजा लगाता कि मेरी उच्च शिक्षा पर 15-20 लाख रुपए खर्च करने की हैसियत मेरे मम्मीपापा जरूर रखते होंगे, पर यह सचाई नहीं थी. तभी मैं ने निराश और दुखी अंदाज में मम्मीपापा के सामने प्राइवेट मैडिकल कालेज में प्रवेश लेने की अपनी इच्छा जाहिर की.

पहले तो उन दोनों ने मेरे नकारापन के लिए मुझे खूब जलीकटी बातें सुनाईं. फिर गुस्सा शांत हो जाने के बाद उन्होंने जरूरत की राशि का इंतजाम करने के बारे में सोचविचार आरंभ किया. इस सिलसिले में पापा पहले अपने बैंक मैनेजर से मिले.

‘‘मिस्टर राजीव, मैं आप की सहायता करना चाहता हूं, पर नियमों के कारण मेरे हाथ बंधे हैं,’’ मैनेजर की प्रतिक्रिया बड़ी रूखी थी, ‘‘अपनी जीवन बीमा पालिसी पर आप ने पहले ही हम से लोन ले रखा है. किसी जमीनजायदाद के कागज आप के पास होते, तो हम उस के आधार पर लोन दे देते. आप को अपने बेटे को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए बहुत पहले से कुछ प्लानिंग करनी चाहिए थी. मुझे अफसोस है, मैं आप की कोई सहायता नहीं कर सकूंगा.’’

क्लब में पापा के दोस्त राजेंद्र उन के ब्रिज पार्टनर भी हैं. काफी लंबाचौड़ा व्यवसाय है उन का. पापा ने उन से भी रुपयों का इंतजाम करने की प्रार्थना की, पर बात नहीं बनी.

राजेंद्र साहब के बेटे अरुण से मुझे उन के इनकार का कारण पता चला.

‘‘रवि, अगर तुम्हारे पापा ने मेरे पापा से लिए पुराने कर्ज को वक्त से वापस कर दिया होता, तो शायद बात बन जाती. मेरे पापा की राय में तुम्हारे मम्मीडैडी फुजूलखर्च इनसान हैं, जिन्हें बचत करने का न महत्त्व मालूम है और न ही उन की आदतें सही हैं. मेरे पापा एक सफल बिजनेसमैन हैं. जहां से रकम लौटाने की उम्मीद न हो, वे वहां फंसेंगे ही नहीं,’’ अरुण के मुंह से ऐसी बातें सुनते हुए मैं ने खुद को काफी शर्मिंदा महसूस किया था.

दादाजी, चाचाओं और बूआओं से हमारे संबंध ऐसे बिगड़े हुए थे कि पापा की उन से इस मामले में कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं पड़ी.

मम्मी ने भी अपने रिश्तेदारों व सहेलियों से कर्ज लेने की कोशिश की, पर काम नहीं बना. यह तथ्य प्रमाणित ही है कि जिन की अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है उन्हें बैंक और परिचित दोनों ही आर्थिक सहायता देने को तैयार रहते हैं. मेरी राय में अगर मम्मीपापा के पास अपनी बचाई आधी रकम भी होती, तो बाकी आधी का इंतजाम कहीं न कहीं से वही रकम करवा देती.

अंतत: मैडिकल कालेज में प्रवेश लेने की तिथि निकल गई. उस दिन हमारे घर में गहरी उदासी का माहौल बना रहा. पापा ने मुझे गले लगा कर मेरा हौसला बढ़ाने की कोशिश की, तो मैं रो पड़ा. मेरे आंसू देख कर मम्मीपापा और छोटी बहन शिखा की पलकें भी भीग उठीं.

कुछ देर रो कर मेरा मन हलका हो गया, तो मैं ने मम्मीपापा से संजीदा लहजे में कहा, ‘‘जो हुआ है, उस से हमें सीख लेनी होगी. आगे शिखा के कैरियर व शादी के लिए भी बड़ी रकम की जरूरत पड़ने वाली है. उस का इंतजाम करने के लिए हमें अपने जीने का ढंग बदलना होगा, मम्मीपापा.’’

‘‘मेहनती और होशियार बच्चे अपने मातापिता से बिना लाखों का खर्चा कराए भी काबिल बन जाते हैं. रवि, तुम अपनी नाकामयाबी के लिए न हमें दोष दो और न ही हम पर बदलने के लिए बेकार का दबाव बनाओ,’’ मम्मी एकदम से चिढ़ कर गुस्सा हो गईं.

पापा ने मेरे जवाब देने से पहले ही उदास लहजे में कहा, ‘‘मीनाक्षी, रवि का कहना गलत नहीं है. छोटे मकान में रह कर, फुजूलखर्ची कम कर के, छोटी कार, कम खरीदारी और सतही तड़कभड़क के आकर्षण में उलझने के बजाय हमें सचमुच बचत करनी चाहिए थी. आज हमारी गांठ में पैसा होता, तो रवि का डाक्टर बनने का सपना पूरा हो सकता था.’’

‘‘ऐसा होता, तो वैसा हो जाता, ऐसे ढंग से अतीत के बारे में सोचने से चिंता और दुखों के अलावा कुछ हाथ नहीं आता है,’’ मम्मी भड़क कर बोलीं, ‘‘हमें भी अपने ढंग से जिंदगी जीने का अधिकार है. रवि और शिखा को हम ने आज तक हर सुखसुविधा मुहैया कराई है. कभी किसी तरह की कमी नहीं महसूस होने दी.

‘‘डाक्टर बनने के अलावा और भी कैरियर इस के सामने हैं. दिल लगा कर मेहनत करने वाला बच्चा किसी भी लाइन में सफल हो जाएगा. कल को ये बच्चे भी अपने ढंग से अपनी जिंदगी जिएंगे या हमारी सुनेंगे?’’

‘‘तुम भी ठीक कह रही हो,’’ पापा गहरी सांस छोड़ कर उठ खड़े हुए, ‘‘रवि बेटा, जैसा तुम चाहो, जिंदगी में वैसा ही हो, इस की कोई गारंटी नहीं होती. दिल छोटा मत करो. इलैक्ट्रौनिक्स आनर्स में तुम ने प्रवेश लिया हुआ है. मेहनत कर के उसी लाइन में अपना कैरियर बनाओ.’’

कुछ देर बाद मम्मीपापा अपने दुखों व निराशा से छुटकारा पाने को क्लब चले गए. शिखा और मैं बोझिल मन से टीवी देखने लगे.

कुछ देर बाद शिखा ने अचानक रोंआसी हो कर कहा, ‘‘भैया, मम्मीपापा कभी नहीं बदलेंगे. भविष्य में आने वाले कड़वे फल उन्हें जरूर नजर आते होंगे, पर वर्तमान की सतही चमकदमक वाली जिंदगी जीने की उन्हें आदत पड़ गई है. उन से बचत की उम्मीद हमें नहीं रखनी है. हम दोनों एकदूसरे का सहारा बन कर अपनीअपनी जिंदगी संवारेंगे.’’

मैं ने शिखा को गले से लगा लिया. देर तक वह मेरा कंधा अपने आंसुओं से भिगोती रही. अपने से 5 साल छोटी शिखा के सुखद भविष्य का उत्तरदायित्व सुनियोजित ढंग से उठाने के संकल्प की जड़ें पलपल मेरे मन में मजबूत होती जा रही थीं.

सुगंधा लौट आई : क्या थी सुगंधा की अनिल को छोड़ने की वजह?

मैं उन दिनों बीबीए के अंतिम सैमेस्टर में था. इरादा तो ग्रैजुएशन के बाद एमबीए करने का था पर इस की हैसियत नहीं थी. पापा रिटायर हो चुके थे और रिटायरमैंट पर पैसे बहुत कम मिले थे. नौकरी के दौरान ही 2 बेटियों की शादी के लिए उन्होंने पीएफ से काफी पैसे निकाल लिए थे. छोटी बेटी की शादी के कुछ महीने बाद मम्मी चल बसीं.

पापा की पेंशन इतनी थी कि मेरी पढ़ाई और घर का खर्र्च आराम से चल जाता था. पापा ने मुझे बीबीए करने को कहा. मैं ने सोचा कि बीबीए के बाद बिजनैस के कुछ गुर सीख लूंगा और नौकरी न भी मिली तो अपना बिजनैस करूंगा. पापा ने कहा कि जरूरत पड़ने पर अपना घर गिरवी रख कर बैंक से कर्ज ले लेंगे. घर क्या था, बंटवारे के बाद पुश्तैनी घर में 3 रूम का एक फ्लैट उन के हिस्से आया था.

एक दिन मैं घर से निकल कर थोड़ी दूर ही गया था कि अचानक मेरे ऊपर पानी की कुछ बूंदें गिरीं. मौसम बरसात का नहीं था और ऊपर नीले आसमान में दूर तक बादल का नामोनिशान भी नहीं था. हां, जाड़े की शुरुआत जरूर थी. फिर दोबारा पानी की कुछ बूंदें मेरे सिर और चेहरे पर आ गिरीं. तब मैं ने देखा कि ठीक ऊपर पहली मंजिल की बालकनी पर खड़ी एक लड़की बालों को झटक रही थी. मैं ने रूमाल से अपने चेहरे से उन बूंदों को पोंछते हुए ऊपर देखा. लड़की थोड़ी सहमी सी लगी, फिर मुसकराई. उस के होंठ से कुछ अनसुने शब्द निकले हालांकि होंठों की मूवमैंट से मैं समझ गया कि वह सौरी बोल रही थी.

मैं ने शरारत से हंसते हुए कहा ‘‘इट्स ओके पर एक बार फिर मुसकरा दो.’’

इस पर वह खिलखिला कर हंस पड़ी और शरमा कर अंदर चली गई. मैं ने महसूस किया कि  गोरे रंग की इस लड़की के मुख में दूधिया दंतपंक्तियां उस की सुंदरता में चार चांद लगा रही थीं.

इस के 2 दिन बाद मैं फिर उस रास्ते से जा रहा था तो उस लड़की की बालकनी की ओर देखने लगा. वह लड़की तो वहीं खड़ी थी पर उस ने बालों में तौलिया बांध रखा था. इस बार मैं मुसकरा पड़ा तो जवाब में वह खिलखिला उठी, मुझे अच्छा लगा. फिर कुछ दिनों तक वह नजर नहीं आई. करीब 2 सप्ताह के बाद मुझे वह बाजार में सब्जी खरीदती मिली. इत्तफाक से मैं भी वहीं गया था. दोनों की नजरें मिलीं, मैं ने हिम्मत कर पूछा ‘‘इधर कुछ दिनों से आप दिखीं नहीं.’’

‘‘हां, छुट्टियां थीं, मैं दीदी के यहां गई थी. आज ही लौटी हूं.’’

मुझे उम्मीद नहीं थी कि वह पहली मुलाकात में इतनी फ्रैंकली बात करेगी. उस ने काफी सामान लिया था और उन्हें 2 थैलों में बांट कर दोनों हाथों में ले कर चलने लगी. मैं एक थैला उस के हाथ से लेना चाहता था, पर वह बोली. ‘‘थैंक्स, मैं खुद ले लूंगी आप क्यों तकलीफ करेंगे. घर ज्यादा दूर भी नहीं है. अगर जरूरत पड़ी तो रिक्शा ले लूंगी.’’

मैं ने उस के हाथ से थैला लगभग छीनते हुए कहा, ‘‘इस में तकलीफ की कोई बात नहीं है. रिक्शा के पैसे बचा कर हम चाय पी लेंगे.’’

चाय की दुकान सामने थी, वहां बैंच पर बैग रख कर बोला. ‘‘भैया 2 स्पैशल चाय बना देना.’’ चाय पीतेपीते थोड़ा परिचय हुआ, उस ने अपना नाम सुगंधा बताया. उस के पिता नहीं थे और वह मां के साथ रहती थी. वह बीसीए कर एक प्राइवेट स्कूल में टीचर थी. मैं ने भी अपनी पढ़ाई और बिजनैस के इरादे के बारे में बताया. मैं ने चाय के पैसे देने के लिए पर्स निकाला तो उस ने रोकते हुए कहा, ‘‘रिक्शा का पैसा मेरा बचा है तो पेमैंट मैं ही करूंगी.’’

मुझे अच्छा नहीं लगा, माना कि अभी नौकरी नहीं थी पर चाय के पैसे तो दे ही सकता

था. चाय पी कर टहलते हुए निकले, पहले उस का ही घर पड़ता था. उस ने दूसरा थैला मुझ से ले कर कहा, ‘‘थैंक्स, अनिलजी.’’

मैं और सुगंधा अकसर मिलने लगे थे जहां तक नौकरी का सवाल था वह सैटल्ड थी. मुझे बीबीए करने के बाद भी कोई मन लायक नौकरी नहीं मिल रही थी, जो औफर थे उन के वेतन बहुत कम थे. मैं कुछ अपना ही बिजनैस करने की सोच रहा था. वह मुझे प्रोत्साहित करती रही और ऐसे लोगों के उदाहरण देती जो निरंतर कठिन संघर्ष के बाद सफल हुए.

मेरे पास लैपटौप और इंटरनैट था. मैं दिन भर उसी पर अच्छी नौकरी या वैकल्पिक बिजनैस के अवसर तलाश रहा था. सुगंधा कभीकभी मुझे अपने घर भी ले जाती. उस की मां मुझे बहुत प्यार करती थी. एक दिन सुगंधा मेरे घर आई और उस ने बताया कि उस के स्कूल में कंप्यूटर लगने जा रहा है और फिर बच्चों को कंप्यूटर सिखाना है. उसी सिलसिले में एक प्रोजैक्ट रिपोर्ट और टैंडर बनाना है. वह चाहती थी कि मैं भी अपना टैंडर भरूं. मैं ने कंप्यूटर ऐप्लिकेशन का कोर्स भी किया था और पढ़ाई के दौरान टैंडर, मार्केटिंग की जानकारी भी मिली थी. मेरे पापा भी यही चाहते थे कि इस अवसर को न गवाऊं.

मैं ने टैंडर भरा और इत्तफाक कहें या सौभाग्य मुझे पहला अवसर मिला. सुगंधा के स्कूल की शाखाएं हमारे राज्य के कुछ अन्य शहरों के अतिरिक्त अन्य राज्यों में भी थीं. उस के प्रिंसिपल इस राज्य के स्कूलों में कंप्यूटर प्रोजैक्ट के इंचार्र्ज थे. सुगंधा ने कहा ‘‘अगर तुम्हारे काम से वे खुश हुए तो अन्य स्कूलों में भी तुम्हें काम मिलने की संभावना है.’’

मैं ने कहा ‘‘मैं टीचर नहीं बनना चाहता हूं. कंप्यूटर इंस्टौल कर नैटवर्किंग आदि एक टीचर और कुछ बच्चों को दोचार दिनां में सिखा दूंगा, इस के बाद उसे आगे बढ़ाना तुम लोगों की जिम्मेदारी होगी.’’

‘‘ठीक है, आप मुझे ही बता देना. मैं ने भी कंप्यूटर का कोर्स किया है.’’

मुझे मेरे पहले काम में ही आशातीत सफलता मिली. प्रिंसिपल बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने बाकी 11 स्कूलों के लिए टैंडर भरने को कहा. मेरी खुशी का ठिकाना न रहा. सुगंधा, उस की मां और पापा सभी बहुत खुश थे. पापा ने तो यहां तक कहा ‘‘इस लड़की के कदम बहुत शुभ हैं. इन के पड़ते ही तुम्हारी जिंदगी में एक खुशनुमा मोड़ आया है, क्यों न तुम दोनों ही मिल कर काम करो, बल्कि मुझे तो यह लड़की बेहद पसंद है. तुम्हारी जीवनसाथी बनने लायक है.’’

सुगंधा की मां के भी कुछ ऐसे ही विचार थे. मुझे एहसास था कि हम दोनों

एकदूसरे को चाहने लगे थे पर हम ने अपनी चाहत को मन में ही दबा कर रखा था, खास कर मैं ने क्योंकि अभी तक मैं अपने पैरों पर खड़ा नहीं था. अब तो बड़ों की इजाजत मिल चुकी थी सो खुल्लमखुल्ला मर्यादित और एक दायरे के अंदर इश्क का सिलसिला शुरू हो गया.

मुझे बाकी स्कूल के टैंडर भी मिल गए तब मैं ने अपने घर से ही अपनी निजी कंपनी की शुरूआत की. ‘‘सुनील डौट कौम.’’ पापा ने पूछा ‘‘यह सुनील कौन है जिस के नाम की कंपनी तुम ने खोली है?’’

मैं ने उन्हें कहा ‘‘सु फौर सुगंधा और नील आप के बेटे अनिल का नाम दोनों को मिला कर सुनील रखा है.’’

‘‘अच्छा तो बात यहां तक पहुंच गई है तब तो मुझे सुगंधा की मां से बात करनी होगी.’’

सुगंधा को भी मेरी कंपनी का नाम सुन कर आश्चर्य हुआ. मैं ने जब उसे इस का मतलब समझाया तो वह हंसने लगी. पापा ने उस की मां से मिल कर हम दोनों की चट मंगनी पट शादी करा दी.

कुछ ही दिनों में मुझे और काम मिले. मैं अकेले तो सब काम नहीं कर सकता था

इसलिए मैं ने 2 नए आदमी रखे. इसलिए

अलग औफिस के लिए बड़ी जगह की जरूरत पड़ी तो मैं ने 2 औफिस केबिन किराए पर

लिए. बाहर वाले केबिन में मेरा स्टाफ और

अंदर वाले में मैं खुद बैठता. कभीकभी सुगंधा

भी आ कर मेरे साथ कुछ देर बैठती. मैं उसे पा कर बहुत खुश था. मुझे लगा मुझे मेरा मुकाम मिल गया है.

शादी के 2 साल बाद सुगंधा गर्भवती हुई. हम दोनों बहुत खुश थे. मैं उसे काफी समय देने लगा था. हर पल आने वाले मेहमान को ले कर सोचता और भविष्य का प्लान करता रहा. इस के चलते बिजनैस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था. सुगंधा मुझे बारबार आगाह करती कि वह तो आजीवन मेरे साथ है उस की इतनी ज्यादा चिंता करने की आवश्यकता नहीं है और अपने काम पर ज्यादा समय दे. इसी बीच उस की मां चल बसी. दुर्भाग्यवश चौथे महीने में सुगंधा का मिसकैरेज हो गया. वह बहुत उदास रहने लगी थी और डिप्रैशन में चली गई.

अब मैं अपना पहले से भी ज्यादा समय उस पर देने लगा. वह मुझे समझाती कि कुछ दिनों की बात है मैं ठीक हो जाऊंगी. मैं उसे समझाता कि उस के ठीक होने के बाद ही मैं काम पर जाऊंगा. मेरे प्रोजैक्ट्स डेडलाइन मिस करने लगे थे. नए काम का अकाल पड़ने लगा और पुराने कस्टमर भी नाराज थे. इस बीच सुगंधा बहुत कुछ ठीक हो चली थी पर मेरा बिजनैस दुबारा पटरी पर नहीं आ सका था.

मुझे अपने स्टाफ की छंटनी करनी पड़ी. औफिस का किराया देने के लिए सुगंधा

ने स्कूल से कर्ज लिया था. मैं फिर से अपने घर से काम करने लगा, पर काम तो था नहीं. काम ढूंढ़ना ही मेरा काम था. सुगंधा मुझे ढाढ़स देती और कहती कि काम के लिए और लोगों के

पास जाऊं. मैं अपमानित महसूस कर रहा था कि कुछ दिन पहले मैं दूसरों को नौकरी देता था

और अब मुझे काम के लिए दूसरों की चौखट पर जाना होगा. मुझे लगा कि सुगंधा इस बात से नाराज हुई थी.

कुछ ही दिनों के बाद अचानक मेरे जीवन में भूचाल आया. एक सुबह अचानक  सुगंधा घर से गायब थी. वह एक लिफाफा छोड़ गई थी. उस में एक पत्र था जिस में लिखा था-

मैं आप को और इस शहर को छोड़ कर जा

रही हूं. आप मेरी फिक्र न करें. मैं लौट कर आप के जीवन में आऊंगी या नहीं अभी नहीं कह सकती, पर आप की यादों के सहारे मैं जी

लूंगी. आप किसी की कही एक बात हमेशा

याद रखें- ‘‘जिंदगी जीना आसान नहीं होता,

बिना संघर्ष के कोई महान नहीं होता, जब तक

न पड़े हथौड़े की चोट, पत्थर भी भगवान नहीं होता. बस आप पूरी लगन से एक बार फिर

अपने काम में लगे रहिए, कामयाबी जरूर मिलेगी. मेरी दुआएं और शुभकामनाएं सदा आप के साथ हैं.’’

मैं सकते में था कि सुगंधा ने ऐसा फैसला क्यों लिया होगा. मैं ने पापा से भी उस के बारे में पूछा कि शायद उन्हें कुछ बताया हो पर उन्हें भी कुछ पता नहीं था.

मुसीबत की इस घड़ी में सिर्फ पापा मेरे साथ खड़े रहे. मैं ने सुगंधा के स्कूल में पता किया कि शायद वह इसी गु्रप के किसी दूसरे स्कूल में हो. पर सुगंधा का कोई सुराग नहीं मिला. मेरा मन किसी काम में नहीं लग रहा था. पापा ने कहा, ‘‘फिलहाल तुम काम के बारे में सोचना छोड़ दो और मैनेजमैंट करो. तुम ने पहले से मैनेजमैंट में ग्रैजुएशन कर रखा है अब तुम एमबीए करोगे. वहां से तुम्हें बहुत सारे अवसर और विकल्प मिलेंगे. मैं इस घर को गिरवी रख कर तुम्हें एमबीए करने भेज सकता हूं. इस बीच तुम्हारा ध्यान भी दुनियादारी से हट जाएगा.’’

आईआईएम अहमदाबाद भारत का

सर्वश्रेष्ठ मैनेजमैंट स्कूल माना जाता है, वहां

मुझे दाखिला मिला. मेरी पढ़ाई और पूर्व

अनुभव के चलते मुझे दूसरे वर्ष में मल्टीनैशनल कंपनी में बहुत अच्छा प्लेसमैंट मिल गया.

पढ़ाई पूरी होने के बाद 6 महीने की ट्रैनिंग

ब्रिटेन में और फिर ब्रिटेन या अन्य किसी देश में पोस्टिंग होती.

मैं मैनेजमैंट करने के बाद लंदन गया. मैं अपने नए काम और पोस्टिंग से बहुत खुश था. हर 2-3 साल के बाद मेरी पोस्टिंग ब्रिटेन के अतिरिक्त फ्रांस, इटली, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया में होती रही और साथ में मुझे

प्रमोशन भी मिलता रहा. इस बीच 10 साल

बीत गए. इस दौरान मुझे सुगंधा के बारे में कोईर् खबर नहीं मिली. ऐसा नहीं था कि मैं उसे पूरी तरह से भूल चुका था. प्रमोशन के साथ बढ़ते टारगेट और जिम्मेदारी के चलते अपने निजी जीवन के बारे में सोचने का समय कम मिलता था. फिर भी तन्हाई के आलम में उस की बहुत याद आती और शराब भी उस गमगीन माहौल

को भुलाने में नाकाम होती थी. मन में उम्मीद अभी भी जिंदा थी कि सुगंधा शायद किसी दिन वापस आ जाए. पापा से लगभग रोजाना संपर्क होता था.

मेरी कंपनी मुंबई में अपना दफ्तर खोलने जा रही थी और मेरे एक जूनियर कलीग को

इस काम के लिए मुंबई भेजा गया. पूरा औफिस सैट होने के बाद कंपनी मुझे वहां चीफ बना कर भेज रही थी. इस औफिस के लिए के कुछ सौफ्टवेयर इंजीनियर चाहिए थे. इस के लिए पहले राउंड का इंटरव्यू मेरा कलीग

लेता उस के बाद उस की डिटेल्स के साथ फाइनल इंटरव्यू फोन और विडियो कौनफ्रैंस

द्वारा मुझे लेना था. मेरे पास 6 लोगों के नाम आए उन में से मुझे दो इंजीनियर मुझे लेने थे. पहले राउंड के इंटरव्यू के बाद जो लिस्ट मुझे मिली उसे देख कर मैं चौंक उठा. सुगंधा लिस्ट में टौप पर थी. पहले मुझे कुछकुछ संदेह हुआ कि शायद कोई और सुगंधा हो जब मैं ने उस का पूरा बायोडाटा देखा तो पाया कि वह मेरी सुगंधा ही थी. उस ने बीसीए के बाद एमसीए किया और पिछले 5 वर्षों से एक कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर थी.

मैं ने सुगंधा का फाइनल विडियो इंटरव्यू लिया. मैं ने 10 वर्षों से

दाढ़ी बढ़ा रखी थी, आंखों पर चश्मा चढ़ गया था और कनपटी के बालों पर सफेदी थी. शायद उस ने मुझे पहचाना नहीं, मैं ने औफिस को बोल रखा था कि मेरा नाम उसे नहीं बताया जाए बस चीफ ऐग्जीक्यूटिव बोला जाए.

बहुत दिनों के बाद सुगंधा की तस्वीर देख कर मुझे जो खुशी मिली उसे शब्दों

में मैं बयां नहीं कर सकता. मुझे उस के फोटो

से ही सुगंधा की खुशबू का अहसास हो रहा

था जो मेरे मन को तरंगित कर जाता. उस ने

अपने को बड़ी खूबसूरती से मैंटैन कर रखा

था. खैर उस का इंटरव्यू पूरा हुआ. मुझे उसे सिलैक्ट करना ही था, इसलिए नहीं कि वह मेरी ऐक्स थी. वह अपनी काबीलियत के बल पर टौपर थी.

मैं ने अपने मुंबई वाले कलीग से कहा कि बिना मेरे बारे में सुगंधा को बताए वह मेरे बारे

में उस के मन की बात जानने की कोशिश करे. निजी बातें होशियारी से करे ताकि उसे संदेह नहीं हो. सुगंधा से बात कर उस ने फोन पर कहा, ‘‘आप के लिए मुझे बहुत पापड़ बेलने पड़े. मैं ने जब उस से पूछा कि आप के परिवार में आप के अलावा और कौनकौन हैं तो उस ने कहा मैं ही मेरा परिवार हूं. और आगे निजी बातें पूछने के लिए सुगंधा से बहुत फटकार मिली. जब मैं ने कहा कि आप ने मेरे निकटतम मित्र की जिंदगी बरबाद कर दी है और वह आप की याद में काफी दिनों तक शराब के नशे में डूबे इधरउधर भटक रहा था.’’

मैं ने पूछा ‘‘उस ने क्या कहा?’’

वह बोली ‘‘मैं अनिल को बहुत प्यार करती थी और उन का सम्मान आज भी करती हूं. वे बहुत टैलेंटेड हैं और वे अपने काम में ज्यादा ध्यान न दे कर मेरे पीछेपीछे अपना समय बरबाद कर रहे थे. मैं उन्हें ऊंचाईयों पर देखना चाहती हूं. मुझे लगा कि मैं उन की उन्नति में बाधा बन गई थी इसीलिए दिल पर पत्थर रख कर उन से दूर चली गई.’’

‘‘अगर आज वे कहीं से मिल जाएं तो

आप दोबारा उन्हें स्वीकार करेंगी?’’ मेरे कलीग के पूछने पर सुगंधा बोली, ‘‘अगर अनिलजी

मेरे सामीप्य से अपने मुकाम तक पहुंचने में कामयाब होंगे तो मैं समझूंगी कि मेरा त्याग

और मेरी उपासना सफल रही और मैं अपने को खुशनसीब समझूंगी.’’

‘‘अगर मैं कहूं कि मेरा वह दोस्त आज

भी आप के इंतजार में पलकें बिछाए बैठा है

और अब उस ने इतना कुछ हासिल कर रखा

है जिसे जान कर आप को गर्व होगा और

आप इसे अपने वर्षों की उपासना का नतीजा

ही समझें.’’

‘‘वे कहां है आजकल? मुझे बस इतना पता है कि मैनेजमैंट करने के बाद वे विदेश चले गए थे.’’ सुगंधा ने मेरे  कलीग से कहा.

‘‘फिलहाल मुझे भी ठीक से पता नहीं है फिर भी मैं जल्द ही पता कर आप को बता दूंगा. वैसे आप का जौइनिंग लैटर रैडी है. आज फ्राइडे है, आप मंडे को ज्वाइन करेंगी. तब तक हमारे चीफ भी यहां होंगे और आप सीधा उन्हें ही रिपोर्ट करेंगी.’’ मेरे कलीग ने कहा.

मैं मुंबई आ गया. सोमवार को अपने केबिन में बैठा था, मेरी पीए ने फोन पर कहा ‘‘सर, सुगंधा मैम हैज कम. शी इज गोइंग टू रिपोर्ट यू.’’

‘‘सैंड हर इन.’’

‘‘गुड मौर्निंग सर, दिस इज सुगंधा योर सौफ्टवेयर इंजीनियर रिपोर्टिंग टू यू.’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘वैलकम इन अवर फैमिली, मेरा मतलब मेरी कंपनी में. मेरी कंपनी ही मेरी फैमिली रही है अब तक.’’

सुगंधा मुझे अभी भी नहीं पहचान सकी

थी. मैं ने उस से कहा ‘‘आप अपने केबिन में

जा कर अपनी जौब की जानकारी लें. कल

सुबह आप मुझे मिलेंगी फिर बाकी काम मैं समझा दूंगा.’’

दूसरे दिन सुबह मैं ने अपने केबिन डोर पर अपना नेम प्लेट ‘अनिल कुमार’ लगवा

दी थी. मैं क्लीन शेव्ड हो कर अपनी कुर्र्सी पर बैठा था. सुगंधा नौक कर मेरे केबिन में आई

और मुझे देख कर ठिठक कर खड़ी हो गई और बोली ‘‘आप?’’

‘‘लगता है तुम ने मेरी नेम प्लेट नहीं देखी?’’

‘‘मैं ने गौर नहीं किया.’’

‘‘यही मेरी कंपनी और फैमिली है. आज

से तुम भी इसी फैमिली की अतिविशिष्ट सदस्य हुई. मुझे उम्मीद थी मेरी सुगंधा एक न एक दिन जरूर आएगी इसीलिए तुम्हारे सिवा किसी और के बारे में मैं ने आज तक सोचा ही नहीं.’’

मेरे कलीग ने तुम्हारे दूर जाने का कारण मुझे बता दिया था. मुझे तुम पर नाज है और तुम्हें सैल्यूट करना होगा.

मैं ने उठ कर सैल्यूट किया और उसे

गले लगाया. मेरा कलीग केबिन के शीशे के पारदर्शी दीवार के उस पार से यह नजारा देख रहा था. उस ने मुझे कनखी मारी और हम तीनों मुस्करा उठे.

एहसास : क्या दोबारा एक हो पाए राघव और जूही?

आज सुबह सुबह औफिस जाते हुए जैसे ही राघव की नजर कैलेंडर पर पड़ी, तो आज की तारीख देख कर एक बार उस के मन में जैसे कुछ छन्न से टूट गया. आज 9 जनवरी थी औैर आज ही उस की दुनिया पूरे 1 साल के अकेलेपन की बरसी मना रही थी.

जूही को उस के जीवन से गुजरे आज पूरा 1 साल हो गया था. जूही उस की पत्नी… हां, आज भी तो यह सामाजिक रिश्ता कायम था. कानून और समाज की नजर में जूही और राघव आज भी शादी के बंधन में बंधे थे. लेकिन सिर्फ नाम के लिए ही यह रह गया था. जूही को उस की जिंदगी से गए लंबा अरसा हो गया था. खुद को इस विवाहरूपी बंधन से आजाद करने की कोशिश न तो जूही ने की थी और न ही राघव ही इस मैटर को आगे बढ़ा पाया था.

दिमाग में उमड़ते इन पुराने दिनों के चक्रवात ने अनायास ही राघव के जिस्म को अपने शिकंजे में जकड़ लिया. राघव ने अपना लैपटौप बैग और मोबाइल उठा कर कमरे की मेज पर रखा और फिर अपनी नौकरानी शांति को 1 कप कौफी बनाने की हिदायत देता हुआ अपनी अलमारी की ओर बढ़ चला. वह जानता था कि अब उस का मन उस सुविधायुक्त कमरे में नहीं लगेगा. उस ने अलमारी खोलते हुए उस नीले कवर वाले लिफाफे को बाहर निकाला. कवर पर आज भी खूबसूरत लफ्जों में ‘राघव’ लिख हुआ था. वही कर्विंग लैटर्स वाली लिखावट जो जूही की खास पहचान है

‘‘राघव, इन खाली पन्नों पर आज अपने उन जज्बातों को उकेर कर जा रही हूं, जिन्हें शब्द देने से न जाने क्यों मेरे हाथ कांपते रहते थे. आज जब यह चिट्ठी तुम्हें मिलेगी, मैं तुम्हारी इस दुनियावी आडंबरों से भरे जीवन से बहुत दूर जा चुकी हूंगी. लेकिन चलने से पहले तुम से चंद बातें कर लेना जरूरी है. जानते हो कल रात मझे फिर वही सपना आया. तुम मुझे अपने दफ्तर की किसी पार्टी में ले गए हो. सपने में जानेपहचाने लोग हैं. परस्पर अभिवादन और बातचीत हो रही है कि अचानक सब के चेहरों पर देखते ही देखते एक भयानक हंसी आ जाती है.

‘‘उन सभी की वह भयानक हंसी किसी राक्षसी अट्टाहास में बदल जाती है. धीरेधीरे वे सभी भयानक अंदाज में हंसने और चिल्लाने लगते हैं और तब एक और भयानक बात होती है. उन खतरनाक आवाजों और हंसी के भीतर घृणा में लिपटा तुम्हारा डरावना चेहरा नजर आने लगता है. तुम्हारे सिर पर 2 सींग उग जाते हैं. जैसे तुम तुम न हो कर कोई भयावह यमदूत हो. मानों बड़ेबड़े दांतों वाले असंख्य यमदूत… डर के मारे मेरी आंखें खुल गईं. जनवरी की उस सर्द रात में भी मैं पसीने से तरबतर थी. मैं जब अपने सपने का जिक्र करती तो तुम उसे मेरे दिमाग में पनप रही कुंठा की संज्ञा दे देते. विडंबना यह है कि मेरी तमाम कुंठाओं के जनक तुम ही तो हो.

‘‘मुड़ कर देखने पर लगता है कि मामूली सी ही तो बात थी. मेरे शरीर पर काबिज वह  कुछ ऐक्स्ट्रा वजन ही तो था. लेकिन तुम्हारे उस यमदूत रूप के जड़ में मेरा यह बढ़ा हुआ वजन ही तो था. लेकिन क्या यह बात वाकई इतनी मामूली सी थी? तुम ने ‘आइसबर्ग’ देखा है? उस का केवल थोड़ा सा हिस्सा पानी की सतह के ऊपर दिखता है. यदि कोई अनाड़ी देखे तो लगेगा जैसे छोटा सा बर्फ का टुकड़ा पानी की सतह पर तैर रहा है. पर ‘आइसबर्ग’ का असली आकार तो पानी की सतह के नीचे तैर रहा होता है, जिस से टकरा कर बड़ेबडे जहाज डूब जाते हैं. जो बात ऊपर से मामूली दिखती है उस की जड़ में कुछ और ही छिपा होता है. बड़ा और भयावह.’’

आंखों में पनप रही उस नमकीन  झील को काबू में करते हुए राघव सोचने लगा कि सच, वह कितना गुस्सैल हो गया था. बातबात पर चिढ़ना और जूही पर अपना सारा गुस्सा उतारना उस का रोज का रूटीन बन गया था. शुरुआत में ऐसा नहीं था. जूही और उस का वैवाहिक जीवन खुशहाल था. लेकिन धीरेधीरे काम के भार और सहकर्मियों के साथ व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता के चलते वह इतना परेशान हो गया था कि अपनी सारी फ्रस्ट्रेशन वह अब जूही पर उतारने लगा था.

राघव खत का बचा हिस्सा पढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. लेकिन वह जानता था कि जूही के उन सिसकते लफ्जों की मार सहना ही उस की सजा है, इसीलिए उस ने आगे पढ़ना शुरू किया.

‘‘8 महीने पहले करवाए ब्लड टैस्ट में ही तो पता चला है कि मु झे हाइपोथायराइडिज्म है. इस में न चाहते हुए भी वज़न का बढ़ना तो लाजिम है न? क्या इस में मेरा अपना कोई कसूर है?’’

खत में जूही ने आगे लिखा था, ‘‘भद्दी, बदसूरत कहीं की. तुम गुस्से से पागल हो कर चीख रहे होते. शायद मैं तुम्हें शुरू से ही भद्दी लगती थी, बदसूरत लगती थी. मेरा मोटापा तो एक बहाना था. शायद यही वजह रही होगी कि तुम्हें मेरी हमेशा हंसने और खिलखिलाने की मामूली सी आदत भी असहनीय लगती थी.जब हम किसी से चिढ़ने लगते हैं, नफरत करने लगते हैं तब उस की हर आदत हमें बुरी लगती है.

‘‘यदि तुम्हे मु झ से प्यार होता तो शायद तुम मेरे मोटापे को नजरअंदाज कर देते. लेकिन तुम अकसर किसी न किसी बात पर अपने विश बुझे बाणों से मुझे बेधते रहते. सचाई तो यह है कि शादी के बाद से अब तक तुम ने अपनी एक भी आदत सिगरेट पीना, शराब पीना, रात में देर तक कमरे की बत्ती जला कर काम करते रहना नहीं बदली. केवल मैं ही बदलती रही. तुम्हारी हर पसंदनापसंद के लिए. तुम्हारी हर खुशी के लिए. जो तुम खाना चाहते थे, घर में केवल वही चीजें बनती थीं. जो तुम्हें अच्छा लगे, मुझे वही करना था. जो तुम्हें पसंद हो, मुझे वही कहनासुनना था. जैसे मैं मैं नहीं रह गई थी केवल तुम्हारा विस्तार भर थी.’’

राघव के दिलोदिमाग में जैसे किसी ने ढेरों कांटे चुभो दिए थे. लेकिन वह उस पीड़ा को भोगना चाहता था. वह आज जूही को उस के वजूद को फिर से महसूस करना चाहता था.

अब वह खत का आगे का हिस्सा पढ़ने लगा- ‘‘खाना मैं बनाती थी, कपड़ेलत्ते मैं धोती थी, बरतन मैं साफ करती थी,  झाड़ूपोंछा मैं लगाती थी. तुम रोज औफिस से आ कर ‘आज बहुत थक गया हूं’ कहते और टांगें फैला कर बिस्तर पर लेट अपना पसंदीदा टीवी प्रोग्राम चला लेते. एक गिलास पानी भी तुम खुद उठ कर नहीं ले सकते थे. फिर भी थकते सिर्फ तुम थे. शिकायत सिर्फ तुम कर सकते थे. उलाहने सिर्फ तुम दे सकते थे. बुरी सिर्फ मैं थी.

‘‘कमियां सिर्फ मुझ में थीं. दूध के धुले, अच्छाई के पुतले सिर्फ तुम थे. मैं ने तुम से कुछ ज्यादा तो नहीं चाहा था. एक पत्नी अपने पति से जो चाहती है, मैं भी केवल उतना भर ही चाहती थी. काश, तुम भी मुझे थोड़ा प्यार दे पाते, घर के कामों में मेरा थोड़ा हाथ बंटाते, अपनी किसी प्यारी अदा से मेरा मन मोह ले जाते. असल में तुम ने मुझ से कभी प्यार किया ही नहीं. मैं केवल घर का काम करने वाली मशीन थी, घर की नौकरानी थी जिसे रात में भी तुम्हारी खुशी के लिए बिस्तर पर रौंदा जाता था.

‘‘बिस्तर और रसोई के गणित से परे भी स्त्री होती है, यह बात तुम्हारी समझ से बाहर थी. लेकिन इस सब के बावजूद मेरे हाल ही में बढ़ गए वजन से इतनी परेशानियों के बाद भी मेरे चेहरे पर हमेशा खेलती मुसकान से तुम्हें चिढ़ थी. पर उस बेवजह के तनाव का क्या… उन यातना भरे भारी दिनों का क्या… उन परेशान रातों का क्या जो मैं ने तुम्हारे साथ किसी सजायाफ्ता मुजरिम की तरह गुजारी हैं? तुम चाहते थे कि मैं अपनी बिगड़ रही फिगर पर शर्मिंदा रहूं. क्यों? क्या शरीर के भूगोल में जरा सा भी फेरबदल हो जाना कोई अपराध है, जो तुम मुझे सजा देने पर तुले रहे?

‘‘राघव, तुम जानते हो तुम्हारे चेहरे पर भी एक मस्सा उगा हुआ है. मैं ने तो कभी इस बात पर एतराज नहीं जताया कि वहां वह मस्सा क्यों है? मैं ने तो कभी यह नहीं कहा कि उस मस्से की वजह से तुम बदसूरत लगते हो. असल में तुम्हारे लिए मेरा मोटापा मुझे नीचा दिखाने का बहाना भर था. अब जबकि मेरा थायराइड काबू में है और अब मैं पहले से काफी बेहतर भी दिखने लगी हूं तो अब तुम्हें मुझ से कोई लेनादेना नहीं है. तुम ने एक बार भी नहीं कहा कि मैं अब तुम्हें कैसी लगती हूं. जानते हो राघव, घृणा का बरगद जब फैलने लगता है, तो उस की जड़ें संबंधों की मिट्टी में बहुत गहरे तक अपने पांव पसार लेती हैं. पता नहीं मैं इतने साल तुम्हारे साथ कैसे रह गई. अपना मन मार कर, अपना वजूद मिटा कर.

‘‘पर अब बहुत हो गया. मुझे तुम्हारे हाथों पिटना मंजूर नहीं. मेरे वजूद को हर कदम पर इस तरह और जलील होना मंजूर नहीं. तुम एक बीमार मानसिक अवस्था में हो और मु झे अब इस रुग्ण मानसिक अवस्था का हिस्सा और नहीं बनना. हमारे पास जीने के लिए एक ही जीवन होता है और मुझे अब यों घुटघुट कर और नहीं जीना. आज मैं स्वयं को तुम से मुक्त करती हूं. हां, एक बात और मुझे अपने चेहरे पर हमेशा खेलती हुई यह मुसकान बेहद अच्छी लगती थी और वे सभी लोग अच्छे लगते थे, जो मेरे बढ़े हुए वजन के बावजूद मु झे चाहते थे, मु झ से प्यार करते थे.  प्यार, जो तुम मझे कभी नहीं दे सके.

-जूही.’’

अपने हाथ में सिहरते हुए उस खत को राघव बहुत देर तक योंही थामे रहा. इस 1 साल ने उसे बहुत कुछ सिखा दिया. पत्नी केवल शोपीस नहीं होती. वह जीवन का अभिन्न अंग होती है. इस 1 साल में शालिनी डिसूजा, वह विदेशी कैथी जो इंटर्न बन कर आई थीं आदि ने उस पर डोरे डालने चाहे थे.

कुछ रात भर साथ भी रहीं पर वह किसी को न मन दे सका न शरीर. बिस्तर पर पहुंचतेही वह ठंडा पड़ जाता. रात को साथ खाना खातेखाते जब किसी का फोन आ जाता, तो वे लड़कियां उकता जातीं जबकि जूही ने रात को बिस्तर पर न कोईर् मांग की न उस के फोनों से शिकायतें कीं.

पिछले 1 साल भर से उस ने बहुत बार यह सोचा था कि वह जूही को फोन करेगा, उस से अपनी ज्यादतियों के लिए माफी मांगेगा, लेकिन अब और इंतजार नहीं.

आज वह उसे बताना चाहता है कि उसे अपनी सभी गलतियों का एहसास है औैर हां,एक बात और भी तो बतानी है कि उसे जूही की मुसकान से प्यार है और जूही के हाइपोथायराइडिज्म से उसे कोई शिकायत नहीं है. वह जैसी भी है उस की अपनी है. वहीउस की है.

सोनाली बोस 

बेवफाई: हीरा ने क्यों दिया रमइया को धोखा

रमइया गरीब घर की लड़की थी. सुदूर बिहार के पश्चिमी चंपारण की एक छोटी सी पिछड़ी बस्ती में पैदा होने के कुछ समय बाद ही उस की मां चल बसीं. बीमार पिता भी दवादारू की कमी में गुजर गए. अनाथ रमइया को दादी ने पालपोस कर बड़ा किया. वे गांव में दाई का काम करती थीं. इस से दादीपोती का गुजारा हो जाया करता था. रमइया जब 7 साल की हुई, तो दादी ने उसे सरकारी स्कूल में पढ़ने भेजा, पर वहां उस का मन नहीं लगा. वह स्कूल से भाग कर घर आ जाया करती थी. दादी ने उसे पढ़ाने की बहुत कोशिश की, पर हठीली पोती को नहीं पढ़ा पाईं. रमइया अब 16 साल की हो गई. चिकने बाल, सांवली रंगत और बड़ीबड़ी पनीली आंखों में एक विद्रोह सा झलकता हुआ.

अब दादी को रातों में नींद नहीं आती थी. रमइया के ब्याह की चिंता हर पल उन के दिलोदिमाग पर हावी रहने लगी. कहां से पैसे आएंगे? कैसे ब्याह होगा? वगैरह. जायदाद के नाम पर सिकहरना नदी के किनारे जमीन के छोटे से टुकड़े पर बनी झोंपड़ी और शादी के वक्त के कुछ चांदी के जेवर और सिक्के… यही थी दादी की जिंदगीभर की जमापूंजी. रातदिन इसी चिंता में घुल कर बुढि़या की कमर ही झुकने लगी. गांवबिरादरी के ही कुछ लोगों ने बुढि़या पर तरस खा कर पड़ोस के गांव के हीरा के साथ रमइया का ब्याह करवा दिया.

हीरा सीधासादा और मेहनती था, जो अपनी मां के साथ दलितों की बस्ती में रहता था. घर में मांबेटे के अलावा एक गाय भी थी, जिस का दूध बेच कर कुछ पैसे आ जाते थे. इस के अलावा फसलों की रोपाईकटाई के समय मांबेटे दूसरे के खेतों में काम किया करते थे. शादी के बाद 3 जनों का पेट भरना मुश्किल होने लगा, तो हीरा गांव के ही कुछ नौजवानों के साथ परदेश चला गया. पंजाब जा कर हीरा खेतों पर काम करने लगा. वहां हर दिन कहीं न कहीं काम मिलता, जिस से रोजाना अच्छी कमाई होने लगी. हीरा जी लगा कर काम करता, जिस से मालिक हीरा से बहुत खुश रहते.

 

हीरा ने 8 महीने में ही काफी पैसे इकट्ठे कर लिए थे. पंजाब आए साथी जब गांव वापस जाने लगे, तो वह भी वापस आ गया. गांव आने से पहले हीरा ने रमइया और मां के लिए घरेलू इस्तेमाल की कुछ चीजें खरीदीं. अपने लिए उस ने एक मोबाइल फोन खरीदा. घर आ कर हीरा ने बड़े जोश से रमइया को फोन दिखाया और शान से बोला, ‘‘यह देख… इसे मोबाइल फोन कहते हैं. देखने में छोटा है, पर इस के अंदर ऐसे तार लगा दिए हैं कि हजारों मील दूर रह कर एक बटन दबा दो और जितनी भी चाहे बातें कर लो.’’ यह सुन कर रमइया की आंखें चौड़ी हो गईं. उस ने फोन लेने के लिए हीरा की ओर हाथ बढ़ाया.

‘‘अरे, संभाल कर,’’ कह कर हीरा ने रमइया के हाथों में मोबाइल फोन थमाया.

रमइया थोड़ी देर उलटपलट कर फोन को देखती रही, फिर उस ने हीरा से कहा, ‘‘सुनो, हमें साड़ीजेवर कुछ नहीं चाहिए. तुम जाने से पहले हमें यह फोन देते जाना. वहां जा कर अपने लिए दूसरा फोन खरीद लेना. फिर हम दिनरात फोन पर बात करेंगे.’’हीरा पत्नी रमइया के भोलेपन पर जोर से हंस पड़ा. रमइया के सिर पर एक प्यार भरी चपत लगाते हुए वह बोला, ‘‘पगली, बातें मुफ्त में नहीं होतीं. उस में पैसा भरवाना पड़ता है.’’इस तरह हंसतेबतियाते कई महीने गुजर गए. गांव के साथियों के साथ हीरा फिर से वापस काम पर पंजाब जाने की तैयारी करने लगा. इस बार रमइया ज्यादा दुखी नहीं थी.

हीरा के जाने के बाद अब सास की डांट खा कर भी रमइया रोती नहीं थी. वह मां बनने वाली थी और यह खबर वह हीरा को सुनाने के लिए बेचैन थी. वह मोबाइल फोन ले कर किसी कोने में पड़ी रहती और हीरा के फोन के आने का इंतजार करती रहती. हीरा चौथी क्लास तक पढ़ालिखा था, सो उस ने रमइया को मोबाइल फोन की सारी बारीकियां समझा दी थीं. 2 महीने बाद आखिर वह दिन भी आया, जब मोबाइल फोन की घंटी घनघना कर बज उठी. रमइया का दिल बल्लियों उछल पड़ा. थरथराते हाथों से उस ने फोन का बटन दबाया और जीभर कर हीरा से बातें कीं. सास से भी हीरा की बात करवाई गई. जब पैसे खत्म हो गए, तो फोन कट गया. देर तक फोन को गोद में ले कर रमइया बैठी रही. वक्त गुजरता गया. हीरा फिर से गांव वापस आया. वह इस बार भी अपने साथ कपड़े, सामान और पैसे ले कर आया था.

रमइया का पीला चेहरा देख कर हीरा को चिंता हुई. इस बार रमइया में वह चंचलता भी नहीं दिख रही थी. वह बिस्तर पर चुपचाप सी पड़ी रहती. हीरा ने जब इस बारे में मां से बात की, तो मां ने कहा कि ऐसा होता ही है, चिंता की कोई बात नहीं.रमइया के वहां से जाने के बाद मां ने बेटे हीरा को एकांत में बुला कर कहा, ‘‘बेटा, रमइया को इस की दादी के पास छोड़ आ. काम न धाम, यहां दिनभर पड़ी रहती है… दादी बहुत अनुभवी हैं, उन की देखरेख में रहेगी तो सबकुछ ठीक रहेगा. जब तू दो बारा आएगा, तो इस को वहां से ले आना.’’

‘‘ठीक है मां,’’ कहते हुए हीरा ने सहमति में सिर हिला दिया.

तीसरे ही दिन हीरा रमइया को उस की दादी के पास पहुंचा कर अपने गांव लौट आया. अब हीरा को रमइया के बिना घर सूनासूना सा लगता. वह चुपचाप किसी काम में लगा रहता या फोन से खेलता रहता. एक दिन हीरा ने अपने किसी साथी को फोन लगाया. ‘हैलो’ कहते ही उधर से किसी औरत की आवाज सुन कर हीरा हड़बड़ाया और उस ने जल्दी से फोन काट दिया. थोड़ी देर बाद उसी नंबर से हीरा के मोबाइल फोन पर 4 बार मिस्ड काल आईं. हीरा की समझ में नहीं आया कि वह क्या करे… थोड़ी देर बाद उस ने फिर से उसी नंबर पर फोन लगाया. बात हुई… वह नंबर उस के दोस्त का नहीं, बल्कि कोई रौंग नंबर था. जिस औरत ने फोन उठाया था, वह उसी बस्ती से आगे शहर में रहती थी. उस का पति रोजीरोटी के सिलसिले में दिल्ली में रहता था. उस औरत का नाम प्रीति था. उस की आवाज में मिठास थी और बात करने का तरीका दिलचस्प था. रात के 10 बजे से 2 बजे के बीच हीरा के फोन पर 3 बार मिस्ड काल आईं. अब यह रोज का सिलसिला बन गया. हीरा जबजब अपने, रमइया और प्रीति के बारे में सोचता, तो उसे लगता कि कहीं कुछ गलत हो रहा है. ऐसे में सारा दिन उसे खुद को संभालने में लग जाता, पर फिर जब रात होती, प्रीति की मिस्ड काल आती, तो हीरा का दिल फिर से उस मीठी आवाज की चपेट में आ कर रुई की तरह बिखर जाता.

अब उन में हर रोज बात होने लगी, फिर एक दिन मुलाकात तय की गई. शहर के पार्क में शाम के 4 बजे हीरा को आने को कहा गया. जहां हीरा समय से पहले ही पहुंच गया, वहीं प्रीति 15 मिनट देर से आई.गोरा रंग और छरहरे बदन की प्रीति की अदाओं में गजब का खिंचाव था. कुरती और चूड़ीदार पाजामी में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी. वह 5वीं जमात तक पढ़ीलिखी थी.  दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में बदलते चले गए. रमइया एक बेटी की मां बन गई और इधर हीरा के गांव के साथी फिर से काम पर लौटने की तैयारी करने लगे.परदेश जाने से पहले मां ने हीरा से रमइया और बच्ची को देख आने को कहा. हीरा 5-6 दिनों के लिए ससुराल पहुंचा. रमइया का पीला और बीमार चेहरा देख कर हीरा के मन में एक ऊब सी हुई. काली और मरियल सी बच्ची को देख कर उस का मन बै ठ सा गया.हीरा का मन एक दिन में ही ससुराल से भाग जाने को हुआ. खैर, जैसेतैसे उस ने 4 दिन बिताए और 5वें दिन जेल से छूटे कैदी सा घर भाग आया.

पंजाब जाने से पहले हीरा प्रीति से मिला, तो उस की सजधज और चेहरे की ताजगी ने उसे रिरियाती बच्ची और रमइया के पीले चेहरे के आतंक से बाहर निकाल लिया. एक साल गुजर गया. हीरा वहीं रह कर दूसरा रोजगार भी करने लगा. अब वह प्रीति को पैसे भी भेजने लगा था. इधर रमइया की सास से नहीं बनने के चलते वह मायके में ही पड़ी रही. उम्र बढ़ने के साथसाथ रमइया की दादी का शरीर ज्यादा काम करने में नाकाम हो रहा है. अपना और बेटी का पेट भरने के लिए रमइया ने बस्ती से आगे 2-3 घरों में घरेलू काम करना शुरू कर दिया. बच्ची जनने से टूटा जिस्म और उचित खानपान की कमी में वह दिनोंदिन कमजोर और चिड़चिड़ी होने लगी. इधर तकरीबन एक साल से भी ज्यादा समय बाद हीरा जब वापस घर आया, तो आते ही प्रीति से मिलने चल पड़ा. न तो उस ने रमइया की खबर ली, न ही मां ने उसे रमइया को घर लाने को कहा.

अब प्रीति भी उस से मिलने बस्ती की ओर चली आती. कभी बस्ती के बाहर वाले स्कूल में, कभी खेतों के पीछे, तो कभी कहीं और मुलाकातों का सिलसिला जारी रहा. पोती की हालत और अपनी बढ़ती उम्र को देखते हुए रमइया की दादी ने हीरा की मां के पास बहू को लिवा लाने के लिए कई संदेश भिजवाए. आखिर में मां के कहने पर हीरा रमइया को लिवाने ससुराल पहुंचा. ससुराल आ कर रमइया ने देखा कि हीरा या तो घर में नहीं रहता और अगर रहता भी है, तो हमेशा कहीं खोयाखोया सा या फिर अपने मोबाइल फोन के बटनों को दबाता रहता है. पता नहीं, क्या करता रहता है. ऐसे में एक रात रमइया की नींद खुली, तो उसे लगा कि हीरा किसी से बातें कर रहा है. आधी रात बीत चुकी थी. इस वक्त हीरा किस से बातें कर रहा है? बातों का सिलसिला लंबा चला. रमइया दीवार से कान लगा कर सुनने की कोशिश करने लगी, पर उस की समझ में ज्यादा कुछ नहीं आ सका.

दूसरे दिन रमइया मौका पा कर हीरा का फोन ले कर बगल वाले रतन काका के पोते, जो छठी जमात में पढ़ता था, के पास गई और उसे सारे मैसेज पढ़ कर सुनाने को कहा. मैसेज सुन कर रमइया गुस्से से सुलग उठी. वह हीरा के पास पहुंची और उस नंबर के बारे में जानना चाहा. एक पल के लिए हीरा सकपकाया, पर दूसरे ही पल संभल गया. वह बोला, ‘‘अरे पगली, मुझ पर शक करती है. यह तो मेरे साथ काम करने वाले की घरवाली का नंबर है. वह इस दफा घर नहीं आया, इसलिए उस का हालचाल पूछ रही थी.’’ रमइया चुप रही, पर उस के चेहरे पर संतोष के भाव नहीं आए. वह हीरा और उस के मोबाइल फोन पर नजर रखने लगी थी. 2 दिन बाद ही रात को रमइया ने हीरा को प्रीति से फोन पर यह कहते हुए सुन लिया कि कल रविवार है. स्कूल पर आ जाना. 2-3 दिनों के बाद फिर मुझे वापस भी लौटना होगा.

दूसरे दिन हीरा 12 बजे के आसपास घर से निकल गया और स्कूल पर प्रीति के आने का इंतजार करने लगा. थोड़ी ही देर में प्रीति दूर से आती दिखी. कुछ देर तक दोनों खेतों में ही खड़ेखड़े बातें करते रहे, फिर स्कूल के भीतर आ गए. प्रीति थोड़ी बेचैन हो कर बोल उठी, ‘‘ऐसे छिपछिप कर हम आखिर कब तक मिलते रहेंगे हीरा. हमेशा ही डर लगा रहता है. अब मैं तुम्हारे साथ ही रहना चाहती हूं.’’ हीरा प्यार से बोला, ‘‘मैं भी तो यही चाहता हूं. बस, महीनेभर रुक जाओ… दोस्तों के साथ तुम्हें नहीं रख सकता… इस बार जाते ही कोई अलग कमरा लूंगा, फिर आ कर तुम्हें ले जाऊंगा. उस के बाद छिपछिप कर मिलने की कोई जरूरत नहीं होगी.’’

प्रीति ने कहा, ‘‘और तुम जो यहां आ कर 3-3 महीने तक रुकते हो, उस वक्त मैं क्या करूंगी? परदेश में कैसे अकेली रहूंगी और अपना घर कैसे चलाऊंगी?’’ हीरा बोला, ‘‘अरे, 3-3 महीने तो मैं यहां तुम्हारी खातिर पड़ा रहता हूं. जब मेरी प्रीतू मेरे पास होगी, तो मुझे यहां आने की जरूरत ही क्यों पड़ेगी. यहां कभीकभार खर्च के पैसे भेज दिया करूंगा, बाकी जो भी कमाऊंगा, वह सब तुम्हारा.’’ प्रीति ने बड़ी अदा से पूछा, ‘‘अच्छा… तुम कितने पैसे कमा लेते हो कि वहां भी घर चलाओगे, यहां भी भेजोगे?’’

हीरा ने थोड़ा इतरा कर कहा, ‘‘इतना तो कमा ही लेता हूं कि 2 घर आराम से चला लूं,’’ कहते हुए हीरा ने जैकेट उतार कर अपनी दोनों बांहें किसी बौडी बिल्डर के अंदाज में ऊपर उठा कर दिखाईं. प्रीति ने आंखें झुका कर मुंह फेर लिया. हीरा की मजबूत हथेलियों ने प्रीति को कमर से थाम कर अपने करीब कर लिया और उस प्यारे चेहरे से बालों को हटाते हुए आगे झुका. प्रीति ने आंखें बंद कर लीं. उधर टोकरे में गंड़ासा रख और पल्लू से चेहरे को ढक कर रमइया सीधा स्कूल जा पहुंची. गुस्से से जलती आंखों ने दोनों को एकसाथ ही देख लिया. फुफकारती हुई रमइया ने प्रीति के ऊपर गंड़ासा फेंका, जो सीधा जा कर हीरा को लगा. देखते ही देखते पूरी बस्ती में कुहराम मच गया. जैसेतैसे हीरा को अस्पताल पहुंचाया गया. रमइया को पुलिस पकड़ कर ले गई. प्रीति बड़ी मुश्किल से जान बचा कर वहां से भाग निकली. गरदन की नस कट जाने से हीरा की मौत हो गई. सुनवाई के बाद अदालत ने रमइया को उम्रकैद की सजा सुनाई. डेढ़ साल की मरियल सी बच्ची को अनाथ बना कर, पेट में एक बच्चे को साथ ले कर रमइया हमेशा के लिए जेल की सलाखों के पीछे कैद कर दी गई.

काली की भेंट: क्या हुआ पुजारीजी के साथ

लेखक- धर्मेंद्र राजमंगल

शहर के किनारे काली माता का मंदिर बना हुआ था. सालों से वहां कोई पुजारी नहीं रहता था. लोग मंदिर में पूजा तो करने जाते थे, लेकिन उस तरह से नहीं, जिस तरह से पुजारी वाले मंदिर में पूजा की जाती है. एक दिन एक ब्राह्मण पुजारी काली माता के मंदिर में आए और अपना डेरा वहीं जमा लिया. लोगों ने भी पुजारीजी की जम कर सेवा की. मंदिर में उन की सुखसुविधा का हर सामान ला कर रख दिया.

पहले तो पुजारीजी बहुत नियमधर्म से रहते थे, सत्यअसत्य और धर्मअधर्म का विचार करते थे, लेकिन लोगों द्वारा की गई खातिरदारी ने उन का दिमाग बदल दिया. अब वे लोगों को तरहतरह की बातें बताते, अपनी हर सुखसुविधा की चीजों को खत्म होने से पहले ही मंगवा लेते.

काली माता की पूजा का तरीका भी बदल दिया. पहले पुजारीजी काली माता की सामान्य पूजा कराते थे, लेकिन अब उन्होंने इस तरह की पूजा करानी शुरू कर दी, जिस से उन्हें ज्यादा से ज्यादा चढ़ावा मिल सके.

धीरेधीरे पुजारीजी ने काली माता पर भेंट चढ़ाने की प्रथा शुरू कर दी. वे पशुओं की बलि काली माता को भेंट करने के नाम पर लोगों से बहुत सारा पैसा ऐंठने लगे. जब कोई किसी काम के लिए काली माता की भेंट बोलता, तो पुजारीजी उस से बकरे की बलि चढ़ाने के नाम पर 5 हजार रुपए ले लेते और बाद में कसाई से बकरे का खून लाते और काली माता को चढ़ा देते.

बकरे के नाम पर लिए हुए 5 हजार रुपए पुजारीजी को बच जाते थे, जबकि बकरे का मुफ्त में मिला खून काली माता की भेंट के रूप में चढ़ जाता था. धीरेधीरे दूरदूर के लोग भी काली माता के मंदिर में आने शुरू हो गए. पुजारीजी दिनोंदिन पैसों से अपनी जेब भर रहे थे. लोग सब तरह के झंझटों से बचने के लिए पुजारीजी को रुपए देने में ही अपनी भलाई समझते थे.

लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे, जो पुजारीजी की इस प्रथा का विरोध करते थे. लेकिन पुजारीजी के समर्थकों की तुलना में ये लोग बहुत कम थे, इसलिए उन्हें ऐसा काम करने से रोक न सके.

जब पुजारीजी के ढोंग की हद बढ़ गई, तो कुछ लोगों ने पुजारी की अक्ल ठिकाने लगाने की ठान ली. शहर में रहने वाले घनश्याम ने इस का बीड़ा उठाया.

घनश्याम सब से पहले पुजारीजी के भक्त बने और 2-4 झूठी समस्याएं उन्हें सुना डालीं. साथ ही बताया कि उन के पास पैसों की कमी नहीं है, लेकिन इतना पैसा होने के बावजूद भी उन्हें शांति नहीं मिलती. अगर किसी तरह उन्हें शांति मिल जाए, तो वे किसी के कहने पर एक लाख रुपए भी खर्च कर सकते हैं.

एक लाख रुपए की बात सुन कर पुजारीजी की लार टपक गई. उन्होंने तुरंत घनश्याम को अपनी बातों के जाल में फंसाना शुरू कर दिया.

पुजारी बोला, ‘‘देखो जजमान, अगर तुम इतने ही परेशान हो, तो मैं तुम्हें कुछ उपाय बता सकता हूं.

‘‘अगर तुम ने ये उपाय कर दिए, तो समझो तुम्हें मुंहमांगी मुराद मिल जाएगी. लेकिन इस सब में खर्चा बहुत होगा.’’

घनश्याम ने पुजारीजी को अपनी बातों में फंसते देखा, तो झट से बोल पड़े, ‘‘पुजारीजी, मुझे खर्च की चिंता नहीं है. बस, आप उपाय बताइए.’’

पुजारीजी ने काली माता की पूजा के लिए एक लंबी लिस्ट तैयार कर दी.

घनश्याम पुजारीजी की कही हर बात  मानता गया. पुजारीजी ने काली माता की भेंट के लिए 2 बकरों का पैसा भी घनश्याम से ले लिया. साथ ही, उन्हें घर में एक पूजा कराने को कह दिया.

पुजारीजी की इस बात पर घनश्याम तुरंत तैयार हो गए. तीसरे दिन घनश्याम के घर पर पूजा की तारीख तय हुई, जबकि भेंट चढ़ाने के लिए पैसे तो पुजारीजी उन से पहले ही ले चुके थे.

तीसरे दिन पुजारीजी घनश्याम के घर जा पहुंचे. पुजारीजी ने अमीर जजमान को देख हर बात में पैसा वसूला और घनश्याम अपनी योजना को कामयाब करने के लिए पुजारी द्वारा की गई हर विधि को मानते गए.

जोरदार पूजा के बाद घनश्याम ने पुजारीजी के लिए स्वादिष्ठ पकवान बनवाए, बाजार से भी बहुत सी स्वादिष्ठ चीजें मंगवाई गईं. पुजारीजी ने जम कर खाना खाया. उन्होंने आज तक इतना लजीज खाना नहीं खाया था.

जब पुजारीजी खाना खा चुके, तो उन्होंने घनश्याम से पूछा, ‘‘घनश्याम, तुम ने हमें इतना स्वादिष्ठ खाना खिला कर खुश कर दिया. ये कौन सा खाना है और किस ने बनाया है?

पुजारी के पूछने पर घनश्याम ने जवाब दिया, ‘‘पुजारीजी, कुछ खाना तो बाजार से मंगवाया था और कुछ यहीं पकाया था. सारा खाना ही बकरे के मांस से बना हुआ था.’’

घनश्याम ने बकरे के मांस का नाम लिया, तो पुजारीजी की सांसें अटक गईं, लेकिन उन्होंने सोचा कि शायद घनश्याम मजाक कर रहे हैं. वे बोले, ‘‘जजमान, आप मजाक बहुत कर लेते हैं, लेकिन हमारे सामने मांसाहारी चीज का नाम मत लो. हम तो मांसमदिरा को छूते भी नहीं, खाना तो बहुत दूर की बात है.’’

घनश्याम ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, ‘‘मैं सच कह रहा हूं पुजारीजी. आप चाहें तो जिस बावर्ची ने खाना बनाया है, उस से पूछ लें.’’

घनश्याम की बात सुन पुजारीजी का दिल बैठ गया. मन किया कि उलटी कर दें. नफरत से भरे मन में घनश्याम के लिए गुस्सा भी बहुत था.

घनश्याम ने आवाज दे कर बावर्ची को बुला कर कहा, ‘‘जरा पुजारीजी को बताओ तो कि तुम ने क्या बनाया था.’’

बावर्ची अपने बनाए हुए खाने को बताने लग गया. सारा खाना बकरे के मांस से बनाया गया था.

पुजारीजी पैर पटकते हुए गुस्से से भरे घनश्याम के घर से चले गए. घर के बाहर आ कर उन्होंने गले में उंगली डाली और खाए हुए खाने को अपने पेट से खाली कर दिया, लेकिन मन की नफरत इतने से ही शांत नहीं हुई.

पुजारीजी ने बस्ती में हंगामा कर लोगों को जमा कर लिया, जिन में ज्यादातर उन के भक्त थे. उन्होंने घनश्याम द्वारा की गई हरकत सब लोगों को बताई, तो हर आदमी घनश्याम की इस हरकत पर गुस्सा हो उठा.

अब लोग पुजारीजी समेत घनश्याम के घर जा पहुंचे. सब ने घनश्याम को भलाबुरा कहा.

घनश्याम ने सब लोगों की बातें चुपचाप सुनीं, फिर अपना जवाब दिया, ‘‘भाइयो, मैं किसी भी गलती के लिए माफी मांगने के लिए तैयार हूं, लेकिन आप पहले मेरी बात ध्यान से सुनें,

उस के बाद जो आप कहेंगे, वह मैं करूंगा.’’

सब लोग शांत हो कर घनश्याम की बात सुनने लगे. घनश्याम ने बोलना शुरू किया, ‘‘देखो भाइयो, जब मैं पुजारीजी के पास गया और अपनी परेशानी बताई, तो इन्होंने मुझ से 2 बकरों की भेंट काली माता पर चढ़ाने के लिए रुपए लिए थे. साथ ही, मुझ से यह भी कहा था कि मैं घर में पूजा कराऊं.’’

‘‘मैं ने पुजारीजी के कहे मुताबिक ही पूजा कराई और घर में बकरे के मांस से बना खाना परोसा. पुजारीजी ने मुझ से पूछा नहीं और मैं ने बताया नहीं.’’

भीड़ में से एक आदमी ने लानत भेजते हुए कहा, ‘‘तो भले आदमी, तुम को तो सोचना चाहिए कि पुजारी को मांस खिलाना कितना अधर्म का काम है. क्या तुम यह नहीं जानते थे?’’

घनश्याम ने शांत लहजे में जवाब दिया, ‘‘भाइयो, मुझे नहीं लगता कि यह कोई अधर्म का काम है. जब ब्राह्मण पुजारी अपनी आराध्य काली माता पर बकरे की बलि चढ़ा सकता है, तो उस बकरे के मांस को खुद क्यों नहीं खा सकता? क्या पुजारी की हैसियत भगवान से भी ज्यादा है या भगवान ब्राह्मण से छोटी जाति के होते हैं?’’

लोगों में सन्नाटा छा गया. घनश्याम की बात पर किसी से कोई जवाब न मिल सका.

पुजारीजी का सिर शर्म से झुक गया. उन्होंने यह बात तो कभी सोची ही नहीं थी. लोग खुद इस बात को सोचे ही बिना काली माता के लिए बकरे की बलि देते रहे थे.

आज पंडितजी की समझ में आया कि भला भगवान किसी जानवर का मांस क्यों खाने लगे? वे तो किसी भी जीव की हत्या को बुरा मानते हैं, वहां मौजूद सभी लोग घनश्याम की बात का समर्थन करने लगे.

भीड़ के लोगों ने पुजारीजी को ही फटकार कर काली माता का मंदिर छोड़ देने की चेतावनी दे दी. उस दिन से काली माता के मंदिर पर पशु बलि की प्रथा बंद हो गई.

पुजारीजी का धर्म भ्रष्ट हो चुका था, ऊपर से लोगों की नजरों में उन की इज्जत न के बराबर हो गई थी. उन्होंने वहां से भाग जाने में ही अपनी भलाई समझी. अब मंदिर वीरान हो गया था. अब वहां जानवर बंधने लगे थे.

उस रात: कौनसा हादसे के शिकार हुए थे राकेश और सलोनी

लेखिका- रमेश चंद्र छबीला

राकेश ने कार रोकी और उतर कर सलोनी के घर का दरवाजा खटखटाया.

सलोनी ने दरवाजा खोलते ही कहा, ‘‘नमस्ते जीजाजी.’’

‘‘नमस्ते…’’ राकेश ने आंगन में घुसते हुए कहा, ‘‘क्या हाल है सलोनी?’’

‘‘बस, आप का ही खयाल दिल में है,’’ मुसकराते हुए सलोनी ने कहा.

कमरे में आ कर एक कुरसी पर बैठते हुए राकेश ने पूछा, ‘‘मामीजी दिखाई नहीं दे रही हैं… कहीं गई हैं क्या?’’

‘‘कल पास के एक गांव में गई थीं. वे एक घंटे में आ जाएंगी. कुछ देर पहले मां का फोन आया था. आप बैठो, तब तक मैं आप के लिए चाय बना देती हूं.’’

‘‘राजन तो स्कूल गया होगा?’’

‘‘हां, वह भी 2 बजे तक आ जाएगा,’’ कहते हुए सलोनी जाने लगी.

‘‘सुनो सलोनी…’’

‘‘हां, कहो?’’ सलोनी ने राकेश की तरफ देखते हुए कहा.

राकेश ने उठ कर सलोनी को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया.

सलोनी ने कोई विरोध नहीं किया. कुछ देर बाद वह रसोई में चाय बनाने चली गई.

राकेश खुशी के मारे कुरसी पर बैठ गया.

राकेश की उम्र 35 साल थी. सांवला रंग, तीखे नैननक्श. वह यमुनानगर में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी बबीता, 2 बेटे 8 साला राजू और 5 साला दीपू थे. राकेश प्रोपर्टी डीलर था.

सलोनी बबीता के दूर के रिश्ते के मामा की बेटी थी. वह जगतपुरा गांव में रहती थी. उस के पिताजी की 2 साल पहले खेत में सांप के काटने से मौत हो गई थी. परिवार में मां और छोटा भाई राजन थे. राजन 10वीं जमात में पढ़ रहा था. गांव में उन की जमीन थी. फसल से ठीकठाक गुजारा हो रहा था.

सलोनी को पता भी न चला कि कब राकेश उस के प्रति खिंच गया था.

एक दिन तो राकेश ने उस से कह दिया था, ‘सलोनी, तुम बहुत खूबसूरत हो. तुम्हारी आंखें देख कर मुझे नशा हो जाता है. दिल करता है कि हर समय तुम्हें अपने साथ रखूं.’

‘मुझे अपने साथ रखोगे तो बबीता दीदी को कब टाइम दोगे?’

‘उसे तो कई साल से टाइम दे रहा हूं. तुम मेरी जिंदगी में देर से आई हो. अगर पहले आती तो अपना बना लेता.’

‘बहुत अच्छे सपने देखते हो आप…’

‘मैं इस सपने को सच करना चाहता हूं.’

‘कैसे?’

‘यही तो समझ में नहीं आ रहा है अभी.’

इस के बाद सलोनी भी राकेश की ओर खिंचती चली गई. वह देखती थी कि राकेश की बहुत बड़ी कोठियां हैं.

2 कारें हैं. धनदौलत की कमी नहीं है. बबीता तो सीधीसादी है. वह घर में ही रहना ज्यादा पसंद करती है. अगर वह बबीता की जगह पर होती तो राकेश के साथ खूब घूमतीफिरती और ऐश करती.

राकेश जब चंडीगढ़ जाता तो सलोनी के साथ कभीकभी राजन को भी साथ ले जाता था. जब राजन साथ होता तो वे केवल घूमतेफिरते व खरीदारी करते थे.

जब कभी राकेश अकेली सलोनी को ले कर चंडीगढ़ जाता तो वे दोनों किसी छोटे होटल में कुछ घंटे के लिए रुकते थे. वहां राकेश उस से जिस्मानी रिश्ता बनाता था. इस के बाद सलोनी को कुछ खरीदारी कराता और शाम तक वे वापस लौट आते.

बबीता व राकेश के बीच कई बार सलोनी को ले कर बहस हुई, झगड़ा हुआ, पर नतीजा कुछ नहीं निकला. राकेश व सलोनी उसी तरह मिलते रहे.

एक दिन बबीता ने सलोनी को फोन कर दिया था, ‘सलोनी, तुझे शर्म नहीं आती जो अपनी बहन का घर उजाड़ रही है. कभी भी चंडीगढ़ चली जाती है घूमने के लिए.’

‘मैं अपने जीजा की साली हूं. साली आधी घरवाली होती है. आधी घरवाली जीजा के साथ नहीं जाएगी तो फिर किस के साथ जाएगी?’

‘आधी नहीं तू तो पूरी घरवाली बनने की सोच रही है.’

‘दीदी, मेरी ऐसी किस्मत कहां? और हां, मैं जीजाजी को बुलाने नहीं जाती, वे ही आते हैं मेरे पास. तुम उन को रोक लो न,’ सलोनी ने कहा था.

सलोनी की मां भी यह सब जानती थीं. पर वे मना नहीं करती थीं क्योंकि राकेश सलोनी पर खूब रुपए खर्च कर रहा था.

सलोनी कमरे में चाय व खाने का कुछ सामान ले कर लौटी.

चाय पीते हुए राकेश ने कहा, ‘‘चंडीगढ़ जा रहा हूं. एक पार्टी से बात करनी है. मैं ने सोचा कि तुम्हें भी अपने साथ ले चलूं.’’

‘‘आप ने फोन भी नहीं किया अपने आने का.’’

‘‘मैं ने सोचा था कि आज फोन न कर के तुम्हें सरप्राइज दूंगा.’’

‘तो मिल गया न सरप्राइज. मां भी नहीं हैं. सूना घर छोड़ कर मैं कैसे जाऊंगी?’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं मामीजी के आने का इंतजार कर लेता हूं. मुझे कौन सी जल्दी है. तुम जरा मामीजी को फोन मिलाओ.’’

सलोनी ने फोन मिलाया. घंटी तो जाती रही, पर कोई जवाब नहीं मिला.

‘‘पता नहीं, मां फोन क्यों नहीं उठा रही?हैं,’’ सलोनी ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं. मैं थोड़ी देर बाद चला जाऊंगा. अब चंडीगढ़ तुम्हारे बिना जाने को मन नहीं करता. अगर तुम आज न जा पाई तो 2 दिन बाद चलेंगे,’’ राकेश ने सलोनी की ओर देखते हुए कहा.

कुछ देर बाद सलोनी की मां आ गईं. वे राकेश को देख कर बहुत खुश हुईं और बोलीं, ‘‘और क्या हाल है बेटा? बच्चे कैसे हैं? बबीता कैसी है? कभी उसे भी साथ ले आया करो.’’

‘‘वह तो कहीं आनाजाना ही पसंद नहीं करती मामीजी.’’

‘‘पता नहीं, कैसी आदत है बबीता की,’’ कह कर मामी ने मुंह बिचकाया.

‘‘मामीजी, मैं चंडीगढ़ जा रहा हूं. सलोनी को भी साथ ले जा रहा हूं.’’

‘‘ठीक है बेटा. शाम को जल्दी आ जाना. सलोनी तुम्हारी बहुत तारीफ करती है कि मेरे जीजाजी बहुत अच्छे हैं. वे मेरा बहुत ध्यान रखते हैं.’’

‘‘सलोनी भी तो किसी से कम नहीं है,’’ राकेश ने मुसकरा कर कहा.

कुछ देर बाद राकेश सलोनी के साथ चंडीगढ़ पहुंच गया. एक होटल में कुछ घंटे मस्ती करने के बाद वे रोज गार्डन और उस के बाद झील पहुंच गए.

‘‘शाम हो चुकी है. वापस नहीं चलना है क्या?’’ सलोनी ने झील के किनारे बैठे हुए कहा.

‘‘जाने का मन नहीं कर रहा है.’’

‘‘क्या सारी रात यहीं बैठे रहोगे?’’

‘‘सलोनी के साथ तो मैं कहीं भी सारी उम्र रह सकता हूं.’’

‘‘बबीता दीदी से यह सब कह कर देखना.’’

‘‘उस का नाम ले कर क्यों मजा खराब करती हो. सोचता हूं कि मैं हमेशा के लिए उसे रास्ते से हटवा दूं. दूसरा रास्ता है कि उस से तलाक ले लूं. उस के बाद हम दोनों खूब मजे की जिंदगी जिएंगे,’’ राकेश ने सलोनी का हाथ अपने हाथों में पकड़ कर कहा.

‘‘पहला रास्ता तो बहुत खतरनाक है. पुलिस को पता चल जाएगा और हम मजे करने के बजाय जेल में चक्की पीसेंगे.

‘‘बबीता से तलाक ले कर पीछा छुड़ा लो. वैसे भी वह तुम्हारे जैसे इनसान के गले में मरा हुआ सांप है,’’ सलोनी ने कहा.

अब सलोनी मन ही मन खुश हो रही थी कि बबीता से तलाक हो जाने पर राकेश उसे अपनी पत्नी बना लेगा. वह कोठी, कार और जायदाद की मालकिन बन कर खूब ऐश करेगी.

एक रैस्टोरैंट से खाना खा कर जब राकेश व सलोनी कार से चले तो रात के 8 बज रहे थे. राकेश ने बबीता व सलोनी की मां को मोबाइल फोन पर सूचना दे दी थी कि वे 2 घंटे में पहुंच रहे हैं.

रात के 12 बज गए. राकेश व सलोनी घर नहीं पहुंचे तो मां को चिंता हुई. मां ने सलोनी के मोबाइल फोन का नंबर मिलाया. ‘फोन पहुंच से बाहर है’ सुनाई दिया. राकेश का नंबर मिलाया तब भी यही सुनाई दिया.

कुछ देर बाद बबीता का फोन आया, ‘‘मामीजी, राकेश अभी तक चंडीगढ़ से नहीं लौटे हैं. वे आप के पास सलोनी के साथ आए हैं क्या? उन दोनों का फोन भी नहीं लग रहा है. मुझे तो बड़ी घबराहट हो रही?है.’’

‘‘घबराहट तो मुझे भी हो रही है बबीता. चंडीगढ़ से यहां आने में 2 घंटे भी नहीं लगते. सोचती हूं कि कहीं जाम में न फंस गए हों, क्योंकि आजकल पता नहीं कब जाम लग जाए. हो सकता है कि वे कुछ देर बाद आ जाएं,’’ मामी ने कहा.

‘पता नहीं क्यों मुझे बहुत डर लग रहा है. कहीं कुछ अनहोनी न हो गई हो.’

‘‘डर मत बबीता, सब ठीक ही होगा,’’ मामी ने कहा जबकि उन का दिल भी बैठा जा रहा था.

पूरी रात आंखोंआंखों में कट गई, पर राकेश व सलोनी वापस घर नहीं लौटे.

सुबह पूरे गांव में यह खबर आग की तरह फैल गई कि कल दोपहर सलोनी और राकेश चंडीगढ़ गए थे. रात लौटने की सूचना दे कर भी नहीं लौटे. उन का कुछ पता नहीं चल रहा है.

बबीता व मामी के साथ 3-4 पड़ोसी थाने पहुंचे और पुलिस को मामले की जानकारी दी. पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर ली.

पुलिस इंस्पैक्टर ने बताया, ‘‘रात चंडीगढ़ से यहां तक कोई हादसा नहीं हुआ है. यह भी हो सकता है कि वे दोनों कहीं और चले गए हों.

‘‘खैर, मामले की जांच की जाएगी. आप को कोई बात पता चले या कोई फोन आए तो हमें जरूर सूचना देना.’’

वे सभी थाने से लौट आए.

दिन बीतते चले गए, पर उन दोनों का कुछ पता नहीं चल सका.

जितने मुंह उतनी बातें. वे दोनों तो एकदूसरे के बिना रह नहीं सकते थे. वे तो चंडीगढ़ मजे करने के लिए जाते थे. राकेश का बस चलता तो सलोनी को दूसरी पत्नी बना कर घर में ही रख लेता. सलोनी तो उस की रखैल बनने को भी तैयार थी. सलोनी की मां ने तो आंखें मूंद ली थीं, क्योंकि घर में माल जो आ रहा था. नहीं तो वे अब तक सलोनी की शादी न करा देतीं.

2 महीने बीत जाने के बाद भी जब राकेश व सलोनी का कुछ पता नहीं चला तो सभी ने यह समझ लिया कि वे दोनों किसी दूसरे शहर में जा कर पतिपत्नी की तरह रह रहे होंगे. अब वे यहां कभी नहीं आएंगे.

एक साल बाद…

उस इलाके की 2 लेन की सड़क को चौड़ा कर के 4 लेन के बनाए जाने का प्रदेश सरकार की ओर से आदेश आया तो बहुत तेजी से काम शुरू हो गया.

2 साल बाद…

एक दिन सड़क किनारे मशीन द्वारा जमीन की खुदाई करने का काम चल रहा था तो अचानक मशीन में कुछ फंस गया. देखा तो वह एक सफेद रंग की कार थी जिस का सिर्फ ढांचा ही रह गया था. उस कार में 2 नरकंकाल भी थे. कार की नंबर प्लेट बिलकुल साफसाफ पढ़ी जा रही थी.

देखने वालों की भीड़ लग गई. पुलिस को पता चला तो पुलिस इंस्पैक्टर व कुछ पुलिस वाले भी वहां पहुंच गए. कार की प्लेट का नंबर पढ़ा तो पता चला कि वह कार राकेश की थी. वे

2 नरकंकाल राकेश व सलोनी के थे.

बबीता, सलोनी की मां व भाई भी वहां पहुंच गए. वे तीनों रो रहे थे.

पुलिस इंस्पैक्टर के मुताबिक, उस रात राकेश व सलोनी कार से लौट रहे होंगे. पहले उस जगह सड़क के किनारे बहुत दूर तक दलदल थी. हो सकता है कि कार चलाते समय नींद में या किसी को बचाते हुए या किसी दूसरी वजह से उन की कार इस दलदल में जा गिरी. सुबह तक कार दलदल में पूरी तरह समा गई. किसी को पता भी नहीं चला. धीरेधीरे यह दलदल सूख गया. उन दोनों की कार में ही मौत हो गई.

अगर सड़क न बनती तो किसी को कभी पता भी न चलता कि वे दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं. दोनों के परिवारों को हमेशा यह उम्मीद रहती कि शायद कभी वे लौट कर आ जाएं. पर अब सभी को असलियत का पता चल गया है कि वे दोनों लौट कर घर क्यों नहीं आए.

अब बबीता व सलोनी की मां के सामने सब्र करने के अलावा कुछ नहीं बचा था.

टीचर : क्या था रवि और सीमा का नायाब तरीका?

जिससुंदर, स्मार्ट महिला को मैं रहरह कर देखे जा रहा था, वह अचानक अपनी कुरसी से उठ कर मेरी तरफ मुसकराती हुई बढ़ी तो एअरकंडीशंड बैंकेट हौल में भी मुझे गरमी लगने लगी थी.

मेरे दोस्त विवेक के छोटे भाई की शादी की रिसैप्शन पार्टी में तब तक ज्यादा लोग नहीं पहुंचे थे. उस महिला का यों अचानक उठ कर मेरे पास आना सभी की नजरों में जरूर आया होगा.

‘‘मैं सीमा हूं, मिस्टर रवि,’’ मेरे नजदीक आ कर उस ने मुसकराते हुए अपना परिचय दिया.

मैं उस के सम्मान में उठ खड़ा हुआ.

फिर कुछ हैरान होते हुए पूछा, ‘‘आप मुझे जानती हैं?’’

‘‘मेरी एक सहेली के पति आप की फैक्टरी में काम करते हैं. उन्होंने ही एक बार क्लब में आप के बारे में बताया था.’’

‘‘आप बैठिए, प्लीज.’’

‘‘आप की गरदन को अकड़ने से बचाने के लिए यह नेक काम तो मुझे करना ही पड़ेगा,’’ उस ने शिकायती नजरों से मेरी तरफ देखा पर साथ ही बड़े दिलकश अंदाज में मुसकराई भी.

‘‘आई एम सौरी, पर कोई आप को बारबार देखने से खुद को रोक भी तो नहीं सकता है, सीमाजी. मुझे नहीं लगता कि आज रात आप से ज्यादा सुंदर कोई महिला इस पार्टी में आएगी,’’ उस की मुसकराने की अदा ही कुछ ऐसी थी कि उस ने मुझे उस की तारीफ करने का हौसला दे दिया.

‘‘कुछ सैकंड की मुलाकात के बाद ही ऐसी झूठी तारीफ… बहुत कुशल शिकारी जान पड़ते हो, रवि साहब,’’ उस का तिरछी नजर से देखना मेरे दिल की धड़कनें बढ़ा गया.

‘‘नहीं, मैं ने तो आज तक किसी चिडि़या का भी शिकार नहीं किया है.’’

वह हंसते हुए बोली, ‘‘इतने भोले लगते तो नहीं हो. क्या आप की शादी हो गई है?’’

‘‘हां, कुछ महीने पहले ही हुई है और तुम्हारे पूछने से पहले ही बता देता हूं कि मैं अपनी शादी से पूरी तरह संतुष्ट व खुश हूं.’’

‘‘रियली?’’

‘‘यस, रियली.’’

‘‘जिस को घर का खाना भर पेट मिलता हो, उस की आंखों में फिर भूख क्यों?’’ उस ने मेरी आंखों में गहराई से झांकते हुए पूछा.

‘‘कभीकभी दूसरे की थाली में रखा खाना ज्यादा स्वादिष्ठ प्रतीत हो तो इनसान की लार टपक सकती है,’’ मैं ने भी बिना शरमाए कहा.

‘‘इनसान को खराब आदतें नहीं डालनी चाहिए. कल को अपने घर का खाना अच्छा लगना बंद हो गया तो बहुत परेशानी में फंस जाओगे, रवि साहब.’’

‘‘बंदा संतुलन बना कर चलेगा, तुम फिक्र मत करो. बोलो, इजाजत है?’’

‘‘किस बात की?’’ उस ने माथे पर बल डाल लिए.

‘‘सामने आई थाली में सजे स्वादिष्ठ भोजन को जी भर कर देखने की? मुंह में पानी लाने वाली महक का आनंद लेने की?’’

‘‘जिस हिसाब से तुम्हारा लालच बढ़ रहा है, उस हिसाब से तो तुम जल्द ही खाना चखने की जिद जरूर करने लगोगे,’’ उस ने पहले अजीब सा मुंह बनाया और फिर खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘क्या तुम वैसा करने की इजाजत नहीं दोगी?’’ उस की देखादेखी मैं भी उस के साथ खुल कर फ्लर्ट करने लगा.

‘‘दे सकती हूं पर…’’ वह ठोड़ी पर उंगली रख कर सोचने का अभिनय करने लगी.

‘‘पर क्या?’’

‘‘चिडि़या को जाल में फंसाने का तुम्हारा स्टाइल मुझे जंच नहीं रहा है. मन पर भूख बहुत ज्यादा हावी हो जाए तो इनसान बढि़या भोजन का भी मजा नहीं ले पाता है.’’

‘‘तो मुझे सिखाओ न कि लजीज भोजन का आनंद कैसे लिया जाता है?’’ मैं ने अपनी आवाज को नशीला बनाने के साथसाथ अपना हाथ भी उस के हाथ पर रख दिया.

‘‘मेरे स्टूडैंट बनोगे?’’ उस की आंखों में शरारत भरी चमक उभरी.

‘‘बड़ी खुशी से, टीचर.’’

‘‘तो पहले एक छोटा सा इम्तिहान दो, जनाब. इसी वक्त कुछ ऐसा करो, जो मेरे दिल को गुदगुदा जाए.’’

‘‘आप बहुत आकर्षक और सैक्सी हैं,’’ मैं ने अपनी आवाज को रोमांटिक बना कर उस की तारीफ की.

‘‘कुछ कहना नहीं, बल्कि कुछ करना है, बुद्धू.’’

‘‘तुम्हें चूम लूं?’’ मैं ने शरारती अंदाज में पूछा.

‘‘मुझे बदनाम कराओगे? मेरा तमाशा बनाओगे?’’ वह नाराज हो उठी.

‘‘नहीं, सौरी.’’

‘‘जल्दी से कुछ सोचो, नहीं तो फेल कर दूंगी,’’ वह बड़ी अदा से बोली.

उस के दिल को गुदगुदाने के लिए मुझे एक ही काम सूझा. मैं ने अपना पैन  जेब से निकाल कर गिरा दिया और फिर उसे उठाने के बहाने झुक कर उस का हाथ चूम लिया.

‘‘मैं पास हुआ या फेल, टीचर?’’ सीधा होने के बाद जब मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा तो शर्म से उस के गोरे गाल गुलाबी हो उठे.

‘‘पास, और अब बोलो क्या इनाम चाहिए?’’ उस ने शोख अदा से पूछा.

‘‘अब इसी वक्त तुम कुछ ऐसा करो जिस से मेरा दिल गुदगुदा जाए.’’

‘‘मेरे लिए यह कोई मुश्किल काम नहीं है,’’ कह वह मेरा हाथ थाम डांस फ्लोर की तरफ चल पड़ी.

उस रूपसी के साथ चलते हुए मेरा मन खुश हो गया. उधर लोग हमें हैरानी भरी नजरों से देख रहे थे.

डांस फ्लोर पर कुछ युवक और बच्चे डीजे के तेज संगीत पर नाच रहे थे. सीमा ने बेहिचक डांस करना शुरू कर दिया. मेरा ध्यान नाचने में कम और उसे नाचते हुए देखने में ज्यादा था. क्या मस्त हो कर नाच रही थी. ऐसा लग रहा था मानो उस के अंगअंग में बिजली भर गई हो. आंखें यों अधखुली सी थीं मानो कोई सुंदर सपना देखते हुए किसी और दुनिया में पहुंच गई हों.

करीब आधा घंटा नाचने के बाद हम वापस अपनी जगह आ बैठे. मैं खुद जा कर 2 कोल्डड्रिंक ले आया.

‘‘थैंक यू, रवि पर मेरा दिल कुछ और पीने को कह रहा है,’’ उस ने मुसकराते हुए कोल्डड्रिंक लेने से इनकार कर दिया.

‘‘फिर क्या लोगी?’’

‘‘ताजा, ठंडी हवा की मिठास के बारे में क्या खयाल है?’’

‘‘बड़ा नेक खयाल है. मैं ने कुछ दिन पहले ही घर में नया एसी. लगवाया है. वहीं चलें?’’

‘‘बच्चे, इस टीचर की एक सीख तो इसी वक्त गांठ बांध लो. जिस का दिल जीतना चाहते हो, उस के पहले अच्छे दोस्त बनो. उस के शौक, उस की इच्छाओं व खुशियों को जानो और उन्हें पूरा कराने में दिल से दिलचस्पी लो. अपने फायदे व मन की इच्छापूर्ति के लिए किसी करीबी इनसान का वस्तु की तरह से उपयोग करना गलत भी है और मूर्खतापूर्ण भी,’’ सीमा ने सख्त लहजे में मुझे समझाया तो मैं ने अपना चेहरा लटकाने का बड़ा शानदार अभिनय किया.

‘‘अब नौटंकी मत करो,’’ वह एकदम हंस पड़ी और फिर मेरा हाथ पकड़ कर उठती हुई बोली, ‘‘तुम्हारी कार में ठंडी हवा का आनंद लेने हम कहीं घूमने चलते हैं.’’

‘‘वाह, तुम्हें कैसे पता चला कि मुझे लौंग ड्राइव पर जाना बहुत पसंद है?’’ मैं ने बहुत खुश हो कर पूछा.

‘‘अरे, मुझे तो दूल्हादुलहन को सगुन भी देना है. तुम यहीं रुको, मैं अभी आया,’’ कह कर मैं स्टेज की तरफ चलने को हुआ तो उस ने मेरा बाजू थाम कर मुझे रोक लिया. बोली, ‘‘अभी चलो, खाना खाने को तो लौटना ही है. सगुन तब दे देना,’’ और फिर मुझे खींचती सी दरवाजे की तरफ ले चली.

‘‘और अगर नहीं लौट पाए तो?’’ मैं ने उस के हाथ को अर्थपूर्ण अंदाज में कस कर दबाते हुए पूछा तो वह शरमा उठी.

 

कुछ देर बाद मेरी कार हाईवे पर दौड़ रही थी. सीमा ने मुझे एसी. नहीं चलाने

दिया. कार के शीशे नीचे उतार कर ठंडी हवा के झोंकों को अपने चेहरे व केशों से खेलने दे रही थी. वह आंखें बंद कर न जाने कौन सी आनंद की दुनिया में पहुंच गई थी.

कुछ देर बाद हलकी बूंदाबांदी शुरू हो गई पर उस ने फिर भी खिड़की का शीशा बंद नहीं किया. आंखें बंद किए अचानक गुनगुनाने लगी.

गाते वक्त उस के शांत चेहरे की खूबसूरती को शब्दों में बयां करना असंभव था. उस का मूड न बदले, इसलिए मैं ने बहुत देर तक एक शब्द भी अपने मुंह से नहीं निकाला.

गाना खत्म कर के भी उस ने अपनी आंखें नहीं खोलीं. अचानक उस का हाथ मेरी तरफ बढ़ा और वह मेरा बाजू पकड़ कर मेरे नजदीक खिसक आई.

‘‘भूख लग रही हो तो लौट चलें?’’

मैं ने बहुत धीमी आवाज में उस की इच्छा जाननी चाही.

‘‘तुम्हें लग रही है भूख?’’ बिना आंखें खोले वह मुसकरा पड़ी.

‘‘अब हम जो करेंगे, वह तुम्हारी मरजी से करेंगे.’’

‘‘तुम तो बड़े काबिल शिष्य साबित हो रहे हो, रवि साहब.’’

‘‘थैंक यू, टीचर. बोलो, कहां चलें?’’

‘‘जहां तुम्हारी मरजी हो,’’ वह मेरे और करीब खिसक आई.

‘‘तब खाना खाने चलते हैं. यह चुनाव तुम करो कि शादी का खाना खाना है या हाईवे के किसी ढाबे का.’’

‘‘अब भीड़ में जाने का मन नहीं है.’’

‘‘तब किसी अच्छे से ढाबे पर रुकते…’’

‘‘बच्चे, एक नया सबक और सीखो. लोहा तेज गरम हो रहा हो, तो उस पर चोट करने का मौका चूकना मूर्खता होती है,’’ उस ने मेरी आंखों में झांकते हुए कहा तो मेरी रगरग में खून तेज रफ्तार से दौड़ने लगा.

‘‘बिलकुल होगी, टीचर. अरे, गोली मारो ढाबे को,’’ मैं ने मौका मिलते ही कार को वापस जाने के लिए मोड़ लिया.

अपने घर का ताला खोल कर मैं जब तक ड्राइंगरूम में नहीं पहुंच गया, तब तक सीमा ने न मेरा हाथ छोड़ा और न ही एक शब्द मुंह से निकाला. जब भी मैं ने उस की तरफ देखा, हर बार उस की नशीली आंखों व मादक मुसकान को देख कर सांस लेना भी भूल जाता था.

मैं ने ड्राइंगरूम से ले कर शयनकक्ष तक का रास्ता उसे गोद में उठा कर पूरा किया. फिर बोला, ‘‘तुम दुनिया की सब से सुंदर स्त्री हो, सीमा. तुम्हारे गुलाबी होंठ…’’

‘‘अब डायलौग बोलने का नहीं, बल्कि ऐक्शन का समय है, मेरे प्यारे शिष्य,’’ सीमा ने मेरे होंठ अपने होंठों से सील कर मुझे खामोश कर दिया.

फिर जो ऐक्शन हमारे बीच शुरू हुआ, वह घंटों बाद ही रुका होगा, क्योंकि मेरी टीचर ने स्वादिष्ठ खाने को किसी भुक्खड़ की तरह खाने की इजाजत मुझे बिलकुल नहीं दी थी.

अगले दिन रविवार की सुबह जब दूध वाले ने घंटी बजाई, तब मेरी नींद मुश्किल से टूटी.

‘‘आप लेटे रहो. मैं दूध ले लेती हूं,’’ सीमा ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे पलंग से नहीं उठने दिया.

‘‘नहीं, तुम यहां से हिलना भी मत, टीचर, क्योंकि यह शिष्य कल रात के सबक को 1 बार फिर से दोहराना चाहता है,’’ मैं ने उस के होंठों पर चुंबन अंकित किया और दूध लेने को उठ खड़ा हुआ.

आजकल मैं अपनी जीवनसंगिनी सीमा की समझदारी की मन ही मन खूब दाद देता हूं. मैं फैक्टरी के कामों में बहुत व्यस्त रहता हूं और वह अपनी जौब की जिम्मेदारियां निभाने में. हमें साथसाथ बिताने को ज्यादा वक्त नहीं मिलता था और इस कारण हम दोनों बहुत टैंशन में व कुंठित हो कर जीने लगे थे.

‘‘हम साथ बिताने के वक्त को बढ़ा नहीं सकते हैं तो उस की क्वालिटी बहुत अच्छी कर लेते हैं,’’ सीमा के इस सुझाव पर खूब सोचविचार करने के बाद हम दोनों ने पिछली रात से यह ‘टीचर’ वाला खेल खेलना शुरू किया है.

कल रात हम रिसैप्शन में पहले अजनबियों की तरह से मिले और फिर फ्लर्ट करना शुरू कर दिया. कल उसे टीचर बनना था और मुझे शिष्य. कल मैं उस के हिसाब से चला और मेरे होंठों पर एकाएक उभरी मुसकराहट इस बात का सुबूत थी कि मैं ने उस शिष्य बन कर बड़ा लुत्फ उठाया, खूब मौजमस्ती की.

अगली छुट्टी वाले दिन या अन्य उचित अवसर पर मैं टीचर बनूंगा और सीमा मेरी शिष्या होगी. उस अवसर को पूरी तरह से सफल बनाने के लिए मेरे मन ने अभी से योजना बनानी शुरू कर दी है. हमें विश्वास है कि साथसाथ बिताने के लिए कम वक्त मिलने के बावजूद इस खेल के कारण हमारा विवाहित जीवन कभी नीरसता व ऊब का शिकार नहीं बनेगा.

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