कानूनी संपत्ति और प्रौपर्टी पर पता होने चाहिए ये अधिकार

आज महिलाएं घर संभालने के साथसाथ कमाई करने बाहर भी जाती हैं. बच्चों के पालनपोषण और परिवार की देखभाल के साथ ही घर खर्च में भी मदद करती हैं. हाल ही में वर्किंग स्त्री नाम की एक सर्वे रिपोर्ट जारी हुई. करीब 10 हजार महिलाओं पर किए गए इस सर्वे में पाया गया कि दिल्ली में 67त्न से अधिक कामकाजी महिलाएं अपनी तनख्वाह से घर खर्च में सक्रिय योगदान देती हैं. वहीं 31त्न महिलाएं ऐसी हैं जो अपनी

आधी सैलरी घर की जिम्मेदारियों पर खर्च करती हैं.

जाहिर है आर्थिक रूप से महिलाएं जिम्मेदार और आत्मनिर्भर हैं. इस के बावजूद आज भी वित्तीय फैसले वे पिता, भाई और पति की मदद से ही लेती हैं, ‘औनलाइन मार्केट प्लेस इंडिया लैंड्स’ द्वारा कराए गए इस सर्वे में मैट्रो, टियर

1 और टियर 2 की 21 से 65 उम्र वर्ग की 10 हजार से ज्यादा कामकाजी महिलाओं से सवाल पूछे गए. रिपोर्ट में कामकाजी महिलाओं को ले कर जो आंकड़े सामने आए वे वाकई चौंका देने वाले हैं. दिल्ली की 47 फीसदी महिलाओं ने स्वीकार किया कि घर के खर्चों को नियमित रूप से ट्रैक करने में मुश्किल होती है. 37त्न महिलाएं ऐसी थीं जिन्हें क्रैडिट स्कोर से संबंधित कोई जानकारी नहीं. वहीं दिल्ली की करीब

32त्न कामकाजी महिलाओं ने बताया कि बचत और निवेश से जुड़े फैसले लेने में उन्हें कठिनाई महसूस होती है. हालांकि यह समस्या केवल दिल्ली की महिलाओं को ही नहीं बल्कि देशभर में अधिकतर कामकाजी महिलाएं वित्तीय फैसले लेने के लिए अपने पिता, पति या भाई पर निर्भर होती हैं.

पुरुषों की तुलना में कम भागेदारी इसी तरह एलएक्सएमई द्वारा एक्सिस माय इंडिया (ए ऐंड माई इंडिया) के साथ मिल कर किए सर्वे के अनुसार देश की 33त्न महिलाएं निवेश  के बारे में कुछ भी ध्यान नहीं देती हैं. बाकी महिलाओं की पहली पसंद सोना और फिक्स्ड डिपौजिट है. इस से आगे वे सोच ही नहीं पातीं. शेयर बाजार और दूसरे तरह के निवेश में उन की भागीदारी पुरुषों की तुलना में काफी कम है. कई महिलाएं कंपनियों में बड़ी जिम्मेरियां के चलते सिर्फ अपने घर और बच्चों की चिंता में उल?ो रहने के कारण निवेश नहीं कर पाती हैं.

निवेश और वित्तीय फैसलों के साथसाथ महिलाएं अकसर अपनी संपत्ति की सुरक्षा और संपत्ति से जुड़े अधिकारों की भी जानकारी नहीं रखतीं. यह भी देखने को मिलता है कि महिलाओं को फाइनैंस कभी पसंद नहीं आता खासकर पढ़ाई के समय. ज्यादातर लड़कियां आर्ट्स या साइंस लेती हैं मगर कौमर्स लेने वाली लड़कियों की संख्या बहुत कम होती है. इसी तरह महिलाओं की तुलना में पुरुषों द्वारा वित्तीय सलाहकार से संपर्क किए जाने की संभावना 2 गुना अधिक होती है. घरेलू जीवन में महिलाएं अपने पैसों को मैनेज करने के लिए अपने पिता, भाई या

औफिस के किसी सहकर्मी पर निर्भर रहती हैं. मगर सवाल उठता है कि जब वे अपने घर को कलात्मक ढंग से मैनेज करती हैं तो पैसों को मैनेज करने से हिचकती क्यों हैं? उस तरफ ध्यान क्यों नहीं देतीं? शिक्षा के लिहाज से भी महिलाओं का डिगरी हासिल करने का प्रतिशत बढ़ रहा है, साथ ही उन की कमाई भी बढ़ी है. पिछले 30 वर्षों में कामकाजी महिलाओं की संख्या दोगुनी हो गई है और आज कार्य बल में प्रवेश करने वाली महिलाओं ने अपने भाइयों और पतियों के साथ आर्थिक समानता हासिल कर ली है.

कानून ने भी महिलाओं को संपत्ति से जुड़े बहुत से हक दे दिए हैं. अब उन्हें पिता की संपत्ति में भाइयों के बराबर हिस्सा मिलता है. यानी महिलाओं के पास अब अधिक पैसा है और उन्हें इसे मैनेज करने की पूरी जानकारी होनी चाहिए.

महिलाओं के संपत्ति से जुड़े अधिकार मायके की संपत्ति पर हक: एक लड़की को शादी में पर्याप्त दहेज दिया गया तो इस का यह मतलब नहीं है कि उस का अपने परिवार की संपत्ति पर अधिकार खत्म हो गया. मायके की संपत्ति पर महिला का अधिकार होता है खासकर 2005 के संसोधन के बाद महिलाओं को मायके की संपत्ति पर भाइयों के साथ बराबरी का हक मिला है भले ही वे विवाहित हों या अविवाहित.

यह 2 तरह से लागू हो सकता है: पहला- अगर पिता ने संपत्ति खुद अर्जित की है और पिता की मौत बिना किसी वसीयत के हो जाती है तो संपत्ति बेटों और बेटियों में बराबर बांटी जाएगी. अगर मां जिंदा हैं तो उन को भी संपत्ति पर अधिकार मिलेगा. अगर पिता अपनी वसीयत बना कर किसी एक बच्चे को या किसी अजनबी को भी अपना उत्तराधिकारी बनाते हैं तो संपत्ति उस व्यक्ति को मिलेगी. जहां तक शादी के बाद इस अधिकार का सवाल है तो यह अधिकार शादी के बाद भी कायम रहेगा.

दूसरा पैतृक संपत्ति का अधिकार जन्म से तय होता है. हिंदू सैक्शन एक्ट, 1956 में पहले घर में पैदा होने वाले बेटों को संपत्ति पर अधिकार मिलता था. 2005 में कानून में बदलाव किया गया. अब किसी घर में पैदा होने वाले पुरुष और महिला का उस परिवार की पैतृक संपत्ति में बराबर अधिकार होता है. शादीशुदा बेटी और गोद लिए बच्चे को भी बराबर अधिकार दिए गए हैं.

ससुराल की संपत्ति पर महिला का अधिकार

यहां भी 2 पहलू हैं: पहला- अगर संपत्ति पति की कमाई हुई है तो पत्नी पति की संपत्ति में बच्चों और मां समेत बराबर की अधिकारी होती है. यदि किसी शख्स की बिना वसीयत के मौत हो जाती है तो उस की संपत्ति उन सभी में बराबर बंटती है. मगर अगर वह शख्स वसीयत में किसी को अपना वारिस बना कर जाता है तो वह प्रौपर्टी उस के वारिस को ही मिलेगी.

दूसरा- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 के मुताबिक अगर एक महिला की ससुराल में संपत्ति पैतृक है और पति की मौत हो जाती है तो पति की संपत्ति में महिला को बच्चों के साथ बराबर का हक मिलेगा.

तलाक में महिला के संपत्ति से जुड़े अधिकार

अगर एक महिला अपने पति से अलग होना चाहती है तो हिंदू मैरिज एक्ट के सैक्शन 24 के तहत वह पति से अपना भरणपोषण मांग सकती है. यह भरणपोषण पति और पत्नी दोनों की आर्थिक स्थिति के आधार पर तय होता है. यह तलाक का वन टाइम सैटलमैंट भी हो सकता है और मासिक भत्ता भी. इस के साथ ही तलाक के बाद अगर बच्चे मां के साथ रहते हैं तो पति को उन का भरणपोषण भी देना होगा.

स्त्री धन पर अधिकार

एक महिला को शादी से पहले, शादी में और शादी के बाद गिफ्ट में जो भी कैश, गहने या सामान मिलता है उस सब पर महिला का ही पूरा अधिकार होता है. हिंदू सैक्शन एक्ट का सैक्शन 14 और हिंदू मैरिज एक्ट के सैक्शन 27 दोनों अधिकार देते हैं. इस के अलावा वरवधू को कौमन यूज की तमाम चीजें दी जाती हैं ये भी स्त्रीधन के दायरे में आती हैं. स्त्रीधन पर लड़की का पूरा अधिकार होता है.

अगर ससुराल वालों ने महिला का स्त्रीधन अपने पास रख लिया है तो महिला इस के खिलाफ आईपीसी की धारा-406 (अमानत में खयानत) की भी शिकायत कर सकती है. इस के तहत कोर्ट के आदेश से महिला को अपना स्त्रीधन वापस मिल सकता है. इस के अलावा महिला डोमैस्टिक वायलैंस एक्ट के सैक्शन 19 ए के तहत पुलिस में शिकायत भी कर सकती है.

खुद की संपत्ति पर अधिकार

कोई भी महिला अपने हिस्से में आई पैतृक संपत्ति और खुद अर्जित संपत्ति को चाहे तो उसे बेच भी सकती है. इस में कोई दखल नहीं दे सकता. महिला इस संपत्ति की वसीयत कर सकती है और चाहे तो उस संपत्ति से अपने बच्चों को बेदखल भी कर सकती है.

कैसे करें अपनी प्रौपर्टी मैनेज: अपनी प्रौपर्टी मैनेज करने के लिए एक अलग सीए रखिए जो आप को सही सलाह दे. अगर आप पति के साथ जौइंट में कोई सीए रखती हैं तो वह फायदे दिलाने के नाम पर या टैक्स बचाने की बात कह कर आप की प्रौपर्टी आप के बेटे के नाम ट्रांसफर कर सकता है या फिर पति के साथ मिलाने की कवायद शुरू करेगा. इस तरह वह आप से ज्यादा आप के पति या बेटे को फायदा पहुंचाएगा और आप रिश्तों की वजह से न भी नहीं कह सकेंगी.

कभी भी बैंक वगैरह जाना हो तो खुद जाएं. अकसर महिलाएं अपने बैंक अपडेट रखने और पैसे जमा करने या निकालने के लिए पति पर निर्भर रहती हैं. पति को अपने बैंक के साइन, क्रैडिट कार्ड का पासवर्ड वगैरह सब दे देती हैं. यह सही नहीं है. जब भी बैंक का कोई काम हो तो खुद जाएं और अपने पैसे की ग्रोथ के लिए हर संभव कोशिश करें. आजकल शेयर मार्केट और म्यूचुअल फंड वगैरह निवेश के अच्छे विकल्प हैं.

अगर आप के नाम से कोई घर है और आप उस में किराएदार रख रही हैं तो खुद ही किराएदार का चयन करें और किराया वगैरह लेने का काम भी खुद करें. उन पैसों को अपने खाते में जमा करें. ध्यान रखें अपनी प्रौपर्टी से जुड़े सारे कागजात अपने पास एक फाइल में रखें ताकि जब भी कोई जरूरत हो तो आप कागज दिखा सकें और आप के पति यह उलाहना न दें कि आप से कुछ नहीं संभलता. इस तरह फाइल में सारे कागज सही से रखने पर वे खोते भी नहीं और आप को अपनी प्रौपर्टी से जुड़ी हर जानकारी भी बनी रहती है.

जब तक बच्चे छोटे हैं तब तक पति को कहें कि वे आप को ही हर जगह नौमिनी बनाएं. कई घरों में जब बच्चे छोटे होते हैं या नहीं होते तो पुरुष अपना नौमिनी अपने भाइयों को बना देते हैं. यह उचित नहीं है. इस के विपरीत ऐसे में पत्नी को नौमिनी बनाना ही सुरक्षित रहता है. इसी तरह महिलाओं को भी अपने भाइयों पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं करना चाहिए और पति या बच्चों को ही अपना नौमिनी बनाना चाहिए.

अभिनय की कोई भाषा नहीं होती वैष्णवी पटवर्धन

2016में मिस इंडिया प्रतिस्पर्धा में फाइनल रहीं वैष्णवी पटवर्धन तेलुगु फिल्मों में भी योगदान दे चुकी हैं. इस के अलावा कन्नड़ फिल्म ‘श्रीमंथा’ में भी अभिनय किया है. फिलहाल वैष्णवी अपनी जल्द ही रिलीज होने वाली फिल्म ‘व्हाट ए किस्मत’ को ले कर चर्चा में हैं. यह एक कौमेडी फिल्म है जो आज की जिंदगी में चल रहे हालात पर है. इस फिल्म में वैष्णवी मुख्य भूमिका निभा रही हैं.

तेलुगु और हिंदी फिल्मों में काम करने के अलावा वैष्णवी का एक यूट्यूब चैनल भी है, जिस में वे फैशन लाइफस्टाइल से संबंधित ब्लौग बनाती हैं. ‘वाट ए किस्मत’ में वैष्णवी का क्या किरदार है? इस फिल्म में उन का काम करने का अनुभव कैसा रहा? हिंदी फिल्मों में वे अपना भविष्य बतौर अभिनेत्री कैसे दिखती हैं? ऐसे ही कई दिलचस्प सवालों के जवाब दिए वैष्णवी ने खास बातचीत के दौरान:

फिल्म ‘व्हाट ए किस्मत’ से आप को कितनी उम्मीदें हैं?

उम्मीदें तो बहुत हैं क्योंकि यह एक लाइट हार्टेड कौमेडी फिल्म है, जिस में जीवन की सचाई को दिखाया गया है. खासतौर पर हालात जब खराब हों तो क्या होता है और जब हालात पलटते हैं तो क्या होता है. आशा है फिल्म दर्शकों को पसंद आएगी और मेरे जीवन में भी कुछ अच्छा हो जाए.

यह हीरो प्रधान फिल्म है. ऐसे में आप के करने लायक कितना पावरफुल रोल है?

मेरा रोल फिल्म में बहुत महत्त्वपूर्ण है. मैं फिल्म के हीरो चंदू की पत्नी आरती का किरदार निभा रही हूं. जिस के खुद के भी बहुत सारे सपने हैं, खुद का संघर्ष है, अपने पति से बहुत सारी उम्मीदें हैं, लेकिन जब उस का पति उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता तो पतिपत्नी के बीच प्यारभरे ?ागड़ा भी हैं. इस हिसाब से मु?ो लगता है अगर फिल्म में हीरोइन न हो तो हीरो का कोई महत्त्व नहीं होता. कहने का मतलब यह है जिस तरह पतिपत्नी एकदूसरे के बगैर अधूरे हैं उसी तरह कोई भी फिल्म हीरोहीरोइन के बगैर अधूरी है. फिल्म में मेरा भी उतना ही योगदान है जितना हीरो का है.

आप की यह पहली हिंदी फिल्म है या इस से पहले भी आप ने कोई फिल्म की थी?

मैं ने इस से पहले एक फिल्म की थी जो हिंदी और पंजाबी दोनों भाषाओं में बनी थी. पूरी तरह से यह फिल्म मेरी पहली हिंदी फिल्म है और इस में मेरा काम करने का अनुभव बहुत ही अच्छा रहा. शूटिंग के आखिरी दिन हम सभी बहुत दुखी हो गए थे यह सोच कर कि हमारा साथ यहीं तक था. फिल्म की पूरी यूनिट डाइरैक्टर, ऐक्टर्स सभी ने मु?ो बहुत इज्जत दी.

अपने हिंदी फिल्म के अलावा तेलुगु फिल्म में भी काम किया है. सुना है वहां हीरोइन को कमतर आंका जाता है क्योंकि तेलुगु फिल्में ज्यादातर हीरो प्रधान होती हैं. इस बारे में आप का क्या कहना है?

हां, मैं ने भी काफी इस तरह की बातें सुनी थीं कि तेलुगु इंडस्ट्री में हीरो को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है. लेकिन मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ. मैं ने जो तेलुगु फिल्म की उस में मु?ो अच्छा रिस्पौंस मिला फिल्म भी अच्छी चल रही है. फिल्म का नाम ‘साधा नानू नाडिपे’ है. इस फिल्म में काम करने के दौरान मेरा अनुभव काफी अच्छा रहा.

अभिनय के अलावा आप फैशन और लाइफस्टाइल में भी दिलचस्पी रखती हैं जिस के चलते आप का एक यूट्यूब चैनल भी है. उसे बारे में कुछ बताएंगे?

हां, मेरी कालेज के समय से ही फैशन, मेकअप, और लाइफस्टाइल से संबंधित चीजों में बहुत दिलचस्पी थी और मिस इंडिया प्रतियोगिता में भाग लेने के दौरान मैं ने काफी कुछ सीखा भी था. लिहाजा 2016 में मिस इंडिया प्रतिस्पर्धा में फाइनलिस्ट होने के बाद मैं ने वैष्णवी पटवर्धन के नाम से अपना यूट्यूब चैनल शुरू किया, जिस में मैं ने फैशन मेकअप और लाइफस्टाइल से रिलेटेड बहुत सारे ब्लौग बनाएं. फिलहाल मेरे 10 हजार फौलोअर्स हैं. मैं खुश हूं कि मु?ो अभिनय और चैनल दोनों में दर्शकों का पूरी सपोर्ट मिली है.

‘व्हाट ए किस्मत’ की आरती और आप में कितनी समानताएं हैं?

आरती और मु?ा में काफी समानताएं हैं जैसे हम दोनों ही आत्मनिर्भर हैं, अपने हिसाब से जिंदगी जीना पसंद करते हैं. इस के अलावा आरती की जिंदगी में जो संघर्ष है मैं ने भी वह संघर्ष तय किया है इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए. हम दोनों ही मेहनती हैं और कभी न हार मानने वाले शख्स हैं.

आजकल तेलुगु इंडस्ट्री से कई सारे कलाकार हिंदी इंडस्ट्री में काम करने आ रहे हैं. आप ने भी तेलुगू इंडस्ट्री में काम किया है तो क्या अब आप भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में खुद को आजमाना चाहेंगी?

मेरा मानना है तेलुगु हो या हिंदी इंडस्ट्री अभिनय की कोई भाषा नहीं होती. मु?ो जहां भी अच्छा काम करने का मौका मिलेगा वहां मैं अभिनय करना चाहूंगी.

आज छोटा परदा छोटा नहीं रहा. छोटा परदा अर्थात टीवी से कई छोटेबड़े कलाकारों को प्रसिद्धि मिल रही है. खासतौर पर कलर्स चैनल के रिएलिटी शो ‘बिग बौस’ के जरीए कई कलाकारों को नाम, पैसा और शोहरत मिली है.

अगर आप को बिग बौस में जाने का औफर मिला तो क्या आप जाना पसंद करेंगी?

सच कहूं तो मैं ने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं. लेकिन मैं इस बात से भी पूरी तरह सहमत हूं कि छोटा परदा बड़े परदे से कहीं ज्यादा पावरफुल है क्योंकि छोटा परदा तब से प्रसिद्ध है जब मैं खुद छोटी सी थी. इस की पहुंच छोटेछोटे गांवों तक है. ऐसे में अगर मु?ो बिग बौस का औफर मिला तो मैं जरूर जाना चाहूंगी. आप अपनी फिल्म ‘व्हाट ए किस्मत’ के नाम के मुताबिक किस्मत पर ज्यादा भरोसा करती हैं या मेहनत पर? अगर आप तकदीर पर भरोसा कर के हाथ पर हाथ धरे बैठ गए मेहनत नहीं की तो किस्मत भी साथ नहीं देगी. अगर मेहनत करते रहें तो एक न एक दिन सफलता जरूर मिलती है.

ये लापरवाहियां जान पर न पड़ जाएं भारी

अनुराधा की सासू मां को अचानक से दिल का दौरा पड़ गया, पति आनन्द ने जल्दी से सोर्बीटेट गोली लाने को कहा पर अनुराधा ने हर ड्राअर को खोल कर देख लिया कहीं टेबलेट नहीं मिल रही थी, हर बार केमिस्ट से आफत मुसीबत में काम आएगी ये सोचकर ले आती है और आज जब काम पड़ा तो……….खैर वह जल्दी से अपनी पड़ोसन के यहां से टेबलेट लेकर आई और सासू मां को दी, हॉस्पिटल में जब डाक्टर ने बताया कि समय पर सोर्बीटेट देने के कारण ही वे बच पायीं वरना…..तो अनुराधा को अपनी लापरवाही पर बहुत गुस्सा आया.

विपाशा के सास ससुर दोनों ही काफी लम्बे समय से बीमार थे उन्हें दवाई देने का काम विपाशा ही करती थी. एक दिन उसने ससुर की बी पी की दवाई अपनी सास को दे दी गोली खाते ही सास बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ीं. जब उसने देखा कि ससुर की बी पी की दवाई उसने अपनी सास को दे दी है चूंकि वे लो बी पी की पेशेंट हैं और हाई बी पी की गोली खाने से उनका बी पी और अधिक नीचे चला गया जिससे वे बेहोश हो गयीं आनन फानन में वह उन्हें हास्पिटल लेकर भागी बड़ी मुश्किल से उनकी जान बचाई जा सकी.

रचिता को अपने भाई की शादी में जाने के लिए बैंक लाकर से गहने निकालकर लाने थे पर दो दिन से लाकर की चाबी मिल ही नहीं रही थी. जब बहुत खोजने पर भी चाबी नहीं मिली तो उसने पति अमन को बताया, तब अमन ने कहा,”पिछली बार जब तुम लाकर गयीं थीं तो चाबी तुमसे गुम गयी थी और तुमने बैंक में सूचना भी दी थी फिर दूसरी चाबी तो लायीं ही नहीं.” अब इतना समय भी नहीं था कि वह बैंक जा सके अंत में उसे शादी में असली जेवर होने के बाद भी नकली जेवर ही पहनने पड़े.

हम सभी जानते हैं कि घर में फर्स्ट एड बोक्स का होना अत्यंत आवश्यक है. गरिमा ने भी बाजार से सुंदर सा प्लास्टिक बॉक्स लाकर फर्स्ट एड बोक्स बनाया परन्तु जब एक दिन उसके बेटे को लूज मोशन हुए तो उसने उसे जो गोली खाने को दी उसे खाने के बाद ही बेटे को पूरे शरीर पर एलर्जी हो गयी. डॉक्टर के अनुसार एक्सपायरी डेट वाली दवाई देने के कारण बेटे के शरीर पर एंटी रिएक्शन हो गया था.

रजत के पास एक अननोन नम्बर से फोन आया कि उसे पुलिस स्टेशन बुलाया है क्योंकि उसके स्कूटर से एक्सीडेंट हुआ है. उसने लाख कहा कि उसने अपना स्कूटर 2 साल पहले ही ओलेक्स के जरिये एक सज्जन को बेच दिया था परन्तु पुलिस ने उसकी एक न सुनी क्योंकि आज तक भी स्कूटर आर टी ओ ऑफिस में उसी के नाम पर दर्ज था.

आशिमा वर्ष भर का किराना एक साथ खरीद कर उनमें पारे की गोलियां डाल देती हैं जिससे वे लम्बे समय तक खराब नहीं होतीं. अक्सर वह दालों को बनाने से पहले गोलियों को निकाल कर वापस डिब्बे में डाल देती थी परन्तु एक दिन जल्दबाजी में उसने दाल के साथ गोली को भी उबाल दिया. दाल खाने के बाद परिवार के हर सदस्य को फ़ूड पोइजनिंग हो गयी और सभी को हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ गया.

उपरोक्त घटनाएँ निस्संदेह भयंकर लापरवाही का जीता जागता उदाहरण हैं. इस तरह की लापरवाहियां न केवल किसी कि जान ले सकतीं हैं बल्कि अनचाहे मानसिक अशांति और तनाव देने वाली भी होतीं हैं. इस प्रकार की किसी भी लापरवाही कभी आपसे भी न हो इसके लिए निम्न बातों का ध्यान रखना अत्यंत

फर्स्ट एड बॉक्स है बहुत आवश्यक

प्रत्येक घर में फर्स्ट एड बॉक्स का होना जितना आवश्यक है उतना ही अहम है उसका अपडेट रहना. प्रति माह इसे चेक करके एक्सपायरी डेट की दवाइयों को हटाकर नई दवाइयों से रिप्लेस कर दें. बी पी, शुगर जैसी रेगुलर यूज की दवाइयों को इसमें न रखें. सोर्बीटेट, डिस्प्रिन जैसी कभी कभार प्रयोग होने वाली दवाइयां घर के सभी लोगों को बताकर रखें और पैकेट के ऊपर ही एक्सपायरी डेट और नाम भी लिख दें ताकि आफत मुसीबत में घर के किसी भी सदस्य को आसानी से दवाई मिल जाये. फर्स्ट एड बोक्स हमेशा बड़ा बनाएं और उसमें 2-3 पार्टीशन करें ताकि दवाइयों के ट्यूब्स, थर्मामीटर, ऑक्सीमीटर, टेबलेट और बेंडेज आदि को अलग अलग रखा जा सके.

पुराना वाहन बेचें मगर ध्यान से

कार, स्कूटर या स्कूटी जैसे किसी भी वाहन को आप ऑनलाइन या ऑफ़लाइन कैसे भी बेंचें परन्तु खरीददार को देने से पहले आर टी ओ ऑफिस में वाहन को खरीददार के नाम पर ट्रांसफर अवश्य करवा दें ताकि भविष्य में कोई दुर्घटना होने पर आप जिम्मेदार न हों. क्योकिं अनहोनी होने पर जिसके नाम पर वाहन होता है उसे ही तलब किया जाता है. हो सके तो ट्रांसफर किये कागजों कि एक फोटो खींचकर अपने पास भी रखें.

बैंक लाकर का चेक अप

अक्सर हम बैंक में एक बार जेवर रख देते हैं फिर कई कई महीनों तक उसे नहीं खोलते इसकी अपेक्षा 6 माह में एक बार अपने लाकर को अवश्य खोलें इससे आप अपनी चाबी और लाकर नम्बर से अपडेट तो रहेंगें ही साथ ही लाकर के गहने भी चेक कर पायेंगें क्योंकि बेंक आपके गहनों कि कोई गारंटी नहीं लेता. लाकर की चाबी को हमेशा एक गुच्छे में डालकर निश्चित जगह पर रखने के साथ साथ पति, सास या बड़े बच्चों को बताकर भी रखें ताकि याद न आने पर आप उनकी मदद ले सकें.

डोक्युमेंटेशन है बहुत जरूरी

घर में प्रोपर्टी, इंश्योरेंस, मेडिकल फाइल्स, मुचुअल फंड्स, बच्चों की मार्कशीट जैसे अनेकों कागज़ होते हैं जो हमारे लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं. इसके लिए प्रत्येक विषय की व्यवस्थित फाइल बनाकर उसके ऊपर स्केच पैन से विषय का नाम लिखकर रखें ताकि आवश्यकता पड़ने पर समय व्यर्थ न हो. सभी फाइलों को रखने की भी एक निश्चित जगह पर रखें.

बिल्स को मेनेज करें

समय समय पर हम घर में फ्रिज, ए सी, टेबलेट और लेपटॉप जैसी अनेकों वस्तुएं खरीदते हैं इन पर काफी सालों की वारंटी या गारंटी होती है. यदि आप इन्हें व्यवस्थित तरीके से नहीं रखते हैं तो इसके खराब होने पर आप फ्री सर्विस का लाभ लेने से वंचित रह जाते हैं और फिर आपको अनावश्यक खर्चा करना पड़ जाता है

Summer Special: घर पर बनाएं ठंडे-ठंडे पान, खस और जामुन के शॉट्स

चिलचिलाती गर्मी में ठंडे पेय मन को बहुत राहत देते हैं. गर्मी में शरीर से निकलने वाले पसीने की कमी को पूरा करने के लिए भी आहार विशेषज्ञ अधिक से अधिक पेय पीने की सलाह देते हैं. बाजार में मिलने वाले पेय पदार्थ न तो स्वास्थ्यप्रद होते हैं और न ही हाईजिनिक. इसके अतिरिक्त बाजार से हर रोज खरीदना बजट फ्रेंडली भी नहीं होता तो क्यों न घर पर ही कुछ आसान से ड्रिंक तैयार कर लिए जायें जो बजट फ्रेंडली भी हैं और हाईजिनिक भी. मैंने इन्हें सर्व करने के लिए शॉट (छोटे ग्लास ) का प्रयोग किया है आप किसी भी प्रकार के ग्लास का प्रयोग कर सकतीं हैं.

1.पान शॉट

सामग्री

  1.    8-10 पान के ताजे पत्ते   
  2.   1/2 टीस्पून साबुत सौंफ                       
  3. 1 टीस्पून गुलकंद                         
  4. 2 टेबलस्पून पिसी शकर                       
  5. 1/4 टीस्पून इलायची पाउडर                   
  6.  1/2 लीटर ठंडा दूध                         
  7. 2 टेबलस्पून कुटी बर्फ                         
  8.  1 टीस्पून  बारीक कटे पिस्ता                  

विधि

पान के पत्तों को धोकर साफ़ कर लें. अब इन्हें 1 टेबलस्पून पानी, शकर, गुलकंद, इलायची पाउडर और सौंफ के साथ मिक्सी में अच्छी तरह पीस लें. पिसे मिश्रण में ठंडा दूध मिलाकर मिक्सी में ब्लेंड करें. ग्लास में कुटी बर्फ डालकर ब्लेंड किया दूध डालें और कटे पिस्ता से गार्निश करके सर्व करें.

2. खस शॉट

कितने लोगों के लिए  – 4

बनने में लगने वाला समय –   30 मिनट

मील टाइप –  वेज

सामग्री

  1. 1 टेबलस्पून खसखस के दाने                   
  2.   8 बादाम                       
  3. 8 काजू                           
  4. 4 साबुत इलायची                   
  5. 50 ग्राम शकर                             
  6. 1 लीटर दूध                         
  7. 1 कप कुटी बर्फ                          

विधि

खसखस के दाने, बादाम, काजू और इलायची को 4-5 घंटे के लिए पानी में भिगो कर मिक्सी में पीस लें. अब दूध को गैस पर उबलने रखें जब दूध में उबाल आ जाये तो पिसा खस का मिश्रण डालकर 2-3 उबाल ले लें. अब इस दूध को ठंडा होने दें. जब दूध बिल्कुल ठंडा हो जाये तो 2 बूँद हरा रंग डालकर मिक्सी में ब्लेंड कर लें. अब सर्विंग ग्लास में कुटी बर्फ डालकर ब्लेंड किया दूध डालकर सर्व करें.

3. जामुन शॉट

कितने लोगों के लिए –  6

बनने में लगने वाला समय –  20 मिनट

मील टाइप   –    वेज

सामग्री

  1.    250 ग्राम जामुन                         
  2. 50 ग्राम शकर                           
  3. 1/2 टीस्पून काला नमक               
  4. 1/4 टीस्पून काली मिर्च पाउडर         

विधि

जामुन को अच्छी तरह धोकर सूती कपड़े पर फैलाकर सुखा लें. अब शकर डालकर हाथों से मसलकर बीज और गूदे को अलग कर दें. चम्मच से बीजों को अलग कर दें और 1 ग्लास पानी, काला नमक और काली मिर्च डालकर ब्लेंडर से ब्लेंड कर लें. छलनी से छानकर ग्लास में कुटी बर्फ डालकर सर्व करें.

Summer Special: झुर्रियां हटाने के 5 टिप्स

वैसे तो त्वचा में झुर्रियां उम्र के बढ़ने का एक संकेत होती हैं, लेकिन कई बार ऐक्सप्रैसिव फेस, डिहाइड्रेटेड स्किन या अधिक सन ऐक्सपोजर से कम उम्र में भी झुर्रियां दिखाई पड़ सकती हैं. इस का सब से अधिक असर चेहरे और हाथों की स्किन पर पड़ता है. उम्र को रोका नहीं जा सकता, लेकिन त्वचा की नियमित देखभाल से इस के असर को कम अवश्य किया जा सकता है.

इस बारे में क्यूटिस स्किन क्लीनिक की डर्मैटोलौजिस्ट डा. अप्रतिम गोयल कहती हैं कि त्वचा का हमेशा ध्यान रखना चाहिए और यह कम उम्र से ही रखना चाहिए.

झुर्रियां पड़ने की खास वजह

डा. अप्रतिम कहती हैं कि उम्र के बढ़ने के साथ त्वचा पतली और रूखी हो जाती है. इस से उस का लचीलापन कम हो जाता है और वह धीरेधीरे डैमेज होने लगती है और खुद रिकवर नहीं कर पाती. इस से झुर्रियां दिखाई पड़ने लगती हैं. आजकल कम उम्र में झुर्रियां दिखाई पड़ने की वजह व्यस्त जीवनशैली कम नींद, तनाव और आहार संबंधी लापरवाही है, जिसे समय रहते ठीक किया जा सकता है.

इस के अलावा जो लोग धूप में लंबे समय तक काम करते हैं, उन में भी झुर्रियां जल्दी दिखती हैं क्योंकि सूर्य की किरणों से त्वचा में मौजूद कोलोजन और इलास्टिक फाइबर अलग होने लगते हैं जबकि ये दोनों मिल कर ही कोशिकाओं को बांधे रखते हैं, जिस से त्वचा कसी हुई नजर आती है. इस परत के टूटने से स्किन कमजोर हो जाती है और झुर्रियां पड़ने लगती हैं.

त्वचा को तरोताजा रखने के 5 आसान टिप्स निम्न हैं:

पर्याप्त मात्रा में पानी का करें इनटेक

रोज सही मात्रा में पानी के इनटेक से त्वचा हाइड्रेटेड रहती है, जिस से त्वचा पर सूखे की वजह से पतली धारियां नहीं बनती हैं. यह आसान, अफोर्डेबल और साधारण तरीका है, जिस से स्किन को तरोताजा होने से कोई रोक नहीं सकता.

विटामिन सी और ए रिच फलों और सब्जियों का करें सेवन: औरेंज, स्वीटलाइम, लैमन, अमरूद आदि कोलोजन को समन्वय करने में मदद करते हैं, जिस से स्किन की चमक और टैक्स्चर इंप्रूव होता है, जबकि विटामिन ए रिच फल और सब्जियां मसलन गाजर, पपीता, हरी सब्जियां आदि सभी रैटिनौल के नैचुरल सोर्सेज हैं, जो स्किन टैक्स्चर को ही नहीं बल्कि स्किन टोन को भी इंप्रूव करते हैं.

सन ऐक्सपोजर को करें लिमिट

अधिक समय तक धूप में रहने से बचना जरूरी है क्योंकि बारबार सूर्य की किरणों से कोलोजन के डैमेज होने पर स्किन का ऐजिंग प्रोसैस जल्दी शुरू हो जाता है और झुर्रियां दिखाई पड़ने लगती हैं. बाहर निकलते वक्त त्वचा की रक्षा के लिए स्कार्फ, और सनस्क्रीन अवश्य लगाएं.

मैजिकल पल्प का करें प्रयोग

ऐलोवेरा पल्प को ओरली लेने या फेसपैक के रूप में प्रयोग करने पर स्किन हमेशा हाइड्रेटेड और स्मूद रहती है, जिस से फ्रैश लुक बना रहता है. ‘बनाना मास्क’ बनाने के लिए पके केले को मैश कर लगाने से भी त्वचा स्मूद होती है क्योंकि यह फेसपैक मौइस्चराइजर का काम करता है. औरेंज पल्प भी विटामिन सी रिच होता है, जो स्किन को ग्लो करने और रिजुविनेट करने में मदद करता है.

औयल और मसाज को न करें अनदेखा

नारियल और आमंड औयल दोनों ड्राई स्किन के लिए बहुत अच्छे माने जाते हैं. ये स्किन के क्रैक्स को भर कर त्वचा में फाइनलाइंस और झुर्रियां बनने से रोकते हैं. नियमित चेहरे की जैंटल मसाज से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है, जिस से स्किन रिजुविनेट होती है. इस प्रकार औयल और मसाज के फायदे तो अनेक होते हैं, लेकिन ऐक्ने संभावित स्किन वालों के लिए औयल और मसाज को अवौइड करना चाहिए.

मेरे आईब्रोज बहुत बुशी हैं, मुझे थ्रैडिंग कराते वक्त बहुत दर्द होता है, बताएं क्या करूं?

सवाल

मेरे आईब्रोज बहुत बुशी हैं. मुझे थ्रैडिंग कराते वक्त बहुत दर्द होता है. बताएं क्या करूं?

जवाब 

आप जहां भी आईब्रोज कराने जाती हैं उन्हें बोलें कि वे आईब्रोज करने से पहले आप की आईब्रोज पर थोड़ी सी बर्फ रगड़ दें. इस से आईब्रोज थोड़ी सुन्न हो जाती हैं और दर्द नहीं होता. वे चाहें तो थ्रैड को भी गीला कर सकती हैं जिस से थ्रैडिंग करने से दर्द नहीं होता. थ्रैडिंग करते वक्त आप अपनी स्किन को अच्छे से स्ट्रैच कर के रखेंगी तो भी दर्द कम होता है. आईब्रोज को स्ट्रैच कराने के लिए किसी और की हैल्प  ली जा सकती हैजिस से आईब्रोज ज्यादा स्ट्रैच हो जाती हैं और दर्द कम होता है. चाहें तो लेजर से भी आईब्रोज को हमेशा के लिए शेप दिलवा सकती हैं.

 

कड़वी गोली: बरामदे का पिछला कोना गंदा देख कर क्यों बड़बड़ा रही थी मीना

बरामदे का पिछला कोना गंदा देख कर मीना बड़बड़ा रही है. दोष किसी इनसान का नहीं, एक छोटे से पंछी का है जिसे पंजाब में ‘घुग्गी’ कहते हैं. किस्सा इतना सा है कि सामने कोने में ‘घुग्गी’ के एक जोड़े ने अपना छोटा सा घोंसला बना रखा है जिस में उन के कुछ नवजात बच्चे रहते  हैं. अभी उन्हें अपने मांबाप की सुरक्षा की बेहद जरूरत है.

नरमादा दोनों किसी को भी उस कोने में नहीं जाने देना चाहते क्योंकि उन्हें लगता है कि हम उन के बच्चे चुरा लेंगे या उन्हें कोई नुकसान पहुंचाएंगे. काम वाली बाई सफाई करने गई तो चोंच से उस के सिर के बाल ही खींच ले गए. इस के बाद से उस ने तो उधर जाना ही छोड़ दिया. मीना घूंघट निकाल कर उधर गई तो उस के सिर पर घुग्गी के जोड़े ने चोंच मार दी.

‘‘इन्हें किसी भी तरह यहां से हटाइए,’’ मीना गुस्से में बोली, ‘‘अजीब गुंडागर्दी है. अपने ही घर में इन्होंने हमारा चलनाफिरना हराम कर रखा है.’’

‘‘मीना, इन की हिम्मत और ममता तो देखो, हमारा घर इन नन्हेनन्हे पंछियों के शब्दकोष में कहां है. यह तो बस, कितनी मेहनत से अपने बच्चे पाल रहे हैं. यहां तक कि रात को भी सोते नहीं. याद है, उस रोज रात के 12 बजे जब मैं स्कूटर रखने उधर गया था तो भी दोनों मेरे बाल खींच ले गए थे.’’

रात 12 बजे का जिक्र आया तो याद आया कि मीना को महेश के बारे में बताना तो मैं भूल ही गया. महेश का फोन न मिल पाने के कारण हम पतिपत्नी परेशान जो थे.

‘‘सुनो मीना, महेश का फोन तो कटा पड़ा है. बच्चों ने बिल ही जमा नहीं कराया. कहते हैं सब के पास मोबाइल है तो इस लैंडलाइन की क्या जरूरत है…’’

बुरी तरह चौंक गई थी मीना. ‘‘मोबाइल तो बच्चों के पास है न, महेश अपनी बातचीत कैसे करेंगे? वैसे भी महेश आजकल अपनेआप में ही सिमटते जा रहे हैं. पिछले 2 माह से दोपहर का खाना भी दफ्तर के बाहर वाले ढाबे से खा रहे हैं क्योंकि सुबहसुबह खाना  बना कर देना बहुओं के बस का नहीं है.’’

मीना के बदलते तेवर देख कर मैं ने गरदन झुका ली. 18 साल पहले जब महेश की पत्नी का देहांत हुआ था तब दोनों बेटे छोटे थे, उम्र रही होगी 8 और 10 साल. आज दोनों अच्छे पद पर कार्यरत हैं, दोनों का अपनाअपना परिवार है. बस, महेश ही लावारिस से हैं, कभी इधर तो कभी उधर.

एक दिन मैं ने पूछा था, ‘तुम अपनी जरूरतों के बारे में कब सोचोगे, महेश?’

‘मेरी जरूरतें अब हैं ही कितनी?’

‘क्यों? जिंदा हो न अभी, सांस चल रही है न?’

‘चल तो रही है, अब मेरे चाहने से बंद भी तो नहीं होती कम्बख्त.’

यह सुन कर मैं अवाक् रह गया था. बहुत मेहनत से पाला है महेश ने अपनी संतान को. कभी अच्छा नहीं पहना, अच्छा नहीं खाया. बस, जो कमाया बच्चों पर लगा दिया. पत्नी नहीं थी न, क्या करता, मां भी बनता रहा बच्चों की और पिता भी.

माना, ममता के बिना संतान पाली नहीं जा सकती, फिर भी एक सीमा तो होनी चाहिए न, हर रिश्ते में एक मर्यादा, एक उचित तालमेल होना चाहिए. उन का सम्मान न हो तो दर्द होगा ही.

महेश ने अपना फोन कटा ही रहने दिया. इस पर मुझे और भी गुस्सा आता कि बच्चों को कुछ कहता क्यों नहीं. फोन पर तो बात हो नहीं पा रही थी. 2 दिन सैर पर भी नहीं आया तो मैं उस के घर ही चला गया. पता चला साहब बीमार हैं. इस हालत में अकेला घर पर पड़ा था क्योंकि दोनों बहुएं अपनेअपने मायके गई थीं.

‘‘हर शनिवार उन का रात का खाना अपनेअपने मायके में होता है.’’

‘‘तो तुम कहां खाते हो? बीमारी में भी तुम्हें उन की ही वकालत सूझ रही है. फोन ठीक होता तो कम से कम मुझे ही बता देते, मैं ही मीना से खिचड़ी बनवा लाता…’’

महेश चुप रहा और उस का पालतू कुत्ता सूं सूं करता उस के पैरों के पास बैठा रहा.

‘‘यार, इसे फ्रिज में से निकाल कर डबलरोटी ही डाल देना,’’ महेश बोला, ‘‘बेचारा मेरी तरह भूखा है. मुझ से खाया नहीं जा रहा और इसे किसी ने कुछ दिया नहीं.’’

‘‘क्यों? अब यह भी फालतू हो गया है क्या?’’ मैं व्यंग्य में बोल पड़ा, ‘‘10 साल पहले जब लाए थे तब तो आप लोगों को मेरा इसे कुत्ता कहना भी बुरा लगता था, तब यह आप का सिल्की था और आज इस का भी रेशम उतर गया लगता है.’’

‘‘हो गए होंगे इस के भी दिन पूरे,’’ महेश उदास मन से बोला, ‘‘कुत्ते की उम्र 10 साल से ज्यादा तो नहीं होती न भाई.’’

‘‘तुम अपनी उम्र का बताओ महेश, तुम्हें तो अभी 20-25 साल और जीना है. जीना कब शुरू करोगे, इस बारे में कुछ सोचा है? इस तरह तो अपने प्रति जो तुम्हारा रवैया है उस से तुम जल्दी ही मर जाओगे.’’

कभीकभी मुझे यह सोच कर हैरानी होती है कि महेश किस मिट्टी का बना है. उसे कभी कोई तकलीफ भी होती है या नहीं. जब पत्नी चल बसी तब नाते- रिश्तेदारों ने बहुत समझाया था कि दूसरी शादी कर लो.

तब महेश का सीधा सपाट उत्तर होता था, ‘मैं अपने बच्चों को रुलाना नहीं चाहता. 2 बच्चे हैं, शादी कर ली तो आने वाली पत्नी अपनी संतान भी चाहेगी और मैं 2 से ज्यादा बच्चे नहीं चाहता. इसलिए आप सब मुझे माफ कर दीजिए.’

महेश का यह सीधा सपाट उत्तर था. हमारे भी 2 बच्चे थे. मीना ने साथ दिया. इस सत्य से मैं इनकार नहीं कर सकता क्योंकि यदि वह न चाहती तो शायद मैं भी चाह कर कुछ नहीं कर पाता.

एक तरह से महेश, मैं और मीना, तीनों ने मिल कर 4 बच्चों को पाला. महेश के बच्चे कबकब मीना के भी बच्चे रहे समझ पाना मुश्किल था. मैं यह भी नहीं कहता महेश के बच्चे उस से प्यार नहीं करते, प्यार कहीं सो सा गया है, कहीं दब सा गया है कुछ ऐसा लगता है. सदा पिता से लेतेलेते  वे यह भूल ही गए हैं कि उन्हें पिता को कुछ देना भी है. छोटे बेटे ने पिता के नाम पर गाड़ी खरीदी जिस की किश्त पिता चुकाता है और बड़े ने पिता के नाम पर घर खरीदा है जिस की किश्त भी पिता की तनख्वाह से ही जाती है.

‘‘कुल मिला कर 2 हजार रुपए तुम्हारे हाथ आते हैं. उस में तुम्हारा दोपहर का खाना, कपड़ा, दवा, टेलीफोन का बिल कैसे पूरा होगा, क्या बच्चे यह सब- कुछ सोचते हैं? अगर नहीं सोचते तो उन्हें सोचना पड़ेगा, महेश.

‘‘यह कुत्ता भी आज तुम्हारे परिवार में फालतू है क्योंकि घर में तुम्हारे पोतेपोतियां हैं जो एक जानवर के साथ असुरक्षित हैं. कल कुत्ता तुम्हारी जरूरत था क्योंकि बच्चे अकेले थे. दोनों बच्चे तुम्हारे साथ किस बदतमीजी से पेश आते हैं तुम्हें पता ही नहीं चलता, कोई भी बाहर का व्यक्ति झट समझ जाता है कि तुम्हारे बच्चे तुम्हारी इज्जत नहीं कर रहे और तुम कबूतर की तरह आंखें बंद किए बैठे हो. महेश, अपनी सुधि लेना सीखो. याद रखो, मां भी बच्चे को बिना रोए दूध नहीं पिलाती. तकलीफ हो तो रोना भी पड़ता है और रोना भी चाहिए. इन्हें वह भाषा समझाओ जो समझ में आए.’’

‘‘मैं क्या करूं? कभी अपने लिए कुछ मांगा ही नहीं.’’

‘‘तुम क्यों मांगो, अभी तो 20 हजार हर महीने तुम इन पर खर्च कर रहे हो. अभी तो देने वालों की फेहरिस्त में तुम्हारा नाम आता है. तुम्हें अपने लिए चाहिए ही क्या, समय पर दो वक्त का खाना और धुले हुए साफ कपड़े. जरा सी इज्जत और जरा सा प्यार. बदले में अपना सब दे चुके हो बच्चों को और दे रहे हो.’’

‘‘अब कुछ नहीं हो सकता मेरा.’’

‘‘चाहो तो सब हो सकता है. तुम जरा सी हिम्मत तो जुटाओ.’’

वास्तव में उस दिन महेश बेचैन था और उस की पीड़ा हम भी पूरी ईमानदारी से सह रहे थे. बिना कुछ भी कहे पलपल हम महेश के साथ ही तो थे. एक अधिकार था मीना के पास भी, मां की तरह ममत्व लुटाया था मीना ने भी बच्चों पर.

‘‘जी चाहता है कान मरोड़ दूं दोनों के,’’ मीना ने गुस्सा होते हुए कहा, ‘‘आज किसी लायक हो गए तो पिता की जरूरतों का अर्थ ही नहीं रहा उन के मन में.’’

‘‘पहल महेश को करने दो मीना, यह उस की अपनी जंग है.’’

‘‘इस में जंग वाली क्या बात हुई?’’

‘‘जंग का अर्थ सिर्फ 2 देशों के बीच लड़ाई ही तो नहीं होता, विचारों के बीच जब तालमेल न हो तब भी तो मन के भीतर एक घमासान चलता रहता है न. उस के घर का मसला है, उसी को निबटने दो.’’

किसी तरह मीना को समझा- बुझा कर मैं ने शांत तो कर दिया लेकिन खुद असहज ही रहा. अकसर सोचता, महेश बेचारे ने गलती भी तो कोई  नहीं की. एक अच्छा पिता और एक समर्पित पति बनना तो कोई अपराध नहीं है. महेश ने जब दूसरी शादी न करने का फैसला लिया था तब उस का वह फैसला उचित था. आज यदि वह अकेला है तो हम सोचते हैं कि उस का निर्णय गलत था, तब शादी कर लेता तो कम से कम आज अकेला तो न होता.

अकसर जीवन में ऐसा ही होता है. कल का सत्य, आज का सत्य रहता ही नहीं. उस पल की जरूरत वह थी, आज की जरूरत यह है. हम कभी कल के फीते से आज को तो नहीं नाप सकते न.

संयोग ऐसा बना कि कुछ दिन बाद, सुबहसुबह मैं उठा तो पाया कि बरामदे का वह कोना साफसुथरा है जहां घुग्गी ने घोंसला बना रखा था. बाई पोंछा लगा रही थी.

‘‘बच्चे उड़ गए साहब,’’ बाई ने बताया, ‘‘वह देखिए, उधर…’’

2 छोटेछोटे चिडि़या के आकार के नन्हेनन्हे जीव इधरउधर फुदक रहे थे और नरमादा उन की खुली चोंच में दाना डाल रहे थे.

‘‘अरे मीना, आओ तो, देखो न कितने प्यारे बच्चे हैं. जरा भाग कर आना.’’

मीना आई और सहसा कुछ ऐसा कह गई जो मेरे अंतरमन को चुभ सा गया.

‘‘हम इनसानों से तो यह परिंदे अच्छे, देखना 4 दिन बाद जब बच्चों को खुद दाना चुगना आ जाएगा तो यह नरमादा इन्हें आजाद छोड़ देंगे. हमारी तरह यह नहीं चाहेंगे कि ये सदा हम से ही चिपके रहें. हम सब की यही तो त्रासदी है कि हम चाहते हैं कि बच्चे सदा हमारी उंगली ही पकड़ कर चलें. हम सोचना ही नहीं चाहते कि बच्चों से अपना हाथ छुड़ा लें.’’

‘‘क्योंकि इनसान को बुढ़ापे में संतान की जरूरत पड़ती है जो इन पक्षियों को शायद नहीं पड़ती. मीना, इनसान सामाजिक प्राणी है और वह परिवार से, समाज से जुड़ कर जीना चाहता है.’’

मीना बड़बड़ा कर वहीं धम से बैठ गई. मैं मीना को पिछले 30 सालों से जानता हूं. अन्याय साथ वाले घर में होता हो तो अपने घर बैठे इस का खून उबलता रहता है. महेश के बारे में ही सोच रही होगी. एक बेनाम सा रिश्ता है मीना का भी महेश के साथ. वह मेरा मित्र है और यह मेरी पत्नी, दोनों का रिश्ता भला क्या बनता है? कुछ भी तो नहीं, लेकिन यह भी एक सत्य है कि मीना महेश के लिए बहुत कुछ है, भाभी, बहन, मित्र और कभीकभी मां भी.

‘‘महेश को अपने घर ला रही हूं मैं, ऊपर का कमरा खाली करा कर सब साफसफाई करा दी है. बहुत हो चुका खेलतमाशा…बेशर्मी की भी हद होती है. अस्पताल से सीधे यहीं ला रही हूं, सुना आप ने…’’

मुझ में काटो तो खून नहीं रहा. अस्पताल से सीधा? तो क्या महेश अस्पताल में है? याद आया…मैं तो 2 दिन से यहां था ही नहीं, कार्यालय के काम से दिल्ली गया था. देर रात लौटा था और अब सुबहसुबह यह सब. पता चला महेश के शरीर में शुगर की बहुत कमी हो गई थी जिस वजह से उसे कार्यालय में ही चक्कर आ गया था और दफ्तर के लोगों उसे अस्पताल पहुंचा दिया था.

‘‘नहीं मीना, यह हमारी सीमा में नहीं आता. घर तो उस का वही है, कोई बात नहीं, आज देखते हैं अस्पताल से तो वह अपने ही घर जाएगा.’’

उस दिन मैं दफ्तर से आधे दिन का अवकाश ले कर उसे अस्पताल से उस के घर ले गया. दोनों बेटे जल्दी में थे और बहुएं बच्चों में व्यस्त थीं. सहसा तभी उन का कुत्ता छोटे बच्चे पर झपट पड़ा, शायद वह भूखा था. उस के हाथ का बिस्कुट छिटक कर परे जा गिरा. महेश के पीछे उस ने 2 दिन कुछ खाया नहीं होगा क्योंकि महेश के बिना वह कुछ भी खाता नहीं. महेश को देखते ही उस की भूख जाग उठी और बिस्कुट लपक लिया.

‘‘पापा, आप ने इसे ढंग से पाला नहीं. न कोई टे्रनिंग दी है न तमीज सिखाई है. 2 दिन से लगातार भौंकभौंक कर हम सब का दिमाग खा गया है. न खाता है न पीता है और हमारे पास इस के लिए समय नहीं है.’’

‘‘समय तो आप के पास अपने बाप के लिए भी नहीं है, कुत्ता तो बहुत दूर की चीज है बेटे. रही बात तमीज की तो वह महेश भैया ने तुम दोनों को भी बहुत सिखाई थी. यह तो जानवर है. बेचारा मालिक के वियोग में भूखा रह सकता है या भौंक सकता है फिर भी दुम हिला कर स्वागत तो कर सकता है. तुम से तो वह भी नहीं हुआ…जिन के पास जबान भी है और हाथपैर भी. घंटे भर से हम देख रहे हैं मुझे तो तुम दोनों में से कोई अपने पिता के लिए एक कप चाय लाता भी दिखाई नहीं दिया.’’

मीना बोली तो बड़ा बेटा अजय स्तब्ध रह गया. कुछ कहता तभी टोक दिया मीना ने, ‘‘तुम्हारे पास समय नहीं कोई बात नहीं. महेश नौकर रख कर अपना गुजारा कर लेंगे. कम से कम उन की तनख्वाह तो तुम उन के पास छोड़ दो…बाप की तनख्वाह तो तुम दोनों भाइयों ने आधीआधी बांट ली, कभी यह भी सोचा है कि वह बचे हुए 2 हजार रुपयों में कैसे खाना खाते हैं? दवा भी ले पाते हैं कि नहीं? फोन तक कटवा दिया उन का, क्यों? क्या उन का कोई अपना जानने वाला नहीं जिस के साथ वह सुखदुख बांट सकें. क्या जीते जी मर जाए तुम्हारा बाप?’’

मीना की ऊंची आवाज सुन छोटा बेटा विजय और उस की पत्नी भी अपने कमरे से बाहर चले आए.

‘‘तुम दोनों की मां आज जिंदा होतीं तो अपने पति की यह दुर्गति नहीं होने देतीं. हम क्या करें? हमारी सीमा तो सीमित है न बेटे. तुम मेरे बच्चे होते तो कान मरोड़ कर पूछती, लेकिन क्या करूं मैं तुम्हारी मां नहीं हूं न.’’

रोने लगी थी मीना. महेश और उस के परिवार के लिए अकसर रो दिया करती है. कभी उन की खुशी में कभी उन की पीड़ा में.

‘‘कभी कपड़े देखे हैं विजय तुम ने अपने पापा के. हजारों रुपए अपनी कमीजों पर तुम खर्च कर देते हो. कभी देखा है इतनी गरमी में उन के पास कोई ढंग की सूती कमीज भी है…

‘‘आफिस के सामने वाले ढाबे पर दोपहर का खाना खाते हैं. क्या तुम दोनों की बीवियां वक्त पर ससुर को टिफिन नहीं दे सकतीं. अरे, सुबह नहीं तो कम से कम दोपहर तक पहुंचाने का इंतजाम ही करवा दो.

‘‘बहुएं तो दूसरे घरों से आई हैं. हो सकता है इन के घर में मांबाप का ऐसा ही आदर होता हो. कम से कम तुम तो अपने पिता की कद्र करना अपनी पत्नियों को सिखाओ. क्या मैं ने यही संस्कार दिए थे तुम लोगों को? ऐसा ही सिखाया था न?’’

दोनों भाई चुप थे और उन की बीवियां तटस्थ थीं. अजयविजय आगे कुछ कहते कि मीना ने पुन: कहा, ‘‘बेटा, अपने बाप को लावारिस मत समझना. अभी तुम जैसे 2-4 वह और भी पाल सकते हैं. नहीं संभाले जाते तो यह घर छोड़ कर चले जाओ, अजय तुम अपने फ्लैट में और विजय तुम किराए के घर में. अपनीअपनी किस्तें खुद दो वरना आज ही महेश फ्लैट और गाड़ी बेचने को तैयार हैं…इन्हीं के नाम हैं न दोनों चीजें.’’

महेश चुपचाप आंखें मूंदे पड़े थे. जाहिर था उसी के शब्द मीना के होंठों से फूट रहे थे.

‘‘मीना, अब बस भी करो. आओ, चलें.’’

आतेआते दोनों बच्चों का कंधा थपक दिया. मुझ से आंखें मिलीं तो ऐसा लगा मानो वही पुराने अजयविजय सामने खड़े हों जो स्कूल में की गई किसी शरारत पर टीचर की सजा से बचने के लिए मेरे या मीना के पास चले आते थे. आंखें मूंद कर मैं ने आश्वासन दिया.

‘‘कोई बात नहीं बेटा, जब जागे तभी सवेरा. संभालो अपने पापा को…’’

डबडबा गई थीं दोनों की आंखें. मानो अपनी भूल का एहसास पहली बार उन्हें हुआ हो. मैं कहता था न कि हमारे बच्चे संस्कारहीन नहीं हैं. हां, जवानी के जोश में बस जरा सा यह सत्य भूल गए हैं कि उन्हें जवान बनाने में इसी बुढ़ापे का खून और पसीना लगा है और यही बुढ़ापा बांहें पसारे उन का भी इंतजार कर रहा है.

कहा था न मैं ने कि उन का प्यार कहीं सो सा गया है. उसी प्यार को जरा सा झिंझोड़ कर जगा दिया था मीना ने. सच ही कहा था मैं ने, रो पड़े थे दोनों और साथसाथ मीना भी. जरा सा चैन आ गया मन को, अंतत: सब अच्छा ही होगा, यह सोच मैं ने और मीना ने उन के घर से विदा ली. क्या करते हम, कभीकभी मर्ज को ठीक करने के लिए मरीज को कड़वी गोली भी देनी पड़ती है.

ढाल: सलमा की भूल का क्या था अंजाम

लेखक- इनायतबानो कायमखानी

अभी पहला पीरियड ही शुरू हुआ था कि चपरासिन आ गई. उस ने एक परची दी, जिसे पढ़ने के बाद अध्यापिकाजी ने एक छात्रा से कहा, ‘‘सलमा, खड़ी हो जाओ, तुम्हें मुख्याध्यापिकाजी से उन के कार्यालय में अभी मिलना है. तुम जा सकती हो.’’

सलमा का दिल धड़क उठा, ‘मुख्याध्यापिका ने मुझे क्यों बुलाया है? बहुत सख्त औरत है वह. लड़कियों के प्रति कभी भी नरम नहीं रही. बड़ी नकचढ़ी और मुंहफट है. जरूर कोई गंभीर बात है. वह जिसे तलब करती है, उस की शामत आई ही समझो.’

‘तब? कल दोपहर बाद मैं क्लास में नहीं थी, क्या उसे पता लग गया? कक्षाध्यापिका ने शिकायत कर दी होगी. मगर वह भी तो कल आकस्मिक छुट्टी पर थीं. फिर?’

सामने खड़ी सलमा को मुख्या- ध्यापिका ने गरदन उठा कर देखा. फिर चश्मा उतार कर उसे साड़ी के पल्लू से पोंछा और मेज पर बिछे शीशे पर रख दिया.

‘‘हूं, तुम कल कहां थीं? मेरा मतलब है कल दोपहर के बाद?’’ इस सवाल के साथ ही मुख्याध्यापिका का चेहरा तमतमा गया. बिना चश्मे के हमेशा लाल रहने वाली आंखें और लाल हो गईं. वह चश्मा लगा कर फिर से गुर्राईं, ‘‘बोलो, कहां थीं?’’

‘‘जी,’’ सलमा की घिग्घी बंध गई. वह चाह कर भी बोल न सकी.

‘‘तुम एक लड़के के साथ सिनेमा देखने गई थीं. कितने दिन हो गए

तुम्हें हमारी आंखों में यों धूल झोंकते हुए?’’

मुख्याध्यापिका ने कुरसी पर पहलू बदल कर जो डांट पिलाई तो सलमा की आंखों में आंसू भर आए. उस का सिर झुक गया. उसे लगा कि उस की टांगें बुरी तरह कांप रही हैं.

बेशक वह सिनेमा देखने गई थी. हबीब उसे बहका कर ले गया था, वरना वह कभी इधरउधर नहीं जाती थी. अम्मी से बिना पूछे वह जो भी काम करती है, उलटा हो जाता है. उन से सलाह कर के चली जाती तो क्या बिगड़ जाता? महीने, 2 महीने में वह फिल्म देख आए तो अम्मी इनकार नहीं करतीं. पर उस ने तो हबीब को अपना हमदर्द माना. अब हो रही है न छीछालेदर, गधा कहीं का. खुद तो इस वक्त अपनी कक्षा में आराम से पढ़ रहा होगा, जबकि उस की खिंचाई हो रही है. तौबा, अब आगे यह जाने क्या करेगी.

चलो, दोचार चांटे मार ले. मगर मारेगी नहीं. यह हर काम लिखित में करती है. हर गलती पर अभिभावकों को शिकायत भेज देती है. और अगर अब्बा को कुछ भेज दिया तो उस की पढ़ाई ही छूटी समझो. अब्बा का गुस्सा इस मुख्याध्यापिका से उन्नीस नहीं इक्कीस ही है.

‘‘तुम्हारी कक्षाध्यापिका ने तुम्हें कल सिनेमाघर में एक लड़के के साथ देखा था. इस छोटी सी उम्र में भी क्या कारनामे हैं तुम्हारे. मैं कतई माफ नहीं करूंगी. यह लो, ‘गोपनीय पत्र’ है. खोलना नहीं. अपने वालिद साहब को दे देना. जाओ,’’ मुख्याध्यापिका ने उसे लिफाफा थमा दिया.

सलमा के चेहरे का रंग उड़ गया. उस ने उमड़ आए आंसुओं को पोंछा. फिर संभलते हुए उस गोपनीय पत्र को अपनी कापी में दबा जैसेतैसे बाहर निकल आई.

पूरे रास्ते सलमा के दिल में हलचल मची रही. यदि किसी लड़के के साथ सिनेमा जाना इतना बड़ा गुनाह है तो हबीब उसे ले कर ही क्यों गया? ये लड़के कैसे घुन्ने होते हैं, जो भावुक लड़कियों को मुसीबत में डाल देते हैं.

अब अब्बा जरूर तेजतेज बोलेंगे और कबीले वाली बड़ीबूढि़यां सुनेंगी तो तिल का ताड़ बनाएंगी. उन्हें किसी लड़की का ऊंची पढ़ाई पढ़ना कब गवारा है. बात फिर मसजिद तक भी जाएगी और फिर मौलवी खफा होगा.

जब उस ने हाईस्कूल में दाखिला लिया था तो उसी बूढ़े मौलवी ने अब्बा पर ताने कसे थे. वह तो भला हो अम्मी का, जो बात संभाल ली थी. लेकिन अब अम्मी भी क्या करेंगी?

सलमा पछताने लगी कि अम्मी हर बार उस की गलती को संभालती हैं, जबकि वह फिर कोई न कोई भूल कर बैठती है. वह मांबेटी का व्यवहार निभने वाली बात तो नहीं है. सहयोग तो दोनों ओर से समान होना चाहिए. उसे अपने साथ बीती घटनाएं याद आने लगी थीं.

2 साल पहले एक दिन अब्बा ने छूटते ही कहा था, ‘सुनो, सल्लो अब 13 की हो गई, इस पर परदा लाजिम है.’

‘हां, हां, मैं ने इस के लिए नकाब बनवा लिया है,’ अम्मी ने एक बुरका ला कर अब्बा की गोद में डाल दिया था, ‘और सुनो, अब तो हमारी सल्लो नमाज भी पढ़ने लगी है.’

‘वाह भई, एकसाथ 2-2 बंदिशें हमारी बेटी पर न लादो,’ अब्बा बहुत खुश हो रहे थे.

‘देख लीजिए. फिर एक बंदिश रखनी है तो क्या रखें, क्या छोड़ें?’

‘नमाज, यह जरूरी है. परदा तो आंख का होता है?’

और अम्मी की चाल कामयाब रही थी. नमाज तो ‘दीनदार’ होने और दकियानूसी समाज में निभाने के लिए वैसे भी पढ़नी ही थी. उस का काम बन गया.

फिर उस का हाईस्कूल में आराम से दाखिला हो गया था. बातें बनाने वालियां देखती ही रह गई थीं. अब्बा ने किसी की कोई परवा नहीं की थी.

सलमा को दूसरी घटना याद आई. वह बड़ी ही खराब बात थी. एक लड़के ने उस के नाम पत्र भेज दिया था. यह एक प्रेमपत्र था. अम्मी की हिदायत थी, ‘हर बात मुझ से सलाह ले कर करना. मैं तुम्हारी हमदर्द हूं. बेशक बेटी का किरदार मां की शख्सियत से जुड़ा होता है.’

मैं ने खत को देखा तो पसीने छूटने लगे. फिर हिम्मत कर के वह पत्र मैं ने अम्मी के सामने रख दिया. अम्मी ने दिल खोल कर बातें कीं. मेरा दिल टटोला और फिर खत लिखने वाले महमूद को घर बुला कर वह खबर ली कि उसे तौबा करते ही बनी.

मां ने उस घटना के बाद कहा, ‘सलमा, मुसलिम समाज बड़ा तंगदिल और दकियानूसी है. पढ़ने वाली लड़की को खूब खबरदार रहना होता है.’

सलमा ने पूछा, ‘इतना खबरदार किस वास्ते, अम्मी?’

वह हंस दी थीं, ‘केवल इस वास्ते कि कठमुल्लाओं को कोई मौका न मिले. कहीं जरा भी कोई ऐसीवैसी अफवाह उड़ गई तो वे अफवाह उदाहरण देदे कर दूसरी तरक्की पसंद, जहीन और जरूरतमंद लड़कियों की राहों में रोड़े अटका सकते हैं.’

‘आप ठीक कहती हैं, अम्मी,’ और सलमा ने पहली बार महसूस किया कि उस पर कितनी जिम्मेदारियां हैं.

पर 2-3 साल बाद ही उस से वह भूल हो गई. अब उस अम्मी को, जो उस की परम सहेली भी थीं, वह क्या मुंह दिखाएगी? फिर अब्बा को तो समझाना ही मुश्किल होगा. इस बार किसी तरह अम्मी बात संभाल भी लेंगी तो वह आइंदा पूरी तरह सतर्क रहेगी.

सलमा ने अपनी अम्मी रमजानी को पूरी बात बता दी थी. सुन कर वह बहुत बिगड़ीं, ‘‘सुना, इस गोपनीय पत्र में क्या लिखा है?’’

सलमा ने लिफाफा खोल कर पढ़ सुनाया.

रमजानी बहुत बिगड़ीं, ‘‘अब तेरी आगे की पढ़ाई गई भाड़ में. तू ने खता की है, इस की तुझे सजा मिलेगी. जा, कोने में बैठ जा.’’

शाम हुई. अब्बा आए, कपड़े बदल कर उन्होंने चाय मांगी, फिर चौंक उठे, ‘‘यह इस वक्त सल्लो, यहां कोने में कैसे बैठी है?’’

‘‘यह मेरा हुक्म है. उस के लिए सजा तजवीज की है मैं ने.’’

‘‘बेटी के लिए सजा?’’

‘‘हां, हां, यह देखो…खर्रा,’’ सलमा की अम्मी गोपनीय पत्र देतेदेते रुक गईं, ‘‘लेकिन नहीं. इसे गोपनीय रहने दो. मैं ही बता देती हूं.’’

और सलमा का कलेजा गले में आ अटका था.

‘‘…वह बात यह है कि अपनी सल्लो की मुख्याध्यापिका नीम पागल औरत है,’’ अम्मी ने कहा था.

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि मसजिद के मौलवी से भी अधिक दकियानूसी और वहमी औरत.’’

‘‘बात क्या हो गई?’’

‘‘…वह बात यह है कि मैं ने सल्लो से कहा था, अच्छी फिल्म लगी है, जा कर दिन को देख आना. अकेली नहीं, हबीब को साथ ले जाना. उसे बड़ी मुश्किल से भेजा. और बेचारी गई तो उस की कक्षाध्यापिका ने, जो खुद वहां फिल्म देख रही थी, इस की शिकायत मुख्याध्यापिका से कर दी कि एक लड़के के साथ सलमा स्कूल के वक्त फिल्म देख रही थी.’’

‘‘लड़का? कौन लड़का?’’ अब्बा का पारा चढ़ने लगा.

रमजानी बेहद होशियार थीं. झट बात संभाल ली, ‘‘लड़का कैसा, वह मेरी खाला है न, उस का बेटा हबीब. गाजीपुर वाली खाला को आप नहीं जानते. मुझ पर बड़ी मेहरबान हैं,’’ अम्मी सरासर झूठ बोल रही थीं.

‘‘अच्छा, अच्छा, अब मर्द किस- किस को जानें,’’ अब्बा ने हथियार डाल दिए.

बात बनती दिखाई दी तो अम्मी, अब्बा पर हावी हो गईं, ‘‘अच्छा क्या खाक? उस फूहड़ ने हमारी सल्लो को गलत समझ कर यह ‘गोपनीय पत्र’ भेज दिया. बेचारी कितनी परेशान है. आप इसे पढ़ेंगे?’’

‘शाबाश, वाह मेरी अम्मी,’ सलमा सुखद आश्चर्य से झूम उठी. अम्मी बिगड़ी बात यों बना लेंगी, उसे सपने में भी उम्मीद न थी, ‘बहुत प्यारी हैं, अम्मी.’

सलमा ने मन ही मन अम्मी की प्रशंसा की, कमाल का भेजा पाया है अम्मी ने. खैर, अब आगे जो भी होगा, ठीक ही होगा. अम्मी ढाल बन कर जो खड़ी रहती हैं अपनी बेटी के लिए.

शायद अब्बा ने खत पढ़ना ही नहीं चाहा. बोले, ‘‘रमजानी, वह औरत सनकी नहीं है. दरअसल, मैं ने ही उन मास्टरनियों को कह रखा है कि सलमा का खयाल रखें. वैसे कल मैं उन से मिल लूंगा.’’

‘‘तौबा है. आप भी वहमी हैं, कैसे दकियानूसी. बेचारी सल्लो…’’

‘‘छोड़ो भी, उसे बुलाओ, चाय तो बने.’’

‘‘वह तो बहुत दुखी है. आई है जब से कोने में बैठी रो रही है. आप खुद ही जा कर मनाओ. कह रही थी, मुख्याध्यापिका ने शक ही क्यों किया?’’

‘‘मैं मनाता हूं.’’

और शेर मुहम्मद ने अपनी सयानी बेटी को उस दिन जिस स्नेह और दुलार से मनाया, उसे देख कर सलमा अम्मी की व्यवहारकुशलता की तारीफ करती हुई मन ही मन सोच रही थी, ‘आइंदा फिर कभी ऐसी भूल नहीं होनी चाहिए.’

और सलमा यों अपने चारों ओर फैली दकियानूसी रिवायतों की धुंध से जूझती आगे बढ़ी तो अब वह कालिज की एक छात्रा है. उस के इर्दगिर्द उठी आंधियां, मांबेटी के व्यवहार के तालमेल के आगे कभी की शांत हो गईं.

Summer Special: स्विमिंग के ये 7 फायदे, जानते हैं क्या आप ?

हैल्थ इज वैल्थ यानी अच्छा स्वास्थ्य ही वास्तविक दौलत या धन है. अत: शरीर को चुस्तदुरुस्त रखने के लिए हमें बचपन से ही 3 बातों पर ध्यान देना बताया जाता है- उचित खानपान, आवश्यक विश्राम और नियमित व्यायाम.आज बात करेंगे व्यायाम की. व्यायाम या ऐक्सरसाइज को चिकित्सक पौलिपिल की संज्ञा भी देते हैं. कारण, नियमितरूप से इसे करने वाला व्यक्ति कई बीमारियों से मुक्त रहता है और साथसाथ उस की कार्यक्षमता भी बढ़ती है. ऐक्सपर्ट्स का मानना है कि एक वयस्क को

हफ्ते में कम से कम 2-3 घंटे ऐक्सरसाइज जरूर करनी चाहिए.

खुद को फिट और स्वस्थ रखने के बहुत से तरीके हैं. मसलन, जिम जाना, रनिंग, योगासन, ऐरोबिक्स या किसी तरह का स्पोर्ट्स इत्यादि. अगर आप इन से हट कर कुछ ट्राई करना चाहते हैं, तो स्विमिंग भी एक अच्छा विकल्प हैं खासकर गरमियों के मौसम में यह लोगों को बहुत पसंद आता है. ‘सैंटर औफ डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रीवैंशन’ के अनुसार स्विमिंग एक बेहतरीन फुल बौडी वर्कआउट है.

एक स्टडी के मुताबिक लगातार 3 महीने तक हरेक सप्ताह करीब 40-50 मिनट की तैराकी से व्यक्ति की ऐरोबिक फिटनैस में सुधार होता है जो इंसान के शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य दोनों के लिए लाभकारी है. स्टडी के अनुसार यह कई तरह की बीमारियों यथा कैंसर, डायबिटीज, डिप्रैशन हृदयरोग और औस्टियोपोरोसिस के खतरे को भी कम करने में सहायक साबित होता है.

कमाल के फायदे

यों तो तैरने से शरीर के कई हिस्सों की मांसपेशियां सक्रिय रहती हैं और विकसित होती हैं पर हां अलगअलग स्ट्रोक या स्विमिंग तकनीक अलगअलग मांसपेशियों को प्रभावित करती है क्योंकि इन सब में तैरने के तरीके और टैक्नीक में थोड़ाबहुत अंतर होता है. हालांकि ज्यादातर स्ट्रोक्स में शरीर के सभी प्रमुख अंगों- धड़, बाजू, पैर, हाथ, पांव और सिर की लयबद्ध और समन्वित हरकतें शामिल होती हैं पर इन तैराकियों में शरीर का इस्तेमाल अलगअलग तरीके से होने की वजह से इन के फायदे भी अलग होते हैं.

उदाहरण के तौर पर फ्री स्टाइल में आप किसी भी तरीके से तैर सकते हैं. ब्रैस्टस्ट्रोक में आप सीने से जोर लगाते हैं, बटरफ्लाई में पूरे शरीर का इस्तेमाल होता है और साइड स्ट्रोक में एक हाथ हमेशा पानी में होता है और तैराक दूसरे हाथ का इस्तेमाल करते हुए तैरते हैं.

फ्रीस्टाइल तैराकी में लंबे समय तक स्ट्रोक के लिए धड़ को घुमाने में कोर ऐब्डौमिनल और औब्लिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं वहीं हिप फ्लैक्सर्स का उपयोग कौंपैक्ट और स्थिर नियमित किक बनाए रखने के लिए होता है. फ्रीस्टाइल बैकस्ट्रोक तैराकी के दौरान तैराकों को पीठ के बल लेट कर पानी पर तैरना होता है. पीठ के बल लेटने के बाद तैराक अपने हाथों और पैरों को चलाते हुए ऐसे तैरते हैं जैसे नाव में चप्पू चलाया जा रहा हो.

हाथों और पैरों की मूवमैंट इस में भी फ्रीस्टाइल की तरह ही होती है बस इस में अंतर इतना होता है कि आप पीठ के बल लेट कर तैरते हैं. डाक्टरों का कहना है कि पीठ की समस्याओं से जू?ा रहे लोगों के लिए ऐसे तैरना काफी फायदेमंद होता है.

वजन घटाने में कारगर

बटरफ्लाई स्ट्रोक को वजन घटाने के लिए बेहतर माना गया है. इस स्ट्रोक को सही तरीके से 10 मिनट करने से लगभग 150 कैलोरी बर्न होती है. कोर ऐब्डौमिनल और पीठ के निचले हिस्से की मांसपेशियां सांस लेते समय शरीर को पानी से बाहर निकालती हैं. ग्लूट्स यह सुनिश्चित करते हैं की पैर डौल्फिन की तरह हों. पेक्स, लास्ट्स, क्वाड्स, काल्व्स, शोल्डर्स, बाइसैप्स ट्राइसैप्स सभी इस स्ट्रोक के दौरान खूब काम करते हैं.

ब्रैस्टस्ट्रोक की बात करें तो इस में तैराक अपने सीने के बल तैरते हैं और बाकी का धड़ बहुत कम गतिविधि करता है. इस में सिर लगभग पानी से बाहर ही होता है, शरीर सीधा रहता है और हाथों और पैरों को इस तरह से इस्तेमाल किया जाता है जैसेकि मेढक पानी में तैरते हैं. पेक्टोरल और लैटीसिमस डार्सी मांसपेशियों का उपयोग हाथों को पानी के विरुद्ध अंदर की और घुमाने के लिए किया जाता है. ग्लूट्स और क्वाड्रिसैप्स मसल्स ब्रैस्टस्ट्रोक किक देने में काम आती हैं.

स्विमिंग के अन्य फायदे

1.लंग्स के लिए है लाभकारी

‘इंडियन जर्नल औफ फिजियोलौजी’ में प्रकाशित एक स्टडी ‘कंपैरेटिव स्टडी औफ लंग फंक्शन इन स्विमर्स ऐंड रनर्स’ में पाया गया कि स्विमिंग फेफड़ों को मजबूत करती है और उन में मौजूद औक्सीजन की मात्रा बढ़ाने में भी असरदार है. स्विमिंग करते समय फेफड़े काफी सक्रिय रहते हैं और गहरी सांस लेने और देर तक थामे रखने का अभ्यास करते हैं.

इस से फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है और लंग्स मसल्स पर सकारात्मक दबाव पड़ता है. साथ ही तैराकों को अपनी सांस को अपने स्ट्रोक के साथ समयबद्ध करना पड़ता है और बस थोड़े ही अंतराल में सांस लेनी होती है. इस का मतलब है कि शरीर को थोड़ी देर इंतजार करने की ट्रेनिंग मिलती है जिस से सांस की सहनशक्ति विकसित होती है. इन अभ्यासों का सकारात्मक प्रभाव अस्थमा के मरीजों पर भी दिखता है.

2.स्ट्रैंथ बढ़ाने में मददगार

तैरते वक्त पैर लगातार चलाने पड़ते हैं. साथसाथ हाथों और कंधों को भी मूव करना होता है. चूंकि पानी हवा की तुलना में अधिक घना होता है, इसलिए पानी का शरीर पर दबाव भी अधिक महसूस होता है. पानी मूवमैंट में लगातार प्रतिरोध पैदा करता है. इस प्रतिरोध से आगे बढ़ने के लिए आप के शरीर को ज्यादा मेहनत करनी होती है. इस से मांसपेशियां टोन होती हैं और स्टैमिना और स्ट्रैंथ भी बढ़ती है. वयस्कों के कूल्हे या हिप की मांसपेशियों को मजबूत बनाने, औस्टियोआर्थ्राइटिस के रोगियों में ग्रिप स्ट्रैंथ में भी सुधार के लिए स्विमिंग को अच्छा माध्यम माना जाता है.

3. मैंटल वैल बीइंग

व्यायाम से ‘फील-गुड हारमोन’ और ऐंडोर्फिंस को बढ़ावा मिलता है और स्ट्रैस हारमोन ऐड्रेनालाइन और कोर्टिसोल को कम करता है.लो मूड, ऐंग्जाइटी, स्ट्रैस या डिप्रैशन आदि से बचने अथवा इन से पीडि़त लोगों के इलाज के दौरान भी स्विमिंग करने की सलाह दी जाती है. अन्य व्यायामों की तुलना में कुछ लोग स्विमिंग कर ज्यादा रिलैक्स्ड फील करते हैं.

4. जोड़ों के लिए भी बेहतर है स्विमिंग

आर्थ्राइटिस हो या हड्डियों की कोई अन्य इंजरी स्विमिंग को अन्य ऐक्सरसाइज की तुलना में अधिक सुरक्षित माना जाता है. रनिंग, साइक्लिंग या जिम के अन्य वर्कआउट में जो सब से बड़ा खतरा है वह है हड्डियों या जोड़ों में इंजरी का. आर्थ्राइटिस के मरीजों को भी डाक्टर स्विमिंग की सलाह देते हैं. जब आप का शरीर पानी में होता है तब आप ऐसी मूवमैंट्स भी कर पाते हैं, जो आमतौर पर करना मुश्किल हो जाता है. तैरते वक्त जोड़ों पर काफी कम भार पड़ता है. इसलिए जोड़ों में दर्द के बावजूद आराम से तैरा जा सकता है.

5. बेहतर आती है नींद

‘नैशनल इंस्टिट्यूट औफ हैल्थ’ के अनुसार बुजुर्गों के लिए अनिद्रा का सबसे अच्छा उपाय है स्विमिंग.

6. दिल का रखे खयाल

स्विमिंग एक तरह की ऐरोबिक ऐक्सरसाइज है, जो हार्ट को मजबूती देती है, ब्लड प्रैशर को नियंत्रित रखने में मदद करती है. यदि महिलाएं प्रत्येक दिन 30 मिनट तैरती हैं, तो कोरोनरी हार्ट डिजीज का खतरा 30 से 40% तक कम हो जाता है. तैराकी गुड कोलैस्ट्रौल लैवल को बढ़ाने में भी मदद करता है.

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