बच्चों का दिमाग करना है तेज, तो खिलाएं ये ड्राई फ्रूट्स

एग्जाम आते ही बच्चों का टेंशन बढ़ जाता है, जिससे पेरेंट्स के लिए भी ये टाइम मुश्किल भरा होता है. पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों का सेहत भी जरूरी है. अगर आपका बच्चा स्वस्थ रहेगा तभी एग्जाम के स्ट्रेस को भी मात दे पाएगा. ऐसे में आपको बताएंगे कि बच्चे को ज्यादा न्यूट्रिशन कैसे दें और ब्रेन पावर को कैसे बूस्ट करें.

बोर्ड एग्जाम हो या कंपटीशन की तैयारी, आप बच्चों की डाइट में ड्राईफ्रूट्स जरूर शामिल करें, इसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है, डो ब्रेन को बूस्ट करता है और मेमोरी पावर को बढ़ाता है. इसे खाने से आपके बच्चे की एनर्जी बढ़ेगी, जिससे दिमाग भी स्वस्थ रहेगा. बच्चे की डाइट में आलमंड, पिस्ता, काजू, अखरोट दें, आप इन ड्राई फ्रूट्स का शेक बनाकर भी बच्चे को पिला सकते हैं.

NutPhat की फाउंडर और सीईओ, श्रुति का भी कहना है कि जब वह बड़ी हो रही थी तब उनकी माँ भी रोज उन्हें ड्राई फ्रूट्स खाने के लिए देती थीं. इससे उनको पढ़ाई करने में एनर्जी और स्टडी में कंसन्ट्रेट करने में मदद मिलती थी. उन्होंने आईआईटी दिल्ली से इंजीनियरिंग की और डायरेक्टर गोल्ड मेडल भी जीता.

मिलावटी ड्राईफ्रूट्स से रहें सावधान

ड्राई फ्रूट्स का चुनाव सावधानी से करें, क्योंकि इन दिनों मिलावट बहुत अधिक होती है. लूज ड्राई फ्रूट्स में धूल, गंदगी और फॉरेन पार्टिकल्स होते हैं. सभी पैक किए गए ड्राई फ्रूट्स सेफ नहीं होते हैं, क्योंकि सिंगल या डबल लेयर पैकेजिंग से नट्स में बदबू आ सकती है और उनका क्रिस्पीनेस भी चला जाता है. यहां तक कि फफूंद पड़ने के कारण खराब भी हो सकते हैं. इसलिए हमेशा ब्रांडेड ड्राईफ्रूट्स चुनें, जो अंदर से नट्स की क्वालिटी और न्यूट्रिशन को बनाए रखते हैं. बच्चों के भविष्य के लिए, सस्ती चीज और अच्छी चीज के बीच के क्वालिटी के फर्क को समझकर निर्णय लेना चाहिए.

NutPhat ड्राईफ्रूट की बेस्ट बात:

NutPhat ड्राईफ्रूट की बेस्ट बात यह है कि यह मंथली बजट में फिट होने के साथ-साथ प्रीमियम क्वालिटी में भी मिल रहा है आपको.

• “नो टच” का मतलब यह है कि बिना छुए हाई स्टैंडर्ड हाइजीन मेंटेन करके प्रोसेस एंड पैक किया जाता है.

• NutPhat ड्राईफ्रूट ट्राई लेयर पैक में मिलता है. इसका इनर सिल्वर लेयर फ्रेशनेस और न्यूट्रिशन को बरकरार रखता है.

• जिपर पैक रखे NutPhat ड्राईफ्रूट को लंबे समय तक फ्रेश और स्वीट.

• NutPhat गिरी बादाम में भरपूर मात्रा में नेचुरल एसेंशियल ऑयल हैं, जो कि लोकल मार्केट में मिलने वाले आलमंड में नहीं हैं.

• NutPhat काजू मैंगलोर वैरायटी काजू है. यह स्वाद में मीठे और बड़े आकार में होते हैं, जो बच्चों को पसंद आते हैं. NutPhat घर पर लाएं और पूरे परिवार को हेल्दी बनाए झटपट.

रोशनी वालिया खूबसूरती और ग्लैमर का कौकटेल

टैलीविजन की चाइल्ड आर्टिस्ट रोशनी वालिया अब काफी बड़ी हो गई हैं. बचपन में अपनी क्यूटनैस से दर्शकों के दिलों पर राज करने वाली रोशनी वालिया को उन की ग्लैमरस तसवीरों में पहचान पाना मुश्किल है.

टैलीविजन के मशहूर ऐतिहासिक शो ‘महाराणा प्रताप’ में प्रिंसेज अब्दे का किरदार फेम पाने वाली रोशनी वालिया अब काफी बड़ी हो गई हैं और ट्रांसफौर्मेशन के बाद काफी खूबसूरत दिखती हैं. बचपन में अपनी क्यूटनैस से दर्शकों के दिलों पर राज करने वाली रोशनी वालिया ने सोशल मीडिया पर अपनी ताजा तस्वीरें शेयर की हैं जो तेजी से वाइरल हो रही हैं.

23 वर्षीय रोशनी ने अपने कैरियर की शुरुआत टैलीविजन विज्ञापनों से की. इस के बाद ‘मैं लक्ष्मी तेरे आंगन की’, ‘रिंगा रिंगा रोजेजे’, ‘भारत का वीर पुत्र महाराणा प्रताप’ में यादगार किरदाए निभाए.

टीवी शोज के अलावा ‘माय फ्रैंड गणेशा 3’, ‘मछली जल की रानी है’, ‘गैंग्स औफ लिटल्स’, ‘फिरंगी’, ‘आई एम बन्नी’ जैसी फिल्में कीं. आज सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहने वाली रोशनी अपनी खूबसूरत और शानशौकत को ले कर चर्चा में बनी रहती हैं.

रोशनी भले ही काफी समय से छोटे परदे पर नजर नहीं आई हों लेकिन वह खूब मजेदार फोटोशूट करवाती रहती हैं. वह अपने फैंस की खुशी के लिए उन्हें अकसर सोशल मीडिया पर पोस्ट करती रहती हैं.

लाइमलाइट को तरसतीं काव्या थापर

मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री में आएदिन न्यूकमर आते ही रहते हैं. उन में कुछ ऐसे होते हैं जो अपनी ऐक्ंिटग स्किल्स से दर्शकों के ऊपर अपनी छाप छोड़ देते हैं तो वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं जो आएगए जैसे ही साबित होते हैं. उन्हीं न्यूकमर्स में से एक हैं काव्या थापर. उन्हें आखिरी बार शाहिद कपूर की वैब सीरीज ‘फर्जी’ में देखा गया था. उस के बाद वे किसी वैब सीरीज या फिल्म में नहीं दिखाई दीं.

हालांकि चर्चा है कि साल 2024 में वे कई फिल्मों में दिखाई देंगी. कहा तो यह भी जा रहा है कि उन के पास एक अनटाइटल्ड फिल्म भी है जिस में वे रवि तेजा के साथ नजर आएंगी. लेकिन दूसरी तरफ काव्या को ले कर यह चर्चा भी रहती है कि वे अपनी ऐक्ंिटग स्किल्स से ज्यादा अपने ग्लैमरस अवतार से फैंस का अटैंशन पाती हैं. अब देखना यह है कि आखिर और कितने दिन काव्या ग्लैमरस का तड़का लगा कर अपना काम चलाती हैं.

बिना विवाद काम कहां

काव्या थापर को ले कर एक कंट्रोवर्सी भी रही है. उन्हें पिछले साल फरवरी में मुंबई पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था. उन पर शराब पी कर गाड़ी चलाने और ड्यूटी पर तैनात अधिकारियों से बदतमीजी करने का आरोप लगा था.

दरअसल, काव्या पर आरोप था कि वे शराब के नशे में कार चला रही थीं और तभी उन्होंने एक व्यक्ति को ठोकर मारी जिस से उसे चोट आई. वहीं पुलिस ने जब उन्हें रोका तो उन्होंने कर्मचारियों से हाथापाई व अधिकारियों से गालीगलौज की.

यह मामला कोर्ट तक पहुंच गया था और फिर उन्हें ज्यूडिशियल कस्टडी में भेज दिया गया था. उस वक्त काव्या को खासी बदनामी   झेलनी पड़ी थी. हालांकि उस का एक फायदा यह हुआ कि मीडिया का अटैंशन उन्हें मिल गया.

काव्या के कैरियर की बात करें तो काव्या ने अपने कैरियर में कई ऐड शूट किए हैं. उन्होंने कई फेमस ब्रैंड्स, जैसे मेक माई ट्रिप, पतंजलि, जिंजर बाय, लाइफस्टाइल, लुआ साबुन और कोहिनूर के साथ काम किया है. काव्या कई रैंप शो में मौडल के तौर पर भी परफौर्म कर चुकी हैं.

काव्या के फिल्मी कैरियर की बात करें तो काव्या ने 2013 में अपने कैरियर की शुरुआत एक हिंदी शौर्ट फिल्म ‘तत्काल’ से की थी. उस के बाद काव्या ने 2018 की तेलुगू फिल्म ‘इ माया पेरिमिटो’ से तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री में डैब्यू किया. इस के बाद उन्होंने तमिल भाषा की ‘मार्केट राजा एमबीबीएस’ और एक लघु फिल्म की.

वर्ष 2022 में ही काव्या ने वैब सीरीज में डैब्यू किया. उन्होंने ‘कैट’ वैब सीरीज की. काव्या ने हिंदी सिनेमा में मिडिल क्लास लव से एंट्री ली. इस के साथ ही वे पंजाबी इंडस्ट्री से भी जुड़ गईं. काव्या थापर ने अभी तक 9 फिल्मों में काम किया है.

काव्या के इंस्टाग्राम पर 1.2 मिलियन फौलोअर्स हैं. उन के पास खूबसूरती और ग्लैमर है पर ऐक्ंिटग में खुद को साबित करने की उन्हें अभी जरूरत है. वे 28 साल की हैं. काव्या का जन्म 20 अगस्त, 1995 को महाराष्ट्र में हुआ था. उन्होंने अपनी पढ़ाई मुंबई से की है. काव्या की हौबी में डांस, सिंगिंग, पेंटिंग शामिल हैं.

एक अखबार को दिए इंटरव्यू में वे कहती हैं, ‘‘बौलीवुड में जो फीस मिलती है वह आप के काम पर बेस्ड होती है. अगर हीरो का काम ज्यादा है और हीरोइन का काम कम है तो आप कैसे सोच सकते हैं कि आप को भी सेम फीस मिल जाए. थोड़ाबहुत भेदभाव है, जो नहीं होना चाहिए क्योंकि आज इक्वलिटी का जमाना है. लेकिन फीस आप के काम के हिसाब से ही तो मिलेगी.’’

काव्या महिला सशक्तीकरण के बारे में बात करते हुए कहती हैं, ‘‘आप वह सब कर सकती हैं जो एक मर्द कर सकता है. मैं ने अपनेआप को कभी भी उन से कम नहीं पाया है. मैं ने खुद के लिए लड़ना और अपने लिए जगह बनाना सीखा है.’’

ऐक्ंिटग स्किल आए तो आए कैसे

काव्या का   झुकाव बाबाओं और सत्संग में भी है. पूरी तरह से आध्यात्मिक स्वभाव की काव्या को अकसर लगता है कि अपने आसपास के सभी लोगों को खुश करना बहुत जरूरी है. काव्या अपनी फिल्म ‘मिडिल क्लास लव’ की रिलीज के बाद अपने गुरुजी के धाम दर्शन करने गई थीं. वहां उन्होंने अपनी ओर से सभी जरूरतमंद लोगों को लंगर दिया और उन के साथ अपनी फिल्म की सफलता का आनंद लिया.

काम पर ध्यान न दे कर काव्या का फोकस बाबा, सत्संग और लंगर बांटने पर रहता है. किसी भी फिल्म के रिलीज होते ही वे अपने बाबा को धन्यवाद देने उन के आश्रम चली जाती हैं. फिल्में हिट अच्छी ऐक्ंिटग, सही चुनाव से होती हैं न कि बाबाओं के चरणों में पड़े रहने से.

आस्था अपनी जगह है पर जितना समय सत्संग में बरबाद होता है उतना ही समय अच्छे ऐक्ंिटग स्कूल में ऐक्ंिटग सीखने पर लगा दें तो मंदिरों के घंटे बजाने की जरूरत नहीं पड़ती.

अभी काव्या को लंबा सफर तय करना है. अपनी ऐक्ंिटग के बल पर दर्शकों के बीच अपनी पहचान बनानी है. अपनी छाप छोड़ने के लिए अदाओं के साथसाथ कठिन भूमिकाएं निभानी भी जरूरी हैं जो आज की डिमांड हो चली है. अपनी साइड ऐक्ट्रैस की छवि को सुधारने के लिए उन्हें बहुत मेहनत करने की जरूरत भी है.

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नेल पेंट के ये 11 टिप्स जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान

अक्सर नेलपेंट का इस्तेमाल हम अपने खूबसूरत हाथों को सुंदर दिखाने के लिए करते हैं. अलग-अलग तरह की नेलपेंट हमारे हाथों को नया लुक देता है, लेकिन क्या आपने कभी नेल पेंट का इस्तेमाल घर से जुड़ी चीजों के लिए किया है. घर पर पढ़ी खराब नेलपेंट भी हमारे घर के सामान को डेकोरेट करने में मदद कर सकती है. तो आइए आपको बताते हैं नेलपेंट के कुछ होमकेयर टिप्स…

1. चाभियों पर बनाएं पहचान

शायद आपको चाभियों को लेकर प्रौब्लम हो. आपकी सभी चाभियां – घर की, दराज की या आलमारी की, सभी एक लगती हैं. हर चाभी को अलग-अलग रंग की नेल पॉलिश से चिन्हित करने से काम आसान हो जाता है.

2. मसालों को नामांकित करना

धनिया पाउडर, जीरा पाउडर और पिसा गरम मसाला एक जैसे दिखते हैं. क्यों न इन्हें नामाँकित कर दिया जाये. नामाँकित करने के बाद उनपर पारदर्शी नेल पॉलिश से फेर दें जिससे नामांकन नमी से सुरक्षित रहे.

3. लिफाफा चिपकाना

जब आपको लिफाफा चिपकाने की जरूरत पड़े और गोंद खो गया है. लिफाफे के किनारों पर नेलपॉलिश लगाने से काम हो जायेगा.

4. सुई में धागा डालना

सुई में धागा डालने के लिये हमें काफी मशक्कत करनी पड़ती है. धागे के सिरे को नेल पॉलिश में हल्के से डुबोयें. इससे धागा सख्त हो जायेगा और आसानी से सुई में चला जायेगा.

5. गहनों से सुरक्षा

हम सभी को ऐसे- वैसे गहने काफी पसन्द होते हैं लेकिन ये सभी की त्वचा के लिये अनुकूल नहीं होते. क्या आपने ध्यान दिया है कि इस प्रकार की अँगूठी या हार पहनने के बाद आपकी त्वचा हरी हो जाती है. इसे रोकने के लिये उन गहनों के त्वचा के सम्पर्क में आने वाली सतह पर पारदर्शी नेलपॉलिश की परत लगायें. कई कपड़ों पर के स्टोन काफी नाजुक होते हैं, उन्हे गिरने से बचाने के लिये पारदर्शी नेलपॉलिश की परत लगायें. आप यह परिधानी गहनों के लिये बी कर सकती हैं.

6. जूते के फीते चिपकाना

जूते के फीते के सिरे अक्सर खराब हो जाते हैं तो उन्हे ठीक करने के लिये या तो उन्हे हल्का सा जलाया जा सकता है या फिर नेल पॉलिश लगाई जा सकती है. मजे के लिये एक बार पारदर्शी नेलपॉलिश को छोड़कर रंगीन नेलपॉलिश अपनायें.

7. ढीले पेचों को कसना

याद है, आपके टूल बॉक्स के पेंच अकसर ढीले हो जाते हैं. पेंच को कसने के बाद उनपर नेलपॉलिश की परत लगायें. वे कभी नहीं गिरेंगें.

8. अपने जूते के तलवों को रंगें

अपने पुराने साधारण जूतों के तलवों को रंगबिरंगे रंगो में रंग कर नया जीवन प्रदान करें. फिरोजी, नारंगी या लाल रंग अपनायें.

9. फटने से रोकना

घर से निकले के बाद आपने देखा कि आपकी लेगिंग में छोटा सा छेद हो गया है. अब आप क्या करेंगी. पारदर्शी नेलपॉलिश को फटे भाग के किनारों पर लगायें. इससे वह छेद और बड़ा नहीं होगा.

10. बदरंग होने से बचायें

बेल्ट के बकल पर पारदर्शी नेलपॉलिश की परत लगाने से वे बदरंग नहीं होगें.

11. बटन सुरक्षित करें

अप्रत्याशित समय पर आपके ब्लाउज के बटन निकल आने पर काफी शर्मसार कर देने वाली स्थिति हो जाती है. उन्हे सुरक्षित करने के लिये नेलपौलिश की परत लगायें.

बीमार बना सकता है टैटू का क्रेज

पहले टैटू गुदवाना जहां महंगा और पेनफुल होता था, वहीं अब यह पेनलैस बन चुका है. वैसे भी लोग खुद को कूल, मौर्डन दिखाने के लिए असहनीय दर्द को भी बरदाश्त कर लेते हैं. टैटू बनवाना मानो आज एक रिवाज की तरह हो गया है. टैटू की दीवानगी का आलम इस तरह है कि कपल्स अपने प्यार को जताने के लिए स्किन पर एकदूसरे का नाम तक लिखवा लेते हैं. कुछ अपनी पर्सनैलिटी टैटू के जरीए दिखाना पसंद करते हैं तो कुछ ऐसे भी लोग हैं जो स्किन पर अनेक तरह की कलाकृति तक बनवा लेते हैं.

आजकल तो मातापिता के प्रति प्यार भी टैटू बनवा कर जताया जा रहा है. लेकिन क्या आप को पता है यह टैटू जो न जाने कितनों के प्यार की निशानी है, आप के लिए नुकसानदायक भी साबित हो सकता है. जो टैटू आज लोगों का स्टाइल स्टेटमैंट है और जो आज लोगों के शरीर के हर भाग में दिखाई देने लगता है, उसी टैटू से कई तरह की स्किन संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं:

स्किन प्रौब्लम्स

टैटू आजकल इतना ट्रैंड में है कि लगभग हर किसी के बौडी पार्ट पर बना हुआ देखा जा सकता है. लेकिन टैटू से हमारी स्किन पर लालिमा, मवाद, सूजन जैसी कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं. इस के अलावा कई तरह के स्किन इन्फैक्शन होने का भी डर रहता है. परमानैंट टैटू के दर्द से बचने के लिए कई लोग नकली टैटू का सहारा लेते हैं, लेकिन ऐसा न करें. इससे आप को और भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.

कैंसर होने का डर

टैटू बनवाते समय हम अकसर यह सोचते हैं कि हम बहुत कूल दिखेंगे. टैटू से सोराइसिस नाम की बीमारी होने का भी डर रहता है. कई बार हम ध्यान नहीं देते और दूसरे इंसान पर इस्तेमाल की गई सूई हमारी स्किन पर इस्तेमाल कर दी जाती है, जिस से स्किन संबंधित रोग, एचआईवी और हेपेटाइटिस जैसी बीमारियां होने का खतरा रहता है. टैटू बनवाने से कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है.

स्याही स्किन के लिए खतरनाक

टैटू बनाने के लिए हमारी स्किन पर अलगअलग तरह की स्याही का इस्तेमाल किया जाता है, जो हमारी स्किन के लिए काफी खतरनाक होती है. टैटू बनाने के लिए नीले रंग की स्याही का इस्तेमाल किया जाता है, जिस में ऐल्यूमिनियम जैसी कई धातुएं मिली रहती हैं, जोकि स्किन के लिए हानिकारक होती हैं. ये स्किन के अंदर तक समा जाती हैं जिस से बाद में कई तरह की दिक्कतें हो सकती हैं.

मांसपेशियों को नुकसान

हम अपनी स्किन पर बड़े शौक से टैटू बनवा तो लेते हैं, लेकिन उस के बाद होने वाले नुकसान से अनजान रहते हैं. टैटू के कुछ डिजाइन ऐसे होते हैं जिन में सूइयों को शरीर में गहराई तक चुभाया जाता है, जिस के चलते मांसपेशियों में भी स्याही चली जाती है. इस कारण मांसपेशियों को काफी नुकसान पहुंचता है. स्किन विशेषज्ञों का मानना है कि शरीर के जिस हिस्से पर तिल हो उस हिस्से पर टैटू कभी नहीं बनवाना चाहिए. टैटू बनवाने के बाद किसी भी प्रकार की परेशानी लगे तो तुरंत डाक्टर के पास जाएं. इस की अनदेखी महंगी पड़ सकती है. इस के अलावा यह भी जान लें कि टैटू बनवाने के करीब 1 साल तक आप रक्तदान नहीं कर सकते.

अगर टैनिंग हो जाये तो अपनाएं ये तरीके

यदि आपको सनटैन हो ही गया है तो उसका ट्रीटमेंट घर में उपलब्ध चीजों से ही करना चाहिए. मेडिकेटेड और फेयरनेस क्रीम नहीं लगाना चाहिए क्योंकि कभी-कभी इससे स्किन और भी खराब हो सकती हैं. आजकल कई टैन  रिमूविंग क्रीम मार्केट में मिल रही  हैं ,जिनमे  सनस्क्रीन और स्किन व्हाइटनिंग केमिकल्स होते हैं. जैसे हाइड्रोक्विनोन , ये आपकी स्किन को साफ तो करते हैं  लेकिन इनको बंद करने पर आपकी स्किन फिर काली पड़ जाती है.  इसलिए टैनिंग  रिमूव करने के लिए प्लीज ऐसी क्रीम ना लगाएं तो अच्छा है . अब मैं आपको सन टैन रिमूवल के बहुत ही सिंपल, सुरक्षित और फायदेमंद तरीके बताती हूँ-

1. दही और हल्दी

सबसे पहले दो टेबलस्पून सादे दही में एक चौथाई चम्मच हल्दी मिलाकर रात को सोने से पहले चेहरे पर, हाथों पर या पैरों पर जहां भी सन टैनिंग है वहां अच्छी तरह लगाकर छोड़ दे. जब वह अच्छे से सूख जाए तब सादे पानी से धुल  करके वहां पर वर्जिन कोकोनट ऑयल या प्योर सनफ्लावर ऑयल अच्छे से लगा कर सो जाएं. 15-20 दिन में आपकी स्किन स्वस्थ और नॉर्मल हो जाएगी और टैनिंग  खत्म हो जाएगी.

दही एसिडिक  एजेंट होता है. वह स्किन  के ph को ठीक करता है. उसमें जो एंजाइम्स होते हैं वह स्किन को साफ करते हैं और उसका पानी स्किन को हाइड्रेट करता है.

हल्दी एक बहुत स्ट्रांग नेचुरल एंटीसेप्टिक है.

कोकोनट ऑयल लगाने से आपकी स्किन सूखने से बच  जाती है .यह  स्किन को मॉइस्चराइज करता है और उसको हील भी करता है.

2. प्योर हनी और नींबू के रस का लेप

सबसे पहले  रात को दो बड़े चम्मच प्योर शहद में एक छोटा चम्मच फ्रेश नींबू का रस मिलाकर टैनिंग वाली  स्किन  के ऊपर अच्छी तरह से लगा ले .आधे घंटे तक रहने दें .फिर सादे पानी से धो कर नारियल का तेल लगा ले .

शहद एक बहुत ही हीलिंग एजेंट है

नींबू का रस एसिडिक होता है और स्किन की ph  को ठीक करता है और स्किन के कलर को भी लाइट करता है.

3. ऑयली स्किन वालों के लिए

जिन लोगों की स्किन ऑयली है वह लोग सिर्फ ताजी ककड़ी को पतला- पतला काटकर 20 मिनट तक अपनी टैनिंग स्किन के ऊपर लगाकर छोड़ दें. उसके बाद पानी से फेस वॉश करके एक अच्छा ऑयल फ्री मॉइश्चराइजर लगा ले. 15 से 20 दिन इस तरह करने से आपकी स्किन बिल्कुल साफ हो जाएगी .

एक चीज़ हमेशा याद रखें की अगर आपको सन टैनिंग हो गयी है तो  आप  साबुन कम से कम use करें या ना ही लगाएं तो अच्छा है.

ड्राई और पपड़ीदार स्किन से परेशान हो गई हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

वसंत ऋतु शुरू होते ही मेरी स्किन रूखी, पपड़ीदार हो जाती है और उस पर लाल चकत्ते पड़ जाते हैं. इस समस्या को दूर करने का उपाय बताएं?

जवाब-

वसंत ऋतु में ऐलर्जी की समस्या बढ़ जाती है. इस मौसम में सैंसिटिव स्किन में नमी की कमी की वजह से लाल चकत्ते भी पड़ जाते हैं. चकत्ते होने पर आप साबुन की जगह सुबहशाम अल्कोहल फ्री क्लींजर का उपयोग करें.

इसी तरह घरेलू आयुर्वेदिक उपचार के तौर पर स्किन पर तिल के तेल की मालिश कर सकती हैं. मलाई में कुछ शहद की बूंदें मिला कर उसे त्वचा पर लगा कर 10-15 मिनट तक लगा रहने दीजिए. फिर इसे फ्रैश वाटर  से धो लें. यह ट्रीटमैंट सामान्य तथा ड्राई दोनों प्रकार की स्किन के लिए उपयोगी है.

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युवतियां सुंदर दिखने के लिए कई सारे कौस्मेटिक्स और मेकअप प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करती हैं. ये प्रोडक्ट्स हालांकि सुंदरता बढ़ाते हैं लेकिन त्वचा के लिहाज से ज्यादातर उत्पाद सुरक्षित नहीं होते हैं. इन में कई प्रकार के हानिकारक रसायन होते हैं जो त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं. ऐसी युवतियों, जो नियमित मेकअप का इस्तेमाल करती हैं, को मेकअप के कई हानिकारक प्रभावों का सामना करना पड़ता है. कौस्मेटिक्स के अत्यधिक प्रयोग से त्वचा में जलन, धब्बे, मुंहासों और बैक्टीरिया के फैलने की समस्या आम है.

इस्तेमाल मेकअप प्रोडक्ट्स का फेसक्रीम : सभी फेसक्रीम, जिनमें मौइश्चराइजर क्रीम, फाउंडेशन क्रीम आदि शामिल होती हैं, इसमे कई बेसिक इंग्रीडिएंट्स समान होते हैं, जैसे पेटोलैटम, प्रिजर्वेटिव्स, इमलसिफायर, पशु वसा, बीवैक्स, लैनोलिन, प्रोपलीन ग्लायकोल और खुशबू. रसायनयुक्त क्रीम से चेहरे, गरदन, पलकों और हाथों पर एलर्जी हो सकती है. अगर खुजली महसूस होती है, त्वचा पर चकते हो जाते हैं या वह लाल हो जाती है तो समझ जाइए कि आप को क्रीम से एलर्जी हो रही है. ऐसे में तुरंत डाक्टर को दिखाएं.

  • लिपस्टिक : लिपस्टिक का इस्तेमाल करने से कुछ महिलाओं के होंठों पर दरारें पड़ जाती हैं और पपड़ी आ जाती है. कुछ के होंठ काले भी हो जाते हैं. लिपस्टिक में लैनोलिन, खुशबू, कोलोफोनी, सनस्क्रीन और एंटीऔक्सीडैंट्स होते हैं, जिन से एलर्जी हो सकती है. इसलिए हमेशा अच्छे ब्रैंड की लिपस्टिक खरीदें.

लाल लिपस्टिक में लेड बड़ी मात्रा में पाया जाता है जो खानेपीने के साथ अंदर चला जाता है. लिपस्टिक में पाया जाने वाला मिनरल औयल त्वचा के रोमछिद्रों को बंद कर देता है. इस से त्वचा की कोशिकाओं का विकास और उन की उचित कार्यप्रणाली गड़बड़ा जाती है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

प्रतिशोध: क्या नफरत भूलकर डा. मीता ने किया राणा का इलाज

आपरेशन थियेटर से निकल कर डा. मीता अपने केबिन में आईं. एप्रिन उतारने के बाद उन्होंने इंटरकाम का बटन दबाते हुए पूछा, ‘‘रीना, क्या डा. दीपक का कोई फोन आया था?’’

‘‘जी, मैम, वह 2 बजे तक कानपुर से लौट आएंगे और लंच घर पर ही करेंगे,’’ इंटरकाम पर रिसेप्शनिस्ट रीना की आवाज सुनाई पड़ी.

‘‘ठीक है,’’ कह कर डा. मीता ने फोन रख दिया और घड़ी पर नजर डाली. साढ़े 12 बजे थे. वह सोचने लगीं कि डा. दीपक के लौटने में अभी डेढ़ घंटे का समय है और इतनी देर में अस्पताल का एक राउंड लिया जा सकता है.

डा. मीता ने आज अकेले ही 3 आपरेशन किए थे, इसलिए कुछ थकावट महसूस कर रही थीं. तभी अटेंडेंट कौफी दे गया. वह कुरसी की पुश्त से टेक लगा कर कौफी की चुस्कियां लेने लगीं.

मीता और दीपक लखनऊ मेडिकल कालिज में सहपाठी थे. एम.एस. करने के बाद दोनों ने शादी कर ली थी. पहले उन्होंने अपना नर्सिंग होम लखनऊ में खोला था किंतु अचानक घटी एक दुर्घटना के कारण उन्हें लखनऊ छोड़ना पड़ गया था.

उस के बाद वे इलाहाबाद चले आए. उन की दिनरात की मेहनत के कारण 3 वर्षों में ही उन के नए नर्सिंग होम की शोहरत काफी बढ़ गई थी. डा. दीपक आज सुबह किसी जरूरी काम से कानपुर गए थे. आज के आपरेशन पूरा करने के बाद डा. मीता उन की प्रतीक्षा कर रही थीं.

अचानक बाहर कुछ शोर सुनाई पड़ा. उन्होंने अटेंडेंट को बुला कर पूछा, ‘‘यह शोर कैसा है?’’

‘‘जी…एक्सीडेंट का एक केस आया है और स्टाफ उन्हें भगा रहा है लेकिन वे लोग भाग नहीं रहे हैं,’’ अटेंडेंट ने हिचकते हुए बताया.

‘‘क्यों भगा रहे हैं? क्या तुम लोगों को पता नहीं कि हमारे नर्सिंग होम में छोटेबड़े सभी का इलाज बिना किसी भेदभाव के किया जाता है,’’ मीता का चेहरा तमतमा उठा. वह जानती थीं कि शहर के कई नर्सिंग होम तो ऐसे हैं जिन में गरीबों को घुसने भी नहीं दिया जाता है.

‘‘जी…वो…’’ अटेंडेंट हकला कर रह गया. ऐसा लग रहा था कि वह कुछ कहना चाह रहा है किंतु साहस नहीं जुटा पा रहा है.

‘‘यह क्या वो…वो…लगा रखी है,’’ डा. मीता ने अटेंडेंट को डांटा फिर पूछा, ‘‘घायल की हालत कैसी है?’’

‘‘खून काफी बह गया है और वह बेहोश है.’’

‘‘तो फौरन उसे आपरेशन थियेटर में ले चलो. मैं भी पहुंच रही हूं,’’

डा. मीता ने खड़े होते हुए आदेश दिया.

अटेंडेंट हक्काबक्का सा चंद पलों तक उन के चेहरे को देखता रहा फिर आंखें झुकाते हुए बोला, ‘‘जी, मैडम, वह विधायक उपदेश सिंह राणा हैं. नर्सिंग होम के पास ही उन की गाड़ी को एक ट्रक ने टक्कर मार दी है.’’

इतना सुनने के बाद डा. मीता को लगा जैसे कोई ज्वालामुखी फट पड़ा हो और पूरी सृष्टि हिल गई हो. वह धम्म से कुरसी पर गिर पड़ीं. अगर उन्होंने कुरसी के दोनों हत्थों को मजबूती से थाम न लिया होता तो शायद चकरा कर नीचे गिर पड़ती होतीं. उन के दिमाग पर हथौड़े बरसने लगे और सांस धौंकनी की तरह चलने लगी थी. अटेंडेंट उन की मनोदशा को समझ गया था अत: चुपचाप वहां से खिसक गया.

लगभग साढ़े 3 वर्ष पहले की बात है. उस दिन भी डा. मीता अपने पुराने नर्सिंग होम में अकेली थीं. तभी कुछ लोग गोली से बुरी तरह घायल एक व्यक्ति को ले कर आए. उस की गोली निकालने के लिए वह आपरेशन थियेटर में अभी जा ही रही थीं कि फोन की घंटी बज उठी :

‘डा. साहिबा, मैं उपदेश सिंह राणा बोल रहा हूं,’ फोन पर आवाज आई.

‘जी, कहिए,’ डा. मीता अचकचा उठीं.

उपदेश सिंह राणा शहर का आतंक था. छोटेबड़े सभी उस के नाम से थर्राते थे. उस का भला उन से क्या काम?

‘डा. साहिबा, वह मेरी गोली से तो बच गया है लेकिन आप के आपरेशन थियेटर से जिंदा वापस नहीं आना चाहिए,’ उपदेश सिंह राणा ने आदेशात्मक स्वर में कहा.

‘मैं एक डाक्टर हूं और डाक्टर के हाथ लोगों की जान बचाने के लिए उठते हैं, लेने के लिए नहीं,’ डा. मीता ने स्पष्ट इनकार कर दिया.

‘मैं आप के हाथों को बहकने की कीमत देने के लिए तैयार हूं. आप मुंह खोलिए,’ राणा ने हलका सा कहकहा लगाया.

‘आप अपना और मेरा समय बरबाद कर रहे हैं,’ राणा का प्रस्ताव सुन डा. मीता का मन कसैला हो उठा.

‘डा. साहिबा, कुछ करने से पहले सोच लीजिएगा कि मैं महिलाओं को सिर्फ उपदेश ही नहीं देता बल्कि…’ इतना कहतेकहते राणा क्षण भर के लिए रुका फिर खतरनाक अंदाज में बोला, ‘अगर आप ने मेरे शिकार को बचाने की कोशिश की तो फिर आप का कुछ भी नहीं बच पाएगा.’

डा. मीता ने बिना कुछ कहे फोन रख दिया और आपरेशन थियेटर में घुस गईं. उस व्यक्ति की हालत बहुत खराब थी. 3 गोलियां उस की पसलियों में घुस गई थीं. 2 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद वह गोलियां निकाल पाई थीं. अब उस की जान को कोई खतरा नहीं था.

किंतु राणा ने अपनी धमकी को सच कर दिखाया. 2 दिन बाद ही उस ने डा. मीता का अपहरण कर उन की इज्जत लूट ली. दीपक ने बहुत भागदौड़ की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. राणा गिरफ्तार हुआ किंतु 3 दिन बाद ही जमानत पर छूट गया. उस के आतंक के कारण कोई भी उस के खिलाफ गवाही देने के लिए तैयार नहीं हुआ था.

इस घटना ने डा. मीता को तोड़ कर रख दिया था. वह एक जिंदा लाश बन कर रह गई थीं. हमेशा बुत सी खामोश रहतीं. जागतीं तो भयानक साए उन्हें अपने आसपास मंडराते नजर आते. सोतीं तो स्वप्न में हजारों गिद्ध उन के शरीर को नोंचने लगते. उन की मानसिक हालत बिगड़ती जा रही थी.

मनोचिकित्सकों की सलाह पर दीपक ने वह शहर छोड़ दिया था. नए शहर के नए माहौल ने मरहम का काम किया. अतीत की यादों को करीब आने का मौका न मिल सके, इसलिए डा. दीपक अपने साथ

डा. मीता को भी मरीजों की सेवा में व्यस्त रखते. धीरेधीरे जीवन की गाड़ी एक बार फिर पटरी पर दौड़ने लगी थी. दोनों की मेहनत और लगन से इन चंद वर्षों में ही उन के नर्सिंग होम का काफी नाम हो गया था.

इन चंद वर्षों में और भी बहुत कुछ बदल चुका था. अपने आतंक और बूथ कैप्चरिंग के दम पर शहर का दुर्दांत गुंडा उपदेश सिंह राणा दबंग विधायक बन चुका था. अब इसे समय का क्रूर मजाक ही कहा जाए कि डा. मीता की जिंदगी बरबाद करने वाले दरिंदे उपदेश सिंह राणा की जिंदगी बचाने के लिए लोग आज उसे उन की ही शरण में ले आए थे.

डा. मीता की आंखों के सामने उस दिन के दृश्य कौंध गए जब वह गिड़गिड़ाते हुए उस शैतान से दया की भीख मांग रही थी और वह हैवानियत का नंगा नाच नाच रहा था. वह अपने डाक्टरी पेशे की मर्यादा और कर्तव्यनिष्ठा की दुहाई दे रही थीं और वह उन की इज्जत की चादर को तारतार किए दे रहा था. वह रोती रहीं, बिलखती रहीं, तड़पती रहीं पर उस नरपिशाच ने उन की अंतर आत्मा तक को अंगारों से दाग दिया था.

सोचतेसोचते डा. मीता के जबड़े भिंच गए और आंखों से चिंगारियां फूटने लगीं. बाहर बढ़ रहे शोर के कारण उन की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी. क्रोध की अधिकता के चलते वह हांफने सी लगीं. व्याकुलता जब बरदाश्त से बाहर हो गई तो उन्होंने सामने रखा पेपरवेट उठा कर दीवार पर दे मारा. पर न तो पेपरवेट टूटा और न ही दीवार टस से मस हुई.

पेपरवेट फर्श पर गिर कर गोलगोल घूमने लगा. डा. मीता की दृष्टि उस पर ठहर सी गई. पेपरवेट के स्थिर होने पर उन्होंने अपनी दृष्टि ऊपर उठाई. उन में दृढ़ता के चिह्न छाए हुए थे. ऐसा लग रहा था कि वह कुछ कर गुजरने का फैसला कर चुकी हैं.

इंटरकाम का बटन दबाते हुए डा. मीता ने पूछा, ‘‘रीना, घायल को आपरेशन थियेटर में पहुंचा दिया गया है या नहीं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘जी…वो…दरअसल…स्टाफ कह… रहा है…कि…’’ रिसेप्शनिस्ट झिझक के कारण अपनी बात कह नहीं पा रही थी.

‘‘तुम लोग सिर्फ वह करो जो कहा जा रहा है. बाकी क्या करना है, मैं जानती हूं,’’ डा. मीता ने सर्द स्वर में आदेश दिया और आपरेशन थियेटर की ओर चल दीं.

अचानक उन्हें कुछ याद आया. वापस लौट कर उन्होंने इंटरकाम का बटन दबाते हुए कहा, ‘‘रीना, मैं उस आदमी का चेहरा नहीं देख सकती. नर्स से कहो कि आपरेशन टेबल पर पहुंचाने से पहले उस का मुंह किसी कपड़े से बांध दे या ठीक से ढंक दे.’’

इतना कह कर बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए डा. मीता तेजी से आपरेशन थियेटर की ओर चली गईं. घायल के भीतर जाते ही आपरेशन थियेटर का दरवाजा बंद हो गया और उस पर लगा लाल बल्ब जल उठा.

टिक…टिक…टिक…की ध्वनि के साथ घड़ी की सूइयां आगे बढ़ती जा रही थीं. इसी के साथ आपरेशन कक्ष के बाहर खड़े स्टाफ के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. आपरेशन कक्ष के दरवाजे को बंद हुए 2 घंटे से अधिक समय बीत चुका था. भीतर डा. मीता क्या कर रही होंगी इस का अंदाजा होते हुए भी कोई सचाई को अपने होंठों तक नहीं लाना चाहता था.

डा. दीपक 3 बजे लौट आए. भीतर घुसते ही उन्होंने एक वार्ड बौय से पूछा, ‘‘डा. मीता कहां हैं?’’

‘‘थोड़ी देर पहले उन्होंने एक घायल का आपरेशन किया था. उस के बाद…’’ वार्ड बौय कुछ कहतेकहते रुक गया.

‘‘उस के बाद क्या?’’

‘‘उस के बाद वह उसे अपना खून दे रही हैं, क्योंकि उस का ब्लड गु्रप ‘ओ निगेटिव’ है और वह कहीं मिल नहीं सका,’’ वार्ड बौय ने हिचकिचाते हुए बताया.

‘‘ऐसा कौन सा खास मरीज आ गया है जिसे डा. मीता को खुद अपना खून देने की जरूरत आ पड़ी?’’

डा. दीपक ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘जी…विधायक उपदेश सिंह राणा हैं.’’

‘‘तुझे होश भी है कि तू क्या कह रहा है?’’ वार्ड बौय का गिरेबान पकड़ डा. दीपक चीख पड़े.

‘‘सर, हम लोग उसे नर्सिंग होम से भगा रहे थे लेकिन मैडम ने जबरन बुला कर उस का आपरेशन किया और अब उसे अपना खून भी दे रही हैं,’’ तब तक  वहां जमा हो चुके कर्मचारियों में से एक ने हिम्मत कर के बताया.

डा. दीपक ने उसे घूर कर देखा फिर बिना कुछ कहे अपने केबिन की ओर चले गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर मीता ने ऐसा क्यों किया. क्या किसी ने मीता को इस के लिए मजबूर किया था या कोई और कारण था? सोचतेसोचते डा. दीपक के दिमाग की नसें फटने लगीं लेकिन वह अपने प्रश्नों के उत्तर नहीं खोज सके.

थोड़ी देर बाद डा. मीता ने वहां प्रवेश किया. उन का चेहरा पत्थर की भांति भावनाशून्य था. डा. दीपक ने आगे बढ़ उन की बांह थाम कांपते स्वर में पूछा, ‘‘मीता…तुम ने… उस की जान क्यों बचाई?’’

‘‘हम लोग डाक्टर हैं. हमारा काम ही लोगों की जान बचाना है,’’ डा. मीता के होंठों ने स्पंदन किया.

डा. दीपक ने पत्नी की बांहों को छोड़ चंद पलों तक उस के चेहरे की ओर देखा फिर मुट्ठियां भींचते हुए बोले, ‘‘लेकिन क्या उस का आपरेशन करते समय तुम्हारे हाथ नहीं कांपे थे?’’

‘‘अगर हाथ कांप जाते तो हम में और सामान्य लोगों में क्या फर्क रह जाता,’’ डा. मीता ने धीमे स्वर में कहा. उन का चेहरा पूर्ववत भावनाशून्य था.

‘‘हम इनसान हैं मीता, इनसान,’’ डा. दीपक तड़प उठे.

‘‘मैं ने इनसानियत का ही फर्ज निभाया है,’’ डा. मीता के होंठ यंत्रवत हिले.

‘‘फर्ज निभाने का शौक था तो निभा लेतीं, महानता की चादर ओढ़ने का शौक था तो ओढ़ लेतीं, लेकिन अपना खून चूसने वाले को अपना खून तो न देतीं,’’

डा. दीपक मेज पर घूंसा मारते हुए चीख पड़े.

डा. मीता ने कोई उत्तर नहीं दिया.

दीपक ने आगे बढ़ कर उन के चेहरे को अपने दोनों हाथों में भर लिया और उन की आंखों में झांकते हुए बोले, ‘‘मीता, प्लीज, मुझे बताओ ऐसी क्या मजबूरी थी जो तुम ने उस दरिंदे की जान बचाई? क्या किसी ने तुम्हें फिर धमकी दी थी?’’

डा. मीता ने अपनी आंखें बंद कर लीं पर उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था  मानो वह सप्रयास अपने को कुछ कहने से रोक रही हैं.

‘‘मैडम, उस मरीज को होश आ गया,’’ तभी एक नर्स ने वहां आ कर बताया.

डा. मीता के भीतर जैसे कोई शक्ति समा गई हो. दीपक को परे धकेल वह आंधीतूफान की तरह भागते हुए वार्ड की ओर दौड़ पड़ीं. भौचक्के से डा. दीपक अपने को संभालते हुए पीछेपीछे दौड़े.

उपदेश सिंह राणा को अब तक उन के पास खड़े पुलिस वालों ने बता दिया था कि जिस लेडी डाक्टर ने उन का आपरेशन किया था उसी ने उन्हें अपना खून भी दिया है क्योंकि उन के गु्रप का खून किसी ब्लड बैंक में उपलब्ध न था.

‘‘वह महान डाक्टर कौन हैं. मैं उन के दर्शन करना चाहता हूं,’’ राणा ने कराहते हुए कहा.

‘‘लो, वह आ गईं,’’ एक पुलिस वाले ने वार्ड के भीतर आ रही डा. मीता की ओर इशारा किया.

उन पर दृष्टि पड़ते ही राणा को ऐसा झटका लगा जैसे किसी को करंट लग गया हो. घबरा कर उस ने उठना चाहा लेकिन कमजोरी के कारण हिल भी न सका.

‘‘इन्होंने ही आप की जान बचाई है. जीवन भर इन के चरण धो कर पीजिएगा तब भी आप इस ऋण से उऋण नहीं हो सकेंगे,’’ दूसरे पुलिस वाले ने बताया.

पल भर के लिए राणा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ किंतु सत्य अपने पूरे वजूद के साथ सामने उपस्थित था. राणा की आंखों के सामने उस दिन के दृश्य कौंधने लगे जब रोती हुई

डा. मीता हाथ जोड़जोड़ कर विनती कर रही थीं कि उन्होंने सिर्फ एक डाक्टर के फर्ज का पालन किया है किंतु वह उन की एक नहीं सुन रहा था.

आज एक बार फिर उन्होंने सबकुछ भुला कर एक डाक्टर के फर्ज को पूरा किया है. तभी उस की सासें शेष बच पाई हैं.  राणा के भीतर उन से आंख मिलाने का साहस नहीं बचा था. उन के विराट व्यक्तित्व के आगे वह अपने को बहुत छोटा महसूस कर रहा था.

बहुत मुश्किल से अपनी पूरी शक्ति को बटोर कर राणा, ने अपने हाथों को जोड़ा और कांपते स्वर में बोला, ‘‘डाक्टर साहिबा, मुझे माफ कर दीजिए.’’

‘‘माफ और तुम्हें,’’ डा. मीता दांत भींचते हुए चीख पड़ीं, ‘‘राणा, तुम ने मेरे साथ जो किया था उस के बाद मैं तो क्या दुनिया की कोई भी औरत मरते दम तक तुम्हें माफ नहीं कर सकती.’’

चीख सुन कर पूरे वार्ड में सन्नाटा छा गया. किसी में भी उसे भंग करने का साहस न था. अपनी ओर डा. मीता को आता देख कर राणा ने एक बार फिर अपनी बिखरती हुई सांसों को बटोरा और लड़खड़ाते स्वर में बोला, ‘‘आप ने जो एहसान किया है मैं उसे कभी…’’

‘‘मैं ने कोई एहसान नहीं किया है तुम पर,’’ डा. मीता राणा की बात को बीच में काट कर फिर चीख पड़ीं, ‘‘तुम क्या समझते हो अपनेआप को? सर्वशक्तिमान? जो जिस की जिंदगी से जब चाहे खेल लेगा? तुम ने मेरी जिंदगी से खेला था, आज मैं ने तुम्हारी जिंदगी से खेला है. मेरे जिस खून को तुम ने अपवित्र किया था आज वही खून तुम्हारी रगों में दौड़ रहा है. तुम चाह कर भी उसे अपने शरीर से अलग नहीं कर सकते. जब तक जीवित रहोगे यह एहसास तुम्हें कचोटता रहेगा कि तुम्हारी जिंदगी मेरी दी हुई भीख है.

‘‘कमजोर समझ कर जिस नारी के चंद पलों को तुम ने रौंदा था उस के रक्त के चंद कतरे अब हर पल तुम्हारे स्वाभिमान को रौंदते रहेंगे. तुम्हारा रोमरोम तुम्हारे गुनाहों के लिए तुम्हें धिक्कारेगा लेकिन तुम्हें दया की भीख नहीं मिलेगी. जब तक जीवित रहोगे, राणा, तुम प्रायश्चित की आग में जलते रहोगे लेकिन तुम्हें शांति नहीं मिलेगी. यही मेरा प्रतिशोध है.’’

डा. मीता के मुंह से निकला एकएक शब्द गोली की तरह राणा के दिल और दिमाग को छेदे जा रहा था. गुनाहों के बोझ तले दबी उस की अंतर आत्मा में कुछ कहने की शक्ति नहीं बची थी. उस की कायरता बेबसी बन उस की आंखों से छलक पड़ी.

राणा के आंसुओं ने अग्निकुंड में घी का काम किया. डा. मीता गरजते हुए बोलीं, ‘‘इस से पहले कि मेरे अंदर की नारी, डाक्टर को पीछे ढकेल कर सामने आ जाए और मैं तुम्हारा खून कर दूं, दूर हो जाओ मेरी नजरों से. चले जाओ यहां से.’’

हतप्रभ डा. दीपक अब तक चुपचाप खड़े थे. उन्होंने पुलिस वालों को इशारा किया तो वे राणा के बेड को धकेलते हुए बाहर ले जाने लगे.

डा. मीता हिचकियां भरती हुई पूरी शक्ति से डा. दीपक के चौड़े सीने से लिपट गईं. उन्होंने उन्हें अपनी बांहों में यों संभाल लिया जैसे किसी वृक्ष की शाखाएं नन्हे घोंसले को संभाल लेती हैं.

अंतिम निर्णय: रिश्तों के अकेलेपन में समाज के दायरे से जुड़ी सुहासिनी की कहानी

सुहासिनी के अमेरिका से भारत आगमन की सूचना मिलते ही अपार्टमैंट की कई महिलाएं 11 बजते ही उस के घर पहुंच गईं. कुछ भुक्तभोगियों ने बिना कारण जाने ही एक स्वर में कहा, ‘‘हम ने तो पहले ही कहा था कि वहां अधिक दिन मन नहीं लगेगा, बच्चे तो अपने काम में व्यस्त रहते हैं, हम सारा दिन अकेले वहां क्या करें? अनजान देश, अनजान लोग, अनजान भाषा और फिर ऐसी हमारी क्या मजबूरी है कि हम मन मार कर वहां रहें ही. आप के आने से न्यू ईयर के सैलिब्रेशन में और भी मजा आएगा. हम तो आप को बहुत मिस कर रहे थे, अच्छा हुआ आप आ गईं.’’

उन की अपनत्वभरी बातों ने क्षणभर में ही उस की विदेशयात्रा की कड़वाहट को धोपोंछ दिया और उस का मन सुकून से भर गया. जातेजाते सब ने उस को जेट लैग के कारण आराम करने की सलाह दी और उस के हफ्तेभर के खाने का मैन्यू उस को बतला दिया. साथ ही, आपस में सब ने फैसला कर लिया कि किस दिन, कौन, क्या बना कर लाएगा.

सुहासिनी के विवाह को 5 साल ही तो हुए थे जब उस के पति उस की गोद में 5 साल के सुशांत को छोड़ कर इस दुनिया से विदा हो गए थे. परिजनों ने उस पर दूसरा विवाह करने के लिए जोर डाला था, लेकिन वह अपने पति के रूप में किसी और को देखने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी. पढ़ीलिखी होने के कारण किसी पर बोझ न बन कर उस ने अपने बेटे को उच्चशिक्षा दिलाई थी. हर मां की तरह वह भी एक अच्छी बहू लाने के सपने देखने लगी थी.

सुशांत की एक अच्छी कंपनी में जौब लग गई थी. उस को कंपनी की ओर से किसी प्रोजैक्ट के सिलसिले में 3 महीने के लिए अमेरिका जाना पड़ा. सुहासिनी अपने बेटे के भविष्य की योजनाओं में बाधक नहीं बनना चाहती थी, लेकिन अकेले रहने की कल्पना से ही उस का मन घबराने लगा था.

अमेरिका में 3 महीने बीतने के बाद, कंपनी ने 3 महीने का समय और बढ़ा दिया था. उस के बाद, सुशांत की योग्यता देखते हुए कंपनी ने उसे वहीं की अपनी शाखा में कार्य करने का प्रस्ताव रखा तो उस ने अपनी मां से भी विचारविमर्श करना जरूरी नहीं समझा और स्वीकृति दे दी, क्योंकि वह वहां की जीवनशैली से बहुत प्रभावित हो गया था.

सुहासिनी इस स्थिति के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी. उस ने बेटे को समझाते हुए कहा था, ‘बेटा, अपने देश में नौकरियों की क्या कमी है जो तू अमेरिका में बसना चाहता है? फिर तेरा ब्याह कर के मैं अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहती हूं. साथ ही, तेरे बच्चे को देखना चाहती हूं, जिस से मेरा अकेलापन समाप्त हो जाए और यह सब तभी होगा, जब तू भारत में होगा. मैं कब से यह सपना देख रही हूं और अब यह पूरा होने का समय आ गया है, तू इनकार मत करना.’ यह बोलतेबोलते उस की आवाज भर्रा गई थी. वह जानती थी कि उस का बेटा बहुत जिद्दी है. वह जो ठीक समझता है, वही करता है.

जवाब में वह बोला, ‘ममा, आप परेशान मत होे, मैं आप को भी जल्दी ही अमेरिका बुला लूंगा और आप का सपना तो यहां रह कर भी पूरा हो जाएगा. लड़की भी मैं यहां रहते हुए खुद ही ढूंढ़ लूंगा.’ बेटे का दोटूक उत्तर सुन कर सुहासिनी सकते में आ गई. उस को लगा कि वह पूरी दुनिया में अकेली रह गई थी.

सालभर के अंदर ही सुशांत ने सुहासिनी को बुलाने के लिए दस्तावेज भेज दिए. उस ने एजेंट के जरिए वीजा के लिए आवेदन कर दिया. बड़े बेमन से वह अमेरिका के लिए रवाना हुई. अनजान देश में जाते हुए वह अपने को बहुत असुरक्षित अनुभव कर रही थी. मन में दुविधा थी कि पता नहीं, उस का वहां मन लगेगा भी कि नहीं. हवाई अड्डे पर सुशांत उसे लेने आया था. इतने समय बाद उस को देख कर उस की आंखें छलछला आईं.

घर पहुंच कर सुशांत ने घर का दरवाजा खटखटाया. इस से पहले कि वह अपने बेटे से कुछ पूछे, एक अंगरेज महिला ने दरवाजा खोला. वह सवालिया नजरों से सुशांत की ओर देखने लगी. उस ने उसे इशारे से अंदर चलने को कहा. अंदर पहुंच कर बेटे ने कहा, ‘ममा, आप फ्रैश हो कर आराम करिए, बहुत थक गई होंगी. मैं आप के खाने का इंतजाम करवाता हूं.’

सुहासिनी को चैन कहां, मन ही मन मना रही थी कि उस का संदेह गलत निकले, लेकिन इस के विपरीत सही निकला. बेटे के बताते ही वह अवाक उस की ओर देखती ही रह गई. उस ने इस स्थिति की कल्पना भी नहीं की थी. उस के बहू के लिए देखे गए सपने चूरचूर हो कर बिखर गए थे.

सुहासिनी ने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए कहा, ‘मुझे पहले ही बता देता, तो मैं बहू के लिए कुछ ले कर आती.’

मां की भीगी आखें सुशांत से छिपी नहीं रह पाईं. उस ने कहा, ‘ममा, मैं जानता था कि आप कभी मन से मुझे स्वीकृति नहीं देंगी. यदि मैं आप को पहले बता देता तो शायद आप आती ही नहीं. सोचिए, रोजी से विवाह करने से मुझे आसानी से यहां की नागरिकता मिल गई है. आप भी अब हमेशा मेरे साथ रह सकती हैं.’ उस को अपने बेटे की सोच पर तरस आने लगा. वह कुछ नहीं बोली. मन ही मन बुदबुदाई, ‘कम से कम, यह तो पूछ लेता कि विदेश में, तेरे साथ, मैं रहने के लिए तैयार भी हूं या नहीं?’

बहुत जल्दी सुहासिनी का मन वहां की जीवनशैली से ऊबने लगा था. बहूबेटा सुबह अपनीअपनी जौब के लिए निकल जाते थे. उस के बाद जैसे घर उस को काटने को दौड़ता था. उन के पीछे से वह घर के सारे काम कर लेती थी. उन के लिए खाना भी बना लेती थी, लेकिन उस को महसूस हुआ कि उस के बेटे को पहले की तरह उस के हाथ के खाने के स्थान पर अमेरिकी खाना अधिक पसंद आने लगा था. धीरेधीरे उस को लगने लगा था कि उस का अस्तित्व एक नौकरानी से अधिक नहीं रह गया है. वहां के वातावरण में अपनत्व की कमी होने के चलते बनावटीपन से उस का मन बुरी तरह घबरा गया था.

सुहासिनी को भारत की अपनी कालोनी की याद सताने लगी कि किस तरह अपने हंसमुख स्वभाव के कारण वहां पर हर आयुवर्ग की वह चहेती बन गई थी. हर दिन शाम को, सभी उम्र के लोग कालोनी में ही बने पार्क में इकट्ठे हो जाया करते थे. बाकी समय भी व्हाट्सऐप द्वारा संपर्क में बने रहते थे और जरा सी भी तबीयत खराब होने पर एकदूसरे की मदद के लिए तैयार रहते थे.

उस ने एक दिन हिम्मत कर के अपने बेटे से कह ही दिया, ‘बेटा, मैं वापस इंडिया जाना चाहती हूं.’

यह प्रस्ताव सुन कर सुशांत थोड़ा आश्चर्य और नाराजगी मिश्रित आवाज में बोला, ‘लेकिन वहां आप की देखभाल कौन करेगा? मेरे यहां रहते हुए आप किस के लिए वहां जाना चाहती हैं?’ वह जानता था कि उस की मां वहां बिलकुल अकेली हैं.

सुहासिनी ने उस की बात अनसुनी  करते हुए कहा, ‘नहीं, मुझे जाना है, तुम्हारे कोई बच्चा होगा तो आ जाऊंगी.’ आखिर वह भारत के लिए रवाना हो गई.

सुहासिनी को अब अपने देश में नए सिरे से अपने जीवन को जीना था. वह यह सोच ही रही थी कि अचानक उस की ढलती उम्र के इस पड़ाव में भी सुनीलजी, जो उसी अपार्टमैंट में रहते थे, के विवाह के प्रस्ताव ने मौनसून की पहली झमाझम बरसात की तरह उस के तन के साथ मन को भी भिगोभिगो कर रोमांचित कर दिया था. उस के जीवन में क्या चल रहा है, यह बात सुनीलजी से छिपी नहीं थी.

सुहासिनी के हावभाव ने बिना कुछ कहे ही स्वीकारात्मक उत्तर दे दिया था. लेकिन उस के मन में आया कि यह एहसास क्षणिक ही तो था. सचाई के धरातल पर आते ही सुहासिनी एक बार यह सोच कर कांप गई कि जब उस के बेटे को पता चलेगा तो क्या होगा? वह उस की आंखों में गिर जाएगी? वैधव्य की आग में जलते हुए, दूसरा विवाह न कर के उस ने अपने बेटे को मांबाप दोनों का प्यार दे कर उस की परवरिश कर के, समाज में जो इज्जत पाई थी, वह तारतार हो जाएगी?

‘नहीं, नहीं, ऐसा मैं सोच भी नहीं सकती. ठीक है, अपनी सकारात्मक सोच के कारण वे मुझे बहुत अच्छे लगते हैं और उन के प्रस्ताव ने यह भी प्रमाणित कर दिया कि यही हाल उन का भी है. वे भी अकेले हैं. उन की एक ही बेटी है, वह भी अमेरिका में रहती है. लेकिन समाज भी कोई चीज है,’ वह मन ही मन बुदबुदाई और निर्णय ले डाला.

जब सुनीलजी मिले तो उस ने अपना निर्णय सुना दिया, ‘‘मैं आप की भावनाओं का आदर करती हूं, लेकिन समाज के सामने स्वीकार करने में परिस्थितियां बाधक हो जाती हैं और समाज का सामना करने की मेरी हिम्मत नहीं है, मुझे माफ कर दीजिएगा.’’ उस के इस कथन पर उन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, जैसे कि वे पहले से ही इस उत्तर के लिए तैयार थे. वे जानते थे कि उम्र के इस पड़ाव में इस तरह का निर्णय लेना सरल नहीं है. वे मौन ही रहे.

अचानक एक दिन सुहासिनी को पता चला कि सुनीलजी की बेटी सलोनी, अमेरिका से आने वाली है. आने के बाद, एक दिन वह अपने पापा के साथ उस से मिलने आई, फिर सुहासिनी ने उस को अपने घर पर आमंत्रित किया. हर दिन कुछ न कुछ बना कर सुहासिनी, सलोनी के लिए उस के घर भेजती ही रहती थी. उस के प्रेमभरे इस व्यवहार से सलोनी भावविभोर हो गई और एक दिन कुछ ऐसा घटित हुआ, जिस की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी.

अचानक एक दिन सलोनी उस के घर आई और बोली, ‘‘एक बात बोलूं, आप बुरा तो नहीं मानेंगी? आप मेरी मां बनेंगी? मुझे अपनी मां की याद नहीं है कि वे कैसी थीं, लेकिन आप को देख कर लगता है ऐसी ही होंगी. मेरे कारण मेरे पापा ने दूसरा विवाह नहीं किया कि पता नहीं नई मां मुझे मां का प्यार दे भी पाएगी या नहीं. लेकिन अब मुझ से उन का अकेलापन देखा नहीं जाता. मैं अमेरिका नहीं जाना चाहती थी. लेकिन विवाह के बाद लड़कियां मजबूर हो जाती हैं. उन को अपने पति के साथ जाना ही पड़ता है. मेरे पापा बहुत अच्छे हैं. प्लीज आंटी, आप मना मत करिएगा.’’ इतना कह कर वह रोने लगी. सुहासिनी शब्दहीन हो गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे. उस ने उसे गले लगा लिया और बोली, ‘‘ठीक है बेटा, मैं विचार करूंगी.’’ थोड़ी देर बाद वह चली गई.

कई दिनों तक सुहासिनी के मनमस्तिष्क में विचारों का मंथन चलता रहा. एक दिन सुनीलजी अपनी बेटी के साथ सुहासिनी के घर आ गए. वह असमंजस की स्थिति से उबर ही नहीं पा रही थी. सबकुछ समझते हुए सुनीलजी ने बोलना शुरू किया, ‘‘आप यह मत सोचना कि सलोनी ने मेरी इच्छा को आप तक पहुंचाया है. जब से वह आई है, हम दोनों की भावनाएं इस से छिपी नहीं रहीं. उस ने मुझ से पूछा, तो मैं झूठ नहीं बोल पाया. अभी तो उस ने महसूस किया है, धीरेधीरे सारी कालोनी जान जाएगी. इसलिए उस स्थिति से बचने के लिए मैं अपने रिश्ते पर विवाह की मुहर लगा कर लोगों के संदेह पर पूर्णविराम लगाना चाहता हूं.

‘‘शुरू में थोड़ी कठिनाई आएगी, लेकिन धीरेधीरे सब भूल जाएंगे. आप मेरे बाकी जीवन की साथी बन जाएंगी तो मेरे जीवन के इस पड़ाव में खालीपन के कारण तथा शरीर के शिथिल होने के कारण जो शून्यता आ गई है, वह खत्म हो जाएगी. इस उम्र की इस से अधिक जरूरत ही क्या है?’’ सुनील ने बड़े सुलझे ढंग से उसे समझाया.

सुहासिनी के पास अब तर्क करने के लिए कुछ भी नहीं बचा था. उस ने आंसूभरी आंखों से हामी भर दी. सलोनी के सिर से मानो मनों बोझ हट गया और वह भावातिरेक में सुनील के गले से लिपट गई.

अब सुहासिनी को अपने बेटे की प्रतिक्रिया की भी चिंता नहीं थी.

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