फौरगिव मी: भाग 3- क्या मोनिका के प्यार को समझ पाई उसकी सौतेली मां

मैं गाउन ले कर बाथरूम में गई. मेरा दिल उसे माफ करना चाहता था. मैं गाउन पहनने लगी. अचानक मु झे लगा यह उस की जीत होगी. उस की ही नहीं यह उन सारी दूसरी औरतों की जीत होगी जो बच्चों को मौम या डैड किसी एक के पास रहने को मजबूर कर देती हैं. मेरा मुंह का स्वाद कसैला हो गया. मैं ने गाउन पर कैंची चलानी शुरू कर दी. पाइपिंग लेस और गुलाब के फूल सब बिखर गए. पर शायद गाउन ही नहीं कटा उस दिन से बहुत कुछ कट गया. बहुत से फूल बिखर गए. मैं ने तमतमाते हुए उसे वह गाउन वापस करते हुए कहा, ‘‘लो अपना गाउन. तुम इस से मु झे नहीं खरीद सकती. मैं बिकाऊ नहीं हूं.’’

इस बार मोनिका की आंखें डबडबाई नहीं. वह फूटफूट कर रोने लगी. उस ने मेरा हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘आखिर मेरी गलती क्या है? आखिर तुम मु झे किस अपराध की सजा दे रही हो? अगर तुम्हें कुछ गलत लगता भी है तो क्या तुम उस बात को भूल कर मु झे माफ कर फिर से आगे नहीं बढ़ सकती?’’

‘‘तुम मेरी मां के आंसुओं का कारण हो. तुम ने मेरी हैपी फैमिली को तहसनहस किया. मौमडैड को अलग किया, फिर डैड को मु झ से अलग किया. अब ओछी हरकतों से मु झे खरीदने की कोशिश कर रही हो,’’ मैं चिल्लाती जा रही थी. अपनी सारी नफरत एक बार में निकाल देना चाहती थी.

मैं ने आरोपों की  झड़ी लगा दी. मैं उसे रोता छोड़ कर अपने कमरे में चली गई. उस के बाद से हमारे बीच बातचीत बहुत कम हो गई. मोनिका ने मु झे मनाने की सारी कोशिशें बंद कर दीं. मैं खुश थी. मु झे लगा मैं ने अपनेआप को बिकने नहीं दिया. यह मेरी जीत थी.

समय आगे बढ़ता गया और मैं अपने कमरे में और कैद होती गई. कमरा जहां

लैपटौप था, जो मु झे सोशल मीडिया के हजारों लोगों से जोड़े रखता… काल्पनिक ही सही पर मैं ने भी अपनी एक फैमिली बना ली थी. एक बड़ी फैमिली जहां दर्द और खुशियां भले ही न बंटती हों पर इस से पहले कि मु झे काटने को दौड़े वह बेदर्द समय जरूर कट जाता था.

तभी अलार्म बजा और मैं अतीत से निकल कर वर्तमान में लौट आई. वर्तमान, जहां मैं जीत के बाद हार का सामना कर रही थी. मैं बारबार उसे हर्ट करने के लिए, उस का दिल दुखाने के लिए अपराधबोध महसूस कर रही थी. मैं ने सोच लिया था कि अब मैं जब भी उस से मिलने जाऊंगी उसे बांहों में भर कर कहूंगी, ‘‘मैं ने उसे माफ किया.’’

अब मैं अमेरिका में पलीबढ़ी 15 साल की किशोर लड़की थी या यों कह सकते हैं कि मैं एक होने वाली नवयुवती थी. नई जैनरेशन और आजाद खयाल होने के नाते अब मैं जानती थी कि किसी भी खत्म हो चुके रिश्ते के टूटने की वजह हमेशा दूसरी औरत ही नहीं होती. उस रिश्ते को तो टूटना ही होता है. मैं ने मोनिका को हमेशा दोषी माना क्यों? इस का उत्तर खुद मेरे पास नहीं था.

़वह भी जानती थी कि वह मेरी मां नहीं है और न ही कभी हो सकती है पर ‘हैपी फैमिली’ के अपने सपने को पूरा करने की उस ने बहुत कोशिश की. परंतु उस के सारे प्रयास मु झे उस की चाल लगते और उसे विफल करने में अपनी जीत. मैं हर साल उम्र में तो बड़ी हो रही थी, पर पता नहीं क्यों इस बात को सम झने में बड़ी नहीं हो पाई. काश, वक्त मु झे थोड़ा और वक्त दे और मैं अतीत को भूल कर आगे जी सकूं. क्या ऐसा होगा? मैं अधीर हो उठी.

1 हफ्ते तक कीमो व रैडीऐशन के चलते उसे उसी शीशे के कैबिन में रहना था. मैं उस से मिल नहीं सकती थी. पर मैं यह वक्त बरबाद नहीं करना चाहती थी. मैं ने बाजार जा कर वैसे ही गाउन का और्डर दे दिया, जो 1 हफ्ते बाद मिलना था. मैं मोनिका के सामने उसी गाउन में जाना चाहती थी. मोनिका की हालत बिगड़ने लगी थी. उस पर ट्रीटमैंट का कोई असर नहीं हो रहा था. रैडीऐशन की हीट से उस का सारा शरीर जल रहा था. मैं चिंतित थी पर उस के वार्ड में जाने और ठीक होने का इंतजार करने के अलावा मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था.

मेरी आशा के विपरीत शीशे के कैबिन से निकाल कर उसे वार्ड में शिफ्ट नहीं

किया गया, बल्कि उसे होस्पिक केयर के लिए हौस्पिटल में ही बने एक विशेष कक्ष में भेज दिया गया. डैड ने ही मु झे बताया कि होस्पिक केयर उन मरीजों को दी जाती है जो अपने जीवन की अंतिम अवस्था में होते हैं. यहां कोई ट्रीटमैंट नहीं होता. केवल मरीज का दर्द कम करने और उसे शांतिपूर्वक मृत्यु के आगोश में जाने देने की कोशिश भर होती है. मरीज के साथ यहां उन का परिवार भी रह सकता है. जो स्प्रिचुअल हीलिंग के वातावरण में अपने प्रियजन को फाइनल गुडबाय कह सके. डैड और जौन मोनिका के साथ रहने के लिए हौस्पिटल शिफ्ट हो गए. पर मैं मोनिका का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. मैं घर पर ही रह गई. यह हिम्मत जुटाने में मु झे 2 दिन लग गए. पर उस रैड गाउन को मैं नहीं पहन पाई. साधारण सा

मोनिका को इतनी कमजोर अवस्था में बैड पर

लेटे देख कर मैं भीतर तक कांप गई. मेरी आंखों में आंसू भर आए. मोनिका ने मु झे अपने करीब बुलाया. हम दोनों को कमरे में छोड़ कर डैड और जौन बाहर चले गए. मोनिका ने मु झे उठाने का इशारा किया.

मैं ने उसे सहारा दे कर उठाया. उस ने दूसरी बार मु झे प्यार से गले लगा लिया. मैं आंसुओं का वेग नहीं रोक पाई.  झर झर आंसू बहते ही जा रहे थे. मैं अपने दिल की बात कहना ही चाहती थी कि मु झे महसूस हुआ कि मोनिका ने मु झे कुछ ज्यादा ही कस के पकड़ा है. मैं ने सप्रयास उसे अपने से अलग किया. उस की आंखें मुझे ही घूर रही थीं. मु झे उस समय तक पता नहीं था कि मरना क्या होता है. पर किसी अनिष्ट की आशंका से मैं डाक्टरडाक्टर चिल्लाई. मोनिका हमें छोड़ कर सदा के लिए जा चुकी थी.

मोनिका के जाने के बाद हमारे जीवन में एक खालीपन सा भर गया. अब मैं ने महसूस किया कि उस ने न सिर्फ इस घर में, बल्कि

मेरे मन में भी एक जगह बना ली थी. जबजब उस पल को सोचती हूं एक टीस से उठती है. काश, मैं वह कह पाती जो मैं कहना चाहती थी. पर क्या वह उस समय सुन पाती? क्या कोई इंसान जब वह मृत्युशैया पर होता है, तो उस के लिए उन शब्दों का कोई महत्त्व होता है, जिन्हें वह जीवनभर सुनना चाहता है? क्यों हम जीवन को हमेशा चलने वाला मानते हैं. क्यों हमसमय रहते अपनी बात नहीं कह देते?

हम अपने क्रोध, नफरत, गुस्से को सहेजने के चक्कर में यह भूल जाते हैं कि जिस थाली को हम बड़ी शान से अगले पल को सौंप देना चाहते वह अगला पल 2 लोगों के जीवन में रहता भी है या नहीं. मु झे अपनी ही बातों से घबराहट होने लगी. मैं बालकनी में चली आई.

नीले आकाश में सफेद बादल तेजतेज घूम रहे हैं. मु झे चक्कर सा आ रहा है. मेरे मन में कोई चिल्ला रहा है मोनिका… मोनिका… मैं फिर ऊपर देखती हूं. घूमते बादलों को देख कर मैं जोर से चीखने लगती हूं, ‘‘मोनिका, प्लीज… प्लीज फौरगिव मी.’’

मगर मैं जानती हूं, इस बार अनसुना करने की बारी मोनिका की है.

Holi 2024: संबंध- क्या शादी नहीं कर सकती विधवा

‘‘इस औरत को देख रही हो… जिस की गोद में बच्चा है?’’

‘‘हांहां, देख रही हूं… कौन है यह?’’

‘‘अरे, इस को नहीं जानती तू?’’ पहली वाली औरत बोली.

‘‘हांहां, नहीं जानती,’’ दूसरी वाली औरत इनकार करते हुए बोली.

‘‘यह पवन सेठ की दूसरी औरत है. पहली औरत गुजर गई, तब उस ने इस औरत से शादी कर ली.’’

‘‘हाय, कहां पवन सेठ और कहां यह औरत…’’ हैरानी से दूसरी औरत बोली, ‘‘इस की गोद में जो लड़का है, वह पवन सेठ का नहीं है.’’

‘‘तब, फिर किस का है?’’

‘‘पवन सेठ के नौकर रामलाल का,’’ पहली वाली औरत ने जवाब दिया.

‘‘अरे, पवन सेठ की उम्र देखो, मुंह में दांत नहीं और पेट में आंत नहीं…’’ दूसरी वाली औरत ने ताना मारते हुए कहा, ‘‘दोनों में उम्र का कितना फर्क है. इस औरत ने कैसे कर ली शादी?’’

‘‘सुना है, यह औरत विधवा थी,’’ पहली वाली औरत ने कहा.

‘‘विधवा थी तो क्या हुआ? अरे, उम्र देख कर तो शादी करती.’’

‘‘अरे, इस ने पवन सेठ को देख कर शादी नहीं की.’’

‘‘फिर क्या देख कर शादी की?’’ उस औरत ने पूछा.

‘‘उस की ढेर सारी दौलत देख कर.’’

आगे की बात निर्मला न सुन सकी. जिस दुकान पर जाने के लिए वह सीढि़यां चढ़ रही थी, तभी ये दोनों औरतें सीढि़यां उतर रही थीं. उसे देख कर यह बात कही, तब वह रुक गई. उन दोनों औरतों की बातें सुनने के बाद दुकान के भीतर न जाते हुए वह उलटे पैर लौट कर फिर कार में बैठ गई.

ड्राइवर ने हैरान हो कर पूछा, ‘‘मेम साहब, आप दुकान के भीतर क्यों नहीं गईं?’’

‘‘जल्दी चलो बंगले पर,’’ निर्मला ने अनसुना करते हुए आदेश दिया.

आगे ड्राइवर कुछ न बोल सका. उस ने चुपचाप गाड़ी स्टार्ट कर दी.

निर्मला की गोद में एक साल का बच्चा नींद में बेसुध था. मगर कार में बैठने के बाद भी उस का मन उन दोनों औरतों के तानों पर लगा रहा. उन औरतों ने जोकुछ कहा था, सच ही कहा था. निर्मला उदास हो गई.

निर्मला पवन सेठ की दूसरी ब्याहता है. पहली पत्नी आज से 3 साल पहले गुजर गई थी. यह भी सही है कि उस की गोद में जो लड़का है, वह रामलाल का है. रामलाल जवान और खूबसूरत है.

जब निर्मला ब्याह कर के पवन सेठ के घर में आई थी, तब पहली बार उस की नजर रामलाल पर पड़ी थी. तभी से उस का आकर्षण रामलाल के प्रति हो गया था. मगर वह तो पवन सेठ की ब्याहता थी, इसलिए उस के खूंटे से बंध गई थी.

यह भी सही है कि निर्मला विधवा है. अभी उस की उम्र का 34वां पड़ाव चल रहा है. जब वह 20 साल की थी, तब उस की शादी राजेश से कर दी गई थी. वह बेरोजगार था. नौकरी की तलाश जारी थी. मगर वह इधरउधर ट्यूशन कर के अपनी जिंदगी की गाड़ी खींच रहा था.

निर्मला की सास झगड़ालू थी. हरदम वह उस पर अपना सासपना जताने की कोशिश करती, छोटीछोटी गलतियों पर बेवजह चिल्लाना उस का स्वभाव बना हुआ था. मगर वह दिन काल बन कर उस पर टूट पड़ा, जब एक कार वाला राजेश को रौंद कर चला गया. अभी उन की शादी हुए 7 महीने भी नहीं बीते थे और वह विधवा हो गई. समाज की जरूरी रस्मों के बाद निर्मला की सास ने उसे डायन बता दिया. यह कह कर उसे घर से निकाल दिया कि आते ही मेरे बेटे को खा गई.

ससुराल से जब विधवा निकाली जाती है, तब वह अपने मायके में आती है. निर्मला भी अपने मायके में चली आई और मांबाबूजी और भाई के लिए बो झ बन गई. बाद में एक प्राइवेट स्कूल में टीचर बन गई. तब उसे विधवा जिंदगी जीते हुए 14 साल से ऊपर हो गए.

समाज के पोंगापंथ के मुताबिक, विधवा की दोबारा शादी भी नहीं हो सकती है. उसे तो अब जिंदगीभर विधवा की जिंदगी जीनी है. ऐसे में वह कई बार सोचती है कि अभी मांबाप जिंदा हैं लेकिन कल वे नहीं रहेंगे, तब भाई कैसे रख पाएगा? यही दर्द उसे हरदम कचोटता रहता था.

निर्मला कई बार यह सोचती थी कि वह मांबाप से अलग रहे, मगर एक विधवा का अकेले रहना बड़ा मुश्किल होगा. मर्दों के दबदबे वाले समाज में कई भेडि़ए उसे नोचने को तैयार बैठे हैं. कई वहशी मर्दों की निगाहें अब भी उस पर गड़ी रहती हैं. मां और बाबूजी भी उसे देख कर चिंतित हैं. ऐसी कोई बात नहीं है कि सिर्फ  वही अपने बारे में सोचती है.

मां और बाबूजी भी सोचते हैं कि निर्मला की जिंदगी कैसे कटेगी? वे खुद भी चाहते थे कि निर्मला की दोबारा शादी हो जाए, मगर समाज की बेडि़यों से वे भी बंधे हुए थे.

इसी कशमकश में समाज के कुछ ठेकेदार पवन सेठ का रिश्ता ले कर निर्मला के बाबूजी के पास आ गए.

बाबूजी को मालूम था कि पवन सेठ बहुत पैसे वाला है. उस का बड़ा भाई मनोहर सेठ के नाम से मशहूर है. मगर दोनों भाइयों के बीच 30 साल पहले ही घर की जायदाद को ले कर रिश्ता खत्म हो गया था. आज तक दोनों के बीच बोलचाल बंद है.

बाबूजी यह भी जानते थे कि पवन सेठ 64 साल के ऊपर है. यह बेमेल गठबंधन कैसे होगा? तब समाज के ठेकेदारों ने एक ही बात बाबूजी को सम झाने की कोशिश की थी कि यह निर्मला की जिंदगी का सवाल है. पवन सेठ के साथ वह खुश रहेगी.

तब बाबूजी ने सवाल उठाया था कि पवन सेठ नदी किनारे खड़ा वह ठूंठ है कि कब बहाव में बह जाए. फिर निर्मला विधवा की विधवा रह जाएगी. तब समाज के ठेकेदारों ने बाबूजी को सम झाया कि देखो, वह विधवा जरूर हो जाएगी, मगर सेठ की जायदाद की मालकिन बन कर रहेगी.

तब बाबूजी ने निर्मला से पूछा था, ‘निर्मला तुम्हारे लिए रिश्ता आया है.’

वह सम झते हुए भी अनजान बनते हुए बोली, ‘रिश्ता और मेरे लिए?’

‘हां निर्मला, तुम्हारे लिए रिश्ता.’

‘मगर बाबूजी, मैं एक विधवा हूं और विधवा की दोबारा शादी नहीं हो सकती,’ अपने पिता को सम झाते हुए निर्मला बोली थी.

‘हां, नहीं हो सकती है, मैं जानता हूं. मगर जब सोचता हूं कि तुम यह लंबी उम्र कैसे काटोगी, तो डर जाता हूं.’

‘जैसे, कोई दूसरी विधवा काटती है, वैसे ही काटूंगी बाबूजी,’ निर्मला ने जब यह बात कही, तब बाबूजी सोचविचार में पड़ गए थे.

तब निर्मला खुद ही बोली थी, ‘मगर बाबूजी, मैं आप की भावनाओं को भी अच्छी तरह सम झती हूं. आप बूढ़े पवन सेठ के साथ मेरा ब्याह करना चाहते हैं.’

‘हां बेटी, वहां तेरी जिंदगी अच्छी तरह कट जाएगी और विधवा की जिंदगी से छुटकारा भी मिल जाएगा,’ बोल कर बाबूजी ने अपने मन की सारी बात कह डाली थी. तब वह भी सहमति देते हुए बोली थी, ‘बाबूजी, आप किसी तरह की चिंता मत करें. मैं यह शादी करने के लिए तैयार हूं.’

यह सुन कर बाबूजी का चेहरा खिल गया था. फिर पवन सेठ के साथ निर्मला की बेमेल शादी हो गई.

निर्मला पवन सेठ के बंगले में आ गई थी. दुकान के नौकर अलग, घर के नौकर अलग थे. घर का नौकर रामलाल 20 साल का गबरू जवान था. बाकी तो वहां अधेड़ औरतें थीं.

जब पवन सेठ के साथ निर्मला हमबिस्तर होती थी, वह बहुत जल्दी ठंडा पड़ जाता था. राजेश के साथ जो रातें गुजारी थीं, पवन सेठ के साथ वैसा मजा नहीं मिलता था.

पवन सेठ ने कई बार उस से कहा था, ‘निर्मला, तुम मेरी दूसरी पत्नी हो. उम्र में बेटी के बराबर हो. अगर मेरी पहली पत्नी से कोई औलाद होती, तब वह तुम्हारी उम्र के बराबर होती. मैं तु झ से औलाद की आस रखता हूं. तुम मु झे एक औलाद दे दो.’

‘औलाद देना मेरे अकेले के हाथ में नहीं है,’ निर्मला अपनी बात रखते हुए बोली, ‘मगर, मैं देख रही हूं…’

‘क्या देख रही हो?’ उसे रुकते देख पवन सेठ ने पूछा.

‘हमारी शादी के 6 महीने हो गए हैं, मगर जितना जोश पैदा होता, वह पलभर में खत्म हो जाता है.’

‘अब मैं उम्र की ढलान पर हूं, फिर भी औलाद चाहता हूं,’ पवन सेठ की आंखों का इशारा वह सम झ गई. तब उस ने नौकर रामलाल से बातचीत करना शुरू किया.

निर्मला उसे बारबार किसी बहाने अपने कमरे में बुलाती, आंखों में हवस लाती. कभी वह अपना आंचल गिराती, कभी ब्लाउज का ऊपरी बटन खोल देती, तो कभी पेटीकोट जांघों तक चढ़ा लेती. मर्द कैसा भी पत्थरदिल हो, आखिर एक दिन पिघल ही जाता है.

रामलाल ने कहा, ‘मेम साहब, आप का मु झे देख कर बारबार आंचल गिराना मु झे अच्छा नहीं लगता. आप क्यों ऐसा करती हैं?’

‘अरे बुद्धू, इतना भी नहीं सम झता है,’ निर्मला मुसकरा कर बोली और उस के गाल को चूम लिया.

‘सम झता तो मैं सबकुछ हूं, मगर मालिक…’

‘मालिक कुछ भी नहीं कहेंगे,’ बीच में ही उस की बात काट कर निर्मला बोली, ‘मालिक से क्यों घबराता है?’

यह सुन कर रामलाल पहले तो हैरान हुआ, फिर धीरे से मुसकरा दिया. उस ने आव न देखा न ताव निर्मला को दबोच लिया और उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

निर्मला ने कुछ नहीं कहा. फिर क्या था, निर्मला की शह पा कर जब भी मौका मिलता, वे दोनों हमबिस्तर हो जाते. इस का फायदा यह हुआ कि निर्मला का जोश शांत होने लगा था और एक दिन वह पेट से हो गई.

पवन सेठ बहुत खुश हुआ और जब पहला ही लड़का पैदा हुआ, तब पवन सेठ की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा.

निर्मला और बच्चे की देखरेख के लिए एक आया रख ली गई. जब भी बाजार या कहीं दूसरी जगह जाना होता, निर्मला अपने बच्चे को आया के पास छोड़ जाती है. मगर आज उस की ममता जाग गई थी, इसलिए साथ ले गई थी.

‘‘मेम साहब, बंगला आ गया,’’ जब ड्राइवर ने यह कहा, तब निर्मला पुरानी यादों से लौटी. जब वह कार से उतरने लगी, तब ड्राइवर ने पूछा, ‘‘मेम साहब, जिस दुकान पर आप खरीदारी करने पहुंची थीं, वहां से बिना खरीदारी किए क्यों लौट आईं?’’

‘‘मेरा मूड बदल गया,’’ निर्मला ने जवाब दिया.

‘‘मूड तो नहीं बदला मेम साहब, मगर मैं सब समझ गया,’’ कह कर ड्राइवर मुसकराया.

‘‘क्या सम झे मानमल?’’ गुस्से से निर्मला बोली.

‘‘इस बच्चे को ले कर उन औरतों ने…’’

‘‘देखो मानमल, तुम अपनी औकात में रहो,’’ बीच में ही बात काट कर निर्मला बोली.

‘‘हां मेम साहब, मैं भूल गया था कि मैं आप का ड्राइवर हूं,’’ माफी मांगते हुए मानमल बोला, ‘‘मगर, सच बात तो होंठों पर आ ही जाती है.’’

‘‘क्या सच बात होंठों पर आ जाती है?’’ निर्मला ने पूछा.

‘‘यही मेम साहब कि उन दोनों औरतों ने बच्चे को देख कर कहा होगा कि यह बच्चा सेठजी का खून नहीं है, बल्कि उन के नौकर रामलाल का है,’’ मानमल ने साफसाफ कह दिया.

तब निर्मला गुस्से से बोली, ‘‘देखो मानमल, तुम हमारे नौकर हो और अपनी हद में रहो. औरों की तरह हमारे संबंधों को ले कर बात करने की जरूरत नहीं है,’’ कह कर निर्मला कार से उतर गई.

अभी निर्मला दालान पार कर रही थी कि आया ने आ कर बच्चे को उस से ले लिया. मानमल फिर मुसकरा दिया.

मरजी की मालकिन: भाग 1 घर की चारदीवारी से निकलकर अपने सपनों को पंख देना चाहती थी रश्मि

रश्मि घर की चारदीवारी से बाहर निकल कर अपने सपनों को पंख देना चाहती थी. मगर वह लाख कोशिशों के बावजूद भी खुद और परिवार के मध्य संतुलन नहीं बैठा पा रही थी. इस से पहले कि वह कोई ठोस निर्णय लेती, घर में एक घटना घट गई…

‘‘मां,अनीता मौसी इज कालिंग यू,’’ 7 वर्षीय अक्षिता ने रश्मि को फोन ला कर दिया. उधर से अनीता की खनकती आवाज आई, ‘‘तू तो हीरोइन बन गई माई डियर… पूरे औफिस में बस तेरे ही चर्चे हैं.’’ ‘‘पर मैं ने ऐसा किया क्या है…’’ ‘‘वह तू कल आएगी तब देखना… अभी तो मैं इसे राज ही रहने देती हूं. बस इतना सम  झ ले कि तेरी 1 महीने की मेहनत सफल हो गई है और राज सर खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं,’’ कह कर अनीता ने फोन रख दिया.

‘‘यह अनीता भी न सुरसुरी छोड़ने की अपनी आदत से बाज नहीं आएगी… आधी बात भी बताने की क्या जरूरत थी. अब खुद तो चैन की नींद सोएगी और मैं रातभर करवटें बदलूंगी,’’ बड़बड़ाते हुए रश्मि किचिन समेटने में लग गई. 8 बज रहे थे. अभी अक्षिता को पढ़ाना बाकी था.

औफिस से आने के बाद टीवी के सामने जमे पति अनुराग की बगल में बैठी अक्षिता को रश्मि ने आवाज लगाई. 1 घंटा पढ़ाने के बाद चैन की सांस ले कर बैड पर जैसे ही लेटी तो अनीता के शब्द उस के कानों में गूंजने लगे… उसे याद आ गया अपना औफिस जहां वह पिछले 1 साल से एज ए पार्ट टाइम वर्कर काम कर रही थी और हाल ही में एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रोजैक्ट उस के हाथ में था जिस का परिणाम आज ही आने वाला था. तबीयत ठीक नहीं होने के कारण वह पिछले 3 दिन से अवकाश पर थी. खैर, कल का कलदेखा जाएगी, यह सोच कर उस ने एक लंबी सांस ली और सोने का प्रयास करने लगी.

अगले दिन सुबह औफिस पहुंच कर रश्मि अपनी सीट पर आ कर बैठी ही थी कि चपरासी रामदीन ने आ कर बोला, ‘‘साहब आप को बुला रहे हैं.’’ जैसे ही रश्मि ने राज सर के कैबिन का दरवाजा खोला वे अपनी सीट से उठ खड़े हुए और उत्साह से भर कर बोले, ‘‘वाहवाह बधाईबधाई रश्मिजी आप ने तो कमाल ही कर दिया जिस प्रोजैक्ट की हम ने उम्मीद ही छोड़ दी थी उसे हासिल कर के आप ने दिखा दिया कि प्रतिभा किसी की मुहताज नहीं होती.’’ ‘‘नहीं सर ऐसा कुछ नहीं है मैं ने तो बस अपना काम ईमानदारी से किया है,’’ रश्मि ने विनम्रता से कहा.

‘‘वही तो लोग नहीं करते… मैं ने आप की काम के प्रति लगन देख कर ही यह प्रोजैक्ट आप को दिया था. फुल टाइम वाले भी इतनी ईमानदारी से काम नहीं करते जितना आप पार्ट टाइम में लर लेती हैं. अब आज से हमारी कंपनी की आप परमानैंट वर्कर हैं. कंपनी के सारे टैंडर वर्क आप ही देखेंगी. हां, हमेशा की तरह आप के लिए टाइम की कोई बंदिश अभी भी नहीं रहेगी. हमें तो बस काम चाहिए.’’

‘‘जी सर,’’ कह कर रश्मि आ कर अपनी सीट पर बैठ गई. तभी अनीता ने आ कर पीछे से उस की आंखें बंद कर लीं. अनीता के स्पर्श को वह बहुत अच्छी तरह जानती थी सो हाथ पकड़ कर उसे अपने सामने किया और शिकायती लहजे में बोली, ‘‘तु  झे तो मैं छोड़ूंगी नहीं कल सुरसुरी छोड़ कर खुद तो चैन से सोई और मैं सो ही नहीं पाई.’’

‘‘अब चल इतनी बड़ी खुशी को सैलिब्रेट भी करेगी या ऐसे ही बातें बनाती रहेगी. चल कैंटीन में कौफी पी कर आते हैं,’’ कह कर दोनों कैंटीन की तरफ बढ़ गईं. ‘‘रियली आई एम प्राउड औफ यू यार… राज सर तो क्या किसी को अंदाजा नहीं था कि यह 2 करोड़ का प्रोजैक्ट हमें मिल पाएगा. पर तूने क्या कैलकुलेशन लगा कर टैंडर डलवाया कि प्रोजैक्ट हमें मिल गया.’’

‘चल अब ज्यादा फूंस के   झाड़ पे मत चढ़ा… कौफी पी और चल अभी बहुत सारे काम बाकी हैं.’’ उस दिन अगले कुछ प्रोजैक्ट के भी टैंडर डलवाने थे सो उन की प्लानिंग उस ने अपनी 2 असिस्टैंट के साथ मिल कर की और 2 बजे औफिस से निकल कर घर आ गई. घर आ कर अक्षिता को खाना खिला कर जो सुलाने लेटी तो बंद पलकों में अतीत के कुछ पन्ने भी धीरेधीरे फड़फड़ाने लगे…

वह उस समय बीए की छात्रा थी जब एक दिन अपनी सहपाठियों से अर्थशास्त्र के कुछ नोट्स मांग रही थी और सभी उसे देने में अनाकानी कर रहे थे. तभी वर्तमान पति अनुराग ने उस की ओर अपनी नोट्स की कौपी बढाते हुए कहा, ‘‘आप मेरी कौपी ले लीजिए शायद आप का काम हो जाएगा.’’

रश्मि ने जैसे ही पलट कर देखा तो सामने एक लंबा, गौरवर्ण का नवयुवक खड़ा था जो उस की ही कक्षा का था. उसे याद आया कि वह क्लास के मेधावी छात्रों में गिना जाता है. आमतौर पर उस ने उसे दूसरों से कम बात करते ही देखा था बल्कि कई बार तो क्लास की कई लड़कियों ने उस की बुद्धिमत्ता को देखते हुए मेलजोल बढ़ाने की कोशिश भी की थी पर अंतर्मुखी प्रवृत्ति के अनुराग पर अपना जादू चलाने में सफलता प्राप्त नहीं कर पाई थीं.

ऐसे में आगे रह कर उसे कापी देना रश्मि को कुछ अजीब सा तो लगा परंतु अपना काम बनता देख वह धीरे से बोली, ‘‘जी बहुतबहुत धन्यवाद. मैं कल अवश्य ले आऊंगी वह मु  झे ज्वाइंडिस हो गया था तो मैं कुछ दिनों से आ नहीं पाई इसलिए…’’ रश्मि ने अपनी ओर से सफाई देते हुए कहा.

‘‘इट्स ओके नो प्रौब्लम,’’ कह कर अनुराग आगे बढ़ गया.

उस दिन के बाद से ही उस की और अनुराग की थोड़ीबहुत बातचीत प्रारंभ हो गई. दोनों युवा थे, प्रथम मुलाकात के आकर्षण का ही असर था कि वे परस्पर धीरेधीरे एकदूसरे को पसंद करने लगे परंतु यह पसंद कब प्यार में परिवर्तित हो गई दोनों ही नहीं जान पाए.

प्रारंभिक बातचीत में ही एक दिन अनुराग ने उसे बताया कि वह पटना का रहने वाला है. घर में मातापिता के अलावा एक छोटी बहन है जो अभी स्कूल में है. पिता एक सरकारी स्कूल में प्राथमिक शिक्षक हैं. घर के आर्थिक हालात भी बहुत अच्छे नहीं हैं सो वह यहां बनारस में अपनी पढ़ाई का खर्च भी ट्यूशन कर के निकालता है.

‘ड्रामा क्वीन’ Rakhi Sawant की बढ़ी मुश्किलें, समीर वानखेड़े ने किया मानहानि का केस

Rakhi Sawant: अगर सुर्खियों में रहना है, तो कोई कॉन्ट्रोवर्सी क्वीन राखी सावंत से सिखे. अक्सर राखी किसी न किसी वजह से सुर्खियों में छाई रहती हैं. हाल ही में खबर आई थी कि राखी के एक्स हसबैंड एक्स हसबैंड आदिल दुर्रानी ने दूसरी शादी कर ली, इस वजह से भी एक्ट्रेस सुर्खियों में छाई रहीं और उन्होंने अपने एक्स पति की दूसरी शादी के बारे में भी काफी कुछ बोला.

अब राखी से जुड़ा एक नया मामला सामने आया है. बताया जा रहा है कि राखी सावंत पर मानहानी का मुकदमा दायर किया गया है. जी हां सही सुना आपने, राखी इस बार कानूनी पचड़े में फंस गई हैं.

समीर वानखेड़े ने राखी पर किया मानहानि का केस

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राखी सावंत के खिलाफ नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो मुंबई के पूर्व जोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े ने मानहानि का मुकदमा दर्ज करवाया है, इतना ही नहीं  समीर वानखेड़े ने इस मामले में राखी के वकील काशिफ अली खान को भी घसीट लिया है. उन्होंने राखी और उनके वकील काशिफ अली खान समीर पर छवि खराब करने की आरोप लगाया है. आइए जानते हैं, क्या है पूरा मामला.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, समीर वानखेड़े ने अपने मुकदमे में साल 2003 के एक इंटरव्यू का हवाला दिया है, जिसमें उन्होंने राखी के वकील काशिफ अली के बयान जिक्र किया है. इस मुकदमे में दावा किया गया है कि काशिफ अली ने समीर वानखेड़े को मीडिया जुनूनी और सेलेब्स को निशाना बनाने वाला बताया है, जिस वजह से समीर वानखेड़े की छवि खराब हुई है.

काशिफ अली ने समीर के बयान को बताया पब्लिसिटी स्टंट

इस मामले में समीर वानखेड़े ने यह भी कहा है कि काशिफ अली खान ने सोशल मीडिया पर एक स्टोरी पोस्ट की थी, जिसे राखी सावंत ने अपने अकाउंट पर शेयर किया था. उन्होंने दावा किया कि इस तरह उनकी छवि को हानि पहुंचाने की कोशिश की गई. तो दूसरी तरफ काशिफ अली ने समीर वानखेडे़ के इस बयान को पब्लिसिटी स्टंट बताया है.

खबरों के मुताबिक, काशिफ अली खान ने अपनी सफाई पेश की है, उन्होंने कहा कि कानून में जनता की भलाई के लिए बोली गई बात पर कभी मानहानि नहीं होती है. मैं इसका कोर्ट में जरूर उन्हें करारा जवाब दूंगा. अगर समीर वानखेड़े का आरोप साबित हो गया, तो मैं 11 लाख रुपये देने के लिए तैयार हो जाऊंगा.

निर्णय: भाग 1 वक्त के दोहराये पर खड़ी सोनू की मां

रेलवे स्टेशन से बाहर निकल कर जब वह टैक्सी लेने लगी तो पलभर के लिए उस का मन हुआ कि घर न जा कर वह कहीं भाग जाए सोनू को ले कर. फिर उतनी ही त्वरित गति से उस की आंखों के सामने उस की अपनी तीनों मासूम बेटियों का चेहरा घूम गया. अपना घर, पति, बच्चे एक स्त्री का संपूर्ण संसार तो बस इन्हीं तानोंबानों में जकड़ा होता है. भाग सकने की गुंजाइश ही कहां छोड़ता है स्त्री का अपना मन. नहीं, हार मानने से नहीं चलेगा. स्त्री जब एक बार मातृत्व के गुरुगंभीर पद पर आसीन हो जाती है तो उस पद की रक्षा करने का दुर्दम्य साहस भी स्वयमेव ही चला आता है. अपनी सुषुप्त शक्ति को पहचानने भर की देर होती है, बस. नहीं, वह हार नहीं मानेगी.

भीतर ही भीतर स्वयं को दृढ़ता का पाठ पढ़ाती, तौलती, परखती वह टैक्सी में जा बैठी, रामबाग, अपने घर का पता बता कर उस ने सोनू को सीट पर बिठा दिया. बैग आगे की खाली सीट पर रख दिया. पर्स  से उस ने सोनू के दूध की बोतल निकाली और उसे पकड़ा दी. सोनू उस से टिक कर अधलेटा हो गया. खुद को उस ने सीट पर ढीला छोड़ दिया तथा आंखें बंद कर लीं. अपने 3 दिन के ससुराल प्रवास की एकएक बात उस के सिर पर हथौडे़ सी बज रही थी. विदा लेते समय छोटी ननद सरिता ने भावावेग में उस का हाथ कस कर पकड़ लिया था. उस ने कहा था, ‘अपनाया है तो रिश्तों को ईमानदारी से निभाओ. सचाइयों से घबरा कर संबंधों के प्रति बेईमान नहीं हुआ जा सकता, फिर मांबच्चे का संबंध किसी भी सहमति का मुहताज नहीं होता.’

‘ईमानदारी से भी अधिक जरूरी साहस है इस रिश्ते में.’ अपनी भर्राई हुई टूटती आवाज में कह कर वह कार में बैठ गई थी. सरिता वहीं, घर के गेट पर खड़ी उसे जाता हुआ देखती रही थी. वापसी के पूरे सफर में सरिता की कही बातें उस के दिमाग में घूमती रही थीं. वह रोना चाहती थी, चिल्लाचिल्ला कर अपने भीतर का सारा आक्रोश निकाल देना चाहती थी. क्यों उस के आसपास के सारे लोग इतने स्वार्थी हो कर सोच रहे हैं. क्यों सरिता के सिवा किसी अन्य को उस का दर्द दिखाई नहीं देता. इतना निर्मम तथा कठोर कैसे हो सकता है कोई. यों तो वह जब भी ससुराल से लौटी है, कभी खाली नहीं लौटी. मां तथा बड़ी ननद, सुषमा जिज्जी की तीखीकड़वी बातों से भरा दुखी, हताश दिलदिमाग ले कर ही लौटी है. पर डेढ़ साल पहले जब पहली बार नन्हे से सोनू को गोद में लिए ससुराल आई थी तो इन्हीं मां तथा जिज्जी ने हम दोनों को जैसे पलकों पर उठा लिया था. पोते को गोद में उठाए दादी पूरे महल्ले में घूम आई थीं. रोज शाम के वक्त उस की नजर उतारती थीं…और अब? एक सच ने मानो ममता, प्रेम, वात्सल्य सब पर डाका ही डाल दिया था. आने से पहले उसे तनिक भी अंदेशा नहीं था कि वहां ये सब हो जाएगा. अनमनी अवश्य थी, पहली बार अकेले जा रही थी, जबकि लड़कियों की परीक्षाएं सिर पर थीं. बूआ के पोते के नामकरण पर जाना कोई इतना जरूरी तो नहीं था, पर नीलाभ नहीं माने. दरअसल, उस का ससुराल और नीलाभ की बूआ का घर एक ही महल्ले में है. इसीलिए उन का तर्क था कि बूआ के घर की खुशी में सम्मिलित होने के बहाने वह अपने ससुराल वालों से भी मिल आएगी. साथ ही, सारी बिरादरी से भी मेलमुलाकात हो जाएगी. एक तरह से नीलाभ ने उसे जबरन ठेलठाल कर भेजा था.

उसे चिढ़ हो रही थी नीलाभ की बचकानी जिद पर. वह उस के पीछे छिपी उन की मंशा को भांप नहीं पाई थी. ट्रेन  4 घंटे लेट थी. ससुराल का ड्राइवर स्टेशन पर उस का इंतजार कर रहा था. घर पहुंची तो वहां की हवा में उसे कुछ भारीपन सा लगा था. मां व जिज्जी दोनों ही कुछ उखड़ीउखड़ी लग रही थीं. सोनू को भी दोनों में से किसी ने हुलस कर पहले की भांति गोद में उठा कर लाड़प्यार की बौछार नहीं की थी. उस का जी तो उसी समय हुड़क गया था. जेठानी प्रभा औपचारिक नमस्ते के बाद रसोई में जा घुसी थीं. कुछ देर बाद चायनाश्ता व सोनू का दूध रख कर फिर गायब  हो गई थीं. नौकर से कह कर मां ने उस का सामान ऊपर वाले छोटे कमरे में रखवा दिया था. शाम 5 बजे बूआ के घर के लिए निकलने व अभी ऊपर जा कर आराम करने की हिदायत दे कर दोनों उसे बैठक में अकेला छोड़ कर निकल गई थीं. उस का व सोनू का खाना भी जिज्जी ने ऊपर ही भिजवा दिया था, जिस का एक निवाला तक उस के गले नहीं उतरा था.

4 साढ़े 4 बजे वह नीचे आई तो देखा, मां ने पूरी तैयारी कर रखी है. अपनी ननद के घर जोजो नेग ले कर जाने हैं वे सब पलंग पर फैला रखे थे. उसे सब दिखाती हुई मां बोलीं, ‘छोरियां चाहे बूढ़ी ही क्यों न हों, रहेंगी छोरियां ही न घर की. माई, बापू और भाई का साया सिर पर से उठ गया तो क्या हुआ, भौजी तो जिंदा है न अभी. मेरे होते कभी मायके की कमी न अखरेगी तुम्हारी बूआ को. इतने दिनों के बाद आई है उस के घर में खुशी, सारी बिरादरी देखेगी, इसीलिए करना पड़े है ये सब.’ लहूलुहान कलेजे के बावजूद हंसी ने एक हिलोर ले ली थी, जिसे उस ने भीतर ही दबा लिया. दोहरी बातें करने में पारंगत हैं मां. तोहफे तो उस के पास भी थे. नीलाभ ने अपनी मां, जिज्जी, भाई, भाभी तथा बच्चों के लिए अलगअलग उपहार भेजे थे. सब ज्यों के त्यों रखे थे बैग में. जब बैग खोला तो सारे उपहार मुंह चिढ़ाते से लगे थे उसे. ये जो सब मिल कर उस की भावनाओं की, ममता की हत्या करने पर तुले हुए हैं, उन्हें किस कलेजे से जा कर थमाए उपहार.

फिर पता नहीं क्या सोच कर वह उठी और अपनी तरफ से बूआ को देने लाए हुए उपहार निकाल लाई. बूआ तथा उन की बहू की साड़ी व नवजात पोते के लिए चांदी के तार में काले मोतियों वाले कड़े लाई थी वह. मां को दिखा कर ये सामान भी  उस ने अन्य वस्तुओं के साथ पलंग पर रख दिया. कुछ भी हो, बिरादरी के सामने तो घर की बातों को ढक कर ही रखना पड़ता है. बहू हो कर वह अलग से कैसे करेगी लेनदेन.

मन की कड़वाहट मन में ही दबा ली थी उस ने इस समय. कुछ ही देर पहले तो मां ने छोरियां जनने वाली डायन कहा था उसे. ‘मुझे तो पहले से ही शक था कि यह इस का अपना जाया नहीं है,’ जिज्जी बोली थीं. दोनों आंगन में चारपाई डाले साग बीन रही थीं. उन्हें पता नहीं था कि वह आंगन के ठीक ऊपर लगे लोहे के जाल की मुंडेर पर खड़ी सुन रही है. अभी नहा कर निकली थी वह. सफर में पहने अपने व सोनू के कपड़े धो डाले थे उस ने. तार पर सूखने को डाल रही थी. ‘इस औरत ने पता नहीं क्या जादू कर रखा है. अपना नीलाभ तो ऐसा कभी नहीं था. इतने साल भनक तक न लगने दी सचाई की. अब जो भी है, इस अपाहिज से पीछा तो छुड़ाना ही होगा भाई का,’ जिज्जी की जहरीली फुफकार से उस का रोमरोम जल उठा था. कोई स्त्री इतनी कठोर कैसे हो सकती है. मां कहती हैं, उन का बेटा उस के बहकावे में आ गया है. बेशक, अलग गृहस्थी बसा कर बैठी है, पर बहू है घर की, बहू बन कर रहे. सिर पर चढ़ कर नाचने न देंगे. नीलाभ अनाथ नहीं है, उस के सिर पर मां का साया है अभी. बहू हो कर इतना बड़ा निर्णय लेने का उस अकेली को कोई हक नहीं.’

Aishwarya Sharma ने सोशल मीडिया पर यूजर्स की लगाई क्लास, आखिर क्या है माजरा?

Aishwarya Sharma Pregnant: ‘गुम है किसी के प्यार में’ की फेमस एक्ट्रेस ऐश्वर्या शर्मा यानी पाखी सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. वह आए दिन अपने फैंस के साथ फोटोज और वीडियोज शेयर करती हैं. फैंस को भी उनके पोस्ट का बेसब्री से इंतजार रहता है.

पोस्ट के जरिए लोगों की लगाई क्लास

हाल ही में ऐश्वर्या शर्मा ने इंस्टाग्राम स्टोरी पर एक पोस्ट शेयर किया है, जिसमें उन्होंने अपना भड़ास निकाला है. दरअसल एक्ट्रेस ने इस पोस्ट के जरिए प्रेग्नेंसी की खबरों को झूठा और बकवास बताया. उन्होंने इस झूठी खबरें फैलाने वाले लोगों की क्लास भी लगाई है.

 

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आखिर क्यों नाराज है पाखी

कुछ दिनों पहले बताया गया कि होली प्रोग्राम के दौरान ऐश्वर्या शर्मा स्टेज पर डांस कर रही थीं और उसी दौरान नीचे गिर गईं. ऐसे में उनके पति नील भट्ट दौड़ते हुए आए और उन्हें ट्रीटमेंट के लिए फौरन अस्पताल ले गए.  बाद में बताया गया कि अब एक्ट्रेस ठीक हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर एक्ट्रेस के बेहोश होने की बात को प्रेग्नेंसी से जोड़ने लगे. झूठी खबरे फैलने लगी कि एक्ट्रेस मां बनने वाली है, ऐसे में ऐश्वर्या शर्मा आगबबूला हो गई और इंस्टाग्राम पोस्ट के जरिए अपनी भड़ास निकाली.

इंस्टा स्टोरी पर कहीं ये बात

ऐश्वर्या शर्मा ने इंस्टा स्टोरी पर लिखा, ‘मैं तीसरी बार आप लोगों से ये बात कह रही हूं. मुझे लेकर कोई भी ख्याली पुलाव ना बनाएं. मैं भी इंसान हूं मेरा भी बीपी लो हो सकता है. मेरा बीपी काफी लो हो गया था जिस वजह से मैं सेट पर बेहोश हो गई थी. मैं प्रेग्नेंट नहीं हूं. इस तरह की अफवाह फैलाना बंद करें.’

 

आपको बता दें कि निल भट्ट और ऐश्वर्या शर्मा की शादी 30 नवंबर 2021 को हुई थी. ये दोनों आखिरी बार बिग बॉस 17 में नजर आए थे. इनकी शो गुम है किसी के प्यार में लोगों ने काफी पसंद किया है. इस शो में  ऐश्वर्या शर्मा निगेटिव किरदार में नजर आई थीं.

Lakme Fashion Week 2024: फैशन और सेलेब्स का क्या है कनेक्शन, पढें यहां

Lakme Fashion Week 2024: फैशन की दुनिया मे सेलिब्रिटी का बहुत अधिक योगदान होता है, यही वजह है कि हर फैशन शो में सेलिब्रिटी रैम्प वाक करते हैं और अपने जलवे से सबको मोहित करते हैं. इन दिनों ‘लैक्मे फैशन वीक 2024’ में हर शो की शान शो टॉप पर रहे. हर साल की तरह इस बार भी बॉलीवुड सितारों से सजा हुआ फैशन वीक रहा. रैंप पर जाह्नवी कपूर ने हर बार की तरह इस बार भी लोगों को अपने अंदाज से दीवाना बनाया. इस बार जाह्नवी रैंप पर अकेली नहीं, बल्कि उनके साथ आदित्य रॉय कपूर भी चलते दिखाई दिए. इसके अलावा अनन्या पांडे, ऋचा चड्ढा, अली फजल, विजय वर्मा, अर्जुन रामपाल, दिया मिर्जा, तृप्ति ढिमरी, डायना पेंटी आदि सभी सितारे रैंप पर जलवा बिखेरते हुए दिखाई दिए, क्योंकि वे इस मंच को अपने कैरियर का महत्वपूर्ण अंग मानती है, जिसपर चलकर वे सबकी निगाह मे आती है. फैशन को लेकर इन अभिनेत्रियों के विचार क्या थे, आइए जाने,

माधुरी दीक्षित

धक – धक गर्ल माधुरी दीक्षित रन्ना गिल की डिजाइन की हुई ब्लैक पलाजों पैंट के साथ  पहनकर रैंप पर उतरीं. इस दौरान एक्ट्रेस की अदाओं ने लोगों की दिल जीत लिया. फैशन के बारें में माधुरी का कहना था कि उन्हें हर तरीके की फैशन पसंद है और ग्लैमर वर्ल्ड में फैशन महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

सोनल चौहान  

सोनल चौहान ने सेजल कामदार, चारु और वसुंधरा का डिजाइन किया हुआ आउटफिट पहना, जो बहुत ही आकर्षक था. सोनल कहती है मेरा स्टाइल स्टैटमेंट सिम्पल रहना है, लेकिन किसी अवसर पर फैशनेबल ड्रेस पहनना मैँ पसंद करती हूँ.

डायना पेन्टी  

अभिनेत्री डायना पेंटी ने ऑफ व्हाइट रंग का खूबसूरत लहंगा पहनकर जलवा बिखेरा. वह इस लहंगे में बहुत खूबसूरत दिख रहीं थीं. इस लहंगे के साथ उन्होंने अपने दुपट्टे को केप के स्टाइल में कैरी किया था. उनके हिसाब से फैशन उन्हे आरामदायक पसंद है, फिर चाहे कोई भी पोशाक हो, वह कैरी कर सकती है.

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मलाइका अरोड़ा

मॉडल और अभिनेत्री मलाइका हमेशा हर तरह के आउटफिट में खूबसूरत दिखती हैं. फैशन वीक की रैंप पर वो खूबसूरत सा ग्रीन रंग का लहंगा पहने नजर आईं. मलाइका पिछले 15 साल से इस फैशन शो की रैम्प पर चल रही है. मलाइका के इस लहंगे पर पीले रंग का फ्लोरल वर्क था, जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था.  इसके साथ एक्ट्रेस ने गले में हैवी नेकपीस पहना था. मलाइका कहती है कि मेरे लिए फैशन का अर्थ सुन्दर लगना है और वह किसी भी पोशाक के साथ हो सकती है. सही तरह से सिले हुए कपड़े पहनना मेरे लिए जरूरी होता है.

श्रुति हसन

अपनी खूबसूरती से लोगों को दीवाना बनाने वाली अभिनेत्री श्रुति हासन रैंप पर ब्लू कलर के लहंगे में नजर आईं.  उन्होंने अपने इस लुक से वहां मौजूद लोगों का खूब ध्यान खींचा. एक्ट्रेस ने अपने इस लहंगा लुक के साथ दुपट्टा नहीं लिया था. फैशन के बारें में उनका कहना है कि फैशन किसी महिला को हमेशा से पसंद होता है और मुझे भी नई – नई ड्रेसेस को ट्राय करना बहुत पसंद है. मेरे लिए ऐसे नए डिजाइनर कपड़ों को पहनना अच्छी बात होती है.

फातिमा सना शेख  

एक्ट्रेस फातिमा सना शेख के ब्लू रंग के लहंगे पर काफी खूबसूरत कढ़ाई की गई थी, जिसे आज के यूथ किसी पार्टी या त्योहारों पर पहन सकती है.  वहीं इसके साथ उन्होंने जो ब्लाउज पहना था, उसकी नेकलाइन भी बेहद खूबसूरत थी. इसके अलावा उन्होंने कानों में हल्के से स्टड ईयररिंग्स पहने थे. फैशन उनके लिए एक आत्मविश्वास है, जो किसी को भी आगे बढ़ने में मदद करती है.

सारा अली खान

सारा ने एक बार फिर अपने ट्रेडिशनल लुक से सभी को अपना दीवाना बना दिया. फैशन शो में एक्ट्रेस ने डिजाइनर वरुण चक्कीलम की डिजाइन की हुई सी ग्रीन शिमरी सिल्वर लहंगा और डीप नेक बिकनी ब्लाउज कैरी किया था, जिसमें उनकी टोंड बॉडी की झलक बहुत सुन्दर दिख रही थी. फैशन, सारा के लिए कम्फर्ट का होना है, वह किसी भी ड्रेस को पहनने से पहले इसकी जांच करती है. किसी ड्रेस के साथ रैम्प पर चलने से पहले आज भी उन्हे स्ट्रेस होता है.

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जान्हवी कपूर

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क्रिस्टल, टैसल्स और फ्लोरल मोटिफ्स के साथ फिश-कट लहंगा पहने जान्हवी का लुक बिल्कुल फेरी टेल जैसा रहा. उन्होंने अभिनेता आदित्य रॉय कपूर के साथ रैंप पर कल्कि लेबल के लिए एक साथ वॉक किया. साथ ही निर्मोहा की डिजानर ड्रेस पहनकर रैंप पर उतरीं आदिती राव हैदरी की खूबसूरती देखने लायक थी. वहीं बॉलीवुड दिवा अनन्या पांडे भी राहुल मिश्रा के लिए ब्लैक कलर की ड्रेस में रैंप पर उतरीं.

नकली दवाइयां: कौन है संरक्षक

लगभग 70 वर्ष पूर्व एक फिल्म आई थी- अनाड़ी . निर्देशक थे महान फिल्मकार ऋषिकेश मुखर्जी. इस फिल्म के माध्यम से यह संदेश दिया गया था कि देश में नकली दवाइयां का व्यापार चल रहा है और यह समाज के लिए कितना खतरनाक है. और इसके बाद गंगा में न जाने कितना पानी बह गया मगर देश में आज भी नकली दवाइयां बेची जा रही है. लाख टके का सवाल लिया है कि आखिर नकली दवाइयां के व्यापार के पीछे कौन है और इनका संरक्षक कौन है? सीधी सी बात यह है कि अगर शासन प्रशासन में बैठे हुए लोगों का संरक्षण इन नकली दवाइयां को बेचने वालों को ना मिले तो यह नकली दवाइयां बेचने की हिम्मत नहीं कर सकते. हमारे देश का कानून अपने आप में इतना पर्याप्त है कि ऐसे लोगों की गिरेबान को पकड़ सकता है और भारतीय समाज कि आज भी यह स्थिति है कि ऐसे लोगों को अच्छी निगाह से कभी नहीं देख सकता. ऐसे में अगर कोई नकली दवाइयां बेचने का काम कर रहा है बनाने का काम कर रहा है तो यह हमारे लोकतंत्र के लिए एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है और इंगित करता है कि सत्ता में बैठे हुए हमारे माननीय ही आखिरकार इसमें सबसे बड़े दोषी हैं. हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली में नकली दवाइयां बेचने का भंडाफोड़ हुआ है जो यह बताता है कि इस व्यवसाय में लगे हुए लोग कितने दुस्साहसी हैं देश की राजधानी जहां प्रशासन अलर्ट जाता है वहां भी इन्होंने रुपए कमाने के लिए अपने लालच को नहीं छोड़ा और आखिरकार कानून के फंदे में फंस गए. बताते चलें कि दिल्ली पुलिस की “अपराध शाखा” ने कैंसर की नकली दवाइयां बनाने और आपूर्ति करने वाले एक अंतरराष्ट्रीय गिरोह का पर्दाफाश किया है. पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए सात आरोपियों को प गिरफ्तार किया है. इनमें दिल्ली के कैंसर के प्रतिष्ठित अस्पताल के दो कर्मचारी भी शामिल हैं. आरोपी कैंसर के 1.97 लाख रुपए के इंजेक्शन में भरकर नकली दवाइयां बेचते थे.

कैंसर की इन नकली दवाइयों को फार्मासिस्ट पूरे देश-विदेश में भी आपूर्ति करते थे. इनके कब्जे से 50,000 रुपए नकद, 80 हजार रुपए मूल्य के डालर, पौने दो करोड़ रुपए की सात अंतरराष्ट्रीय और दो भारतीय ब्रांडों की कैंसर की नकली दवाएं बरामद की गई है. अब आगे की तफ्तीश और अन्य आरोपियो की गिरफ्तारी के लिए अदालत ने नौ दिनों के रिमांड पर इन सभी को पुलिस को सौंप दिया आशा है कि इससे नकली दवाई बनाने वाले गुरु से जुड़े और सच सामने आएंगे. गिरफ्तार आरोपियों में दिल्ली निवासी विफिल जैन (46), सूरज शत (28), गुरुग्राम निवासी नीरज चौहान (38 वर्ष), परवेज (33), कोमल तिवारी (39), अभिनय कोहली (30) और तुषार चौहान (29) शामिल हैं.

आरोपियों का दुस्साहस

इस मामले में सबसे बड़ी बात यह है कि आरोपियों में देश की राजधानी दिल्ली में कैंसर जैसी बीमारी के नकली दवाइयां का पूरा का पूरा सरंजाम इकट्ठा कर रखा था. पुलिस के मुताबिक आरोपी ने दवा और इंजेक्शन बनाने की ईकाई लगा रखी थी. सोचने समझने की बात यह है कि जाने कितने समय से यह लोग कैंसर की नकली दवाइयां बना रहे थे और जाने कितने लोग उनकी दवाइयां के कारण खेत हो गए.

इस पूरे पर्दा फाश का घटनाक्रम कुछ ऐसा रहा-

पुलिस टीम को पता चला कि डीएलएफ कैपिटल ग्रीन्स, मोती नगर के दो फ्लैटों में नकली दवाइयां बनाई जा रही हैं, यहां पर विफिल जैन नामक आरोपी ने दवा, इंजेक्शन बनाने का इकाई लगा रखी थी. विफिल रैकेट का सरगना है. यहां पर नकली कैंसर की दवा (शीशियों) को फिर से भरने, बनाने के लिए यानी रीफिलिंग और पैकेजिंग का काम किया था जाता था. यहां से तीन कैप सीलिंग मशीनें, एक हीट गन मशीन और 197 खाली शीशियां और अन्य आवश्यक सामग्री बरामद की गई. पुलिस की उच्च अधिकारी‌ आयुक्त शालिनी सिंह ने बताया की पुलिस उपायुक्त अमित गोयल की देखरेख में एसीपी रमेश चंद्र लांबा, इंस्पेक्टर सत्येंद्र मोहन की टीम ने इस बड़े मामले का खुलासा किया . पुलिस ने मोती नगर के डीएलएफ के पास छापा मारा और वहां से काफी मात्रा में ये सामान बरामद किए . एक करोड़ 75 लाख के 140 भरे हुए इंजेक्शन अलग-अलग ब्रांड के बरामद किए गए. जो यह बताते हैं कि देसी नहीं विदेश में भी इनका नेटवर्क था और करोड़ों रुपए का खेल चल रहा था. अब वह समय आ गया है जब इसके लिए देश में एक सख्त कानून की आवश्यकता है.

 

Holi 2024: होली पर मीठे में बनाएं हैल्दी ओट्स गुझिया

होली का त्यौहार बस आने ही वाला है और त्यौहार पर मीठा बनना तो स्वाभाविक ही है. आजकल हम सभी अपनी डाइट में हैल्दी ऑप्शन्स की तलाश करते हैं. गुझिया आमतौर पर मैदा से बनाई जाती है परन्तु बहुत अधिक महीन मैदा सेहत के लिए बहुत अधिक नुकसानदायक होती है क्योंकि फायबर रहित होने के कारण मैदा से बनी चीजों को पचाने के लिए हमारे पाचनतन्त्र को बहुत अधिक परिश्रम करना पड़ता है. गुझिया होली पर बनायी जाने वाली मुख्य मिठाई है इसीलिए आज हम आपको ओट्स से गुझिया बनाना बता रहे हैं क्योंकि ओट्स बहुत अधिक फायबर युक्त होता है और इसीलिए यह सेहत के लिए बहुत अधिक लाभदायक होता है. तो आइये देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है-

कितने लोंगों के लिए 6

बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज
सामग्री (कवर के लिए)
प्लेन ओट्स 1 कप
गेहूं का आटा 1 कप
घी(मोयन के लिए) 1 टेबलस्पून
घी (तलने के लिए) पर्याप्त मात्रा में
पानी 1/2 कप
गुड़ 1 कप
सामग्री(फिलिंग के लिए)
नारियल बुरादा 2 टेबलस्पून
शकर बूरा 1/2 टीस्पून
दूध 1/2 टीस्पून
इलायची पाउडर 1/4 टीस्पून
बारीक कटी मेवा 1 टीस्पून
मिल्क पाउडर 1 टीस्पून
सामग्री ( सजाने के लिए)
नारियल बुरादा 1 कप
गुलाब की सूखी पत्तियां 8-10

विधि

 

ओट्स को मिक्सी में एकदम बारीक पीस लें. अब एक बाउल में गेहूं का आटा, ओट्स का आटा, मोयन अच्छी तरह मिलाएं. अब धीरे धीरे पानी मिलाकर आटा लगाकर आधे घंटे के लिए ढककर रख दें. फिलिंग बनाने के लिए फिलिंग की सभी सामग्री को एक साथ अच्छी तरह मिला लें. अब ओट्स के आटे को चकले पर अच्छी तरह मसलें और इसे 2 भागों में बाँट लें. अब एक भाग चकले पर पतला बेलकर 2 इंच के चौकोर टुकड़ों में काट लें. एक चौकोर टुकड़े को चकले पर रखकर किनारे पर ऊँगली से पानी लगायें, बीच में 1/2 टीस्पून मिश्रण रखकर फोल्ड करके किनारों को ऊँगली से दबा दें ताकि मिश्रण बाहर न निकले. इसी प्रकार सारी पट्टी गुझिया तैयार कर लें. अब इन्हें गर्म घी में मद्धिम आंच पर उलटते पलटते हुए सुनहरा होने तक तलकर बटर पेपर पर निकाल लें. एक पैन में गुड़ को धीमी आंच पर पूरी तरह मेल्ट करें इसे तब तक पकाएं जब तक कि इसमें से बुलबुले न उठने लगें. अब गैस बंद करके गुझिया को एक एक करके इसमें डिप करके बटर पेपर पर रखते जाएँ इसी प्रकार सारी गुझिया तैयार कर लें. सभी गुझिया को नारियल बुरादा में लपेटकर गुलाब की पत्तियों से सजाएं और मेहमानों को सर्व करें.

कौफी डेट: दूसरों के लिए जीना चाहती थी अनन्या

शामके 5 बजते ही अनन्या को सहसा ध्यान आया कि आज बुधवार के दिन उस की एक कमिटमैंट थी खुद के साथ. चेहरे पर सहज फैलती मुसकान को रोक पाने में असमर्थ, उस ने जल्दीजल्दी खुद को एकत्रित करना शुरू किया कि अरे, आर्यन की मैथ्स की वर्कशीट तो उस ने कब की बना कर तैयार कर रखी है. जल्दी से उसे अध्ययन कक्ष की मेज पर रख कर वह बेटी अवनी को उठाने के लिए उस के कमरे की तरफ बढ़ी क्योंकि उसे दोपहर के विश्राम के बाद अपनी क्लासेज के लिए भी जाना था.

तमाम आपाधापी के बीच रात्रि के भोजन की भी एक रूपरेखा सी तैयार करनी थी, सो अनन्या तेज कदमों से फ्रिज की ओर बढ़ी. उस ने सब्जियां किचन के प्लेटफौर्म पर रख दीं ताकि उस की गैरमौजूदगी में भी उस की गृहसहायिका अपना काम शुरू कर सके. इन तमाम तैयारियों के बाद अनन्या ने फ्रिज के द्वार पर पति अक्षत के लिए एक छोटी सी परची लगा कर छोड़ी जिस में लिखा था, ‘‘तो फिर जल्दी ही मिलती हूं, कौफी डेट के बाद. तुम्हारी प्रिया,’’

अब 5 बज कर 20 मिनट पर वह खुद को संवारने में व्यस्त हो गई. सचमुच में कितना आनंददायक था यह विचार कि सप्ताह के बीचोंबीच उसे खुद को संवारने का मौका मिल रहा था. यह बात एक उपलब्धि से कम नहीं थी. बड़ी ही चेष्टा और मनोयोग से उस ने खुद को इस पल के लिए व्यवस्थित किया. अन्यथा घर की दिनचर्या, पति और बच्चों के साथ उन की जरूरतों को सम?ाते हुए उसे यह आभास ही नहीं रहा था कि अनन्या कौन थी और उस के जीवन का मकसद क्या था?

बढ़ती हुई जिम्मेदारियों के बीच अनन्या खुद को विस्तृत और विस्मृत दोनों ही करती जा रही थी. विवाहोपरांत गुजरते सालों में उसे यह भान ही नहीं रहा कि वह एक स्वतंत्र मनुष्य है, जिस की सोचनेसम?ाने की क्षमता और महत्त्वाकांक्षाएं अन्य लोगों की तरह ही हैं. एक स्वचालित यंत्रवत प्राणी की तरह उस का समूचा अस्तित्व उस के आसपास के लोगों की आवश्यकताओं, निर्भरताओं और उन के अनुमोदन पर ही निर्भर था.

उसे कभी यह चेतना नहीं रही कि तमाम व्यस्तताओं के बीच उस के जीवन के अनेक वसंत यों ही बीत गए और परिणामस्वरूप पिछले कई दिनों से एक तरह की अन्यमनस्कता, उत्साहहीनता और आत्मतिरस्कार सी भावना उस के मन में घर करती जा रही थी. तभी तो आशा के घर आयोजित किट्टी में एक छोटे से विषय पर सहेलियों से विमर्श करते हुए उस के सब्र का बांध टूट ही गया. विषय तो रोजमर्रा के जीवन को छूता हुआ एक छोटा सा विचार ही था, पर उस की प्रासंगिकता की चिनगारी ने उस के मन को गहराई तक उद्वेलित कर दिया, ‘‘क्या सैल्फ लव सैल्फिशनैस है?’’

बस फिर क्या था वह सोचती ही रह गई कि पीढ़ी दर पीढ़ी महिलाएं क्यों इस कथन से जू?ाती रही हैं कि क्या खुद से प्रेम स्वार्थपरता है या फिर एक तरह की आवश्यकता?

खैर, अनेक तरह के विचारों से जू?ाने के बाद उस ने यह मन ही मन सोच लिया कि वह सप्ताह में एक बार अपनी इच्छानुसार कोई ऐसा एक कार्य तो जरूर करेगी जिस से उस का मन हर्षित होता है और जिस में उसे सुख की अनुभूति हो और आज की यह कौफी डेट उसी दिशा में पहला कदम थी.

अपनी प्रिय लेखिकाओं-गरट्रूड स्टाइन और जेके राउलिंग के जीवन से प्रेरणा लेते हुए उस ने मन ही मन यह संकल्प कर लिया कि वह घर के पास ही स्थित एनबीसी में जा कर एक कप कौफी के साथ अपने आगामी जीवन की कल्पना तो कर ही सकती है. आज, बनी पार्क स्थित एनबीसी में बैठ कर सामने की सड़क पर होते हुए आवागमन, किशोरों के स्वच्छंद वार्त्तालाप, वयस्कों के आत्मविश्वास से भरे चेहरे और उन की चिंताओं में हस्तक्षेप किए बिना दिलचस्पी लेते हुए विविध घटनाक्रमों को अपने मस्तिष्क में निबंधित करते हुए उस ने मन ही मन स्वीकार किया कि खुद की अवहेलना कर के उस ने अपने प्रति बहुत बड़ा अपराध किया है.

अंतत: खुद की स्वीकारोक्ति खुद के उत्थान के लिए बहुत जरूरी है. अपनी पसंद की कैपेचीनो के घूंट लेते हुए उसे यह अनुभूति हो गई कि खुद के साथ कौफी डेट का यह निर्णय कितना ही महत्त्वपूर्ण था और साथ ही उसे जीवन के प्रति एक नई दृष्टि देने में सार्थक भी रहा. निश्चित रूप से स्वयं से प्रेम एक तरह की स्वार्थपरता कही जा सकती है, परंतु उस के बिना आत्मकल्याण और स्वाभिमान की भावना का विकास भी कदापि संभव नहीं.

कौफी के प्याले से ऊपर उठती सुगंधित भाप के साथ उस का यह अहं उड़ गया कि वह सब को हर हाल में प्रसन्न रख सकती है और यह भ्रम भी कि उस की प्रसन्नता के लिए वह दूसरों पर निर्भर है. इसी तरह की ऊहापोह और आत्मावलोचन की प्रक्रिया में लीन, अपने आसपास के जीवन को और अधिक तन्मयता के साथ अंकित करती हुई, ठीक 7 बजते ही एक मधुर मुसकान और एक नए उत्साह के साथ पृष्ठभूमि में बजते हुए मनपसंद गीत ‘लव यू जिंदगी…’ पर थिरकते हुए वह घर की ओर मुड़ चली.

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