अलमारी का ताला : आखिर क्या थी मां की इच्छा?

हर मांबाप का सपना होता है कि उन के बच्चे खूब पढ़ेंलिखें, अच्छी नौकरी पाएं. समीर ने बीए पास करने के साथ एक नौकरी भी ढूंढ़ ली ताकि वह अपनी आगे की पढ़ाई का खर्चा खुद उठा सके. उस की बहन रितु ने इस साल इंटर की परीक्षा दी थी. दोनों की आयु में 3 वर्ष का अंतर था. रितु 19 बरस की हुई थी और समीर 22 का हुआ था. मां हमेशा से सोचती आई थीं कि बेटे की शादी से पहले बेटी के हाथ पीले कर दें तो अच्छा है. मां की यह इच्छा जानने पर समीर ने मां को समझाया कि आजकल के समय में लड़की का पढ़ना उतना ही जरूरी है जितना लड़के का. सच तो यह है कि आजकल लड़के पढ़ीलिखी और नौकरी करती लड़की से शादी करना चाहते हैं. उस ने समझाया, ‘‘मैं अभी जो भी कमाता हूं वह मेरी और रितु की आगे की पढ़ाई के लिए काफी है. आप अभी रितु की शादी की चिंता न करें.’’ समीर ने रितु को कालेज में दाखिला दिलवा दिया और पढ़ाई में भी उस की मदद करता रहता. कठिनाई केवल एक बात की थी और वह थी रितु का जिद्दी स्वभाव. बचपन में तो ठीक था, भाई उस की हर बात मानता था पर अब बड़ी होने पर मां को उस का जिद्दी होना ठीक नहीं लगता क्योंकि वह हर बात, हर काम अपनी मरजी, अपने ढंग से करना चाहती थी.

पढ़ाई और नौकरी के चलते अब समीर ने बहुत अच्छी नौकरी ढूंढ़ ली थी. रितु का कालेज खत्म होते उस ने अपनी जानपहचान से रितु की नौकरी का जुगाड़ कर दिया था. मां ने जब दोबारा रितु की शादी की बात शुरू की तो समीर ने आश्वासन दिया कि अभी उसे नौकरी शुरू करने दें और वह अवश्य रितु के लिए योग्य वर ढूंढ़ने का प्रयास करेगा. इस के साथ ही उस ने मां को बताया कि वह अपने औफिस की एक लड़की को पसंद करता है और उस से जल्दी शादी भी करना चाहता है क्योंकि उस के मातापिता उस के लिए लड़का ढूंढ़ रहे हैं. मां यह सब सुन घबरा गईं कि पति को कैसे यह बात बताई जाए. आज तक उन की बिरादरी में विवाह मातापिता द्वारा तय किए जाते रहे थे. समीर ने पिता को सारी बात खुद बताना ठीक समझा. लड़की की पिता को पूरी जानकारी दी. पर यह नहीं बताया कि मां को सारी बात पता है. पिता खुश हुए पर कहा, ‘‘अपना निर्णय वे कल बताएंगे.’’

अगले दिन जब पिता ने अपने कमरे से आवाज दी तो वहां पहुंच समीर ने मां को भी वहीं पाया. हैरानी की बात कि बिना लड़की को देखे, बिना उस के परिवार के बारे में जाने पिता ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम खुश तो हम खुश.’’ यह बात समीर ने बाद में जानी कि पिता के जानपहचान के एक औफिसर, जो उसी के औफिस में ही थे, से वे सब जानकारी ले चुके थे. एक समय इस औफिसर के भाई व समीर के पिता इकट्ठे पढ़े थे. औफिसर ने बहाने से लड़की को बुलाया था कुछ काम समझाने के लिए, कुछ देर काम के विषय में बातचीत चलती रही और समीर के पिता को लड़की का व्यवहार व विनम्रता भा गई थी. ‘उल्टे बांस बरेली को’, लड़की वालों के यहां से कुछ रिश्तेदार समीर के घर में बुलाए गए. उन की आवभगत व चायनाश्ते के साथ रिश्ते की बात पक्की की गई और बहन रितु ने लड्डुओं के साथ सब का मुंह मीठा कराया. हफ्ते के बाद ही छोटे पैमाने पर दोनों का विवाह संपन्न हो गया. जोरदार स्वागत के साथ समीर व पूनम का गृहप्रवेश हुआ. अगले दिन पूनम के मायके से 2 बड़े सूटकेस लिए उस का मौसेरा भाई आया. सूटकेसों में सास, ससुर, ननद व दामाद के लिए कुछ तोहफे, पूनम के लिए कुछ नए व कुछ पहले के पहने हुए कपड़े थे. एक हफ्ते की छुट्टी ले नवदंपती हनीमून के लिए रवाना हुए और वापस आते ही अगले दिन से दोनों काम पर जाने लगे. पूनम को थोड़ा समय तो लगा ससुराल में सब की दिनचर्या व स्वभाव जानने में पर अधिक कठिनाई नहीं हुई. शीघ्र ही उस ने घर के काम में हाथ बटाना शुरू कर दिया. समीर ने मोटरसाइकिल खरीद ली थी, दोनों काम पर इकट्ठे आतेजाते थे.

समीर ने घर में एक बड़ा परिवर्तन महसूस किया जो पूनम के आने से आया. उस के पिता, जो स्वभाव से कम बोलने वाले इंसान थे, अपने बच्चों की जानकारी अकसर अपनी पत्नी से लेते रहते थे और कुछ काम हो, कुछ चाहिए हो तो मां का नाम ले आवाज देते थे. अब कभीकभी पूनम को आवाज दे बता देते थे और पूनम भी झट ‘आई पापा’ कह हाजिर हो जाती थी. समीर ने देखा कि पूनम पापा से निसंकोच दफ्तर की बातें करती या उन की सलाह लेती जैसे सदा से वह इस घर में रही हो या उन की बेटी ही हो. समीर पिता के इतने करीब कभी नहीं आ पाया, सब बातें मां के द्वारा ही उन तक पहुंचाई जाती थीं. पूनम की देखादेखी उस ने भी हिम्मत की पापा के नजदीक जाने की, बात करने की और पाया कि वह बहुत ही सरल और प्रिय इंसान हैं. अब अकसर सब का मिलजुल कर बैठना होता था. बस, एक बदलाव भारी पड़ा. एक दिन जब वे दोनों काम से लौटे तो पाया कि पूनम की साडि़यां, कपड़े आदि बिस्तर पर बिखरे पड़े हैं. पूनम कपड़े तह कर वापस अलमारी में रख जब मां का हाथ बटाने रसोई में आई तो पूछा, ‘‘मां, आप कुछ ढूंढ़ रही थीं मेरे कमरे में.’’

‘‘नहीं तो, क्या हुआ?’’

पूनम ने जब बताया तो मां को समझते देर न लगी कि यह रितु का काम है. रितु जब काम से लौटी तो पूनम की साड़ी व ज्यूलरी पहने थी. मां ने जब उसे समझाने की कोशिश की तो वह साड़ी बदल, ज्यूलरी उतार गुस्से से भाभी के बैड पर पटक आई और कई दिन तक भाईभाभी से अनबोली रही. फिर एक सुबह जब पूनम तैयार हो साड़ी के साथ का मैचिंग नैकलैस ढूंढ़ रही थी तो देर होने के कारण समीर ने शोर मचा दिया और कई बार मोटरसाइकिल का हौर्न बजा दिया. पूनम जल्दी से पहुंची और देर लगने का कारण बताया. शाम को रितु ने नैकलैस उतार कर मां को थमाया पूनम को लौटाने के लिए. ‘हद हो गई, निकाला खुद और लौटाए मां,’ समीर के मुंह से निकला.

ऐसा जब एकदो बार और हुआ तो मां ने पूनम को अलमारी में ताला लगा कर रखने को कहा पर उस ने कहा कि वह ऐसा नहीं करना चाहती. तब मां ने समीर से कहा कि वह चाहती है कि रितु को चीज मांग कर लेने की आदत हो न कि हथियाने की. मां के समझाने पर समीर रोज औफिस जाते समय ताला लगा चाबी मां को थमा जाता. अब तो रितु का अनबोलापन क्रोध में बदल गया. इसी बीच, पूनम ने अपने मायके की रिश्तेदारी में एक अच्छे लड़के का रितु के साथ विवाह का सुझाव दिया. समीर, पूनम लड़के वालों के घर जा सब जानकारी ले आए और बाद में विचार कर उन्हें अपने घर आने का निमंत्रण दे दिया ताकि वे सब भी उन का घर, रहनसहन देख लें और लड़कालड़की एकदूसरे से मिल लें. पूनम ने हलके पीले रंग की साड़ी और मैचिंग ज्यूलरी निकाल रितु को उस दिन पहनने को दी जो उस ने गुस्से में लेने से इनकार कर दिया. बाद में समीर के बहुत कहने पर पहन ली. रिश्ते की बात बन गई और शीघ्र शादी की तारीख भी तय हो गई. पूनम व समीर मां और पापा के साथ शादी की तैयारी में जुट गए. सबकुछ बहुत अच्छे से हो गया पर जिद्दी रितु विदाई के समय भाभी के गले नहीं मिली.

रितु के ससुराल में सब बहुत अच्छे थे. घर में सासससुर, रितु का पति विनीत और बहन रिचा, जिस ने इसी वर्ष ड्रैस डिजाइनिंग का कोर्स शुरू किया था, ही थे. रिचा भाभी का बहुत ध्यान रखती थी और मां का काम में हाथ बटाती थी. रितु ने न कोई काम मायके में किया था और न ही ससुराल में करने की सोच रही थी. एक दिन रिचा ने भाभी से कहा कि उस के कालेज में कुछ कार्यक्रम है और वह साड़ी पहन कर जाना चाहती है. उस ने बहुत विनम्र भाव से रितु से कोई भी साड़ी, जो ठीक लगे, मांगी. रितु ने साड़ी तो दे दी पर उसे यह सब अच्छा नहीं लगा. रिचा ने कार्यक्रम से लौट कर ठीक से साड़ी तह लगा भाभी को धन्यवाद सहित लौटा दी और बताया कि उस की सहेलियों को साड़ी बहुत पसंद आई. रितु को एकाएक ध्यान आया कि कैसे वह अपनी भाभी की चीजें इस्तेमाल कर कितनी लापरवाही से लौटाती थी. कहीं ननद फिर कोई चीज न मांग बैठे, इस इरादे से रितु ने अलमारी में ताला लगा दिया और चाबी छिपा कर रख ली.

एक दिन शाम जब रितु पति के साथ घूमने जाने के लिए तैयार होने के लिए अलमारी से साड़ी निकाल, फिर ताला लगाने लगी तो विनीत ने पूछा, ‘‘ताला क्यों?’’ जवाब मिला-वह किसी को अपनी चीजें इस्तेमाल करने के लिए नहीं देना चाहती. विनीत ने समझाया, ‘‘मम्मी उस की चीजें नहीं लेंगी.’’

रितु ने कहा, ‘‘रिचा तो मांग लेगी.’’ अगले हफ्ते रितु को एक सप्ताह के लिए मायके जाना था. उस ने सूटकेस तैयार कर अपनी अलमारी में ताला लगा दिया. सास को ये सब अच्छा नहीं लगा. सब तो घर के ही सदस्य हैं, बाहर का कोई इन के कमरे में जाता नहीं, पर वे चुप ही रहीं. मायके पहुंची तो मां ने ससुराल का हालचाल पूछा. रितु ने जब अलमारी में ताला लगाने वाली बात बताई तो मां ने सिर पकड़ लिया उस की मूर्खता पर. मां ने बताया कि यहां ताला पूनम ने नहीं बल्कि मां के कहने पर उस के भाई समीर ने लगाना शुरू किया था और चाबी हमेशा मां के पास रहती थी. ताला लगाने का कारण रितु का लापरवाही से भाभी की चीजों का बिना पूछे इस्तेमाल करना और फिर बिगाड़ कर लौटाना था. यह सब उस की आदतों को सुधारने के लिए किया गया था. वह तो सुधरी नहीं और फिर कितनी बड़ी नादानी कर आई वह ससुराल में अपनी अलमारी में ताला लगा कर. मां ने समझाया कि चीजों से कहीं ऊपर है एकदूसरे पर विश्वास, प्यार और नम्रता. ससुराल में अपनी जगह बनाने के लिए और प्यार पाने के लिए जरूरी है प्यार व मान देना. रितु की दोपहर तो सोच में डूबी पर शाम को जैसे ही भाईभाभी नौकरी से घर लौटे उस ने भाभी को गले लगाया. भाभी ने सोचा शायद काफी दिनों बाद आई है, इसलिए ऐसा हुआ पर वास्तविकता कुछ और थी.

रितु ने देखा यहां अलमारी में कोई ताला नहीं लगा हुआ, वह भी शीघ्र ससुराल वापस जा ताले को हटा मन का ताला खोलना चाहती है ताकि अपनी भूल को सुधार सके, सब की चहेती बन सके जैसे भाभी हैं यहां. एक हफ्ता मायके में रह उस ने बारीकी से हर बात को देखासमझा और जाना कि शादी के बाद ससुराल में सुख पाने का मूलमंत्र है सब को अपना समझना, बड़ों को आदरमान देना और जिम्मेदारियों को सहर्ष निभाना. इतना कठिन तो नहीं है ये सब. कितनी सहजता है भाभी की अपने ससुराल में, जैसे वह सब की और सब उस के हैं. मां के घुटनों में दर्द रहने लगा था. रितु ने देखा कि भाभी ने सब काम संभाल लिया था और रात को सोने से पहले रोज वे मां के घुटनों की मालिश कर देती थीं ताकि वे आराम से सो सकें. अब वही भाभी, जिस के लिए उस के मन में इतनी कटुता थी, उस की आदर्श बनती जा रही थीं.

एक दिन जब पूनम और समीर को औफिस से आने में देर हो गई तब जल्दी कपड़े बदल पूनम रसोई में पहुंची तो पाया रात का खाना तैयार था. मां से पता चला कि खाना आज रितु ने बनाया है, यह बात दूसरी थी कि सब निर्देश मां देती रही थीं. रितु को अच्छा लगा जब सब ने खाने की तारीफ की. पूनम ने औफिस से देर से आने का कारण बताया. वह और समीर बाजार गए थे. उन्होंने वे सब चीजें सब को दिखाईं जो रितु के ससुराल वालों के लिए खरीदी गई थीं. इस इतवार दामादजी रितु को लिवाने आ रहे थे. खुशी के आंसुओं के साथ रितु ने भाईभाभी को गले लगाया और धन्यवाद दिया. मां भी अपने आंसू रोक न सकीं बेटी में आए बदलाव को देख कर. रितु ससुराल लौटी एक नई उमंग के साथ, एक नए इरादे से जिस से वह सब को खुश रखने का प्रयत्न करेगी और सब का प्यार पाएगी, विशेषकर विनीत का.

रितु ने पाया कि उस की सास हर किसी से उस की तारीफ करती हैं, ननद उस की हर काम में सहायता करती है और कभीकभी प्यार से ‘भाभीजान’ बुलाती है, ससुर फूले नहीं समाते कि घर में अच्छी बहू आई और विनीत तो रितु पर प्यार लुटाता नहीं थकता. रितु बहुत खुश थी कि जैसे उस ने बहुत बड़ा किला फतह कर लिया हो एक छोटे से हथियार से, ‘प्यार का हथियार’.

मायूस मुसकान: भाग 2- आजिज का क्या था फैसला

विवाह के साथ ही शहर बदल गया. पापा का परिवार थोड़ा पुराने खयालों का था, सो मां कभी उस में सामंजस्य ही नहीं बैठा पाईं. शायद अंदर ही अंदर घुटती रही, पापा से कभी खुल कर बात ही नहीं की और पापा ने भी कभी यह नहीं जानना चाहा कि मां क्या चाहती हैं. बस अपने पूरे परिवार की जिम्मेदारियां मां पर डाल दीं. कहने को तो संयुक्त परिवार, किंतु वहां सब जैसे एकदूसरे के दुश्मन, सभी जैसे अपनाअपना फायदा देख रहे थे.’’

‘‘हां तो इस में गलती तुम्हारे पापा की भी तो है, तुम मां को ही क्यों दोषी बता रही हो?’’ ऐशा ने उग्र स्वर में पूछा.

‘‘तुम्हारा सवाल भी ठीक है. कहते हैं न अन्याय सहने वाला अन्याय करने वाले से भी ज्यादा दोषी होता है इसीलिए.

‘‘मां कभी अपने मन की न कर पाईं. मन ही मन जलती रहीं और पापा को कोसती रहीं. खुल कर कभी बोल ही न पाईं, किंतु इन सब में मेरा व मेरे भाई का क्या दोष?

‘‘हमें इतना मारतीं जैसे सारी गलती हमारी ही हो. पूरे परिवार का गुस्सा हम दोनों भाइबहिनों पर उतारतीं.’’

‘‘तो तुम्हारे पापा ने कभी तुम्हारे बचाव के लिए कुछ नहीं किया?’’

‘‘किसे फुरसत और फिक्र थी हमारी लिए जो कुछ करते? उन्हें तो सिर्फ  अपनेअपने ईगो सैटिस्फाई करने होते थे. यह दिखाना होता था कि वे ही सर्वश्रेष्ठ हैं, मां सोचती कि इतनी पढ़ीलिखी हो कर भी गृहस्थी की चक्की में पिस रही हैं वे. पापा सोचते कि घर बैठ कर करती ही क्या है, पढ़ीलिखी है पर व्यवहार करना भी नहीं आता. एकदूसरे के लिए उन की आपसी खीज ने हमारे बचपन को नर्क बना दिया था. बच्चे तो आपसी प्रेम की पैदाइश और पहचान होते हैं, लेकिन उन के आपसी   झगड़ों ने हमारी मुसकराहट छीन ली थी.

‘‘नहीं निभती तो छोड़ क्यों न दिया था उस परिवार को मां ने या पापा से अलग हो जातीं. स्वयं कमा कर हम 2 बच्चों को अच्छी परवरिश तो दे ही सकती थीं.’’

‘‘इतना आसान नहीं होता मुसकान ये सब, जितना तुम सोच रही हो,’’ ऐशा ने कहा, ‘‘तलाक लेना या अपने पति से अलग हो जाना बहुत जटिल प्रक्रिया होती है, लोग क्या कहेंगे, कहां रहूंगी, क्या मातापिता पुन: स्वीकार करेंगे? न जाने कितने सवाल होते हैं एक महिला के समक्ष, सिर्फ रुपए कमा लेना ही सबकुछ नहीं होता मुसकान. हमारी संस्कृति परिवार से इस अलगाव को मान्यता नहीं देती और वह भी एक पीढ़ी पहले?’’

‘‘और बच्चों के साथ दुर्व्यवहार, उन के साथ मारपिटाई, हर जगह उन्हें मुहरा बना कर पतिपत्नी का एकदूसरे से बदला लेना उचित है? किंतु उन बच्चों को इन सब से बचाने वाला कोई नहीं?

‘‘शायद तुम ने ऐसा माहौल न देखा हो ऐशा, किंतु मैं ने जब से होश संभाला मां की मार और ताने देखे और सहे. जब कभी वे पापा या परिवार के किसी भी सदस्य से गुस्सा होतीं, उन्हें पलट कर कुछ न कहतीं, बलि का बकरा मैं और मेरा भाई बन जाते. कभी बेलन से तो कभी चप्पल जो मां के हाथ में आता, हम पिट जाते. मां अपने ससुराल वालों से जुड़े सब ताने हमें देतीं,’’ जैसे औलाद किस की हो तुम, बड़ा ही जिद्दी परिवार है, तो तू कैसे सुधरी रह सकती है, घर का असर तो आएगा ही न. बाप पर गया है, उस ने किसी की सुनी जो तू सुनेगा.’’

‘‘मैं कहती हूं बच्चे अपने मांबाप पर न जाएं तो और किस पर जाएंगे, आसपास के वातावरण और जींस का असर तो आएगा ही न उन पर, पर इस में बच्चों का दोष क्या है?’’

‘‘क्यों नहीं स्वीकार पाते ये अपने ही बच्चों को? क्यों ढूंढ़ लेना चाहते हैं हम ही में सारी खूबियां, जबकि उन्होंने कभी घर का वातावरण और आपसी व्यवहार अच्छा रखने की कोशिश ही न की हो,’’ मुसकान के चेहरे पर न जाने कितने प्रश्न चिह्न अंकित हो गए थे.

‘‘ऐसा थोड़े न होता है मुसकान. हर इंसान खुश ही रहना चाहता है, कौन जानबू  झ कर अपने घर में आग लगाएगा भला? पर कई बार परिस्थितियां ऐसी होती हैं कि हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते. तुम्हारी मां का हाल भी ऐसा ही रहा होगा, क्या करतीं बेचारी? पूरे परिवार से कैसे सामना करतीं, जबकि तुम्हारे पापा का कोई सहयोग न था.

मैं मानती हूं तुम्हारी बात सही है, क्या करती बेचारी वह? पर क्या हम दोनों बच्चों के  साथ बुरा व्यवहार कर के समस्या हल हो गयी?

‘‘वे पढ़ीलिखी थी इतना तो सोचना चाहिए था कि वे हमें क्या जिंदगी दे रही हैं? हम तो उन्हें प्यार करते थे, था ही कौन हमारा उन के सिवा इस दुनिया में.

‘‘एक बार तो मां को चाचा ने कुछ भलाबुरा कहा और बाहर चले गए, मां ने पापा को सब बताया तो पापा ने भी कह दिया कि मैं तंग आ गया हूं रोजरोज की शिकायतों से. तुम या तो साथ रह लो या मेरे घर से निकल जाओ. मां ने मेरे भाई को उस दिन खूब मारा, उस के हाथ में स्टिक थी और भाई डाइनिंग टेबल के चारों ओर डर के मारे चक्कर लगा रहा था. मां की गुस्से में भरी सूरत, मैं शायद 6 वर्ष की थी उस वक्त. मैं डर के मारे चीख रही थी. बस इसी तरह बड़े हुए हम.

‘‘मगर उस समय क्या तुम तीनों घर में अकेले थे? तुम्हारे दादादादी कहा थे मुस्कान?’’

‘‘सब वहीं थे, लेकिन किसी को हम से मतलब नहीं था. मां पर उन सब का दबाव तो था ही ऊपर से पिताजी का भी और किसी पर मां का बस तो चलता नहीं था सो ले दे कर सभी का गुस्सा हम पर उतार देतीं. भाई को पिटते देख कर मैं सहम जाती. जब कभी मां मु  झे कुछ जोर से बोलतीं, मैं उन के सामने हाथ जोड़ लेती ताकि किसी भी तरह से पिटाई से बच सकूं.

‘‘फिर भी मां को हम पर तरस न आता. मु  झे हाथ जोड़े देख कर और जोर से चीखतीं और कहतीं क्यों जोड़ती है हाथ, यह दुनिया तु  झे भी नहीं छोड़ने वाली, सारी जिंदगी हाथ ही जोड़ने पड़ेंगे सब के आगे.’’

‘‘फिर कभी प्यार नहीं करती थी तुम्हारी मां?’’ ऐशा ने उस की आंखों में   झांक कर पूछा.

‘‘जब मारपीट लेतीं, गुस्सा शांत होता तो आइस क्यूब ले कर मेरे चेहरे व पीठ पर उन की मार से पड़े निशानों पर लगातीं और खूब रोतीं. मु  झे सौरी भी बोलतीं, किंतु फिर जब कभी गुस्सा आता, वही सब करतीं,’’ मुसकान की आंखें भर आई थीं. उन के चेहरे की उदासी उन के गुलाबी होंठों को बदरंग कर रही थी.

‘‘इस का मतलब वह तुम्हें प्यार तो करती थी तभी तो स्वयं भी रोती थी, किंतु वह भी तो इंसान है जिसे इंसान सम  झा ही नहीं गया तो उस से इंसानियत की उम्मीद भी क्यों?’’

‘‘हो सकता है तुम सही हो, किंतु वह अपने अंदर की कुढ़न को रोक न पातीं और आग में सुलगती अपने होश खो बैठती थीं. हमारे साथ जानवरों जैसा व्यवहार करती थीं. कारण कोई भी हो, किंतु मैं साधारण इंसान भी न बन पाई. बस मां के हुक्म की गुलाम बनी रही. हर वक्त यह डर सताता कि मां नाराज न हो जाएं वरना पीटेंगी. मैं अपने मन की कब करती? अपनी इच्छाअनिच्छा किस को बताती?’’

तपस्या: अचानक क्यों हुई थी मंजरी से समीर की शादी

सागर विश्वविद्यालय का एम.ए. फाइनल का आखिरी परचा दे कर मंजरी हाल से बाहर आई. वह यह परीक्षा प्राइवेट छात्रा के रूप में दे रही थी. 6 महीने पहले एक दुर्घटना में उस के मातापिता का देहांत हो गया था और उस के बाद वह अपने चाचा के यहां रहने लगी थी. हाल से बाहर आते ही उसे अपनी पुरानी सहेली सीमा दिखाई दी. दोनों बड़े प्यार से मिलीं.

‘‘मंजरी, आज कितना हलका लग रहा है. है न? तेरे परचे कैसे हुए?’’

‘‘अच्छे हुए, तेरे कैसे हुए?’’

‘‘पास तो खैर हो जाऊंगी. तेरे जैसी होशियार तो हूं नहीं कि प्रथम श्रेणी की उम्मीद करूं. चल, मंजरी, छात्रावास में चल कर जी भर कर बातें करेंगे.’’

‘‘नहीं, सीमा, मुझे जल्दी जाना है. यहीं पेड़ की छांव में बैठ कर बातें करते हैं.’’

दोनों छांव में बैठ गईं.

‘‘मंजरी, तुम्हारे मातापिता की मृत्यु इतनी अकस्मात हो गई कि आज भी सच नहीं लगता. चाचाजी के यहां तू खुश तो है न?’’

मंजरी की आंखों में आंसू छलक आए. वह आंसू पोंछ कर बोली, ‘‘चाचाजी के यहां सब लोग बड़े अच्छे स्वभाव के हैं. वहां पैसे की कोई कमी नहीं है. सब ठाटबाट से आधुनिक ढंग से रहते हैं. लेकिन सीमा, मुझे वहां रहना अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘क्यों भला?’’

‘‘देखो, सीमा, मेरे पिताजी साधारण लिपिक थे और चाचाजी प्रखर बुद्धि के होने के कारण आई.ए.एस. हो गए. दोनों भाइयों की स्थिति में इतना अंतर था कि मेरे पिताजी हमेशा हीनभावना से पीडि़त रहते थे. फिर भी वह स्वाभिमानी थे. इसीलिए उन्होंने हमें चाचाजी के घर से यथासंभव दूर रखा था.

‘‘उन्हें बहुत दुख था कि बचपन में उन्होंने पढ़ाई की तरफ ध्यान नहीं दिया. अपनी यह कमी वह मेरे द्वारा पूरी करना चाहते थे. आर्थिक स्थिति कमजोर थी, फिर भी उन्होंने शुरू से ही मुझे अच्छे स्कूल में पढ़ाया. हर साल मुझे प्रथम श्रेणी में पास होते देख वह फूले नहीं समाते थे.’’

‘‘जाने दे ये दुखद बातें. चाचाजी के घर के बारे में बता.’’

‘‘चाचाजी के 2 बच्चे हैं. बड़ी लड़की रश्मि मेरी उम्र की है और वह भी एम.ए. फाइनल की परीक्षा दे रही है. छोटा कपिल कालिज में पढ़ता है. सीमा, तुझे यह सुन कर आश्चर्य होगा कि रश्मि और मैं चचेरी बहनें हैं, फिर भी हमारी शक्लसूरत एकदम मिलतीजुलती है.’’

‘‘तो इस का मतलब यह कि रश्मि बहन भी तुझ जैसी सुंदर है. है न?’’

‘‘रंग तो उस का इतना साफ नहीं, पर अच्छे कपड़ेलत्तों और आधुनिक साजशृंगार से वह काफी आकर्षक लगती है. तभी तो उस की शादी समीर जैसे लड़के से तय हुई है. आज 5 तारीख है न, 20 तारीख को दिल्ली में उन की शादी है.’’

‘‘अच्छा, यह तो बड़ी खुशी की बात है. पर यह समीर है कौन और करता क्या है?’’

‘‘समीर चाचाजी के पुराने मित्र रामसिंहजी का बेटा है. रामसिंहजी मथुरा में ऊंचे पद पर हैं. उन की 2 लड़कियां हैं और एक बेटा. लड़कियों की शादी हो चुकी है. समीर भी आई.ए.एस. है और आजकल सरगुजा में अतिरिक्त कलक्टर के पद पर कार्य कर रहा है. देखने में सुंदर, हंसमुख और स्वस्थ है.’’

‘‘तो क्या यह प्रेम विवाह है?’’

‘‘प्रेम विवाह तो नहीं कह सकते, लेकिन दोनों एकदूसरे को जानते हैं.’’

‘‘मंजरी, अपने चाचाजी से कहना कि तेरे लिए भी ऐसा ही लड़का ढूंढ़ दें.’’

‘‘हट, कैसी बातें करती है? कहां रश्मि और कहां मैं. पगली, समीर सरीखा पति पाने के लिए मांबाप का रईस होना आवश्यक है और मेरे तो मांबाप ही नहीं हैं. मैं तो शादी की बात सोच भी नहीं सकती. पास होते ही मैं नौकरी तलाश करूंगी. चाचाजी पर मैं और ज्यादा बोझ नहीं डालना चाहती.’’

रहस्यमय ढंग से हंसते हुए सीमा बोली, ‘‘अरे, तू शादी नहीं करना चाहती, तो अपने चाचाजी से मेरे लिए लड़का ढूंढ़ने के लिए कह दे.’’ दोनों हंसने लगीं.

‘‘अरे सीमा, एक बात तो तुझे बताना भूल ही गई. रसोई में चाचीजी की मदद करतेकरते मैं भी रईसी खाना, नएनए व्यंजन बनाना सीख गई हूं. अगर किसी आई.ए.एस. अधिकारी से ब्याह करने की तेरी इच्छा पूरी हो जाए तो अपने पति के साथ मेरे घर अवश्य आना, खूब बढि़या खाना खिलाऊंगी.’’

एकदूसरे से हंसीमजाक करते उन्हें आधा घंटा बीत गया. जब वे तपती धूप से परेशान होने लगीं तो जाने के लिए उठ खड़ी हुईं. मंजरी ने एक कागज पर चाचाजी का पता और अपना रोल नंबर लिख कर सीमा को दे दिया.

‘‘सीमा, परिणाम निकलते ही मुझे खबर करना.’’

‘‘जरूर…जरूर. अब कब मुलाकात होगी?’’ कह कर सीमा मंजरी के गले लगी. फिर दोनों भारी मन से एकदूसरे से विदा हुईं.

रश्मि और मंजरी के परचे अच्छे होने पर चाचाचाची खूब खुश थे.

‘‘चाचीजी, अब मैं घर का काम संभालूंगी, आप निश्चिंत हो कर बाहर का काम करिए,’’ मंजरी ने कहा.

शादी का दिन आया, लेकिन घर में कोई होहल्ला नहीं था. दोनों तरफ के मेहमानों के लिए एक अच्छे होटल में कमरे ले लिए गए थे. शादी और खानेपीने का प्रबंध भी होटल में ही था. मेहमान भी सिर्फ एक दिन के लिए आने वाले थे.

रश्मि के मातापिता मेहमानों की अगवानी के लिए सवेरे से ही होटल में थे. बराती सुबह 10 बजे पहुंच गए थे. सब का उचित स्वागतसम्मान किया गया. दोपहर 1 बजे खाना हुआ. खाने के बाद रश्मि के मातापिता थोड़ी देर के लिए आराम करने अपने कमरे में आ गए. 4 बजे फिर तैयार हो कर रिश्तेदारों और बरातियों के पास चले गए. जातेजाते रश्मि से बोल गए कि वह जल्दी मेकअप कर के वक्त पर तैयार हो जाए.

मांबाप के जाते ही रश्मि ने मंजरी को अपने पास बुलाया और बोली, ‘‘मंजरी, मैं मेकअप के लिए जा रही हूं. लेकिन यदि मुझे देर हो गई तो पिताजी को अलग से बुला कर ठीक 6 बजे यह लिफाफा दे देना, भूलना नहीं.’’

‘‘नहीं भूलूंगी. लेकिन तुम 6 बजे तक आने की कोशिश करना.’’

रश्मि हाथ में छोटा सा सूटकेस ले कर चली गई, होटल के ग्राउंड फ्लोर पर ब्यूटी पार्लर में जाने की बात कह कर.

जब शाम को 6 बज गए और रश्मि नहीं आई तो मंजरी ने चाचाजी को कमरे में बुला कर वह लिफाफा उन के हाथ में दे दिया.

‘‘चाचाजी, यह रश्मि ने दिया है.’’

‘‘अब बिटिया की कौन सी मांग है?’’ कहतेकहते उन्होंने लिफाफा खोला और अंदर का कागज निकाल कर जैसेजैसे पढ़ने लगे, उन का चेहरा क्रोध से लाल हो गया.

‘‘मूर्ख, नादान लड़की,’’ कहतकहते वह दोनों हाथों में सिर पकड़ कर बैठ गए.

‘‘चाचाजी, क्या हुआ?’’

‘‘अब मैं क्या करूं, मंजरी?’’ कह कर उन्होंने वह कागज मंजरी को दे दिया और आंखों में आए आंसू पोंछ कर उन्होंने मंजरी से कहा, ‘‘जा बेटी, अपनी चाची को जल्दी से बुला ला. मैं रामसिंहजी को फोन कर के बुलाता हूं.’’

चिट्ठी पढ़ कर मंजरी सकपका गई और झट से चाची को बुला लाई. रश्मि के पिता ने वह चिट्ठी अपनी पत्नी के हाथ में पकड़ा दी. पढ़ते ही रश्मि की मां रो पड़ीं. चिट्ठी में लिखा था :

‘‘पिताजी, मैं जानती हूं, मेरी यह चिट्ठी पढ़ कर आप और मां बहुत दुखी होंगे. लेकिन मैं माफी चाहती हूं.

‘‘मैं मानती हूं कि समीर लाखों में एक है. मुझे भी वह अच्छा लगता है, लेकिन मैं रोहित से प्यार करती हूं और जब आप यह पत्र पढ़ रहे होंगे तब तक आर्यसमाज मंदिर में मेरी उस से शादी हो चुकी होगी. आप को पहले बताती तो आप राजी न होते.

‘‘मैं यह भी जानती हूं कि शादी के दिन मेरे इस तरह एकाएक गायब हो जाने से आप की स्थिति बड़ी विचित्र हो जाएगी. लेकिन मैं दिल से मजबूर हूं. हां, मेरा एक सुझाव है, मंजरी का कद मेरे जैसा ही है और रंगरूप में तो वह मुझ से भी बेहतर है. आप समीर से उस की शादी कर दीजिए. किसी को पता तक नहीं लगेगा. मैं फिर आप से क्षमा चाहती हूं. रश्मि.’’

इतने में रामसिंहजी भी अपनी पत्नी के साथ वहां आ गए. उन्हें देख कर रश्मि के पिता ने बड़े दुखी स्वर में कहा, ‘‘मेरे दोस्त, क्या बताऊं, इस रश्मि ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा,’’ और यह कह कर उन्होंने वह चिट्ठी उन्हें पकड़ा दी.

पत्र पढ़ कर समीर के माता और पिता दोनों ही हतप्रभ रह गए. फिर समीर के पिता ने मंजरी की तरफ देख कर कहा, ‘‘बेटी, तुम जरा बाहर जा कर देखो, कोई अंदर न आने पाए.’’

मंजरी बाहर चली गई. फिर कुछ देर उन लोगों में बातचीत हुई. इस के बाद रश्मि के पिता ने मंजरी को अंदर बुला कर कहा, ‘‘बेटी, हम सब की इज्जत अब तेरे हाथ में है. तू इस शादी के लिए हां कर दे तो हम लोग अभी भी बात संभाल लेंगे.’’

‘‘आप जो भी आज्ञा देंगे मैं करने को तैयार हूं,’’ मंजरी ने धीरे से कहा.

‘‘शाबाश, बेटी, तुझ से यही उम्मीद थी.’’

मंजरी ने सब के पैर छुए. सब ने राहत की सांस ले कर उसे आशीर्वाद दिया और आगे की तैयारी में लग गए.

शादी धूमधाम से हुई. किसी को कुछ पता नहीं चला. खुद समीर को भी इस हेरफेर का आभास न हुआ.

मथुरा में शानदार स्वागत आयोजन हुआ. जब सब रिश्तेदार वापस चले गए तो रामसिंहजी ने अपने पुत्र को बुला कर सब बात बता दी. सुन कर समीर ने अपने को बेहद अपमानित महसूस किया. उस के मन को गहरी ठेस लगी थी और उसे सब से अधिक अफसोस इस बात का था कि उस से संबंधित इतनी बड़ी बात हो गई और मांबाप ने कोई कदम उठाने से पहले उस से सलाह तक नहीं ली. मांबाप पर जैसे दुख का पहाड़ गिर पड़ा.

बेचारी मंजरी कमरे में ही दुबकी रहती. उसे समझ में नहीं आता था कि अब वह क्या करे. रश्मि की नादानी ने सब का जीवन अस्तव्यस्त कर दिया था. वह सोचती, रश्मि को समीर सरीखे भले लड़के के जीवन में इस तरह कड़वाहट भरने का क्या अधिकार था. मंजरी का मन सब के लिए करुणा से भर गया.

एक दिन मंजरी के सासससुर ने उसे बुला कर कहा, ‘‘मंजरी, हमारे इकलौते बेटे का जीवन सुखी करना अब तुम्हारे हाथ में है. समीर बहुत अच्छा लड़का है लेकिन उस के मन पर जो गहरा घाव हुआ है उसे भरने में समय लगेगा. तुम उस के मन का दुख समझने का प्रयास करो. हमें विश्वास है कि तुम्हारी सूझबूझ से उस का घाव जल्दी ही भर जाएगा. लेकिन तब तक तुम्हें सब्र से काम लेना होगा. किसी प्रकार की जल्दबाजी घातक सिद्ध हो सकती है.’’

‘‘आप निश्चिंत रहिए. मुझे उम्मीद है कि आप के आशीर्वाद और मार्गदर्शन से मैं सब ठीक कर लूंगी,’’ मंजरी बोली.

समीर को फिर से ड्यूटी पर जाना था. समीर के मातापिता ने सोचा, कहीं समीर सरगुजा जाते समय मंजरी को साथ ले जाने से मना न कर दे. इसलिए समीर के पिता ने लंबी छुट्टी ले ली और वह भी सरगुजा जाने के लिए सपत्नीक नवदंपती के साथ हो लिए.

जिन दिनों समीर के मातापिता सरगुजा में थे, उन दिनों मंजरी सब से पहले उठ कर नहाधो कर नाश्ते की तैयारी करती. खाना समीर की मां बनाती थीं. वह इस काम में भी अपनी सास का हाथ बंटाती. सासससुर के आग्रह से उसे सब के साथ ही नाश्ता और भोजन करना पड़ता.

एक दिन उस की सास अपने पति से बोलीं, ‘‘कुछ भी हो, लड़की सुंदर होने के साथसाथ गुणी भी है. मेरी तो यही प्रार्थना है कि जल्दी ही उसे पत्नी के योग्य सम्मान मिलने लगे.’’

‘‘मुझे तो लगता है, तुम्हारी इच्छा जल्दी ही पूरी होगी. बदलती हवा का रुख मैं महसूस कर रहा हूं,’’ मंजरी के ससुर बोले. और यही आशा ले कर उस के सासससुर वापस मथुरा चले गए.

एक रात खाने पर समीर ने मंजरी से कहा, ‘‘मैं जानता हूं, तुम्हें अकारण ही इस झंझट में फंसाया गया. मुझे इस बात का बहुत अफसोस है.’’

‘‘मैं जानती हूं, आप कैसी कठिन मानसिक यंत्रणा से गुजर रहे हैं. आप मेरी चिंता न करें. लेकिन कृपया मुझे अपना हितैषी समझें.’’

शादी के बाद दोनों में यह पहली बातचीत थी. फिर दोनों अपनेअपने कमरे में चले गए.

दूसरे दिन नाश्ते के समय मंजरी को लगा कि समीर उस से नजर चुरा कर उस की तरफ देख रहा है. वह मन ही मन खुश हुई. उसी शाम को कमलनाथ और आनंद सपत्नीक मिलने आए.

‘‘मंजरीजी, दिन में आप अकेली रहती हैं, कभीकभी हमारे यहां आ जाया कीजिए न,’’ कमलनाथजी की पत्नी निशाजी बोलीं.

‘‘जरूर आऊंगी, लेकिन कुछ दिन बाद. अभी तो मैं दिन भर उलझी रहती हूं.’’

‘‘किस में?’’ निशाजी ने पूछा. समीर ने भी आश्चर्य से उस की तरफ देखा.

‘‘यों ही, यह नमक, तेल, मिर्च का मामला अभी जम नहीं पाया. कभी तेल ज्यादा, कभी नमक ज्यादा तो कभी मिर्च ज्यादा,’’ मंजरी ने कहा.

सब लोग सुन कर हंस पड़े.

‘‘शुरूशुरू में खाना बनाते समय ऐसा ही होता है,’’ फिर आनंदजी की पत्नी रामेश्वरी ने आपबीती सुनाई.

मंजरी ने मेज पर नमकीन, मिठाई और चाय रखी. कमलनाथ कह रहे थे, ‘‘तो  समीर कल का पक्का है न? भाभीजी, कल सवेरे 7 बजे पिकनिक पर चलना है आप दोनों को. 30-40 मील की दूरी पर एक बहुत सुंदर जगह है. वहां रेस्ट हाउस भी है. सब इंतजाम हो गया है. मैं आप दोनों को लेने 7 बजे आऊंगा.’’

समीर और मंजरी ने एकदूसरे की तरफ देखा. फिर उसी क्षण समीर बोला, ‘‘ठीक है, हम लोग चलेंगे.’’

थोड़ी देर बाद जब सब चले गए तो समीर ने मंजरी से कहा, ‘‘तुम इतना अच्छा खाना बनाती हो, फिर भी सब  के सामने झूठ क्यों बोलीं?’’

‘‘आप को मेरा बनाया खाना अच्छा लगता है?’’

‘‘बहुत,’’ समीर ने कहा.

दोनों की नजरें एक क्षण के लिए एक हो गईं. फिर दोनों अपनेअपने कमरे में चले गए.

लेकिन थोड़ी ही देर बाद तेज आंधी के साथ मूसलाधार बारिश होने लगी. बिजली चली गई. समीर को खयाल आया कि मंजरी अकेली है, कहीं डर न जाए.

वह टार्च ले कर मंजरी के कमरे के सामने गया और उसे पुकारने लगा. मंजरी ने दरवाजा खोला और समीर को देख राहत की सांस ले बोली, ‘‘देखिए न, ये खिड़कियां बंद नहीं हो रही हैं. बरसात का पानी अंदर आ रहा है.’’

समीर ने टार्च उस के हाथ में दे दी और खिड़कियां बंद करने लगा. खिड़कियों के दरवाजे बाहर खुलते थे. तेज हवा के कारण वह बड़ी कठिनाई से उन्हें बंद कर सका.

‘‘तुम्हारा बिस्तर तो गीला है. सोओगी कैसे?’’

‘‘मैं गद्दा उलटा कर के सो जाऊंगी.’’

‘‘तुम्हें डर तो नहीं लगेगा?’’

मंजरी कुछ नहीं बोली. समीर ने अत्यंत मृदुल आवाज में कहा, ‘‘मंजरी.’’ और उस ने उस की तरफ बढ़ने को कदम उठाए. फिर अचानक वह मुड़ा और अपने कमरे में चला गया.

दूसरे दिन सवेरे 7 बजे दोनों नहाधो कर पिकनिक के लिए तैयार थे. इतने में कमलनाथ भी जीप ले कर आ पहुंचे. समीर उन के पास बैठा और मंजरी किनारे पर. मौसम बड़ा सुहावना था. समीर और कमलनाथ में बातें चल रही थीं. मंजरी प्रकृति का सौंदर्य देखने में मगन थी.

अब रास्ता खराब आ गया था और जीप में बैठेबैठे धक्के लगने लगे थे.

‘‘तुम इतने किनारे पर क्यों बैठी हो? इधर सरक जाओ,’’ समीर ने कहा.

लज्जा से मंजरी का चेहरा आरक्त हो उठा. उसे सरकने में संकोच करते देख समीर ने उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और धीरे से उसे अपने पास खींच लिया. मंजरी ने भी अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश नहीं की.

शाम 7 बजे घर लौटे तो दोनों खुश थे. पिकनिक में खूब मजा आया था. दोनों ने आ कर स्नान किया और गरमगरम चाय पीने हाल में बैठ गए. समीर बातचीत करने के लिए उत्सुक लग रहा था. ‘‘रात के खाने के लिए क्या बनाऊं?’’ मंजरी ने पूछा तो उस ने कहा, ‘‘बैठो भी, जल्दी क्या है? आमलेटब्रेड खा लेंगे.’’ फिर उस ने अचानक गंभीर हो कर कहा, ‘‘मंजरी, मुझे तुम से कुछ पूछना है.’’

‘‘पूछिए.’’

‘‘मंजरी, इस शादी से तुम सचमुच खुश हो न?’’

‘‘मैं तो बहुत खुश हूं. खुश क्यों न होऊं, जब मेरे हाथ आप जैसा रत्न लगा है.’’

खुशी से समीर का चेहरा खिल उठा, ‘‘और मेरे हाथ भी तो तुम जैसी लक्ष्मी लगी है.’’

दोनों ही आनंदविभोर हो कर एकदूसरे को देखने लगे. शंका के

सब बादल छंट चुके थे. तनाव खत्म हो गया था.

इतने में कालबेल बजी. समीर उठ कर बाहर गया.

मंजरी सोच रही थी कि अगले दिन सवेरे वह सासससुर को फोन कर के यह खुशखबरी देगी.

‘‘मंजरी…मंजरी,’’ कहते हुए खुशी से उछलता समीर अंदर आया.

‘‘इधर आओ, मंजरी, देखो, तुम्हारा एम.ए. का नतीजा आया है.’’

दौड़ कर मंजरी उस के पास गई. लेकिन समीर ने आसानी से उसे तार नहीं दिया. मंजरी को छीनाझपटी करनी पड़ी. तार खोल कर पढ़ा :

‘‘हार्दिक बधाई. योग्यता सूची में द्वितीय. चाचा.’’

खुशी से मंजरी का चेहरा चमक उठा. तिरछी नजर से उस ने पास खड़े समीर की तरफ देखा.

समीर ने आवेश में उसे अपनी ओर खींच लिया और मृदुल आवाज में कहा, ‘‘मेरी ओर से भी हार्दिक बधाई. तुम जैसी होशियार, गुणी और सुंदर पत्नी पा कर मैं भी आज योग्यता सूची में आ गया हूं, मंजरी.’’

इस सुखद वाक्य को सुनते ही मंजरी ने अपना माथा समर्पित भाव से समीर के कंधे पर रख दिया. उस की तपस्या पूरी हो गई थी.

मायूस मुसकान- भाग 1- आजिज का क्या था फैसला

‘‘मुझेअब मां की हालत देख कर दुख भी नहीं होता है. मैं स्वयं जानती हूं कि वे परेशान हैं,

तन व मन दोनों से. फिर भी न जाने क्यों मु  झे उन से मिलने, उन का हालचाल जानने की कोई इच्छा नहीं होती,’’ मुसकान आज फिर अपनी मां के बरताव को याद कर क्षुब्ध हो उठी थी. ‘‘पर फिर भी तुम्हारी मां हैं वे, उन्होंने तुम्हें पालपोस कर बड़ा किया है, तुम्हे जन्म दिया है, तुम्हारा अस्तित्व उन्हीं से है,’’ ऐशा बोली.

मैं जानती थी कि मेरी बात सुन कर तुम यही कहोगी, मैं मानती हूं मेरे मातापिता ने मु  झे जन्म दिया, मां ने मु  झे नौ माह अपनी कोख में रखा, मु  झे पालपोस कर बड़ा किया, मु  झे इस लायक बनाया कि मैं अपने पैरों पर खड़ी हो सकूं. आत्मनिर्भर बन सकें. मैं सम  झती हूं मु  झ पर उन का उपकार है कि लड़कालड़की में भेद नहीं किया, हम भाइबहिन दोनों को एकसमान पाला. कि…’’ कह कर वह चुप हो गयी थी और एकटक जमीन से अपने पैर के अंगूठे से जैसे कुछ कुरेदने की कोशिश कर रही थी.

ऐशा उसके चेहरे पर आए भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी. उस के होंठ जैसे कुछ कहना चाहते हों किन्तु आंखों का इरादा हो कि चुप ही रहो.

वह अंदर ही अंदर जैसे सुलग रही थी, उस की आंखें आंसुओं से चमक उठी थीं और नथुने फूले से दिखाई पड़ रहे थे. चेहरे के भाव दर्शा रहे थे जैसे अंतस में दबे पुराने जख्म हरे हो रहे हों. वह आंखों में चमके आंसू अपने हलक में उतार रही थी.

पिछले 1 वर्ष से एक ही दफ्तर में कार्यरत उन दोनों सहेलियों ने अपार्टमेंट शेयर किया हुआ है,ऐशा ने मुसकान को इतना उदास पहले कभी नहीं देखा था.

समझ में नहीं आ रहा उस से आगे बात करूं या नहीं, ऐशा असमंजस में थी सो वह चुप ही रही. तभी मुस्कान का मोबाइल फिर से रिंग हुआ. उस ने स्क्रीन पर देखा और नजरें घुमा लीं. फोन रिंग होता ही रहा. उस ने कौल पिक नहीं की. लेकिन उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, जिन्हें वह शायद ऐशा से छिपाने की कोशिश कर रही थी. उस की नजरें लैपटौप में गड़ी थीं, किंतु ध्यान लैपटौप स्क्रीन पर नहीं था. वह अंदर ही अंदर जैसे घुल रही थी. ऐशा चादर में आधा सा मुंह ढके उसे देखे जा रही थी.

ऐशा उठी और उस के पास गई. उस का हाथ अपने हाथों में थामा तो वह फफक कर रो पड़ी, ‘‘मैं क्या करूं, तुम ही बताओ तुम कहती हो मेरा भी मां के प्रति कुछ फर्ज होता है. मैं सभी फर्ज पूरे करना भी चाहती हूं, किंतु मेरा छत्तीस का आंकड़ा है अपनी मां से.’’

‘‘कैसी बात कर रही हो तुम मुसकान? भला ऐसे कोई बोलता है अपनी मां के लिए?’’

‘‘क्या किया मां ने मेरे लिए? मु  झे जन्म दिया, खानाकपड़ा दिया, बड़ा किया बस. उन्होंने अपना फर्ज ही तो पूरा किया.’’

‘‘और क्या कर सकते हैं मातापिता इन सब के सिवा? तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘बच्चों के लिए खानाकपड़ा, रहने को मकान ही सबकुछ नहीं होता, उन्हें प्यार भी तो चाहिए होता है. सोशल सिक्योरिटी क्या आवश्यक नहीं बच्चों के लिए?’’

‘‘पर तुम ये सब क्यों कह रही हो? ऐसा क्या हो गया?’’

‘‘हुआ, बहुत कुछ हुआ. हम 2 भाइबहिन हमेशा अपने मातापिता के प्यार को तरसते रहे. उन दोनों के आपसी   झगड़े कभी खत्म ही नहीं होते, आज तक भी नहीं. सम  झ नहीं आता, कैसी शादी थी उन की. शायद उन्होंने एकदूसरे से प्रेम तो कभी किया ही नहीं.

‘‘पापा अपने मातापिता, छोटे भाइबहिन की जिम्मेदारियों में व्यस्त रहे. मां ब्याह कर पापा के घर में तो आ गई, किंतु पापा ने उन का कोई खयाल नहीं रखा. घर में सिर्फ 24 घंटों की नौकरानी की तरह खटती रहीं.

‘‘संयुक्त परिवार था हमारा, दादादादी, चाचाबूआ, पापा, मां, मैं और मेरा बड़ा भाई. हम सभी साथ ही रहते थे. कहने को तो भरापूरा, हंसताखेलता परिवार, लेकिन सिर्फ दुनिया के सामने, वहां आपसी प्रेम और सच्ची खुशी तो कभी नजर ही नहीं आई. मैं ने अपनी मां को पापा के साथ कभी मुसकरा कर बात करते नहीं देखा. दोनों के आपसी तनातनी भरे वार्त्तालाप घर में अकसर तनाव का माहौल बनाए रखते.

‘‘मां अकसर पिताजी को हर बात आज तक भी घुमाफिरा कर बताती हैं. न जाने अपने 25 वर्ष के विवाह में भी वे पिताजी के साथ सहज व्यवहार क्यों न कर पाईं. पापा को ऐसा महसूस होता है जैसे मां उन के मांपिताजी व पूरे परिवार का मजाक बना रही हैं. न जाने कैसी कैमिस्ट्री है दोनों की आपस में. तेरा परिवार मेरे परिवार से ऊपर ही नहीं उठे अभी तक. 5 वर्ष की थी मैं तभी से मां को दादी के साथ विभिन्न रीतिरिवाजों को ढोते देखा.

‘‘दादी को सब रीतिरिवाज अपने हिसाब से करवाने होते और मां अकसर कुछ न कुछ चूक कर ही देतीं. बस फिर क्या था दादी उन्हें खूब ताने देती. बस यही सिखाया तेरी मां ने, कोई तौरतरीका तो आता नहीं, बस बांध दी हमारे गले.

‘‘मां सबकुछ सुन कर मन मसोस कर रह जाती. कभी पलट कर जवाब भी न दिया. पलटवार करती भी किस के भरोसे. पापा ने तो जैसे उन्हें मायके के खूंटे से खोला और ससुराल के खूंटे से बांध दिया.

‘‘विवाह का पवित्र बंधन पुरुष व स्त्री का आपसी रिश्ता होता है जो प्रेम की कलियों से गुंथा होता है, जिस में भरोसे की महक  होती है जो जीवन को महका देती है, किंतु उन दोनों के बीच यह रिश्ता तो आज तक बना ही नहीं. मां व पिताजी अन्य रिश्ते निभातेनिभाते अपने रिश्ते को तो जैसे कहीं पीछे ही छोड़ आए. उन्होंने शायद ही कभी एकदूसरे के मन की सुध ली हो.

‘‘मां को ससुराल में प्यार मिला ही नहीं. आज तक वे अपने मायके के प्रति प्रेम से बंधी हैं. मैं यह नहीं कहती कि उन्हें अपने मातापिता को भूल जाना चाहिए, किंतु वे पापा के परिवार को अपना न सकीं.

‘‘पापा को महसूस होता है कि जिस तरह आज भी वे अपने मायके के रिश्तेदारों के प्रेम में बंधी है, वैसे ही पापा के परिवार से क्यों नहीं मिल जाती.’’

‘‘लेकिन कोई भी संबंध एकतरफा तो नहीं हो सकता न?’’ ऐशा ने कहा.

‘‘हमारे रीतिरिवाज, परंपराएं जो जोड़ने और खुशियां बढ़ाने का एक माध्यम होती हैं, किंतु यहां तो परंपराओं ने दोनों परिवारों को कभी एक न होने दिया. पापा के परिवार ने सदा ही मां के परिवार को कमतर सम  झा व मां का बारबार अपमान किया.

‘‘दादी जबतब मां को उन के मायके का उलाहना देती रहतीं. मां कभीकभी पापा से शिकायत भी करतीं, किंतु वे कुछ कर ही न पाते. एक तरफ मां व दूसरी तरफ पापा का पूरा परिवार.

‘‘जब मैं छोटी थी शायद पांच या छ: साल की. मां मु  झे खूब मारतींपीटतीं. मु  झे सम  झ ही न आता कि मेरी गलती क्या है. बस पिट जाती, रोतीचीखती. जाती भी कहां फिर अपनी ही मां के पास ही जा कर चिपक जाती,’’ मुसकान फिर से सिसकने लगी थी.

‘‘क्यों बात का बतंगड़ बना रही हो मुसकान. ये सब बातें तो बहुत मामूली सी हैं. शायद हर घर में होती हैं. वह जमाना ऐसा ही था. लोग रीतिरिवाज, रिश्तेनाते और परंपराओं को निभाते थे. इस में तुम्हारी मां का क्या दोष? क्यों  तुम उन से किनारा कर बैठी हो?’’ ऐशा ने कड़क लहजे में कहा.

‘‘होगा जमाना ऐसा. मेरी मां तो अपना घर छोड़ आईं और पापा के परिवार से रिश्ता जोड़ा, किंतु उन्होंने मां को दिल से अपनाया भी तो नहीं, सिर्फ इस्तेमाल किया.

‘‘लेकिन मेरी मां पढ़ीलिखी थीं उस जमाने में भी. नौकरी भी करती थीं विवाहपूर्व.

मोहपाश: क्या बेटे के मोह से दूर रह पाई छवि

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महंगे ख्वाब: भाग 3- रश्मि को कौनसी चुकानी पड़ी कीमत

राहुल और रश्मि इधरउधर बाइक से घूमने लगे. आज रश्मि काफी खुश थी, हो भी क्यों न, आज उस के सपनों के पर निकल आए थे. काफी देर घूमने के बाद राहुल ने रश्मि से कहा, ‘‘ऐसा है, इधरउधर घूमने से बेहतर है कि तुम आज मेरे रूम चलो, वहीं बैठ कर ढेर सारी बातें करेंगे.’’

रश्मि ने मारे खुशी के इस बात की तरफ जरा भी ध्यान नहीं दिया कि शहर में किसी लड़के के रूम में जाने के क्या माने होते हैं.

रश्मि पहली बार राहुल के रूम में आई थी. राहुल किराए के मकान में रहता था और भी कई लड़के उसी मकान में किराएदार थे. इन सब बातों से बेपरवा रश्मि वहां आ गई थी. राहुल रूम में अकेला रहता था, इसलिए उसे किसी के आने का कोई डर नहीं था. राहुल का कमरा देखने में अच्छा था, लेकिन सारा सामान इधर से उधर तक बिखरा था.

‘‘राहुल, तुम्हारा रूम कितना गंदा है, लगता है कभी इस की सफाई नहीं करते?’’

‘‘अब कौन रोजरोज सफाई अभियान चलाए,’’ राहुल एकदम पास आ कर बोला. थोड़ी देर बात करते हुए राहुल रश्मि से एकदम सट कर बैठ गया और उस के कंधे पर अपने हाथों को रख लिया.

रश्मि के कुछ न कहने पर उस का हौसला बढ़ गया और अचानक से रश्मि के नाजुक गालों को चूम लिया.

‘‘यह क्या कर रहे हो,’’ रश्मि उस के पास से हटते हुए बोली. लेकिन उसी पल राहुल ने पागल आशिकों की तरह उस का हाथ पकड़ कर खींच लिया, रश्मि उस के ऊपर आ गिरी. अब रश्मि उस की मजबूत बांहों में समा चुकी थी.

ऐसा नहीं है कि रश्मि ने राहुल से छूटने की कोशिश न की हो, लेकिन राहुल उसे अपने फौलादी हाथों से जकड़े हुए था. रश्मि उस की बांहों में शिकार बने परिंदे की तरह छटपटा रही थी, लेकिन उस की सारी कोशिशें नाकाम रहीं. इस का दूसरा पहलू यह भी था, रश्मि खुद ही राहुल की बांहों में प्यार के गोते लगाना चाहती थी. रश्मि अब राहुल के जिस्म में लता की तरह लिपटी हुई थी और रेगिस्तान में मछली की तरह प्यार में तड़प रही थी. राहुल भी सारी सरहदें पार कर के हद से गुजर जाना चाहता था. प्यार की तड़प, जज्बातों की प्यास और जिस्म की आग दोनों तरफ से इस कदर लगी थी कि उन्हें अच्छेबुरे की सुध ही न रही.

रफ्तारफ्ता यह सिलसिला चलता रहा और प्यार करने की चाहत दिनबदिन बढ़ती गई. लेकिन क्या यह प्यार था या सिर्फ चाहत या जो जिस्मों की प्यास बुझाने के लिए था? इस रिश्ते का नाम कुछ भी हो, एक बात तो तय थी कि इन में से कोई भी ईमानदार नहीं था. रश्मि को मौडल बनना था और राहुल को जिस्म की आग ठंडी करनी थी. रश्मि अपने ख्वाबों को हकीकत बनाने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा चुकी थी, उसे सिर्फ कामयाबी चाहिए थी, फिर चाहे जैसे मिले. इस से रश्मि को कोई फर्क नहीं पड़ता था.

अकसर सुनने में आता है कि झूठ को इतनी बार बोलो कि वह सच लगने लगे, लेकिन आखिर कब तक? कब तक आप किसी से इस तरह से फरेब करते रहेंगे. एक दिन तो सचाई दुनिया के सामने आनी ही है और यह सचाईर् रश्मि के सामने बहुत भयानक रूप में आई.

रश्मि मौडल बनने के लिए कुछ भी कर सकती थी, इसलिए राहुल ने उसे उंगलियों पर नचाना शुरू कर दिया था. वह उसे आजकल में टालता रहा, फिर एक दिन उसे स्टूडियो में ले जा कर उस का फोटोशूट करवाया. विकास सर बोले ‘‘रश्मि, आप को मौडल बनना है?’’

‘‘जी सर,’’ रश्मि बोली.

‘‘तो आप कल से इस तरह के गांव वाले कपड़े पहन कर मत आना.’’

‘‘जी सर,’’ रश्मि ने हामी भरी.

अगले दिन रश्मि काफी भड़कीला सूट पहन कर आई और फोटोशूट के लिए तैयार हो गई. कैमरामैन शौट लेने के लिए रेडी था. उस ने कई एंगल से शौट लिए. लेकिन विकास जिस तरह का शौट चाहते थे, उन्हें नहीं मिल पा रहा था. वे उठ खड़े हुए और रश्मि को डांटते हुए बोले कि तुम्हें इतना भी नहीं मालूम की कैसे कपड़े पहन कर आया जाता है.

फिर उन्होंने कैमरामैन से डिजाइन किए ड्रैसेज लाने को कहा. उस ने एक बौक्स से कुछ ड्रैसेस निकालीं और रश्मि को पहनने को दीं. रश्मि जब चेंजिंग रूम में गई और एक ड्रैस पहनी और वहीं लगे आईने में देखा तो शरमा गई. जो ड्रैस पहनी थी, उस से बमुश्किल ही जिस्म छिप पा रहा था. लेकिन यह सब तो करना ही था. इसी तरह कई ड्रैसेज में उस ने पोज दिए, रश्मि आज काफी नर्वस थी, उस की हालत देख कर राहुल उसे करीब कर के बोला, ‘‘रश्मि, यह सब तो करना ही पड़ेगा, अब मौडल जो बनना है.’’

‘‘हां राहुल, फिर भी मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा,’’ रश्मि उदासी से बोली.

रात को रश्मि काफी देर तक छत से लटकते पंखे को निहारती रही, ‘क्या मैं जो कर रही हूं, वह ठीक है? या मौडल बनने के चक्कर में किसी दलदल में फंस गई हूं.’ काफी रात तक वह जागती रही, लेकिन उस के लिए किसी नतीजे पर पहुंचना मुश्किल था. एक तरफ बचपन से पाला हुआ ख्वाब था, तो दूसरी तरफ ख्वाबों को हकीकत में बदलने का मौका और इस मौके में कई तरह के खौफनाक मोड़. आज रश्मि का फोटोशूट भोपाल से बाहर एक फार्महाउस में होना था. इसलिए थोड़ी देर बाद रश्मि तैयार हो कर राहुल की बाइक पर शहर से दूर किसी हाइवे पर फर्राटा भरते हुए चली जा रही थी. करीब 40 मिनट बाद उन की बाइक हाइवे से उतर कर एक ऊबड़खाबड़ सड़क पर हिचकोले खाते हुए मंजिल की तरफ बढ़ी.

बा?इक एक आलीशान फार्महाउस के सामने आ कर रुकी. राहुल ने हौर्न बजाया. गेट खुला. फिर दोनों अंदर साथ गए. वहां जा कर रश्मि ने देखा कि फार्महाउस काफी बड़ा है. सामने ही उसे विकास सर नजर आ गए. रश्मि ने नमस्ते कहा. इस के जवाब में विकास सर ने भी.

अंदर जा कर रश्मि ने देखा तो खानेपीने का इंतजाम पहले से ही था. वहीं टेबल पर कुछ बोतलें शराब की थीं. यह सब देख कर रश्मि को अजीब लगा, लेकिन फिर सोचा कि यह सब आज के दौर में चलता है. थोड़ी देर बाद सभी एक बड़े डाइनिंग टेबल पर बैठ कर खानेपीने लगे.

‘‘रश्मि,’’ सक्सेना सर ने उसे शराब पीने का औफर दिया. लेकिन रश्मि ने साफ मना कर दिया. ‘‘यह सब चलता है,’’ राहुल पीते हुए बोला. इस बार रश्मि ने जाम को हाथों से थाम लिया. शराब पीते ही रश्मि को बड़ा अजीब लगा, जैसे कोई तीखी चीज गले को चीर कर अंदर उतर गई हो.

विकास सर और राहुल पर शराब का सुरूर चढ़ा तो उन्होंने इधरउधर की भद्दी बातें करनी शुरू कर दीं. थोड़ी ही देर में विकास सर ने रश्मि को अपने पास बुलाया और हाथ पकड़ कर उसे अपनी गोद में बैठा लिया और छेड़खानी करने लगे.

‘‘सर, आप क्या रहे रहे हैं, यह सब गलत है,’’ रश्मि ने कहा. लेकिन सही और गलत की किसे परवा थी.

‘‘तुम्हें मौडल नहीं बनना क्या, देखो रश्मि, जिंदगी में कुछ बड़ा करना है तो यह सब गलत नहीं है, और मेरे कुछ करने से तुम्हारी खूबसूरती में कोई कमी नहीं आ जाएगी,’’ यह कहते हुए सक्सेना के हाथ रश्मि के गालों से होते हुए उस के सीने पर आ कर थम गए.

‘‘सर, यह तो मेरे बचपन का शौक है,’’ रश्मि धीमी आवाज में बोली.

‘‘फिर क्यों मना कर रही हो, हम कोई गैर नहीं हैं, हमें अपना ही समझो,’’ विकास सर कहते हुए बदहवास उस पर टूट पड़े.

रश्मि मौडल बनने के लिए अपनी इज्जत दांव पर लगाने से गुरेज करने वालों में नहीं थी, वह जिस्म को मंजिल हासिल करने का सिर्फ जरिया मानती थी और आज उस ने वही किया. यह बात और है कि एक औरत होने के नाते उसे भी थोड़ीबहुत झिझक थी, जो अब टूट चुकी थी.

मन में बाराबर यही आ रहा था कि बचपन से संजोए ख्वाब शायद अब हकीकत बन जाएं. लेकिन यह ख्वाब महंगे साबित होंगे, उस ने सोचा न था. लेकिन महंगे ख्वाब आसानी से पूरे नहीं होते हैं, इस बात का एहसास उसे अब तक हो चुका था. तभी तो अब रश्मि इस खेल में मंझी हुई खिलाड़ी की तरह विकास का साथ दे रही थी. यह सब करते हुए अब उसे कोई पछतावा नहीं हो रहा था, बल्कि जिंदगी का अहम हिस्सा मान कर अपने सपनों के साथ सैक्स का भी मजा लेने लगी. उसे अपनी मंजिल मिल गई थी.

टैडी बियर: क्या था अदिति का राज

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महंगे ख्वाब: भाग 2- रश्मि को कौनसी चुकानी पड़ी कीमत

12वीं का रिजल्ट आ गया, रश्मि ने स्कूल में टौप किया था. रश्मि के साथ घर वाले भी बहुत खुश थे. खुश भी क्यों न हों, बेटी ने उन का सिर फख्र से ऊंचा जो कर दिया था.

भोपाल के अच्छे कालेज में रश्मि का बीकौम में एडमिशन हो गया. वह पीजी में रहने लगी. उस का कालेज पीजी से आधे घंटे के फासले पर था, जिसे वह बस से तय करती.

रश्मि को आए हुए अभी 2 माह हुए थे कि 5 सितंबर नजदीक आ गया. यानी टीचर्स डे. इस के लिए क्लास के कई लड़केलड़कियों ने तरहतरह के सांस्कृतिक प्रोग्राम करने के लिए तैयारियां शुरू कर दीं. रश्मि को बड़ी जगह पर हुनर दिखाने का पहला मौका हाथ आया था, इसलिए वह किसी भी कीमत पर इसे गंवाना नहीं चाहती थी.

लिहाजा वह भी डांस की प्रैक्टिस में जीतोड़ मेहनत करने लगी. कालेज में प्रोग्राम के दौरान सभी ने एक से बढ़ कर एक झलकियां दिखा कर खूब वाहवाही लूटी, लेकिन अभी महफिल लूटने के लिए किसी का आना बाकी था.

‘तू शायर है, मैं तेरी शायरी…’ माधुरी की तरह डांस करती रश्मि की परफौर्मैंस देख हर तरफ तालियों की ताल सुनाई देने लगी.

सभी की जबां पर यही गीत खुदबखुद चलने लगा था. खैर, जब रश्मि स्टेज से ओझल हुई तब जा कर स्टुडैंट्स शांत हुए. लगभग एक बजे तक प्रोग्राम चला.

सभी टीचर्स के साथ ही लड़कों के बीच रश्मि को मुबारकबाद देने की होड़ सी लग गई. रश्मि के लिए ऐसा एहसास था जैसे हकीकत में वह कोई बड़ी सैलिब्रिटी हो. जितने भी लड़के थे, सभी उस के एकदम करीब हो जाना चाहते थे और यही मंशा रश्मि की थी.

घंटेभर बाद जब भीड़ कम हुई, तभी किसी की आवाज ने उस के कानों में दस्तक दी. उस ने मुड़ कर पीछे देखा, एक हैंडसम लड़के ने उसे मुबारकबाद देने के लिए हाथ बढ़ाया. रश्मि उसे नजरअंदाज न कर सकी और अपने नर्म व नाजुक हाथों को आगे बढ़ा दिया.

‘‘आप बहुत अच्छा डांस करती हैं, देख कर ऐसा लगा कि स्टेज पर माधुरी खुद ही परफौर्मैंस दे रही हों,’’ उस ने बड़ी सादगी से तारीफ की.

‘‘जी, शुक्रिया, मैं इतनी तारीफ के लायक नहीं कि आप मेरी इतनी तारीफ करें,’’ रश्मि सकुचाते हुए बोली.

‘‘मैं सच कह रहा हूं, आप ने वाकई में बहुत अच्छी परफौर्मैंस दी है,’’ अनजान लड़के ने बेबाकी से अपनी बात कही, ‘‘वैसे मेरा नाम राहुल है, और आप का?’’

‘‘इतनी जल्दी भी क्या है,’’ रश्मि मुसकराई.

‘‘सोच रहा हूं जो दिखने में इतनी खूबसूरत है, उस का नाम कितना खूबसूरत होगा.’’

‘‘मेरा नाम रश्मि है,’’ रश्मि ने अपनी कातिल निगाहों से उस की तरफ देखा. राहुल ने भी रश्मि की आंखों में आंखें डाल दीं. काफी देर तक दोनों एकदूसरे को बिना पलक झपकाए देखते रहे, जब तक कि राहुल ने रश्मि की आंखों के सामने अपनी हथेलियों को ऊपरनीचे कर के कई बार इशारा नहीं किया.

तब जा कर रश्मि सपने से जागी और लजा गई. ‘‘आप से मिल कर खुशी हुई,’’ राहुल ने रश्मि के चेहरे को गौर से देखते हुए कहा, ‘‘मैं पढ़ाई के साथ मौडलिंग करता हूं.’’ इतना सुनते ही रश्मि राहुल को देखते हुए सपनों के सागर में अठखेलियां खेलने लगी, उस ने कुछ ही देर में न जाने कितने सपने अकेले ही बुन लिए थे.

‘‘आप कहां खो गईं,’’ बोलते हुए राहुल का चेहरा रश्मि के इतना करीब हो गया था कि गरम सांसें एकदूसरे को महसूस होने लगीं. तभी रश्मि जागी, एक ऐसे सपने से जिस से वह जागना नहीं चाहती थी.

‘‘जी, कहिए क्या बात है,’’ रश्मि हड़बड़ा कर बोली.

‘‘आप किस दुनिया में खो गई थीं, मैं ने आप को कई बार पुकारा,’’ राहुल मुसकराया.

तभी उस का दोस्त रेहान आ गया और प्रैक्टिस पर जाने की बात कही. ‘‘अच्छा रश्मिजी, मैं चलता हूं, अब आप से कब मुलाकात होगी? अगर आप बुरा न मानें तो क्या मैं आप का नंबर ले सकता हूं.’’

‘‘जी, क्यों नहीं,’’ और रश्मि ने उसे अपना नंबर दे दिया. शायद यही उस के खुले आसमानों में परवाज करने के लिए कोई खुली फिजा मुहैया करा दे.

रश्मि का राहुल को नंबर देना भर था कि कुछ ही दिनों में दोनों काफी देर तक बातें करने लगे, जो पहले कुछ सैकंड से शुरू हो कर मिनटों पर सवार हो कर अब घंटों का सफर तय करते हुए, मंजिल की तरफ तेजी से बढ़े जा रहे थे.

अब सवाल उठता है कि आखिर वे दोनों कौन से सफर को अपनी मंजिल मान बैठे थे. एकदूसरे का हमसाया बन कर औरों की आंखों में खटकने लगे. लेकिन इन सब बातों से रश्मि और राहुल बेपरवा अपनी जिंदगी में मस्तमौला हो कर हंसीखुशी वक्त बिताने लगे.

एक शाम रश्मि ने राहुल को कौल किया, लेकिन उस के किसी दोस्त ने कौल रिसीव की. ‘‘हैलो, आप कौन? आप किस से बात करना चाहती हैं,’’ उधर से किसी लड़के की आवाज आई.

‘‘मैं रश्मि बोल रही हूं, मुझे राहुल से बात करनी है.’’

‘‘अभी वे बिजी हैं, ऐसा करें आप कुछ वक्त बाद फोन कर लीजिएगा.’’

‘‘जी, आप का शुक्रिया,’’ रश्मि अपनी आवाज में मिठास घोल कर बोली.

करीब आधे घंटे के बाद उधर से राहुल का कौल आया, ‘‘हैलो डार्लिंग, यार, क्या बताऊं थोड़ा काम में बिजी हो गया था.’’

‘‘कोई बात नहीं,’’ रश्मि रूखेपन से बोली.

‘‘समझने की कोशिश करो, रश्मि,’’ राहुल मनाने के अंदाज में बोला, ‘‘सच कह रहा हूं, एक जरूरी काम में बिजी था.’’

‘‘अच्छा, ठीक है,’’ रश्मि ने तंज कसा.

‘‘अभी तक आप का मूड सही नहीं हुआ, अच्छा, कौफी पीने आओगी?’’ राहुल विनम्रता से बोला.

‘‘ठीक है, एक घंटे बाद मिलते हैं,’’ इतना कह कर रश्मि ने कौल काट दी.

एक घंटे बाद जब रश्मि बताए गए पते पर पहुंची तो राहुल पहले से उस के इंतजार में बैठा था.

‘‘क्या लोगी?’’ राहुल ने पूछा.

‘‘कुछ भी मंगा लो,’’ रश्मि नजर उठा कर बोली.

‘‘ठीक है,’’ और राहुल ने 2 कौफी का और्डर दे दिया.

‘‘राहुल, मुझे तुम से एक बात करनी है,’’ रश्मि संजीदगी से बोली.

‘‘हां, बोलो, क्या बात करनी है?’’

‘‘बात यह है कि मैं मौडल बनना चाहती हूं और इस काम में तुम ही मेरी मदद कर सकते हो,’’ रश्मि उस की तरफ देखने लगी.

‘‘अच्छा, यह बात है, मैडम को मौडल बनना है,’’ राहुल बोला.

‘‘हां, मेरी दिलीख्वाहिश है.’’

‘‘ठीक है, मेरी कई लोगों से पहचान है और मैं खुद मौडलिंग करता हूं. इसलिए डोंट वरी. मैडम अब मुसकरा भी दो,’’ राहुल उसे छेड़ते हुए बोला.

इस बात पर रश्मि हंस दी और उस की हंसी ने चारों तरफ अपनी चमक बिखेर दी. थोड़ी देर में कौफी भी आ गई. दोनों गर्मजोशी से बातें करते हुए गर्म कौफी का मजा लेने लगे. रश्मि को अब सुकून था, लेकिन एक डर भी. यह डर कैसा था, खुद रश्मि को नहीं मालूम था. फिर भी उस ने आगे बढ़ने का फैसला कर लिया था.

रश्मि, राहुल के कदमों को फौलो करते हुए पीछेपीछे तेजी से आगे बढ़ी जा रही थी. इन दोनों के पैर पहले फ्लोर में जा कर थमे.

‘‘हैलो राहुल,’’ उस अनजान आदमी ने कहा.

‘‘हैलो सर,’’ राहुल ने जवाब में हाथ बढ़ा दिया.

‘‘सर, ये हैं रश्मि, मिस रश्मि,’’ राहुल ने परिचय कराया.

‘‘और रश्मि, आप हैं विकास सर,’’ राहुल ने उस अनजान की तरफ इशारा करते हुए कहा.

‘‘हैलो सर,’’ रश्मि मुसकरा कर बोली.

‘‘सर, रश्मि की बचपन से बड़ी ख्वाहिश थी कि वह बड़ी हो कर मौडल बने, इसलिए मैं आप से मिलाने लाया हूं, आप इस की मदद कर सकते हैं.’’

‘‘ठीक है, मैं इस के लिए कुछ करता हूं,’’ विकास सर बोले. इस के बाद विकास सर ने रश्मि से कुछ सवाल पूछे. सभी चायनाश्ता कर के वहां से चल दिए. विकास सर अपने काम से दूसरी तरफ चले गए.

महंगे ख्वाब: भाग 1- रश्मि को कौनसी चुकानी पड़ी कीमत

अपनी मंजिल पाने के लिए जनून एक हद तक सही है, लेकिन व्यक्ति मानमर्यादा की सीमा लांघ कर अपनी मंजिल पाए तो क्या उसे खुशी हासिल होगी? रश्मि भी अपने सपने को हकीकत बनाने की राह पर जा रही थी पर आगे धुंध ही धुंध थी.

‘‘मम्मी, आज आप खाना बना लो, मुझे टैस्ट की तैयारी करनी है, वो क्या है न, आज से मेरे टैस्ट शुरू हो रहे हैं और अगले महीने एग्जाम होंगे.

‘‘ठीक है, बेटी,’’ मां ने रूखेपन से जवाब दिया.

‘‘अरे मां, सच में टैस्ट है. मैं कोई बहाना नहीं कर रही.’’

‘‘अच्छा, ठीक है, कोई बात नहीं,’’ रश्मि की मां अनीता ने झिड़कते हुए जवाब दिया. रश्मि 16 वर्ष की बेहद खूबसूरत लड़की थी. अभी 12वीं में पढ़ रही थी. उस की खूबसूरती के किस्से हर किसी की जबां पर थे. रश्मि कई लड़कों के ख्वाबों की मल्लिका थी.

रश्मि अपने वजूद से महफिल की शमा को रोशन कर देती और अपनी किरण को आशिकों के दिलों में इस कदर उतार देती कि मानो उस के बिना पूरी कायनात अंधेरे में समा गई हो.

हुस्न के साथ ही तेज दिमाग सोने पे सुहागा होता है, रश्मि में ये दोनों खूबियां थीं. यही वजह थी उस के ऊंचे ख्वाब देखने की. वह एक मौडल बनना चाहती थी और चाहती थी कि हर किसी की जबान पर रश्मिरश्मि हो. इतनी मशहूर होने का सपना वह आंखों में संजोए थी.

मौडल बनने की इसी चाह में वह अपने जिस्म पर काफी ध्यान देती और खूब सजधज कर कालेज या किसी फंक्शन में जाती. इतना सब होने के बावजूद रश्मि को अपने बुने ख्वाब अफसाने ही लगते क्योंकि होशंगाबाद जैसे छोटे शहर में रह कर फेमस मौडल बनना मुमकिन न था. फिर, आज भी समाज में इस तरह के कामों को बुरी निगाहों से देखा जाता है.

लेकिन रश्मि ने मन ही मन ठान लिया था कि उसे अपने ख्वाबों को हकीकत बनाना ही है, चाहे उसे किसी भी हद तक जाना पड़े. अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए वह सबकुछ न्योछावर करने को तैयार थी.

‘‘यार सोनल, सुन न, मुझे तुझ से बहुत जरूरी बात करनी है,’’ रश्मि ने सोनल के कंधे को धीरे से पकड़ कर कहा.

‘‘हां, बोल न, क्या बात करनी है, रश्मि.’’

‘‘देख सोनल, तुझे तो पता है कि ‘‘मैं खूबसूरत हूं,’’ रश्मि की बात बीच में काटते हुए सोनल ने उस के चेहरे को एक आशिक की तरह पकड़ कर कहा, ‘‘सच में जान, तुम बहुत खूबसूरत हो. मैं तुम से

अभी इसी वक्त शादी करना चाहती हूं,

आई लव यूयूऊ…’’

‘‘सोनल, यार मेरा मूड मजाक का नहीं है. मैं सीरियस बात कर रही हूं और तुझे हंसीमजाक की लगी है.’’

‘‘सुन रश्मि, मैं सच कह रही हूं, तू बहुत खूबसूरत है. अच्छा यह सब जाने दे. अब बता क्या कह रही थी.’’

रश्मि संजीदगी से बोली, ‘‘मैं आगे की पढ़ाई के साथ मौडलिंग भी करना चाहती हूं.’’

‘‘हां, तो कर, तेरे लिए कौन सी बड़ी बात है. वैसे भी तू एकदम मौडल है ही,’’ सोनल ने रश्मि की हौसलाअफजाई की.

सोनल की बात सुन रश्मि ने कहा, ‘‘तेरी सारी बातें ठीक हैं, लेकिन मौडल कैसे बना जाता है? इस के लिए क्या पढ़ाई करनी पड़ती है? यह सब तो मुझे मालूम

ही नहीं.’’

‘‘हां रश्मि,’’ और सोनल ने गहरी सांस ले कर पूरी हवा को सिगरेट के धुएं के स्टाइल में मुंह बना कर हवा में उड़ा दी.

इस पर दोनों अपना सिर पकड़ कर ऐसे बैठ गईं, मानो कोई राह न दिख रही हो, लेकिन किसी ने सच ही कहा है कि जहां चाह, वही राह.

परीक्षा की घड़ी नजदीक आ गई और परीक्षा के बाद जब रश्मि अपने दोस्तों से मिली तो सभी एकदूसरे से सवालजवाब करने लगे.

तभी वहां पंकज आ गया.

‘‘रश्मि, तुम्हारा पेपर कैसा हुआ?’’ पंकज ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘जी भैया, बहुत अच्छा हुआ,’’ रश्मि नजरें झुका कर बोली.

पंकज, रश्मि का बड़ा भाई था. रश्मि के अलावा घर में मम्मीपापा और एक छोटी बहन रागिनी थी, जो 10वीं के पेपर दे रही थी. रश्मि के पापा दीपक पाटीदार थे. आमदनी सालभर में इतनी हो जाती कि घर का खर्च आसानी से चल जाता, लेकिन शौक पूरे नहीं किए जा सकते. रागिनी एकदम सिंपल लड़की थी. उसे अपनी दीदी की तरह सजनेसंवरने का बिलकुल भी शौक नहीं था.

12वीं के बाद कोई काम ढूंढ़ने के लिए परेशान होता है तो कोई अच्छी जगह एडमिशन के लिए. रोहित आते ही सोनल को देख कर मुसकराया, ‘‘कैसा हुआ पेपर?’’

‘‘ठीक ही हुआ है,’’ सोनल मुंह बना कर बोली, ‘‘अपना बताओ?’’

‘‘सब ठीक है, यार, इतने नंबर आ जाएंगे कि फिर से इस स्कूल में नहीं पढ़ना पड़ेगा,’’ यह कहते हुए रोहित की नजर रश्मि की तरफ टिक गई. लेकिन रश्मि उस की इस हरकत से बेपरवा आलिया से बातों में मशगूल थी.

दरअसल, रोहित पिछले 2 वर्षों से रश्मि की चाहत में पागल था, लेकिन कभी दाल नहीं गली. हार कर रोहित अब उस की राह से हट कर सोनल की जिंदगी में आ गया.

‘‘रश्मि, तुम आगे की पढ़ाई करोगी या नहीं,’’ आलिया ने पूछा.

‘‘हां आलिया, मुझे बीकौम करना है,’’ रश्मि ने जल्दी से जवाब दिया.

‘‘इस के लिए तुम्हें बड़े शहर में दाखिला लेना होगा,’’ सोनल तपाक से बोल पड़ी.

रश्मि रेशम जैसे बालों को उंगलियों में नचाते हुए बोली, ‘‘यही तो मुश्किल है. किस शहर जाऊं और किस के साथ.’’ इसी उलझन में शाम हो गई और सभी एकदूसरे से गले मिल कर विदा लेने लगे.

घर पहुंच कर रश्मि ने अपनी बांहों की माला मां के गले में डाल कर जिस्म को ढीला छोड़ दिया. मां मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘बेटा, क्या बात है? आज अपनी मां पर बहुत प्यार आ रहा है.’’

‘‘मम्मी, आप से एक बात कहूं,’’ रश्मि झिझकते हुए बोली.

‘‘हां, बोल क्या बात है? वैसे भी आज मैं बहुत खुश हूं,’’ अनीता उस के गालों को प्यार से खींच कर बोली.

अब रश्मि के सामने दिक्कत यह थी कि वह मम्मी से किस तरह बात शुरू करे और कहां से, लेकिन शुरू तो करना था. इसलिए उस ने हिम्मत कर के मम्मी से कहना शुरू किया.

‘‘मम्मी, बात यह है कि मैं आगे की पढ़ाई के लिए बाहर जाना चाहती हूं.’’ यह कहने के साथ रश्मि अपनी मां की आंखों में आंखें डाल कर बड़ी बेसब्री से उन के जवाब का इंतजार करने लगी.

अनीता की सांस जहां की तहां रुक गई. उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इस का क्या जवाब दें, क्योंकि पति को अच्छी तरह जानती थीं. कुछ लमहों के बाद गहरी सांस छोड़ कर यह कहते हुए खड़ी हो कर जाने लगीं कि इस बात की इजाजत तेरे पापा ही देंगे.

रश्मि को एक पल के लिए ख्वाब टूटते हुए लगे, लेकिन दूसरे ही पल संभल कर बोली, ‘‘मम्मी, आप पापा से बात कर लो. मुझे बड़ा शौक है कि पढ़लिख कर आप लोगों का नाम रोशन करूं.’’

‘‘हूं, अच्छा, ठीक है,’’ मां ने इशारे से हामी भरी और अंदर चली गईं.

रश्मि का सोचसोच कर बुरा हाल हो गया था, ‘अगर पापा ने मना कर दिया तो,’ ‘नहीं, नहीं ऐसा नहीं हो सकता,’ खुद ही सवाल कर के जवाब भी खुद ही देती. उस रात रश्मि की आंखों से नींद कोसों दूर थी. सारी रात करवट बदलबदल कर सुबह कर दी.

लेकिन अगली सुबह इतनी खूबसूरत होगी, उस ने सोचा न था. अब ख्वाबों को हकीकत बनाने वाली वह जादुई छड़ी रश्मि को मिल गई थी. पापा मान गए थे कि रश्मि आगे की पढ़ाई कर सकती है.

मोहपाश: भाग 4- क्या बेटे के मोह से दूर रह पाई छवि

छवि बच्चों को ले कर कौरीडोर में खड़ी थी. ड्राइवर गाड़ी ले आया. बच्चे कूद कर उस में बैठ गए. ड्राइवर बाहर निकल गया, वह समझ गई माहेश्वरी गाड़ी चलाएगा. वह चुपचाप आगे की सीट पर बैठ गई. माहेश्वरी आज बहुत स्मार्ट लग रहा था. जितनी देर बाहर वह मोबाइल पर बात करता रहा, छवि की नजर उसी पर टिकी रही.

माहेश्वरी गाड़ी का दरवाजा खोल कर बैठा. उस ने छवि को देखा. उसे देख कर वह चौंक गया. उस ने फिर छवि को देखा. बरसों बाद आंखों में काजल लगाई छवि आज उसे अलग नजर आ रही थी. पीछे एक बार बच्चों को देखते हुए उस ने फिर छवि को देखा और गाड़ी स्टार्ट की. मौल में प्रृशा का कपड़ा, प्रियम का ड्रैस खरीदा गया. दोनों के लिए खिलौने भी लिए गए. माहेश्वरी शर्ट की शौप पर रुक कर शर्ट देखने लगा. उस ने शर्ट पसंद की और बिल बनाने को कहा.

छवि ने शर्ट पर लगा धब्बा दिखाया. माहेश्वरी ने दूसरी मांगी और मोबाइल पर बात करने लगा. माहेश्वरी की मांगी शर्ट का वह कलर और नहीं था. छवि ने एक दूसरे रंग की शर्ट हाथ में उठाया, तभी माहेश्वरी आ गया. दुकानदार बोला, ‘सर, वह कलर नहीं है, मैडम ने उस की जगह इसे रखा.’

माहेश्वरी ने कहा, ‘ठीक है, जब मैडम ने कहा है, तब यही फाइनल है, बिल बना दो.’

‘मैं ने बस यह शर्ट पकड़ी थी,’ छवि ने धीरे से कहा.

माहेश्वरी ने उसे देखा. पर कुछ जवाब नहीं दिया. ठीक उस के सामने हैंडलूम साड़ियों की दुकान थी. छवि उसे देखे जा रही थी, जिसे माहेश्वरी ने देख लिया था. वह उस साड़ी की दुकान की ओर बढ़ा. छवि समझ गई, इसलिए वह धीरेधीरे चल रही थी.

‘नहीं, मुझे साड़ी नहीं चाहिए,’ वह दुकान में घुसने को तैयार नहीं हो रही थी.

‘छवि स्वाभिमानी होना अच्छी बात है, पर जब स्वाभिमान अहं बन जाता है तब वह अशोभनीय हो जाता है.’

माहेश्वरी के इस कथन पर निरुत्तर हो छवि चुपचाप साड़ी के दुकान में घुसी. बच्चे भी बैठ चुके थे. वह उन की बगल में बैठ गई. माहेश्वरी छवि के पास बैठ गया.

‘किस मैटीरियल में दिखाऊं?’

छवि को साड़ियों का उतना ज्ञान नहीं था. जब तक वह सोच पाती, माहेश्वरी ने कह दिया,

‘ढाका सिल्क में दिखाइए.’

दुकानदार ने दिखाना शुरू किया. उस ने पहले कम मूल्य की साड़ियों को दिखाना शुरू किया. माहेश्वरी ने कहा, ‘थोड़ा बैटर.’

उस ने मंहगी साड़ियों को दिखाना शुरू किया. छवि चुपचाप देख रही थी. माहेश्वरी ने 11 हजार रुपए की साड़ी पसंद कर ली. छवि ने सब से नीचे रखी कम मूल्य की साड़ी को पकड़ा और कहा, ‘इसे.’

माहेश्वरी ने उस का हाथ पकड़ कर धीरे से दबा कर कहा, ‘बस’ और अपनी आंखों से कहने की कोशिश की, ‘बहुत हुआ अब चुप रहो’. छवि माहेश्वरी के इस ब्यवहार से सिहर उठी. उस के मुंह से एक शब्द भी न निकला. प्रृशा ने पापा से कहा, ‘पापा, मुझे भूख लगी है.’

सब मौल के रैस्टोरैंट में बैठ गए. माहेश्वरी ने सूप मंगाया. सब पी रहे थे. अचानक माहेश्वरी को सूप सरक गया, वह खांसने लगा. छवि उठी और माहेश्वरी की पीठ सहलाने लगी. माहेश्वरी लगातार खांस रहा था. अब वह कांपने लगा था. उस ने छवि का हाथ जोर से पकड़ लिया. छवि ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश नहीं की. खाना खा कर सब वापस घर आए.

छवि माहेश्वरी के प्रति अपने आर्कषण को महसूस करने लगी थी. माहेश्वरी की बातें, उस के ध्यान रखने का अंदाज सब उसे उस के करीब आने पर विवश कर रहा था. उसे रात की बात याद आ गई. वह प्रृशा को कहानी सुना रही थी, माहेश्वरी आया. इस बार वह अंदर आया और प्रृशा के पास बैठ कर बोला, ‘छवि, तुम ने जो मेरी बेटी के लिए किया, उस के लिए मैं तुम्हारा हमेशा एहसानमंद रहूंगा. यह एक छोटा सा उपहार कल पूर्णिमा के कार्यक्रम में तुम साड़ी के साथ पहनोगी, मुझे खुशी होगी.’

छवि ने देखा, उस में एक सुंदर सा गले का छोटा नैकलैस और वैसा ही छोटा सा कान का था. छवि को उस का उपहार देना अच्छा नहीं लगा. वह तुरंत स्टडीरूम में गई जहां महेश्वरी था. छवि कुछ कहती, उस के पहले वह बोल उठा, ‘लाओ वापस दे दो, लौटाने आई हो न, कर दो वापस.’

छवि चौंक गई, इन्हें मेरी बात कैसे पता चली. उस ने झट सैट पीछे छिपा लिया, बोली, ‘नहीं, मैं लौटाने नहीं आई हूं, मैं तो थैक्स कहने आई हूं, सुंदर सैट है.’

‘योर वैलकम,’ माहेश्वरी ने गंभीरता से कहा.

छवि चुपचाप चली आई. उस ने सोच लिया, उस का यहां का काम ख़त्म हो गया है. उसे अब यहां से निकल जाना चाहिए. उसे इस मोहपाश के बंधन से दूर चली जाना चाहिए. उस के लिए उस का बेटा प्रियम, बस, उस का मोहपाश रहेगा. माहेश्वरी जैसे देवपुरुष के जीवन में वह अपने कलंकित जीवन का साया नहीं पड़ने देगी. उस ने निश्चय कर लिया, वह कल पार्टी के बाद अपना इस्तीफा दे देगी.

माहेश्वरी मैंशन में पूर्णिमा के दिन विशेष कार्यक्रम होता था. कार्यक्रम के बाद लंच लेने के उपरांत छवि ने अपना इस्तीफा लिख कर औफिस में पहुंचा दिया. पूरे दिन वह माहेश्वरी के सामने आने से बचती रही. जब भी उस की आवाज सुनती, झट अपने कमरे में चली जाती. रात में वह खाने को पहुंची, तब माहेश्वरी के नौकर ने बताया, साहब ने खाना नहीं खाया, छत पर जा कर बैठे हैं, किसी को भी वहां आने को मना किया है.

उस ने चीना से दोनों बच्चों को देखते रहने को कहा और छत पर चली गई. वह जा कर माहेश्वरी के पास जा कर खड़ी हो गई. माहेश्वरी आरामकुरसी पर आंखें बंद किए चुपचाप गहन सोच की मुद्रा में बैठा था. आहट होने पर उस ने आंखें खोल कर देखा और फिर अपनी आंखें बंद कर लीं मानो उसे पता था, छवि जरूर आएगी.

छवि ने पूछा, ‘आप ने खाना क्यों नहीं खाया?’

‘भूख नहीं है.’

‘क्या हुआ जो भूख नहीं है.’

‘तुम सब जानती हो छवि, फिर क्यों पूछ रही हो.’

‘देखिए, मैं जिस काम के लिए आई थी, वह पूरा हो गया है. प्रृशा अब बिलकुल ठीक है. आप उसे अब स्कूल में डालने वाले हैं. सच पूछिए तो अब बेबी को गवर्नैंस की नहीं, एक मां की जरूरत है.’

‘तुम से अच्छी मां उसे कहां मिलेगी?’

‘मेरे बारे में आप नहीं जानते हैं. मेरा आंचल मैला है. इस में मेरे अतीत के काले गंदे धब्बे हैं.’

‘मैं अपने प्यार से उन धब्बों को धो दूंगा छवि.’

‘मैं एक कुंआरी मां हूं.’

‘मैं अपने नाम के सिंदूर से तुम्हें सुहागन मां बना दूंगा.’

‘आप नहीं जानते हैं, मैं आप की कितनी इज्जत करती हूं, आप पर मेरी कितनी श्रद्धा है. मैं आप के लायक नहीं हूं.’

छवि रोते हुए माहेश्वरी के पैरों पर गिर पड़ी.

‘किस ने कहा, तुम मेरे लायक नहीं हो, देखो, वह पूनम का चांद मुसकराता कह रहा है, तुम्हारी जगह वहां नहीं, यहां है…’

माहेश्वरी ने छवि को उठा कर अपने कलेजे से लगा लिया. छवि माहेश्वरी में सिमट कर सिसक उठी, आखिर माहेश्वरी के मोहपाश के बंधन में वह बंध ही गई.

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