दरार: भाग 2- रमेश के कारण क्यों मजबूर हो गई थी विभा

‘‘तुम क्या मेरे घर की चौकीदारी करते हो? तुम्हें कैसे पता कि मेरे घर में कौन आता है, क्यों आता है?’’ रमेश ने चिढ़ कर कहा. दूसरी तरफ से हंसी की आवाज आई और फोन कट गया.

रमेश सोचता रहा, सोचता रहा और एकदम से उस के दिमाग में आइडिया आया. विभा को लगे कि वह घर पर नहीं है, किंतु हो वह घर पर ही.

दूसरे दिन सुबह उस ने अपनी   योजना को अमलीजामा पहनाना  शुरू कर दिया. उस ने कार स्टार्ट की, फिर बंद की. फिर स्टार्ट की, फिर बंद की. इस तरह उस ने कई बार किया. फिर  झल्ला कर कहा, ‘‘कार स्टार्ट नहीं हो रही है. मैं बाहर सड़क से औटो ले लूंगा.’’

विभा उस वक्त बाथरूम में पहुंच चुकी थी. उस ने कहा, ‘‘दरवाजा अटका कर चले जाना. मैं बाद में बंद कर लूंगी. रमेश ने जोर से दरवाजा खोला, फिर जोर से खींच कर बंद किया और बाहर जाने के बजाय बैडरूम में रखी बड़ी अलमारी के पीछे छिप गया. अपने ही घर में छिपना कितना पीड़ादायक होता है अपनी पत्नी को गैरपुरुष के साथ रंगेहाथ पकड़ना. बेटा तरुण पहले ही स्कूल जा चुका था. अब उसे सांस रोके छिप कर खड़े इंतजार करना था उस भीषण दृश्य का.

रमेश ने मन ही मन सोचा यदि उस की पत्नी ने उसे देख लिया तो क्या सोचेगी उस के बारे में. और यदि यह सच न हुआ, तो वह अपनी ही नजरों में गिर जाएगा. विचारों के ऊहापोह में उसे पता भी न चला कि उसे दम साधे खड़े हुए कितना वक्त गुजर चुका है. काफी समय तक उसे अपनी पत्नी के इस कमरे में आनेजाने की आहट मिलती रही. फिर पत्नी के मोबाइल की रिंगटोन सुनाई दी. विभा ने मोबाइल उठाया. उस तरफ से कौन बोल रहा था, क्या बोल रहा था, यह उसे विभा की बात से सम झ आ गया.

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‘‘रास्ता साफ है. गाड़ी चालू नहीं हो रही थी. पैदल ही निकल गए. लेकिन जरा चौकस रहना. मु झे लगता है उसे शक हो गया है. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’

फिर विभा गुनगुनाने लगी. थोड़ी देर बाद दरवाजे की घंटी बजी. फिर एक  30-32 वर्ष के आकर्षक गौरवर्ण युवक ने बैडरूम में प्रवेश किया. दोनों लिपट गए. फिर दोनों के मध्य रतिक्रिया आरंभ हुई. दोनों निढाल हो कर बिस्तर पर लेट गए.

‘तुम घबराना मत,’’ युवक ने उसे धैर्य बंधाया, ‘‘रास्ते का कांटा बनेगा तो कांटे को निकाल फेंकना मु झे आता है.’’

‘‘तुम हत्या कर दोगे? इतना प्यार करते हो मुझे,’’ विभा ने लिपटते हुए कहा.

रमेश का खून खौलने लगा. उस के दिल में आया कि कहीं से एक रिवौल्वर का इंतजाम करे और दोनों को गोली से उड़ा दे. यही सजा है दोनों की. किंतु खौलता हुआ रक्त उसे जमता हुआ जान पड़ा. उस के हाथपैर कांपने लगे.  झूठ की ताकत का भी जवाब नहीं, कितनी बेवफाई और ताकत से भरा हुआ था. बेचारा सच अपने ही घर में छिपा हुआ दोनों की प्रणयलीला देख रहा था. फिर मिलने का वादा कर के युवक चला गया और विभा ने कमरा ठीकठाक किया व बिस्तर पर लेट गई. लेटते ही उस के खर्राटे कमरे में गूंजने लगे.

दरवाजे को आहिस्ता से खोल कर रमेश बाहर निकल गया. जो उस ने देखा, जो उस ने भोगा, उस मृत्युतुल्य कष्ट में उस की सम झ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. खत्म कर दे दोनों को और जेल चला जाए जीवनभर के लिए या खुद को खत्म कर ले और पीछा छुटाए अपने इस टूटे, हारे, धोखा खाए जीवन से? किंतु दोनों ही स्थितियों में उस के बेटे का क्या होगा? इन लोगों का क्या है इन्हें तो खुली छूट मिल जाएगी किंतु सजा भुगतेगा उस का बेटा. नष्ट हो जाएगा उस के बेटे का भविष्य.

उसे लगा कि अब चाहे जो भी हो, उसे रमन से बात करनी चाहिए कि वह आगे क्या करे? ऐसा ही चलने दे? आंख पर पट्टी बांध कर जीना शुरू कर दे? सब बातों से अनजान बना रहे? उसे लगा कि रमन को बता देना चाहिए. कोई तो हो इस दुर्दांत घड़ी में अपना. उस ने रमन को सबकुछ बता दिया. उस की आंखों से आंसू बहते रहे. उस का कहना जारी रहा और रमन ने सब सुनने के बाद अफसोस जताते हुए कहा, ‘‘हर समस्या का हल है. तुम क्या चाहते हो?’’

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‘‘मु झे कुछ सम झ में नहीं आ रहा है,’’ रमेश ने विषादभरे स्वर में कहा.

‘‘तो, चलो मेरे साथ,’’ रमन ने कहा और बिना प्रश्न पूछे रमेश उस के पीछे छोटे बच्चे की तरह चल पड़ा. रमेश को रमन एक कौफीहाउस में ले गया और उस से कहा, ‘‘मैं जो पूछूं, सचसच बताना. मैं तुम्हारा दोस्त हूं, एक अच्छा समाधान निकालने की कोशिश करूंगा.’’

‘‘पूछो.’’

‘‘तुम्हारे अंदर कोई कमी है. मेरा मतलब…’’

‘‘कमी होती तो मेरे साथ वह इतना लंबा समय न बिताती. मत भूलो कि मैं एक बच्चे का बाप हूं.’’

‘‘यह सब कब से चल रहा है.’’

‘‘मु झे पता नहीं.’’

‘‘तुम्हें शक कैसे हुआ?’’

‘‘किसी ने फोन पर जानकारी दी.’’

‘‘जो सही निकली.’’

‘‘हां.’’

‘‘तुम क्या चाहते हो?’’

‘‘मैं उन दोनों का कत्ल करना चाहता हूं.’’

‘‘यह मूर्खता होगी.’’

‘‘तो तुम बताओ, क्या करूं मैं?’’

‘‘मेरे खयाल से तुम्हारा इस संबंध में अपनी पत्नी से बात करना उचित नहीं होगा. यदि तुम बिना सुबूत के तलाक देने की बात करोगे, तो हो सकता है तुम्हारी पत्नी तुम्हें दहेज प्रताड़ना के केस में अंदर करवा दे. मेरा एक मित्र है जो जासूसी का काम करता है. उस के पास चलते हैं. एक बार सुबूत हाथ लग गए तो फिर तुम जैसा चाहे, करो.’’

‘‘तो चलते हैं तुम्हारे जासूस मित्र के पास.’’

इस समय रमेश और रमन टाइगर डिटैक्टिव एजेंसी में बैठ कर जासूस टाइगर को सारी बात सुना रहे थे. पूरी बात सुनने के बाद जासूस टाइगर ने अपनी फीस 10 हजार रुपए एडवांस बताई और सुबूत मिलने के बाद 30 हजार रुपए. जो रमेश ने मंजूर कर ले…

‘‘लेकिन आप सुबूत जुटाएंगे कैसे?’’ रमेश ने पूछा.

अगले भाग में पढ़ें-  अपने बेटे की खातिर, तो मैं तो स्त्री हूं…

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दरार: भाग 4- रमेश के कारण क्यों मजबूर हो गई थी विभा

लखनपाल ने कहा, ‘‘तुम मेरे दामाद हो. मैं तुम से अपनी बेटी की हरकतों के लिए माफी मांगता हूं. किंतु बेवफाई मेरी बेटी ने नहीं, तुम्हारी पत्नी ने की है. शादी के बाद बेटी पराई हो जाती है. मैं अपनी बेटी तुम्हें सौंप चुका हूं और इस बात को 15 वर्ष हो चुके हैं. तुम्हारी सास अब इस दुनिया में नहीं है. नहीं तो उस से कहता बेटी से बात करने को. मैं पिता हूं, मेरा इस मसले को ले कर बेटी से कुछ कहना ठीक नहीं होगा. अपनी पत्नी को कैसे राह पर लाना है, उस के बहके हुए कदमों को कैसे संभालना है, यह तुम्हारी जिम्मेदारी है. फिर भी तुम कहते हो, तो मैं उसे सम झाऊंगा.’’

रमेश को यहां से भी निराशा हाथ लगी. पिता ने अपनी बेटी को फोन पर सम झाया कि अपना घर, अपना पति, बच्चे, एक औरत के लिए सबकुछ होना चाहिए. तुम जिस रास्ते पर चल रही हो, वह विनाश का रास्ता है. अभी भी वक्त है, मृगतृष्णा के पीछे मत दौड़ो. लेकिन वासना में डूबा व्यक्ति कहां सम झ पाता है? विभा को सम झ में आ गया कि उस के पति को उस के अवैध संबंधों की पूरी जानकारी है. उस ने अंतिम फैसले के उद्देश्य से सुमेरचंद को फोन लगा कर संबंधों की खुलती पोल के विषय में जानकारी देते हुए कहा, ‘‘तुम मु झ से कितना प्यार करते हो?’’

‘‘बहुत.’’

‘‘क्या तुम मु झ से शादी कर सकते हो?’’

‘‘मैं शादीशुदा हूं. मेरी 2 बेटियां हैं. तुम भी शादीशुदा हो और एक बच्चे की मां. मेरी पत्नी को भी हमारे संबंधों की जानकारी हो चुकी है.’’

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‘‘तुम अगर सच में मु झ से प्यार करते हो तो मेरे प्यार की खातिर छोड़ दो सबकुछ. मैं भी तुम्हारे लिए सब छोड़ने को तैयार हूं. भगा ले जाओ मु झे और कर लो मु झ से शादी.’’

‘‘मैं अपनी पत्नी और बेटियों को नहीं छोड़ सकता. हां, मैं तुम से प्यार करता हूं, लेकिन शादी नहीं कर सकता.’’

‘‘जब शादी नहीं कर सकते, तो संबंधों को आगे बढ़ाया क्यों?’’

‘‘मैं ने शादी का कभी तुम से वादा नहीं किया. न हमारे बीच में कभी कोई शादी की बात हुई. संबंध रखना हो तो ठीक. अन्यथा ऐसे रिश्ते को समाप्त कर लो.’’

‘‘फिर मैं तुम्हारी क्या हुई? रखैल? मन बहलाने का साधन?’’

‘‘जैसा तुम सम झो. तुम्हारे लिए मैं अपना घर नहीं तोड़ सकता. दिल बहलाना और बात है, शादी करना बहुत बड़ी बात है.’’

‘‘तुम मु झे धोखा दे रहे हो?’’

‘‘मैं तुम्हें नहीं. अपनी पत्नी को धोखा दे रहा हूं और तुम अपने पति को. जब तुम अपने पति की नहीं हुईं तो मैं तुम से कैसे वफा की उम्मीद रखूं. मैं तुम से अभी और इसी वक्त संबंध तोड़ता हूं,’’ इतना कह कर सुमेरचंद ने अपना मोबाइल बंद कर दिया.

उफ, यह मैं ने क्या कर दिया? बहके हुए जज्बातों ने पूरे जीवन पर ग्रहण लगा दिया. कैसे सामना करूंगी अपने पति का. एक गलत कदम ने अर्श से फर्श पर ला पटका मु झे. न मैं अच्छी मां बन सकी, न अच्छी पत्नी. अब क्या होगा? कौन सी विपत्ति आती है, इस का, बस, इंतजार किया जा सकता है. पति के पास मेरी चरित्रहीनता के पूरे सुबूत हैं. यह क्या कर दिया मैं ने. अपने हाथों से अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार दी. अपने हाथों से अपना ही घर जला दिया.

तभी फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठाया, ‘‘हैलो.’’

दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘पति छोड़ दे, तो मैं तुम्हें रखने को तैयार हूं.’’

उस ने फोन जोरों से पटक दिया और चीखी, ‘‘मैं वेश्या नहीं हूं.’’

‘‘तो क्या हो?’’ आवाज की दिशा में पलट कर देखा विभा ने. सामने रमेश खड़ा था और पूछ रहा था, ‘‘तो क्या हो?’’

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विभा पति के पैरों पर गिर गई. उस ने रोते हुए कहा, ‘‘मु झे बहका दिया था सुमेर ने. माफ कर दो मु झे.’’

‘‘तुम कोई दूध पीती बच्ची नहीं हो, जो किसी ने कहा और तुम ने मान लिया,’’ रमेश ने क्रोध से चीख कर कहा, ‘‘तुम ने जो किया, अपनी मरजी से किया.’’

‘‘मु झे माफ कर दीजिए. मु झे एक मौका दीजिए,’’ विभा गिड़गिड़ाई.

‘‘तुम ने मेरे घर को अपनी ऐयाशी का अड्डा बना दिया. मैं तुम्हें कभी माफ नहीं कर सकता.’’

‘‘अपने बेटे की खातिर मु झे माफ कर दीजिए.’’

‘‘बेटे का खयाल होता तो ऐसी गिरी हुई हरकत न करतीं.’’

‘‘मैं आप से माफी मांगती हूं. आप के पैर पड़ती हूं.’’

‘‘तुम ने मेरा विश्वास तोड़ा है. तुम ने बेवफाई की है मु झ से. तुम ने प्रेम की, घर की, परिवार की मर्यादा को नष्ट किया है. तुम क्षमा के योग्य नहीं हो.’’

विभा क्षमा मांगती रही. रमेश उसे खरीखोटी सुनाता रहा. तभी बेटा स्कूल से आ गया. पिता को गुस्से में और मां को रोते देख बेटा रोने लगा, ‘‘क्या हुआ मम्मी? पापा आप क्यों गुस्से में हैं?’’

बेटे का चेहरा सामने पड़ते ही रमेश का गुस्सा शांत हो गया. विभा ने बेटे को सीने से लगाते हुए कहा, ‘‘बेटा, अपने पापा से कहो, मु झे माफ कर दें. पत्नी को न सही, मां को ही माफ कर दें.’’ मां को रोते देख बेटे ने अपने पिता से रोते हुए कहा, ‘‘पापा, मम्मी को माफ कर दीजिए. अगर आप का गुस्सा शांत न हो तो मेरी पिटाई कर दीजिए. मु झे डांट लीजिए.’’

बेटे को रोता देख पिता पिघल गया. विभा बेटे को खाना खिलाने ले गई. थोड़ी देर बाद चाय बना कर पति को दी. रमेश ने कहा, ‘‘हमारा बेटा हम दोनों के बीच सेतु है. एक छोर पर तुम, दूसरे छोर पर मैं. मैं तुम्हें बेटे की खातिर तलाक नहीं दूंगा. क्योंकि मैं जानता हूं बेटे को हम दोनों की जरूरत है. लेकिन, मैं तुम्हारी बेवफाई भूल नहीं सकता. मैं तुम्हारी चरित्रहीनता को चाह कर भी नहीं भूल पाऊंगा. हम एक ही छत के नीचे तो रहेंगे, लेकिन वह प्रेम, वह विश्वास अब संभव नहीं है मेरे लिए.’’

विभा फिर से घर को घर बनाने में जुट गई. गुजरते वक्त के साथ मन के भेद मिटे तो सही काफी मात्रा में, लेकिन रमेश के मनमस्तिष्क में एक दरार बन गई हमेशा के लिए.

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