Father’s day Special: फैमिली को खिलाएं टेस्टी पनीर कोल्हापुरी

पनीर से बनी चीजें हर किसी को पसंद आती है चाहे वो खीर हो या सब्जी. पनीर हेल्थ के लिए अच्छा होता है, जो बहुत फायदा पहुंचाता है. आझ हम आपको हेल्दी और टेस्टी पनीर कोल्हापुरी के बारे में बताएंगे, जिसे आप आसानी से बनाकर अपनी फैमिली और बच्चों को डिनर में खिला सकते हैं.

हमें चाहिए

– 200 ग्राम पनीर टुकड़ों में कटा

– 2 टमाटर

– 1-2 हरीमिर्चें

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

– 8-10 काजू

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– 1/4 कप सूखा नारियल कद्दूकस किया

– 1 छोटा चम्मच तिल

– 1 टुकड़ा अदरक

– 1 टुकड़ा दालचीनी

– 1-2 हरी इलायची

– 4-5 कालीमिर्चें

– 1-2 लौंग

– 2 बड़े चम्मच घी

– 1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

– 1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

– चुटकीभर हींग

– 1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

– 1 छोटा चम्मच जीरा

– 1 छोटा चम्मच सौंफ

– नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

जीरा, सौंफ, तिल, दालचीनी, लौंग, कालीमिर्चें, इलायची, सूखा नारियल ड्राई रोस्ट कर पीस लें. टमाटर, अदरक, हरीमिर्चें और काजू पीस कर पेस्ट बना लें.

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एक पैन में घी गरम कर हींग, हल्दी, मिर्चपाउडर, धनिया पाउडर व सूखे मसालों का पाउडर, टमाटर व काजू का पेस्ट डाल कर भूनें. मसाला घी छोड़ने तक धीमी आंच पर भूनें. पानी डालें व सिमर होने दें. उबाल आने पर नमक व पनीर के टुकड़े डाल धीमी आंच पर पकाएं और सर्व करें.

Father’s day Special: अपनी कामयाबी का श्रेय अपने पिता को देती हैं शक्ति मोहन

मिडिल क्लास फैमिली में यदि एक से ज्यादा लड़कियां हों तो कुछ परिवारों में मातापिता उन की परवरिश और शादी को ले कर आज भी चिंतित हो उठते हैं मगर दिल्ली के रहने वाले बृजमोहन शर्मा की सोच अलग थी. उन्होंने अपनी बेटियों को अपना मुकाम हासिल करने की पूरी आजादी दी.

शक्ति मोहन अपनी कामयाबी का सारा श्रेय अपने पिता बृजमोहन शर्मा को देती हैं. डांस रिऐलिटी शो ‘डांस इंडिया डांस सीजन 2’ की विजेता बनने के बाद 10 सालों से वे मुंबई में रह रही हैं. डांस शो जीतने के बाद राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई शोज की जज भी बन चुकी हैं. कई फिल्मों में भी काम किया है. शक्ति को आईएएस बनने की इच्छा थी, लेकिन डांस करना बहुत पसंद था. 8 साल भरतनाट्यम और 4 साल कंटैंपरेरी डांस सीखा. शक्ति की 3 बहनें हैं- नीति मोहन, कृति मोहन और मुक्ति मोहन. सभी बहनें किसी न किसी रूप में कला से जुड़ी हैं.

जब शक्ति ने डांस के क्षेत्र में आगे बढ़ने की बात की, तो उन की बड़ी बहन ने बताया कि यह क्षेत्र तो अच्छा है,लेकिन इस में स्टैबिलिटी कम है. लेकिन शक्ति के पिता को उन पर पूरा भरोसा था और इसीलिए यहां तक पहुंचने के हर कदम पर वे शक्ति को आगे बढ़ाने में सहायता करते रहे. शक्ति से बात करना दिलचस्प रहा. पेश हैं, कुछ अंश:

सवाल- यहां तक पहुंचने में पिता का कितना सहयोग रहा?

पिता ने हम सभी बहनों को सब से अधिक आजादी दी है. उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि सिर्फ पढ़ाई करो. मुझे जो पसंद है उसे करने में वे मुझ से भी एक कदम आगे रहते हैं. किसी भी अचीवमैंट पर वे सब से पहले तालियां बजाने वाले हैं. आज मैं जो भी हूं, उन की बदौलत हूं. मैं अपनी कामयाबी का श्रेय अपने पिता को देती हूं.

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सवाल- उन की किस बात को आप जीवन में उतारना पसंद करती हैं?

डेटूडे लाइफ के उतारचढ़ाव को वे समझाते हैं, जिस से कोई निर्णय लेना मेरे लिए आसान हो जाता है. उन्होंने कभी मेरे ऊपर कोई प्रैशर नहीं बनाया कि तुम यह क्या कर रही हो, इस से क्या मिलेगा आदि. वे हमेशा कहते हैं कि यह तुम्हारी लाइफ है, तुम्हें जो अच्छा लगे, जिसे करने में अच्छा अनुभव हो उसे करो. वे कहते हैं कि किसी भी काम को अगर आप मेहनत और लगन से करते हैं, तो सफलता अवश्य मिलती है. इस  के लिए धैर्य बनाए रखना बहुत जरूरी है.

सवाल- पिता का दिया कोई ऐसा गिफ्ट, जिसे आप हमेशा अपने पास रखना पसंद करती हैं?

जब मैं ने मुंबई यूनिवर्सिटी में स्नातक में टौप किया था, तो मेरे पिता ने मुझे एक पैन दिया था, जिसे वे बहुत सहेज कर रखते थे. मुझे इतनी खुशी हुई कि मैं बयां नहीं कर सकती. मेरे लिए वह सब से कीमती भेंट है.

सवाल- क्या लड़की होने के नाते पिता ने कभी कोई सलाह दी है?

हम 4 बहनें हैं, हम ने बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाई की है. वहां भी हमें पूरी फ्रीडम थी. पिता ने कभी यह नहीं समझने दिया कि हम लड़कियां हैं. हालांकि कई बार रिश्तेदार और पड़ोसी कहते थे कि ये क्या कर रहे हैं? लड़की को नचा रहे हैं अथवा उन के बेटा नहीं है, उन की लाइफ के अंत में क्या होगा आदि. लेकिन पिता ने हमें कभी इस बात का एहसास नहीं करवाया. दिल्ली में रहते हुए हम रात को भी रिहर्सल के लिए जाते थे. बस में जाना, रात को लौटना आदि सब करते थे. किसी प्रकार की रोकटोक नहीं थी. इस से हमारे अंदर दायित्व की भावना और अधिक आ गई थी. दरअसल, जब कोई आप से उम्मीद रखता है, तो आप की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि आप उम्मीद को तोड़ें नहीं.

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हमेशा से महिलाओं को ही मल्टी टास्क करने वाली माना जाता रहा है, जबकि आज पुरुषों को भी ये जिम्मेदारी निभानी पड़ती है, क्योंकि बड़े शहरों में कई परिवार ऐसे है जहाँ महिलायें कैरियर की व्यस्तता की वजह से परिवार के लिए समय नहीं दे पाती है, या कम देती है, ऐसे में पिता को ही बच्चे को सम्हालना पड़ता है. धीरे-धीरे बच्चे और उनके पिता के बीच तालमेल बनता जाता है. इसमें सिंगल फादर भी कई है, जिन्हें किसी हादसे या घटना का शिकार होना पड़ा. पत्नी के गुजर जाने या डिवोर्स के बाद बच्चे को सम्हालने की जिम्मेदारी उन्होंने खुद ली और वे बच्चे को खुद पलना चाहते है.

मुश्किलें आती है, पर वे एक समय के बाद निकल भी जाती है. एक मल्टी नेशनल कंपनी में काम करने वाले तुहिन को कुछ ऐसी ही समस्याओं से गुजरना पड़ा. जब उनकी पत्नी ने ढाई साल की बेटी तिलोत्तमा को छोड़कर अपने पुराने प्रेमी के साथ चली गयी और डिवोर्स ले ली. बच्चे को साथ न ले जाने की भी इच्छा प्रकट की, ऐसे में तुहिन ने बच्चे को सम्हालने की जिम्मेदारी ली और उसमें पूरी तरह से खड़ा उतरने की कोशिश कर रहे है.

वे कहते है कि डिवोर्स के कुछ दिन पहले से मेरी पत्नी बच्चे का ध्यान नहीं रखती थी, किसी तरह उसे डे केयर में डालकर ऑफिस चली जाती थी. मैं जब शाम को उसे घर लाने जाता तो, अधिकतर वह भूखी होती थी और मैं कुछ बनाकर खिलाता था. पूछने पर कुछ न कुछ बहाने दे दिया करती थी. कुछ संमय तक ऐसा चलने के बाद जब एक दिन मैंने इस बारें में उससे बात की, तो पता चला कि वह इस विवाह से खुश नहीं और डिवोर्स चाहती है. बेटी को ले जाना भी नहीं चाहती.

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मैंने इसे स्वीकार किया और तबसे बेटी की परवरिश कर रहा हूँ. कुछ लोगों ने मुझे दुबारा शादी करने की सलाह दी, पर मैं मानसिक रूप से तैयार नहीं. अब मेरी बेटी 5 साल की हो चुकी है और समझदार भी है. किसी बात पर जिद करने पर उसे समझाना अब आसान हो गया है. अब वह काफी हद तक समझदार हो चुकी है. पहले कई बार जब छोटी थी, तो मुझे समस्या आती थी, पर उस समय मेरी माँ और पिता ने बहुत सहयोग दिया. कई बार बेटी बीमार भी पड़ी.

मैंने रात-रात भर जागकर उसकी देखभाल की, पर मैं खुशनसीब हूँ कि मेरी किसी भी परेशानी में मेरी माँ हमेशा साथ रही. मेरे माता-पिता का साथ न होने पर कैरियर के साथ बच्ची को सम्हालना शायद मुश्किल होता. सिंगल पैरेंट बनना कोई नहीं चाहता. हालात उसे बनाती है. वैसे तो माता-पिता दोनों का प्यार बच्चे के लिए चाहिए, पर परिस्थिति से निपटना कई बार पड़ता है. आज मेरी बेटी मेरे लिए सबसे बड़ी प्रायोरिटी है. उसकी सही तरीके से परवरिश करना ही मेरा लक्ष्य है.

ये सही है कि सिंगल फादर बनना आसान नहीं होता, क्योंकि बच्चे की परवरिश में उसकी मानसिक और शारीरिक दोनों अवस्थाओं का ध्यान लगातार रखना पड़ता है. माँ बच्चे के काफी नजदीक होती है, जबकि पिता नहीं. बच्चे के साथ पिता का संवाद भी अमूमन कम होता है, लेकिन आज सिंगल फादर की अवधारणा बढ़ी है और कई पिता इस निर्णय से खुश भी है, ऐसे में सही परवरिश के लिए बच्चे के साथ अच्छी संवाद होने की जरुरत होती है, ताकि एडजस्टमेंट बच्चे और पिता के बीच अच्छा हो.

इस बारें में मनोवैज्ञानिक सुनेत्रा बैनर्जी कहती है कि सिंगल फादर बनना एक चुनौती होती है, इसमें भी बेटे और बेटी की परवरिश के पैमाने अलग होते है. बचपन से ही बच्चे में क्या सही क्या गलत है इसे बताते रहना चाहिए जिसके लिए जरुरी होता है, अच्छी कम्युनीकेशन का होना, जिसके द्वारा आप बच्चे की हर उम्र में उसके शारीरिक और मानसिक बदलाव को अच्छी तरह से समझ सकते है. आप एक अच्छे पिता बनने की कोशिश करें, बेस्ट डैड बनने की नहीं. कुछ टिप्स निम्न है,

  • बच्चे को बड़ा करने में अनुशासन, वर्क और पर्सनल लाइफ के बीच सामंजस्य को मेंटेन करने की जरुरत,
  • खुद की देखभाल के साथ-साथ बच्चे की मानसिक, भावनात्मक, संज्ञानात्मक और शारीरिक विकास को समझते रहना, क्योंकि एकल पिता दो भूमिकाएं निभाते है, 
  • वैसे आजकल मात-पिता की भूमिका में काफी अंतर नहीं रहा, सिंगल फादर बनना, खुद एक बच्चे की पूरी जिम्मेदारी लेना ही बड़ी बात होती है, जो धीरे-धीरे आसान होती जाती है, 
  • डिवोर्सी पिता के अंदर अधिकतर अपराधबोध होता है, क्योंकि उन्हें लगता है कि बच्चा उनकी वजह से ऐसी परिस्थिति से गुजर रहा है, ऐसे में कई बार पिता बच्चे की अनचाहे जिद को पूरा कर माँ की कमी को पूरा करना चाहते है, जो बच्चे के साथ गलत होता है, ऐसा कभी न करें, आप खुद को बच्चे का पालनहार समझे.

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  • हमेशा उसे सही गलत के फर्क को समझाने की कोशिश करें, ये काम बच्चे के साथ बैठकर या कही बाहर जाकर खुले परिवेश में करें, उसपर ट्रस्ट रखें.
  • एक धैर्यवान लिसनर बने, बच्चे की बात को सुनकर फिर अपनी बात कहें, पिता के पास अक्सर हर बात का समाधान होता है और बच्चे ये जानते है, लेकिन कहाँ तक आप इसे पूरा करेंगे, इसका मापदंड भी उन्हें समझाए. 
  • अगर बेटी हो तो उनका ध्यान सिंगल फादर को अधिक रखना पड़ता है, मनोवैज्ञानिक शब्दों में इलेक्ट्राकाम्प्लेक्स यानि बेटी का पिता के प्रति और बेटे का माँ के प्रति आकर्षण का होना माना जाता है, बेटी के जीवन में उसका पिता पहला पुरुष होता है, जो पुरूष की मानक को सेट करता है, जिसके द्वारा उसके जीवन में पुरुष की एक छवि बनती है, जिसे वह सम्मान देती है और खुद को उसके साथ रहकर सुरक्षित महसूस करती है, जो बाद में पति या बॉयफ्रेंड का रूप लेता है, पिता को उसके जीवन का आदर्श होना जरुरी होता है.
  • प्युबर्टी स्टेज में ये काम और अधिक मुश्किल बेटी के क्षेत्र में होता है, क्योंकि तब बेटी में शारीरिक और मानसिक दोनों बदलाव होने शुरू होता है, सिंगल फादर को एक दोस्त के जैसे इन सभी समस्याओं से निपटना पड़ता है, इमोशनल सपोर्ट बच्चे और पिता का एक दूसरे से होना जरुरी, इसके लिए बच्चे के साथ क्वालिटी समय बिताएं.
  • बेस्ट डैड बनने की नहीं, पिता बनने की कोशिश करें, ओवर प्रोटेक्टिव न बने, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश करें, लड़के अधिक एग्रेसिव होते है, उन्हें थोड़ी अधिक अनुशासित करने की जरुरत होती है. जबकि लडकियां सेंसेटिव होती है, उन्हें धैर्य के साथ समझाना पड़ता है.
  • कई बार ऐसा देखा गया है कि सिंगल फादर बच्चे की देखभाल करते-करते पर्सनल लाइफ का त्याग करते रहते है, वे कही आना जाना या दोस्तों के साथ समय नहीं बिताते, ऐसे में उनमें फ्रस्ट्रेशन आ जाता है, ऐसा कभी न करें, अपने लिए समय अवश्य निकाले, बच्चा, काम और पर्सनल लाइफ में बैलेंस अवश्य करें.
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