महायोग: धारावाहिक उपन्यास, भाग-1

दिया के कमरे में पहुंच कर एक बार तो नील भी स्तब्ध रह गया था. क्या हौलनुमा कमरा था दिया का. और कौन सी चीज ऐसी थी वहां जो दिया की जरूरत और टेस्ट व हौबी का प्रदर्शन न कर रही हो. खूबसूरत वार्डरोब्स से ले कर पर्सनल कंप्यूटर, शानदार म्यूजिक, एलसीडी, खूबसूरती से तैयार की गई ड्रैसिंगटेबल, नक्काशीदार पलंग और उसी से मैच किए गए जालीदार डबल रेशमी परदे. एक कोने में लटकता खूबसूरत लैंपशेड और उसी के नीचे सुंदर सा झूला जिस के पीछे किताबों का रैक. उस की स्टडीटेबल पर सजा हुआ कीमती खूबसूरत लैंप. एक कालेज की लड़की के लिए इतना वैभव, इतनी सुखसुविधाएं देख नील की आंखें फटी की फटी रह गईं.

कमरे से ही लगा हुआ बाथरूम भी था. उस के दरवाजे के सुंदर नक्काशीदार हैंडल्स देख कर अनुमान लगाया जा सकता था कि अंदर घर कैसा होगा. लंबाई कमरे के बराबर दिखाई ही दे रही थी. उसे मन ही मन अपना गुजरा जमाना याद आ गया, कैसे काम कर के पढ़ाई के लिए पैसे इकट्ठे किए थे उस ने.

नील की स्तब्धता को तोड़ते हुए दिया ने सहज होते हुए नील को इशारा किया, ‘‘बैठिए.’’‘‘जी, धन्यवाद,’’ नील की आंखें कमरे के भीतर चारों ओर घूम रही थीं. ‘‘आप का कमरा तो बहुत ही खूबसूरत है. क्या आप की चौइस से बनाया गया है? ’’सामने दीवार पर लगी बड़ी सी दिया की नृत्यमुद्रा की तसवीर को घूरते हुए नील ने पूछा.

‘‘जी, पापा इस मामले में बहुत ध्यान रखते हैं. जब हम सब छोटे थे तो पापा ने हमारे कमरों की सजावट करवाई थी. यहां पर रेनबो बना था. यहां एक कोने में सूरज का, दूसरे कोने में चांद का आभास होता था. फर्नीचर भी दूसरा था. अब तो बस एक टैडी रखा है मैं ने, बाकी सब खिलौने उस अलमारी में बंद कर दिए हैं. तब तो मेरा कमरा खिलौनों से भरा रहता था. जब से मैं कालेज में आई हूं, मेरे कमरे का सबकुछ बदल गया है,’’ इतनी सारी बातें दिया एक ही सांस में बोल गई.

दिया की सब से बड़ी कमजोरी थी उस का कमरा. जब भी कोई उस के कमरे की प्रशंसा करता वह फूल कर कुप्पा हो जाती और अपने सारे कलैक्शंस दिखाना शुरू कर देती.

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‘‘क्या सब के कमरे इतने बड़ेबड़े हैं?’’ नील ने उसे सहज होते हुए देख कर पूछा.

‘‘हां, सब के अपनी पसंद के अनुसार हैं. और पापाममा का कमरा तो…’’ दिया सहज होती जा रही थी. नील को अच्छा लगा.

‘‘इतने बड़े शहर में इतना बड़ा घर?’’ नील ने सशंकित दृष्टि से पूछा.

‘‘मेरे दादाजी उत्तर प्रदेश के बड़े रईसों में से थे. जब जमीन आदि सरकार के पास चली गई तब उन्होंने अपनी बची हुई जमीनें बेच कर अहमदाबाद में एक फार्महाउस खरीद लिया था. उस समय यहां जमीनें बहुत सस्ती थीं. दादाजी सरकारी नौकरी में थे, तब तो उन्हें यहां बंगला मिला हुआ था. रिटायर होने के बाद उन्होंने मसूरी की बाकी बचीखुची जमीनें भी बेच दीं और यहां यह कोठी तैयार कर ली. जब दादाजी ने जमीन ली थी तब इस जगह पर खेत थे. धीरेधीरे आसपास की जमीनें बिकीं.

‘‘यहां बंगले और फ्लैट्स बनने लगे, तब दादाजी ने भी एक आर्किटैक्ट की देखरेख में यह कोठी बनवा ली थी. उन की इच्छा थी कि जिस बड़े से घर में मसूरी में उन का बचपन बीता उसी प्रकार के बड़े घर में उन का परिवार रहे. इस तरह हमारे पास इतना बड़ा घर हुआ…’’

कुछ रुक कर दिया बोली, ‘‘पापा बताते हैं, दादाजी कहा करते थे कि वे हमारे लिए सबकुछ तैयार कर जाएंगे. बस, पापा को इसे मैंटेन करना होगा. पापा भी दादाजी  की तरह शौकीन इंसान हैं. बस, फिर क्या, हम सब की मौज हो गई.’’

‘‘हां, तुम्हारे सिटिंगरूम की पेंटिंग्स और इतने बड़ेबड़े शो पीसेज देख कर तुम्हारे पापा की चौइस पता चलती है, इट्स वंडरफुल,’’ नील ने उसे यह कह कर और भी खुश कर दिया, ‘‘स्वदीप तुम से बड़े हैं न?’’ धीरेधीरे नील ने उस से आत्मीयता स्थापित करने का प्रयास किया.

‘‘दोनों ही बड़े हैं-स्वदीप भैया और दीप भैया. स्वदीप भैया ने तो इतनी छोटी उम्र में ही कितनी तरक्की कर ली है. माई ब्रदर्स आर वंडरफुल.’’

फिर अचानक उस की जबान को ब्रेक लग गए. उसे याद आ गया कि वह तो शादी ही नहीं करना चाहती. तो फिर क्यों इस युवक से इतनी पटरपटर बातें किए जा रही है.

‘तुम कैसे जाती हो कालेज?’’ नील ने उस की मनोदशा समझते हुए उसे बातों में उलझाने का प्रयास किया.

‘‘मैं तो अपने टूव्हीलर से जाती हूं. यहां आसपास मेरी फ्रैंड्स हैं. हम साथ ही निकलते हैं.’’

‘‘और तुम्हारी मम्मी?’’

‘‘ममा को ड्राइवर ले जाता है. पापा, ममा साथ ही निकलते हैं. ममा को छोड़ कर पापा औफिस चले जाते हैं. बाद में ड्राइवर ममा को छोड़ जाता है.’’

इसी बीच नौकर कौफी और कुछ स्नैक्स दे गया था.

‘‘थैंक्यू, बीरम काका,’’ दिया ने नौकर से कहा फिर नील से बोली, ‘‘आई लव हौट कौफी, और आप?’’ कह कर वह कौफी सिप करने लगी. नील ने भी कौफी पीनी शुरू कर दी.

दिया इतनी देर में नील से काफी खुल चुकी थी. सुंदर तो था ही नील, सुदर्शन व्यक्तित्व का मालिक भी था, बातें करने में बड़ा सुलझा सा. उस ने दिया पर प्रभाव डाल ही दिया.

‘‘तुम शादी क्यों नहीं करना चाहतीं?’’ नील ने अब स्पष्ट रूप से दिया से पूछ लिया.

‘‘ऐसा तो नहीं. बस, इट्स टू अरली. मैं मां की तरह अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं. मैं एक जर्नलिस्ट बनना चाहती हूं,’’ दिया को फिर से अपने कैरियर की याद हो आई.

इतने ऐशोआराम में पलने वाली लड़की फिर भी इतनी व्यावहारिक. उस ने बहुत कम ऐसी लड़कियां देखी थीं. या तो लड़कियों को मजबूरी में कोई काम करना पड़ता था या फिर केवल अपने आनंद के लिए वे काम करती थीं. नील का भारत आनाजाना लगा रहता है. लगभग 10 वर्ष पहले ही तो उस के पिता विदेश में सैटल हुए थे.

‘‘आप क्या वहां फ्लैट में रहते हैं?’’ अचानक नील की सोच में यह प्रश्न मानो ऊपर से टपक पड़ा.

‘‘नहीं, फ्लैट में तो नहीं. लंदन में फ्लैट कल्चर अभी तो नहीं है. खूब जगह है वहां, पर इतने बड़ेबड़े घर तो पुराने रईसों के ही होते हैं, वे सब तो अपनी सोच से भी बाहर हैं.’’

धीरेधीरे दोनों सामान्य होते जा रहे थे. जब लगभग डेढ़ घंटे तक ये लोग नीचे नहीं आए तब स्वदीप दिया के कमरे में आया. देखा, दोनों बातें करने में तल्लीन थे. दिया ने अपना मनपसंद संगीत लगा रखा था और वह अपने बचपन के चित्रों का अलबम नील को दिखा रही थी. अचानक नील ने पूछा, ‘‘ये तुम हो. और ये दोनों?’’

‘‘आप पहचानिए,’’ दिया ने नील की ओर आंखें पटपटाईं.

‘‘बताऊं, तुम्हारी कजिंस होंगी.’’

‘‘नहीं ये स्वदीप भैया और दीप भैया हैं. हम एक बर्थडे पार्टी में फैंसी ड्रैस में थे,’’ कह कर दिया खिलखिला कर हंस पड़ी.

कैसी चुलबुली लड़की है, सोचते हुए नील भी उस के साथ खिलखिला दिया. स्वदीप भी मुसकराए बिना न रह सका.

‘‘क्या दिया, अभी तक बचपना नहीं गया है. तुम भी न,’’ स्वदीप ने दिया से शिकायत के लहजे में कहा.

‘‘भैया, यह खजाना तो सब को दिखाना ही पड़ता है.’’

एक बार फिर सब हंस पड़े. इतनी देर में कमरे में काफी सामान फैल गया था मानो. दिया ने अपने खिलौनों से ले कर, तसवीरें, कौइन कलैक्शंस, डौल्स, सीडी…न जाने क्याक्या कमरे में फैला दिए थे. उस के पास पेंटिंग्स का भी बहुत सुंदर कलैक्शन था. अपने कमरे की पेंटिंग्स को वह समयसमय पर बदलवाती रहती थी.

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‘‘आंटी आप को नीचे बुला रही थीं,’’ स्वदीप ने कहा तो नील ने तुरंत अपनी हाथ की घड़ी पर दृष्टि डाली.

‘‘इतना टाइम हो गया, पता ही नहीं चला. चलिए,’’ वह कमरे से बाहर आ गया.

‘‘आओ दिया,’’ स्वदीप ने कहा तो दिया भी भाई के पीछेपीछे चल दी.

7दोनों को सहज देख कर दादी की बांछें खिल गई थीं.

आगे पढ़ें- नील व उस की मां को होटल वापस जाना था. तय हुआ कि…

महायोग: धारावाहिक उपन्यास, भाग-11

अब तक की कथा :

दादी के बीमार होने पर भी दिया के मन में उन के प्रति कोई संवेदना नहीं उभर रही थी. दादी अब भी टोनेटोटके करवा कर अपनी जिद का एहसास करवा रही थीं. दिया ने यशेंदु से अकेले ही लंदन जाने की जिद की. वह नहीं चाहती थी कि पापा को ऐसी स्थिति में छोड़ कर उस का कोई भी भाई उस के साथ आए. वह दादी से मिलने भी नहीं गई और अपनी नम आंखों में भविष्य के अंधेरे को भर कर प्लेन में बैठ गई. अचानक कंधे पर किसी का मजबूत दबाव महसूस कर उस ने घूम कर देखा. इतना अपनत्व दिखाने वाला आखिर कौन हो सकता है?

अब आगे…

दूरदूर तक ढूंढ़ने से भी दिया को अपना कुसूर नहीं दिखाई दे रहा था. लेकिन फिर भी क्यों उस ने मूकदर्शक बन कर पश्चात्ताप करने और सबकुछ सहने की ठान ली? दिया की पापा से फोन पर बात करने की हिम्मत नहीं हुई. आंखों से आंसू निकल कर गालों पर फिसलने लगे.

कहां फंस गई थी दिया, अनपढ़ों के बीच में. जिस लड़के की अपनी कोई सोच ही नहीं थी, वह क्या दिया के साथ हमसफर बन कर चलेगा? हाथ का दबाव बढ़ता देख दिया ने पुन: घूम कर देखा, देखते ही मानो आसमान से नीचे आ गिरी हो. उस के मुंह पर मानो टेप चिपक गया, आश्चर्य से आंखें फट गईं.

‘‘हाय डार्लिंग,’’ मजबूत हाथ की पकड़ और भी कस गई.

‘‘त…तुम…’’ दिया ने तो मानो कोई अजूबा देख लिया था.

‘‘हां, तुम्हारा नील. कमाल है यार, मैं तो समझता था तुम खुशी से खिल जाओगी.’’

दिया के मुरझाए हुए चेहरे पर क्षणभर के लिए चमक तो आई पर तुरंत ही वह फिर झंझावतों में घिर सी गई.

‘कैसा आदमी है यह? यहां मुंबई में बैठा है और उधर हमारा घर मुसीबतों के दौर से गुजर रहा है. भला मुंबई और अहमदाबाद में फासला ही कितना है. यह शख्स अहमदाबाद नहीं आ सकता था?’

नील को सामने देख कर उस की मनवीणा के तारों में कोई झंकार नहीं हुई बल्कि मन ही मन उस की पीड़ा उसे और कचोटने लगी. शायद यदि वह नील को लंदन एअरपोर्ट पर देखती तो कुछ अलग भावनाएं उस के मन को छूतीं. परंतु यहां पर देख कर तो वह एकदम बर्फ सी ठंडी पड़ गई.

‘‘तुम्हें लग रहा होगा कि मैं मुंबई में क्या कर रहा हूं?’’ नील दिया को बोलने के लिए उत्साहित करने लगा.

दिया का मन हुआ कि उस से कुछ कहनेपूछने की जगह प्लेन से उतर कर भाग जाए. उस ने दृष्टि उठा कर देखा, नील ने अब भी उस का हाथ अपने हाथ में ले रखा था.

‘‘बहुत नाराज हो, हनी?’’‘‘नहीं, मैं ठीक हूं,’’ दिया ने अपना हाथ उस के हाथ के नीचे से निकालते हुए संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

कोई हलचल नहीं, कोई उमंग नहीं, कोई आशा और विश्वासभरी या चुलबुली दृष्टि नहीं. दिया स्वयं को असहाय पंछी सा महसूस कर रही थी जबकि अभी तो वह पिंजरे में कैद हुई भी नहीं थी, बल्कि कैद होने जा रही थी. अभी से इतनी घुटन. कुछ समझ नहीं पा रही थी वह कि कहां जा रही है? क्यों जा रही है?

शादी के समय तो उसे महसूस हुआ था कि अब जिंदगी खुशगवार हो जाएगी पर जो भी कुछ घटित हुआ वह कहीं से भी इश्क को परवान तो क्या चढ़ा पाता, शुरुआत भी नहीं कर सका था.

‘‘तुम तो जानती हो डार्लिंग, मेरी मम्मा भी तुम्हारी दादी की तरह पंडितों के बारे में जरा सी सीनिकल हैं. सो, आय हैड टू टेक केयर औफ मौम औल्सो,’’ नील ने फिर चाटुकारिता करने का प्रयास किया. वास्तव में तो वह कुछ सुन ही नहीं पा रही थी.

‘‘पंडित से न जाने मम्मा ने क्याक्या पूजा करवाई, तुम्हारे लिए, डेट निकलवाई और न जाने क्याक्या पापड़ बेले तब कहीं तुम यहां आ पाई हो वरना…’’

दिया का दिल हुआ कि नील का कौलर पकड़ कर उसे झंझोड़ डाले. वरना क्या? क्या करता वरना वह? मां के पल्लू में छिपने वाला बिलौटा. इतना ही लाड़ था मां से तो उस की जिंदगी में आग क्यों लगाई? नील बोलता रहा और दिया हां, हूं करती रही. उस का मन तो पीछे मां, पापा के पास ही भटक रहा था. नील ने बड़े बिंदास ढंग से उगल डाला कि वह तो इस बीच 2 बार अपने प्रोजैक्ट के सिलसिले में मुंबई आया था परंतु मां की सख्त हिदायत थी कि वह अहमदाबाद न जाए, कुछ ग्रह आदि उलटे पड़ रहे थे. दिया को तो मानो सांप ही सूंघ गया था. हद होती है बेवकूफी की.

‘‘क्या तुम्हारी मम्मी ने शादी से पहले ग्रह नहीं दिखाए थे?’’ अचानक ही वह पूछ बैठी.

‘‘वह तो यहां अहमदाबाद के पंडितजी से मिलवाए थे न. फिर कुछ ऐसा हुआ कि फटाफट शादी हो गई. तुम्हारे पंडितजी ने तो बहुत बढि़या बताया था पर…तुम्हें मालूम है न शादी के बाद बहुत भयंकर हादसा होने के डर से ही तुम्हारी दादी और ममा ने हमें केरल नहीं भेजा था.’’

‘‘क्यों, मुझे कहां से याद होगा? मुझे बताया था क्या?’’ दिया के मुंह से झट से निकल गया था.

‘‘वह तो इसलिए डार्लिंग कि तुम्हें कितनी तकलीफ होती अगर उस समय तुम्हें पता लग जाता तो.’’

कहां फंस गई थी दिया, जिस लड़के की अपनी कोई सोच ही नहीं थी वह क्या दिया के साथ हमसफर बन कर चलेगा? कुछ ही घंटे बाद वह लंदन पहुंच गई थी, सात समंदर पार. प्लेन रनवे पर दौड़ने लगा था, कुछ देर बाद प्लेन रुक गया. हीथ्रो एअरपोर्ट पर उतरने के साथ ही उस का दिलोदिमाग सक्रिय हो गया था अन्यथा उड़ान में तो वह गुमसुम सी ही बैठी रही थी. सामान लेते और लंबेचौड़े हीथ्रो एअरपोर्ट को पार करते हुए ही लगभग 1 घंटा लग गया था. बाहर पहुंच कर वह नील के साथ टैक्सी में बैठ गई. दिया को खूब अच्छी तरह याद है उस दिन की तारीख-15 अप्रैल. एअरपोर्ट से निकलने तक हलका झुटपुटा सा था परंतु लगभग 15 मिनट बाद ही वातावरण धीरेधीरे रोशनी से भर उठा. दिया लगातार टैक्सी से बाहर झांक रही थी. साफसुथरा शांत वातावरण, न कहीं गाडि़यों की पींपीं, न कोई शोरशराबा. बड़ा अच्छा लगा उसे शांत वातावरण.

इधरउधर ताकतेझांकते दिया लगभग डेढ़ घंटे में हीथ्रो एअरपोर्ट से अपने पति के घर पहुंच गई थी. नया शहर व नए लोगों पर दृष्टिपात करते हुए दिया टैक्सी रुकने पर एक गेट के सामने उतरी. सामान टैक्सी से उतार कर नील ने ड्राइवर का पेमेंट किया और एक हाथ से ट्रौलीबैग घसीटते हुए दूसरे हाथ में दिया का हैंडबैग उठा लिया. दिया ने अपने चारों ओर एक दृष्टि डाली. पूरी लेन मेें एक से मकान, गेट के साइड की थोड़ी सी खाली जमीन पर छोटा सा लौन जो चारों ओर छोटीछोटी झाड़ीनुमा पेड़ों से घिरा हुआ था.

नील ने आगे बढ़ कर घर के दरवाजे का कुंडा बजा दिया. दिया ने दरजे को घूर कर देखा कोई डोरबैल नहीं है. नील की मां ने दरवाजे से बाहर मुंह निकाला.

‘‘अरे, पहुंच गए?’’ जैसे उन्हें पहुंचने में कोई शंका हो.

वे पीछे हट गईं तो नील ने उस लौबी जैसी जगह में प्रवेश किया. पीछेपीछे दिया भी अंदर प्रविष्ट हो गई. अब दरवाजा बंद हो गया था. उस के ठीक सामने ड्राइंगरूम का दरवाजा था, उस के बराबर ऊपर जाने की सीढि़यां, बाईं ओर छोटी सी लौबी जिस में एक ओर 2 छोटेछोटे दरवाजे व दाहिनी ओर रसोईघर दिखाई दे रहा था. अचानक गायब हो गईं? छोटा सा तो घर दिखाई दे रहा था. दिया को घुटन सी होने लगी और उसे लगा मानो वह फफक कर रो पड़ेगी. नील शायद फ्रैश होने चला गया था. वह कई मिनट तक एक मूर्ति की तरह खड़ी रह गई अपने चारों ओर के वातावरण का जायजा लेते हुए. फिर नील की मां सीढि़यों से नीचे उतरती दिखाई दीं. उन के हाथ में एक थालीनुमा प्लेट थी जिस में रोली, अक्षत आदि रखे थे.

‘‘तुम्हारे गृहप्रवेश करने में 5-7 मिनट का समय बाकी था. मैं अपने कमरे में चली गई थी,’’ उन्होंने दिया के समक्ष अपने न दिखाई देने का कारण बयान किया, ‘‘अरे, नील कहां चला गया?’’ इधरउधर देखते हुए उन्होंने नील को आवाज लगाई.

‘‘आय एम हियर, मौम,’’ नील ने अचानक एक दरवाजे से निकलते हुए कहा.

‘‘आओ, यहां दिया के पास खड़े हो जाओ,’’ मां ने आदेश दिया और नील एक आज्ञाकारी सुपुत्र की भांति दिया की बगल में आ खड़ा हुआ.

मां ने दोनों की आरती उतारी. नील व दिया को रोली, अक्षत लगाए. नील मां के चरणों में झुक गया तो दिया को भी उस का अनुसरण करना पड़ा.

‘‘आओ, इधर से आओ, दिया, यह पूरब है. अपना दायां पैर कमरे में रखो.’’

दिया ने आदेशानुसार वही किया. यह ड्राइंगरूम था. अंदर लाल रंग का कारपेट था और नीले व काले रंग के सोफे थे. कमरा अंदर से खासा बड़ा था. दीवारों पर बड़ीबड़ी सुंदर पेंटिंग्स लगी थीं. नील के साथ उस कमरे में आ कर दिया सोफे पर बैठ गई. उसे सर्दी लग रही थी. नील ने हीट की तासीर बढ़ा दी. कुछ देर में ही दिया बेहतर महसूस करने लगी. कमरे में रखा फोन बज उठा. नील ने फोन उठा लिया था. चेहरे पर मुसकराहट लिए नील ने दिया की ओर देखा-

‘‘फोन, इंडिया से. योर फादर.’’

दिया की आंखों में आंसू भर आए. क्या बात करे पापा से? नील हंसहंस कर उस के पिता से बातें करता रहा. जब उन्हें पता लगेगा कि नील मुंबई तक आ कर भी अहमदाबाद नहीं आया. नहीं, वह उन्हें बताएगी ही क्यों? वह अपने परिवार को और तकलीफ नहीं पहुंचा सकती.

‘‘लो दिया, फोन.’’

दिया ने फोन तो ले लिया पर पापा से बात करने की उस की हिम्मत नहीं हुई. आंखों से आंसू निकल कर उस के गालों पर फिसलने लगे.

‘‘मैं आप की दिया से बाद में बात करवाता हूं, अभी मौम से बात कीजिए.’’

दिया  ने चुपचाप फोन सास को पकड़ा दिया. वह आंसू पोंछ कर सोफे में जा धंसी.

नील की मां के चेहरे पर फूल से खिल आए थे.

‘‘आप लोग इतना क्या करते हैं. अभी तो इतना कुछ दिया था आप ने. हां जी, वैसे तो बेटी है. दिल भी नहीं मानता पर हमारे लिए क्या जरूरत थी. आप की बेटी है, उसे आप जो दें, जो लें. नहीं जी, अभी कहां, अभी तो पहुंचे ही हैं. अभी आरती की है और घर में प्रवेश किया है इन्होंने. हां जी. हां जी. जरूर बात करवाऊंगी, नमस्कार.’’

दिया समझ गई थी कि पापा ने मां को फोन पकड़ा दिया होगा और मां ने उन से हीरे के सैट्स की बात की होगी जो उन्होंने दिया और उस की सास के लिए दिए थे. अभी शादी में भी कितना कुछ किया था. हीरे का इतना महंगा सैट उन के लिए दिया था अब फिर से, और नील के लिए हीरे के कफलिंग्स भी. कितना मना किया था दिया ने कि वह किसी के लिए कुछ भी ले कर नहीं जाएगी परंतु कहां सुनवाई होती है उस की. वह हीन भावना से ग्रसित होती जा रही थी कि बस जो कुछ हो रहा है हो जाने दो. वह स्वयं एक मूकदर्शक है और मूकदर्शक ही बनी रहेगी. केवल उस के कारण ही पूरा घर मानो चरमरा उठा था.

‘‘दिया, मां से तो बात कर लो, बेटा,’’ सास जरा जोर से बोलीं तो उस का ध्यान भंग हुआ. खड़ी हो कर उस ने रिसीवर अपने हाथ में ले लिया.

‘‘हैलो,’’ धीरे से उस ने कहा.

‘‘हैलो, दिया, कैसी है बेटा? ठीक से पहुंच गई? कुछ तो बोल. अच्छा सुन, कमजोर मत पड़ना और जब कभी मौका मिले फोन करना. और सुन, वह सैट और दूसरे सब गिफ्ट्स अपनी सास और नील को दे देना. खुश हो जाएंगे. और बेटा, धीरेधीरे सब को अपनाने की कोशिश करना. कुछ तो बोल बेटा,’’ कामिनी धीरेधी अधीर होती जा रही थी.

‘‘हूं,’’ दिया ने धीरे से कहा और फोन काट दिया.

महायोग: धारावाहिक उपन्यास, भाग-20

अब तक की कथा :

आगे की योजना तैयार करने के लिए धर्म दिया को अपने घर ले आया. धर्म के घर आ कर दिया ने धर्म से पासपोर्ट दिखाने के लिए कहा. धर्म ने घरभर में पासपोर्ट तलाश कर लिया परंतु कहीं नहीं मिला. दिया को फिर से धर्म पर संदेह होने लगा. दोनों ने मशवरा किया और भारतीय दूतावास जाने का फैसला कर लिया. अब आगे…

रातभर दिया उनींदी रही. शरीर थका होने के कारण उसे बुखार भी आ गया था. धर्म का दिमाग बहुत असहज और असंतुलित सा था. कहीं ईश्वरानंद की सीआईडी तो उस के पीछे नहीं है?अचानक फोन की घंटी टनटना उठी. घबराते हुए धर्म ने फोन उठाया. दूसरी तरफ नील की मां थीं.

‘‘जी, क्या बात है, रुचिजी?’’

‘‘धर्मानंदजी, दिया को अभी यहां ले कर मत आना. नील के साथ नैन्सी भी आज यहां पहुंच गई है. बड़ी मुश्किल हो जाएगी,’’ वे काफी घबराई हुई थीं.

‘‘नैन्सी तो जानती है कि कोई मेहमान आई हुई हैं आप के यहां,’’ धर्म ने उन्हें उन के ही जाल में लपेटने का प्रयत्न किया.

‘‘आप नहीं जानते, मेरे लिए बड़ी मुश्किल हो जाएगी. आप उसे अपने पास ही रखिए. मैं आप को बताऊंगी, उसे कब यहां लाना है.’’

बेशक कुछ समय के लिए ही सही, पर धर्म व दिया के रास्ते का एक कांटा तो अपनेआप ही हट रहा था.

तेज बुखार के कारण दिया शक्तिहीन सी हो गई थी. धीरेधीरे चलती हुई वह रसोई में आ कर धर्म के पास बैठ गई.

‘‘धर्म, अब हमें एंबैसी चलना चाहिए. देर करने का कोई मतलब नहीं है,’’ दिया ने कहा.

‘‘पर दिया, तुम इस लायक तो हो जाओ कि थोड़ा चल सको. एक तो कल से तुम ने कुछ ठीक से खाया नहीं है, दूसरे, बुखार के कारण और भी कमजोर हो गई हो.’’

‘‘मुझे वहां कोई चढ़ाई थोड़े ही चढ़नी है, धर्म? एंबैसी में जल्दी पहुंच सूचित करना बेहद जरूरी है.’’

अचानक ही धर्म की दृष्टि कांच की खिड़की से बाहर गई और वह हड़बड़ा कर रसोई से निकल कर ड्राइंगरूम की ओर भागा. दिया को कुछ समझ में नहीं आ रहा था. किसी ने धीरे से दरवाजे पर खटखट की थी. आंखें खोल कर जब दिया ने इधरउधर दृष्टि घुमाई तो धर्म का कहीं अतापता नहीं था. वह डर गई. अचानक धर्म आया और  होंठों पर हाथ रख कर उस ने दिया को चुप रहने का संकेत भी किया. संकट को देखते हुए धर्म ने पुलिस को फोन कर दिया था.

एक बार फिर खटखट हुई. अब धर्म ने जा कर दरवाजा खोला व आगंतुकों को ले कर अंदर आ गया.

‘‘दरवाजा खोलने में इतनी देर क्यों हुई, धर्मानंदजी?’’

आगंतुकों में एक तो उस के चेले के समान रवींद्रानंद यानी रवि था और दूसरा पवित्रानंद, जो धर्म से काफी सीनियर था.

‘‘क्या बात है? यहां कैसे?’’ धर्मानंद ने सहज होने का प्रयास किया.

उसे शक तो था ही परंतु मन में कहीं भ्रांति भी थी कि वह ईश्वरानंद से कह कर, उन्हें बता कर आया था इसलिए शायद…

‘‘आप ने गुरुजी को इन्फौर्म भी नहीं किया? वे परेशान हो रहे हैं. आप को समझना चाहिए कि उन्हें आप की और दियाजी की कितनी चिंता है. एक तो आप कल के फंक्शन में से गायब हो गए और दूसरे…खैर, गुरुजी बहुत परेशान हो रहे हैं.’’

‘‘गुरुजी को फोन पर, इन्फौर्म कर देते,’’ रवींद्रानंद ने फिर से अपना मुंह खोला.

धर्म उसे घूर कर रह गया था.

‘‘दियाजी कहां हैं?’’ पवित्रानंद ने सपाट प्रश्न किया.

‘‘रसोई में. गुरुजी जानते हैं वे मेरे साथ हैं. फिर परेशानी क्यों?’’ धर्म ने ऊंचे स्वर में कहा कि दिया सुन सके. परंतु पवित्रानंद आंधी की भांति रसोई में प्रवेश कर गया जहां दिया आंखें मूंदे कुरसी से गरदन टिका कर बैठी थी.

‘‘दियाजी,’’ पवित्रानंद ने धीरे से, बड़े प्यार से दिया को पुकारा.

दिया चौंकी, आंखें खोल कर देखा तो अचानक घबरा कर खड़ी होने लगी. उस का चेहरा पीला पड़ा हुआ था और वह बहुत अस्तव्यस्त दिख रही थी.

‘‘अरे बैठिए, आप बैठिए, मैं पवित्रानंद,’’ उस ने दिया के समक्ष नाटकीय मुद्रा में अपने दोनों हाथ जोड़ दिए.

भय के कारण दिया को दिन में ही तारे दिखाई देने लगे थे. अचानक पवित्रानंद ने दिया के माथे पर अपना हाथ घुमाया.

‘‘अरे, आप को तो बुखार है,’’ पवित्रानंद ने उसे सहानुभूति की बोतल में उतारने की चेष्टा की.

धर्म और रवींद्रानंद भी वहां आ चुके थे.

‘‘धर्म, आप ने बताया नहीं, दियाजी बीमार हैं?’’ पवित्रानंद के लहजे में शिकायत थी.

‘‘गुरुजी जानते हैं,’’ धर्म ने ठंडे लहजे में उत्तर दिया.

दिया की समस्या अभी अनसुलझी पहेली सी बीच में लटक रही थी जिस का जिम्मेदार कहीं न कहीं धर्म स्वयं को मान रहा था.

‘‘धर्म, चलो दिया को ले चलते हैं. गुरुजी ही ट्रीटमैंट करवा देंगे,’’ अचानक पवित्रानंद ने धर्म के समक्ष प्रस्ताव रख दिया.

‘‘पर, ऐसी हालत में?’’ दिया के स्वेदकणों से भरे हुए मुख पर दृष्टिपात करते हुए धर्म ने कहा.

‘‘कुछ देर और इंतजार कर लेते हैं, फिर चलेंगे. तब तक दिया भी कुछ ठीक हो जाए शायद.’’

‘‘कम से कम गुरुजी को सूचित तो कर दें,’’ कह कर पवित्रानंद ने अपना मोबाइल निकाल कर गुरुजी से बात करनी प्रारंभ की ही थी कि किसी ने दरवाजा खटखटाया.

‘‘प्लीज, ओपन द डोर,’’ बाहर से किसी अंगरेज की आवाज सुनाई दी.

‘‘कौन होगा?’’ पवित्रानंद ने जल्दी से बात पूरी कर के मोबाइल बंद कर अपनी जेब में डाल लिया.

एक बार फिर खटखट हुई

‘‘कौन होगा?’’

‘‘मैं कैसे बता सकता हूं? खोलना पड़ेगा न,’’ धर्म आगे बढ़ा और दरवाजा खोल दिया.

‘‘पुलिस…’’ रवींद्रानंद और पवित्रानंद दोनों चौंक उठे. वे धर्म की ओर प्रश्नवाचक मुद्रा में देखने लगे.

धर्म ने मुंह बना कर कंधे उचका दिए. वह क्या जाने भला. परंतु पवित्रानंद ने भी घाटघाट का पानी पी रखा था. उस के मस्तिष्क में घंटियां टनटनाने लगी थीं.

‘‘हू इज दिया?’’ लंबेचौड़े ब्रिटिश पुलिस पुरुषों के पीछे से एक खूबसूरत महिला ने झांका.

‘‘हू इज दिया?’’ प्रश्न एक बार फिर उछला.

दिया ने अपनी ओर इशारा कर के बता दिया कि वही दिया है.

‘‘ऐंड यू?’’ बारीबारी से तीनों पुरुषों के नाम पूछे गए.

कोई चारा नहीं था. गुरुजी के प्रिय भक्तों को अपना नाम बताना पड़ा. समय ही नहीं मिला था कि वे अपने लिए कोई झूठी कहानी गढ़ पाते. धर्म ने भी अपना नाम बताया. दिया अंदर से कुछ डर रही थी. धर्म की भी पोलपट्टी अभी खुल जाएगी. पर जब पुलिस ने धर्म से कुछ पूछताछ ही नहीं की तब दिया को आश्चर्य हुआ. वह चुप ही रही. महिला पुलिस मिस एनी ने दिया को सहारा दिया और ड्राइंगरूम में ले आई. दौर शुरू हुआ दिया से पूछताछ का. दिया काफी आश्वस्त हो चुकी थी. उस ने अपनी सारी कहानी स्पष्ट रूप से बयान कर दी. साथ ही पवित्रानंद व रवींद्रानंद की ओर इशारा भी कर दिया कि विस्तृत सूचनाओं का पिटारा वे दोनों ही खोल सकेंगे. एनी के साथसाथ बाकी पुलिस वाले भी बहुत सुलझे हुए थे. पुलिस वालों ने रवींद्रानंद और पवित्रानंद के मोबाइल भी जब्त कर लिए. अब तो भक्तजनों के पास कोई चारा ही नहीं रह गया था, कैसे गुरुदेव को सूचना दी जाए? दोनों जल बिन मछली की भांति तड़प रहे थे. संबंधित विभागों को सूचनाएं प्रेषित कर दी गई थीं. अप्रत्याशित घेराव के कारण ईश्वरानंद के चेलों के चेहरे के रंग उड़ गए थे, वे एकदूसरे की लाचारी देख कर मुंह पर टेप चिपका कर बैठ गए थे. निराश्रित से बैठे रेशमी वस्त्रधारियों के श्वेत वस्त्र धीरेधीरे झूठ व बदमाशी के धब्बों से मैले होते जा रहे थे और मुख काले. उन के नेत्रों में भयभीत भविष्य की तसवीर उभर आई थी.

चारों लोगों को 2 गाडि़यों में 2-2 पुलिसकर्मियों के साथ बांट दिया गया. एक गाड़ी नील के घर के लिए व दूसरी ईश्वरानंद के आनंद में विघ्न डालने के लिए निकल पड़ी थी. पुलिस वाले आपस में वार्त्तालाप कर रहे थे. उन्हें महसूस हो रहा था कहीं यह घटना वर्षों पूर्व घटित घटना का कोई हिस्सा तो नहीं हो सकती? एनी शीघ्र ही दिया से घुलमिल गई थीं. दिया ने धर्म के बारे में भी सारी बातें एनी को बताईं तो एनी धर्म से भी बहुत सहज हो गई थीं. पुलिसकर्मियों के मन में दिया व धर्म दोनों की छवि साफसुथरी लग रही थी. पुलिस ने जो कुछ भी धर्म से पूछा उस ने बड़ी ईमानदारी से सब प्रश्नों के उत्तर दिए थे. दिया तो सबकुछ बता ही चुकी थी, रहासहा सच उस ने गाड़ी में नील के घर की ओर आते हुए उगल दिया था. एनी ने उस से बिलकुल स्पष्ट रूप से पूछा था कि वह क्या चाहती है?

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महायोग: धारावाहिक उपन्यास, भाग-21

दिया ने बड़े सपाट स्वर में कहा था कि वह उन सब लोगों के लिए बड़ी से बड़ी सजा चाहती है जो धर्म के नाम पर देह का व्यापार कर के उस के जैसी मासूम लड़कियों का जीवन बरबाद करने में जरा सा भी संकोच नहीं करते. न जाने उन लोगों के हाथ कितनी मासूम लड़कियों के खून से रंगे हुए होंगे. दिया ने अपने विवाह से ले कर, नील के व्यवहार, मिसेज शर्मा की दकियानूसी बातें, अपने मानसिक उत्पीड़न के बारे में विस्तारपूर्वक खुल कर एनी से बात की थी. गाड़ी में बैठेबैठे ही काउंसिल जनरल औफ इंडिया से फोन पर बात कर ली गई थी. एनी ने दिया से उस के पासपोर्ट नंबर के बारे में पूछा, दिया को नंबर याद नहीं था. धर्म के मुख से निकल गया था कि पासपोर्ट और कहीं नहीं, ईश्वरानंद की कस्टडी में ही होगा. बातों ही बातों में रास्ता जल्दी ही कट गया.

कमजोरी के बावजूद दिया अंदर व बाहर से काफी स्वस्थ महसूस करने लगी थी. एनी ने दिया की पीड़ा महसूस की और उस के कंधे पर सहानुभूति भरा हाथ रख कर उसे आश्वस्त कर दिया. कुछ देर पश्चात पुलिस ने मिसेज शर्मा के घर पर दस्तक दे दी. दरवाजे की आवाज से मिसेज शर्मा चौंक उठीं. ड्राइंगरूम में तिगड़ी जमी हुई थी. नील, नैन्सी और रुचिका यानी मिसेज शर्मा. तीनों सोफों पर जमे पड़े थे. खैर, दरवाजा खोलने वे ही आई थीं, चहकती सी. धर्मानंद को देखते ही उन की चहकन को ब्रेक लग गया, दिया भी मुंह बनाए साथ ही खड़ी थी.

‘‘धर्मानंदजी, क्या कहा था मैं ने आप से?’’ उन की स्नेहमयी मुद्रा अचानक  रौद्रमयी मुद्रा में परिवर्तित हो उठी, जैसे उन की पीठ पर चाबुक पड़ गया हो.

दरवाजे के बाहर से ही ड्राइंगरूम के दृश्य के स्पष्ट दर्शन हो रहे थे. धर्म उन की बात का कुछ उत्तर दे पाता, इस से पहले ही पुलिसवर्दी में 1 पुरुष व 1 महिला ने धर्म और दिया के पीछे से अपने गोरे मुखड़ों के दर्शन दे दिए. पुलिस वालों को देखते ही उस की रौद्रमयी मुद्रा की घिग्गी सी बंध गई. वे न तो कुछ बोल पाईं और न ही नील को पुकार पाईं. उन के पैर लड़खड़ाने लगे और वे लगभग गिरने को हुईं कि महिला पुलिस ने उन्हें अपनी मजबूत बांहों में थाम लिया और एक के बाद एक सब ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया, जहां प्रणय में डूबा हंसों का जोड़ा किल्लोल कर रहा था. कमरे में कदमों की आहट सुन कर हंसों का जोड़ा बिदक गया.

‘‘धर्म, ह्वाट इज दिस? ऐंड यू?’’ नील ने दिया की ओर इशारा किया.

नील का वाक्य पूरा होने से पहले ही सब लोग कमरे में प्रवेश कर चुके थे और चुपचाप नैन्सी व नील के सामने वाले सोफे पर निश्चिंतता से बैठ चुके थे. कोई कुछ भी समझ पाने की स्थिति में नहीं था. मानो कोई चलचित्र सा सब की दृष्टि के आगे चल रहा था. सब से पीछे नील की मां को थामे एसीपी एनी कमरे में पहुंच गईं और उन्होंने उन्हें एक कुरसी पर लगभग लिटा सा दिया था.

अब एनी के हाथ में दूसरे पुलिसकर्मी ने पैन और कागज देने चाहे. एनी ने उस को ही लिखने का इशारा किया और स्वयं चारों ओर का जायजा लेने लगीं.

‘‘हाऊ मैनी मैंबर्स आर हियर?’’

‘‘थ्री,’’ नील ने नैन्सी को आलिंगन मुक्त कर दिया था.

‘‘नेम आफ द मैंबर्स?’’

‘‘मिसेज रुचिका शर्मा, नील शर्मा ऐंड दिया शर्मा,’’ नील फटाफट बोल गया.

‘‘इज शी दिया?’’ पुलिसमैन ने नैन्सी की ओर इशारा कर के पूछा.

‘‘नो.’’

‘‘हू इज शी?’’

‘‘शी इज नैन्सी.’’

‘‘शी इज योर वाइफ?’’

‘‘नो, शी इज माय गर्लफ्रैंड.’’

‘‘हू इज दिया?’’

‘‘दिया, दैट गर्ल,’’ नील ने दिया की ओर इशारा किया.

‘‘हू इज शी? इज शी योर सिस्टर?’’

‘‘नो, शी इज अवर गैस्ट फ्रौम इंडिया.’’

‘‘इज शी स्टेइंग हियर?’’

‘‘यस.’’

‘‘वी वौंट टू सी हर पासपोर्ट.’’

नैन्सी का इश्क काफूर हो गया था. नील और उस की मां की सांसें रुकने लगीं. जिस धर्म पर वे लोग हमेशा अपने एहसानों की गठरी लादे रखते थे, आज उसी ने उन की पीठ पर वार किया था. मिसेज शर्मा के दिमाग में भन्नाहट भर उठी थी. तभी नील मुड़ कर फोन उठाने लगा, ‘‘नो, नो कौल प्लीज,’’ पुलिस वाले ने नील के हाथ से फोन ले लिया.

‘‘इट्स अर्जेंट,’’ नील ने कहा.

दोनों पुलिसकर्मियों ने एकदूसरे की ओर देखा और इशारों से बात कर के आखिरकार उसे फोन करने की इजाजत दे दी. वे दोनोें ही नहीं बल्कि धर्म व दिया भी जानते थे कि नील इस समय किस से बात करना चाहता है.

‘‘यस,’’ नील के डायल करते ही उधर से रोबीली आवाज आई. यह वह आवाज तो नहीं थी जो उस का उद्धार कर पाती.

उस ने फिर से कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘यऽऽऽ..स,’’ फिर वही भारी आवाज.

नील के मस्तिष्क को उस आवाज ने मानो ट्रैप कर लिया. माजरा क्या है? उस की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था. वह तो गुरुजी का पर्सनल फोन था जिस को उठाने की इजाजत स्वयं ब्रह्मा, विष्णु, महेश को भी नहीं थी. एक बार फिर ट्रायकरने के चक्कर में नील ने फिर से रिडायल का बटन दबा दिया.

‘‘मे आय टौक टू गुरुजी, प्लीज,’’ निहायत डरतेडरते उस ने पूछा.

‘‘नो, यू कांट,’’ फिर वही रोबीली आवाज.

‘‘हू इज दैट साइड?’’

‘‘दिस इज इंस्पैक्टर जौर्ज, हू इज देयर?’’

यह सुनते ही नील को काटो तो खून नहीं. उस के हाथ कंपकंपाने लगे. उस ने चुपचाप रिसीवर रख दिया और धर्म को घूरने लगा.उधर, नैन्सी के चेहरे पर भी हवाइयां उड़ रही थीं. कहां तो वह नील की मां को पोते का प्रलोभन दे कर उसे ब्लैकमेल करने लगी थी, कहां वह स्वयं इस पुलिसवुलिस के चक्कर में फंस रही है.

‘‘नील, आय वौंट टू गो फ्रौम हियर,’’ नैन्सी अचानक अपना बैग समेट कर खड़ी हो गई.

‘‘नो, यू कांट गो फ्रौम हियर,’’ एनी ने बड़े स्पष्ट व सपाट स्वर में उस की बात काट दी.

‘‘बट, आय एम नौट द फैमिली मैंबर. आय एम जस्ट ए फ्रैंड औफ नील,’’ उस ने स्वयं को बरी करने का प्रयास किया.

‘‘मैम, यू आर प्रेजेंट हियर, यू कांट गो. एवरीबडी हैज टू बी पे्रेजेंट ऐट द पुलिस स्टेशन,’’ एनी ने बड़े धीरज मगर सख्ती से उसे समझाने का प्रयास किया.

‘‘बट…ह्वाय शुड आय? आय हैव नो कनैक्शन विद द फैमिली,’’ वह लगभग चीखी.

‘‘डोंट वरी, आफ्टर सम इन्क्वायरीज यू वुड बी रिलीव्ड, नो प्रौब्लम,’’ एनी ने उसे कंधों से पकड़ कर बड़े आराम से सोफे पर बिठा दिया.

नैन्सी बेचारी रोने को हो आई. खूबसूरत नैन्सी के गुलाबी मुखड़े पर बेचारगी पसर आई थी. निकलने का कोई रास्ता ही नजर नहीं आ रहा था. बुरी फंसी. भुनभुन करती हुई वह कभी नील को तो कभी उस की मां को घूरने लगी. मिसेज शर्मा का तो और भी बुरा हाल था. वे कभी दिया, कभी धर्म तो कभी नैन्सी को घूरे जा रही थीं. ‘कमाल है, ऐसे लोग भी होते हैं? अभी तो यह लड़की यहां बैठी नील से फ्यूचर प्लान डिसकस कर रही थी और अभी आय एम नौट फैमिली मैंबर हो गई. और यह धर्म का बच्चा? हाय, कितना बड़ा घाव दिया है इस बेहूदे ने. कहां तो रुचिजी, रुचिजी करता आगेपीछे घूमता रहता था और इस खूबसूरत बला के चक्कर में पड़ते ही हमें पुलिस तक पहुंचा दिया. इस की मां की बीमारी में इतनी हैल्प की और इस ने ही पीठ में छुरा घोंप दिया.’

‘‘यस, प्लीज शो दियाज पासपोर्ट,’’ एनी ने अपने असिस्टैंट से रिपोर्ट के कागज ले कर उन्हें पलटते हुए मिसेज शर्मा से कहा. मिसेज शर्मा अपनी सोच की गुफा से अचानक बाहर आ गिरीं. अब तक तो अंधेरा ही था, अब तो सामने ही इतनी गहरी खाई दिखाई दे रही थी उन्हें और उन के बेटे को. उस में कूदना ही पड़ेगा. कैसे निकल भागे? उन्होंने बेबस दृष्टि बेटे पर डाली.

‘‘मैडम, एक्च्वली…मिसिंग…’’ नील के पास और कुछ बताने का रास्ता ही नहीं था.

‘‘मिसिंग? ह्वेन? डिड यू रिपोर्ट एबाउट द पासपोर्ट?’’ पुलिस का रुख कड़ा होता जा रहा था.

‘‘दैट मस्ट बी विद धर्मानंद,’’ नील ने धर्म को लपेटने का प्रयास किया. वह जानता तो था ही कि उस की मां ने पासपोर्ट धर्म को दिया था.

एनी बहुत नाराज दिखाई दे रही थीं. पासपोर्ट के बारे में तो नील व उस की मां को भी यही मालूम था कि वह धर्म के पास है. अब? बात तो उलझती ही जा रही थी. उधर, सोफे पर बेचैनी से पहलू बदलती हुई नैन्सी अपने बचाव की फिराक में कभी नील के कान में भुनभुन करती, कभी उसे घूर कर देखती. नील बेचारा परेशान हो गया. वहां से कहीं और जा कर बैठ भी नहीं सकता था. सारे सोफे भरे हुए थे. हार कर उस ने एक बार और कोशिश करनी चाही. ‘‘प्लीज, कोऔपरेट, एवरीबडी,’’ एनी ने इशारा किया और इंस्पैक्टर ने सब को बाहर चलने का रास्ता दिखाया.

सब को पुलिस की गाड़ी में बैठने के आदेश मिले. नील की मां बेचारी और लंगड़ाने लगीं, उन के पैरों का दर्द असहनीय हो उठा. एनी ने उन्हें सहारा दे कर गाड़ी में बिठा दिया. बचारा नील, मां को घूरते हुए सोचने लगा कि उन के कारण ही वह दिया को हाथ तक न लगा पाया और अब नैन्सी भी उस के हाथों से फिसल रही है. न इधर के रहे, न उधर के. पुलिस की दूसरी गाड़ी पवित्रानंद और रवींद्रानंद को ईश्वरानंदजी के पास ले जा रही थी. दोनों की जान सांसत में थी. उन के मोबाइल भी जब्त कर लिए गए थे. पुलिस वालों ने उन से आश्रम का रास्ता दिखाने को कहा. मना करने या रास्ता न दिखाने का तो प्रश्न ही नहीं था. अचानक पवित्रानंद का मोबाइल बजा. अफसर ने मोबाइल का स्पीकर औन कर के उसे पकड़ा दिया.

‘‘अरे, कहां रह गए हैं आप लोग? दिया और धर्म मिल गए क्या?’’ ईश्वरानंद की रोबीली आवाज थी. आवाज सुन कर पवित्रानंद के चेहरे से लग रहा था कि उस के गले में किसी ने पत्थर अड़ा दिया था.

‘‘बोल क्यों नहीं रहे हो? कब आ रहे हो? धर्म और दिया साथ ही हैं न?’’

प्रश्नों का पुलिंदा खोल कर बैठ गया था ईश्वरानंद. पवित्रानंद को काटो तो खून नहीं. अफसर ने उसे उत्तर के लिए इशारा किया.

‘‘जी, हम लोग आ ही रहे हैं.’’

‘‘दिया साथ में ही है न?’’ फिर से वही प्रश्न.

पुलिस अफसर हिंदी बोलने में हिचकिचाते थे परंतु हिंदी व पंजाबी समझने में उन्हें कोई विशेष दिक्कत नहीं होती थी. पवित्रानंद को गुरुजी के कुछ ऐसे प्रश्नों के उत्तर देने के लिए बाध्य होना पड़ा जो पुलिस जानना चाहती थी. पवित्रानंद को डर था कहीं उस की बातें टेप न हो रही हों. उस ने बस इतना ही कहा, ‘‘थोड़ी देर में पहुंच रहे हैं, रास्ते में ही हैं.’’

पुलिस की गाड़ी को गलियों में घूमते हुए काफी देर हो गई थी. अफसर भन्ना उठे, उन्होंने सख्ती से कहा कि वे चुपचाप उन्हें आश्रम पहुंचा दें वरना वे कुछ और सोचते हैं. वे समझ चुके थे कि गाड़ी घुमा कर ये होशियार बंदे उन का समय बरबाद करना चाहते थे.

घबराए हुए तो थे ही दोनों. काफी देर से पुलिस को मूर्ख भी बना रहे थे. समझ गए थे कि अब यह खेल अधिक देर तक नहीं खेला जा सकता. इसलिए उन्होंने परमानंद धाम के सही मार्ग की दिशा में गाड़ी मुड़वा दी. केवल 5 मिनट बाद ही गाड़ी एक गैरेजनुमा दरवाजे के बाहर खड़ी थी.वही मुख्यद्वार, वही गैरेजनुमा बड़ा सा हौल जहां धर्म, दिया को ले कर पहली बार आया था. बिलकुल सुनसान पड़ा था वह स्थल. सुंदर, सजी हुई जगह पर कोई जीवजंतु नहीं. हां, जंतु ही तो थे वे लोग, धर्म के नाम पर झूठ और मक्कारी के ना म पर पलने वाले कीड़े. बिना मस्तिष्क का प्रयोग किए कहीं पर भी रेंग जाने वाले.

अफसरों ने दोनों भक्तों से कईकई बार गुरुजी के बारे में पूछा पर उत्तर नदारद. पवित्रानंद व रवींद्रानंद चैन की सांस ले रहे थे. उन्हें भय था कि रात के कार्यक्रम के बाद अब सब लोग अपनेअपने दैनिक कार्यों में उलझ गए होंगे और प्रतिदिन की भांति यहां पर कोई न कोई मिल ही जाएगा. ओह, बच गए, दोनों की आंखों में चमक आ गई थी. अचानक सामने वाली दीवार पर लगी गोल्डन पेंटिंग ऊपर उठी और उस में से 3-4 लोगों ने हौल में प्रवेश किया. ओह, तो यह बात है. पुलिस अफसर ने पेंटिंग के पीछे से निकलने वाले लोगों को एक ओर बिठा दिया और उन से ईश्वरानंद के बारे में पूछताछ करने लगे पर किसी ने कुछ नहीं बताया. पुलिस सभी का मोबाइल जब्त कर चुकी थी.

अफसर ने आगे बढ़ कर पेंटिंग को हिलानेडुलाने का प्रयास किया लेकिन तब तक पेंटिंग दीवार पर चिपक चुकी थी. अफसर ने वहां बैठे हुए लोगों को पेंटिंगनुमा दरवाजे को खोलने का आदेश दिया परंतु कोई टस से मस नहीं हुआ. पुलिस अफसर जौर्ज को पता चल चुका था कि नील, उस की मां, नैन्सी, धर्म व दिया आदि पुलिस स्टेशन पहुंच चुके थे. उस ने फोन कर के दिया व धर्म को भी वहां से आने वाली पुलिस फोर्स के साथ बुला लिया था. लगभग 21-25 मिनट में पुलिस की गाड़ी सब को भर कर वहां पहुंच गई थी. इन लोगों के पहुंचने तक स्थिति वैसी ही बनी हुई थी. अब पुलिसकर्मी डंडों से दीवार को बजाबजा कर अंदर जाने का मार्ग खोजने का प्रयास करने लगे थे. परंतु रहस्य था कि खुल नहीं रहा था.

क्रमश:

हल है न: भाग-2

‘‘उज्ज्वल के बारे में नहीं सोचता तू नवल. बड़ा भाई है, घर में जवान बहन दीप्ति है. उस की शादी नहीं करनी क्या? कैसेकैसे दोस्त हैं तेरे? किस हालत में घर आता है? छोड़ क्यों नहीं देता उन्हें?’’ जयंती कभी धीरेधीरे बोल पातीं.

‘‘हजार बार कहा उन्हें कुछ मत कहिए मां. उन्होंने बाबूजी का बिजनैस संभालने में बहुत मदद की है वरना मुझे आता ही क्या था. उन्हीं सब की वजह से बिजनैस में इतनी जल्दी इतनी तरक्की हुई है.’’

वह भड़क उठता, ‘‘वे सब ऐसेवैसे थोड़े ही हैं. अच्छे घरों के हैं. थोड़ा तो सभी पीते हैं. आजकल वे सब कंट्रोल में रहते हैं. मुझे ही जरा सी भी चढ़ जाती है. कल से नहीं पीऊंगा. वे सभी तो उज्ज्वल को अपना छोटा भाई और दीप्ति को छोटी बहन मानते हैं… और आप क्या बातें करती हैं मां कि…’’ वह आगबबूला होने लगता.

दीप्ति कुछ कहने को होती तो नवल उसे भी झिड़क देता. उज्ज्वल भी सहम जाता. घर का सारा दारोमदार नवल पर था. दीप्ति अपना बीएड का कोर्स पूरा कर रही थी और उज्ज्वल 8वीं की परीक्षा की तैयारी. दोनों नवल के कुछ देर बाद शांत हो जाने पर अपनेअपने काम में अपने को व्यस्त कर लेते.

मां की अनुभवी आंखें हर वक्त नवल के दोस्तों का सच ही बयां करती रहती हैं. पर भैया को दिखता ही नहीं. कितनी बार उस ने नवल के दोस्तों की गंदी नजरें, गंदी हरकतें झेली हैं. नवल को थमाने के बहाने वे कहांकहां उसे छूने की कोशिश नहीं करते… कैसे भैया को विश्वास दिलाए… वे अपने दोस्तों के खिलाफ कुछ भी मानने को तैयार नहीं होते. उलटा उसे झाड़ देते. दीप्ति की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. आंसू निकलने लगते तो बाथरूम में बंद हो जी भर कर रो लेती.

शुचि अगले हफ्ते सच में आ धमकी. उस के गले लग कर दीप्ति खूब रोई और फिर अपना सारा दुख उसे बताया.

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शुचि ने नम आंखों से उसे धैर्य बंधाया, ‘‘दीप्ति सब सही हो जाएगा… हल है न. मैं तेरी ही जबान कह रही हूं… हार थोड़े ही मानते हैं ऐसे… चल, अब बहुत हो गया. आंसू पोंछ और हंस दे.

‘‘याद है जब मैं ने तुझे ‘गुटका खाए सैंया हमार’ वाली प्रौब्लम बताई थी तो तू ने जो मजाकमजाक में हल निकाला था तो वह बड़े काम का निकला था. मैं ने उस के अनुसार एक शादी में मलय की जेब में रखी गुटके की लड़ी को कंडोम की लड़ी में बदल दिया. फिर जब शादी में मलय ने जेब से गुटका निकाला तो पूरी कंडोम की लड़ी जेब से लटक गई. फिर

क्या था. यह देख लोग तो हंसहंस कर लोटपोट हो गए, मगर मलय बुरी तरह झेंप गए. उस दिन से उस ने जेब में गुटका रखना छोड़ दिया था. फिर तेरी ही सलाह पर हम उसे नशा मुक्ति केंद्र ले गए थे. धीरेधीरे मलय का गुटका खाने की लत छूट गई थी,’’ दीप्ति के आंसू रुके देख शुचि मुसकराई.

फ्रैश हो कर शुचि ने अपना बैग खोला और दीप्ति को दिखाते हुए बोली, ‘‘यह देख विदेश से तेरे लिए क्या लाई हूं. हैंडी वीडियो कैमरा.’’

‘‘इतना महंगा… क्या जरूरत थी इतना खर्च करने की?’’ दीप्ति ने प्यार से डांटा.

‘‘हूं, क्या जरूरत है,’’ कह शुचि ने उसे मुंह चिढ़ाया, ‘‘बकवास बंद कर और इस का फंक्शन देख क्या बढि़या वीडियो लेता है.’’

‘‘मेरी दीदी कितना बढि़या वीडियो कैमरा लाई हैं,’’ उज्ज्वल स्कूल से आ गया था.

‘‘हाय उज्ज्वल… कितना लंबा हो गया,’’ शुचि ने प्यार से उसे अपनी ओर खींचा.

‘‘मैं कपड़े चेंज कर के आता हूं दीदी. तब मेरा ब्रेक डांस करते हुए वीडियो बनाना,’’ कह वह चला गया.

‘‘मैं तो सोच रही हूं इस से तेरी समस्या का हल भी हो जाएगा.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘रात में भैया जब दोस्तों के साथ आएगा तो हम छिप कर सब शूट कर के सुबह टीवी से अटैच कर उन्हें पूरा वीडियो दिखा देंगे. तब वे अपने दोस्तों की ओछी हरकतों से वाकिफ हो जाएंगे. दोस्तों की असलियत जान कर वे उन्हें छोड़ेंगे नहीं.’’

रात के 10 बज रहे थे. शुचि और उज्ज्वल सीक्रेट ऐजेंटों की तरह परदे की आड़ में सही जगह पर कैमरा लिए तैयार खड़े थे. तभी घंटी बजी तो दीप्ति ने दम साधे दरवाजा खोला. रोज का सीन शुरू हो गया. शुचि ने डोरबेल बजते ही रिकौर्डर औन कर लिया था.

‘‘अरे, लो भई संभालो अपने भाई को सहीसलामत घर तक ले आए.’’

‘‘अरे हमें भी तो थाम लो भई,’’ उन में से एक बोला.

‘‘हम इतने भी बुरे नहीं चुन्नी तो संभालो अपनी,’’ कह एक चुन्नी ठीक करने लगा तो एक बहाने से उस की कमर में हाथ डालने लगा.

एक के हाथ उस के बाल और गाल सहलाने की कोशिश में थे, ‘‘ये तुम्हारे गालों पर क्या लग गया जानू,’’ वैसी ही बेहूदा हरकतें… सोफे पर एक ओर लेटे नवल को कोई होश न था कि उस के ये दोस्त उस की बहन के साथ क्या कर रहे हैं.

‘‘थोड़ी नीबू पानी हमें भी पिला दो दीपू… तुम्हें देख कर तो हमारा नशा भी गहरा हो रहा है.’’

दीप्ति उज्ज्वल के हाथ से पानी का गिलास ले कर नवल को पिलाने की कोशिश कर रही थी. उन में से एक दीप्ति से सट कर बैठ गया. दीप्ति ने उसे धक्का दे कर हटाने की कोशिश की.

‘‘डरती क्यों हो दीपू. हम तुम्हें खा थोड़े ही जाएंगे. जा बच्चे पानी बना ला हम सब के लिए,’’ कह वह दीप्ति के माथे पर झूल आई घुंघराली लट को फूंक मारने लगा.

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‘‘पहले आप दीदी के पास से उठो.’’ उज्ज्वल उसे खींचने लगा तो उस आदमी ने उसे परे धकेल दिया.

शुचि का मन किया कि कैमरा वहीं पटक जा कर तमाचे रसीद कर दे… कैसे रोजरोज बरदाश्त कर रही है दीप्ति ये सब… हद होती है किसी भी चीज की. ‘पुलिस को कौल करती हूं तो नवल भैया भी अंदर होता. क्या करें,’ शुचि सोच रही थी, फिर उस ने यह सोच कैमरा एक ओर रखा और हिम्मत कर के बाहर आ गई कि धमका तो सकती ही है उन्हें. प्रूफ भी ले लिया. फिर कड़कती आवाज में चीखते हुए बोली, ‘‘क्या बदतमीजी हो रही है? शर्म नहीं आती?

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महायोग: धारावाहिक उपन्यास, भाग-18

 ‘‘हां, तमाशा ही तो है, दिया. तुम वैसे भी सोचो, पूरी दुनिया में ग्रह मिलाए जाते हैं क्या? विदेशों में तो वैसे ही संबंध बन जाते हैं, फिर भी यहां पर इस अंधविश्वास की चिंगारी जल रही है. तुम ने देखा, कितने गोरे थे ईश्वरानंद के प्रोग्राम में. यह तमाशा नहीं तो फिर क्या है?’’

दिया बोली, ‘‘धर्म, क्या मुझे पता चल सकता है कि मेरे घरवाले कैसे हैं? मैं समझती थी कि नील व उस की मां इस बात से बेखबर हैं कि मेरी फैमिली पर क्या बीती है.’’

‘‘नहींनहीं, वे लोग सबकुछ जानते हैं, दिया. इनफैक्ट, एकएक घटना. एक बात सुन कर तुम चौंक जाओगी, समझ में नहीं आता तुम्हें बताऊं या नहीं?’’

‘‘अब सबकुछ तो पता है. कुछ बताओगे भी तो क्या होगा. हां, शायद इन लोगों को समझने में मुझे मदद मिल सके,’’ दिया ने धीरे से कहा.

‘‘मैं जानता हूं तुम्हारे लिए कंट्रोल करना मुश्किल हो जाएगा पर न जाने क्यों मैं तुम से अब कुछ भी छिपाना नहीं चाहता.’’

‘‘तो बता दो न, धर्म. क्यों अपने और मेरे लिए बेकार का सिरदर्द रखते हो. एक बार कह कर खत्म कर दो बात,’’ दिया पूरा सच जानने के लिए बेचैन हो रही थी.

अपनेआप को संयत करते हुए धर्म ने कहा, ‘‘दिया, यह तुम्हारी शादी का जो जाल है न, वह भी ईश्वरानंद का ही फैलाया हुआ है.’’

‘‘क्या,’’ दिया मानो कहीं ऊंचाई से नीचे खाई में गिर पड़ी, ‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ उस के मुख से ऐसी आवाज निकली मानो जान ही निकली जा रही हो.

‘‘दिया, इतना कुछ देखनेसुनने, सहने के बाद भी तुम कितनी भोली हो. इस दुनिया में सबकुछ हो सकता है, सबकुछ. यह रिश्ता ईश्वरानंद का ही भेजा हुआ था. यह एक पासा फेंकने जैसी बात है. उन्होंने पासा फिंकवाया और तुम्हारी दादी लपेटे में आ गईं. वह जो तुम्हें किसी शादी में बिचौलिया मिला था न.’’

‘‘बिचौलिया? मतलब?’’ दिया का दम निकला जा रहा था.

‘‘बिचौलिया यानी बीच का आदमी. जो तुम्हारी दादी के पास तुम्हारे रिश्ते की बात ले कर आया था.’’

‘‘अच्छा, तो?’’

‘‘तो यह कि वह ईश्वरानंद का ही आदमी था. तुम्हें आश्चर्य होगा कि वह आदमी ईश्वरानंद के लिए इसी प्रकार काम करता है, जिस के लिए उस को खूब  पैसा मिलता है. न जाने कितनी लड़कियां लाया है वह हिंदुस्तान से और वह केवल ईश्वरानंद का ही नहीं, न जाने ऐसे कितने दूसरे लोगों के लिए काम करता है.’’

दिया की आंखें फटी की फटी रह गईं. ऐसा भी हो सकता है क्या? जीवन में इस प्रकार की धोखाधड़ी. दिया पसीने से तरबतर अपना मुंह पोंछने लगी.

‘‘मैं तुम्हें डराना नहीं चाहता पर है यह सच. तुम्हें मंदिर में एक खूब मोटी सी औरत मिली थी न जिस से रुचिजी बहुत बातें करती रहती हैं. क्या नाम है उस का…हां…शिक्षा…शिक्षा के लिए वह आदमी 3 लड़कियां लाया है इंडिया से.’’

‘‘क्यों? शिक्षा भी ये सब धंधे करती है क्या?’’ दिया के मुंह से घबराई हुई आवाज निकली.

‘‘नहीं, शिक्षा धंधा तो नहीं करती. शिक्षा का बेटा डायबिटिक है, वैसे वह इंपोटैंट भी है. मालूम है, उस ने अपने बेटे की 3 शादियां करवा दी हैं?’’

‘‘3 शादियां…? क्या तीनों बहुएं उसी घर में रहती हैं…’’ अचानक दिया पूछ बैठी.

‘‘नहीं, एक शादी होती है तो बहू पर घर का सारा काम डाल दिया जाता है. बहुत पैसे वाले लोग हैं ये. बहुत बड़ा घर है. वैसे तो 3 घर हैं इन के पर जिस में रहते हैं वह बहुत बड़ा घर है. 80 वर्षों से भी पहले इन की पीढ़ी यहां पर आई थी और यहीं इन के दादा लोग बस गए थे. इन के घर की औरतें पढ़ीलिखी नहीं हैं. बस, यहां रहते हैं इतना ही…अब जब लड़के की शादी होती है, बहू आती है तो वह लड़के से किसी भी प्रकार संतुष्ट नहीं हो पाती. फिर जब तक उस के पक्के होने की मुहर लगती है वह तब तक ही उस के घर रहती है. जैसे ही उसे इस देश में रहने की परमिशन मिली वह उन के घर से भाग खड़ी होती है और कहीं भी मजदूरी कर के अपनेआप को सैटल कर लेती है. इस तरह से शिक्षा के लड़के की 3 शादियां हुईं और ये सब काम उसी आदमी के हैं जिस ने तुम्हारा रिश्ता पक्का कराया था.’’

‘‘तो लड़की यहां कैसे आती है, उस का वीजा वगैरह?’’ दिया ने पूछा.

‘‘यह सब तो इन के बाएं हाथ का खेल है. पूरा एक रैकेट है दिया, जिस में कोई अपनेआप आ फंसता है तो कोई ग्रहों और ज्योतिष के चक्कर में फंसा लिया जाता है.’’

‘‘तब तो मैं बहुत बुरी तरह उलझी हुई हूं. अगर मैं किसी से बात करती हूं तो मुझ पर और अंकुश लग जाएंगे?’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है. यहां बहुत से ‘हैल्पेज होम्स’ भी हैं. ‘ओल्ड ऐज होम्स’ की तरह, पुलिस में भी इन्फौर्म कर सकते हैं और ऐंबैसी से भी हैल्प मिल सकती है. बस, बात इतनी सी है कि हमें थोड़ा इंतजार करना होगा.’’

‘‘क्यों? क्यों करना होगा इंतजार? धर्म अगर आप मुझे सच में प्रोटैक्ट करना चाहते हैं तो प्लीज मुझे जल्दी से जल्दी इस गंद से निकलने में हैल्प करिए,’’ दिया उतावली सी हुई जा रही थी.

‘‘दिया, मैं चाहता हूं कि आप के साथ मैं भी इस दलदल से निकल भागूं जबकि मैं जानता हूं कि ईश्वरानंदजी मुझे इतनी आसानी से निकलने नहीं देंगे. उन का कोई न कोई आदमी हम पर नजर रखे ही होगा.’’

दिया घबरा कर इधरउधर देखने लगी तो धर्म हंस पड़ा.

‘‘अरे, इतना आसान थोड़े ही है यह पता लगाना. यह तो पूरा चैनल है जो हर तरफ फैला हुआ है. दुनियाभर में चलता है इन का व्यापार. इतनी आसानी से आप को जाने देंगे वे लोग? इन का तो कोई मकसद भी सौल्व नहीं हुआ है अब तक.’’

‘‘तब फिर कैसे?’’ दिया ने हकला कर पूछा और रूमाल से अपना पसीना पोंछने लगी.

‘‘थोड़ा पेशेंस रखना होगा और कुछ दिन. मैं चाहता हूं कि मेरा एमबीए भी पूरा हो जाए और किसी को खबर हुए बिना हम किसी न किसी तरह यहां से निकल भागें.’’

‘‘यह कोई सपना देख रहे हैं क्या, धर्म?’’

‘‘नहीं, सपना नहीं है. जब यह सपना नहीं है कि आप इस कैद में आ कर फंसी हुई हैं तो वह भी केवल सपना नहीं कि आप इस कैद से छूट सकती हैं. हां, मुश्किलें तो बहुत आएंगी, इस में शक नहीं है.’’

धर्म के साथ रहने पर समय का पता ही नहीं चलता था. युवा उम्र में वैसे भी स्वाभाविक रूप से विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होता है. उस पर, दिया की स्थिति तो बेपेंदी के लोटे की तरह हो गई थी. इस इकलौते सहारे में ही वह सबकुछ ढूंढ़नेलगी थी. केवल 2 बार के मिलने से ही उसे यह बात ठीक प्रकार समझ में आ गई थी कि धर्म भीतर से बहुरूपिया नहीं है बल्कि ऐसी परिस्थितियों में उलझा हुआ है कि वह भी उन में फंस कर अपने पंख फड़फड़ा रहा है. जब 2 लोग एक सी मुसीबत में घिर जाते हैं तो उन की समस्या भी एक हो जाती है और विचार भी एक ही दिशा में चलने लगते हैं.

‘‘धर्म, मुझे नहीं जाना नील के घर,’’ अचानक ही दिया ने यह बचपने का सा विचार धर्म के समक्ष परोस दिया.

धर्म का मुंह चलतेचलते रुक गया, ‘‘तो कहां जाओगी?’’

‘‘कहीं भी, आप के साथ.’’

‘‘मेरे साथ?’’

‘‘हां, क्यों, आप मुझे अपने घर पर नहीं रख सकते?’’

‘‘नहीं, वह बात नहीं है, दिया, पर यह कैसे संभव है? थोड़ा पेशेंस रखो,’’ धर्म ने दिया को समझाने का प्रयास किया.

‘‘कहां से रखूं पेशेंस? मुझ में पेशेंस है ही नहीं अब, कहां से लाऊं?’’

‘‘हम ऐसे हार नहीं मान सकते, दिया. मुझे कुछ टाइम दो सोचने का,’’ धर्म उस को पकड़ कर फिर से लौन में जा बैठा.

‘‘धर्म, मैं एक उलझन से निकलती हूं तो दूसरी में फंस जाती हूं. मुझे अभी आप ने बताया कि ईश्वरानंद ने ही मुझे फंसाया है पर जब पिछली बार आप के साथ उन से मिली थी, तब तो वे पूछ रहे थे कि यह दिया कौन?’’

‘‘दिया, आप को अब तक यह बात समझ में नहीं आई कि ये सब नाटक है. तब अगर वे बता देते तो आप पर अपना प्रभाव कैसे डाल पाते? आप को तो अपने झांसे में लेना ही था न उन्हें? फिर रुचिजी की और उन की बहुत पुरानी दोस्ती है. पिछली बार तक तो वे, इन के यहां आने पर, इन के हर प्रोग्राम में आती थीं. लगता है इस बार वे जानबूझ कर नहीं आना चाहतीं. शायद, कहीं पोल न खुल जाए, इसलिए.’’

‘‘वह तो कुछ पैरों के दर्द के कारण…’’ दिया बोली तो उस की बात को बीच में काटते हुए धर्म बोला, ‘‘पैरों का दर्दवर्द सब ड्रामा है, दिया. कुछ तो कहेंगी और करेंगी न? और हां…आप अपनेआप को थोड़ा कंट्रोल में रखो जिस से और मुश्किलें न बढ़ें तभी कोई रास्ता निकल सकेगा वरना…’’

तभी धर्म के मोबाइल की घंटी बजी.

क्रमश:

 

 

ज़िंदगी-एक पहेली: भाग-15

अविरल ने बिना किसी को कुछ बताए बैग उठाया और हरिद्वार पहुँच गया. जब निधि डॉक्टर के पास जाने को हुई तो अविरल ने फोन करके डॉक्टर का एड्रैस मांगा और खुद भी थोड़ी देर बाद वहाँ पहुँच गया. सभी लोग उसे देखकर आश्चर्यचकित रह गए. निधि कि हालत देखकर अविरल का मन कचोट गया. निधि ठीक से सांस तक नहीं ले पा रही थी. अविरल ने डॉक्टर से बात की तो डॉक्टर ने फिर डेंगू के चेक अप को मना कर दिया. अविरल का मन नहीं माना और निधि की मम्मी के मना करने के बावजूद अविरल निधि का टेस्ट कराने चला गया. ब्लड का sample  देने के बाद निधि अपने घर चली गयी और अविरल लैब के बाहर ही रिपोर्ट का इंतज़ार करने लगा. 5 घंटे बाद रिपोर्ट आई जिसमे निधि को एडवांस लेवेल पे डेंगू हुआ था और उसकी कंडिशन serious थी. अविरल ने तुरंत अच्छा डॉक्टर पता किया और निधि को हॉस्पिटल में एड्मिट करा दिया.

डॉक्टर ने कहा ,” अब 1 दिन की भी देरी बहुत हो सकती थी ”. निधि के लीवर और फेफड़ों में पानी भर चुका था. निधि अब अपने होश में नहीं थी. अविरल रात दिन निधि के साथ रहता, उसे कहानियाँ पढ़कर सुनाता, पूरी रात जागकर उसकी देखभाल  करता हालांकि निधि की मम्मी भी साथ में अस्पताल में थी. पर अविरल को हर पल लगता कि अगर वो सो गयी  और निधि को कुछ जरूरत हुई तो…

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अविरल के ऑफिस से फोन आया और बॉस ने बोला या तो कल से जॉइन करो या तो जॉब छोड़ दो. अविरल ने जॉइन करने से मना कर दिया और उसकी जॉब चली गई. लेकिन उसने किसी को इस बात का पता नहीं चलने दिया.

दिन में वह डॉक्टर के पास जाता और बार बार सलाह करता कि अगर कोई दिक्कत हो तो हम दिल्ली ले जाएँ. डॉक्टर और नर्स को भी उसकी मोहब्बत और पागलपन देखकर आँखों में आँसू आ जाते.

दाढ़ी बढ़ी हुई, बाल बिखरे हुए, अविरल तो अब किसी को पहचान भी नहीं आ रहा था.

3 दिन बाद एक जूनियर डॉक्टर भागते हुए अविरल के पास आया और बोला, निधि कि प्लेटलेट्स बढ्ने लगीं हैं. अविरल खुशी से निधि के रूम कि तरफ भागा और निधि का हाथ पकड़कर अपने माथे पे रख लिया और बोला तुम ठीक हो रही हो. 5 दिनों बाद निधि अपने घर चली गई.

अविरल कि जॉब भी अब चली गई थी. उसने फिर से जॉब ढूँढने कि कोशिश की लेकिन उसे जॉब नहीं मिली. निधि के ठीक होने के बाद अविरल ने जॉब के बारे में सारी बात निधि को बताई. अविरल और निधि ने हर परिस्थिति में साथ रहने कि कसम खाई.

अब शादी की डेट भी आ चुकी थी तो अविरल भी अपने घर चला गया. दोनों कि शादी खूब धूम धाम से हुई. शादी के 10 दिन बाद निधि और अविरल दिल्ली आ गए जहां 1 छोटा सा फ्लॅट लेकर दोनों रहने लगे. अविरल सारा दिन जॉब के लिए भटकता. वह कई कई किलोमीटर पैदल चलता और सोचता “मेरा भी दिन आएगा”.

अविरल ने कई कंपनी में इंटरव्यू दिये थे लेकिन अभी किसी ने कुछ नहीं बोला था. इसी तरह 15 दिन बीत गए. अविरल और निधि एक एक पैसा बचाते. दोनों को कहीं जाना होता तो 5-10 रुपये बचाने के लिए भी कई किलोमीटर पैदल चलते.

एक बार दोनों का कुल्फी खाने का मन हुआ तो दोनों शॉप पर गए लेकिन उसके पैसे सुनकर वैसे ही वापस आ गए. दोनों को हर गम मंजूर था लेकिन दूर रहना नहीं.

1 दिन अविरल के पास कॉल आया और दूसरी तरफ से एक लेडी बोली, “अविरल आप कंपनी कब जॉइन कर सकते हैं”. अविरल के मुंह में तो जैसे शब्द ही गायब हो गए थे. थोड़ी देर बाद अविरल बोला कि “मैं कल से ही जॉइन कर सकता हूँ हालांकि सैलरी बहुत कम थी”. लेडी बोली कि ठीक है आप अगली 1 तारीख से जॉइन कर लीजिये. मैं आपको ऑफर लेटर भेज रही हूँ. निधि भी अविरल के साथ ही बैठी थी. दोनों उठे और और एक-दूसरे के गले लगकर खुशी के मारे रोने लगे.

एक दिन अविरल के मामा अविरल के घर आए तो उन्होने पहले तो घर देखकर मुंह बनाया और फिर घर में समान देखने लगे. अविरल के पास कोई समान नहीं था, अविरल और निधि जमीन में ही गद्दा डालकर लेटते थे. एक चूल्हे वाली गॅस थी. अविरल के मामा ने कहा कि अविरल अपने पापा से क्यूँ नहीं मांग लेते तो अविरल ने हँसते हुए कहा,” अरे मामा जी पापा ने तो खुद बोला था लेकिन मैंने मना कर दिया. मैं अपने आप ही आगे बढ़ना चाहता हूँ.

अविरल के मामा ने हर जगह जाकर उसका मज़ाक बनाया .

धीरे धीरे अविरल आगे बढ़ता गया. उसने जल्दी-जल्दी कंपनी बदल दी. जिससे उसका पैकेज बढ़ता चला गया. आज अविरल वर्ल्ड कि नंबर 1 IT कंपनी में, कैलिफोर्निया में हैं. उसने सबसे पहले अपनी दीदी “अनु” के नाम पे 1 डोनेशन स्टार्ट किया जिसमें वह हर साल 1 गरीब लड़की का मेडिकल का सारा खर्च उठाता. अविरल हर साल दशहरे वाले दिन अपने घर आता और एक बहुत बड़े भोज का आयोजन करता जिसमें पूरे शहर के गरीबों को भोजन  करवाता.

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उसने अपने पापा को जन्मदिन के गिफ्ट में मर्सिडीज दी तो सभी ने दांतों के नीचे उंगली दबा ली. आज जो सभी अविरल के हकलापन, उसकी कमजोरी, उसकी किस्मत , फ़ेल होने, मोहब्बत का मज़ाक बनाते थे वो आज उससे नजरें भी नहीं मिला पाते हालांकि अविरल सभी से वैसे ही बातें करता जैसे पहले करता था.

अविरल और निधि जब भी किसी कुल्फी वाले को देखते तो एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराते और अपना पुराना समय याद करते हुए कुल्फी खाते.

अविरल ने दुनिया को दिखाया कि अगर मोहब्बत सच्ची है और मन में काम के प्रति लगन है तो कोई भी कठिनाई उसका रास्ता नहीं रोक सकती. अविरल ने अपनी अथाह मेहनत, लगन और सच्चाई से अपने आपको इस मुकाम तक पहुंचाया था जहां सभी को आज उस पर नाज था.

ज़िंदगी-एक पहेली: भाग-14

अविरल ने मम्मी कि आवाज़ सुनकर अपनी पूरी ताकत समेटी और उठकर दरवाजा खोला और मम्मी की गोद में ही बेहोश हो गया. तब तक कार्तिक और अमन भी वहाँ आ चुके थे, दोनों उसे लेकर अस्पताल जाने लगे. निधि भी बदहवास होकर अविरल के पीछे भागी.

अस्पताल पहुँचकर डॉक्टर ने तुरंत ही अविरल को एड्मिट किया और चेकअप करने लगे. डॉक्टर ने सांत्वना दी और बोला कि भगवान ने इसकी जान बचा ली है. इसकी कलाई ज्यादा गहराई तक नहीं कटी है. ज्यादा ब्लड प्रैशर और खून बह जाने की वजह से यह बेहोश हो गया है. 4-4 घंटे में एकदम सही हो जाएगा.

उधर घर में दीप्ति और उसके मम्मी पापा निधि को पता नहीं क्या क्या बोल रहे थे लेकिन निधि एकदम पत्थर बनी बैठी थी. रेनु  चिल्ला चिल्ला कर बोली “यहाँ आशिक़ी चल रही है. जब अपना ही सिक्का खोटा है तो दूसरे को क्या दोष दें”. अविरल की मौसी निधि के पास आई और उसे सहारा दिया. उन्होने सभी को लताड़ लगाई और बोली “बेचारी कुछ बोल नहीं रही और सब इसके पीछे पड़ी हो. क्या गलत किया इसने. अभी सबका कैरक्टर खोलू तो जवाब देते नहीं बनेगा किसी से”.

तभी अस्पताल से कार्तिक घर आ गया  और बताया कि सब ठीक है. 4-4 घंटे में अविरल घर आ जाएगा. अविरल कि इस हरकत से निधि टूट सी गयी थी. उसने अविरल को छोड़ने का निश्चय कर लिया.

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अविरल जब वापस घर आया तो सभी लोग हौल  में बैठे थे. अविरल ने सबके सामने  बोला “मेरे अंदर क्या कमी है और मेरी शादी निधि से क्यूँ नहीं हो सकती”. कार्तिक गुस्से से पागल हो गया और चिल्लाते हुए बोला “क्या ड्रामा मचा रखा है, कोई शादी नहीं होनी किसी की”. अविरल निधि के लिए अकेले ही सबके सामने खड़ा हो गया. और बोला कि “शादी तो मैं इसी से करूंगा जो रोक सकता हो रोक ले”. अविरल कि मौसी ने सभी लोगों को शांत कराया.

निधि रसोई में थी तभी अविरल की मम्मी वहाँ पहुंची तो निधि ने उनसे बोला “मौसी जी आप अविरल के लिए और कोई लड़की ढूंढ लीजिये”. अविरल दूसरे कमरे में बैठा था जहां से रसोई की खिड़की थी और वह निधि को देख रहा था. उसने निधि के सामने हाथ जोड़ लिए लेकिन निधि ने एक बार भी अविरल की तरफ नहीं देखा. दीप्ति के मम्मी पापा निधि को लेकर तुरंत हरिद्वार चले गए.

अविरल ने निधि की मम्मी को फोन किया और जो कुछ हुआ था उसका हिंट कर दिया और रोते हुए बोला “चाची जी, प्लीज रिश्ता मत तोड़िएगा”. अविरल के हाथ में 10 टांके लेगे थे लेकिन उसे दिल के दर्द के आगे टांकों का दर्द महसूस ही नहीं हो रहा था.

अविरल ने अगले दिन निधि को फोन किया तो उसका मोबाइल बंद था. अविरल को घबराहट होने लगी. पूरे दिन अविरल फोन ट्राइ करता रहा लेकिन फोन बंद. इसी तरह 1 हफ्ता बीत गया लेकिन निधि से बात नहीं हुई. अविरल मंदिरों में जा जाकर भगवान से दुआ मांगता कि ये रिश्ता न टूटे. अविरल ने माता के मंदिर में जाकर दुआ मांगी कि मैंने जो गलती की है उसके पश्चाताप के लिए मैं 1 पैर से मंदिर तक चढ़ूँगा जिसकी खड़ी चढ़ाई थी और लगभग 600 सीढ़ियाँ थी बस निधि मुझसे बात करने लगे फिर से.

अविरल लोग भी देहरादून आ गए. दिन बीतते गए. अविरल लगातार ट्राइ करता रहा लेकिन फोन नहीं मिला. इसी तरह 20 दिन बीत गए. अचानक एक दिन जब अविरल ने फोन मिलाया तो निधि के फोन की घंटी बजी, निधि ने फोन उठाया और बोला “अविरल मुझे भूल जाओ, मैं अब तुमसे बात नहीं करना चाहती.“ तभी निधि की मम्मी ने फोन लेकर बोला “अविरल तुम चिंता मत करो. इसकी शादी तुम्ही से होगी, तुम थोड़ा सब्र रखो सब ठीक हो जाएगा”. लेकिन अविरल को तो निधि की आदत हो चुकी थी. वह हमेशा उसे फोन करके माफी मांगता और समझाने की कोशिश करता लेकिन निधि तो कुछ सुनने को तैयार नहीं थी.

कुछ दिनों बाद रेनु  की मम्मी ने निधि की मम्मी से कहा कि अविरल से निधि कि शादी के बारे में मत सोचना तो निधि की मम्मी ने बोला “हम तो अविरल को जानते भी नहीं थे. आपने ही दीप्ति कि शादी के बाद से उसके बारे में अच्छी अच्छी बातें बताकर शादी के लिए बोला था. अब क्या हो गया जो 8-10 महीने में अविरल इतना बुरा हो गया”. रेनु  की मम्मी ने साफ साफ बोला कि या तो हमसे रिश्ता रख लो या फिर अविरल से. तो निधि की मम्मी ने जवाब दिया “दीदी आप ही रिश्ता तोड़ना चाहती हो तो तोड़ दो”.

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इसके बाद निधि लोगों का और रेनु  लोगों का रिश्ता टूट गया. जब यह बात अविरल को पता चली तो वह मन ही मन बहुत खुश हुआ. उसकी सारी समस्या खत्म हो गयी थी. धीमे धीमे निधि भी नॉर्मल हो गयी थी. अविरल अपनी कसम पूरी करने के लिए मंदिर तक एक पैर से चढ़ने लगा हालांकि वह कई बार हिम्मत हारने लगता तो अपनी मोहब्बत को याद करता और फिर पूरी ताकत से आगे बढ़ता और आखिरकार वह अपनी मंजिल पे पहुँच गया. अविरल ने यह बात निधि को बताई लेकिन उसने कभी विश्वास नहीं किया.

अविरल का कॉलेज स्टार्ट हो चुका था. कुछ समय तक सब कुछ नॉर्मल चलता रहा. अविरल अक्सर निधि से बोलता “निधि, 6 महीने हो गए हैं. तुम्हारी बहुत याद आती है, 1 बार मिल लो न” लेकिन निधि मना कर देती. अब अक्सर अविरल और निधि कि इसी बात पे लड़ाई हो जाती. निधि भी मजबूर थी वह अविरल से मिलने अकेले नहीं जा सकती थी, उसे लगता था कि अगर किसी ने देख लिया तो उसके मम्मी पापा कि बदनामी होगी.

अब निधि से मिले पूरा 1 साल बीत चुका था. निधि ने अविरल से मिलने के लिए हाँ बोल दिया. अविरल खुशी खुशी हरिद्वार पहुंचा तो निधि अपने मम्मी पापा के साथ आई थी. सभी लोग पार्क गए और खाना खाया. थोड़ी देर अविरल और निधि ने नॉर्मल ही बातें की और फिर सभी अपने घर के लिए चल दिये. अविरल की आँखों में आँसू थे वह बार बार पलटकर देख रहा था लेकिन निधि ने नहीं देखा.

ऐसे ही अविरल के पूरे 4 साल बीते. अविरल का कॉलेज में कोई भी दोस्त नहीं बना क्यूँ की उसे निधि को छोड़कर कोई दिखता ही नहीं था. निधि 1 साल में 1 बार अविरल से मिलने आती वो भी अपने मम्मी पापा के साथ. अविरल ने इसे अपनी किस्मत मानकर अपना लिया था हालांकि वह इस बात पर अक्सर निधि से लड़ता भी था.

अविरल के 4 साल पूरे हो गए लेकिन यह 2008-09 का टाइम था और भयानक मंदी आ चुकी थी तो कहीं भी अविरल को जॉब नहीं मिली.

निधि के पापा भी डरते थे की कहीं लड़के का मन ना बदल जाए तो उन्होने सगाई की बात की और जून 2009 में उनकी सगाई कर दी गई.

अविरल को अब अपने पापा से पैसे मांगने में बुरा लगता था तो वह रात दिन जॉब ढूँढने में लगा रहता. उसे बहुत से ऐसे लोग भी मिले जिन्होने अविरल के साथ फ़्रौड भी किया. लेकिन अविरल अब परिस्थितियों से लड़ लड़कर इतना मजबूत हो गया था कि कोई उसे रोक नहीं सकता था. कुछ समय बाद आसपास के लोगों ने मज़ाक बनाना शुरू कर दिया कि “लड़की के चक्कर में पड़ा रहा और कुछ पढ़ाई लिखाई नहीं किया” इसका कुछ नहीं होगा.

जितना लोग अविरल के ऊपर हँसते, उसे और साहस मिलता. अविरल और मेहनत करता.

कुछ महीनों बाद पुणे में एक छोटी सी कंपनी में अविरल को जॉब मिली लेकिन उसकी  सैलरी बहुत कम थी.  अविरल ने हँसते हुए जॉब को हाँ कर दी. वह अब पापा से पैसे भी नहीं मांगता था .उसके पास  पैसे की तंगी भी हो गयी. अविरल हमेशा अपने मन में एक ही लाइन गुनगुनाता था

“न हो साथ कोई अकेले बढ़ो तुम, सफलता तुम्हारे कदम चूम लेगी”

1 महीने बाद अविरल को 5000/माह मिलने लगा. यह उसकी पहली कमाई थी जो उसने अपनी दीदी “अनु” के नाम से निकाल कर अलग कर दी. निधि के पापा से लोगों ने कहना शुरू किया कि “ज्यादा पड़ी हुई सगाई अच्छी नहीं होती”. तो वह शादी की जिद करने लगे. अब अविरल की शादी भी तय कर दी गई 2 दिसम्बर को. हालांकि अभी अविरल का मन नहीं था.वो खुद बहुत struggle कर रहा था . वो निधि को हर खुशी देना चाहता था पर इतने कम पैसो में वो संभव नहीं था.

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लेकिन फिर अविरल ने सोचा कि पैसा तो आता जाता रहेगा लेकिन अगर निधि चली गई तो क्या होगा.

शादी को सिर्फ 1 महिना बचा था और तैयारियां ज़ोरों पे थी तभी अचानक निधि की तबीयत बिगड़ गई. उसे हाइग्रेड फीवर आ गया. अविरल को पता चला तो वह परेशान हो गया. अविरल निधि से बात करने की कोशिश करता लेकिन निधि उससे बात भी नहीं कर पा रही थी. निधि के पापा ने पास में ही डॉक्टर को दिखाया तो उसने दवा दे दी लेकिन निधि की हालत और बिगड़ गयी. निधि का ब्लड चेकअप हुआ तो उसमे प्लेटलेट्स की संख्या काफी कम हो गयी थी और शायद उसे डेंगू था लेकिन अभी डॉक्टर ने डेंगू के टेस्ट के लिए मना कर दिया था. निधि ने अविरल से यह बात बताई. अविरल ने बोला कि कल तुम डॉक्टर के पास जाना तो मेरी बात कराना. उस समय डेंगू से रोज़ कई जानें जा रहीं थी और यह न्यूज़ के पहले पेज पर था. निधि कि हालत बहुत बिगड़ती जा रही थी. अविरल का मन अब बिलकुल भी नहीं लग रहा था.

अगला भाग, जो कि कहानी का अंतिम भाग भी है, में हम जानेंगे कि अविरल को जिंदगी में और कितनी परीक्षा देनी होगी और क्या अविरल अपनी मोहब्बत को हासिल कर पाएगा…

ज़िंदगी-एक पहेली: भाग-13

जब भी रेनु अविरल को कॉल करती, अविरल जान-बूझकर निधि की बातें ही करता. रेनु को बहुत ही बुरा लगता था. उसने निधि को अविरल से अलग करने की ठान ली. उसे बिलकुल भी इस बात का पता नहीं था कि अविरल और निधि की बात होती है.

रेनु के मम्मी पापा दोनों जॉब करते थे तो दोपहर में रेनु अकेले रहती थी. रेनु अक्सर ही निधि को अकेलेपन का बहाना बनाकर अपने घर बुला लेती थी और निधि को न चाहते हुए भी जाना पड़ता था. एक बार रेनु ने निधि से कहा मैं बाहर कुछ समान लेने जा रही हूँ, अभी थोड़ी देर में आती हूँ. उसके जाने के बाद ही घर के फोन पर एक कॉल आई. निधि ने फोन उठाया तो दूसरी तरफ  एक लड़का था.

उसने निधि से कहा,”निधि please फोन मत रखना ,मुझे तुमसे कुछ कहना है. निधि तुम सिर्फ मुझसे  उससे दोस्ती कर लो ,मई तुमसे और कुछ नहीं मांग रहा हूँ . मै जी नहीं पाऊँगा .

निधि बहुत डर गयी और उसने उसे  बाद में बताने का बोलकर फोन काट दिया.

वह लड़का रेनु का  दोस्त था और रेनु के घर में उसका काफी आना जाना था. काफी समय से वह निधि के पीछे पड़ा था लेकिन रेनु ने मना कर दिया था तो उसने आगे कुछ कहा नहीं.

फोन काटने के बाद ही रेनु वहाँ आ गयी. निधि ने सारी बात रेनु को बताई तो रेनु ने बोला “निधि दोस्ती को ही तो बोल रहा है. दोस्ती करने में क्या जाता है लेकिन यह बात किसी को पता नहीं चलनी चाहिए”.

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निधि अगले ही दिन बहाना बनाकर अपने घर आ गयी और सबसे पहले अवि को फोन किया और सारी बात बताई. अवि को बहुत गुस्सा आया. उसको शंका हुई कि हो न हो यह फोन रेनु ने कराया है. लेकिन निधि ने उसे शांत करा दिया और कभी भी रेनु के घर अकेले न जाने का वादा किया.

अविरल ने रेनु को कुछ न बोलने का वादा तो कर दिया था लेकिन रेनु कि हरकत उसे सहन नहीं हो रही थी.

अब तक अविरल के 13 सेमेस्टर हो चुके थे. अविरल अपने घर आ गया था. 13nd सेमेस्टर का रिज़ल्ट भी आ गया. उसका रिज़ल्ट ठीक ठाक ही आया. अविरल अपने रिज़ल्ट से बिलकुल भी खुश नहीं था और इसका सबसे बड़ा कारण वह अपने साथ-साथ रेनु को भी मान रहा था.

उधर कुछ दिनो बाद दीप्ति भाभी के लड़का हुआ था तो घर में एक प्रोग्राम था जिसमें सभी को आना था. रेनु ने निधि को भी तैयार कर लिया दिल्ली चलने के लिए हालांकि निधि के मम्मी पापा नहीं आ रहे थे.

अविरल बार बार निधि से पूंछता कि “अगर कुछ ऐसा हुआ कि दिल्ली में सभी मेरे खिलाफ खड़े हो गए तो क्या करोगी” तो थोड़ी देर सोचकर निधि जवाब देती कि “जो सही होगा उसके साथ खड़ी रहूँगी”.

निधि के मम्मी पापा निधि को लेकर दिल्ली जाने के 8 दिन पहले ही रेनु के घर पहुँच गए.

अविरल बहुत परेशान रहने लगा क्यूँ कि रेनु के यहाँ वह निधि से बात नहीं कर पाता था. 3-4 दिन बीतने के बाद अविरल को नहीं रहा गया और उसने रेनु के घर वाले फोन पर खाने के समय कॉल की और नॉर्मल ही बात करने लगा. थोड़ी देर बात करने के बाद अविरल अचानक रेनु से बोला की “ रेनु कोई आया है क्या तुम्हारे यहाँ” तो रेनु ने मना कर दिया. अविरल ने फिर पूंछा कि नहीं मुझे आवाज आ रही है और यह आवाज शायद निधि की है हालांकि उसे कोई आवाज नहीं आ रही थी. तो रेनु ने बोला कि “हाँ निधि आई है, लेकिन अभी मैं बात नहीं करा सकती”. अविरल गुस्से से पागल हो गया और फोन पर ही बोला “तुम समझती क्या हो अपने आप को, मैं तुमसे केवल इसलिए बात करता था कि निधि के बारे में कुछ पता चल जाए वरना तुम्हारे जैसी 36 लड़कियां तो मेरे पीछे घूमती है”. और न जाने  गुस्से में वह क्या-क्या बोलता चला गया लेकिन उसने कोई ऐसी बात नहीं बोली जिससे रेनु को पता चले कि अविरल की निधि से बात होती है. फोन कटने के बाद रेनु बुरी तरह घर में रोकर अविरल से बदला लेने को बोलने लगी. निधि और उसकी मम्मी भी एकदम अवाक थी अविरल की इस हरकत पे.

13 दिन बाद निधि ने छुपकर अविरल को फोन किया तो अविरल ने निधि से माफी मांगी और बोला कि “अगर तुम कहो तो मैं रेनु से भी माफी मांग लूँ लेकिन मैंने उसके साथ कुछ गलत नहीं किया” हालांकि अविरल सोच रहा था कि निधि रेनु से माफी के लिए मना कर देगी. इसके विपरीत निधि ने बोला कि हाँ तुम्हें माफी मांगनी पड़ेगी. तभी वहाँ कोई आने लगा तो निधि ने फोन काट दिया.

अविरल की आत्मा बिलकुल भी रेनु से माफी मांगने के पक्ष में नहीं थी. वह घर पहुंचा और अपने कमरे में चला गया. आधी रात में अचानक अविरल कि तबियत बिगड़ गयी. अविरल के पापा तुरंत उसे लेकर हॉस्पिटल भागे तो वहाँ पता चला कि अविरल का ब्लड प्रैशर बहुत बढ़ गया था. पूरी रात हॉस्पिटल में रुकने के बाद अविरल जब घर आया तो उसके मम्मी पापा ने कारण पूंछा तो अविरल ने बोला कि “मैं  और दीप्ति भाभी की बहन निधि एक दूसरे को पसंद करते हैं, निधि के मम्मी पापा को भी सब पता है. अगर मेरी निधि से शादी नहीं हुई तो मैं कभी शादी नहीं करूंगा”. और फिर अपने कमरे में चला गया. 1 दिन बाद अविरल अपनी मम्मी के साथ दिल्ली गया जहां रेनु और उसकी फॅमिली पहले से आए हुए थे. रेनु और दीप्ति ने सभी को पहले ही अविरल के खिलाफ भड़का दिया था.

दिल्ली पहुँचने के बाद पार्टी में अविरल सबके सामने जबर्दस्ती निधि से बात करने लगा. रेनु और दीप्ति को और बुरा लग रहा था. उन्हे शक हुआ कि ‘जरूर निधि और अविरल कि फोन पे बात होती है तभी ये इतनी बात कर रहा है’. दीप्ति ने निधि को बुरा भला कहना शुरू कर दिया.

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अगले ही दिन सभी ने निधि और अविरल को बैठाकर बोलना शुरू कर दिया तो गुस्से में निधि ने बोला “मेरा आज से इस लड़के से कोई रिश्ता नहीं है”.

अविरल को कुछ समझ नहीं आया वह उठा और दूसरे कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर लिया और अपने हाथ कि नस काट ली और उसका खून बहकर दरवाजे से बाहर जाने लगा. अविरल अचेत हो रहा था तभी उसकी कान में अपनी मम्मी की रोती हुई आवाज पड़ी जो रोकर कह रहीं थी  कि भैया हम किसके सहारे जिएंगे.

अगले भाग में हम जानेंगे कि क्या अविरल का प्यार अधूरा तो नहीं रह जाएगा ?

रहनुमा: भाग-3

फिर कांपते हाथों से चाय बना, 2 बिस्कुट के साथ चाय गटकने के बाद संध्या ने बुखार, बदनदर्द की टैबलेट खा ली थी और बुखार की खुमारी में पता नहीं कितनी देर यों ही पड़ी थी कि अचानक दरवाजे की घंटी की आवाज से तंद्रा टूटी थी. दरवाजा खोला तो आगंतुक को देख बुखार की खुमारी में बंद आंखें चौंक कर फैल गईं थीं और उसे तुरंत नारीसुलभ लज्जा ने घेर लिया था. वह अपने अस्तव्यस्त कपड़े और बिखरे बाल समेटने लगी थी.

‘‘आप…?’’ वह बोली थी.

‘‘भीतर नहीं आने देंगी क्या?’’ शेखर बोला था.

वह सकपका कर दरवाजे के बीच से हट गई थी.

‘‘ऐक्सीडैंट जबरदस्त हुआ है. अरे आप को तो बुखार भी है,’’ कहते हुए शेखर ने पहले संध्या की कलाई थामी, फिर ललाट का स्पर्श किया. संध्या पत्ते की तरह थरथरा उठी थी. छुअन का रोमांच विचित्र था.

‘‘चलिए, डाक्टर से दवा ले आते हैं.’’

संध्या विरोध न कर सकी थी. वापस घर आ कर शेखर ने किचन में जा कर संध्या के लिए दलिया बनाया था और अपने सामने उसे खिलाया था.

‘‘अच्छा अब मैं चलता हूं. दवा आप ने ले ली है, आराम आ जाएगा. फिर मदद की जरूरत हो तो याद कर लीजिएगा,’’ कह कर जवाब की प्रतीक्षा किए बिना शेखर जा चुका था.

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शेखर का घर आना, क्षणिक मधुर स्पर्श, उस का केअरिंग ऐटिट्यूट संध्या के नीरस जीवन में मधुर स्मितियां सजा गया. इस उम्र में भी निगोड़ा मन अशांत होने लगा है. आईने पर बरबस नजर चली जाती है और अधरों पर लजीली मुसकान थिरकने लगती है, संध्या सोचती फिर सिर को झटक कर वर्तमान में लौट आती. फिर सोचने लगती कि इस निगोड़े मन में यही खराबी है कि जरा सी ढील दे दो तो कहांकहां डोलने लगता है. क्या सचमुच उम्र बुढ़ा जाती है, मन नहीं? संध्या स्वस्थ हो गई थी धीरेधीरे. एक दिन सपना के फोन ने उस के मन में उत्साह भर दिया था. वह भारत आ रही थी अपने बेटे के साथ. वह अपने 5 वर्ष के नाती बौबी के साथ खूब मस्ती करेगी, यह सोच कर वह बहुत उत्साहित थी. उस ने तुरतफुरत घर में सभी जरूरत का सामान जुटाना शुरू कर दिया था. सपना के आने से घर का कोनाकोना जीवंत हो उठा था.

‘‘ममा, ये शेखर कौन है?’’ एक रोज सपना के अप्रत्याशित प्रश्न ने संध्या को झकझोर दिया था.

‘‘कुलीग है…’’ संक्षिप्त सा उत्तर दे उस ने बात खत्म करनी चाही थी.

‘‘आप के मोबाइल पर इन की कौल्स देखीं इसलिए…’’

संध्या ने कोई जवाब नहीं दिया किंतु मां के चेहरे के हावभाव सपना देखनेसमझने का प्रयास कर रही थी. एक दिन रात के सन्नाटे को तोड़ता अचानक संध्या का मोबाइल घनघना उठा, तो उस ने तुरंत मोबाइल उठाया और बोली, ‘‘आजकल बच्चे आए हुए हैं…’’

उस ने फोन काटना चाहा पर शेखर उधर से बोला, ‘‘ठीक है, बहुत अच्छा है. आप बिटिया से हमारे संबंध के विषय में बात कर लीजिए. अगर आप कहें तो मैं स्वयं आ कर उस से मिल लेता हूं.’’

‘‘नहींनहीं,’’ कह कर संध्या ने घबरा कर फोन काट दिया था.

मां के कांपते हाथ और चेहरे के थरथराते भाव देख सपना ने तुरंत पूछा था, ‘‘कौन था ममा, रात के 11 बजे हैं?’’ स्थिर खड़ी संध्या चुपचाप बिस्तर की ओर बढ़ गई थी.

‘‘क्या हुआ ममा, कुछ परेशान हैं आप. कोई टैंशन है क्या…?’’

संध्या ने अचकचा कर इनकार कर दिया था. संध्या के मन में उधेड़बुन चल रही थी. सपना की प्रतिक्रिया क्या होगी? सब कुछ जान लेने के बाद क्या मांबेटी एकदूसरे के प्रति सहज रह पाएंगी? मां के जीवन में किसी दूसरे पुरुष की उपस्थिति बच्चों को स्वीकार्य नहीं होगी शायद. किंतु अपने मन की बात बच्चों से न शेयर कर पाने के एहसास से स्वयं उस का हृदय घुटन महसूस करता. अपने नए एहसास, नई मैत्री को वह किसी अपने से बांटना भी चाहती थी किंतु परिवार व समाज की बंदिशों का डर, अपनी स्वयं की सीमाओं के टूट जाने का भय उसे ऐसा करने नहीं दे रहा था.

सपना के बारबार कुरेदने पर संध्या ने उसे शेखर के बारे में सब कुछ बता दिया था. लेकिन सपना के चेहरे पर कठोरता और नागवारी के भाव देख वह सकपका गई थी. ‘‘मम्मी, आप को कोई ‘इमोशनल फूल’ बना रहा है. आप बहुत सीधी हैं, आप की नौकरी, पैसे के लालच में आ कर कोई भी आप को बेवकूफ बना रहा है. अब उस का फोन आए तो मुझे बताना, मैं उस का दिमाग ठिकाने लगाऊंगी.’’

‘‘लेकिन बेटा, आर्थिक रूप से वह भी संपन्न है. मेरे पैसे, मेरी प्रौपर्टी से उसे कुछ लेनादेना नहीं है.’’

‘‘लेकिन मम्मी, इस उम्र में आप को ऐसा बेतुका खयाल आया कैसे? बहुत सी औरतें हैं, जो आप ही की तरह अकेली रहती हैं, लेकिन बुढ़ापे में शादी नहीं करतीं. यह बात मेरी ससुराल में और रिश्तेदारों को पता चलेगी तो उन का क्या रिऐक्शन होगा? सब मजाक उड़ाएंगे और हम हैं तो सही आप के अपने बच्चे. कोई दुख, तकलीफ अगर हो तो आप हम से कहो. बाहर वाले लोगों के सामने अपनी परेशानी बता कर क्यों हमदर्दी लेना चाहती हो?’’ सपना की आवाज के तार कुछ और कस गए थे, ‘‘राहुल को जब पता चलेगा कि उस की सास ऐसा कुछ करना चाहती हैं, तो कितना बुरा लगेगा उसे…’’

संध्या अपराधबोध से कसमसा उठी थी. स्वयं पर ग्लानि अनुभव हुई थी उसे. सपना की वापसी का दिन आ गया तो वह बोली, ‘‘ममा, मैं जल्दी ही अपना दूसरा ट्रिप बना लूंगी आप के पास आने के लिए. रिटायरमैंट के बाद आप मेरे साथ रहेंगी बस…’’ एक फीकी मुसकान संध्या के बुझे चेहरे पर फैल गई थी.

‘‘मैं ने कोमल से भी कह दिया है. वह भी यहां आने का प्रोग्राम बना रही है.’’

‘‘हां बेटा ठीक है.’’

सपना चली गई तो घर में सन्नाटा पसर गया. संध्या स्वयं को संयत कर अपने रोजमर्रा के कार्यों में लीन हो गई. शेखर का फोन आता तो वह रिसीव न करती. जब उस की बेटी कोमल आई, तो एक बार फिर घर का कोनाकोना महक उठा. छुट्टी के दिन सुबह से शाम तक घूमना, खरीदारी. औफिस जाती तो घर जल्दी लौटने का मन होता.

‘‘ममा, ये शेखर कौन हैं?’’ कोमल के चेहरे पर रहस्यमयी मुसकान थी. संध्या का चेहरा उतर गया था.

‘‘सपना दीदी ने मुझे बताया था.’’

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संध्या के हाथ रुक गए थे. कदम ठिठक गए थे… अब कोमल अपना रोष व्यक्त करेगी. ‘‘ममा, यह तो बहुत अच्छी बात है. हम दोनों बहनें तो बहुत दूर रहती हैं आप से. फिर गृहस्थी की तो बीसियों उलझनें हैं. ऐसे में जरूरत पड़ने पर हम आप की कब और कितनी मदद कर सकती हैं. मुझे तो खुशी होगी अगर आप… हां, सपना दीदी को समझाना होगा. उन्हें मनाना मेरा काम होगा. आप शेखर अंकल और उन के बेटे को घर पर बुलाइए. हम सभी एकदूसरे से मिलना चाहेंगे.’’ संध्या टकटकी लगाए बेटी का मुंह देखती रह गई थी. शेखर अपने बेटे के साथ संध्या के घर आ गया था. वहां सहज भाव से सब ने एकदूसरे से बातचीत की थी और कोमल व उस का पति नीरज शेखर के बेटे से बहुत प्रभावित हुआ था. शेखर का डाक्टर पुत्र वास्तव में एक समझदार लड़का था. डाक्टरी पेशे में अत्यधिक व्यस्त रहने की वजह से वह अपने पिता को समय नहीं दे पाता था, इसलिए उन के जीवन में एक संगिनी की आवश्यकता को बेहद जरूरी समझता था. उस के प्रगतिशील विचार जान कर और पिता के प्रति उस का प्रेम और आदर का भाव देख संध्या हैरान थी.

संध्या के मन में चल रही कशमकश को उस ने यह कह कर एकदम दूर कर दिया था, ‘‘आंटी, आप अपने मन में चल रही कशमकश और शंका को दूर कर लें और हम पर विश्वास कर जीवन के इस मोड़ पर नई राह का खुले दिल से स्वागत करें. मैं और मेरी 2 बहनें कोमल और सपना आप के साथ हैं.’’ ‘‘मम्मी, आप इतनी टैंशन में न आएं. अब तो मुसकरा दें प्लीज. आप की खुशी में ही हम बच्चों की खुशी है,’’ दामाद के मुंह से यह सुन कर संध्या के मन में चल रही कशमकश समाप्त हो गई थी. दुविधा के बादल छंट चुके थे.

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