किसी को कुछ दें तो न दिलाएं उसे याद

महान जरमन दार्शनिक व कवि फ्रेडरिक नीत्शे कहते हैं, ‘‘जिस ने देने की कला सीख ली समझो उस ने जीवन जीने की कला भी साध ली. देना एक साधना है, जिसे अपने भीतर उतारने में सदियां बीत जाती हैं.’’

हमारे परिवार, दोस्तों, रिश्तेदारों के बीच देने का यह क्रम लगातार चलता रहता है खासकर तीजत्योहारों और शादी समारोह में देने की यह गति और तेज हो जाती है. लेकिन लेनेदेने की इस गति में कई बार हमारी सोच, हमारा मन खुद ही बाधक बन जाता है. जब हम किसी को कुछ देते हैं तो उस में हमारा प्रेम व लगाव छिपा होता है पर वही प्रेम और राग तब काफूर हो जाता है जब हम सामने वाले को गाहेबगाहे यह याद दिलाते हैं कि मैं ने तुम्हें फलां चीज दी थी, याद है न?

ऐसे में सामने वाला खुद को दीनहीन समझने लगता है और यह कुंठा तब और उग्र हो जाती है जब यह ताना पब्लिकली दिया गया हो.

हाल ही में एक सगाई समारोह में कुछ पुरानी सहेलियों के साथ मेरी बैस्टफ्रैंड भी मिली. कमलेश व ज्योति कभी अंतरंग मित्र हुआ करती थीं. छूटते ही ज्योति बोल पड़ी, ‘‘अरे वाह कमलेश, तूने यह वही नैकपीस पहना है न जो मैं ने तुझे तेरी पिछली सालगिरह पर दिया था?’’

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कमलेश भरी महफिल में कुछ न बोल सकी बस मुसकरा कर रह गई. पर उस के मन पर जो चोट लगी उसे वह भूल न सकी.

हमारे आसपास, फैमिली या सोसाइटी में ऐसे लोग भरे हैं जो अपनी दी हुई चीजों का बखान करते नहीं थकते. कई बार तो देने से ज्यादा बढ़ाचढ़ा कर अपनी बात रखी जाती है. लेने वाला जब किसी और के मुख से ऐसी बातें सुनता है तो उस का स्वाभिमान तिलमिला उठता है. अकसर कुंठा से ग्रस्त हो खुद को कोसने लगता है कि आखिर उस ने उस व्यक्ति से कोई उपहार स्वीकार ही क्यों किया?

ऐसे सीखें देने की कला

– चाहे आप ने कितना भी महंगा गिफ्ट क्यों न दिया हो, मन में मलाल न रखें कि हाय मैं ने इतनी महंगी चीज क्यों दे दी.

– गिफ्ट या कोई भी आइटम देते वक्त उस का प्राइस टैग जरूर रिमूव करें या प्राइस प्रिटेंड हो तो उसे इंक या व्हाइट पेपर से कवर कर दें.

– देने के बाद भूल कर भी कभी याद न दिलाएं या किसी पार्टी अथवा गैदरिंग में अनावश्यक याद न कराएं.

– एकसाथ एक जैसे गिफ्ट अपने किसी भी क्लोज को देने की भूल न करें. हो सकता है वे बाइचांस किसी इवेंट में सेम आइटम के साथ दिख जाएं तो शर्मिंदगी हो सकती है.

– किसी को कुछ भी दें तो दिल से दें.

– कोशिश करें डब्बाबंद अच्छी तरह वैल पैक्ड गिफ्ट दें. इस से आप का इंप्रैशन जमेगा.

– देना हमें भीतर से विशाल बनाता है, इसलिए इस परंपरा के वाहक बनें.

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यह कोई बड़ा काम नहीं

खुद को देने की कला में माहिर बनाना कोई बड़ा काम नहीं है, भारी काम नहीं है. थोड़े से प्रयास से हम इस स्किल को बेहतर तरीके से डैवलप कर सकते हैं.

आखिर हम अल्बर्ट आइंस्टीन, ग्राहम बेल, क्रोलबस, जौर्ज वाशिंगटन, वाल्टडिज्नी, बिलगैट्स, एपीजे कलाम जैसे महान लोगों से कुछ क्यों नहीं सीखते, जिन्होंने जीवनभर इस दुनिया को कुछ न कुछ देने का काम किया पर उस का नाम न लिया.

देना अगर गुप्त हो तो तभी वह सफल है. इस का ऐक्सपोजर आप को नैरो बनाता है. गिविंगनैस आप को बड़ा बनाती है. ग्रेटनैस इसी में है कि किसी को देने का एहसास न कराएं. भारी व भरे मन से नहीं, बल्कि खुले व हलके मन से देने की आदत डालें. हैप्पीनैस के साथ गिविंगनैस का कौंबो पैक आप की इमेज को लार्जर दैन लाइफ बना सकता है.

बोरिंग मैरिड लाइफ भी है जरूरी, जानें क्यों

शनाया और सुदीप्त शादी के 3 साल बाद ही मन ही मन इस बात की चिंता करते रहते हैं कि उन के रिश्ते में जो बात शुरू के दिनों में थी, वह आज नहीं है. दोनों को लगता है कि 4 साल के अफेयर के बाद इस प्रेमविवाह में वह चीज कुछ मिसिंग सी है, जो शुरू में दोनों को उत्साह से भरे रखती थी.

दोनों की यह चिंता बेमानी है. शुरू के दिनों का जादू खत्म होने पर अकसर लोग इस मिसिंग स्पार्क की चिंता में यों ही परेशान होते रहते हैं. जब हनीमून पीरियड खत्म हो जाता है, वास्तविकता से सामना होता है, तो कुछ अजीब सा लगता है. हर चीज बोरिंग लगनी शुरू हो जाती है, धीरेधीरे हाथों को पकड़ कर बातें करना, कैंडल लाइट डिनर पर जाना, घंटों फोन पर बातें करना खत्म होता चला जाता है.

हम अकसर यह शिकायत करने लगते हैं कि रिश्ते में स्पार्क मिसिंग है पर रियल लाइफ में हर दिन रोमांस से भरा नहीं हो सकता. समय के साथ चीजें सैटल होती हैं और इस में अच्छाई ही होती है, तो अगली बार जब आप यह शिकायत करें कि आप का रिश्ता बोरियत भरा हो रहा है, इस से पहले यह जान लें कि यह जरा सी बोरियत आप के रिश्ते के लिए कितनी अच्छी है.

बोरियत की जरूरत

मशहूर रिलेशनशिप एक्सपर्ट जोनाथन बैनेट ने एक बार कहा था, ‘‘रिश्ते में बोर होना नौर्मल है. कोई भी रिश्ता चाहे रोमांटिक हो या न हो, हर समय उत्साह और उत्तेजना से भरा नहीं रह सकता. बहुत बोरिंग समय में भी अपने पार्टनर को स्वीकार करना और प्यार करना रिश्ते में गहराई और ताकत बढ़ाता है.’’

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कुछ मौकों पर बहुत बोर होने के बाद भी आप दोनों एकदूसरे के साथ हों, यही दिखाता है कि आप की बौंडिंग बहुत स्ट्रौंग है और यह बोरडम आप के रिश्ते को खत्म नहीं कर सकती है. इस बोरियत में भी आप का रिश्ता मजबूत हो रहा होता है.

अगर आप ने इंटरैस्टिंग और बोरिंग टाइम एकदूसरे के साथ बिता लिया है और एकदूसरे को अब भी प्यार करते हैं तो यकीन कीजिए कि आप का रिश्ता बहुत अच्छा चल रहा है. रिश्ते को लगातार उत्तेजक बनाए रखने के प्रैशर में आप थक सकते हैं और आप तनाव में आ सकते हैं.

अगर आप रोज पार्टनर को खुश रखने का प्रैशर ले रहे हैं तो आप को तनाव हो सकता है. अगर आप को ये सब करने की जरूरत नहीं है, तो आप राहत की सांस ले सकते हैं.

यही नहीं, बोरडम सेफ्टी और सिक्युरिटी की निशानी है. हम लगभग काफी समय जीवन में सेफ और खुश रहने की कोशिश में बिताते हैं. हम कुछ रियल कंफर्टेबल रिश्ते में रहना चाहते हैं. हमें भले ही अपने रिश्ते में बोरियत लगती हो, पर सिक्युरिटी की भावना रिश्ते को मजबूत रखे रखती है, फिर कठिन परिस्थितियां भी रिश्ते को कमजोर नहीं कर पातीं.

कभी यों भी बिताएं दिन

किसी-किसी दिन कुछ ऐक्ससाइटिंग न करना भी ठीक है, बिना कुछ किए यों ही दिन बिताने में भी कभीकभी कोई हरज नहीं है, क्योंकि कुछ न करना भी कुछ है. कभीकभी सिर्फ घर में रहना, बाहर जा कर पार्टी न करना भी ठीक है. घर पर भी रहना काफी कंफर्टिंग हो सकता है. आप की सोशल ऐक्टिविटीज आप के रिश्ते को परिभाषित नहीं करती हैं. अगर आप एकदूसरे से बिना बात किए भी एकदूसरे से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं, तो आप का रिश्ता बैस्ट है.

10 में से 4 लोग यह मानते हैं कि दोनों एकदूसरे को जब ग्रांटेड लेने लगते हैं तब स्पार्क मिसिंग होने लगता है. कुछ लोग लंबे वर्किंग आवर्स, कुछ बच्चों का होना इस का कारण मानते हैं.

मिसिंग स्पार्क की क्या पहचान है, आइए जानते हैं.

– आप सैक्स बहुत कम करते हैं.

– आप अब आई लव यू कहने की जरूरत महसूस नहीं करते.

– आप कुछ साथ में नहीं करते.

– आप डेट्स पर नहीं जाते.

– आप अलगअलग रूम में सोते हैं.

– छोटीछोटी बातों पर एकदूसरे की आलोचना करते हैं.

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– आप चीटिंग करते हैं.

– आप अब तारीफ नहीं करते.

– आप अलगअलग टाइम पर सोने जाते हैं.

– आप को पार्टनर के बजाय दोस्तों के साथ घूमना ज्यादा अच्छा लगता है.

– पार्टनर से बात करने से ज्यादा आप सोशल मीडिया पर ज्यादा टाइम बिताते हैं.

यों ताजा करें रिश्ता

अगर आप अपने रिश्ते में मिसिंग स्पार्क को वापस लाना चाहते हैं, तो कुछ ऐसा कर के देखें:

– एकदूसरे की बात सुनें.

– उन्हें बताते रहें कि आप उन्हें प्यार करते हैं.

– अकसर किस करते रहें.

– बिना किसी कारण के भी छोटेछोटे गिफ्ट देते रहें.

– बैडरूम में कुछ स्पाइसी चीजें करें.

– कैंडल लाइट डिनर पर जाएं.

– बजट साथ दे तो रोमांटिक जगह घूमने जाएं.

– अपने फोन से दूरी बनाएं.

– साथसाथ कुछ नई ऐक्सरसाइज करनी शुरू करें.

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– कुछ समय के लिए सोशल मीडिया से दूरी बना लें.

– कुछ टाइम के लिए दूरी बनाएं, जिस से आप एकदूसरे की कंपनी फिर और ऐंजौय करेंगे.

ऐसे कराएं पति से काम

‘‘अरे सुनो मुझे चाय के साथ के लिए टोस्ट, बिस्कुट कुछ भी नहीं मिल रहा है. कहां रखे हैं?’’

‘‘वहीं गैस प्लेटफार्म के ऊपर वाली

दराज में देखो,’’ अनीशा ने पति अमन को फोन पर बताया.

15 मिनट बाद फिर अमन का फोन आया, ‘‘यार दूध लेने के लिए भगौना कहां है?’’

अपने मातापिता की इकलौती संतान अनीशा आज सुबह ही अपने मायके मुंबई पहुंची थी और सुबह 10 बजे तक उस के पति का 5-6 बार घर की विभिन्न वस्तुओं का पता करने के लिए फोन आ चुका है.

सुगंधा को अपनी कैंसर से ग्रस्त मौसी को देखने के लिए 2 दिन के लिए अहमदाबाद जाना था. जाने से पहले वह फ्रिज में सलाद काट कर नाश्ते के डब्बे टेबल पर रख कर, 2 दिन के लिए अपने पति के पहनने के कपड़े तक अलमारी में से निकाल कर बैड पर रख कर गई ताकि पति को उस की गैरमौजूदगी में कोई परेशानी न हो.

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अकसर इसी प्रकार महिलाएं अपने पति के सारे कामों को हाथोंहाथ कर के उन्हें इतना निष्क्रिय और अपाहिज सा बना देती हैं कि वे घर के छोटेमोटे कार्यों के अलावा अपने व्यक्तिगत जरूरत के कार्यों तक को करना भूल जाते हैं.

एक निजी कालेज में साइकोलौजी की प्रोफैसर और काउंसलर कीर्ति वर्मा कहती हैं, ‘‘विवाह के समय पतिपत्नी एकदूसरे के अगाध प्रेम रस में डूबे रहते हैं. ऐसे में लड़की अपने पति के सभी कार्यों को करने में अपार प्रेम अनुभव करती है परंतु यहीं से एक अनुचित परंपरा का प्रारंभ हो जाता है. पति इसे पत्नी का कर्तव्य समझने लगता है. कुछ समय बाद जब परिवार बड़ा हो जाता है तो समयाभाव के कारण पत्नी पति के उन्हीं कार्यों को करने में स्वयं को असमर्थ पाती है, तब पति को लगता है कि पत्नी उस की ओर ध्यान नहीं दे रही है और इस की परिणति पतिपत्नी के मनमुटाव, यहां तक कि पति के  भटकन यानी विवाहेतर संबंध बनने और कई बार तो परिवार के टूटने तक के रूप में होती है.’’

वास्तव में पति के साथ इस प्रकार का व्यवहार कर के महिलाएं अपने पति को तो अपाहिज सा बना ही देती हैं, स्वयं के पैरों पर भी कुल्हाड़ी मार लेती हैं.

आप चाहे कामकाजी हों या होममेकर जिस प्रकार आप अपने बच्चों को आवश्यक गृहकार्यों में दक्ष बनाती हैं उसी प्रकार पति को भी बनाएं ताकि आप की गैरमौजूदगी में उन्हें किसी का मुंह न ताकना पड़े, वे अपना और बच्चों का कार्य सुगमता से कर सकें.

पति को बनाएं अपना सहयोगी

तैयार होने के लिए अपने कपड़े स्वयं निकालना या अपने जूते साफ करना, औफिस बैग में से लंच बौक्स निकाल कर सिंक में रखना जैसे अपने कार्य स्वयं ही करने की आदत डालें. इस से आप का काम का भार भी कम होगा, साथ ही उन्हें काम करने की आदत भी होगी.

अणिमा के यहां पारिवारिक मित्र डिनर पर आने वाले थे. उस के पति और बच्चों ने डाइनिंग टेबल तैयार कर दी. वह कहती है कि उस ने बच्चों और पति में प्रारंभ से ही मिलजुल कर कार्य करने की आदत डाली है. पति और बच्चों की मदद के कारण ही वे अपना पूरा ध्यान किचन पर केंद्रित कर पाती हैं.

किचन के कार्य सिखाएं

चाय, कौफी, दालचावल, पुलाव आदि बनाना उन्हें अवश्य सिखाएं. यद्यपि पहले की अपेक्षा आज सामाजिक ढांचे में काफी बदलाव आया है और लड़के भी किचन के कार्यों में रुचि लेने लगे हैं, परंतु फिर भी कई परिवार ऐसे हैं जहां लड़कों से काम नहीं करवाया जाता है और जब यही लड़के पति बनते हैं तो अपनी पत्नियों के लिए सिरदर्द बन जाते हैं. ऐसे पति यदि आप के भी जीवनसाथी हैं तो उन्हें किचन के छोटेमोटे कार्यों में कुशल बनाना आप की ही जिम्मेदारी है.

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बच्चों की देखभाल करना

यदि आप कामकाजी हैं तो बच्चे की पढ़ाई, होमवर्क आदि मिल कर कराएं और हाउसवाइफ हैं तो अवकाश के दिनों में बच्चे की जिम्मेदारी पति को सौंपें. इस से जहां आप को थोड़ा सा सुकून मिलेगा, वहीं बच्चे का अपने पिता से भावनात्मक लगाव भी मजबूत होगा और पति को भी बच्चे को संभालने की आदत रहेगी.

बागबानी में लें मदद

सीमा अपने बीमार पिता को देखने के लिए 4 दिनों के लिए घर से गई. लौटी तो देखा भरी गरमी के कारण उस के सारे पौधे झुलस गए हैं.

उस ने अपने पति सोमेश से कहा, ‘‘तुम ने पौधों को पानी ही नहीं दिया, देखो सारे कैसे झुलस गए हैं.’’

‘‘मुझे क्या पता था इन्हें पानी देना है. तुम ने तो कहा ही नहीं था. अगर तुम कह जातीं तो मैं दे देता,’’ सोमेश बोला.

सही भी था, सीमा ने अपने पति से कभी गार्डन में मदद ली ही नहीं थी, इसलिए सोमेश को समझ ही नहीं आया कि पौधों को पानी की आवश्यकता है. पति की व्यस्तता के चलते भले ही आप उन से रोज काम न करवाएं परंतु अवकाश के दिन गार्डन में मदद अवश्य लें ताकि उन्हें भी पौधों की जानकारी रहे और आप की गैरमौजूदगी में पौधे आईसीयू में पहुंचने से बचे रहें.

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मार्केटिंग करवाएं

अक्षता चाहे कितनी भी थकी हो, कैसी भी स्थिति हो, सब्जी लाने का कार्य उसे ही करना होता है. वह कहती है कि आर्यन को सब्जी लेना ही नहीं आता. जब भी लाता है बासी और उलटीसीधी सब्जी ले आता है. इस प्रकार के पतियों को आप अपने साथ ले जाएं उन्हें ताजा और बासी का फर्क बताएं और समयसमय पर उन से मंगवाएं भी ताकि आवश्यकता पड़ने पर वे आप की मदद कर सकें. इस के अतिरिक्त उन से छोटामोटा किराने का सामान आदि भी मंगवाती रहें.

पत्नियों की इन 7 आदतों से चिढ़ते हैं पति

पति और पत्नी का रिश्ता भी अनोखा है. यह कुछ खट्टा है, तो कुछ मीठा. पति पत्नी के बिना रह भी नहीं सकते हैं, तो उन की कई आदतों से पतियों को चिढ़न भी होती है. कभीकभी पति झगड़े के दौरान अपनी नापसंद का खुलासा कर देते हैं, तो कभी कलह के डर से चुप रह कर मन ही मन कुढ़ते रहते हैं. आइए, जानते हैं कि पत्नियों की वे कौन सी आदतें हैं, जो पतियों को पसंद नहीं होतीं और उन से वे परेशान हो उठते हैं:

1. दूसरी महिलाओं की प्रशंसा से ईर्ष्या

अकसर दूसरी किसी महिला की प्रशंसा अपने पति के मुंह से सुनते ही पत्नी के चेहरे का रंग बदल जाता है. उस के मन में ईर्ष्या उत्पन्न हो जाती है. मन में शक का बीज पनप जाता है. उसे लगने लगता है कि अवश्य ही पति उस महिला की ओर आकर्षित हो रहा है. कुछ महिलाएं भावुक हो कर पति को खरीखोटी भी सुनाने लगती हैं या फिर मुंह फुला कर बैठ जाती हैं. बहुत सी तो आंखों से आंसू बहाते हुए यह भी कहने लगती हैं कि तुम्हें तो मेरी कोई चीज अच्छी ही नहीं लगती. सारा दिन उसी के गुण गाते रहते हो. उसी के पास चले जाओ. पतियों को पत्नियों की यह आदत बिलकुल अच्छी नहीं लगती.

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2. सैक्स को हथियार बनाना

सैक्स पति और पत्नी दोनों की नैसर्गिक जरूरत होती है. लेकिन पत्नियां कई बार इस प्राकृतिक जरूरत को अपना हथियार बना लेती हैं. कोई भी ऐसी बात मनवानी हो या हलकी सी भी झड़प हो जाए तो वे पति को सब से पहले सैक्स से ही वंचित करती हैं. एक ही बिस्तर पर होने के बावजूद मुंह विपरीत दिशा में कर के सो जाती हैं. पत्नियों की यह आदत पतियों को नागवार लगती हैं.

3. बात घुमाफिरा कर कहना

कई पत्नियां किसी भी बात को साफसाफ नहीं कहतीं. हमेशा घुमाफिरा कर संकेत देने की कोशिश करती हैं. ऐसे में जब पति उन का मकसद नहीं समझ पाते, तो वे ताने कसने लगती हैं. फिर भी पति इशारे को समझ नहीं पाते तो वे चिड़चिड़ी हो कर गलत व्यवहार करने लगती हैं. अत: पति चाहते हैं कि पत्नी जो भी कहना चाहे साफसाफ कहे.

4. पर्सनल चीजों से छेड़छाड़

अपनत्व, एकाधिकार जताने के लिए जब पत्नियां औफिस बैग, पैंटशर्ट की जेब, पर्स, मोबाइल, लैपटौप जैसी चीजों से छेड़छाड़ करती हैं या उन की स्कैनिंग करती हैं, तो इस से पतियों को मन ही मन बहुत कोफ्त होती है. ज्यादा परेशानी तो तब महसूस होती है जब वे किसी महिला फिर चाहे वह कोई क्लाइंट ही क्यों न हो, का फोन एसएमएस, फोटो या कोई कागजात देख कर उस के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करने लगती हैं. पर्स में ज्यादा रुपए देख कर पूछने लगती हैं कि ये कहां से आए, किस ने दिए आदि.

5. लगातार बोलते रहना

कई पत्नियां एक बार बोलना शुरू हो जाए, तो नौनस्टौप बोलती रहती हैं. पता नहीं उन के पास इतनी बातों का स्टौक कहां से आता है. सहेली की शादी में जा कर आएं, डाक्टर को दिखा कर आएं, पड़ोसी के घर में नया टीवी आए, विषय कोई भी हो, वे उस की रनिंग कमैंट्री शुरू कर देती हैं. 1-1 मिनट का ब्योरा पूरे विस्तार के साथ देने लगती हैं. जबकि पति चाहते हैं कि बातचीत सीमित हो. टू द पौइंट हो.

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6. हर वक्त टोकाटाकी

कुछ पत्नियां हर वक्त टोकाटाकी करती रहती हैं. मानों उन्हें अपने पति की हर गतिविधि या आदत पर एतराज होता है. जैसे आज यह ड्रैस क्यों पहनी? आज जल्दी क्यों जा रहे हो? आज देर से क्यों आए? इतने फोन क्यों करते हो? 2-2 मोबाइल क्यों रखते हो? ऐसे सवालों की बहुत लंबी लिस्ट है, जिन्हें पूछपूछ कर पत्नियां पतियों को पका देती हैं.

7. शौपिंग की लत

शौपिंग करना पत्नियों की बड़ी कमजोरी है. कई बार तो वे टाइमपास या मन बहलाने के लिए शौपिंग करती हैं. उन की शौपिंग बड़ी बोरिंग होती है. 1-1 चीज को ध्यान से देखना और उस की कीमत पूछना, कपड़ों को अपने शरीर से लगालगा कर देखना, बिना जरूरत खानेपीने की चीजों को खरीदना, डिस्काउंट के लालच में अधिक मात्रा में खरीद लेना और फिर फेंक देना आदि सचमुच इरिटेटिंग आदतें हैं. पति इन से बहुत ज्यादा चिढ़ते हैं.

कुछ खामोशियों को खामोश ही रहने दो…

एक औफिस में दो लोग वैभव और दिव्या काम करते थे. काम तो कई लोग करते थे लेकिन मैं उन दो लोगों की बात कर रहीं हूं जो ऑफिस में साथ काम करते-करते अच्छे दोस्त बन गए, लेकिन दिव्या को पता ही नहीं चला कि वैभव उसे पसंद करने लगा था. वैभव उसे रोज़ फोन करता था…उससे प्यार-प्यारी बातें करता था लेकिन उसकी कभी कहने की हिम्मत नहीं हुई कि वो दिव्या को पसंद करता है. वो कहते हैं न कि कुछ खामोशियां…अगर खामोशियां ही बनकर रहें तो रिश्ता बना रहता है…शायद वैभव भी ऐसा ही सोचता था.

वैभव को दिव्या से बात करना बहुत पसंद था.उसे अच्छा लगता था खुशी होती थी जब वो दिव्या से बात करता था हर बार वो कुछ कहने की कोशिश करता था लेकिन वही खामोशी सामाने आ जाती थी. औफिस में मिलना –जुलना तो लगा ही रहता था लेकिन फोन किए बिना भी रह नहीं पाता था.एक दिन की बात है वैभव ने दिव्या को फोन किया और बोला कि मैं तुम्हें याद कर रहा हूं…बहुत मिस कर रहा हूं तब दिव्या को थोड़ा अटपटा सा लगा और उसने सवाल कर लिया कि आप मुझे क्यों याद कर रहें हैं? वैभव ने तुरन्त पलटकर जवाब दिया कि काश तुम ये कह देती कि अरे वैभव आज ही तो मिले थे हम औफिस में फिर क्यों याद आ रही है तो ज्यादा अच्छा लगता. दिव्या थोड़ा घबराई उसके हांथ-पांव ठंडे हो रहे थें. उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं.उसे ये तो समझ आ चुका था कि कुछ तो है वैभव के दिल में… वो अबतक ये समझ चुकी थी कि वैभव क्या चाहता है और उसके दिल में उसके लिए क्या है, लेकिन फिर वही बात आड़े आती है कि कुछ खामोशियों को खामोश ही रहने दें.

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वैभव ने एक दिन दिव्या को फोन करके कहा कि तुम सफेद शर्ट और ट्राउज़र पहन कर आना दिव्या चाहती तो मना कर सकती थी लेकिन शायद वो खुद भी उसकी तरफ अट्रैक्ट हो रही थी और उसने वैभव का कहना मान लिया. वो वही कपड़ा पहन कर गई जिसमें वैभव ने उसे बुलाया था. उसी दिन की बात है…रात के करीब साढ़े बारह बज रहे थे… दोनों की बात हो रही थी और बात ही बात में वैभव ने कुछ कहा जिसपर दिव्या ने पूछा की आप इनता मेरे बारे में क्यों सोचते हो? वैभव ने कहा कि क्यूं तूम मुझे सफेद कपड़ों में अच्छी लगती हो? क्यूं मैं तुमसे आधी रात को भी मिलने के लिए तैयार रहता हूं? तुम जो भी सोचती हो मैं उसे पूरा करना चाहता हूं क्यूं ? क्यूं तुमसे मिलना मुझे अच्छा लगता है? और क्यूं तुम्हारी याद आती है?शायद इसका जवाब मैं तुम्हें दे सकता हूं लेकिन मैं खामोश रहना चाहता हूं……

दिव्या अबतक सब कुछ समझ चुकी थी और उसने धीमी सी आवाज में बस इतना ही कहा कि कुछ खामोशियों को खामोश ही रहने दों…..वो खामोशियां अच्छी होती हैं…. वैभव आज भी बात करता है, दिव्या भी उसे शायद चाहने लगी थी लेकिन इन सबके बीच एक मोड़ ऐसा था जिसपर दिव्या दोराह में खड़ी थी और जिंदगी में उसके कश्मकश थी..जानते हैं क्यूं? क्योंकि वो पहले से ही एक रिलेशनशिप में थी शायद इसलिए ही उसने कहा था कि कुछ खामोशियों को खामोश ही रहने दों…..अब ये रिश्ता गुमनाम ही रहेगा या आगे कुछ होगा ये तो वक्त ही बताएगा….

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जब प्यार और शादी बन जाए तनाव का कारण

जी हां ऐसा अक्सर होता है जब इंसान प्यार किसी और से और शादी किसी दूसरे व्यक्ति से करता है… इसके कई कारण होते हैं जैसे परिवार की सहमति ना मिलना या लड़के के माता-पिता का राजी ना होना या फिर जाति अलग-अलग होना भी परिवार को रास नहीं आता.

कास्ट एक ना होना तो सबसे बड़ी वजह होती है. आपने एक फिल्म देखी होगी ‘हम दिल दे चुके सनम’ में ऐश्वर्या राय की शादी अजय देवगन से होती है जबकि वो व्यार सलमान खान से करती है. भले ही वो लाइफ में बाद में आगे बढ़ती है लेकिन उससे पहले काफी समय तक वो एक मानसिक तनाव से गुजरती है. भले ही वो एक फिल्म थी लेकिन जो सच दिखाया गया असल जिंदगी में भी वैसा ही होता है.

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खासकर अगर एस लड़की की बात की जाए तो उसकी मानसिक स्थिति तो इसलिए भी ठीक नहीं होती क्योंकि वो जिससे शादी करती है वो उसके लिए एकदम नया होता है.वो जिससे प्यार करती थी उसे भूलना या उसकी यादों को भूलाना इतना आसान नहीं होता. पति जब-जब उसके करीब आने की कोशिश करेगा तब-तब उसे अपने पहले प्यार की याद आएगी जिससे वो बेइंतहां मोहब्बत करती थी.

ऐसे में वो पति से दूर-दूर रहती है,जिसके कारण उसका पति भी सोचने पर मजबूर हो जाएगा कि आखिर बात क्या है? उस वक्त पति को भी मानसिक तनाव की स्थिति से गुजरना पड़ता है और उसके अंदर चिड़चिड़ापन सा आ जाता है. इधर पत्नी भी अपने पूरे तन,मन और धन से पति को नहीं अपना पाती उसकी भी मानसिक स्थिति ठीक नहीं रहती साथ ही उसे भी चिढ़न होने लगती है.

बात-बात पर पति से झगड़े होने लगते हैं,उनमें तालमेल नहीं बैठ पाता कभी-कभी तो स्थिति इस कदर बिगड़ जाती है कि तलाक की नौबत आ जाती है और फिर क्या रिश्ता ही खत्म हो जाता है…..लेकिन हर रिश्ते में ऐसा नहीं होता है कभी-कभी लड़के और लड़की की समझदारी काम आती है दोनों एक-दूसरे से अपनी पिछली जिंदगी के बारे में बात करके रिश्ते को आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं और पति-पत्नी का रिश्ता सफल भी हो जाता है.

लड़की ने शादी से पहले उस लड़के के साथ बहुत से सपने देखे होते हैं कि जिंदगी में आगे हम क्या करेंगे कहां घूमने जाएंगे ऐसी बहुत सी चीजें होती हैं और जब किसी और के साथ वैवाहिक जीवन में बंध जाती हैं तो ये सारी बातें उसे याद आती हैं और तनाव बढ़ता है जिसके कारण वो और ज्यादा चिड़चिड़ी होने लगती है,क्योंकि उसे उसकी मनचाही चीजें नहीं मिलती. ऐसी स्थिति में वैवाहिक जीवन भी सुखमय नहीं होता कभी और फिर अगर किसी तरह ये रिश्ता आगे बढ़ भी जाए तो इसका परिवार और बच्चे दोनों पर बहुत बुरा असर पड़ता है. ऐसी बहुत सी चीजें होती हैं जो हरपल उसे अपने पहले प्यार की याद दिलाती हैं और अंदर ही अंदर उसे घुटन होने लगती है.

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मानसिक तनाव से रिश्ता तो खत्म होता ही है साथ ही उसकी जिंदगी भी तबाह सी हो जाती है और उसे लगता है कि जीवन में अब कुछ भी नहीं बचा..लेकिन कुछ उपाय करके आप अपनी जिंदगी को अच्छा और उस शादीशुदा रिश्ते को सफल बना सकती हैं.

1.होने वाले पति से अपनी पिछली जिंदगी के बारे में बताएं.

2.उसे समझने की कोशिश करें शायद वो आपको उतना ही प्यार दे पाए.

3.अपनी समस्या उससे साझा करें,उसके बारे में भी जाने इससे एक रिश्ता सफल हो सकता है.

4.पति को सबकुछ बताएं…उसे भी प्यार करने की कोशिश करें शायद वो भी आपको वो सबकुछ दे सकता है जो आपको अपने पहले प्यार से चाहिए था. ये सारे उपाय आपको मानसिक तनाव से भी उभरने में मदद करेंगे.

सीसीटीवी और प्राइवेसी  

युवाओं को प्राइवेसी की बहुत जरूरत होती है, लेकिन आधे से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे व बायोमीट्रिक सिस्टम युवाओं की प्राइवेसी को खत्म कर रहे हैं. भोपाल के एक होस्टल ने सुरक्षा के नाम पर सीसीटीवी लगाने शुरू किए हैं. जाहिर है कि वहां कौन कब आ रहा है, किस के साथ आ रहा है, यह अब पकड़ में रहेगा. कहने को चाहे यह अच्छा लगे कि सब सुरक्षित हैं पर यह इलैक्ट्रौनिक जेल है.

युवाओं को बहुत से काम गुपचुप करने होते ही हैं चाहे पढ़ाई का मामला हो, प्रेम का हो या पार्टियों का. युवाओं को नए प्रयोग करने की छूट होनी चाहिए, हुड़दंग मचाने की छूट होनी चाहिए. युवाओं पर रैजिमैंटेड रिजीम थोप कर आप उन से कुछ नया करने की उम्मीद नहीं कर सकते. हमेशा से युवा शैतानी भी करते रहे हैं और नएनए प्रयोग भी.

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स्कूलों, कालेजों में छात्रों को अनुशासन में रखने के नाम पर आजकल क्लासरूमों में, कौरीडोरों, खेल के मैदानों व चारदीवारी पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जा रहे हैं, जो पलपल को रिकौर्ड कर रहे हैं. इस से चाहे अपराध कम हो रहे हों पर युवाओं की आजादी भी कम हो रही है. वैसे ही, सैल्फी और वीडियो आजकल फटाफट बनाए जाने लगे हैं और कब वे वायरल कर दिए जाएं पता नहीं. सो, अपराधी प्रवृत्ति के लोग सीसीटीवी की फुटेज खंगाल कर उस की रिकौर्डिंग को बेचने का धंधा भी कर सकते हैं.

जब हर तरफ कोनोंकोनों पर सीसीटीवी कैमरे लगे होंगे तो हर कदम किसी न किसी कैमरे में कैद हो जाएगा और युवाओं को गुपचुप प्यार करने का एक भी मौका न मिलेगा. आज की तकनीक, असल में, अब आम आदमी पर भारी पड़ने लगी है. आप का मोबाइल हर समय औन रहता है और स्क्रीन बंद हो तो भी रिकौर्डिंग चालू रहती है.

आप की हर हरकत आज विशाल डेटा सैंटरों में बंद हो रही है. सीसीटीवी अगर सिमकार्ड से जुड़े हैं तो वह फुटेज न जाने कहां जमा हो रही है. फेस रिकौग्नीशन टैक्निक और आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस के सहारे आप का भूत और वर्तमान एक जगह जमा किया जा सकता है.

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रमा और रमेश का प्रेमप्रसंग कैसे परवान चढ़ रहा है, यह एकसाथ जमा करना अब कंप्यूटरों के लिए मुश्किल नहीं है. युवाओं को अब इस ओवर प्रोटैक्शन का विरोध करना चाहिए. टैक्निक के दीवानों को समझना चाहिए कि मोबाइल और सीसीटीवी के तारबेतार न जाने कहांकहां से जुड़े हैं और वे खुद अपनेआप को इलैक्ट्रौनिक जंजीरों से बांध रहे हैं. इस से आजादी पाना एक बड़ा मुद्दा है इस का मुकाबला करना जरूरी है.

देवरानी-जेठानी के दिलचस्प रिश्ते….

आज हम बात करेंगे उस रिश्ते की जो काफी नाजुक होता है. ऐसा रिश्ता जिसमें समझदारी होना बहुत आवश्यक है…वो रिश्ता है देवरानी और जेठानी का….ये रिश्ता बिल्कुल वैसा ही है जैसा सब्जी में नमक और मिर्च का होता है. इस रिश्ते को निभाना उतना भी आसान नहीं है क्योंकि जब दो अलग-अलग परिवार की लड़की एक ही जगह पर आकर बहू बनती है और उनके बीच देवरानी और जेठानी का रिश्ता बनता है तो अलग-अलग महौल की इन बहुओं को एक साथ ,सामंजस्य बिठाना मुश्किल होता है.

आज लगभग हर धारावाहिकों में इन रिश्तों में मिर्च-मसाला लगाया जाता है और दर्शक यही देखकर काफी इन्जौय भी करते हैं.जेठानी और देवरानी एक दूसरे के खिलाफ साजिशें रचती नजर आती हैं तो कभी एक-दूसरे को नीचा दिखाने में लगी रहती हैं. कभी दोनों में गहनों को लेकर भेदभाव होता है ,तो कभी घर की जिम्मेदारी को लेकर और सबसे ज्यादा तो ये देखकर जलन होती है कि अरे उसके पास मुझसे अच्छी साड़ी कैसे……हालांकि ये तो हुई धारावाहिकों की बात. असल जिंदगी ऐसी नहीं है लेकिन काफी हद तक इससे मिलती है.

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जब एक लड़की शादी करके नए घर में जाती है तो काफी घबराई हुई होती है कि पता नहीं कैसे वो सारे रिश्ते निभाएगी और पता नहीं कैसा परिवार मिलेगा. पता नहीं सास कैसी होंगी,और सबसे ज्यादा तो इस बात से घबराई हुई होतीं हैं कि पता नहीं ननद और जेठानी कैसी होंगी और जेठानी भी सोचती है की देवरानी पता नहीं कैसी होगी?ये सारे सवाल का जवाब तब मिलता है जब वो लड़की उस घर में कुछ दिन बिता लेती है. अगर देवरानी और जेठानी शुरू से ही अपने रिश्ते को अच्छ से निभाती हैं, एक-दूसरे के साथ समन्वय और सामंजस्य बिठा कर चलती हैं तो रिश्ते में खटास नहीं होती है बल्कि मजबूत रिश्ता बनता है.

कभी-कभी जब देवरानी वर्किंग वुमन होती है और जेठानी हाउसवाइफ होती है तो जेठानी के मन में जलन की भावना पैदा होती है कि वो तो घर के काम नहीं करती मैं ही सब करती हूं. दिनभर बाहर मस्ती में रहती है और घर वालों के ताने सहूं,उनके काम करूं.इस तरह की भावना उसके मन में पैदा होती है और तो और वो सास से देवरानी की चुगली भी करती है साथ ही देवरानी के खिलाफ सास के कान भरती है. देवर और भाभी का रिश्ता थोड़ा हंसी-मजाक वाला होता है लेकिन कभी-कभी देवरानी इसको शक के घेरे में खड़ा करके उस रिश्ते को खराब कर देती है.

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आइए आपको बताते हैं कि कैसे इस देवरानी और जेठानी के रिश्ते को अच्छा बना सकते हैं……

  1. देवरानी को छोटी बहन की तरह मानना चाहिए,इससे कभी भी रिश्ते में खटास पैदा नहीं होगी और देवरानी भी जेठानी की इज्जत करेगी.
  2. कभी-कभी भी मन में जलन की भावना पैदा नहीं करनी चाहिए क्योंकि कुछ चीजें अगर देवरानी के पास अच्छी हैं तो कुछ जेठानी के पास. जो है उसमें खुश रहना चाहिए.
  3. सास से कभी भी एक-दूसरे की बुराई नहीं करनी चाहिए….अपने मतभेद आपस में ही मिटा लो तो ज्यादा अच्छा होगा.
  4. काम हमेशा मिल बांट कर करना चाहिए.अगर देवरानी या जेठानी में से कोई भी वर्किंग वुमन है तो एक-दूसरे का सर्पोट करना चाहिए.
  5. आपस में कभी मेरा तुम्हारा की भावना नहीं आने देना जो है सब पर सब का अधिकार होना. मिलजुल कर रहना.

ये सभी तरीके एक देवरानी और जेठानी के रिश्ते को अच्छा बनाते हैं….

Edited by Rosy

सास करती हैं बहुओं में भेदभाव…..

शायद ये सुन कर आपको हैरानी हो और थोड़ा अजीब लगे लेकिन आज भी समाज में ससुराल में बहुओं के साथ भेदभाव होता है.इसमें कोई दोराय नहीं कि सास और बहू के बीच में नोक-झोंक न हो. कहीं पढ़ा था मैंने कि बेटी अगर चीनी है जिसके बिना जिंदगी में कोई मिठास नहीं,तो बहू नमक है जिसके बिना जीवन में कोई स्वाद नहीं. अक्सर सास और बहू के रिश्तों में खटास सी पैदा हो जाती है….इसका एक सबसे बड़ा कारण हैं सासों का यह मानना कि बहू तो बहू होती है और बेटी…बेटी होती है..हालांकि कुछ प्रतिशत ऐसी सासें हैं जो बहू को केवल बेटी का दर्जा देते ही नहीं हैं बल्कि उसको बेटी मानती  भी हैं. सास बहू के रिश्तों में और भेदभाव के कुछ कारण हैं…..

1. बहू को सिर्फ एक बहू के नजरिये से देखना

सास का ये मानना की बहू कभी बेटी नहीं बन सकती है. बहू को सिर्फ एक बहू के नजरिये से देखना. कभी उसके साथ बेटी जैसा बर्ताव न करना. बहुएं घर का सारा काम करती हैं साथ अपने पति के जरूरतों का भी खयाल रखती हैं. ऐसे में ये जरूरी है कि सास अपने बहू को बेटी के समान रखें ताकि बहू भी उतनी ही इज्जत दें सास को जितनी वो अपनी मां को देती हैं.

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2. दूसरा भेदभाव का सबसे बड़ा कारण है दहेज.. 

दूसरा भेदभाव का सबसे बड़ा कारण है दहेज.. अगर कई बहुएं होती हैं तो अक्सर सास उस बहू को ज्यादा तवज्जों देती हैं जो ज्यादा दहेज लाती है और अपने सास की चकचागिरी करती हैं. सास को लगता है कि उसके लिए ज्यादा दहेज वाली बहू ही अच्छी होती है. इसलिए बाकी बहुओं को ज्यादा तवज्जों न देकर भेदभाव करती हैं.

3. अक्सर सासें ये सोचती हैं कि उनका बेटा कितना बदल गया है

अक्सर सासें ये सोचती हैं कि उनका बेटा कितना बदल गया है. शादी के बाद सिर्फ अपनी पत्नी पर ध्यान देता है और उसी के बारे में सोचता है मेरी तो सुनता ही नहीं है. एक ये सोच भी सास को भेदभाव की दहलीज तक ला ही देता है जब सास बेटी और बहू में भेदभाव करती हैं.

4.अगर बहू वर्किंग वुमन है तो 

अगर बहू वर्किंग वुमन है तो वो शादी के बाद भी अपना काम जारी रखती है जिसके चलते वो घर के कामों में ज्यादा योगदान नहीं दे पाती तो बाकी की बहुओं को सास से उसकी चुगली करने और कान भरने का मौका मिल जाता है. आजकल सास,बहु और सस्पेंस जैसी कहानी केवल धारावाहिकों में ही नहीं बल्कि असल जिंदगी में भी दिखती है.

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हम एक उदाहरण से ये समझ सकते हैं कि इंदिरा गांधी को  पूरब और पश्चिम का मिश्रण बहुत पसंद था इसलिए उन्होंने अपने एक बहू को मानेकशौ से कार्डन ब्लू बनाना सीखने के लिए भेजा तो दूसरी बहू सोनिया गांधी को हिंदुस्तानी सीखने के लिए भेजा.लेकिन कहा जाता है कि इंदिरा गांधी मेनका से ज्यादा सोनिया गांधी को चाहती थी. मतलब उस वक्त भी भेदभाव था और आज तो है ही. अगर बहू सेवा न करे तो बूरी बन जाती है सास के नजरों में भले ही घर के सारे काम करती हो और सास को आराम देती हो,  लेकिन आज समाज को आइना देखने की जरूरत है. सासों को बदलने की जरूरत है…जब तक वो अपनी बहू को बेटी नहीं मानेंगी और बाकी बहुओं से तुलना करना बंद नहीं करेंगी तब तक उनको भी वो प्यार और अपनापन नहीं मिल पाएगा जो एक बहू से मिलना चाहिए…क्योंकि वक्त है बदलाव का….

Edited by Rosy

Child Abuse: गंदे अंकल से ऐसे बचाएं बच्चे को

हाल ही में दिल्ली की एक घटना पर जरा गौर करें. शाहदरा के विवेक विहार इलाके में 9 साल की बच्ची से किराएदार छेड़छाड़ करता था. मासूम नासमझ बच्ची को पता ही नहीं था कि उस के साथ क्या हो रहा है. उसे बुरा लगता, मगर कुछ समझ नहीं पाती. एक दिन जब टीचर ने क्लास में गुड टच औैर बैड टच के बारे में विस्तार से बताया तो बच्ची को बात समझ में आई और फिर उस ने तुरंत अपने साथ हुई घटना की जानकारी दी. उस ने बताया कि उन के घर में किराए पर रहने वाले अंकल उसे इधरउधर छूते हैं जो उसे अच्छा नहीं लगता.

बात पुलिस तक गई. पुलिस ने बच्ची के बयान पर मामला दर्ज कर आरोपी किराएदार को गिरफ्तार कर लिया. इस तरह एक बड़ा हादसा होने से बच गया. ईस्ट दिल्ली के स्कूलों में अगस्त, 2018 से ले कर जनवरी, 2019 तक रेप और मौलेस्टेशन के 209 मामले सामने आए.

‘राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो’ की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध के दर्ज मामलों में 193% की वृद्धि हुई है. इन की संख्या 2012 में 33,353 से बढ़ कर 2016 में 98,344 हो गई. बच्चों के विरुद्ध होने वाले कुल 98,344 आपराधिक मामलों में अपहरण के 48,582 और बलात्कार के 18,862 मामले पाए गए.

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2016 में बलात्कार की कुल 36,657 घटनाएं हुईं, जिन में से 16,000 रेप माइनर के साथ हुआ. बच्चों के साथ हुए 2,17,184 आपराधिक मामले ट्रायल पर रहे तो वहीं बच्चों के विरुद्ध हुए क्राइम के लिए केस पैंडेंसी रेट 89.5% रहा.

बच्चों के साथ यौन शोषण की घटनाएं घरबाहर, स्कूल, पासपड़ोस कहीं भी हो सकती हैं. कई बच्चे ऐसे होते हैं जो यौन शोषण के बाद शर्म या पिटाई के डर से किसी को कुछ नहीं बताते. ज्यादातर मामलों में शोषण करने वाला शख्स वह होता है जिस पर बच्चे के घर वाले पूरा विश्वास करते हैं. करीब 30% अपराधी बच्चे के संबंधी होते हैं और 60% पारिवारिक दोस्त, बेबीसिटर, टीचर या पड़ोसी होते हैं.

भारत सरकार द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार बच्चों में यौन दुर्व्यवहार मुख्य रूप से 5 और 12 साल की उम्र में होता है. तब वे अपने दर्द को बयां करने में सक्षम नहीं होते हैं, क्योंकि इस उम्र में उन में प्यार और शोषण के बीच अंतर करने की समझ नहीं होती है. इसी वजह से बच्चों के मामलों में अधिकांश अपराधों का पता ही नहीं चल पाता और न ही दोष सिद्ध हो पाता है, जिस से अपराधियों का मनोबल बढ़ता जाता है.

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इस तरह मासूम बच्चे को बचाए यौन शोषण से…

बात करें: बचपन से ही बच्चों को इस संदर्भ में जागरूक करना और सिखाना जरूरी है कि इस तरह की स्थिति आने पर अपनी सुरक्षा कैसे करें. बच्चों के आगे बात गोलमोल करते हुए उन के निजी अंगों के लिए कोई निकनेम देने के बजाय सही शब्दों का इस्तेमाल करें. उन्हें अपने शरीर के बारे में बातें करने को बढ़ावा दें. ऐसा कर के अभिभावक बच्चों के मन से झिझक और शर्म दूर कर उन के साथ ज्यादा दोस्ताना माहौल में बात कर पाएंगे.

बौडी प्राइवेसी के बारे में बताएं: बच्चों को समझाएं कि अपने शरीर पर सिर्फ उन का अधिकार है और किसी को भी उन के शरीर को छूने का अधिकार नहीं है. उन्हें बौडी प्राइवेसी के बारे में बताएं. उन्हें समझाएं कि शरीर के कुछ हिस्से प्राइवेट यानी निजी होते हैं. इन निजी अंगों को मातापिता के सिवा किसी और को देखने या छूने का हक नहीं होता. डाक्टर भी उन्हें तभी देख सकते हैं जब बच्चे के साथ कोई परिवार का व्यक्ति मौजूद हो.

बच्चों को शुरू से ही यह समझाया जाता है कि उन्हें बड़ों की बात माननी चाहिए. मगर उन्हें यह बताना भी न भूलें कि कभीकभी न कहना भी जरूरी होता है ताकि कोई व्यक्ति अपनी सीमा पार करने की हिम्मत न करे यानी उन के शरीर के साथ कुछ गलत न करे.

बच्चे जब प्रीस्कूल और प्राइमरी स्कूल जाने लगें तो अभिभावकों को चाहिए कि उन्हें बताएं कि कब और किसे स्टौप कहना है, कैसे उसे उस की लिमिट समझानी है और कैसे स्वयं को सुरक्षित रखना है.

फीलिंग्स समझाएं: जब बच्चे इतने बड़े हो जाएं कि वे अपने इमोशंस को पहचानते हुए उन्हें नाम दे सकें तब उन्हें यह सिखाना शुरू कर दें कि कौन सी बातें या चीजें उन्हें अच्छा महसूस कराती हैं और कौन सी नहीं, कब उन्हें गुस्सा आता है और कब प्यार, कब कंफर्टेबल महसूस करते हैं और कब नहीं. उदाहरण के लिए अभिभावक उन्हें हग करते हैं तो उन्हें वार्म फील होता है और वे अच्छा महसूस करते हैं. मगर जब कोई उन के खिलौने छीन ले तो उन्हें बुरा महसूस होता है और गुस्सा आता है.

बच्चों को अपनी फीलिंग्स के बारे में बात करना सिखाएं ताकि समय रहते वे अपनी समस्याएं जाहिर कर पाएं और कह पाएं कि किसी एडल्ट के किसी खास व्यवहार पर उन्हें गुस्सा आता है या बुरा लगता है. इस से आप सतर्क हो सकेंगे.

गुड टच बैड टच की जानकारी: बच्चे को गुड टच और बैड टच के बारे में विस्तार से समझाएं जैसे मांबाप के अलावा किसी और के द्वारा प्राइवेट पार्ट के आसपास छूना बैड टच है. इसी तरह किसी और के द्वारा गलत तरीके से गाल, होंठ, कमर या दूसरे हिस्सों को छूने पर बुरा लगे, अच्छा महसूस न हो तो यह बैड टच है. वहीं गुड टच में किसी के छूने पर अच्छा महसूस होता है जैसे अपने परिवार का कोई सदस्य प्यार से गालों को छुए.

अपनों से भी रखें सावधान: अकसर मांबाप बच्चों को अजनबियों से सावधान रहना सिखाते हैं. मगर हकीकत में बहुत से करीबी या पड़ोसी भी बच्चे के लिए खतरा बन सकते हैं. इसलिए बच्चों को ट्रिकी या अनसेफ बिहेवियर समझाने का प्रयास करें. उदाहरण के लिए बच्चों को समझाएं कि यदि कोई बाहरी व्यक्ति (भले रिश्तेदार या पड़ोसी ही क्यों न हो) उसे अभिभावकों से कोई बात छिपाने को कहे या बिना घर वालों से पूछे कहीं चलने को कहे तो वह ट्रिकी बिहेवियर है. ऐसा व्यवहार करने वालों से वे सावधान रहें और मांबाप से इस बारे में हर बात कहें.

बातचीत का रास्ता खुला रखें: अभिभावकों को हमेशा बच्चों को बातें करने या अपने डर, चिंता और परेशानियों को शेयर करने का मौका देना चाहिए. यदि अभिभावक बच्चों द्वारा सैक्स या रिलेशनशिप से जुड़े सवाल करने पर सहजता से जवाब दे कर उन की जिज्ञासा शांत करते हैं तो बच्चे आगे चल कर अभिभावकों से कुछ भी नहीं छिपाते. यदि बच्चे अपने साथ घटी सैक्सुअल असौल्ट की घटना शेयर करते हैं तो ओवररिएक्ट करने के बजाय शांति से उन की बात सुनें और आगे क्या करना है यह तय करें.

बच्चों को विश्वास दिलाएं कि आप के पास आ कर उन्होंने बिलकुल ठीक किया है. उन्हें समझाएं कि इस सब में उन काकोई दोष नहीं और अब उन्हें कोई परेशान नहीं करेगा. आप पुलिस, काउंसलर या डाक्टर जिस की भी जरूरत हो उस की हैल्प लें. आप खुद भी इस घटना की वजह से शर्मिंदगी महसूस न करें, क्योंकि इस में न आप का दोष है और न ही बच्चों का.

कैसे पहचानें बच्चे की समस्या: यदि बच्चा अचानक कुछ बेचैन और डरा सा रहने लगे, बिस्तर पर पेशाब कर दे, कपड़े उतारने से मना करे, अकेला रहने से कतराए, बातबात पर रोने लगे तो समझिए कि मामला गड़बड़ है. ऐसे में उस की फिजिकल जांच कर देखें कि सब ठीक है या नहीं. कहीं ब्लीडिंग वगैरह तो नहीं या फिर प्राइवेट पार्ट्स में इरिटेशन तो नहीं हो रही है.

आवाज उठानी जरूरी: अध्ययनों के मुताबिक बाल शोषण के 70% मामलों में पीडि़त अपने साथ हुए अत्याचार की न तो पुलिस में रिपोर्ट करते हैं और न ही किसी और को बताते हैं. ऐसे में सही काउंसलिंग के अभाव में उन के पुन: पीडि़त होने की आशंका बहुत अधिक रहती है. जिन्होंने कभी अपने बचपन में हुए शोषण के बारे में बात नहीं की होती है उन में इतना आत्मविश्वास भी नहीं होता कि शोषण करने वाला फिर से आगे बढ़े तो उस का विरोध कर सकें.

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हाल ही में ‘राष्ट्रीय गरिमा अभियान’ के तहत 10,000 किलोमीटर की दूरी तय कर 25,000 रेप विक्टिम सर्वाइवर दिल्ली पहुंचे. यह एक ऐसा अनूठा मंच था जहां देशभर के बच्चों और महिलाओं ने 200 नीतिनिर्माताओं और 2000 वकीलों के आगे बिना किसी शर्म के यौन शोषण से जुड़े अपने अनुभव बताए और सामाजिक व्यवहार और नीतिगत सीमाओं के बीच के भारी अंतर को उजागर किया.

इस अभियान में मौजूद झांसी जिले की गीता देवी अपना दर्द बांटते हुए बताती हैं कि आज से करीब 5 साल पहले क्लास 6 में पढ़ने वाली उन की बेटी के साथ बलात्कार की घटना हुई और वह भी 4-5 बार. एक लड़का आतेजाते उसे छेड़ा करता. प्रतिरोध करने पर उस लड़की ने मेरी बेटी के साथ जबरदस्ती की. जब हम न्याय की मांग ले कर थाने पहुंचे तो पुलिस ने हमारी मदद करने के बजाय दुराचारी की सपोर्ट की. हम से पैसों की मांग की पर हमारे पास पैसे नहीं थे. ऐसे में उन्होंने हम से झूठी चार्जशीट पर साइन करा लिए और कहा कि आप की लड़की ने झूठे आरोप लगाए थे. बहुत गुहार लगाने के बावजूद फैसला हमारे पक्ष में नहीं हुआ और वह लड़का आज खुला घूम रहा है.

ऐसे में यह जरूरी है कि अभिभावकों के साथसाथ समाज और कानून भी इस दिशा में जागरूक बने और बच्चों को इस तरह के अंधेरों में घिरने से बचाए.

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