तौबा- भाग 3

अपनी बात समाप्त करने के बाद मैं सचमुच ही रोने लगी. पिछले 10 दिनों से मन में सुमित की धोखेबाजी को ले कर जो आक्रोश इकट्ठा था, वह अचानक आंसुओं के साथ बह निकला.

सुमित अपनी सफाई में कुछ कहते उस से पहले ही आंसू बहाती माधवी मेरे सामने आ खड़ी हुई. मेरे सच्चे आंसुओं के कारण शायद उसे भी दुखी व शर्मिंदा दिखने में ज्यादा अभिनय नहीं करना पड़ रहा था.

‘‘मुझ से भारी भूल हुई है, सपना. मुझे माफ कर दो. मुझे नहीं मालूम था कि अपने मनोरंजन के लिए मैं ने खेलखेल में अपनी सब से अच्छी सहेली के पति पर डाका डाला है. मैं बहुत शर्मिंदा हूं, सहेली,’’ माधवी ने बड़े भावुक अंदाज में मेरे सामने हाथ जोड़ दिए.

माधवी ने अपने अवैध प्रेम संबंध को स्वीकार कर लिया, तो सुमित के पास और झूठ बोलने की गुंजाइश नहीं रही. वे फटीफटी आंखों से कभी मेरा तो कभी माधवी का चेहरा ताकने लगे.

माधवी और मेरा शानदार अभिनय करना जारी रहा, ‘‘इस शख्स के प्रति मैं तनमन से पूरी तरह समर्पित हूं और बदले में क्या दिया इन्होंने मुझे? धोखा, मक्कारी, झूठ के अलावा कुछ नहीं. मेरा दिल करता है कि या तो आत्महत्या कर लूं… या तलाक ले लूं इस झूठे इंसान से,’’ मेरी आवाज नफरत से भर उठी.

‘‘जरा शांति से काम लो, सपना, और…’’

‘‘अपनी जबान से मेरा नाम मत लो,’’ मैं इतनी जोर से चिल्लाई कि सुमित कूद कर पीछे हट गए.

‘‘तुम खामोश रहो, सुमित. मुझे अपनी सहेली से बात करने दो,’’ जब माधवी ने भी उन्हें गुस्से से घूरा तो सुमित के आत्मविश्वास का गुब्बारा बिलकुल ही पिचक गया.

परेशान और घबराए सुमित को बिलकुल नजरअंदाज कर मैं और माधवी योजना के अनुरूप वार्त्तालाप करने लगे.

‘‘सहेली, अगर तुम आत्महत्या या तलाक की बातें करोगी, तो मैं कभी खुद को माफ नहीं कर सकूंगी. तुम्हें सुमित और मुझे दोनों को माफ करना ही होगा,’’ भावुक लहजे में माधवी ने वार्त्तालाप आगे बढ़ाया.

‘‘तुम से नहीं, बल्कि सिर्फ सुमित से शिकायत है मुझे और उन्हें माफ करने का वक्त बीत चुका है,’’ मैं ने कठोर लहजे में जवाब दिया.

‘‘ऐसा मत कह, सपना. इतना ज्यादा खफा मत हो.’’

‘‘मुझे तुम्हारी सलाह की जरूरत नहीं है. तुम्हें सुमित से बहुत सहानुभूति है, तो मैं ने इसी वक्त इन्हें तुम्हें दिया. तलाक भी जब होगा, तब होगा, पर इन्हें तुम संभालो.’’

‘‘ऐसी चुभती बातें मत कह, सपना. मैं तुम्हारी दोस्ती नहीं खोना चाहती हूं. मैं सुमित से जिंदगी भर एक शब्द भी नहीं बोलूंगी. तुम कहोगी, तो राखी बांध दूंगी सुमित को, पर मुझे अपनी नजरों में मत गिराओ.’’

‘‘माधवी, मैं भी तुम्हारी दोस्ती नहीं खोना चाहती हूं, पर…’’

‘‘पर को गोली मारो, सहेली. देखो, आगे से तुम्हें मुझ से या सुमित से कभी कोई शिकायत नहीं होगी. हम दोनों तुम से वादा करते हैं.’’

माधवी की आंखों का इशारा समझ कर सुमित फौरन मेरे पास पहुंचे और मेरा हाथ पकड़ कर घिघियाते से बोले, ‘‘सपना, प्लीज इस बार मुझे माफ कर दो. फिर कभी मैं तुम्हें शिकायत का मौका नहीं दूंगा. प्लीज, गुस्सा थूक दो.’’

‘‘सौरी, मैं तुम पर अब विश्वास नहीं कर सकती हूं,’’ मैं ने उन से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश अधूरे मन से शुरू कर दी.

‘‘प्लीज, सपना,’’ उन्होंने फिर प्रार्थना की, ‘‘नहीं, अब आप माधवी के साथ ही रहो.’’

‘‘सुमित, सपना का हाथ तब तक मत छोड़ना जब तक यह तुम्हें माफ न कर दे. तुम…तुम जमीन पर नाक रगड़ कर माफी मांगो…जल्दी,’’ सुमित को हड़बड़ाने के लिए माधवी बहुत उत्तेजित हो गई.

अपनी पत्नी के सामने कौन पति आसानी से नाक रगड़ने को तैयार होगा? मैं ने उन पर दबाव बढ़ाने को कहा, ‘‘अरे, ये कभी सुधरने वाले नहीं हैं. तुम दोनों साथ रहो या झगड़ो, पर मैं तो आज ही हमेशा के लिए अपने मायके जा रही हूं.’’

‘‘सुमित, देर क्यों कर रहे हो? नाक रगड़ कर माफी मांग लो नहीं तो हमेशा के लिए सपना को खो दोगे,’’ माधवी जोर से चिल्ला पड़ी.

सुमित बुरी तरह सकपका गए. उन्होंने नाक तो फर्श पर नहीं रगड़ी, पर झटके से मेरे पैर पकड़ लिए. मैं चौंक कर पीछे हटी और बोली, ‘‘अरे, यह क्या कर रहे हो? मेरे पैर छूने से आप को माफी नहीं मिलेगी.’’

‘‘सुमित, अगर यह तुम्हें माफ न करे, तो तुम फिर से इस के पैर पकड़ लो,’’ माधवी ने फौरन सुमित को सलाह दी और फिर उस से नजरें चुरा कर मुसकराते हुए मुझे आंख मारी.

सुमित शर्मिंदा सा महसूस करते हुए दोबारा मेरे पैरों की तरफ झुके, तो मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘मैं आप को माफ तो कर दूं, पर आप के सुधरने की क्या गारंटी है?’’

‘‘इन की किसी दूसरी स्त्री की तरफ कभी गलत इरादों से आंख न उठा कर देखने की गारंटी मेरी है, सपना. अगर फिर कभी इन्होंने इधरउधर इश्क लड़ाने की कोशिश की, तो तुम्हारा इन से तलाक मैं कराऊंगी. बोलो, क्या कहते हो सुमित?’’ माधवी ने उन्हें पैनी नजरों से घूरा.

‘‘मैं ऐसी गलती फिर कभी नहीं करूंगा,’’ सुमित ने फौरन वादा किया.

‘‘अगर की तो सपना से हाथ धोना पड़ेगा,’’ इस बात को अच्छी तरह से समझ लो.

‘‘ठीक है.’’

‘‘तब सिर झुकाए क्यों खड़े हो? अरे, आगे बढ़ कर अपनी पत्नी को छाती से क्यों नहीं लगाते हो?’’ माधवी ने उन्हें धक्का सा दिया.

सुमित डरतेडरते मेरी तरफ बढ़े. मेरे लिए अपनी हंसी रोकना कठिन हो रहा था, पर मैं गंभीर बनी रही.

सुमित ने मुझे छाती से लगा लिया. उन की पीठ पीछे माधवी और मैं ने हाथ मिला कर एकदूसरे को अपनी जीत के लिए बधाई दी.

उस दिन के बाद से सुमित ने किसी भी युवती के साथ इश्क लड़ाने का हौसला खो दिया. वे पहले की तरह सब हसीनाओं से खुल कर हंसतेबोलते जरूर हैं, पर लक्ष्मण रेखा पार करने की हिम्मत उन में नहीं रही है.

उस रात भी मोटी सुषमा की ननद निशा से उचित मौका देख कर मैं ने सिर्फ 10 मिनट हंस कर बातें कीं. सुमित ने दूर से हमें

साथसाथ हंसतेबोलते देखा और निशा से किनारा कर गए. फिर उन्होंने उस के साथ आगे डांस नहीं किया.

‘‘तुम निशा को पहले से जानती हो क्या?’’ कुछ देर बाद मेरे पास आ कर सुमित ने सवाल किया.

‘‘नहीं, अभीअभी दोस्ती हुई है,’’ मैं ने उन की टाई की गांठ ठीक करते हुए जवाब दिया.

‘‘क्या बातें हुईं उस से?’’

‘‘कुछ खास नहीं. आप को कैसी लगी वह?’’

‘‘कुछ खास नहीं,’’ उन्होंने अजीब सा मुंह बनाया और फिर हम दोनों ही खिलखिला कर हंस पड़े.

सुमित को जो सबक माधवी और मैं ने सिखाया था, वह उन्हें अच्छी तरह से याद है. किसी हसीना की तरफ उन का गलत झुकाव मुझे दिखता है, तो मैं उस से दोस्ती कर लेती हूं. मेरे ऐसा करते ही सुमित सतर्क हो कर अपने दिलफेंक व्यवहार पर अंकुश लगा लेते हैं.

मुझे शिकायत का मौका देना उन के लिए खतरनाक होगा, यह धमकी उन के दिलोदिमाग में मजबूती से बैठ गई है. मुझे विश्वास है कि हसीनाओं से इश्क लड़ाने की अपनी आदत से वे तोबा कर चुके हैं.

दूर ही रहो: लौकडाउन में प्यार की हुई नई शुरुआत

‘फूल तुम्हें भेजा है खत में, फूल नहीं मेरा दिल है…’ गौरवी ने सुबह से ही ‘कारवां’ चला रखा था. 5,000 गाने हैं उस में. लौकडाउन के कारण आजकल इन्हीं गानों के सहारे तो उस का दिन कटता है, नहीं तो समझ नहीं आता कि करे तो क्या करे.

इतना पुराना यह गाना सुन कर गौरवी को फिर से करण की याद आ गई. खत कौन लिखता है भला अब. व्हाट्सऐप से झट से अपने दिल का हाल पहुंचा देते हैं अपनों को. यही तो जरिया है अपना दिल बहलाने का.

लेकिन करण मैसेज भी कहां करता है. कहता है कि उस की आदत नहीं ज्यादा लिखनेपढ़ने की. वीडियो भेजा करूं उसे. अब भला अपने मन की बात कहने के लिए मैं वीडियो भेजूंगी.

अच्छा लौकडाउन हुआ है. पता नहीं अब कब मिलना होगा. 15 दिन में एक बार मिल लेते थे, तो दिल को चैन पड़ जाता था. अब लगता है 4-5 महीने तक मिलना नहीं हो पाएगा.

ओफ, करण कितना मिस कर रही हूं तुम्हें. एक साल ही तो हुआ है करण को उस की जिंदगी में आए. विकास के बाद कोई और उस की जिंदगी में आएगा, कल्पना भी नहीं की थी उस ने. विकास को कितना प्यार करती थी वह. वह भी दिलोजान से चाहता था उसे. बेशक अरेंज्ड मैरिज थी उन की लेकिन दोनों की चुहलबाजी, प्यार करने का अंदाज बौयफ्रैंडगर्लफैं्रड जैसा था. विकास अकसर कहता था उस से, ‘गौरवी, मैं ने अच्छा किया कि जल्दी शादी नहीं की वरना तुम मुझे कैसे मिलती.’

दोनों की पसंद भी एकजैसी थी. विकास शौकीनमिजाज था. पढ़ाई में अव्वल तो नहीं कहेंगे लेकिन स्कूलकालेज की बाकी सब ऐक्टिविटीज में सब से आगे रहता. पर्सनैलिटी ऐसी थी कि लड़कियां मरती थीं. लेकिन विकास अपनी ही धुन में रहता था. ऐसा नहीं था कि लड़कियों में उसे इंट्रैस्ट नहीं था, लेकिन पता नहीं क्यों तेजतर्रार, ज्यादा बोलने वाली लड़कियां उसे भाती नहीं थीं.

गौरवी एक ही नजर में दिल में उतर गई थी. उस की बड़ीबड़ी आंखें, सलोना मुखड़ा, धीरेधीरे बोलना उसे इतना भाया कि झट शादी के लिए हां बोल दी. कहां तो शादी की बात भी करना नहीं चाहता था और अब हालत यह थी कि चाहता था महीने के अंदर ही शादी हो जाए. अपने लिए विकास का यह उतावलापन गौरवी को भी भा गया था. एक तरह से गुमान हुआ था अपनेआप पर कि जिस पर इतनी लड़कियां मरती हैं उस ने उसे पसंद किया है. फिर वही हुआ, जैसा विकास चाहता था. महीने के भीतर ही सगाई हुई और फिर शादी. हनीमून के लिए मनाली गए थे वे दोनों.

आज भी सोचती हूं तो वे दिन एक सपने से लगते हैं. कितने रंगीन दिन थे. घूमनाफिरना, खानापीना, एकदूसरे को रिझाना, लुभाना और प्यारभरी बातें, मदभरी रातें. अब भी कभी वे दिन याद आते हैं तो आंखें गीली हो जाती हैं. काश, पुराने दिन वापस आ पाते.

ओफ, क्यों याद आती है पुराने दिनों की. खुशियों से भरे दिन थे, तब ही तो मन में याद कर कसक सी उठती है. शादी के बाद बहुत जल्द ही वह 2 बच्चों की मां बन गई थी. खुद को डूबो दिया था उस ने उन की देखभाल में. वह तो नौकरी भी नहीं करना चाहती थी. उस की सोच हमेशा से यही रही थी कि बच्चों की जिम्मेदारी ली है तो उन्हें अच्छी परवरिश दो. लेकिन विकास को उस का घर में सिर्फ बच्चों के लिए नौकरी छोड़ कर बैठ जाना गवारा न था. वे बोलते, ‘गौरवी, मम्मी हैं न बच्चों की देखरेख के लिए. फिर फुलटाइम मेड भी रख ली है, क्या जरूरत है नौकरी छोड़ने की. घर में रहने से औरत की सारी स्मार्टनैस खत्म हो जाती है. मुझे घरेलू टाइप औरतें बिलकुल पसंद नहीं हैं.’

विकास की अच्छीखासी जौब थी. नौकरी करने की मुझे कोई जरूरत नहीं थी, फिर भी विकास की खुशी के लिए करती रही.जिंदगी मजे से गुजर रही थी. दोनों बच्चे स्कूल जाने लगे थे. बच्चों को खूब लाड़ करते थे विकास. कहते थे मेरे

3 बच्चे हैं. हंसी आ जाती है यह बात सोच कर. वाकई बच्चों की तरह लाड़ करते थे मुझ से. रात में जब मैं विकास की बांहों में होती थी तो बोलते थे, ‘गौरवी, तुम में मुझे रोज नयापन नजर आता है. बहुत प्यार करता हूं तुम से. मेरे सिवा किसी और के बारे में सोचना भी मत कभी.’

कहां सोचा था मैं ने 8 साल तक किसी और के बारे में. सुध ही कहां रह गई थी अपनी, विकास के जाने के बाद. ब्रेन हेमरेज के बाद विकास की मौत ने जैसे सबकुछ बदल दिया था. बच्चे तो समझ ही नहीं पा रहे थे क्या हो रहा है घर में यह सब. मुझे समझ ही नहीं थी दुनियादारी की. न शादी से पहले न कभी कोई जिम्मेदारी ली थी और न शादी के बाद विकास ने मुझे कोई जिम्मेदारी दी. हमेशा यही कहते, ‘मेरे राज में तू ऐश कर, माई डियर. बस, तेरा काम है मुझे खुश रखना, समझी न.’

नौकरी जो मेरा पैशन थी, जरूरत बन गई. फिर हालात इंसान को सब सिखा देते हैं. फिर मेरे मायकेवालों और ससुरालवालों दोनों तरफ से सहारा था मुझे. आर्थिक रूप से कोई कमी न थी मुझे.

जब पिता का साया सिर पर न हो तो बच्चे भी जल्दी समझदार हो जाते हैं. मेरे दोनों बच्चे कभी जिद न करते. स्कूल में जब पेरैंट मीटिंग में जाती, हमेशा बच्चों की तारीफ ही सुन कर आती. बच्चे और घर व नौकरी बस यही जिंदगी रह गई थी.

जिंदगी किसी के जाने से रुकती नहीं है. 8 साल हो गए हैं विकास को गुजरे. तीजत्योहार, खुशी के मौके आते हैं. शादीब्याह नातेरिश्तेदारी में होते रहते हैं. सब क्रियाकलाप होते हैं लेकिन सब ऊपरी तौर पर. मन की खुशी तो सब विकास के जाने के बाद उन्हीं के साथ चली गई थी.

उस दिन को कैसे भूल सकती हूं जिस ने एक बार फिर मेरी जिंदगी का नया अध्याय शुरू किया था. औफिस से मैं ने छुट्टी ली थी. बड़ा बेटा अनुज कालेज गया हुआ था और मनु स्कूल. सासुमां अपने कमरे में आराम कर रही थीं. उन का सारा दिन अपने कमरे में ही गुजरता है. मैं नहाधो कर नाश्ता कर के आराम से अपना मोबाइल ले कर बैठी थी. व्हाट्सऐप हमारी जिंदगी का अब एक जरूरी हिस्सा बन गया है. एकदूसरे का हाल इसी से पता चल जाता है.

‘हाय,’ व्हाट्सऐप पर एक अनजान नंबर से मैसेज आया.

‘हू आर यू?’ मैं ने सवाल किया.

‘ब्यूटीफुल डीपी,’ जवाब आया.

‘मेरा नबंर कहां से आया आप के पास?’ मैं ने फिर सवाल किया. ‘पता नहीं,’ जवाब आया. और फिर ‘सौरी’ मैसेज कर वह व्यक्ति औफलाइन हो गया.

बात वहीं खत्म हो गई. दोपहर हो गई थी. अनुज कालेज से आ गया था. मैं उसे खाना परोस ही रही थी कि मनु भी स्कूल से आ गया. वह भी झटपट कपड़े बदल कर खाने के लिए बैठ गया.

सब ने साथ ही लंच किया. फिर अनुज सोने के लिए अपने कमरे में और मनु ट्यूशन क्लास के लिए चला गया. मैं भी अपने कमरे में जा कर लेट गई. तभी मोबाइल में मैसेज बीप आई.

‘क्या आप की उम्र जान सकता हूं?’ उसी अनजान नंबर से मैसेज आया.‘आए एम 48,’ मैं ने जवाब दिया.

‘ओह, लेकिन 35 की लगती हैं. अच्छा मेंटेन कर रखा है आप ने अपने को. खैर, उम्र का क्या है. दिल जवान होना चाहिए.’ ‘आप अपने बारे में बताइए,’ मुझे उस के बारे में जानने की उत्सुकता हुई.

‘रोहित नाम है मेरा, देहरादून में रहता हूं, उम्र 32 वर्ष.’‘करते क्या हो?’ मैं ने और जानना चाहा.

‘फादर का बिल्ंिडग कंस्ट्रक्शन का बिजनैस है. मुझे उस में कोई इंट्रैस्ट नहीं. फिर भी इकलौता बेटा हूं, सो उन का कहना मान कर, अपना मन मार कर उन के साथ बिजनैस में ही हूं.’

‘हूं… अच्छा, प्रोफाइल फोटो क्यों नहीं लगाई अपनी, ज्यादा हैंडसम हो क्या?’ मैं ने उस की टांग खींचने की कोशिश की. वैसे भी उम्र में मुझ से काफी छोटा था, इसलिए बात करने में कोई हिचक नहीं हो रही थी.

‘मैडम, क्या आप मुझे देखना चाहती हैं. हां, हैंडसम तो हूं मैं. आएदिन रिश्ते आ जाते हैं. मम्मीपापा पीछे पड़े हैं शादी के लिए. अच्छा खैर छोड़ो, पहले मेरी डीपी देखो.’

‘हूं, गुड लुकिंग. तुम शादी क्यों नहीं करना चाहते?’ डीपी देख कर मैं ने पूछा.

‘शादी में मैं विश्वास नहीं रखता. अपनेआप को एक बंधन में बांधना भला कहां की समझदारी है. शादी के बिना भी जब सब हसरतें पूरी हो सकती हैं तो फिर क्यों यह फंदा गले में डालें.’

‘अपनीअपनी सोच है, ओके. गुड बाय,’ और मैं ने मोबाइल चैट बंद कर दी और मोबाइल चार्जिंग में लगा दिया.

2-3 दिन बीत गए. मैं घर और औफिस दोनों जगह काम में बिजी थी. बुरी तरह थक जाती और रात में बिस्तर पर लेटते ही नींद मुझ पर हावी हो जाती. रोहित से हुई चैट दिमाग से निकल चुकी थी कि एक हफ्ते बाद उस का एक मैसेज आया, ‘आप को बुरा लगेगा लेकिन कहे बिना नहीं रह सकता. आप से प्यार हो गया है मुझे. एक हफ्ते तक अपने दिल को बहुत समझाया मैं ने, लेकिन आप का चेहरा आंखों के सामने से हटता ही नहीं. आज रहा नहीं गया और मैं ने अपने दिल की बात कह डाली.’

‘पागल हो गए हो तुम क्या. मेरे बारे में जानते ही क्या हो. और अपनी उम्र देखी है. कुछ सोचसमझ कर तो

बात करो.’ उस की बात अच्छी नहीं लगी मुझे, ‘तुम ने पूछा नहीं, इसलिए बताया नहीं, सिंगल मदर हूं मैं. 2 बच्चे हैं मेरे और तुम्हें मुझ से प्यार हो गया है. मजाक समझते हो प्यार को,’ मैं ने अपना गुस्सा जताया.

‘उम्र से क्या होता है. लेकिन अफसोस हुआ जान कर. तलाकशुदा हैं या फिर आप के हसबैंड…’

‘हां, माई हसबैंड इज नो मोर. 8 साल हो चुके हैं.’ मैं पता नहीं क्यों अपने बारे में उसे बताती गई.

‘क्या आप को फिर से खुशी पाने का कोई हक नहीं. बहुत प्यार करती हैं अपने पति से आप. लेकिन जिंदगी सिर्फ यादों के सहारे तो नहीं चलती.’ रोहित की बातें न जाने क्यों मुझे अपने बारे में सोचने पर मजबूर करने लगी थीं.

अब अकसर हमारे बीच चैट होने लगी. उस की रोमांटिक बातें मुझे अच्छी लगने लगी थीं. दोबारा से मन में खुशी की उमंग करवटें लेने लगी थीं. खुद को सजानेसवांरने लगी थी.

एक दिन रोहित का मैसेज आया, ‘दिल्ली आ रहा हूं, तुम से मिलना चाहता हूं. जगह और टाइम रात में मैसेज कर दूंगा.’ मैसेज पढ़ कर दिमाग में एक झटका सा लगा.

‘ओफ, क्या कर रही हूं मैं. नहींनहीं, बिलकुल सही नहीं है यह सब. नहीं मिलना मुझे किसी से,’ और उसी वक्त मोबाइल ले रोहित का नंबर ब्लौक कर दिया.

मैं ने मोबाइल से तो रोहित को ब्लौक कर दिया था लेकिन उस ने मेरे मन में प्यार की जो सुगबुगाहट जगा दी थी उस का क्या. रोहित की बातों ने ही मुझे दोबारा अपने बारे में सोचने पर मजबूर किया था.

अब मन चाहने लगा कि कोई हो जिस से अपने दिल की बात कही जाए. समान मानसिक स्तर, हमउम्र हो. जो मेरे दिल की बात समझे. दोनों एकदूसरे से अपनी फीलिंग्स शेयर कर सकें.

पता नहीं एक दिन मुझे क्या सूझी, मैट्रिमोनियल साइट पर अपना प्रोफाइल बना डाला. बस, फिर क्या था, दिन में ढेरों रिप्लाई आ जाते. उन में से एक करण का भी रिप्लाई आया था. न जाने क्यों करण का प्रोफाइल स्ट्राइक कर गया था. डिर्वोस हो चुका था उस का. कहते हैं न कि जब जिस से मिलना होता है तो रास्ते अपनेआप बनते जाते हैं. पहली ही मुलाकात में करण की बातें, उस की सचाई, उस की पर्सनैलिटी पसंद आ गई थी. वह अंदर से कितना टूटा हुआ है, कितना गुस्सा अपनी टूटी हुई शादी को ले कर उस के भीतर भरा हुआ है, यह भी मुझ से छिपा नहीं था.

प्यार से शायद विश्वास उठ चुका था उस का. लेकिन मैं वाकई दिल से चाहने लगी थी उसे. और जब मैं ने उस से कहा, ‘आई लव यू’ और जवाब में जब वह बोला, ‘नहीं यार, हम दोनों के रिश्ते के बीच में प्यारव्यार मत लाओ. जब दिल टूटता है तो बहुत दर्द होता है.’

कहने को कह दिया था करण ने लेकिन मुझे सुन कर कितना दर्द हुआ था, उस का अंदाजा न हुआ उसे.

एक बार सोचा, नहीं रखना  रिश्ता ऐसे इंसान से जिसे मेरी फीलिंग्स की कद्र ही नहीं. सालों बाद जिंदगी को नया मोड़ क्या मैं करण के साथ दे पाऊंगी? औरों से कितना अलग है. लेकिन शायद उस के सोचने का, समझने का यह तरीका ही उस की क्वालिटी है.

जितना मैं करण को समझती जा रही थी, मिल रही थी, उतना ही पसंद करती जा रही थी. मैं ने सोच लिया था कि करण के मुंह से बुलवा कर ही रहूंगी कि वह मुझ से प्यार करता है.

एक साल हो रहा था, करण और मुझे मिलते हुए. बर्थडे आने वाला था करण का. उस के बर्थडे से 4 महीने पहले मेरे बर्थडे को मुझे काफी स्पैशल फील कराया था उस ने. खुश थी बहुत मैं. उस वक्त तो और भी मजा आया जब लंच कर हम दोनों कार में बैठे और पीछे की सीट पर मैं ने 2 बड़ेबड़े पैकेट रखे देखे.

मैं पूछने ही वाली थी कि करण बोला, ‘गौरवी, मुझे पसंद नहीं बर्थडे पर चौकलेट, फूल वगैरह देना, इन पैकेट में खानेपीने का सामान है तुम्हारे लिए. मुझे जो समझ में आया, ले आया.’

‘अरेअरे, इतना सबकुछ मैं नहीं ले जाती. घर में क्या कहूंगी, किस ने दिया यह सब,’ मैं ने मना किया.

‘मुझे नहीं पता, कुछ भी बता देना. तुम्हें ले कर जाना ही पड़ेगा.’ और आखिरकार मुझे वह सब घर ले जाना ही पड़ा था. बच्चों ने पूछा तो बहाना बना दिया कि फ्रैंड से मंगवाया है, उस की वहां की शौप से. टेस्ट अच्छा होता है, खा कर देखना.

तो ऐसा तो है करण. यह था मेरा गिफ्ट. दिखावा नहीं करता. उस का ऐसा करना मुझे एक तरह से अच्छा ही लगा था. शोशेबाजी मुझे भी पसंद नहीं. हां, लेकिन उस के मुंह से अपने लिए तारीफ न करना, यह कभीकभी अखरता है मुझे. मेरी ड्रैसिंग सैंस के लिए दूसरे लोग कितने अच्छे कंप्लीमेंट देते हैं लेकिन मजाल है कि वह कभी तारीफ कर दे. शिकायत भी करती हूं तो कहता है, ‘बहुत गंदी तारीफ करता हूं मैं. सुनना पसंद करोगी?’ क्या जवाब दूं उस की इस बात का, इसलिए चुप रह जाती हूं.

साल 2020 आया. मन में आया था इस साल सब अच्छा होगा. लेकिन यह क्या, कोविड-19 की पूरे विश्व में छाए खतरे की घंटी ने सब को हिला दिया. देशभर में लौकडाउन हो गया. मिलने को तरस गए थे हम दोनों. फोन पर भी अब ज्यादा बात नहीं कर सकते थे. सब घर पर ही होते थे. करण के बर्थडे के बारे में सोची मेरी सारी प्लानिंग धरी की धरी रह गई थी.

मौका देख कर एक दिन फोन किया तो करण ने झट से कौल पिक कर ली, नहीं तो अकसर जब मैं फोन करती, रिंग जाती रहती. उठता नहीं था फोन और फिर उस के 1 घंटे बाद कौलबैक करता था.

‘कैसी हो, गौरवी,’ करण की आवाज में बेचैनी थी.‘ठीक हूं, बस, इंतजार है कब लौकडाउन खत्म हो और सब ठीक हो जाए. ऐसा लग रहा है बरसों हो गए हैं तुम से मिले.’

‘आई लव यू गौरवी,’ करण के ये शब्द कानों में गूंज गए.‘ओह करण, आखिरकार तुम ने बोल ही दिया जो मैं सुनने के लिए तरस गई थी. लौकडाउन ने तुम्हें एहसास करा दिया कि तुम मुझ से प्यार करते हो,’ मैं खुशी से बोली.

‘हां, ऐसा ही समझ लो. नहीं रह पा रहा हूं तुम्हारे बिना. आई मिस यू मैडली,’ आज लग रहा था करण के दिल में वही चाहत है जो मेरे दिल में उस के लिए.

‘चलो, लौकडाउन ने हमारे बीच के प्यार को और बढ़ा दिया. अब जब मिलेंगे, वो मिलना कुछ और ही होगा.’ फोन रख दिया था मैं ने. अपनों के लिए, अपने लिए जरूरी था कि हम दूर ही रहें. कैसी मजबूरी थी यह. अपने दिल का हाल बयां करती भी तो किस से. कुछ रिश्ते बताए नहीं जाते और न दूसरा कोई समझ सकता है. करण तुम ठीक कहते हो हमारी फीलिंग्स कोई नहीं समझ सकता क्योंकि अधूरापन, अकेलापन हम जी रहे हैं, दूसरे नहीं. हम एकदूसरे को समझ रहे हैं, यही काफी है.

एक बार फिर मन को समझाया, ‘कल की खुशी के लिए तुम दूर ही रहो.’ और बेमन से मेज पर रखे रिमोट से टैलीविजन औन किया. सभी न्यूज चैनलों पर लौकडाउन कोविड-19 की खबरें आ रही थीं और स्क्रीन पर नीचे लगातार लिखा आ रहा था, ‘घर पर रहो, सुरक्षित रहो.’

बुद्धू: अनिल को क्या पता चला था

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बिट्टू और उसका दोस्त: क्या यश को अपना पाई मानसी

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एक ताजमहल की वापसी- भाग 3: क्या एक हुए रचना और प्रमोद

उस ने रंगीन कागज के भीतर से ताजमहल की अनुकृति को झांकते पाया. उस के चेहरे पर रक्ताभा की एक परत सी छा गई. यह वह क्षण था जब वे दोनों आनंद के अतिरेक में आलिंगनबद्ध हो गए थे. एकदूसरे में समा गए थे.

न जाने कितनी देर तक वे उसी अवस्था में एकदूसरे के दिल की धड़कनों को सुन रहे थे. इस एक क्षण में उन्होंने मानो एक युग जी लिया था, प्यार का युग तो अनंतकाल से प्रेमीप्रेमिका को मिलने के लिए उकसाता रहता है.

अपने घर आ कर प्रमोद ने रचना का दिया हुआ उपन्यास खोल कर देखा. उस में एक पत्र रखा मिला. रचना ने बड़े सुंदर और सुडौल अक्षरों में लिखा था, ‘प्रमोद, मैं तुम्हें हृदय की गहराइयों में पाती हूं. यह प्यार रूपी अमृत का प्याला मैं रोज पीती हूं, पर प्यासी की प्यासी रह जाती हूं. यह तृप्तता आखिर क्या है? कैसी है? कब पूरी होगी. इस का उत्तर मैं किस से पूछूं. यदि आप को पता हो तो मुझे जरूर बताएं…रचना…’

प्रमोद को मानो दीवानगी का दौरा पड़ गया. उसे लगा कि ऐसा पत्र शायद ही किसी प्रेमिका ने अपने प्रेमी को लिखा होगा. वह संसार का सब से अच्छा प्रेमी है, जिस की प्रेमिका इतने उदात्त विचारों की है. वह एक अत्यंत सुंदरी और विदुषी प्रेमिका का प्रेमी है. इस मामले में वह संसार का सब से धनी प्रेमी है.

उसे नित्य नईनई अनुभूतियां होतीं. वह प्यार के खुमार में सदैव डूबा रहता. कभी खुद को चांद तो रचना को चांदनी कहता. कभी रचना हीर होती तो वह रांझा बन जाता. कभी वह किसी फिल्म का हीरो, तो रचना उस की हीरोइन. वह प्यार के अनंत सागर में डुबकियां लगाता लेकिन इस पर भी उस के मन को चैन न आता.

‘चैन आए मेरे दिल को दुआ कीजिए…’ अकसर वह इस फिल्मी गीत को गुनगुनाता और बेचैन रहता.

कभीकभी उसे लगता कि यह ठीक नहीं है. देवदास बन जाना कहां तक उचित है. दूसरे ही क्षण वह सोचता कि कोई बनता नहीं है, बस, अपनेआप ही देवदास बन जाने की प्रक्रिया चालू हो जाती है जो एक दिन उसे देवदास बना कर ही छोड़ती है. ‘वह भी देवदास बन गया है,’ यह सोच कर उसे अच्छा लगता. लगेहाथ ‘देवदास’ फिल्म देखने की उत्कंठा  भी उस में जागृत हो उठी.

विचारों की इसी शृंखला में सोतेजागते रहना उस की नियति बन गई, जिस दिन रचना उसे दिखाई नहीं देती तो उस के ख्वाबों में आ पहुंचती. उसे ख्वाबों से दूर करना भी उस के वश में नहीं रहता. यदि आंखें बंद करता तो वह उसे अपने एकदम करीब पाता. आंखें खोलने पर रचनाकृति गायब हो जाती और दुखद क्षणों की अनुभूति बन जाती.

इस बीच, प्रमोद को अचानक अपने मामा के यहां जाना पड़ गया. मामा कई दिन से बीमार चल रहे थे और एक दिन उन का निधन हो गया. उन की तेरहवीं तक प्रमोद का वहां रुकना जरूरी हो गया था.

एक दिन चंदा ने रचना को फोन किया तो पता चला कि रचना के उद्योगपति पिता ने उस का विवाह मुंबई के एक हीरा व्यापारी के बेटे के साथ तय कर दिया है. इस बात पर उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था. चंदा ने जब इस दुखद सामाचार को प्रमोद तक पहुंचाया तो फोन सुनते ही उसे लगा कि उस का गला सूख गया है. अमृत कलश खाली हो गया है. रचना इतनी जल्दी किसी और की अमानत हो जाएगी, उस की कल्पना से बाहर की बात थी. वह रोंआसा हो गया और तनमन दोनों से स्तब्ध हो कर रह गया था.

‘अपने को संभालो भाई, यह अनहोनी होनी थी सो हो गई, एक सप्ताह बाद ही उस का विवाह है. वह विवाह से पहले एक बार आप से मिलना चाहती है,’ चंदा ने फोन पर जो सूचना दी थी. उस से प्रमोद का सिर चकराने लगा. इस दुखद समाचार को सुन कर उस का भविष्य ही चरमरा गया था. उस ने तुरंत रचना से मिलने के लिए वापसी की ट्रेन पकड़ी.

दूसरे दिन प्रमोद उसी बरगद के पेड़ के नीचे खड़ा था जहां उस का प्रेममिलन हुआ था. रचना भी छिपतेछिपाते वहां आई और प्रमोद से लिपट कर जोरजोर से रोने लगी. वह प्रमोद को पिताजी के सामने हार कर शादी के लिए तैयार होने की दास्तान सुना रही थी. उस ने अपनी मां से भी प्रमोद के प्यार की बातें कही थीं, पर उन्होंने उस के मुंह पर अपनी उंगली रख दी.

तब से अब तक मां की उंगली मानो उस के होंठों से चिपकी हुई थी. वह न तो ठीक से रो सकती थी, न हंस सकती थी. उस ने अपने पास संभाल कर रखा ताजमहल का शोपीस प्रमोद को वापस देते हुए कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो प्रमोद, मैं तुम्हारे प्यार की कसौटी पर खरी नहीं उतरी. मैं प्यार के इस खेल में बुरी तरह हार गई हूं. मैं तुम्हारे प्यार की इस धरोहर को वापस करने के लिए विवश भी हो गई हूं. मुझे उम्मीद है कि तुम मेरी इस विवशता को समझोगे और इसे वापस ले कर अपने प्यार की लाज भी रखोगे.’’

रचना इतना कह कर वापस चली गई और वह उसे जाते देख स्तब्ध रह गया. अब रचना पर उस का कोई अधिकार ही कहां रह गया था. एक धनवान ने फिर एक पाकसाफ मुहब्बत का मजाक उड़ाया था. प्रमोद के हाथों में ताजमहल जरूर था पर उस की मुमताज महल तो कब की जा चुकी थी. उस के प्यार का ताजमहल तो कब का धराशायी हो गया था.

वह अपने अश्रुपूरित नेत्रों से बारबार उस ताजमहल की अनुकृति को देखता और ‘हाय रचना’ कह कर दिल थाम लेता. प्रमोद को ऐसा अहसास हो रहा था कि आज मानो संसार के सारे दुखों ने मिल कर उस पर भीषण हमला कर दिया हो. उस ने ताजमहल के शोपीस को यह कहते हुए उसी चबूतरे पर रख दिया कि जिन प्रेमियों का प्यार सफल और सच्चा होगा वही इसे रखने के अधिकारी होंगे उसे अपने पास रखने की पात्रता अब उस के पास नहीं थी. उस के प्यार की झोली खाली हो गई थी और उस में उसे रखने का अवसर उस ने खो दिया था.

एक ताजमहल की वापसी- भाग 2: क्या एक हुए रचना और प्रमोद

एक तेज खुशबूदार सैंट की महक उस में मादकता भरने के लिए काफी थी. चुंबक के 2 विपरीत ध्रुवों के समान रचना उसे अपनी ओर खींचती प्रतीत हो रही थी. कमरे में वे दोनों थे, जानबूझ कर चंदा उन के एकांत में बाधा नहीं बनना चाहती थी.

‘एक हारे हुए खिलाड़ी की ओर से यह एक छोटी सी भेंट स्वीकार कीजिए,’ कह कर रचना ने एक सुनहरी घड़ी प्रमोद को भेंट की तो वह इतना महंगा तोहफा देख कर हक्काबक्का रह गया.

‘जरा इसे पहन कर तो दिखाइए,’ रचना ने प्रमोद की आंखों में झांक कर उस से आग्रह किया.

‘इसे आप ही अपने करकमलों से बांधें तो…’ प्रमोद ने भी मृदु हास्य बिखेरा.

रचना ने जैसे ही वह सुंदर सी घड़ी प्रमोद की कलाई पर बांधी मानो पूरी फिजा ही सुनहरी हो गई. उसे पहली बार किसी हमउम्र युवती ने छुआ था. शरीर में एक रोमांच सा भर गया था. मन कर रहा था कि घड़ी चूमने के बहाने वह रचना की नाजुक उंगलियों को छू ले और छू कर उन्हें चूम ले. पर ऐसा हुआ नहीं और हो भी नहीं सकता था. प्यार की पहली डगर में ऐसी अधैर्यता शोभा नहीं देती. कहीं वह उसे उस की उच्छृंखलता न समझे. समय की पहचान हर किसी को होनी जरूरी है वरना वक्त का मिजाज बदलते देर नहीं लगती.

अब प्रमोद का भी रचना को कोई सुंदर सा उपहार देना लाजिमी था. प्रमोद की न जाने कितने दिन और कितनी रातें इसी उधेड़बुन में बीत गईं. एक युवती को एक युवक की तरफ से कैसा उपहार दिया जाए यह उस की समझ के परे था. सोतेजागते बस उपहार देने की धुन उस पर सवार रहती. उस के मित्रों ने सलाह दी कि कश्मीर की वादियों से कोई शानदार उपहार खरीद कर लाया जाए तो सोने पर सुहागा हो जाए.

मित्रों के उपहास का जवाब देते हुए प्रमोद बोला, ‘मुझे कुल्लूमनाली या फिर कश्मीर से शिकारे में बैठ कर किसी उपहार को खरीदने की क्या जरूरत है? मेरे लिए तो यहीं सबकुछ है जहां मेरी महबूबा है. मेरा मन कहता है कि रचना बनी ही मेरे लिए है. मैं रचना के लिए हूं और मेरा यह रचनामय संसार मेरे लिए कितना रचनात्मक है, यह मैं भलीभांति जानता हूं.’

यह सुन कर सभी दोस्त हंस पड़े. ऐसे मौके पर दोस्त मजाक बनाने का कोई अवसर नहीं छोड़ते. हासपरिहास के ऐसे क्षण मनोरंजक तो होते हैं, लेकिन ये सब उस प्रेमी किरदार को रास नहीं आते, क्योंकि जिस में उस की लगन लगी होती है. उसे वह अपने से कहीं ज्यादा मूल्यवान समझने लगता है. उसे दरख्तों, झीलों, ऋतुओं और फूलों में अपने महबूब की छवि दिखाई देने लगती है, कामदेव की उन पर महती कृपा जो होती है. कुछ तो था जो उस के मनप्राण में धीरेधीरे जगह बना रहा था. वह खुद से पूछता कि क्या इसी को प्यार कहते हैं. वह कभी घबराता कि कहीं यह मृगतृष्णा तो नहीं है. उस का यह पहलापहला प्यार था.

कहते हैं कि प्यार की पहचान मन को होती है, पर मन हिरण होता है, कभी यहां, कभी वहां उछलकूद करता रहता है. वह ज्यादातर इस मामले में अपने को अनाड़ी ही समझता है.

आजकल वह एकएक पल को जीने की कोशिश कर रहा था. वह मनप्राण को प्यार रूपी खूंटे से बांध रहा था. प्रेमरस में भीगी इस कहानी को वह आगे बढ़ाना चाह रहा था. इस कहानी को वह अपने मन के परदे पर उतार कर प्रेम की एक सजीव मूर्ति बनना चाहता था.

धीरेधीरे रचना से मुलाकातें बढ़ रही थीं. अब तो रचना उस के ख्वाबों में भी आने लगी थी. वह उस के साथ एक फिल्म भी देख आया था और अब अपने प्यार में उसे दृढ़ता दिखाई देने लगी थी. अब उसे पूरा भरोसा हो गया था कि रचना बस उस की है.

प्रमोद मन से जरूर कुछ परेशान था. वह अपने मन पर जितना काबू करता वह उसे और तड़पा जाता. वह अकसर अपने मन से पूछता कि प्यार बता दुश्मन का हाल भी क्या मेरे जैसा है? ‘हाल कैसा है जनाब का…’ इस पंक्ति को वह मन ही मन गुनगुनाता और प्रेमरस में डूबता चला जाता. प्रेम का दरिया किसी गहरे समुद्र से भी ज्यादा गहरा होता है. आजकल प्रमोद के पास केवल 2 ही काम रह गए थे. नौकरी की तलाश और रचना का रचना पाठ.

रचना…रचना…रचना…यह कैसी रचना थी जिसे वह जितनी बार भी भजता, वह उतनी ही त्वरित गति से हृदय के द्वार पर आ खड़ी होती. हृदय धड़कने लगता, खुमार छाने लगता, दीवानापन बढ़ जाता, वह लड़खड़ाने लगता, जैसे मधुशाला से चल कर आ रहा हो.

इसी तरह हरिवंश राय बच्चन की ‘मधुशाला’ उसे पूरी तरह याद हो गई थी, जरूर ऐसे दीवाने को मधुशाला ही थाम सकती है, जिस के कणकण में मधु व्याप्त हो, रसामृत हो, अधरामृत हो, प्रेमी अपने प्रेमी के साथ भावनात्मक आत्मसात हो.

आत्मसात हो कर वह दीनदुनिया में खो जाए. तनमन के बीच कोई फासला न रह जाए. प्रकृति के गूढ़ रहस्य को इतनी आसानी से पा लिया जाए कि प्यार की तलब के आगे सबकुछ खत्म हो जाए, मन भ्रमर बस एक ही पुष्प पर बैठे और उसी में बंद हो जाए. वह अपनी आंखें खोले तो उसे महबूब नजर आए.

अपनी चचेरी बहन चंदा पर प्रेम प्रसंग उजागर न हो इसलिए रचना प्रमोद से बाहर बरगद के पेड़ के नीचे मिलने लगी. वे शंकित नजरों से इधरउधर देखते हुए एकदूसरे में अपने प्यार को तलाश रहे थे. प्रेम भरी नजरों से देख कर अघा नहीं रहे थे. यह प्रेममिलन उन्हें किसी अमूल्य वस्तु से कम नहीं लग रहा था.

उस ने रचना के लिए अपना मनपसंद गिफ्ट खरीद लिया. उसे लग रहा था कि इस से अच्छा कोई और गिफ्ट हो ही नहीं सकता. रंगीन कागज में लिपटा यह गिफ्ट जैसे ही धड़कते दिल से प्रमोद ने रचना को दिया, तो उस की महबूबा भी रोमांच से भर उठी.

‘इसे खोल कर देखूं क्या?’ अपनी बड़ीबड़ी पलकें झपका कर रचना बोली.

‘जैसा आप उचित समझें. यह गिफ्ट आप का है, दिल आप का है. हम भी आप के हैं,’ प्रमोद बोला.

‘वाऊ,’ रचना के मुंह से एकाएक निकला.

एक ताजमहल की वापसी- भाग 1: क्या एक हुए रचना और प्रमोद

रचना ने प्रमोद के हाथों में ताजमहल का शोपीस वापस रखते हुए कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो प्रमोद, मैं प्यार की कसौटी पर खरी नहीं उतरी. मैं प्यार के इस खेल में बुरी तरह हार गई हूं. मैं तुम्हारे प्यार की इस धरोहर को वापस करने को विवश हो गई हूं. मुझे उम्मीद है कि तुम मेरी इस विवशता को समझोगे और इसे वापस ले कर अपने प्यार की लाज भी रखोगे.’’ प्रमोद हैरान था. उस ने अभी कुछ दिन पहले ही अपने प्यार की मलिका रचना को प्यार का प्रतीक ताजमहल भेंट करते हुए कहा था, ‘यह हमारे प्यार की बेशकीमती निशानी है रचना, इसे संभाल कर रखना. यह तुम्हें हमारे प्यार की याद दिलाता रहेगा. जैसे ही मुझे कोई अच्छी जौब मिलेगी, मैं तुरंत शादी करने आ जाऊंगा. तब तक तुम्हें यह अपने प्यार से भटकने नहीं देगा.’

रचना रोतेरोते बोली, ‘‘मैं स्वार्थी निकली प्रमोद, मुझ से अपने प्यार की रक्षा नहीं हो सकी. मैं कमजोर पड़ गई…मुझे माफ कर दो…मुझे अब इसे अपने पास रखने का कोई अधिकार नहीं रह गया है.’’

प्रमोद असहज हो कर रचना की मजबूरी समझने की कोशिश कर रहा था कि रचना वापस भी चली गई. सबकुछ इतने कम समय में हो गया कि वह कुछ समझ ही नहीं सका. अभी कुछ दिन पहले ही तो उस की रचना से मुलाकात हुई थी. उस का प्यार धीरेधीरे पल्लवित हो रहा था. वह एक के बाद एक मंजिल तय कर रहा था कि प्यार की यह इमारत ही ढह गई. वह निराश हो कर वहीं पास के चबूतरे पर धम से बैठ गया. उस का सिर चकराने लगा मानो वह पूरी तरह कुंठित हो कर रह गया था.

कुछ महीने पहले की ही तो बात है जब उस ने रचना के साथ इसी चबूतरे के पीछे बरगद के पेड़ के सामने वाले मैदान में बैडमिंटन का मैच खेला था. रचना बहुत अच्छा खेल रही थी, जिस से वह खुद भी उस का प्रशंसक बन गया था.

हालांकि वह मैच जीत गया था लेकिन अपनी इस जीत से वह खुश नहीं था. उस के दिमाग में बारबार एक ही खयाल आ रहा था कि यह इनाम उसे नहीं बल्कि रचना को मिलना चाहिए था. बैडमिंटन का कुशल खिलाड़ी प्रमोद उस मैच में रचना को अपना गुरु मान चुका था.

अपनी पूरी ताकत लगाने के बावजूद वह रचना से केवल 1 पौइंट से ही तो जीत पाया था. इस बीच रचना मजे से खेल रही थी. उसे मैच हारने का भी कोई गम न था.

मैच जीतने के बाद भी खुद को वह उस खुशी में शामिल नहीं कर पा रहा था. सोचता, ‘काश, वह रचना के हाथों हार जाता, तो जरूर स्वयं को जीता हुआ पाता.’ यह उस के अपने दिल की बात थी और इस में किसी, क्यों और क्या का कोई भी महत्त्व नहीं था. उसे रचना अपने दिल की गहराइयों में उतरते लग रही थी. किसी खूबसूरत लड़की के हाथों हारने का आनंद भला लोग क्या जानेंगे.

दिन बीतते गए. एक दिन रचना की चचेरी बहन ने बताया कि वह बैडमिंटन मैच खेलने वाली लड़की उस से मिलना चाहती है. वह तुरंत उस से मिलने के लिए चल पड़ा. अपनी चचेरी बहन चंदा के घर पर रचना उस का इंतजार कर रही थी.

‘हैलो,’ मानो कहीं वीणा के तार झंकृत हो गए हों.

उस के सामने रचना मोहक अंदाज में खड़ी मुसकरा रही थी. उस पर नीले रंग का सलवारसूट खूब फब रहा था. वह समझ ही नहीं पाया कि रचना के मोहपाश में बंधा वह कब उस के सामने आ खड़ा हुआ था. हलके मेकअप में उस की नीलीनीली, बड़ीबड़ी आंखें, बहुत गजब लग रही थीं और उस की खूबसूरती में चारचांद लगा रही थीं. रूप के समुद्र में वह इतना खो गया था कि प्रत्युत्तर में हैलो कहना ही भूल गया. वह जरूर उस की कल्पना की दुनिया की एक खूबसूरत झलक थी.

‘कैसे हैं आप?’ फिर एक मधुर स्वर कानों में गूंजा.

वह बिना कुछ बोले उसे निहारता ही रह गया. उस के मुंह से बोल ही नहीं फूट पा रहे थे. चेहरे पर झूलती बालों की लटें उस की खूबसूरती को और अधिक बढ़ा रही थीं. वास्तव में रचना प्रकृति की सुंदरतम रचना ही लग रही थी. वह किंचित स्वप्न से जागा और बोला, ‘मैं अच्छा हूं और आप कैसी हैं?’

‘जी, अच्छी हूं. आप को जीत की बधाई देने के लिए ही मैं ने आप को यहां आने का कष्ट दिया है. माफी चाहती हूं.’

‘महिलाएं तो अब हर क्षेत्र में पुरुषों से एक कदम आगे खड़ी हैं. उन्हें तो अपनेआप ही मास्टरी हासिल है,’ प्रमोद ने हलका सा मजाक किया तो रचना की मुसकराहट दोगुनी हो गई.

‘चंदा कह रही थी कि आप ने कैमिस्ट्री से एमएससी की है. मैं भी कैमिस्ट्री से एमएससी करना चाहती हूं. आप की मदद चाहिए मुझे,’ प्रमोद को लगा, जैसे रचना नहीं कोई सिने तारिका खड़ी थी उस के सामने.

प्रमोद रचना के साथ इस छोटी सी मुलाकात के बाद चला आया, पर रास्ते भर रचना का रूपयौवन उस के दिमाग में छाया रहा. वह जिधर देखता उधर उसे रचना ही खड़ी दिखाई देती. रचना की मुखाकृति और मधुर वाणी का अद्भुत मेल उसे व्याकुल करने के लिए काफी था. यह वह समय था जब वह पूरी तरह रचनामय हो गया था.

दूसरी बार उसे फिर आलोक बिखेरती रचना द्वारा याद किया गया. इस बार रचना जींस में अपना सौंदर्य संजोए थी. चंदा ने उसे आगाह कर दिया था कि रचना शहर के एक बड़े उद्योगपति की बेटी है. इसलिए वह पूरे संयम से काम ले रहा था. उस के मित्रों ने कभी उसे बताया था कि लड़कियों के मामले में बड़े धैर्य की जरूरत होती है. पहल भी लड़कियां ही करें तो और अच्छा, लड़कों की पहल और सतही बोलचाल उन में जल्दी अनाकर्षण पैदा कर सकता है. इसलिए वह भी रचना के सामने बहुत कम बोल कर केवल हांहूं से ही काम चला रहा था. अब की बार रचना ने प्रमोद को शायराना अंदाज में ‘सलाम’ कहा तो उस ने भी हड़बड़ाहट में उसी अंदाज में ‘सलाम’ बजा दिया.

कोरोना लव: शादी के बाद क्या दूर हो गए अमन और रचना

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बुद्धू- भाग 3: अनिल को क्या पता चला था

‘‘शादी की सारी तैयारियां हो चुकी थीं. अचानक निवेदिता ने ही गड़बड़ी कर दी. मालूम पड़ा कि वह शादी न करने की जिद कर रही है.

‘‘भाभीजी ने मुझ से कहा था कि अब निवेदिता को भी तुम्हीं जा कर समझओ.

‘‘यह सुन कर मैं सुन्न हो गया और फिर बोला कि एकाएक निवेदिता को यह क्या हो गया है. मैं उसे क्या समझऊं.

‘‘यह सुन कर भाभी बोलीं कि अनिल तुम्हारे समझने से ही कुछ हो सकता है. तुम्हें मालूम होना चाहिए कि वह असल में तुम से प्यार करती है.

‘‘मैं भाभीजी का मुंह देखता रह गया था. मेरा चेहरा लाल हो उठा था. मैं चिंता में डूब गया. ब्याह की बात इतनी आगे बढ़ चुकी थी कि अब पीछे हटने में मेरी बदनामी होती. मैं किसी को मुंह दिखाने लायक भी न रहता.

‘‘भाभीजी के कहने से मैं उस के पास गया. वह दूसरी मंजिल के एक कमरे में खिड़की के पास खड़ी रोती मिली. मैं ने उसे पुकारा. इतने दिनों में मेरी उस से यह पहली बार आमनेसामने बात हुई.

‘‘मैं ने कहा कि निवेदिता, बात इतनी आगे बढ़ चुकी है. क्या अब तुम सब को नीचा दिखाओगी.

‘‘उस ने नजरें उठा कर मेरी ओर देखा. फिर तुरंत ही बोली कि और मेरा प्यार, मेरा दिल?

‘‘मैं ने पूछा कि क्या तुम्हें इस रिश्ते में कोई परेशानी है?

‘‘उस का गोल चेहरा शर्म से और ज्यादा झक गया. वह अपनी चुन्नी का छोर लपेटने लगी.

‘‘मैं ने फिर कहा कि क्या तुम फिर एक  बार गंभीरता से इस बात को नहीं सोच सकतीं?

‘‘उस ने नजरें उठा कर कुछ पल मेरी ओर देखा. फिर बोली कि यह आप कह

रहे हैं?

‘‘निवेदिता का प्रश्न सुन कर मैं दंग रह गया. फिर बोला कि तुम्हारी मां, बूआजी आदि सभी की इच्छा है… उधर रोमित भी इंतजार में बैठा था…

‘‘बात अधूरी ही रह गई. मेरा गला भर आया. सहसा अपनेआप को ही सबकुछ वाहियात लगने लगा.

‘‘वह बोली कि यह सब तो मैं जानती हूं, लेकिन क्या आप भी ऐसा ही कह रहे हैं?

‘‘मैं जबरन मुसकरा कर बोला कि मैं तो ऐसा कहूंगा ही.

‘‘मेरी सुन कर वह बोली कि क्यों नहीं कहोगे वरना दोस्त के आगे सिर नीचा नहीं हो जाएगा?

‘‘मैं ने कहा कि नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. जो कुछ हो रहा है, तुम्हारी भलाई के लिए ही हो रहा है.

‘‘मेरी बात सुन कर वह बोली कि मेरी भलाई के लिए? बस यही बात है?

‘‘इस के आगे निवेदिता ने मुझे कुछ कहने का मौका नहीं दिया और शीघ्रता से कमरे से निकल फटाफट सीढि़यां उतर कर नीचे चली गई.

‘‘देखतेदेखते शादी का दिन आ गया. सारे घर में लोग होहल्ला मचा रहे थे. मैं दिखाने के लिए व्यस्त सा इधरउधर घूमता रहा, पर मेरा मन किसी काम में नहीं लग रहा था. बरात दरवाजे पर आ चुकी थी. ऐसे ही समय में भाभीजी को ढूंढ़ता हुआ दोमंजिले के उसी कमरे में जा पहुंचा. वहां महिलाओं का दल निवेदिता को घेरे बैठा था. पर बरात के आने की खबर सुन कर मेरे सामने ही सब 1-1 कर कमरे से बाहर हो गईं.

‘‘लाल रंग की बेहद खूबसूरत साड़ी पहने, माथे पर लाल गोल बिंदी व पैरों में लाल महावर लगा, चेहरे को दोनों घुटनों के बीच झकाए निवेदिता बैठी थी. उस समय वह बड़ी सुंदर लग रही थी. मैं एकटक उसे निहारता रहा. अचानक उस की नजरे ऊपर उठीं. वह कुछ देर मेरे मुंह को ताकती रही. मैं ने देखा, उस की दोनों आंखें बहुत लाल थीं. सुना था, ब्याह की रात सभी लड़कियां रोती हैं. शायद वह भी रोई थी. मुझे उस की लाल आंखें बड़ी भली लगीं.

निवेदिता उठ कर खड़ी हो गई और भारी गले से बोली कि आप की ऐसी ही इच्छा थी न? और उस की आंखों से झरझर आंसू झरने लगे.

‘‘फिर मैं वहां न ठहर सका. सिर झका कर अपराधी सा बाहर आ गया. उस दिन पहली बार मेरी आंखों में आंसू आ गए थे. पता नहीं क्यों इस के बाद उस घर में मेरा मन न लगा.’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’

‘‘श्रद्धा, इस के बाद फिर कुछ नहीं हुआ.’’

‘‘निवेदिता से फिर आप की कोई मुलाकात नहीं हुई?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘बड़े आश्चर्य की बात है.’’

‘‘श्रद्धा, तुम्हें आश्चर्य हो रहा है पर यह सच है कि शादी के 8 दिन बाद ही रोमित अपनी पत्नी को ले कर मुंबई लौट गया. शायद उस को ज्यादा छुट्टी नहीं मिली थी. इधर मेरा भी तबादला लखनऊ हो गया. इस के बाद हमारीतुम्हारी शादी हो गई और मैं भी कामकाज में घिर गया. तब से तो तुम साथ ही हो. लखनऊ के बाद कानपुर, फिर घाटमपुर तबादला हुआ और अब 12 वर्ष बाद फिर दिल्ली आ गया हूं. यद्यपि इन 12 सालों में अपने पास बुलाने के लिए रोमित और भाभीजी ने कई बार आग्रह भरे पत्र लिखे, पर रोमित और भाभीजी के पास जाने की इच्छा अधूरी ही रही.’’

‘‘अब तो हमें दिल्ली आए भी 1 महीना हो चुका है. इस 1 महीने में तुम भाभीजी के घर एक बार भी नहीं गए?’’

‘‘तुम ने यह कैसे समझ लिया कि मैं भाभीजी के घर गया ही नहीं?

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि तुम भाभीजी के घर के चक्कर लगते ही रहते हैं.’’

‘‘नहीं, रोजरोज यह कैसे संभव है?’’

‘‘ओह, तुम से तो कोईर् बात पूछना भी बेवकूफी है. तुम मर्द लोग पता नहीं किस दिमाग के होते हो?’’

‘‘तुम शायद गुस्सा हो गई हो. यहां आने के चौथे दिन ही मैं उन ममतामयी भाभी के दर्शन करने चला गया था. वहां जाने पर निवेदिता की भी याद आई, पर मैं ने भाभीजी से उस का कोई जिक्र नहीं किया.

‘‘बातोंबातों में भाभीजी ने ही बताया कि निवेदिता अपने पति के साथ बहुत सुखी है. दिल्ली आने पर मुझे याद करती है. सुन कर मुझे संतुष्टि अवश्य हुई.

‘‘उस के बाद मैं भाभीजी के घर चाह कर भी न जा सका. लेकिन संयोग से आज भाभीजी सैक्टर 3 के मोड़ पर मिल गईं और…’’

‘‘निवेदिता की मौत का दुखद समाचार

सुना गईं.’’

‘‘हां, यह मैं पहले ही तुम्हें बता चुका हूं.’’

‘‘अनिल, मुझे अफसोस है कि मैं निवेदिता को न देख सकी.’’

‘‘क्या करती देख कर?’’

‘‘यह तो देखने और मिलने के बाद ही बतला सकती थी. तुम ने एक बार भी उसे अपने

यहां नहीं बुलाया. बुरा मत मानना, तुम वाकई बड़े बुद्धू हो…’’

‘‘श्रद्धा, इस में बुरा मानने की क्या बात है? शायद तुम सही कहती हो. सोच रहा हूं, अब बेचारे रोमित का क्या होगा. उसे पत्र लिखना चाहता हूं, पर काफी सोचने पर भी शब्द नहीं मिल रहे हैं. ऐसे शब्द जिन से रोमित निवेदिता के छोड़े हुए अधखिले फूलों को खिला सके और उन की महक से अपनेआप को महका ले.’’

‘‘क्या किसी शब्दकोश में ऐसे शब्द नहीं हैं, जिन से मरा हुआ आदमी जिंदा हो जाए?’’

‘‘श्रद्धा, मुझ पर व्यंग्य कर रही हो?

पर सुनो, मेरे शब्दों में इतनी शक्ति तो नहीं कि मरे हुए इंसान को पुन: जीवित कर दें. पर मेरे शब्दों से 3 जिंदगियों के होंठों से छिनी मुसकान यदि फिर से वापस आ जाए तो मुझ जैसे बुद्धू आदमी के लिए यह एक महान कार्य ही होगा.’’

बुद्धू- भाग 2: अनिल को क्या पता चला था

‘‘इस के बाद विशेष कुछ नहीं है, पर हां, कभीकभी एक धुंधला सा चित्र आंखों के सामने आ जाता है. ठीक वैसे ही जैसे भोर की अर्धनिद्रा में आया स्वप्न हो, जिस का कोई आकार नहीं होता, पर उस की झलक मात्र से मनमस्तिष्क में बेचैनी सी छा जाती है. यदि तुम सोचती हो कि वह चित्र निवेदिता का होगा तो यह तुम्हारी भूल है. मैं कह नहीं सकता कि तुम स्त्रियों के साथ भी ऐसा होता है क्या?’’

‘‘औरतों की हालत कैसी होती है, यह तुम ने उस समय निवेदिता से पूछा होता तो इस का पता लग गया होगा.’’

‘‘मैं एक बार फिर तुम्हें  बता देता हूं कि हमारी आमनेसामने बातचीत शायद ही कभी हुई हो, यद्यपि जिस दिन भी वहां जाता था, हमारी मुलाकात अवश्य होती थी. भाभीजी, उस की मां और हम सभी शाम के समय अधिकतर लौन में कुरसियां डाल कर बैठ जाते थे. वह अपनी कुरसी कुछ दूर ही रखती थी. पता नहीं क्यों? हां, इतना अवश्य था कि भाभीजी जब भी उस से कहती थीं, वह गाना अवश्य सुना दिया करती थी. कभीकभी वह गीत में इतना खो जाती थी कि एक के बाद एक सुनाती जाती थी. उस का गाना रुक जाने के बाद बहुत देर तक हम लोग बातें करना भूल जाते थे.’’

‘‘वह कैसा गाती थी?’’

‘‘श्रद्धा, यह तो मैं नहीं जानता, वैसे उस के गाने की तारीफ सभी करते थे. लेकिन जब वह गाती थी तब मुझे ऐसा लगता था कि उस के गाने में जो दर्द, जो टीस है, वही मेरे दिल में है. पर मेरे पास उसे प्रकट करने के लिए कोई शब्द नहीं थे, भाषा नहीं थी. उस के कुछ गाने मैं ने चोरी से रिकौर्ड कर लिए थे.’’

‘‘गाने तो वह तुम्हारे लिए ही गाती थी, यही कहना चाहते हो न?’’

‘‘ऐसी बेतुकी बातें मैं ने कभी नहीं सोचीं. कोई लड़की अगर आंख उठा कर

देख ले और मैं सोचने लगूं कि वह मुझे किसी विशेष कारण से देख रही है तो यह मेरी बेवकूफी के सिवा और क्या होगा? और रही रिकौर्डिंग की बात तो उस के बाद तो न जाने कितनी बार मोबाइल बदले जा चुके हैं. अब कहां मिलेगी वह आवाज.’’

‘‘तुम्हारी यह बात मेरी बुद्धि में नहीं घुसी. खैर, आगे बताओ.’’

‘‘ठीक ही कहा तुम ने. उस की मां को उस की शादी की बड़ी जल्दी थी. पर मैं भाभीजी को अकसर यह कहते सुना करता था कि अरे, ऐसी भी क्या जल्दी है. लड़की अभी बीए तो कर ले. उसे पढ़ने भी दो, समय आने पर शादी हो जाएगी.

‘‘लेकिन उस की मां कहती थी कि शादीब्याह की कोशिश तो पहले से करनी पड़ती है. लड़की की शादी है, कोई हंसीमजाक तो नहीं.

‘‘एक दिन निवेदिता की मां ने मुझे से भी कहा कि अनिल, तुम इतनी अच्छी नौकरी पर हो. क्या निवेदिता के लिए अपने ही जैसे किसी लड़के को नहीं ढूंढ़ सकते?

‘‘तभी भाभीजी मेरा मजक उड़ाती हुई बोलीं कि तुम ने भी बड़े भले आदमी से जिक्र छेड़ा है. अपने छोटों से बात करने में तो यह पसीने में भीग जाता है, यह बिटिया के लिए क्या लड़का ढूंढ़ेगा. हां, इस की निगाह में एक लड़का जरूर है.

‘‘और वह यह कह कर मेरी ओर स्नेहभरी दृष्टि डाल कर मुसकरा पड़ीं.

‘‘उस की मां ने उत्सुकतापूर्वक तुरंत पूछा कि कौन है वह लड़का? कहां रहता है? क्या काम करता है?

‘‘पर भाभीजी मेरी ओर देख कर मुसकरा ही रही थीं. मुझ से वहां एक पल भी न ठहरा गया. मैं तुरंत उठ कर गली में आ गया. मेरा मन यह सोच कर बड़ा खराब हो गया कि भाभीजी ने मेरे विषय में क्या सोच रखा है.

‘‘मैं लज्जा से गड़ा जा रहा था. सोचता, आखिर भाभीजी को किस तरह प्रमाण दूं कि मैं निवेदिता के आकर्षण से उन के घर नहीं आता. किस तरह से उन्हें बताऊं कि मैं इतना गिरा हुआ इनसान नहीं कि भाभीजी के निस्स्वार्थ प्रेम का ऐसा दुरुपयोग करूंगा. निवेदिता के आने से पहले भी मैं अकसर आता था और अब भी कभीकभी चला आता हूं. क्या निवेदिता के आने के बाद मेरे व्यवहार में कोई तबदीली हुई? क्या मैं ने भाभीजी को ऐसा सोचने का मौका दिया? मैं रास्ते भर अपने मन को टटोलता रहा. मैं ने कोई गलती की है? कहीं मेरी किसी हरकत ने अनजाने से ही कुछ ऐसा तो प्रकट नहीं किया जिस से भाभीजी के नारीमन के बारीक परदे पर कुछ झलक गया हो. ऐसा कब हुआ. कैसे हुआ. कुछ भी, किसी भी तरह समझ में नहीं आया.

‘‘घर आ कर मैं आंखें मूंद कर चारपाई पर लेट गया. पर चैन न मिला. मन का

क्लेश बढ़ता ही गया. आखिर मैं ने स्वयं ही फैसला किया, भाभीजी का संदेह दूर करना ही होगा, इस के लिए चाहे कुछ भी करना पड़े.

‘‘उस के बाद से भाभीजी के घर जाने के लिए अपनेआप को तैयार करने में बड़ा असमर्थ पाने लगा, पर भाभीजी के निस्स्वार्थ प्यार के बारे में सोचसोच कर मेरा दिल भरभर जाता. मगर यह भी डर था कि अचानक जाना बंद करने से कहीं सब को शक न हो जाए. इसलिए बजाय एकदम जाना बंद करने के यह सोचा करता कि क्या किया जाए. तब सहसा मेरे दिमाग में यह बात आईर् कि क्यों न निवेदिता के लिए कोई अच्छा सा वर ढूंढ़ दूं. इस से अच्छा और कोई नेक काम नहीं हो सकता. सच, मैं इतने समय तक बेकार ही परेशान रहा.

‘‘इसी बीच अचानक एक दिनकनाटप्लेस में रोमित मिल गया. उस ने एमएससी मेरे साथ ही की थी. पर पढ़ने में तेज होने के कारण आई.

एएस प्रतियोगिता में चुन लिए जाने से राजपत्रित अधिकारी हो गया था. बातोंबातों में जब पता चला कि रोमित अभी कुंआरा है तो खुशी से मेरा दिल उछल पड़ा.

‘‘मैं ने जिक्र छेड़ने में देर करना उचित नहीं समझ. शुरू में तो बात मजाक में उड़ गई, पर थोड़ी देर बाद रोमित इस मामले में गंभीर दिखाई दिया. दिल्ली से बाहर का जीवन, फिर अकेले में उस का दिल भी नहीं लगता था. मैं ने मौका अच्छा समझ और निवेदिता का जिक्र छेड़ दिया.

‘‘बात जब लड़की को देखने की आई तो रोमित बोला कि कैसी बात करते हो, अनिल? अगर लड़की तुम्हारी निगाहों में मेरे लायक है तो बस ठीक है. पर मेरी मां लड़की को बिना देखे नहीं मानेंगी.

‘‘मैं ने कहा कि बेशक… बेशक, मुझे इस में क्या परेशानी हो सकती है? जब चाहो माताजी को ले कर आ जाओ.

‘‘वह बोला कि ठीक है, अनिल. मैं अगले चक्कर में कुछ दिनों की छुट्टी ले कर दिल्ली आऊंगा.

‘‘रोमित ने इस से ज्यादा कुछ नहीं कहा था, पर उस के चेहरे के भाव ने मुझे बहुत कुछ समझ दिया था.

‘‘उसी रात तो मैं ने भाभीजी को अकेले में रोमित के विषय में सब कुछ बता दिया. भाभीजी हैरान करती हुई बोलीं कि सच कह रहे हो, अनिल?

‘‘मैं ने कहा कि भाभीजी मैं ने आप से कभी मजाक किया है?

‘‘भाभीजी कुछ देर मेरे चेहरे को एकटक देखने के बाद बोलीं कि ठीक है.

‘‘उन की ओर से मुझे जितनी खुशी की आशा थी उतनी मैं उन के चेहरे पर न देख सका. पर निवेदिता की मां खुशी से फूली न समाईं और मुझे कंधे से पकड़ कर बोलीं कि अनिल, तुम्हें यह रिश्ता शीघ्र ही तय कर देना चाहिए. ऐसे वर बारबार नहीं मिलते.

‘‘कुछ ही दिनों में निवेदिता की शादी तय हो गई. निवेदिता की मां सभी नातेरिश्तेदारों में मेरी तारीफ के पुल बांधा करतीं और उत्तर में वे सब भी मेरी प्रशंसा करने लगे थे. मुझ जैसे बुद्धू व्यक्ति से इतना बड़ा नेक काम भी हो सकता है, किसी को ऐसी आशा तक नहीं थी.

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