सुजीत घर में कम औफिस में ज्यादा रहने लगा था. महीने में 1-2 बार शहर से बाहर भी जाता रहता और फिर एक दिन उस ने ऐलान कर दिया, ‘‘वंशिका, मैं और स्वीटी लिव इन में रहना चाहते हैं. तुम इस घर में आराम से रहो. मैं स्वीटी के साथ जा कर रह लूंगा. उसे तलाक के एवज में उस के पति का एक फ्लैट मिल गया है.’’ मां तो सुन कर जैसे जड़ हो गई.
अपने रिश्तेदार से मो ने गुहार लगाई अपना घर बचाने की लेकिन हुआ कुछ नहीं. पापा भी गहरे सदमे में थे. खुद को गुनहगार मान रहे थे कि बेटी से पूछे बिना उस की शादी का फैसला लिया था. ‘‘सुजीत, मैं घर छोड़ कर जा रही हूं. अभि मेरे पास ही रहेगा,’’ वंशिका ने अपना फैसला सुना दिया. सुजीत ने फिर से दांव खेला, ‘‘अभि और घर दोनों में से किसी एक को चुन लो.
दोनों चाहिए तो अपना फैसला बदल लो. घर में ही रहो. मैं तुम्हें छोड़ नहीं रहा हूं बस स्वीटी के साथ रहने की अनुमति मांग रहा हूं.’’ वंशिका भीतर तक तिलमिला उठी थी लेकिन बोलने का कोई फायदा नहीं था.
अपना सामान पैक कर, अभि की उंगली पकड़े स्टेशन पर आ गई. जिंदगी का पहला फैसला उस ने खुद लिया था. यह पहला सफर था जिस पर अकेली निकली थी. अभि के सिवा अपना कोई नहीं था. उस के सिवा जीवन का कोई मकसद भी नहीं था. दरवाजे की घंटी बजी.
मम्मीपापा शादी से वापस लौट आए थे. पापा शादी में खाना खा कर नहीं आते थे इसलिए उन्हें खाना देने रसोई में चली गई. खाने का उन का मन नहीं था बस एक कप चाय की फरमाइश की उन्होंने. वंशिका भी थकान सी महसूस कर रही थी इसलिए 3 कप चाय बना कर ले आई. मां तो चाय के लिए कभी मना ही नहीं करती थी.
‘‘वंशु, हम ने सोचा है इस बार तुम्हारे जन्मदिन पर एक बड़ा सा फंक्शन करते हैं. क्या कहती हो?’’ पापा ने चाय पीते पीते पूछा. ‘‘पर क्यों पापा? आप का रिटायरमैंट भी है इसी महीने. तो उस दिन करेंगे बड़ा सा फंक्शन,’’ वंशिका ने तुरंत जवाब दिया. ‘‘2 दिन ही हैं बीच में. जन्मदिन और रिटायरमैंट दोनों की पार्टी एकसाथ कर लेंगे,’’ मां कपड़े बदल कर आ गई थी.
चाय का कप उठा कर बोली. ‘‘सुजीत और उस की मां को भी बुलाते हैं इस बार,’’ पापा की इस बात पर वंशिका और मां दोनों चौंक गए. ‘‘उन का क्या मतलब है हमारी पार्टी से? कुछ भी कहते हैं आप भी,’’ मां ने चाय का कप नीचे रख दिया. ‘‘गलत क्या है इस में? सब को बुलाएंगे तो अभि के पापा और उस की दादी को कैसे छोड़ सकते हैं?’’ पापा ने अपनी बात दोहराई.
‘‘अभि का उन से कोई रिश्ता नहीं है, पापा. एक मकान के बराबर कीमत लगाई थी उन्होंने अभि की और रिश्ते शब्द से उन का कोई सरोकार नहीं है. जो औरत मकान के लालच में अपने ही बेटे का घर तुड़वा सकती है वह अभि की कोई नहीं लगती है… वह इंसान जो न मां का हुआ, न प्रेमिका का, न अपने परिवार का. उस से कैसा रिश्ता हो सकता है अभि का?’’
मां और पापा दोनों ने वंशिका को रोका नहीं. सब कहने दिया. उस के बहते आंसुओं को भी नहीं पोंछा. बस इतना ही कहा, ‘‘यही तो उन लोगों को बताना है, बेटा. तुम्हें भी, मु झे भी और तुम्हारी मां को भी… लगातार संपर्क कर रहे हैं वे दोनों. पुरानी रिश्तेदारी का हवाला दे रहे हैं.
उन्हे आईना दिखाना है. सब के सामने यह ऐलान करना है कि उन का तुम से या अभि से कोई रिश्ता हो ही नहीं सकता है. हर रिश्ता लिव इन नहीं होता है कि जब चाहा निभाया जब चाहा तोड़ दिया.’’ पापा चाय के कप रख कर रसोई से बाहर आए तो वंशिका ने उन का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘यस पापा, आप सही कह रहे हैं.’’ तभी वंशिका का फोन बजा. रितु का फोन था. वंशिका सम झ गई कि यह सब उसी का कियाधरा है.