फिट है, तो जो पहनती है उस पर फबता भी है. सुंदर लगती है, तो उस का आत्मविश्वास भी बना रहता है खुद पर. सेहत अच्छी है, तो हर तरह के मनोरंजन में हिस्सा भी लेती है. घर के सारे काम भी कर लेती है. सामाजिक कामों में सक्रिय रहती है और अपनी सखीसहेलियों के साथ मस्ती भी कर लेती है.
आजकल समीर का ध्यान घर के नौकरचाकरों से हट कर सुहानी पर केंद्रित हो गया था. इसलिए घर में काम करने वाले राहत महसूस कर रहे थे.
बच्चों के साथ भी सुहानी का जुड़ाव अच्छा था बिलकुल दोस्तों जैसा. फोन पर बच्चों से बात करती तो कोई पता नहीं लगा सकता कि बच्चों से बात कर रही है या हमउम्र से. जबकि समीर बच्चों के साथ फोन पर बातचीत में गंभीरता ओढ़े रहते. बच्चे भी उन से सिर्फ मतलब की बात करते, फिर गप मम्मी से ही मारते.
अगले दिन सुहानी ने ऐलान किया कि उस की मित्रमंडली पिकनिक जा रही है. शाम को लौटने में थोड़ी देर हो जाएगी. समीर चाहे तो पूरे दिन का अपना कोई प्रोग्राम बना सकते हैं.
‘‘तुम पूरे दिन के लिए चली जाओगी, तो मैं क्या करूंगा पूरे दिन अकेले?’’ समीर आश्चर्य से बोले.
‘‘अब क्या करूं डियर, खुद से प्यार करना है तो मेहनत तो करनी ही पड़ेगी न. यों घर में रह कर मैं खुद को सजा नहीं दे सकती. तुम्हें तो घर में बैठना पसंद है, पिकनिक जाना, पिक्चर देखना, घूमनाफिरना तुम्हें अच्छा नहीं लगता. इसलिए मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहती. पर मैं खुद से प्यार करने लगी हूं, इसलिए खुद की खुशी के लिए जो मुझे पसंद है वह तो मैं करूंगी. अभी तो हमारा शहर से बाहर जाने का प्रोग्राम भी बन रहा है कुछ दिनों का. यह सब तो अब चलता ही रहेगा. तुम अकेले रहने की आदत अब डाल ही लो.
‘‘और फिर, मैं जब खुद खुश रहूंगी तभी तो तुम से…’’ सुहानी ने बात फिर से अधूरी छोड़ दी. समीर के दिल की धड़कन तेज हो गई. सुहानी आजकल तीर सीधे उन के दिल पर छोड़ने लगी थी. अब अकसर यही होने लगा. सुहानी का प्रोग्राम कभी कहीं और कभी कहीं का बन जाता. वह दिनोंदिन और भी खुश होती दिखाई दे रही थी.
कभीकभी समीर को लगता, कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं. कहीं सुहानी इस उम्र में हाथ से तो नहीं निकली जा रही. आम कुरतासलवार और साड़ी पहनने वाली सुहानी इन दिनों अपने कपड़ों में भी तरहतरह के प्रयोग करने लगी थी. कभी कुरती के साथ लहंगा, कभी पैंट्स, कभी प्लाजो, कभी फ्लेयर्स, जो भी शालीन फैशन था अपनाने लगी थी. उस की दोस्ती कालोनी की अपने से कम उम्र की महिलाओं से होने लगी थी. बहू से उस की बातें मेकअप, फैशन, नई फिल्मों, हीरोहीरोइनों व क्रिकेटरों को ले कर होतीं. यह नहीं कि ‘हमारे जमाने में ये होता था…हमारे जमाने में वो होता था.’
खुद से प्यार करना इतना अच्छा होता है क्या? समीर बारबार सोचने के लिए मजबूर हो जाते. सुहानी खुद से प्यार कर के इतनी बदल सकती है तो वे खुद क्यों नहीं.
सुबह नाश्ते में सुहानी समीर के टोस्ट पर मक्खन की मोटी परत लगा रही थी, ‘‘अरे, यह क्या कर रही हो सुहानी. खुद तो सूखा टोस्ट खाती हो और मेरे टोस्ट पर इतना मक्खन लगा रही हो. कितना वजन बढ़ गया है मेरा. तुम नहीं चाहतीं कि मेरा वजन कम हो. कल से फल, दूध, दही, दलिया वगैरह दिया करो, ये घीमक्खन आदि सब बंद.’’
‘‘क्यों?’’ सुहानी हैरानी से बोली हालांकि अंदर से वह खुश हुई जा रही थी, ‘‘तुम्हें तो टोस्ट पर जब तक ज्यादा मक्खन न लगे, मजा नहीं आता, बिना घी की छौंक लगे दाल हजम नहीं होती. परांठा भी एक दिन छोड़ कर देशी घी या मक्खन में बनना चाहिए. पूरीकचौड़ी, पकौड़े भी तुम्हें बहुत पसंद हैं अभी भी.’’
‘‘मैं ने कह दिया न कि अब सब बंद. जो मैं कह रहा हूं वही करो,’’ समीर दिखावटी गुस्से में बोले.
खाने के बाद सुहानी स्वीटडिश ले आई. समीर को खाने के बाद मीठा जरूर चाहिए था. इस के अलावा भी उन्हें मीठा बहुत पसंद था.
‘‘अरे, तुम यह मीठा बनाना जरा कम करो सुहानी. क्यों बनाती हो इतना मीठा, बना देती हो, फिर खाना पड़ता है,’’ समीर सारा दोष उस के सिर पर मढ़ते हुए बोले.
‘‘हां, पर तुम्हें पसंद है, तभी बनाती हूं. नहीं बनाती हूं तो तुम गुड़ या चीनी ही खा जाते हो. पर मीठा तुम्हें जरूर चाहिए खाने के बाद,’’ सुहानी अपनी मुसकान छिपाते हुए बोली, ‘‘तुम्हारे लिए ही बनाती हूं, मैं तो खाती भी नहीं हूं.’’
‘‘वही तो, तुम तो चाहती हो कि तुम दुबलीपतली रहो और मैं फैल कर एक क्ंिवटल का हो जाऊं.’’
सुहानी हतप्रभ हो समीर को देखती रह गई. समीर आगे बोले, ‘‘ऐसे क्या देख रही हो, कल से रोज का मीठा बंद. देखा नहीं था पिछली बार शुगर नौर्मल लिमिट को क्रौस कर गई थी. पर तुम्हें मेरी सेहत का जरा भी खयाल नहीं. और होगा भी कैसे, तुम्हें अपने सैरसपाटे, पिकनिक, सहेलियों से फुरसत मिले तब तो. हां, कभीकभार की बात अलग है.’’
सुहानी अपलक समीर को देखती रह गई. चित भी मेरी पट भी मेरी. ‘‘ठीक है,’’ वह स्वीटडिश उठाती हुई बोली, ‘‘जैसा तुम कहो. मुझे तो खुद के बाद तुम से ही प्यार करना है.’’ सुहानी तिरछी नजर से समीर को देख रही थी, समीर घायल होतेहोते बचे.
‘खानपान और दिनचर्या पर कंट्रोल रखना पति या पत्नी पर एकदूसरे की बस की बात नहीं होती. जबरदस्ती करने या टोकाटाकी करने से झगड़ा होने का पूरापूरा अंदेशा रहता है. यह तभी हो सकता है जब खुद अंदर से ही सोच आ जाए,’ सुहानी ने यह सोचा.
एक दिन समीर से मिलने 2 आदमी आए. समीर अंदर आए, सुहानी से चाय बनाने के लिए कहा. थोड़ी देर बाद दोनों आदमी चले गए.
‘‘कौन थे ये, पहले तो कभी नहीं देखा इन्हें?’’ सुहानी बोली.
‘‘यहां एक संस्था है गोकुल,’’ समीर बोले, ‘‘जो विकलांग लोगों के लिए काम करती है. ये दोनों उसी संस्था के लिए काम करते हैं. मैं सोचता हूं सुहानी, गोकुल संस्था मैं भी जौइन कर लूं. समय भी अच्छा बीतेगा, बिजी भी रहूंगा और एक नेक काम भी होगा. क्यों, तुम क्या कहती हो?’’ समीर ने सुहानी की तरफ देखा.
‘‘मैं क्या कहूंगी, जो तुम ने सोचा, ठीक ही सोचा होगा,’’ सुहानी बोली और मन ही मन सोचा, ‘घर में भी सुखशांति रहेगी, काम वाले भी आराम से काम करेंगे.’
दूसरे दिन जब सुहानी जौगिंग के लिए तैयार हो कर कमरे से बाहर आई तो लौबी में समीर को ट्रैक सूट व जूतों से लैस पाया. वह खुशी से भीगी आंखों से समीर को देखती रह गई. वह तो यही सोच रही थी कि समीर अभी भी बिस्तर पर गुड़मुड़ सो रहे होंगे. उस ने ध्यान भी नहीं दिया कि कब समीर उठ कर दूसरे बाथरूम में जा कर तैयार हो कर आ गए.
‘‘समीर तुम? आज इतनी जल्दी कैसे उठ गए?’’ सुहानी करीब आ कर खड़ी हो गई, ‘‘कहां जा रहे हो?’’
‘‘लव इन सिक्सटीज डियर,’’ समीर उसी के अंदाज में उस के गालों पर चिकौटी काट कर होंठों को उंगली से सहलाते हुए बोले, ‘‘मैं ने सोचा कि तुम ही क्यों, मैं क्यों नहीं प्यार कर सकता सिक्सटी में खुद से. खुद से प्यार करूंगा, तभी तो तुम से…’’ कह कर समीर बहकने का नाटक करते हुए उस की तरफ झुक गए.
‘‘ऊं हूं,’’ सुहानी पीछे हटती हुई बोली, ‘‘मुझ से अभी नहीं. पहले खुद से तो ठीक से प्यार करना सीख लो. लेकिन सोच लो, प्यार की डगर बहुत कठिन होती है, फिसलनभरी होती है. बहुत हिम्मत, सब्र व लगन के साथ आगे बढ़ना पड़ता है. फिर चाहे प्यार खुद से करना हो या दूसरे से. कर पाओगे? बीच राह में हिम्मत तो नहीं हार जाओगे?’’
‘‘अब प्यार किया तो डरना क्या, ओखली में सिर दे दिया तो मूसल से क्या डरना. औरऔर…’’
‘‘बस, बस. बहुत हो गए मुहावरे,’’ सुहानी हंसती हुई बोली.
‘‘ओके डार्लिंग, मैं चला,’’ कह कर समीर 2 उंगलियों से स्टाइल से बाय कहते हुए बाहर निकल गए.
अपनी जीत पर मन ही मन मुसकराती सुहानी ने मेन दरवाजे की चाबी घुमाई और दौड़ती हुई समीर की बगल में जा कर कदमताल करती हुई दौड़ने लगी. सुबह का खूबसूरत समां था. पक्षियों का दिलकश कलरव था और सिक्सटीज की उम्र में खुद से प्यार करने का कुछ अलग ही मजा था.