रिश्ते दिल से निभाएं या दिमाग से

बरखा जब शादी के बाद अपने ससुराल आई तो बेहद खुश थी. उसे अपनी ननद श्रेया के रूप में एक बेहद अच्छी सहेली जो मिल गई थी. बरखा के  इस नए घर में बस श्रेया ही एक ऐसी थी जो उस की हर बात को सुनती थी और अपने घर वालों की निजी बातें भी बरखा को बताती थी.

जब श्रेया ने बरखा को एक विवाहित पुरुष से अपने संबंधों के बारे में बताया तो बरखा ने उसे रोकना चाहा, परंतु श्रेया ने कहा, ‘‘भाभी प्यार तो प्यार है, आप के भी तो शादी से पहले कितने अफेयर थे क्या मैं ने कभी किसी के साथ यह बात शेयर की?’’

बरखा चुप लगा गई. बाद में जब बरखा के परिवार को यह पता चला कि श्रेया के अफेयर के बारे में बरखा पहले से जानती थी तो उसे खूब खरीखोटी सुनाई गई.

अनु की मम्मी सिंगल मदर हैं. वे घरबाहर सब संभालती हैं और अनु की हर जरूरत को पूरा करती हैं, परंतु अनु जैसे ही अपने हिसाब से कुछ करने की कोशिश करती है तो उस की मम्मी का लैक्चर शुरू हो जाता है, ‘‘मैं अकेली कमाने वाली हूं, पूरी जिंदगी तेरे कारण स्वाहा कर दी है, परंतु तू फिर भी मनमानी करने लगी है.’’

अनु के शब्दों में ऐसा लगता है कि मम्मी ने उसे पाल कर कोई एहसान किया है?

‘‘मुझे खुश होने या अपने हिसाब से काम करने का कोई हक नही है,’’ अनु अपनी मम्मी की जोड़तोड़ वाली आदत से परेशान हो चुकी है.

प्रिया के पति पंचाल जब मरजी होती है प्रिया को इग्नोर करने लगते हैं और जब इच्छा होती है प्रिया से लाड़ लड़ाने लगते हैं. प्रिया के कुछ कहने पर पंचाल का एक ही राग होता है कि प्रिया ये मेरा वर्कप्रैशर इस के लिए जिम्मेदार है.’’

पंचाल इतना अधिक विक्टिमप्ले करती है कि बहुत बार प्रिया खुद ही गिल्टी महसूस करने लगती है.

उधर राधा का हाल ही अलग है. वह हर घटना, हर चीज को अपने हिसाब से मैनीपुलेट करती हैं. अगर राधा का मन करता है तो वह रातदिन काम करती हैं और बेटेबहू के कहने पर बोलती हैं कि अरे काम करते रहने से मेरे हाथपैर चलते रहेंगे और अगर मन नहीं करता तो बेटेबहू को ताने देने लगतीं कि इस उम्र में भी उन्हें खटना पड़ रहा है.

अगर गहराई से सोचा जाए तो ऐसे लोग हमारे घरपरिवार में बड़ी आसानी से मिल जाएंगे. ऐसे लोग हर रिश्ते को जोड़तोड़ के साथ निभाने में यकीन करते हैं. उन्हें सामने वाले के दुखदर्द से कोई मतलब नहीं होता है. उन्हें मतलब होता है बस अपनेआप से. ऐसे लोग रिश्तों में इस तरह सेंध लगाते हैं कि धीरेधीरे वे खोखले हो जाते हैं.

‘‘मैं ही सबकुछ करता या करती हूं.’’

‘‘मेरे पास पैसे कम हैं न तभी तुम मुझ से कतराते हो.’’

‘‘लोग मेरे लिए नहीं, मेरे काम के लिए

रोते हैं.’’

‘‘तुम्हें तो मैं अपना सबकुछ मानती हूं.’’

इस तरह के कितने ही जैसे कितने ही जुमले हैं जो आप ने पहले भी सुने होंगे. इन्हें किस तरह से जोड़तोड़ कर के अपने फायदे के लिए यूज करे यह लोग अच्छी तरह से जानते हैं.

आप को ही बोलने का मौका देना:

अगर आप के इर्दगिर्द ऐसा कोई करीबी है तो सावधान हो जाएं. मैनीपुलेटर ज्यादा से ज्यादा आप को ही बोलना का मौका देते हैं क्योंकि जितना आप बोलेंगे उतने ही अपने दिल के राज खोलेंगे. वे आप की हर बात को बहुत ध्यान से सुनेंगे, आप को इतना खास महसूस करवाएंगे कि आप उन्हें अपना हितैषी समझ कर अपनी जिंदगी की कुछ ऐसी बातें भी उन से शेयर कर लेते हैं जो बाद में ही भारी पड़ सकती हैं.

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आप के बेहद करीब होना:

ऐसे व्यक्तित्व वाले लोग आप के बेहद करीब होने के लिए कुछ अपनी बेहद निजी बातें भी शेयर कर सकते हैं. वे आप को भरसक यह विश्वास दिलाने का प्रयास करेंगे कि वे आप के ऊपर कितना भरोसा करते हैं. अगर आप उन से दूरी बना कर रखना भी चाहेंगे तो भी वे ऐसे व्यवहार करेंगे जैसे आप उन के साथ बहुत अन्याय कर रहे हैं. आप के अलावा उन के लिए कोई भी व्यक्ति अधिक महत्त्वपूर्ण नही है.

विक्टिम कार्ड खेलना:

मैनीपुलेटिव लोग पहले कुछ गलत करते हैं और अगर आप उन से इस बारे में सवालजवाब करते हैं तो वे लोग ऐसा बीहेव करते हैं जैसे गलत उन्होंने नहीं आप ने उन के साथ किया हो. उन से तो जो भी हुआ अनजाने में हुआ पर आप बारबार सवालजवाब कर के उन्हें परेशान करना चाहते हैं या नीचा दिखाना चाहते हैं. अंतत: ऐसे लगने लगता है कि आप ही गलत हैं और आप ही उन की माफी के लिए गिड़गिड़ाने लगते हैं.

पैसिवअग्रैशन:

मैनीपुलेटिव व्यक्तियों की एक खास पहचान यह होती है कि वे कभी भूल कर भी सामने से अटैक नहीं करते हैं. अगर आप की कोई बात उन्हें बुरी लगती है या आप उन का कहना नहीं मानते है तो वे अपने में चले जाते हैं. आप चाह कर भी उन से बातचीत नहीं कर पाते हैं और न ही यह जान पाते है कि उन के दिमाग के अंदर क्या चल रहा है. ऐसे लोग एक अलग सी पावर गेम खेलते हैं, इस पावर गेम में वे चुप रह कर अपनी नाराजगी जाहिर करते हैं. पैसिव अग्रैशन रिश्तों के गणित के लिए ज्यादा तकलीफदेह होता है. यह चुप्पी इतना अधिक तनाव देती है कि सामने वाला इंसान खुद को ही दोषी मान कर झक जाता है.

आप तो ऐसे न थे:

अगर आप कोई काम उन के हिसाब से नहीं करते हैं या उन की बात नहीं सुनते हैं तो बारबार आप को यह एहसास दिलाया जाता है कि आप कितने बदल गए या गई हैं. यह बात इतनी बार दोहराई जाती है कि आप खुद पर ही शक करने लगते हैं. आप को लगने लगता है कि जरूर आप के अंदर ही कुछ नकारात्मक बदलाव आ गए हैं जो उन के लिए बेहद तकलीफदेह हैं.

आप के शब्द आप के खिलाफ इस्तेमाल करना:

अगर आप उन्हें किसी गलत बात पर टोकते हैं तो वे अपनी गलती मनाने के बजाय आप की कोई पुरानी बात ढूंढ़ कर ले आएंगे कि आप ने भी फलां घटना में ऐसे ही व्यवहार किया था. आप के गुस्से को भड़का कर वे खुद शांत हो जाएंगे. जब आप भड़क कर उन्हें भलाबुरा कह देंगे तो वे घडि़याली आंसू बहा कर खुद को निर्दोष साबित कर देते हैं.

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कड़वी बातों को मजाक की चाशनी में परोसना:

यह मैनीपुलेटिव लोगों का एक अनोखा गुण होता है कि कड़वी और तीखी बात कह कर वे यह बोल देते हैं, ‘‘अरे मैं तो मजाक कर रहा था या थी. तुम्हें सच लग रहा हैं तो मैं क्या करूं?’’

सामने वाले के दिल को दुखाने में उन्हें असीम आनंद आता है पर वे दिल दुखा कर भी बड़ी साफगोई से बच निकलते हैं.

ऐसे लोग दोस्त, साथी या रिश्तेदार के रूप में आप के आसपास अवश्य होंगे. जरूरत है उन की बातों या कृत्यों से खुद को दोषी न मानें. आप अपनी जगह बिलकुल सही हैं. उन के हिसाब से खुद को बदलने के उन्हें बदलने को कहें. रिश्तों को जोड़तोड़ से नहीं बल्कि समझदारी और प्यार से निभाया जाता है.

कामकाजी पति-पत्नी : आमदनी ही नहीं खुशियां भी बढ़ाएं

एक समय था जब महिलाओं का कार्यक्षेत्र घर की चारदीवारी तक सीमित था. पुरुष घर से बाहर कमाने जाते थे और महिलाएं गृहस्थी संभालती थीं. लेकिन आज हालात बदल गए हैं. महिलाएं गृहस्थी तो अब भी संभालती हैं, साथ ही नौकरी भी करती हैं. मगर दोनों के नौकरीपेशा होने से परिवार की आमदनी भले ही बढ़ जाती हो, लेकिन दंपती के पास एकदूसरे के लिए समय नहीं बचता.

कहने का तात्पर्य यह है कि दोनों इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें एकदूसरे से बतियाने तक का समय नहीं मिल पाता है.

ऐसे में कामकाजी महिला के पास पति और बच्चों के लिए ही समय नहीं होता है, तो किट्टी पार्टी, क्लब जाने या सखीसहेलियों से गप्पें लड़ाने का तो सवाल ही नहीं उठता है.

पत्नी पर निर्भर पति

भारतीय समाज में पुरुष भले ही घर का मुखिया हो, पर वह हर बात के लिए पत्नी पर निर्भर रहता है. यहां तक कि अपनी निजी जरूरतों के लिए भी उसे पत्नी की जरूरत होती है. पत्नी बेचारी कितना ध्यान रखे? पति को हुक्म चलाते देर नहीं लगती, लेकिन पत्नी को तत्काल पति की खिदमत में हाजिर होना पड़ता है अन्यथा ताने सुनने पड़ते हैं कि उसे तो पति की परवाह ही नहीं है. अब जब वह काम के बोझ तले इतनी दबी हुई है कि स्वयं खुश नहीं रह पाती है, तो भला पति को कैसे खुश रखे? जरा सी कोताही होने पर पति के तेवर 7वें आसमान पर पहुंच जाते हैं.

कैसी विडंबना है कि पत्नी अपने पति की सारी जरूरतों का ध्यान रखती है, फिर भी प्रताडि़त होती है और पति क्या वह अपनी पत्नी की इच्छाओं, भावनाओं और जरूरतों का ध्यान रख पाता है? क्या पति ही थकता है, पत्नी नहीं?

कामकाजी पतिपत्नी को एकदूसरे की पसंदनापसंद, व्यस्तता और मजबूरी को समझना होगा. तभी वे सुखी रह सकते हैं.

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कामकाजी दंपती कहीं जाने का कार्यक्रम बनाते हैं. लेकिन यदि उन में से किसी एक को छुट्टी नहीं मिलती है, तो ऐसे में यात्रा स्थगित करनी पड़ जाती है. इसे सहज रूप में लेना चाहिए. इसी तरह शाम को कहीं होटल, पार्टी में जाने का प्रोग्राम बना हो, लेकिन किसी एक को दफ्तर में काम की अधिकता की वजह से आने में देर हो जाए, तो उस की यह विवशता समझनी चाहिए.

कामकाजी दंपतियों में औफिस का तनाव भी रहता है. हो सकता है उन में से किसी एक का बौस खड़ूस हो, तो ऐसे में उस की प्रताड़ना झेल कर जब पति या पत्नी घर आते हैं, तो वे अपनी खीज साथी या फिर बच्चों पर उतारते हैं. उन्हें ऐसा न कर एकदूसरे की समस्याओं और तनाव पर चर्चा करनी चाहिए. यदि वे एकदूसरे को दोस्त मानते हुए अपना तनाव व्यक्त करते हैं, तो वह काफी हद तक दूर हो सकता है.

थोपा गया निर्णय गलत

कई बार किसी बात या काम के लिए एक का मूड होता है और दूसरे का नहीं. बात चाहे मूवी देखने या शौपिंग करने की हो, होटल में खाना खाने की हो या कहीं जाने की. यदि दोनों में से एक की इच्छा नहीं है, तो दूसरे को उसे अन्यथा नहीं लेना चाहिए या फिर एक को दूसरे की भावनाओं की कद्र करते हुए इस के लिए खुद को तैयार करना चाहिए. लेकिन जो भी निर्णय हो वह थोपा गया या शर्तों पर आधारित न हो.

कामकाजी पतिपत्नी को एकदूसरे से उतनी ही अपेक्षा रखनी चाहिए, जिसे सामने वाला या वाली बिना किसी परेशानी में पड़े पूरा कर सके.

कामकाजी दंपतियों को जितना भी वक्त साथ गुजारने के लिए मिलता है उसे हंसीखुशी बिताएं न कि लड़ाईझगड़े या तनातनी में. इस कीमती समय को नष्ट न करें. घर और बाहर की कुछ जिम्मेदारियों को आपस में बांट लें.

जिस के लिए जो सुविधाजनक हो वह जिम्मेदारी अपने जिम्मे ले ले. इस से किसी एक पर ही भार नहीं पड़ेगा.

माना कि कामकाजी दंपती की व्यस्तताएं बहुत अधिक होती हैं, लेकिन उन्हें दांपत्य का निर्वाह भी करना है. यदि दोनों के पास ही एकदूसरे के लिए समय नहीं है, तो ऐसी कमाई का क्या फायदा? कुछ समय तो उन्हें एकदूसरे के लिए निकालना ही चाहिए. इसी में उन के दांपत्य की खुशियां निहित हैं.

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अहंकार से टूटते परिवार

पुरानी मान्यताओं के हिसाब से बेटी की शादी करने के बाद मातापिता उस की जिम्मेदारियों से पल्ला झड़ लेते थे. लड़की की मां चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती थी. लड़के की मां को ही पतिपत्नी के बीच तनाव का कारण माना जाता था. मगर आधुनिक युग में बेटी के प्रति मातापिता की सोच बहुत बदली है. ज्यादातर घरों में पति से ज्यादा पत्नी का वर्चस्व नजर आने लगा है. इसलिए बेटी की ससुराल में होने वाली हर छोटीबड़ी बात में उस की मां का हस्तक्षेप बढ़ने लगा है.

आजकल की बेटियों का तो कुछ पूछो ही नहीं. अपने घर की हर बात अपनी मां को फोन से बताती रहती हैं. छोटेछोटे झगड़े या मनमुटाव जो कुछ देर बाद अपनेआप ही सुलझ जाता है उसे भी वे मां को बताती हैं. मांपिता को पता लग जाने मात्र से बखेड़ा शुरू हो जाता है.

बहू के घर वाले खासकर उस की मां उसे समझने के बदले उस की ससुरालवालों से जवाब तलब करने लगती है, जिसे लड़के के घर वाले अपने सम्मान का प्रश्न बना लेते हैं और अपने लड़के को सारी बातें बता कर उसे बीच में बोलने के लिए दबाव बढ़ाने लगते हैं.

पति को अपने मातापिता से जब अपनी ससुराल वालों के दखलंदाजी की बातें मालूम होती हैं, तो वह इसे अपने मातापिता का अपमान समझ कर गुस्से में आ कर पत्नी से झगड़ पड़ता है. उधर पत्नी भी अपने मातापिता के कहने पर उन के सम्मान के लिए भिड़ जाती है. मातापिता के विवादों की राजनीति में पतिपत्नी के बीच बिना बात झगड़ा और तनाव बढ़ता है.

छोटीछोटी बातों का बतंगड़

हर मातापिता जब अपने बच्चों की शादी करते हैं तो उन की खुशहाली ही चाहते हैं. फिर भी अपनी अदूरदर्शिता के कारण अपने ही बच्चों की जिंदगी बरबाद कर देते हैं. आजकल बेटी की मां को लगता है कि वह बराबर कमा रही है तो किसी की कोई बात क्यों सुने? यह बात भी सही है, गलत बात का विरोध करना चाहिए, अत्याचार नहीं सहना चाहिए, पर अत्याचार या कोई गलत व्यवहार हो तब न.

अकसर छोटीछोटी बातों का ही बतंगड़ खड़ा होता है. जरूरी नहीं है कि हर बात के लिए उद्दंडता से ही बात की जाए. अगर कोई बात पसंद नहीं आती हो तो बड़ों का अपमान करने के बदले शांति से समझ कर भी बातें की जा सकती हैं. बातबात पर उलझ कर यह बताना कि हम बराबर कमाते हैं, इसलिए हम किसी से कम नहीं, मेरी ही सारी बातें सही हैं जैसी बातें करना गलत है.

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लड़कियों में इस तरह की बढ़ती स्वेच्छाचारिता उन की स्वत्रतंता को नहीं दर्शाती है, बल्कि उन की उद्दंडता को ही दर्शाती है. किसी भी चीज का विरोध शांतिपूर्ण ढंग से भी समझ कर किया जा सकता है. लड़की को भी समझना चाहिए कि यह उस का घर है और घर की भी अपनी एक मर्यादा होती है.

बेवजह की बातें

मेरे पड़ोस में रिटायर बैंक कर्मचारी रहते हैं. उन का बेटा एक सरकारी औफिस में ऊंचे पद पर कार्यरत है. उन की बहू भी बेटे के औफिस में नौकरी करती है. हाल ही में उन्हें पोता हुआ, तो उन्होंने कोरोना को देखते हुए कुछ अती करीबी लोगों को ही बुलाया.

लड़के की बूआ बहू को बच्चे की बधाइयां देते हुए बोली, ‘‘समय से पहले ही बच्चे का बर्थ हो जाने से बच्चा बहुत कमजोर है. लगता है बहू कोल्डड्रिंक और फास्टफूड ज्यादा खाती थी तभी बच्चे का जन्म समय से पहले हो गया.’’

तुरंत लड़के की मां ने विरोध किया, ‘‘नहीं… ऐसी कोई बात नहीं है दीदी… बस हो जाता है कभीकभी.’’

पास में बैठी बहू की बहन ने सुन लिया. तुरंत रिएक्ट करते हुए बोली, ‘‘अच्छी बात है जिस के मन में जो आता है वही बोल जाता है. दीदी तुम ने विरोध क्यों नहीं किया, यों ही कब तक घुटघुट कर जीती रहोगी.’’

संयोग से तब तक बूआजी बगल वाले कमरे में चली गई थीं.

तुरंत बहू की मां ने रिएक्ट किया, ‘‘जिसे पूछना है मुझ से पूछे, दामादजी से पूछे, यों मेरी बेटी को जलील करने का उन्हें कोई हक नहीं है. वह कोई गंवार लड़की नहीं है, दामादजी के बराबर कमाती है.’’

लड़के की मां दौड़ी आईं, ‘‘कुछ मत बोलिए, वह घर की सब से बड़ी है. जो भी कहना हो बाद में मुझ से कह लीजिएगा.’’

तुरंत बहू बोली, ‘‘मेरी मां ने ऐसा क्या गलत कह दिया जो आप लोग उसे चुप कराने लगे?’’

फिर से बहन बीच में पड़ी, ‘‘इस सब में सब से ज्यादा गलती तो जीजाजी की है. वे अपनी बूआ से क्यों नहीं पूछते हैं कि वह इस तरह का ऊटपटांग बातें क्यों करती है.’’

तुरंत लड़़के की मां बोली, ‘‘मेरे बेटे के बाप की तो हिम्मत ही नहीं है कि अपनी बहन से सवाल पूछे. फिर मेरा बेटा क्या पूछेगा? अपने घर में हम अपने से बड़ों से उद्दंडता से बातें नहीं करते.’’

छोटी सी बात थी मगर

एक 80 साल के बुजुर्ग की बातों को ले कर दोनों परिवारों में कितने दिनों तक ठनी रही. लड़की के मातापिता अपनी बेटी को कहते कि उस की ससुराल में उन का अपमान हुआ है. वे लड़के वाले हैं तो क्या हुआ, मेरी बेटी उन के घर में इस तरह की उलटासीधी बात क्यों सुनेगी. लड़के की बूआ माफी मांगे वरना हम लोग लीगल ऐक्शन भी ले सकते हैं.’’

जब बहू ने ये सब बातें अपनी ससुराल में बोलीं तो लड़के के मातापिता बिगड़ गए, लड़के की मां बोली, ‘‘अच्छी जबरदस्ती है. मेरे घर की हर बात में टांग अड़ाते हैं, उलटे हमें धमकियां भी देते हैं. जो करना है करें, इतनी सी बात के लिए कोई माफी नहीं मांगेगा. इतना गुमान है तो रखें अपनी बेटी को अपने घर.’’

यह छोटी सी बात इतनी बढ़ी कि लड़की की मां अपनी बेटी को अपने घर ले गईं. न चाहते हुए भी पतिपत्नी, एकदूसरे से अलग हो गए. अपनेअपने मातापिता की प्रतिष्ठा बचातेबचाते बात तलाक तक पहुंच गई. बड़ी मुश्किल से लड़के के दोस्तों ने बीच में पड़ कर बात को संभाला.

गलत सलाह कभी नहीं

वंदना श्रीवास्तव एक काउंसलर है के अनुसार मातापिता के बेटी की ससुराल में छोटीछोटी बातों में दखल देने और लड़के के मातापिता के अविवेकी गुस्से और नासमझ भरी जिद्द से आज परिवार तेजी से टूट रहे हैं. वंदनाजी के अनुसार, उन के पास ज्यादातर ऐसे ही मामले आते हैं, जिन में मां की गलत सलाह के कारण बेटियों के घर टूटने के कगार पर होते हैं.

मेरे पड़ोस में एक सिन्हा साहब रहते हैं. उन्होंने अपनी इकलौती संतान अपने बेटे की शादी बड़ी धूमधाम से की. बहू को बेटी का मान देते थे. बहू भी बहुत खुश रहती थी और आशाअनुरूप सब से काफी अच्छा व्यवहार करती थी.

1 महीने बाद बेटा बहू के साथ दिल्ली लौट गया. वह वहीं जौब करता था. बहू भी वहीं जौब करती थी. जब बहू गर्भवती हुई बेटा मां को अपने पास बुला लाया, पर यह बात बहू की मां को पसंद नहीं आई. पहले वह समधन को यह कर घर लौटने की सलाह देती रही कि अभी से रह कर क्या कीजिएगा, समय आने पर देखा जाएगा. जब वह नहीं लौटी तो वह बेटी को समझने लगी कि जरूर तुम्हारी सास के मन में कुछ है, उन के हाथों का कुछ भी मत खानापीना.

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जैसे ही लड़के की मां की समझ में यह बात आई, वह वहां से जाने को तैयार हो गई, लेकिन बेटे के काफी अनुरोध करने पर उस की मां को वहां रुकना ही पड़ा. जब बच्चे का जन्म हुआ बहू की मां भी आ गई. फिर तो वह बच्चे को दादीदादा को छूने ही नहीं देती थी. बहू का व्यवहार अपनी मां को देख बदलने लगा. सीधीसादी सास उसे कमअक्ल नजर आने लगी. अपनी मां का साथ देते हुए सास से बुरा व्यवहार करने लगी. फिर अपनी मां के साथ अचानक मायके चली गई.

सासूमां और ससुरजी पटना लौट आए. तब से वे लोग बेटे के घर नहीं जाते हैं. बेटा खुद अपने मातापिता से मिलने आता है. रोज फोन भी करता है. बहू को ये सब पसंद नहीं है इसलिए घर में हमेशा तनाव बना रहता है. बहू के मां के कारण एक खुशहाल परिवार तनाव में जीता है.

अगर अपनी बेटी को सुखी रखना है तो खासकर लड़की की मां को बेटी का रिश्ता ससुराल में मजबूत बनाने में मदद करने के लिए उसे अच्छी सलाह देनी चहिए ताकि अपने अच्छे आचारविचार से वह सब का दिल जीत कर सब का प्यार और सम्मान पा सके. मां की जीत तभी है जब बेटी की ससुराल वाले उस पर नाज करें. तभी उस की बेटी खुद भी शांति से रहेगी और दूसरे को भी शांति से रहने देगी.

वहीं लड़के के मातापिता को बहू के मायके वालों की बातों को अपने सम्मान का विषय न बना कर इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों का घर छोटीछोटी बातों से न टूटे वरना मातापिता के अहं की लड़ाई में बिना कारण बच्चों के घर टूटते रहेंगे.

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पिता के अमीर दोस्त, मां के गरीब रिश्तेदार

रिश्तों की अपनी अहमियत होती है. बिना रिश्तेदारों के जिंदगी नीरस हो जाती है व अकेलापन कचोटने लगता है. जिंदगी में अनेक अवसर ऐसे आते हैं जब रिश्तों के महत्त्व का एहसास होता है.

अकसर देखने में आता है कि किशोरकिशोरियां उन रिश्तेदारों को ज्यादा अहमियत देते हैं जो आर्थिक रूप से ज्यादा संपन्न होते हैं और गरीब रिश्तेदारों की उपेक्षा करने में तनिक भी नहीं हिचकिचाते, गरीब रिश्तेदारों को अपने घर बुलाना उन्हें अच्छा नहीं लगता. वे खुद भी उन के घर जाने से कतराते हैं. भले ही बर्थडे पार्टी या शादी हो, अगर जाते भी हैं तो बेमन से.

आज के किशोरकिशोरियों में एक बात और देखने को मिलती है. वे अपने पिता के अमीर दोस्तों का दिल से स्वागत करते हैं. अपने मातापिता की बर्थडे पार्टी या मैरिज ऐनिवर्सरी में वे उन्हें खासतौर से इन्वाइट करते हैं. उन की पसंद की चीजें बनवाते हैं, लेकिन मां के गरीब रिश्तेदारों को बुलाना जरूरी नहीं समझते. यदि मां के कहने पर उन्हें बुला भी लिया, तो उन के साथ उन का बिहेवियर गैरों जैसा रहता है.

सुरेश के मम्मीपापा की मैरिज ऐनिवर्सरी थी. सुरेश और उस की बहन सुषमा एक महीना पहले ही तैयारियों में जुट गए थे. दोनों ने मिल कर मेहमानों की लिस्ट तैयार की और अपनी मम्मी को दिखाई.

लिस्ट में पिता के सभी अमीर दोस्तों का नाम शामिल था. मां को लिस्ट देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ. वे बोलीं, ‘‘अरे, तुम दोनों ने अपने मामामामी, मौसामौसियों के नाम तो लिखे ही नहीं. केवल मुंबई वाले मौसामौसी का ही नाम तुम्हारी लिस्ट में है.’’

यह सुनते ही सुरेश का चेहरा तमतमा उठा. वह बोला, ‘‘मैं आप के गरीब रिश्तेदारों को बुला कर अपनी व पापा की नाक नहीं कटवाना चाहता. न उन के पास ढंग के कपड़े हैं न ही उन्हें पार्टी में मूव करना आता है. क्या सोचेंगे पापा के दोस्त?’’

यह सुन कर मम्मी का चेहरा उतर गया. उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि उन का बेटा ऐसा सोचता होगा. उन की मैरिज ऐनिवर्सरी मनाने की सारी खुशी काफूर हो चुकी थी.

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सुरेश के पिता ने भी सुरेश और सुषमा को बहुत समझाया कि बेटे रिश्तेदार अमीर हों या गरीब, अपने होते हैं. हमें अपने हर रिश्तेदार का सम्मान करना चाहिए.

सुरेश ने मातापिता के कहने पर मम्मी के रिश्तेदारों को इन्वाइट तो कर लिया पर मैरिज ऐनिवर्सरी वाले दिन जब वे आए तो उन से सीधे मुंह बात तक नहीं की. वह पापा के अमीर दोस्तों की आवभगत में ही लगा रहा.

सुरेश की मम्मी को उस पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था, पर रंग में भंग न पड़ जाए, इसलिए वे शांत रहीं और स्वयं अपने भाई, भाभी और अन्य रिश्तेदारों की खातिरदारी करने लगीं.

मेहमानों के जाने के बाद सुरेश और सुषमा मम्मीपापा को मिले गिफ्ट के पैकेट खोलने लगे. उन्होंने मामामामी के गिफ्ट पैकेट खोले तो उन्हें यह देख कर बड़ा ताज्जुब हुआ. उन के दिए गिफ्ट सब से अच्छे व महंगे थे. रोहिणी वाले मामामामी ने तो महंगी घड़ी का एक सैट उपहार में दिया था और पंजाबी बाग वाली मौसीमौसा ने मम्मीपापा दोनों को एकएक सोने की अंगूठी गिफ्ट की थी, जबकि पापा के ज्यादातर अमीर दोस्तों ने सिर्फ बुके भेंट कर खानापूर्ति कर दी थी.

सुरेश व सुषमा ने अपने मम्मीपापा से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘हमें माफ कर दीजिए. हम गलत थे. जिन्हें हम गरीब समझ कर उन का अपमान करते थे, उन का दिल कितना बड़ा है, यह आज हमें पता चला. आज हमें रिश्तों का महत्त्व समझ आ गया है.’’

ऐसी ही एक घटना मोहित के साथ घटी जब उसे गरीब रिश्तेदारों का महत्त्व समझ में आया. मोहित के पापा बिजनैस के सिलसिले में मुंबई गए हुए थे. एक दिन अचानक उस की मम्मी को सीने में दर्द उठा. मम्मी को दर्द से तड़पता देख मोहित ने पापा के दोस्त हरीश अंकल को फोन मिलाया और अस्पताल चलने को कहा तो उन्होंने साफ कह दिया, ‘‘बेटा, रात को मैं कार ड्राइव नहीं कर सकता, तुम किसी और को बुला लो.’’

मोहित ने पापा के कई दोस्तों को फोन किया, पर सभी ने कोई न कोई बहाना बना दिया. मोहित की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे. अचानक उसे मम्मी के चचेरे भाई का खयाल आया जो पास में ही रहते थे. उस ने उन्हें फोन पर मम्मी का हाल बताया तो वे बोले, ‘‘बेटा, तुम परेशान मत हो, मैं तुरंत आ रहा हूं.’’

चाचाजी तुरंत मोहित के घर पहुंच गए. वे अपने पड़ोसी की कार से आए थे. वे मोहित की मम्मी को फौरन अस्पताल ले गए. डाक्टर ने कहा कि उन्हें हार्टअटैक पड़ा है. अगर अस्पताल लाने में थोड़ी और देर हो जाती तो उन्हें बचाना मुश्किल था.

यह सुनते ही मोहित की आंखों में आंसू आ गए. उसे आज रिश्तों का महत्त्व समझ में आ गया था. पिछले दिनों इन्हीं चाचाजी की बेइज्जती करने से वह नहीं चूका था.

किशोरकिशोरियों को रिश्तों के महत्त्व को समझना चाहिए. अमीरगरीब का भेदभाव भूल कर सभी रिश्तेदारों से अच्छी तरह मिलना चाहिए. उन्हें पूरा सम्मान देना चाहिए.

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रिश्तों में मिठास घोलें

रिश्ते अनमोल होते हैं. किशोरकिशोरियों को मां के गरीब रिश्तेदारों को भी इज्जत देनी चाहिए. उन के यहां अगर कोई शादी या अन्य कोई फंक्शन हो तो जरूर जाना चाहिए. ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहिए कि उन्हें अपनी बेइज्जती महसूस हो. चाचाचाची, मामामामी, मौसामौसी से समयसमय पर फोन पर या उन के घर जा कर हालचाल लेते रहना चाहिए, इस से रिश्तों में मिठास घुलती है और रिश्तेदार हमेशा मदद के लिए तैयार रहते हैं.

रिश्तेदारों के बच्चों से भी बनाएं संपर्क

किशोरकिशोरियों को चाहिए कि वे अपने गरीब रिश्तेदारों से न केवल संपर्क बनाए रखें बल्कि उन के बच्चों से भी दोस्त जैसा व्यवहार रखें. उन से फेसबुक, व्हाट्सऐप द्वारा जुड़े रहें. परिवार के फोटो आदि शेयर करते रहें. उन्हें कभी इस बात का एहसास न कराएं कि वे गरीब हैं. चचेरे व ममेरे भाईबहनों से भी अपने सगे भाईबहन जैसा ही व्यवहार करें. इस से उन्हें भी अच्छा लगेगा. आजकल वैसे भी एकदो भाईबहन ही होते हैं. कहींकहीं तो एक भी भाई या बहन नहीं होता. ऐसे में कजिंस को अपना सगा समझें और उन के साथ लगातार संपर्क में रहें.

छुट्टियों में रिश्तेदारों के घर जाएं

स्कूल की छुट्टियों में अपने मम्मीपापा के साथ रिश्तेदारों के घर जरूर जाएं. खासतौर से मम्मी के गरीब रिश्तेदारों के घर. जब आप उन के घर जाएंगे तो उन्हें अच्छा लगेगा. उन के बच्चों यानी अपने कजिंस के लिए कोई न कोई गिफ्ट जरूर ले जाएं. इस से आपस में प्यार बढ़ता है.

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प्यार साथी के घरवालों से

प्यार की परिधि व्यापक होती है. जिस से प्यार होता है उस से संबंधित लोगों, चीजों और बातों आदि तमाम पक्षों से प्यार हो जाता है. प्यार विवाहपूर्व हो तो प्रिय को पाने के लिए उस के घर वालों से भी प्यार उस राह को आसान और सुगम बना देता है और जहां तक विवाह के बाद की बात है, वहां भी साथी के घर वालों से प्यार रिश्तों में मजबूत जुड़ाव और परिवार का अटूट अंग बनाने में सहायक होता है. हमारे यहां विवाह संबंध 2 व्यक्तियों के बजाय 2 परिवारों का संबंध माना जाता है, इसलिए उस में सिर्फ व्यक्ति के बजाय समूह को प्रधानता दी जाती है. केवल प्रिय या अपने बच्चों तक ही प्यार को स्वार्थ माना जाता है. केवल अपने लिए जिए तो क्या जिए? उस तरह तो हर प्राणी जीता है.

दरअसल, बहू हमारे यहां परिवार की धुरी है, उसी पर हमारे वंश का जिम्मा है, इसलिए उसे परिवार की भावना को अगली पीढ़ी में सुसंस्कार डालने वाली माना जाता है.

क्या कहते हैं अनुभव

राजेश्वरी आमेटा ससुराल में काफी लोकप्रिय हैं. उन के पति डाक्टर हैं और उन्हें भी ससुराल पक्ष व उन के परिचितों से बहुत स्नेह मिला. डा. आमेटा कहते हैं, ‘‘मैं स्वभाव से संकोची और कम बोलने वाला था पर बड़े परिवार में शादी होने से मुझे अपने से छोटेबड़ों का इतना मानसम्मान तथा प्यार मिला कि मुझे जो सामाजिकता पसंद न थी, वह भी अच्छी लगने लगी. राजेश्वरी कहती हैं, ‘‘शादी का मतलब ही प्रेम का विस्तार है. मेरी ससुराल में ससुरजी के 3 भाइयों का परिवार एक ही मकान में रहता था, इसलिए दिन भर घर में रौनक व चहलपहल का माहौल रहता था.’’

अगर मन में यह बात रखी जाए कि पारिवारिकता से आप को प्यार देने के साथसाथ उस की प्राप्ति का सुख भी मिलता है, पारिवारिकता आप के मन को विस्तार देती है, समायोजन में सहूलियत पैदा करती है, तो साथी के घर वालों से भी सहज ही प्यार हो जाता है. मनोवैज्ञानिक सलाहकार डा. प्रीति सोढ़ी इस तरह के संबंधों पर मनोवैज्ञानिक रोशनी डालते हुए बताती हैं कि साथी के घर वालों या संबंधियों से प्यार सपोर्टेड रिलेशनशिप कहलाता है. इस से भावनात्मक जुड़ाव मजबूत होता है, आत्मीयता और एकदूसरे के प्रति हमदर्दी में बहुत सपोर्ट मिलता है और लड़ाईझगड़े कम होते हैं. नकारात्मक सोच के लिए कोई मौका नहीं मिलता.

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मिलती सकारात्मक ऊर्जा

हमारे यहां परिवारों में ज्यादातर झगड़े पक्षपात, कमज्यादा लेनदेन व स्नेहभाव कमज्यादा होने पर होते हैं. इसलिए साथी के संबंधियों से प्यार आप का मानसम्मान, हौसला और अहमियत बढ़ाने वाला होता है. लेखिका शिवानी अग्रवाल कहती हैं, ‘‘शुरूशुरू में यह प्यार आप को जतानाबताना पड़ता है, लेकिन धीरेधीरे यह सहज हो जाता है. मसलन, आप उन को बुलाएं, उन का इंतजार करें, उन की पसंदनापसंद का खयाल रखें, उन की जन्मतिथि, शादी की वर्षगांठ आदि याद रखें. यानी भावनात्मक रूप से जुड़ें. फिर ये सब दोनों तरफ से होने लगता है, तो आप अपनेआप पर फख्र करते हैं.’’ आभा माथुर कहती हैं, ‘‘केवल बातों की बादशाही से काम नहीं चलता, उन्हें मूर्त रूप दिया जाना जरूरी होता है. अविवाहित ननद है, तो उस की सहेली बनें. देवर या ननद के छोटेछोटे काम कर दें. साथ खाना खाएं. बाजार से पति बच्चों के लिए कुछ लाएं तो उन्हें न भूलें जैसे सैकड़ों कार्य हैं इस प्यार की अभिव्यक्ति के.’’

सच भी है, साथी के घर वालों से प्यार करने से घरपरिवार में सकारात्मक ऊर्जा रहती है. उन्हें नहीं लगता कि उन का भाई, बेटा, पोता या बहन, बेटी, पोती किसी ने छीन ली या दूर कर ली है. कई बार लगता है एक व्यक्ति से जुड़ कर कई लोगों से रिश्ते बने. अपने घरपरिवार वालों से साथी के बारे में अच्छी प्रतिक्रिया से मन बहुत खुश रहता है. लगता है हमें अच्छा साथी मिला. जिस के साथी की निंदा होती हो, वह अच्छा भी हो, तो भी लगता है जैसे उस व्यक्ति के चयन में कोई गड़बड़ी या गलती हो गई है. एक प्रेमविवाह करने वाला जोड़ा कहता है, ‘‘शुरूशुरू में हम दोनों एकदूसरे में ही खोए हुए थे. इस वजह से हमें किसी और का ध्यान ही नहीं आया. पर संबंधियों से हमें इतना प्यार मिला कि हमें एकदूसरे के घर वालों से बहुत प्यार हो गया और अब बढ़ता जा रहा है. हमारे घर वालों ने हमारी पुरानी बातें भुला कर अच्छा ही किया, वरना तनातनी होती व बढ़ती. अब हमें जिंदगी जीने का मजा आ रहा है.’’ कुछ लोगों को लगता है साथी के घर वालों को ज्यादा भाव देने से वे हमारे घर में दखल करेंगे. उन का हस्तक्षेप हमारे जीवन के सुख को कम कर सकता है, व्यावहारिकता से देखासोचा जाए तो सचाई तो यह है प्यार से रिश्तों को पुख्ता बनाने में मदद मिलती है. हारीबीमारी के वक्त, परिस्थिति को जानना, झेलना आसान हो जाता है. हम किसी के साथ हैं तो कोई हमारे साथ भी है, छोटेछोटे परिवार होने पर भी बड़े परिवार का लाभ मिल जाता है.

जहां नहीं होती आत्मीयता

चिरंजी लाल की 6 बहनें हैं. वे कहते हैं, ‘‘माफ कीजिएगा, हम पुरुष जितनी आसानी से ससुराल वालों को मान देते हैं, उतना हमारी पत्नियां हमारे घर वालों को मान नहीं देतीं. मैं पत्नी के भाइयों की खूब खातिर करता हूं, पर मेरी पत्नी मेरे भाईबहनों का उतना आदरसम्मान नहीं करतं, बल्कि मुझे उन से सावधान रहने जैसी बातें कह कर भड़काती रहती हैं. मेरी पत्नी बेहद सुंदर है फिर भी वह मन से भी उतनी ही सुंदर होती, तो मेरे दिल के और करीब होती.’’ जो एकदूसरे के घर वालों से जुड़ नहीं पाते उन्हें मलाल रहता है. इस का कहीं न कहीं उन के अपने प्यार पर भी प्रभाव पड़ता है. प्यार के शुरुआती दिनों में तो यह चल जाता है पर बाद में यह बात आपसी रिश्तों में खींचतान व खटास का कारण भी बनती है. प्रेमविवाह हो या परंपरागत विवाह, साथी के घर वालों से प्यार करने से सुख बढ़ता ही है, अपना भी व दूसरों का भी. यार से हस्तक्षेप बढ़ता है यह भ्रम ही है. मौके पर अच्छी सलाह और मदद अलादीन के चिराग का काम करती है. आज हम किसी के सुखदुख में खड़े हैं, तो कल को कोई हमारे साथ खड़ा होगा. जीवन हमेशा एक जैसा नहीं चलता.

मेरी बचपन की एक सहेली को विवाह के बाद गुपचुप दूसरा विवाह कर के उस के पति ने धोखा दिया. उस के ससुराल वालों ने अपने बेटे का बहिष्कार कर के कानूनन तलाक करवा कर उसे अपनी बेटी बना कर, उस का अपने घर से ही दूसरा विवाह कराया. यदि उस का पति के घर वालों से लगावजुड़ाव नहीं होता, तो यह कभी संभव ही नहीं था.

देखें अपने आसपास

साथी के घर वालों से जुड़ाव का नतीजा आसपास आसानी से देखा जा सकता है. जो ऐसा करते हैं, वे औरों की अपेक्षा ज्यादा मान और भाव पाते हैं. 3 बहुओं व बेटों के होने पर भी ऐसा करने वाला एक व्यक्ति उन पर भारी पड़ता है, उस की पूछ ज्यादा होती है. विवाह और प्यार के मूल में पारिवारिकता है, जो इसे नहीं समझ पाते वे कटेकटे व अलगथलग पड़ जाते हैं. दूसरों से जुड़ कर और अपने से जोड़ कर ही तो हम भी खुल कर कुछ कह सकते हैं और अपनी बात बता सकते हैं. इस जुड़ाव से बहुत से कठिन मौके आसान हो जाते हैं. साथी के घर वालों से जुड़ कर साथी से जुड़ी शिकायतें भी दूर की जा सकती हैं. मसलन, नशा, जुआ या ऐसे ही तमाम ऐबतथा गैरजिम्मेदारी भरे रवैए. जहां यह पारिवारिक जुड़ाव नहीं, वहां तनाव भी पसरता है. साथी एकदूसरे को खुदगर्ज व अपनों से दूर करने वाला भी समझते हैं. तमाम सुखसुविधाओं के बीच भी आधाअधूरापन अनुभव होता है. बच्चों में भी स्वत: यह प्रवृत्ति आती जाती है.

जब हम किसी से जुड़ाव और प्यार रखते हैं, तो औपचारिकता में कड़वी लगने वाली बातें भी आत्मीयता के कारण सहजस्वाभाविक लगती हैं. एकदूसरे के प्रति स्नेह बढ़ता है व रिश्तों की समझ पैदा भी होती है. व्यर्थ के गिलेशिकवे, ताने, तनातनी, लड़ाईझगड़े हो नहीं पाते. जैसे बिखरे पन्नों को बाइंडर किताब के रूप में जोड़ देता है, जिस से लगता ही नहीं कि वे अलगअलग भी थे. यही काम साथी के घर वालों से प्यार पर किसी रिश्ते का होता है.

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Top 10 Best Relationship Tips in hindi: रिश्तों की प्रौब्लम से जुड़ी टौप 10 खबरें हिंदी में

Relationship Tips in hindi: रिश्ते हमारी लाइफ का सबसे जरुरी हिस्सा है. हर व्यक्ति किसी न किसी रिश्ते से जुड़ा होता है. चाहे वह माता-पिता हो या पति पत्नी. ये रिश्ते हर सुख-दुख में आपका सपोर्ट सिस्टम बनती है. लेकिन कई बार रिश्तों में खटास आ जाती है, जिसके चलते हमारा सपोर्ट सिस्टम टूट जाता है. इसीलिए आज हम आपको गृहशोभा की 10 Best Relationship Tips in Hindi के बारे में बताएंगे. इन Relationship Tips से आपको कई तरह की सीख मिलेगी. जो आपके रिश्ते को और भी मजबूत करेगी. तो अगर आपको भी है रिश्तों से जुड़ी टिप्स जाननी है तो पढ़िए Grihshobha की Best Relationship Tips in Hindi.

1. 10 टिप्स: ऐसे मजबूत होगा पति-पत्नी का रिश्ता

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जीवन की खुशियों के लिए पति-पत्नी के रिश्ते को प्यार, विश्वास और समझदारी के धागों से मजबूत बनाना पड़ता है. छोटी-छोटी बातें इग्नोर करनी होती हैं. मुश्किल के समय में एक-दूसरे का सहारा बनना पड़ता है. कुछ बातों का ख्याल रखना पड़ता है. जैसे…

1 मैसेज पर नहीं बातचीत पर निर्भर रहे…

ब्राइघम यूनिवर्सिटी में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक जो दंपत्ति जीवन के छोटे-बड़े पलों में मैसेज भेज कर दायित्व निभाते हैं जैसे बहस करना हो तो मैसेजेज, माफी मांगनी हो तो मैसेज, कोई फैसला लेना हो तो मैसेज, ऐसी आदत रिश्तों में खुशी और प्यार कम करती है. जब कोई बड़ी बात हो तो जीवनसाथी से कहने के लिए वास्तविक चेहरे के बजाय इमोजी का सहारा न लें.

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2. शादी के बाद धोखा देने के क्या होते हैं कारण

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धोखा देना इंसान की फितरत है फिर चाहे वह धोखा छोटा हो या फिर बड़ा. अकसर इंसान प्यार में धोखा खाता है और प्यार में ही धोखा देता है. लेकिन आजकल शादी के बाद धोखा देने का एक ट्रेंड सा बन गया है. शादी के बाद लोग धोखा कई कारणों से देते हैं. कई बार ये धोखा जानबूझकर दिया जाता है तो कई बाद बदले लेने के लिए. इतना ही नहीं कई बार शादी के बाद धोखा देने का कारण होता है असंतुष्टि. कई बार तलाक का मुख्‍य कारण धोखा ही होता है. लेकिन ये जानना भी जरूरी है कि शादी के बाद धोखा देना कहां तक सही है, शादी के बाद धोखे की स्थिति को कैसे संभालें. क्या करें जब आपका पार्टनर आपको धोखा दे रहा है.

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3. जानें कैसे करें लव मैरिज

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राशि और अमन का अफेयर पिछले 2 साल से चल रहा है. अब उन्होंने शादी करने का फैसला ले लिया, लेकिन वे इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि उन के पेरैंट्स इस रिश्ते के सख्त खिलाफ होंगे और वे चाह कर भी घर वालों की रजामंदी से शादी नहीं कर पाएंगे. इसलिए उन्होंने कोर्टमैरिज के बारे में सोचा, लेकिन कोर्ट में शादी की क्या औपचारिकताएं होती हैं, इस बारे में उन्हें कुछ पता नहीं था. उन्होंने अपने एक कौमन फ्रैंड राजेश से बात की जिस ने अभी कुछ साल पहले ही कोर्टमैरिज की थी, लेकिन उस से भी उन्हें आधीअधूरी जानकारी ही मिली.

ऐसा कई जोड़ों के साथ होता है, वे शादी करना तो चाहते हैं, लेकिन उस का क्या प्रोसीजर है, इस के बारे में उन्हें कुछ पता नहीं होता और संकोचवश वे खुद इस की जांचपड़ताल करने से हिचकिचाते हैं. आइए जानें कि अगर पेरैंट्स राजी नहीं हैं और आप शादी के फैसले तक पहुंच गए हैं, तो आप विवाह कैसे कर सकते हैं.

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4. सास-बहू के रिश्तों में बैलेंस के 80 टिप्स

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अकसर देखा जाता है कि घर में सासबहू के झगड़े के बीच पुरुष बेचारे फंस जाते हैं और परिवार की खुशियां दांव पर लग जाती हैं. पर यदि रिश्तों को थोड़े प्यार और समझदारी से जिया जाए तो यही रिश्ते हमारी जिंदगी को खुशनुमा बना देते हैं.

जानिए, कुछ ऐसे टिप्स जो सासबहू के बीच बनाएं संतुलन रखेंगे.

कैसे बनें अच्छी बहू

1. मैरिज काउंसलर कमल खुराना के मुताबिक, बेटा, जो शुरू से ही मां के इतना करीब था कि उस का हर काम मां खुद करती थीं, वही शादी के बाद किसी और का होने लगता है. ऐसे में न चाहते हुए भी मां के दिल में असुरक्षा की भावना आ जाती है. आप अपनी सास की इस स्थिति को समझते हुए शुरू से ही उन से सदभाव का व्यवहार करेंगी तो यकीनन रिश्ते की बुनियाद मजबूत बनेगी.

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5. KISS से जानें साथी का प्यार

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रिलेशनशिप में जैसेजैसे समय बीतता जाता है वैसेवैसे रिश्ता और गहरा होता जाता है और प्यार में पड़ कर जब लोग छोटीछोटी हरकतें करते हैं, तो उस से उन की पर्सनैलिटी के बारे में काफी कुछ पता लगाया जा सकता है.

अगर आप को पता करना है कि आप का रिश्ता कितना गहरा और अटूट है तो आप यह तरीका अपना सकते हैं.

जब शब्द हमारी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते, तो लोग अलगअलग तरीके से अपने प्यार को जाहिर करने की कोशिश करते हैं. अपने प्यारभरे संदेश को पार्टनर तक पहुंचाने के लिए किस से बेहतर तरीका और क्या हो सकता है. किसिंग किसी भी रिश्ते का अहम हिस्सा है और इस में कोई शक नहीं कि लोग दुनियाभर में अलगअलग तरीके से किस करते हैं.

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6. जब मायके से न लौटे बीवी

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पेशे से मैकैनिक 22 साल का शफीक खान भोपाल की अकबर कालोनी में परिवार के साथ रहता था. उस की कमाई भी ठीकठाक थी और दूसरी परेशानी भी नहीं थी. लेकिन बीते 18 अक्तूबर को उस ने घर में फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली. ऐशबाग थाने की पुलिस ने जब मामला दर्ज कर तफतीश शुरू की तो पता चला कि शरीफ की शादी कुछ महीने पहले ही हुई थी और उस की बीवी शादी के बाद पहली बार मायके गई तो फिर नहीं लौटी.

शरीफ और उस के घर वालों ने पूरी कोशिश की थी कि बहू घर लौट आए. लेकिन कई दफा बुलाने और लाने जाने पर भी उस ने ससुराल आने से इनकार कर दिया तो शरीफ परेशान हो उठा और वह तनाव में रहने लगा. फिर उसे परेशानी और तनाव से बचने का बेहतर रास्ता खुदकुशी करना ही लगा.

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7. Married Life में क्या है बिखराव के संकेत

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Married Life में प्रेम की ऊष्मा जब कम होने लगती है तब पतिपत्नी के जीवन में ऐसी छोटीछोटी बातें होने लगती हैं, जो इस बात की ओर संकेत करती हैं कि उन के बीच दूरियां बननी शुरू हो रही हैं. अधिकतर दंपती इन संकेतों पर ध्यान नहीं देते या फिर वे समझ नहीं पाते हैं. समय रहते इन संकेतों पर ध्यान न दिया जाए तो उन के बीच प्यार, अपनापन, समर्पण की भावना कम होती जाती है और फिर एक दिन उन का दांपत्य जीवन टूट जाता है. इन संकेतों के प्रति संवेदनशील रह कर संबंधों के बीच पनप रही खाई को गहरा होने से रोका जा सकता है. बिखराव के ये संकेत दांपत्य जीवन के हर छोटेबड़े पहलू से जुड़े हो सकते हैं.

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8. शादी किसी से भी करें, आपका हक है

दिल्ली के पश्चिम विहार इलाके में रहने वाले प्रतीक (29) ने जब अपने घर में सिया (25,बदला नाम) के बारे में बताया तो मानो घर में पहाड़ टूट पड़ा हो. सिया के बारे में सुनते ही प्रतीक के घरवाले खुद को दोतरफा चोट खाया हुआ महसूस करने लगे. एक, सिया उन के अपने राज्य उत्तराखंड से नहीं थी, वह यूपी से ताल्लुक रखती थी. दूसरी व बड़ी बात यह कि वह जाति से भी अलग थी. दरअसल प्रतीक और सिया काफी समय से एकदुसरे से प्रेम कर रहे थे. साथ में समय बिताते हुए दोनों के बीच आपसी अंडरस्टेंडिंग काफी अच्छी हो गई थी. दोनों ने शादी करने का फैसला किया. लेकिन उन दोनों के प्रेम सम्बन्ध और शादी के बंधन के बीच उन की जाति आड़े आ रही थी. जहां प्रतीक ऊंची जाति से था वहीँ सिया कथित नीची जाती से थी.

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9. मिलन की पहली रात जरूरी नहीं बनाएं बात

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दूध का गिलास लिए दुलहन कमरे में प्रवेश करती है. कमरा सुंदर रंगबिरंगे फूलों और लाइट से सजा व मंदमंद खुशबू से महक रहा होता है और माहौल में नशा सा छाया होता है. दूल्हा बेसब्री से दुलहन के आने का इंतजार कर रहा होता है. उस के आते ही वह दूध का गिलास लेने के बहाने उस को बांहों में भरने के लिए लपकता है. वह भी लजातीसकुचाती हुई उस की बांहों में समा जाती है. इस के बाद पतिपत्नी के प्यार से कमरा सराबोर हो उठता है. यह दृश्य है हिंदी फिल्मों के हीरोहीरोइन पर फिल्माई गई मिलन की पहली रात का. विवाह और यौन संबंध बेहद नाजुक विषय है. पतिपत्नी का शारीरिक मिलन तभी सफल माना जाएगा, जब दोनों इस के लिए तैयार हों. अगर ऐसा न हो तो उसे एकतरफा भोग कहा जाएगा. विवाह के बाद पतिपत्नी अपने नए जीवन की शुरुआत करते हैं. ऐसे में दोनों का एकदूसरे पर भरोसा और आपसी संवाद उन के आपसी संबंध को अधिक मजबूत बनाता है.

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10. डोमिनेशन: पत्नी का हो या पति का, रिश्तों में पैदा करता है दरार

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आप दोनो कामकाजी हैं. आपका बच्चा बीमार है. आपके पति बच्चे की देखरेख के लिए छुट्टी न ले पाने की अपनी मजबूरी बताते हैं और उम्मीद करते हैं कि आपको उसकी देखभाल के लिए छुट्टी लेनी होगी. ऐसे में आपकी क्या प्रतिक्रिया होती है? दूसरी और आपके पति आपको आॅफिस से घर लौटकर आकर बताते हैं कि कल रात उन्होंने अपने दोस्तों को डिनर के लिए आमंत्रित किया है. ऐसे में आपकी प्रतिक्रिया क्या होती है? इस तरह की स्थितियां अकसर विवाहित पति पत्नी के जीवन में आती ही हैं और उस दौरान इनके जवाब किस तरह दिये जाते हैं. इसी से पता चलता है कि पति और पत्नी दोनो में से कौन डोमिनेटिंग हैं. सवाल पैदा होता है ये डोमिनेशन क्या है? डोमिनेशन का मतलब है अपने पार्टनर की इच्छाओं का सम्मान न करना, जबरन उसपर अपनी मर्जी थोपना. यह पति और पत्नी दोनो पर ही लागू होता है. कंसलटेंट साइकेट्रिक्ट डाॅ. समीर पारिख, डोमिनेशन को शारीरिक, वित्तीय, वरबल और साइकोलाॅजिकल इन तमाम श्रेणियों में विभाजित करते हैं. मसलन पति का यह कहना कि तुम आज किट्टी पार्टी के लिए नहीं जा सकती; क्योंकि तुम्हें मेरी मां को डाॅक्टर के पास लेकर जाना है. इस कथन के द्वारा पति अपनी इच्छा या अपेक्षा को जबरदस्ती पत्नी पर थोपता है. कई घरों में ऐसा भी देखा गया है कि पत्नी पति के इजाजत के बगैर अपने माता-पिता से मिल नहीं सकती.

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सास नहीं मां बनें

आज सुहानी जब औफिस में आई तो उखड़ीउखड़ी सी दिख रही थी. 2 वर्ष पूर्व ही उस का विवाह उसी की जाति के लड़के विवेक से हुआ था. विवाह क्या हुआ, मानो उस के पैरों में रीतिरिवाजों की बेडि़यां डाल दी गईं. यह पूजा है, इस विधि से करो. आज वह त्योहार है, मायके की नहीं, ससुराल की रस्म निभाओ. ऐसी ही बातें कर उसे रोज कुछ न कुछ अजीबोगरीब करने पर मजबूर किया जाता.

समस्या यह थी कि पढ़ीलिखी और कमाऊ बहू घर में ला कर उसे गांवों के पुराने रीतिरिवाजों में ढालने की कोशिश की जा रही थी. पहनावे से आधुनिक दिखने वाली सास असलियत में इतने पुराने विचारों की होगी, कोई सोच भी नहीं सकता था.

बेचारी सुहानी लाख कोशिश करती कि उस का अपनी सास से विवाद न हो, फिर भी किसी न किसी बहाने दोनों में खटपट हो ही जाती. सास तो ठहरी सास, कैसे बरदाश्त कर ले कि बहू पलट कर जवाब दे व उसे सहीगलत का ज्ञान कराए.

सो, बहू के बारे में वह अपने सभी रिश्तेदारों से बुराइयां करने लगी. यह सब सुहानी को बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था. और तो और, उस के पति को भी उस की सास ने रोधो कर और सुहानी की कमियां गिना कर अपनी मुट्ठी में कर रखा था. नतीजतन, पति से भी सुहानी का रोजरोज झगड़ा होने लगा था.

हमारे आसपास में ही न जाने ऐसे कितने उदाहरण होंगे जिन में सासें अपनी बहुओं को बदनाम करती हैं और सभी रिश्तेदारों को अपने पक्ष में करने की कोशिश में सारी जिंदगी बहुओं की बुराई करने में बिता देती हैं.

एटीएम न मिलने का दुख

12 और 8 वर्षीय बेटियों की मां योगिता कहती हैं, ‘‘शादी होते ही जब मैं ससुराल गई तो मेरी सास ने तय कर रखा था कि पढ़ीलिखी बहू है, नौकरी तो करेगी ही और उस की तनख्वाह पर उन्हीं का ही हक होगा. लेकिन मेरे पति ने मुझे लेटेस्ट कंप्यूटर कोर्स करना शुरू करवा दिया. उन का कहना था कि अभी विवाह के कारण तुम अपनी पुरानी नौकरी छोड़ कर आई हो, नया कोर्स कर लोगी तो आगे भी नौकरी में फायदा रहेगा. मैं ने उन की बात मान कर कोर्स करना शुरू कर दिया.

पूरे दिन मेरी सास घर के बाहर ही रहतीं, उन्हें घूमनेफिरने का बहुत शौक है. मैं सुबह नाश्ते से ले कर रात का डिनर तक सब संभालती. उस के अलावा कंप्यूटर क्लास भी जाती और उस की पढ़ाई

भी करती. घर में साफसफाई के लिए कामवाली आती थी. सास मुझे ताने दे कर कहती कि क्या जरूरत है कामवाली की, तुम नौकरी तो कर नहीं रही हो. कभी कहतीं जब नौकरी करो तो ही सलवार सूट पहनो. अभी रोज साड़ी पहना करो.

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हमारी आर्थिक स्थिति उच्चमध्यवर्गीय थी. सो, मुझे समझ नहीं आया कि कामवाली और पहनावे का नौकरी से क्या ताल्लुक. लेकिन मैं ने कामवाली को नहीं हटाया. सास रोज किसी न किसी तरह मेरे काम में कमी निकाल कर उलटेसीधे ताने मारतीं. मुझे तो समझ ही न आया कि वे ये सब क्यों करती हैं.

मेरे पति से वे आएदिन अपनी विवाहित बेटी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे मांगती रहतीं. मेरे पति धीरेधीरे सब समझने लगे थे कि मम्मी की पैसों की डिमांड बढ़ती जा रही है. यदि हम अपने घर में कुछ नया सामान लाते तो वे झगड़ा करतीं और देवर के विवाह की जिम्मेदारी हमें बतातीं.

ऐसा चलते एक वर्ष बीत गया और तो और, मुझ से कहतीं, ‘अभी बच्चा पैदा मत करना.’ जबकि मेरी उम्र 29 वर्ष हो गई थी. मुझे समझ ही न आता कि यह कैसी सास है जो अपनी बहू को बच्चा पैदा करने पर रोक लगाती है.

मुझे हर बात पर टोकतीं और पति के साथ मुझे समय भी न बिताने देतीं. जैसे ही पति दफ्तर से घर आते, वे हमारे कमरे में आ कर बैठ जातीं.

एक दिन जब उन्होंने मुझे किसी बात पर टोका तो मैं ने भी पलट कर जवाब दिया. तो वे गुस्से में आगबबूला हो गईं और बोलीं, ‘‘नौकरी भी नहीं की तू ने, न जाने पढ़ीलिखी भी है कि नहीं, यदि करती तो तनख्वाह मुझे थोड़ी दे देती तू.’’

इतना सुन कर मुझे हकीकत समझते देर न लगी और मैं ने भी पलट कर कहा, ‘‘यही प्रौब्लम है न आप को, कि तनख्वाह नहीं आ रही. इसलिए घर की सारी जिम्मेदारी उठाने पर भी आप मुझे चैन से नहीं रहने देतीं. घर की कामवाली बना रखा है. माफ कीजिए आप को बहू नहीं, एटीएम मशीन चाहिए थी. वह न मिली तो आप मुझे चौबीसों घंटों की नौकरानी की तरह इस्तेमाल कर रही हैं. बेटा पूरी कमाई आप के हाथ में देदे और बहू चौबीसों घंटे आप की चाकरी करे.’’

बस, उसी दिन के बाद से उन्होंने मेरे देवरननद को मेरे खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया. रिश्तेदारों से जा कर कहने लगीं, बहू को आजादी चाहिए, इसलिए बच्चा भी पैदा नहीं करती. मेरे ससुर को भी झूठी पट्टी पढ़ा कर मेरे खिलाफ कर दिया. कल तक जो ससुर मेरे पढ़ीलिखी होने के साथ घरेलू गुणों की तारीफ करते न थकते थे, अब मुझे बांझ पुकारने लगे थे.

रोजरोज के झगड़ों से परेशान हो कर मेरे पति ने अलग घर ले लिया और किसी तरह उन से पीछा छुड़ाया. अब हम उन्हें हर महीने पैसे दे देते हैं, वे चाहे जैसे रहें. उन्हें सिर्फ पैसा चाहिए, वे न तो मेरी बेटियों से मिलना चाहती हैं और न ही मैं उन की सूरत देखना चाहती हूं. बस, मेरे पति कभीकभी उन से मां होने के नाते, मिल लेते हैं.

संयुक्त परिवार नहीं चाहिए

25 वर्षीया रीता कहती है, ‘‘मेरे विवाह के समय मेरे पति विदेश में रहते थे. सो मैं भी विवाह होते ही उन के साथ चली गई. 2 वर्षों बाद जब हम अपने देश लौट आए और सास के साथ रहे, तब 2 महीने भी मेरी सास ने मुझे चैन से न रहने दिया. सारे दिन अपनी तारीफ करतीं और मुझे नीचा दिखाने की कोशिश करतीं. सब से पहले उन्होंने कहा कि मैं जींस और वैस्टर्न कपड़े न पहनूं क्योंकि आसपास में कई रिश्तेदार रहते हैं. मैं ने उन की वह  बात मान ली. लेकिन हर बात में बेवजह टोकाटाकी देख कर ऐसा लगता जैसे उन्हें हमारा साथ में रहना नहीं भाया.

‘‘जब तक बेटा विदेश में काम कर उन्हें पैसे देता था, सब ठीक था. लेकिन जैसे ही हम यहां आए, न जाने कौन सा तूफान आ गया. वे बारबार मेरे ससुर की आड़ में मुझे ताने देतीं. मेरे ससुर सीधेसादे रिटायर्ड बुजुर्ग हैं. उन से भी वे खूब झगड़ा करतीं. मैं फिर भी चुप रहती क्योंकि मैं जानती थी कि वे ससुर से भी बेवजह झगड़ा कर रही हैं, यदि मैं बीच में कुछ बोलूंगी तो वे मुझ से झगड़ना शुरू कर देंगी.

‘‘लेकिन हद तो तब हो गई जब मैं ने एक दिन खाना बना कर परोसा और वे मेरे हाथ के बने खाने में कमी निकाल कर मुझे नीची जाति का कहने लगीं. जबकि मैं और मेरे पति एक ही ब्राह्मण जाति के हैं. तो मैं ने भी पलट कर कह दिया, ‘आप ही मुझे लेने बरात ले कर आए थे तो मैं यहां आई हूं, तब मेरी जाति नजर नहीं आई आप को?’

‘‘बस, अगली ही सुबह जैसे ही मेरे पति औफिस गए, वे कहने लगीं, ‘‘मैं ने चावल में रखी कीटनाशक गोली खा ली है.’’ पहले तो मैं समझी नहीं, लेकिन मेरे ससुर भी मुझे कोसने लगे और कहने लगे कि डाक्टर को बुलाओ. तो मैं ने अपनी पति को फोन किया. वे बोले कि मम्मी को अस्पताल ले कर जाओ. मैं उन्हें अस्पताल ले कर गई और वहां भरती करवाया.

‘‘इस बीच, मैं ने अपनी जेठानी को भी फोन कर बुला लिया था, जो उसी शहर में ही अलग रहती थीं. क्योंकि मैं जान गई थी कि वे मेरे से ज्यादा अनुभवी हैं और मैं ने यह भी सुन रखा था कि सास के बुरे व्यवहार के कारण ही वे अलग रहने लगी थीं.

‘‘मेरी जेठानी ने वहां आ कर मुझे बताया कि यह पुलिस केस बनेगा तो मैं बहुत घबरा गई और मेरी आंखों से आंसू बह निकले. तब तक मेरे पति दफ्तर से छुट्टी ले कर अस्पताल पहुंच गए, उस से पहले अस्पताल वालों ने पुलिस को खबर कर दी थी कि आत्महत्या की कोशिश का केस आया है. मेरी जेठानी ने पुलिस से बात कर मामला सुलझा दिया.

‘‘नजदीकी रिश्तेदार यह खबर सुनते ही अस्पताल में जमा हो गए. मेरे ससुर ने सभी से कहा कि सासबहू का रात को झगड़ा हुआ. सब ने सोचा कि नई बहू बहुत खराब है और मेरे पति ने भी मुझे डांटा कि मम्मी से रात को उलझने की क्या जरूरत थी. सब से बुरी बात तो यह हुई कि जब अस्पताल में टैस्ट हुए और रिपोर्ट आई तो मालूम हुआ कि उन्होंने कोई कीटनाशक गोली नहीं खाई थी. यह सब मुझे बदनाम करने के लिए किया गया एक ड्रामा था ताकि मैं आगे से उन के सामने पलट कर जवाब देने की हिम्मत ही न करूं.

‘‘आज मैं, अपने पति के साथ विदेश में ही रहती हूं. लेकिन जब भी भारत आती हूं, अपनी सास से नहीं मिलना चाहती.’’

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रीता ने जब मुझे यह सब बताया तो वह आंसुओं में डूबी हुई थी और अपनी जेठानी का बहुत धन्यवाद कर रही थी. लेकिन अपनी सास के लिए उस के मन में नफरत के सिवा कुछ भी नहीं था.

सारी सासें एक सी

योगिता और रीता के किस्सों से मुझे अपनी एक चाइनीज सहेली की याद आई. उस चाइनीज सहेली का नाम है ब्रेंडा. वह शंघाई की रहने वाली थी और मलयेशिया में नौकरी करने गईर् थी. वहीं उसे एक रशियन लड़के से प्यार हो गया और दोनों ने विवाह भी कर लिया. विवाह को 6 वर्ष बीते और उस के पति का तबादला भारत में हो गया. उस का पति होटल इंडस्ट्री में कार्यरत था.

मेरी ब्रेंडा से मुलाकात हुई और हम सहेलियां बन गईं. हम दोनों अंगरेजी में ही बात किया करते थे.

3 वर्ष हम साथ रहे और उस ने मुझे अपनी सास से होने वाले झगड़ों के बारे में बताया. मैं आश्चर्यचकित थी कि क्या विदेशी सासें, जो देखने में बहुत मौडर्न लगती हैं, भी बुरा व्यवहार करती हैं? तो उस ने कहा, ‘‘यस, देयर आर सम ड्रैगन लेडीज हू कीप डूइंग समथिंग दिस ओर दैट टू स्पौयल अवर इमेज ऐंड शो देयर सैल्फ गुड’’ यानी कि कुछ महिलाएं ड्रैगन के समान बुरी होती हैं, जो अपनेआप को भली दिखाने के लिए हमारा नाम खराब करती रहती हैं. वह मुझे शंघाई और मलयेशिया की सासों के और भी बहुत किस्से सुनाया करती.

जब वह भारत में भी थी, उन 3 वर्षों में एक बार उस की रशियन सास भारत में उस के घर आईं और 2 महीने तक उस के साथ रहीं. उन दिनों ब्रेंडा रोज ही घर में सास द्वारा किए गए बुरे व्यवहार के किस्से सुनाया करती. साथ ही, उस ने यह भी बताया कि अपार्टमैंट में जो दूसरे रशियन लोग हैं, जिन से उस के पति की अच्छी दोस्ती भी है, उन से उस की सास ने उस के बारे में बहुत बुराइयां की.

उस के बाद ब्रेंडा कहती थी कि मैं अपनी मदर इन ला को भारत बुलाना ही नहीं चाहती. वे दूर रहें तो अच्छा है.

सुहानी, रीता, योगिता और ब्रेंडा सभी के किस्से सुन कर ऐसा लगता है कि यह यूनिवर्सल ट्रुथ है कि सास खाए बिना रह सकती है, पर बोले बिना नहीं.

कैसे पटेगा एकतरफा सौदा

सासबहू के रिश्ते में मधुरता की उम्मीद के साथ कोईर् भी पिता अपनी बेटी को दूसरी महिला के हाथ में सौंप देता है, जोकि उस की बेटी की मां की उम्र की होती है. इस में वह क्यों उस बहू के साथ बराबरी का कंपीटिशन बना लेती है. या यों कहिए कि देने के सिवा सिर्फ लेने का सौदा तय करना चाहती है. और यदि वह न मिले तो उसे सरेआम बदनाम करती है ताकि वह दुनिया की नजरों में अपनेआप को बेचारी साबित कर सके. क्योंकि वह एक नई लड़की के घर में कदम रखते ही घर में बरसों से चलती आई रामायण को महाभारत में बदल देती है, और सिर्फ स्वयं ही नहीं, घर के अन्य सदस्यों समेत उस पर चढ़ाई करने लगती  है?

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इसी बात पर एक बार ब्रेंडा ने कहा था, ‘‘एक्चुअली, शी यूज टू बी द क्वीन औफ द हाउस, नाऊ शी कैन नौट टोलरेट एनीबडी एल्स इन द हाउस.’’ यानी कल तक सास ही घर की रानी होती थी, सारा राजपाट उसी का था, अब वह किसी और को घर में राज करते कैसे बरदाश्त करे.’’ शायद ब्रेंडा ने सही ही कहा था, लेकिन क्या इस रिश्ते में खींचातानी की जगह प्यार व मिठास नहीं भरी जा सकती?

यदि गहराई से सोचा जाए तो इस मिठास के लिए सास को राजदरबार की रानी की तरह नहीं, एक मालिन की तरह का व्यवहार करना चाहिए. जिस तरह से मालिन नर्सरी से लाए नए पौधे उगा कर, उन्हें सींच कर हरेभरे पेड़ में बदल देती है, उसी तरह से अगर सास भी पराएघर से आई बेटी को अपने घर की मिट्टी में जड़ें फैलाने के लिए खादपानी व धूप का पूरा इंतजाम कर दे तो बहूरूपी वह पौधा हराभरा हो सकेगा और निश्चित रूप से मीठे फल मिलेंगे ही.

बहनों के बीच जब हो Competition

” वाह इस गुलाबी मिडी में तो अपनी अमिता शहजादी जैसी प्यारी लग रही है,” मम्मी से बात करते हुए पापा ने कहा तो नमिता उदास हो गई.

अपने हाथ में पकड़ी हुई उसी डिज़ाइन की पीली मिडी उस ने बिना पहने ही आलमारी में रख दी. वह जानती है कि उस के ऊपर कपड़े नहीं जंचते जब कि उस की बहन पर हर कपड़ा अच्छा लगता है. ऐसा नहीं है कि अपनी बड़ी बहन की तारीफ सुनना उसे बुरा लगता है. मगर बुरा इस बात का लगता है कि उस के पापा और मम्मी हमेशा अमिता की ही तारीफ करते हैं.

नमिता और अमिता दो बहनें थीं. बड़ी अमिता थी जो बहुत ही खूबसूरत थी और यही एक कारण था कि नमिता अक्सर हीनभावना का शिकार हो जाती थी. वह सांवलीसलोनी सी थी. मांबाप हमेशा बड़ी की तारीफ करते थे. खूबसूरत होने से उस के व्यक्तित्व में एक अलग आकर्षण नजर आता था. उस के अंदर आत्मविश्वास भी बढ़ गया था. बचपन से खूब बोलती थी. घर के काम भी फटाफट निबटाती. जब कि नमिता लोगों से बहुत कम बात करती थी.

मांबाप उन के बीच की प्रतिस्पर्धा को कम करने की बजाय अनजाने ही यह बोल कर बढ़ाते जाते थे कि अमिता बहुत खूबसूरत है. हर काम कितनी सफाई से करती है. जब की नमिता को कुछ नहीं आता. इस का असर यह हुआ कि धीरेधीरे अमिता के मन में भी घमंड आता गया और वह अपने आगे नमिता को हीन समझने लगी.

नतीजा यह हुआ कि नमिता ने अपनी दुनिया में रहना शुरू कर दिया. वह पढ़लिख कर बहुत ऊँचे ओहदे पर पहुंचना चाहती थी ताकि सब को दिखा दे कि वह अपनी बहन से कम नहीं. फिर एक दिन सच में ऐसा आया जब नमिता अपनी मेहनत के बल पर बहुत बड़ी अधिकारी बन गई और लोगों को अपने इशारों पर नचाने लगी.

यहां नमिता ने प्रतिस्पर्धा को सकरात्मक रूप दिया इसलिए सफल हुई. मगर कई बार ऐसा नहीं भी होता है कि इंसान का व्यक्तित्व उम्र भर के लिए कुंद हो जाता है. बचपन में खोया हुआ आत्मविश्वास वापस नहीं आ पाता और इस प्रतिस्पर्धा की भेंट चढ़ जाता है.

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अक्सर दो सगी बहनों के बीच भी आपसी प्रतिस्पर्धा की स्थिति पैदा हो जाती है. खासतौर पर ऐसा उन
परिस्थितियों में होता है जब माता पिता अपनी बेटियों का पालनपोषण करते समय उन से जानेअनजाने किसी प्रकार का भेदभाव कर बैठते हैं. इस के कई कारण हो सकते हैं;

किसी एक बेटी के प्रति उन का विशेष लगाव होना- कई दफा मांबाप के लिए वह बेटी ज्यादा प्यारी हो जाती जिस के जन्म के बाद घर में कुछ अच्छा होता है जैसे बेटे का जन्म, नौकरी में तरक्की होना या किसी परेशानी से छुटकारा मिलना. उन्हें लगता है कि बेटी के कारण ही अच्छे दिन आए हैं और वे स्वाभाविक रूप से उस बच्ची से ज्यादा स्नेह करने लगते हैं.

किसी एक बेटी के व्यक्तित्व से प्रभावित होना – हो सकता है कि एक बेटी ज्यादा गुणी हो, खूबसूरत हो, प्रतिभावान हो या उस का व्यक्तित्व अधिक प्रभावशाली हो. जब कि दूसरी बेटी रूपगुण में औसत हो और व्यक्तित्व भी साधारण हो. ऐसे में मांबाप गुणी और सुंदर बेटी की हर बात पर तारीफ करना शुरू कर देते हैं. इस से दूसरी बेटी के दिल को चोट लगती है. बचपन से ही वह एक हीनभावना के साथ बड़ी होती है. इस का असर उस के पूरे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है.

बहनों के बीच यह प्रतिस्पर्धा अक्सर बचपन से ही पैदा हो जाती है. बचपन में कभी रंगरूप को ले कर, कभी मम्मी ज्यादा प्यार किसे करती है और कभी किस के कपड़े / खिलौने अच्छे है जैसी बातें प्रतियोगिता की वजह बनती हैं. बड़े होने पर ससुराल का अच्छा या बुरा होना, आर्थिक संपन्नता और जीवनसाथी कैसा है जैसी बातों पर भी जलन या प्रतिस्पर्धा पैदा हो जाती है. बहने जैसेजैसे बड़ी होती हैं वैसेवैसे प्रतिस्पर्धा का कारण बदलता जाता है. यदि दोनों एक ही घर में बहू बन कर जाए तो यह प्रतिस्पर्धा और भी ज्यादा देखने को मिल सकती है |

पेरेंट्स भेदभाव न करें

अनजाने में मातापिता द्वारा किए हुए भेदभाव के कारण बहनें आपस में प्रतिस्पर्धा करने लगती हैं. उन के स्वभाव में एकदूसरे के प्रति ईर्ष्या और द्वेष पनपने लगता है. यही द्वेष प्रतिस्पर्धा के रूप में सामने आता है और एक दूसरे से अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ती.

इस के विपरीत यदि सभी संतान के साथ समान व्यवहार किया गया हो और बचपन से ही उन के मन में बिठा दिया जाए कि कोई किसी से कम नहीं है तो उन के बीच ऐसी प्रतियोगिता पैदा नहीं होगी. यदि दोनों को ही शुरू से समान अवसर, समान मौके और समान प्यार दिया जाए तो वे प्रतिस्पर्धा करने के बजाए हमेशा खुद से ज्यादा अहमियत बहन की ख़ुशी को देंगी.

40 साल की कमला बताती हैं कि उन की 2 बेटी हैं. उन की उम्र क्रमश: 7 और 5 साल है. छोटीछोटी चीजों को ले कर अकसर वे आपस में झगड़ती हैं. उन्हें हमेशा यही शिकायत रहती है कि मम्मी मुझ से ज्यादा मेरी बहन को प्यार करती हैं.

दरअसल इस मामले में दोनों बेटियों के बीच मात्र दो साल का अंतर है. जाहिर है जब छोटी बेटी का जन्म हुआ होगा तो मां उस की देखभाल में व्यस्त हो गयी होंगी. इस से उस की बड़ी बहन को मां की ओर से वह प्यार और अटेंशन नहीं मिल पाया होगा जो उस के लिए बेहद जरूरी था. जब दो बच्चों के बीच उम्र का इतना कम फासला हो तो दोनों पर समान रूप से ध्यान दे पाना मुश्किल हो जाता है.

इस तरह लगातार के बच्चे होने पर बहुत जरूरी है कि उन दोनों के साथ बराबरी का व्यवहार किया जाए. नए शिशु की देखभाल से जुड़ी एक्टिविटीज में अपने बड़े बच्चे को विशेष रूप से शामिल करें. छोटे भाई या बहन के साथ ज्यादा वक्त बिताने से उस के मन में स्वाभाविक रूप से अपनत्व की भावना विकसित होगी. रोजाना अपने बड़े बच्चे को गोद में बिठा कर उस से प्यार भरी बातें करना न भूलें. इस से वह खुद को उपेक्षित महसूस नहीं करेगा.

प्रतिस्पर्धा को सकारात्मक रूप में लें

आपस में प्रतिस्पर्धा होना गलत नहीं है. कई बार इंसान की उन्नति / तरक्की या फिर कहिए तो उस के व्यक्तित्व का विकास प्रतिस्पर्धा की भावना के कारण ही होता है. यदि एक बहन पढ़ाई, खेलकूद, खाना बनाने या किसी और तरह से आगे है या ज्यादा चपल है तो दूसरी बहन कहीं न कहीं हीनभावना का शिकार होगी. उसे अपनी बहन से जलन होगा. बाद में कोशिश करने पर वह किसी और फील्ड में ही भले लेकिन आगे बढ़ कर जरूर दिखाती है. इस से उस की जिंदगी बेहतर बनती है. इसलिए प्रतिस्पर्धा को हमेशा सकारात्मक रूप में लेना चाहिए.

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रिश्ते पर न आए आंच

अगर दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा है तो यह महत्वपूर्ण है कि आप उसे टैकल कैसे करती हैं. आप का उस के प्रति रवैया कैसा है. प्रतिस्पर्धा को सकारात्मक रूप में लीजिए और इस के कारण अपने रिश्ते को कभी खराब न होने दीजिए. याद रखिए दो बहनों का रिश्ता बहुत खास होता है. आज के समय में वैसे भी ज्यादा भाईबहन नहीं होते है. यदि बहन से आप का रिश्ता खराब हो जाए तो आप के मन में जो खालीपन रह जाएगा वह कभी भर नहीं सकता. क्योंकि बहन की जगह कभी भी दोस्त या रिलेटिव नहीं ले सकते. बहन तो बहन होती है. इसलिए रिश्ते में पनपी इस प्रतिस्पर्धा को कभी भी इतना तूल न दें कि वह रिश्ते पर चोट करे.

ननद भाभी बन जाएं सहेलियां

ननदभाभी का संबंध बेहद संवेदनशील होता है. कहीं न कहीं दोनों के मन में एकदूसरे के प्रति ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा की भावना रहती है. लेकिन आपसी समझदारी से न केवल आप अपने रिश्ते को प्रगाढ़ बना सकती हैं वरन एकदूसरे की अच्छी सहेलियां भी बन सकती हैं.

मैथिली शादी कर के ससुराल आई, तो सब ने हाथोंहाथ लिया, लेकिन उस की छोटी ननद नैना हर बात में नुक्ताचीनी करती थी. अगर वह अपने पति के लिए कुछ बनाने जाती, तो तुरंत मना कर देती कि रहने दीजिए भाभी आप का बनाया भैया को पसंद नहीं आएगा.

मैथिली बहुत परेशान थी. उसे ननद के व्यवहार से बहुत कोफ्त होती थी. लेकिन चाह कर भी कुछ कह नहीं पाती. यहां तक कि मैथिली जब अपने पति अरुण के साथ अकेले कहीं जाना चाहती, तो भी नैना उस के साथ चलने को तैयार हो जाती.

एक दिन मैथिली ने नैना से कह ही दिया कि लगता है आप के भैया को मेरी जरूरत नहीं है. आप तो हैं ही उन के सारे काम करने के लिए, फिर मैं यहां रह कर क्या करूंगी. मैं अपने मायके चली जाती हूं.

मैथिली की बात सुन कर नैना ने पूरे घर में हंगामा मचा दिया. मैथिली अपने मायके चली गई. फिर बहुत समझाने पर वह इस शर्त पर ससुराल आने को तैयार हुई कि अब नैना उस के और अरुण के बीच न आए.

आमतौर पर जब तक भाई की शादी नहीं होती है घर पर बेटी का एकछत्र राज होता है. मातापिता और भाई उस की हर जायजनाजायज बात मानते हैं. पर जैसे ही भाई की शादी होती है, उस का ध्यान अपनी बीवी की ओर चला जाता है. वह बहन को उतना समय नहीं दे पाता है, जितना पहले देता था. यह बात बहन को बर्दाश्त नहीं हो पाती और वह यह सोच कर कुंठित हो जाती कि अब भाई मेरी नहीं भाभी की बात को ज्यादा अहमियत देता है. यह सोच उसे नईनवेली भाभी का प्रतिद्वंद्वी बना देती है. इस वजह से न चाहते हुए भी ननदभाभी के बीच कटुता आ जाती है.

अगर ननद शादीशुदा हैं तो आमतौर पर उन के संबंध मधुर ही होते हैं, लेकिन अविवाहित ननद और भाभी के बीच संबंधों की डोर को मजबूत होने में समय लगता है. विवाहित ननद भी अगर मायके में ज्यादा दखलंदाजी करती है, तो यह बात ननदभाभी के रिश्ते को सहज नहीं बनने देती.

प्रतियोगी नहीं दोस्त बनें

आप के भाई की शादी हुई है. आप के घर में प्यारी सी भाभी आई है. थोड़ी सी समझदारी से आप उसे अपनी सब से अच्छी सहेली बना सकती हैं. इस के लिए आप को ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है. अपने मन में यह बात बैठाने की है कि वह आप की भाभी है आप की प्रतियोगी नहीं. भाभी तो नईनई आई है. ननद होने के नाते अब यह आप की जिम्मेदारी है कि आप उसे अपने घर के वातावरण से अवगत कराएं, उसे बताएं कि परिवार के सदस्यों को क्या अच्छा लगता है और कौन सी चीज नापसंद है. आप की इस पहल से भाभी के मन में आप के प्रति प्यार और आदर की भावना पनपेगी.

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एक दूसरे से सीखें

आप दोनों अलग परिवार की हैं. आप दोनों की परवरिश भी अलग परिवेश में हुई है. इस नाते आप दोनों के पास एकदूसरे से सीखनेसिखाने के लिए ढेरों चीजें होंगी. मसलन, अगर आप को कोई अच्छी रैसिपी आती है, तो एकदूसरे से सीखेसिखाएं. इस से आप दोनों को फायदा होगा. इसी तरह सिलाईकढ़ाई, होम डैकोरेशन जैसी बहुत सारी चीजें हैं, जो आप एकदूसरे से सीख कर अपनी पर्सनैलिटी को ऐनहांस कर सकती हैं. अगर आप की भाभी का पहननेओढ़ने, बातचीत करने का तरीका अच्छा है, तो उस से जलनेकुढ़ने के बजाय यह गुर सीखने में कोई हरज नहीं है. इस से जब आप ससुराल जाएंगी, तो आप को सब की चेहती बनते देर नहीं लगेगी.

आप को भी जाना है ससुराल

अगर आप किसी की ननद हैं और अविवाहित हैं, तो इस बात का हमेशा खयाल रखें कि आप को भी एक दिन विवाह कर के ससुराल जाना है, इसलिए आप के लिए यही बेहतर होगा कि आप अपने व्यवहार और बातचीत पर नियंत्रण रखने की कला सीखें. अगर आप अपनी भाभी के साथ बुरा बरताव करेंगी, तो इस का नुकसान आप को ही होगा. अगर भाभी के साथ आप का रिलेशन अच्छा है, तो विवाह के बाद भी आप को मायके में उतना ही प्यार और सम्मान मिलेगा, जितना पहले मिलता था. लेकिन अगर आप दोनों के संबंध अच्छे नहीं हैं, तो आप की शादी के बाद भाभी की यह इच्छा नहीं होगी कि आप मायके में ज्यादा आएं. यह सोचिए कि अगर आपसी कटुता की वजह से वह आप के पति के सामने आप से अच्छा व्यवहार न करे, तो आप को कितना बुरा लगेगा. आप जिस जगह शादी कर के जाएंगी, वहां आप की भी ननद होगी, अगर वह आप के साथ बुरा बरताव करेगी, तो आप को कैसा महसूस होगा, यह सब सोच कर अपनी भाभी के साथ मधुर संबंध बना कर रखें ताकि वह आप के सुखदुख में आप की भागीदार बन सके.

अगर ननद है विवाहित

अगर आप शादीशुदा ननद हैं और भाई की शादी से पहले आप घर के हर छोटेबड़े निर्णय में दखलंदाजी करती थीं, तो भाई के विवाह के बाद आप के लिए बेहतर यही होगा कि आप अपने मायके के मामले में दखल देना बंद कर दें. मायके में उतना ही बोलें जितना जरू री हो. एक महत्त्वपूर्ण बात और भी है कि भाभी के आने के बाद न तो मायके में बिना बुलाए जाएं और न बिनमांगी सलाह दें, क्योंकि अगर किसी ने आप की बात को काट दिया, तो यह बात आप को चुभेगी.

इस बात का खास खयाल रखें कि ससुराल में आप की बात को तभी महत्त्व दिया जाएगा जब आप को अपने मायके में उचित सम्मान मिलेगा. अगर आप की ससुराल वालों को यह पता चल गया कि आप के मायके में आप की बात को महत्त्व नहीं दिया जाता है, तो वहां पर आप को इस के लिए उलाहना भी सुनना पड़ सकता है.  आप की जरा सी असमझदारी से आप के पति का आप के मायके वालों से संबंध खराब भी हो सकता है, इसलिए बेहतर यही होगा कि भाई के विवाह के बाद आप अपनेआप को मायके के मामलों से दूर रखें.

भाभी भी दिखाए समझदारी

ऐसा नहीं है कि हर जगह ननदें ही गलत होती हैं. कभीकभी ऐसा भी होता है कि भाभी ननद को अपनी आंखों का कांटा समझती है और उस के साथ बुरा व्यवहार करती है. अगर आप किसी घर में विवाह कर के गई हैं, तो आप को यह बात समझनी होगी कि अब आप उस घर की बहू हैं. अपने पति का भरपूर प्यार और सम्मान पाने के लिए आप को अपने पति के साथसाथ उस के पूरे परिवार को भी प्यार और सम्मान देना होगा. अगर आप शुरूशुरू में अपनी ननद की थोड़ीबहुत बात बरदाश्त भी कर लेंगी, तो आप को घाटा नहीं होगी. अपने व्यवहार से आप अपनी नखरीली ननद को भी अपनी सहेली बना सकती हैं. लेकिन अपनी छोटी सी गलती से आप अपनी अच्छी ननद की दोस्ती को भी खो सकती हैं.

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फुरसत में क्या करें

– एकदूसरे से अपने अनुभव बांटें. आप को जो भी चीजें अच्छी तरह से आती हैं एकदूसरे को सिखाएं और सीखें. इस का फायदा यह होगा कि आप दोनों एकदूसरे के साथ अच्छा समय बिताने के साथसाथ अपनी जानकारी में बढ़ोतरी भी कर पाएंगी.

– ननद भाभी से अपने दिल की बात शेयर करे और भाभी ननद से परिवार के सदस्यों की पसंदनापसंद के बारे में जाने. आप के पति को क्या अच्छा लगता है, इस बात की जानकारी आप की ननद से बेहतर आप को कोई नहीं दे सकता.

– ननद से अपनी सास के बारे में पूरी बातें जानें और हमेशा न सही कभीकभार ही सही उन की पसंद का काम कर के उन्हें हैरान कर दें. इस से सास के साथ आप के संबंध बेहतर बनेंगे और ससुराल में आप की पकड़ मजबूत होगी.

– कभीकभी मूवी देखने और शौपिंग पर भी साथसाथ जाएं.

और भी गम हैं जमाने में…

आन्या 22 वर्षीय खूबसूरत होनहार और स्वतंत्र विचारों वाली युवती है. बचपन से ले कर आज तक अपने सारे फैसले खुद करती आई है. फिर वह हुआ जो आमतौर पर आजकल के युवकयुवतियों के साथ होता है यानी मुहब्बत. स्वतंत्र आन्या मुहब्बत की बेडि़यों में ही अपनी पहचान ढूंढ़ने लगी थी. अपने बौयफ्रैंड के साथ आन्या ने सतरंगी जीवन के सपने बुनने आरंभ कर दिए थे. अपने शौक, कपड़े पहनने का तरीका सबकुछ उस ने मुहब्बत के फेर में पड़ कर बदल लिया. और फिर टूटे दिल के साथ डिप्रैशन में चली गई.

दीया बचपन से बड़े होने तक एक ही सपना देखती आई कि उस की जिंदगी में एक राजकुमार आएगा. पासपड़ोस, रिश्तेदारों में सब की लव स्टोरी थी. ऐसे में दीया को लगने लगा कि उस की जिंदगी बिना साथी के बेमानी है और फिर इसी विचारधारा के कारण वह जल्द ही एक लंपट किस्म के लड़के के चंगुल में फंस गई.

आखिर ऐसा क्यों है कि हर लड़की चाहे वह शहर की हो या कसबे की या फिर महानगर की अपनी पूर्णता एक साथी के साथ ही ढूंढ़ती है? इस के पीछे छिपी है वही पुरानी सोच कि लड़की की जिम्मेदारी तब तक पूरी नहीं होती है जब तक उस का घर नहीं बसता है.

कसबों में तो आज भी बहुत सारी लड़कियां पढ़ाई ही विवाह करने के लिए करती हैं. वहीं महानगरों में नौकरी करना एक बेहतर जीवनसाथी और शादी के लिए जरूरी हो गया है.

यानी लड़कियों की जीवनयात्रा में पुरुष नामक जीव का बहुत महत्त्व है. उन के अधिकतर कार्यकलाप पुरुष मित्रों, प्रेमी या पति के इर्दगिर्द ही घूमते हैं और जैसे ही पुरुष नामक धुरी उन की जिंदगी से अलग हो जाती, उन का अस्तित्व गौण हो जाता है.

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एक नाकामयाब मुहब्बत के कारण ये लड़कियां अपनी जिंदगी तक खत्म कर लेती हैं और इस के पीछे छिपी है वही रूढि़वादी सोच कि अकेली औरत कैसे रह पाएगी. एक अकेली औरत के साथ बेचारी शब्द क्यों जुड़ जाता है? क्यों हम अपनी बेटियों के मन में यह बात बैठा देते हैं कि उन का औरत होना तभी सार्थक है जब उन की जिंदगी में कोई आदमी हो?

अगर थोड़ा गहराई से सोचें तो लड़कियां ही हैं जो विवाह के बाद अपनेआप को नख से शिख तक बदल लेती हैं, क्योंकि उन्हें बचपन से यही सिखाया जाता है कि प्यार का मतलब है बलिदान, चाहे इस में वह खुद का अपमान भी कर रही हो.

ऐसे में हम क्यों न अपनी बेटियों को यह बात सिखाएं कि प्यार जिंदगी का बस एक और रंग है परंतु प्यार जिंदगी नहीं है. किसी के होने या न होने से वे खुद को नकारना बंद करे. किसी का साथ होना अच्छा है, परंतु बिना साथ भी वे जिंदगी अच्छी तरह गुजार सकती हैं. किसी के साथ की चाह में अपनी खूबसूरत जिंदगी को बेवजह जाया न करें.

अगर आप की बेटी, भानजी, भतीजी, छोटी या बड़ी बहन या कोई सहेली इस मुहब्बत के गम से गुजर रही हो तो आप इन छोटेछोटे टिप्स से उस की मदद कर सकती हैं:

एकला चलो रे:

आप का जीवन एक यात्रा है और हर शख्स के साथ आप को एक पड़ाव तय करना होता है. जरूरी नहीं है कि आप का साथी आप के साथ जिंदगी के हर पड़ाव पर साथ चले. कुछ लोग आप की जिंदगी में कुछ सिखाने ही आते हैं. जरूरी है कि आप उन लोगों से जो सीख सकते हैं, सीखें और फिर अपनी यात्रा  जारी रखें.

याद रखिए कि यह जीवन आप की अपनी यात्रा है और अब यह आप को ही तय करना है कि आप को इस यात्रा को रोते हुए पूरा करना है या फिर हर अच्छेबुरे अनुभवों से गुजरते हुए अपनी खुशियों की जिम्मेदारी खुद लेते हुए अपने सफर को पूरा करना है.

खुद से ही आप की पहचान:

अगर अपने नाम के साथ किसी और का नाम जोड़ कर ही आप अपनी पहचान देखती हैं तो साथी का जिंदगी से चले जाना आप को बहुत दर्द देगा. आप की पहचान आप से ही है. किसी की गर्लफ्रैंड या बीवी बन कर आप उस शख्स की जिंदगी का एक हिस्सा बन सकती हैं, मगर जिंदगी नहीं. इस बात को आप जितनी जल्दी समझ जाएंगी उतना ही अच्छा होगा.

खुद को न बदले:

अकसर देखने में आता है लड़कियां प्यार में पड़ कर या विवाह के बाद अपनेआप को इतना अधिक बदल लेती हैं कि उन को पहचानना मुश्किल हो जाता है. अपने साथी की पसंद के कपड़े, गहने, हेयरकट अपनाना और हद तो तब हो जाती है जब कुछ लड़कियां पति या प्रेमी के कारण मदिरा आदि का सेवन भी आरंभ कर देती हैं. उन का हर प्रोग्राम अपने साथी के मूड या काम पर निर्भर होता है. अगर कम शब्दों में कहें कि ऐसी लड़कियां खुद को इतना अधिक बदल लेती हैं कि साथी के न रहने या धोखा देने पर उन के जीवन की नींव ही हिल जाती है.

मित्रों का दायरा बढ़ाएं:

आप की चाहे शादी हो गई हो या आप किसी के साथ रिलेशनशिप में हों फिर भी अपने मित्रों से मिलनाजुलना न छोड़ें. याद रखिए कोई भी एक व्यक्ति आप की सारी जरूरतों को पूरी नहीं कर सकता है. मित्रों का जीवन में होना बेहद जरूरी होता है. अगर प्यार जरूरी है तो दोस्तों का होना और भी अधिक जरूरी है. अपने मित्रों का दायरा थोड़ा सा विस्तृत रखिए ताकि आप को बुरे समय में अकेलापन न लगे.

परिवार भी है जरूरी:

शादी होते ही लड़कियां परिवार से कट जाती हैं. पति की नींद ही सोना और पति की नींद ही जगना. जिंदगी में हर रिश्ते का अपना महत्त्व होता है. जैसे आप के साथी या पति की जगह कोई नहीं ले सकता है ठीक उसी तरह आप के परिवार की जगह भी कोई नहीं ले सकता है. ऐसा न हो अपने साथी के प्यार में डूब कर आप अपने परिवार को इग्नोर कर दें. परिवार की इकाई ही आप को भावनात्मक संबल दे सकती है.

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काम से कर ले दोस्ती:

समय चाहे अच्छा हो या बुरा, काम ही एक ऐसी चीज है, जो आप के गम को भुलाने में सहायक होती है. जिंदगी में साथी तो बहुत मिल जाएंगे, मगर यदि आप ने अपने काम का सम्मान नहीं किया तो आप खुद को भी खो देंगी. आप का काम भी आप के साथी की तरह आप के साथ हमेशा रहेगा. आप के साथी की तो फिर भी आप से कुछ अपेक्षाएं होंगी, मगर आप का काम बिना किसी अपेक्षा के आप को नाम और सम्मान दिलाने में सक्षम है.

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