तुम्हारी कोई गलती नहीं: भाग 1- रिया के साथ ऐसा क्या हुआ था

ड नंबर 8 के मरीज की दवाओं और इंजैक्शन के बारे में नर्स को समझ कर रिया जनरल वार्ड से निकल कर प्राइवेट वार्ड की ओर चल दी. स्त्रीरोग विभाग में 16 प्राइवेट कमरे थे, जिन में से 11 इस समय भरे हुए थे. उन में औपरेशन, डिलीवरी, गर्भपात आदि के पेशैंट थे. 1-1 पेशैंट का हालचाल पूछते हुए जब डा. रिया सब से आखिरी पेशैंट को देख कर रूम से बाहर निकली, तो बहुत थक गई थी. नर्सों के ड्यूटीरूम में जा कर उस ने हैड नर्स को कुछ पेशैंट्स के उपचार संबंधी निर्देश दिए और डाक्टर्स ड्यूटीरूम की ओर चल दी.

ड्यूटीरूम में डा. प्रशांत और डा. नीलम बैठे थे.

‘‘क्या बात है रिया, काफी थकी हुई लग रही हो? लो, कौफी पी लो,’’ कह डा. प्रशांत ने 1 कप रिया की ओर बढ़ा दिया.

‘‘थैंक्स डा. प्रशांत,’’ रिया ने आभार प्रकट करते हुए कौफी ले ली.

‘‘सच में रिया तुम्हारा चेहरा काफी डल लग रहा है. तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

डा. नीलम ने पूछा.

‘‘तबीयत तो ठीक है. बस थोड़ा थक गई हूं, इसलिए सिर थोड़ा भारी है,’’ रिया ने जवाब दिया, ‘‘ओह, 4 बज गए, आज मुझे जरा जल्दी घर जाना है. मैं डा. अश्विन को बता कर घर चली जाती हूं,’’ रिया ने घड़ी देखते हुए कहा.

‘‘डा. अश्विन तो ओ.टी. में होंगे, तुम आशा मैडम को रिपोर्ट कर के चली जाओ,’’ नीलम ने कहा और फिर चुटकी लेते हुए पूछ ही लिया, ‘‘वैसे काम क्या है, जो आज अचानक जल्दी जा रही हो? घर में खास मेहमान आ रहे हैं क्या?’’

रिया मुसकरा दी, ‘‘नहींनहीं, ऐसी बात नहीं है. शौपिंग करने जाना है,’’ रिया दोनों को बाय कर के आशा मैडम के कैबिन की ओर चली दी. वैसे डिपार्टमैंट के हैड डा. अश्विन थे, लेकिन चूंकि वे सर्जन थे, इसलिए उन का अधिकांश समय औपरेशन थिएटर में ही गुजरता था. उन के बाद डा. आशा थीं, जो उन की अनुपस्थिति में विभाग का काम संभालती थीं. रिया ने उन के पास जा कर अपनी प्रौब्लम बताई और छुट्टी ले कर अपनी गाड़ी से घर की ओर चल दी.

नीलम ने सही सोचा था कि रिया के यहां खास मेहमान आने वाले हैं. सचमुच वह आज इसीलिए जल्दी जा रही थी कि लड़के वाले उसे देखने आ रहे हैं. लड़का नीरज भी डाक्टर है. लंदन से कैंसर पर रिसर्च कर के आया है. उस के पिताजी का भोपाल में स्वयं का क्लीनिक है, लेकिन वह कैंसर हौस्पिटल में कार्यरत है. नीरज के पिता और्थोपैडिक सर्जन हैं और मां ने रिटायरमैंट के बाद प्रैक्टिस छोड़ दी है.

रिया 5 बजे अपने घर पहुंची. सारे रास्ते वह अनमनी सी रही. घर पहुंचते ही देखा मां दरवाजे पर ही खड़ी थीं.

‘‘कितनी देर लगा दी बेटी,’’ आते ही उन्होंने रिया को प्यार भरा उलाहना दिया.

‘‘सौरी मां, राउंड लेते हुए लेट हो गई थी,’’ रिया ने मां के गले में बांहें डाल कर मुसकराते हुए कहा.

‘‘अच्छा चल, हाथमुंह धो कर चाय पी ले,’’ मां ने कहा.

‘‘नहीं मां, मैं कौफी पी कर आई हूं. वे लोग कितने बजे आएंगे?’’ रिया ने झिझकते हुए पूछा.

‘‘6 बजे तक आने को कह रहे थे,’’ मां ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा.

रिया ने अपने जीवन का यही ध्येय बनाया था कि डाक्टर बन कर लोगों की सेवा करेगी. वह हर रिश्ते के लिए मना कर देती थी, क्योंकि वह भलीभांति जानती थी कि उस के अतीत के बारे में पता लगते ही हर कोई मना कर देगा. डाक्टर लड़की के लालच में बहुत से लोग अपने बेटे का रिश्ता ले कर आए, लेकिन रिया ने किसी से भी मिलने से इनकार कर दिया. लेकिन नीरज के पिता रिया के पिता से एक पार्टी के दौरान मिले, तो रिया से मिलने की जिद ही कर बैठे. हार कर रिया के पिता को उन्हें घर पर आमंत्रित करना ही पड़ा.

6 बजने में 5 मिनट थे, जब रिया पलंग से उठी. सिर थोड़ा हलका लग रहा था. बाथरूम में जा कर उस ने मुंह पर पानी के छींटे मारे तो थोड़ी ताजगी आई. उस ने एक साधारण सा सूट निकाला और पहन लिया. पता था रिश्ता तो होना नहीं, तो क्यों बेकार अपना प्रदर्शन करे? माथे पर बिंदी लगाई, केशों की चोटी बनाई और नीचे मां के पास आ गई. उस ने जरा भी मेकअप नहीं किया था, लेकिन वह सुंदर ही इतनी थी कि उसे किसी भी तरह का मेकअप करने की जरूरत ही नहीं थी. उस के खिले हुए रंग पर उस के सूट का गुलाबी रंग उसे एक स्वाभाविक गुलाबी आभा प्रदान कर रहा था. उस के कानों में छोटेछोटे सोने के टौप्स थे.

मां ने उसे देखा तो टोका नहीं, क्योंकि उन्हें पता था कि वह अन्य लड़कियों की तरह बननेसंवरने में विश्वास नहीं करती. उन्होंने केवल अपनी चैन निकाल कर उसे पहना दी और उस के खाली हाथों में 1-1 चूड़ी पहना दी. रिया ने विरोध नहीं किया.

ठीक साढ़े 6 बजे नीरज अपने मातापिता के साथ आ गया. वे लोग काफी सहज थे. रिया के मातापिता को थोड़ा तनाव था, लेकिन जल्द ही नीरज और उस के मातापिता के सहजसरल स्वभाव ने माहौल को एकदम सहज बना दिया. जल्द ही रिया भी औपचारिकता और झिझक छोड़ कर उन लोगों से घुलमिल गई.

नीरज की मां सीधेसादे स्वभाव की लगीं. पिताजी काफी हंसमुख थे. बातबात पर वे ठहाके लगा रहे थे. नीरज स्वयं गंभीर स्वभाव का था, परंतु उस के चेहरे पर एक सरल स्वाभाविकता थी, जिस ने सब को काफी प्रभावित किया. चायनाश्ते के बाद सब के कहने पर नीरज और रिया बाहर लौन में चले गए.

नीरज का व्यवहार और बातचीत का तरीका बेहद शालीन था. रिया को ऐसा लगा ही नहीं कि वह उस से पहली बार बात कर रही है. डाक्टरी से ले कर बगीचे के फूलों तक विभिन्न विषयों पर उस ने रिया से बात की. रिया उस से काफी प्रभावित हुई. नीरज ने उसे अपना मोबाइल नंबर दिया.

रात घिरने लग गई, तब वे दोनों अंदर आ गए. कुछ देर बाद नीरज के पिताजी जाने के लिए उठ खड़े हुए. बाहर निकलते वक्त उन्होंने रिया और उस के मातापिता को चौंका दिया.

वे कार में बैठने से पहले बोले, ‘‘भई,

हमें तो रिया बहुत पसंद आई. हम ने उसे अपनी बहू बनाने का फैसला कर लिया है. हमारी ओर से यह रिश्ता पक्का है. अब आप लोग हमें अपना फैसला बता दीजिएगा,’’ और वे चले गए.

उन के जाने के बाद रिया और उस के मातापिता 2 मिनट तक तो अवाक से वहीं खड़े रह गए. उन्हें इतनी जल्दी हुए फैसले पर यकीन ही नहीं हो रहा था.

अंदर आ कर रिया की मां ने रिया के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘रिया बेटा, सोच ले, नीरज बहुत अच्छा लड़का है और परिवार भी अच्छा है. सारी बातें भूल कर एक नई जिंदगी की शुरुआत कर ले बेटा,’’ उन की आवाज में मां के दिल का दर्द उमड़ आया.

रिया हौले से आश्वासन की मुद्रा में मुसकरा दी तो मां थोड़ी आश्वस्त हो गईं.

Cook Book special: खुशबू कश्मीर की

कश्मीरी दम आलू बहुत ही फेमस रेसिपी है. आप भी अपनी फैमिली के लिए डिनर में बनाएं कश्मीरी दम आलू. घर में सभी उंगलियां चाटते रह जाएगे. आज ही घर पर बनाएं कश्मीरी दम आलू. आइए बताते है इसकी रेसिपी.

  1. कश्मीरी दम आलू

सामग्री

1.  1 बड़ा चम्मच औयल 

   2. 400 ग्राम छोटे आलू उबले

   3. 1 बड़ा चम्मच सौंफ 

   4. 3-4 लौंग

    5.  3-4 इलायची

    6. 1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

     7. 1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

      8.  1/2 कप दही

      9. 2 छोटे चम्मच कश्मीरी चिली पाउडर

      10. 2 कप पानी में भिगोया 

      11. गार्निशिंग के लिए थोड़ी सी धनियापत्ती कटी.

विधि

एक नौनस्टिक पैन में घी गरम कर आलू फ्राई करें. आलू जब सुनहरे हो जाएं तो उन्हें एक तरफ रख दें. फिर उसी घी में सौंफ, लौंग व इलायची डाल कर चटकाएं. उस में हलदी और धनिया पाउडर डाल कर भूनें. अब इस में दही और पानी में भीगा चिली पाउडर डालें. फिर नमक और आलू डाल कर ढक कर पकने रख दें. पक जाने पर धनियापत्ती से गार्निश कर चावल के साथ सर्व करें.

2. कुलथ की दाल

सामग्री

1.  1 बड़ा चम्मच घी 

 2. थोड़ा सा अदरक कटा

  3.  2-3 हरीमिर्चें बीच से कटी 

   4. 1 कप उबली कुलथ की दाल

    5. 1 चम्मच अनारदाना पाउडर पानी में भीगा 

    6. गार्निशिंग के लिए थोड़ी सी धनियापत्ती 

7. दही और प्याज के छल्ले.

विधि

एक पैन में घी गरम कर अदरक और हरीमिर्चें डाल कर भूनें. कुलथ की दाल डाल कर ढक कर 20-25 मिनट पकने दें. इसी दौरान इस में नमक और अनारदाना पाउडर भी डाल दें. दाल के पक जाने पर धनियापत्ती, दही और प्याज के छल्लों से सजा कर रोटी या चावल के साथ सर्व करें.

3. अम्बाल

सामग्री

1.  1 बड़ा चम्मच घी 

  2. 1 छोटा चम्मच जीरा

   3. 1 बड़ा चम्मच मेथी दाना 

   4. 2-3 लालमिर्चें बड़ी 

    5. 400 ग्राम कद्दू छिला 

    6. 1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर 

     7. 1/2 छोटा चम्मच मिर्च पाउडर 

     1 छोटा चम्मच अनारदाना पाउडर.

विधि

एक नौनस्टिक पैन में घी गरम कर जीरा, मेथीदाना व लालमिर्च डाल कर चटकाएं. अब इस में कद्दू डाल कर 2 मिनट फ्राई करें. फिर हलदी पाउडर, मिर्च पाउडर, नमक और 1/2 कप पानी डाल कर ढक कर धीमी आंच पर पकने दें. पक जाने पर अनारदाना पाउडर डाल कर फिर 3-4 मिनट पकाएं और चावल के साथ सर्व करें.

4. जंगली गोश्त

सामग्री

1.  2 बड़े चम्मच घी या औलिव औयल

 2.  3-4 लालमिर्चें कुटी द्य थोड़ा सा अदरक कद्दूकस किया 

  3. थोड़ा सा लहसुन पेस्ट

  4.  500 ग्राम गोश्त 

  5. नमक स्वादानुसार.

विधि

कुकर में घी डाल कर गरम करें. फिर लहसुन, अदरक व नमक डाल कर अच्छी तरह से भूनें. भुन जाने पर इस में गोश्त डाल कर अच्छी तरह मिक्स कर 5 मिनट पकने दें. अब इस में 1 कप पानी डाल कर कुकर में स्टीम लगाएं. इसे रोटी या चावल के साथ सर्व करें.

रक्षाबंधन पर ड्रेस के साथ ज्वेलरी कैरी करें कुछ ऐसे

भाई-बहनों का त्यौहार रक्षाबंधन देशभर में बड़े धूमधाम से हर साल मनाया जाता है. इस त्यौहार पर बहने अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उसकी लंबी उम्र की कामना करती हैं. ये त्यौहार भाई – बहन के बीच के रिश्ते को अधिक मजबूत और प्यारा बनाती है. जहां एक तरफ बेस्ट राखी खरीदने को लेकर बहनें पहले से ही मार्केट में खोजना शुरू कर देती हैं, वहीं अपने आउटफिट और लुक को लेकर भी बहुत कन्फ्यूज रहती हैं. इस बारें में महालक्ष्मी ज्वेलर्स के स्टाइलिश विवेक अग्रवाल कहते है कि इस बार इस त्यौहार को कुछ अलग और यादगार बनाने के लिए ऐसे स्टाइलिंग आइडियाज शेयर कर रहे हैं, जिससे उस दिन आपकी लुक होगी एकदम अलग और खूबसूरत.

वे आगे कहते है कि रक्षाबंधन पर ड्रेस और ज्वेलरी को लेकर कन्फ्यूज होने की जरुरत नहीं है, इन टिप्स को आप आसानी से फोलो कर सकती है.

  1. बनारसी साड़ी के साथ गोल्ड ज्वेलरी  

रक्षाबंधन पर मैरिड विमन्स अधिकतर साड़ी पहनना पसंद करती हैं, जिसके साथ ज्वेलरी पर खास ध्यान देना चाहिए, जो आपकी खूबसूरती में चार चांद लगा देती है. अगर आप अपने लिए बनारसी साड़ी चुन रही हैं, तो इसके साथ प्योर गोल्ड चोकर नेकलेस सबसे बढ़िया लगते हैं. कान में झुमकी और मांगटीका लुक को कम्पलीट कर देगा.

2. नेट की साड़ी के साथ डायमंड ज्वेलरी

रक्षाबंधन पर नेट की साड़ी पहनना एक बढ़िया ऑप्शन है. इस फैब्रिक की साड़ी के साथ आप डायमंड नेकलेस आराम से मैच कर सकती हैं. लाइट वेट हीरे के हार के साथ आप मैचिंग अमेरिकन डायमंड ईयररिंग्स, मांगटीका और ब्रेसलेट पेअर कर सकती हैं. इसका खास ध्यान रखें कि हर एक ज्वेलरी पीस का स्टाइल एक जैसा हो.

3. गोल्ड ज्वेलरी के ट्रेंडी डिजाइन्स भी करें ट्राई

आज के दौर की लड़कियों को अक्सर पीले रंग की गोल्ड जवेलरी पहनना आउट ऑफ फैशन लगता है. ऐसे में कुंदन डिजाइन वाले नेकलेस भी खरीद सकती हैं. इसे सिर्फ रक्षाबंधन पर ही नहीं, बल्कि दूसरे फेस्टिवल पर भी एथनिक आउटफिट के साथ आराम से मैच कर सकती हैं.

4. शॉर्ट कुर्ती और पैंट्स के साथ कलरफुल आर्टिफिशियल जवेलरी

गर्मी का मौसम है और ऐसे में अगर आप एकदम कम्फर्टेबल क्लोद्स कैरी करना चाहती हैं, तो शॉर्ट कुर्ती से बढ़िया ऑप्शन नहीं हो सकता. रक्षाबंधन पर पहनने के लिए हल्के फ्लोरल प्रिंट वाले कॉटन कुर्ते के साथ आर्टिफिशियल स्टोनवर्क ज्वेलरी कैरी किया जा सकता है. स्टोन्स वाले नेकलेस और ईयररिंग्स के कई बढ़िया कलर कॉम्बिनेशन मार्केट में भी मिल जाते हैं.

5. चिकनकारी सूट और पेंडेंट नेकलेस

अगर आपका बजट हेवी ज्वेलरी खरीदने का नहीं है, तो आप पेंडेंट नेकलेस भी ले सकती हैं. जिसके साथ आपको ज्यादातर लटकन ईयररिंग्स मिलते हैं, जिन्हें आप चिकनकारी सूट या इंडो-वेस्टर्न के साथ भी कैरी कर सकती हैं. मिड लेंथ के ये नेकलेस काफी सुंदर और अलग लुक देते हैं.

6. इंडो-वेस्टर्न के साथ ज्वेलरी

इस रक्षाबंधन पर अगर आप इंडो-वेस्टर्न आउटफिट पहन रही हैं, तो इसके साथ  लॉन्ग गोल्ड चेन नेकलेस कैरी कर सकती हैं. ये आपके लुक को परफेक्ट बना देगा. अगर आप लुक को थोड़ा हैवी रखना चाहती हैं, तो लेयर्ड सेट ले सकती हैं.

7. आउटफिट के अनुसार रखें सिंपल ज्वेलरी

गोल्ड ज्वेलरी हो या आर्टिफिशियल, इसे पहनते वक्त इस बात का जरूर ध्यान रखें कि आप जितना अपने लुक को सिंपल रखेंगी, उतना लोगों का ध्यान आपकी तरफ रहेगा. साड़ी, सूट या इंडो-वेस्टर्न कुछ भी हो, लेकिन त्यौहार पर हल्की ज्वेलरी ही आपके लुक को एन्हान्स करती है.

Raksha Bandhan: इस राखी पर बच्चों की भावनाओं को दे प्राथमिकता कुछ ऐसे

मुझे अभी भी याद आता है, जब मैं अपने घर पर तैयार हो रही थी, क्योंकि मुझे माँ के पास भाई को राखी बाँधने जाना था. मैंने बेटे रोहन को जल्दी तैयार किया और जाने की तैयारी करने लगी, तभी माँ का फ़ोन आता है कि आते हुए रास्ते से मिठाई लेते आना, क्योंकि रिया आज आ रही है. उसके पास समय नहीं होगा. माँ की ये बात सुनकर सीमा को पहले गुस्सा आया,  उसके नजदीक रहने की वजह से माँ हर काम उसे ही सौंप देती है. जबकि वह भी मुंबई में पली-बड़ी है, उसे भी सब मालूम होगा.दो बहनों के भाई राजीव को रक्षाबन्धन पर  दोनों बहने राखी बांधती है, बचपन में सभी साथ थे, लेकिन बड़े होने पर सभी अलग हो गए, लेकिन राजीव से बड़ी बहन सीमा और उससे छोटी बहन रिया की शादी होने पर वे अपने ससुराल चले गए. सीमा मुंबई में रहती है, इसलिए भाई को राखी बाँधने हर साल आती है, जबकि रिया दुबई में रहती है,पर राखी पर आने की हमेशा कोशिश करती है.

भावनाओं को महत्व देती त्यौहार

हमारे देश में वैसे तो कई खुशियों के त्यौहार होते है, लेकिन राखी उनमे सबसे अधिक खुशियाँ देता है. इस त्यौहार में भाई-बहन के रिश्ते को एक रेशम की डोरी के द्वारा भावनाओं को गहराई में उतरने का मौका मिलता है. सावन का महीना वैसे भी साज-श्रृंगार और प्यार-अनुराग का प्रतीक होता है, ऐसे में यह त्यौहार सभी भाई-बहनों के दिल में उमंग भर देता है. इस त्यौहार पर बहने भाई को ऐसी राखियाँ बांधे, जो उनके जीवन को प्रेरित करें, क्योंकि इस बार राखीप्यार, विश्वास, मुस्कान, स्वतंत्रता और क्षमा की. इसमें एकाकी होते परिवार में भूमिका होती है, पेरेंट्स की, जो इस रिश्ते को सालों साल मजबूत बनाए रखने की दिशा में अहम भूमिका निभाते है.

समझे बच्चों को

इस बारें मेंसाइकोलोजिस्ट राशिदा कपाडिया कहती है कि बच्चे के जन्म के बाद से माता-पिता की जरुरत होती है. माता-पिता का प्यार बच्चे को मिलते रहते है, उस प्यार की जरुरत उसे हमेशा रहती है, लेकिन एक बच्चे के बाद जब उन्हें दूसरा बच्चा होता है, तो उनके अंदर हमेशा यही डर रहता है कि अब मेरा प्यार बट जाएगा. जाने अनजाने में पेरेंट्स भी छोटे बच्चे पर अधिक ध्यान रखते है. माता-पिता को बच्चे की भावना को समझना जरुरी है. भाई और बहन के बीच में प्यार का बंटवारा होने पर, या दोनों में से किसी एक के दूर चले जाने पर, जो बच्चा दूर होता है, उसके आने पर पेरेंट्स का ध्यान उस बच्चे पर अधिक जाता है. हालाँकि ये स्वाभाविक है, क्योंकि हमेशा वे उससे मिल नहीं पाते. इसलिए वे उस बच्चे की पैम्परिंग अधिक करते है, उनकी पसंद, नापसंद का ख्याल रखते है, ये नैचुरल होने पर भी दूसरी बहन या भाई जो पेरेंट्स के पास रहते है, जो पेरेंट्स का अधिक ध्यान नजदीक रहने की वजह से रखते है, उनके मन में थोड़ी खटास आ जाती है. वे सोचते है कि मेरे पेरेंट्स मुझसे अधिक दूसरे भाई या बहन को प्यार दे रहे है, उनकी किसी गलतियों को नजरंदाज कर रहे है, जबकि नजदीक रहने वाले बच्चे की थोड़ी गलती को वे नजरंदाज नहीं कर पाते, लेकिन जरुरत के समय दूर रहने वाले बच्चे किसी काम के नहीं होते.

आर्थिक रूप से संपन्न बच्चे

इसके आगे राशिदा कहती है कि ऐसा अधिक पैसे वाले बच्चे के साथ भी होता है. तीनों बच्चों में जो बेटी धनी है, उसका ध्यान भी पेरेंट्स अधिक रखते है, क्योंकि जरुरत की महंगी चीजे वही दे सकते है, भले ही वे देर से क्यों न दे. इससे बच्चे के अंदर इर्ष्या की भावना पैदा होती है. दोनों बच्चों को समान रूप से ध्यान देना जरुरी है. वह नहीं मिलने पर भाई या बहन हर्ट फील करते है.

तुलना न करें

साइकोलोजिस्ट राशिदा आगे कहती है कियहाँ यह भी ध्यान रखना पड़ता है कि बड़े बच्चों के शादी हो जाने पर उनके बच्चे भी होते है, जो अपने माता-पिता के प्रति उनके पेरेंट्स का व्यवहार नजदीक से देखते है. अब वे ग्रैंड पेरेंट्स बन चुके होते है, ऐसे में बच्चों को अपने दादा-दादी या नाना-नानी के व्यवहार पसंद नहीं आते. एक दूसरे के बीच तुलना उनके बच्चों को पसंद नहीं होता.इसपर ध्यान न देने पर परिवार की एक ट्रेडिशन बन जाती है, जो ठीक नहीं. जबकि आज बच्चे बहुत अकेले और सोशल मीडिया की दुनिया में व्यस्त होते है, जहाँ उन्हें परिवार, रिश्ते आदि का महत्व कम होता है.

Raksha Bandhan:सोनाली की शादी- क्या बहन के लिए रिश्ता ढूंढ पाया प्रणय

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अंशिका: भाग 1- क्या दोबारा अपने बचपन का प्यार छोड़ पाएगी वो?

प्रशांत और मैं पटना शहर के एक ही महल्ले में रहते थे और एक ही स्कूल में पढ़ते थे. यह भी इत्तफाक ही था कि दोनों अपने मातापिता की एकलौती संतान थे. एक ही गली में थोड़ी दूरी के फासले पर दोनों के घर थे. प्रशांत के पिता रेलवे में गोदाम बाबू थे तो मेरे पिता म्यूनिसिपल कौरपोरेशन में ओवरसियर. दोनों अच्छेखासे खातेपीते परिवार से थे. पर एक फर्क था वह यह कि प्रशांत बंगाली बनिया था तो मैं हिंदी भाषी ब्राह्मण थी. पर प्रशांत के पूर्वज 50 सालों से यहीं बिहार में थे.

हम एक ही स्कूल में एक ही कक्षा में पढ़ते थे. प्रशांत मेधावी विद्यार्थी था तो मैं औसत छात्रा थी. हमारा स्कूल आनाजाना साथ ही होता था. हम दोनों अच्छे दोस्त बन चुके थे.

ऐसा नहीं था कि मेरी कक्षा में और लड़कियां नहीं थीं, पर मेरी गली से स्कूल में जाने वाली मैं अकेली लड़की थी. हमारा स्कूल ज्यादा दूर नहीं था. करीब पौना किलोमीटर दूर था, इसलिए हम पैदल ही जाते थे. मैं प्रशांत को शांत बुलाया करती थी, क्योंकि वह और लड़कों से अलग शांत स्वभाव का था. प्रशांत मुझे तनुजा की जगह तनु ही पुकारता था. हमारी दोस्ती निश्छल थी. पर स्कूल के विद्यार्थी कभी छींटाकाशी भी कर देते थे. उन की कुछ बातें उस समय मेरी समझ से बाहर थीं तो कुछ को मैं नजरअंदाज कर देती थी.

जब मैं 9वीं कक्षा में पहुंची तो एक दिन मां ने मुझ से कहा कि तू अब प्रशांत के साथ स्कूल न जाया कर. तब मैं ने कहा कि इस में क्या बुराई है? वह हमेशा कक्षा में अव्वल रहता है… पढ़ाई में मेरी मदद कर देता है.

जब मैं 10वीं कक्षा में पहुंची थी तो एक दिन शांत ने पूछा था कि आगे मैं क्या पढ़ना चाहूंगी तब मैं ने कहा था कि इंजीनियरिंग करने का मन है, पर मेरी मैथ थोड़ी कमजोर है. उस दिन से शांत गणित के कठिन सवालों को समझने में मेरी सहायता कर देता था. कभीकभार नोट्स या किताबें लेनेदेने मेरे घर भी आ जाता, पर घर के अंदर नहीं आता था, बाहर से ही चला जाता था. मेरी मां को वह अच्छा नहीं लगता था, इसलिए मैं चाह कर भी अंदर आने को नहीं कहती थी. पर मुझे उस का साथ, उस का पास आना अच्छा लगता था. मन में एक अजीब सी खुशी होती थी.

देखते ही देखते बोर्ड की परीक्षा भी शुरू हो गई. 3 सप्ताह तक हम इस बीच काफी व्यस्त रहे. शांत की सहयाता से मेरा मैथ का पेपर भी अच्छा हो गया. अब स्कूल आनाजाना बंद था तो शांत से मिले भी काफी दिन हो गए थे. अब तो बोर्ड परीक्षा के परिणाम का बेसब्री से इंतजार था.

परीक्षा परिणाम भी घोषित हो गया. मैं अपनी मार्कशीट लेने स्कूल पहुंची. वहां मुझे प्रशांत भी मिला. जैसे कि पूरे स्कूल को अपेक्षा थी शांत अपने स्कूल में अव्वल था. मैं ने उसे बधाई दी. मुझे भी अपने मार्क्स पर खुशी थी. आशा से अधिक ही मिले थे. जब प्रशांत ने भी मुझे बधाई दी तो मैं ने उस से कहा कि इस में तुम्हारा भी सहयोग है. तब शांत ने कहा था कि मुझे भी इसी स्कूल में प्लस टू में साइंस विषय मिल जाना चाहिए.

अब मैं 11वीं कक्षा में थी. मुझे भी साइंस विषय मिला पर मैं ने मैथ चुना था, जबकि शांत ने बायोलौजी ली थी. वह डाक्टर बनना चाहता था. अब मेरे और शांत के सैक्शन अलग थे. फिर भी ब्रेक में हम अकसर मिल लेते थे. कभीकभी प्रयोगशाला में भी मुलाकात हो जाती थी.

उस की बातों से अब मुझे ऐसा एहसास होता कि वह मुझ में कुछ ज्यादा ही रुचि ले रहा है. इस बात से मैं भी मन से आनंदित थी पर दोनों में ही खुल कर मन की बात कहने का साहस न था. पर शांत कहा करता था कि हमारे विषय भिन्न हैं तो पता नहीं 12वीं कक्षा के बाद हम दोनों कहां होंगे. एक बार मुझे जो नोटबुक उस ने दिया था उस के पहले पन्ने पर लिखा था तनु ईलू. मैं ने भी उस के नीचे ‘शांत…’ लिख कर लौटा दिया था. देखते ही देखते हम दोनों की बोर्ड की परीक्षा खत्म हो गई. शांत ने मैडिकल का ऐंट्रेंस टैस्ट दिया और मैं ने इंजीनियरिंग का. 12वीं कक्षा का परिणाम भी आ गया था. प्रशांत फिर अव्वल आया था. मुझे भी अच्छे मार्क्स मिले थे. शांत मैडिकल के लिए कंपीट कर चुका था. मैं ने उसे बधाई दी, परंतु मैं इंजीनियरिंग में कंपीट नहीं कर सकी थी. शांत ने मेरा हौसला बढ़ाते हुए कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है. मुझे अपने मनपसंद विषय में औनर्स ले कर गै्रजुएशन की पढ़ाई पूरी करने की सलाह दी थी. कुदरत ने एक बार फिर मेरा साथ दिया. मुझे पटना साइंस कालेज में फिजिक्स औनर्स में दाखिला मिल गया और शांत ने पटना मैडिकल कालेज में दाखिला लिया. दोनों कालेज में कुछ ही दूरी थी. यहां भी हम लौंग बे्रक में मिल कर साथ चाय पी लेते थे.

मुझे याद है एक बार शांत ने कहा था, ‘‘तनु, चलो आज तुम्हें कौफ्टी पिलाता हूं.’’

मैं ने कहा, ‘‘शांत यह कौफ्टी क्या बला है? कभीकभी तुम्हारी बातें मुझे मिस्ट्री लगती हैं बिलकुल वैसे ही जैसे ईलू.’’

उस ने कहा, ‘‘तो तनु मैडम को अभी तक ईलू समझ नहीं आया…कोई बात नहीं…उस पर बाद में बात करते हैं. फिलहाल कौफ्टी से तुम्हारा परिचय करा दूं,’’ और मुझे मैडिकल कालेज के गेट के सामने फुटपाथ पर एक चाय वाले ढाबे पर ले गया. फिर 2 कौफ्टी बनाने को कहा. ढाबे वाले ने चंद मिनटों में 2 कप कौफ्टी बना दिए. सच, गजब का स्वाद था. दरअसल, यह चाय और कौफी का मिश्रण था, पर बनाने वाले के हाथ का जादू था कि ऐसा निराला स्वाद था.

कुछ दिनों तक शांत और मैं एक ही बस से कालेज आते थे. वह तो शांत का संरक्षण था जो बस की भीड़ में भी सहीसलामत आनाजाना संभव था वरना बस में पटना के मनचले लड़कों की कमी न थी. फिर भी उन के व्यंग्यबाण के शिकार हम दोनों थे पर हम नजरअंदाज करना ही बेहतर समझते थे. चूंकि बस में आनेजाने में काफी समय बरबाद होता था, इसलिए शांत के पिता ने उस के लिए एक स्कूटर ले दिया. अब तो दोनों के वारेन्यारे थे. रास्ते में पहले मेरा कालेज पड़ता था. शांत मुझे ड्रौप करते हुए अपने कालेज जाता था. हालांकि लौटने में कभी मुझे अकेले ही बस या रिकशा लेना पड़ता था. ऐसा उस दिन होता था जब मेरे या शांत की क्लास खत्म होने के बीच का अंतराल ज्यादा होता था.

Raksha Bandhan: बहनें- भाग 1- रिश्तों में जलन का दर्द झेल चुकीं वृंदा का बेटिंयों के लिए क्या था फैसला?

स्वप्न इतना डरावना तो नहीं था किंतु न जाने कैसे वृंदा पसीने से तरबतर हो गई. गला सूख गया था उस का. आजकल अकसर ऐसा होता है. स्वप्न से?डरना. यद्यपि वह इन मान्यताओं को नहीं मानती थी कि स्वप्न किसी शुभाशुभ फल को ले कर आता है, पर पता नहीं क्यों, आजकल वह उस कलैंडर की तलाश में रहने लगी है जिस में स्वप्न के शुभाशुभ फल दिए रहते हैं. क्या करे, सहेलियां डरा जो देती हैं उसे.

कभीकभी जब वह अपना कोई स्वप्न बता कर पूछती है कि मरा हाथी देखने से क्या होता है? या फिर मकान गिरते हुए देखने का क्या फल मिलता है? तब सहेलियां चिंतित हो कर अपनी बड़ीबड़ी आंखें घुमा कर उस का भविष्य बताने लगतीं, ‘लगता है, अभी तुम्हारी मुसीबत खत्म नहीं हुई है. कोई बहुत बड़ी विपत्ति आने वाली है तुम पर. अपनी बेटियों की देखभाल जरा ध्यान से करना.’

तब वृंदा मारे डर के कांपने लगती है. अब ये मासूम बेटियां ही तो उस की सबकुछ हैं. कैसे नहीं ध्यान रखेगी इन का? दोनों कितनी गहरी नींद में सो रही हैं? वृंदा अरसे से ऐसी गहरी नींद के लिए तरस रही है. यदि किसी रात नींद आ भी जाती है तो कमबख्त डरावने स्वप्न आ धमकते हैं और नींद छूमंतर हो जाती है.

वृंदा ने घड़ी की तरफ देखा, रात के 3 बज रहे थे. स्वप्न की बेचैनी और घबराहट से माथे पर पसीने की बूंदें छलछला आई थीं. वह बिस्तर से उठी, मटके से गिलास भर पानी निकाला व एक ही सांस में गटागट पी गई. माथे पर आए पसीने को साड़ी के आंचल से पोंछती हुई वह फिर बिस्तर पर आ कर लेट गई. वृंदा ने पूरे कमरे में नजर घुमाई. यह छोटा सा कमरा ही अब उस का घर था. न अलग से रसोई, न स्टोर, न बैठक. सबकुछ इसी कमरे में था. गैस चूल्हे की आंच से जो गरमी निकलती वह रातभर भभकती रहती.

कमरे से लगा एक छोटा सा बाथरूम था और एक छोटी सी बालकनी भी. वृंदा का मन हुआ कि बालकनी का दरवाजा खोल दे, बाहर की थोड़ी हवा तो अंदर आएगी, किंतु उस की हिम्मत नहीं पड़ी. रात के 3 बजे सवेरा तो नहीं हो जाता. वृंदा मन मार कर लेटी रही.

उस का ध्यान फिर से स्वप्न पर गया. एक बड़े से गड्ढे में गिर कर उस की बड़ी बेटी प्राची रो रही थी और रश्मि बड़ी बहन को रोता देख कर खिलखिला रही थी. यह भी कोई स्वप्न है? इतना डरने लायक? वह डरी क्यों? इस स्वप्न के किस हिस्से ने उसे डराया? प्राची का गड्ढे में गिरना या रश्मि का किनारे खड़े हो कर खिलखिलाना? रश्मि हंस क्यों रही थी? शायद प्राची को गड्ढे में उस ने ही धकेला था. वृंदा फिर कांप गई.

स्वप्न, स्वप्न था. आया और चला गया. किंतु उस की परछाईं किसी सच्ची घटना की तरह उसे डरा रही थी. वह इस प्रकार डरी मानो अभी घर में तूफान आया हो और घर की दीवारें तक हिल गई हों.

यह स्वप्न उसे अतीत के बिंबों की तरफ ले जा रहा था जिस में न जाने की उस ने सैकड़ों बार प्रतिज्ञा की थी.

बिंब अभी थोड़े धुंधले थे. उसे थोड़ा संतोष हुआ. वह इन्हें और चटक नहीं होने देगी. यहीं से उबर जाएगी. किंतु उस का प्रयास अधिक देर तक टिक नहीं पाया. शीघ्र ही एक के बाद एक सारे बिंब चमकदार होने लगे हैं जिन्हें देखते ही उस की धड़कनें अधिक तेज हो गईं.

उस की भी एक छोटी बहन थी, कुंदा. हमेशा उस के चौकलेट, खिलौनों तथा कपड़ों को हथिया लेती थी. वृंदा या तो उस से जीत नहीं पाती थी या जीतने का भाव मन में लाती ही नहीं थी. छोटी बहन से क्या जीतना और क्या हारना? खुशीखुशी अपने चौकलेट, खिलौने और कपड़े कुंदा को दे देती थी. कुंदा विजयी भाव से उस की चीजों का इस्तेमाल करती थी. वृंदा को बस उस का यह विजयभाव ही खटकता था. वह सोचती, ‘काश, कुंदा समझ पाती कि उस की विजय का कारण मेरी कमजोरी नहीं बल्कि प्रेम है, छोटी बहन के प्रति प्रेम.’ पर कुंदा को न समझना था, न ही समझी.

बचपन छूटता गया पर कुंदा का स्वभाव न बदला. रश्मि के जन्म के समय वृंदा के घर आई कुंदा ने उस से उस का पति भी छीन लिया. वृंदा हतप्रभ थी. 5 वर्ष के संबंध चंद दिनों की परछाईं में दब कर सिसकने लगे.

वृंदा का विश्वास टूटा था, वह स्वयं नहीं. उस ने अपने घर को संभालने का पूरा प्रयास किया. सब से पहले उस ने अपने पति से बात की.

‘यह सब क्यों हुआ रवि…बोलो, ऐसा क्यों किया तुम ने? तुम्हारे जीवन में मैं इतनी महत्त्वहीन हो गई? इतनी जल्दी? मात्र 5 वर्षों में?’

‘ऐसी बात नहीं है वृंदा, तुम्हारा महत्त्व तनिक भी कम नहीं है,’ एकदम सपाट और भावशून्य शब्दों में जवाब दिया था रवि ने. वृंदा कुछ संतुष्ट हुई, ‘तो फिर यह महज भूल थी जो हो गई होगी. कोई बात नहीं, सब ठीक हो जाएगा,’ मन में सोचा था उस ने, पर ऊपर से कठोर बनी प्रश्न करती रही.

‘जब तुम्हारे जीवन में मेरा महत्त्व कम नहीं हुआ है तो तुम ने ऐसा क्यों किया…? कुंदा तो नासमझ है, पर तुम्हें तो कुछ सोचना था?’

‘तुम इतनी छोटी बात का बतंगड़ बना रही हो?’ रवि की आवाज में खीज थी. वृंदा सब्र खो बैठी. क्षणभर पहले उस के मन में रवि के लिए उठे विचार विलीन हो गए.

‘मैं बतंगड़ बना रही हूं…? मैं? तुम्हारी नजर में यह इतनी छोटी बात है? अरे, तुम ने मेरे विश्वास का गला घोंटा है रवि, जिंदगीभर की चुभन दी है तुम ने मुझे. समय बीत जाएगा, ये बातें समाप्त हो जाएंगी लेकिन मेरे दिल में पहले जैसे भाव कभी नहीं आएंगे. हमेशा एक अविश्वास घेरे रहेगा मुझे. मुझे तो तुम ने जिंदगीभर की पीड़ा दी ही, साथ ही मेरी बहन को भी बेवकूफ बनाया.’

‘क्या बकवास कर रही हो? मैं ने किसी को बेवकूफ नहीं बनाया है…किसी को कोई पीड़ा नहीं दी है,’ क्रोध में रवि चिल्ला पड़े थे. फिर थोड़ी देर बाद संयत हो कर अपने एकएक शब्द पर जोर देते हुए बोले, ‘कुंदा से मेरी बात हो चुकी है. मैं उस से शादी करूंगा. वह भी राजी है. हां, तुम इस घर में पूरे मानसम्मान के साथ रह सकती हो. अब यह तुम्हारे ऊपर निर्भर है कि तुम बात का बतंगड़ बनाती हो या अपना और कुंदा का जीवन बरबाद करती हो,’ रवि ने बेपरवाह उद्दंडता से जवाब दिया.

वृंदा अवाक् रवि का मुंह ताकती रह गई. हाथपैर जम गए उस के. मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे. बात यहां तक बढ़ गई और वह कुछ जान ही न पाई. किस दुनिया में रहती है वह.

छत पर पंखा धीमी गति से घूम रहा है. दोनों बेटियां अब भी गहरी नींद में सो रही हैं. वृंदा ने पंखे को कुछ तेज किया किंतु उस की रफ्तार ज्यों की त्यों रही. बेटियों के माथे पर उभर आई पसीने की बूंदों को वृंदा ने अपने आंचल से थपथपा कर सुखाया, फिर छत निहारती हुई लेट गई.

पति के जवाब से आहत वृंदा के मन में उम्मीद की डोर अभी बाकी थी. सास से उम्मीद. वे कुछ करेंगी. वैसे थीं वे कड़क गुस्से वाली. वृंदा को उन के साथ रहते हुए 5 वर्ष बीत चुके थे किंतु हिम्मत थी कि उन के सामने सिकुड़ कर रह जाती थी. मुंह ही नहीं खुलता था. पर बात तो करनी थी, आखिर उसे इस घर से अलगथलग कर देने का षड्यंत्र रचा जा रहा है.

इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. यह उस के अस्तित्व का प्रश्न है. वह बात करेगी. अनुचित के विरोध में बोलना अपने अस्तित्व को बनाए रखने की बुनियादी जरूरत है. कुंदा के साथ अपने खिलौनों को बांटना छोटी बहन के प्रति प्यार है, बड़ी बहन का बड़प्पन है. पति खिलौना नहीं है, वह उसे कैसे बांटेगी? कैसे बंट जाने देगी? पर क्या करे वह, जब पति खुद ही बंटना चाहता हो. बंटना ही नहीं पूरी तरह से निकल जाना चाहता हो. फिर भी वह प्रयास करेगी.

मौका देख कर वृंदा ने सास से बात शुरू की, ‘मां, रवि कुंदा से शादी करने की सोच रहे हैं.’

‘हां, कह तो रहा था,’ एकदम ठंडी आवाज में जवाब दिया था सास ने.

‘तो मां, आप को पता है?’ वृंदा की आवाज में आश्चर्य समाया था.

‘हां, पता है.’

‘तो क्या आप यह सब होने देंगी?’

‘क्या करूंगी मैं? तुम देखो. तुम्हारी ही तो बहन है…उसे नहीं सोचना था तुम्हारे बारे में? चौबीस घंटे आगेपीछे नाचेगी तब तो यही होगा न?’ 

Raksha Bandhan:अंतत- भाग 3- क्या भाई के सितमों का जवाब दे पाई माधवी

बूआ के दर्दभरे पत्र दादी के मर्म पर कहीं भीतर तक चोट कर जाते थे. मन की घनीभूत पीड़ा जबतब आंसू बन कर बहने लगती थी. कई बार मैं ने स्वयं दादी के आंसू पोंछे. मैं समझ नहीं पाती कि वे इस तरह क्यों घुटती रहती हैं, क्यों नहीं बूआ के लिए कुछ करतीं? यदि फूफाजी निर्दोष हैं तो उन्हें किसी से भी डरने की क्या आवश्यकता है?

लेकिन मेरी अल्पबुद्धि इन प्रश्नों का उत्तर नहीं ढूंढ़ पाती थी. बूआ के पत्र बदस्तूर आते रहते. उन्हीं के पत्रों से पता चला कि फूफाजी का स्वास्थ ठीक नहीं चल रहा. वे अकसर बीमार रहे और एक दिन उसी हालत में चल बसे.

फूफाजी क्या गए, बूआ की तो दुनिया ही उजड़ गई. दादी अपने को रोक नहीं पाईं और उन दुखद क्षणों में बेटी के आंसू पोंछने उन के पास जा पहुंचीं. जाने से पूर्व उन्होंने पिताजी से पहली बार कहा था, ‘जिसे तू अपना बैरी समझता था वह तो चला गया. अब तू क्यों अड़ा बैठा है. चल कर बहन को सांत्वना दे.’

मगर पिताजी जैसे एकदम कठोर और हृदयहीन हो गए थे. उन पर दादी की बातों का कोई प्रभाव न पड़ा. दादी क्रोधित हो उठीं. और उस दिन पहली बार पिताजी को खूब धिक्कारा था. इस के बाद दादी को ताऊजी से कुछ कहने का साहस ही नहीं हुआ था.

बूआ ने भाइयों के न आने पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. उन्होंने सारे दुख को पी कर स्वयं को कठोर बना लिया था. पति की मौत पर न वे रोईं, न चिल्लाईं, बल्कि वृद्ध ससुर और बच्चों को धीरज बंधाती रहीं और उन्हीं के सहयोग से सारे काम निबटाए. बूआ का यह अदम्य धैर्य देख कर दादी भी चकित रह गई थीं, साथ ही खुश भी हुईं. फूफाजी की भांति यदि बूआ भी टूट जातीं तो वृद्ध ससुर और मासूम बच्चों का क्या होता?

फूफाजी के न रहने के बाद अकेली बूआ के लिए इतने बड़े शहर में रहना और बचेखुचे काम को संभालना संभव न था. सो, उन्होंने व्यवसाय को पति के मित्र के हवाले किया और स्वयं बच्चों को ले कर ससुर के साथ गांव चली गईं, जहां अपना पैतृक मकान था और थोड़ी खेतीबाड़ी भी.

बूआ को पहली बार मैं ने तब देखा था जब वे 3 वर्ष पूर्व ताऊजी के निधन का समाचार पा कर आई थीं, हालांकि उन्हें बुलाया किसी ने नहीं था. ताऊजी एक सड़क दुर्घटना में अचानक चल बसे थे. विदेश में पढ़ रहे उन के बड़े बेटे ने भारत आ कर सारा कामकाज संभाल लिया था.

दूसरी बार बूआ तब आईं जब पिछले साल समीर भैया की शादी हुई थी. पहली बार तो मौका गमी का था, लेकिन इस बार खुशी के मौके पर भी किसी को बूआ को बुलाना याद नहीं रहा, लेकिन वे फिर भी आईं. पिताजी को बूआ का आना अच्छा नहीं लगा था. दादी सारा समय इस बात को ले कर डरती रहीं कि बूआ की घोर उपेक्षा तो हो ही रही है, कहीं पिताजी उन का अपमान न कर दें. लेकिन जाने क्या सोच कर वे मौन ही रहे.

पिताजी का रवैया मुझे बेहद खला था. बूआ कितनी स्नेहशील और उदार थीं. भाई द्वारा इतनी अपमानित, तिरस्कृत हो कर क्या कोई बहन दोबारा उस के पास आती, वह भी बिन बुलाए. यह तो बूआ की महानता थी कि इतना सब सहने के बाद भी उन्होंने भाई के लिए दिल में कुछ नहीं रखा था.

चलो, मान लिया कि फूफाजी ने पिताजी के साथ विश्वासघात किया था और उन्हें गहरी चोट पहुंची थी, लेकिन उस के बाद स्वयं फूफाजी ने जो तकलीफें उठाईं और उन के बाद बूआ और बच्चों को जो कष्ट झेलने पड़े, वे क्या किसी भयंकर सजा से कम थे. यह पिताजी की महानता होती यदि वे उन्हें माफ कर के अपना लेते.

अब जबकि बूआ ने बेटी की शादी पर कितनी उम्मीदों से बुलाया है, तो पिताजी का मन अब भी नहीं पसीज रहा. क्या नफरत की आग इंसान की तमाम संवेदनाओं को जला देती है?

दादी ने उस के बाद पिताजी को बहुतेरा समझाने व मनाने की कोशिशें कीं. मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात. विवाह का दिन जैसेजैसे करीब आता जा रहा था, दादी की चिंता और मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी.

ऐसे में ही दादी के नाम बूआ का एक पत्र आ गया. उन्होंने भावपूर्ण शब्दों में लिखा था, ‘अगले हफ्ते तान्या की शादी है. लेकिन भैया नहीं आए, न ही उन्होंने या तुम ने ऐसा कोई संकेत दिया है, जिस से मैं निश्चिंत हो जाऊं. मैं जानती हूं कि तुम ने भैया को मनाने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी होगी, मगर शायद इस बार भी हमेशा की तरह मेरी झोली में भैया की नफरत ही आई है.

‘मां, मैं भैया के स्वभाव से खूब परिचित हूं. जानती हूं कि कोई उन के फैसले को नहीं बदल सकता. पर मां, मैं भी उन की ही बहन हूं. अपने फैसले पर दृढ़ रहना मुझे भी आता है. मैं ने फैसला किया है कि तान्या का कन्यादान भैया के हाथों से होगा. बात केवल परंपरा के निर्वाह की नहीं है बल्कि एक बहन के प्यार और भांजी के अधिकार की है. मैं अपना फैसला बदल नहीं सकती. यदि भैया नहीं आए तो तान्या की शादी रुक जाएगी, टूट भी जाए तो कोई बात नहीं.’

पत्र पढ़ कर दादी एकदम खामोश हो गईं. मेरा तो दिमाग ही घूम गया. यह बूआ ने कैसा फैसला कर डाला? क्या उन्हें तान्या दीदी के भविष्य की कोई चिंता नहीं? मेरा मन तरहतरह की आशंकाओं से घिरने लगा.

आखिर में दादी से पूछ ही बैठी, ‘‘अब क्या होगा, बूआ को ऐसा करने की क्या जरूरत थी.’’

‘‘तू नहीं समझेगी, यह एक बहन के हृदय से निकली करुण पुकार है,’’ दादी द्रवित हो उठीं, ‘‘माधवी आज तक चुपचाप भाइयों की नफरत सहती रही, उन के खिलाफ मुंह से एक शब्द भी नहीं निकाला. आज पहली बार उस ने भाई से कुछ मांगा है. जाने कितने वर्षों बाद उस के जीवन में वह क्षण आया है, जब वह सब की तरह मुसकराना चाहती है. मगर तेरा बाप उस के होंठों की यह मुसकान भी छीन लेना चाहता है. पर ऐसा नहीं होगा, कभी नहीं,’’ उन का स्वर कठोर होता चला गया.

दादी की बातों ने मुझे अचंभे में डाल दिया. मुझे लगा उन्होंने कोई फैसला कर लिया है. किंतु उन की गंभीर मुखमुद्रा देख कर मैं कुछ पूछने का साहस न कर सकी. पर ऐसा लग रहा था कि अब कुछ ऐसा घटित होने वाला है, जिस की किसी को कल्पना तक नहीं.

शाम को पिताजी घर आए तो दादी ने बूआ का पत्र ला कर उन के सामने रख दिया. पिताजी ने एक निगाह डाल कर मुंह फेर लिया तो दादी ने डांट कर कहा, ‘‘पूरा पत्र पढ़, रघुवीर.’’

पिताजी चौंक से गए. मैं कमरे के दरवाजे से सटी भीतर झांक रही थी कि पता नहीं क्या होने वाला है.

पिताजी ने सरसरी तौर पर पत्र पढ़ा और बोले, ‘‘तो मैं क्या करूं?’’

‘‘तुम्हें क्या करना चाहिए, इतना भी नहीं जानते,’’ दादी के स्वर ने सब को चौंका दिया था. मां रसोई का काम छोड़ कर कमरे में चली आईं.

‘‘मां, मैं तुम से पहले भी कह चुका हूं.’’

‘‘कि तू वहां नहीं जाएगा,’’ दादी ने व्यंग्यभरे, कटु स्वर में कहा, ‘‘चाहे तान्या की शादी हो, न हो…वाह बेटे.’’

क्षणिक मौन के बाद वे फिर बोलीं, ‘‘लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगी. मैं आज तक तेरी हठधर्मिता को चुपचाप सहती रही. तुम दोनों भाइयों के कारण माधवी का तो जीवन बरबाद हो ही गया, पर मैं तान्या का जीवन नष्ट नहीं होने दूंगी.’’

दादी का स्वर भर्रा गया, ‘‘तेरी जिद ने आज मुझे वह सब कहने पर मजबूर कर दिया है, जिसे मैं नहीं कहना चाहती थी. मैं ने कभी सोचा भी नहीं था कि जिस बेटे के जीतेजी उस के अपराध पर परदा डाले रही, आज उस के न रहने के बाद उस के बारे में यह सब कहना पड़ेगा. पर मैं और चुप नहीं रहूंगी. मेरी चुप्पी ने हर बार मुझे छला है.

‘‘सुन रहा है रघुवीर, फर्म में गबन धीरेंद्र ने नहीं बल्कि तेरे सगे भाई ने किया था.’’

मैं सकते में आ गई. पिताजी फटीफटी आंखों से दादी की तरफ देख रहे थे, ‘‘नहीं, नहीं, मां, यह नहीं हो सकता.’’

दादी गंभीर स्वर में बोलीं, ‘‘लेकिन सच यही है, बेटा. क्या मैं तुझ से झूठ बोलूंगी? क्या कोई मां अपने मृत बेटे पर इस तरह का झूठा लांछन लगा सकती है? बोल, जवाब दे?’’

‘‘नहीं मां, नहीं,’’ पिताजी का समूचा शरीर थरथरा उठा. उन की मुट्ठियां कस गईं, जबड़े भिंच गए और होंठों से एक गुर्राहट सी खारिज हुई, ‘‘इतना बड़ा विश्वासघात…’’

फिर सहसा उन्होंने चौंक कर दादी से पूछा, ‘‘यह सब तुम्हें कैसे पता चला, मां?’’

‘‘शायद मैं भी तुम्हारी तरह अंधेरे में रहती और झूठ को सच मान बैठती. लेकिन मुझे शुरू से ही सचाई का पता चल गया था. हुआ यों कि एक दिन मैं ने सुधीर और बड़ी बहू की कुछ ऐसी बातें सुन लीं, जिन से मुझे शक हुआ. बाद में एकांत में मैं ने सुधीर को धमकाते हुए पूछा तो उस ने सब सचसच बता दिया.’’

‘‘तो तुम ने मुझे यह बात पहले क्यों नहीं बताई?’’ पिताजी ने तड़प कर पूछा.

‘‘कैसे बताती, बेटा, मैं जानती थी कि सचाई सामने आने के बाद तुम दोनों भाई एकदूसरे के दुश्मन बन जाओगे. मैं अपने जीतेजी इस बात को कैसे बरदाश्त कर सकती थी. मगर दूसरी तरफ मैं यह भी नहीं चाहती थी कि बेकुसूर दामाद को अपराधी कहा जाए और तुम सभी उस से नफरत करो. किंतु दोनों ही बातें नहीं हो सकती थीं. मुझे एक का परित्याग करना ही था.

‘‘मैं ने बहुत बार कोशिश की कि सचाई कह दूं. पर हर बार मेरी जबान लड़खड़ा गई, मैं कुछ नहीं कह पाई और तभी से अपने सीने पर एक भारी बोझ लिए जी रही हूं. बेटी की बरबादी की असली जिम्मेदार मैं ही हूं,’’ कहतेकहते दादी की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे.

‘‘मां, यह तुम ने अच्छा नहीं किया. तुम्हारी खामोशी ने बहुत बड़ा अनर्थ कर दिया,’’ पिताजी दोनों हाथों से सिर थाम कर धड़ाम से बिस्तर पर गिर गए. मां और मैं घबरा कर उन की ओर लपकीं.

पिताजी रो पड़े, ‘‘अब तक मैं क्या करता रहा. अपनी बहन के साथ कैसा अन्याय करता रहा. मैं गुनाहगार हूं, हत्यारा हूं. मैं ने अपनी बहन का सुहाग उजाड़ दिया, उसे घर से बेघर कर डाला. मैं अपनेआप को कभी क्षमा नहीं कर पाऊंगा.’’

पिताजी का आर्तनाद सुन कर मां और मेरे लिए आंसुओं को रोक पाना कठिन हो गया. हम तीनों ही रो पड़े.

दादी ही हमें समझाती रहीं, सांत्वना देती रहीं, विशेषकर पिताजी को. कुछ देर बाद जब आंसुओं का सैलाब थमा तो दादी ने पिताजी को समझाते हुए कहा, ‘‘नहीं, बेटा, इस तरह अपनेआप को दोषी मान कर सजा मत दे. दोष किसी एक का नहीं, हम सब का है. वह वक्त ही कुछ ऐसा था, हम सब परिस्थितियों के शिकार हो गए. लेकिन अब समय अपनी गलतियों पर रोने का नहीं बल्कि उन्हें सुधारने का है. बेटा, अभी भी बहुतकुछ ऐसा है, जो तू संवार सकता है.’’

दादी की बातों ने पिताजी के संतप्त मन को ऐसा संबल प्रदान किया कि वे उठ खड़े हुए और एकदम से पूछा, ‘‘समीर कहां है?’’

समीर भैया उसी समय बाहर से लौटे थे, ‘‘जी, पिताजी.’’

‘‘तुम जाओ और इसी समय कानपुर जाने वाली ट्रेन के टिकट ले कर आओ, पर सुनो, ट्रेन को छोड़ो… मालूम नहीं, कब छूटती होगी. तुम एक टैक्सी बुक करा लो और ज्योत्सना, माया तुम दोनों जल्दी से सामान बांध लो. मां, हम लोग इसी समय दीदी के पास चल रहे हैं,’’ पिताजी ने एक ही सांस में हस सब को आदेश दे डाला.

फिर वे शिथिल से हो गए और कातर नजरों से दादी की तरफ देखा, ‘‘मां, दीदी मुझे माफ कर देंगी?’’ स्वर में जाने कैसा भय छिपा हुआ था.

‘‘हां, बेटा, उस का मन बहुत बड़ा है. वह न केवल तुम्हें माफ कर देगी, बल्कि तुम्हारी वही नन्हीमुन्नी बहन बन जाएगी,’’ दादी धीरे से कह उठीं.

अंतत: भाईबहन के बीच वर्षों से खड़ी नफरत और गलतफहमी की दीवार गिर ही गई. मैं खड़ी हुई सोच रही थी कि वह दृश्य कितना सुखद होगा, जब पिताजी बूआ को गले से लगाएंगे.

Film Review: मस्ताने-रोमांचक कथा सत्य कथा के माध्यम से सिख संस्कृति का ज्ञान

रेटिंगः पांच में से साढ़े तीन स्टार

निर्माताः मनप्रीत जोहल और आषु मुनीष

लेखकः शरन आर्ट और हरनव बीर सिंह

निर्देशकः शरन आर्ट

कलाकारः तरसेम जास्सर, सिमी चहल,गुरप्रीत घुग्गी, करमजीत अनमोल, आरिफ जकरिया,  राहुल देव,बिंदु भुल्लर, हनी माटू, अवतार गिल व अन्य.

अवधिः दो घंटे 25 मिनट

भाषा: पंजाबी,हिंदी,तेलुगु व मलयालम

‘सरदार मोहम्मद‘, ‘गलवाकडी‘ और ‘रब दा रेडियो 2‘ जैसी सफलतम पंजाबी फिल्मों के  निर्देशक शरण आर्ट ने इस बार पीरियड,ऐतिहासिक व रोमांचक फिल्म ‘मस्ताने‘ में 1739 की सत्यकथा को पेष करने के साथ ही सिख योद्धाओं की वीरता उनके दृढ़ साहस और अटूट दृढ़ संकल्प की कहानी को पूरी ईमानदारी के साथ पेश किया है.फिल्म मुगल षासकों के खिलाफ होने के साथ ही हमारी जड़ों से जुड़ी हुई है.यह फिल्म देषभक्ति की बात करने के साथ ही हर इंसान को अपनी जड़ों से जुड़े रहने का भी आव्हान रोमांचक तरीके से करती है.तो वहीं फिल्म में एक रोचक प्रेम कहानी भी है.बौलीवुड में देषभक्ति के नाम पर फिल्में परोसने वाले हर फिल्मकार को फिल्म ‘मस्ताने’ से सबक सीखना चाहिए.बहरहाल, पंजाबी सिनेमा को पैन इंडिया पहुॅचाने के लिए यह एक बेहतरीन फिल्म है.

कहानीः

फिल्म की कहानी 1739 की है.जब ईरान के तत्कालीन शासक नादिर शाह(  राहुल देव ) हिंदुस्तान को लूटकर हिदुंस्तानी औरतों को गुलाम बनाकर बेच रहा था,जिसके खिलाफ कुछ सिखों ने विरोध कर दिया था, जिन्हें सिख विद्रोही की संज्ञा दी गयी थी.उत्तरी पंजाब से होते हुए ईरान लौटते समय पहली बार नादिर षाह का सामना सिख विद्रोहियों से हुआ.

चंद सिख योद्धाओं ने नादिरशाह के सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए थे. काफी विचार करने के बाद नादिर शाह को अहसास हुआ कि इन सिख विद्रोहियों के पीछे लाहौर के शासक का हाथ हो सकता है.तब नादिर षाह सीधे लाहौर षासक के दरबार में पहुंच जाता है और अपने मन की बता कह देता है. लाहौर शासक मना करते है कि उनका सिख विद्रोहियों के संग कोई वास्ता नही है.

तब नादिर शाह लाहौर के शासक से यह जानने की मांग करता है कि सिख कौन हैं? लाहौर शासक अपने मंत्री की सलाह पर पांच आम इंसानों को पकड़कर दरबार में लाते हैं और उन्हें सारी सुविधा देते हैं.लाहौर षासक का मकसद इन पांचों को सिख विद्रोहियों के रूप में नादिर शाह के सामने पेश करना है. यह पांचों ,नादिर शाह के सामने दुम हिलाएंगे. मगर इन पांच मे से कलंदर बाकी के चार को सिखाता है कि सिख क्या हैं? अरदास की शक्ति क्या है.नियत तारीख को जब नादिर शाह के सामने

इन पांचों को पेश किया जाता है,तो यह पांचो मरने से पहले कई सैनिको को मौत के घाट उतार देेते हैं.नादिर षाह स्वयं सिखों की वीरता देख दांतो तले उंगली दबा लेता है.

लेखन व निर्देशनः

पटकथा काफी रोचक व रोमांचक है. फिल्म कहीं भी बोर नही करती. जबकि इंटरवल से पहले फिल्म काफी सुस्त गति से आगे बढ़ती है. इंटरवल से पहले फिल्म पांच मस्तानों को स्थापित करने के चक्कर में सिख विद्रोहियों को नजरंदाज करती है.फिल्मकार ने सिख संस्कृति की गहरी जानकारी देने का प्रयास किया है.इसके लिए फिल्मकार ने बेवजह की नाटकीय दृष्य अथवा भाषणबाजी नुमा संवाद नही रखे हैं.  बल्कि फिल्मकार ने मनोरंजन के साथ सिख धर्म के बारे में सिखाने के लिए ऐतिहासिक सत्य कथा का सहारा लिया है.यहां न तो केाई गुस्से में हैंडपंप उखड़ता है और न ही गला फा़कर चिल्लाता है.

यह फिल्म सिख संस्कृति, उनकी जड़ों, प्रकृति से लड़ने के लिए तैयार रहने के साथ ही हर इंसान को षांत आचरण का अद्भुत संदेष देती है. इस कहानी के समांतर एक बहुत ही खूबसूरत सी प्रेम कहानी भी चलती है जिसमें जहूर(तरसेम जस्सर) और नूर (सिमी चहल) के बीच रूमानी एहसासों की अच्छी झलक मिलती है.फिल्म देखते हुए दर्षक उस दृढ़ विश्वास और सच्चे इरादे को समझता है. यह फिल्म उन सिख समुदाय की वीरता के दर्षन कराती है,जिन सिखों को बौलीवुड फिल्मों में अब तक महज हास्य किरदारों के रूप में पेष किया जाता रहा है. बतौर निर्देशक शरण आर्ट की कला हर दृष्य में नजर आती है.युद्ध के दृष्यों में उनका निर्देषन कौशल कुछ ज्यादा ही उभरकर आता है. फिल्म की कमजोर कड़ी इसका गीत व संगीत है. यह आष्चर्य की बात है. क्योंकि पंजाबी संगीत का दीवाना तो पूरा विष्व है.कुछ संवाद बहुत बेहतरीन बने हैं,जो कि दिल को छू जाते हैं. कैमरामैन जायपे सिंह ने 18वीं शताब्दी के लाहौर को अपने कैमरे से खूबसूरती से पेश किया है.

अभिनयः

नूर के किरदार में सिमी चहल न सिर्फ सुंदर नजर आयी हैं बल्कि उन्होने अपने अभिनय की अमिट छाप भी छोड़ी है. जहूर के किरदार में अभिनेता तरसेम जस्सर में गजब का आकर्षण है. परदे पर उनकी उपस्थिति बहुत दिलचस्प है. प्रेम दृष्यों के साथ ही युद्ध के दृष्यों में भी वह अपने सषक्त अभिनय की छाप छोड़ जाते हैं. पंजाबी सिनेमा में गुरप्रीत घुग्गी की पहचान हास्य अभिनेता के रूप में हैं. मगर इस फिल्म में कलंदर के गंभीर किरदार निभाते हुए कमाल का अभिनय किया है. राहुल देव और आरिफ जकारिया के हिस्से करने को कुछ खास आया ही नहीं.

Anupamaa: पाखी को मिला रोमिल का साथ, डिंपल की हुई बत्ती गुल

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ में इन दिनों काफी ड्रामा चल रहा है. ‘अनुपमा’ में इतना ड्रामा देखकर दर्शक का दिमाग हिल गया है. सीरियल में पाखी-अधिक करेंट ट्रेक चल रहा है. पाखी नें अधिक को माफ कर दिया है. जिस वजह से पूरा शाह परिवार में टैंशन में है.

डिंपल की वाट लगाएगी अनुपमा

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि शाह हाउस में अनुपमा आती है. सभी लोग घर के हॉल में बैठकर बात कर रहे होते हैं, तभी डिंपल को पता चलता है कि उसके फ्लोर पर बिजली नहीं आ रही, लेकिन नीचे तो बिजली आ रही है.

 

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इस बारे में वह अनुपमा से बात करती है, तो डिंपल को सीधा बिजली का बिल करने के लिए कह दिया जाता है. इस दौरान जब डिंपल बोलती है कि वह शाम को भर देगी, अभी आप लोग भर दीजिए तो अनुपमा साफ इनकार कर देती है. ऐसे में डिंपल सबसे बदतमीजी करती है. तब अनुपमा डिंपल को करारा जवाब देती है, जिससे डिंपल की बोलती बंद हो जाती है. इसके बाद डिंपल समर को भी बोल देती है कि अब से घर में बिजली कम ही जलेगी.

पाखी को मिला रोमिल का साथ

टीवी सीरियल अनुपमा के अपकमिंग एपिसोड में आगे देखने को मिलेगा कि पाखी अधिक के लिए केक बनाएंगी. तभी वहां पर रोमिल आ जाता है. वह दोनों आपस में बात करने लगते है. रोमिल इशारों में पाखी से कहता है उसे अपने पति अधिक का टेस्ट लेना चाहिए. वह आगे कहता है कि अगर अधिक सही होगा तो वह आगे यह सब नहीं करेगा. एक बार टेस्ट लेने में कोई बुराई नहीं है. वह दोनों आखिर में हाथ मिलाते है, अनुपमा इन दोनों को साथ में देखकर खुश हो जाती है.

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