जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी

वह औरत कौन थी? कार में धीरज के साथ कहां जा रही थी? धीरज के साथ उस का क्या रिश्ता था? धीरज के पास से तो उस का मोबाइल और पर्स मिल गया था, लेकिन उस औरत का कोई पहचानपत्र या मोबाइल घटनास्थल से बरामद नहीं हुआ. इस वजह से यह सब एक रहस्य बन गया था.

धीरज के मित्र, औफिस वाले, रिश्तेदार और पड़ोसी सब जानना चाहते थे कि आखिर वह औरत थी कौन? और उस का धीरज से क्या रिश्ता था? सब को धीरज की मौत का गम कम, उस राज को जानने की उत्सुकता ज्यादा थी.

जिंदगी में कभीकभी ऐसा घटित हो जाता है कि इंसान समझ ही नहीं पाता कि यह क्या हो गया? ऐसी ही एक घटना नहीं बल्कि दुर्घटना घटी शोभा के साथ. उस का पति धीरज एक औरत के साथ सड़क दुर्घटना में मारा गया था.

पुलिस ने अपनी खानापूर्ति कर दी. दोनों लाशों का पोस्टमौर्टम हो गया. उस औरत की लाश को लेने कोई नहीं आया, सो, उस का अंतिम संस्कार पुलिस द्वारा कर दिया गया.

वह औरत शादीशुदा थी क्योंकि उस की मांग में सिंदूर था. सवाल यह था कि वह गैरमर्द के साथ कार में क्यों थी? कार के कागजात के आधार पर पता चला कि वह कार धीरज के मित्र की थी. एक दिन पहले ही धीरज ने उस से यह कह कर ली थी कि वह एक जरूरी काम से चंडीगढ़ जा रहा है, लेकिन कार दुर्घटनाग्रस्त हुई दिल्लीआगरा यमुना ऐक्सप्रैसवे पर यानी धीरज ने अपने मित्र से झूठ बोला.

जब दुर्घटना की गुत्थी नहीं सुलझ सकी तो लोगों ने खुल कर कहना शुरू कर दिया कि उस औरत के साथ धीरज के अवैध रिश्ते रहे होंगे और वे दोनों मौजमस्ती के लिए निकले होंगे.

लोगों की इस बेहूदा सोच पर शोभा खासी नाराज थी लेकिन वह कर भी क्या सकती थी. किसी का मुंह वह बंद तो नहीं कर सकती थी.

धीरज उसे बहुत प्यार करता था. शादी के 5 वर्षों में जब उन्हें संतान सुख नहीं मिला तब उन दोनों ने अपनाअपना मैडिकल चैकअप कराया. रिपोर्ट में पता चला कि वह मां नहीं बन सकती जबकि धीरज पिता बनने के काबिल था. यह जान कर वह बहुत रोई और धीरज से बोली, ‘तुम दूसरी शादी कर लो, मैं अपना जीवन काट लूंगी.’

‘शोभा, अगर कमी मुझ में होती तो क्या तुम मुझे छोड़ कर दूसरी शादी कर लेतीं,’ कहते हुए धीरज ने उसे अपनी बांहों में भर लिया था.

क्या उस से इतना प्यार करने वाला धीरज उस के साथ इस तरह बेवफाई कर सकता है? शोभा ने अपने मन को यह कह कर तसल्ली दी, हो सकता है उस औरत ने धीरज से लिफ्ट मांगी हो. लेकिन दिमाग में कुछ सवाल बिजली की तरह कौंध रहे थे कि धीरज ने अपने दोस्त से गाड़ी चंडीगढ़ जाने को कह कर ली तो फिर वह आगरा जाने वाले यमुना ऐक्सप्रैसवे पर क्यों गया? मित्र से उस ने झूठ क्यों बोला? आखिर वह जा कहां रहा था? और उसे भी कुछ बता कर नहीं गया जबकि वह उस को छोटी से छोटी बात भी बताता था. कुछ बात तो जरूर है तभी धीरज ने उस से अपने बाहर जाने की बात छिपाई थी.

शोभा को दुखी और परेशान देख कर उस के पिता ने कहा, ‘‘बेटी, जो होना था वह तो हो गया, तुम अब खुद को मजबूत करो और आर्थिक रूप से अपने पांवों पर खड़ी होने की कोशिश करो. धीरज की कोई सरकारी नौकरी तो थी नहीं कि जिस के आधार पर तुम्हें नौकरी या पैंशन मिलेगी. उस के कागजात देखो, शायद उस ने कोई इंश्योरैंस पौलिसी वगैरह कराई हो. उस के बैंक खातों को भी देखो. शायद तुम्हें कुछ आर्थिक मदद मिल सके.’’

‘‘नहीं पापा, मुझे सब पता है. उन्होंने कोई पौलिसी वगैरह नहीं कराई थी. न ही बैंक में कोई खास रकम है, क्योंकि उन की नौकरी मामूली थी और वेतन भी कम था. कुछ बचता ही कहां था जो वे जमा करते. वे अपने मांबाप की भी आर्थिक मदद करते थे.’’

‘‘फिर भी बेटा, एक बार देख लो, हर इंसान अपने आने वाले वक्त के लिए करता है और फिर धीरज जैसे समझदार इंसान ने भी कुछ न कुछ अवश्य किया होगा.’’

दुखी मन से शोभा ने धीरज की अलमारी खोली, शायद उस के कागजात के साथ ही उस के साथ हुए हादसे का भी कोई सूत्र मिल जाए. अलमारी में बैंक की एक चैकबुक मिली और भारतीय जीवन बीमा निगम की एक डायरी मिली. उस ने उसे जोश के साथ से खोला. पहले ही पृष्ठ पर लिखा था, ‘जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी.’ कुछ पृष्ठों पर औफिस से संबंधित कार्यों का लेखाजोखा था.

डायरी के बीच में एक मैडिकल स्टोर का परचा मिला, जिस में कुछ दवाइयां लिखी थीं. ये कौन सी दवाइयां थीं, खराब लिखावट की वजह से कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. जिस तारीख का परचा था, शोभा को खासा याद था कि उस ने उस दौरान कोई दवाई नहीं मंगाई थी. इस का मतलब धीरज ने अपने लिए दवा खरीदी थी. यह सोच कर वह भयभीत हो उठी कि कहीं धीरज किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त तो नहीं था.

उस ने फौरन मैडिकल स्टोर जाने का फैसला लिया. वह मैडिकल स्टोर उस के घर से काफी दूर था, लेकिन वह वहां गई. मैडिकल स्टोर वाले ने परचे पर लिखी दवाएं तो बता दीं लेकिन दवाएं लेने कौन आया था, वह न बता सका. दवाइयां दांतों की बीमारी से संबंधित थीं.

उस दौरान धीरज को दांतों से संबंधित कोई समस्या नहीं थी. अगर थी भी तो वह अपने घर या औफिस के नजदीक के मैडिकल स्टोर से दवा लेता. इतनी दूर आने की क्या जरूरत थी? तो इस का मतलब साफ था कि धीरज ने किसी और के लिए दवाइयां खरीदी थीं. किस के लिए खरीदी थीं, यह जानने के लिए शोभा ने घर आ कर धीरज का सामान फिर से टटोला.

उस ने उस की डायरी दोबारा अच्छी तरह से चैक की. 15 अगस्त वाले पृष्ठ पर उस ने लिखा था, ‘आज आजादी का दिन मेरे लिए खास बन गया.’ आखिर 15 अगस्त को ऐसा क्या हुआ था जो उस के लिए खास बन गया था, इस बात का जिक्र नहीं था.

उस ने उस के मोबाइल पर भी एक चीज नोट की, उस ने अपने मोबाइल के वालपेपर पर तिरंगे के साथ अपनी हंसतीमुसकराती तसवीर लगा रखी थी. तभी उस का मोबाइल बज उठा. बच्चे की खिलखिलाहट की रिंगटोन थी. यह सत्य था कि उसे बच्चों से बहुत प्यार था, इसलिए उस ने बच्चे की खिलखिलाहट की रिंगटोन लगा रखी थी. लेकिन आज ध्यान से सुना तो बीच में कोई धीरे से बोल रहा था, ‘पापा, बोलो पापा.’

यह सुन कर उस का माथा ठनका. हो न हो, 15 अगस्त और बच्चे की खिलखिलाहट में कुछ न कुछ राज जरूर छिपा है.

वालपेपर को उस ने गौर से देखा. धीरज के पीछे एक अस्पताल था. अस्पताल का नाम साफ नजर आ रहा था. शायद उस ने सैल्फी ली थी यानी 15 अगस्त को धीरज उस अस्पताल के पास था. वह वहां क्यों गया था, यह जानने के लिए वह तुरंत उस अस्पताल के लिए चल पड़ी. वह भी काफी दूर था. वहां गई तो वास्तव में अस्पताल के बाहर तिरंगा लहरा रहा था. यह तो तय हो गया था कि धीरज ने सैल्फी यहीं ली थी. लेकिन वह यहां करने क्या आया था. अचानक उस के मस्तिष्क में बच्चे की खिलखिलाहट की रिंगटोन और ‘पापा, बोलो पापा’ की ध्वनि बिजली की तरह कौंध गई और वह फौरन अस्पताल के अंदर चली गई.

मैटरनिटी होम के रिसैप्शन पर जा कर उस ने 15 अगस्त को जन्मे बच्चों की जानकारी चाही. पहले तो उसे मना कर दिया गया, लेकिन काफी रिक्वैस्ट करने पर बताया गया कि उस दिन 7 बच्चे हुए थे जिन में 4 लड़के और 3 लड़कियां थीं. उन बच्चों के पिता के नाम में धीरज का नाम नहीं था. सातों मांओं के नाम उस ने नोट कर लिए. अस्पताल के नियम के मुताबिक उसे उन के पते और मोबाइल नंबर नहीं दिए गए.

घर आ कर उस ने धीरज के मोबाइल में उन नामों के आधार पर नंबर ढूंढ़े, लेकिन कोई नंबर नहीं मिला. एक नंबर जरूर ‘एस’ नाम से सेव था. उस ने उस नंबर पर फोन लगाया तो उधर से एक नारीस्वर गूंजा, ‘‘कौन?’’

‘‘जी, मैं बोल रही हूं.’’

‘‘कौन? तू सीमा बोल रही है क्या?’’

यह सुन कर वह थोड़ा घबराई, ‘‘आप मेरी बात तो सुनिए.’’

‘‘अरे सीमा, क्या बात सुनूं तेरी? तू उस दिन शाम तक आने को कह कर गई थी और आज चौथा दिन है. तेरे बच्चे का रोरो कर बुरा हाल है. जल्दबाजी में तू अपना मोबाइल और पर्स भी यहीं भूल गई. तेरे फोन भी आ रहे हैं. समझ नहीं आ रहा कि क्या कहूं कि तू है कहां?’’

‘‘जी, वह बात यह है कि…’’

‘‘तू इतना घबरा कर क्यों बोल रही है? कोई परेशानी है तो मुझे बता, क्या पति से झगड़ा हो गया है?’’

‘‘जी, मैं सीमा नहीं, उस की बहन शोभा बोल रही हूं.’’

‘‘शोभा? लेकिन सीमा ने कभी आप का जिक्र ही नहीं किया. आप बोल कहां से रही हैं?’’ उस ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं आप को फोन पर कुछ नहीं बता पाऊंगी. आप से मिल कर सबकुछ विस्तार से बता दूंगी. शीघ्र ही मैं आप से मिलना चाहती हूं. प्लीज, आप अपना पता बता दीजिए,’’ निवेदन करते हुए उस ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं अभी आप को अपना पता एसएमएस करती हूं.’’ चंद मिनटों में ही उस का पता मोबाइल स्क्रीन पर आ गया और शोभा शीघ्र ही वहां के लिए रवाना हो गई.

जैसे ही शोभा ने दरवाजे की घंटी बजाई, एक अधेड़ उम्र की महिला ने दरवाजा खोला, ‘‘आप शोभाजी हैं न,’’ कहते हुए वे उसे बहुत सम्मान के साथ अंदर ले गईं.

पानी का गिलास पकड़ाते हुए बोलीं, ‘‘सीमा ने कभी आप का जिक्र तक नहीं किया था. वह मेरे यहां किराए पर अपने पति के साथ रहती थी. अभी 15 अगस्त को उस के बेटा  भी हुआ है. उस की ससुराल और मायके से कोई नहीं आया था. सारा काम मैं ने और उस के पति ने ही संभाला था. वह मुझे मां समान मानती है. अभी 4 दिनों पहले ही सुबह 6 बजे अपने बेटे को मेरे पास छोड़ कर जाते हुए बोली थी, ‘‘आंटी, एक बहुत जरूरी काम से हम दोनों जा रहे हैं, शाम तक वापस आ जाएंगे, प्लीज, तब तक आप आर्यन को संभाल लेना.’’

अपने पर्स से धीरज का फोटो निकाल कर उन्हें दिखाते हुए शोभा बोली, ‘‘आंटी, क्या यही सीमा के पति हैं?’’

‘‘हां, यही इस के पति हैं, लेकिन आप क्यों पूछ रही हैं? आप को तो सबकुछ पता होना चाहिए, क्योंकि आप तो सीमा की बहन हैं,’’ उन्होंने शंका जाहिर की.

‘‘आंटी, बात दरअसल यह है कि सीमा ने परिवार की मरजी के खिलाफ प्रेमविवाह किया था, इसलिए हमारा उस से संपर्क नहीं था. लेकिन अभी 4 दिनों पहले ही सीमा और उस के पति की एक कार ऐक्सिडैंट में मौत हो गई है. आखिरी समय में उस ने पुलिस को हमारा पता और आप का मोबाइल नंबर बताया था. उसी के आधार पर मैं यहां आई हूं,’’ कहते हुए उस ने अखबार की कटिंग जिस में दुर्घटना के समाचार के साथसाथ सीमा और धीरज की तसवीर थी, दिखा दी, और फिर सुबक पड़ी.

वे बुजुर्ग महिला भी रो पड़ीं और सिसकते हुए बोलीं, ‘‘अब आर्यन तो अनाथ हो गया.’’

‘‘नहीं आंटी, आर्यन क्यों अनाथ हो गया. उस की मौसी तो जिंदा है. मैं पालूंगी उसे. आखिर मौसी भी तो मां ही होती है.’’

‘‘हां शोभा, तुम ठीक कह रही हो. अब तुम ही संभालो नन्हें आर्यन को,’’ कहते हुए वे अंदर से एक 7-8 माह के बच्चे को ले आईं जो हूबहू धीरज की फोटोकौपी था.

शोभा ने बच्चे को अपनी छाती से ऐसे चिपका लिया जैसे कोई उसे छीन न ले. वह जल्दी से जल्दी वहां से निकलना चाह रही थी.

आंटी ने कहा, ‘‘आप सीमा का कमरा खोल कर देख लो. बच्चे का जरूरी सामान तो अभी ले जाओ, बाकी सामान जब जी चाहे ले जाना. उस के बाद ही मैं कमरा किसी और को किराए पर दूंगी.’’

उस ने सीमा का कमरा खोला. कमरे में खास सामान नहीं था. बस, जरूरी सामान था. बच्चे का सामान और सीमा का पर्स व मोबाइल ले कर वह आंटी को फिर आने को कह कर घर चल पड़ी.

सारे रास्ते सोचती रही कि धीरज ने उस के साथ कितना बड़ा धोखा किया. दूसरी शादी रचा ली और बच्चा तक पैदा कर लिया. जब खुद उस ने दूसरी शादी के लिए कहा था तब कितनी वफादारी दिखा रहा था. ऐसे दोहरे व्यक्तित्व वाले इंसान के प्रति उस का मन घृणा से भर गया.

घर आ कर उस ने सब से पहले सीमा का पर्स चैक किया. पर्स में थोड़ेबहुत रुपए, दांतों के डाक्टर का परचा और थोड़ाबहुत कौस्मैटिक का सामान था. पैनकार्ड और आधारकार्ड से पता चला कि सीमा धीरज के ही शहर की थी. इस का मतलब धीरज शादी के पहले से ही सीमा को जानता था और उस का प्रेमप्रसंग काफी पुराना था.

फिर उस ने सीमा का मोबाइल चैक किया. वालपेपर पर सीमा, धीरज और बच्चे का फोटो लगा था.

व्हाट्सऐप पर काफी मैसेज थे जो डिलीट नहीं किए गए थे.

‘‘सीमा, इतने सालों बाद तुम मुझे मैट्रो में मिली. मुझे अच्छा लगा. लेकिन यह जान कर दुख हुआ कि तुम्हारा पति से तलाक हो चुका है.’’

‘‘नहीं, मैं तुम्हारे घर नहीं आऊंगा क्योंकि अब मैं शादीशुदा हूं और अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता हूं. वैसे भी तुम अकेली रहती हो, मुझे देख कर तुम्हारी मकानमालकिन आंटी क्या सोचेंगी?’’

‘‘तुम ने आंटी को अपना परिचय मेरे पति के रूप में दिया, यह मुझे अच्छा नहीं लगा.’’

‘‘हमारे बीच जो कुछ क्षणिक आवेश में हुआ, उस के लिए मैं तुम से माफी चाहता हूं और अब मैं तुम से कभी नहीं मिलूंगा.’’

‘‘क्या? मैं पिता बनने वाला हूं.’’

‘‘सीमा, प्लीज जिद छोड़ दो, मैं शोभा को तलाक नहीं दे सकता. मैं

उसे सचाई बता दूंगा. वह स्वीकार कर लेगी. उस का दिल बहुत बड़ा है. हम सब साथ रहेंगे. हमारे बच्चे को 2-2 मांओं का प्यार मिलेगा.’’

‘‘सीमा, मुझे अपने बच्चे से मिलने दो. उस के बिना मैं मर जाऊंगा.’’

इस के अलावा औरों के भी मैसेज थे. तभी अचानक सीमा के मोबाइल की घंटी बजी. उस ने तुरंत रिसीव किया, ‘‘कौन?’’

‘‘कौन की बच्ची? इतने दिनों से फोन लगा रही हूं. हर बार तेरी खड़ूस आंटी उठाती है और कहती है कि तू अभी तक वापस नहीं आई. क्या बात है? मथुरा में शादी कर के वहीं से हनीमून मनाने भी निकल गई.’’

शोभा चुप रही. बस, ‘‘हूं’’ कहा.

‘‘अच्छा, व्यस्त है हनीमून में. वैसे सीमा, यह ठीक ही रहा वरना धीरज तो तुझे अपने घर में अपनी बीवी की नौकरानी बना कर रख देता. तेरा बच्चा भी तेरा अपना नहीं रहता. बच्चे से न मिलने देने की धमकी सुन कर आ गया न लाइन पर. मेरा यह आइडिया कामयाब रहा. अब मंदिर में तू ने शादी तो कर ली है लेकिन ऐसी शादी कोई नहीं मानेगा, इसलिए बच्चे को ढाल बना कर जल्दी से जल्दी धीरज को अपनी बीवी से तलाक के लिए राजी कर.’’

‘‘हांहां,’’ शोभा ने अटकते स्वर में कहा.

‘‘हांहां मत कर, पार्टी की तैयारी शुरू कर. मैं अगले हफ्ते ही दिल्ली आ रही हूं औफिस के काम से.’’

‘‘ठीक है,’’ कहते हुए शोभा ने फोन काट दिया.

धीरज के प्रति उस के मन में जो गलत भाव आ गए थे, वे एक पल में धुल गए. सच में धीरज ने एक पति होने के नाते उसे पूरा मानसम्मान और प्रेम दिया. वह धीरज पर गौरवान्वित हो उठी. धीरज की निशानी नन्हें आर्यन को पा कर उस का तनमन महक उठा. उस ने उसे कस कर सीने से लगा लिया और बरसों से सहेजा ममता का खजाना उस पर लुटा दिया.

उस के अनुभवी पिता ने सत्य ही कहा था कि धीरज जैसे समझदार इंसान ने भविष्य के लिए कुछ न कुछ जरूर किया होगा. वास्तव में उस ने अपनी जिंदगी की एक महत्त्वपूर्ण पौलिसी करा ही दी थी जो शोभा का सुरक्षित भविष्य बन गई थी. बीमा कंपनी की टैग लाइन ‘जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी’ को सार्थक कर दिया था धीरज ने. वह जिंदगी में शोभा के साथ था और जिंदगी के बाद भी उस के साथ है नन्हें आर्यन के रूप में.

तोहफा: पति के जाने के बाद शैली ने क्यों बढ़ाई सुमित से नजदीकियां

क्रंदन: पीयूष की शराब की लत ने बरबाद कर दिया उसका परिवार

पीयूष ने दोनों बैग्स प्लेन में चैकइन कर स्वयं अपनी नवविवाहित पत्नी कोकिला का हाथ थामे उसे सीट पर बैठाया. हनीमून पर सब कुछ कितना प्रेम से सराबोर होता है. कहो तो पति हाथ में पत्नी का पर्स भी उठा कर चल पड़े, पत्नी थक जाए तो गोदी में उठा ले और कुछ उदास दिखे तो उसे खुश करने हेतु चुटकुलों का पिटारा खोल दे.

भले अरेंज्ड मैरिज थी, किंतु थी तो नईनई शादी. सो दोनों मंदमंद मुसकराहट भरे अधर लिए, शरारत और झिझक भरे नयन लिए, एकदूसरे के गलबहियां डाले चल दिए थे अपनी शादीशुदा जिंदगी की शुरुआत करने. हनीमून को भरपूर जिया दोनों ने. न केवल एकदूसरे से प्यार निभाया, अपितु एकदूसरे की आदतों, इच्छाओं, अभिलाषाओं को भी पहचाना, एकदूसरे के परिवारजनों के बारे में भी जाना और एक सुदृढ़ पारिवारिक जीवन जीने के वादे भी किए.

हनीमून को इस समझदारी से निभाने का श्रेय पीयूष को जाता है कि किस तरह उस ने कोकिला को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लिया. एक सुखीसशक्त परिवार बनाने हेतु और क्या चाहिए भला? पीयूष अपने काम पर पूरा ध्यान देने लगा. रातदिन एक कर के उस ने अपना कारोबार जमाया था. अपने आरंभ किए स्टार्टअप के लिए वैंचर कैपिटलिस्ट्स खोजे थे.  न समयबंधन देखा न थकावट. सिर्फ मेहनत करता गया.

उधर कोकिला भी घरगृहस्थी को सही पथ पर ले चली.

‘‘आज फिर देर से आई लीला. क्या हो गया आज?’’ कामवाली के देर से आने पर कोकिला ने उसे टोका.

इस पर कामवाली ने अपना मुंह दिखाते हुए कहा, ‘‘क्या बताऊं भाभीजी, कल रात मेरे मर्द ने फिर से पी कर दंगा किया मेरे साथ. कलमुंहा न खुद कमाता है और न मेरा पैसा जुड़ने देता है. रोजरोज मेरा पैसा छीन कर दारू पी आता है और फिर मुझे ही पीटता है.’’

‘‘तो क्यों सहती है? तुम लोग भी न… तभी कहते हैं पढ़लिख लिया करो. बस आदमी, बेटे के आगे झुकती रहती हो… कमाती भी हो फिर भी पिटती हो…,’’ कोकिला आज के समय की स्त्री थी. असहाय व दयनीय स्थिति से समझौते के बजाय उस का हल खोजना चाहती थी.

शाम को घर लौटे पीयूष के हाथ में पानी का गिलास थमाते हुए कोकिला ने हौले से

उस का हाथ अपने पेट पर रख दिया.

‘‘सच? कोकी, तुम ने मेरे जीवन में इंद्रधनुषी रंग भर दिए हैं. हमारी गृहस्थी में एक और सदस्य का जुड़ना मुझे कितनी प्रसन्नता दे रहा है, मैं बयां नहीं कर सकता. बोलो, इस खुशी के अवसर पर तुम्हें क्या चाहिए?’’

‘‘मुझे जो चाहिए वह आप सब मुझे पहले ही दे चुके हैं,’’ कोकिला भी बहुत खुश थी.

‘‘पर अब तुम्हें पूरी देखभाल की आवश्यकता है.’’ पीयूष उसे मायके ले गया जो पास ही था.

इस खुशी के अवसर पर कोकिला के मायके में उस के और पीयूष के स्वागत में खानेपीने की ए वन तैयारी थी. उन के पहुंचते ही कोकिला की मम्मी उन्हें गरमगरम स्नैक्स जोर दे कर खिलाने लगीं और उधर कोकिला के पापा पीयूष और अपने लिए 2 गिलासों में शराब ले आए.

‘‘पापा यह आप क्या कर रहे हैं?’’ उन की इस हरकत से कोकिला अचंभित भी थी और परेशान भी. उसे अपने पापा की यह बात बिलकुल अच्छी नहीं लगी.

किंतु पीयूष को बुरा नहीं लगा. बोला, ‘‘तुम्हारे पापा ने इस मौके को सैलिब्रेट करने हेतु ड्रिंक बनाया है, तो इस में इतना बुरा मानने की क्या बात है?’’

फिर तो यह क्रम बन गया. जब भी कोकिला मायके जाती, पीयूष और उस के पापा पीने बैठ जाते. कोकिला अपने मायके जाने से कतराने लगी. किंतु उस की स्थिति ऐसी थी कि वहां आनाजाना उस की मजबूरी थी.

समय बीतने के साथ पीयूष और कोकिला के घर में जुड़वां बच्चों का आगमन हुआ. दोनों की प्रसन्नता नए आयाम छू रही थी. शिशुओं की देखभाल करने में दोनों उलझे रहते. शुरूशुरू में बच्चों की नित नई बातें तथा बालक्रीड़ाएं दोनों को खुशी से व्यस्त रखतीं.

रोज शाम घर लौटने पर कोकिला पीयूष को कभी हृदय की तो कभी मान्या की बातें सुनाती. दोनों इसी बहाने अपना बचपन एक बार फिर जी रहे थे.

एक शाम घर लौटे पीयूष से आ रही गंध ने कोकिला को चौंकाया, ‘‘तुम शराब पी कर घर आए हो?’’

‘‘अरे, वह मोहित है न. आज उस ने पार्टी दी थी. दरअसल, उस की प्रमोशन हो गई है. सब दोस्तयार पीछे पड़ गए तो थोड़ी पीनी पड़ी,’’ कह पीयूष फौरन कमरे में चला गया.

1-2 दिन की बात होती तो शायद कोकिला को इतनी परेशानी न होती, किंतु पीयूष तो रोज शाम पी कर घर आने लगा.

‘‘ऐसे कैसे चलेगा, पीयूष? तुम तो रोज ही पी कर घर आने लगे हो. पूछने पर कभी

कहते हो फलां दोस्त ने पिला दी, कभी फलां के घर पार्टी थी, कभी किसी दोस्त की शादी तय होने की खुशी में तो कभी किसी दोस्त की परेशानी बांटने में साथ देने हेतु. शायद तुम देख नहीं पा रहे हो कि तुम किस राह निकल पड़े हो. तुम्हारी सारी मेहनत, इतने परिश्रम से खड़ा किया तुम्हारा कारोबार, हमारी गृहस्थी सब बरबाद हो जाएगा. शराब किसी को नहीं छोड़ती,’’ कोकिला को भविष्य की चिंता खाए जा रही थी.

‘‘तुम्हारा नाम भले ही कोकिला है पर तुम्हारी वाणी अब कौए समान हो गई,’’ पीयूष झल्ला कर बोला.

‘‘तो क्या रोजरोज पी कर घर आने पर टोकना गलत है?’’ कोकिला भी चिल्लाई.

गृहकलह को शांत करने का उपाय भी पीयूष ने ही खोजा. अगली सुबह सब से पहले उठ कर चाय बना उस ने कोकिला को जगाया और फिर हाथ जोड़ कर उस से क्षमायाचना की, ‘‘मुझे माफ कर दो, कोकी. देखो, यदि तुम्हें अच्छा नहीं लगता तो मैं आज से नहीं पीऊंगा. अब तो खुश?’’

और वाकई पीयूष ने शराब त्यागने का भरपूर प्रयास शुरू कर दिया. वे दोस्त छोड़ दिए जिन के साथ वह पीता था. जब उन के फोन आते तब पीयूष कोई न कोई बहाना बना देता. कोकिला बहुत खुश हुई कि अब इन की यह लत छूट जाएगी.

अभी 1 हफ्ता ही बीता था कि पीयूष के चाचाजी जो अमेरिका में रहते थे, 1 हफ्ते के लिए उन के घर रहने आए. वे अपने साथ एक महंगी शराब की बोतल लाए. किसी लत से लड़ते हुए इनसान के सामने उसी लत का स्रोत रख दिया जाए तो क्या होगा? ऐसा नहीं था कि पीयूष ने बचने का प्रयास नहीं किया.

‘‘चाचाजी, मैं ने शराब पीनी छोड़ दी है… मुझे कुछ परेशानी होने लगी है लगातार पीने से,’’ पीयूष ने चाचा को समझाने की कोशिश की.

किंतु चाचाजी ने एक न सुनी, ‘‘अरे क्या यार, इतनी सस्ती शराब पीता है, इसलिए तुझे परेशानी हो रही है. अच्छी, महंगी शराब पी, फिर देख. हमारे अमेरिका में तो रोज पीते हैं और कभी कुछ नहीं होता.’’

चाचाजी इस बात पर ध्यान देना भूल गए कि बुरी चीज बुरी होती है. फिर उस की क्वालिटी कैसी भी हो. जब रोज पूरीपूरी बोतल गटकेंगे तो नुकसान तो होगा ही न.

बस, फिर क्या था. पीयूष की आदत फिर शुरू हो गई. कोकिला के मना करने, हाथ जोड़ने, प्रार्थना करने और लड़ने का भी कोई असर नहीं.

‘‘तो क्या चाहती हो तुम? चाचाजी के सामने कह दूं कि आप अकेले पियो, मैं आप का साथ नहीं दूंगा? तुम समझती क्यों नहीं हो… मैं साथ ही तो दे रहा हूं. अब घर आए मेहमान का अपमान करूं क्या? चिंता न करो, जब चाचाजी लौट जाएंगे तब मैं बिलकुल नहीं पीऊंगा. मैं वादा करता हूं.’’

कुछ समय बिता कर चाचाजी चले गए. किंतु पीयूष की लत नहीं गई. वह पी कर घर आता रहा. एक रात कोकिला ने दरवाजा नहीं खोला, ‘‘तुम अपने सारे वादे भूल जाते हो, किंतु मुझे याद हैं. अब से जब भी पी कर आओगे, मैं दरवाजा नहीं खोलूंगी.’’

‘‘सुनो तो कोकिला, बस इस बार घर में आने दो. आइंदा से बाहर से पी कर घर नहीं आया करूंगा. घर में ही पी लिया करूं तो इस में तो तुम्हें कोई आपत्ति नहीं है न?’’

‘‘बच्चे क्या सोचेंगे पीयूष?’’

‘‘तो ठीक है, मैं बाहर गैरेज में बैठ कर पी लिया करूंगा.’’

वह कहते हैं न कि पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए, जिसे पीने की लत लग जाए, वह कैसे न कैसे पीने के अवसर ढूंढ़ ही लाता है. घर में सहर्ष स्वीकृति न मिलने पर पीयूष ने गैरेज में पीना आरंभ कर दिया. रोज शाम गैरेज में दरवाजा बंद कर शराब पीता और फिर सोने के लिए लड़खड़ाता घर चला आता.

‘‘कल रात फिर तुम ने पूरी बोतल पी? कुछ तो खयाल करो, पीयूष. तुम शराबी बनते जा रहे हो,’’ कोकिला नाराज होती.

‘‘मुझे माफ कर दो, कोकी. आज से बस 2 पैग लिया करूंगा,’’ सुबह होते ही पीयूष फौरन क्षमा मांगने लगता. लेकिन शाम ढलते ही उसे सिर्फ बोतल नजर आती.

उस रात जब फिर पीयूष लड़खड़ाता हुआ घर में दाखिल हुआ तो कोकिला का पारा 7वें आसमान पर था. उस ने पीयूष को कमरे में घुसने से साफ मना कर दिया, ‘‘मेरे और लीला के पति में इतना ही अंतर है कि वह उस के पैसे से पी कर उसे ही मारता है और तुम अपने पैसे से पी कर चुपचाप सो जाते हो, लेकिन गृहस्थियां तो दोनों ही उलझ कर रह गई हैं न… कल से पी कर आए, तो कमरे में आने की जरूरत नहीं है.’’

कोकिला के इस अल्टीमेटम के चलते दोनों में बहस छिड़ गई और फिर दोनों अलगअलग कमरे में सोने लगे. धीरेधीरे पीयूष और कोकिला एकदूसरे से और भी दूर होते चले गए. कोकिला पीयूष से नाराज रहने लगी. बारबार पीयूष के झूठ के कारण वह उस की ओर से हताश हो चुकी थी. हार कर उस ने उसे समझाना ही छोड़ दिया.

अब पीयूष की तबीयत अकसर खराब रहने लगी. वह बहुत कमजोर होता जा रहा था. जब तक डाक्टर के पास पहुंचे तब तक बहुत देर हो चुकी थी. पता चला कि पीयूष को शराब के कारण गैलपिंग सिरोसिस औफ लिवर हो गया है. अस्पताल वालों ने टैस्टों की लंबी सूची थमा दी. रातदिन डाक्टरों के चक्कर काटती कोकिला बेहाल लगने लगी थी. बच्चे भी कभी किसी रिश्तेदार के सहारे तो कभी किसी मित्र के घर अपना समय काट रहे थे.

देखते ही देखते अस्पताल वालों ने 18 लाख का बिल बना दिया. कोकिला और पीयूष दोनों ही कांप उठे. कहां से लाएंगे इतनी रकम… इतना बड़ा बिल चुकाने हेतु सब बिक जाना पक्का था. जमीन, शेयर, म्यूचुअल बौंड, यहां तक कि घर भी.

एक शाम पैसों का इंतजाम करने हेतु अपने निवेश के दस्तावेज ले कर पीयूष और कोकिला गाड़ी से घर लौट रहे थे. कोकिला बेहद उदास थी. उस की आंखें बरस रही थीं, ‘‘यह क्या हो गया है, पीयूष? हमारी गृहस्थी कहां से कहां आ पहुंची है… काश, तुम पहले ही होश में आ जाते.’’

कोकिला की बातें सुन, उस की हालत देख पीयूष की आंखें भी डबडबा गईं कि काश, उस ने पहले सुध ली होती. अपनी पत्नी, बच्चों के बारे में जिम्मेदारी से सोचा होता. डबडबाई आंखों से राह धुंधला जाती है. गाड़ी चलाते हुए आंखें पोंछने को जैसे ही पीयूष ने नीचे मुंह झुकाया सामने से अचानक तेजी से आते एक ट्रक ने उन की गाड़ी को टक्कर मार दी. पीयूष और कोकिला की मौके पर ही मृत्यु हो गई.

नन्हे हृदय और मान्या अब इस संसार में बिलकुल अकेले रह गए. कौन सुध लेगा इन नन्ही जानों की? जब नाविक ही नैया को डुबोने पर उतारू हो तो उस नाव में सवार अन्य लोगों की जिंदगी डोलना लाजिम है.

एक गुनाह और सही: राजीव से तलाक लेकर क्या गुनाह किया

सच तो यह है कि मैं ने कोई गुनाह नहीं किया. मैं ने बहुत सोचसमझ कर फैसला किया था और मैं अपने फैसले पर बहुत खुश हूं. मुझे बिलकुल भी पछतावा नहीं है. मांबाप के घर गई थी. मां ने नजरें उठा कर मेरी ओर देखा भी नहीं. उसी मां ने जो कैलेंडर में छपी खूबसूरत लड़की को देख कर कहती थी कि ये मेरी चंद्रा जैसी है. पापा ने चेहरे के सामने से अखबार भी नहीं हटाया.

‘‘क्या मैं चली जाऊं? साधारण शिष्टाचार भी नहीं निभाया जाएगा?’’ सब्जी काटती मां के हाथ रुक गए. ‘‘अब क्या करने आई हो? मुंह दिखाने लायक भी नहीं रखा. हमारा घर से निकलना भी मुश्किल कर दिया है. लोग तरहतरह के सवाल करते हैं.’’

‘‘कैसे सवाल, मम्मी?’’ ‘‘यही कि तुम्हारे पति ने तुम्हें निकाल दिया है. तुम्हारा तलाक हो गया है. तुम बदचलन हो, इसलिए तुम्हारा पति तलाक देने को खुशी से तैयार हो गया.’’

‘‘बदचलन होने के लिए वक्त किस के पास था, मम्मी? सवेरे से शाम तक नौकरी करती थी, फिर घर का सारा काम करना पड़ता था. तुम तो समझ सकती हो?’’ पापा ने कहा, ‘‘तुम ने हमारी राय जानने की कोई परवाह नहीं की, सबकुछ अपनेआप ही कर लिया.’’

‘‘इसलिए कि आप लोग केवल गलत राय देते जबकि हर सूरत में मैं राजीव से तलाक लेने का फैसला कर चुकी थी. फैसला जब मेरे और राजीव के बीच में होना था तो आप को किसलिए परेशान करती. मैं नौकरी करतेकरते तंग आ गई थी. हर औरत की ख्वाहिश होती है कि वह अपना घर संभाले. 1-2 बच्चे हों. मां बनने की इच्छा करना किसी औरत के लिए गुनाह तो नहीं है पर राजीव के पास रह कर मैं कुछ भी नहीं बन सकती थी. मैं सिर्फ रुपया कमाने वाली मशीन बन कर रह गई थी.’’ ‘‘किसकिस को समझाएं, कुछ समझ नहीं आता.’’

‘‘लोगों को कुछ काम नहीं है. दूसरों पर उंगली उठाना उन की आदत है. उन की अपनी जिंदगी इतनी नीरस है कि वे दूसरों की जिंदगी में ताकझांक कर के अपना मनोरंजन करना चाहते हैं. खैर, मैं ने जो ठीक समझा, वही किया है. नौकरी राजीव के साथ रह कर भी कर रही थी, अब भी करूंगी और शादी से पहले भी करती थी.’’ ‘‘शादी से पहले तुम अपनी खुशी से वक्त काटने के लिए नौकरी करती थी.’’

‘‘दूसरों को कहने के लिए ये बातें अच्छी हैं. आप भी जानते हैं और मैं भी जानती हूं कि मेरी शादी से पहले नौकरी कर के लाया हुआ रुपया व्यर्थ नहीं गया, सिर्फ मेरी खुशी पर ही खर्च नहीं हुआ. मेरा रुपया कम से कम एक भाई की इंजीनियरिंग और दूसरे की डाक्टरी की फीस देने के काम आ गया. मैं आप को दोष नहीं दे रही हूं, क्योंकि हम मध्यवर्ग के लोग हैं और यह सच है कि हर एक के शासन में मध्यवर्ग ही पिसा है. ‘‘गरीबों को फायदा हुआ. उन की मजदूरी बढ़ गई. उन की तनख्वाह बढ़ गई पर मध्यवर्ग के लोग बढ़ी हुई महंगाई और बच्चों की शिक्षा के खर्च के बीच पिसते रहे, अपनी इज्जत बनाए रखने के लिए संघर्ष करते रहे. सब ने गरीबों की बात की पर कभी किसी ने भी मध्यवर्गीय लोगों की बात नहीं की. फिर भी आप लोग यह बात कह रहे हैं कि मैं ने सिर्फ अपनी खुशी के लिए, वक्त काटने के लिए नौकरी की. आप की तनख्वाह से सिर्फ घर का खर्च आसानी से चलता था और कुछ नहीं.’’

मैं रुक गई और मैं ने पापा की ओर देखा. उन के चेहरे पर परेशानी साफ झलक रही थी. मां ने जोश में आ कर अपनी उंगली काट ली थी.

‘‘यह वही मध्यवर्ग है जो देश को एक वक्त भूखे रह कर भी, अध्यापक, डाक्टर्स, इंजीनियर्स और वैज्ञानिक देता रहा है. देश की आजादी कायम रखने के लिए भी अपने बेटे फौज में ज्यादातर मध्यवर्गीय लोगों ने ही दिए हैं. यह वही पढ़ालिखा शिक्षित वर्ग है, जो चुपचाप बिना विद्रोह किए सबकुछ सहता आया है.’’

मैं और कुछ कहूं इस के पहले ही पापा ने ताली बजाते हुए कहा, ‘‘शाबाश, स्पीच अच्छी देती हो. मैं देख रहा हूं कि तुम्हें ऊंची शिक्षा दिलाना बेकार नहीं गया.’’ और वे हंसने लगे. मां के चेहरे पर भी मुसकराहट आ गई. वातावरण कुछ हलका होता लगा. ‘‘नौकरी अब मजबूरन करूंगी, अपना पेट भरने के लिए. खैर जो होना था, हो चुका है. तलाक हम दोनों की रजामंदी से हुआ है. हम दोनों ही समझ चुके थे कि अब साथ रहना नहीं हो सकेगा. मैं जा रही हूं, मम्मी. अगर आप लोग इजाजत देंगे तो कभीकभी देखने आ जाया करूंगी.’’

मेरी बात सुन कर जैसे मम्मी होश में आ गईं, बोलीं, ‘‘खाना खा कर जाओ.’’ ‘‘नहीं, मम्मी, बहुत थकी हुई हूं, घर जा कर आराम करूंगी.’’

रास्ते में सरला मिल गई. वह बाजार से सामान खरीद कर लौट रही थी. कार रोक कर मैं ने सरला से साथ चलने को कहा. ‘‘दीदी, अभी तो मुझे और भी सामान लेना है.’’

‘‘फिर ले लेना,’’ मैं ने कहा और सरला को कार के भीतर घसीट लिया. कार थोड़ी पुरानी है. मेरे चाचा अमेरिका में बस गए थे और अपनी पुरानी कार मुझे शादी में भेंट दे गए थे. सरला और मैं ने मिल कर एक छोटा सा फ्लैट किराए पर ले लिया था. सरला मेरे ही दफ्तर में एक कंप्यूटर औपरेटर थी.

रात को अपने कमरे में पलंग पर लेटते ही मम्मीपापा का व्यवहार याद आ गया. उन लोगों ने तो मेरी जिंदगी को नहीं जिया है, फिर नाराज होने का भी उन्हें क्या हक है? जिंदगी के बारे में सोचते ही राजीव का चेहरा आंखों के सामने आ गया. ‘क्यों छोड़ी नौकरी? मैं ने तुम से शादी सिर्फ इसलिए की थी कि मुझे एक कमाने वाली पत्नी मिलने वाली थी. मेरे लिए लड़कियों की क्या कमी थी?’

‘औफिस का काम और ऊपर से घर का काम, दोनों मैं नहीं कर पा रही थी. आप की हर जरूरत नौकरी करने पर मैं कैसे पूरी कर सकती थी? बहुत थक जाती हूं, इसलिए इस्तीफा दे आई हूं.’ ‘कल जा कर अपना इस्तीफा वापस ले लेना, तभी मेरे साथ रहना हो सकेगा.’

‘अच्छी बात है, जैसा आप कहेंगे वही करूंगी.’ ‘तुम समझती क्यों नहीं, चंद्रा. दो लोगों के कमाने से हम लोग ठीक से रह तो सकते हैं? दूसरों की तरह एकएक चीज के लिए किसी का मुंह तो नहीं देखना पड़ता है? तुम जब चाहती हो साडि़यां खरीद लेती हो, इसलिए कि हम दोनों कमाते हैं. ऊपर से महंगाई भी कितनी है.’

‘क्या शराब और सिगरेट के दाम बहुत बढ़ गए हैं? मैं ने सिर्फ इसलिए पूछा कि आप को गृहस्थी की और चीजों से तो कोई मतलब नहीं है.’ ‘ठीक समझती हो,’ राजीव ने हंसते हुए कहा था.

‘मैं सिर्फ आप की तनख्वाह में भी रह सकती हूं अगर आप शराब, जुए और दोस्तों के खर्च में कुछ कटौती कर दें.’ ‘नहीं, नहीं. मैं ऐसी ऊबभरी जिंदगी नहीं जी सकूंगा.’

‘मैं भी फिर इतनी थकानभरी जिंदगी कब तक जी सकूंगी?’ ‘सुनो, घर के कामों को जरा आसानी से लिया करो. औफिस से आने पर अगर देर हो जाए तो किसी होटल में भी खाना खाया जा सकता है. तुम घर के कामों को बेवजह बहुत महत्त्व दे रही हो.’

‘हम दोनों ने नौकरी कर के कितना रुपया जमा कर लिया है? आमदनी के साथ खर्च बढ़ता गया है.’ ‘जोड़ने को तो सारी उम्र पड़ी है. और फिर क्या मैं ही खर्च करता हूं? तुम्हारा खर्च नहीं है?’

‘जरूर है. अन्य औरतों के मुकाबले में ज्यादा भी है. इसलिए कि मुझे नौकरी करने के लिए घर से बाहर जाना पड़ता है. घर में तो कैसे भी, कुछ भी पहन कर रहा जा सकता है.’ ‘इतनी काबिल औरत हो, तुम्हारे बौस भी तुम्हारी बहुत तारीफ करते हैं. एक साधारण औरत की तरह रसोई और घर के कामों में समय बरबाद करना चाहती हो? कल ही जा कर अपना इस्तीफा वापस ले लेना. बड़े ताज्जुब की बात है कि इतना बड़ा कदम उठाने से पहले तुम ने मुझ से पूछा तक भी नहीं.’

‘राजीव, मैं ने निश्चय कर लिया है कि अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रहूंगी.’ ‘क्या मतलब?’

‘मतलब साफ है. हम दोनों अपनी रजामंदी से तलाक का फैसला ले लें तो अच्छा रहेगा. खर्च भी कम होगा.’ ‘सवेरे बात करेंगे. इस समय तुम किसी वजह से परेशान हो या थकी हुई हो.’

‘शादी के बाद से मैं ने आराम किया ही कब है? बात सवेरे नहीं, अभी होगी, क्योंकि मैं कल इस घर को छोड़ कर जा रही हूं. मेरा निश्चय नहीं बदलेगा. तलाक के बाद तुम फिर आराम से दूसरी कमाने वाली लड़की से शादी कर लेना.’ ‘अच्छी बात है, जैसा तुम कहोगी वैसा ही होगा, पर मुझे अपनी बहन की शादी में कम से कम 4-5 लाख रुपए देने होंगे. अगर तुम 4-5 साल रुक जातीं तो इतने रुपए हम दोनों मिल कर जमा कर लेते. मैं ने सिगरेट और शराब वगैरा का खर्च कम करने का निश्चय कर लिया था.’

‘तब भी नहीं.’ ‘मैं तुम्हारी हर बात मानने के लिए तैयार हो गया हूं और तुम मेरी इतनी सी बात भी नहीं मान रही हो. सिर्फ 4-5 लाख रुपयों का ही तो सवाल है.’

‘आप को मालूम पड़ गया है कि मेरे पास बैंक में कितने रुपए हैं. इसीलिए यह सौदेबाजी हो रही है. अगर मुझे आजाद करने की कीमत 5 लाख रुपए है तो दे दूंगी. मेरी दिवंगत दादी के रुपए कुछ काम तो आ जाएंगे.’ और फिर एक दिन तलाक भी हो गया और मैं सरला के साथ अलग फ्लैट में रहने लगी.

अभी मैं राजीव को ले कर पुरानी बातों में ही उलझी हुई थी कि सरला ने आ कर कहा, ‘‘हर समय क्या सोचती रहती हैं, दीदी? आप का खाना टेबल पर रखा है, खा लीजिएगा. मैं बाजार जा रही हूं. घर में सब्जी कुछ भी नहीं है. सवेरे लंच के लिए क्या ले कर जाएंगे?’’

‘‘अरे छोड़ो भी, सरला, कैंटीन से लंच ले लेंगे.’’ ‘‘नहीं, नहीं. आप को कैंटीन का खाना अच्छा नहीं लगता है. कल लंच में आलूमटर की सब्जी और कचौडि़यां होंगी. क्यों, दीदी, ठीक है न? आप को उड़द की दाल की कचौडि़यां बहुत अच्छी लगती हैं. मैं ने तो दाल भी पीस कर रख दी है.’’

‘‘सरला, क्यों मेरा इतना ध्यान रखती हो? आज तक तो किसी ने भी नहीं रखा.’’ ‘‘दीदी, सुन लो. आप ऐसी बात फिर कभी मुंह से मत निकालिएगा.’’

‘‘कौन से जनम का रिश्ता निभा रही हो, सरला? मांबाप ने तो इस जनम का भी नहीं निभाया. तुम इतने सारे रिश्ते कहां से समेट कर बैठ गई हो?’’ जवाब में सरला ने पास आ कर मेरे गले में बांहें डाल दीं, ‘‘दीदी, मेरा इस दुनिया में आप के सिवा कोई नहीं है. फिर ऐसी बात मत कहिएगा.’’

सरला सब्जी लेने चली गई थी. टेबल पर खाना सजा हुआ रखा था. अकेले खाने को दिल नहीं कर रहा था, पर सरला का मन रखने के लिए खाना जरूरी था. न जाने क्या हुआ कि खातेखाते एकाएक समीर का ध्यान हो आया. समीर हमारी कंपनी में कानूनी मामलों की देखभाल के लिए रखा गया एक वकील था. जवान और काफी खूबसूरत.

एक दिन बसस्टौप पर मेरे बराबर कार रोक कर खड़ा हो गया और बैठने की खुशामद करने लगा. मैं ने मना कर दिया.

‘‘मुझे आप से कुछ पूछना है.’’ ‘‘कहिए.’’

‘‘क्या आप कुछ रोमांटिक डायलौग बतला सकती हैं, जो एक आदमी किसी औरत से कह सकता है?’’ ‘‘किस औरत से?’’

‘‘जिसे वह बहुत प्यार करता है और जिस से शादी करना चाहता है,’’ समीर ने डरतेडरते कहा. ‘‘मुझे नहीं मालूम. मैं ने इस तरह के डायलौग कभी नहीं सुने हैं. क्यों नहीं आप जा कर कोई हिंदी फिल्म देख लेते हैं, आप की समस्या आसानी से हल हो जाएगी,’’ मैं ने कहा और आगे बढ़ गई.

एक दिन फिर उस ने मुझे रोक लिया, ‘‘चंद्राजी, इन अंधेरों से निकल कर बाहर आ जाइए. बाहर का आसमान बहुत खुलाखुला है और साफ है. चारों तरफ रोशनी फैली हुई है. आप बेवजह अंधेरों में भटक रही हैं.’’

‘‘मुझे इन अंधेरों में ही रहने की आदत है. मेरी ये आंखें रोशनी सह न सकेंगी,’’ मैं ने भी मजाक में कह दिया. ‘‘आओ, मेरा हाथ पकड़ लो, मैं आहिस्ताआहिस्ता तुम्हें इन अंधेरों से बाहर ले आऊंगा,’’ समीर ने गंभीर सा चेहरा बनाते हुए कहा.

समीर का डायलौग सुन हंसतेहंसते मेरा बुरा हाल हो गया. समीर भी हंसने लगा. ‘‘ये कौन सी फिल्म के डायलौग हैं, समीर?’’

‘‘बड़ी मुश्किल से याद किए थे, चंद्रा. छोड़ो डायलौग की बात, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. तुम्हें बेहद प्यार करता हूं.’’ ‘‘समीर, तुम्हें मेरे बारे में कुछ भी नहीं मालूम है. तुम सिर्फ इतना जानते हो कि मैं बौस की प्राइवेट सैक्रेटरी हूं.’’

‘‘मैं कुछ जानना भी नहीं चाहता. जितना जानता हूं, उतना ही काफी है. मैं तुम से वादा करता हूं कि तुम्हारी पिछली जिंदगी के बारे में कभी भी कोई बात नहीं करूंगा.’’ ‘‘करनी है तो अभी कर लो.’’

‘‘मैं तो सिर्फ इतना ही जानता हूं कि मेरी मां घर के दरवाजे पर मेरी होने वाली पत्नी और मेरे होने वाले बच्चों के लिए आंखें बिछाए बैठी रहती हैं.’’ ‘‘ले चलो अपनी मां के पास. रोजरोज मेरे रास्ते पर खड़े रहते हो, अब मुझे तुम्हारी इस हरकत से उलझन होने लगी है.’’

और जब समीर मुझे अपनी मां के पास ले गया तो उन्होंने मुझे देखते ही अपने सीने से लगा लिया, ‘‘हर समय समीर बस तेरी ही बातें करता है. मैं तुझे देखने को तरस रही थी.’’ मैं ने मांजी की गोद में सिर रख दिया.

समीर से शादी के बाद फिर एक बार मम्मीपापा से मिलने गई. मां ने चौंक कर मेरी ओर देखा जैसे विश्वास नहीं आ रहा हो. गुलाबी रंग की बनारसी साड़ी, मांग में सिंदूर और उंगली में बड़ेबड़े हीरों की अंगूठी पहने बेटी उन के सामने आ कर खड़ी हो गई थी. ‘‘मां, मैं ने शादी कर ली है. समीर हमारी कंपनी में ही कानूनी सलाह देने के लिए नियुक्त एक वकील हैं.’’

‘‘दूसरी शादी? पहले पति को छोड़ा, वही बड़ा भारी अधर्म का काम किया था और अब…’’ ‘‘एक गुनाह और कर लिया, मम्मी. अगर आप लोग इजाजत देंगे तो किसी दिन समीर को आप लोगों से मिलाने के लिए ले आऊंगी.’’

मम्मी कुछ नहीं बोलीं. मुझे लगा कि पापा अपने चेहरे के सामने से अखबार हटाना चाहते हैं, पर हटा नहीं पा रहे हैं. मैं देख रही थी कि अखबार पकड़े हुए उन की बूढ़ी उंगलियां कांप रही हैं. ‘‘अच्छा, मम्मी, अब मैं चलती हूं. समीर इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘बेटी, खाना खा कर नहीं जाओगी?’’ पापा ने अखबार हटाते हुए कहा और न जाने कब उन की आंखों से दो आंसू टप से कांपते हुए अखबार पर गिर पड़े.

सहारा: मोहित और अलका आखिर क्यों हैरान थे

मोहित को घर जाने के लिए सिर्फ 1 सप्ताह की छुट्टी मिली थी. समय बचाने के लिए उस ने अपनी पत्नी अलका व बेटे राहुल के साथ मुंबई से दिल्ली तक की यात्रा हवाईजहाज से करने का फैसला किया. अलका ने घर से निकलने से पहले ही साफसाफ कहा था, ‘‘देखो, मैं पूरे 5 महीने के बाद अपने मम्मीपापा से मिलूंगी. भैयाभाभी के घर से अलग होने के बाद वे दोनों बहुत अकेले हो गए हैं. इसलिए मुझे उन के साथ ज्यादा समय रहना है. अगर आप ने अपने घर पर 2 दिनों से ज्यादा रुकने के लिए मुझ पर दबाव बनाया तो झगड़ा हो जाएगा.’’

‘अपने मम्मीपापा के अकेलेपन से आज तुम इतनी दुखी और परेशान हो रही हो पर शादी होते ही तुम ने रातदिन कलह कर के क्या मुझे घर से अलग होने को मजबूर नहीं किया था? जब तुम ने कभी मेरे मनोभावों को समझने की कोशिश नहीं की तो मुझ से ऐसी उम्मीद क्यों रखती हो?’ मोहित उस से ऐसा सवाल पूछना चाहता था पर झगड़ा और कलह हो जाने के डर से चुप रहा. ‘‘तुम जितने दिन जहां रहना चाहो, वहां रहना पर राहुल अपने दादादादी के साथ ज्यादा समय बिताएगा. वे तड़प रहे हैं अपने पोते के साथ हंसनेखेलने के लिए,’’ मोहित ने रूखे से लहजे में अपनी बात कही और अलका के साथ किसी तरह की बहस में उलझने से बचने के लिए टैक्सी की खिड़की से बाहर देखने लगा था.

मोहित को अपनी सास मीना कभी अच्छी नहीं लगी थी. उन की शह पर ही अलका ने शादी के कुछ महीने बाद से किराए के मकान में जाने की जिद पकड़ ली थी. उस का दिल बहुत दुखा था पर शादी के 6 महीने बाद ही अलका ने उसे किराए के घर में रहने को मजबूर कर दिया था. वह करीब 4 साल तक किराए के मकान में रहा था. फिर नई कंपनी में नौकरी मिलने से वह 5 महीने पहले मुंबई आ गया था. अब सप्ताह भर की छुट्टियां ले कर वह सपरिवार पहली बार दिल्ली जा रहा था.

करीब 2 महीने पहले मोहित का साला नीरज अपनी पत्नी अंजु और सासससुर के बहकावे में आ कर घर से अलग हो गया था. उस के ससुर ने उसे नया काम शुरू कराया था जिस में उस की अच्छी कमाई हो रही थी. ससुराल में ज्यादा मन लगने से उस का ज्यादा समय वहीं गुजरता था. उस के अलग होने के फैसले को सुन अलका बहुत तड़पी थी. खूब झगड़ी थी वह फोन पर अपने भैयाभाभी के साथ पर उन दोनों ने घर से अलग होने का फैसला नहीं बदला था.

‘‘इनसान को अपने किए की सजा जरूर मिलती है. दूसरे की राह में कांटे बोने वाले के अपने पैर कभी न कभी जरूर लहूलुहान होते हैं,’’ मोहित की इस कड़वी बात को सुन कर अलका कई दिनों तक उस के साथ सीधे मुंह नहीं बोली थी. मोहित अपने मातापिता को मुंबई में साथ रखना चाहता था पर अलका ने इस प्रस्ताव का जबरदस्त विरोध किया.

‘‘मां की कमर का दर्द और पिताजी का ब्लडप्रेशर बढ़ता जा रहा है. अगर अब हम ने उन दोनों की उचित देखभाल नहीं की तो उन दोनों के लिए औलाद को पालनेपोसने की इतनी झंझटें उठाने का फायदा ही क्या हुआ?’’

अलका के पास मोहित के इस सवाल का कोई माकूल जवाब तो नहीं था पर उस ने अपने सासससुर को साथ न रखने की अपनी जिद नहीं बदली थी. सुबह की फ्लाइट पकड़ कर वे सब 12 बजे के करीब अपने घर पहुंच गए. पूरे सफर के दौरान अलका नाराजगी भरे अंदाज में खामोश रही थी.

अपनी ससुराल के साथ अलका की बहुत सारी खराब यादें जुड़ी हुई थीं. सास के कमरदर्द के कारण उसे पहुंचते ही रसोई में किसी नौकरानी की तरह मजबूरन घुसना पड़ेगा, यह बात भी उसे बहुत अखर रही थी. उस का मन अपने मम्मीपापा के पास जल्दी से जल्दी पहुंचने को बहुत ज्यादा आतुर हो रहा था. घंटी बजाने पर दरवाजा मोहित के पिता महेशजी ने खोला. उन सब पर नजर पड़ते ही वे फूल से खिल उठे. अपने बेटे को गले लगाने के बाद उन्होंने राहुल को गोद में उठा कर खूब प्यार किया. अलका ने अपने ससुरजी के पैर छू कर उन का आशीर्वाद पाया.

महेशजी तो राहुल से ढेर सारी बातें करने के मूड में आ गए. अपने दादा से रिमोट कंट्रोल से चलने वाली कार का उपहार पा राहुल खुशी से फूला नहीं समा रहा था. अलका और मोहित घर में नजर आ रहे बदलाव को बड़ी हैरानी से देखने लगे.

जिस ड्राइंगरूम में हमेशा चीजें इधरउधर फैली दिखती थीं वहां हर चीज करीने से रखी हुई थी. धूलमिट्टी का निशान कहीं नहीं दिख रहा था. खिड़कियों पर नए परदे लगे हुए थे. पूरा कमरा साफसुथरा और खिलाखिला सा नजर आ रहा था. ‘‘मां घर में नहीं हैं क्या?’’ मोहित ने अपने पिता से पूछा.

‘‘वे डाक्टर के यहां गई हुई हैं,’’ प्यार से राहुल का माथा चूमने के बाद महेशजी ने जवाब दिया. ‘‘अकेली?’’

‘‘नहीं, उन की एक सहेली साथ गई हैं.’’ ‘‘कौन? शारदा मौसी?’’

‘‘नहीं, उन्होंने एक नई सहेली बनाई है. दोनों लौटने वाली ही होंगी. तुम दोनों क्या पिओगे? चाय, कौफी या कोल्डडिं्रक? अरे, बाप रे,’’ महेशजी ने अचानक माथे पर हाथ मारा और राहुल को गोद से उतार झटके से सीधे खड़े हो गए. ‘‘क्या हुआ?’’ मोहित ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘गैस पर भिंडी की सब्जी रखी हुई है. इस शैतान से बतियाने के चक्कर में मैं उसे भूल ही गया था,’’ वह झेंपे से अंदाज में मुसकराए और फिर तेजी से रसोई की तरफ चल पड़े. राहुल कार के साथ खेलने में मग्न हो गया. अलका और मोहित महेशजी के पास रसोई में आ गए.

‘‘घर की साफसफाई के लिए कोई नई कामवाली रखी है क्या, पापा?’’ साफसुथरी रसोई को देख अलका यह सवाल पूछने से खुद को रोक नहीं पाई. ‘‘कामवाली तो हम ने लगा ही नहीं रखी है, बहू. घर के सारे कामों में तुम्हारी सास का हाथ अब मैं बंटाता हूं. तुम यह कह सकती हो कि उस ने नया कामवाला रख लिया है,’’ अपने मजाक पर महेशजी सब से ज्यादा खुल कर हंसे.

मोहित ने एक भगौने पर ढकी तश्तरी को हटाया और बोला, ‘‘वाह, मटरपनीर की सब्जी बनी है. लगता है मां सारा लंच तैयार कर के गई हैं.’’ ‘‘डाक्टर के यहां बहुत भीड़ होती है, इसलिए वे तो 3 घंटे पहले घर से चली गई थीं. आज लंच में तुम दोनों को मेरे हाथ की बनी सब्जियां खाने को मिलेंगी,’’ किसी छोटे बच्चे की तरह गर्व से छाती फुलाते हुए महेशजी ने उन दोनों को बताया.

‘‘आप ने खाना बनाना कब से सीख लिया, पापा?’’ मोहित हैरान हो उठा. ‘‘घर के सारे काम करने का हुनर हम आदमियों को भी आना चाहिए. तुम बहू से टे्रनिंग लिया करो. अब मैं तुम्हें इलायची वाली चाय बना कर पिलाता हूं.’’

‘‘चाय मुझे बनाने दीजिए, पापा,’’ अलका आगे बढ़ आई. ‘‘अगली बार तुम बनाना. तुम्हारे हाथ की बनी चाय पिए तो एक अरसा हो गया,’’ महेशजी ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा तो अजीब सी भावुकता का शिकार हो उठी अलका को अपनी पलकें नम होती प्रतीत हुई थीं.

तभी किसी ने बाहर से घंटी बजाई तो मोहित दरवाजा खोलने के लिए चला गया. ‘‘अलका, तुम्हारे पापा आए हैं,’’ कुछ देर बाद मोहित की ऊंची आवाज अलका के कानों तक पहुंची तो वह भागती सी ड्राइंगरूम में पहुंच गई.

‘‘आप, यहां कैसे?’’ अलका अपने पिता उमाकांत को देख खुशी से खिल उठी. ‘‘तुम लोगों के आने की खुशी में रसमलाई ले कर आया हूं,’’ राहुल को गोद से उतारने के बाद उमाकांत ने अपनी बेटी को छाती से लगा लिया.

‘‘उमाकांत, रसमलाई का मजा खाने के बाद लिया जाएगा. अभी चाय बन कर तैयार है,’’ महेशजी रसोई में से ही चिल्ला कर बोले. ‘‘ठीक है, भाईसाहब,’’ उन्हें ऊंची आवाज में जवाब देने के बाद उमाकांत ने हैरान नजर आ रहे अपने बेटीदामाद को बताया, ‘‘हम दोनों एकदूसरे के बहुत पक्के दोस्त बन गए हैं. रोज मिले बिना हमें चैन नहीं पड़ता है.’’

‘‘यह चमत्कार हुआ कैसे?’’ इस सवाल को पूछने से मोहित खुद को रोक नहीं सका. ‘‘यह सचमुच चमत्कार ही है कि इस घर में हमारा स्वागत अब दोस्तों की तरह होता है, मोहित,’’ सस्पेंस बढ़ाने वाले अंदाज में मुसकराते हुए उमाकांत उस के सवाल का जवाब देना टाल गए थे.

तभी करीब 2 महीने पहले घटी एक घटना की याद उन के मन में बिजली की तरह कौंध गई थी.

अपने बेटेबहू के अलग हो जाने से मीना बहुत ज्यादा दुखी और परेशान थीं. बेखयाली में घर की सीढि़यां उतरते हुए उन का पैर फिसला और दाएं टखने में मोच आ गई. डाक्टर की क्लिनिक में उन की मुलाकात महेश और आरती से हुई. आरती की कमर का इलाज वही डाक्टर कर रहा था.

तेज दर्द के कारण तड़प रही मीना का आरती ने बहुत हौसला बढ़ाया था. उस वक्त उन्होंने मीना के खिलाफ अपने मन में बसे सारे गिलेशिकवे भुला कर उन्हें सहारा दिया था. अपने बेटे से बहुत ज्यादा नाराज मीना ने उसे अपनी चोट की खबर नहीं दी थी. डाक्टर को दिखाने के बाद कुछ देर आराम करवाने के लिए महेशजी व आरती उन दोनों को अपने घर ले आए थे.

मीना का सिर भी दीवार के साथ जोर से टकराया था. वहां कोई जख्म तो नहीं हुआ पर सिर को हिलाते ही उन्हें जोर से चक्कर आ रहे थे.

इस स्थिति के चलते मीना को आरती के घर में उस रात मजबूरन रुकना पड़ा. उन की किसी भी जरूरत को पूरा करने के लिए आरती रात को मीना के साथ ही सोई थीं. नींद आने से पहले बहुत दिनों से परेशान चल रहीं मीना के मन में कोई अवरोध टूटा और वह आरती से लिपट कर खूब रोई थीं.

‘अपने बेटेबहू के घर छोड़ कर अलग हो जाने के बाद मुझे यह एहसास बहुत सता रहा है कि मैं ने आप दोनों के साथ बहुत गलत व्यवहार किया है. अपनी बेटी को समझाने के बजाय मैं उसे भड़का कर हमेशा ससुराल से अलग होने की राय देती रही. अब मुझे अपने किए की सजा मिल गई है, बहनजी…आप मुझे आज माफ कर दोगी तो मेरे मन को कुछ शांति मिलेगी.’ पश्चात्ताप की आग में जल रही मीना ने जिस वक्त आरती से आंसू बहाते हुए क्षमा मांगी थी उस वक्त उमाकांत और महेश भी उस कमरे में ही उपस्थित थे. जब आरती ने मीना को गले से लगा कर अतीत की सारी शिकायतों व गलतफहमियों को भुलाने की इच्छा जाहिर की तो भावविभोर हो उमाकांत और महेश भी एकदूसरे के गले लग गए थे.

आरती और महेश ने मीना और उमाकांत को अपने घर से 3 दिन बाद ही विदा किया था. ‘तुम ऐसा समझो कि अपनी बेटी की ससुराल में नहीं, बल्कि अपनी सहेली के घर में रह रही हो. तुम से बातें कर के मेरा मन बहुत हलका हुआ है. मुझे न कमर का दर्द सता रहा है न बहूबेटे के गलत व्यवहार से मिले जख्म पीड़ा दे रहे हैं. तुम कुछ ठीक होने के बाद ही अपने घर जाना,’ आरती की अपनेपन से भरी ऐसी इच्छा ने मीना को बेटी की ससुराल में रुकने के लिए मजबूर कर दिया था.

आने वाले दिनों में दोनों दंपतियों के बीच दोस्ती की जड़ें और ज्यादा मजबूत होती गई थीं. पहले एकदूसरे के प्रति नाराजगी, नफरत और शिकायतों में खर्च होने वाली ऊर्जा फिर आपसी प्रेम को बढ़ाती चली गई थी. ‘‘मां, आप के साथ क्यों नहीं आई हैं?’’ अलका के इस सवाल को सुन उमाकांत अतीत की यादों से झटके के साथ उबर आए थे.

‘‘कुछ देर में वे आती ही होंगीं. इसे फ्रिज में रख आ,’’ उमाकांत ने रसमलाई का डिब्बा अलका को पकड़ा दिया. वे सब लोग जब कुछ देर बाद गरमागरम चाय का लुत्फ उठा रहे थे तब एक बार फिर घंटी की आवाज घर में गूंज गई.

दरवाजा खुलने के बाद अलका और मोहित ने जो दृश्य देखा वह उन के लिए अकल्पनीय था. मोहित की मां आरती ने अलका की मां मीना का सहारा ले कर ड्राइंगरूम में प्रवेश किया. बहुत ज्यादा थकी सी नजर आने के बावजूद वे दोनों घर आए मेहमानों को देख कर खिल उठी थीं.

मोहित ने तेजी से उठ कर पहले दोनों के पैर छुए और फिर मां की बांह थाम ली. मीना के हाथ खाली हुए तो उन्होंने अपनी बेटी को गले लगा लिया.

अलका उन से अलग हुई तो राहुल अपनी दादी की गोद से उतर कर भागता हुआ नानी की गोद में चढ़ गया. सब के लाड़प्यार का केंद्र बन वह बेहद प्रसन्न और बहुत ज्यादा उत्साह से भरा हुआ नजर आ रहा था. ‘‘इस बार 2 कप चाय मैं बना कर लाता हूं,’’ उमाकांत ने अपना कप उठाया और चाय का घूंट भरने के बाद रसोई की तरफ चल पड़े.

उन की जगह चाय बनाने के लिए अलका रसोई में जाना चाहती थी पर आरती ने उस का हाथ पकड़ कर रोक लिया. ‘‘बहू, तुम्हारे पापा के हाथ की बनी स्पेशल चाय पीने की मुझे तो लत पड़ गई है. बना लेने दो उन्हीं को चाय,’’ आरती के मुंह से निकले इन शब्दों ने अलका और मोहित के मनों की उलझन को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया था.

‘‘मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा है,’’ उन चारों बुजुर्गों को कुछ देर बाद बच्चा बन कर राहुल के साथ हंसतेबोलते देख अलका ने धीमी आवाज में मोहित के सामने अपने मन की हैरानी प्रकट की. ‘‘कितने खुश हैं चारों,’’ मोहित भावुक हो उठा, ‘‘इस सुखद बदलाव का कारण कुछ भी हो पर यह दृश्य देख कर मेरे मन की चिंता गायब हो गई है. ये सब एकदूसरे का कितना मजबूत सहारा बन गए हैं.’’

‘‘पर ये चमत्कार हुआ कैसे?’’ अपनी मां के टखने में आई मोच वाली घटना से अनजान अलका एक बार फिर आश्चर्य से भर उठी. इस बार अलका की आवाज उस के पिता के कानों तक पहुंच गई. उन्होंने तालियां बजा कर सब का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया और फिर बड़े स्टाइल से गला साफ करने के बाद स्पीच देने को तैयार हो गए.

‘‘हमारे रिश्तों में आए बदलाव को समझने के लिए अलका और मोहित के दिलों में बनी उत्सुकता को शांत करने के लिए मैं उन दोनों से कुछ कहने जा रहा हूं. मेरी प्रार्थना है कि आप सब भी मेरी बात ध्यान से सुनें. ‘‘अपनी अतीत की गलतियों को ले कर अगर कोई दिल से पश्चात्ताप करे तो उस के अंदर बदलाव अवश्य आता है. जब नीरज अपनी पत्नी व बेटी को ले कर अलग हुआ तब मीना और मुझे समझ में आया कि हम ने अलका को किराए के मकान में जाने की शह दे कर बहुत ज्यादा गलत काम किया था.

‘‘बढ़ती उम्र की बीमारियों के शिकार बने हम चारों मायूस व दुखी इनसानों के दिलों में एकदूसरे के लिए बहुत सारा मैल जमा था. इस मैल को दूर कराने का मौका संयोग से हमें मिल गया. ‘‘मनों का मैल मिटा तो वक्त ने यह सिखाया और दिखाया कि हम चारों एकदूसरे का मजबूत सहारा बन सकते हैं. आपस में अच्छे दोस्तों की तरह सहयोग शुरू करने के बाद आज हम सब अपने को ज्यादा सुखी, खुश और सुरक्षित महसूस करते हैं.

‘‘बेटी अपने घर चली जाए और बेटाबहू किसी भी कारण से इस बड़ी उम्र में मातापिता को सहारा देने को…उन की देखभाल करने को उपलब्ध न हों तो पड़ोसी, मित्र व रिश्तेदार ही उन के काम आते हैं. हम रिश्तेदार तो पहले ही थे, अब पड़ोसी व अच्छे मित्र भी बन गए हैं,’’ भावुक नजर आ रहे उमाकांत ने आगे बढ़ कर महेशजी को उठाया और फिर दोनों दोस्त हाथ पकड़ कर साथसाथ खड़े हो गए. ‘‘पड़ोसी कैसे?’’ मोहित ने हैरानी से पूछा.

‘‘तुम दोनों को सरप्राइज देने के लिए हम ने यह खबर अभी तक छिपाए रखी थी कि इस के ठीक ऊपर वाले फ्लैट में हम ने पिछले हफ्ते शिफ्ट कर लिया है,’’ उमाकांत ने बताया. ‘‘मुझे विश्वास नहीं हो रहा है,’’ मोहित ने इस खबर की पुष्टि कराने को अपने पिता की तरफ देखा.

‘‘यह बात सच है, बेटे. पुराना फ्लैट बेच कर ऊपर वाला फ्लैट खरीदने का इन का फैसला समझदारी भरा है. पड़ोसी होने से हम एकदूसरे के सुखदुख में फौरन शामिल हो जाते हैं. ‘‘इस के अलावा हमारी उचित देखभाल न कर पाने के कारण अब तुम बच्चों को किसी तरह के अपराधबोध का शिकार बनने की कोई जरूरत नहीं है. सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अब हमारा अकेलापन दूर भाग गया है. आपसी सहयोग के कारण हमारा जीवन ज्यादा खुशहाल और रसपूर्ण हो गया है,’’ महेशजी का चेहरा जोश व उत्साह से चमक उठा था.

‘‘आप सब को इतना खुश देख कर मेरा मन बहुत ज्यादा हलकापन महसूस कर रहा है लेकिन…’’ ‘‘लेकिन क्या?’’ अपने बेटे को यों झटके से चुप होता देख आरती चिंतित नजर आने लगीं.

‘‘इस अलका बेचारी का मायका और ससुराल तो अब ऊपरनीचे के घर में हो गए. ये ससुराल वालों से रूठ कर अब कहां जाया करेगी?’’ मोहित के उस मजाक पर सब ने जोर से ठहाका लगाया तो अलका ने शरमा कर अपनी मां व सास के पीछे खुद को छिपा लिया था.

एक बार फिर: सुमित को क्या बताना चाहती थी आरोही?

अपने पराए: संकट की घड़ी में किसने दिया अमिता का साथ?

लखनऊ छोड़े मुझे 20 साल हो गए. छोड़ना तो नहीं चाहती थी पर जब पराएपन की बू आने लगे तो रहना संभव नहीं होता. जबतक मेरी जेठानी का रवैया हमारे प्रति आत्मिक था, सब ठीक चलता रहा पर जैसे ही उन की सोच में दुराग्रह आया, मैं ने ही अलग रहना मुनासिब समझा.

आज वर्षों बाद जेठानी का खत आया. खत बेहद मार्मिक था. वे मेरे बेटे प्रखर को देखना चाहती थीं. 60 साल की जेठानी के प्रति अब मेरे मन में कोई मनमुटाव नहीं रहा. मनमुटाव पहले भी नहीं था, पर जब स्वार्थ बीच में आ जाए तो मनमुटाव आना स्वाभाविक था.

शादी के बाद जब ससुराल में मेरा पहला कदम पड़ा तब मेरी जेठानी खुश हो कर बोलीं, ‘‘चलो, एक से भले दो. वरना अकेला घर काटने को दौड़ता था.’’

वे निसंतान थीं. तब भी उन का इलाज चल रहा था पर सफलता कोसों दूर थी. प्रखर हुआ तो मुझ से ज्यादा खुशी उन्हें हुई. हालांकि दिल में अपनी औलाद न होने की कसक थी, जिसे उन्होंने जाहिर नहीं होने दिया. बच्चों की किलकारियों से भला कौन वंचित रहना चाहता है. प्रखर ने घर की मनहूसियत को तोड़ा.

जेठानी ने मुझ से कभी परायापन नहीं रखा. वे भरसक मेरी सहायता करतीं. मेरे पति की आय कम थी. इसलिए वक्तजरूरत रुपएपैसों से मदद करने में भी वे पीछे नहीं हटतीं. प्रखर के दूध का खर्च वही देती थीं. कपड़े आदि भी वही खरीदतीं. मैं ने भी उन्हें कभी शिकायत का मौका नहीं दिया. प्रखर को वे संभालतीं, तो घर का सारा काम मैं देखती. इस तरह मिलजुल कर हम हंसी- खुशी रह रहे थे.

हमारी खुशियों को ग्रहण तब लगा जब मुझे दूसरा बच्चा होने वाला था. नई तकनीक से गर्भधारण करने की जेठानी की कोशिश असफल हुई और डाक्टरों ने कह दिया कि इन की मां बनने की संभावना हमेशा के लिए खत्म हो गई, तो वे बुझीबुझी सी, उदास रहने लगीं. न उन में पहले जैसी खुशी रही न उत्साह. उन के मां न बन पाने की मर्मांतक पीड़ा का मुझे एहसास था, क्योंकि मैं भी एक मां थी. इसलिए प्रखर को ज्यादातर उन्हीं के पास छोड़ देती. वह भी बड़ी मम्मी, बड़ी मम्मी कह कर उन्हीं से चिपका रहता. रात को उन्हीं के पास सोता. उन की भी आदत कुछ ऐसी बन गई थी कि बिना प्रखर के उन्हें नींद नहीं आती. मैं चाहती थी कि वे किसी तरह अपने दुखों को भूली रहें.

जब मुझे दूसरा बच्चा होने को था, पता नहीं मेरे जेठजेठानी ने क्या मशविरा किया. एक सुबह वे मुसकरा कर बोलीं, ‘‘बबली, इस बच्चे को तू मुझे दे दे,’’ मैं ने इसे मजाक  समझा और उसी लहजे में बोली, ‘‘दीदी, आप दोनों ही रख लीजिए.’’

‘‘मैं मजाक नहीं कर रही,’’ वे थोड़ा गंभीर हुईं.

‘‘मैं चाहती हूं कि तुम इस बच्चे को कानूनन मुझे दे दो. मैं तुम्हें सोचने का मौका दूंगी.’’

जेठानी के कथन पर मैं संजीदा हो गई. मेरे चेहरे की हंसी एकाएक गुम हो गई. ‘कानूनन’ शब्द मेरे मस्तिष्क में शूल की भांति चुभने लगा.

शाम को मेरे पति औफिस से आए, तो मैं ने जेठानी का जिक्र किया.

‘‘दे दो, हर्ज ही क्या है. भैयाभाभी ही तो हैं,’’ ये बोले.

मैं बिफर पड़ी, ‘‘कैसे पिता हैं? आप को अपने बच्चे का जरा भी मोह नहीं. एक मां से पूछिए जो 9 महीने किन कष्टों से बच्चे को गर्भ में पालती है?’’

‘‘भैया हैं, कोई गैर नहीं.’’

‘‘मैं ने कब इनकार किया. फिर भी कैसे बरदाश्त कर पाऊंगी कि मेरा बच्चा किसी और की अमानत बने. मैं अपने जीतेजी ऐसा हर्गिज नहीं होने दूंगी.’’

‘‘मान लो लड़की हुई तो?’’

‘‘लड़का हो या लड़की. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

‘‘मुझे पड़ता है. सीमित आमदनी के चलते कहां से लाएंगे दहेज के लिए लाखों रुपए. भैयाभाभी तो संपन्न हैं. वे उस की बेहतर परवरिश करेंगे.’’

‘‘परवरिश हम भी करेंगे. मैं कुछ भी करूंगी पर अपने कलेजे के टुकड़े को यों जाने नहीं दूंगी,’’ मैं ने आत्मविश्वास के साथ जोर दे कर कहा.

‘‘सोच लो. बाद में पछताना न पड़े.’’

‘‘हिसाबकिताब आप कीजिए. प्रखर मुझ से ज्यादा उन के पास रहता है. क्या मैं ने कभी एतराज किया? जो आएगा उसे भी वही पालें, पर मेरी आंखों के सामने. मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा. उलटे मुझे खुशी होगी कि इसी बहाने खून की कशिश बनी रहेगी.’’

मेरे कथन से मेरे पति संतुष्ट न थे. फिर भी मैं ने मन बना लिया था कि लाख दबाव डालें मैं अपने बच्चे को उन्हें गोद लेने नहीं दूंगी. वैसे भी जेठानीजी को सोचना चाहिए कि क्या जरूरी है कि गोद लेने से बच्चा उन का हो जाएगा? बच्चा कोई सामान नहीं जो खरीदा और अपना हो गया. कल को बच्चा बड़ा होगा, तो क्या उसे पता नहीं चलेगा कि उस के असली मांबाप कौन हैं? वे क्या बच्चा ले कर अदृश्य हो जाएंगी. रहेगा तो वह हम सब के बीच ही.

मुझे जेठानी की सोच में क्षुद्रता नजर आई. उन्होंने हमें और हमारे बच्चों को गैर समझा, तभी तो कानूनी जामा पहनाने की कोशिश कर रही हैं. ताईताऊ, मांबाप से कम नहीं होते बशर्ते वे अपने भतीजों को वैसा स्नेह व अपनापन दें. क्या निसंतान ताईताऊ प्रखर की जिम्मेदारी नहीं होंगे?

15 दिन बाद उन्होंने मुझे पुन: याद दिलाया तो मैं ने साफ मना कर दिया, ‘‘दीदी, मुझे आप पर पूरा भरोसा है, पर मेरा जमीर गवारा नहीं करता कि मैं अपने नवजात शिशु को आप को सौंप दूं. मैं इसे अपनी सांसों तले पलताबढ़ता देखना चाहती हूं. वह मुझ से वंचित रहे, इस से बड़ा गुनाह मेरे लिए कोई नहीं. मैं अपराध बोध के साथ नहीं जी सकूंगी.’’

क्षणांश मैं भावुक हो उठी. आगे बोली, ‘‘ताईताऊ मांबाप से कम नहीं होते. मुझ पर यकीन कीजिए, मैं अपने बच्चों को सही संस्कार दूंगी.’’

मेरे कथन पर उन का मुंह बन गया. वे कुछ बोलीं नहीं पर पति (जेठजी) से देर तक खुसरपुसर करती रहीं. कुछ दिन बाद पता चला कि वे मायके के किसी बच्चे को गोद ले रही हैं. वैसे भी कानूनन गोद लेने की सलाह मायके वालों ने ही उन्हें दी थी. वरना रिश्तों के बीच कोर्टकचहरी की क्या अहमियत?

आहिस्ताआहिस्ता मैं ने महसूस किया कि अब जेठानी में प्रखर के प्रति वैसा लगाव नहीं रहा. दूध का पैसा इस बहाने से बंद कर दिया कि अब उन के लिए संभव नहीं. मुझे दुख भी हुआ, रंज भी. एक प्रखर था, जो दिनभर ‘बड़ीमम्मी’, ‘बड़ीमम्मी’ लगाए रखता था. मैं ने अपने बच्चों के मन में कोई दुर्भावना नहीं भरी. जब मैं ने बच्ची को जन्म दिया तो जेठानी ने सिर्फ औपचारिकता निभाई. जहां प्रखर के जन्म पर उन्होंने दिल खोल कर पार्टी दी थी, वहीं बच्ची के प्रति कृपणता मुझे खल गई. मैं ने भी साथ न रहने का मन बना लिया. घर जेठानी का था. उन्हीं के आग्रह पर रहती थी. जब स्वार्थों की गांठ पड़ गई, तो मुझे घुटन होने लगी. दिल्ली जाने लगी तो जेठ का दिल भर आया. प्रखर को गोद में उठा कर बोले, ‘‘बड़े पापा को भूलना मत,’’ मेरी भी आंखें भर गईं पर जेठानी उदासीन बनी रहीं.

20 साल गुजर गए. मैं एक बार लखनऊ तब आई थी जब जेठानी ने अपनी बहन के छोटे बेटे को गोद लिया था. इस अवसर पर सभी जुटे थे. उन के चेहरे पर अहंकार झलक रहा था, साथ में व्यंग्य भी. जितने दिन रही, उन्होंने हमारी उपेक्षा की. वहीं मायके वालों को सिरआंखों पर बिठाए रखा. इस उपेक्षा से आहत मैं दिल्ली लौटी तो इस निश्चय के साथ कि अब कभी उधर का रुख नहीं करूंगी.

आज 20 साल बाद भीगे मन से उन्होंने मुझे याद किया, तो मैं उन के प्रति सारे गिलेशिकवे भूल गई. उन्हें सहीगलत की पहचान तो हुई? यही बात उन्हें पहले समझ में आ जाती तो हमारे बीच की दूरियां न होतीं. 20 साल मैं ने भी असुरक्षा के माहौल में काटे. एकसाथ रहते तो दुखसुख में काम आते. वक्तजरूरत पर सहारे के लिए किसी को खोजना तो न पड़ता.

खत इस प्रकार था : ‘कागज पर लिख देने से न तो गैर अपना हो जाता है, न मिटा देने से अपना गैर. मैं ने खून से ज्यादा कागजों पर भरोसा किया. उसी का फल भुगत रही हूं. जिसे कलेजे से लगा कर रखा, पढ़ालिखा कर आदमी बनाया, वही ठेंगा दिखा कर चला गया. जो खून से बंधा था उसे कागज से बांधने की नादानी की. ऐसा करते मैं भूल गई थी कि कागज तो कभी भी फाड़ा जा सकता है. रिश्ते भावनाओं से बनते हैं. यहीं मैं चूक गई. मैं भी क्या करती. इस भय से एक बच्चे को गोद ले लिया कि इस पर किसी का कोई हक नहीं रह जाएगा. वह मेरा, सिर्फ मेरा रहेगा. मैं यह भूल गई थी कि 10 साल जिस बच्चे ने मां के आंचल में अपना बचपन गुजारा हो, वह मुझे मां क्यों मानेगा?

‘मैं भी स्वार्थ में अंधी हो गई थी कि वह मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगा. उस मां के बारे में नहीं सोचा जिस ने उसे पैदा किया कि क्या वह ऐसा चाहेगी? सिर्फ नाम का गोदनामा था, इस की आड़ में मेरी बहन का मुख्य मकसद मेरी धनसंपदा हथियाना था, जिस में वह सफल रही. मैं यह तो नहीं कहूंगी कि प्रखर को मेरे पास बुढ़ापे की सेवा के लिए भेज दो, क्योंकि यह हक मैं ने खो दिया है फिर भी उस गलती को सुधारना चाहती हूं जो मैं ने 20 साल पहले की थी.’

पत्र पढ़ने के बाद मैं तुरंत लखनऊ आई. मेरे जेठ को फालिज का अटैक था. हमें देखते ही उन की आंखें भर आईं. प्रखर ने पहले ताऊजी फिर ताईजी के पैर छुए, तो जेठानी की आंखें डबडबा गईं. सीने से लगा कर भरे गले से बोलीं, ‘‘बित्ते भर का था, जब तुझे पहली बार सीने से लगाया था. याद है, मेरे बगैर तुझे नींद नहीं आती थी. मां की मार से बचने के लिए मेरे ही आंचल में सिर छिपाता था.’’

‘‘बड़ी मम्मी,’’ प्रखर का इतना कहना भर था कि जेठानीजी अपने आवेग पर नियंत्रण न रख सकीं. फफक कर रो पड़ीं.

‘‘मैं तो अब भी आप की चर्चा करता हूं. मम्मी से कितनी बार कहा कि मुझे बड़ी मम्मी के पास ले चलो.’’

‘‘क्यों बबली, हम क्या इतने गैर हो गए थे. कम से कम अपने बेटे की बात तो रखी होती. बड़ों की गलती बच्चे ही सुधारते हैं,’’ जेठानीजी ने उलाहना दिया.

‘‘दीदी, मुझ से भूल हुई है,’’ मेरे चेहरे पर पश्चात्ताप की लकीरें खिंच गईं.

2 दिन हम वहां रहे. लौटने को हुई तो मैं ने महसूस किया कि जेठानीजी कुछ कहना चाह रही थीं. संकोच, लज्जा जो भी वजह हो पर मैं ने ही उन से कहा कि क्या हम फिर से एकसाथ नहीं रह सकते.

मैं ने जैसे उन के मन की बात छीन ली. प्रतिक्रियास्वरूप उन्होंने मुझे गले से लगा लिया और बोलीं, ‘‘बबली, मुझे माफ कर दो.’’

जेठानी के अपनेपन की तपिश ने हमारे मन में जमी कड़वाहट को हमेशा के लिए पिघला दिया.

साइबर ट्रैप: क्या कायम रह सका मानवी का भरोसा

‘‘ओएमजी, कहां थे यार?’’

‘‘थोड़ा बिजी था, तुम सुनाओ, एनीथिंग न्यू? हाउ आर यू, कैसा चल रहा तुम्हारा काम?’’

‘‘के.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘ओके…शौर्ट फौर्म के.’’

‘‘हाहाहा…तुम और तुम्हारे शौर्ट फौर्म्स.’’

‘‘हाहाहा…को तुम एलओएल भी लिख सकते हो, मतलब, लाफिंग आउट लाउड.’’

‘‘हाहा, वही एलओएल.’’

‘‘पर एक पहेली अब तक नहीं सुलझी, अब टालो नहीं बता दो.’’

‘‘केपी.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘क्या पहेली…हाहाहा…’’

‘‘मतलब कुछ भी शौर्ट.’’

‘‘और क्या?’’

‘‘ओके, मुझे बहस नहीं करनी. अब पहेली बुझाना बंद करो और जल्दी से औनलाइन वाला नाम छोड़ कर अपना ‘रियल नेम’ बताओ?’’

‘‘द रौकस्टार.’’

‘‘उहुं, यह तो हो ही नहीं सकता. कुछ तो रियल बताओ, न चेहरा दिख रहा, न नाम रियल.’’

‘‘हाहाहा…तुम तो बस मेरे नाम के पीछे ही पड़ गई हो, अरे बाबा, यह तो बस फेसबुक के लिए है. जैसे तुम्हारा नाम ‘स्वीटी मनु’ वैसे मेरा नाम.’’

‘‘तो तुम्हारा असली नाम क्या है?’’

‘‘असलियत फिर कभी, बाय.’’

‘‘बाय, हमेशा ऐसे ही टाल जाते हो, कह देती हूं अगर अगली बार तुम ने अपना नाम नहीं बताया और अपना चेहरा नहीं दिखाया तो फिर सीधा ब्लौक कर दूंगी. याद रखना कोई मजाक नहीं.’’

‘‘एलओएल.’’

‘‘मजाक नहीं, बिलकुल सच.’’

‘‘चलचल देखेंगे.’’

‘‘ठीक है, फिर तो देख ही लेना.’’

हर रोज लड़की लड़के से उस का असली नाम और पहचान पूछती, लेकिन लड़का बात ही बदल देता. लड़की धमकी देती और लड़का हंस कर टाल देता. दरअसल, दोनों को ही पता था कि यह तो कोरी धमकी है, सच के धरातल से कोसों दूर दोनों एकदूसरे से बात किए बगैर रह नहीं पाते थे. कंप्यूटर की भाषा में चैटिंग उन की रोजमर्रा की जीवनचर्या का हिस्सा थी. दोनों के बीच दोस्ती की पहल लड़के की ओर से ही हुई थी. दोनों के सौ से अधिक म्यूचुअल फ्रैंड्स थे. लड़के ने लड़की की डीपी (प्रोफाइल फोटो) देखी और बस फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी. लड़की ने भी इतने सारे म्यूचुअल फ्रैंड्स देख कर रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली. बस, बातचीत का सिलसिला चल निकला, कभी ऊटपटांग तो कभी गंभीर. दोनों एक ही शहर से थे, तो कई कौमन फ्रैंड्स भी निकल आए. एक दिन बातचीत करते हुए लड़की लड़के की पहचान पर अटक गई.

‘‘तुम ने अपना चेहरा क्यों छिपा रखा है यार, एकदम मिस्टीरियस मैन टाइप. बिलकुल अच्छा नहीं लगता, कभीकभी बिलकुल अजनबी सा लगता है.’’

‘‘एक बात बताऊं, मैं भीड़ में या सोशल साइट्स पर बहुत असहज महसूस करता हूं.’’

‘‘हम्म…क्यों? अगर ऐसा है तो सोशल साइट पर क्यों हो?’’

‘‘बिजनैस की वजह से यहां होना मजबूरी है.’’

‘‘ओके, ठीक है पर हम लोग इतने समय से एकदूसरे से बातें कर रहे हैं. हम दोनों के बीच राज जैसा तो कुछ होना नहीं चाहिए. मुझे तो अपना चेहरा दिखा ही सकते हो, प्लीज.’’इस बार लड़का उस के आग्रह को टाल नहीं पाया. बिना नानुकुर के उस ने अपनी फोटो भेज दी.

‘‘ओएमजी. इस युग में भी इतनी घनी मूंछें, यहां आने के बाद तो सब की मूंछें सफाचट हो जाती हैं, एलओएल.’’

‘‘अच्छा, एक बात बताओ तुम्हारा नाम स्वीटी है या मनु?’’

‘‘गेस करो.’’

‘‘उम्म्म…स्वीटी.’’

‘‘नहीं… मानवी नाम है मेरा. सहेलियां मनु कह कर बुलाती हैं. तुम्हारा नाम भी मनु ही है न?’’

‘‘नहीं….मानव नाम है, एलओएल. ओके, बाद में बातें करते हैं, मीटिंग का समय हो गया है.’’

‘‘ओके, बीओएल.’’

‘‘अब ये बीओएल का मतलब क्या हुआ?’’

‘‘बैस्ट औफ लक, बुद्धू.’’

‘‘ओके, बाय.’’

‘‘मतलब कुछ भी तो शौर्टकट.’’

‘‘हां…हाहाहा…बाय.’’

छोटे शहरों से युवक जब महानगरों का रुख करते हैं तो दोस्तों की संगत में सब से पहली कुर्बानी मूंछों की ही होती है. भले ही जवानी कब की गुजर गईर् हो, पर मूंछें छिलवा कर जवान दिखने की ख्वाहिश बनी रहती है. इस मामले में मानव थोड़ा अलग था. उसे अपनी मूंछें बेहद प्रिय थीं. बड़े शहर ने उस की मूंछों को नहीं छीना था. अपने सपनों को मूर्तरूप देने के लिए वह घर से पैसे लिए बिना महानगर भाग आया था. अपनी मेहनत और लगन से उस ने नौकरी तो पा ली, लेकिन मूंछें कटने नहीं दी. घनी मूंछें उस के चेहरे पर फबती थीं.

वास्तविक दुनिया में वह महिलाओं से दूर रहता था. उन से जल्दी घुलमिल नहीं पाया था, लेकिन आभासी दुनिया में महिलाओं से चैटिंग और फ्लर्टिंग करना उस की आदत थी. लफ्फाजी में उस से कोई नहीं जीत पाता था. उस की इसी काबिलीयत पर महिलाएं रीझ जाती थीं.

मानवी और मानव दोनों के नाम बिलकुल एक से थे, लेकिन दोनों एकदूसरे से एकदम अलग थे. जहां मानव किसी भी बात को गंभीरता से नहीं लेता, चाहे वह रिश्ते की ही क्यों न हो, वहीं मानवी के लिए छोटीछोटी चीजें भी महत्त्वपूर्ण हुआ करती थीं. वह टूट रहे रिश्तों को जोड़ने की कोशिश में लगी रहती. उस ने अपने मातापिता को अलग होते देखा था. वह अपनों के खोने का दर्द अच्छी तरह जानती थी.

उसे लगता था कि मर रहे रिश्ते में भी जान फूंकी जा सकती है, बशर्ते सच्चे दिल से इस के लिए कोशिश की जाए. मानवी और मानव की रुचि लगभग एक सी थीं. दोनों को ही पढ़ने और नाटक का शौक था. शेक्सपियर और उन का लिखा ड्रामा रोमियोजूलिएट दोनों के ही पसंदीदा थे. चैटिंग करते हुए वे घंटों रोमियोजूलिएट के संवाद बोलते हुए उन्हें जी रहे होते.

उन दोनों के कुछ चुनिंदा दोस्तों को इस की भनक लग चुकी थी. दोनों के कौमनफ्रैंड्स उन्हें रोमियोजूलिएट कह कर छेड़ने लगे थे.

मानव और मानवी दोनों हमउम्र थे. वे एक ही शहर के रहने वाले थे और महानगर में अपना भविष्य संवार रहे थे. मानवी भी उसी महानगर में नौकरी कर रही थी, जहां मानव की नौकरी थी. शुरुआत में हलकीफुलकी बातचीत से शुरू होने वाली चैटिंग धीरेधीरे 24 घंटे वाली चैटिंग में बदल गई थी. कभी स्माइली, कभी इमोजी, कभी साइन लैंग्वेज तो कभी हम्म… नजदीकियां बढ़ीं और बात वीडियो कौलिंग तक पहुंच गई.

दोनों साइबर लव की गिरफ्त में आ चुके थे. अब तक साक्षात मुलाकात यानी आमनासामना नहीं हुआ था, लेकिन प्यार परवान चढ़ चुका था. साइबर दुनिया में एकदूसरे की बातों का वैचारिक विरोध करते हुए एक समय ऐसा आया जब दोनों एकदूसरे के कट्टर समर्थक हो गए. पहली बार दोनों एक कौफी शौप पर मिले. मोबाइल पर दिनरात चाहे जितनी भी बातें कर लें पर इस पहली मुलाकात में मानव की नजरें लगातार झुकी रहीं. मानवी की तरफ उस ने नजर उठा कर भी नहीं देखा. यही नहीं, उस से बातें करते हुए मानव के हाथपांव कांप रहे थे, जो लड़का सोशल नैटवर्किंग साइट पर इतना बिंदास हो, उस का यह रूप देख कर मानवी की हंसी रुक नहीं रही थी और मानव अपनी झेंप मिटाने के लिए इधरउधर की बातें करने और जबरदस्ती चुटकुले सुनाने की कोशिश कर रहा था. बीतते समय के साथ मानवी का मानव पर भरोसा गहरा होता चला गया.

दुनिया से बेखबर दोनों ने उस महानगर में एकसाथ, एक ही फ्लैट में रहने का निर्णय ले लिया. अब वे दोनों एकदूसरे के पूरक और साझेदार बन गए थे. मानव कभी खुल कर नहीं हंसता था. और मानवी की खुशी अकसर मानव के होंठों पर छिपी मुसकान में फंस कर रह जाती. गरमी अपने चरम पर थी, पर इश्क के मौसम ने दोनों के एहसास ही बदल डाले थे. एक रोज जब गरमी के उबाऊ मौसम से ऊब कर सूखी सी दोपहर उबासी ले रही थी. पारा 40 डिगरी पहुंचने को था. गरमी से बचने के लिए लोग अपने घरों में दुबके पड़े थे. प्यासी चिडि़यां पानी की खोज में इधरउधर भटक रही थीं. उस रोज दोनों ही जल्दी घर चले आए थे. उस उबाऊ और तपती दोपहरी में सारे बंधन टूट गए. उमस और इश्क अपने उत्कर्ष पर था.

उस दिन घर, घर नहीं रहा पृथ्वी बन गया और मानवमानवी पूरी पृथ्वी पर अकेले, बिलकुल आदमहौआ की तरह. तृप्त मानव गहरी नींद सो गया, लेकिन मानवी की आंखों में नींद नहीं थी. मानवी के होंठों पर मुसकान तैर गई. देर तक उस सुखद एहसास को वह महसूस करती रही.

उस दिन मानवी को एक पूर्ण महिला होने का एहसास हुआ. उस का अंगअंग खिल चुका था, चेहरे पर कांति महसूस हो रही थी. चाल में अल्हड़पन की जगह लचक आ गई थी. उन दोनों के बीच कोई कमिटमैंट नहीं था, कोई सात फेरे और वचन नहीं…. न ही मांग में सिंदूर या मंगलसूत्र का बंधन, लेकिन एक भरोसा था. उसी भरोसे पर तो मानवी ने अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया.

मानवी की दुनिया अब मानव के इर्दगिर्द सिमटने लगी थी. उसे अब सोशल साइट्स पर महिलाओं के संग मानव की फ्लर्टिंग पसंद नहीं आती थी. इस पर मानवी अकसर अपना गुस्सा जाहिर भी कर देती और मानव खामोश रह जाता.

छोटे शहर की यह लघु प्रेमकथा धीरेधीरे बड़ी कहानी में बदलती जा रही थी. मानव की बुलेट की आवाज मानवी दूर से ही पहचान जाती. जब दोनों अपने शहर जाते तो ये बुलेट ही थी जो दोनों को मिलवा पाती. मानव की बुलेट धड़धड़ाती, मानवी की खिड़की पर आ जाती. एकदूसरे की एक झलक पाने के लिए बेताब दोनों के होंठों पर मुसकान थिरक उठती. दोनों आपस में अकसर वैसे ही बातें करने लगते जैसे की सचमुच के रोमियोजूलिएट हों. दोनों की लवलाइफ भी बुलेट की तरह ही तेज गति से भाग रही थी, अंतर सिर्फ इतना था कि बुलेट शोर मचाती है और यह बेहद खामोश थी. दिन बीत रहे थे. कुछ करीबी दोस्तों के सिवा उन दोनों के इस सहजीवन की खबर किसी को नहीं थी.

उन्हें एकसाथ रहते 2 साल हो गए थे. एक दिन मानवी के मोबाइल पर उन दोनों की एक अंतरंग तसवीर किसी अनजान नंबर से आई. यह देख मानवी के होश उड़ गए. वह इस बारे में बात करने के लिए मानव को ढूंढ़ने लगी, पर मानव उसे पूरे घर में कहीं नहीं मिला. उस का फोन भी स्विच औफ आ रहा था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उन की यह तसवीर किस ने ली. इतनी अंतरंग तसवीर या तो वह खुद ले सकती थी या फिर मानव.

उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह तसवीर भेजने वाले तक पहुंची कैसे? उस ने तसवीर भेजने वाले नंबर पर फोन लगाया पर वह भी स्विच औफ था. उस के बाद मानवी ने एक कौमनफ्रैंड को फोन कर के सारी बातें उसे कह सुनाईं. उस ने थोड़ी ही देर में इस संबंध में बहुत सारी ऐसी सूचनाएं मानवी को दीं, जिस से उस के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. उस ने बताया कि उन दोनों की और भी ऐसी कई तसवीरें व वीडियोज मानव ने एक साइट पर अपलोड कर रखे हैं.

‘‘मानव ने?’’

‘‘हां, मानव ने.’’

मानवी को यह सुन कर अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. उसे लग रहा था कि शायद उन दोनों के रिश्ते को वह कौमनफ्रैंड तोड़ना चाहता है, इसलिए ऐसा कह रहा है, लेकिन फिर मानव का फोन स्विच औफ क्यों आ रहा है? ऐसा तो वह कभी नहीं करता है. अब मानवी को पूरी दुनिया अंधकारमय लगने लगी. उसे अपने उस दोस्त की बातों पर यकीन होेने लगा था. क्या इसलिए उस ने कभी खुल कर अपने प्यार का इजहार नहीं किया? वह फूटफूट कर रोने लगी. ‘‘मैं मान नहीं सकती, ही लव्स मी, ही लव्स मी यार,’’ मानवी ने चिल्लाते हुए कहा. सिसकियों की वजह से उस के शब्द अस्पष्ट थे. जब अंदर का तेजाब बह निकला तो वह पुलिस स्टेशन की ओर चल पड़ी. शिकायत दर्ज करवाने के दौरान उसे कई जरूरी गैरजरूरी सवालों से दोचार होना पड़ा. मानवी हर सवाल का जवाब बड़ी दृढ़ता से दे रही थी.

बात जब बिना ब्याह के सहजीवन की आई और महिला कौंस्टेबल उसे ही कटघरे में खड़ी करने लगी, तो उस के सब्र का बांध टूट गया. उस का दम घुटने लगा. वह वहां से उठी और घर के लिए चल पड़ी. उस दिन हर नजर उसे नश्तर की तरह चुभ रही थी, सब की हंसी व्यंग्यात्मक लग रही थी. उस दिन उसे सभी पुरुषों की आंखों में हवस की चमक दिख रही थी. मानवी शर्म से पानीपानी हुए जा रही थी. किसी से नजर मिलाने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. घर पहुंचने के साथ ही उस ने मानव पर चिल्लाना शुरू कर दिया. क्षोभ और शर्मिंदगी से वह पागल हुई जा रही थी. हर कमरे में जा कर वह मानव को ढूंढ़ रही थी, लेकिन मानव तो कहीं था नहीं. वह तो वहां से जा चुका था, हमेशा के लिए.

आभासी दुनिया से शुरू हुआ प्यार आभासी हो कर ही रह गया. उसे दुनिया के सामने नंगा कर मानव भाग चुका था. इस धोखे के लिए मानवी बिलकुल तैयार नहीं थी. उस ने संपूर्णता के साथ मानव को स्वीकार किया था. वह मानव के इस ओछेपन को स्वीकार नहींकर पा रही थी. 2 साल तक दोनों सहजीवन में रहे थे. मानवी उस की नसनस से वाकिफ थी, लेकिन ऐसे किसी धोखे की गंध से वह दूर रह गई. उसे आत्मग्लानि हो रही थी, दुख हो रहा था. वह दोबारा पुलिस के पास नहीं जाना चाहती थी. घर पर कुछ बता नहीं सकती थी.

मानव ने जो किया उस की माफी भी संभव नहीं थी. मानवी ने सोशल मीडिया के जरिए मानव को ट्रैक करना शुरू किया. जालसाजी करने वाला शख्स हमेशा अपने बचाव की तैयारी के साथ आगे बढ़ता है. मानव भी फेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्वीटर सब की पुरानी आईडी को ब्लौक कर नई आईडी बना चुका था. लेकिन मानवी भी हार मानने वाली नहीं थी. एक पुरानी कड़ी से उस का नया प्रोफाइल मिल गया. मानवी ने अपना एक नकली प्रोफाइल बनाया और उस से दोस्ती कर ली. नकली प्रोफाइल के जरिए उस ने मानव को मजबूर कर दिया कि वह उस से मिले. एक बार फिर मानव आत्ममुग्ध हुआ जा रहा था. मिलने की बात सोच कर बारबार वह अपनी मूंछों पर ताव दे रहा था. उस की आंखों में वही शैतानी चमक थी और होंठों पर हंसी थिरक रही थी.

दोनों के मिलने का स्थान मानव के औफिस का टैरिस गार्डन तय हुआ. मानव बेसब्री से आभासी दुनिया की इस नई दोस्त का इंतजार कर रहा था. एकएक पल गुजारना उस के लिए मुश्किल हो रहा था.

थोड़े इंतजार के बाद मानवी उस के सामने थी. उसे देख कर मानव चौंक पड़ा. जब तक वह कुछ समझ पाता, कुछ बोलता, मानवी बिजली की तेजी से आई और तेजाब की पूरी शीशी उस के चेहरे पर उड़ेल दी. पहले ठंडक और फिर जलन व दर्द से वह छटपटाने लगा.

मानवी पर तो जैसे भूत सवार था. वह चिल्लाती जा रही थी, ‘‘तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद की, अब मैं तुम्हें बरबाद करूंगी. इसी चेहरे से तुम सब को छलते हो न. अब यह चेहरा ही खत्म हो जाएगा.’’ मानव अवाक रह गया. उसे इस अंजाम की उम्मीद न थी. उस के सोचनेसमझने की शक्ति खत्म हो गई थी. मानवी चीख रही थी, ठहाके लगा रही थी. मानव का चेहरा धीरेधीरे वीभत्स हो रहा था. वह छटपुटा रहा था.

उस की इस हालत को देख कर मानवी को एहसास हुआ कि वह अब भी उस इंसान से प्यार करती है. उस की नफरत क्षणिक थी, लेकिन प्रेम स्थायी है. उस से उस की यह छटपटाहट बरदाश्त नहीं हो पा रही थी. देखते ही देखते मानवी ने भी उस ऊंची छत से छलांग लगा दी और इस तरह 2 जिंदगियां साइबर ट्रैप में फंस कर तबाह हो गईं.

औरों से जुदा: निशा ने जब खुद को रवि को सौंपने का फैसला किया

अपनीसहेली महक का गुस्से से लाल हो रहा चेहरा देख कर निशा मुसकराने से खुद को रोक नहीं सकी. बोली, ‘‘मयंक की बर्थडे पार्टी में तेरे बजाय रवि प्रिया को क्यों ले जा रहा है?’’ निशा की मुसकराहट ने महक का गुस्सा और ज्यादा भड़का दिया.

निशा ने प्यार से महक का हाथ थामा और फिर शांत स्वर में जवाब दिया, ‘‘परसों रविवार को मेरा जापानी भाषा का एक महत्त्वपूर्ण इम्तिहान है, इसलिए मैं ने रवि को सौरी बोल दिया था. रही बात प्रिया की, तो वह रवि की अच्छी फ्रैंड है. दोनों का पार्टी में साथ जाना तुझे क्यों परेशान कर रहा है?’’ ‘‘क्योंकि मैं प्रिया को अच्छी तरह जानती हूं. वह तेरा पत्ता साफ रवि को हथियाना चाहती है.’’

‘‘देख एक सुंदर, स्मार्ट और अमीर लड़के को जीवनसाथी बनाने की चाह हर लड़की की तरह प्रिया भी अपने मन में रखती है, तो क्या बुरा कर रही है?’’ ‘‘तू रवि को खो देगी, इस बात को सोच कर क्या तेरा मन जरा भी चिंतित या परेशान नहीं होता है?’’

‘‘नहीं, क्योंकि रवि की जिंदगी में मुझ से बेहतर लड़की और कोई नहीं है,’’ निशा का स्वर आत्मविश्वास से लबालब था. ‘‘उस ने पहले मुझ से ही पार्टी में चलने को कहा था, यह क्यों भूल रही है तू?’’

‘‘प्रिया को रवि के साथ जाने का मौका दे कर तू ने गलती करी है, निशा. तुम जैसी मेहनती लड़की को इम्तिहान में पास होने की चिंता करनी ही नहीं चाहिए थी. रवि के साथ पार्टी में तुझे ही जाना चाहिए था, बेवकूफ.’’ ‘‘सच बात तो यह है कि मेरा मन भी नहीं लगता है रवि के अमीर दोस्तों के द्वारा दी जाने वाली पार्टियों में, महक. लंबीलंबी कारों में आने वाले मेहमानों की तड़कभड़क मुझे नकली और खोखली लगती है. न वे लोग मेरे साथ सहज हो पाते हैं और न मैं उन सब के साथ. तब रवि भी पार्टी का मजा नहीं ले पाता है. इन सब कारणों से भी मैं ऐसी पार्टियों में रवि के साथ जाने से बचती हूं,’’ निशा ने बड़ी सहजता से अपने मन की बात महक से कह दी.

‘‘तू मेरी एक बात का सचसच जवाब देगी?’’ ‘‘हां, दूंगी.’’

‘‘क्या तू रवि से शादी करने की इच्छुक नहीं है?’’

कुछ पलों के सोचविचार के बाद निशा ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘यह सच है कि रवि मेरे दिल के बेहद करीब है…उस का साथ मुझे बहुत अच्छा लगता है, लेकिन हमारी शादी जरूर हो, ऐसी उलझन मैं अपने मन में नहीं पालती हूं. भविष्य में जो भी हो मुझे स्वीकार होगा.’’ ‘‘अजीब लड़की है तू,’’ महक हैरानपरेशान हो उठी, देख, ‘‘अमीर खानदान की बहू बन कर तू अपने सारे सपने पूरे कर सकेगी. तुझे रवि को अपना बना कर रखने की कोशिशें बढ़ा देनी चाहिए. इस मामले में जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वासी होना गलत और नुकसानदायक साबित होगा, निशा.’’

‘‘रवि को अपना जीवनसाथी बनाने के लिए मेरा उस के पीछे भागना मूर्खतापूर्ण और बेहूदा लगेगा, महक. अच्छे जीवनसाथी साथसाथ चलते हैं न कि आगेपीछे.’’ ‘‘लेकिन…’’

‘‘अब लेकिनवेकिन छोड़ और मेरे साथ जिम चल. कुछ देर वहां पसीना बहा कर मैं तरोताजा होना चाहती हूं,’’ निशा ने एक हाथ में अपना बैग उठाया और दूसरे हाथ से महक का हाथ पकड़ कर बाहर चल पड़ी. निशा ने अपनी मां को जिम जाने की बात बताई और फिर दोनों सहेलियां फ्लैट से बाहर आ गईं.

जिम में अच्छीखासी भीड़ इस बात की सूचक थी कि लोगों में स्वस्थ रहने व स्मार्ट दिखने की इच्छा बढ़ती जा रही है. निशा वहां की पुरानी सदस्य थी, इसलिए ज्यादातर लोग उसे जानते थे. उन सब से हायहैलो करते हुए वह पसीना बहाने में दिल से लग गई. लेकिन महक की दिलचस्पी तो उस से बातें करने में कहीं ज्यादा थी.

खुद को फिट रखने की आदत ने निशा की फिगर को बहुत आकर्षक बना दिया था. उस का पसीने में भीगा बदन वहां मौजूद हर पुरुष की प्रशंसाभरी नजरों का केंद्र बना हुआ था. उन नजरों में अश्लीलता का भाव नहीं था, क्योंकि अपने मिलनसार स्वभाव के कारण वह उन सभी की दोस्ती, स्नेह व आदरसम्मान की पात्रता हासिल कर चुकी थी. लगभग 1 घंटा जिम में बिताने के बाद दोनों घर चल पड़ीं.

‘‘यू आर द बैस्ट, निशा,’’ अचानक महक के मुंह से निकले इन प्रशंसाभरे शब्दों को सुन कर निशा खुश होने के साथसाथ हैरान भी हो उठी. ‘‘थैंकयू, स्वीटहार्ट, लेकिन अचानक यों प्यार क्यों दर्शा रही है?’’ निशा ने भौंहें मटकाते हुए पूछा.

‘‘मैं सच कह रही हूं, सहेली. तेरे पास क्या नहीं है? सुंदर नैननक्श, गोरा रंग, लंबा कद… एमकौम, एमबीए और जापानी भाषा की जानकारी…बहुराष्ट्रीय कंपनी में शानदार नौकरी…एक साधारण से स्कूल मास्टर की बेटी के लिए ऐसे ऊंचे मुकाम पर पहुंचना सचमुच काबिलेतारीफ है.’’ ‘‘जो गुण और परिस्थितियां कुदरत ने दिए हैं, मैं न उन पर घमंड करती हूं और न ही कोई शिकायत है मेरे मन में. अपने व्यक्तित्व को निखारने व कड़ी मेहनत के बल पर अच्छा कैरियर बनाने के प्रयास दिल से करते रहना मेरे लिए हमेशा महत्त्वपूर्ण रहा है. अपनी गरीबी और सुखसुविधाओं की कमी का बहाना बना कर जिंदगी में तरक्की करने का अपना इरादा कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया. मेरे इसी गुण ने मुझे इन ऊंचाइयों तक पहुंचाया है,’’ अपने मन की बातें बताते हुए निशा की आवाज में उस का आत्मविश्वास साफ झलक रहा था.

‘‘अब रवि से तेरी शादी भी हो जाए तो फिर तेरी जिंदगी में कोई कमी नहीं रहेगी,’’ महक ने भावुक लहजे में अपने मन की इच्छा दर्शाई. कुछ पल खामोश रह कर निशा ने किसी दार्शनिक के से अंदाज में कहा, ‘‘मैं ने अपनी खुशियों को रवि के साथ शादी होने से बिलकुल नहीं जोड़ रखा है. कुछ खास पा कर अपनी खुशियां हमेशा के लिए तय कर लेना मुमकिन भी नहीं होता है, सहेली. जीवनधारा निरंतर गतिमान है और मैं अपनी जिंदगी की गुणवत्ता बेहतर बनाने को निरंतर गतिशील रहना चाहती हूं. मेरे लिए यह जीवन यात्रा महत्त्वपूर्ण है, मंजिलें नहीं. रवि से मेरी शादी हो गई, तो मैं खुश हूंगी और नहीं हुई तो दुखी नहीं हूंगी.’’

‘‘तुम दूसरी लड़कियों से कितनी अलग हो.’’ ‘‘सहेली, हम सब ही इस दुनिया में अनूठे और भिन्न हैं. दूसरों से अपनी तुलना करते रहना अपने समय व ताकत को बेकार में नष्टकरना है. मैं अपनी जिंदगी को खुशहाल अपने बलबूते पर बनाना चाहती हूं. इस यात्रा में रवि मेरा साथी बनता है, तो उस का स्वागत है. ऐसा नहीं होता है, तो भी कोई गम नहीं क्योंकि कोई दूसरा उपयुक्त हमराही मुझे जरूर मिलेगा, ऐसा मेरा विश्वास है.’’

‘‘शायद तेरे इस अनूठेपन के कारण ही रवि तेरा दीवाना है… तेरा आत्मविश्वास, तेरी आत्मनिर्भरता ही तेरी ताकत और अनूठी पहचान है.’’ महक के मुंह से निकले इन वाक्यों को सुन कर निशा बड़े रहस्यमयी अंदाज में मुसकराने लगी थी.

महक और निशा ने घर का आधा रास्ता ही तय किया होगा जब रवि की कार उन की बगल में आ कर रुकी. उसे अचानक सामने देख कर निशा का चेहरा गुलाब के फूल सा खिल उठा. ‘‘हाय, तुम यहां कैसे?’’ निशा ने रवि से प्रसन्न अंदाज में हाथ मिलाया और फिर छोड़ा

ही नहीं. ‘‘पार्टी में जाने का मन नहीं किया,’’ रवि ने उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए जवाब दिया, ‘‘कुछ समय तुम्हारे साथ बिताने के बाद पार्टी में जाऊंगा.’’

‘‘क्या? प्रिया को भी साथ ले जाओगे?’’ महक चुभते से लहजे में यह पूछने से खुद को नहीं रोक पाई. ‘‘नहीं, वह अमित के साथ जा चुकी है. चलो, आइसक्रीम खाने चलते हैं,’’ रवि ने महक के सवाल का जवाब लापरवाही से देने के बाद अपना ध्यान फिर से निशा पर केंद्रित कर लिया.

‘‘पहले मुझे घर छोड़ दो,’’ महक का मूड उखड़ा सा हो गया. ‘‘ओके,’’ रवि ने साथ चलने के लिए महक पर जरा भी जोर नहीं डाला.

निशा रवि की बगल में और महक पीछे की सीट पर बैठ गई तो रवि ने कार आगे बढ़ा दी. ‘‘पहले तुम दोनों मेरे घर चलो,’’ निशा ने मुसकराते हुए माहौल को सहज करने की कोशिश करी. ‘‘नहीं, यार. मैं कुछ वक्त सिर्फ तुम्हारे साथ गुजारना चाहता हूं,’’ रवि ने उस के प्रस्ताव का फौरन विरोध किया.

‘‘पहले घर चलो, प्लीज,’’ निशा ने प्यार से रवि का कंधा दबाया, ‘‘मां के हाथ की बनी एक खास चीज तुम्हें खाने को मिलेगी.’’ ‘‘क्या?’’

‘‘वह सीक्रेट है.’’ ‘‘लेकिन…’’

‘‘प्लीज, बड़े प्यार से करी गई प्रार्थना को रवि अस्वीकार नहीं कर सका और फिर कार निशा के घर की तरफ मोड़ दी.’’

महक अपने घर की तरफ जाना चाहती थी, पर निशा ने उसे प्यार से डपट कर खामोश कर दिया. वह समझती थी कि उस की सहेली रवि को उस के प्रेमी के रूप में उचित प्रत्याशी नहीं मानती है. महक को डर था कि रवि उसे प्रेम में जरूर धोखा देगा. काफी समझाने के बाद भी निशा उस के इस डर को दूर करने में सफल नहीं रही थी. इसीलिए जब ये दोनों उस के साथ होती थीं, तब उसे माहौल खुश बनाए रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास हमेशा करना पड़ता था.

रवि मीठा खाने का शौकीन था. निशा की मां के हाथों के बने शाही टोस्ट खा कर उस की तबीयत खुश हो गई. मीठा खा कर महक अपने घर चली गई. निशा ने रवि को खाना खिला कर ही भेजा. हंसतेबोलते हुए 2 घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला.

‘‘लंबी ड्राइव पर जाने का मौसम हो रहा है,’’ ताजी ठंडी हवा को चेहरे पर महसूस करते हुए रवि ने कार में बैठने से पहले अपने मन की इच्छा व्यक्त करी. ‘‘आज के लिए माफी दो. फिर किसी दिन कार्यक्रम…’’

‘‘परसों चलने का वादा करो…, इम्तिहान के बाद?’’ रवि ने उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए पूछा. ‘‘श्योर,’’ निशा ने फौरन रजामंदी जाहिर

कर दी. ‘‘इम्तिहान खत्म होते ही निकल लेंगे.’’

‘‘ओके.’’ ‘‘पूछोगी नहीं कि कहां चलेंगे?’’

‘‘तुम्हारा साथ है, तो हर जगह खूबसूरत बन जाएगी.’’

‘‘आई लव यू.’’ ‘‘मी टू.’’

रवि ने निशा के हाथ को कई बार प्यार से चूमा और फिर कार आगे बढ़ा दी. रवि के चुंबनों के प्रभाव से निशा के रोमरोम में अजीब सी मादक सिहरन पैदा हो गई थी. दिल में अजीब सी गुदगुदी महसूस करते हुए वह अपने कमरे में लौटी और तकिए को छाती से लगा कर पलंग पर लेट गई. रवि के बारे में सोचते हुए उस का तनमन अजीब सी खुमारी में डूबता जा रहा था. उस के होंठों की मुसकान साफ जाहिर कर रही थी कि उस वक्त उस के सपनों की दुनिया बड़ी रंगीन बनी हुई थी.

रविवार को दोपहर 12 बजे निशा की जापानी भाषा की परीक्षा समाप्त हो गई. वह हौल से बाहर आई तो उस ने रवि को अपना इंतजार करते पाया. सिर्फ 1/2 घंटे बाद रवि की कार दिल्ली से आगरा जाने वाले राजमार्ग पर दौड़ रही थी. दोनों का साथसाथ किसी दूसरे शहर की यात्रा करने का यह पहला मौका था.

मौसम बहुत सुहावना था. ठंडी हवा अपने चेहरों पर महसूस करते हुए दोनों प्रसन्न अंदाज में हसंबोल रहे थे. कुछ देर बाद निशा आंखें बंद कर के मीठे, प्यार भरे गाने गुनगुनाने लगी. रवि रहरह कर उस के सुंदर, शांत चेहरे को देख मुसकराने लगा.

‘‘तुम संसार की सब से सुंदर स्त्री हो,’’ रवि के मुंह से अचानक यह शब्द निकले, तो निशा ने झटके से अपनी आंखें खोल दीं.

रवि की आंखों में अपने लिए गहरे प्यार के भावों को पढ़ कर उस के गौरे गाल गुलाबी हो उठे और फिर शरमाए से अंदाज में वह सिर्फ इतना ही कह पाई, ‘‘झूठे.’’

रवि ने कार की गति धीमी करते हुए उसे एक पेड़ की छाया के नीचे रोक दिया. फिर उस ने झटके से निशा को अपनी तरफ खींचा और उस के गुलाबीि होंठों पर प्यारा सा चुंबन अंकित कर दिया. निशा की तेज सांसों और खुले होंठों ने उसे फिर से वैसा करने को आमंत्रित किया, तो रवि के होंठ फिर से निशा के होंठों से जुड़ गए.

इस बार का चुंबन लंबा और गहन तृप्ति देने वाला था. उस की समाप्ति पर दोनों ने एकदूसरे की आंखों में गहन प्यार से झांका. ‘‘तुम एक जादूगरनी हो,’’ निशा की पलक को चूमते हुए रवि ने उस की तारीफ करी.

‘‘वह तो मैं हूं,’’ निशा हंस पड़ी. ‘‘मेरा दिल इस वक्त मेरे काबू में नहीं है.’’

‘‘मेरा भी.’’ ‘‘मैं तुम्हें जी भर कर प्यार करना चाहता हूं.’’

‘‘मैं भी.’’ ‘‘सच?’’

निशा ने बेहिचक ‘हां’ में सिर ऊपरनीचे हिलाया, तो रवि की आंखों में हैरानी के भाव उभरे. ‘‘क्या तुम्हें अपनी बदनामी का, अपनी छवि खराब होने का डर नहीं है?’’

‘‘क्या करना है और क्या नहीं, इसे मैं दूसरों की नजरों से नहीं तोलती हूं, रवि.’’ ‘‘फिर भी शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने को समाज गलत मानता है, खासकर लड़कियों के लिए.’’

निशा ने आगे झुक कर रवि के गाल को चूमा और फिर सहज अंदाज में बोली, ‘‘स्वीटहार्ट, पुरानी मान्यताओं को जबरदस्ती ओढ़े रखने में मेरा विश्वास नहीं है. मैं इतना जानती हूं कि मैं तुम्हें प्यार करती हूं और तुम्हारा स्पर्श मेरे रोमरोम में मादक झनझनाहट पैदा कर देता है.’’ ‘‘तुम्हारे साथ सैक्स संबंध बनाने का फैसला मैं तुम्हारी और अपनी खुशियों को ध्यान में रख कर करूंगी. वैसा करने के लिए तुम मुझ से शादी करने का झूठासच्चा वादा करो, यह कतई जरूरी नहीं है.’’

‘‘तो क्या तुम मेरे साथ सोने को तैयार हो?’’ ‘‘बड़ी खुशी से,’’ निशा का ऐसा जवाब सुन कर रवि जोर से चौंका, तो वह खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘तुम्हें समझना मेरे बस की बात नहीं है. साधारण से घर में पैदा हुई लड़की इतनी असाधारण… इतनी अनूठी… इतनी आत्मविश्वास से भरी कैसे हो गई है?’’ कार को फिर से आगे बढ़ाते हुए हैरान रवि ने यह सवाल मानो खुद से ही पूछा हो. ‘‘जिस के पास अपने सपनों को पूरा करने के लिए हिम्मत, लगन और कठिन मेहनत करने जैसे गुण हों, वह इंसान साधारण घर में पैदा होने के बावजूद असाधारण ऊंचाइयां ही छू सकती है,’’ होंठों से बुदबुदा कर निशा ने रवि के सवाल का जवाब खुद को दिया और फिर रवि के हाथ को प्यार से पकड़ कर शांत अंदाज में आंखें मूंद लीं.

आत्मविश्वासी निशा अपने भविष्य के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थी. मस्त अंदाज में सीटी बजा रहे रवि ने भी भविष्य को ले कर एक फैसला उसी समय कर लिया. ताजमहल के सामने निशा के सामने शादी करने का प्रस्ताव रखने का निर्णय लेते हुए उस का दिल अजीब खुशी और गुदगुदी से भर उठा था, साधारण बगीचे में उगे इस असाधारण फूल की महक से वह अपना भावी जीवन भर लेने को और इंतजार नहीं करना चाहता था.

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