Father’s Day 2019: घर,परिवार और बच्चों की नींव हैं पिता

पूनम झा,  (कोटा, राजस्थान)

घर के मजबूत स्तम्भ होते हैं पिता,

बच्चों की ताकत हैं पिता, भविष्य की उम्मीद हैं पिता,

संघर्ष की धूप में छत्रछाया हैं पिता,

पथप्रदर्शक हैं पिता, कंटक भरी राहों में

मजबूत साया हैं पिता, मां की पदचाप हैं पिता,

मां की आवाज हैं पिता, हर नाउम्मीद पर

ढाढ़स हैं पिता, बच्चा यदि पिता की लाठी है,

तो उस लाठी की मजबूती हैं पिता,

घर,परिवार और बच्चों की नींव हैं पिता,

पिता के लिए जितना कहें वो कम है क्योंकि

उनसे ही तो अस्तित्व है हमारा ।

पिता को मेरा सादर नमन

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जयति जैन “नूतन” (भोपाल)

पापा से शिकायतें… 

जब बच्चे थे तब कई सपने थे और ढेर सारी ख्वाहिशें, जिनकी पूरी ना होने पर पापा से बहुत शिकायतें रही जैसे हर साल कहीं घूमने जाना, पंद्रह दिन में एक बार होटल में खाना आदि. यह छोटी-छोटी सी चीजें थी, जो उस समय बहुत बड़ी हुआ करती थी. हमारे गांव में कोई शुद्ध शाकाहारी होटल भी नहीं था, अगर होटल जाना है तो मऊ रानीपुर जाओ या झांसी. ये अलग समस्या थी.

काम ही सब कुछ है…

पापा पेशे से डौक्टर हैं और एक ऐसे डौक्टर हैं जिनके लिए मरीज पहले आता है. मरीज की जान उसका दर्द उसकी परेशानी घर से भी पहले. वह मरीज देखने के लिए कभी-कभी रात भर जागते तो कभी सुबह का नाश्ता/खाना उनका दोपहर 3:00 बजे हो रहा है. दिन रात मरीजों की तरफ से उनका ध्यान नहीं हटता है और आज भी यही है. लेकिन पापा ने जो दिया व शायद ही कोई पिता दे पाए.

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हर इच्छा की पूरी…

वह हमें ज्यादा समय तो नहीं दिए लेकिन कमी कोई नहीं होने दी. हौस्टल में जहां बच्चों को एक सीमित पौकेट मनी मिलती थी, वही मेरे पास हजारों रुपए होते थे खर्च करने पर उन्होनें कभी हिसाब भी नहीं मांगा. पापा ने कभी किसी भी चीज की कमी नहीं होने दी, जो चाहा वह मंगा दिया. खाने-पीने से लेकर, गाड़ी, कपड़े बिना मांगे मिले लेकिन वह घूमने जाने वाली बात हमेशा खटकती रही कि सभी के पापा 6 महीने में या फिर साल भर में एक बार जरूर घूमने जाते हैं लेकिन यहां तो पापा को समय ही नहीं है.  और आज जब उनसे दूर हूं, शादी हो चुकी है तब समझ आता है कि जितना पापा ने किया उतना कोई भी पिता नहीं कर सकता क्योंकि मुंह पर बात आती नहीं थी की वह पूरी हो जाती थी.

पैसे खर्च करते समय कभी सोचा नहीं कि पापा कितनी मेहनत करते हैं, यह कितनी मेहनत का पैसा है. लेकिन आज जब खुद के परिवार को संभाल रही हूं, तब समझ आता है पैसों की कीमत का.

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आप सबसे अच्छे हो पापा…

पापा आपसे मैंने कभी नहीं कहा, शायद कभी कभी नहीं पाऊं कि आप सबसे अच्छे पापा हैं जो शादी के बाद भी मेरी छोटी छोटी चीजों का ध्यान रखते हैं. मैंने जब ऐसे लोगों को देखा, जिनके पिता उन्हें कहीं बाहर घुमाने तो ले जाते हैं लेकिन उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए बार बार सोचते हैं. तब मुझे एहसास हुआ कि जो आपने किया, जो आपने दिया वह कोई पिता नहीं दे सकता. मेहनत क्या होती है वह आप से सीखा है.

पापा से रही ये शिकायत…

पापा से एक और हमेशा शिकायत रही कि वह छोटे भाई को कभी नहीं डांटते थे, हमेशा मुझे ही डांट पड़ी. लेकिन कुछ समय पहले जब यही बात मैंने उनको बातों बातों में बोली, तब उन्होंने कहा कि- तुम्हें क्या पता की कितनी बुरी तरीके से उसको डांट पड़ती है, बस तुम्हारे सामने नहीं पड़ती. तब वहीं पर मौजूद मेरे मामा ने कहा कि “लड़कियों को पालने का और लड़कों को पालने का तरीका अलग अलग होता है, लड़के किस तरह डांट खाते हैं यह वही जानते हैं.” तब मुझे एहसास हुआ शायद इस बात पर भी मैं गलत थी क्योंकि मां बाप अपने बच्चों को इसीलिए डांटते हैं कि वह गलत रास्ते पर ना जाए.

थैंक यू पापा फ़ौर एवरीथिंग.

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Father’s Day 2019: “अभी तो जानने लगा था मैं तुम्हे फिर क्यों इतनी जल्दी चले गए”

मोहित राठौर, (दिल्ली)

अभी तो जानने लगा था मैं तुम्हे
फिर क्यों इतनी जल्दी चले गए
अभी तो समझने लगा था मैं तुम्हे
फिर क्यों मुझे अकेला छोड़ के चले गए
अभी तो तुम्हारी डांंट समझने लगा था मैं
फिर क्यों मुझे प्यार से वंचित कर चले गए
अभी तो अपनी गोद में खिलाया करते थे तुम हमे
फिर क्यों हमें बीच भंवर में छोड़ चले गए
अभी तो तुम्हारी जरूरत महसूस होने लगी थी हमें
फिर क्यों दुनिया को अलविदा कह गए
आखिर क्यों पा??

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Fathers Day 2019: जब पिता जी ने की अंजान मुसाफिर की मदद

सरिता दीक्षित, (आगरा) 

मेरे पिता जी का जीवन ‘सादा जीवन उच्च विचार’ से प्रेरित था. वह एक ईमानदार व्यक्ति थे और जरूरतमंद की यथाशक्ति मदद करते रहते थे. कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति उनके घर से खाली हाथ नहीं जाता था. वे अक्सर यह बात कहते थे कि ‘ग़रीबी क्या होती है’ यह तुम सभी ने नहीं देखी. अपनी इसी आदत की वजह से वे अपने लिए कभी धन-दौलत का संग्रह नहीं कर पाए. पिता जी की ईमानदारी से जुड़ी एक बात मैं साझा करना चाहती हूं.

बात करीब 40 वर्ष पहले की है. मेरे घर के सामने एक बड़े से नीम के पेड़ के नीचे एक कुआं था. कुएं से पानी भरने के लिए रस्सी व बाल्टी रखी रहती थी. सामने सड़क से गुजरने वाले राहगीर के लिए उस समय पानी पीने का एकमात्र यही साधन था. कुएं के पास ही छाया में बैठने के लिए पिता जी ने खपरैल की झोपड़ी बनवाई थी.

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जब पिता जी ने की अंजान मुसाफिर की मदद…

एक दिन दोपहर में एक यात्री ने पानी पीने के लिए बस रुकवाई. उसके हाथ में एक बैग था. उसने पानी पिया और गलती से कुएं के पास रखा हुआ अपना बैग छोड़कर बस में बैठ कर चला गया कुछ समय बाद मेरे पिता जी कुएं की तरफ गये तो उन्हें वह बैग दिखाई दिया. उन्होंने इधर-उधर देखा तो वहां कोई भी नहीं दिखा.

पिता जी ने बैग खोल कर देखा तो वह सोने-चांदी के आभूषण से भरा हुआ था. पिता जी ने बैग घर पर ले जाकर रख दिया. वापस कुएं के पास बैठ कर बैग वाले यात्री का इन्तजार करने लगे. कुछ समय बाद एक आदमी बदहवास सा बस से उतरा. वहां पिता जी को बैठा हुआ देखकर बैग के बारे पूछने लगा. बात करने के बाद जब पिता जी आश्वस्त हो गए तो घर से लाकर बैग वापस किया.

आज भी साथ हैं उनके आदर्श…

वह यात्री एक सुनार थे और पास के बाजार में उनकी दुकान थी. सुनार ने अपने सभी परिचित को इस घटना के बारे में बताया. अब पिता जी इस दुनिया में नही हैं लेकिन उनके विचार व आदर्श हमेशा हमारे साथ हैं. मुझे उन पर बहुत गर्व है.

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पापा, बाबा, डैड, अब्बू या पिता जी…

नाम भले ही अलग हो, लेकिन हर शब्द में प्यार समाया है. अपने सुख-दुख भूलकर जो हरदम हमारी खुशियों के लिए जीता है. वो अपना प्यार तो नहीं दिखाते, लेकिन उनका साया हमे हर मुश्किल से बचाता है. लेकिन जरूरी नहीं है कि जन्म देना वाला इंसान ही पिता कहलाए… जिंदगी में कई बार ऐसा होता है जब किसी मुश्किल में कोई आपकी मदद करता है और आपको अपने पिता की याद आ जाती है…

वो कोई भी हो सकता है दादा जी, ताया, चाचा जी, बड़ा या छोटा भाई, कोई टीचर या कोई सीनियर, कोई दोस्त या आपका हमसफर… वो हर शख्स जिसने बुरे दौर में आपका साथ दिया… आपको मुसीबत से बाहर निकाला… मुश्किल घड़ी में आपको रास्ता दिखाया…

तो इस ‘फादर्स डे’ पर दुनिया को बताइए अपने पापा से जुड़ी वो कहानी जिसने आपकी जिंदगी पर गहरी छाप छोड़ी हो. वो बातें जो आप कभी अपने पिता से नहीं कह पाए.

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