नमक हलाल : मनोहरा ने आखिर कैसे चुकाया नमक का कर्ज

लेखक- चंद्रभूषण ध्रुव

बैठक की मेज पर रखा मोबाइल फोन बारबार बज रहा था. मनोहरा ने इधरउधर झांका. शायद उस के मालिक बाबू बंका सिंह गलती से मोबाइल फोन छोड़ कर गांव में ही कहीं जा चुके थे.

मनोहरा ने दौड़ कर मोबाइल फोन उठाया और कान से लगा लिया. उधर से रोबदार जनाना आवाज आई, ‘हैलो, मैं निक्की की मां बोल रही हूं.’

अपनी मालकिन की मां का फोन पा कर मनोहरा घबराते हुए बोला, ‘‘जी, मालिक घर से बाहर गए हुए हैं.’’

‘अरे, तू उन का नौकर मनोहरा बोल रहा है क्या?’

‘‘जी…जी, मालकिन.’’

‘‘ठीक है, मुझे तुम से ही बात करनी है. कल निक्की बता रही थी कि तू जितना खयाल भैंस का रखता है, उतना खयाल निक्की का नहीं रखता. क्या यह बात सच है?’’

मनोहरा और घबरा उठा. वह अपनी सफाई में बोला, ‘‘नहीं… नहीं मालकिन, यह झूठ है. मैं निक्की मालकिन का हर हुक्म मानता हूं.’’

‘ठीक है, आइंदा उन की सेवा में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए,’ इतना कह कर मोबाइल फोन कट गया.

मनोहरा ने ठंडी सांस ली. उस का दिमाग दौड़ने लगा. फोन की आवाज जानीपहचानी सी लग रही थी. निक्की मालकिन जब से इस घर में आई हैं, तब से वे कई बार उसे बेवकूफ बना चुकी हैं. उस ने ओट ले कर आंगन में झांका. निक्की मालकिन हाथ में मोबाइल फोन लिए हंसी के मारे लोटपोट हो रही थीं. मनोहरा सारा माजरा समझ गया. वह मुसकराता हुआ भैंस दुहने निकल पड़ा.

निक्की बाबू बंका सिंह की दूसरी पत्नी थीं. पहली पत्नी के बारे में गांव के लोगों का कहना था कि बच्चा नहीं जनने के चलते बाबू बंका सिंह ने उन्हें मारपीट कर घर से निकाल दिया था. बाद में वे मर गई थीं.

निक्की पढ़ीलिखी खूबसूरत थीं. वे इस बेमेल शादी के लिए बिलकुल तैयार नहीं थीं, लेकिन मांबाप की गरीबी और उन के आंसुओं ने उन्हें समझौता करने को मजबूर कर दिया था.

शादी के कई महीनों तक निक्की बिलकुल गुमसुम बनी रहीं. उन की जिंदगी सोने के पिंजरे में कैद तोते की तरह हो गई थी.

हालांकि बाबू बंका सिंह निक्की की सुखसुविधा का काफी ध्यान रखते थे, इस के बावजूद उम्र का फासला निक्की को खुलने नहीं दे रहा था.

मनोहरा घर का नौकर था. हमउम्र मनोहरा से बतियाने में निक्की को अच्छा लगता था. समय गुजरने के साथसाथ निक्की का जख्म भरता गया और वे खुल कर मनोहरा से हंसीठिठोली करने लगीं.

उस दिन बाबू बंका सिंह गांव की पंचायत में गए हुए थे. निक्की गपशप के मूड में थीं. सो, उन्होंने मनोहरा को अंदर बुला लिया.

निक्की मनोहरा की आंखों में आंखें डाल कर बोलीं, ‘‘अच्छा, बता उस दिन मोबाइल फोन पर मेरी मां से क्या बातें हुई थीं?’’

मनोहरा मन ही मन मुसकराया, फिर अनजान बनते हुए कहने लगा, ‘‘कह रही थीं कि मैं आप का जरा भी खयाल नहीं रखता.’’

‘‘हांहां, मेरी मां ठीक ही कह रही थीं. मेरे सामने तुम शरमाए से खड़े रहते हो. तुम्हीं बताओ, मैं किस से बातें करूं? बाबू बंका सिंह की मूंछें और लाललाल आंखें देख कर ही मैं डर जाती हूं. उन की कदकाठी देख कर मुझे अपने काका की याद आने लगती है. एक तुम्हीं हो, जो मुझे हमदर्द लगते हो…’’

इस बेमेल शादी पर गांव वाले तो थूथू कर ही रहे थे. खुद मनोहरा को भी नहीं सुहाया था, पर उस की हैसियत हमदर्दी जताने की नहीं थी. सो, वह चुपचाप निक्की की बात सुनता रहा.

मनोहरा को चुप देख कर निक्की बोल पड़ीं, ‘‘मनोहरा, तुम्हारी शादी के लिए मैं ने अपने मायके में 60 साल की खूबसूरत औरत पसंद की है…’’

‘‘60 साल,’’ कहते हुए मनोहरा की आंखें चौड़ी हो गईं.

‘‘इस में क्या हर्ज है? जब मेरी शादी 60 साल के मर्द के साथ हो सकती है, तो तुम्हारी क्यों नहीं?’’

‘‘नहीं मालकिन, शादी बराबर की उम्र वालों के बीच ही अच्छी लगती है.’’

‘‘तो तुम ने अपने मालिक को समझाया क्यों नहीं? उन्होंने एक लड़की की खुशहाल जिंदगी क्यों बरबाद कर दी?’’ कहते हुए निक्की की आंखें आंसुओं से भर आईं.

समय बीतता गया. निक्की कीशादी के 5 साल गुजर गए, फिर भी आंगन में बच्चे की किलकारी नहीं गूंज पाई. निक्की को ओझा, गुनी, संतमहात्मा सब को दिखाया गया, लेकिन नतीजा सिफर रहा. गांवसमाज में निक्की को ‘बांझ’ कहा जाने लगा.

निक्की मालकिन दिलेर थीं. उन्हें ओझागुनी के यहां चक्कर लगाना अच्छा नहीं लग रहा था. उन्होंने शहर के बड़े डाक्टर से अपने पति और खुद का चैकअप कराने की ठानी.

शहर के माहिर डाक्टर ने दोनों के नमूने जांच लिए और बोला, ‘‘देखिए बंका सिंह, 10 दिन बाद निक्की की एक और जांच होगी. फिर सारी रिपोर्टें सौंप दी जाएंगी.’’

देखतेदेखते 10 दिन गुजर गए. उन दिनों गेहूं की कटाई जोरों पर थी. आकाश में बादल उमड़घुमड़ रहे थे. सो, किसानों में गेहूं समेटने की होड़ सी लगी थी.

बाबू बंका सिंह को भी दम मारने की फुरसत नहीं थी. वे दोबारा निक्की को चैकअप कराने में आनाकानी करने लगे. लेकिन निक्की की जिद के आगे उन की एक न चली. आखिर में मनोहरा को साथ ले कर जाने की बात तय हो गई.

दूसरे दिन निक्की मनोहरा को साथ ले कर सुबह वाली बस से डाक्टर के यहां चल पड़ीं. उस दिन डाक्टर के यहां ज्यादा भीड़ थी.

निक्की का नंबर आने पर डाक्टर ने चैकअप किया, फिर रिपोर्ट देते हुए बोला, ‘‘मैडम, आप बिलकुल ठीक हैं. फिर भी आप मां नहीं बन सकतीं, क्योंकि आप के पति की सारी रिपोर्टें ठीक नहीं हैं. आप के पति की उम्र काफी हो चुकी है, इसलिए उन्हें दवा से नहीं ठीक किया जा सकता है.’’

निक्की का चेहरा सफेद पड़ गया. डाक्टर उन की हालत को समझते हुए बोला, ‘‘घबराएं मत. विज्ञान काफी तरक्की कर चुका है. आप चाहें तो और भी रास्ते हैं.’’

निक्की डाक्टर के चैंबर से थके पैर निकली. बाहर मनोहरा उन का इंतजार कर रहा था. वह निक्की को सहारा देते हुए बोला, ‘‘मालकिन, सब ठीकठाक तो है?’’

‘‘मनोहरा, मुझे कुछ चक्कर सा आ रहा है. शाम हो चुकी है. चलो, किसी रैस्टहाउस में रुक जाते हैं. कल सुबह वाली बस से गांव चलेंगे.’’

आटोरिकशा में बैठते हुए मनोहरा बोला, ‘‘मालकिन, गांव से हो कर निकलने वाली एक बस का समय होने वाला है. उस से हम लोग निकल चलते हैं. हम लोगों के आज नहीं पहुंचने पर कहीं मालिक नाराज नहीं हो जाएं.’’

‘‘भाड़ में जाए तुम्हारा मालिक. उन्होंने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा,’’ निक्की बिफर उठीं.

आटोरिकशा एक रैस्टहाउस में रुका. निक्की ने 2 बैड वाला कमरा बुक कराया और कमरे में जा कर निढाल पड़ गईं. उन के दिमाग में विचारों का पहिया घूमने लगा, ‘मेरे पति ने अपनी पहली पत्नी को बच्चा नहीं जनने के कारण ही घर से निकाला था, लेकिन खोट मेरे पति में है, यह कोई नहीं जान पाया. अगर इस बात को मैं ने उजागर किया, तो यह समाज मुझे बेहया कहने लगेगा. हो सकता है कि मेरा भी वही हाल हो, जो पहली पत्नी का हुआ था.’

निक्की के दिमाग के एक कोने से आवाज आई, ‘डाक्टर ने बताया है कि बच्चा पाने के और भी वैज्ञानिक रास्ते हैं…’

लेकिन दिमाग के दूसरे कोने ने इस सलाह को काट दिया, ‘क्या बाबू बंका सिंह अपनी झूठी शान के चलते ऐसा करने देंगे?’

सवालजवाब की चल रही इस आंधी में अपने को बेबस पा कर निक्की सुबकने लगीं.

मनोहरा को भी नींद नहीं आ रही थी. मालकिन के सुबकने से उस के होश उड़ गए. वह पास आ कर बोला, ‘‘मालकिन, आप रो क्यों रही हैं? क्या आप को कुछ हो रहा है?’’

निक्की का सुबकना बंद हो गया. उन्होंने जैसे फैसला कर लिया था. वे मनोहरा का हाथ पकड़ कर बोलीं, ‘‘मनोहरा, जो काम बाबू बंका सिंह 5 साल में नहीं कर पाए, वह काम तुझे करना है. बोलो, मेरा साथ दोगे?’’

मनोहरा निक्की की बातों का मतलब समझे बिना ही फटाक से बोल पड़ा,

‘‘मालकिन, मैं तो आप के लिए जान भी दे सकता हूं.’’

निक्की मालकिन मनोहरा के गले लग गईं. उन का बदन तवे की तरह जल रहा था. मनोहरा हैरान रह गया. वह निक्की से अलग होता हुआ बोला, ‘‘नहीं मालकिन, यह मुझ से नहीं होगा.’’

‘‘मनोहरा, डाक्टर का कहना है कि तुम्हारे मालिक में वह ताकत नहीं है, जिस से मैं मां बन सकूं. मैं तुम से बच्चा पाना चाहती हूं…’’

‘‘नहीं, यह नमक हरामी होगी.’’

‘‘मनोहरा, यह वक्त नमक हरामी या नमक हलाली का नहीं है. मेरे पास सिर्फ एक रास्ता बचा है और वह तुम हो. सोच लो, अगर मैं ने देहरी से बाहर पैर रखा, तो तुम्हारे मालिक की मूंछें नीची हो जाएंगी…’’ कहते हुए निक्की ने मनोहरा को अपनी बांहों में समेट लिया.

कोमल बदन की छुअन ने मनोहरा को मदहोश बना डाला. उस ने निक्की को अपनी बांहों में ऐसा जकड़ा कि उन के मुंह से आह निकल पड़ी.

घर आने के बाद भी लुकछिप कर यह सिलसिला चलता रहा. आखिरकार निक्की ने वह मंजिल पा ली, जिस की उन्हें दरकार थी.

गोदभराई रस्म के दिन बाबू बंका सिंह चहकते फिर रहे थे. निक्की दिल से मनोहरा की आभारी थीं, जिस ने एक उजड़ते घर को बचा लिया था.

लाजवंती: दीपक को क्या मिली उसके गुनाहों की सजा

नींद में ही बड़बड़ाते हुए राधेश्याम ने फोन उठाया और कहा, ‘‘कौन बोल रहा है?’’

उधर से रोने की आवाज आने लगी. बहुत दर्दभरी व धीमी आवाज में कहा, ‘पापा, मैं लाजो बोल रही हूं… उदयपुर से.’

राधेश्याम घबराता हुआ बोला, ‘‘बेटी लाजो क्या हुआ? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न? तुम इतना धीरेधीरे क्यों बोल रही हो? सब ठीक है न?’’

लाजवंती ने रोते हुए कहा, ‘पापा, कुछ भी ठीक नहीं है. आप जल्दी से मु झे लेने आ जाओ. अगर आप नहीं आए, तो मैं मर जाऊंगी.’

राधेश्याम घबरा कर बोला, ‘‘बेटी लाजो, ऐसी बात क्यों कह रही है? दामाद ने कुछ कहा क्या?’’

लाजवंती बोली, ‘पापा, आप जल्दी आ जाना. अब मैं यहां रहना नहीं चाहती. मैं रेलवे स्टेशन पर आप का इंतजार करूंगी.’

फोन कट गया. दोनों पतिपत्नी बहुत परेशान हो गए.

तुलसी ने रोते हुए कहा, ‘‘मैं आप को हमेशा से कहती रही हूं कि एक बार लाजो से मिल कर आ जाते हैं, लेकिन आप को फुरसत कहां है.’’

राधेश्याम ने कहा, ‘‘मु झे लगता है, दामाद ने ही लाजो को बहुत परेशान किया होगा.’’

तुलसी ने रोते हुए कहा, ‘‘अब मैं कुछ सुनना नहीं चाहती हूं. आप जल्दी उदयपुर जा कर बेटी को ले आओ. न जाने वह किस हाल में होगी.’’

‘‘अरे लाजो की मां, अब रोना बंद कर. वह मेरी भी तो बेटी है. जितना दुख तु झे हो रहा है, उतना ही दुख मु झे भी है. तुम औरतें दुनिया के सामने अपना दुख दिखा देती हो, हम मर्द दुख को मन में दबा देते हैं, दुनिया के सामने नहीं कर रख पाते हैं.’’

राधेश्याम उसी समय उदयपुर के लिए रेल से निकल गया. उस के मन में बुरे विचार आने लगे थे. वह पुरानी यादों में खो गया.

लाजवंती राधेश्याम और तुलसी की एकलौती संतान थी. दोनों पतिपत्नी लाजवंती को प्यार से लाजो कह कर पुकारते थे. उन्होंने उस की हर ख्वाहिश पूरी की थी.

लाजवंती की उम्र शादी के लायक हो चुकी थी, इसीलिए राधेश्याम को थोड़ी चिंता हुई. वह दौड़भाग कर लाजवंती के लिए अच्छा वर तलाश करने लगा, पर जहां वर अच्छा मिलता और वहां खानदान अच्छा नहीं मिलता. जहां खानदान अच्छा मिलता, वहां वर अच्छा नहीं मिलता.

बहुत दौड़भाग के बाद राधेश्याम ने चित्तौड़गढ़ शहर में लाजवंती का रिश्ता तय कर दिया.

लाजवंती का ससुर भूरालाल वन विभाग से कुछ महीने पहले रिटायर हुआ था. उस के 2 बेटे थे. बड़ा बेटा मनोज चित्तौड़गढ़ में ही बैंक में कैशियर के पद पर काम करता था, जबकि छोटा बेटा दीपक उदयपुर में एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था. उसी से लाजवंती का रिश्ता तय हुआ था.

भूरालाल की पत्नी की मौत हो चुकी थी. वह दीपक की कुछ गलत आदतों से चिंतित था. जब लाजवंती जैसी होनहार व पढ़ीलिखी लड़की के साथ शादी

हो जाएगी तो दीपक सभी बुरी आदतों को भूल जाएगा, इसलिए भूरालाल चिंता से कुछ मुक्त हुआ.

राधेश्याम ने धूमधाम से लाजवंती की शादी की. दहेज भी खूब दिया. विदाई के बाद वे दोनों घर में अकेले रह गए.

जब लाजवंती पहली बार ससुराल आई तो उसे ससुराल में जितना प्यार मिलना चाहिए था, नहीं मिला. वह मायूस हो गई. लाजवंती की जेठानी का बरताव उस के प्रति अच्छा नहीं था, न ही उस के पति का बरताव अच्छा था.

शादी होते ही दीपक उदयपुर में नौकरी पर चला गया. वह लाजवंती को साथ में नहीं ले गया था.

जब लाजवंती दोबारा ससुराल आई, तो ससुर भूरालाल का विचार था कि बहू दीपक के साथ रहे, लेकिन दीपक उसे अपने साथ नहीं रखना चाहता था.

जब भूरालाल ने दीपक को सम झाया व उस को भलाबुरा कहा, तब जा कर मजबूरी में वह लाजवंती को अपने साथ ले गया.

उदयपुर में वे किराए के मकान में रहने लगे. दीपक की सब से बुरी आदत थी जुआ खेलना व शराब पीना, जिस से वह घर पर हमेशा देर रात तक पहुंचता था. इस बात से लाजवंती बहुत परेशान थी. दीपक की तनख्वाह भी जुए व शराब में खर्च होने लगी थी, इसलिए महीने के अंत में कुछ नहीं बच पाता था.

एक दिन ससुर भूरालाल अचानक उदयपुर दीपक के घर पहुंच गया. उस समय लाजवंती पेट से थी.

बहू लाजवंती की ऐसी दयनीय हालत देख कर भूरालाल ने रोते हुए कहा, ‘बेटी, मैं तेरा गुनाहगार हूं. मेरी वजह से तेरी यह हालत हुई है. मु झे माफ कर देना.’

लाजवंती ने अपने ससुर को सम झाते हुए कहा, ‘इस में आप का कोई कुसूर नहीं है, आप मत रोइए. मैं आप के बेटे को सुधार नहीं सकी. मैं ने पूरी कोशिश की, लेकिन नाकाम रही.’

भूरालाल बेमन से चित्तौड़गढ़ लौट गया. लाजवंती की ऐसी हालत देख वह दुखी था. इसी गहरी चिंता की वजह से एक दिन भूरालाल को अचानक हार्टअटैक आ गया और उस की मौत हो गई.पर भूरालाल की मौत से दीपक की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया.

समय पंख लगा कर उड़ने लगा. लाजवंती के एक बेटा हो गया, जो अब 5 साल का हो गया था. लाजवंती सिलाई कर के अपना घरखर्च चला रही थी.

कुछ महीने बाद दीपक की नौकरी छूट गई, क्योंकि वह हमेशा शराब पी कर औफिस जाने लगा था, इसलिए कंपनी वालों ने उसे नौकरी से निकाल दिया. उस को घर बैठे एक महीना बीत गया.

एक दिन दीपक ने लाजवंती के सोने के कंगन चुरा कर बाजार में बेच दिए. जब लाजवंती को पता चला तो दोनों के बीच लड़ाई झगड़ा हुआ. उस ने लाजवंती को मारापीटा.

एक दिन दीपक घर देरी से पहुंचा. उस समय लाजवंती दीपक के आने का इंतजार कर रही थी. दीपक ने बहुत ज्यादा शराब पी रखी थी. आज वह जुए में 10,000 रुपए हार गया था. आज उस का लाजवंती से कुछ और चीज छीनने का इरादा था.

दीपक के आते ही लाजवंती ने थाली में खाना रख दिया. इस के बाद वह सोने के लिए जाने लगी कि तभी दीपक ने लाजवंती का हाथ पकड़ कर कहा, ‘लाजवंती, रुको. मुझे तुम से एक बात कहनी है.’

लाजवंती सम झ गई कि आज इस का नया नाटक है, फिर भी उस ने पूछा, ‘क्या बात है?’

दीपक ने कहा, ‘तुम मेरे पास तो आओ.’

लाजवंती उस के पास आ कर बोली, ‘मु झे बहुत नींद आ रही है. क्या बात करनी है, जल्दी कहो.’

दीपक ने लाजवंती का हाथ पकड़ कर बड़े प्यार से कहा, ‘मैं जो तुम से मांगना चाहता हूं, वह मु झे दोगी क्या?’

लाजवंती ने कहा, ‘क्या चाहिए आप को? मेरे पास देने लायक ऐसा कुछ भी नहीं है.’

दीपक ने लाजवंती को सम झाते हुए कहा, ‘मैं आज 10,000 रुपए जुए में हार गया हूं. वे रुपए मैं दोबारा जीतना चाहता हूं इसलिए मु झे तुम्हारी खास चीज की जरूरत है.’

लाजवंती ने कहा, ‘इस में मैं क्या कर सकती हूं? आप ने तो जुए व शराब में सबकुछ बेच दिया है. अब क्या बचा है? मु झे बेचना चाहते हो क्या?’

दीपक ने बड़े प्यार से कहा, ‘तुम भी कैसी बातें करती हो? मैं तुम्हें कैसे बेच सकता हूं, तुम तो मेरी धर्मपत्नी हो. मु झे तो तुम्हारा मंगलसूत्र चाहिए.’

लाजवंती ने गुस्सा जताते हुए कहा, ‘आप को कुछ शर्म आती है कि नहीं. यह मंगलसूत्र सुहाग की निशानी है. कुछ दिन पहले आप ने मेरे सोने के कंगन बेच दिए, मैं ने कुछ नहीं कहा, अब मंगलसूत्र बेच रहे हो, कुछ तो शर्म करो, आप कुछ भी कर लो, मैं मंगलसूत्र नहीं दूंगी.’

जब लाजवंती ने मंगलसूत्र देने से साफ मना कर दिया, तो दीपक को बहुत गुस्सा आया. वह बोला, ‘मैं तेरी फालतू बकवास नहीं सुनना चाहता हूं, इस समय मु झे केवल तुम्हारा मंगलसूत्र चाहिए. मु झे मंगलसूत्र दे दे.’

लाजवंती ने कहा, ‘मैं नहीं दूंगी मंगलसूत्र, यह मेरी आखिरी निशानी बची है.’

दीपक ने लाजवंती का हाथ पकड़ कर अपने पास खींचा और जलती हुई सिगरेट से उस के हाथ को दाग दिया. लाजवंती को बहुत दर्द हुआ.

लाजवंती ने दर्द से कराहते हुए कहा, ‘आप चाहे मु झे मार डालो, लेकिन मैं मंगलसूत्र नहीं दूंगी.’

इस के बाद दीपक ने लाजवंती का हाथ पकड़ कर उस के बदन को जलती हुई सिगरेट से जगहजगह दाग दिया. लाजवंती जोरजोर से चिल्लाने लगी.

लाजवंती के चिल्लाने से महल्ले वाले वहां इकट्ठा हो गए तो दीपक उन सब के सामने लाजवंती पर बदचलन होने का आरोप लगाने लगा.

लाजवंती ने रोते हुए कहा, ‘आप को  झूठ बोलते हुए शर्म नहीं आती. मेरे बदन को आप ने छलनी कर दिया. मु झे जलती हुई सिगरेट से दागा. मेरा कुसूर इतना सा था कि मैं ने अपना मंगलसूत्र आप को नहीं दिया और मैं यह मंगलसूत्र आप को नहीं दूंगी क्योंकि यह मेरी आखिरी निशानी है.’

लाजवंती की ऐसी हालत देख कर महल्ले वालों की आंखों में आंसू आ गए. सभी दीपक को भलाबुरा कहने लगे. दीपक ने उन्हें गालियां देते हुए दरवाजा बंद कर लिया और दोबारा लाजवंती को पीटने लगा.

लाजवंती ने अपने पापा को फोन लगाया, तो दीपक ने उस के हाथ से मोबाइल छीन कर फर्श पर फेंक दिया जिस से मोबाइल फोन टूट गया.

दीपक ने लाजवंती को फिर बुरी तरह से मारा, जिस से वह बेहोश हो गई. दीपक उस के गले से मंगलसूत्र खींच कर रात को ही घर से गायब हो गया.

जब अचानक रात को लाजवंती के बच्चे की नींद खुली तो मां को अपने पास न पा कर वह रोने लगा और बरामदे में चला आया और उस के पास बैठ गया. जब लाजवंती को होश आया तो उस ने अपने बेटे को गले से लगा लिया.

लाजवंती ने पाया कि उस के गले से मंगलसूत्र गायब था. वह सम झ गई थी कि दीपक ले गया है. उस ने घड़ी की तरफ देखा. सुबह के 5 बज चुके थे.

लाजवंती ने कुछ सोचते हुए अपने बेटे को साथ लिया और घर से निकल गई. पड़ोस की एक औरत से मोबाइल मांग कर अपने पापा को फोन लगा दिया.

पापा से बात कर के लाजो सीधी रेलवे स्टेशन की तरफ भागी. वह प्लेटफार्म के फ्लाईओवर की सीढि़यों पर अपने पापा का इंतजार करने लगी.

लाजवंती अपने खयालों में खोई थी कि उस के बेटे ने देखा कि कई छोटेछोटे बच्चे हाथ में कटोरा ले कर भीख मांग रहे थे. वह भी अपने छोटेछोटे हाथ आगे कर के भीख मांगने लगा.

इधर जब राधेश्याम की नींद खुली, तो वह उदयपुर पहुंच गया था.

उदयपुर स्टेशन पर उतर कर राधेश्याम जाने लगा, तभी अचानक कोई पीछे से उस की धोती पकड़ कर खींचने लगा.

राधेश्याम ने पीछे मुड़ कर देखा कि एक नन्हा बच्चा उन की धोती पकड़ कर हाथ आगे कर के भीख मांग रहा था.

राधेश्याम ने उस बच्चे को दुत्कारते हुए धक्का दिया, तो बच्चा दूर जा गिरा और रोने लगा.

बच्चे के रोने की आवाज सुन कर लाजवंती वहां आई. वह अपने बच्चे के पास जा कर उसे उठाने लगी.

राधेश्याम की नजर बेटी लाजो पर पड़ी. वह बोला, ‘‘लाजो, तुम यहां… ऐसी हालत में… तुम्हारी यह हालत किस ने बनाई?’’

लाजवंती ने देखा कि इस अनजान शहर में कौन लाजो कह कर पुकार रहा है. जब उस ने नजर उठा कर देखा तो सामने पापा खड़े हैं. वह जल्दी से दौड़ते हुए अपने पापा के गले लग कर रोने लगी.

राधेश्याम ने हिम्मत से काम लेते हुए अपने आंसुओं पर काबू पाते हुए कहा, ‘‘बेटी लाजो, आंसू मत बहा. मैं तु झे लेने ही आया हूं. चल, घर चलते हैं.’’

उस समय प्लेफार्म पर दूसरे मुसाफिरों ने पिता व बेटी को इस तरह आंसू बहाते हुए अनमोल मिलन व अनोखा प्यार देखा तो सभी भावुक हो गए.

राधेश्याम अपनी बेटी व नाती को ले कर गांव आ गया.

लाजवंती के साथ दीपक ने जो जोरजुल्म किए थे, लाजवंती ने अपनी मां व पिता को साफसाफ बता दिया.

लाजवंती ने कुछ महीनों बाद ही दीपक से तलाक ले लिया और नई जिंदगी की शुरुआत की.

अनोखा बदला : राधिका ने कैसे लिया बदला?

निर्मला से सट कर बैठा संतोष अपनी उंगली से उस की नंगी बांह पर रेखाएं खींचने लगा, तो वह कसमसा उठी. जिंदगी में पहली बार उस ने किसी मर्द की इतनी प्यार भरी छुअन महसूस की थी.

निर्मला की इच्छा हुई कि संतोष उसे अपनी बांहों में भर कर इतनी जोर से भींचे कि…

निर्मला के मन की बात समझ कर संतोष की आंखों में चमक आ गई. उस के हाथ निर्मला की नंगी बांहों पर फिसलते हुए गले तक पहुंच गए, फिर ब्लाउज से झांकती गोलाइयों तक.

तभी बाहर से आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘दीदी, चाय बन गई है…’’

संतोष हड़बड़ा कर निर्मला से अलग हो गया, जिस का चेहरा एकदम तमतमा उठा था, लेकिन मजबूरी में वह होंठ काट कर रह गई.

नीचे वाले कमरे में छोटी बहन उषा ने नाश्ता लगा रखा था. चायनाश्ता करने के बाद संतोष ने उठते हुए कहा, ‘‘अब चलूं… इजाजत है? कल आऊंगा, तब खाना खाऊंगा… कोई बढि़या सी चीज बनाना. आज बहुत जरूरी काम है, इसलिए जाना पड़ेगा…’’

‘‘अच्छा, 5 मिनट तो रुको…’’ उषा ने बरतन समेटते हुए कहा, ‘‘मुझे अपनी एक सहेली से नोट्स लेने हैं. रास्ते में छोड़ देना. मैं बस 5 मिनट में तैयार हो कर आती हूं.’’

उषा थोड़ी देर में कपड़े बदल कर आ गई. संतोष उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा कर चला गया.

उधर निर्मला कमरे में बिस्तर पर गिर पड़ी और प्यास अधूरी रह जाने से तड़पने लगी.

निर्मला की आंखों के आगे एक बार फिर संतोष का चेहरा तैर उठा. उस ने झपट कर दरवाजा बंद कर दिया और बिस्तर पर गिर कर मछली की तरह छटपटाने लगी.

निर्मला को पहली बार अपनी बहन उषा और मां पर गुस्सा आया. मां चायनाश्ता बनाने में थोड़ी देर और लगा देतीं, तो उन का क्या बिगड़ जाता. उषा कुछ देर उसे और न बुलाती, तो निर्मला को वह सबकुछ जरूर मिल जाता, जिस के लिए वह कब से तरस रही थी.

जब पिता की मौत हुई थी, तब निर्मला 22 साल की थी. उस से बड़ी कोई और औलाद न होने के चलते बीमार मां और छोटी बहन उषा को पालने की जिम्मेदारी बिना कहे ही उस के कंधे पर आ पड़ी थी.

निर्मला को एक प्राइवेट फर्म में अच्छी सी नौकरी भी मिल गई थी. उस समय उषा 10वीं जमात के इम्तिहान दे चुकी थी, लेकिन उस ने धीरेधीरे आगे पढ़ कर बीए में दाखिला लेते समय निर्मला से कहा था, ‘‘दीदी, मां की दवा में बड़ा पैसा खर्च हो रहा है. तुम अकेले कितना बोझ उठाओगी…

‘‘मैं सोच रही हूं कि 2-4 ट्यूशन कर लूं, तो 2-3 हजार रुपए बड़े आराम से निकल जाएंगे, जिस से मेरी पढ़ाई के खर्च में मदद हो जाएगी.’’

‘‘तुझे पढ़ाई के खर्च की चिंता क्यों हो रही है? मैं कमा रही हूं न… बस, तू पढ़ती जा,’’ निर्मला बोली थी.

अब निर्मला 30 साल की होने वाली है. 1-2 साल में उषा भी पढ़लिख कर ससुराल चली जाएगी, तो अकेलापन पहाड़ बन जाएगा.

लेकिन एक दिन अचानक मौका हाथ आ लगा था, तो निर्मला की सोई इच्छाएं अंगड़ाई ले कर जाग उठी थीं.

उस दिन दफ्तर में काम निबटाने के बाद सब चले गए थे. निर्मला देर तक बैठी कागजों को चैक करती रही थी. संतोष उस की मदद कर रहा था. आखिरकार रात के 10 बजे फाइल समेट कर वह उठी, तो संतोष ने हंस कर कहा था, ‘‘इस समय तो आटोरिकशा या टैक्सी भी नहीं मिलेगी, इसलिए मैं आप को मोटरसाइकिल से घर तक छोड़ देता हूं.’’

निर्मला ने कहा था, ‘‘ओह… एडवांस में शुक्रिया?’’

निर्मला को उस के घर के सामने उतार कर संतोष फिर मोटरसाइकिल स्टार्ट करने लगा, तो उस ने हाथ बढ़ा कर हैंडल थाम लिया और कहने लगी, ‘‘ऐसे कैसे जाएंगे… घर तक आए हैं, तो कम से कम एक कप चाय…’’

‘‘हां, चाय चलेगी, वरना घर जा कर भूखे पेट ही सोना पड़ेगा. रात भी काफी हो गई है. मैं जिस होटल में खाना खाता हूं, अब तो वह भी बंद हो चुका होगा.’’

‘‘आप होटल में खाते हैं?’’

‘‘और कहां खाऊंगा?’’

‘‘क्यों? आप के घर वाले?’’

‘‘मेरा कोई नहीं है. मैं मांबाप की एकलौती औलाद था. वे दोनों भी बहुत कम उम्र में ही मेरा साथ छोड़ गए, तब से मैं अकेला जिंदगी काट रहा हूं.’’

संतोष ने बहुत मना किया, लेकिन निर्मला नहीं मानी थी. उस ने जबरदस्ती संतोष को घर पर ही खाना खिलाया था.

अगले दिन शाम के 5 बजे निर्मला को देख कर मोटरसाइकिल का इंजन स्टार्ट करते हुए संतोष ने कहा था, ‘‘आइए… बैठिए.’’

निर्मला ने बिना कुछ बोले ही पीछे की सीट पर बैठ कर उस के कंधे पर हाथ रख दिया था. घर पहुंच कर उस ने फिर चाय पीने की गुजारिश की, तो संतोष ने 1-2 बार मना किया, लेकिन निर्मला उसे घर के अंदर खींच कर ले गई थी.

इस के बाद रोज का यही सिलसिला हो गया. संतोष को निर्मला के घर आने या रुकने के लिए कहने की जरूरत नहीं पड़ती थी, खासतौर से छुट्टी वाले दिन तो वह निर्मला के घर पड़ा रहता था. सब ने उसे भी जैसे परिवार का एक सदस्य मान लिया था.

एक दिन अचानक निर्मला का सपना टूट गया. उस दिन उषा अपनी सहेली के यहां गई थी. दूसरे दिन उस का इम्तिहान था, इसलिए वह घर पर बोल गई थी कि रातभर सहेली के साथ ही पढ़ेगी, फिर सवेरे उधर से ही इम्तिहान देने यूनिवर्सिटी चली जाएगी.

उस दिन भी संतोष निर्मला के साथ ही उस के घर आया था और खाना खा कर रात के तकरीबन 10 बजे वापस चला गया था.

उस के जाने के बाद निर्मला बाहर वाला दरवाजा बंद कर के अपने कमरे में लौट रही थी, तभी मां ने टोक दिया, ‘‘बेटी, तुझ से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

निर्मला का मन धड़क उठा. मां के पास बैठ कर आंखें चुराते हुए उस ने पूछा, ‘‘क्या बात है मां?’’

‘‘बेटी, संतोष कैसा लड़का है. वह तेरे ही दफ्तर में काम करता है… तू तो उसे अच्छी तरह जानती होगी.’’

निर्मला एकाएक कोई जवाब नहीं दे सकी.

मां ने कांपते हाथों से निर्मला का सिर सहलाते हुए कहा, ‘‘मैं तेरे मन का दुख समझती हूं बेटी, लेकिन इज्जत से बढ़ कर कुछ नहीं होता, अब पानी सिर से ऊपर जा रहा है, इसलिए…’’

निर्मला एकदम तिलमिला उठी. वह घबरा कर बोली, ‘‘ऐसा क्यों कहती हो मां? क्या तुम ने कभी कुछ देखा है?’’

‘‘हां बेटी, देखा है, तभी तो कह रही हूं. कल जब तू बाजार गई थी, तब दो घड़ी के लिए संतोष आया था. वह उषा के साथ कमरे में था.

‘‘मैं भी उन के साथ बातचीत करने के लिए वहां पहुंची, लेकिन दरवाजे पर पहुंचते ही मैं ने उन दोनों को जिस हालत में देखा…’’

निर्मला चिल्ला पड़ी, ‘‘मां…’’ और वह उठ कर अपने कमरे की ओर भाग गई.

निर्मला के कानों में मां की बातें गूंज रही थीं. उसे विश्वास नहीं हुआ. मां को जरूर धोखा हो गया है. ऐसा कभी नहीं हो सकता. लेकिन यही हो रहा था.

अगले दिन निर्मला दफ्तर गई जरूर, लेकिन उस का किसी काम में मन नहीं लगा. थोड़ी देर बाद ही वह सीट से उठी. उसे जाते देख संतोष ने पूछा, ‘‘क्या हुआ? तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

निर्मला ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘मेरी एक खास सहेली बीमार है. मैं उसे ही देखने जा रही हूं.’’

‘‘कितनी देर में लौटोगी?’’

‘‘मैं उधर से ही घर चली जाऊंगी.’’

बहाना बना कर निर्मला जल्दी से बाहर निकल आई. आटोरिकशा कर के वह सीधे घर पहुंची. मां दवा खा कर सो रही थीं. उषा शायद अपने कमरे में पढ़ाई कर रही थी. बाहर का दरवाजा अंदर से बंद नहीं था. इस लापरवाही पर उसे गुस्सा तो आया, लेकिन बिना कुछ बोले चुपचाप दरवाजा बंद कर के वह ऊपर अपने कमरे में चली गई.

इस के आधे घंटे बाद ही बाहर मोटरसाइकिल के रुकने की आवाज सुनाई पड़ी. निर्मला को समझते देर नहीं लगी कि जरूर संतोष आया होगा.

निर्मला कब तक अपने को रोकती. आखिर नहीं रहा गया, तो वह दबे पैर सीढि़यां उतर कर नीचे पहुंची. मां सो रही थीं.

वह बिना आहट किए उषा के कमरे के सामने जा कर खड़ी हो गई और दरवाजे की एक दरार से आंख सटा कर झांकने लगी. भीतर संतोष और उषा दोनों एकदूसरे में डूबे हुए थे.

उषा ने इठलाते हुए कहा, ‘‘छोड़ो मुझे… कभी तो इतना प्यार दिखाते हो और कभी ऐसे बन जाते हो, जैसे मुझे पहचानते नहीं.’’

संतोष ने उषा को प्यार जताते हुए कहा, ‘‘वह तो तुम्हारी दीदी के सामने मुझे दिखावा करना पड़ता है.’’

उषा ने हंस कर कहा, ‘‘बेचारी दीदी, कितनी सीधी हैं… सोचती होंगी कि तुम उन के पीछे दीवाने हो.’’

संतोष उषा को प्यार करता हुआ बोला, ‘‘दीवाना तो हूं, लेकिन उन का नहीं तुम्हारा…’’

कुछ पल के बाद वे दोनों वासना के सागर में डूबनेउतराने लगे. निर्मला होंठों पर दांत गड़ाए अंदर का नजारा देखती रही… फिर एकाएक उस की आंखों में बदले की भावना कौंध उठी. उस ने दरवाजा थपथपाते हुए पूछा, ‘‘संतोष आए हैं क्या? चाय बनाने जा रही हूं…’’

संतोष उठने को हुआ, तो उषा ने उसे भींच लिया, ‘‘रुको संतोष… तुम्हें मेरी कसम…’’

‘‘पागल हो गई हो. दरवाजे पर तुम्हारी दीदी खड़ी हैं…’’ और संतोष जबरदस्ती उठ कर कपड़े पहनने लगा.

उस समय उषा की आंखों में प्यार का एहसास देख कर एक पल के लिए निर्मला को अपना सारा दुख याद आया.

मां के कमरे के सामने नींद की गोलियां रखी थीं. उन्हें समेट कर निर्मला रसोईघर में चली गई. चाय छानने के बाद वह एक कप में ढेर सारी नींद की गोलियां डाल कर चम्मच से हिलाती रही, फिर ट्रे में उठाए हुए बाहर निकल आई.

संतोष ने चाय पी कर उठते हुए आंखें चुरा कर कहा, ‘‘मुझे बहुत तेज नींद आ रही है. अब चलता हूं, फिर मुलाकात होगी.’’

इतना कह कर संतोष बाहर निकला और मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के घर के लिए चला गया.

दूसरे दिन अखबारों में एक खबर छपी थी, ‘कल मोटरसाइकिल पेड़ से टकरा जाने से एक नौजवान की दर्दनाक मौत हो गई. उस की जेब में मिले पहचानपत्रों से पता चला कि संतोष नाम का वह नौजवान एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था’.

डबल क्रौस : विमला ने इंद्र और सोमेन से क्यों मोटी रकम वसूली

रोज की तरह सिटी पार्क में मौर्निंग वाक करते हुए इंद्र ने सोमेन को देखा तो उन्हें आवाज दी. इंद्र की आवाज सुन कर वह रुक गए. सोमेन कोलकाता के ही रहने वाले थे, जबकि इंद्र बिहार के. केंद्र सरकार की नौकरी होने की वजह से वह प्रमोशन और ट्रांसफर ले कर करीब 20 साल पहले कोलकाता आ गए थे और वहीं सैटल हो गए थे.

इंद्र और सोमेन एक ही औफिस में काम करते थे. सोमेन से इंद्र की जानपहचान हुई तो दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना शुरू हो गया. फिर तो दोनों परिवारों में काफी घनिष्ठता हो गई थी. दोनों इसी साल रिटायर हुए थे. सोमेन की एक ही बेटी थी, जो शादी के बाद पति के साथ अमेरिका चली गई थी.

इंद्र का भी एक ही बेटा था, जो आस्ट्रेलिया में नौकरी कर रहा था. बच्चों के बाहर होने की वजह से दोनों अपनीअपनी पत्नी के साथ रह रहे थे. इंद्र की आवाज सुन कर सोमेन रुके तो नजदीक पहुंच कर उन्होंने पूछा, ‘‘तुम तो 2 सप्ताह के लिए मसूरी गए थे. अभी तो 4-5 दिन हुए हैं. वहां मन नहीं लगा क्या, जो लौट आए?’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं है. हम लोग वहां पहुंचे ही थे कि अमेरिका से बेटी का फोन आ गया. तुम्हें तो पता ही है कि वह मां बनने वाली है. उस की डिलिवरी में कौंप्लीकेशंस हैं, इसलिए उस ने मां को फौरन बुला लिया.’’ सोमेन ने कहा.

‘‘लेकिन तुम तो कह रहे थे कि अभी डिलीवरी में 3 महीने बाकी हैं. भाभीजी के लिए 2 महीने बाद की टिकट भी बुक करा रखी थी?’’

‘‘हां, लेकिन बेटी के बुलाने पर एजेंट से उस की तारीख चेंज करा कर कल रात को ही उन्हें कोलकाता एयरपोर्ट से भेज दिया. अब तो 6 महीने से पहले आने वाली नहीं है. जरूरत पड़ी तो और भी रुक सकती हैं. ग्रीन कार्ड है न, वीजा का भी कोई चक्कर नहीं था.’’

‘‘तुम क्यों नहीं गए?’’ इंद्र ने पूछा.

‘‘मैं कुछ दिनों पहले ही तो लौटा हूं. अब डिलिवरी के समय जाऊंगा. फिर घर में थोड़ा काम भी लगवा रखा है. एक 2 रूम का सेट बनवा रहा हूं. कुछ किराया आ जाएगा. देखो न, आजकल कितनी महंगाई है.’’

‘‘चलो ठीक है, हम दोनों ही हैं. एकदूसरे से मिल कर मन लगा रहेगा.’’ इंद्र ने कहा.

‘‘भाई, जरा कामवाली विमला को बता देना कि मैं आ गया हूं, इसलिए मेरे यहां भी काम करने आ जाएगी. उसे तो यही पता है कि मैं 2 हफ्ते बाद आऊंगा. और बताओ, भाभीजी कैसी हैं?’’ सोमेन ने पूछा.

‘‘मेरी पत्नी को भी अचानक मायके जाना पड़ा. उस की मां को लकवा मार गया है. वह बिस्तर पर पड़ी हैं. अब तुम्हारी भाभी भी 4-5 महीने से पहले आने वाली नहीं है. चलो, चाय मेरे यहां से पी कर जाना.’’ इंद्र ने कहा.

‘‘चाय तुम बनाओगे?’’ सोमेन ने पूछा.

‘‘तुम्हें चाय पीने से मतलब. कौन बनाएगा, इस की चिंता क्यों कर रहे हो?’’

वैसे भी मौर्निंग वाक के बाद दोनों दोस्त किसी एक के घर ही चाय पीते थे. सोमेन इंद्र के साथ उस के घर पहुंचा. इंद्र ने ताला खोल कर सोमेन को ड्राइंगरूम में बैठाया. सोमेन को किचन में बरतनों के खटरपटर की आवाज सुनाई दी तो पूछा, ‘‘इंद्र, देखो किचन में बिल्ली है क्या?’’

किचन से विमला की आवाज आई, ‘‘हां, मैं ही बिल्ली हूं.’’

इतना कह कर उस ने 2 कप चाय ला कर मेज पर रख दिया. इंद्र ने उस की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘तुम्हारी भाभी मेरे खानेपीने, कपड़े धोने आदि का काम इसे सौंप गई हैं. मैं ने इसे पीछे के दरवाजे की चाबी दे रखी है. मेरे न रहने पर यह पीछे से आ कर अपना काम करने लगती है. इसीलिए तो हमारे आते ही चाय मिल गई.’’ इस के बाद उन्होंने विमला से कहा, ‘‘तुम ने अपनी चाय हमें दे दी, अपने लिए दूसरी बना लेना.’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं अपने लिए चाय बना लूंगी.’’ कह कर विमला जाने लगी तो सोमेन ने कहा, ‘‘विमला, मैं तुम्हें संदेश भिजवाने वाला था कि मेरे यहां भी आ जाना. बरतन, झाड़ू और पोंछा के अलावा मेरा भी खाना बना देना.’’

‘‘यहां के लिए तो मेमसाहब कह कर गई हैं कि साहब के सारे काम कर देना. आप की मेमसाहब के कहे बगैर मैं किचन का काम नहीं कर सकती.’’ विमला ने कहा.

‘‘ठीक है, अभी तो वह रास्ते में होंगी, कल आओगी तो मैं उन से तुम्हारी बात करा दूंगा.’’ सोमेन ने कहा.

इंद्र ने सोमेन को बताया कि उन की पत्नी के कहने पर ही विमला घर के सारे काम करने को तैयार हुई थी. पीछे वाले दरवाजे की चाबी देने का सुझाव भी उन्हीं का था, ताकि मैं घर में न भी रहूं तो यह आ कर काम कर दे. पहले तो इस ने बहुत नखरे दिखाए, पर जब उन्होंने कहा कि इसी के भरोसे साहब को छोड़ कर जा रही हूं, तब जा कर यह तैयार हुई.

अगले दिन सोमेन ने फोन पर वीडियो कालिंग कर के पत्नी की विमला से बात करा दी. सोमेन की पत्नी को भी उस की खुशामद करनी पड़ी. उन्होंने कहा कि साहब को बाहर का खाना बिलकुल सूट नहीं करता, इसलिए अपना घर समझ कर वह साहब का खयाल रखे.

इस पर विमला ने नखरे दिखाते हुए कहा था, ‘‘ठीक है, आप इतना कह रही हैं तो मैं आप के घर को अपने जैसा ही समझूंगी. आप इत्मीनान रखें, साहब को भूखा नहीं रहने दूंगी. पर इंदरजी के यहां भी सारा काम करना पड़ता है, इसलिए थोड़ी देरसबेर हो सकती है. फिर भी मैं सारे काम कर दूंगी.’’

विमला को दोनों घरों के बैक डोर की चाबी मिल गई. वह अंदर ही अंदर बहुत खुश थी, क्योंकि दोनों घरों में जम कर खानेपीने को मिल रहा था. अब वह थोड़ा बनठन कर साफसुथरे कपड़े पहन कर बालों में खुशबूदार तेल डाल कर आने लगी थी. वह हमेशा खुश दिखती थी और इंद्र तथा सोमेन से खूब हंसहंस कर बातें करती थी.

विमला देखने में साधारण थी. उस की उम्र 35 साल के करीब थी. उस का पति शंकर भी दोनों घरों में माली का काम करता था. वह काफी दुबलापतला मरियल सा था. अगर 3-4 लोग एक साथ जोर से फूंक दें तो वह उड़ सकता था. स्वभाव से वह भोलाभाला और एकदम सीधासादा था.

विमला दोनों दोस्तों से खूब चिकनीचुपड़ी बातें करती हुई अपनी अदाओं से उन्हें लुभाती रहती. कभी चायपानी देते वक्त जानबूझ कर पल्लू गिरा कर अपने वक्षस्थल दिखाने की कोशिश करती तो कभी किचन में बौलीवुड के भड़काऊ गीत ‘बीड़ी जलइले जिगर से…जिगर मा बड़ी आग है’ गुनगुनाने लगती. इसी तरह महीना बीत गया.

एक दिन विमला सुबह इंदर के यहां थोड़ा देर से आई. इंद्र ने वजह पूछी तो उस ने कहा, ‘‘कल रात आप के दोस्त के यहां देर हो गई. वह बहुत देर तक बातें करते रहे. कह रहे थे कि एक भूख तो मिट जाती है, लेकिन दूसरी का क्या करूं? यह दूसरी भूख क्या होती है साहब?’’

‘‘बस, यही समझ लो कि शंकर तुम से पेट और देह दोनों की भूख मिटा लेता है. वैसे दूसरी भूख तो सभी को लगती है, मुझे भी लगती है. पर मुझ बूढ़े को कौन पूछता है? क्या सचमुच हम इतने बूढ़े हो गए हैं?’’ इंद्र ने विमला को चाहत भरी नजरों से ताकते हुए कहा.

‘‘नहीं साहब, आप को देख कर तो कोई नहीं कह सकता कि आप रिटायर्ड हैं. रही बात मेरे मर्द की तो उस के शरीर में कहां दम है. फिर रात में पी कर आता है और लुढ़क जाता है. 5 साल हो गए, एक औलाद तक नहीं दे पाया. मैं अपना मर्द और एक बेटा छोड़ कर इस के साथ शहर आई थी कि यह मुझे उस से ज्यादा खुश रखेगा, लेकिन यह उस से भी बेकार निकला.’’

‘‘सचमुच.’’ इंद्र ने विमला को बांहों में भर कर कहा, ‘‘सोमेन से कुछ मत बताना. चलो, कमरे में चलते हैं.’’

इस के बाद जो नहीं होना चाहिए था, वह हो गया. इस के 2 दिनों बाद विमला सोमेन के यहां दिन में न जा कर रात में गई. सोमेन के पूछने पर उस ने कहा, ‘‘आप के दोस्त के यहां आज बहुत काम था, इसलिए देर होने पर वहीं से अपने घर चली गई थी. मर्द भी तो भूखा बैठा था.’’

‘‘अच्छा चलो, बुड्ढे को दिन भर उपवास करा दिया, जल्दी खाना बना कर पेट की भूख मिटाओ.’’

‘‘बूढ़े हों आप के दुश्मन, आप का तो क्या गठीला बदन है. आप को सिर्फ पेट की ही भूख मिटानी है?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब क्या, आप ने ही तो कहा था कि एक और भूख होती है. फिर मेमसाहब ने भी अपने जैसा खयाल रखने को कहा था.’’

‘‘अरे भई, तू तो बड़ी समझदार हो गई है.’’ कह कर सोमेन ने विमला को बांहों में भर कर चूम लिया. उस ने भी कोई ऐतराज नहीं किया तो उन्होंने कहा, ‘‘चलो बैड पर, पेट की भूख की बाद में सोचेंगे.’’

उस दिन विमला सोमेन के साथ भी हमबिस्तर हो गई. रात को जाते समय सोमेन ने कहा, ‘‘देखो, इस बात की चर्चा इंद्र से भूल कर भी मत करना.’’

‘‘बिलकुल नहीं करूंगी, मैं इतनी बेवकूफ नहीं हूं कि इस तरह की बात किसी से कह दूं.’’ कह कर विमला चली गई.

एक दिन विमला ने अपने पति शंकर से कहा, ‘‘हमारे दोनों साहब आजकल कुछ ज्यादा ही रंगीनमिजाज हो रहे हैं. अगर तुम मेरा साथ दो तो मैं इन दोनों का ठीक से इलाज कर दूं.’’

इस के बाद उस ने शंकर से अपनी योजना बता दी. उस ने हामी भरते हुए कहा, ‘‘ऐसा हुआ तो अपने दिन सुधर जाएंगे.’’

इस तरह विमला 2 महीने के अंदर ही दोनों दोस्तों की घरवाली बन गई. उधर दोनों की पत्नियां विमला को फोन कर के समझाती रहती थीं कि साहब को किसी तरह की तकलीफ न होने पाए. विमला भी उन्हें निश्चिंत रहने को कहती थी. तीसरा महीना होतेहोते उस ने एक दिन सोमेन से कहा, ‘‘मैं ने सावधानी बरतने को कहा था, पर आप माने नहीं. मुझे गर्भ ठहर गया है.’’

‘‘इस में चिंता की क्या बात है, तुम शादीशुदा हो, यह बच्चा शंकर का होगा.’’

‘‘उस का कहां से होगा, उस नामर्द को तो 5 साल से झेल रही हूं. असली मर्द तो आप मिले हैं. इस में कोई शक नहीं कि मेरे पेट में आप का ही अंश है.’’

‘‘अच्छा चुप रह. यह जिस का भी हो, कहलाएगा तो शंकर का ही. अगर तुम चाहो तो मैं डाक्टर से कह कर इसे गिरवा दूं.’’

‘‘ना बाबा, बड़ी मुश्किल से तो यह दिन देखने को मिला है. आप चिंता न करें, आप का नाम नहीं लूंगी.’’

कुछ दिनों बाद विमला ने अपने गर्भवती होने की बात इंद्र से भी कह दी. उस ने भी कहा, ‘‘घबराती क्यों है, इस का शंकर ही बाप कहलाएगा.’’

विमला ने दोनों दोस्तों को अपने गर्भवती होने की बात बता कर ठगना शुरू कर दिया. अपना फूला हुआ पेट दिखा कर कभी डाक्टर से इलाज और दवादारू के पैसे लेती तो कभी छुट्टी ले कर बैठ जाती. धीरेधीरे उस के पेट का फूलना बढ़ता गया. एक दिन सोमेन ने कहा, ‘‘जरा पूजाघर की सफाई अच्छे से कर दे.’’

विमला ने कहा, ‘‘आज बहुत काम है, बाद में कर दूंगी.’’

एक महीने बाद फिर सोमेन ने पूजाघर साफ करने को कहा तो फिर वही जवाब मिला. सोमेन बेटी की डिलिवरी के समय एक महीने के लिए अमेरिका चला गया. डिलिवरी के बाद डाक्टर ने सलाह दी कि बेबी कमजोर है, इसलिए एक साल तक डे केयर में न दे कर उस की परवरिश घर में ही की जाए.

सोमेन ने इंडिया लौट कर इंद्र को बताया कि पत्नी के लौटने में अभी देर है. उधर इंद्र की पत्नी ने कहा था कि मां के पास किसी न किसी का रहना जरूरी है. उस के भाई का लड़का 12वीं कक्षा में है. बोर्ड की परीक्षा के बाद ही उन की भाभी आ कर संभालेंगी. इंद्र भी कुछ दिनों के लिए अपनी सास से मिलने चला गया था.

दोनों दोस्तों की पत्नियां बारबार फोन कर के विमला को दोनों का खयाल रखने के लिए कहती रहती थीं. विमला को और क्या चाहिए था. उस की तो पांचों अंगुलियां घी में थीं. विमला ने दोनों की पत्नियों से कहा था, ‘‘आप को पता होना चाहिए कि मैं उम्मीद से हूं. डिलिवरी के समय कुछ दिनों तक मैं काम पर नहीं आ सकूंगी. तब कोशिश करूंगी कि कोई कामवाली आ कर काम कर जाए.’’

विमला इंद्र और सोमेन से कहती थी कि डाक्टर ने फल और टौनिक लेने के लिए कहा है, क्योंकि बच्चा काफी कमजोर है. आखिर यह उन का ही तो खून है. भले ही शंकर का कहलाए, लेकिन इसे बढि़या खानापीना मिलते रहना चाहिए. डाक्टर कहते हैं कि पेट चीर कर डिलिवरी होगी. काफी पैसा लगेगा उस में.

इंद्र और सोमेन यही समझ रहे थे कि विमला के पेट में उन्हीं का अंश पल रहा है, इसलिए चुपचाप विमला को बरदाश्त कर रहे थे. हमेशा ही मन में डर बना रहता था कि अगर विमला का मुंह खुल गया तो वे किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. उन्हें यह भी विश्वास था कि विमला को ज्यादा पैसों का लालच नहीं है, वरना वह चाहती तो और भी हथकंडे अपना कर ब्लैकमेल कर सकती थी.

एक दिन सोमेन ने कहा, ‘‘विमला, तेरे मर्द को भी तो बच्चे की चिंता होनी चाहिए न?’’

‘‘वह नशेड़ी कुछ नहीं करेगा. यह बच्चा आप ही का है, आप चाहें तो चल कर टेस्ट करा लें.’’

‘‘नहीं, टेस्ट की कोई जरूरत नहीं है.’’

विमला की डिलिवरी का समय नजदीक आ गया. उस ने इंद्र से कहा, ‘‘डाक्टर ने कहा है कि औपरेशन से बच्चा होगा. काफी खर्च आएगा साहब. हम कहां से इतना पैसा लाएंगे?’’

इसी बहाने विमला ने इंद्र और सोमेन से मोटी रकम वसूली. दोनों से 3 सप्ताह की छुट्टी मांगते हुए उस ने कहा कि वे कहें तो वह एक टेंपरेरी कामवाली का इंतजाम कर दे. रिश्ते में उस की चचिया सास लगती है, पर जरा बूढ़ी है. वह सफाई से भी नहीं रहती, लेकिन उन का काम चल जाएगा.

दोनों ने मना कर दिया कि किसी तरह वे काम चला लेंगे.

दोनों दोस्त अकसर देर तक साथ बैठ कर बातें करते और टोस्ट, खिचड़ी, पोहा आदि खा कर काम चलाते. कभीकभी होटल जा कर खा आते. इसी तरह 3 सप्ताह बीत गए. एक दिन विमला सोमेन के यहां आई. इंद्र भी वहीं बैठा था. उन्होंने कहा, ‘‘चलो भई, आज से अब विमला घर संभालेगी. हम लोग इतने दिनों में बिलकुल थक गए. अरे तेरा बच्चा कैसा है, बेटा हुआ या बेटी?’’

‘‘9 महीने पेट में पाला, मुआ बड़ा बेदर्द निकला. मरा हुआ पैदा हुआ. इतना बड़ा चीरा भी लगा पेट में.’’ विमला रोने का नाटक करते हुए साड़ी में हाथ लगा कर बोली, ‘‘दिखाऊं आप लोगों को?’’

दरिंदे से बदला: क्या हुआ था राजेश सिंह के साथ

पड़ोसी राजेश सिंह के घर मन रहे जश्न का शोर सोनाली के कानों में पिघले सीसे की तरह उतर रहा था. सारे खिड़कीदरवाजे बंद कर कानों को कस कर दबाए वह अपना सिर घुटनों में छिपा कर बैठी थी लेकिन रहरह कर एक जोर का कहकहा लगता और सारी मेहनत बेकार हो जाती.

पास बैठा सोनाली का पति सुरेंद्र भरी आवाज में उसे दिलासा देने में जुटा था, ‘‘ऐसे हिम्मत मत हारो… ठंडे दिमाग से सोचेंगे कि आगे क्या करना है.’’

सुरेंद्र के बहते आंसू सोनाली की साड़ी और चादर पर आसरा पा रहे थे. बच्चों को दूसरे कमरे में टैलीविजन देखने के लिए कह दिया गया था.

6 साल का विकी तो अपनी धुन में मगन था लेकिन 10 साल का गुड्डू बहुतकुछ समझने की कोशिश कर रहा था. विकी बीचबीच में उसे टोक देता मगर वह किसी समझदार की तरह उसे कोई नया चैनल दिखा कर बहलाने लगता था.

2 साल पहले तक सोनाली की जिंदगी में सबकुछ अच्छा चल रहा था. पति की साधारण सरकारी नौकरी थी, पर उन के छोटेछोटे सपनों को पूरा करने में कभी कोई अड़चन नहीं आई थी. पुराना पुश्तैनी घर भी प्यार की गुनगुनाहट से महलों जैसा लगता था. बूढ़े सासससुर बहुत अच्छे थे. उन्होंने सोनाली को मांबाप की कमी कभी महसूस नहीं होने दी थी.

एक दिन सुरेंद्र औफिस से अचानक घबराया हुआ लौटा और कहने लगा था, ‘कोई नया मंत्री आया है और उस ने तबादलों की झड़ी लगा दी है. मुझे भी दूसरे जिले में भेज दिया गया है.’

‘क्या…’ सोनाली का दिल धक से रह गया था. 2 घंटे तक अपने परिवार से दूर रहने से घबराने वाला सुरेंद्र अब

2 हफ्ते में एक बार घर आ पाता था. बच्चे भी बहुत उदास हुए, लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता. मनचाही जगह पर पोस्टिंग मिल तो जाती, मगर उस की कीमत उन की पहुंच से बाहर थी.

हार कर सोनाली ने खुद को किसी तरह समझा लिया था. वीडियो काल, चैटिंग के सहारे उन का मेलजोल बना रहता था. जब भी सुरेंद्र घर आता था, सोनाली को रात छोटी लगने लगती थी. सुरेंद्र की बांहों में भिंच कर वह प्यार का इतना रस निचोड़ लेने की कोशिश करती थी कि उन का दोबारा मिलन होने तक उसे बचाए रख सके. उस के दिल की इस तड़प को समझ कर निंदिया रानी तो उन्हें रोकटोक करने आती नहीं थी. बिस्तर से ले कर जमीन तक बिखरे दोनों के कपड़े भी सुबह होने के बाद ही उन को आवाज देते थे.

जिंदगी की गाड़ी चलती रही, लेकिन अपनी दुनिया में मगन रहने वाली सोनाली एक बड़े खतरे से अनजान थी. उस खतरे का नाम राजेश सिंह था जो ठीक उन के पड़ोस में रहता था.

शरीर से बेहद लंबेतगड़े राजेश को न अपनी 55 पार कर चुकी उम्र का कोई लिहाज था और न ही गांव के रिश्ते से कहे जाने वाले ‘चाचा’ शब्द का. उस की गंदी नजरें खूबसूरत बदन की मालकिन सोनाली पर गड़ चुकी थीं.

दबंग राजेश सिंह हत्या, देह धंधा जैसे अनेक मामलों में फंस कर कई बार जेल जा चुका था लेकिन हमेशा किसी न किसी से पैरवी करा कर बाहर आ जाता था. सुरेंद्र का साधारण समुदाय से होना भी राजेश सिंह की हिम्मत बढ़ाता था.

राजेश सिंह का कोई तय काम नहीं था. बेटों की मेहनत पर खेतों से आने वाला अनाज खा कर पड़े रहना और चुनाव के समय अपनी जाति के नेताओं के पक्ष में इधर से उधर दलाली करना उस का पेशा था. हालांकि बेटे भी कोई दूध के धुले नहीं थे. बाकी सारा समय अपने दरवाजे पर किसीकिसी के साथ बैठ कर यहांवहां की गप हांकना राजेश सिंह की आदत थी.

सोनाली बाहर कम ही निकलती थी, लेकिन जब भी जाती और राजेश सिंह को पता चल जाता तो घर से निकलने से ले कर वापस लौटने तक वह उस को ही ताकता रहता. उस के उभारों और खुले हिस्सों को तो वह ऐसे देखता जैसे अभी खा जाएगा.

एक दिन सोनाली जब आटोरिकशा पर चढ़ रही थी तो उस की साड़ी के उठे भाग के नीचे दिख रही पिंडलियों को घूरने की धुन में राजेश सिंह अपने दरवाजे पर ठोकर खा कर गिरतेगिरते बचा. उस के साथ बैठे लोग जोर से हंस पड़े. सोनाली ने घूम कर उन की हंसी देखी भी, पर उन की भावना नहीं समझ पाई.

आखिर वह दिन भी आया जिस ने सोनाली का सबकुछ छीन लिया. उस के सासससुर किसी संबंधी के यहां गए हुए थे और छोटा बेटा विकी नानी के घर था. बड़ा बेटा गुड्डू स्कूल में था. बाहर हो रही तेज बारिश की वजह से मोबाइल नैटवर्क भी खराब चल रहा था जिस के चलते सोनाली और सुरेंद्र की ठीक से बात नहीं हो पा रही थी. ऊब कर उस ने मोबाइल फोन बिस्तर पर रखा और नहाने चली गई.

सोनाली ने दोपहर के भोजन के लिए दालचावल चूल्हे पर पहले ही चढ़ा दिए थे और नहाने के बीच में कुकर की सीटियां भी गिन रही थी. हमेशा की तरह उस का नहाना पूरा होतेहोते कुकर ने अपना काम कर लिया. सोनाली ने जल्दीजल्दी अपने बालों और बदन पर तौलिए लपेटे और बैडरूम में भागी आई. बालों को झटपट पोंछ कर उस ने बिस्तर पर रखे नए सूखे कपड़े पहनने के लिए जैसे

ही अपने शरीर पर

बंधा तौलिया हटाया कि अचानक

2 मजबूत हाथों ने उसे पीछे से दबोच लिया.

अचानक हुए इस हमले से बौखलाई सोनाली ने पीछे मुड़ कर देखा तो हमलावर राजेश सिंह था जो छत के रास्ते उस के घर में घुस आया था और कमरे में पलंग के नीचे छिप कर उस का ही इंतजार कर रहा था. उस के मुंह से शराब की तेज गंध भी आ रही थी.

सोनाली चीखती, इस से पहले ही किसी दूसरे आदमी ने उस का मुंह भी दबा दिया. वह जितना पहचान पाई उस के मुताबिक वह राजेश सिंह का खास साथी भूरा था और उम्र में राजेश सिंह के ही बराबर था.

सोनाली के कुछ सोचने से पहले ही वे दोनों उसे पलंग पर लिटा कर वहां रखी उस की ही साड़ी के टुकड़े कर उसे बांध चुके थे. सोनाली के मुंह पर भूरा ने अपना गमछा लपेट दिया था.

इस के बाद राजेश सिंह ने पहले तो कुछ देर तक अपनी फटीफटी आंखों

से सोनाली के जिस्म को ऊपर से नीचे तक देखा, फिर उस के ऊपर झुकता चला गया.

काफी देर बाद हांफता हुआ राजेश सिंह सोनाली के ऊपर से उठा. भयंकर दर्द से जूझती, पसीने से तरबतर सोनाली सांयसांय चल रहे सीलिंग फैन को नम आंखों से देख रही थी. टैलीविजन पर रखा सोनाली, सुरेंद्र और बच्चों का ग्रुप फोटो गिर कर टूट चुका था. रसोईघर में चूल्हे पर चढ़े दालचावल सोनाली के सपनों की तरह जल कर धुआं दे रहे थे.

इस के बाद भूरा बेशर्मी से हंसता हुआ अपनी हवस मिटाने के लिए बढ़ा. राजेश सिंह बिस्तर पर पड़े सोनाली के पेटीकोट से अपना पसीना पोंछ रहा था.

भूरा ने अपने हाथ सोनाली के कूल्हों पर रखे ही थे कि तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई.

राजेश सिंह ने दरवाजे की झिर्री से झांका तो गुड्डू की स्कूल वैन का ड्राइवर उसे साथ ले कर खड़ा था.

राजेश सिंह ने जल्दी से भूरा को हटने का इशारा किया. वह झल्लाया चेहरा लिए उठा और अपने कपड़े ठीक करने लगा.

‘तुम ने बहुत ज्यादा समय ले ही लिया इस के साथ, नहीं तो हम को भी मौका मिल जाता न,’ भूरा भुनभुनाया. लेकिन राजेश सिंह ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया और जैसेतैसे अपने कपड़े पहन कर जिधर से आया था, उधर से ही भाग गया.

जब दरवाजा नहीं खुला तो गुड्डू के कहने पर ड्राइवर ने ऊपर से हाथ घुसा कर कुंडी खोली. घुसते ही अंदर के कमरे का सब नजारा दिखता था. ड्राइवर के तो होश उड़ गए. उस ने शोर मचा दिया.

सुरेंद्र आननफानन आया. सोनाली के बयान पर राजेश सिंह और भूरा पर केस दर्ज हुए. दोनों की गिरफ्तारी भी हुई लेकिन राजेश सिंह ने अपनी पहचान के नेता से बयान दिलवा लिया कि घटना वाले दिन वह और भूरा उस के साथ मीटिंग में थे. मैडिकल जांच पर भी सवाल खड़े कर दिए गए.

कुछ समाचार चैनलों और स्थानीय महिला संगठनों ने थोड़े दिनों तक अपनीअपनी पब्लिसिटी के लिए प्रदर्शन जरूर किए, बाद में अचानक शांत

पड़ते गए.

सालभर होतेहोते राजेश सिंह और भूरा दोनों बाइज्जत बरी हो कर निकल आए. ऊपरी अदालत में जाने लायक माली हालत सुरेंद्र की थी नहीं.

आज राजेश सिंह के घर पर हो रही पार्टी सुरेंद्र और सोनाली के घावों पर रातभर नमक छिड़कती रही. इस के बाद राजेश सिंह और भी छुट्टा सांड़ हो गया. छत पर जब भी सोनाली से नजरें मिलतीं, वह गंदे इशारे कर देता. इस सदमे से सोनाली के सासससुर भी बीमार रहने लगे थे.

राजेश सिंह के छूट जाने से सोनाली के मन में भरा डर अब और बढ़ने लगा था. रातों को अपने निजी अंगों पर सुरेंद्र का हाथ पा कर भी वह बुरी तरह से चौंक कर जाग उठती थी.

कई बार सोनाली के मन में खुदकुशी का विचार आया, लेकिन अपने पति और बच्चों का चेहरा उसे यह गलत कदम उठाने नहीं देता था.

दिन बीतते गए. गुड्डू का जन्मदिन आ गया. केवल उस की खुशी के लिए सोनाली पूरे परिवार के साथ होटल चलने को राजी हो गई. खाना खाने के बाद वे लोग काउंटर पर बिल भर रहे थे कि तभी सामने राजेश सिंह दिखाई दिया. सफेद कुरतापाजामा पहने हुए वह एक पान की दुकान की ओट में किसी से मोबाइल फोन पर बात कर रहा था.

राजेश सिंह पर नजर पड़ते ही सोनाली के मन में उसी दिन का उस का हवस से भरा चेहरा घूमने लगा. उस के द्वारा फोन पर कहे जा रहे शब्द उसे वही आवाज लग रहे थे जो उस की इज्जत लूटते समय वह अपने मुंह से निकाल रहा था.

सोनाली का दिमाग तेजी से चलने लगा. उबलते गुस्से और डर को काबू

में रख वह आज अचानक कोई फैसला ले चुकी थी. उस ने सुरेंद्र के कान में कुछ कहा.

सुरेंद्र ने बच्चों से खाने की मेज पर ही बैठ कर इंतजार करने को बोला और होटल के दरवाजे के पास आ कर खड़ा हो गया.

सोनाली ने आसपास देखा और राजेश सिंह के ठीक पीछे आ गई. वह अपनी धुन में था इसलिए उसे कुछ पता नहीं चला. सोनाली ने अपने पेटीकोट की डोरी पहले ही थोड़ी ढीली कर ली थी. उस ने राजेश सिंह का दूसरा हाथ पकड़ा और अपने पेटीकोट में डाल लिया.

राजेश सिंह ने चौंक कर सोनाली की तरफ देखा. वह कुछ समझ पाता, इस

से पहले ही सोनाली उस का हाथ पकड़ेपकड़े रोते हुए चिल्लाने लगी, ‘‘अरे, यह क्या बदतमीजी है? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे साथ ऐसी घटिया हरकत करने की?’’

सोनाली के चिल्लाते ही सुरेंद्र होटल से भागाभागा वहां आया और उस ने राजेश सिंह पर मुक्कों की बरसात कर दी. वह मारतेमारते जोरजोर से बोल रहा था, ‘‘राह चलती औरत के पेटीकोट में हाथ डालेगा तू?’’

जिन लोगों ने राजेश सिंह का हाथ सोनाली के पेटीकोट में घुसा देख लिया था, वे भी आगबबूला हुए उधर दौड़े और उस को पीटने लगे.

भीड़ जुटती देख सुरेंद्र ने अपने जूते के कई जोरदार वार राजेश सिंह के पेट और गुप्तांग पर कर दिए और मौका पा कर भीड़ से निकल गया.

जब तक कुछ लोग बीचबचाव करते, तब तक खून से लथपथ राजेश सिंह मर चुका था. जो सजा उसे बलात्कार के आरोप में मिलनी चाहिए थी, वह उसे छेड़खानी के आरोप ने दिलवा दी थी.

तरकीब: क्या खुद को बचा पाई झुमरी

लेखक- जयप्रकाश

रतन सिंह की निगाहें पिछले कई दिनों से झुमरी पर लगी हुई थीं. वह जब भी उसे देखता, उस के मुंह से एक आह निकल जाती. झुमरी की खिलती जवानी ने उस के तनमन में एक हलचल सी मचा दी थी और वह उसे हासिल करने को बेताब हो उठा था. वैसे भी रतन सिंह के लिए ऐसा करना कोई बड़ी बात न थी. वह गांव के दबंग गगन सिंह का एकलौता और बिगड़ैल बेटा था. कई जरूरतमंद लड़कियों को अपनी हवस का शिकार उस ने बनाया था. झुमरी तो वैसे भी निचली जाति की थी. झुमरी 20वां वसंत पार कर चुकी एक खूबसूरत लड़की थी. गरीबी में पलीबढ़ी होने के बावजूद जवानी ने उस के रूप को यों निखारा था कि देखने वालों की निगाहें बरबस ही उस पर टिक जाती थीं. गोरा रंग, भरापूरा बदन, बड़ीबड़ी कजरारी आंखें और हिरनी सी मदमस्त चाल.

इस सब के बावजूद झुमरी में एक कमी थी. वह बोल नहीं सकती थी, पर उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था. वह अपनेआप में मस्त रहने वाली लड़की थी. झुमरी घर के कामों में अपनी मां की मदद करती और खेत के काम में अपने बापू की. उस के बापू तिलक के पास जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा था, जिस के सहारे वह अपने परिवार को पालता था. वैसे भी उस का परिवार छोटा था. परिवार में पतिपत्नी और 2 बच्चे, झुमरी और शंकर थे. अपनी खेती से समय मिलने पर तिलक दूसरों के खेतों में भी मजदूरी का काम कर लिया करता था. गरीबी में भी तिलक का परिवार खुश था. परंतु कभीकभी पतिपत्नी यह सोच कर चिंतित हो उठते थे कि उन की गूंगी बेटी को कौन अपनाएगा?

झुमरी इन सब बातों से बेखबर मजे में अपनी जिंदगी जी रही थी. वह दिमागी रूप से तेज थी और गांव के स्कूल से 10 वीं जमात तक पढ़ाई कर चुकी थी. उसे खेतखलिहान, बागबगीचों से प्यार था. गांव के दक्षिणी छोर की अमराई में झुमरी अकसर शाम को आ बैठती और पेड़ों के झुरमुट में बैठे पक्षियों की आवाज सुना करती. कोयल की आवाज सुन कर उस का भी जी चाहता कि वह उस के सुर में सुर मिलाए, पर वह बोल नहीं सकती थी. झुमरी की इस कमी को रतन सिंह ने अपनी ताकत समझा. उस ने पहले तो झुमरी को तरहतरह के लालच दे कर अपने प्रेमजाल में फांसना चाहा और जब इस में कामयाब न हुआ, तो जबरदस्ती उसे हासिल करने का मन बना लिया. रात घिर आई थी. चारों तरफ अंधेरा हो चुका था. आज झुमरी को खेत से लौटने में देर हो गई थी. पिछले कई दिनों से उस की ताक में लगे रतन सिंह की नजर जब उस पर पड़ी, तो उस की आंखों में एक तेज चमक जाग उठी.

मौका अच्छा जान कर रतन सिंह उस के पीछे लग गया. एक तो अंधेरा, ऊपर से घर लौटने की जल्दी. झुमरी को इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि कोई उस के पीछे लगा हुआ है. वह चौंकी तब, जब अमराई में घुसते ही रतन सिंह उस का रास्ता रोक कर खड़ा हो गया. ‘‘मैं ने तुम्हारा प्यार पाने की बहुत कोशिश की…’’ रतन सिंह कामुक निगाहों से झुमरी के उभारों को घूरता हुआ बोला, ‘‘तुम्हें तरहतरह से रिझाया. तुम से प्रेम निवेदन किया, पर तू न मानी. आज अच्छा मौका है. आज मैं छक कर तेरी जवानी का रसपान करूंगा.’’ रतन सिंह का खतरनाक इरादा देख झुमरी के सारे तनबदन में डर की सिहरन दौड़ गई. उस ने रतन सिंह से बच कर निकल जाना चाहा, पर रतन सिंह ने उसे ऐसा नहीं करने दिया. उस ने झपट कर झुमरी को अपनी बांहों में भर लिया.

झुमरी ने चिल्लाना चाहा, पर उस के होंठों से शब्द न फूटे. झुमरी को रतन सिंह की आंखों में वासना की भूख नजर आई. रतन सिंह झुमरी को खींचता हुआ अमराई के बीचोंबीच ले आया और जबरदस्ती जमीन पर लिटा दिया. इस के पहले कि झुमरी उठे, वह उस पर सवार हो गया. झुमरी उस के चंगुल से छूटने के लिए छटपटाने लगी. दूसरी ओर वासना में अंधा रतन सिंह उस के कपड़े नोचने लगा. उस ने अपने बदन का पूरा भार झुमरी के नाजुक बदन पर डाल दिया, फिर किसी भूखे भेडि़ए की तरह उसे रौंदने लगा. झुमरी रो रही थी, तड़प रही थी, आंखों ही आंखों में फरियाद कर रही थी, लेकिन रतन सिंह ने उस की एक न सुनी और उसे तभी छोड़ा, जब अपनी वासना की आग बुझा ली. ऐसा होते ही रतन सिंह उस के ऊपर से उठ गया. उस ने एक उचटती नजर झुमरी पर डाली. जब उस की निगाहें झुमरी की निगाहों से टकराईं, तो उस को एक झटका सा लगा. झुमरी की आंखों में गुस्से की चिनगारियां फूट रही थीं, पर अभीअभी उस ने झुमरी के जवान जिस्म से लिपट कर जवानी का जो जाम चखा था, इसलिए उस ने झुमरी के गुस्से और नफरत की कोई परवाह नहीं की और उठ कर एक ओर चल पड़ा.

इस घटना ने झुमरी को झकझोर कर रख दिया था. वह 2 दिन तक अपने कमरे में पड़ी रही थी. झुमरी के मांबाप ने जब उस से इस की वजह पूछी, तो उस ने तबीयत खराब होने का बहाना बना दिया था. कई बार झुमरी के दिमाग में यह बात आई थी कि वह इस के बारे में उन्हें बतला दे, पर यह सोच कर वह चुप रह गई थी कि उन से कहने से कोई फायदा नहीं. वे चाह कर भी रतन सिंह का कुछ बिगाड़ नहीं पाएंगे, उलटा रतन सिंह उन की जिंदगी को नरक बना देगा. इस मामले में जो करना था, उसे ही करना था. रतन सिंह ने उस की इज्जत लूट ली थी और उसे इस के किए की सजा मिलनी ही चाहिए थी. पर कैसे?

झुमरी ने इस बात को गहराई से सोचा, फिर उस के दिमाग में एक तरकीब आ गई. रात आधी बीत चुकी थी. सारा गांव सो चुका था, पर झुमरी जाग रही थी. वह इस समय अमराई से थोड़ी दूर बांसवारी यानी बांसों के झुरमुट में खड़ी हाथों में कुदाल लिए एक गड्ढा खोद रही थी. तकरीबन 2 घंटे तक वह गड्ढा खोदती रही, फिर हाथ में कटार लिए बांस के पेड़ों के पास पहुंची. उस ने कटार की मदद से बांस की पतलीपतली अनेक डालियां काटीं, फिर उन्हें गड्ढे के करीब ले आई. डालियों को चिकना कर उन्हें बीच से चीर कर उन की कमाची बनाईं, फिर उन की चटाई बुनने लगी. अपनी इच्छानुसार चटाई बुनने में उसे तकरीबन 3 घंटे लग गए.

चटाई तैयार कर झुमरी ने उसे गड्ढे के मुंह पर रखा. चटाई ने तकरीबन एक मीटर दायरे के गड्ढे के मुंह को पूरी तरह ढक लिया. यह चटाई किसी आदमी का भार हरगिज सहन नहीं कर सकती थी. सुबह होने में अभी चंद घंटे बचे थे. हालांकि बांसों के इस झुरमुट की ओर गांव वाले कम ही आते थे और दिन में यह सुनसान ही रहता था, फिर भी झुमरी कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहती थी. उस ने जमीन पर बिखरे बांस के सूखे पत्तों को इकट्ठा कर उन का ढेर लगा दिया. इस काम से निबट कर झुमरी ने बांस की चटाई से गड्ढे का मुंह ढका, पर उस पर पत्तों को इस तरह डाल दिया, ताकि चटाई पूरी तरह ढक जाए और किसी को वहां गड्ढा होने का एहसास न हो. गड्ढे से निकली मिट्टी को उस ने अपने साथ लाई टोकरी में भर कर गड्ढे से थोड़ी दूर डाल दिया.

काम खत्म कर झुमरी ने एक निगाह अपने अब तक के काम पर डाली, फिर अपने साथ लाए बड़े से थैले में अपना सारा सामान भरा और थैला कंधे पर लाद कर घर की ओर चल पड़ी. 7 दिनों तक झुमरी का यह काम चलता रहा. इतने दिन में उस ने 7 फुट गहरा गड्ढा तैयार कर लिया था. गड्ढे में उतरने और चढ़ने के लिए वह अपने साथ घर से लाई सीढ़ी का इस्तेमाल करती थी. काम पूरा कर उस ने पत्ते डाले, फिर अपने अगले काम को अंजाम देने के बारे में सोचती. रतन सिंह ने झुमरी की इज्जत लूट तो ली थी, परंतु अब वह इस बात से डरा हुआ था कि कहीं झुमरी इस बात का जिक्र अपने मांबाप से न कर दे और कोई हंगामा न खड़ा हो जाए. परंतु जब 10 दिन से ज्यादा हो गए और कुछ नहीं हुआ, तो उस ने राहत की सांस ली. अब उसे रात की तनहाई में वो पल याद आते, जब उस ने झुमरी के जवान जिस्म से अपनी वासना की आग बुझाई थी. जब भी ऐसा होता, उस का बदन कामना की आग में झुलसने लगता था.

इस बीच रतन सिंह ने 1-2 बार झुमरी को अपने खेत की ओर जाते या आते देखा था, परंतु उस के सामने जाने की उस की हिम्मत न हुई थी. पर उस दिन अचानक रतन सिंह का सामना झुमरी से हो गया. वह विचारों में खोया अमराई की ओर जा रहा था कि झुमरी उस के सामने आ खड़ी हुई. उसे यों अपने सामने देख एकबारगी तो रतन सिंह बौखला गया था और झुमरी को देखने लगा था. झुमरी कुछ देर तक खामोशी से उसे देखती रही, फिर उस के होंठों पर एक दिलकश मुसकान उभर उठी. उसे इस तरह मुसकराते देख रतन सिंह ने राहत की सांस ली और एकटक झुमरी के खूबसूरत चेहरे और भरेभरे बदन को देखने लगा. इस के बावजूद जब झुमरी मुसकराती रही, तो रतन सिंह बोला, ‘‘झुमरी, उस दिन जो हुआ, उस का तुम ने बुरा तो नहीं माना?’’

झुमरी ने न में सिर हिलाया.

‘‘सच…’’ कहते हुए रतन सिंह ने उस की हथेली कस कर थाम ली, ‘‘इस का मतलब यह है कि तू फिर वह सब करना चाहती है?’’ बदले में झुमरी खुल कर मुसकराई, फिर हौले से अपना हाथ छुड़ा कर एक ओर भाग गई. उस की इस हरकत पर रतन सिंह के तनमन में एक हलचल मच गई और उस की आंखों के सामने वो पल उभर आए, जब उस ने झुमरी की खिलती जवानी का रसपान किया था. झुमरी को फिर से पाने की लालसा में रतन सिंह उस के इर्दगिर्द मंडराने लगा. झुमरी भी अपनी मनमोहक  अदाओं से उस की कामनाओं को हवा दे रही थी. झुमरी ने एक दिन इशारोंइशारों में रतन सिंह से यह वादा कर लिया कि वह पूरे चांद की आधी रात को उस से अमराई में मिलेगी. आकाश में पूर्णिमा का चांद हंस रहा था. उस की चांदनी चारों ओर बिखरी हुई थी. ऐसे में रतन सिंह बड़ी बेकरारी से एक पेड़ के तने पर बैठा झुमरी का इंतजार कर रहा था.

झुमरी ने आधी रात को यहीं पर उस से मिलने का वादा किया था, परंतु वह अब तक नहीं आई थी. जैसेजैसे समय बीत रहा था, वैसेवैसे रतन सिंह की बेकरारी बढ़ रही थी. अचानक रतन सिंह को अपने पीछे किसी के खड़े होने की आहट मिली. उस ने पलट कर देखा, तो उस का दिल धक से रह गया. वह झटके से उठ खड़ा हुआ. उस के सामने झुमरी खड़ी थी. उस ने भड़कीले कपड़े पहन रखे थे, जिस से उस की जवानी फटी पड़ रही थी. जब झुमरी ने रतन सिंह को आंखें फाड़े अपनी ओर देखा पाया, तो उत्तेजक ढंग से अपने होंठों पर जीभ फेरी. उस की इस अदा ने रतन सिंह को और भी बेताब कर दिया. रतन सिंह ने झटपट झुमरी को अपनी बांहों में समेट लेना चाहा, लेकिन झुमरी छिटक कर दूर हो गई.

‘‘झुमरी, मेरे पास आओ. मेरे तनबदन में आग लगी है, इसे अपने प्यार की बरसात से शांत कर दो,’’ रतन सिंह बेचैन होते हुए बोला. झुमरी ने इशारे से रतन सिंह को खुद को पकड़ लेने की चुनौती दी. रतन सिंह उस की ओर दौड़ा, तो झुमरी ने भी दौड़ लगा दी. अगले पल हालत यह थी कि झुमरी किसी मस्त हिरनी की तरह भाग रही थी और रतन सिंह उसे पकड़ने के लिए उस के पीछे दौड़ रहा था. झुमरी अमराई से निकली, फिर बांस के झुरमुट की ओर भागी. वह उस गड्ढे की ओर भाग रही थी, जिसे उस ने कई दिनों की कड़ी मेनत से तैयार किया था. वह जैसे ही गड्ढे के नजदीक आई, एक लंबी छलांग भरी और गड्ढे की ओर पहुंच गई. झुमरी के हुस्न में पागल, गड्ढे से अनजान रतन सिंह अचानक गड्ढे में गिर गया. उस के मुंह से घुटीघुटी सी चीख निकली.

कुछ देर तक तो रतन सिंह कुछ समझ ही नहीं पाया कि क्या हो गया है. वह बौखलाया हुआ गड्ढे में गिरा इधरउधर झांक रहा था, पर जैसे ही उस के होशोहवास दुरुस्त हुए, वह जोरजोर से झुमरी को मदद के लिए पुकारने लगा. परंतु उधर से कोई मदद नहीं आई. झुमरी की ओर से निराश रतन सिंह खुद ही गड्ढे से बाहर निकलने की कोशिश करने लगा. उस ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर गड्ढे के किनारे को पकड़ना चाहा, परंतु वह उस की पहुंच से दूर था. रतन सिंह ने उछल कर बाहर निकलने की 2-4 बार नाकाम कोशिश की. आखिरकार वह गड्ढे का छोर पकड़ने में कामयाब हो गया. उस ने अपने बदन को सिकोड़ कर अपना सिर ऊपर उठाया. उस का सिर थोड़ा ऊपर आया, तभी उस की नजर झुमरी पर पड़ी. उस के हाथों में कुदाल थी और उस की आंखों से नफरत की चिनगारियां फूट रही थीं. इस के पहले कि रतन सिंह कुछ समझता, झुमरी ने कुदाल का भरपूर वार उस के सिर पर किया.

रतन सिंह की दिल दहलाने वाली चीख से वह सुनसान इलाका दहल उठा. उस का सिर फट गया था और खून की धारा फूट पड़ी थी. गड्ढे का किनारा रतन सिंह के हाथ से छूट गया और वह गिर पड़ा था. गड्ढे में गिरते ही रतन सिंह ने अपना सिर थाम लिया. उस की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा था और उस पर बेहोशी छाने लगी थी. उस के दिमाग में एक विचार बिजली की तरह कौंधा कि यह झुमरी का फैलाया हुआ जाल था, जिस में फंसा कर वह उसे मार डालना चाहती है. तभी रतन सिंह के सिर पर ढेर सारी मिट्टी आ गिरी. उस ने अपनी बंद होती आंखें उठा कर ऊपर की ओर देखा, तो झुमरी टोकरी लिए वहां खड़ी थी. अगले ही पल वह बेहोशी के अंधेरों में गुम होता चला गया. झुमरी ने मिट्टी से पूरा गड्ढा भर दिया, फिर उस पर पत्तियां डाल कर उठ खड़ी हुई. उस ने सिर उठा कर ऊपर देखा. आकाश में पूर्णिमा का चांद हंस रहा था. थोड़ी देर बाद झुमरी कंधे पर थैला लादे अपने घर को लौट रही थी.

मोहब्बत में ठगी : हुस्न के जाल में फंसते लड़के

लेखक- प्रदीप कुमार शर्मा

घर के बगीचे में बैठा मैं अपने मोबाइल फोन के बटनों पर उंगलियां फेर रहा था. चलचित्र की तरह एकएक कर नंबरों समेत नाम आते और ऊपर की ओर सरकते जाते. उन में से एक नाम पर मेरी उंगली ठहर गई. वह नंबर परेश का था. मेरा पुराना जिगरी दोस्त. आज से तकरीबन 10 साल पहले आदर्श कालोनी में परेश अपने मातापिता व भाईबहनों के साथ किराए के मकान में रहता था. ठीक उस से सटा हुआ मेरा घर था. हम लोग एकसाथ परिवार की तरह रहते थे. फिर मेरी शादी हो गई. अचानक पिता की मौत के बाद मैं अपने आदर्श नगर वाला मकान छोड़ कर पिताजी द्वारा दूसरी जगह खरीदे हुए मकान में रहने चला गया.

कुछ दिनों के बाद मैं एक दिन परेश से मिला था, तो मेरे घर वालों का हालचाल जानने के बाद उस ने बताया था कि वे लोग भी आदर्श नगर वाला किराए का मकान छोड़ कर किसी दूसरी जगह रहने लगे हैं.काम ज्यादा होने के चलते फिर हम लोगों की मुलाकातें बंद हो गईं. हमें मिले कई साल गुजर गए. बचपन की वे पुरानी बातें याद आने लगीं. हालचाल पूछने के लिए सोचा कि फोन लगाता हूं. फोन का बटन उस नंबर पर दबते ही घंटी बजनी शुरू हो गई.मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा कि चलो, फोन तो लग गया, क्योंकि इन दिनों क्या बूढ़े, क्या जवान, सभी में एक फैशन सा हो गया है सिम कार्ड बदल देने का. आज कुछ नंबर रहता है, तो कल कुछ.

थड़ी देर बाद ही उधर से किसी औरत की आवाज सुनाई दी, ‘हैलो… कौन बोल रहा है? देखिए, यहां लाउडस्पीकर बज रहा है. कुछ भी ठीक से सुनाई नहीं पड़ रहा है.’ मैं ने अंदाजा लगाया, शायद परेश की भी शादी हो गई है. हो न हो, यह उसी की पत्नी है. मैं फोन पर जरा ऊंची आवाज में बोला, ‘‘हैलो, मैं मयंक बोल रहा हूं… हैलो… सुनाई दे रहा है न… परेश ने मुझे यह नंबर दिया था. यह उसी का ही नंबर है न… मुझे उसी से बात करनी है. वह मेरे बचपन का दोस्त है. आदर्श नगर में हम लोग एकसाथ रहते थे.’’ उधर से फिर आवाज आई, ‘देखिए, कुछ सुनाई नहीं दे रहा है, आप…’ मैं ने फोन काट दिया. मैं हैरान सा था. पक्का करने के लिए दोबारा फोन लगाया कि सही में वह औरत परेश की पत्नी ही है या कोई और, मगर साफ आवाज न मिल पाने के चलते दिक्कत हो रही थी. वैसे, यह नंबर खुद परेश ने मुझे एक बार दिया था. जब वह बाजार में मिला था. यह औरत यकीनन उस की पत्नी ही होगी. आवाज से ऐसा लग रहा था, जैसे वह मेरा परिचय जानने की कोशिश कर रही थी.

रात के 8 बजे मैं खापी कर कुछ लिखनेपढ़ने के खयाल से बैठ ही रहा था कि मेरे मोबाइल फोन पर एक फोन आया. किसी मर्द की आवाज थी, जिसे मैं पहचान नहीं पा रहा था. फोन पर उस ने मेरा नाम पूछा. मैं ने जैसे ही अपना नाम बताया, तो वह तपाक से बोल पड़ा, ‘हैलो, मयंक भैया. आप का फोन था? सवेरे आप ने ही फोन किया था?’

मैं ने कहा, ‘‘हां.’’

उधर से फिर आवाज आई, ‘अरे भैया, मैं परेश बोल रहा हूं. देखिए न, मैं जैसे ही घर आया, तो मेरी पत्नी ने बताया कि किसी मयंक का फोन आया था. मैं ने सोचा कि कौन हो सकता है? यही सोचतेसोचते फोन लगा दिया. ‘और भैया, कैसे हैं? आप तो आते ही नहीं हैं. आइए, घर पर और अपनी भाभी से भी मिल लीजिएगा. बहुत मजा आएगा मिल कर.’

‘‘सचमुच…’’

‘एक बार आ कर तो देखिए.’

मैं ने कहा कि जरूर आऊंगा और फोन कट गया. बहुत दिनों से छूटी दोस्ती अचानक उफान मारने लगी. बहुत सारी बातें थीं, जो फोन पर नहीं हो सकती थीं. बचपन के वे दिन जब हम परेश के भाईबहनों के साथ उस के घर में बैठ कर खेलते थे. उस की मां मुझे बहुत मानती थीं. मैं उन्हें ‘काकी’ कहता था. एक बार वे बहुत बीमार पड़ गई थीं. मैं अपने मामा की शादी में गांव चला गया था. वहां से महीनों बाद आया, तो पता चला कि काकी अस्पताल में भरती थीं. उन्हें आईसीयू में रखा गया था. वे किसी को पहचान नहीं पा रही थीं. आईसीयू से निकलते वक्त मैं उन के सामने खड़ा था. जब सिस्टर ने पूछा कि आप इन्हें पहचानते हैं, तो उन्होंने तपाक से मेरा नाम बता दिया था. उन के परिवार में खुशियां छा गई थीं. बचपन के वे दिन चलचित्र की तरह याद आ रहे थे. मैं परेश और उस के परिवार से मिलना चाहता था, खासकर परेश की पत्नी से. वह दिखने में कैसी होगी? मिलने पर खूब बातें करेंगे.

एक दिन सचमुच मैं ने उस के घर जाने का मन बना लिया. घर के पास पहुंच कर मैं ने फोन लगाया. फोन उस की पत्नी ने उठाया था. इस बार आवाज दोनों तरफ से साफ आ रही थी. उस की आवाज मेरे कानों में पड़ते ही मेरी सांसें जोरजोर से चलने लगीं. शरीर हलका होने लगा. आवाज कांपने और हकलाने लगी. पानी गटकने की जरूरत महसूस होने लगी. मैं ने फोन पर अपनेआप को ठीक करते हुए कहा, ‘‘हैलो, मैं मयंक…’’

उधर से परेश की पत्नी की आवाज आई, ‘अरे आप, हांहां पहचान गई, कहिए, कैसे हैं?’ मेरे मुंह से आवाज निकलने का नाम ही नहीं ले रही थी. किसी तरह गले को थूक से थोड़ा गीला किया और कहा, ‘‘हां, मैं मयंक. इधर ही आया था एक दोस्त के घर. सोचा, आया हूं तो मिलता चलूं. आप को भी देखना है कि कैसी लगती हैं?’’ मैं ने एक ही सांस में अपनी इच्छा जाहिर कर दी. उस ने तुरंत कहा, ‘हांहां, आप ठीक जगह पर हैं. मैदान के बगल में सड़क है, जो नदी तक जाती है. उसी पर आगे बढि़एगा. सामने एक मकान दिखेगा, उस में एक नारियल का पेड़ है. याद रखिएगा. आइए.’ ऐसा लग रहा था, जैसे मैं हवा में उड़ता जा रहा हूं और उड़ते हुए उस का घर खोज रहा हूं, जिस में एक नारियल का पेड़ है. जल्द ही घर मिल गया.

मैं ने घर के सामने पहुंच कर दरवाजा खटखटाया. एक खूबसूरत औरत बाहर निकली. मेरा स्वागत करते हुए वह मुझे घर के अंदर ले गई. थोड़ी औपचारिकता के बाद मैं ने इधरउधर गरदन हिलाई और पूछा, ‘‘परेश कहीं दिख नहीं रहा है… और काकी?’’

‘‘परेश आता ही होगा, काकी गांव गई हैं,’’ यह कहते हुए वह मेरे बगल में ही थोड़ा सट कर बैठ गई. इतना करीब कि हम दोनों की जांघें उस के जरा से हिलने से सटने लगी थीं.

मैं रोमांचित होने लगा. यहां आने से थोड़ी देर पहले मैं उसे ले कर जो सोच रहा था, वह सब हकीकत लगने लगा था. मैं उस से हंसहंस कर बातें कर रहा था कि इतने में दरवाजे पर दस्तक हुई. मैं जलभुन गया कि अचानक यह कबाब में हड्डी बनने कहां से आ गया. दरवाजा खुलते ही सामने एक अजनबी आदमी दिखा. चेहरे से दिखने में खुरदरा, उस के तेवर अच्छे नहीं लग रहे थे. मैं ने परेश की पत्नी की तरफ देखते हुए उस आदमी के बारे में पूछा, तो उस ने सपाट सा जवाब दिया, ‘‘यही तो है परेश,’’ और उस की एक कुटिल हंसी हवा में तैर गई.

मैं सकपका गया. यह परेश तो नहीं है. क्या मैं किसी अजनबी औरत के पास…

अभी मन ही मन सोच ही रहा था कि वह आदमी मेरे सामने आ गया और कमर से एक देशी कट्टा निकाल कर उस से खेलने लगा. फिर मुझे धमकाते हुए बोला, ‘‘तुम्हारी हर हरकत मेरे मोबाइल फोन में कैद हो गई है. अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि बदनामी से पिंड छुड़ाना चाहते हो, तो तुम्हें 50 हजार रुपए देने होंगे. ‘‘तुम्हें कल तक के लिए मुहलत दी जाती है, वरना परसों ये तसवीरें तुम्हारे घर के आसपास बांट दी जाएंगी.’’

मुझे काटो तो खून नहीं. मैं ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘मगर, यह तो परेश का घर है और यह उस की पत्नी है.’’ वे दोनों एकसाथ हंस पड़े. उस आदमी ने कहा, ‘‘गलत नंबर पर पड़ गए बरखुरदार. होगा तुम्हारे किसी दोस्त का नंबर, लेकिन अब यह नंबर मेरे पास है. यह मेरी पार्टनर लीना है और हम दोनों का यही धंधा है.’’ वह औरत जो अब तक मुझ से सट कर बैठी थी, मुझ से छिटक कर उस के बगल में जा खड़ी हुई. वह मुझे धमकाते हुए बोली, ‘‘किसी से कहना नहीं, चल फटाफट निकल यहां से और जल्दी से पैसों का इंतजाम कर.’’ मैं सहमा सा उस खूबसूरत ठगनी का मुंह देखता रह गया.

 

झगड़ा: क्यों भागा था लाखा

लेखक- युधिष्ठिर लाल कक्कड़

रात गहराने लगी थी और श्याम अभीअभी खेतों से लौटा ही था कि पंचायत के कारिंदे ने आ कर आवाज लगाई, ‘‘श्याम, अभी पंचायत बैठ रही?है. तुझे जितेंद्रजी ने बुलाया है.’’

अचानक क्या हो गया? पंचायत क्यों बैठ रही है? इस बारे में कारिंदे को कुछ पता नहीं था. श्याम ने जल्दीजल्दी बैलों को चारापानी दिया, हाथमुंह धोए, बदन पर चादर लपेटी और जूतियां पहन कर चल दिया.

इस बात को 2-3 घंटे बीत गए थे. अपने पापा को बारबार याद करते हुए सुशी सो गई थी. खाट पर सुशी की बगल में बैठी भारती बेताबी से श्याम के आने का इंतजार कर रही थी.

तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया, तो भारती ने सांकल खोल दी. थके कदमों से श्याम घर में दाखिल हुआ.

भारती ने दरवाजे की सांकल चढ़ाई और एक ही सांस में श्याम से कई सवाल कर डाले, ‘‘क्या हुआ? क्यों बैठी थी पंचायत? क्यों बुलाया था तुम्हें?’’

‘‘मुझे जिस बात का डर था, वही हुआ,’’ श्याम ने खाट पर बैठते हुए कहा.

‘‘किस बात का डर…?’’ भारती ने परेशान लहजे में पूछा.

श्याम ने बुझी हुई नजरों से भारती की ओर देखा और बोला, ‘‘पेमा झगड़ा लेने आ गया है. मंगलगढ़ के खतरनाक गुंडे लाखा के गैंग के साथ वह बौर्डर पर डेरा डाले हुए है. उस ने 50,000 रुपए के झगड़े का पैगाम भेजा है.’’

‘‘लगता है, वह मुझे यहां भी चैन से नहीं रहने देगा… अगर मैं डूब मरती तो अच्छा होता,’’ बोलते हुए भारती रोंआसी हो उठी. उस ने खाट पर सोई सुशी को गले लगा लिया.

श्याम ने भारती के माथे पर हाथ रखा और कहा, ‘‘नहीं भारती, ऐसी बातें क्यों करती हो… मैं हूं न तुम्हारे साथ.’’

‘‘फिर हमारे गांव की पंचायत ने क्या फैसला किया? क्या कहा जितेंद्रजी ने?’’ भारती ने पूछा.

‘‘सच का साथ कौन देता है आजकल… हमारी पंचायत भी उन्हीं के साथ है. जितेंद्रजी कहते हैं कि पेमा का झगड़ा लेने का हक तो बनता है…

‘‘उन्होंने मुझ से कहा कि या तो तू झगड़े की रकम चुका दे या फिर भारती को पेमा को सौंप दे, लेकिन…’’ इतना कहतेकहते श्याम रुक गया.

‘‘मैं तैयार हूं श्याम… मेरी वजह से तुम क्यों मुसीबत में फंसो…’’ भारती ने कहा.‘‘नहीं भारती… तुम्हें छोड़ने की बात तो मैं सोच भी नहीं सकता… रुपयों के लिए अपने प्यार की बलि कभी नहीं दूंगा मैं…’’‘‘तो फिर क्या करोगे? 50,000 रुपए कहां से लाओगे?’’ भारती ने पूछा.

‘‘मैं अपना खेत बेच दूंगा,’’ श्याम ने सपाट लहजे में कहा.

‘‘खेत बेच दोगे तो खाओगे क्या… खेत ही तो हमारी रोजीरोटी है… वह भी छिन गई तो फिर हम क्या करेंगे?’’ भारती ने तड़प कर कहा.

यह सुन कर श्याम मुसकराया और प्यार से भारती की आंखों में देख कर बोला, ‘‘तुम मेरे साथ हो भारती तो मैं कुछ भी कर सकता हूं. मैं मेहनतमजदूरी करूंगा, लेकिन तुम्हें भूखा नहीं मरने दूंगा… आओ खाना खाएं, मुझे जोरों की भूख लगी है.’’

भारती उठी और खाना परोसने लगी. दोनों ने मिल कर खाना खाया, फिर चुपचाप बिस्तर बिछा कर लेट गए.

दिनभर के थकेहारे श्याम को थोड़ी ही देर में नींद आ गई, लेकिन भारती को नींद नहीं आई. वह बिस्तर पर बेचैन पड़ी रही. लेटेलेटे वह खयालों में खो गई.

तकरीबन 5 साल पहले भारती इस गांव से विदा हुई थी. वह अपने मांबाप की एकलौती औलाद थी. उन्होंने उसे लाड़प्यार से पालपोस कर बड़ा किया था. उस की शादी मंगलगढ़ के पेमा के साथ धूमधाम से की गई थी.

भारती के मातापिता ने उस के लिए अच्छा घरपरिवार देखा था ताकि वह सुखी रहे. लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद ही उस की सारी खुशियां ढेर हो गई थीं, क्योंकि पेमा का चालचलन ठीक नहीं था. वह शराबी और जुआरी था. शराब और जुए को ले कर आएदिन दोनों में झगड़ा होने लगा था.

पेमा रात को दारू पी कर घर लौटता और भारती को मारतापीटता व गालियां बकता था. एक साल बाद जब सुशी पैदा हुई तो भारती ने सोचा

कि पेमा अब सुधर जाएगा. लेकिन न तो पेमा ने दारू पीना छोड़ा और न ही जुआ खेलना.

पेमा अपने पुरखों की जमीनजायदाद को दांव पर लगाने लगा. जब कभी भारती इस बात की खिलाफत करती तो वह उसे मारने दौड़ता.

इसी तरह 3 साल बीत गए. इस बीच भारती ने बहुत दुख झेले. पति के साथ कुदरत की मार ने भी उसे तोड़ दिया. इधर भारती के मांबाप गुजर गए और उधर पेमा ने उस की जिंदगी बरबाद कर दी. घर में खाने के लाले पड़ने लगे.

सुशी को बगल में दबाए भारती खेतों में मजदूरी करने लगी, लेकिन मौका पा कर वह उस की मेहनत की कमाई भी छीन ले जाता. वह आंसू बहाती रह जाती.

एक रात नशे की हालत में पेमा अपने साथ 4 आवारा गुंडों को ले कर घर आया और भारती को उन के साथ रात बिताने के लिए कहने लगा. यह सुन कर उस का पारा चढ़ गया. नफरत और गुस्से में वह फुफकार उठी और उस ने पेमा के मुंह पर थूक दिया.

पेमा गुस्से से आगबबूला हो उठा. लातें मारमार कर उस ने भारती को दरवाजे के बाहर फेंक दिया.

रोती हुई बच्ची को भारती ने कलेजे से लगाया और चल पड़ी. रात का समय था. चारों ओर अंधेरा था. न मांबाप, न कोई भाईबहन. वह जाती भी तो कहां जाती. अचानक उसे श्याम की याद आ गई.

बचपन से ही श्याम उसे चाहता था, लेकिन कभी जाहिर नहीं होने दिया था. वह बड़ी हो गई, उस की शादी हो गई, लेकिन उस ने मुंह नहीं खोला था.

श्याम का प्यार इतना सच्चा था कि वह किसी दूसरी औरत को अपने दिल में जगह नहीं दे सकता था. बरसों बाद भी जब वह बुरी हालत में सुशी को ले कर उस के दरवाजे पर पहुंची तो उस ने हंस कर उस के साथ पेमा की बेटी को भी अपना लिया था.

दूसरी तरफ पेमा ऐसा दरिंदा था, जिस ने उसे आधी रात में ही घर से बाहर निकाल दिया था. औरत को वह पैरों की जूती समझता था. आज वह उस की कीमत वसूलना चाहता है.

कितनी हैरत की बात है कि जुल्म करने वाले के साथ पूरी दुनिया है और एक मजबूर औरत को पनाह देने वाले के साथ कोई नहीं है. बीते दिनों के खयालों से भारती की आंखें भर आईं.

यादों में डूबी भारती ने करवट बदली और गहरी नींद में सोए हुए श्याम के नजदीक सरक गई. अपना सिर उस ने श्याम की बांह पर रख दिया और आंखें बंद कर सोने की कोशिश करने लगी.

दूसरे दिन सुबह होते ही फिर पंचायत बैठ गई. चौपाल पर पूरा गांव जमा हो गया. सामने ऊंचे आसन पर गांव के मुखिया जितेंद्रजी बैठे थे. उन के इर्दगिर्द दूसरे पंच भी अपना आसन जमाए बैठे थे. मुखिया के सामने श्याम सिर झुकाए खड़ा था.

पंचायत की कार्यवाही शुरू

करते हुए मुखिया जितेंद्रजी ने कहा, ‘‘बोल श्याम, अपनी सफाई में तू क्या कहना चाहता है?’’

‘‘मैं ने कोई गुनाह नहीं किया है मुखियाजी… मैं ने ठुकराई हुई एक मजबूर औरत को पनाह दी है.’’

यह सुन कर एक पंच खड़ा हुआ और चिल्ला कर बोला, ‘‘तू ने पेमा की औरत को अपने घर में रख लिया है श्याम… तुझे झगड़ा देना ही पड़ेगा.’’

‘‘हां श्याम, यह हमारा रिवाज है… हमारे समाज का नियम भी है… मैं समाज के नियमों को नहीं तोड़ सकता,’’ जितेंद्रजी की ऊंची आवाज गूंजी तो सभा में सन्नाटा छा गया.

अचानक भारती भरी चौपाल में आई और बोली, ‘‘बड़े फख्र की बात है मुखियाजी कि आप समाज का नियम नहीं तोड़ सकते, लेकिन एक सीधेसादे व सच्चे इनसान को तोड़ सकते हैं…

‘‘आप सब लोग उसी की तरफदारी कर रहे हैं जो मुझे बाजार में बेच देना चाहता है… जिस ने मुझे और अपनी मासूम बच्ची को आधी रात को घर से धक्के दे कर भगा दिया था… और वह दरिंदा आज मेरी कीमत वसूल करने आ खड़ा हुआ है.

‘‘ले लीजिए हमारा खेत… छीन लीजिए हमारा सबकुछ… भर दीजिए उस भेडि़ए की झोली…’’ इतना कहतेकहते भारती जमीन पर बेसुध हो कर लुढ़क गई.

सभा में खामोशी छा गई. सभी की नजरें झुक गईं. अचानक जितेंद्रजी अपने आसन से उठ खड़े हुए और आगे बढ़े. भारती के नजदीक आ कर वह ठहर गए. उन्होंने भारती को उठा कर अपने गले लगा लिया.

दूसरे ही पल उन की आवाज गूंज उठी, ‘‘सब लोग अपनेअपने हथियार ले कर आ जाओ. आज हमारी बेटी पर मुसीबत आई है. लाखा को खबर कर दो कि वह तैयार हो जाए… हम आ रहे हैं.’’

जितेंद्रजी का आदेश पा कर नौजवान दौड़ पड़े. देखते ही देखते चौपाल पर हथियारों से लैस सैकड़ों लोग जमा हो गए. किसी के हाथ में बंदूक थी तो किसी के हाथ में बल्लम. कुछ के हाथों में तलवारें भी थीं.

जितेंद्रजी ने बंदूक उठाई और हवा में एक फायर कर दिया. बंदूक के धमाके से आसमान गूंज उठा. दूसरे ही पल जितेंद्रजी के साथ सभी लोग लाखा के डेरे की ओर बढ़ गए.

शराब के नशे में धुत्त लाखा व उस के साथियों को जब यह खबर मिली कि दलबल के साथ जितेंद्रजी लड़ने आ रहे हैं तो सब का नशा काफूर हो गया. सैकड़ों लोगों को अपनी ओर आते देख वे कांप गए. तलवारों की चमक व गोलियों की गूंज सुन कर उन के दिल दहल उठे.

यह नजारा देख पेमा के तो होश ही उड़ गए. लाखा के एक इशारे पर उस के सभी साथियों ने अपनेअपने हथियार उठाए और भाग खड़े हुए.

बलात्कार: क्या हुआ कर्नल साहब की वाइफ के साथ

लेखक- राघवेंद्र सैनी

मैं जब पीटी के लिए ग्राउंड पर पहुंचा तो वहां पीटी न हो कर सभी जवान और अधिकारी एक स्थान पर इकट्ठे खड़े थे. मैं ने सोचा, पीटी के लिए अभी समय है, इसलिए ऐसा है. मैं अपना स्कूटर पार्क कर के हटा ही था कि स्टोरकीपर प्लाटून का प्लाटून हवलदार, सतनाम सिंह मेरे पास भागाभागा आया और बोला, ‘‘सर, गजब हो गया.’’

मैं स्टोरकीपर प्लाटून का प्लाटून कमांडर था, इसलिए उस का इस तरह भाग कर आना मुझे आश्चर्यजनक नहीं लगा. किसी नई घटना की मुझे सूचना देना उस की ड्यूटी में था. मैं ने उस की बात को बड़े हलके से लिया और पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘सर, जो नया सिपाही रमेश पोस्ंिटग पर आया है न, उस की रात को अफसर मैस में ड्यूटी थी, उस ने कर्नल साहब की वाइफ का बलात्कार कर दिया.’’

‘‘क्या…क्या बकते हो? वह ऐसा कैसे कर सकता है? इस समय वह कहां है?’’ मैं एकाएक सतनाम सिंह की बात पर विश्वास नहीं कर पाया, इसलिए उस पर प्रश्नों की बौछार कर दी.

‘‘सर, वह क्वार्टरगार्ड (फौजी जेल) में बंद है. प्रशासनिक अफसर, कंपनी कमांडर और दूसरे अधिकारी वहीं पर हैं.’’

‘‘ठीक है, तुम यहीं रुको, मैं देखता हूं,’’ मैं ने सतनाम सिंह से कहा और सीधा क्वार्टरगार्ड की ओर बढ़ा. मुझे अपनी ओर आते देख कर कंपनी कमांडर साहब मेरी ओर बढ़े. ‘‘साहब, आप की प्लाटून के सिपाही रमेश ने तो गजब कर दिया. कर्नल साहब की वाइफ का रेप कर दिया.’’

‘‘सर, वह ऐसा कैसे कर सकता है. उस की यह हिम्मत? सर, आप ने उस से बात की?’’

‘‘बात करने की कोशिश की थी लेकिन वह कुछ नहीं बता रहा. केवल रोए जा रहा है.’’

‘‘ठीक है, सर. यह किस ने बताया कि उस ने रेप किया है? और कर्नल साहब उस समय कहां थे?’’

‘‘कर्नल साहब की वाइफ ने फोन कर के खुद बताया. ड्यूटी पर खड़े दूसरे गार्ड ने उसे ऐसा करते देखा. कर्नल साहब तो पीटी के लिए आ गए थे.’’

‘‘हूं, ठीक है, सर मैं देखता हूं, वह क्या कहता है.’’ मैं क्वार्टरगार्ड के पास पहुंचा तो कर्नल साहब दिखाई दिए. उन्होंने मेरी ओर निराशा से देखा, परंतु कहा कुछ नहीं. वे सकते में थे. ऐसी स्थिति में कोई कह भी क्या सकता है.

क्वार्टरगार्ड के जिस कमरे में रमेश बंद था, उस के बाहर प्रशासनिक अफसर, सूबेदार, मेजर और हवलदारमेजर खड़े थे. मुझे देखते ही मेरी ओर लपके. सभी ने एकसाथ कहा, ‘‘देखा साहब, इस लड़के ने क्या किया? ऊपर से रोए जा रहा है. कुछ बता भी नहीं रहा.’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं देखता हूं. आप कृपया जरा बाहर चलें. मैं उस से अकेले में बात करना चाहता हूं. मैं समझता हूं, वह इस समय घबराया हुआ है और दबाव में है इसलिए रोए जा रहा है. मैं उस से प्यार से बात करूंगा तो वह अवश्य बताएगा कि वास्तव में हुआ क्या था.’’

‘‘ठीक है साहब, आप देख लें और जो कुछ बताए, हमें बताएं, तब तक मैं कंपनी कमांडर से बोल कर कोर्ट औफ इन्क्वायरी का और्डर करता हूं,’’ यह कह कर प्रशासनिक अफसर बाहर चले गए. उन के पीछे दूसरे अधिकारी भी चले गए. केवल क्वार्टरगार्ड का गार्ड कमांडर खड़ा रहा. मैं ने उसे घूरा, तो वह भी खिसक लिया.

मैं सिपाही रमेश के पास गया. वहां रखे जग में से एक गिलास पानी ले कर उसे दिया, ‘‘लो, पानी पियो.’’ उस ने मेरे हाथ से पानी ले कर थोड़ा पिया और थोड़े से अपना मुंह धो लिया. मुंह पोंछने के लिए मैं ने उसे अपना रूमाल दिया. उस ने मेरी ओर देखा. मैं ने अनुभव किया, वह पहले से कहीं अधिक स्वस्थ लग रहा था. यही समय है उस से बात करने का. मैं ने कहा, ‘‘देखो रमेश, मैं तुम्हारा प्लाटून कमांडर हूं. तुम मुझे पहचानते हो न?’’ मेरे स्वर में बड़ी आत्मीयता थी. उस ने हां में सिर हिलाया. ‘‘गुड, देखो, जो हुआ सो हुआ. अगर तुम मुझे सच बता दोगे तो मैं वचन देता हूं कि मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा.’’

रमेश की आंखें छलछला आई थीं, ‘‘सर, मैं गरीब आदमी हूं. मेरे वेतन पर पूरे घर का खर्चा चलता है. मुझ से गलती हुई. मुझे बचा लीजिएगा. मेरा पूरा कैरियर बरबाद हो जाएगा, सर. प्लीज, सर.’’ वह फिर रोने लगा.

‘‘तुम चिंता मत करो. तुम मुझे सचसच बताओगे, तभी मैं तुम्हारी मदद कर पाऊंगा.’’

‘‘सर, मुझ से गलती हुई पर मेरा ऐसा करने का कोईर् इरादा नहीं था. कर्नल साहब पीटी के लिए निकले तो मैं रूटीन में उन के क्वार्टर का चक्कर लगाने गया. कमरे की खिड़की खुली हुई थी. अचानक अंदर नजर गईर् तो मेमसाहब को अर्धनग्न अवस्था में देखा. गोरीगोरी सुंदर टांगें आकर्षित करने लगीं. जैसे न्योता दे रही हों कि आ जाओ. और सच मानें, सर मैं रह नहीं पाया. मेमसाहब ने भी कुछ नहीं कहा. उन्होंने भी शोर तब मचाया जब दूसरे गार्ड ने उन्हें ऐसा करते देख लिया. बस इतना ही, साहब.’’ वह फिर सुबकने लगा.

मेरे मन के भीतर एकाएक विचार आया, कहीं मेमसाहब भी तो ऐसा नहीं चाहती थीं, तभी उन्होंने शोर नहीं मचाया. उन्होंने शोर तब मचाया जब दूसरे गार्ड ने उन्हें देख लिया. मुझे किसी भी सम्माननीय नारी के प्रति ऐसा सोचने का अधिकार नहीं था. मेमसाहब के प्रति तो बिलकुल नहीं. वे सब के प्रति स्नेहशील थीं.

‘‘रमेश, तुम्हें इतना भी खयाल नहीं रहा कि मेमसाहब कमांडैंट साहब की वाइफ हैं. सब के लिए सम्मानीय. वे जवानों से कितना स्नेह और प्यार करती हैं. तुम्हें उन के साथ ऐसा कृत करते हुए शर्म नहीं आई. तुम्हारा तो कोर्टमार्शल होना चाहिए. डिसमिस फ्रौम सर्विस.’’

वह कुछ नहीं बोला. सिर्फ पहले की तरह रोता रहा. मैं फिर विचारों में खोने लगा. मानव मतिष्क में कब शैतान घुस आए, कोई भरोसा नहीं. इस में उम्र की कोई सीमा नहीं होती. यह तो युवा और कुंआरा है. ऐसी स्थिति में किसी का मन भी भटक सकता था. इस का भटकना आश्चर्य का विषय नहीं है, चाहे, यह सरासर गलत था. गलत है.

मैं ने कुछ क्षण सोचा, फिर फैसला कर लिया, ‘‘तुम जानते हो रमेश, कोर्ट औफ इन्क्वायरी चलेगी. तरहतरह के प्रश्न पूछे जाएंगे. अलगअलग ढंग से तुम्हें लताड़ा जाएगा. तुम पर बहुत दबाव होगा. सब से अधिक दबाव मैं डालूंगा. परंतु तुम्हें मेरी बात पर कायम रहना होगा चाहे मैं तुम्हें बाहर ले जा कर थप्पड़ भी मारूं. अब मैं जो कह रहा हूं, उस से तुम मुकरना नहीं.

‘‘मेरी बात ध्यान से सुनो, कहना, कर्नल साहब पीटी पर गए तो मेमसाहब ने मुझे बुलाया और ऐसा करने को कहा. कोई जितना मरजी दबाव डाले, तुम्हें यही कहना है. कोई अधिक जोर दे तो केवल यह जोड़ना है कि मेरी क्या हिम्मत कि मैं एक  कर्नल साहब की वाइफ के साथ ऐसा करूं. बस, इतना ही. एक शब्द भी इधरउधर नहीं. तुम्हें कुछ नहीं होगा.’’

मैं उसे उसी स्थिति में छोड़ कर क्वार्टरगार्ड से बाहर आ गया. मुझे देखते ही प्रशासनिक अफसर और कंपनी कमांडर साहब मेरी ओर आए. दोनों ने एकसाथ पूछा, ‘‘कुछ बताया, साहब?’’

‘‘जी साहब, वह तो उलटापुलटा कह रहा है. कह रहा है, कर्नल साहब के जाने के बाद मेमसाहब ने उसे बुलाया और ऐसा करने को कहा.’’

‘‘क्या? बदमाश है, बकवास करता है. कर्नल साहब की वाइफ ऐसा कैसे कह सकती हैं? क्यों कहेंगी?’’ प्रशासनिक अफसर ने कहा.

‘‘हां सर, झूठ बोल रहा है. कर्नल साहब की वाइफ ऐसा कह ही नहीं सकतीं. उन को मैं ही नहीं, पूरी यूनिट अच्छी तरह जानती है,’’ कंपनी कमांडर ने कहा.

‘‘मैं ने भी उस से यही कहा था. मैं तो उसे थप्पड़ मारने को भी हुआ परंतु वह बारबार यही कहता रहा, भला, उस की क्या हिम्मत कर्नल साहब की वाइफ के साथ ऐसा करे या ऐसा करता.’’

‘‘हूं, कोर्ट औफ इन्क्वायरी में सब पता चल जाएगा,’’ प्रशासनिक अफसर ने कहा और चलने लगे.

‘‘सर, सिपाही रमेश और कर्नल साहब की वाइफ का मैडिकल करवाना आवश्यक है,’’ कंपनी कमांडर ने कहा.

‘‘कर्नल साहब से बात कर के मैं इस का प्रबंध करता हूं,’’ कह कर प्रशासनिक अफसर चले गए. उन के पीछेपीछे कंपनी कमांडर साहब भी. मैं भी वहां से लौट आया.

पिछले एक सप्ताह से सिपाही रमेश के विरुद्ध कोर्ट औफ इन्क्वायरी चल रही है. इस से पहले उस का और कर्नल साहब की वाइफ का मैडिकल हुआ था जिस में बलात्कार साबित हो गया था. इन्क्वायरी के अध्यक्ष मेजर विमल थे. कैप्टन सविता और सूबेदारमेजर विजय सिंह मैंबर थे. प्लाटून कमांडर होने के नाते आज मेरी स्टेटमैंट रिकौर्ड होनी थी. मैं मन ही मन इस के लिए खुद को तैयार करने लगा. मुझे इस बात की सूचना मिल गई थी कि सिपाही रमेश ने वही स्टेटमैंट दी थी जैसा मैं ने कहा था. अधिक जोर देने पर भी उस ने वही बात कही थी जिस के लिए मैं ने उसे हिदायत दी थी. मेरी स्टेटमैंट पर भी बहुतकुछ निर्भर था.

मैं जब कोर्ट औफ इन्क्वायरी के समक्ष पहुंचा तो सभी मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे. सुबह के 10 बज चुके थे. मेरे लिए इसी समय पहुंचने का आदेश था. मैं ने मेजर साहब को सैल्यूट किया और निश्चित कुरसी पर बैठ गया. कुछ समय चुप्पी छाई रही. फिर मेजर साहब ने प्रश्न करने शुरू किए.

‘‘आप कब से स्टोरकीपर प्लाटून के प्लाटून कमांडर हैं?’’

‘‘सर, पिछले वर्ष जनवरी से.’’

‘‘आप सिपाही रमेश को कब से जानते हैं?’’

‘‘एक सप्ताह पहले से, जब से वह पोस्ंिटग पर आया है.’’

‘‘आप को पता है, वह कहां से पोस्ंिटग पर आया है?’’

‘‘जी, मैटीरियल मैनजमैंट कालेज, जबलपुर से.’’

‘‘यानी, बिलकुल नया है. स्टोरकीपर की ट्रेनिंग के बाद वह सीधे यहीं आया है?’’

‘‘जी, सर.’’

‘‘आप जवानों के बीच से अफसर बने हैं. आप उन की मानसिकता को बड़ी अच्छी तरह समझते हैं, जानते हैं. क्या आप को लगता है, सिपाही रमेश बलात्कार जैसा अपराध कर सकता है?’’

‘‘मैं जानता हूं, सर सिपाही रमेश मेरे लिए नया है. मैं उसे अधिक नहीं जानता परंतु मैं यह अवश्य जानता हूं कि ट्रेनिंग सैंटरों से आए जवान अधिक अनुशासनप्रिय होते हैं, वे ऐसे अपराध कर ही नहीं सकते.’’

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं, रमेश आप की प्लाटून का जवान है, ऐसा कह कर आप उसे बचाना चाहते हैं?’’

‘‘नहीं, सर ऐसा नहीं है. मैं जवान से अफसर बना हूं. मैं 10 वर्षों तक उन के बीच रहा हूं. मैं उन की सोच, उन की मानसिकता को बड़े करीब से जानता हूं. वे बहुत ही गरीब परिवारों से आते हैं. जिन की दालरोटी उन के वेतनों से चलती है. वे ऐसा कैसे कर सकते हैं? उन के लिए तो एक सीनियर सिपाही और लांस नायक एक बहुत बड़ा अफसर है. उन के समक्ष वे सावधान हो कर बात करते हैं. वे ऐसे जवानों के प्रति कोई अपराध की बात नहीं सोचते तो कर्नल साहब के प्रति सोचना तो बहुत दूर की बात है.’’

‘‘अपराध तो हुआ है. मैडिकल रिपोर्ट में बलात्कार साबित हो चुका है. क्या आप को लगता है, इस में कर्नल साहब की वाइफ भी कहीं दोषी हैं? सिपाही रमेश ने भी अपने बयान में कहा है कि उन्होंने उसे बुलाया और ऐसा करने को कहा. आप के ऊपर दिए बयान से भी कहीं न कहीं यह झलकता है कि इस में कर्नल साहब की वाइफ भी दोषी हैं?’’

प्रश्न का उत्तर देना बड़ा कठिन था. किसी को भी भ्रमित कर सकता था. मेजर साहब कहीं न कहीं मेरे मुख से इस के प्रति सुनना चाहते थे, परंतु मैं जानता था, मुझे क्या कहना है. मेरी थोड़ी सी गलती सिपाही रमेश का कोर्टमार्शल करवा सकती थी. मैं ने मन में ठान ली कि मुझे गोलमोल उत्तर देना है.

‘‘सर, मैं ने यह नहीं कहा कि कर्नल साहब की वाइफ दोषी हैं. मुझे नहीं पता, वास्तव में वहां हुआ क्या था. मैं ने तो आप के प्रश्न के उत्तर में जवानों की गरीबी, अनुशासनप्रियता और उन की मानसिकता को आप के समक्ष रखा है और यह कहने की कोशिश की है कि विकट परिस्थितियों में भी ऐसे अपराधों से जवान खुद को दूर रखने का प्रयत्न करते हैं. जम्मूकश्मीर में भी ऐसे कई केसेस आए जिन में जवान बेगुनाह साबित हुए. जहां तक कर्नल साहब की वाइफ का प्रश्न है, वे बहुत ही सम्मानीय नारी हैं. मैं उन को कलंकित होते नहीं देख सकता.’’

पर कहीं न कहीं मेरे मन के भीतर यह प्रश्न भी अपने विकराल रूप में रेंग रहा था कि कर्नल साहब खुद एक चरित्रहीन व्यक्ति हैं, कहीं उन के चरित्र से प्रभावित हो कर मेमसाहब ने ऐसा तो नहीं किया?

विडंबना देखिए, सेना में जहां औरतें पहले उपलब्ध नहीं हुआ करती थीं, अधिकारी अपने जूनियर या सीनियर अधिकारियों की पत्नियों से संबंध बनाने की कोशिश किया करते थे. खुद कई पत्नियां भी इस में पीछे नहीं रहती थीं, परंतु यह सब छिपछिप कर होता था. सेना में अब महिला अफसर आने से यह छिपाव खत्म हो गया है.

महिला अफसर सदा अपने सीनियर अफसरों के प्रभाव में रहती हैं और वे अधिकारी इस का पूरा फायदा उठाते हैं. मैं समझता हूं, शायद कर्नल साहब की चरित्रहीनता ने मेमसाहब को ऐसा करने को प्रेरित किया हो कि वे ऐसा कर सकते हैं तो वह क्यों नहीं. निश्चिय ही इसी का प्रभाव रहा होगा, परंतु मैं अपनी इस सोच को शाब्दिक प्रस्तुत नहीं कर पाया.

मैं चुप हो गया था. मेजर साहब भी सोच में डूब गए. उन को महत्त्वपूर्ण निर्णय करना था. एक तरफ जहां नारी का सम्मान दांव पर था, वहीं एक जवान का भविष्य भी जुड़ा था. थोड़ी सी गलती रमेश का कैरियर बरबाद कर सकती थी.

वे निर्णय नहीं कर पा रहे थे. फिर उन्होंने अपनी गरदन को झटका दिया, जैसे किसी निर्णय पर पहुंच गए हों, स्पष्ट कहा, ‘‘पिछले एक सप्ताह से, जब से कोर्ट औफ इनक्वायरी चली है, मैं इसी पर सोचता आ रहा हूं. अपराध तो हुआ है, मैं मानता हूं. मैं यह भी जानता हूं किसी नारी के चरित्र पर बिना देखे लांछन लगाना, उस से बड़ा अपराध है. मैं जवानों की मानसिकता को भी बड़े करीब से जानता हूं. चाहे मैं ने सेना में सीधे कमीशन लिया है. मैं ने दूसरे अफसरों से भी बात की है. वे भी यही कहते हैं. मैं नहीं समझता इस में सिपाही रमेश अधिक दोषी है. यह सहमति सैक्स का मामला बनता है. बनता ही नहीं, बल्कि है.’’

मेजर साहब ने कोर्ट औफ इन्क्वायरी के दूसरे सदस्यों की ओर गहरी नजरों से देखा. वे चुप थे, जिस का मतलब यह भी था कि वे उन की बात से सहमत हैं.

कोर्ट औफ इन्क्वायरी का कंक्ल्यूजन लिख लिया गया जो सिपाही रमेश के फेवर में था. कर्नल साहब को इस का आभास हो गया था कि इन्क्वायरी का कंक्ल्यूजन उन के फेवर में नहीं है.

एक सप्ताह के भीतर ही उन्होंने अपना ट्रांसफर करवा लिया और चले गए. वे बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहते थे. अगर आगे बढ़ाते तो जहां उन की बदनामी होती वहीं इंक्वायरी का कंक्ल्यूजन आड़े आता. मुझे सिपाही रमेश को बचा पाने की खुशी थी, वहीं कर्नल साहब की वाइफ के लिए हमदर्दी थी. मैं मन की गहराइयों से इस बात का फैसला नहीं कर पाया कि यह गलत हुआ या सही.

बेइज्जती : अजीत ने क्या किया था रसिया के साथ

लेखक- कुंवर गुलाब सिंह

करिश्मा और रसिया भैरव गांव से शहर के एक कालेज में साथसाथ पढ़ने जाती थीं. साथसाथ रहने से उन दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी. उन का एकदूसरे के घरों में आनाजाना भी शुरू हो गया था.

करिश्मा के छोटे भाई अजीत ने रसिया को पहली बार देखा, तो उस की खूबसूरती को देखता रह गया. रसिया के कसे हुए उभार, सांचे में ढला बदन और रस भरे गुलाबी होंठ मदहोश करने वाले थे.

रसिया ने एक दिन महसूस किया कि कोई लड़का छिपछिप कर उसे देखता है. उस ने करिश्मा से पूछा, ‘‘वह लड़का कौन है, जो मुझे घूरता है?’’

‘‘वह…’’ कह कर करिश्मा हंसी और बोली, ‘‘वह तो मेरा छोटा भाई अजीत है. तुम इतनी खूबसूरत हो कि तुम्हें कोई भी देखता रह जाए…

‘‘ठहरो, मैं उसे बुलाती हूं,’’ इतना कह कर उस ने अजीत को पुकारा, जो दूसरे कमरे में खड़ा सब सुन रहा था.

‘‘आता हूं…’’ कहते हुए अजीत करिश्मा और रसिया के सामने ऐसा भोला बन कर आया, जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो.

करिश्मा ने बनावटी गुस्सा करते हुए पूछा, ‘‘अजीत, तुम मेरी सहेली रसिया को घूरघूर कर देखते हो क्या?’’

‘‘घूरघूर कर तो नहीं, पर मैं जानने की कोशिश जरूर करता हूं कि ये कौन हैं, जो अकसर तुम से मिलने आया करती हैं,’’ अजीत ने कहा.

‘‘यह बात तो तुम मुझ से भी पूछ सकते थे. लो, अभी बता देती हूं. यह मेरी सहेली रसिया है.’’

‘‘रसिया… बड़ा प्यारा नाम है,’’ अजीत ने मुसकराते हुए कहा, तो करिश्मा ने रसिया से अपने भाई का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘रसिया, यह मेरा छोटा भाई अजीत है. इसे अच्छी तरह पहचान लो, फिर न कहना कि तुम्हें घूर रहा था.’’

‘‘ओ हो अजीत… मैं हूं रसिया. क्या तुम मुझ से दोस्ती करोगे?’’ रसिया ने पूछा.

‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं…’’ कहते हुए अजीत ने जोश के साथ अपना हाथ उस की ओर बढ़ाया.

रसिया ने उस से हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘अजीत, तुम से मिल कर खुशी हुई. वैसे, तुम करते क्या हो?’’

‘‘मैं कालेज में पढ़ता हूं. जल्दी पढ़ाई खत्म कर के नौकरी करूंगा, ताकि अपनी बहन की शादी कर सकूं.’’

रसिया जोर से हंस पड़ी. उस के हंसने से उस के उभार कांपने लगे. यह देख कर अजीत के दिल की धड़कनें बढ़ गईं.

तभी रसिया ने कहा, ‘‘वाह अजीत, वाह, तुम तो जरूरत से ज्यादा समझदार हो गए हो. सिर्फ बहन की शादी करने का इरादा है या अपनी भी शादी करोगे?’’

‘‘अपनी भी शादी कर लूंगा, अगर तुम्हारी जैसी खूबसूरत लड़की मिली तो…’’ कहते हुए अजीत वहां से चला गया.

रात में जब अजीत अपने बिस्तर पर लेटा, तो रसिया के खयालों में खोने लगा. उसे बारबार रसिया के दोनों उभार कांपते दिखाई दे रहे थे. वह सिहर उठा.

2 दिन बाद अजीत रसिया से फिर अपने घर पर मिला. हंसीहंसी में रसिया ने उस से कह दिया, ‘‘अजीत, तुम मुझे बहुत प्यारे और अच्छे लगते हो.’’

अजीत को ऐसा लगा, मानो रसिया उस की ओर खिंच रही है. अजीत बोला, ‘‘रसिया, तुम भी मुझे बहुत अच्छी लगती हो. तुम मुझ से शादी करोगी?’’

यह सुन कर रसिया को हैरानी हुई. उस ने हड़बड़ा कर कहा, ‘‘तुम ने मेरे कहने का गलत मतलब लगाया है. तुम नहीं जानते कि मैं निचली जाति की हूं? ऐसा खयाल भी अपने मन में मत लाना. तुम्हारा समाज मुझे नफरत की निगाह से देखेगा. वेसे भी तुम मुझ से उम्र में बहुत छोटे हो. करिश्मा के नाते मैं भी तुम्हें अपना भाई समझने लगी थी.’’

अजीत कुछ नहीं बोला और बात आईगई हो गई.

समय तेजी से आगे बढ़ता गया. एक दिन करिश्मा ने अपने जन्मदिन पर अपनी सहेलियों को घर पर बुलाया. काफी चहलपहल में देर रात हो गई, तो रसिया घबराने लगी. उसे अपने घर जाना था. उस ने करिश्मा से कहा, ‘‘अजीत से कह दो कि वह मुझे मेरे घर छोड़ दे.’’

करिश्मा ने अजीत को पुकार कर कहा, ‘‘अजीत, जरा इधर आना. तुम रसिया को अपनी मोटरसाइकिल से उस के घर तक छोड़ आओ. आसमान में बादल घिर आए हैं. तेज बारिश हो सकती है.’’

‘‘इन से कह दो कि रात को यहीं रुक जाएं,’’ अजीत ने सुझाया.

‘‘नहींनहीं, ऐसा नहीं हो सकता. मेरे घर वाले परेशान होंगे. अगर तुम नहीं चल सकते, तो मैं अकेले ही चली जाऊंगी,’’ रसिया ने कहा.

‘‘नहीं, मैं आप को छोड़ दूंगा,’’ कह कर अजीत ने अपनी मोटरसाइकिल निकाली, तभी हलकीहलकी बारिश शुरू हो गई. कुछ फासला पार करने पर तूफानी हवा के साथ खूब तेज बारिश और ओले गिरने लगे. ठंड भी बढ़ गई थी.

रसिया ने कहा, ‘‘अजीत, तेज बारिश हो रही है. क्यों न हम लोग कुछ देर के लिए किसी महफूज जगह पर रुक कर बारिश के बंद होने का इंतजार कर लें?’’

‘‘तुम्हारा कहना सही है रसिया. आगे कोई जगह मिल जाएगी, तो जरूर रुकेंगे.’’

बिजली की चमक में अजीत को एक सुनसान झोंपड़ी दिखाई दी. अजीत ने वहां पहुंच कर मोटरसाइकिल रोकी और दोनों झोंपड़ी के अंदर चले गए.

अजीत की नजर रसिया के भीगे कपड़ों पर पड़ी. वह एक पतली साड़ी पहन कर सजधज कर करिश्मा के जन्मदिन की पार्टी में गई थी. उसे क्या मालूम था कि ऐसे हालात का सामना करना पड़ेगा. पानी से भीगी साड़ी में उस का अंगअंग दिखाई दे रहा था.

रसिया का भीगा बदन अजीत को बेसब्र कर रहा था. वह बारबार सोचता कि ऐसे समय में रसिया उस की बांहों में समा जाए, तो उस के जिस्म में गरमी भर जाए,

कांपती हुई रसिया ने अजीत से कुछ कहना चाहा, लेकिन उस की जबान नहीं खुल सकी. लेकिन ठंड इतनी बढ़ गई थी कि उस से रहा नहीं गया. वह बोली, ‘‘भाई अजीत, मुझे बहुत ठंड लग रही है. कुछ देर मुझे अपने बदन से चिपका लो, ताकि थोड़ी गरमी मिल जाए.’’

‘‘क्यों नहीं, भाई का फर्ज है ऐसी हालत में मदद करना,’’ कह कर अजीत ने रसिया को अपनी बांहों में जकड़ लिया. धीरेधीरे वह रसिया की पीठ को सहलाने लगा. रसिया को राहत मिली.

लेकिन अब अजीत के हाथ फिसलतेफिसलते रसिया के उभारों पर पड़ने लगे और उस ने समझा कि रसिया को एतराज नहीं है. तभी उस ने उस के उभारों को दबाना शुरू किया, तो रसिया ने अजीत की नीयत को भांप लिया.

रसिया उस से अलग होते हुए बोली, ‘‘अजीत, ऐसे नाजुक समय में क्या तुम करिश्मा के साथ भी ऐसी ही हरकत करते? तुम्हें शर्म नही आई?’’ कहते हुए रसिया ने अजीत के गाल पर कस कर चांटा मारा.

यह देख कर अजीत तिलमिला उठा. उस ने भी उसी तरह चांटा मारना चाहा, पर कुछ सोच कर रुक गया.

उस ने रसिया की पीठ सहलाते हुए जो सपने देखे थे, वे उस के वहम थे. रसिया उसे बिलकुल नहीं चाहती थी. जल्दबाजी में उस ने सारा खेल ही खत्म कर दिया. अगर रसिया ने उस की शिकायत करिश्मा से कर दी, तो गड़बड़ हो जाएगी.

अजीत झट से शर्मिंदगी दिखाते हुए बोला, ‘‘रसिया, मुझे माफ कर दो. मेरी शिकायत करिश्मा से मत करना.’’

‘‘ठीक है, नहीं करूंगी, लेकिन इस शर्त पर कि तुम यह सब बिलकुल भूल जाओगे,’’ रसिया ने कहा.

‘‘जरूरजरूर. दोबारा मैं ऐसा नहीं करूंगा. मैं ने समझा था कि दूसरी निचली जाति की लड़कियों की तरह शायद तुम भी कहीं दिलफेंक न हो.’’

‘‘तुम्हारे जैसे बड़े लोग ही हम निचली जाति की लड़कियों से गलत फायदा उठाने की कोशिश करते हैं. सभी लड़कियां कमजोर नहीं होतीं. अब यहां रुकना ठीक नहीं है. बारिश भी कम हो गई है. अब हमें चलना चाहिए,’’ रसिया ने कहा.

दोनों मोटरसाइकिल से रसिया के घर पहुंचे. रसिया ने बारिश बंद होने तक अजीत को रोकना चाहा, लेकिन वह नहीं रुका.

उस दिन के बाद से अजीत अपने गाल पर हाथ फेरता, तो गुस्से में उस के रोंगटे खड़े हो जाते.

अजीत रसिया के चांटे को याद करता और तड़प उठता. सोचता कि रसिया ने चांटा मार कर उस की जो बेइज्जती की है, वह उसे जिंदगीभर भूल नहीं सकता. उस चांटे का जवाब वह जरूर देगा.

उस दिन करिश्मा के यहां खूब चहलपहल थी, क्योंकि उस की सगाई होने वाली थी. उस की सहेलियां नाचनेगाने में मस्त थीं. रसिया भी उस जश्न में शामिल थी, क्योंकि वह करिश्मा की खास सहेली जो थी. वह खूब सजधज  कर आई थी.

अजीत भी लड़कियों के साथ नाचने लगा. उस की नजर जब रसिया से टकराई, तो दोनों मुसकरा दिए. अजीत ने उसी समय मौके का फायदा उठाना चाहा.

अजीत ने झूमते हुए आगे बढ़ कर रसिया की कमर में हाथ डाला और अपनी बांहों में कस लिया. फिर उस के गालों को ऐसे चूमा कि उस के दांतों के निशान रसिया के गालों पर पड़ गए.

यह देख रसिया तिलमिला उठी और धक्का दे कर उस की बांहों से अलग हो गई. रसिया ने उस के गाल पर कई चांटे रसीद कर दिए. जश्न में खलबली मच गई. पहले तो लोग समझ ही नहीं पाए कि माजरा क्या है, लेकिन तुरंत रसिया की कठोर आवाज गूंजी, ‘‘अजीत, तुम ने आज इस भरी महफिल में केवल मेरा ही नहीं, बल्कि अपनी बहन औेर सगेसंबंधियों की बेइज्जती की है. मैं तुम पर थूकती हूं.

‘‘मैं सोचती थी कि शायद तुम उस दिन के चांटे को भूल गए हो, पर मुझे ऐसा लगता है कि तुम यही हरकतें अपनी बहन करिश्मा के साथ भी करते होगे.

‘‘अगर मैं जानती कि तुम्हारे दिल में बहनों की इसी तरह इज्जत होती है, तो यहां कभी न आती. ’’

रसिया ने करिश्मा के पास जा कर उस रात की घटना के बारे में बताया और यह भी बताया कि अजीत ने उस से भविष्य में ऐसा न होने के लिए माफी भी मांगी थी.

करिश्मा का सिर शर्म से झुक गया. उस की आखों से आंसू गिर पड़े. करिश्मा की दूसरी सहेलियों ने भी अजीत की थूथू की और वहां से बिना कुछ खाए रसिया के साथ वापस चली गईं.

नासमझ अजीत ने रसिया को जलील नहीं किया था, बल्कि अपने परिवार की बेइज्जती की थी.

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