जब मैं छोटा था: क्या कहना चाहता था केशव

केशव ने घूर कर अपने बेटे अंगद को देखा. वह सहम गया और सोचने लगा कि उस ने ऐसा क्या कह दिया जो उस के पिता को खल गया. अगर उसे कुछ चाहिए तो वह अपने पिता से नहीं मांगेगा तो और किस से मांगेगा. रानी बेटे की बात समझती है पर वह केवल उस की सिफारिश ही तो कर सकती है. निर्णय तो इस परिवार में केशव ही लेता है.

रानी ने मुसकरा कर केशव को हलकी झिड़की दी, ‘‘अब घूरना बंद करो और मुंह से कुछ बोलो.’’

केशव ने रानी को मुंह सिकोड़ कर देखा और फिर सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘क्या समय आ गया है.’’

‘‘क्यों, क्या तुम ने अपने पिता से कभी कुछ नहीं मांगा?’’ रानी ने हंस कर कहा, ‘‘बेकार में समय को दोष क्यों देते हो?’’

‘‘मांगा?’’ केशव ने तैश खा कर कहा, ‘‘मांगना तो दूर हमारा तो उन के सामने मुंह भी नहीं खुलता था. इतनी इज्जत करते थे उन की.’’

‘‘इज्जत करते थे या डरते थे?’’ रानी ने व्यंग्य से कहा.

केशव ने लापरवाही का नाटक किया, ‘‘एक ही बात है. अब हमारी औलाद हम से डरती कहां है?’’

अवसर का लाभ उठाते हुए अंगद ने शरारत से पूछा, ‘‘पिताजी, क्या आप के समय में आजकल की तरह जन्मदिन मनाया जाता था?’’

केशव ने व्यंग्य से हंस कर कहा, ‘‘जनाब, ऐसी फुजूलखर्ची के बारे में सोचना ही गुनाह था. ये तो आजकल के चोंचले हैं.’’

‘‘फिर भी पिताजी,’’ अंगद ने कहा, ‘‘कभी न कभी तो आप को जन्मदिन पर कुछ तो विशेष मिला होगा.’’

रानी ने हंसते हुए कहा, ‘‘मिला था, एक पाजामा. क्यों, ठीक है न?’’

केशव भी हंसा, ‘‘ठीक है, तुम्हें तो मेरा राज मालूम है.’’

‘‘पाजामा?’’ अंगद ने चकित हो कर पूछा, ‘‘क्या यह भी कोई उपहार है?’’

‘‘बहुत बड़ा उपहार था, बेटे,’’ केशव ने यादों में खोते हुए कहा, ‘‘पिताजी से तो बात करने का सवाल ही नहीं था. जब मैं ने मां से हठ की तो उन्होंने अपने हाथों से नया पाजामा सिल कर दिया था. मैं बहुत खुश था. रानी, तुम भी अंगद को एक पाजामा सिल

कर दो, पर…पर तुम्हें तो सिलना आता ही नहीं.’’

‘‘सारे दरजी मर गए क्या?’’ रानी ने चिढ़ कर कहा.

‘‘पाजामावाजामा नहीं,’’ अंगद ने जोर दे कर कहा, ‘‘अगर कुछ देना है तो मोपेड दीजिए. मेरे सारे दोस्तों के पास है. सब मोपेड पर ही स्कूल आते हैं. बस, एक मैं ही हूं, खटारा साइकिल वाला.’’

के शव ने तनिक नाराजगी से कहा, ‘‘साइकिल की इज्जत करना सीखो. उस ने 20 साल मेरी सेवा की है.’’

‘‘दहेज में जो मिली थी,’’ रानी ने टांग खींची.

‘‘क्या करता,’’ केशव चिढ़ कर बोला, ‘‘अगर स्कूटर मांगता तो तुम्हारे पिताजी को घर बेचना पड़ जाता.’’

‘‘अरे, जाओ भी,’’ रानी ने चोट खाए स्वर में कहा, ‘‘लेने वाले की हैसियत भी देखी जाती है.’’

अंगद ने महसूस किया कि बातों का रुख बदल रहा है इसीलिए बीच में पड़ कर बोला, ‘‘आप लोग तो

फिर लड़ने लगे. मेरे लिए मोपेड लेंगे या नहीं?’’

‘‘बरखुरदार,’’ केशव ने फिर से घूरते हुए कहा, ‘‘जब हम तुम्हारे बराबर थे तो पैदल स्कूल जाते थे. स्कूल भी कोई पास नहीं था. पूरे 3 मील दूर था. उन दिनों घर में बिजली भी नहीं थी इसलिए सड़क के किनारे लैंपपोस्ट के नीचे बैठ कर पढ़ते थे. जेबखर्च के पैसे भी नहीं मिलते थे. दिन भर कुछ नहीं खाते थे. घर आ कर 5 बजे तक रात का खाना निबट जाता था. समझे जनाब? आप मोपेड की बात करते हैं.’’

रानी इस भाषण को कई बार सुनसुन कर उकता चुकी थी इसलिए ताना मार कर बोली, ‘‘तो यह है आप की सफलता का रहस्य. देखो बेटे, ऐसा करोगे तो पिताजी की तरह एक दिन किसी कारखाने के महाप्रबंधक बन जाओगे.’’

अंगद मूर्खों की तरह मांबाप को देख रहा था. उस के मन में विद्रोह की आग सुलग रही थी. बड़ी बहन मानिनी जब भी कुछ मांगती थी तो उसे तुरंत मिल जाता था. एक वही है इस घर में दलित वर्ग का शोषित प्राणी.

नाश्ता समाप्त होने पर केशव कार्यालय जाने की तैयारी में लग गया और नौकरानी के आ जाने से रानी घर की सफाई कराने में व्यस्त हो गई. अंगद कब स्कूल चला गया किसी को पता ही नहीं चला.

कार निकालते समय केशव ने रोज के मुकाबले कुछ फर्क महसूस किया, पर समझ नहीं पाया. बहुत दूर निकल जाने पर उसे ध्यान आया कि आज अंगद की साइकिल अपनी जगह पर ही खड़ी थी. वैसे अकसर साइकिल खराब होने पर अंगद साइकिल घर छोड़ कर बस से चला जाता था.

घर का काम निबट जाने के बाद रानी ने देखा कि अंगद का लंच बाक्स मेज पर ही पड़ा था. वैसे आमतौर पर वह लंच बाक्स ले जाना भूलता नहीं है क्योंकि रानी हमेशा बेटे का मनपसंद खाना ही रखती थी. खैर, कोई बात नहीं, अंगद की जेब में इतने रुपए तो होते ही हैं कि वह कुछ ले कर खा ले.

शाम को रानी को च्ंिता हुई क्योंकि अंगद हमेशा 3 बजे तक घर आ जाता था, पर आज 5 बज रहे थे. केशव के फोन से वह जान चुकी थी कि आज अंगद साइकिल भी नहीं ले गया था, पर बस से भी इतनी देर नहीं लगती. उस वक्त 6 बज रहे थे जब अंगद ने घर में प्रवेश किया. उस का चेहरा लाल हो रहा था और जूते धूलधूसरित हो गए थे. थकान के लक्षण भी स्पष्ट थे.

‘‘इतनी देर कहां लगा दी?’’ रानी ने बस्ता संभालते हुए पूछा.

‘‘बस, हो गई देर, मां,’’ अंगद ने टालते हुए कहा, ‘‘जल्दी से खाना दो. बहुत भूख लगी है.’’

‘‘खाना क्यों नहीं ले गया?’’ रानी ने शिकायत की.

‘‘भूल गया था,’’ अंगद का झूठ पता चल रहा था.

‘‘भूल गया या ले नहीं गया?’’ रानी ने तनिक क्रोध से पूछा.

‘‘कहा न, भूल गया,’’ अंगद चिढ़ कर बोला.

रानी ने अधिक जोर नहीं दिया. बोली, ‘‘जा, जल्दी से कपड़े बदल और हाथमुंह धो कर आ. आलू के परांठे और गाजर का हलवा बना है.’’

अंगद के चेहरे पर झलकती प्रसन्नता से रानी को संतोष हुआ. उसे लगा कि वह वाकई बहुत भूखा है. अंगद के आने से पहले ही उस ने खाना मेज पर लगा दिया था.

अंगद ने भरपेट खाया. कुछ देर तक टीवी देखा और फिर पढ़ाई करने अपने कमरे में चला गया.

8 बजे केशव कार्यालय से आया.

आराम से बैठने के बाद केशव ने रानी से पूछा, ‘‘बच्चे कहां हैं? बहुत शांति है घर में.’’

‘‘मन्नू तो शालू के यहां गई है,’’ रानी ने सामने बैठते हुए कहा, ‘‘कोई पार्टी है. देर से आएगी.’’

‘‘अकेली आएगी क्या?’’ केशव ने च्ंिता से पूछा.

‘‘नहीं,’’ रानी ने उत्तर दिया, ‘‘शालू का भाई छोड़ने आएगा.’’

‘‘उफ, ये बच्चे,’’ केशव ने अप्रसन्नता से कहा, ‘‘इतनी आजादी भी ठीक नहीं. जब मैं छोटा था तो बहन को तो छोड़ो, मुझे भी देर से आने नहीं दिया जाता था. आगे से ध्यान रखना. वैसे मन्नू कब तक आएगी?’’

‘‘अब क्यों च्ंिता करते हो,’’ रानी ने कहा, पर केशव की मुद्रा देख कर बोली, ‘‘ठीक है, फोन कर के पूछ लूंगी.’’

‘‘और साहबजादे कहां हैं?’’ केशव ने पूछा.

‘‘पढ़ रहा है,’’ रानी ने उत्तर दिया.

‘‘पर मुझे तो कोई आवाज नहीं सुनाई दे रही,’’ केशव ने पुकारा, ‘‘अंगद…अंगद?’’

‘‘ओ हो, पढ़ने दो न,’’ रानी ने झिड़का, ‘‘कल परीक्षा है उस की.’’

‘‘तो जवाब नहीं देगा क्या?’’ केशव ने क्रोध से पुकारा, ‘‘अंगद?’’

अंगद का उत्तर नहीं आया. केशव अब अधिक सब्र नहीं कर सका. उठ कर अंगद के कमरे की ओर गया और झटके से अंदर घुसा.

‘‘यहां तो है नहीं,’’ केशव ने क्रोध से कहा.

‘‘नहीं है,’’ रानी को विश्वास नहीं हुआ, ‘‘थोड़ी देर पहले ही तो मैं उस के मांगने पर चाय देने गई थी.’’

केशव ने व्यंग्य से कहा, ‘‘हां, चाय का प्याला तो है, पर जनाब नहीं हैं. गया कहां?’’

‘‘मुझ से तो कुछ कह कर नहीं गया,’’ रानी ने च्ंिता से कहा, ‘‘मन्नू के कमरे में देखो.’’

‘‘मन्नू के कमरे में भी होता तो जवाब देता न,’’ केशव ने क्रोध से कहा, ‘‘बहरा तो नहीं है.’’

रानी ने तसल्ली के लिए मन्नू के कमरे में  देखा और बोली, ‘‘पता नहीं कहां गया. शायद अखिल के यहां चला गया होगा. उस के साथ ही पढ़ता है न.’’

‘‘कह कर तो जाना था,’’ केशव भी अब च्ंितित था, ‘‘अखिल का घर कहां है?’’

‘‘वह राममनोहरजी का लड़का है,’’ रानी ने कहा, ‘‘309 नंबर में रहता है.’’

‘‘ओह,’’ केशव ने कहा, ‘‘उन के यहां तो फोन भी नहीं है.’’

‘‘थोड़ी देर देख लो,’’ रानी ने अपनी च्ंिता छिपाते हुए कहा, ‘‘आ जाएगा.’’

‘‘और मन्नू…’’

केशव का वाक्य समाप्त होेने से पहले ही रानी ने चिढ़ कर कहा, ‘‘अब मन्नू के पीछे पड़ गए. कभी तो चैन से बैठा करो.’’

झिड़की खा कर केशव कुरसी पर बैठ कर पत्रिका पढ़ने का नाटक करने लगा.

‘‘खाना लगाऊं क्या?’’ रानी ने कुछ देर बाद पूछा.

‘‘नहीं,’’ केशव ने कहा, ‘‘बच्चों को आने दो.’’

‘‘मन्नू तो खा कर आएगी,’’ रानी ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘अंगद बाद में खा लेगा. स्कूल से आ कर कुछ ज्यादा ही खा लिया था.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘2 की जगह पूरे 4 परांठे खा लिए,’’ रानी ने मुसकरा कर कहा, ‘‘उसे आलू के परांठे अच्छे लगते हैं न.’’

कुछ और समय बीतने पर केशव उठ खड़ा हुआ, ‘‘मैं राममनोहरजी के घर हो कर आता हूं.’’

उसी समय घंटी बजी और मानिनी ने प्रवेश किया. वह बहुत प्रसन्न थी.

‘‘शालू की पार्टी में बहुत मजा आया,’’ मानिनी ने हंसते हुए पूछा, ‘‘यह अंगद सड़क के किनारे क्यों बैठा है? क्या आप ने सजा दी है?’’

‘‘सड़क के किनारे?’’ केशव और रानी ने एकसाथ पूछा, ‘‘कहां?’’

‘‘साधना स्टोर के सामने,’’ मानिनी ने उत्तर दिया, ‘‘क्या मैं उसे बुला कर ले आऊं?’’

इस से पहले कि रानी कुछ कहती केशव ने गंभीरता से कहा, ‘‘नहीं, रहने दो. शायद पढ़ रहा होगा.’’

‘‘क्या घर में बिजली नहीं है?’’ मानिनी ने पूछा, पर फिर ध्यान आया कि बिजली तो है.

रानी ने खाना लगा दिया. केशव हाथ धो कर बैठने ही वाला था कि अंगद ने आहिस्ताआहिस्ता घर में प्रवेश किया.

केशव ने घूरते हुए पूछा, ‘‘इतनी दूर पढ़ने क्यों गए थे?’’

‘‘क्योंकि पास में कोई लैंपपोस्ट नहीं था,’’ अंगद ने मासूमियत से कहा.

केशव को हंसी भी आई और क्रोध भी. रानी भी हंस कर रह गई.

‘‘चलो, खाने के लिए बैठो,’’ रानी ने कहा.

‘‘स्कूल से आते ही खा तो लिया था,’’ अंगद ने कहा और अपने कमरे में चला गया.

केशव और रानी को अंगद का व्यवहार अब समझ में आ रहा था. लगता था कि नाटक की शुरुआत है.

मानिनी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. उस ने पूछा, ‘‘बात क्या है? आज अंगद के तेवर क्यों बिगड़े हुए हैं?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ रानी हंसी, ‘‘शीत- युद्ध है.’’

‘‘क्यों?’’ मानिनी ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मोपेड चाहिए जनाब को,’’ केशव ने कहा, ‘‘हमारे जमाने में…’’

‘‘ओ हो, पिताजी,’’ मानिनी ने चिढ़ कर कहा, ‘‘अब मैं समझ गई. न आप कभी बदलेंगे, न आप का जमाना. ठीक है, मैं चंदा इकट्ठा करती हूं.’’

एक मानिनी ही थी जो केशव से बेझिझक हो कर बात कर सकती थी.

केशव ने उसे घूर कर देखा और फिर उठ कर चला गया.

सुबह की चाय हो चुकी थी. जब नाश्ता लगा तो अंगद जा चुका था.

उस की साइकिल पर धूल जम गई थी और हवा भी निकल गई थी.

शाम को थकामांदा अंगद 6 बजे आया.

‘‘क्यों, बस नहीं मिली क्या?’’ रानी ने क्रोध से पूछा.

‘‘बसें तो आतीजाती रहती हैं.’’

‘‘तो फिर?’’ रानी ने पूछा.

‘‘तो फिर क्या? मुझे भूख लगी है. खाना तो मिलेगा न?’’

रानी को अब क्रोध नहीं आया. जानती थी कि वह भूखा होगा. उस के लिए खीर, पूडि़यां और गोभी की

सब्जी बनाई थी. अंगद ने प्रसन्न हो

कर भरपेट खाया और कमरे में चला गया.

केशव जब आया तब अंगद घर में नहीं था. आते वक्त केशव ने लैंपपोस्ट के नीचे निगाह डाली थी. अंगद धुंधली रोशनी में आंखें गड़ाए पढ़ रहा था.

3 दिन तक यह नाटक चलता रहा.

आज अंगद का जन्मदिन था. हर साल इस दिन रौनक छा जाती थी. पार्टी में आने वाले मित्रों की सूची बनती थी. लजीज व्यंजन बनाए जाते थे. मानिनी कुछ दिन पहले ही से उसे छेड़ने लगती थी और इस छेड़छाड़ में लड़ाई भी

हो जाती थी. वैसे अंगद को इस

बात का बहुत मलाल रहता था कि मानिनी का जन्मदिन धूमधाम से मनाया जाता है.

नींद खुलते ही अंगद की नजर पास पड़े लिफाफे पर पड़ी. लिफाफे को उठाते ही उस में से एक चाबी गिरी. चाबी से लटका एक छोटा सा कार्ड था. उस पर लिखा था, ‘जन्मदिन पर छोटा सा उपहार.’

अंगद की आंखों में चमक आ गई. यह तो मोपेड की चाबी थी. आधी रात को वह एक चिट्ठी खाने की मेज पर छोड़ कर आया जिस में लिखा था :

पूज्य पिताजी और मां,

क्या आप मुझे क्षमा करेंगे? मोपेड के लिए हठ करना मेरी भूल थी. मुझे सिवा आप के आशीर्वाद और प्यार के कुछ नहीं चाहिए.

आप का पुत्र

अंगद.

जब अंगद नीचे पहुंचा तो पत्र मां के हाथ में था और वह पढ़ कर सुना रही थीं. केशव और मानिनी हंस रहे थे.

‘‘पिताजी, आप ने भी जल्दी कर दी. बेकार में मोपेड की चपत पड़ी,’’ मानिनी हंस कर कह रही थी.

अंगद सिर झुकाए शर्मिंदा सा खड़ा था.

‘‘तो आप को मोपेड नहीं चाहिए,’’ केशव ने नकली गंभीरता से पूछा.

‘‘नहीं,’’ अंगद ने दृढ़ता से उत्तर दिया.

‘‘क्यों?’’ केशव ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘क्योंकि,’’ अंगद ने गंभीरता से शरारती अंदाज में कहा, ‘‘अब मुझे स्कूटर चाहिए.’’

‘‘क्या?’’ केशव ने मारने के अंदाज में हाथ उठाते हुए पूछा, ‘‘क्या कहा?’’

मानिनी ने बीच में आते हुए कहा, ‘‘पिताजी, छोडि़ए भी. हमारा अंगद अब छोटा नहीं है.’’

‘‘पर जब मैं छोटा था…’’

होहल्ले में केशव अपना वाक्य पूरा न कर सका.

संस्कार: क्या जवान बेटी के साथ सफर करना सही था

जवान बेटी के साथ अकेले सफर करते रेलगाड़ी के कंपार्टमैंट में जवान लड़कों के ग्रुप के कारण वह अपने को असुरक्षित महसूस कर रही थी. लगभग 3 वर्ष बाद मैं लखनऊ जा रही थी. लखनऊ मेरे लिए एक शहर ही नहीं, एक मंजिल है क्योंकि वह मेरा मायका है. उस शहर में पांव रखते ही जैसे मेरा बचपन लौट आता है. 10 दिनों बाद भैया की बड़ी बेटी शुभ्रा की शादी थी. मैं और मेघना दोपहर की गाड़ी से जा रही थीं. मेरे पति राजीव बाद में पहुंचने वाले थे. कुछ तो इन्हें काम की अधिकता थी, दूसरे, इन की तो ससुराल है. ऐनवक्त पर पहुंच कर अपना भाव भी तो बढ़ाना था.

मेरी बात और है. मैं ने सोचा था कुछ दिन वहां चैन से रहूंगी, सब से मिलूंगी, बचपन की यादें ताजा करूंगी और कुछ भैयाभाभी के काम में भी हाथ बंटाऊंगी. शादी वाले घर में सौ तरह के काम होते हैं.

अपनी शादी के बाद पहली बार मैं शादी जैसे अवसर पर मायके जा रही थी. मां का आग्रह था कि मैं पूरी तैयारी के साथ आऊं. मां पूरी बिरादरी को दिखाना चाहती थीं आखिर उन की बेटी कितनी सुखी है, कितनी संपन्न है या शायद दूर के रिश्ते की बूआ को दिखाना चाहती होंगी, जिन का लाया रिश्ता ठुकरा कर मां ने मुझे दिल्ली में ब्याह दिया था. लक्ष्मी बूआ भी तो उस दिन से सीधे मुंह बात नहीं करतीं.

शुभ्रा के विवाह में जाने का मेरा भी चाव कुछ कम नहीं था, उस पर मां का आग्रह. हम दोनों, मांबेटी ने बड़े ही मनोयोग से समारोह में शामिल होने की तैयारी की थी. हर मौके पर पहनने के लिए नई तथा आधुनिक पोशाक, उस से मैचिंग चूडि़यां, गहने, सैंडल और न जाने क्याक्या जुटाया गया.

पूरी उमंग और उत्साह के साथ हम स्टेशन पहुंचे. राजीव हमें विदा करने आए थे. हमारे सहयात्री कालेज के लड़के थे जो किसी कार्यशाला में भाग लेने लखनऊ जा रहे थे. हालांकि गाड़ी चलने से पहले वे सब अपने सामान के यहांवहां रखरखाव में ही लगे थे, फिर भी उन्हें देख कर मैं कुछ परेशान हो उठी. मेरी परेशानी शायद मेरे चेहरे से झलकने लगी थी जिसे राजीव ने भांप लिया था. ऐसे में वे कुछ खुल कर तो कह न पाए लेकिन मुझे होशियार रहने के लिए जरूर कह गए. यही कारण था कि चलतेचलते उन्होंने उन लड़कों से भी कुछ इस तरह से बात की जिस से यात्रा के दौरान माहौल हलकाफुलका बना रहे.

गाड़ी ने रफ्तार पकड़ी. हम अपनी मंजिल की तरफ बढ़ने लगे. लड़कों में अपनीअपनी जगह तय करने के लिए छीनाझपटी, चुहलबाजी शुरू हो गई.

वैसे, मुझे युवा पीढ़ी से कभी कोई शिकायत नहीं रही. न ही मैं ने कभी अपने और उन में कोई दूरी महसूस की है. मैं तो हमेशा घरपरिवार के बच्चों और नौजवानों की मनपसंद आंटी रही हूं. मेरा तो मानना है कि नौजवानों के बीच रह कर अपनी उम्र के बढ़ने का एहसास ही नहीं होता, लेकिन उस समय मैं लड़कों की शरारतों और नोकझोंक से कुछ परेशान सी हो उठी थी.

ऐसा नहीं कि बच्चे कुछ गलत कर रहे थे. शायद मेरे साथ मेघना का होना मुझे उन के साथ जुड़ने नहीं दे रहा था. कुछ आजकल के हालात भी मुझे परेशान किए हुए थे. देखने में तो सब भले घरों के लग रहे थे फिर भी एकसाथ 6 लड़कों का गु्रप, उस पर किसी बड़े का उन के साथ न होना, उस पर उम्र का ऐसा मोड़ जो उन्हें शांत, सौम्य तथा गंभीर नहीं रहने दे रहा था. मैं भला परेशान कैसे न होती.

मेरा ध्यान शुभ्रा की शादी, मायके जाने की खुशी और रास्ते के बागबगीचों, खेतखलिहानों से हट कर बस, उन लड़कों पर केंद्रित हो गया था. थोड़ी ही देर में हम उन लड़कों के नामों से ही नहीं, आदतों से भी परिचित हो गए.

घुंघराले बालों वाला सांवला सा, नाटे कद का अंकित फिल्मों का शौकीन लगता था. उस के उठनेबैठने में फिल्मी अंदाज था तो बातचीत में फिल्मी डायलौग और गानों का पुट था. एक लड़के को सब सैम कह कर बुला रहे थे. यह उस के मातापिता का रखा नाम तो नहीं लगता था, शायद यह दोस्तों द्वारा किया गया नामकरण था.

चुस्तदुरुस्त सैम चालढाल और पहनावे से खिलाड़ी लगता था. मझली कदकाठी वाला ईश गु्रप का लीडर जान पड़ता था. नेवीकट बाल, लंबी और घनी मूंछें और बड़ीबड़ी आंखों वाले ईश से पूछे बिना लड़के कोई काम नहीं कर रहे थे. बिना मैचिंग की ढीलीढाली टीशर्ट पहने, बिखरे बालों वाला, बेपरवाह तबीयत वाला समीर था जो हर समय चुइंगम चबाता हुआ बोलचाल में इंग्लिश भाषा के शब्दों का इस्तेमाल ज्यादा कर रहा था.

मेरे पास बैठे लड़के का नाम मनीष था. लंबा, गोराचिट्टा, नजर का चश्मा पहने वह नीली जींस और कीमती टीशर्ट में बड़ा स्मार्ट लग रहा था. कुछ शरमीले स्वभाव का पढ़ाकू सा लगने वाला मनीष कान में ईयर फोन और एक हाथ में मोबाइल व दूसरे हाथ में एक इंग्लिश नौवेल ले कर बैठा ही था कि आगे बढ़ कर रजत ने उस का नौवेल छीन लिया. रजत बड़ा ही चुलबुला, गोलमटोल हंसमुख लड़का था. हंसते हुए उस के दोनों गालों पर गड्ढे पड़ते थे. रजत पूरे रास्ते हंसताहंसाता रहा. पता नहीं क्यों, मुझे लगा उस की हंसी, उस की शरारतें सब मेघना के कारण हैं. इसलिए हंसना तो दूर, मेरी नजरों का पहरा हरदम मेघना पर बैठा रहा.

मेरे ही कारण मेघना बेचारी भी दबीघुटी सी या तो खिड़की से बाहर झांकती रही या आंखें बंद कर के सोने का नाटक करती रही. अपने हमउम्र उन लड़कों के साथ न खुल कर हंस पाई न ही उन की बातचीत में शामिल हो सकी. वैसे, न मैं ही ऐसी मां और न मेघना ही इतनी पुरातनपंथी लड़की है. वह तो हमेशा सहशिक्षा में ही पढ़ी है. वह क्या कालेज में लड़कों के साथ बातचीत, हंसीमजाक नहीं करती होगी. फिर भी न जाने क्यों, शायद घर से दूरी या अकेलापन मेने मन में असुरक्षा की भावना को जन्म दे गया था.

उन से परिचय के आदानप्रदान और बातचीत में मैं ने कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई. मुझे लगा वे मेघना तक पहुंचने के लिए मुझे सीढ़ी बनाएंगे. उन लड़कों की बहानों से उठी नजरें जब मेघना से टकरातीं तो मैं बेचैन हो उठती. उस दिन पहली बार मेघना मुझे बहुत ही खूबसूरत नजर आई और पहली बार मुझे बेटी की खूबसूरती पर गर्व नहीं, भय हुआ. मुझे शादी में इतने दिन पहले इस तरह जाने के अपने फैसले पर भी झुंझलाहट होने लगी थी. वास्तव में मायके जाने की खुशी में मैं भूल ही गई थी कि आजकल औरतों का अकेले सफर करना कितना जोखिम का काम है. वे सभी खबरें जो पिछले दिनों मैं ने अखबारों में पढ़ी थीं, एकएक कर के मेरे दिमाग पर दस्तक देने लगीं.

कई घंटों के सफर में आमनेसामने बैठे यात्री भला कब तक अपने आसपास से बेखबर रह सकते हैं. काफी देर तक तो हम दोनों मुंह सी कर बैठी रहीं लेकिन धीरेधीरे दूसरी तरफ से परिचय पाने की उत्सुकता बढ़ने लगी. शायद यात्रा के दौरान यह स्वाभाविक भी था. यदि सामने कोई परिवार बैठा होता तो क्या खानेपीने की चीजों का आदानप्रदान किए बिना हम रहतीं और अगर सफर में कुछ महिलाओं का साथ होता तो क्या वे ऐसे ही अजनबी बनी रहतीं. उन कुछ घंटों के सफर में तो हम एकदूसरे के जीवन का भूगोल, इतिहास, भूत, वर्तमान सब बांच लेतीं.

चूंकि वे जवान लड़के थे और मेरे साथ मेरी जवान बेटी थी इसलिए उन की उठी हर नजर मुझे अपनी बेटी से टकराती लगती. उन की कही हर बात उसी को ध्यान में रख कर कही हुई लगती. उन की हंसीमजाक में मुझे छींटाकशी और ओछापन नजर आ रहा था. कुछ घंटों का सफर जैसे सदियों में फैल गया था. दोपहर कब शाम में बदली और शाम कब रात में बदल गई मुझे खबर ही न हुई क्योंकि मेरे अंदर भय का अंधेरा बाहर के अंधेरे से ज्यादा घना था.

हालांकि जब भी कोई स्टेशन आता, लड़के हम से पूछते कि हमें चायपानी या किसी अन्य चीज की जरूरत तो नहीं. उन्होंने मेघना को गुमसुम बैठे बोर होते देखा तो अपनी पत्रपत्रिकाएं भी पेश कर दीं और वे अपनेअपने मोबाइल में व्यस्त हो गए. जबजब उन्होंने कुछ खाने के लिए पैकेट खोले तो बड़े आदर से पहले हमें औफर किया, हालांकि, हम हमेशा मना करती रहीं.

मैं ने अपनेआप को बहुत समझाया कि जब आपत्ति करने लायक कोई बात नहीं, तो मैं क्यों परेशान हो रही हूं, मैं क्यों सहज नहीं हो जाती. लेकिन तभी मन के किसी कोने में बैठा भय फन फैला देता. कहीं मेरी जरा सी ढील, बात को इतनी दूर न ले जाए कि मैं उसे समेट ही न सकूं. मैं तो पलपल यही मना रही थी कि यह सफर खत्म हो और मैं खुली हवा में सांस ले सकूं.

कानपुर स्टेशन आने वाला था. गाड़ी वहां कुछ ज्यादा देर के लिए रुकती है. डब्बे में स्वाभाविक हलचल शुरू हो गई थी. तभी एक अजीब सा शोर कानों में टकराने लगा. गाड़ी की रफ्तार धीमी हो गई थी. स्टेशन आतेआते बाहर का कोलाहल कर्णभेदी हो गया था. हर कोई खिड़कियों से बाहर झांकने की कोशिश कर ही रहा था कि गाड़ी प्लेटफौर्म पर आ लगी. बाहर का दृश्य सन्न कर देने वाला था. हजारों लोग गाड़ी के पूरी तरह रुकने से पहले ही उस पर टूट पड़े थे. जैसे, शेर शिकार पर झपटता है. स्टेशन पर चीखपुकार, लड़ाईझगड़ा, गालीगलौज, हर तरफ आतंक का वातावरण था.

इस से पहले कि हम कुछ समझते, बीसियों लोग डब्बे में चढ़ कर हमारी सीटों के आसपास, यहांवहां जुटने लगे, जैसे गुड़ की डली पर मक्खियां चिपकती चली जाती हैं. वह स्टेशन नहीं, मानो मनुष्यों का समुद्र पर बंधा हुआ बांध था जो गाड़ी के आते ही टूट गया था. प्लेटफौर्म पर सिर ही नजर आ रहे थे. तिल रखने को भी जगह नहीं थी.

कई सिर खिड़कियों से अंदर घुसने की कोशिश कर रहे थे. मेघना ने घबरा कर खिड़की बंद करनी चाही तो कई हाथ अंदर आ गए जो सबकुछ झपट लेना चाहते थे. मेघना को पीछे हटा कर सैम और अंकित ने खिड़कियां बंद कर दीं. पलट कर देखा तो मनीष, रजत और ईश, तीनों अंदर घुस आए आदमियों के रेवड़ को खदेड़ने में लगे थे. किसी को धकिया रहे थे तो किसी से हाथापाई हो रही थी. समीर ने सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जल्दीजल्दी सारा सामान बंद खिड़कियों के पास इकट्ठा करना शुरू कर दिया.

लड़कों को उन धोतीकुरताधारी, निपट देहातियों से उलझते देख कर जैसे ही मैं ने हस्तक्षेप करना चाहा तो ईश और सैम एकसाथ बोल उठे, ‘‘आंटीजी, आप दोनों निश्चिंत हो कर बैठिए. बस, जरा सामान पर नजर रखिएगा. इन से तो हम निबट लेंगे.’’

तब याद आया कि सुबह लखनऊ में एक विशाल राजनीतिक रैली होने वाली थी, जिस में भाग लेने यह सारी भीड़ लखनऊ जा रही थी. लगता था जैसे रैली के उद्देश्य और उस की जरूरत से उस में भाग लेने वाले अनभिज्ञ थे. ठीक वैसे ही उस रैली के परिणाम और इस से आम आदमी को होने वाली परेशानी से रैली के आयोजक भी अनभिज्ञ थे.

पूरी गाड़ी में लूटपाट और जंग छिड़ी थी. जैसे वह गाड़ी न हो कर शोर और दहशत का बवंडर था जो पटरियों पर दौड़ता चला जा रहा था. लड़कों का पूरा ग्रुप हम दोनों मांबेटी की हिफाजत के लिए डट गया था. एक मजबूत दीवार खड़ी थी हमारे और अनचाही भीड़ के बीच. उन छहों की तत्परता, लगन, और निष्ठा को देख कर मैं मन ही मन नतमस्तक थी. उस पल शायद मेरा अपना बेटा भी होता तो क्या इस तरह अपनी मां और बहन की रक्षा कर पाता?

कानपुर से लखनऊ तक के उस कठिन सफर में वे न बैठे न उन्होंने कुछ खायापिया. इस बीच वे अपनी शरारतें, चुहलबाजी, फिल्मी अंदाज, सबकुछ भूल गए थे. उन के सामने जैसे एक ही उद्देश्य था, हमारी और सामान की हिफाजत.

मैं आत्मग्लानि की दलदल में धंसती जा रही थी. इन बच्चों के लिए मैं ने क्या धारणा बना ली थी, जिस के कारण मैं ने एक बार भी इन से ठीक व्यवहार नहीं किया. एक बार भी इन से प्यार से नहीं बोली, न ही इन के हासपरिहास या बातचीत में शामिल हुई. क्या परिचय दिया मैं ने अपनी शिक्षा, अनुभव, सभ्यता तथा संस्कारों का? और बदले में इन्होंने इतना दिया, इतना शिष्ट सम्मान तथा सुरक्षा.

उस दिन पहली बार एहसास हुआ कि वास्तव में महिलाओं का अकेले यात्रा करना कितना असुरक्षित है. साथ ही, एक सीख भी मिली कि कम से कम शादीब्याह तय करते हुए या यात्रा पर निकलने से पहले हमें शहर में होने वाली राजनीतिक रैलियों, जलसे, जुलूसों की जानकारी भी ले लेनी चाहिए. उस दिन महिलाओं के साथ घटी दुर्घटनाएं अखबारों के मुखपृष्ठ व टैलीविजन चैनलों की सुर्खियां बन कर रह गईं. कुछ घटनाओं को तो वहां भी जगह नहीं मिल पाई.

लखनऊ स्टेशन का हाल तो उस से भी बुरा था. प्लेटफौर्म तो जैसे कुरुक्षेत्र का मैदान बन गया था. सामान, बच्चे, महिलाओं को ले कर यात्री उस भीड़ से निबट रहे थे. चीखपुकार मची थी. भीड़ स्टेशन की दुकानें लूट रही थी. दुकानदार अपना सामान बचाने में लगे थे. प्रलय का सा आतंक हर यात्री के चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रहा था. मेरी तो आंखों के सामने अंधेरा सा छाने लगा था. इतना सारा कीमती सामान और साथ में खूबसूरत जवान बेटी. उस पर ऐसी भीड़ जिस की कोई नैतिकता, न सोच, बस, एक उन्माद होता है.

वैसे तो भैया हमें लेने स्टेशन आए हुए थे लेकिन उस भीड़ में हम उन्हें कहां मिलते. उस भीड़ में तो सामान उठाने के लिए कुली भी न मिल सका. उन लड़कों के पास अपना तो मात्र एकएक बैग था. अपने बैग के साथ सैम ने हमारी बड़ी अटैची ले ली. छोटी अटैची मेरे मना करने पर भी मनीष ने ले ली. हालांकि उस में पहिए लगे हुए थे तो परेशानी की बात नहीं थी. मेघना के पास की बोतल तथा मेरे पास मात्र मेरा पर्स रह गया. हमारे दोनों बैग भी ईश और अंकित के कंधों पर लटक गए थे. उन सब ने भीड़ में एकदूसरे के हाथ पकड़ कर एक घेरा सा बना लिया जिस के बीच हम दोनों चल रही थीं. उन्होंने हमें स्टेशन से बाहर ऐसे सुरक्षित निकाल लिया जैसे आग से बचा कर निकाल लाए हों.

मेरे पास उन का शुक्रिया अदा करने के लिए शब्द नहीं थे. उस दिन अगर वे नहीं होते तो पता नहीं क्या हो जाता, इतना सोचने मात्र से मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं. मैं ने जब उन का आभार प्रकट किया तो उन्होंने बड़े ही सहज भाव से मुसकराते हुए कहा था, ‘‘क्या बात करती हैं आप, यह तो हमारा फर्ज था.’’

दिल से मैं ने उन्हें शुभ्रा की शादी में शामिल होने की दावत दी लेकिन उन का आना संभव नहीं था क्योंकि वे मात्र 4 दिनों के लिए लखनऊ एक कार्यशाला में शामिल होने आए थे. उन के लिए 10 दिन रुकना असंभव था. फिर भी एक शाम हम ने उन्हें खाने पर बुलाया. सब से उन का परिचय करवाया. वह मुलाकात बहुत ही सहज, रोचक और यादगार रही. सभी लड़के सुशिक्षित, सभ्य तथा मिलनसार थे.

हम लोग अकसर युवा पीढ़ी को गैरजिम्मेदार, संस्कारविहीन तथा दिशाविहीन कहते हैं लेकिन हमारा ही अंश और हमारे ही दिए संस्कारों को ले कर बड़ी हुई यह युवा पीढ़ी भला हम से अलग सोच वाली कैसे हो सकती है. जरूर उन्हें समझने में कहीं न कहीं हम से ही चूक हो जाती है.

फर्स्ट ईयर: दोस्ती के पीछे छिपी थी प्यार की लहर

कालेज शुरू हुए कुछ दिन बीते थे मगर फिर भी पहले साल के विद्यार्थियों में हलचल कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी. युवा उत्साह का तकाजा था और कुछ कालेजलाइफ का शुरुआती रोमांच भी था. एक अजीब सी लहर चल रही थी क्लास में, दोस्ती की शुरुआत की. हालांकि दोस्ती की लहर तो ऊपरी तौर पर थी, लेकिन सतह के नीचे कहीं न कहीं प्यार वाली लहरों की भी हलचल जारी थी. दोस्ती की लहर तो आप ऊपरी तौर पर हर जगह देख सकते थे, लेकिन प्यार की लहर देखने के लिए आप को किसी सूक्ष्मदर्शी की जरूरत पड़ सकती थी. कनखियों से देखना, इक पल को एकदूसरे को देख कर मुसकराना, ये सब आप खुली आंखों से कहां देख सकते हैं. जरा ध्यान देना पड़ता है, हुजूर. मैं खुद कुछ उलझन में था कि वह मुझे देख कर मुसकराती है या फिर मुझे कनखियों से देखती है. खैर, मैं ठहरा कवि, कहानीकार. मेरे अतिगंभीर स्वभाव के कारण जो युवतियां मुझ में शुरू में रुचि लेती थीं वे अब दूसरे ठिठोलीबाज युवकों के साथ घूमनेफिरने लगी थीं. यहां मेरी रुचि का तो कोई सवाल ही नहीं था, भाई, मेरे लिए भागते चोर की लंगोटी ही काफी थी, लेकिन मेरे पास तो उस लंगोटी का भी विकल्प नहीं छूटा था.

लेकिन कुछ लड़कों का कनखियों से देखने व मुसकराने का सिलसिला जरा लंबा खिंच गया था और प्यार का धीमाधीमा धुआं उठने लगा था, अब वह धुआं कच्चा था या पक्का, यह तो आग सुलगने के बाद ही पता चलना था. खैर, उन सहपाठियों में मेरा दोस्त भी शामिल था. गगन नाम था उस का. वह उस समय किसी विनीशा नाम की लड़की पर फिदा हो चुका था. दोनों का एकदूसरे को कनखियों से देखने का सिलसिला अब मुसकराहटों पर जा कर अटक चुका था. मैं इतना बोरिंग और पढ़ाकू था कि मुझे अपने उस मित्र के बारे में कुछ पता ही नहीं चल सकता था. खैर, उस ने एक दिन मुझे बता ही दिया.

’’यार कवि, तुझे पता है विनीशा और मेरा कुछ चल रहा है,’’ गगन ने हलका सा मुसकराते हुए मुझे बताया था. ’’कौन विनीशा?’’ मेरा यह सवाल था, क्योंकि मैं अपने संकोची व्यवहार के कारण क्लास की सभी लड़कियों का नाम तक नहीं जानता था.

पास ही हामिद भी खड़ा था, जो मेरे बाद गगन का क्लास में सब से अच्छा दोस्त था. उस ने बताया, ’’अरे, वह जो आगे की बैंच पर बैठती है,’’ हामिद ने मुझे इशारा किया. ’’कौन निशा?’’ मैं ने अंदाजा लगाया, क्योंकि मैं खुद शुरू में उस लड़की में रुचि लेता था, इसलिए उस का नाम मुझे मालूम था.

’’नहीं यार, निशा के पास जो बैठती है,’’ गगन ने फिर मुसकराते हुए बताया था. ’’अच्छा वह,’’ अब मैं मुसकरा रहा था, मैं अब उस लड़की को चेहरे से पहचान गया था. ’’उस का नाम विनीशा है,’’ मैं ने हलका सा आश्चर्य व्यक्त किया था.

’’हां यार, वही,’’ गगन ने हलका भावुक हो कर कहा था. ’’अच्छा, तो मेरे लायक कोई काम इस मामले में, मैं ने हंसते हुए पूछा था.

’’नहीं यार, तू तो मेरा दोस्त है. तुझे तो मैं अपनी पर्सनल फीलिंग बताऊंगा ही,’’ गगन ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा था. वह पल ऐसा था, जिस में भले ही विनीशा का जिक्र था, लेकिन मुझे हमेशा वह पल मेरा अपना ही लगा. वह एहसास था एक अच्छी और सच्ची दोस्ती की शुरुआत का. मैं मुसकराया और धीमे से बोला, ’’मेरी विशेज हमेशा तुम्हारे साथ हैं, तो मैं चलूं. मुझे लाइब्रेरी जाना है.’’

’’हां, चल ठीक है,’’ गगन के इतना कहते ही मैं लाइब्रेरी की ओर चल दिया. मुझे किसी विनीशा की फिक्र नहीं थी लेकिन एक ताजा सा खयाल था नई दोस्ती की शुरुआत का. वह क्लास की लहर कहीं न कहीं मुझ में भी दौड़ रही थी.

अगले दिन जब मैं कालेज के हाफटाइम में कुछ समय के लिए कालेज की सीढि़यों पर बैठा था, तो राजन मिला. ’’हाय राजन,’’ मैं इतना कह कर कालेज के गेट के बाहर वाली सड़क के पार मैदान में देखने लगा.

तभी मेरी नजरें मैदान में जाने से पहले उस सड़क पर ठहर गईं जहां गगन निशा के साथ टहल रहा था. मेरे मन में कई सवाल उठे कि गगन तो विनीशा को पसंद करता है तो फिर निशा के साथ क्या कर रहा है. खैर, मैं ने हाफटाइम के बाद गगन के क्लास में आने पर उस से पूछा, ’’यार गगन, तू तो कह रहा था कि तू विनीशा को पसंद करता है, फिर निशा?’’

’’अरे, मैं विनीशा के बारे में ही उस से बात कर रहा था,’’ गगन ने गंभीरता से बताया. ’’फिर,’’ मैं ने पूछा था.

’’वह बता रही थी कि विनीशा का पहले से ही कोई बौयफ्रैंड है,’’ उस ने उतनी ही गंभीरता से बताया. ’’हूं… अभी,’’ मैं ने भी गंभीरता व्यक्त की थी.

’’मैं यार, फिर भी उस से एक बार मिलना चाहता हूं,’’ गगन में कहीं न कहीं उम्मीद अभी भी दबी नहीं थी. ’’ठीक है, फिर बताना. अच्छा हो कि निशा की बात गलत हो,’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा, फिर पूरी क्लास पढ़ाई में लग गई, क्योंकि हमारे टीचर अब थोड़े सख्ती बरत रहे थे.

अगले दिन तक गगन विनीशा से मिल चुका था और मुझे बता रहा था, ’’यार, वह तो मुझे कन्फ्यूज कर रही है, उस का बौयफ्रैंड है तो वह सीधीसीधी बात क्यों नहीं कहती?’’ ’’हो सकता है वह अपने बौयफ्रैंड से छुटकारा पाना चाहती हो, ब्रेकअप करना चाहती हो,’’ मैं ने उसे समझाया, जबकि मैं खुद इन मामलों में अनाड़ी था.

’’हां यार, देखते हैं. मैं खुद समझ नहीं पा रहा हूं,’’ गगन गंभीर था. खैर, फिर यों ही चलता रहा और आखिर में पहले सैमेस्टर की परीक्षाएं करीब आ गईं. तब तक मैं विनीशा और गगन के चक्कर को भूल ही गया था.

रिजल्ट आया, गगन पास तो हो गया था, लेकिन पूरी क्लास की अपेक्षा उसे कम नंबर मिले थे. गगन उन दिनों हामिद के साथ ज्यादा रहने लगा था. दूसरे सैमेस्टर में तो वह मेरे साथ ज्यादा रहा ही नहीं, लेकिन दूसरे साल में वह अब फिर मेरे साथ रहने लगा था. मैं ने एक दिन उस से विनीशा का जिक्र किया, तो वह बताने लगा, ’’यार, मैं ने उस लड़की की खूबियां देखी थीं, लेकिन कमियां नहीं देखी थीं. वह मुझे उलझाए बैठी थी. उस का बौयफै्रंड था तो भी वह मुझ से क्या चाह रही थी, मैं समझ नहीं पा रहा था. एक दिन वह मेरा इंतजार करती रही और मैं उस से मिलने नहीं गया.’’

’’हूं… मतलब सब ओवर,’’ मैं ने मुसकरा कर पूछा. ’’देखो कवि, एक बात बताऊं,’’ वह मुझे अकसर कवि ही कहता था, ’’तेरे और मेरे जैसे लोग इस कालेज में लाखों रुपए फीस दे कर कोई लक्ष्य ले कर आए हैं और ये सब फालतू चीजें हमें अपने लक्ष्य से भटका देती हैं.’’

मैं उसे ध्यान से सुन रहा था और गौर भी कर रहा था. ’’यार, तू ने देखा न, पिछले सैमेस्टरों में मेरा क्या रिजल्ट रहा,’’ वह मेरी तरफ देख रहा था.

’’अब तू ही बता. एक लड़की के प्यार के पीछे मैं ने कितना कुछ खो दिया,’’ वह गंभीर था. ’’हां यार, मैं तुझे पहले ही कहने वाला था, पर मुझे लगा कि तू बुरा मान जाएगा,’’ मैं ने आज अपने दिल की बात कह दी.

’’नहीं यार, तू तो मेरा दोस्त है. अब तो मैं ने तय कर लिया है कि फालतू यारीदोस्ती व प्यारमुहब्बत में पड़ूंगा ही नहीं और बस, तेरे और दोचार लोगों के साथ ही रहूंगा,’’ उस ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा, ’’दोस्त, तुम मिडिल क्लास पर्सन हो, और तुम आज को ऐंजौय करने की नहीं बल्कि भविष्य संवारने की सोचते हो.’’ ’’वह तो है,’’ मैं ने मुसकरा कर कहा.

’’और मैं भी फालतू बातों से ध्यान हटा कर अपना भविष्य संवारना चाहता हूं,’’ उस का हाथ मेरे कंधे पर ही था. वह भावुक हो गया था. हमारी दोस्ती की यह लहर मुझे अभी भी ताजी महसूस हो रही थी. उस के बाद से अब तक वह मेरे साथ ही रहता है. कालेज में विनीशा की तरफ देखता भी नहीं है. क्लास में खाली समय में भी पढ़ता रहता है.

वह समय पर एनसीसी जौइन नहीं कर पाया था, लेकिन अपनी मेहनत के बलबूते पर अब वह एनसीसी में न सिर्फ सिलैक्ट हो गया, बल्कि एक कैंप भी अटैंड कर के आया है. कैंप में फायरिंग सीखने के बाद अब वह एक और कैंप में एयर फ्लाइंग के लिए भी जाने वाला है. उस का लक्ष्य आर्मी या पुलिस में जाना है और वह उस के करीब भी नजर आने लगा है. गगन एक विशालकाय समुद्र की लहरों को चीरते हुए सतह पर आने लगा है, जिस में कई नौजवान गोते खाते रहते हैं. फर्स्ट ईयर के बाद अब सैकंड ईयर उस का ज्यादा मजे में व उद्देश्यपूर्ण ढंग से बीत रहा है.

अब की न जाएगी बहार

Writer – Nidhi Mathur

‘‘अनन्या, चल न, घर जा कर फोन पर बात कर लेना,’’ नंदिनी ने अपनी सखी अनन्या का हाथ खींचते हुए कहा.

‘‘अरे, बस एक मिनट. मेरी होने वाली भाभी का फोन है,’’ अनन्या बोली.

तीसरी सहेली वत्सला कुछ नाराज होते हुए बोली, ‘‘तू तो अब हमारे साथ शौपिंग करेगी नहीं. दुनिया में सिर्फ तेरे भाई की शादी नहीं हो रही है जो तू घंटों फोन पर अपनी होने वाली भाभी से चिपकी रहती है. आज इतनी मुश्किल से हम तीनों ने अपना शौपिंग का प्रोग्राम बनाया था. तू फिर से फोन पर चिपक गई.’’

नंदिनी बोली, ‘‘तुम दोनों को भूख लगी है या नहीं? मुझे तो जोर की भूख लगी है.’’

शौपिंग करते हुए अनन्या बोली, ‘‘न बाबा मेरी भाभी एम.जी. रोड के एक रैस्टोरैंट में मुझे लंच के लिए बुला रही है, तो आज तुम दोनों मुझे माफ करो. मैं तो अपनी भाभी के साथ ही लंच करने वाली हूं. अपना प्रोग्राम हम लोग फिर किसी दिन बना लेंगे.’’

वत्सला और नंदिनी के कुछ कहने के पहले ही अनन्या ने एक औटो एम.जी. रोड के लिए किया और फिर वह फुर्र हो गई.

‘‘नंदिनी, इस की भाभी को वाकई गर्व होना चाहिए कि उसे अनन्या जैसी ननद मिल रही है,’’ वत्सला बोली, ‘‘अरे तू उस की दीदी को क्यों भूल गई? वान्या दीदी भी तो अपनी भाभी को उतना ही प्यार करती है.’’

‘‘हां भई,’’ नंदिनी ने कहा, ‘‘फैमिली हो तो इस अनन्या के जैसी, इतना प्यार करते हैं सभी घर में एकदूसरे को. वह तो भैया ने थोड़ी सी शादी में लापरवाही कर दी.’’

वत्सला बोली, ‘‘ठीक है न, जब उन का मन किया तभी तो शादी के लिए हां की. इस की भाभी को तो कोई भी कष्ट नहीं होगा ससुराल में. चलो हम लोग तो लंच करें.’’

अनन्या, वान्या और जलज अपनी मां के साथ बैंगलुरु में रहते थे. जलज सब से बड़ा था, उस के बाद वान्या और सब से छोटी थी अनन्या. जलज और वान्या में तो 2 साल का फर्क था पर अनन्या जलज से 5 साल और वान्या से 3 साल छोटी थी. उन के पिताजी की कुछ वर्ष पहले मृत्यु हो गई थी और तब से ये चारों ही बैंगलुरु में रहते थे. जलज एक आईटी कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर था और उस की कैरियर ग्रोथ बहुत अच्छी थी. बस उस ने अभी तक कोई लड़की पसंद नहीं की थी. वान्या और अनन्या की शादी हो चुकी थी और दोनों के 1-1 बेटा था. अब इतने सालों बाद जलज को अपनी कम्युनिटी में ही एक लड़की पसंद आई तो मां ने चट मंगनी और पट शादी करने का फैसला कर लिया.

वान्या और अनन्या तो खुशी से उछल ही पड़ीं. उन की होने वाली भाभी का नाम समृद्धि था. अब तो आए दिन उन के भाभी के साथ प्रोग्राम बनने लगे. जलज कभी उन के साथ चला जाता था पर ज्यादातर तो वान्या और अनन्या ही समृद्धि को घेरे रहती थीं.

इतने सालों बाद यह खुशी उन के जीवन में आई थी तो वे अपने होने वाली भाभी पर ढेरों प्यार लुटा रही थीं. करीब 1 महीने बाद जलज और समृद्धि की धूमधाम से शादी हो गई. नंदिनी और वत्सला तो खासतौर से समृद्धि के पास अनन्या की शिकायत ले कर पहुंचीं, ‘‘पता है भाभी, आप के साथ टाइम स्पैंड करने के लिए यह अनन्या तो अपनी सखियों को भूल ही गई.’’

अनन्या चहकते हुए बोली, ‘‘तुम लोग भी देख लो. मेरी भाभी है ही ऐसी.’’

समृद्धि भी यह छेड़छाड़ सुन कर धीमेधीमे मुसकराती रही. समय अपनी गति से चल रहा था.

नंदिनी और वत्सला अनन्या से उस की भाभी के बारे में बात करती रहती थीं. अनन्या अपनी भाभी को ले कर शौपिंग पर जाती थी तो सहेलियों का मिलनाजुलना कुछ कम हो चला था. हां, फोन पर अकसर बातें हो जाया करती थीं.

अभी जलज की शादी को 1 साल ही हुआ था कि एक दिन अनन्या बड़े दुखी मन से अपनी सहेलियों नंदिनी व वत्सला से मिली.

नंदिनी बोली, ‘‘क्या हुआ मैडम? आज मुंह क्यों लटका रखा है?’’

वत्सला ने कहा, ‘‘चल पहले चाट खाते हैं, फिर आगे की बातें करेंगे.’’

मगर अनन्या बोली, ‘‘नहीं यार. मुझे तुम दोनों को कुछ बताना है. चाट आज रहने दो.’’

नंदिनी बोली, ‘‘क्या हुआ? कुछ सीरियस है क्या? तू ऐसे क्यों बैठी हुई है?’’

इस पर अनन्या सिर झुका कर बोली, ‘‘मेरे भैया का डिवोर्स फाइल हो रहा है.’’

वत्सला चौंक कर बोली, ‘‘यह तू क्या बोल रही है? तू तो अपनी भाभी की इतनी तारीफ करती थी? तेरी उस के साथ इतनी पटती थी? अचानक से डिवोर्स कैसे?’’

फिर जो अनन्या ने बताया उसे सुन कर तो नंदिनी और वत्सला दोनों हक्कीबक्की रह गईं.

जलज की शादी के बाद मां ने गांव जाने की इच्छा प्रकट की. अब उन के मन को तसल्ली हो गई थी और वह अपना समय अपने रिश्तेदारों के साथ बिताना चाहती थीं. जलज को ले कर उन के मन में जो चिंता थी वह अब दूर हो गई थी.

अपनी बहू समृद्धि का उन्होंने खूब दुलार किया. उसे गहनों और कपड़ों से लाद दिया और फिर मां मन की शांति के लिए अपने गांव चली गईं. उन का मन वहीं लगता था क्योंकि उन के सारे रिश्तेदार वहीं थे.

जलज और समृद्धि अपना जीवन अपने हिसाब से जी रहे थे. न कोई टोकाटाकी, न कोई हिसाबकिताब और न ही कोई रिश्तेदारी का ?ां?ाट. हां, वान्या और अनन्या जरूर समृद्धि के साथ अपने कार्यक्रम बनाती रहती थीं. फिर अचानक समृद्धि का व्यवहार बदलने लगा. वह अपनी ननदों के साथ कुछ रूखेपन से पेश आने लगी.

पहले तो ननदों को समझ नहीं आया कि समृद्धि अब हर बार मिलने से मना क्यों कर देती. मगर वान्या सम?ादार थी तो उस ने अनन्या को भी समझाया कि जलज और समृद्धि को एकदूसरे के साथ समय देना ही बेहतर होगा. अनन्या और वान्या ने भाईभाभी के साथ अपने प्रोग्राम बनाने बिलकुल बंद कर दिए. वे दोनों तो वैसे भी नई भाभी का अकेलापन मिटाने का प्रयास कर रही थीं.

जलज और समृद्धि अब ज्यादातर समय एकदूसरे के साथ बिताने लगे थे. समृद्धि क्योंकि पूरा दिन घर पर रहती थी तो जलज ने उसे औनलाइन योगा क्लास जौइन करने की सलाह दी.

शादी के बाद वैसे भी पकवान खाखा कर समृद्धि का वेट थोड़ा सा बढ़ गया था. वैसे समृद्धि को दिनभर में कोई काम नहीं होता था क्योंकि वह जौब नहीं कर रही थी और जलज को काफी अच्छी सैलरी मिल रही थी.

समृद्धि के परिवार में 1 भाई और 1 बहन ही थी. उस के भाई की भी शादी नहीं हुई थी. समृद्धि की शादी हो जाने की वजह से उस के भाई को घर का काम संभालने में बहुत परेशानी आने लगी. जब तक समृद्धि थी उस का खानापीना नियमपूर्वक चल रहा था पर अब उसे औफिस के साथसाथ घर भी देखना पड़ता था तो वह खीज जाता था.

एक दिन वह समृद्धि के घर आया तो समृद्धि खुशीखुशी उसे अपनी शादीशुदा जिंदगी के बारे में बताने लगी, ‘‘पता है भैया, अब तो मैं नीचे बाजार जा कर घर का सारा सामान ले आती हूं और घर के छोटीमोटी रिपेयर भी कर देती हूं, साथ ही मैं ने एक औनलाइन योगा क्लास भी जौइन कर ली है.’’

समृद्धि का भाई समीर थोड़े खुराफाती दिमाग का था. बहन की बातों से उस के दिमाग का बल्ब जला. ऊपर से तो उस ने अपनी खुशी जताई पर अंदर से वह अपनी बहन की खुशी से जलभुन गया.

इस का एक कारण शायद यह भी था कि वह सम?ाता था उस का आराम समृद्धि की शादी की वजह से खत्म हो गया है. अब उस ने अपना पासा फेंका. बोला, ‘‘अरे तू जब मेरे पास थी तो तु?ो घर की कोई रिपेयरिंग नहीं करने देता था मैं. औनलाइन किसी को बुला क्यों नहीं लेती है? रिपेयरिंग वगैरह के काम क्या लड़कियां करती हैं? जलज पूरा दिन क्या करता है? घर में तेरा हाथ नहीं बंटाता?’’

‘‘अरे नहीं भैया. जलज तो रात को आते हैं तो उन्हें इन सब की फुरसत नहीं होती. मैं पूरा दिन घर में रहती हूं इसलिए ये सब अपनेआप ही कर लेती हूं.’’

‘‘अच्छा, पहले तो तू कभी ऐक्सरसाइज वगैरह नहीं करती थी. अब यह योगा क्लास क्यों जौइन की है?’’

‘‘वह जलज ने कहा कि मेरा शादी के बाद डिनर पार्टीज अटैंड करकर के थोड़ा सा वेट बढ़ गया है, बस इसीलिए.’’

‘‘अच्छा तो अब जलज मेरी बहन को खाने पर ताने भी देगा?’’

‘‘नहीं भैया क्या बात कर रहे हैं? उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा.’’

‘‘मैं सब समझ गया हूं, जलज को भी आजकल की लड़कियों की तरह एक सुंदर, स्लिम लड़की चाहिए. इसीलिए वह तुझे ऐसी सलाह दे रहा है. पर मुझे तो मेरी बहन बिलकुल मोटी नहीं लगती. आगे से अगर तुझे कुछ रिपेयरिंग का काम कराना हो तो मुझे फोन कर देना. तेरी ननदें भी बस घूमनेफिरने की ही शौकीन हैं. काम में तेरी मदद क्यों नहीं करतीं?’’

थोड़ी देर बाद समीर चला गया पर उस के हाथ एक मौका लग गया. अब वह जलज के पीछे घर जाजा कर समृद्धि के कान भरता रहता. उसी ने सब से पहले समृद्धि को अनन्या और वान्या से मुंह मोड़ने को कहा, जिस की वजह से वह उन से बेरुखी जता रही थी.

एक दिन उस ने समृद्धि के जेवर देख कर कहा, ‘‘तेरी ननदें यहां आतीजाती रहती हैं. तू अपने सारे गहने उन से छिपा कर हमारे घर में रख दे. क्या भरोसा किसी त्योहार के बहाने तुझ से कुछ मांग लें और फिर वापस न करें. उन्हें बोल देना तेरे सारे जेवर बैंक में हैं.’’

‘‘पर भैया, वे तो अब यहां नहीं आतीं. उन्होंने कहा है कि जलज और मैं अपना वक्त एकदूसरे के साथ बिताएं.’’

‘‘तू बहुत भोली है समृद्धि पर इन ननदों से जरा बच कर रहना,’’ कह कर समीर चला गया. मगर समृद्धि के मन में जहर का बीज बो गया.

समीर अब समृद्धि को जलज और उस के पूरे परिवार के खिलाफ भड़काता रहता, ‘‘तेरी सास को अभी गांव नहीं जाना चाहिए था. तेरा काम में हाथ बंटाती, तुझे अपने साथ रखती, घर संभालना सिखाती.

‘‘ मेरी छोटी बहन के ऊपर कितनी जिम्मेदारी आ गई है. तेरी ननदें शादी के पहले तो बहुत आती थीं, अब उन्होंने भी तुम दोनों से मुंह मोड़ लिया है. तू कैसे इन सब के साथ निभा रही है? मुझे तो तुझे देख कर बहुत दुख होता है.’’

समीर से आए दिन यह सब सुनसुन कर समृद्धि का भी मन बदलने लगा. अब वह अपने भाई की बातों में सचाई ढूंढ़ने लगी. हालांकि भाई का सच उसे नजर नहीं आया.

समीर चाह रहा था कि समृद्धि किसी तरह वापस घर आ कर उस का खानापीना संभाल ले. वह स्वार्थ में इतना अंधा हो गया कि उसे अपनी बहन के सुखदुख की कोई परवाह नहीं थी.

धीरेधीरे समृद्धि के सारे अच्छे जेवर और कपड़े समीर ने मंगवा कर अपने घर रख लिए. एक दिन जलज जब घर आया तो खाना नहीं बना था. जलज का दिन काफी व्यस्त रहा था और वह जल्दी खाना खा कर सोना चाहता था पर समृद्धि ने जानबूझ कर देर करी.

समीर ने समृद्धि के दिमाग में बैठा दिया था कि जलज उसे बाई का दर्जा दे रहा. जलज ने जब खाने के बारे में पूछा तो समृद्धि ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारे घर की बाई नहीं हूं. कल से घर में खाना बनाने वाली लगा लो, मैं ये सब काम नहीं करूंगी.’’

जलज समृद्धि की बातें सुन कर हैरान हुआ पर वह बहस नहीं करना चाहता था

इसलिए मैगी खा कर सोने चला गया. अब समृद्धि समीर के उकसाने से न तो वान्या और अनन्या के फोन उठाती, न ही अपनी सास से बात करती तथा न ही घर का कोई काम करती. उस ने बातबेबात जलज से भी उल?ाना शुरू कर दिया था. जलज वैसे ही थका हुआ देर से घर आता था तो वह पहले तो समृद्धि को मनाता था. फिर उस के तानों को अनसुना करने लगा.

उधर समीर अपनी योजना सफल होते देख खुश था. वह तो चाह ही रहा था कि समृद्धि का घर टूटे और वह वापस आए. एक दिन समृद्धि ने जलज से बिना बात के ?ागड़ा किया और समीर के घर चली गई. वहां पर समीर ने उसे इतना भड़काया कि 1 महीने बाद ही उस ने डिवोर्स के पेपर्स भेज दिए.

जलज को इस में समीर का हाथ साफ नजर आया पर उसे यह नहीं पता था कि उस ने समृद्धि को कितना भड़का रखा है. उसे सिर्फ समीर पर शक हुआ क्योंकि वही उस की पीठपीछे घर आता था. अनन्या ने भी वही कहा कि उसे अंदर की बात तो पता नहीं पर इस में समीर का हाथ हो सकता है.

केवल डिवोर्स तक ही मामला रहता तो ठीक भी था पर समीर के उकसाने पर समृद्धि ने वान्या और अनन्या पर भी दहेज के आरोप में केस कर दिया. यही नहीं, गांव में रह रही उन की मां का नाम भी उस में शामिल कर लिया. अनन्या, वान्या ने जब अपने ऊपर केस के बारे में सुना तो वे सन्न रह गईं. दोनों बहनों का प्यारा बड़ा भाई जिस की शादी उन्होंने इतने चाव से की थी, आज एक टूटे रिश्ते का दर्द सह रहा था. ये सब बातें अनन्या ने अपनी सहेलियों के साथ एक दिन चाय पर डिस्कस कीं. कोर्ट केस म्यूचुअल अंडरस्टैंडिंग पर सुल?ाने के समीर ने क्व25 लाख मांगे.

अनन्या ने कहा, ‘‘जब हम लोग गलत नहीं हैं तो एक भी पैसा नहीं देंगे. कोर्ट में केस चलने दो, हम भी देख लेंगे.’’

वान्या ने सम?ाया भी कि कोर्टकचहरी अपने देश में सालोंसाल लगा देते हैं, हम लोग पैसा दे कर ही छूट जाते हैं. समीर और समृद्धि क्व25 लाख से कम में केस बंद करने को तैयार नहीं थे.

हमेशा हंसनेखिलखिलाने वाली अनन्या अब अकसर परेशान रहने लगी. उन सब को कोर्ट में तारीख आने पर बुलाया जाता और जज हर बार अगली तारीख दे देता. जलज भी चुपचुप रहने लगा था.

एक दिन अचानक जलज अनन्या के घर आया और बोला कि वह जौब छोड़ रहा है. अनन्या ने फोन कर के वान्या को भी वहीं बुला लिया, ‘‘देखो न दीदी, भैया क्या कह रहे हैं, अच्छीखासी जौब छोड़ रहे हैं.’’

वान्या ने पूछा, ‘‘भैया आप जौब क्यों छोड़ रहे हैं?’’

जलज बोला, ‘‘क्या करूंगा जौब कर के? रोज सुबह जाओ, रात को घर आ कर खाना खा कर सो जाओ. किस के लिए पैसे कमाऊं?’’

यह सुन कर अनन्या और वान्या शौकड हो गईं. जलज से ऐसे व्यवहार की उन्हें बिलकुल उम्मीद नहीं थी. उधर जलज अब हर चीज से उदासीन होने लगा था. जिंदगी ने उस के साथ जो मजाक किया था उसे उस ने कुछ ज्यादा ही सीरियसली ले लिया था. वह घर में बंद हो गया. मां उस के पास वापस आ गई थीं. वे उसे बहुत सम?ातीं, मगर जलज ने चुप्पी ओढ़ ली थी. न तो वह दोस्तों से मिलने को तैयार था, न दूसरी जौब ढूंढ़ने को और न ही बहनों के साथ समय बिताने को.

अगली केस डेट पर समीर समृद्धि के साथ आया था. सब ने उसे और समृद्धि को देख कर मुंह फेर लिया. समीर अंदर से जलभुन गया और ऊपर से जलज को धमकी भरे स्वर में बोला, ‘‘तूने जौब छोड़ दी न? अच्छा किया. अब मैं देखता हूं तू कहां नौकरी करता है. तू जहां भी जाएगा मैं वहां जा कर तेरी ऐसी बदनामी करूंगा कि तू भी सोचेगा तूने मेरी बहन के साथ इतना गलत व्यवहार क्यों किया.’’

वान्या चिल्लाई, ‘‘एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी. भैया ने तुम्हारे साथ क्या गलत किया है?’’

अनन्या ने वान्या को समझाया कि कोर्ट में कुछ भी उलटासीधा न बोले. वह सब उन के खिलाफ जा सकता है. तीनों भाईबहन चुपचाप कोर्ट की प्रोसीडिंग के लिए अंदर चले गए.

इसी तरह 2-3 साल और गुजर गए. जलज के दोनों केसों का कोई भी निर्णय नहीं हुआ. आखिर वान्या, अनन्या और उन की मां ने फैसला किया कि एक बार फिर आउट औफ कोर्ट सैटलमेंट की बात की जाए. समीर भी हाथ में पैसा न आता देख कर फ्रस्ट्रेटेड हो रहा था. 8 लाख में 3 साल बाद म्यूचुअल सैटलमैंट से दोनों केस डिसाइड हो गए. अब समृद्धि और जलज के रास्ते कानूनी तौर पर अलग थे. कहने के लिए तो यह मुसीबत का अंत था मगर जलज के लिए एक और कुआं. सब रिश्तेदारों ने अनन्या और वान्या को सलाह दी कि जलज के लिए दूसरा रिश्ता देख कर उस की नई जिंदगी की शुरुआत करें. जलज इधर किसी और ही रास्ते पर चल पड़ा था, जहां सिर्फ अंधेरा ही था. वह सीवियर डिप्रैशन में चला गया था. वह कुछ दिन बैंगलुरु रहता और कुछ दिन गांव में पर अब उस की नौकरी करने की बिलकुल इच्छा नहीं थी. अनन्या और वान्या ने प्यार से बहुत सम?ाने की कोशिश की, मगर सब बेकार. जलज को लगता था कि जिंदगी ने उस के साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी की है.

एक दिन अनन्या बोली, ‘‘भैया शुक्र है कि मुसीबत से जल्दी पीछा छूट गया. आप पीछे न देख कर आगे का जीवन बनाएं.’’

उस दिन पहली बार जलज अपनी छोटी बहन पर बरस पड़ा, ‘‘तेरे पास सबकुछ है न,

परिवार, पैसा, प्यार इसीलिए तू मुझे भाषण देती रहती है. मुझे तेरी कोई नसीहत नहीं चाहिए, न ही किसी और का लैक्चर मुझे सुनना है. वान्या से भी कह दे कि मुझे कुछ सिखाने की कोशिश न करे.’’

मां दूसरे कमरे में सो रही थीं. जलज का चिल्लाना सुन कर जब वे आईं तो देखा कि अनन्या रो रही थी और जलज फिर भी चिल्लाए जा रहा था. मां ने उसे जब शांत करने की कोशिश की तो वह बोला, ‘‘तुम अपनी प्यारी बेटियों के पास जा कर रहो. यहां रहोगी तो इन की तरह तुम भी मुझे सीख देती रहोगी.’’

अनन्या को लगा कि यह कुछ भी कहने या करने का वक्त नहीं. उस ने चुपचाप मां के कपड़े एक बैग में डाले और उसे जबरन अपने साथ ले गई. उसे लगा कि जलज को कुछ दिन अकेला छोड़ देंगे तो शायद वह संभल जाएगा. मगर जलज संभलने की राह पर नहीं चल रहा था. उस ने अपनी जिंदगी और भी बदतर कर ली. उसे जो मन में आता वह खा लेता, नहीं तो भूखा ही रह जाता. स्ट्रैस की वजह से उस की आंखों के नीचे काले घेरे पड़ गए थे और उस को स्किन प्रौब्लम भी हो गई थी. वह घर में हर समय परदे बंद रखता और कोई भी लाइट नहीं जलाता.

एक बार वान्या उसे डाक्टर के पास ले गई. डाक्टर ने कहा कि उसे बहुत स्ट्रैस है. जब तक वह कम नहीं होता तब तक जलज की स्किन प्रौब्लम ठीक नहीं होगी.

अनन्या जलज से अब बात नहीं करती थी. फिर एक दिन जलज ने उसे सौरी बोलने के लिए फोन किया और कहा कि वह मां को घर छोड़ जाए. अनन्या को लगा कि शायद जलज को पछतावा हो रहा है. मगर जलज अब किसी के बारे में सोचनासम?ाना ही नहीं चाहता था. वह जिंदगी से पूरी तरह उखड़ चुका था. अलबत्ता बहनों से वह वापस मिलने लगा था. पर वह पहले जैसा लाड़ करने वाला भाई न हो कर एक चिड़चिड़ा और बददिमाग इंसान बन गया था.

एक दिन शाम को जलज अनन्या के घर गया तो उस ने एक नई सूरत देखी. तभी अनन्या ने उस का इंट्रोडक्शन कराया, ‘‘भैया, यह है हमारी नई पड़ोसिन कमल. यह अभी 2 हफ्ते पहले ही हमारे पड़ोस में शिफ्ट हुई है.’’

जलज ने निर्विकार भाव से अभिवादन किया और दूसरे कमरे में जा कर टीवी देखने लगा. थोड़ी देर में उसे बाहर से हंसने की आवाजें सुनाई देने लगीं. वह थोड़ा इरिटेट तो हुआ पर उस ने अपने पर काबू रखा. फिर उसे लगा कि अनन्या और कमल शायद कुछ गुनगुना रही हैं. करीब 1 घंटे बाद बाहर से आवाजें आनी बंद हुईं तो जलज उठ कर उस रूम में गया. वहां पर अनन्या अकेली बैठी हुई थी. अनन्या ने जलज को कमल के बारे में बताना शुरू किया. असल में कमल के पति ने किसी और लड़की के प्यार में फंस कर उसे छोड़ दिया था. पर कमल ने परिस्थितियों से हार नहीं मानी. वह बहुत अच्छा गाती थी तो उस ने सिंगिंग कंपीटिशंस में पार्ट लेना शुरू कर दिया था और बाद में गाने को ही अपना प्रोफैशन और जिंदगी दोनों बना लिया था. उस के साथ भी जीवन में काफी कुछ घटा था पर वह बिलकुल निराश या दुखी नहीं थी. यह सब अनन्या ने जानबू?ा कर जलज को बताया ताकि वह थोड़ा मोटिवेट हो सके.

अनन्या अब कोशिश करती थी कि जब जलज उस के घर आए तो वह वान्या और कमल को भी बुला ले. कमल आते ही महफिल में चार चांद लगा देती. उस का दिल बड़ा साफ था और उसे किसी से कोई शिकायत नहीं थी. एकाध बार अनन्या ने जलज और कमल को अकेले भी छोड़ दिया. जलज को कमल में एक हमदर्द दिखाई देने लगा. वह अपने दिल की बात मां व बहनों से नहीं करता था पर उसे लगा कि कमल शायद उसे समझा कर उस के साथ सिंपैथाइज करेगी. जलज ने बिलकुल गलत सोचा था.

कमल ने न तो कोई अफसोस जताया और न ही सिंपैथाइज किया. उस ने जलज को कहा कि जो बीत गया उस को अपना आज बना कर बैठने में कोई बुद्धिमानी नहीं. कमल ने कहा, ‘‘मूव

औन जलज. सब की लाइफ में कोई न कोई प्रौब्लम आती है. अगर हम प्रौब्लम को पकड़ कर बैठ जाएंगे तो जिंदगी की असली ख़ूबसूरती नहीं देख पाएंगे.’’

जलज को अभी तक कोई ऐसा नहीं मिला था जिस ने उस के साथ सिंपैथाइज न किया हो. मगर कमल तो शायद किसी दूसरी मिट्टी की ही बनी थी. दूसरी बार जलज ने जब फिर अपने लिए कमल से सिंंपैथी चाही तो कमल ने उसे जवाब दिया, ‘‘मैं जीवन को भरपूर जीने में विश्वास रखती हूं. मेरे सामने प्लीज अपना दुखड़ा मत रोइए. हो सके तो जीवन के सारे रंगों को ऐंजौय करना सीखिए.’’

यह जलज के लिए एक बहुत बड़ा झटका था पर कहते हैं न अपोजिट्स अट्रैक्ट. शायद जलज को कहीं पर कमल की बात सही लगी. अब अगर वह कमल से मिलता तो उस की बातों को सम?ाने की कोशिश करता. बोलता वह अभी भी कम ही था पर वान्या, अनन्या और उन की मां के लिए यह एक बहुत बड़ा पौजिटिव साइन था. अब वे लोग पिकनिक, शौपिंग के प्रोग्राम बनाते और जलज को भी जबरदस्ती ले जाते.

फिर एक दिन कमल ने उसे अपने सिंगिंग प्रोग्राम के लिए इनवाइट किया. उस प्रोग्राम में कमल ने इतने अच्छे गाने गाए कि जलज भी मुग्ध हो गया. आखिर एक दिन जलज ने अपनी दोनों बहनों और मां को बुला कर कहा कि वह कमल के साथ आगे की जिंदगी गुजारना चाहेगा.

अनन्या तो यही चाहती थी, मगर उस ने फिर भी कहा कि उन सब को कमल से बात करनी चाहिए. कमल जब अगली बार मिली तो अनन्या ने ही अपने भाई का प्रपोजल उस के सामने रखा. कमल को इस बात की बिलकुल आशा नहीं थी. बोली, ‘‘जलज मैं तुम्हारा साउंडिंग बोर्ड नहीं बनना चाहती. मैं बेचारी भी नहीं हूं. न ही मैं तुम्हारी तरह हूं. जो बीत गया वह मेरे जीवन का एक हिस्सा था लेकिन उसे पकड़ कर मैं रोती नहीं हूं. तुम आगे बढ़ने में विश्वास नहीं करते हो. हमारा कोई मेल ही नहीं है.’’

जलज को कुछ ऐसे ही जवाब की अपेक्षा थी इसलिए उस ने थोड़ा समय मांगा. उस ने कमल का दोस्त बनने की इच्छा जाहिर की. कमल ने उसे एक ही शर्त पर अलौ किया कि वह पुरानी या कोई भी नैगेटिव बात नहीं करेगा और सब से पहले काउंसलर को मिल कर अपने डिप्रैशन का इलाज कराएगा. जलज इस के लिए भी तैयार हो गया.

काउंसलिंग सैशंस में जलज कमल के साथ जाने लगा. इस चीज के लिए वह कमल को मना पाने में कामयाब हो गया था. डाक्टर ने उसे बताया कि उसे दवाई की जरूरत नहीं है मगर अपना आउटलुक चेंज करना होगा. दुनिया कितनी खूबसूरत है, यह सम?ाना था और बीती हुई जिंदगी को भी ऐक्सैप्ट करना था. धीरेधीरे ही सही मगर जलज भी यह सब सम?ाने लगा. कमल ने उसे एक पौजिटिव दोस्त की तरह बहुत हिम्मत दी. अनन्या, वान्या और मां तो उस के सपोर्ट सिस्टम थे ही. इस सब में लगभग सालभर लग गया.

नए साल के दिन जलज कमल को ले कर अनन्या के घर गया और उस ने बताया कि उस ने फिर से एक आईटी कंपनी में इंटरव्यू दिया था और उस का चयन भी हो गया है. फिर उसने सब के सामने कमल से कहा, ‘‘क्या अब मैं तुम्हारे साथ आगे का जीवन प्लान कर सकता हूं?’’

कमल ने मुसकराते हुए हां कह दी. घर में जैसे एक बार फिर उत्सव का सा माहौल हो गया. गाड़ी कुछ समय के लिए पटरी से उतर जरूर गई थी मगर अब फिर से वापस नई राह पर चलने वाली थी. हां, इस सफर में एक नया और बेहतरीन साथी भी अब जुड़ गया था. खुशियां फिर से लौट आई थीं.

जरूरत : उस दिन कौनसी घटना घटी?

औफिस से लौट कर ऊर्जा की नजर लगातार घड़ी पर थी. उसे लग रहा था जैसे आज उस की गति बहुत धीमी है. वह चाहती थी समय जल्दी कट जाए लेकिन इस के विपरीत आज विचारों के घोड़े तेज गति से दौड़ रहे थे और घड़ी की सुइयां आगे सरकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. उस ने जल्दी से खाना बनाया और जय का इंतजार करने लगी. उस ने आज आने में देर कर दी थी. इंतजार का समय लंबा होता जा रहा था और उस के साथ ऊर्जा की बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी.

9 बजे जय औफिस से आ कर सीधे बाथरूम में घुस गया. इतनी देर में उस ने खाना लगा दिया.

फ्रैश हो कर जय सीधे खाने की मेज पर आ गया और बोला, ‘‘खाने की बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है. लगता जल्दी घर आ कर मेरे लिए फुरसत से खाना बनाया है.’’

‘‘घर तो जल्दी आ गई थी लेकिन खाना बनाने के लिए नहीं किसी और परेशानी की वजह से आई थी.’’

‘‘क्या हुआ औफिस में सब ठीक तो है?’’

‘‘वहां ठीक है लेकिन यहां कुछ ठीक

नहीं है.’’

‘‘पहेलियां मत बु?ाओ. सीधे और साफ लफ्जों में बताओ बात क्या है ऊर्जा?’’

‘‘मैं प्रैगनैंट हूं जय.’’

ऊर्जा सोच रही थी यह सुनते ही उस के

हाथ खाना छोड़ कर रुक जाएंगे लेकिन ऐसा

कुछ भी नहीं हुआ और वह इत्मीनान से खाना खाता रहा.

‘‘कोई नई बात नहीं है ऊर्जा. डाक्टर से मिल कर इस मुसीबत से छुटकारा पा लेना.’’

जय की बात से ऊर्जा अंदर तक तिलमिला गई लेकिन इस समय कुछ कह कर माहौल खराब नहीं करना चाहते थी. वह सधे हुए शब्दों में बोली, ‘‘हम शादी कब कर रहे हैं जय?’’

यह सुन कर उस का हाथ मुंह तक जातेजाते रुक गया. उस ने एक गहरी नजर ऊर्जा पर डाली और बोला, ‘‘हमारे बीच में यह झंझट कहां से आ गया ऊर्जा?’’

‘‘सम?ाने की कोशिश करो जय. हम 3 साल से एकदूसरे के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं. हम दोनों एकदूसरे को अच्छे से समझते  हैं. तो फिर शादी करने में क्या परेशानी है?’’

‘‘मुझे शादी का कोई शौक नहीं है. यह बात मैं ने तुम्हें साथ रहने से पहले भी बता दी थी.’’

‘‘शौक मुझे भी नहीं है लेकिन अब जरूरत बन गई है. मैं बारबार इस तरह अर्बोशन नहीं करा सकती. तकलीफ होती है मुझे अपने शरीर का एक हिस्सा काट कर फेंकने में. जो बीतती है उसे वही बता सकता है जो भुक्तभोगी होता है.’’

‘‘यह मेरी गलती से नहीं तुम्हारी लापरवाही से हुआ है.’’

‘‘अच्छा यह जिम्मेदारी भी केवल मेरी

ही है.’’

‘‘इस बार गलती तुम्हारी थी ऊर्जा. याद करो अपने जन्मदिन पर तुम इतनी खुश थीं कि सबकुछ भूल गईं.’’

जय तीखे लहजे में बोला तो अजय चुप हो गई. जय की बात अपनी जगह सही थी. बर्थडे वाले दिन उस ने कुछ ज्यादा ही पी ली थी.

जय उसे किसी तरह होटल से घर ले आया. नशे की हालत में उसे कुछ होश नहीं रहा. उस का परिणाम आज उसे भुगतना पड़ रहा था.

‘‘जो हो गया उसे छोड़ो और आने वाली समस्या के बारे में सोचो. समझने की कोशिश करो मैं बारबार ऐसा नहीं कर सकती. सच पूछो मुझे बच्चा चाहिए. मैं उस की परवरिश करना चाहती हूं.’’

‘‘यह तुम कह रही हो ऊर्जा? जब हम ने एकसाथ रहना शुरू किया था तब हमारे बीच में शादी और बच्चा जैसे लफ्ज नहीं थे. बस हमतुम और हमारी जरूरत थी. यही सोच कर मैं ने तुम्हारे साथ रहना शुरू किया था.’’

‘‘बीती बातें भूल जाओ प्लीज. 3 साल का समय गुजर गया है. अब हम एकदूसरे को इतना समझने लगे हैं कि एकदूसरे के बगैर रहने की कल्पना भी नहीं कर सकते.’’

‘‘यह तुम समझती होंगी ऊर्जा मैं नहीं. तुम अब दिल से काम ले रही हो और मैं दिमाग से. ऐसे रिश्तों में दिल को बहुत दूर रखना चाहिए वरना यह जी का जंजाल बन जाता है.’’

‘‘कभी न कभी तुम शादी का फैसला करोगे ही जय. मुझ में क्या कमी है जो तुम मुझे अपना लाइफपार्टनर नहीं बना सकते?’’

ऊर्जा ने तीखे शब्दों में पूछा.

‘‘एक कमी हो तो बताऊं. हमारे इस रिश्ते में जवानी की उमंग और इच्छाएं हैं जिन्हें हम मिल कर ऐंजौय करते हैं अपेक्षाएं नहीं कि दूसरा हमारे लिए क्या करेगा. हम दोनों ने साथ रहने का निर्णय सोचसम?ा कर लिया था. मैं शादी का फंदा जीवनभर के लिए अपने गले नहीं डाल सकता. यह तुम पहले दिन से जानती थीं और आज भी मेरा फैसला अटल है.’’

‘‘यह तुम्हारा आखिरी निर्णय है?’’

‘‘यही समझ लो. तुम मुझे अच्छी लगती हो लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिन पर न तुम समझौता करती हो और न मैं.अच्छा होगा कि हम इसी तरह अपनी जिंदगी गुजारें और एकदूसरे से कोई अपेक्षा न रखें.’’

‘‘मेरा निर्णय भी सुन लो. इस बार में कोई गलत काम नहीं करूंगी और इस बच्चे को जन्म दूंगी.’’

‘‘यह तुम्हारा फैसला है मेरा नहीं. मेरी सलाह मानो और इस परेशानी से जल्दी छुटकारा पा लो. इस के कारण हमें अपना रिश्ता खराब नहीं करना चाहिए.’’

‘‘अगर तुम ठंडे दिमाग से सोचो तो यही बच्चा हमारे रिश्ते को और मजबूत बना सकता है जय,’’ ऊर्जा बोली.

ऊर्जा तर्क कर के थकने लगी थी और जय रुकने का नाम नहीं ले रहा था. ऊर्जा उसे किसी तरह मना नहीं पाई थी.बहस की समाप्ति ऊर्जा के आंसुओं पर हुई  लेकिन जय पर उस का भी कोई असर नहीं पड़ा. खाना खा कर वह चुपचाप बैड पर आ गया और लैपटौप खोल कर अपने काम पर लग गया. उस ने इस बारे में आगे उस से कोई बात नहीं की. ऊर्जा ने भी ठान लिया था कि इस बार वह कमजोर नहीं पड़ेगी और अपनी बात मनवा कर रहेगी.

जय शादी के लिए तैयार नहीं तो क्या हुआ? बहुत सी ऐसी औरतें हैं जिन्होंने अविवाहित रह कर बच्चे को जन्म दिया है.

वह भी ऐसा कर के दिखाएगी. आज आंखों से उस की नींद गायब थी. वह सोच रही थी शायद रात के अंधेरे में अपनी जरूरत पूरा करने के लिए जय उस की ओर रुख करेगा लेकिन

ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और सारी रात आंखों में कट गई.

सुबह ऊर्जा देर से उठी. जय बोला, ‘‘उठो ऊर्जा टाइम काफी हो गया है. तुम्हें औफिस के लिए देर हो जाएगी.’’

‘‘मैं आज औफिस नहीं जा रही हूं.’’

‘‘छोटी सी बात के लिए तुम इतनी सीरियस कैसे हो सकती हो? तुम एक आजाद ख्यालात महिला हो. इन सब बातों में तुम्हारा कभी

विश्वास नहीं था. अचानक तुम्हारा दिमाग कैसे पलट गया?’’

जय की बात का उस ने कोई उत्तर नहीं दिया. उस ने अपने लिए ब्रैड सेंकी और मक्खन के साथ खा कर निकल गया. उस के चेहरे पर उस की परेशानी का लेस मात्र भी असर नहीं था. वह सोचने लगी कि कोई व्यक्ति इतना असंवेदनशील कैसे हो सकता है?

हकीकत सामने थी उस से मुंह भी नहीं मोड़ा जा सकता था. वह जानती थी जय जो कुछ सोच रहा है वह अपनी जगह ठीक है.

उन दोनों की दोस्ती इसी वजह से हुई थी. ऊर्जा को दुनिया की कोई परवाह नहीं थी. जय को उस की यह बात बहुत अच्छी लगी थी. वह खुद भी रिश्तों में विश्वास नहीं करता था. वे दोनों साथ उठते, बैठते और इधरउधर घूमते. दोनों को एकदूसरे का साथ अच्छा लगता था.

एक दिन जय ने हंसीमजाक में यों ही कह दिया था, ‘‘सड़कों पर घूमने से अच्छा है ऊर्जा

हम दोनों एकसाथ एक ही छत के नीचे रहें. इस से खर्चे भी बचेंगे और अपने लिए अधिक समय भी मिलेगा.’’

जय की मजाक में कही बात ऊर्जा को जंच गई. वह झट से उस के साथ रहने के लिए तैयार हो गई और बोली, ‘‘मु?ा से कोई उम्मीद मत रखना जय. मैं तुम्हारे साथ एक ही घर में लिव इन रिलेशनशिप में रह सकती हूं. मु?ो पत्नी सम?ाने की भूल मत करना.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा. ऐसे रिश्तों में

आपसी विश्वास ही सब से बड़ा होता है. अगर तुम्हें मु?ा पर विश्वास न रहे तो कभी भी छोड़ कर जा सकती हो और यही बात मुझ पर भी लागू होती है.’’

खुले विचारों के ऊर्जा और जय जल्द ही एकसाथ रहने लगे. ऊर्जा के इस निर्णय पर औफिस में बहुत कानाफूसी हुई लेकिन उस ने उन की बातों को हवा में उड़ा दिया. दोनों के औफिस अलगअलग थे इसीलिए उन के बीच का आकर्षण ज्यादा था. एक छत के नीचे दोनों की बहुत अच्छी निभ रही थी. 6 महीने की दोस्ती में ही वे एकदूसरे की पसंदनापसंद को अच्छी तरह समझने लगे. अब बाहर इधरउधर भटकने की ज्यादा जरूरत न थी. छुट्टी के दिन वे लौंग ड्राइव पर निकल जाते और सारा दिन बाहर बिता कर रात में घर लौट आते.

जिंदगी का मजा साथ रहने में था यह बात उन दोनों को अच्छे से सम?ा में आ गई थी. जब पहली बार ऊर्जा के प्रैगनैंट होने का जय को पता लगा तो बहुत चौंक गया था.

बात संभालते हुए ऊर्जा बोली, ‘‘पता नहीं कैसे यह सब हो गया? अगली बार से तुम भी इस बात का खयाल रखना.’’

ऊर्जा ने डाक्टर को अपनी समस्या बता कर उस से छुटकारा पा लिया. 2 दिन की परेशानी के बाद सबकुछ सामान्य हो गया. उन का जीवन पहले की तरह बंधनमुक्त हो कर बहुत अच्छे से कट रहा था. जय के साथ रहते हुए उसे कभी घर की याद तक न आती. वैसे भी ऊर्जा को अपने घर से कोई लगाव न था. होता भी कैसे उस की अपनी मम्मी छुटपन मैं गुजर गई थी जब वह 8 साल की थी. पापा ने घर की जरूरत को देखते हुए अपनी सहकर्मी वीरा से शादी कर ली थी. उस का पहले से घर में आनाजाना था.

ऊर्जा ने उसे मम्मी के रूप में कभी नहीं अपनाया. वीरा ने अपनी ओर से बहुत कोशिश लेकिन उसे देख कर ऊर्जा का खून खौल उठता. सबकुछ जान कर ओजस ने उसे होस्टल भेज दिया. घर पर पैसे की कमी नहीं थी. उसे भी होस्टल रास आने लगा था.

स्वभाव से उग्र होने के कारण उस के फ्रैंड्स की लिस्ट भी छोटी ही थी. देखते ही देखते उस ने इंटर पास कर लिया और इंजीनियरिंग कालेज में आ गई. छुट्टियों में घर आने के बजाय वह इधरउधर घूमना ज्यादा पसंद करती. उसे अकेले घूमने में भी कोई एतराज न था.

बीटैक करते ही उस ने एक कंपनी जौइन कर ली. औफिस के काम से उसे इधरउधर जाना पड़ता. उस के कई पुरुष मित्र थे लेकिन उस ने कभी किसी को अपने इतने नजदीक नहीं आने दिया कि वह उस के लिए अपने दिल में कुछ महसूस कर सके.

जय में कुछ बात थी. वह उस के व्यक्तित्व से ज्यादा बातों और खुलेपन से प्रभावित हो गई थी और उस के मजाक में दिए एक प्रस्ताव पर उस के साथ रहने लगी थी. ओजस यह बात जानते थे. ऊर्जा ने फोन पर पापा को यह बात बता दी थी. सुन कर उन्हें अच्छा नहीं लगा था. उन्होंने उसे समाज की दुहाइयां दीं और इस रिश्ते को शादी में बदलने के लिए दबाव डाला था लेकिन वह नहीं मानी.

पापा को दुखी देख कर दिल के किसी कोने में उसे सुकून मिल रहा था. जिस ने उस की परवाह नहीं की वह उन की भावनाओं की परवाह क्यों करे? यह बात उस का रोमरोम

चीख कर कह रहा था. पिछले साल पापा चले गए. उन के गुजरने पर वह घर आई थी. वीरा को विधवा के भेष में देख कर उसे जरा भी बुरा नहीं लगा. उसे मम्मी से पहले भी कोई उम्मीद नहीं थी. अब बीच का वह पुल भी टूट गया था जिस से वे दोनों जुड़े थे. तब से उस ने घर आना लगभग बंद ही कर दिया था. वीरा अकसर फोन करती लेकिन वह उसे उठाना तक भी जरूरी न समझती. कभी मन आया तो हैलोहाय कर देती वरना फोन पर वीरा का चेहरा देख कर उस की नफरत भड़क जाती.

आज जय के रूखे व्यवहार ने उसे अंदर तक हिला दिया था. उसे समझ नहीं आ रहा था ऐसी हालत में वह कहां जाए? खून के रिश्तों से उस ने पहले ही किनारा कर लिया था. अपना कहने के लिए उस के पास कोई भी नहीं था. दोस्त भी ऐसे थे जिन से यह बात शेयर कर वह उपहास का पात्र नहीं बनना चाहती थी. बहुत सोच कर उस ने घर जाने का मन बना लिया. दोपहर में जय के नाम एक नोट छोड़ कर वह अपना सामान समेट  घर चली आई. औफिस में भी उस ने मेल से सिक लीव ले ली थी. सामान के साथ निकलते हुए उस ने एक नजर घर पर डाली और उसे अलविदा कह चली गई.

अचानक ऊर्जा को घर आया देख कर वीरा चौंक गई. उस की शक्ल से लग रहा था कुछ तो हुआ है जिस से ऊर्जा ने घर का रुख कर लिया वरना उस ने इस घर को कभी अपना समझ ही नहीं था. वीरा ने खुले दिल से उस का स्वागत किया. बदले में ऊर्जा ने भी एक फीकी मुसकान दे दी.

वीरा ने आते ही उस से कुछ पूछना ठीक नहीं सम?ा. बड़ी मुश्किल से वह लंबे अरसे बाद घर आई थी. कुछ पूछ कर वह उस का मूड खराब नहीं करना चाहती थी.

वीरा उस की हर जरूरत का खयाल रख रही थी. उस की अपनी कोई औलाद नहीं थी. लेदे कर उस के दिवंगत पति ओजस की एकमात्र निशानी ऊर्जा ही थी. 2 दिन तक उन के बीच मौन पसरा रहा. आखिर ऊर्जा की हालत देख कर वीरा ने चुप्पी तोड़ कर बात आगे बढ़ाई, ‘‘कितने दिन की छुट्टी ली है ऊर्जा?’’

‘‘अभी सोचा नहीं. जब तक मन लगेगा तब तक रहूंगी. उस के बाद चली जाऊंगी.’’

‘‘यह तुम्हारा अपना घर है. मैं कब से तुम्हारे आने का इंतजार कर रही थी ऊर्जा. मेरा भी तुम्हारे अलावा कोई नहीं है,’’ वीरा बोली तो ऊर्जा ने पलट कर कोई जवाब नहीं दिया. पहली बार उस की बात सुन कर वह ड्राइंगरूम से उठ कर अपने कमरे में नहीं गई. वरना ओजस के रहते  मम्मीपापा के कुछ कहते ही वह उठ कर वहां से चली जाती थी.

इस से वीरा का हौसला कुछ और बढ़ गया. उसी ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘कोई परेशानी हो तो कह दो. बता देने से मन हलका हो जाता है.’’

‘‘मैं प्रैगनैंट हूं,’’ ऊर्जा निर्विकार भाव से बोली.

यह सुन कर वीरा के मन में कई सवाल उठ रहे थे लेकिन उस ने कुछ पूछना उचित नहीं सम?ा. उसे अच्छा लगा कि ऊर्जा ने उसे इस लायक तो सम?ा और अपनी स्थिति बता दी.

‘‘तुम्हें आराम करना चाहिए. तनाव बच्चे के लिए अच्छा नहीं होता.’’

‘‘इसी वजह से घर आई हूं.’’

‘‘मैं तुम्हारा पूरा खयाल रखूंगी ऊर्जा. तुम्हें पता भी नहीं लगेगा यह समय कब बीत गया.’’

ऊर्जा को यह सुन कर तसल्ली हुई कि उस के यहां आने से वीरा को कोई परेशानी नहीं है. थोड़ा साहस कर वह बोली, ‘‘मैं ने अभी तक शादी नहीं की है.’’

यह सुन कर वीरा को कोई आश्चर्य नहीं हुआ. ओजस ने उसे बता दिया था कि ऊर्जा किसी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहती है. वह सम?ा गई यह बच्चा उसी का होगा. वह बोली, ‘‘कोई बात नहीं है. जब मरजी हो तब शादी कर लेना. अभी अपना ध्यान सेहत पर दो. अब पहले वाले जमाने नहीं रह गए पहले शादी फिर बच्चा.’’

‘‘जानती हूं तभी इतना बड़ा फैसला ले सकी वरना…’’ कहतेकहते वह रुक गई.

वीरा ने उसे कुरेद कर कुछ नहीं पूछा. इतना वह सम?ा गई कि अपने मन की बात वह धीरेधीरे उसे बता देगी. उसे बस ऊर्जा का विश्वास जीतना था. वीरा के बरताव ने ऊर्जा का दिल काफी हद तक जीत लिया था और उस ने थोड़ाथोड़ा कर सारी बात उसे बता दी.

‘‘तुझे नौकरी नहीं छोड़नी चाहिए थी.’’

‘‘मैं अभी छुट्टी पर हूं.’’

‘‘परिस्थितियों से भाग कर समस्या का समाधान नहीं निकलता ऊर्जा. 10 तरह की नकारात्मक बातें मन में आती हैं.’’

‘‘आप जानती हैं मैं ने कभी किसी के जज्बातों की परवाह नहीं की न ही मेरा रिश्तों

में कोई विश्वास रहा. मैं इतना ही सम?ा पाई हूं अपने  शरीर के किसी हिस्से को बारबार काट

कर फेंकना कहां की बुद्धिमानी है? विचारों की स्वतंत्रता और स्वच्छंदता तभी तक सुकून देती है जब तक वह दिल पर असर न डाले. एक ही घटना के बारबार होने से मुझे सोचने पर मजबूर होना पड़ा है. मैं अब यह काम नहीं करना चाहती.’’

‘‘तुम ने जो सोचा वह अपने हिसाब से बिलकुल ठीक है. इस समय ऐसी बातें सोचने से तुम्हारी सेहत पर बुरा असर पड़ेगा. तुम खुश रहो मैं इतना ही चाहती हूं,’’ वीरा ने उसे सांत्वना दी तो ऊर्जा को अच्छा लगा.

जब वह छोटी थी तब भी वीरा ने उस के पास आने की बहुत कोशिश की लेकिन उस ने उस की भावनाओं को कभी कोई महत्त्व नहीं दिया था. पापा के साथ किसी और औरत को देखने की वह कल्पना भी नहीं करना चाहती थी. वीरा को देख कर उसे बड़ा अटपटा लगता था. वह पापा की पत्नी जरूर थी लेकिन उस की मम्मी नहीं. उस ने अपने व्यवहार से कभी उसे मम्मी बनने का मौका ही नहीं दिया.

पापा के चले जाने के बाद ऊर्जा पहली बार वीरा के इतने नजदीक आई थी. उसे लगा वह एक भली औरत है. उसी की भूल थी जो वह उसे गलत सम?ाती रही. ऊर्जा के फैसले के खिलाफ उस ने एक शब्द भी नहीं कहा और उस की हर बात को जायज ठहराते हुए ऐसी हालत में उस का साथ दे रही थी.

घर पर ऊर्जा को पापा की बहुत याद आ रही थी. वह एक अच्छे इंसान थे. अपना अकेलापन दूर करने के लिए वीरा को उन्होंने अपना जीवनसाथी बनाया था. इस में कोई बुराई भी नहीं थी. वे चाहते तो किसी से भी अपनी शारीरिक जरूरत पूरी कर सकते थे. उन के मन में स्त्री

के लिए सम्मान था इसीलिए उन्होंने अपनी सहकर्मी वीरा को घर की इज्जत बना कर उसे अपनाया था. दोनों खुश थे. ऊर्जा को ही यह सब पसंद नहीं था और यहीं से उस के विचारों में बगावत शुरू हो गई. तब उसे लग रहा था शायद पापा को दुखी करने के लिए उस ने यह कदम उठाया था.

ऊर्जा बड़ी देर से पापा की तसवीर देख रही थी. वीरा उसे सम?ाते हुए बोली, ‘‘बीती बातें याद करने से कोई फायदा नहीं. आने वाले भविष्य की ओर देखो ऊर्जा. जो बीत गया उसे लौटाया नहीं जा सकता. ओजस तुम्हें बहुत याद करते थे. वे हर समय तुम्हारी चिंता करते थे और तुम्हें अपने पास रखना चाहते थे.’’

उस के पास कहने के लिए कुछ बचा भी नहीं था. वीरा उसे हर समय चिंता में डूबे देखती. एक दिन उस ने साहस कर के पूछ लिया, ‘‘तुम अपने इस फैसले से खुश तो हो ऊर्जा? अभी भी समय है तुम इस बारे में एक बार फिर सोच सकती हो.’’

‘‘मैं ने बहुत सोचसमझ कर ही यह फैसला लिया है. मैं सिंगल मदर बनूंगी और बच्चे को पालपोस कर बड़ा करूंगी.’’

‘‘तुम्हारे विचार बहुत अच्छे हैं लेकिन कभी उस बच्चे की नजरिए से भी सोचना जिस के मन में दुनिया देखने के बाद कई प्रश्न खड़े होंगे,’’ वीरा बोली.

उस की बात सुन कर ऊर्जा चौंक गई. उस ने अभी इस दृष्टिकोण से कुछ सोचा ही नहीं था. वीरा ने यह कह कर उसे ?ाक?ार दिया.

ऊर्जा सोचने लगी अपनी मम्मी के चले जाने के बाद वह पापा के साथ वीरा को देख तक न सकी थी. कितना बुरा लगता था पापा के साथ उन्हें हंसतेबोलते देख कर. भविष्य में अगर कभी उस ने शादी करने का फैसला लिया तो क्या आने वाला मेहमान उस के नए जीवनसाथी को स्वीकार कर पाएगा. यह यक्ष प्रश्न उस के सामने खड़ा था जिसे चाह कर भी अपने दिमाग से निकाल नहीं पा रही थी.

3 महीने पूरे होने में अभी 1 हफ्ता बाकी था और वह अपनेआप से लड़ रही थी कि अपने या बच्चे में से किस के दृष्टिकोण से जिंदगी को देखे.

ऊर्जा के इस तरह घर से चले जाने पर जय को घर में खालीपन लगने लगा था. वह मानसिक रूप से पहले से ही तैयार था कि एक न एक दिन ऊर्जा उसे छोड़ कर चली जाएगी. वह अपनेआप को ऊर्जा के बगैर रहने के लिए तैयार करने लगा. जीवन का जो सुख उसे चाहिए था वह उस ने ऊर्जा के साथ भरपूर भोगा था. वह किसी नए रिश्ते में बंध कर अपनी आजादी खत्म नहीं करना चाहता था. उस ने 1-2 बार ऊर्जा से बात करने की कोशिश की लेकिन उस ने उस का नंबर ब्लौक कर दिया था .वह स्क्रीन पर भी उस के संपर्क में नहीं आना चाहती थी.

3 साल में क्या कुछ नहीं किया था उसने जय के लिए. उस की हर इच्छा का मान किया लेकिन उस ने उसे एक मशीन समझ लिया था जिस में आधुनिकता और खुलेपन के नाम पर भावनाएं नहीं रह गई थीं. यह चौथी बार था जब जय उसे अबौर्शन कराने के लिए कह रहा था. ऐसी परिस्थिति आने पर हर बार वह उसे दोषी करार कर देता और खुद जिम्मेदारी लेने से बच जाता.

कुछ हफ्तों बाद जय को उस की कमी खलने लगी.

वह कई मामलों में जिद्दी थी लेकिन उस की हर इच्छा का बहुत खयाल रखती थी. वह अब उस के बारे में सोचने पर मजबूर हो गया था. उसे घर के हर हिस्से में ऊर्जा की उपस्थिति महसूस होती. उसे लगने लगा कि ऊर्जा ही नहीं वह भी दिल की गहराइयों से उसे चाहने लगा.

यह बात उस का दिमाग उस वक्त स्वीकार नहीं कर सका था. आंखों के आगे से भौतिकवाद और आधुनिकता का परदा हटते ही जय को बहुत कुछ दिखाई देने लगा. वह उस से मिलने के लिए बेचैन था.

एक दिन वह हिम्मत कर ऊर्जा से मिलने उस के घर आ गया. उस समय ऊर्जा डाक्टर के पास अपनी दुविधा ले कर गई हुई थी. अचानक जय को घर पर देख कर वीरा चौंक गई. ऊर्जा ने उसे काफी कुछ उस के बारे में बता दिया था.

‘‘ऊर्जा कहां है आंटी? मैं उस से मिलना चाहता हूं.’’

‘‘वह घर पर नहीं है कुछ देर बाद आ जाएगी,’’ सही बात छिपा कर वीरा बोली.

‘‘मैं ने ऊर्जा को बहुत हर्ट किया है. उसी की माफी मांगने आया हूं.’’

‘‘ऐसा क्यों कह रहे हो? आजकल के नौजवान इसी तरह के रिश्तों को तवज्जो दे रहे

हैं. इस में माफी जैसे शब्दों की कोई जगह नहीं होती.’’

‘‘मानता हूं हम ने नए रिश्ते की शुरुआत अपनी शारीरिक जरूरत को पूरा करने के लिए

की थी. ऊर्जा कब मु?ा से प्यार करने लगी कह नहीं सकता. वह अब इस जरूरत को एक पवित्र रिश्ते का नाम देना चाहती थी. मैं ही इस के लिए तैयार नहीं था.

‘‘मेरा मन इसे स्वीकार नहीं कर रहा था. रिश्ते में हम बड़ी उम्र में भी बंध सकते हैं. अगर हमें जवानी अपनी शर्तों पर खुशीखुशी

जीने के लिए मिलती है तो हम बेकार के पचड़े

में क्यों पड़े? यही सोच कर मैं ने उस की बात नहीं मानी.’’

‘‘नए जमाने की हवा ही कुछ ऐसी है. उस में जज्बातों के लिए जगह ही नहीं रही. तुम दोनों  अपनीअपनी जगह सही हो. जिसे जो ठीक लगे वही करो. इस में बड़ों की रजामंदी कोई माने नहीं रखती,’’ वीरा बोली.

तभी ऊर्जा घर लौट आई. जय को ड्राइंगरूम में देख कर उस से कुछ पूछते नहीं बना.

‘‘कैसी हो ऊर्जा?’’

‘‘अच्छीभली हूं. तुम कैसे हो जय?’’

‘‘तुम्हारे बिना कैसा हो सकता हूं?’’ जय बोला तो ऊर्जा चौंक गई. वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि शरीर के स्तर पर जीने वाला इंसान कभी दिल की बात भी सुन सकता है.

‘‘मैं ने तुम से कई बार बात करने की कोशिश की. तुम ने मुझे मोबाइल के साथसाथ अपनी जिंदगी से भी डिलीट कर दिया.’’

‘‘जब तुम्हें मेरी जरूरत ही नहीं रही तो फोन पर नंबर रख कर क्या करती. तुम्हारे लिए मैं एक औरत होने के अलावा और कोई माने नहीं रखती जो तुम्हारी शारीरिक जरूरत पूरी कर सके.’’

‘‘ऐसा कह कर मुझे शर्मिंदा मत करो.

मुझे अपनी गलती का एहसास है. जानता हूं हमारे रिश्ते की शुरुआत चाहे जैसे भी हुई लेकिन अब हम एकदूसरे को प्यार करते हैं और एकदूसरे के बगैर नहीं रह सकते,’’ जय बोला तो ऊर्जा की आंखों की कोरों पर आंसू की 2 बूंदें आ कर टिक गईं.

जय ने बड़ी सावधानी से अपनी उंगलियों की पोरों से उन्हें पोंछ कर उसे अपने आलिंगन में ले लिया. ऊर्जा ने भी उस का विरोध नहीं किया. उन्हें बातें करते देख वीरा रसोई में आ गई थी. आवाज की तीव्रता धीरेधीरे कम हो कर मौन में बदल गई थी. वह समझ गई दोनों के बीच समझौता हो गया है. वे बड़ी देर तक एकदूसरे के आगोश में खोए रहे. दिल की बात आंखों से बहते आंसू बयां कर रहे थे.

तभी वीरा के आने की आहट पा कर वे दोनों एकदूसरे से अलग हो गए.

जय बोला, ‘‘आंटी मैं ऊर्जा से शादी करना चाहता हूं. आप को कोई आपत्ति तो नहीं है?’’

‘‘यह कह कर तुम ने मु?ो जो खुशी दी है उसे मैं बयां नहीं कर सकती लेकिन इस के लिए तुम्हें ऊर्जा से अनुमति लेनी होगी.’’

‘‘ऊर्जा तुम मुझ से शादी के लिए तैयार हो?’’ घुटने के बल जमीन पर बैठ कर जय उसे प्रपोज करते हुए बोला.

उस ने सिर झुका कर अपनी सहमति दे दी.

‘‘मैं आज ही कोर्ट में शादी के लिए ऐप्लिकेशन दे दूंगा. तुम मेरे साथ चलने की तैयारी करो ऊर्जा.’’

ऊर्जा ने यह सुन कर वीरा की ओर देखा.

‘‘अब तो दुलहन की विदाई शादी के बाद ही होगी जय. तब तक तुम्हें इंतजार करना होगा.’’

यह सुन कर ऊर्जा के चेहरे पर मुसकान खिल गई और गाल शर्म से लाल हो गए.

खुशी के इस मौके पर आज पहली बार ऊर्जा अपनत्व से भर कर वीरा के गले लग गई. यह देख कर उस की आंखें भर आईं. वीरा को इतने वर्षों बाद आज बेटी के साथ दामाद भी मिल गया था.

एहसान: क्या हुआ था रुक्मिणी और गोविंद के बीच

अंधेरा हो चला था. रुक्मिणी ने सब से पहले तो बैलगाड़ी जोती और अनाज के 2 बोरे गाड़ी में रख अपने गांव की तरफ चल दी. अंधेरे को देखते हुए रुक्मिणी ने लालटेन जला कर लटका ली थी. इस बार फसल थोड़ी अच्छी हो गई थी, इसलिए वह खुश थी. खेत से निकल कर रुक्मिणी की गाड़ी रास्ते पर आ गई थी. अभी वह थोड़ा ही आगे बढ़ी थी कि उसे पेड़ से टकराई हुई मोटरसाइकिल दिखी. उस को चलाने वाला वहीं खून से लथपथ पड़ा था. रुक्मिणी ने गाड़ी रोकी और लालटेन निकाल कर उस के चेहरे के पास ले गई. उस आदमी की नब्ज टटोली, जो अभी चल रही थी. इस के बाद उस का चेहरा देख कर एक पल के लिए तो रुक्मिणी का भी सिर घूम गया. वह सरपंच का बेटा मंगल सिंह था.

मंगल सिंह को देख कर रुक्मिणी का एक बार मन हुआ कि उसे ऐसा ही छोड़ कर आगे बढ़ जाए, लेकिन आखिर वह भी एक औरत थी और न चाहते हुए भी उस ने गाड़ी के सामान को एक तरफ किया और फिर मंगल सिंह को उठा कर गाड़ी में डाल लिया. वह चाहती थी कि जल्दी से जल्दी मंगल सिंह को वह सरपंच के हवाले कर दे. इसी के साथ पुरानी यादों ने रुक्मिणी के जख्म को ताजा कर दिया.

सीतापुर गांव में रामलाल अपने छोटे से परिवार के साथ रहता था. उस के पास छोटा सा खेत था, इसी के साथ उस की पत्नी त्रिवेणी सरपंच गोविंद सिंह के यहां झाड़ूपोंछे का काम करती थी. त्रिवेणी के साथ उस की बेटी रुक्मिणी भी आती थी. मंगल सिंह और रुक्मिणी की उम्र बढ़ने के साथसाथ उन के दिलों में प्यार की कोंपलें भी फूटने लगी थीं और अकसर वे दोनों गांव व खेतों में निकल जाया करते थे. रुक्मिणी के भरते शरीर, उभार और जवानी का रसपान गोविंद सिंह भी दूर से करने लगा था. रुक्मिणी इन सब बातों से दूर अपनी ही दुनिया में मस्त रहती थी. गंगू ने जब सरपंच गोविंद सिंह को रुक्मिणी और मंगल सिंह की प्रेम कथा बताई, तो वह आगबबूला हो गया.

पहले तो गोविंद सिंह ने मंगल सिंह को समझाया, ‘मैं तुम्हारी शादी दूसरी जगह कर दूंगा, जहां से अच्छा दहेज मिल जाएगा और वैसे भी रुक्मिणी हमारी बराबरी की नहीं है.’ जब मंगल सिंह पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ, तब उस ने रुक्मिणी के पीछे अपने आदमी छोड़ दिए. वे उसे बदनाम करने लगे. एक बार रुक्मिणी के पिता रामलाल ने उस से उस की शादी की बात की, तो वह उसे टाल गई. समय धीरेधीरे गुजर रहा था. आखिर गोविंद सिंह ने एक दिन रुक्मिणी को उठवा लिया और मंगल सिंह से कहा कि वह गांव के किसी लड़के के साथ भाग गई है. कुछ दिन बाद जब गोविंद सिंह ने उसे छोड़ा, तब तक मंगल सिंह उस से दूर चला गया था. रुक्मिणी में जिंदगी जीने और हालत से जूझने का हौसला था, इसलिए वह इतने पर भी टूटी नहीं. थोड़े दिन बाद इसी गम में रुक्मिणी के मांबाप भी इस दुनिया से चल बसे. लेकिन इन सब हालात ने उसे और भी जुझारू बना दिया था. इस के बाद रुक्मिणी ने खेतीबारी को खुद संभाल लिया और पास के दूसरे गांव में रहने चली गई. अमीर घराने की लड़की मंगल सिंह के साथ ज्यादा दिन नहीं निभा सकी और एक दिन वह भी उसे छोड़ कर चली गई.

इस के बाद मंगल सिंह पागल जैसा हो गया, क्योंकि बाद में उसे भी रुक्मिणी के साथ हुए गलत बरताव के बारे में मालूम पड़ा था. इस के बाद मंगल सिंह अपने को कुसूरवार मानता था, उस से माफी मांगना चाहता था. इस के बाद उस ने भी अपने पिता सरपंच गोविंद सिंह का घर छोड़ दिया था और अलग रहने लगा था. उस दिन भी मंगल सिंह रुक्मिणी से माफी मांगने के लिए उस के खेत पर ही जा रहा था. दिमागी परेशानी से उस का ध्यान सड़क से भटक गया था और सामने से आते हुए ट्रैक्टर ने उस की मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी थी तभी मंगल सिंह ने कराहते हुए अपनी आंखें खोलीं. अब रुक्मिणी भी यादों से वापस आ गई थी. सरपंच का घर अभी थोड़ी दूर था, इसलिए मंगल सिंह की हालत देखने के लिए उस ने बैलगाड़ी रोकी और उस के पास गई. रुक्मिणी ने मंगल सिंह के सिर पर अपनी चुनरी कस कर बांध दी. तभी मंगल सिंह के हाथ माफी मांगने के लिए जुड़ गए थे. इन सब बातों का रुक्मिणी पर कोई असर नहीं हुआ. उस ने बैलगाड़ी तेजी से चलाई और सरपंच के घर के सामने गाड़ी रोक कर पूरी बात गोविंद सिंह को बताई और वापस जाने लगी.

गोविंद सिंह उस के पैरों पर गिर गया और बोला, ‘‘रुक्मिणी, मुझे किसी गरीब को नहीं सताना चाहिए था. मुझे माफ कर दे.’’ गोविंद सिंह मंगल सिंह को जीप में डाल शहर के अस्पताल में ले जाने लगा, तब मंगल सिंह ने रुक्मिणी का हाथ जोर से पकड़ लिया और उसे भी साथ चलने के लिए इशारा किया. अस्पताल में मंगल सिंह का इलाज शुरू हो गया और उसे तुरंत खून देना था. परिवार में से किसी का खून मंगल सिंह के खून से नहीं मिल रहा था. साथ ही, वहां आए लोगों का खून भी मंगल सिंह के खून से नहीं मिल रहा था. रुक्मिणी एक बार फिर यादों की दुनिया में चली गई थी. मंगल सिंह और रुक्मिणी एक बार शहर घूमने गए थे. तब रुक्मिणी ने कहा था, ‘देख मंगल, हमारा प्यार एकदम सच्चा और पक्का है कि तू भले ही न माने, लेकिन हमारा खून भी एक ही है.’ तब मंगल सिंह ने हंसते हुए कहा था, ‘हट पगली, ऐसे थोड़े न होता है. सभी के खून का ग्रुप अलगअलग ही होता है.’

मजाक की बात शर्त में बदल गई और दोनों ने पास के एक अस्पताल में जा कर जब खून को चैक करवाया, तब दोनों का ग्रुप एक ही निकला.

तभी डाक्टर ने आ कर कहा, ‘‘गोविंद सिंह, जल्दी खून का इंतजाम करो. मंगल सिंह की हालत खराब होती जा रही है. खून काफी बह गया है.’’

तब रुक्मिणी ने विश्वास से कहा, ‘‘डाक्टर, मेरा खून ले लीजिए.’’ गोविंद सिंह हैरानी से रुक्मिणी को देख रहा था और एहसान तले दबा जा रहा था.

वारिस: सुरजीत के घर कौन थी वो औरत

सुरजीत के घर में अनजान औरत को देख नरेंद्र चौंक गया. पूछने पर मालूम हुआ कि वह ‘कुदेसन’ है. रहरह कर उसे अपने घर में रह रही उस औरत का खयाल आने लगा. कहीं वह भी ‘कुदेसन’ तो नहीं.

होश संभालने के साथ ही नरेंद्र उस औरत को अपने घर में देखता आ रहा था. वह कौन थी, उसे नहीं पता था.

बचपन में जब भी वह किसी से उस औरत के बारे में पूछता था तो वह उस को डांट कर चुप करा देता था.

घर के बाईं ओर जहां गायभैंस बांधे जाते थे उस के करीब ही एक छोटी सी कोठरी बनी हुई थी और वह औरत उसी कोठरी में सोती थी.

मां का व्यवहार उस औरत के प्रति अच्छा नहीं था जबकि उस का बाप  बलवंत और बूआ सिमरन उस औरत के साथ कुछ हमदर्दी से पेश आते थे.

नरेंद्र की मां बलजीत का सलूक तो उस औरत के साथ इतना खराब था कि वह सारा दिन उस से जानवरों की तरह काम लेती थी और फिर उस के सामने बचाखुचा और बासी खाना डाल देती थी. कई बार तो लोगों का जूठन भी उस के सामने डालने में बलवंत परहेज नहीं करती थी. लेकिन जैसा भी, जो भी मिलता था वह औरत चुपचाप खा लेती थी.

होश संभालने के बाद नरेंद्र ने घर में रह रही उस औरत को ले कर एक और भी अजीब चीज महसूस की थी. वह हमेशा नरेंद्र की तरफ दुलार और हसरत भरी नजरों से देखती थी. वह उसे छूना और सहलाना चाहती थी. पर घर के किसी सदस्य के होने पर उस औरत की नरेंद्र के करीब आने की हिम्मत नहीं होती थी. लेकिन जब कभी नरेंद्र उस के सामने अकेले पड़ जाता और आसपास कोई दूसरा नहीं होता तो वह उस को सीने से लगा लेती और पागलों की तरह चूमती.

ऐसा करते हुए उस की आंखों में आंसुओं के साथसाथ एक ऐसा दर्द भी होता था जिस को शब्दों में जाहिर करना मुश्किल था.

‘कुदेसन’ शब्द को नरेंद्र ने पहली बार तब सुना था जब उस की उम्र 14-15 साल की थी.

गांव के कुछ दूसरे लड़कों के साथ नरेंद्र जिस सरकारी स्कूल में पढ़ने जाता था वह गांव से कम से कम 2 किलोमीटर की दूरी पर था.

नरेंद्र के साथ गांव के 7-8 लड़कों का समूह एकसाथ स्कूल के लिए जाता था और रास्ते में अगर कोई झगड़ा न हुआ तो एकसाथ ही वे स्कूल से वापस भी आते थे.

सुबह स्कूल जाने से पहले सारे लड़के गांव की चौपाल पर जमा होते थे. एकसाथ मस्ती करते हुए स्कूल जाने में रास्ते की दूरी का पता ही नहीं चलता था और जब कभी समूह का कोई लड़का वक्त पर चौपाल नहीं पहुंचता था तो उस की खोजखबर लेने के लिए किसी लड़के को उस के घर दौड़ाया जाता था. हमारे साथ स्कूल जाने वाले लड़कों में एक सुरजीत भी था जिस के साथ नरेंद्र की खूब पटती थी. दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे. नरेंद्र कई बार सुरजीत के घर भी जा चुका था.

एक दिन जब स्कूल जाते समय  सुरजीत गांव की चौपाल पर नहीं पहुंचा तो उस की खोजखबर लेने के लिए नरेंद्र उस के घर पहुंच गया.

पहले तो घर में दाखिल हो कर नरेंद्र ने देखा कि सुरजीत को बुखार है. वह वापस मुड़ा तो उस की नजर सुरजीत के घर में एक औरत पर पड़ी जो उस के लिए अनजान थी.

वह जवान औरत गांव में रहने वाली औरतों से एकदम अलग थी, बिलकुल उसी तरह जैसे उस के अपने घर में रह रही औरत उसे नजर आती थी. चूंकि नरेंद्र को स्कूल जाने की जल्दी थी इसलिए उस ने इस बारे में सुरजीत से कोई बात नहीं की.

2 दिन बाद सुरजीत स्कूल जाने वाले लड़कों में फिर से शामिल हो गया तो छुट्टी के बाद गांव वापस लौटते हुए नरेंद्र ने उस से उस अजनबी औरत के बारे में पूछा था. इस पर सुरजीत ने कहा, ‘बापू ने ‘कुदेसन’ रख ली है.’

‘‘कुदेसन, वह क्या होती है?’’ नरेंद्र ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं नहीं जानता. लेकिन ‘कुदेसन’ के कारण मां और बापू में रोज झगड़ा होने लगा है. मां कुदेसन को घर में एक मिनट भी रखने को तैयार नहीं, लेकिन बापू कहता है कि भले ही लाशें बिछ जाएं, कुदेसन यहीं रहेगी,’’ सुरजीत ने बताया.

‘‘मगर तेरा बापू इस कुदेसन को लाया कहां से है?’’

‘‘क्या पता, तुम को तो मालूम ही है कि मेरा बापू ड्राइवर है. कंपनी का ट्रक ले कर दूरदूर के शहरों तक जाता है. कहीं से खरीद लाया होगा,’’ सुरजीत ने कहा.

सुरजीत की इस बात से नरेंद्र को और ज्यादा हैरानी हुई थी. उस ने जानवरों की खरीदफरोख्त की बात तो सुनी थी मगर इनसानों को भी खरीदा या बेचा जा सकता है यह बात वह पहली बार सुरजीत के मुख से सुन रहा था.

‘कुदेसन’ शब्द एक सवाल बन कर नरेंद्र के जेहन में लगातार चक्कर काटने लगा था. उस को इतना तो एहसास था कि ‘कुदेसन’ शब्द में कुछ बुरा और गलत था. किंतु वह बुरा और गलत क्या था? यह उस को नहीं पता था.

‘कुदेसन’ शब्द को ले कर घर में किसी से कोई सवाल करने की हिम्मत उस में नहीं थी. बाहर किस से पूछे यह नरेंद्र की समझ में नहीं आ रहा था.

असमंजस की उस स्थिति में अचानक ही नरेंद्र के दिमाग में अमली चाचा का नाम कौंधा था.

अमली चाचा का असली नाम गुरबख्श था. अफीम के नशे का आदी (अमली) होने के कारण ही गुरबख्श का नाम अमली चाचा पड़ गया था. गांव के बच्चे तो बच्चे जवान और बड़ेबूढे़ तक गुरबख्श को अमली चाचा कह कर बुलाते थे. दूसरे शब्दों में, गुरबख्श सारे गांव का चाचा था.

गांव की चौपाल के पास ही अमली चाचा पीपल के नीचे जूतों को गांठने की दुकानदारी सजा कर बैठता था. वह अकेला था, क्योंकि उस की शादी नहीं हुई थी. एकएक कर के उस के अपने सारे मर गए थे. आगेपीछे कोई रोने वाला नहीं था अमली चाचा के. गांव के हर शख्स से अमली चाचा का मजाक चलता था.

बड़े तो बड़े, नरेंद्र की उम्र के लड़कों के साथ भी उस का हंसीमजाक चलता था. आतेजाते लड़के अमली चाचा से छेड़खानी करते थे और वह इस का बुरा नहीं मानता था. हां, कभीकभी छेड़खानी करने वाले लड़कों को भद्दीभद्दी गालियां जरूर दे देता था.

शरारती लड़के तो अमली चाचा की गालियां सुनने के लिए ही उस को छेड़ते थे.

नरेंद्र ने जब से होश संभाला था उस का भी अमली चाचा से वास्ता पड़ता रहा था. जब भी उस के पांव की चप्पल कहीं से टूटती थी तो उस की मरम्मत अमली चाचा ही करता था. चप्पल की मरम्मत और पालिश कर के एकदम उस को नया जैसा बना देता था अमली चाचा.

काम करते हुए बातें करने की अमली चाचा की आदत थी. बातों की झोंक में कई बार बड़ी काम की बातें भी कह जाता था अमली चाचा.

‘कुदेसन’ के बारे में अमली चाचा से वह पूछेगा, ऐसा मन बनाया था नरेंद्र ने.

एक दिन जब स्कूल से वापस आ कर सब लड़के अपनेअपने घर की तरफ रुख कर गए तो नरेंद्र घर जाने के बजाय चौपाल के करीब पीपल के नीचे जूतों की मरम्मत में जुटे अमली चाचा के पास पहुंच गया.

नरेंद्र को देख अमली चाचा ने कहा, ‘‘क्यों रे, फिर टूट गई तेरी चप्पल? तेरी चप्पल में अब जान नहीं रही. अपने कंजूस बाप से कह अब नई ले दें.’’

‘‘मैं चप्पल बनवाने नहीं आया, चाचा.’’

‘‘तब इस चाचा से और क्या काम पड़ गया, बोल?’’ अमली ने पूछा.

नरेंद्र अमली चाचा के पास बैठ गया. फिर थोड़ी सी ऊहापोह के बाद उस ने पूछा, ‘‘एक बात बतलाओ चाचा, यह ‘कुदेसन’ क्या होती है?’’

नरेंद्र के सवाल पर जूता गांठ रहे अमली चाचा का हाथ अचानक रुक गया. चेहरे पर हैरानी का भाव लिए वह बोले, ‘‘ तू यह सब क्यों पूछ रहा है?’’

‘‘मैं ने सुरजीत के घर में एक औरत को देखा था चाचा, सुरजीत कहता है कि वह औरत ‘कुदेसन’ है जिस को उस का बापू बाहर से लाया है. बतलाओ न चाचा कौन होती है ‘कुदेसन’?’’

‘‘क्या करेगा जान कर? अभी तेरी उम्र नहीं है ऐसी बातों को जानने की. थोड़ा बड़ा होगा तो सब अपनेआप मालूम हो जाएगा. जा, घर जा.’’ नरेंद्र को टालने की कोशिश करते हुए अमली चाचा ने कहा.

लेकिन नरेंद्र जिद पर अड़ गया.

तब अमली चाचा ने कहा,

‘‘ ‘कुदेसन’ वह होती है बेटा, जिस को मर्द लोग बिना शादी के घर में ले आते हैं और उस को बीवी की तरह रखते हैं.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं चाचा.’’

‘‘थोड़े और बड़े हो जाओ बेटा तो सब समझ जाओगे. कुदेसनें तो इस गांव में आती ही रही हैं. आज सुरजीत का बाप ‘कुदेसन’ लाया है. एक दिन तेरा बाप भी तो ‘कुदेसन’ लाया था. पर उस ने यह सब तेरी मां की रजामंदी से किया था. तभी तो वह वर्षों बाद भी तेरे घर में टिकी हुई है. बातें तो बहुत सी हैं पर मेरी जबानी उन को सुनना शायद तुम को अच्छा नहीं लगेगा, बेहतर होगा तुम खुद ही उन को जानो,’’ अमली चाचा ने कहा.

अमली चाचा की बातों से नरेंद्र हक्काबक्का था. उस ने सोचा नहीं था कि उस का एक सवाल कई दूसरे सवालों को जन्म दे देगा.

सवाल भी ऐसे जो उस की अपनी जिंदगी से जुडे़ थे. अमली चाचा की बातों से यह भी लगता था कि वह बहुत कुछ उस से छिपा भी गया था.

अब नरेंद्र की समझ में आने लगा था कि होश संभालने के बाद वह जिस खामोश औरत को अपने घर में देखता आ रहा है वह कौन है?

वह भी ‘कुदेसन’ है, लेकिन सवाल तो कई थे.

यदि मेरा बापू कभी मां की रजामंदी से ‘कुदेसन’ लाया था तो आज मां उस से इतना बुरा सलूक क्यों करती है? अगर वह ‘कुदेसन’ है तो मुझ को देख कर रोती क्यों है? जरा सा मौका मिलते ही मुझ को अपने सीने से चिपका कर चूमनेचाटने क्यों लगती थी वह? मां की मौजूदगी में वह ऐसा क्यों नहीं करती थी? क्यों डरीडरी और सहमी सी रहती थी वह मां के वजूद से?

फिर अमली चाचा की इस बात का क्या मतलब था कि अपने घर की कुछ बातें खुद ही जानो तो बेहतर होगा?

ऐसी कौन सी बात थी जो अमली चाचा जानता तो था किंतु अपने मुंह से उस को नहीं बतलाना चाहता?

एक सवाल को सुलझाने निकला नरेंद्र का किशोर मन कई सवालों में उलझ गया.

उस को लगने लगा कि उस के अपने जीवन से जुड़ी हुई ऐसी बहुत सी बातें हैं जिन के बारे में वह कुछ नहीं जानता.

अमली चाचा से नई जानकारियां मिलने के बाद नरेंद्र ने मन में इतना जरूर ठान लिया कि वह एक बार मां से घर में रह रही ‘कुदेसन’ के बारे में जरूर पूछेगा.

‘कुदेसन’ के कारण अब सुरजीत के घर में बवाल बढ़ गया था. सुरजीत की मां ‘कुदेसन’ को घर से निकालना चाहती थी मगर उस का बाप इस के लिए तैयार नहीं था.

इस झगड़े में सुरजीत की मां के दबंग भाइयों के कूदने से बात और भी बिगड़ गई थी. किसी वक्त भी तलवारें खिंच सकती थीं. सारा गांव इस तमाशे को देख रहा था.

वैसे भी यह गांव में इस तरह की कोई नई या पहली घटना नहीं थी.

जब सारे गांव में सुरजीत के घर आई ‘कुदेसन’ की चर्चा थी तो नरेंद्र का घर इस चर्चा से अछूता कैसे रह सकता था?

नरेंद्र ने भी मां और सिमरन बूआ को इस की चर्चा करते सुना था लेकिन काफी दबी और संतुलित जबान में.

इस चर्चा को सुन कर नरेंद्र को लगा था कि उस के मां से कु छ पूछने का वक्त आ गया है.

एक दिन जब नरेंद्र स्कूल से वापस घर लौटा तो मां अपने कमरे में अकेली थीं. सिमरन बूआ किसी रिश्तेदार के यहां गई हुई थीं और बापू खेतों में था.

नरेंद्र ने अपना स्कूल का बस्ता एक तरफ रखा और मां से बोला, ‘‘एक बात बतला मां, गायभैंस बांधने वाली जगह के पास बनी कोठरी में जो औरत रहती है वह कौन है?’’

नरेंद्र के इस सवाल पर उस की मां बुरी तरह से चौंक गईं और पल भर में ही मां का चेहरा आशंकाओें के बादलों में घिरा नजर आने लगा.

‘‘तू यह सब क्यों पूछ रहा है?’’ नरेंद्र को बांह से पकड़ झंझोड़ते हुए मां ने पूछा.

‘‘सुरजीत के घर में उस का बापू  एक कुदेसन ले आया है. लोग कहते हैं हमारे घर में रहने वाली यह औरत भी एक ‘कुदेसन’ है. क्या लोग ठीक कहते हैं, मां?’’

नरेंद्र का यह सवाल पूछना था कि एकाएक आवेश में मां ने उस के गाल पर चांटा जड़ दिया और उस को अपने से परे धकेलती हुई बोलीं, ‘‘तेरे इन बेकार के सवालों का मेरे पास कोई जवाब नहीं है. वैसे भी तू स्कूल पढ़ने के लिए जाता है या लोगों से ऐसीवैसी बातें सुनने? तेरी ऐसी बातों में पड़ने की उम्र नहीं. इसलिए खबरदार, जो दोबारा इस तरह की  बातें कभी घर में कीं तो मैं तेरे बापू से तेरी शिकायत कर दूंगी.’’

नरेंद्र को अपने सवाल का जवाब तो नहीं मिला मगर अपने सवाल पर मां का इस प्रकार आपे से बाहर होना भी उस की समझ में नहीं आया.

ऐसा लगता था कि उस के सवाल से मां किसी कारण डर गईं और यह डर मां की आखों में उसे साफ नजर आता था.

नरेंद्र के मां से पूछे इस सवाल ने घर के शांत वातावरण में एक ज्वारभाटा ला दिया. मां और बापू के परस्पर व्यवहार में तलखी बढ़ गई थी और सिमरन बूआ तलख होते मां और बापू के रिश्ते में बीचबचाव की कोशिश करती थीं.

मां और बापू के रिश्ते में बढ़ती तलखी की वजह कोने में बनी कोठरी में रहने वाली वह औरत ही थी जिस के बारे में अमली चाचा का कहना था कि वह एक ‘कुदेसन’ है.https://audiodelhipress.s3.ap-south-1.amazonaws.com/Audible/ch_a105_000001/0923_ch_a105_000006in_rev1_s1b_waaris_sl.mp3

मां अब उस औरत को घर से निकालना चाहती हैं. नरेंद्र ने मां को इस बारे में बापू से कहते भी सुना. नरेंद्र को ऐसा लगा कि मां को कोई डर सताने लगा है.

बापू मां के कहने पर उस औरत को घर से निकालने को तैयार नहीं हैं.

नरेंद्र ने बापू को मां से कहते सुना था, ‘‘इतनी निर्मम और स्वार्थी मत बनो, इनसानियत भी कोई चीज होती है. वह लाचार और बेसहारा है. कहां जाएगी?’’

‘‘कहीं भी जाए मगर मैं अब उस को इस घर में एक पल भी देखना नहीं चाहती हूं. नरेंद्र भी इस के बारे में सवाल पूछने लगा है. उस के सवालों से मुझ को डर लगने लगा है. कहीं उस को असलियत मालूम हो गई तो क्या होगा?’’ मां की बेचैन आवाज में साफ कोई डर था.

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा. तुम बेकार में किसी वहम का शिकार हो गई हो. हमें इतना कठोर और एहसानफरामोश नहीं होना चाहिए. इस को घर से निकालने से पहले जरा सोचो कि इस ने हमें क्या दिया और बदले में हम से क्या लिया? सिर छिपाने के लिए एक छत और दो वक्त की रोटी. क्या इतने में भी हमें यह महंगी लगने लगी है? जरा कल्पना करो, इस घर को एक वारिस नहीं मिलता तो क्या होता? एक औरत हो कर भी तुम ने दूसरी औरत का दर्द कभी नहीं समझा. तुम को डर है उस औलाद के छिनने का, जिस ने तुम्हारी कोख से जन्म नहीं लिया. जरा इस औरत के बारे में सोचो जो अपनी कोख से जन्म देने वाली औलाद को भी अपने सीने से लगाने को तरसती रही. जन्म देते ही उस के बच्चे को इसलिए उस से जुदा कर दिया गया ताकि लोगों को यह लगे कि उस की मां तुम हो, तुम ने ही उस को जन्म दिया है. इस बेचारी ने हमेशा अपनी जबान बंद रखी है. तुम्हारे डर से यह कभी अपने बच्चे को भी जी भर के देख तक नहीं सकी.

‘‘इस घर में वह तुम्हारी रजामंदी से ही आई थी. हम दोनों का स्वार्थ था इस को लाने में. मुझ को अपने बाप की जमीनजायदाद में से अपना हिस्सा लेने के लिए एक वारिस चाहिए था और तुम को एक बच्चा. इस ने हम दोनों की ही इच्छा पूरी की. इस घर की चारदीवारी में क्या हुआ था यह कोई बाहरी व्यक्ति नहीं जानता. बच्चे को जन्म इस ने दिया, मगर लोगों ने समझा तुम मां बनी हो. कितना नाटक करना पड़ा था, एक झूठ को सच बनाने के लिए. जो औरत केवल दो वक्त की रोटी और एक छत के लालच में अपने सारे रिश्तों को छोड़ मेरा दामन थाम इस अनजान जगह पर चली आई, जिस को हम ने अपने मतलब के लिए इस्तेमाल किया, पर उस ने न कभी कोई शिकायत की और न ही कुछ मांगा. ऐसी बेजबान, बेसहारा और मजबूर को घर से निकालने का अपराध न तो मैं कर सकता हूं और न ही चाहूंगा कि तुम करो. किसी की बद्दुआ लेना ठीक नहीं.’’

नरेंद्र को लगा था कि बापू के समझाने से बिफरी हुई मां शांत पड़ गई थीं. लेकिन नरेंद्र उन की बातों को सुनने के बाद अशांत हो गया था. जानेअनजाने में उस के अपने जन्म के साथ जुड़ा एक रहस्य भी उजागर हो गया था.

अमली चाचा जो बतलाने में झिझक गया था वह भी शायद इसी रहस्य से जुड़ा था.

अब नरेंद्र की समझ में आने लगा था कि घर में रह रही वह औरत जोकि अमली चाचा के अनुसार एक ‘कुदेसन’ थी, दूर से क्यों उस को प्यार और हसरत की नजरों से देखती थी? क्यों जरा सा मौका मिलते ही वह उस को अपने सीने से चिपका कर चूमती और रोती थी? वह उस को जन्म देने वाली उस की असली मां थी.

नरेंद्र बेचैन हो उठा. उस के कदम बरबस उस कोठरी की तरफ बढ़ चले, जिस के अंदर जाने की इजाजत उस को कभी नहीं दी गई थी. उस कोठरी के अंदर वर्षों से बेजबान और मजबूर ममता कैद थी. उस ममता की मुक्ति का समय अब आ गया था. आखिर उस का बेटा अब किशोर से जवान हो गया था.

सावधानी हटी दुर्घटना घटी: आखिर क्या हुआ था सौजन्या के साथ?

‘‘सौजन्या तुम अब तक यहीं बैठी हो? घर नहीं गईं?’’ रीमा सौजन्या को अपने कक्ष में लैपटौप में व्यस्त देख चौंक गई. ‘‘आओ रीमा बैठो. घर जाने का मन नहीं कर रहा था. इसीलिए समाचार आदि देखने लगी. यह इंटरनैट भी कमाल की चीज है. समय कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं चलता,’’ सौजन्या बोली.

‘‘हां, वह भी जब तुम विवाह डौट कौम पर व्यस्त हो,’’ रीमा हंसी. ‘‘तुम भी उपहास करने लगीं. विवाह

डौट कौम मेरा शौक नहीं मजबूरी है. सोचती हूं कोई ठीकठाक सा प्राणी मिल जाए तो समझो मैं चैन से जी सकूंगी,’’ सौजन्या बड़े दयनीय ढंग से मुसकराई.

‘‘समझ में नहीं आता तुम्हें कैसे समझाऊं… एक बार नवीन से मिल तो लो. वह भी तुम्हारी तरह हालात का मारा है. पत्नी ने 3 माह की मासूम बच्ची को छोड़ कर आत्महत्या कर ली. बेचारा कोर्टकचहरी के चक्कर में फंस कर बुरी तरह टूट चुका है,’’ रीमा ने पुन: अपनी बात दोहराई. ‘‘तुम भी रीमा… मैं तो सोचती थी तुम मेरी परम मित्र हो. मुझे और मेरी मजबूरी को भली प्रकार समझती हो. मैं तो स्वयं अपने तलाक के केस में उलझ कर रह गई थी. जीवन में कड़वाहट के अलावा कुछ बचा ही नहीं था. 10 साल लग गए उस मकड़जाल से निकलने में. सोचा था तलाक के बाद खुली हवा में सांस ले पाऊंगी, पर अब शुभचिंतक पीछे पड़े हैं. एक तुम्हारे नवीन का ही प्रस्ताव नहीं है मेरे सामने. दूरपास के संबंधियों को अचानक मेरी इतनी चिंता सताने लगी है कि मेरे लिए विवाह के प्रस्तावों की वर्षा होने लगी है,’’ सौजन्या एक ही सांस में बोल गई.

‘‘तो इस में बुराई ही क्या है? अब तो तुम्हारा तलाक भी हो गया है. कब तक यों ही अकेली रहोगी? अपनी नहीं तो अपने मातापिता की सोचो. तुम्हारी चिंता में घुल रहे हैं… तुम तो स्वयं समझदार हो. तुम्हारे भाईबहन अपनी ही दुनिया में इतने व्यस्त हैं कि तुम्हारी खोजखबर तक नहीं लेते,’’ रीमा भी कब चुप रहने वाली थी. ‘‘मैं ने कब मना किया है. मैं तो स्वयं अपने जीवन से ऊब गई हूं. पर समस्या यह है कि सभी प्रस्ताव तुम्हारे कजिन नवीन जैसे ही हैं. मैं ने अपनी मुक्ति के लिए इतनी लंबी लड़ाई लड़ी है कि मैं किसी और के घावों पर मरहम लगाने की हालत में नहीं हूं. मुझे तो कोई ऐसा चाहिए जो मेरे घावों पर मरहम लगा सके.’’

‘‘ठीक है, जैसा तू ठीक समझे. मैं तो तुझे खुश देखना चाहती हूं. मन को मन से राह होती है. पर जब तुम्हें कोई मनचाहा साथी मिल जाए तो बताना जरूर. अकेले ही कोई निर्णय मत ले लेना. इस बार तो हम खूब ठोकबजा कर देखेंगे ताकि बाद में पछताना न पड़े.’’ ‘‘वही तो. मैं तो ऐसा जीवनसाथी चाहती हूं, जो मेरी नौकरी और मोटे वेतन के लालच में नहीं, मैं जैसी हूं मुझे वैसी स्वीकार कर ले,’’ सौजन्या भीगे स्वर में बोली तो रीमा का मन भी भर आया.

दोनों बचपन की सहेलियां थीं और एकदूसरी पर जान छिड़कती थीं. रीमा अपने 2 बच्चों और पति के साथ अपने घरसंसार में सुखी थी, तो सौजन्या अपने नारकीय वैवाहिक जीवन से मुक्त होने के संघर्ष में टूट चुकी थी. 10 सालों के लंबे संघर्ष के बाद उसे पीड़ा से मुक्ति तो मिल गई पर इन 10 सालों के अपमान, तिरस्कार और कड़वाहट को भूल पाना सरल नहीं था. उस पर शुभचिंतकों द्वारा लाए गए नितनए विवाह के प्रस्ताव उस का जीना दूभर कर रहे थे. अत: उस ने अपने जीवन की बागडोर दृढ़ता से अपने हाथों में थामने का निर्णय ले लिया. दूसरा विवाह वह करेगी पर अपनी शर्तों पर. अपने भावी वर का चुनाव वह स्वयं करेगी. वह नहीं चाहती थी कि कोई उस पर तरस खा कर विवाह करे या उस की नौकरी और ऊंचे वेतन के लालच में विवाह के बंधन में बंधे और उस का जीवन नर्क बना दे. अंतर्मुखी सौजन्या को इन हालात में ‘इंटरनैट’ देवदूत की भांति लगा था और वह उसी में अपने सपनों के राजकुमार की खोज में जुट गई थी. 1 सप्ताह पहले जब रीमा अचानक उस के कक्ष में चली आई थी तो वह विभिन्न इंटरनैट पटलों पर भावी वरों के जीवनविवरण देखने में व्यस्त थी.

आशीष कुमार नाम के एक युवक का फोटो और जीवनविवरण उसे

इतना भा गया कि वह देर तक उस फोटो को हर कोण से देख कर मंत्रमुग्ध होती रही. जीवनविवरण का हर शब्द उस ने कई बार पढ़ा और पंक्तियों के बीच छिपे अर्थ को ढूंढ़ने का प्रयत्न करती रही. पहली बार उसे लगा कि आशीष को कुदरत ने उसी के लिए बनाया है. चेहरे का हर भाव उसे दीवाना सा किए जा रहा था. फिर तो सौजन्या मौका मिलते ही अपना लैपटौप खोल कर बैठ जाती और मंत्रमुग्ध सी अपने प्रिय को निहारती रहती.

सौजन्या को लगता कि अब उसे छिप कर रोमांस करने की जरूरत नहीं है. अब तो वह डंके की चोट पर अपने प्यार का इजहार करेगी. आशीष भी उस के प्रति अपना प्रेम प्रकट करने में पीछे नहीं रहता था. उस का फोटो देख कर ही वह इतना मंत्रमुग्ध हो गया था कि उस से मिलने की प्रबल इच्छा प्रकट करता रहता था. पर न जाने क्यों सौजन्या ही उस से मिलने का साहस नहीं जुटा पा रही थी. वह एक ही तर्क देती, पहले एकदूसरे को जान लें, समझ लें तब मिलने की सोचेंगे. सौजन्या के मन में अजीब सी जड़ता ने घर कर लिया था. कहीं मिल कर निराशा हाथ लगी तो? कभी सोचती कि उस के जीवन में जो कुछ घट रहा है कहीं मात्र स्वप्न तो नहीं? कहीं आंखें खोलते ही सबकुछ विलुप्त तो नहीं हो जाएगा? क्यों न इस स्वप्न को यों ही चलने दे और उस का रसास्वादन करती रहे.

उधर आशीष का उस से मिलने का हठ बढ़ता ही जा रहा था. सौजन्या का एक ही उत्तर होता कि पहले हम एकदूसरे को भली प्रकार समझ तो लें. ‘‘हमारा परिचय हुए 3 माह से अधिक हो गए हैं. अधिक समझने के लिए एकदूसरे से मिलना भी तो जरूरी है,’’ एक दिन आशीष अनमने स्वर में बोला.

‘‘अभी नहीं, मैं जब मानसिकरूप से तुम से मिलने को तैयार हो जाऊंगी तो स्वयं तुम्हें सूचित कर दूंगी,’’ सौजन्या ने दोटूक उत्तर दिया. अब सौजन्या को रीमा की याद आई, ‘‘रीमा, आज शाम को घर आना. कुछ जरूरी बातें करनी हैं,’’ उस ने रीमा को फोन कर कहा.

‘‘ऐसी क्या जरूरी बातें हैं, जो तुम औफिस में नहीं कर सकतीं?’’ रीमा ने उत्सुक स्वर में पूछा. ‘‘यह तो घर आ कर ही पता चलेगा,’’ सौजन्या ने टाल दिया.

सौजन्या घर पहुंची ही थी कि रीमा आ पहुंची. उस का सामना पहले सौजन्या की मां से हुआ. ‘‘नमस्ते आंटी,’’ रीमा उन्हें देखते ही बोली.

‘‘नमस्ते, तुम तो ईद का चांद हो गई हो बेटी. कभीकभी हम से भी मिलने आ जाया करो,’’ वे बोलीं. ‘‘2 माह पहले ही तो आई थी आंटी,’’

रीमा बोली. ‘‘हां, और मैं ने तुम से कुछ कहा था पर उस का कोई नतीजा तो सामने आया नहीं. विवाह का नाम सुनते ही सौजन्या बेलगाम सांड़ की तरह भड़क उठती है.’’

सौजन्या की मां रीमा से बातें कर ही रही थीं कि सौजन्या अपने कमरे के बाहर की बालकनी में प्रकट हुई, ‘‘अरे रीमा, वहां क्या कर रही हो? ऊपर आओ न.’’ ‘‘जाओ बेटी, हम वृद्धों के पास तुम्हारा

क्या काम?’’ ‘‘क्या मां, छोटी सी बात पर भड़क उठती हो. थोड़ी देर में हम दोनों नीचे आती हैं,’’ सौजन्या बोली.

‘‘जाओ रीमा बेटी, लैपटौप खोल कर बैठी होगी. आजकल वही इस का सबकुछ है. अपने परिवार या समाज की तो इसे चिंता ही नहीं है.’’ ‘‘आंटी, अपना गुस्सा मुझ पर उतार रही थीं. वे शायद समझती नहीं कि सहेली हूं तो क्या हुआ? औफिस में तो तू मेरी बौस है. मेरी बात भला क्यों मानने लगी,’’ रीमा सौजन्या के कक्ष में पहुंचते ही आहत स्वर में बोली.

‘‘अब दूंगी एक, पर छोड़ ये सब, यह देख,’’ सौजन्या ने विवाह डौट कौम पर आशीष का फोटो और जीवनविवरण निकाल लिया, ‘‘देख तो कैसा है?’’ ‘‘वाऊ, यह तो किसी फिल्मी हीरो की तरह लग रहा है. कब से चल रहा है ये सब?’’ रीमा आशीष का विवरण पढ़ते हुए बोली.

‘‘3 माह पहले मिले थे हम दोनों.’’ ‘‘कहां?’’

‘‘यहीं इंटरनैट पर और कहां.’’ ‘‘तो अभी मेलमुलाकात भी नहीं हुई? विवाह भी इंटरनैट पर ही करोगी क्या?’’ रीमा हंस दी.

‘‘आशीष तो बहुत दिनों से मिलने की रट लगाए हैं. मेरी ही हिम्मत नहीं होती. तुम चलोगी मेरे साथ?’’ ‘‘मैं क्यों कबाब में हड्डी बनने लगी? अब तुम छोटी बच्ची नहीं हो. अपने निर्णय स्वयं लेने सीखो. औफिस में तो लाखों के वारेन्यारे करती हो और यहां किसी से मिलने से कतरा रही हो?’’ रीमा ने समझाना चाहा.

‘‘यही पूछना था तुम से. तुम ने कहा था न कि कोई पसंद आए तो बताना. तो सब से पहले तुम्हें ही बता रही हूं.’’ ‘‘ओह हो, तुम अभी से शरमा रही हो. चेहरे पर भी लाली छा रही है. चल अभी इस से मिलने का दिन और तिथि तय कर लो.’’

‘‘रविवार कैसा रहेगा?’’ ‘‘बहुत बढि़या, छुट्टी का दिन है. दोनों पूरा दिन साथ बिता सकते हो. एकदूसरे को जाननेसमझने में मदद मिलेगी.’’ तुरंत सौजन्या और आशीष के बीच संदेशों का आदानप्रदान हुआ और रविवार के दिन मिलने की बात तय हो गई.

‘‘आंटी, अब मत डांटना मुझे. आप की इच्छा पूरी होने जा रही है. बैंडबाजा बजने में अधिक देर नहीं है अब,’’ रीमा जातेजाते सौजन्या की मां से बोली. ‘‘तुम्हारे मुंह में घीशक्कर, पर पूरी बात तो बताती जाओ,’’ वे बोलीं.

‘‘वह तो आप सौजन्या से ही पूछना. मुझे देर हो रही है. घर में सब इंतजार कर रहे होंगे,’’ कह रीमा सरपट भागी. मगर दूसरे दिन कुछ अप्रत्याशित सा घट गया. सौजन्या एक मीटिंग में व्यस्त थी कि उस के सहायक ने एक चिट ला कर दी. चिट पर आशीष कुमार का नाम देखते ही उस के होश उड़ गए. वह बाहर की ओर लपकी.

आशीष लौबी में बैठा उस का इंतजार कर रहा था. ‘‘आप यहां? इस समय?’’ सौजन्या के मुंह से किसी प्रकार निकला.

‘‘रहा नहीं गया. इसीलिए मिलने चला आया. मैं रविवार तक प्रतीक्षा नहीं कर सकता. चलो छुट्टी ले लो कहीं घूमनेफिरने चलते हैं,’’ आशीष बोला. ‘‘यह क्या पागलपन है. मेरी एक जरूरी मीटिंग चल रही है. मैं छुट्टी नहीं ले सकती… इस तरह यहां क्यों चले आए? देखो सब की निगाहें हम दोनों पर ही टिकी हैं,’’ सौजन्या झेंप गई थी पर आशीष अपनी ही जिद पर अड़ा था.

बड़ी मुश्किल से सौजन्या ने आशीष को समझाबुझा कर भेजा और रविवार को मिलने की बात दोहराई. लंच के समय रीमा ने सौजन्या की खूब खिंचाई की, ‘‘लगता है आशीष बाबू से अब यह दूरी सहन नहीं हो रही.’’

‘‘पर इस तरह औफिस में आ धमकना? मुझे तो अच्छा नहीं लगा.’’ ‘‘चलता है सब चलता है. प्रेम और जंग में सब जायज है,’’ रीमा हंस दी.

शुक्रवार को सौजन्या घर पहुंची ही थी कि रीमा आ पहुंची. ‘‘क्या हुआ? आज औफिस क्यों नहीं आईं और अब इस तरह अचानक?’’ सौजन्या चौंक गई.

‘‘इतने प्रश्न मत किया करो. अपने कमरे में चलो. जरूरी बात करनी है,’’ रीमा बोली और फिर दोनों सहेलियां सौजन्या के कमरे में जा बैठीं. रीमा ने चटपट ‘विवाहविच्छेद डौट कौम’ नाम की साइट खोली और एक फोटो और जीवनविवरण ढूंढ़ निकाला.

‘‘यह देखो, पहचाना?’’ रीमा बोली. ‘‘यह तो आशीष है.’’

‘‘नहीं, नीचे पढ़ो. यह रूबीन है. यहां इस का नाम, काम, धाम सब बदला हुआ है. यहां ये महोदय सरकारी अफसर नहीं चिकित्सक हैं. अविवाहित नहीं तलाकशुदा हैं. पर फोन नंबर वही है. जाति, धर्म भी बदल गए हैं.’’ ‘‘उफ, ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है?’’ सौजन्या ने सिर पकड़ लिया.

‘‘स्वयं पर तरस खाना छोड़ दो सौजन्या. ऐसा किसी के साथ भी हो सकता है. चलो नवीन से मिलने चलते हैं.’’ ‘‘मैं किसी से मिलने की स्थिति में नहीं हूं.’’

‘‘मैं तुम्हें उस से मिलवाने नहीं ले जा रही. हम उस से इन आशीष उर्फ रूबीन महोदय के विरुद्ध सहायता मांगेंगी. इस धोखेबाज को दंड दिलाए बिना मुझे चैन नहीं मिलने वाला. नवीन साइबर अपराध शाखा में कार्यरत है,’’ रीमा नवीन को फोन मिलाते हुए बोली. कुछ ही देर में दोनों सहेलियां नवीन के सामने बैठी सौजन्या की आपबीती सुना रही थीं.

‘‘मैं ने तो स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि औनलाइन भी इस तरह की धोखाधड़ी होती है. मैं तो सोचती थी कि ये डौट कौम कंपनियां सबकुछ पता लगा कर ही किसी का विवरण पंजीकृत करती हैं.’’ ‘‘धोखाधड़ी कहां नहीं होती सौजन्याजी. हमारे अपने भी हमें धोखा दे देते हैं. हमें सावधानी से काम लेना चाहिए. यों समझ लीजिए कि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी,’’ नवीन बोला और फिर देर तक फोन करने में व्यस्त रहा.

‘‘कुछ देर तक यह आशीष उर्फ रूबीन मुझ से बात करता रहा. पर जब मैं ने पूछताछ शुरू की तो फोन काट दिया. पर आप चिंता न करें. आप चाहें तो अपनी जानकारी गुप्त रखते हुए इस व्यक्ति के विरुद्ध रपट लिखवा सकती हैं.’’ ‘‘नहीं, मैं किसी चक्कर में नहीं पड़ना चाहती. वैसे भी मैं तो बालबाल बच गई… रीमा ने बचा लिया मुझे नहीं तो पता नहीं क्या होता. मैं बहुत डर गई हूं… अब कभी इस झंझट में नहीं पड़ने वाली.’’

‘‘वही तो मैं समझा रहा हूं. उस ने मानसिक संताप दिया है आप को. इस के लिए उसे 3 साल की सजा भी हो सकती है,’’ नवीन ने समझाया. ‘‘मैं कुछ समय चाहती हूं,’’ सौजन्या ने हथियार डाल दिए थे.

धीरेधीरे जीवन अपने ही ढर्रे पर चलने लगा था. न सौजन्या ने आशीष वाली घटना का कभी जिक्र किया न रीमा ने पूछा. रीमा को लगा कि उस घटना को किसी बुरे सपने की तरह भूल जाना ही ठीक था. अचानक एक दिन नवीन रीमा के घर आ धमका. ‘‘मैं तो खुद तुम से मिल कर धन्यवाद देना चाहती थी. तुम ने उस प्रकरण को कितनी कुशलता से संभाला वरना तो पता नहीं मेरी सहेली सौजन्या का क्या हाल होता,’’ रीमा ने आभार व्यक्त किया.

‘‘रीमा, आभार तो मुझे तुम्हारा व्यक्त करना चाहिए. सौजन्या मेरे जीवन में सुगंधित पवन के झोंके की तरह आई है. शाम की प्रतीक्षा में दिन कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता.’’ ‘‘क्या? फिर से कहो, सुगंधित पवन का झोंका और न जाने क्या? लगता है आजकल सौजन्या तुम्हें घास डालने लगी है,’’ रीमा मुसकराई.

‘‘घास तो फिलहाल हम ही डाल रहे हैं, पर जीवन में कुछ ऐसा घटित हो रहा है जो पहले कभी नहीं हुआ था.’’ ‘‘मैं सौजन्या से बात करूंगी,’’ रीमा ने कहा.

‘‘नहीं, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी. उसे भनक भी लग गई कि मैं उस पर डोरे डाल रहा हूं तो भड़क उठेगी. यह समस्या मेरी है. इसे सुलझाने का भार भी मेरे ही कंधों पर है,’’ कह नवीन कहीं खो सा गया. मगर रीमा उस की आंखों में लहराते प्रेम के अथाह सागर को साफ देख पा रही थी. पहली बार रीमा को लगा कि अपने करीबी लोगों को भी कितना कम जानते हैं हम. पर वह खुश थी सौजन्या के लिए और नवीन के लिए भी जो अनजाने ही निशांत की ओर बढ़े जा रहे थे.

ब्रेकअप पार्टी: प्रतीक को अनन्या से हुआ था एक झटके में प्यार

‘‘चुप हो जा भाई, कितना रोएगा,’’ मैं और सुशील काफी देर से प्रतीक को चुप कराने की कोशिश कर रहे थे, पर वह रोए जा रहा था. मिलिंद अपना आपा खोता जा रहा था और दीवार पर हाथ मारते हुए कुछ बोल रहा था, ‘इसे जल्दी चुप कराओ वरना मैं इस की पिटाई कर दूंगा.’

कितना बदल गया था प्रतीक. जब मैं ने उसे पहली बार देखा था तब मेरी तरह वह भी अपने पापा के साथ इस होस्टल में पीजी के तौर पर रहने आया था. उस की रिजल्ट हिस्ट्री जानने के बाद पापा ने मुझे उस के साथ रहने और उसी के साथ दोस्ती रखने की हिदायत दे डाली थी. जहां मैं नीट की तैयारी के लिए कोटा आया था, वह आईआईटियन था. पढ़ने में होशियार प्रतीक जब देखो किताबोें में ही घुसा रहता, पर मुझे शाम होते ही ऐसा लगता जैसे मेरे छोटे से कमरे की दीवारों ने भयावह आकृति अख्तियार कर ली है और मैं डर कर कमरे से बाहर भागता.

मेरे कमरे के पास ही सुशील का भी कमरा था पर वह सिर्फ नाम का सुशील था. पढ़ाईलिखाई से उस का कम ही वास्ता था. वह कमरे में कम बालकनी में ज्यादा रहता था और रहता भी क्यों नहीं, उस ने अपने शहर में कहां इतनी हरियाली देखी थी जो यहां थी. हमारे होस्टल वाली गली में सिर्फ हमारा ही बौयज होस्टल था. बाकी सारे गर्ल्स होस्टल थे. चारों तरफ गोपियां बीच में कन्हैया वाला हाल था.

मेरे कमरे के सामने वाला कमरा प्रतीक का था और उस के पास वाले कमरे में नया लड़का मिलिंद आया था, जो जल्दी ही हम सब का बौस बन गया था. उसे सुशील की हरकतें बिलकुल पसंद नहीं थीं. मुझे वह अपना छोटा भाई समझता था और ऐसे भाषण पिलाता था जिस के आगे मम्मी के भाषण भी फीके पड़ जाते थे.

मैं, मिलिंद और प्रतीक अकसर साथ ही पढ़ाई करते थे, पर शाम होते ही हमें किताबों को देख कर उबकाई सी आने लगती, इसलिए हम उसी वक्त पढ़ाई बंद कर के नहाधो कर, परफ्यूम लगा कर हीरो बन जाते और कोटा की भीड़भरी सड़कों पर घूमने निकल जाते.

प्रतीक और मिलिंद लड़कियों को देख कर खुश होते, लेकिन लड़कियां मुझ पर लाइन मारती हुई निकल जातीं तो मैं शरमा कर रह जाता. सुशील को तो गर्लफ्रैंड भी मिल गई थी और उस लड़की ने उसे अपनी और अपनी सहेलियों की हर ख्वाहिश पूरी करने वाला जिन्न बना लिया था. हमें उस की ऐसी हालत पर तरस भी आता और हंसी भी आती, पर कई बार हमारे समझाने पर भी वह नहीं समझा तो हम ने उसे उस के ही हाल पर छोड़ दिया.

इधर, हमेशा से पढ़ाकू रहे प्रतीक का भी मन उचटने लगा था, वजह थी सामने वाले होस्टल में रहने वाली अनन्या. अब वह भी अपने कमरे में कम, बालकनी में ज्यादा नजर आता था. हमेशा खयालों में खोया रहता. जब हम से उस का हाल देखा नहीं गया तो हम ने उन दोनों की मीटिंग की जुगत भिड़ाई और उन की प्रेमकहानी शुरू हो गई.

परेशानी यह थी कि परीक्षा के दिन नजदीक आ रहे थे और मैं व मिलिंद घूमनाफिरना छोड़ कर अब पढ़ाई में जुटे हुए थे, पर प्रतीक का मन अब पढ़ाई में नहीं लग रहा था. हर वीकली टैस्ट में उस की कटऔफ नीचे जा रही थी, पर उसे इस की परवा ही नहीं थी. फिर वही हुआ जिस का हमें डर था. उस का रिजल्ट इतना डाउन हुआ कि उस ने ही आईआईटी के छोड़ने का निश्चिय कर लिया. परीक्षा खत्म होने के बाद ज्यादातर स्टूडैंट्स अपनेअपने घर चले गए थे, पर हम लोग वहीं थे, क्योंकि अनन्या के चक्कर में प्रतीक नहीं गया और न ही उस ने हमें जाने दिया.

उस रोज मैं और मिलिंद अपने कमरे में बैठ कर बातें कर रहे थे कि मिलिंद का मोबाइल बजा. वहां से प्रतीक घबराई हुई आवाज में कह रहा था, ‘‘मिलिंद, तू सौम्य को ले कर जल्दी चंबल गार्डन पहुंच.’’

‘‘क्या हुआ भाई, तू इतना घबराया हुआ क्यों है?’’ मिलिंद की बात पूरी सुने बिना ही फोन कट चुका था. हम दोनों जैसे थे उसी स्थिति में औटो ले कर चंबल गार्डन पहुंचे तो वहां का नजारा देख कर हक्केबक्के रह गए. अनन्या एक लड़के से चिपकी हुई खड़ी थी और 2 लड़के प्रतीक को पीट रहे थे. यह देख कर मेरा और मिलिंद का पारा हाई हो गया. हम ने उन दोनों लड़कों को मार भगाया और अनन्या अपने एक बौयफ्रैंड के साथ चली गई.

प्रतीक को काफी चोटें आई थीं, पर शरीर से ज्यादा उस का दिल घायल हुआ था. जब उसे पता चला कि उस के अलावा अनन्या के 2 और बौयफ्रैंड्स हैं, उस ने गुस्से में आ कर अनन्या से कहा कि वह सब के सामने उस की पोल खोल देगा. तो उस ने व उस के बौयफ्रैंड ने अपने दोस्तों को बुला कर प्रतीक को पिटवा दिया. बेचारे प्रतीक का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. इस तरह तो वह शायद बचपन में अपना कोई प्यारा खिलौना टूटने पर भी नहीं रोया होगा.

मिलिंद बारबार दीवार पीट रहा था और गुस्से में उबल रहा था, ‘‘मैं उन लोगों को छोड़ूंगा नहीं और ये अनन्या कितनी चालू लड़की निकली यार, एकसाथ 3 लड़कों के साथ फ्लर्ट कर रही है.’’

‘‘बहुत स्मार्टगर्ल है, उस के तो ऐश हैं. हम लड़के न जाने क्यों इन लड़कियों के चक्कर में पड़ जाते हैं,’’ मैं ने कहा तो प्रतीक ने मुझे घूर कर देखा और घुटनों में मुंह छिपा कर फिर से रोने लगा. उस के रोने से जहां मुझे दया आ रही थी वहीं मिलिंद को बहुत गुस्सा आ रहा था.

‘‘ऐसे रो रहा है जैसे पता नहीं क्या हो गया है. अरे, अभी तो हमारी लाइफ शुरू हुई है. अभी तो न जाने कितने लोग हमारी लाइफ में आएंगे और चले जाएंगे, तो क्या उसे याद कर हम यों ही रोते रहेंगे.

‘‘उस लड़की के चक्कर में अपनी पढ़ाई खराब की सो अलग. सच में इन लड़कियों के चक्कर में पड़ना ही नहीं चाहिए. ये सिर्फ हमारी जेब ही ढीली करवाती हैं. इन्हें कोई मालदार मिल गया तो एक ही झटके में इन्हें ढेरों बुराइयां दिखाई देने लगती हैं और एक ही झटके में ऐसे दिल तोड़ती हैं जैसे दिल न हुआ कोई कच्ची माटी का घड़ा हो गया.’’

मिलिंद बड़बड़ाए जा रहा था और प्रतीक का रोना बंद नहीं हो रहा था. तभी मुझे एक उपाय सूझा. मैं सुशील को साथ ले कर मार्केट गया और कुछ स्नैक्स व कोल्डड्रिंक ले आया. सुशील के पास एक प्लयूटूथ स्पीकर था. हम ने अच्छा सा पार्टी सौंग लगाया और प्रतीक को समझाया तब उस ने अनन्या की सारी फोटोग्राफ्स डिलीट कीं, फिर उसे सोशल साइट्स पर ब्लौक कर दिया.

यह सब करने के बाद उस के चेहरे पर सुकून की झलक दिखाई दी. उस का मूड बदलता देख हम सब मूड में आ गए और फिर हम चारों ने सारी रात खूब डांस किया. भाई का ब्रेकअप हुआ था भई, पार्टी तो बनती है.

हम तीन: आखिर क्या हुआ था उन 3 सहेलियों के साथ?

स्नेही ने कालेज से आते ही मुझे बताया, ‘‘मां, शनिवार को हमारी 10वीं कक्षा का रियूनियन है, बहुत मजा आएगा, मैं बहुत एक्साइटेड हूं. नीता, रिंकी, मोना से मिले हुए बहुत समय हो गया. वे लोग भी कोटा से इस प्रोग्राम के लिए विशेषरूप से आ रही हैं. एक

बड़े होटल में पार्टी है, डिनर है, बहुत मजा आएगा मां.’’

मैं उसे चहकते देख रही थी. उस की खास सहेलियां नीता, रिंकी, मोना कोटा में इंजीनियरिंग कर रही हैं.

स्नेहा फिर बोली, ‘‘कुछ बोलो न मां… बहुत मजा आता है पुराने दोस्तों से मिल कर… है न मां?’’

न चाहते हुए भी मेरे मुंह से ठंडी सी सांस निकली, ‘‘हां, आता तो है.’’

स्नेहा मेरे पास बैठ गई. बोली, ‘‘मां, आप की भी तो सहेलियां, दोस्त रहे होंगे… आप को उन की याद नहीं आती?’’

‘‘आती तो है, लेकिन शादी के बाद लड़कियां अपनीअपनी गृहस्थी में खो जाती हैं. चाह कर भी कहां एकदूसरे से मिल पाती हैं.’’

‘‘नहीं मां, दोस्तों से मिलना इतना मुश्किल तो नहीं है. आप नानी के यहां जाती हैं तो किसी से मिलने की कोशिश नहीं करतीं?’’

‘‘हां, मैं जाती हूं तो वे लोग थोड़े ही होती हैं वहां. वे अपने हिसाब से प्रोग्राम बना कर मायके आती हैं.’’

‘‘अरे मां, कोशिश तो करो, अपनी पुरानी सहेलियों से मिलने की. आप को भी बहुत

मजा आएगा… आप की लाइफ में भी एक चेंज होगा. मेरी मानो तो एक रियूनियन आप भी रख ही लो.’’

स्नेहा तो कह कर फ्रैश होने चली गई, 2 चेहरे मेरी आंखों के आगे तैर गए. क्यों न मैं भी सुकन्या और अनीता से मिलूं, लेकिन मैं यहां मुंबई में, सुकन्या इलाहाबाद में और अनीता दिल्ली में है. 20 साल से तो कोई संपर्क है नहीं. मां के यहां जाती हूं तो मां से ही उन के बारे में पता चल जाता है. अब थोड़ा अजीब तो लगेगा. अब किस का कितना स्वभाव बदल गया होगा, पता नहीं. कोई मिलने में रुचि दिखाएगी भी या नहीं… खैर पहल तो कर के देखनी चाहिए. एक कोशिश करने में क्या हरज है.

बस, मन इसी बात में उलझ कर रह गया. अमित औफिस से आए. मुझे थोड़ी देर देखते रहे, फिर बोले, ‘‘मीनू, क्या हुआ, किसी सोच में डूबी लग रही हो?’’

मैं ने उन्हें कुछ नहीं कह कर टाल दिया. डिनर के समय स्नेहा और राहुल ने भी मुझे टोका, ‘‘क्या हुआ मां?’’

मैं ने उन्हें भी टाल दिया. मैं अभी किसी को कुछ नहीं बताना चाहती थी. पहले अपनी सहेलियों का पता तो कर लूं.

अगले दिन सब के जाने के बाद मैं ने मुजफ्फरनगर मां को

फोन कर उन्हें अपने मन की बात बताई.

वे हंस पड़ीं. बोलीं, ‘‘बहुत अच्छा सोचा. बना लो प्रोग्राम.’’

‘‘मेरे पास उन दोनों के नंबर नहीं हैं.’’

‘‘परेशान क्यों हो रही हो? मैं उन के घर से फोन नंबर ला कर तुम्हें बता दूंगी.’’मैं बेफिक्र हो गई. आधे घंटे में ही मां ने मुझे दोनों के फोन नंबर लिखवा दिए. सुकन्या हमारी गली में ही तो रहती थी और अनीता

2 गलियां छोड़ कर. मैं दोनों से बात करने के लिए बेचैन हो गई. मेरी आवाज दोनों नहीं पहचानीं, लेकिन जब उस उम्र के खास कोडवर्ड, खास किस्सों का संकेत दिया तो दोनों चहक उठीं. हम ने कितने गिलेशिकवे किए, कभी याद न करने के उलाहने दिए और फिर मैं ने अपना प्रोग्राम बताया तो दोनों एकदम तैयार हो गईं. लेकिन परेशानी यह थी कि अनीता अब टीचर थी और सुकन्या मेरी तरह हाउसवाइफ. यह तय हुआ कि अनीता छुट्टियों में मुजफ्फरनगर आ सकेगी. रात को जब हम चारों साथ बैठे तो मैं ने कहा, ‘‘अमित, आप से कोई जरूरी बात करनी है.’’

बच्चों के भी कान खड़े हो गए.

अमित ने कहा, ‘‘कहो न, क्या हुआ?’’

‘‘मुझे भी अपनी सहेलियों से मिलने मां के यहां जाना है… मेरा भी रियूनियन का प्रोग्राम बन गया है.’’

तीनों जोर से हंस पड़े. मैं झेंप गई तो अमित ने स्नेहा से कहा, ‘‘स्नेहा, तुम अपनी मम्मी को क्या पट्टी पढ़ा देती हो… वे सीरियस हो जाती हैं.’’

‘‘क्यों, उन की भी लाइफ है. सारा दिन क्या हमारे आगेपीछे घूमती रहें? उन का भी फ्रैंड सर्कल रहा होगा. उन का भी मन करता होगा. मां, आप बताओ, क्या सोचा आप ने?’’

मैं ने तीनों को सुकन्या और अनीता से हुई बातचीत के बारे में बता दिया. हंसीखुशी मेरा प्रोग्राम बन गया.

राहुल को अलग ही चिंता हुई. बोला, ‘‘मम्मी, हमारे खाने का क्या होगा?’’

‘‘लताबाई से बात कर ली है. वह दोनों टाइम आ कर खाना बना देगी. अमित ने 2-3 दिन बाद ही मेरी फ्लाइट बुक कर दी. मैं ने सुकन्या और अनीता को भी बता दिया. अब हम तीनों फोन पर संपर्क में रहतीं. बहुत अच्छा लगने लगा है. सुकन्या के पति सुधीर बिजनैसमैन हैं. उस की भी 1 बेटी और 1 बेटा है. अनीता के पति विनय डाक्टर हैं और उन का इकलौता बेटा नागपुर में इंजीनियरिंग कर रहा है.’’

‘‘हम तीनों एक ही कालेज में पढ़ी हैं. 12वीं कक्षा तक तो हम एक ही क्लास में थीं. बाकी लड़कियां हमें 3 देवियां कहती थीं. 12वीं कक्षा के बाद बीए में हमारे विषय अलगअलग हो गए थे. सुकन्या का विवाह तो बीए के बाद ही हो गया था. अनीता और मेरा एमए करने के बाद. अनीता ने अंगरेजी में एमए किया था और मैं ने ड्राइंग ऐंड पेंटिंग में.’’

वे दिन याद आए तो साथ में और भी बहुत कुछ चाहाअनचाहा याद आने लगा. अब तो हम तीनों के विवाह को 20-22 साल हो गए थे. अब उस उम्र की बातें याद करते हुए कुछ अजीब सा लगने लगा. जब भी विनोद का खयाल आता है, मेरे मन का स्वाद कसैला हो जाता है. अच्छा ही हुआ उस लालची इंसान का सच जल्दी सामने आ गया था. मेरी टीचर मां उस के दहेज के लालच को कहां पूरा कर पातीं. पिता का साया तो मेरे सिर से मेरी 13 वर्ष की उम्र में ही उठ गया था. जब से अमित से विवाह हुआ है, कुदरत को धन्यवाद देते नहीं थकती हूं मैं.

और सुकन्या ने अनिल को कैसे भुलाया होगा. अनिल और सुकन्या बीए में एक ही सैक्शन में थे. धीरेधीरे जब दोनों के प्रेम के चर्चे होने लगे तो बात सुकन्या के घर तक पहुंच गई और फिर सुकन्या का विवाह बीए करते ही कर दिया गया. अनीता और मुझ से सुकन्या के आंसू देखे नहीं जाते थे. वह बारबार मरने की

बात करती और हम उसे समझाते रहते. उधर अनिल का हाल कालेज में एक मजनू की तरह हो गया था. हम जब भी उसे देखते उस पर तरस आता.

पहले सुकन्या, फिर मेरा विवाह भी हो गया. अनीता शुरू से जानती थी अगर उस के घर में किसी को भी उस का कोई प्यारव्यार का चक्कर सुनने को मिलेगा तो उस की पढ़ाई छुड़वा दी जाएगी, इसलिए वह हमेशा इन चक्करों से दूर रही. बस हंसते हुए हमारे किस्से सुनती और अब हम अपनीअपनी गृहस्थी में वे किस्से, वे बातें सब भूल चुके थे.

छुट्टियों तक का समय बेसब्री से बिताया. अमित और बच्चे मेरे उत्साह पर मुसकराते रहे. तय समय पर मैं एअरपोर्ट से टैक्सी ले कर पहुंच रही थी. अनीता ने कहा भी था वह मुझे लेने आ जाएगी, फिर साथ चलेंगे, लेकिन जब मुझे पता चला उस के पति को क्लीनिक छोड़ कर इतनी दूर लेने आना पड़ेगा तो मैं ने प्यार से मना कर दिया. मुझे आदत है ऐसे जाने की.

मेरा शहर आ गया था. मेरी जन्मभूमि, यहां की मिट्टी में मुझे अपनी ही खुशबू महसूस होती है. यहां की हवा में मैं मातृत्व सा अपनापन महसूस करती हूं. मेरे चेहरे पर एक गहरी मुसकान आ जाती है जैसे मैं फिर एक नवयौवना बन गई हूं. वैसे भी मायके आते ही एक धीरगंभीर महिला भी चंचल तरुणी बन जाती है.

घर पहुंच कर फ्रैश हो कर खाना खाया. मां और रेनू भाभी ने पता नहीं कितनी चीजें बना रखी थीं. मैं सब के साथ थोड़ी देर बैठ कर सुकन्या के घर जाने के लिए तैयार हो गई.

भाभी ने हंसते हुए कहा, ‘‘सहेलियों में हमें मत भूल जाना.’’

सब हंसने लगे. अनीता भी वहीं आ चुकी थी. अपनेअपने मोबाइल पर हम लगातार संपर्क में थीं. हम तीनों ने जब 20 साल बाद एकदूसरे को देखा तो मुंह से बोल ही नहीं फूटे, फिर बिना कुछ कहे भीगी आंखें लिए हम तीनों एकदूसरे के गले लग गईं. सुकन्या के मातापिता और भाई हमें एकटक देख रहे थे. फिर तो बातों का न रुकने वाला सिलसिला शुरू हो गया और कब लंच टाइम हो गया पता ही नहीं चला.

तभी सुकन्या की भाभी ने आ कर कहा,

‘‘3 देवियो, खाना लग गया है, पहले खाना खा लो… ये बातें तो अभी खत्म होने वाली नहीं हैं.’’

दिन भर साथ रह कर हम तीनों शाम को अपनेअपने घर आ गईं. मां मेरा इंतजार कर रही थीं, देखते ही बोलीं, ‘‘यह क्या बेटा, पूरा दिन वहीं बिता दिया?’’

भाभी भी कहने लगीं, ‘‘अब कल कहीं मत जाना. उन्हें यहीं बुला लेना नहीं तो हम इंतजार करते रह जाएंगे और तुम्हारा यह हफ्ता ऐसे ही बीत जाएगा.’’

मैं ने हंस कर बस ‘ठीक है’ कहा. रात को अमित और बच्चों से बात की, अमित ने आदतन पूरे दिन हालचाल पूछा.

सुबह 10 बजे सुकन्या और अनीता आ गईं. पहले हम साथ बैठ कर गप्पें मारती रहीं. फिर भाभी के मना करने पर भी किचन में उन का लंच तैयार करने में हाथ बंटाया. फिर हम तीनों मेरे कमरे में आ गईं. मेरा कमरा अब मेरे भतीजे यश का स्टडीरूम बन गया था. छुट्टी थी. यश खेलने में व्यस्त था. हम तीनों आराम से लेट कर अपनेअपने परिवार की बातें एकदूसरी को बताने लगीं. बात करतेकरते मैं ने नोट किया कि सुकन्या कुछ उदास सी हो गई.

मैं ने पूछा, ‘‘क्या हुआ सुकन्या?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘हमें नहीं बताएगी?’’ अनीता ने भी पूछा.

‘‘कुछ नहीं, तुम लोगों को वहम हुआ है.’’

मैं ने कहा, ‘‘हम इतनी दूर से एकदूसरी से मिलने आई हैं. क्या हम एकदूसरी से पहले की तरह अपने दिल की बातें नहीं कर सकतीं?’’

सुकन्या पहले तो गुमसुम सी बैठी रही, फिर बहुत ही उदास स्वर में बोली, ‘‘अनिल को नहीं भुला पाई मैं.’’

हम दोनों चौंक पड़ीं, ‘‘क्या? क्या कह रही है तू?’’

‘‘हां,’’ सुकन्या की आंखों से आंसू बहने लगे, ‘‘अपने असफल प्यार की पराकाष्ठा को दिल में लिए एक सहज जीवन जीना अग्निपथ पर चलने जैसा मुश्किल है, यह सिर्फ मैं जानती हूं. बस, 2 हिस्सों में बंटी जी रही हूं… अब तो उम्र अपनी ढलान पर है, लेकिन मन वहीं ठहरा है. अनिल से दूर मन कहीं नहीं रमा, इतने सालों से जैसे 2 नावों की सवारी करती रही हूं. बस, बचाखुचा जीवन भी जी ही लूंगी… जो प्यार मिलने से पहले ही खो गया हो, कैसे जी लिया जाता है उस के बिना भी, यह वही जान सकता है, जिस ने यह सब झेला हो. सुधीर के पास होती हूं तो अनिल का चेहरा सामने आ जाता है और जब भी यहां आती हूं, मेरा मन और उदास हो जाता है.’’

मैं और अनीता हैरानी से सुकन्या को देख रही थीं. हमें तो सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि बात इतनी गंभीर होगी. यह क्या हो गया… हमारी प्यारी सहेली

22 साल से इस मनोदशा में है. मैं और अनीता एकदूसरी का मुंह देखने लगीं. हम जानती थीं सुकन्या शुरू से ही बहुत भावुक थी, लेकिन वह तो आज भी वैसी ही थी.

सुकन्या कह रही थी, ‘‘यहां आने पर मेरे सामने अतीत के वे मधुर पल जीवंत हो उठते हैं… आज भी आखें बंद कर उस सुखद समय का 1-1 पल जी सकती हूं मैं.’’

अनीता ने पूछा, ‘‘सुकन्या, यहां आने पर तू कभी अनिल से मिली है?’’

‘‘नहीं.’’

अनीता ने पल भर पता नहीं क्या सोचा, फिर बोली, ‘‘मिलना है उस से?’’

मैं तुरंत बोली, ‘‘अनु, पागल हो गई है क्या?’’

अनीता ने ठहरे हुए स्वर में मुझे आंख मारते हुए कहा, ‘‘क्यों, इस में पागल होने की क्या बात है? सुकन्या अनिल के लिए आज भी उदास है तो क्या उस से एक बार मिल नहीं सकती?’’

सुकन्या ने कहा, ‘‘नहीं, रहने दो. अब मिल कर क्या होगा?’’

‘‘अरे, एक बार उसे देख लेगी तो शायद तेरे दिल को ठंडक मिल जाए.’’ मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. मैं चुप रही, पता नहीं अनीता ने क्या सोचा था.

सुकन्या ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘मीनू, तू क्या कहती है?’’

‘‘जैसा तेरा दिल चाहे.’’

‘‘लेकिन मैं उस से मिलूंगी कहां?’’

अनीता ने कहा, ‘‘मुझे उस का घर पता है. बूआजी की बेटी उसी कालेज में पढ़ाती है जहां अनिल भी प्रोफैसर है.’’

सुकन्या बोली, ‘‘मेरे तो हाथपैर अभी से कांप रहे हैं… कैसा होगा वह, क्या कहेगा मुझे देख कर? पहचान तो जाएगा न?’’

अनीता हंसी, ‘‘हां, पहचान तो जाना चाहिए. उस की याद में तू आज भी वैसी ही तो है सूखीमरियल सी.’’

सुकन्या ने कहा, ‘‘हां, तेरी तरह सेहत बनानी भी नहीं है मुझे.’’

अनीता का शरीर कुछ ज्यादा ही भर गया था. मैं जोर से हंसी तो अनीता ने कहा, ‘‘हांहां, ठीक है, मुझे अपनी सेहत से कोई शिकायत नहीं है. यह तो अपने प्यारे पति के प्यार में थोड़ी फूलफल गई हूं.’’ और फिर हम तीनों इस बात पर खूब हंसीं.

मैं ने कहा, ‘‘वैसे हम तीनों के ही पति बहुत अच्छे हैं जो हमें एकदूसरी से मिलने भेज दिया.’’

अनीता ने कहा, ‘‘हां, यह री बातें सुन लें तो हैरान रह जाएं. खासतौर पर सुकन्या के बच्चे तो अपनी मां के इस सो कोल्ड प्यार का किस्सा सुन कर धन्य हो जाएंगे.’’

सुकन्या चिढ़ कर बोली, ‘‘चुप कर, खुद ही आइडिया दिया है और खुद ही मेरा मजाक उड़ा रही है.’’

अगले दिन हम तीनों पहले मार्केट गईं. वहां सुकन्या ने अनिल को देने के लिए गिफ्ट खरीदी. सुकन्या बहुत इमोशनल हो रही थी. अनीता और मैं अपनी हंसी बड़ी मुश्किल से रोक पा रही थीं.

अनिता ने मेरी कान में कहा, ‘‘यार, यह तो बिलकुल नहीं बदली. पहले भी एक बात पर हफ्तों खुश.’’

मैं ने कहा, ‘‘हां, लेकिन तूने इसे अनिल से मिलने का आइडिया क्यों दिया?’’

अनीता बड़े गर्व से बोली, ‘‘टीचर हूं, बिगड़े बच्चों को सुधारना मुझे आता है और इसे तो मैं अच्छी तरह जानती हूं. अपनी इस खूबसूरत सहेली का सौंदर्य प्रेम भी मुझे पता है और तुझे बता रही हूं मैं ने अनिल को 6 महीने पहले ही एक शादी में देखा था.’’

‘‘अच्छा, कोई बात हुई थी क्या?’’

‘‘नहीं, मौका नहीं लगा था. अच्छा, अब चुप कर. अपनी सहेली की शौपिंग पूरी हो गई शायद. पता नहीं कितने रुपए फूंक कर आ रही है मैडम.’’

सुकन्या पास आई तो हम ने पूछा, ‘‘क्याक्या खरीद लिया?’’

‘‘कुछ खास नहीं, अनिल के लिए एक ब्रैंडेड शर्ट, एक परफ्यूम, एक बहुत ही सुंदर पैन और उस की पसंद की मिठाई.’’

अनीता ने कहा, ‘‘चलो चलें प्रोफैसर साहब घर आ गए होंगे.’’

शाम के 4 बजे थे. हम तीनों पैदल ही साकेत चल पड़ीं. अनीता ने एक गली में दूर से ही एक घर की तरफ इशारा किया, ‘‘यही है अनिल का घर और वह जो बाहर स्कूटर खड़ा कर रहा है शायद अनिल ही है.’’

हम तीनों के कदम थोड़े तेज हुए.

अनिता ने कहा, ‘‘हां, सुकन्या, अनिल ही तो है.’’

सुकन्या ने ध्यान से देखा. अनिल किसी से फोन पर बात कर रहा था. वह ऐसे खड़ा था कि हमें उस का साइड पोज दिख रहा था. सुकन्या के कदम ढीले पड़ गए, उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘यह मोटा सा गंजा आदमी अनिल कैसे हो सकता है, लेकिन शक्ल तो मिल रही है.’’

अनीता ने कहा, ‘‘यही है हैंडसम सा तेरा प्रेमी जिस का साथ पाने की इच्छा आज भी तेरा पीछा नहीं छोड़ रही, जिस के सामने अपने पति का अथाह प्यार भी तुझे तुच्छ लगता है.’’

सुकन्या अचानक वापस मुड़ गई. मैं ने कहा, ‘‘क्या हुआ, अनिल से मिलना नहीं है क्या?’’

सुकन्या जल्दी से बोली, ‘‘नहीं, थोड़ा तेज नहीं चल सकती तुम दोनों? जल्दी चलो यहां से.’’

अनीता हंसते हुए बोली, ‘‘चलो, किसी रेस्तरा में चलती हैं.’’

हम ने वहां बैठ कर कौफी और सैंडविच का और्डर दिया. हमारी हंसी नहीं रुक रही थी.  सुकन्या का चेहरा देखने लायक था.

अनीता हंसी. बोली, ‘‘बेचारी सुकन्या,

इतने साल पुराने प्यार की परिणति हुई भी तो किस रूप में.’’

सुकन्या ने हमें डपटा, ‘‘चुप हो जाओ तुम दोनों, मुझे सताना बंद करो, अपनी सारी कल्पनाओं को वहीं उसी गली में दफन कर आई हूं मैं. पहली बार मुझे मेरे पति सुधीर याद आ रहे हैं. बस, अब जल्दी से उन के पास पहुंचना है.’’

मैं ने कहा, ‘‘वाह क्या बेसब्री है… तुम्हारा प्यार का भूत तो बहुत तेजी से भाग गया.’’

अब हम तीनों की हंसी नहीं रुक रही थी. हम बहुत हंसीं. इतना हंसे पता नहीं कितने साल हो गए थे. मैं ने कहा, ‘‘सुकन्या, और ये जो तुम ने गिफ्ट्स खरीदे इन का क्या होगा?’’

‘‘होगा क्या? शर्ट सुधीर पहनेंगे, मिठाई घर जा कर हम सब के साथ खाएंगे, परफ्यूम और पैन अपने बेटे को दे दूंगी.’’

मैं ने कहा, ‘‘हां, अनिल को तो यह शर्ट आती भी नहीं,’’ मुझे और अनीता को तो जैसे हंसी का दौरा पड़ गया था. सुकन्या की शक्ल देख कर हम इतना हंसी कि हमारी आंखों में आंसू आ गए. सच, अगर हमारे बच्चे हमारा यह रूप देखते तो उन्हें अपनी आंखों पर यकीन न आता. यह तो अच्छा था कि इस समय रेस्तरां में 1-2 लोग ही थे और हम बैठी भी एक कोने में थीं. वेटर बेचारा हमारी शक्लें देख रहा था. खैर, खापी कर हम अपनेअपने घर चली गईं.

गिनेचुने दिन थे. जाने का दिल भी पास आ रहा था. अगले दिन हम तीनों ने फिर खरीदारी की. मां के लिए, भैयाभाभी और यश के लिए कुछ कपड़े खरीदे. उन दोनों ने भी इसी तरह का सामान लिया. फिर जब हम तीनों साथ बैठीं तो सुकन्या के दिल में आया कि थोड़े मुझे छेड़ा जाए, अत: मुझ से कहने लगी, ‘‘विनोद कहां है आजकल? कुछ पता है?’’

मैं ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘मेरी इस बात में जरा भी रुचि नहीं है. मुझे माफ करो.’’

अनीता हंसी, ‘‘मीनू, कहो तो उस का कायाकल्प भी देख लिया जाए.’’

मैं ने कहा, ‘‘नहीं, रहने दो, अभी एक को देख कर छेड़ा. फिर हम तीनों ने यह तय किया कि अब जब भी संभव होगा, मिलती रहेंगी. एक बार फिर पुराने समय में लौट कर बहुत मजा आया.’’

जाने का दिन आ गया. भीगी आंखों से एकदूसरी से बिदा ली. मां और भाभी ने तो पता नहीं कितनी चीचें बांध दी थीं. सब से पहले मैं ही निकल रही थी. अनीता को एक विवाह में शामिल होने के लिए 2 दिन और रुकना था, सुकन्या को लेने सुधीर आने वाले थे.

मां और भाभी प्यार भरी शिकायत कर रही थीं कि मैं सहेलियों के साथ ही घूमती रही. मैं बहुत अच्छा समय बिता कर लौट रही थी. मुंबई जा कर स्नेहा को इस रियूनियन का आइडिया देने के लिए गले से लगा कर थैंक्स कहने के लिए मैं बहुत उत्साहित थी. सच, बहुत मजा आया था.

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