लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर
‘‘डाक्टर साहब, क्या मैं सुनील से मिल सकती हूं?’’
‘‘हां, ड्रैसिंग कंप्लीट कर के नर्स बाहर आ जाए तो तुम अकेली जा सकती हो. मरीज के पास अभी ज्यादा लोगों का होना ठीक नहीं है,’’ डाक्टर ने कहा.
नर्स के बाहर आते ही तिजोरी लपक कर अंदर पहुंची. सुनील की चोट वाली आंख की ड्रैसिंग के बाद पट्टी से ढक दिया गया था, दूसरी आंख खुली थी.
तिजोरी सुनील के पास पहुंची. उस ने अपनी दोनों हथेलियों में बहुत हौले से सुनील का चेहरा लिया और बोली, ‘‘बहुत तकलीफ हो रही है न. सारा कुसूर मेरा है. न मैं तुम्हें गुल्लीडंडा खिलाने ले जाती और न तुम्हें चोट लगती.’’
तिजोरी को उदास देख कर सुनील अपने गालों पर रखे उस के हाथ पर अपनी हथेलियां रखता हुआ बोला, ‘‘तुम्हारा कोई कुसूर नहीं है तिजोरी, मैं ही उस समय असावधान था. तुम्हारे बारे में सोचने लगा था… इतने अच्छे स्वभाव की लड़की मैं ने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखी,’’ कहतेकहते सुनील चुप हो गया.
तिजोरी समझ गई और बोली, ‘‘चुप क्यों हो गए… मन में आई हुई बात कह देनी चाहिए… बोलो न?’’
‘‘लेकिन, न जाने क्यों मुझे डर लग रहा है. मेरी बात सुन कर कहीं तुम नाराज न हो जाओ.’’
‘‘नहीं, मैं नाराज नहीं होती. मुझे कोई बात बुरी लगती है, तो तुरंत कह देती हूं. तुम बताओ कि क्या कहना चाह रहे हो.’’
‘‘दरअसल, मैं ही तुम को चाहने लगा हूं और चाहता हूं कि तुम से ही शादी करूं.’’
तिजोरी ने सुनील के गालों से अपने हाथ हटा लिए और उठ कर खड़े होते हुए बोली, ‘‘मुझ से शादी करने के लिए अभी तुम्हें 2 साल और इंतजार करना होगा. ठीक होने के बाद तुम्हें मेरे पिताजी से मिलना होगा.’’
इतना कह कर तिजोरी बाहर चली आई. श्रीकांत और महेश तो वहां इंतजार कर ही रहे थे, लेकिन अपने पिता को उन के पास देख कर वह चौंक पड़ी. उन के पास पहुंच कर वह सीने से लिपट पड़ी, ‘‘आप को कैसे पता चला?’’
‘‘मेरे खेतों में कोई घटना घटे, और मुझे पता न चले, ऐसा कभी हुआ है? मैं तो बस उस लड़के को देखने चला आया और अंदर भी आ रहा था, पर तुम दोनों की बातें सुन कर रुक गया. अब तू यह बता कि तू क्या चाहती है?’’
‘‘मैं ने तो उस से कह दिया है कि…’’ तिजोरी अपनी बात पूरी नहीं कर पाई थी कि रघुवीर यादव ने बात पूरी की… ‘‘2 साल और इंतजार करना होगा.’’
ये भी पढ़ें- तूफान: क्या हुआ था कुसुम के साथ
अपने पिता के मुंह से अपने ही कहे शब्द सुन कर तिजोरी के चेहरे पर शर्म के भाव उमड़ आए और उस ने अपने पिता की चौड़ी छाती में अपना चेहरा छिपा लिया.
रघुवीर यादव अपनी बेटी की पीठ थपथपाने के बाद उस के बालों पर हाथ फेरने लगे. उन्होंने अपनी जेब से 10,000 रुपए निकाल कर श्रीकांत को दिए और बोले, ‘‘बेटा, यह सुनील के इलाज के लिए रख लो. कम पड़ें तो खेत में काम कर रहे किसी मजदूर से कह देना. खबर मिलते ही मैं और रुपए पहुंचा दूंगा,’’ इतना कह कर वे तिजोरी और महेश को ले कर घर की तरफ बढ़ गए.
अगले दिन तिजोरी अपने भाई महेश के साथ रोज की तरह खेत पर गई. आज उस का मन खेत पर नहीं लग रहा था. पानी पीने के लिए वह गोदाम की तरफ गई, तो उस ने किनारे जा कर बिजली महकमे के स्टोर की तरफ झांका.
तभी सामने वाली सड़क पर एक मोटरसाइकिल रुकी. उस पर बैठा लड़का सिर पर गमछा लपेटे और आंखों में चश्मा लगाए था. तिजोरी को देखते ही उस ने मोटरसाइकिल पर बैठेबैठे ही हाथ हिलाया, पर तिजोरी ने कोई जवाब नहीं दिया. वह उसे पहचानने की कोशिश करने लगी, पर दूरी होने के चलते पहचान न सकी.
तभी जब स्टोर में काम करते श्रीकांत की नजर तिजोरी पर पड़ी, तो श्रीकांत उसे वहां खड़ा देख उस के करीब चल कर जैसे ही आया, वह बाइक सवार अपनी बाइक स्टार्ट कर के चला गया.
तिजोरी के करीब आ कर श्रीकांत बोला, ‘‘हैलो तिजोरी, कैसी हो?’’
उस बाइक सवार को ले कर तिजोरी अपने दिमाग पर जोर देते हुए उसे पहचानने की कोशिश रही थी, लेकिन श्रीकांत की आवाज सुन कर वहां से ध्यान हटाती हुई बोली, ‘‘मैं ठीक हूं. यहां से खाली हो कर तुम्हारे बौस को देखने अस्पताल जाऊंगी. वैसे, कैसी तबीयत है उन की?’’
‘‘आज शाम तक उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी. डाक्टर का कहना है कि चूंकि आंख के बाहर का घाव है, इसलिए वे एक आंख पर पट्टी बांधे काम कर सकते हैं. मैं शाम को उन्हें ले कर सरकारी गैस्ट हाउस में आ जाऊंगा.’’
‘‘लेकिन, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जब वे पूरी तरह से ठीक हो जाएं, तब काम करना शुरू करें?’’
‘‘चोट गंभीर होती तो वैसे भी वे काम नहीं कर पाते, पर जब डाक्टर कह रहा है कि चिंता की कोई बात नहीं, तो दौड़भाग का काम मैं देख लूंगा और इस स्टोर को वे संभाल लेंगे. फिर हमें समय से ही काम पूरा कर के देना है, तभी अगला कौंट्रैक्ट मिलेगा.’’
‘‘ठीक है, मुझे कल भी खेत पर आना ही है. यहीं पर कल उस से मिल लूंगी. तुम्हें अगर प्यास लग रही हो, तो मैं फ्रिज से पानी की बोतलें निकाल कर देती जाऊं?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘ठीक है, मैं चलती हूं. कल मिलूंगी,’’ कह कर तिजोरी उस खेत की तरफ चली गई, जहां बालियों से गेहूं और भूसा अलग कर के बोरियों में भरा जा रहा था.
अगले दिन पिताजी के हिसाबकिताब का बराबर मिलान करने के चलते तिजोरी को देर होने लगी. जैसे ही हिसाब मिला, तो वह उसे फेयर कर के लिखने का काम महेश को सौंप कर अकेले ही खेत की तरफ आ गई.
चूंकि तिजोरी तेज चलती हुई आई थी और उसे प्यास भी लग रही थी, इसलिए उस ने सोचा कि पहले गोदाम में जा कर घड़े से पानी पी ले और फिर सुनील का हालचाल लेने चली जाएगी.
तिजोरी ने गोदाम के शटर के दोनों ताले खोले और अंदर घुस कर घड़े की तरफ बढ़ ही रही थी कि अचानक शटर गिरने की आवाज सुन कर वह पलटी. कल जो बाइक पर सवार लड़का था, उसे वह पहचान गई, फिर उस के बढ़ते कदमों के साथ इरादे भांपते हुए वह बोली, ‘‘ओह तो तुम शंभू हो… मुझे लग रहा है कि उस दिन मैं ने तुम्हारी नीयत को सही पहचान लिया था… लगता है, उसी दिन से तुम मेरी फिराक में हो.’’
‘‘ऐसा है तिजोरी, शंभू जिसे चाहता है, उसे अपना बना कर ही रहता है. उस दिन तो मैं तुम्हें देखते ही पागल हो गया था. आज मौका मिल ही गया. अब तुम्हारे सामने 2 ही रास्ते हैं… या तो सीधी तरह मेरी बांहों में आ जाओ, नहीं तो…’’ कह कर वे उसे पकड़ने के लिए लपका.
ये भी पढ़ें- भावनाओं के साथी: जानकी को किसका मिला साथ
तिजोरी ने गोदाम के ऊपर बने रोशनदानों की ओर देखा और ऊपर मुंह कर के पूरी ताकत से चिल्लाना शुरू कर दिया, ‘‘बचाओ… बचाओ…’’
तिजोरी को चिल्लाता देख शंभू तकरीबन छलांग लगाता उस तक पहुंच गया. तिजोरी की एक बांह उस की हथेली में आई, लेकिन तिजोरी सावधान थी, इसलिए पकड़ मजबूत होने से पहले उस ने अपने को छुड़ा कर शटर की तरफ ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाते हुए दौड़ लगानी चाही, पर इस बार शंभू ने उसे तकरीबन जकड़ लिया.
तभी शटर के तेजी से उठने की आवाज आई. जैसे ही शंभू का ध्यान शटर खुलने पर एक आंख में पट्टी बांधे इनसान की तरफ गया, तिजोरी ने उस की नाक पर एक झन्नाटेदार घूंसा जड़ दिया. और जब तक शंभू संभलता, सुनील ने उसे फिर संभाल लिया.