मुखौटा: समर का सच सामने आने के बाद क्या था संचिता का फैसला

भारतीयलड़कियों की किसी अमेरिकन या अंगरेज लड़के से शादी करने के बाद क्या हालत होती है इस का वर्णन करना आसान नहीं है. वे धोखा केवल इसलिए खाती हैं क्योंकि उन के परिवार वाले शादी से पहले लड़के की ठीक से तहकीकात नहीं करते.

निर्मला पुणे की रहने वाली हैं. उन की माता और महिला मंडल में आने वाली वत्सलाजी से अच्छी जानपहचान थी. एक दिन बातोंबातों में संचिता की शादी का जिक्र किया तब वत्सलाजी ने उन्हें अपने अमेरिका में रहने वाले भतीजे समर के बारे में बताया जो शादी के लायक हो गया था.

फिर दोनों अपनेअपने घर में इस बारे में बात करती हैं. संचिता अमेरिका में रहने वाले लड़के से शादी के लिए तैयार हो जाती है. वत्सलाजी भी समर को फोन कर के उस की राय मांगती है. तब वह भी शादी के लिए राजी हो जाता है. दोनों वीडियो चैट करते हैं तो सब ठीकठाक लगता है.

समर 2 महीनों के लिए भारत आ गया और झट मंगनी पट ब्याह हो गया. समर की

कोई भी तहकीकात किए बिना सिर्फ वत्सलाजी के भरोसे संचिता के मातापिता उस का ब्याह समर से कर दिया. वैसे वत्सलाजी पर भरोसा करने के पीछे एक वजह और थी और वह यह कि समर को वत्सलाजी ने ही पालपोस कर बड़ा किया था. समर  जब छोटा था तब उस के मातापिता की एक दुर्घटना में मौत हो गई थी.

समर की जिम्मेदारी उठाने के लिए कोई तैयार नहीं था. पर जब समर के अमीर मातापिता की प्रौपर्टी में से समर का पालनपोषण करने

वाले व्यक्ति क ो हर महीने 25 हजार रुपए देने की बात सामने आई, जोकि उन की प्रौपर्टी के पैसों के ब्याज में दिए जाने थे, वत्सलाजी उसे संभालने के लिए आगे आ गईं. वत्सलाजी विधवा थीं, उन्हें बच्चे भी नहीं थे और उन्हें मिलने वाली पैंशन से वे सिर्फ अपना ही गुजारा कर सकती थीं, इसलिए वे पहले समर को पालने के लिए मना पर 25 हजार रुपए महीने मिलने की बात सुन कर वे समर को पालने के लिए राजी हो गई.

वत्सलाजी ने समर के पालनपोषण में कोई कमी नहीं छोड़ी. उसे अच्छे स्कूल में पढ़ायालिखाया. उसे सौफ्टवेयर इंजीनियर बनाया. समर के 18 बरस का होने के बाद उस की प्रौपर्टी उस के नाम कर दी गई और 21 साल का होने के बाद उस के हाथों सौंप दी गई. पर पैसा मिलते ही समर की ख्वाहिशें बढ़ने लगीं और वह अमेरिका में बसने के सपने देखने लगा और फिर उस ने वैसा ही किया.

सौफ्टवेयर इंजीनियर बनते ही वह एक कंपनी में नौकरी के जरीए अमेरिका चला गया और वहीं पर बस गया. अब शादी के सिलसिले में वह भारत आया और संचिता के साथ शादी कर के उसे भी अमेरिका ले गया. समर के साथ खुशीखुशी कब 2 साल बीत गए संचिता को पता ही नहीं चला. उसे लगने लगा था मानो समर के साथ उसे दुनिया के सारे सुख मिल रहे हैं. ऐसे में ही उसे अपने गर्भवती होने का एहसास हुआ. डाक्टर के पास चैकअप करा कर इस बात की तसल्ली कर ली और फिर समर के आने की राह देखने लगी. वह जल्द से जल्द यह खुशखबरी समर को बताना चाहती थी.

शाम को समर के घर आते ही उस ने सब से पहले उसे यही खुशखबरी दी. पर उस के चेहरे पर खुशी की जगह और ही भाव नजर

आने लगे. उस का बदला रूप देख कर संचिता पलभर के लिए कांप गई. लेकिन कुछ ही क्षणों में समर संभल गया और संचिता को बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है मैं बाप बनने वाला हूं. सच कहूं तो तुम ने जब यह खुशखबरी दी तब मुझे कुछ सूझा ही नहीं. अब तुम आराम करो. कल हम अपनी अच्छी पहचान वाली लेडी डाक्टर के पास जाएंगे ताकि वह अच्छी तरह तुम्हारा चैकअप करें.’’

दूसरे दिन संचिता ने जब आंखें खोली तब उसे अपनी कमर के नीचे का भाग कुछ भारीभारी सा लग रहा था. उस ने कमरे का निरीक्षण किया तब उसे ऐसा लगा कि वह किसी अस्पताल के कमरे में है. उस ने उठने की कोशिश की तो उस से उठा भी नहीं जा रहा था. तब एक नर्स दौड़ती हुई उस के पास आई और बोली, ‘‘अब थोड़ी देर और आराम करो. 2-3 तीन घंटे बाद तुम उठ सकती हो.’’

संचिता ने जब उस से पूछा कि उसे क्या हुआ तब नर्स ने उसे हैरानी से देखते हुए कहा कि तुम्हारा अबौर्शन हुआ है. सुनते ही संचिता के पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई क्योंकि वह तो सिर्फ चैकअप के लिए आई थी. डाक्टर ने

उसे कोलड्रिंक पीने के लिए दिया था. उस के बाद उसे गहरी नींद आने लगी और वह सो गई. पर अब उसे सब पता चल गया था. कुछ घंटों बाद समर आ कर उसे ले गया. घर जाने के

बाद उस ने शाम को संचिता से बस इतना ही कहा कि अभी वह बच्चे के लिए तैयार नहीं है. उसे अभी बहुत कुछ करना है. अगर वह उसे गर्भपात कराने को कहता तो शायद वह कभी तैयार नहीं होती, इसलिए उस ने यह रास्ता अपनाया.

अब संचिता के पास झल्लाने के सिवा कुछ नहीं बचा था. उस ने समर से बात करना छोड़ दिया. पहले समर के प्रति उस के मन में जो प्यार और आदर की भावना थी उस की जगह अब उस पर घृणा, तिरस्कार और चिड़ आने लगी थी. पर यहां विदेश में समर से बैर लेना उस ने उचित नहीं समझ क्योंकि यहां उस का कोई नहीं था. न कोई दोस्त न रिश्तेदार न पड़ोसी. अपना दर्द वह किसे सुनाती.

तभी एक दिन दोपहर को वत्सला बूआ का फोन आया. उन्होंने उसे बताया कि पिछले 15 दिनों में समर का 3 बार फोन आ चुका है और वह हर बार 25 लाख रुपए उस के अमेरिका के खाते में जमा करने की बात कह रहा है. उस ने बूआ को यह कहा कि  उस ने अपनी नौकरी छोड़ दी है और खुद का कोई कारखाना शुरू करना चाहता है, जिस के लिए उसे पैसों की सख्त जरूर है. पर बूआ को दाल में कुछ काला नजर आया, इसलिए उन्होंने संचिता से इस बारे में पूछना चाहा. पर संचिता को तो इस बारे में कुछ भी पता नहीं था. उलटा उस ने जब समर द्वारा धोखे से उस का गर्भपात कराने की बात वत्सला बूआ को बताई तब वे और भी हैरान रह गईं.

अब तो संचिता को समर से डर लगने लगा था. उस की सारी सचाई सामने आने लगी थी. विदेश में उस से बैर लेना मुनासिब नहीं था और मामापिता को सचाई बता कर वह उन्हें मुश्किल में नहीं डालना चाहती थी.

दूसरे दिन अब आगे क्या करना है, इस कशमकश में डूबी संचिता भारतीय

भूल के अमेरिका में रह रहे लोगों के लिए निकाले जा रहे अखबार के पन्ने पलट रही थी. तब एक तसवीर देख कर उस के हाथ रुक गए और उस ने वह खबर पढ़ी. प्रणोती, क्राइम विभाग की पत्रकार ने अपनी हिम्मत और दिमाग से बड़े सैक्स रैकेट का परदाफाश किया और सफेदपोश कहे जाने वाले भारत और पाकिस्तान के काले दरिंदों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. उस ने 2-3 बार वह खबर पढ़ी. उसे आशा की किरण नजर आने लगी. उस ने तुरंत अखबार के कार्यालय में फोन लगाया और प्रणोती के घर का पता और फोन नंबर ले लिया. प्रणोती उस की सहपाठी निकली. दोनों पूना में एकसाथ पढ़ा करती थीं. उस के पिताजी नौकरी के सिलसिले में अमेरिका गए और उस की मां को भी साथ ले गए और फिर हमेशा के लिए अमेरिका में ही बस गए.

संचिता ने फोन कर के प्रणोती से संपर्क किया और उस से मिलने की इच्छा जाहिर की. प्रणोती ने उसे तुरंत अपने घर बुला लिया. अमेरिका में भी उस का अपना कोई है यह जान कर संचिता को बहुत अच्छा लगा. प्रणोती से मिल कर उस ने उस के साथ जो कुछ घटा और वत्सला बूआ ने 25 लाख रुपयों के बारे में जो कुछ कहा वह सब बताया.

प्रणोती ध्यान से उस की बातें सुनती रही. लगभग 2 घंटे दोनों में इस बात पर चर्चा चली. फिर प्रणोती से विदा ले कर संचिता अपने घर चली गई. प्रणोती ने उसे आश्वासन दिया कि वह मामले की तह तक जाएगी.

इधर संचिता रातभर समर की राह देखती रही पर वह घर नहीं आया. फिर कब उस की आंख लग गई उसे पता ही नहीं चला. पर सुबह भी वह नहीं आया. उस ने झट से चाय बना कर पी और नहाधो कर प्रणोती से मिलने जाने की तैयारी की. उस की गैरहाजिरी से समर घर आ सकता था, इसलिए उसे जाते एक चिट्ठी छोड़ दी कि वह मार्केट जा रही है.

प्रणोती के घर जाते ही प्रणोती ने उसे बैठाया और कहा, ‘‘आज मैं जो बताने जा रही हूं उसे धैर्य से सुनना. तुम ने मुझे समर के औफिस का पता और उस के बारे में जो जरूरी जानकारी दी थी उस के आधार पर मैं ने कल ही उस की तहकीकात शुरू कर दी थी. संचिता, कल रात समर को खून के मामले में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. वह शबर के पुलिस लौकअप में बंद है. दूसरी बात उस ने नौकरी से इस्तीफा नहीं दिया बल्कि उसे नौकरी से निकाला गया है क्योंकि उस ने औफिस में भारतीय मुद्रा के रूप में 25 लाख रुपयों का गबन किया था. वत्सला बूआ से उस ने सब झठ कहा था. कल सुबह उस के खाते में पैसे जमा होते ही उस ने वे पैसे कंपनी में भर कर खुद को छुड़ा लिया.

‘‘फिर दिनभर यहांवहां भटक कर शराब के नशे में धुत्त हो कर वह देर रात को कैसिनो में पहुंचा. वह हमेशा का ग्राहक था इसलिए कैसिनो के मालिक ने उसे जुआ खोलने के लिए 2 लाख रुपए उधार दिए, पर समर घंटेभर में ही सारे

पैसे हार गया और उस ने कैसिनो के मालिक से फिर से पैसों की मांग की. पर कैनो के मालिक ने उसे पहले के दो लाख रुपए 24 घंटों के अंदर वापस करने की बात कहते हुए और

पैसे देने से मना कर दिया. तब दोनों में इस बात को ले कर झगड़ा हो गया और झगड़ा बढ़तेबढ़ते लड़ाई में बदल गया जिस में समर के हाथों कैसिनो के मालिक का खून हो गया. वह वहां

से भागने की फिराक में था पर कैसिनो के बाउसरों ने उसे पकड़ लिया और पुलिस के हवाले कर दिया.

‘‘और अब मैं जो कहने जा रही हूं वह सुन कर तुम्हारे पांवों तले की जमीन खिसक जाएगी. तुम्हारी शादी से 6 महीने पहले उस ने एक जरमन लड़की से शादी की पर उस लड़की ने समर की चालढाल देख कर उसे छोड़ दिया. दोनों का अब तक कानूनी तौर पर तलाक भी नहीं हुआ है. इसलिए तुम्हारी शादी गैरकानूनी मानी जा सकती है. तुम्हारा गर्भपात कराने के पीछे भी शायद यही मंशा थी कि तुम्हारी और तुम्हारे बच्चे की वजह से वह मुश्किल में पड़ सकता था.

‘‘संचिता, समर पूरी तरह फ्रौड निकला. उस पर दया करने की कोई जरूरत नहीं है. तू जैसे भी हो अपनेआप को उस के चंगुल से छुड़ा ले. मैं अपने वकील से बात करती हूं. देखते हैं वे क्या सलाह देते हैं. कल दोपहर को समर को कोर्ट में हाजिर किया जाएगा. हम वहां अपने वकील के साथ जाएंगे. अभी तुम अपने घर जाओ और तुम्हारा जितना सामान, जेवरात और पैसे हैं उन्हें ले कर मेरे घर आ जाओ. यहां तुम्हारी सारी चीजें बिलकुल महफूज रहेंगी और मामला पूरी तरह से निबटने तक तुम मेरे घर मेरी सहेली, मेरी बहन बन कर रह सकती हो.’’

संचिता ने आंसू पोंछे और प्रणोती के हाथों पर हाथ रख कर हां में सिर हिलाते हुए चली गई. घर पहुंचते ही संचिता ने तुरंत अपनी बैग निकाला और सारे कपड़े उस में भर दिए.

अपने जेवर सहीसलामत देख कर उसे राहत महसूस हुई. उस ने जेवर, नकद रुपए, अपने सारे कागजात और पासपोर्ट व वीजा भी बैग में रखा. फिर पूरे घर पर एक नजर डाल कर अपना बैग उठा कर प्रणोती के घर चल दी.

दूसरे दिन समर को कोर्ट में हाजिर किया गया. संचिता प्रणोती के साथ वहीं खड़ी थी. कोर्ट से बाहर आने के बाद संचिता ने समर का कौलर पकड़ कर उस से पूछा कि उस ने

ऐसा क्यों किया, पर समर ने कोई जवाब नहीं दिया और पुलिस की गाड़ी में जा बैठा. संचिता प्रणोती के साथ मिल कर उस जरमन लड़की से भी मिली जिसे समर ने धोखा दिया था. समर के कारनामे सुन कर वह लड़की हैरान रह गई. उस ने संचिता से सहानुभूति दिखाई और कहा कि समर से छुटकारा पाने के लिए अगर उसे उस से कोई मदद चाहिए तो वह उस की जरूर मदद करेगी.

अब संचिता को विश्वास हो गया कि वह समर से आसानी से छुटकारा पा लेगी. लेकिन समर का केस पूरे डेढ़ साल तक चला. समर को 10 साल की कैद की सजा सुनाई गई. इस बार संचिता ने उस के सामने तलाक के कागजात रख दिए और समर ने भी बिना कुछ कहे उन पर साइन कर दिए. संचिता आजाद हो चुकी थी. उस ने प्रणोती को बहुतबहुत धन्यवाद दिया.

समर के काले कारनामों की पूरी जानकारी संचिता ने वत्सला बूआ और अपने मातापिता को दे दी. उन सभी को गहरा आघात लगा. वत्सला बूआ ने संचिता के मातापिता से माफी मांगी. लेकिन इस में वत्सला बूआ की कोई गलती नहीं थी और वे भी समर के धोखे की शिकार हुई थीं, इसलिए संचिता के मातापिता ने उन्हें माफ कर दिया.

अगले हफ्ते संचिता मुंबई के सहारा हवाईअड्डे पर उतर रही थी. उस के मातापिता और वत्सला बूआ उस के स्वागत के लिए खड़े थे, उस ने समर के चेहरे पर लगा झठ का मुखौटा जो निकाल फेंका था और उस का असली चेहरा दुनिया के सामने लाया था. ऐसे और भी कितने समर इस दुनिया में मौजूद हैं, जिन के चेहरे पर चढ़ा झठ का मुखौटा निकाल फेंकने के लिए खुद महिलाओं को ही आगे आना होगा.

ब्लैक फंगस: क्या महुआ और उसके परिवार को मिल पाई मदद

महुआ मैक्स नोएडा हौस्पिटल के कौरिडोर में पागलों की तरह चक्कर लगा रही थी. तभी उस की बड़ी ननद अनिला आ कर बोली, ‘‘महुआ धीरज रखो, सबकुछ ठीक होगा. हम अमित को समय से अस्पताल ले आए हैं.’’

महुआ सुन रही थी पर कुछ समझ नहीं पा रही थी. महुआ और उस का छोटा सा परिवार पिछले 25 दिनों से एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस गया था कि चाह कर भी वे उसे तोड़ कर बाहर नहीं निकल पा रहे थे. पहले कोरोना ने क्या उस पर कम कहर बरपाया था जो अमित को ब्लैक फंगस ने भी दबोच लिया?

महुआ बैठेबैठे उबासियां ले रही थी. पिछले 25 दिनों से शायद ही कोई ऐसी रात हो जब वह ठीक से सोई हो. तभी मोबाइल की घंटी बजी. युग का फोन था. महुआ को मालूम था युग जब तक बात नहीं करेगा, फोन करता ही रहेगा.

महुआ के  फोन उठाते ही युग बोला, ‘‘मम्मी, पापा कैसे हैं? गरिमा मामी कह रही हैं, वे जल्दी ही वापस आएंगे, फिर हम लोग सैलिब्रेट करेगे.’’

महुआ आंसुओं को पीते हुए बोली, ‘‘हां बेटा, जरूर करेंगे.’’

युग क्याक्या बोल रहा था महुआ को समझ नहीं आ रहा था. बस युग की आवाज से महुआ को इतना समझ आ गया था कि गरिमा उस के बेटे का बहुत अच्छे से ध्यान रख रही हैं. गरिमा उस के छोटे भाई अनिकेत की पत्नी हैं.

महुआ मन ही मन सोच रही थी कि ये वही गरिमा हैं जिसे परेशान करने में महुआ ने कोई कोरकसर नहीं छोड़ी थी और आज मुसीबत के समय ये गरिमा ही हैं जो उस के बेटे युग को अपने पास रखने के लिए तैयार हो गई.’’

उस की खुद की छोटी बहन सौमि ने तो साफ मना कर दिया था, ‘‘दीदी, मेरे खुद के 2 छोटे बच्चे हैं और फिर आप लोग अभीअभी कोरोना से बाहर निकले हो. आप युग को घर पर ही छोड़ दीजिए. मैं उस की ढंग से मौनिटरिंग कर लूंगी.’’

महुआ को समझ नहीं आ रहा था कि वे 5 वर्ष के युग को कहां और किस के सहारे छोड़े.

तभी गरिमा के  फोन ने डूबते को तिनके का सहारा दिया.

इस कोविड ने अपनों के चेहरे बेनकाब कर दिए थे. जिस ननद से उस से हमेशा दूरी बना कर रखी थी, मुसीबत में वही अपनी परवाह करे बिना भागती हुई नागपुर से मेरठ आ गई थी.

तभी अनिला बोली, ‘‘महुआ तुम अनिकेत के घर चली जाओ, थोड़ा आराम कर लो.’’

‘‘तुम्हारे जीजाजी अंनत नागपुर से आ रहे हैं.’’

‘‘हम दोनों यहां देख लेंगे, तुम भी तो कोविड से उठी हो.’’

महुआ रोते हुए बोली, ‘‘और दीदी आप क्या थकी हुई नहीं हैं? आप न होतीं तो मैं क्या करती… मुझे समझ नहीं आ रहा हैं. मैं यहीं रहूंगी दीदी… मैं युग का सामना नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘आप और जीजाजी अनिकेत के घर चले जाओ, मैं रात में यहीं रुकना चाहती हूं.’’

बड़ी मुश्किल से यह तय हुआ कि अनिला और अनंत पहले अनिकेत के घर जाएंगे और फिर थोड़ा आराम कर के वापस हौस्पिटल आ जाएंगे.

तभी नर्स आई और महुआ से बोली, ‘‘मैडम इंजैक्शन का इंतजाम हो गया क्या?’’

महुआ बोली, ‘‘हम लोग कोशिश कर रहे हैं.’’

नर्स बोली,’’ जल्दी करना मैडम 85 इंजैक्शन लगेंगे और अभी बस 10 इंजैक्शन ही हैं हमारे पास.’’

महुआ कुछ न बोली बस शून्य में ताकने लगी. तभी वार्ड से अमित के दर्द से

बिलबिलाने की आवाज आने लगी तो महुआ दौड़ती हुए अंदर गई. अमित की हालत देख कर वह घबरा गई. रोनी सी आवाज में बोली, ‘‘बहुत दर्द हो रहा हैं क्या अमित?’’

अमित बोला, ‘‘मुझे मुक्ति दे दो महुआ… अब सहन नहीं होता.’’

डाक्टर बाहर निकल कर बोले, ‘‘देखिए इन इंजैक्शन में दर्द तो होगा ही पर और कोई और उपाय भी नहीं है.’’

महुआ बोली, ‘‘डाक्टर ठीक तो हो जाएंगे न?’’

डाक्टर बोला, ‘‘अगर समय से इंजैक्शन मिल गए तो जरूर ठीक हो जाएंगे.’’

महुआ को बुखार महसूस हो रहा था. जब से कोविड हुआ है खुद का तो उसे होश ही नहीं था. बुखार रहरह कर लौट रहा था. बैठेबैठे ही महुआ की आंख लग गई. तभी अचानक झटके से उस की आंख खुली. अनिला महुआ को खाना खाने के लिए आवाज दे रही थी.

अनिला बोली, ‘‘अंनत और अनिकेत इंजैक्शन के लिए भागदौड़ कर रहे हैं.’’

‘‘हौस्पिटल में मैं और तुम रह लेंगे. ’’

‘‘फटाफट खाना खा कर पेरासिटामोल ले कर कुछ देर पैर सीधे कर लो.’’

महुआ जैसेतैसे मुंह में कौर डाल रही थी. तभी अनिला बोली, ‘‘युग के लिए तो हिम्मत रखनी होगी न महुआ और अमित के लिए हम सब पूरी कोशिश कर रहे हैं.’’

बाहर कौरिडोर में बहुत भयवह माहौल था. लोग औक्सीजन के लिए, दवाइयों के लिए, बैड के लिए गुहार लगा रहे थे. कुछ लोग रो रहे थे. कही से कराहने, कहीं से विलाप की और कहीं से मौत की आहट आ रही थी. महुआ को लग रहा था कि उसका दिमाग कभी भी फट जाएगा.

पहले कोरोना की दवाइयों के लिए मारामारी, फिर औक्सीजन के लिए और अब ब्लैक फंगस की दवाई भी नहीं मिल रही है. कौन जिम्मेदार है सरकार या हम लोग?

कुछ लोग कहते हैं लोगों ने दवाइयों को ब्लैक कर के रख लिया है ताकि महंगे दाम में बेच सकें पर इस के लिए भी कौन जिम्मेदार है? क्या यह एक आम आदमी की लाचारी और लापरवाही का नतीजा है जो यह ब्लैक फंगस अब सिस्टम से निकल कर एक आम नागरिक पर हावी हो गया है? तभी अनिला आई और बोली, ‘‘महुआ कल अनंत और अनिकेत शायद इंजैक्शन इंतजाम कर दें… उन की बात हो गई है.’’

‘‘कल मजिस्ट्रेट के औफिस जा कर कुछ कागज जमा करने होंगे और शायद फिर वाजिब दाम में ही हमें इंजैक्शन मिल जाएंगे.’’

महुआ ने राहत की सांस ली. ब्लैक में 4 इंजैक्शन की कीमत क्व2 लाख थी. अभी तो महुआ ने 10 इंजैक्शन के लिए क्व5 लाख दे दिए थे.पर बाकी 75 इंजैक्शन का इंतजाम कैसे होगा उसे नहीं पता था? वह मन ही मन अपने जेवरों की कीमत लगा रही थी जो करीब क्व10 लाख होगी और उस के पास घर के अलावा कुछ नहीं था.

अब शायद क्व10 लाख में ही सब हो जाए. महुआ जब सुबह नहाने के लिए भाईभाभी के घर पहुंची तो युग को देख कर उस का मन धक से रह गया. उस का बेटा बुजुर्ग सा हो गया था. उ4टासीधा पानी डाल कर, अनिला के लिए चायनाश्ता पैक करवा कर जब महुआ जाने लगी तो अनिकेत बोला, ‘‘दीदी हम तुम्हें हौस्पिटल छोड़ कर, डाक्टर से बात कर के फिर मजिस्ट्रेट के दफ्तर जाएंगे.’’

‘‘डाक्टर से लिखवाना जरूरी है कि ये इंजैक्शन अमित जीजू के लिए बेहद जरूरी हैं.’’

पूरे रास्ते दोनों ही महुआ की हिम्मत बंधवा रहे थे. हौस्पिटल में डाक्टर से बातचीत कर के अमित को देखते हुए अनंत और अनिकेत अनिला के पास आए और बोले, ‘‘बस अब कुछ भी हो जाए, इंजैक्शन ले कर ही आएंगे.’’

महुआ मरी सी आवाज में बोली, ‘‘मैं आप लोगों के पैसे एक बार अमित डिसचार्ज हो जाए लौटा दूंगी, फिलहाल अकाउंट खाली हो गया है,’’ और फिर फफकफफक कर रोने लगी.

अनंत महुआ के सिर पर हाथ रखते हुए बोले, ‘‘सूद समेत हम ले लेंगे, तुम बस अपना ध्यान रखो और टैंशन मत लो. हम लोग अभी हैं चिंता करने के लिए.’’

पूरा दिन बीत गया, परंतु अनंत अनिकेत का कोई फोन नहीं आया. महुआ सोच रही थी कि फोन इसलिए नहीं किया होगा क्योंकि वे इंजैक्शन ले कर आ ही रहे होंगे.

रात के करीब 9 बजे थके कदमों से अनिकेत खाना ले कर आया और दिलासा देते हुए बोला, ‘‘सब कागजी कार्यवाही हो गई है, परंतु अभी इंजैक्शन सरकार के पास नहीं हैं. शायद परसों तक आ जाएं.’’

महुआ बोली, ‘‘अनिकेत परसों तक के ही इंजैक्शन बचे हैं… तुम कुछ ब्लैक में इंतजाम कर लो. मैं फ्लैट बेच दूंगी.’’

अनिकेत को खुद समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे?

इधरउधर बहुत हाथपैर मारने पर एक दिन के इंजैक्शन का और इंतजाम हो गया. आज फिर अनिकेत और अनंत सरकारी हौस्पिटल इंजैक्शन के लिए गए थे. महुआ अमित का दर्द देख नहीं पा रही थी. आज 1 महीना हो गया था. महुआ मानसिक और शारीरिक रूप से इतनी थक चुकी थी कि उसे लग रहा था कि यह खेल कब तक चलेगा?

वह मन ही मन अमित की मौत की कामना करने लगी थी. यह जिंदगी और मौत के  बीच में चूहेबिल्ली का खेल अब उस की सहनशक्ति से परे था. महुआ को लग रहा था कि यह ब्लैक फंगस धीरेधीरे उस के पूरे परिवार को लील लेगा.

तभी अनंत आया और अनिला से बोला, ‘‘मैं ने अमेरिका में अपनी मामी से बात करी हैं, कुछ न कुछ जरूर हो जाएगा. सरकार से कुछ उम्मीद करना ही हमारी गलती थी.’’

महुआ सबकुछ सुन कर भी अनसुना कर रही थी.

अनंत फिर दबी आवाज में अनिला से बोला, ‘‘अनिकेत को भी बुखार हो गया हैं. वे आइसोलेटेड हैं, पर मैं सब संभाल लूंगा.’’

अचानक महुआ उठी और पागलों की तरह चिल्लाने लगी, ‘‘आप सब दूर चले जाओ… यह ब्लैक फंगस बीमारी नहीं, काल है सब को खत्म कर देगा.’’

अनिला उसे जितना शांत करने की कोशिश करती, वह दोगुने वेग से चिल्लाती.

तभी डाक्टर ने आ कर महुआ को टीका इंजैक्शन लगाया. महुआ नींद में भी बड़बड़ा रही थी, ‘‘ये ब्लैक फंगस हमारे प्रजातंत्र की सच्ची तसवीर है जहां पर बेईमानी, भ्रष्टाचार का बोलबाला हैं. मुझे ऐसी जिंदगी नहीं चाहिए, रोज मरती हूं और रोज जीती हूं.’’

अनिला महुआ की यह हालत देख कर सुबक रही थी और अनंत के चेहरे पर चिंता की गहरी लकीरें खिंची हुई थीं. ऐसा प्रतीत हो रहा था यह ब्लैक फंगस मरीज के साथसाथ उस के पूरे परिवार से भी काले साए की तरह चिपक गया है.

अलमारी का ताला : आखिर क्या थी मां की इच्छा?

हर मांबाप का सपना होता है कि उन के बच्चे खूब पढ़ेंलिखें, अच्छी नौकरी पाएं. समीर ने बीए पास करने के साथ एक नौकरी भी ढूंढ़ ली ताकि वह अपनी आगे की पढ़ाई का खर्चा खुद उठा सके. उस की बहन रितु ने इस साल इंटर की परीक्षा दी थी. दोनों की आयु में 3 वर्ष का अंतर था. रितु 19 बरस की हुई थी और समीर 22 का हुआ था. मां हमेशा से सोचती आई थीं कि बेटे की शादी से पहले बेटी के हाथ पीले कर दें तो अच्छा है. मां की यह इच्छा जानने पर समीर ने मां को समझाया कि आजकल के समय में लड़की का पढ़ना उतना ही जरूरी है जितना लड़के का. सच तो यह है कि आजकल लड़के पढ़ीलिखी और नौकरी करती लड़की से शादी करना चाहते हैं. उस ने समझाया, ‘‘मैं अभी जो भी कमाता हूं वह मेरी और रितु की आगे की पढ़ाई के लिए काफी है. आप अभी रितु की शादी की चिंता न करें.’’ समीर ने रितु को कालेज में दाखिला दिलवा दिया और पढ़ाई में भी उस की मदद करता रहता. कठिनाई केवल एक बात की थी और वह थी रितु का जिद्दी स्वभाव. बचपन में तो ठीक था, भाई उस की हर बात मानता था पर अब बड़ी होने पर मां को उस का जिद्दी होना ठीक नहीं लगता क्योंकि वह हर बात, हर काम अपनी मरजी, अपने ढंग से करना चाहती थी.

पढ़ाई और नौकरी के चलते अब समीर ने बहुत अच्छी नौकरी ढूंढ़ ली थी. रितु का कालेज खत्म होते उस ने अपनी जानपहचान से रितु की नौकरी का जुगाड़ कर दिया था. मां ने जब दोबारा रितु की शादी की बात शुरू की तो समीर ने आश्वासन दिया कि अभी उसे नौकरी शुरू करने दें और वह अवश्य रितु के लिए योग्य वर ढूंढ़ने का प्रयास करेगा. इस के साथ ही उस ने मां को बताया कि वह अपने औफिस की एक लड़की को पसंद करता है और उस से जल्दी शादी भी करना चाहता है क्योंकि उस के मातापिता उस के लिए लड़का ढूंढ़ रहे हैं. मां यह सब सुन घबरा गईं कि पति को कैसे यह बात बताई जाए. आज तक उन की बिरादरी में विवाह मातापिता द्वारा तय किए जाते रहे थे. समीर ने पिता को सारी बात खुद बताना ठीक समझा. लड़की की पिता को पूरी जानकारी दी. पर यह नहीं बताया कि मां को सारी बात पता है. पिता खुश हुए पर कहा, ‘‘अपना निर्णय वे कल बताएंगे.’’

अगले दिन जब पिता ने अपने कमरे से आवाज दी तो वहां पहुंच समीर ने मां को भी वहीं पाया. हैरानी की बात कि बिना लड़की को देखे, बिना उस के परिवार के बारे में जाने पिता ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम खुश तो हम खुश.’’ यह बात समीर ने बाद में जानी कि पिता के जानपहचान के एक औफिसर, जो उसी के औफिस में ही थे, से वे सब जानकारी ले चुके थे. एक समय इस औफिसर के भाई व समीर के पिता इकट्ठे पढ़े थे. औफिसर ने बहाने से लड़की को बुलाया था कुछ काम समझाने के लिए, कुछ देर काम के विषय में बातचीत चलती रही और समीर के पिता को लड़की का व्यवहार व विनम्रता भा गई थी. ‘उल्टे बांस बरेली को’, लड़की वालों के यहां से कुछ रिश्तेदार समीर के घर में बुलाए गए. उन की आवभगत व चायनाश्ते के साथ रिश्ते की बात पक्की की गई और बहन रितु ने लड्डुओं के साथ सब का मुंह मीठा कराया. हफ्ते के बाद ही छोटे पैमाने पर दोनों का विवाह संपन्न हो गया. जोरदार स्वागत के साथ समीर व पूनम का गृहप्रवेश हुआ. अगले दिन पूनम के मायके से 2 बड़े सूटकेस लिए उस का मौसेरा भाई आया. सूटकेसों में सास, ससुर, ननद व दामाद के लिए कुछ तोहफे, पूनम के लिए कुछ नए व कुछ पहले के पहने हुए कपड़े थे. एक हफ्ते की छुट्टी ले नवदंपती हनीमून के लिए रवाना हुए और वापस आते ही अगले दिन से दोनों काम पर जाने लगे. पूनम को थोड़ा समय तो लगा ससुराल में सब की दिनचर्या व स्वभाव जानने में पर अधिक कठिनाई नहीं हुई. शीघ्र ही उस ने घर के काम में हाथ बटाना शुरू कर दिया. समीर ने मोटरसाइकिल खरीद ली थी, दोनों काम पर इकट्ठे आतेजाते थे.

समीर ने घर में एक बड़ा परिवर्तन महसूस किया जो पूनम के आने से आया. उस के पिता, जो स्वभाव से कम बोलने वाले इंसान थे, अपने बच्चों की जानकारी अकसर अपनी पत्नी से लेते रहते थे और कुछ काम हो, कुछ चाहिए हो तो मां का नाम ले आवाज देते थे. अब कभीकभी पूनम को आवाज दे बता देते थे और पूनम भी झट ‘आई पापा’ कह हाजिर हो जाती थी. समीर ने देखा कि पूनम पापा से निसंकोच दफ्तर की बातें करती या उन की सलाह लेती जैसे सदा से वह इस घर में रही हो या उन की बेटी ही हो. समीर पिता के इतने करीब कभी नहीं आ पाया, सब बातें मां के द्वारा ही उन तक पहुंचाई जाती थीं. पूनम की देखादेखी उस ने भी हिम्मत की पापा के नजदीक जाने की, बात करने की और पाया कि वह बहुत ही सरल और प्रिय इंसान हैं. अब अकसर सब का मिलजुल कर बैठना होता था. बस, एक बदलाव भारी पड़ा. एक दिन जब वे दोनों काम से लौटे तो पाया कि पूनम की साडि़यां, कपड़े आदि बिस्तर पर बिखरे पड़े हैं. पूनम कपड़े तह कर वापस अलमारी में रख जब मां का हाथ बटाने रसोई में आई तो पूछा, ‘‘मां, आप कुछ ढूंढ़ रही थीं मेरे कमरे में.’’

‘‘नहीं तो, क्या हुआ?’’

पूनम ने जब बताया तो मां को समझते देर न लगी कि यह रितु का काम है. रितु जब काम से लौटी तो पूनम की साड़ी व ज्यूलरी पहने थी. मां ने जब उसे समझाने की कोशिश की तो वह साड़ी बदल, ज्यूलरी उतार गुस्से से भाभी के बैड पर पटक आई और कई दिन तक भाईभाभी से अनबोली रही. फिर एक सुबह जब पूनम तैयार हो साड़ी के साथ का मैचिंग नैकलैस ढूंढ़ रही थी तो देर होने के कारण समीर ने शोर मचा दिया और कई बार मोटरसाइकिल का हौर्न बजा दिया. पूनम जल्दी से पहुंची और देर लगने का कारण बताया. शाम को रितु ने नैकलैस उतार कर मां को थमाया पूनम को लौटाने के लिए. ‘हद हो गई, निकाला खुद और लौटाए मां,’ समीर के मुंह से निकला.

ऐसा जब एकदो बार और हुआ तो मां ने पूनम को अलमारी में ताला लगा कर रखने को कहा पर उस ने कहा कि वह ऐसा नहीं करना चाहती. तब मां ने समीर से कहा कि वह चाहती है कि रितु को चीज मांग कर लेने की आदत हो न कि हथियाने की. मां के समझाने पर समीर रोज औफिस जाते समय ताला लगा चाबी मां को थमा जाता. अब तो रितु का अनबोलापन क्रोध में बदल गया. इसी बीच, पूनम ने अपने मायके की रिश्तेदारी में एक अच्छे लड़के का रितु के साथ विवाह का सुझाव दिया. समीर, पूनम लड़के वालों के घर जा सब जानकारी ले आए और बाद में विचार कर उन्हें अपने घर आने का निमंत्रण दे दिया ताकि वे सब भी उन का घर, रहनसहन देख लें और लड़कालड़की एकदूसरे से मिल लें. पूनम ने हलके पीले रंग की साड़ी और मैचिंग ज्यूलरी निकाल रितु को उस दिन पहनने को दी जो उस ने गुस्से में लेने से इनकार कर दिया. बाद में समीर के बहुत कहने पर पहन ली. रिश्ते की बात बन गई और शीघ्र शादी की तारीख भी तय हो गई. पूनम व समीर मां और पापा के साथ शादी की तैयारी में जुट गए. सबकुछ बहुत अच्छे से हो गया पर जिद्दी रितु विदाई के समय भाभी के गले नहीं मिली.

रितु के ससुराल में सब बहुत अच्छे थे. घर में सासससुर, रितु का पति विनीत और बहन रिचा, जिस ने इसी वर्ष ड्रैस डिजाइनिंग का कोर्स शुरू किया था, ही थे. रिचा भाभी का बहुत ध्यान रखती थी और मां का काम में हाथ बटाती थी. रितु ने न कोई काम मायके में किया था और न ही ससुराल में करने की सोच रही थी. एक दिन रिचा ने भाभी से कहा कि उस के कालेज में कुछ कार्यक्रम है और वह साड़ी पहन कर जाना चाहती है. उस ने बहुत विनम्र भाव से रितु से कोई भी साड़ी, जो ठीक लगे, मांगी. रितु ने साड़ी तो दे दी पर उसे यह सब अच्छा नहीं लगा. रिचा ने कार्यक्रम से लौट कर ठीक से साड़ी तह लगा भाभी को धन्यवाद सहित लौटा दी और बताया कि उस की सहेलियों को साड़ी बहुत पसंद आई. रितु को एकाएक ध्यान आया कि कैसे वह अपनी भाभी की चीजें इस्तेमाल कर कितनी लापरवाही से लौटाती थी. कहीं ननद फिर कोई चीज न मांग बैठे, इस इरादे से रितु ने अलमारी में ताला लगा दिया और चाबी छिपा कर रख ली.

एक दिन शाम जब रितु पति के साथ घूमने जाने के लिए तैयार होने के लिए अलमारी से साड़ी निकाल, फिर ताला लगाने लगी तो विनीत ने पूछा, ‘‘ताला क्यों?’’ जवाब मिला-वह किसी को अपनी चीजें इस्तेमाल करने के लिए नहीं देना चाहती. विनीत ने समझाया, ‘‘मम्मी उस की चीजें नहीं लेंगी.’’

रितु ने कहा, ‘‘रिचा तो मांग लेगी.’’ अगले हफ्ते रितु को एक सप्ताह के लिए मायके जाना था. उस ने सूटकेस तैयार कर अपनी अलमारी में ताला लगा दिया. सास को ये सब अच्छा नहीं लगा. सब तो घर के ही सदस्य हैं, बाहर का कोई इन के कमरे में जाता नहीं, पर वे चुप ही रहीं. मायके पहुंची तो मां ने ससुराल का हालचाल पूछा. रितु ने जब अलमारी में ताला लगाने वाली बात बताई तो मां ने सिर पकड़ लिया उस की मूर्खता पर. मां ने बताया कि यहां ताला पूनम ने नहीं बल्कि मां के कहने पर उस के भाई समीर ने लगाना शुरू किया था और चाबी हमेशा मां के पास रहती थी. ताला लगाने का कारण रितु का लापरवाही से भाभी की चीजों का बिना पूछे इस्तेमाल करना और फिर बिगाड़ कर लौटाना था. यह सब उस की आदतों को सुधारने के लिए किया गया था. वह तो सुधरी नहीं और फिर कितनी बड़ी नादानी कर आई वह ससुराल में अपनी अलमारी में ताला लगा कर. मां ने समझाया कि चीजों से कहीं ऊपर है एकदूसरे पर विश्वास, प्यार और नम्रता. ससुराल में अपनी जगह बनाने के लिए और प्यार पाने के लिए जरूरी है प्यार व मान देना. रितु की दोपहर तो सोच में डूबी पर शाम को जैसे ही भाईभाभी नौकरी से घर लौटे उस ने भाभी को गले लगाया. भाभी ने सोचा शायद काफी दिनों बाद आई है, इसलिए ऐसा हुआ पर वास्तविकता कुछ और थी.

रितु ने देखा यहां अलमारी में कोई ताला नहीं लगा हुआ, वह भी शीघ्र ससुराल वापस जा ताले को हटा मन का ताला खोलना चाहती है ताकि अपनी भूल को सुधार सके, सब की चहेती बन सके जैसे भाभी हैं यहां. एक हफ्ता मायके में रह उस ने बारीकी से हर बात को देखासमझा और जाना कि शादी के बाद ससुराल में सुख पाने का मूलमंत्र है सब को अपना समझना, बड़ों को आदरमान देना और जिम्मेदारियों को सहर्ष निभाना. इतना कठिन तो नहीं है ये सब. कितनी सहजता है भाभी की अपने ससुराल में, जैसे वह सब की और सब उस के हैं. मां के घुटनों में दर्द रहने लगा था. रितु ने देखा कि भाभी ने सब काम संभाल लिया था और रात को सोने से पहले रोज वे मां के घुटनों की मालिश कर देती थीं ताकि वे आराम से सो सकें. अब वही भाभी, जिस के लिए उस के मन में इतनी कटुता थी, उस की आदर्श बनती जा रही थीं.

एक दिन जब पूनम और समीर को औफिस से आने में देर हो गई तब जल्दी कपड़े बदल पूनम रसोई में पहुंची तो पाया रात का खाना तैयार था. मां से पता चला कि खाना आज रितु ने बनाया है, यह बात दूसरी थी कि सब निर्देश मां देती रही थीं. रितु को अच्छा लगा जब सब ने खाने की तारीफ की. पूनम ने औफिस से देर से आने का कारण बताया. वह और समीर बाजार गए थे. उन्होंने वे सब चीजें सब को दिखाईं जो रितु के ससुराल वालों के लिए खरीदी गई थीं. इस इतवार दामादजी रितु को लिवाने आ रहे थे. खुशी के आंसुओं के साथ रितु ने भाईभाभी को गले लगाया और धन्यवाद दिया. मां भी अपने आंसू रोक न सकीं बेटी में आए बदलाव को देख कर. रितु ससुराल लौटी एक नई उमंग के साथ, एक नए इरादे से जिस से वह सब को खुश रखने का प्रयत्न करेगी और सब का प्यार पाएगी, विशेषकर विनीत का.

रितु ने पाया कि उस की सास हर किसी से उस की तारीफ करती हैं, ननद उस की हर काम में सहायता करती है और कभीकभी प्यार से ‘भाभीजान’ बुलाती है, ससुर फूले नहीं समाते कि घर में अच्छी बहू आई और विनीत तो रितु पर प्यार लुटाता नहीं थकता. रितु बहुत खुश थी कि जैसे उस ने बहुत बड़ा किला फतह कर लिया हो एक छोटे से हथियार से, ‘प्यार का हथियार’.

प्यारा सा रिश्ता: परिवार के लिए क्या था सुदीपा का फैसला

12 साल की स्वरा शाम को खेलकूद कर वापस आई. दरवाजे की घंटी बजाई तो सामने किसी अजनबी युवक को देख कर चकित रह गई.

तब तक अंदर से उस की मां सुदीपा बाहर निकली और मुसकराते हुए बेटी से कहा, ‘‘बेटे यह तुम्हारी मम्मा के फ्रैंड अविनाश अंकल हैं. नमस्ते करो अंकल को.’’

‘‘नमस्ते मम्मा के फ्रैंड अंकल,’’ कह कर हौले से मुसकरा कर वह अपने कमरे में चली आई और बैठ कर कुछ सोचने लगी.

कुछ ही देर में उस का भाई विराज भी घर लौट आया. विराज स्वरा से 2-3 साल बड़ा था.

विराज को देखते ही स्वरा ने सवाल किया, ‘‘भैया आप मम्मा के फ्रैंड से मिले?’’

‘‘हां मिला, काफी यंग और चार्मिंग हैं. वैसे 2 दिन पहले भी आए थे. उस दिन तू कहीं गई

हुई थी?’’

‘‘वे सब छोड़ो भैया. आप तो मुझे यह बताओ कि वह मम्मा के बौयफ्रैंड हुए न?’’

‘‘यह क्या कह रही है पगली, वे तो बस फ्रैंड हैं. यह बात अलग है कि आज तक मम्मा की सहेलियां ही घर आती थीं. पहली बार किसी लड़के से दोस्ती की है मम्मा ने.’’

‘‘वही तो मैं कह रही हूं कि वह बौय भी है और मम्मा का फ्रैंड भी यानी वे बौयफ्रैंड ही तो हुए न,’’ स्वरा ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘ज्यादा दिमाग मत दौड़ा. अपनी पढ़ाई कर ले,’’ विराज ने उसे धौल जमाते हुए कहा.

थोड़ी देर में अविनाश चला गया तो सुदीपा की सास अपने कमरे से बाहर आती हुई थोड़ी नाराजगी भरे स्वर में बोलीं, ‘‘बहू क्या बात है, तेरा यह फ्रैंड अब अकसर घर आने लगा है?’’

‘‘अरे नहीं मम्मीजी वह दूसरी बार ही तो आया था और वह भी औफिस के किसी काम के सिलसिले में.’’

‘‘मगर बहू तू तो कहती थी कि तेरे औफिस में ज्यादातर महिलाएं हैं. अगर पुरुष हैं भी तो वे अधिक उम्र के हैं, जबकि यह लड़का तो तुझ से भी छोटा लग रहा था.’’

‘‘मम्मीजी हम समान उम्र के ही हैं. अविनाश मुझ से केवल 4 महीने छोटा है. ऐक्चुअली हमारे औफिस में अविनाश का ट्रांसफर हाल ही में हुआ है. पहले उस की पोस्टिंग हैड औफिस मुंबई में थी. सो इसे प्रैक्टिकल नौलेज काफी ज्यादा है. कभी भी कुछ मदद की जरूरत होती है तो तुरंत आगे आ जाता है. तभी यह औफिस में बहुत जल्दी सब का दोस्त बन गया है. अच्छा मम्मीजी आप बताइए आज खाने में क्या बनाऊं?’’

‘‘जो दिल करे बना ले बहू, पर देख लड़कों से जरूरत से ज्यादा मेलजोल बढ़ाना सही नहीं होता… तेरे भले के लिए ही कह रही हूं बहू.’’

‘‘अरे मम्मीजी आप निश्चिंत रहिए. अविनाश बहुत अच्छा लड़का है,’’ कह कर हंसती हुई सुदीपा अंदर चली गई, मगर सास का चेहरा बना रहा.

रात में जब सुदीपा का पति अनुराग घर लौटा तो खाने के बाद सास ने अनुराग को  कमरे में बुलाया और धीमी आवाज में उसे अविनाश के बारे में सबकुछ बता दिया.

अनुराग ने मां को समझाने की कोशिश की, ‘‘मां आज के समय में महिलाओं और पुरुषों की दोस्ती आम बात है. वैसे भी आप जानती ही हो सुदीपा कितनी समझदार है. आप टैंशन क्यों लेती हो मां?’’

‘‘बेटा मेरी बूढ़ी हड्डियों ने इतनी दुनिया देखी है जितनी तू सोच भी नहीं सकता. स्त्रीपुरुष की दोस्ती यानी घी और आग की दोस्ती. आग पकड़ते समय नहीं लगता बेटे. मेरा फर्ज था तुझे समझाना सो समझा दिया.’’

‘‘डौंट वरी मां ऐसा कुछ नहीं होगा. अच्छा मैं चलता हूं सोने,’’ अविनाश मां के पास से तो उठ कर चला आया, मगर कहीं न कहीं उन की बातें देर तक उस के जेहन में घूमती रहीं. वह सुदीपा से बहुत प्यार करता था और उस पर पूरा यकीन भी था. मगर आज जिस तरह मां शक जाहिर कर रही थीं उस बात को वह पूरी तरह इग्नोर भी नहीं कर पा रहा था.

रात में जब घर के सारे काम निबटा कर सुदीपा कमरे में आई तो अविनाश ने उसे छेड़ने के अंदाज में कहा, ‘‘मां कह रही थीं आजकल आप की किसी लड़के से दोस्ती हो गई है और वह आप के घर भी आता है.’’

पति के भाव समझते हुए सुदीपा ने भी उसी लहजे में जवाब दिया, ‘‘जी हां आप ने सही सुना है. वैसे मां तो यह भी कह रही होंगी कि कहीं मुझे उस से प्यार न हो जाए और मैं आप को चीट न करने लगूं.’’

‘‘हां मां की सोच तो कुछ ऐसी ही है, मगर मेरी नहीं. औफिस में मुझे भी महिला सहकर्मियों से बातें करनी होती हैं पर इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं कुछ और सोचने लगूं. मैं तो मजाक कर रहा था.’’

‘‘आई नो ऐंड आई लव यू,’’ प्यार से सुदीपा ने कहा.

‘‘ओहो चलो इसी बहाने ये लफ्ज इतने दिनों बाद सुनने को तो मिल गए,’’ अविनाश ने उसे बांहों में भरते हुए कहा.

सुदीपा खिलखिला कर हंस पड़ी. दोनों देर तक प्यारभरी बातें करते रहे.

वक्त इसी तरह गुजरने लगा. अविनाश अकसर सुदीपा के घर आ जाता. कभीकभी दोनों बाहर भी निकल जाते. अनुराग को कोई एतराज नहीं था, इसलिए सुदीपा भी इस दोस्ती को ऐंजौय कर रही थी. साथ ही औफिस के काम भी आसानी से निबट जाते.

सुदीपा औफिस के साथ घर भी बहुत अच्छी तरह से संभालती थी. अनुराग को इस मामले में भी पत्नी से कोई शिकायत नहीं थी.

मां अकसर बेटे को टोकतीं, ‘‘यह सही नहीं है अनुराग. तुझे फिर कह रही हूं, पत्नी को किसी और के साथ इतना घुलनमलने देना उचित नहीं.’’

‘‘मां ऐक्चुअली सुदीपा औफिस के कामों में ही अविनाश की हैल्प लेती है. दोनों एक ही फील्ड में काम कर रहे हैं और एकदूसरे को अच्छे से समझते हैं. इसलिए स्वाभाविक है कि काम के साथसाथ थोड़ा समय संग बिता लेते हैं. इस में कुछ कहना मुझे ठीक नहीं लगता मां और फिर तुम्हारी बहू इतना कमा भी तो रही है. याद करो मां जब सुदीपा घर पर रहती थी तो कई दफा घर चलाने के लिए हमारे हाथ तंग हो जाते थे. आखिर बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जा सके इस के लिए सुदीपा का काम करना भी तो जरूरी है न फिर जब वह घर संभालने के बाद काम करने बाहर जा रही है तो हर बात पर टोकाटाकी भी तो अच्छी नहीं लगती न.’’

‘‘बेटे मैं तेरी बात समझ रही हूं पर तू मेरी बात नहीं समझता. देख थोड़ा नियंत्रण भी जरूरी है बेटे वरना कहीं तुझे बाद में पछताना न पड़े,’’ मां ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘ठीक है मां मैं बात करूंगा,’’ कह कर अनुराग चुप हो गया.

एक ही बात बारबार कही जाए तो वह कहीं न कहीं दिमाग पर असर डालती है. ऐसा ही कुछ अनुराग के साथ भी होने लगा था. जब काम के बहाने सुदीपा और अविनाश शहर से बाहर जाते तो अनुराग का दिल बेचैन हो उठता. उसे कई दफा लगता कि सुदीपा को अविनाश के साथ बाहर जाने से रोक ले या डांट लगा दे. मगर वह ऐसा कर नहीं पाता. आखिर उस की गृहस्थी की गाड़ी यदि सरपट दौड़ रही है तो उस के पीछे कहीं न कहीं सुदीपा की मेहनत ही तो थी.

इधर बेटे पर अपनी बातों का असर पड़ता न देख अनुराग के मांबाप ने अपने पोते और पोती यानी बच्चों को उकसाना शुरू का दिया. एक दिन दोनों बच्चों को बैठा कर वे समझाने लगे, ‘‘देखो बेटे आप की मम्मा की अविनाश अंकल से दोस्ती ज्यादा ही बढ़ रही है. क्या आप दोनों को नहीं लगता कि मम्मा आप को या पापा को अपना पूरा समय देने के बजाय अविनाश अंकल के साथ घूमने चली जाती है?’’

‘‘दादीजी मम्मा घूमने नहीं बल्कि औफिस के काम से ही अविनाश अंकल के साथ जाती हैं,’’ विराज ने विरोध किया.

‘‘ भैया को छोड़ो दादीजी पर मुझे भी ऐसा लगता है जैसे मम्मा हमें सच में इग्नोर करने लगी हैं. जब देखो ये अंकल हमारे घर आ जाते हैं या मम्मा को ले जाते हैं. यह सही नहीं.’’

‘‘हां बेटे मैं इसीलिए कह रही हूं कि थोड़ा ध्यान दो. मम्मा को कहो कि अपने दोस्त के साथ नहीं बल्कि तुम लोगों के साथ समय बिताया करे.’’

उस दिन संडे था. बच्चों के कहने पर सुदीपा और अनुराग उन्हें ले कर वाटर पार्क जाने वाले थे.

दोपहर की नींद ले कर जैसे ही दोनों बच्चे तैयार होने लगे तो मां को न देख कर दादी के पास पहुंचे, ‘‘दादीजी मम्मा कहां हैं… दिख नहीं रहीं?’’

‘‘तुम्हारी मम्मा गई अपने फ्रैंड के साथ.’’

‘‘मतलब अविनाश अंकल के साथ?’’

‘‘हां.’’

‘‘लेकिन उन्हें तो हमारे साथ जाना था. क्या हम से ज्यादा बौयफ्रैंड इंपौर्टैं हो गया?’’ कह कर स्वरा ने मुंह फुला लिया. विराज भी उदास हो गया.

लोहा गरम देख दादी मां ने हथौड़ा मारने की गरज से कहा, ‘‘यही तो मैं कहती आ  रही हूं इतने समय से कि सुदीपा के लिए अपने बच्चों से ज्यादा महत्त्वपूर्ण वह पराया आदमी हो गया है. तुम्हारे बाप को तो कुछ समझ ही नहीं आता.’’

‘‘मां प्लीज ऐसा कुछ नहीं है. कोई जरूरी काम आ गया होगा,’’ अनुराग ने सुदीपा के बचाव में कहा.

‘‘पर पापा हमारा दिल रखने से जरूरी और कौन सा काम हो गया भला?’’ कह कर विराज गुस्से में उठा और अपने कमरे में चला गया. उस ने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया.

स्वरा भी चिढ़ कर बोली, ‘‘लगता है मम्मा को हम से ज्यादा प्यार उस अविनाश अंकल से हो गया है,’’ और फिर वह भी पैर पटकती अपने कमरे में चली गई.

शाम को जब सुदीपा लौटी तो घर में सब का मूड औफ था. सुदीपा ने बच्चों को समझाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे अविनाश अंकल के पैर में गहरी चोट लग गई थी. तभी मैं उन्हें ले कर अस्पताल गई.’’

‘‘मम्मा आज हम कोई बहाना नहीं सुनने वाले. आप ने अपना वादा तोड़ा है और वह भी अविनाश अंकल की खातिर. हमें कोई बात नहीं करनी,’’ कह कर दोनों वहां से उठ कर चले गए.

स्वरा और विराज मां की अविनाश से इन नजदीकियों को पसंद नहीं कर रहे थे. वे अपनी ही मां से कटेकटे से रहने लगे. गरमी की छुट्टियों के बाद बच्चों के स्कूल खुल गए और विराज अपने होस्टल चला गया.

इधर सुदीपा के सासससुर ने इस दोस्ती का जिक्र उस के मांबाप से भी कर दिया. सुदीपा के मांबाप भी इस दोस्ती के खिलाफ थे. मां ने सुदीपा को समझाया तो पिता ने भी अनुराग को सलाह दी कि उसे इस मामले में सुदीपा पर थोड़ी सख्ती करनी चाहिए और अविनाश के साथ बाहर जाने की इजाजत कतई नहीं देनी चाहिए.

इस बीच स्वरा की दोस्ती सोसाइटी के एक लड़के सुजय से हो गई. वह स्वरा से 2-4 साल बड़ा था यानी विराज की उम्र का था. वह जूडोकराटे में चैंपियन और फिटनैस फ्रीक लड़का था. स्वरा उस की बाइक रेसिंग से भी बहुत प्रभावित थी. वे दोनों एक ही स्कूल में थे. दोनों साथ स्कूल आनेजाने लगे. सुजय दूसरे लड़कों की तरह नहीं था. वह स्वरा को अच्छी बातें बताता. उसे सैल्फ डिफैंस की ट्रेनिंग देता और स्कूटी चलाना भी सिखाता. सुजय का साथ स्वरा को बहुत पसंद आता.

एक दिन स्वरा सुजय को अपने साथ घर ले आई.  सुदीपा ने उस की अच्छे से आवभगत की. सब को सुजय अच्छा लड़का लगा इसलिए किसी ने स्वरा से कोई पूछताछ नहीं की. अब तो सुजय अकसर ही घर आने लगा. वह स्वरा की मैथ्स की प्रौब्लम भी सौल्व कर देता और जूडोकराटे भी सिखाता रहता.

एक दिन स्वरा ने सुदीपा से कहा, ‘‘मम्मा आप को पता है सुजय डांस भी जानता है. वह कह रहा था कि मुझे डांस सिखा देगा.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छा है. तुम दोनों बाहर लौन में या फिर अपने कमरे में डांस की प्रैक्टिस कर सकते हो.’’

‘‘मम्मा आप को या घर में किसी को एतराज तो नहीं होगा?’’ स्वरा ने पूछा.

‘‘अरे नहीं बेटा. सुजय अच्छा लड़का है. वह तुम्हें अच्छी बातें सिखाता है. तुम दोनों क्वालिटी टाइम स्पैंड करते हो. फिर हमें ऐतराज क्यों होगा? बस बेटा यह ध्यान रखना सुजय और तुम फालतू बातों में समय मत लगाना. काम की बातें सीखो, खेलोकूदो, उस में क्या बुराई है?’’

‘‘ओके थैंक यू मम्मा,’’ कह कर स्वरा खुशीखुशी चली गई.

अब सुजय हर संडे स्वरा के घर आ जाता और दोनों डांस प्रैक्टिस करते. समय इसी तरह बीतता रहा. एक दिन सुदीपा और अनुराग किसी काम से बाहर गए हुए थे.

घर में स्वरा दादीदादी के साथ अकेली थी. किसी काम से सुजय घर आया तो स्वरा उस से मैथ्स की प्रौब्लम सौल्व कराने लगी. इसी बीच अचानक स्वरा को दादी के कराहने और बाथरूम में गिरने की आवाज सुनाई दी.

स्वरा और सुजय दौड़ कर बाथरूम पहुंचे तो देखा दादी फर्श पर बेहोश पड़ी हैं. स्वरा के दादा ऊंचा सुनते थे. उन के पैरों में भी तकलीफ रहती थी. वे अपने कमरे में सोए थे. स्वरा घबरा कर रोने लगी तब सुजय ने उसे चुप कराया और जल्दी से ऐंबुलैंस वाले को फोन किया. स्वरा ने अपने मम्मीडैडी को भी हर बात बता दी. इस बीच सुजय जल्दी से दादी को ले कर पास के अस्पताल भागा. उस ने पहले ही अपने घर से रुपए मंगा लिए थे. अस्पताल पहुंच कर उस ने बहुत समझदारी के साथ दादी को एडमिट करा दिया और प्राथमिक इलाज शुरू कराया. उन को हार्ट अटैक आया था. अब तक स्वरा के मांबाप भी हौस्पिटल पहुंच गए थे.

डाक्टर ने सुदीपा और अनुराग से सुजय  की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘इस लड़के ने जिस फुरती और समझदारी से आप की मां को हौस्पिटल पहुंचाया वह काबिलेतारीफ है. अगर ज्यादा देर हो जाती तो समस्या बढ़ सकती थी यहां तक कि जान को भी खतरा हो सकता था.’’

सुदीपा ने बढ़ कर सुजय को गले से लगा लिया. अनुराग और उस के पिता ने भी नम आंखों से सुजय का धन्यवाद कहा. सब समझ रहे थे कि बाहर का एक लड़का आज उन के परिवार के लिए कितना बड़ा काम कर गया. हालात सुधरने पर स्वरा की दादी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.

घर लौटने पर दादी ने सुजय का हाथ पकड़ कर गदगद स्वर में कहा, ‘‘आज मुझे पता चला कि दोस्ती का रिश्ता इतना खूबसूरत होता है. तुम ने मेरी जान बचा कर इस बात का एहसास दिला दिया बेटे कि दोस्ती का मतलब क्या है.’’

‘‘यह तो मेरा फर्ज था दादीजी,’’ सुजय ने हंस कर कहा.

तब दादी ने सुदीपा की तरफ देख कर ग्लानि भरे स्वर में कहा, ‘‘मुझे माफ कर दे बहू. दोस्ती तो दोस्ती होती है, बच्चों की हो या बड़ों की. तेरी और अविनाश की दोस्ती पर शक कर के हम ने बहुत बड़ी भूल कर दी. आज मैं समझ सकती हूं कि तुम दोनों की दोस्ती कितनी प्यारी होगी. आज तक मैं समझ ही नहीं पाई थी.’’

सुदीपा बढ़ कर सास के गले लगती हुई बोली, ‘‘मम्मीजी आप बड़ी हैं. आप को मुझ से माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं. आप अविनाश को जानती नहीं थीं, इसलिए आप के मन में सवाल उठ रहे थे. यह बहुत स्वाभाविक था. पर मैं उसे पहचानती हूं, इसलिए बिना कुछ छिपाए उस रिश्ते को आप के सामने ले कर आई थी.’’

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. सुदीपा ने दरवाजा खोला तो सामने हाथों में फल और गुलदस्ता लिए अविनाश खड़ा था. घबराए हुए स्वर में उस ने पूछा, ‘‘मैं ने सुना है कि अम्मांजी की तबीयत खराब हो गई है. अब कैसी हैं वे?’’

‘‘बस तुम्हें ही याद कर रही थीं,’’ हंसते

हुए सुदीपा ने कहा और हाथ पकड़ कर उसे अंदर ले आई.       

मसीहा: शांति के दुख क्या मेहनत से दूर हो पाए

दोपहर का खाना खा कर लेटे ही थे कि डाकिया आ गया. कई पत्रों के बीच राजपुरा से किसी शांति नाम की महिला का एक रजिस्टर्ड पत्र 20 हजार रुपए के ड्राफ्ट के साथ था. उत्सुकतावश मैं एक ही सांस में पूरा पत्र पढ़ गई, जिस में उस महिला ने अपने कठिनाई भरे दौर में हमारे द्वारा दिए गए इन रुपयों के लिए धन्यवाद लिखा था और आज 10 सालों के बाद वे रुपए हमें लौटाए थे. वह खुद आना चाहती थी पर यह सोच कर नहीं आई कि संभवत: उस के द्वारा लौटाए जाने पर हम वह रुपए वापस न लें.

पत्र पढ़ने के बाद मैं देर तक उस महिला के बारे में सोचती रही पर ठीक से कुछ याद नहीं आ रहा था.

‘‘अरे, सुमि, शांति कहीं वही लड़की तो नहीं जो बरसों पहले कुछ समय तक मुझ से पढ़ती रही थी,’’ मेरे पति अभिनव अतीत को कुरेदते हुए बोले तो एकाएक मुझे सब याद आ गया.

उन दिनों शांति अपनी मां बंती के साथ मेरे घर का काम करने आती थी. एक दिन वह अकेली ही आई. पूछने पर पता चला कि उस की मां की तबीयत ठीक नहीं है. 2-3 दिन बाद जब बंती फिर काम पर आई तो बहुत कमजोर दिख रही थी. जैसे ही मैं ने उस का हाल पूछा वह अपना काम छोड़ मेरे सामने बैठ कर रोने लगी. मैं हतप्रभ भी और परेशान भी कि अकारण ही उस की किस दुखती रग पर मैं ने हाथ रख दिया.

बंती ने बताया कि उस ने अब तक के अपने जीवन में दुख और अभाव ही देखे हैं. 5 बेटियां होने पर ससुराल में केवल प्रताड़ना ही मिलती रही. बड़ी 4 बेटियों की तो किसी न किसी तरह शादी कर दी है. बस, अब तो शांति को ब्याहने की ही चिंता है पर वह पढ़ना चाहती है.

बंती कुछ देर को रुकी फिर आगे बोली कि अपनी मेहनत से शांति 10वीं तक पहुंच गई है पर अब ट्यूशन की जरूरत पड़ेगी जिस के लिए उस के पास पैसा नहीं है. तब मैं ने अभिनव से इस बारे में बात की जो उसे निशुल्क पढ़ाने के लिए तैयार हो गए. अपनी लगन व परिश्रम से शांति 10वीं में अच्छे नंबरों में पास हो गई. उस के बाद उस ने सिलाईकढ़ाई भी सीखी. कुछ समय बाद थोड़ा दानदहेज जोड़ कर बंती ने उस के हाथ पीले कर दिए.

अभी शांति की शादी हुए साल भर बीता था कि वह एक बेटे की मां बन गई. एक दिन जब वह अपने बच्चे सहित मुझ से मिलने आई तो उस का चेहरा देख मैं हैरान हो गई. कहां एक साल पहले का सुंदरसजीला लाल जोड़े में सिमटा खिलाखिला शांति का चेहरा और कहां यह बीमार सा दिखने वाला बुझाबुझा चेहरा.

‘क्या बात है, बंती, शांति सुखी तो है न अपने घर में?’ मैं ने सशंकित हो पूछा.

व्यथित मन से बंती बोली, ‘लड़कियों का क्या सुख और क्या दुख बीबी, जिस खूंटे से बांध दो बंधी रहती हैं बेचारी चुपचाप.’

‘फिर भी कोई बात तो होगी जो सूख कर कांटा हो गई है,’ मेरे पुन: पूछने पर बंती तो खामोश रही पर शांति ने बताया, ‘विवाह के 3-4 महीने तक तो सब ठीक रहा पर धीरेधीरे पति का पाशविक रूप सामने आता गया. वह जुआरी और शराबी था. हर रात नशे में धुत हो घर लौटने पर अकारण ही गालीगलौज करता, मारपीट करता और कई बार तो मुझे आधी रात को बच्चे सहित घर से बाहर धकेल देता. सासससुर भी मुझ में ही दोष खोजते हुए बुराभला कहते. मैं कईकई दिन भूखीप्यासी पड़ी रहती पर किसी को मेरी जरा भी परवा नहीं थी. अब तो मेरा जीवन नरक समान हो गया है.’

उस रात मैं ठीक से सो नहीं पाई. मानव मन भी अबूझ होता है. कभीकभी तो खून के रिश्तों को भी भीड़ समझ उन से दूर भागने की कोशिश करता है तो कभी अनाम रिश्तों को अकारण ही गले लगा उन के दुखों को अपने ऊपर ओढ़ लेता है. कुछ ऐसा ही रिश्ता शांति से जुड़ गया था मेरा.

अगले दिन जब बंती काम पर आई तो मैं उसे देर तक समझाती रही कि शांति पढ़ीलिखी है, सिलाईकढ़ाई जानती है, इसलिए वह उसे दोबारा उस के ससुराल न भेज कर उस की योग्यता के आधार पर उस से कपड़े सीने का काम करवाए. पति व ससुराल वालों के अत्याचारों से छुटकारा मिल सके मेरे इस सुझाव पर बंती ने कोई उत्तर नहीं दिया और चुपचाप अपना काम समाप्त कर बोझिल कदमों से घर लौट गई.

एक सप्ताह बाद पता चला कि शांति को उस की ससुराल वाले वापस ले गए हैं. मैं कर भी क्या सकती थी, ठगी सी बैठी रह गई.

देखते ही देखते 2 साल बीत गए. इस बीच मैं ने बंती से शांति के बारे में कभी कोई बात नहीं की पर एक दिन शांति के दूसरे बेटे के जन्म के बारे में जान कर मैं बंती पर बहुत बिगड़ी कि आखिर उस ने शांति को ससुराल भेजा ही क्यों? बंती अपराधबोध से पीडि़त हो बिलखती रही पर निर्धनता, एकाकीपन और अपने असुरक्षित भविष्य को ले कर वह शांति के लिए करती भी तो क्या? वह तो केवल अपनी स्थिति और सामाजिक परिवेश को ही कोस सकती थी, जहां निम्नवर्गीय परिवार की अधिकांश स्त्रियों की स्थिति पशुओं से भी गईगुजरी होती है.

पहले तो जन्म लेते ही मातापिता के घर लड़की होने के कारण दुत्कारी जाती हैं और विवाह के बाद अर्थी उठने तक ससुराल वालों के अत्याचार सहती हैं. भोग की वस्तु बनी निरंतर बच्चे जनती हैं और कीड़ेमकोड़ों की तरह हर पल रौंदी जाती हैं, फिर भी अनवरत मौन धारण किए ऐसे यातना भरे नारकीय जीवन को ही अपनी तकदीर मान जीने का नाटक करते हुए एक दिन चुपचाप मर जाती हैं.

शांति के साथ भी तो यही सब हो रहा था. ऐसी स्थिति में ही वह तीसरी बार फिर मां बनने को हुई. उसे गर्भ धारण किए अभी 7 महीने ही हुए थे कि कमजोरी और कई दूसरे कारणों के चलते उस ने एक मृत बच्चे को जन्म दिया. इत्तेफाक से उन दिनों वह बंती के पास आई हुई थी. तब मैं ने शांति से परिवार नियोजन के बारे में बात की तो बुझे स्वर में उस ने कहा कि फैसला करने वाले तो उस की ससुराल वाले हैं और उन का विचार है कि संतान तो भगवान की देन है इसलिए इस पर रोक लगाना उचित नहीं है.

मेरे बारबार समझाने पर शांति ने अपने बिगड़ते स्वास्थ्य और बच्चों के भविष्य को देखते हुए मेरी बात मान ली और आपरेशन करवा लिया. यों तो अब मैं संतुष्ट थी फिर भी शांति की हालत और बंती की आर्थिक स्थिति को देखते हुए परेशान भी थी. मेरी परेशानी को भांपते हुए मेरे पति ने सहज भाव से 20 हजार रुपए शांति को देने की बात कही ताकि पूरी तरह स्वस्थ हो जाने के बाद वह इन रुपयों से कोई छोटामोटा काम शुरू कर के अपने पैरों पर खड़ी हो सके. पति की यह बात सुन मैं कुछ पल को समस्त चिंताओं से मुक्त हो गई.

अगले ही दिन शांति को साथ ले जा कर मैं ने बैंक में उस के नाम का खाता खुलवा दिया और वह रकम उस में जमा करवा दी ताकि जरूरत पड़ने पर वह उस का लाभ उठा सके.

अभी इस बात को 2-4 दिन ही बीते थे कि हमें अपनी भतीजी की शादी में हैदराबाद जाना पड़ा. 15-20 दिन बाद जब हम वापस लौटे तो मुझे शांति का ध्यान हो आया सो बंती के घर चली गई, जहां ताला पड़ा था. उस की पड़ोसिन ने शांति के बारे में जो कुछ बताया उसे सुन मैं अवाक् रह गई.

हमारे हैदराबाद जाने के अगले दिन ही शांति का पति आया और उसे बच्चों सहित यह कह कर अपने घर ले गया कि वहां उसे पूरा आराम और अच्छी खुराक मिल पाएगी जिस की उसे जरूरत है. किंतु 2 दिन बाद ही यह खबर आग की तरह फैल गई कि शांति ने अपने दोनों बच्चों सहित भाखड़ा नहर में कूद कर जान दे दी है. तब से बंती का भी कुछ पता नहीं, कौन जाने करमजली जीवित भी है या मर गई.

कैसी निढाल हो गई थी मैं उस क्षण यह सब जान कर और कई दिनों तक बिस्तर पर पड़ी रही थी. पर आज शांति का पत्र मिलने पर एक सुखद आश्चर्य का सैलाब मेरे हर ओर उमड़ पड़ा है. साथ ही कई प्रश्न मुझे बेचैन भी करने लगे हैं जिन का शांति से मिल कर समाधान चाहती हूं.

जब मैं ने अभिनव से अपने मन की बात कही तो मेरी बेचैनी को देखते हुए वह मेरे साथ राजपुरा चलने को तैयार हो गए. 1-2 दिन बाद जब हम पत्र में लिखे पते के अनुसार शांति के घर पहुंचे तो दरवाजा एक 12-13 साल के लड़के ने खोला और यह जान कर कि हम शांति से मिलने आए हैं, वह हमें बैठक में ले गया. अभी हम बैठे ही थे कि वह आ गई. वही सादासलोना रूप, हां, शरीर पहले की अपेक्षा कुछ भर गया था. आते ही वह मेरे गले से लिपट गई. मैं कुछ देर उस की पीठ सहलाती रही, फिर भावावेश में डूब बोली, ‘‘शांति, यह कैसी बचकानी हरकत की थी तुम ने नहर में कूद कर जान देने की. अपने बच्चों के बारे में भी कुछ नहीं सोचा, कोई ऐसा भी करता है क्या? बच्चे तो ठीक हैं न, उन्हें कुछ हुआ तो नहीं?’’

बच्चों के बारे में पूछने पर वह एकाएक रोने लगी. फिर भरे गले से बोली, ‘‘छुटका नहीं रहा आंटीजी, डूब कर मर गया. मुझे और सतीश को किनारे खड़े लोगों ने किसी तरह बचा लिया. आप के आने पर जिस ने दरवाजा खोला था, वह सतीश ही है.’’

इतना कह वह चुप हो गई और कुछ देर शून्य में ताकती रही. फिर उस ने अपने अतीत के सभी पृष्ठ एकएक कर के हमारे सामने खोल कर रख दिए.

उस ने बताया, ‘‘आंटीजी, एक ही शहर में रहने के कारण मेरी ससुराल वालों को जल्दी ही पता चल गया कि मैं ने परिवार नियोजन के उद्देश्य से अपना आपरेशन करवा लिया है. इस पर अंदर ही अंदर वे गुस्से से भर उठे थे पर ऊपरी सहानुभूति दिखाते हुए दुर्बल अवस्था में ही मुझे अपने साथ वापस ले गए.

‘‘घर पहुंच कर पति ने जम कर पिटाई की और सास ने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाल पीठ दाग दी. मेरे चिल्लाने पर पति मेरे बाल पकड़ कर खींचते हुए कमरे में ले गया और चीखते हुए बोला, ‘तुझे बहुत पर निकल आए हैं जो तू अपनी मनमानी पर उतर आई है. ले, अब पड़ी रह दिन भर भूखीप्यासी अपने इन पिल्लों के साथ.’ इतना कह उस ने आंगन में खेल रहे दोनों बच्चों को बेरहमी से ला कर मेरे पास पटक दिया और दरवाजा बाहर से बंद कर चला गया.

‘‘तड़पती रही थी मैं दिन भर जले के दर्द से. आपरेशन के टांके कच्चे होने के कारण टूट गए थे. बच्चे भूख से बेहाल थे, पर मां हो कर भी मैं कुछ नहीं कर पा रही थी उन के लिए. इसी तरह दोपहर से शाम और शाम से रात हो गई. भविष्य अंधकारमय दिखने लगा था और जीने की कोई लालसा शेष नहीं रह गई थी.

‘‘अपने उन्हीं दुर्बल क्षणों में मैं ने आत्महत्या कर लेने का निर्णय ले लिया. अभी पौ फटी ही थी कि दोनों सोते बच्चों सहित मैं कमरे की खिड़की से, जो बहुत ऊंची नहीं थी, कूद कर सड़क पर तेजी से चलने लगी. घर से नहर ज्यादा दूर नहीं थी, सो आत्महत्या को ही अंतिम विकल्प मान आंखें बंद कर बच्चों सहित उस में कूद गई. जब होश आया तो अपनेआप को अस्पताल में पाया. सतीश को आक्सीजन लगी हुई थी और छुटका जीवनमुक्त हो कहीं दूर बह गया था.

‘‘डाक्टर इस घटना को पुलिस केस मान बारबार मेरे घर वालों के बारे में पूछताछ कर रहे थे. मैं इस बात से बहुत डर गई थी क्योंकि मेरे पति को यदि मेरे बारे में कुछ भी पता चल जाता तो मैं पुन: उसी नरक में धकेल दी जाती, जो मैं चाहती नहीं थी. तब मैं ने एक सहृदय

डा. अमर को अपनी आपबीती सुनाते हुए उन से मदद मांगी तो मेरी हालत को देखते हुए उन्होंने इस घटना को अधिक तूल न दे कर जल्दी ही मामला रफादफा करवा दिया और मैं पुलिस के चक्करों  में पड़ने से बच गई.

‘‘अब तक डा. अमर मेरे बारे में सबकुछ जान चुके थे इसलिए वह मुझे बेटे सहित अपने घर ले गए, जहां उन की मां ने मुझे बहुत सहारा दिया. सप्ताह  भर मैं उन के घर रही. इस बीच डाक्टर साहब ने आप के द्वारा दिए उन 20 हजार रुपयों की मदद से यहां राजपुरा में हमें एक कमरा किराए पर ले कर दिया. साथ ही मेरे लिए सिलाई का सारा इंतजाम भी कर दिया. पर मुझे इस बात की चिंता थी कि मेरे सिले कपड़े बिकेंगे कैसे?

‘‘इस बारे में जब मैं ने डा. अमर से बात की तो उन्होंने मुझे एक गैरसरकारी संस्था के अध्यक्ष से मिलवाया जो निर्धन व निराश्रित स्त्रियों की सहायता करते थे. उन्होंने मुझे भी सहायता देने का आश्वासन दिया और मेरे द्वारा सिले कुछ वस्त्र यहां के वस्त्र विके्रताओं को दिखाए जिन्होंने मुझे फैशन के अनुसार कपड़े सिलने के कुछ सुझाव दिए.

‘‘मैं ने उन के सुझावों के मुताबिक कपड़े सिलने शुरू कर दिए जो धीरेधीरे लोकप्रिय होते गए. नतीजतन, मेरा काम दिनोंदिन बढ़ता चला गया. आज मेरे पास सिर ढकने को अपनी छत है और दो वक्त की इज्जत की रोटी भी नसीब हो जाती है.’’

इतना कह शांति हमें अपना घर दिखाने लगी. छोटा सा, सादा सा घर, किंतु मेहनत की गमक से महकता हुआ.  सिलाई वाला कमरा तो बुटीक ही लगता था, जहां उस के द्वारा सिले सुंदर डिजाइन के कपड़े टंगे थे.

हम दोनों पतिपत्नी, शांति की हिम्मत, लगन और प्रगति देख कर बेहद खुश हुए और उस के भविष्य के प्रति आश्वस्त भी. शांति से बातें करते बहुत समय बीत चला था और अब दोपहर ढलने को थी इसलिए हम पटियाला वापस जाने के लिए उठ खड़े हुए. चलने से पहले अभिनव ने एक लिफाफा शांति को थमाते हुए कहा, ‘‘बेटी, ये वही रुपए हैं जो तुम ने हमें लौटाए थे. मैं अनुमान लगा सकता हूं कि किनकिन कठिनाइयों को झेलते हुए तुम ने ये रुपए जोड़े होंगे. भले ही आज तुम आत्मनिर्भर हो गई हो, फिर भी सतीश का जीवन संवारने का एक लंबा सफर तुम्हारे सामने है. उसे पढ़ालिखा कर स्वावलंबी बनाना है तुम्हें, और उस के लिए बहुत पैसा चाहिए. यह थोड़ा सा धन तुम अपने पास ही रखो, भविष्य में सतीश के काम आएगा. हां, एक बात और, इन पैसों को ले कर कभी भी अपने मन पर बोझ न रखना.’’

अभिनव की बात सुन कर शांति कुछ देर चुप बैठी रही, फिर धीरे से बोली, ‘‘अंकलजी, आप ने मेरे लिए जो किया वह आज के समय में दुर्लभ है. आज मुझे आभास हुआ है कि इस संसार में यदि मेरे पति जैसे राक्षसी प्रवृत्ति के लोग हैं तो

डा. अमर और आप जैसे महान लोग भी हैं जो मसीहा बन कर आते हैं और हम निर्बल और असहाय लोगों का संबल बन उन्हें जीने की सही राह दिखाते हैं.’’

इतना कह सजल नेत्रों से हमारा आभार प्रकट करते हुए वह अभिनव के चरणों में झुक गई.

टैडी बियर: क्या था अदिति का राज

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नीला पत्थर : आखिर क्या था काकी का फैसला

‘‘कहीं नहीं जाएगी काकी…’’ पार्वती बूआ की कड़कती आवाज ने सब को चुप करा दिया. काकी की अटैची फिर हवेली के अंदर रख दी गई. यह तीसरी बार की बात थी. काकी के कुनबे ने फैसला किया था कि शादीशुदा लड़की का असली घर उस की ससुराल ही होती है. न चाहते हुए भी काकी मायका छोड़ कर ससुराल जा रही थी.

हालांकि ससुराल से उसे लिवाने कोई नहीं आया था. काकी को बोझ समझ कर उस के परिवार वाले उसे खुद ही उस की ससुराल फेंकने का मन बना चुके थे कि पार्वती बूआ को अपनी बरबाद हो चुकी जवानी याद आ गई. खुद उस के साथ कुनबे वालों ने कोई इंसाफ नहीं किया था और उसे कई बार उस की मरजी के खिलाफ ससुराल भेजा था, जहां उस की कोई कद्र नहीं थी.

तभी तो पार्वती बूआ बड़ेबूढ़ों की परवाह न करते हुए चीख उठी थी, ‘‘कहीं नहीं जाएगी काकी. उन कसाइयों के पास भेजने के बजाय उसे अपने खेतों के पास वाली नहर में ही धक्का क्यों न दे दिया जाए. बिना किसी बुलावे के या बिना कुछ कहेसुने, बिना कोई इकरारनामे के काकी को ससुराल भेज देंगे, तो वे ससुरे इस बार जला कर मार डालेंगे इस मासूम बेजबान लड़की को. फिर उन का एकाध आदमी तुम मार आना और सारी उम्र कोर्टकचहरी के चक्कर में अपने आधे खेतों को गिरवी रखवा देना.’’

दूसरी बार काकी के एकलौते भाई की आंखों में खून उतर आया था. उस ने हवेली के दरवाजे से ही चीख कर कहा था, ‘‘काकी ससुराल नहीं जाएगी. उन्हें आ कर हम से माफी मांगनी होगी. हर तीसरे दिन का बखेड़ा अच्छा नहीं. क्या फायदा… किसी की जान चली जाएगी और कोई दूसरा जेल में अपनी जवानी गला देगा. बेहतर है कि कुछ और ही सोचो काकी के लिए.’’

काकी के लिए बस 3 बार पूरा कुनबा जुटा था उस के आंगन में. काकी को यहीं मायके में रखने पर सहमति बना कर वे लोग अपनेअपने कामों में मसरूफ हो गए थे. उस के बाद काकी के बारे में सोचने की किसी ने जरूरत नहीं समझी और न ही कोई ऐसा मौका आया कि काकी के बारे में कोई अहम फैसला लेना पड़े.

काकी का कुसूर सिर्फ इतना था कि वह गूंगी थी और बहरी भी. मगर गूंगी तो गांव की 99 फीसदी लड़कियां होती हैं. क्या उन के बारे में भी कुनबा पंचायत या बिरादरी आंखें मींच कर फैसले करती है? कोई एकाध सिरफिरी लड़की अपने बारे में लिए गए इन एकतरफा फैसलों के खिलाफ बोल भी पड़ती है, तो उस के अपने ही भाइयों की आंखों में खून उतर आता है. ससुराल की लाठी उस पर चोट करती है या उस के जेठ के हाथ उस के बाल नोंचने लगते हैं.

ऐसी सिरफिरी मुंहफट लड़की की मां बस इतना कह कर चुप हो जाती है कि जहां एक लड़की की डोली उतरती है, वहां से ही उस की अरथी उठती है. यह एक हारे हुए परेशान आदमी का बेमेल सा तर्क ही तो है. एक अकेली छुईमुई लड़की क्या विद्रोह करे. उसे किसी फैसले में कब शामिल किया जाता है. सदियों से उस के खिलाफ फतवे ही जारी होते रहे हैं. वह कुछ बोले तो बिजली टूट कर गिरती है, आसमान फट पड़ता है.

अनगनित लोगों की शादियां टूटती हैं, मगर वे सब पागल नहीं हो जाते. बेहतर तो यही होता कि अपनी नाकाम शादी के बारे में काकी जितना जल्दी होता भूल जाती. ये शादीब्याह के मामले थानेकचहरी में चले जाएं, तो फिर रुसवाई तो तय ही है. आखिर हुआ क्या? शीशा पत्थर से टकराया और चूरचूर हो गया.

काकी का पति तो पहले भी वैसा ही था लंपट, औरतबाज और बाद में भी वैसा ही बना रहा. काकी से अलग होने के बाद भी उस की जिंदगी पर कोई खास असर नहीं पड़ा.

काकी के कुनबे का फैसला सुनने के बाद तो वह हर तरफ से आजाद हो चुका था. उस के सुख के सारे दरवाजे खुल गए, मगर काकी का मोह भंग हो गया. अब वह खुद को एक चुकी हुई बूढ़ी खूसट मानने लगी थी.

भरी जवानी में ही काकी की हर रस, रंग, साज और मौजमस्ती से दूरी हो गई थी. उस के मन में नफरत और बदले के नागफनी इतने विकराल आकार लेते गए कि फिर उन में किसी दूसरे आदमी के प्रति प्यार या चाहत के फूल खिल ही न सके.

किसी ने उसे यह नहीं समझाया, ‘लाड़ो, अपने बेवफा शौहर के फिर मुंह लगेगी, तो क्या हासिल होगा तुझे? वह सच्चा होता तो क्या यों छोड़ कर जाता तुझे? उसे वापस ले भी आएगी, तो क्या अब वह तेरे भरोसे लायक बचा है? क्या करेगी अब उस का तू? वह तो ऐसी चीज है कि जो निगले भी नहीं बनेगा और बाहर थूकेगी, तो भी कसैली हो जाएगी तू.

‘वह तो बदचलन है ही, तू भी अगर उस की तलाश में थानाकचहरी जाएगी, तो तू तो वैसी ही हो जाएगी. शरीफ लोगों का काम नहीं है यह सब.’

कोई तो एक बार उसे कहता, ‘देख काकी, तेरे पास हुस्न है, जवानी है, अरमान हैं. तू क्यों आग में झोंकती है खुद को? दफा कर ऐसे पति को. पीछा छोड़ उस का. तू दोबारा घर बसा ले. वह 20 साल बाद आ कर तुझ पर अपना दावा दायर करने से रहा. फिर किस आधार पर वह तुझ पर अपना हक जमाएगा? इतने सालों से तेरे लिए बिलकुल पराया था. तेरे तन की जमीन को बंजर ही बनाता रहा वह.

‘शादी के पहले के कुछ दिनों में ही तेरे साथ रहा, सोया वह. यह तो अच्छा हुआ कि तेरी कोख में अपना कोई गंदा बीज रोप कर नहीं गया वह दुष्ट, वरना सारी उम्र उस से जान छुड़ानी मुश्किल हो जाती तुझे.’

कुनबे ने काकी के बारे में 3 बार फतवे जारी किए थे. पहली बार काकी की मां ने ऐसे ही विद्रोही शब्द कहे थे कि कहीं नहीं जाएगी काकी. पहली बार गांव में तब हंगामा हुआ था, जब काकी दीनू काका के बेटे रमेश के बहकावे में आ गई थी और उस ने उस के साथ भाग जाने की योजना बना ली थी. वह करती भी तो क्या करती.

35 बरस की हो गई थी वह, मगर कहीं उस के रिश्ते की बात जम नहीं रही थी. ऐसे में लड़कियां कब तक खिड़कियों के बाहर ताकझांक करती रहें कि उन के सपनों का राजकुमार कब आएगा. इन दिनों राजकुमार लड़की के रंगरूप या गुण नहीं देखता, वह उस के पिता की जागीर पर नजर रखता है, जहां से उसे मोटा दहेज मिलना होता है.

गरीब की बेटी और वह भी जन्म से गूंगीबहरी. कौन हाथ धरेगा उस पर? वैसे, काकी गजब की खूबसूरत थी. घर के कामकाज में भी माहिर. गोरीचिट्टी, लंबा कद. जब किसी शादीब्याह के लिए सजधज कर निकलती, तो कइयों के दिल पर सांप लोटने लगते. मगर उस के साथ जिंदगी बिताने के बारे में सोचने मात्र की कोई कल्पना नहीं करता था.

वैसे तो किसी कुंआरी लड़की का दिल धड़कना ही नहीं चाहिए, अगर धड़के भी तो किसी को कानोंकान खबर न हो, वरना बरछे, तलवारें व गंड़ासियां लहराने लगती हैं. यह कैसा निजाम है कि जहां मर्द पचासों जगह मुंह मार सकता था, मगर औरत अपने दिल के आईने में किसी पराए मर्द की तसवीर नहीं देख सकती थी? न शादी से पहले और शादी के बाद तो कतई नहीं.

पर दीनू काका के फौजी बेटे रमेश का दिल काकी पर फिदा हो गया था. काकी भी उस से बेपनाह मुहब्बत करने लगी थी. मगर कहां दीनू काका की लंबीचौड़ी खेती और कहां काकी का गरीब कुनबा. कोई मेल नहीं था दोनों परिवारों में.

पहली ही नजर में रमेश काकी पर अपना सबकुछ लुटा बैठा, मगर काकी को क्या पता था कि ऐसा प्यार उस के भविष्य को चौपट कर देगा.

रमेश जानता था कि उस के परिवार वाले उस गूंगी लड़की से उस की शादी नहीं होने देंगे. बस, एक ही रास्ता बचा था कि कहीं भाग कर शादी कर ली जाए.

उन की इस योजना का पता अगले ही दिन चल गया था और कई परिवार, जो रमेश के साथ अपनी लड़की का रिश्ता जोड़ना चाहते थे, सब दिशाओं में फैल गए. इश्क और मुश्क कहां छिपते हैं भला. फिर जब सारी दुनिया प्रेमियों के खिलाफ हो जाए, तो उस प्यार को जमाने वालों की बुरी नजर लग जाती है.

काकी का बचपन बड़े प्यार और खुशनुमा माहौल में बीता था. उस के छोटे भाई राजा को कोई चिढ़ाताडांटता या मारता, तो काकी की आंखें छलछला आतीं. अपनी एक साल की भूरी कटिया के मरने पर 2 दिन रोती रही थी वह. जब उस का प्यारा कुत्ता मरा तो कैसे फट पड़ी थी वह. सब से ज्यादा दुख तो उसे पिता के मरने पर हुआ था. मां के गले लग कर वह इतना रोई थी कि मानो सारे दुखों का अंत ही कर डालेगी. आंसू चुक गए. आवाज तो पहले से ही गूंगी थी. बस गला भरभर करता था और दिल रेशारेशा बिखरता जाता था. सबकुछ खत्म सा हो गया था तब.

अब जिंदा बच गई थी तो जीना तो था ही न. दुखों को रोरो कर हलका कर लेने की आदत तब से ही पड़ गई थी उसे. दुख रोने से और बढ़ते जाते थे.

रमेश से बलात छीन कर काकी को दूर फेंक दिया गया था एक अधेड़ उम्र के पिलपिले गरीब किसान के झोंपड़े में, जहां उस के जवान बेटों की भूखी नजरें काकी को नोंचने पर आमादा थीं.

काकी वहां कितने दिन साबुत बची रहती. भाग आई भेडि़यों के उस जंगल से. कोई रास्ता नहीं था उस जंगल से बाहर निकलने का.

जो रास्ता काकी ने खुद चुना था, उस के दरमियान सैकड़ों लोग खड़े हो गए थे. काकी के मायके की हालत खराब तो न थी, मगर इतने सोखे दिन भी नहीं थे कि कई दिन दिल खोल कर हंस लिया जाए. कभी धरती पर पड़े बीजों के अंकुरित होने पर नजरें गड़ी रहतीं, तो कभी आसमान के बादलों से मुरादें मांगती झोलियां फैलाए बैठी रहतीं मांबेटी.

रमेश से छिटक कर और फिर ससुराल से ठुकराई जाने के बाद काकी का दिल बुरी तरह हार माने बैठा था. अब काकी ने अपने शरीर की देखभाल करनी छोड़ दी थी. उस की मां उस से अकसर कहती कि गरीब की जवानी और पौष की चांदनी रात को कौन देखता है.

फटी हुई आंखों से काकी इस बात को समझने की कोशिश करती. मां झुंझला कर कहती, ‘‘तू तो जबान से ही नहीं, दिल से भी बिलकुल गूंगी ही है. मेरे कहने का मतलब है कि जैसे पूस की कड़कती सर्दी वाली रात में चांदनी को निहारने कोई नहीं बाहर निकलता, वैसे ही गरीब की जवानी को कोई नहीं देखता.’’

मां चल बसीं. काकी के भाई की गृहस्थी बढ़ चली थी. काकी की अपनी भाभी से जरा भी नहीं बनती थी. अब काकी काफी चिड़चिड़ी सी हो गई थी. भाई से अनबन क्या हुई, काकी तो दरबदर की ठोकरें खाने लगी. कभी चाची के पास कुछ दिन रहती, तो कभी बूआ काम करकर के थकटूट जाती थी. काकी एक बार खाट से क्या लगी कि सब उसे बोझ समझने लगे थे.

आखिरकार काकी की बिरादरी ने एक बार फिर काकी के बारे में फैसला करने के लिए समय निकाला. इन लोगों ने उस के लिए ऐसा इंतजाम कर दिया, जिस के तहत दिन तय कर दिए गए कि कुलीन व खातेपीते घरों में जा कर काकी खाना खा लिया करेगी.

कुछ दिन तक यह बंदोबस्त चला, मगर काकी को यों आंखें झुका कर गैर लोगों के घर जा कर रहम की भीख खाना चुभने लगा. अपनी बिरादरी के अब तक के तमाम फैसलों का काकी ने विरोध नहीं किया था, मगर इस आखिरी फैसले का काकी ने जवाब दिया. सुबह उस की लाश नहर से बरामद हुई थी. अब काकी गूंगीबहरी ही नहीं, बल्कि अहल्या की तरह सर्द नीला पत्थर हो चुकी थी.

टैडी बियर: भाग 3- क्या था अदिति का राज

 

फिर वह नीलांजना के पास आ कर बोला, ‘‘तुम यहां कैसे? मतलब यहां किसलिए?’’

अर्णव के हैरानपरेशान चेहरे को देख नीलांजना की हंसी छूटने लगी. वह कुछ समझता उस से पहले ही धु्रव अर्णव के कंधे पर हाथ रखते हुए नीलांजना से बोला, ‘‘यह मेरा साला यानी अदिति का भाई है और अर्णव यह मेरी कजिन.’’

‘‘ओह नो…’’

‘‘अर्णव के हावभाव देख कर आदिति सहसा बोली, ‘‘नीलांजना यह तुम लाई हो… क्या तुम ही इस की….’’

‘‘हां भाभी मैं ही इस की ऐक्स गर्लफ्रैंड हूं… सौरी भाभी, प्रोग्राम तो अर्णव को परेशान करने का था, पर आप गेहूं के साथ घुन सी पिस गईं.’’

‘‘ओहो नीलांजना, बस अब बहुत हुआ… तेरे और अर्णव के चक्कर में मेरी प्यारी बीवी परेशान हो रही है. बस अब खोल दे सस्पैंस,’’ धु्रव ने कहा.

नीलांजना अर्णव और अदिति की बेचारी सी सूरत देख अपनी हंसी रोकते हुए बोली, ‘‘हुआ यों कि जब आप का और धु्रव भैया का फोटो सोशल साइट पर वायरल हुआ था तब मुझे इस टैडी को देख कर कुछ शक हुआ था, क्योंकि इस टैडीबियर को मैं ने अपने हाथ से बनाया था, इसलिए आसानी से पहचान लिया. और तो और इस के गले में मेरा वही रैड स्कार्फ बंधा था जो अर्णव को बहुत पसंद था. पोल्का डौट वाला रैड स्कार्फ… याद है अर्णव तुम उस स्कार्फ में देख कर मुझ पर कैसे लट्टू हो जाते थे,’’ कह वह जोर से हंसी तो अर्णव का चेहरा शर्म से लाल हो गया.

अर्णव किसी तरह अपनी झेंप मिटाते हुए बोला, ‘‘दीदी, कम से कम स्कार्फ तो हटा देतीं.’’

यह सुन कर अदिति शर्म से दुहरी होती हुई बोली, ‘‘तुम दोनों के सामने मेरी और अर्णव की करामात यों सामने आएगी, सोचा नहीं था.’’

‘‘भाभी प्लीज… ये सब मजाक था. आप दोनों को शर्मिंदा करना हमारा कोई मकसद थोड़े ही था… आप भाईबहन की क्यूट बौंडिंग पर हम भाईबहन थोड़ी मस्ती करना चाहते थे. पहले भैया राजी नहीं थे. मुझ पर नाराज भी हुए कि मैं ने अर्णव को तंग करने के लिए टैडी क्यों मांगा… भैया आप से बहुत प्यार करते हैं भाभी… आप की शादी को पूरा 1 साल हो गया है. मैं इंडिया आती आप से मिलती अर्णव भी मिलता तो सब सामने आता ही… ऐसे में फन के लिए मैं ने अपने ध्रुव भैया को पटाया कि चलो थोड़ी मौजमस्ती के साथ यह बात खुले… मेरी ऐंट्री धमाके के साथ हो तो मजा आ जाए…’’ नीलांजना ने अदिति का हाथ पकड़ कर कहा.

अदिति कुछ शर्मिंदगी से बोली, ‘‘जो भी कहो, पर मेरी चोरी धु्रव के सामने इस तरह आएगी मैं सोच भी नहीं सकती थी.’’

यह सुन कर धु्रव ने उसे गले से लगाते हुए कहा, ‘‘दिल तो तुम ने मेरा कभी का चुरा लिया था मेरी जान और हां हमारे प्यार के प्रूफ के लिए किसी टैडीवैडी की जरूरत नहीं… हां बाय द वे नीलांजना ने हमारी शादी के पहले ही मुझे सब बता दिया था. पहले जाहिर करता तो पता नहीं तुम कैसे रिएक्ट करतीं. अब 1 साल में तुम्हें अपने प्रेम में पूरी तरह गिरफ्त में लेने के बाद मैं ने मस्ती करने की गुस्ताखी की है,’’ धु्रव कानों को पकड़ते हुए बोला.

अदिति को अब भी मायूस खड़े देख कर नीलांजना बोली, ‘‘भाभी प्लीज, आप ऐसे सैड ऐक्सप्रैशन मत दो. ऐसे ऐक्सप्रैशन तो मैं अर्णव के चेहरे पर देखना चाहती थी, पर क्या बताऊं, अब उस में भी मजा नहीं, क्योंकि अभीअभी आते समय प्लेन में एक इंडियन से मेरी मुलाकात हो गई. खूब बातें भी हुईं… लगता है वह मुझ में रुचि ले रहा है. फोन नंबर दिया है… देखते हैं क्या होता है?’’ कह कर वह बिंदास हंस दी.

‘‘अदिति सच कहूं तो आज से कुछ साल बाद हम यह किस्सा सुनेंगे, सुनाएंगे और हंसेंगे…’’ धु्रव बोला.

नीलांजना भी कहने लगी, ‘‘भाभी, आप और भैया तथा इस टैडी का फोटो वायरन होने के बाद ही मैं ने अर्णव के प्रति पाली नाराजगी और कुछ आप को तंग करने की गुस्ताखी में अर्णव से टैडी मांगा था. अर्णव कुछ समझ नहीं पाया पर मेरे इस व्यवहार पर इतना नाराज हुआ कि उस ने मुझे दिए सारे गिफ्ट मांग लिए. आस्ट्रेलिया में होने के कारण शादी में मैं नहीं आई, पर कभी न कभी तो मैं अर्णव से मिलती ही, तब सब जान ही जाते… भैया शादी के पहले से ही सब जानते थे. हम ने तय किया था कि किसी ऐसे ही मजेदार मौके पर इस बात का खुलासा करेंगे.’’

‘‘ओह,’’ कह कर अदिति ने अपना सिर पकड़ लिया. फिर अर्णव को धौल जमाती हुए कहने लगी, ‘‘सब तेरी वजह से हुआ है.’’

अर्णव को अपनी पीठ सहलाते देख कर धु्रव हंसते हुए बोला, ‘‘अरे सुनो अदिति, जब टैडी वाली बात सामने आई है तो अब मैं भी कन्फेस कर लूं…’’

‘‘क्या…अब क्या रह गया है,’’ हैरानी से अदिति ने पूछा.

धु्रव हंस कर बोला, ‘‘तुम्हें पहली बार मैं ने जो ड्रैस दी थी. अरे वही पिंक वाली

ड्रैस जो तुम्हारे ऊपर बड़ी फबती दिखती है, जिसे पहन कर टैडी और मेरे साथ तुम ने फोटो खचवाया था, जो वायरल हुआ था सोशल साइट पर…’’

‘‘हांहां, समझ गई तो?’’

उस का मुंह आश्चर्य से खुला देख नीलांजना हंसते हुए बोली, ‘‘भाभी, वह ड्रैस मैं ने अपने लिए औनलाइन मंगवाई थी, पर टाइट पड़ गई… रिटर्न औप्शन भी नहीं था. भैया आप को गिफ्ट देना चाहते थे तो मैं ने कहा इसे दे दो. पैसे बच जाएंगे और ड्रैस भी काम आ जाएगी.’’

‘‘ओह, नो,’’ अदिति सिर थामते हुए बोली. फिर सहसा हंसते हुए कहने लगी, ‘‘फिर तो नीलांजना, हम दोनों तुम्हारे कर्जदार हैं. ये ड्रैस के लिए और मैं टैडीबियर के लिए,’’ फिर सहसा धीमेधीमे हंसते हुए धु्रव को देख नकली गुस्से से बोली, ‘‘और हां, तुम ने उस ड्रैस के लिए कैसेकैसे स्वांग रचे थे… क्या कहा था कि यह ड्रैस देखते ही मैं फिदा हो गया और यह भी कि ड्रैस तुम्हारे लिए बनी हुई लगती है.’’

‘‘हां, तो सही तो कहा था… तभी तो नीलांजना को टाइट पड़ गई…’’ धु्रव की बात सुन कर सब जोर से हंस पड़े. अदिति भी.

तभी अर्णव की आवाज आई, ‘‘दीदी,

10 बजे गए हैं, कुछ खाने को दो. और

हां नीलांजना काफी देर हो गई तुम्हारा कोई फोन नहीं आया. शायद जहाज में बैठे सहयात्री ने तुम्हारे साथ टाइम पास किया होगा. तभी फोन नहीं किया… देख लो, औप्शन अभी भी तुम्हारे सामने है,’’ अर्णव ने शरारत से कहा.

यह सुन ‘‘अर्णव के बच्चे,’’ कहते हुए नीलांजना ने टैडी उस पर दे मारा.

घर की इस गहमागहमी में धु्रव कुछ रूठी हुई अदिति को मनाते हुए कह रहा था,, ‘‘बड़ा शोर है यहां… अगले साल इन हड्डियों से बचने के लिए हम हनीमून पर कहीं बाहर चले जाएंगे…’’

‘‘सच?’’ अदिति ने नकली गुस्सा फेंक कर मुसकराते हुए उसे बाहों में भर लिया.

एकदूसरे से छिपाए गए बड़े झूठ यहां खुले थे, पर जो सच इन के दिलों में बंद था वह यह कि दोनों एकदूसरे से बेइंतहा प्यार करते थे. तभी तो एक के बाद एक हुए खुलासे पर दोनों को हंसी आ रही थी. शादी की पहली सालगिरह की दूसरी सुबह यकीनन यादगार थी.

टैडी बियर: भाग 2- क्या था अदिति का राज

 

देवांशी परेशान अदिति के कंधे पर हाथ रखती हुई बोली, ‘‘क्या वाकई, तुम्हारा प्यार छलावा था?’’

‘‘कैसी बात कर रही है? मेरी जान है धु्रव… प्यार करती हूं तभी तो उस के लिए ये सब कर रही हूं. हाय एक टैडीबियर हमारे प्यार को साबित करेगा… ये सब कितनी बेवकूफी है.’’

अदिति के मुंह से ये सब सुन कर देवांशी को पहले तो हंसी आई पर फिर गंभीर हो कर बोली, ‘‘सब जानती है तो क्यों ये सब धु्रव से छिपा रही है? वहां अर्णव परेशान है और यहां तुम.’’

‘‘फिर क्या करूं बता?’’ अदिति मायूसी

से बोली.

देवांशी कुछ सोचते हुए कहने लगी, ‘‘चलो, अब इतने झूठ बोले हैं तो एक और बोल दो. कह दो कि टैडी कोई बच्चा उठा ले गया या फिर तुम्हारी मम्मी ने किसी को दे दिया अथवा गुम हो गया.’’

अदिति चहकी, ‘‘हां देवांशी, यह गुम होने वाला आइडिया सब से अच्छा है, क्योंकि लेनेदेने वाले आइडिया में पाने की कोई न कोई गुंजाइश होती है पर गुम हुआ यानी मिलने की न के बराबर उम्मीद है,’’ यह कहते ही उत्साहित अदिति के चेहरे पर सुकून छा गया. जैसे कोई बहुत बड़ा निबटारा हो गया हो.

दूसरे दिन देवांशी को अदिति ने फोन पर सूचित किया कि उन की तरकीब काम

कर गई है. अर्णव ने अपने जीजू से माफी मांगते हुए टैडी के गुम होने की बात कह दी. धु्रव एक बार फिर बहकावे में आ गया… उस से झूठ बोलना अच्छा नहीं लगा. फिर भी अदिति खुश थी कि इस टैडी वाले प्रसंग से हमेशा के लिए पीछा छूटा…

इस बात को हफ्ता बीत गया. उन की शादी की सालगिरह आ गई. शादी की सालगिरह पर घरबाहर के बहुत सारे मेहमान आए. बड़ों के आशीर्वाद और संगीसाथियों की ढेर सारी बधाइयों के बीच दोनों यानी धु्रवअदिति सब के आकर्षण के केंद्र बने थे.

इस फंक्शन में अर्णव भी आया था. फंक्शन के बाद मौका पा कर अदिति ने अपने भाई को आड़े हाथों लिया.

तब उस ने भी इस बेवजह के अवांछित प्रसंग को ले कर और अपनी गर्लफ्रैंड के साथ

उस अपरिपक्व हरकत पर अफसोस जाहिर करते हुए इतने दिनों बाद उठी बात पर खुलासा किया, ‘‘दीदी, मेरी और अंजना की लड़ाई के बीच आप फंस गईं. हुआ यों कि ब्रेकअप के बाद… कुछ महीने सब ठीक रहा पर अचानक एक दिन उस ने मुझे से टैडी मांग लिया. मुझे भी बहुत अजीब लगा.

‘‘शुरू में मैं ने टाला आप की वजह से. पर वह जिद करने लगी कि उसे अपना टैडी चाहिए ही चाहिए. ऐसे में मैं ने सोचा कि कहीं उसे यह न लगने लगे कि मैं अब भी उस में रुचि रखता हूं… फिर एक दिन मेरा और आप का झगड़ा हो गया. बस उसी का फायदा उठा कर मैं ने तुम से जबरदस्ती टैडी मांग कर उस के हवाले कर के मुसीबत से पीछा छुड़ा लिया.’’

‘‘और मेरी मुसीबत बढ़ा दी पागल…’’

‘‘पर दीदी मैं ने भी उसे दिए सारे गिफ्ट मांग लिए थे.’’

‘‘पर उस से क्या अर्णव… ऐसा भी क्या टैडी से मोह जो उस के बगैर नहीं रह पाई… उस टैडी में कहीं तू तो नहीं दिखता था उसे?’’

‘‘अरे नहीं दीदी,’’ वह खिसिया कर बोला.

अदिति तुरंत उसे चिढ़ाती हुई कहने लगी, ‘‘फिर पक्का उस ने अपने दूसरे बौयफ्रैंड को टिका कर अपने पैसे बचाए होंगे… पर सच, तुम दोनों की बेवकूफी में मैं अच्छा फंसी.’’

‘‘अरे अब माफ भी कर दे न,’’ अर्णव प्यार से बोला.

‘‘किस बात की माफी मांगी जा रही है साले साहब?’’ अचानक ध्रुव की आवाज कानों में पड़ी. धु्रव को अचानक कमरे में आता देख दोनों संभल कर बैठ गए. अर्णव उठते हुए बोला, ‘‘कुछ नहीं जीजू, आज शाम को मैं देर से क्यों आया इस बात को ले कर आप की बीवी मुझे डांट रही है… अच्छा दीदीजीजू अब बाकी बातें कल करेंगे. थक गया हूं.’’ कह वह सोने चला गया.

दूसरे दिन सुबह सब सो रहे थे. लगातार बजती कौलबैल से अदिति की नींद खुली तो देखा दरवाजे पर अटैची के साथ खड़ी एक लड़की भाभी कहते हुए उस के गले लग गई. अदिति  को हैरानी से ताकते देख कर वह मुसकराई और फिर भीतर आते हुए बोली, ‘‘अरे भाभी, मैं नीलांजना… धु्रव भैया कहां हैं…?’’

अदिति को याद आई धु्रव की कजिन, जो शादी के एन मौके पर एमबीए करने के लिए आस्ट्रेलिया चली गई थी. अदिति से बात करते वह इधरउधर देखते हुए बड़े इत्मिनान और हक से भीतर आते बोली, ‘‘देखो भाभी, मुझ पर कबाब में हड्डी होने का आरोप न लगे, इसलिए मैं कल नहीं आई…’’

नीलांजना की बात पर अदिति कुछ कहती उस से पहले ही धु्रव की आवाज आ गई, ‘‘कबाब में हड्डी तो कल आ ही गई थी हमारे बीच तुम भी आ जाती तो कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

धु्रव का इशारा अर्णव की तरफ है, यह समझ कर अदिति ने उसे घूरा तो गुस्ताखी माफ कहते हुए उस ने धीरे से कान पकड़ लिए.

‘‘क्या हुआ कोई और भी आया

है क्या?’’

नीला के पूछने पर अदिति ने कहा, ‘‘मेरा छोटा भाई आया है.’’

‘‘ओह, ग्रेट…’’ कहते हुए उस की नजर मेज पर बिखरे ढेर सारे गिफ्टों पर चली गई, ‘‘वाऊ, कितने सारे गिफ्ट हैं. अभी तक खोले नहीं… मेरा इंतजार कर रहे थे क्या? जानती हैं भाभी कि गिफ्ट खोलना मुझे बहुत अच्छा लगता है…’’ कहते हुए वह उत्साह से मेज की ओर बढ़ी तो अदिति ने उसे हैरानी से देखा. लगा ही नहीं कि वह नीलांजना से पहली बार मिल रही है.

धु्रव ने भी एक बार को उसे टोका, ‘‘अरे रुक जा…पहले कुछ खापी ले…’’

‘‘हांहां बस, चायबिस्कुट लूंगी. भाभी अगर आप बुरा न मानें तो क्या मैं गिफ्ट खोलू?’’ वह मेज के ऊपर रखे गिफ्ट उत्साह से देखती हुई बोली.

‘‘हांहां क्यों नहीं,’’ कहते हुए अदिति कुछ अजीब नजरों से उसे देख कर किचन में आ गई. चाय बना कर लाई तो देखा धु्रव के साथ बैठी नीला गिफ्ट देख कर उत्साहित हो रही थी. लगभग सभी गिफ्ट खुल चुके थे. सिर्फ एक बाकी था.

उसे अदिति की ओर बढ़ाते हुए नीला कहने लगी, ‘‘भाभी, इसे आप खोलो.’’

चाय की ट्रे रख कर अदिति ने उस गिफ्ट को चारों ओर से घुमा कर

देखा. उस पर किसी का नाम नहीं था. ‘‘किस का है, यह… कुछ पता ही नहीं चल रहा है,’’ कहते हुए अदिति ने उसे खोला तो हैरान रह गई. हूबहू वैसा ही टैडीबियर, जिसे वह इतने दिनों से ढूंढ़ती फिर रही थी…

धु्रव मुसकराते हुए बोल रहा था, ‘‘अच्छा तो यह अर्णव का सरप्राइज है,’’ धु्रव अदिति की तरफ देखते हुए बोला.

‘‘मुझे नहीं पता कहां से आया है यह… हाय, यह तो बिलकुल वैसा है,’’ अटपटाते हुए वह बोली. तभी अर्णव की आवाज आई, ‘‘वैसा ही नहीं, वही है दीदी,’’ कमरे में आते हुए अर्णव बोला. फिर वह हैरानी से कभी नीलांजना को तो कभी टैडी को देख रहा था.

टैडी बियर: भाग 1- क्या था अदिति का राज

 

‘‘सुनिए,मुझे टैडीबियर चाहिए, बिलकुल ऐसा…’’ मोबाइल पर एक फोटो दिखाते हुए अदिति ने एक बार फिर उम्मीदभरी नजर दुकानदार पर गड़ाई. मगर उस ने सरसरी नजर मोबाइल पर डालते हुए इनकार में सिर हिला दिया.

मायूस चेहरा लिए अदिति सौफ्ट टाएज की दुकान से बाहर निकली तो उस की कालेज की पुरानी सहेली देवांशी खीज कर बोली, ‘‘क्या हुआ है तुझे… मुझे सुबहसुबह फोन कर के बुला लिया कि जरूरी शौपिंग करनी है… 2 घंटे से कम से कम 6 दुकानों में टैडीबियर पूछ चुकी है… हम क्या टैडीबियर खरीदने आए है यहां?’’

देवांशी के खीजने पर अदिति ने मासूमियत से मुंह बनाते हुए हां कहा. तो देवांशी उसे हैरानी से देखती हुई बोली, ‘‘अच्छा दिखा मुझे कैसा टैडीबियर चाहिए तुझे,’’ कहते हुए उस के हाथ से मोबाइल छीन लिया. फिर ध्यान से वह फोटो देखा जिस में अदिति पिंक कलर की खूबसूरत ड्रैस में धु्रव और एक टैडीबियर के साथ दिखाई दे रही थी.

शादी से पहले खिंचाई इस तसवीर में टैडी को अदिति ने एक खास अंदाज में

पकड़ा था और अदिति को उसी पोज में धु्रव ने. यह फोटो सोशल साइट पर खूब वायरल हुआ था.

देवांशी जानती थी कि यह टैडीबियर अदिति का धु्रव को दिया पहला उपहार था और वह पिंक ड्रैस धु्रव का अदिति को दिया पहला उपहार. इस फोटो के साथ ही अदिति ने अपने सिंगल स्टेटस को इंगेज्ड में बदल दिया था. फोटो में दिखाई देने वाले टैडी जैसा एक और टैडीबियर खरीदने आई अदिति उस की समझ से परे थी.

देवांशी के चेहरे पर सवाल देख कर अदिति बोली, ‘‘उफ, बड़ी गलती हो गई… मुझे धु्रव से यह टैडी मांगना ही नहीं चाहिए था.’’

‘‘मांग लिया मतलब? तूने अपना दिया गिफ्ट वापस मांग लिया? क्या कह कर गिफ्ट वापस मांगा और क्यों?’’ देवांशी ने हैरानी से पूछा.

अदिति बोली, ‘‘यार मजबूरी में मांगना पड़ा. लंबी कहानी है तू नहीं समझेगी. सारा पेंच इसी में तो है. मैं तो शादी के बाद इस टैडी को भूल भी गई थी पर धु्रव नहीं भूला. अगले हफ्ते हमारी शादी की सालगिरह है. मेरा भाई अर्णव आ रहा है. बेवकूफ अर्णव ने धु्रव से पूछ लिया कि जीजू आप को दिल्ली से कुछ मंगवाना तो नहीं है. यह सुन कर धु्रव ने कह दिया कि वह टैडीबियर लेता आए जिसे मैं मायके में छोड़ आई हूं. अब अर्णव परेशान है कि जो टैडी अब घर में है ही नहीं, उसे कहां से लाए… मैं ने सोचा उस जैसा दूसरा ढूंढ़ कर उस की परेशानी हल कर दूं.’’

‘‘उस जैसा दूसरा… मतलब कि यह फोटोवाला टैडी तुम्हारे मायके से गुम हो गया है?’’ देवांशी ने अपनी समझ से अंदाजा लगाया.

तब अदिति ने खुलासा किया, ‘‘अरे यार हुआ यों कि धु्रव को दिया यह टैडीबियर अर्णव का ही था. अर्णव का भी नहीं था, बल्कि अर्णव को वह अपनी गर्लफ्रैंड से मिला था.  बाद में दोनों के बीच ब्रेकअप हो गया. उन दिनों मेरे और धु्रव के बीच में चक्कर चल रहा था सो उस खूबसूरत टैडी को मैं ने अर्णव से मिन्नतें कर के मांग लिया. और धु्रव को दे दिया.

‘‘एक दिन अर्णव का मूड खराब था. उस का मेरा झगड़ा हो गया… अब क्या जानती थी कि बेवकूफ अर्णव से मेरा झगड़ा इतना महंगा पड़ेगा कि वह गुस्से में भर कर अपना टैडीबियर मुझ से वापस मांग लेगा… तू तो मुझे जानती है कि मैं किसी की धौंस सहन नहीं करती हूं… मैं ने भी प्रैस्टिज इशू बना कर किसी तरह जोड़तोड़ कर के उस का टैडी धु्रव से वापस मांग कर उस के मुंह पर मार दिया…’’

‘‘हांहां, पर धु्रव से क्या कह कर वापस मांगा… मतलब टैडी मांगने के लिए क्या

जोड़तोड़ की?’’

देवांशी ने उत्सुकता से पूछा तो अदिति सीने पर हाथ रख कर स्वांग भरती कहने लगी, ‘‘अरे, उस समय तो धु्रव को यह कह कर बहला लिया कि इस टैडी में मुझे तुम दिखते हो. तुम तो हमेशा मेरे पास रहते नहीं हो, इसलिए इस टैडी को मैं सदा अपने पास रखना चाहती हूं ताकि तुम्हें मिस न करूं… धु्रव भावुक हो गया. ये सब सुन कर उस ने टैडी मुझे सौंप दिया और मैं ने उस ईडियट अर्णव को… और अर्णव ने अपनी बेवकूफ ऐक्स गर्लफ्रैंड को वापस कर दिया.’’

‘‘कैसा भाई है तेरा… और तू भी न… धु्रव को पहला गिफ्ट दिया वह भी भाई की गर्लफ्रैंड का जो उस ने तेरे भाई को दिया था.’’

‘‘अरे मैं ने सोचा फालतू पड़ा है… मतलब टैडी बड़ा क्यूट था… उन का तो ब्रेकअप हो ही चुका था. क्या करता अर्णव उस का सो दे दिया.’’

‘‘दे दिया नहीं ठिकाने लगा दिया.’’

देवांशी के यह कहने पर अदिति धीमे से बोली, ‘‘हां यार, यही गलती हो गई… पर अर्णव, जैसा भी है, है तो आखिर मेरा भाई… हालांकि उस ने झगड़े के बाद परेशान बहुत किया. जानती है, मैं तो तब डर ही गई थी, जब वह चिढ़ कर कहने लगा था कि मैं धु्रव को बता दूंगा कि जो टैडी तुम्हें अदिति ने दिया है दरअसल वह मेरी गर्लफ्रैंड ने मुझे दिया था. अब सोच, वह मुझे शर्मिंदा करे उस से पहले ही मैं ने तिकड़म कर मामला सुलटा लिया वरना पता नहीं क्या होता… अब क्या जानती थी कि धु्रव को अपनी पहली शादी की सालगिरह आतेआते पहली डेट की वह निशानी याद आ जाएगी…’’

अदिति की बात सुन कर देवांशी ने सिर पकड़ लिया. कुछ देर चुप रहने के बाद वह बोली, ‘‘तू ऐसा कर, ऐसा टैडी औनलाइन सर्च कर…’’

‘‘वह भी कर लिया नहीं मिला,’’

अदिति बोली.

देवांशी कुछ देर मौन रहने के बाद बोली, ‘‘अब एक ही रास्ता है… जैसे तुम ने मुझे सारी बात बताई वैसे ही उस की ब्रेकअप वाली फ्रैंड को बता दे. शायद वह तुम्हारी बेवकूफी को समझे और तरस खा कर वह टैडी वापस कर दे.’’

‘‘अर्णव ने यह भी सोचा था, पर पता चला अब वह इंडिया में नहीं है. उस से कोई कौंटैक्ट ही नहीं हो पा रहा है…’’

‘‘बेचारे अर्णव ने मेरी शादी से पहले अपनी इस हरकत के लिए मुझ से माफी मांग ली थी. मैं भी उस की इस बेवकूफी को भाईबहन की बेवकूफियां समझ कर भुला चुकी थी पर अब बता क्या करूं?’’

‘‘तू पागल है अदिति, बिलकुल पागल… शादी के पहले हम बहुत सी बेवकूफियां करते हैं, पर वे बेवकूफियां शादी के बाद भी जारी रहें यह सही नहीं है. सुन, मैं धु्रव को सब बता देती हूं,’’ देवांशी ने मोबाइल उठा लिया.

अदिति ने उस के हाथ से मोबाइल छीनते हुए कहा, ‘‘क्या कर रही है तू… किस मुंह से कहूंगी कि जानूं, मैं ने तुम्हें बेवकूफ बनाया… तुम्हें दिया हुआ पहला गिफ्ट मांगा हुआ था. और तो और, मैं ने तुम्हें बेवकूफ बना कर उसे तुम से वापस हासिल कर के अपने भाई को दे दिया और भाई ने अपनी ब्रेकअप वाली गर्लफ्रैंड को… देख देवांशी, मैं धु्रव को बहुत प्यार करती हूं और ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहती हूं, जिस से उसे मेरा वह प्यार, वे सारी फीलिंग्स छलावा लगें… वह मुझे तो क्या मेरी पूरी फैमिली को चालू समझेगा.’’

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