Hindi Moral Tales : ई. एम. आई – क्या लोन चुका पाए सोम और समिधा?

Hindi Moral Tales :  रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म की एक बेंच पर सोम और समिधा बैठे हुए अम्मां बाबूजी की गाड़ी के आने का इंतजार कर रहे थे. कुहरे के कारण गाड़ी 4 घंटे लेट थी. सोम गहरे सोच में था.

वह मन ही मन बढ़ने वाले खर्च को सोच कर गुणाभाग में लगा हुआ था.

‘‘समिधा, इस ई.एम.आई. के कारण हम लोगों के हाथ हमेशा बंधे रहते हैं.’’

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‘‘तुम भी सोम न जाने क्याक्या सोचते रहते हो. इसी के जरिए तो हम लोगों ने सुखसुविधा की चीजें जोड़ ली हैं, नहीं तो भला क्या मुमकिन था?’’

‘‘समिधा, अम्मांबाबूजी पहली बार अपने घर आ रहे हैं. ध्यान रखना, अम्मां नाराज न होने पाएं.’’

‘‘सोम, तुम यह बात कम से कम 15 बार कह चुके हो. तुम्हारी अम्मां तुनकमिजाज हैं, यह मुझे अच्छी तरह मालूम है.’’

सोम चुप हो कर बैठ गया.

उस के मन में डर था कि अम्मां और समिधा की कैसे निभेगी, क्योंकि अम्मां को उस के हर काम में मीनमेख निकालने की आदत है. समिधा भी बहुत जिद्दी है. सोम उसे 2 साल तक मां न बनने की बात कह रहा था, लेकिन उस ने चुपचाप अपनी मनमानी कर ली. यह राज तो तब खुला जब एक दिन उस ने समिधा से कहा कि उस का प्रमोशन हुआ है, उस की तनख्वाह भी बढ़ जाएगी. तभी हंस कर बोली थी वह, ‘‘आप का एक प्रमोशन और हुआ है.

‘‘वह क्या?’’ पूछने पर समिधा शरमाते हुए बोली थी, ‘‘आप पापा बनने वाले हैं.’’

सुन कर वह घबरा गया था, ‘‘नहींनहीं, अभी यह सब नहीं. अभी मेरे लिए तुम्हारी नौकरी बहुत जरूरी है. तुम औफिस जाओगी तो बच्चे को कौन रखेगा?’’

निश्चिंत हो कर वह बोली थी, ‘‘मैं ने अम्मां से बात कर ली है, वे अब यहीं रहेंगी. बच्चे को वे ही संभालेंगी.’’

दोनों में अच्छीखासी बहस हो गई थी. सोम का कहना था कि उस की और अम्मां की पटेगी नहीं.

समिधा का कहना था कि वह अम्मां को अच्छी तरह समझती है, वे उसे अकेला छोड़ कर गांव कभी नहीं जाएंगी.

सोम गंभीर हो कर अपनी और समिधा की मुलाकात और शादी के बारे में सोचने लगा. उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे कल की ही बात हो.

समिधा सोम के औफिस में ही काम करती थी. वह गोरे रंग एवं तीखे नैननक्श वाली लड़की थी. काम के सिलसिले में उसे सोम के पास बारबार जाना पड़ता था. दोनों ही साधारण परिवार से थे. मिलतेजुलते कब एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए, उन्हें पता ही नहीं लगा.

समिधा का पहले शरमाना, फिर मुसकराना, फिर साथ में कौफी पीना और फिर बाइक पर लिफ्ट… चूंकि दोनों की पृष्ठभूमि लगभग एक सी थी, अत: प्यार परवान चढ़ने लगा. औफिस में दोनों के बारे में चर्चा होने लगी थी. कुछ दिन बाद अचानक समिधा ने औफिस आना बंद कर दिया, तो सोम परेशान हो उठा. उस ने समिधा के घर का पता लगाया और बेचैन हालत में उस के घर पहुंच गया. वह एक कालोनी में अपनी बूआ के साथ रहती थी. उस के मांबाप बचपन में ही गुजर गए थे. बूआ ने ही उसे पढ़ाया लिखाया था. बूआ एक प्राइमरी स्कूल में अध्यापिका थीं. समिधा और बूआ दोनों एकदूसरे का सहारा थीं. मेवा मिठाई, पकवान तो उन के पास नहीं था, परंतु दाल रोटी अच्छी तरह से चल रही थी.

सोम को देखते ही समिधा की बूआ सरिताजी की त्योरियां चढ़ गई थीं. छूटते ही उन्होंने प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी कि कहां रहते हो? घर पर कौनकौन है? समिधा से क्यों मिलने आए हो? तुम्हारी तनख्वाह कितनी है? आदिआदि.

सोम के माथे पर पसीना आ गया था. वह उस घड़ी को कोसने लगा था, जब उस ने समिधा के घर की ओर रुख किया था. परंतु वह अपनी अम्मां के ऐसे तेवरों से वाकिफ था, इसलिए उस ने धैर्यपूर्वक उन्हें उत्तर दिए.

जब सरिताजी थोड़ी आश्वस्त हुईं तो बोलीं, ‘‘इसे तो 1 हफ्ते से बुखार आ रहा था. इसीलिए औफिस नहीं जा रही थी. अब बुखार ठीक हो गया है, इसलिए कल से यह औफिस जाएगी,’’ फिर चेतावनी भरे स्वर में बोलीं, ‘‘मुझे लड़के लड़कियों की दोस्ती पसंद नहीं है. लड़के कुछ दिन तो लड़कियों से प्यार का नाटक करते हैं, फिर जब दूसरी पर दिल आ जाता है तो पहले वाली की ओर मुड़ कर भी नहीं देखते.’’

सोम की तो स्पष्टवादी सरिताजी के सामने बोलती ही बंद हो गई थी. सरिताजी उठ कर अंदर चली गईं तब समिधा ने फुसफुसा कर उस से कहा, ‘‘आप को यहां आने की क्या जरूरत थी? बूआ ने इतनी बातें कह डालीं आप से, मैं उन की ओर से क्षमा मांगती हूं.’’

सोम ने दबे स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारा मोबाइल बंद था, इसलिए मैं घबरा गया था. अच्छा अब मैं चलता हूं.’’ वह खड़ा ही हुआ था कि तभी बूआ चायनाश्ता ले कर आ गईं. बोलीं, ‘‘क्यों बेटा, तुम मेरी बात का बुरा मान गए क्या? मेरी जवान बेटी है, सुंदर भी है इसलिए डरती हूं, कहीं किसी गलत लड़के के चक्कर में न पड़ जाए. लंबाचौड़ा दहेज देने की हैसियत तो मेरी है नहीं कि यह राजकुमार का ख्वाब देखे. कोई पढ़ालिखा, खाताकमाता लड़का मिल जाए, जो इस का ध्यान रखे, इस को इज्जत दे, बस यही चाहती हूं मैं. पढ़ालिखा कर काबिल बना दिया है मैं ने इसे, अपने पैरों पर खड़ी हो गई है यह.’’

सोम ने उन लोगों से विदा ली. सरिताजी की स्पष्टवादिता से वह उन का कायल हो गया. एक मां के दर्द को उस ने गहराई से अनुभव किया था. उसी क्षण उस ने मन ही मन समिधा से शादी का निर्णय कर लिया था. अम्मांबाबूजी से आज्ञा लेना तो मात्र औपचारिकता थी.

अगले दिन वह औफिस गई तो सोम से आंखें मिलाने में सकुचा रही थी, परंतु वह उस को देखते ही खुश हो गया. लंच के समय समिधा ने पुन: उस से बूआ की बातों के लिए माफी मांगी, परंतु सोम ने तो उस के समक्ष शादी का प्रस्ताव ही रख दिया. वह खुशी से झूम उठी, उसे अपने पर विश्वास नहीं हो रहा था.

एक हफ्ते बाद ही सोम छुट्टी ले कर अपने गांव गया. वहां उस ने अम्मांबाबूजी को उस का फोटो दिखा कर पूछा, ‘‘यह लड़की कैसी है?’’ दोनों ने फोटो देखा फिर एकसाथ बोल पड़े, ‘‘दहेज कितना मिलेगा?’’

वह बोला, ‘‘दहेज. लेकिन मैं तो बिना दहेज लिए ही शादी करूंगा.’’

बाबूजी भड़क उठे, ‘‘तुम्हारा तो दिमाग खराब हो गया है. मेरे पास क्या रकम गड़ी है, जो मैं शादी में खर्च करूंगा? अभी तक सुनंदा के विवाह का कर्ज चुका रहा हूं. ब्याज बढ़ता जा रहा है. मुझे नहीं चाहिए तुम्हारा रुपया. तुम्हें जो नकद मिले उस से तुम शहर में अपने लिए घर ले लेना.’’

‘‘आप मेरे घर की चिंता न करें. किस्तों में फ्लैट मैं ले चुका हूं. आप दहेज की बात करते हैं, वह तो नौकरी कर रही है, सारी जिंदगी कमा कर दहेज देती रहेगी.’’

बाबूजी चीखते हुए बोले, ‘‘जब तुम ने सब तय कर लिया है, तो मुझ से हामी भरवाने की क्या जरूरत है. भाड़ में जाओ, जो चाहे वह करो.’’

सोम ने अगली सुबह की ट्रेन पकड़ी और दिल्ली लौट आया. उस के बाद 3-4 बार वह जल्दीजल्दी फिर गांव गया. अम्मां बाबूजी को तरहतरह से समझाने का प्रयास करता रहा, परंतु हठी बाबूजी का मन नहीं पसीजा.

बाबूजी और सोम में बोलचाल बंद हो गई थी. वह उन के सामने भी नहीं पड़ता था. धीरेधीरे लगभग 1 साल बीत गया. एक बार अम्मां की ममता जाग उठी. बोलीं, ‘‘लल्ला, तुम उस छोरी से चुपचाप कचहरी में लिखापढ़ी से ब्याह कर लो. तुम्हारे बाबूजी गांव भर में पंडिताई करते हैं, इसलिए अपनी बदनामी से डरते हैं. तुम बाद में बहू को ले कर आ जाना. हम सब संभाल लेंगे.’’

दिल्ली लौट कर सोम ने कोर्ट में शादी के लिए अर्जी दे दी और नियत तिथि को उदास मन से शादी कर ली. शादी में कोई धूमधाम न होने से दोनों के मन में बड़ा मलाल था.

समिधा ने सोम की उदासी परखते हुए कुछ दिन बाद उस के गांव चलने का प्रस्ताव रखा. सोम अम्मांबाबूजी के स्वभाव से परिचित था. उस ने उसे समझाया, ‘‘तुम उन के क्रोध को नहीं जानती हो. वे न जाने कैसी प्रतिक्रिया करेंगे.’’

वैसे वह भी समिधा को सब से मिलवाना चाहता था. नए जीवन की शुरुआत पर अम्मां बाबूजी का आशीर्वाद लेना चाहता था. उस ने अम्मां को फोन किया, ‘‘अम्मां, आप के कहे अनुसार हम ने कचहरी में शादी कर ली है, अब हम दोनों आप लोगों का आशीर्वाद चाहते हैं.’’

अम्मां जैसे इंतजार ही कर रही थीं. तुरंत बोलीं, ‘‘आ जाओ, हम भी तो तुम्हारी परकटी परी को अपनी आंखों से देखें, जिस ने हमारे लल्ला को फंसा लिया है.’’

समिधा के बाल कटे हुए थे. आज्ञा पाते ही सोम खुशी से उछल पड़ा. वह बाजार जा कर बाबूजी के लिए सिल्क का कुरता, धोती और ऊनी दोशाला लाया. अम्मां के लिए सुंदर सी साड़ी और शाल लाया. सरिताजी ने भी अपनी ओर से उन के लिए उपहार दिए.

सोम के मन में रास्ते भर उमड़घुमड़ मची रही. वह घर रात के अंधेरे में पहुंचा. संयोगवश दरवाजा बाबूजी ने ही खोला. सोम को देखते ही वे मुंह फेर ही रहे थे कि समिधा उन के पैरों पर गिर पड़ी. बाबूजी थोड़ा सकपकाए, परंतु तुरंत ही सब समझ गए. फिर अप्रत्याशित रूप से आशीर्वाद देते हुए बोले, ‘‘सदा प्रसन्न रहो.’’

सोम का दिल बल्लियों उछल रहा था, परंतु यह क्या? बाबूजी ने अम्मां को आवाज दी, ‘‘उठो, तुम्हारा लाड़ला बहू ले कर आया है. न ढोल न नगाड़ा बस बेटे का ब्याह हो गया.’’ अम्मां ने आ कर दोनों को गले से लगा लिया. आंसुओं की धारा में सारा कलुष बह गया. बाबूजी भी चुपचाप अपने आंसू पोंछते रहे.

अगली सुबह ही अम्मां ने आदमी भेज कर अपनी बेटी सुनंदा को बुला लिया. वह सपरिवार आ गई. घर में खूब रौनक हो गई. बाबूजी ने कोई कसर न छोड़ी. गांव वालों को दावत दी. अम्मां ने समिधा को अपना हार पहना दिया.

सोम बहुत खुश था. उस ने स्वप्न में भी बाबूजी द्वारा ऐसे स्वागत के बारे में नहीं सोचा था. दोनों की गृहस्थी की गाड़ी रफ्तार से चल निकली थी. एक की पूरी तनख्वाह ई.एम.आई.  चुकाने में चली जाती थी, एक की तनख्वाह से घर चलता था. सोम अम्मांबाबूजी को हर महीने कुछ पैसा भेजता था, साथ ही सुनंदाजी की भी कुछ न कुछ मदद करता रहता था, इसलिए उस का हाथ हमेशा तंग रहता था.

‘‘सोम, कहां खो गए हो?’’

समिधा की आवाज से उस की विचार तंद्रा भंग हो गई. ट्रेन के आने की घोषणा हो गई थी. वह वर्तमान में लौट आया था. वह तेजी से अम्मांबाबूजी के डब्बे की ओर चल पड़ा.

‘‘प्लीज, अम्मां का ध्यान रखना,’’ सोम कहना नहीं भूला. उस ने लोन पर गाड़ी भी खरीद ली थी. उन लोगों को वह अपनी गाड़ी में दिल्ली घुमाने ले जाएगा, यह उस की चाहत थी.

सोम की अम्मां 65 वर्ष की बुजुर्ग महिला थीं. उन का पूरा जीवन गांव में गरीबी में बीता था. पहली बार वे दिल्ली आई थीं. प्लेटफार्म की भीड़ देख कर वे हैरान थीं. सड़कों पर लोगों की आवाजाही और गाडि़यों की कतार उन के लिए नई चीज थी. ऊंचीऊंची अट्टालिकाओं की भव्यता से वे हतप्रभ थीं. रोशनी की जगमग देख वे बोल उठीं, ‘‘का हो लल्ला, कोई मेला है क्या?’’

‘‘नहीं अम्मां, लोग काम से आतेजाते रहते हैं. यह देश की राजधानी दिल्ली है.’’

लिफ्ट से ऊपरी मंजिल पर चढ़ना भी उन के लिए अनोखा अनुभव था. सोम का फ्लैट छठी मंजिल पर था. सोम के ड्राइंगरूम में सोफासैट आदि सामान देख कर उन की आंखें फटी की फटी रह गईं.

‘‘सोम, इतने सामान में तो बहुत रुपया लगा होगा?’’

‘‘नहीं अम्मां, हम लोगों ने एकएक कर के पुरानी चीजें खरीद ली हैं.’’

सोम के 70 वर्षीय पिता दमा के मरीज थे. वे अकसर खांसते रहते थे. उस की दिली इच्छा थी कि वह बाबूजी का अच्छी तरह से इलाज कराए. वह उन्हें एक बड़े अस्पताल में दिखाने के लिए ले गया. उन की दवा और खानेपीने का पूरा खयाल रखा. बाबूजी उस से बहुत खुश थे. परंतु सोम का बजट थोड़ा गड़बड़ाने लगा था. फिर भी बाबूजी की सेवा कर के वह बहुत खुश था.

दवा के बड़े लिफाफे को देख कर अम्मां एक दिन बोलीं, ‘‘बुढ़ऊ की तो सारी उमर खांसत बीत गई, अब काहे को इन के लिए डाक्टरों की जेब में रुपया भर रहे हो. बहुत ज्यादा है तो बहन सुनंदा को कुछ भेज दो, उसे सहारा हो जाएगा.’’

उसे अच्छा नहीं लगा. ‘‘अम्मां, आप तो बस कुछ भी बोलती रहती हैं,’’ उस ने कहा, फिर बात बढ़ न जाए, यह सोच वह उठ कर अपने कमरे में चला गया. जब से अम्मां ने सोम का घर और रहनसहन देखा है, तब से उन्हें सुनंदा की याद बारबार आ रही थी.

समिधा समय से अम्मांबाबूजी को चायनाश्ता देती थी, खाना बना कर ही औफिस जाती थी, फिर भी अम्मां उसे पसंद नहीं करती थीं. हालांकि वह ज्यादा कुछ नहीं बोलती थीं, लेकिन उन के चेहरे के हावभाव व आंखें बहुत कुछ कह देती थीं.

एक दिन बोलीं, ‘‘बहू, अब औफिस जाना बंद करो. ऐसी हालत में घर से निकलना ठीक नहीं है. अगर कुछ उलटासीधा हो गया तो सब हाथ मलते रह जाएंगे.’’

उस ने धीरे से कहा, ‘‘अम्मां, बाद में भी छुट्टी लेनी है, इसलिए ज्यादा छुट्टी ले लेंगे तो तनख्वाह कट जाएगी.’’

एकदम बिगड़ कर वे बोलीं, ‘‘तुम तो ऐसे कह रही हो, जैसे मेरा सोम ढफली बजाता है, तुम्हीं रोटी चलाती हो.’’

इसी तरह कुछ न कुछ रोज होता रहता. समिधा तनाव से ग्रस्त हो जाती, परंतु उस ने मर्यादा का सदा ध्यान रखा. सोम व समिधा बच्चे को ले कर नित्य नई कल्पनाएं करते. समिधा ने पहले से ही छोटे बच्चे के लिए कपड़े, स्वैटर, मोजे आदि बना रखे थे. अम्मां भी दादी बनने की कल्पना से अत्यंत खुश थीं. वह मन से कोमल थीं, केवल जबान की तीखी थीं.

इंतजार की घडि़यां पूरी हुईं. समिधा ने प्यारे से बेटे को जन्म दिया. अम्मांबाबूजी तो खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. पूरे वार्ड में घूमघूम कर उन्होंने लड्डू बांटे. प्यार से समिधा के सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया. अम्मां बच्चे के ऊपर रुपए निछावर कर के आया को दे आईं. समिधा और सोम भी प्यारे से गोलू को पा कर निहाल हो उठे थे.

वह घर आ गई थी. अम्मां अपने साथ गांव से घी लाई थीं. उन्होंने प्यार से उस के लिए हलवा, सोंठ के लड्डू और गोंद की बरफी बनाई. बचपन से मां के अभाव में पलीबढ़ी वह सास के लाड़प्यार से अभिभूत हो उठी थी. उन की प्यार भरी देखभाल से उस की सेहत और रूप निखर उठा था. इतना सब करने के बाद भी अम्मां की दिखावे की आदत ने घर में कलुषता घोल दी.

एक दिन वे बोलीं, ‘‘सोम, तुम्हारे बेटा हुआ है, बहन सुनंदा को क्या दोगे?’’

‘‘अम्मां अभी तो अस्पताल वगैरह में बहुत रुपए खर्च हो गए हैं, इसलिए बाद में आप जो कहिएगा वह दे देंगे.’’

अम्मां सुनते ही बिफर पड़ीं, ‘‘तुम दोनों का तो हिसाब ही नहीं समझ आता है. दोनों सुबह के गए रात में घर घुसते हो. दोनों हाथ से कमा रहे हो, फिर भी बहन को देने के नाम पर कुछ है ही नहीं.’’

अम्मां का पारा गरम हो गया था. उन की आदत थी कि जब उन के मन का काम नहीं होता था, वे मुंह फुला कर बैठ जाती थीं. उन की चुप्पी उन के गुस्से की द्योतक थी. चेहरे के हावभाव बिगड़ेबिगड़े थे. समिधा समझ रही थी कि स्थिति नाजुक है. उस ने समझदारी से गोलू को उन की गोद में दे दिया. गोलू को देख कर वे थोड़ी सामान्य हुईं.

एक दिन अम्मां कोने में खड़ी हो कर सुनंदा जीजी से फोन पर धीरेधीरे बातें कर रही थीं. समिधा वहां से गुजरी तो उसे सुनाई पड़ा कि सुनंदा तुम छोटी हो, तुम्हें भाईभाभी को कुछ भी देने की जरूरत नहीं है. वे तुम से बड़े हैं. तुम अपने पैसे मत खर्च करना. बस जब आना तो गोलू के लिए एक जोड़ी कपड़े ले आना. सोम के पास तो तुम्हें देने के लिए कुछ है ही नहीं. समिधा चुप्पी है, लेकिन है पूरी घाघ. वही सोम को भरती रहती है.

इन बातों को सुन कर समिधा का दिल टूट गया. वह अम्मां को कैसे समझाए कि वह किस तरह से ई.एम.आई. के शिकंजे में फंसी हुई है. अम्मां को तो इस घर की ऊपरी चमकदमक दिख रही है, परंतु इस के अंदर की कहानी का उन्हें क्या पता?

गोलू 3 महीने का होने वाला था. समिधा की छुट्टियां समाप्त होने वाली थीं. अभी तक तो वह घर में रह कर सब कुछ अच्छी तरह संभाल रही थी. कल से उसे औफिस जाना है. उस ने सुबह जल्दी उठ कर जल्दीजल्दी नाश्ता और खाना बना दिया, फिर अपना और सोम का टिफिन भी तैयार कर लिया, लेकिन गोलू को छोड़ कर जाते समय उस की आंखें भर आईं. सोम से बोली, ‘‘मुझ से गोलू को छोड़ कर नौकरी नहीं हो पाएगी.’’

वह नाराज हो उठा, ‘‘मैं समझता हूं कि तुम्हें परेशानी हो रही है, लेकिन क्या करूं. तुम्हारी नौकरी मेरी मजबूरी है. इसीलिए मैं अभी बच्चे के लिए मना कर रहा था.’’

औफिस में उस का बिलकुल भी मन नहीं लग रहा था. अम्मां के लिए भी दिन भर गोलू को रखना भारी पड़ रहा था. अत: अम्मां की परेशानी को समझ कर उन की सहायता के लिए आया सुशीला को रख दिया. 2-4 दिन तो अम्मां सुशीला के साथ खुश रहीं, फिर शुरू हो गईं उन की शिकायतें. वह औफिस से आती तो गोलू और सुशीला दोनों की शिकायतों का लंबा पुलिंदा अम्मां की जबान पर तैयार रहता.

सुशीला के लिए अम्मां का कहना था कि सारे काम तो वे खुद करती हैं, यह तो बैठे रहने का पैसा लेती है. समिधा ने उन्हें कई बार समझाया कि आप इस को लगाए रखें, नहीं तो आप परेशान हो जाएंगी.

सुशीला 15-16 वर्ष की लड़की थी. उस में बचपना था. वह फटाफट काम कर के टीवी देखने लग जाती, जो अम्मां को नागवार गुजरता था. समिधा ने अम्मां को खुश करने के लिहाज से कई बार सुशीला को जोरदार डांट पिलाई, परंतु अम्मां जिस से चिढ़ जाएं उन्हें उस की शक्ल से भी नफरत हो जाती थी.

आखिर एक दिन उन्होंने उसे भगा दिया. वह औफिस से आई तो उस से बोलीं, ‘‘समिधा तुम नौकरी छोड़ दो, तुम्हारी नौकरी के कारण मैं भी यहां परेशान रहती हूं और यह नन्हा गोलू भी. तुम घर में रहोगी तभी मैं यहां रह पाऊंगी, नहीं तो मैं गांव चली जाऊंगी.’’

समिधा सन्न रह गई. उस की सारी छुट्टियां समाप्त हो चुकी थीं. वह तो स्वयं गोलू के बिना औफिस में कैसे समय बिताती है वही जानती है, परंतु वह क्या करे? नौकरी तो उस की मजबूरी है. वह गोलू को अपने से चिपटा कर सिसक उठी. वह बारबार गोलू को चूमती जा रही थी. तभी सोम आ गया.

‘‘समिधा क्या बात है?’’

वह आंसू पोंछती हुई बोली, ‘‘अम्मां मुझ से नौकरी छोड़ने को कह रही हैं, नहीं तो वे गांव चली जाएंगी.’’

वह घबरा कर बोला, ‘‘मैं ने तुम से पहले ही कहा था, अभी बच्चे के चक्कर में मत पड़ो, लेकिन तुम ने माना नहीं. अब क्या होगा? मैं तो जानता था वे यहां नहीं टिक सकतीं.’’

अम्मां जल्दीजल्दी बड़बड़ाती हुए सामान समेटने में लगी थीं. ‘बच्चा रोए तो रोए, सुबहसुबह सजधज कर घर से निकल जाना. नौकरी तो बहाना है. हम सब समझते हैं. सोम सीधा है, इसलिए जो जी में आता है वह करती है. उसे तो उंगली पर नचाती है. क्या हमारा सोम कमाता नहीं है?’ अनापशनाप बोलती जा रही थीं वे.

इन अनर्गल बातों को सुन कर सोम अपना आपा खो बैठा, ‘‘अम्मां सुनो, आप को जाना है तो जाइए, लेकिन जाने से पहले मेरी बात सुन लीजिए. आप को मेरे कमरे का सोफासैट, टीवी, फ्रिज दिखाई पड़ रहा है और मेरी गाड़ी भी दिख रही है. ये सब हम लोगों ने लोन से खरीदा है. इन चीजों के लिए हम लोग दिनरात मेहनत करते हैं. ओवरटाइम कर के आधीआधी रात में घर लौटते हैं ताकि ई.एम.आई. चुका सकें. जैसे आप लोग गांव में साहूकार से कर्ज ले कर अपना काम चलाते हैं, वैसे ही हम लोग यहां बैंक से कर्ज लेते हैं, उस का ब्याज और किस्त हमारी तनख्वाह से कटता रहता है. ब्याज चुकाने के बाद जो रुपए बचते हैं, हमें उन्हीं से गुजरबसर करना पड़ता है.

‘‘समिधा की तनख्वाह तो मुझ से ज्यादा है. यदि नौकरी छोड़नी है तो मैं छोड़ूं, क्योंकि मेरी कमाई कम है. पहले तो आप उस से कहती रहीं, तुम मां बन जाओ, हम लोग तुम्हारे पास रह कर बच्चे की देखभाल करेंगे. अब आप हमें मझधार में छोड़ कर गांव जाने को तैयार हैं. सब गड़बड़ समिधा की जिद के कारण हुआ है. हर समय आप सुनंदा को ले कर रोती रहती हैं, लेकिन सुनंदा की परेशानी का कारण आप हैं. जल्दबाजी में छोटी उम्र में उस का विवाह अनपढ़ लड़के से कर दिया. कच्ची उम्र और नासमझी में आज वह 4 बच्चों की मां है. जीजाजी को शराब की लत लग गई है. आमदनी अठन्नी है और खर्चा रुपया. हम से जितना बनता है हर महीने उन की मदद

कर देते हैं. आप क्या समझती हैं? समिधा नौकरी छोड़ देगी तो समझ लीजिए खाने के लाले पड़ जाएंगे.’’

‘‘बस करिए सोम,’’ समिधा बीच में आ गई और उसे पकड़ कर अपने कमरे में ले गई. घर में सन्नाटा छा गया था.

वह मन ही मन सोचने लगी, क्या जिंदगी है, हर क्षण संघर्ष, पलपल नई लड़ाई. किस तरह सोम से छल कर के इस प्यारे गोलू को मैं पाने में कामयाब हो पाई हूं, तो अब उस को पालने का संकट. क्या हम मध्यवर्गीय परिवार के जीवन की यही कहानी है.

आसू पोंछती हुई वह हिम्मत कर के अम्मां के पास आई और बोली, ‘‘अम्मां, मैं तो बचपन से ही अनाथ थी. बूआ ने पालपोस कर बड़ा किया, फिर वह भी इस दुनिया से चली गईं. मेरी झोली दोबारा खुशियों से भर गई, जो आप जैसे अम्मांबाबूजी मिल गए. पहले आप की एक बेटी थी, अब आप की 2 बेटियां हैं. नौकरी तो मेरी मजबूरी है. आप मेरे दर्द और मजबूरी को समझिए. मुझे भी गोलू को छोड़ कर जाने में तकलीफ होती है, लेकिन क्या करूं?’’ वह फूटफूट कर रो पड़ी.

अम्मां का दिल पिघल उठा. वे समिधा को गले से लगा कर बोलीं, ‘‘मत रो बेटी, मैं गांव की अनपढ़ यह सब क्या जानूं. तुम ने मेरी आंखें खोल दीं. सच, मुझे तो बहुत खुश होना चाहिए, जो मुझे तुम जैसी समझदार बेटी मिली. सुशीला को फोन कर दो, कहना अम्मां कह रही हैं चुपचाप कल से आ जाए और तुम निश्चिंत हो कर अपना कर्जा अमाई, क्या कहते हैं.

Best Hindi Stories : तितलियां – मौके की तलाश करती अनु ने जब सिखाया पति को सबक

Best Hindi Stories : अनु ने आखिरी बार सरसरी निगाहें अपने समान पर डालीं. एक सूटकेस में उस के और सुभाष के कपड़े थे. एक छोटी सी डलिया में खानेपीने का समान था. सब कुछ अनु ने अपने हाथों से बनाया था.

एक छोटा सा लाल रंग का बैग था, जिस में अनु ने अपने साटन के इनर वियर और नाईटी रखी हुई थी.

तभी सुभाष अंदर आया और बोला,”अनु, तैयार हो तुम?”

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अनु ने जल्दीजल्दी अपने होंठों पर लिपस्टिक का टचअप किया और बालों में कंघी कर बाहर आ गई. सुभाष समान को बस के अंदर ठीक से रखवा रहा था.

अनु बस में बैठ कर बोली,”अब पहले कहां जाना है?”

सुभाष बोला,”पहले गाजियाबाद से पूर्णिमा और सिद्धार्थ को ले लेंगे फिर नोएडा से अपेक्षा और साकेत को, मेरठ से अजय और पल्लवी को लेते हुए बिनसर चले जाएंगे.”

अनु बोली,”देखो, किसी के घर बैठ कर गप्पें मत मारने लग जाना.”

सुभाष हंसते हुए बोला,”अनु, तुम्हारी तरह ही सब को जल्दी है उन वादियों में जाने की.”

सुभाष को अच्छे से मालूम था कि अनु न जाने क्यों पूर्णिमा से खार खाए रहती है.

अनु स्थानीय डिग्री कालेज में गणित की प्रोफैसर है और सुभाष सरकारी अस्पताल में सीनियर डाक्टर. उन का
एक बेटा भी है जो फिलहाल बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाई कर रहा है.

अनु के भूरे घुंघराले बाल इधरउधर हवा में लहरा रहे थे. अपनी काली आंखों को उस ने काजल से बांध रखा
था. अनु खूबसूरत तो नहीं पर आकर्षक और बिंदास थी और अपने घर व कालेज में लेडी सिंघम के नाम
से मशहूर भी.

सड़क पर जाम को देख कर अनु का पारा चढ़ गया और वह उठ कर ड्राइवर को खरीखोटी सुनाने लगी. सुभाष ने बहुत मुश्किल से उसे चुप कराया. यह अनु की सब से बड़ी कमी थी जिस के कारण उस का अपना बेटा भी उस से दूर छिटकता था.

जैसे ही बस गाजियाबाद के कविनगर में रुकी तो पूर्णिमा को देख कर एकाएक अनु के मुंह से निकल
गया,”यह क्या? इतना सजधज कर यात्रा करेगी?”

सुभाष ने अनु की तरफ आंखें तरेरीं तो अनु चुप हो गई.

जैसे ही पूर्णिमा बस में चढ़ी, अनु बोल पड़ी,”पूर्णिमा शादी में से आ रही हो क्या?”

पूर्णिमा कट कर रह गई पर मुसकराते हुए बोली,”मैं टीशर्ट में अपने पेट के टायर दिखाने से बेहतर कुरता पहनना
पसंद करती हूं.”

यह कह कर वह बड़ी अदा के साथ अपने बालों को झटक कर पीछे की ओर कर ली.अनु ने कनखियों से देखा और मन ही मन सोचा कि गजब
की खूबसूरत लग रही है पूर्णिमा. दिनरात पार्लर में रहने का कुछ तो फायदा होगा.

पूर्णिमा मंझोले कद की नीली आंखों की खूबसूरत महिला थी जो स्थानीय इंजिनीरिंग कालेज में पढ़ाती थी. उस के पति सिद्धार्थ का हार्डवेयर का बिजनैस था.

कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि पूर्णिमा अपनी खूबसूरती के बल पर ही नौकरी पर टिकी हुई है और अपनी
खूबसूरती के बल पर ही वह इधरउधर बड़ेबड़े शोरूम से गहने, कपड़े ऐसे ही ले आती है.

वाहन तेजी से नोएडा की सड़कों पर दौड़ रहा था. बस सोसाइटी के सामने रुक गई. अपेक्षा और साकेत अपनेअपने सूटकेस के साथ तेजी से बस की तरफ चले आ रहे थे.

अपेक्षा का गेरुआ कुरता देख कर अनु फिर बोल पड़ी,”अपेक्षा कम से कम गुरुजी को आज तो छोड़ दिया होता.”

अपेक्षा बिना कुछ बोले कानों में हेडफोन लगा कर ध्यानमग्न हो गई थी.

अपेक्षा का पति साकेत ही अनु से
बोला,”यह उस के ध्यान का समय है, इसलिए 1 घंटे तक अपेक्षा किसी से बात नहीं करेगी.”

अपेक्षा को साकेत की इस मित्रमंडली से बेहद चिढ़ थी. अपेक्षा को डर था कि अगर साकेत ऐसे ही इन तितलियों के करीब रहेगा तो वह कभी भी मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाएगी. जब भी साकेत अपने दोस्तों के यहां जाता या वे लोग अपेक्षा के घर आते एक ही टौपिक होता था गुरुजी का मजाक. अपेक्षा खून के घूंट पी कर रह जाती थी. अपेक्षा हमेशा से इन लोगों के साथ असहज रहती थी. जो खुशी उसे अपने गुरुजी के आश्रम में मिलती है वह कोई भी दर्शनीय स्थल में नहीं मिल सकती है. पर इन दौलत और वासना के फूलों पर मंडराने वाली तितलियों से कैसे अपना पीछा छुङाए?

सुभाष साकेत और सिद्धार्थ जहां गपशप में मशगूल थे, वहीं पूर्णिमा धीरेधीरे किसी से मोबाइल पर बात कर रही थी. अनु भी अपने मोबाइल पर ही लगी हुई थी पर उस का सारा ध्यान पूर्णिमा पर ही लगा हुआ था.

मन ही मन अनु सोच रही थी कि सिद्धार्थ तो मिट्टी का माधो है. उसे तो पता भी नहीं कि पूर्णिमा किस राह पर चल रही है.

जैसे ही बस मेरठ के शास्त्रीनगर में घुसी तो सब दोस्तों ने तय कर लिया था कि अजय के घर चाय पी कर फिर
आगे बढ़ेंगे.

जब सारा लावालश्कर अजय के घर पहुंचा तो उस की पत्नी पल्लवी ने सारी तैयारी कर रखी थी. चाय क्या पूरा नाश्ते का प्रबंध था. ढोकला, घेवर, मटर समोसा, कालाजामुन, ब्रैडकटलैट से मेज सजी हुई थी.

सुभाष ने कहा,”भाभी आपने तो कमाल कर दिया है.”

पल्लवी मुसकराते हुए बोली,”अरे आप लोग क्या रोजरोज आते हो?”

पल्लवी का कद छोटा था और रंग बेहद गोरा. उस के आंख, नाक हर समय बातों के लिए फड़कते रहते
थे. पल्लवी घर के काम में जितनी तेज थी, अपने लिए उतनी ही ढीली थी. पांवो की फटी हुई बिवाई इस की गवाह थी.

अभी भी फूहड़ों की तरह पल्लवी ने ढीली सी जींस के ऊपर लबादे जैसा कुरता पहना हुआ था.

1 घंटा बीत गया तो अनु ने ही कहा,”बिनसर आज पहुंचना है या कल?”

बस में बैठेते ही सब लोग नींद के आगोश में चले गए. करीब शाम के 5 बजे नैनीताल में यह मंडली रुकी ताकि थोड़ाबहुत नाश्ता कर चला जाए. आगे की यात्रा में तीखी चढ़ाई थी. करीब साढ़े 7 बजे उन की
मिनी बस कसार जंगल के रिसोर्ट पहुंच गई थी.

इस में 4 छोटीछोटी कौटेज अजय ने बुक करा रखी थी. बैरों ने आ कर समान ले लिया और सब लोग अपनीअपनी कौटेज में दुबक गए. तय हुआ था रात 9 बजे सारे युगल डाइनिंग एरिया में मिलेंगे और फिर रात का कार्यक्रम तय करेंगे.

रात के 9 बजे सब से पहले साकेत और अपेक्षा पहुंचे. अपेक्षा सफेद कुरती और गेरुए स्कर्ट में बहुत सौम्य लग रही थी. उस के गले मे रुद्राक्ष की माला थी और कानों में भी रुद्राक्ष के ही टौप्स थे. माथे पर चंदन की बिंदी लगी हुई थी.

किसी को वहां न देख कर अपेक्षा बोली,”साकेत, गुरुजी से मेरी जूम मीटिंग है रात 10 बजे और मैं उस मीटिंग को टाल नहीं सकती हूं.”

साकेत कुछ तल्खी के साथ बोला,”अपेक्षा, कम से कम छुट्टियों में तो यह गुरुजी का राग मत अलापो.”

अपेक्षा बोली,”तुम्हें पता तो है न कि तुम्हारी नौकरी और हमारा पुश्तैनी व्यपार सब गुरुजी के कारण ही चल रहा है.”

इस से पहले कि साकेत कुछ बोलता, अनु और सुभाष भी वहां पहुंच गए. डैनिम शौर्ट्स और टीशर्ट में अनु एकदम बिंदास बाला लग रही थी. 38 की उम्र में भी वह 28 की लग रही थी.

तभी पूर्णिमा और सिद्धार्थ भी आ गए. पूर्णिमा ने एक लंबा गाउन पहना हुआ था जिस की एक तरफ स्लिट थी, गाउन का गला भी अपेक्षाकृत काफी खुला हुआ था. पूर्णिमा के डाइनिंग एरिया में प्रवेश करते ही सभी पुरूष उसी की ओर ही देख रहे थे.

पूर्णिमा का गुलाबी गाउन, गुलाबी लिपस्टिक जहां पुरुषों को लुभा रही थी, वहीं अनु जैसी महिलाओं को
आग की तरह जला भी रही थी.

पल्लवी और अजय सब से आखिर में करीब 9:30 बजे आए. पल्लवी ने एक सादा सा कौटन का सूट पहन रखा था. अजय जींस और व्हाइट शर्ट में बहुत ही स्मार्ट लग रहा था. पल्लवी का जहां अपनी ओर बिलकुल भी ध्यान नहीं था, वहीं अजय खुद को ले कर कुछ अधिक ही सजग था.

अगर सरल शब्दों में कहें तो जहां अजय इस मित्रमंडली का बेताज बादशाह था तो, वहीं पूर्णिमा भी इस समूह की महारानी थी.

खाने के पश्चात अपेक्षा अपनी कौटेज की तरफ चली गई, वहीं बाकी सभी जोड़े सुभाष के कौटेज में चले गए. इस मित्रमंडली में जहां सुभाष का बहुत अधिक सम्मान था, वहीं अनु से सभी कटते थे. पर सुभाष की बात को कोई भी नहीं काटता था.

1 घंटे तक सिनेमा, राजनीति और क्रिकेट की हलकीफुलकी बातें होती रहीं. फिर बातचीत की दिशा बच्चों की ओर मुड़ गई.

तभी खटाक से दरवाजा खुला और अपेक्षा ने प्रवेशा किया. अनु अपनी आदत अनुसार बोल पड़ी,”अपेक्षा,
तुम्हारे गुरुजी ने आखिर तुम्हें छोड़ ही दिया. अब यह बोलो कि वे तुम्हें मां कब बनाएंगे?”

यह वाक्य सुनते ही वहां सन्नाटा छा गया.

सुभाष गुस्से में बोला,”अनु, होश में तो हो न?”

अपेक्षा बोली,”नहीं सुभाषजी, अनुजी को सारे लोग अपने कालेज के विद्यार्थी लगते हैं. इसलिए यह घटिया जोक्स मारती रहती हैं.”

अनु बोली,”अरे, अपेक्षा मेरा मतलब आशीर्वाद से था. अब तुम्हारा दिमाग ही उस दिशा में दौड़ रहा है तो मैं क्या कर सकती हूं डार्लिंग.”

यह सुनते ही पूर्णिमा और पल्लवी के चेहरों पर एक अजीब सी मुसकान थिरक उठी जो अपेक्षा से छिपी न रही.

अपेक्षा किसी भी तरह से साकेत का इस मित्रमंडली से पीछा छुङाना चाहती थी. सारा दिन वे लोग साकेत के कान गुरुजी के खिलाफ भरते रहते थे. पर इस बार अपेक्षा निर्णय ले कर आई थी कि वह इस बार उन्हें सटीक
जवाब जरूर देगी.

अपेक्षा भी बोली,”हां अनु, हरकोई तो तुम्हारी तरह भाग्यशाली नहीं होता कि साम, दाम, ढंड, भेद से दौलत को
हथिया ले.”

यह सुनते ही अनु का चेहरा सफेद पड़ गया क्योंकि यह हरकोई जानता था कि किस तरह चालाकी से अनु ने अपनी मां के ₹40 लाख अपने नाम करवा लिए थे और फिर उन्हें अपने बड़े भाई के पास चलता कर दिया था.

तभी अजय ने म्यूजिक चला दिया.अचानक से अजय ने पूर्णिमा को डांस के लिए उठा दिया और दोनों धीरेधीरे एक युगल की तरह डांस करने लगे.

1 बजे तक माहौल बेहद हलका और रूमानी हो गया था. किशोरावस्था के प्रेम प्रकरण, शादी के रूमानी पल सब छनछन कर बाहर निकल रहे थे. कड़वाहट एक भाप की तरह वहां से उड़ गई थी. रात के लगभग 1:30 बजे महफिल खत्म हुई और सुबह 10 बजे मिलने का कार्यक्रम तय हो गया था.

पूरा दिन बिनसर के दर्शनीय स्थल देखने में बीत गया था. मौसम इतना अच्छा था कि पूरा दिन घूमने के बाद
भी ताजगी बरकरार थी.

आज फिर सुभाष की काटेज में महफिल जमने का कार्यक्रम तय हो गया था. सब लोग समय से पहले ही आ गए. अजय ताश के पत्ते फेंटने लगा और साकेत पैग बनाने लगा. पूर्णिमा कनखियों से अजय की ओर देख रही थी और अजय रहरह कर आखों में इशारे कर रहा था.

ताश की बाजी के साथ सब लोगों का जोश ऊपरनीचे हो रहा था. रमी की पहली ही बाजी में पूर्णिमा आउट हो
गई थी. फिर अजय भी बाहर निकल गया था.

थोड़ी देर बाद पूर्णिमा सिद्धार्थ के कानों में फुसफुसा कर चली गई थी. कुछ देर बाद अजय बोला,”मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है. कुछ देर बाहर टहल कर आता हूं.”

बाकी सभी लोग ताश में मशगूल थे इसलिए किसी ने अधिक ध्यान नहीं दिया था.

करीब 45 मिनट बाद अजय गुनगुनाते हुए वापस आ गया था और पल्लवी से लाड़ लड़ाने लगा था.

अनु बोली,”यार, तुम सब लोग भी कुछ सीखो अपने दोस्त से. कितने रोमांटिक हैं अभी भी.”

सुभाष , सिद्धार्थ और साकेत हंसने लगे और बोले,”यार, अजय क्यों हम लोगों की सुखी गृहस्थी में आग लगा रहा है?”

अपेक्षा अचानक से ध्यान को बीच में छोड़ कर बोली,”या ऐसा भी हो सकता है कि अपने घर मे लगी आग को अजय औरों के घर में भी लगाना चाह रहा हो?”

अजय बोला,”क्या मतलब?”

साकेत व्यंग्य करते हुए बोला,”कुछ नहीं, अपेक्षा ने आज अधिक ध्यान लगा लिया है.”

चारों युगल अपनेअपने कमरों में जा कर बहुत देर तक एकदूसरे की बखिया उधेड़ते रहे और फिर न जाने किस पहर सब की आंखें लग गई थीं.

अचानक से साकेत को दरवाजे पर धङधङ की आवाज सुनाई दी. आंखे मलते हुए साकेत उठा तो देखा सुभाष बदहवास सा वहां खड़ा था.

“साकेत… यार, गजब हो गया हैं. पूर्णिमा के गहने गायब हो गए हैं.”

तभी अपेक्षा भी उठ कर आ गई और बोली,”क्याक्या खोया है? जरूर किसी स्टाफ का ही काम होगा. पुलिस में रिपोर्ट करनी चाहिए. फिर सब मिल जाएगा.”

तीनों सिद्धार्थ की काटेज में पहुंचे. वहां जा कर देखा कि रिसोर्ट का मैनेजर और अन्य स्टाफ खड़ा हुआ था.

पूर्णिमा का रोरो कर बुरा हाल था,”कानों की बालियां और सौलिटेयर रिंग गायब हैं. दोनों की कीमत लगभग ₹30 लाख हैं.”

तबतक अजय और अनु भी आ गए थे. अजय बोला,”मेरी कोई न कोई जानपहचान निकल जाएगी. पुलिस में रिपोर्ट करनी है क्या?”

अनु फट से बोली,”क्या बेवकूफों वाली बात कर रहे हो? रिपोर्ट तो करनी ही होगी.”

सिद्धार्थ बोला,”नहीं, इन का बिल भी नही है. ये मैं ने कैश में लिए थे. और फिर मेरी सालाना इनकम कागजों में ₹5 लाख हैं, तो मैं कैसे रिपोर्ट करूं?”

अनु को पता था यह जरूर पूर्णिमा के किसी दोस्त की सौगात रही होगी. तभी न बिल है और न ही कुछ
और प्रूफ.

अजय बोला,”मैं स्टाफ की खबर लेता हूं.”

रिसोर्ट में करीब 10 कौटेज थी. 3 खाली थी और 4 में ये लोग ही रह रहे थे. बैरों से पूछताछ की जाने
लगी. सब ने एक ही जवाब दिया कि उन्हें इस बारे में कुछ नहीं पता है.

अजय का दोस्त मैनेजर की जानपहचान का था. उस के कहने पर मैनेजर ने सुपरवाइजर से कह कर पूरे
स्टाफ के कमरों और समान की तलाशी करवाई थी. लेकिन कहीं कुछ भी नहीं निकला.

अचानक से गुस्से में एक बैरा बोल पड़ा,”साहबजी हम गरीबों की ही तलाशी क्यों करवाई हैं? खोट तो किसी की नीयत में भी हो सकता है?”

अनु बोली,”बात तो तुम्हारी सही है भैया. अजय, हम सब के कमरों की भी तलाशी करवा लो. जब तक तलाशी चलेगी हम सब बाहर ही रहेंगे.”

अपेक्षा गुस्से में बोली,”मैं कोई चोर नही हूं जो तलाशी करवाऊंगी.”

पूर्णिमा चुप बैठी थी. पल्लवी बोली,”अरे, अपेक्षा इस में चोर की कोई बात नही है, क्या पता गलती से किसी की कौटेज में रह गए हों.”

अपेक्षा बोली,”फिर तो अनु की कौटेज से शुरुआत करते हैं, क्योंकि वहीं पर ही तो हम सब का जमावड़ा रहता था और ऐसा हो सकता है कि यहां से जा कर फिर से अनु
एकाएक ₹30 लाख की मालकिन बन जाए…”

अनु बोली,”अरे, अपेक्षा तुम्हारे गुरुजी जितनी सिद्धि मेरे पास कहां है? वे तो तुम्हारी हर तरह से सहायता करते हैं.
क्या मैं जानती नही हूं कि तुम्हारी और गुरुजी के बीच क्या रासलीला चलती रहती है.”

साकेत एकाएक अपनी पत्नी पर यह आरोप सुन कर आप खो बैठा और बोल उठा,”अनु जबान संभाल कर बात करो…”

इस से पहले कि बात और बढ़ती अजय बीच में आ गया और बोला,”क्यों बात को बढ़ा रहे हो?”

सुभाष और अनु के कमरे में कुछ नहीं मिला.

जब साकेत और पूर्णिमा के कमरे से भी कुछ न मिला तो सिद्धार्थ
बोला,”यार यह तमाशा बंद करो. ऐसा भी तो हो सकता है कि बाहर गिर गए हों.”

अपेक्षा फट पड़ी,”यह क्या बात हुई?”

अजय बोला,”अरे भई सिद्धार्थ चुप करो.”

अचानक से अजय के कमरे से शोर की आवाज सुनाई दी. पता चला कि पूर्णिमा के दोनों गहने अजय के कुरते और तकिए के नीचे पाए गए हैं.
अजय हक्काबक्का रहा गया तो पूर्णिमा का चेहरा सफेद पड़ गया.बात संभालते हुए पूर्णिमा बोली,”अरे यह वेटर झूठ बोल रहा है. जरूर इस ने ही चुराया होगा और अब जब पता चला दाल नहीं गलेगी तो यह कहानी गढ़ रहा है.”

अजय भी एकाएक आगबबूला हो उठा,”मुझे बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि यहां पर ऐसे चोर काम करते हैं.”

वेटर ने लाख बोला पर किसी ने उस की बात नहीं सुनी थी.
सब को पता था कि वेटर सच बोल रहा था पर अपनी इज्जत बचाने के लिए एक गरीब की बलि दे दी गई थी.

किसी के भी गले यह बात नहीं उतर रही थी कि अगर वेटर को झूठ ही बोलना था तो गहने अजय के कुरते और तकिए के नीचे ही उस ने क्यों बताए?

सुभाष तो बस इस बात पर चैन की सांस ले रहा था कि अनु का मुंह बंद था.

अजय के पास पल्लवी के सवालों का कोई जवाब नहीं था. उधर सिद्धार्थ भी पूरी रात करवटें बदलता रहा
था. उसे पता था कि उस की तितलीनुमा बीबी बस एक डाल पर नहीं रह सकती है. पर उस ने यह कतई नहीं सोचा था कि उस के जिगरी दोस्त के साथ भी उस की बीबी के संबंध हो सकते हैं.

उधर पूर्णिमा को समझ नहीं आ रहा था कि कैसे वह इतनी बड़ी बेवकूफी कर गई थी. अब पल्लवी से वह कैसे
नजरें मिला पाएगी?

सुबह नाश्ता कर के सब को वापस निकलना था. आज यह मंडली पूरी तरह से शांत थी. हर सदस्य अपनेअपने प्रश्नों में उलझा हुआ था.

जहां अजय और पूर्णिमा आगे की कहानी का तानाबाना बुन रहे थे, वहीं पल्लवी और सिद्धार्थ फिर से अपने
जख्मों पर झूठ का मलहम लगाने में व्यस्त थे.

अनु को रहरह कर वेटर के लिए बुरा लग रहा था. सुभाष और साकेत को समझ नहीं आ रहा था कि आगे
भी यह दोस्ती बरकरार रह पाएगी या नहीं?

उधर अपेक्षा मन ही मन बेहद खुश थी. इन सब लोगों ने बहुत बार उस की भक्ति का, उस के ध्यान का मजाक उड़ाया है. अब सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी.

अब कोई भी उस के और उस की गुरुभक्ति के बीच नहीं आ पाएगा. उसे कुछ करना भी नहीं पड़ा और अपनेआप ही ये सभी कांटे उस के रास्ते से हट गए.

Moral Stories in Hindi : कफन – अपने पर लगा ठप्पा क्या हटा पाए रफीक मियां

Moral Stories in Hindi : ‘‘आजकल कितने कफन सी लेते हो?’’ रहमत अली ने रफीक मियां से पूछा. ‘‘आजकल धंधा काफी मंदा है,’’ रफीक मियां ने ठहरे स्वर में कहा.

‘‘क्यों, लोग मरते नहीं हैं क्या?’’ इस बेवकूफाना सवाल का जवाब वह भला रहमत अली को क्या दे सकता था. मौतें तो आमतौर पर होती ही रहती हैं. मगर सब लोग अपनी आई मौत ही मर रहे थे. आतंकवादियों द्वारा कत्लेआम का सिलसिला पिछले कई महीनों से कम सा हो गया था.

कश्मीर घाटी में अमनचैन की हवा फिर से बहने लगी थी. हर समय दहशत, गोलीबारी, बम विस्फोट भला कौन चाहता है. बीच में भारी भूकंप आ गया था. हजारों आदमी एकदम से मुर्दों में बदल गए थे. सरकारी सप्लाई के महकमे में रफीक का नाम भी बतौर सप्लायर रजिस्टर्ड था. एकदम से बड़ा आर्डर आ गया था. दर्जनों अस्थायी दर्जियों का इंतजाम कर उसे आर्डर पूरा करना पड़ा था.

आर्डर से कहीं ज्यादा बड़े बिल और वाउचर पर उस को अपनी फर्म की नामपते वाली मुहर लगा कर दस्तखत करने पड़े थे. खुशी का मौका हो या गम का, सरकारी अमला सरकार को चूना लगाने से नहीं चूकता. रफीक पुश्तैनी दर्जी था. उस के पिता, दादा, परदादा सभी दर्जी थे. कफन सीना दोयम दर्जे का काम था. कभी सिलाई मशीन का चलन नहीं था. हाथ से कपड़े सीए जाते थे. दर्जी का काम कपड़े सीना मात्र था. कफन कपड़े में नहीं गिना जाता था. कपड़े जिंदा आदमी या औरतें पहनती हैं न कि मुर्दे.

घर में मौत हो जाने पर संस्कार या जनाजे के समय ही कफन सीआ जाता था. कोई भी दुकानदार या व्यापारी सिलासिलाया कफन नहीं बेचता था और न ही तैयार कफन बेचने के लिए रखता था. मगर बदलते जमाने के साथ आदमी ज्यादा पैदा होने लगे और ज्यादा मरने भी लगे. लिहाजा, तैयारशुदा कफनों की जरूरत भी पड़ने लगी थी. मगर अभी तक कफन सीने का काम बहुत बड़े व्यवसाय का रूप धारण नहीं कर पाया था.

फिर आतंकवाद का काला साया घाटी और आसपास के इलाकों पर छा गया तो अमनचैन की फिजा मौत की फिजा में बदल गई थी. कामधंधा और व्यापार सब चौपट हो गया था. सैलानियों के आने के सीजन में भी बाजार, गलियां, चौक सब में सन्नाटा छा गया था. कभी कश्मीरी फैंसी डे्रसें, चोंगे, चूड़ीदार पायजामा, अचकन, लहंगा चोली, फैंसी जाकेट, शेरवानी, कुरतापायजामा, गरम कोट सीने वाले दर्जी व कारीगर सभी खाली हो भुखमरी का शिकार हो गए थे.

फिर जिस कफन को हिकारत या मजबूरी की वस्तु समझा जाता था वही सब से ज्यादा मांग वाली चीज बन गई थी. यानी थोक में कफनों की मांग बढ़ने लगी थी. ढेरों आतंकी या दहशतगर्द मारे जाने लगे थे. उतने ही फौजी भी. आम आदमियों की कितनी तादाद थी कोई अंदाजा नहीं था. बस, इतना अंदाजा था कि कफन सिलाई का धंधा एक कमाई का धंधा बन गया था.

सफेद कपड़े से पायजामाकुरता भी बनता था. रजाइयों के खोल भी बनते थे और कभीकभार कफन भी बनता था. कपड़े की मांग तो बराबर पहले जैसी थी. मगर कपड़ा अब जिंदों के बजाय मुर्दों के काम ज्यादा आने लगा था. आखिर खुदा के घर भेजने से पहले मुर्दे को कपड़े से ढांकना भी जरूरी था. नंगा होने का लिहाज हर जगह करना ही पड़ता है…चाहे लोक हो या परलोक. विडंबना की बात थी, आदमी नंगा ही पैदा होता है. दुनिया में कदम रखते ही उस को चंद मिनटों में ही कपड़े से ढांप दिया जाता और मरने के बाद भी कपड़े से ही ढका जाता है.

जिंदों के बजाय मुर्दों के कपड़ों का काम करना या सीना हिकारत का काम था. मगर रोजीरोटी के लिए सब करना पड़ता है. वक्त का क्या पता, कैसे हालात से सामना करा दे? अलगअलग तरह के कपड़ों के लिए अलगअलग माप लेना पड़ता था. डिजाइन बनाने पड़ते थे. मोटा और बारीक दोनों तरह का काम करना पड़ता था. मगर, कफन का कपड़ा काटना और सीना बिना झंझट का काम था. लट््ठे के कपड़ों की तह तरतीब से जमा कर उस पर गत्ते का बना पैटर्न रख निशान लगा वह बड़ी कैंची से कपड़ा काट लेता था. फिर वह खुद और उस के लड़के सिलाई कर के सैकड़ों कफन एक दिन में सी डालते थे.

आतंकवाद के जनून के दौरान मरने वाले काफी होते थे. लिहाजा, धंधा अच्छा चल निकला था. दहशतगर्दी ने जहां साफसुथरा सिलाई का धंधा चौपट कर दिया था वहीं कफन सीने का काम दिला उस जैसे पुश्तैनी कारीगरों को काम से मालामाल भी कर दिया था.

जैसेजैसे काम बढ़ता गया वैसेवैसे मशीनों की और कारीगरों की तादाद भी बढ़ती गई. मगर जैसा काम होता है वैसा ही मानसिक संतुलन बनता है. सिलाई का बारीक और डिजाइनदार काम करने वाले कारीगरों का दिमाग जहां नएनए डिजाइनों, खूबसूरत नक्काशियों और अन्य कल्पनाओं में विचरता था वहां सारा दिन कफन सीने वाले कारीगरों का दिमाग और मिजाज हर समय उदासीन और बुझाबुझा सा रहता था. उन्हें ऐसा महसूस होता था मानो वे भी मौत के सौदागरों के साथी हों और हर मुर्दा उन के सीए कफन में लपेटे जाते समय कोई मूक सवाल कर रहा हो.

दर्जीखाने का माहौल भी सारा दिन गमजदा और अनजाने अपराध से भरा रहता था. सभी कारीगरों को लगता था कि इतनी ज्यादा तादाद में रोजाना कफन सी कर क्या वे सब मौत के सौदागरों का साथ नहीं दे रहे. क्या वे सब भी गुनाहगार नहीं हैं? दर्जीखाने में कोई भी खातापीता नहीं था. दोपहर का खाना हो या जलपान, सब बाहर ही जाते थे. रफीक के पास रुपया तो काफी आ गया था मगर वह भी खोयाखोया सा ही रहता था. कफन आखिर कफन ही था.

जैसे बुरे वक्त का दौर शुरू हुआ था वैसे ही अच्छे वक्त का दौर भी आने लगा. हुकूमत और आवाम ने दहशतगर्दी के खिलाफ कमर कस ली थी. हालात काबू में आने लगे थे. फिर मौत का सिलसिला थम सा गया तो कफन की मांग कम हो गई. एक मशीन बंद हुई, एक कारीगर चला गया, फिर दूसरी, तीसरी और अगली मशीन बंद हो गई, फिर पहले के समान दुकान में 2 ही मशीनें चालू रह पाईं. बाकी सब बंद हो गईं.

उन बंद पड़ी मशीनों को कोई औनेपौने में भी खरीदने को तैयार नहीं था क्योंकि हर किसी को लगता था, कफन सीने में इस्तेमाल हुई मशीनों से मुर्दों की झलक आती है. तंग आ कर रफीक ने सभी मशीनों को कबाड़ी को बेच दिया. कफन सीना कम हो गया या कहें लगभग बंद हो गया मगर थोड़े समय तक किया गया हिकारत वाला काम रफीक के माथे पर ठप्पा सा लगा गया. उस को सभी ‘कफन सीने वाला दर्जी’ कहने लगे.

धरती का स्वर्ग कही जाने वाली घाटी में दहशतगर्दी खत्म होते ही सैलानियों का आना फिर से शुरू हो गया था. ‘मौत की घाटी’ फिर से ‘धरती का स्वर्ग’ कहलाने लगी थी. मगर रफीक फिर से आम कपड़े का दर्जी या आम कपड़े सीने वाला दर्जी न कहला कर ‘कफन सीने वाला दर्जी’ ही कहलाया जा रहा था.

इस ‘ठप्पे’ का दंश अब रफीक को ‘चुभ’ रहा था. सारा रुपया जो उस ने दहशतगर्दी के दौरान कमाया था बेकार, बेमानी लगने लगा था. उस का मकान कभी पुराने ढंग का साधारण सा था मगर किसी को चुभता न था. आम आदमी के आम मकान जैसा दिखता था. मगर अंधाधुंध कमाई से बना कोठी जैसा मकान अब एक ऐसे आलीशान ‘मकबरे’ के समान नजर आता था जिस के आधे हिस्से में कब्रिस्तान होता है. मगर जिस में कोई भी संजीदा इनसान रहने को राजी नहीं हो सकता.

रफीक मियां और उस के कुनबे को इस हालात में आने से पहले हर पड़ोसी, जानपहचान वाला, ग्राहक सभी अपने जैसा ही समझते थे. सभी उस से बतियाते थे. मिलतेजुलते थे. मगर एक दफा कफन सीने वाला दर्जी मशहूर हो जाने के बाद सभी उस से ऐसे कतराते थे मानो वह अछूत हो. पिछली कई पीढि़यों से दर्जी चले आ रहे खानदानी दर्जी के कई पीढि़यों के खानदानी ग्राहक भी थे. कफन सीने का काम थोक में करने के कारण या मोटी रकम आने के कारण रफीक उन की तरफ कम देखने या कम ध्यान देने लगा था. धीरेधीरे वे भी उस को छोड़ गए थे.

दहशतगर्दी खत्म हो जाने के बाद हालात आम हो चले थे. मगर रफीक के पुराने और पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे ग्राहक वापस नहीं लौटे थे. कफन सीना बंद हो चला था, लिहाजा, कमाई बंद हो गई थी. सैलानियों से काम ले कर देने वाले या सैलानियों को आम कश्मीरी पोशाकें, कढ़ाईदार कपड़े बेचने वाले दुकानदारों ने उस पर लगे ठप्पे की वजह से उसे काम नहीं दिया था.

जिस तरह झंझावात, अंधड़, आंधी या मूसलाधार बरसात में कुछ नहीं सूझता उसी तरह दहशतगर्दी की आंधी में बहते आ रहे आवाम को वास्तविक जिंदगी का एहसास माहौल शांत होने पर ही होता था. यही हालात अब रफीक के थे. आतंकवाद से पहले इलाके में दोनों समुदाय के लोग थे. एक समुदाय थोड़ा बड़ा था दूसरा थोड़ा छोटा. जान की खैर के लिए एक समुदाय बड़ी तादाद में पलायन कर गया था.

अब घाटी में मुसलमान ही थे. हिंदू बराबर मात्रा में होते और वे भी काम न देते तो रफीक को मलाल न होता मगर अब जब सारी घाटी में मुसलमान ही मुसलमान थे और जब उसी के भाईबंदों ने उसे काम नहीं दिया तो महसूस होना ही था. कफन सिर्फ कफन होता है. उस को हिंदू, मुसलमान, सिख या अन्य श्रेणी में नहीं रखा जा सकता मगर उस को आम हालात में कौन छूना पसंद करता है?

एक कारीगर दर्जी से कफन सीने वाला दर्जी कहलाने पर रफीक को महसूस होना स्वाभाविक था. उसी तरह क्या उस की कौम भी दुनिया की नजरों में आने वाले समय या इतिहास में दहशतगर्दी फैलाने या मौत की सौदागरी करने वाली कहलाएगी?

रफीक से भी ज्यादा मलाल उस के परिवार की महिला सदस्यों को होता था कि उन का अपना ही मुसलिम समाज उन को अछूत मानने लगा था. रफीक को खानापीना नहीं सुहाता. शरीर सूखने लगा था. हरदम चेहरे पर शर्मिंदगी छाई रहती थी.

शुक्रवार की नमाज का दिन था. जुम्मा होने की वजह से आज छुट्टी भी थी. नमाज पढ़ी जा चुकी थी. वह मसजिद के दालान में अभी तक बैठा था तभी वहां बड़े मौलवी साहब आ पहुंचे. दुआसलाम हुई. ‘‘क्या हाल है, रफीक मियां? क्या तबीयत नासाज है?’’

‘‘नहीं जनाब, तबीयत तो ठीक है मगर…’’ रफीक से आगे बोला न गया. ‘‘क्या कोई परेशानी है?’’ मौलवी साहब उस के समीप आ कर बैठ गए.

‘‘आजकल काम ही नहीं आता.’’ ‘‘क्यों…अब तो माहौल ठीक हो चुका है. सैलानी तफरीह करने खूब आ रहे हैं. बाजारों में रश है.’’

‘‘मगर मुझ पर हकीर काम करने वाले का ठप्पा लग गया है.’’ ‘‘तो क्या?’’

रफीक की समस्या सुन कर मौलवी साहब भी सोच में पड़ गए. क्या कल की तारीख या इतिहास में उन की कौम भी आतंकवादियों का समुदाय कहलाएगी? रफीक की परेशानी तो फौरी ही थी. काम आ ही जाएगा, नहीं आया तो पेशा बदल लेगा. मगर जिस पर उस का अपना समुदाय चलता आ रहा था उस का नतीजा क्या होगा?

‘‘अब्बाजान, हमारा धंधा अब नहीं जम सकता. क्यों न कोई और काम कर लें?’’ बड़े लड़के अहमद मियां ने कहा. रफीक खामोश था. पीढि़यों से सिलाई की थी. अब क्या नया धंधा करें?

‘‘क्या काम करें?’’ ‘‘अब्बाजान, दर्जी के काम के सिवा क्या कोई और काम नहीं है?’’

‘‘वह तो ठीक है, मगर कुछ तो तजवीज करो कि क्या नया काम करें?’’ रफीक के इस सीधे सवाल का जवाब बेटे के पास नहीं था. वह खामोश हो गया. रफीक दुकान पर काम हो न हो बदस्तूर बैठता था. दुकान की सफाई भी नियमित होती थी. बेटा अपने दोस्तों में चला गया था. पेट भरा हो तो भला काम करने की क्या जरूरत थी? बाप की कमाई काफी थी. खाली बातें करने या बोलने में क्या जाता था?

हुक्के का कश लगा कर रफीक कुनकुनी धूप में सुस्ता रहा था कि उस की दुकान के बाहर पुलिस की जीप आ कर रुकी. पुलिस? पुलिस क्या करने आई थी? रफीक हुक्का छोड़ उठ खड़ा हुआ. तभी उस का चेहरा अपने पुराने ग्राहक सिन्हा साहब को देख कर चमक उठा.

एक दशक पहले 3 सितारे वाले सदर थाने में एस.एच.ओ. होते थे. अब शायद बड़े अफसर बन गए थे.

‘‘आदाब अर्ज है, साहब,’’ रफीक ने तनिक झुक कर सलाम किया. ‘‘क्या हाल है, रफीक मियां?’’ पुलिस कप्तान सिन्हा साहब ने पूछा.

‘‘सब खैरियत है, साहब.’’ ‘‘क्या बात है, बाहर बैठे हो…क्या आजकल काम मंदा है?’’

‘‘बस हुजूर, थोड़ा हालात का असर है.’’ ‘‘ओह, समझा, जरा हमारी नई वरदी सी दोगे?’’

‘‘क्यों नहीं, हुजूर, हमारा काम ही सिलाई करना है.’’ एस.एच.ओ. साहब एस.पी. बन गए थे. कई साल वहां रहे थे. ट्रांसफर हो कर कई जगह रहे थे. अब यहां बड़े अफसर बन कर आए थे.

रफीक मियां की उदासी, निरुत्साह सब काफूर हो गया था. वह आग्रहपूर्वक कप्तान साहब को पिस्तेबादाम वाली बरफी खिला रहा था, साथ ही मसाले वाली चाय लाने का आर्डर दे रहा था. आखिर उस के माथे से कफन सीने वाले दर्जी का लेबल हट रहा था. कप्तान साहब नाप और कपड़ा दे कर चले गए थे. रफीक मियां जवानी के जोश के समान उन की वरदी तैयार करने में जुट गए थे.

कप्तान साहब की भी वही हालत थी जो रफीक की थी. 2 परेशान जने हाथ मिला कर चलें तो सफर आसान हो जाता है.

Latest Hindi Stories : जिंदगी कभी अधूरी नहीं होती

 Latest Hindi Stories : ‘‘खुशी…’’चिल्लाते हुए खुशमन बोला, ‘‘मेरे सामने बोलने की हिम्मत भी न करना. मैं कभी सहन नहीं कर पाऊंगा कि कोई मेरे सामने मुंह भी खोले और तुम जैसी का तो कभी भी नहीं.’’

पता नहीं और क्याक्या बोला खुशमन ने. ‘तुम जैसी को तो कभी भी सहन नहीं कर सकता,’ यह वाक्य तो खुशमन ने पता नहीं इन 5 वर्षों में कितनी बार दोहराया होगा. पर मैं पता नहीं क्यों फिर भी वहीं की वहीं थी. वैसे की वैसी… जिस पर जितना मरजी पानी फेंको, ठोकरें मारो कोई फर्क नहीं पड़ता था या फिर मेरा वजूद भी खत्म हो गया था.

शादी को 5 साल हो गए थे. पता नहीं क्याक्या बदल गया था? जब याद करती हूं कि यह वही खुशमन है जिसे मैं आज से 5 साल पहले मिली थी तो खुद को कितनी खुशहाल समझी थी. वह लड़की जिस से दोस्ती के लिए भी हाथ बढ़ाने को सब तरसते थे और वह खुशमन के पीछे चलती हुई न जाने कब उस की जीवनसंगिनी बन गई थी.

मांबाप की इकलौती संतान थी खुशी. बड़े नाजों से, लाड़प्यार से पाला था उस के मांबाप ने. पापा शहर के जानेमाने बिल्डर थे. इमारतें बना कर बेचना बड़ा काम था उन का. खुशी के जन्म के बाद तो उन का व्यवसाय इतना बढ़ा कि उन्होंने इस का श्रेय उसे दे दिया. खुशी के मुंह से निकली कोई इच्छा खाली नहीं जाती थी. शहर के अच्छे स्कूल में पढ़ने के बाद खुशी ने अपने ही शहर के सब से अच्छे कालेज में बीएससी साइंस में दाखिला ले लिया. पढ़ाई में तो होशियार थी ही, साथ ही साथ खूबसूरत भी थी.

कालेज में पहले ही दिन उस के कई दोस्त बन गए. खुशी कालेज के प्रत्येक समारोह में भाग लेती. पढ़ाई में भी प्रथम स्थान पर रहती. इसी कारण वह अध्यापकों की भी चहेती बन गई थी. हर कोई उस की प्रशंसा करता न थकता. इतने गुण होने के बावजूद भी खुशी में घमंड बिलकुल नहीं था. घर में भी सब से मिल कर रहना और मातापिता का पूरा ध्यान उस के द्वारा रखा जाता था.

एक बार पापा को दिल का दौरा पड़ा तो खुशी ने ऐसे संभाला कि एक बेटा भी ऐसा न कर पाता. एक दिन पापा जैसे ही शाम को घर पहुंचे तो खुशी रोज की तरह पापा को पानी देने आई तो पापा को सोफे पर गिरा पड़ा पाया. खुशी ने हिलाया, पर पापा के शरीर में कोई हलचल न थी. नौकरों और मां की सहायता से कार से तुरंत अस्पताल ले गई और पापा को बचा लिया. तब से मातापिता का उस पर मान और भी बढ़ गया था. तब पापा ने कहा भी था कि लड़की भी लड़का बन सकती है. जरूरी नहीं कि लड़का ही जिंदगी को खुशहाल बनाता है. तब खुशी को महसूस हुआ कि उन के परिवार में कुछ भी अधूरा नहीं है.

बीएससी करने के बाद खुशी ने एमएससी में दाखिला लेना चाहा पर मां की इच्छा थी कि अब उस की शादी हो जाए, क्योंकि पापा को अपने व्यवसाय को संभालने के लिए सहारा चाहिए था. लड़का तो कोई था नहीं. इसलिए उन का विचार था कि खुशी का पति उन के साथ व्यवसाय संभाल लेगा. मगर खुशी चाहती थी कि वह आगे पढ़े. अत: मातापिता ने उस की जिद मान ली.

एमएससी खुशी के शहर के कालेज में नहीं थी. इस के लिए उसे दूसरे शहर के कालेज में दाखिला लेना पड़ता था. इस के लिए भी पापा ने अपनी हरी झंडी दिखा दी. खुशी ने दाखिला ले लिया. रोजाना बस से ही कालेज जातीआती थी. पापा ने यह देख कर उसे कार ले दी. अब वह कार से कालेज जाने लगी. उस की सहेलियां भी उस के साथ ही जाने लगीं. समय पर कालेज पहुंचती, पूरे पीरियड अटैंड करती, यहां पर भी खुशी की कई सहेलियां बन गईं. होनकार विद्यार्थी होने के कारण अध्यापकों की भी चहेली बन गई.

कालेज जौइन कर समय का पता ही नहीं चला कि कब 4 महीने बीत गए. खुशी को कई बार महसूस होता कि कोई उसे चुपके से देखता है, उस का पीछा करता है, परंतु कई बार इसे वहम समझ लेती. मगर यह सच था और वह शख्स धीरेधीरे उस के सामने आ रहा था.

रोजाना की तरह उस दिन भी खुशी कक्षा खत्म होने के बाद लाइब्रेरी चली गई. वह वहां किताबें देख ही रही थी कि कोई पास आ कर उसी अलमारी में से पुस्तकें देखने लगा. खुशी घबरा कर पीछे हो गई. जब पलट कर देखा तो यह वही था जो उस के आसपास ही रहता था. उस ने खुशी की तरफ मुसकरा कर देखा, पर खुशी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और चली गई. अब तो वह खुशी को रोजाना नजर आने लगा. वह कहीं न कहीं खुशी को मिल ही जाता.

एक दिन खुशी लाइब्रेरी में बैठ कर एक पुस्तक पढ़ रही थी. उस की एक ही कापी लाइब्रेरी में थी जिस कारण उसे इश्यू नहीं किया गया था. तभी अचानक वह वहीं खुशी के पास आ कर बैठ गया और फिर कहने लगा, ‘‘इस पुस्तक को तो मैं कब से ढूंढ़ रहा था और यह आप के पास है.’’

खुशी घबरा गई. ‘‘अरे, घबराएं नहीं. मैं भी आप की ही तरह इसी विद्यालय का छात्र हूं. खुशमन नाम है मेरा और आप का?

‘‘खुशी, मेरा नाम खुशी है,’’ कह कर खुशी बाहर आ गई.

खुशमन भी साथ ही आ गया और फिर चला गया. अब रोज मिलते. हायहैलो हो जाती. धीरेधीरे कालेज की कैंटीन में समय बिताना शुरू कर दिया. खुशमन ने अपने परिवार के बारे में काफी बातें बतानी शुरू कर दीं. काफी होशियार था वह पढ़ने में. कालेज का जानामाना छात्र था. उस के मातापिता नहीं थे. एक भाई था, जो पिता का व्यवसाय संभालता था. पैसे की कमी न थी. खुशमन शुरू से ही होस्टल में पढ़ा था, इसलिए घर से लगाव भी कम ही था. शहर में कालेज होने पर भी होस्टल में ही रहता था. भाई ने शादी कर ली थी, परंतु खुशमन अभी पढ़ना चाहता था. इंजीनियरिंग का बड़ा ही होशियार छात्र था. उसे कई कंपनियों से नौकरी के औफर थे. बड़ीबड़ी कंपनियां उसे लेने के लिए खड़ी थीं. खुशी का अब काफी समय उस के साथ बीतने लगा. पता ही नहीं चला कि कब 1 साल बीत गया और कब उन की दोस्ती प्यार में बदल गई.

खुशी के पापा का व्यवसाय काफी अच्छा चल रहा था, परंतु अब वे ज्यादा बोझ नहीं उठा पाते थे, क्योंकि अब उन की उम्र और दूसरा शायद बेटा न होने की चिंता. मगर उन्होंने यह खुशी को पता नहीं चलने दिया.

एक दिन खुशी सहेलियों के साथ कालेज पहुंची ही थी कि घर से फोन आ गया

कि पापा की तबीयत ठीक नहीं है. वह तुरंत घर चल दी. पापा को फिर दिल का दौरा पड़ा था. वह उन्हें अस्पताल ले गई. पापा दूसरी बार दिल के दौरे को सहन नहीं कर पाए. डाक्टरों ने जवाब दे दिया. उन की तो जैसे दुनिया ही खत्म हो गई. मां खुशी को संभालती और खुशी मां को. मां के अलावा अब खुशी का कोई नहीं था. पापा के जाने के बाद घर वीरान हो गया था. पापा का व्यवसाय उन के कारण ही था. अब वह खत्म हो गया था.

खुशी 1 महीना कालेज नहीं गई. सारे दोस्त पता लेने आए. खुशमन भी. सभी ने समझाया कि अपनी पढ़ाई पूरी कर लो, पर खुशी का मन ही नहीं मान रहा था. जब मां ने देखा कि सभी दोस्त खुशी को संभाल रहे हैं तो उन्होंने भी कहा कि तुझे अपनी पढ़ाई पूरी करनी चाहिए. 1 ही साल तो रह गया अब. पापा ने 2 फ्लैट बना कर किराए पर दिए थे. इस कारण पैसे की कोई समस्या न आई. धीरेधीरे खुशी ने कालेज जाना शुरू कर दिया. पढ़ाई का दूसरा साल था. प्रथम वर्ष उस ने अच्छे अंकों से पास किया था. इस बार भी वह अच्छे अंक ले कर अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती थी. खुशमन की तो पढ़ाई खत्म ही थी. उस ने 2 महीने के बाद एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी जौइन कर लेनी थी. बस कुछ दिन ही रह गए थे उस के. उस दिन खुशी के पास आया था. खुशी कालेज की कैंटीन में बैठी थी, उस के हाथ में छोटा सा गिफ्ट था. उसे खुशी को देते हुए बोली, ‘‘खुशी, इसे खोलो जरा.’’

उस में अंगूठी थी. उसे देख खुशी ने पूछा, ‘‘यह क्या है खुशमन?’’

‘‘क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’ खुशमन बोला खुशी ने हां कर दी. जब खुशी ने मां से बात की तो उन्होंने भी हां कर दी, क्योंकि खुशी के सिवाए कोई था ही नहीं उन का. खुशी की खुशी में ही उन की खुशी थी.

खुशी की पढ़ाई खत्म हुई. कालेज में टौप किया था. अध्यापकों ने कालेज में ही नौकरी जौइन करने को कहा. खुशमन से पूछा तो उस ने मना कर दिया. पढ़ाई खत्म होने के बाद खुशी और खुशमन की शादी हो गई. अपने ही शहर में उस की नौकरी थी. काफी बड़ा फ्लैट था उस का. खुशी को लगा उस की जिंदगी ही बदल गई. और खुशी के पापा ने एक फ्लैट इस शहर में भी खरीदा था. उसे किराएदारों से खाली करवा कर खुशी को यहीं ले आई. घर को किराए पर दे दिया. अब मां इसी शहर में थीं.

किसी की अच्छाइयों तथा बुराइयों का पता धीरेधीरे ही लगता है. ऐसा ही कुछ खुशी को खुशमन का अनुभव मिल रहा था. कालेज के समय कभीकभी खुशमन जब अपनी उपलब्धियों को बताता था तो उन्हें सुन कर खुशी खुश होती थी कि वह उस के सामने अपनी उपलब्धियों, अच्छाइयों को प्रकट करता है. मगर वह उस का घमंड था जो अब खुशी के सामने आ रहा था. शादी हुए 4-5 महीने ही गुजरे होंगे. प्रत्येक काम में उस का नुक्स निकालना जरूरी होता था. जैसे उस जैसा निपुण कोई और है ही नहीं. खुशी अगर कोई जवाब देती तो सुनने से पहले ही चिल्ला पड़ता था. खाना खुशी ने कभी बनाया ही नहीं था, परंतु अब तक काफी कुछ सीख गई थी. पर खुशमन को खुश न कर पाई. नौकरानी के सामने भी खामियां निकाल देता, ‘‘अरे, तुम तो नौकरानी से भी गंदा खाना बनाती हो?’’

टूट जाती थी अंदर से खुशी. ऐसे ही जिंदगी के 5 साल बीत गए. मां को भी अब खुशी का दुख नजर आने लगा था. पर कुछ कह नहीं पाती थीं, क्योंकि खुशमन खुशी का ही चुनाव था.

इधर खुशमन का व्यवहार, उधर मां की चिंता. मां बहुत अकेली पड़ गई थीं. खुशी ने कई बार मां से कहा कि उस के पास आ कर रहो, पर वे नहीं मानती थीं. खुशी ने यह अपनी तरफ से कोशिश करनी चाही थी. अभी खुशमन से बात नहीं की थी इस बारे में.

एक दिन खुशमन का मूड देख कर बात की, ‘‘खुशमन मां बहुत अकेली पड़ गई हैं.’’

पूरी बात सुनने से पहले ही खुशमन बोल पड़ा, ‘‘कोई बात नहीं खुशी. उन के लिए एक केयर टेकर रख देते हैं. सारा समय उन के पास रहा करेगी. पैसे मैं दे दूंगा,’’ कह खुशमन कमरे में चला गया.

खुशी अपनी जगह खड़ी रह गई. खुशमन को क्या पता कि मातापिता का प्यार क्या होता है? क्या होता है परिवार? शुरू से ही तो होस्टल में रहा. ऊपर से उस के दिमाग में घमंड भरा हुआ था. इन्हीं कारणों से अपना भी परिवार भी नहीं बढ़ा रहा था.

एक दिन तो हद हो गई. मां काफी बीमार थीं. केयर टेकर ने फोन किया. खुशी ने जाना चाहा, तो खुशमन ने वहीं रोक दिया. बोला, ‘‘आज मेरी छुट्टी है, मैं नहीं चाहता कि तुम घर से बाहर जाओ… कम से कम छुट्टी वाले दिन तो घर रहा करो…’’ मां की तबीयत की बात है तो केयर टेकर को बोल दो कि उन्हें दवा दे दे.

खुशी चाह कर भी न जा पाई.

मां की तबीयत काफी बिगड़ रही थी. कुछ खापी भी नहीं रही थीं? खुशी ने साहस कर के खुशमन से बात की, ‘‘मां की तबीयत बहुत खराब है. उन्हें मेरी जरूरत है… तो क्या मैं मां को यहां ले आऊं?’’

खुशमन चिल्ला कर बोला, ‘‘क्यों? क्या मैं ने तुम्हारे खानदान का ठेका ले रखा है? तुम्हें पाल रहा हूं क्या यही कम है, जो तुम्हारी मां को भी उठा लाऊं? तुम से भी मैं ने शादी इसलिए की थी कि समाज में रहने के लिए एक सुंदर पत्नी चाहिए थी और घर को संभालने के लिए एक औरत न कि तुम्हारी खूबियां देख कर. वैसे भी खूबी तो कोई है नहीं तुम में, जिस का मैं वर्णन कर सकूं और फिर तुम्हारी मां के अब दिन ही कितने रह गए हैं. केयर टेकर है संभाल लेगी उसे,’’ कह कर खुशमन चला गया.

सारा दिन खुशी यही सोचती रही कि क्या उस का कोई वजूद नहीं? सिर्फ उस की शक्ल देख कर खुशमन ने इसलिए शादी की थी कि उस की एक सुंदर पत्नी है, यह समाज में दिखा सके?

सारी रात खुशी इन गुजरे सालों के बारे में सोचती रही. खाना भी नहीं खाया और न ही खुशमन ने पूछा. वह तो शायद खुशमन के लिए कठपुतली थी. मगर आज तो पानी सिर के ऊपर से गुजर गया था. आज खुशमन ने उसे उस का स्थान दिखा दिया था. पहले भी 2-3 बार वह बेइज्जत हो कर मां के पास गई थी, परंतु फिर खुशमन के कहने पर लौट आई थी. अब उस ने लौट कर न आने का सोची थी. खुशमन के जाने के बाद खुशी ने अपना समान समेटा, चाबी नौकरानी को पकड़ाई और मां के पास चली गई. आज उस की उन्हें जरूरत थी. उस मां को जिस ने उस के इतना काबिल तो बनाया था कि वह अपनी जिंदगी खुद जी सके न कि खुद को अधूरा समझे.

मां ने देखा तो खुश हो कर बोली, ‘‘खुशमन छोड़ कर गया है?’’

‘‘नहीं मां, खुशी को आने के लिए किसी की मंजूरी या साथ की जरूरत थोड़े होती है. वह कब आ जाए पता ही नहीं चलता,’’ खुशी हंसते हुए बोली.

‘‘यह क्या बोले जा रही है?’’ मां बोली, ‘‘कुछ नहीं मां, तुम्हें मेरी जरूरत थी तो मैं आ गई बस.’’ खुशी ने मां का काफी ध्यान रखा. अब मां काफी ठीक हो गई थीं. काफी संभल भी गई थीं. कितना खुदगर्ज था खुशमन. एक बार भी फोन कर के नहीं पूछा.

मां ने एक दिन खुशमन के बारे में पूछा तो खुशी ने भी सच बता दिया. यह भी कह दिया कि अब वह वापस नहीं जाएगी.

एक दिन सुबह नाश्ता कर के बैठी ही थी कि खुशमन आ गया. बोला, ‘‘क्या नजारे हैं महारानी के…एक तो बिन बताए निकलना और फिर कितनेकितने दिनों तक घर न लौटना…चलो घर… ले जाने को आया हूं. बाहर कार में इंतजार कर रहा हूं…सामान ले कर आ जाओ,’’ एक ही सांस में सब बोल गया. मां की तबीयत के बारे में कुछ नहीं पूछा.

जैसे ही खुशमन बाहर जाने लगा, खुशी जोर से बोली, ‘‘ठहरिए, खुशमन… आप क्या समझते हो आप जब चाहोगे कुछ भी बोल दोगे… जब चाहोगे घर से निकाल दोगे, जब चाहोगे लेने आ जाएंगे…क्या समझा है आप न मुझे? मैं न तो कोई वस्तु हूं और न ही कोई कठपुतली. मैं एक नारी हूं, जिस का अपना वजूद होता है. वह अपना जीवन जी सकती है. वह कभी अधूरी नहीं होती. उसे अधूरा बनाया जाता है. क्या नहीं कर सकती वह? मैं बताती हूं क्याक्या कर सकती है वह… मांबाप को संभाल सकती है, कमा सकती है, घर संभाल सकती है, इसलिए कभी अधूरा न समझना मुझे. जिंदगी कभी अधूरी नहीं होती. खुशी भी न कभी अधूरी थी, न है, न रहेगी. इसलिए अब मैं आप के साथ नहीं जाना चाहती और आगे से खुशी के घर में कदम भी मत रखना.’’

खुशमन हैरान हो गया था. उस ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि खुशी ने दरवाजा बंद कर दिया. खुशमन बंद दरवाजा देख कर वहां से धीमेधीमे कदमों से चला गया.

Famous Hindi Stories : पापाज बौय – ऐसे व्यक्ति पर क्या कोई युवती अपना प्यार लुटाएगी?

Famous Hindi Stories : फरवरी का बसंती मौसम था. धरती पीले फूलों की चादर में लिपटी हुई थी. बसंती बयार में रोमांस का शोर घुल चुका था. बयार जहांतहां दो चाहने वालों को गुदगुदा रही थी. मेरे लिए यह बड़ा मीठा अनुभव था. मैं उस समय 12वीं कक्षा में पढ़ रही थी.

यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही शरीर में बदलाव होने लगे थे. सैक्स की समझ बढ़ गई थी. दिल चाहता था कि कोई जिंदगी में आई लव यू कहने वाला आए और मेरा हो कर रह जाए. मैं शुरू से ही यह मानती आई थी कि प्रेम पजैसिव होता है इसीलिए यही सोचती आई थी कि जो जिंदगी में आए वह सिर्फ मेरा और मेरा हो.

शतांश से मेरी मुलाकात क्लास में ही हुई थी. वह गजब का हैंडसम था साथ ही अमीर बाप की एकलौती संतान था. पता नहीं मुझ में ऐसा क्या था जो वह मुझ पर एकदम आकर्षित हो गया. वैसे क्लास और स्कूल में अनेक लड़कियां थीं, जो उस पर हर समय डोरे डालने का प्रयास करती थीं. मैं एक मध्यवर्गीय युवती थी और वह आर्थिक स्थिति में मुझ से कई गुना बेहतर था.

पहली मुलाकात के बाद ही हमारी दोस्ती बढ़ने लगी थी. मुझे क्लासरूम में घुसते देख कर ही वह दरवाजा रोक कर खड़ा हो जाता और मुझे अपनी तरफ देखने को मजबूर करता. कभी वह मेरे बैग से लंच बौक्स निकाल कर पूरा खाना खा जाता तो कभी अपना टिफिन मेरे बैग में रख देता. वह मेरे से नितनई छेड़खानियां करता. अब उस की छोटीछोटी शरारतें मुझे अच्छी लगने लगी थीं. शायद उस दौरान ही हमारे बीच प्रेम का पौधा पनपने लगा था.

मन की सुप्त इच्छाएं उस समय पूर्ण हुईं जब शतांश ने मुझे वैलेंटाइन डे पर लाल गुलाब देते हुए कहा था, ‘आई लव यू.’

मेरे लिए वह पल सुरमई हो उठा था. हृदय में खुशी का सैलाब उमड़ने लगा था. मैं शतांश की हो जाने को बेताब हो उठी थी. कैसे उस के शब्दों के बदले अपने प्रेम का इजहार करूं, अचानक कुछ भी नहीं सूझा था. जिस हाथ से शतांश ने वह फूल दिया था, मैं ने उस हाथ को शरमाते हुए चूम लिया था, बस.

उस दिन के बाद से न ही उस ने कुछ किया और न ही मैं ने. जो कुछ किया रोमांस की हवा के झोंकों ने किया. हमारे बीच प्रेम निरंतर बढ़ता जा रहा था. हम एकदूसरे के और करीब आते गए थे.

रेस्तरां में शतांश के इंतजार में बैठी शायनी अपना अतीत उधेड़े जा रही थी. तभी वेटर आ कर उस के सामने कौफी का एक कप रख गया. कौफी का एक घूंट गले में उतारते हुए शायनी फिर अतीत में खो गई. रेस्तरां के शोरशराबे ने भी उस की सोच में कोई खलल नहीं डाला.

स्कूली शिक्षा समाप्त करते ही मैं ने मैडिकल में ऐडमिशन ले लिया था और शतांश ने ग्रैजुएशन के बाद एमबीए करने की चाह में आर्ट्स कालेज जौइन कर लिया था.

यह सत्य है कि प्रेम किसी सीमा का मुहताज नहीं होता. वह न जाति में बंधता है, न धर्म में. न ऊंचनीच उसे बांधती है और न ही रंगभेद. कालेज की दूरियां और समय का अभाव कभी भी हमारे प्रेम में कमी नहीं ला पाया. मेरे और शतांश के रिश्तों में रोमांस की खुशबू सदा बनी रही.

ऐसा कभी नहीं हुआ कि वह मेरे साथ मैडिकल कालेज के लड़कों को देख कर चिढ़ा हो, उन्हें बरदाश्त न कर पाया हो और न ही कभी ऐसा हुआ कि उस के साथ लड़कियों को देख कर कभी किसी शंका ने मेरे मन में जन्म लिया हो. हम अपने प्रेम के लिए पजैसिव भी थे और प्रोटैक्टिव भी.

समय का अभाव जरूर हमें सालता था, पर हम अपने दायित्वों को समझते थे. हम हरसंभव प्रयास करते थे कि सप्ताहांत में मिलें और रोमांस को बरकरार रखें. उस सैक्स को जीवंत रखें, जो रोमांस के लिए जरूरी है ताकि संबंधों में मधुरता बनी रहे.

एक डेट पर जब हम दोनों ने यह एहसास कर लिया कि हम एकदूसरे के लिए ही हैं तो हम ने विवाह बंधन में बंधने का निर्णय कर लिया. उस दिन पुलक कर मैं ने न जाने कितने चुंबन उस के गाल पर जड़ दिए थे और उस ने मुझे अपनी बांहों से बिलकुल भी छिटकने नहीं दिया था.

मोबाइल की घंटी बजते ही शायनी की सोच बिखर गई. फोन पर शतांश था. शायनी ने उसे लगभग डांट सा दिया. हलके से क्रोध भरे स्वर में वह बोली, ‘‘शतांश, आजकल क्या हो गया है तुम्हें? मैं आधे घंटे से तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’

‘‘सौरी डार्लिंग, मैं आज नहीं आ पाऊंगा,’’ शतांश बोला.

‘‘आखिर क्यों?’’

‘‘मैं बिजी हूं. एक पल की भी फुरसत नहीं है मुझे.’’

‘‘मुझे पहले नहीं बता सकते थे,’’ शायनी ने अपनी नाराजगी जाहिर की.

‘‘सौरी लव, मुझे ध्यान ही नहीं रहा.’’

गुस्से में शायनी ने फोन काट दिया. सोच का रथ फिर दौड़ने लगा. तेज और तेज. जीवन में कुछ परिवर्तन अचानक होते हैं. ऐसा ही परिवर्तन पिछले कुछ दिनों से मैं शतांश के व्यवहार में देख रही हूं. यद्यपि मेरा मन कई आशंकाओं और भय से इन दिनों लगातार घिरता रहा है पर मैं ने इन आशंकाओं को अब तक अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया.

मैं ने हरसंभव प्रयास किया है कि हमारे प्यार को किसी की नजर न लगे. रोमांस बरकरार रहे. मेरा प्रेम मेरे लिए सब से महत्त्वपूर्ण है.

मैं रोमानी रिश्तों में बोल्डनैस की पक्षधर हमेशा रही हूं. रिश्तों में दावंपेंच मुझे कतई पसंद नहीं रहे. शतांश का मुझ से कतराना मुझे आहत करने लगा है. यदि अब वह किन्हीं कारणों से मुझ से सामंजस्य नहीं बना पा रहा है, तो मैं चाहती हूं कि वह मेरे समक्ष आए और मेरे सामने अपना दोटूक पक्ष रखे. यदि हमारे संबंधों में एकदूसरे का सम्मान लगभग समाप्त होने लगा है, तो कम से कम हम बिछुड़ें तो मन में खटास ले कर दूर न हों.

एक लंबे अंतराल के बाद शतांश ने शायनी को फोन या. शायनी उस समय कालेज में थी. शतांश ने उसे बताया कि वह आज रेस्तरां में उस से मिलना चाहता है. शायनी उस समय अपने कई मित्रों से घिरी हुई थी. वह शतांश को अधिक समय नहीं दे पाई. उस से शाम को मिलने का वादा कर के वह अपनी क्लास में चली गई.

शाम को जब शायनी रेस्तरां पहुंची तो वहां शतांश पहले से ही उस का इंतजार कर रहा था. शायनी को देखते ही उस ने वेटर को 2 कप कौफी लाने का और्डर दिया और शायनी के बैठते ही उस से पूछा, ‘‘कैसी हो?’’

‘‘पहले जैसी नहीं,’’ शायनी ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

‘‘मैं तुम्हारी नाराजगी समझ सकता हूं,’’ वह बड़ी गंभीरता से बोला, ‘‘सौरी लव, व्यस्तता इतनी अधिक थी कि तुम से मिलने का समय नहीं निकाल पाया,’’ शतांश ने कहा.

शायनी चुप रही. वह शतांश के चेहरे को पढ़ने का प्रयास करने लगी. उस की चुप्पी ने शतांश को असहज कर दिया. कुछ समय पश्चात चुप्पी शतांश ने ही तोड़ी, ‘‘डियर, जो सच मैं इन दिनों तुम से छिपाता रहा हूं, वह यह है कि मैं पापा के मित्र की लड़की खनक से विवाह करने जा रहा हूं. मैं समझता हूं कि तुम मेरा यह फैसला सुन कर आहत जरूर होगी, लेकिन सच यह भी है कि हम में से यह कोई नहीं जानता कि अगला पल हमारे लिए क्या लिए हुए खड़ा है.

‘‘यह पापा का फैसला है. वे हृदयरोगी हैं. उन के अंतिम समय में मैं उन्हें कोई आघात नहीं पहुंचाना चाहता.’’

शायनी ने शतांश को सुना पर वह उस के निर्णय से चकित नहीं हुई. वह पल उस के लिए बड़ा ही पीड़ादायक था. मन दरकदरक बिखरने लगा था. अपनेआप को संयत करते हुए वह बोली, ‘‘तुम पुरुष हो शतांश. कुछ भी कह सकते हो. मैं नारी हूं. मुझे तो सिर्फ सुनना है. गलत मैं ही थी जो तुम्हें समझ नहीं पाई. मैं तो यही समझती रही थी कि तुम भी मेरी तरह हमारे प्यार के लिए पजैसिव और प्रोटैक्टिव हो.’’

ठंडी सांस लेते हुए उस ने फिर कहा, ‘‘शतांश, मैं तुम से कुछ जवाब चाहती हूं. स्कूल में मुझे रिझाते समय, अपनी वैलेंटाइन बनाते समय, होटलों में मेरा शरीर भोगते समय और मुझ से विवाह करने का निर्णय लेते समय क्या तुम्हें यह पता नहीं था कि तुम पापाज बौय हो? उन की इच्छा के विरुद्ध कहीं नहीं जा पाओगे? यदि पता था तो मेरी जिंदगी से खिलवाड़ करने का अर्थ क्या था?

‘‘सच क्यों नहीं कहते कि तुम्हारे पापा को मेरे पापा से बड़े दहेज की उम्मीद नहीं है. यह क्यों नहीं कहते कि वे नहीं चाहते कि कोई मध्यवर्गीय युवती उन के खानदान की बहू बने. इस में तुम्हारी भी सहमति है. तुम्हारा मुझ से प्यार तो केवल एक नाटक था,’’ कहते हुए एक दर्द उभर आया था शायनी की आवाज में. उस की आंखें डबडबा उठी थीं.

शतांश ने सिर्फ उस के दर्द भरे शब्द सुने. कहा कुछ नहीं. केवल शायनी की आंखों से निकल कर चेहरे पर फिसलते एकएक मोती को गौर से देखता रहा.

‘‘गो,’’ शतांश की चुप्पी पर शायनी लगभग चीख उठी. वह इन बोझिल पलों से शीघ्र ही उबर आना चाहती थी, ‘‘जाओ, शतांश जाओ. आई हेट यू,’’ वह फिर चीखी. पर जब शतांश कुरसी से नहीं उठा तो वह खुद उठ कर रेस्तरां से बाहर चली आई.

शायनी शतांश के निर्णय से हताश हो कर घर तो चली आई पर रातभर सो न सकी. मन में तूफान उठ रहा था, जो उसे विचलित किए जा रहा था. वह सोचे जा रही थी कि प्यार तो जिंदगी का संगीत होता है. उस के बिना जीवन सूना हो जाता है इसीलिए उस ने अंत समय तक यह भरसक प्रयास किया था कि उस के प्यार की खुशबू शतांश में बनी रहे.

शतांश उस से कहीं दूर न हो जाए. इसी संशय में मैडिकल की कठिन पढ़ाई के उपरांत उस के लिए लगातार समय निकाला था. सदैव उस की शारीरिक इच्छाएं पूरी की थीं. अपनी तरफ से प्रेम के प्रति ईमानदार बनी रही थी. कभी उसे शिकायत का कोई मौका ही नहीं दिया था. इस से ज्यादा और वह क्या कर सकती थी. अचानक शतांश की बेवफाई को वह क्या समझे? उस के साथ नियति का कू्रर मजाक या फिर शतांश द्वारा दिया गया धोखा.

सोचतेसोचते न जाने कब आंख लग गई. सवेरे शायनी को उस के पापा रविराय ने जगाया, ‘‘शायनी, आज कालेज नहीं जाएगी बेटा? देख सूरज सिर पर चढ़ आया है.’’

अलसाते हुए शायनी पलंग पर उठ बैठी. उस ने पापा को पास बैठाते हुए कहा, ‘‘आज कालेज जाने का मन नहीं है,’’  फिर उन की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘पापा, मैं ने फैसला किया है कि मैं शादी नहीं करूंगी.’’

रविराय उस की बात पर जरा भी नहीं चौंके. वे बात की गंभीरता को समझते हुए बोले, ‘‘साफ क्यों नहीं कहती कि शतांश अब तेरी जिंदगी से दूर जा चुका है. मैं कई दिन से महसूस कर रहा था कि अब न तो तेरे लिए उस के फोन आते हैं और न ही तू मुझ से उस के साथ देर रात तक रुकने के लिए अनुमति मांगती है. चल, जो भी हुआ, ठीक हुआ. शायद तुम दोनों एकदूसरे के लिए बने ही नहीं थे.

‘‘बेटे, लाइफ एक बंपी राइड है. यह सपाट और सरल कभी नहीं होती इसलिए संभलो और आगे बढ़ो. नैवर रिग्रैट फौर एनीथिंग,’’ कहते हुए रविराय ने उसे बांहों में बांध कर उस के माथे को चूम लिया.

खनक की कार जब होटल ड्रीमलैंड की पार्किंग में रुकी तो शतांश अपनी कार लौक कर के उस के आने का इंतजार करने लगा. खनक ने कार से उतरते ही शतांश से कहा, ‘‘मैं समझती हूं, हमें अंदर रेस्तरां में जाने की कोई आवश्यकता नहीं है. अपने विवाह के संबंध में हमें जो भी निर्णय लेना है, वह यहीं लिया जा सकता है. वैसे मैं तुम्हारे और शायनी के बारे में बहुतकुछ जानती हूं. मैं यह भी जानती हूं कि तुम ने मुझ से शादी करने के लिए उस से ब्रेकअप किया है.’’

थोड़ा रुक कर उस ने फिर कहा, ‘‘शतांश, तुम में और मुझ में एक बड़ा अंतर यह है कि यू आर पापाज बौय. तुम वही करते हो जो वे तुम्हें करने के लिए कहते हैं. यहां तुम उन के कहने पर ही मुझे प्रपोज करने आए हो.

‘‘जहां तक मेरा प्रश्न है, मैं अपने डैडी की इज्जत करती हूं. उन के कहने पर मैं यहां आई तो जरूर हूं, लेकिन अपनी जिंदगी के फैसले करने का अधिकार मैं किसी को नहीं देती, क्योंकि यह मेरी जिंदगी है, जो मुझे अपने ढंग से जीनी है, डैडी की इच्छा से नहीं.’’

अपनी बातों को समाप्त करते हुए वह बोली, ‘‘अब बेहतर यही है कि तुम लौट कर अपने पापा को यह बता दो कि खनक तुम्हें पसंद नहीं है, क्योंकि वह न तो हमारे घर में निभ पाएगी और न ही आप की सेवा कर पाएगी. मुझे अपने डैडी से क्या कहना है, यह मैं भलीभांति जानती हूं.’’

शतांश मूक रह गया. वह चेहरे पर उभर आई फीकी सी मुसकान के पीछे छिपे दर्द को ढकने का प्रयास करने लगा. वह समझ नहीं पाया कि कैसे वह खनक को अपने मन के भाव दिखाए.

‘‘चलें,’’ अचानक खनक के शब्द ने उसे चौंका दिया. खनक उसे उसी अवस्था में छोड़ कर अपनी कार में बैठी और कार स्टार्ट कर पार्किंग से बाहर निकल गई. शतांश किंकर्तव्यविमूढ़ सा उसे देखता रह गया.

समय किसी के लिए नहीं रुकता. शतांश के लिए भी नहीं रुका और न ही शायनी के लिए. 4 साल बाद नैनीताल में एक दिन शायनी जैसे ही अपने क्लीनिक से बाहर निकली, उसे शतांश कार में सड़क से गुजरता हुआ दिखाई दिया. शायनी उसे नैनीताल में देख कर विस्मित हुए बिना नहीं रही. उसी पल शतांश को भी वह सड़क के किनारे चलती हुई नजर आ गई. उसे नैनीताल में देख कर वह भी चकित रह गया. वह कार से उतरा और शायनी के पास आ पहुंचा.

उसे रोकने का प्रयास करते हुए उस से पूछा, ‘‘तुम यहां?’’

शतांश को अपने सामने देख कर शायनी के मन से नफरत का लावा भरभरा कर बह निकला. उस के प्रश्न का उत्तर दिए बिना शायनी ने अपनी गति तेज कर दी.

शतांश ने भी उस का पीछा नहीं छोड़ा. बढ़ कर फिर उस के समीप आ गया. बोला, ‘‘शायनी, सुनो तो. हम इतने भी अजनबी नहीं हैं कि तुम मुझ से कतरा कर भागने लगो. मैं सिर्फ इतना जानना चाहता हूं कि तुम यहां कैसे?’’

अब शायनी रुक गई. वह अपने को  संयमित करते हुए बोली, ‘‘मैं यहीं रहती हूं. यहां मेरा क्लीनिक है.’’

‘‘सरप्राइजिंग, मेरी यहां एक फैक्टरी है. मैं भी यहीं रहता हूं,’’ फिर कुछ सोचते हुए उस ने शायनी से अनुरोध किया, ‘‘क्या

हम थोड़े समय के लिए एकसाथ कहीं बैठ सकते हैं?’’

‘‘नहीं,’’ वह बोली.

‘‘शायनी तुम्हें मेरे और अपने उन पलों की कसम, जो कभी हम ने साथ जिए थे.’’

‘‘जो कहना है यहीं कहो,’’ बड़ी असहज स्थिति में उस का अनुरोध स्वीकार करते हुए शायनी ने कहा.

शतांश वहीं एक लैंप पोस्ट के सहारे खड़ा हो गया. शायनी भी उस के पास खड़ी हो गई. अपने दिल के बोझ को हलका करने का प्रयास करते हुए शतांश बोला, ‘‘शायनी, मैं अब पापाज बौय नहीं रहा हूं. पापा से अलग हो कर मैं ने अपनी फैक्टरी यहां लगा ली है. फैक्टरी लगाने के बाद मैं ने तुम्हें हर जगह ढूंढ़ा.

’’तुम्हारे साथियों से भी पूछा कि तुम आजकल कहां हो, लेकिन जब कोई कुछ नहीं बता पाया तो मैं ने तुम्हारे पापा से बात की. उन्होंने मुझे तुम्हारे बारे में कुछ भी बताने से साफ इनकार कर दिया. हां, यह जरूर बताया कि तुम ने भविष्य में शादी करने से इनकार कर दिया है.’’

शायनी शतांश की बातें सुनती चली गई. उस की बातों पर उस ने अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. बस, सड़क पर चलती हुई भीड़ और सामने से गुजरते वाहनों को देखती रही.

थोड़ी चुप्पी के बाद शतांश ने फिर कहना शुरू किया, ‘‘शायनी, सच मानो, अपने बे्रकअप के बाद से मैं पश्चात्ताप की आग में जल रहा हूं. वह बे्रकअप मेरे जीवन की एक बड़ी भूल थी. मैं तुम से क्षमा मांग कर उस भूल को सुधारना चाहता हूं. मेरी बाहें तुम्हें आज भी उसी गर्मजोशी से बांधने को तैयार हैं. प्लीज शायनी, फौरगैट एवरी थिंग.’’

शायनी ने शतांश को सिर से ले कर पैर तक देखा मानो किसी गिरगिट को रंग बदलते हुए देख रही हो. क्षितिज पर डूबा सूरज पल भर के लिए आग बरसाता हुआ सा लगा.

अपने मन के कष्ट को दबाते हुए वह फट पड़ी, ‘‘मिस्टर शतांश, जो उलझन, उथलपुथल, तनाव और दुख इस दौर में मैं ने झेले हैं, उन्हें सिर्फ वही युवती समझ सकती है जिस ने बे्रकअप झेला हो. मैं एक स्वाभिमानी युवती हूं. रिश्तों में इतनी कड़वाहट आने के बाद तुम से फिर रिश्ता कायम कर लूंगी, यह तुम्हारी समझ का एक बड़ा दोष है.

‘‘जरा सोचो, जिस इंसान के साथ बिताए पलों की याद आते ही मेरे मन में नफरत का एक तूफान उठने लगता है, उस के चेहरे को जिंदगी भर मैं अपने सामने कैसे देख पाऊंगी? कभी नहीं, सौरी.’’

तभी एक औटोरिक्शा शायनी के पास से गुजरा. शायनी ने हाथ दे कर उसे रोका. उस में बैठी और चली गई. औटो से निकले काले धुएं ने शतांश के सपनों पर गहरी कालिख बिछा दी.

Latest Hindi Stories : विराम – क्या महेश से मिल कर मोहिनी अपने पति श्याम को भुला बैठी?

Latest Hindi Stories : आज महेश सुबह बिना नहाएधोए ही उपन्यास पढ़ने बैठ गया. यकायक उस की नजर एक शब्द पर आ कर रुक गई और चेहरे का उजास उदासी में बदल गया. ‘उस का’ नाम उपन्यास की एक पंक्ति में लिखा हुआ था. उदास मन से वह सोचने लगा कि आज मोहिनी को उस से बिछड़े हुए एक अरसा हो गया और आज उस का नाम इस तरह से क्यों उस के मन में दस्तक दे रहा है? यह मात्र संयोग है या और कुछ? वैसे तो एक जैसे हजारों नाम होते हैं मगर महेश ने लंबे समय से उस का नाम कहीं पढ़ासुना नहीं था, तो इस प्रकार की बेचैनी स्वाभाविक थी.

 

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अचानक ही उस का बेचैन मन उस से मिलने की हूंक भरने लगा. मगर यह इतना आसान कहां था? उस ने दिल की इस अभिलाषा को पूरा करने का काम दिमाग को सौंप दिया. उस को अपने रणनीति विशेषज्ञ दिमाग पर पूरा भरोसा था.

महेश की एक कजिन थी विशाखा. विशाखा मोहिनी की पड़ोसिन थी. वह मोहिनी की खास सहेली थी मगर महेश कभी उस से मोहिनी के विषय में बात करने का साहस नहीं जुटा पाया. पर एक दिन बातोंबातों में ही उस ने विशाखा से मोहिनी के पति का नाम वगैरह जान लिया.

फिर महेश ने मोहिनी के पति शाम को फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी. श्याम ने उस की रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली. उस की हसरतों को एक खुशनुमा ठहराव मिला. यहां से महेश और श्याम फेसबुकफ्रैंड बन गए. अब मिशन शुरू हो चुका था.

महेश श्याम की फेसबुक पोस्ट्स पर कमैंट्स या लाइक्स जरूर देता. अब लाइक और कमैंट की वजह से महेश और श्याम में जानपहचान भी हो चुकी थी. वैचारिक रूप से भी काफी करीब आ चुके थे दोनों.

एक दिन महेश ने श्याम से उस का पर्सनल नंबर मांगा, ‘‘मेरे सभी फेसबुक फ्रैंड्स का नंबर मेरे पास है. आप भी दे दें. कभी न कभी मुलाकात भी होगी.’’

इस पर श्याम ने कहा, ‘‘कभी हमारे शहर आना हो तो जरूर मिलिएगा. मुझे खुशी होगी.’’ महेश तो इसी मौके की तलाश में था. अगले हफ्ते सैकेंड सैटरडे था. महेश को वह दिन उपयुक्त लगा और उस दिन महेश उस के शहर पहुंच गया. उस ने मोहिनी के पति को कौल किया कि मैं अपनी कंपनी के किसी काम से आया हुआ था. सोचा आप से भी मिलता चलूं. आप कृपया अपना पता बता दें.’’

‘‘आप वहीं रुकिए, मैं अभी पहुंचता हूं,’’ कह कर श्याम ने फोन रख दिया.

‘‘बस चंद मिनट का फासला है मेरे और मोहिनी के बीच,’’  महेश सोच रहा था. इसी मौके का तो बेसब्री से इंतजार कर रहा था वह. एक सपना सच होने जा रहा था.

‘‘उसे करीब से देखूंगा तो कैसा महसूस होगा, वह अब कैसी दिखती होगी, उस ने क्या पहना होगा…?’’ ढेर सारी अटकलों में घिरा उस का बावरा मन व्याकुल हुआ जा रहा था.

तभी श्याम उसे लेने आ गए. दोनों ने एकदूसरे के हालचाल पूछे. फिर वे महेश को ले कर अपने साथ अपने घर पहुंचे और पानी लाने के लिए अपनी पत्नी को आवाज दी.

अपने दिल की धड़कनों पर काबू करते हुए महेश ने दरवाजे की ओर आंखें गड़ा दी थीं कि अब मोहिनी ही पानी ले कर आएगी. लेकिन पल भर में ही उम्मीदों पर पानी फिर गया. पानी नौकरानी ले कर आई. इतने में श्याम बोले, ‘‘मैं ने आप की फेसबुक प्रोफाइल देखी है. आप तो राजनीति पर अच्छाखासा लिख लेते हैं.’’

‘‘आप भी तो कहां कम हैं जनाब,’’ महेश ने हंसते हुए जवाब दिया.

फिर सिलसिला चल पड़ा चर्चाओं का… लोकल पौलिटिक्स, गांव और शहर की समस्या, आतंकवाद और न जाने क्याक्या.

बातों ही बातों में महेश का स्वर एकदम से रुक गया. आंखें पथरा गईं. चेहरे पर सन्नाटा छा गया. सोफे और कुरसी की हलचल थम सी गई. श्याम महेश की भावभंगिमा परख तो पा रहे थे, मगर समझ नहीं पा रहे थे.

यह क्या? अपने हाथों में चाय की ट्रे पकड़े हुए वह महेश के सामने खड़ी थी. उस की आंखों में अनुराग की अकल्पनीय असीमता थी. उस का चेहरा चंचलता की स्वाभाविक आभा से अलौकित हो रहा था और उस के होंठों पर मधुरिमा मुसकान थी. महेश की रगों में उसे छूने की अतिउत्सुकता जाग उठी. उस का मन कर रहा था कि इसी पल उसे आलिंगनबद्ध कर ले. किंतु यह संभव नहीं था. वह ज्योंज्यों महेश के करीब आ रही थी त्योंत्यों महेश की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं.

‘‘कैसे हो?’’ उस ने महेश को चाय का प्याला थमाते हुए पूछा.

‘‘मैं ठीक हूं और आप कैसी हो?’’ महेश ने पूछा.

उस का जी और महेश का आप नाटकीयता का प्रकर्ष था.

मोहिनी ने कहा, ‘‘मैं भी ठीक हूं.’’

मोहिनी के पति आश्चर्य से दोनों का चेहरा देख रहे थे. उन के मन में उठते हुए भावों को मोहिनी पढ़ चुकी थी. इसलिए उस ने कहा, ‘‘अरे हां, मैं आप को बताना भूल गई, मैं इन को जानती हूं… मेरी जो सहेली है विशाखा, जिस से मैं ने आप को अपनी शादी में मिलवाया था, ये उस के कजिन हैं. इन से एकदो बार विशाखा के घर पर ही मुलाकात हुई थी. तभी से जानती हूं.’’

प्रेम अपने वास्तविक धरातल पर आ ही जाता है. महेश को यकीन नहीं हो रहा था और

शायद मोहिनी को भी. 2 प्रेमी आमनेसामने खड़े थे और महेश चाह कर भी उसे छू नहीं सकता था. दोनों के बीच अब समाज की दीवार थी. महेश श्याम से बात कर रहा था और कोशिश कर रहा था कि सब सही रहे. फिर भी महेश की आंखें उसी की चंदन सी काया को निहार रही थीं.

‘‘ढेर सारी बातें और किस्से हो गए. अब चलूंगा, आज्ञा दीजिए,’’ कह कर महेश जाने के लिए उठने लगा.

‘‘अरे, कहां जा रहे हो? खाना तैयार है. आप पता नहीं फिर कब आओगे,’’ श्याम ने कहा.

एक अजब सी कशमकश थी मन में. महेश आत्मीय निवेदन ठुकराने का दुस्साहस नहीं कर सका और बैठ गया. महेश को जब भोजन परोसा जा रहा था तब वह रसोई से आतीजाती मोहिनी को बड़े ध्यान से देख रहा था और सोच रहा था, ‘‘कितनी खूबसूरत लग रही है… वैसे ही तेज कदमों से चलना, हाल बदले थे पर चाल वैसी ही थी… उस के हाथ का बना खाना बहुत स्वादिष्ठ था.’’

भोजन किया और निकलने लगा. फिर कुछ सोच कर बोला, ‘‘आप अपना नंबर दे दो. विशाखा को दे दूंगा. आप को बहुत मिस करती है.’’

मोहिनी ने पति की तरफ देखा और स्वीकृति मिलने पर नंबर दे दिया. इसी के साथ महेश की यह अंतिम इच्छा भी पूरी हो गई. पूरी रात मोहिनी सोचती रही कि महेश उस का नंबर ले कर गया है तो कौल भी जरूर करेगा. महेश से कैसे मिले और कैसे उस को समझाए कि अब हालात बदल गए हैं?

महेश उस को अगले दिन से ही फोन करने लगा. मोहिनी 4-5 दिन तक तो उस की कौल को अवौइड करती रही, पर बाद में महेश से बात करने का निश्चय किया.

महेश, ‘‘क्या इतनी पराई हो गई हो कि मिलने भी नहीं आ सकतीं?’’

मोहिनी, ‘‘अब मेरा नाम किसी और के नाम के साथ जुड़ चुका है.’’

महेश, ‘‘ये दूरियां जिंदगी भर की होंगी, ये सोचा न था.’’

मोहिनी, ‘‘तुम ही तो चाहते थे ऐसा. याद करो तुम ने ही कहा था कि यह मेरी गलतफहमी है. प्यार नहीं है तुम्हें मुझ से. और हो भी नहीं सकता. साथ ही यह भी कहा था कि मुझ से प्यार कर के कुछ नहीं पाओगी. क्यों अपनी जिंदगी खराब कर रही हो. अच्छा लड़का देखो और शादी कर के जाओ यहां से. मेरा क्या है.’’

महेश, ‘‘सब याद है मुझे,’’ कई बार जिंदगी में कुछ ऐसे फैसले करने

पड़ते हैं कि आप चाह कर भी उन को बदल नहीं सकते. मेरे पास कुछ नहीं था उस समय तुम्हें देने के लिए, खोखला हो चुका था मैं.’’

मोहिनी, ‘‘ऐसा क्यों हुआ अब सोचने से कोई फायदा नहीं.’’

महेश, ‘‘तुम तो जानती हो मेरे मातापिता अपनी पसंद की लड़की से ही मेरा विवाह कराना चाहते थे. मां की जिद थी कि उन की सहेली की लड़की से ही मेरा विवाह हो.’’

मोहिनी, ‘‘तुम ने उन्हें मेरे बारे में नहीं बताया.’’

महेश, ‘‘बताना चाहता था, पर उन को अपनी जिद के आगे मेरी खुशी नहीं दिखाई दे रही थी. मुझे उन्हें समझाने के लिए कुछ वक्त चाहिए था. मैं उन का दिल नहीं दुखाना चाहता था.’’

मोहिनी, ‘‘और मेरे दिल का क्या होगा? मेरे बारे में एक बार भी नहीं सोचा.’’

महेश, ‘‘सोचा था, बहुत सोचा था, लेकिन जिंदगी के भंवर में बुरी तरह फंस चुका था. जब तक वे मानते तब तक तुम्हारा विवाह हो चुका था. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता. अब तो इस भंवर से बाहर आ कर मेरे साथ चल पड़ो. तुम भी अपने पति से प्यार नहीं करती हो, यह मैं जान गया हूं.’’

मोहिनी, ‘‘वे बहुत अच्छे हैं. अब मैं उन का साथ नहीं छोड़ सकती.’’

महेश, ‘‘क्यों बेनामी के रिश्ते को जी रही हो, घुटघुट के जीना मंजूर है तुम्हें?’’

मोहिनी, ‘‘समाज ने नाम दिया है इस रिश्ते को. तो बेनामी कैसे हुआ? मैं उन के साथ बहुत खुश हूं.’’

महेश, ‘‘प्लीज छोड़ दो सब कुछ और भाग चलो मेरे साथ. हम अपनी एक नई दुनिया बसाएंगे. चले जाएंगे यहां से बहुत दूर. मैं तुम्हें इतना प्यार करूंगा जितना किसी ने आज तक न किया हो.’’

मोहिनी, ‘‘नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती. अब मेरे साथ मेरी ही नहीं, किसी और की भी जिंदगी जुड़ी है.’’

महेश, ‘‘इस का मतलब तुम मेरा प्यार भूल गई हो या फिर वह सब झूठ था.’’

मोहिनी, ‘‘प्यार एक एहसास होता है उन ओस की बूंदों की तरह जो धरती में समा जाती हैं और फिर किसी को नजर नहीं आतीं. हमारा प्यार भी ओस की बूंदों की तरह था, जो हमेशा मेरे दिल की जमीन पर समाहित रहेगा. इस एहसास को किसी रिश्ते का नाम देना जरूरी तो नहीं. तुम्हारे साथ कुछ पलों के लिए जिस राह पर चली थी. वह बहुत ही खुशगवार थी. उन राहों में लिखी कहानी शायद मैं कभी नहीं मिटा पाऊंगी. लेकिन अब और उन राहों पर नहीं चल पाऊंगी. मैं तुम से बहुत प्यार करती थी और शायद आज भी करती हूं और करती रहूंगी पर…’’

महेश, ‘‘पर क्या?’’

मोहिनी, ‘‘अब हम एक नहीं हो सकते. तुम्हारा प्यार हमेशा याद बन कर मेरे दिल में रहेगा. अब तुम कोई दूसरा हमसफर ढूंढ़ लो. मैं 4 कदम चली तो थी मंजिल पाने के लिए पर कुदरत ने मेरी राह ही बदल दी.’’

महेश, ‘‘तुम चाहो तो फिर से राह बदल सकती हो.’’

मोहिनी, ‘‘प्यार का एहसास ही काफी है मेरे लिए. प्यार को प्यार ही रहने दो. कभीकभी जीवन में कुछ रिश्तों को नाम देना जरूरी नहीं होता. क्या हम दोनों के लिए इतना ही काफी नहीं कि हम दोनों ने एकदूसरे से प्यार किया.’’

‘‘सब कह दिया है तुम ने. बस एक आखिरी सवाल का जवाब भी दे दो,’’ महेश ने कहा.

‘‘हां, पूछो,’’ मोहिनी बोली.

‘‘आज तक, कभी एक मिनट या एक सैकंड के लिए भी तुम मुझे भूल पाईं,’’ महेश ने पूछा.

‘‘नहीं,’’ अपनी हिचकियों को रोकने की नाकाम कोशिश करते हुए मोहिनी बोली. महेश, ‘‘एक वादा चाहता हूं तुम से.’’

मोहिनी, ‘‘क्या?’’

महेश, ‘‘वादा करो जिंदगी में जब कभी तुम्हें मेरी जरूरत महसूस होगी, तुम मुझे फौरन याद करोगी. मैं दुनिया के किसी भी कोने में होऊंगा, तो भी जरूर आऊंगा. चलो खुश रहना. कोशिश करूंगा कि दोबारा कभी तुम्हें परेशान न करूं. लेकिन दोस्त बन कर तो तुम से मिलने आ ही सकता हूं?’’

मोहिनी, ‘‘नहीं अब हम कभी नहीं मिलेंगे. दोस्ती को प्यार में बदल सकते हैं पर प्यार दोस्ती में नहीं. मेरे जीवन की आखिरी सांस तक मैं तुम्हें नहीं भूलूंगी.’’

मोहिनी, इतने पर ही नहीं रुकी, ‘‘सवाल तो बहुत से थे, मन में. बस आज उन सवालों पर विराम लगाती हूं. मेरे लिए इतना ही काफी है कि तुम मुझे प्यार करते हो.’’

महेश, ‘‘यह कैसा प्यार है. चाह कर भी मैं तुम्हें छू नहीं सकता. तुम्हें देख नहीं सकता. तुम से बात नहीं कर सकता.’’

मोहिनी, ‘‘यह फैसला तुम्हारा था. अब तुम्हें अपने फैसले का सम्मान करना चाहिए. बहुत देर हो गई. बस यही चाहूंगी कि तुम सदा खुश रहो और कामयाबी की ओर बढ़ते रहो, बाय.’’

महेश, ‘‘बाय.’’

महेश को दूर से आते एक गीत के बोल सुनाई दे रहे थे, ‘क्यों जिंदगी की राह में मजबूर हो गए इतने हुए करीब कि हम दूर हो गए…’

Hindi Kahaniyan : आखिरी झूठ – जब सपना ने अपने ही आखिरी झूठ के बारे में किया खुलासा

Hindi Kahaniyan :  दिल्ली रेलवे स्टेशन से नंगलडैम शहर के लिए जैसे ही राहुल रेलगाड़ी के कंपार्टमैंट में चढ़ा, उस ने नजर खाली बर्थ की तरफ दौड़ाई, लेकिन स्लीपिंग कंपार्टमैंट में अधिकतर सीटें खाली पड़ी थीं. उस ने अपना सामान एक बर्थ पर रख कर देखा तो एक युवती खिड़की के पास वाली लंबी बर्थ पर अकेली बैठी थी. उस की उम्र यही कोई 22-23 के आसपास की रही होगी. वह गुलाबी रंग के सूट में थी. दिसंबर का महीना था. वह आकर्षण और रूपलावण्य से भरपूर इतनी सुंदर लग रही थी मानो जैसे कोई अप्सरा धरती पर उतर आई हो. टिकट चैकर के पास जा कर राहुल ने उस लड़की के पास वाली सीट अपने लिए बुक करवा ली. राहुल एक कंपनी में जौइन करने के लिए नंगल जा रहा था. असिस्टैंट मैनेजर का पद था. गाड़ी रात को 10 बजे चल कर नंगल सवेरे 5 बजे पहुंचती थी. वह खुश था, ‘काफी समय के लिए यात्रा में इतनी सुंदर युवती का साथ रहेगा,’ ऐसा वह मन ही मन सोचने लगा.

राहुल लगभग 25 वर्ष के आसपास था. एक क्षण के लिए उस ने सोचा, ‘क्यों न वह अपना परिचय देते हुए, उस युवती के पास बैठ कर उस से नजदीकी बढ़ाए.’ ‘‘मेरा नाम राहुल है. मैं नंगल जौब जौइन करने जा रहा हूं. आप का क्या नाम है? आप कहां जा रही हैं?’’ पूछते हुए उस की बेसब्री जाहिर थी. वह उस के चेहरे को गौर से देख रहा था.

‘‘हम दोनों हमउम्र हैं, पहले तो मैं यह कहूंगी कि आप की जगह तुम शब्द का इस्तेमाल कीजिए. मेरा नाम सपना है. मैं नंगल डैम शहर में सिविल अस्पताल में इंटर्नशिप के लिए जा रही हूं. 3 महीने मैं नंगल शहर में ही रहूंगी.’’ राहुल को सपना का अनौपचारिक होना अच्छा लगा. उसे भी लड़कियों को तुम कह कर संबोधित करना अच्छा लगता था. सपना की सीट पर बैठ कर उस से बातें करना उसे बहुत अच्छा लगा. सपना ने बताया उस का परिवार दिल्ली में रहता है. दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने परिवार के बारे में विस्तार से बताते हुए बातचीत शुरू की. दोनों के ही परिवार दिल्ली में रहते थे.

राहुल के पिता पुस्तक प्रकाशक थे, उन का अच्छाखासा व्यापार था. मां हाउसवाइफ थीं. सपना के पिता तलाकशुदा थे, मां झगड़ालू और क्लेश करने वाली थीं इसलिए मां और पिता का तलाक कई वर्ष पहले ही हो चुका था. बचपन से यौवनावस्था तक सपना का जीवन संघर्षमय रहा था. वह पिता के साथ दिल्ली में रहती थी. डाक्टरी की पढ़ाई भी उस ने दिल्ली में ही की और अब इंटर्नशिप के लिए नंगल जा रही थी. यह सब सुन कर राहुल का मन सपना के लिए सहानुभूति से भर उठा और भावविभोर हो कर उस ने कहा, ‘‘सपना, मुझे तुम्हारे संघर्षमय जीवन के बारे में जान कर बहुत दुख हुआ है. तुम बहुत बहादुर और सैल्फमेड लड़की हो. मुझे यह देख कर अच्छा लगा कि तुम कैरियर बनाने के प्रति जागरूक और प्रयत्नशील हो. नंगल पहुंच कर अपनी इंटर्नशिप शुरू करो. मुझे तुम कभी भी किसी भी प्रकार की सहायता के लिए बगैर हिचकिचाहट के कह सकती हो. हम अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे देते हैं,’’ राहुल ने जेब से एक कागज निकाल कर उस पर अपना मोबाइल नंबर लिखा और सपना को दे दिया, ‘‘फील फ्री टू कौंटैक्ट मी.’’

सपना ‘थैंक्स’ कहते समय बहुत खुश दिखाई दी. सोने से पहले कानों में हैडफोन लगा कर उस ने अपना मनपसंद संगीत सुना. राहुल ने देखा सपना उनींदी आंखों से उस की ओर मुसकरा कर निहार रही थी. मधुर आवाज में ‘गुडनाइट’ कहते हुए उस ने कंबल ओढ़ लिया. यों तो एमबीए की पढ़ाई के दौरान कई युवतियों के संपर्क में रहने वाला राहुल आश्चर्यचकित था कि इतनी सुंदर युवती उस के जीवन में अब तक नहीं आई थी. अपनी बर्थ पर लेटे हुए टकटकी लगाए वह सपना को देख कर खुश हो रहा था. उसे इस बात की भी प्रसन्नता थी कि 3 महीने नंगल में सपना का साथ मिलेगा. भविष्य के विषय में सोचते हुए कब उसे नींद आ गई पता ही नहीं चला.

सवेरे 4 बजे गाड़ी आनंदपुर साहब स्टेशन पर 15 मिनट के लिए रुकी. सपना अभी सो ही रही थी. राहुल 2 कप चाय ले आया. सपना गहरी नींद में थी. राहुल ने उस के गाल पर हलके स्पर्श के साथ उसे जगाया. सपना को अच्छा लगा. ‘‘गुडमौर्निंग,’’ कहते हुए सपना ने चाय का गिलास राहुल से ले लिया. राहुल का बरसों के इंतजार के बाद इतनी सुंदर युवती से जो सामना हुआ था. उस ने मन में सोचा, ‘पापा को फोन पर बताएगा कि उन के लिए बहू तलाश ली है,’ दूसरी तरफ मन में यह बात भी आई कि अभी बहुत जल्दी होगी. सब्र करना ठीक होगा. अभी एकदूसरे को जानना बाकी है. नंगल स्टेशन पर पहुंचने के बाद राहुल कंपनी के गैस्ट हाउस की ओर चला गया.

‘‘सपना, तुम अपने वूमन होस्टल पहुंच कर फोन करना,’’ राहुल ने कहा. ‘‘ठीक है, लैटअस विश ईच अदर बैस्ट औफ लक’’ सपना ने मुसकराते हुए कहा और अस्पताल से आई हुई वैन में बैठ गई. दोनों ने अपनीअपनी जौब जौइन कर ली. राहुल और सपना दोनों के लिए नए शहर में रहना एक अद्भुत अनुभव था. एकदूसरे से मिलना और साथसाथ समय बिताना उन्हें अच्छा लगने लगा. नंगल डैम पर एक रेस्तरां था. वहां से चारों ओर का बहुत ही सुहावना दृश्य दिखता था. रविवार के दिन इसी रेस्तरां में वे दोनों घंटों साथसाथ समय बिताते थे. लंच यहीं पर करते थे. कभीकभी सपना राहुल के साथ उस के गैस्ट हाउस में भी घंटों बैठी रहती थी. ज्योंज्यों नजदीकियां बढ़ रही थीं त्योंत्यों उन का रिश्ता स्वाभाविक रूप से गहरा होता जा रहा था.

एक दिन राहुल ने सपना से कहा, ‘‘तुम अपने पापा का पूरा पता मुझे दे दो ताकि मैं दिल्ली जा कर उन से मिल सकूं या फिर मैं अपने मातापिता को तुम्हारे पापा के पास भेज कर उन की जानपहचान करवा सकूं.’’ सपना बोली, ‘‘अभी पापा से मिलवाना या तुम्हारा दिल्ली जा कर उन से मिलना जल्दबाजी होगी. मैं अभी पता नहीं देना चाहती.’’

राहुल की समझ में नहीं आया कि ऐसी क्या बात है, जो वह अपने पापा का पता उसे नहीं दे रही है. समयसमय पर जब कभी मौका मिलता, राहुल अपना प्रेम व्यक्त करता रहता. वह सपना से कहा करता कि जब हम दोनों एकदूसरे के इतने नजदीक आ चुके हैं, तो समझ में नहीं आता कि क्यों तुम उन बातों से परहेज करती हो जो इस उम्र में नौजवान युवकयुवतियां करते हैं. राहुल ने अपनी जेब से सोने की एक अंगूठी निकाली और सपना को पहनाते हुए कहा, ‘‘यह मेरा तुम्हारे लिए पहला गिफ्ट है. मुझे पता ही नहीं चला कि मैं कब तुम से प्यार करने लगा. मेरे जीवन में यह पहला अनुभव है,’’ उस ने भावुक हो कर सपना को गले लगाना चाहा, लेकिन सपना ने उसे मना करते हुए अनुरोध किया, ‘‘नहीं, राहुल अभी ऐसा कुछ मैं स्वीकार नहीं करूंगी. जब कभी हम विवाह के बंधन में बंध जाएंगे तो मैं प्रौमिस करती हूं कि तुम्हें जी भर कर प्यार करूंगी. अभी बस इतने से ही काम चलाना होगा,’’ कहते हुए उस ने राहुल का हाथ अपने हाथ में ले कर सहलाया और चूम लिया, ‘‘इन हाथों ने मुझे अंगूठी पहनानी चाही इसलिए इन्हें चूम कर मैं अपने प्यार का इजहार कर रही हूं.’’

एक दिन दोनों गैस्ट हाउस के लौन में बैठे चाय का आनंद ले रहे थे. दोनों एकदूसरे को अपने कालेज के दिनों के बारे में विस्तार से बता रहे थे. सपना ने बताया कि कैसे लड़के उस के करीब आने का प्रयत्न करते थे, लेकिन वह किसी के प्रति आकर्षित नहीं होती थी. अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर के अपना टौप करने का उद्देश्य वह पूरा करना चाहती है. राहुल ने भी सपना को अपनी कालेज लाइफ के बारे में बताया कि कभी उस ने लड़कियों के साथ नजदीकी नहीं बनाई. बस, अपने दोस्तों के साथ मौजमस्ती की.

‘‘सपना, मैं एक बार फिर तुम से कह रहा हूं कि मुझे अपने डैडी का ऐड्रैस और मोबाइल नंबर दे दो. जैसा तुम ने बताया था कि डैडी बिलकुल अकेले हैं, तुम्हारी मां उन्हें छोड़ कर जा चुकी हैं. मेरा उन से मिलना जरूरी है, कहीं ऐसा न हो कि वे कोई और लड़का तुम्हारे लिए देख लें,’’ राहुल ने सपना को समझाते हुए कहा. ‘‘मुझे भी पापा की चिंता है कि कैसे वे मेरी अनुपस्थिति में समय गुजारते होंगे. उन्हें खाना भी बाहर से मंगाना पड़ता होगा. पहली बार उन से दूर आ कर मैं यहां रह रही हूं,’’ सपना ने कहा.

राहुल बोला, ‘‘मुझे तुम से पूरी सहानुभूति है. मैं जानता हूं कि मां के बिना तुम्हारा जीवन कितना कष्टमय रहा होगा. सपना, मैं तो यही कामना करता हूं कि तुम्हारी मां वापस तुम्हारे घर आ जाए. तुम्हारी शादी का इंतजाम वे संभाल लें.’’ सपना का उदास चेहरा राहुल से देखा नहीं जाता था. अपना प्यार, अपने हावभाव उस पर उडे़लता हुआ वह यही कहता था, ‘‘मैं तुम्हारे जीवन को खुशियों से भर दूंगा. यह मेरी दिली तमन्ना है.’’

सपना की इंटर्नशिप का 2 महीने का समय बीत चुका था और वह 2-3 दिन की छुट्टी ले कर दिल्ली अपने पापा के पास जा रही थी. राहुल ने जोर दे कर सपना को बताया कि वह भी उस के साथ दिल्ली जाएगा. बेशक सपना ने आनाकानी की लेकिन वह नहीं माना और दोनों ने टिकट बुक करा लिए. राहुल यह नहीं समझ पा रहा था कि हर बार सपना इस बात पर हिचकिचाती क्यों है कि राहुल उस के पापा से दिल्ली जा कर न मिलें. राहुल के दृढ़निश्चय का परिणाम यह हुआ कि दोनों दिल्ली सपना के पापा के पास पहुंच गए.

राहुल को इस बात का अनुमान था कि सपना अपने साथ राहुल को दिल्ली लाने के बारे में अपने पापा को फोन पर बता चुकी होगी. उस के घर पहुंचने पर राहुल आश्चर्यचकित था. सपना के पापा के साथ उस की मम्मी भी घर पर मौजूद थीं. राहुल ने प्रश्न किया, ‘‘सपना, तुम ने तो बताया था कि तुम्हारे मम्मीपापा का तलाक हो चुका है. मम्मी साथ नहीं रहती हैं.’’

सपना ने कहा, ‘‘मुझे भी सरप्राइज हुआ था जब पापा ने फोन पर बताया था कि तलाक की प्रक्रिया पूरी होने से पहले उन का मम्मी से समझौता हो गया है और वे खुशीखुशी उन के साथ रहने के लिए चली आई हैं. मैं इस बात से बहुत खुश हूं,’’ वह अपनी मां के गले लग कर बहुत रोई. सपना के पापा की आंखें भी आंसुओं से भर आई थीं. सब ने मिलबैठ कर एकसाथ नाश्ता किया. चाय पी कर माहौल को अनुकूल देख कर सपना ने शरारत भरी मुसकराहट के साथ राहुल से कहा, ‘‘मेरी पूरी बात धैर्य से सुन लो. प्रतिक्रिया बाद में देना. मम्मीपापा में कभी कोई मतभेद या तलाक हुआ ही नहीं था. मैं ने तुम से झूठ बोला था. तुम से सहानुभूति प्राप्त करने और प्यार पाने के लिए मैं ने ऐसा किया था. तुम से मिलते ही पहली नजर में ही मैं ने तुम्हें चुन लिया था. दुनिया में तुम से बेहतर जीवन साथी तो हो ही नहीं सकता,’’ क्षण भर को वह रुकी, फिर राहुल से पूछा, ‘‘क्या तुम मुझे माफ कर सकोगे. मेरा तरीका गलत हो सकता है पर मेरा मकसद अपने लिए योग्यप्रेमी को पाना था. यह मेरा आखिरी झूठ था. भविष्य में कभी झूठ का सहारा नहीं लूंगी.’’ सपना के मातापिता हक्केबक्के हो कर अपनी पुत्री को निहार रहे थे. सपना ने कहा, ‘‘पापा, आई एम सौरी.’’

राहुल की खुशी उस के चेहरे पर झलक रही थी. ‘‘तुम्हारे अब तक के मधुर व्यवहार और प्रगाढ़ प्रेम को देखते हुए यह गलती माफ करने योग्य है,’’ अपनी स्वीकृति व्यक्त करते हुए उस ने सपना के मातापिता के पैर छूकर आशीर्वाद लिया.

Hindi Moral Tales : बुद्धू कहीं का

Hindi Moral Tales :  ‘’कुणाल , बेटा अपनी पढाई पर ध्यान रखना.‘’

अम्मा सरला जी ने कुणाल के सिर पर आशीर्वाद देते हुये अपना हाथ फेरा था. मां पापा की आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे , वह भी अपने आंसू नहीं रोक पाया था. उसने मुंह फेर कर अपनी बांहों से आंसू पोछ कर अपने को संभालने की कोशिश की थी. वह दोनों आंसू पोछते हुये ट्रेन में बैठ  गये थे.वह कालेज की भीड़ में अकेला रह गया था. महानगर की भीड़ देख वह घबराया हुआ था. क्योंकि वह पहली बार अपने छोटे से शहर से बाहर आया था.

कुणाल छोटे शहर के सामान्य परिवार का लाडला बेटा था. वह पढने में काफी तेज था, इसीलिये दिल्ली विश्वविद्यालय में उसका एडमिशन आसानी से हो गया था. वह पहली बार यहां की भीड़भाड़, और आधुनिकता के रंग में रंगी सुंदर लड़कियों को देख कर सहम उठा था. इस वजह से वह ज्यादा किसी से बातचीत नहीं करता , न ही किसी से दोस्ती करता. वह अपनी पढाई में जुटा रहता , आखिर मां पापा की उम्मीदें उसके ऊपर ही तो टिकी हुई हैं.

आज इंट्रोडक्शन मीट थी ,वह बहुत घबराया हुआ था.  इतने बड़े स्टेज पर जाकर अपने बारे में बताना …

“ मैं कुणाल यू.पी. के फैजाबाद से…’’

उसकी कंपकंपाती  आवाज सुनकर हॉल में हल्की सी हंसी की आवाज गूंज उठी थी. वह आकर अपनी सीट पर बैठ गया था. सच तो यह था कि उस समय उसे अपने खास दोस्त मधुर की बहुत याद आ रही थी, जिसका एडमिशन दिल्ली में नहीं हो पाया था. वह सोच रहा था कि वह कहां फंस गया है काश  वह अपने पुराने दोस्तों के बीच लौट जाये ….वह सिकुड़ा सिमटा अपने में खोया हुआ बैठा था। तभी एक लड़की उसके पास आई, ’’माई सेल्फ निया , खालसा कॉलेज ‘’

किसी लड़की के साथ बातचीत और दोस्ती, उसके लिये यह पहला अवसर था. निया के बढे हुये हाथ की ओर उसने अपना हाथ बढा दिया था.

वह वहां की फैशनेबिल लड़कियों को देख कर घबराया करता था लेकिन निया के साथ दोस्ती हो जाने के बाद , उसके मन का संकोच अपने आप समाप्त हो गया और निया के साथ उसे मजा आने लगा था.

‘’क्या हुआ निया, तुम्हारा चेहरा क्यों बुझा हुआ है?’’

“मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है ,’’

“चलो कैंटीन में कॉफी पियोगी तो आराम मिलेगा.‘’

‘’क्लास है कुणाल’’

“कुछ नहीं , मैंने इस चैप्टर का नोट्स तैयार कर लिया है ,मैं तुम्हें दे दूंगा ‘’निया ऐसा दिखा रही थी कि वह उसके साथ जाकर कोई एहसान कर रही थी.

निया चूंकि दिल्ली से थी इसलिये उसके बहुत सारे साथी यहांपर थे , उसकी फ्रेंडलिस्ट बहुत लंबी थी. कैंटीन में उसका बड़ा ग्रुप पहले से ही वहां पर बैठा हुआ मानों वह लोग उन लोगों का ही इंतजार कर रहे थे, वह फिर एक बार थोड़ा हड़बड़ा गया था लेकिन उसने सबके साथ उसका परिचय करवाया. वहां पर गगन, शिवा, आयुष नमन् के साथ विनी , रिया , शीना सबके साथ उसकी हाय – हेलो के साथ दोस्ती की शुरुआत हुई. अब मुश्किल यह थी कि वह सब संपन्न परिवारो  के दिखाई पड़ रहे थे. जबकि वह बहुत ही साधारण परिवार से था , उसके पिता किसी तरह से उसके लिये फीस आदि का प्रबंध कर पाते थे.परंतु बेटे को बाहर कोई परेशानी न हो उसको मुंहमांगी रकम भेज दिया करते थे.

उसे दोस्ती निभाने के लिये ज्यादा पैसे की जरूरत होने लगी थी , इसलिये कभी कोचिंग , तो कभी फीस या बुक लेनी है ,इस बहाने से ज्यादा पैसे मंगाया करता था. निया के साथ उसका मिलना जुलना बढ गया था.

कहा जाये तो दोस्ती के साथ साथ अब वह उसकी गर्लफ्रेंड बन चुकी थी. यदि एक दिन भी वह उससे न मिलता तो बेचैन हो उठता था.

‘’कुणाल, कल शाम को तुम ऑनलाइन नहीं थे ?’’

अब वह कैसे कहता कि उसका नेट पैक समाप्त हो गया था. और पैसाबचाने के लिये ही उसने रिचार्ज नहीं करवाया था.

“ मैं  नोट्स बनाने में लगा रहा और एक्जाम भी तो नजदीक हैं.  इसीलिये किताबों से सिर मार रहा था…’’

“बोर मत किया करो…हर समय पढाई ..पढाई …मेरी ओर देखो… मैं तुम्हें कितना मिस कर रही थी …कल मैंने नया हेयर कट करवाया  है …. देखो मेरे चेहरे पर सूट कर रहा है कि नहीं….

कुणाल ने सिर उठा कर उसकी ओर देखा तो देखता ही रह गया…..नया हेयर स्टाइल , कटे हुये सेट किये स्ट्रेट बाल …धनुषाकार ताजा तरीन सेट की हुई आईब्रो के नीचे बड़ी बड़ी आंखें जो हर समय कुछ बोलने को बेताब रहतीं थी … रेड टी शर्ट और व्हाइट पैंट में वह गजब ढा रही थी. वह एकटक उसे देखता ही रह गया था.

उसने छेड़ने के अंदाज में कहा, ‘’ये क्या तुमने अपने बालों का क्या हाल बना लिया , तुम्हारे कर्ली हेयर तो तुम्हारी पहचान थे …’’

“अच्छे नहीं लग रहे हैं… मुझे टीज कर रहे हो …मारूंगी तुम्हें…

स्ट्रेट तो सभी के होते हैं ,तुम्हारे तो घुंघराले घुंघराले बाल थे ….

हां ,कर्ली थे… मुश्किलों  में तो मम्मा से परमिशन और 2000 रु- मिले , तब तो इन्हें स्ट्रेट करवा पाई. वह अपने बालों पर अपने हाथों को फेरती है … मॉम कहती हैं कि केमिकल से बाल खराब हो जायेंगें …

वह गौर से उसकी बातें सुनता है… ‘’मॉम की बात तो सही है लेकिन स्ट्रेट करवाने की तुम्हें क्या जरूरत पड़ गई?  कर्ली बाल में तो तुम बहुत सुंदर लगती थीं’’.

“क्या कहा…तेरी वजह से तो मैंने अपने बाल स्ट्रेट करवाये…उस दिन पार्टी में तू निशू के बालों से अपनी नजर नहीं हटा रहा था ….मुझे इग्नोर कर रहा था , उसी दिन मैंने निश्चय कर लिया था कि मैं उसी की तरह अपनी हेयर स्टाइल बनवाऊंगीं….’’

“अरी पगली मेरी निगाह तो उसके ओपन बैक पर थी , बाल तो बहाना था … उस दिन उसने कितनी स्मार्ट ड्रेस पहन रखी थी … कट स्लीव ..हाइ नेक …तुम्हारी तरह फुल स्लीव और हाई नेक वह नहीं पहनती ..

Really, she was looking like a model.

वह नाराज होकर उसकी पीठ पर धौल जमा कर बोली ,’’जाओ…जाओ …उसी निशू की बाहों में खो जाओ… वह तुम्हारी तरफ निगाहें भी नहीं उठायेगी … पता है , इस साल का पांचवां ब्वायफ्रेंड होगा तू’’.. वह पैर पटकती हुई अपनी स्कूटी की ओर जाने लगी तो कुणाल ने उसके हाथ से स्कूटी की चाभी छीन ली और बोला , ‘’कहां जा रही हो? मैं तो तुम्हें यूं ही छेड़ रहा था  .।‘’

‘’कुणाल , एसाइनमेंट तुमने पूरा कर लिया ?’’

“हां यार ,कल रात भर जग कर तो पूरा किया है.‘’

“डियर ,तुम मेरी हेल्प कर दोगे ?’’

ना चाहते हुये भी संकोच और दोस्ती बचाने के लिये वह बैठ कर उसका साइनमेंट पूरा करता रहा और वह बैठ कर अपने मोबाइल पर किसी के साथ हंस हंस कर चैटिंग करती रही थी.वह मन ही मन खीझ रहा था लेकिन कुछ कह नहीं सकता था. आखिर वह उसकी गर्लफ्रेन्ड जो ठहरी …

एक दिन निया  क्लास में परेशान सी उखड़ी-उखड़ी सी बैठी हुई थी।

‘’क्या हुआ …तुम्हारा मूड क्यों खराब है?’’

“आज मेरा मूड बहुत खराब है. तुम क्लास में जाओ … मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो …’’

“मुंह से तो बोलो ..बता भी … मैं तेरी हेल्प कर दूंगा ..’’

“कल पार्लर गई तो मेरी सारी पॉकेट मनी स्वाहा  हो गई , मॉम से पैसे मांगे तो वह नाराज हो गईं .. अब बताओ मेरा फोन बंद पड़ा है … कैसे रिचार्ज हो…. तुम जाओ यार ‘’

“बस इतनी सी बात , मैं ऱिचार्ज करवा दूंगा। उसने दिलेर बनते हुये उसका फोन रिचार्ज करवा तो दिया लेकिन पैसा खर्च हो जाने पर चिंतित हो गया था.

वह निया के सामने एक मुखौटा लगाये रहना चाहता था , जिससे उसकी दोस्ती बनी रहे. वह यह दिखाना चाहता था कि वह उसके लिये कुछ भी कर सकता है.

“कुणाल , मेरा कब से मन था कि थियेटर में अमोल पालेकर का प्ले देखूं …प्लीज  टिकट बुक कर दो ‘’… उसके दिमाग में अपने जेब और बैंक के एकाउंट के पैसों के ऊपर उथल पुथल मची हुई थी .. उसने अपने दोस्त अन्वय से रुपये मांगे तो टिकट बुक करवाया था. वह निया के साथ पाने की कल्पना से बड़ा खुश और एक्साइटेड था. परंतु वह नहीं जानता था कि वह किस भंवरजाल में फंसता जा रहा था.वहां पर भी उसके दोस्त मिल गये थे …फिर कॉफी और बर्गर ,उसका तो बैण्ड बज गया ….

एक्जाम की डेट आ गई थी , वह उसी की तैयारी में लगा था कि मेसेन्जर पर नोटिफिकेशन आया तो वह बेचैन होकर तुरंत देखने लगा …’’My valentine… Happy Vallentine day’’

उसके दिल की धड़कन बढ़ गई थी , निया उसे मेरा वैलेन्टाइन कह रही थी, अब तो उसे कोई मंहगा सा गिफ्ट देना पड़ेगा. वह उस दिन उसे जबर्दस्ती पिक्चर देखनी है कह कर ,ले गई थी .. तुरंत 1000 रु खर्च हो गये. वह मन ही मन सोच रहा था कि निया को सामने क्यों शाहखर्च बन जाता है …आखिर उसे अपनी पॉकेट का वजन भी तो देखना चाहिये.

पिछले महीने तो वह कोचिंग की फीस और बुक्स के बहाने से पापा से रुपये ले आया था … वह भी निया का कैसा दीवाना बन गया है… अम्मा बेचारी के चेहरे पर कितनी मायूसी छा गई थी , वह आंखों में आंसू भर  कर बोलीं थीं …’मुन्ना तुम पढ लिख कर कलक्टर बन जाओ तो हम सबन की जिन्दगी संवर जाये. तुम्हारे पापा का सपना भी पूरा होय जाये.‘

उसके चेहरे पर पश्चाताप था …वह इतना नालायक है कि जनाब ,एक लड़की के साथ इश्क फरमा रहे है…

लानत है ,कुणाल तुझ पर…उन क्षणों में उसने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह अब निया से दूरी बना लेगा.

परंतु ‘My Vallentine’ देखते ही सब कुछ भूल कर अमेजन की साइट पर गिफ्ट ढ़ूढने में मशगूल हो गया.

वह निया के सपने में खोया  हुआ, कल पैसे की जुगाड़ कैसे करेगा , इस उधेड़बुन में लगा रहा… अंत में निश्चय किया कि असलम से 1000 रु लूंगा तब काम चलेगा. लॆकिन उसकी आंखों से नींद उड़ी हुई थी. एक एक करके क्लास के कई लड़कों से वह रुपया मांग चुका है , जब भी लौटाने के लिये सोचता है , उसी समय निया का कोई ऐसा जरूरी काम सामने आ जाता है कि उसको खुश करने के चक्कर में पहले से ज्यादा खर्च हो जाता है. सोचते सोचते वह जाने कब नींद के आगोश में चला गया था.

पूरा क्लास जब उसका नाम निया के साथ जोड़ता है तो। वह गर्व से अपनी कॉलर ऊंची कर लेता है. निया जैसी सुंदर स्मार्ट लड़की उसकी गर्ल फ्रेन्ड है , सोचकर उसके चेहरे पर मुस्कुराहट छा जाती है.

“चल न कुणाल , कैण्टीन में पिज्जा खाते हैं ..मुझे बहुत भूख लगी है.‘’

“कुणाल प्लीज ये मेरा एसाइनमेंट पूरा कर दो. “

‘आज पिक्चर अंधाधुन का रिव्यू बहुत अच्छा आया है , उसकी रेटिंग 5 दी है. चलो न कुणाल …. ‘बस वह उसके फैलाये जाल में फंस जाता और वह फिर यहां वहां पैसे मांगता …यहां तक कि कई लड़कों से तो वह मुंह छिपाने के लिये उनके सामने ही नहीं पड़ता.

वह असलम से रुपये मांगने में बहुत शर्म महसूस कर रहा था लेकिन इश्क जो न करवाये वह थोड़ा….

उसका वैलेन्टाइन गिफ्ट पाकर वह बहुत खुश हुई थी. वह मंहगा सा पेन्डेन्ट सेट लाया था. वह गिफ्ट पाकर इतनी खुश हुई कि उसने प्यार से उसे सबके सामने किस कर लिया था. वह  खुशी के मारे खिल उठा था. लेकिन मन ही मन वह पैसे को लेकर चिंतित था. अब जब वह सबसॆ बार बार पैसे उधार ले चुका था , यहां तक कि वह सबसे मुंह छिपाता फिर रहा था , अखिल तो  उससे अपना पैसा मांगने का तगादा भी करता रहता था। अक्षत तो एक दिन गाली गलौज पर उतर आया था.

वह पैसे के लिये बहुत परेशान था इसलिये उसने पापा से पैसा मांगने के लिये बहाना बनाया ,’ अम्मा , मुझे टायफायड हो गया था , यहां तक कि मुझे हॉस्पिटल में एडमिट होना पड़ा , इसी वजह से दोस्तों से रुपये उधार लेना पड़ा , कह कर वह रो पड़ा था. उसने सोचा कि पापा अब रुपये तुरंत भेज देंगें.

लेकिन पापा तो अम्मा को साथ लेकर अपने  बचवा का हाल जानने के लिये आ पहुंचे. वह उन लोगों को देख कर मन ही मन पछताया भी था कि वह कितना गिरा हुआ इंसान है ,  जो अपनी गर्ल फ्रेंड के लिये सफेद झूठ बोल रहा था. पापा जाते समय उसकी मुट्ठी मे नोट बंद कर बाहर चले गये तो अम्मा ने भी चुपके से अपनी ब्लाउज की अंदर से मुड़े तुड़े नोट निकाल कर उसके हाथ पर रखने चाहे तो शर्म के मारे उसकेहाथ कांप उठे थे.

उस समय अम्मा पापा के मायूस चेहरा और उनकी  बेचारगी  देख उसका सर्वांग कंपकंपा उठा था. परंतु निया का चेहरा देखते ही वह उसके प्यार के नशे में सब भूल जाता.

प्यार या रोमांस कितना आकर्षक है कि लड़का हो या लड़की उसे मदहोश कर देता है . .. उन दिनों में उसके ज्ञान तंतु तंद्रावस्था में पहुंचकर सुषुप्त से हो जाते हैं.

उसकी मुट्ठी में पापा के दिये हुये 500 के और 2000 के नोट थे वह अपनी प्रियतमा निया को खुश करने के लिये उसे आज डिस्को लेकर जाने के लिये उतावला हो उठा था …वहां पर उसकी बाहों मे उसकी निया होगी , हाथों में जाम होगा और जाम के सुरूर में वह निया को अपने आलिंगन में समेट लेगा  परंतु तुरंत ही उसकी अम्मा का चेहरा आंखों के सामने आ गया. वह बोलीं थीं , ‘’कुणाल ये पैसे तेरे पापा की खून पसीने की कमाई के हैं …संभाल कर खर्च करना. तुमसे हम लोगों को बहुत सारी उम्मीदें हैं …आशायें हैं …..’’ अम्मा की आंखों के आंसू याद कर उसके कदम ठिठक गये थे फिर अपने मन को समझाने की हजारों कोशिशें कर डालींथीं

लेकिन निया के मेसेज को देखते ही वह सब कुछ भूल गया ….

“l am missing you Kunal … come … l am waiting ….. “उसने अपने दिल को कड़ा कर के लिखा ….

“No, dear I am busy for tomorrow test . Sorry ‘’उसने बड़ी सी रोने वाली स्माइली डाल कर गहरी सांस ली

“Please help me … मेरे थोड़े से डाउट्स हैं , तुम क्लीयर कर दो … माई डियर मैं तुम्हारा उसी जगह इंतजार कर रही हूं ..अपनी वही कोने वाली जगह पर… जहां हम सबको देख सकते हैं परंतु हम लोगों को कोई नहीं ….’’ अब तो उसे जाना ही होगा क्योंकि उसका दिल हर समय धुक धुक करता था कि निया कहीं किसी दूसरे को अपना ब्वाय फ्रेण्ड न बना ले …. इसी उधेड़बुन में वह उसको मंहगे गिफ्ट देता , वह यहां वहां से पैसे लेकर उस पर खर्च करता ताकि वह उसकी मुट्ठी में बनी रहे. उसके सारे एसाइनमेंट पूरे करता …. वह तेजी से उठ कर  चल दिया था. निया मोबाइल पर किसी से चैटिंग में बिजी थी. उसे उससे कुछ नोट्स चाहिये  थे. फिर आओ एक कोल्ड कॉफी हो जाये … और वह बिल पे कर ही देगा …

उसका रूम मेट अम्बर था , वह उससे सीनियर था और छोटे शहर के साधारण परिवार से भी था . धीरे धीरे उससे दोस्ती हो गई थी.

“कुणाल , कितनी टफ और नीरस लाइफ है … कॉलेज, कोचिंग फिर नोट्स प्रिपेयर करना,देर रात तक टेस्ट की तैयारी.. बुक्स , पेपर सॉल्विंग… लाइफ एकदम डल …अपना छोटा सा शहर और अम्मा पापा बहुत याद आते हैं …

“रिलैक्स यार’’

“तू तो बड़े ग्रुप में दादा लोगों के साथ मौज मस्ती कर रहा है … तेरी तो गर्ल फ्रेंड भी है… तेरा क्या ..मस्ती कर…’’

‘मैं तो चला कोचिंग में …क्या नाम बताया ….निया वही फर्स्ट ईयर p.c.m. वाली …’

‘हां ..हां.. लेकिन तू उसे कैसे जानता है… ‘

“वह तो बड़ी फेमस है , उसके कई ब्वाय फ्रेंड रह चुके हैं अच्छा इस साल तुझे शिकार बनाया है …’’

“नो, यार she loves me .’’

वह जोर से ठहाके लगा कर हंसा था.

“ऐसे क्यों हंस रहे हो?’’

“तुम छोटे शहर के सीधे सादे से लड़के , इस महानगर में आधुनिकता के भंवर जाल में  फंस गये हो. तुम्हारी निया का मेरे सेक्शन के अभिनव के साथ बहुत दिनों से चक्कर चल रहा है. “

“ऐसा नहीं हो सकता?’’

तभी उसका मोबाइल के मेसेन्जर पर नोटिफिकेशन आया और वह तेजी से चला गया था. बात अधूरी छूट गई थी लेकिन उसकी आंखों की नींद उड़ गई थी. कुछ दिनों से वह महसूस कर रहा था कि जब निया का अपना मतलब होता तभी वह उसके मेसेज का जवाब देती और कुछ न कुछ खर्च करवा ही लेती … पैसे देने का ड्रामा तो करती लेकिन कभी देती नहीं… हमेशा उससे पैसे खर्च करवाती और कभी पिक्चर तो कभी थियेटर तो कभी बर्गर तो कभी कॉफी …. क्या सच में वह उसे चीट कर रही है … फिर भी उसे विश्वास नहीं हो रहा था… क्यों कि वह तो निया को जी जान से प्यार करता था. उसने तो भविष्य के अनगिनत सपने संजो रखे थे …. उसकी आंखों से आंसू बह निकले  थे.

बार बार उसे ख्याल आ रहा था कि अम्बर उससे झूठ क्यों बोलेगा भला….उसका क्या स्वार्थ हो सकता है… वह तो हर समय उसकी मदद ही करता रहा है. उसके मन में शर्मिंदगी सी महसूस हो रही थी , उससे भी तो उसने 1000 रुपये ले रखे हैं , जो आज तक नहीं दे पाया …आज उसे अपनी दीवानगी पर रोना आ रह़ा था कि ऐसा कोई सगा नहीं , जिसे उसने ठगा नहीं …

मां बाप कितने अरमानों से अपने खून पसीने की कमाई उस खर्च कर रहे है कि वह लायक बन कर परिवार का खेवनहार बने …वह आधुनिकता के आडम्बर की आंधी में अपनी जड़ों को ही भूल बैठा और इश्क के चक्कर में मामा , मौसी , बुआ, चाचा , दोस्त किसी को  हीं छोड़ा…. सबके सामने हाथ पसार कर , झूठ बोल कर , बहाने रच कर सबसे पैसा ऐंठता रहा … लानत है उस पर…

अभी भी वह मन ही मन सोच रहा था कि अम्बर की बात झूठ निकले … जबकि उसे याद आ रहा था कि अक्सर ऩिया उसके मेसेज का जवाब नहीं देती थी …मैं बिजी थी इसलिये देखा नहीं…. उसने मेसेन्जर , व्हाट्सऐप, इंस्ट्रा पर कई बार मेसेज किया , लेकिन इसने किसी का उत्तर नहीं दिया था. उससे मुलाकात हुये काफी दिन हो चुके थे. वह निराशा के झूले में हिचकोले लेने लगा था क्योंकि उसपर क्रोध या नाराजगी का हक तो कभी उसके पास था ही नहीं ….

दिन भर वह उखड़ा उखड़ा सा रहा . अपने रूम में ही अवसाद में लेटा रहा … नवह कॉलेज गया न ही कोचिंग में जाने का मन हुआ…. निया से मिले हुये दो महीने बीत चुके थे …शाम को अम्बर घबराया हुआ सा आया , देखो कुणाल , जो मैं कह रहा था , वह सही निकला …लो निया और गूंज की चैटिंग पढो … गूंज ने मेरे प्रामिस करने के बाद ही शेयर की है  …वह तुम्हें चीट कर रही थी ….

निया , आजकल तेरे और कुणाल के बीच बहुत खिचड़ी पक रही है …. इश्क हो गया क्या….इश्क माय फुट …

गूंज तू भी कुछ समझती नहीं … वह पढने में तेज है और बुद्धू की तरह मेरे एसाइनमेंट पूरे कर देता है…….. बेवकूफ की तरह जरा सा प्यार का नाटक कर दो ….बस फ्री में पिक्चर ,बर्गर ,कॉफी, थियेटर  सब फ्री में ….

हा…हा….हा..की ढेरों स्माइली

वह गांव का गंवई सचमुच का इश्क समझ बैठा … मेसेज पर मेसेज करता जा रहा है ….

बुद्धू कहीं का …..

कुणाल के चेहरे की रंगत उड़ गई थी …

वह अपनी आंखों के झिलमिलाते आंसुओं को नहीं छिपा पा रहा था.

Hindi Love Stories : अनकहा प्यार – क्या सबीना और अमित एक-दूसरे के हो पाए?

Hindi Love Stories : वेफिर मिलेंगे. उन्हें भरोसा नहीं था. पहले तो पहचानने में एकदो मिनट लगे उन्हें एकदूसरे को. वे पार्क में मिले. सबीना का जबजब अपने पति से झगड़ा होता, तो वह एकांत में आ कर बैठ जाती. ऐसा एकांत जहां भीड़ थी. सुरक्षा थी. लेकिन फिर भी वह अकेली थी. उस की उम्र 40 वर्ष के आसपास थी. रंग गोरा, लेकिन चेहरा अपनी रंगत खो चुका था. आधे से ज्यादा बाल सफेद हो चुके थे. जो मेहंदी के रंग में डूब कर लाल थे. आंखें बुझबुझ सी थीं.

वह अपने में खोईर् थी. अपने जीवन से तंग आ चुकी थी. मन करता था कि  कहीं भाग जाए. डूब मरे किसी नदी में. लेकिन बेटे का खयाल आते ही वह अपने झलसे और उलझे विचारों को झटक देती. क्याक्या नहीं हुआ उस के साथ. पहले पति ने तलाक दे कर दूसरा विवाह किया. उस के पास अपना जीवन चलाने का कोई साधन नहीं था. उस पर बेटे सलीम की जिम्मेदारी.

पति हर माह कुछ रुपए भेज देता था. लेकिन इतने कम रुपयों में घर चलाए या बेटे की परवरिश अच्छी तरह करे. मातापिता स्वयं वृद्ध, लाचार और गरीब थे. एक भाई था जो बड़ी मुश्किल से अपना गुजारा चलाता था. अपना परिवार पालता था. साथ में मातापिता भी थे. वह उन से किस तरह सहयोग की अपेक्षा कर सकती थी.

उस ने एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने का काम शुरू कर दिया. वह अंगरेजी में एमए के साथ बीएड भी थी. सो, उसे आसानी से नौकरी मिल गई. सरकारी नौकरी की उस की उम्र निकल चुकी थी. वह सोचती, आमिर यदि बच्चा होने के पहले या शादी के कुछ वर्ष बाद तलाक दे देता, तो वह सरकारी नौकरी तो तलाश सकती थी. उस समय उस की उम्र सरकारी नौकरी के लायक थी. शादी के कुछ समय बाद जब उस ने आमिर के सामने नौकरी करने की बात कही, तो वह भड़क उठा था कि हमारे खानदान में औरतें नौकरी नहीं करतीं.

उम्र गुजरती रही. आमिर दुबई में इंजीनियर था. अच्छा वेतन मिलता था. किसी चीज की कमी नहीं थी. साल में एकदो बार आता और सालभर की खुशियां हफ्तेभर में दे कर चला जाता. एक दिन आमिर ने दुबई से ही फोन कर के उसे यह कहते हुए तलाक दे दिया कि यहां काम करने वाली एक अमेरिकन लड़की से मुझे प्यार हो गया है. मैं तुम्हें हर महीने हर्जाखर्चा भेजता रहूंगा. मुझे अपनी गलती का एहसास तो है, लेकिन मैं दिल के हाथों मजबूर हूं. एक बार वापस आया तो तलाक की शेष शर्तें मौलवी के सामने पूरी कर दीं और चला गया. इस बीच एक बेटा हो चुका था.

आमिर को कुछ बेटे के प्रेम ने खींचा और कुछ अमेरिकन पत्नी की प्रताड़ना ने सबीना की याद दिलाई. और वह माफी मांगते हुए दुबई से वापस आ गए. लेकिन सबीना से फिर से विवाह के लिए उसे हलाला से हो कर गुजरना था. सबीना इस के लिए तैयार नहीं हुई. आमिर ने मौलवी से फिर निकाह के विकल्प पूछे जिस से सबीना राजी हो सके. मौलवी ने कहा कि 3 लाख रुपए खर्च करने होंगे. निकाह का मात्र दिखावा होगा. तुम्हारी पत्नी को उस का शौहर हाथ भी नहीं लगाएगा. कुछ समय बाद तलाक दे देगा.

‘ऐसा संभव है,’ आमिर ने पूछा.

‘पैसा हो तो कुछ भी असंभव नहीं,’ मौलाना ने कहा.

‘कुछ लोग करते हैं यह बिजनैस अपनी गरीबी के कारण. लेकिन यह बात राज ही रहनी चाहिए.’

‘मैं तैयार हूं,’ आमिर ने कहा और सबीना को सारी बात समझई. सबीना न चाहते हुए भी तैयार हो गई. सबीना को अपनी इच्छा के विरुद्ध निकाह करना पड़ा. कुछ समय गुजारना पड़ा पत्नी बन कर एक अधेड़ व्यक्ति के साथ. फिर तलाक ले कर सबीना से आमिर ने फिर निकाह कर लिया.

दुबई से नौकरी छोड़ कर आमिर ने अपना खुद का व्यापार शुरू कर दिया. बेटे सलीम को पढ़ाई के लिए उसे होस्टल में डाल दिया. सबीना का भी आमिर ने अच्छी तरह ध्यान रखा. उसे खूब प्रेम दिया. लेकिन जबजब आमिर सबीना से कहता कि नौकरी छोड़ दो. सबकुछ है हमारे पास. सबीना ने यह कह कर इनकार कर दिया कि कल तुम्हें कोई और भा गई. तुम ने फिर तलाक दे दिया तो मेरा क्या होगा? फिर मुझे यह नौकरी भी नहीं मिलेगी. मैं नौकरी नहीं छोड़ सकती. इस बात पर अकसर दोनों में बहस हो जाती. घर का माहौल बिगड़ जाता. मन अशांत हो जाता सबीना का.

‘तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं है?’ आमिर

ने पूछा.

‘नहीं है,’ सबीना ने सपाट स्वर में

जवाब दिया.

‘मैं ने तो तुम पर विश्वास किया. तुम्हें क्यों नहीं है?’

‘कौन सा विश्वास?’

‘इस बात का कि हलाला में पराए मर्द को तुम ने हाथ भी नहीं लगाया होगा.’

‘जब निकाह हुआ तो पराया कैसे रहा?’

‘मैं ने इस बात के लिए 3 लाख रुपए खर्च किए थे. ताकि जिस से हलाला के तहत निकाह हो, वह  हाथ भी न लगाए तुम्हें.’

‘भरोसा मुझ पर नहीं किया आप ने. भरोसा किया मौलवी पर. अपने रुपयों पर, या जिस से आप ने गैरमर्द से मेरा निकाह करवाया.’’

‘लेकिन भरोसा तो तुम पर भी था न.’

‘न करते भरोसा.’

‘कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरे 3 लाख रुपए भी गए और तुम ने रंगरेलियां भी मनाई हों.’ आमिर की इस बात पर बिफर पड़ी सबीना. बस, इसी मुद्दे को ले कर दोनों में अकसर तकरार शुरू हो जाती और सबीना पार्क में आ कर बैठ जाती.

पार्क की बैंच पर बैठे हुए उस की दृष्टि सामने बैठे हुए एक अधेड़ व्यक्ति पर पड़ी. वह थोड़ा चौंकी. उसे विश्वास नहीं हुआ इस बात पर कि सामने बैठा हुआ व्यक्ति अमित हो सकता है. अमित उस के कालेज का साथी. 45 वर्ष के आसपास की उम्र, दुबलापतला शरीर, सफेद बाल, कुछ बढ़ी हुई दाढ़ी जिस में अधिकांश बाल चांदी की तरह चमक रहे थे. यहां क्या कर रहा है अमित? इस शहर के इस पार्क में, जबकि उसे तो दिल्ली में होना चाहिए था. अमित ही है या कोई और. नहीं, अमित ही है. शायद मुझ पर नजर नहीं पड़ी उस की.

अमित और सबीना एकसाथ कालेज में पूरे 5 वर्ष तक पढ़े. एक ही डैस्क पर बैठते. एकदूसरे से पढ़ाई के संबंध में बातें करते. एकदूसरे की समस्याओं को सुलझने में मदद करते. जिस दिन वह कालेज नहीं आती, अमित उसे अपने नोट्स दे देता. जब अमित कालेज नहीं आता, तो सबीना उसे अपने नोट्स दे देती. कालेज के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में दोनों मिल कर भाग लेते और प्रथम पुरुस्कार प्राप्त करते हुए सब की वाहवाही बटोरते. जिस दिन अमित कालेज नहीं आता, सबीना को कालेज मरघट के समान लगता. यही हालत अमित की भी थी. तभी तो वह दूसरे दिन अपनत्वभरे क्रोध में डांट कर पूछता. ‘कल कालेज क्यों नहीं आईं तुम?’

सबीना समझ चुकी थी कि अमित के दिल में उस के प्रति वही भाव हैं जो उस के दिल में अमित के प्रति हैं. लेकिन दोनों ने कभी इस विषय पर बात नहीं की. सबीना घर से टिफिन ले कर आती जिस में अमित का मनपसंद भोजन होता. अमित भी सबीना के लिए कुछ न कुछ बनवा कर लाता जो सबीना को बेहद पसंद था. वे अपनेअपने सुखदुख एकदूसरे से कहते. अमित ने बताया कि उस के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. घर में बीमार बूढ़ी मां है. जवान बहन है जिस की शादी की जिम्मेदारी उस पर है. अपने बारे में क्या सोचूं? मेरी सोच तो मां के इलाज और बहन की शादी के इर्दगिर्द घूमती रहती है. बस, अच्छे परसैंट बन जाएं ताकि पीएचडी कर सकूं. फिर कोई नौकरी भी कर लूंगा.’’

सबीना उसे सांत्वना देते हुए कहती, ‘चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएगा.

सबीना के घर की उन दिनों आर्थिक स्थिति अच्छी थी. उस के अब्बू विधायक थे. उन के पास सत्ता भी थी और शक्ति भी. कभी कहने की हिम्मम नहीं पड़ी उस की अपने अब्बू से कि वह किसी हिंदू लड़के से प्यार करती है. कहती भी थी तो वह जानती थी कि उस का नतीजा क्या होगा? उस की पढ़ाईलिखाई तुरंत बंद कर के उस के निकाह की व्यवस्था की जाती. हो सकता है कि अमित को भी नुकसान पहुंचाया जाता. लेकिन घर वालों की बात क्या कहे वह? उस ने खुद कभी अमित से नहीं कहा कि वह उस से प्यार करती है. और न ही अमित ने उस से कहा.

अमित अपने परिवार, अपने कैरियर की बातें करता रहता और वह अमित की दोस्त बन कर उसे तसल्ली देती रहती. पैसों के अभाव में सबीना ने कई बार अमित के लाख मना करने पर उस की फीस यह कह कर भरी कि जब नौकरी लग जाए तो लौटा देना, उधार दे रही हूं.

और अमित को न चाहते हुए भी मदद लेनी पड़ती. यदि मदद नहीं लेता तो उस का कालेज कब का छूट चुका होता. कालेज की तरफ से कभी पिकनिक आदि का बाहर जाने का प्रोग्राम होता, तो अमित के न चाहते हुए भी उसे सबीना की जिद के आगे झकना पड़ता. कई बार सबीना ने सोचा कि अपने प्यार का इजहार करे लेकिन वह यह सोच कर चुप रह गई कि अमित क्या सोचेगा? कैसी बेशर्म लड़की है? अमित को पहल करनी चाहिए. अमित

कैसे पहल करता? वह तो अपनी गरीबी

से उबरने की कोशिश में लगा हुआ था. अमित सबीना को अपना सब से अच्छा दोस्त मानता था. अपना सब से बड़ा शुभचिंतक. अपने सुखदुख का साथी. लेकिन वह भी कर न सका अपने प्यार

का इजहार.

प्यार दोनों ही तरफ था. लेकिन कहने की पहल किसी ने नहीं की. कहना जरूरी भी नहीं था. प्यार है, तो है. बीए प्रथम वर्ष से एमए के अंतिम वर्ष तक, पूरे 5 वर्षों का साथ. यह साथ न छूटे, इसलिए सबीना ने भी अंगरेजी साहित्य लिया जोकि अमित ने लिया था. अमित ने पूछा भी, ‘तुम्हारी तो हिंदी साहित्य में रुचि थी?’

‘मुझे क्या पता था कि तुम अंगरेजी साहित्य चुनोगे,’ सबीना ने जवाब दिया.

‘तो क्या मेरी वजह से तुम ने,’ अमित ने पूछा.

‘नहीं, नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. सोचा कि अंगरेजी साहित्य ही ठीक रहेगा.’

‘उस के बाद क्या करोगी?’

‘तुम क्या करोगे?’

‘मैं, पीएचडी.’

‘मैं भी, सबीना बोली.’

लेकिन एमए पूरा होते ही सबीना के निकाह की बात चलने लगी. उस के पिता चुनाव हार चुके थे. और सारी जमापूंजी चुनाव में लगा चुके थे. बहुत सारा कर्र्ज भी हो गया था उन पर. जब सबीना ने निकाह से मना करते हुए पीएचडी की बात कही, तो उस के अब्बू ने कहा, ‘बीएड कर लो. पढ़ाई करने से मना नहीं करता. लेकिन पीएचडी नहीं. मैं जानता हूं कि पीएचडी के नाम पर पीएचडी करने वालों का कैसा शोषण होता है? निकाह करो और प्राइवेट बीएड करो. अपने अब्बू की बात मानो. समय बदल चुका है. मेरी स्थिति बद से बदतर हो गई है. अपने अब्बू का मान रखो.’ अब्बू की बात तो वह काट न सकी, सोचा, जा कर अमित के सामने ही हिम्मत कर के अपने प्यार का इजहार कर दे.

अमित को जब उस ने बीएड की बात बताई और साथ ही निकाह की, तो अमित चुप रहा.

‘तुम क्या कहते हो?’

‘तुम्हारे अब्बू ठीक कहते हैं,’ उस ने उदासीभरे स्वर में कहा.

‘उदास क्यों हो?’

‘दहेज न दे पाने के कारण बहन की शादी टूट गई.’ सबीना क्या कहती ऐसे समय में चुप रही. बस, इतना ही कहा, ‘अब हमारा मिलना नहीं होगा. कुछ कहना चाहते हो, तो कह दो.’

‘बस, एक अच्छी नौकरी चाहता हूं.’

‘मेरे बारे में कुछ सोचा है कभी.’

वह चुप रहा और उस ने मुझे भी चुप रहने को कहा, ‘कुछ मत कहो. हालात काबू में नहीं हैं. मैं भी पीएचडी करने के लिए दिल्ली जा रहा हूं. औल द बैस्ट. तुम्हारे निकाह के लिए.’

दोनों की आंखों में आंसू थे और दोनों ही एकदूसरे से छिपाने की कोशिश कर रहे थे. जो कहना था वह अनकहा रह गया. और आज इतने वर्षों के बीत जाने के बाद वही शख्स नागपुर में पार्क में इस बैंच पर उदास, गुमसुम बैठा हुआ है. सबीना उस की तरफ बढ़ी. उस की निगाह सबीना की तरफ गई. जैसे वह भी उसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो.

‘‘पहचाना,’’ सबीना ने कहा.

कुछ देर सोचते हुए अमित ने कहा, ‘‘सबीना.’’

‘‘चलो याद तो है.’’

‘‘भूला ही कब था. मेरा मतलब, कालेज का इतना लंबा साथ.’’

‘‘यह क्या हुलिया बना रखा है,’’ सबीना ने पूछा.

‘‘अब यही हुलिया है. 45 साल का वक्त की मार खाया आदमी हूं. कैसा रहूंगा? जिंदा हूं. यही बहुत है.’’

‘‘अरे, मरें तुम्हारे दुश्मन. यह बताओ, यहां कैसे?’’

‘‘मेरी छोड़ो, अपने बारे में बताओ.’’

‘‘मैं ठीक हूं. खुश हूं. एक बेटे की मां हूं. प्राइवेट स्कूल में टीचर हूं. पति का अपना बिजनैस है,’’ सबीना ने हंसते

हुए कहा.

‘‘देख कर तो नहीं लगता कि खुश हो.’’

‘‘अरे भई, मैं भी 40 साल की हो गई हूं. कालेज की सबीना नहीं रही. तुम बताओ, यहां कैसे? और हां, सच बताना. अपनी बैस्ट फ्रैंड से झठ मत बोलना.’’

‘‘झठ क्यों बोलूंगा. बहन की शादी हो चुकी है. मां अब इस दुनिया में नहीं रहीं. मैं एक प्राइवेट कालेज में प्रोफैसर हूं. मेरा भी एक बेटा है.’’

‘‘और पत्नी?’’

‘‘उसी सिलसिले में तो यहां आया हूं. पत्नी से बनी नहीं, तो उस ने प्रताड़ना का केस लगा कर पहले जेल भिजवाया. किसी तरह जमानत हुई. कोर्ट में सम?ौता हो गया. आज कोर्ट में आखिरी पेशी है. उसे ले जाने के लिए आया हूं. अदालत का लंचटाइम है, तो सोचा पास के इस बगीचे में थोड़ा आराम कर लूं,’’ उस ने यह कहा तो सबीना ने कहा, ‘‘मतलब, खुश नहीं हो तुम.’’

उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘खुश तो हूं लेकिन सुखी नहीं हूं.’’

जी में तो आया सबीना के, कि कह दे कालेज में जो प्यार अनकहा रह गया, आज कह दो. चलो, सबकुछ छोड़ कर एकसाथ जीवन शुरू करते हैं. लेकिन कह न सकी. उसे लगा कि अमित ही शायद अपने त्रस्त जीवन से तंग आ कर कुछ कह दे. लगा भी कि वह कुछ कहना चाहता था. लेकिन, कहा नहीं उस ने. बस, इतना ही कहा, ‘‘कालेज के दिन याद आते हैं तो तुम भी याद आती

हो. कम उम्र का वह निश्छल प्रेम, वह मित्रता अब कहां? अब तो

केवल गृहस्थी है. शादी है. और उस शादी को बचाने की हर

संभव कोशिश.’’

‘‘आज रुकोगे, तुम्हारा तो ससुराल है इसी शहर में,’’ सबीना ने पूछा.

‘‘नहीं, 4 बजे पेशी होते ही मजिस्ट्रेट के सामने समझौते के कागज पर दस्तखत कर के तुरंत निकलना पड़ेगा. 8 दिन बाद से कालेज की परीक्षाएं शुरू होने वाली हैं. फिर, बस खानापूर्ति के लिए, समाज के रस्मोरिवाज के लिए कानूनी दांवपेंच से बचने के लिए पत्नी को ले कर जाना है. ऐसी ससुराल में कौन रुकना चाहेगा. जहां सासससुर, बेटी के माध्यम से दामाद को जेल की सैर करा दी जा चुकी हो.’’ उस के स्वर में कुछ उदासी थी.

‘‘अब कब मुलाकात होगी?’’ सबीना ने पूछा.

इस घने अंधकार में उजाले का टिमटिमाता तारा लगा अमित. सबीना की आंखों में आंसू आ गए. आंसू तो अमित की आंखों में भी थे. सबीना ने आंसू छिपाते हुए कहा, ‘‘पता नहीं, अब कब मुलाकात होगी.’’

‘‘शायद ऐसे ही किसी मोड़ पर. जब मैं दर्द में डूबा हुआ रहूं और तुम मिल जाओ अचानक. जैसे आज मिल गईं. मैं तो तुम्हें देख कर पलभर को भूल ही गया था कि यहां किस काम से आया हूं. मेरी कोर्ट में पेशी है. अपनी बताओ, तुम कैसी हो?’’

सबीना उस के दुख को बढ़ाना नहीं चाहती थी अपनी तकलीफ बता कर. हालांकि, समझ चुका था अमित कि उस की दोस्त खुश नहीं है. ‘‘बस, जिंदगी मिली है, जी रही हूं. थोड़े दुख तो सब के हिस्से में आते हैं.’’

‘‘हां, यह ठीक कहा तुम ने,’’ अमित ने कहा.

‘‘मेरे कोर्ट जाने का समय हो गया, मैं चलता हूं.’’

‘‘कुछ कहना चाहते हो,’’ सबीना ने कुरेदना चाहा.

‘‘कहना तो बहुतकुछ चाहता था. लेकिन कमबख्त समय, स्थितियां, मौका ही नहीं देतीं,’’ आह सी भरते हुए अमित ने कहा.

‘‘फिर भी, कुछ जो अनकहा रह गया हो कभी,’’ सबीना ने कहा. सबीना चाहती थी कि वह अमित के मुंह से एक बार अपने लिए वह अनकहा सुन ले.

‘‘बस, यही कि तुम खुश रहो अपनी जिंदगी में. मैं भी कोशिश कर रहा हूं जीने की. खुश रहने की. जो नहीं कहा गया पहले. उसे आज भी अनकहा ही रहने दो. यही बेहतर होगा. झठी आस पर जी कर क्यों अपना जीना हराम करना.’’

दोनों की आंखों में आंसू थे और दोनों ही एकदूसरे से छिपाने की कोशिश करते हुए अपनीअपनी अंधेरी सुरंगों की तरफ बढ़ चले. जो पहले अनकहा रह गया था, आज भी अनकहा ही रह गया.

Hindi Stories Online : तुम सही थी निशा

Hindi Stories Online :  ‘अभी तुम 10-15 मिनट हो न यहां?’’ वैभव ने गार्डन में निशा के करीब जा कर पूछा.

‘‘कुछ काम है?’’ निशा ने पलट कर सवाल किया.

निशा का यह औपचारिक व्यवहार वैभव को अजीब लगा. वह झेंपता हुआ बोला, ‘‘कोई काम नहीं है. बस, तुम्हें न्यू ईयर का गिफ्ट देना है. तुम्हारे लिए एक डायरी खरीद कर रखी है. तुम पहली जनवरी को तो आई नहीं, 10 को आई हो. मैं कई दिन डायरी ले कर गार्डन आया, लेकिन आज नहीं ले कर आया. रुकना, मैं डायरी ले कर आ रहा हूं.’’

‘‘तुम डायरी लेने घर जाओगे? रहने दो, मुझे नहीं चाहिए. कई डायरियां हैं घर में,’’ निशा बोली.

‘‘यह मैं ने कब कहा कि तुम्हारे पास डायरी नहीं है. तुम्हारे पास सबकुछ है. बस, मेरी खुशी के लिए ले लो. मैं ने बड़े प्रेम से उसे तुम्हारे लिए रखा है. मैं लेने जा रहा हूं,’’ निशा के जवाब को सुने बिना वैभव वहां से चला गया.

कुछ देर बाद वह बतौर गिफ्ट डायरी ले कर गार्डन में वापस आया. तब तक निशा के आसपास काफी लोग आ गए थे. वहां उस ने गिफ्ट देना उचित नहीं समझा, लेकिन जब निशा गार्डन से जाने लगी तो वैभव रास्ते में उस से मिला.

‘‘लो,’’ वैभव ने डायरी आगे बढ़ाते हुए बड़े प्रेम से कहा.

लेकिन निशा ने डायरी लेने के लिए हाथ आगे नहीं बढ़ाया. वह चुपचाप खड़ी रही.

‘‘लो,’’ वैभव ने दोबारा कहा.

‘‘नहीं, मैं इसे नहीं ले सकती,’’ निशा ने सीधे शब्दों में इनकार कर दिया.

‘‘आखिर क्यों?’’ वैभव ने खुद को अपमानित महसूस करते हुए जानना चाहा.

‘‘मैं घरपरिवार वाली हूं, मैं इसे किसी भी हालत में नहीं ले सकती,’’ निशा यह कह कर आगे बढ़ गई.

इस बार वैभव ने भी कुछ नहीं कहा. उस के दिल को जबरदस्त धक्का लगा. वह डायरी को अपनी कमीज के नीचे छिपाते हुए विपरीत दिशा की ओर चल पड़ा. उस की आंखों में आंसू उमड़ आए थे. कुछ दूर चलने के बाद वह एकांत में बैठ गया और सोचने लगा कि वह उस डायरी का क्या करे?

तभी उस के मन में आया कि डायरी को वह योग सिखाने वाले गुरुजी को दे देगा. तत्काल उस ने उस पृष्ठ को फाड़ा, जिस पर बड़े प्यार से निशा को संबोधित करते हुए नववर्ष की शुभकामना लिखी थी. उस ने जा कर गुरुजी को डायरी दे दी. गुरुजी ने गिफ्ट सहर्ष स्वीकार कर लिया और उसे आशीर्वाद दिया, लेकिन उसे वह खुशी नहीं मिली, जो निशा से मिलती. अभी भी उस का मन अशांत था और वह यकीन ही नहीं कर पा रहा था कि एक छोटी सी डायरी स्वीकार करने में निशा ने इतनी हठ क्यों दिखाई.

वह तरहतरह की बातें सोच रहा था, ‘चलो, इस गिफ्ट के बहाने हकीकत पता लग गई. जिस निशा को मैं जीजान से चाहता हूं, उस के मन में मेरे प्रति इतनी भी भावना नहीं है कि वह मेरा गिफ्ट तक ले सके. मैं भ्रम में जी रहा था.

‘अब उस से कोई संबंध नहीं रखूंगा. आज से सारा रिश्ता खत्म…नहीं…नहीं, लेकिन क्या मैं ऐसा कर पाऊंगा? क्या मैं उस से दूर रह कर जी पाऊंगा…शायद नहीं…क्यों नहीं जी पाऊंगा? उस से दूरी तो बना ही सकता हूं. दूर से देख लिया करूंगा, लेकिन मिलूंगा नहीं और न ही बात करूंगा. वह यही तो चाहती है. कब उस ने मुझ से मन से बात की? मैं ही तो उस से बात करता था. 10 शब्द बोलता था तो ‘हांहूं’ वह भी कर देती थी. कोई लगाव थोड़े ही था. लगाव तो मेरा था कि उस के बिना रातदिन बेचैन रहा करता था. उस के लिए तड़पता रहा, जिस ने आज मेरा इतना बड़ा अपमान कर दिया.

‘अगर ऐसा मालूम होता तो मैं उसे गिफ्ट देने का विचार ही मन में न लाता. ऐसी बेइज्जती मेरी इस से पहले कभी नहीं हुई. अब मैं उस से नजरें मिलाने लायक भी नहीं रहा. क्या मुंह ले कर उस के सामने जाऊंगा? अब तो दूरी ही ठीक है.’

लेकिन क्या ऐसा सोचने से मन बदल सकता था वैभव का? उस का प्यार बारबार उस पर हावी हो जाता और वह निशा से दूर रहने का निर्णय ले पाने में असफल हो जाता.

दिनभर उस का मन किसी काम में नहीं लगा. वह बेचैन रहा. उसे रात को ठीक से नींद भी नहीं आई. तरहतरह के विचार उस के मन में आते रहे.

वह उस बात को अपनी पत्नी सरिता से भी शेयर नहीं कर सकता था. हालांकि निशा के बारे में वह सरिता को बताया करता था, लेकिन यह बताने की उस की हिम्मत न थी. उसे डर था कि सरिता उस का मजाक उड़ाएगी. अंदर ही अंदर वह घुट रहा था.

अगले दिन सुबह 5 बजे वह जागा. रात को उस ने निश्चय किया था कि कुछ दिन तक वह गार्डन नहीं जाएगा, लेकिन सुबह खुद को रोक नहीं सका. निशा की एक झलक पाने के लिए वह बेचैन हो उठा और घर से चल पड़ा.

रास्ते में तरहतरह के विचार उस के मन में आते रहे, ‘आज निशा मिलेगी तो उस से बात नहीं करूंगा. अभिवादन भी नहीं. वह अपनेआप को समझती क्या है? उसे खुद पर घमंड है, तो मैं भी किसी मामले में उस से कम नहीं हूं. उस से मेरा कोई स्वार्थ नहीं है. बस, एक लगाव है, अपनापन है, जिसे वह गलत समझती है.’

लेकिन जब गार्डन आती हुई निशा अचानक दिखी, तो वैभव खुद को रोक नहीं पाया. वह उसे देखने लगा. निशा भी उसी की ओर देख रही थी. वैभव के मन में आया कि वह रास्ता बदल ले, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सका.

निशा वैभव के करीब आ गई, लेकिन वह उस की ओर न देख कर सामने देख रही थी. वैभव की निगाहें उसी पर थीं. वह सोच रहा था, ‘देखो न, आज इस ने एक बार भी पलट कर नहीं देखा. जाओजाओ, मैं ही कौन सा मरा जा रहा हूं, तुम से बात करने के लिए. मैं आज निशा की तरफ बिलकुल नहीं देखूंगा आखिर वह अपनेआप को समझती क्या है और ऐसे ही कब तक अपनी मनमरजी चलाती है.‘

तभी निशा उस की ओर पलटी. वैभव के हाथ तत्काल अभिवादन की मुद्रा में जुड़ गए. निशा ने भी अभिवादन का जवाब दिया, लेकिन आगे उन दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई.

इस के बाद गार्डन में दोनों अपनेअपने क्रियाकलाप में लग गए, लेकिन वैभव का मन बारबार निशा की ओर भाग रहा था.

ऐसे ही कई दिन गुजर गए. वैभव को निशा के बिना चैन नहीं था, लेकिन वह ऊपर से खुद को ऐसा दिखाने की कोशिश करता कि जैसे उस का निशा से कोई सरोकार ही नहीं है.

निशा सबकुछ समझ रही थी. एक दिन उस ने वैभव को रोका और मुसकराते हुए पूछा, ‘‘नाराज हो क्या?’’

‘‘नहीं. नाराज उन से हुआ जाता है, जो अपने हों. आप से मैं क्यों नाराज होने लगा?’’

निशा मुसकराते हुए बोली, ‘‘कुछ भी कहो, लेकिन नाराज तो हो. तुम्हारा चेहरा, दिल का हाल बयान कर रहा है, लेकिन तुम ने मेरी मजबूरी नहीं समझी.’’

‘‘एक छोटा सा गिफ्ट लेने में क्या मजबूरी थी?’’ वैभव ने तल्खी के साथ पूछा.

‘‘मजबूरी थी, वैभव. तुम ने समझने की कोशिश नहीं की,’’ निशा ने कहा.

‘‘मैं भी जानूं कि क्या मजबूरी थी?’’ वैभव ने जानना चाहा.

‘‘वैभव, सिर्फ भावनाओं से ही काम नहीं चलता. आगेपीछे भी सोचना पड़ता है. मैं ने कहा था न कि मैं घरपरिवार वाली हूं. तुम ने इस पर तो विचार नहीं किया और नाराज हो कर बैठ गए,’’ निशा ने कहा, ‘‘मैं अगर तुम्हारा गिफ्ट ले कर घर जाती तो घर के लोगपूछते कि किस ने दिया? सोचो, मैं क्या जवाब देती?

‘‘डायरी में तुम ने अपना नाम तो जरूर लिखा होगा. तुम्हारा नाम देख कर घर वाले क्या सोचते? इस बारे में तो तुम ने कुछ सोचा नहीं. बस, मुंह फुला लिया. बेवजह शक पैदा होता और मेरे लिए परेशानी खड़ी हो जाती. ऐसा भी हो सकता था कि मेरा गार्डन में आना हमेशा के लिए बंद हो जाता. तब हम दोनों मिल भी न पाते.’’

यह सुन कर वैभव को अपनी गलती का एहसास हुआ. उस के सारे गिलेशिकवे दूर हो गए और वह बोला, ‘‘तुम अपनी जगह सही थी, निशा.

‘‘तुम ने तो बड़ी समझदारी का काम किया. मुझे माफ कर दो. तुम्हारा फैसला ठीक था.

‘‘अब मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है. एक छोटा सा गिफ्ट तुम्हें वाकई परेशानी में डाल सकता था.’’

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