विवाह दुनिया भर की संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण संस्कार है. 2 परिचित लोग खुद मिल कर या 2 अपरिचितों के रिश्तेदार उन्हें एकदूसरे से मिला कर उन की शादी तय करते हैं. शादी के बाद नवविवाहित युगल का संसार सही माने में शुरू होता है. पुराने समय में शादी होने का मतलब था कि बच्चा तो होना ही चाहिए. यह एक रूटीन जैसा हो गया था क्योंकि किसी भी दंपती को बच्चा होना उन की सही गृहस्थी ऐसा समझा जाता था. पहले की मिसाल ही क्यों, आज भी शादी होने के बाद बहुत से घरों में नई जोडि़यों पर कभी सामाजिक रूप से तो कभी भावनात्मक रूप से बच्चे पैदा करने का दबाव रहता है.

ऐसे वक्त में उन पतिपत्नी ने क्या तय किया है, उन्होंने कब तक बच्चा होने देने का या न होने देने का फैसला किया है, ये बातें ध्यान में नहीं रखी जातीं. कई बार बिगड़े हुए लड़के या फिर कुछ अलग काम करने वाले लड़कालड़की के बारे में परिवार वाले एक ही बात सोचते हैं कि शादी करने के बाद 1-2 बच्चे हो जाएंगे तो सब ठीक हो जाएगा.

सामाजिक भेदभाव

पहले बच्चा न होने वाली महिला को बांझ कहा जाता था. उस महिला का पति 2-3 शादियां कर लेता था, फिर भी वह दोषी हो कर भी दोषी उस महिला को ही कहता था. बच्चों को जन्म देने वाली महिला को समाज में सम्मान दिया जाता था, लेकिन बच्चा न जनने वाली महिला को किसी भी शुभ कार्य में आने पर पाबंदी थी.

इस बारे में शादी के 7 साल बाद मां बनी संगीता ने कहा कि जब बच्चा नहीं हो रहा था तब हम दोनों ने मिल कर उस सत्य को स्वीकार कर लिया था और फिर अपनेअपने कैरियर की तरफ ध्यान देना भी शुरू किया था. हम दोनों एक ही कारोबार में होने के कारण एकसाथ मजे से काम कर रहे थे, लोगों के ताने भी सुन रहे थे.

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