बीते सालों में हम ने अपने भारतीय समाज में बहुत से बदलाव देखे हैं. लेकिन विवाह संस्था आज भी ठोस व मजबूत पत्थर सी टिकी हुई है. वैसे परंपरागत भारत में इसे बेहतर बनाने के लिए कई बदलाव हुए हैं और इसी क्रम में सर्वोच्च न्यायालय ने लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता दे कर भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. आज के युवा भिन्न संस्कृति व धर्म के होने के बावजूद विवाह बंधन में बंध रहे हैं और ऐसे विवाह सफल भी हो रहे हैं. मैरिज काउंसलर डा. गीतांजलि का ऐसे कदम उठाने वाली आधुनिक युवतियों से कहना है कि अगर वे अंतर्जातीय या अंतर्धार्मिक विवाह बंधन में बंधने जा रही हैं तो इस कदम से उन में एक नया विश्वास पैदा होगा. लेकिन इस तरह के बंधन में बंधने से पूर्व उन्हें जाति व धर्म को खूंटी पर टांग देना होगा. ऐसा कर के ही वे सुखी दांपत्य जीवन जी सकती हैं.

परिवार व समझौते का मुद्दा

24 वर्षीय एक मुसलिम युवती रुखसाना ने एक हिंदू युवक से शादी की है और वे इस समय 1 वर्ष की पुत्री की मां भी हैं. वे अपने वैवाहिक जीवन से पूरी तरह संतुष्ट व खुश नजर आती हैं. क्या आप को कोई समस्या नहीं आई? हमारे पूछने पर रुखसाना ने बताया, ‘‘कि मेरे पति के परिवार वालों की तरफ से कोई समस्या नहीं थी, परंतु मेरा परिवार थोड़ा सा संकुचित है. हम एकदूसरे को 10वीं कक्षा से जानते थे. फिर हम ने कोर्ट मैरिज कर ली, तो मेरे परिवार ने भी मेरा विवाह स्वीकार कर लिया.’’ परंतु यदि पति का परिवार आप को स्वीकार नहीं करता है, तो आप स्थिति को कैसे संभालेंगी? इस संबंध में 38 वर्षीय ब्यूटीशियन रेशमा का अनुभव जानें, जोकि 20 साल से विवाहिता हैं.

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