एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाली सुधा का पति नीरज हमेशा अपनी बेटी की देखभाल में सुधा की मदद करता है. दरअसल, सुधा सुबह जल्दी उठती है व घर का काम निबटा कर औफिस चली जाती है. नीरज बेटी को स्कूल छोड़ता है और शाम को औफिस से आते हुए बेटी को ‘बेबी सिटर’ से साथ ले कर आता है. घर आ कर वही बच्चे के खानपान व अन्य बातों पर ध्यान देता है. सुधा घर आ कर रात का खाना बना लेती है. इस तरह पतिपत्नी दोनों ने अपने काम को आपस में बांट लिया है, जिस से उन की सामंजस्यता हमेशा बनी रहती है. यह सच है कि बच्चों का लगाव मां से अधिक होता है. पर इस का मतलब यह तो नहीं कि उन्हें पिता के स्नेह व प्रोटैक्शन की आवश्यकता नहीं होती. अब अधिकतर लोग यह मानते हैं कि बच्चों को पालने में मां और पिता की समान भागीदारी होनी चाहिए.

हालांकि पहले यह धारणा थी कि मां घर पर रह कर बच्चों की देखभाल करे और पिता वित्तीय व्यवस्था को संभाले. लेकिन आजकल बढ़ती महंगाई और आर्थिक व्यवस्था के बीच संतुलन के लिए महिलाएं भी कामकाजी हो चुकी हैं. महिलाएं अब केवल मां की भूमिका नहीं निभातीं. वे औफिस गोइंग भी हैं. ऐसे में बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी केवल मां की नहीं, बल्कि पिता की भी होती है. लेकिन यह बात मातापिता की सोच पर निर्भर करती है, जो हरेक की अलगअलग होती है.

मातापिता दोनों की हो भागीदारी

मैरिज काउंसलर राशिदा कपाडि़या कहती हैं कि बच्चों को पालने में मातापिता दोनों की भागीदारी होनी चाहिए. मां की केयरिंग और पिता का प्रोटैक्शन दोनों से बच्चा अपनेआप को सुरक्षित महसूस करता है. अधिकतर देखा गया है कि जो बच्चा केवल मां या पिता के संरक्षण में बड़ा होता है, वह हमेशा अपनेआप को अकेला महसूस करता है. वह आगे चल कर किसी के साथ रिश्ता निभा नहीं पाता. क्योंकि वह रिश्तों की बौंडिंग समझ नहीं पाता. इसलिए मांपिता दोनों को ही अपना खाली समय बच्चे के साथ किसी न किसी रूप में बिताना चािहए.

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